बीजी यहीं है: भाग 3- क्या सही था बापूजी का फैसला

तीजत्योहार, ब्याहशादियों में बीजी बहुत याद आती. अपनी पीढ़ी के हर तीजत्योहार, पर्व के लोकगीतों का संग्रह थी वह. ऊपर से आवाज ऐसी कि जो एक बार बीजी के मुंह से कोई लोकगीत सुन ले तो सुनता ही रह जाए.

बीजी के जाने के बाद जब भी मौका मिलता बाबूजी बीजी की बातें ले

बैठते. बीजी के साथ के मेरे होने से पहले के किस्से तब मुझ से सांझ करने से नहीं हिचकते. कई बार तो बाबूजी के नकारने के बाद भी साफ लगता कि बीजी के जाने के बाद बाबूजी बीजी के और नजदीक हो गए हों जैसे. पता नहीं ऐसा क्यों होता होगा कि किसी के जाने के बाद ही हम उस के पहले से और नजदीक हो आते हैं.

बाबूजी को अपने साथ यों खुलतेघुलते देख मैं हैरान था कि कहां वह बाबूजी का मेरे साथ रिजर्व से भी रिजर्व रहना और कहां आज इतना घुलमिल जाना कि… बाबूजी कभी देवानंद, कभी सुनील दत्त तो कभी किशोर कुमार भी रहे थे, धीरेधीरे वे जब खुश होते तो मेरे पूछे बिना ही अपनी परतें यों खोलते जाते ज्यों अब मैं उन का बेटा न हो कर उन का दोस्त होऊं.

बीजी के जाने के बाद मैं ने ही नहीं, राजी ने भी बाबूजी के चश्मे का नंबर 4 महीने में 4 बार बदलते देखा. हर 20 दिन बाद बाबूजी की शिकायत, मेरी आंखें कुछ देख नहीं पा रहीं. तब राजी ने मन से बाबूजी से कहा भी था कि वे हमारे साथ ही पूरी तरह से रहें. पहले तो बाबूजी माने नहीं, पर बाद में एक शर्त बीच में डाल मान गए. अवसर देख उन्होंने शर्त रखी, ‘‘तो शाम का भोजन सब के लिए नीचे की रसोई में ही बना करेगा. और…’’

‘‘और क्या बाबूजी?’’ उस वक्त ऐसा लगा था जैसे मेरे से अधिक राजी बाबूजी के करीब जा पहुंची हो.

‘‘और रात को मैं नीचे ही

सोया करूंगा.’’

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‘‘यह कैसे संभव है बाबूजी?’’ राजी ने मुझ से पहले आपत्ति जताई तो वे बोले, ‘‘देखो राजी बेटाख् वहां मेरा अतीत है, मेरा वर्तमान है. आदमी हर चीज से कट सकता है पर अपने अतीत, वर्तमान से नहीं. इसलिए… क्या तुम चाहोगी कि मैं अपने अतीत, अपने वर्तमान से कट अपनेआप से कट जाऊं, तुम सब से कट जाऊं? कभीकभी तो आदमी को अपनी शर्तों पर जी लेना चाहिए या कि आदमी को उस की शर्तों पर जी लेने देना चाहिए. इस से संबंधों में गरमाहट बनी रहती है राजी,’’ बाबूजी बाबूजी से दार्शनिक हुए तो मैं अवाक. क्या ये वही बाबूजी हैं जो पहले कभीकभी तो बाबूजी भी नहीं होते थे?

‘‘ठीक है बाबूजी. जैसे आप चाहें,’’ मैं ने और राजी ने उन के आगे ज्यादा जिद्द नहीं की यह सोच कर कि जब 2 दिन बाद ही अकेले वहां ऊब जाएंगे तो फिर जाएंगे कहां?

उस रोज मैं हाफ टाइम के बाद ही औफिस से घर आया तो बाबूजी को धूप में न बैठे देख अजीब सा लगा क्योंकि अब उन को औफिस को जाते, औफिस से आते देखना मुझे पहले से भी जरूरी सा लगने लगा था. अचानक मन में यों ही बेतुका सा सवाल पैदा हुआ कि कहीं बाबूजी से राजी की कोई… पर अब राजी और बाबूजी के रिश्ते को देख कर कहीं ऐसा लगता नहीं था जो… सो इस बेतुके सवाल को परे करते मैं ने राजी से पूछा, ‘‘आज बाबूजी धूप में नहीं आए क्या?’’

‘‘क्यों? आए तो थे. पर तुम?’’

‘‘तबीयत ढीली सी लग रही थी सो सोचा कि घर आ कर आराम कर लूं. शायद तबीयत ठीक हो जाए. कहां गए हैं बाबूजी.’’

‘‘कह गए थे जरा नीचे जा रहा हूं. कुछ देर बाद आ जाऊंगा. चाय बनाऊं क्या?’’

‘‘हां, बना दो सब के लिए. तब तक मैं बाबूजी को देख आता हूं. देखूं तो सही वे…’’ और मैं तुरंत नीचे उतर गया.

बाबूजी जब बाहर नहीं दिखे तो यों ही खिड़की से भीतर झंका यह देखने के लिए कि भीतर बाबूजी क्या कर रहे होंगे? भीतर देखा तो बाबूजी ने पहले सोफोें के कवर ठीक किए, फिर सामने बीजी की टंगी तसवीर की धूल साफ  की अपने कुरते से. उस के बाद बीजी की तरह ही टेबल साफ  करने लगे. टेबल साफ  कर हटे तो बीजी की तरह ही किचन के दरवाजे के पीछे पीछे रखे झड़ू से साफ करने लगे. यह देख बड़ा अचंभा हुआ. जिन चीजों से बाबूजी का अभी दूरदूर तक का कोई वास्ता न होता था, इस वक्त वे चीजें बाबूजी के लिए इतनी अहम हो जाएंगी, मैं ने सपने में भी न सोचा था. मैं ने तो सोचा था कि बीजी के जाने के बाद बाबूजी और भी बेपरवाह हो जाएंगे.

बड़ी देर तक मैं यह सब फटी आंखों से देखता रहा. अचानक मेरी आंखों के गीलेपन के साथ मेरी सिसकी निकली तो सुन बाबूजी चौंके, ‘‘कौन? कौन?’’

‘‘मैं बाबूजी संकु.’’

