Gardening Tips : विंटर में ऐसे करें गार्डनिंग, पौधों को नहीं होगा नुकसान

Gardening Tips : बागबानी के शौकीन कई लोग अपने घर के बगीचे में खूबसूरत पौधे लगा तो लेते हैं पर उन की देखभाल नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में बगीचे की सुंदरता तो खत्म होती ही है, साथ ही पेड़पौधे भी देखरेख के अभाव में मरने लगते हैं खासकर सर्दियों के मौसम में कम तापमान और रात को पाला पड़ने से पौधों को बहुत नुकसान होता है.

आइए, कुछ तरीके जाने जिन से सर्दियों में पौधों की देखरेख आसानी से हो जाएगी और आप का बगीचा भी हराभरा और फूलों से महकता रहेगा:

रोजाना पानी न दें : सर्दी में तापमान कम होने के कारण पौधों को पानी की बहुत कम जरूरत होती है. गरमियों में पौधों को जहां दिन में 2 बार पानी देना पड़ता है, वही सर्दियों में 4-5 दिन में 1 बार पानी देना चाहिए. जब तक ऊपरी मिट्टी 1-2 इंच सूख नहीं जाती, तब तक पानी नहीं देना चाहिए. पौधों में पानी देने से पहले कम से कम 1 इंच की गुड़ाई कर के फर्टिलाइजर दें, अगले दिन पानी देना चाहिए. सर्दियों में पौधों की मिट्टी में काफी दिन तक नमी बनी रहती है.

इंडोर प्लांट्स में मिट्टी पूरी तरह से सूखने पर ही पानी देना चाहिए. ज्यादा पानी देने से उन की जड़ें गल जाती हैं. जहां तक संभव हो पानी स्प्रे से दें. स्प्रे पौधों के तनों या पत्तियों में न दे कर सीधे मिट्टी में दें. वाटर स्प्रे से पूरी मिट्टी गीली हो जाती है. अगर ठंड ज्यादा न हो तो पत्तियों पर भी स्प्रे कर सकते हैं. ऐसा करने से आप का पौधा हराभरा रहेगा.

गमलाप्लेट में पानी न जमने दें : ज्यादा मात्रा में पौधों को पानी देने से गमलों के नीचे रखी प्लेट्स में पानी भर जाता है. इस से पौधों की जड़े खराब होने लगती हैं. इस से बचने के लिए या तो प्लेट्स को हटा दें या फिर समयसमय पर प्लेट्स का पानी निकालते रहें. ऐसा करने से पौधे की जड़ें गलेंगी और सड़ेंगी नहीं और पौधा सुरक्षित रहेगा.

धूप बहुत जरूरी : आप फूलोंफलों वाले पौधों को ज्यादा से ज्यादा सूरज की रोशनी में रखें. इस से उन्हें पर्याप्त गरमी मिलेगी और पौधों में फूल ज्यादा आएंगे, पौधों को धूप मिले इस के लिए आप को पेड़पौधों के सूखे हिस्से अथवा टहनियों की छंटाई करनी चाहिए. इस से पौधों को आसानी से धूप भी मिलने लगेगी और ये खूब फूलेंगेफलेंगे.

गुड़ाई है जरूरी : बगीचे या गमलों में लगे पौधों के आसपास अनचाही जंगली घास या पौधे उग आते हैं जो हमारे पौधों को नुकसान पहुंचाते है उन पौधों को हटाने के लिए सप्ताह में कम से कम 1 बार खुरपी से गुड़ाई जरूर करें ताकि मिट्टी में हवा अंदर जा सके और जड़ें मजबूत हों और पौधे सुरक्षित रह सकें.

फंगसनाशी स्प्रे करें : बगीचे या गमलों के पौधों को फंगस के प्रकोप से बचाने के लिए पौधों के पत्तों और मिट्टी पर 15-20 दिन में एक बार नीम के तेल का स्प्रे जरुर करें. स्प्रे करने से कीटों और पानी से पौधों पर जो फंगस लग जाती है उस से आप पौधों को बचा सकती हैं और पौधों को सुरक्षित रख सकती हैं.

ओस से बचाव : ओस पौधों के लिए हानिकारक होती है. सर्दियों में ओस पड़ने से पौधों के पत्ते जल जाते हैं और फूल और कलियां गल जाती हैं. उन्हें इस से बचाने के लिए सुबह के समय पौधों के पत्तों को सूखे कपड़े से पोंछ दें या फिर पानी का स्प्रे करें ताकि ओस धुल जाए और पौधों के पत्ते सुरक्षित रहें. ओस से बचाने के लिए पौधों के ऊपर जालीनुमा कपड़ा या चादर लगा दें ताकि पौधों पर ओस न पड़े और पौधे सुरक्षित रहें.

पौधों को मुरझाने से बचाएं : सर्दियों के मौसम में अधिक ठंड पड़ने के कारण अकसर पौधे मुर?ा जाते हैं. पौधे मुरझाएं नहीं इस के लिए आप पौधों को कमरे, बालकनी, खिड़की आदि पर ऐसी जगहों पर रखें ताकि तेज ठंडी हवाएं सीधी पौधों पर न लगें. ऐसा करने से पौधों को मुर?ाने या खराब होने से बचाया जा सकता है.

मल्चिंग करें : पौधों की जड़ों को सर्दी से बचाने के लिए गमले की मिट्टी के ऊपर मल्चिंग करना चाहिए. इस से पौधे सुरक्षित रहते हैं. इस के लिए छोटेछोटे पत्थर, नारियल के रेशे, नीम के सूखे पत्ते, अंडों के छिलकों को गमलों या बगीचे में लगे पौधों के आसपास बिछा सकते हैं. ये चीजें दिन में गरमी को सोख लेते हैं और पौधों की जड़ों को रात को ठंडक से बचाते हैं. ऐसा करने से आप अपने पौधे को सुरक्षित रख सकती हैं.

संतुलित खाद

आप को पौधों में सर्दियों में भी खाद अवश्य डालनी चाहिए. आप चाहें तो खाद बाजार से खरीद सकती हैं या फिर आप घर पर भी खाद तैयार कर सकती हैं. सर्दियों में खाद बनाने के लिए गोबर और नीम की खली को एकसाथ मिला खाद तैयार कर सकती हैं.

नीम की खली में कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम होता है जो सर्दियों में पौधों के लिए बहुत लाभदायक होता है. इस खाद का उपयोग करने से सर्दियों में पौधों में चींटियां और फंगस भी नहीं लगती है. आप को पर्याप्त मात्रा में ही खाद डालनी चाहिए. बहुत अधिक खाद पौधों के लिए हानिकारक होती है.

लिक्विड फर्टिलाइजर: सर्दियों के मौसम में पौधों को 25-30 दिन में लिक्विड फर्टिलाइजर देनी चाहिए ताकि सर्दियों में भी उन की ग्रोथ होती रहे. वैसे तो पौधे लगाते समय फर्टिलाइजर दी जाती है. बारबार खाद डालने से पौधे खराब हो जाते हैं. इसलिए समय पर सब चीजों का ध्यान रखना चाहिए.

Winter Hair Care : सर्दियों में बालों की कैसे करें सही देखभाल, जानिए ऐक्सपर्ट से…

Winter Hair Care : सर्दियों का मौसम ठंडी हवाओं और कम नमी के साथ आता है जो न केवल हमारी त्वचा बल्कि बालों पर भी गहरा प्रभाव डालता है. इस मौसम में बाल रूखे, बेजान और कमजोर हो सकते हैं. अगर सही देखभाल न की जाए तो बालों का टूटना, दोमुंहे बाल और डैंड्रफ जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं.

आइए, जानते हैं सर्दियों में बाल कमजोर क्यों हो जाते हैं और उन की देखभाल के सही तरीके:

नमी की कमी: सर्दियों में हवाओं में नमी की मात्रा कम होती है जिस से बाल रूखे और कमजोर हो जाते हैं.

गरम पानी का उपयोग: ठंड के कारण महिलाएं बाल धोने के लिए गरम पानी का इस्तेमाल करती हैं जो स्कैल्प के प्राकृतिक तेलों को हटा देता है और बालों को और अधिक रूखा बना देता है.

ठंडी हवा और प्रदूषण: ठंडी हवाएं बालों की नमी छीन लेती हैं और प्रदूषण से बाल बेजान हो जाते हैं.

डैंड्रफ की समस्या: स्कैल्प का रूखापन बढ़ने से डैंड्रफ हो सकता है जो बालों के झड़ने और खुजली का कारण बनता है.

सर्दियों में बालों की देखभाल के टिप्स

बालों को पोषण देने के लिए नियमित तेल मालिश करें.

जोजोबा औयल: बालों में गहराई तक जाकर नमी बनाए रखता है.

नारियल तेल: बालों को प्राकृतिक नमी देता है और ठंडी हवाओं से बचाता है.

लैवेंडर एसेंशियल औयल: रूखापन दूर करने में मदद करता है.

सही शैंपू और कंडीशनर का चुनाव करें

सल्फेट और पैराबेन मुक्त शैंपू का उपयोग करें.

रोजमैरी ऐसैंशियल औयल वाला कंडीशनर बालों को गहराई से पोषण देता है.

बाल धोने के बाद कंडीशनर लगाना न भूलें.

हेयर मास्क लगाएं.

सप्ताह में एक बार हेयर मास्क लगाएं.

ड्राई स्कैल्प के लिए: ऐलोवेरा, शहद और टीट्री औयल का मिश्रण बनाएं.

डैमेज्ड बालों के लिए: आर्गन औयल और एवोकाडो से बना मास्क लगाएं.

बाल धोने का सही तरीका अपनाएं

गुनगुने पानी से बाल धोएं.

बाल धोने के बाद ठंडे पानी से रिंस करें ताकि नमी लौक हो सके.

डैंड्रफ से बचाव करें

शैंपू में टी ट्री ऑयल मिलाएं.

हफ्ते में 1 बार एप्पल साइडर विनेगर से

स्कैल्प धोएं.

बाल टूटने से बचाएं

बालों को धोने के बाद हेयर सीरम लगाएं.

गीले बालों को ब्रश करने से बचें.

सर्दियों में क्या करें और क्या न करें

क्या करें

हाइड्रेटेड रहें: पर्याप्त पानी पीएं ताकि बाल और शरीर दोनों हाइड्रेटेड रहें.

संतुलित आहार लें: प्रोटीन, विटामिन ई और ओमेगा-3 फैटी ऐसिड से भरपूर भोजन करें.

सौफ्ट फैब्रिक का इस्तेमाल करें: साटन या सिल्क तकिया कवर का उपयोग करें ताकि बालों की नमी बनी रहे.

प्राकृतिक रूप से बाल सुखाएं: हेयर ड्रायर का कम से कम उपयोग करें.

क्या न करें

हीट स्टाइलिंग टूल्स का अधिक

उपयोग न करें: स्ट्रेटनर का इस्तेमाल सीमित करें.

रसायनयुक्त उत्पाद न लगाएं: हार्श कैमिकल्स बालों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

गीले बालों को न बांधें: बालों को पूरी तरह सूखने के बाद ही बांधें.

खास ध्यान देने योग्य बातें

बालों को ओवर स्टाइलिंग से बचाएं.

बालों को थोड़ी देर धूप दिखाएं ताकि उन्हें विटामिन डी मिल सके.

नियमित हेयर स्पा कराएं.

ठंडी हवाओं से बचाने के लिए स्कार्फ या कैप से बालों को ढकें.

-ब्लौसम कोचर, सौंदर्य विशेषज्ञ 

Extramarital Affair : मैं अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं… अगर उसे पता चल गया तो…

Extramarital Affair :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 28 साल का हूं. मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं. मेरी छोटी साली भी हमारे साथ रहती है.

एक दिन बीवी घर पर नहीं थी और मैं टीवी देख रहा था, तभी साली अचानक कमरे में आई और मुझे गिरा कर चूमने लगी. मेरे मना करने पर भी उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और उस ने वह सब कर डाला, जो अमूमन बीवी करती है.

अब वह मुझ से रोजाना संबंध बनाने को कहती है और रात में भी अपने साथ सोने को कहती है. मना करने पर अपनी बहन को बताने की धमकी देती है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप का तो घर बैठे ही बंपर ड्रा निकल आया, मगर यह बम की तरह खतरनाक भी हो सकता है. साली कहीं पेट से हो गई, तो और बवाल हो जाएगा. बीवी को पता चलेगा, तो भी फसाद ही होगा.

बेहतर यही होगा कि आप किसी बहाने से साली को वापस उस के घर भेज दें और हो सके तो अपना तबादला कहीं दूर करा लें.

