Hindi Kahaniyan : ताकझांक – शालू को रणवीर से आखिर क्यों होने लगी नफरत?

Hindi Kahaniyan : वह नई स्मार्ट सी पड़ोसिन तरुण को भा रही थी. उसे अपनी खिड़की से छिपछिप कर देखता. नई पड़ोसिन प्रिया भी फैशनेबल तरुण से प्रभावित हो रही थी. वह अपने सिंपल पति रणवीर को तरुण जैसा फैशनेबल बनाने की चाह रखने लगी थी.

शाम को जब प्रिया बनसंवर कर बालकनी में पड़े झले पर आ बैठती तो तरुण चोरीछिपे उस की हर बात नोटिस करता. कितनी सलीके से साड़ी पहने चाय की चुसकियां लेते हुए किसी किताब में गुम रहती है मैडम. क्या करे मियांजी का इंतजार जो करना है और मियांजी हैं जो जरा भी खयाल नहीं रखते इस बात का. बेचारी को खूबसूरत शाम अकेले काटनी पड़ती है. काश वह उस का पति होता तो सब काम छोड़ फटाफट चला आता.

तरुण का मन गाना गाने को मचलने लगता, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए…’ कितने ही गाने हैं हसीन शाम के ‘ये शाम मस्तानी…’ ‘‘तरु कहां हो… समोसे ठंडे हो रहे हैं,’’ तभी उसे सपनों की दुनिया से वास्तविकता के धरातल पर पटकती उस की पत्नी शालू की आवाज सुनाई दी.

आ गई मेरी पत्नी की बेसुरी आवाज… इस के सामने तो बस एक ही गाना गा सकता हूं कि जब तक रहेगा समोसे में आलू तेरा रहूंगा ओ मेरी शालू…

‘‘बालकनी में हो तो वहीं ले आती हूं,’’ शालू कपों में चाय डालते हुए किचन से ही चीखी.

‘‘उफ… नहीं, मैं आया,’’ कह तरुण जल्दी यह सोचते हुए अंदर चल दिया, ‘कहां वह स्लिमट्रिम सी कैटरीना कैफ और कहां ये हमारी मोटी भैं…’

तरुण ने कदमों और विचारों को अचानक ब्रेक न लगाए होते तो चाय की ट्रे लाती शालू से टकरा गया होता.

तरुण रोज सुबह जौगिंग पर जाता तो प्रिया वहां दिख जाती. तरुण से रहा नहीं गया. जल्द ही उस ने अपना परिचय दे डाला, ‘‘माईसैल्फ तरुण… मैं आप के सामने वाले फ्लैट…’’

‘‘हांहां, मैं ने देखा है… मैं प्रिया और वे सामने जो पेपर पढ़ रहे हैं वे मेरे पति रणवीर हैं,’’ प्रिया उस की बात काटते हुए बोली.

‘‘कभी रणवीर को ले कर हमारे घर आएं.मैं और मेरी पत्नी शालू ही हैं… 2 साल ही हुएहैं हमारी शादी को,’’ तरुण बोला.

‘‘रियली? आप तो अभी बैचलर से ही दिखते हैं,’’ प्रिया ने तरुण के मजबूत बाजुओं पर उड़ती नजर डालते हुए कहा, ‘‘हमारी शादी को भी 2 ही साल हुए हैं.’’ अपनी तारीफ सुन कर तरुण उड़ने सा लगा.

‘‘रणवीर साहब अपना राउंड पूरा कर चुके?’’

‘‘अरे कहां… जबरदस्ती खींच कर लाती हूं इन्हें घर से… 1-2 राउंड भी बड़ी मुश्किल से पूरा करते हैं.’’

‘‘यहां पास ही जिम है. मैं यहां से सीधा वहीं जाता हूं 1 घंटे के लिए.’’

‘‘वंडरफुल… मैं भी जाती हूं उधर लेडीज विंग में…  ड्रौप कर के ये सीधे घर चले जाते हैं… सो बोरिंग… चलिए आप से मिलवाती हूं शायद आप को देख उन का भी दिल बौडीशौडी बनाने का करने लगे.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं? मेरी पत्नी भी कुछ इसी टाइप की है… जौगिंग क्या वाक तक के लिए भी नहीं आती… आप मिलो न उस से. शायद आप को देख कर वह भी स्लिम ऐंड फिट बनना चाहे,’’ तरुण तारीफ करने का इतना अच्छा मौका नहीं खोना चाहता था.

‘‘कल अपनी वाइफ को भी यहीं पार्क की सैर पर लाइएगा.’’ फिर कल आप के पति से वाइफ के साथ ही मिलूंगा.

‘‘ओके बाय,’’ उस ने अपने हेयरबैंड को ठीक करते हुए बड़ी अदा से थ हिलाया.

‘‘बाय,’’ कह कर तरुण ने लंबी सांस भरी.

तरुण जानबूझ कर उलटे राउंड लगाने लगा ताकि वह प्रिया को बारबार सामने से आता देख पाएगा. पर यह क्या पास आतेआते खड़ूस से पति की बगल में बैठ गई. ‘चल देखता हूं क्या गुफ्तगू, गुटरगूं हो रही है,’ सोच वह झडि़यों के पीछे हो लिया. ऐसे जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो… किसी को शक न हो. वह कान खड़े कर सुनने लगा…

‘‘रणवीर आप तो बिलकुल ही ढीले हो कर बैठ जाते हो. अभी 1 ही राउंड तो हुआ आप का… वह देखो सामने से आ रहा है… अरे कहां गया… कितनी फिट की हुई है उस ने बौडी… लगातार मेरे साथ 5 चक्कर तो हो ही गए उस के अभी भी… हमारे सामने वाले घर में ही तो रहता है… आप ने देखा है क्या सौलिड बौडी है उस की…’’

‘अरे, यह तो मेरे बारे में ही बात कर रही है और वह भी तारीफ… क्या बात है…. तरु तुम तो छा गए,’ बड़बड़ा कर वह सीधा हो कर पीछे हो लिया. ‘खड़ूस माना नहीं… आलसी कहीं का… बेचारी रह गई मन मार कर… चल तरु तू भी चल जिम का टाइम हो गया है’ सोच वह जौगिंग करते हुए ही जिम पहुंच गया.

प्रिया को जिम के पास उतार कर रणवीर चला गया यह कहते हुए, ‘घंटे भर बाद लेने आ जाऊंगा… यहां वक्त बरबाद नहीं कर सकता.’

‘हां मत कर खड़ूस बरबाद… तू जा घर में बैठ और मरनेकटने की खबरें पढ़.’ मन ही मन बोलते हुए तरु ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘और अपनी शालू रानी तो घी में तर आलू के परांठे खाखा कर सुबहसुबह टीवी सीरियल से फैशन सीखने की क्लास में मस्त खुद को निखारने में जुटी होंगी.’

दूसरे दिन तरुण शालू को जबरदस्ती प्रिया जैसा ट्रैक सूट पहना कर पार्क में ले आया.1 राउंड भी शालू बड़ी मुश्किल से पूरा कर पाई. थक कर वह साइड की डस्टबिन से टकरा कर गिर गई.

‘‘कहां हो शालू? कहां गई?’’ पुकार लोगों के हंसने की आवाजें सुन तरुण पलटा. शालू की ऐसी हालत देख उस की भी हंसी छूट गई पर प्रिया को उस ओर देखता देख खिसियाई सी हंसी हंसते हुए हाथ का सहारा दे उठा दिया.

प्रिया के आगे गोल होती जा रही शालू को देख तरुण को और भी शर्मिंदगी महसूस होती. घर पर उस ने साइक्लिंग मशीन भी ला कर रख दी पर उस पर शालू 10-15 बार चलती और फिर पलंग पर फैल जाती.

‘‘बस न तरु हो गया न आज के लिए… सुबह से कुछ नहीं खाने दिया, बहुत भूख लगी है. खाने दो  पहले आलू के परांठे प्लीज.’’ खाने के नाम से उस में इतनी फुरती आ जाती कि तरुण के छिपाए परांठे फटाफट उठा लाती और फटाफट खाने लगती.

‘‘तुम भी खा कर तो देखो मिर्च के अचार के साथ… बड़े टेस्टी लग रहे हैं… बाद में अपना घासफूस खा लेना,’’ परांठे का टुकड़ा उस की ओर बढ़ाते हुए शालू मुसकराई.

‘‘नो थैंक्स… तुम्हीं खाओ,’’ कह तरुण डाइनिंग टेबल पर रखे कौर्नफ्लैक्स दूध की ओर बढ़ गया.शालू टीवी खोल कर बैठ गई तो तरुण बाउल ले कर अपनी विंडो पर आ गया.

‘ओह आज तो सुबह से बड़ी चहलकदमी हो रही है… तैयार मैडम प्रिया सधे कदमों से हाईहील में खटखट करते इधरउधर आजा रही हैं,’ दिल में उस के जलतरंग सी उठने लगी. ‘लगता है किसी फंक्शन में जा रही है… उफ लो यह खड़ूस अपने जूते पहने यहीं आ मरा… बेटा, थ्री पीस सूट पहन कर हीरो नहीं बन जाएगा… बीवी की बात कभी तो मान लिया कर… थोड़ी बौडीशौडी बना ले,’ तरुण परदे के पीछे खड़ा बड़बड़ाए जारहा था.

‘काश, प्रिया जैसी मेरी बीवी होती… खटखट करते2 कदम आगे2 कदम पीछे करके मेरे साथ डांस करती… मैं उसे यों गोलगोल घुमाता,’ वह खयालों में खो गया.

एक दिन खयालों को सच करने के लिए तरुण शालू के नाप के हाईहील सैंडल ले आया. बड़े चाव से शालू को पहना कर उस ने म्यूजिक औन कर दिया. शालू को सहारा दे कर उस ने खड़ा किया. घुमाया तो शालू खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘अरे तरु मुझ से नहीं होगा… गिर जाऊंगी,’’ फिर अपनेआप को संभालने के लिए उसने तरुण को जो खींचा तो दोनों बिस्तर पर जा गिरे. तरुण को भी हंसी आ गई. थोड़ी देर तक दोनों हंसते रहे.

प्रिया को अपनी बालकनी से ज्यादा कुछ तो दिखाई नहीं दिया पर दोनों की हंसी बड़ी देर तक सुनाई देती रही.

‘अकसर दोनों की हंसीखिलखिलाहट सुनाई देती है. कितना हंसमुख है तरुण… अपनी पत्नी को कितना खुश रखता है और एक ये हैं श्रीमान रणवीर हमेशा मुंह फुलाए बैठे रहते हैं जैसे दुनिया का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर हो,’ प्रिया के दिल में हूक सी उठी तो वह अंदर हो ली.

थोड़ी देर बाद ही तरुण उठा और शालू को भी उठा दिया, ‘‘चलो, थोड़ी प्रैक्टिस करते हैं… कल 35 नंबर कोठी वाले उमेशजी के बेटे की सगाई है. सारे पड़ोसियों को बुलाया है. हमें भी. और रणवीर फैमिली को भी. खूब डांसवांस होगा. बोला है खूब तैयार हो कर आना.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. तभी ये सैंडल…’’ शालू मुसकराई.

शालू फिर खड़ी हो गई. किसी तरह तरुण कमर में हाथ डाल कर डांस करवाने लगा. हंसते हुए शालू ने 2 राउंड लिए. फिर अचानक पैर ऐसा मुड़ा कि हील सैंडल से अलग जा पड़ी और शालू अलग.

‘‘तुम से कुछ नहीं होगा शालू… तुम ने अच्छेखासे सैंडल भी बेकार कर दिए.’’

‘‘ब्रैंडेड नहीं थे…  तो पहले ही लग रहा था पर आप को बुरा लगेगा इसलिए कहा नहीं. प्रिया को रणवीर हर चीज ब्रैंडेड ही दिलाते हैं. काश, मेरा पति भी इतना रईस होता,’’ कह शालू ने ठंडी आह भरी.

‘‘यह देखो क्या किया…’’ तरुण ने दोनों टुकड़े उसे थमा दिए.

शालू ने उन्हें क्विकफिक्स से चिपका दिया. बोली, ‘‘देखो तरु सैंडल बिलकुल सही हो गया. अब चलो पार्टी में.’’

‘‘हां पर डांसवांस तुम रहने ही देना… वहां तुम्हारे साथ कहीं मेरी भी भद्द न हो जाए,’’ तरुण बेरुखाई से बोला.

उधर रणवीर अपनी बालकनी में शालू की किचन से रोज आती आलू, पुदीने के परांठों की खुशबू से काफी प्रभावित था. पत्नी प्रिया के रोजरोज के उबले अंडे, दलिया के नाश्ते से त्रस्त था. कई बार चुपके से शालू की तारीफ भी कर चुका था और वह कई बार मेड के हाथों उसे भिजवा भी चुकी थी. आज सुबह भी उस ने परांठे भिजवाए थे.

शालू तरुण के साथ नीचे उतरी तो प्रिया और रणवीर भी आ चुके थे. रणवीर गाड़ी स्टार्ट कर रहा था.

‘‘आइए, साथ ही चलते हैं तरुणजी,’’ रणवीर ने कहा तो प्रिया ने भी इशारा किया. चारों बैठ गए.

रणवीर बोला, ‘‘परांठों के लिए थैंक्स शालूजी… आप के हाथों में जादू है… मैं अपनी बालकनी से रोज पकवानों की खुशबू का मजा लेता हूं… प्रिया को तो घी, तेल पसंद नहीं… न बनाती है न मु?ो खाने देना चाहती है. तरुणजी आप के तो मजे हैं. रोज बढि़याबढि़या पकवान खाने को मिलते हैं. काश…’’

‘अबे आगे 1 लफ्ज भी न बोलना… क्या बोलने जा रहा था तू,’ तरुण मुट्ठियां भींचते हुए मन ही मन बुदबुदा उठा.

इधर शालू महंगी बड़ी सी गाड़ी में बैठ एक रईस से अपनी तारीफ सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

और प्रिया ‘हां फैट खूब खाओ और ऐक्सरसाइज मत करो. फिर थुलथुल बौडी लेकर घूमना इन्हीं यानी शालू के साथ… तरुणकी तारीफ में क्यों बोलोगे? क्या गठीली बौडीहै. काश मेरा हबी ऐसा होता,’ प्रिया मन हीमन बोली.

शालू पर उड़ती नजर पड़ी तो न जाने क्यों वह जलन सी महसूस करने लगी. गाड़ी के ब्रेक के साथ सभी के उठते विचारों को भी ब्रेक लगे. पार्टी स्थल आ गया था.

मेहमान आ चुके थे. फंक्शन जोरों पर था. मीठीमीठी धुन के साथ कोल्डड्रिंक्स, मौकटेल के दौर चल रहे थे. तभी वधू का प्रवेश हुआ. स्टेज से उतर लड़के ने उस का स्वागत किया और स्टेज पर ले आया. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सगाई की रस्म पूरी की गई.

सभी ने बारीबारी से स्टेज पर आ कर बधाई दी. लड़कालड़की की शान में कुछ कहना भी था उन्हें चाहे गा कर चाहे वैसे ही. सभी ने कुछ न कुछ सुनाया.

तरुण और शालू स्टेज पर आए तो प्रिया की हसरत भरी नजरें डैशिंग तरुण पर ही जमी थीं. तरुण ने किसी गीत की मुश्किल से 2 लाइन ही गुनगुनाईं और फिर बधाई गिफ्ट थमा शालू का हाथ थामे शरमाते हुए स्टेज से उतर गया.

‘ओह तरुण की तो बस बौडी ही बौडी है. अंदर तो कुछ है ही नहीं… 2 शब्द भी नहीं बोल पाया लोगों के सामने. कितना शाई… गाना भी पूरा नहीं गा सका,’ तरुण को स्टेज पर चढ़ता देख प्रिया की आंखों में आई चमक की जगह अब निराशा झलक रही थी. आकर्षण कहीं काफूर हो रहा था.

‘शालू, आप ऐसे कैसे जा सकती हो बगैर डांस किए. मैं ने आप का बढि़या डांस देखा है… मेरे हाथों में… आइएआइए,’’ उमेशजी की पत्नी आशाजी ने आत्मीयता से उसे ऊपर बुला लिया.

शालू ने तरुण को इशारा किया. शालू ने तरुण को इशारे से ही तसल्ली दी और सैंडल उतार कर स्टेज पर आ गई.

फरमाइश का गाना बज उठा. फिर तो शालू ऐसी नाची कि सभी उस के साथ तालियां बजाते हुए मस्त हो थिरकने लगे. तरुण ने देखा वैस्टर्न डांस पर थिरकने वाले लोग भी ठुमकने लगे थे… वह नाहक ही घबरा रहा था… शालू तो छा गई…

गाना खत्म हुआ तो प्रिया के साथ रणवीर स्टेज पर आ गया. उस ने अपनी ठहरी हुई आवाज और धाराप्रवाह में चंद शेरों से सजे संक्षिप्त वक्तव्य के द्वारा सब को ऐसा मंत्रमुगध किया कि सभी वंसमोर वंसमोर कह उठे. प्रिया भी उसे गर्व से देखने लगी कि कितने शालीन ढंग से कितने खूबसूरती से शब्दों को पिरो कर बोलता है रणवीर. उस के इसी अंदाज पर तो वह मर मिटी थी. उस ने कुहनी के पास से रणवीर का बाजू प्यार से पकड़ लिया था. दोनों ने फिर किसी इंगलिश धुन पर डांस किया.

अब डांस फ्लोर पर सभी एकसाथ डांस का मजा लेने लगे. डांस का म्यूजिक चल पड़ा था. स्टेज पर वरवधू भी थिरकने लगे. सभी पेयर में नृत्य कर रहे थे. कभी पेयर बदल भी लिए जा रहे थे. शालू ने धीरेधीरे तरुण के साथ 1-2 स्टेप लिए पर पेयर बदलते ही वह घबरा उठी और किनारे लगी सीट में एक पर जा बैठी. तरुण थोड़ी देर नई रस्म में शामिल हो नाचता रहा.

एक बार प्रिया भी उस के पास आ गई पर दूसरे ही पल वह दूसरे की बांहों में थिरकती तीसरी के पास पहुंच गई. तरुण को झटका सा लगा. कुछ अजीब सा फील होने लगा, ‘कैसे हैं ये लोग… रणवीर अपने में मस्त किसी और की पत्नी के साथ और उस की पत्नी प्रिया किसी और के पति के साथ… अजब कल्चर है इन का. इस से अच्छी तो मेरी शालू है.’ उस ने दूर अकेली बैठी शालू की ओर देखा और फिर उस के पास चला गया.

रणवीर ने देख लिया था, ‘उफ, शालू ने न तो खुद ऐंजौय किया और न पति को ही मजे लेने दिए. अपने पास बुला लिया… ऐसी पार्टियों के लायक ही नहीं वे… उधर प्रिया को देखो. कैसे एक हीरोइन सी सब की नजरों का केंद्र बनी हुई है. आई जस्ट लव हर…’ उसे नशा चढ़ने लगा था. कदमों के साथ उस की आवाज भी लड़खड़ाने लगी थी. रणवीर ने प्रिया को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो उस के कदम भी लड़खड़ाए और फिर फर्श पर जा गिरी. हड़कंप मच गया. क्या हुआ? क्या हुआ?

प्रिया दर्द से कराह उठी थी. पैर में फ्रैक्चर हो गया था. रणवीर तो खुद उसे उठाने की हालत में न था. तरुण और शालू ने जैसेतैसे अस्पताल पहुंचाया.

उमेशजी अपने ड्राइवर को गाड़ी ड्राइव करने के लिए बोल रहे थे पर रणवीर माना नहीं. रास्ते भर तरुण, उस की इधरउधर भागती गाड़ी के स्टेयरिंग को मुश्किल से संभालता रहा. पर इस सब से बेखबर शालू महंगी गाड़ी में बैठी एक बार फिर अपने रईस पति की कल्पना में खो गई थी.

प्रिया घर आ गई थी. उस के पैर में प्लास्टर चढ़ गया था. लाते समय भी शालू और तरुण अस्पताल पहुंचे थे. तभी एक गरीब महिला रोती हुई आई और सब से अपने बच्चे के लिए खून देने के लिए गुहार करने लगी.

‘‘तुम प्रिया मैडम के पास चलो शालू. मैं अभी आता हूं,’’ कह तरुण ने शालू से कहा तो वह उस का आशय समझ गई.‘‘अभी 10 दिन भी नहीं हुए तुम्हें खून दिए तरुण,’’ शालू बोली.

तरुण नहीं माना. उस गरीब को खून दे आया. फिर प्रिया को उस के फ्लोर पर सहीसलामत पहुंचाया. अगले दिन बौस से डांट भी खानी पड़ी. औफिस पहुंचने में लेट जो हो गया था.

‘तरुण भी न दूसरों की खातिर अपनी परवाह नहीं करता,’ शालू औटो में बैठी सोच रही थी.

अपने ब्लौक के गेट के पास आने पर उसे एक संतरे की रेहड़ी वाला दिखा. उस ने औटो रुकवाया और उतर कर औटो वाले को पैसे देने लगी.

तभी वहां से हवा में बातें करती एक लंबी सी गाड़ी गुजरी. वह रोमांचित हो उठी. उस ने सिर उठा कर देखा, ‘अरे ये तो हमारे पड़ोसी रणवीर हैं. काश, उस का पति भी कोई बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ी वाला होता.’ शालू अभी यह सोच ही रही थी कि वही गाड़ी उलटी साइड से आ कर रेहड़ी वाले से जा टकराई. रेहड़ी उलट गई और रेहड़ी वाला छिटक कर दूर जा गिरा. उस के संतरे सड़क पर चारों ओर बिखर गए. शालू ने साफ देखा था. गाड़ी गलत साइड से आ कर रेहड़ी वाले से टकराई थी. फिर भी रणवीर ने तमाचे उस गरीब को जड़ दिए. फिर चीख कर बोला, ‘‘देख कर नहीं चल सकता?’’

‘‘साहबजी…’’ आंसू बन रेहड़ी वाले का दर्द आंखों में उतर आया. वह हाथ जोड़े इतना ही बोल सका.

‘‘ये पकड़ अपने नुकसान के रुपए… ज्यादा नाटक मत कर… कुछ नहीं हुआ… अब जल्दी सड़क साफ कर,’’ कह रणीवर ने उसे 2 हजार का 1 नोट दिया. शालू रणवीर का क्रूर व्यवहार देखती रह गई कि इतना अमानवीय बरताव…

उस की महंगी गाड़ी फिर तेजी से उस की आंखों से ओझल हो गई. शालू को इस समय कोई रोमांच न हुआ, बल्कि उसे अपनी आंखों में नमी सी महसूस होने लगी. उस ने पर्स से रुमाल निकाल कर रेहड़ी वाले के माथे से रिसता खून पोंछ कर बैंडएड चोट पर चिका दी. फिर संतरे उठवाने में उस की मदद करने लगी.

‘‘रहने दीजिए मैडमजी मैं उठा लूंगा,’’ रेहड़ी वाले के पैरों और हाथों में भी चोटें थीं.

शालू ने नजरों से ओझल हुई उस गाड़ी की ओर देखा. वहां सिर्फ धूल का गुबार था, जिस ने उस की सपनीली कल्पना को उड़ा कर रख दिया कि शुक्र है उस का तरुण महंगी बड़ी गाड़ी में घूमने वाले ऐसे छोटे दिल के घटिया इंसान की तरह नहीं है. न जाने उस ने कितनी बार तरुण को ऐसे जरूरतमंदों की मदद करते देखा है. रईस ही तो है वह. वास्तव में बड़े दिल वाला रईस. शालू को तरुण पर प्यार आने लगा और फिर वह तेज कदमों से घर की ओर बढ़ चली.

Short Stories in Hindi : जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए

Short Stories in Hindi : फ्लाइट बेंगलुरु पहुंचने ही वाली थी. विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले में उलझ था. इसी बीच  मोबाइल पर आते उस कौल को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा. अब नहीं सींच सकता था वह प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझ जाना ही बेहतर है. इसलिए उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वह उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.

‘सदा के लिए… नहींनहीं, हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,’ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.

‘शायद ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,’ यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.

इधर  मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिनों से विहान से कोई कौंटैक्ट नहीं हुआ था.

‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का न कौल लग रहा है न कोई मैसेज पहुंच रहा है, औफिस में एक प्रौब्लम आ गई है, जरूरी बात करनी है,’’ मिशी बिना रुके बोलती गई.

‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई. और प्रौब्लम को खुद सौल्व करना सीखो,’’ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.

मिशी को दी का यह रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थी, सो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

मिशिका उर्फ मिशी मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बेंगलुरु में नई मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की है. उस की बहन संजना अभी पढ़ाई कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. 2 परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बढ़े हुए.

गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान  से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो कौल और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम नहीं था. 2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती. आंटीअंकल से बात होती तब भी जवाब एक ही मिलता, ‘वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, यह कैसे पौसिबल है?’ अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई तो सब झठ ही समझते थे.

दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.

‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से  यह क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी. क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या,’ ऐसी ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम न कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं, वापसी का समय आ गया पर वह नहीं आया जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का एहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.

मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. डिनर की  तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बितातीं, गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब एंजौय करते थे. आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झम उठी थी, आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.

‘पर मैं खुश क्यों नहीं हूं? क्या मैं विहान से प्यार… नहींनहीं, हम तो, बस, बचपन के साथी हैं. इस से ज्यादा तो कुछ नहीं है. फिर मैं आजकल विहान को ले कर इतना क्यों परेशान रहती हूं? उस से  बात न होने से मुझे यह क्या हो रहा है. क्या मैं अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं पा रही हूं?’ इसी उधेड़बुन में रात आंखों में  बीत गई थी. किसी से कुछ शेयर किए बिना ही वह  वापस मुंबई  लौट  गई. दिन यों ही बीत रहे थे. पूजा की शादी के बारे में न घर वालों ने आगे कुछ बताया न ही  मिशी ने पूछा.

एक दिन दोपहर को मिशी के फोन पर विहान की कौल आई, ‘‘घर की लोकेशन सैंड करो, डिनर साथ ही करेंगे.’’

मिशी ‘‘करती हूं’’ के अलावा कुछ न बोल सकी. उस के चेहरे पर मुसकान बिखर गई थी. उस दिन वह औफिस से जल्दी घर पहुंची, खाना बना कर घर संवारा और खुद को संवारने में जुट गई.

‘मैं विहान के लिए ऐसे क्यों संवर रही हूं? इस से पहले तो कभी मैं ने इस तरह नहीं सोचा,’ वह सोचने लगी. उस को खुद पर हंसी आ गई. अपने ही सिर पर धीरे से चपत लगा कर वह विहान के इंतजार में भीतरबाहर होने लगी. उसे लग रहा था जैसे वक्त थम गया हो. वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.

लगभग 8 बजे डोरबेल बजी. मिशी की सांसें ऊपरनीचे हो गईं, शरीर ठंडा सा लगने लगा, होंठों पर मुसकराहट तैर गई. दरवाजा खोला, पूरे 10 महीने बाद विहान उस के सामने था. एक पल को वह उसे देखती ही रही, दिल की बेचैनी आंखों से निकलने को उतावली हो उठी.

विहान भी लंबे समय बाद अपनी मिशी से मिल उसे देखता ही रह गया. फिर मिशी ने ही किसी तरह संभलते हुए विहान को अंदर आने को कहा. मिशी की आवाज सुन  विहान  अपनी सुध में वापस आया. दोनों देर तक चुप बैठे, छिपछिप कर एकदूसरे को देख लेते, नजरें मिल जाने पर यहांवहां देखने लगते. दोनों ही कोशिश में थे कि उन की चोरी पकड़ी न जाए.

डिनर करने के बाद, जल्द ही फिर मिलने को कह कर विहान वापस चला गया. उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात.

विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था. 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी 2 ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, एक दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेगी, पूछेगी उस की बेरुखी का कारण. मिशी अभी इसी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा. विहान की कौल थी.

‘‘हैलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना, बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.’’

‘‘किस से मिलवाना है, विहान?’’

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.’’

‘‘बताओ तो?’’

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.’’

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी, दिल में हजारों सवाल उमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी कि विहान, तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, यह क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

‘‘पूछोगी नहीं, कौन है? विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,’’ मिशी ने धीरे से कहा.

थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहुंचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.’’

आसमान ?िलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी. फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान’ सोचतेसोचते उस की उंगलिया खुदबखुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’

मिशी की आंखें उस लड़की को  ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे  वहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’

उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने  मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.

‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.

नजरें  मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.

मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा  ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.

‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’

मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और  मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

‘‘जानती हो, जब हम साथ पढ़ाई करते थे तब भी मैं टौपिक समझ न आने के बहाने से देर तक बैठा रहता. तुम मुझे बारबार समझतीं. पर, मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में. जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान…’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो मुझे और मेरे दिल की आवाज को. याद है मिशी, जब हम 12वीं में थे, तुम मुझ से कहतीं, ‘क्यों विहान, गर्लफ्रैंड नहीं बनाई, मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं?’ मैं पूछता कि तुम्हारा भी है तो तुम हंस देतीं, ‘हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है एमबीए की, फिर मस्त जौब. पर विहान,  तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए’ इतना  कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें  झकझर कर कहूं कि तुम हो तो, पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर  जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता, वह देने वाला मैं ही था. बचपन में जब तुम को तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पैंसिल बौक्स में मिली, तुम बेहद खुश हुई थीं. अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘विहान, पता नहीं कौन है, मौम, डैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा यह सरप्राइज गिफ्ट  मिले.’ तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,’’ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं यह करता गया. पहले पैंसिल बौक्स था, फिर बैग, फिर तुम्हारा पर्स और अब कूरियर.’’

सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई. वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर कभी यह नहीं सोचा कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

रात गहरा चुकी थी. चांद स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छिपे प्रेम की परतें खोल  रहा था.

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है. मैं ने बहुत हिम्मत कर अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था. मैं ने धड़कते दिल से तुम से कहा, दिखाऊं फोटो, तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हारा रिऐक्शन देख, मैं ठगा सा रह गया. मुझे लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला. पगली से प्यार कर बैठा,’’ इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा तो मैं ने कहा, ‘वाओ, कब लिया यह फोटो, बहुत प्यारा है, सैंड करो’ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.’’

‘‘जी, मैडमजी, मैं तुम्हारी लाइफ में  इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाईं. ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थीं, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नहीं,’’ विहान कहता जा रहा था. मिशी जोर से अपनी मुट्ठियां भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान न जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झकाए सुनती रही. मिशी का गला रुंध गया, ‘‘विहान, इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है. और तब तो बिलकुल नहीं जब उसे कोई समझने वाला ही न हो. कितना कुछ दबा रखा है तुम ने. मेरे साथ की छोटी से छोटी बात कितनी शिद्दत से सहेज कर रखी है तुम ने.’’

‘‘अरे, पागल रोते नहीं. और यह किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थीं. मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा. इसलिए प्यार का एहसास कहीं गुम हो गया था. और इस हकीकत को सामने लाने के लिए मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया. कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी सदा जरूर पहुंचेगी. नहीं तो, मुझे आगे बढ़ना होगा तुम को छोड़ कर.’’

‘‘मैं कितनी मतलबी थी.’’

‘‘न बाबा, तुम बहुत प्यारी तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. वह धीरे से विहान के कंधों पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया. वह एकदम उठ खड़ी हुई.

‘‘क्या हुआ, मिशी?’’

‘‘यह सब गलत है.’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…’’

‘‘मैं और पूजा….’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी, मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया. सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और, उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. मांपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी. फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी. किसी को कोई प्रौब्लम नहीं है. अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का.’’

इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. अब न कोई शिकायत बची थी, न सवाल.

‘‘बोलो मिशी, मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,’’ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,’’ मिशी ने नजरें झका कर भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था जब मैं 10 महीने बाद  तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर, झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती,’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा जी, मैं इतनी बकबक करती हूं,’’ मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘हांजी, पर न तुम झगड़ीं, न कुछ बोलीं, बस देखती रहीं मुझे. ख्वाब बुनती रहीं. उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, यह वही है, मेरी मिशी, सिर्फ मेरी मिशी,’’ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ कस कर थाम लिया हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए. जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ कभी जुदा न होने के लिए. आसमां, चांदतारे, चांदनी और लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे.

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,  ‘मेरे हमसफर… मेरे हमसफर… हमें साथ चलना है उम्र भर…’

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

Famous Hindi Stories : एक और बेटे की मां

Famous Hindi Stories : आज वह आया भी काम छोड़ कर अपने घर भाग गई कि यहां जरूर कोई साया है, जो इस घर को बीमार कर जाता है. उस ने उसे कितना सम झाया कि ऐसी कोई बात नहीं और उसे उस छोटे बच्चे का वास्ता भी दिया कि वह अकेले कैसे रहेगा? मगर, वह नहीं मानी और चली गई. दोपहर में वही उसे खाना पहुंचा गई और तमाम सावधानियां बरतने की सलाह दे डाली. मगर 6 साल का बच्चा आखिर क्या सम झा होगा. आखिर वह मुन्ना से सालभर छोटा ही है.

मगर, मुन्ने का सवाल अपनी जगह था. कुछ सोचते हुए वह बोली, ‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. उस के मम्मीपापा दोनों ही बाहर नौकरी करने वाले ठहरे. शुरू से उस की अकेले रहने की आदत है. तुम्हारी तरह डरपोक थोड़े ही है.’’

‘‘जब किसी के मम्मीपापा नहीं होंगे, तो कोई भी डरेगा मम्मी,’’ वह बोल रहा था, ‘‘आया भी चली गई. अब वह क्या करेगा?’’

‘‘अब ज्यादा सवालजवाब मत करो. मैं उसे खानानाश्ता दे दूंगी. और क्या कर सकती हूं. बहुत हुआ तो उस से फोन पर बात कर लेना.’’

‘‘उसे उस की मम्मी हौर्लिक्स देती थीं. और उसे कौर्नफ्लैक्स बहुत पसंद है.’’

‘‘ठीक है, वह भी उसे दे दूंगी. मगर अभी सवाल पूछपूछ कर मु झे तंग मत करो. और श्वेता को देखो कि वह क्या कर रही है.’’

‘‘वह अपने खिलौनों की बास्केट खोले पापा के पास बैठी खेल रही है.’’

‘‘ठीक है, तो तुम भी वहीं जाओ और उस के साथ खेलो. मु झे किचन में बहुत काम है. कामवाली नहीं आ रही है.’’

‘‘मगर, मु झे खेलने का मन नहीं करता. और पापा टीवी खोलने नहीं देते.’’

‘‘ठीक ही तो करते हैं. टीवी में केवल कोरोना के डरावने समाचार आते हैं. फिर वे कंप्यूटर पर बैठे औफिस का काम कर रहे होंगे,’’ उस ने उसे टालने की गरज से कहा, ‘‘तुम्हें मैं ने जो पत्रिकाएं और किताबें ला कर दी हैं, उन्हें पढ़ो.’’

किचन का सारा काम समेट वह कमरे में जा कर लेट गई, तो उस के सामने किशोर का चेहरा उभर कर आ गया. ओह, इतना छोटा बच्चा, कैसे अकेले रहता होगा? उस के सामने राजेशजी और उन की पत्नी रूपा का अक्स आने लगा था.

पहले राजेशजी ही एक सप्ताह पहले अस्पताल में भरती हुए थे. और 3 दिनों पहले उन की पत्नी रूपा भी अस्पताल में भरती हो गई. अब सुनने में आया है कि वह आईसीयू में है और उसे औक्सीजन दी जा रही है. अगर उस के साथ ऐसा होता, तो मुन्ना और श्वेता का क्या होता. बहुत अच्छा होगा कि वह जल्दी घर लौट आए और अपने बच्चे को देखे. राजेशजी अपने किसी रिश्तेदार को बुला लेते या किसी के यहां किशोर को भेज देते, तो कितना ठीक रहता. मगर अभी के दौर में रखेगा भी कौन? सभी तो इस छूत की बीमारी कोरोना के नाम से ही दूर भागते हैं.

वैसे, राजेशजी भी कम नहीं हैं. उन्हें इस बात का अहंकार है कि वे एक संस्थान में उपनिदेशक हैं. पैसे और रसूख वाले हैं. रूपा भी बैंककर्मी है, तो पैसों की क्या कमी. मगर, इन के पीछे बच्चे का क्या हाल होगा, शायद यह भी उन्हें सोचना चाहिए था. उन के रूखे व्यवहार के कारण ही नीरज भी उन के प्रति तटस्थ ही रहते हैं. किसी एक का अहंकार दूसरे को सहज भी तो नहीं रहने देता.

रूपा भी एक तो अपनी व्यस्तता के चलते, दूसरे अपने पति की सोच की वजह से किसी से कोई खास मतलब नहीं रखती. वह तो उन का बेटा, उसी विद्यालय में पढ़ता है, जिस में मुन्ना पढ़ता है. फिर एक ही अपार्टमैंट में आमनेसामने रहने की वजह से वे मिलतेजुलते भी रहते हैं. इसलिए मुन्ना जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो सोच रहा है. सोच तो वह भी रही है. मगर इस कोरोना की वजह से वह उस घर में चाह कर भी नहीं जा पाती और न ही उसे बुला पाती है.

शाम को उस के घर की घंटी बजी, तो उस ने घर का दरवाजा खोला. उस के सामने हाथ में मोबाइल फोन लिए बदहवास सा किशोर खड़ा था. वह बोला,  ‘‘आंटी, अस्पताल से फोन आया था,’’ घबराए स्वर में किशोर बोलने लगा, ‘‘उधर से कोई कुछ कह रहा था. मैं कुछ सम झा नहीं. बाद में कोई पूछ रहा था कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या?’’

वह असमंजस में पड़ गई. बच्चे को घर के अंदर बुलाऊं कि नहीं. जिस के मांबाप दोनों ही संक्रमित हों, उस के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए. फिर भी ममता ने जोर मारा. उस में उसे अपने मुन्ने का अक्स दिखाई दिया, तो उसे घर के अंदर बुला कर बिठाया. और उस से मोबाइल फोन ले कौल बैक किया. मगर वह रिंग हो कर रह जा रहा था. तब तक मुन्ना और नीरज ड्राइंगरूम में आ गए थे. मुन्ना उछल कर उस के पास चला गया. वह अभी कुछ कहती कि नीरज बोले, ‘‘बच्चा है, उसे कुछ हुआ नहीं है. उस का भी आरटीपीसीआर हुआ था. कुछ नहीं निकला है.’’

वह थोड़ी आश्वस्त हुई. उधर मुन्ना बातें करते हुए किशोर के साथ दूसरी ओर चला गया था कि मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन अस्पताल से ही था. नीरज ने कोरोना से पीडि़त पड़े पड़ोसी के भाई को अमेरिका फोन किया तो सरल सा जवाब मिला, ‘‘उन लोगों ने अपने मन की करी, अब खुद भुगतो.’’ और पीछे कहा गया. फोन उठा कर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से आवाज आई, ‘‘आप राकेशजी के घर से बोल रही हैं?’’

‘‘नहीं, मैं उन के पड़ोस से बोल रही हूं,’’ वह बोली, ‘‘सब ठीक है न?’’

‘‘सौरी मैम, हम मिसेज रूपा को बचा नहीं सके. एक घंटा पहले ही उन की डैथ

हो गई. आप उन की डैड बौडी लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने यहां आ जाएं,’’ यह सुन कर उस का पैर थरथरा सा गया. यह वह क्या सुन रही है…

नीरज ने आ कर उसे संभाला और उस के हाथ से फोन ले कर बातें करने लगा था, ‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘अब कहना क्या है?’’ उधर से फिर वही आवाज आई, ‘‘अब डैड बौडी लेने की औपचारिकता रह गई है. आप आ कर उसे पूरा कर दीजिए.’’

‘‘सौरी, हम इस संबंध में कुछ नहीं जानते,’’ नीरज बोल रहे थे, ‘‘मिसेज रूपा के पति राकेशजी आप ही के अस्पताल में कोरोना वार्ड में ऐडमिट हैं. उन से संपर्क कीजिए.’’

इतना कह कर उन्होंने फोन काट कर प्रश्नवाचक दृष्टि से शोभा को देखा. शोभा को जैसे काठ मार गया था. बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला, तो नीरज बोले, ‘‘एक नंबर का अहंकारी है राकेश. ऐसे आदमी की मदद क्या करना. कल को कहीं यह न कह दे कि आप को क्या जरूरत थी कुछ करने की. वैसे भी इस कोरोना महामारी के बीच बाहर कौन निकलता है. वह भी उस अस्पताल में जाना, जहां वैसे पेशेंट भरे पड़े हों.’’

तब तक किशोर उन के पास चला आया और पूछने लगा, ‘‘मम्मीपापा लौट के आ रहे हैं न अंकल?’’

इस नन्हे, अबोध बच्चे को कोई क्या जवाब दे? यह विकट संकट की घड़ी थी. उसे टालने के लिए वह बोली, ‘‘अभी मैं तुम लोगों को कुछ खाने के लिए निकालती हूं. पहले कुछ खा लो.’’

‘‘मु झे भूख नहीं है आंटी. मु झे कुछ नहीं खाना.’’

‘‘कैसे नहीं खाना,’’  नीरज द्रवित से होते हुए बोले, ‘‘मुन्ना और श्वेता के साथ तुम भी कुछ खा लो.’’

फिर वे शोभा से बोले, ‘‘तुम किचन में जाओ. तब तक मैं कुछ सोचता हूं.’’

वह जल्दी में दूध में कौर्नफ्लैक्स डाल कर ले आई और तीनों बच्चों को खाने को दिया. फिर वह किशोर से मुखातिब होती हुई बोली, ‘‘तुम्हारे नानानानी या मामामौसी होंगे न. उन का फोन नंबर दो. मैं उन से बात करती हूं.’’

‘‘मेरी मम्मी का कोई नहीं है. वे इकलौती थीं. मैं ने तो नानानानी को देखा भी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, दादादादी, चाचाचाची तो होंगे,’’ नीरज उसे पुचकारते हुए बोले, ‘‘उन का ही फोन नंबर बताओ.’’

‘‘दादादादी का भी देहांत हो गया है. एक चाचा  हैं. लेकिन, वे अमेरिका में रहते हैं. कभीकभी पापा उन से बात करते थे.’’

‘‘तो उन का नंबर निकालो,’’ वह शीघ्रता से बोली, ‘‘हम उन से बात करते हैं.’’

किशोर ने मोबाइल फोन में वह नंबर ढूंढ़ कर निकाला. नीरज ने पहले उसी फोन से उन्हें डायल किया, तो फोन रिंग ही नहीं हुआ.

‘‘यह आईएसडी नंबर है. फोन कहां से  होगा,’’ कह कर वे  झुं झलाए, फिर उस नंबर को अपने मोबाइल में नोट कर फोन लगाया. कई प्रयासों के बाद वह फोन लगा, तो उस ने अपना परिचय दिया, ‘‘आप राकेशजी हैं न, राकेशजी के भाई. मैं उन का पड़ोसी नीरज बोल रहा हूं. आप के भाई और भाभी दोनों ही कोरोना पौजिटिव हैं और अस्पताल में भरती हैं.’’

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘अरे, आप को जानकारी दे रहा हूं. आप उन के रिश्तेदार हैं. उन का बच्चा एक सप्ताह से फ्लैट में अकेला ही रह रहा है.’’

‘‘कहा न कि मैं क्या करूं,’’ उधर से  झल्लाहटभरी आवाज आई, ‘‘उन लोगों ने अपने मन की करी, तो भुगतें भी. अस्पताल में ही भरती हैं न, ठीक हो कर वापस लौट आएंगे.’’

नीरज ने शोभा को इशारा किया, तो वह उन का इशारा सम झ बच्चों को अपने कमरे में ले गई. तो वे फोन पर उन से धीरे से बोले, ‘‘आप की भाभी की डैथ हो गई है.’’

‘‘तो मैं क्या कर सकता हूं? मैं अमेरिका में हूं. यहां भी हजार परेशानियां हैं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘अरे, कुछ कर नहीं सकते, न सही. मगर बच्चे को फोन पर तसल्ली तो दे लो,’’ मगर तब तक उधर से कनैक्शन कट चुका था.

‘‘यह तो अपने भाई से भी बढ़ कर खड़ूस निकला,’’ नीरज बड़बड़ाए और उस की ओर देखते हुए फोन रख दिया. तब तक किशोर आ गया था, ‘‘आंटी, मैं अपने घर नहीं जाऊंगा. मु झे मेरी मम्मी के पास पहुंचा दो. वहीं मु झे जाना है.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी अस्पताल में भरती हैं और वहां कोई नहीं जा सकता.’’

‘‘तो मैं आप ही के पास रहूंगा.’’

‘‘ठीक है, रह लेना,’’ वह उसे पुचकारती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें कहां भेज रही हूं. तुम खाना खा कर मुन्ने के कमरे में सो जाना.’’

बच्चों के कमरे में एक फोल्ंिडग बिछा, उस पर बिस्तर लगा व उसे सुला कर वह किचन में आ गई. ढेर सारे काम पड़े थे. उन्हें निबटाते रात के 11 बज गए थे. अचानक उस बेसुध सो रहे बच्चे किशोर के पास का मोबाइल घनघनाया, तो उस ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर अस्पताल से ही फोन था. कोई रुचिका नामक नर्स उस से पूछ रही थी, ‘‘मिस्टर राकेश ने किन्हीं मिस्टर नीरज का नाम बताया है. वे घर पर हैं?’’

‘‘वे मेरे पति हैं. मगर मेरे पति क्या कर लेंगे?’’

‘‘मिस्टर राकेश बोले हैं कि वे कल उन के कार्यालय में जा कर उन के एक साथी से मिल लें और रुपए ले आएं.’’

‘‘मैं कहीं नहीं जाने वाला,’’ नीरज भड़क कर बोले, ‘‘जानपहचान है नहीं और मैं कहांकहां भटकता फिरूंगा. बच्चे का मुंह क्या देख लिया, सभी हमारे पीछे पड़ गए. इस समय हाल यह है कि लौकडाउन है और बाहर पुलिस डंडे बरसा रही है. और इस समय कोई स्वस्थ आदमी भी अस्पताल जाएगा, तो वह कोरोनाग्रस्त हो जाए.’’

वह एकदम उल झन में पड़ गई. कैसी विषम स्थिति थी. और उन की बात भी सही थी. ‘‘अब जो होगा, कल ही सोचेंगे,’’ कहते हुए उस ने बत्ती बु झा दी.

सुबह किशोर जल्द ही जग गया था. उस ने किशोर से पूछा, ‘‘तुम अपने पापा के औफिस में उन के किन्हीं दोस्त को जानते हो?’’

‘‘हां, वह विनोद अंकल हैं न, उन का फोन नंबर भी है. एकदो बार उन का फोन भी आया था. मगर अभी किसलिए पूछ रही हैं?’’

‘‘ऐसा है किशोर बेटे, तुम्हारी मम्मी के इलाज और औपरेशन के लिए अस्पताल में ज्यादा पैसों की जरूरत आ पड़ी है. और तुम्हारे पापा ने इस के लिए उन के औफिस में बात करने को कहा है.’’

‘‘हां, हां, वे डायरैक्टर हैं न, वे जरूर पैसा दे देंगे,’’ इतना कह कर वह मोबाइल में उन का नंबर ढूंढ़ने लगा. फिर खोज कर बोला, ‘‘यह रहा उन का मोबाइल नंबर,’’ किशोर से फोन ले उस ने उन्हें फोन कर धीमे स्वर में सारी जानकारी दे दी.

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. वैसे, मैं एक आदमी द्वारा आप के पास रुपए भिजवाता हूं.’’

‘‘मगर, हम रुपयों का क्या करेंगे?’’ वह बोली, ‘‘अब तो बस मिट्टी को राख में बदलना है. आप ही उस का इंतजाम कर दें. मिस्टर राकेश अस्पताल में भरती हैं. और उन का बेटा अभी बहुत छोटा  है, मासूम है. उसे भेजना तो दूर, यह खबर बता भी नहीं सकती. अभी तो बात यह है कि डैड बौडी को श्मशान पर कैसे ले जाया जाएगा. संक्रामक रोग होने के कारण मेरे पति ने कहीं जाने से साफ मना कर दिया है.’’

‘‘बिलकुल ठीक किया. मैं भी नहीं जाने वाला. कौन बैठेबिठाए मुसीबत मोल लेगा. मैं देखता हूं, शायद कोई स्वयंसेवी संस्था यह काम संपन्न करा दे.’’

लगभग 12 बजे दिन में एक आदमी शोभा के घर आया और उन्हें 10,000 रुपए देते हुए बोला, ‘‘विनोद साहब ने भिजवाए हैं. शायद बच्चे की परवरिश में इस की आप को जरूरत पड़ सकती है. राकेश साहब कब घर लौटें, पता नहीं. उन्होंने एक एजेंसी के माध्यम से डैड बौडी की अंत्येष्टि करा दी है.’’

‘‘लेकिन, हम पैसे ले कर क्या करेंगे? हमारे पास इतना पैसा है कि एक बच्चे को खिलापिला सकें.’’

‘‘रख लीजिए मैडम. समयसंयोग कोई नहीं जानता,’’ वह बोला, ‘‘कब पैसे की जरूरत आ पड़े, कौन जानता है. फिर उन के पास है, तभी तो दे रहे हैं.’’

‘‘ओह, बेचारा बच्चा अपनी मां का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया. यह प्रकृति का कैसा खेल है.’’

‘‘अच्छा है मैडम, कोरोना संक्रमित से जितनी दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा. जाने वाला तो चला गया, मगर जो हैं, वे तो बचे रहें.’’

किशोर दोनों बच्चों के साथ हिलमिल गया था. मुन्ना उस के साथ कभी मोबाइल देखता, तो कभी लूडो या कैरम खेलता. 3 साल की श्वेता उस के पीछेपीछे डोलती फिरती थी. और किशोर भी उस का खयाल रखता था.

उसे कभीकभी किशोर पर तरस आता कि देखतेदेखते उस की दुनिया उजड़ गई. बिन मां के बच्चे की हालत क्या होती है, यह वह अनेक जगह देख चुकी है.

रात 10 बजे जब वह सभी को खिलापिला कर निश्ंिचत हो सोने की तैयारी कर रही थी कि अस्पताल से फिर फोन आया, तो पूरे उत्साह के साथ मोबाइल उठा कर किशोर बोला, ‘‘हां भाई, बोलो. मेरी मम्मी कैसी हैं? कब आ रही हैं वे?’’

‘‘घर में कोई बड़ा है, तो उस को फोन दो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘उन से जरूरी बात करनी है.’’

किशोर अनमने भाव से फोन ले कर नीरज के पास गया और बोला, ‘‘अंकल, आप का फोन है.’’

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वे बोले, ‘‘राकेशजी कैसे हैं?’’

‘‘ही इज नो मोर. उन की आधे घंटे पहले डैथ हो चुकी है. मु झे आप को इन्फौर्मेशन देने को कहा गया, सो फोन कर रही हूं.’’

आगे की बात नीरज से सुनी नहीं गई और फोन रख दिया. फोन रख कर वे किचन की ओर बढ़ गए. वह किचन से हाथ पोंछते हुए बाहर निकल ही रही थी कि उस ने मुंह लटकाए नीरज को देखा, तो घबरा गई.

‘‘क्या हुआ, जो घबराए हुए हो?’’ हाथ पोंछते हुए उस ने पूछा, ‘‘फिर कोई बात…?’’

‘‘बैडरूम में चलो, वहीं बताता हूं,’’ कहते हुए वे बैडरूम में चले गए. वह उन के पीछे बैडरूम में आई, तो वे बोले, ‘‘बहुत बुरी खबर है. मिस्टर राकेश की भी डैथ हो गई.’’

‘‘क्या?’’ वह अवाक हो कर बोली, ‘‘उस नन्हे बच्चे पर यह कैसी विपदा आ पड़ी है. अब हम क्या करें?’’

‘‘करना क्या है, ऐसी घड़ी में कोई कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वे विनोदजी को फोन लगाने लगे.

‘‘हां, कहिए, क्या हाल है,’’ विनोदजी बोले, ‘‘बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा?’’

‘‘बच्चे को तो हम बाद में देखेंगे ही, बल्कि देख ही रहे हैं,’’ वे उदास स्वर में बोले, ‘‘अभीअभी अस्पताल से खबर आई है कि मिस्टर राकेश भी चल बसे.’’

‘‘ओ माय गौड, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अब जो हो रहा है, वह हम भुगत ही रहे हैं. उन की डैडबौडी की आप एजेंसी के माध्यम से अंत्येष्टि करा ही देंगे. सवाल यह है कि इस बच्चे का क्या होगा?’’

‘‘यह बहुत बड़ा सवाल है, सर. फिलहाल तो वह बच्चा आप के घर में सुरक्षित माहौल में रह रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘सवाल यह है कि कब तक ऐसा चलेगा? बच्चा जब जानेगा कि उस के मांबाप इस दुनिया में नहीं हैं, तो उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी? अभी तो हमारे पास वह बच्चों के साथ है, तो अपना दुख भूले बैठा है. मैं उसे रख भी लूं, तो वह रहने को तैयार होगा… मेरी पत्नी को  उसे अपने साथ रखने में परेशानी नहीं होगी, बल्कि मैं उस के मनोभावों को सम झते हुए ही यह निर्णय ले पा रहा हूं.

‘‘मान लीजिए कि मेरे साथ ही कुछ ऐसी घटना घटी होती, तो मैं क्या करता. मेरे बच्चे कहां जाते. ऊपर वाले ने मु झे इस लायक सम झा कि मैं एक बच्चे की परवरिश करूं, तो यही सही. यह मेरे लिए चुनौती समान है. और यह चुनौती मु झ को स्वीकार है.’’

‘‘धन्यवाद मिस्टर नीरजजी, आप ने मेरे मन का बो झ हलका कर दिया. लौकडाउन खत्म होने दीजिए, तो मैं आप के पास आऊंगा और बच्चे को राजी करना मेरी जिम्मेदारी होगी.

‘‘मैं उसे बताऊंगा कि अब उस के मातापिता नहीं रहे. और आप लोग उस के अभिभावक हैं. उस की परवरिश और पढ़ाईलिखाई के खर्चों की चिंता नहीं करेंगे. यह हम सभी की जिम्मेदारी होगी, ताकि किसी पर बो झ न पड़े और वह बच्चा एक जिम्मेदार नागरिक बने.’’

नीरज की बातों से शोभा को परम शांति मिल रही थी. उसे लग रहा था कि उस का तनाव घटता जा रहा है और, वह एक और बेटे की मां बन गई है.

Hindi Stories Online : संतुलन – पैसों और रिश्ते की कशमकश की कहानी

Hindi Stories Online : डाक्टरों को अंजु के दिमाग का औपरेशन इमरजैंसी में करना पड़ा है. पड़ोसी और रिश्तेदारों को मिला कर कम से कम 20 लोग अस्पताल में आए हैं. सब को औपरेशन के बाद अंजु के होश में आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार है. अस्पताल के हाल में आंखें बंद कर के मैं एक कुरसी पर बैठी तो अंजु से जुड़ी अतीत की बहुत सी घटनाएं मुझे बरबस याद आने लगीं.

पिछले 40 सालों में सुखदुख में साथ निभाने के कारण हमारी दोस्ती की नींव बहुत मजबूत हो गई है. मेरे सुखदुख में वह हमेशा मेरे साथ खड़ी हुई है. बस, एक विषय ऐसा है जिसे ले कर हमारे बीच हमेशा से बहस चलती आई है. मैं हमेशा उस को समझाती रही हूं कि अपने जीवन को आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित बना कर रखना, हम औरतों के लिए खासकर बहुत जरूरी है.

उस ने हमेशा मुसकराते हुए लापरवाही से जवाब दिया, ‘पैसा अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है, पर आपसी संबंधों में प्यार की मिठास की कीमत पर उसे किसी मशीन की तरह इकट्ठा करते चले जाना नासमझी है, सीमा.’

‘अगर तू नहीं बदली तो एक दिन जरूर पछताएगी.’

‘और तू नहीं बदली तो एक दिन बहुत अकेली पड़ जाएगी.’

न मैं अपने को बदल सकी न वह. मैं ने अपनी सोच के हिसाब से जिंदगी जी और उस ने अपनी.

इस में कोई शक नहीं कि मैं हद दर्जे की कंजूस हूं. अपने पति की कमाई की पाईपाई को जोड़ती आई हूं. मैं ने युवावस्था में ही यह तय कर लिया था कि जिंदगी में मैं छोटेबड़े खर्चों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत कभी नहीं आने दूंगी.

मेरा बड़ा भाई शेखर शादी के साल भर बाद ही घर से अलग हो गया था. ससुराल वालों से उस की अच्छी पटने लगी तो वह हम तीनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल ही गया था.

उच्च रक्तचाप के मरीज पापा को हार्ट अटैक का खतरा बना तो डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने पर जोर डालने लगे थे. भाई ने बिजनेस ठीक न चलने के नाम पर आर्थिक सहायता करने से हाथ खींच लिया था. तब मेरी शादी के लिए जमा पैसों से पापा के हृदय का औपरेशन कराना पड़ा था.

औपरेशन के बाद पापा 2 साल और जिंदा रहे. वे शायद और जी जाते पर बेटे के हाथों मिले धोखे व जवान बेटी की शादी की चिंता ने उन के दिल की धड़कन को कुछ जल्दी ही बंद कर दिया.

उन दिनों अंजु ने बहुत मजबूत सहारा बन कर मेरा साथ दिया था. यह सच है कि अगर उस ने मेरा मनोबल ऊंचा न रखा होता तो मैं जरूर खुद शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार पड़ जाती.

फिर मां को पैंशन मिलने लगी थी. पापा के इलाज के खर्चे खत्म हो गए तो मैं अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा जनूनी अंदाज में जोड़ने लगी.

बिना दहेज के अच्छा घरवर मुझ जैसी लड़की को नहीं मिल सकता था. रिश्तेदारों ने मेरे लिए जो बिरादरी का लड़का ढूंढ़ा वह प्राइवेट कंपनी में साधारण सी नौकरी करता था.

मेरी शादी के 4 महीने बाद अंजु की शादी मनोज से हुई जो सरकारी नौकरी करता था. हम दोनों के 4 साल के अंदर 2-2 बेटे आगेपीछे हुए. मेरी दोनों डिलीवरी सरकारी अस्पताल में हुईं और उस की नर्सिंग होम में. अंजू और मनोज को मनोरंजन व दिखावे के लिए पैसा खर्च करने से परहेज नहीं था, पर मैं ने राजेश को अपने रंग में रंग कर पैसा बचाने की आदत डलवा दी थी.

बच्चों की देखभाल में वक्त बहुत तेजी से गुजरा. अंजु ने फ्लैट खरीदा जिस की किस्तों ने उन को वर्षों तक आर्थिक तंगी से उबरने नहीं दिया.

मैं ने अपने जोड़े पैसों से मकान को दोमंजिला बना कर ऊपरी मंजिल किराए पर दे दी. इस से हमारी आमदनी बढ़ गई. हर महीने रुपए अंजु के पैसों की तरह किस्त में न जा कर बैंक खाते में जाने लगे.

मेरा बड़ा बेटा समीर बीकौम के बाद एमबीए कर के नौकरी करने लगा. छोटा बेटा सुमित पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं था सो उसे हम ने किराने की दुकान करा दी.

अंजु के दोनों बेटे भी कुछ खास नहीं पढ़े. बड़े राहुल ने साधारण से कालेज से एमबीए किया और उसे ठीकठाक नौकरी मिल गई. छोटा दवा बनाने वाली कंपनी में एमआर बन गया था.

अपनी कंजूसी की आदत के चलते मेरी अपने दोनों बेटों से अकसर बहस और झड़प हो जाती थी. घर के सारे खर्चे अपनी कमाई में से करना उन्हें नाजायज बोझ सा लगता था.

‘आप हर जगह और हर किसी के सामने रुपयों व खर्चों का रोना रो कर हमें शर्मिंदा करवाने पर क्यों तुली रहती है? अंजु मौसी और मनोज अंकल ने अपनी शादी की 25वीं सालगिरह गोआ जा कर मनाई थी. उन के पास खास पैसा नहीं है पर वे ऐश कर रहे हैं. आप के पास पैसा बहुत है पर आप सिर्फ रुपए गिनने का मजा लेती हैं. अब उस नासमझी को त्याग कर जिंदगी के भी कुछ मजे ले लो, मां,’ वे अकसर मुझे अपनी आदत बदलने के लिए समझाते रहते थे.

‘मैं अभी अपनी जमापूंजी उड़ा लूं और बाद में तुम्हारे सामने हाथ फैलाऊं, ऐसी नासमझी करना मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’ मैं ने कभी उन की बातों पर ध्यान न दे कर कह देती.

‘पता नहीं आप को क्यों एतबार नहीं होता कि हम आप के सुखदुख में काम आएंगे,’ वे नाराज हो उठते.

‘मैं ने दुनिया की रीत देखी है. बूढ़े हो गए मांबाप बेटों को बोझ लगने लगते हैं और उन की खूब दुर्गति होती है. मुझे अपनी वैसी दुर्गति नहीं करानी,’ यों मेरा सच्ची बात उन के मुंह पर कह देना उन दोनों को कभी अच्छा नहीं लगता था.

समीर की शादी अच्छे घर में हो गई पर दहेज में कुछ नहीं आया. उस ने प्रेम विवाह किया था. मैं ने स्वयं भी शादी में हाथ खींच कर पैसा खर्च किया.

बहू नौकरी करती थी. मैं ने घर के कामों के लिए आया रखने के लिए शादी के कुछ दिनों बाद ही शोर मचा दिया पर वे माने नहीं. सारा झगड़ा आया की पगार को ले कर हुआ क्योंकि वे उसे अपनी कमाई से नहीं देना चाहते थे.

इस बात को ले कर घर में झगड़े बढ़े तो समीर ने घर से अलग होने का फैसला कर लिया था. उस के ससुराल वालों ने 2 दिन में अपने घर के पास किराए का मकान भी ढूंढ़ दिया.

मेरे बहूबेटे के अलग होने के 4 महीने बाद ही अंजु ने अपने बड़े बेटे नीरज की शादी की थी. उस की बहू भी नौकरी करती थी. अंजु की तरह वह अच्छे स्वभाव की निकली. मैं उस के घर जाती तो वह मेरी बहुत खातिर करती. अपनी सास के बराबर का मान- सम्मान मुझे देती थी.

अपने छोटे बेटे सुमित की शादी करते ही मैं ने उस की रसोई अलग कर दी थी. मैं नहीं चाहती थी कि घर के खर्चों को ले कर मुझे उस को भी घर से जाने को कहना पड़े.

अंजु ने कुछ महीने बाद अपने छोटे बेटे नवीन की शादी की. मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि वे सब 3 कमरों के फ्लैट में इकट्ठे कैसे रह रहे हैं.

कल अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाते हुए अंजु का पांव एक बच्चे द्वारा फेंके गए केले के छिलके पर पड़ जाने से फिसला और वह धड़ाम से गिरी थी. लकड़ी के मजबूत सोफे से सिर में गहरी चोट आई. कुछ घंटों बाद उसे बेहोशी सी आने लगी तो हम सब कुछ उसे ले कर अस्पताल भागे.

जांच से पता लगा कि गहरी चोट लगने से सिर के अंदर खून बहा है और उस की जान बचाने के लिए फौरन इमरजैंसी औपरेशन करना पड़ेगा.

मैं अतीत की यादों से तब बाहर निकली जब डाक्टर तनेजा ने हमारे पास आ कर बताया, ‘‘अंजु को औपरेशन के बाद होश आ गया है. अब ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

इस खबर को सुन कर हर किसी के दिल मेें खुशी की तेज लहर दौड़ गई थी. अंजु के दोनों बेटों व बहुओं की बात तो छोड़ो, मुझे तो यह देख कर बहुत हैरानी हुई कि मेरे दोनों बेटेबहुएं भी मेरी छाती से लग कर बच्चों की तरह रोए थे.

अंजु की हालत में लगातार सुधार हुआ और वह कुछ दिन बाद ही आईसीयू से वार्ड में आ गई थी.

एक शाम हम घर के सभी लोग मौजूद थे जब अंजु ने अचानक अपने बड़े बेटे नीरज से पूछा, ‘‘मुझे नर्स ने आज दिन में बताया कि अब तक 3-4 लाख का खर्चा मेरे इलाज पर हो चुका होगा. तुम लोगों ने कहां से इंतजाम किया इतने रुपयों का?’’

‘‘इलाज कराने को तेरी बहुओं ने खुशीखुशी अपने जेवर बेच दिए हैं,’’ मेरा यह जवाब सुन कर अंजु हैरान नजर आने लगी थी.

‘‘सच कह रही है तू, सीमा?’’

‘‘बिलकुल सच, पर अब तू बेकार की बातों में मत उलझ और जल्दी से ठीक हो कर अपने घर पहुंच. सारा महल्ला बड़ी बेसब्री से तेरी वापसी का इंतजार कर रहा है.’’

अंजु अचानक उदास सी हो कर बोली, ‘‘सीमा, तू ठीक कहा करती थी कि हर इंसान को इमरजैंसी के लिए धन जोड़ कर जरूर रखना चाहिए. मैं ने तेरी सलाह ध्यान से सुनी होती तो मेरे इलाज के लिए मेरी बहुओं को अपने जेवर तो न बेचने पड़ते.’’

‘‘चल, मेरी बात देर से ही सही पर तेरी समझ में तो आई. पर तू बहुओं के जेवरों के जाने की फिक्र न कर. वे फिर बन जाएंगे.’’

अचानक समीर ने बीच में बोल कर अपनी मां को सच बता दिया, ‘‘मां, जेवर बेचने की बात झूठी है. औपरेशन का सारा खर्चा सीमा मौसी ने उठाया है.’’

‘‘तुझे मेरी कसम सीमा, जो सच है वह मुझे बता दे,’’ अंजु ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में प्रार्थना की.

‘‘सच तो यह है कि तेरी बहुएं अपने जेवर बेचने को तैयार थीं. महल्ले के सारे लोग मिल कर तेरा इलाज कराने को तैयार हो गए थे. तू कल्पना भी नहीं कर सकती कि हम सब को तुझ से कितना प्यार है. मैं ने खर्च इसलिए किया क्योंकि मेरातेरा रिश्ता सब से पुराना है. अब तू खर्चे की फिक्र छोड़ कर अपना सारा ध्यान ठीक होने में लगा दे, मेरी प्यारी सहेली,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से चूम लिया था.

‘‘तेरा यह एहसान मैं जिंदगी में कैसे उतार पाऊंगी?’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘वह एहसान तू ने पहले ही उतार दिया है.’’ मैं ने कहा.

‘‘वह कैसे?’’ अंजु चौंक पड़ी.

‘‘मुझे समझदार बना कर,’’ मैं बहुत भावुक हो उठी, ‘‘तू ठीक कहती थी कि पैसे जोड़ कर तिजोरी भरने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आपसी संबंधों में प्यार की मिठास. अरे, मेरी जो बहुएं मुझे बुखार में पानी का एक गिलास देने को बोझ मानती हैं, मैं ने उन्हें तेरी खैरियत के लिए छोटी बच्चियों की तरह रोते

देखा था.

‘‘अगर तेरी जगह मेरी जिंदगी खतरे में पड़ी होती तो शायद ही कोई मेरे लिए दिल से रोता. अब मैं तेरी तरह अपनों के दिल में जगह बनाना चाहती हूं. मेरी इच्छा है कि जब मेरा दुनिया से जाने का वक्त आए तो तेरे अलावा कोई और भी हो जो मेरे लिए सच्चे आंसू बहाए. मुझे तेरे जैसा बनना है, अंजु.’’

‘‘और मैं अब तेरे जैसी समझदार बनूंगी, सीमा. बेकार के खर्चे करना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘अब इस नई बहस को शुरू करने के बजाय हम दोनों संतुलन बना कर जीना सीखेंगी.’’

‘‘यह भी सही है क्योंकि अति तो

हर चीज की खराब होती है. तो

तू मुझे बचत करना सिखाना, मेरी

कंजूस सहेली.’’

‘‘और तू मुझे अपनों के दिल जीतने की कला सिखाना, मेरी सोने के दिल वाली प्यारी सहेली,’’ हमारी नोकझोंक सुन कर सब हंसने लगे थे.

मैं ने गरदन घुमा कर देखा तो पाया कि मेरी दोनों बहुओं व बेटों की पलकें भी नम हो रही थीं. मैं ने आज पहली बार उन चारों की आंखें में अपने लिए प्रेम व आदरसम्मान के सच्चे भाव देखे, तो हाथ फैला कर उन्हें बारीबारी से अपनी छाती से लगाने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

Crispy Cookies : एक ही तरह की कुकीज खाकर हो गए हैं बोर, तो बनाएं ये 6 तरह के बिस्कुट

‘बच्चे हों या बड़े कुकीज सभी की पसंद होती हैं. तो फिर देर किस बात की, जानते हैं हैल्दी और झटपट बनने वाली कुकीज की रैसिपीज.’

रागी बिस्कुट

सामग्री

1/2 कप रागी का आटा

1/2 कप बटर

1/2 कप ब्राउन शुगर

तीन चौथाई छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

1 बड़ा चम्मच कोको पाउडर

1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट

थोड़ा सा दूध.

विधि

एक पैन में रागी के आटे को 1 मिनट तक भूनें. फिर इस में बाकी सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. अब गुंधे आटे की लोइयां बना कर गोल आकार दें. इन्हें क्लिंग से ढक कर फ्रिज में 20-30 मिनट के लिए रख दें. इस के बाद ओवन में 160 डिग्री सैंटीग्रेट पर 14-15 मिनट बेक करें. फिर तैयार रागी बिस्कुट को ठंडा कर एअरटाइट डब्बे में स्टोर कर लें.

‘पीनट बटर कुकीज के स्वाद को और बढ़ा देता है.’

नो बेक बटर पीनट बाइट्स

सामग्री

11/2 कप रोल्ड ओट्स

1/2 कप पीनट बटर

एकतिहाई कप मैपल सिरप

एकतिहाई कप चौकलेट चिप्स.

विधि

सारी सामग्री को एक बाउल में मिला कर आधे घंटे के लिए ढक कर फ्रिज में रख दे. फिर बौल्स बना कर एअरटाइड डब्बे में स्टोर कर लें. ‘बेक्ड कुकीज और केक में दालचीनी का ट्विस्ट अलग फेवर ऐड करता है.’

क्रिस्पी सिनामन कुकीज

सामग्री

1 कप आटा

1/2 कप बटर

1/2 कप चीनी पिसी

1/2 छोटा कप दालचीनी पाउडर

एकचौथाई छोटा चम्मच जायफल पाउडर

1 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट

2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

आटे में सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. फिर रोल कर के कुकीज कटर की मदद से काटें. इस के बाद इन्हें ओवन में 160 डिग्री सैंटीग्रेट पर 15-20 मिनट बेक करें. ठंडा कर एअरटाइट डब्बे में स्टोर कर लें. ‘केसरिया चमचम को इस तरह बनाएंगी तो स्वाद दोगुना हो जाएगा.’

चमचम

सामग्री

1 लिटर दूध,  2 चुटकी इलाइची पाउडर, 1 बड़ा चम्मच नारियल कसा,  थोड़ा सा केसर, 1/2 कप खोया, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, थोड़ी सी पिसी चीनी, थोड़ा सा पिस्ता, 4 कप पानी.

विधि

एक बरतन में दूध उबालें. नींबू का रस डाल कर पनीर बना लें. इस पनीर को कपड़े में डाल कर कुछ देर के लिए लटका दें ताकि सारा पानी निकल जाए. अब इसे हथेली से मसल कर आटे जैसा नर्म कर लें. चीनी में पानी मिला कर उबलने रखें. इस पानी में इलाइची पाउडर भी डाल दें. पनीर के गोले बना कर उन्हें कुछ लंबी शेप दें. फिर इन्हें उबलते चीनी वाले पानी में डाल कर ढक कर पकाएं. खोया, केसर, नारियल और थोड़ी सी पिसी चीनी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. नर्म गूंध लें. छोटेछोटे गोले बना कर रखें. चमचम को ठंडा होने दें. चीनी में से निकालें. प्रत्येक चमचम को बीच से काट कर खोए के गोले उस में भर दें. ऊपर से पिस्ता बुरक ठंडा होने पर परोसें.

एगलैस कोकोनट कुकीज

सामग्री

1 कप आटा,  1 कप चीनी पिसी,  एकचौथाई कप नारियल कद्दूकस किया.  1/2 कप बटर,  1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट,  2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

चीनी में सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. फिर आटे से बौल्स तैयार कर उन्हें कोकोनट के बूरे में लपेटें. ओवन में 15 मिनट बेक होने के लिए रख दें. अब तैयार कोकोनट कुकीज को स्टोर कर लें.

मसूर दाल चौप

सामग्री

1 कप मसूर दाल, 1/2 कप प्याज बारीक कटा,  1-2 छोटे चम्मच चावल का आटा, 1 छोटा चम्मच गरममसाला, 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट,  1-2 हरी मिर्चें, नमक स्वादानुसार.

विधि

मसूर दाल को थोड़े से पानी के साथ 2 सीटियां आने तक गला लें. बचा पानी निथार कर दाल को कुछ देर छलनी में ही रहने दें. सारे मसाले व बाकी की सामग्री को अच्छी तरह मिक्स कर टिक्की की शेप दें. गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

Financial Planning : लाइफ बनाएं ईजी

Financial Planning : रचना की अच्छीखासी नौकरी थी मगर शाह खर्च होने के कारण उस की बचत शून्य थी. अपने दोस्तों की सलाह पर उस ने म्यूचुअल फंड्स तो जरूर ले लिए थे पर बाद में कंसिस्टैंसी न होने के कारण उस का कोई भी म्यूचुअल फंड नही चल पाया है. जैसे ही कोई ऐक्स्ट्रा खर्चा आता, तो रचना हमेशा महंगाई का रोना रोने लगती और उधार मांगने लगती.

ऐसा ही कुछ हाल अंशु का भी था. औनलाइन शौपिंग की इतनी बुरी लत थी कि सैलरी का प्रमुख हिस्सा जूते, कपड़ों और ऐक्सैसरीज में चला जाता. पति या सास के टोकने पर वह मेरी कमाई मेरा हक का तुरुप पत्ता रख देती. मगर जब एकाएक अंशु के पति की नौकरी पर बन आई तो उस की हालत पतली हो गई. सेविंग के नाम पर उस के पास बस एक एफडी थी वह भी उस ने बीच में ही तुड़वा दी थी.

उधर निधि ने अपने पैसे तो अवश्य इनवैस्ट किए मगर एलआईसी और एफडी जैसी आउटडेटेड स्कीम्स में जहां पैसे की बढ़त बहुत ही धीमी गति से होती है. मगर निधि को लगता है कि म्यूचुअल फंड्स या स्टौक्स में लगाने से उस के पैसे डूब जाएंगे.

आज के दौर में जब जिंदगी बहुत अनसर्टेन है. ऐसे में फाइनैंशियल प्लानिंग एक सुखमय जीवन के लिए बेहद जरूरी है.

आप की कमाई या वेतन कम या ज्यादा है इस बात से अधिक यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने पैसे को कैसे लगाते हैं. अगर आप सोचसमझ कर इनवैस्टमैंट करते हैं तो आप के फ्यूचर को फाइनैंशियल सिक्योर होने से कोई नहीं रोक सकता है.

अपनाएं 50-30-20 का फौर्मूला. आप की सैलरी कम हो या ज्यादा, मगर यह फौर्मूला फाइनैंशियल प्लानिंग के लिए बेहद कारगर है. आप की सैलरी का 50त्न रोजमर्रा के खर्चों के लिए, 20 आप के शौक और कुछ मिसलेनियस खर्च के लिए और 30 आप को इनवैस्ट अवश्य करना चाहिए. ऐसा निरंतरता से करेंगे तो आप का धीरेधीरे ही सही एक कौपर्स फंड हो जाएगा. अगर आप यह फौर्मूला अपनाएंगे तो जिंदगी में भी डिसिप्लिन आ जाएगा.

मैडिकल इंश्योरैंस है जरूरी: आजकल इलाज इतना अधिक महंगा है कि मैडिकल इंश्योरैंस बहुत ही जरूरी है. कितनी भी सेविंग या इनवैस्टमैंट कर लें, एक बीमारी आप को अंदर तक निचोड़ देगी. इसलिए खुद को सेफ रखने के लिए मैडिकल इंश्योरैंस अवश्य कराएं.

इमरजैंसी फंड्स को न करें इग्नोर: इनवैस्टमैंट शुरू करने से पहले कम से कम

3 से 6 माह तक के इमरजैंसी फंड का बंदोबस्त अवश्य कर के रखें. ऐसा करने से अगर कभी जिंदगी में बुरा समय भी आ जाए तो आप इस इमरजैंसी फंड के सहारे उस समय को भी गुजार लेंगे.

औनलाइन शौपिंग से करें परेहज: औनलाइन शौपिंग एक बहुत ही बुरी लत है. इसे करने से आप कितना पैसे खर्च कर देते हैं आप को कभी पता नहीं लग पाएगा. कोई भी चीज खरीदने से पहले कम से कम 1 माह तक उस चीज को खरीदने से बचें. अगर आप को उस वस्तु की 1 माह के बाद भी जरूरत लगती है तो अवश्य खरीदें नहीं तो आप को उस चीज की जरूरत ही नहीं.

सिप हैं जरूरी: कितना भी छोटा अमाउंट हो मगर सिप अवश्य शुरू कर दें. जितना जल्दी शुरू करेंगे उतना ही अच्छा रहेगा. सिप शुरू करने से पहले किसी फाइनैंशियल प्लानर से एक बार सलाह अवश्य ले लें. यह सोच कर मत टालिए कि जब सैलरी बढ़ेगी तब शुरू करूंगा इत्यादि.

एलआईसी लें सोचसमझ कर: एलआईसी में रिस्क अवश्य नही है मगर इस में ग्रोथ बहुत कम है. अगर आप का मन है तो कोई ऐसा प्लान लें जिस में इनवैस्टमैंट कम हो और प्रोटैक्शन अधिक. एफडी या आरडी आज के समय में एकदम आउटडेटेड हैं.

Skin Care Tips : उम्र के साथ अपनी त्वचा की करें खास देखभाल

Skin Care Tips :  बढती उम्र में सही स्किनकेयर न सिर्फ आपकी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाएगा, बल्कि आपको अंदर से भी खूबसूरत और आत्मविश्वास से भरा महसूस कराएगा तो क्यों ना स्किन डल होने से पहले स्किनकेयर पर खास ध्यान दिया जाए.

हर महिला की ख्वाहिश होती है कि उसकी त्वचा हमेशा जवां, मुलायम और पोषण से भरपूर बनी रहे. लेकिन समय के साथ बदलती लाइफस्टाइल और पर्यावरणीय असर से त्वचा पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, जैसे डार्क स्पौट्स, झुर्रियां, मुंहासों के दाग, स्ट्रेच मार्क्स और ड्राई स्किन. इनसे बचाव करना जरूरी है ताकि आपकी त्वचा हमेशा हेल्दी और दमकती रहे.

स्किनकेयर औयल

अपनी त्वचा की देखभाल का सबसे अच्छा तरीका है ऐसा स्किनकेयर औयल चुनना, जो न सिर्फ आपकी खूबसूरती को निखारे बल्कि गहराई से पोषण और नमी भी प्रदान करे. बाजार में कई विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन अगर आप कैमोमाइल, विटामिन ई, सूरजमुखी, लैवेंडर, रोज़मेरी और प्योरसेलिन जैसे प्राकृतिक तत्वों से भरपूर तेल का चुनाव करते हैं, तो यह आपकी त्वचा के लिए बेहतरीन साबित हो सकता है.

प्राकृतिक एंटीसेप्टिक औयल

रोजमेरी औयल त्वचा को तरोताजा और पोषित करता है, जबकि कैलेंडुला औयल सनबर्न या संवेदनशील त्वचा को आराम देने और जलन कम करने में मदद करता है. लैवेंडर औयल अपने प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुणों की वजह से त्वचा को शांत और आरामदायक बनाता है. कैमोमाइल औयल सूजन कम करने में असरदार होता है और संवेदनशील त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होता है. विटामिन ए त्वचा को सुरक्षा और राहत देता है, जबकि विटामिन ई फ्री रेडिकल्स से बचाव कर समय से पहले उम्र के असर को रोकता है और त्वचा को नमी प्रदान करता है. प्योरसेलिन, एक खास तत्व, त्वचा को मुलायम और स्मूद बनाता है, जिससे तेल आसानी से अवशोषित हो जाता है और स्किन कोमल व पोषित महसूस होती है.

बायो-औयल

यह त्वचा को गहराई से पोषण देकर उसकी लचीलापन (इलास्टिसिटी) बढ़ाने में मदद करता है, खुजली को कम करता है और गर्भावस्था या वजन में बदलाव के कारण बने स्ट्रेच मार्क्स को हल्का करने में मदद करता है. यह सभी प्रकार की त्वचा के लिए उपयुक्त है और स्ट्रेच मार्क्स के लिए क्लिनिकल रूप से प्रमाणित और डर्मेटोलॉजिस्ट द्वारा अनुशंसित है. बेहतरीन परिणामों के लिए, इसे दिन में दो बार कम से कम तीन महीने तक लगाने की सलाह दी जाती है.

करें खुद से प्यार

अगर आप भी अपनी त्वचा की देखभाल का एक खास रूटीन अपनाएंगी, तो यह ना केवल आपको निखरेगा बल्कि आत्मविश्वास से भी भर देगा. क्योंकि जब आप खुद से प्यार करती हैं, तो वह चमक आपकी त्वचा और आपके व्यक्तित्व दोनों में झलकती है.

Laughter Chef 2 में ‘सिकंदर’ के प्रमोशन के लिए पहुंचे Salman Khan, खाना बनाते आएंगे नजर…

Laughter Chef 2 : मुंबई के सुपरस्टार सलमान खान का फिल्मों के अलावा टीवी पर भी अच्छा खासा बोलबाला है जिसके चलते जहां उनकी साल में एक दो फिल्में रिलीज होती है वही टीवी पर वह किसी न किसी तरह पूरे साल की छाए रहते हैं. वैसे भी सलमान खान को दर्शक देखना पसंद करते हैं. तो कभी वह बिग बौस के शो में बतौर होस्ट नजर आते हैं, तो कभी म्यूजिक और डांस पर आधारित रियलिटी शोज में बतौर मेहमान आकर वह शो की गरिमा को बढ़ा देते हैं.

लेकिन अब सलमान खान खबरों के अनुसार एक बार फिर कलर्स टीवी के एक शो में नजर आने वाले हैं. लेकिन वह शो बिग बौस नहीं है बल्कि खाना बनाने पर आधारित मजाक मस्ती से भरपूर लाफ्टर शेफ कौमेडी शो है. जिसमें भाग लेने वाले प्रतियोगी जैसे कृष्णा अभिषेक, सुदेश लहरी , कश्मीरा शाह, मनारा चोपड़ा खाना कम बनाते हैं लेकिन कौमेडी भरपूर करते हैं. जो शो का फारमेट है. खबरों के अनुसार हमेशा मजाक मस्ती करने वाले और मजाक मस्ती पसंद करने वाले सलमान खान इस लाफ्टर शेफ शो 2 में अपनी फिल्म सिकंदर के प्रमोशन के लिए नजर आने वाले हैं.

अपनी इस फिल्म का प्रमोशन सलमान खान बड़े जोरशोर से कर रहे हैं. गौरतलब है सलमान खान की फिल्म सिकंदर इसी साल ईद पर रिलीज हो रही है और दर्शकों को उम्मीद है कि यह फिल्म बौक्स औफिस पर धमाल मचाने वाली है. लिहाजा अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए सलमान खान आने वाले समय में पूरे मनोरंजन के साथ खाना बनाते नजर आएंगे. फिल्म के अन्य कलाकार रश्मिका मंदना और काजल अग्रवाल है , सिकन्दर फिल्म का निर्देशन ए आर मुरुगादास ने किया है.

Relationship और डेटिंग की दुनिया में DADT ट्रेंड मौर्डन कपल्स को आ रहा है पसंद

Relationship : बदलते समय के साथ इस डिजिटल युग में प्यार और मोहब्बत के मायने बदल गए हैं. क्योंकि आज कल रिश्ते विश्वास से ज्यादा ट्रेंड पर टिके हुए हैं. रिलेशनशिप और डेटिंग की दुनिया में एक नया वर्ड DADT ट्रेंड कर रहा हैं. जो मौर्डन कपल्स को खूब पसंद आ रहा है. DADT क्या है लोग इसको इतना क्यों पसंद कर रहे हैं आइए जानें.

DADT का अर्थ

आजकल रिलेशनशिप में DADT वर्ड की खूब चर्चा हो रही है जिसका फुल फौर्म है Don’t Ask, Don’t Tell. इसका मतलब है कि ‘न पूछो न बताओ’ इसे एक तरह का कोम्प्रोमाईज भी कहा जा सकता है. इस रिलेशन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं. जिनके बारे में बात नहीं करना चाहते हैं. प्राइवेसी बनाए रखते हुए पार्टनर पर भरोसा करना चाहते हैं. DADT के जरिए तय किया जाता है कि किन चीजों के बारे में बात करेंगे और किन चीजों के बारे में नहीं. इससे रिलेशन को स्ट्रांग बनाना इजी होता है. एकदूसरे से बिना मन-मुटाओ के ज्यादा झगड़ा ना करते हुए खुश रह सकते हैं.

मौर्डन जनरेशन को पसंद ये ट्रेंड्स

आज के समय की मौर्डन जनरेशन को DADT ट्रेंड्स बहुत पसंद आ रहें हैं और वह इस तरह के ट्रेंड्स को बहुत जल्दी अपनाना चाहती हैं. क्योंकि इसका कनेक्शन कोम्प्रोमाईज और प्राइवेसी से है. जिसकी जरूरत आज के समय में रिलेशनशिप में सबसे ज्यादा पड़ती है. इस कोम्प्रोमाईज के अंदर कपल्स डिसाइड करते हैं कि एक- दूसरे की पर्सनल लाइफ के कुछ पार्ट्स के बारे में बात नहीं करेंगे. वे एक-दूसरे से ये नही पूछेंगे की किसके साथ अपना टाइम स्पेंड कर रहें हैं और किसके साथ रोमांटिक रिश्ते में हैं. उन्हें अपने रिलेशन में पर्सनल स्पेस भी चाहिए. DADT में कोम्प्रोमाईज करके एकदूसरे की प्राइवेसी की इज्जत करते हैं और ओपन रिलेशनशिप बनाए रखते हैं.

ना कुछ पूछो ना कुछ बताओ

कुछ कपल ऐसे भी होते हैं जो अपने रिलेशन में कुछ भी क्लियर नहीं रखना चाहते हैं. वो एक दूसरे की पर्सनल लाइफ में दखल नहीं देते हैं. ना कुछ पूछना, ना ही कुछ बताना, इसी को ‘डोंट आस्क, डोंट टेल’ कहते हैं. इस तरह के कपल्स का मानना हैं कि ऐसा करके एक-दूसरे की फ्रीडम और रिलेशन को भी बचा सकते हैं और ऐसा करके वो ट्रांसपेरेंसी से ज्यादा प्राइवेसी और रिलेशन की खुशी को इम्पोर्टेन्स देते हैं. ताकि उनके बीच इसको लेकर झगड़ा ना हो. रिश्ते में शांति बने रहे. इसलिए एक दूसरे पर किसी तरह का दबाव नहीं डालते हैं. तभी वो एक दूसरे से खुलकर बात कर पाते हैं.

सोच एक जैसी होना जरुरी

हालांकि हर किसी को यह ट्रेंड पसंद नहीं आता है. इस ट्रेंड को फौलो करने के लिए पार्टनर की सोच एक जैसी होनी चाहिए. आमतौर पर माना जाता है कि अगर कपल की आदतें एकदूसरे से मिलती जुलती है, तो उनका रिलेशन ज्यादा स्ट्रांग होता है. क्योंकि समान इंट्रेस्ट होने के कारण झगड़े होने के चांस कम होते हैं. हालांकि, सेम पर्सनैलिटी होना रिलेशनशिप को सफल बनाए इसकी कोई गैरंटी नहीं है. एक अच्‍छा लाइफ पार्टनर अपने पार्टनर की सोच, विचार, पर्सनल स्‍पेस, करियर, सपने आदि की इज्‍जत करता है. वे ओपन माइंडेड होते हैं और उन्‍हें दुनिया से अधिक अपने पार्टनर की फिक्र होती है. वे अपने पार्टनर को लेकर जजमेंटल नहीं होते.

A. R. Rahman की तबीयत बिगड़ने के बाद पत्नी सायरा ने एक्स वाइफ ना कहने की लगाई गुहार…

A. R. Rahman : ए आर रहमान जो कि एक प्रसिद्ध सिंगर म्यूजिक डायरेक्टर और औस्कर विजेता, कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित प्रसिद्ध हस्ती हैं. ऐसे में जब उनकी तलाक की खबर आई तो सोशल मीडिया पर बवाल मच गया और तरहतरह की खबरें आने लगी इसके बाद ए आर रहमान ने इस तरह की बेवजह खबरों पर कड़ा एक्शन लेने की बात कही तो उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में चर्चा होनी कम हो गई.

लेकिन ए आर रहमान की वाइफ को एक्स वाइफ कहने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ.इसी बीच रहमान के सीने में दर्द के चलते उनको चेन्नई के अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां पर कुछ टेस्ट के बाद उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया . लेकिन इसी बीच ए आर रहमान की वाइफ सायरा बानो ने एक न्यूज चैनल को चौंकाने वाला बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि प्लीज मुझे एक्स वाइफ ना कहे.

मेरा रहमान से तलाक नहीं हुआ है हम अभी भी पतिपत्नी हैं. पिछले 2 सालों से मेरी तबियत खराब होने की वजह से हम अलग हुए हैं , क्योंकि मैं उनको अपनी बीमारी की वजह से स्ट्रेस नहीं देना चाहती. रहमान अब पहले से ठीक है. मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूं. हम भले ही अलग हुए हैं, लेकिन रहमान को लेकर चिंता लगी रहती है ओर मैं हमेशा उनके लिए दुआ करती रहती हूँ. आज भले ही हम अलग है लेकिन हमारे बीच प्यार भरा रिश्ता आज भी बरकरार है . इसलिए प्लीज आप लोग मुझे उनकी एक्स वाइफ न बोले .ये आप लोगों से मेरी गुजारिश है.

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