इंटरनेट यूजर्स के बीच ट्रैंडिंग करता ChatGPT पर Ghibli Style Image

 Ghibli Style Image : आजकल ChatGPT पर Ghibli Style image बनाने की होड़ सी लग गई. छोटे बच्चों से लेकर बड़े हर कोई इसका दीवाना बना फिर रहा है. लोग डिफरेंट  तरह के फोटोज अपलोड कर उनके इंटरेस्टिंग Ghibli वर्जन बना रहे हैं.

स्टूडियो Ghibli सर्च ट्रेंड

हाल ही में OpenAI के सीईओ सैम अल्टमैन ने अपनी घिबली इमेज अपलोड करके इस ट्रेंड को वायरल किया. फिर तो भारत समेत दुनियाभर में “Studio Ghibli” सर्च ट्रेंड करने लगा.

क्या है स्टूडियो घिबली

स्टूडियो घिबली एक जापानी एनीमेशन फिल्म स्टूडियो है. जिसकी स्थापना 1985 में मियाजाकी हयाओ, ताकाहाता इसाओ और सुजुकी तोशियो ने की थी. ये कंपनी हाथ से बनाई गई पेंटिंग्स की मदद से हाई-क्वालिटी एनीमेशन फिल्में क्रिएट करने के लिए जानी जाती है. पिछले 40 सालों से कंपनी ने कार्टून एनिमेंशन बनाने के तौर तरीकों में बदलाव नहीं किया है. कंपनी की कुछ सबसे उल्लेखनीय एनिमेटेड फिल्मों में नेबर टोटोरो, स्पिरिटेड अवे, हाउल्स मूविंग कैसल, किकी की डिलीवरी सर्विस और प्रिंसेस मोनोनोके शामिल हैं.

ट्रैंडिंग स्टूडियो घिबली

आपको बता दें कुछ घंटो से भारत में “स्टूडियो घिबली” ट्रैंडिंग पर आ गया है. ये गूगल पर खूब ट्रेंड कर रहा है. वहीं इंटरनेट पर इसे लगभग 1 लाख से ज्यादा लोग सर्च कर चुके हैं. इससे पता चलता है कि घिबली में इमेज बनाने को लेकर इंटरनेट यूजर्स के बीच जबरदस्त क्रेज है.

घिबली वर्जन इमेज चैटजीपीटी के प्रीमियम वर्जन में

कुछ यूजर्स ने पहले एक्स (X) पर ट्विट कर बताया था कि घिबली वर्जन इमेज चैटजीपीटी के प्रीमियम वर्जन में बनाया जा सकता है. लेकिन बाद में कई यूजर्स ने पाया कि यह फ्री वर्जन में भी काम कर रहा है. इसके बाद चैटजीपीटी यूजर्स के बीच फोटोज को घिबली में कन्वर्ट करने की बाढ़ सी आ गई.

ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट का इस्तेमाल

OpenAI के सीईओ सैम अल्टमैन ने X पर ट्वीट कर बताया कि उनके जीपीयू ‘पिघल’ रहे हैं. दरअसल, चैटजीपीटी जैसे चैटबॉट कमांड से फोटोज को क्रिएट करने के लिए ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट, यानी GPU का इस्तेमाल करते हैं. ट्रेंड के बढ़ने से इनके GPU में दबाव बढ़ता है और ये ओवरहीट होने लगते हैं, जिससे प्रोसेसिंग धीमी हो जाती है. ऐसे में GPU को नुकसान से बचाने के लिए कुछ प्रोसेसिंग को रोकना या सीमित करना पड़ता है.

हमारे जीपीयू पिघल रहे हैं

सैम अल्टमैन ने ट्वीट किया कि, “यह देखना बहुत मजेदार है कि लोग चैटजीपीटी की बनाई फोटोज को खूब पसंद कर रहे हैं. लेकिन हमारे जीपीयू पिघल रहे हैं. हम इसे और अधिक कुशल बनाने पर काम करते हुए अस्थायी रूप से कुछ दर सीमाएं लागू करने जा रहे हैं. उम्मीद है कि इसमें ज्यादा  समय नहीं लगेगा! चैटजीपीटी फ्री टियर को जल्द ही प्रतिदिन 3 जनरेशन मिलेंगी.”

इसके साथ ही OpenAI के सीईओ ने कहा कि हम चैटजीपीटी पर इमेज क्रिएशन को तेज बनाने के लिए कुछ जनरेशन रिक्वेस्ट को रिफ्यूज कर रहे हैं. हम बहुत जल्द इसे ठीक कर लेंगे.

सेलिब्रिटीज के घिबली स्टाइल इमेज-

इस इमेज से प्रभावित हो कर लोग अमेरिकी प्रेजिडेंड डोनॉल्ड ट्रंप से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी, सचिन तेंदुलकर तक के घिबली स्टाइल कार्टून इमेज बना रहे हैं. इसके साथ ही इंटरनेट पर कई वायरल मीम्स के भी कार्टून बनाए जा रहे हैं.

कैसे बनाएं Ghibli Image

घिबली इमेज बनाने के लिए चैटजीपीटी अपने लेटेस्ट मॉडल GPT-4o का इस्तेमाल कर रहा है। घिबली इमेज जनरेशन इसी मॉडल से संभव हो पाया है। इसका सबसे इंटेरस्टिंग पहलू यह है कि यह Studio Ghibli के फेमस  कार्टून स्टाइल को दोहरा सकता है. आप भी आसानी के घिबली इमेज जनरेट कर सकते हैं.

1.सबसे पहले फोटोज गैलरीज में जा कर अपनी मनपसंद किसी भी इमेज को ChatGPT पर अपलोड करें जिसे आप Ghibli-स्टाइल में बदलना चाहते हैं.

2.GPT-4o मॉडल को प्रॉम्प्ट दें “इस इमेज का स्टूडियो Ghibli वर्जन बनाओ.”

3.अब आपकी Ghibli-स्टाइल इमेज रेडी  हो जाएगी. अब इसे सोशल मीडिया पर शेयर करके आप भी ट्रेंड में आ सकते हैं.

जब कौमेडियन Johny Lever को उनके फैन ने जून में बनाया अप्रैल फूल

Johny Lever : प्रसिद्ध कौमेडियन जौनी लीवर अपनी कौमेडी और हंसने की कला से प्रसिद्ध की चरम सीमा पर है. आज इतने सालों बाद भी जौनी लीवर को हिंदुस्तान में हर कोई जानता है उनकी कौमेडी से भरी फिल्में आज भी दर्शक देखना पसंद करते हैं. फिर चाहे वह तेजाब बाजीगर हो या दीवाना मस्ताना हो, यह हाउसफुल 4 ही क्यों ना हो.

सुनील दत्त अभिनीत फिल्म दर्द का रिश्ता से लाइमलाइट में आने वाले जौनी लीवर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनके लाखों प्रशंसक हैं. इन्हीं सारे प्रशंसकों में जौनी लीवर के एक फैन अर्थात प्रशंसक ने जून के महीने में जौनी को अप्रैल फूल बनाया. हाल ही में जौनी लीवर ने इस मजेदार वाकया को एक इंटरव्यू के दौरान शेयर किया.

जौनी लीवर के अनुसार मेरे तो ऐसे कई फैन है, लेकिन मेरे एक ने एक बार मेरी नाक में दम कर दिया. मेरा यह फैन बाकी लोगों से थोड़ा अलग था, एक दिन मुझे फोन आया कि मैं अनाम फिल्म के प्रोडक्शन हाउस से बोल रहा हूं फिल्म सिटी में शूटिंग है आप 3 बजे पहुंच जाना. मैं ठीक 3:00 बजे फिल्म सिटी पहुंचा तो वहां पर कोई शूटिंग नहीं थी और कौवे बोल रहे थे, कुछ दिन बाद फिर से फोन आया और होटल में मिलने के लिए उसने कहा विदेश में शो करने को लेकर आप से डील फाइनल करना है और यह कहकर मुझे एक होटल में मिलने के लिए बुलाया. क्योंकि मैं देशविदेश में शोज करता रहता हूं.

मुझे लगा के सचमुच शो के लिए ही बात करने के लिए बुला रहे हैं. वहां भी जब मैं गया तो वहां पर ऐसा कुछ नहीं था. ऐसे में मुझे बहुत गुस्सा आया ये सोच कर कि कौन मुझे बार बार परेशान कर रहा है. जब मैं घर पहुंचा तो इस बंदे का फोन फिर से आया और बोला कि मैं ही था जो आपको दो बार आने को बोला. अभी मैं कुछ बोलता कि उसने आगे बोला एक्चुअली मैं आपको अप्रैल फूल बना रहा था.

मैंने उसको कहा अरे भाई मेरे अभी जून का महीना है तो अप्रैल फूल क्यों बना रहे हो? तो वह भोलेपन के साथ जोर से हंसते हुए बोला क्या है ना जौनी भाई अप्रैल में मैं गांव गया हुआ था इसलिए मैं जून में आपको अप्रैल फूल बना रहा हूं . यह सुनकर मैंने अपना माथा पीट लिया. लेकिन साथ ही मुझे उसकी बेवकूफी और भोलेपन पर हंसी भी बहुत आई .

Love Life : बौयफ्रेंड फिजिकल रिलेशनशिप की डिमांड कर रहा है… क्या यह जायज है ?

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सवाल

मैं 1 साल से एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. हमेशा मेरी इच्छाओं का सम्मान करता है. ऐसा कोई काम नहीं करता जो मुझे नागवार गुजरता हो. मगर अब कुछ दिनों से वह शारीरिक संबंध बनाने को कह रहा है पर साथ ही यह भी कहता है कि यदि तुम्हारी मरजी हो तो. मैं ने उस से कहा कि ऐसा करने से यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा? इस पर उस का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं होगा. कृपया राय दें कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

दोस्ती में एकदूसरे की इच्छाओं को तवज्जो देना जरूरी होता है. तभी दोस्ती कायम रहती है. इस के अलावा आप का बौयफ्रैंड अभी आप का विश्वास जीतने के लिए भी ऐसा कर रहा है. जहां तक शारीरिक संबंधों को ले कर आप की आशंका है तो वह पूरी तरह सही है. यदि आप संबंध बनाती हैं तो गर्भ ठहर सकता है, इसलिए शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने से हर हाल में बचना चाहिए.

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अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास: वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग: पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

TMKOC : नई दया बेन का किरदार निभाएंगी काजल पिसल? जानें क्या है सच्चाई

TMKOC :  टीवी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) दर्शकों का फेवरेट शो है. इस शो के हर किरदार को लोग पसंद करते हैं, लेकिन जेठालाल और दया बेन की जोड़ी की बात ही अलग है, हालांकि अब यह शो बिना दया बेन का कई सालों से चल रहा है. इस शो के पुराने एपिसोड में जेठा और दया की जोड़ी देखते बनती है.

क्या यह ऐक्ट्रैस निभाएगी नई दयाबेन का किरदार?

दया बेन यानी दिशा वकानी ने इस किरदार को बखूबी निभाया है. साल 2017 में दिशा वकानी मैटरनिटी लीव पर चल गईं. तब से दर्शक इस शो में उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन रिपोर्ट के अनुसार तारक मेहता के निर्माता असित मोदी कन्फर्म कर चुके हैं कि दिशा वकानी अब इस शो में वापस नहीं आएंगी.

अब खबरें आ रही है कि शो के मेकर्स को दिशा वकानी का रिप्लेसमेंट मिल गया है. जी हां खबरों के मुताबिक ऐक्ट्रैस काजल पिसल नई दया बेन के किरदार में नजर आएंगी. लेकिन क्या वाकई काजल दया बेन के किरदार को निभाएंगी?

काजल पिसल ने बताया सच

इस तरह के कयासों पर काजल ने खुद रिएक्ट किया है. उन्होंने इस खबर को फेक बताया है. काजल ने स्पष्ट किया है कि वह ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दया बेन की भूमिका नहीं अदा कर रही हैं.

हालांकि, काजल ने आगे यह भी खुलासा किया कि उन्होंने ताारक मेहता शो के लिए औडिशन दिया था. काजल ने इस बारे में जूम से बातचीत में इस बात को स्पष्ट किया. काजल ने कहा कि उनके पास इस खबर को लेकर कई कौल और मैसेज आ रहे हैं, लेकिन इस खबर में कोई सच्चाई नहीं है. काजल ने कहा, ‘मैं पहले से ही ‘झनक’ में काम कर रही हूं. ऐसे में यह खबर झूठ है. बता दें कि काजल झनक में निगेटिव किरदार में नजर आती हैं. उनकी ऐक्टिंग कमाल की है. वह सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती हैं. अक्सर फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करती हैं.

दिशा वकानी फैमिली टाइम को कर रही हैं एंजौय

साल 2015 में दिशा वकानी ने शादी रचाई. 2017 में वह मां बनने वाली थी इसलिए मैटरनिटी लीव पर चली गईं. कई तारक मेहता में दिशा की वापसी की खबर आती रही, लेकिन शो में वह नजर नहीं आईं. 2022 में दिशा ने दूसरे बच्चे का स्वागत किया. रिपोर्ट के मुताबिक दिशा वकानी ने अभिनय छोड़ने का फैसला किया है.

Famous Hindi Stories : मेरी सास – कैसी थी उसकी सास

Famous Hindi Stories : कहानियों व उपन्यासों का मुझे बहुत शौक था. सो, कुछ उन का असर था, कुछ गलीमहल्ले में सुनी चर्चाओं का. मैं ने अपने दिमाग में सास की एक तसवीर खींच रखी थी. अपने घर में अपनी मां की सास के दर्शन तो हुए नहीं थे क्योंकि मेरे इस दुनिया में आने से पहले ही वे गुजर चुकी थीं.

सास की जो खयाली प्रतिमा मैं ने गढ़ी थी वह कुछ इस प्रकार की थी. बूढ़ी या अधेड़, दुबली या मोटी, रोबदार. जिसे सिर्फ लड़ना, डांटना, ताने सुनाना व गलतियां ढूंढ़ना ही आता हो और जो अपनी सास के बुरे व्यवहार का बदला अपनी बहू से बुरा व्यवहार कर के लेने को कमर कसे बैठी हो. सास के इस हुलिए से, जो मेरे दिमाग की ही उपज थी, मैं इतनी आतंकित रहती कि अकसर सोचती कि अगर मेरी सास ही न हो तो बेहतर है. न होगा बांस न बजेगी बांसुरी.

बड़ी दीदी का तो क्या कहना, उन की ससुराल में सिर्फ ससुरजी थे, सास नहीं थीं. मैं ने सोचा, उन की तो जिंदगी बन गई. देखें, हम बाकी दोनों बहनों को कैसे घर मिलते हैं. लेकिन सब से ज्यादा चकित तो मैं तब हुई जब दीदी कुछ ही सालों में सास की कमी बुरी तरह महसूस करने लगीं. वे अकसर कहतीं, ‘‘सास का लाड़प्यार ससुर कैसे कर सकते हैं? घर में सुखदुख सभीकुछ लगा रहता है, जी की बात सास से ही कही जा सकती है.’’

मैं ने सोचा, ‘भई वाह, सास नहीं है, इसीलिए सास का बखान हो रहा है, सास होती तो लड़ाईझगड़े भी होते, तब यही मनातीं कि इस से अच्छा तो सास ही न होती.’

दूसरी दीदी की शादी तय हो गई थी. भरापूरा परिवार था उन का. घर में सासससुर, देवरननद सभी थे. मैं ने सोचा, यह गई काम से. देखें, ससुराल से लौट कर ये क्या भाषण देती हैं. दीदी पति के साथ दूसरे शहर में रहती थीं, यों भी उन का परिवार आधुनिक विचारधारा का हिमायती था. उन की सास दीदी से परदा भी नहीं कराती थीं. सब तरह की आजादी थी, यानी शादी से पहले से भी कहीं अधिक आजादी. सही है, सास जब खुद मौडर्न होगी तो बहू भी उसी के नक्शेकदमों पर चलेगी.

