तीनों की कुछ सम झ में नहीं आया.
‘‘एक गुरुमंत्र है बेटा, अपनी सास को खुश कर लो, बीवी फ्री में खुश रहेगी और बोनस में अपनी सास को खुश रखेगी. हो गए न एक तीर से तीन निशाने.’’
‘‘वह कैसे? मतलब कि हम क्या करें,’’ तीनों को साहिल के कहे में काफी गहरा रहस्य दिखाई पड़ रहा था.
साहिल ने तीनों के साथ सिर जोड़ कर अपनी बात सम झाई तो तीनों को
सम झ में आ गई.
‘‘और तब भी बात न बनी तो?’’ तीनों ने शंका जाहिर की.
‘‘तो कौन सा भूचाल आ जाएगा, जो चल रहा है वह तो चल ही रहा है.’’
‘‘तेरी बात कुछकुछ सम झ में आ रही है यार. उन से और उन की बातों से पलायन करने के बजाय क्यों न सामना किया जाए,’’ तीनों ने अपनेअपने ढंग से यह बात कही.
‘‘मगर प्यार से,’’ साहिल ने बात में
संशोधन किया.
तीनों दोस्त एकदूसरे की गलबहियां करते घर की तरफ प्रस्थान कर गए.
रूपम घर पहुंचा तो रास्ते से सासूमां की पसंद की पेस्ट्री खरीद कर ले जाना नहीं भूला. जैसे ही अंदर पहुंचा सासूमां के दर्शन लाबी में ही हो गए. वे टीवी पर अपना मनपसंद सीरियल देख रही थीं. आज रूपम उन को अनदेखा कर बैडरूम में जाने के बजाय उन की बगल में सोफे पर बैठ गया. चेहरे पर मनभावन मुसकान खिंची थी. सासूमां तो सासूमां, रिमी भी हैरान…
‘‘जल्दी कैसे आ गए? तुम तो बोल
कर गए थे कि देर से आऊंगा?’’ रिमी आश्चर्य
से बोली.
‘‘हां जल्दी काम खत्म हो गया. सोचा वर्किंग डेज में तो मम्मीजी के साथ बैठने का टाइम ही नहीं मिल पाता, आज छुट्टी का दिन उन के साथ बिताया जाए. मम्मीजी लीजिए आप की पसंद की पेस्ट्री लाया हूं.’’
‘‘मेरी पसंद, पता है तुम्हें?’’ मम्मीजी की आवाज आश्चर्य से भरी थी.
‘‘हां क्यों नहीं, कई बार बताया रिमी ने,’’ वह प्लेट में पेस्ट्री रख मम्मीजी को देता हुआ बोला.
प्लेट लेते हुए मम्मीजी की आंखों में अनायास ही तरलता घुल गई थी. अब उन की जबान नहीं सिर्फ आंखें बोल रही थीं.
‘‘और रिमी जल्दी से तैयार हो जाओ,
बाहर चलते हैं… जब से मम्मीजी आई हैं, उन्हें ठीक से कहीं घुमाया भी नहीं है. आज डिनर भी बाहर ही करेंगे.’’
‘‘अरे नहीं बेटा, इस की कोई जरूरत नहीं. आज छुट्टी का दिन… तुम्हें भी तो आराम की जरूरत है.’’
पर रूपम ने मम्मीजी को जबरदस्ती कर तैयार होने भेज दिया. रिमी उसे घायल करने वाली मुसकान से देख रही थी.
सौरभ जब घर पहुंचा तो उस की सासूमां डाइनिंगटेबल पर बैठी मटर छील रही थीं. आज सौरभ कुरसी खींच कर उन के सामने बैठ गया. बैंक से रिटायर्ड सास के हर समय पैसे बचाने के तरीकों पर भाषण सुनने से बचते सौरभ को मस्त अंदाज में सामने बैठते देख सौरभ की सासूमां प्रफुल्लित हो गईं.
‘‘मम्मीजी सोचता हूं, आज आप से उन स्कीमों की जानकारी ले ही लूं इत्मीनान से. आप सही कहती हैं, हमें भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. मु झे तो कुछ ठीक से याद रहता नहीं, आप जिया को इस बार ठीक से सम झा दीजिए, फिर विचार करते हैं, एक दिन बैठ कर,’’ सौरभ साथ में मटर छीलता हुआ बोला.
सासूमां चारों खाने चित्त. हर समय उन के उपदेशों से भागने वाला सौरभ खुद ही यह टौपिक उठा लाया था. बोलीं, ‘‘नहीं बेटा मैं क्या बताऊंगी भला, तुम तो खुद ही बहुत सम झदार हो.’’
‘‘मु झ में इतनी सम झ कहां मम्मीजी, इतना व्यस्त रहता हूं कि किसी बात का ध्यान ही नहीं रहता. आप इस बार जिया को ठीक से सम झा कर जाना सबकुछ और खाने में क्या बना रही हैं आप आज आप के बनाए मटरपनीर का तो जवाब नहीं. अपने जैसी कुकिंग जिया को भी सिखा दीजिए, आप के जैसी सुघड़ता नहीं है आप की बेटी में,’’ सौरभ मंदमंद मुसकराता हुआ बोला.
मम्मीजी फूल कर कुप्पा हो गईं और जिया, झूठमूठ के गुस्से वाली मीठी मुसकराहट से उसे निहार रही थी.
सुमित घर पहुंचा तो मांबेटी सिर जोड़े अपनी ही गुफ्तगू में व्यस्त थीं ‘पता
नहीं क्या साजिश चल रही है मेरे खिलाफ,’ सुमित ने सोचा पर प्रत्यक्ष में मुसकराहट बिखेर दी.
‘‘अरे तुम कैसे जल्दी आ गए?’’ शानिका उसे देख आश्चर्य से बोली.
‘‘क्यों क्या मैं जल्दी नहीं आ सकता, क्यों मम्मीजी? आखिर मम्मीजी के लिए भी तो मेरा कोई फर्ज बनता है. सोचता हूं 2 दिन का प्रोग्राम आसपास का घूमने का बना लेते हैं, अच्छी आउटिंग हो जाएगी.’’
‘‘क्या?’’ शानिका आश्चर्यचकित रह गई. मम्मीजी अपरोक्ष व वह परोक्ष रूप से जानती थी कि मम्मीजी के नाम पर सुमित घर से दूर रहने की कोशिश करता है.
‘‘हां… हां… कितनी मुश्किल से आ पाती है मम्मीजी, मैं तब तक फ्रैश हो कर आता हूं, तुम मम्मीजी के साथ मिल कर डिसाइड करो कि कहां चलना है,’’ कह कर उन्हें आश्चर्यचकित छोड़ सुमित बैडरूम की तरफ चला गया.
तीनों दोस्तों ने अगले कुछ दिन समस्या से भागने के बजाय समस्या का सामना कर अपनीअपनी सासूमां को खुश कर रुखसत किया.
तीनों की बीवियां एकदम प्रसन्नचित्त थीं अपनेअपने पति के बदले अंदाज पर और उन की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार थी:
‘‘बहुत दिनों से मम्मीजी नहीं आई हैं, आप को तो कुछ ध्यान ही नहीं रहता उन का. अब मैं ही बात करती हूं उन से किसी दिन.’’
‘‘अरे पर मम्मीजी तो अभीअभी रह कर गई हैं. अभीअभी कैसे आएंगी?’’ तीनों दोस्त अनजान भोले बन कर कह रहे थे.
‘‘मैं आप की सास की नहीं अपनी सास की बात कर रही थी,’’ कहते हुए उन की बीवियों ने समस्त चाशनी अपने स्वरों में उंडेल दी थी.
सुन कर अगले दिन तीनों दोस्त फूलों का गुलदस्ता ले कर साहिल से मिलने चले गए.
‘‘मान गए… अब जब भी पतिपत्नी के बीच किसी की भी सास ‘वो’ के रूप में फंसेगी, तब तुम्हारे ही बताए नक्शेकदम पर चलेंगे,’’ तीनों एकसाथ बोल पड़े.
तीनों सिर झुकाए साहिल के सामने खड़े थे और वह हाथ बढ़ा कर उन्हें आशीर्वाद दे रहा था.
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