खांसी की प्रौब्लम से परेशान हो गई हूं, कोई इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 वर्ष है. 3 साल पहले मुझे बलगम भरी खांसी हुई थी. यह खांसी कुछ दिन रह कर ठीक हो गई थी पर तभी से ऐसा लगता है जैसे गले में कुछ फंसा हुआ है. जोर से खखारने पर कभी पतला तो कभी गाढ़ा सफेदभूरे रंग का बलगम आता है. गले के अंदर से दुर्गंध भी आती है. डाक्टर का कहना है कि गला और टौंसिल ठीक है. बस ठंडी चीजों से परहेज करूं. लेकिन मुझे ऐसा करने पर भी आराम नहीं मिल रहा. उचित सलाह दें.

जवाब-

गले में कुछ फंसा होना, खंखारने पर दुर्गंधमय बलगम आना, सिर में दर्द होना ये सभी लक्षण इस बात का इशारा है कि कहीं आप के साइनस में इन्फैक्शन तो नहीं घर कर गया. अच्छा होगा कि आप किसी ईएनटी विशेषज्ञ को दिखाएं और उन की देखरेख में साइनस का एक्सरे करवाएं. वाटर्स व्यू नाम का यह साधारण एक्सरे कराने से यह पता चल सकेगा कि आप को साइनेसाइटिस है या नहीं.

सुबहशाम कुनकुने पानी से गरारा करें और भाप लें. इस से गला साफ रहेगा और खांसी से भी राहत मिलेगी. इस के अलावा सुबह के समय खुली व ताजा हवा में 3-4 मील की तेज गति से सैर करें. इस से आप के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी और आप की सेहत में सुधार आएगा. अगर साइनेसाइटिस की पुष्टि होती है तो उस का पूरा इलाज कराएं.

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कोरोना वायरस महामारी भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में फैल चुकी हैं. दिन-प्रति दिन इस महामारी से जूझने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में इस वायरस से बचने के लिए इम्युनिटी को स्ट्रांग रखना व इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए हैलदी डाइट बहुत  ज़रूरी है, जो इस हालात में खांसी, जुकाम और फ्लू से हमें बचा सके.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए अभी हाल ही में सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट व डाइटीशियन रुजुता दिवेकर ने सर्दी-खांसी और फ्लू से बचने के कुछ घरेलू उपाय बताए हैं.

न्यूट्रिशनिस्ट व डाइटीशियन रुजुता दिवेकर ने पोस्ट में लिखा है कि हमारे किचन व दादी मां के टाइम-टेस्ट्ड ज्ञान को फिर से रोशनी में आने के लिए किसी महामारी की जरूरत नहीं है.  इन चीजों को एक्सप्लोर करें, खुद भी खाएं और आने वाले जेनरेशन को भी इन चीजों को खाने के लिए प्रोत्साहित करें,  ठीक उसी तरह जैसे बचपन में आपकी दादी-नानी आपको प्यार से खिलाया करती थीं.

आइए जानते हैं रुजुता दिवेकर के क्या हैं 7 उपाय, जिसको  आप अपनी डाइट में शामिल कर सकती है-

1. घी, सूखी अदरक या  सोंठ, हल्दी, गुड़ को एक समान मात्रा में मिलाकर सुबह और रात में खाएं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Bollywood Dietitian से जानें जुकाम, खांसी और फ्लू को दूर भगाने के 7 घरेलू उपाय

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Cannes 2022 में छाया हिना खान का जलवा, बौलीवुड हसीनाओं को दे रही हैं टक्कर

इन दिनों कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 काफी चर्चा में हैं. जहां बौलीवुड हसीनाएं अपने लुक को लेकर ट्रोल हो रही हैं तो वहीं टीवी एक्ट्रेसेस अपना जलवा बिखेरती दिख रही हैं. एक्ट्रेसेस की इस लिस्ट में हिना खान सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं. दरअसल, हाल ही में एक इंटरव्यू में कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 में एक कार्यक्रम का हिस्सा ना बन पाने को लेकर एक्ट्रेस ने नाराजगी जताई है. हालांकि फैंस के लिए वह अपने लुक्स को फ्लौंट करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं, जिसके चलते हिना खान के कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 के लुक्स चर्चा में हैं. आइए आपको दिखाते हैं हिना खान से लेकर कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 का हिस्सा बनीं टीवी हसीनाओं की झलक…

एक्ट्रेसेस की बीच चर्चा बना हिना खान का लुक

 

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हाल ही में चल रहे कान्स फिल्म फेस्टिवल में दीपिका पादुकोण, उर्वशी रौतेला, पूजा हेगड़े, तमन्ना भाटिया, सिंगर मामे खान जैसे सितारों के बीच एक्ट्रेस हिना खान का लुक चर्चा में हैं, जिसकी फोटोज वह अपने फैंस के लिए सोशलमीडिया पर शेयर करती नजर आ रही हैं. कान्स 2022 के पहले दिन एक्ट्रेस हिना खान ने रेड कलर का औफशोल्डर गाउन कैरी किया था, जिसके साथ सिंपल पर्ल इयरिंग्स और शौर्ट हेयर में हिना खान एलिंगेट और स्टाइलिश लग रही थीं. फैंस को एक्ट्रेस का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

 

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दूसरे दिन भी छाया हिना खान का लुक

 

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कान्स में दूसरे दिन एक्ट्रेस हिना खान ब्लैक कलर के ट्रांसपैरेंट आउटफिट में नजर आईं, जिसमें एक्ट्रेस का हौट अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वहीं सोशलमीडिया पर एक्ट्रेस के फैशन और लुक की काफी तारीफ हो रही हैं. वहीं फैंस उन्हें बौलीवुड एक्ट्रेस से भी ज्यादा खूबसूरत बताते नजर आ रहे हैं.

