घरेलू हिंसा की शिकार औरतें

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में औरत को शेयर्ड हाउसहोल्ड में रहने का अधिकार दे कर एक नया दौर शुरू किया है. सताई हुई औरतें वहां जाएं, कौन सी छत ढूंढ़ें, यह सवाल बहुत बड़ा है जो किसी कारण अकेली रह गई हों, पति ङ्क्षहसक हो, बच्चे छोड़ गए हों उम्र हो गई हो, लंबी बिमारी हो, पूजापाठी जनता किसी भी बेचारी औरत को निकालने में जरा सी हिचकिचाती नहीं है.

सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि डोमेस्टिक वायलैंस एक्ट की धारा 17 (1) ऐसी किसी भी औरत को, चाहे वह मां हो, बेटी हो, बहन हो, पत्नी हो, विधवा हो,  सास हो, बहू हो घर में रहने का अधिकार रखती है चाहे उस के घर घर में सपंत्ति का हक हो या न हो. यह अधिकार हर धर्म, जाति की औरत का है. कोई भी उस अनचाही औरत को घर से नहीं निकाल सकता जो किसी अधिकार से उस घर में कभी आई थी.

एक पत्नी अपने पति के घर में रहने का हक रखती है चाहे घर पति का न होगा पति के मातापिता या भाईबहन का हो अगर पति वहां रह रहा है. उसी तरह घर की बेटी को घर से नहीं निकाला जा सकता. चाहे उस का विवाह हो गया हो और वह पति को छोड़ आई हो. कोई मां को नहीं निकाल सकता कि उसे अब दूसरे बेटे या बेटी के पास जा कर रहना चाहिए कोई औरत छत से मेहरूम न रहे इस तरह का फैसला अपने आप में क्रांतिकारी है. सोनिया गांधी की सरकार के जमाने में 2005 में बना हुआ यह कानून व यह फैसला असल में उन पौराणिक कथाओं पर एक तमाचा है जिन में पत्नी को बेबात के बिना बताए घर से निकाल दिया गया क्योंकि कुछ लोगों को शक था. यह उन कथाओं और मान्यताओं पर प्रहार है जिन में औरतों को गलती करने पर पत्थर बना दिया जाता था -जो सडक़ पर पड़ा रहे.

भारतीय संस्कृति में तो पापपुण्य का हिसाब रहता है, विधवा आमतौर पर पाप की भागी मानी जाती है कि वह पति को खा गई और उसे कैसे ससुराल में रहने की इजाजत दी जा सकती है. यह फैसला ऐसी औरतों को पौराणिक संस्कृति के विरुद्ध जा कर संरक्षण देता हैं.

विडंबना यह है कि इस समाज में वे ओरतें ही धर्म की दुहाई देती हैं जो कभी न कभी उसी धर्म को मान्यताओं की शिकार बनती हैं. आजादी के बाद बहुत से कानून बने जिन में औरतों को हक मिले पर वे कट्टरपंथी सरकारों की देन नहीं है. कट्टरपंथी तो उन को पूजास्थलों तक ले जाने में व्यस्त रहते है.

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न्यू बौर्न के Hygiene से जुड़ी बातों का रखें ख्याल

नए बच्चे के आगमन के साथ पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ जाती है. मातापिता के लिए अपने बच्चे की मुसकान से अधिक कुछ नहीं होता. यह मुसकान कायम रहे, इस के लिए जरूरी है बच्चे का स्वस्थ रहना. शिशु जब 9 माह तक मां के गर्भ में सुरक्षित रह कर बाहर आता है तो एक नई दुनिया से उस का सामना होता है, जहां पर हर पल कीटाणुओं के संक्रमण के खतरों से उस के नाजुक शरीर को जू झना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है, उस के खानपान और रखरखाव में पूरी तरह हाईजीन का खयाल रखना.

स्नान

डा. बी.एल. कपूर मेमोरियल हास्पिटल की चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शिखा महाजन बताती हैं, ‘‘नवजात शिशु को शुरुआत में स्पंज बाथ कराना चाहिए, खासकर तब तक जब तक नाभिनाल गिर न जाए. आमतौर पर 4 से 10 दिनों में नाभिनाल सूख कर गिर जाती है. इस से पूर्व उसे नहलाएं नहीं, हलके गरम पानी में तौलिया भिगो कर पूरे शरीर को पोंछें. नाभिनाल को दिन में 2 बार डाक्टरों द्वारा बताए गए स्प्रिट से साफ करें. जहां तक हो सके, उस जगह को सूखा रखें. पाउडर, घी या तेल न लगाएं. ध्यान रखें कि इस में इन्फेक्शन या दर्द न हो. यदि आप को खून, लाली या पस दिखे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.’’

बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए तो उसे प्लास्टिक के बाथटब में नहला सकती हैं. नहलाते वक्त त्वचा की सलवटों (स्किन क्रीजेज), अंडरआर्म्स, गले, उंगलियोें के बीच, घुटनों के नीचे और यूरिनरी पार्ट्स की अच्छी तरह से सफाई करें, पर साबुन का ज्यादा प्रयोग न करें. सिर और पौटी वाली जगह पर ही साबुन लगाएं. बच्चों को आम साबुन या शैंपू से न नहलाएं बल्कि बेबीसोप व शैंपू से नहलाएं. घर का बना उबटन व कच्चे दूध से भी बच्चे को नहला सकती हैं. पर इस बात का ध्यान रखें कि उबटन, साबुन या दूध के कण बच्चे के शरीर पर लगे न रहें. नहला कर उसे वार्मरूम में ले जाएं और सौफ्ट टौवल से धीरेधीरे पोंछते हुए पूरा शरीर सुखा दें.

मालिश

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शिखा महाजन कहती हैं, ‘‘मालिश की जितनी उपयोगिताएं गिनाई जाती हैं उतनी होतीं नहीं. पर मुख्य लाभ है, मांबच्चे का भावनात्मक जुड़ाव. स्पर्श संवेदना के जरिए बच्चे और मालिश करने वाले व्यक्ति के बीच रिश्ता गहरा होता है. इसलिए बेहतर होगा कि मालिश बच्चे का कोई निकट संबंधी करे. नौकरानी को यह काम न सौंपें, क्योंकि हो सकता है उस के हाथ गंदे हों या फिर वह कड़े हाथ से मालिश कर दे.

