कुछ सच शादी के बारे में

व्हाट्सऐप पर शादी को ले कर यह जोक काफी चर्चित हुआ, ‘जो लोग जल्दबाजी में बिना सोचेसमझे शादी का फैसला कर लेते हैं वे अपनी आगे की जिंदगी बरबाद कर लेते हैं, लेकिन जो लोग बहुत सोचसमझ कर शादी करते हैं वे भी क्या कर लेते हैं?’

सच, मजाकमजाक में इस जोक ने शादी का सच बयान कर दिया है. शादी एक जुआ ही तो है. या तो आप का चुनाव सही होगा या फिर नहीं. तो इस से पहले कि आप गठबंधन में बंधने का मन बना लें और 7 वचनों का आदानप्रदान करें, जरा इन बातों पर भी गौर कर लें जो ‘पोस्ट मैरिज बदलाव’ के बारे में हैं और जिन के बारे में आप के मातापिता, दोस्तयार, शुभचिंतक नहीं बताने वाले. अगर आप शादी का लड्डू चख चुके हैं, तो भी इन्हें पढ़ ही लीजिए ताकि आप यह सोचना बंद कर सकें कि यार हमारी रिलेशनशिप में क्या गलत है या हम दोनों में से कौन गलत है, जो गाड़ी बारबार पटरी से उतर जाती है.

जस्ट चिल, यह सब कुछ नौर्मल है, शादी के बाद आदर्श और अवश्यभावी फेज हैं ये:

शादी हर समस्या का समाधान नहीं

भारतीय समाज में शादी को कुछ इस तरह महिमामंडित किया गया है कि हम यह यकीन कर बैठते हैं कि शादी हर समस्या का रामबाण इलाज है. शादी के बाद सब कुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा, तो कोई हैरानी की बात नहीं कि दुलहन बनी लड़की यह उम्मीद अपनी पलकों पर सजा लेती है कि उस की जिंदगी शादी के बाद जन्नत बन जाएगी. चांदी के दिन और सोने की रातें होंगी. उस का प्रिंस चार्मिंग उसे एक प्रिं्रसेस की तरह ट्रीट करेगा. बेशक कुछ हद तक ऐसा होता भी है. जिंदगी खुशनुमा होती है, बदलती है, लेकिन शादी से यह उम्मीद न रखें कि यह आप की जिंदगी की हर कमी को पूरा कर देगी, क्योंकि शादी के बाद आप को एक अदद पति ही मिलता है, अलादीन का चिराग नहीं.

दो जिस्म मगर एक जान हैं हम

यह कहना, सुनना, गुनगुनाना बेहद रोमांटिक, हसीन और सच्चा लगता है. मगर वास्तविकता में एक सक्सैसफुल मैरिज वह होती है जहां 2 अलगअलग व्यक्तित्व अपनी रिलेशनशिप को जीवंत और कामयाब बनाए रखने के लिए एकसाथ, लगातार, सामान रूप से प्रयास करते हैं. एकदूसरे के इर्दगिर्द घूमते रहना और शादी के बाद अपनी जिंदगी यह कहते बिताना कि  ‘तेरे नाम पे शुरू तेरे नाम पे खत्म’ एक बोरिंग, आउटडेटेड तरीका है मैरिड लाइफ बिताने का.

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हमेशा अपने पार्टनर को आकर्षक नहीं पाएंगे

शादी के बाद एक वक्त ऐसा भी आएगा जब आप मानसिक धरातल पर, भावनात्मक रूप से एकदूसरे से जुड़े रहेंगे, एकदूसरे के प्रति वफादार रहेंगे, मगर हो सकता है कि आप दोनों के बीच फिजिकल अट्रैक्शन की कमी हो जाए. मतलब कि जो पति आप को पहले रितिक रोशन सा डैशिंग नजर आता था, जिस की फिजिक पर से आप की आंखें नहीं हटती थीं, वह अब आप की आंखों के आकर्षण का केंद्र बिंदु न रहे. इस की 2 वजहे हो सकती हैं. पहली शारीरिक बदलाव. जैसे वजन का बढ़ना, क्योंकि आप भी मानती होंगी कि पति के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर गुजरता है और आप ने यह रास्ता अपना कर उन्हें गुब्बारा बना दिया और दूसरी मानसिक बदलाव जैसे कहते हैं न, घर की मुरगी दाल बराबर, तो रोजरोज उन्हें देखने पर कुछ खास कशिश महसूस न होती हो. खैर, कारण जो भी हों, लेकिन ऐसा होने पर घबराएं नहीं. अपने पार्टनर को आकर्षक नहीं पाने का मतलब यह हरगिज नहीं होता कि आप का प्यार खत्म हो गया है. यह शादी के बाद का एक अस्थाई दौर है. यह भी गुजर ही जाएगा.

प्यार में डूबे रहने की स्टेज की समाप्ति

हम सब जानते हैं हनीमून फ्रेज यानी हैप्पिली एवरआफ्टर अथवा लव फौरएवर के बारे में. लेकिन यह फीलिंग परमानैंट नहीं होती और कई बार तो शादी के कुछ समय बाद एक ऐसा दौर भी आ जाता है कि जब प्यार महसूस होना तो दूर आप स्वयं ही हैरान हो कर खुद से पूछ बैठते हैं कि यार मैं ने इस बंदे से शादी क्यों की? इस में ऐसा क्या खास देख लिया मैं ने?

आप के साथ भी ऐसा हो सकता है, पर रिलैक्स, हर मैरिड कपल इस दौर से कभी न कभी गुजरता है. आप भी गुजर जाएंगे. फिर वक्त बीतने पर एकदूसरे को अच्छी तरह समझने के बाद आप की शादीशुदा जिंदगी में खूबसूरत कागजी फूलों की जगह हकीकत की पथरीली, मगर ठोस जमीन पर सच्चे प्यार के फूल खिलेेंगे, जिन की खुशबू आप की जिंदगी को महका देगी.

कभीकभी पार्टनर से चिढ़, नफरत हो जाना

यहां हम नफरत शब्द का इस्तेमाल शाब्दिक रूप से नहीं कर रहे हैं. लेकिन हां एक ऐसा समय आता है जब हम उन बातों की वजह से ही अपने पार्टनर से चिढ़ने लग जाएं, जिन बातों पर फिदा हो कर से अपना जीवनसाथी चुना था या यह कह लीजिए कि उन की खूबियां ही बाद में आप को उस की खामियां लगने लगें. जैसे उस का सैंस औफ ह्यूमर, उस की हाजिरजवाबी या सब की मदद को सदा तत्पर रहना अथवा क्रिकेट, फुटबौल को ले कर छाया जनून.

फिर भी आप उन बातों को बदलने की कोशिश न करें. आप का जीवनसाथी जैसा है उसे उसी रूप में उन्हें अपनाएं. आखिरकार यह वही व्यक्ति है जिसे आप ने शिद्दत से चाहा था.

अपने पार्टनर से कैसे ट्रीट करें

यह एक और पौपुलर नोशन है. आप पति से यह उम्मीद करती हैं कि वे आप के फैवरेट रोमांटिक हीरो की तरह आप से पेश आएं. जो मौकेबेमौके प्यार भरी बातें करता, लाल गुलाब पेश करता है या मिडनाइट सरप्राइज प्लान करता है.

लेकिन एक सच यह भी है कि अगर आप अपनी शादी में रोमांस को जिंदा रखना चाहती हैं, तो अपने पति को उस तरीके से ट्रीट करें, जो तरीका आप खुद के लिए चाहती हैं. कहने का मतलब यह कि आप उन्हें वैसे सरप्राइज दीजिए, जिन्हें पाने की चाहत आप को है. उन के लिए कैंडल लाइट डिनर अरेंज करें जो आप को भी पसंद है. गुडमौर्निंग किस दीजिए रोज, जो आप खुद पाना चाहती हैं. एक बार उन्हें इस की आदत पड़ने दीजिए, फिर आप को खुद ही रिटर्न ट्रीट मिलनी शुरू हो जाएगी.

शादी हमेशा खुशियों भरी नहीं होती

यह जाननासमझना औैर स्वीकरना आवश्यक है और यह भी कि वक्त जैसेजैसे गुजरता जाएगा हमेशा कोईर् न कोई ऐसा इश्यू आप दोनों के बीच आ खड़ा होेगा, जिस पर आप एकमत नहीं होंगे. लेकिन आप को इन सब से डील करना सीखना होेगा. ऐसा बहुत बार होगा कि पार्टनर की बातें, हरकतें आप को हैरान कर दें. आप उन की मेरी मरजी वाले ट्रैक से परेशान हो जाएं, लेकिन कुछ भी हो, आप को सब्र से काम लेना होगा. कुछ वक्त लें, कुछ उन्हें दें, अपने ईगो को बीच में न आने दें. समस्या जैसी भी हो, सुलझ ही जाएगी.

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एक बच्चा टूटती शादी को नहीं बचा सकता

सच तो यह है कि एक मुश्किल दौर से गुजरते कपल के बीच एक नन्हेमुन्ने की मौजूदगी हालात, तनाव को और बढ़ा देती है. अगर आप को यह सदियों पुरानी दादी, नानी की आजमाई गोल्डन ऐडवाइज मिले कि हैव ए किड ऐंड सेव योर मैरिज यानी जल्दी से एक बच्चा प्लान करो औैर देखो कैसे सब कुछ ठीक हो जाता है, तो इस सलाह पर अमल न करें, क्योंकि यह मुश्किल का हल नहीं, बल्कि मुश्किलें बढ़ाने वाला कदम साबित होगा. एक बच्चे को दुनिया में लाना बहुत बड़ा दायित्व होता है. इस का निर्णय तभी लिया जाना चाहिए जब आप दोनों उस की परवरिश के लिए पूरी तरह तैयार हों.

सच यही है कि शादी हर सवाल का जवाब नहीं होती, बल्कि यह तो अपनेआप में एक पहेली होती है, जिस का हल तभी निकलता है जब दोनों अपने अहं और स्वार्थ का त्याग कर एक इकाई बन जाते हैं.

प्यार को प्राथमिकता दें

दरअसल, पतिपत्नी के मध्य टकराव ही वैवाहिक जीवन के लिए अभिशाप बनता है. जहां ईगो का टकराव न हो, वहां वैवाहिक जीवन निरंतर सफलता के साथ चलता है. एक कारण यह भी है कि जहां अपेक्षाएं ज्यादा हों, वहां अगर उन की पूर्ति नहीं होती, तो प्रतिदिन नई समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है कि परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, पतिपत्नी के मध्य प्रेम हमेशा कायम रहे. पतिपत्नी एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसलिए दोनों को ही अपने अहम के टकराव से बचना चाहिए और प्रेम के मूलमंत्र पर अमल करना चाहिए, क्योंकि दांपत्य जीवन अगर सहज नहीं है, तो पारिवारिक जीवन भी परेशानियों का केंद्र बन जाता है.

-ऋचा पांडे, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट औफ इंडिया एवं ग्लोबल ऐंबैसेडर सिरोज यूनाइटेड (यूएसए)

एकदूसरे की भावनाओं को समझें

पतिपत्नी को हमेशा एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताने का प्रयास करना चाहिए. जरूरी है कि वे साथ में कुछ समय बैठें, बातें करें. एकदूसरे की भावनाओं को समझें, एकदूसरे को प्रोत्साहित करें. मगर अपनी इनडीविजुअल आईडैंटिटी को भी मैंटेन रखें. दूसरे को अपने जैसा बनाने का प्रयास कतई न करें. जिंदगी के महत्त्वपूर्ण निर्णय एकदूसरे के साथ बैठ कर ही लें.

-डा. गौरव गुप्ता, मनोवैज्ञानिक, तुलसी हैल्थकेयर

शादी से जुड़े कुछ तथ्य

विवाह एक अनूठा बंधन है, जिस में 2 व्यक्ति 7 फेरे ले कर एकदूसरे के साथ सदा के लिए जुड़ जाते हैं. पर क्या वाकई यह बंधन इतना ही मजबूत होता है? या फिर कुछ ऐसे तथ्य भी हैं, जिन से आप वाकिफ नहीं. आइए, आप को रूबरू कराते हैं, शादी से जुड़े ऐसे ही तथ्यों से:

– नौकरी, बच्चे, टीवी, इंटरनैट, हौबीज व घरपरिवार की जिम्मेदारियों की वजह से एक औसत दंपती दिन में केवल 4 मिनट ही अकेले एकदूसरे के साथ वक्त बिता पाते हैं.

– 25 साल से कम उम्र में शादी होने पर तलाक का खतरा ज्यादा होता है. महिला यदि पुरुष से काफी बड़ी है, तो भी तलाक की संभावना बढ़ जाती है. जबकि पुरुष काफी बड़ा हो तो ऐसा होने की संभावना कम रहती है.

– एक व्यक्ति का शैक्षिक स्तर इस बात पर काफी प्रभाव डालता है कि वह शादी किस उम्र में करेगा. अधिक पढ़ेलिखे लोग सामान्यतया या अधिक उम्र में शादी करते हैं जबकि कम पढ़ेलिखों की शादी जल्दी होती है.

– एक अध्ययन में पाया गया है कि वे महिलाएं जिन के यहां घर के कामों का संतुलित विभाजन होता है और जिन के पति अपने हिस्से का काम बखूबी निभाते हैं, ज्यादा खुश व संतुष्ट दिखती हैं. बनिस्बत कि वे महिलाएं जिन्हें अपने पति से इस संदर्भ में शिकायत रहती है.

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– 15 साल के लंबे अध्ययन में पाया गया कि शादी से पूर्व एक व्यक्ति की प्रसन्नता का स्तर शादी के बाद उस की सफल और खुशहाल वैवाहिक जिंदगी का अच्छा सूचक है. दूसरे शब्दों में स्वयं विवाह व्यक्ति की प्रसन्नता की वजह नहीं होता.

– बर्थ और्डर भी कहीं न कहीं आप के विवाह की सफलता/असफलता निर्धारित करते हैं. सब से ज्यादा सफल शादियां वे रही हैं, जहां भाइयों में सब से बड़ी बहन की शादी बहनों में सब से छोटे भाई के साथ हुई. जबकि 2 पहली संतानों के बीच हुई शादी कम निभ पाती है.

– शादी और सगाई की अंगूठी बाएं हाथ की चौथी उंगली में पहनी जाती है. रोम में लोग यह विश्वास करते थे कि इस उंगली की एक खास वेन सीधी दिल तक जाती है.

– न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के मुताबिक, ठिगने व्यक्ति ज्यादा गंभीरता से शादी निभाते हैं और अपने ठिगनेपन को कंपेनसेट करने के लिए अधिक कमाते हैं.

– गरिमा पंकज 

Winter Special: झटपट बनाएं पाइनएपल शीरा

पाइनएपल शीरा सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. इस डिश में प्रोटीन के साथ-साथ विटामिन ए है जो की सेहत के लिए बहुत जरूरी है. इसके साथ-साथ इसमें आयरन की भी मात्रा है. कुल मिलाकर यह एक टेस्टी रेसिपी है और इसे बनाना बहुत आसान है.

बनाने में लगने वाला समय: 30 मिनट

सामग्री

पिसा हुआ पाइनएपल

चीनी

घी

सूजी

फैट फ्री दूध

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केसर मिला हुआ दूध

इलाएची पाउडर

विधि

सबसे पहले पिसे हुए पाइनएपल को गर्म कर लें. इसमें थोड़ी सी चीनी डालें. चीनी डालने के बाद इसे अच्छी तरह से मिला लें और तीन से चार मिनट तक मिला लें. एक चीज का ध्यान रखना होगा कि आपके पाइनएपल पके हुए होने चाहिए, क्योंकि अगर पाइनऐपल कच्चे हुए तो इसका स्वाद कड़वा हो जाएगा. तीन से चार मिनट तक पकाने के बाद यह मिश्रण तैयार हो जाएगा.

अब आप सूजी को तैयार करेंगी. इसके लिए आप एक पैन में घी गर्म कर उसमें सूजी डाल दें. अब इसे गुलाबी रंग होने तक धीमी आंच पर अच्छी तरह से भूनें.

जब सूजी गुलाबी रंग का हो जाए तो इसमें दो कप लो फैट दूध और दो कप पानी डालें. अब इसे गाढ़ा होने तक पकाएं. पकाने के बाद इसमें स्वाद के अनुसार सूगर सब्सचीट्युट पाउडर डाल कर पकाते रहें. इसके बाद इसमें पाइनएपल का मिश्रण डाल दें और धीमी आंच पर हिलाते रहें.

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अब सूजी और पाइनएपल के गाढ़े पेस्ट में केसर डालें. केसर डालने से पहले उसे दो-तीन चम्मच दूध में गर्म कर लें. अब आखिर में इसमें इलाएची डालें. इस तरह से आपका शीरा तैयार हो गया. इसे एक बाउल में निकाल लें.

अब आप इसे गरमा-गरम परोसिए. इसे सजाने के लिए आप उपर से बादाम डाल सकती हैं.

जैसी Skin वैसा Face Pack

समयसमय पर फेस पैक का इस्तेमाल करने से त्वचा स्वस्थ और कोमल बनी रहती है. रक्तसंचार भी सुचारु रहता है. यह त्वचा के लिए एक सर्वोत्तम टौनिक है. अगर इसे हफ्ते में 1-2 बार नियम से लगाया जाए तो त्वचा बहुत सुंदर हो जाती है. वैसे तो बाजार में फेस पैक तैयार मिलते हैं, लेकिन आप चाहें तो घर पर भी स्वयं फेस पैक तैयार कर सकती हैं. किस त्वचा के लिए कैसा फेस पैक चुनें, आइए जानते हैं:

सूखी त्वचा के लिए

– 1 चम्मच चंदन पाउडर, 1 चम्मच शहद, 1 चम्मच दूध पाउडर व 1 चम्मच गुलाबजल मिला कर पेस्ट बनाएं और पूरे चेहरे व गले पर लगा कर सूखने दें. कम से कम 20 मिनट बाद कुनकुने पानी से धो लें.

– 1-1 चम्मच बादाम रोगन, बेसन व मलाई मिला कर पेस्ट बनाएं. चेहरे और गरदन पर 15-20 मिनट तक लगाए रखें, उस के बाद गरम पानी से धो लें.

– औलिव औयल की 1-2 बूंदें 2 चम्मच मैदे में मिला कर पेस्ट तैयार कर आधे घंटे तक चेहरे पर लगाए रखें. सूखने पर पानी या गुलाबजल से धो लें.

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सामान्य त्वचा के लिए

– 2 बादाम भिगो कर पीस लें. उस में 2 चम्मच दूध, 1 चम्मच गाजर और संतरे का रस मिला कर चेहरे और गरदन पर गाढ़ागाढ़ा लेप करें. आधे घंटे बाद धो लें. यह झांइयां दूर करेगा और त्वचा भी कोमल हो जाएगी.

– 1 चम्मच शहद में आलमंड औयल की कुछ बूंदें मिला कर चेहरे और गले पर लगाएं. 10 मिनट बाद पानी से धो लें. इस से त्वचा कोमल होती है और झुर्रियां भी कम होती हैं.

– 2 चम्मच आटे में दूध, हलदी मिलाएं, फिर उस में थोड़ा सा गुलाबजल डाल कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट बाद कुनकुने पानी से धो लें.

– थोड़े से आटे में पानी, 1 चम्मच शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15-20 मिनट बाद कुनकुने पानी से चेहरे को धो लें.

तैलीय त्वचा के लिए

– 1×1/2 चम्मच मुलतानी मिट्टी में 1×1/2 चम्मच नीबू का रस व 1/2 चम्मच शहद मिलाएं. पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं. 20 मिनट बाद हलके गरम पानी से धो लें.

– मसूर की दाल व चावल को दरदरा पीस कर उस में चंदन पाउडर, मुलतानी मिट्टी, संतरे के छिलकों का पाउडर व 2 चम्मच खीरे का रस मिला कर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर लगाएं. जब सूख जाए तो ठंडे पानी से धो लें.

– जौ का पाउडर थोड़ा सा, 2 चम्मच नीबू का रस, थोड़ा सा दूध सब को मिला कर चेहरे पर लगाएं. सूखने पर धो लें. इस से चेहरे का रक्तसंचार ठीक होता है और त्वचा भी साफसुथरी हो जाती है.

– खीरे को कस कर उस में नीबू रस की कुछ बूंदें और 1 चम्मच गुलाबजल मिलाएं. इसे कपड़े के 2 टुकड़ों के बीच रख कर चेहरे पर लगाएं.

15-20 मिनट के बाद साफ कर लें.

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सावधानी

फेस पैक लगाते समय ध्यान रहे कि यह तय समय से अधिक समय न लगा रहे और इसे आंखों के चारों तरफ कभी न लगाएं. उन पर रुई के फाहों को ठंडे पानी से भिगो कर रख लें.

बिलखता मौन: भाग 1- क्यों पास होकर भी मां से दूर थी किरण

‘पता नहीं क्या हो गया है इस लड़की को? 2 दिनों से कमरे में बंद बैठी है. माना स्कूल की छुट्टियां हैं और उसे देर तक बिस्तर में रहना अच्छा लगता है, किंतु पूरे 48 घंटे बिस्तर में भला कौन रह सकता है? बाहर तो आए, फिर देखते हैं. 2 दिनों से सबकुछ भुला रखा है. कई बार बुला भेजा उसे, कोई उत्तर नहीं. कभी कह देती है, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं. कभी आज भूख नहीं है. कभी थोड़ी देर में आती हूं. माना कि थोड़ी तुनकमिजाज है, किंतु अब तक तो मिजाज दुरुस्त हो जाना चाहिए था. हैरानी तो इस बात की है कि 2 दिनों से उसे भूख भी नहीं लगी. एक निवाला तक नहीं गया उस के अंदर. पिछले 10 वर्षों में आज तक इस लड़की ने ‘रैजिडैंशियल केअर होम’ के नियमों का उल्लंघन कभी नहीं किया. आज ऐसा क्या हो गया है?’’ केअर होम की वार्डन हैलन बड़बड़ाए जा रही थी. फिर सोचा, स्वयं ही उस के कमरे में जा कर देखती हूं कहीं किरण की तबीयत तो खराब नहीं. डाक्टर को बुलाना भी पड़ सकता है. हैलन पंजाब से आई ईसाई औरत थी और 10 सालों से वार्डन थी उस केअर होम की.

वार्डन ने कई बार किरण का दरवाजा खटखटाया. कोई उत्तर न पा वह झुंझलाती हुई अधिकार से बोली, ‘‘किरण, दरवाजा खोलो वरना दरवाजा तोड़ दिया जाएगा.’’ किरण की ओर से कोई उत्तर न पा कर वार्डन फिर क्रोध से बोली, ‘‘दरवाजा क्यों नहीं खोलती? किस का शोक मना रही हो? बोलती क्यों नहीं.’’

‘‘शोक मना रही हूं, अपनी मां का,’’ किरण ने रोतेरोते कहा. फिर फूटफूट कर रोने लगी.

इतना सुनते ही वार्डन चौंक पड़ी. सोच में पड़ गई, मां, कौन सी मां? जब से यहां आई है, मां का तो कभी जिक्र तक नहीं किया. वार्डन ने गहरी सांस ले अपने को संभालते हुए बड़े शांत भाव से कहा, ‘‘किरण बेटा, प्लीज दरवाजा तो खोलो.’’

कुछ क्षण बाद दरवाजा खोलते ही किरण वार्डन से लिपट कर दहाड़दहाड़ कर रोने लगी. धीरेधीरे उस का रोना सिसकियों में बदल गया.

‘‘किरण, ये लो, थोड़ा पानी पी लो,’’ वार्डन ने स्नेहपूर्वक कहा.

नाजुक स्थिति को समझते हुए वार्डन ने किरण का हाथ अपने हाथ में ले उस से प्यार से पूछा, ‘‘किरण, अपनी मां से तो तुम कभी मिली नहीं? आज ऐसी क्या बात हो गई है?’’

सिसकियां भरतेभरते किरण बोली, ‘‘मैं मां से कहां मिलना चाहती थी. अभी भी कहां मिली हूं. न जाने यह कब और कैसे हो गया. अब तो मैं चाह कर भी मां से नहीं मिल सकती.’’ इतना कह कर किरण ने गहरी सांस ली.

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वार्डन ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘जो कहना है कहो, मेरे पास तुम्हारे लिए समय ही समय है.’’

वार्डन का कहना भर था कि किरण के मुंह से अपने जीवन का इतिहास अपनेआप निकलने लगा, ‘‘पैदा होने से अब तक रहरह कर मेरे कानों में मां के तीखे शब्द गूंजते रहते हैं, ‘तू कोख में क्या आई, मेरे तो करम ही फूट गए.’ ऊपर से नानी, जिन्होंने मां को एक पल भी चैन से नहीं जीने दिया, मां से संबंधविच्छेद के बाद भी कभीकभार हमारे घर आ धमकतीं. फिर चालू हो जाती उन के तानोंउलाहनों की सीडी, ‘न सुखी, तू जम्मी ओ वी कुड़ी’. हुनतां तू अपने देसी बंदे नाल व्याण जोगी वी नई रई. कुड़ी अपने बरगी होंदी ते बाकी बच्यां नाल रलमिल जांदी. लबया वी कौन? दस्दयां वी शर्म आंदी ऐ.’’ आंसू भर आए थे एक बार फिर किरण की आंखों में.

‘‘मिसेज हैलन, मुझे नानी का हरदम कोसना, मां की बेरुखी से कहीं अधिक खलता था. ऐसा लगता जैसे वे मुझे नहीं, मेरे मांबाप को गालियां दे रही हों. मेरे मोटेमोटे होंठ, तंगतंग घुंघराले बाल, सभी को बहुत खटकते थे. मैं अकसर क्षुब्ध हो कर मां से पूछती, ‘इस में मेरा क्या कुसूर है?’ मैं दावे से कह सकती हूं कि अगर नानी का बस चलता तो मेरे बाल खींचखींच कर सीधे कर देतीं. मेरे होंठों की प्लास्टिक सर्जरी करवा देतीं. मुझे नानी जरा भी नहीं भाती थीं. दरवाजे से अंदर घुसते ही उन का शब्दों का प्रहार शुरू हो जाता, ‘नी सुखीये ऐस कुड़ी नूं सहेड़ के, तू अपनी जिंदगी क्यों बरबाद कर रई ए. दे दे किसी नूं, लाह गलयों. जद गल ठंडी पै जावेगी, तेरा इंडिया जा के ब्याह कर दयांगे. ताकत देखी है लाल (ब्रिटिश) पासपोर्ट दी. जेड़े मुंडे ते हथ रखेंगी, ओईयों तैयार हो जावेगा.’

‘‘दिनरात ऐसी बातें सुनसुन कर मेरे प्रति मां के व्यवहार में रूखापन आने लगा. एक दिन जब मैं स्कूल से लौटी ही थी कि घंटी बजी. मेरे दरवाजा खोलते ही सामने एक औरत खड़ी थी, बोली, ‘हाय किरण, मैं, ज्योति आंटी, तुम्हारी मम्मी की सहेली.’

‘‘मां, आप की सहेली, ज्योति आंटी आई हैं,’’ मैं ने मम्मी को आवाज दी.

‘‘‘हाय ज्योति, तुम आज रास्ता कैसे भूल गई हो?’

‘‘‘बहुत दिनों से मन था तुम्हारे साथ बैठ कर पुरानी यादों को कुरेदने का.’

‘‘‘आओ, अंदर आओ, बैठो. बताओ, आजकल क्या शगल चल रहा है. 1 से 2 हुई या नहीं?’ मां ने पूछा.

‘‘‘न बाबा न, मैं इतनी जल्दी इन झंझटों में पड़ने वाली नहीं. जीभर के मजे लूट रही हूं जवानी के. तू ने तो सब मजे स्कूल में ही ले लिए थे,’ ज्योति ने व्यंग्य से कहा.

‘‘‘मजे? क्या मजे? वे मजे तो नुकसानदेह बन गए हैं मेरे लिए. सामने देख,’ मां ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘इतना सुनते ही मैं दूसरे कमरे में चली गई. मुझे उन की सब बातें सुनाई दे रही थीं. बहुत तो नहीं, थोड़ाथोड़ा समझ में आ रहा था…

‘‘‘सुखी, तुझे तो मैडल मिलना चाहिए. तू ने तो वह कर दिखाया जो अकसर लड़के किया करते हैं. क्या गोरा, क्या काला. कोई लड़का छोड़ा भी था?’ ज्योति आंटी ने मां को छेड़ते हुए कहा.

‘‘‘ज्योति, तू नहीं समझेगी. सुन, जब मैं भारत से आई थी, उस समय मैं 14 वर्ष की थी. स्कूल पहुंचते ही हक्कीबक्की सी हो गई. यहां का माहौल देख कर मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं. तकरीबन सभी लड़केलड़कियां गोरेचिट्टे, संगमरमरी सफेद चमड़ी वाले, उन के तीखेतीखे नैननक्श. नीलीनीली हरीहरी आंखें, भूरेभूरे सोने जैसे बाल, उन्हें देख कर ऐसा लगता था मानो लड़के नहीं, संगमरमर के बुत खड़े हों. लड़कियां जैसे आसमान से उतरी परियां. मेरी आंखें तो उन पे गड़ी की गड़ी रह जातीं. शुरूशुरू में उन का खुलापन बहुत अजीब सा लगता था. बिना संकोच के लड़केलड़कियां एकदूसरे से चिपटे रहते. उन का निडर, आजाद, हाथों में हाथ डाले घूमते रहना, ऐसा लगता था जैसे वे शर्म शब्द से अनजान हैं. धीरेधीरे वही खुलापन मुझे अच्छा लगने लगा. ज्योति, सच बताऊं, कई बार तो उन्हें देख कर मेरे मन में भी गुदगुदी होती. मन मचलने लगता. उन से ईर्ष्या तक होने लगती थी. तब मैं घंटों अपने भारतीय होने पर मातम मनाती. बहुत कोशिशें करने के बावजूद मेरे मन में भी जवानी की इच्छाएं इठलाने लगतीं. आहिस्ताआहिस्ता यह आग ज्वालामुखी की भांति भभकने लगी. एक दिन आखिर के 2 पीरियड खाली थे. मार्क ने कहा, ‘सुखी, कौफी पीने चलोगी?’ मैं ने उचक कर झट से हां कर दी. क्यों न करती? उस समय मेरी आंखों के सामने वही दृश्य रीप्ले होने लगा. तुम इसे चुनौती कहो या जिज्ञासा. मुझे भी अच्छा लगने लगा. धीरेधीरे दोस्ती बढ़ने लगी. मार्क को देख कर जौर्ज और जौन की भी हिम्मत बंधी. कई लड़कों को एकसाथ अपने चारों ओर घूमते देख कर अपनी जीत का एहसास होता. इसे तुम होल्ड, कंट्रोल या फिर पावर गेम भी कह सकती हो. अपने इस राज की केवल मैं ही राजदार थी.’

‘‘‘सुखी, तुम कौन से जौर्ज की बात कर रही हो, वही अफ्रीकन?’

‘‘‘हां, वह तो एक जिज्ञासा थी. उसे टाइमपास भी कह सकती हो. न जाने कब और कैसे मैं आगे बढ़ती गई. आसमान पर बादलों के संगसंग उड़ने लगी. पढ़ाई से मन उचाट हो गया. एक दिन पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं. घर में जो हंगामा हुआ, सो हुआ. मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा. सभी लड़कों ने जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया. मैं भी किस पर हाथ रखती. मैं तो खुद ही नहीं जानती थी. किरण का जन्म होते ही उसे अपनाना तो दूर, मां ने किसी को उसे हाथ तक नहीं लगाने दिया. जैसे मेरी किरण गंदगी में लिपटी छूत की बीमारी हो. इस के बाद मेरी मां के घर से क्रिसमस का उपहार तो क्या, कार्ड तक नहीं आया.’’’

‘‘किरण, तुम्हें यह सब किस ने बताया?’’ वार्डन ने स्नेहपूर्वक पूछा.

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‘‘उस दिन मैं ने मां और ज्योति आंटी की सब बातें सुन ली थीं. जल्दी ही समय की कठोर मार ने मुझे उम्र से अधिक समझदार बना दिया. मां जो कभीकभी सबकुछ भुला कर मुझे प्यार कर लेती थीं, अब उन के व्यवहार में भी सौतेलापन झलकने लगा. जो पैसे उन्हें सोशल सिक्योरिटी से मिलते थे, उन से वे सारासारा दिन शराब पी कर सोई रहतीं. घर के काम के कारण कईकई दिन स्कूल नहीं भेजतीं. सोशलवर्कर घर पर आने शुरू हो गए. सोशल सर्विसेज की मुझे केयर में ले जाने की चेतावनियों का मां पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. शायद मां भी यही चाहती थीं. मां हर समय झुंझलाई सी रहतीं. मुझे तो याद ही नहीं कि कभी मां ने मुझे प्यार से बुलाया हो या फिर कभी अपने संग बिस्तर में लिटाया हो. मैं मां की ओर ललचाई आंखों से देखती रहती. ‘एक दिन मां ने मुझे बहुत मारा. शाम को वे मुझे अकेला छोड़ कर दोस्तों के संग पब (बीयर बार) में चली गईं. उस वक्त मैं केवल 8 वर्ष की थी. घर में दूध के सिवा कुछ खाने को नहीं था. बाहर बर्फ पड़ रही थी. रातभर मां घर नहीं आईं. न ही मुझे डर के मारे नींद. दूसरे दिन सुबह मैं ने पड़ोसी मिसेज हैंपटन का दरवाजा खटखटाया. मुझे डरीडरी, सहमीसहमी देख कर उन्होंने पूछा, ‘किरण, क्या बात है? इतनी डरीडरी क्यों हो?’

‘‘मम्मी अभी तक घर नहीं आईं,’ मैं ने सुबकतेसुबकते कहा.

‘‘‘डरो नहीं, अंदर आओ.’

‘‘मैं सर्दी से ठिठुर रही थी. मिसेज हैंपटन ने मुझे कंबल ओढ़ा कर हीटर के सामने बिठा दिया. वे मेरे लिए दूध लेने चली गईं. 20 मिनट के बाद एक सोशलवर्कर, एक पुलिस महिला के संग वहां आ पहुंची. जैसेतैसे पुलिस ने मां का पता लगाया.

आगे पढ़ें- बिक्की और मेरा घर पास होने के कारण अब तो…

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आदित्य को Imlie से दूर करने के लिए आर्यन संग हाथ मिलाएगी मालिनी, देखें वीडियो

पौपुलर सीरियल में से एक इमली (Imlie) में इन दिनों आर्यन (Fehmaan Khan) और आदित्य (Gashmeer Mahajani) के बीच कोल्ड वौर देखने को मिल रही है. जहां मालिनी (Mayuri Deshmukh) पूरी कोशिश कर रही है कि इमली (Sumbul Tauqeer) और आदित्य को एक दूसरे से दूर कर दें तो वहीं आर्यन के लिए इमली की परवाह बढ़ती जा रही है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला नया ट्विस्ट…

मालिनी ने की भड़काने की कोशिश

 

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अब तक आपने देखा कि आर्यन, इमली को प्रमोशन देता है. वहीं आदित्य को इमली के साथ काम करने के लिए कहता है, जिसके कारण आदित्य की इमली की तरफ नाराजगी देखने को मिलती है. वहीं मालिनी इस बात का फायदा उठाकर आदित्य और अपर्णा को भड़काने की कोशिश करती है. लेकिन अपर्णा, इमली का साथ देती  है और उसका समर्थन करती है, जिसे सुनकर मालिनी का गुस्सा बढ़ जाता है.

 

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आर्यन संग दोस्ती करेगी मालिनी

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि मालिनी, आर्यन से कहेगी कि उसका और इमली का रिश्ता कुछ ही दिनों में बहुत मजबूत हो गया है और इसलिए वह उसे पसंद करने लगा है. लेकिन वह इमली से नफरत करती है. इसीलिए उन दोनों का मकसद केवल आदित्य को इमली से अलग रखना है, जिसके लिए वह उसके साथ दोस्ती करना चाहती है. इसी के चलते मालिनी, आर्यन के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाती है.

शो में होगी नई एंट्री

 

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दूसरी तरफ, खबरें हैं कि शो में नई एक्ट्रेस पिया वलेचा (Piya valecha) की एंट्री होने वाली है, जो सीरियल में इमली की मदद करती नजर आएगी. वहीं शो में वह पौजीटिव रोल अदा करती नजर आएंगी.

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Anupama: वनराज पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाएगी काव्या, होगा अनुज का एक्सीडेंट

सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में जल्द नया मोड़ आने वाला है. जहां अनुज (Gaurav Khanna) की जिंदगी में नए शख्स की एंट्री होने वाली है तो वहीं वनराज (Sudhanshu Panday) और काव्या (Madalsa Sharma) के बीच घमासान देखने को मिलने वाला है. इसी के चलते मेकर्स कड़ी मेहनत करते नजर आ ऱहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Serial Latest Update)…

काव्या उठाएगी ये कदम

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज, काव्या से तलाक के पेपर साइन करने के लिए कहेगा. लेकिन काव्या खुद को घायल कर लेगी और वनराज को धमकी देगी कि अगर उसने तलाक के लिए जबरदस्ती की तो वह उस पर घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवा देगी. हालांकि अनुपमा कहेगी कि वनराज ने कभी उसे गाली नहीं दी है, जिसके जवाब में काव्या कहेगी कि वह उसका बदला लेगी.

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अनुज-अनुपमा का होगा एक्सीडेंट

इसी के साथ शो में दूसरा ट्विस्ट भी आने वाला है. दरअसल, हाल ही में सोशलमीडिया में कुछ फोटोज वायरल हो रही हैं, जिनमें अनुज हौस्पिटल में बेड पर लेटा नजर आ रहा है. वहीं अनुपमा भी सर पर बैंडेड लगे हुए अनुज को देखती नजर आ रही है. वहीं वनराज और अनुपमा एक दूसरे से बात करते हुए भी नजर आ रहे हैं. इन फोटोज को देखकर फैंस को लग रहा है कि शो में जल्द ही कुछ नया ट्विस्ट आने वाला है, जिसका वह बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

 

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अब तक आपने देखा कि वनराज पूरे परिवार के सामने काव्या से तलाक लेने का ऐलान करता है, जिसे सुनकर सभी हैरान रह जाते हैं. वहीं काव्या इस बात से गुस्से में नजर आ ती है. तो दूसरी तरफ डौली अनुपमा को कहती है कि वह वनराज को समझाए क्योंकि उसके इस फैसले का असर पाखी, समर और तोषू की जिंदगी में पड़ता नजर आएगा. हालांकि अनुपमा इस मामले में कुछ भी कहने से मना कर देती है. वहीं अनुज और जीके, अनुपमा के लिए परेशान नजर आते हैं.

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Winter Special: ट्विस्टेड लैंब कबाब

सामग्री

200 ग्राम लैंब चंक्स, 30 ग्राम प्याज, 30 ग्राम शिमलामिर्च, 5 मि.लि. वारसेस्टरशायर सौस, 10 ग्राम टोमैटो पेस्ट, 10 ग्राम लेबनीज मसाले, 15 मि.लि. रिफाइंड औयल, 40 ग्राम मिंट आओली (डिप), 2 ग्राम कालीमिर्च, नमक स्वादानुसार.

विधि

लैंब क्यूब्स में काट लें. फिर रात भर लहसुन व टमाटर के पेस्ट, लेबनीज मसालों व लालमिर्च के साथ मैरिनेट करें. मैरिनेट किए हुए लैंब चंक्स, प्याज व शिमलामिर्च को सीखों में लगाएं व कोयले की आंच पर ग्रिल करें. फिर मिंट आओली (डिप) के साथ सर्व करें.

मेरी बेटी को स्किजोप्रेनिआ की बीमारी है, क्या इससे जौब या शादी में दिक्कत आ सकती है?

सवाल-

मेरी बेटी की उम्र 17 वर्ष है. पिछले 2 साल से वह स्किजोप्रेनिआ से पीडि़त है. वह बहुत ही असहज ढंग से बरताव करती है और रात में डर कर उठ जाती है. वह खुद इस समस्या से बाहर निकलना चाहती है. मुझे भी बहुत चिंता सताती है क्योंकि इस की वजह से बच्ची की पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा है. आगे चल कर इस की जौब या शादी में दिक्कत आ सकती है. कृपया कर के बताएं क्या इस का कोई इलाज संभव है?

जवाब-

स्किजोप्रेनिआ एक गंभीर मानसिक रोग है. इस बीमारी से पीडि़त के निजी और सार्वजनिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. आप की बच्ची के मामले में बिना जांच के कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा क्योंकि बच्ची की स्थिति का पूरी तरह आंकलन किया जाएगा. मानसिक रोग में कुछ भी जनरल नहीं होता हर मरीज की परिस्थितियों और मानसिक स्थिति के मुताबिक जांच और उपचार किया जाता है.

अगर इनिशियल स्टेज है तो बीमारी का इलाज संभव है, लेकिन एडवांस स्टेज में इस बीमारी को पूर्ण  रूप से स्थाई इलाज थोड़ा कौंप्लैक्स होता है. लेकिन दवाओं और सही उपचार की मदद से इस के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसलिए आप को निराश होने की आवश्यकता

नहीं है. बच्ची की उम्र कम है ऐसे में उस का अभी मैडिकल इलाज शुरू करवाएं तो आप स्थिति को नियंत्रित कर सकती हैं. परिवार के सदस्यों को भी समझाएं और तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

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डा. अनुरंजन बिस्ट

सीनियर साइकेट्रिक्ट, फाउंडर, माइंड ब्रेन टीएमएस इंस्टिट्यूट

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दुनियाभर में कोरोनावायरस महामारी के समय में सोशल डिस्टेंसिंग, क्वारंटाइन और देश भर में स्कूलों के बंद रहने से बच्चे प्रभावित हुए हैं. कुछ बच्चे और युवा बेहद अलग-थलग महसूस कर रहे हैं और उन्हें चिंता, उदासी और अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है. वे अपने परिवारों पर इस वायरस के प्रभाव को लेकर भय और दुख महसूस कर सकते हैं. ऐसे भय, अनिश्चितत, और कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए घर पर ही रहने जैसी स्थिति उन्हें शांत बैठे रहना मुश्किल बना सकती है. लेकिन बच्चों को सुरक्षित महसूस कराना, उनके हेल्दी रुटीन को बरकरार रखना, उनकी भावनाओं को समझना बेहद महत्वपूर्ण है. इस बारे में बता रहे हैं Kunwar’s Educational Foundation के educationist(शिक्षाविद्) राजेश कुमार सिंह.

पूरी आर्टिकल पढ़ने के लिए- कोरोना के समय में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का रखें ध्यान कुछ इस तरह

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Neil-Aishwarya के वेडिंग रिसेप्शन में ‘सई’ ने बिखेरे जलवे, ‘पाखी’ को दी कड़ी टक्कर

स्टार प्लस के सीरियल ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Mein) एक्टर नील भट्ट (Neil Bhatt) और ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) की शादी हो गई हैं, जिसके बाद मुंबई में दोनों का ग्रैंड रिसेप्शन फैंस को देखने को मिला वहीं इस रिसेप्शन में बौलीवुड की दिग्गज अदाकारा रेखा (Rekha ji) ने भी शिरकत की, जिन्होंने कपल को आशीर्वाद दिया. इसी बीच सीरियल की लीड एक्ट्रेस आयशा सिंह (Ayesha Singh) भी नजर आईं, जिनकी फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं सई यानी आयशा सिंह के लुक्स की झलक…

इस अंदाज में नजर आईं सई

 

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पाखी (Pakhi) और विराट (Virat) यानी ऐश्वर्या शर्मा और नील भट्ट के ग्रैंड वेडिंग रिसेप्शन में गुम है किसी के प्यार में की सई यानी आयशा सिंह भी नजर आईं. इस सेलिब्रेशन में वह लहंगा पहने नजर आईं. ग्रे कलर के प्रिंटेड लहंगे में आयशा बेहद खूबसूरत लग रही थीं. लहंगे से मैचिंग की सिंपल ज्वैलरी सई यानी आयशा के लुक पर चार चांद लगा रहा था. वहीं इस दौरान आयशा फोटोज क्लिक करवाती भी नजर आईं थीं.

 

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पाखी का अंदाज भी था खास

दूसरी तरफ सई के लुक को टक्कर देते हुए पाखी भी खास वेस्टर्न अंदाज में नजर आईं. औफ शोल्डर सफेद और आसमानी रंग के कौम्बिनेशन वाले गाउन में ऐश्वर्या शर्मा बेहद ही खूबसूरत लग रही थीं. वहीं विराट यानी नील भट्ट संग दोनों की जोड़ी बेहद परफेक्ट साबित हो रही थी.

 

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सीरियल की कास्ट भी नही रही पीछे

 

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बात करें सीरियल के दूसरे सितारों की तो देवयानी के रोल में नजर आने वाली मिताली नाग (Mitali Naag) भी ऐश्वर्या और नील के वेडिंग रिसेप्शन में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. मल्टी कलर शिमरी साड़ी में मिताली नाग बेहद स्टाइलिश और हौट लग रही थीं. वहीं सोशलमीडिया पर फैंस उनके इस लुक की काफी तारीफें करते नजर आ रहे हैं.

 

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जीवन की चादर पर आत्महत्या का कलंक क्यों?

रीना की बेटी रिया एक होनहार स्टूडेंट थी एक दिन ग्रुप स्टडी का बोल कर रात भर घर से बाहर रही ऐसे में जब घर मे बात पता चली तो रीना ने उसे खूब डाँटा और बात करना बंद कर दी क्योंकि माँ होने के नाते उसे लगा कि इस से रिया को अपनी गलती का अहसास होगा और आगे कभी बिना बताए ऐसा नहीं करेगी किंतु उसे क्या पता था कि रिया इतनी सी बात पर बजाय अपनी माँ से बात करने के अठारहवें माले से कूदकर अपने जीवन का ही अंत कर लेगी और रीना के जीवन मे अंतहीन अंधकार छोड़ जाएगी.इसी तरह रोहन पढ़ाई के लिए मुम्बई आया और गलत संगत में पड़ गया घर में कहता रहा कि मन लगाकर पढ़ रहा है किंतु जब रिजल्ट आया तो वो फेल हो गया था घर मे ये बताने की उसे हिम्मत न हुई उसे लगा कि किस मुँह से माता पिता का सामना करेगा इस से सरल उसे मौत को गले लगाना लगा और वो फाँसी पर झूल गया ये दो किस्से तो इस भयावह समस्या की बानगी भर है .ऐसी खबरें दिल दिमाग को झकझोर के रख देती हैं.किस तरह युवाओं और किशोरों के मन में इस तरह के विध्वंसक विचार आ सकते हैं.मोबाइल फ़ोन  न मिलना और दोस्तों के साथ बाहर जाने की इजाज़त न मिलना से लेकर एकतरफा प्रेम या घर में मनपसंद खाना न मिलने जैसी कई छोटी छोटी सी बातों पर युवाओं की आत्महत्या के किस्से सुनकर दिल दहल जाता है फिर भी ये हमें सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसा क्या है जो ये इतनी कम उम्र में इस तरह आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं.

कुछ समय पहले तक जब वैयक्तिक जीवन इतना कठिन नहीं था, मनुष्य की इच्छाएं और आवश्यकताएँ भी सीमित थीं तब आत्महत्या जैसे मामले कम ही देखने को मिलते थे, किंतु पिछले कुछ वर्षों में जीवन की विषमताओं से तंग आकर व्यक्ति का अपने जीवन को अंत करने की प्रवृत्ति में इज़ाफ़ा हुआ है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की माने तो दुनिया में हर चालीस सेकंड में एक मृत्यु आत्महत्या के चलते होती है .ऐसी क्या मनःस्थिति हो जाती है इंसान की जो वो ये कर बैठता है.नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो(एन सी आर बी) के अनुसार पिछले दस सालों में देश में आत्महत्या के मामले 17.3 %तक बढ़े हैं.हर 10 सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रीवेंशन डे मनाया जाता है जिस से आत्महत्या के कारणों को समझा जा सके और लोगों को ऐसा करने से रोका जा सके.आत्महत्या का कारण तो कोई भी हो सकता है विशेषकर युवाओं की अगर बात करें तो आंकड़ों से यह साफ पता चलता है कि पिछले दस वर्षों में 15-24 साल के युवाओं में आत्महत्या के मामले सौ प्रतिशत से अधिक बढ़े हैं, ये मान्यता थी कि पारिवारिक आर्थिक संकट और पैसों की परेशानी ही व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करती है लेकिन अब आर्थिक कारणों से कहीं अधिक कॅरियर की चिंता या विफलता युवाओं को आत्महत्या करने के लिए विवश कर रही है. इसके अलावा एक तरफ अभिभावकों व अध्यापकों का पढ़ाई के लिए बनाया जाने वाला मानसिक दबाव तो दूसरी ओर साधन संपन्न दोस्तों की तरह जीवन शैली अपनाने का दबाव उनमें आत्महत्या करने जैसी प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है. इसके इतर कम उम्र के भावुक प्रेम संबंधों में कटुता या असफलता भी युवाओं के आत्महत्या करने का एक बड़ा कारण है किंतु फिर भी अभिभावकों का उनसे अत्यधिक अपेक्षाएँ उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना देती हैं और अंत में उनके पास अपना जीवन समाप्त करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता.कोटा(राजस्थान) जो कि एक एजुकेशन हब के रूप में प्रसिद्ध हो गया है वहाँ देश भर के बच्चे आईआई टी की कोचिंग लेने आते हैं वहाँ बच्चे पढ़ाई के दबाव या अपने सहपाठियों से पीछे रह जाने के दुख में आत्महत्या करने के लिए प्रेरित होते हैं.

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मनोवैज्ञानिकों की मानें तो कोई भी व्यक्ति अचानक आत्महत्या करने के बारे में नहीं सोच सकता, उसे इतना बड़ा कदम उठाने के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है और पहले से ही योजना भी बनानी पड़ती है. तनावपूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग आदि जैसे कारण युवाओं को आत्महत्या करने के लिए विवश करते हैं.युवाओं के पास कई बार अपनी बात शेयर करने को कोई अनुभवी या बड़ा व्यक्ति नहीं होता जो उनकी बात धैर्य से सुनकर समस्या का समाधान कर सके इस अभाव के चलते भी युवाओं के द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं की संख्या अधिक है.विशेषज्ञ कहते हैं कि आत्महत्या मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ एक आनुवंशिक समस्या भी है, जिन परिवारों में पहले भी कोई व्यक्ति आत्महत्या कर चुका होता है उसकी आगामी पीढ़ी या परिवार के अन्य सदस्यों के आत्महत्या करने की संभावना बहुत अधिक रहती है. वहीं दूसरी ओर वे युवा जो आत्महत्या के बारे में बहुत अधिक विचार करते हैं या उस से संबंधित सामग्री देखते पढ़ते हैं उनके आत्महत्या करने की आशंका काफी हद तक बढ़ जाती है इसे  सुसाइडल फैंटेसी कहा जाता है.

पर युवा ये कदम अक़्सर ये मानसिक आवेग के चलते ही उठाते हैं.आमतौर पर जब मन में स्वयं को ख़त्म कर लेने की बात मन में आती है कहीं न कहीं वो परिस्थितियों से हार कर अवसाद में घिरे होते हैं.उनकी मानसिक स्थिति ऐसी होती है कि उन्हें लगता है कि उनके जीवन का कोई मतलब नहीं है और जिस समस्या के वो शिकार हैं उसका कोई हल नहीं हो सकता. उनका मन नकारात्मक विचारों से भरा होता है अपने दर्द से मुक्ति का उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझता है.कुछ युवा गुस्से ,निराशा और शर्मिन्दगी में ये कदम उठा लेते हैं दूसरों के सामने वे सामान्य व्यवहार करते हैं जिस से उनकी मानसिक स्थिति का अंदाज नहीं लगाया जा सकता है. युवा ही नहीं अधिकाँशतः सभी लोग अपने जीवन में कभी न कभी आत्महत्या का विचार अवश्य करते हैं किसी किसी में ये भावना बहुत तीव्र होती हैं कुछ में ये क्षणिक होती है जो बाद में आश्चर्य करते हैं कि हम ऐसा सोच कैसे सकते हैं.हालाँकि ऐसे लोगों को आप पहचान नहीं सकते पर कुछ लक्षण इनमें होते हैं जैसे ठीक से खाना न खाना अपने मनोभावों को ये ठीक तरह व्यक्त नहीं कर पाते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक किसी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार कितना गंभीर है, इसकी जांच ज़रूरी है और इसके लिए मेंटल हेल्थ काउंसलिंग हेल्पलाइन की मदद लेनी चाहिए या फिर डॉक्टर को दिखाना चाहिए .युवाओं में अगर ये लक्षण दिखाई दें तो अवश्य ही ध्यान देने की जरूरत है मनोचिकित्सकों के अनुसार व्यवहार में इस तरह के संकेत मिलें तो आत्महत्या का विचार आ सकता है.

अवसाद,मानसिक स्थिति का एकसमान नहीं रहना,बेचैनी और घबराहट का होना,जिस चीज़ में पहले खुशी मिलती थी, अब उसमें रुचि ना होना,हमेशा नकारात्मक बातें करना, उदास रहना.मनोचिकित्सकों की मानें तो,इस तरह की “मानसिक स्थिति वाले लोग आत्महत्या का खयाल आने पर खुद को नुक़सान पहुंचा सकते हैं,इसलिए उनका तुरंत इलाज करना ज़रूरी है,”परंतु कई बार आत्महत्या का विचार आने पर मनोचिकित्सक के पास जाना सरल नही होता ऐसे में कई जगह जैसे मुम्बई के केईएम अस्पताल में इसके लिए एक हेल्पलाइन चलाई जा रही है जिस से फोन पर बात करके अपनी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है

हमारी आधुनिक जीवनशैली इसके लिए बहुत हद तक उत्तरदायी है.आज जीवन जिस तरह से भागदौड़ और प्रतिस्पर्धा से भरा हुआ है उसमें हम नई पीढ़ी को सुविधाएँ तो दे रहे हैं पर उन्हें मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाने में असफल हो रहे हैं.उनको हम जीवन में जीतना तो सिखाते हैं पर हार को स्वीकारना नहीं सिखा पा रहे.जीवन मे उतार चढ़ाव अच्छा बुरा सभी कुछ देखना पड़ता है उस सब के लिए मानसिक तैयारी होनी ही चाहिए .एक असफलता पर अपनी हार मान लेना या अगर कोई ग़लती हो गयी तो उसे जीवन से बड़ा मान लेना कोई समझदारी तो नहीं है .ऐसी कोई समस्या नहीं बनी है जिसका कोई समाधान न हो यदि ये बात समझ ली जाए तो आत्महत्या रोकी जा सकती है.यदि परिवार के बड़े इनकी भावनाओं को समझें इनको समय दें इनकी समस्याओं को सुने इनका नज़रिया समझने का प्रयत्न करें तो शायद ऐसी स्थिति से बचा जा सकता है.कई बार युवाओं के मन मे इस तरह की धारणा बन जाती है कि माता पिता किसी भी बात पर नाराज़ हो जाएंगे या उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचेगी इसलिए वो इस बात के लिए उन्हें माफ नहीं करेंगे जबकि ऐसे में उन्हें याद रखना चाहिए कि उनकी कोई भी ग़लती, कोई भी असफलता माता पिता के लिए उनके जीवन से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है ,उनका होना उनका बने रहना अधिक मायने रखता है .पर अभिभावकों पास भी समय का अभाव है उनकी अपनी समस्याएँ हैं इसलिए वो ये सोच ही नहीं पाते और उनका बच्चा दूर अवसाद की दुनिया में चला जाता है और जब कोई अनहोनी घट जाती है तब वो जागते हैं और तब तक देर हो चुकी होती है. जीवन अपने आप मे बहुत अमूल्य है इस तरह से जीवन से पलायन सही नहीं होता हमारे धर्मग्रंथों में भी लिखा है कि आत्महत्या करने पर मुक्ति नहीं होती इसलिए मानसिक रूप से सबल बनना चाहिए.कई बार जिस छद्म प्रतिष्ठा को बचाने के प्रयास में युवा इस तरह का कठौर कदम उठा लेते हैं वास्तव में उनके इस कदम के बाद माता पिता को और भी अधिक मानसिक यातनाओं और अपमान से गुजरना पड़ता है.

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आजकल संयुक्त परिवार की व्यवस्था समाप्त होने से युवाओं को वो मानसिक सुरक्षा मिलना बंद हो गयी है जो उन्हें अपने दादा दादी या नाना नानी के साथ रहने पर स्वाभाविक तौर पर मिला करती थी.कई बार अपनी कोई भी परेशानी जो वो माता पिता से शेयर नही कर पाते थे वो दादा दादी से आसानी से शेयर कर लेते थे और अपनी समस्या का आसान समाधान उन्हें मिल जाता था और माता पिता की अनुपस्थिति में उनकी गतिविधियों पर एक स्नेहपूर्ण दृष्टि भी बनी रहती थी जिस से ऐसी अनहोनी कम घटित होती थीं.ऐसे में माता पिता की जिम्मेदारी इस बात के लिए बढ़ जाती है कि वो अपने युवावस्था में कदम रख चुके बच्चों को ये समझा सकें कि कल्पनाओं से इतर जीवन के कठोर पक्ष को वो  सहजता से स्वीकार सकें.उनको ये समझाना कि छोटी छोटी परेशानियों में आहत होने जैसा कुछ भी नहीं है ना ही शर्मिंदगी वाली कोई बात ज़रूरी नहीं कि जीवन में सब कुछ मन मुताबिक हो.मनोचिकित्सकों की माने तो कई बार ये एक तरह की मानसिक बीमारी भी होती है जिस से युवा इस तरह के कदम उठा लेते हैं.इस तरह का मानसिक विकार आने के बाद अचानक वो अपने को अकेला महसूस करने लगते हैं.खाना पीना भी कम हो जाता है और उन्हें बेचैनी सी रहती है.ऐसे में तुरंत मनोचिकित्सक की राय लेना चाहिए परंतु इसके लिए जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान बना रहे.आज की पीढ़ी का जीवन के प्रति सकारात्मक नज़रिया बनाना बहुत ज़रूरी है तभी इस समस्या से उबर पाना मुमकिन है.

गौरतलब है कि शेक्सपीयर ने भी लिखा है कि-” जीवन अपने निकृष्टतम रूप में भी मृत्यु से बेहतर है.”

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