समझौता: क्या राजीव और उसकी पत्नी का सही था समझौता

वेल्लूर से कोलकाता वापस आ कर राजीव सीधे घर न जा कर एअरपोर्ट से आफिस आ गया था. उसे बौस का आदेश था कि कर्मचारियों की सारी पेमेंट आज ही करनी है.

पिछले कई दिनों से उस के आफिस में काफी गड़बड़ी चल रही थी. अपने बौस अमन की गैरमौजूदगी में सारा प्रबंध राजीव ही देखता था. कर्मचारियों को भुगतान पूरा करने के बाद राजीव ने तसल्ली से कई दिनों की पड़ी डाक छांटी. फिर थोड़ा आराम करने की मुद्रा में वह आरामकुरसी पर निढाल सा लेट गया. राजीव ने आंखें बंद कीं तो पिछले दिनों की तमाम घटनाएं एक के बाद एक उसे याद आने लगीं. उसे काफी सुकून मिला.

वैशाली को अचानक आए स्ट्रोक के कारण उसे आननफानन में बेलूर ले जाना पड़ा था. कई तरह के टैस्ट, बड़ेबड़े और विशेषज्ञ डाक्टरों ने आपस में सलाह कर कई हफ्तों की जद्दोजहद के बाद यह नतीजा निकाला कि अब वैशाली अपने पैरों पर कभी खड़ी नहीं हो सकती क्योंकि उस के शरीर का निचला हिस्सा हमेशा के लिए स्पंदनहीन हो चुका है. वह व्हील चेयर की मोहताज हो गई थी. पत्नी की ऐसी हालत देख कर राजीव का दिल हाहाकार कर उठा, क्योंकि अब उस का वैवाहिक जीवन अंधकारमय हो गया था.

एक तरफ वैशाली असहाय सी अस्पताल में डाक्टरों और नर्सों की निगरानी में थी दूसरी तरफ राजीव को अपनी कोई सुधबुध न थी. कभी खाता, कभी नहीं खाता.

एक झटके में उस की पूरी दुनिया उजड़ गई थी. उस की वैशाली…इस के आगे उस का संज्ञाशून्य दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा था.

मोबाइल बजने से उस की सोच को दिशा मिली.

लंदन से बौस अमन का फोन था. वैशाली के बारे में पूछ रहे थे कि वह कैसी है?

‘‘डा. सुरजीत से बात हुई? वह तो बे्रन स्पेशलिस्ट हैं,’’ अमन बोले.

‘‘हां, उन को भी सारी रिपोर्ट दिखाई थी. मैं ने अभी डा. अभिजीत से भी बात की है. उन्होंने भी सारी रिपोर्ट देख कर कहा कि ट्रीटमेंट तो ठीक ही चल रहा है. पार्किन्सन का भी कुछ सिम्टम दिखाई दे रहा है.’’

‘‘जीतेजी इनसान को मारा तो नहीं जा सकता. जब तक सांस है तब तक आस है.’’

‘‘जी सर.’’

अपने बौस अमन से बात करने के बाद राजीव का मन और भी खट्टा हो गया. घर लौट कर कपड़े भी नहीं बदले, अपने बेडरूम में आ कर लेट गया. मां ने खाने के लिए पूछा तो मना कर दिया. बाबूजी नन्ही श्रेया को सुला रहे थे. आ कर पूछा, ‘‘बेटा, अब कैसी है, वैशाली? कुछ उम्मीद…’’

राजीव ने ना की मुद्रा में गरदन हिला दी तो बाबूजी गमगीन से वापस चले गए.

राजीव के मानसपटल पर वैशाली के साथ की कई मधुर यादें चलचित्र की तरह चलने लगीं.

उस दिन एम.बी.ए. का सेमिनार था. राजीव को घर से निकलने में ही थोड़ी देर हो गई थी. इसलिए वह सेमिनार हाल में पहुंचने के लिए जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ रहा था. इतने में ऊपर से आती जिस लड़की से टकराया तो अपने को संभाल नहीं सका और जनाब चारों खाने चित.

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लड़की ने रेलिंग पकड़ ली थी इसलिए गिरने से बच गई पर राजीव लुढ़कता चला गया. वह तो श्ुक्र था कि अभी 5-6 सीढि़यां ही वह चढ़ा था इसलिए उसे ज्यादा चोट नहीं आई.

लड़की ने उस के सारे बिखरे पेपर समेट कर उसे दिए तो राजीव अपलक सा उस वीनस की मूर्ति को देखता ही रह गया. उस का ध्यान तब टूटा जब लड़की ने उसे सहारा दे कर उठाना चाहा. औपचारिकता में धन्यवाद दे कर राजीव सेमिनार हाल की ओर चल दिया.

सेमिनार के दौरान दोनों नायक- नायिका बन गए.

सेमिनार के बाद राजीव उस लड़की से मिला तो पता चला कि जिस मूर्ति से वह टकराया था उस का नाम वैशाली है.

राजीव का फाइनल ईयर था तो वैशाली भी 2-4 महीने ही उस से पीछे थी. एक ही पढ़ाई, एक जैसी सोच, रोजरोज का मिलना, एकसाथ बैठ कर चायनाश्ता करते. दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. कसमें, वादे, एकसाथ खाना, एक ही कुल्हड़ में चाय पीना. प्रोफेसरों की नकलें उतारना, बरसात में भीग कर भुट्टे खाना उन की दिनचर्या बन गई.

एक बार पुचके (गोलगप्पे) खाते वक्त वैशाली की नाक बहने लगी तो राजीव बहुत हंसा…तब वैशाली बोली, ‘खुद तो मिर्ची खाते नहीं…कोई दूसरा खाता है तो तुम्हारे पेट में जलन क्यों होती है?’

‘अरे, अपनी शक्ल तो देखो. ज्यादा तीखी मिर्ची की वजह से तुम्हारी नाक बह रही है?’

‘तो पोंछ दो न,’ वैशाली ठुनक कर बोली.

और अपना रुमाल ले कर सचमुच राजीव ने वैशाली की नाक साफ कर दी.

पढ़ाई खत्म होते ही राजीव ने तपसिया के लेदर की निजी कंपनी में सहायक के रूप में कार्यभार संभाल लिया और वैशाली को भी एक प्राइवेट फर्म में सलाहकार के पद पर नियुक्ति मिल गई.

सुंदर, तीखे नैननक्श की रूपसी वैशाली पर सारा स्टाफ फिदा था पर वह दुलहन बनी राजीव की.

मधुमास कब दिनों और महीनों में गुजर गया, पता ही नहीं चला.

वैशाली अपने काम के प्रति बहुत संजीदा थी. उस की कार्यकुशलता को देखते हुए उस की कंपनी ने उसे प्रमोशन दिया. गाड़ी, फ्लैट सब कंपनी की ओर से मिल गया.

इधर राजीव का भी प्रमोशन हुआ. उसे भी तपसिया में ही फ्लैट और गाड़ी दी गई. अब दिक्कत यह थी कि वैशाली का डलहौजी ट्रांसफर हो गया था.

सुबह की चाय पीते समय वैशाली बुझीबुझी सी थी. प्रमोशन की कोई खुशी नहीं थी. उस ने राजीव से पूछा, ‘राजीव, हम डलहौजी कब शिफ्ट होंगे?’

‘हम?’

‘हम दोनों अलग कैसे रहेंगे?’

‘नौकरी करनी है तो रहना ही पड़ेगा,’ राजीव बोला.

‘राजीव, यह मेरे कैरियर का सवाल है.’

‘वह तो ठीक है,’ राजीव बोला, ‘पर वहां के सीनियर स्टाफ के साथ तुम कैसे मिक्स हो पाओगी?’

‘मजबूरी है…और कोई चारा भी तो नहीं है.’

राजीव चाय पीतेपीते कुछ सोचने लगा, फिर बोला, ‘तपसिया से डलहौजी बहुत दूर है. दोनों का सारा समय तो आनेजाने में ही व्यतीत हो जाएगा. मुझे एक आइडिया आया है. बोलो, मंजूर है?’

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‘जरा बताओ तो सही,’ बड़ीबड़ी आंखें उठा कर, वैशाली बोली.

‘देखो, तुम्हारे प्रजेंटेशन से मेरे बौस बहुत प्रभावित हैं, वह तो मुझे कितनी बार अपनी फर्म में तुम्हें ज्वाइन कराने के लिए कह चुके हैं. पर अचानक तुम्हारा प्रमोशन होने से बात दब गई.’

‘जरा सोचो…अगर तुम हमारी फर्म को ज्वाइन कर लेती हो तो कितना अच्छा होगा. तुम्हारा सीनियर स्टाफ का जो फोबिया है उस से भी तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी.’

वैशाली कुछ सोचने लगी तो राजीव फिर बोला, ‘इसी बहाने हम पतिपत्नी एकसाथ कुछ एक पल बिता सकेंगे और तुम्हारा कैरियर भी हैंपर नहीं होगा. अब सोचो मत…कुछ भी हो, कोई भी कारण दिखा कर वहां की नौकरी से त्यागपत्र दे दो.’

वैशाली ने तपसिया में मार्केटिंग मैनेजर का पद संभाल लिया. बौस निश्ंिचत हो कर महीनों विदेश में रहते. अब तो दोनों फर्म के सर्वेसर्वा से हो गए. 6 महीने में ही लेदर मार्केट में अमन अंसारी की कंपनी का नाम नया नहीं रह गया. उन के बनाए लेदर के बैग, बेल्ट, पर्स आदि की मार्केटिंग का सारा काम वैशाली देखती तो सेलपरचेज का काम राजीव.

देखतेदेखते अब कंपनी काफी मुनाफे में चल रही थी और सबकुछ अच्छा चल रहा था. दोनों की जिंदगी में कोई तमन्ना बाकी नहीं रह गई थी. 2 साल यों ही बीत गए. सुख के बाद दुख तो आता ही है.

वैशाली को मार्केटिंग मैनेजर होने की वजह से कभी मुंबई, दिल्ली, जयपुर तो कभी विदेश का भी टूर लगाना पड़ता था. 2-3 बार तो राजीव व वैशाली यूरोप के टूर पर साथसाथ गए. फिर जरूरत के हिसाब से जाने लगे.

इसी बीच कंपनी के मालिक अमन अंसारी लंदन का सारा काम कोलकाता शिफ्ट कर के तपसिया के गेस्ट हाउस में रहने लगे. पता नहीं कब, कैसे वैशाली राजीव से कटीकटी सी रहने लगी.

कई बार वैशाली को बौस के साथ काम की वजह से बाहर जाना पड़ता. राजीव छोटी सोच का नहीं था पर धीरेधीरे दबे पांव बौस के साथ बढ़ती नजदीकियां और अपने प्रति बढ़ती दूरियां देख हकीकत को वह नजरअंदाज भी नहीं कर सकता था.

उस दिन शाम को वैशाली को बैग तैयार करते देख राजीव ने पूछा, ‘कहां जा रही हो?’

‘प्रजेंटेशन के लिए दिल्ली जाना है.’

‘लेकिन 2-3 दिन से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम्हें तो छुट्टी ले कर डाक्टर स्नेहा को दिखाने की बात…’

बात को बीच में ही काट कर वैशाली उखड़ कर बोली, ‘तबीयत का क्या, मामूली हरारत है. काम ज्यादा जरूरी है, रुपए से ज्यादा हमारी फर्म की प्रतिष्ठा की बात है. वर्षों से मिलता आया टेंडर अगर हमारी प्रतिद्वंद्वी फर्म को मिल गया तो हमारी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. मैं नहीं चाहती कि मेरी जरा सी लापरवाही से अमनजी को तकलीफ पहुंचे.’

दिल्ली से आने के बाद वैशाली काफी चुपचुप रहती. उस के व्यवहार में आए इस बदलाव को राजीव ने बहुत करीब से महसूस किया.

इसी बीच वैशाली की वर्षों की मां बनने की साध भी पूरी हुई. बड़ी प्यारी सी बच्ची को उस ने जन्म दिया. श्रेया अभी 2 महीने की हुई भी तो उसे सास के सहारे छोड़ वैशाली ने फिर से आफिस ज्वाइन किया.

‘वैशाली, अभी श्रेया छोटी है. उसे तुम्हारी जरूरत है,’ राजीव के यह कहने पर वैशाली तपाक से बोली, ‘आफिस को भी तो मेरी जरूरत है.’

देर से आना, सुबह जल्दी निकल जाना, काम के बोझ से वैशाली के स्वभाव में काफी चिड़चिड़ापन आ गया था लेकिन उस की सुंदरता, बरकरार थी. एक दिन आधी रात को ‘यह गलत है… यह गलत है’ कह कर वैशाली चीख उठी. वह पूरी पसीने में नहाई हुई थी. मुंह से अजीब सी आवाजें निकल रही थीं. जोरजोर से छाती को पकड़ कर हांफ रही थी.

राजीव घबरा गया, ‘क्या हुआ, वैशाली? ऐसे क्यों कर रही हो? क्या गलत है? बताओ मुझे.’

वैशाली उस की बांहों में बेहोश पड़ी थी. उस की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ? उसे फौरन अस्पताल में भर्ती किया गया. डाक्टरों ने बताया कि इन का बे्रन का सेरेब्रल अटैक था, जिसे दूसरे शब्दों में बे्रन हेमरेज का स्ट्रोक भी कह सकते हैं. कई दिनों तक वह आई.सी.यू. में भरती रही. अमन ने पानी की तरह रुपए खर्च किए. डाक्टरों की लाइन लगा दी. वैशाली के शरीर का दायां हिस्सा, जो अटैक से बेकार हो गया था, धीरेधीरे विशेषज्ञ डाक्टरों व फिजियोथैरेपिस्ट की देखरेख में ठीक होने लगा था.

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‘अरे, आज तो तुम ने श्रेया को भी गोद में उठा लिया?’ राजीव बोला तो ‘हां,’ कह कर वैशाली नजरें चुराने लगी. यानी कोई फांस थी जिसे वह निकाल नहीं पा रही थी.

राजीव वैशाली से बहुत प्यार करता था. उस की ऐसी हालत देख कर उस का दिल खून के आंसू रो पड़ता.

वेल्लूर ले जा कर महीनों इलाज चला. डाक्टरों की फीस, इलाज आदि सभी खर्चों में बौस ने कोई कमी नहीं रखी. राजीव का आत्मसम्मान आहत तो होता था, पर वैशाली को बिना इलाज के यों ही तो नहीं छोड़ सकता था.

कितनी बार सोचा कि अब यह नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी कर लूंगा, लेकिन लेदर उद्योग में अमन अंसारी का इतना दबदबा था कि उन के मुलाजिम को उन की मरजी के खिलाफ कोई अपनी फर्म में रख कर उन से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था. इसलिए भी राजीव के हाथ बंधे थे, आंखों से सबकुछ देखते हुए भी वह खामोश था.

श्रेया अपनी दादी के पास ज्यादा रहती थी इसलिए वह उन्हें ही मां कहती.

दवा और परहेज से वैशाली अब सामान्य जीवन जीने लगी. उस के ठीक होने पर बौस ने पार्टी दी. इसे न चाहते हुए भी राजीव ने बौस का एक और एहसान मान लिया. अपने कुलीग के तीखे व्यंग्य सुन कर उस के बदन पर सैकड़ों चींटियां सी रेंग गई थीं.

उस पार्टी में वैशाली ने गुलाबी शिफौन की साड़ी पहनी थी जिस पर सिल्वर कलर के बेलबूटे जड़े थे. उस पर गले में हीरों का जगमगाता नेकलेस उस के रूप में और भी चार चांद लगा रहा था. सब मंत्रमुग्ध आंखों से वैशाली के रूपराशि और यौवन से भरे शरीर को देख रहे थे और दबेदबे स्वर में खिल्ली भी उड़ा रहे थे कि क्या नसीब वाला है मैनेजर बाबू. इन के तो दोनों हाथों में लड्डू हैं.

शर्म से गड़ा राजीव अमन अंसारी के बगल में खड़ी अपनी पत्नी को अपलक देख रहा था.

‘अब तुम घर पर रहो. तुम्हें काम करने की कोई जरूरत नहीं है. श्रेया को संभालो. मांबाबा अब उसे नहीं संभाल सकते. अब वह बहुत चंचल हो गई है.’

वैशाली बिना नानुकूर किए राजीव की बात मान गई तो सोचा, बौस से बात करूंगा.

एक दिन अमनजी ने पूछ लिया, ‘अरे, राजीव. मेरी मार्केटिंग मैनेजर को कब तक तुम घर में बैठा कर रखोगे?’

‘सर, मैं नहीं चाहता कि अब वैशाली नौकरी करे. उस का घर पर रह कर श्रेया को संभालना बहुत जरूरी हो गया है. यहां मैं सब संभाल लूंगा.’

‘अरे, ऐसे कैसे हो सकता है?’ अमन थोड़े घबरा गए. फिर संभल कर बोले, ‘राजीव, मैं ने तो तुम्हारे लिए मुंबई वाला प्रोजेक्ट तैयार किया है. इस बार सोचा कि तुम्हें भेजूंगा.’

‘पर सर, वैशाली व श्रेया को ऐसी हालत में मेरी ज्यादा जरूरत है,’ वह धीरे से बोला, ‘नहीं, सर, मैं नहीं जा सकूंगा.’

‘देख लो, मैं तुम्हारे घर की परिस्थितियों से अवगत हूं. सब समझता हूं और मुझे बहुत दुख है. मुझ से जो भी होगा मैं तुम्हारे परिवार के लिए करूंगा. यार, मैं ही चला जाता पर मेरे मातापिता हज करने जा रहे हैं. इसलिए मेरा उन के पास होना बहुत जरूरी है.’

अब नौकरी का सवाल था…मना नहीं कर सकता था.

2 दिन बाद बाबा का फोन आया कि वैशाली आफिस जाने लगी है, देर रात भी लौटी. राजीव ने बात करनी चाही तो अपना मोबाइल नहीं उठाया. दोबारा किया तो स्विच औफ मिला.

लौट कर राजीव ने पूछा, ‘वैशाली, मैं ने तुम्हें काम पर जाने के लिए मना किया था न?’

‘मेरा घर बैठे मन नहीं लग रहा था,’ वैशाली का संक्षिप्त सा उत्तर था.

राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि अमन अंसारी के चंगुल से कैसे वह वैशाली को छुड़ाए. आज वह मान रहा था कि पत्नी को अपनी फर्म में रखवाना उस की बहुत बड़ी भूल थी जिस का खमियाजा आज वह भुगत रहा है.

उसे यह सोच कर बहुत अजीब लगता कि साल्टलेक के अपने आलीशान बंगले को छोड़ कर अमनजी जबतब गेस्ट हाउस में कैसे पड़े रहते हैं? सुना था कि उन की बीवी उन्हें 2 महीने में ही तलाक दे कर अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई थी. कारण जो भी रहा हो, यह बात तो साफ थी कि अमन एक दिलफेंक तबीयत का आदमी है.

वैशाली का जो व्यवहार था वह दिन पर दिन अजीब सा होता जा रहा था. कभी वह रोती तो कभी पागलों की तरह हंसती. उस की ऐसी हालत देख कर राजीव उसे समझाता, ‘वैशाली, तुम कुछ मत सोचो, तुम्हारे सारे गुनाह माफ हैं, पर प्लीज, दिल पर बोझ मत लो.’

तब वह राजीव के सीने से लग कर सिसक पड़ती. जैसे लगता कि वह आत्मग्लानि की आग में जल रही हो?

राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि वह पत्नी को कैसे समझाए कि वह जिस हालात की मारी है वह गुनाह किसी और ने किया और सजा उसे मिली.

अपने ही खयालों में उलझा राजीव हड़बड़ा कर उठ बैठा, उस के मोबाइल पर घर का नंबर आ रहा था. उस ने फोन उठाया तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, वैशाली बाथरूम में गिर गई है.’’

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अस्पताल में भरती किया तो पता चला कि फिर मेजर स्ट्रोक आया था. यहां कोलकाता के डाक्टरों ने जवाब दे दिया, तब उसे दोबारा वेल्लूर ले जाना पड़ा. बौस अमन अंसारी भी साथ गए. इस बार भी सारा खर्चा उन्होंने किया. राजीव के पास जितनी जमापूंजी थी वह सब कोलकाता में ही लग चुकी थी. क्या करता? इलाज भी करवाना जरूरी था. वह अपनी आंखों के सामने वैशाली को बिना इलाज के मरते भी तो नहीं देख सकता? बिना पैसे के वह कुछ भी नहीं कर सकता था. न उस के पास सिफारिश है न पैसा. आजकल बातबात पर पैसे की जरूरत पड़ती है.

लाखों रुपए इलाज में लगे. 2 महीने से वैशाली वेल्लूर के आई.सी.यू. में थी जिस का रोज का खर्च हजारों में पड़ता था. डाक्टरों की विजिट फीस, आनेजाने का किराया, कहांकहां तक वह चुकाता? इसलिए पैसे की खातिर राजीव ने अपनी वैशाली के लिए हालात से समझौता कर लिया. उसे इस को स्वीकार करने में कोई हिचक महसूस नहीं होती.

अब तो वैशाली बेड पर पड़ी जिंदा लाश थी, जो बोल नहीं सकती थी, पर उस की आंखें, सब बता गईं जो वह मुंह से न कह सकी. राजीव रो पड़ा था. मन करता था कि जा कर अमन को गोली मार कर जेल चला जाए पर वही मजबूरियां, एक आम आदमी होने की सजा भोग रहा था.

वैशाली के शरीर का निचला हिस्सा निर्जीव हो चुका था लेकिन राजीव ने तो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार किया है…करता है और ताउम्र प्यार करता रहेगा. उस से कैसे नफरत करे?

तन से पहले मन के तार जोड़ें

4 सहेलियां कुछ अरसे बाद मिली थीं. 2 की जल्दी शादी हुई थी तो 2 कुछ बरसों का वैवाहिक जीवन बिता चुकी थीं. ऐसा नहीं कि उन में और किसी विषय पर बात नहीं हुई. बात हुई, लेकिन बहुत जल्द ही वह पहली बार के अनुभव पर आ टिकी.

पहली सहेली ने पूछा, ‘‘तुम फोन पर ट्रेन वाली क्या बात बता रही थी? मेरी समझ में नहीं आई.’’

दूसरी बोली, ‘‘चलो हटो, दोबारा सुनना चाह रही हो.’’

तीसरी ने कहा, ‘‘क्या? कौन सी बात? हमें तो पता ही नहीं है. बता न.’’

दूसरी बोली, ‘‘अरे यार, कुछ नहीं. पहली रात की बात बता रही थी. हनीमून के लिए गोआ जाते वक्त हमारी सुहागरात तो ट्रेन में ही मन गई थी.’’

तीसरी यह सुन कर चौंकी, ‘‘हाउ, रोमांटिक यार. पहली बार दर्द नहीं हुआ?’’

दूसरी ने कहा, ‘‘ऐसा कुछ खास तो नहीं.’’

तीसरी बोली, ‘‘चल झूठी, मेरी तो पहली बार जान ही निकल गई थी. सच में बड़ा दर्द होता है. क्यों, है न? तू क्यों चुप बैठी है? बता न?’’

चौथी सहेली ने कहा, ‘‘हां, वह तो है. दर्द तो सह लो पर आदमी भी तो मनमानी करते हैं. इन्होंने तो पहली रात को चांटा ही मार दिया था.’’

बाकी सभी बोलीं, ‘‘अरेअरे, क्यों?’’

चौथी ने बताया, ‘‘वे अपने मन की नहीं कर पा रहे थे और मुझे बहुत दर्द हो रहा था.’’

पहली बोली, ‘‘ओह नो. सच में दर्द का होना न होना, आदमी पर बहुत डिपैंड करता है. तुम विश्वास नहीं करोगी, हम ने तो शादी के डेढ़ महीने बाद यह सबकुछ किया था.’’

दूसरी और तीसरी बोलीं, ‘‘क्यों झूठ बोल रही हो?’’

पहली सहेली बोली, ‘‘मायके में बड़ी बहनों ने भी सुन कर यही कहा था, उन्होंने यह भी कहा कि लगता है मुझे कोई धैर्यवान मिल गया है, लेकिन मेरे पति ने बताया कि उन्होंने शादी से पहले ही तय कर लिया था कि पहले मन के तार जोडूंगा, फिर तन के.

‘‘मुझे भी आश्चर्य होता था कि ये चुंबन, आलिंगन और प्यार भरी बातें तो करते थे, पर उस से आगे नहीं बढ़ते थे. बीच में एक महीने के लिए मैं मायके आ गई. ससुराल लौटी तो हम मन से काफी करीब आ चुके थे. वैसे भी मैं स्कूली दिनों में खूब खेलतीकूदती थी और साइकिल भी चलाती थी. पति भी धैर्य वाला मिल गया. इसलिए दर्द नहीं हुआ. हुआ भी तो जोश और आनंद में पता ही नहीं चला.’’

पतिपत्नी के पहले मिलन को ले कर अनेक तरह के किस्से, आशंकाएं और भ्रांतियां सुनने को मिलती हैं. पुरुषों को अपने सफल होने की आशंका के बीच यह उत्सुकता भी रहती है कि पत्नी वर्जिन है या नहीं. उधर, स्त्री के मन में पहली बार के दर्द को ले कर डर बना रहता है.

आजकल युवतियां घर में ही नहीं बैठी रहतीं. वे साइकिल चलाती हैं, खेलकूद में भाग लेती हैं, घरबाहर के बहुत सारे काम करती हैं. ऐक्सरसाइज करती हैं, नृत्य करती हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि तथाकथित कुंआरेपन की निशानी यानी उन के यौनांग के शुरू में पाई जाने वाली त्वचा की झिल्ली शादी होने तक कायम ही रहे. कई तरह के शारीरिक कार्यों के दौरान पैरों के खुलने और जननांगों पर जोर पड़ने से यह झिल्ली फट जाती है, इसलिए जरूरी नहीं कि पहले मिलन के दौरान खून का रिसाव हो ही. रक्त न निकले तो पुरुष को पत्नी पर शक नहीं करना चाहिए.

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अब सवाल यह उठता है कि जिन युवतियों के यौनांग में यह झिल्ली विवाह के समय तक कायम रहती है, उन्हें दर्द होता है या नहीं. दर्द का कम या ज्यादा होना झिल्ली के होने न होने और पुरुष के व्यवहार पर निर्भर करता है. कई युवतियों में शारीरिक कार्यों के दौरान झिल्ली पूरी तरह हटी हो सकती है तो कई में यह थोड़ी हटी और थोड़ी उसी जगह पर उलझी हो सकती है. कई में यह त्वचा की पतली परत वाली होती है तो कई में मोटी होती है.

स्थिति कैसी भी हो, पुरुष का व्यवहार महत्त्वपूर्ण होता है. जो पुरुष लड़ाई के मैदान में जंग जीतने जैसा व्यवहार करते हैं, वे जोर से प्रहार करते हैं, जो स्त्री के लिए तीखे दर्द का कारण बन जाता है. ऐसे पुरुष यह भी नहीं देखते कि संसर्ग के लिए राह पर्याप्त रूप से नम और स्निग्ध भी हुई है या नहीं. उन के कानों को तो बस स्त्री की चीख सुनाई देनी चाहिए और आंखों को स्त्री के यौनांग से रक्त का रिसाव दिखना चाहिए. ऐसे पुरुष, स्त्री का मन नहीं जीत पाते. मन वही जीतते हैं जो धैर्यवान होते हैं और तन के जुड़ने से पहले मन के तार जोड़ते हैं व स्त्री के संसर्ग हेतु तैयार होने का इंतजार करते हैं.

भले ही आप पहली सहेली के पति की तरह महीना, डेढ़ महीना इंतजार न करें पर एकदम से संसर्ग की शुरुआत भी न करें. पत्नी से खूब बातें करें. उस के मन को जानने और अपने दिल को खोलने की कोशिश करें. पर्याप्त चुंबन, आलिंगन करें. यह भी देखें कि पत्नी के जननांग में पर्याप्त गीलापन है या नहीं. दर्द के डर से भी अकसर गीलापन गायब हो जाता है. ऐेसे में किसी अच्छे लुब्रीकैंट, तेल या घी का इस्तेमाल करना सही रहता है. शुरुआत में धीरेधीरे कदम आगे बढ़ाएं. इस से आप को भी आनंद आएगा और पत्नी को दर्द भी कम होगा.

कई युवतियों के लिए सहवास आनंद के बजाय दर्द का सबब बन जाता है. ऐसा कई कारणों से होता है, जैसे :

कुछ युवतियों में वल्वा यानी जांघों के बीच का वह स्थान जो हमें बाहर से दिखाई देता है और जिस में वेजाइनल ओपनिंग, यूरिथ्रा और क्लीटोरिस आदि दिखाई देते हैं, की त्वचा अलग प्रकार की होती है, जो उन्हें इस क्रिया के दौरान पीड़ा पहुंचाती है. त्वचा में गड़बड़ी से इस स्थान पर सूजन, खुजली, त्वचा का लाल पड़ जाना और दर्द होने जैसे लक्षण उभरते हैं. त्वचा में यह समस्या एलर्जी की तरह होती है और यह किसी साबुन, मूत्र, पसीना, मल या पुरुष के वीर्य के संपर्क में आने से हो सकती है.

सहवास के दौरान दर्द होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए. सहवास से पहले पर्याप्त लुब्रीकेशन करना चाहिए. पुरुष को यौनांग आघात में बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. वही काम मुद्राएं अपनानी चाहिए जिन में स्त्री को कम दर्द होता हो. इस से भी जरूरी बात यह है कि पहले मन के तार जोडि़ए. ये तार जुड़ गए तो तन के तार बहुत अच्छे और स्थायी रूप से जुड़ जाएंगे.    – सहवास के दौरान पर्याप्त लुब्रीकेशन न होने से भी महिला को दर्द का एहसास हो सकता है.

– महिला यौनांग में यीस्ट या बैक्टीरिया का इन्फैक्शन भी सहवास में दर्द का कारण बनता है.

– एक बीमारी एंडोमेट्रिआसिस होती है, जिस में गर्भाशय की लाइनिंग शरीर के दूसरे हिस्सों में बनने लगती है. ऐसा होने पर भी सहवास दर्दनाक हो जाता है.

– महिला के यौनांग की दीवारों के बहुत पतला होने से भी दर्द होता है.

– यूरिथ्रा में सूजन आ जाने से भी सहवास के दौरान दर्द होता है.

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Holi Special: फर्नीचर चमके, तो घर दमके

मौका त्यौहारों का हो या पार्टी का पर बात जब घर को खूबसूरत हो तो फर्नीचर की साफसफाई को भला कैसे अनदेखा किया जा सकता है. अपने घर के फर्नीचर को सही साफसफाई से कैसे दें नए जैसा लुक, बता रही हैं अनुराधा गुप्ता.

घर की पेंटिंग करवाते वक्त या होली खेलते वक्त अकसर फर्नीचर की सूरत बिगड़ जाती है. इस बाबत दिल्ली के लक्ष्मीनगर स्थित वुड विला फर्नीचर ऐंड इंटीरियर के मालिक अशोक कहते हैं, ‘‘हर घर में तरहतरह का फर्नीचर होते हैं. यदि फर्नीचर की सफाई सही तरीके से न की जाए तो वह कम समय में ही पुराने लगने लगते हैं.’’

आइए जानें कि विभिन्न प्रकार के फर्नीचर की सफाई किस तरह करें कि वह नयानया सा लगने लगे.

लैदर फर्नीचर

लैदर फर्नीचर दिखने में जितना अच्छा लगता है, उस की देखभाल करना उतना ही कठिन होता है. खास बात यह है कि लैदर फर्नीचर की उचित देखभाल न करने से वह जगहजगह से क्रैक हो जाता है.

फर्नीचर पर किसी तरह का तरल पदार्थ गिर जाए तो उसे तुरंत साफ कर दें क्योंकि लैदर पर किसी भी चीज का दाग चढ़ते देर नहीं लगती. यहां तक कि पानी की 2 बूंद से भी लैदर पर सफेद निशान बन जाते हैं. फर्नीचर को किसी भी तरह के तेल के संपर्क में न आने दें, क्योंकि इस से फर्नीचर की चमक तो खत्म होती ही है, साथ ही उस में दरारें भी पड़ने लगती हैं.

फर्नीचर की रोज डस्टिंग करें जिस से वह लंबे समय तक सही सलामत रहे. फर्नीचर को सूर्य की रोशनी और एअरकंडीशनर से दूर रखें. इस से फर्नीचर फेडिंग और क्रैकिंग से बचा रहेगा.फर्नीचर को कभी भी बेबी वाइप्स से साफ न करें, इस से उस की चमक चली जाती है.

वुडन फर्नीचर

वुडन फर्नीचर की साफसफाई में अकसर लोग लापरवाही बरतते हैं जिस से वह खराब हो जाता है. ध्यान से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई सी चमक आ जाती है. महीने में एक बार अगर नींबू के रस से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई चमक आ जाती है. पुराने फर्नीचर को आप मिनरल औयल से पेंट कर के भी नया बना सकते हैं और अगर चाहें तो पानी में हलका सा बरतन धोने वाला साबुन मिला कर उस से फर्नीचर को साफ कर सकते हैं.

लकड़ी के फर्नीचर में अकसर वैक्स जम जाता है जिसे साफ करने के लिए सब से अच्छा विकल्प है कि उसे स्टील के स्क्रबर से रगड़ें और मुलायम कपड़े से पोंछ दें. कई बार बच्चे लकड़ी पर के्रयोन कलर्स लगा देते हैं. इन रंगों का वैक्स तो स्टील के स्क्रबर से रगड़ने से मिट जाता है लेकिन रंग नहीं जाता. ऐसे में बाजार में उपलब्ध ड्राई लौंडरी स्टार्च को पानी में मिला कर पेंटब्रश से दाग लगे हुए स्थान पर लगाएं और सूखने के बाद गीले कपड़े से पोंछ दें.

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माइक्रोफाइबर फर्नीचर

माइक्रोफाइबर फर्नीचर को साफ करने से पहले उस पर लगे देखभाल के नियमों के टैग को देखना बेहद जरूरी है. क्योंकि कुछ टैग्स पर डब्लू लिखा होता है. यदि टैग पर डब्लू लिखा है तो इस का मतलब है कि उसे पानी से साफ किया जा सकता है और जिस पर नहीं लिखा है उस का मतलब है कि अगर फर्नीचर को पानी से धोया गया तो उस पर पानी का दाग पड़ सकता है. सब से सौफ्ट ब्रश से माइक्रोफाइबर फर्नीचर की पहले डस्टिंग करें.

इस के बाद ठंडे पानी में साबुन घोलें और तौलिए से फर्नीचर की सफाई करें. ध्यान रखें कि तौलिए को अच्छे से निचोड़ कर ही फर्नीचर की सफाई करें ताकि ज्यादा पानी से फर्नीचर गीला न हो. तौलिए से पोंछने के बाद तुरंत साफ किए गए स्थान को हेयरड्रायर से सुखा दें.सुखाने के बाद उस स्थान पर हलका ब्रश चलाएं ताकि वह पहली जैसी स्थिति में आ सके.बेकिंग सोडा में पानी मिला कर गाढ़ा सा घोल बना लें. अब इस घोल को दाग लगे हुए स्थान पर लगा कर कुछ देर के लिए छोड़ दें. फिर उसे हलके से पोंछ दें.फर्नीचर पर लगे दाग को पानी से साफ करने के स्थान पर बेबी वाइप्स से साफ करें. ध्यान रखें कि दाग लगे स्थान को ज्यादा रगड़ें नहीं.

यदि फर्नीचर पर ग्रीस जैसा जिद्दी दाग लग जाए तो उसे हटाने के लिए बरतन धोने वाला साबुन और पानी का घोल बनाएं और दाग वाले स्थान पर स्प्रे करें. कुछ देर बाद गीले कपडे़ से उस स्थान को पोंछ दें.

प्लास्टिक फर्नीचर

अकसर देखा गया है कि जब बात प्लास्टिक के फर्नीचर को साफ करने की आती है तो उसे या तो स्टोररूम का रास्ता दिखा दिया जाता है या फिर कबाड़ में बेच दिया जाता है. लेकिन वास्तव में अगर प्लास्टिक के फर्नीचर की सही तरह से सफाई की जाए तो उसे भी चमकाया जा सकता है. ब्लीच और पानी बराबरबराबर मिला कर एक बोतल में भर लें और फर्नीचर पर लगे दागों पर स्प्रे करें. स्प्रे करने के बाद फर्नीचर को 5 से 10 मिनट के लिए धूप में रख दें.

ट्यूब और टाइल क्लीनर से भी प्लास्टिक का फर्नीचर चमकाया जा सकता है. इस के लिए ज्यादा कुछ नहीं, बस दाग लगी जगह पर स्प्रे कर के 5 मिनट बाद पानी से धो दें. दाग साफ हो जाएंगे.

बरतन धोने वाला डिटरजैंट भी प्लास्टिक के फर्नीचर में लगे दाग को छुड़ाने में सहायक होता है. इस के लिए 1:4 के अनुपात में डिटरजैंट और पानी का घोल बना लें. इस घोल को फर्नीचर पर स्प्रे कर के 5 से 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इस के बाद कपड़े से फर्नीचर को पोंछें. नई चमक आ जाएगी.

प्लास्टिक पर लगे हलके दागों को बेकिंग सोडा से भी धोया जा सकता है. इस के लिए स्पंज को बेकिंग सोडा में डिप कर के दाग वाली जगह पर गोलाई में रगड़ें. दाग हलका हो जाएगा.

नौन जैल टूथपेस्ट से प्लास्टिक फर्नीचर पर पड़े स्क्रैच मार्क्स हटाए जा सकते हैं.

यह सच है कि घर की रंगाईपुताई तब तक अधूरी ही लगती है जब तक घर के फर्नीचर साफसुथरे न दिखें. उपरोक्त तरीकों से घर के सभी प्रकार के फर्नीचर को चमका लिया जाए तो दीवाली की खुशियों का मजा कहीं ज्यादा हो जाएगा.

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कभी न करें शेयर लिप प्रोडक्ट

मैं अपना लिपस्टिक भूल गयी हूँ. क्या मैं तुम्हारा ले सकती हूँ? लिपस्टिक का यह रंग मेरे ऊपर अच्छा नहीं लग रहा, मुझे तुम्हारा लिपस्टिक दे दो. इस प्रकार से अपना लिपस्टिक सबके साथ शेयर करना बंद करें.

और निश्चित रूप से किसी अजनबी के साथ क्योंकि आप नहीं जानते कि उसके होंठ कैसे हैं. यहां लिपस्टिक शेयर न करने के पीछे कुछ विलक्षण कारण बताए गए हैं.

लिप बाम के उपयोग के दो ही तरीके हैं – या तो व्यक्ति सीधे इसे अपने होंठों पर रगड़े या अपने बैक्टीरिया युक्त हाथों की उँगलियों में लेकर इसे लगाए. दोनों ही तरीके खराब हैं.

आप यह जानकर चौंक जायेंगे कि होंठों से संबंधित उत्पादों को शेयर करने से वास्तव में क्या होता है? बैक्टीरिया एक जगह से दूसरी जगह जाना पसंद करते हैं यह एक महत्वपूर्ण कारण है जिसके कारण आपको अपना लिप बाम किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहिए.

आपके होंठों की सतह के नीचे विशाल रक्त वाहिकाएं होती हैं. आप इस पतली झिल्ली पर जो कुछ भी लगाते हैं वह अपने आप ही रक्त के माध्यम से आपके शरीर में चला जाता है जिसमें बैक्टीरिया भी शामिल हैं.

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बिजी लड़कियों के लिये आसान ब्‍यूटी ट्रिक्‍स वायरस कई सप्ताह तक जीवित रहते हैं भले ही आपकी सहेली ने कई दिनों पहले आपके लिपस्टिक का उपयोग किए हो, परन्तु इस बात का ध्यान रखें कि वायरस लिपस्टिक पर चिपक जाते हैं तथा कई सप्ताह तक जीवित रहते हैं.

तो यदि दुर्भाग्य से जिस व्यक्ति ने पहले इसका उपयोग किया है उसे यदि थोड़ा बहुत भी जुकाम हो तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि यह वायरस आप को भी प्रभावित कर दे.

हर्पीस की चेतावनी लिप बाम शेयर न करने का यह एक दूसरा घातक कारण है. यदि वह व्यक्ति जिसने आपके लिप बाम का उपयोग किया है और उसके होंठों की त्वचा यदि कहीं से कटी हुई हैं या उसके होंठ फटे हुए हैं या उसके मुंह में छाले हुए हैं या उसके होंठों पर हर्पीस के वायरस हों तो इस बात की पूरी संभावना है कि आप भी इन सब से ग्रसित हो जाएं.

लिपस्टिक की ऊपरी सतह को पोंछकर फी उसका उपयोग करना काफी नहीं होता. उसे फेंक दें तथा यदि आप ऐसा नहीं कर सकती तो लिपस्टिक के ऊपरी भाग को काट डालें.

मेकअप आर्टिस्ट को उनके लिपस्टिक का उपयोग न करने दें यदि आप दुल्हन बनने वाली हैं और शादी के दिन अच्छा मेकअप करना चाहती हैं तो आपके लिए एक छोटी सी सलाह है. मेकअप आर्टिस्ट द्वारा लाये गए लिपस्टिक का उपयोग कभी न करें. इस बात की पूरी संभावना है कि आपके पहले 10 लोगों ने इसका उपयोग किया हो.

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इसका सही तरीका यह है कि लिप कलर लगाने के लिए एक साफ़ लिप ब्रश या रुई के टुकड़े का उपयोग करें. यदि आप ब्यूटी पार्लर जाती हैं तो भी लिपस्टिक के लिए यही नियम लागू होता है. तो अब आप समझ गए कि लिपस्टिक शेयर करना क्यों गलत है?

हाथों में भी रोगाणु पनप सकते हैं लोग सोचते हैं कि उंगलियां साफ होती हैं तथा लिप बाम शेयर करने का यह एक सुरक्षित तरीका है. वास्तव में ऐसा नहीं है. यदि आपके होंठों पर 40% बैक्टीरिया हैं तो आपके हाथों में 80% बैक्टीरिया होते हैं. इसका कोई सुरक्षित तरीका नहीं है. सबसे अच्छा होगा आप अपने लिप प्रोडक्ट्स को अपने उपयोग तक ही सीमित रखें.

Arthritis: गलत व ओवर एक्सरसाइज से बचें 

अर्थोरिटिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें जोड़ों में दर्द और सूजन आने लगती है. अगर बात करें भारत की तो यहां 40 – 50 साल की महिलाएं सबसे ज्यादा इस बीमारी की गिरफ्त में आती हैं. खासकर के वो जो मोटापे से ग्रसित हैं. इस बीमारी में सबसे ज्यादा घुटनों , हिप व हाथ के जोइंट प्रभावित होते हैं. अभी हाल के वर्षों में इस बीमारी में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई  है, जिसके पीछे हमारे इनएक्टिव लाइफस्टाइल व मोटापे को जिम्मेदार माना जा रहा है. जबकि इसके अन्य कारणों में जोड़ों में खराबी होना, बढ़ती उम्र, जेनेटिक व ऑटो इम्यून डिसऑर्डर्स आदि को जिम्मेदार माना जाता है. इसलिए इसे समय रहते लाइफस्टाइल व इलाज से कंट्रोल करना जरूरी है, वरना स्थिति को गंभीर होने में देर नहीं लगती. इस संबंध में बता रहे हैं बेंगलुरु के यशसवंतपुर स्तिथ  मणिपाल होस्पिटल के कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन डाक्टर किरण चौका.

एक्सरसाइज का महत्व 

एक्सरसाइज जहां हमें फ्रेश, एक्टिव व हैल्दी रखने का काम करती है, वहीं ये हमारी मांसपेशियों व हड्डियों को भी मजबूती प्रदान करने में मददगार है. कई बार जब सर्जरी व दवाइयों से भी आराम नहीं मिलता है, तब डाइट व खुद को शारीरिक रूप से एक्टिव रखने पर अर्थोरिटिस के मरीजों को बहुत आराम मिलता है. इसलिए एक्सपर्ट भी मरीज की स्थिति को देखते हुए हर हफ्ते कम से कम 150 मिनट योग, रेंज ओफ मोशन , एरोबिक करने की सलाह देते हैं , ताकि शरीर फ्लेक्सिबल बने व हड्डियों को मजबूती मिले. बता दें कि अर्थोरिटिस के मरीजों के लिए एक्सरसाइज करने के और भी कई फायदे हैं , जो इस प्रकार से हैं.

–  कार्टिलेज की हैल्थ बहुत हद तक एक्सरसाइज करने या फिर चलनेफिरने पर निर्भर करती है. क्योंकि इसके कारण जोड़ों को जरूरत के मुताबिक ओक्सीजन व जरूरी न्यूट्रिएंट्स जो मिल पाते हैं.

– एक्सरसाइज मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने के साथ उन्हें लचीला बनाने का काम करती है. साथ ही इससे जोड़ों में दर्द की शिकायत भी कम महसूस होती है.

–   रोजाना एक्सरसाइज करने से वजन कम होता है, जिससे जोइंट्स पर पड़ने वाला तनाव खुद ब खुद कम होने लगता है.

– इससे अच्छी नींद आने के साथसाथ थकान महसूस नहीं होती है.

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अर्थोरिटिस में ओवर एक्सरसाइज  के नुकसान 

अर्थोरिटिस में एक्सरसाइज करना अच्छी बात है. लेकिन अगर जरूरत से ज्यादा व बिना सोचेसमझे एक्सरसाइज करेंगे तो इसका नुकसान भी आपको भुगतना पड़ सकता है. इसलिए सही डाइट , जिससे हड्डियों को मजबूती मिले और वजन कम करने के लिए सही तरह से व्यायाम करना लाभकारी साबित होता है. जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज करने से दर्द में बढ़ोतरी, सूजन व जोड़ों की हालत और ख़राब हो सकती है. यही नहीं बल्कि आपको लंबे समय तक चलने वाली थकान , कमजोरी, चलने में दिक्कत महसूस होना व जोड़ों में सूजन की शिकायत महसूस हो सकती है. अर्थोरिटिस के मरीजों को कई बार तो अधिक एक्सरसाइज करने से फ्रैक्चर, सर्जरी या फिर परमानेंट विकलांगता की स्थिति भी आ सकती है. इसलिए ओवर एक्सरसाइज से बचें.

टिप्स फोर एक्सरसाइज 

एक्सपर्ट की सलाह लें परिस्थिति में सुधार लाने हेतु एक्सपर्ट की सलाह के अनुसार ही जोड़ों की हेल्थ के अनुसार ही एक्सरसाइज करें. जिससे आपको इम्प्रूवमेंट दिखे. अगर आप हैल्थ केयर प्रोवाइडर या फिर फिजिकल थेरेपिस्ट की मदद लेकर उनकी सलाह के मुताबिक एक्सरसाइज करेंगे तो आपको ज्यादा फायदा मिलेगा. आपके डाक्टर अर्थोरिटिस की स्थिति में विशेष तरह का स्कैन जिसे डेक्सा कहते हैं , करवाने की सलाह देते हैं. क्योंकि इस स्कैन के द्वारा आपके बोन मिनरल डेंसिटी को समझ कर आपको फ्रैक्चर होने का कितना खतरा है, इसके आधार पर ही एक्सरसाइज बताई जाती है.

धीरेधीरे बढ़ें याद रखें कि हर एक दूसरा दिन आपको चांस मिलता है, जो सुधार के लिए होना चाहिए न की दर्द या फिर खुद के शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए.  इसलिए एक्सरसाइज को धीरेधीरे बढ़ाएं, जिससे आपके शरीर को इन बदलावों की आदत हो जाए. केवल खुद से वजन घटाने का निर्णय लेकर सीढ़ियां चढ़ने , उतरने जैसी एक्सरसाइज करके आप अर्थोरिटिस की स्तिथि में अपने जोइंट्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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–  पहले वार्मअप करें एक्सरसाइज करने से पहले अपनी मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने के लिए शरीर को वार्मअप जरूर करें.

लो इम्पेक्ट एक्सरसाइज का चयन करें  वॉक , साइकिलिंग, स्विमिंग, योगा , स्ट्रेचिंग इत्यादि अर्थोरिटिस के लिए बेस्ट एक्सरसाइज हैं. जबकि ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों के लिए हलकी एक्सरसाइज ही सही रहती है. क्योंकि उनके लिए इंजरी काफी घातक साबित हो सकती है.

अपनी डाइट का भी खयाल रखें  कैलोरी को कम करने से न सिर्फ जोड़ों से लोड कम होता है, बल्कि इससे आपको ज्यादा वर्कआउट की भी जरूरत नहीं होती है. इसके अलावा हेल्दी डाइट के साथ एक्सरसाइज करने से बोन डेंसिटी इम्प्रूव होने के साथ मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. खाने में फल, सब्जियां , ओमेगा 3 फैटी एसिड रिच फ़ूड जैसे सीड्स इत्यादि लेने से सूजन व दर्द को कम करने में मदद मिलती है. साथ ही विटामिन सी युक्त चीजों के सेवन से कोलेजन के बढ़ने में मदद मिलती है. वहीं कैल्शियम व विटामिन डी अर्थोरिटिस की स्थिति में हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में काफी मददगार होता है.

डर: क्या हुआ था नेहा के साथ

मेजर प्रभास अपने बड़े भाई वीर की शादी में घर आया था. घर में खुशी का माहौल था. वीर बैंगलुरु की एक कंपनी में इंजीनियर था. वीर का जहां रिश्ता हो रहा था उस परिवार में 3 लड़कियों में नेहा सब से बड़ी थी. नेहा के पिता नीलेश जल्दी से जल्दी नेहा की शादी कर के जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. नेहा कुछ दिनों से पुणे में जौब कर रही थी, लेकिन अब शादी के बाद सबकुछ पीछे छूटने वाला था. उस के दोस्त, वे पार्टियां वह होस्टल…

प्रभास के आर्मी में होने से सभी लोग बहुत खुश थे. शादी के भीड़भाड़ वाले माहौल में भी लोग उस के चायपानी, खाने का विशेष ध्यान रख रहे थे. हलदी की रात सभी लोगों ने खूब डांस किया. शादी के दिन प्रभास रोज की तरह सुबह 4 बजे ही उठ गया. प्रभास ने पलट कर देखा तो वीर अपने पलंग से गायब था. उस ने पूरे घर मेें चक्कर लगाया. घूमफिर कर वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. तभी उसे पलंग के कोने में रखा वीर का खत मिला, जिस में लिखा था, ‘प्रभास, मुझे माफ कर देना, अनन्या नाम की लड़की से मेरी पहले ही रजिस्टर मैरिज हो चुकी है. वह दूसरी जाति की है और मांपिताजी उसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मैं हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रहा हूं.’

खत पढ़ते ही प्रभास पिता के पास गया. घर के सभी लोग टैंशन में आ गए. सोच में पड़ गए कि लड़की वालों को क्या जवाब दें. अंत में घर के सभी बड़े लोगों ने मिल कर प्रभास को दूल्हा बनाने का निर्णय लिया. परिस्थिति के आगे प्रभास लाचार हो गया. लड़की वालों की सहमति से नेहा और प्रभास का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ. लेकिन प्रभास इस शादी से खुश नहीं था. छुट्टियां खत्म होने से पहले ही वह ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा. प्रभास की मां ने नेहा और प्रभास दोनों के बीच की दूरियां कम करने हेतु नेहा को भी साथ ले जाने की जिद पकड़ी.

मांपिताजी की किटकिट सुनने से बेहतर वह नेहा को साथ ले कर श्रीनगर निकल गया. वहां एक दोस्त की पत्नी डिलीवरी के लिए मायके गई थी तो उस का घर खाली था. दोनों वहीं कुछ दिनों तक रहे. रेलगाड़ी के पूरे सफर में प्रभास एक मिनट के लिए भी नेहा के पास नहीं बैठा और दरवाजे के पास जा कर खड़ा रहा. प्रभास का यह रूखा व्यवहार देख कर नेहा की आंखों में आंसू आने लगे.

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नेहा को यह शादी नहीं करनी थी. लेकिन मजबूर थी क्योंकि 2 और भी बेटियां अभी मातापिता को ब्याहनी थीं. मन में विचार आया कि पुणे भाग जाए. नेहा अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी कि तभी प्रभास आया.

‘‘चलो, श्रीनगर आ गया, बैग लो.’’

नेहा बैग ले कर प्रभास के पीछेपीछे चलने लगी. दोनों ने टैक्सी पकड़ी. रात के 12 बज रहे थे. कुछ दूर जाने पर एक दहशतगर्द टैक्सी के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘चलो, चलो, नीचे उतरो, नहीं तो सिर पर गोली मार दूंगा. उतरो, देख क्या रहे हो?’’

‘‘निकलो, जल्दी बाहर निकलो,’’ ड्राइवर घबराते हुए चिल्लाने लगा.

‘‘गाड़ी से दूर खड़े हो जाओ.’’ दहशतगर्द ने चिल्लाते हुए कहा.

तभी आर्मी वाले बंदूक ले कर वहां पहुंचे. नेहा और प्रभास एकदूसरे के साथ लेकिन दूरदूर खड़े थे. इस मौके का फायदा उठा कर दहशतगर्द ने नेहा को दबोच लिया और उस के सिर पर बंदूक तान दी, चिल्लाते हुए कहा, ‘‘खबरदार, अगर कोई आगे आया तो. इस लड़की की जान प्यारी है तो मुझे यहां से जाने दो.’’

‘‘मेजर रजत, बंदूक नीचे करो. उसे जाने दो. बादल, तू यहां से जा, लेकिन उस लड़की को छोड़ दे,’’ कैप्टन वसु ने कहा.

‘‘पहले दूर हटो.’’

कुछ ही पल में दहशतवादी बादल नेहा को ले कर फरार हो गया. प्रभास अब पछता रहा था. नेहा को कुछ हुआ तो मैं खुद को कभी माफ नहीं करूंगा. मैं बेवजह ही नेहा से ऐसा व्यवहार कर रहा था. गलती तो मेरे भाई ने की है और मैं गुस्सा नेहा पर निकाल रहा हूं. वह बिलकुल निराश हो गया था.

‘‘मेजर प्रभास, मैं आप की परिस्थिति समझ सकता हूं. हम हर रास्ते पर चैकिंग कर रहे हैं. नेहा जल्दी ही मिल जाएगी.’’

बादल नेहा को ले कर जंगल में पहुंच गया. उस के पैरों से खून निकल रहा था. उस ने नेहा को गाड़ी से बाहर निकाला. दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए.

‘‘देखो, मुझे जाने दो प्लीज.’’

‘‘छोड़ दूंगा तुझे, कुछ देर चुप बैठ. मैं भागभाग के थक गया हूं. थोड़ा आराम करने दे मुझे.’’

नेहा शांति से बैठ गई. प्रभास के पास वापस जा कर मैं क्या करूंगी? उस के बजाय यह दहशतगर्द मुझे यहीं मार देगा तो अच्छा होगा, इस तरह के विचार उस के मन में उठ रहे थे. बादल एक घंटे बैठा रहा. बीचबीच में वह नेहा की तरफ देख रहा था. हवा से उड़ते नेहा के घुंघराले बाल, गहरी भूरी आंखें, खूबसूरत चेहरा बादल के मन को आकर्षित कर रहा था. बादल के कदम नेहा की तरफ बढ़ने लगे. नेहा अपने ही विचारों में खोई हुई थी.

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थोड़ी देर में बादल नेहा के पास आया. उस के दोनों हाथ और मुंह बांध कर उसे जंगल से बाहर हाईवे पर ले गया. हाईवे के करीब जा कर नेहा को अपनी बांहों में ले कर कहा, ‘‘ये भेंट मुझे हमेशा याद रहेगी.’’

हाईवे पर एक फोरव्हीलर आते देख बादल ने नेहा को उस की तरफ ढकेला और एक ही पल में गायब हो गया. फोरव्हीलर में बैठे लोगों ने नेहा को आर्मी वालों को सौंप दिया.

‘‘कैसी हो तुम,’’ प्रभास ने प्यार से पूछा.

‘‘मेजर प्रभास, पहले आर्मी वाले नेहा से पूछताछ करेंगे. इस के बाद तुम पतिपत्नी एकदूसरे से मिलना.’’

आर्मी वाले पूछताछ के लिए नेहा को अंदर ले गए. बाहर खिड़की के पास प्रभास खड़ा रहा. प्रभास नेहा को एक मिनट के लिए भी छोड़ने को तैयार नहीं था.

‘‘बादल तुम्हें कहां ले कर गया था?’’

‘‘गाड़ी एक जंगल में रुकी थी.’’

‘‘ उस ने तुम्हें कोई तकलीफ दी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम उस के साथ कम से कम एक घंटे थीं. वह कुछ बोल रहा था?’’

‘‘कुछ नहीं, बोल रहा था कि मैं भागभाग कर बहुत थक गया हूं.’’

‘‘और कुछ याद आ रहा है?’’

नेहा सिर नीचे कर के थोड़ी देर सोचने के बाद बोली, ‘‘नहीं.’’ लेकिन नेहा का यह जवाब मेजर रजत को झूठ लग रहा था. प्रभास नेहा को ले कर घर आया. पहले उस ने नेहा से मांफी मांगी और वादा किया कि अब इस के आगे कभी कोई गलती

नहीं होगी.

शाम को दोस्तों के साथ प्रभास बाहर घूमने गया. नेहा घर में अकेली थी. बड़े दिनों बाद आज नेहा तनावमुक्त लग रही थी. वह निश्चित हो कर बैड पर लेटी हुई थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. खोला तो वहां एक बुके और एक चिट्ठी पड़ी थी. नेहा ने जल्दी से चिट्ठी खोली, उस में लिखा था, ‘ये भेंट तुम्हें हमेशा मेरी याद दिलाएगी.’ इतना पढ़ते ही नेहा ने तुरंत वह बुके और चिट्ठी दोनों रास्ते पर फेंक दिए और भाग कर घर में आई और दरवाजा बंद कर के रोने लगी. बड़ी मुश्किल से तो प्रभास और नेहा एकदूसरे के करीब आए थे कि यह दूसरी मुसीबत खड़ी हो गई.

प्रभास रात 8 बजे घर आया. लेकिन नेहा के पास प्रभास से बादल के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं थी. दूसरे दिन दोनों शौपिंग करने मौल गए. नेहा ने कुछ ड्रैस खरीदीं और ट्रायल के लिए जैसे ही चैंजिंग रूम में गई, बादल ने अपने हाथों से उस का मुंह दबा दिया. नेहा के शांत होने पर उस ने अपना हाथ हटाया.

‘‘देखो, मेरा पीछा मत करो. तुम क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हारी आवाज तुम से भी ज्यादा सुंदर है.’’

‘‘तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता है,’’ नेहा ने झटके से दरवाजा खोला.

‘‘हम ऐसे ही रोज मिल सकते हैं. तुम्हारे पति को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘क्यों मिलूं, मैं नहीं मिलना चाहती,’’ नेहा जल्दी से भागी और प्रभास के पास जा कर खड़ी हो गई.

थोड़ी देर में आर्मी वालों की तरफ से खबर मिली कि बादल मौल में आया था. मौल में सीसीटीवी में वह नेहा के साथ दिखाई दे रहा है. प्रभास यह खबर सुन कर हैरान हो गया. प्रभास आर्मीवालों के साथ घर पहुंचा.

‘‘तुम बादल को कैसे पहचानती हो?’’

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‘‘मैं उसे नहीं पहचानती हूं. वह मेरे पीछे पड़ा हुआ है.’’

‘‘शायद वह तुम्हारे प्यार में पड़ गया है. देखो नेहा, आज के बाद तुम बादल को पकड़ने में हमारी मदद करोगी,’’ कैप्टन वसु ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं कोशिश करूंगी.’’

योजनानुसार, प्रभास और नेहा कुछ दिनों के लिए एक हिल स्टेशन पर गए. हफ्ता बीत गया, लेकिन बादल नहीं आया. अंत में वे घर आ गए. प्रभास रोज की तरह शाम को घूमने गया. नेहा के मन में बादल के ही विचार घूम रहे थे. तभी बादल खिड़की से कूद कर अंदर आया.

‘‘तुम मेरे बारे में ही सोच रही हो न.’’

‘‘हां, लेकिन तुम इतने दिनों से कहां गायब थे?’’ बादल को घर में रोकने के लिए नेहा उस से मीठीमीठी बातें करने लगी.

‘‘देखा, अब तुम भी मुझ से मिले बिना नहीं रह सकती हो. इसी को प्यार कहते हैं.’’

‘‘हां, हम कल फिर से मिलेंगे.’’

‘‘कल पास वाले मौल के थिएटर में मिलेंगे, अभी मैं जा रहा हूं, नहीं तो तुम्हारा पति आ जाएगा.’’

बादल गया और 5 मिनट में ही प्रभास आ गया.

‘‘वह आया था,’’ नेहा बोली.

‘‘कौन? बादल?’’

‘‘हां, कल मौल के पास थिएटर में बुलाया है उस ने.’’

‘‘बहुत अच्छा. कल तुम थिएटर अकेले जाओगी.’’

‘‘क्या…?’’

‘‘घबराओ मत. आर्मीवाले सादी ड्रैस में तुम्हारे आसपास ही रहेंगे. मैं यदि तुम्हारे साथ रहूंगा, तो वह कल भी पकड़ में नहीं आ पाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह नेहा थिएटर जाने के लिए निकली. तय समय

पर नेहा वहां पहुंच गई. थोड़ी ही देर में बादल वहां मोटरसाइकिल से आया. थोड़ी ही देर में आर्मी वालों ने उसे दबोच लिया. उसे भागने का मौका नहीं मिल पाया. आर्मी वालों को देख कर बादल गुस्सा होने लगा.

‘‘धोखा दिया तुम ने, नेहा, यह ठीक नहीं किया. तुम्हें यह बहुत महंगा पड़ेगा.’’

‘‘अरे, तुम हमारे भारतमाता को धोखा दे रहे हो, इसलिए तुम्हारे साथ विश्वासघात करने का मुझे कोई दुख नहीं है.’’

थोड़ी देर में प्रभास वहां पहुंचा. उसे देखते ही नेहा रोने लगी.

‘‘बसबस, अब रोने के दिन खत्म हो गए. जल्दी ही हम कुछ दिनों के लिए गांव जाएंगे.’’

प्रभास के शब्दों से नेहा को साहस मिला और उस के जीवन में खुशियों की शुरुआत हो गई. लेकिन कभीकभी बादल की

आंखें और उस की आवाज के बारे में सोच कर वह आज भी डर जाती है.

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गर्मियां प्रारम्भ हो चुकीं हैं, गर्मियों के दिन बहुत लंबे होते हैं और इन दिनों लंच के बाद डिनर तक बहुत भूख लग आती है. यदि शाम को कुछ छोटा मोटा नाश्ता कर लिया जाए तो रात को भूख कम लगती है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक है क्योंकि आहार विशेषज्ञों के अनुसार गर्मियों में हमारी पाचन क्षमता काफी कम हो जाती है और डिनर में पेट भर खाने की अपेक्षा बहुत हल्का फुल्का आहार लेना चाहिए. आज हम आपको घर में उपलब्ध सामग्री से ही ऐसे ही कुछ स्नैक्स बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप आसानी से बनाकर अपने परिवार के सदस्यों को खिला सकतीं हैं तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं.

-पालक साबूदाना रोल

कितने लोगों के लिए              6

बनने में लगने वाला समय        30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री

मीडियम साबूदाना              1 कटोरी

उबले आलू                       2

बारीक कटी पालक            1 कटोरी

ब्रेड क्रम्ब्स                        1 कटोरी

बारीक कटी हरी मिर्च         4

किसा अदरक                     1 इंच

नमक                                स्वादानुसार

लाल मिर्च पाउडर               1/4 टीस्पून

अमचूर पाउडर                  1/2 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया        1 टीस्पून

दरदरी भुनी मूंगफली           1/4 कटोरी

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

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विधि

बनाने से 4-5 घण्टे पूर्व साबूदाने को अच्छी तरह धोकर थोड़े से पानी में भिगो दें. अब इस भीगे साबूदाने को मिक्सी में दरदरा पीस लें. एक बाउल में  साबूदाना डालकर तेल और ब्रेड क्रम्ब्स को छोड़कर समस्त सामग्री को एक साथ अच्छी तरह मिलाएं. तैयार मिश्रण से एक लंबा से रोल बनायें. इस रोल से 1 इंच चौड़े टुकड़े काटें और ब्रेड क्रम्ब्स में लपेटकर गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. तैयार रोल को हरे धनिए की चटनी या टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें. आप चाहें तो शैलो फ्राई भी कर सकतीं हैं.

-ब्राउन राइस टिक्का

कितने लोगों के लिए             6

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

ब्राउन राइस                      1 कटोरी

धुली उड़द दाल                1/2 कटोरी

चने की दाल                     1/2 कटोरी

दही                                  1 कप

बारीक कटा पत्तागोभी       1/4 कटोरी

बारीक कटी शिमला मिर्च      1/4 कटोरी

अदरक, हरी मिर्च पेस्ट          1 टीस्पून

बारीक कटा प्याज                1

किसी गाजर                          1

हींग                                     1 चुटकी भर

नमक                                  स्वादानुसार

हल्दी                                   1/4 टीस्पून

ईनो फ्रूट सॉल्ट                     1 सैशे

तेल                                      4 टेबलस्पून

चाट मसाला                        1 टीस्पून

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विधि

चावल और दालों को रातभर भिगोकर दही के साथ मिक्सी में पीस लें.अब इसमें सभी कटी सब्जियां और मसाले अच्छी तरह मिलाएं. ईनो फ्रूट साल्ट डालकर 1 टेबलस्पून पानी डाल दें ताकि ईनो एक्टिवेट हो जाये. अच्छी तरह मिक्स करके भाप में 25 मिनट तक ढककर पकाएं. 25 मिनट बाद चाकू डालकर देखें यदि मिश्रण चाकू न चिपके तो समझें कि पक गया है. जब यह ठंडा हो जाये तो 1 इंच के वर्गाकार टिक्का काट लें. कटे टिक्कों को गर्म तेल में सुनहरा होने तक दोनों तरफ से सेंकें. चाट मसाला बुरककर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

मेरे पैर ड्राय हो जाते हैं और फटने भी लग जाते हैं, क्या करूं?

सवाल-

सर्दियों में मेरे पैर ड्राई हो जाते हैं और फटने भी लग जाते हैं. क्या करूं?

जवाब-

सर्दियों में त्वचा का ड्राई होना बहुत कौमन बात है. इस के लिए पैरों पर रोज सोने से पहले किसी थिक क्रीम से या वैसलीन से मालिश करना बहुत अच्छा रहता है. मालिश करने के बाद कौटन सौक्स पहन लें और सो जाएं. कभीकभार चीनी, नीबू और गुलाबजल को मिला कर उस से पैरों की मालिश कर लें. इस से स्किन मौइस्चराइज हो जाती है और फटती भी नहीं है. अगर पैर फट रहे हैं तो रात को हलके गरम पानी में पैरों को कुछ देर के लिए डुबो कर रखें. चाहें तो पानी में थोड़ा सा शैंपू डाल सकती हैं. पैरों को बाहर निकाल कर साफ करें और सुखा लें.

एक कटोरी में मोमबत्ती के टुकड़े डाल कर उस में थोड़ा सा सरसों का तेल डालें और हलकी आंच पर धीरेधीरे चलाएं. इस पेस्ट को फटे हुए पैरों में भर लें और मौजे पहन लें. इस से आप के फटे हुए पैर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएंगे.

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पैरों को साफ और स्वस्थ रखना भी उतना ही जरूरी है, जितना शरीर के किसी दूसरे अंग को. पैरों की साफसफाई एक निश्चित अंतराल पर होती रहनी चाहिए. इस के लिए आप नियमित साफसफाई के अलावा पैडिक्योर का सहारा भी ले सकती हैं.

ऐसे करें पैडिक्योर

पैडिक्योर करने से पहले नाखूनों पर लगी नेल पौलिश को हटा दें. फिर टब या बालटी में कुनकुने पानी में अपना पसंदीदा साल्ट या क्रीम सोप डालें. अगर आप के पैरों की त्वचा ज्यादा रूखी है, तो उस में औलिव आयल भी डाल लें. साल्ट आप के पैरों की त्वचा को नरम बनाएगा, तो औलिव आयल उस के लिए माश्चराइजर का काम करेगा. पैरों का कम से कम 15 मिनट तक इस पानी में रखने के बाद बाहर निकाल कर बौडी स्क्रबर से स्क्रब करें. स्क्रब करने के बाद ठंडे पानी से पैरों को अच्छी तरह साफ कर लें. ध्यान रहे कि पैरों की उंगलियों के बीच में  कहीं सोप बचा न रहे. अब पैरों पर कोल्ड क्रीम से हलकी मालिश करें. रूई की सहायता से उंगलियों के बीच फंसी क्रीम को साफ करें. अब पैरों के नाखूनों पर नेल पौलिश का सिंगल कोट लगाएं और इसे सूखने दें. जब यह सूख जाए तो नेल पौलिश से फाइनल टच दें.

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पैराफिन वैक्स के साथ पैडिक्योर

इस तरीके से पैडिक्योर करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी चीज है वक्त. जब भी आप पैराफिन वैक्स से पैडिक्योर करें, इसे कम से कम सवा घंटे का समय दें. पैराफिन वैक्स से पैडिक्योर करते समय सब से पहले अपने पैरों को पैराफिन वैक्स से साफ कर लें. इस के लिए पैराफिन वैक्स को पिघला कर एक मिट्टी की बड़ी कटोरी या बरतन में डाल लें. अब अपने पैरों को इस बरतन में डाल दें. यह काम करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि वैक्स आप के पैरों के ऊपर बहे. इस के बाद पेडिक्योर की पहली प्रक्रिया की तरह पैरों को कुनकुने साफ पानी से धो कर क्रीम से इन की मसाज करें और नेल पौलिश लगा लें.

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तेजतर्रार तिजोरी: भाग 5- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

‘‘डाक्टर साहब, क्या मैं सुनील से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां, ड्रैसिंग कंप्लीट कर के नर्स बाहर आ जाए तो तुम अकेली जा सकती हो. मरीज के पास अभी ज्यादा लोगों का होना ठीक नहीं है,’’ डाक्टर ने कहा.

नर्स के बाहर आते ही तिजोरी लपक कर अंदर पहुंची. सुनील की चोट वाली आंख की ड्रैसिंग के बाद पट्टी से ढक दिया गया था, दूसरी आंख खुली थी.

तिजोरी सुनील के पास पहुंची. उस ने अपनी दोनों हथेलियों में बहुत हौले से सुनील का चेहरा लिया और बोली, ‘‘बहुत तकलीफ हो रही है न. सारा कुसूर मेरा है. न मैं तुम्हें गुल्लीडंडा खिलाने ले जाती और न तुम्हें चोट लगती.’’

तिजोरी को उदास देख कर सुनील अपने गालों पर रखे उस के हाथ पर अपनी हथेलियां रखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है तिजोरी, मैं ही उस समय असावधान था. तुम्हारे बारे में सोचने लगा था… इतने अच्छे स्वभाव की लड़की मैं ने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी,’’ कहतेकहते सुनील चुप हो गया.

तिजोरी समझ गई और बोली, ‘‘चुप क्यों हो गए… मन में आई हुई बात कह देनी चाहिए… बोलो न?’’

‘‘लेकिन, न जाने क्यों मुझे डर लग रहा है. मेरी बात सुन कर कहीं तुम नाराज न हो जाओ.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं होती. मुझे कोई बात बुरी लगती है, तो तुरंत कह देती हूं. तुम बताओ कि क्या कहना चाह रहे हो.’’

‘‘दरअसल, मैं ही तुम को चाहने लगा हूं और चाहता हूं कि तुम से ही शादी करूं.’’

तिजोरी ने सुनील के गालों से अपने हाथ हटा लिए और उठ कर खड़े होते हुए बोली, ‘‘मुझ से शादी करने के लिए अभी तुम्हें 2 साल और इंतजार करना होगा. ठीक होने के बाद तुम्हें मेरे पिताजी से मिलना होगा.’’

इतना कह कर तिजोरी बाहर चली आई. श्रीकांत और महेश तो वहां इंतजार कर ही रहे थे, लेकिन अपने पिता को उन के पास देख कर वह चौंक पड़ी. उन के पास पहुंच कर वह सीने से लिपट पड़ी, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मेरे खेतों में कोई घटना घटे, और मुझे पता न चले, ऐसा कभी हुआ है? मैं तो बस उस लड़के को देखने चला आया और अंदर भी आ रहा था, पर तुम दोनों की बातें सुन कर रुक गया. अब तू यह बता कि तू क्या चाहती है?’’

‘‘मैं ने तो उस से कह दिया है कि…’’ तिजोरी अपनी बात पूरी नहीं कर पाई थी कि रघुवीर यादव ने बात पूरी की…  ‘‘2 साल और इंतजार करना होगा.’’

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अपने पिता के मुंह से अपने ही कहे शब्द सुन कर तिजोरी के चेहरे पर शर्म के भाव उमड़ आए और उस ने अपने पिता की चौड़ी छाती में अपना चेहरा छिपा लिया.

रघुवीर यादव अपनी बेटी की पीठ थपथपाने के बाद उस के बालों पर हाथ फेरने लगे. उन्होंने अपनी जेब से 10,000 रुपए निकाल कर श्रीकांत को दिए और बोले, ‘‘बेटा, यह सुनील के इलाज के लिए रख लो. कम पड़ें तो खेत में काम कर रहे किसी मजदूर से कह देना. खबर मिलते ही मैं और रुपए पहुंचा दूंगा,’’ इतना कह कर वे तिजोरी और महेश को ले कर घर की तरफ बढ़ गए.

अगले दिन तिजोरी अपने भाई महेश के साथ रोज की तरह खेत पर गई. आज उस का मन खेत पर नहीं लग रहा था. पानी पीने के लिए वह गोदाम की तरफ गई, तो उस ने किनारे जा कर बिजली महकमे के स्टोर की तरफ झांका.

तभी सामने वाली सड़क पर एक मोटरसाइकिल रुकी. उस पर बैठा लड़का सिर पर गमछा लपेटे और आंखों में चश्मा लगाए था. तिजोरी को देखते ही उस ने मोटरसाइकिल पर बैठेबैठे ही हाथ हिलाया, पर तिजोरी ने कोई जवाब नहीं दिया. वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगी, पर दूरी होने के चलते पहचान न सकी.

तभी जब स्टोर में काम करते श्रीकांत की नजर तिजोरी पर पड़ी, तो श्रीकांत उसे वहां खड़ा देख उस के करीब चल कर जैसे ही आया, वह बाइक सवार अपनी बाइक स्टार्ट कर के चला गया.

तिजोरी के करीब आ कर श्रीकांत बोला, ‘‘हैलो तिजोरी, कैसी हो?’’

उस बाइक सवार को ले कर तिजोरी अपने दिमाग पर जोर देते हुए उसे पहचानने की कोशिश रही थी, लेकिन श्रीकांत की आवाज सुन कर वहां से ध्यान हटाती हुई बोली, ‘‘मैं ठीक हूं. यहां से खाली हो कर तुम्हारे बौस को देखने अस्पताल जाऊंगी. वैसे, कैसी तबीयत है उन की?’’

‘‘आज शाम तक उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. डाक्टर का कहना है कि चूंकि आंख के बाहर का घाव है, इसलिए वे एक आंख पर पट्टी बांधे काम कर सकते हैं. मैं शाम को उन्हें ले कर सरकारी गैस्ट हाउस में आ जाऊंगा.’’

‘‘लेकिन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जब वे पूरी तरह से ठीक हो जाएं, तब काम करना शुरू करें?’’

‘‘चोट गंभीर होती तो वैसे भी वे काम नहीं कर पाते, पर जब डाक्टर कह रहा है कि चिंता की कोई बात नहीं, तो दौड़भाग का काम मैं देख लूंगा और इस स्टोर को वे संभाल लेंगे. फिर हमें समय से ही काम पूरा कर के देना है, तभी अगला कौंट्रैक्ट मिलेगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे कल भी खेत पर आना ही है. यहीं पर कल उस से मिल लूंगी. तुम्हें अगर प्यास लग रही हो, तो मैं फ्रिज से पानी की बोतलें निकाल कर देती जाऊं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, मैं चलती हूं. कल मिलूंगी,’’ कह कर तिजोरी उस खेत की तरफ चली गई, जहां बालियों से गेहूं और भूसा अलग कर के बोरियों में भरा जा रहा था.

अगले दिन पिताजी के हिसाबकिताब का बराबर मिलान करने के चलते तिजोरी को देर होने लगी. जैसे ही हिसाब मिला, तो वह उसे फेयर कर के लिखने का काम महेश को सौंप कर अकेले ही खेत की तरफ आ गई.

चूंकि तिजोरी तेज चलती हुई आई थी और उसे प्यास भी लग रही थी, इसलिए उस ने सोचा कि पहले गोदाम में जा कर घड़े से पानी पी ले और फिर सुनील का हालचाल लेने चली जाएगी.

तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो… मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’

‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.

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तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.

तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभाल लिया.

तेजतर्रार तिजोरी: भाग 4- क्या था रघुवीर का राज

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

तिजोरी ने गोदाम के शटर के दोनों ताले खोले और अंदर घुस कर घड़े की तरफ बढ़ ही रही थी कि अचानक शटर गिरने की आवाज सुन कर वह पलटी. कल जो बाइक पर सवार लड़का था, उसे वह पहचान गई, फिर उस के बढ़ते कदमों के साथ इरादे भांपते हुए वह बोली, ‘‘ओह तो तुम शंभू हो. मुझे लग रहा है कि उस दिन मैं ने तुम्हारी नीयत को सही पहचान लिया था… लगता है, उसी दिन से तुम मेरी फिराक में हो.’’

‘‘ऐसा है तिजोरी, शंभू जिसे चाहता है, उसे अपना बना कर ही रहता है. उस दिन तो मैं तुम्हें देखते ही पागल हो गया था. आज मौका मिल ही गया. अब तुम्हारे सामने 2 ही रास्ते हैं… या तो सीधी तरह मेरी बांहों में आ जाओ, नहीं तो…’’ कह कर वे उसे पकड़ने के लिए लपका.

तिजोरी ने गोदाम के ऊपर बने रोशनदानों की ओर देखा और ऊपर मुंह कर के पूरी ताकत से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’

तिजोरी को चिल्लाता देख शंभू तकरीबन छलांग लगाता उस तक पहुंच गया. तिजोरी की एक बांह उस की हथेली में आई, लेकिन तिजोरी सावधान थी, इसलिए पकड़ मजबूत होने से पहले उस ने अपने को छुड़ा कर शटर की तरफ ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाते हुए दौड़ लगानी चाही, पर इस बार शंभू ने उसे तकरीबन जकड़ लिया.

तभी शटर के तेजी से उठने की आवाज आई. जैसे ही शंभू का ध्यान शटर खुलने पर एक आंख में पट्टी बांधे इनसान की तरफ गया, तिजोरी ने उस की नाक पर एक झन्नाटेदार घूंसा जड़ दिया. और जब तक शंभू संभलता, सुनील ने उसे फिर संभलने का मौका नहीं दिया. अपनी आंख की चोट की परवाह न करते हुए उस ने अपने घूंसों की जोरदार चोटों से उस का जबड़ा तोड़ डाला.

तभी हालात की गंभीरता को देखते हुए श्रीकांत के भी आ जाने से शंभू ने भाग जाना चाहा, पर शटर के बाहर खेतिहर मजदूरों की भीड़ के साथ रघुवीर यादव को खड़ा देख कर सुनील की पीठ से चिपकी तिजोरी अपने पिता की तरफ दौड़ पड़ी.

उस को सांत्वना देते हुए रघुवीर यादव बोले, ‘‘2 साल तू इंतजार करने को राजी है, तो मैं इतना तो कर ही सकता हूं कि तेरी शादी सुनील से पक्की कर दूं…’’

उन्होंने सुनील को अपने पास बुला कर उसे भी अपने सीने से लगा लिया.

खेतिहर मजदूर शंभू को पकड़ कर कहीं दूर ले जा रहे थे.

पानी की बोतलें ले कर तिजोरी के बारे में ही सोचते हुए जब सुनील श्रीकांत के पास पहुंचा, तब तक हाथों में डंडा लिए और गुल्ली  को रखते हुए तिजोरी भी वहां पहुंच गई. वहां एक के ऊपर एक 9 खंभों की ऊंचाई की कुल 19 लाइनें थीं.

हाथ में लिए डंडे से तिजोरी ने ऊंचाई पर रखे खंभों को गिना, फिर चौड़ाई की लाइनों को गिन कर मन ही मन 19 को 9 से गुणा कर के बता दिया… कुल खंभे 171 हैं.

सुनील ने रजिस्टर से मिलान किया. स्टौक रजिस्टर भी अब तक आए खंभों की तादाद इतनी ही दिखा रहा था.

सुनील और श्रीकांत हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताकने लगे, तभी तिजोरी सुनील से बोली, ‘‘चल रहे हो गुल्लीडंडा खेलने?’’

अपने भरोसेमंद शादीशुदा असिस्टैंट श्रीकांत को जरूरी निर्देश दे कर सुनील तिजोरी के पीछेपीछे उस खाली खेत तक आ गया, जहां महेश बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा था.

सुनील को देख कर महेश भी पहचान गया. महेश के पास पहुंच कर तिजोरी बोली, ‘‘तुझे अगर प्यास लगी है, तो यह ले चाबी और गोदाम का शटर खोल कर पानी पी कर आ जा, फिर हम तीनों गुल्लीडंडा खेलेंगे.’’

‘‘नहीं, मुझे अभी प्यास नहीं लगी है. चलो, खेलते हैं. मैं ने यह छोटा सा गड्ढा खोद कर अंडाकार गुच्ची बना दी है, लेकिन पहला नंबर मेरा रहेगा.’’

‘‘ठीक है, तू ही शुरू कर,’’ तिजोरी बोली. फिर उस ने गुच्ची से कोई  5 मीटर की दूरी पर खड़े हो कर सुनील को समझाया, ‘‘महेश उस गुच्ची के ऊपर गुल्ली रख कर फिर उस के नीचे डंडा फंसा कर हमारी तरफ उछालेगा.

‘‘उस की कोशिश यही रहेगी कि हम से ज्यादा से ज्यादा दूर तक गुल्ली जाए और उसे कैच कर के भी न पकड़ा जा सके. तुम एक बार ट्रायल देख लो. महेश गुल्ली उछालेगा और मैं उसे कैच करने की कोशिश करूंगी.’’

फिर तिजोरी महेश के सामने 5 मीटर की दूरी पर खड़ी हो गई. महेश ने गुच्ची के ऊपर रखी गुल्ली तिजोरी के सिर के ऊपर से उछाल कर दूर फेंकना चाही, पर कैच पकड़ने में माहिर तिजोरी ने अपनी जगह पर खड़ेखड़े अपने सिर के ऊपर से जाती हुई गुल्ली को उछल कर ऐसा कैच पकड़ा, जो उतना आसान नहीं था.

कैच पकड़ने के साथ ही तिजोरी चिल्लाई, ‘‘आउट…’’

लेकिन साइड में खड़े सुनील की नजरें तो तिजोरी के उछलने, फिर नीचे जमीन तक पहुंचने के बीच फ्रौक के घेर के हवा द्वारा ऊपर उठ जाने के चलते नीचे पहनी कच्छी की तरफ चली गई थी. साथ ही, उस के उभारों के उछाल ने भी सुनील को पागल कर दिया.

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लेकिन तिजोरी इन सब बातों से अनजान सुनील से बोली, ‘‘अब खेल शुरू. इस बार मेरी जगह पर खड़े हो कर तुम्हें गुल्ली को अपने से दूर जाने से बचाना है. मैं तुम से एक मीटर पीछे खड़ी होऊंगी, ताकि तुम से गुल्ली न पकड़ी जा सके तो मैं पकड़ कर महेश को आउट कर सकूं और तुम्हारा नंबर आ जाए… ठीक?’’

सुनील अपनी सांसों और तेजी से धड़कने लग गए दिल को काबू करता हुआ सामने खड़ा हो गया. उस की नजरों से तिजोरी के हवा में उछलने वाला सीन हट नहीं पा रहा था. उस पर अजीब सी हवस सवार होने लगी थी.

तभी तिजोरी पीछे से चिल्लाई, ‘‘स्टार्ट.’’

आवाज सुनते ही महेश ने गुल्ली उछाली और चूंकि सुनील का ध्यान कहीं और था, इसलिए अपनी तरफ उछल कर आती गुल्ली से जब तक वह खुद को बचाता, गुल्ली आ कर सीधी उस की दाईं आंख पर जोर से टकराई.

सुनील उस आंख पर हाथ रखता हुआ जोर से चिल्लाया, ‘‘हाय, मेरी आंख गई,’’ कह कर वह खेत की मिट्टी में गिरने लगा, तो पीछे खड़ी तिजोरी ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया और उस का सिर अपनी गोद में ले कर वहीं खेत में बैठ गई.

तिजोरी ने गौर किया कि सुनील की आंख के पास से खून तेजी से बह रहा है. आसपास काम करते मजदूर भी वहां आ गए. उन में से एक मजदूर बोल पड़ा, ‘‘कहीं आंख की पुतली में तो चोट नहीं लगी है? तिजोरी बिटिया, इसे तुरंत आंखों के अस्पताल ले जाओ.’’

सुनील की आंखों से खून लगातार बह रहा था. कुछ देर चीखने के बाद सुनील एकदम सा निढ़ाल हो गया. उसे यह सुकून था कि इस समय उस का सिर तिजोरी की गोद में था और उस की एक हथेली उस के बालों को सहला रही थी.

तिजोरी ने महेश को श्रीकांत के पास यह सूचना देने के लिए भेजा और एक ट्रैक्टर चलाने वाले मजदूर को आदेश दे कर खेत में खड़े ट्रैक्टर में ट्रौली लगवा कर उस में पुआल का गद्दा बिछवा कर सुनील को ले कर अस्पताल आ गई.

यह अच्छी बात थी कि उस गांव में आंखों का अस्पताल था, जिस में एक अनुभवी डाक्टर तैनात था. तिजोरी की मां के मोतियाबिंद का आपरेशन उसी डाक्टर ने किया था.

तिजोरी ने सुनील को वहां दाखिल कराया और डाक्टर से आंख में चोट लगने की वजह बताते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, इस की आंख को कुछ हो गया, तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

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‘‘तू चिंता न कर. मुझे चैक तो करने दे,’’ कह कर डाक्टर ने स्टै्रचर पर लेटे सुनील को अपने जांच कमरे में ले कर नर्स से दरवाजा बंद करने को कह दिया.

तिजोरी घबरा तो नहीं रही थी, पर लगातार वह अपने दिल में सुनील की आंख में गंभीर चोट न निकलने की दुआ कर रही थी. महेश के साथ श्रीकांत भी वहां पहुंच गया था.

अस्पताल के गलियारे में इधर से उधर टहलते हुए तिजोरी लगातार वहां लगी बड़े अक्षरों वाली घड़ी को देखे जा रही थी. तकरीबन 50 मिनट के बाद डाक्टर ने बाहर आ कर बताया, ‘‘बेटी, बड़ी गनीमत रही कि गुल्ली भोंहों के ऊपर लगी. थोड़ी सी भी नीचे लगी होती, तो आंख की रोशनी जा सकती थी.’’

आगे पढ़ें- तिजोरी को उदास देख कर सुनील …

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