‘‘तू कब आया?’’ बाबूजी ने अपने को छिपाते सामान्य हो पूछा तो मैं ने भी अपने को छिपा सामान्य होते कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं थी, सो सोचा घर जा कर कुछ आराम कर लूं तो शायद… पर आप यहां… राजी को कह देते, नहीं तो मैं कर देता ये सब…’’

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‘‘नहीं. अपने हिस्से के कई काम कई बार खुद कर के मन को बहुत चैन मिलता है संकु. तुम्हारी बीजी के जाने के इतने महीनों बाद भी जबजब यहां आता हूं तो लगता है कि तुम्हारी बीजी यहीं कहीं है. हम सब के साथ. वह शरीर से ही हम से जुदा हुई है. तुझे ऐसा फील नहीं होता क्या?’’ बाबूजी ने मुझ से पूछा और मुंह दूसरी ओर फेर लिया.

पक्का था उन की आंखें भर आई थीं. सच पूछो तो उस वक्त मैं ने भी बाबूजी के साथ बीजी का होना महसूस किया था पूरे घर में. सोफों पर, टीवी के पास, किचन में हर जगह क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां बीजी न हो, वहां बाबूजी एक पल भी नहीं टिकते. एक पल भी नहीं रुकते. कोई उन्हें रोकने की चाहे लाख कोशिशें क्यों न कर ले, वे अपनेआप ऐसी जगह रुकने की हजार कोशिशें क्यों न कर लें. बाबूजी आज भी कुछ मामलों में बड़े स्वार्थी हैं. ऐसे में इस वक्त जो बीजी उन के साथ न होती तो भला वे जब धूप भी धूप तापने को धूप की तलाश में दरदर भटक रही हो, उसे छोड़ बीजी के बिना यहां होते भला?

बीजी यहीं है: भाग 2- क्या सही था बापूजी का फैसला

बीजी की बात जब मौन रह कर भी नकार दी गई या राजी द्वारा ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी गईं कि कुछ दिन तक तो राजी पहले नीचे सब को खाना बनाती पर बाद में बीचबीच में ऊपर की रसोई में बच्चों के लिए स्कूल का भी लंच बना लेती. फिर धीरेधीरे बच्चों के स्कूल से आने के बाद का भोजन भी ऊपर ही बनने लगा और एक दिन जब मैं और राजी नीचे बीजी वाले घर में गए थे कि बीजी ने खुद ही राजी से वह सब कह दिया जो राजी बीजी के मुंह से बहुत पहले सुनना चाहती थी. पर कम से कम बीजी से तो मुझे वह सब कहने की उम्मीद न थी क्योंकि मैं ने बीजी को 40 साल से बहुत करीब से देखा था. इतना करीब से जितना बाबूजी ने भी बीजी को न देखा हो.

बीजी ने उस दिन बिना किसी भूमिका के राजी से कहा था, ‘‘राजी, तू ऊपरनीचे दौड़ती थक जाती है. ऐसा कर, ऊपर की किचन में ही खाना बना लिया कर. मैं नीचे कर लिया करूंगी.’’

‘‘पर बीजी आप?’’

‘‘हमारा क्या? सारा दिन मैं करती भी क्या हूं? इन के और अपने लिए मैं यहीं खाना बना लिया करूंगी. जिस दिन खाना न बने उस दिन को तू तो है ही,’’ पता नहीं कैसे क्या सोच कर बीजी ने हंसते हुए राजी का स्पेस को और स्पेस दी तो मैं हत्प्रभ. आखिर बीजी भी समझौते करना सीख ही गई.

उस वक्त तब मैं ने साफ महसूस किया था कि कल तक जो बीजी उम्र की ढलान

पर बाबूजी से अधिक अपने को फिसलने से बचाए रखे थी, आज वही बीजी उम्र की ढलान से अधिक जज्बाती ढलान पर फिसली जा रही थी. जब आदमी सम?ौता करता हो तो ढलानों पर ऐसे ही फिसलता होगा शायद अपने को पूरी तरह फिसलाव के हवाले कर.

इस निर्णय के बाद से बीजी के  चेहरे पर से धीरेधीरे मुसकराहट गायब रहने लगी. यह बात दूसरी थी कि मैं और दोनों बच्चे सुबहशाम बीजी के पास जा आते. बच्चे तो कई बार वहीं से डिनर कर के आते तो राजी तुनकती भी. पर मुझे अधिक देर तक बीजी, बाबूजी के साथ बच्चों का रहना अच्छा लगता. उस वक्त कई बार तो मुझे ऐसा लगता काश मैं भी चीनू होता. काश मैं भी किट्टी होती.

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जिस बीजी के हाथों के बने खाने से रोगी भी ठीक हो जाते थे, धीरेधीरे वही बीजी अपने ही हाथों बने खाने से बीमार होने लगी.

अब मैं जब भी बीजी को अस्पताल ले जाने को कहता तो वह हंसते हुए टाल जाती, ‘‘अभी तेरे बाबूजी हैं न. वैसे भी अभी कौन सी मरी जा रही हूं. बूढ़ा शरीर है. कब तक इसे उठाए अस्पताल भागता रहेगा. जब लगेगा कि मुझे तेरे साथ अस्पताल जाना चाहिए, तुझे कह दूंगी.’’

और बीजी बिस्तर पर पड़ीपड़ी पता नहीं बड़ी देर तक किस ओर देखती रहती. मुझ से पूरी तरह बेखबर हो. जैसे में उस के पास होने के बाद भी उस के पास बिलकुल भी न होऊं. बीजी को टूटते देख तब टूट तो मैं भी रहा होता पर बीजी से कम तेजी से. कई बार हम केवल अपने को असहाय हो टूटता देखते भर हैं. अपने टूटने को रोकना न उस वक्त अपने हाथ में होता है न किसी और के हाथों में. कई बार टूटना हमारी नियति होती है और उसे चुपचाप भोगने के सिवा हमारे पास दूसरा कोई और विकल्प होता ही नहीं. फिर हम चाहे कितने ही विकल्प खोजने के लिए सैकड़ों सूरजों की रोशनी में कितने ही हाथपांवों को इधरउधर मारते रहें.

दिसंबर का महीना था. आखिर वही हुआ. बीजी ने जम कर चारपाई पकड़ ली. बीजी को जो एक बार बुखार आया तो उसे साथ ले कर

ही गया.

शायद सोमवार ही था उस दिन. सामने पेड़ के पत्ते पीले तो आसमान में सूरज पीला. एक ओर बीजी का चेहरा पीला तो दूसरी ओर बीजी को तापती धूप. बीजी ने चारपाई पर लेटेलेटे पूछा, ‘‘राजी कहां है?’’

‘‘बीजी ऊपर है, कोई गैस्ट आया है. उसे देख रही होगी. कुछ करना है क्या?’’

‘‘नहीं. तू जो पास है तो लगता है मेरे पास मेरी पूरी दुनिया है,’’ बीजी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते कहा.

