Best Hindi Stories : खाली जगह – क्या दूर हुआ वंदना का शक

Best Hindi Stories : तेजसिरदर्द होने का बहाना बना कर मैं रविवार की सुबह बिस्तर से नहीं उठी. अपने पति समीर की पिछली रात की हरकत याद आते ही मेरे मन में गुस्से की तेज लहर उठ जाती थी.

‘‘तुम आराम से लेटी रहो, वंदना. मैं सब संभाल लूंगा,’’ ऐसा कह कर परेशान नजर आते समीर बच्चों के कमरे में चल गए.

उन को परेशान देख कर मुझे अजीब सी शांति महसूस हुई. मैं तो चाहती ही थी कि मयंक और मानसी के सारे काम करने में आज जनाब को आटेदाल का भाव पता लग जाए.

अफसोस, मेरे मन की यह इच्छा पूरी नहीं हुई. उन तीनों ने बाहर से मंगाया नाश्ता कर लिया. बाद में समीर के साथ वे दोनों खूब शोर मचाते हुए नहाए. अपने मनपसंद कपड़े पहनने के चक्कर में उन दोनों ने सारी अलमारी उलटपुलट कर दी है, यह देख कर मेरा बहुत खून फूंका.

बाद में वे तीनों ड्राइंगरूम में वीडियो गेम खेलने लगे. उन के हंसनेबोलने की आवाजे मेरी चिढ़ व गुस्से को और बढ़ा रही थीं. कुछ देर बाद जब समीर ने दोनों को होम वर्क कराते हुए जोर से कई बार डांटा, तो मुझे उन का कठोर व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगा.

अपने मन में भरे गुस्से व बेचैनी के कारण मैं रात भर ढंग से सो नहीं सकी. इसलिए 11 बजे के करीब कुछ देर को मेरी आंख लग गई.

मेरी पड़ोसिन सरिता मेरी अच्छी सहेली है. समीर से उसे मालूम पड़ा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, तो उस ने अपने यहां से लंच भिजवाने का वादा कर लिया.

जब दोपहर 2 बजे के करीब मेरी आंख खुली तो पाया कि ये तीनों सरिता के हाथ का बना लंच कर भी चुके हैं. बच्चों द्वारा देखे जा रहे कार्टून चैनल की ऊंची आवाज मेरा गुस्सा और चिड़चिड़ापन लगातार बढ़ाने लगी थी.

‘‘टीवी की आवाज कम करोगे या मैं वहीं आ कर इसे फोड़ दूं?’’ मेरी दहाड़ सुनते ही दोनों बच्चों ने टीवी बंद ही कर दिया और अपनेअपने टैबलेट में घुए गए.

कुछ देर बाद समीर सहमे हुए से कमरे में आए और मुझ से पूछा, ‘‘सिरदर्द कैसा है, वंदना?’’

‘‘आप को मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और मुझे बारबार आ कर परेशान मत करो,’’ रूखे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर मैं ने उन की तरफ पीठ कर ली.

शाम को मेरे बुलावे पर मेरी सब से अच्छी सहेली रितु मुझ से मिलने आई. कालेज

के दिनों से ही अपने सारे सुखदुख मैं उस के साथ बांटती आई हूं.

मुझे रितु के हवाले कर वे तीनों पास के पार्क में मौजमस्ती करने चले गए.

रितु के सामने मैं ने अपना दिल खोल कर रख दिया. खूब आंसू बहाने के बाद मेरा मन बड़ी हद तक हलका और शांत हो गया था.

फिर रितु ने मुझे समझने का काम शुरू किया. वह आधे घंटे तक लगातार बोलती रही. उस के मुंह से निकले हर शब्द को मैं ने बड़े ध्यान से सुना.

उस के समझने ने सचमुच जादू सा कर दिया था. बहुत हलके मन से मुसकराते हुए मैं ने घंटे भर बाद उसे विदा किया.

उस के जाने के 10 मिनट के बाद मैं ने समीर के मोबाइल का नंबर अपने मोबाइल से मिला कर बात करी.

‘‘पार्क में घूमने आई सुंदर लड़कियों को देख कर अगर मन भर गया हो, तो घर लौट आइए, जनाब,’’ मैं उन्हें छेड़ने वाले अंदाज में बोली.

‘‘मैं लड़कियों को ताड़ने नहीं बल्कि बच्चों के साथ खेलने आया हूं,’’ उन्होंने फौरन सफाई दी.

‘‘कितनी आसानी से तुम मर्द लोग झठ बोल लेते हो. जींस और लाल टौप पहन कर आई लंबी लड़की का पीछा जनाब की नजरें लगातार कर रही हैं या नहीं?’’

‘‘वैसी लड़की यहां है, पर मेरी उस में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘आप की दिलचस्पी अपनी पत्नी में तो

है न?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मैं सुबह से भूखी हूं. कुछ खिलवा दो, सरकार.’’

‘‘बोलो क्या खाओगी?’’

‘‘जो मैं कहूंगी, वह खिलाओगे?’’

‘‘श्योर.’’

‘‘अपने हाथ से खिलाओगे?’’

‘‘अपने हाथ से भी खिला देंगे, मैडम,’’ मेरी मस्ती भरी आवाज से प्रभावित हो कर उन की आवाज में भी खुशी के भाव झलक उठे थे.

‘‘मुझे हजरत गंज में जलेबियां खानी हैं.’’

‘‘मैं बच्चों को घर छोड़ कर तुम्हारे लिए जलेबी लाने चला जाऊंगा.’’

‘‘हम सब साथ चलते हैं.’’

‘‘तो तुम पार्क में आ जाओ.’’

‘‘मैं पार्क में आ चुकी हूं. आप बाईं तरफ  नजरे उठा कर जरा देखिए तो सही,’’ यह डायलौग बोल कर मैं ने फोन बंद किया और खिलखिला कर हंस पड़ी.

मेरी हंसी सुन कर उन्होंने बाईं तरफ गरदन घुमाई तो मुझे सामने खड़ा पाया. मयंक और मानसी ने मुझे देखा तो भागते हुए पास आए और मुझ से लिपट कर अपनी खुशी जाहिर करी.

‘‘तुम्हारी तबीयत कैसी है?’’ समीर ने मेरा हाथ पकड़ कर कोमल लहजे में पूछा.

‘‘वैसे बिलकुल ठीक है, पर भूख के मारे दम निकला जा रहा है. हजरत गंज की दुकान की तरफ चलें, स्वीटहार्ट?’’ उन के गाल को प्यार से सहला कर मैं हंसी तो वे शरमा गए.

मानसी और मयंक अभी कुछ देर और अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहते थे. उन की देखभाल करने की जिम्मेदारी अपने पड़ोसी अमनजी के ऊपर डाल कर हम दोनों कार निकाल कर बाजार की तरफ  निकल लिए.

कुछ देर बाद जलेबियां मुझे अपने हाथ से खिलाते हुए वे खूब शरमा रहे थे.

‘‘तुम कभीकभी कैसे अजीब से काम कराने की जिद पकड़ लेती हो,’’ वो बारबार इधरउधर देख रहे थे कि कहीं कोई जानपहचान वाला मुझे यों प्यार से जलेबियां खिलाते देख न रहा हो.

‘‘मेरे सरकार, रोमांस और मौजमस्ती करने का कोई मौका इंसान को नहीं चूकना चाहिए,’’ ऐसा कह कर जब मैं ने रस में नहाई उन की उंगलियों को प्यार से चूमा तो उन की आंखों में मेरे लिए प्यार के भाव गहरा उठे.

बाजार से लौटते हुए मैं फिटनैस वर्ल्ड नाम के जिम के सामने रुकी और समीर से बड़ी मीठी आवाज में कहा, ‘‘इस जिम में मेरी 3 महीने की फीस के क्व10 हजार आप जमा करा दो, प्लीज.’’

‘‘तुम जिम जौइन करोगी?’’ उन्होंने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अगर आप फीस जमा करा दोगे, तो जरूर यहां आना चाहूंगी.’’

‘‘कुछ दिनों में अगर तुम्हारा जोश खत्म हो गया, तो सारे पैसे बेकार जाएंगे.’’

‘‘यह मेरा वादा रहा कि मैं एक दिन भी नागा नहीं करूंगी.’’

‘‘इस वक्त तो मेरे पर्स में क्व10 हजार नहीं होंगे.’’

‘‘मैं आप की चैक बुक लाई हूं न,’’ अपना बैग थपथपा कर यह दर्शा दिया कि उन की चैक बुक उस में रखी हुई है.

‘‘पहले घर पहुंच कर इस बारे में अच्छी तरह से सोचविचार तो कर…’’

‘‘अब टालो मत,’’ मैं ने उन का हाथ

पकड़ा और जिम के गेट की तरफ बढ़ चली, ‘‘क्या मेरा शेप में आना आप को अच्छा नहीं लगेगा?’’

‘‘बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन तुम अगर नियमित रूप से यहां…’’ड्ड

‘‘जरूर आया करूंगी,’’ मैं ने प्यार से उन का हाथ दबा कर उन्हें चुप करा दिया.

जिम की फीस जमा करा कर जब हम बाहर आ गए तो मैं ने उन्हें एक और झटका दिया, ‘‘अगले महीने मेरा जन्मदिन है और तब मुझे अपने लिए तगड़ी शौपिंग करनी है.’’

‘‘किस चीज की?’’ उन्होंने चौंक कर पूछा.

‘‘कई सारी नई ड्रैस खरीदनी हैं और आप को मेरे साथ चलना पड़ेगा. मैं वही कपड़े खरीदूंगी जो आप को पसंद आएंगे. वजन कम हो जाने के बाद मैं ऐसी ड्रैस पहनना चाहूंगी कि आप मुझे देख कर सीटी बजा उठें.’’

मेरे गाल पर प्यार से चुटकी काटते हुए वे बोले, ‘‘तुम्हारी बातें सुन कर आज मुझे

कालेज के दिनों की याद आ गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘तुम उसी अंदाज में मेरे साथ फ्लर्ट कर रही हो जैसे शादी से पहले किया करती थी,’’ उन की आंखों में अपने लिए प्यार के गहरे भाव पढ़ कर मैं ने मन ही मन अपनी सहेली रितु को दिल से धन्यवाद दिया.

मेरे व्यवहार में आया चुलबुला परिवर्तन रितु के समझने का ही नतीजा था.

शाम को उस के आते ही मैं ने उसे वह सारी घटना अपनी आंखों में आंसू भर कर सुना दी जिस ने मेरे दिल को पिछली रात की पार्टी में बुरी तरह से जख्मी किया था.

उस ने समीर के प्रति मेरी सारी शिकायतें सुनी और फिर सहानुभूति दर्शाने के बजाय चुभते स्वर में पूछा, ‘‘मुझे यह बता कि पिछली बार तू सिर्फ समीर की खुशी के लिए कब बढि़या तरीके से सजधज कर तैयार हुई थी?’’

‘‘मैं नईनवेली दुलहन नहीं बल्कि 2 बच्चों की मां हो गई हूं. जब मेरे घर के काम ही नहीं खत्म होते तो सजनेसंवरने की फुरसत कहां से मिलेगी?’’ मैं ने चिढ़ कर उलटा सवाल पूछा.

‘‘फुरसत तुझे निकालनी चाहिए, वंदना. समीर से नाराज हो कर आज तूने खाना नहीं बनाया तो क्या तेरे बच्चे भूखे रहे?’’

‘‘नहीं, बाजार और मेरी सहेली सरिता की बदौलत इन तीनों ने डट कर पेट पूजा करी थी.’’

‘‘समीर ने रोतेझंकते हुए ही सही, पर बिना तेरी सहायता के दोनों बच्चों की देखभाल व उन्हें होमवर्क कराने का काम पूरा कर ही लिया था न.’’

‘‘तू कहना क्या चाह रही है?’’ मेरा मन उलझन का शिकार बनता जा रहा था.

‘‘यही कि इंसान की जिंदगी में कोई जरूरी काम रुकता नहीं है. समीर को तन

की सुखसुविधा के साथसाथ मन की खुशियां भी चाहिए. देख, अगर तू कुशल पत्नी की भूमिका निभाने के साथसाथ उस के दिल की रानी बन कर नहीं रहेगी, तो उस खाली जगह को कोई और स्त्री भर सकती है. कोई जवाब है तेरे पास इस सवाल का कि सिर्फ 33 साल की उम्र में क्यों इतनी बेडौल हो कर तूने अपने रूप का सारा आकर्षण खो दिया है?’’

‘‘बच्चे हो जाने के बाद वजन को कंट्रोल में रखना आसान नहीं होता है,’’ मैं ने चिढ़े लहजे में सफाई दी.

‘‘अगर समीर की खुशियों को ध्यान में रख कर दिल से मेहनत करेगी, तो तुम्हारा वजन जरूर कम हो जाएगा. तू मेरे एक सवाल का जवाब दे. कौन स्वस्थ पुरुष नहीं चाहेगा कि उस की जिंदगी में सुंदर व आकर्षक दिखने वाली स्त्री न हो?’’

मुझ से कोई जवाब देते नहीं बना तो वह भावुक हो कर बोली, ‘‘तू मुझ से अभी वादा कर कि तू फिर से अपने विवाहित जीवन में रोमांस लौटा लाएगी. घर की जिम्मेदारियां उठाते हुए भी अपने व्यक्तित्व के आकर्षण को बनाए रखने के प्रति सजग रहेगी.’’

उस की आंखों में छलक आए आंसुओं ने मुझे झकझेर दिया. उस के समझने का ऐसा असर हुआ कि इस मामले में मुझे अपनी कमी साफ नजर आने लगी थी.

‘‘रितु, मैं अब से अपने रखरखाव का पूरा ध्यान रखूंगी. कोई शिखा कल को इन की जिंदगी में आ कर मेरी जगह ले, इस की नौबत मैं कभी नहीं आने दूंगी. थैंक यू, मेरी प्यारी सहेली,’’ उस के गले लग कर मैं ने अपने अंदर बदलाव लाने का दिल से वादा कर लिया.

समीर और मैं बड़े अच्छे मूड में घर पहुंचे. कुछ देर बाद मानसी और मयंक भी अमनजी के घर से लौट आए.

मैं ने सब को बहुत जायकेदार पुलाव बना कर खिलाया. समीर को अपने साथ किचन में खड़ा रख मैं उन से खूब बतियाती रही थी.

खाना खाते हुए समीर ने मेरी प्लेट में थोड़ा सा पुलाव देख कर पूछा, ‘‘तुम आज इतना कम क्यों खा रही हो?’’

‘‘इस चरबी को कम करने के लिए अब से मैं कम ही खाया करूंगी. महीने भर बाद मेरी फिगर तुम्हारी किसी भी सहेली की फिगर से कम आकर्षक नहीं दिखेगी,’’ मैं ने बड़े स्टाइल से उन के सवाल का जवाब दिया.

‘‘मेरी कोई सहेली नहीं है,’’ उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘रखो मेरे सिर पर हाथ कि तुम्हारी कोई सहेली नहीं है,’’ मैं ने उन का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया.

‘‘मैं सच कहता हूं कि मेरी कोई सहेली

नहीं है,’’ उन्होंने सहजता से जवाब दिया तो मैं किलस उठी.

‘‘तो कल रात की पार्टी में बाहर लौन में अपने साथ काम करने वाली उस चुड़ैल शिखा का हाथ पकड़ कर क्या उसे रामायण सुना रहे थे?’’ मेरे दिलोदिमाग में पिछली रात से हलचल मचा रही शिकायत आखिरकार मेरी जबान पर आ ही गई.

‘‘ओह, तो क्या अब तुम मेरी जासूसी करने लगी हो?’’ उन्होंने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘जी नहीं, जब आप उस के साथ इश्क लड़ा रहे थे, तब मैं अचानक से खिड़की के पास ठंडी हवा का आनंद लेने आई थी.’’

‘‘तुम जानना चाहेगी कि मैं ने उस का हाथ क्यों पकड़ा हुआ था?’’ वे बहुत गंभीर नजर आने लगे थे.

‘‘मुझे आप के मुंह से मनघड़ंत कहानी नहीं सुननी है. बस, आप मेरी एक बात

कान खोल कर सुन लो. अगर आप ने उस के साथ इश्क का चक्कर चला कर मुझे रिश्तेदारों व परिचितों के बीच हंसी का पात्र बनवा कर अपमानित कराया, तो मैं आत्महत्या कर लूंगी,’’ भावावेश के कारण मेरी अवाज कांप रही थी.

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कोमल लहजे में कहा, ‘‘अपने फ्लैट की डाउन पेमेंट करने के लिए जो 5 लाख रुपए कम पड़ रहे थे, उन्हें हम उधार देने के लिए शिखा ने अपने पति को तैयार कर लिया है. कल रात मैं शिखा का हाथ पकड़ कर उसे हमारी इतनी बड़ी हैल्प करने के लिए धन्यवाद दे रहा था और तुम न जाने क्या समझ बैठी. क्या तुम मुझे कमजोर चरित्र वाला इंसान मानती हो?’’

उन का आहत स्वर मुझे एकदम से शर्मिंदा कर गया, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज,’’ उन का मूड बहुत जल्दी से ठीक करने के लिए मैं ने फौरन उन से हाथ जोड़ कर माफी मांग ली.

‘‘आज इतनी आसानी से तुम्हें माफी नहीं मिलेगी,’’ मेरा हाथ चूमते हुए उन की आंखों में शरारत के भाव उभर आए.

‘‘तो माफी पाने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा?’’ मैं ने इतराते हुए पूछा.

मेरे कान के पास मुंह ला कर उन्होंने अपने मन की जो इच्छा जाहिर करी, उसे सुन कर मैं शरमा उठी. उन्होंने प्यार दिखाते हुए मेरे गाल पर चुंबन भी अंकित कर दिया तो मैं जोर से लजा उठी.

मानसी और मयंक की शरारत भरी नजरों का सामना करने के बजाय मैं ने समीर की छाती से लिपट जाना ही बेहतर समझ.

Lifestyle: जहां मदद करने के बाद आप फंस जाओ

Lifestyle: बीमारी या दुर्घटना कहकर नहीं आती मगर महंगे इलाज के लिए रकम जुटाना किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है. कोई दोस्त या रिश्तेदार इलाज के लिए मदद करने को कहे तो इसके लिए कभी मना ना करें. इसी तरह अगर कोई मित्र कोर्ट कचहरी के किसी केस में गलत तरीके से फंस गया है तो उसकी मदद जरूर करें. अगर कोई बच्चा होनहार है और आगे पड़ना चाहता है लेकिन फीस देने में सक्षम नहीं है तो उसकी हेल्प करें.

लेकिन कई बार देखने में आता है कि हम जरुरत ना होने पर भी पहुँच जाते हैं किसी की भी मदद करने और फिर बाद में खुदी परेशां भी होते हैं. इसलिए मदद करना बुरा नहीं है Enturisam समाज मदद करने से बनता है लेकिन मदद करने से पहले भी सोचा जाना चाहिए कि क्या वाकई यहाँ मदद करना बनता है या में बेकार ही मदद करके फंस रहा हूँ.

Enturisam समाज कब बनता है?

Enturisam समाज तब चलता है जब हम एक दूसरे की मदद करते हैं. लेकिन वो हेल्प तब होती है जब सब एक दूसरे की हेल्प कर रहें हो. आप अकेले ही बेफकूफ ना बने सामने वाला आपको तवज्जो ही नहीं दे रहा है और आप हेल्प करें जा रहें हैं. आप अकेले ही ये जिम्मेवारी ज्यादा समय तक नहीं उठा सकते. वो बोझ बन जाएगी. जैसे कि आपने अपनी सोसाइटी में ओल्ड आगे असोसिएशन बनाई और हर जरूरतमंद का बीड़ा आपने अपने कन्धों पर उठा लिया. लेकिन बाकी लोग इन्वॉल्व ही नहीं हो रहें हर काम के लिए आपको आगे कर देते हैं. जबकी अगर किसी एक फैमिली को डॉक्टर के जाने की जरूत है तो आज उसे आप लें गए और अगली बार कोई और लेकिन कोई और सामने आ ही नहीं रहा तो आप अकेले ये सब कब तक कर पाएंगे. इसे चलने के लिए सबके साथ और सहयोग की जरुरत होती है.

हेल्प मांगने पर ही हेल्प करें

कई बार किसी को मदद की जरुरत भी नहीं होती और हम उसकी सिचुएशन देखकर पहुँच जाते हैं मदद करने. ऐसे में कई बार सुनने को भी मिल जाता है भाईसाहब ये हमारे घर का मामला है हम निबटा लेंगें कृपया आप बीच में ना पड़ें. ऐसे में आप अपना सा मुँह लेके आ जाते हैं. ऐसा कई बार अजनबियों की मदद करने पर भी होता है जैसे की :

जिसने मुसीबत में आपका साथ नहीं दिया उसकी हेल्प ना करें

अगर आपने कभी किसी की मदद की लेकिन जरुरत पड़ने पर उस व्यक्ति ने आपको पहचानने से भी इंकार कर दिया और अगली बार आपको भी उसकी मदद करने की जरुरत नहीं है. हो सकता है उसे सबक मिले और आगे से वह इस बात को समझें कि मदद लेना देना गिव एंड टेक से जुड़ा मामला है कल सामने वाले को जरुरत है तो हो सकता है कि कल आपको जरुरत हो.

मदद उसकी करें जिसके साथ सम्बन्ध अच्छ हो

हर अजनबी की मदद करना ठीक नहीं. मदद उसकी करों जिससे आपके सम्बन्ध अच्छे हो. इससे सामाजिकता बढ़ती है. लेकिन अगर मदद लेने वाले से आपकी ज्यादा मित्रता नहीं है और आप फिर भी पहुँच गए मदद करने तो आपसे मदद लेने वो हिचकिचायेगा उसे लगेगा में इससे मदद क्यूँ लूँ अपने फॅमिली मेंबर या दोस्त से मदद लूंगा. ऐसे में आप अपना सा मुँह लेकर लौटेंगे इसका क्या फायदा है.