हेली शाह की हुई हिना खान की तुलना

 

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जहां हिना खान का कान्स 2022 का लुक फैंस के बीच चर्चा में है तो वहीं एक्ट्रेस हेली शाह के लुक को कई लोग हिना खान के लुक की कौपी बताते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते वह सुर्खियों में हैं. दरअसल, कान्स 2022 के पहले दिन एक्ट्रेस हेली शाह ने सिल्वर गाउन कैरी किया था, जिसकी ट्रोलर्स हिना खान के साल 2019 में हुए कान्स लुक से तुलना कर रहे हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है Kangana Ranaut की फिल्म Dhaakad

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः दीपक मुकुट और सोहे मकलाई

निर्देशकः रजनीश घई

कलाकारः कंगना रनौत,  अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी,  शारिब हाशमी और अन्य

अवधिः दो घंटे 13 मिनट

फिल्मकार रजनीश घई एक महिला प्रधान एक्शन जासूसी फिल्म ‘‘धाकड़’’लेकर आए हैं. जिसे देखने के बाद यही समझ में नहीं आया कि यह फिल्म बनायी क्यों गयी है? फिल्म में कथा पटकथा, निर्देशन, कंगना का अभिनय सब कुछ गड़बड़ है. फिल्म ‘‘धाकड़’’देखने के बाद मन में सवाल उठता है कि फिल्म ‘क्वीन’ में शानदार अभिनय करने वाली यही कंगना रानौट थी. ‘धाकड़’में कंगना की अभिनय क्षमता में जबरदस्त गिरावट नजर आती है. वैसे फिल्म देखकर यह समझ में आता है कि 2003 की सफलतम हालीवुड फिल्म ‘‘किलबिल’’ की नकल करने का प्रयास किया गया है.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है बुद्धापेस्ट से, जहां एक महिला भारतीय जासूस अग्नि( कंगना रानौट) बंदूकों व तलवारों का उपयोग करते हुए अपनी जान को जोखिम में डाल कर ‘मानव तस्करी’ का व्यवसाय करने वालों के यहां से सैकड़ों छेाटे लड़के व लड़कियों को छुड़ाती है. यहां पर अग्नि को एक पेन ड्राइव मिलती है, जिसमें एशिया के सबसे बड़े बाल तस्कर रूद्रवीर सिंह(अर्जुन रामपाल) के बारे में जानकारी है, जो कि सरकार के खिलाफ नफरत भरकर अपनी साथी रोहिणी(दिव्या दत्ता) के साथ कोयला खदानों पर कब्जा करने के साथ ही छोटे बच्चों की मानव तस्करी करते है. अब अग्नि के बॉस(शाश्वत चटर्जी ) और जिन्होने उसे पाल पोस कर इस लायक बनाया है वह अग्नि को रूद्रवीर को खत्म करने के लिए भारत भेजते हैं. जहां अग्नि की मदद करने के लिए फजल(शारिब हाशमी) है.

पता चलता है कि रूद्रवीर जब अपने साथियों के साथ कोयला चोरी करता है, तो उसके पिता उसे रोकते हैं, तब वह अपने पिता की ही हत्या कर देता है. इसके बाद उसे रोहिणी का साथ मिलता है और देखते ही देखते वह एशिया का सबसे बड़ा मानव तस्कर बन जाता है.

अग्नि के भारत पहुंचने के बाद रूद्रवीर को खत्म करने के लिए अग्नि जुट जाती है. पर अंत में उसे रूद्रवीर को खत्म करने के लिए बुद्धापेस्ट ही जाना पड़ता है. तब रूद्रवीर से पता चलता है कि वह तो उसी इंसान की मोहरा बनी हुई है, जिसने बचपन में उसके माता पिता की हत्या की थी.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कहानी रजनीश घई ने चिंतन गांधी और रिनिश रवींद्र के साथ मिलकर लिखी है. कहानी काफी घिसी पिटी है. फिल्म का हर दृश्य किसी न किसी फिल्म से चुराया हुआ है. पटकथा बकवास है. पूरी फिल्म हिचकोले लेते हुए धीमी गति से आगे बढ़ती है. फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि संवाद लेखक रितेश शाह ने अपना दिमाग कहीं रखने  के बाद ही संवाद लिखे हैं. फिल्म में ‘‘सो जा. . .  सो जा. . ’’गाना कई बार आता है. फिल्म के सभी एक्शन दृश्य अतार्किक हैं. कई दृश्यों का दोहराव भी नजर आता है. इमोशंंस का घोर अभाव है. लेखक व निर्देशक को यही पता नही है कि जब जासूस दुश्मन से भिड़ने जा रहा है, तो बंदूक आदि के साथ ही अपनी सुरक्षा के उपाय करते हुए बुलेट प्रुफ जैकेट वगैरह पहनकर जाता है न कि बिकनी या अति छोटे कपड़े पहनकर जाता है. निर्देशन अति कमजोर है. कहीं भी बेवजह सेक्स दृश्य ठॅंूस दिए गए हैं. मानव तस्करी के व्यवसाय को भी ठीक से रेख्ंााकित नही किया गया. मानव तस्करी के लिए ले जाने वाले बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार होता है, उसका भी कहीं जिक्र नहीं. पूरी फिल्म में कहानी तो कहीं है ही नही. दर्शक सिर्फ यही सोचता रहता है कि यह फिल्म कब खत्म होगी. कोयला खदान के मसले को भी सही ढंग से उठाया ही नहीं गया. रूद्रवीर कोयला खदानांे के व्यवसाय ेसे क्यों जुड़े है, कुछ भी स्पष्ट नही है. दर्शक को लगता है कि उसने इस फिल्म के लिए पैसे व अपना समय खर्च करके बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.

कमजोर कहानी, कमजोर पटकथा,  कमजोर निर्देशन, कमजोर एक्शन दृश्य व कमजोर अभिनय ने फिल्म का बंटाधार करके रख दिया है.

