विनोद दिल्ली से लौटा तो इस बार सुवीरा उसे देख कर खुश नहीं, उदास ही हुई. अब महेश से मिलने में बाधा रहेगी. खैर, देखा जाएगा. विनोद ने रात को पत्नी का अनमना रवैया भी महसूस नहीं किया. सुवीरा आहत हुई. वह इतना आत्मकेंद्रित है कि उसे पत्नी की बांहों का ढीलापन भी महसूस नहीं हो रहा है. पत्नी की बेदिली पर भी उस का ध्यान नहीं जा रहा है. वह मन ही मन महेश और विनोद की तुलना करती रही. अब वह पूरी तरह बदल गई थी. उस का एक हिस्सा विनोद के पास था, दूसरा महेश के पास. विनोद जैसे एक जरूरी काम खत्म कर करवट बदल कर सो गया. वह सोचती रही, वह हमेशा कैसे रहेगी विनोद के साथ. उसे सुखसुविधाएं, पैसा, गाड़ी बड़ा घर कुछ नहीं चाहिए, उसे बस प्यार चाहिए. ऐसा साथी चाहिए जो उसे समझे, उस की भावनाओं की कद्र करे. रातभर महेश का चेहरा उस की आंखों के आगे आता रहा.
सुबह नाश्ते के समय विनोद ने पूछा, ‘‘महेश कैसा है? बच्चों को पढ़ाता है न?’’
‘‘हां.’’
‘‘नाश्ता भिजवा दिया उसे?’’
‘‘नहीं, नीचे ही बुला लिया है.’’
‘‘अच्छा? वाह,’’ थोड़ा चौंका विनोद. महेश आया विनोद से हायहैलो हुई. सुवीरा महेश को देखते ही खिल उठी. विनोद ने पूछा, ‘‘और तुम्हारा औफिस, कोचिंग कैसी चल रही है?’’
‘‘अच्छी चल रही है.’’
‘‘भई, टीचर के तो मजे होते हैं, पढ़ाया और घर आ गए, यहां देखो, रातदिन फुरसत नहीं है.’’
‘‘तो क्यों इतनी भागदौड़ करते हो? कभी तो चैन से बैठो?’’
‘‘अरे यार, चैन से बैठ कर थोड़े ही यह सब मिलता है,’’ गर्व से कह कर विनोद नाश्ता करता रहा. महेश ने बिना किसी झिझक के सुवीरा से पूछा, ‘‘आप का नाश्ता कहां है?’’
विनोद थोड़ा चौंक कर बोला, ‘‘अरे, सुवीरा तुम भी तो करो.’’ सुवीरा बैठ गई, अपना भी चाय का कप लिया. विनोद नाश्ता खत्म कर जल्दी उठ गया. सिद्धि, समृद्धि भी जाने के लिए तैयार थीं. सुवीरा महेश एकदूसरे के प्यार में डूबे नाश्ता करते रहे. महेश ने कहा, ‘‘मैं भी चलता हूं.’’ बच्चे भी निकल गए तो सुवीरा ने कहा, ‘‘रुकोगे नहीं?’’
‘‘बहुत जरूरी क्लास है. फ्री होते ही आ जाऊंगा. औफिस में भी एक जरूरी क्लाइंट आने वाला है, जल्दी आ जाऊंगा, सब निबटा कर.’’
‘‘लेकिन तब तक तो बच्चे भी आ जाएंगे.’’
‘‘इतनी बेताबी?’’
सुवीरा हंस पड़ी. सुवीरा को अपने सीने से लगा कर प्यार कर महेश चला गया. सुवीरा उस के पास से आती खुशबू में बहुत देर खोई रही. अब उसे किसी बात की न चिंता थी न डर. वह अपनी ही हिम्मत पर हैरान थी, क्या प्यार ऐसा होता है, क्या प्रेमीपुरुष का साथ एक औरत को इतनी हिम्मत से भर देता है. तो वह जो 15 साल से विनोद के साथ रह रही है, वह क्या है. विनोद के लिए उस का दिल वह सब क्यों महसूस नहीं करता जो महेश के लिए करता है. विनोद का स्पर्श उस के अंदर वह उमंग, वह उत्साह क्यों नहीं भरता जो महेश का स्पर्श भरता है. अब रातदिन एक बार भी विनोद का ध्यान क्यों नहीं आता. महेश ही उस के दिलोदिमाग पर क्यों छाया रहता है. एक उत्साह उमंग सी भरी रहने लगी थी उस के रोमरोम में. वह कई बार सोचती, घर में सक्षम, संपन्न पति के रहने के बावजूद वह पराए पुरुष के स्पर्श के लिए कैसे उत्सुक रहने लगी है. कहां गए वो सालों पुराने संस्कार जिन्हें खून में संचारित करते हुए इतने सालों में किसी पुरुष के प्रति कोई आकर्षण तक न जागा था. आंखें बंद कर वह महसूस करती कि यह कोई अपरिचित पुरुष नहीं है बल्कि उस का स्वप्नपुरुष है, स्त्रियों के चरित्र और चरित्रहीनता का मामला सिर्फ शारीरिक घटनाओं से क्यों तय किया जाता है. कितना विचित्र नियम है यह.
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फिर कई दिन बीत गए. दोनों के संबंध दिन पर दिन पक्के होते जा रहे थे. मौका मिलते ही दोनों काफी समय साथ बिताते. सुवीरा अपनी सब सहेलियों को जैसे भूल गई थी. सब उस से न मिलने की शिकायत करतीं पर वह बच्चों की पढ़ाई की व्यस्तता का बहाना बना सब को बहला देती. सुवीरा विनोद की अनुपस्थिति में अकसर महेश की बाइक पर बैठ कर बाहर घूमतीफिरती. दोनों शौपिंग करते, मूवी देखते, और घर आ कर एकदूसरे की बांहों में खो जाते. सीमा ने दोनों को बाइक पर आतेजाते कई बार देखा था. कुछ था जो उसे खटक रहा था लेकिन किस से कहती और क्या कहती. कितनी भी अच्छी सहेली थी लेकिन यह बात छेड़ना भी उसे उचित नहीं लग रहा था. सुवीरा को अब यह चिंता लगी थी कि इस संबंध का भविष्य क्या होगा. वह तो अब महेश के बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. एक दिन अकेले में सुवीरा को उदास देख कर महेश ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? उदास क्यों हो?’’
‘‘महेश, क्या होगा हमारा? मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगी.’’
‘‘तो मैं भी कहां रह पाऊंगा अब. मैं ने तो कभी यह सोचा ही नहीं था कि तुम भी मुझ से इतना प्यार करोगी क्योंकि समाज के इस ढांचे को तोड़ना आसान नहीं होता. इतना तो जानता हूं मैं.’’
‘‘लेकिन एक न एक दिन विनोद को पता चल ही जाएगा.’’
‘‘तब देख लेंगे, क्या करना है.’’
‘‘नहीं महेश, कोई भी अप्रिय स्थिति आने से पहले सोचना होगा.’’
‘‘तो बताओ फिर, क्या चाहती हो? मुझे तुम्हारा हर फैसला मंजूर है.’’
‘‘तो हम दोनों कहीं और जा कर रहें?’’
‘‘क्या?’’ करंट सा लगा महेश को, बोला,‘‘विनोद? बच्चे?’’
‘‘विनोद को तो पत्नी का मतलब ही नहीं पता, बेटियों को वह वैसे भी बहुत जल्दी एक मशहूर होस्टल में डालने वाला है. और वैसे भी, मेरी बेटियां शायद पिता के ही पदचिह्नों पर चलने वाली हैं. वही पैसे का घमंड, वही अकड़, जब घर में किसी को मेरी जरूरत ही नहीं है तो क्या मैं अपने बारे में नहीं सोच सकती,’’ कहते हुए सुवीरा का स्वर भर्रा गया. महेश ने उसे सीने से लगा लिया. उस के बाद सहलाते हुए बोला, ‘‘लेकिन मैं शायद तुम्हें इतनी सुखसुविधाएं न दे पाऊं, सुवीरा.’’
‘‘जो तुम ने मुझे दिया है उस के आगे ये सब बहुत फीका है. महेश, हम जल्दी से जल्दी यहां से चले जाएंगे. अपने मन को मारतेमारते मैं थक चुकी हूं.’’
‘‘ठीक है, मैं रहने का इंतजाम करता हूं.’’
‘‘और तुम पैसे की चिंता मत करना. मुझे कोई ऐशोआराम नहीं चाहिए, सादा सा जीवन और तुम्हारा साथ, बस.’’
‘‘पर तुम देख लो, रह पाओगी अपने परिवार के बिना?’’
‘‘हां, मैं ने सबकुछ सोच लिया है. तुम से मिले एक साल हो रहा है और मैं ने इतने समय में बहुत कुछ सोचा है.’’ महेश उस के दृढ़ स्वर की गंभीरता को महसूस करता रहा. सुवीरा ने कहा, ‘‘मैं विनोद को बहुत जल्दी बता दूंगी कि मैं अब उस के साथ नहीं रह सकती.’’ दोनों आगे की योजना बनाते रहे. सिद्धि, समृद्धि आ गईं तो महेश ऊपर चला गया. सुवीरा ने पूछा, ‘‘बड़ी देर लगा दी पार्टी में?’’
‘‘हां मम्मी, फ्रैंड्स के साथ टाइम का पता ही नहीं चलता.’’ सुवीरा अपनी बेटियों का मुंह देखती रही, छोड़ पाएगी इन्हें. वह मां है, क्या करने जा रही है. इतने में समृद्धि ने कहा,
‘‘मम्मी, रिंकी की मम्मी को देखा है आप ने?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘अरे, आप देखो उन्हें. क्या लगती हैं. क्या इंजौय करती हैं लाइफ. और आप कितनी चुपचुप सी रहती हैं.’’
‘‘तो क्या करूं, तुम दोनों तो अपने स्कूल फ्रैंड्स में बिजी रहती हो, मैं अकेली क्या खुश होती घूमूं?’’
सिद्धि शुरू हो गई, ‘‘ओह मम्मी, क्या नहीं है हमारे पास. डैड को देखो, कितने सक्सैसफुल हैं.’’ सुवीरा ने मन में कहा, जैसा बाप वैसी बेटियां. कुछ बोली नहीं, सब को छोड़ कर जाने का इरादा और पक्का हो गया उस का. आगे के तय प्रोग्राम के हिसाब से महेश विनोद के घर से यह कह कर चला गया कि उसे कहीं अच्छा जौब मिल गया है, जहां का आनाजाना यहां से दूर पड़ेगा. विनोद ने बस ‘एज यू विश’ कह कर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी. अब सुवीरा और महेश मोबाइल पर ही बात कर रहे थे. 3 दिनों बाद सुवीरा का 37वां बर्थडे था. विनोद ने औफिस से आते ही कहा, ‘‘सुवीरा, मैं परसों जरमनी जा रहा हूं, एक मीटिंग है.’’
वहीं बैठी सिद्धि ने कहा, ‘‘मम्मी का बर्थडे?’’
‘‘हां, तो वहां से महंगा गिफ्ट ले कर आऊंगा तुम्हारी मम्मी के लिए और क्या चाहिए बर्थडे पर.’’ सिद्धि अपने कमरे में चली गई. डिनर के बाद विनोद बैडरूम में अपनी अलमारी में कुछ पेपर्स देख रहा था. वह काफी व्यस्त दिख रहा था. सुवीरा ने बहुत गंभीर स्वर में कहा, ‘‘विनोद, कुछ जरूरी बात करनी है.’’
‘‘अभी नहीं, बहुत बिजी हूं.’’
‘‘नहीं, अभी करनी है.’’
‘‘जल्दी क्या है, लौट कर करता हूं.’’
‘‘तब नहीं हो पाएगी.’’
‘‘क्यों डिस्टर्ब कर रही हो इतना?’’
‘‘विनोद, मैं जा रही हूं.’’
पेपर्स से नजरें हटाए बिना ही विनोद ने पूछा, ‘‘कहां?’’
‘‘महेश के साथ, हमेशा के लिए.’’
पेपर पटक कर विनोद दहाड़ा, ‘‘यह क्या बकवास है,’’ कहतेकहते सुवीरा को मारने के लिए हाथ उठाया तो सुवीरा ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘यह हिम्मत मत करना, विनोद, बहुत पछताओगे.’’
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‘‘क्या बकवास कर रही हो यह?’’
‘‘मैं अब तुम्हारे साथ एक दिन भी नहीं रह सकती.’’
‘‘क्यों , क्या परेशानी है तुम्हें, सबकुछ तो है घर में, कितना पैसा देता हूं तुम्हें.’’
‘‘पैसा अगर खुशी खरीद सकता तो मैं भी खुश होती. मेरे अंदर कुछ टूटने की यह प्रक्रिया लंबे समय से चल रही है विनोद. मुझे जो चाहिए वह नहीं है घर में.’’
‘‘वह धोखेबाज है, उसे मैं हरगिज नहीं छोड़ूंगा.’’
‘‘तुम्हारे पास किसी को पकड़नेछोड़ने के लिए समय है कहां,’’ व्यंग्यपूर्वक कहा सुवीरा ने, ‘‘जिस के पास पत्नी का मन समझने के लिए थोड़ी भी कोई भावना न हो, वह क्या किसी को दोष देगा?’’ विनोद उस का मुंह देखता रह गया, सुवीरा एक बैग में अपने कपड़े रखने लगी. रात हो रही थी. बच्चे सो चुके थे. विनोद पैर पटकते हुए बैडरूम से निकला. कुछ समझ नहीं आया तो सीमा को फोन पर पूरी बता बता
कर उसे फौरन आने के लिए कहा. सुवीरा ने चारों ओर एक उदास सी नजर डाली. ये सब छोड़ कर एक अनजान रास्ते पर निकल रही है. वह गलत तो नहीं कर रही है. अगर गलत होगा भी तो क्या, देखा जाएगा. महेश का साथ अगर रहेगा तो ठीक है वरना पिता के पास चली जाएगी या कहीं अकेली रह लेगी. अब भी तो वह अकेली ही जी रही है. सीमा रंजन के साथ फौरन आ गई. सुवीरा अपना बैग ले कर निकल ही रही थी, वह समझ गई विनोद ने सीमा को बुलाया है. सीमा ने उसे झ्ंिझोड़ा, ‘‘यह क्या कर रही हो, सुवीरा ऐसी क्या मजबूरी हो गई जो इतना बड़ा कदम उठाने के लिए तैयार हो गई?’’
‘‘बस, सीमा, दिमाग को तो सालों से समझा रही हूं, बस, दिल को नहीं समझा पाई. दिल से मजबूर हो गई. अब नहीं रुक पाऊंगी,’’ कह कर सुवीरा गेट के बाहर निकल गई. विनोद जड़वत खड़ा रह गया. सीमा और रंजन देखते रह गए. सुवीरा चली जा रही थी, नहीं जानती थी कि उस ने गलत किया या सही. बस, वह उस रास्ते पर बढ़ गई जहां महेश उस का इंतजार कर रहा था.
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