पक्षाघात: भाग 3- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

यह परिवर्तन बाबूजी के लिए सुखद था. अब तक सुमि कहां थी? अब उन का मन लगने लगा. धीरेधीरे उन में जीने की इच्छा जागने लगी. गों गों का स्वर धीरेधीरे अस्फुट शब्दों में परिवर्तित होने लगा. उंगलियों में हरकत होने लगी. सभी तो खुश लग रहे थे इस सुधार से.

सुमि के वापस जाने का समय नजदीक आ रहा था. एक दिन जब सुमि और बच्चे बाबूजी के पास बैठे थे कि मुकुल व मुकेश अपनीअपनी पत्नियों के साथ आ गए. बच्चों को बाहर भेज दिया गया. बाबूजी का दिल बैठने लगा. ऐसी क्या बात है जो बच्चों के सामने नहीं हो सकती?

बड़े बेटे मुकुल ने, अटकते हुए कहना शुरू किया, ‘‘बाबूजी, हमें आप को कुछ बताना है.’’

सुमि बोली, ‘‘क्या बात है, मुकुल?’’

मुकुल बोला, ‘‘दीदी, यह बड़ी अच्छी बात है कि आप के आने से बाबूजी की स्थिति में सुधार आ रहा है, पर…’’

‘‘हां, पर क्या, बोलो?’’

मुकुल थूक निगलते हुए बोला, ‘‘दीदी, बाबूजी की बीमारी के कारण अब हम दोनों की स्थिति ठीक नहीं है.’’

वह आगे कुछ कहता कि सुमि ने आंखें तरेरीं और चुप रहने का इशारा किया पर दोनों भाई तो ठान कर आए थे, सो चुप कैसे रहते, ‘‘बाबूजी, मुकेश आप की बीमारी का कुछ भी खर्चा उठाने को तैयार नहीं है. अभी तक मैं अकेला ही सब खर्चे का बोझ उठा रहा हूं.’’

मुकेश जो अब तक चुप था बोला, ‘‘बाबूजी, आप तो जानते ही हैं कि मेरी इस के जितनी तनख्वाह नहीं है.’’

‘‘तो मैं क्या करूं, अगर आप की तनख्वाह कम है,’’ मुकुल बोला, ‘‘आखिर मुझे भी तो अपने परिवार के भविष्य का खयाल रखना है.’’

‘‘तुम्हारा अपना परिवार? लेकिन मैं तो समझती थी कि यह पूरा परिवार एक ही है, नहीं है क्या?’’ सुमि ने कहा.

‘‘दीदी, किस जमाने की बातें कर रही हो आप. अब वह जमाना नहीं है जब सब एकसाथ हंसीखुशी रहते थे. देखना कुछ सालों बाद आप का यह लाड़ला मुझ से अपना हिस्सा मांगेगा. तो जो कल होना है वह आज अम्मांबाबूजी के सामने क्यों न हो जाए?’’

‘‘कुछ तो शर्म करो तुम दोनों, बाबूजी को ठीक तो होने देते, बेशर्मी करने से पहले,’’ सुमि ने डपटा, ‘‘और अब तो बाबूजी ठीक भी हो रहे हैं. कुछ दिन और सह लो, फिर बंटवारे की जरूरत ही नहीं रहेगी. बाबूजी स्वस्थ हो जाएं तो वह भी कुछ न कुछ कर लेंगे.’’

‘‘नहीं दीदी, आप नहीं समझ रही हैं. बात खर्चे की नहीं है, नीयत की है. मुकेश की नीयत ठीक नहीं,’’ मुकुल बोल पड़ा.

‘‘सोचसमझ कर बोलिए भैया, मेरी नीयत में कोई भी खोट नहीं, यह कहिए कि आप ही निबाहना नहीं चाहते,’’ मुकेश ने बात काटी. दोनों एकदूसरे को खूनी नजरों से घूर रहे थे.

‘‘चुप रहो दोनों. बाबूजी को ठीक होने दो फिर कर लेना जो दिल में आए.’’

‘‘देखिए दीदी, आप बाबूजी की बीमारी के बारे में जानने के बाद अब 1 वर्ष बाद आ पाई हैं. अब बुलाने पर तो आप आएंगी नहीं. यह बात आप के सामने हो तो बेहतर होगा. वरना बाद में आप ने कुछ आपत्ति उठाई तो?’’ मुकेश बोला.

‘‘मुकेश,’’ सुमि चीखी, ‘‘मैं तुम दोनों की तरह बेशर्म नहीं हूं, जो ऐसी बातें करूंगी और सुन लो, मुझे अपने अम्मांबाबूजी की खुशी के अलावा कुछ नहीं चाहिए. और हां, बंटवारे के बाद अम्मांबाबूजी कहां रहेंगे, बताओ तो जरा?’’

‘‘क्यों, मुकेश के पास. वही अम्मां का लाड़ला छोटा बेटा है,’’ मुकुल ने झट कहा.

‘‘मेरे पास क्यों? आप बड़े हैं. आप की जिम्मेदारी है,’’ मुकेश ने नहले पर दहला मारा.

विजयजी की आंखों की कोरों से 2 बूंद आंसू लुढ़क गए. उन के दोनों स्तंभ बड़े कमजोर निकले. उन का अभेद्य किला आज ध्वस्त हो गया था, जाने कब से अंदर ही अंदर यह ज्वालामुखी धधक रहा था. ललिता ने भी मुझे कुछ भनक नहीं लगने दी. अंदर का ज्वालामुखी मन में दबाए मेरे आगे हमेशा हंसती रही. उन की नजरें ललिता को खोजने लगीं. वह उन्हें दरवाजे की ओट में से भीतर झांकती दिखीं. बेहद डरीसहमी हुई. दोनों बहुएं भी वहीं थीं. शायद वे भी यह सब चाहती थीं, पर उन के चेहरों पर ऐसा कुछ भी नहीं था. उन की निगाहें झुकी हुई थीं, चुप थीं दोनों.

सुमि फिर दहाड़ी, ‘‘इतना सबकुछ तय कर लिया अपनेआप, यह भी बताओ, बंटवारा कैसे करना है, यह भी तो सोच ही लिया होगा? आखिर बाबूजी तो लाचार हैं, कुछ बोल नहीं सकेंगे, तो?’’

‘‘इतना बड़ा घर है. बीच से एक दीवार डाल देंगे, जो आंगन को भी बराबरबराबर बांट दे. रसोई काफी बड़ी है, आंगन के बीचोंबीच. उस में भी दीवार डाल देंगे,’’ मुकुल ने कहा.

‘‘और अम्मांबाबूजी के बारे में भी तो तुम दोनों ने सोच ही लिया होगा. उन का क्या होगा, क्या सोचा है?’’ सुमि का चेहरा लाल हो रहा था.

‘‘दीदी, आप अमेरिका में रह कर ऐसी नादानी भरी बातें करेंगी, आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वहां बूढ़े और अपाहिज मातापिता का क्या करते हैं यह आप से बेहतर कोई क्या जानेगा?’’ मुकुल फुसफुसाया जो सब ने सुन लिया.

‘‘हां, भैया ठीक कह रहे हैं. आजकल यहां भारत में भी ऐसा इंतजाम है. यहां भी कई वृद्धाश्रम खुल गए हैं,’’ मुकेश ने कहा तो सुमि को लगा कि दोनों भाई कम से कम इस बारे में एकमत थे.

दोनों अपना फैसला सुना कर बाहर चल दिए. अम्मां दरवाजे के पास घुटनों में सिर दे कर बैठ गईं, सिसकते हुए अपने दिवंगत सासससुर को याद करने लगीं, ‘‘अब कहां हो अम्मांजी, बापूजी? हम तो एक बेटे एक बेटी में खुश थे. आप ही को 2-2 पोते चाहिए थे. अगर एक ही होता तो आज यह नौबत न आती.’’

सुमि दोनों हथेलियों में सिर थामे निर्जीव सी कुरसी पर ढह गई. जीजाजी, जो अब तक चुप थे, ने चुप ही रहने में अपनी भलाई समझी. कहीं यह न हो कि दोनों सालों को डांटें तो वह यह न कह दें कि जीजाजी, आप को क्या कमी है, आप क्यों नहीं ले जाते अपने साथ?

विजयजी बेबस परेशान अपने दिए संस्कारों में गलतियां खोज रहे थे. जिस भरोसे से उन्होंने अपने अटूट परिवार की नींव डाली थी, वह भरोसा ही खंडखंड हो गया था. सबकुछ तो उन के तय किए हुए खाके पर चल रहा था, शायद ऐसे ही चलता रहता, अगर उन पर इस पक्षाघात का कहर न टूट पड़ता.

YRKKH: अक्षरा के एक्सीडेंट से टूटा अभिमन्यू का दिल, #abhira फैंस को लगा झटका

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में लीप के बाद की कहानी फैंस को काफी पसंद आ रही हैं. जहां फैंस अभिमन्यू (Harshad Chopda) और अक्षरा  (Pranali Rathod)का रोमांस देखने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि आरोही संग अभिमन्यू की शादी ने फैंस को निराश कर दिया है. इसी बीच अक्षरा के साथ हुआ हादसा शो की कहानी में जबरदस्त ट्विस्ट लाने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अक्षरा का हुआ एक्सीडेंट

अब तक आपने देखा कि अक्षरा की बहन के लिए प्यार की कुरबानी के चलते अभिमन्यु उसे इग्नोर करता है. इसी बीच अक्षरा का एक्सीडेंट हो जाता है. हालांकि एक्सीडेंट की खबर से अंजान अभिमन्यू को अक्षरा का इलाज करने के लिए कहा जाता है. लेकिन अक्षरा को देखते ही वह टूट जाता है.

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अभिमन्यू करेगा अक्षरा का इलाज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अक्षरा के एक्सीडेंट के बाद हालत बुरी हो जाएगी. वहीं अभिमन्यू से उसका इलाज करने के लिए कहा जाएगा. लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाएगा. हालांकि महिमा उसे समझाएगी कि उसे अक्षरा की जान बचानी होगी. वहीं अक्षरा के परिवार को एक्सीडेंट की खबर मिलेगी, जिसके चलते पूरा परिवार टूट जाएगा. वहीं आरोही को अपनी गलती का एहसास होगा और उसे अक्षरा के लिए अभिमन्यू का प्यार नजर आएगा.

सेट पर हो रही है मस्ती

सीरियल में सीरियल माहोल के बीच अक्षरा और आरोही साथ में डांस करते हुए नजर आ रहे हैं. दरअसल, हाल ही में सोशलमीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें आरोही यानी करिश्मा सावंत और अक्षरा यानी प्रणाली राठोड़ सेट पर जमकर डांस करते नजर आ रहे हैं. वहीं फैंस को दोनों का ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है.

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Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं पनीर भुरजी

अगर आप सर्दियों में कुछ हेल्दी और टेस्टी डिश ट्राय करना चाहते हैं तो हेल्दी और टेस्टी पनीर भुरजी आप पराठें के साथ अपनी फैमिली और बच्चों को परोस सकती हैं.

सामग्री

–  450 ग्राम पनीर

–  2 बड़े चम्मच घी

–  1 छोटा चम्मच जीरा

–  2 प्याज कटे हुए

–  1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

–  थोडी सी हरीमिर्च कटी हुई

–  2 टमाटर कटे हुए

–  1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  2 कप पनीर क्रंब्स

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–  3 बड़े चम्मच फेंटा हुआ दही

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री गार्निशिंग की

–  प्याज टुकड़ों में कटा हुआ

–  धनियापत्ती

–  नीबू टुकड़ों में कटा हुआ.

विधि

कड़ाही में औयल गरम कर उस में जीरा डाल कर उसे चटकाएं. फिर इस में प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें. इस के बाद अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर तब तक भूनें जब तक उस का कच्चापन न चला जाए. अब इस में हरीमिर्च, टमाटर डाल कर उन के नर्म होने तक पकाएं. इस के बाद इस में नमक, हलदी, लालमिर्च पाउडर डाल कर अच्छी तरह चलाएं. फिर इस में पनीर डाल कर 1-2 मिनट तक अच्छी तरह पकाएं. अब आंच बंद कर इस में दही और कटी धनियापत्ती डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. फिर प्याज, नीबू के टुकड़ों और धनियापत्ती से गार्निश कर के गरमगरम पाव या फिर रोटी के साथ सर्व करें.

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इन 10 आसान तरीकों को अपनाएं और बचाएं पैसे

क्या आपके पैसे वक्त से पहले खर्च हो जाते हैं, क्या आपने अब तक कुछ भी सेव नहीं किया है तो डरिये नहीं आज हम आपके लिये कुछ बहुत ही साधारण टिप्स लेकर आएं हैं जिसे अपने रोजमर्रा के जीवन में लागू कर थोड़े बहुत पैसे तो आप सेव कर ही लेंगी. चलिये आपको बताते हैं.

1. बेहतर प्लान बनाएं

आपको सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन शौपिंग पर जाते समय यह कभी डिसाइड न करें कि आपको क्या क्या खरीदना है. बेहतर है कि जब भी आपको जो सामान याद आए, उसे एक लिस्ट में अपडेट करते जाएं. और जब वो सामान आपके आस पास हो आप उसे फौरन खरीद लें.

2. शौपिंग की लिस्ट हमेशा साथ रखे

अक्सर दुकान पर पहुंच कर हमें पता चलता है कि हम लिस्ट घर पर ही भूल आएं है इसीलिए शौपिग पर जाने से पहले हमेशा याद से लिस्ट साथ रख लें. यह लिस्ट तब और भी जरूरी हो जाती है जब आपके पास सीमित समय हो और उसी दौरान आपको घर के लिए पूरा सामान अपडेट करना हो.

3. बाजार के हिसाब से लिस्ट बनाएं

हमेशा सामान को एक ग्रुप में बांट लें इससे आपको पता रहेगा कि किस दुकान में जाकर क्या लेना और आपको कुल कितनी अलग अलग दुकानों पर जाने की जरूरत है. इस बेहतर प्लानिंग से आप समय बचा सकते हैं. जैसे सब्जी के दुकान का अलग और राशन का अलग इस तरीके से आप ये लिस्ट बनाएं.

4. लिस्ट से भटकें नहीं

आपने लिस्ट किसी खास वजह से बनाई है इसलिए जरूरी है कि आप उस पर टिके रहें. अपनी लिस्ट के प्रति ईमानदार रहेंगे तो फिजूल के खर्च से बचेंगे. ऐसा नहीं की बाजार में गएं और जो मन में आया वो आप खरीदे जा रहीं हैं.

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5. सिर्फ जरूरत का सामान ही थोक में ले

अक्सर हम औफर्स, छूट जैसे लुभावने प्रस्ताव की वजह से किसी चीज को ज्यादा क्वांटिटी में खरीद लेते हैं. आपको हमेशा वैराइटी का ध्यान रखना चाहिए जिससे आप जल्दी उबेंगे भी नहीं और थोक का सामान बर्बाद भी नहीं होगा.

6. एक हफ्ते की खरीदारी मेन्यू बनाएं

रोजाना कुछ न कुछ खरीदने के लिए दुकान पर जाने से बेहतर है कि आप हफ्ते भर के सामान की लिस्ट एक साथ बना लें और उसी के मुताबिक सामान खरीदें. साथ ही, अगली शौपिंग की तारीख भी तय कर लें. इससे घर पर अचानक सामान खत्म होने की स्थिति का सामना आपको नहीं करना पड़ेगा.

7. पीक आवर्स में शौपिंग न करें

हमेशा शौपिंग ऐसे समय पर ही करने जाएं जब भीड़ कम हो और पेमेंट के लिए लाइन छोटी हो. साथ ही आपके पास भी फुर्सत हो. हमें कोशिश करनी चाहिए कि शाम, रात और रविवार की दोपहर में शौपिंग पर न जाएं. इस समय ज्यादातर लोग खरीदारी के लिए इकट्ठा होते हैं और समय का अभाव होने पर अक्सर कुछ न कुछ लेना छूट जाता है.

8. एक्सपायरी डेट चेक करें

जब भी कोई प्रोडक्ट खरीद रहे हों तो एक्सपायरी डेट चेक करें. इस बात को भी चेक करें कि पैकिंग में कोई खराबी न हो. कई बार कुछ चीजें जो छूट या कम रेट पर बेची जाती हैं वे अपनी एक्सपायरी डेट के नजदीक हो सकती हैं या उनकी पैकिंग में कोई खराबी हो सकती है. इसका सीधा-सा मतलब यह है कि उस चीज की क्वालिटी के साथ समझौता किया गया है.

9. किसी फ्रेंड के साथ शौपिंग पर जाएं

जहां तक मुमकिन हो अपनी किसी ऐसी सहेली या पड़ोसन के साथ खरीददारी करने जाएं जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और हेल्दी फूड में विश्वास रखती हो. शौपिंग के दौरान जंक फूड के औप्शन आसानी से आपको ललचा देते हैं. खासकर जब जंक फूड के साथ ‘बाय वन गेट वन फ्री’ जैसे औफर मिलते हैं. ऐसे समय में ये फ्रेंड्स ही आपको ऐसी खरीदारी करने से रोकते हैं.

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10. लेबल्स समझें

कई प्रोडक्ट्स के पैक पर लो फैट जैसे शब्द लिखे होते हैं. अधिकतर इनको ढंग से समझ नहीं पाते हैं. अधिकतर लो फैट फूड्स में शुगर या नमक भरपूर मात्रा में होता है जो उसमें स्वाद के लिए डाला जाता है. खाने का सामान खरीदते समय उसमे मौजूद कैलोरीज के लिए न्यूट्रीशनल लेबल्स जरूर पढ़ें. कोई चीज कम कैलोरी वाली है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह हेल्दी भी है. आपको कैलोरी वैल्यू के लिए नहीं, बल्कि क्वालिटी वैल्यू के लिए खाना चाहिए.

पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

बुल्लीबाई एप: इंटरनेट का दुरुपयोग

बुल्लीबाई एप बना कर 18-20 साल के लडक़ेलड़कियों ने साबित कर दिया है कि देश की औरतें सोशल मीडिया की वजह से कितनी अनसेफ हो गई है. सोशल मीडिया पर डाली गई अपने दोस्तों के लिए फोटो का दुरुपयोग कितनी आसानी से हो सकता है और उसे निलामी तक के लिए पेश कर फोटो वाली की सारी इज्जत धूल में मिटाई जा सकती है.

सवाल यह है कि अच्छे मध्यम वर्ग के पढ़ेलिखे युवाओं के दिमाग में इस तरह की खुराफातें करना सिखा कौन रहा है. सोशल मीडिया एक यूनिवॢसटी बन जाता है जहां ज्ञान और तर्क नहीं बंटता, जहां सिर्फ गालियां दी जाती है और गालियों को सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों के फिल्टरों (…..) से कैसे बचा जाए यह सिखाया जा रहा है.

उम्मीद थी कि सारी दुनिया जब धाएधाए हो जाएगी, दुनिया में भाईचारा फैलेगा और देशों के बार्डर निरर्थक हो जाएंगे. वल्र्ड वाइड वेब, डब्लूडब्लूडब्लू, से उम्मीद की कि यह देशों की सेनाओं के खिलाफ जनता का मोर्चा खोलेगी और लोगों के दोस्त, सगे, जीवन साथी अलगअलग धर्मों के, अलगअलग रंगों और अलगअलग बोलियों के होंगे. अफसोस आज यह इंटरनेट खाइयों खोद रहा है, अपने देशों में, एक ही शहर में, एक ही मोहल्ले में और यहां तक कि आपसी रिश्तों में भी. अमेरिका में गोरों ने कालों और हिप्सैनिकों को जम कर इंटरनेट के माध्यम से बुराभला कहा जिसे पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुल्लमखुल्ला बढ़ावा दिया. फेसबुक और ट्विटर को उन्हें, एक भूतपूर्व राष्ट्रपति को, बैन करना पड़ा.

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बुल्लीबाई में इधरउधर से चुराई गई औरतों की तस्वीरें मुसलिम वेशभूषा में हैं और उन की निलामी की गई यह कौन चला रहा था – एक 18 साल की लडक़ी, एक 21 साल का लडक़ा और एक और लडक़ा 24 साल का. इतनी छोटी उम्र में बंगलौर, उत्तराखंड और असम के ये बच्चे से मुसलिम समाज की बेबात में निंदा में लगे थे क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से अपनी बात कुछ हजार तक पहुंचाना आसान है और वे हजार लाखों तक पहुंचा सकते हैं, घंटों में. अपने सही नाम छिपा कर या दिखा कर किया गया यह काम इन बच्चों का तो भविष्य चौपट कर ही देगा. क्योंकि ये पकड़े गए पर इन्होंने समाज में खाइयों की एक और खेप खोद डाली.

इन की नकल पर बहुत छोटे और बहुत बड़े पैमाने पर काम किया जा सकता है, राहुल गांधी को बदनाम करने के लिए उस के भाषणों का आगापीछा गायब कर के प्रसारित करने वाले ही उसे बुल्लीबाई के लिए जिम्मेदार हैं जो साबित करना चाहता है कि इस देश में एक धर्म चले. उन्हें यह समझ नहीं कि कभी किसी देशों में कोई राजा, क्रूरता भरे कामों से भी पूरी तरह न विरोधियों को, न दूसरी नसल वालों को, न दूसरे धर्म वालों को, न दूसरी भाषा वालों को खत्म कर गया. बुद्धिमान राजाओं ने तो उन्हें सम्मान दिया ताकि उन के देश दुनिया भर के योग्य लोग जमा हों.

एक शुष्क कैसी युवती चाहती है? जो हिंदूमुसलिम नारे लगाने में तेज हो या प्यार करने में? एक युवती कैसा शुष्क चाहती है? जो समझदार हो, उसे समझता हो, उस की देखभाल कर सके या ऐसा जो पड़ोसी का सिर फोडऩे को तैयार बैठा रहें. हिंदूमुसलिम 100 साल से साथ रह रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश बनने के बाद भी वहां भी ङ्क्षहदू हैं चाहे और अपने दमखम पर जीते हैं. ये छोकरेछोकरी इंटरनेट को ढाल समझ कर बरबादी की बातें सुनसुन कर पगला गए हैं और उन्होंने जो किया है वह लाखों कर रहे हैं जब वे विधर्मी का मखौल उड़ाते मैसेज फौरवर्ड करते हैं. इसका नतीजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देख लिया जब किसान बिल ही वापिस नहीं लेने पड़े, पंजाब में जनवरी के पहले सप्ताह में रैली रद्द करके लौटना पड़ा. बहाना चाहे कोर्ई हो, यह पक्का है कि रैली स्थल पर 70000 कुॢसयां उस समय भरी हुई नहीं थी जब प्रधानमंत्री एक फ्लाई ओवर पर 20 मिनट तक 12 करोड़ की गाड़ी में बैठे सोच रहे थे कि क्या करना चाहिए. इंटरनेट ने पंजाब में किसानों के प्रति खूब जहर भरा है क्योंकि किसान आंदोलन की शुरुआत वहीं से हुई थी और तब जहर भरे मैसेज इधरउधर फेंके गए थे. बदले में दिल्ली को घेराव मिला और अब प्रधानमंत्री मोदी को मजा चखना पड़ा.

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बेबात में इंटरनेट का दुरुपयोग लोगों को एकदूसरे से दूर कर रहा है. लोग पुरानी दोस्तियां तोड़ रहे हैं, रिश्तों में दरारें आ रही हैं, पति पत्नी के अंतरंग फोटो जनता में उनका मखौल उड़ा रहे हैं. आई लव यू अब कम इंटरनेट पर पौपुलर हो रहा है, अब आई हेट यू, आई हेट योर फैमिली, आई हेट और रिजिलन हो रहा है. व्हाट्सएप शटअप में बदल रहा है, फेसबुक अगली फेस में. इंटरनेट इंटरफीयङ्क्षरग हो गया है.

अभियुक्त: भाग 2- सुमि ने क्या देखा था

डाक्टर ने जब उसे बताया कि वह मां बनने वाली है तो वह जैसे आसमान से गिरी. जिस बात की खबर औरत को सब से पहले हो जाती है उस बात का पता उसे 3 महीने बाद चला. कितने तनाव में थी वह. यह खबर उसे और भी उदास कर गई. ऐसे दुश्चरित्र व्यक्ति की संतान की मां बनना कोई सुखद अनुभव थोड़े ही था.

शैलेंद्र की खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘जानती हो सुमि, इस बात ने मेरे अंदर कितना उत्साह भर दिया है. दुनिया में कितने ही लोग आज तक बाप बन चुके हैं पर मुझे लग रहा है कि कुदरत ने यह स्वर्णिम उपहार सिर्फ  मुझे ही दिया है. क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता, सुमि?’’

सुमि की आंखें छलछला आईं. ‘‘मुझे लगता है कुदरत ने ऐसा क्रूर मजाक मेरे साथ क्यों किया? अब तो मैं इस से नजात भी नहीं पा सकती.’’

‘‘सुमि,’’ शैलेंद्र का स्वर गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हें नफरत है न मुझ से? मैं समझ सकता हूं. लेकिन आज मैं तुम्हें सारी बातें बता कर अपराधबोध से मुक्त होना चाहता हूं.’’

कुछ क्षण रुक कर शैलेंद्र एकएक शब्द तौलते हुए कहने लगा, ‘‘मैं और शिरीन एकदूसरे से प्यार करते थे. चाचीजी हमारी शादी के लिए राजी नहीं थीं क्योंकि वह दूसरी जाति और धर्म की थी? तुम तो जानती हो कि चाचीजी मेरे जीवन में कितना बड़ा स्थान रखती हैं. उन की इच्छा और आज्ञा मेरे लिए मेरे प्यार से बढ़ कर थी. चाचीजी ने मुझ से एक वचन और लिया था कि मैं अपने विवाह को शतप्रतिशत निभाऊंगा. मैं ने कोशिश भी की लेकिन न जाने उस में कैसे कमी रह गई.

‘‘उस दिन लंच लेने के लिए मैं घर आया तभी न जाने कैसे शिरीन भी वहां आई. उस ने समझदारी से हमारे संबंधों की इतिश्री कर ली थी. वह मुझे अपनी शादी की सूचना देने और हमारी पुरानी तसवीरें लौटाने आई थी. यह सोच कर कि वह अब हमेशा के लिए बिछड़ने वाली है मैं अपनेआप को काबू में न रख सका. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं ने मर्यादा की सीमारेखा लांघने की कभी कोशिश नहीं की. गलती इतनी सी है कि मैं जिन संबंधों को समाप्त समझ रहा था दरअसल उस के तार अभी पूरी तरह टूटे नहीं थे. क्या तुम हमारे बच्चे की जिंदगी के लिए मुझे माफ नहीं कर सकोगी?’’

शैलेंद्र ने सुमि का हाथ अपने हाथों में थाम लिया. उस के पश्चात्ताप विगलित स्वर और आंखों के अनुरोध भरे भावों की वह उपेक्षा नहीं कर सकी. कुछ क्षण बाद उठ कर दूसरे कमरे में चली गई. लगता था उस के भीतर जो चट्टान की तरह जमा है, उसे वह पिघलने देना नहीं चाहती.

शैलेंद्र उस के लिए फल और मिठाइयां ले आया. घर के काम में भी वह उस का हाथ बंटाता. उस के प्यार, उस की भलमनसाहत से वह अभिभूत तो थी पर वह दृश्य याद आते ही उस की कोमल भावनाएं कठोर आवरण तले दब जातीं.

उस दिन चाचीजी का फोन आया कि तीज के पूजन के लिए उन्होंने बहू को गांव बुलाया था. शैलेंद्र ने शरमाते, झिझकते हुए बताया कि वह नहीं आ पाएगी.

कारण सुनते ही चाचीजी उबल पड़ीं, ‘‘हद है, बहू को 4 माह चढ़ गए हैं और तू मुझे अब सूचना दे रहा है. मैं कल ही निकल रही हूं.’’

यहां आ कर वह एक ही दिन में भांप गईं कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं, नाटकीयता से भरे हैं.

छोटे से गांव में चाचीजी की पूरी जिंदगी गुजरी थी. शैलेंद्र को उन्होंने छाती से लगा कर पाला था. शैलेेंद्र के मातापिता और चाचा एकसाथ ही एक बस दुर्घटना में गुजर गए. शोक संतप्त चाची के आंचल में यह अनाथ भतीजा एक अमानत बन कर समा गया. लगभग 6 साल के शैलेंद्र के आंसू पोंछतेपोंछते वह अपना दुख भी भूल गई. शैलेंद्र उन के एकाकी  जीवन का मकसद बन गया. वह भी उन का बहुत सम्मान करता था. गांव में 8वीं जमात तक पढ़ने के बाद उन्होंने उसे शहर पढ़ने भेजा. होस्टल में रखा. सदा ऊंचनीच समझाती रहीं. होस्टल से लौट कर आंचल में दुबक कर सो जाता. चाचीजी उस के सिर पर वात्सल्य से भरी थपकियां देती रहतीं.

उस भयंकर बस दुर्घटना के बाद 2 साल की ब्याहता और फिर विधवा हुई चाचीजी उस का सबकुछ थीं. छोटीछोटी समस्याएं वह उन के पास ले जाता और वह उन्हें क्षण भर में सुलझा देतीं. कभी किसी ने उस की पतंग चुरा ली. उस की गणित की कापी की नकल की. नन्हे से जीवन की अनगिनत खट्टीमीठी लड़ाइयां, हवा भरे बुलबुलों की तरह अस्थायी फिर भी चाचीजी की प्यार भरी समझ से उस का बालमन आश्वस्त हो जाता.

लेकिन अब वह किशोर उम्र का था. मन में अजीबअजीब से खयाल उमड़ते- घुमड़ते रहते. दोस्तों की बातें बड़ी रहस्यमय लगतीं. लड़कियों से बात करते समय जीभ तालू से चिपक जाती लेकिन रात को सपने में वही लड़कियां, छि:, कितनी शरम की बात है. एक तरफ उस की पढ़ाई है, एक तरफ अबूझ आकर्षण. मन की इस चंचल स्थिति के बारे में किस से कहे.

पड़ोस की नीलू अब कटोरदान में दाल या सब्जी रख कर चाचीजी को देने आती तो वह बचपन वाले शैलेंद्र को नहीं  पाती. नीलू भी तो कितनी बड़ी हो गई. अचानक कब? कैसे? पता ही नहीं चला.

उस दिन चाचीजी ने उसे नीलू से बात करते हुए देख लिया और न जाने कैसे उस का अंतर्द्वंद्व भांप लिया. उसे कलेजे से लगा कर उस रात वह कितना कुछ समझाती रहीं. स्पष्ट, बेलाग शब्दों में, बेझिझक. फिर बोलीं, ‘बेटे, यह सब मैं तुझे अभी से इसलिए बता रही हूं क्योंकि तू अकेला रहता है. कल तेरे साथी तुझ से कोई गलत बात न कहें. तू किसी बहकावे में न आए. हर बात की एक निश्चित उम्र होती है. इस समय तेरी उम्र है अपना चरित्र साफ रख कर अपना जीवन बनाने की, पढ़नेलिखने की.’

चाचीजी की यह सीख शैलेंद्र ने गांठ बांध ली थी. पढ़ने में खूब मन लगाया. मन स्थिर हो गया. स्कूल खत्म कर के इंजीनियरिंग कालिज में दाखिला ले लिया. अगर उस दिन चाचीजी उसे सबकुछ नहीं बतातीं तो क्या वह इतना कुछ कर पाता.

ऐसी चाचीजी के लिए शैलेंद्र और सुमि के बीच खिंची अदृश्य अलगाव रेखा का पता लगाना भला कौन सा मुश्किल काम था.

शैलेंद्र के साथ घर के सामने लौन पर टहलते हुए ही उन्होंने उस से सबकुछ उगलवा लिया. दीर्घ निश्वास के साथ वह बोलीं, ‘‘हूं, तो मेरा फैसला ठीक ही था. देख शैलेंद्र, तेरी इतनी बड़ी गलती पर परदा डाल कर जो लड़की बिना हंगामा खड़ा किए अपने दांपत्य की इज्जत मेरे सामने बचा ले गई वह लड़की कितनी संस्कारी है, यह बात तू खुद समझ ले. दूसरी ओर, जो लड़की अकेले शादीशुदा मर्द से मिलने आए उस के बारे में क्या कहा जाए. वह दूसरे धर्म की थी यह बात तो थी ही महत्त्व की.’’

‘‘आप ने ठीक कहा, चाचीजी.’’

‘‘सिर्फ ठीक? अरे, सोलह आने सच. और अब ये बता कि सुमि की इस तरह की गलती को क्या तू माफ करता?’’

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पक्षाघात: भाग 2- क्या टूट गया विजय का परिवार

लेखिका- प्रतिभा सक्सेना

चोपड़ा साहब ने कहा, ‘‘हां, ठीक कहते हो. कई साल पहले मेरे सगे फूफाजी इसी बीमारी को 11 साल झेल कर गुजर गए. बेचारी बूआ बहुत परेशान रहा करती थीं. पैसों की काफी तंगी हो गई थी उन्हें. सब रिश्तेदारों के आगे हाथ फैलाया करती थीं. शुरू में तो सब ने मदद की पर धीरेधीरे सब ने हाथ खींच लिए.’’

विजयजी सकते में आ गए. तो क्या इतनी वेदना से गुजरेंगे वह और उन के परिवार के लोग. अगर इतने साल बिस्तर पर पड़ेपड़े गुजारने पड़े तो कैसे गुजरेंगे पहाड़ से ये दिन. बाबूजी दिन भर सोचते कि इस दिमाग पर क्यों नहीं फालिज मार गया. कम से कम हर तकलीफ से नजात तो मिल जाती. बस, बाबूजी बेचारगी में छत को देखते रहते और दूर से आती आवाजें सुनते.

एक दिन किशन ने उन के दोस्तों की बातें सुन लीं. वह उस समय बाबूजी की मालिश कर रहा था. कई दोस्त तो उन्हें खूब तसल्ली देते परंतु कुछ एक ऐसे खरदिमाग होते हैं कि कहां क्या बात करनी चाहिए इस की समझ नहीं रखते. तो किशन ने महसूस किया कि इन दिल बैठा देने वाली बातों को सुन कर बाबूजी का रंग उड़ गया है.

उस ने बाद में सारी बातें ज्यों की त्यों मुकुल और मुकेश को सुना दीं. घर के सारे लोग बहुत खफा हुए कि हम सब तो यहां सेवा करकर के बेदम हो रहे हैं और बाबूजी के दोस्तों की कृपा रही तो वह कभी भी स्वस्थ नहीं हो पाएंगे. इस के बाद जब बाबूजी के दोस्त आते तो बाबूजी अभी सो रहे हैं कह कर बाहर से ही विदा कर दिया जाता. ऐसा कई दिनों तक चला तो बाबूजी के दोस्तों ने आना ही बंद कर दिया.

अब बाबूजी सिवा डाक्टर और किशन के बाहर की दुनिया से कट गए थे.

सुमि के फोन आने पर उस से बहाने तो बना दिए जाते पर आखिर कब तक. एक दिन छोटी बहू ने बता ही दिया. सुमि बहुत नाराज हुई कि अब तक उस से छिपाया क्यों गया? क्या भाई नहीं चाहते कि वह मायके आए. भाइयों ने बहुत समझाया कि ऐसा नहीं है, वह इतनी दूर है कि आसानी से आ नहीं सकती तो उसे परेशान नहीं करना चाहते हैं, इस के अलावा न बताने के पीछे कोई और मंशा नहीं थी.

और सच में सुमि फौरन नहीं आ पाई. हां, उस के फोन अब बाबूजी के हालचाल को जानने के लिए जल्दीजल्दी आने लगे.

एक दिन जाने क्या हुआ कि बाबूजी को घर में होहल्ला, चीखपुकार सुनाई पड़ने लगी. उन के काम लोग बदस्तूर कर रहे थे पर उन्हें कोई कुछ बता नहीं रहा था. किशन की तरफ बाबूजी पूछने वाली निगाहों से देखते पर वह भी चुप ही रहता. जिज्ञासा उन्हें खाए जा रही थी.

2 दिन बाद छोटा बेटा मुकेश आया. वह बहुत तैश में था और चुपचाप उन के पास बैठ गया. उन्होंने बड़े प्यार से सवालिया निगाहों से उसे देखा.

मुकेश अचानक फट पड़ा, ‘‘बाबूजी, आप भैया को समझा दें. बातबात पर मुझ को डांटें नहीं. अब मैं बच्चा नहीं रहा. खुद बालबच्चों वाला हूं.’’

बाबूजी ने हंसने की कोशिश में होंठ फैलाने की कोशिश की, जैसे कह रहे हों, ‘अरे, बेटा, तुम कितने भी बालबच्चेदार हो जाओ, बड़ों के लिए तो तुम छोटे ही रहोगे.’

मुकेश ने फिर कहा, ‘‘भैया अब बातबात पर मुझ से उलझने की कोशिश करते हैं, यह मुझे अब बरदाश्त नहीं.’’

बाबूजी बेचारे क्या करते. समझ गए कि दोनों भाई उन की बीमारी से इतने दुखी हो चुके हैं कि अपनीअपनी भड़ास एकदूसरे पर निकालने लगे हैं.

विजयजी पेशे से वकील थे. सरकारी नौकरी उन्होंने कभी नहीं की. रोज कमाओ, रोज खाओ वाली स्थिति रही. वह मेहनती और काबिल वकील थे, तो अच्छा कमा लेते थे. बच्चों को अच्छा खिलाया, पहनाया. उन की इच्छाएं भी पूरी कीं और संस्कार भी अच्छे दिए. काफी कुछ बचाया जिस में से एक बड़ा हिस्सा बेटी के विवाह और घर बनाने में लग गया. बेटों को अलगअलग घर बना कर दे सकते थे पर उन का मानना था कि एक घर में दोनों साथसाथ रहें तो परिवार मजबूत बनेगा. उन के अनुसार दोनों के परिवार 2 नहीं वरन एक बड़ा परिवार है.

घर उन्होंने बेटी के विवाह के बाद बनाया. दोनों बेटों ने पढ़लिख कर कमाना शुरू कर दिया था. अपने घर में उन्होंने बेटे रूपी 2 मजबूत स्तंभ खड़े कर दिए थे जो इस घर की छत कभी भी गिरने नहीं देंगे.

बहुएं भी उन्होंने अपनी पसंद की चुनी थीं. मध्यम वर्ग की संस्कारी लड़कियां, जो अब तक उन की कसौटी पर खरी उतरी थीं. करुणा और ऋतु मिलजुल कर ही रहतीं, काम भी मिलजुल कर करतीं. कभी कोई कटुता दोनों के बीच आई हो ऐसा कभी नहीं लगा. अगर कोई चिल्लपों रही हो घर में तो वह घर के बच्चों के मासूम झगड़े ही थे. अपना परिवार उन का ऐसा किला था जिस को कोई भेद नहीं सकता था. बड़ा सुखद जीवन चल रहा था कि अचानक इस में पक्षाघात रूपी बवंडर आ गया.

आज अपने इस बेटे के उखड़े हुए रूप को देख कर वह दहल गए कि कहीं यह बवंडर उन के घर को तिनकेतिनके कर न ले उड़े पर एक विश्वास था उन्हें कि उन के द्वारा निर्माण किए हुए ये 2 मजबूत स्तंभ ऐसा नहीं होने देंगे, पर अब डर तो बना रहेगा ही.

ऐसे में एक दिन खबर आई कि सुमि अपने पति और बच्चों सहित आ रही है. एक नीरसता भरे वातावरण में उल्लास की लहर दौड़ गई. वह बाबूजी की बीमारी के ढाई वर्ष बाद आ पा रही थी.

सुमि आई. वह और उस के दोनों बेटे बाबूजी के पास बैठते, वहां ताश, लूडो और तरहतरह के खेल खेलते और अपने मामा के बच्चों को भी अपने साथ खेलने को उकसाते. मुकुलमुकेश के बच्चे बड़े असमंजस में पड़ गए कि क्या वे भी बाबाजी के कमरे में खेल सकते थे? इन दोनों को कोई क्यों नहीं मना करता बाबाजी के पास जाने को? पर रिश्ता ही ऐसा था कि उन पर किसी

भी प्रकार का बंधन नहीं डाला जा सकता.

सुमि के जोर देने पर मुकुल व मुकेश ने भी अपने बच्चों को बाबाजी के पास हुड़दंग मचाने की अनुमति दे दी. क्या पता ऐसे ही कुछ फायदा हो जाए. अभी तक तो पहले जैसी ही स्थिति है बाबूजी की.

आगे पढ़ें- सुमि के वापस जाने का समय…

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin की सई को हुआ कोरोना, पढ़ें खबर

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) फैंस के बीच काफी पौपुलर है. जहां सीरियल में पाखी और सई की लड़ाई दर्शकों का दिल जीतती है तो वहीं विराट और सई की कैमेस्ट्री फैंस को काफी पसंद आती है. हालांकि इन दिनों शो में काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है. इसी बीच खबरें हैं कि सीरियल की सई यानी लीड एक्ट्रेस  एक्ट्रेस आयशा सिंह (Ayesha Singh) को कोरोना हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सई को हुआ कोरोना

 

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खबरों की मानें तो शुक्रवार की शाम को आयशा सिंह की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव (Coronavirus) आई है. हालांकि वह पिछले कई दिनों से बीमार चल रही थीं. इसी के चलते वह शूटिंग से दूर थीं. वहीं इस खबर पर मोहर लगाते हुए शो के निर्माता राजेश राम सिंह और प्रदीप कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा है कि, ”जैसे ही आयशा सिंह को हल्के लक्षणों के बारे में पता चला, उन्होंने शो से छुट्टी ले ली और लगातार मेडिकल हेल्प ले रही हैं. सेट पर पूरी सावधानी बरतते हुए पूरी कास्ट और क्रू का कोरोना वायरस टेस्ट करवाया गया है. साथ ही बीएमसी को भी इसकी जानकारी दे दी गई है.

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कहानी में आएगी नया ट्विस्ट

सीरियल की बात करें तो सीरियल की लीड होने के चलते शो की पूरी कहानी सई यानी आयशा सिंह के इर्द गिर्द घूमती है. वहीं उनके कोरोना पॉजिटिव होने से सीरियल की कहानी का फोकस अब श्रुति और विराट पर दिखाया जाने वाला है. वहीं खबरों की मानें तो इस बार शो की कहानी सई की बजाय पाखी, विराट और श्रुति के उपर फोकस करते हुए नजर आने वाली है.

बता दें, सीरियल में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि सई, विराट और श्रुति के रिश्ते की बात जानकर चौह्वाण परिवार को छोड़ कर चली गई है. वहीं उसकी मुलाकात अस्पताल में श्रुति से भी हो चुकी है.

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पर्यटन मानचित्र पर नई कहानी कह रहा नया उत्तर प्रदेश: सीएम योगी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रकृति और परमात्मा की असीम कृपा वाले उत्तर प्रदेश की पर्यटन सम्भावनाओं के विकास पर पिछली सरकारों ने अपेक्षित ध्यान नहीं दिया. 2017 के पहले की यूपी में पर्यटन तो दूर कानून-व्यवस्था की बदहाली के चलते लोग औद्योगिक निवेश तक करना नहीं चाहते थे. लेकिन आज आज प्रदेश पर्यटन विकास की ढेर सारी संभावनाओं को समेटे हुए आगे बढ़ रहा है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद देश के पर्यटन के पोटेंशियल को अगर किसी ने समझा है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. उनकी दूरदर्शी व सकारात्मक सोच के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश पर्यटन विकास के मानचित्र पर आज एक नई कहानी कह रहा है.

मुख्यमंत्री योगी लखनऊ में अपने सरकारी आवास पर आयोजित कार्यक्रम में पर्यटन विकास से जुड़ीं ₹642 करोड़ की 488 परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास कर रहे थे. कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट की भी उपस्थिति रही.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2013 के प्रयागराज महाकुंभ में दुर्व्यवस्था, गंदगी, और भगदड़ की स्थिति रही. वहीं 2019 का प्रयागराज कुंभ “दिव्य और भव्य रहा. आज अयोध्या का दीपोत्सव, मथुरा का कृष्णोत्सव और रंगोत्सव और काशी की देव दीपावली पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है. हमने शुक तीर्थ, नैमिष धाम, गोरखपुर, कौशाम्बी, संकिसा, लालापुर सहित हर क्षेत्र के विकास पर ध्यान दिया है.

यही नहीं, मुख्यमंत्री पर्यटन संवर्धन योजना के माध्यम से प्रदेश के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में किसी न किसी पर्यटन स्थल के व्यवस्थित विकास को आगे बढ़ाने का कार्य हुआ है. आज प्रदेश में 700 से अधिक पर्यटन स्थलों का सफलतापूर्वक विकास किया गया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि हर वह स्थल जो हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक पहचान और आस्था से जुड़े हैं, सबका सम्मान करते हुए हर स्थल के विकास का काम हो रहा है. रिलिजियस टूरिज्म के साथ-साथ इको टूरिज्म को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. इन प्रयासों से युवाओं के लिए बड़ी संख्या में रोज़गार के अवसर भी सृजित हुए हैं. 191.04 करोड़ की 154 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण करते हुए उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष पर चौरीचौरा शताब्दी वर्ष, लखनऊ रेजीडेंसी में हुए ड्रोन और लाइट एंड साउंड शो, महाकवि निराला की भूमि के पर्यटन विकास, काकोरी और शाहजहांपुर में अमर शहीदों की यादें संजोने जैसी कोशिशों का भी जिक्र किया.

मंदिर हमारी आत्मा, यह नहीं तो हम निष्प्राण: रेड्डी

लोकार्पण-शिलान्यास के इस कार्यक्रम में वर्चुअली सहभाग करते हुए केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी.किशन रेड्डी ने योगी सरकार द्वारा पर्यटन व संस्कृति संवर्धन के लिए किए गए प्रयासों को अभूतपूर्व बताया.

उन्होंने कहा कि योगी सरकार सांस्कृतिक विरासतों का उत्थान कर रही है. यह नए भारत की नई तस्वीर है. ब्रज क्षेत्र में विकास कार्यों का जिक्र करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह मंदिर हमारी आत्मा हैं. अगर इसे निकाल दिया जाए तो कुछ भी नहीं बचेगा. केंद्रीय मंत्री ने पर्यटकों की सुविधा की दृष्टि से सड़क, वायु, जल, मार्ग व रोपवे कनेक्टिविटी की तारीफ की और काशी में माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा की पुनर्स्थापना, रामायण सर्किट, बौद्ध सर्किट, कृष्ण सर्किट का उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में रामराज्य है. विशेष अवसर पर पर्यटन विभाग के वार्षिक कैलेंडर व उपलब्धियों पराधारित पुस्तिका का भी विमोचन किया गया.

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