बेदाग सुंदरता के नए ट्रीटमैंट्स

ब्यूटी करैक्शन के लिए ऐसे बहुत सारे ट्रीटमैंट्स और सर्जरी आ गई हैं जो कुछ वक्त के लिए ही सही लेकिन बेदाग खूबसूरती देने के लिए कारगर हैं:

स्किन ग्लोइंग ऐंड मार्क्स रिमूवल ट्रीटमैंट

चेहरे की स्किन चमकदार और ग्लोइंग दिखे इस के लिए लड़कियां न जाने क्याक्या चेहरे पर लगाती रहती हैं, लेकिन अवलीन की माने तो घर से बाहर निकलते ही स्किन को धूप और प्रदूषण का सामना करना पड़ता है खासतौर पर सूर्य की अल्ट्रावायलट किरणों से स्किन पर जमा होने वाला मैलानिन स्किन की मासूमियत को छीन लेता है. लेकिन स्किन को नयापन देने और बच्चों की स्किन जैसी कोमलता देने के लिए अब निम्न ट्रीटमैंट्स उपलब्ध हैं:

सुपर फेशियल कैमिकल पील्स

गोरा होना हर लड़की का ख्वाब होता है. इस बाबत कौस्मैटोलौजिस्ट अवलीन खोकर कहती हैं कि भारतीय महिलाओं में बहुत कम प्रतिशत में स्किन का रंग पेल व्हाइट पाया जाता है. ज्यादातर का रंग डस्की या व्हीटिश होता है. लेकिन बौलीवुड अभिनेत्रियों के हैवी मेकअप को देख कर सभी लड़कियों पर गोरा होने का जनून सवार रहता है, जबकि बायोलौजिकल कलर को कभी भी नहीं बदला जा सकता, हां उसे 2 लैवल बेहतर जरूर बनाया जा सकता है. कैमिकल पील्स ऐसा ही एक ट्रीटमैंट है, जो स्किन में उम्र के 25 वर्षों में आई हारमोनल खराबी से स्किन पर पड़े फर्क को सुधार देता है.

दरअसल इस ट्रीटमैंट में एलका हाइड्रौक्सी ऐसिड्स द्वारा स्किन की ऊपरी लेयर को जल्दीजल्दी निकाला जाता है, जिस से नई स्किन आती है. इस से स्किन को अच्छा कौंप्लैक्शन भी मिलता है. लेकिन इस ट्रीटमेंट के बाद स्किन का बहुत अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. द स्किन सैंटर, दिल्ली में कंसलटैंट डर्मैटोलौजिस्ट एवं कौस्मैटोलौजिस्ट डाक्टर वरुण कत्याल कहते हैं कि ट्रीटमैंट के बाद स्किन बहुत पतली हो जाती है, इसलिए उसे सूर्य की रोशनी से तब तक बचा कर रखना चाहिए जब तक उस पर सुरक्षित स्किन की परत न चढ़ जाए.

यदि सुरक्षित स्किन के आने के इंतजार में खुद को 2-3 दिन के लिए एक कमरे में बंद भी करना पड़े तो कर लेना चाहिए क्योंकि जरा सी भी लापरवाही स्किन को संक्रमित कर सकती है. साथ ही ट्रीटमैंट के बाद ऐंटीबायोटिक, ऐंटीबैक्टीरियल एवं ऐंटीफंगल क्रीम लगानी चाहिए. ट्रीटमैंट के बाद जो नई स्किन आती है उस में बच्चों की स्किन जैसी कोमलता और चमक रहती है.

अवलीन आगे कहती हैं कि कैमिकल पील कराने के साइड इफैक्ट्स भी कभीकभी देखने को मिलते हैं, इसलिए शादी की तारीख से ठीक 6 माह पहले यह ट्रीटमैंट कराना चाहिए क्योंकि कभीकभी इस ट्रीटमैंट के बाद जलने के निशान और संक्रमण होने का खतरा रहता है.

– कैमिकल पील में स्किन की ऊपर की लेयर को ट्रीट किया जाता है. इसे ऐपिडर्मिस लेयर कहते हैं.

– ट्रीटमैंट के बाद लगभग 2 दिन तक स्किन में खिंचाव और जलन महसूस होती है, इसलिए सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए.

– इस ट्रीटमैंट के लिए 6 से 12 सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं और खर्चा लगभग ₹15 हजार से ₹30 हजार तक आता है.

लेजर फोटो फेशियल

यह थेरैपी फेशियल का एक नया स्वरूप है. इस ट्रीटमैंट में इंटेंस पलस्ड लेजर लाइट के द्वारा स्किन के उस हिस्से का ट्रीट किया जाता है जहां सन डैमेजेस, डिसकलरेशन, एज स्पौट या फिर इनलार्ज्ड पोर्स होते हैं. बकौल अवलीन आईपीएल लेजर के द्वारा इफैक्टेड एरिया पर विजिबल ब्रौडबैंड लाइट से स्पार्क मारते हैं. स्पार्क के स्किन पर स्पर्श के दौरान चींटी के काटने जैसा एहसास भी होता है, लेकिन यह पेनफुल नहीं है.

यह ट्रीटमेंट ज्यादातर लड़कियां अपने पिगमैंटेशन सैल्स को डिस्ट्रौय करने और दागधब्बों को मिटाने के लिए भी करवाती हैं. चूंकि इस में इफैक्टेड एरिया को बिजली का शौट दिया जाता है, इसलिए उस स्थान की स्किन पर जलन या खुजली की समस्या होने की संभावना रहती है. ट्रीटमैंट के बाद ट्रीट किए गए स्थान पर आइसिंग की जानी चाहिए और सनस्क्रीन लगाने के बाद ही बाहर निकलना चाहिए.

इस ट्रीटमैंट को शादी से 6 महीने पहले करवाएं. इस की एक सिटिंग के चार्जेस ₹3,500 से ₹5 हजार हैं.

माइक्रोडर्माब्रेशन

स्किन की मृत कोशिकाओं को हटाने के लिए यह बहुत ही सेफ  ट्रीटमैंट है. इस ट्रीटमैंट के बाद स्किन के रंग और टैक्स्चर दोनों में ही सुधार आता है. थेरैपी के बारे में डाक्टर वरुण का कहना है कि इस थेरैपी में मशीनों के माध्यम से स्किन की ग्राइंडिंग की जाती है. यह एक स्ट्रौंग ऐक्सफौलिएशन प्रोसैस है. इस थेरैपी द्वारा स्किन पर पड़े स्कार्स और कालेपन को दूर किया जा सकता है. इस के लिए मृतकोशिकाओं को हटाने के लिए ऐपिडर्मिक स्किन को पतला किया जाता है.

वैसे कभीकभी इस प्रोसैस में स्किन से खून भी आ जाता है. इस थेरैपी में मशीनों में ऐल्यूमिनियम और डायमंड पाउडर भरा जाता है और उसी से स्किन का ट्रीटमैंट किया जाता है. इस ट्रीटमैंट के लिए 6 से 8 सिटिंग्स की जरूरत पड़ती है. इस थेरैपी को कराने में लगभग ₹20 हजार से ₹25 हजार तक का खर्च आ जाता है.

फेशियल लाइंस, बोंस एनहैंसमैंट और डिंपल्स: हंसते वक्त चेहरा कैसा लग रहा है? कहीं अनवौंटेड लाइंस तो नहीं दिख रहीं? डिंपल पड़ रहे हैं या नहीं? शादी के पहले लड़कियां अचानक इन सब पर ध्यान देना शुरू कर देती हैं. इस की वजह भी खास होती है क्योंकि शादी में ब्राइड पर ही सब की नजरें टिकी होती हैं. कैमरामैन भी ज्यादा तसवीरें ब्राइड की ही लेता है. ऐसे में फेशियल लाइंस और अनबैलेंस्ड स्माइल दुलहन का चेहरा बिगाड़ सकती है. इस से बचने के लिए आजकल की ब्राइड्स में बोटोक्स, फिलर्स और डिंपल सर्जरी आम हो गई है. आइए, जानते हैं इन ट्रीटमैंट्स के बारे में:

बोटोक्स

कई महिलाओं के हंसते वक्त नाक की दोनों ओर से होंठों तक लकीरें बनने लगती हैं जिन्हें लाफिंग लाइंस कहते हैं. इसी तरह बातचीत करते वक्त कई लोगों की आंखों के कोनों पर क्रो लाइंस बन जाती हैं या फिर माथे पर ऐक्सप्रैशन लाइंस दिखने लगती हैं, जो बेहद भद्दी लगती हैं. इन्हें बोटोक्स ट्रीटमैंट के द्वारा मिटाया जा सकता है.