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भौजाई से प्यार, पत्नी सहे वार

19 जनवरी, 2017 को उत्तर प्रदेश के जिला सिद्धार्थनगर के थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह औफिस में बैठे मामलों की फाइलें देख रहे थे, तभी उन की नजर करीब 4 महीने पहले सोनिया नाम की एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में ससुराल में हुई मौत की फाइल पर पड़ी. सोनिया की मां निर्मला देवी ने उस के पति अर्जुन और उस की जेठानी कौशल्या के खिलाफ उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. घटना के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. उन की तलाश में पुलिस जगहजगह छापे मार रही थी. लेकिन कहीं से भी उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी.

आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर एसपी राकेश शंकर का शमशेर बहादुर सिंह पर काफी दबाव था, इसीलिए वह इस केस की फाइल का बारीकी से अध्ययन कर आरोपियों तक पहुंचने की संभावनाएं तलाश रहे थे. संयोग से उसी समय एक मुखबिर ने उन के कक्ष में आ कर कहा, ‘‘सरजी, एक गुड न्यूज है. अभी बताऊं या बाद में?’’

‘‘अभी बताओ न कि क्या गुड न्यूज है,ज्यादा उलझाओ मत. वैसे ही मैं एक केस में उलझा हूं.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘जो भी गुड न्यूज है, जल्दी बताओ.’’

इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी के पास जा कर उन के कान में जो न्यूज दी, उसे सुन कर थानाप्रभारी का चेहरा खिल उठा. उन्होंने तुरंत हमराहियों को आवाज देने के साथ जीप चालक को फौरन जीप तैयार करने को कहा. इस के बाद वह खुद भी औफिस से बाहर आ गए. 5 मिनट में ही वह टीम के साथ, जिस में एसआई दिनेश तिवारी, सिपाही जय सिंह चौरसिया, लक्ष्मण यादव और श्वेता शर्मा शामिल थीं, को ले कर कुछ ही देर में मुखबिर द्वारा बताई जगह पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक औरत और एक आदमी खड़ा मिला.

पुलिस की गाड़ी देख कर दोनों नजरें चुराने लगे. पुलिस जैसे ही उन के करीब पहुंची, उन के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं. शमशेर बहादुर सिंह ने उन से नाम और वहां खड़े होने का कारण पूछा तो वे हकलाते हुए बोले, ‘‘साहब, बस का इंतजार कर रहे थे.’’

‘‘क्यों, अब और कहीं भागने का इरादा है क्या?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आप क्या कह रहे हैं, हम समझे नहीं, हम क्यों भागेंगे?’’ आदमी ने कहा.

‘‘थाने चलो, वहां हम सब समझा देंगे.’’ कह कर शमशेर बहादुर सिंह दोनों को जीप में बैठा कर थाने लौट आए. थाने में जब दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अर्जुन और कौशल्या देवी बताए. उन का आपस में देवरभाभी का रिश्ता था.

अर्जुन अपनी पत्नी सोनिया की हत्या का आरोपी था. उस की हत्या में कौशल्या भी शामिल थी. हत्या के बाद से दोनों फरार चल रहे थे. थानाप्रभारी ने सीओ महिपाल पाठक के सामने दोनों से सोनिया की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने सारी सच्चाई उगल दी. सोनिया की जितनी शातिराना तरीके से उन्होंने हत्या की थी, वह सारा राज उन्होंने बता दिया. नवविवाहिता सोनिया की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का एक थाना है जोगिया उदयपुर. इसी थाने के अंतर्गत मनोहारी गांव के रहने वाले जगदीश ने अपने छोटे बेटे अर्जुन की शादी 4 जुलाई, 2013 को पड़ोस के गांव मेहदिया के रहने वाले रामकरन की बेटी सोनिया से की थी. शादी के करीब 3 सालों बाद 25 अप्रैल, 2016 को गौने के बाद सोनिया ससुराल आई थी.

पति और ससुराल वालों का प्यार पा कर सोनिया बहुत खुश थी. अपने काम और व्यवहार से सोनिया घर में सभी की चहेती बन गई. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक सोनिया ने पति अर्जुन में कुछ बदलाव महसूस किया. उस ने गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अर्जुन पहले उसे जितना समय देता था, अब वह उसे उतना समय नहीं देता.

पहले तो उस ने यही सोचा कि परिवार और काम की वजह से वह ऐसा कर रहा होगा. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. उस ने महसूस किया कि अर्जुन अपनी भाभी कौशल्या के आगेपीछे कुछ ज्यादा ही मंडराता रहता है. वह भाभी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है.

जल्दी ही सोनिया को इस की वजह का भी पता चल गया. अर्जुन के अपनी भाभी से अवैध संबंध थे. भाभी से संबंध होने की वजह से वह सोनिया की उपेक्षा कर रहा था. कमाई का ज्यादा हिस्सा भी वह भाभी पर खर्च कर रहा था. यह सब जान कर सोनिया सन्न रह गई.

कोई भी औरत सब कुछ बरदाश्त कर सकती है, लेकिन यह हरगिज नहीं चाहती कि उस का पति किसी दूसरी औरत के बिस्तर का साझीदार बने. भला नवविवाहिता सोनिया ही इस बात को कैसे बरदाश्त करती. उस ने इस बारे में अर्जुन से बात की तो वह बौखला उठा और सोनिया की पिटाई कर दी. उस दिन के बाद दोनों में कलह शुरू हो गई.

सोनिया ने इस बात की जानकारी अपने मायके वालों को फोन कर के दे दी. उस ने मायके वालों से साफसाफ कह दिया था कि अर्जुन का संबंध उस की भाभी से है. शिकायत करने पर वह उसे मारतापीटता है. यही नहीं, उस से दहेज की भी मांग की जाती है. सोनिया की परेशानी जानते हुए भी मायके वाले उसे ही समझाते रहे.

वे हमेशा उस के और अर्जुन के संबंध को सामान्य करने की कोशिश करते रहे, पर अर्जुन ने भाभी से दूरी नहीं बनाई, जिस से सोनिया की उस से कहासुनी होती रही, पत्नी की रोजरोज की किचकिच से अर्जुन परेशान रहने लगा. उसे लगने लगा कि सोनिया उस के रास्ते का रोड़ा बन रही है. लिहाजा उस ने भाभी कौशल्या के साथ मिल कर एक खौफनाक योजना बना डाली.

24-25 सितंबर, 2016 की रात अर्जुन और कौशल्या ने साजिश रच कर सोनिया के खाने में जहरीला पदार्थ मिला दिया. अगले दिन यानी 25 सितंबर की सुबह जब सोनिया की हालत बिगड़ने लगी तो अर्जुन उसे जिला अस्पताल ले गया.

उसी दिन सुबह सोनिया के पिता रामकरन को मनोहारी गांव के किसी आदमी ने बताया कि सोनिया की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है, वह जिला अस्पताल में भरती है. यह खबर सुन कर वह घर वालों के साथ सिद्धार्थनगर स्थित जिला अस्पताल पहुंचा. तब तक सोनिया की हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी. डाक्टरों ने उसे कहीं और ले जाने को कह दिया था.

26 सितंबर की सुबह 4 बजे पता चला कि सोनिया की मौत हो चुकी है. बेटी की मौत की खबर मिलते ही रामकरन अपने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बेटी की ससुराल मनोहारी गांव पहुंचा तो देखा सोनिया के मुंह से झाग निकला था. कान और नाक पर खून के धब्बे थे. हाथ की चूडि़यां भी टूटी हुई थीं. लाश देख कर ही लग रहा था कि उस के साथ मारपीट कर के उसे कोई जहरीला पदार्थ खिलाया गया था.

बेटी की लाश देख कर रामकरन की हालत बिगड़ गई. उन के साथ आए गांव वालों ने पुलिस कंट्रोल रूम को हत्या की सूचना दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में थाना जोगिया उदयपुर के थानाप्रभारी शमशेर बहादुर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने सोनिया के शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

बेटी की मौत से रामकरन को गहरा सदमा लगा था, जिस से उन की तबीयत खराब हो गई थी. उन्हें आननफानन में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. इस के बाद पुलिस ने सोनिया की मां निर्मला की तहरीर पर अर्जुन और उस की भाभी कौशल्या के खिलाफ भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 3/4 डीपी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया था.

2 दिनों बाद जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि सोनिया के साथ मारपीट कर के उसे खाने में जहर दिया गया था. घटना के तुरंत बाद अर्जुन और कौशल्या फरार हो गए थे. लेकिन पुलिस उन के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. उन दोनों की गिरफ्तारी न होने से लोगों में आक्रोश बढ़ रहा था.

आखिर 4 महीने बाद मुखबिर की सूचना पर अर्जुन और कौशल्या गिरफ्तार कर लिए गए थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे तक दोनों की जमानतें नहीं हो सकी थीं.पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर ने घटना का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की हौसलाअफजाई करते हुए 2 हजार रुपए का नकद इनाम दिया है.

भाभी के चक्कर में अर्जुन ने अपना घर तो बरबाद किया ही, भाई का भी घर बरबाद किया. इसी तरह कौशल्या ने देह की आग को शांत करने के लिए देवर के साथ मिल कर एक निर्दोष की जान ले ली.

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Loveyapa Review : दिल जीत लेगी खुशी-जुनैद की फिल्म, इमोशन्स से भरपूर है ‘लवयापा’

Loveyapa Review : आमिर खान के बेटे जुनैद खान और श्रीदेवी की छोटी बेटी खुशी कपूर की पहली फिल्म लवयापा सिनेमाघरों में रिलीज हुई.अद्वैत चंदन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में आज की पीढ़ी का मोबाइल प्रेम और उस मोबाइल प्रेम की वजह से प्यार भरे रिश्तों में भारी दरार फ़िल्म की हाईलाइट है और उसके बाद ए आई टेक्निक के जरिए प्यार और लड़की अथार्त हिरोइन खुशी की बची खुची इज्जत की नीलामी लवयापा का सियापा होने की पूरी कहानी है.

वैसे तो यह एक सिंपल खूबसूरत सी पारिवारिक कहानी वाली फिल्म है, लेकिन इस फिल्म के जरिए आज के युग में यंग जनरेशन के लोंगो का मोबाइल से जुड़े रहने की बीमारी या यूं कहें मोबाइल प्रेम कितना घातक हो सकता है , वह इस फ़िल्म में दर्शाया गया है. आज के समय में जनरेशन के लोग मोबाइल पर इतने निर्भर हैं कि वह अपने मोबाइल को खाते उठते बैठते सोते अपने पास ही रखते है.

लव्यापा फिल्म में प्यार में सियापा की शुरुआत तब होती है जब खुशी के पिता बने आशुतोष राणा शादी पक्की करने से पहले प्रेमी जुनैद खान से एक दिन के लिए खुशी के साथ मोबाइल एक्सचेंज करने के लिए बोलते हैं. जिसके बाद दोनों प्रेमियों के बीच 1 दिन के लिए मोबाइल की अदला बदली होती है और दोनों का ही सच सामने आना शुरू होता है जो इस फिल्म की हाईलाइट है.

इसके अलावा आज के समय में ए आई का इस्तेमाल जो कोई भी आम इंसान कर सकता है और किसी भी लड़की को बदनाम करके उसे मरने पर भी मजबूर कर सकता है. इस नाजुक मुद्दे को भी फिल्म में दिखाया गया है. जहां एक ओर फिल्म से जुड़े सभी कलाकारों का अभिनय सशक्त है, वही जुनैद खान और खुशी कपूर ने भी अच्छी और नेचुरल एक्टिंग की है. ऐसे में कहना गलत न होगा कि खुशी कपूर और जुनैद खान की फिल्म लवयापा सिर्फ रोमांटिक फिल्म ही नहीं है बल्कि शिक्षाप्रद भी है. जिसमे रोमांस के साथ साथ हल्का फुल्का मधुर संगीत, बेहतरीन डायरेक्शन और मनोरंजन से भरपूर है .

Family Drama : थैंक्यू अंजलि – क्यों अपनी सास के लिए फिक्रमंद हो गई अंजलि

Family Drama : सुबह-सुबह मीता का फोन आया, “भैया जी, अम्मा को बुखार हो रहा है. कल से कुछ खापी नहीं रहीं हैं.”

“यह क्या कह रही हो मीता? ऐसा था तो कल ही क्यों नहीं बताया? राकेश ने हड़बड़ा कर कहा.

“असल में अम्मां जी ने ही मना किया था.”

“अम्मां ने मना किया और तुम मान गईं? जानती हो आजकल कैसी बीमारी फैली हुई है? कोरोना का कितना डर है? अच्छा रुको मैं आ रहा हूं.”

बदहवास से राकेश निकलने लगे तो मैं ने पीछे से टोका,” सुनो पहले मास्क पहनिए. पाकेट में सैनिटाइजर रखिए और देखिए प्यार में होश खोने की जरूरत नहीं. चेहरे से मास्क बिल्कुल भी मत हटाना. अगर अम्मां जी को कोरोना हुआ तो फिर इस का खतरा आप को भी हो सकता है न. अम्मां को छूने के बाद याद कर के सैनिटाइजर लगाना और हां अम्मां से थोड़ी दूर ही बैठना.”