‘‘मालिश हमेशा वेजीटेबल आयल से करें. नारियल, तिल या बादाम तेल से हफ्ते में 2 दिन मसाज करें. पर इस के लिए सरसों के तेल का प्रयोग न करें. यह हार्ड होता है. बच्चे को इस से एलर्जी हो सकती है.’’ बच्चे की मालिश का एक फायदा यह भी होता है कि इस से उसे अच्छी नींद आती है. शिशु की टांगों की मालिश करने से उसे बड़ा आराम मिलता है और वह रात को चैन से सोता है.

मसाज करते वक्त ध्यान रखें

कमरा गरम और आरामदेह हो.

हाथों की चूडि़यां व अंगूठियां उतार दें.

वैक्सिनेशन वाले हिस्से पर मालिश न करें.

बच्चे की नाक या कानों में तेल न डालें.

मालिश करने के कुछ समय बाद बच्चे को नहला दें.

यदि शिशु को बुखार हो तो मालिश न करें.

नेल कटिंग

बच्चों को अपनी उंगली चूसने की आदत होती है खासकर तब जब उन के दांत निकल रहे होते हैं. ऐसे में यदि उन के नाखून गंदे हों तो इन्फेक्शन पेट में चला जाता है. इस के अलावा नाखूनों से बच्चा दूसरों को और कभीकभी अपनी स्किन को भी नोच लेता है. इसलिए जरूरी है कि उस के नाखूनों को काटा जाए. शुरू में नाखून बहुत ही कोमल होते हैं. नेलफाइलर से क्लीन कर के उस से नाखून काट सकती हैं. बेबीसीजर/क्लिपर का प्रयोग भी कर सकती हैं. बच्चा सो रहा हो, उस वक्त नाखून काटना आसान होता है. नहलाने के बाद बच्चे के नाखून नरम हो जाते हैं. नवजात शिशु के नाखून उस समय हाथ से भी तोड़े जा सकते हैं.

काजल

बच्चे की आंखें खूबसूरत और बड़ी दिखाने के चाव में उसे रोज काजल न लगाएं. ‘काजल से आंखें बड़ी होती हैं’ यह एक मिथ है. इस से इन्फेक्शन का खतरा रहता है. घर में बना काजल भी नुकसानदेह होता है. बाजार के काजल में लेड और अन्य कई हानिकारक केमिकल होते हैं, जिन से बच्चों की आंखों की रोशनी जा सकती है. इसी तरह बच्चे को ज्यादा पाउडर भी न लगाएं.

कपड़ों की सफाई

बच्चों के कपड़े साफ पानी में किसी गुणवत्ता वाले माइल्ड प्रोडक्ट से धोएं, क्योंकि डिटरजेंट में मौजूद हार्ड केमिकल्स कपड़ों से पूरी तरह साफ नहीं होते और बच्चों की नाजुक स्किन में खुजली, लाली जैसी समस्याएं पैदा करते हैं. जब भी कपड़े धोएं, पानी से उन्हें अच्छी तरह साफ करें ताकि केमिकल्स का थोड़ा सा भी असर न रहे. कपड़े धो कर उन्हें धूप या हवा में सुखाएं. धूप में इन के कीटाणु मर जाते हैं. बच्चे की नैपी को साबुन से धोने के बाद डेटोल के पानी से धोएं. शिशु के कंबल, बिछावन, ओढ़ने की चद्दर आदि को भी हर दूसरे दिन धूप में सुखाएं.

पौटी ट्रेनिंग

बच्चों में निश्चित समय पर पौटी करने की आदत डलवाएं. जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो सुसकारने (शी…शी…) की आवाज के द्वारा उन्हें सूसू, पौटी कराने की कोशिश की जाती है. दूध पीने के बाद बच्चा जल्दी सूसू करता है, इसलिए दूध पिलाने के 15-20 मिनट बाद बच्चे को सूसू कराएं. यदि सर्दी का मौसम है तो हर आधेपौने घंटे बाद सूसू कराएं. बच्चों के लिए छोटी पौटी चेयर मिलती है. बच्चे को इस पर बैठा कर सूसू, पौटी कराएं ताकि वह पौटी मैनर्स सीख सके. बीमारी की स्थिति में यदि बच्चा 5 घंटे तक पेशाब न करे तो फौरन डाक्टर के पास ले जाएं. जब वे थोड़े बड़े हो जाएं तो उन्हें समय पर टायलेट में बैठाएं. यदि बच्चे ने पैंटी में ही पौटी कर दी हो तो तुरंत सफाई करें. पौटी उस के शरीर से अच्छी तरह साफ कर दें. फिर उस जगह को अच्छी तरह तौलिए से पोंछ कर सुखा दें ताकि उस की स्किन में कोई प्रौब्लम न हो.

नैपी चेंज करना

बच्चों की स्किन नाजुक होती है. भीगी नैपी देर तक रह जाए तो रैशेज हो सकते हैं. इस से बचने के लिए नैपी गीली होते ही बदल दें. यदि डायपर पहनाती हैं तो जल्दीजल्दी डायपर बदलें. दिन में 7-8 बार डायपर चेंज करना जरूरी होता है. डायपर हमेशा अच्छी कंपनी का और सौफ्ट होना चाहिए.

दूध

मां का दूध छोटे बच्चे के लिए संपूर्ण आहार है. 6 माह तक बच्चे को मां का ही दूध दें. यदि ऐसा न हो सके तो पाश्चराइज्ड दूध दें. कच्चा दूध कभी न दें, इस से इन्फेक्शन हो सकता है. बच्चे को पिलाए जाने वाले दूध की बोतल की सफाई का भी ध्यान रखें. बोतल में दूध डालने से पहले बोतल को पानी में उबाल कर उस की सफाई करें. हर 6 महीने में बोतल का निप्पल बदलें. खिलौने वगैरह भी अच्छी तरह साफ कर के दें और खिलौने अच्छी क्वालिटी के प्लास्टिक से बने हुए ही खरीदें.

ओरल हाईजीन

मुंह में दूध की बोतल रखेरखे सुलाने की आदत छोटे बच्चों के दांतों पर भारी पड़ सकती है. दूध मीठा होता है, इस से उन के दांतों में कैविटी की शिकायत हो सकती है. दूध पीने और सोने से पहले हलके से उन के दांत पोंछ दें या उन्हें खुद ब्रश करने को प्रेरित करें.