डाक्टर वरुण का इस ट्रीटमैंट के बारे में कहना है कि बोटोक्स बोट्यूलियन टौक्सिन टाइप ए का प्यूरिफाइड और डिल्यूटेड फौर्म है, जो चेहरे की मसल्स को रिलैक्स कर के फेशियल क्रीज को मिटाता है. इस ट्रीटमैंट में इंजैक्शन द्वारा बोटोक्स को इफैक्टेड एरिया में इंजैक्ट किया जाता है. इस का असर 4 से 6 महीने तक रहता है. लेकिन यदि यह गलत तरीके से इंजैक्ट किया जाए तो चेहरा इंबैलेंस हो जाता है, साथ ही इंजैक्ट किए गए एरिया में सूजन भी आ जाती है.

फिलर

आजकल सब को पाउटी लिप्स चाहिए. यह ट्रैंड सा बन चुका है खासतौर पर बौलीवुड ऐक्ट्रैसेज में यह ट्रैंड बहुत आम है. अब उन्हीं को देख कर ब्राइड बनने जा रही लड़कियों को भी अपने लिप्स पाउटी चाहिए. इस ट्रीटमैंट को करवाने में कोई जोखिम भी नहीं. पतले होंठों वाली लड़कियों के लिए यह ट्रीटमैंट किसी वरदान से कम नहीं. लेकिन अवलीन की माने तो फिलर ब्यूटी इंडस्ट्री में अब बहुत कौमन हो चुके हैं. लेकिन इस का असर इफैक्टेड एरिया में जबरदस्त दिखता है. इस लिए इस ट्रीटमैंट को तब ही करवाया जाए जब आप पूरी तरह से बदलाव के लिए तैयार हों. थेरैपी और इसे किसी अच्छे कौस्मैटोलौजिस्ट से ही करवाएं.

इस थेरैपी द्वारा अंडर आई बैग्स को कंट्रोल करने, लिप्स को शेप देने और चीकबोंस को उठाने के लिए फिलर लिपिड्स होते हैं जो पानी की कमी को पूरा करते हैं और बैठी हुई स्किन को उभारते हैं. इस थेरैपी पर ₹25 हजार से ₹30 हजार तक खर्चा आता है.

आर्टिफिशियल डिंपल सर्जरी

फोर्टिस अस्पताल की कौस्मैटिक सर्जन रश्मि तनेजा का कहना है, ‘‘आजकल बहुत सी लड़कियां डिंपल सर्जरी के लिए आती हैं.

लेकिन इस के लिए हमें उन के चेहरे की प्रौपर सर्जरी करनी पड़ती है. इस के लिए हम स्किन को काट कर मसल्स से जोड़ देते हैं. सर्जरी से हुए घाव को भरने में लगभग 3 हफ्ते लग जाते हैं. लेकिन यह जरूरी नहीं कि सर्जरी सक्सैसफुल हो. कई बार सर्जरी के बाद भी डिंपल नहीं बनता बल्कि ऐसा भी होता है कि हंसने पर या न हंसने भी सर्जरी की जगह क्रीज बन जाती है, जबकि प्राकृतिक तौर पर बनने वाले डिंपल स्किन पर क्रीज नहीं बनाते.

इस सर्जरी को शादी से 8 माह पूर्व करवाना चाहिए. इसे करवाने में लगभग ₹50 हजार से ₹60 हजार तक लग सकते हैं और इस का असर भी 6 महीने तक ही रहता है.

हेयर रिमूवल थेरैपी

इस बाबत अवलीन कहती हैं कि चेहरे पर बाल होना न होना हारमोंस पर निर्भर करता है. कई लड़कियों में लड़कों वाले हारमोंस का लैवल ज्यादा होता है. उस केस में चेहरे पर लड़कों की तरह बाल आ जाते हैं. अब इन बालों की शेव तो की नहीं जा सकती है, इसलिए कई लड़कियां थ्रैड से बाल हटवा लेती हैं. लेकिन इस से दोबारा निकलने वाले बाल कड़े जो जाते हैं और उन की संख्या भी बढ़ जाती है. उन्हें हटाने के लिए हेयर रिमूवल लेजर थेरैपी का सहयोग लिया जा सकता है. इस के लिए स्पार्क्स द्वारा बालों को जलाया जाता है.

इस थेरैपी में एनडीयोग लेजर, डायर्ड लेजर और आईपीएल लेजर का इस्तेमाल होता है. लेकिन एक बार इस थैरेपी को करवाने के बाद चेहरे पर ब्लीच नहीं किया जा सकता. थेरैपी का असर खत्म होने के बाद बालों की डैंसिटी और मोटाई दोनों ही कम हो जाती हैं. कभीकभी इस थेरैपी के रिएक्शन भी देखने को मिलते हैं. कई बार इस थेरैपी के बाद स्किन पर रैशेज, इरीटेशन हो जाती है. इस थेरैपी के लिए मल्टीपल स्टिंग (12-20) भी लेनी होती हैं. थेरैपी को कराने में खर्च ₹2 हजार से ₹2,500 तक आता है.

ये भी पढ़ें- जरूरी है हेयर औयल मसाज

आदित्य नारायण ने की वाइफ और बेटी संग फोटो शेयर, पढ़ें खबर

टीवी के पौपुलर होस्ट और सिंगर आदित्य नारायण ने बीते महीने अपनी न्यू बौर्न बेटी के साथ वक्त बिताने के लिए सोशलमीडिया से ब्रेक ले लिया था. वहीं हाल ही में उन्होंने एक बार फिर सोशलमीडिया पर वापसी की है. इसी के चलते उन्होंने अपनी बेटी और वाइफ संग फोटो शेयर की है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

फैमिली फोटो की शेयर

दो महीने आदित्य नारायण पहले बेटी के पिता बने थे, जिसके बाद उन्होंने बेटी संग फोटो शेयर की थी औऱ सोशलमीडिया से ब्रेक लिया था. इसी के साथ सोशलमीडिया पर वापसी पर उन्होंने एक फोटो शेयर की है, जिसमें आदित्य नारायण और श्वेता अग्रवाल अपनी बेटी के साथ पोज देते हुए नजर आ रहे हैं. कपल की इस फैमिली फोटो पर फैंस जमकर प्यार बरसा रहे हैं. वहीं सेलेब्स भी अपना रिएक्शन देते दिख रहे हैं.

बेटी का नाम किया शेयर

फैंस के साथ अपनी फैमिली फोटो शेयर करने के साथ-साथ सिंगर ने अपनी बेटी का नाम भी फैंस के साथ शेयर करते हुए लिखा, ‘दो महीने पहले हमारी छोटी सी खुशी की बंडल, त्विषा इस दुनिया में आई.’ बेटी का नाम जानते ही फैंस दोनों की तारीफ कर रहे हैं.

कोरोना में की थी शादी

आदित्य नारायण ने साल 2020 में अपनी लौंग टाइम गर्लफ्रेंड एक्ट्रेस श्वेता अग्रवाल से शादी की थी, जिसके बाद साल 2022 फरवरी में दोनों पेरेंट्स बने थे, जिसके बाद सिंगर ने फैंस के साथ बेटी की पहली फोटो शेयर की थी. वहीं प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो सिंगर औऱ एक्टर आदित्य नारायण एक बार फिर होस्टिंग करते हुए नजर आ रहे हैं. इसी के साथ उनका गाना मंगता है क्या गाना रिलीज हुआ है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं सोशलमीडिया पर गाना वायरल हो रहा है.