पैसा देकर फंस गया यार

“पैसा उधार न देना अच्छा, न लेना अच्छा; उधार स्नेह की कैंची है,” अंग्रेज़ नाटककार विलियम शेक्सपियर ने लिखा था. यह तो पक्का है कि पैसा उधार लेना-देना बहुत ही नाज़ुक मामला है और इससे रिश्‍ते तक टूट जाते हैं. चाहे कितनी भी अच्छी योजना क्यों न बनायी गयी हो और कितने भी नेक इरादे क्यों न रहे हों, कब स्थिति बदल जाए हम नहीं जानते.

क्या पता ऐसी स्थिति हो जाए कि उधार लेने वाले के लिए अपना कर्ज़ चुकाना मुश्‍किल या असंभव हो जाए. या ऐसा भी हो सकता है कि उधार देनेवाले को अचानक उस पैसे की ज़रूरत आन पड़े जो उसने उधार दिया है या फिर कई बार उधार लेने वाले की नियत बदल जाती है उसे लगता है अब मैं उधार क्यूँ वापस करूँ इसलिए उधार देने से पहले सोच लें कि कहीं आप अपने पैसे भी गवाएं पर बार बार मांगकर बुरे भी बने. जब ऐसी बातें होती हैं, तो जैसा शेक्सपियर ने कहा, दोस्ती और रिश्‍तों में दरार पड़ सकती है.

सामने वाले को मदद की जरुरत है भी या नहीं देख लें

कई बार हम किसी को मुसीबत में देखकर इमोशनल होकर मदद करने पहुँच जाते हैं लेकिन उन्होंने कह दिया कि अरे आपने बेकार ही कष्ट किया हम तो मैनेज कर ही लेते या आप हेल्प करने चले तो उनके ही घर के 4- 6 आदमी पहले ही आ गए. हेल्प करने में कई बार आप हेल्प भी करते हैं और बात भी नहीं बनती है. इसलिए देख लें सामने वाले वो मदद की जरुरत है भी या नहीं. जैसे कि आप अपने किसी क्लास के स्टूडेंट को उसके घर नोट्स देने बिन बोले पहुँच गएँ ताकि उसकी मदद हो सहकेँ क्यूंकि आज वो छुट्टी पर था लेकिन वहां जाकर पता चला उसने तो व्हाट्सप पर अपने किसी और दोस्त से मंगवा लिए हैं आपने बेकार ही अपना टाइम लगाया.

अजनबियों की मदद करके फंस सकते हैं आप

अगर आपने सड़क पर या मॉल में अगर बच्चे की माँ कहीं इधर उधर है और आपने किसी रोते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया तो माँ नाराज होकर आपको किडनेपर भी कह सकती है.इसलिए मदद करने से पहले 10 बार सोचें कि आप किसकी और कैसे मदद करने जा रहे हैं. ऐसा नहीं के आप ने बीच रास्ते में लड़की खड़ी देखी और मदद के लिए रुक गए. वह लड़की फ्रॉड भी हो सकती है. इस तरह नजान की मदद करने में आप फंस भी सकते हो.

अपना जुगाड़ बैठाकर मदद के लिए ऑफर करों नहीं तो फंसोगे

आपने जोश जोश में किसी को कह तो दिया कि हां मैं आपकी जॉब की बात अपनी कंपनी में करूँगा लेकिन यह कहते वक्त आप भूल गएँ कि बॉस से तो आजकल आपकी खटपट चल रही है और आपकी अपनी परफॉर्मेंस पर सवाल उठ रहें हैं ऐसे मी आप दूसरे की जॉब की बात कैसे कर सकते हैं. वही वह व्यक्ति आपसे बार बार पूछ रहा है बात हो गई मेरी जॉब के लिए. अब आपने बैठे बैठाएं बेकार की टेंशन पाल ली. ये गले की वो हड्डी बन गई जो ना निगलि जाए ना ऊगली जाए. इसलिए मदद का ऑफर देने से पहले अपनी स्तिथि का अंदाजा भी लगा लें कि आप मदद करने लायक स्थिति में हैं भी या नहीं.

वादा करके फंस ना जाना –

वादा तो कर दया कि दोस्त की बेटी के एडमिशन की जिम्मेवारी मेरी है क्यूंकि बहिन के ससुर उस स्कूल में प्रोफेसर हैं लेकिन अब वो बार बार कहने पर बह कोई जवाब नहीं दे रहें. बिना बात बहिन की ससुराल से मन खट्टा हो गया. बेहेन की ससुर के लिए जो इज़्ज़त पहले थी वो अचानक से ख़तम हो गई. लगा इन्होने मेरी समय पर मदद नहीं की. इससे बेवजह रिश्ते में दूरी आ गई. जबकि आपका कोई अपना काम भी नहीं था. हो सकता है आपके काम के लिए वो मन भी ना करते पर किसी अजनबी की मदद करना उन्हें जरुरी न लगा हो और इस वजह से बेवजह आप दोनों के रिश्ते में खटास आ गई. इसलिए मदद का वादा अपने बलबूते करों दूसरे के बलबूते नहीं क्यूंकि ऐसे में आप खुद किसी की मदद के मोहताज हो जाते हो.

एक की मदद कर चार लोगों से दुश्मनी ना पाल लेना-

अगर आपके चार दोस्त हैं और उनमे से किसी ने आपसे 2 दिन के लिए आपकी कार मांग ली और आपने भी आने जाने की असुविधा के बावजूद उन्हें कार दे दी. वह तो खुश हो जायेगा लेकिन अगली बार किसी दूसरे दोस्त के मांगने पर आपने मना कर दिया तो उसे लगेगा कि आप पहले दोस्त से ज्यादा दोस्ती निभा रहें हैं उससे नहीं. इस वजह से दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. इसलिए मदद करने से पहले सोच लें कि अगर आपने आज ऊँगली दिखाई तो कल आपका हाथ भी पकड़ा जा सकता है उसके लिए तैयार रहें.

Ibrahim Ali Khan अपनी आलोचना सुन हुए नाराज, पत्रकार को दे दी धमकी

सैफ अली खान के बेटे Ibrahim Ali Khan की हाल ही डेब्यू फिल्म नादानियां रिलीज हुई जिसमें उनके साथ श्री देवी की बेटी खुशी कपूर मुख्य भूमिका में थी. सोशल मीडिया पर अपने गुड लुक्स की वजह से छाए रहने वाले इब्राहिम की जब नादानियां रिलीज हुई तो सभी को उनसे बहुत उम्मीदें थी. लेकिन सिर्फ इस फिल्म ने ही नहीं इस फिल्म में काम कर रहे इब्राहिम के अभिनय ने भी सबको निराश कर दिया. जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी खिंचाई होनी शुरू हो गई एक आलोचक ने यहां तक कॉमेंट कर दिया कि फिल्म में इब्राहिम की नाक और श्री देवी की बेटी ख़ुशी कपूर के सिर्फ दांत नजर आ रहे है.

एक्टिंग के नाम पर दोनों जीरो है. ऐसी ही कई आलोचनाएं इस फिल्म के लिए एक्टर को सुननी पड़ी. जिसे सुनकर इब्राहिम बौखला गए और इसी आलोचना के तहत एक पत्रकार तैमूर ने नादानियां में इब्राहिम के खराब अभिनय ओर लंबी नाक पर कमेंट कर दिया .जिसके बाद इब्राहिम का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और इब्राहिम ने आव देखा ना ताव उस पत्रकार को ना सिर्फ भला बुरा कह दिया बल्कि उसको मारने पीटने की धमकी तक दे डाली.

जिसके बाद अपने गुस्सैल स्वभाव को लेकर वह बहुत ट्रोल हो रहे है. लोग उन्हें यही सलाह दे रहे है कि आलोचक और आलोचना को पॉजिटिव लेना सीखे तभी वो कुछ अच्छा कर पाएंगे. गौरतलब है सैफ अली खान को भी अपने करियर के शुरुआत में बहुत आलोचना सुननी पड़ी थी तब कही जा कर वो स्टार ओर अच्छे एक्टर कहलाए है. सो इब्राहिम को भी अपने पिता से संयम सीखना होगा. तभी वह अपने अभिनय कैरियर में कुछ अच्छा काम कर पाएंगे.

23rd Zee Cine Awards: प्रेस कौन्फ्रेंस में कार्तिक, तमन्ना सहित सितारों की सजी महफिल

23rd Zee Cine Awards: 20 मार्च 2025 को जे डब्लू मैरियट अंधेरी पूर्व मुंबई में मारुती सुज़ुकी प्रेजेंट ज़ी सीने अवॉर्ड 25 की प्रेस कौन्फ्रेंस आयोजित हुई जिस में बॉलीवुड की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कार्तिक आर्यन, तमन्ना भाटिया, जैकलीन फर्नांडीज, और बाणी कपूर ने शिरकत की.

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का मुख्य मकसद प्रशंसक और कलाकारों के बीच का प्रेम दर्शना था. लिहाजा इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत सभी कलाकारों के फैंस भी आए थे. जिन्होंने अपनी फेवरेट कलाकारों के लिए स्पेशल आइटम डांस परफॉर्म किया. क्योंकि ज़ी सिने अवार्ड के लिए स्त्री 2 के गाने भी नॉमिनेटेड है, इसलिए स्त्री 2 का लोकप्रिय गीत आज की रात गाने की गायिका शिल्पा राव भी उपस्थित थी. जिन्होंने अपनी सुरीली आवाज में गाना गाया. साथ ही प्रसिद्ध संगीतकार सचिन जिगर ने भी कॉन्फ्रेंस में अपने मधुर संगीत के जरिए समा बांध दिया , जिनके भी स्त्री 2 के गाने जी सिने अवॉर्ड में नॉमिनेट हुए है.

जी सिने अवॉर्ड का आयोजन 17 मई 2025 को मुंबई में ही आयोजित किया गया है. जिसका प्रसारण जी टीवी और जी सिनेमा पर होगा.

Skin Care Tips : 30 के बाद भी ग्लो को रखें बरकरार

Skin Care Tips : महिलाएं अपने सौंदर्य के प्रति बहुत सजग रहती हैं, लेकिन 30-35 की उम्र आतेआते त्वचा का ग्लो कम होने लगता है, तब वे अपने लुक्स को ले कर परेशान हो उठती हैं कि क्या किया जाए, जिस से चेहरे का ग्लो बरकरार रहे. घबराएं नहीं, कुछ बातों का ध्यान रख कर आप अपने सौंदर्य को बरकरार रख सकती हैं :

1. आईशैडो

बढ़ती उम्र में आंखों के आसपास काले घेरे और झुर्रियां आने लगती हैं. ऐसे में अगर आप गहरे रंग का आईशैडो लगाती हैं तो सभी का ध्यान आप की झुर्रियों पर जाएगा. इसलिए आप मैट कलर के आईशैडो प्रयोग करें.

2. लिपस्टिक

बढ़ती उम्र का असर होंठों पर भी पड़ता है. आप के होंठ सिकुड़ने व सूखने लगते हैं. सर्दियों में आप कलरफुल वैसलीन लगा कर होंठों को सूखने से बचा सकती हैं. लिपस्टिक गहरे रंग के बजाय हलके रंग की लगाएं. लिप लाइनर भी गहरे रंग का प्रयोग न करें. लिप लाइनर की जगह लिप ग्लौस लगाने से आप के होंठ चमकीले व सुंदर दिखाई देंगे.