बाबूजी साफ मुकर गए थे, ‘‘तेरी बीजी ने मेरा बहुत खयाल रखा है सारी उम्र, मेरे बदले खुद मरती रही. अब मैं भी चाहता हूं कि…’’

‘‘टाइम क्या हो गया?’’ बीजी ने पूछा तो मैं ने मोबाइल में टाइम देख कर कहा, ‘‘बीजी, 5 बजे रहे हैं.’’

‘‘बड़ी देर नहीं कर दी आज इन्होंने बजने में?’’ बीजी ने अपना दर्द अपने में छिपाते पूछा.

‘‘बीजी, रोज तो इसी वक्त 5 बजते हैं. हमारी जल्दी से तो समय नहीं चलेगा न?’’ मैं ने बीजी के अजीब से सवाल पर कहा तो वह बोली, ‘‘देख न, रोज 5 बजते हैं और एक दिन हम ही नहीं होते, पर 5 फिर भी बजते हैं. हमारे जाने के बाद भी सब वैसा ही तो रहता है संकु. बस कोई एक नहीं रहता. एक समय के बाद उसे क्या, किसी को भी नहीं रहना चाहिए,’’ कह बीजी ने पता नहीं क्यों दूसरी ओर मुंह फेर लिया था तब.

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और बीजी चली गई. 15 दिन तक उस के जाने के अनुष्ठान होते रहे. बाबूजी ने

मुझ से बीजी का मेरा काम भी न करने दिया. जब भी मैं कुछ कहता, वे मुझे बस चुप भर रहने का इशारा कर के रोक देते. तब पहली बार पता चला था कि बाबूजी बीजी को कितना चाहते थे? बीजी को कितनी गंभीरता से लेते थे? नहीं तो मैं ने तो आज तक यही सोचा था कि बाबूजी ने बीजी को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं. बीजी ही बाबूजी की चिंता करती रही उम्रभर और मरने के बाद भी करती रहेगी.

बीजी अपने रास्ते चली गई तो हम सब की जिंदगी बीचबीच में बीजी को याद करते अपने रास्ते चलने लगी. मैं महसूस करता कि बाबूजी को अब बीजी पहले से अधिक याद आ रही हो जैसे. जब कभी परेशान होता तो बाबूजी को कम बीजी को अपने कंधे पर हाथ रखे अधिक महसूस करता.

आगे पढ़ें- बीजी के जाने के बाद जब…

बीजी यहीं है: भाग 1- क्या सही था बापूजी का फैसला

बीजी के जाने से पहले हम 6 सदस्य थे इस घर के- मैं, मेरी पत्नी, बाबूजी, बीजी और 2 बच्चे किट्टी और चीनू. यह घर बाबूजी ने 35 साल तक क्लर्की करने के बाद बड़ी मुश्किल से बनवाया था. डेढ़ साल पहले मैं ने बीजी के पहले खुल कर, फिर चुप विरोध के बाद भी घर की छत पर 4 कमरों का सैट बना ही दिया. राजी के कहने पर मैं अपने बच्चों के साथ अब इसी से में रह रहा हूं.

मुझे तब बाबूजी, बीजी को नीचे वाले घर में अकेले छोड़ते हुए बुरा भी लगा था, पर राजी के सामने हथियार डालने पड़े थे. शायद इस के पीछे यह भी हो सकता है कि हर मर्द को चाहे अपने घर की तलाश हो या न हो, पर हर औरत को जरूरत होती है. हर मर्द कहीं अपने लिए स्पेस ढूंढ़े या न ढूंढ़े पर हर औरत को अपने लिए एक स्पेस चाहिए, जो केवल और केवल उसी की हो.

बाबूजी तब माहौल ताड़ गए थे जब मैं ने उन से छत पर सैट बनाने के बारे में बताया था, पर बीजी साफ मुकर गई थी यह कहते हुए, ‘‘क्या जरूरत है छत पर एक और घर बनाने की? इसी में जब सब ठीक चल रहा है तो और बेकार का खर्चा क्यों? जिस को तंगी हो रही हो वह बता दे. मैं बाहर के कमरे में सो जाया करूंगी. संकेत, क्या तुझे अच्छा नहीं लगता कि सारा परिवार एक छत के नीचे रहे? एक चूल्हे पर बना सब एकसाथ खाएं?’’ कह बीजी को जैसे आभास हो गया था कि छत के ऊपर सैट बन जाने का सीधा सा मतलब है कि…

बीजी के बाल धूप में सफेद न हुए थे, इस बात का पता मुझे बीच में लगता रहा था.

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‘‘सो तो ठीक है बीजी पर अब बच्चे भी बड़े हो रहे हैं और ऊपर से…’’  राजी एकदम बोल पड़ी तो मैं चौक उठा. घर में कहीं अपने लिए स्पेस तलाशने निकली राजी कुछ और न कह जाए, इसलिए उसे संभालने को मैं ने खुद को एकदम तैयार कर लिया, पर आगे कुछ कहने के बदले वह चुप हो गई. पर चुप होने के बाद भी वह कहना चाहती थी कि वह कह चुकी थी मेरे हिसाब से. उस के यह खुल कर कहने के बाद मैं कहीं से टूटा जरूर था. पर जब बाबूजी ने मेरी ओर शांत हो देखा था तो मुझे लगा था कि मैं इतनी जल्दी टूटने वाला नहीं. कोई साथ अभी भी है, बरगद की तरह. राजी को पता था कि अभी जो चुप रहा गया तो फिर बात कहना और आगे चला जाएगा और वह नहीं चाहती थी कि उस की स्वतंत्रता कुछ और आगे सरक जाए.

ऐसा नहीं कि बीजी ने कभी भी उसे कुछ करने से रोकाटोका हो बल्कि बीजी उसे

अपने से भी अधिक मानती थी. जब देखो, पड़ोस में राजी की तारीफ करते नहीं थकती. मेरी राजी. वाह क्या कहने मेरी राजी के. मौका मिलते ही बीजी हर कहीं बखान करने लग जाती, बहू हो तो राजी जैसी. घर में मुझे कभी कुछ करने ही नहीं देती.

सच कहूं जब से राजी घर में आई है, मैं तो रसोई में जाना ही भूल गई हूं. सब को राजी जैसी बहू मिले. राजी को ले कर बीजी इतनी संजीदा कि उतनी तो राजी अपने को ले कर भी कभी क्या ही रही होगी.

राजी के आगे मैं विवश था, पता नहीं क्यों? मेरी विवशता को बाबूजी मुझ से अधिक जान गए थे. इसलिए जब उन्होंने जैसेतैसे बीजी को समझया तो बीजी ने छत पर सैट बनाने का न तो विरोध किया और न ही हामी भरी. वह बस मन ही मन मसोसती न्यूट्रल हो गई.

और मैं ने लोन ले कर छत पर सैट बनाने का काम शुरू कर दिया. छत पर बन रहे सैट की दीवारें ज्योंत्यों ऊपर उठ रही थीं, बीजी को लगा ज्यों आपस में हम हर पल ईंट एकदूसरे से ओझल होते जा रहे हैं पर राजी खुश थी. अंदर से या बाहर से या फिर अंदरबाहर दोनों ही जगह से, वही जाने.

मगर इतना सब होने के बाद भी बीजी सारा दिन बाबूजी के साथ काम कर रहे मजदूरों की निगरानी करती. मजदूरों के काम करते रहने के बाद भी वजहबेवजह टोकती रहती कि पहले यह करो, वह करो.

4 महीने में सैट बन कर तैयार हो गया तो राजी ने संकेत में वह सब कह डाला जिस का मुझे महीनों पहले यकीन था, ‘‘संकेत, कैसा रहेगा जो हम यहां किचन में कुछकुछ किचन का सामान रख कुछ बनाना भी शुरू कर दें?’’

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‘‘पर नीचे भी तो किचन है. बीजी है, बाबूजी हैं. राजी एक ही किचन में सब एकसाथ मिलबैठ कर खाएं तो तुम्हें नहीं लगता कि खाने का स्वाद कुछ और ही हो जाता है?’’ मैं ने पता नहीं तब कहां से कैसे यह हिम्मत जुटा कर राजी से कहा था. पर मुझे पता था कि मेरी यह हिम्मत अधिक दिन टिकने वाली नहीं और हफ्ते बाद ही वह पस्त भी हो गई. ऊपर वाले सैट में व्हाइटवाश हो चुका था. फर्नीचर भी खरीदा जा चुका था.

राजी ये सब देख बहुत खुश थी तो बीजी उदास. बाबूजी न खुश थे, न उदास.

शायद उन्हें सब पता था कि अब आगे क्या होने वाला है. घर के हर मौसम को वे बड़ी बारीकी से पढ़ने में सिद्धहस्त जो थे.

नई किचन में सब के लिए खुशीखुशी खाना बना. फिर हम सब खाना खाने बैठे. तब बीजी ने मेरी थाली में दाल डालते हुए मेरे भीतर झंकते पूछा, ‘‘संकेत, ऊपर वाला सैट बन गया सो तो ठीक, पर साफ कह देती हूं, चूल्हा जलेगा तो बस एक ही जगह.’’

मैं चुप. मेरे हाथ का ग्रास हाथ में तो मुंह का मुंह में. बाबूजी सब जानते थे. इसलिए वे चुपचाप खाना खाते रहे. उस वक्त वे बीजी के इस फैसले के न तो पक्ष में बोले न विपक्ष में. वैसे, पता नहीं उस वक्त क्यों मुझे ही कुछ ऐसा लगा था जैसे वे कुछ कहने की हिम्मत कर रहे हों. पर ऐन मौके पर चुप हो गए थे. दोनों बच्चे नए लाए सोफोें पर पलटियां खा रहे थे. हमें खाना देती बीजी उन्हें कनखियों से घूरने लग गई थी. पर मैं ने उस वक्त खाना खाते हुए साफ महसूस किया था जैसे आज बीजी के हाथ उदास हैं. उस के हाथों से खाना बनाने की वह मास्टरी कहीं दूर चली गई है.

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Kangana Ranaut के शो में Nisha Rawal का खुलासा, पति Karan Mehra के बारे में कही ये बात

बौलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत (Kangana Ranaut) का रिएलिटी शो ‘लॉकअप’ (Lock Upp) इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां शो के कंटेस्टेट के चलते हाई वोल्टेज ड्रामा दर्शकों को देखने को मिल रहा है तो वहीं इस शो में कई नए खुलासे भी देखने को मिल रहे हैं. इसी बीच ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम एक्टर करण मेहरा (Karan Mehra) और उनकी एक्स वाइफ निशा रावल (Nisha Rawal) की जिंदगी के कुछ राज भी खुलते हुए देखने को मिले हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

करणवीर बोहरा के सामने खोले राज

 

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शो के लेटेस्ट एपिसोड में करणवीर बोहरा (Karanvir Bohra) और निशा रावल की आपस में बातचीत के दौरान निशा ने अपनी शादीशुदा जिंदगी की परेशानियों और बेटे काविश का जिक्र किया है. दरअसल, निशा रावल ने बताया कि जब घरेलू हिंसा की घटना हुई तो उनका बेटा काविश (Kavish) 4 साल का भी नहीं था. वहीं पिता के बारे में बेटे को बताने को लेकर निशा कहती हैं कि ‘वो बहुत कम ही उनके बारे में पूछता है, क्योंकि उनके पिता हमेशा दूसरे शहर में एक शो की शूटिंग के लिए बाहर रहते थे. वे रोज कॉन्टैक्ट में नहीं रहते थे. उनका बॉन्ड ऐसा नहीं था कि वो हर दिन कॉल पर एक-दूसरे से बात करें.’


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पिता-बेटे के रिश्ते को लेकर ये कहती हैं निशा  

 

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पिता और बेटे के रिश्ते के सवाल पर निशा कहती हैं, ‘जो भी मोमेंट्स थे, वो ज्यादातर मेरे द्वारा बनाए गए थे. मैं उससे पास बैठने के लिए कहती थी. उससे बात करती थी. उससे फोन साइड में रखने के लिए बोलती थी कि तुम चले जाओगे. वहीं अब जब काविश मुझसे पूछता है कि वो कहां हैं और वो क्यों नहीं बुला रहे हैं, मैं इंतजार कर रहा हूं तो मैं उससे कहती हूं कि आई एम सॉरी, लेकिन तुम्हारी मां हमेशा तुम्हारे साथ है. मैं ही तुम्हारी मां और पापा हूं.’ हालांकि निशा कहती हैं कि उनका बेटा काविश अभी सच नहीं जानता और वह एक डौक्टर के जरिए सलाह के साथ उसे धीरे-धीरे बताएंगी ताकि उसपर कोई बुरा असर ना पड़े.

बता दें, निशा रावल ने साल 2021 में करण मेहरा के खिलाफ घरेलू हिंसा और एकस्ट्रा मेरिटल अफेयर का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की थी, जिसके चलते मीडिया में कपल काफी सुर्खियों में रहा था. हालांकि करण मेहरा ने निशा रावल के आरोपों को गलत बताया था.

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Anushka Sharma की तरह Kajal Aggarwal ने किया प्रैग्नेंसी वर्कआउट, वीडियो वायरल

साउथ इंडियन और बौलीवुड एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) इन दिनों अपनी प्रैग्नेंसी के चलते सुर्खियों में हैं. जहां बीते दिनों उनकी गोदभराई की फोटोज वायरल हुई थीं तो वहीं अब उनकी हैवी वर्कआउट (Kajal Aggarwal Pregnancy Workout)करते हुए वीडियो सोशलमीडिया पर छा गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर….

एक्सरसाइज करती दिखीं काजल

हाल ही में एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) ने अपनी प्रेग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में हैवी वर्कआउट वाली मुश्किल एक्सरसाइज की एक वीडियो शेयर की हैं, जिसमें उन्होंने प्रैग्नेंसी एक्सरसाइज को करने की सलाह के साथ-साथ सावधानी रखने के लिए कहा है. कैप्शन में एक्ट्रेस ने इस एक्सरसाइज की पूरी जानकारी शेयर की है. वहीं काजल की ये एक्सरसाइज देखकर फैंस उनकी तारीफ करते नजर आ रहे हैं और उन्हें अपना ख्याल रखने के लिए कहते नजर आ रहे हैं.

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वजन के चलते हो चुकी हैं ट्रोल

बीते दिनों एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) अपनी प्रैग्नेंसी में बढ़ते वजन के कारण ट्रोल हो चुकी हैं. हालांकि एक्ट्रेस ने सोशलमीडिया पर अपने एक पोस्ट के जरिए प्रैग्नेंसी के इस सफर की तारीफ की थी. वहीं ट्रोलर्स को करारा जवाब भी दिया था. इसके साथ ही वह फैंस के साथ अपनी गोदभराई की फोटोज भी शेयर करते हुए नजर आईं थीं, जिसमें एक्ट्रेस के चेहरे का ग्लो साथ नजर आ रहा था. फैंस ने काजल के गोदभराई फोटोज पर जमकर प्यार लुटाया था.

 

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बता दें, एक्ट्रेस काजल अग्रवाल (Kajal Aggarwal) के अलावा अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) भी अपना प्रैग्नेंसी वर्कआउट पति विराट कोहली (Virat Kohli) के साथ शेयर कर चुकी हैं. हालांकि उन्हें सोशलमीडिया पर इसी कारण ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था. लेकिन कपल ने ट्रोलर्स को करारा जवाब दिया था.

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नीड़ का निर्माण फिर से: भाग 1- क्या मानसी को मिला छुटकारा

लेखक- श्रीप्रकाश

मानसी का मन बेहद उदास था. एक तो छुट्टी दूसरे चांदनी का ननिहाल चले जाना और अब चांदनी के बिना अकेलापन उसे काट खाने को दौड़ रहा था. मानसी का मन कई तरह की दुश्ंिचताओं से भर जाता. सयानी होती बेटी वह भी बिन बाप की. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो. चांदनी की गैरमौजूदगी उस की बेचैनी बढ़ा देती. कल ही तो गई थी चांदनी. तब से अब तक मानसी ने 10 बार फोन कर के उस का हाल लिया होगा. चांदनी क्या कर रही है? अकेले कहीं मत निकलना. समय पर खापी लेना. रात देर तक टीवी मत देखना. फोन पर नसीहत सुनतेसुनते मानसी की मां आजिज आ जाती.

‘‘सुनो मानसी, तुम्हें इतना ही डर है तो ले जाओ अपनी बेटी को. हम क्या गैर हैं?’’ मानसी को अपराधबोध होता. मां के ही घर तो गई है. बिलावजह तिल का ताड़ बना रही है. तभी उस की नजर सुबह के अखबार पर पड़ी. भारत में तलाक की बढ़ती संख्या चिंताजनक…एक जज की इस टिप्पणी ने उस की उदासी और बढ़ा दी. सचमुच घर एक स्त्री से बनता है. एक स्त्री बड़े जतन से एकएक तिनका जोड़ कर नीड़ का निर्माण करती है. ऐसे में नियति उसे जब तहसनहस करती है तो कितनी अधिक पीड़ा पहुंचती है, इस का सहज अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल होता है. आज वह भी तो उसी स्थिति से गुजर रही है. तलाक अपनेआप में भूचाल से कम नहीं होता. वह एक पूरी व्यवस्था को नष्ट कर देता है पर क्या नई व्यवस्था बना पाना इतना आसान होता है. नहीं…जज की टिप्पणी निश्चय ही प्रासंगिक थी.

पर मानसी भी क्या करती. उस के पास कोई दूसरा रास्ता न था. पति घर का स्तंभ होता है और जब वह अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए तो अकेली औरत के लिए घर जोड़े रखना सहज नहीं होता. मानसी उस दुखद अतीत से जुड़ गई जिसे वह 10 साल पहले पीछे छोड़ आई थी. उस का अतीत उस के सामने साकार होने लगा और वह विचारसागर में डूब गई. उस की सहकर्मी अचला ने उस दिन पहली बार मानसी की आंखों में गम का सागर लहराते देखा. हमेशा खिला रहने वाला मानसी का चेहरा मुरझाया हुआ था. कभी सास तो कभी पति को ले कर हजार झंझावातों के बीच अचला ने उसे कभी हारते हुए नहीं देखा था. पर आज वह कुछ अलग लगी. ‘मानसी, सब ठीक तो है न?’ लंच के वक्त उस की सहेली अचला ने उसे कुरेदा. मानसी की सूनी आंखें शून्य में टिकी रहीं. फिर आंसुओं से लबरेज हो गईं.

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‘मनोहर की नशे की लत बढ़ती ही जा रही है. कल रात उस ने मेरी कलाई मोड़ी…’ इतना बतातेबताते मानसी का कंठ रुंध गया. ‘गाल पर यह नीला निशान कैसा…’ अचला को कुतूहल हुआ. ‘उसी की देन है. जैकेट उतार कर मेरे चेहरे पर दे मारी. जिप से लग गई.’ इतना जालिम है मानसी का पति मनोहर, यह अचला ने सपने में भी नहीं सोचा था.  मानसी ने मनोहर से प्रेम विवाह किया था. दोनों का घर आसपास था इसलिए अकसर उन दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. एक रोज मनोहर मानसी के घर आया तो मानसी की मां पूछ बैठीं, ‘कौन सी क्लास में पढ़ते हो?’ ‘बी.ए. फाइनल,’ मनोहर ने जवाब दिया था. ‘आगे क्या इरादा है?’ ‘ठेकेदारी करूंगा.’ मनोहर के इस जवाब पर मानसी हंस दी थी. ‘हंस क्यों रही हो? मुझे ढेरों पैसे कमाने हैं,’ मनोहर सहजता से बोला. उधर मनोहर ने सचमुच ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया था. इधर मानसी भी एक स्कूल में पढ़ाने लगी.

24 साल की मानसी के लिए अनेक रिश्ते देखने के बाद भी जब कोई लायक लड़का न मिला तो उस के पिता कुछ निराश हो गए. मानसी की जिंदगी में उसी दौरान एक लड़का राज आया. राज भी उसी के साथ स्कूल में पढ़ाता था. दोनों में अंतरंगता बढ़ी लेकिन एक रोज राज बिना बताए चेन्नई नौकरी करने चला गया. उस का यों अचानक चले जाना मानसी के लिए गहरा आघात था. उस ने स्कूल छोड़ दिया. मां ने वजह पूछी तो टाल गई. अब वह सोतेजागते राज के खयालों में डूबी रहती.

करवटें बदलते अनायास आंखें छलछला आतीं. ऐसे ही उदासी भरे माहौल में एक दिन मनोहर का उस के घर आना हुआ. डूबते हुए को तिनके का सहारा. मानसी उस से दिल लगा बैठी. यद्यपि दोनों के व्यक्तित्व में जमीनआसमान का अंतर था पर किसी ने खूब कहा है कि खूबसूरत स्त्री के पास दिल होता है दिमाग नहीं, तभी तो प्यार में धोखा खाती है. मनोहर से मानसी को तत्काल राहत तो मिली पर दीर्घकालीन नहीं.

मांबाप ने प्रतिरोध किया. हड़बड़ी में शादी का फैसला लेना उन्हें तनिक भी अच्छा न लगा. पर इकलौती बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा. मानसी की सास भी इस विवाह से नाखुश थीं इसलिए थोड़े ही दिनों बाद उन्होंने रंग दिखाने शुरू कर दिए. मानसी का जीना मुश्किल हो गया. वह अपना गुस्सा मनोहर पर उतारती. एक रोज तंग आ कर मानसी ने अलग रहने की ठानी. मनोहर पहले तो तैयार न हुआ पर मानसी के लिए अलग घर ले कर रहने लगा.

यहीं मानसी ने एक बच्ची चांदनी को जन्म दिया. बच्ची का साल पूरा होतेहोते मनोहर को अपने काम में घाटा शुरू हो गया. हालात यहां तक पहुंच गए कि मकान का किराया तक देने के पैसे न थे. हार कर उन्हें अपने मांबाप के पास आना पड़ा. मानसी ने दोबारा नौकरी शुरू कर दी. मनोहर ने लगातार घाटे के चलते काम को बिलकुल बंद कर दिया. अब वह ज्यादातर घर पर ही रहता. ठेकेदारी के दौरान पीने की लत के चलते मनोहर ने मानसी के सारे गहने बेच डाले.

यहां तक कि अपने हाथ की अंगूठी भी शराब के हवाले कर दी. एक दिन मानसी की नजर उस की उंगलियों पर गई तो वह आपे से बाहर हो गई, ‘तुम ने शादी की सौगात भी बेच डाली. मम्मी ने कितने अरमान से तुम्हें दी थीं.’ मनोहर ने बहाने बनाने की कोशिश की पर मानसी के आगे उस की एक न चली. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होने लगा. तभी मानसी की सास की आवाज आई, ‘शोर क्यों हो रहा है?’ ‘आप के घर में चोर घुस आया है.’

वह जीने से चढ़ कर ऊपर आईं. ‘कहां है चोर?’ उन्होंने चारों तरफ नजरें दौड़ाईं. मानसी ने मनोहर की ओर इशारा किया, ‘पूछिए इन से… अंगूठी कहां गई.’ सास समझ गईं. वह कुछ नहीं बोलीं. उलटे मानसी को ही भलाबुरा कहने लगीं कि अपने से छोटे घर की लड़की लाने का यही नतीजा होता है. मानसी को यह बात लग गई. वह रोंआसी हो गई. आफिस जाने को देर हो रही थी इसलिए जल्दीजल्दी तैयार हो कर इस माहौल से वह निकल जाना चाहती थी.

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शाम को मानसी घर आई तो जी भारी था. आते ही बिस्तर पर निढाल पड़ गई. अपने भविष्य और अतीत के बारे में सोचने लगी. क्या सोचा था क्या हो गया. ससुर कभीकभार मानसी का पक्ष ले लेते थे पर सास तो जैसे उस के पीछे पड़ गई थीं. एक दिन मनोहर कुछ ज्यादा ही पी कर आया था. गुस्से में पिता ने उसे थप्पड़ मार दिया. ‘कुछ भी कर लीजिए आप, मैं  पीना  नहीं  छोड़ूंगा. मुझे अपनी जिंदगी की कोई परवा नहीं. आप से पहले मैं मरूंगा. फिर नाचना मानसी को ले कर इस घर में अकेले.’ शराब अधिक पीने से मनोहर के गुरदे में सूजन आ गई थी. उस का इलाज उस के पिता अपनी पेंशन से करा रहे थे. डाक्टर ने तो यहां तक कह दिया कि अगर इस ने पीना नहीं छोड़ा तो कुछ भी हो सकता है. फिर भी मनोहर की आदतों में कोई बदलाव नहीं आया था. मानसी ने लाख समझाया, बेटी की कसम दी, प्यार, मनुहार किसी का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा था.

बस, दोचार दिन ठीक रहता फिर जस का तस. मानसी लगभग टूट चुकी थी. ऐसे ही उदास क्षणों में मोबाइल की घंटी बजी. ‘हां, कौन?’ मानसी पूछ बैठी. ‘मैं राज बोल रहा हूं. होटल अशोक के कमरा नं. 201 में ठहरा हूं. क्या तुम किसी समय मुझ से मिलने आ सकती हो,’ उस के स्वर में निराशा का भाव था. राज आया है यह जान कर वह भावविह्वल हो गई. उसे लगा इस बेगाने माहौल में कोई एक अपना हमदर्द तो है. वह उस से मिलने के लिए तड़प उठी.

आफिस न जा कर मानसी होटल पहुंची. दरवाजे पर दस्तक दी तो आवाज आई, ‘अंदर आ जाओ.’ राज की आवाज पल भर को उसे भावविभोर कर गई. वह 5 साल पहले की दुनिया में चली गई. वह भूल गई कि वह एक शादीशुदा है.  मानसी की अप्रत्याशित मौजूदगी ने राज को खुशियों से भर दिया. ‘मानसी, तुम?’ ‘हां, मैं,’ मानसी निर्विकार भाव से बोली, ‘कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो वक्त के साथ भी नहीं भरते.’ ‘मानसी, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं.’ ‘पर क्या तुम मुझे वह वक्त लौटा सकते हो जिस में हम दोनों ने सुनहरे कल का सपना देखा था?’ राज खामोश था.

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सस्ती बिजली गरीबों का हक है

विधानसभा चुनावों में बिजली के दाम बड़ी चर्चा में रहे हैं. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 200 यूनिट तक मुक्त बिजली देने का प्रयोग इतना सफल हुआ है कि पंजाब को तो छोडि़ए जहां अरविंद केजरीवाल की पार्टी सत्ता की मजबूत दावेदार है, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी भारतीय जनता पार्टी 10 मार्च के बाद फिर सत्ता में आने पर बिजली सस्ती करने को मजबूर हो गई है.

बिजली को सस्ता या मुफ्त करना घरों के लिए एक वरदान है क्योंकि बिजली अब धूप और हक की तरह की हवा है. अमीर तो इसे सह लेते हैं पर गरीब घरों के लिए भी बत्ती, पंखा, टीवी, वाटर पंप और फ्रिज आवश्यकता है. क्योंकि आज बाहर का वातावरण इतना खराब, जहरीला और शोर से भरा है कि सुकून तो बंद कमरों में ही मिलता है. समाज की प्रगति आज घरों को जेलोंं में बदल चुकी है. मकान 5–10 मंजिला हो गए हैं. पानी का प्रेशर इतना नहीं होता कि ऊंचे तक चढ़ सके. खुले में सोने के लायक छत है ही नहीं. इस पर भी बिजली मंहगी हो और हर समय बिल न दे पाने की तलवार सिर पर लटकती रहे तो यह बेहद तनाव की बात है.

जहां पैसे की किल्लत है, वहां एक बत्ती, एक पंखा और एक फ्रिज लायक बिजली मिलती रहे तो ङ्क्षजदगी चल सकती है. इस बिजली का बिल कितने का आता है, अगर उसे जमा करना हो तो उतना ही खर्च बिजली कंपनी का हो जाएगा.

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बड़े घरों में एसी, 20-25 लाइटें जले, यह उन की आय पर निर्भर है. वे इस सस्ती बिजली की कीमत नहीं दे रहे क्योंकि 50 से 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वाले यदि बिजली ले तो भी उन के घर के पास तार गुजरेगा ही, खंबे खड़े होंगे ही. ज्यादा खर्च तो बिजली के वितरण का है, बनाने का नहीं.

अमीर यह न सोचें कि सस्ती बिजली उन की जेबे काट रही हैं, उल्टे गरीबों को मिली बिजली अमीरों को निरंतर बिना रूकावट बिजली मिलती रहेगी की गारंटी है. पहले जब बिजली मंहगी थी, अक्सर घंटों गायब रहती थी. शोर मचाने वालों की कोई सुनता नहीं था. अब ये मुक्त बिजली पाने वाले तुरंत धरना प्रदर्शन देना शुरू कर देंगे, जो काम अमीर नहीं कर सकते.

विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और कुछ तीर मार सके या नहीं, उस ने बिजली को चुनावी इश्यू बना कर यह गारंटी सरकारों से दिलवा दी कि बिजली मिलेगी और पैट्रोल व डीजल की तरह उस के दाम हर 24 घंटे में नहीं बढ़ेंगे.

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मैडिकल टैस्ट क्यों जरूरी

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग अपने शरीर का अच्छे से ध्यान नहीं रख पाते, तो कई बीमारियां उन के शरीर में घर कर जाती हैं, जिन्हें समय रहते अगर पकड़ लिया जाए, तो आने वाले जीवन में तकलीफों से बचा जा सकता है. लोगों का यह सोचना है कि रैग्युलर मैडिकल चैकअप सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों के लिए होता है, लेकिन सच तो यह है कि 25 की उम्र होते ही इंसान को एक बार अपने पूरे शरीर का चैकअप करवा लेना चाहिए.

मैडिकल टैस्ट करवाने से हमें क्या फायदे होते हैं आइए उसे भी जानते हैं:

ब्लड टैस्ट: किसी भी बीमारी के इलाज से बेहतर होती है उस की रोकथाम. यदि समय से उस की रोकथाम कर ली जाए, तो आने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है. इस के लिए सब से जरूरी होता है ब्लड टैस्ट. एक ब्लड टैस्ट हमें होने वाली बहुत सी बीमारियों के बारे में बता सकता है. कई लोग साल में 3 बार अपना रूटीन चैकअप करवाना पसंद करते हैं ताकि उन को आने वाली किसी भी बीमारी के बारे में पता चल जाए. यही नहीं, यदि आप मां बनने वाली हैं तो उस समय भी आप के लिए ब्लड टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है ताकि आप की और आप के आने वाले बच्चे की सेहत का अच्छे से खयाल रखा जा सके.

हीमोग्राम: हीमोग्राम या कंप्लीट ब्लड काउंट कई बीमारियों की जांच में मदद करता है जैसे ऐनीमिया, संक्रमण आदि. यह टैस्ट विकारों की जांच करने के लिए एक व्यापक स्क्रीनिंग परीक्षा के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह वास्तव में रक्त के विभिन्न भागों को जांचने में मदद करता है.

किडनी फंक्शन टैस्ट: अगर हमारे शरीर में हमारी दोनों किडनियां सही ढंग से काम कर रही हों तो वे हमारे खून में मिल रही गंदगी को साफ कर देती हैं. लेकिन अगर वे खराब हो जाएं, तो हमारे शरीर में कई सारी दिक्कतें आ जाती हैं. किडनी फंक्शन टैस्ट से हमें पता चलता है कि वे सही ढंग से काम कर रही हैं या नहीं.

लिवर फंक्शन टैस्ट: लिवर फंक्शन टैस्ट एक टाइप का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा लिवर में हो रही सभी दिक्कतों का पता लगाया जाता है.

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ब्लड काउंट: यह एक ऐसा टैस्ट होता  है जिस के द्वारा हमारे शरीर के व्हाइट ब्लड सैल्स और रैड ब्लड सैल्स को काउंट किया जाता है.

ब्लड शुगर टैस्ट: यह टैस्ट मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत जरूरी है. इस के लक्षण बहुत ही आम हैं जैसे कमजोरी आना, पैरों में दर्द, वजन कम होना, हड्डियां कमजोर होना. अगर मधुमेह के किसी रोगी को चोट लगे तो वह जल्दी ठीक नहीं हो पाती. अगर समय से टैस्ट करवा लिया जाए तो व्यक्ति अपने खानेपीने का ध्यान रख सकता है.

चैस्ट ऐक्सरे: चैस्ट का ऐक्सरे करवाने से हमें छाती से जुड़ी प्रौब्लम्स का पता चलता है जैसे फेफड़ों की तकलीफ, दिल से जुड़ी बीमारियां आदि.

टोटल लिपिड प्रोफाइल: टोटल लिपिड प्रोफाइल भी एक प्रकार का ब्लड टैस्ट होता है, जिस के द्वारा कई बीमारियों का पता लगाया जाता है जैसे कोलैस्ट्रौल, जैनेटिक डिसऔर्डर, कार्डियोवैस्क्यूलर डिजीज, पैंक्रिआइटिस आदि.

यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन: यूरिन और स्टूल रूटीन ऐग्जामिनेशन से मधुमेह जैसे रोगों का भी पता चलता है.

ई.सी.जी.: ई.सी.जी. के द्वारा हमें दिल की कई बीमारियों का पता चलता है.

सभी टैस्ट करवाने से पहले एक बार डाक्टर की सलाह जरूर लें और अगर डाक्टर कहे तो पेट का अल्ट्रासाउंड और थायराइड प्रोफाइल टैस्ट भी जरूर करवाएं. यदि किसी का ब्लडप्रैशर कम रहता हो, भूख न लगती हो और पेट में दर्द रहता हो तो उसे तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, चाहे वह किसी भी उम्र का हो. एक बार ये सभी टैस्ट करवाने के बाद 5 साल में एक बार इन सभी टैस्ट को दोबारा करवाना चाहिए और बीमारी या बीमारी से जुड़ा कोई भी लक्षण हो तो तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. खुद ही डाक्टर बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

इस के बाद 40 की उम्र में प्रवेश करते ही ये सभी टैस्ट हर 2 वर्ष में करवाने चाहिए, क्योंकि इस उम्र में शरीर थोड़ा कमजोर होने लगता है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस के साथ ही जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है हमारी हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, इसलिए औरतों को बोन डैंसिटी चैकअप करवाना शुरू कर देना चाहिए. इस उम्र में अपने सभी रैग्युलर टैस्ट के साथसाथ टे्रडमिल टैस्ट (टी.एम.टी) और ईको कार्डियोग्राफी (ईको) करवाना भी आवश्यक है, क्योंकि इस उम्र में हमारी हड्डियों के साथसाथ हमारा दिल भी कमजोर होने लगता है.

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औरतों को 40 से 45 की उम्र में अपना हारमोनल टैस्ट भी करवा लेना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में बहुतों को मेनोपौज आ जाता है, जिस के साथ शरीर के हारमोंस में भी कई तरह के बदलाव आते हैं. ऐसे ही जब 50 की उम्र में आ जाए तो ये सब टैस्ट हर वर्ष करवाने चाहिए. इन सभी टैस्ट के साथसाथ पुरुषों के लिए इस उम्र में प्रोस्टेट टैस्ट करवाना भी जरूरी है. अपना रूटीन चैकअप करवाने से हम आने वाली बीमारियों के प्रति सतर्क तो रहते ही हैं, भविष्य में होने वाली कई तकलीफों से भी बच जाते हैं.                 

  -डा. अनुराग सक्सेना प्राइमस सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

वैक्सिंग कराने के बाद खुजली और दानों की प्रौब्लम हो जाती है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 21 साल है. मेरी बाजुओं पर बहुत सारे बाल हैं जिन्हें रिमूव करने के लिए मैं वैक्सिंग कराती हूं. पर हर बार वैक्सिंग कराने पर मुझे इचिंग होने लगती है और कभीकभी दाने भी हो जाते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

वैक्सिंग से इचिंग होती है तो इस का कारण वैक्सिंग से ऐलर्जी होना होता है. अगर आप को वैक्सिंग से ऐलर्जी है तो वैक्सिंग से पहले आप कोई ऐंटीऐलर्जिक गोली खा सकती हैं ताकि ऐलर्जी न हो. अगर वैक्सिंग के बाद दाने निकल आते हैं तो चांसेज हैं कि वैक्सिंग करने वाला सही नहीं है या वह सफाई से काम नहीं कर रहा. वैक्सिंग के लिए हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

वैक्सिंग करने के लिए डिस्पोजेबल पट्टी का इस्तेमाल करवाएं. वैक्सिंग करने से पहले फ्री वैक्स जैल और करने के बाद पोस्ट वैक्स जैल दोनों का इस्तेमाल करना बहुत जरूरी है. इन बातों का ध्यान रखा जाए तो दाने होने के चांसेज बहुत कम हो जाते हैं. आप चाहें तो इन बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकती हैं. इस के लिए पल्स लाइट ट्रीटमैंट या लेजर ट्रीटमैंट ले सकती हैं. यह बहुत सेफ और पेनलैस है और इस से हमेशा के लिए बालों से छुटकारा पाया जा सकता है.

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टीनऐजर्स की स्किन सौफ्ट होती है, छोटी उम्र में वैक्सिंग बिलकुल नहीं, हाथपैर खराब हो जाएंगे, सैंसिटिव स्किन पर रैशेज पड़ने का डर रहेगा, वैक्स करवाने से स्किन लटक जाएगी आदि बातें की जाती हैं.

सचाई यह है कि प्यूबर्टी के कारण शारीरिक व मानसिक रूप से काफी परिवर्तन होते हैं. खासकर, बालों की ग्रोथ तेजी से बढ़ती है. इस का कारण हार्मोनल चैंजेस होते हैं. ऐसे में टीनऐजर्स अपने शरीर में हुए इन बदलावों को स्वीकार नहीं कर पाते हैं और खुद की तुलना दूसरी लड़कियों से कर के कौंपलैक्स के शिकार होने लगते हैं. वैक्सिंग व उन की स्किन की सही जानकारी ले कर उन की इस समस्या का समाधान करें.

कैसी है स्किन

आप की स्किन की सौफ्टनैस व लचीलापन सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि आप कैसा प्रोडक्ट इस्तेमाल करती हैं, बल्कि इस के लिए एक्स्टर्नल व इंटरनल दोनों कारण जिम्मेदार होते हैं.

जैसे, स्किन की इलास्टिसिटी कितना वाटर रिटेन करने में सक्षम है इस बात पर डिपैंड करती है तो वहीं सीबम के उत्पादन पर स्किन की सौफ्टनैस निर्भर करती है. स्किन की सैंसिटिविटी के लिए हमारा खानपान व हार्मोंस जिम्मेदार होते हैं, इसलिए स्किन टाइप को ध्यान में रख कर ही हमेशा वैक्सिंग करवानी चाहिए ताकि किसी तरह के रिऐक्शन का डर न हो. लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा जब आप को इस की जानकारी होगी.

स्किन टाइप के हिसाब से वैक्सिंग

नौर्मल स्किन : नौर्मल स्किन वालों में वाटर व लिपिड कंटैंट काफी अच्छा होता है, जिस के कारण उन की स्किन ड्राई नहीं होती. यह अतिरिक्त सीबम का उत्पादन भी करता है. इस से स्किन पर किसी भी तरह का रिऐक्शन नहीं होता. ऐसी स्किन वाले टीनऐजर्स के लिए सौफ्ट व हार्ड वैक्स बैस्ट विकल्प है, जो उन की स्किन को नरिश करने का काम करता है.

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