अभिनयः

अग्नि के किरदार में कंगना रानौट अपने अभिनय से घोर निराश करती हैं. उन्होने ‘किलबिल’ की नायिका की तरह खुद को साबित करने का असफल प्रयास किया है. वह भूल गयीं कि नकल के लिए भी अकल चाहिए. एक्शन दृश्यों में ऐसा लगता है जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने वाली बंदूक से खेल रहा हो. हकीकत में कंगना के लिए अग्नि का किरदार है ही नहीं. रूद्रवीर के किरदार में अर्जुन रामपाल नही जंचे. यह उनके कैरियर की सबसे कमजोर फिल्म है. उनका दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी व शारिब हाशमी का अभिनय ठीक ठाक है, मगर इन्हे कहानी व पटकथा से कोई मदद नहीं मिलती.

‘मरीजों की चिंता सबसे पहले होती है’- डा. नेहा सिंह

डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाले अधिकतर लोग निजी क्षेत्र में चिकित्सा सेवा को प्रथमिकता देते है. मिर्जापुर की रहने वाली डॉ नेहा सिंह ने निजी क्षेत्र में काम करने की जगह पर सरकारी अस्पतालों में सेवा करने को प्रथमिकता दी. डॉ नेहा का मानना था कि सरकारी अस्पतालों के जरिये वो गरीब और कमजोर वर्ग से आने वाले लोगो की अधिक सेवा कर सकती है. डॉ नेहा सिंह ने प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने की चुनौती भी स्वीकार की. उनकी सोंच थी कि अच्छी चिकित्सा व्यवस्था के लिये अच्छे डाक्टर के साथ ही साथ अच्छे प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर की भी जरूरत होती है. यही नहीं डॉ नेहा ने प्राइवेट सेक्टर में जाकर डाग्नोसिस सेंटर खोलने की जगह पर सरकारी अस्पतालों में प्रोविंशियल मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने की चुनौती को स्वीकार किया. वह ऐसे लोगो के लिये प्रेरणा का काम करती है जो सरकारी अस्पतालो में काम करके खुशी का अनुभव नहीं कर रहे होते है. डॉ नेहा ने अपने काम से एक अलग छवि बनाई है. जिसकी वजह से मरीज उनकी हर बात मानते है और उनसे अपनी हर बात शेयर करते है.

प्रोविंशियल मेडिकल सर्विस को बनाया अपना कैरियर:

डॉ नेहा सिंह के पिता खुद डाक्टर है. ऐसे में 12 वीं के बाद नेहा ने भी डाक्टर बनने के लिये परीक्षा दी. रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली में उनको एमबीबीएस करने के लिये प्रवेश मिल गया. वहां से अपनी पढाई पूरी करने के बाद नेहा ने प्रोविंशियल मेडिकल सर्विस में अपना कैरियर बनाने की सोची. पहली ही बार में ही परीक्षा में सफल हो गई. उत्तर प्रदेश के तमाम शहरों के सरकारी अस्पतालों में उन्हें सेवा करने का मौका मिला.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती और देवरिया में काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा? पूछने पर नेहा बताती है, ‘टीबी और चेस्ट विभाग में काम करते वक्त हमने देखा कि ज्यादातर लोग इस बीमारी को शुरुआती दिनों में गंभीरता से नहीं लेते है. इससे बचने की कोशिश नहीं करते है. लोगों को जागरूक होना चाहिये. अपनी सफाई का ध्यान रखना चाहिये. नशे से बचना चाहिये. अच्छा भोजन करना चाहिये.

“अगर कोई दिक्कत हो तो इलाज कराना चाहिये. लापरवाही नही बरतनी चाहिये. टीबी अब पहले जैसा घातक नहीं है पर इससे सावधान रहने की जरूरत है.”

कोरोना संकट में जनता की सेवा:

2020 में जब कोरोना का प्रकोप पूरी दुनिया पर संकट बनकर छाया तो भारत के सामने सबसे बडी समस्या खडी हो गई. ऐसे समय में सरकारी अस्पताल और वहां का आधारभूत ढांचा ही ढाल बनकर कोरोना के सामने खडा हुआ. डॉ नेहा सिंह का अनुभव और साहस भी इसमें बडा सहारा बना. उनकी ड्यूटी बस्ती जिले के सरकारी अस्पताल में लगी थी. इस अस्पताल को एल-2 का दर्जा दिया गया था. जिसका मतलब था कि कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज यहां होता था. वहां काम करना सबसे खतरनाक माना जा रहा था.

यहां काम करना चुनौती से कम नहीं था. डॉ नेहा सिंह ने इस चुनौती को स्वीकार किया. बच्चों और घर परिवार की चिंता छोड दी. वहां 15 दिन ड्यूटी देने के बाद बाकी के 15 दिन क्वारंटीन रहना पडता था. ऐसे में लगातार दो माह तक बच्चों से दूर रही. यह उनके जीवन में पहला अवसर था जब बच्चों से इतने लंबे समय तक दूर रहना पडा.

डॉ नेहा सिंह बताती है ‘मुझे भी एक बार कोरोना हो गया था. उस समय थोडा सा डर लग रहा था. मेरी 8 साल की बेटी और 3 साल का बेटा है. उनकी चिंता हो रही थी. अच्छी बात यह थी कि हमारा परिवार साथ रहता है तो बच्चों की देखभाल हो रही थी. दो माह तक बच्चों से दूर रहना बहुत अलग लग रहा था. दूसरे लोगों की दिक्कतों को देखते हुये हमारी परेशानी कम थी. इस बात को सोंच कर अपना हौसला बनाती रही.’

सशक्त समाज के लिये जागरूक हो महिलाएं:

“साफसफाई के अभाव में महिलाएं तमाम तरह की बीमारियों की शिकार हो जाती है, जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पडता है. सरकारी अस्पताल में काम करते वक्त हमें गांव और छोटेबडे शहरों की महिलाओं से मिलने का मौका मिला. हम उन्हें समझाने का काम करते थे. बहुत सारी महिलाएं सरवाइकल कैंसर से ग्रस्त होने के बाद इलाज के लिये आती थी. सफाई और पीरियडस के दिनो में हाईजीन का ख्याल रखने से महिलाएं तमाम बीमरियों से बच सकती है.”

डॉ नेहा का मानना है कि महिलाओं को अपनी हेल्थ से जुडे विषयों पर जागरूक होना चाहिये. इसके लिये पत्र-पत्रिकाएं पढे. उन्हें केवल मनोरंजन की निगाह से न देखे. इनमें आजकल बहुत सामग्री छपने लगी है. उसे पढ़े और समझे ताकि किसी मुसीबत में न पडे. राजनीति और समाज के दूसरे विषयों को पढ़े और समझे ताकि यह पता चल सके कि समाज और राजनीति में क्या कुछ आपके लिये हो रहा और क्या नहीं हो रहा है.  महिलाएं जागरूक और आत्मनिर्भर रहेगी तो अपने फैसले खुद ले सकेगी और एक सशक्त समाज का निर्माण कर सकेगी.

परिवार है सफलता की धुरी:

डॉ नेहा मानती है कि किसी भी महिला की सफलता में उसके परिवार की भूमिका सबसे अधिक होती है. कोरोनाकाल में मेरा परिवार मेरे बच्चों की देखभाल करने के लिये उपलब्ध न होता तो मै अपने बच्चों को छोड़ कर अपना काम बेहतर तरह से नहीं कर पाती. कैरियर और सफलता के लिये परिवार को ले कर आगे चलना चाहिये. इससे ही मजबूत समाज बनता है.

निर्देशक और एडिटर मनोज शर्मा से जानें उनके संघर्ष की कहानी

मैं आया तो था हीरो बनने, लेकिन 6 महीने में पता चल गया कि मुझे हीरो नहीं निर्देशक बनने की जरुरत है, इसलिए मेरे संघर्ष का दौर कम समय तक चला और आज मैने एक फिल्म डायरेक्ट की है, हँसते हुए कहते है निर्देशक, पटकथा लेखक, एडिटर मनोज शर्मा, उन्होंने एक फिल्म ‘देहाती डिस्को’ का निर्माण किया है, जिसे वे अब थिएटर में रिलीज किया जाएगा, आइये जाने उनके संघर्ष की कहानी उनकी जुबानी.

मिली प्रेरणा

बचपन से ही फिल्मों में काम करने की इच्छा रखने वाले मनोज शर्मा उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के खुर्जा से है. खुर्जा में परिवारवाले क्रोकरी का व्यवसाय करते है, लेकिन मनोज को इस व्यवसाय में काम करना पसंद नहीं था,घर में सबसे छोटे होने की वजह से वे चंचल स्वभाव के थे, किसी का ध्यान उन पर अधिक नहीं था, इसलिए बी.कॉम. की फर्स्ट इयर पूरा करने के बाद वे मुंबई आ गए. मनोज को फिल्में देखने का बहुत शौक था,वे अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेन्द्र आदि प्रसिद्ध कलाकारों की हर फिल्म देखा करते थे और फिल्म ने ही उन्हें इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी है.उनके परिवार वालों ने पहले उन्हें मुंबई आने से मना किया था, लेकिन बाद में उन्हें अपनी इच्छा पूरी करने के लिए सहयोग भी दिया

कला को दी अहमियत

मनोज ने कई फिल्मों में निर्देशक का काम किये है, लेकिन उनकी ये फिल्म बहुत खास है, जिसमे उन्होंने भारतीय कला को आगे बढाने वाली एक इमोशनल ड्रामा फिल्म, जो पिता और बेटे की है. मनोज कहते है कि इसकी कहानी से मैं बहुत प्रभावित हुआ और इसे बनायीं. मैं अधिकतर कॉमेडी फिल्में बनाता हूं.

संघर्ष कैरियर की

मनोज अपने संघर्ष के बारें में कहते है कि मैं एक छोटे शहर से आया हूं. जैसा सभी जानते है कि छोटे शहरों में रहने वालों को बहुत कम फ़िल्मी दुनिया के बारें में पता होता है. सभी यहाँ हीरों बनने ही आते है, मैं भी हीरों बनने ही आया था, लेकिन 6 महीने के अंदर पता चल गया कि मैं हीरों नहीं बन सकता, क्योंकि ऑडिशन दिया, पर किसी ने मुझे हीरो बनने का मौका नहीं दिया. फिर मैंने मेरे एक परिचित की सहायता से फिल्म तहलका के लिए एडिटिंग का काम करने लगा. इस तरह से मैं एडिटिंग और निर्देशन में जुड़ गया और कई फिल्में बनायी. इससे मुझे प्रैक्टिकल ज्ञान अधिक मिला. इसके बाद पुलिस वाला गुंडा, माँ, आदि कई फिल्मों में निर्देशक और एडिटिंग का काम करने लगा. मुझे पहले लगता था कि फिल्मों में हीरो की अधिक क़द्र होती है, लेकिन बाद में पता चला कि एक निर्देशक, एडिटर और कैमरामैन को भी बहुत सम्मान मिलता है. इस क्षेत्र में पहले लर्निंग एसिस्टंट के आधार पर रखा जाता है, जो निर्देशक के साथ जरुरी काम करता है और फिल्म डायरेक्शन भी सीखता रहता है. इसके अलावा लोगों से परिचय बढती है और नया काम मिलने में आसानी होती है.

की मेहनत

पहले जब मनोज काम की तलाश कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात निर्देशक अनिल शर्मा से हुई और उन्हें काम मिला. वे कहते है कि मैं उनका 10वीं नंबर का निर्देशक था, जिसका काम भागा-दौड़ी के अलावा कुछ नहीं था. इस काम में किसी को कुर्सी ला देना,पानी देना, ड्रेस को आर्टिस्ट तक पहुँचाना आदि करता था और समय मिलने पर डायरेक्शन को देखता था. एडिटिंग में होने की वजह से मैं अधिकतर डायरेक्टर के साथ रहता था. इससे मुझे काम मिलना आसान हुआ.

इंडस्ट्री में काम करना नहीं आसान

वे आगे कहते है कि कड़े अनुभव मुझे शुरू में मिले, जब मैं एक्टर बनने की कोशिश कर रहा था और सभी प्रोडक्शन हाउस में घूम रहा था, लेकिन किसी ने अभिनय में नहीं लिया. करीब 6 महीने में ही मुझे पता चल गया था की मैं हीरों नहीं बन सकता. दरअसल जब मैं अपने शहर में था, तब इंडस्ट्री की कोई जानकारी नहीं थी, लगता था, सबकुछ आसानी से हो जायेगा, लेकिन मुबई आने के बाद ही पता चला कि यहाँ कुछ भी आसान नहीं है. जब सभी ने एक्टिंग देने से मना किया, तो मैं एक वीडियो लाइब्रेरी में गया और खुद संवाद लिखकर शूट करने को कहा और जब क्लिपिंग देखी तो मुझे समझ आ गया कि एक्टिंग मुझे नहीं आती. मुझे कुछ दूसरा काम करने की जरुरत है.

नहीं भूलता बीतें दिन

मनोज अपनी जर्नी में पीछे मुड़कर उन लोगों को देखते है, जिन लोगों ने उन्हें मुसीबत के समय काम किया.  ड्रीम एक्टर आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव के जैसे नए कलाकार है,जो बहुत अच्छा अभिनय करते है. इसके अलावा मेरी इच्छा राजकुमार हिरानी के जैसे फिल्में डायरेक्ट करने की है. एक अच्छी कहानी, प्रतिभावान कलाकारों के साथ करने की इच्छा रखता है.

है गोल्डन पीरियड

मनोज इस दौर को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का गोल्डन पीरियड कहते है, जो बहुत ही अच्छा है, जिसमें सभी नए कलाकारों को काम करने का अवसर मिल रहा है. कम बजट में फिल्में बन रही है, इसमें किसी को भी घाटा नहीं हो रहा है. यू-ट्यूब पर बनी एक आकर्षक क्लिप भी उस व्यक्ति के लिए लाभदायी हो सकता है अगर उसे लोग पसंद करें. इस समय सारे निर्देशक, टेक्नीशियन, सारे कलाकार सभी के लिए काम है. बड़ी फिल्में न मिलने पर, इन नए कलाकारों को लेकर वेब सीरीज बनाया जा सकता है.मैंने धर्मेन्द्र और मधु को लेकर फिल्म खली-बली बनाई है. निर्माता के अनुसार कलाकारों का चयन करना पड़ता है, ताकि फिल्म बजट के अंदर बने. इसके अलावा मैंने कोविड पर एक फिल्म ओंटू बनाई है, जो ओटीटी पर आने वाली है. मैं किसी भी फिल्म को उत्तेजित करने वाली नहीं बनाता, बैर और दुश्मनी को फिल्म में नहीं आने देना चाहिए.

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सीरियल इमली (Imlie) में हाल ही में आर्यन की दोस्त ज्योति की एंट्री हुई है, जो हर कदम पर इमली को मारने की कोशिश कर रही है. वहीं इसमें उसका साथ नीला देती हुई दिख रही है. इन्हीं कोशिशों के बीच आर्यन और इमली एक-दूसरे के करीब आ गए हैं, जिसके चलते जल्द दोनों का सीरियल में रोमांस दिखने वाला है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

ज्योति हुई खुश

 

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अब तक आपने देखा कि आर्यन और इमली को ट्री हाउस से गिराने के बाद ज्योति खुश होती है और सोचती है कि इमली की जान चली गई है. हालांकि गुड़िया और नीला परेशान होते हुए नजर आते हैं, जिसके चलते वह आर्यन की मां को एक बार फिर भड़काते हुए दिखते हैं. वहीं इमली को बेहोश देखकर आर्यन घबरा जाता है और अपने प्यार का इजहार करता है.

आर्यन औऱ इमली आए करीब

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि आर्यन जहां अपने प्यार का इजहार करेगा तो वहीं इमली को होश आ जाएगा और वह आर्यन को गले लगा लेगी.  वहीं आर्यन से कहेगी कि वह भी उससे कुछ कहना चाहती है और दोनों एक दूसरे के करीब आ जाते हैं. इसी के साथ इमली भी अपने प्यार का इजहार करते हुए आर्यन से कहेगी कि वह भी उससे प्यार करती है और उसे गाल पर किस करेगी, जिसके बाद दोनों रोमांटिक पल बिताते नजर आएंगे.

सेट पर मस्ती करती दिखी एक्ट्रेस

 

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आर्यन और इमली के रोमांस के बीच एक्ट्रेस सुंबुल तौकीर खान ने अपने को स्टार फहमान खान संग कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें दोनों कीचड़ में मस्ती करते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं कैप्शन में एक्ट्रेस ने लिखा है किचड़ में रोमांस. फैंस को दोनों की ये फोटोज काफी पसंद आ रही है और वह जमकर इस वायरल फोटो पर कमेंट कर रहे हैं.

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रिश्ते में न बहके कदम

पिछले दिनों एक समाचारपत्र में खबर आई थी कि एक विवाहित महिला का एक युवक से प्रेमसंबंध चल रहा था. दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर दोनों अपने इस संबंध का पूरी तरह से आनंद उठा रहे थे. महिला के घर में सासससुर, पति और उस के 2 बच्चे थे. पति जब टूअर पर जाता था, तो सब के सो जाने पर युवक रात में महिला के पास आता था. दोनों खूब रंगरलियां मना रहे थे.

एक रात महिला अपने प्रेमी के साथ हमबिस्तर थी, तभी उस का पति उसे सरप्राइज देने के लिए रात में लौट आया. आहट सुन कर महिला और युवक के होश उड़ गए. महिला ने फौरन युवक को वहां पड़े एक खाली ट्रंक में लिटा कर उसे बंद कर दिया. पति आ गया. वह उस से सामान्य बातें करती रही. काफी देर हो गई. पति को नींद नहीं आ रही थी. महिला को युवक को ट्रंक से बाहर निकालने का मौका ही नहीं मिला. बहुत घंटों बाद उस ने ट्रंक खोला. ट्रंक में दम घुटने से युवक की मृत्यु हो चुकी थी.

उस के बाद जो हुआ, उस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. चरित्रहीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण, तानेउलाहने, पुलिस, कोर्टकचहरी, परिवार, समाज की नजरों में जीवन भर के लिए गिरना. क्या कुछ नहीं सहा उस महिला ने. बहके कदमों का दुष्परिणाम उस ने तो सहा ही, युवक का परिवार भी बरबाद हो गया. बहके कदमों ने 2 परिवार पूरी तरह बरबाद कर दिए.

कभी न भरने वाले घाव

ऐसा ही कुछ मेरठ में हुआ. 2 पक्की सहेलियां कविता और रेखा आमनेसामने ही रहती थीं. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि कालोनी में मिसाल दी जाती थी. दोनों के 2-2 युवा बच्चे भी थे. पता नहीं कब कविता और रेखा के पति विनोद एकदूसरे की आंखों में खोते हुए सब सीमाएं पार कर गए. कविता के पति अनिल और रेखा को जरा भी शक नहीं हुआ. पहले तो विनोद रेखा के साथ ही कविता के घर जाता था. फिर अकेले भी आने लगा.

कालोनी में सुगबुगाहट शुरू हुई तो दोनों ने बाहर मिलना शुरू कर दिया. बाहर भी लोगों के देखे जाने का डर रहता ही था. दोनों हर तरह से सीमा पार कर एक तरह से बेशर्मी पर उतर आए थे. अपने अच्छेभले जीवनसाथी को धोखा देते हुए दोनों जरा भी नहीं हिचकिचाए और एक दिन कविता और विनोद अपनाअपना परिवार छोड़ घर से ही भाग गए.

रेखा तो जैसे पत्थर की हो गई. अनिल ने भी अपनेआप को जैसे घर में बंद कर लिया. दोनों परिवार शर्म से एकदूसरे से नजरें बचा रहे थे. हैरत तो तब हुई जब 10 दिन बाद दोनों बेशर्मी से अपनेअपने घर लौट कर माफी मांगने का अभिनय करने लगे.

रेखा सब के समझाने पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए भावशून्य बनी चुप रह गई. बच्चों का मुंह देख कर होंठ सी लिए. विनोद को उस के अपने मातापिता और रेखा के परिवार ने बहुत जलील किया पर अंत में दिखावे के लिए ही माफ किया. सब के दिलों पर चोट इतनी गहरी थी कि जीवन भर ठीक नहीं हो सकती थी.

कविता को अनिल ने घर में नहीं घुसने दिया. उसे तलाक दे दिया. बाद में अनिल अपना घर बेच कर बच्चों को ले कर दूसरे शहर चला गया. लोगों की बातों से बचने के लिए, बच्चों के भविष्य का ध्यान रखते हुए रेखा का परिवार भी किसी दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया. रेखा को विनोद पर फिर कभी विश्वास नहीं हुआ. दोस्ती से उस का मन हमेशा के लिए खट्टा हो गया. उस ने फिर किसी से कभी दोस्ती नहीं की. बस बच्चों को देखती और घर में रहती. विनोद हमेशा एक अपराधबोध से भरा रहता.

क्षणिक सुख

दोनों घटनाओं में अगर अपने भटकते मन पर नियंत्रण रख लिया जाता, तो कई घर बिखरने से बच जाते. कदम न बहकें, किसी का विश्वास न टूटे, इस तरह के विवाहेत्तर संबंधों में तनमन को जो खुशी मिलती है वह हर स्थिति में क्षणिक ही होती है. इन रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. ये जितनी जल्दी बनते हैं उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं.

अपनी बेमानी खुशियों के लिए किसी के पति, किसी की पत्नी की तरफ अगर मन आकर्षित हो तो अपने मन को आगे बढ़ने से पहले ही रोक लें. इस रास्ते पर सिर्फ तबाही है, जीवन भर का दुख है, अपमान है. परपुरुष या परस्त्री से संबंध रख कर थोड़े दिन की ही खुशी मिल सकती है. ऐसे संबंध कभी छिपते नहीं.

यदि आप के वैवाहिक रिश्ते में कोई कमी, कुछ अधूरापन है तो अपने जीवनसाथी से ही इस बारे में बात करें, उसे ही अपने दिल का हाल बताएं. पति और पत्नी दोनों का ही कर्तव्य है कि अपना प्यार, शिकायतें, गुस्सा, तानेउलाहने एकदूसरे तक ही रखें.

स्थाई साथ पतिपत्नी का ही होता है. पतिपत्नी के साथ एकदूसरे के दोस्त भी बन कर रहें तो जीने का मजा ही और होता है. अपने चंचल होते मन पर पूरी तरह काबू रखें वरना किसी भी समय पोल खुलने पर अपनी और अपने परिवार की तबाही देखने के लिए तैयार रहें.

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बच्चों के लिए बनाएं चाइल्ड फ्रैंडली होम

6 साल का सुजोय जब बाथरूम में नहाने गया, तो बड़ों के जैसे उस ने बाथरूम को अंदर से बंद कर लिया. गलती से उस ने अंदर से दरवाजे को लौक भी कर दिया. जब निकलने के लिए उस ने बाथरूम को खोलना चाहा, तो असमर्थ रहा. अंदर से चिल्लाने पर उस की मां आई. घबराहट में उन्हें चाबी नहीं मिली. ताला तोड़ने वाले को बुला कर उसे बाथरूम से निकाला गया. इस दौरान सुजौय इतना घबरा गया था कि ठंड में भी उस के पसीने छूटने लगे थे. ऐसा सिर्फ सुजोय के साथ ही नहीं, अमूमन हर घर में किसी न किसी बच्चे के साथ ऐसा होता रहता है जहां बच्चा बाथरूम या बैडरूम में अपनेआप को बंद कर लेता है.