3. फाउंडेशन

दागधब्बों व झुर्रियों को छिपाने के लिए फाउंडेशन का प्रयोग करें. लेकिन ध्यान रखें कि फाउंडेशन बहुत ज्यादा न लगे, क्योंकि इस से आप के चेहरे की झुर्रियां साफ दिखाई देने लगती हैं. अत: थोड़ी देर पहले मोइश्चराइजर लगा लें, उस के बाद फाउंडेशन आप के चेहरे पर एकसार लगेगा.

4. डल आंखें

अपनी आंखों की चमक बनाए रखने के लिए आप रंगीन लैंस भी लगवा सकती हैं. साथ ही, मस्कारा लगाने से आप की आंखों की डलनैस खत्म हो जाएगी. नीले रंग का आईलाइनर आप की आंखों को और भी सुंदर बना देगा. ब्राउन या ब्लैक कलर का मस्कारा भी आप प्रयोग कर सकती हैं. अगर आईब्रोज पतली हैं तो ब्लैक कलर की आईब्रो पैंसिल से शेप देने से वे सुंदर लगने लगेंगी.

5. रंगों का चुनाव

मेकअप करते समय रंगों का चुनाव सोचसमझ कर करें. यदि गालों पर ब्राइट पिंक कलर लगाया है तो होंठों पर कुछ न लगाएं. ज्यादा ब्राइट कलर प्रयोग न करें.

Sunita Williams : अंतरिक्ष का एक चमकता सितारा

Sunita Williams :  आखिर लंबे इंतजार के बाद भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स धरती पर लौट आई हैं. वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर असामान्य रूप से लंबे समय तक रहने के बाद वापस आई हैं. नासा के मुताबिक, सुनीता विलियम्स और 3 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को ले कर आने वाला अंतरिक्षयान कुछ ही घंटों में आईएसएस अलग हुआ और फ्लोरिडा के समुद्र में सफलतापूर्वक उतर गया.

भारतीय समय के अनुसार, यह बुधवार तड़के करीब 3 बजे हुआ. इस के साथ ही दुनियाभर में खुशी देखी गई. यह दिन मानवता की एक बड़ी जीत के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया.

दरअसल, यह पूरी यात्रा धैर्य की एक महागाथा बन गई है. सुनीता विलियम्स और बैरी ‘बुच’ विल्मोर की यह यात्रा वास्तव में 10 महीने पहले पूरी होनी थी. उन्हें सिर्फ 8 दिन के मिशन के बाद वापस आना था, लेकिन तकनीकी कारणों से उन की वापसी में देरी होती चली गई.

सुनीता विलियम्स, जो इस साल सितंबर में 60 वर्ष की हो गई हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुनीता को लिखे एक पत्र में कहा है,”आप हमारा गौरव हो, हमारे दिल के करीब हो.”

नासा अपने स्पेसएक्स कार्यक्रम के तहत इस वापसी यात्रा का सीधा प्रसारण किया, जिसे करोड़ों लोगों ने देखा. सुनीता विलियम्स ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा 15 दिसंबर, 2022 को शुरू की थी, जब वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंची थीं.

उन की यात्रा के दौरान उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया, जिन में से एक थी उन के अंतरिक्षयान के हीट शील्ड में समस्या आना. इस समस्या के कारण उन की वापसी यात्रा में देरी हो गई और उन्हें आईएसएस पर अधिक समय तक रहना पड़ा.

सुनीता विलियम्स की यह यात्रा न केवल उन की व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह दुनियाभर के लोगों के लिए एक प्रेरणा और गर्व का समय है. उन की यात्रा से यह संदेश गया है कि कठिन परिश्रम, समर्पण और साहस के साथ हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं.

इस के अलावा, सुनीता विलियम्स की यह यात्रा महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए भी एक प्रेरणा है. उन की उपलब्धि से एक बड़ा संदेश गया है.

सुनीता विलियम्स को अंतरिक्ष में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं :

तकनीकी समस्याएं

हीट शील्ड में समस्या उन के अंतरिक्षयान के हीट शील्ड में समस्या आई, जिस से उन की वापसी यात्रा में देरी हो गई.

अंतरिक्ष में कम्युनिकेशन समस्या का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें अपने साथियों और मिशन कंट्रोल से संपर्क करने में मुश्किल हुई.

लाइफ सपोर्ट सिस्टम में समस्या

उन के अंतरिक्षयान के लाइफ सपोर्ट सिस्टम में समस्या आई, जिस से उन्हें अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में चिंतित होना पड़ा.

शारीरिक दिक्कतें

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण उन की मांसपेशियों में दर्द होने लगा.

नींद की समस्या

अंतरिक्ष में नींद की समस्या का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें थकान और तनाव महसूस हुआ.
अंतरिक्ष में पाचन समस्या का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें भोजन करने में मुश्किल हुई.

मानसिक दिक्कतें

अंतरिक्ष में तनाव और चिंता का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित होना पड़ा.

अंतरिक्ष में अकेलापन महसूस हुआ, जिस से उन्हें अपने परिवार और दोस्तों की याद आई.

इस के साथ ही अंतरिक्ष में संदेह और आत्मसंदेह का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें अपनी क्षमताओं और निर्णयों पर संदेह होने लगा.

इन दिक्कतों के बावजूद, सुनीता विलियम्स ने अपनी यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा किया और अपने अनुभवों से सीखने का अवसर प्राप्त किया.

सुनीता विलियम्स के संदर्भ में नवीनतम घटनाक्रम :

स्वागत समारोह: गुजरात में उन के पैतृक गांव में उन के स्वागत के लिए एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया है.

नासा के साथ भविष्य की योजनाएं: सुनीता विलियम्स ने नासा के साथ अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बात की है, जिस में उन्होंने कहा है कि वह भविष्य में और अधिक अंतरिक्ष मिशनों में भाग लेना चाहती हैं.

भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा: सुनीता विलियम्स ने कहा है कि वह भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनना चाहती हैं और उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हैं.

लोग मेरी पर्सनैलिटी से घबरा जाते हैं : मिस इंडिया Alankrita Sahai

Alankrita Sahai : मौडलिंग से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली खूबसूरत, सौम्य, शांत और मृदुभाषी मिस इंडिया अर्थ 2014 अलंकृता सहाय का शुरुआती दौर भले ही आसान रहा हो, लेकिन उन्हें एक अच्छी भूमिका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. दिल्ली की अलंकृता कहती हैं कि बिना गौडफादर के बौलीवुड में कदम रखना आसान नहीं होता. हर दिन खुद को प्रूव करना पड़ता है कि आप एक अच्छे कलाकार हो. इस के अलावा एक मौडल की छवि से बाहर निकल कर अभिनेत्री के रूप में स्थापित करना, उस से भी अधिक मुश्किल होता है.

उन के कैरियर में उन के पेरैंट्स और दोस्तों ने उन का हमेशा साथ दिया है. अलंकृता को सपनों का राजकुमार मिल चुका है, जो कारपोरेट वर्ल्ड से हैं. वे बहुत सहयोगी, हंसमुख, शांत स्वभाव के हैं और कनाडा में रहते हैं, जिन के साथ अलंकृता अपना जीवन बिताना चाहती हैं.

इन दिनों अलंकृता एक गाने की वीडियो और एक पौलिटिकल थ्रिलर ड्रामे की सीरीज की शूटिंग पूरी की है और आगे भी कई प्रोजैक्ट पर काम करने की तैयारी में हैं। काम भले ही धीमा हो, लेकिन वे इस से संतुष्ट हैं.

वे कहती हैं कि इस नई सीरीज में मैं ने एक पौलिटिशियन की पत्नी की भूमिका निभाई है, जिस के लिए मैं ने कई वर्कशौप निर्देशक के साथ किए हैं, जिस से अभिनय करना आसान हुआ है, लेकिन एक इमोशनल सीन को करना मुश्किल रहा, जिस में मुझे रोने के साथ गुस्से को भी दिखाना था। साथ में दर्शकों की सिंपैथी भी चाहिए थी। ऐसे दृश्य को फिल्माना आसान नहीं होता.

इंडस्ट्री आसान नहीं

मिस इंडिया बनने के बाद अलंकृता को ऐक्टिंग क्षेत्र में आने का फायदा मिला है, लेकिन इस में कठिनाई भी कम नहीं थी. वे कहती हैं कि मिस इंडिया का मंच काफी अवसर ले कर आता है, क्योंकि आप पूरे विश्व में सब की नजर में आते हैं, जिस से मैं कई सारे ब्रैंड और लोगों से मिल पाई, बहुत कुछ सीखा. इस में मुझे मैनेजमेंट को सीखने में करीब 5 साल लगे, जिस में डिप्लोमैसी, पौलिटिक्स, रिलेशनशिप हैंडलिंग, हेयर, मेकअप आदि सब इंडस्ट्री के अनुसार सीखना पड़ा, क्योंकि मैं इंडस्ट्री से हूं नहीं, इसलिए शुरू से ही मुझे इस सब चीजों पर ध्यान देना पड़ा, जिस के लिए मुझे काफी समय लगा. मैं इस बात से खुश हूं कि खुद की जर्नी खुद तय करना सब से अधिक अच्छा होता है, क्योंकि इस से व्यक्ति अपने विचार, मेहनत, लगन सब अपने हिसाब से कर सकता है. 2 साल पहले जब मैं ने अपने पिता को खोया, तो मुझे काम करने की इच्छा नहीं हुई, लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल गया. मैं स्ट्रौंग बनी, आगे काम करने के बारे में सोचा. इस तरह से मैं ने जो कुछ भी किया है, हमेशा अच्छा किया और आगे भी अच्छा करने की कोशिश करती रहूंगी.

मिली प्रेरणा

अलंकृता कहती हैं कि मैं ने बचपन से ऐक्स्ट्रा ऐक्टिविटीज करती रहती थी, जैसेकि नुक्कड़ नाटकों में अभिनय करना, भरतनाट्यम डांस सीखना आदि. इस के अलावा मैं एक बार मिस नोएडा भी बनी थी। इस तरह स्कूल से अभिनय शुरू कर आगे बढ़ती गई और इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली.

पहले मैं आईएएस औफिसर बनना चाहती थी, लेकिन कला में भी मेरी रुचि थी, लेकिन यह मेरे जीवन का कैरियर बन जाएगा, ऐसा मैं ने नहीं सोचा था. पढ़ाई पूरी कर मैं मुंबई आई, जौब किया फिर अचानक मेरा मिस इंडिया में ऐंट्री हुई और मेरी जिंदगी बदल गई. धीरेधीरे मैं आगे बढ़ती गई और मेरे सपने पूरे होते गए। इस में मेरे पेरैंट्स मेरी बहन और सभी ने पूरी तरह से सहयोग दिया.

