कोरोना वायरस के जाल में: भाग 2- क्या हुआ था गरिमा के साथ

लेखक- डा. भारत खुशालानी

वान के नाक का निचला हिस्सा लाल हो चुका था. उस ने अपनी आंखें जमीन पर गड़ा दीं, बोली, ‘‘दस्तखत करते वक्त उस को छींक आई थी. उस छींक के कण कौपी पर और पैन पर आ गए थे.’’मू को मसला समझ में आ गया. उस ने वान को सांत्वना दी और तुरंत उस ओर चल दिया जहां सिक्योरिटी कैमरा से रिकौर्डिंग रखी जाती थी. रिकौर्डिंग कमरे में पहुंच कर उस ने वहां टैक्नीशियन से 4 दिन पहले की सुबह की रिकौर्डिंग मांगी. रिकौर्डिंग पर उसे डा. वान लीजुंग के कक्ष में घटित होने वाली वही घटना दिखी जिस में बीमार से दिखने वाले, समुद्री खाद्य को ले कर जाने वाले व्यक्ति ने पैन से कौपी पर हस्ताक्षर करते हुए छींका था. रिकौर्डिंग कमरे से ही मू ने रजिस्ट्रेशन कक्ष को फोन लगाया और बाद में डाक्टरपेशेंट रिपोर्ट रूम से डा. वान लीजुंग की कौपी मंगाई. वुहान, हूबे प्रांत के अंतर्गत आने वाला शहर है.

वुहान में ही, हूबे के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग में उस रोज जब पुलिसकर्मी भी थोड़ी तादाद में नजर आने लगे, तो स्वास्थ्य विभाग के बाकी कर्मचारी उन को देखने लगे. एक बड़े सम्मलेन कक्ष में स्वास्थ्य विभाग के बड़े ओहदे वाले 15-20 कर्मचारी बैठे थे और उन के पीछे पुलिसवाले खड़े हो कर आने वाले समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे.  सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष ने तेजी से प्रवेश किया और मुख्य कुरसी पर बैठते ही पौलीकौम का बटन दबाया और पौलीकौम में बात करना शुरू किया. पौलीकौम के दूसरे छोर पर डा. चाओ मू मौजूद थे. पौलीकौम से डा. मू की आवाज पूरे कमरे में गूंजी, ‘‘हुआनान समुद्री खाद्य मार्केट से आमतौर पर सी फूड खरीदने वाले व्यक्ति का नाम, पता और मोबाइल नंबर शेयर कर रहा हूं. तुरंत इस का पता लगा कर इस को अस्पताल ले कर आना है पूरे निरीक्षण के लिए. साथ ही, सिक्योरिटी फुटेज भी शेयर कर रहा हूं कि वह कैसा दिखता है.’’अध्यक्ष ने कहा, ‘‘डा. मू, यहां बैठे सब अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि क्या चल रहा है? उन के हिसाब से यह संभावित फ्लू के प्रकोप का मामला है. यहां पूरे प्रांत के और शहर के अधिकारी मौजूद हैं. केंद्रीय शासन वाले अभी पहुंचे नहीं हैं.’’

डा. मू ने दूसरी ओर से चिंतापूर्ण लहजे में कहा, ‘‘इतने सारे महत्त्वपूर्ण लोगों को सिर्फ फ्लू का इंजैक्शन दिलाने के लिए नहीं बुलाया गया है. जिस व्यक्ति का फुटेज मैं भेज रहा हूं, वह व्यक्ति संक्रामक है. उस के छूने से ही रोग लगने के बेहद आसार हैं.’’अध्यक्ष ने मुख्य पुलिस अधिकारी को संबोधित किया, ‘‘चीफ, स्थानीय पुलिस की मदद ले कर इस आदमी का पता लगाओ और इस से पहले कि वह शहर में प्लेग फैला दे, इसे वुहान शहरी अस्पताल में डा. मू के पास ले कर जाओ.’’चीफ ने हामी भरी.डा. मू ने चीफ और अध्यक्ष को अधिक जानकारी देना उचित समझा, ‘‘पेशेंट उत्तेजित था, आप सिक्योरिटी फुटेज में भी देख सकते हैं. वह ग्रसनी शोथ से पीडि़त है और खांस रहा है. उस को सांस की तकलीफ हो रही है. कौपी में लिखा है कि उस ने सिरदर्द की भी शिकायत की है. ‘‘डा. वान की जांच कौपी में यह भी लिखा हुआ है कि उस के लसिका गांठ सूजे हुए हैं. उस समय राउंड पर डा. वान लीजुंग थी और वह ही पेशेंट देख रही थी. उस व्यक्ति का निरीक्षण करने के 4 दिनों के अंदर डा. लीजुंग रोगसूचक हो गई है और उस में उसी रोग के लक्षण नजर आ रहे हैं. इस से पता चलता है कि जो वायरस सी फूड वाला व्यक्ति ले कर घूम रहा है, वह वायरस चंद दिनों के भीतर ही अपनेआप को दोहरा सकता है.’’अध्यक्ष ने पूछा, ‘‘डा. मू, आप को लगता है कि सी फूड वाला यह व्यक्ति इस वायरस का पहला शिकार है? या आप की नजर में इस से पहले भी ऐसे लक्षणों वाला इस या दूसरे अस्पताल में आया था?’’चीफ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘‘फ्लू जैसी आम बीमारी के लिए तो कोई भी पहले पेशेंट को ढूंढ़ने की इतनी तकलीफ नहीं करता है.’’डा. मू ने दुख से कहा,

‘‘इस के बाद अस्पताल की 2 और नर्सें, और डा. लीजुंग के पति भी इस वायरस का शिकार हो गए हैं. दोनों नर्सों और उन के पतियों को यह वायरस डा. लीजुंग के संपर्क में आने की वजह से हुआ है.’’चीफ ने कहा, ‘‘इस घटना को 4 दिन हो गए, और आप हमें आज बता रहे हैं?’’ अध्यक्ष ने चीफ से कहा, ‘‘स्थानीय पुलिस को प्रोटोकौल के अनुसार तब ही शामिल किया जा सकता है जब उस की जरूरत महसूस हो,’’ फिर डा. मू से कहा, ‘‘डा. मू, आप क्या सुझाव देंगे?’’बहुत ही गंभीरता से डा. मू ने कहा, ‘‘जब तक हम इस सी फूड वाले व्यक्ति का निरीक्षण कर के यह नहीं पता लगा लेते कि उस से पहले कोई और इस वायरस से संक्रमित नहीं था, तब तक वुहान शहरी अस्पताल की तालाबंदी कर देनी चाहिए.’’यह सुनते ही वहां बैठे सब अधिकारी आपस में फुसफुसाने लगे. डा. मू ने उन की फुसफुसाहट को नजरअंदाज करते हुए अपना सुझाव जारी रखा, ‘‘इस प्रकोप को नियंत्रण में लाने के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि वह किसकिस के संपर्क में आया है और वे लोग कहां हैं जिन के संपर्क में वह आया है. ऐसे लोगों को भी अस्पताल में जल्दी से जल्दी ले कर आना है. अस्पताल में डा. लीजुंग के संपर्क में और कौनकौन आया है, इस की पूरी तहकीकात की जरूरत है, इसीलिए अस्पताल की तुरंत तालाबंदी की इजाजत चाहिए.’’अध्यक्ष बोले, ‘‘डा. मू, मैं तुम्हारी राय से सहमत हूं.’’चीफ बोले, ‘‘हम लोग किस वायरस के बारे में बात कर रहे हैं?

’’डा. मू ने बताया, ‘‘अभी तक तो यह वायरस सिर्फ श्वसन प्रणाली पर हमला करते हुए दिख रहा है. वर्तमान में यह ऐसे कुछ खास लक्षण नहीं प्रस्तुत कर रहा है जिस से हम इस की पहचान कर सकें.’’थोड़ी ही देर में गरिमा के साथ चल रहे युवक मिन झोउ का मोबाइल फोन बजा. उस ने फोन पर बात की जिस के बाद उस के हावभाव पूरी तरह बदल गए. पिछले 2 घंटों में मिन ने गरिमा को अस्पताल का निरीक्षण करवाया था और दोचार चुनिंदा प्रयोगशालाएं दिखाई थीं. आने वाले कुछ वर्षों के दौरान गरिमा इन्हीं प्रयोगशालाओं में कुछ शोधकार्य करने की सोच रही थी. इस के लिए आज उस की मुलाकात डा. वान लीजुंग से थी, लेकिन शायद वह व्यस्त थी, इसीलिए उस की जगह मिन झोउ ने ले ली थी.फोन जेब में रख कर मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘थोड़ी सी समस्या है.’’गरिमा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या?’’ अब उस के वापस अपने विश्वविद्यालय लौटने का समय आ गया था, जहां होस्टल में एक कमरे में वह रहती थी. वुहान वाएरोलौजी विश्वविद्यालय, चीन का सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय है जहां उच्चकोटि की पढ़ाई तथा शोधकार्य होता है. वुहान शहरी अस्पताल की प्रयोगशालाओं का शोधकार्य, गरिमा को अपनी डाक्टरेट डिग्री के लिए जरूरी था. किसी अनुमानित परिप्रश्न के बदले वह एक व्यावहारिक और प्रयोगात्मक प्रश्न का हल अपने शोधकार्य में निकालना चाहती थी, इसीलिए उस ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों की मदद से वुहान शहरी अस्पताल में संपर्क किया था. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, अकसर अस्पताल के डाक्टरों के साथ मिल कर शोधकार्य करते थे. अपने ज्यादातर डेटा के लिए प्राध्यापक अस्पताल के मरीजों के डेटा पर निर्भर रहते थे. मिन ने गरिमा को अपने फोनकौल के बारे में बताया, ‘‘ऐसा लगता है कि अभी हम लोग इस अस्पताल से नहीं जा सकते.’’गरिमा ने कहा, ‘‘क्या मतलब?’’दोनों वापस जाने के लिए तकरीबन मुख्यद्वार तक पहुंच ही गए थे कि एक अधिकारी सा दिखने वाला व्यक्ति उन के पीछे दौड़ता हुआ आया. दोनों ने पलट कर उस को देखा. अधिकारी ने रुक कर शिष्टाचारपूर्वक कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, लेकिन आप दोनों को वापस अंदर आना पड़ेगा.’’मिन ने एक कोशिश की, ‘‘मुझे पहले ही देरी हो रही है.’’लेकिन उस अधिकारी ने फिर शिष्टाचार लेकिन दृढ़तापूर्वक कहा, ‘‘मुझे मालूम है, लेकिन मैं अभी आप लोगों को यहां से नहीं जाने दे सकता हूं. आप कृपया अंदर आ जाएं, फिर मैं सब समझा दूंगा.’’

मिन ने गरिमा से कहा, ‘‘डाक्टरों से ज्यादा अस्पताल प्रशासन की चलती है. इसलिए इन की बात हमें माननी ही पड़ेगी.’’गरिमा बोली, ‘‘ऐसा लगता है मेरा आज का दौरा पूरा नहीं हुआ है. अब तो यह और बढ़ गया है. आज शायद पूरा अस्पताल ही देखने को मिलेगा मुझे.’’अधिकारी ने एक और बात कही, जिस से दोनों चौंक गए, ‘‘तुम दोनों को कम से कम एक पूरे हाथ की दूरी पर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर दोनों ने अपने बीच थोड़ी दूरी बना ली. अधिकारी ने मुख्यद्वार पर मौजूद 2 रिसैप्शनिस्ट्स को थोड़ी हिदायतें दीं. दोनों रिसैप्शनिस्ट्स ने बहुत ही गंभीरताभरी निगाहों से अधिकारी की बात सुनी और माना.

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कोरोना वायरस के जाल में: भाग 1- क्या हुआ था गरिमा के साथ

लेखक- डा. भारत खुशालानी

सुबह का चमकता हुआ लाल सूरज जब चीन के वुहान शहर पर पड़ा, तो उस की बड़ीबड़ी कांच से बनी हुई इमारतें सूरज की किरणों को प्रतिबिंबित करती हुई नींद से जागने लगीं.

मुंबई जितना बड़ा, एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर अंगड़ाई ले कर उठने लगा, हालांकि मछली, सब्जी, फल, समुद्री खाद्य बेचने वालों की सुबह 2 घंटे पहले ही हो चुकी थी. आसमान साफ था, लेकिन दिसंबर की ठंड चरम पर थी. आज फिर पारा 5 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाने की संभावना थी, इसीलिए लोगों ने अपने ऊनी कपडे़ और गरम जैकेट बाहर निकाल कर रखे थे. वैसे भी वहां रहने वालों को यह ठंड ज्यादा महसूस नहीं होती थी. इस ठंड के वे आदी थे. और ऐसी ठंड में सुहानी धूप सेंकने के लिए अपने जैकेट उतार कर बाहर की सैर करते और सुबह की दौड़ लगाते अकसर पाए जाते थे. दूर से, गगनचुंबी इमारतों के इस बड़े महानगर के भीतर प्रवेश करने वाला सड़कमार्ग पहले से ही गाडि़यों से सज्जित हो चुका था. सुबह के सूरज से हुआ सुनहरा पानी ले कर यांग्त्जी नदी, और इस की सब से बड़ी सहायक नदी, हान नदी, शहरी क्षेत्र को पार करती हुई शान से वुहान को उस के 3 बड़े जिलों वुचांग, हानकोउ और हान्यांग में विभाजित करते हुए उसी प्रकार बह रही थी जैसे कल बह रही थी.कुछ घंटों के बाद जब शहर पूरी तरह से जाग कर हरकत में आ गया, तो वुहान शहरी अस्पताल के बाहर रोड पर जो निर्माणकार्य चल रहा था,

उस पर दोनों तरफ ‘रास्ता बंद’ का चिह्न लगा कर कामगार मुस्तैदी से अपने काम में जुट गए थे. पीली टोपी और नारंगी रंग के बिना आस्तीन वाले पतले जैकेट पहने कामगार फुरती से आनेजाने वाले ट्रैफिक को हाथों से इशारा कर दिशा दे रहे थे. हालांकि, अस्पताल के अंदर आनेजाने वाले रास्ते पर कोई पाबंदी नहीं थी.  गरिमा जब अस्पताल के पास के बसस्टौप पर बस से उतरी, तो काफी उत्साहित थी. उस का काम अस्पताल के बीमार मरीजों को अच्छा करना नहीं था, यह काम वहां के डाक्टरों और उन की नर्सों का था. गरिमा ने अस्पताल की लौबी में जाने वाले चबूतरे में प्रवेश किया तो तकरीबन 60 बरस के एक बूढ़े चीनी व्यक्ति को अपने सामने से गुजरते हुए पाया. बूढ़े के हाथ में कांच का एक थोड़ा सा बड़ा डब्बा था, जिस में करीब 10-12 सफेद चूहे तेजी से यहांवहां घूम रहे थे. उन चूहों की बेचैनी शायद इस बात का हश्र थी कि उन को अंदेशा था कि उन के साथ क्या होने वाला है.अस्पताल की प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो कर, अपनी कुर्बानी दे कर, मानव के स्वास्थ्य को और उस की गुणवत्ता को बढ़ाने का जिम्मा, जैसे प्रयोगकर्ताओं ने सिर्फ उन की ही प्रजाति पर डाल दिया हो. चबूतरे से निकल कर, एक ढलान, लौबी के अंदर न जाती हुई, उस ओर जा रही थी जहां बाहर से आने वाला सामान अस्पताल के अंदर जाता था. ढलान की शुरुआत पर लिखा हुआ था.

‘यहां सिर्फ सामान पहुंचाने वाली गाडि़यां और ट्रक’ और इस के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर अस्पताल के ‘प्लस’ चिह्न के साथ बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था ‘संक्रामक रोग विभाग’ और उस के नीचे छोटे अक्षरों में ‘वुहान शहरी अस्पताल.’ बूढ़ा आदमी चूहों का डब्बा ले कर उस ढलान से विभाग के अंदर प्रवेश कर गया. गरिमा ने लौबी में प्रवेश किया. लौबी में सामने ही एक 28-30 बरस का चीनी युवक खड़ा था, जिस ने शायद गरिमा को देखते ही पहचान लिया और गरिमा से पूछा, ‘‘गरिमा?’’गरिमा ने चौंक कर उसे देखा, फिर इंग्लिश में कहा, ‘‘हां.’’चीनी युवक ने कहा, ‘‘मेरा नाम मिन झोउ है.’’गरिमा ने पूछा, ‘‘डाक्टर वान लीजुंग से मुझे मुलाकात करनी थी. वे नहीं आईं?’’मिन ने सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं वे कहां हैं. खैर, मुझे मालूम है आज क्या करना है.’’ मिन ने सफेद कोट पहन रखा था, जो दर्शाता था कि वह भी डाक्टर है. गरिमा ने सोचा शायद मिन भी डा. वान लीजुंग के साथ काम करता हो. डा. लीजुंग खुद भी कम उम्र की थीं. उन की भी उम्र 32-35 से ऊपर की नहीं होगी. मिन ने कहा, ‘‘इस अस्पताल के अंदर कहीं हैं वे.’’गरिमा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘एक डाक्टर तो अस्पताल में गायब नहीं हो सकता.’’मिन भी मुसकरा दिया. दोनों लौबी की ओर बढ़ चले. डा. लीजुंग ने अभी भी सफेद कोट पहना हुआ था. उस का चेहरा गंभीर था. माथा तना हुआ था. चेहरे पर पसीने की बूंदें थीं. वह एक ऐसे कमरे में थी जो छोटा और तंग तो था लेकिन जिस में एक बिस्तर डला हुआ था. कोने में लोहे की टेबल थी जिस पर पानी का जार रखा हुआ था.

ऊपर सफेद ट्यूबलाइट जल रही थी. कमरे का दरवाजा अच्छे से बंद था, लेकिन दरवाजे पर छोटी खिड़की जितना कांच लगा होने से बाहर दिखता था और बाहर से अंदर दिखता था. बाकी दरवाजा मजबूत प्लाईवुड का बना था. वान की आंखें लाल होती जा रही थीं. बाहर से एक तकरीबन 40 वर्ष के डाक्टर ने दरवाजे के कांच तक आ कर वान को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘तुम को मालूम है कि ये सब एहतियात बरतना क्यों जरूरी है?’’वान ने बिना उस की तरफ देखे धीरे से हामी भरी.दरवाजे के बाहर खड़े डा. के सफेद कोट पर बाईं ओर छाती के ऊपर एक आयाताकार बिल्ला लगा था जिस पर लिखा था ‘डा. चाओ मू.’डा. मू ने गंभीरता से वान से प्रश्न किया, ‘‘मुझे थोड़ा समझाओ कि क्या कारण हो सकता है?’’वान ने आंखें मीचीं. जिस कुरसी पर वह बैठी थी, उस पर थोड़ा घूम कर कहा, ‘‘मैं ने जितने भी राउंड लगाए हैं अस्पताल के पिछले कई दिनों में, उन में 4 दिन पहले का सुबह वाला राउंड मुझे सब से ज्यादा संदिग्ध लगता है. उस दिन के मेरे सब से पहले वाले पेशेंट को एक्सरेरूम ले जाया गया था, इसलिए उस से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी उस सुबह. दूसरा पेशेंट सोया पड़ा था, उस से भी मेरा कोई संपर्क नहीं बना. तीसरा पेशेंट …,’’ वान ने रुक कर गहरी आंखों से डा. मू को देखा, ‘‘तीसरा पेशेंट थोड़ा मोटा सा था. उस के हाथ में सामान का एक थैला था. उस को बुखार लग रहा था और सर्दीजुकाम था. मैं ने बात करने के लिए उस से पूछा था कि थैले में क्या ले जा रहा है. उस ने बताया था कि हमेशा की तरह हुआनान यानी सीफूड (समुद्री खाद्य) मार्केट से खरीदारी कर के अपने घर जा रहा था.’’ वान ने याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस के बाएं कंधे को अपने दाएं हाथ से पकड़ कर स्टेथोस्कोप को पहले उस के दाईं ओर रखा, उस ने गहरी सांस खींची. फिर मैं ने स्टेथोस्कोप बाईं ओर रखा. मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है जो ज्यादा जोखिम वाला संपर्क हो.

किसी भी द्रव्य पदार्थ से संपर्क नहीं बना.’’मू बोला, ‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है?’’वान ने कहा, ‘‘ऐसा लगता तो है.’’ वान का इतना कहना ही था कि उसे जोरों की छींक आ गई. उस ने तुरंत अपनी कुहनी से नाक और मुंह ढकने की कोशिश की तो उसे 3-4 बार जोर से खांसी आ गई. हड़बड़ाहट में वह कुरसी से उठ कर दरवाजे के कांच तक आ पहुंची. उस ने एक हाथ से दरवाजे को थाम कर खांसी रोकने का प्रयास किया. उस ने कांच के दूसरी ओर डा. मू की तरफ पहले तो दयनीय दृष्टि से देखा, फिर अपनेआप को संभालते हुए कहा, ‘‘उस से कहा था कि थोड़ी देर और रुक जाए वह, ताकि मैं उस का और परीक्षण कर सकूं. लेकिन वह बोला कि उस को जल्दी घर जाना है.‘‘रजिस्ट्रेशन करते समय उस ने अपना नामपता लिखा होगा. मेरी कौपी में उस के परीक्षण का ब्योरा लिखा है. मेरी कौपी…’’ वान ने थोड़ा जोर दे कर फिर सोचा और कहा, ‘‘मैं ने अपनी कौपी पर उस को अस्पताल से बरखास्त किए जाने के लिए दस्तखत करने के लिए अपना पैन दिया. उस ने अपना समुद्री खाद्य वाला थैला नीचे रखा, पैन ले कर कौपी पर दस्तखत किए. मैं ने कौपी और पैन दोनों वापस ले लिए.’’

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उम्र का फासला: भाग 1- क्या हुआ लक्षिता के साथ

नर्सरी  में देखो तो पौधे कितने खिलेखिले रहते हैं. मगर गमलों में शिफ्ट करते ही मुरझने लगते हैं. बराबर खादपानी देती हूं, सीधी धूप से भी बचाती हूं, फिर भी पता नहीं क्यों मिट्टी बदलते ही पौधे कुछ दिन तो ठीक रहते हैं, लेकिन फिर धीरेधीरे जल जाते हैं,’’ मां अपने टैरेस गार्डन में उदास खड़ी बड़बड़ा रही थी. आज फिर उस का जतन से लगाया एक प्यारा पौधा मुरझ गया था.

खिड़की में खड़ी लक्षिता अपनी मां को देख रही थी. खुद वह भी तो इन गमलों के पौधों जैसी ही है. शादी से पहले मायके में कितनी खिलीखिली रहती थी. ससुराल जाते ही मुरझ गई. हर समय चहकने वाली लक्षिता शादी के 2 साल बाद ही अपना घर छोड़ कर मायके आ गई थी. नहींनहीं, यह कोई व्यक्तिगत, सामाजिक या कानूनी अलगाव नहीं था, बस लक्षिता विशाल और अपने रिश्ते को थोड़ा और समय देना चाह रही थी.

ऐसा नहीं था कि उस ने अपनी जड़ों को पराई जमीन में रोपने में कोई कसर छोड़ी हो. भरसक प्रयास किया था नई मिट्टी के मुताबिक ढलने का… लेकिन पता नहीं मिट्टी में ही कीड़े थे या फिर धूप इतनी तेज कि उस पर तनी विशाल के प्रेम वाली हरी नैट भी बेअसर हो गई. लक्षिता अपनी असफल शादी को याद कर भर आई आंखें पोंछने लगी.

‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन. जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन…’ कितना झठ कहते है ये शायर लोग भी. कौन कहता है कि प्यार उम्र के फासले को पाट सकता है? यह तो वह खाई है जिसे लांघने की कोशिश करने वाले को अपने हाथपांव तुड़वाने ही पड़ते हैं. और यदि इस राह में जन्म का बंधन यानी जातिधर्म की चट्टान भी आ जाए तो फिर इन फासलों को पाटना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात तो नहीं हो सकती, लक्षिता मोबाइल की स्क्रीन पर लगी अपनी और विशाल की शादी की तसवीर को देख कर फीकी सी मुसकरा दी.

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पूरे 10 वर्ष का फासला था दोनों की उम्र में. इस के साथसाथ विजातीय होने की अड़चन थी सो अलग… समाज में कैसे स्वीकार होता? स्वीकार होने की प्राथमिकता बढ़ भी जाती यदि विशाल की उम्र लक्षिता से अधिक होती क्योंकि प्रचलित सामाजिक धारणा के अनुसार पुरुष और घोड़े कभी बूढ़े नहीं होते बशर्ते उन्हें अच्छी खुराक दी जाए. शायद इसीलिए लड़कों को लड़कियों से अच्छा खानापीना दिए जाने का रिवाज चल पड़ा होगा. एक बात की कड़ी से कड़ी जोड़ती लक्षिता दूर तक सोच आई.

लक्षिता पुणे की एक मल्टी नैशनल कंपनी में मैनेजर थी और विशाल एक

मैनेजमैंट ट्रेनी… लक्षिता विशाल की बौस थी. 35 वर्षीय लक्षिता देखने में किसी मौडल सी लगती है जिसे देख कर उस की उम्र का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. चेहरे की स्किन ऐसी पारदर्शी है कि जरा नाखून भी लग जाए तो गाल कई दिनों तक लाल दिखाई दे. बाल बेशक कंधे तक कटे थे, लेकिन लेयर में होने के कारण चेहरे पर नहीं आते. हां, गरदन झकाने पर चेहरे को ढांप जरूर लेते थे जैसे बरसाती दिनों में चांद के चारों तरह घिरा सुनहरा आवरण. लक्षिता अपने चेहरे पर मेकअप नहीं पोतती, लेकिन कुछ तो ऐसा लगाती कि चेहरा हर समय दमकता रहता है. लिपस्टिक का शेड भी न्यूड सा ही रहता और आंखें हमेशा गोल्डन फ्रेम के चश्मे में कैद…

ऐसा नहीं है कि 35 वर्षीय इस युवती को अविवाहित रहने का कोई शौक या शगल था. कुछ मजबूरियां ही ऐसी रहीं कि सही उम्र में विवाह कर ही नहीं पाई. यों तो आजकल 35 में कोई बुढ़ाता नहीं है, लेकिन हां, युवाओं वाले मिजाज तो नर्म पड़ने ही लगते हैं. ऐसी ही ठंडी पड़ती चिनगारी को सुलगाने विशाल उस की जिंदगी में आया था.

विशाल ने जब उस का विभाग जौइन किया तो वह भी लक्षिता को एक आम ट्रेनी जैसा ही लगा था, लेकिन धीरेधीरे विशाल उस के वजूद को स्क्रब की तरह सहलातारगड़ता गया और वह निखरीनिखरी एक नए आकर्षक रूप में खिलती गई.

कभी ‘‘यह रोजरोज सलवारकमीज क्यों पहनती हैं? कभी कुरती के साथ जीन्स भी ट्राई कीजिए,’’ कह कर तो कभी ‘‘बालों को बांधना क्या औफिस के प्रोटोकाल में आता है? चलो मान लिया कि आता होगा, लेकिन औफिस टाइम के बाद तो इन्हें भी आजाद किया जाना चाहिए न?’’ जैसे जुमले वह लक्षिता के पास से गुजरते हुए फुसफुसा देता था. चेहरे पर भोलापन इतना कि लक्षिता चाह कर भी उसे लताड़ नहीं पाती थी.

कब लक्षिता के वार्डरोब में जीन्स और आधुनिक पैंट्स की संख्या बढ़ने लगी, कब औफिस बिल्डिंग के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते ही उस के बालों का कल्चर निकल

कर हैंडबैग के स्ट्रैप में लगने लगा वह जान ही नहीं पाई.

राजपूती कदकाठी को जस्टिफाई करता लंबे कद और चौड़े कंधों वाला विशाल अपने घुंघराले बालों के कारण पीठ पीछे से भी पहचाना जा सकता था. विशाल में गजब की ड्रैस सैंस थी. उस की शर्ट के रंग इतने मोहक और कूल होते कि उस की उपस्थिति एक ठंडक का एहसास दिला देती थी. भीनीभीनी महकती बगलें जैसे अपनी तरफ खींचती थीं. लक्षिता के पास आ कर किसी काम के लिए जब विशाल अपनी दोनों बांहें टेबल पर रख कर फाइलों पर झक जाता तो लक्षिता एक लंबी सांस लेने को मजबूर हो जाती थी. आंखें खुदबखुद मुंद जातीं और विशाल का पसीने मिला डीयो नाक से होता हुआ रूह तक अपना एहसास छोड़ जाता. विशाल एक कुहरे की तरह उसे ढकता गया और जब यह कुहांसा छंटा तो लक्षिता ने पाया कि प्रेम की धुंध उस के भीतर तक उतर चुकी है.

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लक्षिता ने इस प्रेम को बहुत नकारा, लेकिन वह प्रेम ही क्या जो दीवानगी ले कर न आए. सच ही कहा है किसी ने कि प्रेम करना किसी समझदार के बस की बात नहीं है. यह तो एक फुतूर है जिसे कोई जनूनी ही निभा सकता है. लक्षिता हालांकि बहुत समझदारी दिखाने की कोशिश कर रही थी. जितना हो सके उतना वह विशाल को नजरअंदाज करने का प्रयास भी करती, लेकिन राजस्थान से आया यह नया ट्रेनी बिलकुल रेगिस्तानी धूल की तरह था. कितने भी खिड़कीदरवाजे बंद कर लो, इस का प्रवेश रोकना नामुमकिन था. अलमारी में रखी साडि़यों की भीतरी तह तक पहुंच जाने वाली गरद की तरह विशाल भी हर परत को बेधता हुआ आखिर लक्षिता के मन के गर्भगृह तक जा ही पहुंचा था.

अपने जन्मदिन पर विशाल ने लक्षिता को डिनर के लिए आमंत्रित किया तो वह इनकार नहीं कर सकी. अंधेरे में भी हाथ बढ़ाते ही हाथ में आने वाली ड्रैस पहनने वाली बेपरवाह लक्षिता को उस दिन अपने लिए ड्रैस का चुनाव करने में

2 घंटे लग गए. जब भी किसी कुरते या साड़ी पर हाथ रखती, पीछे खड़ा विशाल न में गरदन हिला देता. अंत में उसे चुप रहने की सख्त हिदायत देते हुए लक्षिता ने हलके हरे रंग का टौप और औरिजनल डैनिम की पैंट चुनी. गले में फंकी सा लौकेट डालते समय अपनी 35 की उम्र को याद करती वह हिचकी तो थी, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों कानों में भी झलते से लटकन डाल ही लिए थे. लिपस्टिक लगाते समय दिमाग ने पूछा भी था कि आज यह इतना रोमांटिक सा गुलाबी रंग क्यों? लेकिन तु?ो इस से क्या? अपने काम से काम रखा कर कहते हुए दिल ने दिमाग को ऐसा करारा जवाब दिया कि शेष समय दिमाग ने अपने होंठ सिल लिए. लक्षिता को उस का फायदा भी हुआ. पूरी मुलाकात के दौरान दिमाग ने कोई रायता नहीं फैलाया. बस, जो दिल ने कहा लक्षिता करती गई.

