अस्तित्व: भाग 2- क्या प्रणव को हुआ गलती का एहसास

लेखक- नीलमणि शर्मा

‘क्या सहन कर रही हो तुम, जरा मैं भी तो सुनूं. ऐसा स्टेटस, ऐसी शान, सोसाइटी में एक पहचान है तुम्हारी…और कौन सी खुशियां चाहिए?’

तनु तंग आ गई इन बातों से. हार कर उस ने कह दिया,  ‘देखो प्रणव, यह रोज की खिचखिच बंद करो. अब इस उम्र में मुझ से और सहन नहीं होता. मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’

‘नहीं सहन होता तो चली जाओ यहां से, जहां अच्छा लगता है वहां चली जाओ. क्यों रह रही हो फिर यहां.’

‘चली जाऊं, छोड़ दूं, उम्र के इस पड़ाव पर, आप को बेशक यह कहते शर्म नहीं आई हो, पर मुझे सुनने में जरूर आई है. इस उम्र में चली जाऊं, शादी के 30 साल तक सब झेलती रही, अब कहते हो चली जाओ. जाना होता तो कब की सबकुछ छोड़ कर चली गई होती.’

तनु तड़प उठी थी. जिंदगी का सुख प्रणव ने केवल भौतिक सुखसुविधा ही जाना था. पूरी जिंदगी अपनेआप को मार कर जीना ही अपनी तकदीर मान जिस के साथ निष्ठा से बिता दी, उसी ने आज कितनी आसानी से उसे घर से चले जाने को कह दिया.

‘हां, आज मुझे यह घर छोड़ ही देना चाहिए. अब तक पूरी जिंदगी प्रणव के हिसाब से ही जी है, यह भी सही.’ सारी रात तनु ने इसी सोच के साथ बिता दी.

शादी के बाद कितने समय तक तो तनु प्रणव का व्यवहार समझ ही नहीं पाई थी. किस बात पर झगड़ा होगा और किस बात पर प्यार बरसाने लगेंगे, कहा नहीं जा सकता. कालिज से आने में देर हो गई तो क्यों हो गई, घरबार की चिंता नहीं है, और अगर जल्दी आ गई तो कालिज टाइम पास का बहाना है, बच्चों को पढ़ाना थोड़े ही है.

दुनिया की नजर में प्रणव से आदर्श पति और कोई हो ही नहीं सकता. मेरी हर सुखसुविधा का खयाल रखना, विदेशों में घुमाना, एक से एक महंगी साडि़यां खरीदवाना, जेवर, गाड़ी, बंगला, क्या नहीं दिया लेकिन वह यह नहीं समझ सके कि सुखसुविधा और खुशी में बहुत फर्क होता है.

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तनु की विचारशृंखला टूटने का नाम ही नहीं ले रही थी…मैं इन की बिना पसंद के एक रूमाल तक नहीं खरीद सकती, बिना इन की इच्छा के बालकनी में नहीं खड़ी हो सकती, इन की इच्छा के बिना घर में फर्नीचर इधर से उधर एक इंच भी सरका नहीं सकती, नया खरीदना तो दूर की बात… क्योंकि इन की नजर में मुझे इन चीजों की, इन बातों की समझ नहीं है. बस, एक नौकरी ही है, जो मैं ने छोड़ी नहीं. प्रणव ने बहुत कहा कि सोसाइटी में सभी की बीवियां किसी न किसी सोशल काम से जुड़ी रहती हैं. तुम भी कुछ ऐसा ही करो. देखो, निमिषा भी तो यही कर रही है पर तुम्हें क्या पता…पहले हमारे बीच खूब बहस होती थी, पर धीरेधीरे मैं ने ही बहस करना छोड़ दिया.

आज मैं थक गई थी ऐसी जिंदगी से. बच्चों ने तो अपना नीड़ अलग बना लिया, अब क्या इस उम्र में मैं…हां…शायद यही उचित होगा…कम से कम जिंदगी की संध्या मैं बिना किसी मानसिक पीड़ा के बिताना चाहती हूं.

प्रणव तो इतना सबकुछ होने के बाद भी सुबह की उड़ान से अपने काम के सिलसिले में एक सप्ताह के लिए फ्रैंकफर्ट चले गए. उन के जाने के बाद तनु ने रात में सोची गई अपनी विचारधारा पर अमल करना शुरू कर दिया. अभी तो रिटायरमेंट में 5-6 वर्ष बाकी हैं इसलिए अभी क्वार्टर लेना ही ठीक है, आगे की आगे देखी जाएगी.

तनु को क्वार्टर मिले आज कई दिन हो गए, लेकिन प्रणव को वह कैसे बताए, कई दिनों से इसी असमंजस में थी. दिन बीतते जा रहे थे. प्रोफेसर दीप्ति, जो तनु के ही विभाग में है और क्वार्टर भी तनु को उस के साथ वाला ही मिला है, कई बार उस से शिफ्ट करने के बारे में पूछ चुकी थी. तनु थी कि बस, आजकल करती टाल रही थी.

सच तो यह है कि तनु ने उस दिन आहत हो कर क्वार्टर के लिए आवेदन कर दिया था और ले भी लिया, पर इस उम्र में पति से अलग होने की हिम्मत वह जुटा नहीं पा रही थी. यह उस के मध्यवर्गीय संस्कार ही थे जिन का प्रणव ने हमेशा ही मजाक उड़ाया है.

ऐसे ही एक महीना बीत गया. इस बीच कई बार छोटीमोटी बातें हुईं पर तनु ने अब खुद को तटस्थ कर लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि प्रणव के विस्फोट का एक बहाना उस ने स्वयं ही उसे थाली में परोस कर दे दिया है.

कालिज से मिलने वाली तनख्वाह बेशक प्रणव ने कभी उस से नहीं ली और न ही बैंक मेें जमा पैसे का कभी हिसाब मांगा पर तनु अपनी तनख्वाह का चेक हमेशा ही प्रणव के हाथ में रखती रही है. वह भी उसे बिना देखे लौटा देते हैं. इतने वर्षों से यही नियम चला आ रहा है.

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तनु ने जब इस महीने भी चेक ला कर प्रणव को दिया तो उस पर एक नजर डाल कर वह पूछ बैठे, ‘‘इस बार चेक में अमाउंट कम क्यों है?’’

पहली बार ऐसा सवाल सुन कर तनु चौंक गई. उस ने सोचा ही नहीं था कि प्रणव चेक को इतने गौर से देखते हैं. अब उसे बताना ही पड़ा,  ‘‘अगले महीने से ठीक हो जाएगा. इस महीने शायद स्टाफ क्वार्टर के कट गए होंगे.’’

अभी उस का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था, ‘‘स्टाफ क्वार्टर के…किस का…तुम्हारा…कब लिया…क्यों लिया… और मुझे बताया भी नहीं?’’

तनु से जवाब देते नहीं बना. बहुत मुश्किल से टूटेफूटे शब्द निकले,  ‘‘एकडेढ़ महीना हो गया…मैं बताना चाह रही थी…लेकिन मौका ही नहीं मिला…वैसे भी अब मैं उसे वापस करने की सोच रही हूं…’’

‘‘एक महीने से तुम्हें मौका नहीं मिला…मैं मर गया था क्या? यों कहो कि तुम बताना नहीं चाहती थीं…और जब लिया है तो वापस करने की क्या जरूरत है…रहो उस में… ’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने रहने के लिए नहीं लिया…’’

‘‘फिर किसलिए लिया है?’’

‘‘उस दिन आप ने ही तो मुझे घर से निकल जाने को कहा था.’’

‘‘तो गईं क्यों नहीं अब तक…मैं पूछता हूं अब तक यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई. समाज क्या कहेगा आप को कि इस उम्र में अपनी पत्नी को निकाल दिया…आप क्या जवाब देंगे…आप की जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा?’’

‘‘मैं समाज से नहीं डरता…किस में हिम्मत है जो मुझ से प्रश्न करेगा और मेरी जरूरतों के लिए तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है…जिस के मुंह पर भी चार पैसे मारूंगा…दौड़ कर मेरा काम करेगा…मेरा खयाल कर के नहीं गई…चार पैसे की नौकरी पर इतराती हो. अरे, मेरे बिना तुम हो क्या…तुम्हें समाज में लोग मिसिज प्रणव राय के नाम से जानते हैं.’’

आगे पढ़ें- तनु इस अपमान को सह नहीं पाई और…

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अजंता: भाग 4- आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

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अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

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उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

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‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि…

Nepotism से लेकर मजेदार किस्सों के बारे में क्या बताते हैं 60s और 70s के सुपरस्टार विश्वजीत चटर्जी, पढ़ें इंटरव्यू

कोविड ने आज सबकी लाइफस्टाइल बदल दी है, कोविड की वजह से किसी का किसी के साथ मिलना, मौज-मस्ती करना, फेस्टिवल का आनंद लेना सब बदल चुका है, आज भी लोग जरुरत के बिना घर से बाहर निकलना पसंद नहीं करते. आसपास के माहौल में काफी डर है. अभी भी कोरोना के मरीज हर कोविड अस्पतालों में है.खुलकर जीने की जो आदत लोगों की विश्व में थी, उसे फिर से वापस पाने में शायद कुछ साल और बीत जायेगे, लेकिन इस कोविड ने फिल्म इंडस्ट्री के वयस्कों के मानसिक और शारीरिक क्षमता को कमजोर किया है, फलस्वरूप इरफ़ान खान, ऋषि कपूर, सौमित्र चटर्जी, दिलीपकुमार, लतामंगेशकर, संध्या मुखर्जी और बप्पी लहड़ी जैसे कई प्रसिद्ध लोग पिछले दो सालों में गुजर चुके है, ऐसे में किसी के भी जीवन गारंटी आज नहीं है, जितना समय मिलता है, उसे अच्छी तरह से बिता लेना ही अच्छा होता है,ऐसा कहते है 60 और 70 के सुपरस्टार, अभिनेता, प्रोड्यूसर, सिंगर विश्वजीत चटर्जी. उनके हिसाब से बचना और जिन्दा रहना ये दो अलग बाते है, जो किसी के हाथ में नहीं है. इसका प्रभाव आज कोविड की वजह से हर किसी के जीवन पर है. हालाँकि वैक्सीन से कुछ राहत मिली है, पर विश्वजीत का परिवार सभी निर्देशों को पालन कर भी कोविड की दूसरी लहर के शिकार हुए और बहुत मुश्किल से ठीक हुए. उनकी पत्नी ईरा चटर्जी बहुत खुश मिजाज स्वभाव की है और विश्वजीत चटर्जीअपने लम्बे जीवन में उनका सौ प्रतिशत हाथ मानते है. मध्यप्रदेश की ईरा चटर्जी को गृहशोभा बहुत पसंद है. विश्वजीत ने खास गृहशोभा के लिए बात की और उन नौस्टाल्जिक पहलूओं को याद किया, आइये जानते है, क्या कहा उन्होंने.

हुई फिल्म इंडस्ट्री की क्षति

बिश्वजीत इस महामारी की वजह से फिल्म इंडस्ट्री पर हुए प्रभाव से दुखी है और कहते है कि इस बीमारी पर अभी तक सही रिसर्च नहीं हो पाया है, इसलिए आगे कुछ भी कह पाना संभव नहीं है.इसे जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करने और विश्व को नाश करने के उद्देश्य से ही तैयार किया गया है. इसलिए इसका इलाज भी उनके पास है, जिन्होंने इसका निर्माण किया है.कोविड की वजह से आज पूरा विश्व एक अलग तरह से जी रहा है. मेरा विश्वास है कि इस समय सभी को साहस के साथ रहना है, ताकि सभी मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रहे, क्योंकि मन से शरीर का सम्बन्ध होता है और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति शारीरिक रूप से भी कमजोर हो जाता है. डर को अपने पास से हटायें, ताकि आप किसी भी परिस्थिति से उबरने में सक्षम हो.

काम में रही पारदर्शिता

इन दिनों विश्वजीत ऑटोबायोग्राफी लिख रहे है और उन्हें संगीत से लगाव हमेशा रहा है,कोलकाता में उनके बांग्ला गीत आज भी बजते है. वे विवेकानंद के विचार से बहुत प्रभावित है. विश्वजीतअपने जमाने के सुपर स्टार माने जाते रहे और आज भी उनके नाम के आगे कोई सुपर स्टार लगाना नहीं भूलता, लेकिन 60 और 70 के दशक में कलाकारों के काम में पारदर्शिता और काम करने का पैटर्न के बारें में पूछने पर वे हँसते हुए कहते है कि मैंने उस दौर में काम किया जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे आज बॉलीवुड भी कहते है,वह ‘गोल्डन पीरियड ऑफ़ फिल्म’ कहा जाता था. ये केवल कहने के लिए नहीं, असल में भी गोल्डन ही था, क्योंकि तब कोशिश ये होती थी कि कलाकार का अभिनय इतनी अच्छी हो कि लोग सालों तक उन्हें याद रखें और यही जुनून मुझमे भी था. पैसे के बारें में तब कोई सोचते नहीं थे या कुछ अच्छा पैसा मिलने पर एक फिल्म छोड़कर दूसरी फिल्म में काम करने लगे,ऐसा भी नहीं था. अच्छा काम और समय से काम करना मुख्य था. उस समय निर्देशक भी वैसे ही हुआ करते थे, जो बड़ी लगन से एक फिल्म को बनाते थे. आज सब कुछ बदल गया है, अब काम के  तरीके भी वैसे नहीं है, इसलिए अगर मुझे काम मिले, तो भी करना मुश्किल होगा, क्योंकि आज इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद, खेमेबाजी आदि कई चीजे घुस चुकी है, जो मेरे समय में ट्रांसपेरेंट था.

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दौर भाई-भतीजावाद की

विश्वजीत कहते है किसी का किसी से कोई झगडा या मनमुटाव नहीं था. एक कलाकार दूसरे कलाकार को अपना दोस्त मानते थे और दोस्ती कर अच्छा समय सेट पर बिताते थे. किसी का किसी से इर्ष्या नहीं होती थी, दो एक्टर एक ही ग्रीन रूम में बैठकर मेकअप करवाते थे. दिलीपकुमार, राजकपूर, देवानंद आदि सभी में एक दूसरे के प्रति प्यार था. ये सभी नए कलाकरों को गाइडेंस देते थे. बलराज साहनी, पृत्वीराजकपूर, अशोक कुमार आदि सभी ने मुझे एक्टिंग सिखाया है. ये मेरे बड़े भाई की तरह थे. मेरा नाम कैसे हो, इसके लिए बड़े एक्टर्स कोशिश करते थे, जबकि आज ऐसा नहीं है, एक बड़े स्टार को कैसे नीचे गिराना है, उसके बारें में आज के कलाकार सोचते है. मेरा दौर अब फिर से लौटकर नहीं आ सकता. इसके अलावा एक व्यक्ति जो उभर कर आगे आ रहा है, उसकी जिंदगी भी खत्म कर देते है. इस इंडस्ट्री से मुझे दुःख होता है.

हावी स्टार पॉवर

दुखी स्वर में विश्वजीत कहते है कि आज फिल्मकार फिल्म अपने हिसाब से नहीं बना सकते, स्टार पॉवर आज अधिक चलता है. मेरे समय में कोस्टार का चुनाव भी निर्देशक करते थे, जिसमें कभी आशा पारेख, माला सिन्हा या वहीदा रहमान होती थी.  डायरेक्टर , कैप्टेन ऑफ़ द शिप होते थे, उन्हें फिल्म कैसे बनानी है, उनका ही विजन होता था. आज तो हीरों डिक्टेट करते है, उनके हिसाब से ऐक्ट्रेस चुनी जाती है. यहाँ तक की कई बार एक्टर ही प्ले बैक सिंगर तय करते है. मैं तो इंडस्ट्री की हर बात को देख रहा हूँ, कि फिल्म इंडस्ट्री का हाल कैसा हो रहा है. ये हाल तबसे शुरू हुई है जब से कॉर्पोरेट हाउस इसमें घुसी है. इंडस्ट्री का हाल बुरा हो रहा है, वे व्यवसाई दिमाग से है, क्रिएटिविटी का उनपर कोई असर नहीं, वे ही एक्टर और एक्ट्रेस का निर्णय लेते है, ताकि उन्हें अच्छा पैसा मिल जाए, यही वजह है कि आज बड़े-बड़े अच्छे निर्देशक, कैमरामैन, कलाकार, सिंगर्स आदि सब घर पर बैठे है.

है कॉर्पोरेट का जमाना

विश्वजीत मानते है कि अभी कॉर्पोरेट का ही बोलबाला है और वे अपनी शर्तों पर फिल्में बनाते है. प्रोडक्शन का एक स्पॉट बॉय अगर किसी कॉर्पोरेट में जाकर किसी बड़े हीरो को लाने की बात कहता है, तो तुरंत कॉर्पोरेट हाउस उसे निर्देशक बना देता है, क्योंकि वह उस स्टार का चमचा है. जबकि उसे फिल्म मेकिंग की जानकारी नहीं है. फिल्म भी वैसी ही बनती है, स्टार के नाम से कॉर्पोरेट वाले पैसे कमा लेते है, लेकिन फिल्म दर्शकों के मन पर छाप नहीं डाल पाती. फिल्म के गाने तब तक हिट रहते है, जबतक फिल्म थिएटर में रहती है.मेरे समय के गाने आज भी लोग सुनते है, यूथ को भी वही गाने पसंद है. मेरे कई गानों को रिमिक्स भी किया गया है.

भावना परिवारवाद की

विश्वजीत आगे कहते है कि मैं जब फिल्मों में काम करता था, तब पूरी यूनिट एक परिवार की तरह हुआ करता था. मैं किसी भी एक्ट्रेस से बहुत जल्दी फ्रेंडली हुआ करता था, क्योंकि फ्रेंडली होने से क्रिएटिव काम अच्छा होता था. आज भी मेरी उन एक्ट्रेसेस के साथ अच्छे व्यवहार है. देश और विदेश में मेरे किसी भी शो में आशा पारेख और वहीदा रहमान जाती है.

आसान नहीं था मुंबई आना

कोलकाता से मुंबई आने की वजह के बारें में पूछने परविश्वजीतकहते है कि कोलकाता में मैं अमेचर थिएटर में कभी – कभी एक्टिंग कर लिया करता था. इससे पहले स्कूल में भी एक्टिंग किया है. इसके अलावा मेरी माँ की लेडिस क्लब में माँ ने चित्रांगदा, नटी विनोदिनी आदि कई डांस ड्रामा किया था और वह मुझे वहां ले जाती थी, वही से मुझे अभिनय की प्रेरणा जगी, लेकिन 13 साल की उम्र में मैंने माँ को खो दिया. मेरे पिता आर्मी के डॉक्टर थे,लेकिन बहुत कंजरवेटिव स्वभाव के थे. उन्हें एक्टिंग और गाना कुछ भी पसंद नहीं था. लेकिन मैंने अपनी पढाई पूरी कर थिएटर ज्वाइन किया, वहां धीरे-धीरे मैं जूनियर आर्टिस्ट से बड़ा एक्टर बन गया.कई बांग्ला फिल्म में मुझे हीरो की भूमिका मिली और सभी फिल्में हिट हुई, जिसमें माया मृग, दुई भाई आदि कई फिल्में थी. फिल्मों में काम करते हुए भी मैंने स्टेज का काम नहीं छोड़ा, मैं एक बांग्ला नाटक ‘साहब बीबी और गुलाम’ में हीरो की भूमिका कर रहा था. शो फुल हाउस चल रहा था,तब सिंगर हेमंत मुखर्जी ने मुझे स्टेज छोड़कर उनके साथ मुंबई आने को कहा , क्योंकि वह फिल्म ‘’20 साल बाद’बनाने वाले है. मैं उनके साथ मुंबई आया और बीस साल बाद फिल्म में एक्टिंग की, फिल्म सुपर हिट रही. इसके बाद मुझे सस्पेंस वाली फिल्में ही मिलने लगी जैसे कोहरा, बिन बादल बरसात, ये रात फिर न आएगी, जाल आदि सभी फिल्मों में सस्पेंस ही रहा, लेकिन मैंने अपना स्टाइल बदला और मेरे सनम , अप्रैल फूल, फेसबुक आदि मनोरंजक फिल्में की, इसके बाद कुछ घरेलू फिल्में आसरा, पैसा या प्यार, नई रौशनी, दो कलियाँ जैसे हर तरह की फिल्मों में अभिनय किये है.

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कुछ नौस्टाल्जिक बातें

दिलीप कुमार के साथ मैंने ‘फिर कब मिलोगी’ फिल्म में काम किया जिसके निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे. बहुत अच्छा अनुभव रहा. उन्हें मैं युसूफ भाई कहता था, वे बहुत ही अच्छे और सधे हुए कलाकार थे. वे हमारे बीच नहीं है, पर उन्हें मैं अमर मानता हूँ. मैं इंडस्ट्री में अशोक कुमार और दिलीप कुमार बनने की इच्छा से ही आया था. मैंने हर तरह के निर्देशकों के साथ अच्छा काम किया है, जैसे ऋषिकेश मुखर्जी, किशोर कुमार, मनमोहन देसाई, अनिल गांगुली ये सभी बहुत ही अच्छे निर्देशक रहे और उनके साथ काम करने में मजा भी खूब आया.

कुछ मजेदार बातें

  • विश्वजीत हँसते हुए कहते है कि अभिनेता महमूद, पंचम यानि राहुलदेव बर्मन और मैं बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे, उस समय में हीरो बन गया था. पंचम को ‘भूत’ फिल्म में लिया गया. महमूद हमेशा सबको खूब हंसाते थे. महमूद बांग्ला फिल्म ‘पाशेर बाड़ी’ का राईट लेकर आया और पड़ोसन फिल्म हिंदी में बनाई, लेकिन इसमें किशोर कुमार की भूमिका केवल वे ही कर सकते है, कोई दूसरा उसमें काम नहीं कर सकता, ऐसा सोचकर वे उनके पीछे पड़गए, फिल्म के लिए सुनील दत्त और शायरा बानू दोनों ने साईन कर दिया था पर किशोर कुमार उन्हें समय नहीं दे रहे थे. महमूद बहुत परेशान था और रोज मेरे सामने आकर रोता था, आखिर किशोर कुमार ने साईन की, फिल्म बनी और जबरदस्त हिट भी रही.
  • एक बार कश्मीर में दो से तीन यूनिट गए थे उसमें शशि कपूर और माला सिन्हा ‘जब जब फूल खिले’ फिल्म के लिए, मैं और आशा पारेख फिल्म ‘मेरे सनम ‘ के लिए शूट कर रहे थे, रात को मिलकर सभी गपशप करते थे, एक दिन एक कॉल आया कि मुझसे कोई मिलना चाहता है, मैं गया और बुर्का डाले एक लेडी आशापारेख के साथ बैठी थी,आशा पारेख ने मेरा परिचय करवाया, मैं सोफे पर बैठा था, वह महिला भी सोफे पर बैठ गयी, लेकिन वह महिला धीरे-धीरे खिसक कर मेरे पास आने लगी, मैं थोडा एलर्ट हो गया कि ये लेडी मेरे पास क्यों आ रही है? फिर वह मेरे गोद में बैठ गयी, मैं कूदकर गिरते हुए खड़ा हुआ और देखा कि वह शशि कपूर है. असल में आशा पारेख और शशि कपूर ने मिलकर मुझे बुद्धू बनाने का प्लान बनाया था.

बिछड़े कई लेजेंड्री

विश्वजीत ने तक़रीबन हर एक्ट्रेस के साथ काम किया है. उनका कहना है कि एक एक्टर हूँ इसलिए राजा हो या रंक किसी भी भूमिका से परहेज नहीं किया. मेरी एक बेटी राइमा चटर्जी है, वह डांसर और एक एक्ट्रेस है.कोरोना के कम होने की वजह से फिल्में अच्छी तरह से अब रिलीज हो रही है, कितने आर्टिस्ट आज नहीं है. सब ठीक होने के बाद भी बहुत सारे लोग गुजर चुके है और ये इंडस्ट्री के लिए गहरा धक्का है. पहले मेरी मैच्युरिटी नहीं थी और उस समय के काम को आज देखने पर लगता है कि मैं इसे और अधिक अच्छा कर सकता था. बांग्ला अभिनेता उत्तम कुमार काफी प्रसिद्ध इंसान थे, 4 से 5 फिल्में मैंने उनके साथ की है. वे हमेशा चुपरहकर अपना काम करते थे. हिंदी फिल्मों में अभी शाहरुख़ खान, नसीरुद्दीन शाह बहुत अच्छा काम करते है. सौमित्र चटर्जी जो बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री के एक महान कलाकार थे. मैं जब आकाशवाणी में प्ले करता था. तब वे एनाउंस किया करते थे, इससे मेरी दोस्ती उनसे हो गयी थी. उन्हें भारत रत्न निर्माता निर्देशक सत्यजीत रॉय ने फिल्म ‘अपूर संसार’के लिए साइन किया. बांग्ला फिल्म मोनिहार में मैंने उनके साथ काम किया. फिल्म प्लेटिनम जुबली हुई थी. सौमित्र कभी भी हिंदी फिल्मों में नहीं आना चाहते थे. वे सत्यजीत रॉय के फेवोरिट एक्टर थे. उनके गुजरने से बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री को बहुत आघात पहुंचा है, क्योंकि उन्होंने अंतिम दिनों तक काम किया है.

अंत में विश्वजीत चटर्जी का यूथ से कहना है कि जीवन में आये किसी भी चीज से खुश होना सीखे, क्योंकि सबको मौका अवश्य मिलता है. केवल धैर्य ही उन्हें मंजिल तक पहुंचा सकती है.

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सोशल मीडिया पर एक्स हसबैंड से भिड़ीं Rakhi Sawant, जानें क्या कहा

हमेशा सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस राखी सावंत  (Rakhi Sawant) पिछले दिनों अपने तलाक को लेकर काफी चर्चा में रही हैं. वहीं एक बार फिर उनकी शादी यानी एक्स हसबैंड से हुई ल़ड़ाई फैंस के सामने आ गई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

लड़ाई में आमने-सामने आए रितेश-राखी

 

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दरअसल, रितेश ने राखी सावंत की एक फोटो के साथ एक यू-ट्यूब का लिंक शेयर किया है, जिसमें राखी सावंत अपने एक्स हसबैंड को ‘बुड़बक’ कहती नजर आ रही हैं. वहीं इसी के चलते वीडियो को शेयर करते हुए रितेश सिंह ने कैप्शन में लिखा, ‘राखी जी एक सिंपल सजेशन है. प्लीज आप विश करो कि किसी गेम शो में आप मेरे सामने न आओ. वरना आपकी ऐसी बैंड बजेगी की आप दोबारा किसी शो में नहीं जाओगी. आपको बिग बॉस 15 का एक वाइल्ड कार्ड का क्या हाल किया था याद होगा. सो जस्ट चिल.’ हालांकि राखी सावंत ने भी करारा जवाब देते हुए रितेश को उनकी फोटो और ड्रामा बंद करने की सलाह दी है. वहीं फैंस के इस पोस्ट पर मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं.

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ये था मामला

 

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वीडियो की बात करें तो हाल ही में राखी सावंत से कंगना रनौत के रियलिटी शो लॉकअप में उनके पति की एंट्री को लेकर सवाल पूछा गया था, जिस पर उन्होंने कहा था कि, ‘वो कहता है कि मैं अपना बिजनेस छोड़कर नहीं जाऊंगा. बिग बॉस 15 में जाकर एक बार पछताया हूं. उन्होंने उसे इतना बड़ा ऑफर दिया मेरी बैंड बजाने के लिए. अरे मेरा एक्स हसबैंड हो या टैक्स हसबैंड या कोई प्रसेंट हसबैंड. मेरी बैंड कोई नहीं बजा सकता. मैं अपनी बैंड खुद ही बजा सकती हूं.’

 

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बता दें कि बिग बॉस 15 में राखी सावंत और रितेश ने कपल के तौर पर एंट्री की थी, जिसमें दोनों का प्यार और लड़ाई साफ देखने को मिली थी. वहीं शो से निकलने के बाद भी फैंस के सामने उन्होंने प्यार दिखाया था. लेकिन कुछ ही दिनों में दोनों ने तलाक लेने का फैसला किया, जिसे जानकर लोग हैरान रह गए.

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भोर की एक नई किरण: क्यों भटक गई थी स्वाति

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समझौता: क्या राजीव और उसकी पत्नी का सही था समझौता

वेल्लूर से कोलकाता वापस आ कर राजीव सीधे घर न जा कर एअरपोर्ट से आफिस आ गया था. उसे बौस का आदेश था कि कर्मचारियों की सारी पेमेंट आज ही करनी है.

पिछले कई दिनों से उस के आफिस में काफी गड़बड़ी चल रही थी. अपने बौस अमन की गैरमौजूदगी में सारा प्रबंध राजीव ही देखता था. कर्मचारियों को भुगतान पूरा करने के बाद राजीव ने तसल्ली से कई दिनों की पड़ी डाक छांटी. फिर थोड़ा आराम करने की मुद्रा में वह आरामकुरसी पर निढाल सा लेट गया. राजीव ने आंखें बंद कीं तो पिछले दिनों की तमाम घटनाएं एक के बाद एक उसे याद आने लगीं. उसे काफी सुकून मिला.

वैशाली को अचानक आए स्ट्रोक के कारण उसे आननफानन में बेलूर ले जाना पड़ा था. कई तरह के टैस्ट, बड़ेबड़े और विशेषज्ञ डाक्टरों ने आपस में सलाह कर कई हफ्तों की जद्दोजहद के बाद यह नतीजा निकाला कि अब वैशाली अपने पैरों पर कभी खड़ी नहीं हो सकती क्योंकि उस के शरीर का निचला हिस्सा हमेशा के लिए स्पंदनहीन हो चुका है. वह व्हील चेयर की मोहताज हो गई थी. पत्नी की ऐसी हालत देख कर राजीव का दिल हाहाकार कर उठा, क्योंकि अब उस का वैवाहिक जीवन अंधकारमय हो गया था.

एक तरफ वैशाली असहाय सी अस्पताल में डाक्टरों और नर्सों की निगरानी में थी दूसरी तरफ राजीव को अपनी कोई सुधबुध न थी. कभी खाता, कभी नहीं खाता.

एक झटके में उस की पूरी दुनिया उजड़ गई थी. उस की वैशाली…इस के आगे उस का संज्ञाशून्य दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा था.

मोबाइल बजने से उस की सोच को दिशा मिली.

लंदन से बौस अमन का फोन था. वैशाली के बारे में पूछ रहे थे कि वह कैसी है?

‘‘डा. सुरजीत से बात हुई? वह तो बे्रन स्पेशलिस्ट हैं,’’ अमन बोले.

‘‘हां, उन को भी सारी रिपोर्ट दिखाई थी. मैं ने अभी डा. अभिजीत से भी बात की है. उन्होंने भी सारी रिपोर्ट देख कर कहा कि ट्रीटमेंट तो ठीक ही चल रहा है. पार्किन्सन का भी कुछ सिम्टम दिखाई दे रहा है.’’

‘‘जीतेजी इनसान को मारा तो नहीं जा सकता. जब तक सांस है तब तक आस है.’’

‘‘जी सर.’’

अपने बौस अमन से बात करने के बाद राजीव का मन और भी खट्टा हो गया. घर लौट कर कपड़े भी नहीं बदले, अपने बेडरूम में आ कर लेट गया. मां ने खाने के लिए पूछा तो मना कर दिया. बाबूजी नन्ही श्रेया को सुला रहे थे. आ कर पूछा, ‘‘बेटा, अब कैसी है, वैशाली? कुछ उम्मीद…’’

राजीव ने ना की मुद्रा में गरदन हिला दी तो बाबूजी गमगीन से वापस चले गए.

राजीव के मानसपटल पर वैशाली के साथ की कई मधुर यादें चलचित्र की तरह चलने लगीं.

उस दिन एम.बी.ए. का सेमिनार था. राजीव को घर से निकलने में ही थोड़ी देर हो गई थी. इसलिए वह सेमिनार हाल में पहुंचने के लिए जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ रहा था. इतने में ऊपर से आती जिस लड़की से टकराया तो अपने को संभाल नहीं सका और जनाब चारों खाने चित.

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लड़की ने रेलिंग पकड़ ली थी इसलिए गिरने से बच गई पर राजीव लुढ़कता चला गया. वह तो श्ुक्र था कि अभी 5-6 सीढि़यां ही वह चढ़ा था इसलिए उसे ज्यादा चोट नहीं आई.

लड़की ने उस के सारे बिखरे पेपर समेट कर उसे दिए तो राजीव अपलक सा उस वीनस की मूर्ति को देखता ही रह गया. उस का ध्यान तब टूटा जब लड़की ने उसे सहारा दे कर उठाना चाहा. औपचारिकता में धन्यवाद दे कर राजीव सेमिनार हाल की ओर चल दिया.

सेमिनार के दौरान दोनों नायक- नायिका बन गए.

सेमिनार के बाद राजीव उस लड़की से मिला तो पता चला कि जिस मूर्ति से वह टकराया था उस का नाम वैशाली है.

राजीव का फाइनल ईयर था तो वैशाली भी 2-4 महीने ही उस से पीछे थी. एक ही पढ़ाई, एक जैसी सोच, रोजरोज का मिलना, एकसाथ बैठ कर चायनाश्ता करते. दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. कसमें, वादे, एकसाथ खाना, एक ही कुल्हड़ में चाय पीना. प्रोफेसरों की नकलें उतारना, बरसात में भीग कर भुट्टे खाना उन की दिनचर्या बन गई.

एक बार पुचके (गोलगप्पे) खाते वक्त वैशाली की नाक बहने लगी तो राजीव बहुत हंसा…तब वैशाली बोली, ‘खुद तो मिर्ची खाते नहीं…कोई दूसरा खाता है तो तुम्हारे पेट में जलन क्यों होती है?’

‘अरे, अपनी शक्ल तो देखो. ज्यादा तीखी मिर्ची की वजह से तुम्हारी नाक बह रही है?’

‘तो पोंछ दो न,’ वैशाली ठुनक कर बोली.

और अपना रुमाल ले कर सचमुच राजीव ने वैशाली की नाक साफ कर दी.

पढ़ाई खत्म होते ही राजीव ने तपसिया के लेदर की निजी कंपनी में सहायक के रूप में कार्यभार संभाल लिया और वैशाली को भी एक प्राइवेट फर्म में सलाहकार के पद पर नियुक्ति मिल गई.

सुंदर, तीखे नैननक्श की रूपसी वैशाली पर सारा स्टाफ फिदा था पर वह दुलहन बनी राजीव की.

मधुमास कब दिनों और महीनों में गुजर गया, पता ही नहीं चला.

वैशाली अपने काम के प्रति बहुत संजीदा थी. उस की कार्यकुशलता को देखते हुए उस की कंपनी ने उसे प्रमोशन दिया. गाड़ी, फ्लैट सब कंपनी की ओर से मिल गया.

इधर राजीव का भी प्रमोशन हुआ. उसे भी तपसिया में ही फ्लैट और गाड़ी दी गई. अब दिक्कत यह थी कि वैशाली का डलहौजी ट्रांसफर हो गया था.

सुबह की चाय पीते समय वैशाली बुझीबुझी सी थी. प्रमोशन की कोई खुशी नहीं थी. उस ने राजीव से पूछा, ‘राजीव, हम डलहौजी कब शिफ्ट होंगे?’

‘हम?’

‘हम दोनों अलग कैसे रहेंगे?’

‘नौकरी करनी है तो रहना ही पड़ेगा,’ राजीव बोला.

‘राजीव, यह मेरे कैरियर का सवाल है.’

‘वह तो ठीक है,’ राजीव बोला, ‘पर वहां के सीनियर स्टाफ के साथ तुम कैसे मिक्स हो पाओगी?’

‘मजबूरी है…और कोई चारा भी तो नहीं है.’

राजीव चाय पीतेपीते कुछ सोचने लगा, फिर बोला, ‘तपसिया से डलहौजी बहुत दूर है. दोनों का सारा समय तो आनेजाने में ही व्यतीत हो जाएगा. मुझे एक आइडिया आया है. बोलो, मंजूर है?’

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‘जरा बताओ तो सही,’ बड़ीबड़ी आंखें उठा कर, वैशाली बोली.

‘देखो, तुम्हारे प्रजेंटेशन से मेरे बौस बहुत प्रभावित हैं, वह तो मुझे कितनी बार अपनी फर्म में तुम्हें ज्वाइन कराने के लिए कह चुके हैं. पर अचानक तुम्हारा प्रमोशन होने से बात दब गई.’

‘जरा सोचो…अगर तुम हमारी फर्म को ज्वाइन कर लेती हो तो कितना अच्छा होगा. तुम्हारा सीनियर स्टाफ का जो फोबिया है उस से भी तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी.’

वैशाली कुछ सोचने लगी तो राजीव फिर बोला, ‘इसी बहाने हम पतिपत्नी एकसाथ कुछ एक पल बिता सकेंगे और तुम्हारा कैरियर भी हैंपर नहीं होगा. अब सोचो मत…कुछ भी हो, कोई भी कारण दिखा कर वहां की नौकरी से त्यागपत्र दे दो.’

वैशाली ने तपसिया में मार्केटिंग मैनेजर का पद संभाल लिया. बौस निश्ंिचत हो कर महीनों विदेश में रहते. अब तो दोनों फर्म के सर्वेसर्वा से हो गए. 6 महीने में ही लेदर मार्केट में अमन अंसारी की कंपनी का नाम नया नहीं रह गया. उन के बनाए लेदर के बैग, बेल्ट, पर्स आदि की मार्केटिंग का सारा काम वैशाली देखती तो सेलपरचेज का काम राजीव.

देखतेदेखते अब कंपनी काफी मुनाफे में चल रही थी और सबकुछ अच्छा चल रहा था. दोनों की जिंदगी में कोई तमन्ना बाकी नहीं रह गई थी. 2 साल यों ही बीत गए. सुख के बाद दुख तो आता ही है.

वैशाली को मार्केटिंग मैनेजर होने की वजह से कभी मुंबई, दिल्ली, जयपुर तो कभी विदेश का भी टूर लगाना पड़ता था. 2-3 बार तो राजीव व वैशाली यूरोप के टूर पर साथसाथ गए. फिर जरूरत के हिसाब से जाने लगे.

इसी बीच कंपनी के मालिक अमन अंसारी लंदन का सारा काम कोलकाता शिफ्ट कर के तपसिया के गेस्ट हाउस में रहने लगे. पता नहीं कब, कैसे वैशाली राजीव से कटीकटी सी रहने लगी.

कई बार वैशाली को बौस के साथ काम की वजह से बाहर जाना पड़ता. राजीव छोटी सोच का नहीं था पर धीरेधीरे दबे पांव बौस के साथ बढ़ती नजदीकियां और अपने प्रति बढ़ती दूरियां देख हकीकत को वह नजरअंदाज भी नहीं कर सकता था.

उस दिन शाम को वैशाली को बैग तैयार करते देख राजीव ने पूछा, ‘कहां जा रही हो?’

‘प्रजेंटेशन के लिए दिल्ली जाना है.’

‘लेकिन 2-3 दिन से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम्हें तो छुट्टी ले कर डाक्टर स्नेहा को दिखाने की बात…’

बात को बीच में ही काट कर वैशाली उखड़ कर बोली, ‘तबीयत का क्या, मामूली हरारत है. काम ज्यादा जरूरी है, रुपए से ज्यादा हमारी फर्म की प्रतिष्ठा की बात है. वर्षों से मिलता आया टेंडर अगर हमारी प्रतिद्वंद्वी फर्म को मिल गया तो हमारी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. मैं नहीं चाहती कि मेरी जरा सी लापरवाही से अमनजी को तकलीफ पहुंचे.’

दिल्ली से आने के बाद वैशाली काफी चुपचुप रहती. उस के व्यवहार में आए इस बदलाव को राजीव ने बहुत करीब से महसूस किया.

इसी बीच वैशाली की वर्षों की मां बनने की साध भी पूरी हुई. बड़ी प्यारी सी बच्ची को उस ने जन्म दिया. श्रेया अभी 2 महीने की हुई भी तो उसे सास के सहारे छोड़ वैशाली ने फिर से आफिस ज्वाइन किया.

‘वैशाली, अभी श्रेया छोटी है. उसे तुम्हारी जरूरत है,’ राजीव के यह कहने पर वैशाली तपाक से बोली, ‘आफिस को भी तो मेरी जरूरत है.’

देर से आना, सुबह जल्दी निकल जाना, काम के बोझ से वैशाली के स्वभाव में काफी चिड़चिड़ापन आ गया था लेकिन उस की सुंदरता, बरकरार थी. एक दिन आधी रात को ‘यह गलत है… यह गलत है’ कह कर वैशाली चीख उठी. वह पूरी पसीने में नहाई हुई थी. मुंह से अजीब सी आवाजें निकल रही थीं. जोरजोर से छाती को पकड़ कर हांफ रही थी.

राजीव घबरा गया, ‘क्या हुआ, वैशाली? ऐसे क्यों कर रही हो? क्या गलत है? बताओ मुझे.’

वैशाली उस की बांहों में बेहोश पड़ी थी. उस की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ? उसे फौरन अस्पताल में भर्ती किया गया. डाक्टरों ने बताया कि इन का बे्रन का सेरेब्रल अटैक था, जिसे दूसरे शब्दों में बे्रन हेमरेज का स्ट्रोक भी कह सकते हैं. कई दिनों तक वह आई.सी.यू. में भरती रही. अमन ने पानी की तरह रुपए खर्च किए. डाक्टरों की लाइन लगा दी. वैशाली के शरीर का दायां हिस्सा, जो अटैक से बेकार हो गया था, धीरेधीरे विशेषज्ञ डाक्टरों व फिजियोथैरेपिस्ट की देखरेख में ठीक होने लगा था.

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‘अरे, आज तो तुम ने श्रेया को भी गोद में उठा लिया?’ राजीव बोला तो ‘हां,’ कह कर वैशाली नजरें चुराने लगी. यानी कोई फांस थी जिसे वह निकाल नहीं पा रही थी.

राजीव वैशाली से बहुत प्यार करता था. उस की ऐसी हालत देख कर उस का दिल खून के आंसू रो पड़ता.

वेल्लूर ले जा कर महीनों इलाज चला. डाक्टरों की फीस, इलाज आदि सभी खर्चों में बौस ने कोई कमी नहीं रखी. राजीव का आत्मसम्मान आहत तो होता था, पर वैशाली को बिना इलाज के यों ही तो नहीं छोड़ सकता था.

कितनी बार सोचा कि अब यह नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी कर लूंगा, लेकिन लेदर उद्योग में अमन अंसारी का इतना दबदबा था कि उन के मुलाजिम को उन की मरजी के खिलाफ कोई अपनी फर्म में रख कर उन से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था. इसलिए भी राजीव के हाथ बंधे थे, आंखों से सबकुछ देखते हुए भी वह खामोश था.

श्रेया अपनी दादी के पास ज्यादा रहती थी इसलिए वह उन्हें ही मां कहती.

दवा और परहेज से वैशाली अब सामान्य जीवन जीने लगी. उस के ठीक होने पर बौस ने पार्टी दी. इसे न चाहते हुए भी राजीव ने बौस का एक और एहसान मान लिया. अपने कुलीग के तीखे व्यंग्य सुन कर उस के बदन पर सैकड़ों चींटियां सी रेंग गई थीं.

उस पार्टी में वैशाली ने गुलाबी शिफौन की साड़ी पहनी थी जिस पर सिल्वर कलर के बेलबूटे जड़े थे. उस पर गले में हीरों का जगमगाता नेकलेस उस के रूप में और भी चार चांद लगा रहा था. सब मंत्रमुग्ध आंखों से वैशाली के रूपराशि और यौवन से भरे शरीर को देख रहे थे और दबेदबे स्वर में खिल्ली भी उड़ा रहे थे कि क्या नसीब वाला है मैनेजर बाबू. इन के तो दोनों हाथों में लड्डू हैं.

शर्म से गड़ा राजीव अमन अंसारी के बगल में खड़ी अपनी पत्नी को अपलक देख रहा था.

‘अब तुम घर पर रहो. तुम्हें काम करने की कोई जरूरत नहीं है. श्रेया को संभालो. मांबाबा अब उसे नहीं संभाल सकते. अब वह बहुत चंचल हो गई है.’

वैशाली बिना नानुकूर किए राजीव की बात मान गई तो सोचा, बौस से बात करूंगा.

एक दिन अमनजी ने पूछ लिया, ‘अरे, राजीव. मेरी मार्केटिंग मैनेजर को कब तक तुम घर में बैठा कर रखोगे?’

‘सर, मैं नहीं चाहता कि अब वैशाली नौकरी करे. उस का घर पर रह कर श्रेया को संभालना बहुत जरूरी हो गया है. यहां मैं सब संभाल लूंगा.’

‘अरे, ऐसे कैसे हो सकता है?’ अमन थोड़े घबरा गए. फिर संभल कर बोले, ‘राजीव, मैं ने तो तुम्हारे लिए मुंबई वाला प्रोजेक्ट तैयार किया है. इस बार सोचा कि तुम्हें भेजूंगा.’

‘पर सर, वैशाली व श्रेया को ऐसी हालत में मेरी ज्यादा जरूरत है,’ वह धीरे से बोला, ‘नहीं, सर, मैं नहीं जा सकूंगा.’

‘देख लो, मैं तुम्हारे घर की परिस्थितियों से अवगत हूं. सब समझता हूं और मुझे बहुत दुख है. मुझ से जो भी होगा मैं तुम्हारे परिवार के लिए करूंगा. यार, मैं ही चला जाता पर मेरे मातापिता हज करने जा रहे हैं. इसलिए मेरा उन के पास होना बहुत जरूरी है.’

अब नौकरी का सवाल था…मना नहीं कर सकता था.

2 दिन बाद बाबा का फोन आया कि वैशाली आफिस जाने लगी है, देर रात भी लौटी. राजीव ने बात करनी चाही तो अपना मोबाइल नहीं उठाया. दोबारा किया तो स्विच औफ मिला.

लौट कर राजीव ने पूछा, ‘वैशाली, मैं ने तुम्हें काम पर जाने के लिए मना किया था न?’

‘मेरा घर बैठे मन नहीं लग रहा था,’ वैशाली का संक्षिप्त सा उत्तर था.

राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि अमन अंसारी के चंगुल से कैसे वह वैशाली को छुड़ाए. आज वह मान रहा था कि पत्नी को अपनी फर्म में रखवाना उस की बहुत बड़ी भूल थी जिस का खमियाजा आज वह भुगत रहा है.

उसे यह सोच कर बहुत अजीब लगता कि साल्टलेक के अपने आलीशान बंगले को छोड़ कर अमनजी जबतब गेस्ट हाउस में कैसे पड़े रहते हैं? सुना था कि उन की बीवी उन्हें 2 महीने में ही तलाक दे कर अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई थी. कारण जो भी रहा हो, यह बात तो साफ थी कि अमन एक दिलफेंक तबीयत का आदमी है.

वैशाली का जो व्यवहार था वह दिन पर दिन अजीब सा होता जा रहा था. कभी वह रोती तो कभी पागलों की तरह हंसती. उस की ऐसी हालत देख कर राजीव उसे समझाता, ‘वैशाली, तुम कुछ मत सोचो, तुम्हारे सारे गुनाह माफ हैं, पर प्लीज, दिल पर बोझ मत लो.’

तब वह राजीव के सीने से लग कर सिसक पड़ती. जैसे लगता कि वह आत्मग्लानि की आग में जल रही हो?

राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि वह पत्नी को कैसे समझाए कि वह जिस हालात की मारी है वह गुनाह किसी और ने किया और सजा उसे मिली.

अपने ही खयालों में उलझा राजीव हड़बड़ा कर उठ बैठा, उस के मोबाइल पर घर का नंबर आ रहा था. उस ने फोन उठाया तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, वैशाली बाथरूम में गिर गई है.’’

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अस्पताल में भरती किया तो पता चला कि फिर मेजर स्ट्रोक आया था. यहां कोलकाता के डाक्टरों ने जवाब दे दिया, तब उसे दोबारा वेल्लूर ले जाना पड़ा. बौस अमन अंसारी भी साथ गए. इस बार भी सारा खर्चा उन्होंने किया. राजीव के पास जितनी जमापूंजी थी वह सब कोलकाता में ही लग चुकी थी. क्या करता? इलाज भी करवाना जरूरी था. वह अपनी आंखों के सामने वैशाली को बिना इलाज के मरते भी तो नहीं देख सकता? बिना पैसे के वह कुछ भी नहीं कर सकता था. न उस के पास सिफारिश है न पैसा. आजकल बातबात पर पैसे की जरूरत पड़ती है.

लाखों रुपए इलाज में लगे. 2 महीने से वैशाली वेल्लूर के आई.सी.यू. में थी जिस का रोज का खर्च हजारों में पड़ता था. डाक्टरों की विजिट फीस, आनेजाने का किराया, कहांकहां तक वह चुकाता? इसलिए पैसे की खातिर राजीव ने अपनी वैशाली के लिए हालात से समझौता कर लिया. उसे इस को स्वीकार करने में कोई हिचक महसूस नहीं होती.

अब तो वैशाली बेड पर पड़ी जिंदा लाश थी, जो बोल नहीं सकती थी, पर उस की आंखें, सब बता गईं जो वह मुंह से न कह सकी. राजीव रो पड़ा था. मन करता था कि जा कर अमन को गोली मार कर जेल चला जाए पर वही मजबूरियां, एक आम आदमी होने की सजा भोग रहा था.

वैशाली के शरीर का निचला हिस्सा निर्जीव हो चुका था लेकिन राजीव ने तो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार किया है…करता है और ताउम्र प्यार करता रहेगा. उस से कैसे नफरत करे?

तन से पहले मन के तार जोड़ें

4 सहेलियां कुछ अरसे बाद मिली थीं. 2 की जल्दी शादी हुई थी तो 2 कुछ बरसों का वैवाहिक जीवन बिता चुकी थीं. ऐसा नहीं कि उन में और किसी विषय पर बात नहीं हुई. बात हुई, लेकिन बहुत जल्द ही वह पहली बार के अनुभव पर आ टिकी.

पहली सहेली ने पूछा, ‘‘तुम फोन पर ट्रेन वाली क्या बात बता रही थी? मेरी समझ में नहीं आई.’’

दूसरी बोली, ‘‘चलो हटो, दोबारा सुनना चाह रही हो.’’

तीसरी ने कहा, ‘‘क्या? कौन सी बात? हमें तो पता ही नहीं है. बता न.’’

दूसरी बोली, ‘‘अरे यार, कुछ नहीं. पहली रात की बात बता रही थी. हनीमून के लिए गोआ जाते वक्त हमारी सुहागरात तो ट्रेन में ही मन गई थी.’’

तीसरी यह सुन कर चौंकी, ‘‘हाउ, रोमांटिक यार. पहली बार दर्द नहीं हुआ?’’

दूसरी ने कहा, ‘‘ऐसा कुछ खास तो नहीं.’’

तीसरी बोली, ‘‘चल झूठी, मेरी तो पहली बार जान ही निकल गई थी. सच में बड़ा दर्द होता है. क्यों, है न? तू क्यों चुप बैठी है? बता न?’’

चौथी सहेली ने कहा, ‘‘हां, वह तो है. दर्द तो सह लो पर आदमी भी तो मनमानी करते हैं. इन्होंने तो पहली रात को चांटा ही मार दिया था.’’

बाकी सभी बोलीं, ‘‘अरेअरे, क्यों?’’

चौथी ने बताया, ‘‘वे अपने मन की नहीं कर पा रहे थे और मुझे बहुत दर्द हो रहा था.’’

पहली बोली, ‘‘ओह नो. सच में दर्द का होना न होना, आदमी पर बहुत डिपैंड करता है. तुम विश्वास नहीं करोगी, हम ने तो शादी के डेढ़ महीने बाद यह सबकुछ किया था.’’

दूसरी और तीसरी बोलीं, ‘‘क्यों झूठ बोल रही हो?’’

पहली सहेली बोली, ‘‘मायके में बड़ी बहनों ने भी सुन कर यही कहा था, उन्होंने यह भी कहा कि लगता है मुझे कोई धैर्यवान मिल गया है, लेकिन मेरे पति ने बताया कि उन्होंने शादी से पहले ही तय कर लिया था कि पहले मन के तार जोडूंगा, फिर तन के.

‘‘मुझे भी आश्चर्य होता था कि ये चुंबन, आलिंगन और प्यार भरी बातें तो करते थे, पर उस से आगे नहीं बढ़ते थे. बीच में एक महीने के लिए मैं मायके आ गई. ससुराल लौटी तो हम मन से काफी करीब आ चुके थे. वैसे भी मैं स्कूली दिनों में खूब खेलतीकूदती थी और साइकिल भी चलाती थी. पति भी धैर्य वाला मिल गया. इसलिए दर्द नहीं हुआ. हुआ भी तो जोश और आनंद में पता ही नहीं चला.’’

पतिपत्नी के पहले मिलन को ले कर अनेक तरह के किस्से, आशंकाएं और भ्रांतियां सुनने को मिलती हैं. पुरुषों को अपने सफल होने की आशंका के बीच यह उत्सुकता भी रहती है कि पत्नी वर्जिन है या नहीं. उधर, स्त्री के मन में पहली बार के दर्द को ले कर डर बना रहता है.

आजकल युवतियां घर में ही नहीं बैठी रहतीं. वे साइकिल चलाती हैं, खेलकूद में भाग लेती हैं, घरबाहर के बहुत सारे काम करती हैं. ऐक्सरसाइज करती हैं, नृत्य करती हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि तथाकथित कुंआरेपन की निशानी यानी उन के यौनांग के शुरू में पाई जाने वाली त्वचा की झिल्ली शादी होने तक कायम ही रहे. कई तरह के शारीरिक कार्यों के दौरान पैरों के खुलने और जननांगों पर जोर पड़ने से यह झिल्ली फट जाती है, इसलिए जरूरी नहीं कि पहले मिलन के दौरान खून का रिसाव हो ही. रक्त न निकले तो पुरुष को पत्नी पर शक नहीं करना चाहिए.

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अब सवाल यह उठता है कि जिन युवतियों के यौनांग में यह झिल्ली विवाह के समय तक कायम रहती है, उन्हें दर्द होता है या नहीं. दर्द का कम या ज्यादा होना झिल्ली के होने न होने और पुरुष के व्यवहार पर निर्भर करता है. कई युवतियों में शारीरिक कार्यों के दौरान झिल्ली पूरी तरह हटी हो सकती है तो कई में यह थोड़ी हटी और थोड़ी उसी जगह पर उलझी हो सकती है. कई में यह त्वचा की पतली परत वाली होती है तो कई में मोटी होती है.

स्थिति कैसी भी हो, पुरुष का व्यवहार महत्त्वपूर्ण होता है. जो पुरुष लड़ाई के मैदान में जंग जीतने जैसा व्यवहार करते हैं, वे जोर से प्रहार करते हैं, जो स्त्री के लिए तीखे दर्द का कारण बन जाता है. ऐसे पुरुष यह भी नहीं देखते कि संसर्ग के लिए राह पर्याप्त रूप से नम और स्निग्ध भी हुई है या नहीं. उन के कानों को तो बस स्त्री की चीख सुनाई देनी चाहिए और आंखों को स्त्री के यौनांग से रक्त का रिसाव दिखना चाहिए. ऐसे पुरुष, स्त्री का मन नहीं जीत पाते. मन वही जीतते हैं जो धैर्यवान होते हैं और तन के जुड़ने से पहले मन के तार जोड़ते हैं व स्त्री के संसर्ग हेतु तैयार होने का इंतजार करते हैं.

भले ही आप पहली सहेली के पति की तरह महीना, डेढ़ महीना इंतजार न करें पर एकदम से संसर्ग की शुरुआत भी न करें. पत्नी से खूब बातें करें. उस के मन को जानने और अपने दिल को खोलने की कोशिश करें. पर्याप्त चुंबन, आलिंगन करें. यह भी देखें कि पत्नी के जननांग में पर्याप्त गीलापन है या नहीं. दर्द के डर से भी अकसर गीलापन गायब हो जाता है. ऐेसे में किसी अच्छे लुब्रीकैंट, तेल या घी का इस्तेमाल करना सही रहता है. शुरुआत में धीरेधीरे कदम आगे बढ़ाएं. इस से आप को भी आनंद आएगा और पत्नी को दर्द भी कम होगा.

कई युवतियों के लिए सहवास आनंद के बजाय दर्द का सबब बन जाता है. ऐसा कई कारणों से होता है, जैसे :

कुछ युवतियों में वल्वा यानी जांघों के बीच का वह स्थान जो हमें बाहर से दिखाई देता है और जिस में वेजाइनल ओपनिंग, यूरिथ्रा और क्लीटोरिस आदि दिखाई देते हैं, की त्वचा अलग प्रकार की होती है, जो उन्हें इस क्रिया के दौरान पीड़ा पहुंचाती है. त्वचा में गड़बड़ी से इस स्थान पर सूजन, खुजली, त्वचा का लाल पड़ जाना और दर्द होने जैसे लक्षण उभरते हैं. त्वचा में यह समस्या एलर्जी की तरह होती है और यह किसी साबुन, मूत्र, पसीना, मल या पुरुष के वीर्य के संपर्क में आने से हो सकती है.

सहवास के दौरान दर्द होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए. सहवास से पहले पर्याप्त लुब्रीकेशन करना चाहिए. पुरुष को यौनांग आघात में बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. वही काम मुद्राएं अपनानी चाहिए जिन में स्त्री को कम दर्द होता हो. इस से भी जरूरी बात यह है कि पहले मन के तार जोडि़ए. ये तार जुड़ गए तो तन के तार बहुत अच्छे और स्थायी रूप से जुड़ जाएंगे.    – सहवास के दौरान पर्याप्त लुब्रीकेशन न होने से भी महिला को दर्द का एहसास हो सकता है.

– महिला यौनांग में यीस्ट या बैक्टीरिया का इन्फैक्शन भी सहवास में दर्द का कारण बनता है.

– एक बीमारी एंडोमेट्रिआसिस होती है, जिस में गर्भाशय की लाइनिंग शरीर के दूसरे हिस्सों में बनने लगती है. ऐसा होने पर भी सहवास दर्दनाक हो जाता है.

– महिला के यौनांग की दीवारों के बहुत पतला होने से भी दर्द होता है.

– यूरिथ्रा में सूजन आ जाने से भी सहवास के दौरान दर्द होता है.

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Holi Special: फर्नीचर चमके, तो घर दमके

मौका त्यौहारों का हो या पार्टी का पर बात जब घर को खूबसूरत हो तो फर्नीचर की साफसफाई को भला कैसे अनदेखा किया जा सकता है. अपने घर के फर्नीचर को सही साफसफाई से कैसे दें नए जैसा लुक, बता रही हैं अनुराधा गुप्ता.

घर की पेंटिंग करवाते वक्त या होली खेलते वक्त अकसर फर्नीचर की सूरत बिगड़ जाती है. इस बाबत दिल्ली के लक्ष्मीनगर स्थित वुड विला फर्नीचर ऐंड इंटीरियर के मालिक अशोक कहते हैं, ‘‘हर घर में तरहतरह का फर्नीचर होते हैं. यदि फर्नीचर की सफाई सही तरीके से न की जाए तो वह कम समय में ही पुराने लगने लगते हैं.’’

आइए जानें कि विभिन्न प्रकार के फर्नीचर की सफाई किस तरह करें कि वह नयानया सा लगने लगे.

लैदर फर्नीचर

लैदर फर्नीचर दिखने में जितना अच्छा लगता है, उस की देखभाल करना उतना ही कठिन होता है. खास बात यह है कि लैदर फर्नीचर की उचित देखभाल न करने से वह जगहजगह से क्रैक हो जाता है.

फर्नीचर पर किसी तरह का तरल पदार्थ गिर जाए तो उसे तुरंत साफ कर दें क्योंकि लैदर पर किसी भी चीज का दाग चढ़ते देर नहीं लगती. यहां तक कि पानी की 2 बूंद से भी लैदर पर सफेद निशान बन जाते हैं. फर्नीचर को किसी भी तरह के तेल के संपर्क में न आने दें, क्योंकि इस से फर्नीचर की चमक तो खत्म होती ही है, साथ ही उस में दरारें भी पड़ने लगती हैं.

फर्नीचर की रोज डस्टिंग करें जिस से वह लंबे समय तक सही सलामत रहे. फर्नीचर को सूर्य की रोशनी और एअरकंडीशनर से दूर रखें. इस से फर्नीचर फेडिंग और क्रैकिंग से बचा रहेगा.फर्नीचर को कभी भी बेबी वाइप्स से साफ न करें, इस से उस की चमक चली जाती है.

वुडन फर्नीचर

वुडन फर्नीचर की साफसफाई में अकसर लोग लापरवाही बरतते हैं जिस से वह खराब हो जाता है. ध्यान से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई सी चमक आ जाती है. महीने में एक बार अगर नींबू के रस से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई चमक आ जाती है. पुराने फर्नीचर को आप मिनरल औयल से पेंट कर के भी नया बना सकते हैं और अगर चाहें तो पानी में हलका सा बरतन धोने वाला साबुन मिला कर उस से फर्नीचर को साफ कर सकते हैं.

लकड़ी के फर्नीचर में अकसर वैक्स जम जाता है जिसे साफ करने के लिए सब से अच्छा विकल्प है कि उसे स्टील के स्क्रबर से रगड़ें और मुलायम कपड़े से पोंछ दें. कई बार बच्चे लकड़ी पर के्रयोन कलर्स लगा देते हैं. इन रंगों का वैक्स तो स्टील के स्क्रबर से रगड़ने से मिट जाता है लेकिन रंग नहीं जाता. ऐसे में बाजार में उपलब्ध ड्राई लौंडरी स्टार्च को पानी में मिला कर पेंटब्रश से दाग लगे हुए स्थान पर लगाएं और सूखने के बाद गीले कपड़े से पोंछ दें.

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माइक्रोफाइबर फर्नीचर

माइक्रोफाइबर फर्नीचर को साफ करने से पहले उस पर लगे देखभाल के नियमों के टैग को देखना बेहद जरूरी है. क्योंकि कुछ टैग्स पर डब्लू लिखा होता है. यदि टैग पर डब्लू लिखा है तो इस का मतलब है कि उसे पानी से साफ किया जा सकता है और जिस पर नहीं लिखा है उस का मतलब है कि अगर फर्नीचर को पानी से धोया गया तो उस पर पानी का दाग पड़ सकता है. सब से सौफ्ट ब्रश से माइक्रोफाइबर फर्नीचर की पहले डस्टिंग करें.

इस के बाद ठंडे पानी में साबुन घोलें और तौलिए से फर्नीचर की सफाई करें. ध्यान रखें कि तौलिए को अच्छे से निचोड़ कर ही फर्नीचर की सफाई करें ताकि ज्यादा पानी से फर्नीचर गीला न हो. तौलिए से पोंछने के बाद तुरंत साफ किए गए स्थान को हेयरड्रायर से सुखा दें.सुखाने के बाद उस स्थान पर हलका ब्रश चलाएं ताकि वह पहली जैसी स्थिति में आ सके.बेकिंग सोडा में पानी मिला कर गाढ़ा सा घोल बना लें. अब इस घोल को दाग लगे हुए स्थान पर लगा कर कुछ देर के लिए छोड़ दें. फिर उसे हलके से पोंछ दें.फर्नीचर पर लगे दाग को पानी से साफ करने के स्थान पर बेबी वाइप्स से साफ करें. ध्यान रखें कि दाग लगे स्थान को ज्यादा रगड़ें नहीं.

यदि फर्नीचर पर ग्रीस जैसा जिद्दी दाग लग जाए तो उसे हटाने के लिए बरतन धोने वाला साबुन और पानी का घोल बनाएं और दाग वाले स्थान पर स्प्रे करें. कुछ देर बाद गीले कपडे़ से उस स्थान को पोंछ दें.

प्लास्टिक फर्नीचर

अकसर देखा गया है कि जब बात प्लास्टिक के फर्नीचर को साफ करने की आती है तो उसे या तो स्टोररूम का रास्ता दिखा दिया जाता है या फिर कबाड़ में बेच दिया जाता है. लेकिन वास्तव में अगर प्लास्टिक के फर्नीचर की सही तरह से सफाई की जाए तो उसे भी चमकाया जा सकता है. ब्लीच और पानी बराबरबराबर मिला कर एक बोतल में भर लें और फर्नीचर पर लगे दागों पर स्प्रे करें. स्प्रे करने के बाद फर्नीचर को 5 से 10 मिनट के लिए धूप में रख दें.

ट्यूब और टाइल क्लीनर से भी प्लास्टिक का फर्नीचर चमकाया जा सकता है. इस के लिए ज्यादा कुछ नहीं, बस दाग लगी जगह पर स्प्रे कर के 5 मिनट बाद पानी से धो दें. दाग साफ हो जाएंगे.

बरतन धोने वाला डिटरजैंट भी प्लास्टिक के फर्नीचर में लगे दाग को छुड़ाने में सहायक होता है. इस के लिए 1:4 के अनुपात में डिटरजैंट और पानी का घोल बना लें. इस घोल को फर्नीचर पर स्प्रे कर के 5 से 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इस के बाद कपड़े से फर्नीचर को पोंछें. नई चमक आ जाएगी.

प्लास्टिक पर लगे हलके दागों को बेकिंग सोडा से भी धोया जा सकता है. इस के लिए स्पंज को बेकिंग सोडा में डिप कर के दाग वाली जगह पर गोलाई में रगड़ें. दाग हलका हो जाएगा.

नौन जैल टूथपेस्ट से प्लास्टिक फर्नीचर पर पड़े स्क्रैच मार्क्स हटाए जा सकते हैं.

यह सच है कि घर की रंगाईपुताई तब तक अधूरी ही लगती है जब तक घर के फर्नीचर साफसुथरे न दिखें. उपरोक्त तरीकों से घर के सभी प्रकार के फर्नीचर को चमका लिया जाए तो दीवाली की खुशियों का मजा कहीं ज्यादा हो जाएगा.

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कभी न करें शेयर लिप प्रोडक्ट

मैं अपना लिपस्टिक भूल गयी हूँ. क्या मैं तुम्हारा ले सकती हूँ? लिपस्टिक का यह रंग मेरे ऊपर अच्छा नहीं लग रहा, मुझे तुम्हारा लिपस्टिक दे दो. इस प्रकार से अपना लिपस्टिक सबके साथ शेयर करना बंद करें.

और निश्चित रूप से किसी अजनबी के साथ क्योंकि आप नहीं जानते कि उसके होंठ कैसे हैं. यहां लिपस्टिक शेयर न करने के पीछे कुछ विलक्षण कारण बताए गए हैं.

लिप बाम के उपयोग के दो ही तरीके हैं – या तो व्यक्ति सीधे इसे अपने होंठों पर रगड़े या अपने बैक्टीरिया युक्त हाथों की उँगलियों में लेकर इसे लगाए. दोनों ही तरीके खराब हैं.

आप यह जानकर चौंक जायेंगे कि होंठों से संबंधित उत्पादों को शेयर करने से वास्तव में क्या होता है? बैक्टीरिया एक जगह से दूसरी जगह जाना पसंद करते हैं यह एक महत्वपूर्ण कारण है जिसके कारण आपको अपना लिप बाम किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहिए.

आपके होंठों की सतह के नीचे विशाल रक्त वाहिकाएं होती हैं. आप इस पतली झिल्ली पर जो कुछ भी लगाते हैं वह अपने आप ही रक्त के माध्यम से आपके शरीर में चला जाता है जिसमें बैक्टीरिया भी शामिल हैं.

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बिजी लड़कियों के लिये आसान ब्‍यूटी ट्रिक्‍स वायरस कई सप्ताह तक जीवित रहते हैं भले ही आपकी सहेली ने कई दिनों पहले आपके लिपस्टिक का उपयोग किए हो, परन्तु इस बात का ध्यान रखें कि वायरस लिपस्टिक पर चिपक जाते हैं तथा कई सप्ताह तक जीवित रहते हैं.

तो यदि दुर्भाग्य से जिस व्यक्ति ने पहले इसका उपयोग किया है उसे यदि थोड़ा बहुत भी जुकाम हो तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि यह वायरस आप को भी प्रभावित कर दे.

हर्पीस की चेतावनी लिप बाम शेयर न करने का यह एक दूसरा घातक कारण है. यदि वह व्यक्ति जिसने आपके लिप बाम का उपयोग किया है और उसके होंठों की त्वचा यदि कहीं से कटी हुई हैं या उसके होंठ फटे हुए हैं या उसके मुंह में छाले हुए हैं या उसके होंठों पर हर्पीस के वायरस हों तो इस बात की पूरी संभावना है कि आप भी इन सब से ग्रसित हो जाएं.

लिपस्टिक की ऊपरी सतह को पोंछकर फी उसका उपयोग करना काफी नहीं होता. उसे फेंक दें तथा यदि आप ऐसा नहीं कर सकती तो लिपस्टिक के ऊपरी भाग को काट डालें.

मेकअप आर्टिस्ट को उनके लिपस्टिक का उपयोग न करने दें यदि आप दुल्हन बनने वाली हैं और शादी के दिन अच्छा मेकअप करना चाहती हैं तो आपके लिए एक छोटी सी सलाह है. मेकअप आर्टिस्ट द्वारा लाये गए लिपस्टिक का उपयोग कभी न करें. इस बात की पूरी संभावना है कि आपके पहले 10 लोगों ने इसका उपयोग किया हो.

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इसका सही तरीका यह है कि लिप कलर लगाने के लिए एक साफ़ लिप ब्रश या रुई के टुकड़े का उपयोग करें. यदि आप ब्यूटी पार्लर जाती हैं तो भी लिपस्टिक के लिए यही नियम लागू होता है. तो अब आप समझ गए कि लिपस्टिक शेयर करना क्यों गलत है?

हाथों में भी रोगाणु पनप सकते हैं लोग सोचते हैं कि उंगलियां साफ होती हैं तथा लिप बाम शेयर करने का यह एक सुरक्षित तरीका है. वास्तव में ऐसा नहीं है. यदि आपके होंठों पर 40% बैक्टीरिया हैं तो आपके हाथों में 80% बैक्टीरिया होते हैं. इसका कोई सुरक्षित तरीका नहीं है. सबसे अच्छा होगा आप अपने लिप प्रोडक्ट्स को अपने उपयोग तक ही सीमित रखें.

Arthritis: गलत व ओवर एक्सरसाइज से बचें 

अर्थोरिटिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें जोड़ों में दर्द और सूजन आने लगती है. अगर बात करें भारत की तो यहां 40 – 50 साल की महिलाएं सबसे ज्यादा इस बीमारी की गिरफ्त में आती हैं. खासकर के वो जो मोटापे से ग्रसित हैं. इस बीमारी में सबसे ज्यादा घुटनों , हिप व हाथ के जोइंट प्रभावित होते हैं. अभी हाल के वर्षों में इस बीमारी में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई  है, जिसके पीछे हमारे इनएक्टिव लाइफस्टाइल व मोटापे को जिम्मेदार माना जा रहा है. जबकि इसके अन्य कारणों में जोड़ों में खराबी होना, बढ़ती उम्र, जेनेटिक व ऑटो इम्यून डिसऑर्डर्स आदि को जिम्मेदार माना जाता है. इसलिए इसे समय रहते लाइफस्टाइल व इलाज से कंट्रोल करना जरूरी है, वरना स्थिति को गंभीर होने में देर नहीं लगती. इस संबंध में बता रहे हैं बेंगलुरु के यशसवंतपुर स्तिथ  मणिपाल होस्पिटल के कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन डाक्टर किरण चौका.

एक्सरसाइज का महत्व 

एक्सरसाइज जहां हमें फ्रेश, एक्टिव व हैल्दी रखने का काम करती है, वहीं ये हमारी मांसपेशियों व हड्डियों को भी मजबूती प्रदान करने में मददगार है. कई बार जब सर्जरी व दवाइयों से भी आराम नहीं मिलता है, तब डाइट व खुद को शारीरिक रूप से एक्टिव रखने पर अर्थोरिटिस के मरीजों को बहुत आराम मिलता है. इसलिए एक्सपर्ट भी मरीज की स्थिति को देखते हुए हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट योग, रेंज ओफ मोशन , एरोबिक करने की सलाह देते हैं , ताकि शरीर फ्लेक्सिबल बने व हड्डियों को मजबूती मिले. बता दें कि अर्थोरिटिस के मरीजों के लिए एक्सरसाइज करने के और भी कई फायदे हैं , जो इस प्रकार से हैं.

–  कार्टिलेज की हैल्थ बहुत हद तक एक्सरसाइज करने या फिर चलनेफिरने पर निर्भर करती है. क्योंकि इसके कारण जोड़ों को जरूरत के मुताबिक ओक्सीजन व जरूरी न्यूट्रिएंट्स जो मिल पाते हैं.

– एक्सरसाइज मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने के साथ उन्हें लचीला बनाने का काम करती है. साथ ही इससे जोड़ों में दर्द की शिकायत भी कम महसूस होती है.

–   रोजाना एक्सरसाइज करने से वजन कम होता है, जिससे जोइंट्स पर पड़ने वाला तनाव खुद ब खुद कम होने लगता है.

– इससे अच्छी नींद आने के साथसाथ थकान महसूस नहीं होती है.

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अर्थोरिटिस में ओवर एक्सरसाइज  के नुकसान 

अर्थोरिटिस में एक्सरसाइज करना अच्छी बात है. लेकिन अगर जरूरत से ज्यादा व बिना सोचेसमझे एक्सरसाइज करेंगे तो इसका नुकसान भी आपको भुगतना पड़ सकता है. इसलिए सही डाइट , जिससे हड्डियों को मजबूती मिले और वजन कम करने के लिए सही तरह से व्यायाम करना लाभकारी साबित होता है. जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज करने से दर्द में बढ़ोतरी, सूजन व जोड़ों की हालत और ख़राब हो सकती है. यही नहीं बल्कि आपको लंबे समय तक चलने वाली थकान , कमजोरी, चलने में दिक्कत महसूस होना व जोड़ों में सूजन की शिकायत महसूस हो सकती है. अर्थोरिटिस के मरीजों को कई बार तो अधिक एक्सरसाइज करने से फ्रैक्चर, सर्जरी या फिर परमानेंट विकलांगता की स्थिति भी आ सकती है. इसलिए ओवर एक्सरसाइज से बचें.

टिप्स फोर एक्सरसाइज 

एक्सपर्ट की सलाह लें परिस्थिति में सुधार लाने हेतु एक्सपर्ट की सलाह के अनुसार ही जोड़ों की हेल्थ के अनुसार ही एक्सरसाइज करें. जिससे आपको इम्प्रूवमेंट दिखे. अगर आप हैल्थ केयर प्रोवाइडर या फिर फिजिकल थेरेपिस्ट की मदद लेकर उनकी सलाह के मुताबिक एक्सरसाइज करेंगे तो आपको ज्यादा फायदा मिलेगा. आपके डाक्टर अर्थोरिटिस की स्थिति में विशेष तरह का स्कैन जिसे डेक्सा कहते हैं , करवाने की सलाह देते हैं. क्योंकि इस स्कैन के द्वारा आपके बोन मिनरल डेंसिटी को समझ कर आपको फ्रैक्चर होने का कितना खतरा है, इसके आधार पर ही एक्सरसाइज बताई जाती है.

धीरेधीरे बढ़ें याद रखें कि हर एक दूसरा दिन आपको चांस मिलता है, जो सुधार के लिए होना चाहिए न की दर्द या फिर खुद के शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए.  इसलिए एक्सरसाइज को धीरेधीरे बढ़ाएं, जिससे आपके शरीर को इन बदलावों की आदत हो जाए. केवल खुद से वजन घटाने का निर्णय लेकर सीढ़ियां चढ़ने , उतरने जैसी एक्सरसाइज करके आप अर्थोरिटिस की स्तिथि में अपने जोइंट्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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–  पहले वार्मअप करें एक्सरसाइज करने से पहले अपनी मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने के लिए शरीर को वार्मअप जरूर करें.

लो इम्पेक्ट एक्सरसाइज का चयन करें  वॉक , साइकिलिंग, स्विमिंग, योगा , स्ट्रेचिंग इत्यादि अर्थोरिटिस के लिए बेस्ट एक्सरसाइज हैं. जबकि ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों के लिए हलकी एक्सरसाइज ही सही रहती है. क्योंकि उनके लिए इंजरी काफी घातक साबित हो सकती है.

अपनी डाइट का भी खयाल रखें  कैलोरी को कम करने से न सिर्फ जोड़ों से लोड कम होता है, बल्कि इससे आपको ज्यादा वर्कआउट की भी जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा हेल्दी डाइट के साथ एक्सरसाइज करने से बोन डेंसिटी इम्प्रूव होने के साथ मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. खाने में फल, सब्जियां , ओमेगा 3 फैटी एसिड रिच फ़ूड जैसे सीड्स इत्यादि लेने से सूजन व दर्द को कम करने में मदद मिलती है. साथ ही विटामिन सी युक्त चीजों के सेवन से कोलेजन के बढ़ने में मदद मिलती है. वहीं कैल्शियम व विटामिन डी अर्थोरिटिस की स्थिति में हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में काफी मददगार होता है.

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