संघर्ष हासिल करना

अलंकृता आगे कहती है कि मैं अकेले कुछ नहीं कर सकती थी। मेरे परिवार वालों का बहुत सहयोग रहा है. शुरू में मेरे पिता मेरे साथ मुंबई में रहते थे. मैं ने भी चुनौतियां ली हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफलता के लिए संघर्ष करता है. मैं संघर्ष को नकारात्मक रूप में नहीं हासिल करने के रूप में देखती हूं. मेरी चुनौतियां मुझे किसी मंजिल तक पहुंचाने के लिए ही होती हैं. उदाहरणस्वरूप मेरी मां ने मुझे इस धरती पर लाने के लिए काफी पुश और दम लगाया होगा, तब जा कर मैं ने इस धरती पर कदम रखा है। इस लिहाज से मेरी संघर्ष कुछ भी नहीं है. किसी भी रिजैक्शन या दुख को केवल 15 मिनट तक दुख समझ कर फिर आगे बढ़ जाना चाहिए.

पहला ब्रेक

मिस इंडिया के बाद एक म्यूजिक अलबम की लौंच से मैं हर जगह पहचानी गई, जिसे गायक हिमेश रेशमिया, अभिनेता अमिताभ बच्चन और अभिनेता सलमान खान ने मुझे लौंच किया था. लोगों ने इसे बहुत पसंद किया था.

नहीं पड़ता रिजैक्शन का असर

किसी भी रिजैक्शन को अलंकृता सहजता से लेती हैं। वे कहती हैं कि किसी भी रिजैक्शन को मैं ने सकारात्मक रूप में लिया और खुद को समझाया कि मैं उस की हकदार नहीं हूं, इसलिए मुझे नहीं मिला. पहले खराब लगता था कि मैं सुंदर नहीं, ऐक्टिंग नहीं आती या औडिशन वालों को मैं पसंद नहीं आदि कई खयाल आते थे। ऐसे में, मैंटल हैल्थ को सही रखने के लिए पेरैंट्स, भाईबहन या दोस्त होते हैं, क्योंकि इंडस्ट्री की रिजैक्शन को स्कूल या कालेज में नहीं सिखाया जाता है, इसे व्यक्ति जीवन के अनुभवों से ही सीखता है. मैं ने अभिनय की कला, अभिनय कर और वर्कशौप से ही सीखा है. इंडस्ट्री के साथ डील को भी काम करते हुए ही सीखा है.

स्पष्टभाषी होना पड़ा भारी

अलंकृता स्पष्टभाषी हैं, इस का खामियाजा उन्हें कई बार भुगतना भी पड़ता है। वे कहती हैं कि लोग मुझे ब्लंट, बिगड़ी हुई परिवार से, रूड या एरोगेनट समझते हैं, क्योंकि मुझे काम में हमेशा क्लीयरिटी पसंद है, जो पसंद नहीं उसे साफसाफ कह देती हूं. आप ने अगर कोई बाउंड्री काम की नहीं बनाई है, तो कोई भी टैकन फोर ग्रांटेड ले लेता है.

खुद को संभालना जरूरी

कास्टिंग काउच का सामना करने को ले कर अलंकृता का कहना है कि इस में सब से जरूरी है कि आप किस तरह के लोगों से मिलते हैं। मेरे साथ जितने भी जुड़े थे, सभी सही थे, लेकिन मुझे याद आता है कि पंजाब इंडस्ट्री में पहली बार फिल्म प्रोड्यूस करने वाला सैकंड लाइन प्रोड्यूसर का स्वभाव गैर पेशेवर और अनैतिक था। मैं ने पहले ही उन के गलत प्रपोजल को मना किया, क्योंकि मैं सेट पर तंग नहीं होना चाहती, सब को इज्जत देती हूं और रात को चैन की नींद सोना पसंद करती हूं. उन्होंने मुझे बहुत भलाबुरा कहा, पर मैं अडिग रही और उस फिल्म को छोड़ दी. बौलीवुड में ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि लोग मेरी पर्सनैलिटी से घबरा जाते हैं, जो मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मैं बाहर से स्ट्रौंग दिखती हूं. रियल में मैं एक नारियल की तरह हूं, जो बाहर से कठोर और अंदर से मुलायम है, जिसे मेरे नजदीक रहने वाले परिवार और दोस्त ही जानते हैं. साथ ही मैं एक इमोशनल लड़की भी हूं, लेकिन काम पर बैलैंस, डिग्निटी और रिस्पैक्ट को हमेशा बनाए रखने में विश्वास रखती हूं.

सोशल मीडिया पर भरोसा ठीक नहीं

सोशल मीडिया को ले कर अलंकृता का कहना है कि आज सोशल मीडिया से ब्लौगर, इंस्टाग्रामर एक ऐक्टर से अधिक काफी पैसा कमा रहे हैं, ऐसा मैं ने सुना है, लेकिन यह बहुत हेकटिक है, आसान नहीं है. मैं कैमरे के अलावा कुछ नहीं जानती। यह सही है कि सोशल मीडिया की इन्फ्लूऐंस पर कास्टिंग निर्भर करती है. टेलैंट का फौलोवर्स कैसे बढ़ेगा, जब तक उसे मौका न मिले. लाइक्स और फौलोवर्स के अनुसार कास्टिंग करना गलत है, क्योंकि इस से कोई अच्छा कलाकार हो, यह गारंटी नहीं. इसलिए कुछ ऐसे भी हैं, जो टेलैंट को ही सबकुछ मानते हैं और उन्हें मौका मिलता है.

टेलैंट को नंबर से जोड़ना मेरे लिए परेशानी है, क्योंकि टेलैंट को नंबर देना संभव नहीं. जब टेलैंट आगे बढ़ेगा, तो नंबर अपनेआप ही बढ़ता चला जाएगा.

जिम्मेदारी सब की

वूमन ऐंपावरमैंट को ले कर अलंकृता कहती हैं कि आज भी महिलाएं सड़कों पर डरडर कर चलती हैं। उन्हें अपने तरीके से रहने, पोशाक पहनने और काम करने की आजादी नहीं है. इतना ही नहीं, कई शहरों में सुरक्षा के सही इंतजाम नहीं हैं, कई जगह स्ट्रीट लाइट नहीं, लड़कियों को अंधेरे में चलना पड़ता है. मेरे हिसाब से सब से पहले सामाजिक और आर्थिक स्टैटस में बदलाव होने की जरूरत है, सैनीटेशन और हैल्थ केयर सिस्टम में सुधार होने की जरूरत है.

यह काम कलाकार से ले कर ऐंन्फ्लुऐंसर सभी को अपने हिसाब से करना पड़ेगा. अगर हम मुड़ कर एक लड़की को ‘बिच’ कहते हैं, तो समाज कैसे आगे बढ़ेगा. महिला और पुरुष का एकदूसरे को सम्मान देने से ही महिला ऐंपावर हो सकती है.

सुपर पावर मिलने पर अलंकृता हर व्यक्ति के मन की बात समझना चाहती हैं, ताकि कुछ गलत होने से पहले उसे रोक लिया जाय.

Lg हींग से बनाएं स्वादिष्ट दाल

हरी काली दाल विद वैजिटेबल्स

सामग्री

1/2 कप मूंग दाल साबूत,   1/2 कप उरद दाल साबूत,  2 बड़े चम्मच चना दाल, 1/2 कप टमाटर बीज रहित कटे ,  1 बड़ा चम्मच अदरक बारीक कटा,  1 छोटा चम्मच लहसुन बारीक कटा,  2 हरीमिर्चें बारीक कटी,  1/4 कप प्याज बारीक कटा,   1/2 कप गाजर 1 इंच के लंबे टुकड़ों में कटी,  1 कप गोभी कटी ,  1 बड़ा चम्मच मस्टर्ड औयल,  नमक स्वादानुसार.

सामग्री तड़के की

1 छोटा चम्मच जीरा,  1/2 कप टोमैटो प्यूरी ,  1 छोटा चम्मच गरममसाला ,  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर ,  1 बड़ा चम्मच कसूरी मेथी , 1/4 छोटा चम्मच एलजी हींग पाउडर,  3 बड़े चम्मच देशी घी, मक्खन ऐच्छिक, थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजाने के लिए.

विधि

तीनों दालों को मिक्स कर के धो कर 3 कप पानी के साथ प्रैशरकुकर में 1 सीटी लगवाएं. ठंडा कर के प्रैशरकुकर का ढक्कन खोल कर अदरक, लहसुन, प्याज, टमाटर, हरीमिर्च, नमक और मस्टर्ड औयल डालें. पुन: दाल में 2 कप पानी और डाल कर 1 सीटी आने के बाद धीमी आंच पर 1/2 घंटा और पकाएं. इस में गोभी व गाजर के टुकड़े डाल दें और धीमी आंच पर 5 मिनट और पकाएं. दाल गाढ़ी हो तो गरम पानी डाल दें. तड़के के लिए घी गरम कर के उस में जीरा, मिर्च, एलजी हींग पाउडर व कसूरी मेथी डालें. फिर टोमैटो प्यूरी डाल कर घी छूटने तक पकाएं और दाल में मिक्स करें. दाल को 3 मिनट और पकाएं. सर्विंग बाउल में डालें. मक्खन डाल कर धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

lg heeng

 

Hindi Story Collection : लिव टुगैदर का मायाजाल

Hindi Story Collection : सामने महेश खड़ा था. आंखों से झरझर आंसू बहाता हुआ, अपमानित सा, ठगा हुआ, पिटा हुआ सा, अपने प्रेम की यह हालत देखते हुए… स्वयं को लुटा हुआ महसूस कर, हिचकियों के साथ रो रहा था.

मैं उसे सामने देख कर अवाक् थी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी वीरान जिंदगी में अब कोई आया है. ‘‘सपना…’’ रुंधे गले से महेश मुश्किल से बोल पाया.

किसी गहरे कुएं से आती मरियल सी आवाज…आज मुझे मेरे उन सब उद्बोधनों से ज्यादा भारी और अपनी महसूस हुई, जो मैं पिछले 10-12 साल से सुनती चली आ रही थी.

‘‘सपना स्वीटहार्ट… सपना डियर… सपना डार्लिंग…’’ की आवाजों का खोखलापन, जो मैं पिछले 2-3 बरस से महसूस कर रही थी, आज और ज्यादा खोखली लगने लगीं.

मेरे चारों तरफ मेरा अपना बनाया, अपना रचाया हुआ संसार खड़ा था. मलिन और निस्तेज पड़े हुए मेरे शरीर के चारों ओर शानदार चीजों से सजा हुआ मेरा बंगला अभिमान के साथ आसमान से बातें कर रहा था. उसी अभिमान के रथ पर कभी मैं भी सवार हो कर सपने संजोया करती थी…

‘‘सपना…एक बार मुझे खबर तो कर दी होती अपनी बीमारी की…’’ मेरे निशक्त शरीर को देखते हुए महेश के गले से दबीदबी सी आवाज निकली.

महेश के दिल में मेरे लिए… टिमटिमा कर जलता हुआ दीपक… मेरे मन के अंधेरे में एक किरण सी चमकी. अकेलापन, अवसाद और उदासी भरे मन में, महेश की उपस्थिति की दस्तक से एक नई तरह की आशा का संचार हुआ.

महेश ने ढूंढ़ कर कमरे की लाइट जलाई. कमरा एक बार फिर से रोशन हो गया. चारों तरफ गर्द ही गर्द जमा हो गया था. महंगामहंगा आधुनिक सामान धूल से अटा पड़ा था. कमरे की सजावट जहां अपने अतीत की आलीशानता बयान कर रही थी, वहीं उस पर जमी धूल की परत वर्तमान की बेजान तसवीर पेश कर रही थी.

स्पर्श सुख की अनुभूति पिछले कई महीने से उस ने महसूस नहीं की थी. मेरी अवसादग्रस्त जिंदगी की चिड़चिड़ाहट और चिल्लाहट से त्रस्त हो कर, नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चली गई थीं. महीनों से साफसफाई नहीं हुई थी.

पैसे से श्रम खरीदा जा सकता है, अपनापन नहीं, इस का प्रत्यक्ष दर्शन मुझे हो रहा था. दीवार पर लगे विशाल आईने पर निगाह पड़ते ही मैं चौंक गई. लेटेलेटे ही अपना प्रतिबिंब देख कर मुझे रोना आ गया. एक बार को तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाई.

मेरे पर हमेशा हंसतेखिलखिलाते रहने वाला विशाल आईना, गंदला हो कर मायूसी प्रकट कर रहा था. रोशनी से मेरी हालत का जायजा ले कर महेश और भी ज्यादा द्रवित हो गया. ‘‘सपना… कम से कम एक फोन तो कर दिया होता. इतनी बीमार पड़ी थीं. एकदम पीली पड़ गई हो,’’ महेश अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपनी ही रौ में कहे जा रहा था.

मैं महेश की हालत समझ रही थी. एकएक बीती बात मुझे याद आ रही थी. जब शरीर था तब विचार नहीं थे, अब शरीर नहीं रहा तो विचार डेरा डालने लगे.

अकेलेपन और अवसाद से महेश की सहानुभूति मुझे कुछ हद तक उबार रही थी. मैं उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी. ‘महेश मेरा इतना लंबा इंतजार करता रहा. मेरे लिए… अभी तक इंतजार या फिर यों ही आया है अचानक.’

यादों के खंजर दिमाग में ठकठक कर रहे थे. महेश मेरा सहपाठी था. कालेज के वे दिन हवा में उड़ने के थे… आसमान से बातें करने के. यौवन पूरे निखार पर था. मैं तितलियों की तरह इधरउधर मंडराती रहती.

कलियां खिलेंगी तो मधुप मंडराएंगे ही और फिर यह तो समय होता है युवाओं को आकर्षित करने का… लोगों की फिसलती निगाहें पकड़ कर आह्लादित होने का.

हरदम सजनासंवरना, इधरउधर इतराते हुए फिरते रहना, न कोई चिंता थी, न ही कोई परवा. बस उड़ते ही जाना, लोगों की निगाहों में चढ़ते जाना. उन की कानाफूसियां सुन कर उल्लासित होना और उन की प्यासी निगाहें ताड़ कर उन्हें और तड़पाना. उन की अतृप्तता भरी मनुहार सुन कर स्वयं को तृप्त महूसस करना. चिंता नहीं थी तो चिंतन भी नहीं था…

महेश न जाने कब मुझ से दिल लगा बैठा था. भावुक महेश मेरे रूपयौवन के मोहजाल में फंस गया था. हरदम वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पता रहता था.

पुरुष बेचारा, पहले प्यार को अपने दिल पर लगा लेता है… मेरे लिए पुरुषों की तड़प मेरी आत्मसंतुष्टि थी. अनादि काल से चली आई परंपरा नारी की तड़प से पुरुषों की आत्मसंतुष्टि को तोड़ना मेरे अहं को तुष्ट करती थी.

मैं 20वीं सदी की नारी थी. मेरे विचारों में खुला आसमान था. मेरा एक स्वतंत्र अस्तित्व है. मैं भी पुरुष की तरह एक इकाई हूं. प्रेम, प्यार एक अलग बात है. लेकिन शादी, बच्चे का बंधन मुझे नागवार लगता था.

कालेज के दिन फुरफुर कर उड़ गए. महेश की मासूम याचना मेरे मस्तिष्क पर सामान्य सी ठकठक थी.

अपनी अलग पहचान बनाने की लौ मन में निरंतर जलती रहती. मैं भावुकता में न बह कर पूर्ण व्यावसायिक हो गई थी.बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी, ऊंचा ओहदा, भरपूर पगार… सारी सुखसुविधाएं मेरे कदमों को चूम रही थीं.

मैं स्वतंत्र, आर्थिक रूप से मजबूत, अच्छी प्रतिष्ठा वाली, फिर क्यों किसी पुरुष के अधीन रहूं. परिवार के बंधनों में बंधूं. पैसे से हर चीज हासिल की जा सकती है. अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए एक अदद पुरुष भी.जब पदप्रतिष्ठा पा कर पुरुष बौरा सकता है तो स्त्री क्यों नहीं. मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी, मुझ में खुद के अहम की बू कुछ ज्यादा ही आ गई थी.

औफिस में ही कमल से मेलमिलाप बढ़ा. हर मुद्दे पर हमारी बौद्धिक बहसें होतीं. राजनीतिक, सामाजिक विचारविमर्श होता. हर विषय पर हम लोग खुले विचार रखते, यहां तक कि प्रेम और सैक्स पर भी.

मेरी मानसिक भूख के साथसाथ शारीरिक भूख भी जोर मारने लगी थी. समान बौद्धिक स्तर वाले कमल के साथ काफी तार्किक विचारविमर्श के बाद हम दोनों एकसाथ रहने लगे, बिना किसी वैवाहिक बंधन के.

लिव टुगैदर, हम 2 स्वतंत्र इकाई, 2 शरीर थे. एक छत के नीचे हो कर भी हमारी साझी छत नहीं थी. पहले तो अड़ोसपड़ोस में हमारे साथसाथ रहने पर कानाफूसियां हुईं, ‘छिनाल’, ‘वेश्या’ और न जाने किनकिन संबोधनों से मुझे नवाजा गया, लेकिन मैं तो उड़ान पर थी. इन सब बातों से मैं कहां डरने वाली थी. हवा में उड़ने वाले परिंदे जमीन पर बिछे जाल से कहां डरते हैं.

महल्ले के युवकयुवतियों को मेरे घर के आसपास फटकने की सख्त मनाही हो गई थी. मेरे घर के चारों तरफ अघोषित एलओसी बन गई थी, जिसे पार करना सफेदपोश शरीफों के बस की बात नहीं थी.

इक्कादुक्का कभी मेरे मकान की तरफ लोलुप निगाहें ले कर बढ़ते पर मेरी हैसियत से डर कर पीछे हो जाते.

जब शरीर बोलता है, तो विचार चुप रहते हैं. एलओसी के घेरे में मैं कब अकेली पड़ती गई इस का मुझे भान तक नहीं हुआ.

शरीर था कि खिलता ही जा रहा था. मैं शरीर के रथ पर सवार हो कर अभिमान के आसमान में उड़ रही थी.

कमल के साथ रहते हुए भी हमारा साझा कुछ नहीं था. मैं जब चाहती कमल के शरीर का भरपूर उपभोग करती. कमल को हमेशा उस की सीमारेखा दिखाती रहती. पुरुष हो कर भी कमल का पुरुषत्व मेरे सामने बौना रहता.

अपना फ्रैंड सर्कल मुझे खुशनुमा महसूस होता. लिव टुगैदर में पतिपत्नी के बीच की लाज और लिहाज, सामाजिक दबाव और बच्चे होने का मानसिक दबाव नहीं था. बस, उच्छृंखल व्यवहार, शरीर का विभिन्न तरह से भरपूर उपभोग, परम आनंद प्रदान करता.

देखते ही देखते कमल के साथ का मौखिक अनुबंध पूरा हो चला. साथ रहते कमल के मन में घर बसाने की चाहत घुल रही थी. कमल बहुत भावुक हो उठा था. अलगाव से उसे बेचैनी हो रही थी. वह शादी कर घर बसाने के लिए मिन्नतें करने लगा. लेकिन मैं तो मन और तन के उफान पर थी. तन अभी भी भरपूर बोल रहा था. भाव तो मन में थे ही नहीं. भाव होते तो मन कमजोर पड़ जाता. मैं नारी की गुलामी की पक्षधर बिलकुल नहीं थी.

शादी… यानी नारी की गुलामी के दौर की शुरुआत… मैं ने एक झटके में कमल को बाहर का रास्ता दिखा दिया.

मुझ में शारीरिक आकर्षण अभी भी उफान पर था. मर्दों की लाइन लगने को तैयार थी. प्रेम, प्यार बेवकूफों का शगल. बेकार में अपनी ऊर्जा जलाओ. तनमन को तरसाओ. मेरा सिद्धांत था, खाओपियो और मौज करो.

मांबाप के बीच की यदाकदा की खिंचन की पैठ मेरे मन में इतनी गहरी समाई हुई थी कि पारिवारिक स्नेह का तानाबाना पकड़ने में मैं कभी सफल नहीं हो पाई.

फिर बदलाव के धरातल पर पैर रख कर कभी महसूस करने और समझने की कोशिश ही नहीं की.भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति मेरी प्राथमिकता रही थी. उन की पूर्ति के लिए मेरे पास संसाधनों की किसी तरह कोई कमी नहीं थी. बस पैसा फेंको, सभी सुविधाएं हाजिर हो जाएंगी.

आलीशान बंगला होने के कारण कभी घर की ऊष्मा महसूस करने की कोशिश ही नहीं की. आधुनिकता के जनून में मेरा स्व ही मुझ पर सवार था.

कमल के बाद अब सैक्स पूर्ति के लिए सुरेश टकरा गया था. उस का भरापूरा शरीर था, छुट्टे सांड़ जैसा मस्तमस्त. मेरे साथ लिव टुगैदर उस के लिए बहुत अच्छा औफर था. हम दोनों साथसाथ रहने लगे, बिना किसी साझी छत के. फिर से वही शारीरिक आनंद की सुनहरी गुफा में विचरण.

मन की स्वतंत्र उड़ान में मैं कभी अपने को हारी हुई महसूस नहीं करती. ऐसा लगता कि मैं ने सुरेश के पौरुष के साथसाथ मर्दों के पौरुष को हरा दिया है.

समय कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. देह के कोणों का तीखापन कम होने लगा था. मन के कोण कुछ तीखे हो कर अधूरापन महसूस करने लगे थे.

हर माह मेरे वजूद में अंडा तैयार होता. निषेचित हो कर मुझे नारी का पूर्णत्व प्रदान करने के लिए आतुर रहता, पर शुरुआत में मैं पुरुष से बिलकुल हार मानने वाली नहीं थी. कमल और सुरेश के लाखों शुक्राणु बिना संगम के बह चुके थे. पर अब मेरा मन करता कि मैं हार जाऊं और मेरा मातृत्व जीते. नारी के अधूरेपन का एहसास मुझे महसूस होने लगा था. मन में कचोट सी उठने लगी थी.

मेरी चाहत सुन कर सुरेश एकदम से बिफर गया, ‘हमारे लिव टुगैदर के अनुबंध में बच्चा नहीं था.’

अब मुझे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं सुरेश को यूज कर रही हूं कि सुरेश मेरा इस्तेमाल कर रहा है. अपनेअपने अहं की जीत में हम दोनों ही हार रहे थे. हालांकि सब से ज्यादा शारीरिक और मानसिक नुकसान नारी को ही उठाना पड़ता है. पुरुष तो हमेशा हार कर भी जीतता है और जीत कर तो जीतता ही है.

अब मेरा शरीर ढलान पर था तो विचार उठने लगे. सामाजिक तानेबाने की कमी महसूस होने लगी. समाज में प्रतिष्ठा, पद, पैसा पा कर भी मैं सामाजिक कार्यक्रमों में अछूत जैसी स्थिति में रहती.

इंटरनैट, फेसबुक, ट्विटर, औरकुट, ब्लैकबेरी मैसेंजर से सारी दुनिया हमारी थी, लेकिन हमारा पड़ोसी, हमारा नहीं था. मेरा अभिमान चकनाचूर हो कर मिटने के लिए तैयार था, पर सुरेश बिलकुल झुकने के लिए तैयार नहीं था.

अब मेरी मिन्नतों के बाद भी वह अपने स्पर्म मेरी कोख में डालने के लिए तैयार नहीं था. मेरी हालत ‘जल बिन मछली’ जैसी हो रही थी. मेरा मन बच्चे के कोमल स्पर्श को बेचैन होता. कोमलकोमल हाथों की छुअन को महसूस करने के लिए मेरा मन व्यग्र होता, कंपित होता.

सामाजिक अकेलापन, अधूरा नारीत्व मुझे अवसादग्रस्त करने लगा था. सुरेश का ज्वार, उस का हारा हुआ चेहरा, अब मुझे आह्लादित नहीं करता था. उस का सपना डियर, सपना डार्लिंग… कहना मेरे मन को चिड़चिड़ा बना रहा था.

लिव टुगैदर मुझे इंद्रधनुषी मायाजाल सा महसूस होने लगा था. मेरा सबकुछ लुट कर भी मेरा अपना कुछ नहीं था. अनुबंध का समय पूरा हो गया. सुरेश एक झटके के साथ मुझे छोड़ गया. मेरी लाख मिन्नतों के बाद भी वह एक पल भी रुकने को तैयार नहीं हुआ. मेरे जज्बातों से उस को कोई लगाव नहीं था. जैसे एक झटके में मैं ने कमल को छोड़ दिया था, वैसे ही सुरेश ने मुझे छोड़ दिया.

आलीशान घर, महंगा विदेशी सामान मेरे चारों तरफ अभिमान के साथ सजा हुआ था, लेकिन मेरा अभिमान छंट रहा था. अकेलापन भयावह हो रहा था. परिवार के आपसी तानेबाने की कमी महसूस होने लगी थी.

समाज की नजरों में, अपने बौद्धिक विचारों में तो मैं नारी की जीत का आदर्श मौडल बन ही चुकी थी, पर वास्तविकता में मैं अपने अंदर जो रीतापन महसूस कर रही थी, वह मुझे सालता.

निराशा और अकेलापन मुझे दिवास्वप्नों में खोने लगा था. परिणामत: चिड़चिड़ापन और गुस्सा मुझ पर हरदम हावी रहने लगा था. औफिस में, घर में, मैं हरदम झुंझलाती, चिड़चिड़ाती रहती.

कभी मुझे लगता मेरा भी प्यारा सा परिवार है. पति है, छोटा सा बच्चा है, जो अपने नाजुक मसूड़ों से मेरे स्तन चूस रहा है. गीलेगीले होंठों से मुझे चूम रहा है. उस की सूसू की गरमाहट मुझे राहत दे रही है.

कभी लगता, मेरा अभिमान अट्टहास कर रहा है. मुझे चिढ़ा रहा है. मैं एकदम से अकेली पड़ गई हूं. चारों तरफ डरावनीडरावनी सूरतें घिर आई हैं.

घबराहट में मेरी एकदम से चीख निकल जाती. तंद्रा टूटती तो अकेला घर सांयसांय करता मिलता. नौकरनौकरानियां अपनी ड्यूटी निभातीं. मुझे खाना खाने के लिए जोर डालतीं, तो मैं उन पर ही चिल्ला पड़ती.

कुछ दिन मुझे झेलने के बाद वे भी मुझे छोड़ कर चली गईं.

अकेलापन और घिर आया. घर के चारों तरफ खिंची लक्ष्मण रेखा पार करने का साहस किसी में नहीं था. लिव टुगैदर के फंडे ने समाज से टुगैदरनैस होने ही नहीं दिया. मैं अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

मन में घोर निराशा थी तो तन भी बीमार रहने लगा. न किसी काम में मन लगता न कुछ करने, खानेपीने की इच्छा होती. हरदम अकेलापन सालता, काटने को दौड़ता रहता, अकेलेपन का एहसास भी मुझे भयभीत करता रहता.

अब मैं क्या करूं? मेरे विचार कुंद पड़ते जा रहे थे. नातेरिश्तेदारों की परवा मैं ने कभी की ही नहीं थी, तो अब कौन साथ देता.

अवसादग्रस्त हो कर मैं ने नौकरी भी छोड़ दी थी. अकेली घर में पड़ी रहती. न खाने की सुध, न कोई बनाने वाला, न कोई मनाने वाला.

मम्मीपापा के बीच की मनुहार मुझे अब बारबार याद आती. भाइयों और बहनों के बीच की तकरार, लड़ाईझगड़ा याद आता.

अजीब हालत हो गई थी. शरीर सूख कर कांटा होता जा रहा था. न दिन का पता रहता न रात का. दीवाली पर हरदम रोशन रहने वाला मेरा बंगला और मेरा मन अंधेरे में घिरा रहता.

परिवार की अवधारणा को ताड़ कर लिव टुगैदर का मायाजाल, असीम सुख, अब समझ आ रहा था.

‘‘सपना… डाक्टर को बुला लाता हूं…’’ महेश कह रहा था.

मैं बेसुध सी पड़ी उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी.

Famous Hindi Stories : कुछ इस तरह

Famous Hindi Stories :  रात के एक बजे जूही ने घर में सोए मेहमानों पर नजर डाली. उस की चाची, मामी और ताऊ व ताईजी कुछ दिनों के लिए रुक गए थे. बाकी मेहमान जा चुके थे. ये लोग जूही और उस की मम्मी कावेरी का दुख बांटने के लिए रुक गए थे.

जूही ने अब धीरे से अपनी मम्मी के बैडरूम का दरवाजा खोल कर झांका. नाइट बल्ब जल रहा था. जूही ने मां को कोने में रखी ईजीचेयर पर बैठे देखा तो उस का दिल भर आया. क्या करे, कैसे मां का दिल बहलाए. मां का दुख कैसे कम करे. कुछ तो करना ही पड़ेगा, ऐसे तो मां बीमार पड़ जाएंगी.

उस ने पास जा कर कहा, ‘‘मां, उठो, ऐसे बैठेबैठे तो कमर अकड़ जाएगी.’’ कावेरी के मुंह से एक आह निकल गई. जूही ने जबरदस्ती मां का हाथ पकड़ कर उठाया और बैड पर लिटा दिया. खुद भी उन के बराबर में लेट गई. जूही का मन किया, दुखी मां को बच्चे की तरह खुद से चिपटा ले और उस ने वही किया.

कावेरी से चिपट गई वह. कावेरी ने भी उस के सिर पर प्यार किया और रुंधे स्वर में कहा, ‘‘अब हम कैसे रहेंगे बेटा, यह क्या हो गया?’’ यही तो कावेरी 20 दिनों से रो कर कहे जा रही थी. जूही ने शांत स्वर में कहा, ‘‘रहना ही पड़ेगा, मां. अब ज्यादा मत सोचो. सो जाओ.’’

जूही धीरेधीरे मां का सिर थपकती रही और कावेरी की आंख लग ही गई. कई दिनों का तनाव, थकान तनमन पर असर दिखाने लगा था. जूही की खुद की आंखों में नींद नहीं थी.

26 वर्षीया जूही, कावेरी और पिता शेखर 3 ही लोगों का तो परिवार था. अब उस में से भी 2 ही रह गईं. 20 दिनों पहले शेखर जो रात को सोए, उठे ही नहीं. सोतेसोते कब हार्टफेल हो गया, पता ही नहीं चला. मांबेटी अकेली उन के जाने के बाद सब काम कैसे निबटाए चली आ रही हैं, वे ही जानती हैं.

रिश्तेदारों को इस दुखद घटना की सूचना देने से ले कर, उन के आने पर सब संभालते हुए जूही भी शारीरिक व मानसिक रूप से थक रही है अब. शेखर एक सफल, प्रसिद्ध बिजनैसमैन थे. आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. मुंबई के पवई इलाके में उन के इस 4 बैडरूम फ्लैट में अब मांबेटी ही रह गई हैं.

एमबीए करने के बाद जूही काफी दिनों से पिता के बिजनैस में हाथ बंटा रही थी. यह वज्रपात अचानक हुआ था, इस की पीड़ा असहनीय थी. शेखर जिंदादिल इंसान थे. जीवन के हर पल को वे भरपूर जीते थे. परिवार के साथ घूमना उन का प्रिय शौक था. साल में एक बार कावेरी और जूही को ले कर कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते थे और अब भी अगले महीने स्विट्जरलैंड जाने के टिकट बुक थे, मगर अब?

जूही के मुंह से एक सिसकी निकल गई. पिता की इच्छाएं, उन के जीने के अंदाज, उनकी जिंदादिली, उन का स्नेह याद कर रुलाई का आवेग फूट पड़ा. मां की नींद खराब न हो जाए यह सोच कर वह बालकनी में जा कर वहां रखी चेयर पर बैठ कर देर तक  रोती रही. अचानक सिर पर हाथ महसूस हुआ, तो वह चौंकी. हाथ कावेरी का था. ‘‘मम्मी, आप?’’

‘‘मुझे लिटा कर खुद यहां आ गई. चलो, आओ, सोते हैं, 3 बज रहे हैं. अब की बार बेटी को दुलारते हुए कावेरी अपने साथ ले गई. 20 दिनों से यही तो चल रहा था. कभी बेटी मां को संभाल रही थी, कभी मां बेटी को.

दोनों ने लेट कर सोने की कोशिश करते हुए आंखें बंद कर लीं. कुछ ही दिनों में बाकी मेहमान भी चले गए. मांबेटी अकेली रह गईं. घर का सूनापन, हर तरफ फैली उदासी, घर के कोनेकोने में बसी शेखर की याद. जीना कठिन था पर जीवन है, तो जीना ही था. कावेरी सुशिक्षित थीं. वे पढ़नेलिखने की शौकीन थीं. कुछ सालों से लेखन के क्षेत्र में काफी सक्रिय थीं. उन की कई रचनाएं प्रकाशित होती रहती थीं. लेखन के क्षेत्र में उन की एक खास पहचान बन चुकी थी. शेखर से उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिला था. अब शेखर के जाने के बाद कलम जो छूटा, उस का सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था.

जूही ने औफिस जाना शुरू कर दिया था. कई शुभचिंतक उसे औफिस में भरपूर सहयोग कर रहे थे. पर घर पर अकेली उदास मां की चिंता उसे दुखी रखती. जूही ने एक दिन कहा, ‘‘मां, कुछ लिखना शुरू करो न. कुछ लिखोगी, तो ठीक रहेगा, मन भी लगेगा.’’

‘‘नहीं, मैं अब लिख नहीं पाऊंगी. मेरे अंदर तो सब खत्म हो गया है. लिखने का तो कोई विचार आता ही नहीं.’’

जूही मुसकराई, ‘‘कोई बात नहीं, कई राइटर्स कभीकभी नहीं लिख पाते. होता है ऐसा. ठीक है, ब्रेक ले लो.’’ फिर एक दिन जूही ने कहा, ‘‘मां, टिकट बुक हैं, हम दोनों चलें स्विटजरलैंड?’’

कावेरी को झटका लगा. ‘‘अरे नहींनहीं, सोचा भी कैसे तुम ने? तुम्हारे पापा के बिना हम कैसे जाएंगे. घूम लिए जितना घूमना था,’’ कह कर कावेरी सिसक पड़ी. जूही ने मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, सोचो, पापा का सपना था वहां जाने का, हम वहां जाएंगे तो लगेगा पापा की इच्छा पूरी कर रहे हैं. वे जहां भी हैं, हमें देख रहे हैं. मैं तो यही महसूस करती हूं. आप को नहीं लगता, पापा हमारे साथ ही हैं? मैं तो औफिस में भी उन की उपस्थिति अपने आसपास महसूस करती हूं, दोगुने उत्साह के साथ काम में लग जाती हूं. चलो न मां, हम घूम कर आएंगे.’’

कावेरी ने गंभीरतापूर्वक फिर न कर दिया. पर अगले दोचार दिन जूही के लगातार सकारात्मक सुझावों और स्नेहभरी जिद के आगे कावेरी ने हां में सिर हिलाते हुए, ‘‘जैसी तुम्हारी मरजी, तुम्हारे लिए यही सही’’ कहा, तो जूही उन से लिपट गई, बोली, ‘‘बस मां, अब सब मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

जूही की मौसी गंगा का बेटा अजय पेरिस में अपनी पत्नी रीमा के साथ रहता था. जूही अब लगातार अजय से संपर्क कर सलाह करती रही. जिस ने भी सुना कि दोनों घूमने जा रही हैं, हैरान रह गया. कुछ लोगों ने मुंह बनाया, व्यंग्य किए. पर वहीं, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने खुल कर मांबेटी के इस फैसले की प्रशंसा की. जूही को शाबाशी दी कि वह अपना मनोबल, आत्मविश्वास ऊंचा रखते हुए अपनी मां को कुछ बदलाव के लिए बाहर ले कर जा रही है.

उन लोगों का कहना था कि अच्छा है, दोनों घूम कर आएंगी, इतना बड़ा वज्रपात हुआ है, दोनों कुछ उबर पाएंगी.

इतनी प्रतिभावान मां हिम्मत छोड़ कर ऐसे ही दुख में डूबी रही तो क्या होगा मां का, कैसे मन लगेगा, जूही को इस बात की बड़ी चिंता थी और यह कि जिन किताबों में मां रातदिन डूबी रहती थीं, अब उन की तरफ देख भी नहीं रही थीं. बस, चुपचाप बैठी रहती थीं. इस ट्रिप से मां का मन जरूर बदलेगा. घर में तो हर समय कोई न कोई शोक प्रकट करने आता ही रहता था. वही बातें बारबार सुन कर कैसे इस मनोदशा से निकला जा सकता है. यही सब जूही के दिमाग में चलता रहता था.

शेखर का टिकट तो बहुत भारीमन से जूही कैंसिल करवा चुकी थी. औफिस का काम अपने मित्रों, सहयोगियों पर छोड़ कर जूही और कावेरी ट्रिप पर निकल गईं.

मुंबई से साढ़े 3 घंटे में कतर पहुंच कर वहां 2 घंटे रुकना था. जूही पिता को याद करते हुए उन की बातें करने में न हिचकते हुए कावेरी से उन की खूब बातें करने लगी कि पापा को ट्रैवलिंग का कितना शौक था. हर जगह का स्ट्रीटफूड ट्राई करते थे. हम भी ऐसा ही करेंगे. कावेरी भी धीरेधीरे सब याद करते हुए मुसकराने लगी तो जूही को बहुत खुशी हुई. फ्लाइट चेंज कर के दोनों साढ़े 7 घंटे में जेनेवा पहुंच गए.

जूही ने कहा, ‘‘मां, यहां रुकेंगे. ‘लेक जेनेवा’ पास से देखेंगे. पापा ने बताया था, उन्होंने डिस्कवरी चैनल में देखा था एक बार, लेक से एक तरफ स्विटजरलैंड, एक तरफ फ्रांस दिखता है. वहां ‘लोसान टाउन’ है जहां से ये दोनों दिखते हैं. वहीं ‘लेक जेनेवा’ के सामने किसी होटल में रह लेंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम ने सोचा है, सब जानकारी ले ली है न?’’

‘‘हां, मां, अजय भैया के लगातार संपर्क में हूं.’’ रात होतेहोते बर्फ से ढके पहाड़ों पर लाइट दिखने लगी. जूही ने उत्साहपूर्ण कांपती सी आवाज में कहा, ‘‘मां, वह देखो, वह फ्रांस है.’’ होटल में रूम ले कर सामान रख कर फ्रैश होने के बाद दोनों ने कुछ खाने का और्डर किया, थोड़ा खापी कर दोनों बार निकल आईं.

लेक के आसपास कईर् परिवार बैठ कर एंजौय कर रहे थे. शेखर की याद शिद्दत से आई. कावेरी वहां के माहौल पर नजर डालने लगी. सब कितने शांत, खुश, बच्चे खेल रहे थे. आसपास काफी चर्च थे. चर्च की घंटियों की आवाज कावेरी को बड़ी भली सी लगी.

दोनों अगले दिन लोसान घूमते रहे. कैथेड्रल्स, गार्डंस, म्यूजियम बहुत थे. वहां दोनों 2 दिन रुके. वहीं एक जगह मूवी ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ की शूटिंग हुई थी. कावेरी अचानक हंस पड़ी, ‘‘जूही, याद है न, तुम्हारे पापा ने यह मूवी 4 बार देखी थी. टीवी पर तो जब भी आती थी, वे देखने बैठ जाते थे. यही सब तो उन्हें यहां देखना था, आज यह जगह देख कर वे बहुत खुश होते.’’

‘‘वे देख रहे हैं यह जगह हमारे साथ, जो हमेशा दिल में रहते हैं. वे दूर कहां हैं,’’ जूही बोली थी.

कावेरी मुसकरा दी, ‘‘मेरी मां बनती जा रही हो तुम. मेरी मां होती तो वे भी मुझे यही समझातीं. सच ही कहा गया है कि बेटी बड़ी हो जाए तो भूमिकाएं बदल जाती हैं.’’

दोनों वहां से फिर ‘इंटरलेकन’ चली गईं. वहां जा कर तो दोनों का मन खिल उठा. वहां बड़ा सा पहाड़ था. 2 लेक के बीच की जगह को इंटरलेकन कहा जाता है. सुंदर सी लेक. अचानक जूही जोर से हंस पड़ी, ‘‘मां, उधर देखो, कितने सारे हिंदी के साइन बोर्ड.’’

‘‘वाह,’’ कावेरी भी वहां हिंदी के साइनबोर्ड देख कर आश्चर्य से भर उठी. वहां से दोनों 2 घंटे का सफर कर खूबसूरत ‘टौप औफ यूरोप’ देखने गईं जो पूरे साल बर्फ से ढका रहता है. वहां से वापस आ कर आसपास की जगहें देखीं. वहां का कल्चर, खानपान का आनंद उठाती रहीं. वहां उन्हें थोड़ा जरमन कल्चर भी देखने को मिला.

ट्रिप काफी रोमांचक और खूबसूरत लग रहा था. दोनों को कहीं कोई परेशानी नहीं थी. दोनों हर जगह फैले प्राकृतिक सौंदर्य को जीभर कर एंजौय कर रही थीं. पूरी ट्रिप के अंत में उन्हें 2 दिन के लिए अजय के घर भी जाना था. अजय सब बता ही रहा था कि अब कहां और कैसे जाना है.

फिर अजय की सलाह पर दोनों वहां से

इटली में ‘ओरोपा सैंचुरी’ चले गए, जो पहाड़ों में ही है. वहां बहुत ही पुराने चर्च हैं, जहां जीसस के हर रूप को बहुत ही अनोखे ढंग से दिखाया गया है. जीसस का साउथ अफ्रीकन और डार्क जीसस और मदर मैरी का अद्भुत रूप देख कर दोनों दंग रह गईं. इंग्लिश नेस थीं. बहुत सारी धर्मशालाएं थीं. बहुत ही अद्भुत, रोमांचक अनुभव था यह.

फोन का नैटवर्क नहीं था तो हर जगह शांति थी व इतनी सुंदरता कि कावेरी ने अरसे बाद मन को इतना शांत महसूस किया. आसपास सुंदर झीलों की आवाज, प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य को आत्मसात करती कावेरी जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंच गई थी. अगले दिन एक नन दोनों को ग्रेवयार्ड दिखाने ले गई.

जूही अब तक? इस नन से काफी बातें कर चुकी थी. अपने पिता की मृत्यु के बारे में भी बता चुकी थी. नन काफी स्नेहिल स्वभाव की थी. वहां पहुंच कर नन की शांत, गंभीर आवाज गूंज रही थी, ‘बस, यही सच है. जीवन का सार यही है. यही होना है. एक दिन सब को जाना ही है. बस, यही कोशिश करनी चाहिए कि कुछ ऐसा कर जाएं कि सब के पास हमारी अच्छी यादें ही हों. जितना जीवन है, खुशी से जी लें, पलपल का उपयोग कर लें. दुखों को भूल आगे बढ़ते रहें.’’ नन तो यह कह कर थोड़ा आगे बढ़ गई. कावेरी को पता नहीं क्या हुआ, वह अद्भुत से मिश्रित भावों में भर कर जोरजोर से रो पड़ी.

नन ने वापस आ कर कावेरी का कंधा थपथपाया और फिर आगे बढ़ गई. जूही भी मां की स्थिति देख सिसक पड़ी. पर जीभर कर रो लेने के बाद कावेरी ने अचानक खुद को बहुत मजबूत महसूस किया. खुद को संभाला, अपने और जूही के आंसू पोंछे. जूही को गले लगा कर प्यार किया और मुसकरा दी.

जूही अब हैरान हुई, ‘‘क्या हुआ, मां, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘हां, अब बिलकुल ठीक हूं, चलें?’’ दोनों आगे चल दीं.

जूही ने मां की ऐसी शांत मुद्रा बहुत दिनों बाद देखी थी, कहा, ‘‘मां, बहुत थक गई, आज जल्दी सोऊंगी मैं.’’

‘‘तुम सोना, मुझे कुछ काम है.’’

‘‘क्या  काम, मां?’’ जूही फिर हैरान हुई.

‘‘आज ही रात को नई कहानी में इस ट्रिप का अनुभव लिखना है न.’’

‘‘ओह, सच मां?’’ जूही ने मां के गाल चूम लिए.

एकदूसरे का हाथ पकड़ शांत मन से दोनों ने कुछ इस तरह से आगे कदम बढ़ा दिए थे कि नन भी पीछे मुड़ कर उन्हें देख मुसकरा दी थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें