एमसीयूजी और यूरोडायनैमिक जांच के कारण डर लग रहा है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी बेटी 7 साल की है और उस का वजन 33 किलोग्राम है. वह 3 सालों से मूत्रनली के संक्रमण से पीडि़त है. इस दौरान उसे बुखार या पेट में दर्द नहीं हुआ, लेकिन पिछले 2 हफ्तों से उसे दर्द रहने लगा है, जो पेशाब करने के 3-4 घंटों के बाद ठीक हो जाता है. जांच में पता चला है कि उसे ई. कोली बैक्टीरिया का संक्रमण है और डाक्टर ने उसे ऐंटीबायोटिक का कोर्स लेने को कहा है. ऐंटीबायोटिक में मौजूद नाइट्रोफ्यूरैंटोइन से उसे उलटी और पेट में जलन की शिकायत होती है. पेट के अल्ट्रासाउंड में सबकुछ सामान्य निकला है. उस के गुरदों और ब्लैडर की अवस्था भी ठीक है और ब्लैडर में अवशिष्ट पेशाब भी नहीं था. यूरोलौजिस्ट ने उपचार जारी रखते हुए एमसीयूजी तथा यूरोडायनैमिक जांच करवाने को कहा. बताएं, क्या करूं?

जवाब-

आप की जांच अपर्याप्त लगती है. इस में एमसीयूजी या यूरोडायनैमिक जांच की जरूरत नहीं है. लेकिन यूरोलौजिस्ट ने बच्ची को रोगनिरोधक ऐंटीबायोटिक देने की सही सलाह दी है. पेशाब की संवेदनशीलता और कल्चर जांच दोबारा करा लें. अगर रिपोर्ट जीवाणुरहित आती है तो रोगनिरोध के लिए अपने चिकित्सक की सलाह से ऐंटीबायोटिक लें. इस बीच उसे भरपूर पानी पीने को दें और जब भी महसूस हो तुरंत पेशाब करा लें. भरपूर पानी पीने से पेशाब की थैली में बैक्टीरिया का जमाव नहीं होगा.

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अगर आप अपने पार्टनर को काफी समय से सेक्‍स के लिए न कह रही हैं, तो यह चिंता का विषय हो सकता है. ये भी संभव है कि आपका पार्टनर सेक्‍स के प्रति आपका रुझान न होने की समस्‍या से परेशान हो. इसे  यौन अक्षमता भी कहा जाता है. इस शब्द का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किया जाता है जो अपने साथी को सेक्‍स के दौरान सहयोग नहीं करता. महिलाओं में एफएसडी होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे सेक्स के दौरान दर्द या मनोवैज्ञानिक कारण. ज्यादातर मामलों में, हालांकि, एफएसडी को मनोवैज्ञानिक कारणों के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इस परिदृश्य में, महिलाओं के लिए किसी पेशेवर से मदद लेना महत्वपूर्ण होता है. डौ. अनुप धीर ने एफएसडी के निम्‍न  मुख्‍य कारण बताएं हैं-

1. मनोवैज्ञानिक कारण

डॉ. धीर कहते हैं, पुरुषों के लिए सेक्‍स एक शारीरिक मुद्दा हो सकता है, लेकिन महिलाओं के लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा है. पिछले बुरे अनुभवों के कारण कुछ महिलाएं भावनात्मक रूप से टूट जाती हैं. वर्तमान में बुरे अनुभवों के कारण मनोवैज्ञानिक मुद्दे या फिर अवसाद इसका कारण हो सकता है.

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2. और्गेज्‍म तक न पहुंच पाना

एनोर्गस्मिया के बारे में समझाते हुए डॉ. धीर कहते हैं, एफएसडी का दूसरा भाग एनोर्गस्मिया कहलाता है. यह स्थिति तब होती है जब व्‍यक्ति को या तो कभी ऑर्गेज्‍म नहीं होता या वह कभी इस तक पहुंच ही नहीं पाता. ऑर्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता भी एक मेडिकल कंडीशन है. सेक्स में रुचि की कमी और ऑर्गेज्‍म तक पहुंचने में असमर्थता दोनों ही स्थिति गंभीर हैं. यह मुख्य रूप इसलिए होता है क्योंकि महिलाएं अधिक फोरप्ले पसंद करती हैं. अगर ऐसा नहीं हो रहा तो ऑर्गेज्‍म तक पहुंचना मुश्किल है. इसका मनोचिकित्सा के माध्यम से इलाज किया जा सकता है.महिलाओं को अपने रिश्ते में सेक्स के साथ समस्याएं होती हैं. अगर आपको ऐसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, तो आपको अपने एंड्रॉजिस्ट को जल्द से जल्द दिखाना चाहिए ताकि समस्या संबंधों को प्रभावित न करे.

रिश्ते में है समर्पण जरूरी

समर्पण शब्द सुनते ही नजरों के सामने फैल जाता है एक बड़ा सा कैनवस, जिस पर कोई एक विचार या भावना नहीं, बल्कि अनेक चित्र एकसाथ उभरते हैं. जैसे मातापिता और संतानें, व्यक्ति और उस का लक्ष्य, व्यवसाय तथा व्यवसायी और इन सब से अलग और महत्त्वपूर्ण चेहरा होता है पतिपत्नी का. इन सभी चित्रों में एक बात जो मुखर है, वह यह कि किसी संबंध के प्रति स्वयं को पूरी तरह से सौंप देने का ही नाम समर्पण है.

समर्पण का विस्तृत आकाश

मेरी बचपन की सहेली मोहिनी के पिता मुख्य चिकित्साधिकारी थे. मोहिनी की मां उस के जन्म के पूर्व ही अपनी दोनों आंखें गंवा चुकी थीं पर क्या मजाल कि अंकल ने आंटी को एक पल के लिए भी आंखों की कमी खलने दी हो. पार्टी हो या सिनेमाहाल, उत्सव हो या समारोह, वे हर स्थान पर आंटी का हाथ अपने हाथों में लिए रहते तथा सतत कमेंट्री करते रहते. यही नहीं, उन के घर में कोई नई खरीदारी की जाए तो तुरंत बच्चों को आदेश देते कि जाओ, मम्मी को दिखा लाओ. आंटी सामान को छू कर अपनी सहमतिअसहमति जतातीं परंतु अंकल उन के ‘छूने’ को भी देखने का नाम ही देते. यह उन के प्रति एक विलक्षण समर्पण था. दांपत्य जीवन की शुरुआत करते समय पतिपत्नी आजीवन एकदूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहने तथा एकदूसरे से सुखदुख में साथ निभाने के वादे करते हैं. यही समर्पण की पहली सीढ़ी है. पतिपत्नी दोनों ही अलगअलग वातावरण में पलेबढ़े होते हैं. दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि, जीवनशैली, शिक्षादीक्षा तथा शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं में भिन्नता होना स्वाभाविक है.

ऐसी स्थिति में एक सफल और सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना तभी की जा सकती है, जब पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे के गुणदोषों, पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक दायित्वों को सहज रूप से स्वीकारें. आवश्यकतानुसार स्वयं को बदलने और तालमेल बैठाने की कोशिश करें. यह प्रयास ‘मैं’ और ‘तुम’ से अलग ‘हम’ का एक संसार बसाने का होना चाहिए.

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पति की पत्नी से अपेक्षाएं

दिल्ली के वरिष्ठ मैरिज काउंसलर अमृत कपूर का मानना है कि अधिकांश मामलों में आपसी मनमुटाव की शुरुआत सैक्स संबंधों से ही होती है. पतियों की यह शिकायत होती है कि उन की पत्नी सैक्स के मामले में असक्रिय है तथा थके होने और मूड न होने का बहाना बना कर उन्हें टालतीटरकाती रहती है, जिस के कारण वे तनावग्रस्त हो जाते हैं. शारीरिक समर्पण वैवाहिक जीवन की एक अनिवार्य अभिव्यक्ति अवश्य है पर इकलौता मानदंड नहीं. सैक्स को विषय बना कर पत्नी को दुख देना पतियों के एकतरफा स्वार्थीपन को उजागर करता है न कि पत्नी के प्रति प्रेम को. पति भूल जाता है कि पत्नी भी एक व्यक्तित्व है. पत्नी रातोरात पति तथा उस के परिवार को अपना सर्वस्व मान कर उन के अनुरूप ढल जाए, ऐसा सोचना गलत होगा. अत: पतियों को चाहिए कि वे धैर्य तथा समझदारी से काम लें. वे जीवनसाथी के निजी सुखदुख का भागीदार बनने का कार्य भी उतने ही प्यार, सहानुभूति, अपनत्व तथा उत्साह से करें जैसा कि वे पत्नी से चाहते हैं.

पारिवारिक शांति का आधार

स्त्री को पिता का घर छोड़ कर पति के नए तथा अजनबी परिवार में स्वयं को बसाने से ले कर पति, परिवार तथा संतान के प्रति कर्तव्यों को निभाने के अनेक कठिन पड़ावों पर अपने समर्पण की परीक्षा देनी पड़ती है. पत्नी का यह समर्पण कहनेसुनने में तो बड़ा सरल प्रतीत होता है मगर इसे करना आसान नहीं होता. यदि स्त्री अपने उत्तरदायित्वों को भलीभांति समझ कर एकएक कदम बढ़े तो यह कार्य सुगम हो जाएगा. स्त्री में वह शक्ति और समायोजन क्षमता होती है, जिस के सहारे वह सरलता से स्वयं को किसी भी परिस्थिति में ढाल लेती है. बंगाल की वयोवृद्ध समाजसेविका सुनंदा बनर्जी अपने युवावस्था के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ‘‘उन दिनों समर्पण प्राय: एकतरफा ही होता था. पुरुषों तथा परिवार की आशाओं पर खरा उतरने की जंग में स्त्री का सारा जीवन होम हो जाता था. परंतु आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं. आज यदि घर की सुखशांति के लिए पत्नी एक कदम आगे बढ़ाती है, तो पति एवं परिवार की ओर से उसे दोगुना प्रेम, सम्मान तथा उत्साह मिलता है.’’

बलिदान नहीं सामंजस्य

वैवाहिक जीवन के तनावों तथा अवसादों से ग्रस्त, जो विवाहित जोड़े मनोरोगचिकित्सकों का द्वार खटखटाने पहुंच जाते हैं, उन में एक साझा पहलू यह पाया जाता है कि वे अहं के टकराव का शिकार होते हैं. उन में एकदूसरे के ऊपर प्रभुत्व जमाने की तीव्र इच्छा होती है. उन की शिकायत अकसर यही होती है कि उन का जीवनसाथी उन्हें उंगलियों पर नचाना चाहता है, बलि का बकरा बना रखा है, मेरा तो सब कुछ होम हो गया आदि. ऐसी स्थिति में मनोरोगचिकित्सक उन्हें यही समझाते हैं कि वैवाहिक जीवन कोई बलिवेदी नहीं है जिस पर एक के लिए दूसरा कुरबान हो जाता है. गृहस्थ जीवन एक ऐसा कर्मक्षेत्र है जिस में सुखदुख, उतारचढ़ाव तथा ऊंचनीच आते ही रहते हैं. पतिपत्नी दोनों को इन्हें सहज रूप से स्वीकार कर आपसी प्रेम, तालमेल तथा सूझबूझ के साथ जीवन चलाना चाहिए. आपस में सुंदर सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास दोनों ओर से हो, एकतरफा नहीं. एकदूसरे पर रोब जमा कर समर्पण की मांग करना सरासर अशिष्टाचार तथा असभ्यता ही है.

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समर्पण के मार्ग की रुकावट

दिल्ली के वरिष्ठ ऐडवोकेट राकेश दीवान के अनुसार, वर्तमान समय में अधिकतर नवविवाहित जोड़े अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं. विवाह के पूर्व जिन सपनों की दुनिया में ये जीते हैं, उस से बाहर आ कर व्यावहारिक जगत के रिश्ते निभाना उन के लिए कठिन हो जाता है और विवाह के कुछ ही समय उपरांत इन में तूतू, मैंमैं शुरू हो जाती है. ये जोड़े एकदूसरे के अधिकार और कर्तव्यों को मुद्दा बना कर परस्पर आरोपप्रत्यारोप करते हैं, जिस से इन का दांपत्य बिखर जाता है. विवाह चाहे अरेंज्ड मैरिज हो या लव मैरिज, दोनों ही स्थितियों में 2 भिन्नभिन्न व्यक्तियों को एकसाथ रहने का अभ्यास करना पड़ता है. पतिपत्नी के रिश्ते में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. दोनों ही का योगदान बराबर का होता है, अलबत्ता दोनों की क्रियाप्रतिक्रिया का रूप और तरीका अलगअलग हो सकता है. गृहस्थ जीवन कोई कोर्टकचहरी नहीं, जहां समयअसमय अधिकार बनाम कर्तव्य का मुकदमा चलाया जाए. इस जंग में हासिल कुछ भी नहीं होता है. हाथ आती है तो  केवल जगहंसाई, दांपत्य में दरार और पारिवारिक विघटन.    

 सफल दांपत्य के 10 गुर

विवाह के पूर्व होने वाले जीवनसाथी की पसंदनापसंद तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि की विशेष जानकारी कर लें.

विवाह के पश्चात आजीवन एकदूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहें.

पतिपत्नी एकदूसरे के परिवार, रिश्तेदारों तथा रीतिरिवाजों का सम्मान करें.

पतिपत्नी एकदूसरे के गुणदोषों को स्वीकारने तथा संपूर्ण सामंजस्य का नियमित अभ्यास करें.

एकदूसरे से अनावश्यक तथा सीमा के बाहर की अपेक्षाएं न रखें.

परस्पर स्नेह और सम्मान का प्रदर्शन करें. भूल कर भी ‘अहंकार’ को बीच में न आने दें.

पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे के क्रोध, चिड़चिड़ाहट और झल्लाहट आदि को सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया समझ कर स्वीकार करें.

घर, बाहर, परिवार एवं बच्चों की जिम्मेदारियों को यथासंभव मिलबांट कर निभाएं. जो कर सकें उसे अवश्य करें और जो न कर पाएं उस के लिए विनम्रतापूर्वक ‘न’ कह दें.

जीवनसाथी के प्रति समर्पण का प्रदर्शन करने के लिए समयसमय पर उस की प्रशंसा अवश्य करें तथा उसे खुश करने के छोटेछोटे उपाय भी करें.

अपने गृहस्थ जीवन को सुखी रखने के लिए मार्गदर्शन अवश्य लें, मगर हस्तक्षेप कदापि स्वीकार नहीं करें.

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कैसे चुनें सही एअरकंडीशनर

बाजार में इन दिनों कई कंपनियों के एअरकंडीशनर उपलब्ध हैं. लेकिन एअरकंडीशनरों की बहुतायत के कारण अपने घर के लिए सही एअरकंडीशनर का चुनाव करने में काफी माथापच्ची करनी पड़ती है. आप अपनी जरूरत के अनुसार उपयुक्त एअरकंडीशनर कैसे चुनें, इस के लिए यहां कुछ नुसखे आप को बताए जा रहे हैं.

सही एअरकंडीशनर का चुनाव करते समय सब से पहले इस पर विचार करना चाहिए कि उपयोग के लिए किस तरह का सिस्टम सही रहेगा. बाजार में आजकल अनेक प्रकार के एअरकंडीशनिंग सिस्टम उपलब्ध हैं:

विंडो एअरकंडीशनर

कमरे के लिए इस का सब से ज्यादा इस्तेमाल होता है. इस के कंप्रेसर, कंडेंसर, क्वाइल, इवैपरेटर और कूलिंग क्वाइल वगैरह सामान एक ही बौक्स में रहते हैं और इस यूनिट को कमरे की दीवार में बने खांचे में या आमतौर पर खिड़की में लगा दिया जाता है. विंडो एसी को लगाना या उसे एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना आसान होता है.

हाई वाल स्प्लिट एअरकंडीशनर

स्प्लिट एअरकंडीशनर के 2 हिस्से होते हैं – आउटडोर यूनिट और इनडोर यूनिट. आउटडोर यूनिट को कमरे या घर के बाहर लगाया जाता है. इस में कंप्रेसर, कंडेंसर और ऐक्सपैंशन वाल्व होते हैं. इनडोर यूनिट में इवैपरेटर, कूलिंग क्वाइल और कूलिंग फैन होते हैं. इस यूनिट के लिए आप को कमरे की दीवार में कोई खांचा नहीं बनाना पड़ता है और इसे किसी भी दीवार पर फिट किया जा सकता है.

विंडो यूनिट से अलग इसे स्थायी तौर पर लगाया जाता है. इस की शुरुआती लागत ज्यादा होती है, क्योंकि इसे फिट करने की प्रक्रिया कुछ जटिल होती है और इस के लिए पेशेवर जानकारों की जरूरत पड़ती है. अगर आप के कमरे में खिड़कियां नहीं हैं, तो यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है.

सीलिंग कैसेट एअरकंडीशनर

छत में लगने वाला यह एअरकंडीशनर उन कमरों के लिए उपयुक्त होता है, जिन की दीवारों पर इसे लगाने की जगह या खिड़कियां नहीं होतीं. यह शोर नहीं करता है और सोने के मुख्य कमरे, बैठकखाने और व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उपयुक्त होता है.

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फ्लोर स्टैंडिंग एअरकंडीशनर

यह बड़े और भव्य घरों के अनुकूल है. इसे कहीं भी खड़ा किया जा सकता है और एक जगह से दूसरी जगह पर इसे ले जा कर रखना भी आसान होता है. लेकिन इसे खिड़की के पास रखना उचित होता है, क्योंकि विंडो एअरकंडीशनर की तरह ही इस के ऐग्जौस्ट वैट को खिड़की के पास रखना जरूरी होता है.

मौजूदा दौर में इन्वर्टर टैक्नोलौजी युक्त एअरकंडीशनर भी बाजार में उपलब्ध है, जो सामान्य तापक्रम बनाए रखता है. इन्वर्टर एसी को परिचालन खर्च और आवश्यकतानुसार बढि़या एअरकंडीशनिंग को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. परंपरागत एअरकंडीशनर की तुलना में इन्वर्टर एअरकंडीशनर के निम्नलिखित फायदे हैं:

1. इन्वर्टर एसी में कम बिजली खर्च होती है जिस से बिजली की खपत में 30-50% तक की बचत होती है.

2. यह अधिक तेजी से वांछित तापक्रम हासिल करता है. इसे चालू करने में 30% कम समय लगता है.

3. यह बिना आवाज किए चलता है.

4. स्थिर तापक्रम के साथ अधिकाधिक आरामदेह है.

5. कंप्रेसर में वोल्टेज नहीं बढ़ता है.

6. कुछ इन्वर्टर एसी में हीट पंप लगे होते हैं, जो गरमियों के मौसम में एसी के सही ढंग से काम करने के लिए बहुत उपयोगी होते हैं.

आकार और क्षमता का चुनाव

ठंडी होने वाली जगह के आकार के अलावा एअरकंडीशनिंग सिस्टम की उचित क्षमता निर्धारित करने के और भी अनेक कारण हैं. जरूरी क्षमता तय करने के लिए ताप भार का अनुमान सब से जरूरी है. ताप भार का अनुमान लगाने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:

1. जगह का आकार.

2. अभिविन्यास (ओरिएंटेशन).

3. ठंडा करने की जगह के आसपास और ऊपरनीचे की बनावट.

4. शीशा लगे स्थान.

5. शीशों पर छाया की मात्रा और स्वरूप.

6. इंसुलेशन (रोधन) डेक के ऊपर/नीचे की स्थिति और प्रयुक्त सामग्री.

7. इस्तेमाल की जगह आवासीय, शोरूम, अस्पताल आदि.

8. स्थान पर कौपियर, सर्वर आदि जैसे उपकरणों की मौजूदगी.

9. मकान बनाने में इस्तेमाल हुई सामग्री.

बेहतर है कि ठंडा करने वाली जगह के हिसाब से बिलकुल सही क्षमता का निर्धारण करने के लिए किसी पेशेवर व्यक्ति की मदद ली जाए.

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ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा बचत की जांच: विंडो एसी और हाई वाल यूनिटों के लिए बीईई स्टार रेटिंग की जांचपड़ताल कर लेना बेहद जरूरी है. एअरकंडीशनर की कूलिंग क्षमता और विद्युत खपत के अनुपात को मापने वाली ऊर्जा दक्षता अनुपात (ईईआर) के विचार से रेटिंग जितनी उच्च होगी, उतनी ही ज्यादा दक्षता होगी. उच्चतर दक्षता से कूलिंग ज्यादा असरदार और बिजली की खपत कम होती है.

विशेषताएं: उपकरण के आसान इस्तेमाल के लिए रिमोट कंट्रोल, एलसीडी डिस्प्ले और बिल्ट इन टाइमर महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं. अन्य फायदेमंद विशेषताओं में सस्ती क्रियाशीलता प्रणाली, फिल्टर और वायुशोधक शामिल हैं. इन के अलावा खरीदारी का फैसला करते समय इस्तेमाल में आसानी पर भी ध्यान देना जरूरी है. खरीदारी के पहले आवाज और कंपन स्तर पर अवश्य ही गौर करें. अधिक स्टाइलिश एअर कंडीशनर से आराम तो मिलेगा ही, जीवनशैली भी खूबसूरत हो जाएगी.

वारंटी: हमेशा अधिकृत विक्रेता से ही एअरकंडीशनर खरीदें. आप जो ब्रैंड ले रहे हैं, उस की वारंटी की जानकारी प्राप्त कर लें. कंपनी का सुव्यवस्थित सेवा नैटवर्क होना और बुलाने पर मैकेनिक का तुरंत आना जरूरी है.

घर के लिए एअरकंडीशनर लेना आप के लिए सब से खर्चीली खरीदारी होती है. भले ही आप पुराने एसी को बदल रहे हों या कोई नया एसी ले रहे हों, एक बार खरीद लेने पर हो सकता है कि 10 वर्ष के बाद ही इसे बदलने की जरूरत पड़े. चूंकि आप उसे लंबे समय तक इस्तेमाल करेंगे, इसलिए उपर्युक्त बिंदुओं पर ध्यान देने से आप को न केवल गरमी में ज्यादा राहत मिलेगी, बल्कि बिजली के बिल में भारी कमी का लाभ भी मिलेगा.

– संजय महाजन, वाइस प्रैसिडैंट-विक्रय एवं विपणन, कैरियर माइडिया इंडिया

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इजाबेला: गंगूबाई ने क्यों की उसकी मदद

कहानी- अनिता सभरवाल

इजाबेला, 13 साल की दुबलीपतली लड़की को एनीपौल और आर्थर दंपती ने बड़ी शान से गोद लिया. उस की दयनीय नजरें कई सवाल पैदा करती थीं. लेकिन उस की मासूम जबान उन सवालों का जवाब देने की हिम्मत नहीं कर पाती थी.

‘‘इजाबेला नाम है इस का,’’ एनी पौल ने बड़े प्यार से एक दुबलीपतली लड़की को अपने से सटाते हुए कहा, ‘‘हमारी बेटी.’’

यद्यपि किसी को उन की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन जब वह कह रही हैं तो मानना ही पड़ेगा. अत: सभी ने गरमागरम पकौड़े खाते हुए उन की और उन के पति की मुक्तकंठ से प्रशंसा की.

दरअसल मद्रास से लौटने के बाद उसी दिन शाम को एनी ने अपनी पड़ोसिनों को चाय पर बुलाया और सूचना दी कि उन्होंने एक लड़की गोद ली है.

उस 13 साल की दुबलीपतली लड़की को देख कर नहीं लगता था कि उस का नाम इजाबेला भी हो सकता है. एनी ने ही रखा होगा यह खूबसूरत नाम. उस की सेहत ही बता रही थी कि उस ने शायद ही कभी भरपेट भोजन किया हो.

इस अप्रत्याशित सूचना से पड़ोस की महिलाएं हैरान थीं. सब मन ही मन एनी पौल की घोषणा पर अटकलें लगा रही थीं कि आखिर समीरा ने झिझकते हुए पूछ ही लिया, ‘‘एनी, तुम्हारे 2 बेटे तो हैं ही, फिर आज की महंगाई में…’’

उस की बात को बीच में काटती हुई एनी बोलीं, ‘‘अरे, बेटे हैं न, बेटी कहां है. और तुम तो जानती हो कि बेटी के बिना भी घर में रौनक होती है क्या? आर्थर को एक बेटी की बहुत चाहत थी. हम ने 2 साल बहुत सोचविचार किया और खुद को बड़ी मुश्किल से मानसिक रूप से तैयार किया. सोचा, यदि गोद ही लेनी है तो क्यों न किसी गरीब परिवार की बच्ची को लिया जाए.’’

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अपनी बात को खत्म करतेकरते एनी की आंखों में प्यार के आंसू उमड़ आए. इस दृश्य और बातचीत के अंदाज से सब का संदेह कुछकुछ दूर हो गया. कुछकुछ इसलिए क्योंकि ज्यादातर लोगों की सोच यह थी कि कामकाज के लिए एनी बेटी गोद लेने के बहाने नौकरानी ले आई हैं.

इजाबेला अब कभीकभी नए कपड़ों में दिखाई देने लगी. लेकिन उस के नए कपड़े ऐसे नहीं थे कि वह एनी पौल की बेटी लगे. एनी के बेटे आपस में खेलते नजर आते पर उन की दोस्ती इजाबेला से नहीं हुई थी. वह बरामदे के एक कोने में खड़ी रहती. उदास या खुश, पता नहीं चलता था. हां, सेहत जरूर कुछ सुधर गई थी…शायद ढंग से नहानेधोने के कारण रंग भी कुछ निखरानिखरा सा लगता था.

धीरेधीरे सब अपने कामों में मशगूल हो गए. फिर कभी वह लौन में से पत्तियां उठाती दिखाई देती तो कभी पौधों में पानी देती. एक बार झाड़ू लगाती भी नजर आई थी. घर में काम करने वाली गंगूबाई से कालोनी की औरतों को यह भी पता चला कि इजाबेला अब खाना भी बनाने लगी है.

महिलाओं की सभा जुड़ी और सब के चेहरे पर एक ही भाव था कि मैं ने कहा था न…

महिलाओं की यह सुगबुगाहट एनी तक पहुंच गई थी और उन्होंने सोने के टौप्स दिखा कर सब का शक दूर कर दिया. सभी उस के सामने एनी की तारीफ तो करती थीं पर मन एनी के दिखावे को सच मानने को तैयार न था.

समय धीरेधीरे सरकता रहा. एनी और इजाबेला की खबरें कालोनी की औरतों को मिलती रहती थीं. लगभग 10 माह बाद एक दिन मीरा मौसी ने कहा, ‘‘मुझे तो लगता है कि घर का सारा काम इज्जु ही करती है.’’

‘‘कौन इज्जु?’’ एक महिला ने पूछा.

‘‘अरे, वही इज्जाबेला.’’

‘इज्जाबेला नहीं मौसी, इजाबेला… और समीरा एनी उसे इजू कहती हैं, न कि इज्जु,’’ लक्ष्मी ने बात स्पष्ट की.

‘‘कुछ भी कह लक्ष्मी, अगर बेटी होती तो क्या स्कूल नहीं जाती? यदि गोद लिया है तो अपनी औलाद की तरह भी तो पालना चाहिए न. काम के लिए नौकरानी लानी थी तो इतना नाटक करने की क्या जरूरत थी. ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं एनी पौल को,’’ मौसी ने कहा.

कभी कोई महिला इस लड़की के मांबाप पर गुस्सा निकालती कि कितनी दूर भेज दिया है लड़की को. ये लोग उसे कभी बाहर नहीं आने देते. किसी से बात नहीं करने देते. घर जाओ तो उसे दूसरे कमरे में भेज देते हैं. क्यों? मीरा मौसी को कुछ ही नहीं सबकुछ गड़बड़ लगता था. एक दिन एनी से पूछ ही लिया, ‘‘एनी, साल भर होने को आया, अभी तक अपनी बेटी का किसी स्कूल में एडमीशन नहीं करवाया.’’

एनी बड़ी नजाकत से बोली थीं, ‘‘मौसी, अब किसी ऐसेवैसे स्कूल में तो बेटी को भेजेंगे नहीं. जहां इस के भाई जाते हैं वहीं जाएगी न? और वहां दाखिला इतनी आसानी से कहां मिलता है. आर्थर प्रिंसिपल से मिला था. उम्र के हिसाब से इसे 9वीं में होना चाहिए. 14 की हो गई है. पर इसे कहां कुछ आता है. एकाध साल घर में ही तैयारी करवानी पड़ेगी. आर्थर पढ़ाता तो है.’’

मौसी कुछ और जानने की इच्छा लिए अंदर आतेआते बोलीं, ‘‘तो वहां कुछ नहीं पढ़ासीखा इस ने?’’

‘‘वहां सरकारी स्कूल में जाती थी. 5वीं तक पढ़ी है. फिर मां ने काम पर लगा दिया. अब यही तो कमी है न इन लोगों में. मुफ्त की आदत पड़ी हुई है फिर मैनर्स भी तो चाहिए. वैसे मौसी, इजाबेला चाय बहुत अच्छी बनाने लगी है,’’ फिर आवाज दे कर बोलीं, ‘‘इजू बेटे, मौसी को बढि़या सी चाय बना कर पिलाओ.’’

जब वह चाय बना कर लाई तो मौसी ने देखा कि उस ने बहुत सुंदर फ्राक पहनी हुई थी और करीने से बाल संवारे हुए थे. मौसी खुश हो गईं और संतुष्ट भी. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ रखा तो एनी संतुष्ट हो गई.

‘‘इजू, शाम को बाहर खेला करो न. मेरी पोती भी तुम्हारी उम्र की है.’’

वह कुछ कहती उस से पहले एनी बोल उठीं, ‘‘मौसी, यह हिंदी, अंगरेजी नहीं जानती है. सिर्फ तमिल बोलती है. टूटीफूटी हिंदी की वजह से झिझकती है.’’

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इजू अब सारा दिन घर में इधरउधर चक्कर काटती दिखाई देती और एनी घर से निश्चिंत हो कर बाहर घूमती रहती. महल्ले की औरतों की हैरानी तब और बढ़ गई जब गंगूबाई छुट्टी पर थी और एनी ने एक बार भी किसी से कोई शिकायत नहीं की. मस्त थी वह. तो काम कौन करता है? पर अब कोई नहीं पूछता कुछ उस से क्योंकि जिन की बेटी है उन्हें ही कुछ परवा नहीं तो महल्ले वाले क्यों सोचें.

अब मौसी भी कुछ नहीं कह सकतीं. भई, जब बेटी बनाया है, घर दिया है तो वह कुछ काम तो करेगी ही न? और सब लोगों के बच्चे भी तो करते हैं. अब समीरा की बेटी को ही देख लो. 7वीं में पढ़ती है पर सुबह स्कूल जाने से पहले दूध ले कर आती है, डस्टिंग करती है और कोई घर पर आता है तो चाय वही बनाती है.

मीरा मौसी की पोती भी कुछ कम है क्या? टेबल लगाती है, दादीदादा को कौन सी दवा कब देनी है आदि बातों के साथसाथ मम्मी के आफिस से आने से पहले कितना काम कर के रखती है तो इजू क्यों नहीं अपने घर में काम कर सकती?

गंगूबाई बीमारी से लौट कर काम पर आई तो सब से पहले एनी के ही घर गई थी. लौट कर बाहर आई तो जोरजोर से बोलने लगी. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. फिर समीरा के घर पर हाथ  नचानचा कर कहने लगी, ‘‘सब जानती हूं मैं, 1,500 रुपए में खरीद कर लाए हैं, काम करने के वास्ते.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता, गंगूबाई?’’ समीरा ने पूछा.

‘‘अब कामधंधे पर निकलो तो सब की जानकारी रहती ही है. आप लोगों जैसे घर के अंदर बैठ कर बतियाते रहने से कहां कुछ पता चलता है,’’ फिर थोड़ा अकड़ कर गंगूबाई बोली, ‘‘मेरा भाई, आर्थर साहब के चपरासी का दोस्त है,’’ कह कर गंगूबाई मटकती हुई चली गई.

अब एनी पौल को घर और महल्लेवालों की परवा नहीं थी. वह नौकरी करने लगीं और इजू बिटिया घर की देखभाल. दत्तक बेटी से इजू नौकरानी बन गई थी. नौकरानी तो वह शुरू से ही थी पर पहले प्रशिक्षण चल रहा था अत: पता नहीं चलता था, अब फुल टाइम जौब है तो पता चल रहा है. इस तरह यह मुद्दा खत्म हो गया था कि बेटी है या नौकरानी. अब मुद्दा यह था कि उस के पास फुल टाइम मेड क्यों है? धीरेधीरे यह मुद्दा भी ठंडा पड़ने लगा.

इजाबेला ने नया माहौल स्वीकार कर लिया था. उस के पास और कोई चारा भी तो नहीं था. हंसतीमुसकराती इजाबेला सुबह काम में जुटती तो रात को 11-12 बजे ही बिस्तर पर जाने को मिलता. किसी दिन मेहमान आ जाते तो बस…

अपने कमरे में जा कर लेटती तो बोझिल पलकें लिए ‘रानी’ बन सुदूर गांव के अपने मांबाप के पास पहुंच जाती. सागर के किनारे खेलती रानी, रेत में घर बनाती रानी, छोटे भाईबहनों को संभालती रानी. बीमार मां की जगह राजश्री मैडम के घर बरतन मांजती… मां ने एक दिन उस के शराबी बाप से रोतेरोते कहा था, ‘शराब के लिए तू ने अपनी बेटी को बेच दिया है.’ उसे याद है एनी पौल का छुट्टियों में राजश्री के घर आना.

वह आंखें बंद कर मां के गले लग कर रोती. उसे इस तरह रोते 3 साल हो गए हैं. एनी मैडम ने कहा था कि हर साल छुट्टी पर उसे घर भेजेगी. कल वह जरूर बात करेगी.

अगली सुबह एडी को तेज बुखार था और वह सब भूल गई. एडी से तो उसे बहुत लगाव था. वह भी उस से खूब बातें करता था. इजाबेला पूरीपूरी रात एडी के कमरे में बैठ कर काट देती. पलक तक न झपकाती थी.

तीसरी रात जाने कैसे उसे नींद आ गई. और जब नींद खुली तो देखा आर्थर उस के ऊपर झुका हुआ था. वह जोरों से चीख पड़ी. पता नहीं किसी ने सुना या नहीं. अब इजाबेला आर्थर को जब भी देखती तो उस में अपने बाप का चेहरा नजर आता. इसीलिए वह बड़ी सहमी सी रहने लगी और फिर एक भरी दोपहरी में इजू बड़ी जोर से चीखी थी पर महानगरीय शिष्टता में उस की चीख किसी ने नहीं सुनी.

सुघड़, हंसमुख इजू अब सूखती जा रही थी. वह हर किसी को ऐसे देखती जैसे कुछ कहना चाह रही हो पर किसे क्या बताए, एनी को? वह मानेगी? और किसी से बात करे? पर ये लोग जिंदा नहीं छोड़ेंगे. ऐसे कई सवाल उस के मन में उमड़तेघुमड़ते रहे और ताड़ती निगाहों ने जो कुछ अनुमान लगाया उस की सुगबुगाहट घर के बाहर होने लगी. चर्चा में कालोनी की औरतें कहती थीं, ‘‘गंगूबाई पक्की खबर लाई थी.’’

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‘‘कैसे?’’

‘‘क्या आर्थर के चपरासी ने बताया?’’

‘‘नहीं, कल घर में कोई नहीं था. इजाबेला ने खुद ही बताया.’’

‘‘एनी मेम साहब को नहीं पता? आर्थर जबरदस्ती पैसे दे देता है और साथ में धमकी भी.’’

‘‘मैं बताऊंगी एनी मेम साहब को,’’ गंगूबाई बोली.

‘‘नहीं, गंगूबाई. वह बेचारी पिट जाएगी,’’ हमदर्दी जताते हुए समीरा बोली.

और एक दिन एनी ने भी देख लिया. उस का पति इतना गिर सकता है? उस ने अब ध्यान से बड़ी होती इजू को देखा. रंग पक्का होने पर भी आकर्षक लगती थी. एनी ने आर्थर को आड़े हाथों लिया. फिर अपने घर की इज्जत बखूबी बचाई थी. अगली सुबह ‘इजू बिटिया’ को पीटपीट कर बरामदे में लाया गया.

‘‘जिस थाली में खाती है उसी में छेद करती है,’’ गुस्से से एनी बोलीं, ‘‘हम इतने प्यार से रखते रहे और इसे देखो… यह ले अपना सामान, यह रहे तेरे पैसे… अब कभी मत आना यहां…’’

तभी गंगूबाई जाने कहां से आ पहुंची.

‘‘क्यों मार रही हो बेचारी को?’’

‘‘बेचारी? जानती हो क्या गुल खिला रही है?’’

‘‘गुल इस ने खिलाया है या तुम्हारे साहब ने?’’

‘‘गंगूबाई, यह मेरी बच्ची की तरह है. गलती करने पर पेट जाए को भी मारते हैं या नहीं? इस ने चोरी की है,’’ कहतेकहते उस की नजर इजू पर पड़ी.

इजू ने बस यही कहा, ‘‘मैं ने चोरी नहीं की.’’

गंगूबाई चिल्ला पड़ी थी, ‘‘मुझे पता है क्या बात है? ऐसे बाप होते हैं… सगी बेटी होती तो उसे देख कर भी लार टपकाता क्या?’’

जिन लोगों ने यह सुना सकते में आ गए.

‘‘एनी,’’ आर्थर का कहना था, ‘‘ऐसे ही होते हैं यह लोग. घटिया, जितना प्यार करो उतना ही सिर पर चढ़ते हैं. बदनाम करा दिया मुझे न,’’ आर्थर देख रहा था कि गंगूबाई की बात का लोगों ने लगभग यकीन कर लिया था.

और वे लोग जो उस के बेटी या नौकरानी होने के मुद्दे को ले कर कल तक परेशान थे, आज चुप थे. कल को उन के नौकरनौकरानी भी कुछ ऐसा कह सकते हैं न. भई, इन लोगों का क्या भरोसा? ये तो होते ही ऐसे हैं, झट से नई कहानी गढ़ लेते हैं. कल को कुछ भी हो सकता है, सच भी, झूठ भी. अगर इजू का साथ देते हैं तो कल उन का साथ कौन देगा.

एनी को लगा कि सभी उसे देख रहे हैं और उस का मजाक बना रहे हैं. इसलिए दरवाजा बंद करते हुए और जोर से बोली थीं, ‘‘शुक्र है पुलिस में नहीं दिया.’’

अपने ट्रंक पर बैठी इजाबेला गेट के बाहर रो रही थी.

गंगूबाई आगे आई थी.

‘‘चल मेरे साथ. पैसा नहीं दे सकती पर सहारा तो दे सकती हूं. सब से बड़ी बात मर्द नहीं है मेरे घर में. जो खाती हूं वही मिलेगा तुझे भी. एकदूसरे की मदद करेंगे हम दोनों. चल, पर मैं इज्जाबेला न कहूंगी. ये कोई नाम हुआ भला? या तो इज्जा या बेला… बेला ठीक है न?’’

बेला धीरेधीरे गंगूबाई के पीछेपीछे चल पड़ी. अपने जैसे लोगों के साथ रहना ही ठीक है.

कुछ दिन बाद सब ने देखा कि बेला अपनी नई मां गंगूबाई के साथ काम पर जाने लगी थी.

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पतिता का प्रायश्चित्त: आखिर रेणु के बारे में क्या थी मयंक की राय

लेखक- डौ. अनिल प्रताप सिंह

उस दिन शाम को औफिस से घर आने के बाद मयंक अपने परिवार के साथ कार से टहलने निकल पड़ा. मयंक के साथ उस की पत्नी स्नेह भी थी जो 2 साल के अंशु को गोद में ले कर बैठी थी.

मयंक कार के स्टेयरिंग पर था और उसे बहुत धीमी रफ्तार से चला रहा था. अचानक उस की नजर सड़क पार करती एक जवान औरत पर पड़ी. एकाएक उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने कार की रफ्तार को और भी धीमा कर दिया और उस औरत को गौर से देखने लगा.

‘‘क्या बात है?’’ स्नेह की आवाज में जिज्ञासा थी, ‘‘क्या देख रहे हैं आप?’’

‘‘मैं उस औरत को देख रहा हूं,’’ मयंक ने उस औरत की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्यों… कोई खास बात है क्या?’’ स्नेह ने पूछा.

‘‘हां है…’’ मयंक ने कहा, ‘‘एक लंबी कहानी है इस की. उस कहानी का एक पात्र खुद मैं भी हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ एक अविश्वास भरी हैरानी से स्नेह का मुंह खुला का खुला रह गया.

थोड़ी देर में मयंक ने कार की रफ्तार बढ़ा दी और आगे निकल गया.

मयंक इस शहर में अभी नयानया जिला जज बन कर आया था. उसे यहां रहने के लिए एक सरकारी बंगला मिला हुआ था. वह सपरिवार यानी स्नेह और 2 साल के अंशु के साथ रहने लगा था.

उस रात जब वे खाना खाने बैठे तो स्नेह ने उसी सवाल को दोहराया, ‘‘कौन थी वह औरत?’’

मयंक का दिल ‘धक’ से बैठ गया, पर उस ने खुद पर कंट्रोल कर के मन ही मन बात शुरू करने की भूमिका बना ली. फिलहाल टालने भर का मसाला तैयार कर के उस ने कहा, ‘‘आजकल उस औरत का एक केस मेरी अदालत में चल रहा है. तलाक का मामला है.’’

‘‘लेकिन, आप ने तो कहा था कि उस की कहानी के एक पात्र आप भी…’’

‘‘हां, मैं ने तब जो भी कहा हो, लेकिन इस समय मेरे सिर में दर्द है. मुझे आराम करने दो,’’ मयंक की आवाज में कुछ झुंझलाहट थी.

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स्नेह के मन में मची उथलपुथल को मयंक बखूबी समझ रहा था. औरत के मन में शक की उपज स्वाभाविक होती है. यों स्नेह मयंक के प्यार के आगे मुंह खोल सकने की हालत में नहीं थी.

मयंक टाल तो गया, पर वह औरत अब भी उस की यादों में छाई रही.

आज से तकरीबन 8 साल पहले जब मयंक ग्रेजुएशन का छात्र था तो उस की बड़ी बहन की शादी में दूर के रिश्तेदारों, परिचितों के अलावा बड़े भाई के एक खास दोस्त की बहन रेणु भी आई थी.

मयंक को पहले ही दिन लगा था कि रेणु बहुत ही चंचल स्वभाव की थी और बातूनी भी. रेणु के आते ही सब उस से घुलमिल गए थे. बातबात में हर कोई ‘रेणु, जरा मुझे एक गिलास पानी देना’, ‘जरा मेरे लिए एक कप चाय बना देना’, ‘मुझे भूख लगी है, खाना परोस देना’ जैसी फरमाइशें करने लगा था.

एक दिन मयंक ने पुकारा था, ‘रेणु, मुझे प्यास लगी है.’

अचानक रेणु मयंक के पास आई और फुसफुसा कर बोली, ‘कैसी…’ और इतना कह कर उस ने अपने होंठों पर बड़ी गूढ़ मुसकान बिखेर दी.

मयंक अचकचा सा गया था. उसे रेणु से इस तरह की हरकत की कतई उम्मीद न थी.

मयंक ने अपनी झेंप को काबू में करते हुए कहा, ‘फिलहाल तो मुझे पानी ही चाहिए.’

रेणु ने पानी दिया और उसी दिन थोड़ा एकांत पाते ही उस ने कहा, ‘मयंक, तुम मुझ से इतना कतराते क्यों हो? क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती?’

‘नहीं’ कहने के बजाय मयंक के मुंह से निकला था, ‘क्यों नहीं…’

लेकिन उसी दिन से उन दोनों के बीच ऐसी निजी बातों का सिलसिला चल पड़ा था. लगा कि जैसे सारी दूरियां खत्म होती जा रही थीं. मयंक भी रेणु की बातों में दिलचस्पी लेने लगा था.

रेणु ने एक दिन मयंक के सामने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया, ‘मयंक, मैं चाहती हूं कि हम दोनों जीवनभर एकदूसरे के बने रहें.’

‘क्या…’ मयंक की हैरानी लाजिमी थी. क्या रेणु उस के बारे में इस हद तक सोचती है?

‘हां मयंक, अगर मेरी शादी तुम से नहीं हुई तो मैं जिंदगीभर कुंआरी ही रहूंगी,’ रेणु ने कहा. लगा, जैसे उस के आंसू छलक पड़ेंगे.

मयंक थोड़ी देर तो चुप रहा था लेकिन कुछ ही पलों में उस के दिल में रेणु के लिए प्यार उमड़ पड़ा था. वह उसे वचन दे बैठा, ‘अगर तुम में सचमुच सच्चे प्यार की भावना है रेणु, तो मैं जिंदगीभर तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’

यह सुनते ही रेणु मयंक से लिपट गई.

‘मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी,’ रेणु बुदबुदाई.

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मयंक का एक दोस्त विनय भी शादी से कुछ दिन पहले ही हाथ बंटाने के लिए वहां आ गया था. एक दिन मयंक की मां ने विनय से शादी का कुछ सामान लाने को कहा. रेणु भी अपनेआप तैयार हो गई.

‘क्या मैं भी विनय के साथ चली जाऊं? इन के रास्ते में ही महमूदपुर पड़ेगा, जहां मेरी एक सहेली ब्याही गई है. अगर एतराज न करें तो मैं उस से मिल लूं? शाम को जब ये शहर से सामान ले कर लौटेंगे तो इन्हीं के साथ आ जाऊंगी,’ रेणु ने मयंक की मां से पूछा.

थोड़ी देर सोच कर मां बोलीं, ‘लेकिन, शाम तक जरूर लौट आना.’

‘हांहां, बस मिलना ही तो है,’ रेणु ने कहा, फिर वे दोनों स्कूटर पर बैठे और चले गए.

शाम हुई और शाम से रात, पर रेणु नहीं आई. मयंक ने सोचा कि आखिर वह अभी तक क्यों नहीं लौटी? विनय भी नहीं आया था.

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘कौन…?’ मां ने पूछा.

‘मैं हूं,’ उधर से विनय ने कहा.

मां ने दरवाजा खोला. रेणु भी पीछे खड़ी थी.

‘कहां रह गए थे तुम दोनों?’ मां ने  झुंझलाते हुए पूछा.

‘कुछ नहीं… बस, इन का खटारा स्कूटर खराब हो गया था, फिर काफी पैदल चलना पड़ा,’ विनय कुछ बोलता, उस से पहले ही रेणु ने कहा और घर में जा घुसी.

उस समय मयंक को उस की यह हरकत सही नहीं लगी थी, फिर भी वह उस के शब्दजाल में फंस चुका था.

फिर एक दिन रेणु अपने घर चली गई. कई दिनों तक मयंक को कुछ भी अच्छा नहीं लगा था. घर में जाने की इच्छा भी न होती थी. हर जगह उस की यादें बिखरी हुई मालूम पड़ती थीं. उन्हीं यादों के नाते मयंक को लगता था जैसे वह खुद भी बिखर कर रह गया है.

मयंक ने अपनी मां को भी बता दिया था कि वह रेणु से प्यार करता है और शादी भी उसी से करना चाहता है.

‘मयंक, एक सवाल पूछूं तुम से?’ मां ने पूछा.

‘पूछो न मां… एक नहीं, हजार पूछो,’ मयंक ने कहा.

‘तुम्हें रेणु के चरित्र के बारे में क्या लगता है?’ मां ने सीधा सवाल किया.

मयंक बोला, ‘मुझे तो ठीक लगता है. वैसे, क्या आप को…?’

‘नहींनहीं, आजकल की लड़कियों के बारे में कालेज के लड़के ही ज्यादा जानकारी रखते हैं. खैर, ठीक ही है,’ मां ने कहा.

अचानक मां को पिताजी ने बुला लिया था. मयंक ने सोचा कि मां कहना क्या चाहती थीं?

एक दिन जब मयंक ने विनय को रेणु से अपने संबंध की बात बताई तो वह एकदम से बिफर गया, ‘तुम उसे भूल जाओ प्यारे… उस की मधुर मुसकानें बहुत जहरीली हैं.’

‘मैं समझा नहीं…’

‘तुम समझोगे भी कैसे? तुम्हारे दिमाग को तो रेणु नाम की उसी घुन ने चट कर रखा है. अब तुम समझनेबूझने की हालत में रह ही कहां गए हो?’ विनय ने ताना मारा.

‘क्या मतलब…’

‘तुम्हें यह शादी नहीं करनी है…’ विनय हक के साथ बोल पड़ा, ‘और अगर तुम उसे भूल नहीं पाते हो तो मुझे भूलने की कोशिश कर लेना.’

‘ठीक है. मैं भूल जाऊंगा उसे, लेकिन तुम भी इतना जान लो कि मैं जिंदगीभर कुंआरा ही रहूंगा,’ मयंक थोड़ा भावुक हो उठा.

‘आखिर तुम ने उस के अंदर ऐसा क्या देखा है, जो उस के लिए इतना बड़ा त्याग करने को तैयार हो?’

‘सिर्फ बरताव, खूबसूरती नहीं,’ मयंक ने कहा.

‘तो बस यही नहीं है उस में, बाकी सबकुछ हो भी तो क्या?’

‘क्या…?’

‘हां मयंक, उस का चरित्र सही नहीं है. अच्छा बताओ, तुम्हें वह दिन याद है न, जब रेणु मेरे साथ महमूदपुर गई थी?’

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‘हां, याद तो है?’

‘मेरा स्कूटर खराब हो गया था और मैं देर रात वापस लौटा था?’

‘हां, यह भी याद है…’

‘मैं और भी जल्दी आ सकता था, पर वह देरी रेणु ने जानबूझ कर की थी.’

मयंक हैरानी से विनय का मुंह ताकने लगा.

‘लेकिन, उस को भी तो आना था?’ मयंक अपने अंदर हैरानी समेटे बोल रहा था, ‘जबकि तुम दोनों को महमूदपुर में ही रात होने लगी थी.’

‘हां इसलिए, रात का फायदा उठाने के लिए ही ऐसा किया गया था.’

‘क्या मतलब…?’

‘अब इतने नादान तो हो नहीं तुम कि तुम्हें मतलब समझाना पड़े…’

‘तो क्या रेणु ऐसी…?’

‘जी हां, ऐसी ही है रेणु…’ विनय ने आगे कहा, ‘उस की उन गलत इच्छाओं के आगे मुझे मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि वह किसी भी हद तक जा चुकी थी…’ वह बोलता जा रहा था, ‘मैं इस के बारे में कभी भी कुछ न कहता, अगर आज अपने सब से अच्छे और एकलौते दोस्त को जिंदगी के इतने बड़े फैसले का धर्मसंकट सामने न आ खड़ा होता.’

विनय की बातें मयंक के कानों में जहर घोल रही थीं और वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा था.

मयंक ने सोचा कि अपने इस सवाल का जवाब वह खुद रेणु से लेगा, पर इस की नौबत ही नहीं आने पाई. उस ने जल्दी ही

सुना कि रेणु का किसी से प्रेम विवाह हो गया है.

इधर मयंक के लिए भी कोई रिश्ता आया. उस ने मांबाप के फैसले को सिर्फ उन की खुशी के लिए अपनी रजामंदी

दे दी.

सुसंस्कारों में पलीबढ़ी स्नेह मयंक के घर में सब को भाती थी. जब वह जिला जज की इस जिम्मेदारी के लिए आने लगा तो मां ने स्नेह से हंसते हुए कहा, ‘मेरे और अपने दोनों बेटों का खयाल रखना है अब तुम्हें.’

‘जी मां,’ स्नेह ने भी हंस कर ही कहा, जो मां के लिए बहू के बजाय उन की लाड़ली बेटी थी.

आज रेणु से मयंक का सामना वक्त ने उस मुकाम पर आ कर कराया जहां वह मयंक की ही अदालत में एक गुनाहगार की तरह खड़ी थी. उस के पति ने ही उस पर किसी और से संबंध होने की बात पर तलाक मांगा था.

रेणु आई, मयंक भी. जिला जज से पहले वह एक नेकदिल इनसान ही था, इसलिए अपनी ही उलझनों की शिकन महसूस करते हुए वह भी उस के सामने अपनी कुरसी पर आ बैठा.

आज रेणु का चेहरा बहुत ही बुझा हुआ था. मयंक को उस का अल्हड़पन याद आया, पर उस की जिंदगी में खुशियों का जरा भी दीदार न हो सका.

बहस के दौरान रेणु ज्यादातर चुप

ही बनी रही और अपनी गलतियों को मान कर आगे से ऐसा कुछ न करने के लिए कहा.

रेणु के पति के पक्ष से पेश किए गए सुबूतों के आधार पर उसे तलाक मिल चुका था. पर रेणु के अदालत में बोले गए ये बोल, ‘आज मैं कहां से कहां होती…’ मयंक के जेहन में गूंजते रहे.

मयंक को बारबार यही अहसास

हो रहा था कि ऐसा रेणु ने उस के और मयंक के संबंधों को याद करते हुए

बोला था.

मयंक को आज उस पर तरस आ रहा था, पर यही तो था एक ‘पतिता का प्रायश्चित्त’.

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जानें कब और कितना करें मेनोपौज के बाद HRT का सेवन

महिलाओं में प्राकृतिक रूप से मेनसेज 45 से 52 वर्ष की आयु में धीरेधीरे या फिर अचानक बंद हो जाता है. यह रजोनिवृत्ति मेनोपौज कहलाती है. मेनोपौज के दौरान अंडाशय से ऐस्ट्रोजन और कुछ हद तक प्रोजेस्टेरौन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण अनेक शारीरिक एवं व्यावहारिक बदलाव होते हैं. विशेष रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण महिलाओं में अनेक समस्याएं हो सकती हैं. रजोनिवृत्ति के बाद ये समस्याएं पोस्ट मेनोपोजल सिंड्रोम (पीएमएस) कहलाती हैं. इन में स्तन छोटे होने लगते हैं और लटक जाते हैं, योनि सूखी रहती है, यौन संबंध बनाने में दर्द हो सकता है, चेहरे पर बाल निकल सकते हैं. मानसिक असंतुलन हो सकता है, जल्दी गुस्सा आ सकता है, तनावग्रस्त हो सकती हैं, हार्टअटैक का खतरा बढ़ सकता है व कार्यक्षमता घट सकती है.

पीएमएस का समाधान

पीएमएस के कारण जिन महिलाओं का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और जो खुश व संतुष्ट रहती हैं, उन्हें परेशानियां कम होती हैं. उन्हें किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है. जिन महिलाओं को हलकी परेशानियां होती हैं, वे अपनी जीवनशैली में सुधार कर, समय पर भोजन कर, सक्रिय रह कर व नियमित व्यायाम कर इन से छुटकारा पा सकती हैं. जिन महिलाओं को गंभीर परेशानियां होती हैं उन्हें इन से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर से बचाव और उपचार के लिए ऐस्ट्रोजन हारमोन या ऐस्ट्रोजन+प्रोजेस्टेरौन हारमोन के मिश्रण की गोलियों के नियमित सेवन की सलाह दे सकते हैं. यह उपचार विधि हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी यानी एचआरटी कहलाती है. लेकिन इन गोलियों के लंबे समय तक सेवन के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं. अत: रजोनिवृत्ति के बाद इन का सेवन करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए उन का पता होना चाहिए.

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एचआरटी के लाभ

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से होने वाली हौटफ्लैशेज यानी शरीर में गरमी लगने से अटैक, पसीना आना, हृदय का तेजी से धड़कना आदि लक्षणों से राहत मिलती है.

हारमोन सेवन से योनि में बदलाव नहीं होता, वह सूखी नहीं होती और मिलन के समय रजोनिवृत्ति के बाद दर्द भी नहीं होता.

स्ट्रोजन हारमोन की कमी होने से योनि में संक्रमण आसानी से होता है. अत: एचआरटी सेवन से यौन संक्रमण से बचाव होता है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी का सेवन मूत्र संक्रमण से भी बचाव करता है.

एचआरटी के सेवन से रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाले मांसपेशियों, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के पतला होने, शक्ति कम होने आदि समस्याओं से राहत मिलती है.

अनिद्रा, चिंता, अवसाद की समस्या भी एचआरटी के सेवन से कम हो जाती है और कार्यक्षमता बरकरार रहती है.

महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों की सघनता कम होने से औस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है. इस के कारण हड्डियों में दर्द होता है और वे हलकी चोट या झटके से भी टूट सकती हैं. एचआरटी सेवन से इन कष्टों, जटिलताओं की संभावना कम हो जाती है.

एचआरटी के सेवन से कार्यक्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता में कमी होने की संभावना भी कम हो जाती है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से त्वचा की कोमलता, लावण्य और बालों की चमक बरकरार रहती है.

इन के सेवन से वृद्धावस्था में दांतों, आंखों में होने वाले बदलाव भी देरी से और मंद गति से होते हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि एचआरटी का सेवन करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना कम हो जाती है. उन में आंतों के कैंसर व हृदय रोग का खतरा भी कम होता है.

एचआरटी के सेवन के दुष्प्रभाव

अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन सेवन से गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. अत: यदि गर्भाशय मौजूद है, तो ऐस्ट्रोजन प्रोजेस्टेरौन मिश्रित गोलियों का सेवन करें. यदि औपरेशन से गर्भाशय निकाल दिया गया है तो अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन का सेवन करें.

एचआरटी के सेवन से रक्त वाहिनियों में रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है. यह किसी भी अंग में फंस कर रक्तप्रवाह को बाधित कर हार्टअटैक, पक्षाघात आदि का कारण बन सकता है.

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इस के सेवन से कुछ हद तक पित्ताशय में पथरी की संभावना भी बढ़ जाती है.

एचआरटी की न्यूनतम प्रभावी खुराक रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सुरक्षित रूप से 5 वर्ष तक ली जा सकती है. फिर धीरेधीरे बंद कर दें.

रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सिर्फ एचआरटी सेवन ही एकमात्र विकल्प नहीं है. रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में पर्याप्त मात्रा में ऐसा संतुलित भोजन करें, जिस में कैल्सियम प्रचुर मात्रा में हो. इस के अलावा मल्टीविटामिन के कैप्सूल्स और विटामिन डी का सेवन करें.

Holi Special: ट्राय करें आलू का सलाद

आपने कई तरह की आलू की सब्जी खायी होगी लेकिन क्या आपने आलू का सलाद ट्राई किया है? जर्मन पोटैटो सैलेड उबले हुए आलुओं से तैयार होने वाली डिश है. आलू के अलावा इसमें गाजर, बीन्स, मटर, मस्टर्ड सॉस और मियोनीज़ का इस्तेमाल किया जाता है. आप इस डिश को किसी भी खास मौके पर साइड डिश के रूप में सर्व कर सकती हैं.

सामग्री

– 110 ग्राम आलू

– 50 ग्राम बीन्स

– 70 ग्राम प्याज

-70 ग्राम गाजर

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– 50 ग्राम मटर

– वेज मियोनीज

– मस्टर्ड सॉस

विधि

सबसे पहले आलू, गाजर, हरी बीन्स और मटर धो लें. इसके बाद इन सभी को प्रेशर कूकर में पका लें. एक उबाल के बाद ही आंच बंद कर दें और इन सभी चीजों को बाहर निकाल दें.

अब आलू और गाजर को एक आकार में काट लें. इन्हें एक किनारे रख दें. अब प्याज और बीन्स को भी छोटा-छोटा काट लें.

एक बड़ा बर्तन ले लें. इसमे सारी कटी हुई सब्जियों को डाल दें. अब इसमें मियोनीज, मस्टर्ड सॉस डालकर अच्छी तरह मिला लें. आपका जर्मन पोटैटो सैलेड सर्व करने के लिए तैयार है.

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मृत्युदंड से रिहाई: विपिन की मम्मी क्या छिपा रही थी

लेखिक-श्रुति अग्रवाल

उस की मुखमुद्रा कठोर हो गई थी और हाथ में लिया पेन कागज पर दबता चला गया. ‘खट’ की आवाज हुई तो विपिन चौंक कर बोला, ‘‘ओह मम्मी, आप ने फिर पेन की निब तोड़ दी. आप बौलपेन से क्यों नहीं लिखतीं, अब तो उसी का जमाना है.’’ विपिन के सुझव को अनसुना कर वे बेटे के हाथ को अपनी गरदन से निकाल कर बालकनी में चली गईं. बिना कुछ कहेसुने यों मां का बाहर निकल जाना विपिन को बेहद अजीब लगा था. पर इस तरह का व्यवहार वे आजकल हमेशा ही करने लगी हैं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मां ऐसा क्यों कर रही हैं.

आज ही क्या हुआ था भला? वह औफिस से लौट कर आया तो पता चला मम्मी उस के ही कमरे में हैं. वहां पहुंच कर देखा तो वे उस की स्टडी टेबल पर झकी कुछ लिख रही थीं. विपिन ने कुरसी के पीछे जा, शरारती अंदाज में उन के गले में बांहें डाल कर किसी पुरानी फिल्म के गीत की एक कड़ी गुनगुना दी थी, ‘तेरा बिटवा जवान हो गवा है, मां मेरी शादी करवा दे.’ इतनी सी बात में इतना गंभीर होने की क्या बात हो सकती है? वे तो पेन की निब को कागज पर कुछ उसी अंदाज में दबाती चली गई थीं जैसे किसी मुजरिम को मृत्युदंड देने के बाद जज निब को तोड़ दिया करते हैं.

इस समय विपिन सीधा सुधा से मिल कर आया था और आज उन दोनों ने और भी शिद्दत से महसूस किया था कि अब एकदूसरे से दूर रहना संभव नहीं है. फिर अब परेशानी भी क्या थी? उस के पास एक अच्छी नौकरी थी, अमेरिका से लौट कर आने के बाद तनख्वाह भी बहुत आकर्षक हो गई थी. फ्लैट और गाड़ी कंपनी ने पहले ही दे रखे थे. और फिर, अब वह बच्चा भी नहीं रहा था.

उस के संगीसाथी कब के शादी कर अपने बालबच्चों में व्यस्त थे. अब तक तो खुद मम्मी को ही उस की शादी के बारे में सोच लेना चाहिए था. पर पता नहीं क्यों उस की शादी के मामले में वे खामोश हैं. यद्यपि अमेरिका जाने से पहले वे अपने से ही 2-1 बार शादी का प्रसंग उठा चुकी थीं. पर उस समय उस के सामने अपने भविष्य का प्रश्न था. वह कैरियर बनाने के समय में शादी के बारे में कैसे सोच सकता था? उसे ट्रेनिंग के लिए पूरे 2 वर्षों तक अमेरिका जा कर रहना था और मम्मी इस सचाई को जानती थीं कि किसी भी लड़की को ब्याह के तुरंत बाद सालों के लिए अकेली छोड़ जाना युक्तिसंगत नहीं लगता. सो, हलकेफुलके प्रसंगों के अलावा उन्होंने इस विषय को कभी जोर दे कर नहीं उठाया था. यही स्वाभाविक था. वहीं, उस ने भी कभी मां से सुधा के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं समझ थी. सोचा था जब समय आएगा, बता ही देगा.

पर अब हालात बदल चुके हैं. अपने संस्कारजनित संकोच के कारण यह बात वह साफसाफ मां से कह नहीं पा रहा था. परंतु आश्चर्य तो यह है कि मां भी अपनी ओर से ऐसी कोई बात नहीं उठातीं. हंसीमजाक में वह कुछ इशारे भी करता, तो उन की भावभंगिमा से लगता कि वे इस बात को बिलकुल समझती ही न हों.

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मम्मी का व्यवहार बड़ा बदलाबदला सा है आजकल. अचानक ही मानो उन पर बुढ़ापा छा गया है, जिस से उन के व्यक्तित्व में एक तरह की बेबसी का समावेश हो गया है. चुप भी बहुत रहने लगी हैं वे. वैसे, ज्यादा तो कभी नहीं बोलती थीं. उन का व्यक्तित्व संयमित और प्रभावशाली था, जिस से आसपास के लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. हालात ने उन के चेहरे पर कठोरता ला दी थी. फिर भी उस के लिए तो ममता ही छलकती रहती थी.

वह जब 3-4 साल का रहा होगा तब किसी दुर्घटना में पिताजी चल बसे थे. मायके और ससुराल से किसी तरह का सहारा न मिलने पर मम्मी ने कमर कस ली और जीवन संग्राम में कूद पड़ीं. बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं, पर जीवन के प्रति बेहद व्यावहारिक नजरिया था. छोटी सी नौकरी और मामूली सी तनख्वाह के बावजूद उस को कभी याद नहीं कि उस के भोजन या शिक्षा के लिए कभी पैसों की कमी पड़ी हो. इसी से वह उन आंखों के हर इशारे की उतनी ही इज्जत करता था, जितनी बचपन में. शायद उन की ममता में ही वह ताकत थी, जिस ने उसे कभी गलत राह पर जाने ही नहीं दिया. मनचाहा व्यक्तित्व मढ़ा था उस का और फिर अपने कृतित्व पर फूली न समाई थीं.

पर यह सब विदेश जाने से पहले की बात है. अब तो मम्मी को बहुत बदला हुआ सा पा रहा था वह. अच्छीखासी बातें करतेकरते एकाएक वितृष्णा से मुंह फेर लेती हैं. हंसना तो दूर, मुसकराना भी कभीकभी होता है. तिस पर से पेन तोड़ने की जिद? उस ने स्पष्ट देखा है, निब अपने से नहीं टूटती, जानतेबूझते दबा कर तोड़ी जाती है.

उस दिन एक और भी अजीब सी घटना हुई थी. वह गहरी नींद में था, पर अपने ऊपर कुछ गीला, कुछ वजनी एहसास होने से उस की नींद टूट गई थी. उस ने देखा कि मम्मी फूटफूट कर रोए जा रही थीं. छोटे बच्चे की तरह उस का चेहरा हथेलियों में भर कर और अस्फुट स्वर में कुछ बड़बड़ा रही थीं, पर उस के आंखें खोलते, वे पहले की तरह खामोश हो गईं. वह लाख पूछता रहा, पर केवल यही कह कर चली गईं कि कुछ बुरा सपना देखा था. उस ने इतने सालों में पहली बार मम्मी को रोते हुए देखा था, जिस ने इतनी बड़ीबड़ी मुसीबतें सही हों, वह सपने से डर जाए? क्या ऐसा भी होता है?

इधर सुधा का मम्मी से मिलने का इसरार बढ़ता जा रहा था, क्योंकि उस के घर वाले उस के लिए रिश्ते तलाश रहे थे और वह विपिन के बारे में किसी से कुछ कहने से पहले एक बार मम्मी से मिल लेना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव उसे कुछ रहस्यमय लग रहा था. इसीलिए विपिन पसोपेश में था और कोई रास्ता निकाल नहीं पा रहा था. एक बार उस के मन में यह विचार आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि घर में किसी दूसरी औरत के आने से मां डर रही हैं कि स्वामित्व का गर्व बंटाना पड़ जाएगा? उसे अपना यह विचार इतना ओछा लगा कि मन खराब हो गया. अपना घर मानो काटने को दौड़ रहा था. सो कुछ समय किसी मित्र के साथ बिताने की सोच विपिन बाहर निकल गया.

विपिन उन के व्यवहार से उकता कर घर से निकल गया है, यह उन्हें भी पता है. पर वह भी क्या करे? उन का तो सबकुछ स्वयं ही मुट्ठी से फिसलता जा रहा है. अंधेरों के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही नहीं है. यह हरीभरी खूबसूरत बालकनी, जिस के कोनेकोने को सजातेसंवारते वे कभी थकती ही नहीं थीं, आज काट खाने को दौड़ रही है. हालांकि, यह जगह उन्हें बहुत पसंद थी. यहां से सबकुछ छोटा, पर खूबसूरत दिखता है. कुछ उसी तरह जैसे कर्तव्य की नुकीली धार पर से जिंदगी अब मखमलों पर उतर आई थी. शायद अब जीने का लुत्फ लेने का समय आ गया था. नौकरी छोड़ चुकी थीं, इसलिए उन के पास खूब सारा समय था रचरच कर अपने घर को सजाया था उन्होंने. इसी उत्साह में विपिन का 2 वर्षों के लिए अपने से दूर जाना भी उन को इतना नहीं खला था. उसे अपनी जिंदगी को रास्ते दिखाने हैं, तो हाथ आए मौके लपकने तो पड़ेंगे ही. वे क्यों अपने आंसुओं से उस का रास्ता रोकें?

यह भी सोचा था कि जैसे जीवनभर केवल अपने सहारे ही खड़ी रहीं, बुढ़ापे में भी अपने ही सहारे रहेंगी. मानसिक स्तर पर बेटे पर इतनी आश्रित नहीं होंगी कि उन का वजूद उसे बोझ नजर आने लगे. आर्थिक स्तर पर तो उन की कोई खास जरूरतें ही नहीं थीं. जीवनभर जरूरतों में कतरब्योंत करतेकरते अब तो वह सब आदत में आ चुका है. हां, समय का सदुपयोग करने के लिए आसपास के ड्राइवरों, मालियों और नौकरों के बच्चों को इकट्ठा कर उन्होंने एक छोटा सा स्कूल खोल लिया था और व्यस्त हो गई थीं.

सबकुछ सुखद और बेहद सुंदर था, पर क्या पता था कि खुशियां इतनी क्षणिक होती हैं. एक दिन मेकअप से पुता एक अनजान चेहरा उन के पास आया था. उन्होंने उसे आश्चर्य से देखा था क्योंकि उस के चेहरे पर कोमलता का नामोनिशान न था. उस ने बताया था कि वह अनुपमा प्रकाश, विपिन की प्रेमिका है. उन लोगों ने सभी सीमाएं पार कर ली थीं. सो, अब उस अतिक्रमण का बीज उस के गर्भ में पल रहा है, पर विपिन अमेरिका से न उस की चिट्ठी का जवाब देता है, न फोन पर ही बात करता है. सब तरह से हार कर अब वह उन की शरण में आई है.

क्या इन परिस्थितियों में फंसी हुई किसी परेशान लड़की की आंखें इतनी निर्भीक हो सकती हैं? यह सोच कर उन्होंने उसे डांट कर घर से बाहर निकाल दिया था, पर तब भी शक का बीज तो मन में पड़ ही चुका था. उन्होंने यह भी सोचा कि लड़की के बारे में जांचपड़ताल करेंगी और अगर नादानी में विपिन से कोई गलती हुई है तो इस के साथ कोई अन्याय नहीं होने देंगी. अपने विपिन के बारे में उन के मन में अगाध विश्वास था.

अनुपमा गुस्से से फुंफकारती हुई कह गई थी, ‘मैं आत्महत्या कर लूंगी और आप के बेटे को जेल भिजवा कर रहूंगी.’ अनुपमा तो गुस्से में कह कर चली गई पर उस के बाद कई प्रश्न उन के दिमाग में उभरते रहे कि कैसा प्रेम होता है यह आजकल का? प्रेम का मतलब एकदूसरे के लिए जान दे देना है या दूसरों को अपने ऊपर जान देने को मजबूर करना है? एक मुंह छिपा कर अमेरिका जा बैठा है तो दूसरी जेल भेजने के लिए जान देना चाहती है. अगर कोई तुम से मुंह मोड़ ही बैठा है तो क्या धमकियों के माध्यम से उसे अपना सकोगी? दबाव में अगर रिश्ता कायम हो ही गया तो कितने दिन चलेगा और कितना सुख दे सकेगा? वैसे, क्या विपिन जैसे समझदार लड़के की पसंद इतनी उथली हो सकती है?

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वेतो समझती थीं कि गरजते हुए बादल कभी बरसते नहीं, पर उस पागल लड़की ने तो सचमुच जान दे दी. उस के मरने की खबर से वे एकाएक ही खुद को गुनहगार समझने लगीं. लगा, खुद उन्होंने ही तो उसे ‘मृत्युदंड’ की सजा दी है. उस ने उन्हें अपने दुख सुनाए और उन्होंने उस पर अविश्वास किया और उसी दिन उस लड़की ने आत्महत्या कर ली.

यह आत्महत्या उन के लिए अविश्वसनीय थी. महानगरों में आधुनिक जीवन जीती हुई ये लड़कियां क्या इतनी भावुक हो सकती हैं कि गर्भ ठहर जाने पर इन्हें आत्महत्या करनी पड़े? जबकि आजकल तो स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां सहेली के घर रुकने का बहाना कर के गर्भपात करा आती हैं और घर वालों को पता तक नहीं चलता. पर हर तरह की लड़कियां होती हैं, हो सकता है कि वह विपिन से इतनी जुड़ गई हो कि उसे खो देने की कल्पना तक न कर सके. पर उस की आंखों की वह शातिर चमक कैसे भूली जा सकती है. तो क्या कोई बदला लेने को इतना पागल हो सकता है कि अपनी जान पर ही खेल जाए?

पर नहीं, यह गलती खुद उन से हुई है. अपने पक्ष में लाख दलीलें दें वह, पर एक भावुक, निर्दोष लड़की को समझने में भूल कर ही बैठी हैं वे. अपनी बहू के साथसाथ अपने अजन्मे पोते को भी मृत्युदंड दे चुकी हैं वे. अब इस का क्या प्रायश्चित्त हो सकता है. उस के शव से ही माफी मांगने को जी चाहा था, एक बार उस चेहरे को ध्यान से देखने का मन किया था और शायद यह भी पता करना था कि वह पागल लड़की उन के बेटे के विरुद्ध तो कुछ नहीं कर गई. इसलिए वे बदहवास सी अस्पताल पहुंच गई थीं.

वहां जा कर कुछ और ही पता चला कि वह आत्महत्या से नहीं, बल्कि एड्स से मरी थी, एड्स…? यह जानते ही उन के मन में एक नया डर समा गया. वे सोचने लगीं कि कहीं मेरे विपिन को भी तो नहीं हो गया यह रोग? ऐसा लगता तो नहीं. देखने में तो वह बिलकुल स्वस्थ लगता है. छिपतेछिपाते जहां से भी संभव हुआ, वे इस असाध्य रोग के बारे में जानकारी एकत्र करती रहीं और पता चला कि इस के कीटाणु कभीकभी तो 6 वर्ष तक भी शरीर के अंदर निष्क्रिय बैठे रहते हैं, फिर जब हमला करते हैं तो जाने कितनी बीमारियां लग जाती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बिलकुल समाप्त हो जाती है.

असुरक्षित यौन संबंधों से फैलता है यह रोग और संबंध तो असुरक्षित ही रहे होंगे जो वह गर्भवती हो बैठी. कुछ भी नहीं बचता इस रोग के बाद, सिवा मौत के.

मौत? विपिन की? नहीं, इस के आगे वे नहीं सोच पातीं. दिमाग ही चक्कर खाने लग जाता है. वे अपनेआप को अपने बेटे की सच्चरित्रता का विश्वास दिलाना चाहती हैं, पर मन का डर हटता ही नहीं. वैसे भी, उम्र बढ़ने के साथसाथ अपनों की फिक्र बढ़ती जाती है, तिस पर से ऐसे भयंकर रोग का अंदेशा?

विपिन की शादी के लिए जो भी रिश्ता आया, उन्होंने उलटे हाथ लौटा दिया. अनुपमा प्रकाश को तो उन्होंने अनजाने में मृत्युदंड दिया था, पर अब जानतेबूझते एक अनजान लड़की को मौत के मुंह में कैसे धकेल दें. पर विपिन का क्या करें जो उन के व्यवहार से भरमाया हुआ है. कैसे वे बेटे से कहें कि तेरी जिंदगी में अब तो गिनती के दिन ही बचे हैं. कोशिश करती हैं कि सामान्य दिखें, पर इतना सटीक अभिनय कोई कर सकता है क्या? उठतेबैठते वह इशारा करता है कि शादी करा दो, पर क्या करें वे? क्या जवाब दें?

और फिर एक दिन एक लड़की को ले आया विपिन उन से मिलाने. साधारण शक्लसूरत की नाजुक सी लड़की सुधा थी. पता नहीं क्यों उन्हें उस लड़की पर बहुत गुस्सा आया. क्या सोचती हैं ये लड़कियां? कोई कमाताखाता कुंआरा लड़का मिल जाए तो मक्खियों की तरह गिरती जाएंगी उस पर. एक ही औफिस में साथ काम करती है तो क्या विपिन के पुराने किस्से न सुने होंगे? सब भूल कर जान देने को तैयार बैठी हैं इस फ्लैट, गाड़ी और तनख्वाह के पैसों के लिए? वे क्या मृत्युदंड देंगी किसी को, थोड़ेथोडे़ भौतिक सुखों के लिए लोग स्वयं को मृत्युदंड देने को तैयार रहते हैं और इस विपिन को क्या लड़कियों के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं?

यही सब सोच कर वे सुधा के साथ काफी रुखाई से पेश आई थीं. और उतरा मुंह लिए विपिन उसे वापस पहुंचा आया था. लौट कर उन के सामने आया तो उस की आंखों में एक कठोर निश्चय चमक रहा था. वे समझ रही थीं कि आज वे उस के प्रश्नों को टाल नहीं सकेंगी. डर भी लग रहा था. मन ही मन तैयारी भी करती जा रही थीं कि क्या कहेंगी और कितना कहेंगी.

‘‘मम्मी, सुधा बहुत रो रही थी,’’ विपिन के स्वर में उदासी थी.

‘‘रोने की क्या बात थी?’’ उन्होंने कड़ा रुख अपना कर बोला था.

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‘‘क्या वह तुम्हें पसंद नहीं आई मम्मी?’’

‘‘मुझे ऐसी लड़कियां बिलकुल पसंद नहीं जो लड़कों के साथ घूमतीफिरती रहती हैं.’’

‘‘क्या बात करती हो, मां, वह मुझे प्यार करती है. मैं उसे तुम को दिखाने के लिए लाया था.’’

‘‘क्या होता है यह प्यारव्यार… अपनाअपना स्वार्थ ही न? क्या चाहिए था उसे, फ्लैट, गाड़ी, रुपया यही न?’’

‘‘नहीं मम्मी, तुम उसे गलत समझ रही हो. हम तो एकदूसरे को उसी समय से चाहते हैं जब मैं ने मामूली तनख्वाह पर यह नौकरी शुरू की थी.’’

विपिन इस तरह से उन के सामने झूठ बोलेगा, वह सोच भी नहीं सकती थीं. तैश में मुंह से निकल गया, ‘‘यह अनुपमा प्रकाश कौन थी? तुम उसे कैसे जानते हो?’’

‘‘मेरे औफिस में टाइपिस्ट थी.’’

‘‘तुम्हें कैसी लगती थी?’’

‘‘मैं उसे ज्यादा नहीं जानता था. अमेरिका से वापस आने पर पता चला कि उस के साथ कोई घटना घटी थी.’’

‘‘तेरे अमेरिका जाने पर वह आई थी. ऐयाशी का सुबूत ले कर गर्भवती थी वह,’’ क्रोध में वह तुम से तू पर उतर आईर् थी.

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘मर गई वह तेरे लिए और उस की बिना पर तू दूसरी शादी की तैयारी कर रहा है? यही संस्कार हैं तेरे?’’

‘‘ओह, तो यह बात है, मम्मी? वह अच्छी लड़की नहीं थी. काफी बदनाम थी. मैं उस का अधिकारी था. एक बार काम में बहुत सी गलतियां मिलने पर कुछ डांट दिया था. वह बुरा मान गई होगी शायद और बदला लेने चली आई होगी.’’

‘‘झठ मत बोल. किसी लड़की के लिए ऐसे कहते शर्म नहीं आती तुझे, जिस ने तेरे लिए जान दे दी?’’

ए काएक ही उन्हें आशा की एक

किरण नजर आई. वह रुंधी आवाज में पूछ रही थीं, ‘‘सच बोल विपिन, उस से तेरा कोई संबंध नहीं था. मेरी कसम खाकर बोल.’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो उस से बहुत कम बार मिला हूं. मेरा विश्वास करो.’’

‘‘मैं उस के मरने पर अस्पताल गई थी बेटे, उसे एड्स था. यह तो छूत की बीमारी होती है न?’’ उन्होंने सहमते हुए अपना मन खोल ही डाला.

विपिन अवाक सा उन का मुंह देखे जा रहा था, फिर एकाएक ठठा कर हंस पड़ा. उस ने उठ कर अपनी बांहों में मां को उठा कर गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया.

मर गई वह तेरे लिए और उस की बिना पर तू दूसरी शादी की तैयारी कर रहा है? यही संस्कार हैं तेरे?’’

‘‘ओह, तो यह बात है, मम्मी? वह अच्छी लड़की नहीं थी. काफी बदनाम थी. मैं उस का अधिकारी था. एक बार काम में बहुत सी गलतियां मिलने पर कुछ डांट दिया था. वह बुरा मान गई होगी शायद और बदला लेने चली आई होगी.’’

‘‘झठ मत बोल. किसी लड़की के लिए ऐसे कहते शर्म नहीं आती तुझे, जिस ने तेरे लिए जान दे दी?’’

ए काएक ही उन्हें आशा की एक

किरण नजर आई. वह रुंधी आवाज में पूछ रही थीं, ‘‘सच बोल विपिन, उस से तेरा कोई संबंध नहीं था. मेरी कसम खाकर बोल.’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो उस से बहुत कम बार मिला हूं. मेरा विश्वास करो.’’

‘‘मैं उस के मरने पर अस्पताल गई थी बेटे, उसे एड्स था. यह तो छूत की बीमारी होती है न?’’ उन्होंने सहमते हुए अपना मन खोल ही डाला.

विपिन अवाक सा उन का मुंह देखे जा रहा था, फिर एकाएक ठठा कर हंस पड़ा. उस ने उठ कर अपनी बांहों में मां को उठा कर गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया.

‘‘मेरी पगली मम्मी.’’

‘‘मुझे सुधा के घर ले चलेगा आज? बेचारी सोचती होगी कि कैसी खूसट सास है.’’

वे हवा में लटकेलटके बोलती जा रही थीं. गोलगोल घूमते हुए उस कमरे में ताजे फूलों की खुशबू लिए बालकनी से ठंडीठंडी हवा आ कर उन के फेफड़ों में भरती जा रही थी, आज तो मृत्युदंड से रिहाई का दिन था, सुधा का नहीं, विपिन का भी नहीं, खुद उन का.

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नीड़ का निर्माण फिर से: भाग 4- क्या मानसी को मिला छुटकारा

लेखक- श्रीप्रकाश

मनोहर की हालत दिनोदिन बिगड़ने लगी. एक दिन अपनी मां को ढकेल दिया. वह सिर के बल गिरतेगिरते बचीं.

तंग आ कर उस के पिता ने अपने बड़े बेटे राकेश को बंगलौर से बुलाया.

‘अब तुम ही संभालो, राकेश. मैं हार चुका हूं,’ मनोहर के पिता के स्वर में गहरी हताशा थी.

‘मनोहर, तुम पीना छोड़ दो,’ राकेश बोला.

‘नहीं छोड़ूंगा.’

‘तुम्हारी हर जरूरत पूरी होगी बशर्ते तुम पीना छोड़ दो.’

राकेश के कथन पर मनोहर बोला, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए सिवा चांदनी और मानसी के.’

‘मानसी अब तुम्हारी जिंदगी में नहीं है. बेहतर होगा तुम अपनी आदत में सुधार ला कर फिर से नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें अपनी कंपनी में काम दिलवा दूंगा.’ मुझे शादी नहीं करनी.’

‘मत करो शादी पर काम तो कर सकते हो.’

मनोहर पर राकेश के समझाने का असर पड़ा. वह शून्य में एकटक देखतेदेखते अचानक बच्चों की तरह फफक कर रो पड़ा, ‘भैया, मैं ने मानसी को बहुत कष्ट दिए. मैं उस का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मैं अपनी फूल सी कोमल बेटी को मिस करता हूं.’

‘चांदनी अब भी तुम्हारी बेटी है. जब कहो तुम्हें उस से मिलवा दूं, पर…’

‘पर क्या?’

‘तुम्हें एक जिम्मेदार बाप बनना होगा. किस मुंह से चांदनी से मिलोगे. वह तुम्हें इस हालत में देखेगी तो क्या सोचेगी,’ राकेश कहता रहा, ‘पहले अपने पैरों पर खड़े हो ताकि चांदनी भी गर्व से कह सके कि तुम उस के पिता हो.’

उस रोज मनोहर को आत्मचिंतन का मौका मिला. राकेश उसे बंगलौर ले गया. उस का इलाज करवाया. जब वह सामान्य हो गया तो उस की नौकरी का भी बंदोबस्त कर दिया. धीरेधीरे मनोहर अतीत के हादसों से उबरने लगा.

इधर मानसी के आफिस के लोगों को पता चला कि उस का  तलाक हो गया है तो सभी उस पर डोरे डालने लगे. एक दिन तो हद हो गई जब स्टाफ के ही एक कर्मचारी नरेन ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. नरेन कहने लगा, ‘मैं तुम्हारी बेटी को अपने से भी ज्यादा प्यार दूंगा.’

मानसी चाहती तो नरेन को सबक सिखा सकती थी पर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी. काफी सोचविचार कर उस ने अपना तबादला इलाहाबाद करवाने की सोची. वहां मां का भी घर था. यहां लोगों की संदेहास्पद दृष्टि हर वक्त उस में असुरक्षा की भावना भरती.

इलाहाबाद आ कर मानसी निश्ंिचत हो गई. शहर से मायका 10 किलोमीटर दूर गांव में था. मानसी का मन एक बार हुआ कि गांव से ही रोजाना आएजाए. पर भाईभाभी की बेरुखी के चलते कुछ कहते न बना. मां की सहानुभूति उस के साथ थी पर भैया किसी भी सूरत में मानसी को गांव में नहीं रखना चाहते थे क्योंकि उस के गांव में रहने पर अनेक तरह के सवाल उठते और फिर उन की भी लड़कियां बड़ी हो रही थीं. इस तरह 10 साल गुजर गए. चांदनी भी 15 की हो गई.

तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मानसी अतीत से जागी. वह चौंक कर उठी और जा कर दरवाजा खोला तो भतीजे के साथ चांदनी खड़ी थी.

‘‘क्या मां, मैं कितनी देर से दरवाजा खटखटा रही थी. आप सो रही थीं क्या?’’

‘‘हां, बेटी, कुछ ऐसा ही था. तू हाथमुंह धो ले, मैं कुछ खाने को लाती हूं,’’ यह कह कर मानसी अंदर चली गई.

एक दिन स्कूल से आने के बाद चांदनी बोली, ‘‘मम्मी, मेरे पापा कहां हैं?’’

मानसी क्षण भर के लिए अवाक् रह गई. तत्काल कुछ नहीं सूझा तो डपट दिया.

‘‘मम्मी, बताओ न, पापा कहां हैं?’’ वह भी मानसी की तरह जिद्दी थी.

‘‘क्या करोगी जान कर,’’ मानसी ने टालने की कोशिश की.

‘‘इतने साल गुजर गए. जब भी पेरेंट्स मीटिंग होती है सब के पापा आते हैं पर मेरे नहीं. क्यों?’’

अब मानसी के लिए सत्य पर परदा डालना आसान नहीं रहा. वह समय आने पर स्वयं कहने वाली थी पर अब जब उसे लगा कि चांदनी सयानी हो गई है तो क्या बहाने बनाना उचित होता?

‘‘तेरे पिता से मेरा तलाक हो चुका है.’’

‘‘तलाक क्या होता है, मम्मी?’’ उस ने बड़ी मासूमियत से पूछा.

‘‘बड़ी होने पर तुम खुद समझ जाओगी,’’ मानसी ने अपने तरीके से चांदनी को समझाने का प्रयत्न किया, ‘‘बेटी, तेरे पिता से अब मेरा कोई संबंध नहीं.’’

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‘‘वह क्या मेरे पिता नहीं?’’

मानसी झल्लाई, ‘‘अभी पढ़ाई करो. आइंदा ऐसे बेहूदे सवाल मत करना,’’ कह कर मानसी ने चांदनी को चुप तो करा दिया पर वह अंदर ही अंदर आशंकित हो गई. अनेक सवाल उस के जेहन में उभरने लगे. चांदनी कल परिपक्व होगी. अपने पापा को जानने या मिलने के लिए अड़ गई तो? कहीं मनोहर से मिल कर उस के मन में उस के प्रति मोह जागा तो? कल को मनोहर ने, उस के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया तो कैसे देगी अपनी बेगुनाही का सुबूत. कैसे जिएगी चांदनी के बगैर?

मानसी जितना सोचती उस का दिल उतना ही डूबता. उस की स्थिति परकटे परिंदे की तरह हो गई थी. न रोते बनता था न हंसते. अचला को फोन किया तो वह बोली, ‘‘तू व्यर्थ में परेशान होती है. वह जो जानना चाहती है, उसे बता दे. कुछ मत छिपा. वैसे भी तू चाह कर भी कुछ छिपा नहीं पाएगी. बेहतर होगा धीरेधीरे बेटी को सब बता दे,’

मानसी एक रोज आफिस से घर आई तो देखा कि चांदनी के पास अपने नएनए कपड़ों का अंबार लगा था. चांदनी खुशी से चहक रही थी.

‘‘ये सब क्या है?’’ मानसी ने तनिक रंज होते हुए पूछा.

‘‘पापा ने दिया है.’’

‘‘हर ऐरेगैरे को तुम पापा बना लोगी,’’ मानसी आपे से बाहर हो गई.

‘‘मम्मी, वह मेरे पापा ही थे.’’

तभी मानसी की मां कमरे में आ गईं तो वह बोली, ‘‘मां, सुन रही हो यह क्या कह रही है.’’

‘‘ठीक ही तो कह रही है. मनोहर आया था,’’ मानसी की मां निर्लिप्त भाव से बोलीं.

‘‘मां, आप ने ही उसे मेरे घर का पता दिया होगा,’’ मानसी बोली.

‘‘हर्ज ही क्या है. बेटी से बाप को मिला दिया.’’

‘‘मां, तुम ने यह क्या किया? मेरी वर्षों की तपस्या भंग कर दी. जिस मनोहर को मैं ने त्याग दिया था उसे फिर से मेरी जिंदगी में ला कर तुम ने मेरे साथ छल किया है,’’ मानसी रोंआसी हो गई.

‘‘मांबाप अपनी औलाद के साथ छल कर ही नहीं सकते. मनोहर ने फोन कर के सब से पहले मुझ से इजाजत ली. उस ने काफी मन्नतें कीं तब मैं ने उसे चांदनी से मिलवाने का वचन दिया. आखिरकार वह इस का पिता है. क्या उसे अपनी बेटी से मिलने का हक नहीं?’’ मानसी की मां ने स्पष्ट किया, ‘‘मनोहर अब पहले जैसा नहीं रहा.’’

‘‘अतीत लौट कर नहीं आता. मैं ने उस के बगैर खुद को तिलतिल कर जलाया. 10 साल कैसे काटे मैं ही जानती हूं. चांदनी और मेरी इज्जत बची रहे उस के लिए कितनी रातें मैं ने असुरक्षा के माहौल में काटीं.’’

‘‘आज भी तुम क्या सुरक्षित हो. खैर, छोड़ो इन बातों को…चांदनी से मिलने आया था, मिला और चला गया,’’ मानसी की मां बोलीं.

‘‘कल फिर आया तो?’’

‘‘तुम क्या उस को मना कर दोगी,’’ तनिक रंज हो कर मानसी की मां बोलीं, ‘‘अगर चांदनी ने जिद की तो? क्या तुम उसे बांध सकोगी?’’

मां के इस कथन पर मानसी गहरे सोच में पड़ गई. सयानी होती बेटी को क्या वह बांध सकेगी? सोचतेसोचते उस के हाथपांव ढीले पड़ गए. लगा जैसे जिस्म का सारा खून निचोड़ दिया गया हो. वह बेजान बिस्तर पर पड़ कर सुबकने लगी. मानसी की मां ने संभाला.

अगले दिन मानसी हरारत के चलते आफिस नहीं गई. चांदनी भी घर पर ही रही. मम्मीपापा के बीच चलने वाले द्वंद्व को ले कर वह पसोपेश में थी. आखिर सब के पापा अपने बच्चों के साथ रहते हैं फिर उस के पास रहने में मम्मी को क्या दिक्कत हो रही है? यह सवाल बारबार उस के जेहन में कौंधता रहा. मानसी ने सफाई में जो कुछ कहा उस से चांदनी संतुष्ट न थी.

एक रोज स्कूल से चांदनी घर आई तो रोने लगी. मानसी ने पूछा तो सिसकते हुए बोली, ‘‘कंचन कह रही थी कि उस की मां तलाकशुदा है. तलाकशुदा औरतें अच्छी नहीं होतीं.’’

मानसी का जी धक से रह गया. परिस्थितियों से हार न मानने वाली मानसी के लिए बच्चों के बीच होने वाली सामाजिक निंदा को बरदाश्त कर पाना असह्य था. इनसान यहीं हारता है. उत्तेजित होने की जगह मानसी ने प्यार से चांदनी के सिर पर हाथ फेरा और बोली, ‘‘तुझे क्या लगता है कि तेरी मां सचमुच गंदी है?’’

‘‘फिर पापा हमारे साथ रहते क्यों नहीं?’’

‘‘तुम्हारे पापा और मेरे बीच अब कोई संबंध नहीं है,’’ मानसी अब कुछ छिपाने की मुद्रा में न थी.

‘‘फिर वह क्यों आए थे?’’

‘‘तुझ से मिलने,’’ मानसी बोली.

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‘‘वह क्यों नहीं हमारे साथ रहते हैं?’’ किंचित उस के चेहरे से तनाव झलक रहा था.

‘‘नहीं रहेंगे क्योंकि मैं उन से नफरत करती हूं,’’ मानसी का स्वर तेज हो गया.

‘‘मम्मी, क्यों करती हो नफरत? वह तो आप की बहुत तारीफ कर रहे थे.’’

‘‘यह सब तुम्हें भरमाने का तरीका है.’’

‘‘मम्मी, जो भी हो, मुझे पापा चाहिए.’’

‘‘अगर न मिले तो?’’

‘‘मैं ही उन के पास चली जाऊंगी. और अपने साथ तुम्हें भी ले कर जाऊंगी.’’

‘‘मैं न जाऊं तो…’’

‘‘तब मैं यही समझूंगी कि आप सचमुच में गंदी मम्मी हैं.’’

आगे पढ़ें- मानसी यह नहीं समझ पाई कि…

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