दानों की समस्या

कई बार गरमी, लार या दूध उगलने की वजह से छोटे बच्चों की स्किन पर दानों की समस्या हो जाती है. गलत दवा या स्किन को सूट न करने वाले कपड़े भी इस की वजह बन सकते हैं. आवश्यक सावधानी और सफाई का खयाल रखने से यह समस्या खुद ठीक हो जाती है. गरमी के मौसम में दानों पर बेबी पाउडर बुरकें. यदि 2-3 माह तक दाने ठीक न हों तो डाक्टर से संपर्क करें.

कुछ और बातों का खयाल जरूरी

कुछ नवजात बच्चों की ब्रेस्ट को दबाने पर दूध निकलता है. यह मां के हारमोन का असर होता है. ऐसी स्थिति में बारबार उसे छुएं या दबाएं नहीं. इस से इन्फेक्शन या जख्म होने का डर रहता है. कुछ दिनों में यह समस्या स्वयं ठीक हो जाती है.

बच्चे के शरीर पर ज्यादा बाल हैं तो इन्हें हटाने की कोशिश में आटे की लोई, उबटन, क्रीम वगैरह न लगाएं. ये खुद हट जाएंगे.

गंदे हाथों से बच्चे को न छुएं.

बाहर से आ कर एकदम बच्चे को न गोद में  उठाएं और न ही उसे तत्काल दूध पिलाएं.

नवजात शिशु के सिर पर यदि बाल हैं तो उन्हें कंघी न करें. थोड़ा बड़ा होने पर उस के लिए सौफ्ट हेयर ब्रश या बेबी कांब लाएं.

शिशु को बारबार चूमना ठीक नहीं, इस से उसे संक्रमण होने का खतरा रहता है.

कुछ भी खाने से पहले हाथ धोने की आदत बच्चे में डालें.

बच्चे को कभी भी गिरी हुई चीज उठा कर खाने न दें.

खयाल रखें

बच्चे को रोज नहलाएं. जाड़े के दिनों में आमतौर पर मांएं नहलाने से हिचकिचाती हैं, ऐसा करना ठीक नहीं. बच्चा बीमार है तो भी उस के शरीर को भीगे तौलिए से पोंछ जरूर दें.

बच्चे के नहाने का टब वगैरह रोज साफ करें. उस के बाथटब को दूसरे काम में न लें. नहलाने के लिए माइल्ड/बेबी सोप का प्रयोग करें. ध्यान रखें, उस के लिए प्रयुक्त तौलिया भी सौफ्ट हो और इसे घर के दूसरे सदस्य प्रयोग में न लाएं.

बच्चे को जहां तक हो सके, सौफ्ट कपड़े पहनाएं खासकर गरमी में कौटन के हलके कपड़े ही अच्छे रहते हैं. टेरीकोट मिक्स कपड़ों से उस की कोमल त्वचा पर रैशेज हो सकते हैं.

बच्चे को खिलाते वक्त नैपकीन/बिब बांधना न भूलें. यदि वह दूध उलट दे या कपड़े भीग जाएं तो तुरंत उन्हें बदल दें.

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Summer Special: ब्रैकफास्ट में परोसें सोया चंक्स परांठा

समर ब्रेकफास्ट में अगर आप हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो सोया चंक्स परांठा आपके लिए बेस्ट औप्शन है. प्रोटीन से भरपूर ये नाश्ता आपकी हेल्थ के लिए फायदेमंद होगा.

सामग्री

11/4 कप गेहूं का आटा

1/2 कप सोया चंक्स

3/4 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

2 बड़े चम्मच प्याज कटा

1/2 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला पाउडर

2 छोटे चम्मच धनियापत्ती कटी

1 बड़ा चम्मच दूध

2 छोटे चम्मच तेल

आवश्यकतानुसार पानी

स्वादानुसार नमक.

विधि

भगौने में 1 कप पानी में दूध और थोड़ा सा नमक डाल कर उसे गैस पर चढ़ाएं. जब यह उबलने लगे तो गैस बंद कर दें. फिर इस में सोया चंक्स मिला कर भगौना एक तरफ रख दें. थोड़ी देर बाद सोया चंक्स को पानी से निकाल कर ठंडे पानी से कम से कम 2 बार धोएं ताकि सोया चंक्स की गंध निकल जाए. सोया चंक्स से पानी को पूरी तरह निचोड़ लें और मिक्सी में दरदरा पीस लें. अब पैन में तेल गरम करें. उस में सौंफ पाउडर, प्याज व अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. अब इस में लालमिर्च पाउडर, धनिया पाउडर और गरममसाला पाउडर अच्छी तरह मिलाएं और थोड़ा पानी डाल कर कुछ देर उबलने दें. अब पिसी सोया चंक्स मिला कर धीमी आंच पर तब तक पकाएं जब तक वह मसाले से अच्छी तरह मिल न जाए. अब गेहूं के आटे में पानी मिला कर मुलायम आटा गूंध लें. आटे को बराबर भागों में बांट कर चिकनी बौल्स बना लें. इन बौल्स की थोड़ी मोटी चपातियां बेल लें और सब में भरावन भर कर बेल लें. फिर तवा गरम करें और परांठों को सुनहरा होने तक सेंक लें. गरमगरम परांठे रायते व अचार के साथ परोसें.

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43 साल की उम्र में Kanika Kapoor ने की दूसरी शादी, फोटोज वायरल

बॉलीवुड हो या टीवी इंडस्ट्री, इन दिनों शादी का सिलसिला जारी है. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने अपनी सिंपल वेडिंग से फैंस को चौंका दिया था तो वहीं अब सिंगर कनिका कपूर की वेडिंग फोटोज (Kanika Kapoor Wedding) सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. आइए आपको दिखाते हैं बेबी डॉल फेम सिंगर कनिका कपूर की वेडिंग फोटोज की झलक…

कनिका कपूर ने की शादी

 

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हाल ही में बॉलीवुड की पौपुलर सिंगर कनिका कपूर (Kanika Kapoor) ने NRI बिजनेसमैन  गौतम संग शादी की है, जिसकी फोटोज वायरल हो रही हैं. लंदन में सात फेरे लेने वाली सिंगर कनिका कपूर ने पिंक कलर का हैवी ब्राइडल लहंगा पहना था, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी सिंगर के लुक पर चांद लगा रही थी. वहीं सिंगर के पति गौतम के लुक की बात करें तो वह क्रीम कलर की शेरवानी पहने दिखे थे.