ये भी पढ़ें- टीवी के बाद ओटीटी पर भी हिट हुआ Anupamaa Namaste America, फैंस ने कही ये बात

टीवी के बाद OTT पर भी हिट हुआ Anupamaa Namaste America, फैंस ने कही ये बात

सीरियल अनुपमा (Anupama) जहां टीवी की टीआरपी में धमाल मचा रहा है तो वहीं ओटीटी की दुनिया में भी अपना कमाल दिखा रहा है. हाल ही में सीरियल ‘अनुपमा’ का प्रीक्वल ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) डिजनी हॉट स्टार पर रिलीज किया गया है, जिसका पहला एपिसोड फैंस का दिल जीत रहा है. आइए आपको दिखाते हैं पूरी खबर…

 प्रीक्वल का पहला एपिसोड हुआ हिट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Reality Shows (@reality.shows_359)

‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ में अनुपमा के 17 साल पहले की कहानी फैंस को काफी पसंद आ रही है. सीरियल के पहले एपिसोड में मोटी बा और अनुपमा की बौंडिंग जहां फैंस का दिल जीता है तो वहीं वनराज और बा की कैमेस्ट्री भी फैंस को पसंद आ रही है. दरअसल, अनुपमा के डांस के चलते उसे अमेरिका जाने का प्रपोजल मिलता है, जिसे सुनकर वह बेहद खुश होती है. हालांकि अब उसका ये सपना पूरा होता है कि नहीं ये कहानी देखने लायक है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Reality Shows (@reality.shows_359)

फैंस को पसंद आई कहानी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Reality Shows (@reality.shows_359)

‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ के पहले एपिसोड के औनएयर होते ही फैंस ने तारीफों की बौछार कर दी है. जहां एक फैन ने अनुपमा और मोटी बा की बौंडिग की तारीफ करते हुए लिखा, ‘रुपाली गांगुली के शो ने तो मेरा दिन ही बना दिया है. सरिता जोशी और रुपाली गांगुली ने तो धमाल मचा दिया है. मुझे इन दोनों का बॉन्ड काफी पसंद आया’.’ वहीं फैंस रुपाली गांगुली और सुधांशू पांडे की एक्टिंग की तारीफ करते नजर आ रहे हैं.

टीवी सीरियल भी फैंस को आ रहा पसंद

 

View this post on Instagram

 

A post shared by @new_anupama

सीरियल की बात करें तो इन दिनों अनुपमा-अनुज की खुशी देखकर फैंस बेहद खुश हैं. हालांकि बा और वनराज की जलन से सभी परेशान नजर आ रहे हैं. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में बा के बाद वनराज, अनुपमा को बद्दुआ देता हुआ नजर आने वाला है. हालांकि इस बार अनुपमा चुप ना रहते हुए उसे करारा जवाब देते हुए नजर आएगी. वहीं अपनी अनुपमा और अनुज अपनी सगाई की तैयारियां करते हुए एक दूसरे के करीब आएंगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by gaurav x rupali (@anuxanuj_lover)

ये भी पढ़ें- ननद की दूसरी शादी कराएगी Imlie, आर्यन को लगेगा झटका

बिजी हैं तो ईजी रहें

सरला सुबह उठते ही भागना शुरू कर देती हैं. वे सुबह 4 बजे उठ कर रात के 10 बजे तक घर के कामों में लगी रहती हैं. पर काम है कि खत्म ही नहीं होता है. वे जितनी मेहनत करती हैं उस हिसाब से उन का आउटपुट काफी कम रहती है.

सरला समझ नहीं पाती हैं कि इतनी मेहनत के बाद भी वे कभी पूरी तरह से संतुष्ट क्यों नहीं हो पाती हैं?

‘मैं बिजी हूं, मेरे पास टाइम नही है, ये शब्द सरला के मुंह पर सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक रहते हैं.

दूसरी तरफ कनिका सुबह उठ कर घर का काम करती हैं, फिर दफ्तर जा कर 8 घंटे काम में व्यस्त रहती हैं परंतु न कनिका कभी थकती हैं और न ही कभी स्ट्रैस्ड रहती हैं. कनिका सरला से अधिक काम करती हैं परंतु वे बिजी नहीं इजी रहती हैं. शायद यह वाक्य आप को कुछ अजीब लगे कि कोई बिजी रह कर ईजी या रिलैक्स कैसे रह सकता है? मगर यह एकदम सही है कि हम 24 घंटे काम कर के भी इजी रह सकते हैं.

आप के आसपास ऐसे बहुत से लोग होंगे जो रिटायरमैंट के बाद भी हर समय बिजी रहते हैं.

चाहे 6 साल का बच्चा हो या 60 साल का आदमी, हम शारीरिक से अधिक बिजी मानसिक होते हैं. यह मानसिक थकान ही हमें बिना किसी काम के शारीरिक रूप से भी थका देती है.

रूपा का सुबह सवेरे का एक ही रूटीन है. वे दिन की शुरुआत ही इस बात से करती हैं कि बहुत काम है, बहुत काम है.

रूपा इस बात को इतनी बार दोहराती हैं कि एक छोटा सा कार्य ही उन्हें भार जैसे लगता है. जो नाश्ता हम आराम से 30 मिनट में बना सकते हैं रूपा उसे बनाने में 60 मिनट लगाती हैं क्योंकि वे मन ही मन हर काम को भार की तरह लेती हैं, इसलिए छोटे से छोटा काम भी रूपा के लिए बहुत बड़ा बन जाता है.

हम अपने जीवन में बिजी रहेंगे या ईजी रहेंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि अपने जीवन को ले कर हमारा नजरिया कैसा है. हमारी उम्र, हमारी परिस्थिति से अधिक हमारी सोच हमारी मनोस्थिति को कंट्रोल करती है. और इसी मनोस्थिति से वशीभूत हो कर हम सारा दिन बिजी या ईजी रह सकते हैं.

आइए, सब से पहले रोशनी डालते हैं उन कारणों पर जिन से हम हमेशा बिजी रहते हैं:

ठीक से प्लानिंग न करना

यह प्रमुख कारण है जिस के कारण अधिकतर लोग हमेशा बिजी रहते हैं. सुबह उठते ही नाश्ता बनाने के बजाय कपड़ों की अलमारी खोल कर बैठ जाना. अपने कामों को हमेशा प्राथमिकता के हिसाब से करें तो आप हमेशा ईजी रहेगी. सब से पहले जरूरी काम पूरा करें और फिर दूसरे कार्य निबटाए. बहुत सारे लोगों की आदत होती है कि जब वे शौपिंग के लिए जाते हैं तो जो खरीदना होता है वे उस के बजाय दूसरी चीजके देखने लगते हैं. फिर जल्दबाजी में

शौपिंग करते हुए खुद को बिजी और स्ट्रैस्ड महसूस करते हैं.

हर काम को भार की तरह लेना

काम को काम की ही तरह लें. अगर आप इसे अपने दिल और दिमाग पर हावी करेंगे तो हर काम आप को भार की तरह लगेगा. हर काम को कर ने का एक तरीका होता है, कुछ काम को हम स्टैपवाइज करते हैं तो कुछ काम एक बार में ही हो जाते हैं. अगर आप ऐसा नही करती हैं तो हर काम भार जैसा ही लगेगा.

नकारात्मक शब्दावली का प्रयोग

शब्दों का हमारे ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है. जितनी बार दिन में बिजीबिजी शब्द का प्रयोग करेंगे आप उतनी ही उलझती चली जाएंगी. सोचसमझ कर बोलें और बिजी नहीं ईजी शब्द का प्रयोग करें.

ऐक्सैप्ट करें रिजिस्ट न करें

हम 24 घंटे तभी बिजी रहते हैं जब हम हर नए काम को देख कर रिजिस्ट करते हैं. कैसे करेंगे, कितना समय लगेंगे, हो भी पाएगा. न जाने ऐसी कितनी बातें सोचसोच कर हम काम को करे बिना भी बिजी रहते हैं. जैसे ही हम अपनी परिस्थिति को ऐक्सैप्ट करते हैं हम इजी रह कर भी काम कर सकते हैं.

सब को खुश रखने की कोशिश करना

अगर आप सब को खुश रखना चाहती हैं तो किसी के काम को न नही बोल पाएंगे. न बोलने की कला को सीखिए क्योंकि सब को आप कभी भी खुश नहीं कर पाएंगी. सब को खुश करने के चक्कर में आप अपनी बहुत सारी ऊर्जा को बेवजह ही बरबाद कर देती हैं.

अगर हमें अपनी जिंदगी खुशीखुशी गुजारनी है तो अपने जीवन में ये छोटेछोटे बदलाव कर सकते हैं.

हंसतेमुसकराते रहें: काम पसंद हो या नहीं हंसतेमुसकराते रहें. हंसने से, मुसकराने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है. काम का भार हर समय सिर पर सवार कर के मत चलिए. जो भी जिंदगी में आए उसे खुल कर स्वीकार करें. छोटीछोटी बातों पर मुंह बना कर रखने की जरूरत नही है. अगर आप मुसकराते रहेंगी तो समस्याओं का समाधान अपनेआप ही हो जाएगा. जिंदगी को हलकाफुलका रखिए.

अधिक न सोचें: जो लोग अधिक सोचते हैं वे हर समय विचारों के जाल में फंसे रहते हैं. रातदिन सोचने के कारण वे बिना किसी काम के भी बिजी रहते हैं. जब हमारा मन बिजी रहता है तो हम अपने कार्यों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाते हैं. इसलिए कम सोचें और सकारात्मक सोचें.

काम को विभाजित करें: हर काम को अगर छोटेछोटे टुकड़ों में बांट कर करेंगे तो काम बड़े आराम से हो जाएगा. ऐसा करने से आप बिजी होते हुए भी ईजी रह सकती हैं क्योंकि काम अगर स्टैप्स में करा जाएगा तो वह बड़े आराम से पूरा हो जाता है.

शिकायत नहीं शुक्रिया अदा करें: अगर आप बिजी हैं, आप के पास करने के लिए काम है तो शिकायत नहीं शुक्रिया अदा कीजिए. ऐसे बहुत से लोग होंगे जिन के पास काम नहीं होगा उन्हें अपने परिवार के पालन के लिए काम की आवश्यकता होगी परंतु उन के पास काम नहीं होगा. इसलिए अगर आप बिजी हैं तो ईजी रहें क्योंकि हर किसी के पास बिजी रहने के लिए भी काम नहीं होता है.

खुद को भी दें थोड़ी स्पेस: ईजी रहने के लिए खुद को भी थोड़ी स्पेस अवश्य दें. काम करें, खूब दिल लगा कर, मगर बीचबीच में थोड़ा ब्रेक अवश्य लें. ऐसा करने से आप की रचनात्मकता भी बनी रहेगी और आप रिलैक्स्ड भी रहेंगी. अपनेआप के साथ समय बिताएं जो काम पसंद हो उस के लिए कुछ समय अवश्य निकालें.

ये भी पढ़ें- Summer Special: कम खर्च में एडवेंचर ट्रिप के लिए जाएं ऋषिकेश

जब घर आएं माता पिता

मैं अपनी पड़ोसिन कविता को कुछ दिनों से बहुत व्यस्त देख रही थी. वह बाजार के भी खूब चक्कर लगा रही थी. हर दिन शाम की वाक हम साथ करती थीं पर अपनी व्यस्तता के कारण वह आजकल नहीं आ रही थी, तो पार्क में खेलती उस की बेटी काव्या को बुला कर मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘काव्या, बहुत दिनों से तुम्हारी मम्मी नहीं दिख रही हैं. सब ठीक तो है?’’

‘‘आंटी, दादादादी आने वाले हैं मेरे घर. मम्मी उन की आने की तैयारी में ही लगी हैं,’’ काव्या ने बताया.

पता नहीं क्यों ‘मेरे घर’ शब्द सुन देर तक हथौड़े से बजते रहे मेरे मन में. फिर दूसरे ही दिन कविता के पति कामेश को देखा. शायद वह अपने मातापिता को स्टेशन से ले कर आ रहा था. उस के बाद करीब 10 दिनों तक कविता बिलकुल नहीं दिखी. दफ्तर से भी उस ने छुट्टी ले रखी थी. शाम की वाक बंद थी ही उस की.

एक दिन मैं उस के सासससुर और उस से मिलने उस के घर जा पहुंची. सासससुर ड्राइंगरूम में बैठे थे. कविता अस्तव्यस्त सी रसोई और अन्य कमरों के बीच दौड़ लगा रही थी. मैं उस के सासससुर से बातें करने लगी.

भेदभाव क्यों

‘‘हमारे आने से कविता का काम बढ़ जाता है. मुझे बुरा लगता है,’’ उस के ससुर ने कहा.

‘‘सच, मुझेभी कोई काम करने नहीं देती, बिलकुल मेहमान बना कर रख दिया है,’’ उस की सासूमां ने कहा.

उन लोगों की बातचीत से लगा कि वे जल्दी चले जाएंगे ताकि कविता अपने दफ्तर जा सके. मैं लौटने लगी तो कविता मुझे गेट तक छोड़ने आई. तब मैं ने पूछा, ‘‘क्यों मेहमानों जैसा ट्रीट कर रही उन के साथ, जबकि वे दोनों अभी इतने भी बूढ़े या लाचार नहीं हैं?’’

‘‘नहीं बाबा, मुझे अपने सासससुर से कुछ भी नहीं कराना है. मेरी बहन ने अपनी सास को जब वे उस के साथ रहने आई थीं, कुछ करने को कह दिया था तो बात का बतंगड़ बन गया था. फिर मेरे पति की भी यही इच्छा रहती है कि मैं उन्हें हाथोंहाथ रखूं पर यह अलग बात है कि मैं अब इंतजार करने लगी हूं इन के लौटने का,’’ कविता ने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा.

मैं मजबूर हो गई कि क्यों बोझ बना दिया है कविता ने सासससुर की विजिट को. वे लोग अपने बेटे और बहू के साथ रहने आए हैं अपना घर समझते हुए, परंतु उन के साथ मेहमानों जैसा सुलूक किया जा रहा है. मुझे याद आया उस की बेटी काव्या का वह कथन ‘मेरे घर’ दादादादी आ रहे हैं, जबकि वास्तव में घर तो उन का ही है यानी सब का है.

एक अलग संरचना

वहीं तसवीर का एक और पहलू भी होता है, जब बहू सासससुर के आगमन को अपनी कलह और कटुता से रिश्तों में कड़वाहट भर लेती है. मेरी मौसी को जोड़ों में दर्द रहता था. रोजमर्रा के काम करने में भी उन्हें दिक्कत आने लगी तो वे मौसाजी के साथ अपने बेटे के पास चली गईं. मगर महीना पूरा होतेहोते वे वापस अपने घर का ताला खोलते दिख गईं. वहां बेटे के तीसरी मंजिल के घर की सीढि़यां चढ़नाउतरना और कष्टकर था. फिर वे उतना घरेलू कार्य करने में भी अक्षम थीं जितनी कि उन से वहां उम्मीद की जा रही थी.

विकसित देशों में वृद्धों के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ होता है ताकि वे अपने बच्चों के बगैर भी अच्छी जिंदगी जी सकें, पर विदेशों से उलट हमारे देश में मातापिता बच्चों की काफी बड़ी उम्र तक देखभाल करते हैं. मध्यवर्गीय पेरैंट्स के जीवन का मकसद ही होता है बच्चों को सैटल करना. वही बच्चे जब सैटल हो जाते हैं, उन का अपना घरसंसार बस जाता है तो मातापिता को बाहर वाला समझने लगते हैं.  बेटाबहू हो या बेटीदामाद क्या वे सहजता से मातापिता के आगमन को स्वीकार नहीं कर सकते? हो सकता है रहने का ढंग कुछ अलग हो पर क्या उन्हें अपनी दिनचर्या के हिसाब से इज्जत के साथ नहीं रखा जा सकता है? ये वही होते हैं, जो बिना बोले आप की जरूरतों को समझ लिया करते थे.

हमारे यहां सामाजिक ढांचा ही कुछ ऐसा होता है कि सब आपस में जुड़े ही रहते हैं. संयुक्त परिवारों की एक अलग संरचना होती है. यहां हम वैसे मातापिता का जिक्र कर रहे हैं, जो साल 6 महीनों में अपने बच्चों से मिलने जाते हैं. कुछ दिन या महीने 2 महीने के लिए. ऐसे में बच्चे इन बातों का ध्यान रख लें तो आपस में मिलनाजुलना, साथ रहना सुखद हो जाएगा:

– मिलतेजुलते रहना चाहिए वरना एकदूसरे के बिना जीने की आदत हो जाएगी. हमेशा मिलते रहने से दोनों ही एकदूसरे की आदतों से परिचित रहेंगे.

खुद भी सोचिए

– यह बात सही है कि वे अपने स्थान पर खुश हैं, फिर भी बच्चों का यह फर्ज बनता है कि वे मातापिता को जल्दीजल्दी बुलाएं, कम से कम जब तक वे स्वस्थ हैं. 3-4 साल में 1 बार बुलाने की जगह 3-4 महीनों में बुलाते रहें, भले ही कम दिनों के लिए ही सही, क्योंकि निरंतर मेलजोल से प्यार बना रहता है. फिर 5-6 दिनों के आगमन हेतु उन्हें कोई विशेष तैयारी भी नहीं करनी पड़ेगी.

– वे ‘आप के घर’ नहीं वरन ‘अपने घर’ आते हैं. इस सोच का आभास उन्हें भी कराएं और अपने बच्चों को भी. घर के छोटे या बड़े होने से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना दिलों के संकुचन से पड़ता है. अकसर सुना जाता है पोतेपोती/नातीनातिन कहेंगे दादाजी मेरे कमरे में सोते हैं. कितनी बार देर रात तक बत्ती जलाए रखने पर दादी द्वारा टोकने पर पोती कह देगी उफ, तुम कब जाओगी दादी? सोचिए कि आप के मातापिता के दिल पर क्या गुजरेगी जब आप के बच्चे ऐसा बोलेंगे. यह आप ही की गलती है, जो आप ने अपने बच्चों के मन में ऐसे विचार डाले हैं कि दादादादी/नानानानी बाहर वाले हैं और घर सिर्फ आप और आप के बच्चों का है. सोच कर देखिए कल को इसी तरह आप भी अपने बच्चों के जीवन में हाशिए पर होंगे.

खयाल रखें

यदि आप सुनते हैं कि बच्चों ने ऐसा कहा है तो तुरंत मातापिता के समक्ष ही उन्हें सही बात समझाएं कि आप अपने मातापिता के घर में नहीं दादादादी के घर में रह रहे हैं.

उन के आने पर अपने रूटीन को न बदलें, बल्कि उन्हें भी अपने रूटीन के हिसाब से सैट कर लें अन्यथा उन का आना और रहना जल्दी बोझ महसूस होने लगेगा.

आप जो खाते हैं जैसा खाते हैं वही उन्हें भी खिलाएं. हां, यदि स्वास्थ्य की समस्या हो तो आप को उसी हिसाब से कुछ बदलाव करना चाहिए. नई पीढ़ी का खानपान अपनी पुरानी पीढ़ी से बिलकुल बदल चुका है. रोटीसब्जी, दालचावल खाने वाले मातापिता कभीकभी ही बर्गरपिज्जा खा सकेंगे. अत: उन के स्वाद और स्वास्थ्य के अनुसार भोजन का प्रबंध अवश्य करें. यह आप का फर्ज भी है. तय करें कि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्त्व मिल रहे हों.

यदि वे स्वेच्छा से कुछ करना चाहें तो अवश्य करने दें. जितनी उन की सेहत आज्ञा दे उन्हें गृहस्थी में शामिल करें. इस से उन का मन भी लगेगा, व्यस्त भी महसूस करेंगे और भागीदारी की खुशी भी महसूस करेंगे.

समझदारी से काम लें

न अति चुप भली न ही अति बोलना. जब मातापिता साथ हों तो उन के लिए कुछ समय अवश्य रखें, क्योंकि वे उसी के लिए आप के पास आए हैं. साथ टहलने जाएं या छुट्टी वाले दिन साथ कहीं घूमने जाएं. कुछ अपनी रोजमर्रा की बातें शेयर करें तो कुछ उन की सुनें.

उन की बदलती आदतों को गौर से देखें. कहीं किसी बीमारी के लक्षण तो नहीं. जरूरत हो तो डाक्टर को दिखाएं. याद करें कि कैसे मां आप के चेहरे को देख आप की तकलीफों को भांप लेती थी.

यदि मिलना जल्दीजल्दी होता रहेगा तो आप समय पूर्व ही उन की बीमारियों को भांप लेंगे और इस से पहले कि उन की तकलीफें ज्यादा बढ़ें आप वक्त पर उन का इलाज करा सकेंगे.

अपने बच्चों को उन के नानानानी/दादादादी से जुड़ने दें. यह बहुत जरूरी है कि बच्चे बूढ़े होते ग्रैंड पेरैंट्स को जानें. वे उन के प्रति संवेदनशील बनें. यह बात उन्हें एक बेहतर इनसान बनने में मदद करेगी. कल आप के बुढ़ापे को भी आप के बच्चे सहजता से ग्रहण कर लेंगे.

जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरैंट्स से जुड़े रहते हैं वे अधिक समझदार व परिपक्व होते हैं. उन बच्चों की तुलना में जो इन से महरूम होते हैं. अकसर एकल परिवारों के बच्चे बेहद स्वार्र्थी और आत्मलीन प्रवृत्ति के हो जाते हैं.

कुछ बातों को नजरअंदाज करें. जब 2 बरतन साथ होंगे तो उन का टकराव स्वाभाविक है. छोटी बातों को छोटी समझ दफन कर देना ही समझदारी है.

सुमेधा के पति उस के पापा को बिलकुल पसंद नहीं करते थे, परंतु इस के बावजूद सुमेधा ने पापा को बुलाना नहीं छोड़ा. न चाहते हुए भी मिलतेजुलते रहने से दोनों धीरेधीरे एकदूसरे को समझने लगे. सुमेधा को एक बार 3 महीनों के लिए विदेश जाना पड़ा. उस के पीछे उस के पति की टांग में फ्रैक्चर हो गया. तब उस के ससुर ने  ही आ कर उसे संभाला.

दूरियां मिटाएं

सासबहू के रिश्ते को सब से ज्यादा बदनाम किया जाता है जबकि सचाई यह है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति को प्यार करती हैं और इस तरह यह वर्चस्व की लड़ाई बन जाती है. बेटे की समझदारी और सूझबूझ से आए दिन की टकराहट को टाला जा सकता है. पर इस के चलते मिलनाजुलना बंद कर देना रिश्तों का कत्ल है. साथ रहने से, मिलतेजुलते रहने से धीरेधीरे एकदूजे को समझने में मदद मिलेगी. मिलते रहने से ही समस्या सुलझेगी, दूरियों के मिटने से ही अंतरंगता बढ़ेगी.

मातापिता वे इनसान हैं जिन्होंने आप को पालपोस कर बड़ा किया. जब वे आप की परवरिश कर सकते हैं तो खुद की भी कर सकते हैं. अभी जब वे स्वस्थ हैं, अकेले रहने में सक्षम हैं तो आप का यह फर्ज है कि आप हमेशा मिलतेजुलते रहने का मौका तलाश करते रहें. उन्हें हमेशा अपने पास बुलाएं और इज्जत और स्नेह दें. कल को जब वे आशक्त हों, आप के साथ रहने को मजबूर हो जाएं तो उन्हें तालमेल बैठाने में कोई दिक्कत न हो. स्नेहपूर्वक बिताए हुए ये छोटेछोटे पल तब उन की जड़ों के लिए खादपानी का काम करेंगे.

रिश्ते कठपुलियों की तरह होते हैं, जिन की डोर हमारी आपसी सोच, समझदारी, सामंजस्य और सहजता में होती है. भारतीय सामाजिक संरचना भी कुछ ऐसी ही है कि दूर रहें या पास सब रहते एकदूसरे के दिल और दिमाग में ही हैं हमेशा.

ये भी पढ़ें- अकेले हैं तो क्या गम है

REVIEW: जानें कैसी है फिल्म Operation Romeo

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः शीतल भाटिया व नीरज पांडे

निर्देशकः शशांत शाह

कलाकारःवेदिका पिंटो, भूमिका चावला, सिद्धांत गुप्ता, शरद केलकर,  किशोर कदम

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

मलयालम फिल्मकार अनुराज मनोहर ने अपने निजी जीवन के अनुभवों पर फिल्म ‘‘इश्कः नॉट ए लव स्टोरी’’ का निर्माण किया था. जिसने 2019 में सफलता दर्ज करायी थी. उसी का हिंदी रीमेक लेकर निर्देशक शशांत शाह आ रहे हैं.  इस फिल्म का निर्माण नीरज पांडे ने किया है, जो कि ‘ए वेडनेस्डे’, ‘स्पेशल 26’, ‘बेबी’, ‘एम एस धोनीःअनटोल्ड स्टोरी’ व अय्यारी जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. वह ‘रूस्तम’,  ‘नाम शबाना’ व ‘मिसिंग’जैसी फिल्मों का निर्माण भी कर चुके हैं. 2018 में नीरज पांडे ने ‘आदर्श सोसायटी घोटाले’पर आधारित फिल्म ‘अय्यारी’ का निर्देशन किया था, जिसे बाक्स आफिस पर सफलता नही मिली थी और उनके नाम पर ऐसा धब्बा लगा कि उसके बाद से आज तक वह फिल्म निर्देशन से दूरी बनाए हुए हैं. इसी वजह से ‘आपरेशन रोमियो’ के निर्देशन की जिम्मेदारी शशांत शाह को सौपी. मगर अफसोस समय की मांग के अनुरूप ‘मौरल पौलीसिंग’’पर आधारित फिल्म ‘‘आपरेशन रोमियो’’ निराश करती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में आई टी कंपनी में कार्यरत आदित्य उर्फ आदी (सिद्धांत गुप्ता ) व उनकी प्रेमिका नेहा (वेदिका पिंटो )  है. नेहा जयपुर के एक अति रूढ़िवादी परिवार की लड़की है, जो कि मंुबई में होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही है. उसका जन्मदिन आ गया है. आदित्य , नेहा के जन्मदिन को मनाने के लिए नेहा के साथ अपनी कार में डेट पर निकलता है. वह दोनों दक्षिण मुंबई शहर पहुंच जाते हैं. आदित्य की कामेच्छा बढ़ जाती है और वह आधी रात को सुनसान सड़क पर कार के अंदर एक दूसरे को ‘किस’ करने का फैसला करते हैं. तभी खुद को पुलिस इंस्पेक्टर बताने वाला कए गबरू इंसान मंगेश जाधव (शरद केलकर) उन्हे पकड़ लेता है. मंगेश का सहयोगी हवलदार (किशोर कदम) भी आ जाता है. मंगेश व उनका साथ इस प्रेमी युगल को ब्लैकमेल करना शुरू करता है. जिससे एक ट्रौमा की शुरूआत होती है. पर जब  आदी, मगेश व उसके साथी से छुटकारा पाता है, तब नेहा का तंज आदी बर्दाश्त नहीं कर पाता. उसके बाद आदित्य पूरे मामले की थाह लेने निकलता है, तो एक अलग सच सामने आता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की कमजोर कड़ी  रतीश रवि और अरशद सय्यद लिखित पटकथा है. लेखकद्वय ने मौरल पौलीसिंग नैतिक पुलिसिंग के विषय को रोमांच का रूप देने के प्रयास में पूरी फिल्म को ही भ्रमित बना डाला. निर्देशक भी इस विषय को संजीदगी से नहीं ले पाए. फिल्म की कहानी की पृष् ठभूमि मंुबई रखकर लेखक व निर्देशक ने गलत नींव रख दी. क्योकि फिल्म में प्रेमी युगल के साथ जो कुछ घटता है, उसकी कल्पना लोग कर ही नही सकते.  परिणामतः फिल्म देखने के बाद दर्शक निराश होने के साथ ही अपना माथा पीट लेता है. फिल्म में बार बार याद दिलाया जाता है कि पुरूष मानसिकता मंे बदलाव आया या नही और हम महिलाओें लड़कियों के लिए कितना सुरक्षित समाज का निर्माण कर पाए हैं. फिल्म के शुरूआत के 15 मिनट तो इसी पर हैं. उसके बाद लेखक व निर्देशक कहानी को रोमांचक रूप देते हुए दर्शक को शिक्षा देने के प्रयास में जुट जाते हैं, जिसमें वह बुरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म के क्लामेक्स में अजीबोगरीब तरीके से ‘नारीसशक्तिकरण’ की बात की गयी है. जो कि फिल्म की मूल कॉसेप्ट से अलहदा है. इससे दर्शक भ्रमित व ठगा हुआ महसूस करता है कि उसने जिस कहानी के लिए अपना समय व पैसा बर्बाद किया, वह तो यह है ही नही. क्लायमेक्स बहुत ही घटिया व गड़बड़ है. इंटरवल से पहले फिल्म को बेवजह खींचा गया है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जा सकता था. इंटरवल के बाद कुछ रोमांचक दृश्य हैं.

शशांत शाह का निर्देशन काफी औसत व भ्रमित करने वाला है. कागज पर कहानी ऐसी लगती है कि वह नैतिक पुलिसिंग को एक ऐसे व्यक्ति की नजर से देखना चाहती है, जो खुद एक नैतिक पुलिस है,  लेकिन एक दुःखद स्थिति में फंस गया है. पर परदे पर वह उस बच्चे की तरह नजर आता है, जिसे समझ में नही आता कि कब गुस्सा आना चाहिए. कुल मिलाकर यह फिल्म एक थका देने वाले अनुभव के अतिरिक्त कुछ नही है.

अभिनयः

आदित्य उर्फ आदी के किरदार में सिद्धांत गुप्ता अपने शिल्प को लेकर पूरी तरह से इमानदार नजर आते हैं. उनके अंदर अभिनय की काफी संभावनाएं हैं, बशर्ते उन्हे अच्छी पटकथा व बेहतरीन निर्देशक मिल जाएं. सिद्धांत ने फिल्म के कई दृश्यों में बेबसी व कश्मकश को बेहतर तरीके से उकेरा है.

मंगेश जाधव के किरदार में शरद केलकर ने एक बार फिर साबित कर दिखाया कि उन्हे पटकथा की मदद मिले या न मिले, वह अपने काम को सही ढंग से अंजाम देने में सक्षम हैं.

किशोर कदम का अभिनय ठीक ठाक है.

नेहा के किरदार में वेदिका पिंटो ने अपने चेहरे और आंखों के हाव भाव से काफी कुछ कहने का प्रयास किया है. मगर लेखक ने उनके किरदार को सही ढंग से विकसित नही किया है. वैसे वेदिका को अपने अभिनय को निखारने के लिए काफी मेहनत करने की जरुरत है. महाराष्ट्यिन पत्नी के छोटे से किरदार में भूमिका चावला अपनी छाप छोड़ जाती हैं. अफसोस भूमिका चावला के किरदार को भी ठीक से विकसित करने में लेखक व निर्देशक विफल रहे हैं.

शादी की खबरों के बीच Kiara-Sidharth का हुआ ब्रेकअप!

बॉलीवुड के कपल्स जहां शादी के बंधन में बंधने का फैसला ले रहे हैं तो वहीं इसी बीच पौपुलर रुमर्ड कपल एक्टर सिद्धार्थ मल्होत्रा और एक्ट्रेस कियारा आडवाणी के ब्रेकअप  (Kiara Advani- Sidharth Malhotra Breakup) ने फैंस को हैरान कर दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

 इस कपल का हुआ ब्रेकअप

 

View this post on Instagram

 

A post shared by KIARA (@kiaraaliaadvani)

फिल्म ‘शेरशाह’ में साथ नजर आने वाली जोड़ी सिद्धार्थ-कियारा की जोड़ी को फैंस बेहद पसंद करते हैं. वहीं बीते दिनों खबरें थीं कि दोनों जल्द शादी करने वाले हैं. इसी बीच ब्रेकअप की खबरों ने फैंस को हैरान कर दिया है. दरअसल, खबरों की मानें तो एक इंटरव्यू में सिद्धार्थ और कियारा से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि ‘सिद्दार्थ और कियारा ने अपने-अपने रास्ते अलग कर लिए हैं. यहां तक कि कपल ने एक-दूसरे से मिलना तक बंद कर दिया है. हालांकि दोनों के अलग होने का कारण अभी तक सामने नहीं आया है. बौलीवुड की इस जोड़ी के ब्रेकअप ने फैंस का दिल तोड़ दिया है.”

 

View this post on Instagram

 

A post shared by KIARA (@kiaraaliaadvani)

शादी करने वाला था ये कपल

 

View this post on Instagram

 

A post shared by KIARA (@kiaraaliaadvani)

सूत्रों की मानें तो कहा जा रहा है कि सिद्धार्थ और कियारा की बॉन्डिंग इतनी अच्छी थी कि लोगों को दोनों की शादी के बारे में बात करने लगे थे. लेकिन अचानक ऐसे रिश्ते के टूटने से फैंस हैरान रह गए हैं. वहीं ब्रेकअप की खबरों के बीच एक्ट्रेस कियारा आडवाणी ने अपनी अपकमिंग फिल्म भूल भुलइया 2 का पोस्टर फैंस के साथ शेयर किया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by KIARA (@kiaraaliaadvani)

बता दें, इस सेलेब्रिटी कपल की कैमेस्ट्री फिल्म शेरशाह (Shershah) में फैंस को बेहद पसंद आई थी. वहीं फिल्म के बाद से ही सिद्धार्थ मल्होत्रा (Sidharth Malhotra) और कियारा आडवाणी (Kiara Advani) के डेटिंग की खबरें छा गई थीं. दोनों की इस खूबसूरत कैमेस्ट्री को देखकर कहा जा रहा था कि कटरीना कैफ और आलिया भट्ट के एक्ट्रेस कियारा आडवाणी शादी के बंधन में बंधने वाली हैं.

ये भी पढ़ें- ननद की दूसरी शादी कराएगी Imlie, आर्यन को लगेगा झटका

ननद की दूसरी शादी कराएगी Imlie, आर्यन को लगेगा झटका

सीरियल इमली (Imlie) में आदित्य के जाने के बाद आर्यन और इमली की लाइफ पर फोकस किया जा रहा है, जिसके चलते मेकर्स दोनों के बीच रोमांस दिखाते नजर आ रहे हैं. इसी बीच सीरियल में आर्यन और इमली के बीच एक बार फिर बहस देखने को मिलने वाली है, जिसका कारण अर्पिता होगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

नीला लाई अर्पिता के लिए रिश्ता

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Priyanka (@arylie_priya)

अब तक आपने देखा कि नीला, अर्पिता से फेस पर हल्दी लगाने के लिए कहती है और बताती है कि उसके लिए शादी का रिश्ता आया है और उसे देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं. वहीं आर्यन भी अर्पिता की दूसरी शादी के लिए मान जाता है. दूसरी तरफ, इमली, आर्यन को सुंदर के बारे में बताने की कोशिश करती है. लेकिन अर्पिता उसे रोक देती है.

सुंदर के बारे में जानेगा आर्यन

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि नीला, इमली से कहेगी कि अब वह घर में केवल अपना हुकुम चलाएगी. लेकिन इमली उससे कहेगी कि यह केवल समय बताएगा. दूसरी तरफ, अर्पिता, इमली से पूछेगी कि वह आर्यन को सुंदर के बारे जो भी कहना चाहती है वह संभव नहीं है, लेकिन इमली का कहेगी कि सुंदर उससे बहुत प्यार करता है. वहीं अर्पिता कहेगी कि इमली और आर्यन भी अब तक एक-दूसरे के सामने अपनी भावनाओं को कबूल नहीं कर सके, फिर वह उससे यह उम्मीद क्यों कर रही है. इसी बीच आर्यन दोनों की बातें सुन लेगा और कहेगा कि वह अर्पिता के लाइफ पार्टनर के लिए सुंदर के बारे में कैसे सोच सकती है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Priyanka (@arylie_priya)

नीला डालेगी आर्यन-इमली के बीच दरार

आर्यन की बात सुनते ही इमली नाराज हो जाएगी और कहेगी कि सुंदर का काम प्रौब्लम है तो उसे अपनी बीवी से भी दिक्कत होनी चाहिए. हालांकि आर्यन कहेगा कि ऐसा नहीं है, लेकिन अगर वह अर्पिता के लिए एक सुरक्षित भविष्य चाहते हैं और अगर वह ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जो अर्पिता के लिए सब कुछ वहन कर सके तो वह गलत नहीं है. दूसरी तरफ, नीला एक बार फिर इमली और आर्यन के बीच लड़ाई करवाने के लिए मेहमानों के लिए डाइनिंग टेबल पर पत्तों से बनी सस्ती प्लेटें रख देगी, जिसे देखते ही आर्यन गुस्से में नजर आएगा. वहीं इमली को जबरन घर से पकड़कर ले जाएगा और कहेगा कि वह अपनी बहन की लाइफ के साथ खिलवाड़ नहीं होने देगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Priyanka (@arylie_priya)

ये भी पढ़ें- जलपरी बनीं Urfi Javed, ट्रोलर्स ने दिया ‘भिखारी’ का टैग

अकेले हैं तो क्या गम है

महिलाएं अब शादी करने की सामाजिक बाध्यता से आजाद हो रही हैं. वे अपनी जिंदगी की कहानी अपने हिसाब से लिखना चाहती हैं और ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है. पहले दहेज के कारण ही शादी न होना एक बड़ा कारण होता था.

2015 में डी पाउलो ने औनलाइन ऐसे लोगों को अपने अनुभव शेयर करने को आमंत्रित किया जो अपनी इच्छा से सिंगल थे और इस स्टेटस से खुश थे. ‘कम्युनिटी औफ सिंगल पीपुल’ नाम के इस गु्रप में 5 महीनों के अंदर अलगअलग देशों से 600 से ज्यादा लोग शामिल हो गए और मई 2016 तक यानी 1 साल बाद यह संख्या बढ़ कर 1170 तक पहुंच गई.

इस औनलाइन ग्रुप में सिंगल लाइफ से जुड़े हर तरह के मसले व अच्छे अनुभवों पर चर्चा की जाती है न कि किसी संभावित हमसफर को आकर्षित करने के तरीके बताए जाते हैं.

बदलती सोच

पिछले दशक से जनगणना करने वाले अमेरिकी ‘यू. एस. सैंसस ब्यूरो’ द्वारा सितंबर के तीसरे सप्ताह को अनमैरिड और सिंगल अमेरिकन वीक के रूप में मनाया जा रहा है. पिछले 10 सालों से स्थिति यह है कि तलाकशुदों, अविवाहितों या विधवा/विधुरों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है.

दरअसल, अब विवाह को खुशियों की गोली नहीं माना जाता. जरूरी नहीं कि हर शख्स विवाह कर परिवार के दायरे में स्वयं को सीमित करे. पुरुष हो या स्त्री, सभी को अपनी मंजिल तय करने का हक है. इस दिशा में कुछ हद तक सामाजिक सोच भी बदल रही है.

लोग मानने लगे हैं कि सिंगल एक स्टेटस नहीं वरन एक शब्द है, जो यह बताता है कि यह शख्स मजबूत और दृढ़ संकल्प वाला है और किसी पर निर्भर हुए बगैर अपनी जिंदगी जी सकता है.

सामाजिक दबाव

ऐसा नहीं है कि हर जगह सिंगल्स की भावनाओं को समझा जाता है. ‘यूनिवर्सिटी औफ मिसौरी’ के शोधकर्ताओं के नए अध्ययन के मुताबिक भले ही मिड 30 की सिंगल महिलाओं की संख्या बढ़ी हो, मगर सामाजिक अकेलेपन से जुड़ा खौफ कम नहीं हुआ है. अविवाहित महिलाओं पर सामाजिक परंपरा को निभाने का सामाजिक दबाव कायम है.

टैक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा मध्यवर्ग की 32 अविवाहित महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया. इन महिलाओं ने स्वीकार किया कि विवाह या दूसरे इस तरह के मौकों पर उन के सिंगल स्टेटस को ले कर बेवजह भेदते हुए से सवाल पूछे जाते हैं, तो वहीं बहुत से लोग यह कल्पना भी करने लगते हैं कि जरूर वह झूठ बोल रही है और उस की शादी हो चुकी होगी. पति से नहीं बनती होगी या वह तलाकशुदा होगी. कई लोग मुंह पर यह कह भी देते हैं कि शादी नहीं हुई तो जीवन बेकार है.

हाल के एक शोध के मुताबिक अविवाहित महिलाओं को दुख इस बात का नहीं होता कि वे सिंगल हैं बल्कि तकलीफ  यह रहती है कि समाज उन के सिंगल स्टेटस को स्वीकार नहीं करता और उन पर लगातार किसी से भी शादी कर लेने का दबाव बनाया जाता है.

‘ब्रिटिश सोशियोलौजिकल ऐसोसिएशन कौंन्फ्रैंस’ में किए गए एक अध्ययन में पूरे विश्व से 22,000 विवाहित और अविवाहित लोगों के प्रसन्नता के स्तर को मापा गया और पाया गया कि वैसे देश जहां विवाह से जुड़ी पारंपरिक सोच अधिक मजबूत है वहां अविवाहितों में अधिक अप्रसन्नता पाई गई क्योंकि वहां शादी न करने वाली महिलाओं को दया वाली या नीच निगाहों से देखा जाता है.

पाया गया है कि 35 साल से ऊपर की सिंगल महिलाएं फिर भी अपनी स्थिति से संतुष्ट रहती हैं, जबकि यंग वूमन खासकर 25 से 35 साल की जमाने से सब से ज्यादा खौफजदा होती हैं क्योंकि उन से सब से ज्यादा सवाल पूछे जाते हैं. 25 साल से पहले इस संदर्भ में ज्यादा चर्चा नहीं होती.

कुछ तो लोग कहेंगे

सिंगल महिलाओं के लिए जरूरी है कि मुफ्त की सलाह देने वालों की बातों से दिलोदिमाग पर दबाव न बनने दें. आप जरा अपनी निगाहें घुमा कर देखिए, जो शादीशुदा हैं, क्या उन्हें हर खुशी मिल रही है? क्या उन की जिंदगी में नई परेशानियों ने धावा नहीं बोल दिया? कोई भी काम करने से पहले घर वालों को सूचित करना, पैसों के लिए दूसरों का मुंह देखना, एकएक पैसे का हिसाब देना, अपने वजूद को भूल कर हर तरह के कंप्रोमाइज के लिए तैयार रहना, घर संभालना ये सब आसान नहीं होता. बहुत से तालमेल बैठाने पड़ते हैं, जिन से जुड़े तनाव से सिंगल वूमन आजाद रहती है.

जो महिलाएं आप पर शादी करने का दबाव डाल रही हैं, वे दरअसल आप की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और झंझटों से मुक्त जिंदगी से जलती हैं.

आप अपने दिल की सुनिए. यदि आप किसी ऐसे शख्स का इंतजार कर रही हैं, जो आप की सोच और नजरिए वाला हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं. बस शादी करनी जरूरी है, इसलिए किसी से भी कर लो, भले ही वह आप के योग्य नहीं, इस बात का कोई औचित्य नहीं.

कुछ कर के दिखाना है

बहुत सी लड़कियों/महिलाओं के दिलों में कुछ करने का जज्बा होता है, मगर शादी के बाद आमतौर पर वे ऐसा कर पाने में स्वयं को असमर्थ पाती हैं. एक तरफ  घरपरिवार की जिम्मेदारियां, तो दूसरी तरफ बच्चे. ऐसे में वे चाह कर भी अपने सपनों को जी नहीं पातीं. जिन लड़कियों की प्राथमिकता अपना पैशन होता है, शादी नहीं वे सहजता से शादी न करने का फैसला ले पाती हैं या फिर शादी करती भी हैं तो अपने ही जैसे पैशन या हौबी रखने वाले से.

गलत से बेहतर है न हो जीवनसाथी

पेशे से पत्रकार 32 वर्षीय अनिंदिता कहती हैं, ‘‘गलत व्यक्ति के साथ आप जुड़ जाती हैं तो आप को धोखा मिलता है या फिर आप का जीवनसाथी गालीगलौज और मारपीट करता है तो क्या इस कदर अपने सम्मान को दांव पर लगा कर भी विवाह बंधन में बंधना जरूरी है?’’

सिंगल्स होते हैं ज्यादा जिम्मेदार

अकसर माना जाता है कि सिंगल व्यक्ति सैल्फ सैंटर्ड होता है, पर ऐसा नहीं है. सिंगल अपनी जिंदगी की स्क्रिप्ट स्वयं लिखता है. जब व्यक्ति शादी करता है तो उस का फोकस अपने परिवार और बच्चों तक सिमट कर रह जाता है. मगर सिंगल व्यक्ति दिल से मांबाप, दोस्तों, रिश्तेदारों व सभी करीबी व्यक्तियों के करीब होता है. सही अर्थों में वह स्वार्थरहित और सभी के लिए स्नेहपूर्ण व्यवहार कर पाता है.

शोधों के मुताबिक  हम सभी के पास खुशी की एक बेसलाइन होती है और शादी साधारणगत इसे बदलती नहीं, उस अल्पकालीन खुशी के सिवा.

ऐक्सपर्ट्स के विचार

विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में शादी या जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के बारे में सामाजिक अपेक्षाएं बनी रहती हैं और इन अपेक्षाओं को पूरा न करने पर चुनौतीपूर्ण एहसास का सामना करना पड़ता है. हालांकि यह ध्यान देना आवश्यक है कि हम में से प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को स्वयं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार होता है. हालांकि इस तरह के दबाव से निबटना दुखदाई हो सकता है.

यदि इस से आप को असहज लगता है तो इस बारे में अपनी राय जोर दे कर रखनी होगी. याद रखें कि किसी भी प्रकार का दबाव मन पर न डालें क्योंकि शादी अपने व्यक्तिगत जीवन का विकल्प है और आप को इस के लिए निर्णय लेने से पहले मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है.

समीर पारीख, मनोचिकित्सक 

ये भी पढ़ें- 16 Tips: अच्छा पड़ोसी बनने के गुर

तो व्यापार कई गुना उन्नति करेगा

व्यापार में अब पत्नी को आर्थिक भागीदार बनाना जरूरी होता जा रहा है. जब से भाइयों, बहनों और चचेरे भाइयों की कमी होने लगी है, छोटा व्यापार हो या विशाल, घर के लोगों के बीच काम रखने के लिए बच्चों से पहले पत्नी को भागीदार, पार्टनर, सुप्त मालिक, शेयर होल्डर, डाइरैक्टर बनाना पड़ रहा है. पहले संयुक्त परिवार होते थे और बापबेटे, भाई काफी होते थे व्यापार को चलाने के लिए कंपनी या पार्टनरशिप कंपनी बनाने के लिए.

मगर यह पत्नी को आर्थिक सहयोगी बनाना अब टेढ़ा मामला होता जा रहा है. मैक्स हैल्थकेयर के मालिक अनलजीत सिंह ने अपनी पत्नी को 24.75% शेयर होल्डर बना दिया पर बाद में उस का किसी और औरत से अफेयर चलने लगा. अब वह 75% शेयर होल्डिंग के बल पर कंपनी की संपत्ति को अपनी प्रेमिका को ट्रांसफर करने लगा है और यह आरोप उस की पत्नी नीलू सिंह ने अदालत में लगाया है.

घर में पार्टनर के साथ पत्नी जब बिजनैस पार्टनर भी हो तो जहां व्यापार कई गुना उन्नति कर सकता है और पत्नी अपने और बच्चों के लिए हर तरह की मेहनत करने को तैयार हो जाती है और पति के बढ़ते काम के घंटों पर कुढ़मुढ़ाती नहीं, वहीं घरेलू विवाद चल कर दफ्तर में पहुंच जाते हैं और व्यापार के मतभेद घर की डाइनिंगटेबल पर सज भी जाते हैं.

नीलू सिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया ताकि अनलजीत सिंह पर रोक लगाई जा सके और वह सारा पैसा प्रेमिका को न दे सके. पर सवाल यह भी खड़ा होता है कि ऐसी पत्नी कहां पैर में काटती थी कि पति 2015 से साउथ अफ्रीका में प्रेमिका के साथ ही समय बिताना ज्यादा अच्छा समझने लगा था?

पत्नी के काम में भागीदार बनाने में जो कमिटमैंट चाहिए होती है वह हमेशा रहे यह जरूरी नहीं. कई बार पति पत्नी को किसी भी तरह की छूट नहीं देता और छोटे अदने से मैनेजर से भी कम समझता है, तो कई बार उस पर कमाई करने का बोझ डाल कर इधरउधर समय बरबाद करने लगता है. यह भी खलता है.

अगर पति या पत्नी के काम की जगह किसी और से संबंध बनने लगें तो यह बात तुरंत पता चल जाती है और मनमुटाव होना शुरू हो जाता है. शादी के समय अर्दांगिनी बने रहने के सारे वादे व्यापार की कठोर उबड़खाबड़ जमीन पर हवा हो जाते हैं. पतिपत्नी घर में भी दुश्मन बनने लगते हैं और व्यापार में भी. घर भी ठप्प, व्यापार, कामकाज भी ठप्प.

पहले व्यापारों पर ताले संयुक्त परिवार में भाइयों, चाचाओं, तायों को ले कर लगते थे, अब पतिपत्नी विवाद पर लगने लगे हैं. जो भी पार्टनर मजबूत हो या जिस के पास कोई और सहारा हो, मतलबी या दिल पर छाया, हर कदम आसान रहता है पर आमतौर पर पति और पत्नी दोनों अकेले रह जाते हैं और दोनों के अपने घर वाले संबंधी भी बेवफा हो जाते हैं.

व्यापार में पत्नी को साझेदार बनाना जोखिम वाला काम है पर आज का व्यापार इतना कौंप्लिकेटेड है कि इस के बिना काम भी नहीं चलता.

ये भी पढ़ें- जनसंख्या कानून और महिलाएं

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें