अभियुक्त: भाग 3- सुमि ने क्या देखा था

शैलेंद्र का चेहरा सफेद पड़ गया, ‘‘चाचीजी, बड़ा मुश्किल सवाल किया आप ने.’’

‘‘मुश्किल होगा तेरे लिए. मैं तो इस का जवाब जानती हूं. तभी तो कहती हूं तेरे संस्कार सदियों पुराने हैं. औरतें तो हों सीता जैसी जो अग्निपरीक्षा भी पास कर लें और आदमी हो रावण जैसे जो दूसरों की औरतों को उठा लाएं.’’

शैलेंद्र चाचीजी की बात पर हंस दिया, ‘‘चाचीजी, इतनी बार आप ने मुझे माफ किया है, इस बार भी कर दो. सुमि को समझाना अब आप की जिम्मेदारी है.’’

चाचीजी का चेहरा गंभीर हो गया. भोली सी बच्ची शैलेंद्र की नादानी का सदमा ले बैठी थी. चाचीजी सुमि से पूछपूछ कर उस की पसंद के व्यंजन बनातीं तो वह उन्हें अभिभूत हो कर देखती रहती. सीधे पल्ले की सूती साड़ी, गोरा, गोल, आनंददीप्त चेहरा. सिर से पांव तक चाचीजी ममता की मूर्ति थीं. मां जैसी वह उस की देखभाल करतीं. अधिकारपूर्ण वाणी में उसे आदेश देतीं. कभी बड़ी बहन बन कर उस के रूखे बालों में तेल मलतीं, कभी सहेली बन कर गांव, खेतखलिहान की सैकड़ों बातें करतीं.

सुमि की चुप्पी धीरेधीरे टूटने लगी. चाचीजी को ले कर एक भय था मन में, जो कब का खत्म हो गया. अब तो उसे लगता कि बस, चाचीजी यहीं रह जाएं.

‘‘सुमि,’’ चाचीजी उस दिन उस के लिए खीर बना रही थीं, ‘‘गांव में अपना सबकुछ है. दूध, मक्खन, घी, कितना वैभव है. यहां पनियल दूध की खीर बनाना बहुत तकलीफ दे रहा है. दूध औटा कर आधा कर लिया फिर भी ऐसे उबल रहा है जैसे पानी.’’

सुमि मुसकरा दी, ‘‘अब इस से गाढ़ी यह नहीं हो पाएगी,’’ उस ने गैस बंद कर दी.

‘‘चलो, बेटी, दो घड़ी आराम कर लें फिर खाना खाएंगे.’’

‘‘जी,’’ सुमि उन के साथ शयनकक्ष तक चली आई.

‘‘चाचीजी,’’ सुमि लाड़ से उन का आंचल अपनी उंगली में लपेटते हुए बोली.

‘‘आप सचमुच आदर्श हैं. शैलेंद्र आप की तारीफ अकसर किया करते थे. शादी के बाद मैं 4 दिन आप के पास रही पर अब लगता है काश, वहीं रहती.’’

‘‘पगली कहीं की,’’ चाचीजी उसे अंक में भर कर बोलीं, ‘‘फिर मेरे शैलेंद्र का खयाल कौन रखता. शादी के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे के पास ही रहना चाहिए. गांव वालों ने मुझ से कितना कहा कि बहू को कम से कम 1 महीना अपने पास ही रखो पर मैं ने किसी की नहीं सुनी.’’

‘‘चाचीजी, आप तो अंतर्यामी हैं. निपट देहात में रह कर आप इतनी आधुनिक बातें कैसे समझ लेती हैं? शैलेंद्र कहते हैं, आप बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक हैं.’’

चाचीजी सकुचा गईं फिर बोलीं, ‘‘बसबस, अब चने के झाड़ पर मत चढ़ा. और तू जिसे मनोविज्ञान कहती है वह मेरे लिए कड़वेमीठे अनुभवों का निचोड़ भर है. 21 साल की उम्र में पति और जेठजेठानी की मृत्यु. बूढ़ी सास की जहर उगलती जबान, मुझे मनहूस समझ कर पड़ोसियों का सुबह से छिपना. एकएक अनुभव हृदय पर अमिट परिभाषाएं लिखता रहा. मानव के अबूझ व्यवहार की, धर्म के नाम पर किए जाने वाले ढकोसलों की, झूठे चरित्र की…’’

‘‘चाचीजी…’’ बीच में टोकते हुए सुमि की आवाज कांप गई.

‘‘ठीक कह रही हूं, सुमि, एक परीक्षा से गुजरते ही दूसरी सामने खड़ी हो जाती. अनगिनत परीक्षाएं दीं मैं ने. पर एक बात सोलह आने सच है कि समाज के सामने ताल ठोंक कर खड़े हो जाना फिर भी आसान था. लेकिन अपनेआप से लड़ना बहुत ही मुश्किल.’’

चाचीजी ने एक गहरी सांस ली. फिर कहने लगीं, ‘‘मेरा धर्म मुझे संयम सिखाता रहा, संस्कार गलत काम करने से रोकते रहे लेकिन 25 साल की उम्र और विवाह के सुखभरे 2 साल…खेत में हिसाब- किताब देखने वाला मोहनलाल उन दिनों मेरे संयम की मजबूत चट्टान को हिला रहा था. लाख रामनाम जपा. रामायणगीता पढ़ी पर सब बेकार…और एक रात जब वह मुझे हिसाब के रुपए देने आया उस ने…नहीं, यह कहना गलत होगा, बल्कि मैं ने ही उसे मौका दे दिया. मन मुझे पीछे धकेल रहा था पर शरीर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. पता नहीं उस दिन कैसे इतनी कमजोर पड़ गई थी मैं. सुबह उठ कर इतनी शरम आई कि मुंह अंधेरे बावड़ी की ओर चल दी.

लेकिन कूदने से पहले शैलेंद्र की याद ने मेरे पैरों में बेडि़यां डाल दीं. मैं मर जाती तो वह बेचारा जीतेजी मर जाता. माना कि मेरी गलती बहुत बड़ी थी पर सजा तो शैलेंद्र को ही भुगतनी पड़ती न. मैं तो अपनी बदकिस्मती से पल भर में मुक्त हो जाती पर उस की भी किस्मत के दरवाजे बंद कर जाती. अबोध शैलेंद्र क्या पता उसे यह जमीनजायदाद मिलती भी या चालाकी से ये मुलाजिम ही सब डकार जाते.’’

सुमि शांत मन से चाची द्वारा कहे एकएक शब्द को सुन रही थी.

‘‘बहुत नफरत हो रही है न मुझ से?’’ चाचीजी ने उसे टटोला.

‘‘नफरत,’’ सुमि को सोचना पड़ा. कम उम्र में आवेश को नकारना सहज नहीं होता. उसे मानना ही पड़ा.

‘‘उस कमजोरी को यदि मैं ताकत में न बदलती तो इस घटना की मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती. मोहनलाल को मैं ने नौकरी से हटा दिया. अपना आचरण संयमित कर लिया और मन ममतामय. कोशिश की कि कोई भी मुझे भोग्या न समझे बल्कि मां की तरह आदरणीय समझे.’’

कुछ देर रुक कर चाचीजी ने गहरी सांस ली, ‘‘सुमि, राह चलते पैरों में कीचड़ लग जाए तो कोई पांव काट कर नहीं फेंक देता. पवित्रता का महत्त्व जरूर है पर जीवन की कीमत पर नहीं.’’

‘‘चाचीजी,’’ सुमि उन के कंधे से लग कर फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘शैलेंद्र से भी गलती हुई है. लेकिन वह तुम से बहुत प्यार करता है. उस गलती के लिए तुम 3 जिंदगियां दांव पर लगाने की गलती मत करो. तुम, वह और यह नन्ही सी जान, सब बिखर जाएंगे. वह तो तुम से माफी मांग ही चुका है, उस की ओर से आंचल फैला कर मैं भी तुम से विनती करती हूं.’’

‘‘नहीं, चाचीजी, आप बड़ी हैं. आप का आदेश ही मेरे लिए काफी है. लेकिन क्या शैलेंद्र ने आप को सबकुछ बता दिया?’’

‘‘तो क्या गलत किया? उस ने मुझ से आज तक कुछ नहीं छिपाया. इस बार भी…’’

सुमि को हंसी आ गई. उस की घुंघरू जैसी रुनझुन हंसी की अनुगूंज पूरे घर को आनंद से सराबोर कर रही थी. अभीअभी आया, दरवाजे पर ठिठका शैलेंद्र समझ गया था कि इस बार भी चाचीजी ने उस की समस्या चुटकियों में सुलझा दी है. अभियुक्त की बाकी सजा माफ हो गई है.

पक्षाघात: भाग 3- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

यह परिवर्तन बाबूजी के लिए सुखद था. अब तक सुमि कहां थी? अब उन का मन लगने लगा. धीरेधीरे उन में जीने की इच्छा जागने लगी. गों गों का स्वर धीरेधीरे अस्फुट शब्दों में परिवर्तित होने लगा. उंगलियों में हरकत होने लगी. सभी तो खुश लग रहे थे इस सुधार से.

सुमि के वापस जाने का समय नजदीक आ रहा था. एक दिन जब सुमि और बच्चे बाबूजी के पास बैठे थे कि मुकुल व मुकेश अपनीअपनी पत्नियों के साथ आ गए. बच्चों को बाहर भेज दिया गया. बाबूजी का दिल बैठने लगा. ऐसी क्या बात है जो बच्चों के सामने नहीं हो सकती?

बड़े बेटे मुकुल ने, अटकते हुए कहना शुरू किया, ‘‘बाबूजी, हमें आप को कुछ बताना है.’’

सुमि बोली, ‘‘क्या बात है, मुकुल?’’

मुकुल बोला, ‘‘दीदी, यह बड़ी अच्छी बात है कि आप के आने से बाबूजी की स्थिति में सुधार आ रहा है, पर…’’

‘‘हां, पर क्या, बोलो?’’

मुकुल थूक निगलते हुए बोला, ‘‘दीदी, बाबूजी की बीमारी के कारण अब हम दोनों की स्थिति ठीक नहीं है.’’

वह आगे कुछ कहता कि सुमि ने आंखें तरेरीं और चुप रहने का इशारा किया पर दोनों भाई तो ठान कर आए थे, सो चुप कैसे रहते, ‘‘बाबूजी, मुकेश आप की बीमारी का कुछ भी खर्चा उठाने को तैयार नहीं है. अभी तक मैं अकेला ही सब खर्चे का बोझ उठा रहा हूं.’’

मुकेश जो अब तक चुप था बोला, ‘‘बाबूजी, आप तो जानते ही हैं कि मेरी इस के जितनी तनख्वाह नहीं है.’’

‘‘तो मैं क्या करूं, अगर आप की तनख्वाह कम है,’’ मुकुल बोला, ‘‘आखिर मुझे भी तो अपने परिवार के भविष्य का खयाल रखना है.’’

‘‘तुम्हारा अपना परिवार? लेकिन मैं तो समझती थी कि यह पूरा परिवार एक ही है, नहीं है क्या?’’ सुमि ने कहा.

‘‘दीदी, किस जमाने की बातें कर रही हो आप. अब वह जमाना नहीं है जब सब एकसाथ हंसीखुशी रहते थे. देखना कुछ सालों बाद आप का यह लाड़ला मुझ से अपना हिस्सा मांगेगा. तो जो कल होना है वह आज अम्मांबाबूजी के सामने क्यों न हो जाए?’’

‘‘कुछ तो शर्म करो तुम दोनों, बाबूजी को ठीक तो होने देते, बेशर्मी करने से पहले,’’ सुमि ने डपटा, ‘‘और अब तो बाबूजी ठीक भी हो रहे हैं. कुछ दिन और सह लो, फिर बंटवारे की जरूरत ही नहीं रहेगी. बाबूजी स्वस्थ हो जाएं तो वह भी कुछ न कुछ कर लेंगे.’’

‘‘नहीं दीदी, आप नहीं समझ रही हैं. बात खर्चे की नहीं है, नीयत की है. मुकेश की नीयत ठीक नहीं,’’ मुकुल बोल पड़ा.

‘‘सोचसमझ कर बोलिए भैया, मेरी नीयत में कोई भी खोट नहीं, यह कहिए कि आप ही निबाहना नहीं चाहते,’’ मुकेश ने बात काटी. दोनों एकदूसरे को खूनी नजरों से घूर रहे थे.

‘‘चुप रहो दोनों. बाबूजी को ठीक होने दो फिर कर लेना जो दिल में आए.’’

‘‘देखिए दीदी, आप बाबूजी की बीमारी के बारे में जानने के बाद अब 1 वर्ष बाद आ पाई हैं. अब बुलाने पर तो आप आएंगी नहीं. यह बात आप के सामने हो तो बेहतर होगा. वरना बाद में आप ने कुछ आपत्ति उठाई तो?’’ मुकेश बोला.

‘‘मुकेश,’’ सुमि चीखी, ‘‘मैं तुम दोनों की तरह बेशर्म नहीं हूं, जो ऐसी बातें करूंगी और सुन लो, मुझे अपने अम्मांबाबूजी की खुशी के अलावा कुछ नहीं चाहिए. और हां, बंटवारे के बाद अम्मांबाबूजी कहां रहेंगे, बताओ तो जरा?’’

‘‘क्यों, मुकेश के पास. वही अम्मां का लाड़ला छोटा बेटा है,’’ मुकुल ने झट कहा.

‘‘मेरे पास क्यों? आप बड़े हैं. आप की जिम्मेदारी है,’’ मुकेश ने नहले पर दहला मारा.

विजयजी की आंखों की कोरों से 2 बूंद आंसू लुढ़क गए. उन के दोनों स्तंभ बड़े कमजोर निकले. उन का अभेद्य किला आज ध्वस्त हो गया था, जाने कब से अंदर ही अंदर यह ज्वालामुखी धधक रहा था. ललिता ने भी मुझे कुछ भनक नहीं लगने दी. अंदर का ज्वालामुखी मन में दबाए मेरे आगे हमेशा हंसती रही. उन की नजरें ललिता को खोजने लगीं. वह उन्हें दरवाजे की ओट में से भीतर झांकती दिखीं. बेहद डरीसहमी हुई. दोनों बहुएं भी वहीं थीं. शायद वे भी यह सब चाहती थीं, पर उन के चेहरों पर ऐसा कुछ भी नहीं था. उन की निगाहें झुकी हुई थीं, चुप थीं दोनों.

सुमि फिर दहाड़ी, ‘‘इतना सबकुछ तय कर लिया अपनेआप, यह भी बताओ, बंटवारा कैसे करना है, यह भी तो सोच ही लिया होगा? आखिर बाबूजी तो लाचार हैं, कुछ बोल नहीं सकेंगे, तो?’’

‘‘इतना बड़ा घर है. बीच से एक दीवार डाल देंगे, जो आंगन को भी बराबरबराबर बांट दे. रसोई काफी बड़ी है, आंगन के बीचोंबीच. उस में भी दीवार डाल देंगे,’’ मुकुल ने कहा.

‘‘और अम्मांबाबूजी के बारे में भी तो तुम दोनों ने सोच ही लिया होगा. उन का क्या होगा, क्या सोचा है?’’ सुमि का चेहरा लाल हो रहा था.

‘‘दीदी, आप अमेरिका में रह कर ऐसी नादानी भरी बातें करेंगी, आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वहां बूढ़े और अपाहिज मातापिता का क्या करते हैं यह आप से बेहतर कोई क्या जानेगा?’’ मुकुल फुसफुसाया जो सब ने सुन लिया.

‘‘हां, भैया ठीक कह रहे हैं. आजकल यहां भारत में भी ऐसा इंतजाम है. यहां भी कई वृद्धाश्रम खुल गए हैं,’’ मुकेश ने कहा तो सुमि को लगा कि दोनों भाई कम से कम इस बारे में एकमत थे.

दोनों अपना फैसला सुना कर बाहर चल दिए. अम्मां दरवाजे के पास घुटनों में सिर दे कर बैठ गईं, सिसकते हुए अपने दिवंगत सासससुर को याद करने लगीं, ‘‘अब कहां हो अम्मांजी, बापूजी? हम तो एक बेटे एक बेटी में खुश थे. आप ही को 2-2 पोते चाहिए थे. अगर एक ही होता तो आज यह नौबत न आती.’’

सुमि दोनों हथेलियों में सिर थामे निर्जीव सी कुरसी पर ढह गई. जीजाजी, जो अब तक चुप थे, ने चुप ही रहने में अपनी भलाई समझी. कहीं यह न हो कि दोनों सालों को डांटें तो वह यह न कह दें कि जीजाजी, आप को क्या कमी है, आप क्यों नहीं ले जाते अपने साथ?

विजयजी बेबस परेशान अपने दिए संस्कारों में गलतियां खोज रहे थे. जिस भरोसे से उन्होंने अपने अटूट परिवार की नींव डाली थी, वह भरोसा ही खंडखंड हो गया था. सबकुछ तो उन के तय किए हुए खाके पर चल रहा था, शायद ऐसे ही चलता रहता, अगर उन पर इस पक्षाघात का कहर न टूट पड़ता.

YRKKH: अक्षरा के एक्सीडेंट से टूटा अभिमन्यू का दिल, #abhira फैंस को लगा झटका

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में लीप के बाद की कहानी फैंस को काफी पसंद आ रही हैं. जहां फैंस अभिमन्यू (Harshad Chopda) और अक्षरा  (Pranali Rathod)का रोमांस देखने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि आरोही संग अभिमन्यू की शादी ने फैंस को निराश कर दिया है. इसी बीच अक्षरा के साथ हुआ हादसा शो की कहानी में जबरदस्त ट्विस्ट लाने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अक्षरा का हुआ एक्सीडेंट

अब तक आपने देखा कि अक्षरा की बहन के लिए प्यार की कुरबानी के चलते अभिमन्यु उसे इग्नोर करता है. इसी बीच अक्षरा का एक्सीडेंट हो जाता है. हालांकि एक्सीडेंट की खबर से अंजान अभिमन्यू को अक्षरा का इलाज करने के लिए कहा जाता है. लेकिन अक्षरा को देखते ही वह टूट जाता है.

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अभिमन्यू करेगा अक्षरा का इलाज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अक्षरा के एक्सीडेंट के बाद हालत बुरी हो जाएगी. वहीं अभिमन्यू से उसका इलाज करने के लिए कहा जाएगा. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाएगा. हालांकि महिमा उसे समझाएगी कि उसे अक्षरा की जान बचानी होगी. वहीं अक्षरा के परिवार को एक्सीडेंट की खबर मिलेगी, जिसके चलते पूरा परिवार टूट जाएगा. वहीं आरोही को अपनी गलती का एहसास होगा और उसे अक्षरा के लिए अभिमन्यू का प्यार नजर आएगा.

सेट पर हो रही है मस्ती

सीरियल में सीरियल माहोल के बीच अक्षरा और आरोही साथ में डांस करते हुए नजर आ रहे हैं. दरअसल, हाल ही में सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें आरोही यानी करिश्मा सावंत और अक्षरा यानी प्रणाली राठोड़ सेट पर जमकर डांस करते नजर आ रहे हैं. वहीं फैंस को दोनों का ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है.

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Top 10 Best Family Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में

Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के आपका परिवार साथ खड़ा रहता है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi 2022.

1. सुबह अभी हुई नहीं थी: आखिर दीदी को क्या बताना चाहती थी मीनल

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अपनी बङी दीदी को मीनल कुछ बताना चाहती थी, मगर फोन में मैसेज लिख चुकने के बाद भी वह सालों से उसे पढ़ तो लेती, पर भेजने का साहस नहीं जुटा पा रही थी. आखिर क्यों…

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2. ध्रुवा: क्या आकाश के माता-पिता को वापस मिला बेटा

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आकाश के मातापिता, जो बेटे को खो कर अपने लिए जीने की वजह खो चुके थे, उस कागज के टुकड़े को पढ़ते ही दौड़ कर बाहर आए. ध्रुवा को घर के अंदर लेते वक्त सभी ने आकाश को अपने आसपास महसूस किया जैसे उन का बेटा लौट आया हो.

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3. हमारे यहां ऐसा नहीं होता: धरा की सास को क्यों रहना पड़ा चुप

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घर में नई बहू धारा ने आ कर परंपरावादी सास सुधा का दिल जीत ही लिया. परंतु बहू में ऐसा कौन सा गुण था, जिस से सास भी अछूती न रह सकी? हर वक्त हमारे यहां तो ऐसा नहीं होता है, पर तुम्हारे यहां… सास की हिदायत सुन बहू धारा तर्क करती तो सास को क्यों चुप रहना पड़

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4. मां का बटुआ: कुछ बातें बाद में ही समझ आती हैं

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कुछ बातें एक उम्र गुजर जाने के बाद ही समझ में आती हैं. मां की हर बात का फलसफा मुझे अब समझ आने लगा है. क्या करूं मां बन कर, सोचना जो आ गया है.

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5. चक्रव्यूह भेदन : वान्या क्यों सोचती थी कि उसकी नौकरी से घर में बरकत थी

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वान्या सोचती थी कि उस की नौकरी से घर में बरकत थी. लेकिन असलियत जान कर उसे अपने निर्णय पर गर्व क्यों हो आया?

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6. वह बेमौत नहीं मरता: एक कठोर मां ने कैसे ले ली बेटे की जान

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बड़बड़ा रही थीं 80 साल की अम्मां. सुबहसुबह उठ कर बड़बड़ करना उन की रोज की आदत है, ‘‘हमारे घर में नहीं बनती यह दाल वाली रोटी, हमारे घर में यह नहीं चलता, हमारे घर में वह नहीं किया जाता.’’ सुबह 4 बजे उठ जाती हैं अम्मां, पूजापाठ, हवनमंत्र, सब के खाने में रोकटोक, सोनेजागने पर रोकटोक, सब के जीने के स्तर पर रोकटोक. पड़ोस में रहती हूं न मैं, और मेरी खिड़की उन के आंगन में खुलती है, इसलिए न चाहते हुए भी सारी की सारी बातें मेरे कान में पड़ती रहती हैं….

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7. सहारा: कौन बना अर्चना के बुढ़ापे क सहारा

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रजनीश सिगरेट फूंकता हुआ फुटपाथ पर खड़ा नजरें इधरउधर दौड़ा रहा था कि अचानक एक महिला को एक दुकान से निकलता देख चौंक पड़ा, ‘अर्चना?’ हां, यह अर्चना ही तो है. वही चेहरामोहरा, वही चालढाल…’ वह खुद से बुदबुदाया और अनायास ही उस की ओर बढ़ गया.

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8. मेरा घर: बेटे आरव को लेकर रंगोली क्यों भटक रही थी

story in hindi

पति का घर पति का होता है, मम्मीपापा का घर मम्मीपापा का. रंगोली का तो कोई घर ही नहीं. पुत्र आरव को ले कर वह कहां रहे? सहेली अतिका ने एक सुझाव दिया जिस को मान उस ने फैसला कर लिया.

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9. आखिरी प्यादा: क्या थी मुग्धा की कहानी

story in hindi

सायरन बजाती हुई एक एम्बुलेंस अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी. वहां की औपचारिकताएं पूरी करने में दोतीन घंटे लग गए थे. सारी कार्यवाही कर जब वे वापस आए तब घर में केवल राघव और मैं थे. राघव और ‘मैं’ यानी पड़ोसी कह लीजिए या दोस्त, हम दोनों का व्यवसाय एक था और पारिवारिक रिश्ते भी काफी अच्छे थे. हम सब मित्रों की संवेदनाएं राघव के साथ थीं कि इस उम्र में पत्नी मुग्धा जी मानसिक असंतुलन खो बैठी हैं और उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा था.

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10.संबंध : भैया-भाभी के लिए क्या रीना की सोच बदल पाई?

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जिस भाभी के लिए रीना के मन के किसी कोने से अस्फुट सी एक आवाज उठती थी कि वे इस दुनिया से चली जाएं और भैया का जीवन बंधनों से मुक्त हो जाए…

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Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं पनीर भुरजी

अगर आप सर्दियों में कुछ हेल्दी और टेस्टी डिश ट्राय करना चाहते हैं तो हेल्दी और टेस्टी पनीर भुरजी आप पराठें के साथ अपनी फैमिली और बच्चों को परोस सकती हैं.

सामग्री

–  450 ग्राम पनीर

–  2 बड़े चम्मच घी

–  1 छोटा चम्मच जीरा

–  2 प्याज कटे हुए

–  1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

–  थोडी सी हरीमिर्च कटी हुई

–  2 टमाटर कटे हुए

–  1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  2 कप पनीर क्रंब्स

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–  3 बड़े चम्मच फेंटा हुआ दही

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री गार्निशिंग की

–  प्याज टुकड़ों में कटा हुआ

–  धनियापत्ती

–  नीबू टुकड़ों में कटा हुआ.

विधि

कड़ाही में औयल गरम कर उस में जीरा डाल कर उसे चटकाएं. फिर इस में प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. इस के बाद अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर तब तक भूनें जब तक उस का कच्चापन न चला जाए. अब इस में हरीमिर्च, टमाटर डाल कर उन के नर्म होने तक पकाएं. इस के बाद इस में नमक, हलदी, लालमिर्च पाउडर डाल कर अच्छी तरह चलाएं. फिर इस में पनीर डाल कर 1-2 मिनट तक अच्छी तरह पकाएं. अब आंच बंद कर इस में दही और कटी धनियापत्ती डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. फिर प्याज, नीबू के टुकड़ों और धनियापत्ती से गार्निश कर के गरमगरम पाव या फिर रोटी के साथ सर्व करें.

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इन 10 आसान तरीकों को अपनाएं और बचाएं पैसे

क्या आपके पैसे वक्त से पहले खर्च हो जाते हैं, क्या आपने अब तक कुछ भी सेव नहीं किया है तो डरिये नहीं आज हम आपके लिये कुछ बहुत ही साधारण टिप्स लेकर आएं हैं जिसे अपने रोजमर्रा के जीवन में लागू कर थोड़े बहुत पैसे तो आप सेव कर ही लेंगी. चलिये आपको बताते हैं.

1. बेहतर प्लान बनाएं

आपको सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन शौपिंग पर जाते समय यह कभी डिसाइड न करें कि आपको क्या क्या खरीदना है. बेहतर है कि जब भी आपको जो सामान याद आए, उसे एक लिस्ट में अपडेट करते जाएं. और जब वो सामान आपके आस पास हो आप उसे फौरन खरीद लें.

2. शौपिंग की लिस्ट हमेशा साथ रखे

अक्सर दुकान पर पहुंच कर हमें पता चलता है कि हम लिस्ट घर पर ही भूल आएं है इसीलिए शौपिग पर जाने से पहले हमेशा याद से लिस्ट साथ रख लें. यह लिस्ट तब और भी जरूरी हो जाती है जब आपके पास सीमित समय हो और उसी दौरान आपको घर के लिए पूरा सामान अपडेट करना हो.

3. बाजार के हिसाब से लिस्ट बनाएं

हमेशा सामान को एक ग्रुप में बांट लें इससे आपको पता रहेगा कि किस दुकान में जाकर क्या लेना और आपको कुल कितनी अलग अलग दुकानों पर जाने की जरूरत है. इस बेहतर प्लानिंग से आप समय बचा सकते हैं. जैसे सब्जी के दुकान का अलग और राशन का अलग इस तरीके से आप ये लिस्ट बनाएं.

4. लिस्ट से भटकें नहीं

आपने लिस्ट किसी खास वजह से बनाई है इसलिए जरूरी है कि आप उस पर टिके रहें. अपनी लिस्ट के प्रति ईमानदार रहेंगे तो फिजूल के खर्च से बचेंगे. ऐसा नहीं की बाजार में गएं और जो मन में आया वो आप खरीदे जा रहीं हैं.

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5. सिर्फ जरूरत का सामान ही थोक में ले

अक्सर हम औफर्स, छूट जैसे लुभावने प्रस्ताव की वजह से किसी चीज को ज्यादा क्वांटिटी में खरीद लेते हैं. आपको हमेशा वैराइटी का ध्यान रखना चाहिए जिससे आप जल्दी उबेंगे भी नहीं और थोक का सामान बर्बाद भी नहीं होगा.

6. एक हफ्ते की खरीदारी मेन्यू बनाएं

रोजाना कुछ न कुछ खरीदने के लिए दुकान पर जाने से बेहतर है कि आप हफ्ते भर के सामान की लिस्ट एक साथ बना लें और उसी के मुताबिक सामान खरीदें. साथ ही, अगली शौपिंग की तारीख भी तय कर लें. इससे घर पर अचानक सामान खत्म होने की स्थिति का सामना आपको नहीं करना पड़ेगा.

7. पीक आवर्स में शौपिंग न करें

हमेशा शौपिंग ऐसे समय पर ही करने जाएं जब भीड़ कम हो और पेमेंट के लिए लाइन छोटी हो. साथ ही आपके पास भी फुर्सत हो. हमें कोशिश करनी चाहिए कि शाम, रात और रविवार की दोपहर में शौपिंग पर न जाएं. इस समय ज्यादातर लोग खरीदारी के लिए इकट्ठा होते हैं और समय का अभाव होने पर अक्सर कुछ न कुछ लेना छूट जाता है.

8. एक्सपायरी डेट चेक करें

जब भी कोई प्रोडक्ट खरीद रहे हों तो एक्सपायरी डेट चेक करें. इस बात को भी चेक करें कि पैकिंग में कोई खराबी न हो. कई बार कुछ चीजें जो छूट या कम रेट पर बेची जाती हैं वे अपनी एक्सपायरी डेट के नजदीक हो सकती हैं या उनकी पैकिंग में कोई खराबी हो सकती है. इसका सीधा-सा मतलब यह है कि उस चीज की क्वालिटी के साथ समझौता किया गया है.

9. किसी फ्रेंड के साथ शौपिंग पर जाएं

जहां तक मुमकिन हो अपनी किसी ऐसी सहेली या पड़ोसन के साथ खरीददारी करने जाएं जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और हेल्दी फूड में विश्वास रखती हो. शौपिंग के दौरान जंक फूड के औप्शन आसानी से आपको ललचा देते हैं. खासकर जब जंक फूड के साथ ‘बाय वन गेट वन फ्री’ जैसे औफर मिलते हैं. ऐसे समय में ये फ्रेंड्स ही आपको ऐसी खरीदारी करने से रोकते हैं.

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10. लेबल्स समझें

कई प्रोडक्ट्स के पैक पर लो फैट जैसे शब्द लिखे होते हैं. अधिकतर इनको ढंग से समझ नहीं पाते हैं. अधिकतर लो फैट फूड्स में शुगर या नमक भरपूर मात्रा में होता है जो उसमें स्वाद के लिए डाला जाता है. खाने का सामान खरीदते समय उसमे मौजूद कैलोरीज के लिए न्यूट्रीशनल लेबल्स जरूर पढ़ें. कोई चीज कम कैलोरी वाली है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह हेल्दी भी है. आपको कैलोरी वैल्यू के लिए नहीं, बल्कि क्वालिटी वैल्यू के लिए खाना चाहिए.

पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

रेखाएं : कैसे टूटा अम्मा का भरोसा

लेखक-रानी दर

‘‘छि, मैं सोचती थी कि बड़ी कक्षा में जा कर तुम्हारी समझ भी बड़ी हो जाएगी, पर तुम ने तो मेरी तमाम आशाओं पर पानी फेर दिया. छठी कक्षा में क्या पहुंची, पढ़ाई चौपट कर के धर दी.’’ बरसतेबरसते थक गई तो रिपोर्ट उस की तरफ फेंकते हुए गरजी, ‘‘अब गूंगों की तरह गुमसुम क्यों खड़ी हो? बोलती क्यों नहीं? इतनी खराब रिपोर्ट क्यों आई तुम्हारी? पढ़ाई के समय क्या करती हो?’’ रिपोर्ट उठा कर झाड़ते हुए उस ने धीरे से आंखें ऊपर उठाईं, ‘‘अध्यापिका क्या पढ़ाती है, कुछ भी सुनाई नहीं देता, मैं सब से पीछे की लाइन में जो बैठती हूं.’’

‘‘क्यों, किस ने कहा पीछे बैठने को तुम से?’’

‘‘अध्यापिका ने. लंबी लड़कियों को  कहती हैं, पीछे बैठा करो, छोटी लड़कियों को ब्लैक बोर्ड दिखाई नहीं देता.’’

‘‘तो क्या पीछे बैठने वाली सारी लड़कियां फेल होती हैं? ऐसा कभी नहीं हो सकता. चलो, किताबें ले कर बैठो और मन लगा कर पढ़ो, समझी? कल मैं तुम्हारे स्कूल जा कर अध्यापिका से बात करूंगी?’’

झल्लाते हुए मैं कमरे से निकल गई. दिमाग की नसें झनझना कर टूटने को आतुर थीं. इतने वर्षों से अच्छीखासी पढ़ाई चल रही थी इस की. कक्षा की प्रथम 10-12 लड़कियों में आती थी. फिर अचानक नई कक्षा में आते ही इतना परिवर्तन क्यों? क्या सचमुच इस के भाग्य की रेखाएं…

नहींनहीं. ऐसा कभी नहीं हो सकेगा. रात को थकाटूटा तनमन ले कर बिस्तर पर पसरी, तो नींद जैसे आंखों से दूर जा चुकी थी. 11 वर्ष पूर्व से ले कर आज तक की एकएक घटना आंखों के सामने तैर रही थी.

‘‘बिटिया बहुत भाग्यशाली है, बहनजी.’’

‘‘जी पंडितजी. और?’’ अम्मां उत्सुकता से पंडितजी को निहार रही थीं.

‘‘और बहनजी, जहांजहां इस का पांव पड़ेगा, लक्ष्मी आगेपीछे घूमेगी. ननिहाल हो, ददिहाल हो और चाहे ससुराल.’’

2 महीने की अपनी फूल सी बिटिया को मेरी स्नेहसिक्त आंखों ने सहलाया, तो लगा, इस समय संसार की सब से बड़ी संपदा मेरे लिए वही है. मेरी पहलीपहली संतान, मेरे मातृत्व का गौरव, लक्ष्मी, धन, संपदा, सब उस के आगे महत्त्वहीन थे. पर अम्मां? वह तो पंडितजी की बातों से निहाल हुई जा रही थीं.

‘‘लेकिन…’’ पंडितजी थोड़ा सा अचकचाए.

‘‘लेकिन क्या पंडितजी?’’ अम्मां का कुतूहल सीमारेखा के समस्त संबंधों को तोड़ कर आंखों में सिमट आया था.

‘‘लेकिन विद्या की रेखा जरा कच्ची है, अर्थात पढ़ाईलिखाई में कमजोर रहेगी. पर क्या हुआ बहनजी, लड़की जात है. पढ़े न पढ़े, क्या फर्क पड़ता है. हां, भाग्य अच्छा होना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं, पंडितजी, लड़की जात को तो चूल्हाचौका संभालना आना चाहिए और क्या.’’

किंतु मेरा समूचा अंतर जैसे हिल गया हो. मेरी बेटी अनपढ़ रहेगी? नहींनहीं. मैं ने इंटर पास किया है, तो मेरी बेटी को मुझ से ज्यादा पढ़ना चाहिए, बी.ए., एम.ए. तक, जमाना आगे बढ़ता है न कि पीछे.

‘‘बी.ए. पास तो कर लेगी न पंडितजी,’’ कांपते स्वर में मैं ने पंडितजी के आगे मन की शंका उड़ेल दी.

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‘‘बी.ए., अरे. तोबा करो बिटिया, 10वीं पास कर ले तुम्हारी गुडि़या, तो अपना भाग्य सराहना. विद्या की रेखा तो है ही नहीं और तुम तो जानती ही हो, जहां लक्ष्मी का निवास होता है, वहां विद्या नहीं ठहरती. दोनों में बैर जो ठहरा,’’ वे दांत निपोर रहे थे और मैं सन्न सी बैठी थी.

यह कैसा भविष्य आंका है मेरी बिटिया का? क्या यह पत्थर की लकीर है, जो मिट नहीं सकती? क्या इसीलिए मैं इस नन्हीमुन्नी सी जान को संसार में लाई हूं कि यह बिना पढ़ेलिखे पशुपक्षियों की तरह जीवन काट दे.

दादी मां के 51 रुपए कुरते की जेब में ठूंस पंडितजी मेरी बिटिया का भविष्यफल एक कागज में समेट कर अम्मां के हाथ में पकड़ा गए.

पर उन के शब्दों को मैं ने ब्रह्मवाक्य मानने से इनकार कर दिया. मेरी बिटिया पढ़ेगी और मुझ से ज्यादा पढ़ेगी. बिना विद्या के कहीं सम्मान मिलता है भला? और बिना सम्मान के क्या जीवन जीने योग्य होता है कहीं? नहीं, नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी. किसी मूल्य पर भी नहीं.

3 वर्ष की होतेहोते मैं ने नन्ही निशा का विद्यारंभ कर दिया था. सरस्वती पूजा के दिन देवी के सामने उसे बैठा कर, अक्षत फूल देवी को अर्पित कर झोली पसार कर उस के वरदहस्त का वरदान मांगा था मैं ने, धीरेधीरे लगा कि देवी का आशीष फलने लगा है. अपनी मीठीमीठी तोतली बोली में जब वह वर्णमाला के अक्षर दोहराती, तो मैं निहाल हो जाती.

5 वर्ष की होतेहोते जब उस ने स्कूल जाना आरंभ किया था, तो वह अपनी आयु के सभी बच्चों से कहीं ज्यादा पढ़ चुकी थी. साथसाथ एक नन्हीमुन्नी सी बहन की दीदी भी बन चुकी थी, लेकिन नन्ही ऋचा की देखभाल के कारण निशा की पढ़ाई में मैं ने कोई विघ्न नहीं आने दिया था. उस के प्रति मैं पूरी तरह सजग थी.

स्कूल का पाठ याद कराना, लिखाना, गणित का सवाल, सब पूरी निष्ठा के साथ करवाती थी और इस परिश्रम का परिणाम भी मेरे सामने सुखद रूप ले कर आता था, जब कक्षा की प्रथम 10-12 बच्चियों में एक उस का नाम भी होता था.

5वीं कक्षा में जाने के साथसाथ नन्ही ऋचा भी निशा के साथ स्कूल जाने लगी थी. एकाएक मुझे घर बेहद सूनासूना लगने लगा था. सुबह से शाम तक ऋचा इतना समय ले लेती थी कि अब दिन काटे नहीं कटता था.

एक दिन महल्ले की समाज सेविका विभा के आमंत्रण पर मैं ने उन के साथ समाज सेवा के कामों में हाथ बंटाना स्वीकार कर लिया. सप्ताह में 3 दिन उन्हें लेने महिला संघ की गाड़ी आती थी जिस में अन्य महिलाओं के साथसाथ मैं भी बस्तियों में जा कर निर्धन और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों के पालनपोषण, सफाई तथा अन्य दैनिक घरेलू विषयों के बारे में शिक्षित करने जाने लगी.

घर के सीमित दायरों से निकल कर मैं ने पहली बार महसूस किया था कि हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में कितना पिछड़ा हुआ है, महिलाओं में कितनी अज्ञानता है, कितनी अंधेरी है उन की दुनिया. काश, हमारे देश के तमाम शिक्षित लोग इस अंधेरे को दूर करने में जुट जाते, तो देश कहां से कहां पहुंच जाता. मन में एक अनोखाअनूठा उत्साह उमड़ आया था देश सेवा का, मानव प्रेम का, ज्ञान की ज्योति जलाने का.

पर आज एका- एक इस देश और मानव प्रेम की उफनतीउमड़ती नदी के तेज बहाव को एक झटका लगा. स्कूल से आ कर निशा किताबें पटक महल्ले के बच्चों के साथ खेलने भाग गई थी. उस की किताबें समेटते हुए उस की रिपोर्ट पर नजर पड़ी. 3 विषयों में फेल. एकएक कापी उठा कर खोली. सब में लाल पेंसिल के निशान, ‘बेहद लापरवाह,’ ‘ध्यान से लिखा करो,’  ‘…विषय में बहुत कमजोर’ की टिप्पणियां और कहीं कापी में पूरेपूरे पन्ने लाल स्याही से कटे हुए.

देखतेदेखते मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. यह क्या हो रहा है? बाहर ज्ञान का प्रकाश बिखेरने जा रही हूं और घर में दबे पांव अंधेरा घुस रहा है. यह कैसी समाज सेवा कर रही हूं मैं. यही हाल रहा तो लड़की फेल हो जाएगी. कहीं पंडितजी की भविष्यवाणी…

और निशा को अंदर खींचते हुए ला कर मैं उस पर बुरी तरह बरस पड़ी थी.

दूसरे दिन विभा बुलाने आईं, तो मैं निशा के स्कूल जाने की तैयारी में व्यस्त थी.

‘‘क्षमा कीजिए बहन, आज मैं आप के साथ नहीं जा सकूंगी. मुझे निशा के स्कूल जा कर उस की अध्यापिका से मिलना है. उस की रिपोर्ट काफी खराब आई है. अगर यही हाल रहा तो डर है, उस का साल न बरबाद हो जाए. बस, इस हफ्ते से आप के साथ नहीं जा सकूंगी. बच्चों की पढ़ाई का बड़ा नुकसान हो रहा है.’’

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‘‘आप का मतलब है, आप नहीं पढ़ाएंगी, तो आप की बेटी पास ही नहीं होगी? क्या मातापिता न पढ़ाएं, तो बच्चे नहीं पढ़ते?’’

‘‘नहीं, नहीं बहन, यह बात नहीं है. मेरी छोटी बेटी ऋचा बिना पढ़ाए कक्षा में प्रथम आती है, पर निशा पढ़ाई में जरा कमजोर है. उस के साथ मुझे बैठना पड़ता है. हां, खेलकूद में कक्षा में सब से आगे है. इधर 3 वर्षों में ढेरों इनाम जीत लाई है. इसीलिए…’’

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी, पर समाज सेवा बड़े पुण्य का काम होता है. अपना घर, अपने बच्चों की सेवा तो सभी करते हैं…’’

वह पलट कर तेजतेज कदमों से गाड़ी की ओर बढ़ गई थी.

घर का काम निबटा कर मैं स्कूल पहुंची. निशा की अध्यापिका से मिलने पर पता चला कि वह पीछे बैठने के कारण नहीं, वरन 2 बेहद उद्दंड किस्म की लड़कियों की सोहबत में फंस कर पढ़ाई बरबाद कर रही थी.

‘‘ये लड़कियां किन्हीं बड़े धनी परिवारों से आई हैं, जिन्हें पढ़ाई में तनिक भी रुचि नहीं है. पिछले वर्ष फेल होने के बावजूद उन्हें 5वीं कक्षा में रोका नहीं जा सका. इसीलिए वे सब अध्यापिकाओं के साथ बेहद उद््दंडता का बरताव करती हैं, जिस की वजह से उन्हें पीछे बैठाया जाता है ताकि अन्य लड़कियों की पढ़ाई सुचारु रूप से चल सके,’’ निशा की अध्यापिका ने कहा.

सुन कर मैं सन्न रह गई.

‘‘यदि आप अपनी बेटी की तरफ ध्यान नहीं देंगी तो पढ़ाई के साथसाथ उस का जीवन भी बरबाद होने में देर नहीं लगेगी. यह बड़ी भावुक आयु होती है, जो बच्चे के भविष्य के साथसाथ उस का जीवन भी बनाती है. आप ही उसे इस भटकन से लौटा सकती हैं, क्योंकि आप उस की मां हैं. प्यार से थपथपा कर उसे धीरेधीरे सही राह पर लौटा लाइए. मैं आप की हर तरहसे मदद करूंगी.’’

‘‘आप से एक अनुरोध है, मिस कांता. कल से निशा को उन लड़कियों के साथ न बिठा कर कृपया आगे की सीट पर बिठाएं. बाकी मैं संभाल लूंगी.’’

घर लौट कर मैं बड़ी देर तक पंखे के नीचे आंखें बंद कर के पड़ी रही. समाज सेवा का भूत सिर पर से उतर गया था. समाज सेवा पीछे है, पहले मेरा कर्तव्य अपने बच्चों को संभालना है. ये भी तो इस समाज के अंग हैं. इन 4-5 महीने में जब से मैं ने इस की ओर ध्यान देना छोड़ा है, यह पढ़ाई में कितनी पिछड़ गई है.

अब मैं ने फिर पहले की तरह निशा के साथ नियमपूर्वक बैठना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस की पढ़ाई सुधरने लगी. बीचबीच में मैं कमरे में जा कर झांकती, तो वह हंस देती, ‘‘आइए मम्मी, देख लीजिए, मैं अध्यापिका के कार्टून नहीं बना रही, नोट्स लिख रही हूं.’’

उस के शब्द मुझे अंदर तक पिघला देते, ‘‘नहीं बेटा, मैं चाहती हूं, तुम इतना मन लगा कर पढ़ो कि तुम्हारी अध्यापिका की बात झूठी हो जाए. वह तुम से बहुत नाराज हैं. कह रही थीं कि निशा इस वर्ष छठी कक्षा हरगिज पास नहीं कर पाएगी. तुम पास ही नहीं, खूब अच्छे अंकों में पास हो कर दिखाओ, ताकि हमारा सिर पहले की तरह ऊंचा रहे,’’ उस का मनोबल बढ़ा कर मैं मनोवैज्ञानिक ढंग से उस का ध्यान उन लड़कियों की ओर से हटाना चाहती थी.

धीरेधीरे मैं ने निशा में परिवर्तन देखा. 8वीं कक्षा में आ कर वह बिना कहे पढ़ाई में जुट जाती. उस की मेहनत, लगन व परिश्रम उस दिन रंग लाया, जब दौड़ते हुए आ कर वह मेरे गले में बांहें डाल कर झूल गई.

‘‘मां, मैं पास हो गई. प्रथम श्रेणी में. आप के पंडितजी की भविष्यवाणी झूठी साबित कर दी मैं ने? अब तो आप खुश हैं न कि आप की बेटी ने 10वीं पास कर ली.’’

‘‘हां, निशा, आज मैं बेहद खुश हूं. जीवन की सब से बड़ी मनोकामना पूर्ण कर के आज तुम ने मेरा माथा गर्व से ऊंचा कर दिया है. आज विश्वास हो गया है कि संसार में कोई ऐसा काम नहीं है, जो मेहनत और लगन से पूरा न किया जा सके. अब आगे…’’

‘‘मां, मैं डाक्टर बनूंगी. माधवी और नीला भी मेडिकल में जा रही हैं.’’

‘‘बाप रे, मेडिकल. उस में तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है. हो सकेगी तुम से रातदिन पढ़ाई?’’

‘‘हां, मां, कृपया मुझे जाने दीजिए. मैं खूब मेहनत करूंगी.’’

‘‘और तुम्हारे खेलकूद? बैडमिंटन, नैटबाल, दौड़ वगैरह?’’

‘‘वह सब भी चलेगा साथसाथ,’’ वह हंस दी. भोलेभाले चेहरे पर निश्छल प्यारी हंसी.

मन कैसाकैसा हो आया, ‘‘ठीक है, पापा से भी पूछ लेना.’’

‘‘पापा कुछ नहीं कहेंगे. मुझे मालूम है, उन का तो यही अरमान है कि मैं डाक्टर नहीं बन सका, तो मेरी बेटी ही बन जाए. उन से पूछ कर ही तो आप से अनुमति मांग रही हूं. अच्छा मां, आप नानीजी को लिख दीजिएगा कि उन की धेवती ने उन के बड़े भारी ज्योतिषी की भविष्यवाणी झूठी साबित कर के 10वीं पास कर ली है और डाक्टरी पढ़ कर अपने हाथ की रेखाओं को बदलने जा रही है.’’

‘‘मैं क्यों लिखूं? तुम खुद चिट्ठी लिख कर उन का आशीर्वाद लो.’’

‘‘ठीक है, मैं ही लिख दूंगी. जरा अंक तालिका आ जाने दीजिए और जब इलाहाबाद जाऊंगी तो आप के पंडितजी के दर्शन जरूर करूंगी, जिन्हें मेरे भाग्य में विद्या की रेखा ही नहीं दिखाई दी थी.’’

आज 6 वर्ष बाद मेरी निशा डाक्टर बन कर सामने खड़ी है. हर्ष से मेरी आंखें छलछलाई हुई हैं.

दुख है तो केवल इतना कि आज अम्मां नहीं हैं. होतीं तो उन्हें लिखती, ‘‘अम्मां, लड़कियां भी लड़कों की तरह इनसान होती हैं. उन्हें भी उतनी ही सुरक्षा, प्यार तथा मानसम्मान की आवश्यकता होती है, जितनी लड़कों को. लड़कियां कह कर उन्हें ढोरडंगरों की तरह उपेक्षित नहीं छोड़ देना चाहिए.

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‘‘और ये पंडेपुजारी? आप के उन पंडितजी के कहने पर विश्वास कर के मैं अपनी बिटिया को उस के भाग्य के सहारे छोड़ देती, तो आज यह शुभ दिन कहां से आता? नहीं अम्मां, लड़कियों को भी ईश्वर ने शरीर के साथसाथ मन, मस्तिष्क और आत्मा सभी कुछ प्रदान किया है. उन्हें उपेक्षित छोड़ देना पाप है.’’

‘‘तुम भी तो एक लड़की हो, अम्मां, अपनी धेवती की सफलता पर गर्व से फूलीफूली नहीं समा रही हो? सचसच बताना.’’

पर कहां हैं पुरानी मान्यताओं पर विश्वास करने वाली मेरी वह अम्मां?

बुल्लीबाई एप: इंटरनेट का दुरुपयोग

बुल्लीबाई एप बना कर 18-20 साल के लडक़ेलड़कियों ने साबित कर दिया है कि देश की औरतें सोशल मीडिया की वजह से कितनी अनसेफ हो गई है. सोशल मीडिया पर डाली गई अपने दोस्तों के लिए फोटो का दुरुपयोग कितनी आसानी से हो सकता है और उसे निलामी तक के लिए पेश कर फोटो वाली की सारी इज्जत धूल में मिटाई जा सकती है.

सवाल यह है कि अच्छे मध्यम वर्ग के पढ़ेलिखे युवाओं के दिमाग में इस तरह की खुराफातें करना सिखा कौन रहा है. सोशल मीडिया एक यूनिवॢसटी बन जाता है जहां ज्ञान और तर्क नहीं बंटता, जहां सिर्फ गालियां दी जाती है और गालियों को सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों के फिल्टरों (…..) से कैसे बचा जाए यह सिखाया जा रहा है.

उम्मीद थी कि सारी दुनिया जब धाएधाए हो जाएगी, दुनिया में भाईचारा फैलेगा और देशों के बार्डर निरर्थक हो जाएंगे. वल्र्ड वाइड वेब, डब्लूडब्लूडब्लू, से उम्मीद की कि यह देशों की सेनाओं के खिलाफ जनता का मोर्चा खोलेगी और लोगों के दोस्त, सगे, जीवन साथी अलगअलग धर्मों के, अलगअलग रंगों और अलगअलग बोलियों के होंगे. अफसोस आज यह इंटरनेट खाइयों खोद रहा है, अपने देशों में, एक ही शहर में, एक ही मोहल्ले में और यहां तक कि आपसी रिश्तों में भी. अमेरिका में गोरों ने कालों और हिप्सैनिकों को जम कर इंटरनेट के माध्यम से बुराभला कहा जिसे पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुल्लमखुल्ला बढ़ावा दिया. फेसबुक और ट्विटर को उन्हें, एक भूतपूर्व राष्ट्रपति को, बैन करना पड़ा.

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बुल्लीबाई में इधरउधर से चुराई गई औरतों की तस्वीरें मुसलिम वेशभूषा में हैं और उन की निलामी की गई यह कौन चला रहा था – एक 18 साल की लडक़ी, एक 21 साल का लडक़ा और एक और लडक़ा 24 साल का. इतनी छोटी उम्र में बंगलौर, उत्तराखंड और असम के ये बच्चे से मुसलिम समाज की बेबात में निंदा में लगे थे क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से अपनी बात कुछ हजार तक पहुंचाना आसान है और वे हजार लाखों तक पहुंचा सकते हैं, घंटों में. अपने सही नाम छिपा कर या दिखा कर किया गया यह काम इन बच्चों का तो भविष्य चौपट कर ही देगा. क्योंकि ये पकड़े गए पर इन्होंने समाज में खाइयों की एक और खेप खोद डाली.

इन की नकल पर बहुत छोटे और बहुत बड़े पैमाने पर काम किया जा सकता है, राहुल गांधी को बदनाम करने के लिए उस के भाषणों का आगापीछा गायब कर के प्रसारित करने वाले ही उसे बुल्लीबाई के लिए जिम्मेदार हैं जो साबित करना चाहता है कि इस देश में एक धर्म चले. उन्हें यह समझ नहीं कि कभी किसी देशों में कोई राजा, क्रूरता भरे कामों से भी पूरी तरह न विरोधियों को, न दूसरी नसल वालों को, न दूसरे धर्म वालों को, न दूसरी भाषा वालों को खत्म कर गया. बुद्धिमान राजाओं ने तो उन्हें सम्मान दिया ताकि उन के देश दुनिया भर के योग्य लोग जमा हों.

एक शुष्क कैसी युवती चाहती है? जो हिंदूमुसलिम नारे लगाने में तेज हो या प्यार करने में? एक युवती कैसा शुष्क चाहती है? जो समझदार हो, उसे समझता हो, उस की देखभाल कर सके या ऐसा जो पड़ोसी का सिर फोडऩे को तैयार बैठा रहें. हिंदूमुसलिम 100 साल से साथ रह रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश बनने के बाद भी वहां भी ङ्क्षहदू हैं चाहे और अपने दमखम पर जीते हैं. ये छोकरेछोकरी इंटरनेट को ढाल समझ कर बरबादी की बातें सुनसुन कर पगला गए हैं और उन्होंने जो किया है वह लाखों कर रहे हैं जब वे विधर्मी का मखौल उड़ाते मैसेज फौरवर्ड करते हैं. इसका नतीजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देख लिया जब किसान बिल ही वापिस नहीं लेने पड़े, पंजाब में जनवरी के पहले सप्ताह में रैली रद्द करके लौटना पड़ा. बहाना चाहे कोर्ई हो, यह पक्का है कि रैली स्थल पर 70000 कुॢसयां उस समय भरी हुई नहीं थी जब प्रधानमंत्री एक फ्लाई ओवर पर 20 मिनट तक 12 करोड़ की गाड़ी में बैठे सोच रहे थे कि क्या करना चाहिए. इंटरनेट ने पंजाब में किसानों के प्रति खूब जहर भरा है क्योंकि किसान आंदोलन की शुरुआत वहीं से हुई थी और तब जहर भरे मैसेज इधरउधर फेंके गए थे. बदले में दिल्ली को घेराव मिला और अब प्रधानमंत्री मोदी को मजा चखना पड़ा.

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बेबात में इंटरनेट का दुरुपयोग लोगों को एकदूसरे से दूर कर रहा है. लोग पुरानी दोस्तियां तोड़ रहे हैं, रिश्तों में दरारें आ रही हैं, पति पत्नी के अंतरंग फोटो जनता में उनका मखौल उड़ा रहे हैं. आई लव यू अब कम इंटरनेट पर पौपुलर हो रहा है, अब आई हेट यू, आई हेट योर फैमिली, आई हेट और रिजिलन हो रहा है. व्हाट्सएप शटअप में बदल रहा है, फेसबुक अगली फेस में. इंटरनेट इंटरफीयङ्क्षरग हो गया है.

अभियुक्त: भाग 2- सुमि ने क्या देखा था

डाक्टर ने जब उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो वह जैसे आसमान से गिरी. जिस बात की खबर औरत को सब से पहले हो जाती है उस बात का पता उसे 3 महीने बाद चला. कितने तनाव में थी वह. यह खबर उसे और भी उदास कर गई. ऐसे दुश्चरित्र व्यक्ति की संतान की मां बनना कोई सुखद अनुभव थोड़े ही था.

शैलेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘जानती हो सुमि, इस बात ने मेरे अंदर कितना उत्साह भर दिया है. दुनिया में कितने ही लोग आज तक बाप बन चुके हैं पर मुझे लग रहा है कि कुदरत ने यह स्वर्णिम उपहार सिर्फ  मुझे ही दिया है. क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता, सुमि?’’

सुमि की आंखें छलछला आईं. ‘‘मुझे लगता है कुदरत ने ऐसा क्रूर मजाक मेरे साथ क्यों किया? अब तो मैं इस से नजात भी नहीं पा सकती.’’

‘‘सुमि,’’ शैलेंद्र का स्वर गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हें नफरत है न मुझ से? मैं समझ सकता हूं. लेकिन आज मैं तुम्हें सारी बातें बता कर अपराधबोध से मुक्त होना चाहता हूं.’’

कुछ क्षण रुक कर शैलेंद्र एकएक शब्द तौलते हुए कहने लगा, ‘‘मैं और शिरीन एकदूसरे से प्यार करते थे. चाचीजी हमारी शादी के लिए राजी नहीं थीं क्योंकि वह दूसरी जाति और धर्म की थी? तुम तो जानती हो कि चाचीजी मेरे जीवन में कितना बड़ा स्थान रखती हैं. उन की इच्छा और आज्ञा मेरे लिए मेरे प्यार से बढ़ कर थी. चाचीजी ने मुझ से एक वचन और लिया था कि मैं अपने विवाह को शतप्रतिशत निभाऊंगा. मैं ने कोशिश भी की लेकिन न जाने उस में कैसे कमी रह गई.

‘‘उस दिन लंच लेने के लिए मैं घर आया तभी न जाने कैसे शिरीन भी वहां आई. उस ने समझदारी से हमारे संबंधों की इतिश्री कर ली थी. वह मुझे अपनी शादी की सूचना देने और हमारी पुरानी तसवीरें लौटाने आई थी. यह सोच कर कि वह अब हमेशा के लिए बिछड़ने वाली है मैं अपनेआप को काबू में न रख सका. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं ने मर्यादा की सीमारेखा लांघने की कभी कोशिश नहीं की. गलती इतनी सी है कि मैं जिन संबंधों को समाप्त समझ रहा था दरअसल उस के तार अभी पूरी तरह टूटे नहीं थे. क्या तुम हमारे बच्चे की जिंदगी के लिए मुझे माफ नहीं कर सकोगी?’’

शैलेंद्र ने सुमि का हाथ अपने हाथों में थाम लिया. उस के पश्चात्ताप विगलित स्वर और आंखों के अनुरोध भरे भावों की वह उपेक्षा नहीं कर सकी. कुछ क्षण बाद उठ कर दूसरे कमरे में चली गई. लगता था उस के भीतर जो चट्टान की तरह जमा है, उसे वह पिघलने देना नहीं चाहती.

शैलेंद्र उस के लिए फल और मिठाइयां ले आया. घर के काम में भी वह उस का हाथ बंटाता. उस के प्यार, उस की भलमनसाहत से वह अभिभूत तो थी पर वह दृश्य याद आते ही उस की कोमल भावनाएं कठोर आवरण तले दब जातीं.

उस दिन चाचीजी का फोन आया कि तीज के पूजन के लिए उन्होंने बहू को गांव बुलाया था. शैलेंद्र ने शरमाते, झिझकते हुए बताया कि वह नहीं आ पाएगी.

कारण सुनते ही चाचीजी उबल पड़ीं, ‘‘हद है, बहू को 4 माह चढ़ गए हैं और तू मुझे अब सूचना दे रहा है. मैं कल ही निकल रही हूं.’’

यहां आ कर वह एक ही दिन में भांप गईं कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं, नाटकीयता से भरे हैं.

छोटे से गांव में चाचीजी की पूरी जिंदगी गुजरी थी. शैलेंद्र को उन्होंने छाती से लगा कर पाला था. शैलेेंद्र के मातापिता और चाचा एकसाथ ही एक बस दुर्घटना में गुजर गए. शोक संतप्त चाची के आंचल में यह अनाथ भतीजा एक अमानत बन कर समा गया. लगभग 6 साल के शैलेंद्र के आंसू पोंछतेपोंछते वह अपना दुख भी भूल गई. शैलेंद्र उन के एकाकी  जीवन का मकसद बन गया. वह भी उन का बहुत सम्मान करता था. गांव में 8वीं जमात तक पढ़ने के बाद उन्होंने उसे शहर पढ़ने भेजा. होस्टल में रखा. सदा ऊंचनीच समझाती रहीं. होस्टल से लौट कर आंचल में दुबक कर सो जाता. चाचीजी उस के सिर पर वात्सल्य से भरी थपकियां देती रहतीं.

उस भयंकर बस दुर्घटना के बाद 2 साल की ब्याहता और फिर विधवा हुई चाचीजी उस का सबकुछ थीं. छोटीछोटी समस्याएं वह उन के पास ले जाता और वह उन्हें क्षण भर में सुलझा देतीं. कभी किसी ने उस की पतंग चुरा ली. उस की गणित की कापी की नकल की. नन्हे से जीवन की अनगिनत खट्टीमीठी लड़ाइयां, हवा भरे बुलबुलों की तरह अस्थायी फिर भी चाचीजी की प्यार भरी समझ से उस का बालमन आश्वस्त हो जाता.

लेकिन अब वह किशोर उम्र का था. मन में अजीबअजीब से खयाल उमड़ते- घुमड़ते रहते. दोस्तों की बातें बड़ी रहस्यमय लगतीं. लड़कियों से बात करते समय जीभ तालू से चिपक जाती लेकिन रात को सपने में वही लड़कियां, छि:, कितनी शरम की बात है. एक तरफ उस की पढ़ाई है, एक तरफ अबूझ आकर्षण. मन की इस चंचल स्थिति के बारे में किस से कहे.

पड़ोस की नीलू अब कटोरदान में दाल या सब्जी रख कर चाचीजी को देने आती तो वह बचपन वाले शैलेंद्र को नहीं  पाती. नीलू भी तो कितनी बड़ी हो गई. अचानक कब? कैसे? पता ही नहीं चला.

उस दिन चाचीजी ने उसे नीलू से बात करते हुए देख लिया और न जाने कैसे उस का अंतर्द्वंद्व भांप लिया. उसे कलेजे से लगा कर उस रात वह कितना कुछ समझाती रहीं. स्पष्ट, बेलाग शब्दों में, बेझिझक. फिर बोलीं, ‘बेटे, यह सब मैं तुझे अभी से इसलिए बता रही हूं क्योंकि तू अकेला रहता है. कल तेरे साथी तुझ से कोई गलत बात न कहें. तू किसी बहकावे में न आए. हर बात की एक निश्चित उम्र होती है. इस समय तेरी उम्र है अपना चरित्र साफ रख कर अपना जीवन बनाने की, पढ़नेलिखने की.’

चाचीजी की यह सीख शैलेंद्र ने गांठ बांध ली थी. पढ़ने में खूब मन लगाया. मन स्थिर हो गया. स्कूल खत्म कर के इंजीनियरिंग कालिज में दाखिला ले लिया. अगर उस दिन चाचीजी उसे सबकुछ नहीं बतातीं तो क्या वह इतना कुछ कर पाता.

ऐसी चाचीजी के लिए शैलेंद्र और सुमि के बीच खिंची अदृश्य अलगाव रेखा का पता लगाना भला कौन सा मुश्किल काम था.

शैलेंद्र के साथ घर के सामने लौन पर टहलते हुए ही उन्होंने उस से सबकुछ उगलवा लिया. दीर्घ निश्वास के साथ वह बोलीं, ‘‘हूं, तो मेरा फैसला ठीक ही था. देख शैलेंद्र, तेरी इतनी बड़ी गलती पर परदा डाल कर जो लड़की बिना हंगामा खड़ा किए अपने दांपत्य की इज्जत मेरे सामने बचा ले गई वह लड़की कितनी संस्कारी है, यह बात तू खुद समझ ले. दूसरी ओर, जो लड़की अकेले शादीशुदा मर्द से मिलने आए उस के बारे में क्या कहा जाए. वह दूसरे धर्म की थी यह बात तो थी ही महत्त्व की.’’

‘‘आप ने ठीक कहा, चाचीजी.’’

‘‘सिर्फ ठीक? अरे, सोलह आने सच. और अब ये बता कि सुमि की इस तरह की गलती को क्या तू माफ करता?’’

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