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REVIEW: जानें कैसी है Web Series ‘अनदेखी सीजन 2’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः अप्लॉज एंटरटेनमेंट और बानीजे एशिया प्रोडक्शन

निर्देशकः आशीष आर शुक्ल

लेखकः अमेय सारदा , अनाहता मेनन , दीपक सेगल और सुमीत बिश्नोई

कलाकारः हर्ष छाया , दिब्येंदु भट्टाचार्य , सूर्य शर्मा , आंचल सिंह , अपेक्षा पोरवाल , अंकुर राठी , नंदीश सिंह संधू और मेयांग चांग व अन्य.

अवधिः लगभग छह घंटेः 34 से 40 मिनट के दस एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव

सोनी लिव पर 2020 में अपराध कथा वाली वेब सीरीज ‘‘अनदेखी’’ स्ट्रीम हुई थी,जिसे काफी पसंद किया गया था. अब दो वर्ष बाद ‘अनदेखी’ का सीजन दो 4 मार्च से ‘सोनी लिव’ पर ही स्ट्रीम हो रही है. जिसका मुकाबला अजय देवगन अभिनीत वेब सीरीज ‘‘रूद्राः द एज आफ डार्कनेस’’ से हैं,जो कि 4 मार्च से ही हॉटस्टार डिज्नी पर स्ट्रीम हो रही है. मगर नामी कलाकारों को देखने की बजाय कहानी देखने व सुनने में रूचि रखने वालों को ‘‘अनदेखी सीजन दो’’ ही पसंद आएगी.  इतना ही नही ‘सत्यकथा’ और ‘मनोहर कहानियां’ के पाठकों को ‘‘अनदेखी सीजन दो’’ काफी पसंद आएगा.

कहानीः

‘‘अनदेखी सीजन दो’’ की कहानी वहीं से शुरू होती है,जहां पहले सीजन की कहानी खत्म हुई थी. अब हर किरदार के लिए अपने सामने हत्याएं देखना न सिर्फ आम बात है बल्कि वह इसका हिस्सा बन चुके हैं. अब तो हर किरदार अपने मकसद के लिए हत्या करने व दूसरों को बरबाद करने पर आमादा है. हर किरदार ‘मैं’ तक ही सीमित है. पर पात्र जो चाहते हैं,वह उनके हाथ में आते आते फिसल जाता है.

ऋषि मर चुका है और रिंकू (सूर्य शर्मा ) किसी भी कीमत पर कोयल (आपेक्षा पोरवाल ) और ऋषि के दोस्तों सलोनी(ऐनी जोया ) व शाश्वत( ) को ढूंढना चाहता है. जबकि कलकत्ता का डीएसपी घोष (दिब्येंदु भट्टाचार्य ),कोयल को गिरफ्तार कर अपने साथ ले जाना चाहता है. उधर दमन) अटवाल(अंकुर राठी ) के आपराधिक परिवार के कांड जानने के बाद शादी तोड़ने वाली तेजी( आंचल सिंह) अब उसी परिवार व उसी व्यापार से जुड़कर अटवाल परिवार के मुखिया पापाजी(हर्ष छाया) की जड़ काटने पर आमादा है.

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नाटकीय घटनाक्रम में बुरी तरह से घायल कोयल एक बौद्ध बिक्षु अभय( मियांग चेंग ) के हाथ लग जाती है,जो कि अपने साथ सुरक्षित जगह ले जाकर उसका इलाज करता है. जबकि कोयल का पता न लग पाने पर डीएसपी घोष को वापस बंगाल बुला लिया जाता है.  लेकिन कोयल अभी भी रिंकू और पापाजी से बदला लेना चाहती है. तो वहीं शाश्वत व सोनाली किसी तरह सुरक्षित चंडीगढ़ पहुॅचना चाहते हैं,मगर ऐसा हो नही पाता. तो वहीं अटवाल परिवार के अंदर और बाहर बहुत कुछ घटता है. बीच में कुछ एपीसोडो में कहानी बदला लेने व हत्या के सबूत मिटाने से हटकर ड्ग सिंडिकेट के इर्द गिर्द ही घूमती है. अटवाल परिवार को बर्बाद कर समर्थ (नंदीश संधू) का विश्वास जीतकर खुद गैर कानूनी दवाओं के व्यापार व अपराध जगत की हस्ती बनने के लिए तेजी अपने ही दोस्तो शाश्वत और सलानी को रिंकू के हाथ सौंप देती है. इसी बीच पुनः डीएसपी घोष मनाली पहुंचकर कोयल को अपने साथ जिंदा ले जाना चाहते हैं,मगर ऐसा हो नही पाता. जबकि कोयल व अभय अपनी तरफ से अटवाल परिवार के खिलाफ काम कर रहे हैं,लेकिन अभय व कोयल दोनों के मकसद अलग अलग हैं. कहानी कई मोड़ो, उतार चढ़ाव,खून खराबे के साथ आगे बढ़ती रहती है और कई किरदार खत्म हो जाते हैं. मगर तीसरे सीजन का संकेत देते हुए दसवां एपीसोड खत्म होता है.

लेखन व निर्देशनः

‘अनदेखी’ का दूसरा सीजन पहले वाले के मुकाबले ज्यादा डार्क है. यह सीजन काफी तेज गति से भागता है. पर कई जगह लॉजिक की बजाय इत्तफाक ही नजर आता है. मसलन- समर्थ के अति सुरक्षा युुक्त गैर कानूनी दवा के गोदाम में शाश्वत बड़े आराम से घुसकर आफिस में समर्थ के लैपटैप में अपने फोन से कुछ फाइल ट्रांसफर कर बड़े आराम से वापस आ जाता है.  कहने का अर्थ यह कि लेखन और एडीटिंग कमजोर है. यहां तक कि अभय के किरदार को भी ठीक से विकसित नही किया गया.  इतना ही नही इस बार उभ्एसपी घोष का किरदार निभाने वाले प्रतिभाशाली कलाकार दिब्येंदु भट्टाचार्य का कम इस्तेमाल किया जना दर्शकों को अखरता है.

इस सीरीज में तमाम दृश्य ऐसे है,जिन्हें दर्शक कई फिल्मों में देख चुका है. मगर निर्देशक आशीष आर शुक्ला ने खुद को भारतीय परिवेश की अपराध कथाओं को पश्चिम का अनुसरण कर ढालने की नई परंपरा से बचाए रखा.  इतना ही नही इस सीरीज की दूसरी खास बात इसकी लोकेशन है. सुरम्य मानाली यानी कि हिमाचल की गहराई और घुमावदार पहाड़ियों का खूबसूरती से कहानी में उपयोग किया गया है.

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अभिनयः

पहले सीजन की भंाति इस सीजन में भी पापाजी के किरदार में  हर्ष छाया अपनी पूरी लय में हैं. रिंकू के किरदार में सूर्य शर्मा ने नायक और खलनायक दोनों ही रूप में बौलीवुड के फिल्मकारों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.  विशाल व्यक्तित्व और मौत का तांडव विखेरने वाले रिंकू के किरदार में सूर्य शर्मा एकदम फिट नजर आते हैं.

परिवार के अंदर दरकिनार किए जाने के बाद अपराध जगत में जोड़ तोड़ की मास्टर माइंड बन  जाने वाली तेजी के किरदार में आंचल सिंह ने कमाल का अभिनय किया है. इस सीरीज से पहले वह एक सीरियल कर चुकी हैं,मगर ‘अनदेखी सीजन दो’ से आंचल सिंह ने साबित कर दिखाया कि उनके अंदर एक सफल अभिनेत्री बनने की प्रतिभा है. दमन के किरदार में अंकुर राठी को बड़ा मौका मिला,मगर वह कमजोर नजर आते हैं. उन्हे अपने अंदर की प्रतिभा को उजागर करने का अवसर नही मिला. लकी के किरदार में वरूण भाट और मुस्कान के किरदार में शिवांगी सिंह अपनी छाप छोड़ती हैं.

अभय के किरदार में मेयांग चांग अपनी छाप छोड़ जाते हैं,जबकि उनके किरदार को ठीक से लिखा नही गया. समर्थ के किरदार में नंदीश संधू का अभिनय शानदार है.

Rula Deti Hai: Karan-Tejaswi के गाने ने बनाया ये Record

‘देसी म्यूज़िक फ़ैक्टरी’ द्वारा प्रस्तुत ‘रूला देती है’ (Rula Deti Hai Song) गाने का टीजर रिलीज होते ही प्रशंसकों में गाने को लेकर उत्साह बढ़ गया और ऐसा हो भी क्यों ना आखिरकार इस गाने में तेजस्वी प्रकाश (Tejaswi Prakash)और करण कुंद्रा (Karan Kundrra) एक साथ जो नज़र आ रहे हैं. दिल को छू लेने वाले इस गाने के माध्यम से लेबल ने पहली बार इस खूबसूरत कपल के साथ सहयोग किया है. ‘रुला देती है’ गीत को राणा सोतल ने लिखा है और यासिर देसाई ने गाया है तथा रजत नागपाल ने संगीत सजाया हैं. इस दर्द से भरे हुए रोमांटिक गीत की शूटिंग गोवा में हुई है.

गाने के रिलीज के बारे में तेजस्वी प्रकाश ने कहा कि  ” ‘रुला देती है’ को लेकर इतना उत्साहित होने के लिए प्रशंसकों का बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूँ. यह एक ऐसा गीत है जो प्यार की यात्रा में हम सभी के दर्द को प्रकट करती है. एक शानदार टीम के साथ सहयोग करके इस गीत में काम करने का अनुभव कमाल का रहा . मुझे विश्वास है कि हमारे श्रोता हम पर उतने ही प्यार की बौछार करेंगे जितना उन्होंने हमें बिग बॉस 15 के दौरान दिया था.”

 

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गाने के रिलीज के बारे में करण कुंद्रा ने कहा कि ” ‘रुला देती है’ के शूटिंग की यात्रा बहुत ही ख़ास रही है, जिसे अपने प्रशंसकों और श्रोताओं के सामने लाते हुए बेहद खुशी हो रही है. यह गाना गोवा के सुन्दर दृश्यों की पृष्ठभूमि पर फिल्माया है, जो आपके दिल को छू जाएगा.  मैं इसके रिलीज को लेकर बेहद उत्साहित हूं.”

 

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देसी म्यूजिक फैक्ट्री के फाउंडर और सीईओ अंशुल गर्ग कहते है कि ” इस खूबसूरत कपल के साथ लेबल का यह पहला सहयोग है, जिसे सभी के सामने लाते हुए बेहद ख़ुशी हो रही है.  ‘रूला देती है’  एक ऐसा गाना है जो आपके दिल को छू जाएगा और इसके लिए निश्चित रूप से प्यारे से कपल और यासिर की जादुई आवाज को धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने श्रोताओं के लिए इतना अच्छा गाना बनाया .”

देसी म्यूजिक फैक्ट्री के यूट्यूब चैनल पर ‘रुला देती है’ रिलीज हो गई है.

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Anupama-Anuj को अलग होता देख भड़के फैंस, मेकर्स हुए ट्रोल

सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में जहां बीते दिनों अनुज (Gaurav Khanna)  और अनुपमा  (Rupali Ganguly) का रोमांस शुरु हुआ था तो वहीं अब फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसके चलते शो में एक बार फिर अनुपमा शाह हाउस में एंट्री करती हुई नजर आएगी. हालांकि फैंस को मेकर्स का ये नया ट्विस्ट पसंद नहीं आ रहा है, जिसके चलते मेकर्स ट्रोलिंग का शिकार हो गए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मेकर्स से परेशान हुए #MaAn फैंस

शादी करने के फैसले पर जहां अनुपमा-अनुज बेहद खुश हैं तो वहीं मेकर्स के नए ट्विस्ट ने दर्शकों का गुस्सा बढ़ा दिया है. दरअसल, मेकर्स ने नए ट्विस्ट के चलते अनुपमा को दोराहे पर लाने का फैसला किया है, जिसके चलते उसे एक बार फिर अपने परिवार और प्यार अनुज में से किसी एक को चुनना होगा. वहीं इस नए ट्विस्ट के चलते फैंस गुस्से में आ गए हैं और सोशलमीडिया के जरिए मेकर्स को ट्रोल करते नजर आ रहे हैं. #MaAn फैंस का कहना है कि अनुज और अनुपमा को साथ होना चाहिए लेकिन परिवार को उनके बीच मेकर्स लाकर गलत कर रहे हैं. वहीं कुछ फैंस का कहना है कि वह दोनों का साथ देखना चाहते हैं लेकिन वह फैमिली ड्रामा देखकर उब चुके हैं.

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किंजल के लिए घर लौटेगी अनुपमा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि परितोष अपने होने वाले बच्चे के लिए तैयार नहीं होगा, जिसके चलते वह अनुपमा के सामने बच्चे को गिराने की बात कहेगा. वहीं किंजल इस बात से टूटी हुई नजर आएगी. इसी के चलते अनुपमा, अनुज से थोड़ा वक्त मांगेगी और शाह हाउस जाने की इजाजत लेगी. हालांकि अनुपमा के परेशानी देखकर अनुज उसका साथ देता हुआ नजर आएगा.

 

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राखी दवे ने बढ़ाई अनुपमा की मुश्किलें

अब तक आपने सीरियल में देखा कि किंजल की प्रैग्नेंसी के बारे में जानकर उसकी मां राखी दवे शाह हाउस में एंट्री करती है. वहीं उसे अपने साथ ले जाने की बात कहती हैं. लेकिन किंजल जाने से मना कर देती है. हालांकि राखी दवे, अनुपमा को उसके साथ रखने की बात कहती है, जिसे सुनकर सब हैरान रह जाते हैं पर बा, राखी दवे के फैसले से सहमत नजर आती है.

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फिर क्यों: भाग 1- क्या था दीपिका का फैसला

लेखक- राम महेंद्र राय 

विक्रम से शादी कर दीपिका ससुराल आई तो खुशी से झूम उठी. यहां उस का इतना भव्य स्वागत होगा, इस की उस ने कल्पना भी नहीं की थी.

सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ससुराल में रस्में चलती रहीं. इस के बाद वह कमरे में आराम करने लगी. शाम करीब 4 बजे कमरे में विक्रम आया और दीपिका से बोला, ‘‘मेरा एक दोस्त बहुत दिनों से कैंसर से जूझ रहा था. उस के घर वालों ने फोन पर अभी मुझे बताया है कि उस का देहांत हो गया है. इसलिए मुझे उस के घर जाना होगा.’’

दीपिका का ससुराल में पहला दिन था, इसलिए उस ने पति को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन विक्रम उसे यह समझा कर चला गया, ‘‘तुम चिंता मत करो, देर रात तक वापस आ जाऊंगा.’’

विक्रम के जाने के बाद उस की छोटी बहन शिखा दीपिका के पास आ गई और उस से कई घंटे तक इधरउधर की बातें करती रही. रात के 9 बजे दीपिका को खाना खिलाने के बाद शिखा उस से यह कह कर चली गई कि भाभी अब थोड़ी देर सो लीजिए. भैया आ जाएंगे तो फिर आप सो नहीं पाएंगी.

ननद शिखा के जाने के बाद दीपिका अपने सुखद भविष्य की कल्पना करतेकरते कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला.

दीपिका अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. उस से 3 साल छोटा उस का भाई शेखर था. वह 12वीं कक्षा में पढ़ता था. पिता की कपड़े की दुकान थी.

ग्रैजुएशन के बाद दीपिका ने नौकरी की तैयारी की तो 10 महीने बाद ही एक बैंक में उस की नौकरी लग गई थी.

2 साल नौकरी करने के बाद पिता ने विक्रम नाम के युवक से उस की शादी कर दी. विक्रम की 3 साल पहले ही रेलवे में नौकरी लगी थी. उस के पिता रिटायर्ड शिक्षक थे और मां हाउसवाइफ थीं.

विक्रम से 3 साल छोटा उस का भाई तुषार था, जो 10वीं तक पढ़ने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था. तुषार से 4 साल छोटी शिखा थी, जो 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

पति के जाने के कुछ देर बाद दीपिका गहरी नींद सो रही थी, तभी ननद शिखा उस के कमरे में आई. उस ने दीपिका को झकझोर कर उठाया. शिखा रो रही थी. रोतेरोते ही वह बोली, ‘‘भाभी, अनर्थ हो गया. विक्रम भैया दोस्त के घर से लौट कर आ रहे थे कि रास्ते में उन की बाइक ट्रक से टकरा गई. घटनास्थल पर उन की मृत्यु हो गई. पापा को थोड़ी देर पहले ही पुलिस से सूचना मिली है.’’

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यह खबर सुनते ही दीपिका के होश उड़ गए. उस समय रात के 2 बज रहे थे. क्या से क्या हो गया था. पति की मौत का दीपिका को ऐसा गम हुआ कि वह उसी समय बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद उसे होश आया तो अपने आप को उस ने घर के लोगों से घिरा पाया. पड़ोस के लोग भी थे. सभी उस के बारे में तरहतरह की बातें कर रहे थे. कोई डायन कह रहा था, कोई अभागन तो कोई उस का पूर्वजन्म का पाप बता रहा था.

रोने के सिवाय दीपिका कर ही क्या सकती थी. कुछ घंटे पहले वह सुहागिन थी और कुछ देर में ही विधवा हो गई थी. खबर पा कर दीपिका के पिता भी वहां पहुंच गए थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने विक्रम का शव घर वालों को सौंप दिया था. तेरहवीं के बाद दीपिका मायके जाने की तैयारी कर रही थी कि अचानक सिर चकराया और वह फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. ससुराल वालों ने उठा कर उसे बिस्तर पर लिटाया. मेहमान भी वहां आ गए.

डाक्टर को बुलाया गया. चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि दीपिका 2 महीने की प्रैग्नेंट है. पर वह बेहोश कमजोरी के कारण हुई थी.

2 सप्ताह पहले ही तो दीपिका बहू बन कर इस घर में आई थी तो 2 महीने की प्रैग्नेंट कैसे हो गई. सोच कर सभी लोग परेशान थे. दीपिका के पिता भी वहीं थे. वह सकते में आ गए.

दीपिका को होश आया तो सास दहाड़ उठी, ‘‘बता, तेरे पेट में किस का पाप है? जब तू पहले से इधरउधर मुंह मारती फिर रही थी तो मेरे बेटे से शादी क्यों की?’’

दीपिका कुछ न बोली. पर उसे याद आया कि रोका के 2 दिन बाद ही विक्रम ने उसे फोन कर के मिलने के लिए कहा था. उस ने विक्रम से मिलने के लिए मना करते हुए कहा, ‘‘मेरे खानदान की परंपरा है कि रोका के बाद लड़की अपने होने वाले दूल्हे से शादी के दिन ही मिल सकती है. मां ने आप से मिलने से मना कर रखा है.’’

विक्रम ने उस की बात नहीं मानी थी. वह हर हाल में उस से मिलने की जिद कर रहा था. तो वह उस से मिलने के लिए राजी हो गई.

शाम को छुट्टी हुई तो दीपिका ने मां को फोन कर के झूठ बोल दिया कि आज औफिस में बहुत काम है. रात के 8 बजे के बाद ही घर आ पाऊंगी. फिर वह उस से मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में चली गई.

उस दिन के बाद भी उन के मिलनेजुलने का कार्यक्रम चलता रहा. विक्रम अपनी कसम देदे कर उसे मिलने के लिए मजबूर कर देता था. वह इतना अवश्य ध्यान रखती थी कि घर वालों को यह भनक न लगे.

एक दिन विक्रम उसे बहलाफुसला कर एक होटल में ले गया. कमरे का दरवाजा बंद कर उसे बांहों में भरा तो वह उस का इरादा समझ गई.

दीपिका ने शादी से पहले सीमा लांघने से मना किया लेकिन विक्रम नहीं माना. मजबूर हो कर उस ने आत्मसमर्पण कर दिया.

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गलती का परिणाम अगले महीने ही आ गया. जांच करने पर पता चला कि वह प्रैग्नेंट हो गई है. विक्रम का अंश उस की कोख में आ चुका था. वह घबरा गई और उस ने विक्रम से जल्दी शादी करने की बात कही.

‘‘देखो दीपिका, सारी तैयारियां हो चुकी हैं. बैंक्वेट हाल, बैंड वाले, बग्गी आदि सब कुछ तय हो चुके हैं. एक महीना ही तो बचा है. घर वालों को सच्चाई बता दूंगा तो तुम ही बदनाम होगी. तुम चिंता मत करो. शादी के बाद मैं सब संभाल लूंगा.’’

आगे पढ़ें- आखिर अपने सिर बदचलनी का इलजाम ले कर…

44 साल की उम्र में Anupama की Rupali Ganguly का ट्रांसफौर्मेंशन, देखें फोटोज

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचा रहा है. वहीं इस शो से जुड़े सितारे सोशलमीडिया पर सुर्खियों में बने हुए हैं. दरअसल, अनुपमा के रोल में नजर आने वालीं एक्ट्रेस रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) ने हाल ही ग्लैमरस लुक में कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसे देखकर सेलेब्स और यूजर्स रिएक्शन देते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं लेटेस्ट पोस्ट की झलक…

रुपाली कौ मौर्डर्न लुक ने फैंस को किया हैरान

 

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सीरियल ‘अनुपमा’ में सूट या साड़ी में नजर आने वालीं रुपाली गांगुली ने रियल लाइफ में अपने नए ट्रांसफौर्मेशन से फैंस को चौंका दिया है. जहां पिछले दिनों हौट ड्रैस में रुपाली गांगुली नजर आईं थी तो वहीं अब मौर्डन सूट पैंट पहनकर वह फैंस को चौंका रही हैं. दरअसल, हाल ही में रुपाली गांगुली के एक फोटोशूट करवाया था, जिसमें वह पीले कलर के जैकेट और पैंट (Rupali Ganguly look in jacket pant) पहने नजर आईं. वहीं रुपाली गांगुली के इस पोस्ट पर अनुज यानी गौरव खन्ना के अलावा कई सितारे कमेंट करते नजर आ रहे हैं तो वहीं फैंस उनकी लेडी गागा से तुलना कर रहे हैं.

 

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साड़ी में भी लगती हैं खूबसूरत

 

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सूट में रुपाली गांगुली का ये लुक देखकर फैंस को अनुपमा की याद आ गई है. वहीं फैंस शो में भी अनुपमा के रोल में रुपाली गांगुली के इस लुक को देखने की बात कर रहे हैं. हालांकि कुछ फैंस रुपाली गांगुली की साड़ी लुक की भी तारीफ करते नजर आ रहे हैं, जिसके चलते रुपाली सुर्खियों में छा गई हैं.

 

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बता दें, सीरियल में जल्द ही अनुपमा दादी बनने वाली हैं. वहीं बा जल्द ही अनु को शाह हाउस में लाने की तैयारी करने वाली है. हालांकि देखना होगा कि अनुज और अनुपमा की जिंदगी में इसके बाद क्या नया मोड़ आएगा.

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रूठों को मनाए Sorry

सीमा उदास बैठी थी. तभी उस के पति का फोन आया और उन्होंने उसे ‘सौरी’ कहा. सीमा का गुस्सा एक मिनट में शांत हो गया. दरअसल, सुबह सीमा का अपने पति से किसी बात पर झगड़ा हो गया था. गलती सीमा की नहीं थी, इसलिए वह उदास थी. लड़ाईझगड़े हर रिश्ते में होते हैं पर सौरी बोल कर उस झगड़े को खत्म कर के रिश्तों में आई कड़वाहट दूर की जा सकती है. यह इतनी छोटी सी बात है. लेकिन बच्चे तो क्या, बड़ों की समझ में भी यह बात न जाने क्यों नहीं आती.

हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद होता है. अच्छा और बुरा दोनों तरह का समय देखना पड़ता है. कभीकभी रिश्तों में अहंकार हावी हो जाता है और दिन में हुआ विवाद रात में खामोशी की चादर बन कर पसर जाता है. अपने साथी की पीड़ा और उस से नाराजगी के बाद जीवन नरक लगने लगता है. फिर हालात ऐसे हो जाते हैं कि आप समझ नहीं पाते कि सौरी बोलें तो किस मुंह से. पर सौरी बोलने का सही तरीका आप के जीवन में आई कठिनाई और मुसीबत को काफी हद तक दूर कर रिश्तों में आई कड़वाहट को कम कर सकता है. यह तरीका हर किसी को नहीं आता. यह भी एक हुनर है. जब आप अपने रिश्तों के प्रति सतर्क नहीं होते और हमेशा अपनी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते हैं, तभी हालात बिगड़ते हैं. आप इस बात से डरे रहते हैं कि आप का सौरी बोलना इस बात को साबित कर देगा कि आप ने गलतियां की हैं. यही बात कई लोग पसंद नहीं करते. अगर आप सौरी नहीं कहना चाहते तो आप के पास और भी तरीके हैं यह जताने कि आप अपने बरताव और अपने कहे शब्दों के लिए कितने दुखी हैं.

कैसे कहें सौरी

शुरुआत ऐसे शब्दों से करें जिन से आप के जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को यह लगे कि आप उस से अपने बरताव के लिए वाकई बहुत शर्मिंदा हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि लोग आपस में हो रहे विवाद या बहस को खत्म करने के लिए वैसे ही सौरी बोल देते हैं. लेकिन उन्हें अपने किए पर कोई भी पश्चात्ताप नहीं होता. अगर आप सच में अपने बरताव के लिए माफी मांग रहे हैं तो यह जरूर तय कर लें कि आप में अपनेआप को बदलने की इच्छा है. दूसरी बात यह है कि आप सौरी बोल कर अपनी सारी गलतियों को स्वीकार रहे हैं न कि सफाई दे कर अपने बरताव के लिए बहस कर रहे हैं. ये सारी बातें आप के साथी को यह एहसास कराएंगी कि आप सच में अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हैं और उन सब को छोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं. बीती बातों को भूल कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं.

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कई लोगों को सौरी बोलने में काफी असहजता महसूस होती है तो कई लोग सौरी बोलने से कतराते हैं. लेकिन सौरी कह कर आप न केवल मन का बोझ हलका करते हैं, बल्कि सामने वाले व्यक्ति के मन की पीड़ा को भी दूर कर देते हैं. इस के दूरगामी नतीजे सामने आते हैं. आप किसी भी गलती के लिए सौरी बोल कर उसे बड़ी बात बनने से रोक सकते हैं. सौरी एक ऐसा शब्द है, जिसे बोलने से टूट रहे रिश्ते को आप न केवल बचाते हैं, बल्कि उस से और भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. फिर धीरेधीरे पुरानी बातें खत्म हो जाती हैं.

भेंट भी दें

सौरी बोलने के साथ आप अपने साथी को फूल या जो भी उन्हें पसंद हो, वह भेंट कीजिए. अगर डांस करना पसंद है तो उन्हें बाहर डांस के लिए ले जाइए और डांस करतेकरते उन्हें सौरी बोल दीजिए. कौफी हाउस या रेस्तरां में बैठ कर एक नई पहल करते हुए भी अपने किए पर खेद जता सकते हैं. जिस ने भी झगड़ा शुरू किया है या झगड़े की कोई भी वजह रही हो, उस पर कभी तर्कवितर्क नहीं करना चाहिए. पीछे मुड़ कर देखने का कोई फायदा भी नहीं है. आप यह तय कर लें कि आप सच में खेद महसूस कर रहे हैं. तय कर लीजिए कि आप केवल सामने वाले को खुश करने के लिए उसे सौरी नहीं बोल रहे. अपने पार्टनर की भावनाओं की कद्र करें और उन्हें तकलीफ देने की कोशिश न करें. अगर झगड़ा बहुत बढ़ गया है तो थोड़ी देर के लिए उन्हें अकेला छोड़ दें. उन्हें काल कर के या एसएमएस कर के परेशान न करें. 1-2 दिन इंतजार करें, फिर सारी बातें भुला कर अपना और अपने साथी का झगड़ा वहीं खत्म करें. अपनी गलती मान लेना सब से बड़ी बात है. इस से आप का और दुखी साथी का मन निर्मल हो जाता है. इसलिए जहां कहीं भी यह लगे कि आप गलत हैं, अपना जीवनसाथी हो या दफ्तर का साथी या फिर कोई भी रिश्तेदार, उसे सौरी बोल कर गिलेशिकवे दूर कर लीजिए. देर मत कीजिए वरना गांठें बढ़ती जाएंगी. सच मानिए यह सौरी बोलना अपनेआप में जादू से कम नहीं.

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Holi Special: Strawberry से बनाएं टेस्टी पुडिंग

लाल रंग की दिल के आकार वाली स्ट्रॉबेरी दिखने में जितनी अच्छी लगती है खाने में भी उतनी ही स्वादिष्ट होती है. स्ट्रॉबेरी एक लो केलोरी फल है जिसमें पानी, एंटीओक्सीट्स कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, केल्शियम, मैग्नीशियम, फायबर और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. यह वजन घटाने, प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करने के साथ साथ बालों, त्वचा और दिल को स्वस्थ रखने में भी सहायक है. इसे सलाद, जैम, आइसक्रीम और पुडिंग आदि के रूप में बड़ी आसानी से भोजन में शामिल किया जा सकता है. आज हम आपको स्ट्राबेरी से पुडिंग बनाना बता रहे हैं-

कितने लोगों के लिए                        4

बनने में लगने वाला समय                    30 मिनट

मील टाइप                                  वेज

सामग्री

ताज़ी स्ट्रॉबेरी                               6  ग्राम

ब्रेड स्लाइस                                  4

फुल क्रीम दूध                               1/2 लीटर

बारीक कटी मेवा                              3 टेबलस्पून

सादा बटर                                   1 टीस्पून

शकर                                       5 टेबलस्पून

कॉर्नफ्लोर                                   1 टेबलस्पून

स्ट्रॉबेरी रेड कलर                              2 बूंद

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विधि

स्ट्रॉबेरी सौस तैयार करने के लिए स्ट्रॉबेरी को धोकर पोंछ लें. 2 स्ट्रॉबेरी को छोडकर शेष को बारीक टुकड़ों में काट लें. एक पैन में 1 कप पानी डालकर शकर डाल दें. जब उबाल आ जाये तो कटी स्ट्रॉबेरी और 1 बूंद स्ट्रॉबेरी कलर डाल दें और लगभग 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाकर गैस बंद कर दें.

स्ट्रॉबेरी कस्टर्ड बनाने के लिए कॉर्नफ्लोर को आधे कप पानी में घोल लें. दूसरे पैन में दूध उबालें, जब उबाल आ जाये तो कॉर्नफ्लोर को लगातार चलाते हुए डालें. अच्छी तरह उबल जाये तो बचा फ़ूड कलर और 1 टेबलस्पून शकर मिलाकर गैस बंद कर दें.

ब्रेड के किनारे काटकर अलग कर दें. एक नानस्टिक पैन में बटर लगाकर ब्रेड स्लाइस को दोनों तरफ से सुनहरा सेंक लें.

एक चौकोर डिश में पहले एक बड़ा चम्मच स्ट्रॉबेरी कस्टर्ड डालकर 2 ब्रेड स्लाइस को इस तरह रखें कि कस्टर्ड पूरी तरह कवर हो जाये. उपर से तैयार स्ट्रॉबेरी सौस डालकर थोड़ी सी मेवा डाल दें. पुन; क्रमशः कॉर्नफ्लोर, ब्रेड स्लाइस, स्ट्रॉबेरी सौस, मेवा डालकर उपर से बचा कोर्नफ्लोर और मेवा डालकर ब्रेड को पूरी तरह कवर कर दें. बची 2 स्ट्रॉबेरी को पतले स्लाइस में काट कर उपर से सजा दें. ठंडा होने पर काटकर सर्व करें.

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