दीदी बेहद खुश थीं, पति व उन की मां के बखान करते अघाती न थीं. मैं ने सोचा, ‘मैडम को भारतीय रंग में रंगी सास व परिवार मिलता तो पता चलता. फिर, ये तो पति के साथ रहती हैं. सास के साथ रहतीं तब देखती तारीफों के

पुल कैसे बांधतीं. अभी तो बस आईं

और मेहमानदारी करा कर चल दीं.

चार दिन में वे तुम से और तुम उन से क्या कहोगी?’

बड़ी दीदी से सास की अनिवार्यता और मंझली दीदी से सास के बखान सुनसुन कर भी, मैं अपने मस्तिष्क में बनाई सास की तसवीर पूरी तरह मिटा न सकी.

अब मेरी मां स्वयं सास बनने जा रही थीं. भैया की शादी हुई, मेरी भाभी की मां नहीं थी. सो, न तो वे कामकाज सीख सकीं, न ही मां का प्यार पा सकीं. पर मां को क्या हो गया? बातबात पर हमें व भैया को डांट देती हैं. भाभी को हम से बढ़ कर प्यार करतीं?. मां कहतीं, ‘‘बहू हमारे घर अपना सबकुछ छोड़ कर आई है, घर में आए मेहमान से सभी अच्छा व्यवहार करते हैं.’’

मां का तर्क सुन कर लगता, काश, सभी सासें ऐसी हों तो सासबहू का झगड़ा ही न हो. कई बार सोचती, ‘मां जैसी सासें इस दुनिया में और भी होंगी. देखते हैं, मुझे कैसी सास मिलती है.’

इसी बीच, एक बार अपनी बचपन की सहेली रमा से मुलाकात हुई. मैं उस के मेजर पति से मिल कर बड़ी प्रभावित हुई, उस की सास भी काफी आधुनिक लगीं, पर बाद में जब रमा से बातें हुईं तो पता लगा उन का असली रंग क्या है.

रमा कहने लगी, ‘‘मैं तो उन्हें घर के सदस्या की तरह रखना चाहती हूं पर वे तो मेहमानों को भी मात कर देती हैं. शादी के इतने सालों बाद भी मुझे पराया समझती हैं. मेरे दुखसुख से उन्हें कोई मतलब नहीं. बस, समय पर सजधज कर खाने की मेज पर आ बैठती हैं. कभीकभी बड़ा गुस्सा आता है. ननद के आते ही सासजी की फरमाइशें शुरू हो जाती हैं, ‘ननद को कंगन बनवा कर दो, इतनी साडि़यां दो.’ अकेले रमेश कमाने वाले, घर का खर्च तो पूरा नहीं पड़ता, आखिर किस बूते पर करें.

‘‘रमेश परेशान हो जाते हैं तो उन का सारा गुस्सा मुझ पर उतरता है. घर का सुखचैन सब खत्म हो गया है. रमेश अपनी मां के अकेले बेटे हैं, इसलिए उन का और किसी के पास रहने का सवाल ही नहीं है. पोतेपोतियों से यों बचती हैं गोया उन के बेटे के बच्चे नहीं, किसी गैर के हैं. कहीं जाना हुआ तो सब से पहले तैयार, जिस से बच्चों को न संभालना पड़े.’’

रमा की बातें सुन कर मैं बुरी तरह सहम गई. ‘‘अरे, यह तो हूबहू वही तसवीर साक्षात रमा की सास के रूप में विद्यमान है. अब तो मैं ने पक्का निश्चय कर लिया कि नहीं, मेरी सास नहीं होनी चाहिए. लेकिन होनी, तो हो कर रहती है. मैं ने सुना तो दिल मसोस कर रह गई. अब मां से कैसे कहूं कि यहां शादी नहीं करूंगी. कारण पूछेंगी तो क्या कहूंगी कि मुझे सास नहीं चाहिए. वाह, यह भी कोई बात है.

मन ही मन उलझतीसुलझती आखिर एक दिन मैं डोली में बैठ विदा हो ही गई. नौकरीपेशा पिता ने हम भाईबहनों को अच्छी तरह पढ़ायालिखाया, पालापोसा, यही क्या कम है.

मेरी देवरानियांजेठानियां सभी अच्छे खातेपीते घरों की हैं, मैं ने कभी यह आशा नहीं की कि ससुराल में मेरा भव्य स्वागत होगा. ज्यादातर मैं डरीसिमटी सी बैठी रहती. कोई कुछ पूछता तो जवाब दे देती. अपनी तरफ से कम ही बोलती. रिश्तेदारों की बातचीत से पता चला कि सास पति की शादी कहीं ऊंचे घराने में करना चाहती थीं. लेकिन पति को पता नहीं मुझ में क्या दिखा, मुझ से ही शादी करने को अड़ गए. लेनदेन से सास खुश तो नजर नहीं आईं, पर तानेबाने कभी नहीं दिए, यह क्या कम है.

मैं ने मां की सीख गांठ बांध ली थी कि उलट कर जवाब कभी नहीं दूंगी. पति नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर में रहते थे. मैं उन्हीं के साथ रहती. बीचबीच में हम कभी आते. मेरी सास ने कभी भी किसी बात के लिए नहीं टोका. मुझ से बिछिया नहीं पहनी गई, मुझे उलटी मांग में सिंदूर भरना कभी अच्छा नहीं लगा, गले में चेन पहनना कभी बरदाश्त न हुआ, हाथों में कांच की चूडि़यां ज्यादा देर कभी न पहन पाईं. मतलब सुहाग की सभी बातों से किसी न किसी प्रकार का परहेज था. पर सासजी ने कभी जोर दे कर इस के लिए मजबूर नहीं किया.

दुबलीपतली, गोरीचिट्टी सी मेरी सास हमेशा काम में व्यस्त रहतीं. दूसरों को आदेश देने के बजाय वे सारे काम खुद निबटाना पसंद करती थीं. बेटियों से ज्यादा उन्हें अपनी बहुओं के आराम का खयाल था.

इस बीच, मैं 2 बेटियों की मां बन चुकी थी. समयसमय पर बच्चों को उन के पास छोड़ जाना पड़ता तो कभी उन के माथे पर बल नहीं पड़ा. मेरे सामने तो नहीं, पर मेरे पीछे उन्होंने हमेशा सब से मेरी तारीफ ही की. मेरी बेटियां तो मुझ से बढ़ कर उन्हें चाहने लगी थीं. मेरी असली सास के सामने मेरी खयाली सास की तसवीर एकदम धुंधली पड़ती जा रही थी.

इसी बीच, मेरे पति का अपने ही शहर में तबादला हो गया. मैं ने सोचा, ‘चलो, अब आजाद जिंदगी के मजे भी गए. कभीकभार मेहमान बन कर गए तो सास ने जी खोल कर खातिरदारी की. अब हमेशा के लिए उन के पास रहने जा रहे हैं. असली रंगढंग का तो अब पता चलेगा. पर उन्होंने खुद ही मुझे सुझाव दिया कि 3 कमरों वाले उस छोटे से घर में देवरननदों के साथ रहना हमारे लिए मुश्किल होगा. फिर अलग रहने से क्या, हैं तो हम सब साथ ही.

मेरी मां मुझ से मिलतीं तो उलाहना दिया करतीं. ‘‘तुझे तो सास से इतना प्यार मिला कि तू ने अपनी मां को भी भुला दिया.’’

शायद इस दुनिया में मुझ से ज्यादा खुश कोई नहीं. मेरे मस्तिष्क की पहली वाली तसवीर पता नहीं कहां गुम हो गई. अब सोचती हूं कि टीवी सीरियल व फिल्मों वगैरा में गढ़ी हुई सास की लड़ाकू व झगड़ालू औरत का किरदार बना कर, युवतियां अकारण ही भयभीत हो उठती हैं. जैसी अपनी मां, वैसी ही पति की मां, वे भला बहूबेटे का अहित क्यों चाहेंगी या उन का जीवन कलहमय क्यों बनाएंगी. शायद अधिकारों के साथसाथ कर्तव्यों की ओर भी ध्यान दिया जाए तो गलतफहमियां जन्म न लें. एकदूसरे को दुश्मन न समझ कर मित्र समझना ही उचित है. यों भी, ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती.

मेरी सास मुझ से कितनी प्रसन्न हैं, इस के लिए मैं लिख कर अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बनना चाहती, इस के लिए तो मेरी सास को ही एक लेख लिखना पड़ेगा. पर उन की बहू अपनी सास से कितनी खुश है, यह तो आप को पता चल ही गया है.

Hindi Moral Tales : शोखियों की कारगुजारियां

Hindi Moral Tales : मेरा नाम है तियाना. वैसे मेरे बारे में आप जान ही जाएंगे, पहले मैं अभिलाष के बारे में बताऊं. मैं अभिलाष को तब से जानती हूं जब वह राजनीति में कदम जमाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था और लगातार सालदरसाल इसी में लगा पड़ा था. यहां तक कि कालोनी वाले भी उस के भविष्य को ले कर तरस खा कर कहते, ‘‘4 साल से ऊपर तो हो गए बेचारा और कब तक एडि़यां घिसेगा. इस हिस्से में नहीं लिखा राजनीति तो जाने दे न.’’

मगर सालों की जी तोड़ कोशिश के बाद 5वें साल उस ने आखिर जंग जीत ही ली. होगी तब उस की उम्र कोई 27 या 28 साल की. जब मैं थी कोई 36 साल से कुछ महीने ऊपर ही. हमारी कालोनी नूतन नगर एक बहुत ही सभ्य सुंदर कालोनी है, तब भी थी. बड़ेबड़े अमीर लोगों का वास था, पर हां यह कालोनी और भी सुविधासंपन्न और साफ होती अगर इसे कोई योग्य लीडर मिलता.

मैं अपनी स्कूटी से कालेज जाते हुए अकसर अभिलाष से रूबरू होती क्योंकि वह कालोनी के किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ सफाई या व्यवस्था के काम में जुटा होता. जाने कितने सालों से वह पार्षद बनने की खाक छानता फिर रहा था और कालोनी का विकास बहुत हद तक इसी योजना का हिस्सा था.

खैर, अभिलाष के प्रयास से साल दर साल कालोनी की रंगत सुधरती रही, सुंदर बगीचे बने, रास्ते बने, गंदगी साफ होने की पुख्ता व्यवस्था हुई, पानी का इंतजाम इतना पुख्ता हुआ कि लोग लगभग भूल ही गए कि गरमी आने पर किस तरह कालोनी की पड़ोसिनें प्राइवेट पंप चला कर अपनेअपने घर में पानी खींच लेने को ले कर आपस में लड़ाइयां करती थीं.

लगभग 31 साल के होने तक उस के कामधाम और नाम की वजह से अभिलाष की फैन फौलोइंग काफी बढ़ गई थी और इन में मोटी, ताजी, लंबी, नाटी, गोरी, काली, गेहुआं, सुडौल, बेडौल, चपटी, पतली हर तरह की कालोनी वाली सार्वजनिक भाभियां मौजूद थीं, जिन की असली उम्र 40 के पार थी, लेकिन लगातार हर महीने वह घटघट कर अमावस्या के चांद की तरह पतली डोरनुमा बनी जाती थीं.

खैर, इन सब के बीच बात कुछ गंभीर भी थी. क्यों पता नहीं, (अब तो खैर पता है) अपनी उस 27 या 28 की उम्र से ही अभिलाष मु?ो कुछ अजीब सी नजरों से देखता. यों जैसेकि मैं कोई 21-22 की कमसिन लड़की हूं और जब देखो तब ऐसे देखते रहने से मु?ा में उस के प्रति शर्म की अनुभूति होने लगी थी. उस पर नजर पड़ते ही मैं सिर झुका कर आगे देखते हुए स्कूटी की स्पीड बढ़ा कर निकल जाया करती. बाद में मन में सोचती कि मुझ से इतना तो छोटा है, फिर उस के देखने भर से मुझे शर्म सी क्यों महसूस हो रही है? क्यों मैं खुद के व्यक्तित्व के प्रति सचेत सी हो जाती?

वैसे मुझे पता है, मैं खूबसूरत और स्मार्ट हूं, कालेज में लैक्चरर हूं और 36 की उम्र में मुश्किल से 30 की लगती. लेकिन उस से क्या होता है, मेरा एक दबंग पति है जिस की तब उम्र 42 साल, एक 13 साल की बेटी और एक 10 साल का बेटा. जबकि अभिलाष की तब तक शादी भी नहीं हुई थी. वह तो राजनीति में डुबकी लगालगा कर तैरने का ही अभ्यास कर रहा था. तैरना तो दूर की बात है.

मेरे दबंग पति जो वैसे तो वकील हैं लेकिन कालोनी भर में अपनी नेतागिरी के कारण अच्छी पैठ रखते हैं. कालोनी के हर आयोजन में, हरेक निर्णय में भागीदार रहते हैं और अभी तक पार्षद के चुनाव के लिए एडि़यां घिसता अभिलाष मेरे दबंग पति को दादा कह कर इज्जत देने को भी मजबूर था.

लिहाजा, अभी तक ऐसी कोई सूरत नहीं  थी कि अभिलाष से मेरी कोई बात होती या

उस का फोन नंबर ही मेरे पास रहता और अब इन 5 सालों तक राजनीति में लाख आजमाइश के बाद अचानक एक दिन चुनाव से पहले बीसियों भाभियों की सजीधजी भीड़ ले कर अभिलाष मेरे दरवाजे पर पहुंचा और पहली बार मुझ से मुखातिब हुआ, ‘‘भाभी, मुझे जिता दीजिएगा, पार्षद बन गया तो…’’

इतने में ढेर सारी भाभियों के कलरव ने अभिलाष की बाकी बातें लगभग छीन सी

लीं, ‘‘अभिलाष को जिताना है, कालोनी को सजाना है.’’

होहल्ले के बीच मेरी नजर अभिलाष पर गई. उस की नजर मुझ पर एकटक टिकी थी. अभी वह अपनी उम्र के 31वें पड़ाव पर एक शादीशुदा परिपक्व राजनीतिज्ञ बन चुका था.

मैं ने आश्वासन दिया और सभी चले गए लेकिन एक कुछ रह गया, जो मुझे अच्छा तो नहीं लगा लेकिन पता नहीं कुछकुछ सा होता रहा.

नियत समय पर अभिलाष की मनोकामना पूर्ण हुई. इतने दिनों का संभावित फल उस की ?ाली में गिर चुका था. अभिलाष पार्षद बन चुका था.

अब तो उस के जलवे थे. विधायक, सांसद और मुख्यमंत्री के साथ तक उस का उठनाबैठना शुरू हो गया था. साल बीत रहे थे, वह व्यस्त दर व्यस्त हो रहा था.

अब तो कालोनी की जान था वह. मुझे भी अब तरहतरह के सरकारी कागजातों के सुधार के लिए उस के पास जाना पड़ता और इसी दौरान उस ने मुझ से मेरा फोन नंबर ले लिया. न कहने की मेरी ओर से गुंजाइश नहीं थी क्योंकि आधार कार्ड हो या कोई सरकारी योजना मुझे पार्षद अभिलाष को साथ ले कर चलना था जैसे अन्य चलते हैं.

एक दिन अचानक उस ने अपना एक जबरदस्त फोटो मेरे व्हाट्सएप नंबर पर भेजा वह भी मुख्यमंत्री के साथ किसी राजनीतिक आयोजन में उस की उपस्थिति वाला. मु?ो यह कुछ ठीक नहीं लगा. उस की नजर याद आई, गोलमाल सी महसूस हुई.

यह और बात थी कि वह स्मार्ट था, हैंडसम था, यंग था और मैं उस की प्रशंसा भी खुले दिल से कर सकती हूं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं बचकाना हरकत करूं या अपनी जिंदगी के साथ खेल जाऊं. भाई कुछ नहीं तो मेरे दबंग पति के रहते मैं उन के पीठ पीछे किसी और को आंख उठा कर भी देख लूं. जहन्नुम इस से भली होगी मेरे लिए.

