पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

बुल्लीबाई एप: इंटरनेट का दुरुपयोग

बुल्लीबाई एप बना कर 18-20 साल के लडक़ेलड़कियों ने साबित कर दिया है कि देश की औरतें सोशल मीडिया की वजह से कितनी अनसेफ हो गई है. सोशल मीडिया पर डाली गई अपने दोस्तों के लिए फोटो का दुरुपयोग कितनी आसानी से हो सकता है और उसे निलामी तक के लिए पेश कर फोटो वाली की सारी इज्जत धूल में मिटाई जा सकती है.

सवाल यह है कि अच्छे मध्यम वर्ग के पढ़ेलिखे युवाओं के दिमाग में इस तरह की खुराफातें करना सिखा कौन रहा है. सोशल मीडिया एक यूनिवॢसटी बन जाता है जहां ज्ञान और तर्क नहीं बंटता, जहां सिर्फ गालियां दी जाती है और गालियों को सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों के फिल्टरों (…..) से कैसे बचा जाए यह सिखाया जा रहा है.

उम्मीद थी कि सारी दुनिया जब धाएधाए हो जाएगी, दुनिया में भाईचारा फैलेगा और देशों के बार्डर निरर्थक हो जाएंगे. वल्र्ड वाइड वेब, डब्लूडब्लूडब्लू, से उम्मीद की कि यह देशों की सेनाओं के खिलाफ जनता का मोर्चा खोलेगी और लोगों के दोस्त, सगे, जीवन साथी अलगअलग धर्मों के, अलगअलग रंगों और अलगअलग बोलियों के होंगे. अफसोस आज यह इंटरनेट खाइयों खोद रहा है, अपने देशों में, एक ही शहर में, एक ही मोहल्ले में और यहां तक कि आपसी रिश्तों में भी. अमेरिका में गोरों ने कालों और हिप्सैनिकों को जम कर इंटरनेट के माध्यम से बुराभला कहा जिसे पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुल्लमखुल्ला बढ़ावा दिया. फेसबुक और ट्विटर को उन्हें, एक भूतपूर्व राष्ट्रपति को, बैन करना पड़ा.

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बुल्लीबाई में इधरउधर से चुराई गई औरतों की तस्वीरें मुसलिम वेशभूषा में हैं और उन की निलामी की गई यह कौन चला रहा था – एक 18 साल की लडक़ी, एक 21 साल का लडक़ा और एक और लडक़ा 24 साल का. इतनी छोटी उम्र में बंगलौर, उत्तराखंड और असम के ये बच्चे से मुसलिम समाज की बेबात में निंदा में लगे थे क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से अपनी बात कुछ हजार तक पहुंचाना आसान है और वे हजार लाखों तक पहुंचा सकते हैं, घंटों में. अपने सही नाम छिपा कर या दिखा कर किया गया यह काम इन बच्चों का तो भविष्य चौपट कर ही देगा. क्योंकि ये पकड़े गए पर इन्होंने समाज में खाइयों की एक और खेप खोद डाली.

इन की नकल पर बहुत छोटे और बहुत बड़े पैमाने पर काम किया जा सकता है, राहुल गांधी को बदनाम करने के लिए उस के भाषणों का आगापीछा गायब कर के प्रसारित करने वाले ही उसे बुल्लीबाई के लिए जिम्मेदार हैं जो साबित करना चाहता है कि इस देश में एक धर्म चले. उन्हें यह समझ नहीं कि कभी किसी देशों में कोई राजा, क्रूरता भरे कामों से भी पूरी तरह न विरोधियों को, न दूसरी नसल वालों को, न दूसरे धर्म वालों को, न दूसरी भाषा वालों को खत्म कर गया. बुद्धिमान राजाओं ने तो उन्हें सम्मान दिया ताकि उन के देश दुनिया भर के योग्य लोग जमा हों.

एक शुष्क कैसी युवती चाहती है? जो हिंदूमुसलिम नारे लगाने में तेज हो या प्यार करने में? एक युवती कैसा शुष्क चाहती है? जो समझदार हो, उसे समझता हो, उस की देखभाल कर सके या ऐसा जो पड़ोसी का सिर फोडऩे को तैयार बैठा रहें. हिंदूमुसलिम 100 साल से साथ रह रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश बनने के बाद भी वहां भी ङ्क्षहदू हैं चाहे और अपने दमखम पर जीते हैं. ये छोकरेछोकरी इंटरनेट को ढाल समझ कर बरबादी की बातें सुनसुन कर पगला गए हैं और उन्होंने जो किया है वह लाखों कर रहे हैं जब वे विधर्मी का मखौल उड़ाते मैसेज फौरवर्ड करते हैं. इसका नतीजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देख लिया जब किसान बिल ही वापिस नहीं लेने पड़े, पंजाब में जनवरी के पहले सप्ताह में रैली रद्द करके लौटना पड़ा. बहाना चाहे कोर्ई हो, यह पक्का है कि रैली स्थल पर 70000 कुॢसयां उस समय भरी हुई नहीं थी जब प्रधानमंत्री एक फ्लाई ओवर पर 20 मिनट तक 12 करोड़ की गाड़ी में बैठे सोच रहे थे कि क्या करना चाहिए. इंटरनेट ने पंजाब में किसानों के प्रति खूब जहर भरा है क्योंकि किसान आंदोलन की शुरुआत वहीं से हुई थी और तब जहर भरे मैसेज इधरउधर फेंके गए थे. बदले में दिल्ली को घेराव मिला और अब प्रधानमंत्री मोदी को मजा चखना पड़ा.

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बेबात में इंटरनेट का दुरुपयोग लोगों को एकदूसरे से दूर कर रहा है. लोग पुरानी दोस्तियां तोड़ रहे हैं, रिश्तों में दरारें आ रही हैं, पति पत्नी के अंतरंग फोटो जनता में उनका मखौल उड़ा रहे हैं. आई लव यू अब कम इंटरनेट पर पौपुलर हो रहा है, अब आई हेट यू, आई हेट योर फैमिली, आई हेट और रिजिलन हो रहा है. व्हाट्सएप शटअप में बदल रहा है, फेसबुक अगली फेस में. इंटरनेट इंटरफीयङ्क्षरग हो गया है.

अभियुक्त: भाग 2- सुमि ने क्या देखा था

डाक्टर ने जब उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो वह जैसे आसमान से गिरी. जिस बात की खबर औरत को सब से पहले हो जाती है उस बात का पता उसे 3 महीने बाद चला. कितने तनाव में थी वह. यह खबर उसे और भी उदास कर गई. ऐसे दुश्चरित्र व्यक्ति की संतान की मां बनना कोई सुखद अनुभव थोड़े ही था.

शैलेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘जानती हो सुमि, इस बात ने मेरे अंदर कितना उत्साह भर दिया है. दुनिया में कितने ही लोग आज तक बाप बन चुके हैं पर मुझे लग रहा है कि कुदरत ने यह स्वर्णिम उपहार सिर्फ  मुझे ही दिया है. क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता, सुमि?’’

सुमि की आंखें छलछला आईं. ‘‘मुझे लगता है कुदरत ने ऐसा क्रूर मजाक मेरे साथ क्यों किया? अब तो मैं इस से नजात भी नहीं पा सकती.’’

‘‘सुमि,’’ शैलेंद्र का स्वर गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हें नफरत है न मुझ से? मैं समझ सकता हूं. लेकिन आज मैं तुम्हें सारी बातें बता कर अपराधबोध से मुक्त होना चाहता हूं.’’

कुछ क्षण रुक कर शैलेंद्र एकएक शब्द तौलते हुए कहने लगा, ‘‘मैं और शिरीन एकदूसरे से प्यार करते थे. चाचीजी हमारी शादी के लिए राजी नहीं थीं क्योंकि वह दूसरी जाति और धर्म की थी? तुम तो जानती हो कि चाचीजी मेरे जीवन में कितना बड़ा स्थान रखती हैं. उन की इच्छा और आज्ञा मेरे लिए मेरे प्यार से बढ़ कर थी. चाचीजी ने मुझ से एक वचन और लिया था कि मैं अपने विवाह को शतप्रतिशत निभाऊंगा. मैं ने कोशिश भी की लेकिन न जाने उस में कैसे कमी रह गई.

‘‘उस दिन लंच लेने के लिए मैं घर आया तभी न जाने कैसे शिरीन भी वहां आई. उस ने समझदारी से हमारे संबंधों की इतिश्री कर ली थी. वह मुझे अपनी शादी की सूचना देने और हमारी पुरानी तसवीरें लौटाने आई थी. यह सोच कर कि वह अब हमेशा के लिए बिछड़ने वाली है मैं अपनेआप को काबू में न रख सका. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं ने मर्यादा की सीमारेखा लांघने की कभी कोशिश नहीं की. गलती इतनी सी है कि मैं जिन संबंधों को समाप्त समझ रहा था दरअसल उस के तार अभी पूरी तरह टूटे नहीं थे. क्या तुम हमारे बच्चे की जिंदगी के लिए मुझे माफ नहीं कर सकोगी?’’

शैलेंद्र ने सुमि का हाथ अपने हाथों में थाम लिया. उस के पश्चात्ताप विगलित स्वर और आंखों के अनुरोध भरे भावों की वह उपेक्षा नहीं कर सकी. कुछ क्षण बाद उठ कर दूसरे कमरे में चली गई. लगता था उस के भीतर जो चट्टान की तरह जमा है, उसे वह पिघलने देना नहीं चाहती.

शैलेंद्र उस के लिए फल और मिठाइयां ले आया. घर के काम में भी वह उस का हाथ बंटाता. उस के प्यार, उस की भलमनसाहत से वह अभिभूत तो थी पर वह दृश्य याद आते ही उस की कोमल भावनाएं कठोर आवरण तले दब जातीं.

उस दिन चाचीजी का फोन आया कि तीज के पूजन के लिए उन्होंने बहू को गांव बुलाया था. शैलेंद्र ने शरमाते, झिझकते हुए बताया कि वह नहीं आ पाएगी.

कारण सुनते ही चाचीजी उबल पड़ीं, ‘‘हद है, बहू को 4 माह चढ़ गए हैं और तू मुझे अब सूचना दे रहा है. मैं कल ही निकल रही हूं.’’

यहां आ कर वह एक ही दिन में भांप गईं कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं, नाटकीयता से भरे हैं.

छोटे से गांव में चाचीजी की पूरी जिंदगी गुजरी थी. शैलेंद्र को उन्होंने छाती से लगा कर पाला था. शैलेेंद्र के मातापिता और चाचा एकसाथ ही एक बस दुर्घटना में गुजर गए. शोक संतप्त चाची के आंचल में यह अनाथ भतीजा एक अमानत बन कर समा गया. लगभग 6 साल के शैलेंद्र के आंसू पोंछतेपोंछते वह अपना दुख भी भूल गई. शैलेंद्र उन के एकाकी  जीवन का मकसद बन गया. वह भी उन का बहुत सम्मान करता था. गांव में 8वीं जमात तक पढ़ने के बाद उन्होंने उसे शहर पढ़ने भेजा. होस्टल में रखा. सदा ऊंचनीच समझाती रहीं. होस्टल से लौट कर आंचल में दुबक कर सो जाता. चाचीजी उस के सिर पर वात्सल्य से भरी थपकियां देती रहतीं.

उस भयंकर बस दुर्घटना के बाद 2 साल की ब्याहता और फिर विधवा हुई चाचीजी उस का सबकुछ थीं. छोटीछोटी समस्याएं वह उन के पास ले जाता और वह उन्हें क्षण भर में सुलझा देतीं. कभी किसी ने उस की पतंग चुरा ली. उस की गणित की कापी की नकल की. नन्हे से जीवन की अनगिनत खट्टीमीठी लड़ाइयां, हवा भरे बुलबुलों की तरह अस्थायी फिर भी चाचीजी की प्यार भरी समझ से उस का बालमन आश्वस्त हो जाता.

लेकिन अब वह किशोर उम्र का था. मन में अजीबअजीब से खयाल उमड़ते- घुमड़ते रहते. दोस्तों की बातें बड़ी रहस्यमय लगतीं. लड़कियों से बात करते समय जीभ तालू से चिपक जाती लेकिन रात को सपने में वही लड़कियां, छि:, कितनी शरम की बात है. एक तरफ उस की पढ़ाई है, एक तरफ अबूझ आकर्षण. मन की इस चंचल स्थिति के बारे में किस से कहे.

पड़ोस की नीलू अब कटोरदान में दाल या सब्जी रख कर चाचीजी को देने आती तो वह बचपन वाले शैलेंद्र को नहीं  पाती. नीलू भी तो कितनी बड़ी हो गई. अचानक कब? कैसे? पता ही नहीं चला.

उस दिन चाचीजी ने उसे नीलू से बात करते हुए देख लिया और न जाने कैसे उस का अंतर्द्वंद्व भांप लिया. उसे कलेजे से लगा कर उस रात वह कितना कुछ समझाती रहीं. स्पष्ट, बेलाग शब्दों में, बेझिझक. फिर बोलीं, ‘बेटे, यह सब मैं तुझे अभी से इसलिए बता रही हूं क्योंकि तू अकेला रहता है. कल तेरे साथी तुझ से कोई गलत बात न कहें. तू किसी बहकावे में न आए. हर बात की एक निश्चित उम्र होती है. इस समय तेरी उम्र है अपना चरित्र साफ रख कर अपना जीवन बनाने की, पढ़नेलिखने की.’

चाचीजी की यह सीख शैलेंद्र ने गांठ बांध ली थी. पढ़ने में खूब मन लगाया. मन स्थिर हो गया. स्कूल खत्म कर के इंजीनियरिंग कालिज में दाखिला ले लिया. अगर उस दिन चाचीजी उसे सबकुछ नहीं बतातीं तो क्या वह इतना कुछ कर पाता.

ऐसी चाचीजी के लिए शैलेंद्र और सुमि के बीच खिंची अदृश्य अलगाव रेखा का पता लगाना भला कौन सा मुश्किल काम था.

शैलेंद्र के साथ घर के सामने लौन पर टहलते हुए ही उन्होंने उस से सबकुछ उगलवा लिया. दीर्घ निश्वास के साथ वह बोलीं, ‘‘हूं, तो मेरा फैसला ठीक ही था. देख शैलेंद्र, तेरी इतनी बड़ी गलती पर परदा डाल कर जो लड़की बिना हंगामा खड़ा किए अपने दांपत्य की इज्जत मेरे सामने बचा ले गई वह लड़की कितनी संस्कारी है, यह बात तू खुद समझ ले. दूसरी ओर, जो लड़की अकेले शादीशुदा मर्द से मिलने आए उस के बारे में क्या कहा जाए. वह दूसरे धर्म की थी यह बात तो थी ही महत्त्व की.’’

‘‘आप ने ठीक कहा, चाचीजी.’’

‘‘सिर्फ ठीक? अरे, सोलह आने सच. और अब ये बता कि सुमि की इस तरह की गलती को क्या तू माफ करता?’’

आगे पढ़ें- शैलेंद्र चाचीजी की बात पर हंस दिया…

पक्षाघात: भाग 2- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

चोपड़ा साहब ने कहा, ‘‘हां, ठीक कहते हो. कई साल पहले मेरे सगे फूफाजी इसी बीमारी को 11 साल झेल कर गुजर गए. बेचारी बूआ बहुत परेशान रहा करती थीं. पैसों की काफी तंगी हो गई थी उन्हें. सब रिश्तेदारों के आगे हाथ फैलाया करती थीं. शुरू में तो सब ने मदद की पर धीरेधीरे सब ने हाथ खींच लिए.’’

विजयजी सकते में आ गए. तो क्या इतनी वेदना से गुजरेंगे वह और उन के परिवार के लोग. अगर इतने साल बिस्तर पर पड़ेपड़े गुजारने पड़े तो कैसे गुजरेंगे पहाड़ से ये दिन. बाबूजी दिन भर सोचते कि इस दिमाग पर क्यों नहीं फालिज मार गया. कम से कम हर तकलीफ से नजात तो मिल जाती. बस, बाबूजी बेचारगी में छत को देखते रहते और दूर से आती आवाजें सुनते.

एक दिन किशन ने उन के दोस्तों की बातें सुन लीं. वह उस समय बाबूजी की मालिश कर रहा था. कई दोस्त तो उन्हें खूब तसल्ली देते परंतु कुछ एक ऐसे खरदिमाग होते हैं कि कहां क्या बात करनी चाहिए इस की समझ नहीं रखते. तो किशन ने महसूस किया कि इन दिल बैठा देने वाली बातों को सुन कर बाबूजी का रंग उड़ गया है.

उस ने बाद में सारी बातें ज्यों की त्यों मुकुल और मुकेश को सुना दीं. घर के सारे लोग बहुत खफा हुए कि हम सब तो यहां सेवा करकर के बेदम हो रहे हैं और बाबूजी के दोस्तों की कृपा रही तो वह कभी भी स्वस्थ नहीं हो पाएंगे. इस के बाद जब बाबूजी के दोस्त आते तो बाबूजी अभी सो रहे हैं कह कर बाहर से ही विदा कर दिया जाता. ऐसा कई दिनों तक चला तो बाबूजी के दोस्तों ने आना ही बंद कर दिया.

अब बाबूजी सिवा डाक्टर और किशन के बाहर की दुनिया से कट गए थे.

सुमि के फोन आने पर उस से बहाने तो बना दिए जाते पर आखिर कब तक. एक दिन छोटी बहू ने बता ही दिया. सुमि बहुत नाराज हुई कि अब तक उस से छिपाया क्यों गया? क्या भाई नहीं चाहते कि वह मायके आए. भाइयों ने बहुत समझाया कि ऐसा नहीं है, वह इतनी दूर है कि आसानी से आ नहीं सकती तो उसे परेशान नहीं करना चाहते हैं, इस के अलावा न बताने के पीछे कोई और मंशा नहीं थी.

और सच में सुमि फौरन नहीं आ पाई. हां, उस के फोन अब बाबूजी के हालचाल को जानने के लिए जल्दीजल्दी आने लगे.

एक दिन जाने क्या हुआ कि बाबूजी को घर में होहल्ला, चीखपुकार सुनाई पड़ने लगी. उन के काम लोग बदस्तूर कर रहे थे पर उन्हें कोई कुछ बता नहीं रहा था. किशन की तरफ बाबूजी पूछने वाली निगाहों से देखते पर वह भी चुप ही रहता. जिज्ञासा उन्हें खाए जा रही थी.

2 दिन बाद छोटा बेटा मुकेश आया. वह बहुत तैश में था और चुपचाप उन के पास बैठ गया. उन्होंने बड़े प्यार से सवालिया निगाहों से उसे देखा.

मुकेश अचानक फट पड़ा, ‘‘बाबूजी, आप भैया को समझा दें. बातबात पर मुझ को डांटें नहीं. अब मैं बच्चा नहीं रहा. खुद बालबच्चों वाला हूं.’’

बाबूजी ने हंसने की कोशिश में होंठ फैलाने की कोशिश की, जैसे कह रहे हों, ‘अरे, बेटा, तुम कितने भी बालबच्चेदार हो जाओ, बड़ों के लिए तो तुम छोटे ही रहोगे.’

मुकेश ने फिर कहा, ‘‘भैया अब बातबात पर मुझ से उलझने की कोशिश करते हैं, यह मुझे अब बरदाश्त नहीं.’’

बाबूजी बेचारे क्या करते. समझ गए कि दोनों भाई उन की बीमारी से इतने दुखी हो चुके हैं कि अपनीअपनी भड़ास एकदूसरे पर निकालने लगे हैं.

विजयजी पेशे से वकील थे. सरकारी नौकरी उन्होंने कभी नहीं की. रोज कमाओ, रोज खाओ वाली स्थिति रही. वह मेहनती और काबिल वकील थे, तो अच्छा कमा लेते थे. बच्चों को अच्छा खिलाया, पहनाया. उन की इच्छाएं भी पूरी कीं और संस्कार भी अच्छे दिए. काफी कुछ बचाया जिस में से एक बड़ा हिस्सा बेटी के विवाह और घर बनाने में लग गया. बेटों को अलगअलग घर बना कर दे सकते थे पर उन का मानना था कि एक घर में दोनों साथसाथ रहें तो परिवार मजबूत बनेगा. उन के अनुसार दोनों के परिवार 2 नहीं वरन एक बड़ा परिवार है.

घर उन्होंने बेटी के विवाह के बाद बनाया. दोनों बेटों ने पढ़लिख कर कमाना शुरू कर दिया था. अपने घर में उन्होंने बेटे रूपी 2 मजबूत स्तंभ खड़े कर दिए थे जो इस घर की छत कभी भी गिरने नहीं देंगे.

बहुएं भी उन्होंने अपनी पसंद की चुनी थीं. मध्यम वर्ग की संस्कारी लड़कियां, जो अब तक उन की कसौटी पर खरी उतरी थीं. करुणा और ऋतु मिलजुल कर ही रहतीं, काम भी मिलजुल कर करतीं. कभी कोई कटुता दोनों के बीच आई हो ऐसा कभी नहीं लगा. अगर कोई चिल्लपों रही हो घर में तो वह घर के बच्चों के मासूम झगड़े ही थे. अपना परिवार उन का ऐसा किला था जिस को कोई भेद नहीं सकता था. बड़ा सुखद जीवन चल रहा था कि अचानक इस में पक्षाघात रूपी बवंडर आ गया.

आज अपने इस बेटे के उखड़े हुए रूप को देख कर वह दहल गए कि कहीं यह बवंडर उन के घर को तिनकेतिनके कर न ले उड़े पर एक विश्वास था उन्हें कि उन के द्वारा निर्माण किए हुए ये 2 मजबूत स्तंभ ऐसा नहीं होने देंगे, पर अब डर तो बना रहेगा ही.

ऐसे में एक दिन खबर आई कि सुमि अपने पति और बच्चों सहित आ रही है. एक नीरसता भरे वातावरण में उल्लास की लहर दौड़ गई. वह बाबूजी की बीमारी के ढाई वर्ष बाद आ पा रही थी.

सुमि आई. वह और उस के दोनों बेटे बाबूजी के पास बैठते, वहां ताश, लूडो और तरहतरह के खेल खेलते और अपने मामा के बच्चों को भी अपने साथ खेलने को उकसाते. मुकुलमुकेश के बच्चे बड़े असमंजस में पड़ गए कि क्या वे भी बाबाजी के कमरे में खेल सकते थे? इन दोनों को कोई क्यों नहीं मना करता बाबाजी के पास जाने को? पर रिश्ता ही ऐसा था कि उन पर किसी

भी प्रकार का बंधन नहीं डाला जा सकता.

सुमि के जोर देने पर मुकुल व मुकेश ने भी अपने बच्चों को बाबाजी के पास हुड़दंग मचाने की अनुमति दे दी. क्या पता ऐसे ही कुछ फायदा हो जाए. अभी तक तो पहले जैसी ही स्थिति है बाबूजी की.

आगे पढ़ें- सुमि के वापस जाने का समय…

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin की सई को हुआ कोरोना, पढ़ें खबर

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) फैंस के बीच काफी पौपुलर है. जहां सीरियल में पाखी और सई की लड़ाई दर्शकों का दिल जीतती है तो वहीं विराट और सई की कैमेस्ट्री फैंस को काफी पसंद आती है. हालांकि इन दिनों शो में काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है. इसी बीच खबरें हैं कि सीरियल की सई यानी लीड एक्ट्रेस  एक्ट्रेस आयशा सिंह (Ayesha Singh) को कोरोना हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सई को हुआ कोरोना

 

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खबरों की मानें तो शुक्रवार की शाम को आयशा सिंह की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव (Coronavirus) आई है. हालांकि वह पिछले कई दिनों से बीमार चल रही थीं. इसी के चलते वह शूटिंग से दूर थीं. वहीं इस खबर पर मोहर लगाते हुए शो के निर्माता राजेश राम सिंह और प्रदीप कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा है कि, ”जैसे ही आयशा सिंह को हल्के लक्षणों के बारे में पता चला, उन्होंने शो से छुट्टी ले ली और लगातार मेडिकल हेल्प ले रही हैं. सेट पर पूरी सावधानी बरतते हुए पूरी कास्ट और क्रू का कोरोना वायरस टेस्ट करवाया गया है. साथ ही बीएमसी को भी इसकी जानकारी दे दी गई है.

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कहानी में आएगी नया ट्विस्ट

सीरियल की बात करें तो सीरियल की लीड होने के चलते शो की पूरी कहानी सई यानी आयशा सिंह के इर्द गिर्द घूमती है. वहीं उनके कोरोना पॉजिटिव होने से सीरियल की कहानी का फोकस अब श्रुति और विराट पर दिखाया जाने वाला है. वहीं खबरों की मानें तो इस बार शो की कहानी सई की बजाय पाखी, विराट और श्रुति के उपर फोकस करते हुए नजर आने वाली है.

बता दें, सीरियल में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि सई, विराट और श्रुति के रिश्ते की बात जानकर चौह्वाण परिवार को छोड़ कर चली गई है. वहीं उसकी मुलाकात अस्पताल में श्रुति से भी हो चुकी है.

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पर्यटन मानचित्र पर नई कहानी कह रहा नया उत्तर प्रदेश: सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रकृति और परमात्मा की असीम कृपा वाले उत्तर प्रदेश की पर्यटन सम्भावनाओं के विकास पर पिछली सरकारों ने अपेक्षित ध्यान नहीं दिया. 2017 के पहले की यूपी में पर्यटन तो दूर कानून-व्यवस्था की बदहाली के चलते लोग औद्योगिक निवेश तक करना नहीं चाहते थे. लेकिन आज आज प्रदेश पर्यटन विकास की ढेर सारी संभावनाओं को समेटे हुए आगे बढ़ रहा है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद देश के पर्यटन के पोटेंशियल को अगर किसी ने समझा है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. उनकी दूरदर्शी व सकारात्मक सोच के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास के मानचित्र पर आज एक नई कहानी कह रहा है.

मुख्यमंत्री योगी लखनऊ में अपने सरकारी आवास पर आयोजित कार्यक्रम में पर्यटन विकास से जुड़ीं ₹642 करोड़ की 488 परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास कर रहे थे. कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट की भी उपस्थिति रही.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2013 के प्रयागराज महाकुंभ में दुर्व्यवस्था, गंदगी, और भगदड़ की स्थिति रही. वहीं 2019 का प्रयागराज कुंभ “दिव्य और भव्य रहा. आज अयोध्या का दीपोत्सव, मथुरा का कृष्णोत्सव और रंगोत्सव और काशी की देव दीपावली पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है. हमने शुक तीर्थ, नैमिष धाम, गोरखपुर, कौशाम्बी, संकिसा, लालापुर सहित हर क्षेत्र के विकास पर ध्यान दिया है.

यही नहीं, मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना के माध्यम से प्रदेश के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में किसी न किसी पर्यटन स्थल के व्यवस्थित विकास को आगे बढ़ाने का कार्य हुआ है. आज प्रदेश में 700 से अधिक पर्यटन स्थलों का सफलतापूर्वक विकास किया गया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि हर वह स्थल जो हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक पहचान और आस्था से जुड़े हैं, सबका सम्मान करते हुए हर स्थल के विकास का काम हो रहा है. रिलिजियस टूरिज्म के साथ-साथ इको टूरिज्म को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. इन प्रयासों से युवाओं के लिए बड़ी संख्या में रोज़गार के अवसर भी सृजित हुए हैं. 191.04 करोड़ की 154 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण करते हुए उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष पर चौरीचौरा शताब्दी वर्ष, लखनऊ रेजीडेंसी में हुए ड्रोन और लाइट एंड साउंड शो, महाकवि निराला की भूमि के पर्यटन विकास, काकोरी और शाहजहांपुर में अमर शहीदों की यादें संजोने जैसी कोशिशों का भी जिक्र किया.

मंदिर हमारी आत्मा, यह नहीं तो हम निष्प्राण: रेड्डी

लोकार्पण-शिलान्यास के इस कार्यक्रम में वर्चुअली सहभाग करते हुए केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी.किशन रेड्डी ने योगी सरकार द्वारा पर्यटन व संस्कृति संवर्धन के लिए किए गए प्रयासों को अभूतपूर्व बताया.

उन्होंने कहा कि योगी सरकार सांस्कृतिक विरासतों का उत्थान कर रही है. यह नए भारत की नई तस्वीर है. ब्रज क्षेत्र में विकास कार्यों का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह मंदिर हमारी आत्मा हैं. अगर इसे निकाल दिया जाए तो कुछ भी नहीं बचेगा. केंद्रीय मंत्री ने पर्यटकों की सुविधा की दृष्टि से सड़क, वायु, जल, मार्ग व रोपवे कनेक्टिविटी की तारीफ की और काशी में माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा की पुनर्स्थापना, रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट, कृष्ण सर्किट का उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में रामराज्य है. विशेष अवसर पर पर्यटन विभाग के वार्षिक कैलेंडर व उपलब्धियों पराधारित पुस्तिका का भी विमोचन किया गया.

अभियुक्त: भाग 1- सुमि ने क्या देखा था

घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.

‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.

‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.

विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.

चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.

विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.

‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’

‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’

‘‘मेरा भी यही कहना है. मुझे तो सुमि अच्छी लगती है पर पता नहीं शैलेंद्रजी के लिए कैसी हो. मेरा मतलब है, पत्नी के रूप में वह कैसी है हमें क्या मालूम.’’

सुमि विवेक की लाडली बहन थी. संयोग से इसी शहर में ब्याही गई थी. देखने में सुंदर, कामकाज में सलीकेदार, व्यवहारकुशल, रिश्तेदारों और मित्रों में खासी लोकप्रिय सुमि के बारे में वह गलत बात सोच भी नहीं सकता.

‘‘दीपा, मैं अपनी बहन के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहता. अनैतिकता को किसी भी वजह का जामा पहना कर जायज नहीं ठहराया जा सकता.’’

भैयाभाभी के बीच बातचीत के कुछ अंश सुमि के कानों में भी पड़े. उस की आंखें भर आईं.

भाभी पहले ऐसी तो नहीं थीं. मां सब से बड़े भैया के पास जयपुर में रहती थीं. पिछले 2 वर्ष से वह विवेक भैया के पास ही रह कर अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी कर रही थी. तब भी उन्होंने उसे मां का स्नेह दिया था. हालात के साथ व्यक्ति का व्यवहार भी बदल जाता है.

घर के पास ही एक स्कूल में सुमि पढ़ाने जाती थी. कम तनख्वाह थी पर वक्त बड़े मजे से कट जाता था. उस दिन एक साथी शिक्षिका की मां के गुजर जाने से वह जल्दी घर लौट आई. देखा, दरवाजे पर ताला नहीं था. शायद शैलेंद्र लंच के समय आ गए थे. घंटी बजाई पर बिजली गुल थी. दरवाजे की दरार से झांक कर देखा तो उस पर जैसे सैकड़ों बिजलियां एकसाथ गिर पड़ीं.

दरवाजे की आहट पा कर शैलेंद्र ने दरवाजा खोला. उस के साथ कोई लड़की खड़ी थी. बदहवास.

उस दिन सुमि कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी. शैलेंद्र भी नजरें चुराता रहा.

सुमि लौट आई थी. घर आ कर फूटफूट कर रोई थी. दीपा ने उसे गले से लगाया था. विवेक ने शैलेंद्र को कोर्ट में खींचने की बात कही थी. लेकिन सुमि को साथ रहते 1 महीना होते ही दीपा का धैर्य चुकने लगा. वह सुमि को समझौते के लिए उकसाने लगी. लंबी जिंदगी का वास्ता देने लगी. सुमि को समझते देर नहीं लगी कि उस की मौजूदगी अब इस घर में अवांछनीय है. सोचा, एक बार जा कर अपनी लड़खड़ाती गृहस्थी संभाल ले. यह निर्णय आसान नहीं था. बारबार दरवाजे की दरार से देखा दृश्य याद आ जाता.

इतनी अंतरंगता, इतनी उत्तेजना तो उस ने खुद अपने साथ भी अनुभव नहीं की थी.

अपमान की गहरी खाई में जैसे सुमि को किसी ने धक्का दे दिया था.

उस के सौंदर्य, उस के समर्पण, उस के विश्वास का अपमान यहां तक कि उस की कोमल भावनाओं का अपमान.

अपनी वापसी उसे अपनी पराजय लगने लगी. पर शैलेंद्र के फोन ने उसे फिर दोराहे पर ला खड़ा किया.

‘‘सुमि, प्लीज, चली आओ. मैं बहुत दुखी हूं. तुम्हारे पांव पकड़ कर माफी मांगने को तैयार हूं. आइंदा ऐसी गलती नहीं करूंगा. बहुत शर्मिंदा हूं.’’

रिसीवर रखा तो भाभी आशाभरी नजरों से उसे देख रही थीं.

‘‘भाभी, मैं ने सोचा है कि शैलेंद्र को एक मौका दे दिया जाए,’’ दीपा के चेहरे पर राहत के भाव उभरे.

‘‘वही तो, मेरा भी यही मानना है कि यदि वह अपनी गलती मान रहा है तो हमें भी इतना नहीं अकड़ना चाहिए. फिर मांजी से भी यह बात कब तक छिपाई जा सकती है?’’

‘‘सुमि, तू ने ठीक से सोच लिया है न. यह कभी मत सोचना कि तू यहां नहीं रह सकती. बाबूजी के इस घर पर तेरा भी अधिकार है.’’

भैया की इस बात पर सुमि खामोश हो गई. प्रेम की सीमारेखा जहां समाप्त होती है वहीं से अधिकार की बातें शुरू होती हैं. प्रेम तो अपने साथ सब कुछ देना जानता है. अधिकार की फिर भी मर्यादा होती है. बहन के अधिकार का प्रयोग कर के वह यहां भी रह सकती है और पत्नी के अधिकार का प्रयोग कर के वहां भी रह सकती है.

सुमि को सोचने में क्षण भर लगा और वह तैयार हो कर आटो में बैठ गई.

फोन पर शैलेंद्र जितनी सहजता से बोल रहा था, सामने अपनेआप को बहुत कठिनाई में पा रहा था. घर की सफाई से निबट कर सुमि ने खाना बनाया.

रात को बिस्तर पर जाते ही शैलेंद्र की हिम्मत लौट आई. उस ने सुमि का हाथ पकड़ा. सुमि को झटका सा लगा. किसी भी तरह की गलती को वह माफ कर सकती थी पर आंखों देखा वह दृश्य. क्या वह भूलने योग्य था. उसे लगा जैसे सैकड़ों कीड़े उस के हाथ पर रेंग रहे हों. उस ने शैलेंद्र का हाथ झटक सा दिया.

‘‘शैलेंद्र, तुम कितनी ही बार माफी मांगो, मैं वह दृश्य नहीं भूल सकती. तुम ने संबंधों की पवित्रता को कलंकित किया है.’’

शैलेंद्र करवट बदल कर सो गया पर सुमित्रा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. कितनी ही बार मन हुआ कि शैलेंद्र को झकझोर कर उसे प्रताडि़त करे लेकिन ऐसा लगता कि उस के आक्रोश को अभिव्यक्त करने योग्य शब्द अभी तक शब्दकोश में भी नहीं लिखे गए हैं. अव्यक्त क्रोध आंसुओं के रूप में बरस कर तकिया भिगोता रहा था.

सुमि मन ही मन घुलने लगी. शैलेंद्र का कलेजा उस की हालत देख कर टूकटूक हो जाता पर वह क्या करता. वह कुसूरवार था. उस दिन शिरीन उस के प्रेमपत्र और तसवीरें लौटाने आई तो वह अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सका. उसे बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा तभी सुमि…

वह शायद आगे बढ़ता भी नहीं पर सुमि तो बहुत आगे तक सोच गई होगी. वैसे भी उस की इतनी भूल भी क्षमायोग्य तो नहीं थी.

दूसरे दिन शैलेंद्र ने भीगे स्वर में कहा, ‘‘सुमि, मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. कितनी कमजोर हो गई हो. एक बार डाक्टर को दिखा दो. फिर चाहो तो अपने घर चली जाना.’’

आगे पढ़ें- शैलेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था…

पक्षाघात: भाग 1- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

विजयजी काफी देर लिखने के बाद उठे पर ठीक से उठ न पाए और गिर पड़े. उन्होंने दोबारा उठना चाहा पर हाथपैर बेजान ही रहे. वह घबरा तो गए पर हिम्मत न हारी. उठने का उपक्रम करते रहे, फिर थक कर निढाल हो जमीन पर पड़े रहे.

उन्होंने चिल्लाना चाहा पर जबान ने जैसे न हिलने की कसम खा ली. तभी उन्हें याद आया कि सब तो पिक्चर देखने गए हैं, अब तो आने ही वाले होंगे. अब दरवाजा कौन खोलेगा उन के लिए? बेचारे बाहर ठंड में अकड़ जाएंगे.

थोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजी. सब आ चुके थे. उन्होंने फिर उठना चाहा पर न जाने क्या हो गया है, वह यही सोचसोच कर हैरान हो रहे थे. घंटी लगातार बजती ही जा रही थी.

पत्नी तो बेटे- बहुओं के साथ अकेली जाना ही नहीं चाह रही थी. पर उन्हें कुछ लेखन का काम करना था सो जबरन ही उसे बेटों के साथ भेज दिया था. वह तो बहुएं बड़ी लायक हैं, उन्हें यह विचार ही नहीं आता कि मां- बाबूजी को उन के साथ नहीं लगना चाहिए, पर अब वह अपनी जिद को कोस रहे थे कि क्यों भेजा पत्नी को उन के साथ?

बाहर से बेटे बाबूजीबाबूजी चिल्ला रहे थे. दरवाजे को पीटा जाने लगा. तभी पत्नी का दहशत भरा स्वर सुनाई दिया, ‘‘मुकुल, दरवाजा तोड़ दो.’’

शायद दोनों बेटों ने मिल कर दरवाजा तोड़ा. घर में घुसते ही बाबूजीबाबूजी की आवाजें लगनी शुरू हो गईं. कमरे में बाबूजी को यों पड़े देखा तो हाहाकार मच गया. झट से दोनों बेटों ने मिल कर उन्हें पलंग पर लिटाया. उन की पत्नी ललिता उन के तलवे मलने लगी. बहुएं झट रसोई से उन के लिए पानी और हलदी वाला दूध ले आईं.

मुकेश ने पत्नी के हाथ से पानी का गिलास ले लिया और बाबूजी को हाथ के सहारे से उठा कर पिलाना चाहा तो होंठों के किनारों से पानी बाहर बह निकला. पति की यह हालत देख ललिता बिलखने लगीं. मुकेशमुकुल अपनीअपनी पत्नियों को मां को संभालने की आज्ञा दे कर डाक्टर को बुलाने चल दिए.

डाक्टर ने जांच कर के बताया कि विजयजी को पक्षाघात हुआ है. सब यह सोच कर अचंभित रह गए कि अब क्या होगा? सब को अब अपनी दुनिया अंधेरी नजर आने लगी.

डाक्टर ने दवाइयां और मालिश के लिए तेल लिख दिया और कहा, ‘‘संभालिए आप सब अपनेआप को. यदि आप सब घबरा जाएंगे तो इन्हें कौन संभालेगा? देखिए, इन के जीवन को तो कोई खतरा नहीं है पर कब तक ठीक होंगे यह कहना मुश्किल है. सेवा कीजिए, दवा दीजिए. शायद आप सब का परिश्रम रंग लाए और विजयजी ठीक हो जाएं. और हां, घर का वातावरण शांत रखिए. आप सब हाहाकार मचाएंगे तो मरीज का मन कैसे शांत रहेगा.’’

फिर तो परिवार में हर किसी की दिनचर्या ही बदल गई. फिक्र भरी सुबहें, तो दोपहर व्यस्त हो गई, शामें चिंतित और रातें दुखदायी हो गईं. बेटों ने कुछ दिनों की छुट्टियां ले लीं पर आखिर कब तक घर बैठे रहते. सब की अपनीअपनी उलझनें और परेशानियां थीं, अपनेअपने कार्य थे पर विजयजी कितने निरीह, कितने बेबस हो गए थे यह कौन समझ सकता है. आखिर कोई भी मातापिता अपने बच्चों को परेशान नहीं करना चाहता, पर नियति के आगे किसी की कब चली है.

तय यह हुआ कि अभी सुमि दीदी को खबर नहीं की जाए, इतनी दूर अमेरिका से आ तो पाएंगी नहीं पर परेशान बहुत होंगी. बच्चों को भी सख्त हिदायत दे दी गई कि बूआ का फोन आए तो बाबूजी के बारे में उन से कुछ न कहा जाए.

सुमि का फोन आने पर जब वह बाबूजी से बात कराने को कहती तो अलगअलग बहाने बना दिए जाते. बाबूजी सुमि से क्या बात कर पाते, वह तो जबान ही न हिला पाते.

एक फिजियोथेरैपिस्ट रोज आ कर बाबूजी को हलके व्यायाम करा जाता. दोनों बेटों ने बाबूजी को नहलानेधुलाने और उन की साफसफाई करने के लिए एक नौकर की व्यवस्था कर ली थी. मालिश का काम कभीकभी वह नौकर तो कभी ललिता करतीं.

डाक्टर की नसीहत के कारण बच्चों को बाबूजी के कमरे में ज्यादा देर रुकने को मना कर दिया गया था इसलिए बच्चे कम ही आते थे. विजयजी कमरे में अकेले पड़ेपड़े ऊब गए थे. बेटे तो कामकाजी थे सो वे घर में कम ही रहते थे. बहुएं कमरे में उन का खाना, चाय, दूध, नाश्ता आदि ले कर आतीं और अम्मां को पकड़ा कर चली जातीं. साथ ही कहतीं, ‘‘अम्मांजी, कुछ और जरूरत हो तो आवाज लगा दीजिएगा,’’ फिर वे दोनों अपनेअपने कामों में व्यस्त हो जातीं.

बाबूजी की बीमारी से काम भी तो बहुत बढ़ गए थे. पहले तो उन की मालिश बेटे करते थे पर अब अम्मां और कभीकभी नौकर किशन कर देता था. ललिता उन से दिन भर की बातें करतीं. पर बाबूजी की तरफ से कोई जवाब नहीं आ पाता तो धीरेधीरे बोलने का नियम कम होतेहोते समाप्त सा हो गया. वह भी बस, जरूरत भर की ही बातें करने लगीं.

विजयजी ने कई बार अपनी पत्नी ललिता से कहने की कोशिश की कि बच्चों को कमरे में खेलने दिया करो, कुछ तो मन लगे पर गोंगों का अस्पष्ट स्वर ही निकल पाता. ललिता पूछती ही रह जातीं कि क्या कहना चाह रहे हो? पर स्वत: उन की बात समझने में असफल ही रहतीं.

विजयजी बहुत बेबस हो जाते. दोनों बेटे भी सुबहशाम उन के पास बैठ जाते, पर आखिर कब तक. बाद में तो आफिस से आ कर हालचाल पूछ कर अपनेअपने कमरों में घुस जाते या बाहर आंगन में सब साथ बैठ कर बतियाते. बहुएं भी वहीं बैठ कर कुछ न कुछ करतीं और बच्चे या तो खेलते या फिर पढ़ते पर बाबूजी के कमरे में जाने की उन्हें मनाही थी. ललिता भी अब बाबूजी का काम निबटा कर बहूबेटों के साथ आंगन में बैठने लगीं. अब बाबूजी ज्यादातर दिन भर अकेले ही पड़े रहने लगे.

पहले खबर लगते ही विजयजी के दोस्त घर में जुटने लगे थे. 3-4 दोस्त साथ आ जाते तो उन की गप्पें शुरू हो जातीं. बाबूजी का उन की बातें ही सुन कर वक्त कट जाता पर कभीकभी उन की बातें सुन कर परेशान भी होने लगते. एक दिन गुप्ताजी कहने लगे, ‘‘वैसे यह रोग है बड़ा जानलेवा, जल्दी ठीक ही नहीं होता. मेरे साढू भाई के बड़े भाई साहब को हुआ तो 10 साल बिस्तर पर पड़े रहे. हिलडुल भी नहीं पाते थे, बड़े कष्ट झेले.’’

आगे पढ़ें- विजयजी सकते में आ गए. तो क्या…

Anupama करेगी मालविका की मदद तो वनराज-अनुज आएंगे साथ, सीरियल में आएगा नया ट्विस्ट

सीरियल अनुपमा  (Anupama) की कहानी दिलचस्प मोड़ लेने के लिए तैयार हैं. जहां अनुज (Gaurav Khanna) और अनुपमा (Rupali Ganguly)की कहानी में प्यार की एंट्री होगी तो वहीं मालविका (Aneri Vajani) का अतीत सभी के सामने आता नजर आएगा. वहीं काव्या (Madalsa Sharma) इस बात का फायदा उठाकर वनराज (Sudhanshu Panday) को भड़काती नजर आएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

अनुपमा को पता चला मालविका का अतीत

अब तक आपने देखा कि घरेलू हिंसा होते हुए देखकर मालविका को पैनिक अटैक आ जाता है, जिसके कारण वह खुद को एक कमरे में कैद कर लेती है. हालांकि अनुज और अनुपमा दोनों दरवाजा खोल देते हैं. लेकिन अनु, मालविका को डिप्रेशन की गोलियां खाते हुए देखती है, जिसके बाद अनुज उसे मालविका के अतीत के बारे में बताता है.

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वनराज और अनुज ने मिलाया हाथ

 

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दरअसल, अनुपमा के गोलियों के बारे में सवाल करने पर अनुज, मालविका के अतीत के बारे में बताएगा. अपकमिंग एपिसोड में अनुज, अनुपमा को बताएगा कि मालविका की जिंदगी से बौयफ्रेंड अक्षय को दूर करने के बाद उसने एक लड़का देखकर मालविका की शादी कर दी थी. लेकिन वह लड़का हैवान निकला और उसके साथ मारपीट की, जिसके कारण मालविका डिप्रेशन में चली गई. दूसरी तरफ वनराज को मालविका के डिप्रेशन के बारे में पता लगेगा और वह अनुज से कहेगा कि वह उसका मालविका के लिए हर एक फैसले में साथ देने के लिए तैयार है.

 

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पाखी के कान फरेगी काव्या

एक तरफ जहां अनुपमा, मालविका को डिप्रेशन से निकालने की कोशिश करती नजर आएगी तो वहीं काव्या एक बार फिर अपनी चाल चलेगी और पाखी को वनराज और अनुपमा के खिलाफ भड़काएगी. दरअसल, खबरों की मानें तो मालविका का ख्याल रखने पर पाखी को कहेगी कि उसके माता पिता को उसकी परवाह नहीं है और वह गैर लड़की की केयर कर रहे हैं, जिसके चलते पाखी जलन महसूस करती हुई दिखेगी.

 

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संपत्ति के लिए साजिश: भाग 1- क्या हुआ था बख्शो की बहू के साथ

यह कहानी तब की है, जब मैं थाना मठ, जिला खुशाब में थानाप्रभारी था. सुबह मैं अपने एएसआई कुरैशी से एक केस के बारे में चर्चा कर रहा था, तभी एक कांस्टेबल ने आ कर बताया कि गांव रोड़ा मको का नंबरदार कुछ लोगों के साथ आया है और मुझ से मिलना चाहता है.

मैं नंबरदार को जानता था. मैं ने कांस्टेबल से कहा कि उन के लिए ठंडे शरबत का इंतजाम करे और उन्हें आराम से बिठाए, मैं आता हूं. शरबत को इसलिए कहा था, क्योंकि वे करीब 20 कोस से ऊंटों की सवारी कर के आए थे. कुछ देर बाद मैं ने नंबरदार गुलाम मोहम्मद से आने का कारण पूछा तो उस ने कहा कि वह एक रिपोर्ट लिखवाने आया है. मैं ने उन से जबानी बताने को कहा तो उन्होंने जो बताया, वह काफी रोचक और अनोखी घटना थी. उन के साथ एक 60 साल का आदमी बख्शो था, जिस की ओर से यह रिपोर्ट लिखी जानी थी.

बख्शो डेरा गांजा का बड़ा जमींदार था. उस के पास काफी जमीनजायदाद थी. उस का एक बेटा गुलनवाज था, जो विवाहित था. उस की पत्नी गर्भवती थी. 2 महीने पहले उस का बेटा घर से ऊंट खरीदने के लिए निकला तो लौट कर नहीं आया. थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई और अपने स्तर से भी काफी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.

बख्शो के छोटे भाई के 5 बेटे थे, जो उस की जमीन पर नजर रखे थे. वे तरहतरह के बहाने बना कर उस की जायदाद पर कब्जा करने की फिराक में थे. उन से बख्शो के बेटे गुलनवाज को भी जान का खतरा था. शक था कि उन्हीं लोगों ने गुलनवाज को गायब किया है. पूरी बिरादरी में उन का दबदबा था. उन के मुकाबले बख्शो और उस की पत्नी की कोई हैसियत नहीं थी.

यह 2 महीने पहले की घटना थी, जो उस ने मुझे सुनाई थी. उस समय थाने का इंचार्ज दूसरा थानेदार था. बख्शो ने मुझे जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. उस ने बताया कि 2-3 दिन पहले उस की बहू को प्रसव का दर्द हुआ तो उस की पत्नी ने गांव की दाई को बुलवाया. बख्शो के भाई की बेटियां और उस के बेटों की पत्नियां भी आईं.

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उन्होंने किसी बहाने से बख्शो की पत्नी को बाहर बैठने के लिए कहा. कुछ देर बाद कमरे से रोने की आवाजें आने लगीं. पता चला कि बच्चा पैदा होने में बख्शो की बहू और बच्चा मर गया है. वे देहाती लोग थे, किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रसव में बच्चे की मां कैसे मर गई.

उन के इलाके में अकसर ऐसे केस होते रहते थे. उस जमाने में शहरों जैसी सहूलियतें नहीं थीं. पूरा इलाका रेगिस्तानी था. मरने वाली के कफनदफन का इंतजाम किया गया. जनाजा कब्रिस्तान ले गए. जब मृतका को कब्र में उतारा जाने लगा तो अचानक मृतका ने कब्र में उतारने वाले आदमी की बाजू बड़ी मजबूती से पकड़ ली.

वह आदमी डर गया और चीखने लगा कि मुरदे ने उस की बाजू पकड़ ली है. यह देख कर जनाजे में आए लोग डर गए. जिस आदमी का बाजू पकड़ा था, वह डर के मारे बेहोश हो कर गिर गया. इतनी देर में मुर्दा औरत उठ कर बैठ गई. सब लोगों की चीखें निकल गईं. उन्होंने अपने जीवन में कभी मुर्दे को जिंदा होते नहीं देखा था.

बख्शो की बहू ने कहा कि वह मरी नहीं थी, बल्कि बेहोश हो गई थी. बहू ने अपने गुरु एक मौलाना को बुलाया. वह काफी दिलेर था. वह उस के पास गया तो औरत ने बताया कि उस का बच्चा गेहूं रखने वाले भड़ोले में पड़ा है. यह कह कर उस ने मौलाना का हाथ पकड़ा और कफन ओढ़े ही मौलाना के साथ चल दी. बाकी सब लोग उस के पीछेपीछे हो लिए. जो भी यह देखता, हैरान रह जाता.

घर पहुंच कर भड़ोले में देखा तो गेहूं पर लेटा बच्चा अंगूठा मुंह में लिए चूस रहा था. मां ने झपट कर बच्चे को सीने से लगाया और दूध पिलाया. इस तरह बख्शो का पोता मौत के मुंह से निकल आया और उस की बहू भी मर कर जिंदा हो गई.

बख्शो ने बताया कि उस की बहू नूरां ने उसे बताया था कि उसे उमरां और भागभरी ने जान से मारने की कोशिश की थी. बख्शो अपनी बहू और पोते को मौलाना की हिफाजत में दे कर नंबरदार के साथ रिपोर्ट लिखवाने आया था. उस ने यह भी कहा कि उस के बेटे गुलनवाज को भी बरामद कराया जाए.

मैं ने धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और गुलनवाज के गुम होने की सूचना सभी थानों को भेज दी, साथ ही उसी समय बख्शो के गांव डेरा गांजा स्थित घटनास्थल पर जाने का इरादा भी किया. एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर मैं ऊंटों पर सवार हो कर डेरा गांजा रवाना हो गया.

ये ऊंट हमें सरकार की ओर से इसलिए मिले थे, क्योंकि वह एरिया रेगिस्तानी था. ऊंटों के रखवाले भी हमें मिले थे, जिन्हें सरकार से तनख्वाह मिलती थी. डेरा गांजा पहुंच कर हम ने जांच शुरू की. सब से पहले मैं ने नूरां को बुलाया और उस के बयान लिए.

नूरां के बताए अनुसार, बच्चा होने का समय आया तो उस के सासससुर ने गांव से दाई रोशी को बुलाया. वह अपने काम में बहुत होशियार थी. रोशी बीबी के साथ बख्शो की भतीजियां उमरां और भागभरी भी कमरे में आ गईं. रोशी ने अपना काम

शुरू किया, लेकिन उसे लगा कि उमरां और भागभरी उस के काम में रुकावट डालने की कोशिश के साथसाथ एकदूसरे के कान में कुछ कानाफूसी भी कर रही हैं.

बच्चे के पैदा होते ही नूरां की नाक पर एक कपड़ा रख दिया गया. उस कपड़े से अजीब सी गंध आ रही थी. नूरां धीरेधीरे बेहोश होने लगी. वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं हुई थी, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकती थी. उसे ऐसा लग रहा था, जैसे सपना देख रही हो. उसे ऐसी आवाजें सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई कह रहा हो कि मां के साथ बच्चे को भी मार दो. असली झगड़े की जड़ यही बच्चा है. यह मर गया तो बख्शो लावारिस हो जाएगा.

इस के बाद उस ने सुना कि उस के बच्चे को अनाज वाले भड़ोले में डाल दिया है. नूरां पर बेहोशी छाई रही. उस के बाद हुआ यह कि जल्दबाजी में उस के कफनदफन का इंतजाम किया गया. बख्शो की भतीजियां और भतीजे इस काम में आगे रहे. वे हर काम को जल्दीजल्दी कर रहे थे.

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जब नूरां को गरम पानी से नहलाया गया तो उसे कुछकुछ होश आने लगा. जब उसे चारपाई पर डाल कर कब्रिस्तान ले जाने लगे तो उसे पूरी तरह होश आ गया. उस का जीवन बचना था, इसलिए वह हाथपैर हिलाने लायक हो गई. उस के बाद कब्र में रखते समय उस ने एक आदमी का हाथ पकड़ लिया, जिस से वह डर कर भागा तो नूरां मोहल्ले के मौलवी साहब का हाथ पकड़ कर घर आई और भड़ोले से अपना बच्चा निकाला. बख्शो का एक दोस्त गांव की दूसरी दाई को ले आया. उस ने बच्चे को नहलाधुला कर साफ किया.

‘‘कुदरत ने मेरे और मेरे बच्चे पर रहम किया और हमें नई जिंदगी दी.’’ नूरां ने आसमान की ओर देख कर कहा, ‘‘अब मुझे और मेरे बच्चे को रांझे वगैरह से खतरा है. मेरे पति गुलनवाज को भी इन्हीं लोगों ने गायब किया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘इन लोगों पर शक करने का कोई कारण?’’

उस ने कहा, ‘‘यह सब मेरे ससुर की जायदाद का चक्कर है. उन्होंने जायदाद के लिए मेरे पति को गायब कर दिया और मुझे तथा मेरे बच्चे को मारने की कोशिश की.’’

नूरां ने यह भी बताया कि डेरा गांजा के अलावा भी मठ टवाना में उस के ससुर की काफी जमीन है. उस जमीन से होने वाली फसल का हिस्सा बख्शो के भतीजे उस तक पहुंचने नहीं देते.

मैं ने उस से कुछ बातें और पूछी और मन ही मन तुरंत काररवाई करने का फैसला कर लिया. मैं ने अपने एएसआई और कुछ कांस्टेबलों को ले कर रांझा वगैरह के घरों पर छापा मारा. वहां से मैं ने रांझा, उस के भाई दत्तो और रमजो को गिरफ्तार कर लिया. उन के 2 भाई घर पर नहीं थे. उन के घर की तलाशी ली तो 2 बरछियां और कुल्हाड़ी बरामद हुई. उन हथियारों की लिस्ट बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद मैं ने दाई रोशी, भागभरी और उमरां को भी गिरफ्तार कर लिया. मैं ने महसूस किया कि वहां के लोग पुलिस के आने से खुश नहीं थे. वे पुलिस को किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं थे. मैं ने मसजिद के लाउडस्पीकर से गांव में ऐलान करा दिया कि गांव के लोग इस केस में पुलिस का सहयोग करें और कोई बात न छिपाएं.

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