संपत्ति के लिए साजिश: भाग 1- क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

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उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.

बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

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जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

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जानें न्यू बोर्न बेबी केयर से जुड़ें ये 6 खास मिथ

किसी महिला के पहली बार गर्भधारण करते ही आसपास से सबके सुझाव आने शुरू हो जाते है, कभी माँ, कभी सास, दादी, नानी, चाची आदि, परिवार की सारी महिलाओं के पास सुझाव के साथ नुस्खे भी तैयार रहते है, जिसे वह बिना पूछे ही उन्हें देती रहती है और गर्भधात्री इन सभी सुझावों को शांति से सुनती है,क्योंकि एक नए शिशु के आगमन की ख़ुशी नए पेरेंट्स के लिए अनोखा और अद्भुत होता है. ये सुख मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में होती है.

इस बारें में सुपर बॉटम की एक्सपर्टपल्लवी उतागी कहती है कि बच्चे के परिवार में आते ही बच्चे के पेरेंट्स बहुत अधिक खुश हो जाते है और उनका हर मोमेंट उनकी जिज्ञासा को बढ़ाता है. जबकि बच्चे की असहजता की भाषा उस दौरान एक पहेली से कम नहीं होती, जिसे पेरेंट्स नजदीक से समझने की कोशिश करते रहते है, जबकि परिवार, दोस्त और ऑनलाइन कुछ अलग ही सलाह देते है, ऐसे में न्यू मौम को कई प्रकार की मिथ से गुजरना पड़ता है, जिसकी जानकारी होना आवश्यक है, जो निम्न है,

अपने बच्चे की ब्रेस्ट फीडिंग का समय निर्धारित करें

न्यू बोर्न बेबी को जन्म के कुछ दिनों तक हर दो घंटे बाद स्तनपान करवाने की जरुरत होती है, इसकी वजह बच्चे के वजन को बढ़ाना होता है, इसके बाद जब बच्चे को भूख लगे, उसे ब्रैस्ट फीडिंग कराएं, कई बार जब बच्चे की ग्रोथ होने लगती है, तो उसे अधिक बार स्तनपान कराना पड़ता है, जिसके बाद बच्चा काफी समय तक अच्छी नींद लेता है. बच्चे में स्तनपान की इच्छा लगातार बदलती रहती है. बच्चा हेल्दी होने पर उसकी ब्रैस्ट फीडिंग अपने आप ही कम हो जाती है. जरुरत के अनुसार ही ब्रैस्ट फीडिंग अच्छा होता है.

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फीडिंग के बाद भी बच्चा रोता है, क्योंकि वह अब भी भूखा है

कई बार भरपेट स्तनपान करने के बाद भी बच्चा रोता है. बहुतों को लगता है कि बच्चे का पेट पूरा नहीं भरा है और उन्हें ऊपर से फार्मूला मिल्क या गाय की दूध पिलाने की सलाह दी जाती है, जो सही नहीं है. भूख के अलावा बच्चे कई दूसरे कारणों से भी रो सकते है मसलन असहज कपडे, गीला डायपर, डायपर रैशेज, अधिक गर्मी या अधिक सर्दी, माँ की गर्भ से अलग होने के बाद की असहजता आदि कई है, जिसे सावधानी से समझना पड़ता है. समय के साथ पेरेंट्स शिशु की असहजता को अपने हाथ और लिप्स से समझ जाते है.

एक अच्छी माँ बच्चे को बार-बार गोंद नहीं उठाती

एक न्यू बोर्न बेबी अपने सुरक्षित माँ की कोख से अचानक नई दुनिया में जन्म लेता है, बच्चा आराम और गर्माहट को माँ के स्पर्श से महसूस करता है. बच्चा केवल उसी से परिचित होता है और उसे बार-बार अपने आसपास महसूस करना चाहता है. ये बच्चे की एक नैचुरल नीड्स है, जिसे माँ को देना है. इसके अलावा आराम और गर्माहट बच्चे की इमोशनल, फिजिकल और दिमागी विकास में सहायक होती है. एक्सपर्ट का सुझाव ये भी है कि शिशु को कंगारू केयर देना बहुत जरुरी है,जिसमे पेरेंट्स की स्किन टू स्किन कांटेक्ट हर दिन कुछ समय तक करवाने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए.इसके अलावा पहले 2 से 3 महीने तक शिशु को बेबी स्वेड्ल में रखने से उन्हें माँ की कोख का एहसास होता है और वह एक अच्छी नींद ले पाता है.

गोलमटोल होना है हेल्दी बच्चे की निशानी

हर बच्चे का आकार अलग होता है, जिसमें उसकी अनुवांशिकी काफी हद तक निर्भर करती है, जहाँ से उसे पोषण मिलता है. बच्चे की स्वास्थ्य को उसकी आकार के आधार पर जज नहीं की जानी चाहिए. उनके स्वास्थ्य की आंकलन के लिए पेडियाट्रीशन से संपर्क करन आवश्यक है, जो शिशु का वजन, उसकी ग्रोथ, हाँव-भाँव आदि सबकुछ जांचता है और कुछ कमी होने पर सही सलाह भी देता है.

न्यू बोर्न के कपडे कीटाणु मुक्त करने के लिए एंटीसेप्टिक से धोना

न्यू बोर्न बेबी की इम्युनिटी जन्म के बाद विकसित होती रहती है, ऐसे में बच्चे के कपडे को साफ़ और हायजिन रखना आवश्यक है. अधिकतर न्यू पेरेंट्स एंटीसेप्टिक लिक्विड का प्रयोग कर कपडे और नैपीस धोते है. एंटीसेप्टिक अच्छे और ख़राब दोनों बेक्टेरिया को मार डालते है,इसके अलावा इसमें कई हार्श केमिकल भी होते है, जो बच्चे की स्किन में रैशेज पैदा कर सकते है. जर्मफ्री करने के लिए बच्चे के कपड़ों को धूप में सुखाएं.

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न्यू बोर्न के पेट में दर्द से राहत के लिए ग्राइप वाटर देना

अभी तक ये सिद्ध नहीं हो पाया है कि ग्राइप वाटर बच्चे कोपेट दर्द में देना सुरक्षित है या अच्छी नीद के लिए ग्राइप वाटर सही है, इसलिए जब भी बच्चा पेट दर्द से रोये, तो तुरंत बाल और शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर दवा दे.

संपत्ति के लिए साजिश: क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

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मेरे फेस पर बहुत सारे पिंपल्स हो रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 18 साल है और मेरे फेस पर बहुत सारे पिंपल्स हो रहे हैं. मु झे घर से बाहर जाना भी अच्छा नहीं लगता. बताएं क्या करूं?

जवाब-

18 साल की उम्र में पिंपल्स होना बहुत कौमन है. घबराने की कोई बात नहीं है. इस उम्र में हारमोनल इंबैलेंस हो जाता है, जिस से स्किन औयली होने लगती है. उस के ऊपर आया औयल, धूलमिट्टी मिल कर ब्लैकहैड्स बना देते हैं, जिन में इन्फैक्शन होने पर वे पिंपल्स में कन्वर्ट हो जाते हैं. अत: आप स्किन की सफाई पर ज्यादा ध्यान दें. दिन में 2-3 बार अलकोहल रहित स्किन टोनर का इस्तेमाल करें. अलकोहल फेस को ड्राई कर देता है, इसलिए अलकोहल वाला स्किन टोनर इस्तेमाल न करें.

1 चम्मच विनेगर में 3 चम्मच पानी डाल लें. फिर इसे कौटन से पिंपल्स पर दिन में 3-4 बार लगाएं. पिंपल्स कम होने लग जाएंगे.

किसी अच्छे क्लीनिक में जा कर दिखाएं. जहां मैडिकल हिस्टरी ली जाए. अगर इंटरनली कोई और प्रौब्लम हो तो उस की दवा लेना भी जरूरी है.

ध्यान रहे औयली खाने को अवौइड करें. बहुत सारा पानी पीएं और बैलेंस डाइट लें. अगर पिंपल्स नौर्मल इलाज से ठीक न हो रहे हैं तो कैमिकल पील भी करा सकती हैं, जिस से पिंपल्स 2-3 सीटिंग्स में ही खत्म हो जाते हैं.

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चेहरे पर आया एक छोटा सा पिंपल हमारा सारा मूड खराब कर देता है. चेहरे के पिंपल को जाने में करीब 4 से 5 दिन लगते हैं, और जब यह जाते हैं तो चहरे पर एक निशान छोड़ जाते हैं. क्‍या आपने कभी पिंपल को एक दिन में हटाने की सोची है? आप सोंच रही होंगी कि यह कैसे हो सकता है. लेकिन ऐसा आइस क्‍यूब के इस्‍तेमाल से मुमकिन है. चलिये जानते हैं फिर वो तरीके जिनसे यह संभव हो सकता है.

स्‍टेप 1: पहले अपने चेहरे को गरम पानी और फेस वाश से धो लें. पिंपल वाले चेहरे पर कभी भी स्‍क्रब का प्रयोग ना करें वरना पिंपल का पस पूरे चेहरे पर फैल जाएगा.

स्‍टेप 2: अब मुल्‍तानी मिट्टी को चंदन पाउडर और नींबू के रस के साथ मिलाएं. इस फेस पैक को 5 मिनट तक के लिये चेहरे पर लगाएं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- 1 दिन में पाएं पिंपल प्रौब्लम से छुटकारा, पढ़ें खबर

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सोया और ओट्स के दूध को कड़ी टक्कर देगा आलू का दूध, पढ़ें खबर

लेखक- दीप्ति गुप्ता

दूध कई लोगों के आहार का अनिवार्य हिस्सा है. गाय और भैंस के दूध का सेवन लंबे समय से एक पेय के रूप में किया जाता रहा है. लेकिन जिन लोगों को दूध पसंद नहीं है, उन्होंने अपनी डाइट से डेयरी वाले दूध को हटाकर वीगन को शामिल करना शुरू कर दिया है. बता दें कि वीगन डाइट को अपनाने वाले ज्यादातर लोग डेयरी फ्री प्रोडक्ट्स का सेवन करना पसंद करते हैं. वे अक्सर बादाम या सोया के दूध को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में उनके लिए एक अन्य गैर डेयरी के रूप में पोटेटो मिल्क यानी आलू का दूध एक दिलचस्प विकल्प बनकर उभरा है. हालांकि, आपने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक हाई कार्बोहाइड्रेट वाली सब्जी कभी एक ट्रेंड बनकर  हेल्दी फूड आइटम्स की लिस्ट में शामिल हो सकती है. खैर, अगर रिपोर्ट्स पर यकीन करें, तो पोटेटो मिल्क 2022 में ट्रेंडसेटर बनने जा रहा है. वेट्रोज द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नए साल में पौधे आधारित खाद्य पदार्थों की डिमांड बढऩे वाली है. रिपोर्ट की मानें तो आलू का दूध, सोया, बादाम और ओट्स के दूध को भी कड़ी टक्कर देगा. बता दें कि आलू के दूध में सैचुरेटेड फैट और चीनी की मात्रा कम होती  है, यही कारण है कि दुनियाभर के लोगों द्वारा इसे खूब पसंद किया जा रहा है.

पोटेटो मिल्क यानी आलू का दूध पीने के फायदे-

आलू का दूध भोजन को बेहतर ढंग से पचाने में मदद करता है. इसलिए अगर आप कब्ज की समस्या रहती  है, पेट फूला है या फिर गैस का अनुभव करते हैं, तो आलू का दूध आपके लिए बहुत अच्छा विकल्प है. इसमें फाइबर, विटामिन बी-12, आयरन और फोलेट बहुत अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. नियमित रूप से इसका सेवन करने से आपके शरीर और दिमाग को बेहतर तरीके से काम करने में मदद मिल सकती है.

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कोलेस्ट्रॉल फ्री है पोटेटो मिल्क-

आलू का दूध डेयरी फ्री, फैट रहित और कोलेस्ट्रॉल मुक्त है. आलू के दूध में पाया जाने वाला कैल्शियम गाय के दूध के बराबर बताया जाता है. इतना ही नहीं विशेषज्ञों का कहना है कि आलू के दूध में पाए जाने वाले मिनरल और विटामिन किसी भी तरह के शाकाहारी दूध की वैरायटी से ज्यादा हैं.

आलू का दूध बनाने की विधि-

अगर आपको अपने पास वाली डेयरी पर आलू का दूध नहीं मिल रहा है, तो चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि  आप इसे घर में भी बना सकते हैं.

– इसे बनाने के लिए सबसे पहले आलुओं को छीलें.

– अब कुकर में पानी डालकर इन्हें उबालें.

– उबले हुए आलुओं को पानी, ग्राउंड आल्मंड सॉल्ट और स्वीटनर के साथ ब्लेंड कर लें.

– अब इसे छानकर दूध में मिला लें और पी जाएं.

यदि आप रिफाइंड शुगर से परहेज कर रहे हैं, तो चीनी के रूप में शकरकंद का इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, अन्य वैरायटी के दूध से यह ज्यादा मीठा होगा, लेकिन नुकसानदायक  नहीं.

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जब जबान नहीं हाथ चलाएं बच्चे

‘‘पापा, सुनो… सुनो न…’’ थोड़ी देर बाद तेज आवाज में चिंटू चिल्लाया, ‘‘पापा… पापा ऽऽऽ, मुझे दाल नहीं खानी, मेरे लिए पिज्जा और्डरकरो.’’ पिज्जा की जिद के चक्कर में चिंटू ने खाना फेंक दिया और कमरे में बंद हो जोरजोर से चिल्लाने लगा.उस की इस हरकत पर पापा को भी गुस्सा आ गया. उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम कितने बदतमीज हो गए हो,अब तुम्हें आगे से कुछ नहीं मिलेगा.’’ यह सुनते ही चिंटू ने रोना शुरू कर दिया. इकलौते बच्चे को रोते देख किस बाप का दिल नहीं पिघलेगा.

‘‘अलेअले, मेरा बेटा, अच्छा बाबा, कल तुम्हारे लिए पिज्जा मंगा देंगे.’’ इतना सुनना था कि चिंटू की बाछें खिल गईं, ‘‘ये…ये, हिपहिप हुर्रे. पापा, लव यू.’’

‘‘लव यू टू माय सन,’’ पापा ने प्रत्युत्तर में कहा. क्या आप और आप का बेटा/बेटी चिंटू की तरह ही रिऐक्ट करते हैं? अगर हां, तो आप का बच्चा न केवल जिद्दी है बल्कि उस की परवरिश में आप की तरफ से कमी है. बच्चे अकसर अपना गुस्सा मारपीट या रो कर निकालते हैं ताकि उन की मुंह से निकली ख्वाहिश पूरी हो सके. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे ऐसा व्यवहार अपने आसपास की घटनाओं से ही सीखते हैं.

यहां कुछ पेरैंट्स के साथ हुई घटनाओं के उदाहरण पेश किए जा रहे हैं :

उदाहरण-1

दिल्ली के मयूरविहार, फेज वन, इलाके में रहने वाले रोहन और साक्षी को एक फैमिली गैट टूगैदर में जाना था. वे अपने 8 वर्षीय बेटे सारांश को भी साथ ले कर गए. वैसे तो साक्षी कभी भी सारांश को अकेले नहीं भेजती थी क्योंकि वह बड़ा शैतान बच्चा था. पार्टी में पहुंच कर भी साक्षी ने सारांश का हाथ नहीं छोड़ा क्योंकि साक्षी जानती थी कि हाथ छोड़ते ही वह उछलकूद करने लगेगा. साक्षी को देख उस की फ्रैंड लीजा आ गई. उस ने कहा कि चल, वहां चल कर मजे करते हैं. अब अपनी पूंछ को छोड़ भी दे. उस के कहते ही साक्षी ने सारांश से बच्चों के ग्रुप में शामिल होने को कहा. थोड़ी देर बाद ही चीखनेचिल्लाने के साथ रोने की आवाजें आने लगीं. मुड़ कर देखा, तो सारांश ने एक बच्चे की धुनाई शुरू कर दी थी, जिस कारण वह खूब रो रहा था. साक्षी भाग कर वहां पहुंची और सारांश को समझा कर उसे सौरी बोलने को कहा. फिर साक्षी वहां से चली आई. दरअसल, सारांश जैसे बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और जब मिलते हैं तो लड़ाईझगड़ा शुरू कर देते हैं.

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उदाहरण-2

मैं ने एक दिन डिनर के लिए अपने एक रिश्तेदार दंपती को घर पर आमंत्रित किया. वे लोग तय समय पर अपनी 6 वर्षीय बेटी सना के साथ आ गए. बातों का दौर शुरू हुआ. बातें इतनी रुचिकर थीं कि काफी देर तक जारी रहीं. बीचबीच में उन की बेटी सना, जो स्वभाव से ऐंठू और कम बोलने वाली थी, ने तो बात करना व बैठना ही मुश्किल कर दिया. वह कुछ सैकंडों में बीचबीच में पापापापा आवाजें लगाए. ‘बसबस, बेटा शांत बैठो’ जैसे शब्द भाईसाहब भी कहते जा रहे थे. कुछ देर बाद सना भाईसाहब की गोद में चढ़ी और उन के गालों पर चांटे मारने लगी. भाईसाहब तो बेटी के लाड़ में इतने अंधे दिखे कि कहने लगे, ‘अरे, मेरा सोना बेटा…अच्छा बताओ, क्या कह रही थी.’ यह देख मैं और मेरे पति एकदूसरे का मुंह देखने लगे. बेटी की ऐसी हरकत के बावजूद भाईसाहब ने उसे कुछ नहीं कहा. बच्चों के प्रति मांबाप का प्यार स्वाभाविक है पर बच्चे को इतना लाड़ देना कि वह मारने लगे या बीच में बोलने लगे गलत है.

ऐसे करें पहचान

डेढ़ से 2 साल : इस उम्र के बच्चे अपनी जरूरत को सही से बता नहीं पाते. इसी उम्र में बच्चों की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है. इस उम्र के बच्चे दांत काटना, हाथ चलाना, खिलौने पटकना, लात मारना या रोने जैसी हरकतें ज्यादा करते हैं. बच्चा अगर इस तरह का नैगेटिव व्यवहार करे तो उसे फौरन समझाएं क्योंकि इस उम्र में नहीं समझाएंगे तो वह बड़ा हो कर भी ऐसी हरकतें करता रहेगा. यह समझें कि वह कहना क्या चाह रहा है और यह सीख कहां से रहा है.

3-6 साल : अगर 2 साल तक उस का व्यवहार नहीं सुधरता तो इस उम्र में वही व्यवहार बच्चों की आदत बन जाती है और वे समझते हैं कि कौन सी चीज पाने के लिए उन्हें क्या करना है. मान लीजिए अगर कोई खिलौना या उन्हें कोई मनपसंद चीज खानी है तो वे मार्केट में बुरी तरह से फैल जाते हैं और चीजें देख कर रोने लगते हैं और तब तक रोते हैं जब तक कि उन्हें वह चीज न मिल जाए.

7-10 साल : इस उम्र के कई बच्चे शैतानी में पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं. ऐसे बच्चों को बातें खूब आती हैं और वे अपनेआप को नुकसान पहुंचा कर अपनी बातों को मनवाते हैं, जैसे चीखतेचिल्लाते हैं, झल्लाते हैं, मारते हैं, चुप हो जाते हैं, चिड़चिड़ करते हैं, बातें छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, बातें बनाते हैं. ऐसे बच्चे अपने आसपास नेगेटिव व्यवहार देखते हैं, उस का असर उन पर पड़ता है.

क्यों होता है ऐसा

सिंगल चाइल्ड : हम दो हमारा एक कौंसैप्ट यानी सिंगल चाइल्ड के चलते भी अब बच्चों में एकाधिकार की भावना आती है, जिस के चलते भी बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और उन्हें अपनी चीजें भी नहीं देते. वे जहां दूसरे बच्चों या भीड़भाड़ को देखते हैं तो असहज हो जाते हैं. ऐसे बच्चों के दोस्त भी कम होते हैं. ऐसे बच्चे पर पेरैंट्स हमेशा समाजीकरण का विशेष ध्यान दें.

खेल खेलें : इंडोर गेम्स में भी बच्चे सिर्फ वीडियो गेम्स ही खेलना पसंद करते हैं या फिर ज्यादा हुआ तो टीवी खोल कर कार्टून देखते हैं. अगर बच्चों में पेरैंट्स आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रेरित करें तो इस से बच्चा बहुतकुछ सीखता है. आउटडोर गेम्स से चीजों की शेयरिंग तो होती ही है, इस से बच्चा अपनी पारी का इंतजार करना भी सीखता है. बच्चे को ऐसे में यह भी एहसास होगा कि हर जगह मनमानी नहीं चल सकती. अगर आप का बच्चा शर्मीला है तो उसे पार्क में ले जाएं ताकि बच्चा और बच्चों के समूह को देखे और खेलने के लिए उत्सुक भी हो.

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घर स्कूल से भी सीखते हैं बच्चे

देखा जाए तो ज्यादातर बच्चे नेगेटिव व्यवहार सब से पहले अपने घर से सीखते हैं. घर के आसपास का माहौल भी अच्छा होना चाहिए ताकि बच्चे पड़ोस से कुछ गलत न सीखें. कुछ बच्चे स्कूल से भी नेगेटिव व्यवहार सीखते हैं. घर में तो टीवी में हिंसा देखने से भी गलत सोच बनती है, जैसे एक कार्टून में अगर भीम ने किसी को मारा तो मारने वाली हिंसा को बच्चे जल्दी अपना लेते हैं. बच्चे कहा जाए तो हर एक गलत चीज जल्दी सीखते हैं और फिर वे प्रैक्टिकली करने की कोशिश भी करते हैं. पहले टीवी पर कोई ऐक्शन या ‘शक्तिमान’ सीरियल आता था तो शक्तिमान अपनी उन शक्तियों और ऐक्शन सीन को अंत में बच्चों को करने से मना करता था, ठीक वैसे ही अगर बच्चा मारधाड़ वाली चीजें देखे तो उसे प्यार से समझाएं.

GHKKPM: सई को छोड़ पाखी संग भागे विराट, वीडियो वायरल

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां सई चौह्वाण परिवार और विराट को छोड़कर चली गई है तो वहीं पाखी इस बात से बेहद खुश नजर आ रही है. इसी बीच सीरियल के सेट से एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें विराट (Neil Bhatt), सई (Ayesha Singh) की चिंता करने की बजाय पाखी (Aishwarya Sharma Bhatt) संग मस्ती करते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

विराट-पाखी का वीडियो हुआ वायरल

 

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पाखी के रोल में नजर आने वाली ऐश्वर्या शर्मा अक्सर अपनी #Reels से फैंस का दिल जीतती हैं. इसी बीच सीरियल के सेट से ऐश्वर्या शर्मा भट्ट ने विराट यानी अपने औफ स्क्रीन पति नील भट्ट के संग एक वीडियो (Aishwarya Sharma Bhatt Insta) शेयर किया है, जिसमें वह मस्ती करते नजर आ रहे हैं. दरअसल, वीडियो में नील भट्ट, ऐश्वर्या शर्मा को साथ चलने के लिए कहते नजर आ रहे हैं. हालांकि नील भंडारा खत्म होने की बात कर रहे हैं. रियल लाइफ कपल की इस वीडियो को फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं सोशलमीडिया पर मजेदार रिएक्श देते नजर आ रहे हैं.

 

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सई-विराट की कहानी में आएगा नया मोड़

सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो सई घर छोड़कर अपनी पढ़ाई में लग गई है. वहीं विराट श्रुति का ख्याल रखता हुआ नजर आ रहा है. वहीं आने वाले एपिसोड में सई-विराट की गलतफहमी और भी ज्यादा बढ़ने वाली है. दरअसल, सई एक मेडिकल इंटर्न के रूप में श्रुति से मिलने वाली है. जहां श्रुति की फाइल में वह उसका नाम श्रीमती एस चव्हाण लिखा हुआ देखेगी. हालांकि वह शक नही करेगी और वह उससे पूछेगी कि उसका पति क्या करता है और वे कितने समय से शादीशुदा हैं, जिसका जवाब देते हुए श्रुति कहेगी कि वह प्रशासनिक सेवा में काम करता है और उनकी शादी को 1.5 साल हो चुके हैं. इसी बीच पुलकित कहेगा कि उन्हें जल्द ही उसका इलाज करने की जरूरत है ताकि वह हेल्दी लाइफ बिता सके. वहीं इस दौरान विराट कमरे में आएगा और सई और पुलकित को पता लगेगा कि विराट ही श्रुति का पति है, जिसे देखकर वह हैरान रह जाएंगे.

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बुजुर्गों को दें अपना प्यार भरा साथ      

मुंबई की एक पॉश सोसाइटी में रहने वाले 70 वर्षीय मिश्रा जी आजकल बेहद डरे हुए हैं उन्हें अपने घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर में वे अपने बुजुर्ग माता पिता को खो चुके हैं. जब से कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोंन ने भारत में दस्तक दी है वे दोनों पति पत्नी बेहद सहम गये हैं यहां तक कि अब उन्हें बेंगलोर में रहने वाले अपने बच्चों के पास जाने में भी डर लग रहा है. वे कहते हैं, “”मार्च 2020 में कोरोना काल से पूर्व हमउम्र दोस्तों से हर दिन मॉर्निग ईवनिंग वॉक पर मिलते थे कुछ अपने दिल की कहते थे तो कुछ उनकी सुनते थे और वह कहना सुनना हमारे लिए पूरे दिन टॉनिक का कार्य करता था पर कोरोना के बाद से हम अपने घरों में बंद हैं. दूसरी लहर में अपने माता पिता को खोने के बाद अब तो कोरोना के नाम से ही रूह कांप जाती है, अब ये ओमिक्रोंन न जाने क्या कहर बरपायेगा यकीन मानिए कभी कभी तो मन घोर निराशा में घिरने लगता है.’’

भोपाल में रहने वाली 70 वर्षीया मीता जी के दोंनों बच्चे यू. एस. में हैं……वे यहां अपने 75 वर्षीय पति के साथ अकेली रहतीं हैं. कोरोना की दूसरी लहर में उन्होंने अपने कुछ करीबियों को खो दिया था. वे कहतीं हैं, “अपने आसपास होने वाली करीबियों की असामयिक मौतों ने हमें तोड़कर रख दिया…..उस समय एक दूसरे का हाथ पकड़कर बेड पर लेटे लेटे बिना खाए पिए हमने कई रातें गुजारीं…..हरदम यही डर सताता रहता था कि यदि हमें कोरोना हो गया तो क्या होगा क्योंकि इस समय कोई मददगार हमें मिल नहीं सकता और बच्चे हमारे पास आ नहीं सकते, पिछले कुछ महीनो में अपने जैसे तैसे खुद को सम्भाला था पर अब इस तीसरी लहर की आहट ने तो हमें मानो फिर से वहीँ पहुंचा दिया है पता नहीं अब इस लहर में हम जैसे बुजुर्ग बचेगें भी या नहीं.’’

वास्तव में कोरोना महामारी ने यूं तो समूची दुनिया को ही प्रभावित किया है परंतु इससे सर्वाधिक पीड़ित बुजुर्ग हैं. यदि वे अकेले रह रहे हैं तो कोरोना के खौफ से भयभीत हैं और यदि अपने बच्चों के साथ भी हैं तो भी वे अकेले ही हैं क्योंकि वर्क फ्राम होम में बड़े और ऑनलाइन क्लास में बच्चे व्यस्त हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त बच्चों की यूं भी अपनी एक अलग दुनिया होती है, कोरोना से पूर्व वे मार्निंग ईवनिंग वॉक पर जाकर कुछ बाहर की आबोहवा ले लेते थे तो अपने हमउम्र साथियों से मिलकर दुख सुख की कह सुन भी लेते थे जिससे उनका मन भी हल्का हो जाया करता था. परंतु कोरोना ने उन्हें एकदम अकेला कर दिया है. घर में रहकर भी वे बेगानों से हो गए हैं. एक हालिया रिसर्च के अनुसार इस समय देश के करीब 82 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं. 70 प्रतिशत नींद न आना, और रात को आने वाले डरावने सपनों से जूझ रहे हैं, 63 प्रतिशत अकेलेपन या सामाजिक अलगाव के कारण अवसाद की ओर अग्रसर हैं, वहीं 55 प्रतिशत बुजुर्ग प्रतिबंधों के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से स्वयं को कमजोर अनुभव कर रहे हैं. पहली और तीसरी लहर को किसी तरह झेल लेने वाले बुजुर्ग अब तीसरी लहर की आहट से ही बहुत खौफ में हैं.”

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक निधि तिवारी कहतीं हैं, “पिछले लॉकडाउन के समय रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिक देखने से उनका समय कट जाता था परंतु कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता ने उन्हें डरा दिया है और अब कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोंन के द्वारा आने वाली इस तीसरी लहर के आने से तो वे एकदम टूट से गये हैं क्योंकि  शायद कहीं न कहीं उनके अवचेतन में यह बैठ गया है कि अब शायद बाकी जीवन यूं ही मास्क और परिचितों से मिले बिना ही गुजारना पड़ सकता है.’’ वे आगे कहतीं हैं, ‘मेरे पास प्रतिदिन ऐसे 8 से 10  बुजुर्गों के फोन आते हैं जिसमें वे कहते हैं कि ऐसी कैद की जिंदगी से तो अच्छा है कि भगवान उन्हें उठा ही ले’’

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क्या हो उपाय

बुजुर्ग हमारे समाज और परिवार के आधारस्तंभ हैं… संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा यू एन फार एजिंग अपने वक्तव्य में कहती हैं कि, ‘’युवा पीढी बुजुर्गों को यह अहसास दिलाएं कि वे उनके लिए बहुत कीमती है.. उन्हें कभी यह नहीं लगना चाहिए कि वे अब जीवन के अंतिम चरण में हैं और उनके जीवन की कोई अहमियत नहीं है.’’ भारत ही नहीं समूचे विश्व के बुजुर्ग कोरोना के बाद से भयावह अकेलेपन के दौर से गुजर रहे हैं. यूं भी बच्चों के दूसरे शहर या विदेश चले जाने पर वे अकेले रह जाते हैं पर उस अकेलेपन को वे समय समय पर बच्चों के पास जाकर, कभी बच्चों को अपने पास बुलाकर, नाते रिश्तेदारों से मिलजुलकर खुशी खुशी काट लेते थे. बच्चों के लिए अपने हर सुख दुःख को कुर्बान करने वाले बुजुर्गों का इस प्रकार डर कर जीना बेहद चिंताजनक है……..यह सही है कि बच्चे अपनी नौकरी छोड़कर उनके साथ नहीं रह सकते परंतु दूर रहकर भी उन्हें हरदम अपनेपन का अहसास तो कराया ही जा सकता है. लंबे समय से अपने शहर और घर को छोड़कर स्थायी रूप से बच्चों के साथ रहना भी उनके लिए व्यवहारिक नहीं हो पाता. कोरोना हाल फिलहाल तो हमारे बीच से जाने वाला नहीं है समय समय पर इसकी लहरें और लाकडाउन मानव जाति केा झेलना ही होगा. ऐसे में परिवार के अन्य सभी सदस्यों को उनके बेहतर स्वास्थ्य और मनोदशा के लिए प्रयास करने ही होंगें.

क्या करें युवा सदस्य

–परिवार के सदस्य चाहे उनके साथ हों या दूर हर दिन उन्हें यह अहसास कराएं कि यह वक्त बहुत जल्दी ही गुजर जाएगा और हर समय वे उनके साथ हैं.

-कई बार उन्हें लगता है कि अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद अब उनके जीने का कोई मकसद ही नहीं बचा है इसलिए घर के प्रत्येक निर्णय में उन्हें शामिल करें और उनकी राय पर अमल करने का भी प्रयास करें और ताकि उन्हें अपनी महत्ता महसूस हो सके.

-घर के युवा सदस्य उनके हमउम्र दोस्तों और नाते रिश्तेदारों के साथ वीडियो कॉल, जूम कॉल, गूगल मीट आदि पर मीटिंग करवाएं.

-व्हाट्स अप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर निरंतर आने वाली नकारात्मक खबरों से उन्हें दूर करने का प्रयास करें ताकि वे नकारात्मकता से बचे रहें. घर के सदस्य उन्हें संगीत, साहित्य या जोक्स आदि की एप डाउन लोड करके दें ताकि उसमें व्यस्त रह सकें. उनके लिए विभिन्न पत्रिकाओं के सब्सक्रिप्शन करके दें.

-छोटे बच्चों को पढाने, उनके साथ खेलने, किचिन तथा अन्य घरेलू कार्यों में उनका भरपूर सहयोग लें, उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना भी करें.

-जितना अधिक हो सके उनके साथ समय बिताने का प्रयास करें, दूर होने पर सप्ताह में कम से कम एक या दो बार उनसे वीडियो काल पर अवश्य बातचीत करें.

-अपने पडोस या सोसाइटी में रहने वाले बुजुर्गों को अपना कुछ समय दें, अक्सर वे ज़ूम मीटिंग, विडिओ कालिंग, जैसी नयी तकनीकों से अनभिज्ञ होते हैं ऐसे में आप इन तकनीकों को ओपरेट करना उन्हें सिखाएं ताकि वे अपनों से टच में रहें.

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बुजुर्ग स्वयं भी करें प्रयास

-निम्हांस-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज बेंगलूर के अनुसार बच्चे ही नहीं बुजुर्गों को स्वयं भी इस अकेलेपन से उबरने के प्रयास करने होंगें ताकि कोराना का भय उन पर हावी न हो सके.

–इस समय अपनी मनपसंद गतिविधियों जैसे कार्ड्स वर्ड पहेली हल करना, संगीत सुनना, बागवानी, शतरंज, कैरम या ताश के पत्ते खेलने में स्वयं को व्यस्त रखें.

-अपने शरीर को फिट रखने के लिए घर में ही कुछ चहलकदमी, योगा, व्यायाम करें साथ ही अपने परिजनों की यथासंभव मदद करने का प्रयास करें.

-रूटीन के समाचार सुनने के अतिरिक्त बेवजह की बहस अथवा किसी भी प्रकार की नकारात्मक खबरें टी. वी. पर सुनने से बचें. अपने मनपसंद टी. वी. शोज, वेब सीरीज अथवा मूवी देखें.

-छोटों के सहयोग से सोशल मीडिया, वीडियो कालिंग आदि पर एक्टिव होना सीखें ताकि अकेलेपन का अहसास न हो सके.

ऐसे रहें फिट & फाइन

हर ऐरोबिक सैंटर में ऐसी बहुत सारी महिलाएं आती हैं जिन के घुटनों, पैरों, गरदन और पीठ में दर्द की शिकायत होती थी. मगर ऐसी महिलाएं जिन के पास समय कम होता है वे घर पर रह कर भी सप्ताह में 4-5 दिन सिर्फ 20 मिनट वर्कआउट कर फिट रह सकती हैं. इस वर्कआउट को 5 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

– सोमवार को शरीर का निचला भाग जिस में ‘हिप्स-थाइ’ आदि आते है.

– मंगलवार को पेट और पीठ के लिए,

-बुधवार को शरीर का ऊपरी हिस्सा, आर्म्स, कंधे, गरदन का पिछला भाग.

– बृहस्पतिवार को पूरे शरीर को स्ट्रैच करना.

– शुक्रवार को पूरी प्रक्रिया को 20 मिनट में दोहराना.

इस तरह हर दिन 20 मिनट का समय आप के पूरे शरीर को स्वस्थ बना सकता है. इस में घर में पाई जाने वाली वस्तुओं का वर्कआउट में सहारा लिया जा सकता है. इन में 500 मिलीलिटर के पानी की 2 बोतलें, 1 कुर्सी, दीवार, 1 नहाने की टौवेल, 1चटाई या कारपेट.

तरीका: 2 पानी की 500 मिलीलिटर बोतलों को दोनों हाथों में पकड़े. अब अपनी कुहनी को थोड़ा नीचे करें और आगे बढ़ कर पीछे की तरफ ले जाएं. ऐसा करने से पीठ के बीच के भाग को आराम मिलता है.

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– सीधे खड़े हो कर बोतलों को दोनों हाथों में पकड़ कर कमर को पहले दाहिनी और फिर बायीं तरफ मोड़े यह व्यायाम कमर के लिए होता है.

– कुरसी के प्रयोग से आप अपनी जांघों के लिए व्यायाम कर सकती हैं. कुरसी पर बैठ कर अपने पैरों को आगे की तरफ सीधा बैलेंस करें.

– इस के अलावा कुरसी का सहारा ले कर अपने नितंबों को ऊपर और नीचे करें.

– दीवार के सहारे से हिप्स और थाइज का व्यायाम संभव है. दीवार के सहारे सीधे खड़े हो कर अपने घुटनों को 90 डिग्री के कोण पर मोड़ कर 2 सैकंड तक इसी अवस्था में रहें.

– अपना चेहरा दीवार की तरफ रखें और फिर अपनी कुहनियों को मोड़ कर छाती को दीवार के नजदीक लाएं और फिर पीछे जाएं. इस से आप के कंधों व सीने का व्यायाम हो सकेगा.

– जमीन पर कारपेट या चटाई पर बैठ जाएं. हाथों को पीछे ले जा कर पहले दाहिने और फिर बाएं हाथ से टौवेल को पकड़ें. 10 से 30 सैकंड के इस वर्कआउट से आप के कंधों और भुजाओं का व्यायाम होगा.

– जमीन पर लेट कर अपने दोनों हाथों को सिर के नीचे फैला कर रखें और फिर अपने पैरों को मिलाकर 90 डिग्री के कोण पर आगेपीछे करें.

– पीठ के बल लेट जाएं, फिर अपने दोनों हाथों से गरदन को सहारा दें. अब अपने कंधों को थोड़ा ऊपर उठाएं. फिर बाएं कंधे को दाहिने घुटने की ओर ले जाएं. अब दाहिने कंधे को बाएं घुटने की ओर बारीबारी से ले जाएं. यह व्यायाम कमर की अतिरिक्त मसल्स को कम करता है.

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कैराटिन ट्रीटमेंट से चमकाएं बाल

हेयर रीबौंडिंग, हेयर स्ट्रेटनिंग, हेयर स्मूदनिंग ये तीनों ही ट्रीटमेंट भारतीय महिलाओं के लिए नए नहीं हैं. देश की करीब 70% महिलाओं को इन में से किसी एक ट्रीटमेंट का अनुभव जरूर हुआ होगा. खासतौर पर जब युवावर्ग की महिलाओं की बात की जाए, तो रीबौंडिंग, स्ट्रैटनिंग व स्मूदनिंग के बिना तो उन का गुजारा ही नहीं है. मगर अब इन तीनों के साथ हेयर ट्रीटमेंट भी जुड़ चुका है. हेयर कैराटिन ट्रीटमेंट के नाम से कौस्मैटिक इंडस्ट्री में प्रसिद्ध यह ट्रीटमेंट बालों में कैराटिन की मात्रा को बढ़ाने के लिए किया जाता है.

क्या है कैराटिन ट्रीटमेंट

गृहशोभा की फेब मीटिंग में ब्यूटीशियनों को कैराटिन ट्रीटमेंट पर विस्तृत जानकारी देने आए ऐक्सपर्ट सैम इस ट्रीटमेंट के बारे में बताते हैं, ‘‘महिलाओं में बढ़ती उम्र के साथ होने वाले हारमोनल बदलाव के कारण बालों और नाखूनों पर सब से अधिक प्रभाव पड़ता है. जहां नाखूनों में क्यूटिकल्स के खराब होने की समस्या हो जाती है, वहीं बालों को प्रोटीन लौस की दिक्कत से जूझना पड़ता है. चूंकि बाल कैराटिन नामक प्रोटीन से बने होते हैं, इसलिए इस के लौस होने से बाल पतले और फ्रीजी हो जाते हैं. ऐसे बालों पर रीबौंडिंग और स्ट्रेटनिंग का भी कुछ खास असर नहीं पड़ता है, बल्कि कमजोर बालों में हेयर फौल की समस्या और बढ़ जाती है. ऐसे बालों के लिए कैराटिन ट्रीटमेंट वरदान है. इस ट्रीटमेंट में बालों पर प्रोटीन की परत चढ़ाई जाती है और प्रैसिंग के द्वारा प्रोटीन लेयर को लौक कर दिया जाता है.’’

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कैराटिन ट्रीटमेंट की प्रक्रिया

इस ट्रीटमेंट के लिए बालों से चिकनाहट को पूरी तरह से दूर करने के लिए 2 बार शैंपू किया जाता है. इस के बाद बालों को 100% ब्लो ड्राई किया जाता है. ऐसा इसलिए ताकि बालों में बिलकुल मौइश्चराइजर न बचे और कैराटिन प्रोडक्ट को अच्छी तरह बालों में पैनिट्रेट किया जा सके. ब्लो ड्राई के बाद बालों को 4 भागों में बांट कर गरदन वाले हिस्से से प्रोडक्ट लगाना शुरू किया जाता है. प्रोडक्ट लगाने के बाद बालों को फौइल पेपर से 25 से 30 मिनट के लिए कवर कर दिया जाता है. इस के बाद बालों को फिर से ब्लो ड्राई किया जाता है और 130 से 200 डिग्री तापमान के बीच बालों की प्रैसिंग की जाती है, ताकि प्रोडक्ट अच्छी तरह बालों में पैनिट्रेट हो जाए.

इस प्रक्रिया के 24 घंटे बाद बालों को पानी से साफ कर के 180 डिग्री तापमान पर उन की फिर से प्रैसिंग की जाती है. प्रैसिंग के बाद बालों को कैराटिन युक्त शैंपू से साफ किया जाता है और कैराटिन कंडीशनर लगा कर 6-7 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. फिर बालों को साफ कर के ब्लो ड्राई किया जाता है और इसी के साथ कैराटिन ट्रीटमेंट की प्रक्रिया पूरी हो जाती है.

कैराटिन ट्रीटमेंट नहीं है रीबौंडिंग

बहुत सी महिलाएं कैराटिन ट्रीटमेंट को रीबौंडिंग समझने की भूल कर बैठती हैं और बाद में ट्रीटमेंट में खामियां ढूंढ़ने लगती हैं. सैम बताते हैं, ‘‘कैराटिन ट्रीटमेंट बालों की फ्रीजीनैस दूर कर उन्हें शाइनी और स्मूद बनाता है. मगर यह बालों को स्ट्रेट नहीं करता. हां, जिन महिलाओं के बाल पहले से स्टे्रट हों उन के बालों में कुछ समय के लिए स्ट्रैटनिंग वाला इफैक्ट जरूर आ जाता है. मगर जिन के बाल कर्ली हैं उन के बाल शैंपू वाश के बाद पहले की तरह ही हो जाते हैं, बस स्मूदनैस और शाइनिंग रह जाती है. साथ ही बाल पहले से ज्यादा हैल्दी भी लगने लगते हैं.’’

महिलाओं को यह भी भ्रम है कि कैराटिन ट्रीटमेंट परमानैंट होता है जबकि ऐसा नहीं है. सैम के अनुसार, कैराटिन ट्रीटमेंट में बहुत ही माइल्ड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल होता है जबकि स्मूदनिंग और रीबौंडिंग में हार्ड कैमिकल्स का प्रयोग किया जाता है. कैराटिन ट्रीटमेंट का असर बालों पर 4-5 महीने रहता है. इस के बाद फिर से यह ट्रीटमेंट देना होता है.

इन बातों का रखें ध्यान

1. इस ट्रीटमेंट की प्रक्रिया के दौरान हीट इक्विपमैंट्स का प्रयोग किया जाता है, जिस से बालों को काफी नुकसान पहुंचता है. भले ही यह नुकसान ट्रीटमेंट के प्रभाव के कारण न दिखे, मगर 4-5 महीने बाद जब ट्रीटमेंट का असर खत्म हो जाता है तब बालों में डैमेजेस दिखने लगते हैं. ऐसा न हो इस के लिए बालों को अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. मसलन, कैराटिन युक्त हेयरस्पा इस में काफी मददगार साबित होते हैं.

2. ट्रीटमेंट के बाद बालों को कम से कम फोल्ड करें. दरअसल, यह स्ट्रेटनिंग ट्रीटमेंट नहीं है, मगर इस में स्ट्रेटनिंग वाला इफैक्ट आ जाता है. बालों को फोल्ड करने पर यह इफैक्ट खत्म हो जाता है.

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3. अन्य ट्रीटमैंट्स की तरह कैराटिन ट्रीटमेंट भी एक कैमिकल ट्रीटमेंट है. इस के प्रयोग के बाद बालों का रंग 1 लैवल फेड हो जाता है. अत: इस बदलाव के लिए पहले से ही खुद को तैयार कर लें.

4. ट्रीटमेंट के बाद बालों में केवल सल्फेट फ्री शैंपू और सल्फेट फ्री कंडीशनर ही लगाएं. ट्रीटमेंट से पहले प्रोडक्ट के इनग्रीडिऐंट्स जरूर देखें. ग्लाइकोलिक ऐसिड वाले प्रोडक्ट के इस्तेमाल से बचें, क्योंकि इस से भी बालों का प्राकृतिक रंग खराब होता है.

5. यह ट्रीटमेंट खासतौर पर उन महिलाओं के लिए अच्छा साबित हो सकता है जिन के बाल पहले करवाए गए कैमिकल ट्रीटमेंट से डैमेज हो चुके हैं.

6. यह ट्रीटमेंट किसी अनुभवी प्रोफैशनल से ही कराएं और फौर्मल्डेहाइड फ्री कैराटिन ट्रीटमेंट करने के लिए कहें. दरअसल, कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि कैराटिन ट्रीटमेंट में फौर्मल्डेहाइड फ्री कैराटिन ट्रीटमेंट भी उपलब्ध है, इसलिए वही सैलून चुनें जहां फौर्मल्डेहाइड फ्री कैराटिन ट्रीटमेंट दिया जाता है.

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