वेडिंग फंक्शन की दिखाई थी झलक

 

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शादी की फोटोज के अलावा सिंगर कनिका कपूर की मेहंदी फोटोज भी इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. अपने वेडिंग फंक्शन की फोटोज को फैंस के साथ शेयर करने वाली सिंगर कनिका कपूर ने अपने पति को किस करते हुए भी फोटोज शेयर की थी.

शादी में दिए ढेरों पोज

कनिका कपूर की शादी में केवल फैमिली और करीबी दोस्त शामिल हुए थे, जिसमें दोनों ढेरों रोमांटिक पोज शेयर करते हुए नजर आए. वहीं सोशलमीडिया पर शादी की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें सिंगर कनिका कपूर  ‘फूलों की चादर’ के नीचे से एंट्री करते हुए नजर आ रही हैं.

 

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बता दें, 43 साल की उम्र में सिंगर कनिका कपूर ने दूसरी शादी की है. वहीं पहले पति राज चंदोक से उनका साल 2012 में तलाक हुआ था, जिनसे उनके तीन बच्चे हैं, जिनकी फोटोज औऱ वीडियो वह सोशलमीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

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GHKKPM: सम्राट की मौत होते ही सई-विराट के खिलाफ नई चाल चलेगी पाखी

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी आए दिन नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां हाल ही में मेकर्स ने सीरियल में सई और विराट की जिंदगी में उथल-पुथल मचाने के लिए नई एंट्री करवाई थी तो वहीं अब सीरियल का नया प्रोमो (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin Promo) देखकर फैंस चौंक गए हैं. दरअसल, प्रोमो में सम्राट की मौत के बारे में बताया जा रहा है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सई-विराट के रिश्ते में आएगी नई मुसीबत

 

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हाल ही में सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ के मेकर्स ने नया प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें विराट को हमेशा से पाने की चाहत रखने वाली पाखी नया कदम उठाते हुए नजर आने वाली है. दरअसल, प्रोमो में चौह्वाण निवास में शोकसभा मनाई जा रही है, जिसमें भवानी, सई से पाखी को बुलाने के लिए कहती दिख रही है कि उसके पति की तेरहवी है. वहीं सई, बुलाने के लिए जाती है तो पाखी उसे धमकी देती है कि वह अब विराट को पाकर रहेगी, जिसे सुनकर सई हैरान रह जाती है.

सम्राट की जान लेगी पाखी

सई-विराट का प्यार देखकर पाखी की जलन बढ़ चुकी है, जिसके चलते वह अपने पति सम्राट की जान लेने से भी नहीं कतराएगी. दरअसल, प्रोमो देखकर फैंस अंदाजा लगा रहे हैं कि पाखी ने ही सम्राट की जान ली है, जिससे पूरा परिवार और विराट अंजान हैं. वहीं अपकमिंग एपिसोड में सई और विराट की जिंदगी में पाखी जहर घोलने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है.

 

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सई-विराट हैं अंजान

अब तक आपने देखा कि सई और विराट की जिंदगी नए सिरे से शुरु हो चुकी है, जिसमें भवानी नाराज नजर आ रही है. दूसरी तरफ, सम्राट, पाखी को अपनी लाइफ में काम करने की सलाह देता नजर आ रहा है और उसके करीब जाने की कोशिश कर रहा है ताकि उनका रिश्ता सुधर जाएगा.

 

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REVIEW: जानें कैसी है कार्तिक आर्यन और कियारा अडवाणी की ‘Bhool Bhulaiyaa 2’

रेटिंगः डेढ़ स्टार स्टार

निर्माताः टीसीरीज

निर्देशकः अनीस बजमी

कलाकारः कार्तिक आर्यन, कियारा अडवाणी, तब्बू, मिलिंद गुणाजी, राजपाल यादव, संजय मिश्रा, अश्विनी कलसेकर,

अवधिः दो घंटे 24 मिनट

2007 में अक्षय कुमार और विद्या बालन के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या’’ ने बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज करायी थी. अब 15 वर्ष बाद उसी का सिक्वल हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या 2’’लेकर अनीस बज़मी आए हैं, जिसमें कार्तिक आर्यन व किआरा अडवाणी के साथ महत्वपूर्ण किरदार में तब्बू हैं. फिल्म की कहानी के अनुसार 18 वर्ष बाद मंजूलिका का भूत पुनः कमरे से बाहर आ गया है. बहरहाल, यह फिल्म अंध विश्वास को फैलाने काम करने वाली निराशाजनक फिल्म है. फिल्मकार ने यह सोचकर इस फिल्म को बनाया है कि सभी दर्शक अपना दिमाग घर पर रखकर आएंगे और वह जो कुछ भी बेसिर पैर का परोसंेगेे उसे हजम कर जाएंगे.

कहानीः

फिल्म की कहानी बर्फ से ढंके पर्यटन स्थल पर रूहान रंधावा (कार्तिक आर्यन ) और रीत(किआरा अडवाणी   ) के आकस्मिक मिलन से शुरू होती है. रूहान, रीत को बताता है कि वह दिल्ली के एक बिजेस टाइकून का बेटा है,  जो दून स्कूल में शिक्षित है,  जो बिना नौकरी के गुजरात में पतंग उड़ाने के लिए उड़ान भरता है और बनारस में पान खाता है. जबकि रीत एक राजस्थानी लड़की है, जिसके पिता कड़क स्वभाव के हैं.  वह चार साल की डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और अब  अपने पारंपरिक परिवार के खिलाफ विद्रोह करती है. रीत का साथ पाने के लिए रूहान उसे वहां के एक संगीत कार्यक्रम में ले जाता है. वह दोनों जिस बस को छोड देते हैं, वह बस आगे जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और सभी यात्री मारे जाते हैं. रीत के परिवार के लोगो को पता चल जाता है कि रीत की मौत हो गयी. सच बताने के  लिए जब रीत अपने घर पर फोन करती है, तो वह अपनी बहन व अपने मंगेतर सागर की बातें सुनकर समझ जाती है कि यह दोेनो एक दूसरे से प्रेम करते हैं और शादी करना चाहते हैं. तब रीत सच बताने का इरादा बदल देती है.  वह चाहती है कि सागर से उसकी बहन की शादी हो जाए. अब रीत अपनी मदद के लिए रूहान को अपने साथ लेकर अपने गांव पहुंचती है और दोनों अपनी उस पुश्ैतनी हवेली मंे जाकर छिप जाते हैं, जिसे भूतिया हवेली कहा जाता है. जिसके अंदर के एक कमरे में मंजूलिका(तब्बू) का भूत कैद है. मगर चैधरी को छोटे पंडित से हवेली में ेलाइट जलने की खबर मिलती है. पूरा परिवार वहंा आता है , जहां रूहान मिलता है. रीत छिप चुकी होती है. रूहान ख्ुाद को मृत आत्माओं  से बात करने वाला बताकर मृत रीत की आत्मा की ख्ुाशी के नाम पर रीत के घर वालांे से कई काम करवाने लगता है. पूरे गांव में उसकी धाक बन जाती है.  और बड़े पंडित की दुकानदारी बंद हो जाती है. इसलिए वह साजिश रचते हैं. रीत खुद को छिपाने के लिए मंजूलिका के कमरे के अंदर चली जाती है. मंजूलिका कमरे से बहार निकलती है. अंत में पता चलता है कि काला जादू करने वाली मंजूलिका ने अपनी बहन अंजूलिका के पति को पाने के लिए अंजूलिका को मार दिया था और ख्ुाद अंजूलिका(तब्बू   ) बनकर मृत अंजूलिका के भूत को मंजूलिका बताकर तांत्रिक(गोविंद नामदेव ) की मदद से कमरे में बंद करा दिया था.

लेखन व निर्देशनः

अनीस बज़मी अतीत में कुछ बेहतरीन मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्मंे दे चुके हैं. वह हास्य फिल्में भी बना चुके हैं.  मगर हॉरर कॉमेडी फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ में वह बुरी तरह से मात खा गए है. कहानी में कुछ भी नयापन नही है. फिल्म की अवधारणाएं रूह हैं.  फिल्म की पटकथा भी काफी गड़बड़ है. 15 साल पहले आयी फिल्म ‘भूल भुलैया’ का संदेश था कि भूत या आत्मा वगैरह कुछ नही होता है. यह हमारे मन का भ्रम है. मगर ‘‘भूल भुलैया 2’’ में रूह, भूत, आत्मा ही है. इसमें भूत दीवार पर चलती हुए नजर आते हैं. बेहूदगी की हद कर दी गयी है.

फिल्म में हास्य दृश्यों का अभाव है. लेखक व निर्देशक ने चुटकुलांे का सहारा लेकर फिल्म को हास्यप्रद बनाए रखने का असफल प्रयास किया है. जी हॉ! फिल्म में मंजुलिका के सफेद-चेहरे,  लंबे-लंबे,  काले कपड़े वाले लुक के अलावा एक अधिक वजन वाले मोटे बच्चे  पर बार-बार चुटकुले हैं. इंटरवल के बाद फिल्म बेवजह खींची भी गयी है. फिल्म का क्लायमेक्स बहुत घटिया है.

अभिनयः

पूरी फिल्म में रीत के किरदार में किआरा अडवाणी के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नही. रूहान के किरदार में कार्तिक आर्यन अपनी छाप छोड़ने मंे विफल रहे हैं. वह नृत्य वाले दृश्यों में ही अच्छे लगे हैं. कुछ दृश्यों मंे उनकी उछलकूद मंे जोश नजर आता है. तब्बू ने शानदार अभिनय किया है. सशक्त अभिनेता गोविंद नामदेव को महत्वहीन तांत्रिक के किरदार में देखकर निराश होती है. लोगों को हंसाने के लिए संजय मिश्रा और राजपाल यादव की जुगलबंदी अच्छी है. अमर उपाध्याय व मिलिंद गुणाजी के हिस्से करने को कुद राह ही नही. चाचा के किरदार में राजेश शर्मा भी निराश करते हैं. अश्विनी कलसीकर का अभिनय ठीक ठाक है.

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अगर परेशान करे जांघों का फैट

रूपा टेढ़ीटेढ़ी चल रही है. अपनी इस चाल पर उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही है. यह तब और बढ़ जाती है जब सामने वालों की हंसती आंखें उसे देखती हैं. कोईकोई तो मुसकरा कर पूछ ही लेता है कि क्या हो गया? तो वह कुछ कह नहीं पाती. शेफाली चलते हुए एकांत पाते ही जांघों के बीच साड़ी व पेटीकोट दबा लेती है. कुछ देर उसे राहत मिलती है पर हर समय वह ऐसा नहीं कर पाती, तो इस राहत से वंचित रह जाती है. वह कहती है कि मैं कुछ भी काम कर रही होऊं पर मेरा ध्यान बंट जाता है और रगड़ खाती जांघों पर ही केंद्रित रहता है. मेरी कार्यक्षमता इस से बहुत प्रभावित हो रही है. मूड भी खराब रहता है.

सुभाष बाथरूम में जा कर जांघों के बीच पाउडर लगाता है. उस से पहले जांघों को सूती कपड़े से पोंछता है. वह कहता है कि इस से मैं कई बार खुद को अपनी ही नजरों में गिरा हुआ महसूस करता हूं. इस तरह की स्थितियां हमारे या हमारे आसपास के कई लोगों में दिखती हैं. उन की जांघें छिल जाती हैं. तनमन दोनों पर ऐसा असर पड़ता है कि बीमार जैसी स्थिति हो जाती है. जांघों की इस रगड़ पर ध्यान न दिया जाए, तो कभीकभी बड़ेबड़े घाव हो जाते हैं, यानी स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है. इस का निदान हर भुक्तभोगी चाहता है.

कारण क्या है

स्किन स्पैशलिस्ट डा. प्रमिला कहती हैं कि ऐसा मोटापे के कारण होता है. मोटापा जांघों पर भी होता है. अत: फ्रिक्शन यानी आपस में जांघों के टकराव से यह स्थिति होती है. अच्छा है कि इस का स्थायी निदान किया जाए और वह है खुद को ओवरवेट न होने दिया जाए. यदि ऐसा है तो वजन कम किया जाए. इस में सही खानपान और व्यायाम जल्दी तथा अच्छी भूमिका निभा सकता है. सावित्री इतनी मोटी भी नहीं है और उस की जांघें आपस में टकराती भी नहीं हैं तो फिर उसे यह समस्या क्यों है? इस पर डा. प्रमिला कहती हैं कि कभीकभी गलत पोस्चर में सोने के कारण भी ऐसा होता है. शरीर का वजन जहां पड़ना चाहिए वहां न पड़ कर कूल्हों से जांघों पर आ जाता है. जांघें नर्म और चर्बीली होती हैं, इस वजह से टकराने लगती हैं. अपना पोस्चर सही रख कर भी इस समस्या से बचा जा सकता है.

डा. पूनम बाली इस के चिकित्सकीय पक्ष की दृष्टि से कहती हैं कि जांघों में फैट ज्यादा जमा होता है. उन के आपस में टकराने से स्किन का प्रोटैक्टिव फंक्शन खत्म हो जाता है. इस से रैशेज हो जाते हैं तथा स्किन डार्क हो जाती है. यह सब देखने या अच्छा न लगने के स्तर पर ही नहीं है, बल्कि भुक्तभोगी को अच्छाखासा दर्द भी होता है. कई लोग तो रो पड़ते हैं. कई चिंता, तनाव से घिर जाते हैं. नहाने के बाद त्वचा को अच्छी तरह पोंछ कर ऐंटीसैप्टिक पाउडर लगाने से इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है. पर बेहतर इलाज जांघों का वजन कम करना ही है. वे युवा जो लुक को ले कर कांशस हैं तथा उन का जीवनसाथी उन की छिली हुई जांघें देख कर क्या महसूस करेगा, यह सोचते हैं वे इस के लिए स्किन लाइट करने का लोशन डाक्टर के परामर्श से इस्तेमाल कर सकते हैं. स्किन टाइटनिंग क्रीम भी काफी उपयोगी व मददगार है. पर यह सब किसी विशेषज्ञ की सलाह के बिना न किया जाए वरना परेशानी कम होने के बजाय बढ़ सकती है. यानी यहां ऐलर्जी हो सकती है व इन्फैक्शन और बढ़ सकता है. इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल के सीनियर कंसल्टैंट व डर्मैटोलौजिस्ट डा. देवेंद्र मोहन कहते हैं कि जांघों का एरिया काफी इन्फैक्शन प्रोन एरिया है. इस के आसपास यौनांग, मूत्राशय, मलद्वार आदि होने के कारण यहां संक्रमण ज्यादा तथा जल्दी होता है. जांघों के लगने की समस्या गरमी व बारिश में ज्यादा होती है. अत: उस वक्त साफसफाई का पूरा ध्यान रखना जरूरी है. इस एरिया को सूखा रखा जाए और डाक्टर की सलाह से ऐंटीफंगल का इस्तेमाल किया जाए. रुचिका कहती हैं कि मैं ने जांघों की ऐक्सरसाइज कर के डेढ़ महीने में ही इस समस्या से नजात पा ली.

मोहन कहता है कि मैं ने पैरों की ऐक्सरसाइज कर के शुरू में ही इस समस्या को काबू कर लिया. फिर वह क्रम ऐसा बढ़ा कि जांघों के साथसाथ शरीर का वजन भी नियंत्रित हो गया.

घरेलू नुसखे

कुछ घरेलू नुसखे ऐसे हैं जिन्हें अपना कर इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है:

इस एरिया में रात को सोने से पहले सरसों का तेल या हलदी लगाई जा सकती है. नीबू में पानी मिला कर लगाना भी राहत देता है. संतरे व किन्नू का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फलों की क्रीम भी अप्लाई की जा सकती है. ऐलोवेरा का रस भी रामबाण नुसखा है. नायलौन की या ऐसी ही दूसरी इनरवियर से बचें जो गीलापन न सोखती हो. देवेंद्र मोहन इस समस्या का एक और कारण बताते हैं. वे कहते हैं कि कभीकभी डायबिटीज के कारण भी यह समस्या हो सकती है. ऐसी स्थिति में इसे त्वचा की बीमारी मान कर ही न बैठ जाना चाहिए. अंदरूनी जांच भी करवानी चाहिए. समय पर किसी भी स्थिति को काबू किया जा सकता है. भारी जांघें समस्या खड़ी कर सकती हैं, यह ध्यान में रखने पर उन्हें हलका रखने की अपनेआप ही तलब होने लगती है. वाकिंग में तेजी ला कर या जिन को इस की आदत नहीं है, वे वाकिंग शुरू कर के भी इस समस्या के हल की ओर बढ़ सकते हैं.

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शेविंग करते वक्‍त कभी ना करें ये 6 गलतियां

कई बार लड़कियों को वैक्‍सिंग की बजाए पैरों को शेविंग करने में ही ज्‍यादा आसानी महसूस होती है. सैलून में घंटे बैठ कर दर्द सहने से अच्‍छा होता है शेविंग कर के कुछ ही मिनटों में काम खतम कर दिया जाए.

पर क्‍या आप जानती हैं कि कई लड़कियां पैरों को शेविंग करते वक्‍त कई गलतियां कर जाती हैं, जिसके बारे में उन्‍हें पता ही नहीं होता. ये गलतियां त्‍वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं और इससे पैरों में आने वाले बाल थोड़े सख्‍त हो सकते हैं. आइये जानते हैं कौन सी हैं वे गलतियां, जिसे रोक कर आप शेविंग को एक आरामदायक प्रक्रिया बना सकती हैं.

1. बहुत तेजी से शेव करना

इस आदत की वजह से आपको घाव हो सकता है और रेजर की वजह से जलन महसूस हो सकती है. शेविंग हमेशा धीरे और सवधानी से करनी चाहिये.

2. क्रीम ना लगाना

क्रीम या साबुन लगा कर शेविंग ना करने से बाल ठीक तरह से नहीं निकल पाते.

त्‍वचा को गीला ना करना शेविंग करने से पहले अपने पैरों को कुछ देर के लिये पानी में भिगोएं या फिर शावर लेने के बाद ही शेव करें. इससे बाल नरम हो जाते हैं और आराम से शेव हो जाते हैं.

3. एक ब्‍लेड वाला रेजर प्रयोग करना

कई लोग एक ब्‍लेड वाला रेजर प्रयोग करते हैं, जिससे बाल ठीक प्रकार से साफ नहीं होते. वहीं पर दो दो ब्‍लेड वाला रेजर आपना काम बड़ी आसानी से करता है.

4. नियमित स्‍क्रब ना करना

अगर आप अपने पैरों को नियमित शेव करती हैं, तो आपको उन्‍हें स्‍क्रब भी करते रहना चाहिये जिससे उसमें धंसे हुए बाल निकल आएं.

5. मॉइस्‍चराइजन ना लगाना

शेविंग करने के बाद आपको पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिये और फिर उस पर मॉइस्‍चराइजर लगाना चाहिये, जिससे रैश ना पड़े या फिर उसमें जलन ना हो.

6. रेजर शेयर करना

अपना खुद का रेजर कभी भी शेयर नहीं करना चाहिये क्‍योंकि इससे इंफेक्‍शन और बीमारियां होने का डर रहता है.

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लिवइन रिलेशनशिप और कानून

जब मन को कोई अच्छा लगे तो उस की बैकग्राउंड बेमतलब हो जाती है. गुडग़ांव में अभी एक जोड़े के शव किराए के मकान में मिले 22-23 के साल के दोनों लिवइन में रह रहे थे जबकि युवक शादीशुदा था और उस की पत्नी बूटान की थी. लडक़ी जानते हुए थी कि लडक़ा शादीशुदा है 15 महीने से उस के साथ रह रही थी. दोनों अच्छाखासा कमा रहे थे. एक 5 स्टार होटल में शैफ था. दूसरी फूड डिलिवरी चेन में मैनेजर थी.

उन्होंने किस कारण जान दीं, यह नहीं पता पर यह अवश्य पहली बार में पता चला कि बाहर के किसी जने ने आकर उन्हें मारा नहीं था. पुलिस को लडक़ी बैड पर मिली और लडक़ा पंखे से लटका.

अपनी ङ्क्षजदगी अपने मनचाहे के साथ मनमर्जी से जीने का हक सब को है पर जब यह हक विवाह में बदल जाए तो बहुत चुभता है. लिवइन में सब से बड़ा खतरा यही है कि पार्टनर कभी भी बिना नोटिस दिए वर्क आउट कर सकता है और दूसरे के सुखदुख का तब उसे कोई ख्याल नहीं रहता. लिवइन रिलेशनशिप में जिम्मेदारी वर्षों बाद आ पाती है. अगर दोनों में से एक भी शादीशुदा हुआ या मातापिता पर निर्भर हो या उन की जिम्मेदारी हो तो लिवइन के लिए मुश्किलें बढ़ जाती है. पैसे और समय को ले कर कभी भी तकरार हो सकती है क्योंकि लिवइन पार्टनर आमतौर पर साथ वाले की समस्याओं को अपनी समझना.

लिवइन का मतलब ही टैंपरेरी अरेजमैंट होता है और इस में एक कुर्सी तक खरीदने पर 4 बार सोचना पड़ता कि कौन खर्च करेगा और रास्ते अलग हो जाने के बाद इस का क्या होगा? अब जब तक साथ रहेंगे तो 4 कुर्सियां, 1 बैड, 1-2 टेबल, गैस, बर्तन तो चाहिए होंगे न. पार्टनरशिप टूटने पर क्या होगा.

लिवइन रिलेशनशिप न कानून है, न होना चाहिए. यह 2 व्यस्कों की अपनी टेलेंट और अपना नीडबेस्ड है. इसे कानूनी दायरों में नहीं बांध जाना चाहिए. अदालतों को लिवइन पार्टनर की हर शिकायत को पहली बार में ही खिडक़ी से बाहर फेंक देना चाहिए क्योंकि जो लोग अपनी प्रौब्लम्स खुद सोल्व नहीं कर सकते उन्हें लिवइन के रास्ते पर जाना ही नहीं चाहिए.

पुलिस को मारपीट में भी दखल कम करना चाहिए क्योंकि जरा सा गुस्सा दिखाने पर दूसरे के पास घर का हक है. जब लडक़ालडक़ी राजी तो क्या करेगा काजी का फार्मूला निभाया जाना चाहिए.

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दुखों में हिम्मत न हारें

3 साल पहले जब 30 वर्षीय शुभि गोयल ने अपने 40 दिन के बेटे को खो दिया, तो जैसे उस की दुनिया ही उजड़ गई. सांस की तकलीफ से बेटा इस दुनिया में आते ही चला गया. यह एक अपूर्णीय क्षति थी और उसे अब इस दुख के साथ जीना था. 1 हफ्ते बाद ही अपने बेटे के लिए खरीदे गए कपड़े और खिलौने ले कर वह एक बालाश्रम चली गई. वह पहली बार किसी अनाथालय गई और इस अनुभव ने उस का जीवन ही बदल दिया.  वहां शुभि ने बहुत कुछ देखा. 1-1 दिन के बच्चे की बात सुनी, जिन्हें कूड़े के ढेर से लाया गया था. क्रूरता के शिकार अनाथ बच्चे उस की तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. वे बच्चे शुभि का दुख नहीं जानते थे पर कोई उन से मिलने आया है, यह देख कर ही वे खुश थे. उसी समय उस ने उन बच्चों के साथ और ज्यादा समय बिताने का फैसला कर लिया.

शुभि बताती हैं, ‘‘ये वे दिन थे जब मैं सोचा करती थी कि मेरे साथ ही यह क्यों हुआ. जब भी किसी मां को अपने छोटे बच्चे के साथ देखती थी, मुझे अधूरापन लगता था. मैं ने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, जिन के बच्चे होते थे, उन से मिलना बंद कर दिया था. मुझे अपना बेटा याद आने लगता था. मैं कल्पना करती थी कि मेरा बेटा अब इतना बड़ा हो गया होता. मैं अपनेआप को बहुत असहाय महसूस करने लगी थी.’’  शुभि को यह भी पता चला कि जिन के बच्चे हो गए हैं, उन दोस्तों ने यह खबर शुभि से छिपाई है, तो उसे बहुत दुख हुआ.

शुभि आगे कहती हैं, ‘‘जब आप स्वयं  को ठगा सा समझते हैं, तो सहानुभूति भी चाकू की तरह लगती है पर अब मैं समझी हूं कि मेरी दोस्त मुझे तकलीफ से बचाने की कोशिश कर रही थीं.’’

साइकोथेरैपिस्ट और काउंसलर डाक्टर सोनल सेठ साफ करती हैं, ‘‘वे लोग जिन्होंने हाल ही में कोई दुख या नुकसान सहा है, वे दूसरों को अच्छा समय बिताते देख कर डिप्रैशन में आ सकते हैं. ऐसा उन के जीवन में आया खालीपन और दूसरों के जीवन की पूर्णता महसूस कर विरोधाभास के कारण होता है.’’

दुख से उबरने की सीमा

हर व्यक्ति के किसी दुख से उबरने की सीमा अलगअलग होती है, जैसे कि 40 वर्षीय तनु शर्मा, जो एक प्रतिष्ठित कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर हैं, आजकल मैटरनिटी ब्रेक पर हैं. जब तनु ने प्रेमविवाह किया तो उन्हें लगा, यह उन की परफैक्ट लवस्टोरी है.  बहुत लंबे समय तक झेली गई मानसिक यंत्रणा याद करते हुए तनु कहती हैं, ‘‘विवाह के थोड़े दिनों बाद ही मैं ने महसूस कर लिया कि  मेरे पति में बहुत गुस्सा है और उन का अपने गुस्से पर जरा भी कंट्रोल नहीं है. मैं बारबार  झूठे वादों पर यकीन करती रही. कई सैकंड  चांस देने के बाद भी उन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.  घरेलू हिंसा की कई घटनाओं के बाद  अंत में मैं वहां से भाग आई. मैं कुछ न कर  पाने की स्थिति में खुद पर ही नाराज थी, मैं  सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए मुसकराती  रहती थी. अपनी परेशानी किसी से कह भी  नहीं पा रही थी. मुझे सामान्य होने में बहुत  समय लगा.’’

डाक्टर सेठ कहती हैं, ‘‘एक दुखी  व्यक्ति दुख और हानि की 5 अवस्थाओं से गुजरता है, डिनायल, गुस्सा, बारगनिंग,  डिप्रैशन और स्वीकृति. मिलीजुली भावनाएं  रहना सामान्य है.’’

फौरगैट ऐंड स्माइल

चाहे किसी रिश्ते का अंत हो या किसी करीबी की मृत्यु, आगे बढ़ना आसान नहीं है.  तनु बताती हैं, ‘‘मैं जीवन में अपने मातापिता  की पौलिसी फौलो करती हूं, फौरगिव, फौरगैट और स्माइल. इस से आप को दर्द सहने में  और आगे बढ़ने में मदद मिलती है. अपने  दोस्तों से रोज बात करना बहुत महत्त्वपूर्ण है.  चाहे कुछ भी हो, अपने करीबी लोगों से जरूर बात करें.’’  तनु शर्मा की उन के दोस्तों ने बहुत मदद की. वे कहती हैं, ‘‘दोस्तों ने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा. अब उन्हें मेरी बेबीसिटिंग नहीं  करनी पड़ती, अब धीरेधीरे मैं ने खुश रहना  सीख लिया है.’’

डाक्टर सेठ सलाह देती हैं, ‘‘हर व्यक्ति  की जरूरतें अलगअलग होती हैं. यदि आप सोशल गैदरिंग में अनकंफर्टेबल हैं, तो यह  कहना उचित रहता है कि मुझे अभी अकेले  रहने की जरूरत है, सो प्लीज, ऐक्सक्यूज मी. फिर भी ध्यान रखें, अकेलेपन में आप  नकारात्मक विचारों से घिर सकते हैं. ऐसी  स्थिति में अपने दोस्त या किसी फैमिली मैंबर  के साथ या किसी काम में खुद को व्यस्त रखना सब से अच्छा रहता है.’’

अपराधबोध न पालें

डाक्टर सेठ बताती हैं कि उन की एक  30 वर्षीय क्लाइंट इस अपराधबोध में घिर गई  थी कि वह अपने पति की मृत्यु के बाद  पहला नया साल अपने दोस्तों के साथ बिता  कर मना रही थी. मैं ने उसे समझाया कि  फोकस इस दुख पर नहीं, बल्कि अपने पति  की यादों पर रखो. वे भी तुम्हें खुश ही  देखना चाहेंगे.  35 वर्षीय वैडिंग फोटोग्राफर कविता अग्रवाल को 2 दुखों का सामना करना पड़ रहा था. उस के छोटे भाई की ऐक्सीडैंट में डैथ हो  गई थी और उस का तलाक का केस भी चल रहा था. वे कहती हैं, ‘‘मेरे भाई के जाने के बाद मुझे लगा जैसे मैं ने अपने बच्चे को खो दिया है. जब मैं विवाह या किसी और खुशी के अवसर पर शूटिंग करती थी, भाईबहनों का प्यार देख कर मुझे हमेशा अपने भाई की याद आती थी. उस मुश्किल समय में मेरे परिवार ने हमेशा एकदूसरे को सहारा दिया.’’

शुभि गोयल अब सांताक्रूज में स्पैशल  बच्चों के लिए बने आश्रम में जाती हैं. वे कहती हैं, ‘‘जब भी मैं अपने बेटे को याद करती हूं या अधूरापन महसूस करती हूं, फौरन अपने सोचने की दिशा बदलने की कोशिश करती हूं. मेरे बच्चे के दुख ने मुझे उदार बना दिया है. अब मैं इन स्पैशल बच्चों पर अपना प्यार बांटती हूं और खुशी महसूस करती हूं.’’  जब परिवार या दोस्त किसी शोकाकुल व्यक्ति को किसी प्रोग्राम में आमंत्रित करना चाहें तो उन्हें अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि कैसे क्या करना है. डाक्टर सेठ सलाह देते हुए कहती हैं, ‘‘यदि किसी का दुख बिलकुल ताजा है और वह शोकसंतप्त है तो उसे किसी पार्टी में बुलाना बिलकुल उचित नहीं है.  यदि 2 या 3 महीने बीत गए हैं और  आप उस व्यक्ति की स्थिति का अंदाजा नहीं  लगा पा रहे हैं तो पहले उस से मिलें, सामान्य बातचीत करें. अंदाजा लगाएं कि वह अब  कैसा महसूस कर रहा है. फिर अगर आप  ठीक समझें, कोमलता से, स्नेह से स्पष्ट करें  कि आप जानते हैं कि यह उस के लिए मुश्किल समय है पर यदि वह ठीक महसूस करे तो आप उसे अपने प्रोग्राम में बुलाना चाहते हैं. जबरदस्ती न करें, दबाव न डालें. यदि वे तैयार नहीं हैं, तो उन की भावनाओं का सम्मान करें ओर अपना सहयोग दें.’’

समय अपनी गति से चलता रहता है. किसी प्रिय की मृत्यु या आर्थिक अथवा पारिवारिक कष्ट आते रहते हैं. आसान नहीं है पर आगे बढ़ना भी जरूरी होता है. याद रखें, काली से काली रात का भी सवेरा होता है. दूसरों के दुखों में अपना सहयोग दें, स्नेहपूर्वक उन का हौसला बढ़ाते रहें. ऐसे समय में परिवार और दोस्तों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है. कभी किसी के दुख में शामिल होने से पीछे न हटें.

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