पतिता का प्रायश्चित्त: आखिर रेणु के बारे में क्या थी मयंक की राय

लेखक- डौ. अनिल प्रताप सिंह

उस दिन शाम को औफिस से घर आने के बाद मयंक अपने परिवार के साथ कार से टहलने निकल पड़ा. मयंक के साथ उस की पत्नी स्नेह भी थी जो 2 साल के अंशु को गोद में ले कर बैठी थी.

मयंक कार के स्टेयरिंग पर था और उसे बहुत धीमी रफ्तार से चला रहा था. अचानक उस की नजर सड़क पार करती एक जवान औरत पर पड़ी. एकाएक उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने कार की रफ्तार को और भी धीमा कर दिया और उस औरत को गौर से देखने लगा.

‘‘क्या बात है?’’ स्नेह की आवाज में जिज्ञासा थी, ‘‘क्या देख रहे हैं आप?’’

‘‘मैं उस औरत को देख रहा हूं,’’ मयंक ने उस औरत की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्यों… कोई खास बात है क्या?’’ स्नेह ने पूछा.

‘‘हां है…’’ मयंक ने कहा, ‘‘एक लंबी कहानी है इस की. उस कहानी का एक पात्र खुद मैं भी हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ एक अविश्वास भरी हैरानी से स्नेह का मुंह खुला का खुला रह गया.

थोड़ी देर में मयंक ने कार की रफ्तार बढ़ा दी और आगे निकल गया.

मयंक इस शहर में अभी नयानया जिला जज बन कर आया था. उसे यहां रहने के लिए एक सरकारी बंगला मिला हुआ था. वह सपरिवार यानी स्नेह और 2 साल के अंशु के साथ रहने लगा था.

उस रात जब वे खाना खाने बैठे तो स्नेह ने उसी सवाल को दोहराया, ‘‘कौन थी वह औरत?’’

मयंक का दिल ‘धक’ से बैठ गया, पर उस ने खुद पर कंट्रोल कर के मन ही मन बात शुरू करने की भूमिका बना ली. फिलहाल टालने भर का मसाला तैयार कर के उस ने कहा, ‘‘आजकल उस औरत का एक केस मेरी अदालत में चल रहा है. तलाक का मामला है.’’

‘‘लेकिन, आप ने तो कहा था कि उस की कहानी के एक पात्र आप भी…’’

‘‘हां, मैं ने तब जो भी कहा हो, लेकिन इस समय मेरे सिर में दर्द है. मुझे आराम करने दो,’’ मयंक की आवाज में कुछ झुंझलाहट थी.

ये भी पढ़ें- टैडी बियर: क्या था अदिति का राज

स्नेह के मन में मची उथलपुथल को मयंक बखूबी समझ रहा था. औरत के मन में शक की उपज स्वाभाविक होती है. यों स्नेह मयंक के प्यार के आगे मुंह खोल सकने की हालत में नहीं थी.

मयंक टाल तो गया, पर वह औरत अब भी उस की यादों में छाई रही.

आज से तकरीबन 8 साल पहले जब मयंक ग्रेजुएशन का छात्र था तो उस की बड़ी बहन की शादी में दूर के रिश्तेदारों, परिचितों के अलावा बड़े भाई के एक खास दोस्त की बहन रेणु भी आई थी.

मयंक को पहले ही दिन लगा था कि रेणु बहुत ही चंचल स्वभाव की थी और बातूनी भी. रेणु के आते ही सब उस से घुलमिल गए थे. बातबात में हर कोई ‘रेणु, जरा मुझे एक गिलास पानी देना’, ‘जरा मेरे लिए एक कप चाय बना देना’, ‘मुझे भूख लगी है, खाना परोस देना’ जैसी फरमाइशें करने लगा था.

एक दिन मयंक ने पुकारा था, ‘रेणु, मुझे प्यास लगी है.’

अचानक रेणु मयंक के पास आई और फुसफुसा कर बोली, ‘कैसी…’ और इतना कह कर उस ने अपने होंठों पर बड़ी गूढ़ मुसकान बिखेर दी.

मयंक अचकचा सा गया था. उसे रेणु से इस तरह की हरकत की कतई उम्मीद न थी.

मयंक ने अपनी झेंप को काबू में करते हुए कहा, ‘फिलहाल तो मुझे पानी ही चाहिए.’

रेणु ने पानी दिया और उसी दिन थोड़ा एकांत पाते ही उस ने कहा, ‘मयंक, तुम मुझ से इतना कतराते क्यों हो? क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती?’

‘नहीं’ कहने के बजाय मयंक के मुंह से निकला था, ‘क्यों नहीं…’

लेकिन उसी दिन से उन दोनों के बीच ऐसी निजी बातों का सिलसिला चल पड़ा था. लगा कि जैसे सारी दूरियां खत्म होती जा रही थीं. मयंक भी रेणु की बातों में दिलचस्पी लेने लगा था.

रेणु ने एक दिन मयंक के सामने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया, ‘मयंक, मैं चाहती हूं कि हम दोनों जीवनभर एकदूसरे के बने रहें.’

‘क्या…’ मयंक की हैरानी लाजिमी थी. क्या रेणु उस के बारे में इस हद तक सोचती है?

‘हां मयंक, अगर मेरी शादी तुम से नहीं हुई तो मैं जिंदगीभर कुंआरी ही रहूंगी,’ रेणु ने कहा. लगा, जैसे उस के आंसू छलक पड़ेंगे.

मयंक थोड़ी देर तो चुप रहा था लेकिन कुछ ही पलों में उस के दिल में रेणु के लिए प्यार उमड़ पड़ा था. वह उसे वचन दे बैठा, ‘अगर तुम में सचमुच सच्चे प्यार की भावना है रेणु, तो मैं जिंदगीभर तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’

यह सुनते ही रेणु मयंक से लिपट गई.

‘मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी,’ रेणु बुदबुदाई.

ये भी पढ़ें- सबकुछ है पर कुछ नहीं: राधिका को किस चीज की कमी थी

मयंक का एक दोस्त विनय भी शादी से कुछ दिन पहले ही हाथ बंटाने के लिए वहां आ गया था. एक दिन मयंक की मां ने विनय से शादी का कुछ सामान लाने को कहा. रेणु भी अपनेआप तैयार हो गई.

‘क्या मैं भी विनय के साथ चली जाऊं? इन के रास्ते में ही महमूदपुर पड़ेगा, जहां मेरी एक सहेली ब्याही गई है. अगर एतराज न करें तो मैं उस से मिल लूं? शाम को जब ये शहर से सामान ले कर लौटेंगे तो इन्हीं के साथ आ जाऊंगी,’ रेणु ने मयंक की मां से पूछा.

थोड़ी देर सोच कर मां बोलीं, ‘लेकिन, शाम तक जरूर लौट आना.’

‘हांहां, बस मिलना ही तो है,’ रेणु ने कहा, फिर वे दोनों स्कूटर पर बैठे और चले गए.

शाम हुई और शाम से रात, पर रेणु नहीं आई. मयंक ने सोचा कि आखिर वह अभी तक क्यों नहीं लौटी? विनय भी नहीं आया था.

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘कौन…?’ मां ने पूछा.

‘मैं हूं,’ उधर से विनय ने कहा.

मां ने दरवाजा खोला. रेणु भी पीछे खड़ी थी.

‘कहां रह गए थे तुम दोनों?’ मां ने  झुंझलाते हुए पूछा.

‘कुछ नहीं… बस, इन का खटारा स्कूटर खराब हो गया था, फिर काफी पैदल चलना पड़ा,’ विनय कुछ बोलता, उस से पहले ही रेणु ने कहा और घर में जा घुसी.

उस समय मयंक को उस की यह हरकत सही नहीं लगी थी, फिर भी वह उस के शब्दजाल में फंस चुका था.

फिर एक दिन रेणु अपने घर चली गई. कई दिनों तक मयंक को कुछ भी अच्छा नहीं लगा था. घर में जाने की इच्छा भी न होती थी. हर जगह उस की यादें बिखरी हुई मालूम पड़ती थीं. उन्हीं यादों के नाते मयंक को लगता था जैसे वह खुद भी बिखर कर रह गया है.

मयंक ने अपनी मां को भी बता दिया था कि वह रेणु से प्यार करता है और शादी भी उसी से करना चाहता है.

‘मयंक, एक सवाल पूछूं तुम से?’ मां ने पूछा.

‘पूछो न मां… एक नहीं, हजार पूछो,’ मयंक ने कहा.

‘तुम्हें रेणु के चरित्र के बारे में क्या लगता है?’ मां ने सीधा सवाल किया.

मयंक बोला, ‘मुझे तो ठीक लगता है. वैसे, क्या आप को…?’

‘नहींनहीं, आजकल की लड़कियों के बारे में कालेज के लड़के ही ज्यादा जानकारी रखते हैं. खैर, ठीक ही है,’ मां ने कहा.

अचानक मां को पिताजी ने बुला लिया था. मयंक ने सोचा कि मां कहना क्या चाहती थीं?

एक दिन जब मयंक ने विनय को रेणु से अपने संबंध की बात बताई तो वह एकदम से बिफर गया, ‘तुम उसे भूल जाओ प्यारे… उस की मधुर मुसकानें बहुत जहरीली हैं.’

‘मैं समझा नहीं…’

‘तुम समझोगे भी कैसे? तुम्हारे दिमाग को तो रेणु नाम की उसी घुन ने चट कर रखा है. अब तुम समझनेबूझने की हालत में रह ही कहां गए हो?’ विनय ने ताना मारा.

‘क्या मतलब…’

‘तुम्हें यह शादी नहीं करनी है…’ विनय हक के साथ बोल पड़ा, ‘और अगर तुम उसे भूल नहीं पाते हो तो मुझे भूलने की कोशिश कर लेना.’

‘ठीक है. मैं भूल जाऊंगा उसे, लेकिन तुम भी इतना जान लो कि मैं जिंदगीभर कुंआरा ही रहूंगा,’ मयंक थोड़ा भावुक हो उठा.

‘आखिर तुम ने उस के अंदर ऐसा क्या देखा है, जो उस के लिए इतना बड़ा त्याग करने को तैयार हो?’

‘सिर्फ बरताव, खूबसूरती नहीं,’ मयंक ने कहा.

‘तो बस यही नहीं है उस में, बाकी सबकुछ हो भी तो क्या?’

‘क्या…?’

‘हां मयंक, उस का चरित्र सही नहीं है. अच्छा बताओ, तुम्हें वह दिन याद है न, जब रेणु मेरे साथ महमूदपुर गई थी?’

ये भी पढे़ं- सबसे बड़ा रुपय्या: शेखर व सरिता को किस बात का हुआ एहसास

‘हां, याद तो है?’

‘मेरा स्कूटर खराब हो गया था और मैं देर रात वापस लौटा था?’

‘हां, यह भी याद है…’

‘मैं और भी जल्दी आ सकता था, पर वह देरी रेणु ने जानबूझ कर की थी.’

मयंक हैरानी से विनय का मुंह ताकने लगा.

‘लेकिन, उस को भी तो आना था?’ मयंक अपने अंदर हैरानी समेटे बोल रहा था, ‘जबकि तुम दोनों को महमूदपुर में ही रात होने लगी थी.’

‘हां इसलिए, रात का फायदा उठाने के लिए ही ऐसा किया गया था.’

‘क्या मतलब…?’

‘अब इतने नादान तो हो नहीं तुम कि तुम्हें मतलब समझाना पड़े…’

‘तो क्या रेणु ऐसी…?’

‘जी हां, ऐसी ही है रेणु…’ विनय ने आगे कहा, ‘उस की उन गलत इच्छाओं के आगे मुझे मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि वह किसी भी हद तक जा चुकी थी…’ वह बोलता जा रहा था, ‘मैं इस के बारे में कभी भी कुछ न कहता, अगर आज अपने सब से अच्छे और एकलौते दोस्त को जिंदगी के इतने बड़े फैसले का धर्मसंकट सामने न आ खड़ा होता.’

विनय की बातें मयंक के कानों में जहर घोल रही थीं और वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा था.

मयंक ने सोचा कि अपने इस सवाल का जवाब वह खुद रेणु से लेगा, पर इस की नौबत ही नहीं आने पाई. उस ने जल्दी ही

सुना कि रेणु का किसी से प्रेम विवाह हो गया है.

इधर मयंक के लिए भी कोई रिश्ता आया. उस ने मांबाप के फैसले को सिर्फ उन की खुशी के लिए अपनी रजामंदी

दे दी.

सुसंस्कारों में पलीबढ़ी स्नेह मयंक के घर में सब को भाती थी. जब वह जिला जज की इस जिम्मेदारी के लिए आने लगा तो मां ने स्नेह से हंसते हुए कहा, ‘मेरे और अपने दोनों बेटों का खयाल रखना है अब तुम्हें.’

‘जी मां,’ स्नेह ने भी हंस कर ही कहा, जो मां के लिए बहू के बजाय उन की लाड़ली बेटी थी.

आज रेणु से मयंक का सामना वक्त ने उस मुकाम पर आ कर कराया जहां वह मयंक की ही अदालत में एक गुनाहगार की तरह खड़ी थी. उस के पति ने ही उस पर किसी और से संबंध होने की बात पर तलाक मांगा था.

रेणु आई, मयंक भी. जिला जज से पहले वह एक नेकदिल इनसान ही था, इसलिए अपनी ही उलझनों की शिकन महसूस करते हुए वह भी उस के सामने अपनी कुरसी पर आ बैठा.

आज रेणु का चेहरा बहुत ही बुझा हुआ था. मयंक को उस का अल्हड़पन याद आया, पर उस की जिंदगी में खुशियों का जरा भी दीदार न हो सका.

बहस के दौरान रेणु ज्यादातर चुप

ही बनी रही और अपनी गलतियों को मान कर आगे से ऐसा कुछ न करने के लिए कहा.

रेणु के पति के पक्ष से पेश किए गए सुबूतों के आधार पर उसे तलाक मिल चुका था. पर रेणु के अदालत में बोले गए ये बोल, ‘आज मैं कहां से कहां होती…’ मयंक के जेहन में गूंजते रहे.

मयंक को बारबार यही अहसास

हो रहा था कि ऐसा रेणु ने उस के और मयंक के संबंधों को याद करते हुए

बोला था.

मयंक को आज उस पर तरस आ रहा था, पर यही तो था एक ‘पतिता का प्रायश्चित्त’.

ये भी पढ़ें- नैपकिंस का चक्कर: मधुश ने क्यों किया सास का शुक्रिया

जानें कब और कितना करें मेनोपौज के बाद HRT का सेवन

महिलाओं में प्राकृतिक रूप से मेनसेज 45 से 52 वर्ष की आयु में धीरेधीरे या फिर अचानक बंद हो जाता है. यह रजोनिवृत्ति मेनोपौज कहलाती है. मेनोपौज के दौरान अंडाशय से ऐस्ट्रोजन और कुछ हद तक प्रोजेस्टेरौन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण अनेक शारीरिक एवं व्यावहारिक बदलाव होते हैं. विशेष रूप से ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्राव बंद होने के कारण महिलाओं में अनेक समस्याएं हो सकती हैं. रजोनिवृत्ति के बाद ये समस्याएं पोस्ट मेनोपोजल सिंड्रोम (पीएमएस) कहलाती हैं. इन में स्तन छोटे होने लगते हैं और लटक जाते हैं, योनि सूखी रहती है, यौन संबंध बनाने में दर्द हो सकता है, चेहरे पर बाल निकल सकते हैं. मानसिक असंतुलन हो सकता है, जल्दी गुस्सा आ सकता है, तनावग्रस्त हो सकती हैं, हार्टअटैक का खतरा बढ़ सकता है व कार्यक्षमता घट सकती है.

पीएमएस का समाधान

पीएमएस के कारण जिन महिलाओं का दृष्टिकोण सकारात्मक होता है और जो खुश व संतुष्ट रहती हैं, उन्हें परेशानियां कम होती हैं. उन्हें किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है. जिन महिलाओं को हलकी परेशानियां होती हैं, वे अपनी जीवनशैली में सुधार कर, समय पर भोजन कर, सक्रिय रह कर व नियमित व्यायाम कर इन से छुटकारा पा सकती हैं. जिन महिलाओं को गंभीर परेशानियां होती हैं उन्हें इन से छुटकारा पाने के लिए डाक्टर से बचाव और उपचार के लिए ऐस्ट्रोजन हारमोन या ऐस्ट्रोजन+प्रोजेस्टेरौन हारमोन के मिश्रण की गोलियों के नियमित सेवन की सलाह दे सकते हैं. यह उपचार विधि हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी यानी एचआरटी कहलाती है. लेकिन इन गोलियों के लंबे समय तक सेवन के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं. अत: रजोनिवृत्ति के बाद इन का सेवन करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए उन का पता होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- Arthritis: गलत व ओवर एक्सरसाइज से बचें 

एचआरटी के लाभ

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से होने वाली हौटफ्लैशेज यानी शरीर में गरमी लगने से अटैक, पसीना आना, हृदय का तेजी से धड़कना आदि लक्षणों से राहत मिलती है.

हारमोन सेवन से योनि में बदलाव नहीं होता, वह सूखी नहीं होती और मिलन के समय रजोनिवृत्ति के बाद दर्द भी नहीं होता.

स्ट्रोजन हारमोन की कमी होने से योनि में संक्रमण आसानी से होता है. अत: एचआरटी सेवन से यौन संक्रमण से बचाव होता है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी का सेवन मूत्र संक्रमण से भी बचाव करता है.

एचआरटी के सेवन से रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाले मांसपेशियों, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के पतला होने, शक्ति कम होने आदि समस्याओं से राहत मिलती है.

अनिद्रा, चिंता, अवसाद की समस्या भी एचआरटी के सेवन से कम हो जाती है और कार्यक्षमता बरकरार रहती है.

महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद हड्डियों की सघनता कम होने से औस्टियोपोरोसिस की समस्या हो सकती है. इस के कारण हड्डियों में दर्द होता है और वे हलकी चोट या झटके से भी टूट सकती हैं. एचआरटी सेवन से इन कष्टों, जटिलताओं की संभावना कम हो जाती है.

एचआरटी के सेवन से कार्यक्षमता, निर्णय लेने की क्षमता, एकाग्रता में कमी होने की संभावना भी कम हो जाती है.

रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी के सेवन से त्वचा की कोमलता, लावण्य और बालों की चमक बरकरार रहती है.

इन के सेवन से वृद्धावस्था में दांतों, आंखों में होने वाले बदलाव भी देरी से और मंद गति से होते हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि एचआरटी का सेवन करने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर की संभावना कम हो जाती है. उन में आंतों के कैंसर व हृदय रोग का खतरा भी कम होता है.

एचआरटी के सेवन के दुष्प्रभाव

अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन सेवन से गर्भाशय कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. अत: यदि गर्भाशय मौजूद है, तो ऐस्ट्रोजन प्रोजेस्टेरौन मिश्रित गोलियों का सेवन करें. यदि औपरेशन से गर्भाशय निकाल दिया गया है तो अकेले ऐस्ट्रोजन हारमोन का सेवन करें.

एचआरटी के सेवन से रक्त वाहिनियों में रक्त थक्का बनने की संभावना बढ़ जाती है. यह किसी भी अंग में फंस कर रक्तप्रवाह को बाधित कर हार्टअटैक, पक्षाघात आदि का कारण बन सकता है.

ये भी पढ़ें- मैडिकल टैस्ट क्यों जरूरी

इस के सेवन से कुछ हद तक पित्ताशय में पथरी की संभावना भी बढ़ जाती है.

एचआरटी की न्यूनतम प्रभावी खुराक रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सुरक्षित रूप से 5 वर्ष तक ली जा सकती है. फिर धीरेधीरे बंद कर दें.

रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सिर्फ एचआरटी सेवन ही एकमात्र विकल्प नहीं है. रजोनिवृत्ति के दौरान और बाद में पर्याप्त मात्रा में ऐसा संतुलित भोजन करें, जिस में कैल्सियम प्रचुर मात्रा में हो. इस के अलावा मल्टीविटामिन के कैप्सूल्स और विटामिन डी का सेवन करें.

Holi Special: ट्राय करें आलू का सलाद

आपने कई तरह की आलू की सब्जी खायी होगी लेकिन क्या आपने आलू का सलाद ट्राई किया है? जर्मन पोटैटो सैलेड उबले हुए आलुओं से तैयार होने वाली डिश है. आलू के अलावा इसमें गाजर, बीन्स, मटर, मस्टर्ड सॉस और मियोनीज़ का इस्तेमाल किया जाता है. आप इस डिश को किसी भी खास मौके पर साइड डिश के रूप में सर्व कर सकती हैं.

सामग्री

– 110 ग्राम आलू

– 50 ग्राम बीन्स

– 70 ग्राम प्याज

-70 ग्राम गाजर

ये भी पढ़ें- Holi Special: ईवनिंग स्नैक्स में बनाएं ये टेस्टी डिशेज

– 50 ग्राम मटर

– वेज मियोनीज

– मस्टर्ड सॉस

विधि

सबसे पहले आलू, गाजर, हरी बीन्स और मटर धो लें. इसके बाद इन सभी को प्रेशर कूकर में पका लें. एक उबाल के बाद ही आंच बंद कर दें और इन सभी चीजों को बाहर निकाल दें.

अब आलू और गाजर को एक आकार में काट लें. इन्हें एक किनारे रख दें. अब प्याज और बीन्स को भी छोटा-छोटा काट लें.

एक बड़ा बर्तन ले लें. इसमे सारी कटी हुई सब्जियों को डाल दें. अब इसमें मियोनीज, मस्टर्ड सॉस डालकर अच्छी तरह मिला लें. आपका जर्मन पोटैटो सैलेड सर्व करने के लिए तैयार है.

ये भी पढ़ें- Holi Special: फैमिली के लिए बनाएं मखनी पनीर रोल

मृत्युदंड से रिहाई: विपिन की मम्मी क्या छिपा रही थी

लेखिक-श्रुति अग्रवाल

उस की मुखमुद्रा कठोर हो गई थी और हाथ में लिया पेन कागज पर दबता चला गया. ‘खट’ की आवाज हुई तो विपिन चौंक कर बोला, ‘‘ओह मम्मी, आप ने फिर पेन की निब तोड़ दी. आप बौलपेन से क्यों नहीं लिखतीं, अब तो उसी का जमाना है.’’ विपिन के सुझव को अनसुना कर वे बेटे के हाथ को अपनी गरदन से निकाल कर बालकनी में चली गईं. बिना कुछ कहेसुने यों मां का बाहर निकल जाना विपिन को बेहद अजीब लगा था. पर इस तरह का व्यवहार वे आजकल हमेशा ही करने लगी हैं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मां ऐसा क्यों कर रही हैं.

आज ही क्या हुआ था भला? वह औफिस से लौट कर आया तो पता चला मम्मी उस के ही कमरे में हैं. वहां पहुंच कर देखा तो वे उस की स्टडी टेबल पर झकी कुछ लिख रही थीं. विपिन ने कुरसी के पीछे जा, शरारती अंदाज में उन के गले में बांहें डाल कर किसी पुरानी फिल्म के गीत की एक कड़ी गुनगुना दी थी, ‘तेरा बिटवा जवान हो गवा है, मां मेरी शादी करवा दे.’ इतनी सी बात में इतना गंभीर होने की क्या बात हो सकती है? वे तो पेन की निब को कागज पर कुछ उसी अंदाज में दबाती चली गई थीं जैसे किसी मुजरिम को मृत्युदंड देने के बाद जज निब को तोड़ दिया करते हैं.

इस समय विपिन सीधा सुधा से मिल कर आया था और आज उन दोनों ने और भी शिद्दत से महसूस किया था कि अब एकदूसरे से दूर रहना संभव नहीं है. फिर अब परेशानी भी क्या थी? उस के पास एक अच्छी नौकरी थी, अमेरिका से लौट कर आने के बाद तनख्वाह भी बहुत आकर्षक हो गई थी. फ्लैट और गाड़ी कंपनी ने पहले ही दे रखे थे. और फिर, अब वह बच्चा भी नहीं रहा था.

उस के संगीसाथी कब के शादी कर अपने बालबच्चों में व्यस्त थे. अब तक तो खुद मम्मी को ही उस की शादी के बारे में सोच लेना चाहिए था. पर पता नहीं क्यों उस की शादी के मामले में वे खामोश हैं. यद्यपि अमेरिका जाने से पहले वे अपने से ही 2-1 बार शादी का प्रसंग उठा चुकी थीं. पर उस समय उस के सामने अपने भविष्य का प्रश्न था. वह कैरियर बनाने के समय में शादी के बारे में कैसे सोच सकता था? उसे ट्रेनिंग के लिए पूरे 2 वर्षों तक अमेरिका जा कर रहना था और मम्मी इस सचाई को जानती थीं कि किसी भी लड़की को ब्याह के तुरंत बाद सालों के लिए अकेली छोड़ जाना युक्तिसंगत नहीं लगता. सो, हलकेफुलके प्रसंगों के अलावा उन्होंने इस विषय को कभी जोर दे कर नहीं उठाया था. यही स्वाभाविक था. वहीं, उस ने भी कभी मां से सुधा के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं समझ थी. सोचा था जब समय आएगा, बता ही देगा.

पर अब हालात बदल चुके हैं. अपने संस्कारजनित संकोच के कारण यह बात वह साफसाफ मां से कह नहीं पा रहा था. परंतु आश्चर्य तो यह है कि मां भी अपनी ओर से ऐसी कोई बात नहीं उठातीं. हंसीमजाक में वह कुछ इशारे भी करता, तो उन की भावभंगिमा से लगता कि वे इस बात को बिलकुल समझती ही न हों.

ये भी पढ़ें- उसका अंदाज: क्या थी नेहल की कहानी

मम्मी का व्यवहार बड़ा बदलाबदला सा है आजकल. अचानक ही मानो उन पर बुढ़ापा छा गया है, जिस से उन के व्यक्तित्व में एक तरह की बेबसी का समावेश हो गया है. चुप भी बहुत रहने लगी हैं वे. वैसे, ज्यादा तो कभी नहीं बोलती थीं. उन का व्यक्तित्व संयमित और प्रभावशाली था, जिस से आसपास के लोग जल्दी ही प्रभावित हो जाते थे. हालात ने उन के चेहरे पर कठोरता ला दी थी. फिर भी उस के लिए तो ममता ही छलकती रहती थी.

वह जब 3-4 साल का रहा होगा तब किसी दुर्घटना में पिताजी चल बसे थे. मायके और ससुराल से किसी तरह का सहारा न मिलने पर मम्मी ने कमर कस ली और जीवन संग्राम में कूद पड़ीं. बहुत पढ़ीलिखी नहीं थीं, पर जीवन के प्रति बेहद व्यावहारिक नजरिया था. छोटी सी नौकरी और मामूली सी तनख्वाह के बावजूद उस को कभी याद नहीं कि उस के भोजन या शिक्षा के लिए कभी पैसों की कमी पड़ी हो. इसी से वह उन आंखों के हर इशारे की उतनी ही इज्जत करता था, जितनी बचपन में. शायद उन की ममता में ही वह ताकत थी, जिस ने उसे कभी गलत राह पर जाने ही नहीं दिया. मनचाहा व्यक्तित्व मढ़ा था उस का और फिर अपने कृतित्व पर फूली न समाई थीं.

पर यह सब विदेश जाने से पहले की बात है. अब तो मम्मी को बहुत बदला हुआ सा पा रहा था वह. अच्छीखासी बातें करतेकरते एकाएक वितृष्णा से मुंह फेर लेती हैं. हंसना तो दूर, मुसकराना भी कभीकभी होता है. तिस पर से पेन तोड़ने की जिद? उस ने स्पष्ट देखा है, निब अपने से नहीं टूटती, जानतेबूझते दबा कर तोड़ी जाती है.

उस दिन एक और भी अजीब सी घटना हुई थी. वह गहरी नींद में था, पर अपने ऊपर कुछ गीला, कुछ वजनी एहसास होने से उस की नींद टूट गई थी. उस ने देखा कि मम्मी फूटफूट कर रोए जा रही थीं. छोटे बच्चे की तरह उस का चेहरा हथेलियों में भर कर और अस्फुट स्वर में कुछ बड़बड़ा रही थीं, पर उस के आंखें खोलते, वे पहले की तरह खामोश हो गईं. वह लाख पूछता रहा, पर केवल यही कह कर चली गईं कि कुछ बुरा सपना देखा था. उस ने इतने सालों में पहली बार मम्मी को रोते हुए देखा था, जिस ने इतनी बड़ीबड़ी मुसीबतें सही हों, वह सपने से डर जाए? क्या ऐसा भी होता है?

इधर सुधा का मम्मी से मिलने का इसरार बढ़ता जा रहा था, क्योंकि उस के घर वाले उस के लिए रिश्ते तलाश रहे थे और वह विपिन के बारे में किसी से कुछ कहने से पहले एक बार मम्मी से मिल लेना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव उसे कुछ रहस्यमय लग रहा था. इसीलिए विपिन पसोपेश में था और कोई रास्ता निकाल नहीं पा रहा था. एक बार उस के मन में यह विचार आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि घर में किसी दूसरी औरत के आने से मां डर रही हैं कि स्वामित्व का गर्व बंटाना पड़ जाएगा? उसे अपना यह विचार इतना ओछा लगा कि मन खराब हो गया. अपना घर मानो काटने को दौड़ रहा था. सो कुछ समय किसी मित्र के साथ बिताने की सोच विपिन बाहर निकल गया.

विपिन उन के व्यवहार से उकता कर घर से निकल गया है, यह उन्हें भी पता है. पर वह भी क्या करे? उन का तो सबकुछ स्वयं ही मुट्ठी से फिसलता जा रहा है. अंधेरों के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही नहीं है. यह हरीभरी खूबसूरत बालकनी, जिस के कोनेकोने को सजातेसंवारते वे कभी थकती ही नहीं थीं, आज काट खाने को दौड़ रही है. हालांकि, यह जगह उन्हें बहुत पसंद थी. यहां से सबकुछ छोटा, पर खूबसूरत दिखता है. कुछ उसी तरह जैसे कर्तव्य की नुकीली धार पर से जिंदगी अब मखमलों पर उतर आई थी. शायद अब जीने का लुत्फ लेने का समय आ गया था. नौकरी छोड़ चुकी थीं, इसलिए उन के पास खूब सारा समय था रचरच कर अपने घर को सजाया था उन्होंने. इसी उत्साह में विपिन का 2 वर्षों के लिए अपने से दूर जाना भी उन को इतना नहीं खला था. उसे अपनी जिंदगी को रास्ते दिखाने हैं, तो हाथ आए मौके लपकने तो पड़ेंगे ही. वे क्यों अपने आंसुओं से उस का रास्ता रोकें?

यह भी सोचा था कि जैसे जीवनभर केवल अपने सहारे ही खड़ी रहीं, बुढ़ापे में भी अपने ही सहारे रहेंगी. मानसिक स्तर पर बेटे पर इतनी आश्रित नहीं होंगी कि उन का वजूद उसे बोझ नजर आने लगे. आर्थिक स्तर पर तो उन की कोई खास जरूरतें ही नहीं थीं. जीवनभर जरूरतों में कतरब्योंत करतेकरते अब तो वह सब आदत में आ चुका है. हां, समय का सदुपयोग करने के लिए आसपास के ड्राइवरों, मालियों और नौकरों के बच्चों को इकट्ठा कर उन्होंने एक छोटा सा स्कूल खोल लिया था और व्यस्त हो गई थीं.

सबकुछ सुखद और बेहद सुंदर था, पर क्या पता था कि खुशियां इतनी क्षणिक होती हैं. एक दिन मेकअप से पुता एक अनजान चेहरा उन के पास आया था. उन्होंने उसे आश्चर्य से देखा था क्योंकि उस के चेहरे पर कोमलता का नामोनिशान न था. उस ने बताया था कि वह अनुपमा प्रकाश, विपिन की प्रेमिका है. उन लोगों ने सभी सीमाएं पार कर ली थीं. सो, अब उस अतिक्रमण का बीज उस के गर्भ में पल रहा है, पर विपिन अमेरिका से न उस की चिट्ठी का जवाब देता है, न फोन पर ही बात करता है. सब तरह से हार कर अब वह उन की शरण में आई है.

क्या इन परिस्थितियों में फंसी हुई किसी परेशान लड़की की आंखें इतनी निर्भीक हो सकती हैं? यह सोच कर उन्होंने उसे डांट कर घर से बाहर निकाल दिया था, पर तब भी शक का बीज तो मन में पड़ ही चुका था. उन्होंने यह भी सोचा कि लड़की के बारे में जांचपड़ताल करेंगी और अगर नादानी में विपिन से कोई गलती हुई है तो इस के साथ कोई अन्याय नहीं होने देंगी. अपने विपिन के बारे में उन के मन में अगाध विश्वास था.

अनुपमा गुस्से से फुंफकारती हुई कह गई थी, ‘मैं आत्महत्या कर लूंगी और आप के बेटे को जेल भिजवा कर रहूंगी.’ अनुपमा तो गुस्से में कह कर चली गई पर उस के बाद कई प्रश्न उन के दिमाग में उभरते रहे कि कैसा प्रेम होता है यह आजकल का? प्रेम का मतलब एकदूसरे के लिए जान दे देना है या दूसरों को अपने ऊपर जान देने को मजबूर करना है? एक मुंह छिपा कर अमेरिका जा बैठा है तो दूसरी जेल भेजने के लिए जान देना चाहती है. अगर कोई तुम से मुंह मोड़ ही बैठा है तो क्या धमकियों के माध्यम से उसे अपना सकोगी? दबाव में अगर रिश्ता कायम हो ही गया तो कितने दिन चलेगा और कितना सुख दे सकेगा? वैसे, क्या विपिन जैसे समझदार लड़के की पसंद इतनी उथली हो सकती है?

ये भी पढ़ें- महाभारत: माता-पिता को क्या बदल पाए बच्चे

वेतो समझती थीं कि गरजते हुए बादल कभी बरसते नहीं, पर उस पागल लड़की ने तो सचमुच जान दे दी. उस के मरने की खबर से वे एकाएक ही खुद को गुनहगार समझने लगीं. लगा, खुद उन्होंने ही तो उसे ‘मृत्युदंड’ की सजा दी है. उस ने उन्हें अपने दुख सुनाए और उन्होंने उस पर अविश्वास किया और उसी दिन उस लड़की ने आत्महत्या कर ली.

यह आत्महत्या उन के लिए अविश्वसनीय थी. महानगरों में आधुनिक जीवन जीती हुई ये लड़कियां क्या इतनी भावुक हो सकती हैं कि गर्भ ठहर जाने पर इन्हें आत्महत्या करनी पड़े? जबकि आजकल तो स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां सहेली के घर रुकने का बहाना कर के गर्भपात करा आती हैं और घर वालों को पता तक नहीं चलता. पर हर तरह की लड़कियां होती हैं, हो सकता है कि वह विपिन से इतनी जुड़ गई हो कि उसे खो देने की कल्पना तक न कर सके. पर उस की आंखों की वह शातिर चमक कैसे भूली जा सकती है. तो क्या कोई बदला लेने को इतना पागल हो सकता है कि अपनी जान पर ही खेल जाए?

पर नहीं, यह गलती खुद उन से हुई है. अपने पक्ष में लाख दलीलें दें वह, पर एक भावुक, निर्दोष लड़की को समझने में भूल कर ही बैठी हैं वे. अपनी बहू के साथसाथ अपने अजन्मे पोते को भी मृत्युदंड दे चुकी हैं वे. अब इस का क्या प्रायश्चित्त हो सकता है. उस के शव से ही माफी मांगने को जी चाहा था, एक बार उस चेहरे को ध्यान से देखने का मन किया था और शायद यह भी पता करना था कि वह पागल लड़की उन के बेटे के विरुद्ध तो कुछ नहीं कर गई. इसलिए वे बदहवास सी अस्पताल पहुंच गई थीं.

वहां जा कर कुछ और ही पता चला कि वह आत्महत्या से नहीं, बल्कि एड्स से मरी थी, एड्स…? यह जानते ही उन के मन में एक नया डर समा गया. वे सोचने लगीं कि कहीं मेरे विपिन को भी तो नहीं हो गया यह रोग? ऐसा लगता तो नहीं. देखने में तो वह बिलकुल स्वस्थ लगता है. छिपतेछिपाते जहां से भी संभव हुआ, वे इस असाध्य रोग के बारे में जानकारी एकत्र करती रहीं और पता चला कि इस के कीटाणु कभीकभी तो 6 वर्ष तक भी शरीर के अंदर निष्क्रिय बैठे रहते हैं, फिर जब हमला करते हैं तो जाने कितनी बीमारियां लग जाती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बिलकुल समाप्त हो जाती है.

असुरक्षित यौन संबंधों से फैलता है यह रोग और संबंध तो असुरक्षित ही रहे होंगे जो वह गर्भवती हो बैठी. कुछ भी नहीं बचता इस रोग के बाद, सिवा मौत के.

मौत? विपिन की? नहीं, इस के आगे वे नहीं सोच पातीं. दिमाग ही चक्कर खाने लग जाता है. वे अपनेआप को अपने बेटे की सच्चरित्रता का विश्वास दिलाना चाहती हैं, पर मन का डर हटता ही नहीं. वैसे भी, उम्र बढ़ने के साथसाथ अपनों की फिक्र बढ़ती जाती है, तिस पर से ऐसे भयंकर रोग का अंदेशा?

विपिन की शादी के लिए जो भी रिश्ता आया, उन्होंने उलटे हाथ लौटा दिया. अनुपमा प्रकाश को तो उन्होंने अनजाने में मृत्युदंड दिया था, पर अब जानतेबूझते एक अनजान लड़की को मौत के मुंह में कैसे धकेल दें. पर विपिन का क्या करें जो उन के व्यवहार से भरमाया हुआ है. कैसे वे बेटे से कहें कि तेरी जिंदगी में अब तो गिनती के दिन ही बचे हैं. कोशिश करती हैं कि सामान्य दिखें, पर इतना सटीक अभिनय कोई कर सकता है क्या? उठतेबैठते वह इशारा करता है कि शादी करा दो, पर क्या करें वे? क्या जवाब दें?

और फिर एक दिन एक लड़की को ले आया विपिन उन से मिलाने. साधारण शक्लसूरत की नाजुक सी लड़की सुधा थी. पता नहीं क्यों उन्हें उस लड़की पर बहुत गुस्सा आया. क्या सोचती हैं ये लड़कियां? कोई कमाताखाता कुंआरा लड़का मिल जाए तो मक्खियों की तरह गिरती जाएंगी उस पर. एक ही औफिस में साथ काम करती है तो क्या विपिन के पुराने किस्से न सुने होंगे? सब भूल कर जान देने को तैयार बैठी हैं इस फ्लैट, गाड़ी और तनख्वाह के पैसों के लिए? वे क्या मृत्युदंड देंगी किसी को, थोड़ेथोडे़ भौतिक सुखों के लिए लोग स्वयं को मृत्युदंड देने को तैयार रहते हैं और इस विपिन को क्या लड़कियों के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं?

यही सब सोच कर वे सुधा के साथ काफी रुखाई से पेश आई थीं. और उतरा मुंह लिए विपिन उसे वापस पहुंचा आया था. लौट कर उन के सामने आया तो उस की आंखों में एक कठोर निश्चय चमक रहा था. वे समझ रही थीं कि आज वे उस के प्रश्नों को टाल नहीं सकेंगी. डर भी लग रहा था. मन ही मन तैयारी भी करती जा रही थीं कि क्या कहेंगी और कितना कहेंगी.

‘‘मम्मी, सुधा बहुत रो रही थी,’’ विपिन के स्वर में उदासी थी.

‘‘रोने की क्या बात थी?’’ उन्होंने कड़ा रुख अपना कर बोला था.

ये भी पढ़ें- नजरिया: क्या श्रुति के बदलाव को रोक पाया उसका पति

‘‘क्या वह तुम्हें पसंद नहीं आई मम्मी?’’

‘‘मुझे ऐसी लड़कियां बिलकुल पसंद नहीं जो लड़कों के साथ घूमतीफिरती रहती हैं.’’

‘‘क्या बात करती हो, मां, वह मुझे प्यार करती है. मैं उसे तुम को दिखाने के लिए लाया था.’’

‘‘क्या होता है यह प्यारव्यार… अपनाअपना स्वार्थ ही न? क्या चाहिए था उसे, फ्लैट, गाड़ी, रुपया यही न?’’

‘‘नहीं मम्मी, तुम उसे गलत समझ रही हो. हम तो एकदूसरे को उसी समय से चाहते हैं जब मैं ने मामूली तनख्वाह पर यह नौकरी शुरू की थी.’’

विपिन इस तरह से उन के सामने झूठ बोलेगा, वह सोच भी नहीं सकती थीं. तैश में मुंह से निकल गया, ‘‘यह अनुपमा प्रकाश कौन थी? तुम उसे कैसे जानते हो?’’

‘‘मेरे औफिस में टाइपिस्ट थी.’’

‘‘तुम्हें कैसी लगती थी?’’

‘‘मैं उसे ज्यादा नहीं जानता था. अमेरिका से वापस आने पर पता चला कि उस के साथ कोई घटना घटी थी.’’

‘‘तेरे अमेरिका जाने पर वह आई थी. ऐयाशी का सुबूत ले कर गर्भवती थी वह,’’ क्रोध में वह तुम से तू पर उतर आईर् थी.

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘मर गई वह तेरे लिए और उस की बिना पर तू दूसरी शादी की तैयारी कर रहा है? यही संस्कार हैं तेरे?’’

‘‘ओह, तो यह बात है, मम्मी? वह अच्छी लड़की नहीं थी. काफी बदनाम थी. मैं उस का अधिकारी था. एक बार काम में बहुत सी गलतियां मिलने पर कुछ डांट दिया था. वह बुरा मान गई होगी शायद और बदला लेने चली आई होगी.’’

‘‘झठ मत बोल. किसी लड़की के लिए ऐसे कहते शर्म नहीं आती तुझे, जिस ने तेरे लिए जान दे दी?’’

ए काएक ही उन्हें आशा की एक

किरण नजर आई. वह रुंधी आवाज में पूछ रही थीं, ‘‘सच बोल विपिन, उस से तेरा कोई संबंध नहीं था. मेरी कसम खाकर बोल.’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो उस से बहुत कम बार मिला हूं. मेरा विश्वास करो.’’

‘‘मैं उस के मरने पर अस्पताल गई थी बेटे, उसे एड्स था. यह तो छूत की बीमारी होती है न?’’ उन्होंने सहमते हुए अपना मन खोल ही डाला.

विपिन अवाक सा उन का मुंह देखे जा रहा था, फिर एकाएक ठठा कर हंस पड़ा. उस ने उठ कर अपनी बांहों में मां को उठा कर गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया.

मर गई वह तेरे लिए और उस की बिना पर तू दूसरी शादी की तैयारी कर रहा है? यही संस्कार हैं तेरे?’’

‘‘ओह, तो यह बात है, मम्मी? वह अच्छी लड़की नहीं थी. काफी बदनाम थी. मैं उस का अधिकारी था. एक बार काम में बहुत सी गलतियां मिलने पर कुछ डांट दिया था. वह बुरा मान गई होगी शायद और बदला लेने चली आई होगी.’’

‘‘झठ मत बोल. किसी लड़की के लिए ऐसे कहते शर्म नहीं आती तुझे, जिस ने तेरे लिए जान दे दी?’’

ए काएक ही उन्हें आशा की एक

किरण नजर आई. वह रुंधी आवाज में पूछ रही थीं, ‘‘सच बोल विपिन, उस से तेरा कोई संबंध नहीं था. मेरी कसम खाकर बोल.’’

‘‘नहीं मम्मी, मैं तो उस से बहुत कम बार मिला हूं. मेरा विश्वास करो.’’

‘‘मैं उस के मरने पर अस्पताल गई थी बेटे, उसे एड्स था. यह तो छूत की बीमारी होती है न?’’ उन्होंने सहमते हुए अपना मन खोल ही डाला.

विपिन अवाक सा उन का मुंह देखे जा रहा था, फिर एकाएक ठठा कर हंस पड़ा. उस ने उठ कर अपनी बांहों में मां को उठा कर गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया.

‘‘मेरी पगली मम्मी.’’

‘‘मुझे सुधा के घर ले चलेगा आज? बेचारी सोचती होगी कि कैसी खूसट सास है.’’

वे हवा में लटकेलटके बोलती जा रही थीं. गोलगोल घूमते हुए उस कमरे में ताजे फूलों की खुशबू लिए बालकनी से ठंडीठंडी हवा आ कर उन के फेफड़ों में भरती जा रही थी, आज तो मृत्युदंड से रिहाई का दिन था, सुधा का नहीं, विपिन का भी नहीं, खुद उन का.

ये भी पढ़ें- तीसरा बलिदान: क्या कभी खुश रह पाई अन्नया

नीड़ का निर्माण फिर से: भाग 4- क्या मानसी को मिला छुटकारा

लेखक- श्रीप्रकाश

मनोहर की हालत दिनोदिन बिगड़ने लगी. एक दिन अपनी मां को ढकेल दिया. वह सिर के बल गिरतेगिरते बचीं.

तंग आ कर उस के पिता ने अपने बड़े बेटे राकेश को बंगलौर से बुलाया.

‘अब तुम ही संभालो, राकेश. मैं हार चुका हूं,’ मनोहर के पिता के स्वर में गहरी हताशा थी.

‘मनोहर, तुम पीना छोड़ दो,’ राकेश बोला.

‘नहीं छोड़ूंगा.’

‘तुम्हारी हर जरूरत पूरी होगी बशर्ते तुम पीना छोड़ दो.’

राकेश के कथन पर मनोहर बोला, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए सिवा चांदनी और मानसी के.’

‘मानसी अब तुम्हारी जिंदगी में नहीं है. बेहतर होगा तुम अपनी आदत में सुधार ला कर फिर से नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें अपनी कंपनी में काम दिलवा दूंगा.’ मुझे शादी नहीं करनी.’

‘मत करो शादी पर काम तो कर सकते हो.’

मनोहर पर राकेश के समझाने का असर पड़ा. वह शून्य में एकटक देखतेदेखते अचानक बच्चों की तरह फफक कर रो पड़ा, ‘भैया, मैं ने मानसी को बहुत कष्ट दिए. मैं उस का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मैं अपनी फूल सी कोमल बेटी को मिस करता हूं.’

‘चांदनी अब भी तुम्हारी बेटी है. जब कहो तुम्हें उस से मिलवा दूं, पर…’

‘पर क्या?’

‘तुम्हें एक जिम्मेदार बाप बनना होगा. किस मुंह से चांदनी से मिलोगे. वह तुम्हें इस हालत में देखेगी तो क्या सोचेगी,’ राकेश कहता रहा, ‘पहले अपने पैरों पर खड़े हो ताकि चांदनी भी गर्व से कह सके कि तुम उस के पिता हो.’

उस रोज मनोहर को आत्मचिंतन का मौका मिला. राकेश उसे बंगलौर ले गया. उस का इलाज करवाया. जब वह सामान्य हो गया तो उस की नौकरी का भी बंदोबस्त कर दिया. धीरेधीरे मनोहर अतीत के हादसों से उबरने लगा.

इधर मानसी के आफिस के लोगों को पता चला कि उस का  तलाक हो गया है तो सभी उस पर डोरे डालने लगे. एक दिन तो हद हो गई जब स्टाफ के ही एक कर्मचारी नरेन ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. नरेन कहने लगा, ‘मैं तुम्हारी बेटी को अपने से भी ज्यादा प्यार दूंगा.’

मानसी चाहती तो नरेन को सबक सिखा सकती थी पर वह कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थी. काफी सोचविचार कर उस ने अपना तबादला इलाहाबाद करवाने की सोची. वहां मां का भी घर था. यहां लोगों की संदेहास्पद दृष्टि हर वक्त उस में असुरक्षा की भावना भरती.

इलाहाबाद आ कर मानसी निश्ंिचत हो गई. शहर से मायका 10 किलोमीटर दूर गांव में था. मानसी का मन एक बार हुआ कि गांव से ही रोजाना आएजाए. पर भाईभाभी की बेरुखी के चलते कुछ कहते न बना. मां की सहानुभूति उस के साथ थी पर भैया किसी भी सूरत में मानसी को गांव में नहीं रखना चाहते थे क्योंकि उस के गांव में रहने पर अनेक तरह के सवाल उठते और फिर उन की भी लड़कियां बड़ी हो रही थीं. इस तरह 10 साल गुजर गए. चांदनी भी 15 की हो गई.

तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मानसी अतीत से जागी. वह चौंक कर उठी और जा कर दरवाजा खोला तो भतीजे के साथ चांदनी खड़ी थी.

‘‘क्या मां, मैं कितनी देर से दरवाजा खटखटा रही थी. आप सो रही थीं क्या?’’

‘‘हां, बेटी, कुछ ऐसा ही था. तू हाथमुंह धो ले, मैं कुछ खाने को लाती हूं,’’ यह कह कर मानसी अंदर चली गई.

एक दिन स्कूल से आने के बाद चांदनी बोली, ‘‘मम्मी, मेरे पापा कहां हैं?’’

मानसी क्षण भर के लिए अवाक् रह गई. तत्काल कुछ नहीं सूझा तो डपट दिया.

‘‘मम्मी, बताओ न, पापा कहां हैं?’’ वह भी मानसी की तरह जिद्दी थी.

‘‘क्या करोगी जान कर,’’ मानसी ने टालने की कोशिश की.

‘‘इतने साल गुजर गए. जब भी पेरेंट्स मीटिंग होती है सब के पापा आते हैं पर मेरे नहीं. क्यों?’’

अब मानसी के लिए सत्य पर परदा डालना आसान नहीं रहा. वह समय आने पर स्वयं कहने वाली थी पर अब जब उसे लगा कि चांदनी सयानी हो गई है तो क्या बहाने बनाना उचित होता?

‘‘तेरे पिता से मेरा तलाक हो चुका है.’’

‘‘तलाक क्या होता है, मम्मी?’’ उस ने बड़ी मासूमियत से पूछा.

‘‘बड़ी होने पर तुम खुद समझ जाओगी,’’ मानसी ने अपने तरीके से चांदनी को समझाने का प्रयत्न किया, ‘‘बेटी, तेरे पिता से अब मेरा कोई संबंध नहीं.’’

ये भी पढ़ें- नसीहत: क्या हुआ अरुण-संगीता के बीच

‘‘वह क्या मेरे पिता नहीं?’’

मानसी झल्लाई, ‘‘अभी पढ़ाई करो. आइंदा ऐसे बेहूदे सवाल मत करना,’’ कह कर मानसी ने चांदनी को चुप तो करा दिया पर वह अंदर ही अंदर आशंकित हो गई. अनेक सवाल उस के जेहन में उभरने लगे. चांदनी कल परिपक्व होगी. अपने पापा को जानने या मिलने के लिए अड़ गई तो? कहीं मनोहर से मिल कर उस के मन में उस के प्रति मोह जागा तो? कल को मनोहर ने, उस के मन में मेरे खिलाफ जहर भर दिया तो कैसे देगी अपनी बेगुनाही का सुबूत. कैसे जिएगी चांदनी के बगैर?

मानसी जितना सोचती उस का दिल उतना ही डूबता. उस की स्थिति परकटे परिंदे की तरह हो गई थी. न रोते बनता था न हंसते. अचला को फोन किया तो वह बोली, ‘‘तू व्यर्थ में परेशान होती है. वह जो जानना चाहती है, उसे बता दे. कुछ मत छिपा. वैसे भी तू चाह कर भी कुछ छिपा नहीं पाएगी. बेहतर होगा धीरेधीरे बेटी को सब बता दे,’

मानसी एक रोज आफिस से घर आई तो देखा कि चांदनी के पास अपने नएनए कपड़ों का अंबार लगा था. चांदनी खुशी से चहक रही थी.

‘‘ये सब क्या है?’’ मानसी ने तनिक रंज होते हुए पूछा.

‘‘पापा ने दिया है.’’

‘‘हर ऐरेगैरे को तुम पापा बना लोगी,’’ मानसी आपे से बाहर हो गई.

‘‘मम्मी, वह मेरे पापा ही थे.’’

तभी मानसी की मां कमरे में आ गईं तो वह बोली, ‘‘मां, सुन रही हो यह क्या कह रही है.’’

‘‘ठीक ही तो कह रही है. मनोहर आया था,’’ मानसी की मां निर्लिप्त भाव से बोलीं.

‘‘मां, आप ने ही उसे मेरे घर का पता दिया होगा,’’ मानसी बोली.

‘‘हर्ज ही क्या है. बेटी से बाप को मिला दिया.’’

‘‘मां, तुम ने यह क्या किया? मेरी वर्षों की तपस्या भंग कर दी. जिस मनोहर को मैं ने त्याग दिया था उसे फिर से मेरी जिंदगी में ला कर तुम ने मेरे साथ छल किया है,’’ मानसी रोंआसी हो गई.

‘‘मांबाप अपनी औलाद के साथ छल कर ही नहीं सकते. मनोहर ने फोन कर के सब से पहले मुझ से इजाजत ली. उस ने काफी मन्नतें कीं तब मैं ने उसे चांदनी से मिलवाने का वचन दिया. आखिरकार वह इस का पिता है. क्या उसे अपनी बेटी से मिलने का हक नहीं?’’ मानसी की मां ने स्पष्ट किया, ‘‘मनोहर अब पहले जैसा नहीं रहा.’’

‘‘अतीत लौट कर नहीं आता. मैं ने उस के बगैर खुद को तिलतिल कर जलाया. 10 साल कैसे काटे मैं ही जानती हूं. चांदनी और मेरी इज्जत बची रहे उस के लिए कितनी रातें मैं ने असुरक्षा के माहौल में काटीं.’’

‘‘आज भी तुम क्या सुरक्षित हो. खैर, छोड़ो इन बातों को…चांदनी से मिलने आया था, मिला और चला गया,’’ मानसी की मां बोलीं.

‘‘कल फिर आया तो?’’

‘‘तुम क्या उस को मना कर दोगी,’’ तनिक रंज हो कर मानसी की मां बोलीं, ‘‘अगर चांदनी ने जिद की तो? क्या तुम उसे बांध सकोगी?’’

मां के इस कथन पर मानसी गहरे सोच में पड़ गई. सयानी होती बेटी को क्या वह बांध सकेगी? सोचतेसोचते उस के हाथपांव ढीले पड़ गए. लगा जैसे जिस्म का सारा खून निचोड़ दिया गया हो. वह बेजान बिस्तर पर पड़ कर सुबकने लगी. मानसी की मां ने संभाला.

अगले दिन मानसी हरारत के चलते आफिस नहीं गई. चांदनी भी घर पर ही रही. मम्मीपापा के बीच चलने वाले द्वंद्व को ले कर वह पसोपेश में थी. आखिर सब के पापा अपने बच्चों के साथ रहते हैं फिर उस के पास रहने में मम्मी को क्या दिक्कत हो रही है? यह सवाल बारबार उस के जेहन में कौंधता रहा. मानसी ने सफाई में जो कुछ कहा उस से चांदनी संतुष्ट न थी.

एक रोज स्कूल से चांदनी घर आई तो रोने लगी. मानसी ने पूछा तो सिसकते हुए बोली, ‘‘कंचन कह रही थी कि उस की मां तलाकशुदा है. तलाकशुदा औरतें अच्छी नहीं होतीं.’’

मानसी का जी धक से रह गया. परिस्थितियों से हार न मानने वाली मानसी के लिए बच्चों के बीच होने वाली सामाजिक निंदा को बरदाश्त कर पाना असह्य था. इनसान यहीं हारता है. उत्तेजित होने की जगह मानसी ने प्यार से चांदनी के सिर पर हाथ फेरा और बोली, ‘‘तुझे क्या लगता है कि तेरी मां सचमुच गंदी है?’’

‘‘फिर पापा हमारे साथ रहते क्यों नहीं?’’

‘‘तुम्हारे पापा और मेरे बीच अब कोई संबंध नहीं है,’’ मानसी अब कुछ छिपाने की मुद्रा में न थी.

‘‘फिर वह क्यों आए थे?’’

‘‘तुझ से मिलने,’’ मानसी बोली.

ये भी पढ़ें- लड़ाई जारी है: सुकन्या ने कैसे जीता सबका दिल

‘‘वह क्यों नहीं हमारे साथ रहते हैं?’’ किंचित उस के चेहरे से तनाव झलक रहा था.

‘‘नहीं रहेंगे क्योंकि मैं उन से नफरत करती हूं,’’ मानसी का स्वर तेज हो गया.

‘‘मम्मी, क्यों करती हो नफरत? वह तो आप की बहुत तारीफ कर रहे थे.’’

‘‘यह सब तुम्हें भरमाने का तरीका है.’’

‘‘मम्मी, जो भी हो, मुझे पापा चाहिए.’’

‘‘अगर न मिले तो?’’

‘‘मैं ही उन के पास चली जाऊंगी. और अपने साथ तुम्हें भी ले कर जाऊंगी.’’

‘‘मैं न जाऊं तो…’’

‘‘तब मैं यही समझूंगी कि आप सचमुच में गंदी मम्मी हैं.’’

आगे पढ़ें- मानसी यह नहीं समझ पाई कि…

ये भी पढ़ें- सही रास्ते पर: क्यों मुस्कुराई थी लक्ष्मी

अस्तित्व: भाग 2- क्या प्रणव को हुआ गलती का एहसास

लेखक- नीलमणि शर्मा

‘क्या सहन कर रही हो तुम, जरा मैं भी तो सुनूं. ऐसा स्टेटस, ऐसी शान, सोसाइटी में एक पहचान है तुम्हारी…और कौन सी खुशियां चाहिए?’

तनु तंग आ गई इन बातों से. हार कर उस ने कह दिया,  ‘देखो प्रणव, यह रोज की खिचखिच बंद करो. अब इस उम्र में मुझ से और सहन नहीं होता. मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’

‘नहीं सहन होता तो चली जाओ यहां से, जहां अच्छा लगता है वहां चली जाओ. क्यों रह रही हो फिर यहां.’

‘चली जाऊं, छोड़ दूं, उम्र के इस पड़ाव पर, आप को बेशक यह कहते शर्म नहीं आई हो, पर मुझे सुनने में जरूर आई है. इस उम्र में चली जाऊं, शादी के 30 साल तक सब झेलती रही, अब कहते हो चली जाओ. जाना होता तो कब की सबकुछ छोड़ कर चली गई होती.’

तनु तड़प उठी थी. जिंदगी का सुख प्रणव ने केवल भौतिक सुखसुविधा ही जाना था. पूरी जिंदगी अपनेआप को मार कर जीना ही अपनी तकदीर मान जिस के साथ निष्ठा से बिता दी, उसी ने आज कितनी आसानी से उसे घर से चले जाने को कह दिया.

‘हां, आज मुझे यह घर छोड़ ही देना चाहिए. अब तक पूरी जिंदगी प्रणव के हिसाब से ही जी है, यह भी सही.’ सारी रात तनु ने इसी सोच के साथ बिता दी.

शादी के बाद कितने समय तक तो तनु प्रणव का व्यवहार समझ ही नहीं पाई थी. किस बात पर झगड़ा होगा और किस बात पर प्यार बरसाने लगेंगे, कहा नहीं जा सकता. कालिज से आने में देर हो गई तो क्यों हो गई, घरबार की चिंता नहीं है, और अगर जल्दी आ गई तो कालिज टाइम पास का बहाना है, बच्चों को पढ़ाना थोड़े ही है.

दुनिया की नजर में प्रणव से आदर्श पति और कोई हो ही नहीं सकता. मेरी हर सुखसुविधा का खयाल रखना, विदेशों में घुमाना, एक से एक महंगी साडि़यां खरीदवाना, जेवर, गाड़ी, बंगला, क्या नहीं दिया लेकिन वह यह नहीं समझ सके कि सुखसुविधा और खुशी में बहुत फर्क होता है.

ये भी पढ़ें- इतना बहुत है- परिवार का क्या था तोहफा

तनु की विचारशृंखला टूटने का नाम ही नहीं ले रही थी…मैं इन की बिना पसंद के एक रूमाल तक नहीं खरीद सकती, बिना इन की इच्छा के बालकनी में नहीं खड़ी हो सकती, इन की इच्छा के बिना घर में फर्नीचर इधर से उधर एक इंच भी सरका नहीं सकती, नया खरीदना तो दूर की बात… क्योंकि इन की नजर में मुझे इन चीजों की, इन बातों की समझ नहीं है. बस, एक नौकरी ही है, जो मैं ने छोड़ी नहीं. प्रणव ने बहुत कहा कि सोसाइटी में सभी की बीवियां किसी न किसी सोशल काम से जुड़ी रहती हैं. तुम भी कुछ ऐसा ही करो. देखो, निमिषा भी तो यही कर रही है पर तुम्हें क्या पता…पहले हमारे बीच खूब बहस होती थी, पर धीरेधीरे मैं ने ही बहस करना छोड़ दिया.

आज मैं थक गई थी ऐसी जिंदगी से. बच्चों ने तो अपना नीड़ अलग बना लिया, अब क्या इस उम्र में मैं…हां…शायद यही उचित होगा…कम से कम जिंदगी की संध्या मैं बिना किसी मानसिक पीड़ा के बिताना चाहती हूं.

प्रणव तो इतना सबकुछ होने के बाद भी सुबह की उड़ान से अपने काम के सिलसिले में एक सप्ताह के लिए फ्रैंकफर्ट चले गए. उन के जाने के बाद तनु ने रात में सोची गई अपनी विचारधारा पर अमल करना शुरू कर दिया. अभी तो रिटायरमेंट में 5-6 वर्ष बाकी हैं इसलिए अभी क्वार्टर लेना ही ठीक है, आगे की आगे देखी जाएगी.

तनु को क्वार्टर मिले आज कई दिन हो गए, लेकिन प्रणव को वह कैसे बताए, कई दिनों से इसी असमंजस में थी. दिन बीतते जा रहे थे. प्रोफेसर दीप्ति, जो तनु के ही विभाग में है और क्वार्टर भी तनु को उस के साथ वाला ही मिला है, कई बार उस से शिफ्ट करने के बारे में पूछ चुकी थी. तनु थी कि बस, आजकल करती टाल रही थी.

सच तो यह है कि तनु ने उस दिन आहत हो कर क्वार्टर के लिए आवेदन कर दिया था और ले भी लिया, पर इस उम्र में पति से अलग होने की हिम्मत वह जुटा नहीं पा रही थी. यह उस के मध्यवर्गीय संस्कार ही थे जिन का प्रणव ने हमेशा ही मजाक उड़ाया है.

ऐसे ही एक महीना बीत गया. इस बीच कई बार छोटीमोटी बातें हुईं पर तनु ने अब खुद को तटस्थ कर लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि प्रणव के विस्फोट का एक बहाना उस ने स्वयं ही उसे थाली में परोस कर दे दिया है.

कालिज से मिलने वाली तनख्वाह बेशक प्रणव ने कभी उस से नहीं ली और न ही बैंक मेें जमा पैसे का कभी हिसाब मांगा पर तनु अपनी तनख्वाह का चेक हमेशा ही प्रणव के हाथ में रखती रही है. वह भी उसे बिना देखे लौटा देते हैं. इतने वर्षों से यही नियम चला आ रहा है.

ये भी पढ़ें- बीरा- गांव वालों ने क्यों मांगी माफी

तनु ने जब इस महीने भी चेक ला कर प्रणव को दिया तो उस पर एक नजर डाल कर वह पूछ बैठे, ‘‘इस बार चेक में अमाउंट कम क्यों है?’’

पहली बार ऐसा सवाल सुन कर तनु चौंक गई. उस ने सोचा ही नहीं था कि प्रणव चेक को इतने गौर से देखते हैं. अब उसे बताना ही पड़ा,  ‘‘अगले महीने से ठीक हो जाएगा. इस महीने शायद स्टाफ क्वार्टर के कट गए होंगे.’’

अभी उस का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था, ‘‘स्टाफ क्वार्टर के…किस का…तुम्हारा…कब लिया…क्यों लिया… और मुझे बताया भी नहीं?’’

तनु से जवाब देते नहीं बना. बहुत मुश्किल से टूटेफूटे शब्द निकले,  ‘‘एकडेढ़ महीना हो गया…मैं बताना चाह रही थी…लेकिन मौका ही नहीं मिला…वैसे भी अब मैं उसे वापस करने की सोच रही हूं…’’

‘‘एक महीने से तुम्हें मौका नहीं मिला…मैं मर गया था क्या? यों कहो कि तुम बताना नहीं चाहती थीं…और जब लिया है तो वापस करने की क्या जरूरत है…रहो उस में… ’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने रहने के लिए नहीं लिया…’’

‘‘फिर किसलिए लिया है?’’

‘‘उस दिन आप ने ही तो मुझे घर से निकल जाने को कहा था.’’

‘‘तो गईं क्यों नहीं अब तक…मैं पूछता हूं अब तक यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई. समाज क्या कहेगा आप को कि इस उम्र में अपनी पत्नी को निकाल दिया…आप क्या जवाब देंगे…आप की जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा?’’

‘‘मैं समाज से नहीं डरता…किस में हिम्मत है जो मुझ से प्रश्न करेगा और मेरी जरूरतों के लिए तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है…जिस के मुंह पर भी चार पैसे मारूंगा…दौड़ कर मेरा काम करेगा…मेरा खयाल कर के नहीं गई…चार पैसे की नौकरी पर इतराती हो. अरे, मेरे बिना तुम हो क्या…तुम्हें समाज में लोग मिसिज प्रणव राय के नाम से जानते हैं.’’

आगे पढ़ें- तनु इस अपमान को सह नहीं पाई और…

ये भी पढ़ें- गुरु की शिक्षा: क्या थी पद्मा की कहानी

अजंता: भाग 4- आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

ये भी पढ़ें- Holi Special: चोरी का फल- क्या राकेश वक्त रहते समझ पाया?

अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

ये भी पढ़ें- स्वप्न साकार हुआ- क्या हुआ बबली के साथ

उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

ये भी पढ़ें- फिर क्यों- क्या था दीपिका का फैसला

‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि…

Nepotism से लेकर मजेदार किस्सों के बारे में क्या बताते हैं 60s और 70s के सुपरस्टार विश्वजीत चटर्जी, पढ़ें इंटरव्यू

कोविड ने आज सबकी लाइफस्टाइल बदल दी है, कोविड की वजह से किसी का किसी के साथ मिलना, मौज-मस्ती करना, फेस्टिवल का आनंद लेना सब बदल चुका है, आज भी लोग जरुरत के बिना घर से बाहर निकलना पसंद नहीं करते. आसपास के माहौल में काफी डर है. अभी भी कोरोना के मरीज हर कोविड अस्पतालों में है.खुलकर जीने की जो आदत लोगों की विश्व में थी, उसे फिर से वापस पाने में शायद कुछ साल और बीत जायेगे, लेकिन इस कोविड ने फिल्म इंडस्ट्री के वयस्कों के मानसिक और शारीरिक क्षमता को कमजोर किया है, फलस्वरूप इरफ़ान खान, ऋषि कपूर, सौमित्र चटर्जी, दिलीपकुमार, लतामंगेशकर, संध्या मुखर्जी और बप्पी लहड़ी जैसे कई प्रसिद्ध लोग पिछले दो सालों में गुजर चुके है, ऐसे में किसी के भी जीवन गारंटी आज नहीं है, जितना समय मिलता है, उसे अच्छी तरह से बिता लेना ही अच्छा होता है,ऐसा कहते है 60 और 70 के सुपरस्टार, अभिनेता, प्रोड्यूसर, सिंगर विश्वजीत चटर्जी. उनके हिसाब से बचना और जिन्दा रहना ये दो अलग बाते है, जो किसी के हाथ में नहीं है. इसका प्रभाव आज कोविड की वजह से हर किसी के जीवन पर है. हालाँकि वैक्सीन से कुछ राहत मिली है, पर विश्वजीत का परिवार सभी निर्देशों को पालन कर भी कोविड की दूसरी लहर के शिकार हुए और बहुत मुश्किल से ठीक हुए. उनकी पत्नी ईरा चटर्जी बहुत खुश मिजाज स्वभाव की है और विश्वजीत चटर्जीअपने लम्बे जीवन में उनका सौ प्रतिशत हाथ मानते है. मध्यप्रदेश की ईरा चटर्जी को गृहशोभा बहुत पसंद है. विश्वजीत ने खास गृहशोभा के लिए बात की और उन नौस्टाल्जिक पहलूओं को याद किया, आइये जानते है, क्या कहा उन्होंने.

हुई फिल्म इंडस्ट्री की क्षति

बिश्वजीत इस महामारी की वजह से फिल्म इंडस्ट्री पर हुए प्रभाव से दुखी है और कहते है कि इस बीमारी पर अभी तक सही रिसर्च नहीं हो पाया है, इसलिए आगे कुछ भी कह पाना संभव नहीं है.इसे जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करने और विश्व को नाश करने के उद्देश्य से ही तैयार किया गया है. इसलिए इसका इलाज भी उनके पास है, जिन्होंने इसका निर्माण किया है.कोविड की वजह से आज पूरा विश्व एक अलग तरह से जी रहा है. मेरा विश्वास है कि इस समय सभी को साहस के साथ रहना है, ताकि सभी मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रहे, क्योंकि मन से शरीर का सम्बन्ध होता है और मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति शारीरिक रूप से भी कमजोर हो जाता है. डर को अपने पास से हटायें, ताकि आप किसी भी परिस्थिति से उबरने में सक्षम हो.

काम में रही पारदर्शिता

इन दिनों विश्वजीत ऑटोबायोग्राफी लिख रहे है और उन्हें संगीत से लगाव हमेशा रहा है,कोलकाता में उनके बांग्ला गीत आज भी बजते है. वे विवेकानंद के विचार से बहुत प्रभावित है. विश्वजीतअपने जमाने के सुपर स्टार माने जाते रहे और आज भी उनके नाम के आगे कोई सुपर स्टार लगाना नहीं भूलता, लेकिन 60 और 70 के दशक में कलाकारों के काम में पारदर्शिता और काम करने का पैटर्न के बारें में पूछने पर वे हँसते हुए कहते है कि मैंने उस दौर में काम किया जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री, जिसे आज बॉलीवुड भी कहते है,वह ‘गोल्डन पीरियड ऑफ़ फिल्म’ कहा जाता था. ये केवल कहने के लिए नहीं, असल में भी गोल्डन ही था, क्योंकि तब कोशिश ये होती थी कि कलाकार का अभिनय इतनी अच्छी हो कि लोग सालों तक उन्हें याद रखें और यही जुनून मुझमे भी था. पैसे के बारें में तब कोई सोचते नहीं थे या कुछ अच्छा पैसा मिलने पर एक फिल्म छोड़कर दूसरी फिल्म में काम करने लगे,ऐसा भी नहीं था. अच्छा काम और समय से काम करना मुख्य था. उस समय निर्देशक भी वैसे ही हुआ करते थे, जो बड़ी लगन से एक फिल्म को बनाते थे. आज सब कुछ बदल गया है, अब काम के  तरीके भी वैसे नहीं है, इसलिए अगर मुझे काम मिले, तो भी करना मुश्किल होगा, क्योंकि आज इंडस्ट्री में भाई-भतीजावाद, खेमेबाजी आदि कई चीजे घुस चुकी है, जो मेरे समय में ट्रांसपेरेंट था.

ये भी पढ़ें- Kangana Ranaut के शो में Nisha Rawal का खुलासा, पति Karan Mehra के बारे में कही ये बात

दौर भाई-भतीजावाद की

विश्वजीत कहते है किसी का किसी से कोई झगडा या मनमुटाव नहीं था. एक कलाकार दूसरे कलाकार को अपना दोस्त मानते थे और दोस्ती कर अच्छा समय सेट पर बिताते थे. किसी का किसी से इर्ष्या नहीं होती थी, दो एक्टर एक ही ग्रीन रूम में बैठकर मेकअप करवाते थे. दिलीपकुमार, राजकपूर, देवानंद आदि सभी में एक दूसरे के प्रति प्यार था. ये सभी नए कलाकरों को गाइडेंस देते थे. बलराज साहनी, पृत्वीराजकपूर, अशोक कुमार आदि सभी ने मुझे एक्टिंग सिखाया है. ये मेरे बड़े भाई की तरह थे. मेरा नाम कैसे हो, इसके लिए बड़े एक्टर्स कोशिश करते थे, जबकि आज ऐसा नहीं है, एक बड़े स्टार को कैसे नीचे गिराना है, उसके बारें में आज के कलाकार सोचते है. मेरा दौर अब फिर से लौटकर नहीं आ सकता. इसके अलावा एक व्यक्ति जो उभर कर आगे आ रहा है, उसकी जिंदगी भी खत्म कर देते है. इस इंडस्ट्री से मुझे दुःख होता है.

हावी स्टार पॉवर

दुखी स्वर में विश्वजीत कहते है कि आज फिल्मकार फिल्म अपने हिसाब से नहीं बना सकते, स्टार पॉवर आज अधिक चलता है. मेरे समय में कोस्टार का चुनाव भी निर्देशक करते थे, जिसमें कभी आशा पारेख, माला सिन्हा या वहीदा रहमान होती थी.  डायरेक्टर , कैप्टेन ऑफ़ द शिप होते थे, उन्हें फिल्म कैसे बनानी है, उनका ही विजन होता था. आज तो हीरों डिक्टेट करते है, उनके हिसाब से ऐक्ट्रेस चुनी जाती है. यहाँ तक की कई बार एक्टर ही प्ले बैक सिंगर तय करते है. मैं तो इंडस्ट्री की हर बात को देख रहा हूँ, कि फिल्म इंडस्ट्री का हाल कैसा हो रहा है. ये हाल तबसे शुरू हुई है जब से कॉर्पोरेट हाउस इसमें घुसी है. इंडस्ट्री का हाल बुरा हो रहा है, वे व्यवसाई दिमाग से है, क्रिएटिविटी का उनपर कोई असर नहीं, वे ही एक्टर और एक्ट्रेस का निर्णय लेते है, ताकि उन्हें अच्छा पैसा मिल जाए, यही वजह है कि आज बड़े-बड़े अच्छे निर्देशक, कैमरामैन, कलाकार, सिंगर्स आदि सब घर पर बैठे है.

है कॉर्पोरेट का जमाना

विश्वजीत मानते है कि अभी कॉर्पोरेट का ही बोलबाला है और वे अपनी शर्तों पर फिल्में बनाते है. प्रोडक्शन का एक स्पॉट बॉय अगर किसी कॉर्पोरेट में जाकर किसी बड़े हीरो को लाने की बात कहता है, तो तुरंत कॉर्पोरेट हाउस उसे निर्देशक बना देता है, क्योंकि वह उस स्टार का चमचा है. जबकि उसे फिल्म मेकिंग की जानकारी नहीं है. फिल्म भी वैसी ही बनती है, स्टार के नाम से कॉर्पोरेट वाले पैसे कमा लेते है, लेकिन फिल्म दर्शकों के मन पर छाप नहीं डाल पाती. फिल्म के गाने तब तक हिट रहते है, जबतक फिल्म थिएटर में रहती है.मेरे समय के गाने आज भी लोग सुनते है, यूथ को भी वही गाने पसंद है. मेरे कई गानों को रिमिक्स भी किया गया है.

भावना परिवारवाद की

विश्वजीत आगे कहते है कि मैं जब फिल्मों में काम करता था, तब पूरी यूनिट एक परिवार की तरह हुआ करता था. मैं किसी भी एक्ट्रेस से बहुत जल्दी फ्रेंडली हुआ करता था, क्योंकि फ्रेंडली होने से क्रिएटिव काम अच्छा होता था. आज भी मेरी उन एक्ट्रेसेस के साथ अच्छे व्यवहार है. देश और विदेश में मेरे किसी भी शो में आशा पारेख और वहीदा रहमान जाती है.

आसान नहीं था मुंबई आना

कोलकाता से मुंबई आने की वजह के बारें में पूछने परविश्वजीतकहते है कि कोलकाता में मैं अमेचर थिएटर में कभी – कभी एक्टिंग कर लिया करता था. इससे पहले स्कूल में भी एक्टिंग किया है. इसके अलावा मेरी माँ की लेडिस क्लब में माँ ने चित्रांगदा, नटी विनोदिनी आदि कई डांस ड्रामा किया था और वह मुझे वहां ले जाती थी, वही से मुझे अभिनय की प्रेरणा जगी, लेकिन 13 साल की उम्र में मैंने माँ को खो दिया. मेरे पिता आर्मी के डॉक्टर थे,लेकिन बहुत कंजरवेटिव स्वभाव के थे. उन्हें एक्टिंग और गाना कुछ भी पसंद नहीं था. लेकिन मैंने अपनी पढाई पूरी कर थिएटर ज्वाइन किया, वहां धीरे-धीरे मैं जूनियर आर्टिस्ट से बड़ा एक्टर बन गया.कई बांग्ला फिल्म में मुझे हीरो की भूमिका मिली और सभी फिल्में हिट हुई, जिसमें माया मृग, दुई भाई आदि कई फिल्में थी. फिल्मों में काम करते हुए भी मैंने स्टेज का काम नहीं छोड़ा, मैं एक बांग्ला नाटक ‘साहब बीबी और गुलाम’ में हीरो की भूमिका कर रहा था. शो फुल हाउस चल रहा था,तब सिंगर हेमंत मुखर्जी ने मुझे स्टेज छोड़कर उनके साथ मुंबई आने को कहा , क्योंकि वह फिल्म ‘’20 साल बाद’बनाने वाले है. मैं उनके साथ मुंबई आया और बीस साल बाद फिल्म में एक्टिंग की, फिल्म सुपर हिट रही. इसके बाद मुझे सस्पेंस वाली फिल्में ही मिलने लगी जैसे कोहरा, बिन बादल बरसात, ये रात फिर न आएगी, जाल आदि सभी फिल्मों में सस्पेंस ही रहा, लेकिन मैंने अपना स्टाइल बदला और मेरे सनम , अप्रैल फूल, फेसबुक आदि मनोरंजक फिल्में की, इसके बाद कुछ घरेलू फिल्में आसरा, पैसा या प्यार, नई रौशनी, दो कलियाँ जैसे हर तरह की फिल्मों में अभिनय किये है.

ये भी पढे़ं- Anushka Sharma की तरह Kajal Aggarwal ने किया प्रैग्नेंसी वर्कआउट, वीडियो वायरल

कुछ नौस्टाल्जिक बातें

दिलीप कुमार के साथ मैंने ‘फिर कब मिलोगी’ फिल्म में काम किया जिसके निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी थे. बहुत अच्छा अनुभव रहा. उन्हें मैं युसूफ भाई कहता था, वे बहुत ही अच्छे और सधे हुए कलाकार थे. वे हमारे बीच नहीं है, पर उन्हें मैं अमर मानता हूँ. मैं इंडस्ट्री में अशोक कुमार और दिलीप कुमार बनने की इच्छा से ही आया था. मैंने हर तरह के निर्देशकों के साथ अच्छा काम किया है, जैसे ऋषिकेश मुखर्जी, किशोर कुमार, मनमोहन देसाई, अनिल गांगुली ये सभी बहुत ही अच्छे निर्देशक रहे और उनके साथ काम करने में मजा भी खूब आया.

कुछ मजेदार बातें

  • विश्वजीत हँसते हुए कहते है कि अभिनेता महमूद, पंचम यानि राहुलदेव बर्मन और मैं बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे, उस समय में हीरो बन गया था. पंचम को ‘भूत’ फिल्म में लिया गया. महमूद हमेशा सबको खूब हंसाते थे. महमूद बांग्ला फिल्म ‘पाशेर बाड़ी’ का राईट लेकर आया और पड़ोसन फिल्म हिंदी में बनाई, लेकिन इसमें किशोर कुमार की भूमिका केवल वे ही कर सकते है, कोई दूसरा उसमें काम नहीं कर सकता, ऐसा सोचकर वे उनके पीछे पड़गए, फिल्म के लिए सुनील दत्त और शायरा बानू दोनों ने साईन कर दिया था पर किशोर कुमार उन्हें समय नहीं दे रहे थे. महमूद बहुत परेशान था और रोज मेरे सामने आकर रोता था, आखिर किशोर कुमार ने साईन की, फिल्म बनी और जबरदस्त हिट भी रही.
  • एक बार कश्मीर में दो से तीन यूनिट गए थे उसमें शशि कपूर और माला सिन्हा ‘जब जब फूल खिले’ फिल्म के लिए, मैं और आशा पारेख फिल्म ‘मेरे सनम ‘ के लिए शूट कर रहे थे, रात को मिलकर सभी गपशप करते थे, एक दिन एक कॉल आया कि मुझसे कोई मिलना चाहता है, मैं गया और बुर्का डाले एक लेडी आशापारेख के साथ बैठी थी,आशा पारेख ने मेरा परिचय करवाया, मैं सोफे पर बैठा था, वह महिला भी सोफे पर बैठ गयी, लेकिन वह महिला धीरे-धीरे खिसक कर मेरे पास आने लगी, मैं थोडा एलर्ट हो गया कि ये लेडी मेरे पास क्यों आ रही है? फिर वह मेरे गोद में बैठ गयी, मैं कूदकर गिरते हुए खड़ा हुआ और देखा कि वह शशि कपूर है. असल में आशा पारेख और शशि कपूर ने मिलकर मुझे बुद्धू बनाने का प्लान बनाया था.

बिछड़े कई लेजेंड्री

विश्वजीत ने तक़रीबन हर एक्ट्रेस के साथ काम किया है. उनका कहना है कि एक एक्टर हूँ इसलिए राजा हो या रंक किसी भी भूमिका से परहेज नहीं किया. मेरी एक बेटी राइमा चटर्जी है, वह डांसर और एक एक्ट्रेस है.कोरोना के कम होने की वजह से फिल्में अच्छी तरह से अब रिलीज हो रही है, कितने आर्टिस्ट आज नहीं है. सब ठीक होने के बाद भी बहुत सारे लोग गुजर चुके है और ये इंडस्ट्री के लिए गहरा धक्का है. पहले मेरी मैच्युरिटी नहीं थी और उस समय के काम को आज देखने पर लगता है कि मैं इसे और अधिक अच्छा कर सकता था. बांग्ला अभिनेता उत्तम कुमार काफी प्रसिद्ध इंसान थे, 4 से 5 फिल्में मैंने उनके साथ की है. वे हमेशा चुपरहकर अपना काम करते थे. हिंदी फिल्मों में अभी शाहरुख़ खान, नसीरुद्दीन शाह बहुत अच्छा काम करते है. सौमित्र चटर्जी जो बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री के एक महान कलाकार थे. मैं जब आकाशवाणी में प्ले करता था. तब वे एनाउंस किया करते थे, इससे मेरी दोस्ती उनसे हो गयी थी. उन्हें भारत रत्न निर्माता निर्देशक सत्यजीत रॉय ने फिल्म ‘अपूर संसार’के लिए साइन किया. बांग्ला फिल्म मोनिहार में मैंने उनके साथ काम किया. फिल्म प्लेटिनम जुबली हुई थी. सौमित्र कभी भी हिंदी फिल्मों में नहीं आना चाहते थे. वे सत्यजीत रॉय के फेवोरिट एक्टर थे. उनके गुजरने से बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री को बहुत आघात पहुंचा है, क्योंकि उन्होंने अंतिम दिनों तक काम किया है.

अंत में विश्वजीत चटर्जी का यूथ से कहना है कि जीवन में आये किसी भी चीज से खुश होना सीखे, क्योंकि सबको मौका अवश्य मिलता है. केवल धैर्य ही उन्हें मंजिल तक पहुंचा सकती है.

ये भी पढ़ें- किंजल होगी प्रैग्नेंट, क्या अधूरा रह जाएगा अनुज-अनुपमा का सपना!

सोशल मीडिया पर एक्स हसबैंड से भिड़ीं Rakhi Sawant, जानें क्या कहा

हमेशा सुर्खियों में रहने वाली एक्ट्रेस राखी सावंत  (Rakhi Sawant) पिछले दिनों अपने तलाक को लेकर काफी चर्चा में रही हैं. वहीं एक बार फिर उनकी शादी यानी एक्स हसबैंड से हुई ल़ड़ाई फैंस के सामने आ गई है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

लड़ाई में आमने-सामने आए रितेश-राखी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ritesh Singh (@ritesh.rakhisawant)

दरअसल, रितेश ने राखी सावंत की एक फोटो के साथ एक यू-ट्यूब का लिंक शेयर किया है, जिसमें राखी सावंत अपने एक्स हसबैंड को ‘बुड़बक’ कहती नजर आ रही हैं. वहीं इसी के चलते वीडियो को शेयर करते हुए रितेश सिंह ने कैप्शन में लिखा, ‘राखी जी एक सिंपल सजेशन है. प्लीज आप विश करो कि किसी गेम शो में आप मेरे सामने न आओ. वरना आपकी ऐसी बैंड बजेगी की आप दोबारा किसी शो में नहीं जाओगी. आपको बिग बॉस 15 का एक वाइल्ड कार्ड का क्या हाल किया था याद होगा. सो जस्ट चिल.’ हालांकि राखी सावंत ने भी करारा जवाब देते हुए रितेश को उनकी फोटो और ड्रामा बंद करने की सलाह दी है. वहीं फैंस के इस पोस्ट पर मजेदार रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Kangana Ranaut के शो में Nisha Rawal का खुलासा, पति Karan Mehra के बारे में कही ये बात

ये था मामला

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ritesh Singh (@ritesh.rakhisawant)

वीडियो की बात करें तो हाल ही में राखी सावंत से कंगना रनौत के रियलिटी शो लॉकअप में उनके पति की एंट्री को लेकर सवाल पूछा गया था, जिस पर उन्होंने कहा था कि, ‘वो कहता है कि मैं अपना बिजनेस छोड़कर नहीं जाऊंगा. बिग बॉस 15 में जाकर एक बार पछताया हूं. उन्होंने उसे इतना बड़ा ऑफर दिया मेरी बैंड बजाने के लिए. अरे मेरा एक्स हसबैंड हो या टैक्स हसबैंड या कोई प्रसेंट हसबैंड. मेरी बैंड कोई नहीं बजा सकता. मैं अपनी बैंड खुद ही बजा सकती हूं.’

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ritesh Singh (@ritesh.rakhisawant)

बता दें कि बिग बॉस 15 में राखी सावंत और रितेश ने कपल के तौर पर एंट्री की थी, जिसमें दोनों का प्यार और लड़ाई साफ देखने को मिली थी. वहीं शो से निकलने के बाद भी फैंस के सामने उन्होंने प्यार दिखाया था. लेकिन कुछ ही दिनों में दोनों ने तलाक लेने का फैसला किया, जिसे जानकर लोग हैरान रह गए.

ये भी पढ़ें- Anushka Sharma की तरह Kajal Aggarwal ने किया प्रैग्नेंसी वर्कआउट, वीडियो वायरल

भोर की एक नई किरण: क्यों भटक गई थी स्वाति

family story in hindi

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें