Emotional Story : न भूलने वाली यादें

Emotional Story: ‘‘सुनिए, पुताई वाले को कब बुला रहे हो? जल्दी कर लो, वरना सारे काम एकसाथ सिर पर आ जाएंगे.’’

‘‘करता हूं. आज निमंत्रणपत्र छपने के लिए दे कर आया हूं, रंग वाले के पास जाना नहीं हो पाया.’’

‘‘देखिए, शादी के लिए सिर्फ 1 महीना बचा है. एक बार घर की पुताई हो जाए और घर के सामान सही जगह व्यवस्थित हो जाए तो बहुत सहूलियत होगी.’’

‘‘जानता हूं तुम्हारी परेशानी. कल ही पुताई वाले से बात कर के आऊंगा.’’

‘‘2 दिन बाद बुला ही लीजिए. तब तक मैं घर का सारा कबाड़ निकाल कर रखती हूं जिस से उस का काम भी फटाफट हो जाएगा और घर में थोड़ी जगह भी हो जाएगी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. वैसे भी वह छोटा कमरा बेकार की चीजों से भरा पड़ा है. खाली हो जाएगा तो अच्छा है.’

जब से अविनाश की बेटी सपना की शादी तय हुई थी उन की अपनी पत्नी कंचन से ऐसी बातचीत चलती रहती थी. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, काम का बोझ और हड़बड़ाहट बढ़ती जा रही थी.

घर की पुताई कई सालों से टलती चली आ रही थी. दीपक और सपना की पढ़ाई का खर्चा, रिश्तेदारी में शादीब्याह, बाबूजी का औपरेशन वगैरह ऐसी कई वजहों से घर की सफाईपुताई नहीं हुई थी. मगर अब इसे टाला नहीं जा सकता था. बेटी की शादी है, दोस्त, रिश्तेदार सभी आएंगे. और तो और लड़के वालों की तरफ से सारे बराती घर देखने जरूर आएंगे. अब कोई बहाना नहीं चलने वाला. घर अच्छी तरह से साफसुथरा करना ही पड़ेगा.

दूसरे ही दिन कंचन ने छोटा कमरा खाली करना शुरू किया. काफी ऐसा सामान था जो कई सालों से इस्तेमाल नहीं हुआ था. बस, घर में जगह घेरे पड़ा था. उस पर पिछले कई सालों से धूल की मोटी परत जमी हुई थी. सारा  कबाड़ एकएक कर के बाहर आने लगा.

‘‘कल ही कबाड़ी को बुलाऊंगी. थक गई इस कबाड़ को संभालतेसंभालते,’’ कमरा खाली करते हुए कंचन बोल पड़ीं.

आंगन में पुरानी चीजों का एक छोटा सा ढेर लग गया. शाम को अविनाश बाहर से लौटे तो उन्हें आंगन में फेंके हुए सामान का ढेर दिखाई दिया. उस में एक पुराना आईना भी था. 5 फुट ऊंचा और करीब 2 फुट चौड़ा. काफी बड़ा, भारीभरकम, शीशम की लकड़ी का मजबूत फ्रेम वाला आईना. अविनाश की नजर उस आईने पर पड़ी. उस में उन्होंने अपनी छवि देखी. धुंधली सी, मकड़ी के जाले में जकड़ी हुई. शीशे को देख कर उन्हें कुछ याद आया. धीरेधीरे यादों पर से धूल की परतें हटती गईं. बहुत सी यादें जेहन में उजागर हुईं. आईने में एक छवि निखर आई…बिलकुल साफ छवि, कंचन की. 29-30 साल पहले की बात है. नईनवेली दुलहन कंचन, हाथों में मेहंदी, लाल रंग की चूडि़यां, घूंघट में शर्मीली सी…अविनाश को अपने शादी के दिन याद आए.

संयुक्त परिवार में बहू बन कर आई कंचन, दिनभर सास, चाची सास, दादी सास, न जाने कितनी सारी सासों से घिरी रहती थी. उन से अगर फुरसत मिलती तो छोटे ननददेवर अपना हक जमाते. अविनाश बेचारा अपनी पत्नी का इंतजार करतेकरते थक जाता. जब कंचन कमरे में लौटती तो बुरी तरह से थक चुकी होती थी. नौजवान अविनाश पत्नी का साथ पाने के लिए तड़पता रह जाता. पत्नी को एक नजर देख पाना भी उस के लिए मुश्किल था. आखिर उसे एक तरकीब सूझी. उन का कमरा रसोईघर से थोड़ी ऊंचाई पर तिरछे कोण में था. अविनाश ने यह बड़ा सा आईना बाजार से खरीदा और अपने कमरे में ऐसे एंगल (कोण) में लगाया कि कमरे में बैठेबैठे रसोई में काम करती अपनी पत्नी को निहार सके.

इसी आईने ने पतिपत्नी के बीच नजदीकियां बढ़ा दीं. वे दोनों दिल से एकदूसरे के और भी करीब आ गए. उन के इंतजार के लमहों का गवाह था यह आईना. इसी आईने के जरिए वे दोनों एकदूसरे की आंखों में झांका करते थे, एकदूसरे के दिल की पुकार समझा करते थे. यही आईना उन की नजर की जबां बोलता रहा. उन की जवानी के हर पल का गवाह था यह आईना.

आंगन में खड़ेखड़े, अपनेआप में खोए से, अविनाश उन दिनों की सैर कर आए. अपनी नौजवानी के दिनों को, यादों में ही, एक बार फिर से जी लिया. अविनाश ने दीपक को बुलाया और वह आईना उठा कर अपने कमरे में करीने से रखवाया. दीपक अचरज में पड़ गया. ऐसा क्या है इस पुराने आईने में? इतना बड़ा, भारी सा, काफी जगह घेरने वाला, कबाड़ उठवा कर पापा ने अपने कमरे में क्यों लगवाया? वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. वह अपनी दादी के पास चला गया.

‘‘दादी, पापा ने वह बड़ा सा आईना कबाड़ से उठवा कर अपने कमरे में लगा दिया.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘दादी, वह कितनी जगह घेरता है? कमरे से बड़ा तो आईना है.’’

दादी अपना मुंह आंचल में छिपाए धीरेधीरे मुसकरा रही थीं. दादी को अपने बेटे की यह तरकीब पता थी. उन्होंने अपने बेटे को आईने में झांकते हुए बहू को निहारते पकड़ा भी था.

दादी की वह नटखट हंसी… हंसतेहंसते शरमाने के पीछे क्या माजरा है, दीपक समझ नहीं सका. पापा भी मुसकरा रहे थे. जाने दो, सोच कर दीपक दादी के कमरे से बाहर निकला.

इतने में मां ने दीपक को आवाज दी. कुछ और सामान बाहर आंगन में रखने के लिए कहा. दीपक ने सारा सामान उठा कर कबाड़ के ढेर में ला पटका, सिवा एक क्रिकेट बैट के. यह वही क्रिकेट बैट था जो 20 साल पहले दादाजी ने उसे खरीदवाया था. वह दादाजी के साथ गांव से शहर आया था. दादाजी का कुछ काम था शहर में, उन के साथ शहर देखने और बाजार घूमने दीपू चल पड़ा था. चलतेचलते दादाजी की चप्पल का अंगूठा टूट गया था. वैसे भी दादाजी कई महीनों से नई चप्पल खरीदने की सोच रहे थे. बाजार घूमतेघूमते दीपू की नजर खिलौने की दुकान पर पड़ी. ऐसी खिलौने वाली दुकान तो उस ने कभी नहीं देखी थी. उस का मन कांच की अलमारी में रखे क्रिकेट के बैट पर आ गया.

उस ने दादाजी से जिद की कि वह बैट उसे चाहिए. दीपू के दादाजी व पिताजी की माली हालत उन दिनों अच्छी नहीं थी. जरूरतें पूरी करना ही मुश्किल होता था. बैट जैसी चीजें तो ऐश में गिनी जाती थीं. दीपू के पास खेल का कोई भी सामान न होने के कारण गली के लड़के उसे अपने साथ खेलने नहीं देते थे. श्याम तो उसे अपने बैट को हाथ लगाने ही नहीं देता था. दीपू मन मसोस कर रह जाता था.

दादाजी इन परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. उन से अपने पोते का दिल नहीं तोड़ा गया. उन्होंने दीपू के लिए वह बैट खरीद लिया. बैट काफी महंगा था. चप्पल के लिए पैसे ही नहीं बचे, तो दोनों बसअड्डे के लिए चल पड़े. रास्ते में चप्पल का पट्टा भी टूट गया. सड़क किनारे बैठे मोची के पास चप्पल सिलवाने पहुंचे तो मोची ने कहा, ‘‘दादाजी, यह चप्पल इतनी फट चुकी है कि इस में सिलाई लगने की कोई गुंजाइश नहीं.’’

दादाजी ने चप्पल वहीं फेंक दीं और नंगे पांव ही चल पड़े. घर पहुंचतेपहुंचते उन के तलवों में फफोले पड़ चुके थे. दीपू अपने नए बैट में मस्त था. अपने पोते का गली के बच्चों में अब रोब होगा, इसी सोच से दादाजी के चेहरे पर रौनक थी. पैरों की जलन का शिकवा न था. चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी.

हाथ में बैट लिए दीपक उस दिन को याद कर रहा था. उस की आंखों से आंसू ढलक कर बैट पर टपक पड़े. आज दीपू के दिल ने दादाजी के पैरों की जलन महसूस की जिसे वह अपने आंसुओं से ठंडक पहुंचा रहा था.

तभी, शाम की सैर कर के दादाजी घर लौट आए. उन की नजर उस बैट पर गई जो दीपू ने अपने हाथ में पकड़ रखा था. हंसते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्यों बेटा दीपू, याद आया बैट का किस्सा?’’

‘‘हां, दादाजी,’’ दीपू बोला. उस की आंखें भर आईं और वह दादाजी के गले लग गया. दादाजी ने देखा कि दीपू की आंखें नम हो गई थीं. दीपू बैट को प्यार से सहलाते, चूमते अपने कमरे में आया और उसे झाड़पोंछ कर कमरे में ऐसे रख दिया मानो वह उस बैट को हमेशा अपने सीने से लगा कर रखना चाहता है. दादाजी अपने कमरे में पहुंचे तो देखा कि दीपू की दादी पलंग पर बैठी हैं और इर्दगिर्द छोटेछोटे बरतनों का भंडार फैला है.

‘‘इधर तो आइए… देखिए, इन्हें देख कर कुछ याद आया?’’ वे बोलीं.

‘‘अरे, ये तुम्हें कहां से मिले?’’

‘‘बहू ने घर का कबाड़ निकाला है न, उस में से मिल गए.’’

अब वे दोनों पासपास बैठ गए. कभी उन छोटेछोटे बरतनों को देखते तो कभी दोनों दबेदबे से मुसकरा देते. फिर वे पुरानी यादों में खो गए.

यह वही पानदान था जो दादी ने अपनी सास से छिपा कर, चुपके से खरीदा था. दादाजी को पान का बड़ा शौक था, मगर उन दिनों पान खाना अच्छी आदत नहीं मानी जाती थी. दादाजी के शौक के लिए दादीजी का जी बड़ा तड़पता था. अपनी सास से छिपा कर उन्होंने पैसे जोड़ने शुरू किए, कुछ दादाजी से मांगे और फिर यह पानदान दादाजी के लिए खरीद लिया. चोरीछिपे घर में लाईं कि कहीं सास देख न लें. बड़ा सुंदर था पानदान. पानदान के अंदर छोटीछोटी डब्बियां लौंग, इलायची, सुपारी आदि रखने के लिए, छोटी सी हंडिया, चूने और कत्थे के लिए, हंडियों में तिल्लीनुमा कांटे और हंडियों के छोटे से ढक्कन. सारे बरतन पीतल के थे. उस के बाद हर रात पान बनता रहा और हर पान के साथ दादादादी के प्यार का रंग गहरा होता गया.

दादाजी जब बूढ़े हो चले और उन के नकली दांत लग गए तो सुपारी खाना मुश्किल हो गया. दादीजी के हाथों में भी पानदान चमकाने की आदत नहीं रही. बहू को पानदान रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अत: पानदान स्टोर में डाल दिया गया. आज घर का कबाड़ निकाला तो दादी को यह पानदान मिल गया, दादी ने पानदान उठाया और अपने कमरे में ले आईं. इस बार सास से नहीं अपनी बहू से छिपा कर.

थरथराती हथेलियों से वे पानदान संवार रही थीं. उन छोटी डब्बियों में जो अनकहे भाव छिपे थे, आज फिर से उजागर हो गए. घर के सभी सदस्य रात के समय अपनेअपने कमरों में आराम कर रहे थे. कंचन, अविनाश उसी आईने के सामने एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. दादादादी पान के डब्बे को देख कर पुरानी बातों को ताजा कर रहे थे. दीपक बैट को सीने से लगाए दादाजी के प्यार को अनुभव कर रहा था जब उन्होंने स्वयं चप्पल न खरीद कर उन पैसों से उसे यह बैट खरीद कर दिया था. नंगे पांव चलने के कारण उन के पांवों में छाले हो गए थे.

सपना भी कबाड़ के ढेर में पड़ा अपने खिलौनों का सैट उठा लाई थी जिस से वह बचपन में घरघर खेला करती थी. यह सैट उसे मां ने दिया था.

छोटा सा चूल्हा, छोटेछोटे बरतन, चम्मच, कलछी, कड़ाही, चिमटा, नन्हा सा चकलाबेलन, प्यारा सा हैंडपंप और उस के साथ एक छोटी सी बालटी. बचपन की यादें ताजा हो गईं. राखी के पैसे जो मामाजी ने मां को दिए थे, उन्हीं से वे सपना के लिए ये खिलौने लाई थीं. तब सपना ने बड़े प्यार से सहलाते हुए सारे खिलौनों को पोटली में बांध लिया था. उस पोटली ने उस का बचपन समेट लिया था. आज उन्हीं खिलौनों को देख कर बचपन की एकएक घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी. दीपू भैया से लड़ाई, मां का प्यार और दादादादी का दुलार…

जिंदगी में कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें दोबारा जीने को दिल चाहता है, कुछ पल ऐसे होते हैं जिन में खोने को जी चाहता है. हर कोई अपनी जिंदगी से ऐसे पलों को चुन रहा था. यही पल जिंदगी की भागदौड़ में कहीं छूट गए थे. ऐसे पल, ये यादें जिन चीजों से जुड़ी होती हैं वे चीजें कभी कबाड़ नहीं होतीं.

Evening Snacks Recipe: चाय के साथ करारे और चटपटे स्नैक्स

Evening Snacks Recipe: छोलिया पकौड़े

सामग्री

– 200 ग्राम छोलिया

– 100 ग्राम लहसुन की पत्ती कटी

– 3/4 कप चावल का आटा

– 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच हरी मिर्चों का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच गरममसाला

– तलने के लिए पर्याप्त तेल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

छोलिया धो कर दरदरी ग्राइंड कर लें. अब एक बाउल में छोलिया मिश्रण के साथ लहसुन की पत्तियां, चावल का आटा, अदरकलहसुन का पेस्ट, हरीमिर्चों का पेस्ट, नमक व गरममसाला पाउडर मिक्स कर फ्रिटर्स बनाएं और गरम तेल में तल कर परोसें.

दाल पकौड़े

सामग्री

– 1 कप चना दाल

– 1/2 कप चावल का आटा

– 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

– 1 चुटकी हींग

– तेल तलने के लिए

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

चने की दाल को 1 कटोरी पानी के साथ उबाल लें. बचा पानी निथार लें. दाल में चावल का आटा, नमक, हलदी, हींग और अजवाइन डालें. 1 बड़ा चम्मच मोयन मिला कर आटा गूंध लें. आटा थोड़ा कड़ा होना चाहिए. आवश्यकता हो तो थोड़ा पानी मिला लें. इसे 10-15 मिनट ढक कर रख दें.

अब इस आटे की छोटीछोटी लोइयां बना कर रोटी जैसा बेलें. थोड़ा मोटा रखें. अब चाकू की सहायता से रोटी की लंबी पट्टियां काट लें. इन्हें मनचाहा आकार दे कर तलें और चाय के साथ परोसें.

 

साबूदाना क्यूब्स

सामग्री

-1 कप भीगा साबूदाना

-1/4 कप चावल का आटा

– 1 बड़ा चम्मच कसी गाजर

– 1 बड़ा चम्मच भूनी व कुटी मूंगफली

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच उबले मटर

– 1 छोटा चम्मच सरसों

– थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

– तलने के लिए तेल

– थोड़े से करीपत्ते

– 1 छोटी हरीमिर्च

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर उस में सरसों चटकाएं. थोड़े से करीपत्ते डाल कर भूनें. 1 कप पानी डालें और उबाल आने तक पकाएं. इस उबलते पानी में चावल का आटा मिलाएं, साथ ही थोड़ा सा नमक मिला दें. इसे लगातार चलाते हुए गुंधे आटे जैसा हो जाने तक पकाएं. भीगे साबूदाने से पानी अच्छी तरह से निचोड़ लें. सारी सब्जी, साबूदाना व नमक मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. 1 इंच गहरे केकटिन या थाली में भीतर की तरफ अच्छी तरह तेल लगा कर चिकना कर लें.

इस में तैयार मिश्रण डाल कर अच्छी तरह से दबा कर सैट करें. इसे कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें. फिर निकाल कर टिन को पलट कर जमा हुआ मिश्रण निकाल लें. यह केक जैसा जमा हुआ होगा. इस के चौकोर टुकड़े काटें और गरम तेल में सुनहरा होने तक तल कर गरमगरम परोसें.

Cleaning Tips: फलों और सब्ज‍ियों को साफ करने के ये हैं तरीके

Cleaning Tips: जिन फलों और सब्ज‍ियों को हम सेहत बनाने के लिए खाते हैं उन्हें कई प्रकार की कृत्रिम खादों और कीट-नाशकों का प्रयोग करके उगाया जाता है. फसलों को नुकसान से बचाने के लिए किसान खेतों में कीट-नाशकों का छिड़काव करते हैं.

खेत से जब ये फल और सब्ज‍ियां बाजार पहुंचती हैं तो इनमें कीट-नाशकों को कुछ अंश चिपके ही रह जाते हैं. ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक होता है. ये कीट-नाशक शरीर में जमा होने लगता है और शरीर में विषाक्त पदार्थ की मात्रा बढ़ती जाती है. इसके साथ ही हमारा इम्यून सिस्टम भी खराब हो जाता है.

ऐसे में सब्ज‍ियों की सफाई करना बहुत जरूरी हो जाता है. पर कुछ लोग गलत तरीके से सब्ज‍ियों की सफाई करते हैं जिसके चलते सब्जि‍यों और फलों के पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं. इन तरीकों से फलों और सब्ज‍ियों को साफ करने से एक ओर जहां आप विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचे रहते हैं वहीं उनके पोषक तत्व भी नष्ट नहीं होते हैं.

  1. सिरके से करें सब्जी साफ

सिरका एक ऐसी चीज है सब्ज‍ियों और फलों में मौजूद कीटों को तो साफ करते ही है साथ ही कीट-नाशक को भी बेहतर तरीके से हटा देता है. एक बड़े बर्तन में पानी लेकर उसमें कुछ मात्रा में सिरका मिला लें. फलों और सब्ज‍ियों को उसमें डुबोकर रख दें. कुछ देर बाद उन्हें हल्के हाथों से मलकर बाहर निकाल लें. उसके बाद एक साफ बर्तन में उन्हें रखकर इस्तेमाल में लाएं.

2. बेकिंग सोडा

सिरके के साथ ही बेकिंग सोडा से भी सब्ज‍ियों और फलों को साफ करना एक अच्छा उपाय है. पांच गिलास पानी में चार चम्मच बेकिंग सोडा डालकर फलों और सब्जियों को 15 मिनट के लिए इस मिश्रण में डुबो दें. इससे उनकी बाहरी त्वचा पर मौजूद सभी प्रकार की अशुद्ध‍ियां दूर हो जाएंगी.

3. हल्दी के पानी से भी कर सकते हैं साफ

बेकिंग पाउडर और सिरके के अलावा आप हल्दी के घोल से भी फलों और सब्ज‍ियों को साफ कर सकते हैं. हल्दी में एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है जिसकी वजह से हल्दी के घोल से फलों और सब्ज‍ियों को धोना बहुत ही अच्छा माना जाता है. इसके अलावा आप चाहें तो नमक के घोल से भी फलों और सब्ज‍ियों को साफ कर सकते हैं. cleaning tips

How to Maintain Weight: फिगर भी बर्गर भी…

How to Maintain Weight: ज्यादा खाने से मोटापा बढ़ता है और एक्सरसाइज करने व सेहतमंद भोजन से अच्छी फिगर बनती है, यह ठीक है पर आखिर ये फिगर और फूड का संबंध इतना अच्छा नहीं है जितना हम सभी चाहते हैं. फिगर भी बनानी है और बर्गर दिन में 3 बार खाना भी है. उसके बाद पछताना भी है लेकिन खाना नहीं छोड़ना.

इस पर या तो अपने खाने की आदतों में सुधार करने की जरूरत है या फिगर पाना भूलने की. अब फिगर पाने की चाह को मारना आसान नहीं है. आखिर होगा भी कैसे, जब टीवी देखो तो एक से एक जीरो साइज फिगर की अभिनेत्रियां नजर आती हैं. इंस्टाग्राम खोलो तो सुडौल शरीर की मौडल. फैशन में ड्रैसेज ऐसी बनने लगी हैं जिन में यदि पेट एक इंच भी बाहर दिख जाए तो ड्रैस का लुक खराब हो जाता है और पैर जरा मोटे हों तो शौर्ट्स पहनना बेकार.

1 अपनी पसंद के डिजाइन वाले कपड़ों का साइज न आना

कितनी बार तो होता यों है कि अपनी पसंद के डिजाइन वाले कपड़ों का साइज इतना ज्यादा छोटा होता है कि जीरो साइज से एक साइज ज्यादा वाला भी उन्हें नहीं पहन सकता. सो, फिगर को भूल पाना तो नामुमकिन ही है क्योंकि फिगर भूल कर आप आगे बढ़ने की कोशिश करें भी तो आप के आसपास वाले आप के रास्ते में रोड़े बन कर खड़े हो जाएंगे.

सेहत भी शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की ही अच्छी होती है तो फिगर में रहने की जरूरत भी है. लेकिन फिगर की जो समझ हमें दी जा रही है, असल में वह ठीक नहीं है. ऐसे भी तरीके हैं जिन से आप फिगर में बने भी रह सकती हैं और आप को अपने बर्गर का त्याग भी नहीं करना पड़ेगा.

2 फिगर की गलत परिभाषा से निकलना

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हम सभी के लिए सही फिगर वह है जिसे हम फिल्मों और अखबारों में आए दिन देखते हैं. वर्तमान समय में आप जितनी पतली दिख सकती हैं उतनी दिखें क्योंकि अच्छी फिगर की परिभाषा ही यह बन गई है, पतला दिखना. पेट अंदर होना चाहिए, कमर पतली होनी चाहिए, वक्ष और नितंब का आकार जितना ज्यादा बाहर की तरफ हो उतना अच्छा और न भी हो तब भी ठीक है. बस, पतली दिखनी चाहिए.

यह ज्यादातर लड़कियों में है. पर ऐसी फिगर को पाने के लिए वह अपने खाने को लेकर इतनी गंभीर हो जाती हैं कि आसानी से ईटिंग डिस्और्डर की चपेट में आ जाती हैं.

3 ईटिंग डिस्और्डर का हो सकते हैं शिकार

इस ईटिंग डिस्और्डर में एक डिस्और्डर है बुलिमिया नर्वोसा जिसे हम बुलिमिया के नाम से भी जानते हैं. बुलिमिया की सही परिभाषा देते हुए बौलीवुड अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने बताया कि बौलीवुड में आ कर उन्होंने अपने आत्मविश्वास को किस तरह खो दिया और कैसे एक सही फिगर की चाह ने उन्हें बुलिमिया की गोद में ढकेल दिया. वे बताती हैं, ‘‘मुझे कहा गया कि मुझे वजन बढ़ाना चाहिए, फिर कहा गया कि वजन घटाना चाहिए, अपनी नाक ठीक, होंठ मोटे, फैट घटाना, अपने बाल बढ़ाना या काट लेना, हाईलाइट, फेक आईलैश एक्सटैंशन कराना चाहिए और बड़े नितंब के लिए स्क्वैट करना चाहिए.’’

उन्होंने बताया कि किस तरह अपने फिगर को सही करने के लिए उन्होंने खाना खाते ही उलटी कर देना और बारबार खाना शुरू कर दिया, वह कुछ भी खातीं तो यह सोच कर परेशान हो जातीं कि कहीं उन का वजन न बढ़ जाए. वे बुलिमिया की शिकार हो गईं. साथ ही, डिप्रैशन, एंग्जायटी और इनसोमिनिया की भी.

रिचा की तरह ऐसी कितनी ही लड़कियां हैं जो केवल इसीलिए अपनी फिगर को ले कर फिक्रमंद रहती हैं. जबकि यूएस नैशनल रिसर्च कौंसिल की एक स्टडी के अनुसार, स्वास्थ्य का असली मतलब शरीर के साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना है. सही फिगर के रूप में आवरग्लास और पीअर शेप को सही बताया गया है. यानी, जीरो साइज होना ही स्वस्थ और सही फिगर में होना नहीं है.

किसी भी तरह से फिगर की प्रवृत्ति को किसी लड़की पर थोप कर उसे बौडीशेम करना सही नहीं है, लड़की चाहे किसी भी शेप की हो, उस का स्वस्थ होना आवश्यक है. स्वस्थ होने के लिए सही खानपान और व्यायाम करना ही पर्याप्त है. पेट अंदर होना जरूरी इसलिए है क्योंकि इस से सिद्ध होता है कि शरीर में कोलैस्ट्रौल और वसा की मात्रा सही है और वह ओबेसिटी, ब्लडप्रैशर और मधुमेह का कारण नहीं बनेगी.

4 खानपान की आदतों में बदलाव जरूरी

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लड़कियों में अकसर फिगर को ले कर चिंता रहती है लेकिन मन खाने की ओर भी लगा रहता है. इस के परिणामस्वरूप ग्लानि में ही वे रोज वसा और अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट से युक्त खाद्यपदार्थों का सेवन करने लगती हैं. इसी तरह फूड मैमोरी के कारण वे रोज ही अपने स्वास्थ्य में बाधा उत्पन्न करती हैं. फूड मैमोरी का अर्थ है, मान लीजिए आप रोज शाम 4 बजे चाय पीती हैं तो इस से होता यह है कि आप के दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि आप को शाम 4 बजे चाय पीनी है.

4 बजते ही आप को चाय की तलब लगनी शुरू हो जाती है. इसी तरह यदि आप रोज रात में खाने के बाद भी चौकलेट या चिप्स खाने के लिए आतुर होती हैं तो यह सब आप की फूड मैमोरी का कियाधरा है. इसे खत्म करने के लिए आप को लगातार कुछ दिन अपनी असमय खाने की आदतों को बंद करना होगा.

इसी तरह एक और खाने से जुड़ी आदत है जिसे नौन हंगरी ईटिंग कहा जाता है. नौन हंगरी ईटिंग में लड़कियां अपनी क्रेविंग्स के चलते कुछ न कुछ खाती रहती हैं. यह क्रेविंग्स भूख के कारण नहीं होती बल्कि खाने के स्वाद के लालच की होती है. अचानक से केक, चौकलेट या कुछ चटपटा खाने का मन करना फूड क्रेविंग है.

बिना भूख के खाने से आप के पाचनतंत्र पर असर पड़ता है जिस से शरीर में फैट जमा होने लगता है. इस नौन हंगरी ईटिंग से बचने के लिए अपनी क्रेविंग्स को दूर करें लेकिन केवल टेस्ट करें और बाकी भूख लगने पर ही खाएं.

5 कोशिश करें कि हैल्दी फूड खाएं …

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गिल्ट ईटिंग भी खाने का एक प्रकार है जिसमें लड़कियां अच्छे फिगर की चाह के साथ-साथ खाने की चाह भी कम नहीं करतीं और परिणामस्वरूप गिल्ट ईटिंग करने लगती हैं. मतलब जंकफूड खाती भी हैं और पछताती भी हैं. इस से शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के साथसाथ वे अपना मानसिक स्वास्थ्य भी बिगाड़ लेती हैं.

जो सैलिब्रिटीज जैसा फिगर पाना चाहती हैं उन्हें उस फिगर को पाने के लिए साधारण खाने का त्याग करना पड़ता है. वे अपने घर का खाना तक नहीं खा पातीं और इतनी स्ट्रिक्ट डाइट फौलो करती हैं कि उन का मानसिक स्वास्थ्य भी उस से अत्यधिक प्रभावित होता है. आम लड़कियों व महिलाओं का ऐसी फिगर को पाने की चाह रखने से बेहतर स्वस्थ शरीर की चाह रखना ज्यादा जरूरी होना चाहिए.

फिगर और बर्गर में से एक को चुनने के बजाय आप दोनों चुन सकती हैं. बस, करना यह है कि खाने की बाकी सभी बुरी आदतों को हटा दिया जाए और हफ्ते में एक बार खुशी से थोड़ाबहुत खा लिया जाए. व्यायाम करना बेहद जरूरी है पर उतना जितना आवश्यक हो.

फिगर की धारणा जो इस समय सोसाइटी में मौजूद है वह गलत है. इस से प्रभावित हो कर अपनी सेहत से खिलवाड़ करने के बजाय एक्सपर्ट से सलाह लें. लड़कियों का बड़ी मात्रा में परफैक्ट फिगर के पीछे भागना सचमुच ही चिंता का विषय है, जिस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है.

How to Maintain Weight

Styling Tips: दोस्तों के बीच कूल व स्टाइलिश दिखने के लिए मैं क्या करुं?

Styling Tips:
सवाल-

ऐसा क्या करूं कि कालेज या दोस्तों के बीच कूल व स्टाइलिश दिखूं?

जवाब-

Styling Tips: कूल दिखने के लिए आप कालेज में नैचुरल मेकअप ही करें. इस के लिए क्लीजिंग, टोनिंग, मौइस्चराइजिंग के अलावा सुबह और दोपहर सनस्क्रीन जरूर लगाएं. रात में चेहरे को साफ करना न भूलें. स्किन टोन और स्किन टाइप के अनुसार मेकअप करें. लुक को नैचुरल या न्यूड रखें.

आईलाइनर लगाएं. साथ ही ग्लौसी लिप कलर ट्रैंड में है. डे लुक के लिए लाइट और ईवनिंग लुक में डार्क शेड लगाएं. होंठ ज्यादा सूख रहे हैं तो वैसलीन लगाएं. नैक पर डिजाइन वाले आउटफिट्स आजकल ट्रैंड में हैं. ये आप को सिंपल और स्टाइलिश लुक देने के साथसाथ ज्वैलरी कैरी करने के झंझट से भी बचाएंगे. शौर्ट जंपर्स या फ्लोरल प्रिंट की ड्रैस कालेज के लिए अच्छा औप्शन है. लाइट ब्लू और ब्लैक जींस पर हर तरह के रंग खिलते हैं, इसलिए इन्हें अपने वार्डरोब में हमेशा रखें.

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गरमियों में हर किसी को घूमना पसंद है. आप वौटर पार्क और बीच यानी समुद्र के पास घूमना या ट्रैवल करना पसंद करते होंगे, जिसके लिए आप कम्फरटेबल कपड़े पहनना पसंद करते हैं और आप शौर्टस का फेवरेट हैं. तो आज हम आपको शौर्टस के कुछ स्टाइलिश कौम्बीनेशन के बारे में बताएंगे, जिससे आपको एक स्टाइलिश लुक के साथ-साथ कम्फर्ट भी मिलेगा.

1. रफ कट डेनिम शौर्टस के साथ शर्ट का कौम्बिनेशन

अगर आप कहीं फौर्मल या मार्केट घूमने का प्लान बना रहीं हैं तो ये कौम्बिनेशन आपके लिए बेस्ट होगा. यह ड्रैसअप आपके लिए गरमी के लिए सबसे कम्फरटेबल आउटफिट साबित होगा.

Hair Removal At Home: अपर लिप्स के बाल हटाने के 6 होममेड टिप्स

Hair Removal At Home: होठों के ऊपर मौजूद बाल जिसे आमतौर पर अपर लिप हेयर कहते हैं, किसी भी लड़की के लिए काफी शर्मिंदगी भरे होते हैं. इससे आपकी पर्सनालिटी पर भी असर पड़ता है. और तो और इससे बचने के लिए हर महीने पार्लर के चक्कर लगाने के साथ-साथ इसे हटाते समय काफी दर्द भी झेलना पड़ता है.

लेकिन अब आप इसे आसानी से घर पर हटा सकती हैं और वो भी बिना किसी दर्द के. बस अपनाएं ये कुछ घरेलू तरीके और अपर लिप्स के बालों को  खत्म करें.

दही और चावल का आटा

एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच दही और 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. इसे अपने अपर लिप्स पर लगाएं और जब ये सूख जाए तो रगड़कर इसे हटा लें. एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच दही में 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें. इसे अपने अपर लिप्स पर लगाएं और जब ये सूख जाए तो रगड़कर इसे हटा लें.

चीनी और नींबू

किचेन में आसानी से मिलने वाले इन दो इंग्रीडिएंट्स की मदद से आप अपर लिप्स के बालों से झटपट छुटकारा पा सकती हैं. जहां चीनी एक स्क्रब की तरह काम करता है वहीं, नींबू एक ब्लीचिंग एजेंट होता है. एक कोटरी में दो नींबू का रस और चीनी अच्छी तरह मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें. इसे अब अपने अपर लिप्स पर लगाएं और 10-15 मिनट बाद रगड़कर हटा लें और फिर पानी से धो लें.

अंडा, बेसन और चीनी

एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच बेसन, थोड़ी चीनी और अंडे का सफेद हिस्सा तब तक मिलाएं जब तक एक चिपचिपा सा पेस्ट तैयार ना हो जाए. इसे अपर लिप्स पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो ऊपर के डायरेक्शन में रगड़ते हुए हटा लें. बेहतर रिजल्ट के लिए ऐसा हफ्ते में दो बार करें.

दूध और हल्दी

फेशियल हेयर के ग्रोथ को कम करने में हल्दी काफी असरदार होती है. 1 बड़ा चम्मच दूध और 1 बड़ा चम्मच हल्दी मिलाकर पेस्ट तैयार करें और अपर लिप्स पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो हल्के हाथों से रगड़ते हुए इसे हटा लें.

दही, हल्दी और बेसन

एक कटोरी में समान मात्रा में दही, हल्दी और बेसन मिलाकर मोटा पेस्ट तैयार करें. इसे अपने अपर लिप्स पर लगाएं और 15-20 मिनट बाद हल्के हाथ से रगड़कर हटा लें और फिर पानी से इसे धो लें.

नींबू और शहद

एक कटोरी में 1 बड़ा चम्मच शहद और 2 बड़े चम्मच नींबू का रस मिलाकर पेस्ट बनाएं और अपर लिप्स पर लगाएं. जब ये सूख जाए तो रगड़कर हटा लें और फिर इसे पानी से धो लें. ऐसा लगातार चार दिन तक हर रोज़ करें. धीरे-धीरे अपर लिप्स के बाल कम हो जाएंगे.

Hindi Family Story: कंप्यूटर से कटोरा

Hindi Family Story: दीपिका ने घर आ कर सब से पहले अपने 2 साल के बेटे शंकुल को डिटौल के पानी से नहला कर दूध पिलाया और सुला दिया. फिर कंप्यूटर खोल कर अपनी कंपनी को ई-मेल से इस्तीफा भेजा और पति रवि को फोन कर जल्दी घर आने के लिए कहा. इतना करने के बाद वह सोफे पर बैठ गई तथा विचारों में खो गई.

लगभग 4 साल पहले उस ने तथा रवि ने इलाहाबाद से एम.टेक की डिगरी ली थी तथा कैंपस में ही दोनों का चयन हो गया था. गुड़गांव में अपना आफिस खोल कर भारत में काम करने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी से दोनों को 5-5 लाख रुपए का पैकेज मिला था. नौकरी की शुरुआत करते हुए दोनों ने शादी का फैसला लिया तो उन के घर वाले इस अंतर्जातीय विवाह के लिए तैयार नहीं थे. आखिर दोनों ने अपने परिवार वालों से हमेशा के लिए संबंध तोड़ कर कोर्ट में शादी कर ली थी.

पतिपत्नी दोनों को अच्छा वेतन मिल रहा था, इसलिए उन के सामने किसी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी लेकिन समस्या समय की जरूर थी. उन के आफिस जाने का समय तो निश्चित था, लेकिन घर वापस आने का नहीं. कंपनी अच्छे वेतन के बदले उन से जम कर काम लेती थी. वह और रवि दोनों एक ही कंपनी के अलगअलग दफ्तरों में काम कर रहे थे. रवि अकसर टूर पर बाहर जाता था लेकिन वह केवल दफ्तर में कार्य करती और वापस घर आ जाती.

शादी के साल भर बाद ही उन्होंने एक फ्लैट खरीद लिया. जाहिर है हर पतिपत्नी का एक सपना होता है कि अपना घर हो, उन का सपना पूरा हो गया. फ्लैट खरीदा तो घर में काम आने वाली दूसरी वस्तुएं भी खरीद लीं. मकान व सामान के लिए उन्होंने बैंक से जो लोन लिया था वह दोनों के वेतन से कट जाता था.

रवि व उस का सोसाइटी के लोगों से मिलना कभीकभार ही होता था, क्योंकि दोनों काफी देर से आते थे और जल्दी घर से निकल जाते थे. उन का फ्लैट अकसर बंद ही रहता था. किसी रिश्तेदार के आने का सवाल ही नहीं था. दोस्त आदि तो आफिस की पार्टी में ही मिल लेते थे. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उन का आफिस ही उन के लिए घर हो गया था, जहां लंच, डिनर आदि सबकुछ मिलता था. कईकई रात तो वे लोग फ्लैट पर आते ही नहीं थे. किसी सहकर्मी के यहां पार्टी के बाद वहीं रात बिता लेते थे. लेकिन सोसाइटी होने के कारण उन का फ्लैट सुरक्षित था.

शुरू में तो उस ने व रवि ने बच्चा पैदा न करने का फैसला लिया था लेकिन बाद में सहकर्मियों के परिवारों को देखते हुए उन्होंने एक बच्चा पैदा करने का फैसला कर लिया तथा एक साल के अंदर ही शंकुल उन के घर में नन्हा मेहमान बन कर आ गया.

कोई रिश्तेदार दिल्ली में था ही नहीं. क्रैच काफी दूर था और जो थे वे भी इतने छोटे बच्चे को रखने के लिए तैयार नहीं थे. अत: दीपिका को हर तरह की छुट्टी लेनी पड़ी, जिस में बिना वेतन अथवा आधा वेतन पर ली गई छुट्टियां भी शामिल थीं. लेकिन बच्चे के आने से घर में रौनक थी. रवि बच्चे को ले कर बहुत ही उत्साहित था. जब दीपिका खाना बनाती तब रवि बच्चे के साथ खेलता, उस को कंधे पर चढ़ा लेता, उछाल देता. दीपिका भी नौकरानी को घर का काम सौंप कर बच्चे के साथ खूब खेलती. दोनों का सपना,  शंकुल के भविष्य में नजर आता. वे दोनों अपनी तरह बच्चे को खूब पढ़ालिखा कर कंप्यूटर इंजीनियर बनाना चाहते थे, ताकि वह अमेरिका जा सके और उन का नाम रोशन कर सके. लेकिन एक साल के अंदर ही कंपनी का नोटिस आ गया कि शीघ्र नौकरी शुरू करो या त्यागपत्र भेजो.

घर में पार्टटाइम नौकरानी आती थी. दीपिका ने उस से पूरे दिन काम करने का प्रस्ताव रखा लेकिन उस ने मना कर दिया. अंत में उस ने प्लेसमेंट सर्विस से संपर्क किया. 2 महीने का अग्रिम कमीशन के रूप में ले कर लगभग 30 वर्षीय महिला की प्लेसमेंट वालों ने सेवा उपलब्ध करा दी. चूंकि दोनों की मजबूरी थी इसलिए एग्रीमेंट की कड़ी शर्तें भी उन्होंने मंजूर कर लीं. शर्तों के अनुसार 5 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन, घर के सदस्यों की भांति भोजन, कपड़ा तथा वार्षिक छुट्टी आदि नौकरानी को देने थे.

अब दीपिका ने अपनी नौकरी फिर से शुरू कर दी, लेकिन अब उस को घर पहुंचने की जल्दी रहती थी. दोनों ने पार्टियां भी कम कर दी थीं. रवि भी पूरी कोशिश करता कि समय से घर पहुंच कर अपने बच्चे के साथ खेल सके. आखिर शंकुल पतिपत्नी दोनों का भविष्य था. दोनों ही अपनी भांति उस को भी कंप्यूटर इंजीनियर बनाना चाहते थे. दोनों सुबह काम पर जाने से पहले अपना कमरा बंद कर शंकुल को नौकरानी के हवाले कर के जाते. फ्लैट में एक कमरा नौकरानी का था लेकिन दिन में पूरे फ्लैट की जिम्मेदारी नौकरानी की ही थी. वह जो चाहती बना कर खा लेती तथा बच्चे को खिला देती.

इधर कुछ दिनों से नौकरानी फ्लैट बंद कर के शंकुल को साथ ले कर बाहर घूमने चली जाती थी. दोनों ही नौकरानी को अपने परिवार का सदस्य मानने लगे थे तथा जब भी बाहर घूमने जाते उस को भी अच्छे कपड़ों में साथ ले जाते थे.

इतने में दरवाजे की घंटी बजी, दीपिका अतीत से वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोला तो रवि खड़ा था. रवि ने आते ही जोर से कहना शुरू किया, ‘‘समझ में नहीं आता कि क्यों तुम ने त्यागपत्र भेजा और क्यों नौकरानी को निकाल दिया?’’

दीपिका एकदम शांत रही और सोए शंकुल के बालों में उंगलियां घुमाती रही. रवि का गुस्सा जब तक शांत हुआ तब तक शंकुल भी सो कर उठ गया था. पापा को आया देख कर वह उन की गोद में चला गया. रवि भी थकान, गुस्सा भूल कर बच्चे के साथ खेलने लगा. रवि बेटे से बातें किए जा रहा था कि बड़ा हो कर मेरा बेटा भी कंप्यूटर इंजीनियर बनेगा, अमेरिका जाएगा आदि. इतने में दीपिका नाश्ता ले आई. रवि ने उस से फिर पूछा, ‘‘प्लीज, दीपू, पूरी बात बताओ न.’’

दीपिका ने ठंडी सांस ले कर बोलना शुरू किया, ‘‘आज सुबह जब आफिस जाना था तो सिर में भयंकर दर्द था. मैं ने तुम्हें बताया नहीं और गोली खाने के बाद आफिस पहुंच गई. वहां जरमनी से एक डेलिगेशन को आना था. लेकिन आफिस में पहुंचने पर पता चला कि मीटिंग कैंसिल हो गई है क्योंकि डेलिगेशन भारत पहुंचा ही नहीं. अत: मैं ने छुट्टी ले कर आराम करने का फैसला किया.

‘‘तकरीबन 11 बजे मैं आफिस से निकल कर घर की ओर चल दी. टै्रफिक कम होने के कारण मैं जल्दी ही घर पहुंच गई. सोसाइटी से पहले वाले चौराहे पर मैं ने कुछ फल खरीद कर गाड़ी में रखे ही थे कि एक भिखारिन को गोद में बच्चा ले कर भीख के लिए एक महिला के सामने खड़ा देखा. मुझे वह भिखारिन कुछ जानीपहचानी सी लगी. मैं ने गाड़ी में बैठ कर उसे गौर से देखा तो मेरा दिल धक से रह गया. वह भिखारिन गाड़ी की तरफ आ रही थी और पास आई तो देखा भिखारिन और कोई नहीं हमारी नौकरानी थी और उस की गोद में हमारा शंकुल.

‘‘चौराहे पर बिना कोई ड्रामा किए मैं दोनों को घर ले आई तथा नौकरानी का सामान बाहर फेंक कर उसे हमेशा के लिए दफा किया. उस से पूछा तो पता चला कि हमारे आफिस जाने के बाद शंकुल को गंदे कपड़े पहना कर और खुद भी गंदे कपड़े पहन कर वह हर रोज 4-5 घंटे चौराहे पर भीख मांगा करती है. दोपहर के बाद घर आ कर बच्चे को नहलाधुला कर अच्छे कपड़े पहना कर खाना खिला कर सुला देती थी. वह तो अच्छा हुआ कि आज सचाई का खुद पता चल गया.’’

दीपिका की बातें सुन कर रवि ने गहरी सांस भरी और पास आ कर पत्नी व बेटे को चूम लिया और बोला, ‘‘तुम्हारा निर्णय ठीक है. हम तो अपने बच्चे को कंप्यूटर इंजीनियर बनाना चाहते हैं लेकिन इस नौकरानी ने तो हाथ में कटोरा पकड़ा दिया.’’

‘‘कंप्यूटर से कटोरा,’’ दीपिका ने मुस्करा कर कहा. Hindi Family Story

Emotional Story: हमदर्द

Emotional Story: पति की मृत्यु के बाद एकमात्र सहारा बचा था, बिल्लू. बेटे को पालपोस कर बड़ा करना यही एकमात्र ध्येय रह गया था कावेरी के लिए.

लेकिन ज्योंज्यों बिल्लू बड़ा होता गया कावेरी ने महसूस किया कि उस के मन में मां के लिए कोई लगाव, प्यार नहीं है.

बेटा जैसा भी व्यवहार करे लेकिन मां होने के नाते वह उस का बुरा सोच भी नहीं सकती थी. अब मन में यही आशा शेष बची थी कि बहू के आने से शायद उस के घर की वीरानी दूर हो जाएगी लेकिन उस पर तब वज्रपात हुआ जब बिल्लू ने बताया कि वह कोर्ट मैरिज कर के बहू घर ला रहा है. घर की नौकरानी जशोदा जो कावेरी का पूरा ध्यान रखती थी, वह भी बिल्लू के इस रवैए को गलत ठहराती है.

बिल्लू अपनी नवब्याहता को घर लाता है. जींस टीशर्ट पहने बहू अनजान सी कमरे में घुस जाती है. कावेरी हैरान होती है कि किस तरह की लड़की है. तमीज, संस्कार कुछ भी नहीं हैं. रोज बेटाबहू नाश्ता करते और आफिस निकल जाते. अब आगे…

गतांक से आगे…

अंतिम भाग

सासबहू दोनों उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के निवासी हैं तो निकटता आएगी कहां से? जो भी हो समय रुकता नहीं, हर रात के बाद तारीख बदलती है और हर महीने के बाद पन्ना पलट जाता है. कलर बदल कर दूसरा लगा और उस के भी कई पन्ने बदल गए. तभी अचानक एक दिन कावेरी को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है. जो गाड़ी सीधी सपाट पटरी पर दौड़ रही थी वह अब झटके खाने लगी है.

जशोदा कमरे में थाली दे आती है. बेटा तो अब भी घूमने निकल कर जाता तो रात में खा कर आता है पर बहू घर में ही रहती है. कभीकभार गई तो जशोदा से बोल जाती है कि उस का खाना न रखे. बहू में कोई भी अच्छाई नहीं थी, औरतों में जो सहज गुण होते हैं वह भी उस में नहीं थे पर एक बात अच्छी थी जो कावेरी को पसंद थी. वह यह कि बहू बहुत मीठा बोलती थी. एक तो वह बोलती ही कम थी, कभी पति या जशोदा से बोली भी तो इतनी धीमी आवाज में कि अगले को सुनने में कठिनाई हो. पर अब कभीकभी बंद दरवाजे के उस पार से उस की आवाज बाहर आ कर कावेरी के कानों से टकराती. शब्द तो समझ में नहीं आते पर वह उत्तेजित है, गुस्से में है यह समझ में आता है. यह झल्लाहट भरा स्वर सीधेसीधे मनमुटाव का संकेत है. कावेरी इतना अवश्य जान जाती.

कावेरी चिंता में पड़ गई. शादी को थोड़े दिन ही हुए हैं और अभी से आपसी झगड़ा. यह कोई अच्छी बात तो नहीं है. बेटा बदमिजाज के साथ स्वार्थी भी है यह तो जानती है पर मां के साथ जैसा किया वैसा पत्नी के साथ नहीं चल सकता, इतनी सी बात वह न समझे इतना तो मूर्ख नहीं.

अरे, मां से जन्म का बंधन है, हजार अपमान सह कर भी बेटे को छोड़ कर जाने के लिए उस के पैर नहीं उठेंगे लेकिन पत्नी तो औपचारिकता के बीच बंधा रिश्ता है, जब चाहे तोड़ लो. उस पर अपना रौबदाव चलाने का प्रयास करेगा तो वह क्यों सहेगी, उस पर बराबर की कमाने वाली पत्नी.

गलती बहू की ही है यह कौन जाने? और जान कर होगा भी क्या? उन का जीवन वे जी रहे हैं, अपना जीवन कावेरी जी रही है. यही तर्क दे कर अपने मन को शांत करती. पर यह एक कांटा उस के मन को चुभता रहता कि पल्ला झाड़ लेने से समस्या का समाधान नहीं होता…बहू सुंदर एकदम नहीं, उसे पसंद भी नहीं, चेहरामोहरा जैसा भी हो कावेरी को उस की आंखें पसंद थीं. बड़ीबड़ी 2 उजली आंखों में जीवन का सपना भरा रहता था. अब वह आंखें बुझीबुझी सी हो गई हैं. ऐसा क्यों हुआ? यह तो प्रेमविवाह है. एकदूसरे को जांचपरख, समझबूझ कर दोनों विवाह तक पहुंचे हैं. थोपी हुई शादी नहीं थी कि एकदूसरे को समझने का अवसर नहीं मिला. फिर ऐसा क्यों हुआ? 2 साल भी नहीं हुए एकदूसरे के प्रति आकर्षण ही समाप्त हो गया. अभी तो सामने पूरा जीवन पड़ा है. ऐसे क्या ये सारा जीवन काटेंगे. अपनीअपनी धुन पर चलने लगे तो जीवन की गाड़ी चलेगी कैसे? विराग, विद्वेष का कारण क्या है पता चले तो समझाया भी जा सकता है पर अंधेरे में वह तीर चलाएगी किधर?

जशोदा से कुछ कहना बेकार है. वह तो पहले से ही जलीभुनी बैठी है. रोज एक बार यह जरूर कहती है कि आंटी, इन को अपने घर से भगाओ. इन से तो किराएदार भले जो किराया भी देंगे, देखभाल भी करेंगे.

पहले ही दिन से उस ने बहू से एक दूरी बना ली थी और उसे बराबर बना कर रखा था. सोचा था नई बहू है, दूरी को मिटाने के लिए पहल करेगी पर नहीं, अब तक उस ने दूरी मिटाने की पहल करना तो दूर उस दूरी की दीवार पर पक्के पलस्तर की परत चढ़ा दी. लेकिन हालात ने करवट ली, बहू की दूरी मिटाने के लिए उसी को पहल करनी पड़ी. वह रोज सुबह पार्क से घंटे भर में टहल कर लौट आती है पर उस दिन पार्क के लिए श्रमदान का कार्यक्रम चल रहा था इसलिए लौटने में 3 घंटे लग गए. घर के अंदर पैर रखते ही मन धक्क सा कर उठा, एक अनजान आशंका से पीडि़त हो उठी वह. वैसे तो उस का घर शांत ही रहता है पर आज उसे घर के अंदर अजीब सा सन्नाटा लगा.

बेटे के कमरे का दरवाजा पूर्व की भांति बंद है पर जशोदा का पता नहीं कि वह कहां है.

पहले कावेरी ने कमरे में जा कर कपड़े बदले फिर चाय के लिए जशोदा को खोजती हुई पीछे के बरामदे में आई तो देखा जशोदा वहां छोटी चौकी पर सिर पकड़े बैठी थी. उसे देखते ही वह रो पड़ी, ‘‘घर बरबाद हो गया, मांजी.’’

सन्न रह गई कावेरी.

‘‘क्या हुआ? रो क्यों रही है?’’

‘‘भैया घर छोड़ गया.’’

‘‘क्या? क्या दोनों चले गए?’’

‘‘नहीं…केवल भैया गया है. वह रानीजी तो कमरे में सो रही हैं. आंटी, आप के जाने के बाद दोनों में खूब झगड़ा हुआ. भैया अपने कपड़े 2 अटैचियों में भर कर गाड़ी स्टार्ट कर चला गया.’’

अब कावेरी भी उसी चौकी पर बैठ गई.

‘यह घटना तो सोच के बाहर की है. पढ़ने, सुनने और देखने में यही आता है कि बहू को घर से निकाला गया है पर पत्नी को घर में रख कर पति घर छोड़ गया, ऐसी घटना तो कभी देखी या सुनी नहीं.’ जशोदा चाय का पानी रखते हुए बड़बड़ा रही थी, ‘बेचारा करेगा भी क्या? यह औरत है ही पूरी मर्दमार.’

कावेरी ने डांटा, ‘‘चुप कर. यह मर्दमार हो या न हो पर वह पूरा शैतान है.’’

‘‘यह उस का घर है, वह क्यों जाएगा घर छोड़ कर. तुम इसे निकालो घर से तब भैया लौटेगा. न रंग, न रूप, न अदब न कायदा…आसमान पर पैर धर कर चलती है.’’

‘‘अब तू चुप भी करेगी या नहीं? कुछ खाया इन लोगों ने?’’

‘‘नहीं, पहले लड़ते रहे फिर भइया चला गया.’’

‘‘चाय बना कर खाना तैयार कर. 11 बजने को हैं. चाय 2 कप बनाना.’’

टे्र में 2 प्याली चाय ले कर कावेरी अंदर आई और स्टूल पर टे्र रख दी. कावेरी को देखते ही रीटा ने सिर झुका लिया. आज कावेरी ने इतने दिनों में पहली बार बहू को नजर भर देखा. इतने दिन मन में इतना विराग था कि मुंह देखने की इच्छा ही नहीं हुई. आज मैक्सी पहने, सिर झुका कर बैठी बहू बड़ी असहाय और मासूम लग रही थी. कावेरी के मन में टीस उठी. कुछ  भी हो, कैसे भी घर की बेटी हो पर उस का बेटा इसे पत्नी का दर्जा दे कर घर लाया है, उस की पुत्रवधू है और यह परिचय समाज ने स्वीकार भी कर लिया है तो कितनी भी अलगथलग रहे, है तो उस के परिवार का हिस्सा ही…और चूंकि वह इस परिवार की मुखिया है तो परिवार के हर सदस्य के सुखदुख का दायित्व उस का ही है.

कावेरी ने पहली बार बहू के सिर पर अपना हाथ रखा और नरम स्वर में बोली, ‘‘चाय पी लो, बेटी.’’

उस की आंखें डबडबा गईं. रुलाई रोकने के लिए दांतों तले होंठ दबाया, पर चाय उठा ली और धीरेधीरे पीने लगी. कावेरी ने अपना कप उठा लिया और उस के पास बिस्तर पर बैठ गई और बहू की तरह पैर लटका कर वह भी चाय पीने लगी. चाय समाप्त कर दोनों ने कप टे्र में रख दिए. तब कावेरी बोली, ‘‘बताओगी कि तुम दोनों का झगड़ा क्या है?’’

यह सुन कर उस का सिर और झुक गया.

‘‘चिंता मत करो,’’ कावेरी ने बहू को समझाते हुए कहा, ‘‘ऐसा कभीकभी हो जाता है. बिल्लू को गुस्सा जल्दी आता है तो उतर भी जल्दी जाता है. देखना कल ही आ जाएगा.’’

वह इतना सुन कर सुबक उठी और बोली, ‘‘अब वह नहीं आएगा.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो?’’ चौंकी कावेरी, ‘‘लौटेगा क्यों नहीं?’’

‘‘झगड़ा तलाक को ले कर हो रहा था.’’

‘‘तलाक, पर क्यों?’’

‘‘वह मांग रहा था और मैं दे नहीं रही थी इसलिए.’’

‘‘क्या कह रही हो? तुम दोनों ने तो अपनी पसंद से शादी की थी. क्या तुम्हारे बीच प्यार नहीं था?’’

‘‘प्यार तो था तभी तो भरोसा किया था. पर उस के आफिस में एक नई रिसेप्शनिस्ट आई है और अब बिल्लू उसे पसंद करने लगा है. कह रहा था कि मुझ से तलाक ले कर उस से शादी करेगा.’’

यह सुन कर जलभुन गई कावेरी.

‘‘शादी मजाक है क्या और मेरा घर भी होटल नहीं कि जब जिसे चाहे ले कर आ जाए. अब गया कहां है.’’

‘‘तलाक नहीं मिला तो किराए पर एक फ्लैट लिया है. वे दोनों वहीं लिव टू गेदर करेंगे.’’

कावेरी के पैरों के नीचे से धरती खिसक गई.

‘‘बिना विवाह किए ही साथ रहेंगे?’’

‘‘आजकल बहुत से युवकयुवतियां इस तरह साथ रह रहे हैं.’’

दोनों देर तक चुप रहीं. फिर रीटा बोली, ‘‘आप से एक प्रार्थना है.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘आप मां हैं पर मैं ने आप को कभी सम्मान नहीं दिया. मां कहने का अधिकार भी नहीं लिया पर आप से विनती है कि कुछ दिन मुझे अपने घर रहने देंगी?’’

‘‘यह…यह तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘मांजी, मेरे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है. खोजने में थोड़ा समय लगेगा…तब तक…’’

‘‘तुम्हारे मातापिता?’’ कावेरी ने बीच में उस की बात काटते हुए पूछा.

‘‘मैं अनाथ आश्रम में पली हूं. मातापिता कौन हैं? हैं भी या नहीं, मुझे नहीं पता. आश्रम अच्छे स्तर का था. मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी तो ट्रस्ट ने मुझे पढ़ाया. स्कालरशिप भी मिलती थी. बी.एससी. के बाद कंप्यूटर की डिगरी ली. चाहती थी डाक्टर बनना पर ट्रस्ट ने इतनी लंबी पढ़ाई की जिम्मेदारी नहीं ली. इस के बाद मुझे यह नौकरी मिल गई. मुझे 20 हजार रुपए तनख्वाह मिलती है सो कहीं भी किराए पर घर ले सकती हूं पर डर लगता है सुरक्षा कौन देगा. मैं लड़कियों के किसी होस्टल की तलाश में हूं, मिलते ही चली जाऊंगी. बस, तब तक…’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो. तुम इस घर में ब्याह कर आई हो. इस घर की बहू हो तो मेरे रहते तुम अकेले किराए के घर में रहोगी?’’

इतनी देर में झरझर रो पड़ी रीटा. कावेरी का मन ममता से भर उठा. उसे लगा कि वह उस की अपनी बेटी है. उस ने रीटा को स्नेह से सीने से लगा लिया और बोली, ‘‘रोना नहीं. कभी मत रोना. आंसू औरत को कमजोर करते हैं और कमजोर पर पूरी दुनिया हावी हो जाती है, चाहे वह पति हो या बेटा. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम मेरे पास ही रहोगी, कहीं नहीं जाओगी.’’

रीटा ने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘अगर बिल्लू लौट आया और घर छोड़ने को बोला तो?’’

‘‘बेटी, यह घर मेरा है, उस का नहीं. इस में कौन रहेगा कौन नहीं रहेगा इस का फैसला मैं करूंगी. हां, शराफत के साथ लौटे और हमारे साथ समझौता कर के रहना चाहे तो वह भी रहे.’’

‘‘मांजी, मैं उसे कभी तलाक नहीं दूंगी, यह तो तय है.’’

‘‘कभी मत देना. देखो, उस ने मेरा बहुत अपमान, अनादर किया है पर मैं ने उसे घर से नहीं निकाला. जानती हो क्यों? वह इसलिए कि 2 प्राणियों का परिवार, एक गया तो बचेगा क्या? अब वह खुद घर छोड़ गया है. अब लौटना है तो हमारी शर्तों पर लौटेगा नहीं तो जाए.’’

‘‘पर वह जबरदस्ती…’’

‘‘घर में फोन है और पुलिस थाना भी दो कदम पर है. चलो उठो, नहाधो कर खाना खाओ.’’

रीटा अपनी सास से लिपट गई. आज उसे पहली बार महसूस हुआ कि मां का प्यार व स्नेह क्या होता है.

Hindi Drama Story: चौथा चक्कर

Hindi Drama Story: रामजी एक सरकारी दफ्तर में बड़े साहब थे. सुबह टहलने जाते तो पूरी तरह तैयार हो कर जाते थे. पांव में चमकते स्पोर्ट्स शूज, सफेद पैंट, सफेद कमीज, हलकी सर्दी में जैकेट, सिर पर कैप, कभीकभी हाथ में छड़ी. पार्क में टहलने का शौक था, अत: घर से खुद कार चला कर पार्क में आते थे. वहां पर न जाने क्यों 3 चक्कर के बाद वह बैठ जाते. शायद ही कभी उन्होंने चौथा चक्कर लगाया हो.

उस दिन पार्क में बहस छिड़ गई थी.

कयास लगाने वालों में एक ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘अरे, बामन ने 3 पग में पृथ्वी नाप दी थी तो रामजी साहब 3 चक्कर में पार्क को नाप देते हैं.’’

कुछ दिन पहले पार्क के दक्षिण में हरी घास के मैदान पर सत्संगियों ने कब्जा कर लिया. वे अपने किसी गुरु को ले आए थे. छोटा वाला माइक और स्पीकर भी लगा लिया था. गुरुजी के लिए एक फोल्ंिडग कुरसी कोई शिष्य, जिस का मकान पार्क के पास था, ले आता था.

इस बीच घूमने वाले, अपने घूमने का समय कम कर वहां बैठ जाते थे और गुरुजी मोक्ष की चर्चा में सब को खींचने का प्रयास करते थे. वह बता रहे थे कि थोड़े से अभ्यास से ही तीसरी आंख खुल जाती है और वही सारी शक्तियों का घर है. हमारे गुरु पवित्र बाबा के आश्रम पर आप आइए, मात्र 7 दिन का सत्संग है.

पता नहीं क्यों, गुरुजी को रामजी साहब की सुंदर शख्सियत भा गई. उन के भीतर का विवेकानंद जग गया. अगर यह सुदर्शन मेरे सत्संग में आ जाए, तो फिर शायद पूरे पार्क के लोग आ जाएं. उन्होंने सावधानी से रामजी साहब की परिक्रमा के समय…जीवन की क्षणभंगुरता, नश्वर शरीर को ले कर, कबीर के 4 दोहे सुना दिए, पर रामजी का ध्यान उधर था ही नहीं.

‘‘खाली घूमने से कुछ नहीं होगा. प्राण शक्ति का जागरण ही योग है,’’ गुरु समझा रहे थे.

रामजी साहब ने अनसुना करते हुए भी सुन लिया…

उन के दूसरे चक्कर के समय, एक शिष्य उन के नजदीक आया और बोला, ‘‘गुरुजी, आप से कुछ बात करना चाहते हैं.’’

‘‘क्यों? मुझे तो फुरसत नहीं है.’’

‘‘फिर भी, आप मिल लें. वह सामने बैठे हैं.’’

‘‘पर वहां तो एक ही कुरसी है.’’

‘‘आप उधर बैंच पर आ जाएं, मैं उधर चलता हूं.’’

शिष्य को यह सब बुरा लगा. फिर भी वह अपने गुरुजी के पास यह संदेश ले गया.

गुरुजी मुसकराते हुए उठे, ‘‘नारायण, नारायण…’’

रामजी साहब ने गुरुजी को नमस्कार किया तो उन का हाथ, आशीर्वाद की मुद्रा में उठा और बोले, ‘‘वत्स, आप का स्वास्थ्य कैसा है?’’

‘‘बहुत बढि़या.’’

‘‘आप रोजाना इस पार्क में टहलने आते हैं?’’

‘‘हां.’’

‘‘पर मैं देखता हूं कि आप 3 ही चक्कर लगाते हैं, क्यों?’’

रामजी साहब हंसे, जैसे लाफिंग क्लब के सदस्य हंसते हैं. गुरुजी और शिष्य उन्हें इस तरह बेबाक हंसता देख अवाक् रह गए.

‘‘तो क्या आप मेरे चक्कर गिना करते हैं?’’ रामजी साहब ने पूछा.

‘‘नहीं, नहीं, ये भक्तगण इस बात की चर्चा करते हैं.’’

‘‘हां, पर आप ने तो सीधा ही चौथा चक्कर लगा लिया, क्या?’’

गुरुजी समझ नहीं पाए. वह अवाक् से रामजी साहब को देखते रह गए.

अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए रामजी साहब बोले, ‘‘महाराज, आप को इस कम उम्र में संन्यास की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’

‘‘मेरी बचपन से रुचि थी, संसार के प्रति आकर्षण नहीं था.’’

‘‘तो अब भी बचपन की रुचि उतनी ही है या बढ़ गई?’’ रामजी ने पूछ लिया. सवाल तीखा और तीर की तरह चुभने वाला था.

‘‘महाराज एक जातिगत आरक्षण होता है,’’ गुरुजी के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए रामजी आगे बोले, ‘‘उस में कम योग्य भी अच्छा पद पा सकता है, क्योंकि पद आरक्षित है और उस पर बैठने वाले भी कम ही हैं. एक यह ‘धार्मिक’ आरक्षण है, यहां कोई बैठ जाए, उस का छोटामोटा पद सुरक्षित हो जाता है. आप शनि का मंदिर खोल लें. वहां लोग अपनेआप खिंचे चले आएंगे. टीवी पर देखें, सुकुमार संतसाध्वियों की फौज चली आई. फिर आप को इस आरक्षण की क्यों जरूरत हो गई? पार्क में मार्केटिंग की अब क्या जरूरत है?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है, महाराज तो इंजीनियरिंग गे्रजुएट हैं, वैराग्य ही आप को इधर ले आया,’’ एक भावुक शिष्य बोला.

‘‘महाराज, वही तो मैं कह रहा हूं कि बिना 3 चक्कर चले आप चौथे पर कैसे पहुंच गए?’’

‘‘नहीं, नहीं, मैं ने विद्याध्ययन किया है, स्वाध्याय किया है, गुरु आश्रम में दीक्षा ली है,’’ महाराज बोले.

‘‘पहला चक्कर तो पूरा ही नहीं हुआ और पहले से चौथे पर छलांग और महाराज, जो आप कह रहे थे कि चौथे चक्कर की जरूरत है, तो क्यों? अभी तो नौकरी की लाइन में लगना था?

‘‘बुद्ध के जमाने में दुख था, होगा. हमारे बादशाहों के महल में एक भी वातानुकूलित कमरा नहीं था. आज तो आम आदमी के पास भी अच्छा जीवन जीने का आधार है. घर में गैस है, फ्रिज है, गाड़ी है, घूमने के लिए स्कूटर है. उस की सुरक्षा है. उस के बच्चे स्कूल जाते हैं. घर है. महाराज, आज जीवन जीने लायक हो गया है. बताएं, सब छोड़ कर किस मुक्ति के लिए अब जंगल जाया जाए?’’

गुरुजी चुप रह गए थे.

‘‘सात प्राणायाम, आंख मींचने की कला, गीता पर व्याख्यान, इस से ही काम चल जाए फिर कामधाम की क्या जरूरत है?’’

रामजी साहब की बात सुन कर शिष्यगण सोच रहे थे, उन्हें क्यों पकड़ लाए.

‘‘फिर भी मानव जीवन का एक उद्देश्य है कि वह इस जीवन में शांति, प्रेम, आनंद को पाए. भारतीय संस्कृति जीवन जीने की कला सौंपती है, उस का भी तो प्रचार करना है,’’ महाराज बोले.

‘‘महाराज, उस के लिए घर छोड़ कर, आश्रम की क्या जरूरत है. आश्रम भी ईंटपत्थर का, यहां घर भी ईंटपत्थर का, भोजन की तो वहां भी जरूरत होती है, रहा सवाल ग्रंथ और पाठ का, तो वह घर पर भी कर सकते थे. आंख मींचना ही ध्यान है, तो आप कहीं भी ध्यान लगा सकते हैं, यह बात दूसरी है जब बेपढ़ेलिखे इस उद्योग में अच्छा कमा रहे हैं, तब पढ़ेलिखे तो बिजनेस चला ही लेंगे? आप ने मुझ से पूछा है, इसीलिए मैं ने भी आप से पूछ लिया, वरना इस चौथे चक्कर के पीछे मैं कभी नहीं पड़ता.’’

‘‘महाराज के गुरुजी के आश्रम तो दुनिया भर में हैं. आज शांति की जरूरत सब को है, जिसे आज पूरा विश्व चाहता है,’’ एक शिष्य बोला.

‘‘हां,’’ महाराज चहके, ‘‘यहां के लोगों में अज्ञान है, यहां विदेशों से लोग आते हैं और ज्ञान लेने में रुचि ले रहे हैं.’’

‘‘आप विदेश हो आए क्या?’’

‘‘अभी नहीं, महाराज का कार्यक्रम बन गया है. अगले माह जा रहे हैं,’’ दूसरा शिष्य चहका.

‘‘वहां क्यों? काम तो यहां अपने देश में बहुत है. गरीबी है, अज्ञान है, अशिक्षा है. महाराज, मुफ्त में विदेश यात्राएं, वहां की सुविधाएं, डालर की भेंट तो यहां नहीं है. पर महाराज यहां भी बाजार मंदा नहीं है.’’

शिष्यगण नाराज हो चले थे. सुबहसुबह जो पार्क में टहलने आए थे वे भी यह संवाद सुन कर रुक गए थे.

‘‘लगता है आप बहुत अशांत हैं,’’ महाराज बोले, ‘‘कसूर आप का नहीं है, कुछ तत्त्व हैं, वे हमेशा धर्म के खिलाफ ही जनभावना बनाते रहते हैं. पर उस से क्या फर्क पड़ा? दोचार पत्रपत्रिकाएं क्या प्रभाव डालेंगी? आज करोड़ों मनुष्य सुबह उठते ही धर्म से जुड़ना चाहते हैं. सारे चैनल हमारी बात कह रहे हैं. कहां क्या गलत है?’’

महाराज ने गर्व के साथ श्रोताओं की ओर देखा. शिष्यों ने तालियां बजा दी थीं.

‘‘आप सही कह रहे हैं, आजादी के समय न इतने बाबा थे, न इतना पाप बढ़ा था. जब आप कर्मफल को मानते हैं तब इन कर्मकांडी व्यापारों की क्या जरूरत है. क्या 10 मिनट को आंख मींचने से, मंदिर की घंटियां बजाने से, यज्ञ करने से, तीर्थयात्रा से कर्मफल कट सकता है? महाराज, शांति तो भांग पी कर भी आ जाती है. मुख्य बात मन का शांत होना होता है और वह होता है, अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने से, पलायन से नहीं.’’

युवा संन्यासी का चेहरा उतर गया था.

उस ने उठने का संकेत किया.

‘‘महाराज, पहला चक्कर धर्म का था, वह तो पैदा होते ही मिल गया. शिक्षा ग्रहण की, बड़े हुए तो देश का कानून मिल गया, समाज का विधान मिल गया. धन का दूसरा चक्कर लगाया, 30 साल नौकरी की. तीसरा चक्कर गृहस्थी का अभी चल रहा है, चलेगा. इन तीनों चक्करों में महाराज खूब सुख मिला है, मिल रहा है, शांति है.

‘‘महाराज, यह चौथा चक्कर तो नीरस होता है. जब इतना सुख मिल रहा है तो मोक्ष पाने को चौथा चक्कर क्यों लगाएं.

‘‘मृत्यु के बाद आनंद कैसा, आज तक तो कोई बताने आया नहीं. सुख तो देह भोगती है, शांति मन भोगता है, पर महाराज, जब तन और मन दोनों ही नहीं होंगे, तब कौन भोगेगा और कौन बताएगा? जैसे साधारण आदमी की मौत होती है वैसे ही महात्मा रोगशोक से लड़ते हुए मरते हैं.

‘‘महाराज मान लें, इसी जीवन में मोक्ष मिल जाएगा तो महाराज उस की शर्त तो ‘कष्टवत’ हो जाना है, और बाद मरने के मोक्ष मिला तो. महाराज, कल आप कह रहे थे, बूंद समुद्र में मिल जाएगी तो समुद्र का पानी खारा होता है, पीने लायक ही नहीं, उस नीरस जीवन से तो यह सरस जीवन श्रेष्ठ है. हां, धंधे के लिहाज से ठीक है, आप इंजीनियर हैं, कंप्यूटर जानते हैं, इंटरनेट जानते हैं, अच्छी अंगरेजी आती है. कमाएं, पर मुझे बख्शें. हां, यह बात दूसरी है, आज जैसे बालाएं विज्ञापन में बिक रही हैं, बाबा भी बिक रहे हैं, उन का काम धन कमाना है. कोई सुने या न सुने अपनी बात कहने का हक तो है न.

‘‘आप लोग विचारें, मैं तो अपने इन 3 चक्करों में ही संतुष्ट हूं. क्यों अनावश्यक उस चौथे चक्कर के प्रपंच में पड़ कर अपने 3 चक्करों के सुख को खोऊं. सुख तो आप लोग खो रहे हो,’’ रामजी साहब ने भक्तों की ओर देखते हुए कहा.

भक्त लोग अवाक् थे, सोच रहे थे, क्या रामजी ने कुछ गलत कहा है, सोच तो वह भी यही रहे थे, पर कह नहीं पा रहे थे, क्यों?

Short Story in Hindi: दंश

Short Story in Hindi: सोना भाभी वैसे तो कविता की भाभी थीं. कविता, जो स्कूल में मेरी सहपाठिनी थी और हमारे घर भी एक ही गली में थे. कविता के साथ मेरा दिनरात का उठनाबैठना ही नहीं उस घर से मेरा पारिवारिक संबंध भी रहा था. शिवेन भैया दोनों परिवारों में हम सब भाईबहनों में बड़े थे. जब सोना भाभी ब्याह कर आईं तो मुझे लगा ही नहीं कि वह मेरी अपनी सगी भाभी नहीं थीं.

सोना भाभी का नाम उषा था. उन का पुकारने का नाम भी सोना नहीं था, न हमारे घर बहू का नाम बदलने की कोई प्रथा ही थी पर चूंकि भाभी का रंग सोने जैसा था अत: हम सभी भाईबहन यों ही उन्हें सोना भाभी बुलाने लगे थे. बस, वह हमारे लिए उषा नहीं सोना भाभी ही बनी रहीं. सुंदर नाकनक्श, बड़ीबड़ी भावपूर्ण आंखें, मधुर गायन और सब से बढ़ कर उन का अपनत्व से भरा व्यवहार था. उन के हाथ का बना भोजन स्वाद से भरा होता था और उसे खिलाने की जो चिंता उन के चेहरे पर झलकती थी उसे देख कर हम उन की ओर बेहद आकृष्ट होते थे.

शिवेन भैया अभी इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे कि उन्हें मातापिता ही नहीं दादादादी के अनुरोध से विवाह बंधन में बंधना पड़ा. पढ़ाई पूरी कर के वह दिल्ली चले गए फिर वहीं रहे. हम लोग भी अपनेअपने विवाह के बाद अलगअलग शहरों में रहने लगे. कभी किसी खास आयोजन पर मिलते तो सोना भाभी का प्यार हमें स्नेह से सराबोर कर देता. उन का स्नेहिक आतिथ्य हमेें भावविभोर कर देता.

आखिरी बार जब सोना भाभी से मिलना हुआ उस समय उन्होंने सलवार सूट पहना हुआ था. वह मेरे सामने आने में झिझकीं. मैं ड्राइंगरूम में बैठने वाली तो थी नहीं, भाग कर दूसरे कमरे में पहुंची तो वह साड़ी पहनने जा रही थीं.

मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘यह क्या भाभी, आज तो आप बड़ी सुंदर लग रही हो, खासकर इस सलवार सूट में.’’

‘‘नहीं,’’ उन्होंने जोर देते हुए कहा.

मैं ने उन्हें शह दी, ‘‘भाभी आप की कमसिन छरहरी काया पर यह सलवार सूट तो खूब फब रहा है.’’

‘‘नहीं, माया, मुझे संकोच लगता है. बस, 2 मिनट में.’’

‘‘पर क्यों? आजकल तो हर किसी ने सलवार सूट अपने पहनावे में शामिल कर लिया है. यहां तक कि उन बूढ़ी औरतों ने भी जिन्होंने पहले कभी सलवार सूट पहनने के बारे में सोचा तक नहीं था… सुविधाजनक होता है न भाभी, फिर रखरखाव में भी साड़ी से आसान है.’’

‘‘यह बात नहीं है, माया. मुझे कमर में दर्द रहता है तो सब ने कहा कि सलवार सूट पहना करूं ताकि उस से कमर अच्छी तरह ढंकी रहेगी तो वह हिस्सा गरम रहेगा.’’

‘‘हां, भाभी, सो तो है,’’ मैं ने हामी भरी पर मन में सोचा कि सब की देखादेखी उन्हें भी शौक हुआ होगा तो कमर दर्द का एक बहाना गढ़ लिया है…

सोना भाभी ने इस हंसीमजाक के  बीच अपनी जादुई उंगलियों से खूब स्वादिष्ठ भोजन बनाया. इस बीच कई बार मोबाइल फोन की घंटी बजी और भाभी मोबाइल से बात करती रहीं. कोई खास बात न थी. हां, शिवेन भैया आ गए थे. उन्होंने हंसीहंसी में कहा कि तुम्हारी भाभी को उठने में देर लगती थी, फोन बजता रहता था और कई बार तो बजतेबजते कट भी जाता था, इसी से इन के लिए मोबाइल लेना पड़ा.

साल भर बाद ही सुना कि सोना भाभी नहीं रहीं. उन्हें कैंसर हो गया था. सोना भाभी के साथ जीवन की कई मधुर स्मृतियां जुड़ी हुई थीं इसलिए दुख भी बहुत हुआ. लगभग 5 सालों के बाद कविता से मिली तब भी हम दोनों की बातों में सोना भाभी ही केंद्रित थीं. बातों के बीच अचानक मुझे लगा कि कविता कुछ कहतेकहते चुप हो गई थी. मैं ने कविता से पूछ ही लिया, ‘‘कविता, मुझे ऐसा लगता है कि तुम कुछ कहतेकहते चुप हो जाती हो…क्या बात है?’’

‘‘हां, माया, मैं अपने मन की बात तुम्हें बताना चाहती हूं पर कुछ सोच कर झिझकती भी हूं. बात यह है…

‘‘एक दिन सोना भाभी से बातोंबातों में पता लगा कि उन्हें प्राय: रक्तस्राव होता रहता है. भाभी बताने लगीं कि पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है. 50 से 5 साल ऊपर की हो रही हूं्…

‘‘भाभी पहले से भी सुंदर, कोमल लग रही थीं. बालों में एक भी रजत तार नहीं था. वह भी बिना किसी डाई के. वह इतनी अच्छी लग रही थीं कि मेरे मुंह से निकल गया, ‘भाभी, आप चिरयौवना हैं न इसीलिए. देखिए, आप का रंग पहले के मुकाबले और भी निखरानिखरा लग रहा है और चेहरा पहले से भी कोमल, सुंदर. आप बेकार में चिंता क्यों कर रही हैं.

‘‘यही कथन, यही सोच मेरे मन में आज भी कांटा सा चुभता रहता है. क्यों नहीं उस समय उन पर जोर दिया था कि आप के साथ जो कुछ हो रहा है वह ठीक नहीं है. आप डाक्टर से परामर्श लें. क्यों झूठा परिहास कर बैठी थी?’’

मुझे भी उन के कमर दर्द की शिकायत याद आई. मैं ने भी तो उन की बातों को गंभीरता से नहीं लिया था. मन में सोच कर मैं खामोश हो गई.

भाभी और भैया दोनों ही अस्पताल जाने से बहुत डरते थे या यों कहें कि कतराते थे. शायद कुछ कटु अनुभव हों. वहां बातबात में लाइन लगा कर खड़े रहना, नर्सो की डांटडपट, बेरहमी से सूई घुसेड़ना, अटेंडेंट की तीखी उपहास करती सी नजर, डाक्टरों का शुष्क व्यवहार आदि से बचना चाहते थे.

भाभी को सब से बढ़ कर डर था कि कैंसर बता दिया तो उस के कष्टदायक उपचार की पीड़ा को झेलना पड़ेगा. उन्हें मीठी गोली में बहुत विश्वास था. वह होम्योपैथिक दवा ले रही थीं.

‘‘माया, बहुत सी महिलाएं अपने दर्द का बखान करने लगती हैं तो उन की बातों की लड़ी टूटने में ही नहीं आती,’’ कविता बोली, ‘‘उन के बयान के आगे तो अपने को हो रहा भीषण दर्द भी बौना लगने लगता है. सोना भाभी को भी मैं ने ऐसा ही समझ लिया. उन से हंसी में कही बात आज भी मेरे मन को सालती है कि कहीं उन्होंने मेरे मुंह से अपनी काया को स्वस्थ कहे जाने को सच ही तो नहीं मान लिया था और गर्भाशय के अपने कैंसर के निदान में देर कर दी हो.

‘‘माया, लगता यही है कि उन्होंने इसीलिए अपने पर ध्यान नहीं दिया और इसे ही सच मान लिया कि रक्तस्राव होते रहना कोई अनहोनी बात नहीं है. सुनते हैं कि हारमोन वगैरह के इंजेक्शन से यौवन लौटाया जा रहा है पर भाभी के साथ ऐसा क्यों हुआ? मैं यहीं पर अपने को अपराधी मानती हूं, यह मैं किसी से बता न सकी पर तुम से बता रही हूं. भाभी मेरी बातों पर आंख मूंद कर विश्वास करती थीं. 3-4 महीने भी नहीं बीते थे जब रोग पूरे शरीर में फैल गया. सोने सी काया स्याह होने लगी. अस्पताल के चक्कर लगने लगे, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.’’

मुझे भी याद आने लगा जब मैं अंतिम बार उन से मिली थी. मैं ने भी उन्हें कहां गंभीरता से लिया था.

‘‘माया, तुम कहानियां लिखती हो न,’’ कविता बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि सोना भाभी के कष्ट की, हमारे दुख की, मेरे अपने मन की पीड़ा तुम लिख दो ताकि जो भी महिला कहानी पढ़े, वह अपने पर ध्यान दे और ऐसा कुछ हो तो शीघ्र ही निदान करा ले.’’

कविता बिलख रही थी. मेरी आंखें भी बरस रही थीं. उसे सांत्वना देने वाले शब्द मेरे पास नहीं थे. वह मेरी भी तो बहुत अपनी थी. कविता का अनुरोध नहीं टाल सकी हूं सो उस की व्यथाकथा लिख रही हूं.

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