इंसाफ: भाग 3- कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

लेखिका- प्रमिला उपाध्याय

तभी छोटा बंशी अपनी मां को ले कर आ पहुंचा. उसे देख कर कामिनी फिर सिसकने लगी, सुबकते हुए बोली, ‘‘देखो मौसी, मां की क्या हालत बना दी है बदमाशों ने.’’ बंशी की मां अवाक् हो कर मालती को देखते हुए बोली, ‘‘घबराओ नहीं, बेटी, जिस ने यह सब किया है उस की सजा उसे अवश्य मिलेगी.’’ बंशी की मां ने दमयंतीजी को देखते हुए प्रणाम किया तो वे बोलीं, ‘‘देखिए, मालती का ध्यान रखिएगा, और आप आज यहीं रह जाइए न. कामिनी को भी आप के रहने से अच्छा लगेगा और सहारा भी रहेगा. अच्छा, मैं अब चलती हूं. कल आने की कोशिश करूंगी.’’ बंशी की मां सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘हांहां, मैं रह जाऊंगी. आप निश्ंिचत हो कर जाइए.’’ दूसरे दिन अखबार में ‘झारखंड समाचार’ पृष्ठ पर कम्मो थी. प्रोफैसर दीदी ने जब यह समाचार पढ़ा तो उन के रोंगटे खड़े हो गए. वे आज अपनी आंखों से देखना चाहती थीं कि डायन का आरोप लगा कर किस तरह बेसहारा, अनाथ महिलाओं पर अत्याचार किया व उन्हें प्रताड़ना दी जाती है व कई तरह के अमानवीय व्यवहार किए जाते हैं. यहां तक कि नंगा कर के पूरी बस्ती में घुमाया जाता है. वे मालती और कामिनी से मिलने अस्पताल पहुंचीं. मालती को होश आ गया था लेकिन दवा के असर से सो रही थी. अभी वे उन लोगों का हाल पूछ ही रही थीं कि दमयंतीजी भी 2 महिला साथियों को ले कर पहुंच गईं. सभी वार्ड के बाहर के बरामदे में बैंच पर बैठ गईं.

प्रोफैसर दीदी से उन की जानपहचान थी. आपस में अभिवादन के बाद पूरा हालचाल जानने के बाद सभी महिलाएं अस्पताल के बरामदे में लगी कुरसियों पर बैठ गईं. वे गिरीडीह के पौश इलाके के पढ़ेलिखे सभ्य लोगों के आवास के बगल में बसी इस बस्ती में इस तरह के जघन्य अपराध पर चिंता प्रकट करने लगीं. प्रोफैसर दीदी ने कहा, ‘‘दमयंतीजी, दोषियों को सजा दिलवाना हम महिलाओं का फर्ज बनता है. एक सीधीसादी, घरों में चौकाबरतन करने वाली विधवा और बेसहारा महिला को प्रताडि़त कर अधमरा कर देना घोर अपराध है.’’ ‘‘हांहां, जिस राजनीतिक दबंग, स्वयंभू नेता रूपचंद ने यह सब करवाया है उस ने बदले की भावना के तहत किया है. मैं ने पता कर लिया है, कई दिनों से कामिनी को बारगर्ल बनाने के लिए मुंबई भेजने के लिए वह मालती पर जोर डाल रहा था. उस के न कहने के बाद उस ने यह ओछी हरकत की है.’’

‘‘ओ, अच्छा,’’ प्रोफैसर दीदी अवाक् रह गईं.

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‘‘मुझे यह भी पता चला है कि वह बारगर्ल बनाने का लालच दे कर और उन के मांबाप को रुपएपैसे दे कर न जाने कितनी लड़कियों को बहलाफुसला कर ले जाता है मुंबई और वहीं पर सैक्स रैकेट चलाता है. इस में तो वह अकेला है नहीं. बड़ेबड़े दिग्गज भी शामिल होंगे. तभी यह सब संभव भी हो पाता है.’’

‘‘मैं भी अपने कालेज की अन्य प्रोफैसरों को इस में शामिल करूंगी. हम सभी मिल कर विरोध में रैली निकालेंगे और दोषियों को सजा दिलवाने में मदद करेंगे,’’ प्रोफैसर दीदी पूरे जोश के साथ बोलीं.

‘‘हां दीदी, किसी हाल में दोषियों को सजा दिलवाना जरूरी है, नहीं तो रूपचंद जैसे लोगों का मनोबल बढ़ता चला जाएगा. बहुत सूझबूझ और सावधानी से दोषी तक पहुंचना है. मुझे पता चला है कि इस में पुलिस को भनक है लेकिन सफेदपोशों की संलिप्तता के कारण अभी तक वह उन पर हाथ नहीं डाल पाई है,’’ दमयंतीजी ने बहुत धीरेधीरे ये सब बातें बताईं. उन्होंने आगे कहा, ‘‘सब से बड़ी बात यह है कि बस्ती के लोग तथा आसपास के लोग रूपचंद से काफी सहायता लेते रहते हैं. यहां की समस्याओं में लोगों का वह साथ देता है. इसी से उस के साथ कई चमचे लगे रहते हैं. लेकिन किसी भी तरह दोषी को सजा दिलवाना बहुत जरूरी है. है तो यह थोड़ा जटिल काम,’’ उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा. सावित्री यानी प्रोफैसर दीदी बोलीं, ‘‘हां दमयंतीजी, कठिन जरूर है परंतु जहां चाह, वहां राह मिल ही जाएगी. हम लोगों की नाक के नीचे ऐसी घटनाएं घटती रहें और हम शांति से बैठे रहें, यह नहीं हो सकता, हमें डटे रहना होगा.’’ अन्य दोनों महिलाओं ने भी हामी भरी. फिर सभी अंदर आ गईं. वार्ड में डाक्टर आए हुए थे. सावित्री दीदी ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, अब मालती की तबीयत कैसी है? कब तक ठीक हो जाएगी यह?’’

‘‘अभी चोट वगैरह भरने में कुछ समय तो लगेगा ही, उस के बाद छुट्टी मिल जाएगी,’’ डाक्टर ने जातेजाते कहा. सावित्री दीदी बोलीं, ‘‘देखो मालती, हम सब तुम्हारे साथ हैं, घबराना नहीं, हां. तो ठीक है, अब हम लोग चलते हैं.’’

मालती और कामिनी ने सभी को प्रणाम किया और आश्वस्त हो कर सिर हिलाया. दमयंतीजी ने मुसकरा कर सिर हिला दिया. बंशी की मां रात में अस्पताल में ही थी. सभी महिलाएं एकसाथ अस्पताल से बाहर निकलीं और रिकशा या आटो की प्रतीक्षा करने लगीं. तभी पुलिस इंस्पैक्टर की जीप उन के बगल में आ कर रुक गई. इंस्पैक्टर ओझा दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘दमयंतीजी, कैसी है मालती? जरूरी पड़ताल के लिए आया हूं. अच्छा है आप मिल गईं. उस रूपचंद ने किसी को डरायाधमकाया तो नहीं या किसी तरह से तंग करने की कोशिश तो नहीं की न?’’

‘‘नहीं इंस्पैक्टर साहब, यदि ऐसा होता तो मांबेटी हमें जरूर बतातीं,’’ वे बोलीं.

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‘‘ठीक है दमयंतीजी, चिंता मत कीजिए, जल्दी ही हम सबकुछ आप के सामने उजागर कर देंगे और दोषी बख्शे नहीं जाएंगे. अच्छा चलता हूं,’’ और जीप आगे बढ़ गई. एकदो रोज सभी अस्पताल जाती रहीं. शहर की अधिकांश महिलाएं एकजुट हो गईं. महिलाओं की इस कदर जागरूकता देख बड़े नेता हरकत में आ गए. झारखंड पुलिस ने मुंबई पुलिस की मदद से वहां चलने वाले सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और झारखंड की कई लड़कियां वहां से छुड़ाईं. लेकिन अभी तक रूपचंद और उस के साथी पकड़ में नहीं आए थे. वे फरार थे. आखिरकार, एक दिन वे झारखंड की राजधानी रांची के एक होटल में खाना खाते हुए पकड़े गए. कुछ महीने तक केस चला. कई लोगों की गवाहियां हुईं. कई सफेदपोश लोगों के चेहरे बेनकाब हुए. रूपचंद और उस के साथियों को जुर्माना भरना पड़ा और 5 साल की सश्रम सजा सुनाई गई. सफेदपोश तो जुर्माना और बेल करा कर बाहर आ गए लेकिन अन्य दोषियों को सजा भुगतनी पड़ी. इधर, अस्पताल से मालती और कम्मो को प्रोफैसर सावित्री अपने घर ले आईं.

दमयंतीजी अपनी 2-3 महिला साथियों के साथ मिठाई का डब्बा ले कर सावित्री दीदी के यहां पहुंचीं, ‘‘दीदी, गले मिलें. आप सभी के साथ से ही मेहनत रंग लाई है. रूपचंद और उस के साथियों को जेल हो गई है.’’ गले लगते हुए दीदी बोलीं, ‘‘सब आप जैसी जुझारू महिला नेता के कारण ही तो संभव हो सका है. आप जैसी महिलाएं हर जगह हों तो एक दिन बदमाशों का अंत होगा ही.’’

‘‘नहीं, सावित्री दीदी, आप सभी शिक्षिकाओं ने भी कुछ कम नहीं किया है. अगर ऐसी ही जागरूकता हर जगह की महिलाओं में आ जाए तो आएदिन झारखंड, बिहार तथा अन्य जगहों में भी घटती ऐसी घटनाओं में लिप्त अपराधी अपराध करने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर. कुछ नहीं करने से वे बेखौफ होते जाते हैं,’’ दमयंतीजी बोलने के मूड में थीं. अभी गपशप चल ही रही थी कि मालती और कामिनी ने आ कर उन लोगों को नमस्कार किया. उन्हें देखते ही सभी के चेहरे और खिल उठे, ‘‘कैसी हो मालती?’’ एकसाथ दोनों बोल उठीं, ‘‘सब आप लोगों की दया और उपकार का फल है दीदी,’’ मालती बोली, ‘‘कल से कम्मो काम पर आएगी, दीदीजी,’’ फिर दोनों मांबेटी जाने को तत्पर हुईं. सावित्री दीदी ने मिठाई बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अरे चाय तो पी कर जाओ.’’ कम्मो झट से खड़ी हो गई, ‘‘नहीं दीदी, मेरे रहते आप चाय बनाएंगी? अभी लाती हूं,’’ और चल पड़ी वह रसोई की ओर.

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इंसाफ: भाग 2- कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

लेखिका- प्रमिला उपाध्याय

‘‘साली मांबेटी दोनों ही छंटी हुई हैं,’’ रूपचंद का साथी बोला और कम्मो के बालों को पकड़ कर जोर का धक्का दिया. वह गिर पड़ी. वह उठ कर मां को फिर बचाने के लिए झपटी. तभी उस के गालों पर बदमाश ने ऐसा जोरदार थप्पड़ मारा कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और वह मूर्छित सी हो कर गिर गई. बदमाशों ने मालती को दमभर मारापीटा. तभी एक आदमी डब्बे भर कर मैला ले कर आ गया और जबरन मालती के मुंह में डाल दिया. वह उस के बालों को जोरजोर से खींचते हुए बोला, ‘‘साली, मेरे बच्चे को किसी तरह जिंदा करो, नहीं तो मार ही डालूंगा.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, मैं ने कुछ नहीं किया,’’ कहतेकहते मालती बेहोश हो गई. मारपीट कर बदमाश वहां से चले गए. इस दौरान बस्ती का कोई भी उसे बचाने नहीं आया. कुछ ही देर में रूपचंद एक ओझा को ले कर वहां पहुंचा और बोला, ‘‘बाप रे, यह मालती डायन है, मुझे नहीं मालूम था. ओझाजी इस से पूछिए कि रामलाल के बेटे को तो उस ने खा लिया, अब वह किसे खाना चाहती है?’’ ओझा एक छड़ी से बेहोश मालती को खोदते हुए बोला, ‘‘बोल री डायन, यह सब तू ने क्यों किया?’’ मालती नहीं उठी तो उस ने उसे झाड़ू से मारा. वह फिर भी नहीं उठी तो उस ने आग जला कर उस में मिर्चें डाल कर धुआं किया और एक झाड़ू फिर लगाते हुए बोला, ‘‘अरी जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल, उठती है या नहीं?’’ पूरी बस्ती में यह खबर आग की तरह फैल गई थी. कई लोग उस के घर दौड़े आए. ओझा के दोबारा झाड़ू उठे हाथ लोगों को देख कर रुक गए. कई लोग मालती के करीब आ कर उसे देखने लगे. तो ओझा एक झाड़ू उसे और लगाते हुए बोला, ‘‘जल्दी उठ, और अपना दोष कुबूल. बोल तू उठती है या नहीं?’’ कुछ लोग मालती के काफी करीब आ गए, उसे देखते हुए बोले, ‘‘यह तो बेहोश है. छोड़ दीजिए ओझाजी,’’ तभी कम्मो को होश आ गया. वह झटपट उठी और मां की ओर दौड़ी. मां की दशा देख कर फूटफूट कर रोने लगी.

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मूर्ति बने लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. रूपचंद और उस के ओझा की दबंगता के आगे सभी डरे हुए थे. जब भी किसी को कुछ काम करवाने की जरूरत होती तो वह रूपचंद की ही सहायता लेता था. उस की पार्टी के साथ लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं. समयसमय पर वह लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला भाषण दिया करता था. आखिर वह एक सांप्रदायिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता जो था. उस की पार्टी के लोग धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करते रहते थे. जब देखो इस पार्टी के लोग अपनी नीतियों की प्रशंसा और अन्य पार्टियों का विरोध करते रहते थे. अपनी पार्टी में उस की धाक थी ही, बस्ती के आसपास के लोग भी उस की दबंगता के आगे खौफ खाते थे और उस की हां में हां मिलाते थे. रूपचंद बड़बड़ाते हुए ओझा को ले कर वहां से चला गया. उस के जाते ही सभी जैसे होश में आ गए. रूपचंद ने मालती का ऐसा रूप सब के सामने पेश करवाया था कि जिस के बारे में उस बेचारी को कुछ भी पता नहीं था. लोग आपस में सलाहमशविरा करने लगे. इतने में एक 7-8 साल का लड़का बंशी आ गया. कम्मो उसे अपने छोटे भाई की तरह प्यार करती थी. जिन प्रोफैसर दीदी के यहां वह काम करती थी, उन के यहां से उसे मिठाइयां या टौफी वगैरह मिलतीं तो वह थोड़ा बचा कर उस के लिए जरूर लाती थी. वह छोटा बच्चा इसी इंतजार में रोजाना रहता था कि कब दीदी उस के लिए कुछ ले कर आएंगी. वह भी उसे बहुत प्यार करता था. वह उस का कोई भी काम करने के लिए तैयार रहता था.

मालती और कम्मो की हालत देखते ही वह सरपट दौड़ पड़ा ‘जागरूक महिला सोसायटी’ की सैक्रेटरी दमयंतीजी के पास. उन से जल्दी साथ चलने का आग्रह करने लगा. वे बगल की आदिवासी कालोनी में सब से पहले घर में रहती थीं. हांफते हुए उस ने वहां का सारा नजारा बताया और बांह पकड़ कर बस्ती में ले आया. दमयंतीजी महिलाओं के किसी भी दमनकारी कृत्य में या उन का हक दिलवाने के मामलों में जीजान से जुट जाती थीं. वे खानापीना भूल कर उन की सहायता किया करती थीं. बंशी की बात सुन कर वे बड़ी तेजी से चल कर वहां पहुंचीं और वहां का दृश्य देख कर अवाक् रह गईं. मांबेटी की हालत देख कर उन्हें बहुत गुस्सा आया. वे समझ गईं कि किसी गुंडे ने इन निर्बलों पर अपना बल आजमाया है. वे बोलीं, ‘‘आप लोग तमाशा मत देखिए, फौरन एक टैंपो ले आइए और मालती को अस्पताल पहुंचाने में मदद कीजिए.’’ अब सभी लोग हरकत में आ गए और दौड़ कर टैंपो ले आए. कुछ लोगों की सहायता से मालती को उस में लिटाया गया. तब तक कम्मो ताला बंद कर के मां का सिर अपनी गोद में रख कर बैठ गई. दमयंतीजी भी अगली सीट पर बैठ गईं और अस्पताल पहुंचीं. वहां जरूरी प्रक्रिया पूरी करा कर उन्होंने मालती का इलाज शुरू कराया. मालती की खराब हालत देख कर डाक्टर ने पुलिस का मामला बताते हुए उस का इलाज करने में अपनी मजबूरी बताई. दमयंतीजी जैसी महिला समाजसेवी के आगे उन्हें झुकना पड़ा. कम्मो अभी भी रहरह कर सिसक रही थी. दमयंतीजी ने उसे समझाया, ‘‘देखो, कामिनी, घबराओ नहीं, हमारी महिला सोसायटी तुम लोगों की मदद करने से पीछे नहीं हटेगी. रुपएपैसे की चिंता मत करो और रोना बंद करो.’’

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अब तक मालती की बस्ती के कुछ लोग वहां पहुंच गए. दमयंतीजी ने उन लोगों से कहा, ‘‘देखिए, अभी पुलिस आती ही होगी, आप सभी जोजो बातें जानते हैं और देखा है, उस के बारे में बेहिचक पुलिस को बताइएगा. कामिनी भी रिपोर्ट देगी. इन मांबेटी की सहायता करना हम सभी का फर्ज बनता है.’’ सभी लोगों ने अपनी सहमति में सिर हिलाया. पुलिस ने आते ही सब का बयान ले कर एफआईआर दर्ज कर ली. दमयंतीजी की ओर मुखातिब हो कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘आप को थाने में बुलाया जा सकता है.’’ ‘हांहां इंस्पैक्टर साहब, आप बेहिचक मुझे बुला सकते हैं. मेरा तो काम ही है महिलाओं के दुखसुख में साथ देना, उन की सेवा करना. यहां तो दुष्टों ने अच्छीभली महिला को डायन बता कर मारापीटा और वहशियाना व्यवहार किया है, यहां तक कि उसे मैला तक पिलाया गया.’’ दमयंतीजी बड़ी भली महिला समाजसेविका थीं. लोग उन का आदर करते थे. उन्होंने कम्मो को जरूरी बातें समझाईं और बोलीं, ‘‘तुम कोई भी बात बेझिझक मुझ से बता सकती हो. देखो, तुम चिंता तो बिलकुल मत करो. हमारी सोसायटी तुम्हारी मां के इलाज का खर्चा उठाएगी. अच्छा, अब मैं जा रही हूं.’’

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इंसाफ: भाग 1- कौन था मालती और कामिनी का अपराधी

लेखिका- प्रमिला उपाध्याय

मालती रोज की तरह जब काम पर से लौटी तो घर के पास उसे मूंछें ऐंठते हुए रूपचंद मिल गया. उस ने पूछा, ‘‘कैसी हो, मालती?’’

‘‘ठीक हूं.’’

‘‘कब तक इस तरह हाड़तोड़ मेहनत करती रहोगी? अब तो तुम्हारी उम्र भी हो गई है, क्यों नहीं अपनी बेटी कम्मो को मेरे साथ मुंबई भेज देती हो? मैं बारगर्ल का काम दिला कर उसे हजारों रुपए कमाने लायक बना दूंगा. तुम बुढ़ापे में सुख और आराम से रहोगी.’’

‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी इतनी दूर जा कर मेरे से अलग रह ही नहीं सकती. वैसे भी वह एक प्रोफैसर दीदी के यहां काम कर रही है और खुश भी है.’’

‘‘ओहो, तुम मेरी बात ही नहीं समझ रहीं. मैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं. वैसे हड़बड़ी नहीं है, सोचसमझ कर अपना विचार मुझे बताना.’’

चिंतित सी मालती धीरे से सिर हिलाते हुए अपने घर में घुस गई. कम्मो यानी कामिनी अभी नहीं लौटी थी. 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि वह आ गई. सुबह के 11 बजने वाले थे. मांबेटी थकी हुई थीं. कम्मो ने पूछा, ‘‘मां, चाय पिओगी?’’ चिंतित मालती ने थकी सी आवाज में कहा, ‘‘हां बेटी, बना न. अगर अदरक हो तो थोड़ी सी डाल देना, बहुत थक गई हूं.’’ थोड़ी देर में कम्मो 2 गिलासों में चाय ले कर आई, ‘‘क्या बात है मां, बहुत थकी और चिंतित लग रही हो?’’

‘‘नहीं बेटी, अब उम्र भी तो बढ़ रही है, थोड़ा ज्यादा काम करती हूं तो कभीकभी थकान लगने लगती है.’’

‘‘तुम इतनी मेहनत क्यों करती हो मां. अब तो मैं भी काम करने लगी हूं. जितना हम मांबेटी मिल कर कमा लेते हैं, 2 जनों के लिए काफी है.’’

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‘‘नहीं बेटी, महंगाई का जमाना है, कुछ दिनों बाद तेरे हाथ भी पीले करने हैं, दो पैसे नहीं जोड़ूंगी तो कैसे काम चलेगा. कहां हाथ फैलाऊंगी, बोल. अब तो तेरे पिताजी भी नहीं रहे. जानती है बेटी, एक मर्द का साया सिर पर रहना बहुत जरूरी होता है.’’ कम्मो आज के जमाने की नए विचारों वाली लड़की थी, बोली, ‘‘ऐसा क्यों सोचती हो मां, आज लड़कियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं. मुझे तो पापा ने 8वीं तक पढ़ा भी दिया है. जिस दीदी के यहां मैं काम कर रही हूं, उन्होंने कहा है कि मुझे वे घर में ही पढ़ा कर 2-3 साल के अंदर मैट्रिक करा देंगी. फिर तो आगे बढ़ने के लिए कई रास्ते मिल जाएंगे.’’ मालती को राहत मिली. लगा प्रोफैसर दीदी उस की बेटी के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेंगी. उस ने झट से आलू काटा. कम्मो ने भात चढ़ा दिया और सब्जी का मसाला पीसने लगी. कुछ देर में भात तैयार हो गया तो उस ने सब्जी छौंक दी. सब्जी तैयार हो जाने पर मांबेटी ने खाना खाया और बरतन आदि धो कर आराम करने लगीं. कम्मो को लेटते ही नींद आ गई पर मालती को रूपचंद की बातें याद आ रही थीं. वह करवटें बदलती रही. बारबार रूपचंद का चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता था. सूनी आंखें लिए वह खिड़की के सामने बैठ कर तरहतरह की बातें सोचने लगी. आज का जमाना तो वैसे भी खराब है. वह जानती है कि लड़कियों के साथ बदमाश लोग कुछ भी गलत करने से नहीं हिचकते. रूपचंद दादा किस्म का दबंग आदमी था. वह अपनी जवान बेटी को कैसे किसी के साथ बाहर भेज दे. वह एक राजनीतिक पार्टी का प्रमुख कार्यकर्ता भी था. उस ने अपना दबदबा इन झोपड़पट्टियों पर इस कदर बना रखा था कि सभी उस से डरते थे. इसीलिए मालती भी उस से भय खाती थी. वह अकसर रोज ही मालती के सामने अपना प्रस्ताव रखने लगा था, इसी से वह चिंतित थी.

पास ही आधा किलोमीटर की दूरी पर ढेरों प्राइवेट घर थे. उस पौश कालोनी को आदर्श नगर के नाम से जाना जाता था. मालती की बस्ती रामूडीह गरीबों का झोपड़पट्टी वाला इलाका था. दूसरे दिन मालती काम कर के लौटी तो फिर रूपचंद उस के घर के पास ही मूंछें ऐंठते हुए मुसकरा रहा था. उस ने भावपूर्ण नजरों से मालती को देखा पर बोला कुछ नहीं. मालती राहत की सांस लेते हुए नजरें झुकाए घर में घुस गई. वह विधवा औरत किशोर बेटी के साथ शांति से चौकाबरतन कर के अपना घर चला रही थी. एक साल पहले उस का पति एक दुर्घटना में चल बसा था. उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. लेकिन जब से रूपचंद ने अपना विचार उस से कहा और उस के अजीब तरह के देखने के ढंग से वह अंदर से सिहर उठती थी. 3-4 दिन के बाद वह 2-3 लंपट किस्म के लड़कों के साथ खड़ा मिला और मालती को देखते ही पूछा, ‘‘क्या मालती, कुछ सोचा या नहीं?’’

वह अनजान बनते हुए बोली, ‘‘किस बारे में, भैया?’’

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‘‘अरे, इतनी जल्दी भूल जाती हो, इतनी कमजोर है तुम्हारी याददाश्त. वही मुंबई बारगर्ल वाली बात के संबंध में. भेजोगी अपनी बेटी को तो रानी बन कर रहोगी, रानी. घरघर जा कर काम करने से छुटकारा मिल जाएगा तुम्हें और इतना कुछ होगा तुम्हारे पास कि दूसरे लोगों को देने लायक हो जाओगी.’’ मालती ने बात टालने की सोच कर कहा, ‘‘हां भैया, जल्दी ही बताऊंगी. मैं ने अपनी बेटी को इस संबंध में कुछ बताया नहीं है. दूर भेजने की बात है न.’’ कामिनी से उस ने अभी तक कुछ बताया नहीं था. जब रूपचंद ने उस पर जल्दी बताने के लिए रोज जोर देना शुरू किया तो एक दिन उस ने डरतेडरते उस से पूछा, ‘‘बेटी, तू मुंबई जाएगी काम करने? बारगर्ल बन कर काम करने पर तुझे हजारों रुपए मिलने लगेंगे.’’ कम्मो सुनते ही रोने लगी, ‘‘मां, तुम ने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें छोड़ कर बाहर कमाने जाऊंगी. यदि मुझे लाखों रुपए भी मिलने लगेंगे तो भी मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी, समझीं. सुन लो, हां.’’ मालती उस की बात सुन कर आश्वस्त सी हो गई. मन ही मन सोचा कि मेरी बेटी ने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी. उस का दिल भी उसे अपनी आंखों से ओझल होने देने का नहीं कर रहा था. अब वह रूपचंद को टका सा जवाब दे सकती है.

दूसरे दिन रूपचंद फिर कुछ लोगों के साथ खड़ा था. उस ने अपनी बात फिर दोहराई. मालती ने आज उस से साफसाफ कह दिया, ‘‘नहीं भैया, मेरी बेटी बाहर कहीं नहीं जाना चाहती. वह मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती है. सच में भैया, लड़की का मामला है, सबकुछ सोचना पड़ता है न.’’ रूपचंद ने पूछा, ‘‘अच्छी तरह सोचसमझ लिया है न?’’

‘‘हांहां भैया, अच्छी तरह सोच कर ही जवाब दे रही हूं.’’ उस ने हुंकार भरते हुए कहा, ‘‘अच्छा ठीक है.’’ जिस ढंग से उस ने हुंकार भरी थी, वह थोड़ा सहम गई. अब मालती और कामिनी काम पर से लौटतीं तो रूपचंद नजर नहीं आता था. सबकुछ सामान्य था. एक दिन मालती काम से लौट कर बैठी ही थी कि अचानक कुछ लोग उस के घर में घुस आए और चिल्लाते हुए बोले, ‘‘मारो साली को, डायन है यह डायन. इसी ने रामलाल के बेटे को खाया है, बिलकुल छंटी हुई डायन है यह.’’ मालती किसी को पहचानती नहीं थी. हां, उन में से एक रूपचंद के साथ अकसर नजर आया करता था. वह चिल्लाते हुए बोली, ‘‘आप लोग कौन हैं? कौन रामलाल का बेटा? आप लोग क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा है.’’ लेकिन उस की बात कोई नहीं सुन रहा था. वे दनादन उस पर डंडे, जूताचप्पल बरसाने लगे. इतने में कामिनी भी काम पर से वापस आ गई. वह रोनेचिल्लाने लगी, ‘‘आप लोग मेरी मां को क्यों मार रहे हैं? कौन हैं आप लोग?’’

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आखिरी दांव: भाग 4- क्या हुआ देव के साथ

एक रोज देव अपना मोबाइल चार्जर में लगा कर भूल गया और उसे पता ही नहीं

चला कि कब से उस का मोबाइल बज रहा है. हार कर अनु ने ही फोन उठा लिया. लेकिन अभी वह हैलो बोलती ही कि उधर से एक औरत की आवाज ने उसे सकते में डाल दिया. कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हें 2 दिन से कौल कर रही हूं. उठाते क्यों नहीं? देखो, मुझे मजबूर मत करो, अगर मेरा दिमाग फिर गया तो जरा भी देर नहीं लगेगी मुझे यह वीडियो वायरल करने में. फिर जानते हो न तुम्हारा क्या हश्र होगा? सीधे से कह रही हूं क्व15 लाख दे दो अभी. फिर जब भी मांगू दे देना और हां, आज रात आ जाना, बदन टूट रहा है मेरा,’’ कह कर उस औरत ने फोन रख दिया.

सुन कर तो जैसे अनु के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. उस का पूरा शरीर थरथराने लगा. कभी वह फोन को देखती, तो कभी देव को. समझ नहीं आ रहा था कि यह औरत है कौन और किस बात के वह देव से पैसे मांग रही है व कौन से वीडियो को वायरल करने की धमकी दे रही है? ढेरों सवाल उस के दिमाग में उथलपुथल मचाने लगे. पूछना चाहा देव से, मगर उस के कदम ठिठक गए, क्योंकि पहले वह उस बात की तह तक जाना चाहती थी.

आज गौर से अनु ने देव का चेहरा देखा, कितना सूख चुका था. दुबला भी कितना हो गया था बेचारा. क्यों नहीं समझ पाई मैं उस के मन के दर्द को? क्यों लड़ती रही बेवजह उस से? पूछती तो एक बार कि आखिर परेशानी क्या है उसे. अपनेआप में ही बोल अनु रो पड़ी. कुछ देर बाद फिर देव का फोन बजा और इस बार देव ने ही फोन उठाया. अनु सुन न ले कहीं, यह सोच कर वह कमरे से बाहर चला गया.

काफी देर बाद जब वह वापस आया, तो उस का चेहरा काफी उतरा हुआ था. रातभर अनु सो नहीं पाई. देखा देव भी टकटकी लगाए छत निहार रहा था.

‘‘देव,’’ बड़ी हिम्मत कर वह देव के करीब गई, ‘‘नहीं बताओगे मुझे कि इन दिनों तुम्हारे साथ क्या हुआ? हम ने वादा किया था न देव कि कभी एकदूसरे से कोई बात नहीं छिपाएंगे, तो फिर क्यों, क्यों तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाई?’’

अनु की बात सुन देव सकपका गया. उसे लगा कि कहीं अनु को सब पता तो नहीं चल गया? उस के होंठ कुछ बोलने को हिले, मगर शब्द बाहर न आ सके.

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‘‘सौरी मैं तुम्हारी तकलीफों को समझ न पाई और तुम से लड़तीझगड़ती रही, पर मैं भी तो एक इंसान ही हूं न देव, तो कैसे तुम्हारे मन में छिपे दर्द को देख पाती, जब तक तुम नहीं बताते…बताओ न कौन है वह औरत, जिस ने तुम्हें परेशान कर रखा है?’’

‘‘क… कौन औरत? नहीं तो, कोई नहीं,’’ चेहरे को दूसरी ओर घुमाते हुए देव बोला.

‘‘इधर देखो देव, मेरी तरफ,’’ देव का चेहरा अपनी ओर घुमाते हुए अनु बोली, ‘‘वही जिस का सुबह फोन आया था और तुम घबरा कर घर से निकल गए? देखो देव, जो सही है बताओ मुझे. हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं,’’ अनु ने कहा.

देव की आंखें भर आईं और फिर उस ने सारी बात प्रिया को बता दी.

सुन कर अनु की आंखें फटी की फटी रह गई. बोली, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा, यह सोच कर कि मैं तुम्हें गलत समझूंगी? क्या इतना ही जाना तुम ने मुझे? मैं तुम्हारी पत्नी हूं देव, सुखदुख की साथी, तो भरोसा तो किया होगा मुझ पर? खैर, जो हो गया सो हो गया, पर अब मैं निकालूंगी तुम्हें इस भंवर से और इस के लिए हमें क्या करना होगा सुनो,’’ कह कर अनु ने देव को अपना प्लान बता दिया.

‘‘पर तुम्हें लगता है जैसा हम सोच रहे हैं वैसा हो पाएगा, क्योंकि वह बहुत ही शातिर औरत है. तुम नहीं जानती उसे,’’ शंकित होते हुए जब देव ने कहा, तो अनु ने उस के कंधे पर हाथ रख कर धैर्य बंधाया, जरूर हो पाएगा पर थोड़ा वक्त लगेगा. हम धीरज नहीं खोएंगे.’’

अपने प्लान के अनुसार कुछ ही दिनों में अनु ने प्रिया से गाढ़ी मित्रता कर ली. जब अनु को लगने लगा कि अब प्रिया उस की हर बात पर विश्वास करने लगी है, तो एक दिन उस ने अपना आखिरी दाव भी खेल डाला.

‘‘प्रिया, आज मुझे अंशुल को डाक्टर के पास ले कर जाना है शायद देर लग जाए, तो तुम मेरे घर की चाबी रखो और जब देव आए, तो उन्हें दे देना और हो सके, तो प्लीज उन्हें खाना खिला देना वरना वे भूखे रह जाएंगे, क्योंकि उन की आदत नहीं खुद से खाना निकाल कर खाने की, प्लीज,’’ हाथ जोड़ कर जब अनु ने कहा, प्रिया को तो लगा कि उसे मुंहमांगा इनाम मिल गया हो.

वह हंसते हुए बोली, ‘‘अरे, हाथ क्यों जोड़ रही हो अनु? यह तो मेरे लिए खुशी…मेरा मतलब है चाबी भी दे दूंगी और खिला भी दूंगी तेरे पिया को.’’

प्रिया को हंसते देख अनु का कलेजा जल उठा. लगा, उस के देव को रुला कर

यह चुड़ैल हंस रही है. हंस ले बेटा, कुछ समय और हंस ले, फिर मैं तुम्हें ऐसा सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखेगी तू, मन ही मन बोलते हुए अनु के अधर टेढ़े हो गए.

अपने घर में प्रिया को देख देव शौक्ड हो गया. हकलाते हुए बोला, ‘‘तू… तुम यहां मेरे घर में? किसलिए आई हो?’’

पहले तो वह रहस्यमय ढंग से मुसकराई. फिर बोली, ‘‘तुम्हारी पत्नी ने अपनी सत्ता मुझे सौंप दी,’’ इठलाती हुई चाबी के गुच्छे को अपनी उंगलियों में घूमाती हुई प्रिया ने आंख मारी.’’

‘‘बंद करो अपनी बकवास… क्यों कर रही हो तुम ऐसा? आखिर बिगाड़ा क्या है मैं ने तुम्हारा? क्यों तुम मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी हो? प्रिया को परे धकेलते हुए देव लगभग चीख पड़ा,’’ तुम ने ही कहा था कि मुझ में तुम्हें अपने भाई का अक्स दिखाई देता है, जो अब इस दुनिया में नहीं रहा और यह सब… छि: शर्र्म नहीं आई तुम्हें ऐसा करते हुए?’’ जानबूझ कर देव ने फिर वही सब बातें दोहराईं, ‘‘उस दिन तुम ने प्लानिंग कर के मुझे अपने घर चायपकौड़े पर बुलाया था न? चाय में नशे की गोलियां भी जानबूझ कर मिलाई थीं, है न? रिश्ते के नाम पर धोखा दिया तुम ने मुझे? बलात्कार मैं ने नहीं, बल्कि तुम ने किया मेरा… बोलो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं.’’

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‘‘नहीं, सच कह रहे हो तुम. हां, धोखे से ही मैं ने उस रात तुम्हें अपने घर बुलाया और चाय में नशे की गोलियां भी मिलाईं और फिर कमरे तक भी मैं ही तुम्हें ले कर गई. तुम्हारे कपड़े भी मैं ने ही उतारे और बिलकुल वैसा ही करवाया जैसे मैं ने चाहा. लेकिन बलात्कार… ठहाके मार कर प्रिया कहने लगी, ‘‘हां, मैं ने ही तुम्हारा बलात्कार भी किया, पर तुम साबित कैसे करोगे देव बाबू? क्योंकि जो दिखता है वही बिकता है न, जानते नहीं?

‘‘जब मैं ने तुम्हें पहली बार औडी गाड़ी से निकलते देखा तो उसी वक्त फैसला कर लिया कि इस मोटे मुरगे को फंसाना है. सच कहती हूं अब इस माचिस की डब्बी में रहने का मन नहीं करता देव. लगता है एक बड़ा घर हो, गाड़ी हो, नौकरचौकर हों और शारीरिक सुख भी. दोगे न तुम मुझे ये सब?’’ कह कर वह फिर ठहाके लगाने लगी.

‘‘अच्छा, तो इसलिए तुम ने ये सब किया. ताकि मुझे ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठ सको.’’

‘‘हां देव, इसलिए कहती हूं मुझे 50 लाख दे दो, फिर तुम अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते हो लूंगी, लेकिन तुम हो कि पैसे देने में टालमटोल किए जा रहे हो.’’

‘‘अगर मैं और पैसे देने से इनकार कर दूं तो?’’ देव ने पूछा. यह सुन कर वह उस पर ऐसे गुर्राई जैसे देव ने उस से कर्ज ले रखा हो. बोली, ‘‘तो तुम मेरे चंगुल से कभी बच नहीं पाओगे यह भी समझ लो,’’ मगर उसे यह नहीं पता था कि अनु बाहर खड़ी उस की सारी करतूतें सुन ही नहीं रही थी, बल्कि साथ में पुलिस को भी ले कर पहुंच गई थी.

‘‘बचोगी तो अब तुम नहीं हमारे चंगुल से प्रिया,’’ अचानक पुलिस को अपने सामने देख. प्रिया के होश उड़ गए.

देव कुछ कहता उस से पहले ही वह नकली आंसू बहाते हुए पुलिस को बताने लगी कि देव ने उस का बलात्कार किया और अब उसे ब्लैकमेल कर रहा है यह कह कर कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी, तो वह दुनिया के सामने उस का वीडियो वायरल कर देगा.’’

‘‘कौन सा वीडियो, वही जो तुम ने बनाया था उस रात?’’ महिला पुलिस ने डंडा घुमाते हुए पूछा, तो वह थर्रा उठी, ‘‘शर्र्म नहीं आई तुम्हें एक शरीफ इंसान को परेशान करते हुए?’’ कह महिला ने एक तमाचा उस के गाल पर दे मारा.

पुलिस इंस्पैक्टर बताने लगा कि यह औरत ठग है… अब तक यह लाखों रुपयों की ठगी कर चुकी है. दिल्ली पुलिस को कब से इस की तलाश थी… इस का असली नाम प्रिया नहीं, बल्कि सोनम हैं.

जांच के बाद प्रिया के घर से लाखों रुपए और वैसे ही कई वीडियो बरामद हुए, जिन्हें पुलिस ने अपने कब्जे में कर उसे गिरफ्तार कर लिया. जातेजाते प्रिया ने देव को ऐसे देखा जैसे कह रही हो यह तुम ने अच्छा नहीं किया.

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‘‘1 मिनट इंस्पैक्टर साहब,’’ कह कर अनु ने पहले तो प्रिया को एक जोरदार तमाचा जड़ा, फिर बोली, ‘‘तुम्हें क्या लगा एक झूठे वीडियो के बल पर तुम मेरे पति को ब्लैकमेल करती रहोगी और वे होते रहेंगे? क्यों नहीं किया वायरल, कर देती? जानती थी कि ऐसा कर के तुम ही फंस जाओगी, इसलिए नहीं किया… शर्म आती है मुझे तुम जैसी औरतों पर, जो चंद रुपयों के लिए बिछ जाती हैं मर्दों के सामने और जब पकड़ी जाती हैं, तो कहती हैं कि मर्द ने ही आबरू लूटी. ले जाइए इंस्पैक्टर साहब इसे मेरी नजरों के सामने से और ऐसी सजा दीजिए ताकि फिर कभी किसी शरीफ इंसान को ठगने की सोचे तक नहीं.

‘‘थैंक्यू अनु, मुझे इस भंवर से निकालने के लिए. अगर तुम ने वह आखिरी दाव न खेला होता, तो पता नहीं मेरा क्या होता,’’ कह कर देव ने उसे अपनी बांहों में भर लिया.

अनु भी अपने देव के आगोश में समा गई.

आखिरी दांव: भाग 3- क्या हुआ देव के साथ

मेघ जैसे पूरी रात गरजबरस कर शांत हो चुके थे, वैसे ही प्रिया भी आज पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी थी. मगर देव के जीवन में तूफान आ चुका था. सुबह जब देव की नींद खुली और प्रिया को अपने पास निर्वस्त्र पाया, तो उस के होश उड़ गए.

‘‘म… म… मैं यहां कैसे और आ… आप…’’ हकलाते हुए देव की आधी बातें उस के मुंह में ही रह गईं.

आंसू बहाते हुए प्रिया कहने लगी कि रात को देव ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. उस ने बहुत कहा भी कि वह उसे भाई मानती है, पर वह कहने लगा कि मानने से क्या होता है… वह उसे अच्छी लगती है. कितनी कोशिश की, पर देव की मजबूत बांहों से वह खुद को आजाद न कर पाई.

अपनी हरकतों पर देव शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि वह कितना नीच इंसान है, जो बहन समान औरत को अपनी वासना का शिकार बना डाला. उस ने कभी किसी औरत को नजर उठा कर भी नहीं देखा था, तो फिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई उससे?

जो भी हो, गलती तो हो ही चुकी थी और इस बात के लिए वह प्रिया से माफी भी मांगना चाहता था, पर उस की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वह प्रिया को फोन करे या उस के सामने जाए. प्रिया ने भी उस के बाद से उसे फोन करना बंद कर दिया था. कहीं प्रिया मेरे ऊपर बलात्कार का केस तो नहीं कर देगी? कर दिया तो क्या होगा? क्या बताएगा वह दुनिया वालों को…अनु को कैसे मुंह दिखाएगा वह? ये सब बातें सोचसोच कर देव की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा जा रहा था. उस की ठंडी पड़ती आवाज सुन कर अनु पूछती भी कि क्या बात है सब ठीक तो है न? पर वह उसे कुछ भी बोल कर शांत कर देता.

मगर एक दिन खुद प्रिया अचानक उस के घर पहुंच गई, जिसे देख देव के पसीने छूट गए. हकलाते हुए किसी तरह उस की आवाज निकल पाई, ‘‘प्रियाजी, मैं… मैं आप से माफी मांगने ही जा…’’

‘‘किस बात की माफी देवजी? जो हुआ उस में न तो आप की गलती थी न ही मेरी. बस एक अनहोनी होनी थी सो हो गई. मिट्टी डालिए अब उस बात पर,’’ सुन कर देव की जान में जान आई. लगा उसे कि कितनी अच्छी औरत है यह.

‘‘मैं यहां किसी और काम से आई हूं देव. वह क्या है कि अचानक मुझे कुछ रुपयों की जरूरत पड़ गई है और अभी मेरे पास उतने पैसे नहीं है. आप मेरी मदद कर दें. मैं जल्द ही लौटा दूंगी,’’ कह उस ने देव की तरफ देखा.

‘‘कितने पैसे?’’ देव ने पूछा.

‘‘50 हजार. पैसे आते ही मैं आप को लौटा दूंगी,’’ देव की आंखों में झांकते हुए वह बोली.

मरता क्या न करता. लौकर में जितने भी पैसे पड़े थे उन्हें प्रिया को ला कर देते हुए बोला, ‘‘प्रियाजी, अभी तो मेरे पास 40 हजार रुपए ही हैं. आप रख लीजिए,’’ प्रिया को पैसे दे कर उसे लगा जैसे उस के मन का बोझ कुछ कम हुआ.

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मगर अब तो वह उस से कभी 10 हजार, कभी 20 हजार, तो कभी 30 हजार मांगने पहुंच जाती और देव को देने ही पड़ते. आखिर देव भी इतने पैसे कहां से लाता भला? अत: एक दिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. मगर यह बात प्रिया को सहन नहीं हुई. बोली, ‘‘तुम्हें क्या लगता है देव, मैं उस बात को भूल गई?’’ तुरंत ही वह आप से तुम पर आ गई.

‘‘तुम्हारी करतूतों का कच्चा चिट्ठा है मेरे पास… देखना है?’’ कह कर उस ने वह वीडियो देव को दिखा दिया जिस में देव और प्रिया एकसाथ वीडियो में साफसाफ दिख रहे थे. देव प्रिया पर सवार है और वह उस से बचने की कोशिश कर रही है. वीडियो देखते ही देव की कंपकंपी छूट गई.

‘‘क्या कहते हो, दे दूं पुलिस को या फिर सोशल मीडिया पर वायरल कर दूं? अनु भी देख लेगी, क्यों?’’

उस की हरकतें देख देव सिहर उठा. लगा, अगर यह वीडियो अनु ने देख लिया, तो अनर्थ हो जाएगा. अत: वह और पैसे देने को तैयार हो गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह उस के साथ ऐसा क्यों कर रही है? वह तो उसे अपना भाई समान मानती थी, फिर? यह बात जब देव ने पूछी, तो प्रिया कहने लगी, ‘‘क्योंकि तुम मुझे पसंद आ गए?’’ हंसते हुए वह बोली, ‘‘मजाक कर रही हूं. बात दरअसल यह है कि मुझे एक बड़ा सा घर लेना है और उस के लिए मुझे क्व50 लाख की जरूरत है, तो वे मुझे तुम से चाहिए. ठीक है एक बार में नहीं, थोड़ेथोड़े कर दे दो, पर देने तो पड़ेंगे तुम्हें देव, नहीं तो मैं क्या कर सकती हूं जान चुके हो तुम.’’

समझ गया देव कि ये सब प्रिया की सोचीसमझी चाल थी. जानबूझ कर उस ने उस से दोस्ती की थी ताकि उस से पैसे ऐंठे जा सके. बोला, ‘‘तो तुम ने ये सब जानबूझ कर किया… लेकिन तुम तो मुझे अपना भाई मानती थी न, तो फिर कैसे मेरे साथ संबंध… सिर्फ पैसे के लिए तुम इतनी नीचे गिर गई. ठीक है कर लो जो करना है, पर हारोगी एक दिन तुम कह देता हूं,’’ देव भर्राए गले से बोला.

‘‘जीतहार की किसे पड़ी है देव? मुझे तो सिर्फ पैसे से मतलब है. वह मिलता रहे, फिर मुझे कोई आपत्ति नहीं. वैसे एक बात कहूं? कहीं न कहीं प्यार करने लगी हूं मैं तुम से,’’ इठलाती हुई बोल कर वह देव के गले से लटक गई और उसे चूम लिया.

‘‘ठीक है अब चलती हूं, पर जबजब मेरे हाथों में खुजली हो रही हो, पैसे रख देना जितने मैं कहूं और हां, जब कभी मन हो आ भी जाना. मैं मना नहीं करूंगी,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

आज देव को इस बात का एहसास हो रहा था कि अनु सही कहती थी, किसी इंसान को बिना जांचेपरखे उस पर भरोसा नहीं कर लेना चाहिए. पर उस वक्त वह उस की बातों को मजाक में उड़ा देता था पर आज वह खुद की नजरों में ही मजाक बन कर रह गया था.

एक दिन फिर उस ने देव को अपने घर बुलाया. जबरन उसे संबंध बनाने पर मजबूर किया और फिर 10 लाख की डिमांड कर बैठी.

‘‘अब मैं तुम्हें एक भी पैसा नहीं दूंगा.’’ गलती मेरी थी जो मैं ने तुम्हें पहचानने में भूल की, पर अब नहीं,’’ कह कर देव वहां से निकलने लगा. तभी प्रिया की बातों ने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया. ‘‘ठीक है तो फिर मत दो पैसे, मैं भी यह वीडियो वायरल कर रही हूं,’’ कह कर उस ने अपना फोन औन किया ही था कि देव ने उस के हाथ से फोन छीन लिया.

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‘‘क्या चाहती हो तुम?’’ देव ने अपनी आंखें तरेर कर पूछा. मन तो कर रहा था उस का कि प्रिया की जान ही ले ले, लेकिन वह ऐसा भी नहीं कर सकता था.

अपनी लटों को उंगलियों से घुमाते हुए बोली, ‘‘बस यही कि जबजब मैं पैसे मांगू, मुझे मिल जाने चाहिए और इस के लिए कोई बहाना नहीं, नहीं तो अंजाम क्या होगा जान चुके हो तुम.’’

बेचारा देव बुरी तरह से प्रिया के चंगुल में फंस चुका था. इस भंवर से निकलने का अब उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था.

9 महीने पूरे होते ही अनु ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया और यह सोच कर जल्द ही वापस देव के पास आ गई कि अब वह उसे ज्यादा तकलीफ नहीं दे सकती. लेकिन यहां आ कर देव के बदले व्यवहार से वह अचंभित थी. जहां बच्चे के नाम से ही देव रोमांचित हो उठता था और कहता था कि वह अपने बच्चे के लिए यह करेगा, वह करेगा, उसे कभी अपनी गोद से नीचे नहीं उतारेगा. अब वही देव अंशुल को गोद में लेने से भी कतराता. अंशुल के लिए खिलौनेकपड़े खरीदने की बात पर ही वह भड़क जाता और कहता कि फालतू के खर्चे बंद करो.

‘क्या हो गया है देव को? क्यों छोटीछोटी बातों पर इतना आवेग से भर जाता है? अब तो वह अनु से भी दूर भागने लगा था, क्योंकि जब भी अनु देव के करीब जाती, यह कह कर उस से दूर हट जाता कि आज नहीं, आज मैं बहुत थक गया हूं. लेकिन यह सब रोज की बातें होने लगी थीं.

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आखिरी दांव: भाग 2- क्या हुआ देव के साथ

खाना देख कर देव चौंका. फिर कुछ बोलता कि उस से पहले वह बोल पड़ी, ‘‘मैं समझ गई. आप यही कहना चाह रहे हैं न कि इस की क्या जरूरत थी? लेकिन लगा खुद के लिए बना ही रही हूं जो जरा ज्यादा बना लेती हूं. वैसे सुबह की जली ब्रैड की खुशबू उतनी भी खराब नहीं थी,’’ बोल कर जब व हंसी, तो देव को भी हंसी आ गई.

बातोंबातों में ही उस ने बताया कि वह लखनऊ से है और उस का पति दुबई में अपना व्यापार करता है. वह भी वहीं रह रही थी, पर उसे अपने देश के लोगों के लिए कुछ करना था, इसलिए वह यहां आ कर एक एनजीओ से जुड़ गई.

‘‘आज के लिए बस इतना ही और बरतन की चिंता मत कीजिएगा. सुबह आ कर ले जाऊंगी,’’ कह कर वह चली गई.

देव उसे जाते देखता रह गया. फिर सोचने लगा कि कैसी अजीब औरत है यह?

सुबह भी बरतन लेने के बहाने वह देव के लिए आलूपरांठे और दही ले कर पहुंच गई.

‘‘इस की क्या जरूरत थी प्लीज, आप नाहक परेशान हो रही हैं,’’ देव बोला.

मगर वह कहने लगी, आप में मुझे अपने भाई का अक्स दिखाई देता है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा.

‘‘ओह, सौरी, मेरा इरादा आप का दिल दुखाने का नहीं था,’’ अफसोस जताते हुए देव बोला.

अब वह रोज देव के लिए कुछ न कुछ बना कर ले आती और देव उसे मना नहीं

कर पाता.

देव अनु को सब बताना चाहता था, पर डर भी रहा था कि वह फिर उसे डांटेगी और कहेगी कि क्यों वह इतनी जल्दी किसी पर भरोसा कर बैठता है? लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी वह चुप न रह सका और अनु को सब बता दिया.

सुनने के बाद अनु कहने लगी, ‘‘हां… याद आया. मेरे यहां आने के 1 हफ्ता पहले ही वह हमारे ऊपर वाले फ्लैट में शिफ्ट हुई थी. ज्यादा तो नहीं, पर हलकीफुलकी बातें हुई थीं उस से. बता रही थी कि  वह भी लखनऊ से है. चलो कोई नहीं, खाना तो मिल रहा है न तुम्हें घर जैसा… पर सिर्फ खाना ही खाना, कुछ और मत खाने लगना,’’ देव को छेड़ते हुए वह हंस पड़ी.

अब तो यह रोज की बात हो गई. देव के लिए वह अकसर घी, मसालों में सराबोर सब्जियां, चावल, पूरी रायता, दाल, सलाद, मिठाई आदि ले कर पहुंच जाती और जब देव कहता कि क्यों वह उस के लिए इतना परेशान होती है तो वह कहती कि उसे भी इसी तरह का खाना पसंद है, तब देव ने हैरानी से पूछा, ‘‘आप इतनी फिट कैसे हैं?’’

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वह बोली, ‘‘मैं रोज वाक पर तो जाती ही हूं, जिम जाना भी नहीं भूलती.’’

‘‘यह बात है तो फिर कल से मैं भी आप को जौइन करता हूं,’’ देव ने कहा.

प्रिया उछल पड़ी. अब रोज सुबहसवेरे दोनों वाक पर निकल जाते और शाम को जिम जाना भी दोनों के रूटीन में शामिल हो गया.

एक दिन जब देव अपने होने वाले बच्चे का जिक्र करने लगा, तो अचानक प्रिया का

चेहरा उदास हो गया.

कारण पूछने पर वह कहने लगी, ‘‘कुदरत ने उसे मां बनने का मौका ही नहीं दिया. बहुत इलाज करवाया, पर सभी डाक्टरों का यही कहना था कि मैं कभी मां नहीं बन सकती. अब मैं ने और पति ने यह तय किया है कि अनाथ बच्ची को गोद ले लेंगे.’’

देव उसे देखता रह गया. उसे लगा कि कितनी अच्छी औरत है यह जो एक अनाथ बच्ची को गोद लेने की सोच रही है. बोला, ‘‘वाह, कितना उत्तम विचार है आप का. आप को तो बच्चे का सुख मिलेगा ही, उस बच्चे को भी एक घर और मातापिता का सुख मिल जाएगा व उस की जिंदगी संवर जाएगी. अगर आप की तरह ही और लोगों की भी सोच हो जाए न, तो कोई भी बच्चा इस दुनिया में अनाथ नहीं रहेगा,’’ प्रिया के प्रति भावना से भर कर देव कहने लगा.

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‘‘देवजी, कह तो आप सही रहे हैं पर हम किसी को इस बात के लिए फोर्स तो नहीं कर सकते हैं न? फिर वैसे भी बहुत से लोग बच्चे को गोद तो ले लेते हैं, पर वह प्यार और समर्पण नहीं दे पाते, जो उस बच्चे को चाहिए होता है. इस से तो अच्छा है बच्चा गोद ही न लें.’’

‘‘हां, सही कह रही हैं आप. वैसे अब काफी जांचपरख के बाद ही जरूरतमंदों को बच्चा गोद दिया जाता है,’’ देव की बात पर प्रिया ने भी सहमति जताई.

प्रिया का साथ पा कर देव का अकेलापन कुछ हक तक दूर होने लगा था. जब भी वह घर में बोर होने लगता, प्रिया के साथ कहीं घूमने निकल जाता और खाना भी बाहर ही खा कर आता.

प्रिया कहती, ‘‘क्या जरूरत थी बाहर खाना खाने की?’’

‘‘आप अकसर अपने हाथों से बना कर खिलाती हैं, तो क्या मैं आप को कभीकभार बाहर नहीं खिला सकता?’’

‘‘अच्छा, तो बाहर खाना खिला कर आप मेरे खाने का बदला चुकाना चाहते हैं?’’ प्रिया हंसते हुए बोली.

देव झेंपते हुए कहता, ‘‘ऐसी बात नहीं है प्रियाजी, लेकिन हां, जब अनु आएगी तब एक दिन मेरे घर और दूसरे दिन आप के घर पार्टी होगी हमारी, ठीक है न?’’

प्रिया बोली, ‘‘डन.’’ प्रिया और देव की दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी कि अब दोनों एकदूसरे पर विश्वास करने लगे थे.

सुबह से ही मौसम का मिजाज बिगड़ा लग रहा था. हवा तो नाम मात्र की भी नहीं चल रही थी. वातावरण इतना शुष्क कि पूछो मत. लेकिन कुछ देर बाद ही पूरे आकाश पर काले बादल मंडराने लगे. लग रहा था धूआंधार बारिश होगी. सच में कुछ पलों में ही बादलों की गड़गड़ाहट के साथ बूंदाबादी और फिर झमाझम बारिश शुरू हो गई जिसे देख देव के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. वह बालकनी में खड़ा हो गया. सोचने लगा कि काश इस बारिश में पकौड़े मिल जाते, तो मजा आ जाता.

तभी प्रिया का फोन आ गया. बोली, ‘‘मैं गरमगरम पकौड़े बना रही हूं. आप जल्दी आ जाएं.’’

‘‘सच प्रियाजी? अभी आता हूं.’’

‘‘पकौड़े बहुत ही टेस्टी बने हैं, पेट भर गया पर मन नहीं भर रहा है,’’ एक और पकौड़ा उठाते हुए देव बोला.

प्रिया ने और पकौड़े उस की प्लेट में रख दिए और बोली, ‘‘अभी तो पार्टी शुरू हुईर् है.’’

‘‘अरे, सच में प्रियाजी… अब तो पेट फट जाएगा… इतना खिला दिया आप ने,’’ कह देव ने घड़ी पर नजर डाली. 9 बज चुके थे. सोचा अब चला जाए. पर प्रिया ने एक कप चाय और पीने की बोल कर उसे रोक लिया. चाय पीतेपीते देव का सिर घूमने लगा. कुछ ही पलों बाद वह वहीं सोफे पर लुढ़क गया. जब प्रिया को लगा कि वह बेसुध पड़ गया और अब उसे कोई होश नहीं है, तो उसे किसी तरह कमरे में सुला दिया.

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अनायास ही प्रिया के होठों पर मुसकान बिखर आई. बाथरूम में जा कर वह अपने शरीर को मलमल कर नहाते हुए गुनगुनाने लगी, ‘‘सजना है मुझे सजना के लिए… जरा उलझी लटें संवार लूं… हर अंग का रंग निखार लूं कि सजना है मुझे…’’

नहा कर उस ने कपड़े ऐसे पहने कि अंदर सब साफसाफ दिखाई दे रहा था. सजसंवर कर जब उस ने आईने के सामने खड़ी हो अपना अक्स निहारा, तो खुद में ही लजा गई. फिर उस ने पलंग पर सोए देव को निहारा. उस का गठीला बदन देख उस ने अपने होंठ को दांत से ऐसे दबा लिया जैसे अब बात उस की बरदाश्त के बाहर हो गई हो. हौले से देव के पास गईर् और फिर लाइट बंद कर दी.

आगे पढ़ें- आंसू बहाते हुए प्रिया कहने लगी कि…

आखिरी दांव: भाग 1- क्या हुआ देव के साथ

रोजसुबह उठ कर अपने लिए चायनाश्ता बनाबना कर ऊब चुका था देव. मन ही मन सोचता कि काश, अनु होती, तो वह बैड टी का मजा ले रहा होता. घड़ी पर नजर डाली, तो 9 बज चुके थे. झटपट उठ कर फ्रैश होने के बाद उस ने एक चूल्हे पर चाय रखी और दूसरे पर ब्रैड सेंकने लगा. जब से अनु मायके गई थी देव का रोज सुबह का यही नाश्ता होता था. दोपहर का खाना वह औफिस की कैंटीन में खा लेता और रात के खाने का कुछ पता नहीं होता. कभी बाहर से मंगवा लेता, तो कभी खुद कुछ बना लेता. अनु के बिना 15 दिन में ही उस की हालत खराब हो गई है, तो आगे और दिन कैसे गुजरेंगे, सोच कर ही वह सिहर उठा. तभी अनु का फोन आ गया.

‘‘गुड मौर्निंग जानू,’’ अनु पति देव को प्यार से जानू बुलाती थी, ‘‘कैसे हो? मन लग रहा है मेरे बिना?’’ हमेशा की तरह एक किस के साथ अनु ने पूछा.

‘‘अच्छा हूं पर बहुत ज्यादा नहीं. तुम बताओ क्या कर रही हो?’’ बात करते हुए जब ब्रैड जलने की बदबू आई तो अचानक देव चीख पड़ा.

‘‘क्या हुआ देव?’’ घबरा कर अनु ने पूछा.

‘‘हाथ जल गया यार,’’ देव हाथ झटकते हुए बोला, ‘‘बहुत हंसी आ रही है न? हंस लो हंस लो, अभी तुम्हारे हंसनेखेलने के दिन हैं बेबी…अभी तो तुम वहां महारानी की तरह रह रही होगी. मांभाभियां तरहतरह के व्यंजन बना कर खिला रही होंगी. और मैं यहां खुद हाथ जला रहा हूं.’’

‘‘अच्छा, और पापा कौन बनेगा? पता भी है तुम्हें कि मां बनने में कितनी तकलीफ सहनी पड़ती है औरतों को? देखा है मैं ने भाभी को, जब चिंटू पैदा होने वाला था तब उन्हें कितनी तकलीफ हुई थी. मैं तो सोच कर ही डरी जा रही हूं कि कहीं मुझे भी…’’

‘‘जरूरी तो नहीं कि भाभी की तरह तुम्हें भी तकलीफ हो… आ जाऊंगा न डिलिवरी के कुछ दिन पहले ही, अनु को धैर्य बंधाते हुए देव ने कहा और फिर फोन रख दिया.

चाय के साथ उसी जली ब्रैड को किसी तरह निगल कर औफिस चला गया. अनु थी तब न तो उसे सुबह जल्दी उठने की चिंता होती थी और न ही नाश्तेचाय की. अब उसे सब समझ में आने लगा कि अनु अपनी जगह कितनी सही थी, आज देव का वजन संतुलित है तो सिर्फ अनु की वजह से, क्योंकि वही उस के पीछे पड़ कर उसे वौक पर ले जाती और जिम भी भेजती थी. हैल्थ को ले कर जरा भी लापरवाही अनु को पसंद नहीं थी.

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उधर फोन रख कर अनु देव को ले कर चिंतित हो उठी. सोचने लगी कि अगर यहां आना जरूरी न होता, तो वह हरगिज न आती. दरअसल, शादी के 5 साल बाद अनु मां बनने जा रही थी. जब वह पहली बार मां बनने वाली थी तब उस की मां ने कहा था कि वह यहां आ जाए, क्योंकि डिलिवरी के वक्त किसी अनुभवी का साथ होना जरूरी है. लेकिन वह नहीं मानी थी और यह बोल कर आने से मना कर दिया था कि देव सब संभाल लेगा.

मगर वही हुआ जिस बात का अनु की मां को डर था. अचानक 1 दिन के लिए औफिस के जरूरी काम से देव को बाहर जाना पड़ गया. देव ने कहा भी कि वह नहीं जाएगा, चाहे कितना भी जरूरी क्यों न हो, पर अनु ने यह कर उसे भेज दिया कि काम में लापरवाही अच्छी नहीं और फिर क्या एक दिन भी वह अपना खयाल नहीं रख सकती? देव के जाने के अगले दिन वह नहाने बाथरूम गई तो उसे ध्यान ही नहीं रहा कि बाथरूम गीला है. वहां थोड़ी फिसलन भी थी. जैसे ही बाथरूम में घुसी, उस का पैर फिसल गया और वह गिर पड़ी. वह तो अच्छा था कि घर का मेन दरवाजा खुला था, तो उस के चीखने की आवाज से पड़ोसी दौड़े आए और उसे जल्दी अस्पताल ले गए. मगर लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर अनु के बच्चे को नहीं बचा पाए. उस के बाद कई साल तक अनु मां नहीं बन पाई. डाक्टर का कहना था कि स्वास्थ्य संबंधी कुछ दिक्कते हैं इलाज के बाद ही यह मां बन पाएगी.

खैर, इस बार अनु प्रैगनैंट हो गई. डाक्टर ने अच्छी तरह समझा दिया कि इस बार कोई लापरवाही न बरती जाए. जहां तक हो सके अनु आराम करे. देव और अनु ने भी इस बार कोई रिस्क लेना नहीं चाहा. सोच लिया देव ने कि चाहे उसे कितनी भी तकलीफ क्यों न हो, वह अनु को उस की मां के घर छोड़ आएगा.

शाम को औफिस से आते ही देव सोफे पर लेट गया. थक कर इतना चूर हो गया था कि लेटते ही उसे नींद आ गई. आंखें तब खुलीं जब अनु का फोन आया.

‘‘लगता है बहुत थक गए हो? एक काम करो, बाहर से ही कुछ मंगवा लो,’’ कह अनु ने फोन रख दिया.

देव अपने लिए खाना और्डर करने जा ही रहा था कि तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.

‘इस वक्त कौन हो सकता है? मन ही मन सोचते हुए देव ने एक नजर दरवाजे पर और दूसरी घड़ी पर डालते हुए दरवाजा खोला तो सामने एक सुंदर, छरहरी, गोरी 30-32 साल की महिला खड़ी मुसकरा रही थी.

अपने घर, वह भी रात के इस वक्त किसी अनजान महिला को देख देव हकला कर बोला, ‘‘आ… आप… आप कौन?’’

‘‘जी मैं प्रिया, आप के ऊपर वाले फ्लोर में रहती हूं,’’ पूरे आत्मविश्वास से उस महिला ने जवाब दिया.

‘‘पर मैं तो आप को…’’

‘‘हां, आप मुझे नहीं जानते, पर मैं आप को जानती हूं,’’ देव की बात को काटते हुए वह महिला बोली, ‘‘अनु के हसबैंड हैं आप और अभी वे अपने मायके गई हुई हैं डिलिवरी के लिए,’’ उस ने कहा. उस की बात सुन देव हैरानी से उसे देखने लगा. फिर सोचने लगा कि इसे इतना सबकुछ कैसे पता है? और वह उसे कैसे नहीं जानता, जबकि दोनों एक ही बिल्डिंग में रह रहे हैं?

‘‘ज्यादा मत सोचिए, क्योंकि अभी 1 महीने पहले ही मैं यहां शिफ्ट हुई हूं और वैसे भी आप सुबह औफिस चले जाते हैं और आते ही माचिस की डब्बी में बंद हो जाते हैं, तो आप को कैसे पता चलेगा कि कौन नया आदमी आया और कौन पुराना आदमी चला गया?’’

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‘‘पुराना आदमी मतलब?’’ देव ने पूछा.

‘‘पुराना आदमी मतलब कि जो पहले आप के ऊपर अमन दंपती रहते थे न, उन्हीं के घर में मैं रहने आई हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ देव ने अपनी याददाश्त पर जोर डाला. उसे याद आया कि हां ऊपर पंजाबी दंपती रहते थे.

‘‘मगर यह माचिस की डब्बी… क्या मतलब?’’ देव ने पूछा.

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या अपने घर के अंदर नहीं बुलाएंगे? बाहर से ही सरका देने का इरादा है?’’

‘‘अरे, प्लीज आइए न,’’ देव थोड़ा सरक गया ताकि वह घर के अंदर दाखिल हो सके.

‘‘माचिस की डब्बी का मतलब है यह अपार्टमैंट,’’ सोफे पर बैठते हुए वह महिला बोली, ‘‘देख नहीं रहे हैं कितने छोटेछोटे कमरे हैं. कभीकभी तो दम घुटने लगता है मेरा अपने घर में. बड़े शहरों की यही समस्या है. सुविधाएं तो बहुत होती हैं, पर जगह बहुत सीमित और लोग भी यहां के इतने मतलबी की किसी को किसी से लेनादेना नहीं. घर में घुसते ही ऐसे पैक हो जाते हैं जैसे माचिस की डब्बी में तीली.’’

उस की बातों पर देव को हंसी आ गई.

‘‘अरे बातोंबातों में मैं भूल ही गईर् कि मैं आप के लिए खाना ले कर आईर् हूं,’’ कहते हुए प्रिया ने उसे खाना दिया.

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निर्णय: भाग 3- वक्त के दोहराये पर खड़ी सोनू की मां

जिज्जी ने चिढ़ कर दोनों को एक ही थैली के चट्टेबट्टे तक कह दिया था. बचपन की दबंगई गई कहां है सरिता की. बड़ी ही दुखती रग पर हाथ धर दिया था उस ने. सीधे कह दिया, ‘अपना दुख बिसरा चुकी हो जिज्जी?’ जिज्जी सन्न रह गई थीं. रोतीबिसूरती पैर पटकती जा बैठी थीं अपने कमरे में. उस की आंख के आगे अंधेरा छाने लगा था. देखा जाए तो जिज्जी के दुख की विशालता का कहां ओरछोर है. असमय ही पति की मृत्यु के बाद बेटे को अपने पास रख 6 महीने की बेटी सहित जिज्जी को नंगे पांव घर से बाहर कर दिया था उन के ससुराल वालों ने. वह समझती है जिज्जी की मनोदशा. तब की उपजी कड़वाहट ने उन का जीवन ही नहीं, दिलदिमाग तथा जबान तक को जहरीला कर दिया है. कहीं न कहीं यह बात भी थी कि मायके में अपने पांव जमाए रखने के लिए वे पूरे घर की नकेल को कस कर थामे रखना चाहती थीं. जबकि वह है कि फिसलती ही जा रही है उन के हाथों से. उस पर सरिता ने आ कर और गुड़गोबर कर दिया था. दृढ़ प्राचीर की भांति खड़ी हो गई थी सरिता उस के और मां व जिज्जी के बीच. निश्चय तो पहले से ही पक्का था, जब सरिता की बातों ने उस का हौसला और बढ़ा दिया था. दृढ़ता की अनगिनत परतें और चढ़ गई थीं उस के निश्चय पर. नीलाभ डाक्टर है. सोनू की बीमारी उन्होंने पहले भांप ली थी. उस से उखड़ेउखड़े और कटेकटे रहने लगे थे सोनू के लक्षण दूसरे साल ही प्रकट होने लगे थे. बोलता भी था दांत भी निकाल लिए थे. कूल्हों के बल घिसटता था. सहारा दे कर खड़ा करने पर भी पैर नीचे नहीं रखता था.

नीलाभ चपरासी को भेज कर अकसर सोनू को नर्सिंग होम बुलवा लेते थे. उसे पता ही न चलने दिया. पता नहीं कौनकौन से टैस्ट करवाए. दवाएं दी जाने लगीं. विटामिन एवं एनर्जी बूस्टर के नाम पर वह स्वयं न जाने कौनकौन सी दवाएं खुद अपने हाथों से देते रहे थे सोनू को. एक बार तो दिल्ली भी हो आए थे. घूमने के नाम पर. बहाने से नीलाभ सोनू को एम्स ले गए थे. गेस्ट हाउस लौटे तो चेहरा उतरा हुआ था. रोज बच्चों के साथ उसे पर्यटन विभाग की बस में बिठा देते दिल्ली दर्शन के लिए, स्वयं काम का बहाना कर फाइलें ले कर अलगअलग अस्पतालों के चक्कर काटते. शक तो उसे भी था. 3 साल का बच्चा स्वस्थ और सुंदर पर टांगें जैसे सूखी हड्डी मात्र. जान ही नहीं थी टांगों में. इस विषय में नीलाभ से बात करती तो वे खीज जाते या रूखा सा जवाब देते, ‘कुछ नहीं, सब ठीक है, कमजोरी है, ठीक हो जाएगी.’ पता नहीं ऐसा कह कर वे खुद को तसल्ली देते थे या उसे. उस ने चुपचाप कई प्रकार के आयुर्वेदिक तथा प्राकृतिक तेल व लेप मलने शुरू कर दिए थे सोनू की टांगों पर. दोनों एकदूसरे से नजरें चुराते, इस विषय में चिंतित तथा किसी अनहोनी की आशंका में घुलते रहते.

‘‘मैडम, रामबाग आ गया. अब किधर लूं?’’ टैक्सी वाले ने टोका तो सचेत हो कर उस ने इधरउधर देखा. टैक्सी वाला सोच रहा था कि सफर की थकी  सवारी शायद सो गई है. वह फिर से बोला, ‘‘उठो जी मैडमजी, बताओ कौन सी गली में लूं?’’

‘‘नीलाभ नर्सिंगहोम.’’

‘‘अच्छा जी,’’ कह कर उस ने निर्दिष्ट दिशा की ओर गाड़ी मोड़ दी. घर पहुंच कर उस की इच्छा ही नहीं हुई कि नीलाभ से कुछ पूछे या सवालजवाब करे. जो छिपी बात बाहर निकल ही गई हो उसे पुन: तो नहीं छिपाया जा  सकता. और कुछ हो न हो, पतिपत्नी के मध्य रिश्ता अवश्य ही अनाथ हो गया था. दोनों के बीच का गहन अबोला पूरे घर में सांयसांय करता डोलने लगा था. 2 छोटी बेटियां तो अबोध थीं अभी पर किशोरावस्था की ओर पग बढ़ाती बड़ी बेटी शिप्रा कुछ समझ रही थी, कुछ समझने का प्रयास कर रही थी. सोनू पता नहीं किस अज्ञात प्रेरणावश हर समय उसी के साथ चिपका रहता. अपनी सारी संचित शक्ति से वह अपने दृढ़ निश्चय, साहस तथा ममता को जागृत रखती कि कहीं किसी कमजोर पल में निष्ठुर पौरुष उसे अपने सामने घुटने टेकने को विवश न कर दे. 3 दिन का छूटा घर समेटने लगी तो उस ने नीलाभ की टेबल पर मैडिकल पत्रिका का एक अंक पड़ा देखा था. जन्मजात एवं वंशानुगत शारीरिक विसंगतियों का विशेषांक.

रात करीब 3 बजे उस की नींद खुली तो देखा नीलाभ लैपटौप पर दत्तचित्त हो कर पता नहीं क्या काम कर रहे थे. सांस रोक कर वह चुपचाप देखती रही थी. थोड़ी देर बाद लैपटौप बंद कर नीलाभ कोहनियों को मेज पर टिकाए दोनों हथेलियों में अपना झुका हुआ सिर थाम देर तक बैठे रहे थे. सुबह नर्सिंग होम नहीं गए वे. पता नहीं किस उधेड़बुन में लगे थे. कभी किसी को फोन करते, कभी कागजपत्तर फैला कर बैठ जाते. अचानक उठे और अटैची निकाल कर सोनू का सामान उस में भरने लगे. उसे लगा वह गश खा कर गिर पड़े. अपना सारा अहं, सारा मानअभिमान भूल कर वह नीलाभ के पैरों पर लोट गई.

‘‘बस करो, और मुश्किलें न बढ़ाओ ये सब कर के मेरे लिए.’’ नीलाभ तड़प कर बोले, ‘‘पत्थर नहीं हूं मैं. कोई इलाज नहीं है इस का यहां. और विदेश में इतना महंगा है कि मैं अपना सबकुछ बेच दूं तो भी पूरा न पड़ेगा, समझीं तुम. उस पर भी गारंटी कुछ नहीं.’’ पता नहीं नीलाभ की खीज, क्रोध और चिल्लाहट का मूल कारण क्या था. एक असहाय, अपाहिज बेटे के प्रति पिता का फर्ज निभा पाने की अक्षमता या एक कमजोर क्षण में एक निराश्रित को अपना मान लेने का निर्णय. शिप्रा आंसुओं में भीगी डरीसहमी दरवाजे के पीछे खड़ी सब देखसुन रही थी. दोनों छोटी बच्चियां भी डर के मारे अपने कमरे में दुबकी थीं. इस से पहले उन्होंने कभी पिता को इतने क्रोध में नहीं देखा था.

तभी डोरबैल बजी. सन्नाटा पसर गया कमरे में. क्षणभर को सब ठिठक गए. वह खुद को संभालती उठी और दरवाजा खोला. प्रजापतिजी थे. नीलाभ के मित्र एवं शिप्रा के लौंग जंप खेल के कोच. घर के असहज वातावरण को भांप कर कुछ अचकचा से गए थे. वह समझ गई थी उन के आने का कारण. अंतर विद्यालय प्रतियोगिता को कुछ ही दिन रह गए हैं पर शिप्रा का ध्यान ही नहीं है आजकल किसी चीज में. ‘‘प्रैक्टिस पर क्यों नहीं आती आजकल बेटा?’’ सीधे शिप्रा से ही पूछ लिया था प्रजापतिजी ने. शिप्रा अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व करती है इस खेल में.

‘‘मुझे नहीं खेलना,’’ उस ने नजरें चुराते हुए कहा.

‘‘क्यों? क्या मुसीबत आन पड़ी है, पता तो चले? गोल्ड जीत सकती हो. स्टेट लेवल पर जाओगी. दिमाग में भूसा भरा है क्या? चांस रोजरोज नहीं मिलते.’’ नीलाभ ने शिप्रा के ‘सर’ के बैठे होने का भी लिहाज न किया और अपने भीतर दबा कहीं का आक्रोश कहीं निकाला. ‘‘रेखा के पांव की हड्डी टूट गई है जंप लगाते हुए,’’ शिप्रा डर कर बोली.

‘‘तो…?’’ हैरानी से प्रजापतिजी बोले. उन की बात बीच में ही काट कर नीलाभ बिफर पड़े, ‘‘चोट उसे लगी है. तुम्हारी तो सलामत हैं न दोनों टांगें. चोट के डर से क्या घर पर बैठ जाओगी?’’ शिप्रा आंसू रोकने का भरसक प्रयास कर रही थी. आंखें जैसे जल रही थीं उस की. मुंह तमतमा गया था. उस की दृष्टि सोनू के पैरों पर जमी थी. ‘‘लग सकती है मुझे भी. कहीं मेरे पैर भी…तो आप मुझे भी सोनू की तरह…’’ रुलाई में शब्द गड्डमड्ड हो गए थे. पुत्री के टूटेफूटे अस्फुट शब्द और अधूरे वाक्यों ने अपनी पूरी बात संप्रेषित कर दी थी. नीलाभ के पैरों के नीचे की धरती घूम सी गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया. बेदम हो कर वे पास पड़ी कुरसी पर ढेर हो गए.

कल हमेशा रहेगा: भाग 3- वेदश्री ने किसे चुना

पापा ने भी मम्मी के साथ सहमत होते हुए कहा था, ‘बेटी, डा. साकेत ने हमारे बच्चे के लिए जो कुछ भी किया, वह आज के जमाने में शायद ही किसी के लिए कोई करे. यदि उन्होंने हमारी मदद न की होती तो क्या हम मानव का इलाज बिना पैसे के करवा सकते थे?

‘यह बात कभी न भूलना बेटी कि हम ने मानव के इलाज के बारे में मदद के लिए कितने लोगों के सामने अपने स्वाभिमान का गला घोंट कर हाथ फैलाए थे, और हर जगह से हमें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी थी. जब अपनों ने हमारा साथ छोड़ दिया तब साकेत ने गैर होते हुए भी हमारा दामन थामा था.’

‘अभिजीत अगर तुम्हारा प्यार है तो मानव तुम्हारा फर्ज है. फर्ज निभाने में जिस ने तुम्हारा साथ दिया वही तुम्हारा जीवनसाथी बनने योग्य है, क्योंकि सदियों से चली आ रही प्यार और फर्ज की जंग में जीत हमेशा फर्ज की ही हुई है,’ दिमाग के किसी कोने से वेदश्री को सुनाई पड़ा.

मम्मीपापा के दबाव में आ कर वेदश्री ने डा. साकेत से शादी करने का फैसला ले लिया. वह इस बात से दुखी थी कि अभि को यह बात कैसे समझाएगी. लेकिन बहते हुए आंसुओं को रोक कर उस ने एक निर्णय ले ही लिया कि वह अभि से मिलने आखिरी बार जरूर जाएगी.

वेदश्री की बातें सुनने के बाद अभि तय नहीं कर पा रहा था कि वह किस तरह अपनी प्रतिक्रिया दर्शाए. वह श्री को दिल से चाहता था और अपनी जिंदगी उस के साथ हंसीखुशी बिताने का मनसूबा बना रहा था. उस का सपना आज हकीकत के कठोर धरातल से टकरा कर चकनाचूर हो गया था और वह कुछ भी करने में असमर्थ था.

उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की अपनी गरीबी और लाचारी उस की जिंदगी से इस कदर खिलवाड़ करेगी. यदि वह अमीर होता तो क्या मानव के इलाज के लिए अपनी तरफ से योगदान नहीं देता? श्री उस के लिए सबकुछ थी तो उस के परिवार का हर सदस्य भी तो उस का सबकुछ था.

अब समय मुट्ठी से रेत की तरह सरक गया था. समय पर अब उस का कोई नियंत्रण नहीं रहा था. अब तो वह सिर्फ श्री और साकेत के सफल सहजीवन के लिए दुआ ही कर सकता था.

अपना हृदय कड़ा कर और आवाज में संतुलन बना कर अभिजीत बोला, ‘‘श्री, मैं तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूं पर तुम से तो मैं यही कहूंगा कि हमें समझदार प्रेमियों की तरह हंसीखुशी एकदूसरे से अलग होना चाहिए. प्यार कोई ऐसी शै तो है नहीं कि दूरियां पैदा होने पर दम तोड़ दे. प्यार किया है तो उसे निभाने के लिए शादी करना कतई जरूरी नहीं. प्लीज, तुम मेरी चिंता न करना. मैं अपनेआप को संभाल लूंगा पर तुम वचन दो कि आज के बाद मुझे भुला कर सिर्फ साकेत के लिए ही जिओगी.’’

आंखों में आंसू लिए भारी मन से दोनों ने एकदूसरे से विदा ली.

‘‘श्री, आज का दिन यहां खत्म हुआ तो क्या हुआ? याद रखना, कल फिर आएगा और हमेशा आता रहेगा… और हर आने वाला कल तुम्हारी जिंदगी को और कामयाब बनाए, यही मेरी दुआ है.’’

मंगलसूत्र पहनाते समय साकेत की उंगलियों ने ज्यों ही वेदश्री की गरदन को छुआ, उस के सारे शरीर में सिहरन सी भर गई. सप्तपदी की घोषणा के साथसाथ शहनाई का उभरता संगीत हवा में घुल कर वातावरण को और भी मंगलमय बनाता गया. एकएक फेरे की समाप्ति के साथ उसे लगता गया कि वह अपने अभिजीत से एकएक कदम दूर होती जा रही है. आज से अभि उस से इस एक जन्म के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाले सात जन्मों के लिए दूर हो गया है. अब उस का आज और कल साकेत के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया है.

फेरों के खत्म होते ही मंडप में मौजूद लोगों ने अपनेअपने हाथों के सारे फूल एक ही साथ नवदंपती पर निछावर कर दिए. तब वेदश्री ने अपने दिल में उमड़ते हुए भावनाओं के तूफान को एक दृढ़ निश्चय से दबा दिया और सप्तपदी के एकएक शब्द को, उस से गर्भित हर अर्थ हर सीख को अपने पल्लू में बांध लिया. उस ने मन ही मन संकल्प किया कि वह अपने विवाहित जीवन को आदर्श बनाने का हरसंभव प्रयास करेगी क्योंकि वह इस सच को जानती थी कि औरत की सार्थकता कार्येषु दासी, कर्मेषु मंत्री, भोज्येशु माता और शयनेशु रंभा के 4 सूत्रों के साथ जुड़े हर कर्तव्यबोध में समाई हुई है.

सुहाग सेज पर सिकुड़ी बैठी वेदश्री के पास बैठ कर साकेत ने कोमलता से उस का चेहरा ऊपर की ओर इस तरह उठाया कि साकेत का चेहरा उस की आंखों के बिलकुल सामने था. वह धड़कते हृदय से अपने पति को देखती रही, लेकिन उसे साकेत के चेहरे पर अभि का चेहरा क्यों नजर आ रहा है? उसे लगा जैसे अभि कह रहा हो, ‘श्री, आखिर दिखा दिया न अपना स्त्रीचरित्र. धोखेबाज, मैं तुम्हें कभी क्षमा नहीं करूंगा.’ और घबराहट के मारे वेदश्री ने अपनी पलकें भींच कर बंद कर लीं.

‘‘क्या हुआ, श्री. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’ साकेत उस की हालत देख कर घबरा गया.

‘‘नहींनहीं…बिलकुल ठीक हूं…आप चिंता न करें…पहली बार आज आप ने मुझे इस तरह छुआ न इसलिए पलकें स्वत: शरमा कर झुक गईं,’’ कह कर वह अपनी घबराहट पर काबू पाने का निरर्थक प्रयास करने लगी.

मन में एक निश्चय के साथ श्री ने अपनी आंखें खोल दीं और चेहरा उठा कर साकेत को देखने लगी.

‘‘अब मैं ठीक हूं, साकेत. पर आप से कुछ कहना चाहती हूं…प्लीज, मुझे एक मौका दीजिए. मैं अपने मन और दिल पर एक बोझ महसूस कर रही हूं, जो आप को हकीकत से वाकिफ कराने के बाद ही हलका हो सकता है.’’

‘‘किस बोझ की बात कर रही हो तुम? देखो, तुम अपनेआप को संभालो, और जो कुछ भी कहना चाहती हो, खुल कर कहो. आज से हम नया जीवन शुरू करने जा रहे हैं और ऐसे में यदि तुम किसी भी बात को मन में रख कर दुखी होती रहोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘साकेत, मैं ने आप से अपनी जिंदगी से जुड़ा एक गहरा राज छिपा कर रखा है और यह छल नहीं तो और क्या है?’’ फिर वह अभिजीत और अपने रिश्ते से जुड़ी हर बात साकेत को बताती चली गई.

‘‘साकेत, मैं आप को वचन देती हूं कि मैं अपनी ओर से आप को शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी,’’ अपनी बात खत्म करने के बाद भी वह रो रही थी.

‘‘गलत बात है श्री, आज का यह विशेष अवसर और उस का हर पल, हमारी जिंदगी में पहली और आखिरी बार आया है. क्या इन अद्भुत पलों का स्वागत आंसुओं से करोगी?’’ साकेत ने प्यार से उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया.

‘‘रही बात तुम्हारे और अभिजीत के प्रेम की तो वह तुम्हारा अतीत था और अतीत की धूल को उड़ा कर अपने वर्तमान को मैला करने में मैं विश्वास नहीं रखता…भूल जाओ सबकुछ…’’वह रात उन की जिंदगी में अपने साथ ढेर सारा प्यार और खुशियां लिए आई. साकेत ने उसे इतना प्यार दिया कि उस का सारा डर, घबराहट, कमजोर पड़ता हुआ आत्मविश्वास…उस प्यार की बाढ़ में तिनकातिनका बन कर बह गया.

वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त वेदश्री के जीवन में एक कभी न खत्म होने वाली वसंत को साथ ले आया जिस ने उस के जीवन को भी फूलों की तरह रंगीन बना दिया क्योंकि साकेत एक अच्छे पति होने के साथ ही एक आदर्श जीवनसाथी भी साबित हुए.

पहले दिन से ही श्री ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा द्वारा घर के सभी सदस्यों को अपना बना लिया. समय के पंखों पर सवार दिन महीनों में और महीने सालों में तबदील होते गए. 5 साल यों गुजर गए मानो 5 दिन हुए हों. इन 5 सालों में वेदश्री ने जुड़वां बेटियां ऋचा एवं तान्या तथा उस के बाद रोहन को जन्म दिया. ऋचा व तान्या 4 वर्ष की हो चली थीं और रोहन अभी 3 महीने का ही था. साकेत का प्यार, 3 बच्चों का स्नेह और परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठा, यही उस के जीवन की सार्थकता के प्रतीक थे.

साकेत की दादी दुर्गा मां सुबह जल्दी उठ जातीं. उन के स्नान से ले कर पूजाघर में जाने तक सभी तैयारियों में श्री का सुबह का वक्त कब निकल जाता, पता ही नहीं चलता. उस के बाद मांबाबूजी, साकेत तथा भैयाभाभी बारीबारी उठ कर तैयार होते. फिर अनिकेत और आस्था की बारी आती. सभी के नहाधो कर अपनेअपने कामों में लग जाने के बाद श्री अपना भी काम पूरा कर के दुर्गा मां की सेवा में लग जाती.

अनिकेत एवं आस्था तो भाभी के दीवाने थे. हर पल उस के आगेपीछे घूमते रहते. उन की हर जरूरत का खयाल रखने में श्री को बेहद सुख मिलता. श्री एवं अनिकेत दोनों की उम्र में बहुत फर्क नहीं था. अनिकेत ने एम.बी.ए. की डिगरी प्राप्त की थी. अब वह अपने पिता एवं बड़े भाई के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा था लेकिन अपनी हर छोटीबड़ी जरूरतों के लिए श्री पर ही निर्भर रहता. वह उस से मजाक में कहती भी थी, ‘अनिकेत भैया, अब आप की भाभी में आप की देखभाल करने की शक्ति नहीं रही. जल्दी ही हाथ बंटाने वाली ले आइए वरना मैं अपने हाथ ऊपर कर लूंगी.’

आगे पढ़ें- वेदश्री के खुशहाल परिवार को एक…

कल हमेशा रहेगा: भाग 2- वेदश्री ने किसे चुना

सर्जरी के तुरंत बाद डा. साकेत ने उसे बताया कि मानव की सर्जरी सफल तो रही लेकिन उस आंख का विजन पूर्णतया वापस लौटने में कम से कम 6 महीने का वक्त और लगेगा. यह सुन कर उसे तकलीफ तो हुई थी लेकिन साथसाथ यह तसल्ली भी थी कि उस का भाई फिर इस दुनिया को अपनी स्वस्थ आंखों से देख सकेगा.

‘‘श्री…जी, मैं ने आप से वादा किया था कि आप को कभी नाउम्मीद नहीं होने दूंगा…’’ साकेत ने उस की गहरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को दिया अपना वादा पूरा किया.’’

वेदश्री ने संकोच से अपनी पलकें झुका दीं.

‘‘फिर मिलेंगे…’’ कुछ निराश भाव से डा. साकेत ने कहा और फिर मुड़ कर चले गए.

उस दिन एक लंबे अरसे के बाद वेदश्री बिना किसी बोझ के बेहद खुश मन से अभिजीत से मिली. उसे तनावरहित और खुशहाल देख कर अभि को भी बेहद खुशी हुई.

‘‘अभि, कितने लंबे अरसे के बाद आज हम फिर मिल रहे हैं. क्या तुम खुश नहीं?’’ श्री ने उस का हाथ अपने हाथ में थाम कर ऊष्मा से दबाते हुए पूछा.

‘‘ऐसी बात नहीं, मैं तुम्हें अपने इतने नजदीक पा कर बेहद खुश हूं…खैर, मेरी बात जाने दो, मुझे यह बताओ, अब मानव कैसा है?’’

‘‘वह ठीक है. उसे एक नेक डोनेटर मिल गया, जिस की बदौलत वह अपनी नन्हीनन्ही आंखों से अब सबकुछ देख सकता है. आज मुझे लगता है जैसे उसे नहीं, मुझे आंखों की रोशनी वापस मिली हो. सच, उस की तकलीफ से परे, मैं कुछ भी साफसाफ नहीं देख पा रही थी. हर पल यही डर लगा रहता था कि यदि उस की आंखों की रोशनी वापस नहीं मिली तो उस के गम में कहीं मम्मी या पापा को कुछ न हो जाए. उस दाता का और डा. साकेत का एहसान हम उम्र भर नहीं भुला सकेंगे.’’

‘‘अच्छा, तुम बताओ, तुम्हारा भांजा प्रदीप किस तरह दुर्घटना का शिकार हुआ? मैं ने सुना था तो बेहद दुख हुआ. कितना हंसमुख और जिंदादिल था वह. उस की गहरी भूरी आंखों में हर पल जिंदगी के प्रति कितना उत्साह छलकता रहता…’’

अभि अपलक उसे देखता रहा. क्या वह कभी उसे बता भी सकेगा कि प्रदीप की ही आंख से उस का भाई इस दुनिया को देख रहा है? वह मरा नहीं, मानव की एक आंख के रूप में उस की जिंदगी के रहने तक जिंदा रहेगा.

वह बोझिल स्वर में वेदश्री को बताने लगा.

‘‘प्रदीप अपने दोस्त के साथ ‘कल हो न हो’ फिल्म देखने जा रहा था. हाई वे पर उन की मोटरसाइकिल फिसल कर बस से टकरा गई. उस का मित्र जो मोटरसाइकिल चला रहा था, वह हेलमेट की वजह से बच गया और प्रदीप ने सिर के पिछले हिस्से में आई चोट की वजह से गिरते ही वहीं उसी पल दम तोड़ दिया.

‘‘कहना अच्छा नहीं लगता, आखिर वह मेरी बहन का बेटा था, फिर भी मैं यही कहूंगा कि जो कुछ भी हुआ ठीक ही हुआ…पोस्टमार्टम के बाद डाक्टर ने रिपोर्ट में दर्शाया था कि अगर वह जिंदा रहता भी तो शायद आजीवन अपाहिज बन कर रह जाता…’’

‘‘इतना सबकुछ हो गया और तुम ने मुझे कुछ भी बताने योग्य नहीं समझा?’’ अभिजीत की बात बीच में काट कर श्री बोली.

‘‘श्री, तुम वैसे भी मानव को ले कर इतनी परेशान रहती थीं, तुम्हें यह सब बता कर मैं तुम्हारा दुख और बढ़ाना नहीं चाहता था.’’

कुछ पलों के लिए दोनों के बीच मौन का साम्राज्य छाया रहा. दिल ही दिल में एकदूसरे के लिए दुआएं लिए दोनों जुदा हुए. अभि से मिल कर वेदश्री घर लौटी तो डा. साकेत को एक अजनबी युगल के साथ पा कर वह आश्चर्य में पड़ गई.

‘‘नमस्ते, डाक्टर साहब,’’ श्री ने साकेत का अभिवादन किया.

प्रत्युत्तर में अभिवादन कर डा. साकेत ने अपने साथ आए युगल का परिचय करवाया.

‘‘श्रीजी, यह मेरे बडे़ भैया आकाश एवं भाभी विश्वा हैं और आप सब से मिलने आए हैं. भाभी, ये श्रीजी हैं.’’

विश्वा भाभी उठ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘‘आओ श्री, हमारे पास बैठो,’’ उन्हें भी श्री पहली ही नजर में पसंद आ गई.

‘‘अंकलजी, हम अपने देवर

डा. साकेत की ओर से आप की बेटी वेदश्री का हाथ मांगने आए हैं,’’ भाभी ने आने का मकसद स्पष्ट किया.

यह सुन कर श्री को लगा जैसे किसी ने उसे ऊंचे पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में धकेल दिया हो. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो वह सुन रही है वह सच है या फिर एक अवांछनीय सपना?

भाभी का प्रस्ताव सुनते ही श्री के मातापिता की आंखोंमें एक चमक आ गई. उन्होंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन की बेटी के लिए इतने बड़े घराने से रिश्ता आएगा.

‘‘क्या हुआ श्री, तुम हमारे प्रस्ताव से खुश नहीं?’’ श्री के चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख कर भाभी ने पूछ लिया.

साकेत और आकाश दोनों ही उसे देखने लगे. साकेत का दिल यह सोच कर तेजी से धड़कने लगा कि कहीं श्री ने इस रिश्ते से मना कर दिया तो?

‘‘नहीं, भाभीजी, ऐसी कोई बात नहीं. दरअसल, आप का प्रस्ताव मेरे लिए अप्रत्याशित है. इसीलिए कुछ पलों के लिए मैं उलझन में पड़ गई थी पर अब मैं ठीक हूं,’’ जबरन मुसकराते हुए वेदश्री ने कहा, ‘‘मैं ने तो साकेत को सिर्फ एक डाक्टर के नजरिए से देखा था.’’

‘‘सच तो यह है श्री कि जिस दिन तुम पहली बार मेरे अस्पताल में अपने भाई को ले कर आई थीं उसी दिन तुम्हें देख कर मेरे मन ने मुझ से कहा था कि तुम्हारे योग्य जीवनसाथी की तलाश आज खत्म हो गई. और आज मैं परिवार के सामने अपने मन की बात रख कर तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. अब फैसला तुम्हारे ऊपर है.’’

‘‘साकेत, मुझे सोचने के लिए कुछ वक्त दीजिए, प्लीज. मैं ने आप को आज तक उस नजरिए से कभी देखा नहीं न, इसलिए उलझन में हूं कि मुझे क्या फैसला लेना चाहिए…क्या आप मुझे कुछ दिन का वक्त दे सकते हैं?’’ वेदश्री ने उन की ओर देखते हुए दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘‘जरूर,’’ आकाश जो अब तक चुप बैठा था, बोल उठा, ‘‘शादी जैसे अहम मुद्दे पर जल्दबाजी में कोई भी फैसला लेना उचित नहीं होगा. तुम इत्मीनान से सोच कर जवाब देना. हम साकेत को भलीभांति जानते हैं. वह तुम पर अपनी मर्जी थोपना कभी भी पसंद नहीं करेगा.’’

‘‘हम भी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोडें़गे, क्यों साकेत?’’ भाभी ने साकेत की ओर देखा.

‘‘जी, भाभी,’’ साकेत ने हंसते हुए कहा, ‘‘शतप्रतिशत, आप ने बड़े पते की बात कही है.’’

जलपान के बाद सब ने फिर एकदूसरे का अभिवादन किया और अलग हो गए.

आज की रात वेदश्री के लिए कयामत की रात बन गई थी. साकेत के प्रस्ताव को सुन वह बौखला सी गई थी. ये प्रश्न बारबार उस के मन में कौंधते रहे:

‘क्या मुझे साकेत का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए? यदि मैं ने ऐसा किया तो अभि का क्या होगा? हमारे उन सपनों का क्या होगा जो हम दोनों ने मिल कर संजोए थे? क्या अभि मेरे बिना जी पाएगा और उस से वादाखिलाफी कर क्या मैं जी पाऊंगी? नहीं…नहीं…मैं अपने प्यार का दामन नहीं छोड़ सकती. मैं साकेत से साफ शब्दों में मना कर दूंगी. नए रिश्तों को बनाने के लिए पुराने रिश्तों से मुंह मोड़ लेना कहां की रीति है?’

सोचतेसोचते वेदश्री को साकेत याद आ गया. उस ने खुद को टोका कि श्री तुम

डा. साकेत के बारे में क्यों नहीं सोच रहीं? तुम से प्यार कर के उन्होंने भी तो कोेई गलती नहीं की. कितना चाहते हैं वह तुम्हें? तभी तो एक इतना बड़ा डाक्टर दिल के हाथों मजबूर हो कर तुम्हारे पास चला आया. कितने नेकदिल इनसान हैं. भूल गईं क्या, जो उन्होंने मानव के लिए किया? यदि उन का सहारा न होता तो क्या तुम्हारा मानव दुनिया को दोनों आंखों से फिर से देख पाता? खबरदार श्री, तुम गलती से भी अपने दिमाग में इस गलतफहमी को न पाल बैठना कि साकेत ने तुम्हें पाने के इरादे से मानव के लिए इतना सबकुछ किया. आखिर तुम दुनिया की अंतिम खूबसूरत लड़की तो हो ही नहीं सकतीं न…दिल ने उसे उलाहना दिया.

साकेत के जाने के बाद पापामम्मी से हुई बातचीत का एकएक शब्द उसे याद आने लगा.

मां ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बेटी, ऐसे मौके जीवन में बारबार नहीं आते. समझदार इनसान वही है जो हाथ आए मौके को हाथ से न जाने दे, उस का सही इस्तेमाल करे. बेटी, हो सकता है ऐसा मौका तुम्हारी जिंदगी के दरवाजे पर दोबारा दस्तक न दे…साकेत बहुत ही नेक लड़का है, लाखों में एक है. सुंदर है, नम्र है, सुशील है और सब से अहम बात कि वह तुम्हें दिल से चाहता है.’

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