नहीं रहे प्राख्यात संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा

भारत केप्राख्यात पद्मविभूषण, संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया, वे 84 वर्ष के थे. पिछले छह महीने से किडनी संबंधी समस्याओं से पीड़ित पंडित जी डायलिसिस पर थे.पंडित शिवकुमार शर्मा का निधन 10 मईसुबह 8 से 8.30 बजे के करीब हुआ. उनका अंतिम संस्कार उनके आवास राजीव आप्स, जिग जैग रोड, पाली हिल, बांद्रा से किया जायेगा. पंडित शिव कुमार शर्मा का सिनेमा जगत में अहम योगदान रहा. बॉलीवुड में ‘शिव-हरी’ नाम से मशहूर शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया की जोड़ी ने कई सुपरहिट गानों में संगीत दिया था. इसमें से सबसे प्रसिद्ध गाना फिल्म ‘चांदनी’ का ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां’ रहा, जो दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी पर फिल्माया गया था.15 मई को शिव-हरि दोनों की जुगलबंदी एक बार फिर होने वाली थी. जिसका इंतज़ार दर्शक कोविड के बाद उत्सुकता से कर रहे थे.

प्रतिभामयी व्यक्तित्त्व

एक साधारण व्यक्तित्व, शांत, मृदुभाषी और हंसमुख स्वभाव के पंडित शिव कुमार शर्मा का चले जाना शास्त्रीय संगीत जगत में बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने हमेशा समाज से जो मिला, उसे वापस देना पसंद करते थे और संगीत की परंपरा सालों तक बने रहने के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करने थे, जिसमें शिष्य को मुफ्त में संतूर बजाना सिखाया जाता है. उनका कहना था कि मेरी तीन पीढ़ी इस वाद्ययंत्र की परंपरा को बनाये रखने की कोशिश कर रही है और इसमें सभी का योगदान आपेक्षित है. इसके अलावा मैं एक कलाकार सिर्फ तब होता हूँ, जब मैं बजाता हूँ, इसके अलावा घर में रास्ते-चौराहे पर लोगों से सलाम दुआ करते हुए जाता हूँ. मैं संतूर वादक होने के साथ-साथ एक पति, पिता, दादा और एक जिम्मेदार नागरिक भी हूँ. मेरे कुछ सामाजिक और पारिवारिक दायित्व भी है, उन्हें मैं कैसे भूल सकता हूँ.

संघर्ष से किया दो चार

कश्मीर से सिर्फ 500 रूपये लेकर पंडित शिवकुमार शर्मा मुंबई अपने एक मित्र के पास आये थे और एकदिन आल इंडिया रेडियो से निकलकर घर पहुंचने पर  उनका सामान बाहर फेका हुआ देखते है, बाद में पता चला कि दोस्त ने कमरे का किराया नहीं चुकाया है, इसलिए मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया था, जिसमें उनके समान भी बाहर थे. उन्हें उस दिन बाहर बेंच पर रात गुजारनी पड़ी थी.

संगीत रही जीवन

कश्मीर की घाटी की संगीतज्ञ परिवार में जन्मे पंडित शिवकुमार शर्मा ने बचपन से ही संगीत सुना और वही उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था, जिसमें हमेशा साथ दिया उनकी पत्नी मनोरमा ने.उनके छोटे बेटे राहुल को वे अपना शिष्य मानते थे और आज वह भी अपने पिता की तरह संतूर बजाता है. उनका दूसरा पुत्र रोहित भी संगीत के क्षेत्र से जुड़ा है.

जब भी पंडित शिव कुमार शर्मा से मिलना हुआ हमेशा एक संगीत की प्रतिमूर्ति नजर आती थी. यही वजह थी कि संगीत उनके परिवार और मुंबई की पाली हिल की घर में रची-बसी है. कालिंग बेल से लेकर हर जगह संतूर की मधुर आवाज अनायास ही सबका मन मोह लेती है.

संतूर को मिली पहचान

पंडित शिव कुमार शर्मा अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे, पर उन्होंने संगीत के साथ-साथ अर्थशास्त्र में पढाई भी पूरी की है. उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा से उन्होंने पांच वर्ष की उम्र से गायन और तबला वादन की शिक्षा शुरू की थी.पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर को शास्त्रीय संगीत में प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति है, क्योंकि इससे पहले संतूर केवल सूफी संगीत में होता था.

पंडितजी जब भी संतूर बजाते थे उनके दाई हाथ की अनामिका में नीले रंग की अंगूठी बहुत ही खूबसूरत लगती थी, उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि ये अंगूठी उन्हें प्रेरणा देती है, इसलिए इसे वे हमेशा पहनते है. संतूर पंडित शिव कुमार शर्मा के हाथों में आते ही ऐसा जादुई वाद्य यंत्र हो गया कि ना केवल ये यंत्र शास्त्रीय संगीत का हिस्सा बना, बल्कि इसकी जादुई आवाज भारत से निकल कर विश्व के हर देश में जा पहुंची.उनके हाथों का कमाल था कि संतूर पर काफी काम हुआ और विश्व पटल पर अब संतूर को फ्यूजन में भी शामिल करके नई संगीत दिए जाने पर काम हो रहा है. आज वे नहीं रहे लेकिन इस मनमोहक व्यक्ति की संगीत और संतूर वादन को हमेशा याद किया जाएगा.

वन स्‍टॉप सेंटर और महिला शक्ति केन्‍द्र समन्‍वय स्‍थापित कर करेंगी काम

प्रदेश की महिलाओं और बेटियों को बेहतर सुविधाएं देने और उनकी समस्‍याओं का तेजी से निराकरण करने के लिए अब वन स्‍टॉप सेंटर और महिला शक्ति केन्‍द्र समन्‍वय के साथ काम करेंगे. ऐसे में योगी सरकार की ओर से प्रदेश की महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा, स्‍वावलंबन और सम्‍मान के लिए जो संकल्‍प लिया गया है वो सभी वादे समय सीमा से पहले पूरे हो सकेंगे.  वन स्टॉप सेन्टरों का महिलाओं से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के हब के रूप में विकास किया जाएगा. उनको सुरक्षा व सशक्तिकरण के लिए एक ही छत के नीचे समस्त सेवाएं मिलेंगी. महिलाओं और बेटियों को आर्थिक सहायता, रोजगार/स्वरोजगार, कौशल प्रशिक्षण से जुड़ी समस्त योजनाओं की जानकारी दी जाएगी. योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सम्बन्धित विभाग और अधिकारी से समन्वय स्‍थापित कर काम करेंगे.

महिला कल्‍याण विभाग की ओर से 100 दिवसों की कार्ययोजना को तैयार किया गया है. जिसके तहत हर 15 दिवसों में ब्लॉक स्तर पर भव्य स्वावलंबन कैम्पों का आयोजन कर सरकार द्वारा संचालित योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना, उप्र मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना, पति की मृत्युपरांत निराश्रित महिला पेंशन योजना आदि के फार्म भरवाएं और स्वीकृत कराए जाएंगे. इसके साथ ही मानसिक मंदित महिलाओं के लिए गृह की स्‍थापना की जाएगी. जिसके तहत स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए लखनऊ में 100-100 बेड की क्षमता के 02 गृहों का संचालन किया जाएगा. जिसकी कुल लागत 4.57 करोड़ है. बता दें कि सामान्य महिलाओं के लिए संचालित विभागीय संस्थाओं में 203 मानसिक मंदित महिलाओं को आश्रय दिया गया है.

महिलाओं को दिया जाएगा कौशल विकास प्रशिक्षण

विभाग की ओर से आने वाले 06 माह की कार्ययोजना को तैयार कर लिया गया है. महिला संरक्षण तथा बाल देखरेख संस्थाओं में निवासित बच्चों व महिलाओं का कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाएगा. संस्थाओं में आवासित महिलाओं और 16 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को उनकी अभिरूचि के अनुरूप कौशल विकास प्रशिक्षण से जोड़ने हेतु उनकी अभिरूचि की मैपिंग व मैपिंग उपरांत प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके साथ ही संविदा तथा सेवा प्रदाता के जरिए से भरे जाने वाले पदों में से रिक्त पदों पर कार्मिकों का चयन किया जाएगा. जिसमें मिशन वात्सल्य के तहत कुल 136 रिक्त पद और वन स्टॉप सेंटर के तहत 26 जिलों में कुल 252 रिक्त पदों को भरा जाएगा.

लम्हों ने खता की थी: भाग 1- क्या डिप्रैशन से निकल पाई रिया

गुरमीत पाटनकर के 30 साल के लंबे सेवाकाल में ऐसा पेचीदा मामला शायद पहली दफा सामने आया था. इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिछले वर्ष पीआरओ पद पर जौइन करने वाली रिया ने अपनी 6 वर्ष की बच्ची के लिए कंपनी द्वारा शिक्षण संबंधित व्यय के पुनर्भरण के लिए प्रस्तुत आवेदन में बच्ची के पिता के नाम का कौलम खाली छोड़ा था. अभिभावक के नाम की जगह उसी का नाम और हस्ताक्षर थे. उन्होंने जब रिया को अपने कमरे में बुला कर बच्ची के पिता के नाम के बारे में पूछा तो वह भड़क कर बोली थी, ‘‘इफ क्वोटिंग औफ फादर्स नेम इज मैंडेटरी, प्लीज गिव मी बैक माइ एप्लीकेशन. आई डोंट नीड एनी मर्सी.’’ और बिफरती हुई चली गई थी. पाटनकर सोच रहे थे, अगर इस अधूरी जानकारी वाले आवेदनपत्र को स्वीकृत करते हैं तो वह (रिया) भविष्य में विधिक कठिनाइयां पैदा कर सकती है और अस्वीकृत कर देते हैं तो आजकल चलन हो गया है कि कामकाजी महिलाएं किसी भी दशा में उन के प्रतिकूल हुए किसी भी फैसले को उन के प्रति अधिकारी के पूर्वाग्रह का आरोप लगा देती हैं.

अकसर वे किसी पीत पत्रकार से संपर्क कर के ऐसे प्रकरणों का अधिकारी द्वारा महिला के शारीरिक शोषण के प्रयास का चटपटा मसालेदार समाचार बना कर प्रकाशितप्रसारित कर के अधिकारी की पद प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान का कचूमर निकाल देती हैं. रिया भी ऐसा कर सकती है. आखिर 2 हजार रुपए महीने की अनुग्रह राशि का मामला है. टैलीफोन की घंटी बजने से उन की तंद्रा भंग हुई. उन्होंने फोन उठाया, मगर फोन सुनते ही वे और भी उद्विग्न हो उठे. फोन उन की पत्नी का था. वह बेहद घबराई हुई लग रही थी और उन से फौरन घर पहुंचने के लिए कह रही थी.

घर पहुंच कर उन्होंने जो दृश्य देखा तो सन्न रह गए. रिया भी उन के ही घर पर थी और भारी डिप्रैशन जैसी स्थिति में थी. कुछ अधिकारियों की पत्नियां उसे संभाल रही थीं, दिलासा दे रही थीं, मगर उसे रहरह कर दौरे पड़ रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन की पत्नी उन्हें यह बता पाई कि उस की 6 वर्षीय बच्ची आज सुबह स्कूल गई थी. लंचटाइम में वह पता नहीं कैसे सिक्योरिटी के लोगों की नजर बचा कर स्कूल से कहीं चली गई. उस के स्कूल से चले जाने का पता लंच समाप्त होने के आधे घंटे बाद अगले पीरियड में लगा. क्लासटीचर ने उस को क्लास में न पा कर उस की कौपी वगैरह की तलाशी ली. एक कौपी में लिखा था, ‘मैं अपने पापा को ढूंढ़ने जाना चाहती हूं. मम्मी कभी पापा के बारे में नहीं बतातीं. ज्यादा पूछने पर डांट देती हैं. कल तो मम्मी ने मुझे चांटा मारा था. मैं पापा को ढूंढ़ने जा रही हूं. मेरी मम्मी को मत बताना, प्लीज.’

स्कूल प्रशासन ने फौरन बच्ची की डायरी से अभिभावकों के टैलीफोन नंबर देख कर इस की सूचना रिया को दे दी और स्कूल से बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी. सभी स्तब्ध थे यह सोचते हुए कि क्या किया जाए. तभी कालोनी कैंपस में एक जीप रुकी. जीप में से एक पुलिस इंस्पैक्टर और कुछ सिपाही उतरे और पाटनकर के बंगले पर भीड़भाड़ देख कर उस तरफ बढ़े. पाटनकर खुद चल कर उन के पास गए और उन के आने का कारण पूछा. इंस्पैक्टर ने बताया कि स्कूल वालों ने जिस हुलिए की बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट लिखाई है उसी कदकाठी की एक लड़की किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से घायल हो गई. जिसे अस्पताल में भरती करा कर वे बच्ची की मां और कंपनी के कुछ लोगों को बतौर गवाह साथ ले जाने के लिए आए हैं.

इंस्पैक्टर का बयान सुन कर रिया तो मिसेज पाटनकर की गोदी में ही लुढ़क गई तो वे इंस्पैक्टर से बोलीं, ‘‘देखिए, आप बच्ची की मां की हालत देख रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि वह इस हालत में कोई मदद कर पाएगी. हम सभी इसी कालोनी के हैं और वह बच्ची स्कूल से आने के बाद इस की मां के औफिस से लौटने तक मेरे पास रहती है इसलिए मैं चलती हूं आप के साथ.’’ अब तक कंपनी के अस्पताल की एंबुलैंस भी मंगा ली गई थी. इसलिए कुछ महिलाएं अचेत रिया को ले कर एंबुलैंस में सवार हुईं और 2-3 महिलाएं मिसेज पाटनकर के साथ पुलिस की जीप में बैठ गईं. अस्पताल पहुंचते ही शायद मातृत्व के तीव्र आवेग से रिया की चेतना लौट आई. वह जोर से चीखी, ‘‘कहां है मेरी बच्ची, क्या हुआ है मेरी बच्ची को, मुझे जल्दी दिखाओ. अगर मेरी बच्ची को कुछ हो गया तो मैं किसी को छोड़ूंगी नहीं, और मिसेज पाटनकर, तुम तो दादी बनी थीं न पिऊ की,’’ कहतेकहते वह फिर अचेत हो गई.

बच्ची के पलंग के पास पहुंचते ही मिसेज पाटनकर और कालोनी की अन्य महिलाओं ने पट्टियों में लिपटी बच्ची को पहचान लिया. वह रिया की बेटी पिऊ ही थी. बच्ची की स्थिति संतोषजनक नहीं थी. वह डिलीरियम की स्थिति में बारबार बड़बड़ाती थी, ‘मुझे मेरे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो, प्लीज. मम्मी मुझे पापा के बारे में क्यों नहीं बतातीं, सब बच्चे मेरे पापा के बारे में पूछते हैं, मैं क्या बताऊं. कल मम्मी ने मुझे क्यों मारा था, दादी, आप बताओ न…’ कहतेकहते अचेत हो जाती थी. बच्ची की शिनाख्त होते ही पुलिस इंस्पैक्टर ने मिसेज पाटनकर को बच्ची की दादी मान कर उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले वे दोपहर को महिला कल्याण समिति की बैठक में जाने के लिए निकली थीं. तभी रिया की बच्ची, जो अपनी आया से बचने के लिए अंधाधुंध दौड़ रही थी, उन से टकरा गई थी. बच्ची ने उन से टकराते ही उन की साड़ी को जोर से पकड़ कर कहा था, ‘आंटी, मुझे बचा लो, प्लीज. आया मुझे बाथरूम में बंद कर के अंदर कौकरोच छोड़ देगी.’

बच्ची की पुकार की आर्द्रता उन्हें अंदर तक भिगो गई थी. इसलिए उन्होंने आया को रुकने के लिए कहा और बच्ची से पूछा, ‘क्या बात है?’ तो जवाब आया ने दिया था कि यह स्कूल में किसी बच्चे के लंचबौक्स में से आलू का परांठा अचार से खा कर आई है और घर पर भी वही खाने की जिद कर रही है. मेमसाब ने इसे दोपहर के खाने में सिर्फ बर्गर और ब्रैड स्लाइस या नूडल्स देने को कहा है. यह बेहद जिद्दी है. उसे बहुत तंग कर रही है, इस ने खाना उठा कर फेंक दिया है, इसलिए वह इसे यों ही डरा रही थी. मगर बच्ची उन की साड़ी पकड़ कर उन से इस तरह चिपकी थी कि आया ज्यों ही उस की तरफ बढ़ी वह उन से और भी जोर से चिपक कर बोली, ‘आंटी प्लीज, बचा लो,’ और उन की साड़ी में मुंह छिपा कर सिसक उठी तो उन्होंने आया को कह दिया, ‘बच्ची को वे ले जा रही हैं, तुम लौट जाओ.’

कालोनी में उन की प्रतिष्ठा और व्यवहार से आया वाकिफ थी, इसलिए ‘मेमसाब को आप ही संभालना’, कह कर चली गई थी. उन्होंने मीटिंग में जाना रद्द कर दिया और अपने घर लौट पड़ी थीं. घर आने तक बच्ची उन की साड़ी पकड़े रही थी. पता नहीं कैसे बच्ची का हाथ थाम कर घर की तरफ चलते हुए वे हर कदम पर बच्ची के साथ कहीं अंदर से जुड़ती चली गई थीं. घर आ कर उन्होंने बच्ची के लिए आलू का परांठा बनाया और उसे अचार से खिला दिया. परांठा खाने के बाद बच्ची ने बड़े भोलेपन से उन से पूछा था, ‘आंटी, आप ने आया से तो बचा लिया, आप मम्मी से भी बचा लोगी न?’

मासूम बच्ची के मुंह से यह सुन कर उन के अंदर प्रौढ़ मातृत्व का सोता फूट निकला था कि उन्होंने बच्ची को गोद में उठा लिया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर बोलीं, ‘हां, जरूर, मगर एक शर्त है.’

‘क्या?’ बच्ची ने थोड़ा असमंजस से पूछा. जैसे वह हर समझौता करने को तैयार थी.

‘तुम मुझे आंटी नहीं, दादी कहोगी, कहोगी न?’

बच्ची ने उन्हें एक बार संशय की नजर से देखा फिर बोली, ‘दादी, आप जैसी होती है क्या? उस के तो बाल सफेद होते हैं, मुंह पर बहुत सारी लाइंस होती हैं. वह तो हाथ में लाठी रखती है. आप तो…’

‘हां, दादी वैसी भी होती है और मेरी जैसी भी होती है, इसलिए तुम मुझे दादी कहोगी. कहोगी न?’

‘हां, अगर आप कह रही हैं तो मैं आप को दादी कहूंगी,’ कह कर बच्ची उन से चिपट गई थी.

उस दिन शाम को जब रिया औफिस से लौटी तो आया द्वारा दी गई रिपोर्ट से उद्विग्न थी, मगर एक तो मिस्टर पाटनकर औफिस में उस के अधिकारी थे, दूसरे, कालोनी में मिसेज पाटनकर की सामाजिक प्रतिष्ठा थी, इसलिए विनम्रतापूर्वक बोली, ‘मैडम, यह आया बड़ी मुश्किल से मिली है. इस शैतान ने आप को पूरे दिन कितना परेशान किया होगा, मैं जानती हूं और आप से क्षमा चाहती हूं. आप आगे से इस का फेवर न करें.’ इस पर उन्होंने बड़ी सरलता से कहा था, ‘रिया, तुम्हें पता नहीं है, हमारी इस बच्ची की उम्र की एक पोती है. हमारा बेटा यूएसए में है इसलिए मुझे इस बच्ची से कोई तकलीफ नहीं हुई. हां, अगर तुम्हें कोई असुविधा हो तो बता दो.

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बिजली कहीं गिरी असर कहीं और हुआ- भाग 1: कौन थी खुशबू

अखबार में छपी एक खबर की वजह से एक ही दिन में जैसे खुशबू की सारी दुनिया ही बदल गई. अपनों के बीच जैसे खुशबू एकाएक बेगानी हो गई.