यह सही है कि बच्चों में बड़ों की नकल करने के साथ जिज्ञासाएं भी बहुत अधिक होती हैं. उन्हें कुछ न कुछ करते रहने की आदत होती है. वे अनजाने में ही कई बार बड़ी समस्या खड़ी कर देते हैं. ऐसे में मातापिता को हमेशा ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि उन का घर ‘चाइल्डफ्रैंडली’ हो. इस बारे में गोदरेज लौकिंग सिस्टम के एक्सपर्ट श्याम मोटवानी कहते हैं कि ताले का प्रयोग अलगअलग जगह के हिसाब से करना चाहिए. इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को होती है कि कौन सा ताला कहां लगाया जाए. लोग अधिकतर ताला उठाते हैं और अपने हिसाब से दरवाजा लौक कर के निकल जाते हैं.

आजकल के बच्चे बहुत होशियार होते हैं. वे मातापिता की हर गतिविधि पर नजर रखते हैं. अगर उन से छिपा कर वे कुछ लौक कर के रखते हैं, तो उन की उत्सुकता और अधिक बढ़ जाती है और खाली घर पा कर वे उसे खोल लेते हैं. इस से कई बार जरूरी कागजात बच्चों के हाथ आ जाते हैं. इतना ही नहीं, कई

बार मातापिता चाबी घर पर भूल गए हों और उन का बच्चा अंदर है तो फिर क्या कहने. ऐसे में घर को ‘चाइल्डफ्रैंडली’ बनाने की सही जानकारी मातापिता को होनी आवश्यक है.

ध्यान देने योग्य बातें

– मुख्यद्वार को अधिक महत्त्व देना चाहिए. ताला लगाने की जगह नीचे से एक मीटर की ऊंचाई पर होनी चाहिए, जिस से बच्चे का हाथ वहां तक आसानी से न पहुंच पाए. सिंगल बोल्ट नाइट लैच कभी न लगाएं, गलती से दरवाजा बंद होने पर लौक अपनेआप अंदर से लग जाता है.

– जिन के बच्चे छोटे हैं वे मुख्यद्वार पर वर्टीबोल्ट, ट्विनबोल्ट या ट्राईबोल्ट का लौक लगवाएं, वर्टीबोल्ट लौक में लैचबोल्ट नहीं होने से दरवाजा अंदर से लौक नहीं होता. उस में एक नौब होती है जिसे घुमा कर दरवाजे को बंद या खोला जाता है जिसे बच्चे आसानी से प्रयोग नहीं कर सकते. ट्राईबोल्ट में भी लैच है लेकिन आधुनिक लौक होने की वजह से लैच को जरूरत के अनुसार इनऐक्टिव किया जा सकता है. इस से भी लौक होने का डर नहीं रहता. इस के अलावा अगर बच्चा छोटा है तो दरवाजे में डोरस्टौपर अवश्य लगाएं.

– सैफ्टीडोर का लगवाना भी जरूरी है लेकिन इस के किनारे नुकीले न हों, इस का अवश्य ध्यान रखें. इस के अलावा कोईर् भी नया लौक लगाने से पहले उस की तकनीक को अच्छी तरह जान लें.

– चाइल्डफ्रैंडली होम के लिए बाथरूम के लौक सिस्टम का सही होना बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चे अकसर बाथरूम में फंस जाया करते हैं. बेबी लैच और मोरटाइज थंब लौक या पुश बटन वाला लौक लगाना काफी अच्छा होता है, जो जरूरत पड़ने पर एक रुपए के सिक्के की सहायता

से बाहर से खोला जा सकता है. चाबियां हमेशा बाहर और एक निश्चित जगह पर रखी जानी चाहिए.

– मैगनेटिक डोरकैच या डोरस्टौपर अवश्य लगवाएं ताकि हवा से दरवाजा अचानक बंद न हो जाए, डोरस्टौपर हर दरवाजे में हमेशा लगाना जरूरी है, इस से छोटे बच्चे द्वारा किसी भी तरह की लौक होने की घटना से बचा जा सकता है. कई बार चुंबक वाले डोरकैच का चुंबक खराब हो सकता है, ऐसे में डोरस्टौपर दरवाजे को बंद होने से रोक सकता है.

– ट्रैडिशनल रबर के डोरस्टौपर की जगह आजकल स्प्रिंग डोरस्टौपर ने ले ली है. रबर के डोरस्टौपर को बच्चा आसानी से ऊपर उठा कर दरवाजा बंद कर सकता है जबकि स्प्रिंगस्टौपर बच्चों के लिए मुश्किल होता है क्योंकि इस की तकनीक थोड़ी जटिल होती है.

– इस के बाद रसोईघर की सुरक्षा सब से बड़ी होती है. चाकू, छुरी से ले कर कटलरी के सामान बच्चों को हानि पहुंचा सकते हैं. इस के लिए ड्राअर और रसोईघर की कोई भी इंटीरियर अच्छी क्वालिटी के मैटेरियल से करनी चाहिए. इस के अलावा आजकल रसोईघर में सौफ्टपुश हार्डवेयर का प्रयोग किया जाता है

जो बच्चों के लिए सुरक्षित होता है, जिस से ड्राअर बंद करते समय या खोलते समय बच्चे की उंगलियों में चोट नहीं लगती.

– अगर घर में बालकनी हो तो उस की ऊंचाई एक मीटर से अधिक होनी चाहिए. इस में शीशे की रेलिंग काफी अच्छी होती है. आजकल ग्लास भी अच्छी क्वालिटी के प्रयोग किए जाते हैं, जो ‘अनब्रेकेबल’ होते हैं. ये छोटे बच्चे के लिए सुरक्षित होते हैं. किसी भी कैमिकल कोटेड हार्डवेयर का प्रयोग इंटीरियर में कभी न करें.

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Cannes Film Festival 2022 में छाया दीपिका पादुकोण का देसी लुक

बॉलीवुड में बाजी राव मस्तानी के नाम से फेमस एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण कांस फिल्म फेस्टिवल 2022 में अपने देसी लुक की वजह से चर्चा में बनी हुई है.

आपको बता दे इस बार कांस में दीपिका पादुकोण पहली बार जूरी मेंबर के तौर पर शामिल हुई हैं. उन्होंने कान्स के रेड कारपेट के लिए जो रेट्रो लुक,अपनाया था वो फैंस को कुछ पसंद नहीं आया.

दीपिका पादुकोण ने रेड कारपेट के लिए बॉलीवुड के फेमस फैशन डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी की ब्लैक एंड गोल्ड सीक्वेंस साड़ी कैरी की थी. इसके साथ ही वह सब्यसाची एक्सेसरीज में नजर आई. साड़ी के साथ मेकअप में अल्ट्रा बोल्ड ड्रामेटिक आईलाइनर, न्यूड लिप्स करें और कानो में चंदेलियेर इयरिंग्स के साथ फंकी हेयर स्टाइल किया, गोल्डेन हैंड बैग के साथ अपने लुक को कंप्लीट किया.

 

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बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अक्सर ही अपने स्टाइल स्टेटमेंट को लेकर चर्चा का विषय बनी रहती हैं. यही कारण है कि इस बार भी कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 में अपने देसी लुक की वजह से एक्ट्रेस टॉक ऑफ द टाउन बनी हुई हैं.

 

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आपको बता दे कान्स फिल्म फेस्टिवल 2022 की शुरुआत हो चुकी है. इस समारोह को लेकर दुनियाभर के फैंस उत्साहित हैं. इस साल कान्स फिल्म महोत्सव अपना 75वां संस्करण आयोजित कर रहा है. खास बात तो ये है कि इस बार कान्स के इतिहास में पहली बार भारत को कंट्री ऑफ ऑनर के रूप में शामिल किया गया है. इस महोत्सव का आयोजन 17 मई से 26 मई तक चलेगा. इस फिल्म फेस्टिवल में दुनियाभर की चुनिन्दा फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग होती है. इस साल, छह भारतीय फिल्मों को आधिकारिक तौर पर कान्स में प्रदर्शित किया जाएगा. इसमें आर माधवन की ‘रॉकेट्री द नांबी इफेक्ट’, निखिल महाजन की ‘गोदावरी’, अचल मिश्रा की ‘धुइन’, शंकर श्रीकुमार की ‘अल्फा बीटा गामा’, बिस्वजीत बोरा की ‘बूम्बा राइड’ और जयराज की ‘तोतों से भरा पेड़’ है.

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बीसी सखियों को वर्दी के रूप में मिलेगी निफ्ट की डिजाइन की साड़ियां

महिलाओं को सशक्त बनाने और राज्य में हथकरघा बुनकरों के लिए रोजगार के व्यापक अवसर पैदा करने के दोहरे उद्देश्य को पूरा करते हुए, योगी सरकार बीसी-सखियों को निफ्ट रायबरेली द्वारा डिजाइन की गई एक लाख से अधिक साड़ियां देगी.

हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए यूपी सरकार बीसी सखी योजना के तहत काम करने वाली महिलाओं को वर्दी के रूप में दो हैंडलूम साड़ियां उपलब्ध कराएगी. इसके लिए सरकार हैंडलूम बुनकरों द्वारा बनाई गई साड़ियों को खरीदेगी.

काम में शामिल बुनकरों को डीबीटी के जरिए 750 रुपये प्रति साड़ी मजदूरी दी जाएगी.

यूपी हैंडलूम के एमडी केपी वर्मा ने बताया कि बीसी-सखी के रूप में काम करने वाली 58,000 महिलाओं में से प्रत्येक को सरकार द्वारा दो साड़ियां दी जाएंगी.

निफ्ट द्वारा भेजे गए डिजाइनों को मुख्यमंत्री ने पहले ही मंजूरी दे दी है और साड़ियों की बुनाई का काम प्रगति पर है. प्रत्येक साड़ी की कीमत 1934.15 रुपये और विभाग को 1.16 लाख साड़ी और ड्रेस सामग्री के लिए 22,43,61,400 रुपये की राशि जारी की गई है.

यूपी हथकरघा विभाग ने इस संबंध में पांच उत्पादक कंपनियों को साड़ियां बनाने का काम सौंपा है जिनमें से 3 वाराणसी जिले से और एक-एक मऊ और आजमगढ़ से हैं.

यूपी हथकरघा पहले ही लगभग 537 बुनकरों को 1.20 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुका है और 12,837 से अधिक साड़ियां तैयार हैं.

केपी वर्मा के अनुसार “कोविड-19 के कारण प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों के कारण बुनकरों के लिए रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया था. इस योजना के माध्यम से बुनकर को रोजगार प्रदान किया गया है. साथ ही इस योजना ने बिचौलियों की भूमिका को समाप्त कर दिया है और पैसा सीधे उनके बैंक खाते में स्थानांतरित किया जा रहा है. योजना के अंतर्गत आने वाले बुनकरों को अधिक से अधिक लाभ मिल रहा है और इसके परिणामस्वरूप अन्य हथकरघा बुनकर भी इस योजना की ओर आकर्षित हो रहे हैं और उत्पादक कंपनियों में अपना नामांकन करा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक मौजूदा ग्राम पंचायत के लिए 21 मई 2020 को 58,000 बीसी सखियों को शामिल करने की घोषणा की थी. बीसी सखियों गांव में लोगों की बैंकिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए वन-स्टॉप समाधान उपलब्ध कराती हैं, वह भी घर पर.

महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्यों को बीसी सखियों के रूप में शामिल करने से वित्तीय समावेशन, समय पर पूंजीकरण, एसएचजी लेनदेन के डिजिटलीकरण और समुदाय के समग्र विकास को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है. यह महिलाओं की उद्यमशीलता क्षमताओं के निर्माण के उद्देश्य को और मजबूत करता है.

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