लेखिका- शकीला एस हुसैन
धीरे धीरे रेनू ने अंकल के कान भरने शुरू कर दिए. अब नीरज उन की नजरों में भी खटकने लगा. बेवजह के ताने व प्रताड़ना शुरू हो गई. उस दिन तो हद हो गई, उसे एक किताब की जरूरत थी, उस ने अंकल से पैसे मांगे. इस बात को ले कर इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया कि अतीत के सारे कालेपन्ने खोल कर उसे सुनाए गए. उस पर किए गए एहसान जताए गए, खर्च के हिसाब बताए गए. नीरज खामोश खड़ा सब सुनता रहा. उस के पास कहने को क्या था? उस के मांबाप ने उसे ऐसी स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया था कि शरम से उस का सिर झुक जाता था. अच्छे मार्क्स लाने के बाद उस की न कोई कद्र थी, न कोई तारीफ. 10वीं में उस के 97 फीसदी नंबर आए थे. स्कौलरशिप मिल रही थी. पढ़ाई के सारे खर्चे उसी में से पूरे हो जाते. कभीकभार किताबें वगैरा के लिए कुछ पैसे मांगने पड़ते थे. उस पर भी हंगामा खड़ा हो जाता.
उस दिन वह अपने कमरे में आ कर बेतहाशा रोया. उस के मांबाप ने अपनी मुहब्बत व अपने ऐश, अपनी सहूलियतों, अपने स्वार्थ के लिए उस की जिंदगी बरबाद कर दी थी. अगर उन दोनों ने विधिवत शादी की होती, अपनी जिम्मेदारी समझी होती तो ननिहाल या ददिहाल में से कोई भी उसे रख लेता. उस की जिंदगी यों शर्मसार न हुई होती. उसी दिन रात को उस ने तय किया कि 12वीं पास होते ही वह यह घर छोड़ देगा. अपने बलबूते पर अपनी पढ़ाईर् पूरी करेगा. 12वीं उस ने मैरिट में उत्तीर्ण की. पर घर में कोई खुशी मनाने वाला न था. रूखीफीकी मुबारकबाद मिली. बस, बूआ ने बहुत प्यार किया. अपने पास से मिठाई मंगा कर उसे खिलाई. हां, उस के दोस्तों ने खूब सैलिब्रेट किया. 2-4 दिनों बाद उस ने घर छोड़ दिया. पढ़ाई के खर्चे की उसे कोई फिक्र न थी. स्कौलरशिप मिल रही थी. एक अच्छे स्टूडैंट के लिए कुछ मुश्किल नहीं होती.
उस की परफौर्मेंस बहुत अच्छी थी. उस का ऐडमिशन एक अच्छे कालेज में हो गया. उस ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर कमरा किराए पर ले लिया और ट्यूशन कर के निजी खर्च निकालने लगा. उस का पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था कि उसे 10वीं के बच्चों की ट्यूशन मिल गई. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. छुट्टियों में काम कर के कुछ और पैसे कमा लेता. बीई में उस ने पोजीशन ली. बीई के बाद उस के दोस्त ने जौब कर ली और दूसरे शहर में चला गया. मकानमालिक को कमरे की जरूरत थी, उसे वह घर छोड़ना पड़ा. फिर थोड़ी कोशिश के बाद उसे मिसेज रेमन के यहां कमरा मिल गया. यह खूब पुरसुकून व अच्छी जगह थी. उस ने दुनिया के सारे शौक, सारे मजे छोड़ दिए थे. उस की जिंदगी का बस एक मकसद था, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई. यहां भी वह ट्यूशन कर के अपना खर्च चलाता था. अब स्टोर में भी काम मिल गया, ये सब पुरानी बातें सोचतेसोचते वह नींद की आगोश में चला गया.
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नीरज का यह फाइनल सैमेस्टर था. कैंपस सिलैक्शन में उसे एक अच्छी कंपनी ने चुन लिया. जीभर कर उस ने खुशियां मनाई. फाइनल होने के बाद उस ने वही कंपनी जौइन कर ली. शानदार पैकेज, बहुत सी सहूलियतें जैसे उस की राह देख रही थीं. मिसेज रेमन और मिस्टर जैकब को भी उस ने बाहर डिनर कराया. उन दोनों ने भी उसे तोहफे व दुआएं दे कर उस का हौसला बढ़ाया. मिसेज रेमन ने एक मां की तरह प्यार किया. बूआ को साड़ी व पैसे दिए. वक्त और हालात बदलते देर नहीं लगती. आज वह 6 साल का मजबूर व बेबस बच्चा न था, 24 साल का खूबसूरत, मजबूत और समृद्ध जवान था. एक शानदार घर में रह रहा था. दुनिया की सारी सुखसुविधाएं उस के पास थीं. पर फिर भी उस की आंखों में उदासी और जिंदगी में तनहाई थी. वह हर वीकैंड पर मिसेज रेमन से मिलने जाता. वही एकमात्र उस की दोस्त, साथी या रिश्तेदार थीं. अच्छा वक्त तो वैसे भी पंख लगा कर उड़ता है.
उस दिन शाम को वह लौन में बैठा चाय पी रहा था कि गेट पर एक टैक्सी आ कर रुकी. उस में से एक सांवली सी अधेड़ औरत उतरी और गेट खोल कर अंदर चली आई. नीरज उस महिला को पहचान न सका, फिर भी शिष्टाचार के नाते कहा, ‘‘बैठिए, आप कौन हैं?’’ उस औरत की आंखें गीली थीं. चेहरे पर बेपनाह मजबूरी और उदासी थी. उस ने धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘नीरज, तुम ने मुझे पहचाना नहीं. मैं सोनाली हूं, तुम्हारी मम्मी.’’ नीरज भौचक्का रह गया. कहां वह जवान और खूबसूरत औरत, कहां यह सांवली सी अधेड़ औरत. दोनों में बड़ा फर्क था. ‘मम्मी’ शब्द सुन कर नीरज के मन में कोई हलचल न हुई. उस की सारी कोमल भावनाएं बर्फ की तरह सर्द हो कर जम चुकी थीं. अब दिल पर इन बातों का कोई असर न होता था. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कहिए, कैसे आना हुआ? आप को मेरा पता कहां से मिला?’’
‘‘बेटा, मैं दूर जरूर थी पर तुम से बेखबर न थी. तुम्हारा रिजल्ट, तुम्हारी कामयाबी, नौकरी सब की खबर रखती थी. इंटरनैट से दुनिया बहुत छोटी हो गई है. जीजाजी से मिसेज रेमन का पता चला. उन से तुम्हारे बारे में मालूम हो गया. इस तरह तुम तक पहुंच गई. मैं जानती हूं, मेरा तुम से माफी मांगना व्यर्थ है क्योंकि जो कुछ मैं ने किया है उस की माफी नहीं हो सकती. तुम्हारा बचपन, तुम्हारा लड़कपन, मेरी नादानी और मेरे स्वार्थ की भेंट चढ़ गया. मैं ने जज्बात में आ कर गलत फैसला किया. न मैं खुश रह सकी न तुम्हें सुख दे सकी. मैं ने वह खिड़की खुद ही बंद कर दी जहां से ताजी हवा का झोंका, मुहब्बत की ठंडी फुहार मेरे तपते वजूद की तपिश कम कर सकती थी. मैं ने थोड़े से ऐश की खातिर उम्रभर के दुखों से सौदा कर लिया. अब सिर्फ पछतावा ही मेरी जिंदगी है.’’
‘‘ठीक है, सोनाली मैम, जो आप ने किया, सोचसमझ कर किया था. आज से 30-32 साल पहले ‘लिवइन रिलेशनशिप’ इतनी आम बात न थी. बहुत कम लोग यह कदम उठाते थे. आप उस समय इतनी बोल्ड थीं, आप ने यह कदम उठाया. फिर उस को निभाना था. एक बच्चे को जन्म दे कर आप ने उस की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया. न मेरा कोई ननिहाल रहा, न ददिहाल. मैं ने कैसे खुद को संभाला, यह मैं जानता हूं. ‘‘जिस उम्र में बच्चे मां के सीने पर सिर रख कर सोते हैं उस उम्र में मैं ने तकिए से लिपट कर रोरो कर रातें काटी हैं. आप ने और पापा ने सिर्फ अपने ऐश देखे. एक पल को भी, उस बच्चे के बारे में न सोचा जिसे दुनिया में लाने के आप दोनों जिम्मेदार थे. अब मेरी मासूमियत, मेरा बचपन, मेरी कोमल भावनाएं सब बेवक्त मर चुकी हैं.’’
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‘‘नीरज, तुम जो भी कह रहे हो, एकदम सच है. मैं ने हर कदम सोचसमझ कर उठाया था. पर उस के अंजाम ने मुझे ऐसा सबक सिखाया है कि हर लमहा मैं खुद को बुराभला कहती हूं. मलयेशिया में मैं ने दूसरी शादी की थी. पर 6 साल तक मुझे औलाद न हुई तो उस ने मुझे तलाक दे दिया. उसे औलाद चाहिए थी और मैं मां न बन सकी. औलाद की बेकद्री की मुझे सजा मिल गई. मैं औलाद मांगती रही, मेरे बच्चा न हुआ. सारे इलाज कराए. यहां औलाद थी तो मैं ने दूसरों को दे दी. मेरे गुनाहों का अंत नहीं है. ‘‘मुझे कैंसर है. थोड़ा ही वक्त मेरे पास है. मैं अपने गुनाहों का, अपनी भूलों का प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. अब मैं तुम्हारे पास रहना चाहती हूं. मैं तनहाई से तंग आ गई हूं. मुझे तुम्हारी तनहाई का भी एहसास है. पैसा है मेरे पास, पर उस से तनहाई कम नहीं होती. भले तुम मुझे खुदगर्ज समझो पर यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. एक बार मुझे मेरी गलतियां सुधारने का मौका दो. अपनी बेबस व मजबूर मां की इतनी बात रख लो.’’
नीरज सोच में पड़ गया. एक बार दिल हुआ, मां को माफ कर दे. दूसरे पल संघर्षभरे दिन, अकेले रोतेरोते गुजारी रातें याद आ गईं. उस ने धीमे से कहा, ‘‘सोनाली मैम, इतने सालों से मैं बिना रिश्तों के जीने का आदी हो गया हूं. रिश्ते मेरे लिए अजनबी हो गए हैं. मुझे थोड़ा वक्त दीजिए कि मैं अपने दिल को रिश्ते होने का यकीन दिला सकूं, अपनों के साथ जीने का तरीका अपना सकूं. ‘‘इतने सालों तक तपते रेगिस्तान में झुलसा हूं, अब एकदम से ठंडी फुहार बरदाश्त न कर सकूंगा. मुझे अपनेआप को ‘मां’ शब्द से मिलने का, समझने का मौका दीजिए. अभी मुझे नए तरीकों को अपनाने में थोड़ी हिचकिचाहट है. जैसे ही मुझे लगेगा कि मैं ने मां को पहचान लिया है, मैं आप को खबर कर के लेने आ जाऊंगा. आप अपना फोन नंबर और पता मुझे दे जाइए.’’
सोनाली ने एक उम्मीदभरी नजर से बेटे को देखा. उस की आंखें डबडबा गईं. वह थकेथके कदमों से गेट की तरफ मुड़ गई.
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