और वक्त बदल गया: भाग 3- क्या हुआ था नीरज के साथ

लेखिका- शकीला एस हुसैन

धीरे धीरे रेनू ने अंकल के कान भरने शुरू कर दिए. अब नीरज उन की नजरों में भी खटकने लगा. बेवजह के ताने व प्रताड़ना शुरू हो गई. उस दिन तो हद हो गई, उसे एक किताब की जरूरत थी, उस ने अंकल से पैसे मांगे. इस बात को ले कर इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया कि अतीत के सारे कालेपन्ने खोल कर उसे सुनाए गए. उस पर किए गए एहसान जताए गए, खर्च के हिसाब बताए गए. नीरज खामोश खड़ा सब सुनता रहा.  उस के पास कहने को क्या था? उस के मांबाप ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया था कि शरम से उस का सिर झुक जाता था. अच्छे मार्क्स लाने के बाद उस की न कोई कद्र थी, न कोई तारीफ. 10वीं में उस के 97 फीसदी नंबर आए थे. स्कौलरशिप मिल रही थी. पढ़ाई के सारे खर्चे उसी में से पूरे हो जाते. कभीकभार किताबें वगैरा के लिए कुछ पैसे मांगने पड़ते थे. उस पर भी हंगामा खड़ा हो जाता.

उस दिन वह अपने कमरे में आ कर बेतहाशा रोया. उस के मांबाप ने अपनी मुहब्बत व अपने ऐश, अपनी सहूलियतों, अपने स्वार्थ के लिए उस की जिंदगी बरबाद कर दी थी. अगर उन दोनों ने विधिवत शादी की होती, अपनी जिम्मेदारी समझी होती तो ननिहाल या ददिहाल में से कोई भी उसे रख लेता. उस की जिंदगी यों शर्मसार न हुई होती. उसी दिन रात को उस ने तय किया कि 12वीं पास होते ही वह यह घर छोड़ देगा. अपने बलबूते पर अपनी पढ़ाईर् पूरी करेगा. 12वीं उस ने मैरिट में उत्तीर्ण की. पर घर में कोई खुशी मनाने वाला न था. रूखीफीकी मुबारकबाद मिली. बस, बूआ ने बहुत प्यार किया. अपने पास से मिठाई मंगा कर उसे खिलाई. हां, उस के दोस्तों ने खूब सैलिब्रेट किया. 2-4 दिनों बाद उस ने घर छोड़ दिया. पढ़ाई के खर्चे की उसे कोई फिक्र न थी. स्कौलरशिप मिल रही थी. एक अच्छे स्टूडैंट के लिए कुछ मुश्किल नहीं होती.

उस की परफौर्मेंस बहुत अच्छी थी. उस का ऐडमिशन एक अच्छे कालेज में हो गया. उस ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर कमरा किराए पर ले लिया और ट्यूशन कर के निजी खर्च निकालने लगा. उस का पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था कि उसे 10वीं के बच्चों की ट्यूशन मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. छुट्टियों में काम कर के कुछ और पैसे कमा लेता. बीई में उस ने पोजीशन ली. बीई के बाद उस के दोस्त ने जौब कर ली और दूसरे शहर में चला गया. मकानमालिक को कमरे की जरूरत थी, उसे वह घर छोड़ना पड़ा. फिर थोड़ी कोशिश के बाद उसे मिसेज रेमन के यहां कमरा मिल गया. यह खूब पुरसुकून व अच्छी जगह थी. उस ने दुनिया के सारे शौक, सारे मजे छोड़ दिए थे. उस की जिंदगी का बस एक मकसद था, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई. यहां भी वह ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता था. अब स्टोर में भी काम मिल गया, ये सब पुरानी बातें सोचतेसोचते वह नींद की आगोश में चला गया.

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नीरज का यह फाइनल सैमेस्टर था. कैंपस सिलैक्शन में उसे एक अच्छी कंपनी ने चुन लिया. जीभर कर उस ने खुशियां मनाई. फाइनल होने के बाद उस ने वही कंपनी जौइन कर ली. शानदार पैकेज, बहुत सी सहूलियतें जैसे उस की राह देख रही थीं. मिसेज रेमन और मिस्टर जैकब को भी उस ने बाहर डिनर कराया. उन दोनों ने भी उसे तोहफे व दुआएं दे कर उस का हौसला बढ़ाया. मिसेज रेमन ने एक मां की तरह प्यार किया. बूआ को साड़ी व पैसे दिए. वक्त और हालात बदलते देर नहीं लगती. आज वह 6 साल का मजबूर व बेबस बच्चा न था, 24 साल का खूबसूरत, मजबूत और समृद्ध जवान था. एक शानदार घर में रह रहा था. दुनिया की सारी सुखसुविधाएं उस के पास थीं. पर फिर भी उस की आंखों में उदासी और जिंदगी में तनहाई थी. वह हर वीकैंड पर मिसेज रेमन से मिलने जाता. वही एकमात्र उस की दोस्त, साथी या रिश्तेदार थीं. अच्छा वक्त तो वैसे भी पंख लगा कर उड़ता है.

उस दिन शाम को वह लौन में बैठा चाय पी रहा था कि गेट पर एक टैक्सी आ कर रुकी. उस में से एक सांवली सी अधेड़ औरत उतरी और गेट खोल कर अंदर चली आई. नीरज उस महिला को पहचान न सका, फिर भी शिष्टाचार के नाते कहा, ‘‘बैठिए, आप कौन हैं?’’ उस औरत की आंखें गीली थीं. चेहरे पर बेपनाह मजबूरी और उदासी थी. उस ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘नीरज, तुम ने मुझे पहचाना नहीं. मैं सोनाली हूं, तुम्हारी मम्मी.’’ नीरज भौचक्का रह गया. कहां वह जवान और खूबसूरत औरत, कहां यह सांवली सी अधेड़ औरत. दोनों में बड़ा फर्क था. ‘मम्मी’ शब्द सुन कर नीरज के मन में कोई हलचल न हुई. उस की सारी कोमल भावनाएं बर्फ की तरह सर्द हो कर जम चुकी थीं. अब दिल पर इन बातों का कोई असर न होता था. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ? आप को मेरा पता कहां से मिला?’’

‘‘बेटा, मैं दूर जरूर थी पर तुम से बेखबर न थी. तुम्हारा रिजल्ट, तुम्हारी कामयाबी, नौकरी सब की खबर रखती थी. इंटरनैट से दुनिया बहुत छोटी हो गई है. जीजाजी से मिसेज रेमन का पता चला. उन से तुम्हारे बारे में मालूम हो गया. इस तरह तुम तक पहुंच गई. मैं जानती हूं, मेरा तुम से माफी मांगना व्यर्थ है क्योंकि जो कुछ मैं ने किया है उस की माफी नहीं हो सकती. तुम्हारा बचपन, तुम्हारा लड़कपन, मेरी नादानी और मेरे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया. मैं ने जज्बात में आ कर गलत फैसला किया. न मैं खुश रह सकी न तुम्हें सुख दे सकी. मैं ने वह खिड़की खुद ही बंद कर दी जहां से ताजी हवा का झोंका, मुहब्बत की ठंडी फुहार मेरे तपते वजूद की तपिश कम कर सकती थी. मैं ने थोड़े से ऐश की खातिर उम्रभर के दुखों से सौदा कर लिया. अब सिर्फ पछतावा ही मेरी जिंदगी है.’’

‘‘ठीक है, सोनाली मैम, जो आप ने किया, सोचसमझ कर किया था. आज से 30-32 साल पहले ‘लिवइन रिलेशनशिप’ इतनी आम बात न थी. बहुत कम लोग यह कदम उठाते थे. आप उस समय इतनी बोल्ड थीं, आप ने यह कदम उठाया. फिर उस को निभाना था. एक बच्चे को जन्म दे कर आप ने उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया. न मेरा कोई ननिहाल रहा, न ददिहाल. मैं ने कैसे खुद को संभाला, यह मैं जानता हूं. ‘‘जिस उम्र में बच्चे मां के सीने पर सिर रख कर सोते हैं उस उम्र में मैं ने तकिए से लिपट कर रोरो कर रातें काटी हैं. आप ने और पापा ने सिर्फ अपने ऐश देखे. एक पल को भी, उस बच्चे के बारे में न सोचा जिसे दुनिया में लाने के आप दोनों जिम्मेदार थे. अब मेरी मासूमियत, मेरा बचपन, मेरी कोमल भावनाएं सब बेवक्त मर चुकी हैं.’’

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‘‘नीरज, तुम जो भी कह रहे हो, एकदम सच है. मैं ने हर कदम सोचसमझ कर उठाया था. पर उस के अंजाम ने मुझे ऐसा सबक सिखाया है कि हर लमहा मैं खुद को बुराभला कहती हूं. मलयेशिया में मैं ने दूसरी शादी की थी. पर 6 साल तक मुझे औलाद न हुई तो उस ने मुझे तलाक दे दिया. उसे औलाद चाहिए थी और मैं मां न बन सकी. औलाद की बेकद्री की मुझे सजा मिल गई. मैं औलाद मांगती रही, मेरे बच्चा न हुआ. सारे इलाज कराए. यहां औलाद थी तो मैं ने दूसरों को दे दी. मेरे गुनाहों का अंत नहीं है. ‘‘मुझे कैंसर है. थोड़ा ही वक्त मेरे पास है. मैं अपने गुनाहों का, अपनी भूलों का प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. अब मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं. मैं तनहाई से तंग आ गई हूं. मुझे तुम्हारी तनहाई का भी एहसास है. पैसा है मेरे पास, पर उस से तनहाई कम नहीं होती. भले तुम मुझे खुदगर्ज समझो पर यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. एक बार मुझे मेरी गलतियां सुधारने का मौका दो. अपनी बेबस व मजबूर मां की इतनी बात रख लो.’’

नीरज सोच में पड़ गया. एक बार दिल हुआ, मां को माफ कर दे. दूसरे पल संघर्षभरे दिन, अकेले रोतेरोते गुजारी रातें याद आ गईं. उस ने धीमे से कहा, ‘‘सोनाली मैम, इतने सालों से मैं बिना रिश्तों के जीने का आदी हो गया हूं. रिश्ते मेरे लिए अजनबी हो गए हैं. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए कि मैं अपने दिल को रिश्ते होने का यकीन दिला सकूं, अपनों के साथ जीने का तरीका अपना सकूं. ‘‘इतने सालों तक तपते रेगिस्तान में झुलसा हूं, अब एकदम से ठंडी फुहार बरदाश्त न कर सकूंगा. मुझे अपनेआप को ‘मां’ शब्द से मिलने का, समझने का मौका दीजिए. अभी मुझे नए तरीकों को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट है. जैसे ही मुझे लगेगा कि मैं ने मां को पहचान लिया है, मैं आप को खबर कर के लेने आ जाऊंगा. आप अपना फोन नंबर और पता मुझे दे जाइए.’’

सोनाली ने एक उम्मीदभरी नजर से बेटे को देखा. उस की आंखें डबडबा गईं. वह थकेथके कदमों से गेट की तरफ मुड़ गई.

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और वक्त बदल गया: भाग 2- क्या हुआ था नीरज के साथ

लेखिका- शकीला एस हुसैन

जिंदगी एक ढर्रे पर चलने लगी. नीता आंटी उस का बहुत खयाल रखतीं. आंटी के यहां रहते हुए उसे कई बातें पता चलीं. आंटी की शादी को 8 साल हो गए थे. उन के यहां औलाद न थी. इसलिए उन्होंने उसे गोद लिया था. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उसे सारी बातें समझ में आती गईं. कुछ बातें उसे नीता आंटी से पता चलीं. कुछ बातें उन की पुरानी बूआ कमला से पता चलीं. उस के मांबाप की कहानी भी उन्हीं लोगों से मालूम पड़ीं. उस की मम्मी सोनाली बहुत खूबसूरत, चंचल और जहीन थीं. जब वे एमएससी कर रही थीं, उन की मुलाकात उस के पापा रवि से हुई. पहले दोस्ती, फिर मुहब्बत. दोनों के धर्म में फर्क था. दोनों के घरों से शादी का इनकार ही था. पर इश्के जनून कहां रुकावटों से रुकता है. दोनों की पढ़ाई पूरी होते ही उन दोनों ने सोचसमझ कर आपसी सहमति से अपना शहर छोड़ दिया और इस शहर में आ कर बस गए. सोनाली और रवि दोनों ही नए जमाने के साथ चलने वाले, ऊंची उड़ान भरने वाले परिंदे सरीखे थे. पुराने रीतिरिवाजों के विरोधी, नई सोच नई डगर, आजाद खयालों के हामी, उन दोनों ने ‘लिवइन रिलेशन’ में एकसाथ रहना शुरू कर दिया. विवाह उन्हें एक बंधन लगा.

उन का एजुकेशनल रिकौर्ड काफी अच्छा था. जल्द ही उन्हें अच्छी नौकरी मिल गई. जल्द ही उन्होंने जीवन की सारी जरूरी सुविधाएं जुटा लीं. एक साल फूलों की महक की तरह हलकाफुलका खुशगवार गुजर गया. फिर उन की जिंदगी में नीरज आ गया. शुरूशुरू में दोनों ने खुशी से जिम्मेदारी उठाई. दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. सोनाली चंचल और आजाद रहने वाली लड़की थी. घर में सासससुर या कोई बड़ा होता तो कुछ दबाव होता, थोड़ा समझौता करने की आदत बनती. पर ऐसा कोई न था. रवि बेहद महत्त्वाकांक्षी और थोड़ा स्वार्थी था. खर्च और काम बढ़ने से दोनों के बीच धीरेधीरे कलह होने लगी. पहले तो कभीकभार लड़ाई होती, फिर अंतराल घटने लगा. दोनों में बरदाश्त और सहनशीलता जरा न थी. फिर हर दूसरे, तीसरे दिन लड़ाई होने लगी. रवि के अपने मांबाप, परिवार से सारे संबंध टूट चुके थे और वे लोग उस से कोई संबंध रखना भी नहीं चाहते थे. उन के रवि के अलावा एक बेटा और एक बेटी थी. उन्हें डर था कि कहीं रवि के व्यवहार का दोनों बच्चों पर बुरा प्रभाव न पड़ जाए. जो लड़का प्यार की खातिर घरपरिवार छोड़ दे, उस से उम्मीद भी क्या रखी जा सकती है.

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रिश्तेदारों से तो रवि पूरी तरह कट चुका था. कभी किसी दोस्त या सहयोगी के यहां कोई समारोह में शामिल होने का मौका मिलता, वहां भी कोई न कोई ऐसी बात हो जाती कि मन खराब हो जाता. कभी कोई इशारा कर के कहता, ‘यही हैं जो लिवइन रिलेशन में रह रहे हैं.’ या कोई कह देता, ‘इन लोगों की शादी नहीं हुई है, ऐसे ही साथ रहते हैं.’ उन दिनों लिवइन रिलेशन बहुत कम चलन में था. लोग इसे बहुत बुरा समझते थे. लोग खूब आलोचना भी करते थे. रवि भी इस बात को महसूस करता था कि अगर समाज में घुलमिल कर रहना है तो समाज के बनाए उसूलों के अनुसार चलना जरूरी है. पर अब इन सब बातों के लिए बहुत देर हो चुकी थी. जो जैसा चल रहा था, वही अच्छा लगने लगा था.

सोनाली अपने परिवार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी 2 बहनें थीं. उस ने घर से भाग कर रवि के साथ रहना शुरू कर दिया. इन सब बातों की उस के मांबाप को खबर हो गई थी. बिना शादी के दोनों साथ रहते हैं, इस बात से उन्हें बहुत धक्का लगा. ऐसी खबरें तो पंख लगा कर उड़ती हैं. उन की 2 बेटियां कुंआरी थीं. कहीं सोनाली की कालीछाया उन दोनों के भविष्य को भी ग्रहण न लगा दे, यह सोच कर उन लोगों ने सोनाली से कोई संबंध नहीं रखा, न उस की कोई खोजखबर ली. वैसे भी, एक आजाद लड़की को क्या समझाना. इस तरह सोनाली भी अपने परिवार से अलग हो गई थी. उस की रिश्ते की एक बहन नीता इसी शहर में रहती थी. उस से मेलमुलाकात होती रहती थी. उस की शादी को 8 साल हो गए थे. उस की कोई औलाद न थी. वह बच्चे के लिए तरसती रहती थी. इधर, रवि और सोनाली के बीच अहं का टकराव होता रहता. दोनों पढ़ेलिखे, सुंदर और जहीन थे. कोई झुकना न चाहता था. एक बात और थी, दोनों ही अपने परिवारों से कटे हुए थे. इस बात का एहसास उन्हें खटकता तो था पर खुल कर इस को कभी स्वीकार नहीं करते थे क्योंकि उन की ही गलती नजर आती. फिर सोशललाइफ भी कुछ खास न थी. इसी घुटन और कुंठा ने दोनों को चिड़चिड़ा बना दिया था.

नीरज की जिम्मेदारी और खर्च दोनों को ही भारी पड़ता. दोनों को अपनाअपना पैसा बचाने की धुन सवार रहती. नतीजा निकला रोजरोज की लड़ाई और अंजाम, रवि घर, नीरज और सोनाली को छोड़ कर चला गया. न कोई बंधन था, न कोई दवाब, न कोई कानूनी रोक. बड़ी आसानी से वह सोनाली और बच्चे को छोड़ चला गया. किसी से पता चला कि वह दुबई चला गया. इधर, सोनाली भी बहुत महत्त्वाकांक्षी थी. उस ने भी दौड़धूप व कोशिश की. उसे मलयेशिया में नौकरी मिल गई. अब सवाल उठा बच्चे का. उस का क्या किया जाए. सोनाली भी अकेले यह जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहती थी.

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अभी उस के सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की कजिन नीता ने सुझाव दिया कि उस की कोई औलाद नहीं है, वह नीरज को अपने बेटे की तरह रखेगी. सोनाली ने नीरज को उसे दे दिया. एक मौखिक समझौते के तहत बच्चा उसे मिल गया. कोई कानूनी कार्यवाही की जरूरत ही नहीं समझी गई. इस तरह मासूम नीरज, नीता आंटी के पास आ गया. बिना मांबाप के एक मांगे की जिंदगी गुजारने की खातिर. नीता आंटी उस का खूब खयाल रखती थीं, पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी. जो बच्चे बचपन में दुख उठाते हैं, तनहाई और महरूमी झेलते हैं, वे वक्त से पहले सयाने और समझदार हो जाते हैं. नीरज ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया. एक ही धुन थी उसे कि कुछ बन कर दिखाना है. मेहनत और लगन से उस का रिजल्ट भी खूब अच्छा आता था.

दुख और हादसे कह कर नहीं आते. नीता आंटी का रोड ऐक्सिडैंट हो गया. 4-5 दिन मौत से संघर्ष करने के बाद वे चल बसीं. नीरज की तो दुनिया उजड़ गई. अब बूआ एकमात्र सहारा थीं. वे उस का बहुत ध्यान रखतीं. अंकल पहले से ही कटेकटे से रहते थे. अब और तटस्थ हो गए. धीरेधीरे हालात सामान्य हो गए. उस वक्त वह 10वीं में पढ़ रहा था. एक साल गुजर गया. आंटी की कमी तो बहुत महसूस होती पर सहन करने के अलावा कोई रास्ता न था. पहले भी वह अकेला था अब और अकेला हो गया. उस के सिर पर आसमान तो तब टूटा जब अंकल दूसरी शादी कर के दूसरी पत्नी को घर ले आए. दूसरी पत्नी रेनू 30-31 साल की स्मार्ट औरत थी. कुछ अरसे तक वह चुपचाप हालात देखती और समझती रही और जब उसे पता चला, नीरज गोद लिया बच्चा है, तो उस के व्यवहार में फर्क आने लगा.

नीरज ने अपनेआप को अपने कमरे तक सीमित कर लिया. खाने वगैरा का काम बूआ ही देखतीं. डेढ़ साल बाद जब रेनू का बेटा पैदा हुआ तो नीरज के लिए जिंदगी और तंग हो गई. अब तो रेनू उसे बातबेबात डांटनेफटकारने लगी थी. खानेपीने पर भी रोकटोक शुरू हो गई. बासी बचा खाना उस के लिए रखा जाता. वह तो गनीमत थी कि बूआ उसे बहुत प्यार करती थीं, छिपछिपा कर उसे खिला देतीं.

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समय सीमा: भाग 3- क्या हुआ था नमिता के साथ

उस ने जल्दी घर जाना ही बेहतर समझ. आज काम करने की मनोस्थिति तो रही

नहीं थी. पल्लवी ने जो कहा था उसे नकारा नहीं जा सकता था. कुलदीप साफ कह चुका था कि

उसे घरेलू नहीं कैरियर माइंडेड बीवी चाहिए. महज शादी के कारण वह कैरियर बरबाद करे

यह तो उसे स्वीकार नहीं होगा और उस का

शादी स्थगित कर के अमेरिका जाना न उस के अपने परिवार को न ससुराल वालों को मंजूर होगा. दोनों परिवार ही हौल बगैरा बुक करने के लिए काफी अग्रिम पैसा दे चुके हैं और तैयारियां भी जोरों पर हैं. क्या करें? जब वह पर पहुंची तो अमिता और जगदीश तो बाहर गए हुए थे, निखिल अपने कमरे में पढ़ रहा था. नमिता ने उसे सब बताया.

‘‘पल्लवी मैडम को आप की पर्सनल लाइफ से ज्यादा आप के काम की परवाह है और उन के अनुसार कुलदीप को भी आप से ज्यादा आप की नौकरी पसंद है यानी आप की खुशी या भावनाओं की किसी को कद्र या फिक्र नहीं है,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘तो फिर आप को क्या जरूरत है ऐसे हृदयहीन लोगों के साथ अपनी जिंदगी खराब करने की दीदी? छोड़ दीजिए नौकरी और अगर कुलदीप इस से नाराज हो कर रिश्ता तोड़ता है तो तोड़ने दीजिए. आज नहीं तो कल दूसरी नौकरी मिल जाएगी और शादी के लिए दूसरा घरवर भी.’’

नमिता ने पूछना चाहा कि क्या यह गारंटी होगी कि दूसरी बार उस की

भावनाओं को वरीयता मिल जाएगी, कहीं वह

इस व्यक्तिगत अहं के चक्कर में ‘एकला चलो रे’ की राह पर तो नहीं चल पड़ेगी? रेणु दीदी के शब्द याद कर के वह सिहर उठी. मम्मीपापा

और सासससुर को तो उस के अमेरिका न जाने और नौकरी छोड़ने के फैसले पर एतराज नहीं होगा, एतराज होगा तो केवल कुलदीप को तो क्यों न पहले उस से बात की जाए. अत: उस ने कुलदीप को फोन पर सब बता कर मिलने को कहा.

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‘‘शादी तो स्थगित नहीं करवा सकता,’’ कुलदीप ने साफ कहा, ‘‘न ही तुम से यह कहूंगा कि शादी के लिए नौकरी छोड़ दो या नौकरी के लिए शादी और फिर अपने फैसले पर उम्रभर पछताती रहो क्योंकि जिंदगी में हमेशा सबकुछ तो अपनी मनमरजी का होता नहीं और तब यह खयाल कि उस समय वैसा न किया होता तो ऐसा नहीं होता, हालात को और भी असहनीय बना देता है.’’

‘‘तो फिर मैं करूं क्या?’’ नमिता ने असहाय भाव से पूछा.

‘‘शादी कर के मुझे अपने साथ अमेरिका

ले चलो. हनीमून के लिए कहीं तो जाना ही है

सो अमेरिका सही. तुम अपना काम करना मैं अपने बिजनैस संबंधी काम कर लूंगा. जब तक यहां की फैक्टरी से दूर रह सकूंगा रह लूंगा, फिर लौट आऊंगा और तुम्हारे लौटने की इंतजार करूंगा.’’