तुरंत एक हिमाकत भरा फौरवर्डेड जोक भी पहुंच गया उस तसवीर के पीछेपीछे. अब मैं निश्चिंत हो गई थी कि अभिलाष मुझे कुछ प्राइवेट संदेश दे रहा है, जिस का मुझे किसी तरकीब से विरोध करना पड़ेगा.

मैं दरअसल डर गई थी. यह नया क्या शुरू हो रहा था, वैसे अभिलाष मुझे बुरा नहीं लगता था लेकिन मैं झंझट में नहीं पड़ सकती थी.

दूसरी मुसीबत यह थी कि मेरे मातापिता इसी साल दूसरे राज्य से मेरे ही शहर में शिफ्ट हो कर आए थे वह भी हमारी ही कालोनी में एक नए किराए के मकान में. अब मेरे पापा की पैंशन और आधार कार्ड को ले कर मैं बुरी तरह फंसी हुई थी और यह काम पार्षद अभिलाष की मदद से ही होने को रुका था.

काम खत्म होने के बाद अगर यह सब आया होता, तो मैं ज्यादा सोचने को विवश नहीं होती, लेकिन अभी सीधे कोई खरी बात सुनाना जरा पेचीदा था. तिस पर करेले पर नीम चढ़ा यह कि मेरे वकील महोदय पति, पता नहीं पेशे की वजह से शक्की थे या शक्की होने की वजह से वकील थे हमेशा हर बात पर उन की शक की सूई घूम कर मुझ पर ही टिक जाती थी.

करूं तो क्या. सामने वाला औनलाइन मेरे जवाब के लिए रुका लग रहा था. मेरा दिमाग गड्डमड्ड हो रहा था. मैं उस के फोटो पर थम्सअप की इमोजी दे कर गायब हो गई.

डरते हुए आधे घंटे बाद फोन चैक किया कि उस ने मुझे बख्श दिया हो, अगला मैसेज आया था, ‘‘आप के घर के पास के गार्डन में आया हूं, आइए.’’

बड़ी कोफ्त हुई. भाई यह क्या है. गार्डन में मिलने की बात तो कुछ गलत हिसाब की ओर ही इशारा करती है. पर मना कैसे करूं. इस से काम भी बहुत कराना है, कहीं खफा न हो जाए और अगर इस की बातों में आती हूं तो भी खाई में गिरना ही लिखा है. इसे ?ांसे में रख कर काम करवाने तक लपेटे रखती हूं. मेरे मन में हिसाब का खाता खुला था. जब तक मांपापा का आधार कार्ड बन जाए. मेरा आधार कार्ड नया सुधरे और सरकारी मैडिकल कार्ड बने तब तक इसे अपनी तरफ से सीधा मना न ही करूं. मतलब हां, न के बीच लटका कर रखूं. मगर तब तक मेरे पति

कहीं यह खेल तो नहीं रहा मेरे साथ या कहीं पति ने ही मेरे चरित्र के प्रमाणपत्र के लिए इसे मेरे पीछे लगाया हो. दिमाग तो कम नहीं चलता मेरे पति का.

हाय. क्या करूं. किस मुसीबत में फंसी रे मैं.

उसी वक्त फिर उधर से संदेश आ गया, ‘‘दादा कहां हैं? क्या कर रहे हैं?’’

मैं ने लिखा, ‘‘घर पर हैं,’’ सोचा ऐसा बताने से वह शायद अब चुप हो जाए.

उस ने पलट कर लिखा, ‘‘दादा से डर लगता है, दादा आप का फोन तो नहीं देखते?’’

मैं ने सोचा. यह ठीक है. उसे लिखा, ‘‘देखते भी हैं कभीकभी,’’ अनजान बनने का नाटक करते पूछा, ‘‘क्यों?’’

उस ने बिना कुछ बताए झटपट सारा संदेश डिलीट कर दिया.

मैं ने फोन रख दिया. सोचा अब दौड़धूप कल से ही मांपापा के आधार कार्ड के लिए

लगती हूं, मुसीबत भी कम नहीं थी न. मेरे दबंग पति को बड़ी चिढ़ थी, मेरे मातापिता और मेरे विदेश में जा बसे मेरे छोटे भाई को ले कर.

भाई के रहते मेरे मातापिता अपनी बीमारी की वजह से मेरे सहारे मेरे पास रहने आ गए थे, यद्धपि मेरे पति को कभी मेरे मातापिता की सहायता नहीं करनी पड़ी, चाहे आर्थिक हो या अन्य कुछ. लेकिन मेरा उन के प्रति सहज सहृदय रहना मेरे पति को फूटी आंख नहीं सुहाता. इसलिए दिक्कत कुछ ज्यादा ही थी. मेरी नौकरी के कारण इन कामों में देरी होना स्वाभाविक था और तब जब सरकारी काम के नखरे भी हजार हों.

खैर, मैं अपने कालेज में कुछ एडजस्टमैंट बैठा कर पार्षद औफिस गई. अभिलाष नहीं था. मैं आज कालेज नहीं गई थी, पार्षद के साइन आज ही होने जरूरी थे, मैं ने उसे मजबूरन फोन किया. उस ने तुरंत फोन उठाया और 10 मिनट में औफिस आ गया. मैं ने गौर किया

उस ने सलीके से कुरतापाजामा

और जैकेट पहन रखी थी, वह फब रहा था.

इरादतन वह मेरे बिलकुल करीब आ गया और मु?ा से फार्म ले कर जो मेरे भरने का हिस्सा था, उस ने भर दिया. आराम से सभी जगह पर उस ने साइन किए और जो उस के भरने की जगह थी और जिसे उस के कर्मचारी भरा करते थे, वह भी उस ने भर दी. फिर मुहर लगा कर वह फार्म मेरी ओर बढ़ाया ताकि आगे की कार्यवाही के लिए मैं उसे ले जाऊं. मैं औफिस से निकल गई थी. वह मेरे पीछे आया. मैं अब बहुत हद तक आजाद थी, यद्धपि अपने बहुत से काम अभी भी उस से कराने थे लेकिन सोचा देखा जाएगा, इस के इरादों के आगे ?ाकूंगी नहीं.

उस ने पास आ कर कहा, ‘‘घर छोड़ दूं?’’

मैं ने कहा, ‘‘मेरी गाड़ी है न शुक्रिया,’’ मैं विनम्रता से उस की ओर देख मुसकराई और गाड़ी तक चली.

वह मेरे पीछे था, पीछे से ही कहा, ‘‘मैं आप के लिए ही औफिस आया था, आज मुझे नहीं आना था.’’

मैं पीछे मुड़ी, उसे एक बार और धन्यवाद कहा. स्कूटी में चाबी लगाई तो पाया स्कूटी की टायर पंक्चर है.

यह कैसे हुआ. मान नहीं सकती. अभी 2 दिन पहले ही हवा डलवाई थी मैं. वह मेरे पीछे खड़ा मुसकरा रहा था, बोला, ‘‘आप के लिए ही आया मैं. बोला न मैं ने आइए चलिए,’’ वह अपनी गाड़ी मेरे बिलकुल पास ले आया. फिर मेरी स्कूटी की चाबी मांगते हुए बोला, ‘‘यहां के कर्मचारी शेखर को मैं कह दूंगा वह आप की गाड़ी का पंक्चर ठीक करवा कर मेरे घर छोड़ देगा, आप शाम को ले जाना.’’

कुछ हक्कीबक्की सी हो मैं ने चाबी उस की ओर बढ़ा दी. यह हवाहवाई का चक्कर अभिलाष का किया धरा ही था, मैं समझ गई लेकिन इतनी दूर यहां से पैदल जाना नामुमकिन था और यह कालोनी के अंदर की सड़क थी, किराए के वाहन नहीं चलते थे.

‘‘अरे बैठिए न,’’ उस ने जोर दिया.

अब करती क्या, उस की गाड़ी में बैठना पड़ा. लगभग चिपक कर और वह गाड़ी भी कितनी धीरे चलाता रहा कि हर पल मझे यही लगता कि मेरे वकील पति मेरी पीठ पीछे बैठे मेरे संग चल रहे हैं.

मेरे घर से कुछ दूरी पर वह मुझे उतार कर बोला, ‘‘शाम को मैं आप की गाड़ी बनवा कर रखता हूं, मैं शाम को घर पर ही रहूंगा, गाड़ी आ कर ले लीजिएगा.’’

‘‘कल मुझेऔफिस जाना है, प्लीज

बन जाए.’’

मजबूरन एक और कृपा लेनी पड़ रही थी, जिस का उस ने खुले दिल से स्वागत किया.

सोचा था, शाम को उस की बीवी तो होगी ही, ज्यादा क्या होगा, चाबी लेनी है और गाड़ी स्टार्ट कर के सीधे घर.

घर पर किसी काम से व्हाट्सऐप चैक कर रही थी, देखा अभिलाष का संदेश.

‘‘आप की गाड़ी तैयार है, जाइए.’’

शाम के 5 बज रहे थे. मेरे पति लगभग रात के 8 बजे आते हैं, दोनों बच्चों को मैं नहीं पढ़ाती क्योंकि नौकरी और मातापिता के काम की भागादौड़ के बाद मेरी हिम्मत नहीं होती कि बच्चों के पीछे सिर पटकु. ऐसे भी बेटी 12वीं कक्षा में है तो उस की पढ़ाई कुछ अलग ही है. बच्चे अभी ट्यूशन में होते हैं, जिन्हें मेरे पति कोर्ट और उस के बाद अपने निजी औफिस से लौटते वक्त साथ ले आते.

मुझे अभिलाष से पीछा छुड़ाना था, मुझे अभिलाष के हिसाब से चलना नहीं था. मुझे उस से फोन पर भी संवाद बंद करना था, बावजूद इस के मैं उस के घर जाते वक्त खुद की ही नजर बचा कर खुद को थोड़ा ज्यादा सुंदर दिखाने का प्रयास करती रही.

वैसे मैं खुद को जानती हूं, यह उस से ज्यादा उस की बीवी के लिए था. स्त्री मनोविज्ञान. एक अपरिचित स्त्री जिस के पति की मैं परिचित हूं, कदाचित असुंदर दिख कर खुद को कुंठित नहीं करना चाहती थी.

मैं ने हलकी नीबू पीली जौर्जेट की लंबी कुरती के साथ सफेद स्ट्रैचेबल जींस पेयर की, ऊपर से सफेद डैनिम शौर्ट जैकेट.

मेरे घर से उस का घर पास ही था. दरवाजे पर पहुंचते ही बैल बजाने की जरूरत ही नहीं पड़ी. वह तुरंत दरवाजा खोल कर मुझे अंदर बैठक में ले गया. वह एक पीले कुरते और सफेद चूड़ीदार में अच्छा लग रहा था.

तभी उस ने कहा, ‘‘अरे आप भी पीला सा ही पहनी हैं,’’ फिर मेरी तरफ प्रशंसा से देख कहा, ‘‘बहुत अच्छी लग रही हैं.’’

मैं भी क्या कहती, ‘‘थैंक्स मेरी चाबी…’’

‘‘हां जरूर देते हैं. साथ 1 कप कौफी पी कर जाइए.’’

‘‘अपनी बीवी से मिलाइए,’’ मैं ने प्रश्नसूचक नजर उस की ओर रखी.

उस ने हलकी सी मुसकान के साथ कहा, ‘‘मेरी बीबी मायके गई है. तभी तो बुलाया है.

वह रहती तो संभव नहीं था. बिलकुल पसंद नहीं उसे, समझती ही नहीं. काम के सिलसिले… जरूरतें… कुछ नहीं सम?ाती. खैर, क्या करें. आया 1 मिनट.’’

1 मिनट की जगह 15 मिनट बाद आया 2 कौफी और कुछ बिसकुट के साथ. जितना डरी थी वैसा कुछ भी नहीं हुआ, इस की तसल्ली थी मुझे वापस आ कर.

जरा सी हंसी, थोड़ी मेरी कहानी, थोड़ी उस की बातें और एक सामान्य सी दोस्ती जैसा कुछ मैं ले कर वापस आई थी. अब नए सिरे से कुछ शुरू न हो, इस उम्मीद के साथ मैं अपने में व्यस्त हो गई.

याद तो ठीक से नहीं लेकिन फिर भी 4-5 महीने से मुझे अभिलाषा की ज्यादा खबर नहीं मिली क्योंकि उस के थोड़ेबहुत संदेश का मैं ने कोई जवाब नहीं दिया था और इसी वजह वह भी कटा सा ही रहा.

पार्षद वाली उस की गाड़ी बड़ी धूम से चल रही थी और मैं ने भी फालतू बातों से मन को दूर रखने की ठान ली थी. अचानक लगभग साल भर बाद पार्षद कार्यालय के क्लर्क शेखर

का एक व्हाट्सऐप संदेश मेरे फोन पर आया. मैं अचंभित.

मैं ने खोला संदेश. लिखा था, ‘‘नमस्ते भाभी. भैया ने मुझे आप को यह संदेश लिखने को कहा है, भैया की तबीयत बहुत खराब है, वे किसी से बता नहीं पा रहे हैं. दरअसल, उन्हें डिप्रैशन हो गया है, आप को अपने घर बुलाया है, कब आएंगी बताइएगा?’’

मैं तो खजूर के पेड़ पर जा अटकी.

शेखर को ही संदेश लिखा, ‘‘अभिलाषजी की बीवी कहां हैं?’’

‘‘भैया से अनबन कर के मायके में जा बैठी हैं, 2 महीने हो गए.’’

‘‘तो आप ने उन्हें क्यों नहीं लिखा संदेश?’’ मैं ने फिर सवाल किया.

‘‘भैया तो आप को बुला रहे हैं, किसी से बिना कुछ कहे एक बार आ कर मिल लीजिए भैया से, आप लैक्चरर हैं, समझदार हैं. भैया से बात करेंगी तो उन का मन थोड़ा हलका  हो सकता है… पार्षद हैं, किसी को पता चला तो कैरियर खराब हो जाएगा, सब हंसेंगे और बात बनाएंगे.’’

‘‘देखती हूं,’’ मेरा जरा भी इस झमेले में पड़ने का मन नहीं था लेकिन मेरे स्त्री मन पर खुद के महत्त्वपूर्ण होने का भाव हावी हो गया और मैं चली गई अभिलाष के घर.

घर में उजाले और अंधेरे का कुछ अजीब सा मिश्रण था जो मुझे दुविधा में डाल रहा था.

आवाज लगाई धीरे से और अभिलाष बाहर निकला. मुझे तो ऐसा लगा नहीं कि वह बहुत दिनों से किसी मानसिक कष्ट में हो, लेकिन बुझ सा लगा, ‘‘आओ तिया अंदर आओ, आज तुम मेरे बुलाने पर आईं, तुम्हारे लिए बाहर का कमरा नहीं, तुम अंदर आओ.’’

शुरुआती तौर पर यह इज्जत अफजाई थी या करीबी होने की तस्दीक, मैं जांच नहीं पाई. नाम भी उस ने छोटा कर के लिया था, लेकिन स्त्री मन की अनुभूति ने जैसे मु?ो जकड़ लिया. मैं बात को अनसुना कर गई. भरोसा यह था कि अब तक उस ने मेरे साथ ऐसा कुछ भी किया नहीं था कि उस पर बिना बात शक करूं, सिवा इस वक्त उस के मेरे नाम को छोटा कर देने के. उस के साथ बैडरूम में आई, वह एक किनारे और मैं दूसरे किनारे बैठ गई.

मैं पूछती उस से पहले ही जरा मुंह लटका कर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘बहुत दबाव में हूं तिया. इधर विधायकजी मुझे साइड करने के लिए मुझ पर 2 लाख के घपले का आरोप रहे हैं, दूसरी ओर मेरी बीवी देखो एन वक्त पर मुझ पर ही शक कर के मायके चली गई. किसी को कुछ भी कहा तो लोग मुझे ही बदनाम करेंगे और अगले चुनाव में मैं पिछड़ जाऊंगा.’’

‘‘आप अपनी बीवी का नंबर दो मैं समझाऊंगी उन्हें.’’

‘‘कुछ नहीं होगा. देखो एक चीज दिखाता

हूं तुम्हें फोन पर,’’ ऐसा कहते हुए वह मेरे बिलकुल पास आ कर बैठ गया और मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर रोंआसा सा कहने लगा,’’ तिया मुझे तुम से बहुत उम्मीदें हैं, मुझे दुत्कारो मत, मैं पता नहीं कब से तुम्हें बहुत पसंद करता हूं, तुम्हें पाना, मतलब तुम्हे चाहता हूं,’’ उस ने मेरे हाथों को अपने हाथों में ले कर धीरेधीरे यों दबाते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों के कब्जे में ऐसे ले लिया कि मैं उस के वश में आने लगी.

एक तरफ मन और दिमाग मुझे यहां से उठ कर भागने के लिए दुत्कारने लगा,

दूसरी ओर न जाने क्या इतना रूमानी सा मुझे मजबूर करने लगा कि मैं अभिलाष के अंधकार में खुद को ढीला छोड़ने पर विवश होने लगी. वह धीरे से मेरे पैरों को बिस्तर पर चढ़ा कर पूरी तरह मेरे ऊपर झुक गया. एक झटके में उस ने अपना कुरता निकाल फेंका और उस की सुगंधित देह मेरे ऊपर पसरने लगी.

मेरा शरीर अब उस के इतने काबू में था कि पल में सबकुछ बदलने वाला था. बेहोशी के आलम में न जाने क्या हो जाने वाला था. अचानक मैं झटके से उसे दूर ठेल सीधे जमीन पर खड़ी हो गई.

‘‘क्या था यह?’’ मैं एकदम अचंभित सी बोल पड़ी. फिर खुद को संभाला और दरवाजे की ओर भागी.

अभिलाष पीछे आया, ‘‘तिया, प्लीज यह मेरेतुम्हारे प्यार की बात है, किसी से कुछ नहीं कहना, मैं तुम्हारा फिर भी इंतजार करूंगा.’’

मैं कालोनी के अंदर थी. आसपास के पहचान वालों की नजर में न चढ़ूं, बहुत ही सामान्य कदमों से मन पर सौ मन का बो?ा उठाए घर पहुंची.

 

मन बहुत भारी हो उठा था और अब मुझे एहसास हो रहा था कि अभिलाष के प्रति मेरे मन में जो उठापटक थी, वह और कुछ नहीं, बस किसी का मुझे महत्त्व देना और चाहना मुझे भा रहा था क्योंकि जो भी हो, पति की बेखयाली ने मन को अभाव में डुबो तो रखा ही था. सच पूछा जाए तो यह अभिलाष के प्रति मेरी संवेदना या आकर्षण की बात ही नहीं थी वरना विवश होती कामना की नकेल पकड़ एक ?ाटके में उसे  बिस्तर से जमीन पर सीधा खड़ा करना आसान नहीं होता. शायद सालों से स्त्री

मन में जमी चाहना ने अभाव बन कर मुझे डस लिया था.

शुक्र है शाम के 6 बज रहे थे और सब के घर आने में लगभग 2 घंटे बचे थे.

मैं अच्छी तरह नहा कर एक कप कौफी के साथ अपना फोन ले कर बिस्तर पर बैठी ही थी कि अभिलाष का संदेश, ‘‘क्यों चली गईं… मैं कितने सालों से तुम्हें पाना चाहता था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘डिप्रैशन?’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं लेकिन तुम्हें पा न सका.’’

‘‘पत्नी क्यों गई?’’

‘‘बेबी बर्थ के लिए.’’

‘‘अभिलाष, शेखर से तुम ने झूठ बुलवाया.’’

‘‘प्यार में सब जायज है,’’ अभिलाष की बेशर्मी अब मुझे बेहद बुरी लग रही थी.

‘‘अपनी जिंदगी और कैरियर से मत खेलो अभिलाष और अपनी बीवी की जिंदगी से भी. मेरे इस लास्ट मैसेज के बाद भी तुम ने मुझ से और कभी कोई संपर्क करने की कोशिश की तो हम दोनों की बातचीत के सारे स्क्रीन शौट मैं अपने पति को दिखा दूंगी.’’

अभिलाष इस मैसेज को देख कर ऐसे रफूचक्कर हुआ मेरी जिंदगी से जैसे गधे के सिर से सींग.

जान छूटे तो लाखों पाए. शोखियों की कारगुजारियों ने तो मेरी नींद ही खराब कर रखी थी. दिल पर से बोझ मैं ने उतार फेंका. अब से नींद वाकई सुहानी होगी.

Hindi Thriller Stories : वो कौन है – रात में किस महिला से मिलने होटल में जाता था अमन

Hindi Thriller Stories :  बिस्तर पर लेटी अंजलि की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह बिस्तर पर लेटीलेटी सोच रही थी कि उस की जिंदगी में यह उथलपुथल कैसे मच गई? पूरी रात आंखों में ही कट गई. उसे सुबह 10 बजे तक औफिस पहुंचना था पर उस का मन ही नहीं हुआ. वह सोचने लगी…पिछले साल ही तो उस की शादी अमन से धूमधाम से हुई थी. अमन को वह काफी समय पहले से जानती थी. दोनों कालेज में साथ ही पढ़ते थे. अकसर दोनों के घर के लोग भी मिलतेजुलते रहते थे. किसी को भी इस शादी से कोई परेशानी नहीं थी. अत: लव मैरिज बनाम अरेंज्ड मैरिज होने में कोई परेशानी नहीं हुई. शादी के बाद अमन ने अंजलि को बहुत प्यार और सम्मान से रखा. इसीलिए अमन से शादी कर के अंजलि स्वयं को बहुत खुशहाल समझ रही थी.

समस्या तब उत्पन्न हुई जब उस रात वह फोन आया. फोन अमन के लिए था. कोई महिला थी. उस ने अंजलि से कहा, ‘‘प्लीज अंजलि फोन अमन को दो.’’

फोन सुनते ही अमन बहुत बेचैन हो गए. अंजलि ने पूछा तो बोले, ‘‘मेरी चाची का फोन है,’’ और फिर बिना कुछ कहेसुने तुरंत चल गए.

सुबह के 4 बजे लौटे तो बेहद उदास और परेशान थे. अंजलि ने उन्हें परेशान देखा तो उस समय कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा. सोचा कल आराम से सब पूछ लेगी. पर सुबह घर के कामों से उसे समय नहीं मिला और रात में वह कुछ पूछती उस से पहले ही फिर उस का फोन आ गया.

अंजलि के फोन उठाते ही उस महिला ने कहा, ‘‘अंजलि फोन जल्दी से अमन को दो.’’

अंजलि के बुलाने से पहले ही अमन ने उस के हाथ से फोन ले लिया. अंजलि रसोई से कान लगा कर सुनने लगी.

थोड़ी ही देर में अमन की आवाज आई, ‘‘चिंता मत करो. मैं अभी आता हूं,’’ और अमन बिना किसी से कुछ कहे चला गया.

अमन अंजलि के बारबार पूछने पर भी ठीक से कुछ नहीं बता पाया. अगली बार जब फोन आने पर अमन बाहर निकला तो अंजलि भी सतर्कता से उस के पीछेपीछे निकल गई. उस ने ठान लिया आज सचाई जान कर रहेगी. कौन है यह महिला? मुझे भी जानती है. अमन उस के बारे में कुछ बताना क्यों नहीं चाहते? क्या कुछ गलत हो रहा है?

अमन की गाड़ी एक मशहूर होटल के सामने रुकी. वह अगभग दौड़ता हुआ सीढि़यां चढ़ता ऊपर चला गया. अंजलि भी उस के पीछेपीछे हो ली. अमन ने एक कमरे में घुस अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद दोनों कहीं बाहर चले गए. अंजलि जानना तो चाहती थी कि ये सब क्या चल रहा है, पर औफिस के लिए देर हो जाती, इसलिए मन मार कर औफिस के लिए निकल गई. वह औफिस आ तो गई पर उस का मन काम में नहीं लग रहा था उस का ध्यान तो होटल के कमरे ही हलचल में ही अटका था.

वह सोच रही थी कि क्या अभी भी अमन होटल में ही होगा या अपने औफिस चला गया होगा. उस ने अमन के औफिस में फोन किया तो पता चला वह तो 2 दिनों से औफिस नहीं आ रहा. अंजलि चकरा गईर् कि अगर औफिस नहीं जा रहे तो कहां जा रहे? घर से तो सही समय पर औफिस जा रहा हूं, कह कर निकल जाते हैं. उस ने सोचा कुछ तो गड़बड़ है.

अंजलि का समय काटे नहीं कट रहा था. उस ने पक्का मन बना लिया कि जो भी हो आज घर जा कर अमन से साफसाफ बात करेगी.

रात तो अंजलि जब घर पहुंची तो अमन की जगह अमन के हाथ का लिखा नोट

मिला. उस में लिखा था कि औफिस के काम से बाहर जा रहा हूं. चिंता मत करना. 2 दिनों में लौट आऊंगा. कहां गए हैं यह भी नहीं लिखा था.

अंजलि को बहुत गुस्सा आ रहा था. औफिस से पता चला अमन ने औफिस से यह कह कर छुट्टी ली थी कि घर में काम है. पर घर में तो कोई काम था ही नहीं. एक फोन भी नहीं किया. फोन कर के बता सकते थे न कि कहां गए? फिर उस ने सोचा फोन तो मैं भी सकती हूं न. अत: अमन को फोन लगाया तो फोन स्विचऔफ था. अब तो अंजलि चिंता और गुस्से से भर गई कि जरूर उसी होटल में होंगे अपनी चाची के पास… हुंह चाची… चाची तो वह हरगिज नहीं हो सकती. अगर चाची हैं तो होटल में क्यों रुकीं. घर में भी रुक सकती थीं? मुझे जानती हैं तो मुझ से मिलने क्यों नहीं आईं? जरूर अमन की कोई प्रेमिका ही होगी. ये सब सोचते ही अंजलि को चक्कर आने लगा कि अब उस का क्या होगा? बारबार अंजलि के दिमाग में यही बातें घूमने लगीं. उसे पहले पता लगाना चाहिए, फिर क्या करना है, सोचा जाएगा, यह तय किया अंजलि ने.

पर कहां से शुरू करें? फिर याद आया कि अरे अमन के भाईभाभी तो जानते ही होंगे अपनी चाची को. अगर चाची ही आई हैं तो भाई साहब से भी मिली होंगी. चलो, सब से पहले भाभी से बात करती हूं, सोच अंजलि अगली सुबह ही इसी शहर में रहने वाली अपनी जेठानी मीता के घर पहुंच गई.

अंजलि को देखते ही उस की जेठानी मीता खुश हो कर बोलीं, ‘‘अरे अंजलि आओआओ. तुम तो ईद का चांद हो गई हो. अकेली ही आई हो क्या? अमन कहां है? आए नहीं क्या?’’

‘‘भाभी, भाभी रुकिए तो सब बताती हूं…अमन शहर से बाहर गए हैं. मैं घर में अकेली थी. आप की बहुत याद आ रही थी. आज शुक्रवार है. आज की मैं ने छुट्टी ले ली. कलपरसों की छुट्टी है ही तो मैं आप के पास आ गई. भैया कहां हैं?’’

‘‘तुम्हारे भैया भी बाहर गए हैं. अब हम दोनों मिल कर खूब मस्ती करेंगे,’’ मीता ने अंजलि को बताया.

दोनों बातें करते हुए काम भी करती जा रही थीं. अंजलि चाची के बारे में पूछने का मौका ढूंढ़ रही थी.

मीता ने बातोंबातों में अंजलि से जब पूछा कि कोई खुशखबरी है क्या तो अंजलि ने शरमा कर अपना मुंह हाथों में छिपा कर हां में सिर हिलाया. मीता ने खुशी से अंजलि को गले लगा लिया. फिर मीता ने पूछा, ‘‘डिलिवरी के लिए कहां जाओगी मायके? अगर नहीं तो मेरे पास आ जाना.’’

‘‘नहींनहीं मायके तो नहीं जाऊंगी. आप को तो पता ही है मां अब अधिकतर बिस्तर पर ही रहती हैं. उन के बस का नहीं है कुछ. आप को भी परेशानी होगी. कितना अच्छा होता अगर अपने सासससुर जिंदा होते तो मुझे कुछ सोचना भी नहीं पड़ता,’’ अंजलि ने बातों का सूत्र अपने मकसद की ओर मोड़ते हुए कहा.

‘‘उन की कमी तो मुझे भी बहुत खलती है पर क्या करें. दोनों भाई बहुत छोटे थे जब एक दुर्घटना में मम्मीपापा दोनों चल बसे. कैसेकैसे दुख उठाए दोनों भाइयों ने पर हिम्मत नहीं हारी और आज देखो दोनों परिवार कितने खुशहाल है.’’

‘‘क्या कोई दूरपास के रिश्तेदार चाचाचाची वगैरह भी नहीं हैं, जिन्हें डिलीवरी के समय बुला सकें?’’ अंजलि ने धड़कते दिल से पूछ ही लिया.

‘‘नहीं, चाची तो नहीं हैं, पर हां एक नानी थीं जो पिछले साल चल बसी थीं.’’

अंजलि का मकसद पूरा हो गया. उसे जो जानकारी चाहिए थी वह उसे मिल गई. फिर भी कुछ और कुरेदने की गरज से उस ने फिर पूछा, ‘‘कोई दूरपास की बहन भी नहीं है? अगर कोई बहन ही होती तो कितना अच्छा होता. है न?’’

‘‘हां, दोनों भाइयों को एक बहन की कमी भी बहुत खलती है. बहन के नाम से ही दोनों की आंखें भीग जाती हैं. रक्षाबंधन के दिन दोनों कहीं चले जाते हैं. कहते हैं सब के हाथों में राखी देख कर मन कैसाकैसा होने लगता है.’’

अंजलि को पता लग गया कि अमन की कोई चाची नहीं है. सीधा सा मतलब है कि अमन झूठ बोल कर उस महिला से मिलने जाता है. जरूर उस की कोई प्रेमिका ही होगी. दोनों में नाजायज संबंध होंगे. अब तो मैं अमन के साथ नहीं रह सकती. अंतत: अंजलि ने दूसरे ही दिन वापस जाने की तैयारी कर ली.

मीता ने उसे जाने को तैयार देखा तो कहा कि रुक जाओ अमन आ जाएं तो चली जाना. खाली घर में क्या करोगी? पर अंजली ने आज जरूरी काम है मैं फिर आ जाऊंगी, कह कर मीता को चुप करवा दिया और निकल पड़ी अपने पापा के घर के लिए. उस ने अमन को कुछ बताना जरूरी नहीं समझा. बस औफिस के पते पर एक पत्र डाल कर उसे जता दिया कि अब वह कभी वापस नहीं आएगी.

पापा ने अचानक अंजलि को देखा तो पूछा, ‘‘अमन नहीं आए? तुम अकेली ही आई हो?’’

अंजलि चुपचाप खड़ीखड़ी रोने लगी तो पापा ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ, अमन से झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘पापा मैं उस घर और अमन को छोड़ आई हूं. अब वापस नहीं जाऊंगी,’’ कहते हुए अंजलि अपनी मम्मी से मिलने उन के कमरे में चली गई.

इधर अमन जब 2 दिनों बाद रात को

12 बजे वापस घर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला देख कर सोच में पड़ गया कि इस समय अंजलि कहां जा सकती है. कहीं उसे सब पता तो नहीं चल गया? नहींनहीं यह संभव नहीं है. जरूर अपने पापा के घर गई होगी. पर बता तो सकती थी. फिर उस ने सोचा हो सकता है उस ने फोन किया हो. फोन चार्ज ही नहीं था तो मुझ से बात कैसे होगी? अभी फोन करना भी ठीक नहीं है. चलो सुबह औफिस जाते समय पहले उस के पापा के घर चला जाऊंगा. 2 दिनों का थका अमन ऐसा सोया कि सुबह 10 बजे नींद खुली. घड़ी देखते ही अमन सब भूल कर औफिस भागा. औफिस में उसे मिला अंजलि का पत्र. पत्र पढ़ते ही उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह उलटे पैरों अंजलि के पापा के घर पहुंचा. उस ने अंजलि को समझाने की कोशिश की पर वह कुछ नहीं सुनना चाहती थी. लाचार अमन घर लौट गया. ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.

एक दिन दोपहर में घर की घंटी बजी तो अंजलि ने दरवाजा खोला. बाहर एक

सुंदर सी महिला खड़ी थी. दरवाजा खुलते ही उस ने अपना परिचय दिया, ‘‘मैं अमन की…’’

अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अंजलि भड़क उठी, ‘‘अच्छा तो तुम हो वह लड़की जिस के लिए अमन ने मुझे धोखा दिया. तुम्हारी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी… यहां तक चली आई. बोलो क्या कहना है? तलाक के कागज लाई हो क्या?’’

महिला अंदर आ कर थोड़ी देर तक चुपचाप बैठी सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बात थोड़ी लंबी है. आराम से सुनो. मैं दावे से कहती हूं कि पूरी बात सुन कर तुम्हारा गुस्सा गायब हो जाएगा और तुम अमन से मिलने दौड़ पड़ोगी.’’

‘‘अच्छा तो कहिए क्या कहानी बना कर लाई हैं आप?’’

अंजलि की बात का बुरा न मान कर उस ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं अमन और रमन की बड़ी बहन हूं…’’

उस की बात काट कर अंजलि चिल्लाई, ‘‘झूठ बोल रही हो तुम. अमन और रमन की कोई बहन नहीं है. होती तो मुझे बताते नहीं? छिपाते क्यों?’’

‘‘न बताने की कोई मजबूरी रही होगी.’’

‘‘ऐसी भी क्या मजबूरी कि बहन को बहन न कह सके. होटल में रखा अपनी पत्नी तक से उस के बारे में छिपाया?’’ अंजलि गुस्से से कांपते हुए बोली.

लगता है आज बरसों पुराना राज खोलना ही पड़ेगा, सोच वह बोली ‘‘मैं, अमन व रमन तीनों सगे भाईबहन हैं. एक दुर्घटना में मम्मीपापा की मृत्यु के बाद हमारा कोई सहारा न था. मैं 15 वर्ष की थी, रमन 5 और अमन 3 साल का. घर तो अपना था पर बाकी खर्चों के लिए मुझे नौकरी करनी ही थी. नौकरी तो क्या मिलती, पेट की भूख ने मुझे कौल गर्ल बना दिया. फिर एक सेठजी की निगाहें मेरी सुंदरता पर पड़ीं और उन्होंने मुझे एक अलग घर में रख दिया. बदले में उन्होंने मेरा और परिवार का पूरा खर्च भी उठाया पर इस शर्त पर कि मैं अपने भाइयों से कभी नहीं मिलूंगी. बस उन की बन कर रहूंगी. मैं ने उन की शर्त मान ली और उन्होंने मेरे भाइयों को पढ़ालिखा कर नौकरी भी दिलवाई. आज उन का समाज में एक नाम है तो उन्हीं के कारण.’’

‘‘ठीक है पर मैं कैसे मान लूं कि आप सही बोल रही हैं?’’ अंजलि ने पूछा, तब उस महिला ने अपने पर्स से एक फोटो निकाल कर दिखाया. उस में अमन व रमन के अलावा अंजलि के सासससुर और वह महिला भी साफ दिखाई दे रही थी. शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

फिर भी अंजलि ने पूछा, ‘‘जब अब तक सामने नहीं आईं, अपने भाइयों से दूर रहीं तो अब क्यों हमारी जिंदगी में आग लगाने आ गईं?’’

‘‘ठीक कहती हो तुम. आग ही तो लगा दी है मैं ने तुम सब की जिंदगी में…विश्वास करो मैं तो यों ही गुमनाम मर जाना चाहती थी पर सेठजी नहीं माने. जब डाक्टर ने उन से साफसाफ बता दिया कि अब वे महीना 2 महीने के ही मेहमान हैं तो उन्हें मेरी चिंता हुई. अपने घर तो वे ले नहीं जा सकते थे, इसलिए अमन व रमन को बुला कर सारी बात बताई और मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कहा, क्योंकि मरने से पहले वे मेरी सारी जिम्मेदारी भाइयों को सौंप कर निश्चिंत होना चाहते थे. मैं ने तो मना किया था, पर वे नहीं माने, क्योंकि मैं कैंसर की लास्ट स्टेज पर हूं. मुझे देखभाल की जरूरत है. वैसे वे एक बड़ी धनराशि मेरे नाम छोड़ गए हैं. तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ेगा. तुम्हें परेशानी नहीं हो इसीलिए तो मैं घर भी नहीं आई. मैं वादा करती हूं कि अपनी परछाईं तक तुम लोगों पर नहीं पड़ने दूंगी. बस तुम अपने घर चली जाओ.’’

पूरी बात सुन कर अंजलि ने उठ कर अपनी ननद सीमा के पैर छुए और कहा, ‘‘अगर अमन पहले ही सब सचसच बता देते तो बात इतनी बढ़ती ही नहीं. खैर, अब आप वहीं करेंगी जो मैं कहूंगी,’’ और फिर अपनी जेठानी को फोन कर अपने पापा के घर बुला लिया.

दोनों मिल कर कुछ कार्यक्रम बना अपनेअपने घर चली गईं. अंजलि को वापस आया देख कर अमन बहुत खुश हुआ. उस ने अपनी भाभी को अंजलि को वापस घर लाने के लिए धन्यवाद भी दिया मगर उसे क्या मालूम कि अंजलि अपनी मरजी से घर आई है.

2 दिनों बाद ही राखी थी. अंजलि ने अमन को आधे दिन की छुट्टी ले कर लंच में घर आने को कहा. अपने जेठ और जेठानी को भी खाने पर घर बुलाया. बाजार से सुंदर राखियां खरीदीं और थाली सजा कर सब का इंतजार करने लगी.

अमन और रमन एकसाथ ही घर पहुंचे जबकि मीता सुबह ही घर आ गई थी. अमन और रमन अंदर घुसते ही हैरान हो गए. घर अच्छी तरह से सजा हुआ था. टेबल पर एक थाली में राखियां देख कर दोनों ने एकदूसरे को देखा, फिर अंजलि से पूछा, ‘‘क्या है ये सब?’’

‘‘आप लोग राखी के दिन हमेशा उदास हो जाते थे तो हम ने आप की उदासी दूर करने के लिए एक ननद बना ली है. आइए दीदी, अपने भाइयों को राखी बांधिए.’’

अंदर से अपनी बहन को आता देख कर दोनों भाई एकदम से घबरा गए. जब अंजलि और मीता ने उन से कहा, ‘‘आप क्या समझते थे हमें पता नहीं लगेगा? हम आप से बहुत नाराज हैं. हमें बताया क्यों नहीं? हमें पराया ही समझते रहे आप दोनों. अपना घर होते हुए भी अपनी बहन को होटल में रखा.’’

इतना सुनते ही दोनों भाइयों की जान में जान आई. दोनों ने अंजलि और मीता से माफी मांगी.

सीमा ने खुश हो कर अमन व रमन को राखी बांधी. अंजलि और सीमा ने कहा, ‘‘बहनों को राखी बांधने पर कुछ देना भी पड़ता है याद है कि नहीं? अमन व रमन दोनों अपनी जेबें टटोलने लगे तो सीमा दीदी ने दोनों के हाथ पकड़ कर अपने माथे से लगा कर रुंधे गले से कहा, ‘‘आज तो मुझे इस जीवन का अमूल्य उपहार मिला है. आज मुझे मेरा मायका मिल गया. अब मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है. तुम सब के साथ बाकी बचा जीवन चैन से बिताऊंगी और चैन से मरूंगी,’’ और फिर अंजलि का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा यह एहसान मैं जीवन भर नहीं भूलूंगी. तुम ने मुझे खुले दिल से स्वीकार कर मुझे सारी खुशियां दे दीं.’’

आज सब के चेहरे पर सच्ची खुशी फैली थी. इस वर्ष का रक्षाबंधन जीवन का यादगार दिन बन गया. वर्षों बाद अमन व रमन की सूनी कलाइयां फिर से सज गई थीं.

Short Stories in Hindi : सुबह होती है, शाम होती है

Short Stories in Hindi :  ‘‘आजफिर देर हो गई औफिस में?’’ आशिमा ने रोहन से पूछा.

‘‘हां…,’’ रोहन सिर्फ इतना बोला.

फिर आशिमा डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने चल दी और रोहन हाथमुंह धो कर टीवी के सामने बैठ गया. इतनी संक्षिप्त बातचीत देख कर कौन कह सकता था इन की शादी को मात्र 2 वर्ष ही बीते थे. दोनों का दिन का सारा समय औफिस के काम बीतता था और जब घर लौट कर आते थे तो भी दोनों अपनेअपने लैपटौप पर ही व्यस्त रहते थे. शुरूशुरू में एकदूसरे के दफ्तर के कामकाज व कार्यप्रणाली पर दोनों में कुछ देर बातचीत हो जाया करती थी पर अब यह भी नहीं होता. एक दिन औफिस में आशिमा अपने कार्य में व्यस्त थी कि सैलफोन घनघना उठा. उस ने स्क्रीन पर पुरानी सहेली रिया का नाम देखा तो लपक कर फोन उठाया.

‘‘और भई, हाऊ इज लाइफ?’’ रिया पूरे उत्साह से बात कर रही थी.

‘‘कूल,’’ आशिमा को शायद संक्षिप्त बात करने की आदत हो गई थी.

‘‘कूल या फिर हौट?’’ रिया ने मजाकिया अंदाज में उसे छेड़ा.

‘‘अरे, क्या हौट यार. अपनीअपनी नौकरी में दोनों व्यस्त रहते हैं. आजकल तो फिल्म देखने भी नहीं जाते.’’

‘‘आशिमा, तेरी आवाज में वह बात नहीं. यार कोई बात हुई है क्या रोहन के साथ?’’ रिया पुरानी सहेली थी, आशिमा की सुस्ती को फौरन भांप गई.

‘‘नहींनहीं, ऐसा कुछ नहीं,’’ आशिमा बोली.

‘‘तो ठीक है. मैं इस वीकैंड का प्रोग्राम बना रही हूं. उस दिन सुबह 10 बजे मिलते हैं और कहीं घूमने चलते हैं.’’

आशिमा ने देर रात जब रोहन घर लौटा तो उसे रिया से मुलाकात का प्रोग्राम बताया और बोली, ‘‘तुम भी चलो न. शनिवार को तो छुट्टी है न तुम्हारी. काफी दिनों से हम कहीं गए भी नहीं हैं.’’

‘‘नहीं आशिमा इस शनिवार शायद औफिस जाना पड़ेगा.’’

‘‘तो फिर मैं रिया से मिलने का प्रोग्राम इतवार का रख लेती हूं.’’

‘‘एक दिन तो मिलेगा छुट्टी का. उस दिन मैं जी भर कर सोऊंगा. तुम अपना प्रोग्राम मेरी वजह से मत खराब करो. वैसे भी तुम्हारी सहेली है, तुम्हीं मिल आओ,’’ कह कर रोहन अपने लैपटौप पर व्यस्त हो गया. उस का रोज का यही नियम था. खाना खातेखाते डाइनिंग टेबल पर लैपटौप पर कुछ काम निबटाना और फिर टीवी में खो जाना. साढे़ 11 बजे तक आशिमा साथ बैठी टीवी पर कुछ न कुछ देखती रही. फिर वह गुडनाइट कह कर सोने चल दी.

‘‘गुडनाइट. तुम सो जाओ, तुम्हें सुबह जल्दी उठना है. मैं यह प्रोग्राम देख कर आऊंगा.’’ बिस्तर पर अकेली लेटी आशिमा अपनी शादीशुदा जिंदगी को रिवाइंड करने लगी. दोनों परिवारों ने अपने रिश्तेदारों की सहायता से रिश्ता तय किया था. पूर्णतया अजनबी होते हुए भी 2-3 मुलाकातों में ही आशिमा और रोहन एकदूसरे को पसंद करने लगे थे. दोनों की जोड़ी देखने में जितनी सुंदर लगती थी, उतनी ही दोनों के स्वभाव में भी एकरसता थी. कोर्टशिप पीरियड को दोनों ने जी भर कर ऐंजौय किया था. फिल्में देखना, मौल में शौपिंग, सैरसपाटा और बचपन से ले कर आज तक की ढेर सारी बातें. कितने मधुर दिन थे वे. अब लगता है जैसे सारी बातें तभी खत्म कर दी थीं दोनों ने. शादी के बाद कुछ महीनों तक दोनों औफिस से टाइम पर घर लौट आते. कभी दोस्तों के यहां घूम आते, तो कभी यों ही लौंग ड्राइव पर सैर को निकल जाते. और तो और सब्जी या ग्रौसरी खरीदना भी एक ऐडवैंचर सा लगता था. धीरेधीरे यही काम जिम्मेदारी लगने लगे और फिर मंदी की मार में अपनी जौब बचाए रखना एक कठिन लक्ष्य बन गया. काम और सिर्फ काम. केवल औफिस का काम ही जीवन बन कर रह गया. ‘काम’ शब्द का एक और अर्थ होता है जिसे वे जैसे भूल से गए थे. हर रात थक कर ऐसे बिस्तर पर पड़ते थे कि कब सुबह हुई पता ही नहीं चलता था. बस, समय की सूइयों ने भागभाग कर शादी के 2 साल पूरे कर डाले थे. अब तो महानगर की जिंदगी की भागदौड़, परेशानियां और स्ट्रैस से निबटना ही सुबह से रात तक का टारगेट होता था. शनिवार की शाम रिया के साथ बिता कर आशिमा एक बार फिर फै्रश हो गई. हंसीमजाक और टांगखिंचाई से पुरानी यादें ताजा हो आईं.

रात उस ने डिनर में रोहन की पसंदीदा डिश बनाई. उसे चहकता देख कर रोहन भी खुश था और काफी समय बाद आज रात दोनों ने एकदूसरे को जी भर कर प्यार किया, केवल खानापूर्ति नहीं की. इस से आशिमा को लगा कि जीवन में खुशहाली लाते रहने के लिए दोस्तों से मिलनाजुलना कितना जरूरी है. उस ने इस बात पर गौर किया और ठाना ही था कि वह पुराने दोस्तों से एक बार फिर तार जोड़ेगी कि एक दिन अचानक उस की फेसबुक पर अपने कालेज के दोस्तों मनमीत से मुलाकात हो गई. फिर फेसबुक पर दोनों ने चैटिंग की और मिलने का प्रोग्राम बनाया. घर लौट कर वह रोहन से भी यह खुशी बांटना चाहती थी, किंतु रोज की तरह रोहन फिर इतनी देर से आया कि आशिमा पर थकान व नींद हावी हो चुकी थी. एक शाम दफ्तर से निकलते समय आशिमा ने मनमीत को गेट पर खड़ा पाया.

‘‘ओह, व्हाटए सरप्राइज,’’ कह वह उछल पड़ी.

‘‘मैं ने सोचा तुम बस प्रोग्राम ही बनाती रहोगी, इसलिए मैं आज ही चला आया.’’

मनमीत बातचीत में बेबाक व मस्त था. कालेज में भी वह जिस महफिल में जाता, समां बांध देता. यथा नाम तथा गुण.

‘‘अरे सुनाओ, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी?’’ आशिना के साथ एक रैस्टोरैंट के कोने में बैठ मनमीत ने पूछा.

‘‘चल नहीं, दौड़ रही है. हम तो बस पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं. देखो न पता भी नहीं चला कब 2 साल बीत गए,’’ आशिमा अपने दोस्त से मन की बातें बांटने लगी, ‘‘सच कहूं तो मनमीत, इतने बिजी रहते हैं हम दोनों कि एकदूसरे के लिए, अपनी भावनाओं के लिए समय ही नहीं है हमारे पास. और दुख तो इस बात का है कि दोष किसे दूं यह भी समझ नहीं आता.’’

‘‘चलो, कोई बात नहीं. इस में दिल क्यों छोटा करती हो? दोस्त कब काम आएंगे?’’ मनमीत के दिलासे पर आशिमा खुश हो गई और अपनी सहूलत अनुसार दोनों ने अगली मुलाकात में फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया.

उस शाम आशिमा फिर चहक रही थी. रोहन के घर में घुसते ही वह मनमीत से मुलाकात का पूरा वाकेआ तसल्ली से बयान करने लगी. रोहन भी खुश हो गया आशिमा को इतना खुश देख कर. कभीकभी रोजमर्रा की जिंदगी हमारी खुशियों की कीमत मांगने लगती है. यही तो हो रहा था आशिमा और रोहन के साथ एकदूसरे से प्यार करते हुए भी, एकसाथ एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों कितने अकेले जीने लगे थे.

‘‘रोहन, तुम भी चलो न मूवी देखने. मैं और मनमीत अगले वीकैंड का प्रोग्राम बना रहे हैं,’’ रोहन का उस पर विश्वास और उस के जरा भी शक्की स्वभाव न होने के कारण ही आशिमा अपना हर प्रोग्राम बेझिझक उसे बता देती थी.’’

‘‘अगले वीकैंड…,’’ कुछ सोचते हुए रोहन बोला, ‘‘सौरी आशिमा, अगले शुक्रवार तो मुझे टूर पर अहमदाबाद जाना होगा. 3-4 दिन लग जाएंगे वहां पर,’’ फिर आगे कहने लगा, ‘‘लेकिन तुम मूवी देख आओ अपने फै्रंड के साथ कालेज की मस्ती भरी यादें ताजा हो जा जाएंगी.’’

फिर  समय बीतता गया और शानिवार आ गया. मनमीत पहले से उस का इंतजार कर रहा था. वाकई कालेज के दिनों की यादों में आज भी वह शक्ति थी कि सुस्ती भरे जीवन में स्फूर्ति भर दे. दोनों ने फिल्म देखी, जी भर कर बातें कीं और डिनर के बाद मनमीत आशिमा को घर छोड़ गया. धीरेधीरे आशिमा और मनमीत अकसर मिलने लगे. इन मुलाकातों का श्रेय मनमीत को जाता, क्योंकि प्रोग्राम वही बनाता. आशिमा को उस के दफ्तर से लेता और बाद में उसे घर भी छोड़ता. 1-2 बार रोहन से भी मुलाकात हुई मनमीत की. इस बार फिर रोहन काम के सिलसिले में कई दिनों के लिए शहर से बाहर गया हुआ था. और मनमीत आशिमा को घर छोड़ने आया था. आशिमा दोनों के लिए चाय बना कर लाई तो उस ने मनमीत चेहरे पर अजीब से असमंजस व परेशानी के भाव पढ़े

‘अरे, अभी शाम को तो ठीक था इस का मूड अचानक क्या हो गया? क्या मेरी कोई बात बुरी लग गई?’ आशिमा विचार करने लगी. फिर चाय देते हुए पूछ ही बैठी, ‘‘क्या हुआ मनमीत, किन खयालों ने आ घेरा?’’

‘‘सुबह होती है, शाम होती है, उम्र यों ही तमाम होती है,’’ गंभीर भाव से मनमीत बुदबुदाया.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘तुम मेरे साथ खुश रहती हो न, आशिमा?’’ उस के इस अटपटे प्रश्न से आशिमा अचंभित थी.

‘‘हां, क्यों? ऐसे क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं…मैं…आज से नहीं बल्कि कालेज के दिनों से…मुझे गलत मत समझना.’’

‘‘समझूंगी तो तब जब कुछ बोलोगे,’’ आशिमा बेफिक्री से हंस कर बोली.

‘‘आशिमा, मैं देख रहा हूं कि रोहन केवल अपने काम में मशगूल रहता है. तुम्हें तो वह समय ही नहीं देता. तुम्हारी शादी को महज 2 साल हुए हैं और तुम दोनों बासी हो गए एकदूसरे के लिए. ऐसे जिंदगी बरबाद करना क्या उचित है? एक तरफ रोहन के साथ यह घिसीपिटी जिंदगी और दूसरी तरफ मेरे साथ पूरी मौजमस्ती भरा जीवन,’’ मनमीत अपनी बात पूरी भूमिका के साथ कह रहा था.

‘‘इसीलिए तो दोस्त होते हैं, डियर,’’ आशिमा अब भी मनमीत की बात के आशय से अनभिज्ञ थी.

‘‘तुम शायद समझीं नहीं,’’ मनमीत कुछ सोचने लगा. फिर एकबारगी हिम्मत जुटा कर बोला,’’ मैं तुम्हें चाहता हूं, आशिमा. मैं यह जीवन तुम्हारे साथ, तुम्हारी खिलखिलाती हंसी के साथ, तुम्हारी जीवंत आंखों के साथ, तुम्हारे नेकदिल के साथ गुजारना चाहता हूं.’’ चाय का घूट आशिमा के गले में अटक गया. खांसी का दौरा पड़ गया उसे. आंखों से पानी बहने लगा. उस की यह हालत देख कर मनमीत दौड़ कर रसोई से पानी का गिलास लाया. पर तब तक आशिमा ने स्वयं को संभाल लिया था. उस ने पानी पीने से इनकार कर दिया. एक अजीब सी चुप्पी तैर गई कमरे की हवा में. दोनों नीचे नजरें किए बैठे रहे कुछ देर. फिर आशिमा अचानक खड़ी हो गई और बोली, ‘‘बहुत रात हो चुकी है, मनमीत, तुम अपने घर जाओ.’’

मनमीत चुपचाप चला गया. उस के जाने के बाद आशिमा फूटफूट कर रोने लगी. कुछ मनमीत की बात पर नाराजगी, कुछ ऐसी बात करने की उस की हिम्मत पर गुस्सा, अचानक रोहन की याद और आज एक अच्छा मित्र छूट जाने का गम. वह सोचती जा रही थी कि उस की किस बात से मनमीत ने यह निष्कर्ष निकाल लिया होगा कि वह रोहन के साथ खुश नहीं है? ऐसी बात कर के उस ने हमेशा के लिए अपनी देस्त खो दी थी. आशिमा फिर उदास हो गई और इस बार पहले से कहीं अधिक. 2 दिन बाद रोहन के लौटने पर भी वह खुश न हुई. सब कार्य यथावत कर रही थी किंतु उस के चेहरे पर फैली उदासी को रोहन ने फौरन भांप लिया. ‘‘क्या बात है आशिमा, ऐसे चुपचुप क्यों हो?’’ उसे बांहों में भरते हुए जैसे ही रोहन ने पूछा कि उस की भावनाओं का बांध टूट गया. वह बिलखबिलख कर रो पड़ी. रोहन घबरा गया. असमंजस में था कि आशिमा को हुआ क्या? बहलाफुसला कर उस ने आशिमा को चुप कराया, पानी पिलाया, बिस्तर पर बैठाया. शांत होने पर आशिमा ने सारी बात रोहन को बताई. उस की बात सुन कर रोहन भी गंभीर हो गया.

‘‘मुझे क्या पता था कि मेरी साफसुथरी  दोस्ती को मनमीत ऐसा रुख दे देगा. मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि वह मेरे बारे में ऐसे विचार पाले हुए है,’’ आशिमा अब भी मनमीत की बात से परेशान थी.

‘‘ इस में गलती मनमीत की कम और मेरी ज्यादा है,’’ रोहन की इस बात पर आशिमा हतप्रभ हो उस का मुंह देखने लगी. फिर, ‘‘क्या मतलब?’’ उस ने पूछा.

‘‘मानो न मानो आशिमा, मनमीत ने हमारी जिंदगी में पसर चुकी रोजमर्रा की उबासी को सही पकड़ा. यदि हमारे जीवन में ताजगी होती तो वह ऐसी बात कभी न सोचता. हो सकता है वह कालेज के दिनों में तुम्हें चाहता रहा हो. आखिर तुम हो ही चाहने लायक. पर आज तुम से मिल कर उसे लगा कि तुम सिर्फ जिम्मेदारियां निभा रही हो, जिंदगी नहीं जी रहीं. और इस में उसे मेरी कमी दिखाई दी.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो तुम?’’ आशिमा को रोहन की बातें नागवार गुजर रही थीं.

‘‘मैं ठीक कह रहा हूं. हमें इस जिंदगी को एकदूसरे को फौर ग्रांटेड नहीं लेना चाहिए. हम जानते हैं, पढ़ते हैं कि हर रिश्ते में बासीपन आ जाता है जिसे हटाने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए, लेकिन हम ने किया तो कुछ नहीं न.

‘‘मनमीत ने यह कहा था न कि सुबह होती है, शाम होती है, उम्र यों ही तमाम होती है. सही बात याद दिला गया वह. सुबह और शाम को तो रोक नहीं सकते हम, किंतु उम्र को यों ही तमाम नहीं होने दूंगा मैं अब,’’ फिर थोड़ी देर खामोश रहने के बाद आगे कहने लगा, ‘‘अब यही होगा कि साल में 2 बार छुट्टी ले कर हम घूमने का और हर महीने एक फिल्म का प्रोग्राम बनाएंगे. और हर रात…’’ कहतेकहते उस ने आशिमा को अपने सीने से लगा लिया. रोहन के आगोश में सिमटी आशिमा मुसकराई फिर बोली, ‘‘अरेअरे, लाइट तो बंद करने दो.’’

जानें Allergy के प्रकार और इलाज

ऐलर्जी इनसान के इम्यून सिस्टम की एक असामान्य प्रतिक्रिया है. परागकण, धूलकण, फफूंद, जानवरों के रोएं, कीटों के डंक, कुछ खाद्यपदार्थ, कैमिकल, दवाइयों आदि से ऐलर्जी हो सकती है.

1. ऐलर्जिक राहिनाइटिस (रनिंग नोज)

कारण:

ऐलर्जी राहिनाइटिस जिसे आमतौर पर हे फीवर भी कहते हैं, यह तब होता है जब हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली हवा में मौजूद तत्त्वों के प्रति ओवररिऐक्ट करती है. हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को इस से छींकने और बहती नाक जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ता है. इन तत्त्वों को ऐलर्जन यानी ऐलर्जी पैदा करने वाले तत्त्व कहा जाता है, जिस का अर्थ यह है कि ये ऐलर्जिक रिऐक्शन का कारण बनते हैं. कई तरह के ऐलर्जन जैसे परागकण, मिट्टी, धूलकण, पशुओं के रेशे और कौकरोच आदि ऐलर्जिक राहिनाइटिस का कारण बनते हैं. हालांकि प्रदूषित वायु ऐलर्जन नहीं होती, पर यह नाक और फेफड़ों को इरिटेट (उत्तेजित) कर सकती है. जब आप ऐलर्जन में सांस लेते हैं तब इरिटेट नाक या फेफड़ों द्वारा ऐलर्जिक रिऐक्शन का खतरा ज्यादा हो सकता है.

रोकथाम:

विशेषज्ञ ऐलर्जिक राहिनाइटिस की रोकथाम कैसे की जाए इस के बारे में अभी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि व्यक्ति कई तरह के ऐलर्जन के संपर्क में आता है. धुआं और वायु प्रदूषण भी व्यक्ति को ऐलर्जी की चपेट में लाने में सहायक होते हैं.

उपचार:

इस का मुख्य उपचार ऐलर्जन से दूर रहना, लक्षणों को नियंत्रित करना और दवा के साथसाथ घरेलू उपचार और कुछ मामलों में इम्यूनोथेरैपी है. आप को कितनी बार ट्रीटमैंट करवाना है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप में कितनी बार इस के लक्षण नजर आए.

सावधानियां:

ऐलर्जन से दूरी बनाई जाए. ऐसा करने से आप ऐलर्जी के लक्षणों को कम कर सकते हैं और बहुत कम दवा के साथ इसे नियंत्रित कर सकते हैं. प्रतिदिन घर की साफसफाई जरूरी है ताकि धूल, पालतू पशुओं के रोएं आदि घर में न हों. इस के अलावा तब ज्यादातर घर में ही रहने का प्रयास करें जब हवा में परागकणों की मात्रा ज्यादा होती है.

ऐसे कम करें लक्षण:

इस से संबंधित दवा खाने और होम ट्रीटमैंट लेने से इस के लक्षणों को कम करने में सहायता मिलती है. नासिका मार्ग की सफाई कर के भी लक्षणों को कम कर सकते हैं.

2. इम्यूनोथेरैपी

अगर दवा आप के लक्षणों को कम नहीं करती या उस का साइड इफैक्ट होता है तब डाक्टर आप को इम्यूनोथेरैपी की सलाह दे सकते हैं. इस ट्रीटमैंट के तहत आप को गोलियां दी जाती हैं, जिन में थोड़ी मात्रा में कुछ ऐलर्जन होते हैं. आप का शरीर उन ऐलर्जन का इस्तेमाल करता है. इसलिए समय के साथ आप का शरीर इन के प्रति कम प्रतिक्रिया करता है. इस तरह का ट्रीटमैंट कुछ तरह की ऐलर्जी से बचाव करता है.

3. वाटरी आईज

आंखों का पानी आंखों के लुब्रिकैंट्स (चिकनाई) को बनाए रखता है और बाहरी चीजों यानी धूल आदि को आंखों में जाने से रोकता है. जब व्यक्ति की आंखों से अत्यधिक आंसू निकलते हैं तब ये आंसुओं की नलिकाओं को हिला देते हैं, जिस से वाटरी आईज यानी आंखों से पानी बहना शुरू हो जाता है.

कारण:

आंखों के आवश्यक तत्त्व पानी, नमक और तेल का जब आंखें सही संतुलन नहीं रख पातीं तब ये अत्यधिक सूखी हो जाती हैं. इस के परिणामस्वरूप जलन शुरू होती है, जिस से आंखों में अत्यधिक पानी बनने लगता है और वह आंखों के रास्ते बाहर आता है. इस के अलावा बंद नलिकाएं, धूल, हवा, ऐलर्जी, इन्फैक्शन और चोट आदि भी वाटरी आईज का कारण बनते हैं. ज्यादा सर्दी या धूप भी वाटरी आईज के लिए जिम्मेदार होती है. सर्दीजुकाम, साइनस की समस्या और ऐलर्जी भी इस का कारण बनती है. ड्राई आईज के कारणों का पता लगाना ही वाटरी आईज के लिए बेहतर उपचार है. हालांकि वाटरी आईज से कोई हानि नहीं होती है पर परेशानी जरूर होती है. अगर आप को इस तरह के लक्षण नजर आते हैं तो तुरंत आंखों के डाक्टर से मिलें:

  1. आंखों से कम दिखना.
  2. आंखों में कोई चोट आदि लगना.
  3. कोई कैमिकल आंखों में चला जाए.
  4. आंखों से खून आने लगा हो या फिर कोई बाहरी चीज आंख में चिपक गई हो.
  5. सिर में अत्यधिक दर्द हो रहा हो.

उपचार:

आमतौर पर ज्यादातर मामलों में वाटरी आईज बिना उपचार के भी ठीक हो जाती हैं. लेकिन कई बार स्थिति गंभीर भी बन जाती है. इस के लिए डाक्टर से परामर्श लेना आवश्यक होता है.

  1. डाक्टर इस के लिए आई ड्रौप्स लिखते हैं.
  2. टरी आईज के लिए जिम्मेदार ऐलर्जी का उपचार कर के इस समस्या को रोका जाता है.
  3. अगर आई इन्फैक्शन है तो इस के लिए ऐंटीबायोटिक्स दी जाती हैं.
  4. गरम तौलिया आंखों पर कई बार रखा जाता है जो बंद नलिकाओं को खोलने में सहायता करता है.
  5. बंद नलिकाओं को साफ करने के लिए सर्जरी का भी सहारा लिया जाता है.

4. पेनफुल थ्रोट (दर्द भरा गला)

गले में दर्द एक आम समस्या है, जिस का सामना हर व्यक्ति कभी न कभी करता है. इस का लक्षण गले में दर्द से ले कर दांतों में दर्द तक कोई भी हो सकता है. आमतौर पर गले के दर्द को इन्फैक्शन या ऐलर्जी के संकेत के रूप में देखा जाता है. अगर गले में दर्द ज्यादा है या फिर खानेपीने या सांस लेने में दिक्कत आ रही हो, तो डाक्टर से परामर्श लें. 

कारण:

गले के दर्द के लिए कई कारण जिम्मेदार होते हैं. जब गले में दर्द होता है तब आप को इस तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं:

  1. गले की सूजी ग्रंथियां.
  2. गले में चोट.
  3. इसोफेजियल में घाव के निशान.
  4. कान में इन्फैक्शन.

गले में दर्द के सामान्य कारणों में हैं, कोल्ड, फ्लू, क्रोनिक कफ, ऐसिड रिफ्लक्स डिजीज, गले में इन्फैक्शन, टौंसिल्स, गले को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्यपदार्थ आदि.

उपचार:

इस का उपचार दर्द के कारण पर निर्भर करता है. आमतौर पर डाक्टर गले के इन्फैक्शन, टौंसिल्स, मुंह में इन्फैक्शन आदि के लिए ऐंटीबायोटिक की सलाह देते हैं. कई बार डाक्टर ऐंटीऐलर्जिक ऐंटीबायोटिक देने से पहले गले को सुन्न करने के लिए नंबिंग माउथवाश देते हैं. थ्रोट स्प्रे से भी इस का उपचार किया जाता है. अगर किसी को टौंसिल्स की वजह से बारबार गले की समस्या होती या टौंसिल्स पर दवा का असर नहीं होता है तब डाक्टर उन्हें सर्जरी द्वारा रिमूव करने की सलाह देते हैं.

5. स्किन ऐलर्जी

स्किन ऐलर्जी यानी त्वचा ऐलर्जी आमतौर पर महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है. आमतौर पर जिन की त्वचा अत्यधिक सैंसिटिव होती है, उन्हें स्किन ऐलर्जी का ज्यादा खतरा रहता है. जब त्वचा को कोई खास चीज सूट नहीं करती तब उस पर ऐलर्जी उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में उन चीजों से दूर रहने की जरूरत होती है. त्वचा पर खुजलाहट, जलन, दाने निकलना, त्वचा का लाल होना आदि समस्याएं दिखाई दें तो समझना चाहिए कि यह स्किन ऐलर्जी या कौंटैक्ट डर्मैटाइटिस की समस्या है.

लक्षण:

कौंटैक्ट डर्मैटाइटिस की शिकायत होने पर जैसे ही ऐलर्जिक तत्त्व के संपर्क में शरीर आता है, तो जल्द ही या फिर कुछ घंटों के भीतर त्वचा का लाल होना, खुजली, जलन, गरम हो जाना, फुंसियां होना, छाले पड़ना, सूजन, दर्द आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं. प्लास्टिक, धातु, चमड़े आदि की ऐलर्जी की वजह से घाव हो सकते हैं. कान या नाक कृत्रिम आभूषण पहनने से पक सकती है. जूतेचप्पल के काटने से उस जगह घाव हो जाता है और फिर उस से पानी निकलना शुरू हो जाता है. ऐलर्जिक तत्त्व से संपर्क हटने के बाद कुछ दिनों में त्वचा सामान्य हो जाती है. किसीकिसी की त्वचा पर यह ऐलर्जी काफी गंभीर हो जाती है. लगातार ऐलर्जी होने पर वह गंभीर त्वचा रोग में बदल जाता है.

कारण:

कैमिकल युक्त चीजें जैसे बिंदी, खराब क्वालिटी के सौंदर्य प्रसाधन जैसे लिपस्टिक, नेलपौलिश, हेयरडाई, सिंदूर, फेसक्रीम, शेविंग क्रीम, साबुन, परफ्यूम, दवा, पेंट, पौलिश, टूथपेस्ट आदि स्किन ऐलर्जी के कारण हैं. कृत्रिम आभूषण, चश्मों के फे्रम, घड़ी का पट्टा, जूतेचप्पल, वाशिंग पाउडर, कलर, प्लास्टिक, स्याही, गाड़ी का स्टेयरिंग, पैट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, मोबिल औयल, नए या पुराने नोट, सिक्के आदि भी स्किन ऐलर्जी के कारक हो सकते हैं.

उपचार:

कौंटैक्ट डर्मैटाइटिस से बचने का सब से सही और आसान उपाय है, जिस चीज से त्वचा पर ऐलर्जी होती है, उस चीज को नोट कर के रखें और फिर उस का इस्तेमाल करना बंद कर दें. जब वह चीज त्वचा के संपर्क में नहीं आएगी तो कौंटैक्ट डर्मैटाइटिस की परेशानी उत्पन्न नहीं होगी. खानपान में परहेज करें, अधिक मात्रा में खट्टी चीजें, अधिक मिर्चमसाला, तैलीय चीजें, बासी खाना आदि का इस्तेमाल न करें. त्वचा की साफसफाई पर विशेष ध्यान दें. त्वचा अधिक संवेदनशील होने पर इनर वस्त्र सुबहशाम दोनों समय बदलें, शर्टपैंट रोजाना बदलें. दूसरों के बिस्तर, तौलिए, कपड़ों आदि का इस्तेमाल न करें. नईनई चीजों से शरीर में ऐलर्जी होने पर डाक्टर को अवश्य दिखाएं. कोई भी नया कौस्मैटिक इस्तेमाल करने से पहले उसे थोड़ा सा कलाई पर लगा कर सो जाएं. यदि सुबह तक उस जगह जलन या लालपन न हो तभी उस का इस्तेमाल करें.                  

 

 

Famous Hindi Stories : लाइकेन – कामवाली गीता की अनोखी कहानी

Famous Hindi Stories : पटना से दिल्ली की द्वारका कालोनी के इस घर में शिफ्ट हुए 8 दिन हो गए थे. घर पूरी तरह सैट हो कर चमक रहा था. लेकिन मैं अस्तव्यस्त, बेरौनक हुई जा रही थी. वजह वही जो हर तबादले के बाद झेलती आई हूं. अच्छी कामवाली मिल नहीं पा रही थी. कुछ मुझे पसंद नहीं आ रही थीं, कुछ को मेरा ‘एक घर एक बाई’ वाला फार्मूला रास नहीं आ रहा था. ‘‘नहीं जी, एक घर से कैसे पेट भरेगा? 5 जगह काम करती हूं तो

5 जगह चायनाश्ता, तीजत्योहार में कपड़े, गिफ्ट वगैरह मिलते हैं.’’ ‘हुंह, एक घर के काम का समय तो इन्हें एक घर से दूसरे घर जाने में ही निकल जाता है, यह उन्हें नहीं दिखता. ऊपर से 5 जगह दौड़ने में पैर घिसते हैं, थकान होती है, 5 जगह बातें सुननी पड़ती हैं, वह नहीं,’ कुढ़ती हुई मैं बुदबुदाई.

शादी के बाद जब मैं आई थी तो इन बाइयों ने उस वक्त भी मेरी नाक में दम कर रखा था. एक तो उम्र कम, फिर साफसफाई की बीमारी. वे हम से हैंडल ही नहीं हो पातीं. ‘‘आज वहां जल्दी जाना है. कल आप के यहां देर से आऊंगी. उन के यहां सामान ज्यादा है. बस, सामनेसामने पोंछा लगाना पड़ता है. आप के खाली घर में तो सफाई करने में ही थक जाती हूं. आप बरतन देखदेख कर जमवाती हैं. अरोड़ा मैम तो सोई रहती हैं, मैं सारा काम निबटा आती हूं.’’

सुनसुन कर मैं परेशान हो जाती. मैं तो अरोड़ा मैडम नहीं बन सकती. उस दिन उन के यहां गई थी. किचन का सिंक सड़ांध मार रहा था. जिस कप में चाय लाई, वह भी चिपचिपा था. मुझ से तो चाय पी ही नहीं गई. फिर उन का भेदिये जैसा सवाल, ‘जमुना आप के यहां बरतन जमाती है? कपड़े मशीन में डालती है? शाम को किचन व हौल में पोंछा लगाती है?’ ‘हां’ बोलने पर जमुना शाम को मुंह फुलाए घुसती, ‘आप ने अरोड़ा मैडम को क्या बतलाया, अब वे भी सब काम करवाएंगी. अगर गलती से ना बोलो तब वे मैडम नाराज, ‘आप पैसा ज्यादा दे कर यहां का रेट बिगाड़ रही हैं.’

थक कर मैं ने एक अलग कामवाली रखने का निर्णय लिया. इस के लिए भले ही मुझे दोगुना या तीनगुना पैसे देने पड़े. अपने दूसरे खर्चों में मैं कटौती कर लूंगी. इतवार की सुबह थी. सब अलसाए से सो रहे थे. मैं झाड़ू लगा रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी.

‘‘बिट्टू, दरवाजा खोलो, दूध वाला होगा.’’ साहबजादे कुनमुनाते हुए उठे और दिन होता तो मजाल था वह उठ जाए. वह तो अभी काम के ओवरलोड की वजह से मैं फुलचार्ज रहती थी. कभी भी किसी पर फट सकती थी, इसी कारण सब डरे रहते.

‘‘मम्मा, अनूप अंकल आए हैं.’’ अनूप, इन का ड्राइवर. आज इस वक्त, कहीं इन्हें आज भी तो नहीं जाना है. मेरा नाश्ता भी नहीं बना. इसी उधेड़बुन में बाहर आई.

‘‘नमस्ते मैडम, यह गीता है. काम ढूंढ़ रही है. बिहार की ही है, पास की ही बस्ती में रहती है.’’ अनूप ने ‘बिहार की ही है’ पर जोर देते हुए कहा. जैसे बिहार का नाम सुनते ही मैं किसी को भी सिरआंखों पर बैठा लूंगी.

‘‘नमस्ते आंटी,’’ आवाज सुन कर मैं ने उस की तरफ देखा, लंबी, छरहरी, सांवली सी, बड़ीबड़ी आंखों में हलका काजल, संवरी भौंहें, करीने से कढ़े बाल, सुंदर व कीमती सूट पहने 25-26 साल की लड़की मुसकराती हुई खड़ी थी. ‘यह कामवाली है,’ मैं ने मन ही मन सोचा और तब मुझे ध्यान आया कि मैं एक फटीचर नाइटी में अब तक हाथ में झाड़ू लिए खड़ी थी.

हड़बड़ा कर मैं ने झाड़ू नीचे पटकी. शुक्र है कि अनूप ने मुझ से पहले बात कर ली, नहीं तो ये तो मुझे बाई ही समझ बैठती. अनूप को विदा कर गीता को भीतर बुलाया. रसोई में चाय उबल रही थी. उस के लिए भी थोड़ा पानी डाला. एक कप इन्हें कमरे में दे आई, 2 कप चाय उसे लाने को कह मैं सोफे पर बैठ गई.

‘‘एक ही घर में काम करना होगा,’’ मैं ने अपनी शर्त सुनाई. ‘‘हां जी, मैं तो एक घर से ज्यादा कर भी नहीं सकती. अपने घर का भी तो काम रहता है. वो तो क्या है कि बाहर निकलने से थोड़ा मन भी बदल जाता है और थोड़ी कमाई भी हो जाती है,’’ बिलकुल दिल्ली वाले अंदाज में उस ने जवाब दिया.

‘‘शादी हो गई?’’ ‘‘और क्या, 3 बच्चे हैं.’’

‘‘क्या, 3 बच्चे! कब हुई शादी, कितनी उम्र है तुम्हारी?’’ ‘‘आंटी, हमारे यहां बेटी को 16 साल से ज्यादा कोई नहीं रखता. बहुत शिकायत होती है. मेरी शादी 15 वर्ष में हुई. 17 में गौना. 18 में बेटी. 2-2 साल के अंदर

2 और बेटे. 10 साल की बेटी है मेरी. यहां शहरों में 30-30 साल तक सब लड़की को घर में बैठाए रखते हैं,’’ कहती हुई उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे किसी ने उस के मुंह में पूरा नीबू निचोड़ दिया हो. संयोग से उसी वक्त मेरी 17 वर्षीय बेटी धीगड़ी सी कानों में ईयर फोन लगाए गुनगुनाती हुई बाथरूम से बाहर निकली. उसे अभी इस वक्त गीता के सामने हाफपैंट और टौप में देख कर मैं ही बुरी तरह सकपका गई. शीघ्रता से बात खत्म कर के मैं ने उसे काम समझाया और बाथरूम में जा घुसी. इस लड़की की सजधज ने तो हमारे अंदर भी एक हीनभावना भर दी. पता नहीं काम कैसे करवाऊंगी.

जितनी उत्कृष्ट थी उस की साजसज्जा उतना ही उत्कृष्ट था उस का पहनावा. गजब की पसंद थी उस की. साड़ी हो या सलवारकमीज, एक बार नजर ठहर ही जाती थी. घर का पूरा काम करने के बाद भी मजाल है कि उस की साड़ी की एक भी मांग इधरउधर हो जाए. उस के कारण मुझे अपनेआप को बहुत बदलना पड़ा.

बच्चे मजाक भी करते, ‘‘पापा 26 साल में मां की आदत नहीं सुधार पाए लेकिन गीता ने 36 दिनों में ही उन्हें सुधार दिया, जय हो गीता की.’’

गीता को काम करते हुए 2 महीने ही हुए थे. देवरदेवरानी बच्चों के साथ आए. सुबहसुबह हौल में पूरा परिवार इकट्ठा धमाचौकड़ी मचा रहा था, तभी गीता दाखिल हुई. देवर सोफे पर लेटे थे, हड़बड़ा कर उठ बैठे. मैं आंखों से उन्हें मना कर रही थी तब तक उन्होंने हाथ जोड़ कर उसे नमस्ते कर दिया. सब अपनी हंसी दबाए बैठे रहे. बाद में तो बच्चों ने जम कर उन की खिंचाई की. ऐसे तो गीता पर दोनों वक्त खाना बनाने के साथसाथ सुबह नाश्ते की भी जिम्मेदारी थी, लेकिन इन्हें साढ़े 8 बजे निकलना होता और दीपू की स्कूल बस तो 8 बजे ही आ जाती थी. इसी कारण सुबह मुझे रसोई में घुसना पड़ता. गीता ने सब्जी काट कर मुझे पकड़ाई और आटा निकालने गई तब तक मैं ने एकतरफ सब्जी छौंकी, दूसरी तरफ चाय चढ़ा दी.

‘‘आज फिर उस ने मारपीट की,’’ गीता बोली. ‘‘बच्चों ने?’’ मैं ने सहजता से पूछा.

‘‘नहीं, मेरे आदमी ने, पुलिस पकड़ कर ले गई.’’ ‘‘क्या, अब क्या होगा?’’ मेरे स्वर में चिेंता थी.

‘‘होगा क्या, मालिक जाएंगे छुड़ाने. साल में 3 बार का यही धंधा है.’’ गूंधे आटे को मुट्ठी से और चोट दे कर मुलायम करती हुई उस ने बेफिक्री से कहा. ‘‘मालिक कौन?’’

‘‘वही, जिन के यहां रहती हूं.’’ ‘‘किराए में रहती हो?’’

‘‘हां, यही समझ लीजिए. उन के दोनों बच्चों की देखभाल, घर का काम, खानाकपड़ा सब करती हूं.’’ ‘‘तब उन की बीवी क्या करती है?’’ मैं ने चिढ़ते हुए पूछा.

‘‘नहीं है. 5 साल पहले मर गई. शुरूशुरू में गांव से बूढ़ी मां आई थी, मन नहीं लगा. तब से मैं ही संभाल रही हूं.’’ हमें दिल्ली आए 2 साल हो गए थे. बेटे का नामांकन एनआईटी वारंगल में हो गया था. बेटी यहीं एमकौम कर रही थी. हम लोगों को गीता की आदत सी हो गई थी, धीरेधीरे उस ने घर की पूरी जिम्मेदारी जो संभाल ली थी. उस की बेटी बड़ी हो गई थी, वह अपने घर का काम कर लेती थी.

जीवन में पहली बार कामवाली का ऐसा सुख मिला था. मैं अपने एनजीओ को पूरा समय दे पा रही थी. रात का खाना निबटा कर किचन समेटा और सोने ही जा रही थी कि फोन आया, ‘‘आंटी, 20-30 हजार रुपए चाहिए.’’

‘‘30 हजार रुपए?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा. कम से कम 20 हजार रुपए तो देना ही होगा. प्लीज आंटी, बहुत जरूरी हैं. मालिक को दिल का दौरा पड़ा है. उन को अस्पताल में भरती करवा कर आ रही हूं. एक सप्ताह के अंदर औपरेशन होगा. ‘‘ठीक है, देखती हूं,’’ कह कर मैं ने फोन काटा. राकेश से बिना पूछे मैं उसे आश्वस्त नहीं कर सकती थी. हालांकि

5 हजार के हिसाब से 3-4 महीने में ही पैसा चुकता कर देगी. पहले भी एकदो बार वह 4-5 हजार रुपए ले गई थी. कभी बच्चे के ऐडमिशन के लिए या किसी शादीब्याह में जाने के लिए. लेकिन 4-5 दिनों के अंदर ही लौटा जाती थी. राकेश पहले तो 20 हजार रुपए पर थोड़ा झिझके, मेरे समझाने पर 10 हजार रुपए देने को तैयार हुए. अपने पैसों में से छिपा कर 10 हजार रुपए मिला कर मैं ने दूसरे दिन उसे बुलवा कर पूरे 20 हजार रुपए दे दिए.

गीता तो आज पहचान में ही नहीं आ रही थी. शृंगारविहीन, कुम्हलाया चेहरा, पपड़ी पड़े होंठ, बिना कंघी किए बाल, सूजी आंखें. लगता था रातभर सोई नहीं थी. उस का ऐसा रूप पहली बार देख रही थी मैं. थोड़ा आश्चर्य भी हुआ, माना कि मकानमालिक अच्छा है, इन लोगों का खयाल भी रखता है, फिर भी है तो पराया ही. उस के लिए इतनी चिंता. उस दिन जब पति जेल गया तो यह बिलकुल सामान्य थी मानो कुछ हुआ ही न हो. बहरहाल, 15 दिनों के लिए उस ने ही एक बाई ढूंढ़ कर लगा दी थी. मैं ने गीता को एक महीने की छुट्टी दे दी. महीनेभर बाद पुरानी गीता लौट आई. वही मुसकराता चेहरा, वही साजशृंगार.

‘‘कैसे हैं तुम्हारे मकानमालिक?’’ ‘‘हां आंटी, अब ठीक हैं. कल से काम पर जाने लगे हैं. शुक्र है, सबकुछ समय रहते हो गया. मालिक के दोस्त का मैडिकल कालेज में कोई रिश्तेदार है, उस ने बहुत सहायता की वरना इतनी जल्दी औपरेशन कहां हो पाता.’’

‘‘तुम ने तो बहुत किया उस के लिए. पैसे से ले कर देखभाल, सेवासुश्रूषा तक. इतना तो अपने भी नहीं करते. उस के घर से कोई आया था?’’ न चाहते हुए भी मेरे स्वर में थोड़ा व्यंग्य आ गया था. अचानक उस का हंसता चेहरा मुरझा गया. वह चुपचाप उठ कर अपने काम में लग गई. पोंछा लगातेलगाते मेरे पास आ कर बैठ गई, ‘‘आंटी, अब आप से क्या छिपाऊं. मैं मालिक के ही साथ रहती हूं.’’ इस बात को कहने के लिए इतनी देर में उस ने अपने को मानसिकरूप से तैयार किया था.

इन 3 सालों में इस सच का अंदाजा कुछकुछ मुझे हो ही गया था. ‘‘शादी कर ली है?’’

‘‘नहीं.’’ ‘‘फिर तुम्हारा पति?’’

‘‘वो भी वहीं रहता है. मालिक की मां जब गांव चली गई, मैं ने उन का काम करना शुरू किया. पहले चौकाबरतन, फिर खाना बनाना. मैं बहुत कष्ट में थी. अच्छे खातेपीते घर की लड़की हूं. मायके में जमीनजायदाद है. पिताजी की गांव में किराने की दुकान है. ‘‘लड़का दिल्ली में नौकरी करता है. इसी बात पर शादी हो गई. 3 बच्चे हो गए. यहां आने पर असलियत पता चली. तीन कमाता तेरह पी जाता है. घर में एक पैसा भी नहीं देता. ऊपर से रात में पिटाई करता. बच्चे भूख से बिलबिलाते थे. अंत में घर के पास में ही बन रही सोसायटी में ठेकेदारी में काम करने लगी. वहां भी स्थिति अच्छी नहीं थी. पूरे 8 घंटे काम, ठेकेदार की गंदी हरकतें, भद्दी गालियां. मिस्त्री का घिनौना स्पर्श, फिर भी पैसे मिल रहे थे, बच्चे पल रहे थे.

‘‘एक दिन मेरी बेटी किसी काम से हमारे पास आई. एक मजदूर उस का हाथ पकड़ने लगा. मैं ने गुस्से में पास रखे डंडे से उस के हाथ पर जोर से मारा. हंगामा हो गया. उसी वक्त मालिक वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने सब को डांटडपट कर भगाया. मैं लगातार रोए जा रही थी. ‘‘यहां क्यों काम करती हो?’’

‘‘क्या करूं? बच्चे खाएंगे क्या?’’ ‘‘खाना बनाना आता है?’’

‘‘बचपन से तो वही करती आई हूं. करम फूट गए थे जो यहां आई.’’ ‘‘कल सुबह स्कूल के बगल वाले मकान में आना, चावला मैनेजर का नाम पूछोगी, कोई भी बता देगा.’’

‘‘दूसरे दिन सुबह जो गई, तो वहीं की रह गई. पूरे दिन काम कर के रात का खाना बना कर लौट आती थी. बच्चे बगल वाले सरकारी स्कूल में जाते थे. उन्हें दिन का खाना वहां मिल जाता था. शाम को मालिक कहते कि बच्चों को यहीं बुला कर खिला दिया करो. ‘‘उस रोज खाना बना कर मैं बरतन मांज रही थी कि बेटी दौड़ती हुई आई, ‘अम्मा, बाबू को पुलिस पकड़ कर ले गई. बिलावल के साथ मारपीट कर रहा था.’

2 दिनों तक मैं दौड़ती रही. पुलिस कुछ नहीं सुन रही थी. अंत में मालिक ही छुड़वा कर लाए. उसे भी बगीचे की सफाई, घर की रखवाली के लिए रख लिया. जो मनुष्य अपनी बीवीबच्चों का, खुद अपना भी ध्यान नहीं रख सकता तो घर की क्या रखवाली करता. आंगन की तरफ पिछवाड़े में एक कमरा था, वहीं पड़ा रहता. बाद में हम लोग भी थोड़ीबहुत गृहस्थी के सामान के साथ वहीं रहने लगे. ‘‘दोपहर में बच्चे स्कूल गए हुए थे. सब काम निबटा कर सोचा कि थोड़ा सुस्ता लूं. कमरे में घुसी तो देखती हूं कि मेरा आदमी मेरी एकमात्र अमानत मेरे बक्से का ताला तोड़ कर सारा सामान इधरउधर कर के कुछ ढूंढ़ रहा है. बेटी कितने दिनों से पायल के लिए जिद कर रही थी, मैं ने जोड़जाड़ कर 1 हजार रुपए जमा किए थे, उसे रूमाल में बांध कर बक्से में रखते हुए उस ने शायद देख लिया था.

‘‘बेटी के शौक पर पानी फिरते देख मैं जोर से चिल्लाई, क्या खोज रहे हो? वह बोला, ‘तुम से मतलब?’ ‘‘‘मेरा बक्सा है, सामान मेरा है, तब मतलब किस को होगा,’ मैं ने कहा.

‘‘‘ठहर, अभी बतलाता हूं किस का सामान है, हक जताती है,’ एक भद्दी गाली देते हुए वह मुझ पर झपटा. ‘‘मैं पलट कर भागने के लिए मुड़ी ही थी कि मेरे कान की बाली उस की उंगलियों में फंस गई. उस ने जोर से खींचा. बाली उस के हाथों में चली गई और मेरे कान से खून बहने लगा.

‘‘शोर सुन कर मालिक आ गए थे. उन्होंने उसे धक्का दे कर अलग किया. मेरी हालत देख कर उन्होंने कहा, ‘इस आदमी के साथ कैसे रह लेती हो.’ बक्से से रुपए और मेरी सोने की एक बाली ले कर वह भाग गया. ‘‘20 दिनों के बाद वह लौटा. कुछ दिनों तक तो गेट पर बैठा रहता था, बाद में मालिक के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा. रहने की अनुमति तो उन्होंने दे दी लेकिन एक शर्त रखी कि मेरे ऊपर कभी हाथ उस ने उठाया तो वे उसे पुलिस को सौंप देंगे. वह तैयार हो गया लेकिन उस दिन के बाद से मैं ने अपने कमरे में जाना छोड़ दिया. फिर कब और कैसे मालिक के कमरे में मैं रहने लगी, पता ही नहीं चला.

‘‘दोनों को सहारे की जरूरत थी. पति से मैं ऊब चुकी थी. उस ने मार, तिरस्कार, दुख के सिवा मुझे दिया ही क्या था. आंटी, पतिपत्नी का संबंध तो समाज बनाता है. यह कोई खून का संबंध तो होता नहीं. अगर पति सातों वचनों में से एक भी नहीं निभाए तो क्या केवल पत्नी की ही जिम्मेदारी है कि उस के दिए सिंदूर को लगाए जीवनभर मरती रहे. पत्नी अगर कुल्टा होती है, बांझ होती है, लंगड़ी या लूली हो जाए, तो पति उसे तुरंत छोड़ देता है. फिर क्यों एक पत्नी उस की सारी यातनाओं को सहतेसहते मर जाए. औरत को भी तो जीने का हक है.

‘‘मालिक तो सच में बहुत अच्छे इंसान हैं. बच्चों के कारण ही उन्होंने शादी नहीं की. जिस ने मुझे जीवन दिया, मेरे बच्चों के मुंह में निवाला दिया, मेरे भविष्य की चिंता की, उस के प्रति मैं पूरी वफादार हूं. अब मेरा अपने आदमी के साथ कोई संबंध नहीं है.’’ ‘‘आदमी कुछ नहीं कहता है?’’ मैं ने आश्चर्य से जानना चाहा.

‘‘शुरूशुरू में उस ने होहल्ला किया. अड़ोसपड़ोस वालों को जुटा लाया. लेकिन मैं शेरनी जैसी तन कर खड़ी हो गई, ‘खबरदार, मालिक को कोई कुछ बोला तो. यह मेरा पति जब पूरी रात मुझे मारता था, घर से निकाल देता था तब तुम लोग कहां थे? मेरे बच्चे भूख से छटपटाते थे, तब किसी ने उन का पेट क्यों नहीं भरा? जब मेरे साथ दुनिया वाले बदसुलूकी करते क्यों नहीं कोई मेरी रक्षा करने को आगे आया? उस वक्त तो मेरी मजबूरी का सब मजा लेते थे, खुद भी मुझे गिराने और नोचने की ताक में रहते थे. अब मुझे किसी की चिंता नहीं है. न अपने पति की, न समाज की. जिस को जो करना है, मैं निबट लूंगी सब से. मगर मालिक को बीच में मत घसीटना.’ पता नहीं कहां से मुझ में इतनी हिम्मत आ गई थी. ‘‘असल में अब मुझे मालिक का सहारा था, लगता था कुछ होगा तो वे संभाल लेंगे. पहले किस के भरोसे पर हिम्मत करती. आदमी ने भी बाद में समझौता कर लिया. कपड़ा वगैरह उसे मालिक दे देते हैं. कोई जिम्मेदारी नहीं, बैठेबिठाए खानाकपड़ा मिल रहा है स्वार्थी को. उसे यह सौदा अच्छा ही लगा.’’

बहुत ही सहजता से गीता ने अपनेआप को एक पत्नी, एक मां और रक्षिता में बांट लिया था. उस की बातें प्र्रवाहित थीं, ‘‘आंटी, औरत शादी ही इसलिए करती है कि उसे एक सुरक्षित छत, मजबूत सहारा और निश्चित भविष्य मिले. मुझे भी यही चाहिए था और कोई लालच मुझे नहीं था. ‘‘एक दिन तो मालिक ने अपनी पत्नी की सारी साडि़यां, गहने वगैरह भी मुझे थमा दिए थे. उन की साडि़यां तो मैं पहनती हूं, लेकिन गहने मैं ने जिद कर के बैंक के लौकर में रखवा दिए. इन पर उन की बेटी और बहू का ही हक है. उन्होंने मुझे सहारा दिया. मुझे और कुछ नहीं चाहिए.

‘‘औरत भले ही अपनी आजादी के लिए आंदोलन करती हो, आदमी पर आरोप लगाती हो कि उस को घर में बांध कर कैद कर के रखा है लेकिन आंटी, अगर हमें एकदम खुला भी छोड़ दिया जाए तो कुछ दिन तो यह आजादी हमें अच्छी लगेगी, आकाश में उड़ने का गुमान भी होगा लेकिन बाद में थक कर हमारे पंख टूट जाएंगे, बिखर जाएंगे. औरत को एक आधार, एक सहारा चाहिए ही. उसे बंधन पसंद है, उस की आदत है, उस का स्वभाव है यह.’

मैं अवाक नारी सशक्तीकरण की धज्जियां उड़ाती उस की बातें सुन रही थी. अगर ईमानदारी से हर स्त्री अपने मन को टटोले तो क्या गीता गलत कह रही थी? यह एक महिला के सहज उदगार की व्याख्या थी. शायद हर स्त्री के भीतर दिल एकसा ही धड़कता है, उस की भावनाएं एकजैसी होती हैं. शिक्षा से भले ही उन के विचार बदल जाएं, भावनाएं नहीं बदलतीं. समाज के खोखले मापदंड के हिसाब से गीता की सोच, उस का चरित्र भले ही गलत हो, लेकिन मुझे तो वह किसी दृष्टिकोण से गलत नहीं लगी. वनस्पति विज्ञान में एक पौधा होता है लाइकेन. कवक और शैवाल का मिला सत्य. उस पौधे में मौजूद कवक बाहरी आघातों से पौधे की रक्षा करता है जबकि शैवाल अपने हरे रंग के कारण प्रकाश संश्लेषण कर के पौधे को भोजन प्रदान करता है. दोनों एकदूसरे पर आश्रित, एकदूसरे से लाभान्वित. इस संबंध को सिम बायोसिस कहते हैं. गीता और मालिक का संबंध भी तो सिम बायोसिस ही है लाइकेन की तरह.

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