Couple Goals : शादी के बाद फिजिकल रिलेशनशिप के बारे में बताएं?

Couple Goals :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

Couple Goals :  27 वर्षीय पुरुष हूं. जल्द ही मेरा विवाह होने वाला है. सैक्स के बारे में दोस्तों से तरह तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं, जिन के कारण मन में कई प्रकार की दुविधाएं जाग उठी हैं. कृपया बताएं कि क्या सुहागरात के समय पहली बार शारीरिक मिलन करने पर स्त्री की योनि से रक्तस्राव होना जरूरी है?

जवाब

कुंआरी कन्या में योनिछिद्र को कुदरती झिल्ली ढांपे रहती है. इसे योनिच्छद कहते हैं. कन्या के कुंआरे बने रहने तक उस में सिर्फ एक छोटा सा छेद होता है. उस से ही मासिक रक्तस्राव होता है. यह छिद्र का व्यास हर कन्या में शुरू से ही अलग अलग होता है. कुछ में यह सूई की नोक जैसा महीन होता है तो कुछ में इतना बड़ा और खुला होता है कि उस में 2 उंगलियां तक गुजर सकती है.

यह सोचना गलत है कि हर कुंआरी कन्या में योनिच्छद अक्षत ही होगा. यह सच है कि कुछ कन्याओं का योनिच्छद इतना कोमल होता है कि वह साधारण खेलकूद में ही फट जाता है. मासिकधर्म के दिनों रक्तस्राव सोखने के लिए इंटरनल सैनिटरी पैड रखने से भी यह भंग हो सकता है. घुड़सवारी और दूसरी कई गतिविधियों में भी योनिच्छ फट सकता है.

अत: यह सोचना कि नववधू के कुंआरे होने पर पहले शारीरिक मिलन के समय योनिच्छद से हलका रक्तस्राव अवश्य होगा, बेतुका ही है. मन में इस प्रकार की गलत कसौटियां बना लेना ठीक नहीं है. इन के चलते वैवाहिक जीवन बेवजह नारकीय बन जाता है. नववधू अबोध होते हुए भी अनावश्यक संदेह के कठघरे में खड़ी हो जाती है.

ये भी पढ़ें- 

अपनी शादी की बात सुन कर दिव्या फट पड़ी. कहने लगी, ‘‘क्या एक बार मेरी जिंदगी बरबाद कर के आप सब को तसल्ली नहीं हुई जो फिर से… अरे छोड़ दो न मुझे मेरे हाल पर. जाओ, निकलो मेरे कमरे से,’’ कह कर उस ने अपने पास पड़े कुशन को दीवार पर दे मारा. नूतन आंखों में आंसू लिए कुछ न बोल कर कमरे से बाहर आ गई.

आखिर उस की इस हालत की जिम्मेदार भी तो वे ही थे. बिना जांचतड़ताल किए सिर्फ लड़के वालों की हैसियत देख कर उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को उस हैवान के संग बांध दिया. यह भी न सोचा कि आखिर क्यों इतने पैसे वाले लोग एक साधारण परिवार की लड़की से अपने बेटे की शादी करना चाहते हैं? जरा सोचते कि कहीं दिव्या के दिल में कोई और तो नहीं बसा है… वैसे दबे मुंह ही, पर कितनी बार दिव्या ने बताना चाहा कि वह अक्षत से प्यार करती है, लेकिन शायद उस के मातापिता यह बात जानना ही नहीं चाहते थे. अक्षत और दिव्या एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों अंतिम वर्ष के छात्र थे. जब कभी अक्षत दिव्या के संग दिख जाता, नूतन उसे ऐसे घूर कर देखती कि बेचारा सहम उठता. कभी उस की हिम्मत ही नहीं हुई यह बताने की कि वह दिव्या से प्यार करता है पर मन ही मन दिव्या की ही माला जपता रहता था और दिव्या भी उसी के सपने देखती रहती थी.

‘‘नीलेश अच्छा लड़का तो है ही, उस की हैसियत भी हम से ऊपर है. अरे, तुम्हें तो खुश होना चाहिए जो उन्होंने अपने बेटे के लिए तुम्हारा हाथ मांगा, वरना क्या उन के बेटे के लिए लड़कियों की कमी है इस दुनिया में?’’ दिव्या के पिता मनोहर ने उसे समझाते हुए कहा था, पर एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि दिव्या मन से इस शादी के लिए तैयार है भी या नहीं.

Hindi Moral Tales : एक और बलात्कारी – रूपा के बारे में क्या सोच रहा था सुमेर सिंह

Hindi Moral Tales : रूपा पगडंडी के रास्ते से हो कर अपने घर की ओर लौट रही थी. उस के सिर पर घास का एक बड़ा गट्ठर भी था. उस के पैरों की पायल की ‘छनछन’ दूर खड़े बिरजू के कानों में गूंजी, तो वह पेड़ की छाया छोड़ उस पगडंडी को देखने लगा.

रूपा को पास आता देख बिरजू के दिल की धड़कनें तेज हो गईं और उस का दिल उस से मिलने को मचलने लगा.

जब रूपा उस के पास आई, तो वह चट्टान की तरह उस के रास्ते में आ कर खड़ा हो गया.

‘‘बिरजू, हट मेरे रास्ते से. गाय को चारा देना है,’’ रूपा ने बिरजू को रास्ते से हटाते हुए कहा.

‘‘गाय को तो तू रोज चारा डालती है, पर मुझे तो तू घास तक नहीं डालती. तेरे बापू किसी ऐरेगैरे से शादी कर देंगे, इस से अच्छा है कि तू मुझ से शादी कर ले. रानी बना कर रखूंगा तुझे. तू सारा दिन काम करती रहती है, मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘गांव में और भी कई लड़कियां हैं, तू उन से अपनी शादी की बात क्यों नहीं करता?’’

‘‘तू इतना भी नहीं समझती, मैं तो तुझ से प्यार करता हूं. फिर और किसी से अपनी शादी की बात क्यों करूं?’’

‘‘ये प्यारव्यार की बातें छोड़ो और मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना घास का गट्ठर तुम्हारे ऊपर फेंक दूंगी,’’ इतना सुनते ही बिरजू एक तरफ हो लिया और रूपा अपने रास्ते बढ़ चली.

शाम को जब सुमेर सिंह की हवेली से रामदीन अपने घर लौट रहा था, तो वह अपने होश में नहीं था. गांव वालों ने रूपा को बताया कि उस का बापू नहर के पास शराब के नशे में चूर पड़ा है.

‘‘इस ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है. मैं अभी इसे ठीक करती हूं,’’ रूपा की मां बड़बड़ाते हुए गई और थोड़ी देर में रामदीन को घर ला कर टूटीफूटी चारपाई पर पटक दिया और पास में ही चटाई बिछा कर सो गई.

सुबह होते ही रूपा की मां रामदीन पर भड़क उठी, ‘‘रोज शराब के नशे में चूर रहते हो. सारा दिन सुमेर सिंह की मजदूरी करते हो और शाम होते ही शराब में डूब जाते हो. आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? रूपा भी सयानी होती जा रही है, उस की भी कोई चिंता है कि नहीं?’’

रामदीन चुपचाप उस की बातें सुनता रहा, फिर मुंह फेर कर लेट गया. रामदीन कई महीनों से सुमेर सिंह के पास मजदूरी का काम करता था. खेतों की रखवाली करना और बागबगीचों में पानी देना उस का रोज का काम था.

दरअसल, कुछ महीने पहले रामदीन का छोटा बेटा निमोनिया का शिकार हो गया था. पूरा शरीर पीला पड़ चुका था. गरीबी और तंगहाली के चलते वह उस का सही इलाज नहीं करा पा रहा था. एक दिन उस के छोटे बेटे को दौरा पड़ा, तो रामदीन फौरन उसे अस्पताल ले गया.

डाक्टर ने उस से कहा कि बच्चे के शरीर में खून व पानी की कमी हो गई है. इस का तुरंत इलाज करना होगा. इस में 10 हजार रुपए तक का खर्चा आ सकता है.

किसी तरह उसे अस्पताल में भरती करा कर रामदीन पैसे जुटाने में लग गया. पासपड़ोस से मदद मांगी, पर किसी ने उस की मदद नहीं की.

आखिरकार वह सुमेर सिंह के पास पहुंचा और उस से मदद मांगी, ‘‘हुजूर, मेरा छोटा बेटा बहुत बीमार है. उसे निमोनिया हो गया था. मुझे अभी 10 हजार रुपए की जरूरत है. मैं मजदूरी कर के आप की पाईपाई चुका दूंगा. बस, आप मुझे अभी रुपए दे दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें अभी रुपए दिए दे देता हूं, लेकिन अगर समय पर रुपए नहीं लौटा सके, तो मजदूरी की एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. बोलो, मंजूर है?’’

‘‘हां हुजूर, मुझे सब मंजूर है,’’ अपने बच्चे की जान की खातिर उस ने सबकुछ कबूल कर लिया.

पहले तो रामदीन कभीकभार ही अपनी थकावट दूर करने के लिए शराब पीता था, लेकिन सुमेर सिंह उसे रोज शराब के अड्डे पर ले जाता था और उसे मुफ्त में शराब पिलाता था. लेकिन अब तो शराब पीना एक आदत सी बन गई थी. शराब तो उसे मुफ्त में मिल जाती थी, लेकिन उस की मेहनत के पैसे सुमेर सिंह हजम कर जाता था. इस से उस के घर में गरीबी और तंगहाली और भी बढ़ती गई.

रामदीन शराब के नशे में यह भी भूल जाता था कि उस के ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं. दिन पर दिन उस पर कर्ज भी बढ़ता जा रहा था. इस तरह कई महीने बीत गए. जब रामदीन ज्यादा नशे में होता, तो रूपा ही सुमेर सिंह का काम निबटा देती.

एक सुबह रामदीन सुमेर सिंह के पास पहुंचा, तो सुमेर सिंह ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कहा, ‘‘रामदीन, आज तुम हमारे पास बैठो. हमें तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘हुजूर, आज कुछ खास काम है क्या?’’ रामदीन कहते हुए उस के पास बैठ गए.

‘‘देखो रामदीन, आज मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम ने मुझ से जो कर्जा लिया है, वह तुम मुझे कब तक लौटा रहे हो? दिन पर दिन ब्याज भी तो बढ़ता जा रहा है. कुलमिला कर अब तक 15 हजार रुपए से भी ज्यादा हो गए हैं.’’

‘‘मेरी माली हालत तो बदतर है. आप की ही गुलामी करता हूं हुजूर, आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?’’

सुमेर सिंह हुक्का गुड़गुड़ाते हुए कुछ सोचने लगा. फिर बोला, ‘‘देख रामदीन, तू जितनी मेरी मजदूरी करता है, उस से कहीं ज्यादा शराब पी जाता है. फिर बीचबीच में तुझे राशनपानी देता ही रहता हूं. इस तरह तो तुम जिंदगीभर मेरा कर्जा उतार नहीं पाओगे, इसलिए मैं ने फैसला किया है कि अब अपनी जोरू को भी काम पर भेजना शुरू कर दे.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू यहां आ कर करेगी क्या?’’ रामदीन ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक नौकरानी की जरूरत है. सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी. घर के कपड़ेलत्ते साफ करेगी. उस के महीने के हजार रुपए दूंगा. उस में से 5 सौ रुपए काट कर हर महीने तेरा कर्जा वसूल करूंगा.

‘‘अगर तुम यह भी न कर सके, तो तुम मुझे जानते ही हो कि मैं जोरू और जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लूंगा.’’

‘‘लेकिन हुजूर, मेरी जोरू पेट से है और उस की कमर में भी हमेशा दर्द रहता है.’’

‘‘बच्चे पैदा करना नहीं भूलते, पर मेरे पैसे देना जरूर भूल जाते हो. ठीक है, जोरू न सही, तू अपनी बड़ी बेटी रूपा को ही भेज देना.

‘‘रूपा सुबहशाम यहां झाड़ूपोंछा करेगी और दोपहर को हमारे खेतों से जानवरों के लिए चारा लाएगी. घर जा कर उसे सारे काम समझा देना. फिर दोबारा तुझे ऐसा मौका नहीं दूंगा.’’

अब रामदीन को ऐसा लगने लगा था, जैसे वह उस के भंवर में धंसता चला जा रहा है. सुमेर सिंह की शर्त न मानने के अलावा उस के पास कोई चारा भी नहीं बचा था.

शाम को रामदीन अपने घर लौटा, तो उस ने सुमेर सिंह की सारी बातें अपने बीवीबच्चों को सुनाईं.

यह सुन कर बीवी भड़क उठी, ‘‘रूपा सुमेर सिंह की हवेली पर बिलकुल नहीं जाएगी. आप तो जानते ही हैं. वह पहले भी कई औरतों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर चुका है. मैं खुद सुमेर सिंह की हवेली पर जाऊंगी.’’

‘‘नहीं मां, तुम ऐसी हालत में कहीं नहीं जाओगी. जिंदगीभर की गुलामी से अच्छा है कि कुछ महीने उस की गुलामी कर के सारे कर्ज उतार दूं,’’ रूपा ने अपनी बेचैनी दिखाई.

दूसरे दिन से ही रूपा ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया. वह सुबहशाम उस की हवेली पर झाड़ूपोंछा करती और दोपहर में जानवरों के लिए चारा लाने चली जाती.

अब सुमेर सिंह की तिरछी निगाहें हमेशा रूपा पर ही होती थीं. उस की मदहोश कर देनी वाली जवानी सुमेर सिंह के सोए हुए शैतान को जगा रही थी. रूपा के सामने तो उस की अपनी बीवी उसे फीकी लगने लगी थी.

सुमेर सिंह की हवेली पर सारा दिन लोगों का जमावड़ा लगा रहता था, लेकिन शाम को उस की निगाहें रूपा पर ही टिकी होती थीं.

रूपा के जिस्म में गजब की फुरती थी. शाम को जल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर अपने घर जाने के लिए तैयार रहती थी. लेकिन सुमेर सिंह देर शाम तक कुछ और छोटेमोटे कामों में उसे हमेशा उलझाए रखता था. एक दोपहर जब रूपा पगडंडी के रास्ते अपने गांव की ओर बढ़ रही थी, तभी उस के सामने बिरजू आ धमका. उसे देखते ही रूपा ने अपना मुंह फेर लिया.

बिरजू उस से कहने लगा, ‘‘मैं जब भी तेरे सामने आता हूं, तू अपना मुंह क्यों फेर लेती है?’’

‘‘तो मैं क्या करूं? तुम्हें सीने से लगा लूं? मैं तुम जैसे आवारागर्दों के मुंह नहीं लगना चाहती,’’ रूपा ने दोटूक जवाब दिया.

‘‘देख रूपा, तू भले ही मुझ से नफरत कर ले, लेकिन मैं तो तुझ को प्यार करता ही रहूंगा. आजकल तो मैं ने सुना है, तू ने सुमेर सिंह की हवेली पर काम करना शुरू कर दिया है. शायद तुझे सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में पता नहीं. वह बिलकुल अजगर की तरह है. वह कब शिकारी को अपने चंगुल में फंसा कर निगल जाए, यह किसी को पता नहीं.

‘‘मुझे तो अब यह भी डर सताने लगा है कि कहीं वह तुम्हें नौकरानी से रखैल न बना ले, इसलिए अभी भी कहता हूं, तू मुझ से शादी कर ले.’’ यह सुन कर रूपा का मन हुआ कि वह बिरजू को 2-4 झापड़ जड़ दे, पर फिर लगा कि कहीं न कहीं इस की बातों में सचाई भी हो सकती है.

रूपा पहले भी कई लोगों से सुमेर सिंह की हैवानियत के बारे में सुन चुकी थी. इस के बावजूद वह सुमेर सिंह की गुलामी के अलावा कर भी क्या सकती थी. इधर सुमेर सिंह रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए बेचैन हो रहा था, लेकिन रूपा उस के झांसे में आसानी से आने वाली नहीं थी.

सुमेर सिंह के लिए रूपा कोई बड़ी मछली नहीं थी, जिस के लिए उसे जाल बुनना पड़े.

एक दिन सुमेर सिंह ने रूपा को अपने पास बुलाया और कहा, ‘‘देखो रूपा, तुम कई दिनों से मेरे यहां काम कर रही हो, लेकिन महीने के 5 सौ रुपए से मेरा कर्जा इतनी जल्दी उतरने वाला नहीं है, जितना तुम सोच रही हो. इस में तो कई साल लग सकते हैं.

‘‘मेरे पास एक सुझाव है. तुम अगर चाहो, तो कुछ ही दिनों में मेरा सारा कर्जा उतार सकती हो. तेरी उम्र अभी पढ़नेलिखने और कुछ करने की है, मेरी गुलामी करने की नहीं,’’ सुमेर सिंह के शब्दों में जैसे एक मीठा जहर था.

‘‘मैं आप की बात समझी नहीं?’’ रूपा ने सवालिया नजरों से उसे देखा.

सुमेर सिंह की निगाहें रूपा के जिस्म को भेदने लगीं. फिर वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘मैं तुम से घुमाफिरा कर बात नहीं करूंगा. तुम्हें आज ही एक सौदा करना होगा. अगर तुम्हें मेरा सौदा मंजूर होगा, तो मैं तुम्हारा सारा कर्जा माफ कर दूंगा और इतना ही नहीं, तेरी शादी तक का खर्चा मैं ही दूंगा.’’

रूपा बोली, ‘‘मुझे क्या सौदा करना होगा?’’

‘‘बस, तू कुछ दिनों तक अपनी जवानी का रसपान मुझे करा दे. अगर तुम ने मेरी इच्छा पूरी की, तो मैं भी अपना वादा जरूर निभाऊंगा,’’ सुमेर सिंह के तीखे शब्दों ने जैसे रूपा के जिस्म में आग लगा दी थी.

‘‘आप को मेरे साथ ऐसी गंदी बातें करते हुए शर्म नहीं आई,’’ रूपा गुस्से में आते हुए बोली.

‘‘शर्म की बातें छोड़ और मेरा कहा मान ले. तू क्या समझती है, तेरा बापू तेरी शादी धूमधाम से कर पाएगा? कतई नहीं, क्योंकि तेरी शादी के लिए वह मुझ से ही उधार लेगा.

‘‘इस बार तो मैं तेरे पूरे परिवार को गुलाम बनाऊंगा. अगर ब्याह के बाद तू मदद के लिए दोबारा मेरे पास आई भी तो मैं तुझे रखैल तक नहीं बनाऊंगा. अच्छी तरह सोच ले. मैं तुझे इस बारे में सोचने के लिए कुछ दिन की मुहलत भी देता हूं. अगर इस के बावजूद भी तू ने मेरी बात नहीं मानी, तो मुझे दूसरा रास्ता भी अपनाना आता है.’’

सुमेर सिंह की कही गई हर बात रूपा के जिस्म में कांटों की तरह चुभती चली गई. सुमेर सिंह की नीयत का आभास तो उसे पहले से ही था, लेकिन वह इतना बदमाश भी हो सकता है, यह उसे बिलकुल नहीं पता था.

रूपा को अब बिरजू की बातें याद आने लगीं. अब उस के मन में बिरजू के लिए कोई शिकायत नहीं थी.

रूपा ने यह बात किसी को बताना ठीक नहीं समझा. रात को तो वह बिलकुल सो नहीं पाई. सारी रात अपने वजूद के बारे में ही वह सोचती रही.

रूपा को सुमेर सिंह की बातों पर तनिक भी भरोसा नहीं था. उसे इस बात की ज्यादा चिंता होने लगी थी कि अगर अपना तन उसे सौंप भी दिया, तो क्या वह भी अपना वादा पूरा करेगा? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अपना सबकुछ गंवा कर भी बदनामी के अलावा उसे कुछ नहीं मिलेगा.

इधर सुमेर सिंह भी रूपा की जवानी का रसपान करने के लिए उतावला हो रहा था. उसे तो बस रूपा की हां का इंतजार था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था. लेकिन रूपा ने उसे अब तक कोई संकेत नहीं दिया था. सुमेर सिंह ने मन ही मन कुछ और सोच लिया था.

यह सोच कर रूपा की भी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसे खुद को सुमेर सिंह से बचा पाना मुश्किल लग रहा था. एक दोपहर जब रूपा सुमेर सिंह के खेतों में जानवरों के लिए चारा लाने गई, तो सब से पहले उस की निगाहें बिरजू को तलाशने लगीं, पर बिरजू का कोई अतापता नहीं था. फिर वह अपने काम में लग गई. तभी किसी ने उस के मुंह पर पीछे से हाथ रख दिया.

रूपा को लगा शायद बिरजू होगा, लेकिन जब वह पीछे की ओर मुड़ी, तो दंग रह गई. वह कोई और नहीं, बल्कि सुमेर सिंह था. उस की आंखों में वासना की भूख नजर आ रही थी.

तभी सुमेर सिंह ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘हुं, आज तुझे मुझ से कोई बचाने वाला नहीं है. अब तेरा इंतजार भी करना बेकार है.’’

‘‘मैं तो बस आज रात आप के पास आने ही वाली थी. अभी आप मुझे छोड़ दीजिए, वरना मैं शोर मचाऊंगी,’’ रूपा ने उस के चंगुल से छूटने की नाकाम कोशिश की.

पर सुमेर सिंह के हौसले बुलंद थे. उस ने रूपा की एक न सुनी और घास की झाड़ी में उसे पूरी तरह से दबोच लिया.

रूपा ने उस से छूटने की भरपूर कोशिश की, पर रूपा की नाजुक कलाइयां उस के सामने कुछ खास कमाल न कर सकीं.

अब सुमेर सिंह का भारीभरकम बदन रूपा के जिस्म पर लोट रहा था, फिर धीरेधीरे उस ने रूपा के कपड़े फाड़ने शुरू किए.

जब रूपा ने शोर मचाने की कोशिश की, तो उस ने उस का मुंह उसी के दुपट्टे से बांध दिया, ताकि वह शोर भी न मचा सके.

अब तो रूपा पूरी तरह से सुमेर सिंह के शिकंजे में थी. वह आदमखोर की तरह उस पर झपट पड़ा. इस से पहले वह रूपा को अपनी हवस का शिकार बना पाता, तभी किसी ने उस के सिर पर किसी मजबूत डंडे से ताबड़तोड़ वार करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में वह ढेर हो गया.

रूपा ने जब गौर से देखा, तो वह कोई और नहीं, बल्कि बिरजू था. तभी वह उठ खड़ी हुई और बिरजू से लिपट गई. उस की आंखों में एक जीत नजर आ रही थी.

बिरजू ने उसे हौसला दिया और कहा, ‘‘तुम्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. मैं इसी तरह तेरी हिफाजत जिंदगीभर करता रहूंगा.’’ रूपा ने बिरजू का हाथ थाम लिया और अपने गांव की ओर चल दी.

लेखक- मनोज मांझी भुईयां

Famous Hindi Stories : झूठ बोले कौआ काटे

प्रेम नेगी काफी चिंतित था. शहर में नौकरी तो मिल गई, मगर मकान नहीं मिल रहा था. कई जगह भटकता रहा. उसे कभी मकान पसंद आता, तो किराया ज्यादा लगता. कहीं किराया ठीक लगता, तो बस्ती और माहौल पसंद नहीं पड़ता था. कहीं किराया और मकान दोनों पसंद पड़ते, तो वह अपने कार्यस्थल से काफी दूर लगता. क्या किया जाए, समझ नहीं आ रहा था. आखिर कब तक होटल में रहता. उसे वह काफी महंगा पड़ रहा था.

यों ही एक महीना बीतने पर उस की चिंता और ज्यादा बढ़ गई. एक दोपहर लंच के समय उस ने अपने सीनियर सहकर्मचारियों से अपनी परेशानी कह दी. उस की परेशानी सुन कर वे हंस पड़े.

“बेचारा आशियाना ढूंढ़ रहा है,” एक बुजुर्ग बोल पड़े.

आखिर क्लर्क के ओहदे पर कार्यरत एक शख्स उस की मदद में आया. ओम तिवारी नाम था उस का. लंबा कद. घुंघराले बाल. मितभाषी. वह पिछले 6 साल से यहां कार्यरत था.

“शाम को मेरे साथ चलना,” वह बोला.

उस शाम ओम तिवारी उसे अपनी बाइक पर बिठा कर निकल पडा.  20 मिनट राइड करने के बाद दोनों एक भीड़भाड़ गली से गुजर कर संकरी गली में आए, जिस के दोनों ओर कचोरी, समोसे और गोलगप्पे लिए ठेले वाले खड़े थे और युवक, युवतियां और बच्चे खड़ेखड़े खाने में व्यस्त थे.

कुछ पल के बाद वे एक खुले से मैदान में आए, जहां कुछ मकान दिखाई पड़े. ट्रैफिक के शोरगुल से दूर वहां शांति थी. कुछ मकान को पार करते हुए वे एक डुप्लैक्स के सामने आ कर रुके. बरांडे का गेट खोल कर अंदर प्रवेश किया.

डोर बेल बजाते ही दरवाजा खुला और एक अधेड़ उम्र के आदमी ने उन्हें देखते ही स्वागत किया, “अरे ओम, तुम यहां…”

“चाचाजी, ये मेरे दोस्त हैं प्रेम नेगी,” उस ने तुरंत काम की बात कर डाली, “ये हाल ही में दफ्तर में कैशियर के ओहदे पर नियुक्त हुए हैं. इन्हें किराए पर मकान चाहिए. और मुझे याद आया कि आप का मकान खाली है,“ फिर प्रेम नेगी की तरफ मुड़ कर वह बोला, “ये मेरे चाचाजी हैं, कमल शर्मा. हाल ही में हाईकोर्ट में क्लर्क के ओहदे से रिटायर हुए हैं.“

चाचा कमल शर्मा ने उस छोरे को सिर से पांव तक निरखा और फिर अपने भतीजे की ओर देख कर बोला, “ठीक है, मगर एक शर्त है. आप शादीशुदा हैं तो ही मैं अपना मकान किराए पर दूंगा. वरना मेरा तजरबा है कि कई कुंवारे छोरे यहां बाजारू लड़कियों को लाना शुरू कर देते हैं.“

“लेकिन, मैं तो शादीशुदा हूं,” प्रेम नेगी तुरंत बोल पड़ा और फिर अपने दोस्त ओम तिवारी की तरफ देख कर बोला, “मैं मकान मिलते ही अपनी घरवाली को ले आऊंगा.”

“ठीक है, आइए और मकान देख लीजिए.”

मकान मालिक कमल शर्मा ने उठ कर उन्हें अपने साथ ले कर बगल में जो खाली मकान था, वह दिखा दिया. मकान में 2 कमरे, रसोई और आगे आलीशान बरांडा था. कमरों में अटैच टौयलेट बाथरूम भी थे. उसे मकान पसंद आया.

“किराया 5,000 रुपए प्रति माह,” मकान मालिक कमल शर्मा ने प्रेम नेगी को किराया बता दिया.

फिर चाचा ने अपने भतीजे की तरफ देख कर कहा, “वैसे तो 6 महीने का किराया एडवांस लेने का दस्तूर है, लेकिन क्योंकि तुम्हें मेरा भतीजा ले कर आया है, मैं तुम से सिर्फ 3 महीने का एडवांस लूंगा. बोलो, है मंजूर?”

“मंजूर है,“ प्रेम नेगी खुशी से बोल पडा.

वह अगले ही दिन किराए के मकान में रहने आ गया. उसे मकान तो मिल गया, लेकिन झूठ बोल कर. वह शादीशुदा नहीं था. मकान मालिक से उस ने झूठ बोला था. यहां तक कि ओम तिवारी भी समझ रहा था कि वह शादीशुदा था.

2 सप्ताह यों ही बीत गए, फिर एक रोज मकान मालिक कमल शर्मा ने उस से पूछ ही लिया, “कब ला रहे हो अपनी बीवी को?”

यह सुन कर वह चौंक गया. दिनरात उपाय सोचने लगा. क्या किया जाए? बीवी को कहां से लाए?

एक दोपहर लंच के समय वह खाना खा कर अपनी केबिन में आराम से कुरसी पर आंखें मूंदे बैठा था कि उसे एक लड़की की आवाज सुनाई पड़ी.

“क्या आप ही प्रेम नेगी हैं?” अपनी आंखें खोलते ही वह हैरान रह गया.

एक अत्यंत खूबसूरत लंबे कद वाली, गोल चेहरे पर बड़ी आंखें और कमर तक झुके हुए लंबे बाल, गुलाबी सलवार और हलके हरे कमीज पर सफेद दुपट्टा ओढ़े हुए लड़की उस के सामने थी.

“जी,” वह बोल पड़ा, “कहिए, क्या काम है?”

“मैं रितू कश्यप हूं. 2 दिन पहले ही औडिट सैक्शन में कंप्यूटर औपरेटर की हैसियत से ज्वौइन किया है. मैं ने सुना है कि आप ने हाल ही में अपने लिए मकान ढूंढ़ा है. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं मकान ढूंढ़ने में?”

“जी,” वह एकदम से हड़बड़ा गया, ”आ… आप को मकान चाहिए?” इतना कह कर वह गहरी सोच में डूब गया.

उस के भीतर से आवाज आने लगी. यही मौका है, हां कर दे. इसे ही अपने साथ कमरे में रख ले झूठमूठ अपनी पत्नी बना कर. मगर क्या वह इस के लिए राजी होगी?

“शाम को दफ्तर से छूटते ही मुझे मिलना. मैं जरूर आप की मदद कर दूंगा,” उस ने लड़की को आश्वस्त करते हुए कहा.

शाम को दफ्तर से छूटते ही वह रितू को औटोरिकशा में अंबेडकर पार्क ले आया. दोनों एक बेंच पर बैठे. उस ने थोड़ी देर सोचा. बात कहां से शुरू की जाए. फिर वह बोला, “देखिए रितूजी, मैं आप से झूठ नहीं बोलूंगा. सच ही कहूंगा. मैं ने किराए का मकान झूठ बोल कर लिया है. सरासर झूठ…”

“कैसा झूठ…?“ रितू ने पूछा.

“यही कि मैं शादीशूदा हूं. वैसे, मैं अभी कुंवारा हूं.”

“लेकिन, इस से मुझे क्या…?” रितू ने पूछ लिया.

“यदि तुम्हें मेरे मकान का एक कमरा चाहिए, तो तुम्हें मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा, वरना मुझे भी वो मकान खाली करना पड़ेगा.”

“पत्नी बन कर…” वह आश्चर्यचकित रह गई. फिर लड़के को घूरती रही. दिखने में तो अच्छा है. भला भी लगता है. वह सोचने लगी. फिर कालेज में तो बहुत नाटक किए हैं. कई स्मार्ट लडकों को अपने पीछे लट्टू बना कर घुमाया है. एक और नाटक सही. देखते हैं कि कहां तक सफलता हासिल होती है.

“मंजूर है,” वह आत्मविश्वास के साथ बोली.

“क्या…?” वह हक्काबक्का सा रह गया. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई लड़की इतनी जल्दी इतना बड़ा निर्णय ले सकती है.

“क्या तुम भी मेरे साथ झूठ बोल कर रहोगी?”

“बिलकुल,” वह बोली, ”चलिए, मकान दिखाइए.”

“देखिए रितूजी, ये झूठ सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा. हमारा मकान मालिक और दफ्तर का कोई भी इस राज को जान न पाए, ध्यान रहे… ये सिर्फ नाटक है,” उस ने चेतावनी दे कर कहा.

“आप बेफिक्र रहिए. चलिए, मकान देखते हैं.“

अगले दिन सवेरेसवेरे रितू अपना सूटकेस ले कर प्रेम के घर चली आई. उस ने मकान के कमरों का निरीक्षण किया. दोनों कमरे अलगअलग थे और दोनों में अटैच बाथरूम और टौयलेट देख कर वह हंस पड़ी.

“वाह, कमरे तो बिलकुल अलग हैं. हम दोनों आराम से अलगअलग रह सकते हैं.”

प्रेम ने मकान मालिक को बुला कर रितू का परिचय अपनी बीवी के तौर पर करवा दिया.

“रितू को यहां एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिली है. उस का समय भी दफ्तर की तरह ही 11बजे से 5 बजे है. हम दोनों साथ ही काम पर जाएंगे और लौटेंगे.”

“ठीक ही हुआ. तुम जल्दी ही अपनी बीवी को ले आए,” मकान मालिक ने भी खुश होते हुए कहा.

और फिर नाटक शुरू हो गया.

प्रेम और रितू एकसाथ मकान में रहने लगे, मियांबीवी की तरह. दोनों का प्रवेश द्वार एक ही था, लेकिन बरांडा पार करते हुए दोनों अलगअलग कमरे में दाखिल हो जाते. दोनों साथसाथ दफ्तर जाते और छूटने के बाद बाजार में घूम कर रैस्टोरैंट में शाम का खाना खा कर ही घर लौटते. एकाध महीने बाद ही प्रेम अपने गांव से बाइक भी ले आया. फिर दोनों हमेशा बाइक पर एकसाथ नजर आने लगे. दफ्तर में किसी को जरा सा भी शक नहीं हुआ. यहां तक कि ओम तिवारी को भी नहीं.

दिन तो व्यस्तता में गुजर जाता, लेकिन रात को दोनों अलगअलग कमरे में बिस्तर में लेटे सोचने लगते. प्रेम सोचता, “क्या अजीब परिस्थिति है? कुंवारा होते हुए भी शादीशुदा होने का नाटक करना पड़ रहा है, वह भी एक खूबसूरत लड़की के साथ.”

रितू कभीकभार रात में कुछ आहट सुनते ही जाग उठती. कहीं वह बंदा मेरे कमरे में आने की कोशिश तो नहीं कर रहा? क्या भरोसा? मौका मिलते ही पतिपत्नी के नाटक को सही बना दे. वाह रितू, तू ने भी बड़ी हिम्मत की है. मर्द के साथ रात बिता रही है. यदि कोई अनहोनी हो गई तो…?

व्यस्त दुनिया में कोई क्या कर रहा है, कैसे जी रहा है, यह सोचने की किसी को तनिक भी फुरसत नहीं होती. लेकिन जहां किसी लड़केलड़की के संदिग्ध संबंधों की बात आती है, वहां झूठ ज्यादा देर तक छुपा नहीं रहता और सच सिर चढ़ कर बोलता है. भूख, बीमारी, गरीबी व गंदगी सहन करने वाला समाज यदि कोई अनैतिक संबंधों के बारे में पता चल जाए तो फिर उसे कतई सहन नहीं कर सकता. फिर यदि कुंवारे लड़कालड़की हों, तो फिर बात ही क्या है?

दफ्तर में ओम तिवारी को भी भनक लग गई.

“रितू को नकली बीवी बना कर बड़े मजे लूट रहे हो यार… कभीकभार हमें भी मौका दे दिया करो. आखिर मकान तो हम ने ही दिलवाया है. खाली भी करवा सकते हैं. समझे?“

यह सुन कर प्रेम नेगी के पांव तले जमीन सरक गई.

शाम को उस ने रितू से कहा, “हमारा झूठ पकड़ा गया है. ओम तिवारी को इस का पता चल गया है. वह हमारे मकान मालिक को जरूर बता देगा.”

रितू के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएं उभर आईं.

उस रात प्रेम नेगी को नींद नहीं आई. उसे यकीन हो गया कि उस का झूठ अब ज्यादा चलने वाला नहीं था. फिर उसे डर था कि उस की इस मजबूरी का फायदा उठाते हुए कहीं ओम तिवारी उस के घर आ कर रितू के साथ जबरदस्ती न करने लगे. उस की नीयत ठीक नहीं थी. उसे रात भयानक लगने लगी थी. उस ने तय कर लिया कि सवेरे सबकुछ मकान मालिक को सहीसही बता देगा. उस ने अपने सेलफोन की घड़ी में देखा तो रात के साढ़े बारह बज चुके थे, तभी किसी ने उस का दरवाजा खटखटाया.

“नेगी… दरवाजा खोलो. मैं हूं शर्मा… मकान मालिक.”

“इतनी रात… मकान मालिक,“ वह हड़बड़ा गया.

कुछ पल वह सोचता रहा कि दरवाजा खोले या नहीं. खटखटाहट दोबारा हुई.

बिस्तर से उठ कर उस ने दरवाजा खोला.

“नेगीजी… बड़े मजे लूट रहे हो यार,” ओम तिवारी ने कुछ बहक कर कहा. उस ने शराब पी रखी थी और मकान मालिक कमल शर्मा मुसकरा रहा था. वह बोला, “आज की रात ओम यहीं सोएगा, तुम्हारे साथ.”

फिर वे दोनों बेझिझक अंदर घुस आए. ओम तिवारी के हाथ में शराब की बोतल थी और वह नशे में था. मकान मालिक कमल शर्मा के मुंह से भी बदबू आ रही थी. मेज पर बोतल रख कर ओम तिवारी सोफे पर बैठ गया और बहकी हुई आवाज में बोला, “कहां है तुम्हारी नकली बीवी? महबूबा… आज तो हमें उस से ही मिलना है.”

“ तिवारीजी….देखिए रितू बीमार है और अपने कमरे में सो रही है,” वह गिड़गिड़ाने लगा.

फिर उस ने मकान मालिक कमल शर्मा के सामने अत्यंत दीन हो कर कहा, “माफ कीजिए. मैं ने झूठ बोला था. रितू मेरी बीवी नहीं, बल्कि मेरे ही दफ्तर में कार्यरत है. उसे भी मकान की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे यहां ले आया. गलती मेरी है. मैं ने झूठ बोला था. आप कहें तो हम कल ही मकान खाली कर देंगे.”

“छोड़ यार… मकान खाली करने को कौन कहता है?” ओम तिवारी नशे में बोल पड़ा, “मुझे तो सिर्फ रितू चाहिए. तुम अकेलेअकेले मजे लूटते हो. आज हमें भी उस का स्वाद चखने दो.”

ओम तिवारी लड़खड़ाता हुआ अंदर के किवाड़ की तरफ आगे बढ़ा, जहां पर रितू सोई हुई थी. उस ने जोर से धक्का दे कर दरवाजा खोलने की कोशिश की.

“दरवाजा खोल जानेमन, हम भी प्रेम के जिगरी दोस्त हैं.”

“नहीं तिवारी, तुम ऐसा नहीं कर सकते,” चीख कर प्रेम उस की ओर लपका और उसे धक्का दे कर दरवाजे से दूर धकेल दिया. मकान मालिक कमल शर्मा ने तभी उस की तरफ लपक कर उसे अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया, फिर वहीं पर दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई.

प्रेम नेगी ने मकान मालिक कमल शर्मा को 2-3  घूंसे जड़ दिए. उधर ओम तिवारी ने जोर से दरवाजे पर लात मारी और दरवाजा खुल गया. कमरे में अंधेरा था. ओम तिवारी ने प्रवेश किया.

“ओह,” अंदर घुसते ही वह जोर से चीखा, जैसे उस पर किसी ने करारा वार किया हो. कमल शर्मा की गिरफ्त से छूटने की कोशिश करते हुए प्रेम चिल्लाया, “रितू, यहां से भाग निकल.” तभी कमरे में लाइट जली और हाथ में टूटा हूआ गुलदस्ता लिए रितू कमरे से बाहर आई.

“छोड़ दे बदमाश, वरना इसी गुलदस्ते से तेरा भी सिर फोड़ दूंगी.”

मकान मालिक कमल शर्मा की तरफ आंखें तरेर कर रितू ने  देखा. कमल शर्मा ने सहम कर देखा, कमरे में ओम तिवारी बेहोश पड़ा हुआ है. उस ने झट से प्रेम को छोड़ दिया.

“रितू, तुम ठीक तो हो,” प्रेम उस की ओर दौड़ आया.

तभी वहां आंगन में पुलिस की जीप आ कर रुकी और तुरंत 2 पुलिस वाले और एक महिला अफसर अंदर आ पहुंचे.

“रितू कश्यप आप हैं?” महिला अफसर ने रितू की तरफ देख कर पूछा.

“ जी मैडम, ये मेरे मकान मालिक हैं- कमल शर्मा और वो जो कमरे में शराब के नशे में धुत्त पड़ा है, वो ओम तिवारी मेरे ही दफ्तर में काम करता है. इन दोनों ने हमारे घर में घुस कर मेरे पति को पीटा और मुझ पर बलात्कार करने की कोशिश की. इन्हें गिरफ्तार कीजिए. कल सुबह हम दोनों थाने आ कर रिपोर्ट लिखवा देंगे.“

“मैं… मैं बेकुसूर हूं,”  बोलतेबोलते मकान मालिक कमल शर्मा की घिग्घी बंध गई. 2 पुलिस वाले बेहोश ओम तिवारी को उठा कर ले गए और महिला अफसर ने मकान मालिक कमल शर्मा को धक्का दे कर कमरे से बाहर धकेल किया.

पुलिस की जीप के जाते ही प्रेम और रितू ने एकदूसरे की ओर बड़े प्यार से देखा.

“रितू… ये पुलिस, तुम ने बुलाई थी?” वह आश्चर्यचकित हो उठा.

“बिलकुल…” रितू ने कहा, “खतरा भांप कर मैं ने ही महिला सुरक्षा हेल्पलाइन पर अपने मोबाइल से फोन कर दिया था.”

“तुम सचमुच बहादुर हो,” कह कर प्रेम ने उस का हाथ चूम लिया.

“तुम भी तो बड़े प्यारे हो, जो मेरी खातिर अपनी जान जोखिम में डाल उन बदमाशों से भिड़ गए,” रितू ने भी प्रेम के गालों पर हलकी सी चुम्मी ले ली.

“मगर, तुम ने झूठ क्यों बोला?” प्रेम ने मुसकरा कर पूछा, “हम पतिपत्नी तो हैं नहीं, फिर कल थाने में रिपोर्ट कैसे लिखवाएंगे?”

“कोई बात नहीं,” रितू खुशी से बोल पड़ी, “कल सुबह 11 बजे हम शादी पंजीकरण के लिए अदालत जाएंगे, फिर कानूनी तौर पर पतिपत्नी बन कर पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाएंगे. आखिर कब तक झूठ बोलते रहेंगे? वह कहावत है न, झूठ बोले कौआ काटे. बोलो है मंजूर?”

“मंजूर है, मंजूर… बीवीजी,” प्रेम ने उसे आलिंगन में जकड़ लिया.

Moral Stories in Hindi : मौडर्न सिंड्रेला

Moral Stories in Hindi : आज मयंक ने मनाली को खूब शौपिंग करवाई थी. मनाली काफी खुश लग रही थी. उसे खुश देख कर मयंक भी अच्छा महसूस कर रहा था. वैसे वह बड़ा फ्लर्ट था, पर मनाली के लिए वह बिलकुल बदल गया था. मनाली से पहले भी उस की कई गर्लफ्रैंड्स रह चुकी थीं, पर जैसी फीलिंग उस के मन में मनाली के प्रति थी वैसी पहले किसी के लिए नहीं रही.

‘‘चलो, तुम्हें घर ड्रौप कर दूं,’’ मयंक ने कहते ही मनाली के लिए कार का दरवाजा खोल दिया.

‘‘नहीं मयंक, मुझे निमिशा दीदी का कुछ काम करना है इसलिए आप चले जाइए. मैं घर चली जाऊंगी,’’ प्यार से मुसकराते हुए मनाली निकल गई. फिर उस ने फोन कर के कोको स्टूडियो में पता किया कि कोको सर आए हैं कि नहीं. उसे आज हर हाल में फोटोशूट करवाना था. कैब बुक कर के वह कोको स्टूडियो पहुंच गई. तभी उसे याद आया, ‘आज तो ईशा मैम की क्लास है. उन की क्लास मिस करना बड़ी बात थी. वे क्लास बंक करने वाले स्टूडैंट्स को प्रैक्टिकल में बहुत कम नंबर देती थीं. तुरंत कीर्ति को फोन कर रोनी आवाज में दुखड़ा रोया, ‘‘प्लीज मेरी हाजिरी लगवा देना. चाची और निमिशा दीदी ने सुबह से जीना हराम कर रखा है.’’

‘‘ओह, तुम परेशान मत हो,’’ कीर्ति उसे दुखी नहीं देख सकती थी. वह समझती थी कि चाचाचाची मनाली को बहुत तंग करते हैं. तभी कोको सर भी आ गए. मौडलिंग की दुनिया में काफी नाम कमाया था उन्होंने. हां, थोड़े सनकी जरूर थे पर मौलिक, कल्पनाशील लोग ज्यादातर ऐसे होते ही हैं. कोको सर ने मनाली को ध्यान से देखा और उस पर बरस पड़े, ‘‘तुम्हें वजन कम करने की जरूरत है. मैं ने पहले भी तुम्हें बताया था. आज तुम्हारा फोटोशूट नहीं हो सकेगा.’’‘‘बुरा हो इस मयंक का और कालेज के अन्य दोस्तों का. जबतब जबरदस्ती कुछ न कुछ खिलाते रहते हैं,’’ मनाली आगबबूला हो कर स्टूडियो से बड़बड़ाती हुई निकली. घर पहुंची तो चाची ने चुपचाप खाना परोस दिया. चाची उस से ज्यादा बातचीत नहीं करती थीं पर उस का खयाल अवश्य रखती थीं.

उस ने खाने की प्लेट की तरफ देखा तक नहीं, क्योंकि अब उस पर डाइटिंग का भूत सवार हो चुका था. रात का खाना भी उस ने नहीं खाया तो चाचाचाची को चिंता हुई. वैसे भी वह चाचा की लाड़ली थी. वे उसे अपने तीनों बच्चों की तरह ही प्यार करते थे. मनाली के मातापिता का तलाक हो गया था. उस की मां ने एक एनआरआई डाक्टर के साथ दूसरी शादी कर ली थी और अमेरिका में ही सैटल हो गई थीं. वहीं पिता कैंसर के मरीज थे. मनाली जब 8 वर्ष की थी तभी उन की मृत्यु हो गई थी. कुछ समय बूआ के पास रहने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे चंडीगढ़ चाचाचाची के पास भेजा गया. पढ़ाईलिखाई में मनाली का मन कम ही लगता था जबकि चाचा के तीनों बच्चे पढ़ने में बहुत अच्छे थे. चाची उसे भी पढ़ने को कहतीं पर मनाली पर उस का कम ही असर होता था. इंटर में गिरतेपड़ते पास हुई तो चाचा उस के अंक देख कर चकराए. ‘‘किस कालेज में दाखिला मिलेगा?’’

इस का हल भी मनाली ने सोच लिया था. वह चाचा को आते देख कर किसी न किसी काम में जुट जाती. यह देख कर चाचा चाची पर खूब नाराज होते. उस के कम अंक आने का जिम्मेदार चाचा ने चाची और बड़ी बेटी निमिशा को मान लिया था. खैर, जैसेतैसे चाचा ने मनाली का ऐडमिशन अच्छे कालेज में करा दिया था. कालेज में भी मनाली ने सब को चाची और निमिशा के अत्याचारों के बारे में बता कर सहानुभूति अर्जित कर ली थी. चाचा की छोटी बेटी अनीशा की मनाली के साथ अच्छी बनती थी. अनीशा थोड़ी बेवकूफ थी और अकसर मनाली की बातों में आ जाती थी. दोनों बाहर जातीं और देर होने पर मनाली अनीशा को आगे कर देती. बेचारी को चाचाचाची से डांट खानी पड़ती. चाची मनाली की चालाकियां खूब समझती थीं पर अनीशा मनाली का साथ छोड़ने को तैयार न थी. उस का लैपटौप, फोन, मेकअप का सामान मनाली खूब इस्तेमाल करती थी.

एक दिन अनीशा ने उसे बताया कि वह एक लड़के को पसंद करती है. पापा के दोस्त का बेटा है. उस की पार्टी में ही मुलाकात हुई थी. अनीशा ने मनाली को मयंक से मिलवाया. मयंक बहुत हैंडसम था और अमीर बाप की इकलौती संतान. मनाली ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह कैसे भी मयंक को हासिल कर के रहेगी. ‘‘देखो मयंक, मैं कहना तो नहीं चाहती पर अनीशा को साइकोसिस की बीमारी है.’’ मनाली ने भोली सी सूरत बना कर कहा.

‘‘क्या?’’ मयंक तो हैरान रह गया था.

‘‘प्लीज, तुम यह बात अनीशा और उस की फैमिली से मत कहना. तुम्हें तो पता ही है न उस घर में मेरी क्या हैसियत है.’’

मयंक मनाली की बातों में आ गया. और उस ने अनीशा के प्रति अपना नजरिया बदल लिया. उधर अनीशा को मयंक का व्यवहार कुछ अलग लगने लगा. उस के फोन उठाने भी उस ने बंद कर दिए. अनीशा ने मनाली को इस बारे में बताया तो उस ने आंखें मटकाते हुए समझाया, ‘‘मयंक को मैं ने एक नामी मौडल के साथ देखा है. वह उस की गर्लफ्रैंड है. तुम उसे भूल जाओ.’’ मनाली को तसल्ली हो गई कि अनीशा के भी अंक इस बार कम ही आएंगे. अच्छा हो, दोनों ही डांट खाएं. एक दिन चाचा के बेटे मनीष ने उसे कालेज टाइम में मयंक के साथ घूमते देख लिया. घर आ कर चाचाचाची के सामने मनाली की पोल खुली. ‘‘मैं तो मयंक की खबर लेने गई थी कि उस ने अनीशा का दिल दुखाया,’’ सुबकते हुए मनाली ने कारण बताया. बात बनाना उसे खूब आता था. घर वालों को अनीशा की उदासी का कारण भी पता चला. अनीशा मनाली से नाराज होने के बजाय उस से लिपट गई, ‘‘इस घर में एक तुम ही हो, जिसे मेरी फिक्र है.’’ खैर, कड़ी मेहनत के बाद मनाली ने वजन घटा ही लिया. फोटोशूट भी हो गया और चोरीछिपे एक दो असाइनमैंट भी मिल गए.

एक दिन मयंक से उस ने साफसाफ पूछा, ‘‘मयंक, मैं चाचाचाची के पास रहते हुए तंग आ चुकी हूं. मुंबई में मेरी मौसी रहती हैं. क्या, तुम कुछ समय के लिए मेरी मदद कर सकते हो?’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. मैं तुम्हारे रहने का बंदोबस्त कर देता हूं. तुम बस मुझे बताओ कि तुम्हें कितनी रकम चाहिए,’’ मयंक सोच रहा था कि मनाली मुंबई जा कर मौसी के पास रह कर अपनी पढ़ाई करना चाहती है. उस ने ढेर सारी रकम और एटीएम कार्ड मनाली को दिया और निश्चित तारीख का टिकट भी पकड़ा दिया. चाचाचाची से कालेज ट्रिप का बहाना बना कर मुंबई जाने का रास्ता मनाली ने खोज लिया था. ‘वापसी शायद अब कभी न हो,’ सोच कर मंदमंद मुसकराती मौडर्न सिंड्रेला मुंबई की उड़ान भर चुकी थी. उसे खुद पर और उस से भी ज्यादा लोगों की बेवकूफी पर भरोसा था कि वह जो चाहेगी वह पा ही लेगी.

Latest Hindi Stories : राहें जुदा जुदा – निशा और मयंक की कहानी ने कौनसा लिया नया मोड़

Latest Hindi Stories : ‘‘निशा….’’ मयंक ने आवाज दी. निशा एक शौपिंग मौल के बाहर खड़ी थी, तभी मयंक की निगाह उस पर पड़ी. निशा ने शायद सुना नहीं था, वह उसी प्रकार बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़ी रही. ‘निशा…’ अब मयंक निशा के एकदम ही निकट आ चुका था. निशा ने पलट कर देखा तो भौचक्की हो गई. वैसे भी बेंगलुरु में इस नाम से उसे कोई पुकारता भी नहीं था. यहां तो वह मिसेज निशा वशिष्ठ थी. तो क्या यह कोई पुराना जानने वाला है. वह सोचने को मजबूर हो गई. लेकिन फौरन ही उस ने पहचान लिया. अरे, यह तो मयंक है पर यहां कैसे?

‘मयंक, तुम?’ उस ने कहना चाहा पर स्तब्ध खड़ी ही रही, जबान तालू से चिपक गई थी. स्तब्ध तो मयंक भी था. वैसे भी, जब हम किसी प्रिय को बहुत वर्षों बाद अनापेक्षित देखते हैं तो स्तब्धता आ ही जाती है. दोनों एकदूसरे के आमनेसामने खड़े थे. उन के मध्य एक शून्य पसरा पड़ा था. उन के कानों में किसी की भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पूरा ब्रह्मांड ही थम गया हो, धरती स्थिर हो गई हो. दोनों ही अपलक एकदूसरे को निहार रहे थे. तभी ‘एक्सक्यूज मी,’ कहते हुए एक व्यक्ति दोनों के बीच से उन्हें घूरता हुआ निकल गया. उन की निस्तब्धता भंग हो गई. दोनों ही वर्तमान में लौट आए.

‘‘मयंक, तुम यहां कैसे? क्या यहां पोस्टेड हो?’’ निशा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘नहीं, मेरी कंपनी की ओर से एक सैमिनार था उसी को अटैंड करने आया हूं. तुम बताओ, कैसी हो, निशा,’’ उस ने तनिक आर्द्र स्वर में पूछा.

‘‘क्यों, कैसी लग रही हूं?’’ निशा ने थोड़ा मुसकराते हुए नटखटपने से कहा.

अब मयंक थोड़ा सकुंचित हो गया. फिर अपने को संभाल कर बोला, ‘‘यहीं खड़ेखड़े सारी बातें करेंगे या कहीं बैठेंगे भी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, चलो इस मौल में एक रैस्टोरैंट है, वहीं चल कर बैठते हैं.’’ और मयंक को ले कर निशा अंदर चली गई. दोनों एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गए. धूमिल अंधेरा छाया हुआ था. मंदमंद संगीत बज रहा था. वेटर को मयंक ने 2 कोल्ड कौफी विद आइसक्रीम का और्डर दिया.

‘‘तुम्हें अभी भी मेरी पसंदनापंसद याद है,’’ निशा ने तनिक मुसकराते हुए कहा.

‘‘याद की क्या बात है, याद तो उसे किया जाता है जिसे भूल जाया जाए. मैं अब भी वहीं खड़ा हूं निशा, जहां तुम मुझे छोड़ कर गई थीं,’’ मयंक का स्वर दिल की गहराइयों से आता प्रतीत हो रहा था. निशा ने उस स्वर की आर्द्रता को महसूस किया किंतु तुरंत संभल गई और एकदम ही वर्षों से बिछड़े हुए मित्रों के चोले में आ गई.

‘‘और सुनाओ मयंक, कैसे हो? कितने वर्षों बाद हम मिल रहे हैं. तुम्हारा सैमिनार कब तक चलेगा. और हां, तुम्हारी पत्नी तथा बच्चे कैसे हैं?’’ निशा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘उफ, निशा थोड़ी सांस तो ले लो, लगातार बोलने वाली तुम्हारी आदत अभी तक गई नहीं,’’ मयंक ने निशा को चुप कराते हुए कहा.

‘‘अच्छा बाबा, अब कुछ नही बोलूंगी, अब तुम बोलोगे और मैं सुनूंगी,’’ निशा ने उसी नटखटपने से कहा.

मयंक देख रहा था आज 25 वर्षों बाद दोनों मिल रहे थे. उम्र बढ़ चली थी दोनों की पर 45 वर्ष की उम्र में भी निशा के चुलबुलेपन में कोई भी कमी नहीं आई थी जबकि मयंक पर अधेड़ होने की झलक स्पष्ट दिख रही थी. वह शांत दिखने का प्रयास कर रहा था किंतु उस के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह बहुतकुछ पूछना चाह रहा था. बहुतकुछ कहना चाह रहा था. पर जबान रुक सी गई थी.

शायद निशा ने उस के मनोभावों को पढ़ लिया था, संयत स्वर में बोली, ‘‘क्या हुआ मयंक, चुप क्यों हो? कुछ तो बोलो.’’

‘‘अ…हां,’’ मयंक जैसे सोते से जागा, ‘‘निशा, तुम बताओ क्या हालचाल हैं तुम्हारे पति व बच्चे कैसे हैं? तुम खुश तो हो न?’’

निशा थोड़ी अनमनी सी हो गई, उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मयंक के प्रश्नों का क्या उत्तर दे. फिर अपने को स्थिर कर के बोली, ‘‘हां मयंक, मैं बहुत खुश हूं. आदित्य को पतिरूप में पा कर मैं धन्य हो गई. बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित, संपन्न परिवार के इकलौते पुत्र की वधू होने के कारण मेरी जिंदगी में चारचांद लग गए थे. मेरे ससुर का साउथ सिल्क की साडि़यों का एक्सपोर्ट का व्यवसाय था. कांजीवरम, साउथ सिल्क, साउथ कौटन, बेंगलौरी सिल्क मुख्य थे. एमबीए कर के आदित्य भी उसी व्यवसाय को संभालने लगे. जब मैं ससुराल में आई तो बड़ा ही लाड़दुलार मिला. सासससुर की इकलौती बहू थी, उन की आंखों का तारा थी.’’

‘‘विवाह के 15 दिनों बाद मुझे थोड़ाथोड़ा चक्कर आने लगा था और जब मुझे पहली उलटी हुई तो मेरी सासूमां ने मुझे डाक्टर को दिखाया. कुछ परीक्षणों के बाद डाक्टर ने कहा, ‘खुशखबरी है मांजी, आप दादी बनने वाली हैं. पूरे घर में उत्सव का सा माहौल छा गया था. सासूमां खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. बस, आदित्य ही थोड़े चुपचुप से थे. रात्रि में मुझ से बोले,’ ‘निशा, मैं तुम्हारा हृदय से आभारी हूं.’

‘क्यों.’

मैं चौंक उठी.

‘क्योंकि तुम ने मेरी इज्जत रख ली. अब मैं भी पिता बन सकूंगा. कोई मुझे भी पापा कहेगा,’ आदित्य ने शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं अपराधबोध से दबी जा रही थी क्योंकि यह बच्चा तुम्हारा ही था. आदित्य का इस में कोई भी अंश नहीं था. फिर भी मैं चुप रही. आदित्य ने तनिक रुंधी हुई आवाज में कहा, ‘निशा, मैं एक अधूरा पुरुष हूं. जब 20 साल का था तो पता चला मैं संतानोत्पत्ति में अक्षम हूं, जब दोस्त लोग लड़की के पास ले गए, अवसर तो मिला था पर उस से वहां पर कुछ ज्यादा नहीं हो सका. नहीं समझ पाता हूं कि नियति ने मेरे साथ यह गंदा मजाक क्यों किया? मांपापा को यदि यह बात पता चलती तो वे लोग जीतेजी मर जाते और मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था. मुझ पर विवाह के लिए दबाव पड़ने लगा और मैं कुछ भी कह सकने में असमर्थ था. सोचता था, मेरी पत्नी के प्रति यह मेरा अन्याय होगा और मैं निरंतर हीनता का शिकार हो रहा था.

‘मैं ने निर्णय ले लिया था कि मैं विवाह नहीं करूंगा किंतु मातापिता पर पंडेपुजारी दबाव डाल रहे थे. उन्हें क्या पता था कि उन का बेटा उन की मनोकामना पूर्र्ण करने में असमर्थ है. और फिर मैं ने उन की इच्छा का सम्मान करते हुए विवाह के लिए हां कर दी. सोचा था कि घरवालों का तो मुंह बंद हो जाएगा. अपनी पत्नी से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. यदि उसे मुझ से नफरत होगी तो उसे मैं आजाद कर दूंगा. जब तुम पत्नी बन कर आई तब मुझे बहुत अच्छी लगी. तुम्हारे रूप और भोलेपन पर मैं मर मिटा.

‘हिम्मत जुटा रहा था कि तुम्हें इस कटु सत्य से अवगत करा दूं किंतु मौका ही न मिला और जब मुझे पता चला कि तुम गर्भवती हो तो मैं समझ गया कि यह शिशु विवाह के कुछ ही समय पूर्व तुम्हारे गर्भ में आया है. अवश्य ही तुम्हारा किसी अन्य से संबंध रहा होगा. जो भी रहा हो, यह बच्चा मुझे स्वीकार्य है.’ कह कर आदित्य चुप हो गए और मैं यह सोचने पर बाध्य हो गई कि मैं आदित्य की अपराधिनी हूं या उन की खुशियों का स्रोत हूं. ये किस प्रकार के इंसान हैं जिन्हें जरा भी क्रोध नहीं आया. किसी परपुरुष के बच्चे को सहर्ष अपनाने को तैयार हैं. शायद क्षणिक आवेग में किए गए मेरे पाप की यह सजा थी जो मुझे अनायास ही विधाता ने दे दी थी और मेरा सिर उन के समक्ष श्रद्धा से झुक गया.

‘‘9 माह बाद प्रसून का जन्म हुआ. आदित्य ने ही प्रसून नाम रखा था. ठीक भी था, सूर्य की किरणें पड़ते ही फूल खिल उठते हैं, उसी प्रकार आदित्य को देखते ही प्रसून खिल उठता था. हर समय वे उसे अपने सीने से लगाए रखते थे. रात्रि में यदि मैं सो जाती थी तो भी वे प्रसून की एक आहट पर जाग जाते थे. उस की नैपी बदलते थे. मुझ से कहते थे, ‘मैं प्रसून को एयरफोर्स में भेजूंगा, मेरा बेटा बहुत नाम कमाएगा.’

‘‘मेरे दिल में आदित्य के लिए सम्मान बढ़ता जा रहा था, देखतेदखते 15 वर्ष बीत चुके थे. मैं खुश थी जो आदित्य मुझे पतिरूप में मिले. लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था. अकस्मात एक दिन एक ट्रक से उन की गाड़ी टकराई और उन की मौके पर ही मौत हो गई. तब प्रसून 14 वर्ष का था.’’

मयंक निशब्द निशा की जीवनगाथा सुन रहा था. कुछ बोलने या पूछने की गुंजाइश ही नहीं रह गई थी. क्षणिक मौन के बाद निशा फिर बोली, ‘‘आज मैं अपने बेटे के साथ अपने ससुर का व्यवसाय संभाल रही हूं. प्रसून एयरफोर्स में जाना नहीं चाहता था, अब वह 25 वर्ष का होने वाला है. उस ने एमबीए किया और अपने पुश्तैनी व्यवसाय में मेरा हाथ बंटा रहा है या यों कहो कि अब सबकुछ वही संभाल रहा है.’’

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मयंक ने मुंह खोला, ‘‘निशा, तुम्हें अतीत की कोई बात याद है?’’

‘‘हां, मयंक, सबकुछ याद है जब तुम ने मेरे नाम का मतलब पूछा था और मैं ने अपने नाम का अर्थ तुम्हें बताया, ‘निशा का अर्र्थ है रात्रि.’ तुम मेरे नाम का मजाक बनाने लगे तब मैं ने तुम से पूछा, ‘आप को अपने नाम का अर्थ पता है?’

‘‘तुम ने बड़े गर्व से कहा, ‘हांहां, क्यों नहीं, मेरा नाम मयंक है जिस का अर्थ है चंद्रमा, जिस की चांदनी सब को शीतलता प्रदान करती है’ बोलो याद है न?’’ निशा ने भी मयंक से प्रश्न किया.

मयंक थोड़ा मुसकरा कर बोला, ‘‘और तुम ने कहा था, ‘मयंक जी, निशा है तभी तो चंद्रमा का अस्तित्व है, वरना चांद नजर ही कहां आएगा.’ अच्छा निशा, तुम्हें वह रात याद है जब मैं तुम्हारे बुलाने पर तुम्हारे घर आया था. हमारे बीच संयम की सब दीवारें टूट चुकी थीं.’’ मयंक निशा को अतीत में भटका रहा था.

‘‘हां,’’ तभी निशा बोल पड़ी, ‘‘प्रसून उस रात्रि का ही प्रतीक है. लेकिन मयंक, अब इन बातों का क्या फायदा? इस से तो मेरी 25 वर्षों की तपस्या भंग हो जाएगी. और वैसे भी, अतीत को वर्तमान में बदलने का प्रयास न ही करो तो बेहतर होगा क्योंकि तब हम न वर्तमान के होंगे, न अतीत के, एक त्रिशंकु बन कर रह जाएंगे. मैं उस अतीत को अब याद भी नहीं करना चाहती हूं जिस से हमारा आज और हमारे अपनों का जीवन प्रभावित हो. और हां मयंक, अब मुझ से दोबारा मिलने का प्रयास मत करना.’’

‘‘क्यों निशा, ऐसा क्यों कह रही हो?’’ मयंक विचलित हो उठा.

‘‘क्योंकि तुम अपने परिवार के प्रति ही समर्पित रहो, तभी ठीक होगा. मुझे नहीं पता तुम्हारा जीवन कैसा चल रहा है पर इतना जरूर समझती हूं कि तुम्हें पा कर तुम्हारी पत्नी बहुत खुश होगी,’’ कह कर निशा उठ खड़ी हुई.

मयंक उठते हुए बोला, ‘‘मैं एक बार अपने बेटे को देखना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारा बेटा? नहीं मयंक, वह आदित्य का बेटा है. यही सत्य है, और प्रसून अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता है. वह तुम्हारा ही प्रतिरूप है, यह एक कटु सत्य है और इसे नकारा भी नहीं जा सकता किंतु मातृत्व के जिस बीज का रोपण तुम ने किया उस को पल्लवित तथा पुष्पित तो आदित्य ने ही किया. यदि वे मुझे मां नहीं बना सकते थे, तो क्या हुआ, यद्यपि वे खुद को एक अधूरा पुरुष मानते थे पर मेरे लिए तो वे परिपूर्ण थे. एक आदर्श पति की जीवनसंगिनी बन कर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती हूं. मेरे अपराध को उन्होंने अपराध नहीं माना, इसलिए वे मेरी दृष्टि में सचमुच ही महान हैं.

‘‘प्रसून तुम्हारा अंश है, यह बात हम दोनों ही भूल जाएं तो ही अच्छा रहेगा. तुम्हें देख कर वह टूट जाएगा, मुझे कलंकिनी समझेगा. हजारों प्रश्न करेगा जिन का कोई भी उत्तर शायद मैं न दे सकूंगी. अपने पिता को अधूरा इंसान समझेगा. युवा है, हो  सकता है कोई गलत कदम ही उठा ले. हमारा हंसताखेलता संसार बिखर जाएगा और मैं भी कलंक के इस विष को नहीं पी सकूंगी. तुम्हें वह गीत याद है न ‘मंजिल वही है प्यार की, राही बदल गए…’

‘‘भूल जाओ कि कभी हम दो जिस्म एक जान थे, एक साथ जीनेमरने का वादा किया था. उन सब के अब कोई माने नहीं है. आज से हमारी तुम्हारी राहें जुदाजुदा हैं. हमारा आज का मिलना एक इत्तफाक है किंतु अब यह इत्तफाक दोबारा नहीं होना चाहिए,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और रैस्टोरैंट के गेट की ओर बढ़ चली. तभी मयंक बोल उठा, ‘‘निशा…एक बात और सुनती जाओ.’’

निशा ठिठक गई.

‘‘मैं ने विवाह नहीं किया है, यह जीवन तुम्हारे ही नाम कर रखा है.’’ और वह रैस्टोरैंट से बाहर आ गया. निशा थोड़ी देर चुप खड़ी रही, फिर किसी अपरिचित की भांति रैस्टोरैंट से बाहर आ गई और दोनों 2 विपरीत दिशाओं की ओर मुड़ गए.

चलतेचलते निशा ने अंत में कहा, ‘‘मयंक, इतने जज्बाती न बनो. अगर कोई मिले तो विवाह कर लेना, मुझे शादी का कार्ड भेज देना ताकि मैं सुकून से जी सकूं.’’

शक का संक्रमण: आखिर किस वजह से दूर हो गए कृति और वैभव

‘‘मैं मैं इस घर में एक भी दिन नहीं रह सकती. मुझे बस तलाक चाहिए,’’ कृति के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन वकील ने मौन साध लिया.

जवाब न सुन कृति का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया, ‘‘आप बोल क्यों नहीं रहे वकील साहब? देखिए मुझे नहीं पता कि कोरोना की क्या गाइडलाइंस हैं. आप ने कहा था कि 1 महीना पूरा होते ही मेरी अर्जी पर कोर्ट फैसला दे देगा,’’ कृति के चेहरे पर परेशानी उभर आई.

‘‘देखिए कृतिजी. कोर्ट बंद हैं और अभी खुलने के आसार भी नहीं तो केस की सुनवाई तो अभी नहीं हो सकती और मैं जज नहीं जो डिसीजन दे कर आप के तलाक को मंजूर कर दूं,’’ वकील ने समझते हुए कहा.

‘‘पर मैं यहां से जाना चाहती हूं. 1 महीने के चक्कर में फंस गई हूं मैं. मुझ से उस आदमी की शक्ल नहीं देखी जा रही जिस ने मुझे धोखा दिया. मैं नहीं रह सकती वैभव के साथ.’’

कृति के शब्दों की झंझलाहट और मन में छिपे दर्द को वकील ने साफ महसूस किया. 2 पल की खामोशी के बाद वह फिर बोला, ‘‘आप अपनी मां के घर चली जाएं.’’

‘‘अरे नहीं जा सकती. इस इलाके को कारोना जोन घोषित कर दिया है. यहां से निकली तो 40 दिन के लिए क्वारंटीन कर दी जाऊंगी,’’ कृति ने हांफते हुए कहा.

‘‘तो बताओ मैं क्या कर सकता हूं?’’ वकील ने कहा.

‘‘आप बस इतना करें कि इस लौकडाउन के बाद मुझे तलाक दिला दें,’’ और कृति ने फोन काट दिया. फिर किचन की ओर मुड़ गई. उस के गले में हलका दर्द था और सिर भारी हो रहा था. एक कप चाय बनाने के लिए जैसे ही उस ने किचन के दरवाजे पर कदम रखा वैभव को अंदर देख कृति के सिर पर गुस्से का बादल जैसे फट पड़ा. पैर पटकते वापस बैडरूम में आ कर लेट गई.

छत पर घूमते पंखे के साथ पिछली यादें उस की आंखों के सामने तैरने लगीं…

दीयाबाती के नाम से मशहूर वैभव और कृति अपने कालेज की सब से हाट जोड़ी थी. दोनों के बीच की कैमिस्ट्री को देख कर न जाने कितने दिल जल कर खाक हुए जाते थे.

कृति के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए वैभव रोज नए ट्रिक्स अपनाता. दोनों की दीवानगी कोई वक्ती न थी. अपने कैरियर के मुकाम पर पहुंच वैभव और कृति परिवार की रजामंदी से विवाह के बंधन में बंध गए.

सबकुछ बेहद खूबसूरत चल रहा था लेकिन वह एक शाम दोनों की जिंदगी में बिजली बन कर कौंध गई. प्रेम की मजबूत दीवार पर शक के हथौड़े का वार गहरा पड़ा. वैभव ने लाख सफाई दी कि उस का मेघना के साथ सिर्फ मित्रता का संबंध है लेकिन शक की आग में जलती कृति कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. 15 दिन बाद दोनों की शादी को 2 साल पूरे हो जाएंगे लेकिन कृति उस से पहले ही वैभव से तलाक चाहती थी. कोर्ट ने एक बार दोबारा विचार करने के लिए दोनों को कुछ समय साथ रहने का फैसला सुनाया था.

वैभव के लाख प्रयासों के बाद भी कृति का मन नहीं बदला बल्कि वैभव की हर कोशिश उसे सफाई नजर आती. नफरत और गुस्से से वह वैभव को शब्दबाणों से घायल करती रहती. वैभव का संयम अभी टूटा नहीं था इसलिए उस ने मौन ओढ़ लिया. केस की अगली सुनवाई तक दोनों को साथ ही रहना था इसलिए मजबूरन कृति वैभव को बरदाश्त कर रही थी.

समय बीत रहा था लेकिन अचानक आए कोरोना के वायरस ने जिंदगी की रफ्तार को जैसे थाम लिया. लौकडाउन लग चुका था. चारों ओर डर और अफरातफरी का माहौल था. कृति अपने मायके जाना चाहती थी लेकिन उन की सोसायटी सील कर दी गई थी क्योंकि उस में कोरोना के केस लगातार बढ़ रहे थे. मन मार कर एक ही छत के नीचे रहती कृति अंदर ही अंदर घुल रही थी.

कृति अपने खयालों में खोई कमरे में चहलकदमी कर रही थी कि ऐंबुलैंस की तेज आवाज से उस का ध्यान भटका. वह भाग कर बालकनी की ओर भागी. सामने वाली बिल्डिंग

के नीचे ऐंबुलैंस खड़ी थी. उस के आसपास पीपीई किट पहने 4 लोग खड़े थे. कृति ने ध्यान दिया तो उसे सामने वाली बिल्डिंग के 4 नंबर फ्लैट की बालकनी में सुधा आंटी रोती नजर आई. ऐंबुलैंस के अंदर एक बौडी को डाला जा रहा था. थोड़ी देर में ऐंबुलैंस सायरन बजाते निकल गई. सुधा आंटी के रोने की आवाज अब साफ नजर आ रही थीं.

ऐंबुलैंस में उन के एकलौते बेटे रजत को ले जाया गया था.

‘‘रजत नहीं रहा,’’ बगल की बालकनी में मुंह लपेटे पारुल खड़ी थी. उस की बात सुन कर कृति का दिल धक से रह गया.

‘‘क्या बोल रही हो पारुल. यार एक ही बेटा था आंटी का… कोई नहीं है उन के पास तो… कैसे बरदाश्त करेंगी वे यह दुख,’’ कृति दुखी स्वर में बोली.

‘‘कारोना जाने कितनों को अपने साथ ले जाएगा. तुम ने मास्क नहीं पहना और तुम बाहर खड़ी हो. इतनी लापरवाही ठीक नहीं कृति,’’

कह कर पारुल अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. घबराई कृति कमरे में आ कर अपने चेहरे और हाथों को साबुन से रगड़ने लगी. सुधा आंटी का विलाप चारों तरफ फैले सन्नाटे में डर पैदा कर रहा था. कृति अपने कमरे को सैनिटाइज कर बिस्तर पर लेट गई. सिर में दर्द और गले की खराश मन में भय की तरंगें बनाने लगी. नाक से बहता पानी मस्तिष्क को बारबार झंझड़ रहा था. लेकिन आंटी और रजत के बारे में सोचतेसोचते उसे गहरी नींद आ गई.

कृति को कमरे से बाहर न निकलते देख वैभव को चिंता हो रही थी. कृति कभी इतनी देर नहीं सोती. रात के 8 बज रहे थे और कृति 4 बजे से कमरे के अंदर थी. रजत के जाने का दुख वैभव को अंदर तक हिला गया. उस पर कृति का कमरे में बंद होना वैभव के मन में हजार आशंकाओं को जन्म दे रहा था. घड़ी की सूई बढ़ती जा रही थी. 9 बज चुके थे. अब वैभव उस के कमरे के दरवाजे के पर जा कर खड़ा हो गया.

‘‘कृति, तुम ठीक हो न? कृतिकृति,’’ दरवाजे को थपथपा कर वह बोला. लेकिन कृति की कोई आवाज नहीं आई. वैभव ने दरवाजे को हलके से धकेला तो कृति को बिस्तर पर बेसुध पाया. उस ने करीब जा कर उस के माथे को छूआ माथा तप रहा था.

‘‘कृतिकृति उठो आंखें खोलो,’’ वैभव उसे झंझड़ कर बोला.

कृति ने अपनी आंखें खोलने की कोशिश की लेकिन खोल नहीं पाई. वैभव तुरंत अपना मास्क चेहरे पर लगा कर ठंडे पानी का कटोरा ले कर उस के सिरहाने बैठ गया. ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रख उस की हथेलियां रगड़ने लगा.

कृति को कुछ होश आया. आंखें खोलीं तो वैभव सामने था. कृति की आंखें लाल थीं. वैभव उसे होश में आया देख तुरंत पैरासिटामोल ले आया और सहारा दे कर दवा उस के मुंह में डाल दी.

कृति को अपना शरीर बिलकुल निष्क्रिय लग रहा था. वह उठ नहीं पा रही थी.

कोरोना उस के शरीर को जकड़ चुका था लेकिन वैभव उस के करीब खड़ा था. यह देख कृति बोली, ‘‘तुम दूर रहो वैभव, मुझे कारोना… तुम भी बीमार हो जाओ,’’ और फिर खांसने लगी. उसे सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई.

‘‘तुम शांत रहो. मुझे कुछ नहीं होगा. मैं ने मास्क और दस्ताने पहने हैं और तुम्हें बस वायरल बुखार है कारोना नहीं. घबराओ नहीं. मैं चाय लाता हूं,’’ कह वैभव रसोई में चला गया. थोड़ी देर में चाय और स्टीमर उस के साथ था. कृति को चाय दे कर वैभव ने स्टीमर का प्लग लगाया और उसे गरम करने लगा. कृति चाय पी कर स्टीम लेने लगी. वैभव वहीं खड़ा था.

‘‘तुम जाओ बीमार हो जाओगे. जाओ प्लीज,’’ कृति ने जोर दे कर कहा.

‘‘मैं ठीक हूं. सुबह कोरोना का टैस्ट होगा हमारा. तुम रिलैक्स रहना कृति,’’ वैभव उसे समझते हुए बोला.

कृति ने हां में सिर हिलाया. थोड़ी देर में वह फिर सो गई. कोरोना के लक्षण अभी इतने नहीं दिखाई दे रहे थे लेकिन वैभव डर गया. कृति के मायके फोन कर खबर देने के बाद वैभव ने सारे घर को सैनिटाइज किया. चाय का कप ले कर कृति के कमरे के बाहर ही बैठ गया.

कृति बीचबीच में खांस रही थी और बेचैनी से अपने सीने को रगड़ रही थी. अस्पताल ले जाना खतरनाक था क्योंकि अस्पताल से आती मौत की खबरों ने दहशत फैला रखी थी. वैभव की आंखों में नींद नहीं थी. वह एकटक कृति को देख रहा था. कृति बारबार अपनी गरदन पर हाथ फेर रही थी. बाहर फैला सन्नाटा कोरोना के साथ मिल कर सब के दिलों से खेल रहा था जैसे.

‘‘पा… पानी,’’ कृति के होंठ बुदबुदाए.

वैभव ने भाग कर कुनकुना पानी ला कर कृति के होंठों से लगा दिया. लिटा कर टेम्प्रेचर लेता है. बुखार कुछ कम हुआ था, लेकिन अब भी 102 पर अटका था.

रात भी जाने कितनी लंबी थी जो सरक ही नहीं रही थी. वह कृति के कमरे के बाहर दरवाजे पर टेक लगाए बैठा था. बीचबीच में पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनाई देती.

सूरज अपने समय पर उगा. खिड़की से आती सूरज की रोशनी कृति के चेहरे पर पड़ने लगी तो वह जाग गई. शरीर में टूटन थी. सहारा

ले बिस्तर से उठ कर बाथरूम में घुस गई. वैभव दरवाजे के पास ही जमीन पर बेखबर सो रहा था. बाथरूम से बाहर आकर कृति की नजर जमीन पर लेटे वैभव पर पड़ी. वह कसमसा कर रह गई.

2 कदम चलने की हिम्मत भी कृति की नहीं हो रही थी. सांस लेने में तकलीफ होने लगी.वह वैभव को बुलाना चाहती थी लेकिन खांसी के तेज उफान से यह नहीं हो सका. उस के खांसने की आवाज से वैभव की नींद टूट गई. वह हड़बड़ा कर उठा तो देखा कि कृति बिस्तर पर सिकुड़ कर लेटी हुई है. वह अपना मास्क ठीक करता है और उस के पास जा कर उसे सीधा करता है. कृति गले में रुकावट का इशारा करती है. वैभव कुनकुना पानी उस के गले में उतार देता है. कृति को कुछ राहत महसूस होती है.

वैभव की घबराहट कृति के लिए बढ़ती जा रही थी. वह लगातार व्हाट्सऐप पर औक्सीजन सिलैंडर के इंतजाम के लिए मैसेज कर रहा था. औक्सीमीटर और्डर कर वैभव कोरोना हैल्पलाइन सैंटर में कौल कर कृति की स्थिति बताई. वहां से वैभव को कुछ निर्देश मिले. कोरोना टैस्ट के लिए पीपीई किट पहने 2 लोग आए और उन के सैंपल ले गए. मौत का भय कैसे मस्तिष्क को शून्य कर देता है यह वैभव और कृति महसूस कर रहे थे.

बिस्तर पर पड़ी कृति वैभव की उस के लिए चिंता साफ महसूस कर रही थी. प्यार जो स्याहीचूस की तरह कहीं सारी भावनाओं को चूस रहा था एक बार फिर वापस तरल होने लगा.

घर के काम और कृति की देखभाल में वैभव भूल गया था कि कृति उस के साथ बस कुछ दिनों के लिए है. औक्सीमीटर से रोज औक्सीजन नापने से ले कर कृति को नहलाने तक का काम वैभव कर रहा था और कृति उस के प्रेम को धीरेधीरे पी रही थी.

मन में अजीब सी ग्लानि महसूस कर कृति अकसर रो पड़ती. लेकिन वैभव के सामने सामान्य बनी रहती. कृति तकलीफ में थी. मन से भी और शरीर से भी. लेकिन उस के अपनों ने उस से दूरी ही रखी. शायद भय था कि कहीं

कृति उन से कोई मदद न मांग ले. वैभव कोरोना को ले कर औनलाइन सर्च करता रहता. कृति के इलाज के साथ सावधानी और उस की डाइट पर वैभव कोई लापरवाही नहीं करना चाहता था. दिन बीत रहे थे और कृति तेजी से रिकवर कर रही थी लेकिन कमजोरी इतनी थी कि वह खुद के काम करने में भी सक्षम महसूस नहीं कर रही थी. बालकनी में कुरसी पर बैठी कृति शहर के सन्नाटे को महसूस कर रही थी. आसपास के फ्लैट्स की बालकनियों के दरवाजे कस कर बंद पड़े थे शायद सब को उस का कोरोना पौजिटिव होना पता चल गया था. इंसानों के बीच आई यह दूरी कितनी पीड़ादायक थी.

कृति अपने खयालों में खोई थी कि रसोई से आती तेज आवाज से उस का ध्यान भंग हुआ. वह दीवार का सहारा ले कर कमरे से बाहर निकली. रसोई में वैभव अपना हाथ झटक रहा था. फर्श पर दूध का बरतन पड़ा था जिस में से भाप उठ रही थी. माजरा सम?ाते उसे देर न लगी.

कृति बेचैनी से चिल्लाई, ‘‘वैभव ठंडा पानी डालो हाथ पर… जल्दी करो वैभव.’’

‘‘ठीक है. लेकिन तुम जाओ आराम करो परेशान न हो,’’ वैभव ने फ्रिज खोलते हुए कहा.

‘‘मेरी चिंता न करो. मैं ठीक हूं. अपना हाथ दिखाओ,’’ वह चिल्लाई.

वैभव का हाथ लाल हो गया था.

‘‘क्या किया तुम ने यह क्या हाथ से बरतन उठा रहे थे? बरतन गरम है यह तो देख लेते?’’ कृति गुस्से से बोली.

‘‘मेरी चिंता मत करो. वैसे भी अकेले ही रहना है मुझे,’’ अपनी हथेली को कृति की हथेलियों से. छुड़ा कर वह बोला.

‘‘तो तुम क्यों चिंता कर रहे थे मेरी? रातदिन मेरे लिए दौड़ रहे थे… मेरे लिए अपनी नींद खो रहे थे… मरने देते मुझे,’’ कृति की आवाज में दर्द था.

‘‘प्यार करता हूं तुम से. तुम्हारे लिए तो जान भी दे सकता हूं,’’ वैभव न कहा.

‘‘तो क्यों नहीं मुझे रोक लेते?’’ सुबकते हुए कृति बोली.

‘‘मैं ने तो कभी तुम से दूर होने की कल्पना नहीं की. तुम ही मुझ से नफरत करती हो,’’ वैभव रसोई के फर्श पर बैठ गया.

‘‘नफरत. तुमतुम वह मेघना… मैं ने तुम्हें उस के साथ… तुम ने मुझे धोखा क्यों दिया वैभव?’’ कृति तड़प उठी.

‘‘मैं तुम्हें धोखा देने की कल्पना भी नहीं कर सकता. उस रात मेघना को अस्थमा का अटैक आया था. मैं सिर्फ उसे गोद में उठा कर पार्किंग में कार में बैठा रहा था लेकिन तुमने सिर्फ यही देख मु?ा पर शक किया. मेघना को भी अपराधी बना दिया जबकि उस समय वह खतरे में थी,’’ वैभव एक सांस में बोल गया.

कृति खामोश हो नीचे बैठ गई. उस की आंखों से बहता पानी अपनी गलती का एहसास करा रहा था. वैभव उस के गालों पर आंसू देख परेशान हो गया.

‘‘तुम रो क्यों रही हो कृति? देखो अभी तुम्हारी तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं.

सांस लेने में दिक्कत हो जायेगी,’’ वैभव बोला.

‘‘कुछ नहीं होगा मुझे. इस कांरोना संक्रमण ने मेरे शक के संक्रमण को मार दिया है वैभव. मुझे माफ कर दो मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. तुम्हें किसी और के करीब देख मेरी चेतना शून्य हो गई थी. मैं जलन में गलती कर गई. तुम्हारा अपमान किया, तुम पर आरोप लगाए. मुझे माफ कर दो वैभव,’’ कृति हाथ जोड़ कर बिलखने लगी.

‘‘तुम्हारी आंखों में अपने लिए नफरत देख मैं कितना तड़पा हूं तुम नहीं समझ सकती. अब ऐसे रो कर मुझे और तड़पा रही हो. कैसे सोच लिया था तुम ने कि तुम्हारे बिना मैं जिंदा रह पाता. मर जाता मैं,’’ कह कर वैभव ने कृति को बांहों में भींच लिया. दोनों की आंखों से बहता पानी प्रेम के सागर को और गहरा करने लगा.

अगली तारीख पर अपना फैसला सुनाने के लिए कृति ने वैभव के सीने पर चुंबन अंकित कर दिया.

Famous Hindi Stories : रोशनी – मां के फैसले से अक्षिता हैरान क्यों रह गई?

Famous Hindi Stories :  खिड़कीसे आती रोशनी में बादामी परदे सुनहरे हुए जा रहे थे. मेरी नजर उन से होते हुए ड्राइंगरूम में सजे हलकेनीले रंग के सोफे, कांच की चमकती टेबल, शैल्फ पर सजे खूबसूरत शो पीसेज से वापस सामने बैठी अपनी बेटी अक्षिता के चेहरे पर टिक गई. मेरी पूरी कोशिश थी कि मैं टेबल पर रखे फोटोफ्रेम में उस की बगल में लगे लड़के के फोटो को न देखूं. बगल में बैठे आनंद के बमुश्किल दबाए गुस्से की भभक भी महसूस न करूं. पर ये सब मेरी कनपटी पर धमक पैदा कर रहे थे. सामने बैठी अक्षिता अपने दोस्त आयुष के साथ अपने लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बारे में जाने क्याक्या बताए जा रही थी.

पर मैं उस की बात समझने में लगातार नाकामयाब हुई जा रही थी. दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. और धड़कनें बेलगाम भाग रही थीं. मेरे चश्मे का कांच बारबार धुंधला रहा था, पर उसे उतार कर पोंछने की ताकत नहीं थी मुझ में. मन मान ही नहीं पा रहा था कि मेरी यह नन्ही सी बच्ची जो कुछ वक्त पहले तक मेरी उंगली पकड़ कर चलती थी, मम्मामम्मा करती आगेपीछे घूमती थी, अपने पापा से फरमाइशें करती नहीं थकती थी, बातबात पर रो देती थी. क्या बाहर रह कर नौकरी करते ही अचानक इतनी बड़ी हो गई कि इतना बड़ा कदम उठा बैठी… एक अनजान लड़के के साथ… वह भी बिना शादी किए?

मेरे गले में कुछ अटकने लगा. डबडबाती आंखें बरसने को आतुर होने लगीं. बगल में बैठे आनंद की लगातार बढ़ती कसमसाहट बता रही थी कि अब उन का गुस्सा अपनी हद तोड़ने ही वाला है. ‘‘मम्मा,’’ अक्षिता का हाथ अपनी हथेलियों पर महसूस हुआ, तो मैं चौंक पड़ी.

मेज को हलके से खिसका कर वह मेरे सामने जमीन पर बैठते हुए मुझ से कह रही थी, ‘‘मैं नहीं चाहती थी कि आप को किसी और से यह बात पता चले. तभी आप को बुलाया. मैं आप दोनों को बहुत प्यार करती हूं… पर आप भी तो मेरी बात समझिए. मैं और आयुष… पसंदगी की वजह से साथ रहते हैं पर अपनेअपने बरतन और कपड़े खुद धोते हैं, सारे खर्चे शेयर करते हैं. न मैं उस का देर रात तक इंतजार करती हूं और न वह आप का नाम ले कर मुझे ताने दे सकता है… न मैं उस के लिए बेमन से व्रतउपवास रखने को बाध्य हूं, न ही वह मेरे लिए अपने तौरतरीके बदलने को. अपने कैरियर, अपनी फैमिली के बारे में खुद फैसले लेते हैं, एकदूसरे पर थोपते नहीं. हमारी इन्वैस्टमैंट्स… सेविंग्स सब अलग हैं. पतिपत्नी होने से बेहतर हम दोस्त बनना चाहते हैं पापा. क्या यह इतना गलत है?’’ आनंद के लाल चेहरे पर अब हैरानी थी.

अक्षिता ने आगे कहा, ‘‘शादी के बंधन में बंधने से पहले एकदूसरे को जाननेबूझने में कोई बुराई तो नहीं न? बाद में मजबूरी में शादीशुदा रिश्ता ढोते चले जाने या तलाक की नौटंकी करने से बेहतर है यह देखना कि हम एकदूसरे की इज्जत करते भी हैं या नहीं. अगर हम ऐसा कर पाए, तो शायद हम शादी कर भी लें और अगर नहीं, तो बिना दिल टूटने के खतरे के अलग हो जाएंगे.’’ ‘‘लेकिन…’’

मैं अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही अक्षिता ने मेरी गोद में सिर टिका लिया, ‘‘आप दोनों ने मुझे बहुत समझदार बनाया है. अपनी जिंदगी के किसी मुकाम पर पहुंचने से पहले मैं किसी और जिंदगी को इस दुनिया में नहीं लाऊंगी. इतना भरोसा तो मुझ पर है न?’’ मेरा हाथ उस का सिर सहलाने को उठा ही था कि आनंद को उठता देख गिर गया.

वे बोले, ‘‘चलो वंदना…’’ अक्षिता के बुझे चेहरे को देख पहली बार मैं उन से कड़ाई से कुछ बोलने को हुई, तभी उस की पूरी बात ने हमें चौंका दिया. बोले, ‘‘अरे भई, अंदर आराम करते हैं. अब इस आयुष से मिल कर ही वापस जाएंगे.’’

अक्षिता एक झटके में उठ कर हमारे गले लग गई, ‘‘हांहां, मैं उसे फोन कर देती हूं. थैंक्यू पापा… थैंक्यू मम्मी.’’ अक्षिका का माथा चूमते हुए मैं सोच रही थी कि अपनी जिंदगी में सब को कभी न कभी खुद फैसले लेने शुरू कर देने ही चाहिए. मैं ने नहीं किए पर मेरी बेटी ले रही है. अब वह सही निकलेगा या गलत, यह वक्त बताएगा. हालांकि मेरी कामना अभी भी उसे लाल जोड़े में लिपटे इस आयूष के साथ विदा होते देखने की हो रही थी. लेकिन तब जब उस का यह रिश्ता प्यार और भरोसे पर टिका हुआ हो और अगर ऐसा न भी हुआ, तो भी हम हमेशा अपनी बेटी के साथ खड़े रहेंगे. यह फैसला अंदर जाते हुए मैं ले चुकी थी.

नई रोशनी ने हमारे मन में घुमड़ती शंका के बादलों को पूरी तरह भेद डाला था.

Summer Special: इम्यूनिटी के साथ ऐसे बढ़ाएं ब्यूटी

खू बसूरती का सीधा संबंध बेदाग, दमकती त्वचा और प्राकृतिक निखार से है. मौसम भले आग बरसाती गरमी का ही क्यों न हो, खूबसूरती के साथ सम झौता नहीं किया जा सकता. अत: गरमियों में भी खूबसूरत बने रहने के लिए अपनाएं सही डाइट.

रोज लें हैल्दी डाइट

हर मौसम में हैल्दी डाइट लेने की आदत डालें. सर्दियों में तो लोग इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए हैल्दी चीजें खाते हैं, मगर गरमी का मौसम आते ही लापरवाह होने लगते हैं. यदि आप के साथ भी ऐसा है तो सावधान हो जाएं, क्योंकि यदि आप की डाइट डिस्टर्ब रहेगी तो स्किन अनहैल्दी टिशूज प्रोड्यूस करेगी यानी त्वचा की जो नई कोशिकाएं बनती हैं वे अस्वस्थ होंगी.

जाहिर है ऐसे में आप की त्वचा पर वह रौनक नजर नहीं आएगी जो हैल्दी खानपान से आती है. इसलिए खूबसूरती बरकरार रखने के लिए खानपान पर ध्यान देना सब से ज्यादा जरूरी है.

खूबसूरत त्वचा के लिए अपनी डाइट में शामिल करें  ये चीजें:

हरे पत्तों से दोस्ती

खूबसूरत स्किन के लिए सब से पहले अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. गरमियों में स्किन प्रदूषण और धूप के कारण ज्यादा खराब होती है. कैमिकल्स और जंक फूड्स भी नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए नियम बना लें कि तीनों मील में कोई एक हरी सब्जी जरूर खाएंगी.

डार्क चौकलेट से बढ़ाएं खूबसूरती

चौकलेट सिर्फ फैट और वेट बढ़ाने का काम ही नहीं करती है. अगर आप डार्क चौकलेट सही तरीके से और संतुलित मात्रा में खाएंगी तो यह स्किन को खूबसूरत बनाने का काम भी करती है. डार्क चौकलेट ऐंटीऔक्सीडैंट्स से भरपूर होती है, इसलिए यह गरमियों में सूर्य की किरणों के कारण हुए एजिंग इफैक्ट्स को स्किन पर नहीं आने देती.

खट्टे फलों का फायदा

मौसमी, संतरा, नीबू, कीवी, आलूबुखारा, आम, आंवला, बेरीज जैसे खट्टे फल स्किन को फ्लालैस ग्लो देने का काम करते हैं. अगर आप प्राकृतिक रूप से बेदाग और निखरी त्वचा चाहती हैं तो रोज इन में से किसी एक फ्रूट का सेवन जरूर करें. गरमियों में ये फल आसानी से मिल जाते हैं. इन्हें नियमित रूप से खाने से स्किन अंदर से खूबसूरत बनी रहेगी.

ओमेगा-3 और विटामिन डी

अखरोट जैसे सूखे मेवों, अलसी, सूरजमुखी, सरसों के बीज, सोयाबीन, स्प्राउट्स, गोभी, ब्रोकली, शलगम, हरी पत्तेदार सब्जियों और स्ट्राबेरी जैसे कई फलों में ओमेगा-3 उच्च मात्रा में पाया जाता है. विटामिन डी के मुख्य स्रोतों में अंडे का पीला भाग, मछली का तेल, विटामिन डी युक्त दूध, मक्खन आदि होते हैं. ओमेगा-3 फैटी ऐसिड, विटामिन डी और प्रोटीन ये तीनों बेहद जरूरी हैं, जो स्किन को खूबसूरत बनाए रखते हैं.

ड्राईफ्रूट्स लाएं अंदर से निखार

ड्राईफ्रूट्स में खासतौर पर अखरोट और बादाम स्किन को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं. अखरोट ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी ऐसिड से भरपूर होता है तो बादाम विटामिन ई का अच्छा स्रोत है. ग्लोइंग स्किन के लिए इन्हें डेली डाइट में शामिल करें.

गरमियों में इम्यूनिटी बूस्टर डाइट

इस गरमी के मौसम में आप डाइट में बदलाव कर रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ा सकती हैं. कोरोना नए स्ट्रेन और नई तीव्रता के साथ एक बार फिर फैल रहा है. हम कोरोना के साथ दूसरी बीमारियों से भी लड़ सकें इस के लिए अच्छी इम्यूनिटी जरूरी है और इम्यूनिटी के लिए एक अच्छी डाइट की आवश्यकता पड़ती है. आइए जानते हैं गरमियों के इस मौसम में आप की डाइट कैसी हो ताकि आप तंदुरुस्त भी रहें और बीमारियों से भी लड़ सकें:

दही

दही ऐसा खाद्यपदार्थ है, जो सभी के लिए फायदेमंद होता है. गरमी के मौसम में दही, छाछ या मट्ठे आदि का खूब प्रयोग करना चाहिए. दही स्वाद भी बढ़ाता है और इस के सेवन से प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है.

सीड्स

1 बड़ा चम्मच मिक्स सीड्स लें. इन में सूर्यमुखी, अलसी, चिया सीड्स आदि मिक्स करें. अलसी में ओमेगा -3 और फैटी ऐसिड पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. शाकाहार करने वालों के लिए सीड्स ओमेगा-3 और फैटी ऐसिड का सब से अच्छा स्रोत है. इस के प्रयोग से बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है.

विटामिन सी

संक्रामक रोगों से सुरक्षा के लिए विटामिन सी को सब से अच्छा औप्शन माना जाता है. यह एक स्ट्रौंग ऐंटीऔक्सीडैंट है. रोजाना 40 से 60 मिलिग्राम तक इसे अपनी डाइट में लें. नीबू, आंवला, अमरूद, संतरे के अलावा हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे धनियापत्ती, पुदीनापत्ती आदि खाने में किसी न किसी रूप में शामिल करें. ये दोनों रोग प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त रखने में मददगार होती हैं.

गाजर

गाजर का काम शरीर में खून बढ़ाने के साथ कई हानिकारक बैक्टीरिया से लड़ने का भी होता है. यह विटामिन ए, कैरोटेनौइड और ऐंटीऔक्सीडैंट का स्रोत है.

ग्रीन टी और ब्लैक टी 

ग्रीन टी और ब्लैक टी दोनों ही प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी मदद करती हैं. लेकिन गरमियों में एक दिन में इन के 1-2 कप ही पीएं. इन का ज्यादा मात्रा में सेवन करने से कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

कच्चा लहसुन

कच्चा लहसुन भी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी फायदेमंद होता है. इस में काफी मात्रा में ऐलिसिन, जिंक, सल्फर और विटामिन ए व ई पाए जाते हैं. गरमी के मौसम में भी सब्जियों में इस का प्रयोग जरूर करें.

भरपूर पानी

गरमियों में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए रोजाना 10 से 12 गिलास पानी जरूर पीएं. छाछ, नारियल पानी, नीबू पानी, आम का पना आदि भी ले सकती हैं.

हलदी वाला दूध

गरमी का मौसम हो या जाड़े का, रोज रात में सोने से पहले हलदी मिला 1 गिलास दूध लें. हलदी में करक्यूमिन होता है, जो रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है.

प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा

शरीर की मांसपेशियों और कोशिकाओं की मरम्मत और मैटाबोलिज्म को बेहतर करने के लिए प्रोटीन जरूर लें. रोज 1-2 कटोरी दाल या अंकुरित दालें, दूध, दही, पनीर या उबला अंडा ले सकती हैं. इन से अमीनो ऐसिड्स मिलते हैं, जो शरीर के लिए जरूरी होते हैं.

Short Stories in Hindi : मुझे बेबस न समझो

Short Stories in Hindi : नेहा शूटिंग के उस सीन को याद कर सिहर उठती थी. वह ओलिशा की बौडी डबल थी, सो सारे रेप सीन या उघड़े बदन वाले सीन उस पर ही फिल्माए जाते थे. वैसे तो अब उसे इन सब की आदत पड़ चुकी थी पर आज रेप सीन को विभिन्न कोणों से फिल्माने के चक्कर में वह काफी टूटी व थकी महसूस कर रही थी. फिर देर रात तक नींद उस से कोसों दूर रही. अपनी ही चीखें, चाहे डायलौग ही थे, उस के कानों में गूंज कर उस के अपने ही अस्तित्व पर सवाल खड़े कर रहे थे जिस के कारण उसे शारीरिक थकावट से ज्यादा दिमागी थकावट महसूस हो रही थी.

कब तक वह ऐसे दृश्यों पर अभिनय करती रहेगी, यह सवाल उस के सिर पर हथौड़े की तरह वार कर रहा था. विचारों के भंवर से बाहर निकलने के लिए वह कौफी का मग हाथ में पकड़ खिड़की के पास आ खड़ी हुई. बाहर आसपास की दुनिया देख उसे कुछ सुकून मिला ही था कि उसे देख 1-2 लोगों ने हाथ हिलाया और फिर आपस में कोई भद्दा मजाक कर खीखी कर हंसने लगे. सब को पता है कि वह छोटीमोटी फिल्मी कलाकार है. पर शुक्र है यह नहीं पता कि वह किसी का बौडी डबल करती है. नहीं तो उसे वेश्या ही समझ लेते. खैर, दिमाग से यह कीड़ा बाहर फेंक वह कालेज जाने की तैयारी करने लगी. बस पकड़ने के लिए स्टौप पर खड़ी थी तो देखा कि 2-4 आवारा कुत्ते एक कुतिया के पीछे लार टपकाते उसे झपटने जा रहे थे. वह कुतिया जान बचा उस के पैरों के आसपास चक्कर लगाने लगी. तभी, एक पत्थर उठा उस ने कुत्तों को भगाया. कुतिया भाग कर एक नाले में छिप गई.

बाहर आवारा कुत्ते उस कुतिया के आने का इंतजार करने लगे. किसी ने भी कुत्तों को वहां से नहीं भगाया. शायद मन ही मन इस कुतिया का तमाशा देखने की चाह रही होगी भीड़ की. तभी उस की बस आ गई और वह अपना बसपास दिखा सीट खाली होने का इंतजार करने लगी. सीट का इंतजार करतेकरते आत्ममंथन भी करने लगी. शूटिंग के समय तो वह भी इस निरीह कुतिया की तरह लार टपकाते साथी सदस्यों से इसी तरह बचती फिरती रहती है क्योंकि उन की निगाह में ऐसे सीन देने वाली युवती का अपना कोई चरित्र नहीं होता. तभी तो सीन फिल्माते समय जानबूझ कर एक ही सीन को बीसियों बार रीटेक करवाया जाता है.

कभी ऐंगल की बात तो कभी कपड़े ज्यादा नहीं उघड़े, क्याक्या बहाने नहीं बनाए जाते उस की बेचारगी का फायदा उठाने के लिए. इसी कारण वह भी हर सीन के बाद चुपचाप एक कोने में बैठ जाती है. एक बार उस ने छूट दे दी तो गरीब की जोरु बन रह जाएगी. उस की अपनी बेबसी, शूटिंग पर उपस्थित लोगों की कुटिल मुसकान भेदती निगाहें व अश्लील इशारे उस के अंतर्मन को क्षतविक्षत कर देते हैं पर वह भी क्या करे. बड़ेबड़े सपने ले कर वह चंडीगढ़ आई थी. उच्च शिक्षा के साथसाथ मौडलिंग व फिल्मों में काम करने के लिए. सब कहते थे कि वह फिल्मी सितारा लगती है, एकदम परफैक्ट फिगर है, कोई भी डायरैक्टर उसे देखते ही फिल्मों में हीरोईन साइन कर लेगा.

उच्च शिक्षा का सपना ले कर चंडीगढ़ आई नेहा की मुंबई तो अकेले जाने की व रहने की हिम्मत न पड़ी. पर यहां पढ़ाई के दौरान ही चंडीगढ़ में थोड़ी जानपहचान के बलबूते पर उसे मौडलिंग के काम मिलने लगे थे. मांबाप के मना करने के बावजूद वह इस आग के दरिया में कूद पड़ी. मौडलिंग से संपर्क बने तो इक्कादुक्का टीवी सीरियल में काम भी मिल गया. उसे इतनी जल्दी मिलती शोहरत कुछ नामीगिरामी कलाकारों को रास नहीं आई. पालीवुड में उन को नेहा का आना खतरे की घंटी लगने लगा. उन्होंने उस की छोटीछोटी कमियों को बढ़ाचढ़ा कर दिखा उस के यहां पैर ही न टिकने दिए. मांबाप ने भी सहारा देने की जगह खरीखोटी सुना दी. वह तो भला हो उस के पत्रकार मित्र साहिल का जिस ने उसे फिल्मों में ओलिशा का बौडी डबल बनने की सलाह दी और फिल्मों में काम दिलवा उसे आर्थिक व मानसिक संकट से उबार लिया. अब तो यही काम उस की रोजीरोटी है.

आज कोई रिश्तेदार उस का अपना नहीं, सभी ने उस से मुंह मोड़ लिया है. इसी वजह से पढ़ाई दोबारा शुरू कर वह कुछ बनना चाहती है ताकि इस से छुटकारा पा सके. पर क्या करे, कहां जाए, मांबाप तो स्वीकारने से रहे. ‘नहीं, नहीं, ऐसे बेचारगी वाले नैगेटिव विचारों को वह फन नहीं उठाने देगी. यही कमजोरी औरों को फायदा उठाने का मौका देगी और वह उस बसस्टौप वाली निरीह कुतिया की तरह किसी के पैरों पर गिड़गिड़ाएगी नहीं.’ इस सोच ने उसे संबल प्रदान किया. वर्तमान से रूबरू होते ही वह समझ गई कि आज भीड़ से भरी बस में उसे सीट मिलने से तो रही, इसलिए यूनिवर्सिटी तक खड़े हो कर ही जाना पड़ेगा. चलो, केवल 20 मिनट का ही सफर रह गया है, वह भी बस आराम से कट जाए. वैसे भी गली के आवारा कुत्तों से ज्यादा अश्लील व खूंखार तो कई बार सहयात्री होते हैं. सीट मिली तो विचारों की तंद्रा भी टूटी और नेहा को चैन भी आया क्योंकि आज नकारात्मक विचारों की कड़ी टूट ही नहीं रही थी.

बगल की सीट खाली हुई तो लाठी पकड़े बूढ़े ने जानबूझ कर उस पर अपना भार डाल दिया. वह किनारे खिसकी तो वृद्ध व्यक्ति ने हद ही कर दी. बैठतेबैठते उस के हिप्स पर च्यूंटी काट दी. उस ने घूर कर देखा तो खींसे निपोर सौरीसौरी बोलने लगा कि गलती से हाथ लग गया था.

जैसे ही बस रुकी, सीट बदल ली. पर यह तो दिन की शुरुआत थी. तभी अचानक बस रुकी और पीछे खड़ा व्यक्ति उस पर झूल पड़ा. वह झटके से उस वृद्ध के ऊपर लुढ़क गई. उस ने खड़े हो कर बाकी सफर करना तय करना ही सही समझा. और अपनी सीट से खड़ी हो आगे दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी. अभी वह खड़ी ही हुई थी कि तभी उसे पीछे कुछ गड़ता सा महसूस हुआ. पीछे खड़ा 17-18 साल का भारी सा लड़का उस के साथ सट कर गंदी हरकत करने लगा. उस ने उसे धकियाते हुए लताड़ा तो खींसें निपोरते उस ने नेहा पर कटाक्ष किया, ‘‘इतनी ही नाजुक है तो अपनी सवारी पर आया कर.’’

वह मुंह फेर खड़ी हो गई. कौन इन कुत्तों के मुंह लगे. इन कुत्तों का शिकार नहीं बनना उसे. उस के जवाब न देने के कारण उस लड़के की हिम्मत बढ़ गई. वह कभी पीठ पर हाथ फेरता तो कभी उस के हिप्स पर. उस की घुटन देख एक बुजुर्ग सरदारजी ने उसे अपनी सीट सौंप दी. वैसे तो उस का स्टौप आने ही वाला था फिर भी उस ने बैठने में ही भलाई समझी और सिमट कर अपनी सीट पर बैठ गई. पता नहीं, उस की इस बात को उस लड़के ने कैसे लिया क्योंकि स्टौप आने पर जैसे ही वह उठी तो उस लड़के ने उस के रास्ते में पैर अड़ा दिया. वह गिरतेगिरते बची. इस हरकत से जब उस बुजुर्ग सरदारजी ने उस लड़के को टोका तो उस ने भरी बस में उन्हें 2 मुक्के मार, पीछे सीट पर धकेल दिया. उन्हें बचाने के लिए कोई न उठा. ड्राइवर, कंडक्टर व सारी सवारियां मूकदर्शक बन तमाशा देखती रहीं जिस से उस लड़के की हिम्मत और बढ़ गई.

इस सब तमाशे की वजह से नेहा अपने स्टौप पर उतर ही नहीं पाई. लगा कौरवों की सभा में फंस कर रह गई है. तभी लालबत्ती पर बस रुकी. नेहा ने वहीं उतरने में भलाई समझी. पर यहां भी मुसीबत ही हाथ लगी. सोचने और कूदने में समय लग गया और उस के कूदतेकूदते ही बस चल पड़ी और वह सीधा सड़क पर गिरी. ज्यादा चोट नहीं लगी. हां, कुछ गाड़ी वालों ने गालियां जरूर सुना दीं. तभी, जैसे ही वह खड़ी हुई तो 2 मजबूत हाथों ने उसे घुमा कर अपनी तरफ कर लिया और फुटपाथ की तरफ खींच कर ले आए.

जैसे ही उस अनाम व्यक्ति को धन्यवाद करने के लिए उस ने उस की तरफ देखा तो उस की चीख गले में ही घुट कर रह गई. यह तो वही दुष्ट था और भरी सड़क से किनारे ला उस की इज्जत पर हमला करना चाहता था. चलतीदौड़ती सड़क को देख नेहा ने हिम्मत जुटाई और 2 करारे थप्पड़ उस दुष्ट के मुंह पर जड़ दिए.

नेहा ने कड़क लहजे में पूछा, ‘‘क्या बदतमीजी है, तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’

‘‘ओ मेरी रानी, तुम्हें तो पा कर ही रहूंगा. पहले मेरे इन गालों पर चुंबन दे, इन्हें सहलाओ, तभी तुम्हें जाने दूंगा. कब तक तड़पाओगी, मेरी जान.’’ वह वहशी ठहाका मार कर हंसा और उसे अपनी तरफ खींचने लगा. नेहा समझ गई कि कोई बड़ी मुसीबत आन पड़ी है, अपनी रक्षा स्वयं ही करनी होगी. सो, उस ने कस कर पकड़े अपने बैग में से अपने सुरक्षा कवच लालमिर्च पाउडर और मोबाइल को निकालने के लिए जद्दोजेहद शुरू की. आज तक कभी जरूरत नहीं पड़ी थी मिर्चपाउडर की. इस मुसीबत में हड़बड़ाहट में न तो उसे मिर्चपाउडर मिल रहा था और न ही मोबाइल. बेबस हो उस ने बढ़ती भीड़ की तरफ झांका. कई लोग उस की सहायता करने के बजाय अपनेअपने मोबाइल से इस सारे कांड का वीडियो बना रहे थे. उस ने सहायता के लिए गुहार लगाई. इक्कादुक्का लोग उस की सहायता को आगे बढ़े भी तो भीड़ ने उन के कदम थाम लिए, यह कह कर कि ‘देखते नहीं, शूटिंग चल रही है. कल भी यहीं एक शूटिंग चल रही थी, किसी ने ऐसे ही हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो बाउंसरों ने उस की खासी पिटाई कर दी थी.’ सारी भीड़ शूटिंग का मजा लेने के लिए घेरा बना खड़ी हो गई. यह सब सुनदेख नेहा का दिमाग पलभर के लिए सुन्न हो गया. क्या करे? वहां कोई भी मौके की नजाकत नहीं समझ रहा था. लगता था सभी बहती गंगा में हाथ धोना चाहते थे.

वैसे भी आजकल तो सजा बलात्कारी नहीं, बलात्कार होने वाली नारी को भुगतनी पड़ती है. लोगबाग तो बलात्कारी, आतंकवादी और हत्यारों के साथ सैल्फी ले हर्षित महसूस करते हैं. नहीं, वह दूसरी ‘निर्भया’ नहीं बनेगी. निर्बल नहीं, निर्भय होना है उसे, इस सोच के साथ जैसे ही वह अपने बैग में हाथ डाल अपने ‘हथियार’ निकालने लगी तो उस शख्स ने मौका पाते ही उसे जमीन पर गिरा दिया. स्वयं नेहा की छाती पर बैठ गया और बोला, ‘‘करती है, किस या नहीं. मैं चंडीगढ़ का किसर बौय हूं. देखता हूं तुम मुझे कैसे इनकार करती हो.’’

उस की इस हरकत पर भीड़ ने तालियां बजानी शुरू कर दीं. एक ने फिकरा कसा, ‘‘क्या बढि़या डायलौग है. पिक्चर सुपरहिट है, मेरे भाई. जारी रखो. बिलकुल असली सा मजा आ रहा है.’’

एक के बाद दूसरी आवाजें आ रही थीं. तब तक वह लड़का अपने होंठों को उस के होंठों तक ले आया. नेहा ने हिम्मत जुटा उसे परे धकेला. जैसे ही वह पीछे हटा तो दूर गिरा नेहा का बैग उस लड़के के पैरों से लग कर नेहा के हाथों पर आ गिरा. आननफानन नेहा ने लालमिर्च का पैकेट ढूंढ़ने की कोशिश की. उस के हाथ में पैकेट आता, उस से पहले ही वह लड़का अपनी जींस की जिप खोल उस की तरफ बढ़ा और…

भीड़ इस सब का पूरा लुत्फ उठा रही थी. लोगों के हाथ मोबाइल पर और आंखें उन दोनों पर टिकी थीं ताकि कोई भी पल ‘मिस’ न हो जाए.

भीड़ में से कोई चिल्लाया, ‘अजी, वाह, यह तो ब्लू फिल्म की शूटिंग चल रही है.’ नेहा समझ गई वासना से लिप्त भीड़ उस की कोई सहायता नहीं करेगी. क्या पता 1-2 लोग और इस मौके का फायदा उठाने को आ जाएं. उसे अपनी रक्षा खुद करनी होगी. हिम्मत जुटा उस ने हाथ में आए मिर्च के पैकेट को बाहर निकाला और उस दुष्ट की आंखों में झोंक दिया.

जब तक वह आंखें मलता तब तक नेहा ने अपने मिर्च वाले हाथों से उस का ‘वही’ अंग जिप में से निकाल कर दांतों में भींच लिया. खून का फौआरा फूट पड़ा. लड़का दर्द से बिलबिला, सड़क पर लोटने लगा.

सारी भीड़ हक्कीबक्की रह गई. वीरांगना के समान नेहा उठ खड़ी हुई. कपड़े झाड़ उस ने मिर्च का पैकेट हाथ में ले नपुंसक भीड़ पर छिड़क दिया, ‘‘लो, अब खींचों फोटो अपना व अपने इस साथी दरिंदे का.’’ और पिच्च से भीड़ पर थूक दिया. वह आगे बढ़ गई. भीड़ ने उस के लिए खुद ही रास्ता बना दिया.

Online Hindi Story : आवारा बादल – क्या हो पाया दो आवारा बादलों का मिलन

Online Hindi Story : फाल्गुन अपने रंग धरती पर बिखेरता हुआ, चपलता से गुलाल से गालों को आरक्त करता हुआ, चंचलता से पानी की फुहारों से लोगों के दिलों और उमंगों को भिगोता हुआ चला गया. सेमल के लालनारंगी फूलों से लदे पेड़ और अलगअलग रंगों में यहांवहां से झांकते बोगेनवेलिया के झाड़, हर ओर मानो रंग ही रंग बिखरे हुए थे.

फाल्गुन जातेजाते गरमियों के आने का संकेत भी कर गया. हालांकि उस समय भी धूप के तीखेपन में कोई कमी नहीं थी, पर सुबहशाम तो प्लेजेंट ही रहते थे, लेकिन जातेजाते वह अपने साथ रंगों की मस्ती तो ले ही गया, साथ ही मौसम की गुनगुनाहट भी.

‘‘उफ, यह गरमी, आई सिंपली हेट इट,’’ माथे पर आए पसीने को दुपट्टे से पोंछते हुए इला ने अपने गौगल्स आंखों पर सटा दिए, ‘‘लगता है हर समय या तो छतरी ले कर निकलना होगा या फिर एसी कार में जाना पड़ेगा,’’ कहतेकहते वह खुद ही हंस पड़ी.

‘‘तो मैडम, यह काम क्या इस बंदे को करना होगा कि रोज सुबह आप के घर से निकलने से पहले फोन कर के आप को छतरी रखने के लिए याद दिलाए या फिर खुद ही छतरी ले कर आप की सेवा में हाजिर होना पड़ेगा,’’ व्योम चलतेचलते ठहर गया था.

उस की बात सुन इला को भी हंसी आ गई.

‘‘ज्यादा स्टाइल मारने के बजाय कुछ ठंडा पिला दो तो बेहतर होगा.’’

‘‘क्या लोगी? कोल्ड कौफी या कोल्ड ड्रिंक?’’

‘‘कोल्ड कौफी मिल जाए तो मजा आ जाए,’’ इला चहकी.

‘‘आजकल पहले जैसा तो रहा नहीं कि कोल्ड कौफी कुछ सलैक्टेड आउटलेट्स पर ही मिले. अब तो किसी भी फूड कोर्ट में मिल जाती है. यहीं किसी फूड कोर्ट में बैठते हैं,’’ व्योम बोला.

अब तक दोनों राजीव चौक मैट्रो स्टेशन पर पहुंच चुके थे. भीड़भाड़ और धक्कामुक्की यहां रोज की बात हो गई है. चाहे सुबह हो, दोपहर, शाम या रात, लोगों की आवाजाही में कोई कमी नजर नहीं आती है.

‘‘जहां जाओ हर तरफ शोर और भीड़ ही नजर आती है. पहले ही क्या कम पौल्यूशन था जो अब नौयज पौल्यूशन भी झेलना पड़ता है,’’ इला ने कुरसी पर बैठते हुए कहा.

‘‘अच्छा है यहां एसी है,’’ व्योम मासूम सा चेहरा बना कर बोला, जिसे देख इला जोर से हंस पड़ी, ‘‘उड़ा लो मजाक मेरा, जैसे कि मुझे ही गरमी लगती है.’’

‘‘मैडम गरमी का मौसम है तो गरमी ही लगेगी. अब बिन मौसम बरसात तो आने से रही,’’ व्योम ने कोल्ड कौफी का सिप लेते हुए कहा. उसे इला को छेड़ने में बहुत मजा आ रहा था.

‘‘छेड़ लो बच्चू, कभी तो मेरी बारी भी आएगी,’’ इला ने बनावटी गुस्सा दिखाया.

‘‘बंदे को छेड़ने का पूरा अधिकार है. आखिर प्यार जो करता है और वह भी जीजान से.’’

व्योम की बात से सहमत इला ने सहमति में सिर हिलाया. 2 साल पहले हुई उन की मुलाकात उन के जीवन में प्यार के इतने सतरंगी रंग भर देगी, तब कहां सोचा था उन्होंने. बस, अब तो दोनों को इंतजार है तो एक अच्छी सी नौकरी का. फिर तो तुरंत शादी के बंधन में बंध जाएंगे. व्योेम एमबीए कर चुका था और इला मार्केटिंग के फील्ड में जाना चाहती थी.

‘‘चलो, अब जल्दी करो, पहले ही बहुत देर हो गई है. मां डांटेंगीं कि रोजरोज आखिर व्योम से मिलने क्यों जाना है,’’ इला उठते हुए बोली.

दोनों ग्रीन पार्क स्टेशन से निकल कर बाहर आए ही थे कि वहां बारिश हो रही थी.

‘‘अरे, यह क्या, पीछे तो कहीं भी बारिश नहीं थी. फिर यहां कैसे हो गई? लगता है मौसम भी आज हम पर मेहरबान है, जो बिन मौसम की बारिश से एकदम सुहावना हो गया है,’’ इला हैरान थी.

‘‘मुझे तो लगता है कि दो आवारा बादल के टुकड़े होंगे जो प्यार के नशे की खुमारी में आसमान में टकराए होंगे और बारिश की कुछ बूंदें आ गई होंगी, वरना केवल तुम्हारे ही इलाके में बारिश न हुई होती. जैसे ही उन के नशे की खुमारी उतरेगी, दोनों कहीं दूर छिटक जाएंगे और बस, बारिश भी गायब हो जाएगी,’’ आसमान को देखता हुआ व्योम कुछ शायराना अंदाज में बोला.

‘‘तुम भी किसी आवारा बादल की तरह मुझे छोड़ कर तो नहीं चले जाओगे. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे प्यार की खुमारी भी एक दिन उतर जाए और तुम भी मुझ से छिटक कर कहीं दूर चले जाओ,’’ इला की गंभीर आवाज में एक दर्द छिपा था. शायद उस अनजाने भय की निशानी था जो हर प्यार करने वाले के दिल में कहीं न कहीं छिपा होता है.

‘‘कैसी बातें कर रही हो? आखिर तुम सोच भी कैसे लेती हो ऐसा? मैं क्यों जाऊंगा तुम्हें छोड़ कर,’’ व्योम भी भावुक हो गया था, ‘‘मेरा प्यार इतना खोखला नहीं है. मैं खुद इसे साबित नहीं करना चाहता, पर कभी मन में शक आए तो आजमा लेना.’’

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी,’’ इला ने व्योम का हाथ कस कर थामते हुए कहा. जब से वह उस की जिंदगी में आया था, उसे लगने लगा था कि हर चीज बहुत खूबसूरत हो गई है. कितना परफैक्ट इंसान है वह. प्यार, सम्मान देने के साथसाथ उसे बखूबी समझता भी है. बिना कुछ कहे भी जब कोई आप की बात समझ जाए तो वही प्यार कहलाता है.

इला को एक कंपनी में मार्केटिंग ऐग्जीक्यूटिव का जौब मिल गया और व्योम का विदेश से औफर आया, लेकिन वह इला से दूर नहीं जाना चाहता था. इला के बहुत समझाने पर वह मान गया और सिंगापुर चला गया. दोनों ने तय किया था कि 6 महीने बाद जब दोनों अपनीअपनी नौकरी में सैट हो जाएंगे, तभी शादी करेंगे. फोन, मैसेज और वैबकैम पर रोज उन की बात होती और अपने दिल का सारा हाल एकदूसरे से कहने के बाद ही उन्हें चैन आता.

इला कंपनी के एक नए प्रोडक्ट की पब्लिसिटी के लिए जयपुर गई थी, क्योंकि उसी मार्केट में उन्हें उस प्रोडक्ट को प्रमोट करना था. वहां से वापस आते हुए वह बहुत उत्साहित थी, क्योंकि उसे बहुत अच्छा रिस्पौंस मिला था और उस ने फोन पर यह बात व्योम को बता भी दी थी. अब एक प्रमोशन उस का ड्यू हो गया था. लेकिन उसे नहीं पता था कि नियति उस की खुशियों के चटकीले रंगों में काले, स्याह रंग उड़ेलने वाली है.

रात का समय था, न जाने कैसे ड्राइवर का बैलेंस बिगड़ा और उन की कार एक ट्रक से टकरा गई. ड्राइवर की तो तभी मौत हो गई. लेकिन हफ्ते बाद जब उसे होश आया तो पता चला कि उसे सिर पर गहरी चोट आई थी और उस की आवाज ही चली गई थी.

धुंधला सा कुछ याद आ रहा था कि वह व्योम से बात कर रही थी कि तभी सामने आते ट्रक को देख उसे लगा था कि शायद वह व्योम से आखिरी बार बात कर रही है और वह चिल्ला कर ड्राइवर को सचेत करना ही चाहती थी कि आवाज ही नहीं निकली थी. सबकुछ खत्म हो चुका था उस के लिए.

परिवार के लोग इसी बात से खुश थे कि इला सकुशल थी. उस की जान बच गई थी, पर वह जो हर पल व्योम से बात करने को लालायित रहती थी, नियति से खफा थी, जिस ने उस की आवाज छीन कर व्योम को भी उस से छीन लिया था.

‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि व्योम अब तुम्हें नहीं अपनाएगा? वह तुम से प्यार करता है, बहुत प्यार करता है, बेटी. उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ मां ने लाख समझाया पर इला का दर्द उस की आंखों से लगातार बहता रहता. वह केवल लिख कर ही सब से बात करती. उस ने सब से कह दिया था कि व्योम को इस बारे में कुछ न बताया जाए और न ही वह अब उस से कौंटैक्ट रखना चाहती थी.

‘‘अपने प्यार पर इतना ही भरोसा है तुझे?’’ उस की फ्रैंड रमा ने जब सवाल किया तो इला ने लिखा, ‘अपने प्यार पर तो मुझे बहुत भरोसा है, पर मैं आधीअधूरी इला जो अपनी बात तक किसी को कह न सके, उसे सौंपना नहीं चाहती. वह एक परफैक्ट इंसान है, उसे परफैक्ट ही मिलना चाहिए सबकुछ.’

व्योम ने बहुत बार उस से मिलने की कोशिश की, फोन किया, मैसेज भेजे, चैट पर इन्वाइट किया, पर इला की तो जैसे आवाज के साथसाथ भावनाएं भी मौन हो गई थीं. अपने सपनों को उस ने चुप्पी के तालों के पीछे कैद कर दिया था. उस की आवाज पर कितना फिदा था व्योम. कैसी अजीब विडंबना है न जीवन की, जो चीज सब से प्यारी थी उस से वही छिन गई थी.

3-4 महीने बाद व्योम के साथ उस का संपर्क बिलकुल ही टूट गया. व्योम ने फोन करने बंद कर दिए थे. ऐसा ही तो चाहती थी वह, फिर क्यों उसे बुरा लगता था. कई बार सोचती कि आखिर व्योम भी किसी आवारा बादल की तरह ही निकला जिस के प्यार के नशे की खुमारी उस के एक ऐक्सिडैंट के साथ उतर गई.

वक्त गुजरने के साथ इला ने अपने को संभाल लिया. उस ने साइन लैंग्वेज सीख ली और मूकबधिरों के एक संस्थान में नौकरी कर ली. वक्त तो गुजर जाता था उस का, पर व्योम का प्यार जबतब टीस बन कर उभर आता था. उसे समझ ही नहीं आता था कि उस ने व्योम को बिना कुछ कहनेसुनने का मौका दिए उस के प्यार का अपमान किया था या व्योम ने उसे छला था. जब भी बारिश आती तो आवारा बादल का खयाल उसे आ जाता.

वह मौल में शौपिंग कर रही थी, लगा कोई उस का पीछा कर रहा है. कोई जानीपहचानी आहट, एक परिचित सी खुशबू और दिल के तारों को छूता कोई संगीत सा उसे अपने कानों में बजता महसूस हुआ.

ऐस्केलेटर पर ही पीछे मुड़ कर देखा. चटकीले रंगों में मानो फूल ही फूल हर ओर बिखरते महसूस हुए. जल्दीजल्दी वहां से कदम बढ़ाने लगी, मानो उस परिचय के बंधन से छूट कर भाग जाना चाहती हो. अचानक उस का हाथ कस कर पकड़ लिया उस ने.

ओह, इस छुअन के लिए पूरे एक बरस से तरस रही है वह. मन में असंख्य प्रश्न और तरंगें बहने लगीं. पर कहे तो कैसे कहे वह? लब हिले भी तो वह सच जान जाएगा तब…हाथ छुड़ाना चाहा, पर नाकामयाब रही.

भरपूर नजरों से व्योम ने इला को देखा. प्यार था उस की आंखों में…वही प्यार जो पहले इला को उस की आंखों में दिखता था.

‘‘कैसी हो,’’ व्योम ने हाथों के इशारे से पूछा, ‘‘मुझे बस इतना ही समझा. एक बार भी मेरे प्यार पर भरोसा करने का मन नहीं हुआ तुम्हारा?’’ अनगिनत प्रश्न व्योम पूछ रहा था, पर यह क्या, वह तो साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल कर रहा था.

अवाक थी इला, ‘‘तुम बोल क्यों नहीं रहे हो,’’ उस ने इशारे से पूछा.

‘‘क्योंकि तुम नहीं बोल सकती. तुम ने कैसे सोच लिया कि तुम्हारी आवाज चली गई तो मैं तुम्हें प्यार करना छोड़ दूंगा. मैं कोई आवारा बादल नहीं. जब तुम्हारे मुझ से कौंटैक्ट न रखने की वजह पता चली तो मैं ने ठान लिया कि मैं भी अपना प्यार साबित कर के ही रहूंगा. बस, तब से साइन लैंग्वेज सीख रहा था. अब जब मुझे आ गई तो तुम्हारे सामने आ गया.’’

उस के बाद इशारों में ही दोनों घंटों शिकवेशिकायतें करते रहे. इला के आंसू बहे जा रहे थे. उस के आंसू पोंछते हुए व्योम बोला, ‘‘लगता है दो आवारा बादल इस बार तुम्हारी आंखों से बरस रहे हैं.’’

व्योम के सीने से लगते हुए इला को लगा कि व्योम वह बादल है जो जब आसमान में उड़ता है तो बारिश को तरसती धरती उस की बूंदों से भीग जी उठती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें