Stories : उलटी धारा

यह बात आग की तरह पूरी बस्ती में फैल चुकी थी. सारा महल्ला गुस्से में था और हामिद शाह को खरीखोटी सुना रहा था.  बाय यह थी कि हामिद शाह अपनी बेटी कुलसुम को संभाल नहीं सके और कैसे उस ने एक हिंदू लड़के के साथ शादी कर ली. मौलवीमुल्ला सभी इकट्ठा हो कर एकसाथ मिल कर उन पर हमला बोल रहे थे. एक हिंदू लड़के से शादी कर के मजहब को बदनाम किया.

हामिद शाह का पूरा परिवार आंगन में खड़ा हो कर सब की जलीकटी बातें सुन रहा था. उन के खिलाफ जबान से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था. मगर बस्ती के कुछ मुसलिम समझदार भी थे, जो इसे गलत नहीं बता रहे थे, मगर ऐसे लोगों की तादाद न के बराबर थी.

भीड़ बड़ी गुस्से में थी खासकर नौजवान. वे कुलसुम को वापस लाने की योजना बनाने लगे. मगर हामिद शाह इस की इजाजत नहीं दे रहे थे, इसीलिए उन से सारी भीड़ नाराज थी. वे किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे थे.

धीरेधीरे सारी भीड़ अपने घरों में चली गई. हामिद शाह भी अपनी बैठक में आ गए. साथ में उन की बेगम नासिरा बी, दोनों बेटेबहुएं बैठे हुए थे.

नासिरा बी सन्नाटे को तोड़ते हुए बोलीं, ‘‘करमजली कुलसुम मर क्यों न गई. इस कलमुंही की वजह से ये दिन देखने पड़े. यह सब आप की वजह से हुआ. न उसे इतनी छूट देते, न वह एक हिंदू लड़के से शादी करती. नाक कटा दी उस ने जातबिरादरी में. देखो, पूरा महल्ला बिफर पड़ा. कैसीकैसी बातें कह रहे थे और आप कानों में तेल डाल कर चुपचाप गूंगे बन कर सुनते रहे.

‘‘अरे, अब भी जबान तालू में क्यों चिपक गई,’’ मगर हामिद शाह ने कोई जवाब नहीं दिया. उन की आंखें बता रही थीं कि उन्हें भी अफसोस है.

‘‘अब्बा, अगर आप कहें तो उस कुलसुम को उस से छुड़ा कर लाता हूं. आग लगा दूंगा उस घर में,’’ छोटा बेटा उस्मान अली गुस्सा हो कर बोला.

‘‘नहीं उस्मान, ऐसी भूल कभी मत करना,’’ आखिर हामिद शाह अपनी जबान खोलते हुए बोले. पलभर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘इस में मेरी भी रजामंदी थी. कुलसुम को मैं ने बहुत समझाया था. मगर वह जिद पर अड़ी रही, इसलिए मैं ने फिर इजाजत दे दी थी.’’

‘‘यह आप ने क्या किया अब्बा?’’ नाराज हो कर उस्मान अली बोला.

‘‘उस्मान, अगर मैं इजाजत नहीं देता, तो कुलसुम खुदकुशी कर लेती. यह सारा राज मैं ने छिपा कर रखा था.’’

‘‘आप ने मुझे नहीं बताया,’’ नासिरा बी चिल्ला कर बोलीं, ‘‘सारा राज छिपा कर रखा. अरे, बस्ती के लड़कों को ले जाते उस के घर में और आग लगा देते. कैसे अब्बा हो आप, जो अपनी बेगम को भी नहीं बताया.’’

‘‘कैसी बात करती हो बेगम, ऐसा कर के शहर में दंगा करवाना चाहती थी क्या?’’ हामिद शाह बोले.

‘‘अरे, इतनी बड़ी बात तुम ने छिपा कर रखी. मुझे हवा भी नहीं लगने दी. अगर मुझ से कह देते न तो उस की टांग तोड़ कर रख देती. यह सब ज्यादा पढ़ाने का नतीजा है. मैं ने पहले ही कहा था, बेटी को इतना मत पढ़ाओ. मगर तुम ने मेरी कहां चलने दी. चलो, पढ़ाने तक तो ठीक था. नौकरी भी लग गई,’’ गुस्से से उफन पड़ीं नासिरा बी, ‘‘आखिर ऐसा क्यों किया आप ने? क्यों छूट दी उस को?’’

‘‘देखो बेगम, तुम चुप हो तो मैं तुम्हें सारा किस्सा सुनाऊं,’’ कह कर पलभर को हामिद शाह रुके, फिर बोले, ‘‘तुम तो आग की तरह सुलगती जा रही हो.’’

‘‘हां कहो, अब नहीं सुलगूंगी,’’ कह कर नासिरा बी खामोश हो गईं. तब हामिद शाह ने सिलसिलेवार कहानी सुनानी शुरू की, लेकिन उस से पहले उन के घर के हालात से आप को रूबरू करा दें.

हामिद शाह एक सरकारी मुलाजिम थे. वे 10 साल पहले ही रिटायर हुए थे. कुलसुम से बड़े 2 भाई थे. दोनों की साइकिल की दुकान थी. सब से बड़े का नाम मोहम्मद अली था, जिस के 5 बच्चे थे. छोटे भाई का नाम उस्मान अली था, जिस के 3 बच्चे थे.

कुलसुम से बड़ी 3 बहनें थीं, जिन की शादी दूसरे शहरों में हो चुकी थी. कुलसुम सब से छोटी थी और सरकारी टीचर थी.

कुलसुम जब नौकरी पर लग गई थी, तब उस के लिए जातबिरादरी में लड़के देखना शुरू किया था. शाकिर मियां के लड़के अब्दुल रहमान से बात तकरीबन तय हो चुकी थी. लड़का भी कुलसुम को आ कर देख गया था और उसे पसंद भी कर गया था. मगर कुलसुम ने न ‘हां’ में और न ‘न’ में जवाब दिया था.

एक दिन घर में कोई नहीं था, तब हामिद शाह ने कुलसुम से पूछा, ‘‘कुलसुम, तुम ने जवाब नहीं दिया कि तुम्हें अब्दुल रहमान पसंद है कि नहीं. अगर तुम्हें पसंद है तो यह रिश्ता पक्का कर दूं?’’

मगर 25 साल की कुलसुम अपने अब्बा के सामने चुपचाप खड़ी रही. उस के मन के भीतर तो न जाने कैसी खिचड़ी पक रही थी. उसे चुप देख हामिद शाह फिर बोले थे, ‘‘बेटी, तुम ने जवाब नहीं दिया?

‘‘अब्बा, मुझे अब्दुल रहमान पसंद नहीं है,’’ इनकार करते हुए कुलसुम बोली थी.

‘‘क्यों मंजूर नहीं है, क्या ऐब है उस में, जो तू इनकार कर रही है?’’

‘‘क्योंकि, मैं किसी और को चाहती हूं,’’ आखिर कुलसुम मन कड़ा करते हुए बोली थी.

‘‘किसी और का मतलब…?’’ नाराज हो कर हामिद शाह बोले थे, ‘‘कौन है वह, जिस से तू निकाह करना चाहती है?’’

‘‘निकाह नहीं, मैं उस से शादी करूंगी.’’

‘‘पर, किस से?’’

‘‘मेरे स्कूल में सुरेश है. मैं उस से शादी कर रही हूं. अब्बा, आप अब्दुल रहमान क्या किसी भी खान को ले आएं, मैं सुरेश के अलावा किसी से शादी नहीं करूंगी,’’ कह कर कुलसुम ने हामिद शाह के भीतर हलचल मचा दी थी.

हामिद शाह गुस्से से बोले थे, ‘‘क्या कहा, तू एक हिंदू से शादी करेगी? शर्म नहीं आती तुझे. पढ़ालिखा कर तुझे नौकरी पर लगाया, इस का यही सिला दिया कि मेरी जातबिरादरी में नाक कटवाना चाहती है.’’

‘‘अब्बा, आप मुझे कितना ही समझा लें, चिल्ला लें, मगर मैं जरा भी टस से मस नहीं होऊंगी.’’

‘‘देख कुलसुम, तेरी शादी उस हिंदू लड़के के साथ कभी नहीं होने दूंगा,’’ हामिद शाह फिर गुस्से से बोले, ‘‘जानती नहीं कि हमारा और उस का मजहब अलगअलग है. फिर हमारा मजहब किसी हिंदू लड़के से शादी करने की इजाजत नहीं देता है.

‘‘कब तक मजहब के नाम पर आप जैसे सुधारवादी लोग भी कठमुल्लाओं के हाथ का खिलौना बनते रहेंगे? कब तक हिंदुओं को अपने से अलग मानते रहेंगे,’’ इस समय कुलसुम को भी न जाने कहां से जोश आ गया. उस ने अपनी रोबीली आवाज में कहा, ‘‘अरे अब्बा, 5-6 पीढ़ी पीछे जाओ. इस देश के मुसलमान भी हिंदू ही थे. फिर हिंदू मुसलमान को 2 खानों में क्यों बांट रहे हैं. मुसलमानों को इन कठमुल्लाओं ने अपने कब्जे में कर लिया है.’’

‘‘अरे, चंद किताबें क्या पढ़ गई, मुझे पाठ पढ़ा रही है. कान खोल कर सुन ले, तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं चाहूंगा,’’ हामिद शाह उसी गुस्से से बोले थे.

‘‘अब्बा, मैं भी शादी करूंगी तो सुरेश से ही, सुरेश के अलावा किसी से नहीं,’’ उसी तरह कुलसुम भी जवाब देते हुए बोली थी.

इतना सुनते ही हामिद शाह आगबबूला हो उठे, मगर जवाब नहीं दे पाए थे. अपनी जवान लड़की का फैसला सुन कर वे भीतर ही भीतर तिलमिला उठे थे. फिर ठंडे पड़ कर वे समझाते हुए बोले थे, ‘‘देखो बेटी, तुम पढ़ीलिखी हो, समझदार हो. जो फैसला तुम ने लिया है, वह भावुकता में लिया है. फिर निकाह जातबिरादरी में होता है. तुम तो जातबिरादरी छोड़ कर दूसरी कौम में शादी कर रही हो.

‘‘बेटी, मेरा कहना मानो, तुम अपना फैसला बदल लो और बदनामी से बचा लो. तुम्हारी मां, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बहनों को जातबिरादरी का पता चलेगा तो कितना हंगामा होगा, इस बात को समझो बेटी, मैं कहीं भी मुंह देखाने लायक नहीं रहूंगा.’’

‘‘देखिए अब्बा, आप की कोई भी बात मुझे नहीं पिघला सकती,’’ थोड़ी नरम पड़ते हुए कुलसुम बोली, ‘‘सुरेश और मैं ने शादी करने का फैसला कर लिया है. अगर आप मुझ पर दबाव डालेंगे, तब मैं अपने प्यार की खातिर खुदकुशी कर लूंगी.’’

कुलसुम ने जब यह बात कही, तब हामिद शाह ऊपर से नीचे तक कांप उठे, फिर वे बोले थे, ‘‘नहीं बेटी, खुदकुशी मत करना.’’

‘‘तब आप मुझे मजबूर नहीं करेंगे, बल्कि इस शादी में आप मेरा साथ देंगे,’’ कुलसुम ने जब यह बात कही, तब हामिद शाह सोच में पड़ गए. एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खाई. कुलसुम का साथ दें, तो समाज नाराज. अगर जबरदस्ती कुलसुम की शादी बिरादरी में कर भी दी, तब कुलसुम सुखी नहीं रहेगी, बल्कि खुदकुशी कर लेगी.

अपने अब्बा को चुप देख कुलसुम बोली, ‘‘अब्बा, अब सोचो मत. इजाजत दीजिए.’’

‘‘मैं ने कहा न कि बेटी घर में बहुत बड़ा हंगामा होगा. सचमुच में तुम सुरेश से ही शादी करना चाहती हो?’’

‘‘हां अब्बा,’’ कुलसुम हां में गरदन हिला कर बोली.

‘‘बीच में धोखा तो नहीं देगा वह?’’

‘‘नहीं अब्बा, वे लोग तो बहुत

अच्छे हैं.’’

‘‘तुम एक मुसलमान हो, तो क्या वे तुम्हें अपना लेंगे?’’

‘‘हां अब्बा, वे मुझे अपनाने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘देख बेटी, हमारा कट्टर समाज इस शादी की इजाजत तो नहीं देगा, मगर मैं इस की इजाजत देता हूं.’’

‘‘सच अब्बा,’’ खुशी से झूम कर कुलसुम बोली.

‘‘हां बेटी, तुझे एक काम करना होगा, सुरेश से तुम गुपचुप शादी कर लो. किसी को कानोंकान हवा न लगे. इस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी…’’ सलाह देते हुए अब्बा हामिद शाह बोले, ‘‘जब तुम दोनों शादी कर लोगे, तब फिर कुछ नहीं होगा. थोड़े दिन चिल्ला कर लोग चुप हो जाएंगे.’’

इस घटना को 8 दिन भी नहीं गुजरे थे कि कुलसुम ने सुरेश के साथ कोर्ट में शादी कर ली. इस घटना की खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई.

‘‘देखिएजी, इस शादी को मैं शादी नहीं मानती,’’ नासिरा बी झल्लाते हुए बोलीं, ‘‘मुझे कुलसुम चाहिए. कैसे भी कर के उस को उस हिंदू लड़के से छुड़ा कर लाओ.’’

‘‘बेगम, जिसे तुम हिंदू कह रही हो, वही तुम्हारा दामाद बन चुका है. कोर्ट में मैं खुद मौजूद था गवाह के तौर पर और तभी जज ने शादी बिना रोकटोक के होने दी थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती उसे दामाद,’’ उसी तरह नासिरा बी गुस्से से बोलीं, ‘‘पुलिस को ले जाओ और उसे छुड़ा कर लाओ.’’

‘‘पुलिस भी कानून से बंधी हुई है बेगम. दोनों बालिग हैं और कुलसुम बयान देगी कि उस ने अपनी मरजी से शादी की है और बाप की गवाही है, तब पुलिस भी कुछ नहीं कर पाएगी. उसे अपना दामाद मान कर भूल जाओ,’’ समझाते हुए हामिद शाह बोले.

‘‘तुम बाप हो न, इसलिए तुम्हारे दिल में पीड़ा नहीं है. एक मां की पीड़ा को तुम क्या जानो?’’ गुस्से से नासिरा बी बोलीं, ‘‘मैं सब समझती हूं तुम बापबेटी की यह चाल है. खानदान में मेरी नाक कटा दी,’’ कह कर नासिरा बी गुस्से से बड़बड़ाती हुई चली गईं.

हामिद शाह मुसकराते हुए रह गए. नासिरा बी अब भी अंदर से बड़बड़ा रही थीं. इधर दोनों बेटे भी दुकान पर चले गए.

Best Stories : न इधर की, न उधर की

Best Stories : किचन के एक साफ कोने में फर्श पर बिछाए अपने बिस्तर पर मधुवंती करवटें बदल रही थी. क्यों न करवटें बदले, युवा सपनों में डूबी आंखों में कैसे नींद आए जब बैडरूम से ऐसी आवाज़ें आ रही हों कि अच्छाभला इंसान सोते से जग जाए. वह दम साधे लेटी थी. उसे पता था कि अभी  नशे में डूबी नायशा फ्रिज से ठंडा पानी लेने आएगी या उस से उठा नहीं  गया तो मधुमधु चिल्लाएगी या नायशा का बौयफ्रैंड देवांश ही पानी लेने आएगा. अब एक साल में  मधुवंती इतना तो समझ गयी थी कि नायशा जम कर शराब पीने के बाद बौयफ्रैंड के साथ जीभर वह सबकुछ करती है जिसे न करने देने के लिए नायशा के गांव में रहने वाले पेरैंट्स ने उसे अपनी बेटी के साथ भेज दिया था. पर मधुवंती कैसे नायशा की लाइफस्टाइल में दखल दे सकती थी, वह है तो एक नौकर ही. क्या उस की इतनी हैसियत है कि नायशा को ज्ञान दे? इतने में उसे क़दमों की आहट सुनाई दी. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. किचन में अंधेरा था. पर मधुवंती की आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं. देवांश था. उस के डिओ की खुशबू मधुवंती को बहुत पसंद थी. मधुवंती का मन इस खुशबू से खिल उठा था. उस ने धीरे से आंखों को ज़रा सा खोल कर देखा. देवांश फ्रिज से पानी की बोतल निकाल रहा था. उस के  सुगठित शरीर पर मधुवंती की नज़रें टिकी रह गईं. देवांश चला गया. इतने में नायशा के खिलखिलाने की आवाज़ से मधुवंती फिर देर तक सो न सकी. फिर रोज़ की तरह नायशा के बैडरूम की तरफ ध्यान लगाएलगाए उस की आंख लग ही गई.

यह वाशी, मुंबई की एक बिल्डिंग का वन बैडरूम फ्लैट है. नायशा ने इस फ्लैट को मुंबई आते ही अपने कलीग्स की हैल्प से किराए पर  लिया है. वह मालेगांव की रहने वाली है और इस समय एक अच्छे पद पर काम करती है. उस के पेरैंट्स ने अपने घर में काम कर रही मेड की किसी दूर की रिश्तेदार मधुवंती को नायशा की देखभाल के लिए मुंबई साथ भेज दिया है. मुंबई में नायशा कैसे जीती है, इस की भनक उस के सीधेसादे पेरैंट्स को लग ही नहीं सकती. नायशा ने अपनी पढाई पुणे में रह कर की थी जहां उस के काफी बौयफ्रैंड्स रहे. अपनी आज़ाद लाइफ में जो सब से बुरी आदत उसे लगी है, वह है बेहिसाब शराब पीने की. दिन में औफिस, शाम होते ही कोई न कोई बौयफ्रैंड और शराब. बस, यही है नायशा की लाइफ.

मधुवंती हैरान होती है कि गांव की नायशा मुंबई में पहचान में भी नहीं आती. वहां वह इतनी सुशील, संस्कारी बन कर रहती कि लोग कहते कि लड़की हो तो ऐसी, अपने घर से बाहर रहने पर भी कोई बुरी आदत नहीं. वाह. अब मधुवंती मन ही मन हंसती है, उस ने तो अब तक लड़कों के ही ऐसे काम सुने थे, मूवीज में देखे थे लेकिन अब तो नायशा के रंगढंग उसे इतना हैरान कर चुके थे कि पता नहीं उस की भी कौन सी सुप्त इच्छाएं जागने को तैयार थीं.

सुबह मधुवंती ही सब से पहले उठी. फ्रैश हो कर नाश्ता और नायशा के टिफ़िन की तैयारी करने लगी. जब तक नायशा और देवांश सो कर उठे, वह काफी काम निबटा चुकी थी. उस ने दोनों को चाय का कप पकड़ा कर नायशा का टिफ़िन पैक कर के टेबल पर रखा. देवांश ने कहा, “यार नायशा, तुम्हारी बड़ी ऐश है. मधु सब काम संभाल  लेती है. मुझे तो सब काम करना पड़ता है. मधु, यार, तुम मेरे घर चलो,” कह कर देवांश मधु को देख कर मुसकराया तो मधु ने भी बड़ी अदा से उसे देखा और मुसकरा दी. नायशा ने देवांश को बनावटी डांट लगाई, “खबरदार, मधु पर नज़र डाली. वह कहीं चली गई, तो मैं तो मर ही जाऊंगी. अपने काम मुझ से होते नहीं, यह सच है. यार मधु, तुम इस पर ध्यान मत दो. इसे बढ़ावा  न दो. देवांश, मधु मेरी है, मेरी ही रहेगी.”

हंसीमज़ाक, छेड़छाड़ के साथ सुबह की चाय पी गई और देवांश अपने घर चला गया. वह थोड़ी दूर की ही बिल्डिंग में रहता था. नायशा भी औफिस के लिए तैयार होने लगी. नाश्ता करते हुए वह बोली, ”मधु, तुम्हारे साथ से मेरी लाइफ बहुत इजी रहती है, कोई काम नहीं करना पड़ता, थैंक यू, यार. तुम तो मेरी हमराज़ भी हो. मेरे घरवाले भी यही सोच कर खुश हैं कि मैं अकेली नहीं हूं. और सुनो, अगर रात देवांश मुझ से पहले आ जाए तो उस से खाना खाने को पूछ लेना. मेरी एक मीटिंग है, मुझे टाइम लग सकता है.”

मधु नायशा से 4 साल ही छोटी थी. गांव में उस के मातापिता उस की बड़ी 2 बहनों के विवाह के लिए परेशान थे. सो, वे लोग यही सोच कर तसल्ली कर लेते थे कि मधु फिलहाल जहां रह रही है, आराम से रह रही है. नायशा उसे  अपने घर भेजने के लिए अच्छेखासे पैसे भी दे देती थी.

मधु इस रोमांच से भर उठी थी कि देवांश नायशा से पहले आ सकता है. वह मन ही मन देवांश पर आसक्त थी. पर अपनी हैसियत याद कर के कोई भी गलत हरकत नहीं करना चाहती थी. देवांश को देखना उस के युवामन को खूब भाता. 7 बजे ही देवांश ने डोरबैल बजा दी. मधुवंती शाम से ही नहाधो कर साफ़सुथरे कपड़ों में सजी सी मन ही मन उस का इंतज़ार कर रही थी. सुंदर तो वह थी ही. देवांश आते ही सोफे पर ढह सा गया, बोला, ”नैश तो लेट आएगी न?”

”जी.”

मधुवंती हैरान हुई, जब वह जानता है कि नायशा लेट आएगी तो इतनी जल्दी क्यों आ गया. देवांश ने फिर उठ कर किचन में जा कर एक गिलास में थोड़ी शराब ली, बर्फ डाली और कहा, ”मधु, तुम ने कभी शराब पी है?”

”नहीं.”

”आओ, आज टैस्ट कर लो.”

”नहींनहीं, बिलकुल नहीं.”

”अरे, आओ न,” कहतेकहते देवांश ने अपना गिलास उस के मुंह से लगा दिया. घूंट भरते ही मधुवंती पीछे हटने लगी. देवांश उस के साथ थोड़ी नजदीकी बढ़ाते हुए आगे बढ़ने लगा. जैसे ही मधुवंती की कमर में देवांश ने हाथ डाला, डोरबैल हुई. देवांश तुरंत सोफे पर जा कर बैठ गया. नायशा आई थी, हैरान हो कर बोली, ”तुम जल्दी आ गए?”

”हां, मन नहीं लगता अब अकेले,” कहते हुए उस ने उठ कर नायशा के गाल पर किस कर दिया और मधु को देख कर शरारत से मुसकरा दिया. नायशा ने उस के रोमांस का आनंद उठाते हुए कहा, ”अरेअरे, मुझे हाथ तो सैनिटाइज़ करने दो. कोरोना के केस फिर बढ़ने लगे हैं.”

”अरे, अब क्या चिंता, हमारे  पास तो मधु है, लौकडाउन में लोग मेड के लिए रोते रह गए पर तुम ने तो आराम ही किया.”

”फ्रैश हो कर आती हूं. मेरे लिए भी एक पैग तैयार रखना, लाओ, एक घूंट पी ही लूं,” कह कर नायशा देवांश का पूरा गिलास खाली कर नहाने चली गई. वह हंसता हुआ किचन की तरफ जाने लगा. जातेजाते उस ने मधुवंती को जिन निगाहों से देखा, मधु रोमांचित हो उठी. वह डिनर की तैयारी करने लगी. अचानक देवांश से बोली, ”कुछ चीजें ख़त्म हो गई हैं, दीदी से कहना, अभी ले कर आई.”

नायशा का फ्लैट चौथी फ्लोर पर था. नीचे जा कर मधु ने थोड़ी सब्जी खरीदी. उस के पास इतना पैसा रहता था कि वह घर के सामान ला सके. वापस लौटते हुए वह बिल्डिंग के वौचमैन सुधीर से बातें करने लगी. वह भी उसी की उम्र का था और दोनों में 3 महीने से काफी नजदीकी आ चुकी थी.

मुंबई की सोसाइटी में जो वौचमैन ड्यूटी करते हैं, ज़्यादातर वे सब दूर राज्यों के छोटे गांवों से अकेले, बिना परिवार के आए होते हैं. एकएक रूम को कई लोग शेयर कर लेते हैं. सुधीर यहां दिन की ड्यूटी करता था और विमल रात की. दोनों ही वौचमैन से मधुवंती के नजदीकी संबंध बन चुके थे. आजकल इस सोसाइटी में अकेले रहने वाले बैचलर्स को फ्लैट किराए पर नहीं दिए जा रहे थे पर नायशा और मधुवंती को सब लोग बहुत शरीफ समझते थे, ये किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थीं. नायशा के बौयफ्रैंड भी हमेशा चुपचाप आते, चुपचाप चले जाते. ये लोग साथ में कभी नहीं आतेजाते थे, इसलिए किसी की नज़रों में लड़कों का फ्लैट में आनाजाना ज़्यादा नहीं आ पाया था. नायशा के फ्लोर पर रहने वाले एक परिवार में बुजुर्ग दंपती ही थे. बाकी दोनों फ्लैट्स बंद रहते. सुधीर ने मधुवंती से कहा, ”कल दिन में आ जाऊं, तेरी मैडम औफिस जाएगी न?”

”आ जाना,” मधु ने शरारत से कहा, “और हां, आएगा तो थोड़ी मस्ती करेंगे, काफी सामान मैडम ने ला कर रखा है.”

”वाह, आता हूं,” सुधीर हंसा. आजकल नायशा के रंगढंग देख कर मधु भी  पूरी तरह वही सब करने लगी थी जो नायशा करती. ऊपर आने पर मधु ने देखा, देवांश और नायशा बैडरूम में बंद हो चुके थे. वह भी लाया हुआ सामान संभालने लगी. डिनर के समय ही दोनों बैडरूम से निकले. देवांश की आंखों की खुमारी देख मधु का मन उस की तरफ खिंचा. वह भी उसे ही देखता रहा. दोनों डिनर कर के, थोड़ी देर टी वी देख कर सोने चले गए. रात फिर वैसी ही थी, जैसी रोज़ होती थी.

देररात मधु की आंख एक झटके से खुली. उस के पास देवांश बैठा, उसे छू रहा था. वह झटके से उठ कर बैठी तो देवांश फुसफुसाया, “वह सो रही है. मधु, मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं.”

नींद में डूबी मधु इस बात पर पूरी चौकन्नी हो गई, बोली, ”नहीं साब, आप अभी जाओ.”

”ठीक है, दिन में मिलता हूं.”

मधु को फिर नींद नहीं आई. उसे लगा, देवांश जैसा लड़का उस के पास आया है. वह अगर उसे थोड़ी ढील दे दे तो वह अपना जीवन बदल सकती है. सुधीर और विमल जैसे वौचमेन उसे जीवन में क्या देंगे. सब अपना टाइम पास ही तो कर रहे हैं, वह भी उन के साथ कौन सा सीरियस हो कर जीवन में आगे बढ़ने वाली है. ऐश तो देवांश के साथ ज़्यादा हो सकती है. उस ने बाकी की रात अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए बिताई.

नायशा रोज़ की तरह शराब पी कर नशे में धुत सोई थी. वह सीधे सुबह ही उठती थी. अगली सुबह दोनों निकल गए तो मधु ने इंटरकौम से सुधीर को जल्दी आने के लिए कहा, सुधीर ने दूसरी बिल्डिंग के वौचमैन से कहा, ”मैं अभी आता हूं, तू इधर का भी ध्यान रखना.”

सब वौचमेन की आपस में खूब बनती थी.

सुधीर के साथ बैठ कर मधुवंती ने पहले थोड़ीथोड़ी शराब पी, फिर नायशा के बैड पर ही सारी दूरियां ख़त्म कर उसी के साथ बैठ कर खाना खाया. ऐसा वे कई बार करते. नायशा के बैड पर आज लेटते हुए वह कल्पना कर रही थी कि बहुत जल्दी देवांश भी उस के साथ यहां होगा. कई बार किसी वीकैंड पर नायशा और देवांश लोनावला या माथेरान चले जाते तो नायशा रात के वौचमैन विमल को भी ऐसे ही अपने पास बुला लेती. दोनों उस पर बुरी तरह मरते. अब मधुवंती गांव जल्दी जाना न चाहती. उसे शहरी आबोहवा, ये रंगढंग खूब अच्छे लगते. इस के कुछ ही दिनों बाद नायशा को एक रात के लिए पुणे जाना था, क्लाइंट मीटिंग थी. नायशा उसे सब निर्देश दे कर चली गई. रात 8 बजे देवांश आया. वह चौंकी नहीं. वह तो मन ही मन इस बात के लिए सजसंवर कर  तैयार थी. देवांश दीवाना सा उस का हाथ पकड़  कर प्रेम निवेदन करने लगा. वह सुंदर सपनों में डूबतीउतराती रही. फिर वही सब हुआ, जो होना ही था. देवांश वही था, वही बैडरूम, वही बैड, वही शराब के पैग. बस, नायशा की जगह मधुवंती थी जो इस समय खुद को नायशा की जगह पा कर अपनेआप को धन्य मान रही थी. धीरेधीरे यही रूटीन शुरू हो गया. दोनों बहुत जल्दी एकदूसरे में इतना डूबे रहने लगे कि अब तो कई बार मधुवंती ही नायशा के औफिस जाने के बाद देवांश के फ्लैट पर चली जाती. उस के घर की हर चीज की देखभाल अपने हाथों से करती. ऐसी बातें कब तक छिपतीं. एक रात नायशा की आंख खुल गई, देखा, देवांश बैड पर नहीं था. वह नशे में लड़खड़ाती लिविंगरूम में आई. सोफे पर देवांश और मधुवंती को जिस हालत में देखा, उस का नशा हिरन हो गया. ज़ोरज़ोर से चिल्लाने लगी. देवांश ‘सौरी नायशा’ कहता हुआ, अपने कपड़े ठीक करता हुआ, अपना सामान तुरंत ले कर फ्लैट से निकल गया. नायशा मधुवंती पर चिल्लाए जा रही थी. थोड़ी देर तो वह सुनती रही, फिर खुल कर मैदान में आ गई, बोली, ”मुझे जाने को कहोगी, दीदी, मैं चली जाऊंगी. कोई बात नहीं. करना फिर खुद सारे काम.  गांव जा कर आप की बोतलों का हिसाब सब को बताऊंगी न, तो देखना, कैसे आप के घरवाले आप को सुधारते हैं. खुद नशे में डूबी रहती हो, अपने घरवालों से इतने झूठ बोलती हो. मुझे रहना ही नहीं आप के साथ. मैं देवांश साब के घर में जा कर रह लूंगी. सोसाइटी वाले भी आप को ज़्यादा  दिन अकेले यहां रहने नहीं देंगे. आप की सारी बुरी आदतें सब को पता चल जाएंगी. मैं तो कल सुबह ही देवांश साब के घर चली जाऊंगी.”

नायशा सिर पकड़ कर बैठ गई, जिसे कम पढ़ीलिखी समझ कर अपने साथ नौकर की ही तरह रखा हुआ था, वह अब शेरनी की तरह गुर्रा रही थी. मधुवंती किचन में अपनी जगह जा कर लेट गई. नायशा सोफे पर सिर पकड़ कर बैठी थी. बुरी आदतों ने कहीं का न छोड़ा था उसे. इस से पहले जितने भी बौयफ्रैंड्स से रिश्ता ख़त्म हुआ था, उन का कारण कहीं  न कहीं आज़ादी के नाम पर कई बौयफ्रैंड्स से रिश्ते रखना और खूब शराब पीना था. लाइफ को बिलकुल फ्री हो कर जीने में यकीन रखने वाली नायशा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मधु का क्या करे. उसे पास रखने में भी नुकसान थे, निकाल देने में भी. वह गांव जा कर उस के रहनसहन की सारी पोल खोल सकती थी. बहुत बुरी फंसी थी वह. मधु जाती, तो मधु से मिलने वाले आराम ख़त्म होने वाले थे. देवांश का साथ भी छूट गया था. नुकसान ही नुकसान हुआ था.

Hindi Kahani : क्या हुआ फूड इंस्पैक्टर की रिश्वतखोरी का जब लालाजी ने किया विरोध?

Hindi Kahani :  ‘‘मेरे यहां न तो कोई गलत माल बनता है न ही मैं मिलावट करता हूं. मैं किस बात का महीना दूं?’’ लाला कुंदन लाल ने रोष भरे स्वर में कहा.

‘‘लालाजी, बात अकेली मिलावट की नहीं है…अब पुराने नियम और तरीके सब बदल चुके हैं. मिलावट के साथसाथ अब सफाई, रंग और कैलोरी आदि की भी जांच की जाती है,’’ स्वास्थ्य विभाग के चपरासी श्यामलाल ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘मगर मेरे यहां सफाई का स्तर ठीक है. आप सारे रेस्तरां में कहीं भी गंदगी दिखाएं, किचन में सबकुछ स्टैंडर्ड का है.’’

‘‘ये सब बातें कहने की हैं. अफसर लोग नहीं मानते.’’

‘‘मांग जायज हो तो मानें. पिछले 3 साल से महीने की दर बढ़तेबढ़ते 10 गुनी हो गई है…यह तो सरासर लूट है.’’

‘‘महीना सब का बढ़ाया है, अकेले आप ही का नहीं.’’

‘‘मगर मैं इतना नहीं दे सकता.’’

‘‘सोचविचार कर लीजिए. खामख्वाह पंगा पड़ जाएगा,’’ एक तरह से धमकी देता श्यामलाल चला गया.

चपरासी के जाते दोनों बेटे सुरेश और अशोक भी पिता के पास आ गए. कहां तो 100 रुपए महीना था, अब 3 हजार रुपए महीना मांगा जा रहा है. पहले मिलावट के मामले में सजा अधिकतम 6 महीने से 1 साल तक थी साथ में 1 से 2 हजार रुपए तक जुर्माना था.

नए प्रावधानों में अब न्यूनतम सजा 3 साल की तथा जुर्माना 25 हजार से 3 लाख रुपए तक हो गया था. जैसे ही कानून सख्त हुआ था वैसे ही रिश्वत की दर भी आसमान पर पहुंच गई. सफाई या हाईजिन स्तर के नाम पर किसी प्रतिष्ठान, दुकान को बंद करवाने का अधिकार भी खाद्य निरीक्षक को मिल गया था. इस से भी अब लूट बढ़ गई थी.

लालजी की गोलहट्टी के नाम से खानेपीने की दुकान सारे शहर में मशहूर थी. माल का स्तर शुरू से काफी अच्छा था. मिलावट वाली कोई वस्तु नहीं थी.  मिलावट तो नहीं थी मगर प्रयोग- शालाओं में कई अन्य आधारों पर नमूना फेल हो जाता था. नमूने को कभी स्तरहीन या अखाद्य या ‘एक्सपायर्ड’ भी करार दे दिया जाता था, जिस से मुकदमा दर्ज हो जाता था या फिर दुकान बंद हो जाती.

जितने ज्यादा नए कानून बनते उतने नए अपराधी बनते. जितना सख्त कानून होता उतना ज्यादा रिश्वत का रेट होता. अपराध तो कम नहीं होते थे, भ्रष्टाचार जरूर बढ़ जाता था.  लाला कुंदन लाल ने जीवनभर मिलावट नहीं की थी. वे ऐसा करना पसंद नहीं करते थे. ग्राहकों को साफसुथरा खाना देना अपना कर्तव्य समझते थे. किसी जमाने में मिलावट का नाम भी नहीं था. मिलावट क्या होती है…कोई नहीं जानता था.  तब खाद्य निरीक्षक का पद भी नहीं था. नगर परिषद का सैनेटरी इंस्पैक्टर कभीकभार बाजार का चक्कर लगा लेता था. किसीकिसी का सैंपल या नमूना ले कर प्रयोगशाला को भेज दिया करता था. सैंपल फेल कम आते थे. सैंपल फेल आने पर जुर्माना होता था जो 50 रुपए से 400-500 रुपए तक था. मगर ऐसा कम ही होता था. कोई सजा का मामला नहीं था.

अब वक्त बदल चुका था. आबादी बहुत बढ़ गई थी. साथ ही कानून और अपराधी भी. अब सैंपल या नमूना फेल ज्यादा आते थे, पास कम होते थे. गेहूं के साथ घुन भी पिसता है, के समान मिलावट न करने वाले भी फंस जाते थे.

लाला कुंदन लाल के साथ दोनों बेटे भी विचारमग्न थे. क्या करें? कभी रिश्वत मात्र 100  रुपए महीना थी अब 3 हजार रुपए मांगे जा रहे थे. कल को या भविष्य में 30 हजार रुपए महीना भी मांगे जा सकते थे. वे मिलावट नहीं करते थे मगर हर जगह बेईमानी थी. प्रयोगशालाओं में नमूने फेल, पास करवाए जाते थे.  अपने विरोधी या प्रतिद्वंद्वी को फंसाने के लिए कई व्यापारी उस का नमूना प्रयोगशाला में फेल करवा देते थे. बदले समय के साथ अब व्यापार में भी घटियापन बढ़ गया था.

‘‘फूड इंस्पैक्टर 3 हजार रुपए महीना मांग रहा है,’’ लालाजी ने दोनों बेटों को बताया.

‘‘पिताजी, दे दीजिए. सैंपल भर लिया, फेल करवा दिया तब परेशानी बढ़ जाएगी,’’ छोटे बेटे अशोक ने कहा.

‘‘मगर इन की मांग सुरसा के मुंह के समान बढ़ती जा रही है. कभी 100 रुपए महीना था. अब 3 हजार रुपए मांग रहे हैं, साथ ही आधा दर्जन लोग खाने आ जाते हैं,’’ लालाजी ने रोष भरे स्वर में कहा.

इस पर दोनों बेटे खामोश हो गए. क्या करें? पुराना फूड इंस्पैक्टर शरीफ था. 100 रुपए महीना लेने पर भी विनम्रता से पेश आता था. नए जमाने का खाद्य निरीक्षक 3 हजार ले कर भी रूखे और रोबीले अंदाज में बात करता था.  लालाजी मिलावट पहले नहीं करते थे, अब भी नहीं करते. बात सिर्फ इंसाफ की थी. इंसाफ कहां था? प्रयोगशालाओं में निष्पक्षता न थी यही सब से बड़ी समस्या थी.  2 दिन बाद, चपरासी श्यामलाल दोबारा आया.

‘‘लालाजी, क्या इरादा है?’’

‘‘मैं ने पहले भी कहा है, मैं मिलावट नहीं करता. मैं महीना किस बात का दूं?’’ दोटूक स्वर में लालाजी ने कहा.

‘‘लालाजी, सोच लीजिए,’’ यह बोल कर गुस्से से तमतमाता चपरासी वापस चला गया.

‘‘पिताजी, आप ने यह क्या किया? अब यह हमारा सैंपल भरवा देगा?’’ दोनों बेटों ने पिताजी के पास आ कर कहा.

‘‘जो होगा देखेंगे. जोरजबरदस्ती की भी एक सीमा है. जब हम मिलावट ही नहीं करते तब महीना किस बात का दें.’’

‘‘पिताजी, वे प्रयोगशाला से नमूना फेल करवा देंगे.’’

‘‘जो होगा देखेंगे. अब मैं 60 साल का हूं. मुकदमा हो भी जाता है तो भी परवा नहीं है,’’ लालाजी के स्वर में एक निश्चय और चेहरे पर आभा थी.

शाम से पहले एक बड़ी स्टेशनवैगन गोलहट्टी के सामने आ कर रुकी. चिरपरिचित खाद्य निरीक्षक सोम कुमार और स्वास्थ्य अधिकारी मैडम शकुंतला उतर कर दुकान में प्रवेश कर गए.

‘‘दुकान का मालिक कौन है?’’ फूड इंस्पैक्टर ने रौब से पूछा.  लालाजी सब माजरा समझ रहे थे. दर्जनों बार परिवार सहित खापी कर जाने वाला पूछ रहा है कि दुकान का मालिक कौन है.

‘‘मैं हूं जी, बात क्या है?’’

इस दबंग जवाब की उम्मीद फूड इंस्पैक्टर को न थी.

‘‘क्याक्या बनाते हैं आप?’’

‘‘सामने काउंटर में रखा है, देख लीजिए.’’

‘‘आप के पास इस काम का लाइसैंस है?’’

‘‘हां, है जी. यह देखिए,’’ लालाजी ने शीशे से मढ़ी तसवीर के समान फ्रेम में जड़ी म्यूनिसिपैलिटी के लाइसैंस की कापी सामने रखते हुए कहा.

‘‘आप के खिलाफ स्तरहीन खाद्य- पदार्थ बनाने और बेचने की शिकायत है, आप का नमूना भरना है.’’

‘‘जरूर भरिए, किस चीज का नमूना दें?’’

इस बेबाक जवाब पर खाद्य निरीक्षक सकपका गया. काउंटर वातानुकूलित था. माल सब साफ था. दुकान में मक्खी, कीट, मच्छर का नामोनिशान तक न था. दुकान में सर्वत्र साफसफाई थी. रसोईघर साफसुथरा था.  गुलाबजामुन और रसगुल्लों का नमूना ले लिया. पहले कभी आने पर लालाजी ड्राईफू्रट से आवभगत करते थे मगर इस बार जानबूझ कर पानी भी नहीं पूछा. इस से इंस्पैक्टर चिढ़ गया.

नमूना ले सब चले गए.  ‘‘पिताजी, अगर नमूना फेल हो गया तो?’’ दोनों बेटों ने कहा, ‘‘पड़ोसी कहता है वह एक दलाल को जानता है जो प्रयोगशाला से नमूना पास करवा सकता है.’’

‘‘मगर हम तो मिलावट करते नहीं हैं, हौसला रखो, जो होगा देखेंगे.’’  शाम को चपरासी फिर आया. लालाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से घूरते हुए उस की तरफ देखा.

‘‘फूड इंस्पैक्टर कहता है अगर आप को मामला निबटाना है तो निबट सकता है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप चाहें तो नमूना यहीं खत्म कर देते हैं. प्रयोगशाला में नहीं भेजेंगे और आप चाहें तो नमूना प्रयोगशाला से पास भी करवा सकते हैं. हमारे पास दोनों इंतजाम हैं.’’

‘‘जब मैं मिलावट नहीं करता तब कैसा भी इंतजाम क्यों करूं?’’

चपरासी चुपचाप चला गया. डेढ़ माह बाद नतीजा आया. दोनों नमूने पास हो गए. लालाजी का मनोबल ऊंचा हो गया. दुकान की साख बढ़ गई. 2 माह गुजर गए.  दोपहर को स्वास्थ्य विभाग की वही पहली वाली जीप दुकान के सामने आ कर रुकी.

‘‘आप के खिलाफ शिकायत है. किसी ग्राहक को आप के यहां नाश्ता करने के बाद पेट में दर्द हुआ था,’’ फूड इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘वह कौन है?’’

‘‘प्रमुख चिकित्सा अधिकारी के पास लिखित शिकायत आई थी. आप का नमूना भरना है.’’

‘‘जरूर भरिए.’’

लालाजी के स्वर की दृढ़ता से स्वास्थ्य अधिकारी भी थोड़ा विचलित था. खाद्य निरीक्षक ने दुकान में नजर दौड़ाई. दुकान छोटीमोटी रेस्तरां थी. 4-5 मिठाइयां जैसे रसगुल्ले, गुलाबजामुन, रसमलाई, मिल्ककेक, पिस्ता बर्फी और पुलावचावल के साथ राजमा और छोलेभठूरे आदि प्लेट और पीस रेट के हिसाब से बेचे जाते थे.  दीवार पर रेट लिस्ट लगी थी. साथ  ही लिखा था, ‘यहां गाय का दूध प्रयोग होता है.’, ‘मिल्क नौट फौर सेल’, ‘दूध बेचने के लिए नहीं है.’  प्रावधानों के अनुसार जो वस्तु बेचने के लिए न हो उस का नमूना नहीं लिया जा सकता था. मिठाई का सैंपल पास हो चुका था. चावल, पुलाव, राजमा, छोलेभठूरे में क्या मिलावट हो सकती थी?

‘‘जरा छोले दिखाइए.’’

लालाजी के इशारे पर कारीगर ने एक कटोरी में गैस पर रखे गरम छोले डाल कर दे दिए. नाक के समीप ला उस को सूंघते हुए फूड इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘मसाले की गंध कुछ अजीब सी है. आप इस का नमूना दे दीजिए.’’  मसालाचना, राजमा व छोले की तरी का नमूना अलग से ले टीम चली गई. इस बार चपरासी ‘इंतजाम’ की बात करने नहीं आया. बेटों के सामने भी ‘दलाल’ की मार्फत नमूना पास करवाने की बात नहीं उठाई.  डेढ़ महीने बाद नतीजा आया. राजमा, मसालाचना का नमूना पास हो गया था. छोलेतरी का नमूना निर्धारित मात्रा से ज्यादा मसाला मिलाने पर तकनीकी आधार पर फेल हो गया था.  रजिस्टर्ड डाक से लालाजी को नोटिस मिला. ‘आप का नमूना प्रयोगशाला द्वारा फेल घोषित किया गया है. आप इस तारीख को मुख्य दंडाधिकारी के न्यायालय में हाजिर हों. यदि आप राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट से असहमत हैं तो केंद्रीय प्रयोगशाला में नमूने को दोबारा परीक्षण हेतु 10 दिन के अंदरअंदर भिजवा सकते हैं.’

लालाजी नोटिस की प्रति ले कर अपने परिचित वकील के पास पहुंचे.  ‘‘अरे, भाई, इस मामले को निचले स्तर पर निबटा देना था. जो मांग रहे थे दे देते,’’ वकील साहब ने नोटिस पढ़ कर कहा.

‘‘मांग जायज होती तो पूरी कर भी देता. कभी 100-200 रुपए महीना मांगते थे अब 3 हजार रुपए और ऊपर से कभी भी खानेपीने को आ जाते. साथ में रौब अलग से.’’  ‘‘मगर मुकदमा कई साल चल सकता है. पेशियों की परेशानी है. नमूना तकनीकी आधार पर फेल है इसलिए सजा का मामला नहीं है. सजा मिलावट के मामले में होती है,’’ वकील साहब ने कहा.  ‘‘और अगर इसे केंद्रीय प्रयोगशाला में दोबारा परीक्षण के लिए भेज दूं तो?’’

‘‘तब कई पहलू हैं. केंद्रीय प्रयोगशाला इसे पास कर सकती है. राज्य प्रयोगशाला की रिपोर्ट के समान ही रिपोर्ट दे सकती है. विभिन्न रिपोर्ट दे सकती है. मिलावट घोषित कर सकती है.’’

‘‘यह तो एक किस्म का जुआ है. ठीक है, हम नमूना दोबारा परीक्षण के लिए केंद्रीय प्रयोगशाला में भेज देते हैं.’’  निर्धारित तिथि को लालाजी, एक पड़ोसी दुकानदार को बतौर जमानती, एक पूर्व नगर पार्षद को बतौर शिनाख्ती और नमूना दोबारा भिजवाने के लिए लकड़ी का खाली डब्बा, रुई का बंडल, सफेद कपड़े का टुकड़ा ले अदालत पहुंच गए.  पहले जमानत हुई. फिर नमूना भेजने की तारीख पड़ी. तारीख वाले दिन नमूना दोबारा सील कर केंद्रीय प्रयोगशाला में रजिस्टर्ड पार्सल द्वारा भेज दिया गया.  चपरासी अब फिर आया.

‘‘लालाजी, हमारे पास केंद्रीय प्रयोगशाला में इंतजाम है.’’

‘‘नहीं भाई, मुझे इंतजाम नहीं करवाना. नमूना फेल भी आ जाता है तो भी कोई बात नहीं. जब तक अदालत फैसला सुनाएगी मैं इस दुनिया से बहुत दूर जा चुका होऊंगा.’’  लालाजी के इस बेबाक जवाब पर चपरासी चला गया. दुकान में खापी रहे ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़े.

2 महीने बाद नतीजा आया. नमूना मिलावटी नहीं था. मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से कम थी जबकि राज्य प्रयोगशाला ने मसाले की मात्रा निर्धारित स्तर से ज्यादा बताई थी.  चार्ज की पेशी पर बहस हुई. माननीय न्यायाधीश ने दोनों प्रयोगशालाओं द्वारा दी गई अलगअलग परीक्षण रिपोर्टों के आधार पर लालाजी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया.  सारे सिलसिले में 7-8 महीने का समय लगा? और 12 हजार रुपए खर्च हुए. थोड़ी परेशानी तो हुई मगर लालाजी के नैतिक साहस और बेबाकी की सारे दुकानदारों और पड़ोसियों में चर्चा और प्रशंसा हुई.

Hindi Kahani : संबंधों का कातिल

Hindi Kahani :   ‘‘माफ करना भाई, तुम्हें तो बात भी करना नहीं आता,’’ इतना बोल कर सुबोध ने अपने हाथ जोड़ लिए तो मानव खीज कर रह गया.

अचानक बात करतेकरते दोनों को ऐसा करता देख मैं भी घबरा गया. कमरे में झगड़ा हो और नकारात्मक माहौल बन जाए तो बड़ी घुटन होती है. मैं तनाव में नहीं जी सकता. पता नहीं कैसाकैसा लगने लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी ने नाक तक मुझे पानी में डुबो दिया हो.

‘‘शांत रहो भाई, तुम दोनों को क्या हो गया है?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं भूल गया था कि कुपात्र को सीख नहीं देनी चाहिए. जिसे कुछ लेने की चाह ही न हो उसे कुछ कैसे दिया जा सकता है. बरतन सीधे मुंह रखा हो तभी उस में कोई चीज डाली जा सकती है, उलटे बरतन में कुछ नहीं डाला जा सकता. चाहे पूरी की पूरी सावन की बदली बरस कर चली जाए पर उलटे पात्र में एक बूंद तक नहीं डाली जा सकती. जिस चरित्र का यह मालिक है उस चरित्र पर तो किसी की अच्छी सलाह काम ही नहीं कर सकती. ऐसे लोग कभी किसी के हो कर नहीं रहते.’’

मानव चेहरे पर विचित्र भाव लिए कभी मेरा मुंह देख रहा था और कभी सुबोध का…जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो, जैसे उस का कोई परदा उठा दिया हो किसी ने. अभी कुछ दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. हम तीनों एक ही कमरा शेयर करते हैं. हमारे पेशे अलगअलग हैं लेकिन रहने को छत एक ही है जिस के नीचे हमारी रात और सुबह बीतती है.

‘‘चरित्र से…क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘क्या इस का मतलब तुम्हें नहीं पता? इतने तो नासमझ नहीं हो तुम, जो तुम्हें चरित्र का मतलब पता ही न हो. पढ़ेलिखे हो, अच्छी कंपनी में काम करते हो, हर महीने अच्छाखासा वेतन पाते हो, जूता तक तो तुम्हारा ब्रांडेड होता है. कंपनी में ऊपर तक जाने की जितनी तीव्र इच्छा  तुम्हें है उस के लिए अनैतिकता के कितने गहरे गड्ढे में धंस चुके हो, तुम्हें खुद ही नहीं पता…तुम कहां से हो और कहां जा रहे हो तुम्हें जरा सी भी समझ है? क्या जानते भी हो, कहां जा रहे हो…और कहां तक जाना चाहते हो उस की कोई तो सीमा होगी?’’

‘‘सीमा…सीमा कौन? किस की बात कर रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी सीमा की बात नहीं कर रहा हूं. मैं तो उस सीमा की बात कर रहा हूं जिसे हद भी कहा जाता है. हद यानी एक वह सूक्ष्म सी रेखा जिस के पार जाने से पहले मनुष्य को लाख बार सोचना चाहिए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. सीमा नाम की लड़की मानव की पत्नी है लेकिन मानव ने तो कहा था कि वह अविवाहित है और अपनी ही कंपनी में साथ काम कर रही एक सहयोगी के साथ उस के संबंध बहुत गहराई तक जुड़े हैं, सब जानते हैं. तो क्या मानव सब के साथ झूठ बोल रहा है? हाथ का काम छोड़ मैं सुबोध के समीप चला आया. मानव की शक्ल से तो लग रहा था जैसे काटो तो खून का कतरा भी न निकले. एक निश्छल सी मुसकान थी सुबोध के होंठों पर. बेदाग चरित्र है उस का. पहले ही दिन जब मिला था बहुत प्यारा सा लगा था. बड़े मस्त भाव से दाढ़ी बनाता जा रहा था.

‘‘हर इच्छा की सीमा होती है, कितनी भूख है तुम्हें पैसे की? सोचा जाए तो मात्र पैसे की ही नहीं, तुम्हें तो हर शह की भूख है. इतनी भूख से पेट फट जाएगा मानव, बदहजमी हो जाती है. प्रकृति ने इंसानों का हाजमा इतना मजबूत नहीं बनाया कि पत्थर या शीशा खा सके. हम अनाज या ज्यादा से ज्यादा जानवर खा सकते हैं.’’

यह कह कर मुंह धोने चला गया सुबोध और मानव मेरे सामने बुत बना यों खड़ा था मानो उसे बीच चौराहे पर किसी ने नंगा कर दिया हो.

‘‘तुम ये कैसी बातें कर रहे हो, सुबोध?’’ मैं ने पूछा.

‘‘क्या हुआ? जी मिचलाने लगा क्या? मानव का जी तो नहीं मिचलाता. पूछो, इसे इंसान का गोश्त कितना स्वाद लगता है. पिछले 4 साल से यह इंसान का गोश्त ही तो खा रहा है…अपने मांबाप का गोश्त, उस के बाद अपनी पत्नी और उस के पिता का गोश्त, यह तो एक बच्चे का पिता भी होता यदि पत्नी का गर्भपात न हो जाता. एक तरह से अपने बच्चे का गोश्त भी खा चुका है यह इंसान.’’

‘‘बकवास बंद करो सुबोध,’’ मानव ने चिढ़ कर कहा.

‘‘मेरी क्या मजाल है जो मैं बकवास करूं. उस का ठेका तो तुम ने ले रखा है. साल भर पहले घर गए थे तुम, सोचो, तब वहां क्या बकवास कर के आए थे? पत्नी को छोड़ना चाहते थे इसलिए उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा दिया.

‘‘एमबीए करने के लिए अपनी पत्नी के पिता से 8 लाख रुपए ले लिए. उन की बेटी का घरसंसार समृद्धि से भर जाएगा, उन को तुम ने ऐसा आश्वासन दिया था. पत्नी बेचारी घर पर इस के मातापिता की सेवा करती रही, इसी उम्मीद पर कि उस का पति बड़ा आदमी बन कर लौटेगा.

‘‘अजन्मा बच्चा अपने पिता का दोषारोपण सुनते ही चलता बना. मुड़ कर कभी नहीं देखता पीछे क्याक्या छूट गया. किसकिस के सिर पर पैर रख कर यहां तक पहुंचे हो, मानव. क्या जरा सा भी एहसास है?

‘‘अब क्या उस नेहा नाम की लड़की के कंधे पर पैर नहीं हैं तुम्हारे, जिस का भाई तुम्हें अमेरिका ले जाने वाला है? अमेरिका पहुंच कर नेहा को भी छोड़ देना. मानव नहीं हो तुम तो दानव बन गए हो. क्या तुम्हारे अंदर सारी की सारी संवेदनाएं मर गई हैं? पता है न तुम्हें कि कौनकौन कोस रहा है तुम्हें. तुम्हारे मातापिता, तुम्हारे ससुर…जिन की भविष्यनिधि भी तुम खा गए और उन की बेटी का घर भी नहीं बस पाया.’’

मानव की अवस्था विचित्र सी हो गई. बारबार कुछ कहने को वह मुंह खोलता तो सुबोध उस पर नया वार कर देता. प्याज के छिलकों की तरह परतदरपरत उस के भूतकाल की परतें उतारता जा रहा था. सफाई दे भी तो कैसे दे और शुरू कहां से करे, उस का तो आदि से अंत सब ही विश्वास और अपनत्व से शून्य था. जो इंसान अपने मांबाप का सगा न हुआ, अपनी पत्नी के प्रति वफादार न हुआ वह किसी और का भी क्या होगा? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अपनी संतान के प्रति भी जिस ने कोई जिम्मेदारी न समझी, वह कहांकहां से पलायन कर रहा है समझा जा सकता है.

‘‘सुबोध, तुम यह सब कैसे जानते हो. जरा बताओ तो?’’ मैं ने सुबोध का हाथ पकड़ कर पूछा था. शांत रहने वाला सुबोध इस पल जरा आवेश में था.

‘‘तुम मुझ से क्यों पूछ रहे हो कि मैं यह सब कैसे जानता हूं. तुम इस नाशुक्रे इंसान से सिर्फ यह पूछो कि जो कुछ भी मैं ने इस के लिए कहा है वह सच है या नहीं. मैं कैसे जानता हूं कैसे नहीं, इस से क्या फर्क पड़ता है. पूछो इस से कि इस के मातापिता आजकल कहां हैं? जिंदा भी हैं या मर गए? तलाक के बाद इस की पत्नी और उस के पिता का क्या हुआ? क्या यह जानता है? अपने ससुर के 8 लाख रुपए यह कब लौटाने वाला है जो अब सूद मिला कर 10-12 लाख रुपए तो होने ही चाहिए.’’

‘‘सीमा ने अभी मुझे तलाक दिया कहां है…’’ पहली बार मानव ने अपने होंठ खोले, ‘‘और क्या सुबूत है उस के पास कि वे रुपए उस के पिता ने ही दिए थे.’’

‘‘जिस दिन अदालत का नोटिस तुम्हारे औफिस पहुंच जाएगा, उस दिन अपनेआप पता चल जाएगा किस के पास कितने और कैसे सुबूत हैं…इतना लाचार और बेवकूफ किसे समझ रहे हो तुम?’’

सुबोध इतना सब कह कर अपने कपड़े बदलने लगा.

‘‘आजकल मुंह छिपा कर भागना आसान कहां है. इंसान मोबाइल नंबर से पकड़ा जाता है, जिस कंपनी में काम करो वहां से छोड़ कर कहीं और भी चले जाओ तो भी सिरा हाथ में आ जाता है. यह दुनिया इतनी बड़ी कहां रह गई है कि इंसान पकड़ में ही न आए. जल्दी ही नेहा को भी पता चल जाएगा तुम्हारा कच्चा चिट्ठा. यह मत सोचो कि तुम सारी दुनिया को बेवकूफ बना लोगे.’’

बदहवास सा होने लगा मानव. 15 दिन पहले ही तो सुबोध हमारे साथ रहने आया है. उस ने कहा था जम्मू से है, मानव भी जम्मू से है, तब मुझे क्षण भर को लगा भी था कि मानव जम्मू का नाम सुन कर जरा सा परेशान हो गया था, बड़ी गहराई से परख रहा था कि वह किस हिस्से से है, किस कोने से है.

‘‘अगर इंसान जिंदा है और अच्छी नौकरी में है तो छिप नहीं सकता और मुझे पूरा विश्वास है तुम अभी जिंदा हो.’’

धड़ाम से वहीं बैठ गया मानव. सुबोध जल्दीजल्दी तैयार होने लगा. उस ने अपना नाश्ता किया और जातेजाते मानव का कंधा थपथपा दिया.

‘‘अभी भी देर नहीं हुई. मर जाओ या जिंदा रहो, अपने ही काम आते हैं. रोते भी अपने ही हैं, ऐसा दुनिया कहती है. अपना घरपरिवार संभालो, अपनों के साथ छल मत करो वरना वह दिन दूर नहीं जब यही छल घूमफिर कर तुम्हारे ही सामने परोसा जाएगा…अपने घर जाओ मानव, तुम्हारी मां बहुत बीमार हैं.’’

‘‘क्या?’’ मानव के होंठों से पहली बार यह शब्द अपनेआप ही निकला था.

‘‘अपनी मां तो याद हैं न. जाओ उन के पास. नेहा जैसी कल बहुत मिल जाएंगी. आज मां हाथ से निकल गईं तो पूरी उम्र जमीन से जुड़ने को ही तरस जाओगे. पत्नी को छोड़ा है, जाहिर है वह भी मर तो नहीं जाएगी. वह तो कल अपना रास्ता स्वयं ढूंढ़ लेगी, लेकिन आज जो छूट जाएगा वह कभी हाथ नहीं आएगा. अच्छे इंसान बनो मानव…मांबाप ने इतना अच्छा नाम रखा था…कुछ तो उसे सार्थक करो.’’

सुबोध चला गया. कहां से बात शुरू हुई थी और कहां आ पहुंची थी. हैरान हूं मानव के बारे में इतना सब जानते हुए वह 15 दिन से चुप क्यों था. और मानव का चरित्र भी कैसा था, जिस ने साल भर में कभी मांबाप का जिक्र तक नहीं किया. घर में पालतू जानवर पाल लो तो उस का भी नाम कभीकभार इंसान ले ही लेता है.

सुबोध ने बताया था कि उस के कई मित्र मानव के गांव से हैं. हो सकता है उन्हीं से उसे सारी कहानी पता चली हो. मैं तो कितना अच्छा दोस्त समझ रहा था मानव को. अब लग रहा है अपनी समझ को अभी मुझे और परिपक्व करना पड़ेगा. इंसान को परखना अभी मुझे नहीं आया.

मैं सोचने लगा हूं…मानव, जो अच्छा इंसान ही नहीं है वह अच्छा मित्र कैसे होगा. प्यार पाने के लिए तो प्यार बोना पड़ता है और विश्वास पाने के लिए विश्वास. मानव के तो दोनों हाथ खाली हैं, यह क्या लेगा जब कभी दिया ही नहीं. इस के हिस्से तो मात्र खालीपन और अकेलापन ही है.

मानव बुत बना चुपचाप बैठा रहा.

Story In Hindi : ब्रह्मपिशाच – क्या था ओझा का सच?

Story In Hindi : शारदा बाबू एक बैंक के कर्मचारी थे. शहर से थोड़ी दूर पर उन का गांव था. उन की पत्नी ज्यादातर अपने गांव में ही रहती थी. उन की बेटी पुनीता करीब 16 या 17 साल की रही होगी. प्राइवेट हाईस्कूल की परीक्षा दे रही थी.

शारदा बाबू के 4 बेटे थे. सब से बड़ा राजेंद्र कादीपुर ब्लाक में विकास अधिकारी था. शारदा बाबू के मकान की छत से लगी हुई मेरी भी छत थी. मैं भी बैंक में ही टाइपिस्ट थी.

एक दिन पुनीता खुशखुश मेरे पास आई, ‘‘भाभीजी, भैया की शादी तय हो गई है. सुना है कि भाभी का स्वभाव बहुत ही अच्छा है. कल हम सब लोग शादी में गांव जा रहे हैं. आप भी चलिए न.’’

‘‘तू जा, बेटी. मेरी छुट्टियां थोड़े ही हैं,’’ कह कर मैं ने उसे टाल दिया.

सब से छोटी और इकलौती बेटी होने के कारण पुनीता अपने मांबाप और भाइयों की बहुत दुलारी थी. बड़ा भाई राजेंद्र उसे बहुत प्यार करता था.

जब भी वह गांव से आता, भाभी लाने की बात चलने पर वह उसे बड़े प्यार से थपथपा कर कहता, ‘‘बहुत जल्दी आएगी तेरी भाभी. आते ही पहले ही दिन उस को समझा दूंगा मैं, ‘देखो भई, पुनीता मेरी प्यारी बहन है. इसे एक शब्द भी कभी कड़ा मत कहना. मेरे बच्चे की तरह है यह.’’’

पुनीता यह सुन कर खुशी से नाच उठती. यही कारण था कि भाभी के आने की बात सुन कर उस का तनमन खुशी से नाच उठा था. पुनीता को कई बार टाइफाइड हो चुका था. उस का मस्तिष्क बीमारी के कारण कुछ कमजोर हो चला था. यही कारण था कि शारदा बाबू परेशान हो कर स्कूल में कई बार फेल होने पर उस को प्राइवेट परीक्षा ही दिला रहे थे.

तीसरे दिन गांव से लौट कर पुनीता अपने स्वभाव के अनुसार मेरे पास आई तो उस के गुलाबी हंसमुख चेहरे पर परेशानी झलक रही थी. आंखें ऐसी लग रही थीं जैसे रात भर कोई भयानक स्वप्न देखा हो. उस के खूबसूरत चेहरे पर पीड़ा फैली हुई थी.

‘‘कैसी है तेरी भाभी? खूब मजा आया होगा न? मेरे लिए मिठाई लाई है?’’ मैं ने प्यार से पूछा.

‘‘मिठाई?…कभी नहीं. नई भाभी जो आ गई है. अब मिठाई कभी नहीं मिलेगी. भाभीजी ने मुझे बहुत डांटा. मुझ से दाल में ज्यादा हो गया था…अरे हां, नमक ज्यादा हो गया था. तब भी भैया और भाभी को ऐसा नहीं करना चाहिए था. आप ही बताइए, अब मैं क्या करूं? क्या नदी में कूद पड़ूं?’’ कह कर उस ने मुझे झिंझोड़ दिया.

‘‘पुनीता, तू क्या कह रही है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है. किसी भी छोटी सी बात का इतना बुरा नहीं मानते. तेरी तबीयत ठीक नहीं मालूम देती. अरे, तुझे तो तेज बुखार भी है. जा कर आराम कर.’’

मेरे कहने पर पुनीता चली गई

और मैं अपने काम में व्यस्त हो गई.

शाम को मैं दफ्तर से लौट कर कमरे में आई ही थी कि शारदा बाबू के घर

से चीखें और फिर बहुत शोरगुल सुनाई देने लगा.

मैं चाय पीना भूल कर उन की छत से लगी मुंडेर पर जा खड़ी हुई. शारदा बाबू की छत का दृश्य बहुत ही बुरा था. तिमंजिले की छत के किनारे पर बैठी पुनीता पागलों की तरह चीखचीख कर नीचे कूदने का प्रयास कर रही थी.

वह कभी हंसती, कभी रोती, अपना सिर झटकझटक कर कह रही थी, ‘‘मुझे छोड़ दो. नीचे वही बुला

रहा है…मैं नहीं कूदूंगी तो वह मुझे

खा जाएगा… वह हिंदुस्तान का राजा है. मुझे बहुत चाहता है, छोड़ दो मुझे, ह…ह…ह…’’

पुनीता को एक तरफ उस के पिताजी और दूसरी तरफ उस का छोटा भाई सुरेंद्र पकड़े हुए थे.

पुनीता की आंखें लाल सुर्ख और फूली हुई थीं. शायद उसे अब भी तेज बुखार था. उस के बाल खुले थे और चेहरे पर पूरे पागलपन के लक्षण थे.

उस को किसी प्रकार खींच कर शारदा बाबू नीचे ले गए और कमरे में बंद कर दिया.

पुनीता की मां जारजार रोती हुई बोलीं, ‘‘बहनजी, सुबह से यह कुछ बहकीबहकी बातें कर रही थी. मैं ने सोचा गांव में किसी से किसी बात पर नाराज हो कर बड़बड़ा रही होगी. लेकिन दोपहर के 12 बजतेबजते यह खूब जोर- जोर से रोने और बाहर भागने लगी. दरवाजे पर ताला लगा दिया तो सीढ़ी से चढ़ कर तिमंजिले पर भागी.

‘‘इस के पिताजी ने किसी काम के कारण छुट्टी ले रखी थी, नहीं तो अनर्थ हो जाता. पुनीता कूद कर आत्महत्या कर लेती. लड़की की जाति, अब मैं क्या करूं, बहनजी? कुछ भी समझ में नहीं  आ रहा है. आप ही बताइए न कोई उपाय…’’

यह कह कर पुनीता की मां दीनहीन सी बिलख पड़ीं. स्वाभाविक ही था

कि खूबसूरत जवान लड़की देखते ही देखते न जाने क्यों अपना संतुलन खो बैठी थी.

‘‘आप घबराइए नहीं. मुझे तो लगता है कि इसे किसी बात का धक्का पहुंचा है. कुछ दिमाग कमजोर तो है

ही इस का. बरदाश्त नहीं कर पाई और अपने दिमाग का संतुलन खो बैठी.

इस को जल्दी ही इलाहाबाद या लखनऊ ले जा कर किसी मानसिक इलाज

करने वाले डाक्टर को दिखाइए, नहीं तो इस की हालत खराब हो जाएगी. इस की जिंदगी आप को बचानी है तो जल्दी ही किसी बड़े डाक्टर के पास ले जाइए…’’

अभी मैं पुनीता की मां को सुझाव दे ही रही थी कि सामने रहने वाले नए किराएदार पंडितजी, हांफतेहांफते आ पहुंचे, ‘‘भाभीजी, काम हो गया, ओझा महाराज मिल गए. जरा सी देर में ही पुनीता ठीक हो जाएगी.’’

पंडितजी अपने शब्दों में करुणा भर कर बोल रहे थे, किंतु उन के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान खेल रही थी. एक क्षण चुप रह कर वह अपनी आंख के कोरों को पोंछने लगे, ‘‘भाभीजी, अब देर मत कीजिए. दानदक्षिणा, जो कुछ भी ओझा महाराज मांगें, वह सब पूरा कर के अपनी बिटिया के प्राण लौटा लीजिए. इतनी खूबसूरत इकलौती बेटी है आप की. इस के लिए तो लाखों न्योछावर किया जा सकता है. इस की हालत देख कर तो मेरा कलेजा फटा जा रहा है…’’

कह कर अपनी लंबी चोटी ऐंठते हुए पंडितजी मुंह पोंछ कर धीरे से मुसकरा उठे, जिसे मेरे सिवा और कोई न देख सका.

पंडितजी के हृदय में बेटी के लिए इतनी करुणा देख कर पुनीता की मां को विश्वास हो गया कि ओझा महाराज अवश्य उस की बेटी के अंदर का भूतपिशाच अपनी मुट्ठी में कर के उस की बेटी को स्वस्थ कर देंगे.

पंडितजी सब को ले कर नीचे

उतर गए. मैं ने उन्हें रोक कर समझाना चाहा, किंतु इस समय तो उन लोगों पर पंडित और ओझा महाराज का पूरा विश्वास जम चुका था. जिज्ञासावश मैं भी छत पर से ही उन के आंगन का नजारा देखने लगी.

खद्दर का कुरताधोती, सिर पर पीली पगड़ी, एक फुट लंबी तोंद, कंधे पर लाल अंगोछा और बड़ा सा लटकता  झोला, ऐंठी सी खिचड़ी मूंछें और एक आंख पत्थर की. ऐसे थे ओझा महाराज.

उन की मनहूस सी सूरत देख कर पहले शारदा बाबू ने पत्नी को आंख के इशारे से मना किया, किंतु उन पर तो जैसे कोई जादू डाल दिया गया हो. ऐसी दृष्टि से उन्होंने शारदा बाबू को घूरा, जैसे कह रही हों, ‘चुप रहो, पैदा तो मैं ने किया है. फिर भला तुम क्या जानो संतान का दर्द?’

मरता क्या न करता. बेचारे शारदा बाबू चुप हो गए. अब ओझा महाराज ने अपना काम आरंभ किया.

उन्होंने एक थाली में फूल रख कर ढेर सारा गुग्गुल और लोबान सुलगा दिया. चारों तरफ धुआं फैलने लगा.

अब पुनीता को, जो कमरे में बंद थी, खोला गया. ओझा महाराज के सामने कई लोग उसे पकड़ कर बैठ गए. वह अपने को छुड़ाने के लिए हाथपैर मारने लगी और वहीं पास में रखे ओझा महाराज के डंडे को उठा कर उन्हीं की पीठ पर दे मारा.

अचानक इस मार से ओझा महाराज बिलबिला उठे, ‘‘देखा आप लोगों ने? यह कोई छोटामोटा भूतपिशाच नहीं है. पिशाचों में वरिष्ठ ब्रह्मपिशाच है. किसी निरपराध ब्राह्मण की हत्या होने पर उस की आत्मा ही ब्रह्मपिशाच बन जाती है. चलते समय ही मैं ने यह समझ लिया था कि यही होगा और एक मंत्र पढ़ कर मैं ने उस पर चोट कर दी थी. इसीलिए इस ने मुझे मारा है. अभी क्या, अभी तो यह ऐसी छलांग लगाएगी कि छत पर कूद जाएगी. जिस को यह पिशाच पकड़ता है, उस में हाथी की शक्ति आ जाती है. अरे बाबूजी, यह पिशाच कोई छोटीमोटी शक्ति नहीं है. चुटकी बजाते प्राण हर लेता है यह.’’

‘‘धन्य हैं, महाराज, आप बिलकुल ठीक बात कह रहे हैं. अभी यह छत से नीचे कूद रही थी…’’ पुनीता की मां अंतर्यामी ओझा महाराज पर पूरी तरह से न्योछावर होती हुई बोलीं.

वही नहीं, इस बात से वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्य से एकदूसरे का मुंह देखने लगे, सिर्फ पंडितजी मंदमंद मुसकरा रहे थे.

शारदा बाबू भी प्रभावित होते हुए बोले, ‘‘आप सच कह रहे हैं. इस के अंदर हाथी की ही शक्ति आ गई है. मुझे 2 जगह यह दांत भी काट चुकी है. जिस कमरे में यह बंद थी उस कमरे की सारी चीजों को तोड़फोड़ डाला है. कपड़ा देखिए, इस ने दांतों से फाड़फाड़ कर चिथड़ा कर दिया है. अब तो बेटी के प्राण आप ही बचा सकते हैं महाराज. अपनी मंत्र विद्या से जल्दी ही ब्रह्मपिशाच को अपनी मुट्ठी में कीजिए…’’ कहते- कहते शारदा बाबू भी रो पड़े.

‘‘आप चिंता न कीजिए, अभी मंत्र मार कर मैं इस की शक्ति अपनी मुट्ठी में जकड़ लेता हूं. हां, आप लोग इस को संभाल नहीं पाएंगे इसलिए चारपाई पर लिटा कर रस्सी से इस के हाथपैर इतने जकड़ दीजिए कि यह तनिक भी न हिलनेडुलने पाए. अगर ऐसा नहीं करेंगे तो यह एकाध को घायल भी कर देगी.’’

‘‘नहीं…’’ पुनीता आंखें निकाल कर जोर से चीखी, लेकिन तभी ओझा महाराज का इतनी जोर का झापड़ उस के गाल पर पड़ा कि पांचों उंगलियों के निशान उभर आए.

पुनीता चीखती रही, किंतु ओझा महाराज की जादुई गिरफ्त में आने वाले लोग भला अब कहां कुछ भी सुन सकते थे? एक लड़की 4 मर्दों से भला कैसे अपने को छुड़ा पाती? नतीजा यह कि वह चीखती रही और लोग बेरहमी से उसे चारपाई में बांधते रहे. उस के दोनों पैर चारपाई तथा हाथ खिड़की की छड़ से बांध दिए गए.

अब ओझा महाराज अपने झोले में से एक दोना निकाल कर शारदा बाबू को देते हुए बोले, ‘‘लीजिए, यही मेरा प्रसाद है. इस में 5 बताशे हैं. इसे मैं घर से ही अभिमंत्रित कर के लाया हूं. बस, यही दवा है. इस में से 2 अभी, 2 कल सुबह और 1 परसों सुबह…’’

अब बताशा खिला कर ओझा महाराज पुनीता पर धीरेधीरे अपना मंत्र पढ़पढ़ कर फूंक मारने लगे.

और लोगों ने आश्चर्य से देखा कि ओझा के फूंक मारते ही बस 5 मिनट में पुनीता ने धीरेधीरे चुप हो कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

पुनीता के शांत हो जाने पर ओझा महाराज मुसकराए और मूंछों पर ताव देते हुए बोले, ‘‘देखा आप ने, मंत्र ने काम करना शुरू कर दिया. ब्रह्मपिशाच शांत हो गया. लेकिन कम से कम 3 दिन इसी तरह इसे रखना होगा. मैं घर जा कर 3 दिन, 3 रात उपवास रख कर इस की पूजा करूंगा, तब जा कर इसे उतार पाऊंगा. जरा सी भूलचूक हुई तो यह मेरे ही प्राण हर लेगा.

‘‘अच्छा, अब चलूं बाबूजी. हां, 1 हजार रुपए पूजा के लिए चाहिए या मैं जो सामान कहूं, वह मंगवा दीजिए. बात ऐसी है कि अब 3 दिन ब्रह्मपिशाच के साथियों, बरातियों को न्योता खिलाना पड़ेगा, तब कहीं जा कर छोड़ेगा यह…अरे हां, हर चीज बिलकुल पवित्र होनी चाहिए.

‘‘जो भी खाना यह खाना चाहे, चम्मच से इस के मुंह में डाल दीजिए. जरूरी काम होने पर रस्सी खोल कर फिर इसी तरह बांध दी जाए. तीसरे दिन मैं ही आ कर इसे पूरी तरह खोलूंगा. किसी डाक्टर की दवा न खिलाएंपिलाएं, नहीं तो यह ब्रह्मपिशाच इसी को ही नहीं, सारे कुटुंब को निगल जाएगा,’’ कहतेकहते ओझा महाराज ने ऐसा भयंकर मुंह बनाया कि सारा परिवार भय से थरथर कांप उठा.

भयभीत शारदा बाबू उसी दिन रुपए के लिए बैंक जाने लगे तो मैं ने उन्हें रोका, ‘‘शारदा बाबू, पढ़ेलिखे इनसान हो कर भी आप इन ओझा और मौलवियों के चक्कर में पड़ रहे हैं. मेरी बात मानिए तो पुनीता को जल्दी ही टैक्सी से लखनऊ ले जाइए.’’

मेरी बात अनसुनी कर के शारदा बाबू ने कहा, ‘‘जिस पर मुसीबत आती है वही उस का दर्द जानता है, दूसरा नहीं,’’ और वह तेजी से ओझा महाराज के साथ बैंक की तरफ चल दिए.

शाम को दफ्तर से लौटी तो लोगों ने बताया कि पुनीता तब से बराबर आंखें बंद किए बड़बड़ा रही है. खायापिया कुछ भी नहीं, किंतु चीखीचिल्लाई भी नहीं. ओझा महाराज का प्रताप है कि उन्होंने अपने मंत्र के बल से ब्रह्मपिशाच को शांत कर दिया. 1,001 रुपए ही तो लिए बेचारे ने. बेटी के प्राण तो बचा दिए.

सुन कर विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन करती क्या? चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो गई.

दूसरे दिन शनिवार की शाम को दफ्तर से लौट कर अपने घर लखनऊ जाने के लिए मैं अपनी अटैची ठीक कर रही थी कि शारदा बाबू का बड़ा बेटा राजेंद्र रोतासिसकता आ खड़ा हुआ.

‘‘बहनजी, पुनीता अब नहीं बचेगी.’’

‘‘क्या बात है? वह तो अब ठीक हो रही थी,’’ मैं चौंक पड़ी.

‘‘अरे, वह साला फरेबी, जालसाज निकला. उसी को बुलाने तो मैं गया था.’’

‘‘तब?’’

‘‘पता चला कि वहां इस नाम का कोई आदमी नहीं रहता.’’

‘‘और पंडित?’’

‘‘वह भी कल से गायब है. मकान में एक ही महीने तो रहा वह. आधा किराया पेशगी दिया था, बाकी आधा किराया भी मार कर भाग गया. धोखा देने के लिए कोठरी में एक सड़ा सा ताला डाल गया.’’

‘‘अच्छा, मैं तो पहले ही समझ रही थी कि ये सब जरूर जालसाज हैं. अरे हां, अब पुनीता का क्या हाल है? क्या पुनीता उसी तरह बंधी पड़ी है?’’

‘‘नहीं, बहनजी, अब उसे खोल दिया गया है. लेकिन जगहजगह रस्सियों से उस के हाथपैर में नीले निशान पड़ गए हैं. उस का रंग काला हो गया है और शक्तिहीन सी आंखें बंद किए वह पड़ी है. न कुछ बोलती है और न कुछ खाती- पीती है. माताजी खूब रो रही हैं. पिताजी ने आप के पास मुझे भेजा है. आप का परिचय लखनऊ मेडिकल कालिज में जरूर होगा…’’

राजेंद्र ने ऐसी याचनाभरी दृष्टि से मुझे देखा कि मैं अंदर तक करुणा से भर उठी. नतीजा यह हुआ कि उसी वक्त हम लोग पुनीता को ले कर लखनऊ चल दिए.

वहां एक मनोचिकित्सा के विशेषज्ञ मेरे परिचित निकल आए. उन्होंने फौरन पुनीता को देखाभाला. उन्होंने बताया कि पुनीता को ओझा ने बताशा किसी ऐसी नशीली चीज में डुबो कर दिया था जिस से उसे नींद आ रही है. ब्रह्मपिशाच नहीं, इसे किसी बात का गहरा आघात लगा है. जो लोग दिमाग से कमजोर होते हैं, आघात खा कर अपना संतुलन खो बैठते हैं. आप लोगों की आंखें समय से खुल गईं, नहीं तो ओझा के चक्कर में आप की बेटी के प्राण निकल जाते और आप बस, हाथ मलते रह जाते.’’

1 माह तक उस डाक्टर की दवा करने से पुनीता बिलकुल ठीक हो गई. अब वह बाकायदा अपनी परीक्षा दे रही है. तब से उस के परिवार वालों ने कान पकड़ लिया है कि वे किसी ओझा और पंडित का विश्वास नहीं करेंगे.

कहानी- डा. माया शबनम

Short Story : जो बोया सो काटा

Short Story : बच्चों के साथ रहने के मामले में मनीषा व निरंजन के सुनेसुनाए अनुभव अच्छे नहीं थे. अपने दोस्तों व सगेसंबंधियों के कई अनुभवों से वे अवगत थे कि बच्चों के पास जा कर जिंदगी कितनी बेगानी हो जाती है, लेकिन अब मजबूरी थी कि उन्हें बच्चों के पास जाना ही था क्योंकि वे शारीरिक व मानसिक रूप से लाचार हो गए थे.

उम्र अधिक हो जाने से शरीर कमजोर हो गया था. निरंजन के लिए अब बाहर के छोटेछोटे काम निबटाना भी भारी पड़ रहा था. कार चलाने में दिक्कत होती थी. मनीषा वैसे तो घर का काम कर लेती थीं लेकिन अकेले ही पूरी जिम्मेदारी संभालना मुश्किल हो जाता था. नौकरचाकरों का कोई भरोसा नहीं, काम वाली थी, कभी आई कभी नहीं.

छुट््टियां न मिलने की वजह से बेटा अनुज भी कम ही आ पाता था. इसलिए उन्हें अब मानसिक अकेलापन भी खलने लगा था. अकेले रहने में अपनी बीमारियों से भी निरंजनजी डरते थे.

यही सब सोचतेविचारते अपने अनुभवों से डरतेडराते आखिर उन्होंने भी लड़के के साथ रहने का फैसला ले ही लिया.

इस बारे में उन्होंने पहले बेटे को चिट्ठी लिखना ठीक समझा ताकि बेटे और बहू के मूड का थोड़ाबहुत पहले से ही पता

चल जाए.

हफ्ते भर के अंदर ही बेटे का फोन आ गया कि पापा, आज ही आप की चिट्ठी मिली है. आप मेरे पास आना चाह रहे हैं, यह हम सब के लिए बहुत खुशी की बात है. बच्चे और नीता तो इतने खुश हैं कि अभी से आप के आने का इंतजार करने लगे हैं. आप बताइए, कब आ रहे हैं? मैं लेने आ जाऊं या फिर आप खुद ही आ जाएंगे?

फोन पर बेटे की बातें सुन कर निरंजन की आंखें भर आईं. प्रत्युत्तर में बोले, ‘‘हम खुद ही आ जाएंगे, बेटे… परसों सुबह यहां से टैक्सी से चलेंगे और शाम 7 बजे के आसपास वहां पहुंच जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, पापा,’’ कह कर बेटे ने फोन रख दिया.

‘‘अनुज हमारे आने की बात सुन कर बहुत खुश है,’’ निरंजन बोले.

‘‘अभी तो खुश है पर पता नहीं हमेशा साथ रहने में कैसा रुख हो,’’ मनीषा अपनी शंका जाहिर करती हुई बोलीं.

‘‘सब अच्छा होगा, मनीषा,’’ निरंजन दिलासा देते हुए बोले.

शाम के 7 बजे जब निरंजन और मनीषा बेटे के घर पर पहुंचे तो बेटेबहू और बच्चे उन के इंतजार में बैठे थे. दरवाजे पर टैक्सी रुकने की आवाज सुन कर चारों घर से बाहर निकल पड़े.

दादाजी…दादाजी कहते हुए दोनों बच्चे पैर छूते हुए उन से चिपक गए. बेटेबहू ने भी पैर छुए. सब ने एकएक सामान उठा लिया. यहां तक कि बच्चों ने भी छोटा सामान उठाया और सब एकसाथ अंदर आ गए.

मन में शंका थी कि थोड़े दिन रहने की बात अलग थी पर हमेशा के लिए रहना…न जाने कैसा हो.

नीता चायनाश्ता बना कर ले आई. सभी बैठ कर गपशप करने लगे.

‘‘मम्मीपापा, आप फ्रेश हो लीजिए,’’ बहू नीता बोली, ‘‘इस कमरे में आप का सामान रख दिया है. आज से यह कमरा आप का है.’’

‘‘यह हमारा कमरा…पर यह तो बच्चों का कमरा है…’’

‘‘बच्चे  छोटे वाले कमरे में शिफ्ट हो गए हैं.’’

‘‘लेकिन तुम ने बच्चों का कमरा क्यों बदला, बहू…उन की पढ़ाईलिखाई डिस्टर्ब होगी. फिर उस छोटे से कमरे में दोनों कैसे रहेंगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं, मम्मीजी आप, घर के सब से बड़े क्या सब से छोटे कमरे में रहेंगे. बच्चों की पढ़ाई और सामान वगैरह के लिए अलग कमरा चाहिए…रात में तो दोनों आप के साथ ही घुस कर सोने वाले हैं,’’ नीता हंसते हुए बोली.

मनीषा को सुखद एहसास हुआ. बेटा तो अपना ही है लेकिन बहू के मुंह से ऐसे शब्द सुन कर जैसे दिल की शंकाओं का कठोर दरवाजा थोड़ा सा खुल गया.

सुबह बहुत देर से नींद खुली. निरंजन उठ कर बाथरूम हो आए. अंदर खटरपटर की आवाज सुन कर नीता ने चाय बना दी. उस दिन रविवार था.  बच्चे व अनुज भी घर पर थे.

चाय की टे्र ले कर नीता दरवाजे पर खटखट कर बोली, ‘‘मम्मीजी, चाय.’’

‘‘आजा…आजा बेटी…अंदर आजा,’’ निरंजन बोले.

‘‘नींद ठीक से आई, पापा,’’ नीता चाय की ट्रे मेज पर रखती हुई बोली.

‘‘हां, बेटी, बहुत अच्छी नींद आई. बच्चे और अनुज कहां हैं?’’ मनीषा ने पूछा.

‘‘सब उठ गए हैं. बच्चों ने तो अभी तक दूध भी नहीं पिया है. कह रहे थे कि जब दादाजी उठ जाएंगे तो वे चाय पीएंगे और हम दूध.’’

‘‘तुम ने भी अभी तक चाय नहीं पी,’’ मनीषा ट्रे में चाय के 4 कप देख कर बोलीं.

‘‘मम्मीजी, हम एक बार की चाय तो पी चुके हैं, दूसरी बार की चाय आप के साथ बैठ कर पीएंगे.’’

तभी बच्चे व अनुज कमरे में घुस गए और दादादादी के बीच में बैठ गए.

‘‘दादाजी, पापा कहते हैं कि वह आप से बहुत डरते थे. आप जब आफिस से आते थे तो वह एकदम पढ़ने बैठ जाते थे, सच्ची…’’ पोता बोला.

‘‘पापा यह भी कहते हैं कि वह बचपन में बहुत शैतान थे और दादी को बहुत तंग करते थे. है न दादी?’’ पोती बोली थी.

दोनों बच्चों की बातें सुन कर निरंजन व  मनीषा हंसने लगे.

‘‘सभी बच्चे बचपन में अपनी मम्मी को तंग करते हैं और अपने पापा से डरते हैं,’’ निरंजन बच्चों को प्यार करते हुए बोले.

‘‘हां, और मम्मी कहती हैं कि सभी मम्मीपापा अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं…जैसे दादादादी मम्मीपापा को प्यार करते हैं और मम्मीपापा हमें.’’

पोती की बात सुन कर मनीषा व निरंजन की नजरें नीता के चेहरे पर उठ गईं. नीता का खुशनुमा चेहरा दिल में उतर गया. दोनों ने मन में सोचा, एक अच्छी मां ही बच्चों को अच्छे संस्कार दे सकती है.

दोपहर के खाने में नीता ने कमलककड़ी के कोफ्ते और कढ़ी बना रखी थी.

‘‘पापा, आप यह कोफ्ते खाइए. ये बताते हैं कि आप को कमलककड़ी के कोफ्ते बहुत पसंद हैं,’’ नीता कोफ्ते प्लेट में रखती हुई बोली.

‘‘और मम्मी को कढ़ी बहुत पसंद है. है न मम्मी?’’ अनुज बोला, ‘‘याद है मैं कढ़ी और कमलककड़ी के कोफ्ते बिलकुल भी पसंद नहीं करता था. और मेरे कारण आप अपनी पसंद का खाना कभी भी नहीं बनाती थीं. अब आप की पसंद का खाना ही बनेगा और हम भी खाएंगे.’’

बेटा बोला तो मनीषा को अपने भावों पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो गया. आंखों के कोर भीग गए.

‘‘नहीं बेटा, खाना तो बच्चों की पसंद का ही बनता है, जो बच्चों को पसंद हो वही बनाया करो.’’

रात को पोते व पोती में ‘बीच में कौन सोएगा’ इस को ले कर होड़ हो गई. आखिर दोनों बीच में सो गए.

थोड़ी देर बाद नीता आ गई.

‘‘चलो, बच्चो, अपने कमरे में चलो.’’

‘‘नहीं, हम यहीं सोएंगे,’’ दोनों चिल्लाए.

‘‘नहीं, दादादादी को आराम चाहिए, तुम अपने कमरे में सोओ.’’

‘‘रहने दे, बेटी,’’ निरंजन बोले, ‘‘2-4 दिन यहीं सोने दे. जब मन भर जाएगा तो खुद ही अपने कमरे में सोने लगेंगे.’’

दोनों बच्चे उस रात दादादादी से चिपक कर सो गए.

दिन बीतने लगे. नीता हर समय उन की छोटीछोटी बातों का खयाल रखती. बेटा भी आफिस से आ कर उन के पास जरूर बैठता.

एक दिन मनीषा शाम को कमरे से बाहर निकली तो नीता फोन पर कह रही थी, ‘‘मैं नहीं आ सकती… मम्मीपापा आए हुए हैं. यदि मैं आ गई तो वे दोनों अकेले रह जाएंगे. उन को खराब लगेगा,’’ कह कर उस ने बात खत्म कर दी.

‘‘कहां जाने की बात हो रही थी, बेटी?’’

‘‘कुछ नहीं, मम्मीजी, ऐसे ही, मेरी सहेली बुला रही थी कि बहुत दिनों से नहीं आई.’’

‘‘तो क्यों नहीं जा रही हो. हम अकेले कहां हैं, और फिर थोड़ी देर अकेले भी रहना पड़े तो क्या हो गया. देखो बेटी, तुम अगर नहीं जाओगी तो मैं बुरा मान जाऊंगी.’’

नीता कुछ न बोली और दुविधा में खड़ी रही.

मनीषा नीता के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बेटी, मम्मीपापा आ गए हैं इसलिए अगर तुम ने अपनी दिनचर्या में बंधन लगाए तो हम यहां कैसे रह पाएंगे. यह अब कोई 2-4 दिन की बात थोड़े न है, अब तो हम यहीं हैं.’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं, मम्मीजी. आप का रहना हमारे सिरआंखों पर. मैं बंधन थोड़े न लगा रही हूं… और थोड़ाबहुत बंधन रहे भी तो क्या, बच्चों के कारण मांबाप बंधन में नहीं रहते हैं. फिर बच्चों को भी मांबाप के कारण बंधना पड़े तो कौन सी बड़ी बात है.’’

नीता की बात सुन कर मनीषा ने चाहा कि उस को गले लगा कर खूब प्यार करें.

मनीषा ने नीता को जबरन भेज दिया. धीरेधीरे मनीषा की कोशिश से नीता भी अपनी स्वाभाविक दिनचर्या में रहने लगी. उस ने 1-2 किटी भी डाली हुई थीं तो मनीषा ने उसे वहां भी जबरदस्ती भेजा.

उस की सहेलियां जब घर आतीं तो मनीषा चाय बना देतीं. नाश्ते की प्लेट सजा देतीं. नीता के मना करने पर प्यार से कहतीं, ‘‘तुम जो हमारे लिए इतना करती हो, थोड़ा सा मैं ने भी कर दिया तो कौन सी बड़ी बात कर दी.’’

अनुज व नीता को अब कई बातों की सुविधा हो गई थी. कहीं जाना होता तो दादादादी के होने से बच्चों की तरफ से दोनों ही निश्ंिचत रहते.

महीना खत्म हुआ. निरंजन को पेंशन मिली. उन्होंने अपना पैसा बहू को देने की पेशकश की तो अनुज व नीता दोनों नाराज हो गए.

‘‘पापा, आप कैसी बातें कर रहे हैं. पैसे दे कर ही रहना है तो आप कहीं भी रह सकते हैं. आप ने हमारे लिए जीवन भर इतना किया, पढ़ायालिखाया और मुझे इस लायक बनाया कि मैं आप की देखभाल कर सकूं,’’ अनुज बोला.

‘‘लेकिन बेटा, मेरे पास हैं इसलिए दे रहा हूं.’’

‘‘नहीं, पापा, पैसा दे कर तो आप मेरा दिल दुखा रहे हैं… जब दादीजी और दादाजी आप के पास रहने आए थे तो उन के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था तो क्या आप ने उन की देखभाल नहीं की थी. जितना आप से  बन सकता था आप ने उन के लिए किया और आप के पास पैसा है तो आप हम से हमारा सेवा करने का अधिकार क्यों छीनना चाहते हैं.’’

निरंजन निरुत्तर हो गए. मनीषा आश्चर्य से अपने उस लापरवाह बेटे को देख रही थीं जो आज इतना समझदार हो गया है.

अनुज ने जब पैसे लेने से साफ मना कर दिया तो निरंजन ने पोते और पोती के नाम से बैंक में खाता खोल दिया और जो भी पेंशन का पैसा मिलता उस में डालते रहते. बेटे ने उन का मान रखा था और वे बेटे का मान रख रहे थे.

एक दिन निरंजन सुबह उठे तो बदन टूट रहा था और कुछ हरारत सी महसूस कर रहे थे. मनीषा ने उन का उतरा चेहरा देखा तो पूछ बैठीं, ‘‘क्या हुआ…तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘हां, कुछ बुखार सा लग रहा है.’’

‘‘बुखार है,’’ मनीषा घबरा कर माथा छूती हुई बोली,  ‘‘अनुज कोे बुलाती हूं.’’

‘‘नहीं, मनीषा, उसे परेशान मत करो…शाम तक देख लेते हैं…शायद ठीक हो जाए.’’

मनीषा चुप हो गई.

लेकिन शाम होतेहोते बुखार बहुत तेज हो गया. दोपहर के बाद निरंजन लेटे तो उठे ही नहीं. शाम को आफिस से आ कर अनुज पापा के साथ ही चाय पीता था.

निरंजन जब बाहर नहीं आए तो नीता कमरे में चली गई. मनीषा निरंजन का सिर दबा रही थीं.

‘‘पापा को क्या हुआ, मम्मीजी?’’

‘‘तेरे पापा को बुखार है.’’

‘‘बुखार है…’’ कहती हुई नीता ने बहू की सारी औपचारिकताएं त्याग कर निरंजन के माथे पर हाथ रख दिया.

‘‘पापा को तो बहुत तेज बुखार है, तभी पापा आज सुबह से ही सुस्त लग रहे थे. आप ने बताया भी नहीं. मैं अनुज को बुलाती हूं,’’ इतना कह कर नीता अनुज को बुला लाई.

अनुज जल्दी ही आ गया और मम्मीपापा को तकलीफ न बताने के लिए एक प्यार भरी डांट लगाई, फिर डाक्टर को बुलाने चला गया. डाक्टर ने जांच कर के दवाइयां लिख दीं.

‘‘मौसमी बुखार है, 3-4 दिन में ठीक हो जाएंगे,’’ डाक्टर बोला.

बेटाबहू, पोता और पोती सब निरंजन को घेर कर बैठ गए. नीता ने जब पढ़ाई के लिए डांट लगाई तब बच्चे पढ़ने गए.

‘‘खाने में क्या बना दूं?’’ नीता ने पूछा.

निरंजन बोले,’’ तुम जो बना देती हो वही स्वादिष्ठ लगता है.’’

‘‘नहीं, पापा, बुखार में आप का जो खाने का मन है वही बनाऊंगी.’’

‘‘तो फिर थोड़ी सी खिचड़ी बना दो.’’

‘‘थोड़ा सा सूप भी बना देना नीता, पापा को सूप बहुत पसंद है,’’ अनुज बोला.

निरंजन को अटपटा लग रहा था कि अनुज उन के लिए इतना कुछ कर रहा है. उन की हिचकिचाहट देख कर अनुज बोला, ‘‘मैं कुछ नया नहीं कर रहा. आप दोनों ने दादा व दादी की जितनी सेवा की उतनी तो हम आप की कभी कर भी नहीं पाएंगे. पापा, मैं तब छोटा था. आज जो कुछ भी हम करेंगे हमारे बच्चे वही सीखेंगे. बड़ों का तिरस्कार कर हम अपने बच्चों से प्यार और आदर की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. यह कोई एहसान नहीं है. अब आप आराम कीजिए.’’

‘‘हमारा बेटा औरों जैसा नहीं है न…’’ मनीषा भर्राई आवाज में बोलीं.

‘‘हां, मनीषा, वह बुरा कैसे हो सकता है. तुम ने सुना नहीं, उस ने क्या कहा.’’

‘‘हां, बच्चों में संस्कार उपदेश देने से नहीं आते, घर के वातावरण से आते हैं. जिस घर में बड़ों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है उस घर में बच्चे बड़ों को आदर देना सीखते हैं और जिस घर में बड़ों का तिरस्कार होता है उस घर के बच्चे भी तो वही सीखेंगे.’’

एक पल रुक कर मनीषा फिर बोली, ‘‘हम दोनों ने अपने मातापिता की सेवा व उचित देखभाल की. हमारी गृहस्थी में उन का स्थान हमेशा ही महत्त्वपूर्ण रहा, वही हमारे बच्चों ने सीखा. लेकिन अधिकतर लोग अपने बच्चों से तो सेवा व आदर की उम्मीद करते हैं, लेकिन वे अपने जीवन में अपने बड़ों की मौजूदगी को भुला चुके होते हैं.’’

मनीषा के मन से आज सारे संशय खत्म हो चुके थे.

उन के सगेसंबंधियों, दोस्तों ने उन्हें अपने अनुभव बता कर उन के मन में बेटेबहू के प्रति डर व नकारात्मक विचार पैदा किए, अब वे अपने अनुभव बता कर दूसरों के मन में बेटेबहू के प्रति प्यार व सकारात्मक विचार भरेंगे.

निरंजन ने संतोष से आंखें मूंद लीं और मनीषा कमरे की लाइट बंद कर बहू की सहायता करने के लिए रसोई में चली गईं. आखिर इनसान जो अपनी जिंदगी में बोएगा वही तो काटेगा. कांटे बो कर फूलों की उम्मीद करना तो मूर्खता है.

Hindi Satire : वेलेंटाइन बेकरारियों को सादर चेतावनी

Hindi Satire : अहा ! फिर चौदह फरवरी का जानी दुश्मन दिन फिर आ रहा है. इस दिन का इंतजार असली तो असली, तथाकथित मजनू तक को बेकरारी से रहता है. आह! देखो तो वह हाथ में गुलाब लिए खून की कमी से लथपथ हो गुलाल हुआ कैसे मचल रहा है. कामदेव! उसकी रक्षा करें!

हे चौदह फरवरी का कभी मेरी तरह बेकरारी से इंतजार करने वाले न्यू मजनुओ. मैंने भी कभी हाथ में उधार का रोज़ ले तुम्हारी तरह चौदह फरवरी का बेकरारी से इंतजार किया था. आज मेरा जो ये हाल लाख छुपाने के बाद भी जग जाहिर है न! सब चौदह फरवरी की वजह से है. न उस दिन हाथ में उधारी का रोज लिए हाय! हाय! किया होता, न आज आठ पहर चौबीस घंटे सौ प्रतिशत शुद्ध जहर का घूंट पिया होता. तब सोचा था, इधर मेरा उधारी का रोज कुबूल हुआ तो उधर मुझे जन्नत मिली. पर मुझे क्या पता था कि जिसे मैं जन्नत समझ रहा था, वह मेरे लिए नरक साबित होगा.

इसलिए हर फरवरी की तरह इस फरवरी भी तुम्हें अगाह करना अपना नैतिक दायित्व मानते हुए  तुम्हें वैधानिक चेतावनी दे रहा हूं कि किसीको रोज देने से पहले रोजगार का इंतजाम करो. क्योंकि रोज लेने वाली पहले बंदे का रोजगार देखती है. उसके बाद उसका रोज देखती है. प्रेम से पहले पेट के लिए रोजगार जरूरी है.

आज के समय में जिसके पास रोजगार नहीं, उसे रोज देने का कोई हक नहीं. भले ही उसके दिल में प्रेम आठ समुद्र हिलोरें क्यों न मार रहा हो. और सरकार है कि उसके पास अपने युवाओं को देने के लिए और तो सबकुछ है, पर रोजगार नहीं है.

हे चौदह फरवरी का मंत्री बनने वाले एमएलए टाइप के इंतजार कर रहे प्रेमियो! चौदह फरवरी को अपने पांव पर रोज़ क्यों मारते हो? स्मरण रहे, चौदह फरवरी को अपने हाथों अपने पांव पर रोज़ मार पांव में चोट लगने से सारी जिंदगी लंगड़ा कर दौड़ना पड़ता है, मेरी तरह. भले ही जिंदगी के सारे जख्म भर जाएं ,पर चौदह फरवरी को अपने पांव पर अपने हाथों से मारे रोज़ से हुआ जख्म लाख इलाज कराने के बाद भी नहीं भरता. इस जख्म के बाद और तो बंदे का सबकुछ मरता है, बस, नहीं मरता तो अपने भीतर का चौदह फरवरी का मारा नहीं मरता.

पांव में इस रोज़ से हुए जख्म के बाद न हंसा जाता है ,न रोया जाता है. न जागा जाता है, न सोया जाता है. न किसीसे कहा जाता है, न सहा जाता है. रोज़ किसीके द्वारा कुबूल हो जाने के बाद घर में घर का मुखिया होने के बाद भी मैन सर्वेंट बन चार चार बार झाड़ू, पोंछा करना पड़ता है. जो नहीं करता है, वह घर की मालकिन के ताने सुनता दिन में सौ सौ बार मरता है. दोनों वक्त चपातियां बेलनी पड़ती हैं. बीवी को चाय बनानी पड़ती है. कपड़े धोने पड़ते हैं. बरतन धोने पड़ते हैं. और ऊपर से कहना ये कि काम न काज के, दुश्मन सरकारी राशन की दुकान के सड़े अनाज के. और भी न पूछो क्या क्या! मत ही पूछो तो भला. अपना सारा दुःख बयान कर दूंगा तो बदतमीज से बदतमीज का चौदह फरवरी को किसीको रोज़ देने से विश्वास उठ जाएगा और फूलों की दुकानों में चौदह फरवरी को ताले लग जाएंगे.

तुम जो हंसते हुए मेरा ये दर्दनाक हाल देख रहे हो न,  या मैं तुम्हारे सम्मुख अपना जो हाल बयान कर रहा हूं ,ये सब चौदह फरवरी का ही तोहफा है. न तब मैं चौदह फरवरी के दिन हाथ में उधारी का रोज़ लिए बीए प्रथम श्रेणी पागल हुआ होता और न आज गृहस्थी की चक्की में सड़े गेहूं की तरह पिस रहा होता. ये जो आज मेरा हाल है न! यह सब इस कंबख्त चौदह फरवरी ने ही किया है. मेरे इस हाल के लिए मैं नहीं, चौदह फरवरी जिम्मेदार है. जबसे चौदह फरवरी का शिकार हुआ हूं, तबसे हर महीने बैंक की किस्त चुकाने के लिए किस्त लेनी पड़ रही है. इसलिए मेरा हर साल की तरह इस साल भी नए प्रेमियों से केवल और केवल करबद्ध यही निवेदन है कि जो मजे से जीना चाहते हो तो चौदह फरवरी को किसीको गलती से भी रोज़ देने का अपराध मत करना. इस अपराध की सजा बहुत लंबी होती है.

पर मैं यह भी जानता हूं कि जब जवानी में मैं ही समझदार नहीं था तो तुम क्यों होने वाले! जवानी में समझदार होना सबसे बड़ा अपराध होता है. या कि जवानी में जीव सबकुछ होता है, पर समझदार बिल्कुल नहीं होता. और जितने को उसे समझ आती है तब तक चौदह फरवरी बीत चुकी होती है. उसके बाद सिर में हाथ देकर रोने के सिवाय मेरे जैसे प्रेमी के पास और कुछ शेष बचा नहीं होता.

हे चौदह फरवरी का इंतजार करने वालो मासूम प्रेमियो! आज से पचास साल पहले मैं भी तुम्हारी तरह जवान था.  मेरे दिल में भी चौदह फरवरी को कुछ भी कर गुजरने का तूफान था. उन दिनों मैं हर महीने की चौदह तारीख को चौदह फरवरी ही मानता था. बस, एक ही तमन्ना थी किसीको अपना दिल दे दूं. असल में उन दिनों मेरे पास किसीको दिल देने के सिवाय और कुछ न था. सो मैं हर महीने जेब में दिल लिए फिरता था इस उम्मीद से कि किसी ने इधर दिल मांगा और उधर मैंने उसे दिल पेश कर दिया गांव की राम लीला में रावण के डायलाग डायलाग फरमाइश पर कि नाचने वाली को पेश किया जाए की तर्ज पर.

 

Social Story : धंधा अपना अपना

Social Story : ‘‘भक्तजनो,यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन तुम इन बेड़ियों को तोड़ दोगे उस दिन तुम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाओगे,’’ स्वामी दिव्यानंद की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी.

महानगर के सब से वातानुकूलित हाल में एक ऊंचे मंच पर स्वामीजी विराजमान थे. गेरुए रंग के रेशमी वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का तिलक और उंगलियों में जगमगा रही पुखराज की अंगूठियां उन के व्यक्तित्व को अनोखी गरिमा प्रदान कर रही थीं.

प्रचार करा गया था कि स्वामीजी को सिद्धि  प्राप्त है. जिस पर उन की कृपादृष्टि हो जाए उस के कष्ट दूर होते देर नहीं लगती. पूरे शहर में स्वामीजी के बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे. दूरदूर के इलाकों से आए भक्तजन स्वामीजी की महिमा का बखान करते रहते. जन सैलाब उन के दर्शन करने के लिए उमड़ा पड़ा था.

सुबह, दोपहर, शाम स्वामीजी दिन में 3 बार भक्तों को दर्शन और प्रवचन देते थे. इस समय उन का अंतिम व्याख्यान चल रहा था. पूरा हाल रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी से जगमगा रहा था. मंच की सज्जा गुलाब के ताजे फूलों से की गई थी, जिन की खुशबू पूरे हाल में बिखरी थी.

स्वामीजी के चरणों में शीश झुका कर आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा था. आश्रम के स्वयंसेवक भी श्रद्धालुओं को अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

रात 9 बजे स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ. उन्होंने हाथ उठा कर भक्तों को आशीर्वाद दिया तो उन के जयघोष से पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. मंदमंद मुसकराते हुए स्वामीजी उठे और आशीर्वाद की वर्षा करते हुए मंच के पीछे चले गए. उन के जाने के बाद धीरेधीरे हाल खाली हो गया. स्वामीजी के विश्वासपात्र शिष्यों श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंदजी महाराज ने स्वयंसेवकों को भी बाहर निकालने के बाद हाल का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘चलो भाई, आज की मजदूरी बटोरी जाए’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने अपने गेरुए कुरते की बांहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘दिन भर इन बेवकूफों का स्वागतसत्कार करतेकरते यह नश्वर शरीर थक कर चूरचूर हो गया है. अब इसे तत्काल उत्तम किस्म के विश्राम की आवश्यकता है. इसलिए सारी गिनती शीघ्र पूरी कर ली जाए,’’ सत्यानंदजी महाराज ने अंगड़ाई लेते हुए सहमति जताई.

‘‘जो आज्ञा महाराज, श्रद्धानंदजी महाराज ने मुसकराते हुए मंच के सामने लगे फूलों के ढेर को फर्श पर बिखरा दिया. फूलों के साथ भक्तजनों ने दिल खोल कर दक्षिणा भी अर्पित की थी. दोनों तेजी से उसे बटोरने लगे, किंतु उन की आंखों से लग रहा था कि उन्हें किसी और चीज की तलाश है.

श्रद्धानंदजी महाराज ने फूलों के ढेर को एक बार फिर उलटापुलटा तो उन की आंखें चमक उठीं. वे खुशी से चिल्लाए, ‘‘वह देखो मिल गया.’’

सामने लाल रंग के रेशमी कपड़े में लिपटी कोई वस्तु पड़ी थी. सत्यानंदजी महाराज ने लपक कर उसे उठा लिया. शीघ्रता से उन्होंने उस वस्त्र को खोला तो उस के भीतर 1 लाख रुपए की नई गड्डी चमक रही थी.

‘‘महाराज, आज फिर वह 1 लाख की गड्डी चढ़ा गया है,’’ सत्यानंदजी गड्डी ले कर दिव्यानंदजी के कक्ष की ओर लपके. श्रद्धानंदजी महाराज भी उन के पीछेपीछे दौड़े.

स्वामी दिव्यानंद शानदार महाराजा बैड पर लेटे हुए थे. आवाज सुनते ही वे उठ बैठे. उन्होंने एक लाख की गड्डी को ले कर उलटपुलट कर देखा. उस के असली होने का विश्वास होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘कुछ पता चला कौन था वह?’’

‘‘स्वामीजी, हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता ही नहीं चल पाया कि वह गड्डी कब और कौन चढ़ा गया,’’ सत्यानंद महाराज ने कहा.

‘‘तुम दोनों माल खाखा कर मुटा गए हो. एक आदमी 5 दिनों से रोज 1 लाख की गड्डी चढ़ा जाता है और तुम दोनों उस का पता नहीं लगा पा रहे हो,’’ स्वामीजी की आंखें लाल हो उठीं.

‘‘क्षमा करें महाराज, हम ने पूरी कोशिश की…’’

‘‘क्या खाक कोशिश की,’’ स्वामीजी उस की बात काटते हुए गरजे, ‘‘तुम दोनों से कुछ नहीं होगा. अब हमें ही कुछ करना होगा,’’ इतना कह कर उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाते हुए बोले, ‘‘हैलो निर्मलजी, मैं जिस मंच पर बैठता हूं उस के ऊपर आज रात में ही सीसी टीवी कैमरा लग जाना चाहिए.’’

‘‘लेकिन स्वामीजी, आप ही ने तो वहां कैमरा लगाने से मना किया था. बाकी सभी जगहों पर कैमरे लगे हुए हैं और उन की चकाचक रिकौर्डिंग हो रही है,’’ निर्मलजी की आवाज आई.

‘‘वत्स, यह सृष्टि परिवर्तनशील है. यहां कुछ भी स्थाई नहीं होता है,’’ स्वामीजी हलका सा हंसे फिर बोले, ‘‘तुम तो जानते हो कि मेरे निर्णय समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं. इसी कारण सफलता सदैव मेरे कदम चूमती है. तुम तो बस इतना बतलाओ कि यह काम कितनी देर में पूरा हो जाएगा. काम तुम्हारा और पैसा हमारा.’’

‘‘सूर्योदय से पहले आप की आज्ञा का पालन हो जाएगा,’’ निर्मलजी ने आश्वासन दिया. फिर झिझकते हुए बोले, ‘‘स्वामीजी कुछ जरूरी काम आ पड़ा है. अगर कुछ पैसे मिल जाते तो कृपा होती.’’

‘‘1 पैसे का भी भरोसा नहीं करते हो मुझ पर,’’ स्वामीजी ने कहा और फिर श्रद्धानंद की ओर मुड़ते हुए बोले, ‘‘निर्मलजी को अभी पैसे पहुंचा दो वरना उन्हें कोई दूसरा जरूरी काम याद आ जाएगा.’’

‘‘जो आज्ञा महाराज,’’ कह श्रद्धानंदजी महाराज सिर नवा कर चले गए.

निर्मलजी ने वादा निभाया. सूर्योदय से पहले स्वामीजी के मंच के ऊपर सीसी टीवी कैमरा लग गया. उधर उस भक्त ने भी अपनी रीति निभाई. आज फिर वह लाल वस्त्र में लिपटी 1 लाख की गड्डी स्वामीजी के चरणों में अर्पित कर गया था. श्रद्धानंद और दिव्यानंद आज भी उस भक्त का पता नहीं लगा पाए.

रात के 11 बजे स्वामीजी बड़ी तल्लीनता के साथ सीसी टीवी की रिकौर्डिंग देख रहे थे. अचानक एक दृश्य को देखते ही वे बोले, ‘‘इसे रिवाइंड करो.’’

श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग को रिवाइंड कर के चला दिया. स्वामीजी ने 2 बार और रिवाइंड करवाया. श्रद्धानंद को उस में कोई खास बात नजर नहीं आ रही थी, लेकिन स्वामीजी की आज्ञा का पालन जरूरी था.

‘‘रोकोरोको, यहीं पर रोको,’’ अचानक स्वामीजी चीखे, श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग तुरंत रोक दी.

‘‘जूम करो इसे,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी तो श्रद्धानंद ने जूम कर दिया.

‘‘यह रहा मेरा शिकार,’’ स्वामीजी ने सोफे से उठ कर स्क्रीन पर एक जगह उंगली रख दी. फिर बोले, ‘‘हलका सा रिवाइंड कर स्लो मोशन में चलाओ इसे.’’

श्रद्धानंद ने स्लो मोशन में रिकार्डिंग चला दी. रिकौर्डिंग में करीब 45 साल का एक व्यक्ति हाथों में फूलों का दोना लिए स्वामीजी के करीब आता दिखाई पड़ा. करीब आ कर उस ने फूलों को स्वामीजी के चरणों में अर्पित करने के बाद अपना शीश भी उन के चरणों में रख दिया. इसी के साथ उस ने अत्यंत शीघ्रता के साथ अपनी जेब से लाल रंग के वस्त्र में लिपटी गड्डी निकाली और फूलों के नीचे सरका दी. एक बार फिर शीश नवाने के बाद वह उठ कर तेजी से बाहर चला गया.

‘‘यह कोई तगड़ा आसामी मालूम पड़ता है. इस का चेहरा तुम दोनों ध्यान से देख लो. मुझे यह आदमी चाहिए… हर हालत में चाहिए,’’ स्वामीजी की आंखों में अनोखी चमक उभर आई.

‘‘आप चिंता मत करिए. कल हम लोग इसे हर हालत में पकड़ लाएंगे,’’ सत्यानंद ने आश्वस्त किया.

‘‘नहीं वत्स,’’ स्वामीजी अपना दायां हाथ उठा कर शांत स्वर में बोले, ‘‘वह मेरा अनन्य भक्त है. उसे पकड़ कर नहीं, बल्कि पूर्ण सम्मान के साथ लाना. स्मरण रहे कि उसे कोई कष्ट न होने पाए.’’

‘‘जो आज्ञा,’’ श्रद्धानंद और सत्यानंद ने शीश नवाया और कक्ष से बाहर चले गए.

अगले दिन उन दोनों की दृष्टि हर आनेजाने वाले भक्त के चेहरे पर टिकी थी. रात के करीब 8 बजे जब शरीर थक कर चूर होने लगा तब वह व्यक्ति आता दिखाई पड़ा.

‘‘देखो वह आ गया,’’ श्रद्धानंद ने सत्यानंद को कुहनी मारी.

‘‘लग तो यही रहा है. चलो उसे उधर ले कर चलते हैं,’’ सत्यानंद ने कहा.

‘‘अभी नहीं. पहले उसे गड्डी चढ़ा लेने दो ताकि सुनिश्चित हो जाए कि यह वही है जिस की हमें तलाश है,’’ श्रद्धानंद फुसफुसाए.

पिछले कल की तरह वह व्यक्ति आज भी मंच के करीब आया. फूल अर्पित करने के बाद उस ने स्वामीजी के चरणों में शीश नवाया, लाल रंग में लिपटी नोटों की गड्डी को चढ़ाने के बाद वह तेजी से उठ कर बाहर चल दिया.

‘‘मान्यवर, कृपया इधर आइए,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने उस के करीब आ कर सम्मानित स्वर में कहा.

‘‘क्यों?’’

‘‘स्वामीजी आप से भेंट करना चाहते हैं,’’ सत्यानंदजी महाराज ने बताया.

‘‘मुझ से? किसलिए?’’ वह व्यक्ति घबरा उठा.

‘‘वे आप की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हैं. इसलिए आप को साक्षात दर्शन दे कर आशीर्वाद देना चाहते हैं,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने बताया, ‘‘बड़ेबड़े मंत्री और अफसर स्वामीजी के दर्शनों के लिए लाइन लगा कर खड़े होते हैं. आप अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो स्वामीजी ने आप को स्वयं मिलने के लिए बुलाया है. अब आप का भाग्योदय निश्चित है.’’

यह सुन उस व्यक्ति के चेहरे पर राहत के चिह्न उभर आए. श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंद महाराज ने उसे एक खूबसूरत कक्ष में बैठा दिया.

करीब आधा घंटे बाद स्वामीजी उस कक्ष में आए और अत्यंत शांत स्वर में बोले, ‘‘वत्स, तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम्हें जीवन में बहुत बड़ी सफलता मिलने वाली है.’’

स्वामीजी की वाणी सुन वह व्यक्ति उन के चरणों में लेट गया. उस की आंखों से श्रद्धा सुमन बह निकले. स्वामीजी ने उसे अपने हाथों से पकड़ कर उठाया और फिर स्नेह भरे स्वर में बोले, ‘‘उठो वत्स, अश्रु बहाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक नया सवेरा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है.’’

‘‘स्वामीजी, आप के दर्शन पा कर मेरा जीवन धन्य हो गया,’’ वह व्यक्ति हाथ जोड़ कर बोला. भावातिरेक में उस की वाणी अवरुद्ध हो रही थी.

स्वामीजी ने उसे अपने साथ सोफे पर बैठाया और फिर बोले, ‘‘वत्स, एक प्रश्न पूछूं तो क्या उस का उत्तर सचसच दोगे?’’

‘‘आप आज्ञा करें तो उत्तर तो क्या आप के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हूं,’’ उस व्यक्ति ने कहा.

स्वामीजी ने अपनी दिव्यदृष्टि उस के चेहरे पर टिका दी फिर सीधे उस की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘तुम प्रतिदिन 1 लाख रुपयों की गड्डी मेरे चरणों में क्यों चढ़ा रहे हो?’’

यह सुन उस व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद कर लीं. उस के चेहरे पर छाए भावों को देख कर लग रहा था कि उस के भीतर भारी संघर्ष चल रहा है. चंद पलों बाद उस ने अपनी आंखें खोलीं और बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं एक अरबपति आदमी था, लेकिन व्यापार में घाटा हो जाने के कारण मैं पूरी तरह बरबाद हो गया. सभी रिश्तेदारों और परिचितों ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. एक दिन मुझे पता चला कि यूरोप में एक बंद फैक्टरी कौड़ियों के भाव बिक रही है. मेरी पत्नी आप की अनन्य भक्त है. उस की सलाह पर मैं ने अपना मकान और पत्नी के गहने बेच कर वह फैक्टरी खरीद ली. आप को उस फैक्टरी में 20% का साझेदार बना कर मैं ने उस फैक्टरी को दोबारा चलाना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में काफी परेशानियां हुईं लेकिन आप के आशीर्वाद से पिछले सप्ताह से वह फैक्टरी फायदे में आ गई. इस समय उस से 5 लाख रुपये रोज का फायदा हो रहा है. इसलिए 20% के हिसाब से मैं रोज 1 लाख रुपए आप के चरणों में अर्पित कर देता हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात गुप्त क्यों रखी?’’ मुझे बता भी तो सकते थे? स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मैं ने सुना है कि आप मोहमाया और लोभ से काफी ऊपर हैं. इसलिए आप को बता कर आप की साधना में विध्न डालने का साहस मैं नहीं कर सका.’’

‘‘वत्स, धन्य हो तुम. तुम जैसे ईमानदार व्यक्तियों के बल पर ही यह दुनिया चल रही है वरना अब तक अपने पाप के बोझ से यह रसातल में समा चुकी होती,’’ स्वामीजी ने गंभीर स्वर में सांस भरी फिर आशीर्वाद की मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘ईश्वर की कृपा दृष्टि तुम पर पड़ चुकी है. जल्द ही तुम्हें 5 लाख रुपए नहीं, बल्कि 5 करोड़ रोज का मुनाफा होने वाला है.’’

‘‘सत्य वचन महाराज,’’ उस व्यक्ति ने श्रद्धा से शीश झुकाया फिर बोला, ‘‘यूरोप में ही एक और बंद पड़ी खान का पता लगा है, मैं ने हिसाब लगाया है कि अगर उसे ठीक से चलाया जाए तो 5 करोड़ रुपए रोज तो नहीं लेकिन 5 करोड़ रुपए महीने का फायदा जरूर हो सकता है.’’

‘‘तो उस फैक्टरी को खरीद क्यों नहीं लेते?’’

‘‘खरीद तो लेता, लेकिन उस के लिए करीब 20 करोड़ रुपए चाहिए. मैं ने काफी भागदौड़ की, लेकिन फंड का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. एक बार मुझे व्यापार में घाटा हो चुका है, इसलिए फाइनैंसर मुझ पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं,’’ उस व्यक्ति के स्वर में निराशा झलक उठी.

‘‘वत्स, फंड की चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हें मेरी शरण में भेज दिया है, इसलिए अब सारी व्यवस्थाएं हो जाएंगी,’’ स्वामीजी मुसकराए.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम जैसे व्यक्तियों का दिया मेरे पास बहुत कुछ है. वह मेरे किसी काम का नहीं है. तुम उसे ले जाओ और फैक्टरी खरीद लो,’’ स्वामीजी ने कहा.

‘‘आप मुझे इतना रुपया दे देंगे?’’ उस व्यक्ति की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘अकारण नहीं दूंगा,’’ स्वामीजी मुसकराए, ‘‘मुझे अपने भक्तों के कल्याण के लिए बहुत सारे कार्य करने हैं. इस सब के लिए बहुत पैसा चाहिए. इसलिए इस पैसे से तुम फैक्टरी खरीद लो, लेकिन उस में 51 प्रतिशत शेयर मेरे होंगे.’’

‘‘आप धन्य हैं महाराज,’’ वह व्यक्ति एक बार फिर स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

‘‘श्रद्धा और सत्या, तुम दोनों अभी इन के साथ इन के निवास पर जाओ.

साझेदारी के कागजात तुरंत बना लो ताकि फैक्टरी को जल्द से जल्दी खरीद लिया जाए,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी.

अगले ही दिन साझेदारी के कागजात तैयार हो गए. स्वामीजी ने हजारों भक्तों की चढ़ाई की कमाई अपने अनन्य भक्त को सौंप दी. वह भक्त फैक्टरी खरीदने यूरोप चला गया.

स्वामीजी की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने जगमगा रहे थे. किंतु जब 1 महीने तक उस भक्त का कोई संदेश नहीं आया तो उन्होंने श्रद्धानंद और सत्यानंद को उस के निवास पर भेजा. वहां उपस्थिति गार्ड ने उन दोनों को देखते ही बताया, ‘‘उन साहब ने तो 2 महीने के लिए यह कोठी किराए पर ली थी, किंतु आप लोगों के आने के 2 दिनों बाद वे अचानक ही इसे खाली कर के चले गए थे. किंतु जाने से पहले वे आप लोगों के लिए एक लिफाफा दे गए थे. कह रहे थे कि आप लोग एक न एक दिन उन से मिलने यहां जरूर आएंगे.’’

इतना कह कर गार्ड अपनी कोठरी के भीतर से एक लिफाफा ले आया. डगमगाते कदमों से वे दोनों स्वामी दिव्यानंद के पास लौट आए और लिफाफा उन्हें पकड़ा दिया.

स्वामीजी ने लिफाफा फाड़ा तो उस के भीतर से एक पत्र निकला, जिस में लिखा था:

‘‘आदरणीय स्वामी जी,

सादर चरण स्पर्श. अब तो आप को विश्वास हो गया होगा कि यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन कोई व्यक्ति इन बेड़ियों को तोड़ देगा उस दिन वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाएगा. आप ने अपने भक्तों की बेड़ियां तोड़ने का कार्य किया है और मैं ने आप की इन बेड़ियों को तोड़ने की छोटी सी चेष्टा की है. आप इसे ‘धंधा अपना अपना’ भी कह सकते हैं.

आप का एक सेवक.

स्वामीजी उस पत्र को अपलक निहारे जा रहे थे और श्रद्धा और सत्या उन के चेहरे को.

Valentine’s Day Special : प्यार का रंग

Valentine’s Day Special : ‘‘आज शाम को 5 बजे कनाट प्लेस के कौफी शौप में मिल सकते हो?’’ निराली ने आदित्य से फोन पर पूछा.

‘‘समथिंग स्पैशल. बहुत एक्साइटेड लग रही हो? आज क्या तुम मुझे प्रपोज करने वाली हो?’’ आदित्य ने निराली से शरारती अंदाज में पूछा.

‘‘डोंट बी फनी औल द टाइम. मैं नहीं तुम मुझे प्रपोज करोगे आज मिलने के बाद. न्यूज ही कुछ ऐसी है. बस, टाइम पर मिल जाना,’’ निराली अपनी रौ में बोलती जा रही थी.

‘‘लगता है, अवश्य ही कोई खास समाचार है, नहीं तो तुम मुझे काम छोड़ कर आने के लिए नहीं कहतीं. चलो, मिलते हैं.’’

निराली सचमुच बहुत एक्साइटेड थी और उस वक्त उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस के साथ अपनी इस खुशी को बांटे. उस का बस चलता तो तुरंत ही आदित्य को आने को कह देती, पर जानती थी कि लंच के बाद उस की कोई मीटिंग थी, इसलिए वह नहीं आ पाएगा. उसे लग रहा था कि काश, समय के पंख होते तो वह जल्दी से उड़ कर बीत जाता. हालांकि निराली जैसी बुद्धिमान लड़की के लिए यह खबर कोई हैरानी की बात नहीं थी, पर फिर भी वह बहुत उत्साहित थी.

आदित्य और निराली स्कूल के साथी थे. कालेज की पढ़ाई और अपने प्रोफैशनल कोर्स भी उन्होंने अलगअलग जगह से किए थे. हालांकि उन के विषय और अध्ययन के क्षेत्र लगभग समान ही थे. इस के बावजूद स्कूल की वह दोस्ती आज तक कायम थी और इतना वक्त एकदूसरे के साथ गुजारने, एकदूसरे को अच्छी तरह समझने और अपनी हर बात एकदूसरे के साथ शेयर करने के कारण यह तो तय था कि वे आगे भी साथ ही रहेंगे. निराली के मातापिता भी इस ओर से निश्चिंत थे कि आदित्य जैसा लड़का उन की बेटी ने चुना है.

हालांकि दोनों ने कभी शादी के विषय पर डिसकस नहीं किया था, पर आंखों की मुखरता मानो जैसे स्वीकृति दे चुकी थी. वैसे भी उन दोनों के रिश्ते में किसी तरह की औपचारिकता तो थी ही नहीं.

‘‘अब बता भी दो निराली,’’ कौफी का सिप लेते हुए आदित्य ने उस की ओर सैंडविच बढ़ाते हुए कहा.

‘‘तुम तो मुझे इतनी अच्छी तरह समझते हो. कुछ अनुमान लगाओ कि क्या बात हो सकती है?’’ निराली बढ़ते सस्पेंस का आनंद ले रही थी. वैसे भी ग्रिल सैंडविच उसे इतने पसंद थे कि कुछ पल के लिए उस ने अपनी एक्साइटमैंट पर काबू पा लिया था.

‘‘लगता है कि तुम्हारी शादी तय हो गई है. कौन है वह बदनसीब?’’ आदित्य ने चुटकी ली.

‘‘अपनी इस मजाक करने की आदत से बाज आ जाओ, वरना मैं तुम से बात नहीं करूंगी,’’ निराली ने ऐसा चेहरा बनाया मानो वह उस से रूठ गई है.

‘‘ओके बाबा, गलती हो गई, लेकिन अब बता भी दो,’’ आदित्य ने उसे सैंडविच खिलाते हुए कहा.

‘‘मुझे एक इंटरनैशनल ब्रांड, जो भारत में अपने और आउटलेट्स खोलना चाहता है, उस में रिटेल मैनेजर की जौब मिल गई है. बढि़या पैकेज है और ग्रो करने की संभावनाएं भी बहुत हैं. अगर यहां के आउटलेट्स का रिजल्ट मैं 100 प्रतिशत देने में कामयाब हो गई तो विजुअल मर्केंडाइजर का पद भी मिल सकता है. है न कमाल की खबर?’’

निराली की खुशी उस के अंगअंग से टपक रही थी. उसे लग रहा था कि अभी आदित्य उसे बधाई देगा और उस की प्रशंसा करेगा.

‘‘बहुत एक्सीलेंट खबर है, यानी कि तुम्हें लटकेझटके दिखा कर मनपसंद जौब मिल ही गई. कितने समय से तुम इस बात को ले कर परेशान थीं कि मनचाही जौब नहीं मिल पा रही है और वह भी इसी शहर में.’’

‘‘लटकेझटके दिखाने से तुम्हारा क्या मतलब है आदित्य? यानी तुम्हें लगता है कि मैं इस जौब के काबिल नहीं हूं? तुम्हारा इस तरह से मेरे बारे में सोचना साफ बता रहा है कि तुम मुझ से जलते हो. मेरी कामयाबी तुम्हें हीनता का एहसास दिला रही है, वरना मुझे इतने लंबे समय से जानने के बावजूद तुम मेरे बारे में इस तरह न कहते,’’ निराली क्रोध और अपमान से कांपने लगी थी.

‘‘अरे, तुम तो नाराज हो गई. मैं तो बस, ऐसे ही कह रहा था. डौंट टेक मी रौंग,’’ आदित्य उसे कुछ समझा पाता, उस से पहले ही निराली कौफी हाउस से बाहर निकल चुकी थी. उस के लिए अपने आंसुओं को रोकना मुश्किल हो रहा था. उसे यह बात तीर की तरह चुभ रही थी कि स्कूल के समय से उसे जानने वाला आदित्य उस के बारे में इतनी घटिया सोच रखता है. उस से तो मैं ने कोई भी बात कभी छिपाई नहीं. और इसी आदित्य के साथ वह सारी जिंदगी बिताने की सोच रही थी.

निराली को अब अपने पर ही झुंझलाहट होने लगी थी. आखिर वह कैसे आदित्य को समझने में चूक गई. हमेशा उस से आगे रहने वाली निराली शायद अब तक समझ ही नहीं पाई थी कि उस के अंदर एक हीनभावना भी पनप सकती है.

उस के बाद आदित्य ने जब भी निराली को फोन किया या उस से मिलने की कोशिश की, वह नाकामयाब ही रहा. निराली उस के इस मजाक को ले कर इतनी टची हो जाएगी, उस ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी. उसे इस बात का दुख हो रहा था कि निराली उस के प्यार को अनदेखा कर रही है और उस की इस बात को पकड़ कर बैठ गई है. वह एक बार बात कर लेती तो शायद उस के मन में पड़ी गांठ को खोल पाता.

निराली के लिए इस नौकरी को पाना किसी चुनौती से कम नहीं था, इसलिए वह जीजान से अपने काम में जुट गई. उस ने सोच लिया था कि आदित्य नामक अध्याय उस के जीवन में बंद हो चुका है, इसलिए वह उस के साथ न होने से पैदा हुई रिक्तता को भरने के लिए पूरी तरह से काम के प्रति समर्पित हो गई. रिटेल मैनेजर का काम आउटलेट के लिए प्लान तैयार करने से ले कर कोऔर्डिशन तथा औपरेशन आदि होता है. लेआउट के मर्केंडाइज, रिटेल और्डर तथा स्टौक की मौनिटरिंग, कार्यरत लोगों की रिपोर्ट तैयार करना भी उस के विभाग के अंतर्गत आने वाले काम थे.

उस औफिस में अपने प्रति लोगों का व्यवहार देख पहले तो उसे आश्चर्य हुआ था कि लोग कितना इनडिफरेंट एटीट्यूड रखते हैं, लेकिन एक महीने बाद फिर पता चला कि एक खास व्यक्ति सारे काम पर नजर रखने के लिए नियुक्त किया गया है. जो सीधे तो नहीं, पर उस के सीनियर के माध्यम से उस के काम की रिपोर्ट लेगा. उन से मिलने की उत्सुकता निराली के मन में जागी, पर कभी मिलने का मौका नहीं मिला, क्योंकि एक तो वह कहीं  और बैठते थे और उन को ले कर एक गोपनीयता भी रखी गई थी. बाकी लोगों का भी सहयोग उसे मिलने लगा.

आउटलेट का प्लान तैयार हो गया था. प्रेजेंटेशन देने के बाद वह अपने केबिन में आ गई थी. अगले दिन उस के सीनियर उस के केबिन में आए और बोले, प्लान तो अच्छा है, पर अगर तुम इस में रेखांकित जगहों पर संशोधन और सुधार कर सको तो इसे अप्रूवल मिल जाएगा. निराली को थोड़ा आश्चर्य हुआ था, यह देख कर, वरना अकसर सीनियर तो अपने मातहतों को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं और यहां उस की कमियों को छिपाया जा रहा था.

आउटलेट खुल जाने के बाद अपने ब्रांड को इस तरह बाजार में उतारना था कि भारतीय मार्केट पर भी उस का कब्जा हो जाए. इस के लिए निराली ने जितने भी प्रपोजल दिए, वे पसंद किए गए. हालांकि हमेशा उस के सीनियर ने उस से पहले कहींकहीं सुधार करवाया और बाद में सब के सामने प्रशंसा भी की. उन की प्रोडक्ट सर्विस भी लाजवाब रही.

उन की कंपनी को लगातार और्डर मिलने लगे. ब्रांड प्रमोशन के लिए वह हमेशा नई योजनाएं बनाती रहती. उसे इस बात की भी हैरानी होती थी कि पहले तो उस के प्रपोजल इतनी आसानी से अप्रूव नहीं होते थे, थोड़ी कमी होने पर ही दोबारा प्लान तैयार करने के आदेश दिए जाते थे, लेकिन अब उसे सुझाव मिलते रहते हैं, ताकि वह उन के अनुसार चीजों को सुधार व अपडेट कर सके.

अब निराली को समयसमय पर अपने काम का क्रेडिट मिलने लगा, पर न जाने क्यों उसे लगता था कि उस की गलतियों या कमियों को उस तरह से उजागर नहीं किया जाता है जैसेकि बाकी सहयोगियों की. लोग दबी जबान कहते भी थे कि उस के साथ फेवर हो रहा है, पर क्यों? वह जितना सोचती उतना उलझती जाती. एक बार अपने सीनियर से उस ने इस विषय पर बात करनी चाही तो वह कहने लगे, यह सब तुम्हारी काबिलियत का फल है. अपने को अंडरएस्टिमेट मत करो.

आदित्य से मिले निराली को 6 महीने हो चुके थे. पहले तो उस ने भी निराली को मिलने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में वह भी खामोश हो गया था. उसे तो पता भी नहीं था कि आजकल आदित्य कहां है. यह तो उसे पता लगा था कि वह अपनी नौकरी छोड़ चुका है. अब किसी और जगह काम कर रहा है, पर कहां?

अकेले में अकसर उसे आदित्य की याद आती, पर उस की बात याद आते ही वह अपने दिलोदिमाग पर उसे हावी होने से रोक देती. उसे बस यही अफसोस था कि किसी लड़की को आगे बढ़ते देख उस के बारे में ऐसा सोचा जाता है. क्या कोई लड़की अपनी काबिलियत से आगे नहीं बढ़ सकती है? कमियां तो सभी में होती हैं, फिर लड़कियों पर ही क्यों फिकरे कसे जाते हैं?

अपने ब्रांड के पसंद किए जाने और अपने आउटलेट्स की बढ़ती बिक्री से केवल निराली ही नहीं, कंपनी भी बहुत खुश थी. कंपनी को यकीन हो गया था कि भारत के और शहरों में भी आउटलेट्स खोले जा सकते हैं. निराली को यह काम सौंपने की बात चल रही थी.

‘‘हमारे बौस इस पर बात करने के लिए तुम से मिलना चाहते हैं,’’ उस के सीनियर ने उसे सूचना दी तो पल भर को वह अवाक रह गई कि आज तक उन के माध्यम से संपर्क रखने वाले बौस उस से क्यों मिलना चाहते हैं? लेकिन अपने अंदर उन से मिलने की उत्सुकता उसे बेकाबू कर रही थी.

एक आलीशान औफिस के विशालकाय केबिन में जब उस ने प्रवेश किया तो बौस की पीठ उस की तरफ थी.

‘‘तुम्हारे परफौर्मेंस और काबिलियत से कंपनी बहुत खुश है, इसलिए वह तुम्हें प्रमोट करना चाहती है,’’ आवाज सुन कर निराली सकते में आ गई, फिर अपना वहम समझ कर कुछ कहना ही चाह रही थी कि कुरसी घूमी और एक चेहरा उस के सामने आ गया.

‘‘तुम?’’ आदित्य को अपने सामने देख वह कुरसी से गिरतेगिरते बची. माथे पर एसी चलने के बावजूद पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘इट्स मी.’’

‘‘तुम ने तो मुझ से मिलने से मना कर दिया था, फिर क्या करता? आखिर पुरानी दोस्ती है हमारी. न तो दोस्ती का रंग फीका पड़ता है और न ही प्यार का. क्यों ठीक कह रहा हूं न? क्या तुम मुझे भुला पाई हो? यू स्टिल लव मी. एक छोटी सी बात का बुरा मान कर बरसों के साथ को नकार रही थीं तुम.’’

‘‘यानी कि तुम मेरी मदद कर रहे थे, पर क्यों? मुझे तुम्हारे सपोर्ट की जरूरत नहीं है.’’ निराली के दिल में तो आग सुलग रही थी, पर आंखों में नमी झलकने लगी थी.

‘‘मदद नहीं, तुम्हारी प्रतिभा को उभारने और लोगों के सामने लाने का मेरा यह छोटा सा प्रयास था. जिसे आप प्यार करते हैं, उस के लिए इतना सा तो किया ही जा सकता है,’’ आदित्य उस के पास आ कर खड़ा हो गया था. निराली के कंधे पर उस ने हाथ रखा तो वह खड़ी हो गई और झट से आदित्य के सीने से लग गई.

‘‘मुझे माफ कर दो, मैं ने तुम्हें समझने में भूल की. एक छोटे से मजाक को सच मान तुम्हारी दोस्ती और प्यार की अवहेलना की. यह समझ ही नहीं पाई कि न दोस्ती का रंग और न ही प्यार का रंग फीका पड़ता है, बल्कि वह तो समय के साथ और गहरा होता जाता है.’’

‘‘अब तुम कोई बेवकूफी करो, उस से पहले ही मैं तुम्हें जीवन भर के लिए अपने से बांध लूंगा,’’ आदित्य घुटनों के बल नीचे बैठ गया और बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी निराली?’’

आदित्य के हाथ में अपना हाथ देते हुए निराली मुसकराई. आंखों की नमी बाहर छलक आई थी, पर खुशी की धारा बन कर.

कुकिंग शो Celebrity Masterchef में आयशा जुल्का ने की वाइल्ड कार्ड एंट्री

Celebrity Masterchef : एक समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री आयशा जुल्का जिन्होंने आमिर खान के साथ जो जीता वह सिकंदर और अक्षय कुमार के साथ खिलाड़ी जैसी हिट फिल्में दी है. वही आयशा जुल्का एक बार फिर सोनी चैनल पर प्रसारित सेलिब्रिटी मास्टर शेफ में बतौर वाइल्ड कार्ड एंट्री किया हैं. आयशा की एंट्री पर कुकिंग शो का माहौल गर्मा गया है. इस शो के प्रतियोगियों के मन में यह सवाल कुलबुला रहा है कि क्या आयशा जुल्का को खाना बनाने की प्रैक्टिस है? क्या उनको खाना बनाना आता है? सवालों का जवाब आयशा जुल्का खुद अपने अंदाज में देने जा रही हैं.

गौरतलब है सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन का यह शानदार रियलिटी शो सेलिब्रिटी मास्टर शेफ में लगातार ट्विस्ट और टर्न्स आ रहे हैं. जिसकी वजह से शो रोमांचक होता जा रहा है. रेड कार्पेट पर चलने वाले सितारे कुकिंग शो के किचन में खाना बनाने का हुनर दिखा रहे हैं. जिसकी मेजबानी कर रही हैं सदाबहार निर्माता ,निर्देशक ,कोरियोग्राफर फराह खान और उनके साथ मशहूर शेफ विकास खन्ना और रणवीर बरार. ये दोनों जज कठिन रेसिपी देकर मुकाबला और कड़क बना रहे हैं.

आयशा जुल्का इस सेलिब्रिटी मास्टर शेफ में बतौर प्रतियोगी व्यंजनों में भी जादू बिखरने के लिए तैयार हैं . बहरहाल आयशा इस शो को लेकर बेहद उत्साहित हैं आयशा जुल्का के अनुसार बचपन से ही मुझे खाना बनाने का शौक रहा है. नए नए व्यंजनों के साथ प्रयोग के लिए मै हमेशा रोमांचक रही हूं. बतौर प्रतियोगी सेलिब्रिटी मास्टर शेफ में होना मेरे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है.

मुझे खुशी है कि मैं प्रतिभाशाली प्रतियोगियों के साथ और लाजवाब जजों के मार्गदर्शन में अपना टैलेंट जांचने के लिए तैयार हूं . यह मेरे लिए एक नया अध्याय है और मैं बहुत उत्साहित हूं . यह देखने के लिए कि मैं इसमें कितना कामयाब हो पाती हूं. मुझे देखना है कि मैं इस सफर में कितना आगे बढ़ती हूं और सफल हो पाती हूं या नहीं . बहरहाल इस चुनौती को मैंने दिल से स्वीकार किया है. सेलेब्रिटी मास्टर शेफ का प्रसारण हर सोमवार से शुक्रवार रात 8 बजे सोनी चैनल और सोनी लिव पर होता है. जो स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ मनोरंजन से भरपूर है.

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