देखने में तो अब भी सबकुछ पहले जैसा ही दिखता था, लेकिन नजरों के साथसाथ दिलों में भी कहीं फर्क  आ गया था. मम्मी के स्पर्श से भी खुशबू इस फर्क को महसूस कर सकती थी. मम्मी के स्पर्श में वैसे अब एक संकोच और दुविधा थी.

खुशबू के वजूद पर ही जैसे एक सवालिया निशान लग गया था. मगर सवाल यह भी था कि खुशबू का कुसूर क्या था? उस  के जन्म के समय कहां पर क्या हुआ था, किस ने क्या बेईमानी की थी उसे क्या मालूम.

अखबार में छपी खबर ने 7 वर्षीय खुशबू को उस के अपने ही घर में अजनबी जैसा बना दिया था. बाहर के एक नर्सिंगहोम के स्कैंडल को ले कर भी इस प्राइवेट नर्सिंगहोम को पुलिस ने सील कर के उस की संचालिका और नर्सिंगहोम में काम करने वाली कुछ नर्सों को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने यह सारी काररवाई उस नर्सिंगहोम में बच्चे को जन्म देने वाली एक महिला की शिकायत पर की थी. शिकायत करने वाली महिला का आरोप था कि नर्सिंगहोम में उस के बच्चे को बदल दिया गया, महिला के अनुसार उस ने नर्सिंगहोम में  जिस बच्चे को जन्म दिया था वह एक लड़का था. मगर उस के बदले में उसे एक लड़की मिली थी.

शिकायत करने वाली महिला ने बच्चे को बदले जाने के संबंध में नर्सिंगहोम की 2 नर्सों पर अपना शक जाहिर किया था.

महिला की शिकायत पर पुलिस ने काररवाई करते हुए दोनों नर्सों को अपनी हिरासत में ले कर जब कड़ाई से पूछताछ की तो एक बहुत बड़ा और सनसनीखेज स्कैंडल सामने आया. स्कैंडल  में नर्सिंगहोम को जाली डाक्टरी सर्टिफिकेट के साथ चलाने वाली उस की मालकिन भी शामिल थी. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस की तफतीश से खुलासा हुआ कि 16 वर्ष पहले अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही नर्सिंगहोम लोगों की आंखों में धूल झोंक रहा था. वहां न केवल गैरकानूनी तरीके से कुंआरी मां बनने वाली लड़कियों के गर्भपात किए जाने थे बल्कि बच्चा गोद लेने के इच्छुक लोगों को भी बच्चा मोटी रकम में बेचा जाता था.

यहां डिलिवरी कराने वाली कई युवतियों के बच्चों को भी गुपचुप बदल दिया था. इस काम के बदले में भी एक खूब मोटी रकम बसूल की जाती थी.

नर्सिंगहोम की संचालिका और बाकी स्टाफ से पूछताछ करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि इस की कोई गिनती या रिकौर्ड नहीं था कि नर्सिंगहोम में कितनी युवतियों के शिशुओं को बदला गया. बेटे की चाह रखने वाले कितने लोगों को उन के यहां बेटी होने की सूरत में किसी दूसरे का बेटा मोटी रकम बसूल कर दे दिया गया था. इस का भी कोई रिकौर्ड नहीं था. 7 वर्ष पहले खुशबू ने भी पुलिस के द्वारा सील किए गए इसी नर्सिंगहोम में जन्म लिया था.

खुशबू की दोनों बड़ी बहनों ने तो सरकारी अस्पताल में जन्म लिया था. इस के लिए घर की माली हालात की मजबूरी थी. खुशबू के पापा रमाकांत अपनी पहली दोनों बेटियों के जन्म के समय किसी प्राइवेट नर्सिंगहोम का खर्चा नहीं उठा सकते थे.

मगर खुशबू के जन्म के समय उस के पापा रमाकांत के हाथ में थोड़े पैसे थे अगर नहीं भी होते तो वे उधार ले कर भी किसी नर्सिंगहोम का खर्चा उठाते क्योंकि ऐसा खुशबू की मम्मी शारदा भी चाहती थीं.

2 बेटियों की मां बन चुकीं शारदा के लिए तीसरा बच्चा बड़ा माने रखता था और वे कोई भी रिस्क नहीं लेते हुए पूरी एहतियात से काम लेना चाहती थीं.

वास्तव में तीसरे बच्चे के जन्म के समय शारदा बेटे की चाहत और कल्पनाओं से सराबोर थी.

बेटे की चाहत में शारदा ने पंडित रामकुमार तिवारी को पकड़ा था. उन्होंने ही दोनों को वृंदावन जाने को कहा था. आश्रम का पता दिया था. वहां के पहुंचे हुए स्वामी को फोन कर दिया था. दोनों ने कई हजार रुपयों की भेंट दी थी.

रामकुमार तिवारी दावे से कह रहे थे कि शारदा के गर्भ में मौजूद उस का तीसरा बच्चा एक लड़का ही होगा. लिंग निर्धारण टैस्ट चूंकि गैरकानूनी था, इसलिए कोई भी टैस्ट लेबोरट्री अलट्रासाउंड करने के उपरांत लिखित रूप से यह गारंटी देने को तैयार नहीं थी कि शारदा के गर्भ में मौजूद बच्चा एक लड़का है जुबानी तौर पर शारदा से यही कहा गया कि उस की गर्भ में मौजूद तीसरा बच्चा एक लड़का ही.

मगर एक बेटे की मां बनने की शारदा की सारी उम्मीदों पर तब कुठाराघात हुआ जबउसे बताया गया कि उस का तीसरा बच्चा भी लड़की है.

शारदा का तो जैसे दिल ही टूट गया. रामकुमार तिवारी पंडित और अन्य ज्योतिषियों की सारी बातें गलत साबित हुई थीं. अल्ट्रासाउंड करने वाली लैबोरटरी की जबानी कही बात भी गलत निकली. रामकुमार तिवारी फिर भी कह रहे थे कि यह कोई चमत्कार है. उन का कहा गलत हो ही नहीं सकता. लड़की होने पर भी वे क्व20 हजार  झटक गए थे.

शारदा को ही नहीं, तीसरी बेटी के आने से रमाकांत को भी सदमा लगा था. बेटे की चाहत में चौथी संतान के खयाल से भी उन दोनों ने तोबा कर ली.

तीसरी बेटी खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा काफी दिनों तक बु झीबु झी रही थीं. पूजापाठ और उपवासों पर से जैसे उन का विश्वास ही डगमगा गया. रामकुमार तिवारी ने आना बंद नहीं किया पर अब वे दक्षिणा नहीं मांगते पर चौथे बच्चे के लड़के होने की गारंटी देने लगे थे. वे अभी भी गलती मानने को तैयार न थे.

खुशबू को जन्म देने के बाद शारदा ने बु झे मन के कारण उस के प्रति 1-2 दिन बेरुखी दिखाई थी, मगर जब शारदा की ममता ने जोर मारा तो अपनी मायूसियों को भूल खुशबू को स्वीकार कर लिया.

खुशबू को स्वीकार करने के बाद एक मां के रूप में शारदा ने न तो उसे अपनी पहली दोनों बेटियों से कम प्यार दिया और न ही उस की कभी उपेक्षा ही की.

खुशबू के जन्म के बाद शारदा को उस की मायूसी से निकालने में रमाकांत का भी काफी योगदान था. उन्होंने शारदा को सांत्वना देते हुए कहा था कि आज के युग में बेटियां किसी भी लिहाज से बेटों से कम नहीं. हमें जो भी मिला है उसे हमें खुशीखुशी स्वीकार करना चाहिए.

खुशबू को स्वीकार कर लिया गया था. वह छोटी होने की वजह से मांबाप की लाड़ली बन गई थी.

सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि उस नर्सिंगहोम की काली करतूतों का पुलिस के द्वारा भंडाफोड़ कर दिया गया जहां 7  वर्ष पहले खुशबू का भी जन्म हुआ था.

नर्सिंगहोम की करतूतों का भंडा फोड़ होने के बाद बीता हुआ कल जैसे एक सवाल की शक्ल में सामने आ कर खड़ा हो गया था. पंडित रामकुमार तिवारी फिर बारबार आने लगे थे. इस नर्सिंगहोम की करतूतों की चर्चा वे जोरशोर से करते थे.

शारदा दुविधा और संदेह में घिर गई थी. वह सोचने को मजबूर हो गई थी कि क्या 7 वर्र्ष पहले नर्सिंगहोम में उस के साथ भी कोई धोखा ही हुआ था? क्या पंडितों और ज्योतिषियों की कही बातें वास्तव में सही थीं? लैबोरटरी वालों  ने भी कोई गलतबयानी बच्चे के लिंग को ले कर नहीं की थी. दूसरों महिलाओं की तरह नर्सिंगहोम में उस के साथ भी तो कोईर् धोखा नहीं हो गया था?

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Anupamaa को टक्कर देगी TV की Pushpa, बनेगी स्वाभिमानी मां

स्टार प्लस के हिट सीरियल में से एक ‘अनुपमा’ में एक मां की कहानी ने फैंस का दिल जीत लिया है, जिसके चलते सीरियल की टीआरपी भी पहले नंबर पर बनी हुई है. लेकिन अब एक नया सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) को टक्कर देने आ रहे हैं, जिसकी कहानी हैं तो एक मां की लेकिन वह अनुपमा से बिल्कुल अलग नजर आ रही है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

अनुपमा को टक्कर देगी पुष्पा

 

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अपनों का दिया दर्द झेलने वाली अनुपमा से अलग पुष्पा की कहानी बिल्कुल हटकर है. दरअसल, सोनी सब का नया सीरियल ‘पुष्पा इम्पॉसिबल’ जल्द ही टीवी पर दस्तक देने वाला है, जिसका नया प्रोमो सामने आया है. दरअसल, प्रोमो में पुष्पा जहां क्रिकेट खेलती नजर आ रही है तो वहीं बच्चों की गलती छिपाने की बजाय उन्हें सबक सिखाते हुए भी नजर आ रही है. सीरियल का प्रोमो देखकर फैंस सीरियल अनुपमा को कड़ी टक्कर देने की बात करते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं सोशलमीडिया पर सीरियल का प्रोमो तेजी से वायरल हो रहा है.

अनुपमा के मेकर्स से परेशान हैं फैंस

सीरियल अनुपमा की बात करें तो मेकर्स के सीरियल में नए-नए ट्विस्ट लाने से फैंस परेशान हो गए हैं, जिसके चलते वह सीरियल को बर्बाद ना करने की बात कहते हुए नजर आ रहे हैं. दरअसल, सीरियल में इन दिनों अनुपमा और अनुज की शादी को लेकर काफी अड़चने सामने आ रही हैं. जहां बीते दिनों एपिसोड में अनुपमा की मेहंदी देखकर #MaAn फैंस निराश हो गए थे तो वहीं बापूजी के हार्ट अटैक आने से अनुपमा के शादी ना करने के फैसले से फैंस गुस्से में नजर आ रहे हैं, जिसका असर सीरियल की टीआरपी पर भी पड़ता हुआ नजर आ रहा है.

 

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बता दें, अगर सीरियल ‘पुष्पा इम्पॉसिबल’ की कहानी फैंस को पसंद आई तो यह सीरियल अनुपमा को कड़ी टक्कर देता हुआ नजर आएगा, जिसका फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

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Fat To Fit हुई ‘बढ़ो बहू’, एक्ट्रेस रिताशा का ट्रांसफॉर्मेशन देख चौंके फैंस

बौलीवुड हो या टीवी हसीनाएं, हर किसी को मोटे होने के चलते बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ता है. हालांकि एक्ट्रेसेस ट्रोलर्स को करारा जवाब भी देती नजर आती हैं. इसी बीच पौपुलर टीवी सीरियल ‘बढ़ो बहू’ की एक्ट्रेस रिताशा राठौड़ (Rytasha Rathore) ने भी ट्रोलर्स को अपने ट्रांसफौर्मेशन से चौंका दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

रोल को लेकर चर्चा में रहीं थीं रिताशा

 

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सीरियल में एक्टर प्रिंस नरूला के अपोजिट नजर आने वाली एक्ट्रेस रिताशा, सीरियल में अपने मोटापे के कारण चर्चा में रही थीं. जहां फैंस को उनका ये अंदाज पसंद आया था तो वहीं कई बार बॉडी शेमिंग का भी सामना करना पड़ा था. हालांकि वह सोशलमीडिया के जरिए कई बार ट्रोलर्स को करारा जवाब देती नजर आ चुकी हैं.

 

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ट्रांसफौर्मेशन देख चौंके फैंस

 

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फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में भूमि पेडनेकर के जैसे लुक में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस रिताशा ने अपनी कुछ फोटोज इंस्टाग्राम पर शेयर की हैं, जिसमें वह अपना फैट टू फिट वाला ट्रांसफॉर्मेशन फ्लौंट करती नजर आ रही हैं. फोटोज की बात करें तो जहां एक्ट्रेस का कौंफिडेंस काफी ज्यादा नजर आ रहा है तो वहीं वह फैंस को शुक्रिया अदा करती हुई भी दिख रही हैं.

 

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कौंफिडेंस की नहीं थी कमी

 

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एक्ट्रेस रिताशा राठौड़ (Rytasha Rathore) भले ही फैट टू फिट हो गई हैं. लेकिन पहले और आज में उनके कौंफिडेंस में कोई बदलाव नहीं आया है. अपनी पुराने लुक में जहां हौट फोटोज शेयर करके फैंस का ध्यान खींचती थीं. तो वहीं अब भी वह अपने नए अंदाज में फैंस का दिल जीत रही हैं. हालांकि इन फोटोज से वह ट्रोलर्स को करारा जवाब देते हुए नजर आ चुकी हैं.

 

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बता दें, एक्ट्रेस रिताशा राठौड़ (Rytasha Rathore) से पहले शहनाज गिल और भारती सिंह जैसी कई एक्ट्रेसेस हैं, जो अपने फैट टू फिट ट्रांसफौर्मेशन से फैंस को हैरान कर चुकी हैं.

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आंखों से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. अपने प्रोफैशन की वजह से मुझे मेकअप में रहना होता है. मुझे बारबार पलकों पर फुंसी और खुजली हो जाती है, क्या करूं?

जवाब-

अगर आप रोज आई मेकअप करती हैं तो आप को अपनी आंखों का खास खयाल रखना चाहिए. अधिकतर मेकअप प्रोडक्ट्स में कई रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जिन के कई साइड इफैक्ट्स होते हैं. आई मेकअप करने में ही नहीं उसे निकालने में भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. इन के कारण पलकों पर फुंसी, दर्द, खुजली या संक्रमण हो सकता है. रात को सोने से पहले अपनी आंखों से मेकअप जरूर निकालें नहीं तो ये परेशानियां और बढ़ सकती हैं. जब जरूरत या प्रोफैशनल मजबूरी न हो तो मेकअप बिलकुल न करें.

सवाल-

मैं कौंटैक्ट लैंस लगाती हूं. जानना चाहती हूं इस का इस्तेमाल करते समय कौनकौन सी सावधानियां रखना चाहिए?

जवाब-

कौंटैक्ट लैंस लगाने से आंखों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. साफसफाई का विशेष ध्यान रखें, लैंस की सफाई करते समय उन्हें पानी के संपर्क में न आने दें. कौंटैक्ट लैंस पहनते और उतारते समय हाथों को साबुन और साफ पानी से धो कर तौलिए से पोंछें. कौंटैक्ट लैंस को हमेशा कौंटैक्ट लैंस सौल्यूशन में रखें. कौंटैक्ट लैंस की ऐक्सपायरी डेट का ध्यान रखें. उन्हें 1 साल में बदल लें. इस से संक्रमण का खतरा कम हो जाता है. अगर आंखों में लालपन, दर्द हो रहा हो या धुंधला दिखाई दे रहा हो तो तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाएं.

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सवाल-

मेरे पति को दूर और पास दोनों के लिए चश्मा लगता है. वे सारा दिन चश्मा लगाए रहते हैं. सिर्फ सोने के समय ही उतारते हैं. क्या यह ठीक है?

जवाब-

पूरा दिन चश्मा लगाना ठीक नहीं है. आंखों को ताजा हवा और धूप के संपर्क में आने दें. वर्कआउट करते समय चश्मा न लगाएं. अगर सुबह टहलने जाते हैं तो बिना चश्मे के जाएं. सुबहसुबह की ताजा हवा व कुनकुनी धूप और गार्डन की हरियाली आंखों के लिए बहुत अच्छी होती है. इस के अलावा इन बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है जैसे चश्मे को हमेशा साफ रखें, कांच कहीं से टूटा न हो. आंखों के नंबर की नियमित रूप से जांच कराते रहें.

सवाल-

मैं 42 वर्षीय बैंककर्मी हूं. पिछले कुछ दिनों से मुझे आंखों में जलन, चुभन और खुजली की समस्या हो रही है. मैं क्या करूं?

जवाब-

आजकल कंप्यूटर पर काम करने के बढ़ते चलन से कंप्यूटर विजन सिंड्रोम की समस्या बढ़ती जा रही है. इस सिंड्रोम के कारण धुंधला दिखना, जलन होना, पानी आना, खुजली होना, आंख का सूखा रहना (ड्राई आई), पास की चीजें देखने में दिक्कत होना, रंगों का साफ दिखाई न देना एवं रंगों को पहचानने में परेशानी होना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. इस से बचने के लिए कमरे के ताप को कम रखें, वातावरण में थोड़ी नमी बनाए रखें.

कंप्यूटर पर काम करते समय हर 1/2 घंटे के बाद 2-3 मिनट के लिए नजर स्क्रीन से हटा लें एवं हर 1 घंटे के बाद 5-10 मिनट का ब्रेक लें. आर्टिफिशियल टीयर आई ड्रौप का भी दिन में 3-4 बार इस्तेमाल कर सकते हैं, पर विशेषज्ञ की सलाह से.

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सवाल-

मेरी बेटी को अकसर बारिश में आंखों में फुंसियां हो जाती हैं. ऐसा क्यों होता है और इस से बचने के लिए क्या किया जा सकता है?

जवाब-

आंखों में फुंसियां होना यानी आई स्टाइस होना आंखों से संबंधित एक सामान्य समस्या है. ये पलकों पर एक छोटे उभार के रूप में होती हैं. इन का सब से प्रमुख कारण बैक्टीरिया का संक्रमण है. इसलिए मौनसून में इन के मामले अधिक देखे जाते हैं क्योंकि बारिश में बैक्टीरिया अधिक सक्रिय रहते हैं. आई स्टाइस के कारण पलकों का लाल हो जाना और पस निकलना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. आई स्टाइस से बचने के लिए साफसफाई का विशेष ध्यान रखें. यह समस्या सामान्यत: आंखों को गंदे हाथों से रगड़ने या नाक के बाद तुरंत आंखों को छूने से भी होती है क्योंकि कुछ बैक्टीरिया जो नाक में पाए जाते हैं वे स्टाइस का कारण माने जाते हैं. इस के साथ ही किसी अच्छे नेत्र रोग विशेषज्ञ को भी दिखाएं.

-डा. रूमा गुप्ता

बालाजी सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, राजेंद्र नगर, गाजियाबाद.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Travel Special: ट्रैवल फाइनैंस से बनाएं सुहाना सफर

पर्यटन आज शौक का नहीं, बल्कि लाइफस्टाइल का भी हिस्सा बन चुका है. रोजमर्रा की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब नीरसता पनपने लगती है तो इंसान चंद दिनों के लिए मौजमस्ती पर निकलना चाहता है.

हम अपनी छुट्टियों को यादगार बना सकते हैं. किंतु उस के लिए जरूरी है कि हम अपने यात्रा के व्यय को नियंत्रित रखें, क्योंकि लापरवाही से खर्च कर के हम मस्ती तो कर लेंगे, लेकिन बाद में बजट बिगड़ने से उत्पन्न स्थिति अच्छेखासे मूड को खराब भी कर सकती है.

पहले बजट बनाएं

छुट्टियां मनाने के लिए प्राय: एकमुश्त रकम की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह खर्च दैनिक जीवन के सामान्य खर्चों से अलग होता है. इसलिए यह जरूरी है कि हौलिडे प्लान करते समय पहले आप अपना बजट बनाएं. तय करें कि आप कितने दिनों के लिए सफर पर जाना चाहते हैं और कितना पैसा खर्च करना चाहते हैं. उसी आधार पर आप को अपना डैस्टिनेशन चुनना होगा.

आप किस मोड से ट्रैवल करना चाहते हैं और किस तरह के होटल में ठहरना चाहते हैं यह भी आप को बजट के अनुरूप ही तय करना होगा. यदि आप सैल्फ कस्टमाइज टुअर पर जाना चाहते हैं, तो उस के लिए समय रहते बुकिंग करा कर कुछ रुपए बचा सकते हैं.

यदि आप पैकज टुअर पर जाना चाहते हैं तब भी आवश्यक है कि आप जल्द ही पैकेज की बुकिंग करा लें, क्योंकि टुअर औपरेटर जब देखते हैं कि टुअर की डिमांड अधिक है, तो वे भी कीमत बढ़ा देते हैं.

पर्यटन के दौरान रोज आप को कितना व्यय करना पड़ सकता है, बजट बनाते समय इस का अनुमान भी लगाना होगा, ताकि आप उतनी राशि नकद साथ रखें या क्रैडिट कार्ड अथवा एटीएम की लिमिट बचा कर रखें.

स्वतंत्र टुअर किफायती या पैकेज टुअर

अपने देश में घूमने के लिए अधिकतर लोग स्वतंत्र टुअर को प्राथमिकता देते हैं. जबकि विदेश यात्रा के लिए पर्यटक अकसर गु्रप पैकेज टुअर चुनना पसंद करते हैं.

अपने देश में भ्रमण करते समय आप को अपनी मुद्रा में व्यय करना होता है. आप पर्यटन स्थल के परिवेश और वहां की संस्कृति को समझते हैं. इसलिए आप असुरक्षित महसूस नहीं करते. ऐसे टुअर की स्वयं तैयारी करते हुए इसे अपने बजट में आसानी से सीमित रख सकते हैं.

जबकि विदेश यात्रा के मामले में विदेशी मुद्रा और वहां की भाषा, संस्कृति का अंतर होने के कारण पर्यटक के मन में असुरक्षा की भावना बनी रहती है. इसलिए विदेश यात्रा में लोगों को ग्रुप पैकेज टुअर में जाना अच्छा लगता है. वहीं विदेश में होटल, फूड आदि की स्वयं व्यवस्था करना पैकेज टुअर की तुलना में महंगा पड़ता है. इसलिए ट्रैवल फाइनैंस का प्रबंधन करते समय ध्यान रखें कि अपने देश में यात्रा करनी हो तो आप स्वतंत्र टुअर प्लान कर के पैसा बचा सकते हैं और विदेश यात्रा करनी हो तो पैकेज टुअर ज्यादा किफायती रहता है.

बुकिंग कराते समय

जब आप ने यह तय कर लिया कि आप स्वतंत्र टुअर पर निकलना चाहते हैं या पैकेज टुअर पर, तब आप उसी हिसाब से बुकिंग का माध्यम तय करें. खुद अपनी यात्रा मैनेज कर रहे हैं तो पहले ट्रेन या हवाईयात्रा की बुकिंग कराएं. यह आजकल आसानी से औनलाइन कराई जा सकती है.

ध्यान रखें, हवाईयात्रा के लिए आप जितना जल्दी बुकिंग कराएंगे टिकट उतना ही सस्ता मिलेगा. बहुत सी एअरलाइंस 30 दिन या 45 दिन पहले बुकिंग कराने पर बहुत सस्ता टिकट उपलब्ध कराती हैं. इस के अलावा आप लो कौस्ट एअरलाइन का विकल्प भी चुन सकते हैं.

छूट के मौसम में यात्रा करें

कम बजट में पर्यटन का ज्यादा आनंद लेना है, तो आप अपना कार्यक्रम पीक सीजन में न बनाएं. अब देखिए न पीक सीजन में ट्रैवल पैकेज हों या होटल पैकेज सभी महंगे होते हैं. लेकिन उन्हीं पैकेज पर औफ सीजन में 30 से 50% तक का डिस्काउंट मिलता है. तब कई लग्जरी पैकेज हमें अपने बजट के अनुरूप लगने लगते हैं. पीक सीजन में सैलानियों की तादाद ज्यादा होने लगती है, तो हर जगह कीमत शिखर पर पहुंचने लगती है.

विदेश यात्रा के मामले में भी सैलानियों को पीक सीजन से बचना चाहिए. ग्रीष्म अवकाश, न्यूईयर, क्रिसमस और शादियों के सीजन आदि के अलावा आप विदेश यात्रा का कार्यक्रम बनाएंगे तो यकीनन आप को सस्ते पैकेज मिलेंगे.

पहले घूमें फिर भुगतान करें

कभीकभी ऐसा भी हो सकता है कि आप ने बच्चों से छुट्टियों पर निकलने का वादा किया हुआ है, लेकिन हौलिडे प्लानिंग करते समय आप को लगता है कि उस समय आप अपनी बचत या रूटीन खर्चों से उतना पैसा नहीं निकाल पाएंगे. तब जरूरी नहीं कि आप छुट्टियां मनाने की योजना को स्थगित कर पूरे परिवार को निराश करें.

इस का सब से अच्छा विकल्प आज ट्रैवल लोन है. जी हां, लोगों के बढ़ते पर्यटन शौक को देखते हुए आज अनेक बैंक अपने ग्राहकों को ट्रैवल लोन देते हैं. यानी आप अपना ट्रैवल प्लान फाइनैंस करा कर आज घूमें और भविष्य में भुगतान करें. सामान्यतया यह लोन 1 वर्ष से 3 वर्ष के दौरान चुकाना होता है. ट्रैवल लोन ले कर आप अपने देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी घूम सकते हैं.

सफर के साथी क्रैडिट व ट्रैवल कार्ड

सफर की प्लानिंग करते समय डैस्टिनेशन पर बहुत से खर्चों और शौपिंग आदि के लिए आप के पास पर्याप्त राशि होनी चाहिए. लेकिन आजकल ज्यादा नकदी साथ रखना भी उचित नहीं है. ऐसे में क्रैडिट व डेबिट कार्ड आप के लिए बहुत सहायक होते हैं.

विदेश यात्रा के दौरान फंड की समुचित व्यवस्था बनाए रखने के लिए फौरेन करेंसी ट्रैवल कार्ड रखना अच्छा विकल्प है. एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, ऐक्सिस बैंक आदि की बड़े शहरों की चुनिंदा शाखाओं में इस तरह के ट्रैवल कार्ड जारी किए जाते हैं.

ओवरसीज इंश्योरैंस

विदेश यात्रा की तैयारी में ओवरसीज इंश्योरैंस एक आवश्यक कदम होता है. इस के अंतर्गत कवर होने वाले जोखिम जानने के बाद आप भी समझ सकते हैं कि थोड़े से प्रीमियम का भुगतान कर हम कितने सारे अकस्मात हो सकने वाले खर्चों से अपनी सुरक्षा कर लेते हैं.

इस पौलिसी के अंतर्गत दुर्घटना या बीमारी के इलाज से जुड़े खर्चे मुख्य रूप से कवर होते हैं. इन के अतिरिक्त हवाईजहाज में ले जाने वाले सामान का खोना या मिलने में एकदो दिन का विलंब होने का खर्च, पासपोर्ट गुम होने पर किया जाने वाला खर्च, किसी चूक से होटल या शोरूम आदि में हुई क्षति की भरपाई या ऐसे ही किसी और आकस्मिक नुकसान की स्थिति में यह पौलिसी एक सुरक्षाकवच के समान काम आती है.

ओवरसीज इंश्योरैंस पौलिसी ज्यादा महंगी भी नहीं होती. यह पौलिसी 1 दिन से 180 दिन के बीच किसी भी अवधि की ली जा सकती है. इस का प्रीमियम पौलिसी की अवधि एवं यात्री की आयु पर निर्भर करता है.

यह पौलिसी सभी साधारण बीमा कंपनियों एवं प्राइवेट इंश्योरैंस कंपनियों द्वारा जारी की जाती है. इस के लिए आप को अपने पासपोर्ट की कौपी देनी होगी. कुछ कंपनियां इस के लिए यात्री की मैडिकल रिपोर्ट भी साथ मांगती हैं. यात्रा के दौरान पौलिसी के साथ उन संस्थानों के फोन नंबर एवं वैबसाइट पते अवश्य साथ रखने होंगे.

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Summer Special: लंच में परोसें छोलिया कढ़ी

लंच में अगर आप कोई रेसिपी तलाश रहे हैं तो छोलिया कढ़ी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

सामग्री

–  1 कप छोलिया

–  1 कप दही

–  1/4 कप बेसन

–  1 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटा

–  2 हरीमिर्चें बारीक कटी

–  थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

–  1 छोटा चम्मच मेथीदाना

–  चुटकीभर हींग

–  1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच जीरा

–  1 बड़ा चम्मच तेल

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

दही में बेसन, नमक व हलदी मिला कर फेंटें. आवश्यकतानुसार पानी मिला कर पतला सा घोल बना लें. प्रैशर कुकर में आधा तेल गरम कर के मेथीदाना, हींग व अदरक डालें. मेथीदाना लाल होने पर बेसन का घोल डालें. छोलिया व हरीमिर्च डाल कर मंदी आंच पर पकाएं. बीचबीच में चलाती रहें. जब छोलिया गल जाए और मिश्रण थोड़ा गाढ़ा होने लगे तब आंच से उतार लें. फ्राईपैन में बचा तेल गरम करें. जीरे व लालमिर्च का छोंक तैयार कर के कढ़ी पर डालें और धनियापत्ती बुरक कर सर्व करें.

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मोटापा: दोषी मां, बाप या आप

हमें अपने मांबाप से 30,000 से अधिक जीन्स वंशानुगत मिलते हैं, जो इस बात का निर्धारण करते हैं कि हमारे बालों, आंखों या त्वचा का रंग, यहां तक कि हमारा कद और शरीर कैसा होगा. लेकिन अब वैज्ञानिकों और मैडिकल साइंस ने इस बात की खोज कर ली है कि बौडी स्ट्रक्चर सिर्फ मांबाप से मिले जीन्स पर ही आधारित नहीं होता. आप के भीतर एफटीओ यानी फैट जीन्स भी होते हैं जो आप के वजन बढ़ने का कारण बनते हैं. इसलिए अब अपने मोटापे के लिए अपने मांबाप को दोषी मानना छोड़ दें. वैज्ञानिकों का मानना है कि मात्र 5% लोग फैट जीन्स को मोटापे का कारक बता सकते हैं.

अगर आप अपनी लाइफस्टाइल को बदलने की कोशिश करें यानी स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं तो यदि आप के खानदान में लोग मोटापे से ग्रसित हैं, तो भी आप स्वस्थ, फिटफाट और स्लिमट्रिम रह सकते हैं. जरूरी है इच्छाशक्ति कोशिश से सभी कुछ संभव है. नियमित व्यायाम व सुबह उठ कर खाली पेट पानी पीने से मोटापा बढ़ाने वाले जीन्स से लड़ा जा सकता है. बहुत से वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में पाया गया कि जो लोग नियमित जीवनशैली अपनाते हैं, कसरत करते हैं, जिम जाते हैं, उन में एफटीओ से लड़ने की अधिक क्षमता रहती है. लेकिन इस के लिए आप में विल पावर यानी इच्छाशक्ति होने के साथसाथ आप को अधिक देर तक कसरत करना जरूरी होता है.

मान लीजिए कि आप एक सामान्य व्यक्ति हैं और रोजाना 30 मिनट कसरत करते हैं, तो ऐसे में यदि आप का वजन अधिक है और आप को लगता है कि आप का मोटापा मांबाप की देन है, यह आप को विरासत में मिला है तो आप को 90 मिनट तक यानी 3 गुना अधिक समय तक कसरत करना होगा. ऐसा करने से आप फिट और स्लिमट्रिम रह सकते हैं. खानपान पर ध्यान दें यदि स्वस्थ रहना है और कसरत शुरू कर दी है तो खानपान पर भी ध्यान देना होगा. सब से पहले शुगर यानी चीनी को न कहना सीखें. इस का मतलब यह नहीं कि चाय फीकी पीनी है. उस के साथ में बरफी, पेस्ट्री वगैरह खाना छोड़ने से भी काफी हद तक शुगर से बचा जा सकता है.

यह मान लीजिए कि मोटापा आप के जीन्स की देन नहीं है. और भी कई कारण हैं जिन के जनक हम खुद हैं. जैसे पेट भर कर ही नहीं, प्लेट भरभर कर खूब कैलोरी वाला रेस्तरां का तलाभुना क्रीमयुक्त भोजन खाना, दिन में 4-6 कप चीनी मिली चाय, कौफी या सोडा पीना, हर काम के लिए कार का प्रयोग, घरों में पैदल रास्ते का गायब होना, टीवी अधिक देखना, खाना भी टीवी के आगे बैठ कर खाना, फास्ट फूड खूब खाना, नाश्ता न करना,

पानी पीने की आदत का छूटना, भोजन करते ही बिस्तर में पड़ जाना आदि. अब आप ही बताइए कि मांबाप भला दोषी कैसे हुए? मोटापे का दोषी कौन है? अच्छे खानपान से मतलब है संतुलित आहार, जिस में अंकुरित भोजन, मौसमी ताजा फल, दूध, दही, पनीर और मांसमछली शामिल है. घर के आसपास सुबहशाम खुले में सैर पर जाएं, कसरत करें और अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनें. मांबाप के सिर पर जीन्स का दोषारोपण करना छोड़ दें.

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