Crispy Cookies : एक ही तरह की कुकीज खाकर हो गए हैं बोर, तो बनाएं ये 6 तरह के बिस्कुट

‘बच्चे हों या बड़े कुकीज सभी की पसंद होती हैं. तो फिर देर किस बात की, जानते हैं हैल्दी और झटपट बनने वाली कुकीज की रैसिपीज.’

रागी बिस्कुट

सामग्री

1/2 कप रागी का आटा

1/2 कप बटर

1/2 कप ब्राउन शुगर

तीन चौथाई छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

1 बड़ा चम्मच कोको पाउडर

1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट

थोड़ा सा दूध.

विधि

एक पैन में रागी के आटे को 1 मिनट तक भूनें. फिर इस में बाकी सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. अब गुंधे आटे की लोइयां बना कर गोल आकार दें. इन्हें क्लिंग से ढक कर फ्रिज में 20-30 मिनट के लिए रख दें. इस के बाद ओवन में 160 डिग्री सैंटीग्रेट पर 14-15 मिनट बेक करें. फिर तैयार रागी बिस्कुट को ठंडा कर एअरटाइट डब्बे में स्टोर कर लें.

‘पीनट बटर कुकीज के स्वाद को और बढ़ा देता है.’

नो बेक बटर पीनट बाइट्स

सामग्री

11/2 कप रोल्ड ओट्स

1/2 कप पीनट बटर

एकतिहाई कप मैपल सिरप

एकतिहाई कप चौकलेट चिप्स.

विधि

सारी सामग्री को एक बाउल में मिला कर आधे घंटे के लिए ढक कर फ्रिज में रख दे. फिर बौल्स बना कर एअरटाइड डब्बे में स्टोर कर लें. ‘बेक्ड कुकीज और केक में दालचीनी का ट्विस्ट अलग फेवर ऐड करता है.’

क्रिस्पी सिनामन कुकीज

सामग्री

1 कप आटा

1/2 कप बटर

1/2 कप चीनी पिसी

1/2 छोटा कप दालचीनी पाउडर

एकचौथाई छोटा चम्मच जायफल पाउडर

1 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट

2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

आटे में सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. फिर रोल कर के कुकीज कटर की मदद से काटें. इस के बाद इन्हें ओवन में 160 डिग्री सैंटीग्रेट पर 15-20 मिनट बेक करें. ठंडा कर एअरटाइट डब्बे में स्टोर कर लें. ‘केसरिया चमचम को इस तरह बनाएंगी तो स्वाद दोगुना हो जाएगा.’

चमचम

सामग्री

1 लिटर दूध,  2 चुटकी इलाइची पाउडर, 1 बड़ा चम्मच नारियल कसा,  थोड़ा सा केसर, 1/2 कप खोया, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, थोड़ी सी पिसी चीनी, थोड़ा सा पिस्ता, 4 कप पानी.

विधि

एक बरतन में दूध उबालें. नींबू का रस डाल कर पनीर बना लें. इस पनीर को कपड़े में डाल कर कुछ देर के लिए लटका दें ताकि सारा पानी निकल जाए. अब इसे हथेली से मसल कर आटे जैसा नर्म कर लें. चीनी में पानी मिला कर उबलने रखें. इस पानी में इलाइची पाउडर भी डाल दें. पनीर के गोले बना कर उन्हें कुछ लंबी शेप दें. फिर इन्हें उबलते चीनी वाले पानी में डाल कर ढक कर पकाएं. खोया, केसर, नारियल और थोड़ी सी पिसी चीनी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. नर्म गूंध लें. छोटेछोटे गोले बना कर रखें. चमचम को ठंडा होने दें. चीनी में से निकालें. प्रत्येक चमचम को बीच से काट कर खोए के गोले उस में भर दें. ऊपर से पिस्ता बुरक ठंडा होने पर परोसें.

एगलैस कोकोनट कुकीज

सामग्री

1 कप आटा,  1 कप चीनी पिसी,  एकचौथाई कप नारियल कद्दूकस किया.  1/2 कप बटर,  1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट,  2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

चीनी में सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. फिर आटे से बौल्स तैयार कर उन्हें कोकोनट के बूरे में लपेटें. ओवन में 15 मिनट बेक होने के लिए रख दें. अब तैयार कोकोनट कुकीज को स्टोर कर लें.

मसूर दाल चौप

सामग्री

1 कप मसूर दाल, 1/2 कप प्याज बारीक कटा,  1-2 छोटे चम्मच चावल का आटा, 1 छोटा चम्मच गरममसाला, 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट,  1-2 हरी मिर्चें, नमक स्वादानुसार.

विधि

मसूर दाल को थोड़े से पानी के साथ 2 सीटियां आने तक गला लें. बचा पानी निथार कर दाल को कुछ देर छलनी में ही रहने दें. सारे मसाले व बाकी की सामग्री को अच्छी तरह मिक्स कर टिक्की की शेप दें. गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

Financial Planning : लाइफ बनाएं ईजी

Financial Planning : रचना की अच्छीखासी नौकरी थी मगर शाह खर्च होने के कारण उस की बचत शून्य थी. अपने दोस्तों की सलाह पर उस ने म्यूचुअल फंड्स तो जरूर ले लिए थे पर बाद में कंसिस्टैंसी न होने के कारण उस का कोई भी म्यूचुअल फंड नही चल पाया है. जैसे ही कोई ऐक्स्ट्रा खर्चा आता, तो रचना हमेशा महंगाई का रोना रोने लगती और उधार मांगने लगती.

ऐसा ही कुछ हाल अंशु का भी था. औनलाइन शौपिंग की इतनी बुरी लत थी कि सैलरी का प्रमुख हिस्सा जूते, कपड़ों और ऐक्सैसरीज में चला जाता. पति या सास के टोकने पर वह मेरी कमाई मेरा हक का तुरुप पत्ता रख देती. मगर जब एकाएक अंशु के पति की नौकरी पर बन आई तो उस की हालत पतली हो गई. सेविंग के नाम पर उस के पास बस एक एफडी थी वह भी उस ने बीच में ही तुड़वा दी थी.

उधर निधि ने अपने पैसे तो अवश्य इनवैस्ट किए मगर एलआईसी और एफडी जैसी आउटडेटेड स्कीम्स में जहां पैसे की बढ़त बहुत ही धीमी गति से होती है. मगर निधि को लगता है कि म्यूचुअल फंड्स या स्टौक्स में लगाने से उस के पैसे डूब जाएंगे.

आज के दौर में जब जिंदगी बहुत अनसर्टेन है. ऐसे में फाइनैंशियल प्लानिंग एक सुखमय जीवन के लिए बेहद जरूरी है.

आप की कमाई या वेतन कम या ज्यादा है इस बात से अधिक यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने पैसे को कैसे लगाते हैं. अगर आप सोचसमझ कर इनवैस्टमैंट करते हैं तो आप के फ्यूचर को फाइनैंशियल सिक्योर होने से कोई नहीं रोक सकता है.

अपनाएं 50-30-20 का फौर्मूला. आप की सैलरी कम हो या ज्यादा, मगर यह फौर्मूला फाइनैंशियल प्लानिंग के लिए बेहद कारगर है. आप की सैलरी का 50त्न रोजमर्रा के खर्चों के लिए, 20 आप के शौक और कुछ मिसलेनियस खर्च के लिए और 30 आप को इनवैस्ट अवश्य करना चाहिए. ऐसा निरंतरता से करेंगे तो आप का धीरेधीरे ही सही एक कौपर्स फंड हो जाएगा. अगर आप यह फौर्मूला अपनाएंगे तो जिंदगी में भी डिसिप्लिन आ जाएगा.

मैडिकल इंश्योरैंस है जरूरी: आजकल इलाज इतना अधिक महंगा है कि मैडिकल इंश्योरैंस बहुत ही जरूरी है. कितनी भी सेविंग या इनवैस्टमैंट कर लें, एक बीमारी आप को अंदर तक निचोड़ देगी. इसलिए खुद को सेफ रखने के लिए मैडिकल इंश्योरैंस अवश्य कराएं.

इमरजैंसी फंड्स को न करें इग्नोर: इनवैस्टमैंट शुरू करने से पहले कम से कम

3 से 6 माह तक के इमरजैंसी फंड का बंदोबस्त अवश्य कर के रखें. ऐसा करने से अगर कभी जिंदगी में बुरा समय भी आ जाए तो आप इस इमरजैंसी फंड के सहारे उस समय को भी गुजार लेंगे.

औनलाइन शौपिंग से करें परेहज: औनलाइन शौपिंग एक बहुत ही बुरी लत है. इसे करने से आप कितना पैसे खर्च कर देते हैं आप को कभी पता नहीं लग पाएगा. कोई भी चीज खरीदने से पहले कम से कम 1 माह तक उस चीज को खरीदने से बचें. अगर आप को उस वस्तु की 1 माह के बाद भी जरूरत लगती है तो अवश्य खरीदें नहीं तो आप को उस चीज की जरूरत ही नहीं.

