सही रास्ता: आखिर चोर कौन था

लेखक- डा. गोपाल नारायण आवटे

जैसे ही जेब में रुपयों को निकालने के लिए हाथ डाला तो उसे अनुभव हुआ, जेब में कुछ भी नहीं है. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं था. अभी महीना पूरा होने में 15 दिनों का समय शेष था.उस ने पत्नी को आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘मुन्ना की अम्मा, जरा इधर आओ.’’

मुन्ना की मम्मी सुबह काम में व्यस्त थी, लेकिन हाथ का काम छोड़ कर आ कर बोली, ‘‘क्या बात हो गई?’’

‘‘मेरी जेब से 2 हजार रुपए गायब हैं,’’ उस ने क्रोध से कहा.

‘‘कहीं रख कर भूल गए होंगे, देखो, मिल जाएंगे,’’ मुन्ना की मम्मी ने उत्तर दिया.

‘‘मेरा मतलब है तुम ने तो नहीं लिए?’’

‘‘मैं क्यों लेने लगी? अगर मुझे चाहिए होते तो क्या मैं तुम्हें बताती नहीं?’’ मुन्ना की मम्मी ने कहा, फिर आगे कह उठी, ‘‘तुम्हीं ने खर्च कर दिए होंगे और यहां खोज रहे हो.’’

‘‘तुम समझने की कोशिश करो, मैं ने ऐसा कोई खर्च नहीं किया, और करता भी तो क्या मुझे याद नहीं होता?’’ उस ने प्रतिवाद किया.

‘‘मैं ने तुम्हारे रुपए नहीं निकाले,’’ कहते हुए मुन्ना की मम्मी नाश्ता बनाने के लिए अंदर चली गई.

वह परेशान हो गया. आखिर रुपए, वह भी हजारों में थे, कैसे और कहां चले गए? परिवार में केवल एक बेटा मुन्ना ही है और वह जानता है कि मुन्ना को किसी भी प्रकार की कोई गंदी या नशे की आदत नहीं है कि वह चोरी करे या जेब से रुपए निकाले. पचासों बार उसे जब भी आवश्यकता रही, मुन्ना ने कहा था, ‘पापा, मुझे 50 रुपए चाहिए, पिकनिक पर जाना है.’

उस ने उस से कहा था, ‘जा कर पैंट की जेब में से निकाल लो.’ मुन्ना ने 50 ही रुपए लिए थे. कभी भी एक रुपए के लेनदेन में गड़बड़ी नहीं की थी. कभी बाजार से सौदा लाने को भेजते तो लौटने के बाद 2 रुपए भी बचते तो वह लौटा देता था. आज तक मुन्ना ने कभी बिना पूछे रुपए नहीं लिए. अब क्यों लेगा? यदि मुन्ना को रुपए लेने ही थे तो वह इतने रुपयों को क्यों लेता? इतने रुपयों का वह करेगा भी क्या?

पिछले दिनों उस ने मोबाइल खरीदने की मांग जरूर की थी, लेकिन उस ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘मुन्ना, तुम्हारी बर्थडे पर हम गिफ्ट कर देंगे. इन दिनों तंगी है.’

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‘जी पापा,’ मुन्ना ने कहा था.

वह बहुत परेशान हो गया था. अभी महीना भी पूरा नहीं हो पाया था, इस पर आजकल कितनी महंगाई है और आमदनी कितनी कम है. दिनभर आटोरिक्शा चलाने के बाद 2-3 सौ रुपयों की बचत हो पाती है. पत्नी से तो उस ने पूछ लिया, यदि मुन्ना से पूछ लें तो क्या हर्ज है? लेकिन बेटा क्या सोचेगा? उस को पूरे महीने की चिंता थी. उस ने मुन्ना को आवाज दी, जो अभी सो कर उठा था और बाथरूम में जाने की तैयारी में था. मुन्ना आ कर खड़ा हो गया.

‘‘मुन्ना, तुम ने कुछ रुपए निकाले?’’

‘‘कहां से?’’

‘‘मेरी जेब से.’’

‘‘नहीं, नहीं तो,’’ घबराए स्वर में मुन्ना ने कहा.

‘‘मेरी जेब से 2 हजार रुपए निकल गए बेटा, पता नहीं चल पा रहा कहां गए,’’ परेशानी भरे स्वर में उस ने कहा.

‘‘मैं जाऊं पापा?’’ मुन्ना का स्वर अभी तक घबराया सा था, मानो उसी ने चोरी की हो. लेकिन वह क्यों और किस काम के लिए रुपए निकालेगा? बारबार उस का शक मुन्ना पर जा कर पत्नी तक जाता और फिर वह पैंट की दूसरी जेबों में देखने लगता. अकसर इधरउधर वह जहां भी रुपयों को रख देता था, सब जगह उस ने रुपयों को देखा, लेकिन रुपयों को नहीं मिलना था, सो नहीं मिले.

हाथ से खर्च किए या किसी को दिए जाने पर रुपए कम पड़ जाने का दुख नहीं होता है, क्योंकि उस की जानकारी हमें होती है लेकिन अनायास जेब कट जाए या चोरी हो जाए या रुपए गिर जाएं तो सच में बहुत पीड़ा होती है.

आटोरिक्शा में न जाने कितनी बार किसी का मोबाइल या पर्स या थैला रह जाता तो वह यात्री को खोज कर उसे दे देता था या थाने में जा कर उस का सामान जमा करा देता था. लेकिन उस के साथ यह पहली बार ऐसी घटना घटी थी जिस की उसे कोईर् उम्मीद न थी. वह किस पर अविश्वास करे? फिर घर में कोई आयागया भी नहीं जो चोरी होती. हो सकता है कोई आया हो और उसे न पता हो. फिर उस ने पत्नी को आवाज दी. वह फिर आई.

‘‘क्या कल शाम को कोई मिलने वाली सहेली या मुन्ना के दोस्त आए थे?’’

‘‘कोई नहीं आया, तुम ही किसी को दे कर भूल गए होगे,’’ उस ने फिर पति को ही उलाहना दिया.

आखिर रुपए गए तो कहां? वह बारबार सोच रहा था. जितना सोचता उतना ही दुखी हो रहा था. बड़ी मेहनत से कमाए गए रुपए थे. उसे दुखी देख कर मुन्ना की मम्मी ने फिर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मिल जाएंगे. मैं चाय लाती हूं,’’ कह कर वह चली गई. मुन्ना भी बाथरूम से निकल कर टैलीविजन के सामने बैठ कर फिल्म देखने लगा था. वह चायनाश्ता टैलीविजन के सामने बैठ कर ही करता रहा था.

यह सच था कि बहुत अधिक भौतिक वस्तुएं वह नहीं खरीद पाता था, अधिक खर्च भी नहीं कर पाता था. मुन्ना कभी आइसक्रीम या चौकलेट लेने की जिद करता तो वह खिला जरूर देता, लेकिन खिलाने के बाद उसे बता भी देता था, ‘बेटा, हम अभी इतने अमीर नहीं हुए हैं कि फालतू खानेपीने पर 100-200 रुपए खर्च कर सकें.’ मुन्ना कभी नाराज नहीं होता था. वह भी जानता था कि वह एक गरीब परिवार का बेटा है. एकदो बार उस ने अपनी मां से कहा भी था, ‘मम्मी, स्कूल से छूटने के बाद

मैं किसी दुकान पर काम करने चले जाया करूं?’

‘क्यों?’

‘हम गरीब हैं न, पापा को कुछ मदद मिल जाएगी. उस की मां ने उसे सीने से लगा लिया और बालों में हाथ फेरते हुए कह उठी, ‘अभी इस की जरूरत नहीं है, पहले पढ़लिख ले, फिर ये

सब बातें बाद में करना.’ रात में उस ने अपने पति से भी यह बात बताई थी कि मुन्ना काम करने के लिए कह रहा था.

‘मैं जिंदा हूं अभी, खबरदार जो काम करने भेजा तो.’

‘मैं ने कब कहा भेजने को?’

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‘उस से कहो, पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाए.’ बात आईगई, हो गई, लेकिन आखिर रुपए कहां गए होंगे? वह जितना सोचता उतना ही उलझता जाता था. आखिर उस ने तय कर लिया कि एकएक घंटे अतिरिक्त आटोरिक्शा चला कर कर वह इस घाटे को पूरा कर लेगा.

2-3 सप्ताह में वह रुपयों की चोरी की बात को लगभग भूल ही गया था. जीवन शांति के साथ बीत रहा था. एक शाम वह घर लौट रहा था तो रास्ते में उन के महल्ले का पोस्टमैन मिल गया. अभिवादन के बाद उस ने पूछ ही लिया, ‘‘आज दिल्ली से पार्सल आया था, क्या था उस में?’’

‘‘दिल्ली से पार्सल, मतलब?’’ वह कुछ समझा नहीं, उस के कोई रिश्तेदार भी दिल्ली में नहीं थे, फिर किस ने पार्सल भेजा होगा और कैसा पार्सल? पोस्टमैन ने फिर कहा, ‘‘एक वीपीआर से पार्सल आया था तुम्हारे बेटे के नाम.’’

‘‘कितने का था?’’

‘‘2 हजार रुपयों का.’’

‘‘किस ने छुड़वाया?’’

‘‘तुम्हारे बेटे ने, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?’’

मुन्ना के पापा ने सब सूत्रों को जोड़ा तो बात समझ में आई कि मुन्ना ने कोई पार्सल मंगवाया था, रुपए भी निश्चित रूप से उस ने ही निकाले थे. उन्होंने पोस्टमैन से कहा, ‘‘वैसे ही पूछ लिया, मुन्ना बता तो रहा था पार्सल आने वाला है, लेकिन आज आया, यह मालूम नहीं था.’’

‘‘अच्छा, चलता हूं,’’ कह कर पोस्टमैन अपने घर की ओर मुड़ गया.

मुन्ना के पापा को अत्यधिक क्रोध हो आया, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि मुन्ना इस तरह चोरी करेगा. आखिर, उस ने ऐसा क्यों किया? क्रोध और दुख के मिलेजुले भाव से घर पर पहुंच कर उस ने मुन्ना को जोर से आवाज दी, ‘‘मुन्ना.’’

मुन्ना की मम्मी बाहर निकल आई, ‘‘क्या बात हो गई? इतने नाराज हो?’’

‘‘कहां है मुन्ना? 2 हजार रुपए उसी ने मेरी जेब से निकाले थे,’’ क्रोध में मुन्ना के पापा ने कहा. तब तक मुन्ना भी सामने आ गया था.

‘‘क्यों, तूने ही जेब से रुपए निकाले थे न?’’ मुन्ना ने नजरें नीची कर लीं.

‘‘क्यों चोरी किए थे तूने?’’ पापा ने क्रोध में मुन्ना से पूछा.

‘‘पार्सल में क्या आया? हम से कहता, हम तुझे बाजार से दिलवा देते,’’ पापा अभी भी चिल्ला रहे थे. मुन्ना की मम्मी बहुत आश्चर्य से सबकुछ देख रही थी.

‘‘पापा, वह यहां बाजार में नहीं मिलता,’’ मुन्ना ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘क्या मंगवाया था, बता मुझे,’’ पापा ने क्रोध में प्रश्न किया.

मुन्ना अंदर गया, एक छोटी सी पैकिंग ले आया और पापा की ओर बढ़ा दी.

‘‘क्या है इस में?’’

‘‘पापा, इस में अमीर होने का तावीज है जिस पर लक्ष्मीजी का मंत्र है, इसे धारण करने से घर में खूब रुपया आएगा. पापा, यह मैं ने आप के लिए लिया था ताकि हमारी गरीबी दूर हो सके,’’ मुन्ना ने भोलेपन से पापा के हाथों में वह तावीज देते हुए कहा.

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वह एक पेंडुलम था जिस की कुल कीमत 100 रुपए होगी लेकिन तुरंत वह अपने बेटे की भावनाओं को समझ गया और पलभर बाद ही उसे गले से लगा लिया और कहा, ‘‘बेटा, ऐसा हार पहनने से या पूजापाठ करने से कोई अमीर नहीं बनता, ईमानदारी से परिश्रम किए बिना हम कभी भी धनवान नहीं बन सकते. बेटा, यह सब तो व्यापार और पाखंड है.’’

मुन्ना सिर पकड़ कर बैठ गया. उसे समझ आ गया कि पाखंड का प्रचार कितना प्रभावशाली होता है कि पढ़ेलिखे, तर्क की भाषा जानने वाली, कौम भी ‘एक बार अपना कर देख लो’ की सोच का शिकार हो जाती है. मुन्ना तो कुछ अबोध था पर उस के पापा ने क्यों नहीं पाठ पढ़ाया कि यह पाखंड है. शायद इसलिए कि भक्ति का भय उस पर भी मन के कोने में छिपा था.

काले धब्बे वाला केला है हेल्थ के लिए फायदेमंद

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

कई लोग हाइजीन को ध्यान में रखते हुए काले धब्बे वाले केले नहीं खाते, जबकि कुछ लोग इसे सड़ा गला समझकर फेंक देते हैं. अगर आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं, तो जरा रूक जाएं. क्योंकि इस तरह के केले साफ सुथरे केले के मुकाबले  न केवल ज्यादा पौष्टिक होते हैं, बल्कि यह प्राकृतिक तरह से पके हुए भी होते हैं. जब केले ज्यादा पक जाते हैं, तब इनके गुण आठ गुना ज्यादा बढ़ जाते हैं. इस तरह से आप पके केले के जरिए भरपूर पोषण तत्व प्राप्त कर सकते हैं. एक रिसर्च के अनुसार, ऐसे केलों में कैंसर से लड़ने की ताकत बहुत होती  है. इनमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा और व्हाइट ब्लड सेल्स बढ़ाने की क्षमता में भी इजाफा होता है. इसके अलावा आप केवल एक केला खाकर भी घंटों तक आप बिना कुछ खाए बहुत देर तक एनर्जेटिक रह सकते हैं. तो चलिए आज के हमारे इस आर्टिकल में जानते हैं काले धब्बे वाले केले खाने के अन्य लाभों के बारे में.

काले धब्बे वाले केले खाने के लाभ-

केला कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, मिनरल, कैल्शियम, फाइबर आदि से भ्रपूर हारेता है. ये सभी तत्व मिलकर इसे सुपरफूड बनाते हैं. दुनिया में केले की 300 से ज्यादा किस्मे हैं. कच्चे केले या अधपके केले को खाने से बेहतर है कि काले धब्बे वाले केले को खाया जाए. यहां आप जान सकते हैं काले धब्बे वाले केले कैसे आपके लिए फायदेमंद हैं.

शरीर में ठंडक बनाए रखें-

गर्मी के दिनों में ज्यादा पके या काले धब्बे वाले केले खाने से शरीर को ठंडक मिलती है. इसे आप चाहें, तो बुखार में भी खा सकते हैं. अच्छा परिणाम मिलेगा.

तनाव दूर करे- 

महिलाओं में मासिक चक्र धर्म के दौरान तनाव होना आम है. ऐसे में कई उपाय भी उनकी मदद नहीं कर पाते. लेकिन एक बार काले धब्बे वाले केले खाकर देखें. इससे आपका खराब मूड सही हो जाएगा.

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खून की कमी दूर करे- 

खून की कमी को दूर करने के लिए काले धब्बे वाले केले बहुत अच्छे होते हैं. महिलाओं में खासतौर से एनीमिया की बहुत कमी पाई जाती है, ऐसे में अक्सर डॉक्टर्स काले धब्बे वाले केले खाने के लिए कहते हैं. वहीं ऐसे केले कमजोर हड्डियों को मजूबती प्रदान करने का काम  करते हैं.

एसिडिटी से राहत दिलाए- 

केला वैसे तो एसिडिटी से छुटकारा दिलाने के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन काले धब्बे वाला केले में एंटीएसिड गुण होने से एसिडिटी से तुरंत राहत  दिलाने की क्षमता अच्छी होती है. इससे सीने की जलन से भी राहत मिलती है. इसके लिए केले को चीनी के साथ मिलाकर खाना चाहिए. मैग्नीशियम की पर्याप्त मात्रा के कारण केले को आसानी से पचाया जा सकता है.

बीपी करे कंट्रोल-

काले धब्बे वाला केला खाने से बीपी कंट्रोल में रहता है. दरअसल, इसमें पोटेशियम ज्यादा होता है, जबकि सोडियम की मात्रा न के बराबर होती है. लेकिन दाग रहित केलों में पोटेशियम की मात्रा कम और सोडियम की मात्रा ज्यादा होती है. इसलिए बीपी कंट्रोल करने के लिए हमेशा काले धब्बे वाला केला ही खाएं.

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वजन बढ़ाए- 

चित्तेदार केला वजन बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है. जिन लोगों का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं बढ़ रहा, उन्हें रोज सुबह दूध के साथ एक केला खाना चाहिए. कुछ ही दिनों में वजन तेजी से बढ़ जाएगा.

प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करें-

जैसे-जैसे केला पकता है, इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट का स्तर भी बढ़ता जाता है. इसके साथ ही यह आपके प्रतिरक्षा तंत्र को मजूबत कर सफेद रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है.

अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: भाग 1- आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

किचन में जूठे बरतनों का ढेर लगा था तो बाथरूम में कपड़ों का. घर भी एकदम अस्तव्यस्त था. आभा की समझ में नहीं आ रहा था की शुरुआत कहां से करें. कितनी बार कहा नवल से कि वाशिंग मशीन ठीक करा दो, पर सुनते ही नहीं हैं. बाई भी जबतब छुट्टी मार जाती है. लगता है जैसे मुफ्त में काम कर रही हो. निकालती इसलिए नहीं उसे, क्योंकि फिर दूसरी जल्दी मिलती नहीं है और मिलती भी है तो उस के हजार नखरे होते हैं. बाईर् आज भी न आने को कह गई है.

रिनी से तो कुछ कहना ही बेकार है. जब भी आभा कहती है कि अब बच्ची नहीं रही. कम से कम कुछ खाना बनाना तो सीख ले, तो नवल बीच में ही बोल पड़ते कि पुराने जमाने सी बात मत करो. अरे, आज लड़कियां चांद पर पहुंच गई हैं और तुम अभी भी चूल्हेचौके में ही अटकी हुई हो. मेरी बेटी कोईर् बड़ा काम करेगी. तुम्हारी तरह यह घर के कामों में थोड़े उलझी रहेगी. आभा चुप लगा जाती. इस से रिनी और ढीठ बनती गई.

उस की सास निर्मला से तो वैसे भी घर का कोई काम नहीं होता. नहींनहीं, ऐसी बात नहीं कि अब उन का शरीर काम करना बंद कर चुका है. एकदम स्वस्थ हैं अभी भी, परंतु अपने पूजापाठ, धर्मकर्म और हमउम्र सहेलियों से उन्हें वक्त ही कहां मिलता है, जो वे आभा के कामों में हाथ बटाएंगी. साफ कह दिया है कि बहुत संभाल चुकीं वे घरगृहस्थी.

आभा भी उन से मदद नहीं मांगती, क्योंकि बारबार वही बातों को दोहराना, शिकायतें करना और वे भी तब जब कोई सुनने वाला ही न हो, तो इस से अच्छा तो यही लगा आभा को कि खामोश रहा जाए. इसलिए उस ने खामोशी ओढ़ कर घरबाहर की सारी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले लीं. लेकिन उस पर भी घर के लोगों को उस से कोई न कोई शिकायत रहती ही. खासकर निर्मला को. वे तो हमेशा बकबक करती रहतीं. पासपड़ोस से आभा की शिकायतें करतीं कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती है.

यहीं पास के ही शिव मंदिर से सटी अरविंद बाबा की कुटिया है, जहां वे अपने चेलेचपाटों के साथ निवास करते हैं. अच्छेअच्छे घरों की महिलाएं उन के चरणों में लोट कर खुद को धन्य मानती हैं और निर्मला भी. बाबा से पूछे बिना वे एक भी काम नहीं करतीं. बाबा का वचन मतलब सत्य वचन होता उन के लिए.

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आएदिन मंदिर में कोई न कोई उत्सव होता ही रहता. कभी ठाकुरजी का जन्म उत्सव, कभी ब्याह, कभी यज्ञोपवीत, कभी झूला, कभी जलविहार, कभी कुछ तो कभी कुछ लगा ही रहता. और इन अवसरों पर निर्मला भी खूब चढ़ावा चढ़ातीं. बाबा के बहाने ही तो आखिर उन्हें घर के कामों से फुरसत मिलती और दूसरी औरतों की कहानियां सुनने को मिलतीं. बाबा न होता तो जिम्मदारियों से जूझना पड़ता.

मेहनत की कमाई यों लूटे, अच्छा तो नहीं लगता पर धर्म के मामले में कौन मुंह खोले. इसलिए आभा और नवल चुप ही रहते थे. वैसे भी धर्मसंकट सब से बड़ा संकट होता है. लेकिन आभा इन कर्मकांडों का हिस्सा कभी नहीं बनी और इसीलिए निर्मला उस से क्षुब्ध रहतीं. गुस्सा तो आभा को तब आता, जब निर्मला उस अरविंद बाबा को अपने घर पर प्रवचन, भजन, कीर्तन करवाने बुला लेती थीं. महीने में यह

2-3 बार होता ही होता था. लेकिन इन सब ढकोसलों से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता और यही बात आभा को बरदाश्त नहीं होती. इसलिए एक दिन आभा ने इस बात का पुरजोर विरोध किया और कहा कि जरूरत नहीं इन बाबाओं को घर बुलाने की, क्योंकि वह इन सब ढकोसलों में बिलकुल विश्वास नहीं करती है, उसे तो बस कर्म पर भरोसा है.

नवल ने कुछ कहा तो नहीं, पर लगा आभा सही कह रही है और वैसे भी घर में जवान लड़की है, तो क्या जरूरत है मां को इन्हें घर पर बुलाने की? समझ गई निर्मला कि बेटा भी बहू की बात से सहमत है. कुछ कहा तो नहीं, पर मन ही मन बड़बड़ाईं कि यहां लोग दूरदूर से बाबा के दर्शन करने आते हैं, पर इन अभागों को कौन समझाए यह बात?

इधर कुछ दिनों से आभा की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. बहुत थकान महसूस हो रही थी. सिर भी भारीभारी लग रहा था. हलका बुखार भी रहने लगा था. खाने की इच्छा तो होती ही नहीं थी. जबरदस्ती अगर कुछ खा भी लेती, तो पेट में दर्द होने लगता और उलटी हो जाती. समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसे हो क्या गया है? जब नवल से कहती, तो वे चिढ़ कर कहते डाक्टर को दिखा लो. बहुत होता तो मैडिकल स्टोर से दवा ला कर पकड़ा देते और साथ में

10 बातें भी सुना देते कि उस सुमन से गप्पें मारने का समय होता है, घंटों सासबहू के सीरियल देख सकती, पर डाक्टर के पास नहीं जा सकती. घर में काम ही कितना होता है जो हर वक्त काम की दुहाईर् देती रहती है? ऐसी बातें बोल कर नवल आभा को चुप करा देता और वह बेचारी सोचती कि जाने दो ठीक हो जाएगा अपनेआप, पर मर्र्ज था कि दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था.

हमारे समाज में सदियों से औरतें खुद को इगनोर करती आई हैं. आज भी औरतों के लिए पहले पति, बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों का स्वास्थ्य सर्वोपरि होता है. आभा का भी यही हाल था. अगर घर में किसी को एक छींक भी आ जाए, तो परेशान हो उठती थी, लेकिन अपनी परेशानी ठीक हो जाएगी सोच कर टाल जाती थी.

उस दिन आभा का जी बहुत मिचला रहा था. सिर में दर्द तो इतना कि लग रहा था फट

ही जाएगा. सोचा नवल औफिस जा ही रहे हैं तो उसे डाक्टर के पास छोड़ देंगे और फिर वह दिखा कर वापस आ जाएगी. अत: बोली, ‘‘सुनिएजी, आप सिर्फ मुझे अस्पताल छोड़ दीजिए, मैं डाक्टर से दिखा कर वापस आ जाऊंगी.’’

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नवल जो गाना गुनगुनाते हुए अपनी टाई ठीक कर रहा था आभा की बात सुनते ही फूट पड़ा, ‘‘पागल हो क्या? खुद मुझे देर हो रही है और तुम और देर करवाने की फिराक में लगी हो? जाओ न खुद दिखा लो डाक्टर को. वैसे भी जब देखो, कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है तुम्हें… एक तो कमा कर खिलाओ और फिर ये सब लफड़े… नहीं होगा इतना मुझ से,’’ भुनभुनाते हुए नवल औफिस निकल गया और आभा हैरान सी उसे जाते देखती रह गई. लगा सब की सेवा करे तो ठीक, लेकिन अपने बारे में कुछ बोले, तो कैसे नवल खीज उठते हैं.

औरत की तो यही दशा है. सब के लिए सोचती है, लेकिन जब किसी को उस के लिए करना पड़ जाए, तो वह उकताने लगता है. बेचारी आभा, अपने दर्द को दरकिनार कर फिर घर के कामों में जुट गई.

रात में आभा को बड़ी बेचैनी होने लगी. गरम पानी के सेंक से और बाम लगा लेने से पेट दर्द और सिरदर्द तो कुछ ठीक हुआ, लेकिन सूखी खांसी बड़ी परेशान करने लगी. बुखार था सो अलग. कमजोरी से उठने का मन नहीं कर रहा था. लग रहा था कोई पानी पिला दे. इसलिए नवल को उठाया, लेकिन कैसे झल्लाते हुए उस ने उसे पानी दिया वही जानती है. बेचैनी के मारे फिर पूरी रात उसे नींद नहीं आई. सारा बदन दर्द के मारे टूट रहा था, मगर कहे तो किस से?

सुबह किसी तरह उठ चायनाश्ता बनाया. नवल को औफिस भेज कर किचन का बाकी काम अभी समेट ही रही थी कि एकदम से चक्कर आ गया और वहीं धड़ाम से गिर पड़ी. वह तो वक्त पर सुमन वहां पहुंच गईर् और उसे डाक्टर के पास ले गई वरना जाने क्या अनर्थ हो जाता. अस्पताल से ही रिनी ने पापा को फोन कर के बताया कि मां बेहोश हो गई हैं. जल्दी अस्पताल पहुंचें.

नवल आननफानन में वहां पहुंच गया. जांच कर डाक्टर ने बताया कि आभा को हैपेटाइटिस बी हुआ है और उसे अस्पताल में भरती करना पड़ेगा. सुन कर तो जैसे नवल को चक्कर ही आ गया. लगा अब घर कैसे चलेगा? आभा इतनी बीमार है इस की उसे जरा भी परवाह नहीं. चिंता होने लगी कि घर कैसे चलेगा?

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Valentine’s Special: घर पर बनें पनीर से बनाएं ये टेस्टी डिश

पनीर अधिकांश लोंगों को प्रिय होता है. कोई खास अवसर हो या किसी को भी कुछ खास महसूस कराना हो तो अक्सर पनीर की डिश बनाई जाती है. पनीर बनाने के लिए दूध को वेनेगर, नीबू का रस या फिर खट्टे दही से फाड़कर बनाया जाता है. स्टार्टर, स्नैक से लेकर सब्जियां और डेजर्ट तक पनीर से बनाये जाते हैं. पनीर में प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन और ओमेगा 3 भरपूर मात्रा में पाया जाता है. दूध से बने पनीर के अतिरिक्त सोयाबीन के दूध से भी पनीर बनाया जाता है जिसे टोफू कहा जाता है यह प्रोटीन का प्रचुर स्रोत होता है परन्तु सोया पनीर की अपेक्षा दूध से बने पनीर को आम लोंगों द्वारा अधिक पसन्द किया जाता है.

घर पर कैसे बनाएं पनीर

घर पर आप बड़ी आसानी से पनीर बना सकतीं हैं. घर पर पनीर बनाने से यह बाजार की अपेक्षा काफी सस्ता तो पड़ता ही है साथ ही बहुत हाइजीनिक भी रहता है. घर पर पनीर बनाने के लिए आप एक लीटर फुल क्रीम दूध को गैस पर उबलने रख दें. एक छोटी कटोरी में 2 टेबलस्पून सफेद सिरका या नीबू के रस में एक टीस्पून पानी मिलाकर रख लें. जब दूध लगभग उबलने वाला हो तो गैस को धीमा करें और धीरे धीरे तीन बार में सिरका डालें, एक चम्मच से चलाती रहें. कुछ ही देर में दूध फट जाएगा. जैसे ही दूध फटने लगे आप गैस बंद कर दें. अब साफ सूती कपड़े को एक छलनी में रखें और फटे दूध को डालकर ठंडा पानी डाल दें ताकि दूध का कुकिंग प्रोसेस बंद हो जाये. अब सूती कपड़े में गांठ लगाकर एक प्लेट में रखकर भारी चकले से दबा दें. 20 मिनट बाद चकला हटाकर पनीर निकाल लें. तैयार पनीर से अब आप अपनी मनचाही डिश तैयार कर सकतीं हैं.

ऐसे करें पनीर को स्टोर

तैयार पनीर को आप एयरटाइट जार में रखकर इतना पानी डालें कि वह पूरा पानी में डूब जाए. अब जार का ढक्कन लगाकर आप इसे फ्रिज में रखकर सप्ताह भर तक आराम से प्रयोग कर सकतीं हैं. बिना पानी के फ्रिज में रखने से पनीर की ऊपरी सतह कड़ी हो जाती है जो प्रयोग के लायक भी नहीं रहती.

रेस्टोरेंट जैसा पनीर बटर मसाला

कितने लोगों के लिए          4

बनने में लगने वाला समय      30मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री (ग्रेवी के लिए)

पनीर                   250  ग्राम

बटर                    1 टेबलस्पून

तेल                     1 टेबलस्पून

प्याज                   4

टमाटर(मीडियम)     3

लहसुन                  4 कली

अदरक                 1 इंच

हरी मिर्च                  3

साबुत लाल मिर्च        3

दालचीनी                 1 इंच टुकड़ा

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साबुत बड़ी इलायची      2

कश्मीरी लाल मिर्च       1 टीस्पून

दही                            2 टेबलस्पून

काजू                         10

धनिया पाउडर              1 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर         1 टीस्पून

गरम मसाला पाउडर        1 टीस्पून

हल्दी पाउडर                   1/2 टीस्पून

पानी                               1 टेबलस्पून

सामग्री(बघार के लिए)

बटर                             1 टेबलस्पून

तेल                              1 टेबलस्पून

कसूरी मैथी                    1 टेबलस्पून

बारीक कटा प्याज            1

बारीक कटे टमाटर            2

नमक                              स्वादानुसार

पानी                               1/2 कप

कश्मीरी लाल मिर्च           1 टीस्पून

विधि(ग्रेवी बनाने की)

दही में धनिया, कश्मीरी लाल मिर्च, गरम मसाला, और हल्दी पाउडर को अच्छी तरह मिक्स कर लें. एक  पैन में बटर और तेल गरम करके धीमी आंच पर प्याज को सौते करें फिर हरी मिर्च, साबुत लाल मिर्च, अदरक, लहसुन, दालचीनी और बड़ी इलायची को भूनकर मसाले वाला दही डालकर 1 से 2 मिनट तक  चलाते हुए भूनें. काजू डालकर टमाटर काट कर डाल दें. नमक और 1 टीस्पून कश्मीरी लाल मिर्च डालकर 1/2 कप पानी डालकर ढककर 5 मिनट तक धीमी आंच पर पकाकर गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर इसे मिक्सी में पेस्ट फॉर्म में पीसकर छलनी से छान लें.

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बघार के लिए एक पैन में गर्म बटर और तेल में प्याज, टमाटर, कसूरी मैथी, कश्मीरी लाल मिर्च भूनकर पिसी ग्रेवी डालकर एक उबाल ले लें. कटे पनीर के टुकड़े, पानी और नमक डालकर धीमी आंच पर ढककर 5 मिनट तक पकाकर गैस बंद कर दें. फ्रेश क्रीम और कटे हरे धनिए से सजाकर परांठा या रोटी के साथ सर्व करें.

प्यार की जीत: भाग 1- निशा ने कैसे जीता सोमनाथ का दिल

‘‘मैं बिलाल से बेइंतहा मोहब्बत करती हूं. चाहे कुछ भी हो जाए मैं उसी से शादी करूंगी. आप मुझे कुछ भी कर के रोक नहीं सकते. मेरे जन्म से आज तक इन 21 सालों में आप ने सिर उठा कर भी मेरी ओर नहीं देखा क्योंकि मैं एक बेटी हूं. ऐसे में आप अब क्यों मेरी जिंदगी में दखल दे रहे हैं? यह मेरी जिंदगी है. अगर इस मामले में भी मैं आप की बात सुनूंगी तो मेरी पूरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकती हूं. गलत क्या है और सही क्या है, यह मैं जानती हूं. इस के अलावा मैं अब नाबालिग नहीं हूं. अपना जीवनसाथी  चुनने का अधिकार है मुझे.’’ अपने समक्ष खड़ी अपनी बेटी निशा की बातें सुन कर सोमनाथ आश्चर्यचकित रह गए.

सोमनाथ को यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो उन के सामने बोल रही है वह उन की बेटी निशा है. निशा ने इस घर में आए इन 2 सालों में अपने पिता के सामने कभी इतनी हिम्मत से बात नहीं की.

निशा को अपने पिता से इस तरह बात करते हुए देख कर उस की मां लक्ष्मी भी हैरान थी. उसे भी निशा के इस नए रूप को देख कर यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह उस की बेटी निशा ही है. अगर एक सलवारकमीज खरीदनी होती तो भी वह अपने पापा से पूछने के लिए घबराती. अपनी मां के पास आ कर ‘मां, आप ही पापा से पूछिए और खरीद दीजिए न प्लीज, प्लीज मां’ बोलने वाली निशा आज अपने पापा के सामने अचानक शेरनी कैसे बन गई? अपने पापा के सामने इस तरह खड़े हो कर बेधड़क बातें कर रही निशा को देख कर लक्ष्मी सन्न रह गई.

उस से भी बड़ी हैरानी की बात यह है कि निशा का यह कहना कि वह एक मुसलमान युवक से प्यार करती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. इस प्रस्ताव को सोमनाथ के सामने रखने के लिए भी हिम्मत चाहिए, क्योंकि सोमनाथ एक कट्टर हिंदू हैं. उन के सामने उन की बेटी कह रही है कि वह एक मुसलमान युवक से शादी करना चाहती है. लक्ष्मी ने मन में सोचा कि जो भी हो, निशा की हिम्मत की दाद देनी चाहिए.

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एक कड़वा सच यह है कि लक्ष्मी कभी अपने पति के सामने ऐसी बातें नहीं कर सकती थी. शादी हुए इन 30 सालों में लक्ष्मी ने पति के सामने कभी अपनी राय जाहिर नहीं की. उन के परिवार की प्रथा है कि औरतों को आजादी न दी जाए. उन का मानना है कि स्त्री का दर्जा हमेशा पुरुष से कम होता है.

मगर लक्ष्मी के मायके की बात अलग थी. लक्ष्मी के पिता ने उसे एक महारानी की तरह पालपोस कर बड़ा किया. उस के पिता की 3 बेटियां थीं और वे इस से बहुत खुश थे. वे अपनी लड़कियों को घर की महालक्ष्मी मानते थे और उन्हें भरपूर स्नेह व इज्जत देते. उन्हें अपनी तीनों बेटियों पर गरूर था खासकर अपनी बड़ी बेटी लक्ष्मी पर. लक्ष्मी की बातों को वे सिरआंखों पर रखते थे. लक्ष्मी की ख्वाहिश का मान करते हुए उन्होंने उसे अंगरेजी साहित्य में बीए करने की इजाजत दी.

लक्ष्मी के पिता ने अपनी बेटी की शादी के मामले में एक गलत फैसला ले लिया. सोमनाथ के परिवार के बारे में अच्छी तरह पूछताछ किए बगैर उस परिवार की शानोशौकत को देख कर अपनी बेटी की शादी सोमनाथ से करवाई. शादी के दूसरे दिन ही लक्ष्मी को ससुराल में एक झटका सा लगा. लक्ष्मी को अंगरेजी अखबार पढ़ते देख कर उस के ससुर ने उसे फटकारा, ‘इस तरह सुबह अंगरेजी अखबार पढ़ना एक बहू को शोभा देता है क्या? तुम्हारी मां ने तुम्हें यही सिखाया है क्या? मर्दों की तरह औरतों का अखबार पढ़ना अच्छे संस्कार नहीं हैं. दुनिया के बारे में जान कर तुम क्या करोगी? तुम्हारा काम है रसोई में खाना पकाना और बच्चे पैदा कर के उन का पालनपोषण करना, समझी तुम?’ ससुरजी की बातें सुन कर लक्ष्मी को ताज्जुब हुआ.

ससुराल में आए कुछ ही दिनों में लक्ष्मी को पता चल गया कि औरतों को मर्दों का गुलाम बना कर रहना ही इस घर की परंपरा है. न चाहते हुए भी लक्ष्मी ने अपनेआप को बदलने की कोशिश की.

समय आया जब लक्ष्मी अपने पहले बच्चे की मां बनने वाली थी. जब डाक्टर ने यह खबर सुनाई तो लक्ष्मी बेहद खुश हुई. उस ने खुशी से अपने पति सोमनाथ को यह समाचार सुनाया तो उन्होंने कहा, ‘‘सुनो, अगर लड़का पैदा हुआ तो उसे ले कर इस घर में आना. लड़की पैदा हुई तो उसे अपने मायके में छोड़ कर आना, समझी. खानदान को आगे बढ़ाने के लिए मुझे लड़का ही चाहिए.’’ यह सुनते ही लक्ष्मी सन्न रह गई. वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई आदमी अपनी पहली संतान के बारे में ऐसा भी सोच सकता है.

बहरहाल, लक्ष्मी ने एक लड़के को जन्म दिया और उस के बाद लक्ष्मी की इज्जत उस घर में बढ़ गई. इस का कारण यह था कि लक्ष्मी की दोनों जेठानियां अपनी पहली संतान लड़की होने केकारण उन्हें अपने मायकों में ही छोड़ कर आईर् थीं. लक्ष्मी के ससुर ने उसे एक कीमती गहना तोहफे में दिया. उस के 2 वर्षों बाद जब लक्ष्मी का दूसरा लड़का पैदा हुआ तब से सोमनाथ अपना सीना चौड़ा करते हुए घूमते थे.

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लक्ष्मी के कई बार मना करने के बावजूद उस के दोनों बेटों संदीप और सुदीप को उस के पति और ससुर ने लाड़प्यार दे कर बिगाड़ दिया. अगर लक्ष्मी बीच में बोले तो, ‘ये दोनों लड़के हैं, शेर हैं मेरे बच्चे. उन्हें पढ़ने की कोई जरूरत नहीं. कुछ भी कर के जिंदगी में सफल हो जाएंगे,’ कह कर लक्ष्मी के दोनों बेटों को पूरी तरह बिगाड़ दिया सोमनाथ ने. लक्ष्मी बेबस हो कर देखती रह गई.

इतने में लक्ष्मी तीसरी बार गर्भवती हुई. सोमनाथ तो बड़े गरूर से कहता रहा, ‘यह भी बेटा ही होगा.’ सोमनाथ की इस बेवकूफी को देख कर लक्ष्मी को समझ में ही नहीं आया कि वह रोए या हंसे.

मगर इस बार लक्ष्मी के एक खूबसूरत बेटी पैदा हुई. लक्ष्मी ने अपनी नन्ही सी परी को अपने सीने से लगा लिया. जब सोमनाथ को यह खबर मिली कि लक्ष्मी ने एक लड़की को जन्म दिया है तो वे गुस्से से पागल हो गए. बच्ची को देखने के लिए भी नहीं आए और ऊपर से उन्होंने चिट्ठी लिखी कि घर वापस आते समय बेटी को मायके में छोड़ कर आना. अगर वहां भी बच्ची को पालना नहीं चाहें तो उसे किसी अनाथ आश्रम में दाखिल करवा देना.

लक्ष्मी अपनी बच्ची को अपनी छोटी बहन के हवाले कर अपने पति के घर वापस आ गई. लक्ष्मी की बहन के 2 बेटे थे, इसलिए उस ने खुशीखुशी लक्ष्मी की बेटी की परवरिश करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. लक्ष्मी की छोटी बहन ने उस प्यारी सी बच्ची का नाम निशा रखा.

लक्ष्मी के बेटे संदीप और सुदीप दोनों अव्वल नंबर के निकम्मे, बदतमीज और बदचलन बने. 10वीं कक्षा में दोनों फेल हो गए और लफंगों की तरह इधरउधर घूमने लगे. लाख कोशिशों के बावजूद लक्ष्मी अपने बेटों को अच्छे संस्कार नहीं दे पाई. संदीप और सुदीप दोनों गैरकानूनी काम कर के 2 बार जेल भी जा चुके थे.

लक्ष्मी ने अपनी बहन की चिट्ठी से यह जान लिया कि निशा पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहती है और अच्छे संस्कारों से आगे बढ़ रही है. लक्ष्मी को इतनी कठिनाइयों के बीच इसी समाचार ने खुश रखा. मगर वह खुशी बहुत दिनों तक नहीं टिकी. लक्ष्मी की छोटी बहन, जिसे कोई बीमारी नहीं थी, अचानक दिल का दौरा पड़ा और 4 दिन अस्पताल में रहने के बाद चल बसी. उस के पति ने सोचा कि एक 21 साल की लड़की को बिन मां के पालना खुद से नहीं होगा, इसलिए निशा को लक्ष्मी के पास छोड़ने का फैसला लिया. उस वक्त निशा फैशन टैक्नोलौजी का कोर्स कर रही थी और वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी.

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अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: भाग 2- आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

रिनी को घर भेज कर वह आभा के पास ही रुक गया. सोचने लगा कि बैठेबैठाए यह कौन सी मुसीबत आन पड़ी? अब घरबाहर के काम कौन करेगा? आभा पर ही गुस्सा आने लगा उसे कि अगर खुद पर ध्यान देती तो यह मुसीबत न आती. अब क्या करेगा वह? घर, औफिस और अस्पताल के चक्कर में तो मर ही जाएगा.

‘‘पहले वहां जा कर पैसे जमा कर आइए,’’ जब नर्स ने कहा, तो नवल का ध्यान टूटा. लगा अब 4-6 हफ्तों का चक्कर तो लग ही गया, क्योंकि डाक्टर कह रहा था कि इलाज में वक्त लगेगा. सोचसोच कर नवल का माथा घूम रहा था, जो आभा से छिपा न रह सका. वह समझ रही थी कि नवल पर कैसी मुसीबत आन पड़ी. घरबाहर सब कैसे मैनेज होगा? अगर जल्दी अस्पताल से छुट्टी मिल जाए तो अच्छा है. बेचारी को अब भी नवल की ही फिक्र हो रही थी और वह मन ही मन आभा को ही कोसे जा रहा था जैसे उस ने खुद बीमारी को बुलावा दिया हो. वह बेचारी तो खुद दर्द से तड़प रही थी, लेकिन फिर भी नवल का मुंह देखे जा रही थी. अब भी उसे घर की ही चिंता लगी थी कि वहां सब कैसे होगा.

‘‘सुनिएजी, सुमन है मेरे पास, तो आप घर जाइए. वहां भी सब परेशान हो रहे होंगे. जल्द ही ठीक हो जाऊंगी. आप चिंता मत कीजिए,’’ दर्द से कहराते हुए आभा ने कहा.

मगर नवल उस की बातों पर ऐसा झल्ला उठा कि पूछो मत. मुंह बनाते हुए बोला, ‘‘क्या चिंता न करूं? अगर तुम खुद का ध्यान रखती, तो आज यह दिन न आता?’’

मगर वह भूल गया कि एक वही है जो घर में सब का ध्यान रखती है. घरबाहर के कामों से ले कर सब की छोटीबड़ी जरूरतों तक की जिम्मेदारी उसी की है, तो कहां बेचारी को समय मिलता है जो अपना ध्यान रखे.

आभा के अस्पताल में रहने से हफ्तेभर में ही घर की हालत बिगड़ने लगी. इधर नवल औफिस और अस्पताल के चक्कर में पिस रहा था और उधर रिनी और निर्मला घर के कामों को ले कर उलझ पड़तीं. सोनू भी अपनी मनमानी करने लगा था. आभा थी तो डांटडपट कर उसे पढ़ने बैठा दिया करती थी, लेकिन उस के न रहने से वह एकदम लापरवाह हो गया था. दिनभर दोस्तों के साथ घूमताफिरता. जब पूछो, तो सोनू घर पर नहीं है, सुनने को मिलता और नवल का माथा गरम हो जाता. लेकिन किसेकिसे देखे वह?

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तभी सुमन आ कर बोली कि उस का पति 14 दिनों के लिए औफिस के काम से बाहर जा रहा है, तो आज रात से वह आभा के पास रुक जाया करेगी. सुन कर नवल ने राहत की सांस ली, क्योंकि वह कई दिनों से ठीक से सो भी नहीं पा रहा था. लगा, जिस सुमन को वह चुगलखोर औरत कह कर संबोधित करता रहा, जिसे देखते ही उसे चिढ़ होने लगती थी आज वही सुमन उस के काम आ रही है. एक वही थी जो आभा के पास जा कर बैठती थी, जब नवल औफिस में होता तब.

आभा के लिए सुबह का चायनाश्ता, दोपहर का खाना ज्यादातर वही तो बना कर ले जाती थी. अपनी करनी पर पछतावा कर मन ही मन वह सुमन का शुक्रगुजार होने लगा. नवल को अब आभा की चिंता सताने लगी थी, क्योंकि डाक्टर कह रहा था कि अगर हैपेटाइटिस बीमारी लंबे समय तक रहे तो लिवर काम करना बंद कर सकता है या फिर कैंसर अथवा घाव हो सकते हैं. कहीं आभा को ऐसा कुछ हो गया तो बिस्तर पर पड़ेपड़े ही वह सोचने लगा. चिंता के मारे उसे नींद नहीं आ रही थी.

नवल जैसे ही अस्पताल पहुंचा तो आभा का मृत शरीर बैड पर पड़ा दिखा.

दोनों बच्चे बिलख रहे थे. निर्मला भी एक कोने में दुबकी यह कहकह कर सिसक रही थीं कि उस के मरने की उम्र न थी. फिर आभा क्यों चली गई? उधर सुमन उसे धिक्कार रही थी कि वही आभा की मौत का जिम्मेदार है. उसी ने उस की जान ली. कहती रही तबीयत ठीक नहीं है दिखा दो डाक्टर को पर नहीं दिखाया. लो देखो मर गई न… मौज करो अब. तभी अचानक हवा का झोंका आया और खिड़की का पल्ला धड़ाम से बंद हुआ तो नवल घबरा कर उठ बैठा. देखा, वहां कोई न था सिवा उस के.

‘उफ, तो यह सपना था?’ अपने दिल पर हाथ रख नवल ने एक गहरी सांस ली और फिर आभा की याद सताने लगी. मन हुआ फोन कर ले, पर लगा नहीं, अस्पताल है. लेकिन आभा को ले कर उस के मन में बुरेबुरे विचार आने लगे. ऐसा ही होता है, मुसीबत के वक्त नकारात्मक बातें दिमाग पर ज्यादा हावी हो जाती है. चाह कर भी इंसान अच्छी बातें सोच नहीं पाता. घबराहट के मारे वह पसीने से तरबतर हो गया. प्यास के मारे गला भी सूखने लगा. देखा, तो जग खाली पड़ा था. आभा थी तो रोज पानी भर कर रख दिया करती थी.

जैसे ही नवल पानी लेने किचन की तरफ जाने लगा, देखा, रिनी के कमरे की लाइट औन है. लगा भूल गई होगी, लेकिन जब कमरे से फुसफुसाने की आवाज आई, तो वह उस ओर बढ़ गया.

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वह फोन पर किसी से कह रही थी, ‘‘अरे, समझो, पापा घर पर ही हैं तो कैसे आऊं?’’

उधर से फिर उस ने कुछ बोला, तो रिनी कहने लगी, ‘‘कहा न नहीं आ सकती, अब फोन रखो कोई सुन लेगा… हांहां कल देखती हूं.’’

‘‘रिनी…’’ नवल जोर से चीखा. उस के हाथ से फोन खींच कर अभी कुछ बोलता कि तभी उधर से उस ने फोन काट दिया. दोबारा

फोन मिलाया, पर स्विच औफ आने लगा. जाहिर सी बात थी उस ने अपना फोन स्विचऔफ कर दिया था. लेकिन इतना तो पता चल गया नवल को कि रिनी किसी लड़के से बात कर रही थी. गुस्से से पापा को लाल होते देख रिनी डर के मारे थरथराने लगी.

‘‘किस से बात कर रही थी? कौन था यह लड़का?’’ नवल ने गुस्से में पूछा.

‘‘क… क कौन लड़का… कोई तो नहीं पापा,’’ रिनी साफ झूठ बोल गई.

‘‘चुप, झूठ मत बोल… अभी मैं ने सुना तुम किसी लड़के से मिलने की बात कर रही थी, पर पापा घर पर हैं इसलिए नहीं आ सकती… यही कहा न तुम ने उस लड़के से? बोलो कौन है वह?’’ नवल चीखते हुए बोला.

‘‘कोई तो न था पापा,’’ रिनी बोली.

नवल ने एक जोर का चांटा रिनी के मुंह पर मारते हुए कहा, ‘‘खबरदार जो आज के बाद बिना मेरे पूछे घर से बाहर कदम भी निकाला.’’

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हमदर्द

कावेरी सन्न रह गई. लगा, उस के पैरों की शक्ति समाप्त हो गई है. कहीं गिर न पड़े इस डर से सामने पड़ी कुरसी पर धम से बैठ गई. 27 साल के बेटे को जो बताना था वह बता चुका  था और अब मां की पेंपें सुनने के लिए खड़े रहना उस के लिए मूर्खता छोड़ और कुछ नहीं था. फिर मां के साथ इतना लगाव, जुड़ाव, अपनापन या प्यार उस के मन में था भी नहीं जो अपनी कही हुई भयानक बात की मां के ऊपर क्या प्रतिक्रिया है उस को देखने के लिए खड़ा हो कर अपना समय बरबाद करता.

कावेरी ने उस की गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनी और कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर निढाल सी फैल गई. जीतेजागते बेटे से यह बेजान लकड़ी की बनी कुरसी उस समय ज्यादा सहारा दे रही थी. काम वाली जशोदा आटा पिसवाने गई थी. अत: जब तक वह नहीं लौटती अकेले घर में इस कुरसी का ही सहारा है.

पति का जब इंतकाल हुआ तो बेटा 8वीं में था. कावेरी को भयानक झटका लगा पर उस में साहस था. सहारा किसी का नहीं मिला, मायके वालों में सामर्थ्य ही नहीं थी, ससुराल में संपन्नता थी पर किसी के लिए कुछ करने का मन ही नहीं था.

वह समझ गई थी कि अब अपनी नाव को आप ही खींच कर किनारे पर लाना है. पति के फंड का पैसा ले कर मासिक ब्याज खाते में जमा किया. बीमा का जो पैसा मिला उस से आवासविकास का यह घर खरीद लिया. ब्याज जितना आता खाना और बेटे की पढ़ाई हो जाती पर कपड़ा, सामाजिकता, बीमारी आदि सब कैसे हो? उस का उपाय भी मिल गया. पड़ोस में एक प्रकाशक थे, पाठ्यक्रम की किताबें छापते थे. उन से मिल कर कुछ अनुवाद का काम मांग कर लाई. उस से जो आय होती उस का काम ठीकठाक चल जाता. अब अभाव नहीं रहा.

जशोदा को पूरे समय के लिए रख लिया. गाड़ी पटरी पर आ कर ठीकठाक चलने लगी. उस ने सोचा जीवन ऐसे ही कट जाएगा पर इनसान जो सोचता है उस के विपरीत करना ही नियति का काम है तो कावेरी के सपने भला कैसे पूरे होते.

अपने सपने पूरे नहीं होंगे इस का आभास तो बेटे के थोड़ा बडे़ होते ही कावेरी को होने लगा था. बेटा वैसे तो लोगों की नजरों में सोने का टुकड़ा है. पढ़ने में सदा प्रथम, कोई बुरी लत नहीं, बुरी संगत नहीं, रात में कभी देर से नहीं लौटता, पैसा, फैशनेबुल कपड़े या मौजमस्ती के लिए कभी मां को तंग नहीं करता पर जैसेजैसे बड़ा होता जा रहा था कावेरी अनुभव करती जा रही थी कि बेटे का रूखापन उस के प्रति बढ़़ता जा रहा था.

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कोई लगाव, प्यार तो मां के प्रति बचा ही नहीं था. तेज बुखार में भी उठ कर बेटे को खाना बनाती और बेटा चाव से खा कर घर से निकल जाता. भूल कर भी यह नहीं पूछता कि मां, कैसी तबीयत है.

कावेरी इन बातों को कहे भी तो कैसे? ऊपर को मुंह कर के थूको तो थूक अपने मुंह पर आ कर गिरता है. दुश्मन भी यह जान कर खुश होंगे कि बेटा उस के हाथ के बाहर है. दूसरी बात यह थी कि उस के मन में भय भी था कि पति का छोड़ा यह घर उन के पीछे बिना बिखरे टिका  हुआ है. लड़ाईझगड़ा करे और बेटा घर छोड़ कर चला जाए तो एक तो घर घर नहीं रहेगा, दूसरी और बड़ी बात होगी कम उम्र की कच्ची बुद्धि ले घर से निकल वह अपना ही सर्वनाश कर लेगा.

बेटा कैसा भी आचरण क्यों न करे वह तो मां है. बेटे को सर्वनाश के रास्ते में नहीं धकेल सकती, अवहेलना अनादर सह कर भी नहीं. इन सब परिस्थितियों के बीच भी एक आशा की किरण टिमटिमा रही थी कि बेटा बिल्लू एम.बी.ए. कर एक बहुत अच्छी कंपनी में उच्च पद पर लग गया है. सुना है ऊंचा वेतन है. हां, यह जरूर है कि वेतन का बेटे ने एक 10 का नोट भी उस के हाथ पर रख कर नहीं कहा, ‘मां, यह लो, अपने लिए कुछ ले लेना.’

घर जैसे पहले वह चलाती थी वैसे ही आज भी चला रही है. अब तो बड़ेबड़े घरों से अति सुंदर लड़कियों के रिश्ते भी आ रहे हैं. कावेरी खुशी और गर्व से फूली नहीं समा रही. इन में से छांट कर एक मनपसंद लड़की को बहू बना कर लाएगी तो घर का दरवाजा हंस उठेगा. बहू उस के साथसाथ लगी रहेगी. बेटे से नहीं पटी तो क्या? पराई बेटी अपनी बेटी बन जाएगी पर बेटे ने उस की उस आशा की किरण को बर्फ की सिल्ली के नीचे दफना दिया और वह खबर सुना कर चला गया था जिस से उस के शरीर में जितनी भी शक्ति थी समाप्त हो गई थी और बेजान कुरसी ने उसे सहारा दिया.

आज कावेरी को पहली बार लगा कि जीवन उस के लिए बोझ बन गया है क्योंकि इनसान जीता है किसी उद्देश्य को ले कर, कोई लक्ष्य सामने रख कर. जिस समय पति की मृत्यु हुई थी तब भी उसे लगा था कि जीवन समाप्त हो गया पर उस को जीना पड़ेगा, सामने उद्देश्य था, लक्ष्य था, बेटा छोटा है, उस को बड़ा कर उस का जीवन प्रतिष्ठित करना है, उस का विवाह कर के घर बसाना है. मौत भी आ जाए तो उस से कुछ सालों की मोहलत मांग बेटे के जीवन को बचाना पड़ेगा पर आज तो सारे उद्देश्य की समाप्ति हो गई, जीवन का कोई लक्ष्य बचा ही नहीं पर बुलाने से ही मौत आ खड़ी हो इतनी परोपकारी भी नहीं.

जशोदा लौटी. आटे का कनस्तर स्टोर में रख कर साड़ी झाड़ती हुई आ कर बोली, ‘‘आंटी, नाश्ता बना लूं? भैया चला गया क्या? बाहर गाड़ी नहीं है.’’

‘‘रहने दे, मेरा मन नहीं है. तू कुछ खा ले फिर भैया का कमरा ठीक से साफ कर दे, आता ही होगा.’’

‘‘फिर कुछ हुआ? अरे, बिना खाए मर भी जाओ तो भी बेटा पलट कर नहीं देखने या पूछने वाला. तुम इतनी बीमार पड़ीं पर कभी बेटे ने पलट कर देखा या हाल पूछा?’’

‘‘बात न कर के कमरा साफ कर… आता ही होगा.’’

‘‘कहां गया है?’’

‘‘ब्याह करने.’’

इतना सुनते ही जशोदा धम से फर्श पर बैठ गई.

‘‘जल्दी कर, रजिस्ट्री में समय ही कितना लगता है…बहू ले कर आता होगा.’’

‘‘बेटा नहीं दुश्मन है तुम्हारा. कब से सपने देख रही हो उस के ब्याह के.’’

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‘‘सारे सपने पूरे नहीं होते. उठ, जल्दी कर.’’

‘‘कौन है वह लड़की?’’

‘‘मैं नहीं जानती, नौकरी करती है कहीं.’’

‘‘तुम भी आंटी, जाने क्यों बेटे के इशारे पर नाचती हो? अपना खाती हो अपना पहनती हो…उलटे बेटे को खिलातीपहनाती हो. सुना है मोटी तनख्वाह पाता है पर कभी 10 रुपए तुम्हारे हाथ पर नहीं रखे और अब ब्याह भी अपनी मर्जी का कर रहा है. ऐसे बेटे के कमरे की सफाई के लिए तुम मरी जा रही हो.’’

गहरी सांस ली कावेरी ने और बोली, ‘‘क्या करूं, बता. पहले ही दिन, नई बहू सास को बेटे से गाली खाते देख कर क्या सोचेगी.’’

‘‘यह तो ठीक कह रही हो.’’

जब बड़ी सी पहिए लगी अटैची खींचते बिल्लू के साथ टाइट जींस और टीशर्ट पहने और सिर पर लड़कों जैसे छोटेछोेटे बाल, सांवली, दुबलीपतली लावण्यहीन युवती को ले कर आया तब घड़ी ठीक 12 बजा रही थी. एक झलक में ही लड़की का रूखा चेहरा, चालचलन की उद्दंडता देख कावेरी समझ गई कि उसे अब पुत्र मोह को एकदम ही त्याग देना चाहिए. यह लड़की चाहे जो भी हो उस की या किसी भी घर की बहू नहीं बन सकती. पता नहीं बिल्लू ने क्या सोचा? बोला, ‘‘रीटा, यह मेरी मां है और मां यह रीटा.’’

जरा सा सिर हिला या नहीं हिला पर वह आगे बढ़ गई. कमरे में जा कर बिल्लू ने दरवाजा बंद कर लिया. हो गया नई बहू का गृहप्रवेश. और नई चमचमाती जूती के नीचे रौंदती चली गई थी वह कावेरी के वे सारे सपने जो जीवन की सारी निराशाओं के बीच बैठ कर देखा करती थी. सुशील बहू, प्यारेप्यारे पोतेपोती के साथ सुखद बुढ़ापे का सपना.

जशोदा लौट कर रसोई की चौखट पर खड़ी हुई और बोली, ‘‘आंटी, यह औरत है या मर्द, समझ में नहीं आया.’’

जशोदा इतनी मुंहफट है कि उस की हरकतों से डरती है कावेरी. पता नहीं नई बहू के लिए और क्याक्या कह डाले. पहले दिन ही वह बहू के सामने बेटे से अपमानित नहीं होना चाहती. पर यह तो सच है कि अब उस को कुछ सोचना पड़ेगा. देखा जाए तो बेटे का जो बरताव उस के साथ रहा उस से बहुत पहले ही उस को अलग कर देना चाहिए था पर अनजान मोह से वह बंध कर रह गई.

‘‘अब तो मां के सहारे की उसे कोई जरूरत नहीं…अब क्यों साथ रहना.’’

जशोदा ने खाना बना कर मेज पर लगा दिया. न चाहते हुए भी कावेरी ने थोड़ी खीर बनाई. जशोदा फिर बौखलाई.

‘‘अब ज्यादा मत सिर पर चढ़ाओ.’’

‘‘नई बहू है, उसे तो पूरी खिलानी चाहिए. मीठा कुछ मंगाया नहीं, थोड़ी खीर ही सही.’’

‘‘अब तुम रहने दो. कहां की नई बहू? पैंट, जूता, बनियान में आई है, सास के पैर छूने तक का ढंग नहीं है. लगता है कि घाटघाट का पानी पी कर इस घाट आई है.’’

कंधे झटक जशोदा चली गई. थोड़ी देर में दोनों अपनेआप खाने की मेज पर आ बैठे. बेटा तो कुरतापजामा पहने था. बहू घुटनों से काफी ऊंचा एक फ्राक जैसा कुछ पहने थी और ऊपर का शरीर आधा नंगा था.

बेटे से एक शब्द भी बोले बिना कावेरी ने बहू को पारखी नजर से देखा. दोनों चुपचाप खाना खा रहे थे. उस के मुख पर भले घर की छाप एकदम नहीं थी और संस्कारों का तो जवाब नहीं. सास से एक बार भी नहीं कहा कि आप भी बैठिए. और तो और, खाने के बाद अपनी थाली तक नहीं उठाई और दरवाजा फिर से बंद हो गया.

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घर का वातावरण एकदम बदल गया. यह स्वाभाविक ही था. घर में जब बहू आती है तो घर का वातावरण ही बदल जाता है. उसे भोर में उठने की आदत है. फ्रेश हो कर पहले चाय बनाती, आराम से बैठ कर चाय पीती, तब दिनचर्या शुरू होती. तब कभीकभी बेटा भी आ बैठता और चाय पीता, दोचार बातें न होती हों ऐसी बात नहीं, मामूली बातें भी होतीं पर अब तो साढ़े 8 बजे जशोदा चाय की टे्र ले कर दरवाजा पीटती तब दरवाजा खोल चाय ले कर फिर दरवाजा बंद हो जाता. खुलता 9 बजने के बाद फिर तैयार हो, नाश्ता करने बैठते दोनों और फौरन आफिस निकल जाते.

दोपहर का लंच आफिस में, शाम को लौटते, ड्रेस बदलते फिर निकल जाते तो आधी रात को ही लौटते. बाहर ही रात का खाना खाते तो नाश्ता छोड़ घर में खाने का और कोई झंझट ही नहीं रहता. छुट्टी के दिन भी कार्यक्रम नहीं बदलता. नाश्ता कर दोनों घूमने चले जाते…रात खापी कर लौटते.

बहू से परिचय ही नहीं हुआ. बस, घर में रहती है तो आंखों में परिचित है, संवाद एक भी नहीं. खाना खाने के बाद ऐसे उठ जाती जैसे होटल में खाया हो. न थाली उठाती न बचा सामान समेट फ्रिज में रखती. कावेरी हैरान होती कि कैसे परिवार में पली है यह लड़की? संस्कार दूर की बात साधारण सी तमीज भी नहीं सीखी है इस ने और यह सब छोटीमोटी बातें तो बिना सिखाए ही लड़कियां अपनी सहज प्रवृत्ति से सीख जाती हैं. इस में तो स्त्रीसुलभ कोई गुण ही नहीं है…पता नहीं इस के परिवार वाले कैसे हैं, कभी बेटी की खोजखबर लेने भी नहीं आते?

कावेरी ने अब अपने को पूरी तरह समेट लिया है. जो मन में आए करो, मुझ से मतलब क्या? कुछ इस प्रकार के विचार बना लिए उस ने. सोचा था घर छोड़ ‘हरिद्वार’ जा कर रहेगी पर इस घर की एकएक चीज उस की जोड़ी हुई, सजाई हुई है. बड़ी ममता है इस सजीसजाई गृहस्थी के प्रति, फिर यह घर भी तो उस के नाम है…वह क्यों अपना घर छोड़ जाएगी…जाना है तो बहूबेटे जाएंगे.

जशोदा भी यही बात कहती है. इस समय उस का अपना कोई है तो बस, जशोदा है. महीने का वेतन और रोटीकपड़े पर रहने वाली जशोदा ही एकमात्र अपनी है…बहुत दिनों की सुखदुख की गवाह और साथी.

बेटे ने घर के लिए कभी पैसा नहीं दिया और आज भी नहीं देता है. कावेरी ने भी यह सोच कर कुछ नहीं कहा कि ये लोग घर पर केवल नाश्ता ही तो करते हैं. बहू तो कमरे से बाहर आती ही नहीं है. कभीकभी चाय पीनी हो तो बेटा रसोई में जा कर चाय बना लेता है. 2 कप कमरे में ले जाते हुए मां को भी 1 कप चाय पकड़ा जाता है. बस, यही सेवा है मां की.

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Pregnancy रोकने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

सवाल

मैं 24 साल की हूं. मेरे विवाह को 2 महीने हुए हैं. प्रैगनैंसी से बचे रहने के लिए कौपर टी, कंडोम और डायाफ्राम में से कौन सा गर्भनिरोधक मेरे लिए सब से अच्छा रहेगा और ये गर्भनिरोधक कितनेकितने साल तक प्रैगनैंसी रोकने के लिए अपनाए जा सकते हैं, कृपया विस्तार से जानकारी दें?

जवाब-

प्रत्येक गर्भनिरोधक विधि के अपने लाभ और अपनी सीमाएं हैं, जिन के बारे में पूरी जानकारी पा कर आप सही फैसला ले सकती हैं. कौपर टी उन स्त्रियों के लिए उपयुक्त गर्भनिरोधक है, जो कम से कम 1 बार संतान धारण कर चुकी होती हैं. नवविवाहिताओं के लिए कौपर टी ठीक नहीं, क्योंकि इसे लगाने पर पैल्विस में सूजन होने का डर रहता है और आगे चल कर प्रैगनैंट होने में भी परेशानी हो सकती है. इस का इस्तेमाल 2 बच्चों के बीच फासला रखने के लिए ही किया जाना चाहिए.

नवविवाहिताओं के अलावा ऐसी स्त्रियां, जिन्हें पहले से पैल्विस का इन्फैक्शन हो, मासिकस्राव ज्यादा या अनियमित हो, पेड़ू में दर्द रहता हो, गर्भाशय की रसौली हो, गर्भाशयग्रीवा की सूजन हो, ऐनीमिया हो या पहले कभी ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी हुई हो, उन के लिए भी कौपर टी का इस्तेमाल ठीक नहीं. कंडोम गर्भनिरोध का आसान और सुलभ तरीका है. इस के इस्तेमाल से पहले डाक्टर की सलाह लेना भी जरूरी नहीं. इस के कामयाब बने रहने के लिए सिर्फ इस का सही इस्तेमाल आना जरूरी है. असावधानी बरतने पर सैक्स के दौरान कंडोम के फिसल जाने या फट जाने पर परेशानी खड़ी हो सकती है. डायाफ्राम के साथ भी कंडोम जैसी ही समस्याएं हैं और इस का फेल्यर रेट भी काफी है.

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नवविवाहिताओं के लिए सुरक्षा का एक और अच्छा उपाय ओरल कौंट्रासैप्टिक पिल्स हैं. इन्हें लेने से कामसुख में किसी तरह का विघ्न नहीं पड़ता और पूरीपूरी सुरक्षा भी मिलती है. लेकिन इन्हें शुरू करने से पहले डाक्टर से सलाह लेना जरूरी है. यदि डाक्टर इजाजत दे, तो इन्हें लगातार 3 साल तक ले सकती हैं. रोज 1 गोली लेनी होती है. प्रैगनैंसी का मन बने तो गोली लेना बंद करने के 1 से 3 महीनों के बाद दोबारा प्रजनन क्षमता पहले जैसी हो जाती है और प्रैगनैंसी में कोई दिक्कत नहीं आती.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

नए रिश्ते: भाग 1- क्या हुआ था रानो के साथ

लेखिका- शशि जैन

रानो घर में दौड़ती हुई घुसी. बस्ता एक तरफ पटक कर वह सरला से लिपट गई. ‘‘दादी बूआ, दादी बूआ, आज हमें मम्मी मिली थीं. हमें मम्मी मिली थीं, दादी बूआ.’’

रानो बड़े उत्तेजित स्वर में बताती जा रही थी कि मम्मी ने उसे क्याक्या खिलाया, क्याक्या कहा.

सरला उस की बातें सुनती रही, उस के सिर और शरीर को सहलाती रही. न रानो के स्वर की उत्तेजना कम हुई थी और न ही सरला के शरीर पर उस के नन्हे हाथों की पकड़ ढीली पड़ी थी. वह अपनी समस्त शक्ति से दादी बूआ के शरीर से चिपटी रही जैसे वही एकमात्र उस का सहारा थी. कुछ ही देर में रानो की उत्तेजना आंसू बन कर टपकने लगी.

‘‘मम्मी घर क्यों नहीं आतीं, दादी बूआ? वे दूसरे घर में क्यों रहती हैं? सब की मम्मी घर में रहती हैं, मेरी मम्मी क्यों नहीं रहतीं? मैं भी यहां नहीं रहूंगी, मैं भी मम्मी के पास जाऊंगी, दादी बूआ.’’

रानो का रोना बढ़ता ही जा रहा था. सरला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे चुप कराए. वह उसे चिपटाए हुए उस का शरीर सहलाती रही. रानो की व्यथा उस की स्वयं की व्यथा बनती जा रही थी. उस की आंखें रहरह कर भरी आ रही थीं. रानो की मम्मी घर पर क्यों नहीं रहतीं, यह क्या वह स्वयं ही समझ सकी थी?

जब वह बूढ़ी होने पर यह बात नहीं जान पाई थी कि रानो की मम्मी उस के साथ क्यों नहीं रहती तो बेचारी रानो ही कैसे समझ सकती थी. वह और रानो तो अल्पबुद्धि थे, यह सब नहीं समझ सकते थे, परंतु प्रदीप तो अपने को बड़ा बुद्धिमान समझता था. क्या उस के पास ही इस बात का कोई उत्तर था और नंदा ही क्या इस का उत्तर जानती थी? वे दोनों समझते हैं कि वे जानते हैं, पर शायद वे भी नहीं जानते कि वे दोनों मिल कर क्यों नहीं रह सके.

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वह रानो को कस कर छाती में दबाए रही, जैसे इसी से वह उसे दुनिया के सारे दुखों से बचा लेगी. उस के हाथों के नीचे नन्हा सा शरीर सुबकता हुआ हिचकोले ले रहा था. वह मन ही मन अपना सारा स्नेह और ममता रानो पर उड़ेल रही थी. धीरेधीरे रानो शांत होने लगी और कुछ ही देर में वह बचपन की शांत गहरी नींद में खो गई. उस का आंसुओं की लकीरों से भरा मासूम चेहरा वेदना की साकार मूर्ति लग रहा था.

जिस नन्ही सी कोमल कली को मां की छाया में पलना चाहिए था, उसे मांविहीना कर के कड़ी धूप में झुलसने को छोड़ दिया गया था.

सरला किचन की टेबल पर सब्जी काटने लगी. मन बहुत सी उलझी हुई गुत्थियों में उलझने लगा.

सत्य क्या है, कौन जान सकता है? वह जीवन में बहुत सी कमियों को झेलती रही थी. उस ने विवाह नहीं किया था. एक छोटी नौकरी के चक्कर में कितने ही लड़कों को न कर दिया था. बाद में मातापिता की मृत्यु के बाद वह इन अभावों को सहती हुई अकेली जीवन व्यतीत करती रही थी. परंतु नंदा को तो सबकुछ मिला था – एक स्वस्थ, सुंदर पति तथा फूल सी प्यारी बिटिया. उस ने किस तरह, कैसे उन्हें हाथ से निकल जाने दिया, क्या उस के लिए पति तथा पुत्री का कोई महत्त्व नहीं था? कुछ तो होगा बहुत ही बड़ा, बहुत ही महत्त्वपूर्ण, जो इन अभावों की पूर्ति कर सका होगा.

वह तो अपने पतिविहीन तथा संतानहीन जीवन को एक यातना समझ कर जी रही थी, परंतु नंदा के लिए इन दोनों का होना ही शायद यातना बन गया था, तभी वह अपने खून और जिगर के टुकड़े को छोड़ कर जा सकी थी. अन्य दिनों की तरह वह आज भी इस प्रश्न को टटोलती रही, पर कोई उत्तर न पा सकी.

प्रदीप आ गया था.

‘‘रानो कहां है, बूआ? दिखाई नहीं दे रही, क्या बाहर खेलने गई है?’’

‘‘सो रही है.’’

‘‘इस समय? तबीयत तो ठीक है?’’ प्रदीप चिंतातुर हो उठा.

‘‘तबीयत तो ठीक है पर उस का मन ठीक नहीं है,’’ बूआ की बात सुन कर प्रदीप प्रश्नचिह्न बना उसे देखता रहा.

‘‘आज उसे उस की मम्मी मिली थी.’’

‘‘क्या नंदा यहां आई थी?’’

‘‘नहीं. वह स्कूल के बाद उसे मिली थी. रानो लौटी तो बेहद उत्तेजित थी. घर आ कर मम्मी को याद करती रोतेरोते सो गई.’’

‘‘कैसी नादानी है नंदा की. बच्ची से मिल कर उसे इस तरह हिला देने का क्या मतलब है? यह तय हो चुका है कि बिना मेरी अनुमति के वह रानो से मिलने की चेष्टा नहीं करेगी. उस ने ऐसा क्यों किया?’’ क्रोध के मारे प्रदीप की कनपटी की नसें फड़क रही थीं.

सरला चुपचाप बैठी सब्जी काटती रही. वह क्या उत्तर दे इन प्रश्नों का. या तो वह पागल है या ये लोग, प्रदीप और नंदा, जो प्राकृतिक सत्य को झुठला कर कोई दूसरा सत्य स्थापित करने की चेष्टा कर रहे हैं. मां अपनी कोखजायी बेटी से बिना अनुमति नहीं मिल सकती? यह कैसा और कहां का नियम है? क्या खून के रिश्तों को कानून के दायरे से घेरा जा सकता है?

प्रदीप दनदनाता हुआ बाहर जाने लगा.

बूआ ने रोका, ‘‘प्रदीप, कहां जा रहा है? चाय तो पी ले, सुबह का भूखाप्यासा है.’’

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‘‘नहीं, बूआ, भूख नहीं है. जरा काम से जा रहा हूं.’’

‘‘मुझे पता है तू कहां जा रहा है. क्रोध कर के मत जा, प्रदीप. सब संबंध तोड़ देने के बाद तुझे क्रोध करने का हक भी कहां रह गया है?’’

‘‘नहीं बूआ, अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा. वह एकदो बार पहले भी ऐसा कर चुकी है. खुशी से रह रही रानो से मिल कर वह उसे कितने दिनों के लिए तोड़ जाती है, रानो अपनी जिंदगी से दूर जा कर अलग हो जाती है. रानो के दिमाग पर इस का कितना गहरा और स्थायी असर पड़ सकता है. मैं ऐसा नहीं होने दे सकता.’’

सरला बड़ी अनमनी सी हो उठी.

‘‘तुम लोग पढ़ेलिखे हो और होशियार, पर मैं इतना जरूर कह सकती हूं कि रानो की जिंदगी आज नहीं, तुम और नंदा दोनों मिल कर बहुत पहले ही तोड़ चुके हो. जिस पौधे को कुशल माली की देखरेख में यत्नपूर्वक सुरक्षित रख कर पाला जाना चाहिए था उसे तो तुम झंझावात में अकेला छोड़ चुके हो. मां से मिलने पर कुछ नया घटित नहीं होता, केवल उस के अंदर दबाढंका विद्रोह ही उभरता है. बच्चा चाहे कुछ और न समझे, पर मां से गहरे लगाव की बात उसे समझनी नहीं पड़ती. इस बेचारी की तो मां है, यह कैसे भूल सकती है? तेरी मां तो तुझे 10-12 साल का छोड़ कर इस लोक से चली गई थी, क्या तुझे कभी उस की याद नहीं आई?’’

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अपनी-अपनी जिम्मेदारियां: भाग 3- आशिकमिजाज पति को क्या संभाल पाई आभा

नवल का गुस्सा देख रिनी सहम गई कि मां ने तो समझा कर छोड़ दिया पर पापा तो जान ही ले लेंगे उस

की, क्योंकि नवल का गुस्सा वह अच्छी तरह जानती थी.

अब नवल की नींद और उड़ गई. सोचने लगा जवान लड़की है. अगर कदम

बहक गए तो क्या होगा? सचेत तो किया था आभा ने कितनी बार, पर वही उस की बात को आईगई कर दिया करता था. पता चला कि रिनी अपने ही कालेज के एक लड़के से प्यार करती है और उस से छिपछिप कर मिलती है. आभा के समझाने के बाद भी जब वह लड़का रिनी से मिलता रहा, तो वह उस के घर जा कर वार्निंग दे आईर् कि अगर फिर कभी दोबारा वह रिनी से मिला या फोन किया, तो पुलिस में शिकायत कर देगी. रिनी को भी उस ने खूब फटकार लगाई थी. कहा था कि अगर नहीं मानी, तो नवल को बता देगी. तब रिनी का ध्यान उस लड़के से हट गया था, लेकिन आभा के न रहने पर वह फिर मनमानी करने लगी थी.

जो बाबा आभा के डर से घर में आना बंद कर चुका था, क्योंकि वह अंधविश्वास विरोधी थी, वह फिर से उस के घर में डेरा जमाने लगा. घर की सुखशांति के नाम पर वह हर दिन कोई न कोई पूजापाठ, जपतप करवाता रहता और निर्मला से पैसे ऐंठता. समझाता कि उस के घर पर किसी का बुरा साया है. कितनी बार कहा नवल ने कि ये सब फालतू की बातें हैं. न पड़ें वे इन बाबाओं के चक्कर में. मगर निर्मला कहने लगी कि वह तो घर की सुखशांति और आभा के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही ये सब कर रही है.

इधर सोनू का मन भी पढ़ाईलिखाई से उचटने लगा था. जब देखो, मोबाइल, लैपटौप में लगा रहता. और तो और दोनों भाईबहन छोटीछोटी बातों पर लड़ पड़ते और ऐसे उठापटक करने लगते कि पूरा घर जंग का मैदान नजर आता. औफिस से आने के बाद घर की हालत देख नवल का मन करता उलटे पांव बाहर चला जाए. एक आभा के न रहने से घर में सब अपनीअपनी मनमानी करने लगे थे. घर की हालत ऐसी बद से बदतर हो गई कि क्या कहें. ऐसी विकट समस्या आन खड़ी हुई थी जिस का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था नवल को.

उधर औफिस में भी कुछ ठीक नहीं चल रहा था. नवल के औफिस में ही एक दोस्त थी रंभा. खूब पटती थी दोनों की. साथ में खानापीना हंसनाबोलना होता था. भले ही घर में आभा इंतजार कर आंखें फोड़ लें, मगर जब तक रंभा मैडम जाने को न कहती, नवल हिलता तक नहीं. रंभा को देखदेख कर ही वह रसिकभाव से कविताएं बोलता और वह इठलाती, मचलती. चुटकी लेते हुए दूसरे कुलीग कहते कि क्या भाभीजी को देख कर भी मन में कविताएं उत्पन्न होने लगती हैं नवल भाई?

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तब बेशर्मों की तरह हंसते हुए कहता नवल, ‘‘अब भाभी तो घर की मुरगी है न, दाल बराबर.’’

उस की बात पर जहां सब ठहाके लगा

देते, वहीं रंभा और उस के करीब सरक आती. लेकिन आज वही रंभा उसे छोड़ कर दीपक से मन के तार जोड़ बैठी थी. मुंह से चाहे कुछ

न कहे, पर उस के व्यवहार से तो रोज यही झलकता था कि अब नवल में उसे कोई दिलचस्पी नहीं रह गई.

अब नवल भी इतना बेहया तो था नहीं, जो उस के पीछेपीछे चल पड़ता. रंभा का कुछ साल पहले अपने पति से तलाक हो चुका था और अब वह सिंगल थी. वैसे भी ऐसी औरतों का क्या भरोसा, जो वक्त देख कर दोस्त बदल लें.

‘भाड़ में जाए मेरी बला से’, मन में सोच उसी दिन से नवल ने रंभा से किनारा कर लिया, क्योंकि अब उसे अपने घरपरिवार को देखना था. अपनी पत्नी को समय देना था.

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कितनी बार आभा ने चेताया था कि रिनी पर ध्यान दो, लड़की है. जरा भी पैर फिसला, तो बदनामी हमारी होगी. मगर हर बार ‘पागलों सी बातें मत करो’ कह कर नवल उसे ही चुप करा दिया करता था. कहता, वह बच्चों के पीछे पड़ी रहती है. क्या कोई मां अपने बच्चों के पीछे पड़ सकती है कभी? वह तो बच्चों के भले के लिए ही उन्हें डांटतीफटकारती थी. परंतु यह बात आज नवल को समझ में आ रही थी कि आभा कितनी सही थी और वह कितना गलत. सुविधाएं और आजादी तो दी उस ने बच्चों को, पर वह नहीं दे पाया जो उन्हें देना चाहिए था. संस्कार, अच्छी सीख, जिम्मेदारी.

पूछने पर डाक्टर ने बताया कि अब आभा पहले से काफी बेहतर है और

2-4 दिन में उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी. लेकिन उस का पूरा खयाल रखना पड़ेगा, क्योंकि अभी भी बहुत कमजोर है.

जब वार्ड में गया, तो आभा सो रही थी, सो उसे जगाना सही नहीं लगा. धीरे से स्टूल खींच कर बैड के समीप ही नवल बैठ गया और एकटक आभा को निहारने लगा. बेजान शरीर, पीला पड़ा चेहरा, धंसी आंखें देख कर सोचने लगा कि क्या यह वही आभा है जिसे कभी वह ब्याह कर लाया था. कैसा फूल सा मुखड़ा था इस का और आज देखो, कैसा मलिन हो गया है. अगर आज मैं इस की जगह होता, तो यह दिनरात एक कर देती. पागल हो जाती मेरे लिए लेकिन मैं क्या कर पा रहा हूं इस के लिए, कुछ भी तो नहीं? सोच कर नवल की आंखें सजल हो गईं.

जब आभा की आंखें खुलीं और सामने नवल को देखा, तो उस के चेहरे पर ऐसा तेज आ गया जैसे अग्नि में आहुति पड़ गई हो. इधरउधर देखने लगी. लगा बच्चे भी आए होंगे. कितने दिन हो गए थे उसे अपने बच्चों को देखे हुए. लग रहा था एक बार आंख भर कर बच्चों को देखे. उठने की कोशिश करने लगी, पर कमजोरी के कारण उठ नहीं पा रही थी.

नवल ने उसे सहारा दे कर बैठाया और पूछा, ‘‘कैसी तबीयत है अब?’’

उस ने इशारे से कहा कि ठीक है.

‘‘डाक्टर कह रहे थे 2-4 दिन में अब तुम घर जा सकती हो.’’

नवल की बात पर वह मुसकराई.

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‘‘कुछ खाओगी?’’ नवल ने पूछा, तो उस ने न में सिर हिला दिया.

‘‘सब ठीक है तुम चिंता मत करो,’’ यह भी नहीं कह सकता था कि तुम ने ही सब को बिगाड़ा है, क्योंकि बिगाड़ा तो उस ने ही है. अब सब को ठीक करना पड़ेगा, समझानी पड़ेगी उन्हें अपनीअपनी जिम्मेदारी, यह बात नवल ने मन में ही कही.

‘‘तुम अब ज्यादा चिंताफिकर करना छोड़ दो. खुद पर ध्यान दो. यह लो सुमन भाभी भी आ गईं. तो तुम दोनों बातें करो. तब तक मैं घर हो आता हूं,’’ कह कर नवल उठ खड़ा हुआ तो आभा उसे प्रेमभाव से देखते हुए बोली कि वह अपन ध्यान रखे. नवल को लगा कि अभी भी इसे मेरी ही चिंता है.

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