‘‘उस में समय लगेगा, शादी के तुरंत बाद ऐसे अलग होना मुनासिब होगा?’’

‘‘हां, अगर हम परिस्थितियों और समय सीमा को ध्यान में रखें तो तुम्हें पहले स्वयं को एक समय सीमा देनी होगी कि तुम कितने दिनों में क्या कर सकती हो और फिर वह समय सीमा तुम्हें अपनी कंपनी को बताती होगी कि तुम इतने दिनों में यह काम कर दोगी और यह काम करने के बाद वहां नहीं रुकोगी.

‘‘इस के साथ ही हमें इस दौरान पैसे का मोह छोड़ना होगा, जब मुझे फुरसत होगी मैं

कुछ दिनों के लिए तुम्हारे पास आ जाऊंगा, तुम्हें मौका लगे तुम आ जाना अपने खर्चे पर. यह सम?ौते का युग है नमिता,’’ कुलदीप ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘परिस्थितियों को समझ कर उन के साथ तालमेल बैठाने का, व्यक्तिगत अहं या मान्यताओं को वरीयता देने का नहीं. समय

की सीमा को समझे तो समय हमेशा तुम्हारे अनुकूल चलेगा.’’

‘‘आप का कहना बिलकुल ठीक है,’’ नमिता के स्वर में सराहना थी और शंका भी, ‘‘लेकिन और सब भी इस से सहमत होंगे?’’

‘‘और सब से अगर तुम्हारा मतलब परिवार और औफिस वालों से है तो दोनों परिवारों को तो मैं संभाल लूंगा और तुम्हारा पति अगर अपने खर्च पर तुम्हारे साथ जा रहा  है तो औफिस वालों की तरफ से भी कोई समस्या नहीं होनी चाहिए, यह समाधान पल्लवी मैडम को बता दो. उन की प्रतिक्रिया जानने के बाद आगे की सोचेंगे,’’ कह कर कुलदीप उठ खड़ा हुआ, ‘‘फैक्टरी में काम बीच में छोड़ कर आया हूं.’’

पल्लवी ने उस की बात बड़े ध्यान से सुनी.

‘‘औफिस में इस से पहले ऐसा कुछ हुआ नहीं है सो इस के लिए कोई प्रावधान तो है नहीं और इस पर मैनेजमैंट की क्या प्रतिक्रिया होगी यह मैं नहीं जानती, लेकिन कुलदीप ने जो सुझया है उस की मैं सराहना करती हूं और उस से पूर्णतया सहमत भी हूं,’’ पल्लवी बोली, ‘‘मैं तुम्हें आश्वासन देती हूं कि मैं भरसक तुम्हारा साथ दूंगी. सब को समझऊंगी कि कुलदीप जैसे सुलझे हुए जीवनसाथी को नौकरी के लिए नकारना तुम्हारी बेवकूफी होगी और तुम्हारे ऐसा न करने पर कंपनी का तुम्हें नकारना, कंपनी का तुम्हारे प्रति अन्याय होगा. तुम्हें चांस तो मिलना ही चाहिए.’’

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पल्लवी के प्रयास से नमिता को पहली जून के बजाय 1 सप्ताह बाद

पति के साथ आने की इजाजत मिल गई, लेकिन यह बौंड भरने के बाद कि न्यूयौर्क औफिस को सुचारु रूप से संचालित करने से पहले वह छुट्टी नहीं लेगी और भारत लौटने के बाद भी एक निश्चित अवधि तक कंपनी में काम करेगी.

‘‘नौकरी तो करनी है ही नमिता, सो बौंड भर दो लेकिन एक शर्त के साथ कि भारत

लौटने पर तुम्हें मैटरनिटी लीव लेने का अधिकार होगा,’’ कुलदीप ने कहा, ‘‘जब शादी होगी तो बच्चे भी होंगे ही और उन्हें भी सही समय पर होना चाहिए.’’

नमिता ने यह शर्त पल्लवी को बताई.

‘‘मैटरनिटी लीव तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है नमिता,’’ पल्लवी हंसी, ‘‘उस के मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. बस इस अधिकार का दुरुपयोग अमेरिका प्रवास के दौरान मत करना.’’

दोनों परिवारों में नमिता और कुलदीप के फैसले को ले कर चखचख तो बहुत हुई, लेकिन कुलदीप के इस तर्क को कि जो कुछ भी समय की मांग और समय सीमा को ध्यान में रख कर किया जाए वह गलत नहीं होगा, कोई काट

नहीं सका.

अब 5 साल बाद दोनों परिवार अपने

तब तक फैसले  से बहुत संतुष्ट हैं. नमिता कोविड के पहले भारत मैटरनिटी लीव पर

आई थी और उन लौकडाउन के दिनों में वह लगातार औनलाइन वर्क फ्रौम होम करती रही. कुछ को तो पता भी न चला कि वह भारत में है या न्यूयौर्क में.

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Udaariyaan: #fatejo के खिलाफ साथ आएंगे अंगद मान और जैस्मिन, चलेंगे नई चाल

कलर्स के सीरियल उडारियां (Udaariyaan) की कहानी दिलचस्प होती जा रही है. जहां अंगद मान का अससी चेहरा तेजो के सामने आ गया है तो वहीं फतेह ने अब तेजा का दिल जीतने का मन बना लिया है, जिसके चलते सीरियल में रोमांस देखने को मिलने वाला है. इसी के साथ अंगद मान और जैस्मिन की साजिश देखने को मिलने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

फतेह करेगा फैसला

अब तक आपने देखा कि फतेह और जैस्मिन की शादी का सच तेजो को पता चल जाता है, जिसे जानकर वह हैरान रह जाती है. वहीं फतेह भी अंगद मान के साथ तेजो के रिश्ते का सच जान जाता है, जिसके बाद वह तेजो को अपनी जिंदगी में वापस लाने का फैसला करता है.

 

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अंगद और जैस्मिन आएंगे साथ

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां फतेह हर हाल में तेजो को वापस पाने का फैसला करेगा तो वहीं अंगद मान और जैस्मिन दोनों को अलग करने का प्लान बनाएंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि दोनों अपने प्यार को पा सके. लेकिन इस बार फतेह , तेजो पर आने वाली मुसीबत का सामना करता नजर आएगा. वहीं अंगद मान से सामना करेगा.

तेजो और फतेह करेंगे नई शुरुआत

दूसरी तरफ, तेजो और फतेह अपनी फैमिली के पास वापस लौट आएंगे, जिसके बाद दोनों अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेंगे. जहां तेजो का कौलेज में जोरदार स्वागत होगा तो वहीं फतेह की नई जौब के बारे पता चलेगा कि अब फतेह उसी के कौलेज में स्पोर्ट्स टीचर के रुप में नजर आएगा. तेजो और फतेह की ये मुलाकात दोनों को करीब लाने वाली है. इसी बीच अंगद मान और जैस्मिन दोनों को अलग करने के लिए डील करते नजर आएंगे.

 

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मानसिक दबाव के बढ़ने के बारें में क्या कहती है ’83’ की एक्ट्रेस Wamiqa Gabbi, पढ़ें इंटरव्यू

पंजाबी परिवार में पैदा हुई वामिका गब्बी को फिल्में देखने का बहुत शौक था. उनके परिवार के सभी सदस्यों को किसी नई फिल्म के रिलीज होने पर हॉल में जाकर देखना पसंद करते है. वामिका जब बड़ी हुई तो उसे हमेशा कुछ अलग काम करने की इच्छा रहती थी, कई बार उन्हें आसपास कई ऐसी घटनाएं दिखती थी, जिसमें जागरूकता बढ़ाने की जरुरत है.

महिलाओं और बच्चों पर हुए नाइंसाफी को वह खास मानती है. वामिका को लोगों तक पहुँचाने का माध्यम फिल्म लगती थी, क्योंकि पूरा देश फिल्मों का शौकीन है. उनके पिता का ट्रान्सफरेबल जॉब था, इसलिए वामिका को अलग-अलग स्थानों में जाने का अवसर मिलता रहा. वामिका ने हिंदी फिल्मों के अलावा पंजाबी, तमिल, तेलगू और मलयालम फिल्मों में काम किया है. उन्हें अपना कैरियर बहुत पसंद है, फिल्म 83 में उन्होंने क्रिकेटर मदनलाल की पत्नी अन्नू लाल की निभाई है, जिसमें उनके काम को काफी प्रशंसा मिली. उनसे उनकी जर्नी के बारें में टेलीफोनिक बात हुई पेश है, कुछ खास अंश.

सवाल – फिल्मों में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

जवाब – बचपन से ही फिल्म देखने का शौक रहा और फिल्में भी हर भाषा में बनने के साथ-साथ हिंदी में भी बनती है, ऐसे में देखने वाले भी बहुत है. मेरे परिवार में सबको फिल्में देखना पसंद था, मैंने भी कई फिल्में देखी है. फिल्में हमेशा मुझे मोहित करती थी और कहानी कहने की इच्छा रहती थी, खासकर स्ट्रोंग और मनोरंजक, जिसे मैं अपनी तरह से कह सकती हूं. मौका था और मैं लकी थी कि मुझे फिल्म 83 मिली, जिसमें कहानी के साथ- साथ अच्छे निर्देशक, को स्टार सभी से कुछ न कुछ सीखने को मिला है.

सवाल –  दिल्ली से मुंबई कैसे आना हुआ?

जवाब – मेरे पिता की नौकरी का ट्रान्सफर हुआ करता था, ऐसे में मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, लेकिन शिक्षा मैंने मुंबई में ली, इसके बाद मेरा फिर दिल्ली जाना हुआ और अंत में मैं मुंबई आ गयी, क्योंकि यही मेरी डेस्टिनेशन है. मैं पिछले 18 साल से मुंबई में काम कर रही हूं.

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सवाल –  पहली ब्रेक के मिलने में कितना समय लगा ?

जवाब – अभिनय के क्षेत्र में आने से पहले मैं एक फिल्म स्कूल में गयी. वहां मैंने एक शार्ट फिल्म बनायीं थी, इसके बाद कैंपस प्लेसमेंट से ही मुझे पहली फिल्म ‘मकबूल’ मिली थी. इसके बाद धीरे-धीरे काम आगे बढ़ता गया.

सवाल – रियल फिल्मों में काम करने की वजह क्या है?

जवाब – मैंने हमेशा से ही उन कहानियों को कहने की कोशिश की है, जो मेरे आसपास हो, इससे मनोरंजन के साथ-साथ एक सन्देश भी दर्शकों तक पहुँचता है. ऐसी कहानियों से ही सोच में थोडा परिवर्तन हो सकता है. भले ही दर्शक उसे पसंद न करते हो, पर सही स्क्रिप्ट से उसे मनोरंजक बनाया जा सकता है.

सवाल –  कोविड पेंड़ेमिक की वजह से आज ओ टी टी फिल्मों का बाज़ार बहुत बढ़ा है, हर तरह की कहानियाँ कही जारही है, लेकिन रीयलिस्टिक फिल्मों को दर्शक हॉल में देखना पसंद नहीं करते, क्या ऐसे में फिल्म मेकर को आगे किसी प्रकार का खतरा हो सकता है?

जवाब – ये समय स्टोरी टेलर्स के लिए अद्भुत है. निर्माता, निर्देशक,लेखक सभी प्रकार की फिल्मों को एक्स्प्लोर कर रहे है. पहले इन्हें समानांतर फिल्में कही जाती थी, लेकिन अब ऐसी फिल्में मुख्य धारा से जुड़ चुकी है. आसपास की कहानियों को पर्दे पर लाना ही मेरा उद्देश्य रहा है. अच्छी कहानियों को दर्शक भी पसंद करते है. ओटीटी की वजह से वे घर बैठकर आराम से पसंद की फिल्म को कभी भी देख सकते है.

सवाल – आपके आसपास घटित ऐसी कहानी जिसका प्रभाव आप पर अधिक पड़ा?

जवाब – कहानियां बहुत है, इसमें खासकर महिलाओं से सम्बंधित स्क्रिप्ट अधिक होते है, जिसमें एक महिला अलग-अलग परिस्थिति में कैसे रियेक्ट करती है, कैसे उन हालातों से गुजरती है ऐसी सभी कहानियां मेरे दिल के करीब है. मेरे आसपास के माहौल इंस्पायर्ड शो ‘हश हश हश’ है.

सवाल – क्या यूथ में बढ़ते मानसिक दबाव को लेकर क्या आप कुछ करने की इच्छा रखती है?

जवाब – आजकल मानसिक दबाव केवल बच्चों में ही नहीं, बड़ों में भी बहुत है, लेकिन इसमें जागरूकता की कमी है. शरीर ही नहीं, बल्कि दिमाग भी बीमार हो सकता है, लेकिन लोग इसे स्वीकार नहीं करना चाहते और बताने से भी शर्म महसूस करते है. मानसिक बीमारी को एक टैबू के रूप में लिया जाता है. इसमें परिवार को अपने बच्चे को समझाने की आवश्यकता है. जब वे किसी भी मानसिक परेशानी के शिकार होते है, तो सबसे पहले अपने नियर और डियर वन को बताएं. इसके अलावा सामाजिक और क्रिएटर्सका भी दायित्व है कि ऐसी बातों को फिल्मों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाएं. एक ऐसी ही कहानी पर काम चल रही है और जल्द ही वह पर्दे पर आएगी.

सवाल – आगे की योजनायें क्या है?

जवाब –आगे ‘राम सेतु’ फिल्म है, जिसकी शूटिंग चल रही है. इसके अलावा फिल्म ‘जलसा’ और कई वेब सीरीज भी है, जिसकी शूटिंग चल रही है.

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सवाल – परिवार का सहयोग आपको कितना मिला?

जवाब –परिवार की सहयोग के बिना फिल्मों में काम करना मुश्किल है. हर रोज परिवार एक नए काम के लिए प्रोत्साहन मिलती है. इसमें मेरा बेटा, पति, सास-ससुर और माँ सभी का साथ रहता है. खुद की दृष्टि को बढ़ाने के लिए परिवार का साथ होना बहुत जरुरी है. मेरे पति आरिफ शेख एक फिल्म एडिटर है. मेरा बेटा कियान शर्मा शेख है, जो 11 वर्ष का है और उसे फिल्में देखने का बहुत शौक है. फिलहाल उन्होंने क्रिकेट को अपना कैरियर बनाया है.

सवाल – नये साल का स्वागत कैसे करने वाली है?

जवाब – नए साल को मैं खुशियों के साथ मनाने वाली हूं. पिछले 2 सालों में पेडेमिक ने हमें बहुत कुछ सिखाया है. इसके अलावा मेरी कोशिश अच्छी कहानियों को कहने की रहेगी. सबको प्यार बाँटे, परिवार के साथ खुश और सुरक्षित रहे.

समय सीमा: भाग 1- क्या हुआ था नमिता के साथ

‘‘नमिता,मैं अपनी कंपनी के उत्पादनों के लिए अमेरिका के बाजार में संभावनाएं तलाश करने जा रही हूं और तुम्हें मेरे साथ चलना है,’’ बिक्री निर्देशक पल्लवी ने कहा, ‘‘परेशानी बस इतनी है कि जिन शहरों में हम जाएंगे वहां मेरे

तो अपने रहते हैं और मैं उन्हीं के साथ रहूंगी, तुम्हारा प्रबंध होटल में करवा दूंगी. अकेले रह लोगी न?’’

यह बात 2016 की थी.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी मैडम,’’ नमिता ने जहां जाना था उन शहरों की लिस्ट पढ़ते हुए कहा, ‘‘संयोग से इन सभी जगहों पर मेरे भी करीबी लोग हैं जो अकसर मुझे बुलाते रहते हैं तो मैं भी उन के साथ रह लूंगी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है, वैसे आजकल शायद ही कोई ऐसा मिले जिस का अमेरिका में कोई अपना न हो,’’ पल्लवी हंसी.

अमेरिका की यात्रा व्यावसायिक दृष्टिकोण से अपेक्षा से अधिक लाभदायक रही सो पल्लवी और नमिता बहुत खुश थीं.

‘‘आप को नहीं लगता मैडम कि हमारा न्यूयौर्क में स्थाई औफिस होना चाहिए?’’ वापसी की उड़ान के दौरान नमिता ने पूछा.

‘‘होना तो चाहिए मगर भारत से यहां स्थाई सीनियर मैनेजर और स्टाफ भेजना बहुत महंगा पड़ेगा,’’ पल्लवी ने कहा.

‘‘स्थाई स्टाफ भेजने की क्या जरूरत है, मैडम? कुछ अरसे के लिए एक सीनियर मैनेजर को 2-3 सहायकों के साथ लोकल लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए भेज दीजिए.’’

‘‘बढि़या सुझव है, नमिता,’’ पल्लवी मुसकराई, ‘‘ऐसे ही सोचती रहो. जिंदगी में बहुत आगे बढ़ोगी. अमेरिका प्रवास कैसा रहा?’’

‘‘उम्मीद से ज्यादा अच्छा. जानपहचान वालों के साथ रहने से घूमने में बहुम मजा आया. आप का कैसा रहा, मैडम?’’

‘‘व्यावसायिक सफलता, सब से मिलने और उन के साथ घूमने तक तो बढि़या ही रहा, मगर मैं बराबर बच्चों और उन के पापा को मिस करती थी,’’ पल्लवी ने उसांस ले कर कहा, ‘‘सो मजा नहीं उठा सकी यानी व्यक्तिगतरूप से अच्छा नहीं रहा.’’

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नमिता ने कहना चाहा कि उस का तो व्यक्तिगतरूप से बहुत अच्छा रहा. भविष्य के जिस अनदेखे लेकिन अनिवार्य पहलू के बारे में उस ने कभी सोचने की जरूरत ही नहीं समझ थी, उस से रेणु दीदी ने उसे अनजाने में अवगत करा कर उस के प्रति जागरूक कर दिया.

रेणु दीदी उस से कई वर्र्ष बड़ी चचेरी बहन थीं. वह स्कूल में थी तभी रेणु दीदी अमेरिका चली गई थीं और उन की उपलब्धियों की कहानियां सुनने को मिलने लगी थीं. चाचाचाची उन के लिए आए दिन आने वाले शादी के प्रस्तावों से परेशान हो गए थे, लेकिन रेणु दीदी फिलहाल न तो शादी के लिए तैयार थीं न घर आने को.

चाची के बहुत कहने पर कि वह उन्हें देखने को तड़प रही हैं, रेणु दीदी ने उन के और चाचा के लिए टिकट भेज दिए थे.

अगले साल छोटी बहन कनु और भाई रवि को बुला लिया था. कनु को वहीं पड़ोस में रहने वाले एक इंजीनियर ने पसंद कर लिया और रवि के लिए अगले सत्र में एमबीए में प्रवेश की व्यवस्था हो गई. बच्चे के वहां जाने के बाद धीरेधीरे चाचाचाची भी भारत से उखड़ कर वहीं चले गए. परिवार के आ जाने से रेणु दीदी और भी लग्न से काम करने लगीं. आज वह अग्रणी और मशहूर सौफ्टवेयर कंपनी में प्रैसिडैंट थी. सुसज्जित बंगला, बड़ी गाड़ी और अमेरिका की दुर्लभ सुविधा नौकरानी उन के पास थी. कनु और रवि के अपने घर थे. चाचाचाची अधिकतर उन के पास रहते थे.

‘‘काम से थक कर आने पर आप के घर में बहुत सुकून और शांति मिलती है, दीदी,’’ नमिता ने कहा.

‘‘कुछ रोज को, उस के बाद सन्नाटा काटने लगता है.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

‘‘हां नमिता, निरर्थक लगने लगता है यह सब तामझम… अकेले कितना आनंद लो इस सब का. कभी अपने लगने वाले दूसरे सब अपनी अलग दुनिया बसाने के बाद उस में मस्त हो

जाते हैं. उन्हें आने की फुरसत ही नहीं रहती. यदाकदा आप का स्वागत जरूरत है उन की दुनिया में जिस की रौनक अब आप को अधिक रास नहीं आती,’’ रेणु ने उमांस ले कर कहा, ‘‘जीवन में कुछ भी करने की एक समय सीमा होती है. अगर आप ने उसे नकार दिया तो बस जीवनभर ‘एकला चलो रे’ ही अलापना पड़ता है जो आसान नहीं है. अगर आप में योग्यता और क्षमता है तो जब भी मौका लगेगा आप को आप का लक्ष्य तो मिल ही जाएगा, लेकिन किसी का सान्निध्य जब चाहो तब मिल जाएगा, ऐसा सोचना महज एक खुशफहमी है.’’

रेणु दीदी ने बगैर उस से उस की भविष्य की योजना पूछे या प्रवचन दिए बहुत कुछ समझ दिया था जिसे नकारना मुश्किल था. उस ने सोचा कि अब जब कभी मां इस विषय में बात करेंगी तो वह हमेशा की तरह मना नहीं करेगी. अमेरिका से लौटने के कुछ रोज बाद ही पापा के दोस्त खुशालचंद अपने किसी रिश्तेदार का रिश्ता ले कर आ गए उस के लिए.

‘‘कुलदीप की अपनी ग्लास फैक्टरी है, बहुत अच्छी चल रही है. वह शादी करना चाह रहा है, लेकिन उसे लड़की बढि़या नौकरी

वाली चाहिए…’’

‘‘वह क्यों चाचाजी?’’ नमिता के छोटे भाई निखिल ने बात काटी.

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‘‘दूरदर्शिता,’’ खुशालचंद बोले, ‘‘कुलदीप का कहना है कि बिजनैस कभी भी डुबकी मार सकता है सो सिर को पानी से ऊपर रखने के लिए सैकंड लाइन औफ डिफैंस यानी स्थाई कमाई का जरीया होना जरूरी है और प्रोफैशनली क्वालीफाइड लड़की से शादी इस समस्या का स्थाई हल है. मुझे लगा कि यह कुलदीप की

ही नहीं तुम लोगों की समस्या का भी स्थाई हल हो सकता है क्योंकि नमिता भी तो इसीलिए

शादी नहीं कर रही कि वह अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती और कुलदीप छुड़वाएगा नहीं.

मेरे खयाल में जगदीश, तुम लोग एक बार इस लड़के से मिल तो लो. आप क्या कहती हैं अमिता भाभी?’’

‘‘मैं ने क्या कहना है भाईर् साहब, होगा तो वही जो नमिता कहेगीं,’’ अमिता बोली.

‘‘नमिता यहीं बैठी सब सुन रही है. बता बेटी क्या करें?’’ जगदीश ने पूछा.

‘‘जैसा आप ठीक समझें,’’ नमिता ने सिर झका कर कहा.

‘‘मैं उन लोगों से मिलने का समय तय

कर के तुम्हें बताऊंगा,’’ कह कर खुशालचंद

चले गए.

‘‘आप ने ऐसे कैसे हां कर दी, दीदी?’’ निखिल ने मौका लगते ही पूछा, ‘‘साफ जाहिर है कि या तो लड़के में आत्मविश्वास की कमी है या फिर वह बीवी की कमाई खाने वाला है. आप ऐसे आदमी से मिल कर क्यों अपना समय व्यर्थ कर रही हैं?’’

‘‘खुशालचंदजी के सामने जब यह सब कहने की तेरी ही हिम्मत नहीं हुई तो मेरी कैसे होती?’’ नमिता ने टालने के स्वर में कहा.

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कब रुकेगा यह सिलसिला

‘‘हद हो चुकी है इंसानियत की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी,’’ विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बारबार न्यूज चैनल बदल रहा थे और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहे थे. उन्हें भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वे अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहूबेटी की कल्पनामात्र से ही सिहर उठे.

‘‘अफगानी महिलाओं को इस का विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए,’’ पत्नी रीमा ने उन्हें चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उन्हें भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

‘‘अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहां गया? क्यों सब के मुंह सिल गए?’’ विनय थोड़ा और जोश में आए.

तभी उन की बहू शैफाली औफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंगटेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी.

विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुरती के साथ खुलीखुली पैंट और गले में झलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

‘‘कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल ले, इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए,’’ विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की.

रीमा मौन रही. उस की चुप्पी विनय

की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

‘‘अब क्या कहें? आजकल की लड़कियां हैं. अपनी मरजी जीती हैं,’’ कहते हुए रीमा ने मुंह सिकोड़ा.

सवालिया निशान

शैफाली के कानों में शायद उन की बातचीत पड़ गई थी. वह अपने सासससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई. बोली, ‘‘आप को क्या लगता है तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?’’ कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया.

बहू का इशारा समझ कर विनय गुस्से में तमतमाता हुए घर से बाहर निकल गए. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गईं.

यह कोई कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गए हों, लेकिन सोच अभी भी वही है.

इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वह है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचारपत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज चैनल पर बहस हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तसवीर दिखासुना रहा है और वह है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा.

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बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहां महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए? सोशल मीडिया पर तालिबानियों को खूब कोसा जा रहा है. महिलाओं को उन के ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंगरूम में भी यही खबरें माहौल को गरम किए हुए हैं.

कहां है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो, लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.  किसी और का उदाहरण क्या दें, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को ले कर कितने ओछे विचार रखते हैं इस की बानगी देखिए:

‘‘महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं कि उस से लोग उत्तेजित हो जाते हैं,’’ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

‘‘लड़के लड़के होते हैं, उन से गलतियां हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है,’’ सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

‘‘अगर 2 मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते,’’ जेके जौर्ज.

‘‘शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नईनई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसेजैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वह मजा नहीं रहता,’’ कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

अभद्र बयान

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को ले कर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर को ‘50 लाख की गर्लफ्रैंड’ कह कर विवाद को जन्म दिया था.

इस के अतिरिक्त महिलाओं को ‘टचमाल’ कह कर दिग्विजय सिंह, ‘परकटी’ कह कर शरद यादव, और ‘टनाटन’ कह कर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

‘‘फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना,’’ जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पोशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढि़या नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाएं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंख्वार हो उठता है जिस की परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाओं होती है. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ कायरता व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्नभिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है, किंतु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वह यह कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उन की सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनेच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहां तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैर्सिगक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

गलत प्रथा

मुसलिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में ‘इक्विटी नाऊ’ द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति सम?ो जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुसलिम पर्सनल ला के अनुसार मुसलमानों को 4 शादियां करने की छूट है. हिंदू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन यदाकदा इस की सूचनाएं आती रहती हैं.

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गुजरात प्रांत में ‘करार’ नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहींकहीं लुकेछिपे आज भी जारी है. इस में स्त्रीपुरुष बाकायदा करार कर के साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार ‘लिव इन रिलेशनलशिप’ जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस में लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं कराती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालांकि गुजरात के उच्च न्यायालय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

स्त्रीपुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गौड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वूमन को उस की पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबा कर रखे और उस से खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन

ताजा हालात के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व के लिए सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उन की स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किए जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढ़ने की इजाजत तो दी गई है, लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उन से किसी तरह का कोई संपर्क नहीं रखेंगी.

यों देखा जाए तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है, लेकिन यहां इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90% महिलाएं हिंसा का शिकार हैं और 17% ने यौन हिंसा ?ोली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओं के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अकसर पढ़नेसुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घंटे लगभग 39 अपराध होते हैं, जिन में 11% हिस्सेदारी बलात्कार की है.

यौन हिंसा की शिकार

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एकतिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पैरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन ‘जीन सौरेस’ के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12% है यानी देश की हर 8वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी, 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सब से विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहां भी हर 5वीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात यह है कि इन में से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में रेप का शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11% यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इन का विरोध भी इसी पीढ़ी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किए जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है या फिर 40-50 तक आतेआते उन की संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करतीं. वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई थीं कि उन्हें ऐडवैंचर से दूर रहना चाहिए.

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उत्तर कोई नहीं

अमूमन घर की बड़ीबूढि़यां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपनेअपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं यह युवा पीढ़ी के प्रति उन की ईर्ष्या  तो नहीं? कहीं यह विचार तो उन से यह सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रहीं वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले? ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सासबहू के बीच तनातनी देखी जाती है.

सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मार कर ?ोली थी, वह यों ही बिना किसी एहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरुषप्रधान समाज का कोई डर उन के अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपनी ही प्रजाति के खिलाफ खड़ा कर रहा हो?

प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा ‘नर्क का द्वार’ या फिर ‘शैतान की बेटी’ ही समझ जाता रहा है और उस के सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं, लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उस की उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

गुलाब जल के फायदे

गुलाब जल स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है. इस के एक नहीं बल्कि कई फायदे होते हैं, यह न सिर्फ स्किन को कूल करता है बल्कि -झुर्रियों को दूर रखने में भी मदद करता है. अगर आप इसका रोज इस्तेमाल करें तो फर्क खुद महसूस कर सकेंगे.

– गुलाब जल में रुई भिगाएं और फिर इसे फेस पर लगाएं. स्किन इसे सोख ले तो अपनी पसंद की क्रीम लगाएं.

– दही और नींबू के साथ गुलाब जल मिलाएं. इस मिक्स को चेहरे पर लगाएं. यह डार्क स्पॉट्स को हटाने में मदद करेगा.

– दही, बेसन और गुलाब जल को मिलाकर मिक्स तैयार करें. इसे फेस पर लगाएं और 10 मिनट बाद धो लें. इस से स्किन सॉफ्ट होगी और निखार आएगा.

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– गुलाब जल को आइस ट्रे में डालकर फ्रीजर में रख दें. जब यह क्यूब्स अच्छे से जम जाएं तो इनसे चेहरे को हल्के हाथ से रब करें. स्किन को ठंडक मिलने के साथ ही ब्लड सर्कुलेशन भी बेहतर होगा.

दही के साथ गुलाब जल मिलाकर लगाएं इससे स्किन व्हाइटनिंग में मदद मिलेगी.

– गुलाब जल का अगर रोज इस्तेमाल किया जाए तो इससे फेस पर आइल के कारण होने वाले पिंपल्स की समस्या दूर हो जाती है.

– धूप से स्किन जल सी जाती है. गुलाब जल इसमें राहत देता है.

– चेहरे पर जलन की समस्या हो तो गुलाब जल लगाएं. तुरंत राहत मिलेगी.

– इस से स्किन को हाइड्रेट रखने में भी मदद मिलती है.

– जलने और कटने के निशानों को हटाने में भी इससे मदद मिलती है. गुलाब जल पुराने समय से ही बहुत चर्चा में रहा है, क्यूंकि इसके नतीजे बहुत ही जल्दी देखे गए है. अयूर हर्बल्स रोज वाटर अभी तक का बेस्ट माना गया है, इस के एक इस्तेमाल से आपकी त्वचा पर निखार दिखाई देगा.

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क्यों सहें दर्द चुपचाप

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियां सुनी और सुलझई जाती हैं. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया है, इसलिए वह संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया. दरअसल, आयोग अध्यक्षा टीवी पर लाइव महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं. इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला आयोग की अध्यक्षा को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उस के पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं.

अध्यक्षा को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उस की शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा कि अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो भुगतो. उन का पीडि़ता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

मगर जातेजाते वे यह कहना नहीं भूलीं कि औरतें फोन कर के शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया काररवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इस के बाद से आयोग अध्यक्षा घेरे में आ गईं कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है. बात भले ही आ कर अध्यक्षा की रुखाई पर सिमट गई, लेकिन गौर करें तो मामला कुछ और ही है.

दरअसल, मारपीट की शिकायत ले कर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उस के पति को बुला कर समझए या सास पर रोब जमा कर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया तो तुम्हारी खैर नहीं वरना क्या वजह है कि औरतें शिकायत ले कर आती तो हैं, लेकिन पुलिस के दखल की बात सुनते ही लौट जाती हैं.

जुल्म सहने को मजबूर

ममता बदला हुआ नाम के पति और सास उस पर जुल्म करते हैं. रोतीकलपती वह अपने मायके पहुंच जाती है. पर उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि उन की शिकायत ले कर पुलिस में जाए. कारण, एक डर कि अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गई और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात यह भी कि पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहां जाएगी? ममता 2 बच्चों की मां है और उस का मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अकसर पति, ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत ले कर नहीं जाती है यह सोच कर कि घर की बात घर में ही रहनी चाहिए और फिर अगर पति का घर छूट गया तो वह कहां जाएगी? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.

वूमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इस में रेप छोड़ कर बाकी सारी बातें शामिल हैं. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बातबात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई जिम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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यौन हिंसा

भारत में महिलाओं पर सब से ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे ने 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवालजवाब हुए थे, जिन से पता चला कि शादीशुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा ?ोलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झरखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा पढ़ाईलिखाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते ?िझकती है.

देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती है लेकिन इन में से केवल 0.1% महिलाओं ने ही इस के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है.

हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आ कर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उन्हें बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अकसर मांबाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी? जमाना देख रही हो? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है.

ज्यादा पढ़लिख गई तो फिर लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा. वगैरहवगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदे पर चली जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उस के जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है. बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न सम?ो, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुखतकलीफ अगर मां से कहे तो नसीहतें मिलती है कि जहां 4 बरतन होते हैं खटकते ही हैं. यहां तक कि गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपनी ससुराल में टिकी रहे. लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उस के लिए सच में पराया बन गया और जब अपने ही उस की बात नहीं सुन रहे हैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा? और रिश्ता ही बिगड़ेगा, यह सोच कर लड़की चुप रहती है.

आर्थिक निर्भरता नहीं

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहां जाएंगी? बच्चे कैसे पलेंगे? बच्चों व पति के बीच महिलाएं अपनी पढ़ाईलिखाई को भी भूल जाती हैं. उन के पास भी कोई डिगरी है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलीयत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. मगर पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है?

कहने को तो लगभग हर साल औरतमर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होते हैं, रिसर्च होती हैं, कुछ कमेटियां बैठती हैं. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सूराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में जहां शादियों को पवित्र रिश्ते का नाम दिया गया है. वहां एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता. मुंबई की एक महिला ने सैशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए और जिस के चलते उसे कमर तक लकवा मार गया. इस के साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं.

+???साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना कुदरती बताया और यह भी कहा कि इस के लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. 2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

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मैरिटल रेप क्या है

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उस के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

भारत में क्या है कानून

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता. आईपीसी की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है. यह कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इस में कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सैक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही यह इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबरदस्ती या पत्नी की मरजी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलगअलग अदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सैशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के 4 केस कोर्ट तक पहुंचे, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया. सोशल मीडिया पर इस फैसले को ले कर बहस छिड़ गई.

जैंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी? उन के ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी? तो दूसरे ने कहा उस के चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का यह कानून भारत में 1860 से लागू है. इस के सैक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिस के अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सैक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सैक्स की सहमति छिपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

यह कैसा कानून

मगर दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी 1991 में मैरिटल रेप को यह कहते हुए अपराध की श्रेणी में रख दिया कि छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है. भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता और इसी वजह से कई महिलाएं शादीशुदा जिंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी, 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक एमएनसी ऐग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया कि मैं हर रात उन के लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी, जिसे वे अलगअलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे. जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सैक्स के दौरान मु?ो टौर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैं ने मना किया तो उन्हें यह बात बरदाश्त नहीं होती थी. 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है?

सीनियर ऐडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सैक्शन 498 के तहत सैक्सुअल असौल्ट का केस दर्ज करा सकती है. इस के साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सैक्सुअल असौल्ट का केस कर सकती हैं.

इस के साथ ही अगर आप को चोट लगी है तो आप आईपीसी की धाराओं में भी केस कर सकती हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सुबूत दिखाना मुश्किल होगा. वे कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहां यह कितना सफल रहा है, इस से कितना गुनाह रुका है यह कोई नहीं जानता.

चौकाने वाला सच

1980 में प्रोफैसर बख्शी उन जानेमाने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े कानूनों में संशोधन को ले कर कई सुझव भेजे थे. उन का कहना था कि समिति ने उन के सभी सुझव स्वीकार कर लिए थे सिवा मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझव के. उन का मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सैक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

मगर सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इस का इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियां और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर कर इस अपमानजनक कानून को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वाच और एमनेस्टी इंटरनैशनल ने भी भारत के इस रवैए पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उन का यह भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस में पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी अस्वभाविक है. इसी वजह से इस से संबंधित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खरोचें तो असली चेहरा दिखता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है क्योंकि यहां दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं हैं. पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न कर सकता है.

वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है. बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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एकतिहाई पुरुष मानते हैं कि वे जबरन संबंध बनाते हैं:

द्य इंटरनैशनल सैंटर फार वूमेन और यूनाइटेड नेशंस पौपूलेशन फंड की ओर से 2014 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार एकतिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नी के साथ जबरन सैक्स करते हैं.

द्य नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे: 3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उन के पति जबरन उन के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.

द्य एक सरकारी सर्वे के मुताबिक 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उन के पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं. यूनिवर्सिटी औफ वारविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफैसर रहे उपेंद्र बख्शी का कहना है कि मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वे कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है.

मेरी माहवारी बंद होने वाली है, इसके कारण किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

सवाल-

मुझे लगता है मेरी माहवारी बंद होने वाली है. इस में मुझे किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा?

जवाब- 

माहवारी बंद होना यानी मेनोपौज के बाद आप को हौट फ्लैशेज और वैजाइनल ड्राईनैस जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. हौट प्लैशेज के कारण रात को अत्यधिक पसीना आने से आप की नींद खराब हो सकती है. वैजाइनल ड्राईनैस से बचने के लिए आप वाटर बेस्ड ल्यूब्रिकैंट या वैजाइनल ऐस्ट्रोजन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. कुछ महिलाओं में मूड स्विंग और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं भी देखी जाती हैं. इन से बचने के लिए संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें, शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और अनुशासित दिनचर्या का पालन करें.

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मासिकधर्म लड़कियों व महिलाओं में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है. इस दौरान शरीर में अनेक हारमोनल बदलाव होते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभाव डालने के कारण तनाव का कारण बन सकते हैं. कई कारण इस के जिम्मेदार हो सकते हैं.

कई महिलाएं मासिकधर्म शुरू होने से पहले या इस दौरान तनाव की ऐसी स्थिति से गुजरती हैं, जिस में उन्हें चिकित्सकीय इलाज की भी जरूरत होती है. यह सामान्य बात है कि तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन जिंदगी और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है.

पीरियड्स के दौरान अगर थोड़ाबहुत तनाव महसूस हो, तो यह एक सामान्य स्थिति मानी जाती है. प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षणों का मुख्य कारण ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस के लैवल में बदलाव आना होता है.

सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तनाव से ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा होती है, जो मासिकधर्म के दौरान और बढ़ सकती है, क्योंकि ये हारमोनल ‘रोलर कोस्टर’ आप के ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर्स, जिन में सैरोटोनिन और डोपामाइन हैं, पर प्रभाव डाल सकते हैं, जो मूड को ठीक रखने का काम करते हैं. इस के अलावा जिन लड़कियों या महिलाओं को पहले पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक ऐंठन या ब्लीडिंग होती है, वे पीरियड्स शुरू होने से पहले दर्द व असुविधा को ले कर चिंतित हो सकती हैं, जो तनाव का कारण बनता है.

ये लक्षण आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करने के लिए काफी गंभीर होते हैं, जिन में चिड़चिड़ापन या क्रोध की भावना, उदासी या निराशा, तनाव या चिंता की भावना,मूड स्विंग या बारबार रोने को मन करना, सोचने या ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, थकान या कम ऊर्जा, फूड क्रेविंग या ज्यादा खाने की इच्छा, सोने में दिक्कत, भावनाओं को कंट्रोल करने में परेशानी और शारीरिक लक्षण, जिन में ऐंठन, पेट फूलना, स्तनों का मुलायम पड़ना, सिरदर्द और जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द शामिल है.

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