सिप हैं जरूरी: कितना भी छोटा अमाउंट हो मगर सिप अवश्य शुरू कर दें. जितना जल्दी शुरू करेंगे उतना ही अच्छा रहेगा. सिप शुरू करने से पहले किसी फाइनैंशियल प्लानर से एक बार सलाह अवश्य ले लें. यह सोच कर मत टालिए कि जब सैलरी बढ़ेगी तब शुरू करूंगा इत्यादि.

एलआईसी लें सोचसमझ कर: एलआईसी में रिस्क अवश्य नही है मगर इस में ग्रोथ बहुत कम है. अगर आप का मन है तो कोई ऐसा प्लान लें जिस में इनवैस्टमैंट कम हो और प्रोटैक्शन अधिक. एफडी या आरडी आज के समय में एकदम आउटडेटेड हैं.

Skin Care Tips : उम्र के साथ अपनी त्वचा की करें खास देखभाल

Skin Care Tips :  बढती उम्र में सही स्किनकेयर न सिर्फ आपकी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाएगा, बल्कि आपको अंदर से भी खूबसूरत और आत्मविश्वास से भरा महसूस कराएगा तो क्यों ना स्किन डल होने से पहले स्किनकेयर पर खास ध्यान दिया जाए.

हर महिला की ख्वाहिश होती है कि उसकी त्वचा हमेशा जवां, मुलायम और पोषण से भरपूर बनी रहे. लेकिन समय के साथ बदलती लाइफस्टाइल और पर्यावरणीय असर से त्वचा पर कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, जैसे डार्क स्पौट्स, झुर्रियां, मुंहासों के दाग, स्ट्रेच मार्क्स और ड्राई स्किन. इनसे बचाव करना जरूरी है ताकि आपकी त्वचा हमेशा हेल्दी और दमकती रहे.

स्किनकेयर औयल

अपनी त्वचा की देखभाल का सबसे अच्छा तरीका है ऐसा स्किनकेयर औयल चुनना, जो न सिर्फ आपकी खूबसूरती को निखारे बल्कि गहराई से पोषण और नमी भी प्रदान करे. बाजार में कई विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन अगर आप कैमोमाइल, विटामिन ई, सूरजमुखी, लैवेंडर, रोज़मेरी और प्योरसेलिन जैसे प्राकृतिक तत्वों से भरपूर तेल का चुनाव करते हैं, तो यह आपकी त्वचा के लिए बेहतरीन साबित हो सकता है.

प्राकृतिक एंटीसेप्टिक औयल

रोजमेरी औयल त्वचा को तरोताजा और पोषित करता है, जबकि कैलेंडुला औयल सनबर्न या संवेदनशील त्वचा को आराम देने और जलन कम करने में मदद करता है. लैवेंडर औयल अपने प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुणों की वजह से त्वचा को शांत और आरामदायक बनाता है. कैमोमाइल औयल सूजन कम करने में असरदार होता है और संवेदनशील त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होता है. विटामिन ए त्वचा को सुरक्षा और राहत देता है, जबकि विटामिन ई फ्री रेडिकल्स से बचाव कर समय से पहले उम्र के असर को रोकता है और त्वचा को नमी प्रदान करता है. प्योरसेलिन, एक खास तत्व, त्वचा को मुलायम और स्मूद बनाता है, जिससे तेल आसानी से अवशोषित हो जाता है और स्किन कोमल व पोषित महसूस होती है.

बायो-औयल

यह त्वचा को गहराई से पोषण देकर उसकी लचीलापन (इलास्टिसिटी) बढ़ाने में मदद करता है, खुजली को कम करता है और गर्भावस्था या वजन में बदलाव के कारण बने स्ट्रेच मार्क्स को हल्का करने में मदद करता है. यह सभी प्रकार की त्वचा के लिए उपयुक्त है और स्ट्रेच मार्क्स के लिए क्लिनिकल रूप से प्रमाणित और डर्मेटोलॉजिस्ट द्वारा अनुशंसित है. बेहतरीन परिणामों के लिए, इसे दिन में दो बार कम से कम तीन महीने तक लगाने की सलाह दी जाती है.

करें खुद से प्यार

अगर आप भी अपनी त्वचा की देखभाल का एक खास रूटीन अपनाएंगी, तो यह ना केवल आपको निखरेगा बल्कि आत्मविश्वास से भी भर देगा. क्योंकि जब आप खुद से प्यार करती हैं, तो वह चमक आपकी त्वचा और आपके व्यक्तित्व दोनों में झलकती है.

Laughter Chef 2 में ‘सिकंदर’ के प्रमोशन के लिए पहुंचे Salman Khan, खाना बनाते आएंगे नजर…

Laughter Chef 2 : मुंबई के सुपरस्टार सलमान खान का फिल्मों के अलावा टीवी पर भी अच्छा खासा बोलबाला है जिसके चलते जहां उनकी साल में एक दो फिल्में रिलीज होती है वही टीवी पर वह किसी न किसी तरह पूरे साल की छाए रहते हैं. वैसे भी सलमान खान को दर्शक देखना पसंद करते हैं. तो कभी वह बिग बौस के शो में बतौर होस्ट नजर आते हैं, तो कभी म्यूजिक और डांस पर आधारित रियलिटी शोज में बतौर मेहमान आकर वह शो की गरिमा को बढ़ा देते हैं.

लेकिन अब सलमान खान खबरों के अनुसार एक बार फिर कलर्स टीवी के एक शो में नजर आने वाले हैं. लेकिन वह शो बिग बौस नहीं है बल्कि खाना बनाने पर आधारित मजाक मस्ती से भरपूर लाफ्टर शेफ कौमेडी शो है. जिसमें भाग लेने वाले प्रतियोगी जैसे कृष्णा अभिषेक, सुदेश लहरी , कश्मीरा शाह, मनारा चोपड़ा खाना कम बनाते हैं लेकिन कौमेडी भरपूर करते हैं. जो शो का फारमेट है. खबरों के अनुसार हमेशा मजाक मस्ती करने वाले और मजाक मस्ती पसंद करने वाले सलमान खान इस लाफ्टर शेफ शो 2 में अपनी फिल्म सिकंदर के प्रमोशन के लिए नजर आने वाले हैं.

अपनी इस फिल्म का प्रमोशन सलमान खान बड़े जोरशोर से कर रहे हैं. गौरतलब है सलमान खान की फिल्म सिकंदर इसी साल ईद पर रिलीज हो रही है और दर्शकों को उम्मीद है कि यह फिल्म बौक्स औफिस पर धमाल मचाने वाली है. लिहाजा अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए सलमान खान आने वाले समय में पूरे मनोरंजन के साथ खाना बनाते नजर आएंगे. फिल्म के अन्य कलाकार रश्मिका मंदना और काजल अग्रवाल है , सिकन्दर फिल्म का निर्देशन ए आर मुरुगादास ने किया है.

Relationship और डेटिंग की दुनिया में DADT ट्रेंड मौर्डन कपल्स को आ रहा है पसंद

Relationship : बदलते समय के साथ इस डिजिटल युग में प्यार और मोहब्बत के मायने बदल गए हैं. क्योंकि आज कल रिश्ते विश्वास से ज्यादा ट्रेंड पर टिके हुए हैं. रिलेशनशिप और डेटिंग की दुनिया में एक नया वर्ड DADT ट्रेंड कर रहा हैं. जो मौर्डन कपल्स को खूब पसंद आ रहा है. DADT क्या है लोग इसको इतना क्यों पसंद कर रहे हैं आइए जानें.

DADT का अर्थ

आजकल रिलेशनशिप में DADT वर्ड की खूब चर्चा हो रही है जिसका फुल फौर्म है Don’t Ask, Don’t Tell. इसका मतलब है कि ‘न पूछो न बताओ’ इसे एक तरह का कोम्प्रोमाईज भी कहा जा सकता है. इस रिलेशन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं. जिनके बारे में बात नहीं करना चाहते हैं. प्राइवेसी बनाए रखते हुए पार्टनर पर भरोसा करना चाहते हैं. DADT के जरिए तय किया जाता है कि किन चीजों के बारे में बात करेंगे और किन चीजों के बारे में नहीं. इससे रिलेशन को स्ट्रांग बनाना इजी होता है. एकदूसरे से बिना मन-मुटाओ के ज्यादा झगड़ा ना करते हुए खुश रह सकते हैं.

मौर्डन जनरेशन को पसंद ये ट्रेंड्स

आज के समय की मौर्डन जनरेशन को DADT ट्रेंड्स बहुत पसंद आ रहें हैं और वह इस तरह के ट्रेंड्स को बहुत जल्दी अपनाना चाहती हैं. क्योंकि इसका कनेक्शन कोम्प्रोमाईज और प्राइवेसी से है. जिसकी जरूरत आज के समय में रिलेशनशिप में सबसे ज्यादा पड़ती है. इस कोम्प्रोमाईज के अंदर कपल्स डिसाइड करते हैं कि एक- दूसरे की पर्सनल लाइफ के कुछ पार्ट्स के बारे में बात नहीं करेंगे. वे एक-दूसरे से ये नही पूछेंगे की किसके साथ अपना टाइम स्पेंड कर रहें हैं और किसके साथ रोमांटिक रिश्ते में हैं. उन्हें अपने रिलेशन में पर्सनल स्पेस भी चाहिए. DADT में कोम्प्रोमाईज करके एकदूसरे की प्राइवेसी की इज्जत करते हैं और ओपन रिलेशनशिप बनाए रखते हैं.

ना कुछ पूछो ना कुछ बताओ

कुछ कपल ऐसे भी होते हैं जो अपने रिलेशन में कुछ भी क्लियर नहीं रखना चाहते हैं. वो एक दूसरे की पर्सनल लाइफ में दखल नहीं देते हैं. ना कुछ पूछना, ना ही कुछ बताना, इसी को ‘डोंट आस्क, डोंट टेल’ कहते हैं. इस तरह के कपल्स का मानना हैं कि ऐसा करके एक-दूसरे की फ्रीडम और रिलेशन को भी बचा सकते हैं और ऐसा करके वो ट्रांसपेरेंसी से ज्यादा प्राइवेसी और रिलेशन की खुशी को इम्पोर्टेन्स देते हैं. ताकि उनके बीच इसको लेकर झगड़ा ना हो. रिश्ते में शांति बने रहे. इसलिए एक दूसरे पर किसी तरह का दबाव नहीं डालते हैं. तभी वो एक दूसरे से खुलकर बात कर पाते हैं.

सोच एक जैसी होना जरुरी

हालांकि हर किसी को यह ट्रेंड पसंद नहीं आता है. इस ट्रेंड को फौलो करने के लिए पार्टनर की सोच एक जैसी होनी चाहिए. आमतौर पर माना जाता है कि अगर कपल की आदतें एकदूसरे से मिलती जुलती है, तो उनका रिलेशन ज्यादा स्ट्रांग होता है. क्योंकि समान इंट्रेस्ट होने के कारण झगड़े होने के चांस कम होते हैं. हालांकि, सेम पर्सनैलिटी होना रिलेशनशिप को सफल बनाए इसकी कोई गैरंटी नहीं है. एक अच्‍छा लाइफ पार्टनर अपने पार्टनर की सोच, विचार, पर्सनल स्‍पेस, करियर, सपने आदि की इज्‍जत करता है. वे ओपन माइंडेड होते हैं और उन्‍हें दुनिया से अधिक अपने पार्टनर की फिक्र होती है. वे अपने पार्टनर को लेकर जजमेंटल नहीं होते.

A. R. Rahman की तबीयत बिगड़ने के बाद पत्नी सायरा ने एक्स वाइफ ना कहने की लगाई गुहार…

A. R. Rahman : ए आर रहमान जो कि एक प्रसिद्ध सिंगर म्यूजिक डायरेक्टर और औस्कर विजेता, कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित प्रसिद्ध हस्ती हैं. ऐसे में जब उनकी तलाक की खबर आई तो सोशल मीडिया पर बवाल मच गया और तरहतरह की खबरें आने लगी इसके बाद ए आर रहमान ने इस तरह की बेवजह खबरों पर कड़ा एक्शन लेने की बात कही तो उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में चर्चा होनी कम हो गई.

लेकिन ए आर रहमान की वाइफ को एक्स वाइफ कहने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ.इसी बीच रहमान के सीने में दर्द के चलते उनको चेन्नई के अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां पर कुछ टेस्ट के बाद उन्हें डिस्चार्ज भी कर दिया गया . लेकिन इसी बीच ए आर रहमान की वाइफ सायरा बानो ने एक न्यूज चैनल को चौंकाने वाला बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि प्लीज मुझे एक्स वाइफ ना कहे.

मेरा रहमान से तलाक नहीं हुआ है हम अभी भी पतिपत्नी हैं. पिछले 2 सालों से मेरी तबियत खराब होने की वजह से हम अलग हुए हैं , क्योंकि मैं उनको अपनी बीमारी की वजह से स्ट्रेस नहीं देना चाहती. रहमान अब पहले से ठीक है. मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूं. हम भले ही अलग हुए हैं, लेकिन रहमान को लेकर चिंता लगी रहती है ओर मैं हमेशा उनके लिए दुआ करती रहती हूँ. आज भले ही हम अलग है लेकिन हमारे बीच प्यार भरा रिश्ता आज भी बरकरार है . इसलिए प्लीज आप लोग मुझे उनकी एक्स वाइफ न बोले .ये आप लोगों से मेरी गुजारिश है.

Couple Goals : मैंने अपने एक दोस्त को प्रपोज किया, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया…

Couple Goals :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी उम्र 20 साल है. कुछ महीनों पहले ही मुझे एहसास हुआ कि मैं लगातार अपने एक दोस्त के लिए कुछ फील करने लगी हूं. मैं उस से बात करने के बहाने ढूंढ़ने लगी, उस के मैसेजेस का इंतजार करने लगी और न चाहते हुए भी उसे चाहने लगी. मुझ से अपनी फीलिंग्स ज्यादा दिन छिपाई नहीं गई तो मैं ने उस से सबकुछ कह दिया. उस ने ज्यादा कुछ तो नहीं कहा लेकिन यह कह दिया कि उस के मन में भी मेरे लिए कुछ है. अगले दिन जब हम मिले तो उस ने इस बारे में कोई बात ही नहीं की तो मैं ने भी कुछ नहीं कहा. उस के अगले दिन भी हम ने बात की, लेकिन एक दूसरे के प्रति फीलिंग्स की नहीं. इस बात को 2 हफ्तों से ज्यादा हो गए हैं. अब मेरे लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा है. उस के इतना पास हो कर भी मैं इतनी दूर हूं. मैं क्या करूं, समझ नहीं आता?

जवाब-

लड़कों का स्वभाव चाहे कैसा भी हो लेकिन जब वे किसी लड़की को पसंद करते हैं तो उस से अपनी फीलिंग्स का इजहार करने से खुद को नहीं रोक पाते. आप के इजहार करने के इतने दिनों बाद भी अगर वह आप से इस विषय पर बात नहीं कर रहा तो इस का मतलब साफ है कि वह बात करना नहीं चाहता. आप की कुलबुलाहट जायज है लेकिन वह लड़का आप में इंटरैस्टेड नहीं है, यह भी झुठलाया नहीं जा सकता.

आजकल वैसे भी मैसेजेस पर लोग जो कहते हैं, जरूरी नहीं कि वह सच ही हो. हां, आप एक बार हिम्मत कर के उस से इस बारे में बात कर के देख लीजिए. बाद में पछताने से बेहतर है कि एक बार में मसला सुलझा लिया जाए. यदि वह सचमुच इंटरैस्टेड न हो तो आप भी अपनी फीलिंग्स को कंट्रोल करने की कोशिश कीजिए, नहीं तो आप को केवल दुख ही पहुंचेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें-

submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Famous Hindi Stories : लुकाछिपी

Famous Hindi Stories : एकतरफ दाल का तड़का तैयार करते और दूसरी तरफ भिंडी की सब्जी चलाते हुए मेरा ध्यान बारबार घड़ी की तरफ जा रहा था. मन ही मन सोच रही थी कि जल्दी से रोटियां सेंक लेती हूं. याद है मुझे जतिन के स्कूल से लौटने से पहले मैं रोटियां सेंक कर रख लेती थी फिर हम मांबेटे साथ में लंच करते. जिस दिन घर में भिंडी बनती वह खुशी से नाचता फिरता.

एक दिन तो बालकनी में खड़ा हो चिल्लाचिल्ला कर अपने दोस्तों को बताने लगा, ‘‘आज मेरी मां ने भिंडी बनाई है.’’

आतेजाते लोग भी उस की बात पर हंस रहे थे और मेरा बच्चा बिना किसी की परवाह किए खुश था कि घर में भिंडी बनी है. यह हाल तब था जब मैं हफ्ते में 3 बार भिंडी बनाती थी. खुश होने के लिए बड़ी वजह की जरूरत नहीं होती, यह बात मैं ने जतिन से सीखी.

अब साल में एक ही बार आ पाता है और वह भी हफ्तेभर के लिए. इतने समय में न आंखें भरती हैं उसे देख कर और न ही कलेजा. कितना कहता है कि मेरे साथ चलो. मैं तो चली भी जाऊं लेकिन नरेंद्र तैयार नहीं होते. कहते हैं कि अपने घर में जो सुकून है वह और कहीं नहीं, कोई पूछे इन से बेटे का घर अपना घर नहीं होता क्या. किसी तरह के बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते.

खाना बन गया, खुशबू अच्छी आ रही थी. शिप्रा को मेरी बनाई दाल बहुत पसंद है इसलिए जब बच्चे आते हैं तो मैं दोनों की पसंद का खयाल रखते हुए खाना बनाती हूं. उम्र के साथ शरीर साथ नहीं देता मगर बच्चों के लिए काम करते हुए थकान महसूस ही नहीं होती. सारा काम निबटा डाइनिंगटेबल पर जा बैठी और शाम के लिए मटर छीलने लगी. नरेंद्र बाहर बरामदे में उस अखबार को फिर से पढ़ रहे थे जिसे वे सुबह से कम से कम 4 बार पढ़ चुके थे. सच तो यह है कि यह अखबार सिर्फ बहाना है वे बरामदे में बैठ कर बच्चों का इंतजार कर रहे थे. पिता हैं न, खुल कर अपनी भावना जता नहीं सकते.

जब जतिन छोटा था तो एक खास आदत थी मेरी, जतिन के स्कूल से लौटने से पहले मेन डोर खोल कर घर के किसी कोने में छिप जाती.

‘‘मां. कहां हो मां?’’ कहता हुआ जतिन घर में दाखिल होता. बैग एक तरफ रख मुझे खोजता और मैं… मैं बेटे की आवाज सुन तृप्त हो जाती… एक सुकून मिलता कि मेरे बच्चे को घर में घुसते ही सब से पहले मेरी याद आती है.

जतिन मुझे देखता और गले लग जाता, ‘‘मैं तुम्हें ढूंढ़ रहा था मां, तुम्हारे बिना मेरा कहीं मन नहीं लगता.’’

‘‘मेरा भी तेरे बिना मन नहीं लगता मेरे बच्चे.’’

उस एक पल में हम मांबेटे एकदूसरे के प्यार को कहीं गहराई में महसूस करते. यह हमारा रूटीन था. जब से जतिन ने स्कूल जाना शुरू किया तब से कालेज में आने तक. बहुत बार नरेंद्र, मांबेटे को इस खेल के लिए चिढ़ाते, ‘‘अब भी तुम मांबेटे वही बचकाना खेल खेलते हो… पागल हो दोनों.’’

उन की बात पर मैं बस मुसकरा कर रह जाती और जतिन प्यार से मेरे गले में लग जाता. यह सिर्फ खेल नहीं हम दोनों का एकदूसरे के लिए प्यार जताने का तरीका था.

जतिन बचपन से ही दूसरे बच्चों से अलग था. पढ़ने में तेज, सम?ादार और उम्र से ज्यादा जिम्मेदार. उस ने कभी न तो दूसरे बच्चों की तरह जिद की और न ही कभी परेशान किया. मांबेटे की कुछ अलग ही बौंडिंग थी, बिना कहे एकदूसरे की बात समझ जाते. पढ़ीलिखी होने के बावजूद मैं ने जतिन को अच्छी परवरिश देने के लिए नौकरी न करने का फैसला लिया था और अपना सौ प्रतिशत दिया भी.

जतिन के स्कूल से लौटने के बाद मेरा सारा वक्त उसी के लिए था. साथ खाना और खाते हुए स्कूल की 1-1 बात जब तक नहीं बता लेता जतिन को चैन नहीं मिलता.

अपनी टीनऐज में भी दोस्तों के साथ होने वाली बातें मुझसे साझा करता और मैं बिना टोके सुनती. बाद में उन्हीं बातों में क्या सही है और क्या गलत, उसे बता देती. वह मेरी हर बात मानता भी था.

‘‘बात हुई क्या जतिनशिप्रा से?’’ नरेंद्र की आवाज से मैं वर्तमान में लौटी.

‘‘हां, शिप्रा से बात हुई थी 3 बज जाएंगे उन्हें आतेआते. आप खाना खा लो.’’

‘‘नहीं, बच्चों के साथ ही खाऊंगा. अच्छा सुनो. तुम ने अपने छिपने की जगह तो सोच ली होगी न. आज भी तुम्हारा लाड़ला तुम्हें ढूंढ़ेगा?’’

नरेंद्र की बात में एक तरह का तंज था जिस का जवाब मेरे पास नहीं था. क्या हम मांबेटे का प्यार इस उम्र में प्रमाण मांगता है? पता नहीं मैं खुद को तर्क दे रही थी या सचाई से मुंह मोड़ रही थी. जानती हूं कि वह उस का बचपन था, अब वह एक जिम्मेदार पति और पिता बन चुका है.

शिप्रा, जतिन के साथ कालेज में पढ़ती थी. कालेज के आखिरी ऐग्जाम के बाद जतिन ने अपने खास दोस्तों को लंच पर बुलाया. शिप्रा भी आई थी. इस से पहले मैं ने जतिन से बाकी दोस्तों की तरह ही शिप्रा का जिक्र सुना था.

जब बाकी सब मस्ती कर रहे थे, शिप्रा मेरे पास किचन में आ गई, ‘‘आंटी, कुछ हैल्प करूं?’’

उस की आवाज में अनजाना सा अपनापन लगा.

‘‘नहीं बेटा, सब हो गया तुम चलो सब के साथ ऐंजौय करो.’’

मगर वो मेरे साथ रुकी रही.

खापी कर, मस्ती कर के सब चले गए. मैं रसोई समेट रही थी. जतिन मेरे साथ कांच के बरतन पोंछने लगा.

‘‘हां बोल.’’

‘‘मां वह…’’

‘‘करती हूं पापा से बात, वैसे मुझे पसंद

है शिप्रा.’’

‘‘मां… आप कैसे समझाऊं?’’

‘‘मां हूं, तेरी आंखों में देख तेरे मन का हाल जान लेती हूं. कल ही जान गई थी कि किसी खास दोस्त को बुलाया है तूने मुझ से मिलवाने के लिए.’’

‘‘मां तुम दुनिया की सब से अच्छी मां हो… मुझे सब से ज्यादा जानती और समझती हो,’’ जतिन की बात सुन पहली बार मुझे कुछ खटका.

‘‘सब से ज्यादा प्यार मैं करती हूं,’’ यह बात शिप्रा को कैसी लगेगी? वैसे भी आजकल की लड़कियों को सिर्फ पति चाहिए होता है मम्माज बौय बिलकुल नहीं. मेरा जतिन तो सच में मम्माज बौय था.

अचानक कुछ दिन पहले बड़ी बहन की कही बात याद आ गई, ‘‘देख सुधा, जतिन तुझे बेहद प्यार करता है, ऐसे में जब उस की शादी होगी तब वह अपनी पत्नी को हर वक्त या तो तुझ से कंपेयर करेगा या तुझे तवज्जो ज्यादा देगा. दोनों ही हालात में उस की गृहस्थी खराब होगी. ध्यान रखना, तेरा प्यार उस की गृहस्थी न बरबाद कर दे.’’

बहन के कहे शब्द मेरे कलेजे में फांस की तरह चुभ गए. कहीं सच में मैं अपने बच्चे की गृहस्थी में दरार का कारण न बन जाऊं.

कालेज पूरा हो चुका था और जल्द ही जतिन को अच्छी नौकरी मिल गई. सैकड़ों मील दूर बैंगलुरु में. वहां से जतिन जब आता तो मैं दरवाजा खुद खोलती जिस से वह न मझे पुकार पाता और न ही खोजने की जरूरत पड़ती. इस तरह मैं ने खुद ही लुकाछिपी का खेल बंद कर दिया था.

शिप्रा के साथ जतिन की शादी हो गई. शिप्रा की समझदारी और रिश्तों के लिए सम्मान देख मेरे मन का संशय जाता रहा. मेरी कोई बेटी नहीं थी शायद इसलिए मैं जतिन से ज्यादा शिप्रा को महत्त्व देने लगी.

मेरे मन में एक बात और बैठी हुई थी कि जतिन तो मेरा अपना बेटा है ही, शिप्रा के साथ मु?ो रिश्ता मजबूत करना है. मैं कब शिप्रा को पहले और जतिन को बाद में रखने लगी, पता ही नहीं चला.

सब ठीक चल रहा है. बच्चे अपनी जिंदगी में खुश हैं, तरक्की कर रहे हैं. हमारा पूरा ध्यान रखते हैं. कहीं, किसी भी तरह की शिकायत की गुंजाइश नहीं है फिर भी मन का कोई कोना खाली है.

घड़ी पर नजर गई. 2 बज गए थे. एक बार शिप्रा को फिर फोन करती हूं.

‘‘हैलो मां, आप को ही कौल करने वाली थी, अभी 1 घंटा लग जाएगा हमें. आप दोनों खाना खा लो. मैडिसिन भी लेनी होती है न.’’

उस की आवाज में बेटी जैसा प्यार और मां जैसा अधिकार था.

‘‘अच्छा ठीक है.’’

‘‘दादी… दादी, मुझे पास्ता खाना है.’’

3 साल की वृंदा पीछे से बोली.

‘‘ नो वृंदा… दादी ने दालराइस और भिंडी बनाई है, हम वही खाएंगे,’’ जतिन की बात सुन मैं चौंक गई.

‘‘तुझे कैसे पता चला?’’

‘‘मां, बेटा हूं तुम्हारा. यह बात अलग है कि अब तुम मुझ से ज्यादा शिप्रा और वृंदा को प्यार करती हो और…’’ कहता हुआ जतिन चुप हो गया.

‘‘और क्या?’’

‘‘कुछ नहीं मां, तुम और पापा खाना खा लो.’’

बच्चों के बिना खाना खाने का जरा मन नहीं था लेकिन दवाई लेनी थी तो 2 बिस्कुट खा कर ले ली. मैसेज डाल दिया कि दवा ले ली है पर खाना साथ ही खाएंगे.

मन था कि एक जगह रुकता ही नहीं था, कभी जतिन कभी शिप्रा तो कभी वृंदा तक पहुंच रहा था. कहते हैं कि मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता है बस ऐसे ही मुझे मेरी वृंदा प्यारी है. कोई दिन नहीं जाता जब वह मु?ा से वीडियो कौल पर बात नहीं करती. अब तो साफ बोलने लगी है, जब तुतलाती थी और टूटे शब्दों में अपनी बात सम?ाती थी तब भी हम दादीपोती देर तक बातें करते थे.

शिप्रा हंसा करती कि ‘‘कैसे आप इस की बात झट से समझ लेती हो, हम दोनों तो समझ ही नहीं पाते.’’

वृंदा के जन्म के वक्त हम बच्चों के पास ही चले गए थे. 4 महीने की थी वृंदा जब मैं उसे छोड़ कर वापस आई थी. एअरपोर्ट तक रोती चली आई थी. जतिन ने बहुत जिद की थी रुकने के लिए लेकिन नरेंद्र नहीं माने.

दरवाजे की घंटी से ध्यान टूटा. लगता है बच्चे आ गए. तेज चलने की कोशिश में पैर मुड़ गया और मैं लड़खड़ा कर वहीं की वहीं बैठ गई. नरेंद्र के दरवाजा खोलते ही वृंदा उन की गोद में चढ़ न जाने क्याक्या बताने लगी. सफेद रंग के टौप और छोटी सी लाल स्कर्ट में बिलकुल गुडि़या लग रही थी.

‘‘पड़ोस वाले अंकल मिल गए. जतिन उन से बात कर रहे हैं.’’  शिप्रा ने आगे बढ़ पैर छूए.

‘‘शिप्रा देखना जरा अपनी मां को… पैर में ज्यादा तो नहीं लगी, दरवाजा खोलने आते हुए पैर मुड़ गया.’’

पैर हिलाया भी नहीं जा रहा था.

‘‘अरे मां, आप के पैर पर स्वैलिंग आने लगी है. चलो, अंदर बैडरूम में पैर फैला कर बैठो. मैं स्प्रे कर देती हूं. फिर भी आराम नहीं मिला तो डाक्टर के पास चलेंगे.’’

मैं अंदर नहीं जाना चाहती थी, जतिन नहीं आया था न अब तक और मैं उस की एक झलक के लिए उतावली थी. लेकिन शिप्रा के सामने मेरी एक नहीं चली.

शिप्रा ने जैसे ही मुझे बैड पर बैठा स्प्रे किया, तभी बाहर से जतिन की आवाज आई…

‘‘मां… कहां हो मां.’’

एक पल के लिए वक्त रुक गया. मेरा जतिन मुझे पुकार रहा था. वही मेरा छोटा सा बेटा. आज भी उसे घर में घुसते ही सब से पहले मेरी याद आई थी. मेरा मातृत्व तृप्त हो गया. बिना जवाब दिए चुपचाप बैठी रही. शिप्रा सम?ा गई, उस ने भी जवाब नहीं दिया.

‘‘मैं तुम्हें ढूंढ़ रहा था मां, तुम्हारे बिना मेरा कहीं मन नहीं लगता.’’

‘‘मेरा भी तेरे बिना मन नहीं लगता मेरे बच्चे,’’ मैं ने अपनी दोनों बांहें फैला दीं और जतिन मुझ से लिपट गया.

‘‘मेरा बच्चा. तू कितना भी बड़ा हो जाए, मेरे लिए वही स्कूल से लौटता मेरा बेटा रहेगा हमेशा.’’

‘‘फिर तुम ने मेरे साथ लुकाछिपी खेलना क्यों बंद कर दिया? जानती हो मैं कितना मिस करता हूं. ऐसा लगता है कि मेरी मां मुझे भूल गई, अब बस शिप्रा की मां और वृंदा की दादी बन कर रह गई हो. मां मैं कितना भी बड़ा हो जाऊं तुम्हारी ममता का पहला हकदार मैं ही रहूंगा. जानती हो न यह लुकाछिपी सिर्फ खेल नहीं था.’’

‘‘बेटा मैं डरने लगी थी कि कहीं मेरी जरूरत से ज्यादा ममता तेरे और शिप्रा के रिश्ते के बीच न आ जाए लेकिन यह नहीं सोचा कि मेरे बच्चे को कैसा लगेगा.’’

‘‘किसी रिश्ते का दूसरे रिश्ते से कोई कंपेरिजन नहीं है. मां तो तुम ही हो न मेरी. तुम ने अच्छी सास और दादी बनने के लिए अपने बेटे को इग्नोर कर दिया. कितने साल तरसा हूं मैं… ऐसा लगता था सच में मेरी मां कहीं खो गई है. प्रौमिस करो आज के बाद हमारा लुकाछिपी का खेल कभी बंद नहीं होगा,’’ जतिन ने मेरी तरफ अपनी हथेली बढ़ा दी और मैं ने अपना हाथ उस के हाथ पर रख दिया.

राइटर-  संयुक्ता त्यागी

Hindi Folk Tales : रैगिंग का रगड़ा – कैसे खत्म हुई शहरी बनाम होस्टल की लड़ाई

Hindi Folk Tales :  बात 70 के दशक की है. उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तकनीकी और गैरतकनीकी संस्थानों में बिहारी छात्रों की संख्या बहुत अधिक होती थी. उन के बीच आपस में एकता और गुटबंदी भी थी. शहर में उन की तूती बोलती थी. इसलिए उन से कोई पंगा लेने का साहस भी नहीं करता था. यहां तक कि नए बिहारी छात्रों की रैगिंग भी दूसरे प्रदेशों के सीनियर छात्र नहीं ले पाते थे. अगर बिहारी छात्रों की रैगिंग होती भी थी तो बिहार के ही सीनियर छात्र करते थे.

इत्तफाक से शहर के कुछ डौन भी भोजपुर से आए थे और विश्वविद्यालय के छात्र संगठन में बिहारियों की अच्छी भागीदारी थी. उन्हीं दिनों मैं ने भी एक तकनीकी संस्थान में नामांकन कराया था और शहर के एक होटल में कमरा ले कर रहता था. तब इलाहाबाद में कई होटल ऐसे थे जिन में मासिक किराए पर खाने और रहने की व्यवस्था थी. मैं जिस होटल में रहता था उस में 150 रुपए में पंखायुक्त कमरा, सुबह की चाय और दोनों वक्त का भोजन शामिल था. नाश्ता बाहर करना होता था.

मैं मोतीहारी के एक कालेज से आया था. जहां से कई छात्र इलाहाबाद आए थे. उन में से अधिकांश होस्टल में रहते थे. नैनी स्थित एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट में भी बिहार के काफी छात्र थे. सब आपस में मिलतेजुलते रहते थे. उन दिनों पौकेट में चाकू रखने का बड़ा फैशन था. हम भी रखते थे.

एक दिन जब मैं अपने कालेज के होस्टल में मोतीहारी के मित्रों से मिलने गया हुआ था तो पता चला कि होस्टल के एक दादा ने रैगिंग के नाम पर एक नए लड़के की बहन की तसवीर छीन ली है और उस के बारे में अश्लील टिप्पणियां करता रहता है. लड़का पूरी बात बतातेबताते रोने लगा. हमें गुस्सा आया. रैगिंग का यह क्या तरीका है.

हम 4-5 लोग कथित दादा के कमरे में गए. चाकू निकाल कर उस की गरदन पर सटा दिया और उस लड़के की बहन की तसवीर तुरंत वापस लौटाने को कहा. उस ने तसवीर लौटा दी और बाद में देख लेने की धमकी दी. हम ने कहा बाद में क्यों, अभी देख लो और उस की जम कर पिटाई कर वहां से चल दिए. थोड़ी दूर जाने के बाद अरुण सिंह नाम के एक साथी ने कहा कि फिर होस्टल चलते हैं. मैं ने उसे समझाया कि कोई कांड करने के बाद घटनास्थल पर भूल कर भी नहीं जाना चाहिए, लेकिन वह ताव में आ गया. उस की जिद के कारण हम दोबारा होस्टल पहुंचे. तब तक माहौल काफी गरम हो चुका था. होस्टल के लड़के उत्तेजित थे. हमें देखते ही वे हम पर टूट पड़े. हमारी पिटाई हो गई और हमें कालेज के प्रिंसिपल के पास ले जाया गया. प्रिंसिपल के चैंबर के बाहर हम खड़े थे. लड़के इधरउधर खड़े थे, तभी इलाहाबाद के कुछ स्थानीय लड़के मेरे पास आए और बोले, ‘बौस, हमारे घेरे में धीरेधीरे चारदीवारी की ओर चलो और फांद कर निकल जाओ. पुलिस आने वाली है.’ तरकीब काम आ गई. मैं धीरे से चारदीवारी फांद कर सरक गया. अपने ठिकाने पर जाना खतरे से खाली नहीं था इसलिए गलीगली होता हुआ लोकनाथ पहुंचा जहां मेरे एक मित्र मंटूलाल रहते थे. उन के घर पहुंचा तो बिहार के कई छात्र चिंतित अवस्था में बैठे थे. उन्हें घटना की जानकारी मिल चुकी थी.

अब परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति तैयार की गई. अजीत लाल ने यह सुझाव दिया कि होस्टल के युवा लड़के शहर में जहां भी दिखें उन की पिटाई की जाए और अपना आवागमन गलियों के जरिए किया जाए. इस बीच शहरी इलाके के कई युवक वहां पहुंचे और उन्होंने इस लड़ाई में हर तरह से साथ देने का वादा किया. मेरे होटल में लौटने पर रोक लग गई. हम पास के एक बिहारी लौज में रहने लगे. उस दिन हम लोकनाथ के इलाके से निकले ही थे कि एक शहरी लड़के ने सूचना दी कि होस्टल के 2 लड़के पास के सिनेमाहौल में टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े हैं.

हम तुरंत सिनेमाहौल पहुंचे. उन्हें खींच कर बाहर ले आए. इलाहाबाद की सड़क पर मारपीट करना आसान नहीं था. हम ने एक तरकीब लगाई. उसे पीटते हुए कहा, ‘साले, छोकरीबाजी करता है.’

तभी हमारे ग्रुप के दूसरे लड़के भी वहां आ गए और शुरू हो गए देदनादन उसे बजाने में. इस बीच भीड़ इकट्ठी हो गई. लोगों को पता चला कि कुछ मजनुओं की पिटाई हो रही है तो उन्होंने भी उन्हें पीटना शुरू किया. वे अपनी सफाई देते रहे और पिटते रहे. हम धीरे से खिसक लिए और उन की पिटाई चलती रही. इस बीच शहरी लड़कों की सूचना पर हम ने उस शाम 8-10 लड़कों की इसी तर्ज पर पिटाई कर दी. अब लड़ाई शहरी बनाम होस्टल में तबदील हो चुकी थी. हम लोगों की चारों तरफ तलाश हो रही थी, लेकिन हम छापामार तरीके से हमला कर फिर गायब हो जा रहे थे.

अगले दिन से होस्टल के लड़कों का शहर में निकलना बंद हो गया. वे होस्टल में नजरबंद हो गए. इलाहाबाद के शहरी क्षेत्र के लड़कों ने होस्टल पर नजर रखी थी और हमें वहां की तमाम गतिविधियों की सूचना मिल रही थी. होस्टल के दादाओं में एक ऐसा था जो हमारे ग्रुप के एक वरिष्ठ साथी मलय दा का भानजा था. मलय दा पूरी तरह हमारे साथ थे और उसे किसी तरह की रियायत देने के खिलाफ थे, लेकिन हम ने तय किया था कि उसे बख्श देंगे. उसे भी पता था कि जब तक वह हमला नहीं करेगा हम उस पर हाथ नहीं उठाएंगे. वह किसी तरह हिम्मत कर के होस्टल से निकला और शहर के एक खुंख्वार डौन से संपर्क कर उसे अपने पक्ष में कर लिया.

हमें जानकारी मिली तो हम भी डौन लोगों से संपर्क करने लगे. शहरी खेमे का होने के कारण अधिकांश गैंगस्टर हमारे पक्ष में आ गए. सिर्फ एक डौन होस्टल वालों के पक्ष में था. मेरे होटल के सामने एक लौज में हमारे गु्रप के कई लड़के रहते थे. वही हमारा केंद्र बना हुआ था.

दोपहर में कुछ शहरी लड़कों ने सूचित किया कि होस्टल में कथित डौन के साथ सैकड़ों लड़कों की मीटिंग चल रही है. वे हमारे अड्डे पर हमला करने की तैयारी में हैं. प्रशांत और अजीत लाल ने पूछा, ‘‘तुम कितने लोग हो.’’

उस ने बताया, ‘‘हम 5-6 लोग हैं.’’

’’ठीक है, ऐसा करो कि 2 लोग मीटिंग में घुस जाओ और अफवाह फैलाओ कि हम लोग छत पर बंदूकराइफल और बम ले कर बैठे हैं. आज भयंकर कांड होने वाला है. 2 लोग होस्टल से यहां तक बीच में खड़े रहना और इसी बात को दोहराना.’’

तरकीब काम कर गई. सभास्थल पर ही इस अफवाह ने इतना असर दिखाया कि 70 फीसदी छात्र किसी न किसी बहाने खिसक गए. दूसरे गुट ने जब तेजी से आ कर यही बात दोहराई तो फिर भगदड़ मच गई. शेष बचे सिर्फ डौन और मलय चाचा के रिश्तेदार. वे भी हमारे केंद्र से 100 गज की दूरी पर तीसरे प्रोपेगंडा एजेंट के आगे घिघियाते हुए बोले, ‘‘उन लोगों को जा कर कहो कि हम लोग समझौता करना चाहते हैं.’’

उस ने आ कर बताया कि उन की हालत खराब है. इस बीच शहर के सब से बड़े डौन हमारी सुरक्षा में हमारे अड्डे से थोड़ी दूरी पर जीप लगा कर हथियारों के साथ मौजूद थे. कुछ बड़े डौन हमारे बीच आ कर बैठे थे. यूनिवर्सिटी के कुछ बड़े छात्रनेता भी हमारे बीच थे. कहा गया कि उन्हें बुला लाओ. उन के पक्ष के डौन तो अपने बड़ों की उस इलाके में चहलकदमी देख कर खिसक लिए. मलय चाचा के भानजे अकेले लौज में आए. हम ने समझौते की कई शर्तें रखीं. पहली, मुकदमा बिना शर्त वापस हो. दूसरी, होस्टल के वे लड़के जो हमारे साथ थे, उन्हें सम्मान के साथ वापस बुलाया जाए. उन पर कालेज प्रबंधन किसी तरह की दंडात्मक कार्यवाही न करे.

बौस लोगों ने भी अपनी तरफ से शहर में शांति बनाए रखने के लिए एक शर्त रखी कि दोनों पक्ष इलाहाबाद शहर के अंदर आपस में टकराव नहीं करेंगे. होस्टल के दादा लड़ाई हार चुके थे इसलिए हर शर्त मानने के अलावा उन के पास कोई चारा नहीं था. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि पहले दिन होस्टल की घटना के बाद मोतीहारी के जो लड़के होस्टल छोड़ कर भाग गए थे. वे वापस लौटने के बाद होस्टल के बौस बन गए. पुराने बौस लोगों की हवा निकल गई. इस घटना के बाद शहर के अन्य संस्थानों में भी रैगिंग की परंपरा में कमी आई.

इधर किसी ने मेरे घर तक इस घटना की खबर पहुंचा दी और मुझे तुरंत इलाहाबाद छोड़ कर वापस लौट आने का फरमान सुना दिया गया. इलाहाबाद में लंबे समय तक यह लड़ाई चर्चा का विषय बनी रही.

Romantic Hindi Stories : क्योंकि वह अमृत है…:

Romantic Hindi Stories : सरला ने क्लर्क के पद पर कार्यभार ग्रहण किया और स्टाफ ने उस का भव्य स्वागत किया. स्वभाव व सुंदरता में कमी न रखने वाली युवती को देख कर लगा कि बनाने वाले ने उस की देह व उम्र के हिसाब से उसे अक्ल कम दी है.

यह तब पता चला जब मैं ने मिस सरला से कहा, ‘‘रमेश को गोली मारो और जाओ, चूहों द्वारा क्षतिग्रस्त की गई सभी फाइलों का ब्योरा तैयार करो,’’ इतना कह कर मैं कार्यालय से बाहर चला गया था.

दरअसल, 3 बच्चों के विधुर पिता रमेश वरिष्ठ क्लर्क होने के नाते कर्मचारियों के अच्छे सलाहकार हैं, सो सरला को भी गाइड करने लगे. इसीलिए वह उस के बहुत करीब थे.

अपने परिवार का इकलौता बेटा मैं सरकार के इस दफ्तर में यहां का प्रशासनिक अधिकारी हूं. रमेश बाबू का खूब आदर करता हूं, क्योंकि वह कर्मठ, समझदार, अनुशासित व ईमानदार व्यक्ति हैं. अकसर रमेश बाबू सरला के सामने बैठ कर गाइड करते या कभीकभी सरला को अपने पास बुला लेते और फाइलें उलटपलट कर देखा दिखाया करते.

उन की इस हरकत पर लोग मजाक करने लगे, ‘‘मिस सरला, अपने को बदल डालो. जमाना बहुत ही खराब है. ऐसा- वैसा कुछ घट गया तो यह दफ्तर बदनाम हो जाएगा.’’

असल में जब भी मैं सरला से कोई फाइल मांगता, उस का उत्तर रमेशजी से ही शुरू होता. उस दिन भी मैं ने चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा मांगा तो वह सहजता से बोली, ‘‘रमेशजी से अभी तैयार करवा लूंगी.’’

हर काम के लिए रमेशजी हैं तो फिर सरला किसलिए है और मैं गुस्से में कह गया, ‘रमेश को गोली मारो.’ पता नहीं वह मेरे बारे में क्याक्या ऊलजलूल सोच रही होगी. मैं अगली सुबह कार्यालय पहुंचा तो सरला ने मुझ से मिलने में देर नहीं की.

‘‘सर, मैं कल से परेशान हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मुसकराते हुए मैं ने उसे खुश करने के लिए कहा, ‘‘फाइलों का ब्योरा तैयार नहीं हुआ? कोई बात नहीं, रमेशजी की मदद ले लो. सरला, अब तुम स्वतंत्र रूप से हर काम करने की कोशिश करो.’’

वह मुझे एक फाइल सौंपते हुए बोली, ‘‘सर, यह लीजिए, चूहों द्वारा कुतरी गई फाइलों का ब्योरा, पर मेरी परेशानी कुछ और है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कल आप ने कहा था कि रमेशजी को गोली मारो. सर, मैं रातभर सोचती रही कि रमेशजी में क्या खराबी हो सकती है जिस की वजह से मैं उन को गोली मारूं. पहेलीनुमा सलाह या अधूरे प्रश्न से मैं बहुत बेचैन होती हूं सर,’’ वह गंभीरतापूर्वक कहती गई.

तभी मेरी मां की उम्र की एक महिला मुझ से मिलने आईं. परिचय से मैं चौंक गया. वह सरला की मां हैं. जरूर सरला से संबंधित कोई शिकायत होगी. यह सोच कर मैं ने उन्हें सादर बिठाया. उन्होंने मेरे सामने वाली कुरसी पर बैठने से पहले अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर कर उस से जाने को कहा तो वह केबिन से निकल गई.

‘‘सर, मैं एक प्रार्थना ले कर आप को परेशान करने आ गई,’’ सरला की मां बोलीं.

‘‘हां, मांजी, आप एक नहीं हजार प्रार्थनाएं कर सकती हैं,’’ मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘बताइए, मांजी.’’

वह बोलीं, ‘‘सर, मेरी सरला कुछ असामान्य हरकतें करती है. उस के सामने कोई बात अधूरी मत छोड़ा कीजिए. कल घर जा कर उस ने धरतीआसमान उठा कर जैसे सिर पर रख लिया हो. देर रात तक समझानेबुझाने के बाद वह सो पाई. बेचैनी में बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें करती है. दरअसल, मैं उसे बहुत चाहती हूं, वह मेरी जिंदगी है. मैं ने सोचा कि यह बात आप को बता दूं ताकि कार्यालय में वह ऐसावैसा न करे.’’

मैं ने आश्चर्य व धैर्यता से कहा, ‘‘मांजी, आप की बेटी का स्वभाव बहुत कुछ मेरी समझ में आ गया है. पिछले सप्ताह से मैं उसे बराबर रीड कर रहा हूं. असहनीय बेचैनी के वक्त वह अपना सिर पटकती होगी, अपने बालों को भींच कर झकझोरती होगी, चीखतीचिल्लाती होगी. बाद में उस के हाथ में जो वस्तु होती है, उसे फेंकती होगी.’’

‘‘हां, सर,’’ मांजी ने गोलगोल आंखें ऊपर करते हुए कहा, ‘‘सबकुछ ऐसा ही करती है. इसीलिए मैं बताने आई हूं कि उसे सामान्य बनाए रखने के लिए सलाहमशविरा यहीं खत्म कर लिया करें अन्यथा वह रात को न सोएगी न सोने देगी. भय है कि कहीं कार्यालय में किसी को कुछ फेंक कर न मार दे.’’

‘‘जी, मांजी, आप की सलाह पर ध्यान दिया जाएगा. पर एक प्रार्थना है कि मैं आप को मांजी कहता हूं इसलिए आप मुझे रजनीश कहिए या बेटा, मुझे बहुत अच्छा लगेगा.’’

उठते हुए मांजी बोलीं, ‘‘ठीक है बेटा, एक जिज्ञासा हुई कि सरला के लक्षणों को तुम कैसे समझ पाए हो? क्या पिछले दिनों भी कार्यालय में उस ने ऐसा कुछ…’’

‘‘नहीं, अब तक तो नहीं, पर मैं कुछ मनोभावों के संवेदनों और आप द्वारा बताए जाने से यह सब समझ पाया हूं. मेरा प्रयास रहेगा कि सरला जल्दी ही सामान्य हो जाए,’’ मैं ने मांजी को उत्तर दिया तो वह धन्यवाद दे कर केबिन से बाहर निकली और फिर सरला का माथा चूम कर बाहर चली गईं.

मैं ने अपना प्रभाव जमाने के लिए उन्हें आश्वस्त किया था. संभव है कि हालात मेरे पक्ष में हों और सरला को सामान्य करने का मेरा प्रयास सफल रहे. सरला की शादी के बाद किसी एक पुरुष की जिंदगी तो बिगड़ेगी ही, क्यों न मेरी ही बिगड़े. हालांकि उसे सामान्य करने के लिए शादी ही उपचार नहीं है पर प्रथम शोधप्रयास विवाहोपचार ही सही. वैसे मेरे हाथ के तोते तो उड़ चुके थे फिर भी साहस बटोर कर सरला को बुला कर मैं बोला, ‘‘मिस सरला, मैं एक सलाह दूं, तुम उस पर विचार कर के मुझे बताना.’’

‘‘जी, सर, सलाह बताइए, मैं रमेशजी से समझ लूंगी. रही बात विचार की, सो मैं विचार के अलावा कुछ करती भी तो नहीं, सर,’’ प्रसन्नतापूर्वक सरला ने आंखें मटकाते हुए कहा.

चंचलता उस की आंखों में झलक आई थी. तथास्तु करती परियों जैसी मुसकराहट उस के होंठों पर खिल उठी.

मैं ने सरला को ही शादी की सलाह दे कर उकसाना चाहा ताकि उसे भी कुछकुछ होने लगे और जब तक उस की शादी नहीं हो जाएगी, वह बेचैन रहेगी. घर जा कर अपने मातापिता को तंग करेगी और तब शादी की बात पर गंभीरता से विचारविमर्श होगा.

मैं तो आपादमस्तक सरला के चरित्र से जुड़ गया था और मैं ने उसे सहजता से कह दिया, ‘‘देखो, सरला, अब तुम्हें अपनी शादी कर लेनी चाहिए. अपने मातापिता से तुम यह बात कहो. मैं समझता हूं कि तुम्हारे मातापिता की सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी. उन की चिंता दूर करने का तुम्हारा फर्ज बनता है, सरला.’’

‘‘ठीक है, सर, मैं रमेशजी से पूछ लेती हूं,’’ सरला ने बुद्धुओं जैसी बात कह दी, जैसे उसे पता नहीं कि उसे क्या सलाह दी गई. उस के मन में तो रमेशजी गणेशजी की तरह ऐसे आसन ले कर बैठे थे कि आउट होने का नाम ही नहीं लेते.

मैं ने अपना माथा ठोंका और संयत हो कर बोला, ‘‘सरला, तुम 22 साल की हो और तुम्हारे अच्छे रमेशजी डबल विधुर, पूरे 45 साल के यानी तुम्हारे चाचा हैं. तुम उन्हें चाचा कहा करो.’’

मैं ने सोचा कि रमेश से ही नहीं अगलबगल में भी सब का पत्ता साफ हो जाए, ‘‘और सुनो, बगल में जो रसमोहन बैठता है उसे भैयाजी और उस के भी बगल में अनुराग को मामाजी कहा करो. ये लोग ऐसे रिश्ते के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर सरला वापस गई और रमेश के पास बैठ कर बोली, ‘‘चाचाजी, आज मैं अपने मम्मीपापा से अपनी शादी की बात करूंगी. क्या ठीक रहेगा, चाचाजी?’’

यह सुन कर रमेशजी तो जैसे दस- मंजिली इमारत से गिर कर बेहोश होती आवाज में बोले, ‘‘ठीक ही रहेगा.’’

5 बजे थे. सरला ने अपना बैग कंधे पर टांगा और रसमोहन से ‘भैयाजी नमस्ते’, अनुराग से ‘मामाजी नमस्ते’ कहते हुए चलती बनी. सभी अपनीअपनी त्योरियां चढ़ा रहे थे और मेरी ओर उंगली उठा कर संकेत कर रहे थे कि यह षड्यंत्र रजनीश सर का ही रचा है.

मैं जानता हूं कि मेरे विभाग के सभी पुरुषकर्मी असल में जानेमाने डोरीलाल हैं. किसी पर भी डोरे डाल सकते हैं. लेकिन शर्मदार होंगे तो इस रिश्ते को निभाएंगे और तब कहीं सरला खुले दिमाग से अपना आगापीछा सोच सकेगी. उस के मातापिता भी अपनी सुकोमल, बचकानी सी बेटी के लिए दामाद का कद, शिक्षा, पद स्तर आदि देखेंगे जिस के लिए पति के रूप में मैं बिलकुल फिट हूं.

अगली सुबह बिना बुलाए सरला मेरे कमरे में आई. मुझे उस से सुन कर बेहद खुशी हुई, ‘‘सर, मैं ने कल चाचाजी, भैयाजी, मामाजी कहा तो ये सब ऐसे देख रहे थे जैसे मैं पागल हूं. आप बताइए, क्या मैं पागल लगती हूं, सर?’’

इस मानसिक रूप से कमजोर लड़की को मैं क्या कहता, सो मैं ने उस के दिमाग के आधार पर समझाया, ‘‘देखो, सरला…चाचा, भैया, मामा लोग लड़कियों को लाड़प्यार में पागल ही कहा करते हैं. तुम्हारे मम्मीपापा भी कई बार तुम्हें ‘पगली कहीं की’ कह देते होंगे.’’

उस की ‘यस सर’ सुनतेसुनते मैं उस के पास आ गया. वह भी अब तक खड़ी हो चुकी थी. अपने को अनियंत्रित होते मैं ने उसे अपने सीने से लगा लिया और वह भी मुझ से चिपक गई, जैसे हम 2 प्रेमी एक लंबे अरसे के बाद मिले हों. हरकत आगे बढ़ी तो मैं ने उस के कंधे भींच कर उस के दोनों गालों पर एक के बाद एक चुंबन की छाप छोड़ दी.

मैं ने उसे जाने को कहा. वह चली गई तो मैं जैसे बेदिल सा हो गया. दिल गया और दर्द रह गया. पहली बार मेरा रोमरोम सिहर उठा, क्योंकि प्रथम बार स्त्रीदेह के स्पर्श की चुभन को अनुभव किया था. जन्मजन्मांतर तक याद रखने लायक प्यार के चुंबनों की छाप से जैसे सारा जहां हिल गया हो. सारे जहां का हिलना मैं ने सरला की देह में होती सिहरन की तरंगों में अनुभव किया.

प्रथम बार मैं ने किसी युवती के लिए अपने दिल में प्रेमज्योति की गरमाहट अनुभव की. काश, यह ज्योति सदा के लिए जल उठे. शायद ऐसी भावनाओं को ही प्यार कहते होंगे? यदि यह सत्य है तो मैं ने इस अद्भुत प्यार को पा लिया है उन पलों में. पहली बार लगा कि मैं अब तक मुर्दा देह था और सरला ने गरम सांसें फूंक कर मुझ में जान डाल दी है.

सरला ने दफ्तर से जाने के पहले मेरी विचारतंद्रा भंग की, ‘‘सर, आज मैं खुश भी हूं और परेशान भी. वह दोपहर पूर्व की घटना मुझ से बारबार कहती है कि मैं आप के 2 चुंबनों का उधार चुका दूं वरना मैं रातभर सो नहीं सकती.’’

मैं मन ही मन बेहद खुश था. यही तो प्यार है, पर इस पगली को कौन समझाए. इसे तो चुंबनों का कर्ज चुकता करना है, नहीं तो वह सो नहीं पाएगी. बस…प्यार हमेशा उधार रखने पर ही मजा देता है पर यह नादान लड़की. बदला चुकाना प्यार नहीं हो सकता. यदि ऐसा हुआ तो मेरी बेचैनी बढ़ेगी और वह निश्ंिचत हो जाएगी अर्थात सिर्फ मेरा प्यार जीवित रहे, यह मुझे गंवारा नहीं है और न ही हालात को.

मैं सरला को निराश नहीं कर सकता था, अत: पूछा, ‘‘सरला, क्या तुम्हें मेरी जरूरत है या एक पुरुष की?’’ और उस के चेहरे पर झलकती मासूमियत को मैं ने बिना उस का उत्तर सुने परखना चाहा. उसे अपने सीने से लगा कर कस कर भींच लिया, ‘‘सरला, इस रजनीश के लिए तुम अपनेआप को समर्पित कर दो. यही प्यार की सनक है. 2 जिंदा देहों के स्पर्श की सनक.’’

और वह भिंचती गई. चुंबनों का कौन कितना कर्जदार रहा, किस ने कितने उधार किए, कुछ होश नहीं था. शायद कुछ हिसाबकिताब न रख पाना ही प्यार होता है. हां, यही सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘सरला, हम प्यार की झील में कूद पड़े हैं,’’ मैं ने फिर 2 चुंबन ले कर कहा, ‘‘देखो, अब इन चुंबनों को उधार रहने दो, चुकाने की मत सोचना, आज उधार, कल अदायगी. इसे मेरी ओर से, रजनीश की ओर से उपहार समझना और इसे स्वस्थ व जीवंत रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चली गई. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई, अब की बार उस ने ‘रमेशजी’ का नाम नहीं लिया. उस के मुड़ते ही मैं धम्म से कुरसी पर बैठ गया. लगा मेरी देह मुर्दा हो गई. सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, तभी तो कल जिंदादेह हो सकूंगा उस से मिल कर, उस से आत्मसात हो कर, अपने चुंबनों को चुकता पा कर. मैं वादा करता हूं कि अब मैं सरला की सनक के लिए फिर दोबारा मरूंगा, क्योंकि वह अमृत है.

घर से दफ्तर के लिए निकला तो मन पर कल के नशे का सुरूर बना हुआ था. मैं कब कार्यालय पहुंचा, पता ही नहीं चला. हो सकता है कि 2 देहों के आत्मसात होने में स्वभावस्वरूप पृथक हों, परंतु नतीजा तो सिर्फ ‘प्यार’ ही होता है.

आज कार्यालय में सरला नहीं आई. उस की मम्मी आईं. गंभीर समस्या का एहसास कर के मैं सहम ही नहीं गया, अंतर्मन से विक्षिप्त भी हो गया था क्योंकि इस मुर्दादेह को जिंदा करने वाली तो आई ही नहीं. पर उन की बातों से लगा कि यह दूसरा सुख था जो मेरे रोमरोम में प्रवेश कर रहा था जिसे आत्मसंतुष्टि का नाम दिया जा सके तो मैं धन्य हो जाऊं.

‘‘मेरी बेटी आज रात खूब सोई. सुबह उस में जो फुर्ती देखी है उसे देख कर मुझ से रहा नहीं गया. मुझे विवश हो कर तुम्हारे पास आना पड़ा, बेटा. आखिर कैसे-क्या हुआ? दोचार दिनों में ही उस का परिणाम दिखा. काश, वह ऐसी ही रहे, स्थायी रूप से,’’ मांजी स्थिति बता कर चुप हुईं.

‘‘हां, मांजी,’’ मैं प्रसन्नतापूर्वक बोला, ‘‘असल में मैं ने कल दुनियादारी के बारे में खुश व सामान्य रहने के गुर सरला को सिखाए और मैं चाहता हूं कि आप सरला की शादी कर दें.’’

फिर मैं ने अपने पक्ष में उन्हें सबकुछ बताया और वह खुश हुईं.

मैं ने उन की राय जाननी चाही कि वह मुझे अपने दामाद के रूप में किस तरह स्वीकारती हैं. वह हंसते हुए बोलीं, ‘‘मैं जातिवाद से दूर हूं इसलिए मुझे कोई एतराज नहीं है, बेटा. इतना जरूर है कि आप के परिवार में खासतौर से मातापिता राजी हों तो हमें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘ठीक है, मांजी, सभी राजी होंगे तभी हम आगे बात बढ़ाएंगे,’’ मैं ने अपनी सहमति दी.

‘‘अच्छा बेटा, मन में एक बात उपजी है कि सरला दिमाग से असामान्य है, यह जान कर भी तुम उस से शादी क्यों करना चाहते हो?’’ मांजी ने अपनी दुविधा को मिटाना चाहा.

‘‘मांजी, इस का कारण तो मैं खुद भी नहीं जानता पर इतना जरूर है कि वह मुझे बेहद पसंद है. अब सवाल यह है कि शादी के बारे में वह मुझे कितना पसंद करती है.’’

चलते वक्त मुझे व मेरे मातापिता को अगले दिन छुट्टी पर घर बुलाया. मैं जानता हूं कि मेरे मातापिता मेरी पसंद पर आपत्ति नहीं कर सकते. सो आननफानन में शादी तय हुई.

शादी के ठीक 1 सप्ताह पहले मैं और सरला अवकाश पर गए तथा निमंत्रणपत्र भी कार्यालय में सभी को बांट दिए. सब के चेहरे आश्चर्य से भरे थे. सभी खुश भी थे.

विवाह हुआ और 1 माह बाद हम ने साथसाथ कार्यभार ग्रहण किया. हमारा साथसाथ आना व जाना होने से हमें सभी आशीर्वाद देने की नजर से ही देखते.

लेखक- राजेंद्रप्रसाद शंखवार

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