राकेश ने थोड़ी नाराजगी से मेरी तरफ देखा तो मैं ने सफाई दी,” अपनी या मेरी नहीं तो कम से कम बच्चों की चिंता तो करो.”

“ओके. चलो मैं आता हूं.” कहते हुए राकेश चले गए.

मैं जानती हूं कि राकेश कहीं न कहीं अम्मा के मसले पर मुझ से नाराज रहते हैं. दरअसल मेरा अपनी सास के साथ हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा है. वैसे तो अमूमन सभी घरों में सासबहू के बीच इसी तरह का रिश्ता होता है. मगर मेरे साथ कुछ ज्यादा ही था.

मैं जिस दिन से घर में बहू बन कर आई उसी दिन से अपनी सास के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था. सास ने मुझे सर पर पल्लू रखने को कहा पर मैं ने उन की नहीं सुनी. सास ने मुझे नॉनवेज से दूर रहने को कहा मगर मैं ने यह बात भी स्वीकार नहीं की क्यों कि मैं अपने घर में अंडा मछली खाती रही हूं. सास पूजापाठ में लिप्त रहतीं और मुझे यह सब अंधविश्वास लगता. सास जरूरत से ज्यादा सफाई पसंद थीं जबकि मैं बेफिक्र सी रहने की आदी थी. मैं खुद को एक प्रगतिशील स्त्री मानती थी जबकि सासू मां एक रूढ़िवादी महिला थीं. इन सब के ऊपर हमारे बीच विवाद की एक वजह राकेश भी थे. हम दोनों ही राकेश से बहुत प्यार करते थे और इसी उलझन में रहते थे कि राकेश किसे अधिक प्यार करते हैं.

मैं मानती हूं कि अम्मां जी ने बचपन से राकेश को पालापोसा और प्यार दिया. इसलिए उन के प्यार पर पहला हक अम्मां का ही है. मगर कहीं न कहीं मेरा यह मानना भी है कि शादी के बाद पति को अपनी मां का पल्लू छोड़ देना चाहिए और उस स्त्री के प्रति अपना दायित्व निभाना चाहिए जो उस के लिए अपना घरपरिवार छोड़ कर आई है.

मुझे सास की हर बात में टोकाटाकी भी पसंद नहीं थी. हमारी शादी के 2 साल बाद मोनू हो गया और फिर गुड्डी. गुड्डी उस वक्त करीब 3 साल की थी जब मैं ने राकेश से अलग घर लेने की जिद की.

राकेश ने बहुत समझाया ,”देखो अंजलि, बड़े भैया बरेली में हैं और छोटे भैया मुंबई में. अम्मां बाबूजी के पास में ही हूं. ऐसे में हमारा इन दोनों को अकेला छोड़ कर जाना उचित नहीं.”

मगर मैं अड़ी रही,” अरे वाह दोनों बड़े भाइयों को अपने मांबाप की नहीं पड़ी. केवल तुम ही श्रवण कुमार बनते फिरते हो. तुम्हारी दोनों भाभियां ऐश कर रही हैं और बीवी घुटघुट कर मरने को विवश है. देखो तुम ने मेरी बात नहीं मानी न तो मैं हमेशा के लिए अपनी मां के घर चली जाऊंगी.  फिर संभालते रहना अपने बच्चों को.”

मेरी धमकी का असर हुआ. राकेश ने पुराने घर के पास ही एक नया घर खरीदा. अम्मां बाबूजी को पुराने घर में छोड़ कर हम यहां शिफ्ट हो गए.

भले ही राकेश ने मेरी बात मान ली मगर हम दोनों के बीच एक अदृश्य दीवार भी खड़ी हो गई थी. राकेश के दिल में मेरे लिए पहले जैसा प्यार नहीं रह गया था. वह केवल पति का दायित्व निभा रहा थे.

इस बात को 4 साल बीत चुके हैं. पिताजी भी दो साल पहले गुजर गये. अब अम्मां उस घर में नौकरानी मीता के साथ अकेली रहती हैं. मुझे इस बात का एहसास है कि अम्मां के लिए अकेले रहना काफी कठिन होता होगा. मगर न मैं ने कभी उन्हें लाने की बात की और न कभी अम्मां ने ही कोई शिकायत की.

राकेश अंदर ही अंदर अम्मां के प्रति खुद को अपराधी महसूस करते हैं पर इस संदर्भ में मुझ से कुछ कहते नहीं.

आज अम्मां की बीमारी के बारे में सुन कर जैसे राकेश ने मुझे भेजती नजरों से देखा था इस से जाहिर था कि वे इन सारी बातों के लिए मुझे ही कसूरवार मान रहे थे.

मैं बेसब्री से राकेश के लौटने का इंतजार कर रही थी. कहीं न कहीं अम्मां को ले कर मुझे भी चिंता होने लगी थी. आखिर वे बुजुर्ग हैं और बुजुर्गों के लिए कोरोना ज्यादा घातक सिद्ध हो रहा था.

मैं ने राकेश को फोन कर अम्मां के बारे में जानना चाहा तो राकेश ने संक्षेप में जवाब दिया,” अम्मां को तेज बुखार है. मैं ने एंबुलेंस वाले को फोन कर दिया है. बस वे आने ही वाले हैं. फिर मैं अम्मा को ले कर हॉस्पिटल निकल जाऊंगा. सारा इंतजाम कर के और कोरोना का टेस्ट करवा कर ही लौटूंगा. मीता ने बताया है कि अम्मां से मिलने शर्मा जी का लड़का आया था जो कुछ दिन पहले विदेश से लौटा था. ”

“ठीक है मगर जरा ध्यान से. प्लीज अपना भी ख्याल रखना.”

“हूं ठीक है.” कह कर राकेश ने फोन काट दिया. मेरे दिल में खलबली मची हुई थी, अम्मां को सच में कोरोना निकला तो? उन्हें कुछ हो गया तो ? राकेश तो मुझे कभी भी माफ नहीं करेंगे. इधर मुझे यह डर भी लग रहा था कि कहीं अम्मां के कारण कहीं राकेश भी बीमारी ले कर घर न आ जाएं.

शाम ढले राकेश वापस लौटे.

“क्या हुआ? अम्मां कैसी हैं और आप ने अपना ध्यान तो रखा? मास्क हटाया तो नहीं ? हाथों में सैनिटाइजर तो लगाते रहे न? अम्मां की रिपोर्ट कब तक आएगी?किस हॉस्पिटल में एडमिट किया है?”

मैं ने सवालों की झड़ी लगा दी तो वे मुंह बनाते हुए बाथरूम में नहाने चले गए.

मैं ने खुद को शांत किया और फिर एकएक कर के सवाल पूछे. राकेश ने बताया कि रिपोर्ट 36 घंटे में आ जाएगी और तब तक अम्मां एडमिट रहेगीं.

रात में सोते समय राकेश ने मुझ से सवाल किया,”दोतीन महीने पहले तुम ने अम्मां से उन का पुश्तैनी सोने का हार मांगा था?”

सवाल सुन कर मैं सकते में आ गई,” हां मैं ने तो बस सुरक्षा के लिहाज से कहा था. असल में मुझे लगा कि बाबूजी भी नहीं हैं और अम्मा अकेली रहती हैं. ऐसे में कहीं हार चोरी न हो जाए.”

“क्या बात है अंजलि, हार के जाने का डर है तुम्हें पर अम्मां के जाने का कोई डर नहीं? “कह कर राकेश उठ कर दूसरे कमरे में चले गए.

मैं अम्मां को मन ही मन बुराभला कहने लगी, कैसी हैं अम्मा भी? बीमारी में भी मेरे खिलाफ अपने बेटे के कान भरने से बाज नहीं आईं. मैं ने बुरा सा मुंह बनाया और लेट गई.

तब तक राकेश एक ज्वैलरी बॉक्स ले कर अंदर आए,” यह लो अंजलि, अम्मा ने यह हार तुम्हारे बर्थडे के लिए तैयार कराया था. अपने पुश्तैनी हार मेंअपने अब तक के बचाए हुए रुपए लगा कर यह भारी हार बनवाया है तुम्हारे लिए. यह हीरे की अंगूठी मेरे लिए, यह कंगन गुड्डी और यह घड़ी मोनू के लिए.”

कहते कहते राकेश फफकफफक कर रोने लगे थे. मेरी आंखों में भी आंसू छलक आए. तोहफे में हार दे कर अम्मां ने मुझे हरा दिया था.

तभी राकेश ने रुंधे हुए स्वर में फिर कहा,” जानती हो अम्मां ने यह सब देते हुए क्या कहा? वे बोलीं कि बेटा क्या पता मुझे कहीं कोरोना हो और मैं लौट कर न आ सकूं. ऐसे में अंजलि को जन्मदिन पर अपने हाथों से नहीं दे पाऊंगी इसलिए तू ही उसे दे देना. आखिर वह भी है तो मेरी बच्ची ही न.”

मैं निशब्द जमीन को एकटक निहार रही थी. शायद अम्मा के प्रति आज तक के अपने व्यवहार पर शर्मिंदा थी. राकेश सोने चले गए मगर मैं रात भर करवटें बदलती रही. मेरी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. मैं सोचती रही अम्मां मेरा इतना ख्याल रखती हैं और मैं ही हमेशा उन के बारे में गलत सोचती रही हूं. यह बात मुझे अंदर से बेधे जा रही थी.

किसी तरह 36 घंटे बीते. राकेश ने फोन कर के बताया कि अम्मां को कोरोना नहीं है. सिंपल बुखार है जो अब लगभग ठीक हो चुका है.”

मेरी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. मैं ने राकेश से कहा, सुनो अम्मां जैसे ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हों तो उन्हें हमारे घर ले कर आना. उन्हें देखभाल की जरूरत है और फिर कोरोना फैल रहा है. वे खुद अपनी सुरक्षा का ख्याल नहीं कर पाएंगी. मैं उन का ख्याल रखना चाहती हूं हमेशा. … वैसे भी आखिर मैं हूं तो उन की बच्ची ही न. ” कहते कहते मैं रो पड़ी थी.

राकेश गदगद स्वर में इतना ही बोल पाए,” थैंक्यू अंजलि.”

Valentine’s Day Special : तुम्हारे ये घुंघराले बाल

Valentine’s Day Special :  ‘‘मैंभी चलूंगी कल से तुम्हारे साथ हौस्पिटल. कोरोना की वजह से मरीजों की तादाद कितनी बढ़ रही है. ऐसे में डाक्टर्स के अलावा नर्सों की भी तो जरूरत है न. जब कर सकती हूं मरीजों की सेवा तो क्यों बैठूं घर पर?’’ फोन पर कुशल के हैलो कहते ही गौरी बोल उठी.

‘‘प्लीज गौरी, बात को समझो. तुम्हारी तबीयत ठीक हुए अभी बहुत समय नहीं बीता है और उस से भी बड़ी बात है कि तुम्हारे पास नर्सिंग की डिग्री भी नहीं है.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि डिग्री क्यों नहीं मिली मुझे. फाइनल इयर के एग्जाम्स ही नहीं दे सकी थी. पढ़ाई तो पूरी कर ही ली थी न मैं ने. अपने साथ कल से मुझे ले जाना ही पड़ेगा तुम्हें.’’

‘‘मुझे पता है गौरी सब. अच्छा बताओ

क्या तुम चाहोगी कि कोई गैरकानूनी काम करें हम? बस तुम रोज एक बार फोन पर बात कर लिया करो मुझे और मैं लगा रहूंगा अपने कर्तव्य पालन में.’’ कुशल के मन की मिठास बातों में घुल रही थी.

‘‘डियर डाक्टर साहब, मैं क्या बेवकूफ लगती हूं तुम्हें? आज ही अपने इंस्टिट्यूट में फोन कर नर्स के रूप में काम करने की परमिशन ले ली है मैं ने. कालेज के मेरे पिछले रिकार्ड्स और समय की मांग को देखते हुए वीसी सर की ओर से स्पैशल परमिशन का मेल मिल गया है. मैं

उस मेल का प्रिंट दिखा कर काम कर सकती हूं. तीन महीने के लिए वैलिड होगी यह परमिशन… कुछ समझे?’’ खिलखिला कर हंसते हुए गौरी

ने बताया.

‘‘अरे वाह… ठीक है कल पिक कर लूंगा घर से तुम्हें.’’ कुशल अभिभूत हो उठा.

अगले दिन जाने की तैयारी कर गौरी सोने चली गई, लेकिन नींद तो आंखों के आसपास थी ही नहीं. कुछ था तो यादों का कारवां, जिस के साथ चलतेचलते गौरी पुराने दिनों में पहुंच गई.

यूपी के एक छोटे से कस्बे में कुशल के साथ खेलतेकूदते बीता था गौरी का बचपन. परिवार के नाम पर वह और मां 2 लोग ही थे. सालभर की गौरी को अपनी पत्नी के पास छोड़ उस के पिता शहर में नौकरी करने क्या गए कि आज तक नहीं लौटे. कुछ लोगों का कहना था

कि उन्होंने दूसरी शादी कर ली. गौरी की मां न

तो पढ़ीलिखी थी और न ही उस के पास इतना पैसा था कि घर की गुजरबसर हो पाए. उस का अपना मायका भी प्रदेश के दूसरे छोर पर पहले ही गरीबी की मार झेल रहा था. ऐसे में वह घर पर ही पापड़ और अचार बनाने का काम करने लगी थी.

कुशल के पिता आर्थिक रूप से संपन्न थे, निकट के एक गांव में बड़ेबड़े खेत और रहने को हवेलीनुमा घर भी. अपने पिता की व्यस्तता और मां के एक जानलेवा बीमारी का शिकार हो दुनिया छोड़ देने के बाद कुशल का अकेलापन गौरी की संगति में कम हो गया था. उसे गौरी के सिवाय किसी और का साथ अच्छा भी नहीं लगता था. गौरी को जब वह अपनी सहेलियों के साथ खेलते देखता तो दूर से ही आवाज लगा कर बुला लेता था. गौरी आश्चर्यचकित हो पूछती कि उस ने इतनी दूर से, इतनी सारी लड़कियों के बीच कैसे पहचान लिया उसे? कुशल हंसते हुए जवाब देता, ‘‘तुम्हारे घुंघराले बाल इतने सुंदर हैं कि दूर से ही चमकते हैं गौरी… बस पहचान लेता हूं बालों से तुम्हें.’’ सचमुच गौरी के रेशमी से सुनहरे घुंघराले बाल बहुत सुंदर थे.

गौरी और कुशल दोनों ही पढ़ने में अव्वल थे. कुशल को अपनी मां का बीमारी से छिन

जाना जबतब पीड़ा दे जाता था. कस्बे में अभी भी कोई बड़ा अस्पताल नहीं था. उस की इच्छा थी कि वह डाक्टर बन कर अपने लोगों की सेवा करे. गौरी चाहती थी कि वह भविष्य में कुशल का साथ दे पाए, डाक्टर बन कर न सही नर्स बन कर ही.

10वीं कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के बाद कुशल ने कोचिंग सैंटर जाना शुरू कर दिया था. गौरी जानती थी कि किसी अच्छे सरकारी कालेज में जहां फीस कम होगी, नर्सिंग में एडमिशन लेने के लिए उसे भी अपना सारा ध्यान पढ़ने में ही लगाना होगा. खेलनाकूदना कम कर इसलिए ही वह पढ़ाई में जुटी रहती. एक दूसरे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए खूब परिश्रम कर रहे थे वे रातदिन.

दोनों की इस मेहनत का सुखद परिणाम भी सामने आया. कुशल को मुंबई के एक मैडिकल कालेज ने डाक्टर बनने का अवसर प्रदान कर दिया. गौरी को कुशल के कालेज में प्रवेश तो नहीं मिल सका, लेकिन नर्स बन कर कुशल का साथ निभाने का सपना अवश्य पूरा हो गया. मेरठ के एक इंस्टिट्यूट में नर्सिंग की डिग्री के लिए उस का नाम प्रथम लिस्ट में ही आ गया था. खुशियों को दोनों हाथों से बटोरते हुए वे प्रफुल्लित हुए ही थे कि बिछड़ने का समय भी आ गया.

उस दिन गौरी सामान तैयार कर मेरठ जाने को बस स्टैंड पर खड़ी थी. कुशल घर से निकल ही रहा था कि उस के पिता से मिलने कुछ लोग आ गए. पिता के किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त होने के कारण कुशल को उन के साथ बैठना पड़ा. उधर गौरी कुशल की प्रतीक्षा करते हुए व्याकुल हो रही थी. बस से उतर कर नीचे आ वह चारों ओर निगाहें दौड़ाती हुई निराशा से घिरने लगी. कस्बे से मेरठ के लिए बसें लगभग 2 घंटे के अंतराल से चलती थीं.

अगली बस की प्रतीक्षा करती तो मेरठ पहुंचतेपहुंचते देर हो जाती. ‘लगता है जाने से पहले कुशल से मिलना नहीं हो सकेगा… एक तो मां से दूर जाने का दुख, उस पर कुशल से भी बिना मिले जाना होगा क्या मुझे? मां से तो हौस्टल में रहते हुए भी हर महीने मिलने आ सकती हूं. लेकिन कुशल… उस से तो पता नहीं अब कितने दिनों बाद मिलना होगा? वो भी तो अब चला जाएगा बहुत दूर. काश, मैं उस की

बात मान लेती. जिद कर रहा था कि अपने पापा से पैसे ले कर मुझे एक मोबाइल दिला दे, मैं ने क्यों मना कर दिया?’ सोच कर गौरी रुआंसी

हो गई.

कंडक्टर के यात्रियों को पुकारने पर गौरी बस में चढ़ आंखें मूंद कर सीट से सिर टिका कर बैठ गई. सहसा पीछे से किसी ने उस का कंधा थपथपाया. हड़बड़ा कर आंखें खोल गौरी ने पीछे मुड़ कर देखा तो खुशी से चहक उठी, ‘‘अरे, कुशल तुम… कितनी देर कर दी. कब से बाहर खड़ी इंतजार कर रही थी तुम्हारा.’’

‘‘पता है मैं घर से भागता हुआ आ रहा हूं. तुम आज यहां न मिलतीं तो पीछेपीछे तुम्हारे कालेज आ जाता.’’ बिछड़ने से पहले गौरी को हंसते हुए देखना चाहता था कुशल.

‘‘सच्ची? तुम मेरठ तक आ जाते? वैसे… एक बात बताओ मैं तो बस के अंदर आ चुकी थी. तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं इस बस में ही हूं? हो सकता था कि मैं अभी घर से निकली ही न होती या पहले ही जा चुकी होती?’’ गौरी ने भौंहें नचाते हुए पूछा.

‘‘हा हा हा… मैं ने कैसे पता लगा लिया कि तुम बस में बैठी हो? तो आज तुम्हें फिर से बता देता हूं कि मुझे दूर से ही दिख जाते हैं तुम्हारे ये रेशमी घुंघराले बाल. पता है, आज भी बस की खिड़की से लहराते हुए दिख रहे थे मुझे. अब कभी मत भूलना कि मैं हमेशा तुम्हें दूर से ही इन बालों से पहचान लेता हूं.’’ कुशल ने बात पूरी की ही थी कि ड्राइवर ने बस स्टार्ट कर दी. भारी मन से एकदूसरे से बिछड़ते हुए दोनों का चेहरा निस्तेज हो गया था. नीचे उतर कर कुशल तब तक हाथ हिलाता रहा जब तक कि बस उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

बुझे मन से घर की ओर जाते हुए चप्पाचप्पा उसे अपनी दोस्त की याद दिला रहा था.

शाम ढलने लगी थी. मन की तरह ही आसपास अंधेरा घिर आया. भारी कदमों से चलते हुए घर पहुंच वह आज गौरी को याद करते हुए महसूस कर रहा था कि मन एक रेशमी सी डोर में बंधा जैसे उड़ कर गौरी के पास चले जाना चाहता है. यह खिंचाव महज दोस्ती तो नहीं कुछ और है… पर क्या नाम दे इसे? इसी उधेड़बुन में उलझते हुए वह अपने जाने की तैयारी करने लगा.

कुछ दिनों बाद वह भी अपने पिता और गांव से दूर मुंबई चला गया.

वहां पहुंच कर कुशल को लगा जैसे किसी और ही लोक में आ गया है. ‘क्या गौरी भी मुझे ऐसे ही याद कर रही होगी?’ अकसर वह सोचता. उधर गौरी को भी मेरठ का माहौल कस्बे से बहुत अलग लग रहा था. कदमकदम पर उसे कुशल के साथ की कमी महसूस होती. कुशल का हाथ थामने की ख्वाहिश बढ़ने के साथ ही उसे बेहद करीब से महसूस करने की तमन्ना भी अब सिर उठाने लगी थी.

छुट्टियों में गौरी तो अकसर मां के पास चली आती थी, लेकिन कुशल के लिए यह संभव नहीं हो पाता था. गौरी से उस की मुलाकात बहुत दिन बीत जाने पर तब हो सकी जब वह पहला समैस्टर पूरा होने पर घर आया.

दोनों मिले तो खुशियां जैसे पंख लगा कर उड़ान भरने लगीं. पूरा दिन अपनी नई दुनिया की बातें करतेकरते बीत जाता था. एक दिन कुशल के घर बैठे हुए दोनों एकदूसरे को कालेज, वहां की कैंटीन, हौस्टल, मित्रों आदि के विषय में बता रहे थे कि कुशल अचानक बोल उठा, ‘‘गौरी, दिन तो वहां पढ़तेपढ़ाते बीत जाता है, लेकिन रात होने पर मुझे यहां की बहुत याद आती है और सब से ज्यादा… तुम्हारी…!’’ अंतिम वाक्य कुशल के मुंह से न चाहते हुए भी निकल गया. गौरी का दिल इतनी तेजी से धड़क उठा जैसे निकल कर बाहर ही आ जाएगा.

‘‘मैं तो नई सहेलियों से तुम्हारी ही बातें करती हूं… कभीकभी वे कह देती हैं कि इतना याद कर रही हो तो उस के पास ही चली जाओ और मैं बस हंस देती हूं.’’

लाज से भरी गौरी की नम आंखों ने चुगली कर ही दी कि उस के मन में भी प्रेम

कर दरिया बह रहा है.

‘‘गौरी, मैं ने एअरपोर्ट से आते समय एक मोबाइल खरीदा था. मुंबई वापस लौटने से पहले उस में अपना नंबर सेव कर दूंगा. तुम से बात कर लिया करूंगा तो शायद चैन आ जाए मुझे.’’

मोबाइल से बातें कर एकदूसरे से जुड़े रहने की चाह में एक बार फिर दूर हो गए दोनों.

गौरी ने कुशल से मोबाइल पर कुछ दिन ही बात की थी. सोच रही थी कि अगली बार जब घर जाएगी तो किसी पड़ोसी का नंबर ले आएगी और कभीकभी मां से बात कर लिया करेगी, लेकिन बिछड़े हुए अपनों से जोड़ने वाला मोबाइल भी उस से जल्दी ही बिछड़ गया. एक दिन जब वह सहेलियों के साथ बाजार से लौट रही थी तो मोबाइल हाथ में लिए उस के बातों में मग्न होने का लाभ उठाते हुए एक मोटरसाइकिल सवार ने मोबाइल छीन लिया. बहुत रोई थी गौरी. अगले दिन क्लास खत्म होने के बाद उस ने कुशल को फोन छिन जाने की बात कहते हुए एक मेल कर दिया. जवाब में कुशल से सांत्वना पा कर गौरी की उदासी कुछ कम तो हुई लेकिन कुशल से यह जानकर कि अति व्यस्तता के कारण अब उस का घर आना और भी कम हो जाएगा, गौरी बेचैन हो उठी.

कुशल गौरी को मन में बसाए कठोर परिश्रम कर रहा था. लैब में रात देर तक काम करते हुए कभीकभी वह बहुत थक जाया करता था. गौरी को याद करते हुए एक दिन वह कुछ ज्यादा ही परेशान था. कुछ दिनों पहले गौरी का एक मेल आया था, जिस में उस ने अपनी तबीयत ठीक न होने की बात लिखी थी. उस के बाद कुशल ने 2-3 मेल किए, लेकिन किसी का उत्तर नहीं मिला. ‘शायद कालेज में कंप्यूटर के पर्सनल यूज पर रोक लगा दी गई हो’ सोच कर वह स्वयं को बहला रहा था.

सहसा कमरे की घंटी बजी. चपरासी कमरे में आया और रजिस्टर पर हस्ताक्षर ले एक और्डर की कौपी उसे थमा दी. और्डर पढ़ते ही कुशल की सारी थकान उड़न छू हो गई. संदेश था कि अगले सप्ताह उसे डाक्टरों के एक दल के साथ दिल्ली भेजा जा रहा है. वहां के एक कैंसर हौस्पिटल में मरीजों की स्थिति देख कर विशेष रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था. ‘दिल्ली से कुछ घंटों में मेरठ और फिर वहां से गौरी के कालेज… दिल्ली पहुंच तो जाऊं फिर उसे जबरदस्त सरप्राइज दूंगा.’ सोच कर कुशल का मन बल्लियों उछलने लगा.

निश्चित दिन उत्साहित हो वह टीम के

साथ निकल पड़ा. रात के 2 बजे सब दिल्ली पहुंचे. कुछ घंटे आराम करने के बाद सभी

सुबह अस्पताल के लिए चल दिए. वहां टीम

के एक डाक्टर से बात करते हुए कुशल ने

वार्ड में प्रवेश किया तो लगा कि उस के पैर जैसे वहीं जम गए हों. हिम्मत जुटा कर वह बैड के पास पहुंचा, ‘‘गौरी… तुम यहां?… कैसे… क्या… कब हुआ ये?’’ कुशल कुछ समझ ही नहीं पा रहा था.

गौरी ने कुशल का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘पहले बताओ तुम यहां कैसे?’’

‘‘मुझे तो केस स्टडी के लिए टीम के

साथ भेजा गया है… तुम्हारा मेल ही नहीं मिला था, परेशान तो था मैं. लेकिन तुम्हारे साथ ऐसा हुआ… मुझे पता भी नहीं लगा.’’ कुशल भर्राए गले से बोला.

‘‘मैं एग्जाम्स की तैयारी कर रही थी कि एक दिन अचानक चक्कर आ गया, फिर बहुत थकान लगने लगी. मैं ने सोचा कि पढ़ाई के प्रैशर से हो रहा है ऐसा. पर जब हालत ज्यादा खराब होने लगी तो हमारी मैम को कुछ शंका हुई. अस्पताल में दिखाया गया, टैस्ट हुए और पता लगा कि मुझे ब्लड कैंसर है. यह तो अच्छा है कि अभी पहली स्टेज पर है. टीचर ध्यान न देतीं तो जाने क्या होता?’’

‘‘मां जानती हैं इस बारे में?’’

नहीं, पता लगेगा तो तड़प उठेंगी. वे तो मुझे देखने भी नहीं आ सकती यहां. बोलतेबोलते गला रुंध गया गौरी का.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं आ गया हूं न अब. कुछ करता हूं.’’ प्यार से उस के गालों को थपथपाता हुआ कुशल बोला.

मरीजों को देखने के बाद जब सभी डाक्टर एकत्र हुए तो दल के सब से

सीनियर डाक्टर से कुशल ने गौरी के विषय में बात की. उन्होंने कुशल को मुंबई के एक विशेष हौस्पिटल में जाने की सलाह दी और बताया कि वहां पर ऐसे बहुत से मरीज ठीक हो चुके हैं. कुशल ने गौरी को अपने साथ मुंबई ले जाने का निश्चय किया. अपने घर फोन कर उस ने पिता को सारी स्थिति से अवगत करा दिया. गौरी की मां को अपने घर बुलवा कर कुशल के पिता ने गौरी और मां की बात करवा दी. गौरी की बीमारी के विषय में उस की मां को कुछ न बता कर कहा गया कि एक ट्रेनिंग के सिलसिले में गौरी को मुंबई जाना पड़ेगा, लेकिन चिंता की बात नहीं है क्योंकि कुशल उस के साथ होगा.

कुछ दिनों बाद दोनों मुंबई के लिए रवाना हो गए. इलाज शुरू हुआ और गौरी पर उस का असर जल्द ही दिखने लगा. अपनी पढ़ाई के साथसाथ कुशल गौरी का भी पूरा ध्यान रखता था. कीमोथैरेपी के लिए गौरी को जब अंदर ले जाया जाता तो वह बाहर बैठ कर इंतजार करता रहता. गौरी को अस्पताल में टाइम से दवाइयां दी गई या नहीं, गौरी ने ठीक से कुछ खाया या नहीं… इन सब बातों का भी ध्यान रखता था वह. थोड़ेथोड़े दिनों बाद बीमारी का बढ़ना या रुकना देखने के लिए टैस्ट होते तो कुशल पूरी स्थिति अच्छी तरह समझता. लगभग 6-7 महीने बाद गौरी की हालत में काफी सुधार आ गया. अब उसे केवल कुछ दवाइयां ही लेने की आवश्यकता थी.

गौरी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. कुशल गौरी को साथ ले कर घर छोड़ने आया तो मां को उस ने एकएक घटना विस्तार से बताई. उन्हें किसी प्रकार की चिंता न करने को कह अपने पिता से ले कर उन को कुछ रुपए भी दे दिए. जाने से पहले गौरी को हिदायत दे कर गया कि दवाई के साथसाथ खानेपीने में भी कोई कमी नहीं होनी चाहिए.

इधर गौरी का स्वास्थ्य सुधरने लगा था, उधर अपनी डिग्री पूरी कर कुछ समय बाद कुशल भी लौट आया.

वापस आ कर कुशल ने कस्बे से कुछ दूर स्थित एक हौस्पिटल में कार्य करना शुरू कर दिया. उस का लक्ष्य अपने कस्बे के लोगों की सेवा करना था, इस के लिए पुरानी पुश्तैनी हवेली तुड़वा कर अस्पताल बनवाने पर विचार हो रहा था. गौरी अपनी अधूरी डिग्री जल्द ही पूरी करने को बेताब थी, लेकिन कुशल ने एक डाक्टर के दृष्टिकोण से उसे कुछ दिन और रुक जाने की सलाह दी. गौरी को भी कभीकभी कमजोरी सी महसूस होती, इसलिए मन मार कर प्रतीक्षा करने के सिवाय कोई रास्ता भी नहीं दिखाई देता था. आज जब कोरोना महामारी का तांडव चारों ओर फैला है, ऐसे समय में अपनी सेवाएं देने से गौरी स्वयं को रोक नहीं सकी.

अगले दिन से वह अपने काम में पूरे मन से लग गई. कुशल उस की इस लगन को देख जैसे उन्स पर न्योछावर हुआ जा रहा था. लगातार बढ़ते रोगियों की देखभाल करते हुए उन दोनों को अन्य डाक्टर व नर्सों की तरह ही खानेपीने का समय नहीं मिल पाता था.

एक दिन थकेमांदे जब दोनों कैंटीन में चाय पी रहे थे तो कुशल मुसकराते हुए बोला,

‘‘गौरी तुम ने तो अपनी मनपसंद ड्रैस पहन ही ली यह नर्स की यूनिफौर्म, लेकिन मेरी मनपसंद ड्रैस कब पहनोगी? अब मैं देखना चाहता हूं तुम्हें लाल जोड़े में.’’

गौरी सिर झुका कर निराश स्वर में बोली, ‘‘क्या रखा है कुशल अब इस गौरी में? झड़ गए घुंघराले बाल कीमोथैरेपी से… बहुत अच्छे लगते थे न तुम्हें वो… मेरे घुंघराले बालों को देख कर तुम मुझे दूर से ही पहचान लेते थे. अब कहां रही है गौरी तुम्हारी वो घुंघराले बालों वाली लड़की.’’

कुशल प्यार से उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘गौरी… तुम अपने को नहीं जानती शायद… मुझे गर्व है तुम पर, जो दिनरात लोगों की सेवा में लगी हो… अपनी बीमारी से हुई कमजोरी की हालत में भी तुम ने मेरा साथ देने के लिए काम करने की परमिशन ली. बहुत प्यारा है तुम्हारा यह रूप… इसलिए ही तो घुंघराले बालों से कहीं ज्यादा कीमती है वह हैजमैट सूट जो तुम कोरोना मरीजों की सेवा करते हुए पहनती हो. अब जिस गौरी को मैं जानता हूं उस में इतनी खूबियां हैं कि दूर से क्या उसे आंखें बंद कर के भी पहचान सकता हूं.’’

‘‘आज मेरे प्यार की जीत हुई है, कोरोना को अब हारना ही होगा. फिर हमेशा के लिए कुशल की हो जाएगी घुंघराले बालों वाली लड़की,’’ कुशल के प्यार को पा कर गौर अभिभूत हो उठी.

दोनों प्रेम मन में संजोए इस महामारी से लड़ने के लिए कैंटीन से निकल वार्ड की ओर चल दिए.

Story In Hindi : विषकन्या बनने का सपना – जब खत्म होती है रिश्ते की अहमियत

Story In Hindi : इस महीने की 12 तारीख को अदालत से फिर आगे की तारीख मिली. हर तारीख पर दी जाने वाली अगली तारीख किस तरह से किसी की रोशन जिंदगी में अपनी कालिख पोत देती है, यह कोई मुझ से पूछे.

शादीब्याह के मसले निबटाने वाली अदालत यानी ‘मैट्रीमोनियल कोर्ट’ में फिरकी की तरह घूमते हुए आज मुझे 3 साल हो चले हैं. अभी मेरा मामला गवाहियों पर ही अटका है. कब गवाहियां पूरी होंगी, कब बहस होगी, कब मेरा फैसला होगा और कब मुझे न्याय मिलेगा. यह ‘कब’ मेरे सामने नाग की तरह फन फैलाए खड़ा है और मैं बेबस, सिर्फ लाचार हो कर उसे देख भर सकती हूं, इस ‘कब’ के जाल से निकल नहीं सकती.

वैसे मन में रहरह कर कई बार यह खयाल आता है कि शादीब्याह जब मसला बन जाए तो फिर औरतमर्द के रिश्ते की अहमियत ही क्या है? रिश्तों की आंच न रहे तो सांसों की गरमी सिर्फ एकदूसरे को जला सकती है, उन्हें गरमा नहीं सकती.

आपसी बेलागपन के बावजूद मेरा नारी स्वभाव हमेशा इच्छा करता रहा सिर पर तारों सजी छत की. मेरी छत मेरा वजूद था, मेरा अस्तित्व. बेशक, इस का विश्वास और स्नेह का सीमेंट जगहजगह से उखड़ रहा था फिर भी सिर पर कुछ तो था पर मेरे न चाहने पर भी मेरी छत मुझ से छीन ली गई, मेरा सिर नंगा हो गया, सब उजड़ गया. नीड़ का तिनकातिनका बिखर गया. प्रेम का पंछी दूर कहीं क्षितिज के पार गुम हो गया. जिस ने कभी मुझ से प्रेम किया था, 2 नन्हेनन्हे चूजे मेरे पंखों तले सेने के लिए दिए थे, उसे ही अब मेरे जिस्म से बदबू आती थी और मुझे उसे देख कर घिन आती थी.

अब से कुछ साल पहले तक मैं मिसेज वर्मा थी. 10 साल की परिस्थितियों की मार ने मेरे शरीर को बज्र जैसा कठोर बना दिया. अब तो गरमी व सर्दी का एहसास ही मिटने लगा है और भावनाएं शून्यता के निशान पर अटक गई हैं. लेकिन मेरे माथे की लाल, चमकदार बिंदी जब दुनिया की नजरों में धूल झोंक रही होती, मैं अकसर अपनी आंखों में किरकिरी महसूस किया करती.

उस दिन भी खूब जोरों की बारिश हुई थी. भीतर तक भीग जाने की इच्छा थी पर उस दिन बारिश की बूंदें, कांटों की चुभन सी पूरे जिस्म को टीस गईं और दर्द से आत्मा कराह उठी थी. मैं ने अपने बिस्तर पर, अपने अरमानों की तरह किसी और के कपड़े बिखरे देखे थे, मेरा आदमी, अपनी मर्दानगी का झंडा गाड़ने वाला पुरुष, हमेशा के लिए मेरे सामने नंगा हो चुका था.

‘‘हरामखोर तेरी हिम्मत कैसे हुई कमरे में इस तरह घुसने की?’’ शराब के भभके के साथ उस के शब्द हवा में लड़खड़ाए थे. मैं ने उन शब्दों को सुना. उस की जबान और मेरी टांगें लड़खड़ा रही थीं. मुझे लगा, जिस्म को अपने पैरों पर खड़ा करने की सारी शक्ति मुझ से किसी ने खींच ली थी. बड़ी मुश्किल से 2 शब्द मैं ने भी उत्तर में कहे थे, ‘‘यह मेरा घर है…मेरा…तुम ऐसा नहीं कर सकते.’’

इस से पहले कि मैं कुछ और कहती, देखते ही देखते मेरे जिस्म पर बैल्ट से प्रहार होने लगे थे. दोनों बच्चे मुझ से चिपके सिसक रहे थे, उन का कोमल शरीर ही नहीं आत्मा भी छटपटा रही थी.

इस के बाद बच्चों को सीने से लगाए मैं जिंदगी की अनजान डगर पर उतर आई थी. मेरी बेटी जो तब छठी में पढ़ती थी, आज 12वीं जमात में है, बेटा भी 8वीं की परीक्षा की तैयारी में है. उन दिनों मेरे बालों में सफेदी नहीं थी लेकिन आज सिर पर बर्फ सी गिरी लगती है. आंखों के ऊपर मोटे शीशे का चश्मा है. पीठ तब कड़े प्रहारों और ठोकरों से झुकती न थी लेकिन आज दर्द के एहसास ने ही बेंत की तरह उसे झुका दिया है. सच, यादें कितना निरीह और बेबस कर देती हैं इनसान को.

कुछ महीनों के बाद बातचीत, रिश्तेदारियां, सुलहसफाई और समझौते जैसी कई कोशिशें हुईं, पर विश्वास का कागजी लिफाफा फट चुका था, प्रेम की मिसरी का दानादाना बिखर गया था. बाबूजी का मानना कि आदमी का गुस्सा पानी का बुलबुला भर है, मिनटों में बनता, मिनटों में फूटता है, झूठ हो गया था. अकसर पुरुष स्वभाव को समझाते हुए कहते, ‘देख बेटी, मर्द कामकाज से थकाहारा घर लौटता है, न पूछा कर पहेलियां, उसे चिढ़ होती है…उसे समझने की कोशिश कर.’

मैं अपने बाबूजी को कैसे समझाती कि मैं ने इतने साल किस तरह अनसुलझी पहेलियां सुलझाने में होम कर दिए. सीने में बैठा अविश्वास का दर्द, बीचबीच में जब भी टीस बन कर उठता है तो लगता है किसी ने गाल पर तड़ाक से थप्पड़ मारा है.

मेरे, मेरे बच्चों और मेरे अम्मांबाबूजी के लंबे इंतजार के बाद भी कोई मुझे पीहर में बुलाने नहीं आया. मैं अमावस्या की रात के बाद पूर्णिमा की ओर बढ़ते चांद के दोनों छोरों में अकसर अपनी पतंग का माझा फंसा, उसे नीचे उतारने की कोशिश करती, लेकिन चांद कभी मेरी पकड़ में नहीं आया. मेरा माझा कच्चा था.

मेरी बेटी नींद से उठ कर अकसर अपनी बार्वी डौल कभी राह, कभी अलमारी के पीछे तो कभी अपने खिलौनों की टोकरी में तलाशती और पूछती, ‘‘मां, हम अपने पुराने घर कब जाएंगे?’’

उस के इस सवाल पर मैं सिहर उठती, ‘‘हाय, मेरी बेटी…भाग्य ने अब तुझ से तेरी बार्बी डौल छीन कर ऐसे अंधे कुएं में फेंक दी है, जहां से मैं उसे ढूंढ़ कर कभी नहीं ला सकती.’’

बेटी चुप हो जाती और मैं गूंगी. इसी तरह मेरी मां भी गूंगी हो जातीं जब मैं पूछती, ‘‘अम्मां, आप ने मेरे बारे में क्या सोचा? मैं क्या करूं, कहां जाऊं? मेरे 2 छोटेछोटे बच्चे हैं, इन को मैं क्या दूं? प्राइवेट स्कूल की टीचर की नौकरी के सहारे किस तरह काटूंगी पहाड़ सी पूरी जिंदगी?’’

मां की जगह कंपकंपाते हाथों से छड़ी पकड़े, आंखों के चश्मे को थोड़ा और आंखों से सटाते हुए बाबूजी, टूटी बेंत की कुरसी पर बैठते हुए उत्तर देते, ‘‘बेटी, अब जो सोचना है वह तुझे ही सोचना है, जो करना है तुझे ही करना है…हमारी हालत तो तू देख ही रही है.’’

ठंडी आह के साथ उन के मन का गुबार आंखों से फूट पड़ता, ‘समय ने कैसी बेवक्त मार दी है तोषी की अम्मां…मेरी बेटी की जिंदगी हराम कर दी, इस बादमाश ने.’

बस, इसी तरह जिंदगी सरकती जा रही थी. एक दिन सर्द हवा के झोंकों की तरह यह खबर मेरे पूरे वजूद में सिहरन भर गईं कि फलां ने दूसरी शादी कर ली है.

‘शादी, यह कैसे हो सकता है? हमारा तलाक तो हुआ ही नहीं,’ मैं ने फटी आंखों से एकसाथ कई सवाल फेंक दिए थे. लग रहा था कि पांव के नीचे की धरती अचानक ही 5-7 गज नीचे सरक गई हो और मैं उस में धंसती चली जा रही हूं.

अम्मां और बाबूजी ने फिर हिम्मत बंधाई, ‘उस के पास पैसा है, खरीदे हुए रिश्ते हैं, तो क्या हुआ, सच तो सच ही है, हिम्मत मत हारो, कुछ करो. सब ठीक हो जाएगा.’

मैं ने जाने कैसी अंधी उम्मीद के सहारे अदालत के दरवाजे खटखटा दिए, ‘दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो, मुझे न्याय दो, मेरा हक दो…झूठ और फरेब से मेरी झोली में डाला गया तलाक मेरी शादी के जोड़े से भारी कैसे हो सकता है?’ मैं ने पूछा था, ‘मेरे बच्चों के छोटेछोटे कपड़े, टोप, जूते और गाडि़यां, तलाक के कागजी बोझ के नीचे कैसे दब सकते हैं?’

मैं ने चीखचीख कर, छाती पीटपीट कर, उन झूठी गवाहियों से पूछा था जिन्होंने चंद सिक्कों के लालच में मेरी जिंदगी के खाते पर स्याही पोत दी थी. लेकिन किसी ने न तो कोई जवाब देना था, न ही दिया. आज अपने मुकदमे की फाइल उठाए, कचहरी के चक्कर काटती, मैं खुद एक मुकदमा बन गई हूं. हांक लगाने वाला अर्दली, नाजिर, मुंशी, जज, वकील, प्यादा, गवाह सभी मेरी जिंदगी के शब्दकोष में छपे नए काले अक्षर हैं.

आजकल रात के अंधेरे में मैं ने जज की तसवीर को अपनी आंखों की पलकों से चिपका हुआ पाया है. न्यायाधीश बिक गया, बोली लगा दी चौराहे पर उस की, चंद ऊंची पहुंच के अमीर लोगों ने. लानत है, थू… यह सोचने भर से मुंह का स्वाद कड़वा हो जाता है.

भावनाओं के भंवर में डूबतीउतराती कभी सोचती हूं, मेरा दोष ही क्या था जिस की उम्रकैद मुझे मिली और फांसी पर लटके मेरे मासूम बच्चे. न चाहते हुए भी फाड़ कर फेंक देने का जी होता है उन बड़ीबड़ी, लालकाली किताबों को, जिन में जिंदगी और मौत के अंधे नियम छपे हैं, जो निर्दोषों को जीने की सजा और कसूरवारों को खुलेआम मौज करने की आजादी देते हैं. जीने के लिए संघर्ष करती औरत का अस्तित्व क्यों सदियों से गुम होता रहा है, समाज की अनचाही चिनी गई बड़ीबड़ी दीवारों के बीच?

ये प्रश्न हर रोज मुझे नाग बन कर डंसते हैं और मैं हर रोज कटुसत्य का विषपान करती, विषकन्या बनने का सपना देखती हूं.

आसमान में बादल का धुंधलका मुझे बोझिल कर जाता है लेकिन बादलों की ही ओट से कड़कती बिजली फिर से मेरे अंदर उम्मीद जगाती है जीने की, अपनी अस्मिता को बरकरार रखने की और मैं बारिश में भीतर तक भीगने के लिए आंगन में उतर आती हूं.

Emotional Story : रिवाजों का दलदल – श्री के दिल में क्यों रह गई थी टीस

Emotional Story : गाड़ी छूटने वाली थी तभी डब्बे में कुछ यात्री चढ़े. आगेआगे कुली एक व्यक्ति को उस की सीट दिखाने में सहायता कर रहा था और पीछे से 2 बच्चों के साथ जो महिला थी उसे देख कर रजनी स्तब्ध रह गईं.

अपना सामान आरक्षित सीट पर जमा कर उस महिला ने अगलबगल दृष्टि घुमाई और रजनी को देख कर वह भी चौंक सी उठी. एक पल उस ने सोचने में लगाया फिर निकट आ गई.

‘‘नमस्ते, आंटी.’’

‘‘खुश रहो श्री बेटा,’’ रजनी ने कुछ उत्सुकता, कुछ उदासी से उसे देखा और बोलीं, ‘‘कहां जा रही हो?’’

श्री ने मुसकरा कर अपने परिवार की ओर देखा फिर बोली, ‘‘हम दिल्ली जा रहे हैं.’’

‘‘कहां हो आजकल?’’

‘‘दिल्ली में यश एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं. लखनऊ तो मम्मी के पास गए थे,’’ इतना कह कर वह उठ कर अपनी सीट पर चली गई. यश ने सीट पर अखबार बिछा कर एक टोकरी रख दी थी. बच्चे टोकरी से प्लेट निकाल कर रख रहे थे.

‘‘अभी से?’’ श्री ने यश को टोका था.

‘‘हां, खापी कर चैन से सोएंगे,’’ यश ने कहा तो वह मुसकरा कर बैठ गई. सब की प्लेट लगा कर एक प्लेट उस ने रजनी की ओर बढ़ा दी, ‘‘खाइए, आंटी.’’

‘‘अरे, नहीं श्री, मैं घर से खा कर चली हूं. तुम लोग खाओ,’’ रजनी ने विनम्रता से कहा और फिर आंखें मूंद कर वह अपनी सीट पर पैर उठा कर बैठ गईं.

कुछ यात्री उन की बर्थ पर बैठ गए थे. शायद ऊपर की बर्थ पर जाने का अभी उन लोगों का मन नहीं था इसलिए रजनी भी लेट नहीं पा रही थीं.

श्री का परिवार खातेखाते चुटकुले सुना रहा था. रजनी ने कई बार अपनी आंखें खोलीं. शायद वह श्री की आंखों में अतीत की छाया खोज रही थीं पर वहां बस, वर्तमान की खिलखिलाहट थी. श्री को देखते ही फिर से अतीत के साए बंद आंखों में उभरने लगे है.

श्रीनिवासन और उन का बेटा सुभग कालिज में एकसाथ पढ़ते थे. जाने कब और कैसे दोनों प्यार के बंधन में बंध गए. उन्हें तो पता भी नहीं था कि उन के पुत्र के जीवन में कोई लड़की आ गई है.

सुभग ने बी.ए. की परीक्षा पास करने के बाद प्रशासनिक सेवा का फार्म भर दिया और पढ़ाई में व्यस्त हो गया. सुभग की दादी तब तक जीवित थीं. उन के सपनों में सुभग पूरे ठाटबाट से आने लगा. कहतीं, ‘देखना, कितने बड़ेबड़े घरानों से इस का रिश्ता आएगा. हमारा मानसम्मान और घर सब भर जाएगा.’

उन के सपनों में अपने पोते का भविष्य घूमता रहता. सुभग के पापा तब कहते, ‘अभी तो सुभग ने खाली फार्म भरा है मां, अगर उस का चुनाव हो गया तो कुछ साल ट्रेनिंग में जाएंगे.’

‘अरे तो क्या? बनेगा तो जरूर एक दिन कलेक्टर,’ मांजी अकड़ कर कह देतीं.

श्री के पति ने खापी कर बर्थ पर बिस्तर बिछा लिया था. रजनी ने देखा अपनी गृहस्थी में श्री इतनी अधिक मग्न है कि उस ने एक बार भी रजनी से सुभग के बारे में नहीं पूछा. क्या उसे सुभग के बारे में कुछ भी पता नहीं है. मन ने तर्क किया, वह क्यों सुभग के बारे में जानने की चेष्टा करेगी. जो कुछ हुआ उस में श्री का क्या दोष. आह सी निकल गई. दोष तो दोनों का नहीं था, न श्री का न सुभग का. तो फिर वह सब क्यों हुआ, आखिर क्यों? कौन था उन बातों का उत्तरदायी?

‘‘बहनजी, बत्ती बुझा दीजिए,’’ एक सहयात्री ने अपनी स्लीपिंग बर्थ पर पसरने से पहले रजनी से कहा.

रजनी को होश आया कि ज्यादातर यात्री अपनीअपनी सीट पर सोने की तैयारी में हैं. वह अनमनी सी उठीं और तकिया निकाल कर बत्ती बुझाते हुए लेट गईं.

हलकीहलकी रोशनी में रजनी ने आंखें बंद कर लीं पर नींद तो कोसों दूर लग रही थी. कई वर्ष लगे थे उन हालात से उबर कर अपने को सहज करने में पर आज फिर एक बार वह दर्द हर अंग से जैसे रिस चला है. यादों की लहरें ही नहीं बल्कि पूरा का पूरा समुद्र उफन रहा था.

सुभग ने जिस दिन प्रशासनिक अधिकारी का पद संभाला था उसी दिन से मांजी ने शोर मचा दिया. रोज कहतीं, ‘इतने रिश्ते आने लगे हैं हम लड़कियों के चित्र मंगवा लेते हैं. जिस पर सुभग हाथ रख देगा वही लड़की ब्याह लाएंगे.’

सुभग ने भी हंस कर अपनी दादी के कंधे पर झूलते हुए कहा था, ‘सच दादी. फिर वादे से पलट मत जाइएगा.’

‘चल हट.’

घर के आकाश में सतरंगे सपनों का इंद्रधनुष सा सज गया था. खुशियां सब के मन में फूलों सी खिल रही थीं.

पापा ने अपने बेटे के लिए एक बड़ी पार्टी दे रखी थी. उन के बहुत से मित्रों में कई लड़कियां भी थीं. रजनी ने बारबार अनुभव किया कि सुभग के मित्र उसे श्री की ओर संकेत कर के छेड़ रहे थे. सुभग और श्री की मुसकराहट में भी कुछ था जो ध्यान खींच रहा था.

पार्टी के बाद सुभग उसे घर तक छोड़ने भी गया था. लौटा तो रजनी ने सोचा कि बेटे से श्री के बारे में पूछ कर देखें. पर उस से पहले उस की दादी एक पुलिंदा ले कर आ पहुंचीं.

सुभग ने कहा, ‘दादी, यह मुझे क्यों दिखा रही हैं?’

‘शादी तो तुझे ही करनी है फिर और किसे दिखाएं.’

‘शादी…अभी से…’ सुभग कुछ परेशान हो उठा.

‘शादी का समय और कब आएगा?’ दादी का प्यार सागर का उफान मार रहा था.

‘नहीं, दादी, पहले मुझे सैटल हो जाने दीजिए फिर मैं स्वयं ही…’ वह बात अधूरी छोड़ कर जाने लगा तो दादी ने रोका, ‘हम कुछ नहीं जानते. कुछ तसवीरें पसंद की हैं. तू भी देख लेना फिर उन की कुंडली मंगवा लेंगे.’

‘कुंडली,’ सुभग चौंक कर घूम गया था. जैसेजैसे उस की दादी का उत्साह बढ़ता गया वैसेवैसे सुभग शांत होता गया.

एक दिन वह अपने मन के सन्नाटे को तोड़ते हुए श्री को ले कर घर आ गया. रजनी चाय बनाने जाने लगीं तो सुभग ने बड़े अधिकार से श्री से कहा, ‘श्री, तुम बना लो चाय.’ तो वह झट से उठ खड़ी हुईं. उस के साथ ही सुभग ने भी उठते हुए कहा, ‘‘इसे रसोई में सब दिखा दूं जरा.’’

उस दिन उस की दादी का ध्यान भी इस ओर गया. श्री के जाने के बाद उन्होंने कहा, ‘शुभी, यह मद्रासी लड़की तेरी दोस्त है या कुछ और भी है?’

वह धीरे से मुसकराया.

‘आप ने वादा किया है न दादी कि जिस लड़की पर मैं हाथ रख दूंगा आप उसे ही ब्याह कर इस घर में ले आएंगी.’

दादी ने कदाचित अपने मन को संभाल लिया था. बोलीं, ‘कायस्थ घराने में एक मद्रासी लड़की तो आजकल चलता है लेकिन अच्छी तरह सुन लो, कुंडली मिलवाए बिना हम ब्याह नहीं होने देंगे.’

रजनी ने धीरे से कहा, ‘अम्मांजी, अब कुंडली कौन मिलवाता है. जो होना होता है वह तो हो कर ही रहता है.’

‘चुप रहो, बहू. हमारा इकलौता पोता है. हम जरा भी लापरवाही नहीं बरतेंगे,’ फिर सुभग से बोलीं, ‘तू इस की मां से कुंडली मांग लेना.’

‘दादी, जैसे आप को अपना पोता प्यारा है, उन्हें भी तो अपनी बेटी उतनी ही प्यारी होगी. अगर मेरी कुंडली खराब हुई और उन्होंने मना कर दिया तो.’

‘कर दें मना, तुझे किस बात की कमी है?’

‘लेकिन दादी…’

उसे बीच में ही टोक कर दादी बोलीं, ‘अब कोई लेकिनवेकिन नहीं. चल, अब खाना खा ले.’

सुभग का मन उखड़ गया था. धीरे से बोला, ‘अभी भूख नहीं है, दादी.’

रजनी जानती थी कि सुभग ने अपने बड़ों से कभी बहस नहीं की. उस की उदासी रजनी को दुखी कर गई थी. एकांत में बोलीं, ‘क्यों डर रहा है. सब ठीक हो जाएगा. तुम दोनों की कुंडली जरूर मिल जाएगी.’

‘और यदि नहीं मिली तो क्या करेंगे आप लोग?’ उस ने सीधा प्रश्न ठोक दिया था.

‘इतना निराशावादी क्यों हो गया है. दादी का मन रह जाने दे, बाकी सब ठीक होगा,’ फिर धीरे से बोलीं, ‘श्री मुझे भी पसंद है.’

गाड़ी धीरेधीरे हिचकोले खा रही थी. शायद कोई स्टेशन आ गया था. गाड़ी तो समय पर अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाती है पर इनसान कई बार बीच राह में ही गुम हो जाता है. आखिर ये रिवाजों के दलदल कब तक पनपते रहेंगे?

वह फिर अतीत की उस खाई में उतरने लगीं जिस से बाहर निकलने की कोई राह ही नहीं बची थी.

दादी के हठ पर वह श्री की कुंडली ले आया था लेकिन उस ने रजनी से कह दिया था, ‘मम्मा, मैं यह सब मानूंगा नहीं. अगर श्री से शादी नहीं तो कभी भी शादी नहीं करूंगा.’

फिर सब बदलता ही चला गया. श्री की कुंडली में मंगली दोष था और भी अनेक दोष पंडित ने बता दिए. दादी ने साफ कह दिया, ‘बस, फैसला हो गया. यह शादी नहीं होगी, एक तो लड़की मंगली है दूसरे, कुंडली में कोई गुण भी नहीं मिल रहे हैं.’

‘मैं यह सब नहीं मानता हूं,’ सुभग ने कहा.

‘मानना पड़ेगा,’ दादी ने जोर दिया.

‘हमारे पोते पर शादी के बाद कोई भी मुसीबत आए यह नहीं हो सकता है.’

‘आप को क्या लगता है दादी, उस से शादी न कर के मैं अमर हो जाऊंगा.’

‘कैसे बहस कर रहा है उस मामूली सी लड़की के लिए. कितनी सुंदर लड़कियों के रिश्ते हैं तेरे लिए.’

‘दादी, सुंदरता समाप्त हो सकती है पर अच्छा स्वभाव सदा बना रहता है.’

सुभग का तर्क एकदम ठीक था पर उस की दादी का हठ सर्वोपरि था. सुभग के हठ को परास्त करने के लिए उन्होंने आमरण अनशन पर जाने की धमकी दे दी.

दिन भर दोनों अपनी जिद पर अड़े रहे. दादी बिना अन्नजल के शाम तक बेहाल होने लगीं. वह मधुमेह की रोगी थीं. पापा ने घबरा कर सुभग के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए, ‘बेटा, तुम्हें तो बहुत अच्छी लड़की फिर भी मिल ही जाएगी पर मुझे मेरी मां नहीं मिलेगी.’

सुभग ने पापा की जुड़ी हथेली पर माथा टिका दिया.

‘पापा, दादी मुझे भी प्यारी हैं. यदि इस समस्या का हल किसी एक को छोड़ना ही है तो मैं श्री को छोड़ता हूं.’

पापा ने उसे गले से लगा लिया. जब उस ने सिर उठाया तो उस का चेहरा आंसुआें में डूबा हुआ था.

पापा से अलग हो कर उस ने कहा, ‘पापा, एक वादा मैं भी चाहता हूं. अब आप लोग कहीं भी मेरे विवाह की बात नहीं चलाएंगे. अगर श्री नहीं तो और कोई भी नहीं?’

पापा व्यथित से उसे देखते रह गए. बेटे से कुछ कह पाने की स्थिति में तो वह भी नहीं थे. जब दादी कुछ स्वस्थ हुईं तो पापा ने कहा, ‘मां, उसे संभालने का अवसर दीजिए. कुछ मत कहिए अभी.’

1 माह बाद दादी ने फिर कहना आरम्भ कर दिया तो सुभग ने कहा, ‘दादी, जब तक मैं नई पोस्ट और नई जगह ठीक से सैटल नहीं होता, प्लीज और कुछ मत कहिए.’

बहुत शीघ्र अपने पद व प्रतिष्ठा से वह शायद ऊब गया और नौकरी छोड़ कर दुबई चला गया. शायद विवाह से पीछा छुड़ाने की यह राह चुनी थी उस ने.

इसी तरह टालते हुए 3 वर्ष और बीत गए थे. सुभग दुबई में अकेले रहता था. फोन भी कम करता था. वहां की तेज रफ्तार जिंदगी में पता नहीं ऐसा क्या हुआ, एक दिन उस के आफिस वालों ने फोन से दुर्घटना में उस की मृत्यु का समाचार दिया.

जाने कब रजनी की आंख लग गई थी. कुछ शोर से आंख खुली तो पता चला दिल्ली का स्टेशन आने वाला है.

उन्होंने झट से चादर तहाई, बैग व पर्स संभाला और बीच की सीट गिरा कर बैठ गईं. श्री भी परिवार सहित सामान समेट कर स्टेशन आने की प्रतीक्षा कर रही थी. उन की आंखों में पछतावे के छोटेछोटे तिनके चुभ रहे थे. दादी का सदमे से अस्वस्थ हो जाना और उन का वह पछतावा कि अगर उसे इतना ही जीना था तो मैं ने क्यों उस का दिल तोड़ा?

दादी का वह करुण विलाप उन की अंतिम सांस तक सब के दिल दहलाता रहा था. काश, कभीकभी इस से आगे कुछ होता ही नहीं, सब शून्य में खो जाता है.

स्टेशन आ गया था. जातेजाते श्री ने उन का बैग थाम लिया था. स्टेशन पर उतर कर बैग उन्हें थमाया. उन की हथेली दबा कर धीरे से कहा, ‘‘धीरज रखिए, आंटी. मुझे मालूम है कि आप अकेली रह गई हैं,’’ उस ने अपना फोन नंबर व पते का कार्ड दिया और बोली, ‘‘मैं पटेल नगर में रहती हूं. जबजब अपने भाई के यहां दिल्ली आएं हमें फोन करिए. एक बार तो आ कर मिल ही सकती हूं.’’

रजनी ने भरी आंखों से उसे देखा. लगा, श्री के रूप में सुभग उस के सामने खड़ा है और कह रहा है, ‘मैं कहीं नहीं गया मम्मा.

Parenting Tips : पब्लिक प्लेस में बच्चों के टैट्रम्स को कुछ इस तरह करें हैंडल

Parenting Tips : बच्चों का टैट्रम होना एक सामान्य बात है, लेकिन जब यह पब्लिक प्लेस में हो, तो यह मां के लिए काफी तनावपूर्ण और शर्मनाक हो सकता है. ऐसे समय में मां को अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए बच्चे को सही तरीके से संभालना बहुत जरूरी होता है.

पब्लिक जगह पर बच्चा जब रोता है या गुस्से में आता है, तो मां के लिए उसे शांत करना एक चुनौती बन जाती है. लेकिन कुछ आसान तरीके हैं, जिन से मां बच्चे के टैट्रम्स को सुधार सकती हैं :

खुद को शांत रखें

जब बच्चा गुस्से में हो, तो मां को सब से पहले खुद को शांत रखना बहुत जरूरी है. यदि मां खुद गुस्से में आ जाए तो बच्चा और ज्यादा उलझ सकता है. बच्चों के टैट्रम्स में कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चा सिर्फ ध्यान आकर्षित करने के लिए गुस्सा करता है. इसलिए खुद को शांत और काबू में रखना सब से पहला कदम है.

* आप का शांत रहना बच्चे को यह सिखाता है कि गुस्से से किसी समस्या का हल नहीं निकलता.

* बच्चे को प्यार से समझाएं.

अगर बच्चा बहुत गुस्से में हो, तो सब से अच्छा तरीका है उसे प्यार से समझाना. आप उसे यह बता सकती हैं कि आप उस का गुस्सा समझ रही हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐसे व्यवहार को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता. छोटे बच्चों को बिना गुस्से के और नर्म तरीके से बात करने से वे जल्दी शांत हो जाते हैं।

* सरल शब्दों में समझाना बच्चों को आसानी से आप के संदेश को समझने में मदद करता है.

ध्यान भटकाना (Distraction)

कभीकभी बच्चों का ध्यान भटकाने से उन की समस्या हल हो सकती है. यदि बच्चा किसी चीज को ले कर परेशान हो, तो आप उसे कुछ और दिलचस्प चीज दिखा सकती हैं. जैसे उस का पसंदीदा खिलौना, गाना या कार्टून शो. इस तरह बच्चा थोड़ी देर के लिए अपनी परेशानी भूल सकता है.

* बच्चे का ध्यान दूसरी तरफ लगाने से उस का गुस्सा कम हो सकता है.

प्राइवेट जगह पर ले जाएं

अगर स्थिति ज्यादा बिगड़ जाए, तो मां को बच्चे को पब्लिक जगह से हटा कर एक शांत और प्राइवेट स्थान पर ले जाना चाहिए. बहुत ज्यादा शोर, भीड़ और लोग बच्चे के मूड को और खराब कर सकते हैं. एक शांत जगह पर बच्चा आराम से अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकता है.

अनुशासन बनाए रखें

अगर मां बच्चों को अनुशासन सिखाती है, तो बच्चे के टैट्रम्स कम हो सकते हैं. अनुशासन का मतलब यह नहीं कि बच्चे को डांटा जाए, बल्कि उन्हें यह समझाना कि किसी व्यवहार का क्या परिणाम हो सकता है. लगातार और सही रूप से यह दिखाना कि गलत व्यवहार के लिए कोई पौजिटिव रिवौर्ड नहीं मिलेगा, बच्चे को सुधारने में मदद करता है.

सकारात्मक प्रोत्साहन (Positive Reinforcement)

जब बच्चा अच्छा व्यवहार करता है या शांत रहता है, तो उसे सराहना दें. इस से बच्चा समझता है कि अच्छे व्यवहार के लिए उसे सराहना मिलती है और उसे सकारात्मक महसूस होता है. सकारात्मक प्रोत्साहन बच्चों को अच्छे आचरण के लिए प्रेरित करता है.

* प्रशंसा और प्रोत्साहन बच्चों को अपनी गलतियों से सीखने में मदद करते हैं.

धैर्य रखें

बच्चों के टैट्रम्स के दौरान धैर्य रखना बहुत जरूरी है. कभीकभी बच्चे गुस्से में या तनाव में होते हैं और उन्हें शांत होने में थोड़ा समय लग सकता है. मां को यह समझना चाहिए कि यह एक अस्थायी स्थिति है और इसे जल्द ही सुधारा जा सकता है.

बच्चे की भावनाओं को समझें

* कभीकभी बच्चे की गुस्से की वजह कुछ और हो सकती है, जैसेकि भूख, थकावट या अनचाही स्थिति. मां को अपने बच्चे की जरूरतों को समझ कर उन के व्यवहार को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. जब बच्चा मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है, तो टैट्रम्स कम होते हैं.

* बच्चे के मूड और जरूरतों को पहचानना उन की स्थिति को सुधारने में मदद करता है.

सुंदर आईलैंड पर बसा Andaman, एक बार जरूर जाएं घूमने

Andaman : अपनी यात्राओं के सफर में हम ने सैलूलर अंडमान निकोबार के जेल, हैवलाक और नील आइलैंड जाने का प्रोग्राम बनाया. तीनों जगहों के बारे में बहुत कुछ सुना हुआ था. मुंबई से पोर्ट ब्लेयर जिस का नाम अब विजय नगर कर दिया गया है की फ्लाइट 3 घंटे की थी. तो शुरू हुआ मजेदार सफर.

मेरे बराबर में एक महिला और विंडो सीट पर उस का करीब 10 साल का बेटा गट्टू बैठा था जिस का मुंह लगातार चलता रहा, गट्टू उस का नाम था. गोलमटोल गट्टू खानेपीने वाला बच्चा था. उस का मुंह 3 घंटे लगातार चला.

मैं कभी फ्लाइट में सोती नहीं, किताब ले कर चलती हूं. फ्लाइट टाइम से पहुंची. एअरपोर्ट के बाहर ही सावरकर की बड़ी सी मूर्ति लगी है. बुक की हुई कैब लेने आई थी. होटल के रिसैप्शन पर सब को अच्छी हिंदी आती थी, इस ट्रिप में जहां भी गए, हिंदी सब को आती थी. यहां साउथ इंडियंस और बंगाली बहुत हैं.

फ्रैश हो कर होटल में ही लंच कर के आराम किया, फिर शाम को चाय पी कर यों ही शहर की सैर की, फिर सैलुलर जेल का साढ़े 7 बजे का ‘लाइट ऐंड साउंड’ शो बुक किया. यह नवंबर का आखिरी हफ्ता था. यहां सनसेट साढ़े 4 बजे हो जाता है, यह हमें जाने से पहले नहीं पता था. शो देखने के लिए काफी टूरिस्ट थे. सबकुछ बहुत व्यवस्थित था. अंदर जाने के लिए लंबी लाइन थी. अंदर जाते हुए जेल से जुड़ा इतिहास याद कर के दिल उदास होता है.

ऐतिहासिक आकर्षण

बैठने के लिए अच्छी चेयर्स थीं. आज भी एक ऐतिहासिक, बड़ा पेड़ है जो उस समय की क्रांति, पीड़ा और यातनाओं का साक्षी है. शो में  आवाज गुलजार, कबीर बेदी और आशीष विद्यार्थी की है. सूत्रधार पेड़ में गुलजार की आवाज बहुत प्रभावित करती है.

2 जगह अमर ज्योति जलती रहती है. शो में क्रांतिकारियों और आजादी के मतवालों के बलिदान के बारे में बहुत कुछ बताया गया है. शो काफी असरदार है. जेल के बाहर ही एक छोटा सा गार्डन है जहां कई शहीदों- बाबा भान सिंह, महावीर सिंह, रामरखा, इंदु भूषण राय, मोहन किशोर नामदास, मोहित मोइत्रा और सावरकर की गोल्डन मूर्तियां लगी हैं जो रात में चमक रही थीं.

जेल के बारे में और भी बहुत कुछ जानना था, दिन में भी विस्तार से देखना था इसलिए हम ने अगले दिन गाइडेड टूर लिया. इस का टिकट 2 सौ रुपए का था जिस में 5 फैमिली मैंबर जा सकते हैं. बहुत ईमानदार गाइड था, उस ने टिकट के पैसे भी खुद नहीं मांगे, बस जो रेट 200 बाहर लिखा था चुपचाप वही लिया.

छोटीछोटी कोठरियां देख कर उस समय के हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है. जेल 3 फ्लोर की है. कुल 689 एकांत कमरे हैं. इन सैलों के कारण ही जेल का नाम सैलुलर जेल पड़ा. किसी भी एक सैल से दूसरे सेल की ओर देखना संभव नहीं. मनोवैज्ञानिक मानसिक यातनाएं देने का यह षड्यंत्र और उस की व्यवस्था की क्रूरता है. 1942 में इस आइलैंड पर जापान ने कब्जा कर लिया था. कइयों को इसी जेल में बंदी बना कर रखा गया. सुभाष चंद्र बोस भारत को आजाद घोषित करने के नाम पर यहां आए पर जापानियों के जहाज में 3 दिन में चलते बने. जापानी सैनिकों ने यहां के तबके निवासियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया पर जापानियों ने कुछ न सुनने दिया न बोस को कुछ करने दिया था.

सावरकर की कोठरी कौन सी है, इस का अंदाजा इस बात से लगाया गया है कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि फांसी वाले कमरे के सामने उन की कोठरी थी, उसी अंदाजे से उस कमरे में सावरकर की तसवीर रख दी गई है. फोटो ले सकते हैं.

राष्ट्रभक्ति का प्रमाण

विडंबना यह है कि वह गाइड रील बनाने वालों से दुखी था. ऐसी जगह भी बेहद आधुनिक लड़कियां बहुत छोटेछोटे कपड़ों में कोठरियों में रील बना रही थीं, गाइड इस बात से नाराज था कि इतिहास की इतनी गंभीर महत्त्वपूर्ण जगह पर भी लोग रील बना रहे हैं.

15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ तो सब स्वतंत्रता सेनानियों को जेल से मुक्त कर दिया गया. 11 फरवरी, 1979 को सैलुलर जेल राष्ट्रीय स्मारक घोषित हो गई. यह जेल आज देशविदेश में रहने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र है और राष्ट्रभक्ति का प्रेरणास्रोत है. यहां रोज शाम को ‘लाइट ऐेंड साउंड’ शो होता है. यातनाओं की यादगार हथकड़ी बेड़ी, टाट के कपड़े, कोल्हू, फांसी के फंदे, बेंत आदि भी रखे हुए हैं.

एक जगह एक स्टैचू बना है, जिस में एक भारतीय कैदी ही एक क्रांतिकारी को कोड़े मार रहा है, यह अंगरेजों की कूटनीति थी. उस समय नारियल का तेल निकालने के लिए क्रांतिकारियों को कोल्हू के बैल की जगह जोत दिया जाता था.

एक स्टैचू में यह बताया गया है. कई क्रांतिकारी डेंगू, मलेरिया से मर जाते थे, कुछ ठंड से. आजादी के लिए संघर्ष करते दीवानों की बात ही कुछ और थी. आज भी अंगरेजों का बनाया हुआ आर्टिटैक्चर ही है, टूटफूट की रिपेयर कर दी जाती है.

क्रांतिकारियों की दुनिया

जहां अब कुछ युवा धार्मिक उन्माद में पागल हुए जा रहे हैं, वहां इन क्रांतिकारियों की दुनिया ही अलग थी. यहां एक म्यूजियम भी है जहां इतिहास से जुड़ी तसवीरें और आज के नेताओं की कुछ तसवीरें हैं.

जेल देख कर जब बाहर निकले तो एक मार्केट दिखी. मेरी आदत है अगर मुझे किसी शहर में कोई बुक शौप दिखती है तो मैं उस का एक चक्कर जरूर लगाती हूं. मुझे बड़ी खुशी हुई जब मुझे यहां 3 हिंदी की पत्रिकाएं- सरिता, गृहशोभा और सत्यकथा दिखी. पत्रिकाओं में यही 3 थीं.

शाम को हम कैब से चिडि़या टापू बीच गए. यह सुंदर बीच शहर से लगभग 28 किलोमीटर दूर है. यह बीच सनसेट देखने, मनोरम प्राकृतिक सुंदरता देखने और समुद्र के दृश्य देखने के लिए प्रसिद्ध है. कैब ड्राइवर ने बताया कि पोर्ट ब्लेयर में हर चीज बाहर से आती है, यहां कुछ भी नहीं बनता. खाने में सीफूड फेमस है. सनसैट का दृश्य बहुत ही सुंदर था.

अगले दिन हैवलाक बीच जो अब स्वराज द्वीप हो गया है, जाना था. नाटिका कंपनी की फेरी में सवा 12 की बुकिंग थी. फेरी 20 मिनट लेट चली. चली तो बहुत स्मूथ थी पर 5 मिनट के बाद ही फेरी ने जो उछाल मारी उस से सब की हालत खराब हो गई. बाद में पता चला कि ‘बे औफ बंगाल’ में फिंगल साइक्लोन के कारण ऐसा हुआ था जिस का फाल चेन्नई में हुआ था. फेरी 2 बज कर 20 मिनट पर हैवलाक पहुंचनी थी तब तक यात्रियों की हालत पस्त हो चुकी थी.

अटैंडैंट लड़की सब के साथ बहुत नम्रता से पेश आ रही थी, किसी यात्री का मुंह पोंछ रही थी तो किसी को हिम्मत बंधा रही थी, उस लड़की का यह काम बहुत मुश्किल रहता होगा.

हमारी हालत भी खराब थी पर हमें उलटी नहीं हुई क्योंकि हम ऐसी यात्राओं में पहले ही एवोमिन टैबलेट ले लेते हैं और उलटी से बच जाते हैं.

अंडरवाटर का रोमांच

इस फेरी में बैठते ही जो ?ाटके लगे थे, उन से पता नहीं क्यों थकान बहुत हुई थी, हम जल्द ही सो गए. अगले दिन सुबह स्कूबा डाइविंग का प्रोग्राम था. इस में 5-5 लोगों का गु्रप बना दिया जाता है. एक फौर्म पर साइन करने होते है. एक व्यक्ति से साढ़े 5 हजार लिए जाते हैं. पानी में अंदर जाने के लिए अलग कपड़े देते हैं. चेंजिंगरूम होता है, डिवाइस से आधा घंटा ब्रीदिंग और बाकी चीजें सिखाते हैं.

बोट से स्पौट पर ले जाते हैं. 1-1 गाइड सब के साथ रहता है, फिर गियर पहना देते हैं तथा हाथों से कुछ इशारे सिखा दिए जाते हैं. नीचे की दुनिया बहुत अलग और सुंदर है. ग्राउंड तक ले जाते हैं, कोरल लीव्स, मछलियां और भी बहुत कुछ होता है. 25 मिनट अंडरवाटर रहते हैं. यह नौनस्विमिंग ऐक्टिविटी है, वे लोग कहते हैं कि अगर स्विमिंग आती भी हो तो करनी नहीं है.

शाम को राधा नगर बीच गए जिसे भारत का बैस्ट बीच कहा जाता है. टाइम्स मैगजीन ने इसे दुनिया का 7वें नंबर का बैस्ट बीच कहा है. ऐसा साफ और सुंदर बीच कि आप हैरान हो जाएंगे, कहीं एक कंकर नहीं, कहीं एक जरा सा भी गंदगी का टुकड़ा नहीं. ऐसा लगता कि रेत जैसे मुलायम सा चिकना आटा या मैदा आप के पैरों के नीचे किसी ने बिछा दिया हो. यहां जाएं तो आराम से बैठनेलेटने के लिए एक चादर, एक तौलिया ले जाएं, जम कर स्विमिंग करें, भीगें, लहरों का आनंद लें. ऐसा बीच हम ने मौरिशस और थाईलैंड में ही देखा था. कोशिश करें कि वहां 3 बजे तक पहुंच जाएं और सनसैट का भरपूर आनंद लें.

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