Latest Hindi Stories : अकेलापन – क्यों सरोज झेल रही थी दर्द

Latest Hindi Stories :  राजेश पिछले शनिवार को अपने घर गए थे लेकिन तेज बुखार के कारण वह सोमवार को वापस नहीं लौटे. आज का पूरा दिन उन्होंने मेरे साथ गुजारने का वादा किया था. अपने जन्मदिन पर उन से न मिल कर मेरा मन सचमुच बहुत दुखी होता.

राजेश को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार किए मुझे करीब 2 साल बीत चुके हैं. उन के दोनों बेटों सोनू और मोनू व पत्नी सरोज से आज मैं पहली बार मिलूंगी.

राजेश के घर जाने से एक दिन पहले हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था वह रास्ते भर मेरे जेहन में गूंजता रहा.

‘मैं शादी कर के घर बसाना चाहती हूं…मां बनना चाहती हूं,’ उन की बांहों के घेरे में कैद होने के बाद मैं ने भावुक स्वर में अपने दिल की इच्छा उन से जाहिर की थी.

‘कोई उपयुक्त साथी ढूंढ़ लिया है?’ उन्होंने मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते हुए छेड़ा.

उन की छाती पर बनावटी गुस्से में कुछ घूंसे मारने के बाद मैं ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हारे साथ घर बसाने की बात कर रही हूं.’

‘धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी दोहराना चाहती हो?’

‘मेरी बात को मजाक में मत उड़ाओ, प्लीज.’

‘निशा, ऐसी इच्छा को मन में क्यों स्थान देती हो जो पूरी नहीं हो सकती,’ अब वह भी गंभीर हो गए.

‘देखिए, मैं सरोज को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी. अपनी पूरी तनख्वाह उसे दे दिया करूंगी. मैं अपना सारा बैंकबैलेंस बच्चों के नाम कर दूंगी… उन्हें पूर्ण आर्थिक सुरक्षा देने…’

उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखा और उदास लहजे में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं कि सरोज को तलाक नहीं दिया जा सकता. मैं चाहूं भी तो ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं.’

‘पर क्यों?’ मैं ने तड़प कर पूछा.

‘तुम सरोज को जानती होतीं तो यह सवाल न पूछतीं.’

‘मैं अपने अकेलेपन को जानने लगी हूं. पहले मैं ने सारी जिंदगी अकेले रहने का मन बना लिया था पर अब सब डांवांडोल हो गया है. तुम मुझे सरोज से ज्यादा चाहते हो?’

‘हां,’ उन्होंने बेझिझक जवाब दिया था.

‘तब उसे छोड़ कर तुम मेरे हो जाओ,’ उन की छाती से लिपट कर मैं ने अपनी इच्छा दोहरा दी.

‘निशा, तुम मेरे बच्चे की मां बनना चाहती हो तो बनो. अगर अकेली मां बन कर समाज में रहने का साहस तुम में है तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा. बस, तुम सरोज से तलाक लेने की जिद मत करो, प्लीज. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा,’ उन की आंखों में आंसू झिलमिलाते देख मैं खामोश हो गई.

सरोज के बारे में राजेश ने मुझे थोड़ी सी जानकारी दे रखी थी. बचपन में मातापिता के गुजर जाने के कारण उसे उस के मामा ने पाला था. 8वीं तक शिक्षा पाई थी. रंग सांवला और चेहरामोहरा साधारण सा था. वह एक कुशल गृहिणी थी. अपने दोनों बेटों में उस की जान बसती थी. घरगृहस्थी के संचालन को ले कर राजेश ने उस के प्रति कभी कोई शिकायत मुंह से नहीं निकाली थी.

सरोज से मुलाकात करने का यह अवसर चूकना मुझे उचित नहीं लगा. इसलिए उन के घर जाने का निर्णय लेने में मुझे ज्यादा कठिनाई नहीं हुई.

राजेश इनकार न कर दें, इसलिए मैं ने उन्हें अपने आने की कोई खबर फोन से नहीं दी थी. उस कसबे में उन का घर ढूंढ़ने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. उस एक- मंजिला साधारण से घर के बरामदे में बैठ कर मैं ने उन्हें अखबार पढ़ते पाया.

मुझे अचानक सामने देख कर वह पहले चौंके, फिर जो खुशी उन के होंठों पर उभरी, उस ने सफर की सारी थकावट दूर कर के मुझे एकदम से तरोताजा कर दिया.

‘‘बहुत कमजोर नजर आ रहे हो, अब तबीयत कैसी है?’’ मैं भावुक हो उठी.

‘‘पहले से बहुत बेहतर हूं. जन्मदिन की शुभकामनाएं. तुम्हें सामने देख कर दिल बहुत खुश हो रहा है,’’ राजेश ने मिलाने के लिए अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.

राजेश से जिस पल मैं ने हाथ मिलाया उसी पल सरोज ने घर के भीतरी भाग से दरवाजे पर कदम रखा.

आंखों से आंखें मिलते ही मेरे मन में तेज झटका लगा.

सरोज की आंखों में अजीब सा भोलापन था. छोटी सी मुसकान होंठों पर सजा कर वह दोस्ताना अंदाज में मेरी तरफ देख रही थी.

जाने क्यों मैं ने अचानक अपने को अपराधी सा महसूस किया. मुझे एहसास हुआ कि राजेश को उस से छीनने के मेरे इरादे को उस की आंखों ने मेरे मन की गहराइयों में झांक कर बड़ी आसानी से पढ़ लिया था.

‘‘सरोज, यह निशा हैं. मेरे साथ दिल्ली में काम करती हैं. आज इन का जन्मदिन भी है. इसलिए कुछ बढि़या सा खाना बना कर इन्हें जरूर खिलाना,’’ हमारा परिचय कराते समय राजेश जरा भी असहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘सोनू और मोनू के लिए हलवा बनाया था. वह बिलकुल तैयार है और मैं अभी आप को खिलाती हूं,’’ सरोज की आवाज में भी किसी तरह का खिंचाव मैं ने महसूस नहीं किया.

‘‘थैंक यू,’’ अपने मन की बेचैनी के कारण मैं कुछ और ज्यादा नहीं कह पाई.

‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कह कर सरोज तेजी से मुड़ी और घर के अंदर चली गई.

राजेश के सामने बैठ कर मैं उन से उन की बीमारी का ब्योरा पूछने लगी. फिर उन्होंने आफिस के समाचार मुझ से पूछे. यों हलकेफुलके अंदाज में वार्तालाप करते हुए मैं सरोज की आंखों को भुला पाने में असमर्थ हो रही थी.

अचानक राजेश ने पूछा, ‘‘निशा, क्या तुम सरोज से अपने और मेरे प्रेम संबंध को ले कर बातें करने का निश्चय कर के यहां आई हो?’’

एकदम से जवाब न दे कर मैं ने सवाल किया, ‘‘क्या तुम ने कभी उसे मेरे बारे में बताया है?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हमारे प्रेम के बारे में जानती है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने अपना फैसला राजेश को बता दिया, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं हो तो मैं सरोज से खुल कर बातें करना चाहूंगी. आगे की जिंदगी तुम से दूर रह कर गुजारने को अब मेरा दिल तैयार नहीं है.’’

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कहूंगा. अब तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ. सरोज चाय लाती ही होगी.’’

राजेश के पुकारने पर सोनू और मोनू दोनों भागते हुए बाहर आए. दोनों बच्चे मुझे स्मार्ट और शरारती लगे. मैं उन से उन की पढ़ाई व शौकों के बारे में बातें करते हुए घर के भीतर चली गई.

घर बहुत करीने से सजा हुआ था. सरोज के सुघड़ गृहिणी होने की छाप हर तरफ नजर आ रही थी.

मेरे मन में उथलपुथल न चल रही होती तो सरोज के प्रति मैं ज्यादा सहज व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करती. वह मेरे साथ बड़े अपनेपन से पेश आ रही थी. उस ने मेरी देखभाल और खातिर में जरा भी कमी नहीं की.

उस की बातचीत का बड़ा भाग सोनू और मोनू से जुड़ा था. उन की शरारतों, खूबियों और कमियों की चर्चा करते हुए उस की जबान जरा नहीं थकी. वे दोनों बातचीत का विषय होते तो उस का चेहरा खुशी और उत्साह से दमकने लगता.

हलवा बहुत स्वादिष्ठ बना था. साथसाथ चाय पीने के बाद सरोज दोपहर के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई.

‘‘सरोज के व्यवहार से तो अब ऐसा नहीं लगता है कि उसे तुम्हारे और मेरे प्रेम संबंध की जानकारी नहीं है,’’ मैं ने अपनी राय राजेश को बता दी.

‘‘सरोज सभी से अपनत्व भरा व्यवहार करती है, निशा. उस के मन में क्या है, इस का अंदाजा उस के व्यवहार से लगाना आसान नहीं,’’ राजेश ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘अपनी 12 सालों की विवाहित जिंदगी में सरोज ने क्या कभी तुम्हें अपने दिल में झांकने दिया है?’’

‘‘कभी नहीं…और यह भी सच है कि मैं ने भी उसे समझने की कोशिश कभी नहीं की.’’

‘‘राजेश, मैं तुम्हें एक संवेदनशील इनसान के रूप में पहचानती हूं. सरोज के साथ तुम्हारे इस रूखे व्यवहार का क्या कारण है?’’

‘‘निशा, तुम मेरी पसंद, मेरा प्यार हो, जबकि सरोज के साथ मेरी शादी मेरे मातापिता की जिद के कारण हुई. उस के पिता मेरे पापा के पक्के दोस्त थे. आपस में दिए वचन के कारण सरोज, एक बेहद साधारण सी लड़की, मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे साथ आ जुड़ी थी. वह मेरे बच्चों की मां है, मेरे घर को चला रही है, पर मेरे दिल में उस ने कभी जगह नहीं पाई,’’ राजेश के स्वर की उदासी मेरे दिल को छू गई.

‘‘उसे तलाक देते हुए तुम कहीं गहरे अपराधबोध का शिकार तो नहीं हो जाओगे?’’ मेरी आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘निशा, तुम्हारी खुशी की खातिर मैं वह कदम उठा सकता हूं पर तलाक की मांग सरोज के सामने रखना मेरे लिए संभव नहीं होगा.’’

‘‘मौका मिलते ही इस विषय पर मैं उस से चर्चा करूंगी.’’

‘‘तुम जैसा उचित समझो, करो. मैं कुछ देर आराम कर लेता हूं,’’ राजेश बैठक से उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं रसोई में सरोज के पास चली आई.

हमारे बीच बातचीत का विषय सोनू और मोनू ही बने रहे. एक बार को मुझे ऐसा भी लगा कि सरोज शायद जानबूझ कर उन के बारे में इसीलिए खूब बोल रही है कि मैं किसी दूसरे विषय पर कुछ कह ही न पाऊं.

घर और बाहर दोनों तरह की टेंशन से निबटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर मुझे देख कर सरोज तनाव, नाराजगी, गुस्से या डर का शिकार बनी होती तो मुझे उस से मनचाहा वार्तालाप करने में कोई असुविधा न महसूस होती.

उस का साधारण सा व्यक्तित्व, उस की बड़ीबड़ी आंखों का भोलापन, अपने बच्चों की देखभाल व घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों के प्रति उस का समर्पण मेरे रास्ते की रुकावट बन जाते.

मेरी मौजूदगी के कारण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का दबाव मुझे नजर नहीं आया. हमारे बीच हो रहे वार्तालाप की बागडोर अधिकतर उसी के हाथों में रही. जो शब्द उस की जिंदगी में भारी उथलपुथल मचा सकते थे वे मेरी जबान तक आ कर लौट जाते.

दोपहर का खाना सरोज ने बहुत अच्छा बनाया था, पर मैं ने बड़े अनमने भाव से थोड़ा सा खाया. राजेश मेरे हावभाव को नोट कर रहे थे पर मुंह से कुछ नहीं बोले. अपने बेटों को प्यार से खाना खिलाने में व्यस्त सरोज हम दोनों के दिल में मची हलचल से शायद पूरी तरह अनजान थी.

कुछ देर आराम करने के बाद हम सब पास के पार्क में घूमने पहुंच गए. सोनू और मोनू झूलों में झूलने लगे. राजेश एक बैंच पर लेटे और धूप का आनंद आंखें मूंद कर लेने लगे.

‘‘आइए, हम दोनों पार्क में घूमें. आपस में खुल कर बातें करने का इस से बढि़या मौका शायद आगे न मिले,’’ सरोज के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मैं मन ही मन चौंक पड़ी.

उस की भोली सी आंखों में झांक कर अपने को उलझन का शिकार बनने से मैं ने खुद को इस बार बचाया और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘सरोज, मैं सचमुच तुम से कुछ जरूरी बातें खुल कर करने के लिए ही यहां आई हूं.’’

‘‘आप की ऐसी इच्छा का अंदाजा मुझे हो चुका है,’’ एक उदास सी मुसकान उस के होंठों पर उभर कर लुप्त हो गई.

‘‘क्या तुम जानती हो कि मैं राजेश से बहुत पे्रम करती हूं?’’

‘‘प्रेम को आंखों में पढ़ लेना ज्यादा कठिन काम नहीं है, निशाजी.’’

‘‘तुम मुझ से नाराज मत होना क्योंकि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

‘‘मैं आप से नाराज नहीं हूं. सच तो यह है कि मैं ने इस बारे में सोचविचार किया ही नहीं है. मैं तो एक ही बात पूछना चाहूंगी,’’ सरोज ने इतना कह कर अपनी भोली आंखें मेरे चेहरे पर जमा दीं तो मैं मन में बेचैनी महसूस करने लगी.

‘‘पूछो,’’ मैं ने दबी सी आवाज में उस से कहा.

‘‘वह 14 में से 12 दिन आप के साथ रहते हैं, फिर भी आप खुश और संतुष्ट क्यों नहीं हैं? मेरे हिस्से के 2 दिन छीन कर आप को कौन सा खजाना मिल जाएगा?’’

‘‘तुम्हारे उन 2 दिनों के कारण मैं राजेश के साथ अपना घर  नहीं बसा सकती हूं, अपनी मांग में सिंदूर नहीं भर सकती हूं,’’ मैं ने चिढ़े से लहजे में जवाब दिया.

‘‘मांग के सिंदूर का महत्त्व और उस की ताकत मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ उस के होंठों पर उभरी व्यंग्य भरी मुसकान ने मेरे अपराधबोध को और भी बढ़ा दिया.

‘‘राजेश सिर्फ मुझे प्यार करते हैं, सरोज. हम तुम्हें कभी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करने देंगे, पर तुम्हें, उन्हें तलाक देना ही होगा,’’ मैं ने कोशिश कर के अपनी आवाज मजबूत कर ली.

‘‘वह क्या कहते हैं तलाक लेने के बारे में?’’ कुछ देर खामोश रह कर सरोज ने पूछा.

‘‘तुम राजी हो तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘मुझे तलाक लेनेदेने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती है, निशाजी. इस बारे में फैसला भी उन्हीं को करना होगा.’’

‘‘वह तलाक चाहेंगे तो तुम शोर तो नहीं मचाओगी?’’

मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए सरोज चलतेचलते रुक गई. उस ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए. इस पल उस से नजर मिलाना मुझे बड़ा कठिन महसूस हुआ.

‘‘निशाजी, अपने बारे में मैं सिर्फ एक बात आप को इसलिए बताना चाहती हूं ताकि आप कभी मुझे ले कर भविष्य में परेशान न हों. मेरे कारण कोई दुख या अपराधबोध का शिकार बने, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘सरोज, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं, पर परिस्थितियां ही कुछ…’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी बात कहना जारी रखा, ‘‘अकेलेपन से मेरा रिश्ता अब बहुत पुराना हो गया है. मातापिता का साया जल्दी मेरे सिर से उठ गया था. मामामामी ने नौकरानी की तरह पाला. जिंदगी में कभी ढंग के संगीसाथी नहीं मिले. खराब शक्लसूरत के कारण पति ने दिल में जगह नहीं दी और अब आप मेरे बच्चों के पिता को उन से छीन कर ले जाना चाहती हैं.

‘‘यह तो कुदरत की मेहरबानी है कि मैं ने अकेलेपन में भी सदा खुशियों को ढूंढ़ निकाला. मामा के यहां घर के कामों को खूब दिल लगा कर करती. दोस्त नहीं मिले तो मिट्टी के खिलौनों, गुडि़या और भेड़बकरियों को अपना साथी मान लिया. ससुराल में सासससुर की खूब सेवा कर उन के आशीर्वाद पाती रही. अब सोनूमोनू के साथ मैं बहुत सुखी और संतुष्ट हूं.

‘‘मेरे अपनों ने और समाज ने कभी मेरी खुशियों की फिक्र नहीं की. अपने अकेलेपन को स्वीकार कर के मैं ने खुद अपनी खुशियां पाई हैं और मैं उन्हें विश्वसनीय मानती हूं. उदासी, निराशा, दुख, तनाव और चिंताएं मेरे अकेलेपन से न कभी जुड़ी हैं और न जुड़ पाएंगी. मेरी जिंदगी में जो भी घटेगा उस का सामना करने को मैं तैयार हूं.’’

मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. राजेश ठीक ही कहते थे कि सरोज से तलाक के बारे में चर्चा करना असंभव था. बिलकुल ऐसा ही अब मैं महसूस कर रही थी.

सरोज के लिए मेरे मन में इस समय सहानुभूति से कहीं ज्यादा गहरे भाव मौजूद थे. मेरा मन उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाने का किया और ऐसा ही मैं ने किया भी.

उस का हाथ पकड़ कर मैं राजेश की तरफ चल पड़ी. मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, पर मन में बहुत कुछ चल रहा था.

सरोज से कुछ छीनना किसी भोले बच्चे को धोखा देने जैसा होगा. अपने अकेलेपन से जुड़ी ऊब, तनाव व उदासी को दूर करने के लिए मुझे सरोज से सीख लेनी चाहिए. उस की घरगृहस्थी का संतुलन नष्ट कर के अपनी घरगृहस्थी की नींव मैं नहीं डालूंगी. अपनी जिंदगी और राजेश से अपने प्रेम संबंध के बारे में मुझे नई दृष्टि से सोचना होगा, यही सबकुछ सोचते हुए मैं ने साफ महसूस किया कि मैं पूरी तरह से तनावमुक्त हो भविष्य के प्रति जोश, उत्साह और आशा प्रदान करने वाली नई तरह की ऊर्जा से भर गई हूं.

Hindi Kahaniyan : दौड़ – क्या निशा के अंदर रवि बदलाव ला पाया

Hindi Kahaniyan : ‘‘नमस्ते, मम्मीजी. कल रात क्या आप सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे?’’ अपनी आवाज में जरा सी मिठास लाते हुए निशा बोली.

‘‘हां, कविता के बेटे मोहित का जन्मदिन था इसलिए हम सब वहां गए थे. लौटने में देर हो गई थी.’’

कविता उस की बड़ी ननद थी. मोहित के जन्मदिन की पार्टी में उसे बुलाया ही नहीं गया, इस विचार ने उस के मूड को और भी ज्यादा खराब कर दिया.

‘‘मम्मी, रवि से बात करा दीजिए,’’ निशा ने जानबूझ कर रूखापन दिखाते हुए पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और अपने पति रवि से बात करने की इच्छा जाहिर की.

‘‘रवि तो बाजार गया है. उस से कुछ कहना हो तो बता दो.’’

‘‘मुझे आफिस में फोन करने को कहिएगा. अच्छा मम्मी, मैं फोन रखती हूं, नमस्ते.’’

‘‘सुखी रहो, बहू,’’ सुमित्रा का आशीर्वाद सुन कर निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन रख दिया.

‘बुढि़या ने यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं…’ गुस्से में बड़बड़ाती निशा अपना पर्स उठाने के लिए बेडरूम की तरफ चल पड़ी.

कैरियर के हिसाब से आज का दिन निशा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व खुशी से भरा था. वह टीम लीडर बन गई है. यह समाचार उसे कल आफिस बंद होने से कुछ ही मिनट पहले मिला था. इसलिए इस खुशी को वह अपने सहकर्मियों के साथ बांट नहीं सकी थी.

आफिस में निशा के कदम रखते ही उसे मुबारकबाद देने वालों की भीड़ लग गई. अपने नए केबिन में टीम लीडर की कुरसी पर बैठते हुए निशा खुशी से फूली नहीं समाई.

रवि का फोन उस के पास 11 बजे के करीब आया. उस समय वह अपने काम में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

‘‘रवि, तुम्हें एक बढि़या खबर सुनाती हूं,’’ निशा ने उत्साही अंदाज में बात शुरू की.

‘‘तुम्हारा प्रमोशन हो गया है न?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ निशा हैरान हो उठी.

‘‘तुम्हारी आवाज की खुशी से मैं ने अंदाजा लगाया, निशा.’’

‘‘मैं टीम लीडर बन गई हूं, रवि. अब मेरी तनख्वाह 35 हजार रुपए हो गई है.’’

‘‘गाड़ी भी मिल गई है. अब तो पार्टी हो जाए.’’

‘‘श्योर, पार्टी कहां लोगे?’’

‘‘कहीं बाहर नहीं. तुम शाम को घर आ जाओ. मम्मी और सीमा तुम्हारी मनपसंद चीजें बना कर रखेंगी.’’

रवि का प्रस्ताव सुन कर निशा का उत्साह ठंडा पड़ गया और उस ने नाराज लहजे में कहा, ‘‘घर में पार्टी का माहौल कभी नहीं बन सकता, रवि. तुम मिलो न शाम को मुझ से.’’

‘‘हमारा मिलना तो शनिवारइतवार को ही होता है, निशा.’’

‘‘मेरी खुशी की खातिर क्या तुम आज नहीं आ सकते हो?’’

‘‘नाराज हो कर निशा तुम अपना मूड खराब मत करो. शनिवार को 3 दिन बाद मिल ही रहे हैं. तब बढि़या सी पार्टी ले लूंगा.’’

‘‘तुम भी रवि, कैसे भुलक्कड़ हो, शनिवार को मैं मेरठ जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी व्यस्त महिला को अपने भाई की शादी याद है, यह वाकई कमाल की बात है.’’

‘‘मुझे ताना मार रहे हो?’’ निशा चिढ़ कर बोली.

‘‘सौरी, मैं ने तो मजाक किया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि मेरठ रविवार की सुबह तक पहुंच जाओगे न?’’

‘‘आप हुक्म करें, साले साहब के लिए जान भी हाजिर है, मैडम.’’

‘‘घर से और कौनकौन आएगा?’’

‘‘तुम जिसे कहो, ले आएंगे. जिसे कहो, छोड़ आएंगे. वैसे तुम शनिवार की रात को पहुंचोगी, इस बात से नवीन या तुम्हारे मम्मीडैडी नाराज तो नहीं होंगे?’’

‘‘मुझे अपने जूनियर्स को टे्रनिंग देनी है. मैं चाह कर भी पहले नहीं निकल सकती हूं.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, भाई की शादी के चक्कर में इनसान को अपनी ड्यूटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘तुम कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझ सके,’’ निशा फिर चिढ़ उठी, ‘‘मैं अपने कैरियर को बड़ी गंभीरता से लेती हूं, रवि.’’

‘‘निशा, मैं फोन रखता हूं. आज तुम मेरे मजाक को सहन करने के मूड में नहीं हो. ओके, बाय.’’

रवि और निशा ने एम.बी.ए. साथसाथ एक ही कालिज से किया था. दोनों के बीच प्यार का बीज भी उन्हीं दिनों में अंकुरित हुआ.

रवि ने बैंक में पी.ओ. की परीक्षा पास कर के नौकरी पा ली और निशा ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में. करीब 2 साल पहले दोनों ने घर वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया.

दुलहन बन कर निशा रवि के परिवार में आ गई. वहां के अनुशासन भरे माहौल में उस का मन शुरू से नहीं लगा. टोकाटाकी के अलावा उसे एक बात और खलती थी. दोनों अच्छा कमाते हुए भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे.

उन दोनों की ज्यादा कमाई होने के कारण हर जिम्मेदारी निभाने का आर्थिक बोझ उन के ही कंधों पर था. निशा इन बातों को ले कर चिढ़ती तो रवि उसे प्यार से समझाता, ‘हम दोनों बड़े भैया व पिताजी से ज्यादा समर्थ हैं, इसलिए इन जिम्मेदारियों को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए. अगर हम सब की खुशियों और घर की समृद्धि को बढ़ा नहीं सकते हैं तो हमारे ज्यादा कमाने का फायदा क्या हुआ? मैडम, पैसा उपयोग करने के लिए होता है, सिर्फ जोड़ने के लिए नहीं. एकसाथ मिलजुल कर हंसीखुशी से रहने में ही फायदा है, निशा. सब से अलगथलग हो कर अमीर बनने में कोई मजा नहीं है.’

निशा कभी भी रवि के इस नजरिये से सहमत नहीं हुई. ससुराल में उसे अपना दम घुटता सा लगता. किसी का व्यवहार उस के प्रति खराब नहीं था पर वह उस घर में असंतोष व शिकायत के भाव से रहती. उस का व रवि का शोषण हो रहा है, यह विचार उसे तनावग्रस्त बनाए रखता.

निशा को जब कंपनी से 2 बेडरूम वाला फ्लैट मिलने की सुविधा मिली तो उस ने ससुराल छोड़ कर वहां जाने को फौरन ‘हां’ कर दी. अपना फैसला लेने से पहले उस ने रवि से विचारविमर्श भी नहीं किया क्योंकि उसे पति के मना कर देने का डर था.

फ्लैट में अलग जा कर रहने के लिए रवि बिलकुल तैयार नहीं हुआ. वह बारबार निशा से यही सवाल पूछता कि घर से अलग होने का हमारे पास कोई खास कारण नहीं है. फिर हम ऐसा क्यों करें?

‘मुझे रोजरोज दिल्ली से गुड़गांव जाने में परेशानी होती है. इस के अलावा सीनियर होने के नाते मुझे आफिस में ज्यादा समय देना चाहिए और ज्यादा समय मैं गुड़गांव में रह कर ही दे सकती हूं.’

निशा की ऐसी दलीलों का रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था.

अंतत: निशा ने अपनी जिद पूरी की और कंपनी के फ्लैट में रहने चली गई. उस के इस कदम का विरोध मायके और ससुराल दोनों जगह हुआ पर उस ने किसी की बात नहीं सुनी.

रवि की नाराजगी, उदासी को अनदेखा कर निशा गुड़गांव रहने चली गई.

रवि सप्ताह में 2 दिन उस के साथ गुजारता. निशा कभीकभार अपनी ससुराल वालों से मिलने आती. सच तो यह था कि अपना कैरियर बेहतर बनाने के चक्कर में उसे कहीं ज्यादा आनेजाने का समय ही नहीं मिलता.

अच्छा कैरियर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को निशा ने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया. अपने छोटे भाई नवीन की शादी में वह सिर्फ एक रात पहले पहुंचेगी, इस बात का भी उसे कोई खास अफसोस नहीं था. अपने मातापिता व भाई की शिकायत को उस ने फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ कर नजरअंदाज कर दिया.

‘‘शादी में हमारे मेरठ पहुंचने की चिंता मत करो, निशा. आफिस के किसी काम में अटक कर तुम और ज्यादा देर से मत पहुंचना,’’ रवि के मोबाइल पर उस ने जब भी फोन किया, रवि से उसे ऐसा ही जवाब सुनने को मिला.

शनिवार की शाम निशा ने टैक्सी की और 8 बजे तक मेरठ अपने मायके पहुंच गई. अब तक छिपा कर रखी गई प्रमोशन की खबर सब को सुनाने के लिए वह बेताब थी. अपने साथ बढि़या मिठाई का डब्बा वह सब का मुंह मीठा कराने के लिए लाई थी. उस के पर्स में प्रमोशन का पत्र पड़ा था जिसे वह सब को दिखा कर उन की वाहवाही लूटने को उत्सुक थी.

टैक्सी का किराया चुका कर निशा ने अपनी छोटी अटैची खुद उठाई और गेट खोल कर अंदर घुस गई.

घर में बड़े आकार वाले ड्राइंगरूम को खाली कर के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. तेज गति के धमाकेदार संगीत के साथ कई लोगों के हंसनेबोलने की आवाजें भी निशा के कानों तक पहुंचीं.

निशा ने मुसकराते हुए हाल में कदम रखा और फिर हैरानी के मारे ठिठक गई. वहां का दृश्य देख कर उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

निशा ने देखा मां बड़े जोश के साथ ढोलक बजा रही थीं. तबले पर ताल बजाने का काम उस की सास कर रही थीं.

रवि मंजीरे बजा रहा था और भाई नवीन ने चिमटा संभाल रखा था. किसी बात पर दोनों हंसी के मारे ऐसे लोटपोट हुए जा रहे थे कि उन की ताल बिलकुल बिगड़ गई थी.

उस की छोटी ननद सीमा मस्ती से नाच रही थी और महल्ले की औरतें तालियां बजा रही थीं. उन में उस की जेठानी अर्चना भी शामिल थी. अचानक ही रवि की 5 वर्षीय भतीजी नेहा उठ कर अपनी सीमा बूआ के साथ नाचने लगी. एक तरफ अपने ससुर, जेठ व पिता को एकसाथ बैठ कर गपशप करते देखा. अपनी ससुराल के हर एक सदस्य को वहां पहले से उपस्थित देख निशा हैरान रह गई.

उन के पड़ोस में रहने वाली शीला आंटी की नजर निशा पर सब से पहले पड़ी. उन्होंने ऊंची आवाज में सब को उस के पहुंचने की सूचना दी तो कुछ देर के लिए संगीत व नृत्य बंद कर दिया गया.

लगभग हर व्यक्ति से निशा को देर से आने का उलाहना सुनने को मिला.

मौका मिलते ही निशा ने रवि से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘आप सब लोग यहां कब पहुंचे?’’

‘‘हम तो परसों सुबह ही यहां आ गए थे,’’ रवि ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

निशा ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, ‘‘इतनी जल्दी क्यों आए? मुझे बताया क्यों नहीं?’’

रवि ने सहज भाव से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारी मम्मी ने 3 दिन पहले मुझ से फोन पर बात की थी. उन की बातों से मुझे लगा कि वह बहुत उदास हैं. उन्हें बेटे के ब्याह के घर में कोई रौनक नजर नहीं आ रही थी. तुम्हारे जल्दी न आ सकने की शिकायत को दूर करने के लिए ही मैं ने उन से सब के साथ यहां आने का वादा कर लिया और परसों से यहीं जम कर खूब मौजमस्ती कर रहे हैं.’’

‘‘सब को यहां लाना मुझे अजीब सा लग रहा है,’’ निशा की चिढ़ अपनी जगह बनी रही.

‘‘ऐसा करने के लिए तुम्हारे मम्मीपापा व भाई ने बहुत जोर दिया था.’’

निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और मां से अपनी शिकायत करने रसोई की तरफ चल पड़ी.

मां बेटी की शिकायत सुनते ही उत्तेजित लहजे में बोलीं, ‘‘तेरी ससुराल वालों के कारण ही यह घर शादी का घर लग रहा है. तू तो अपने काम की दीवानी बन कर रह गई है. हमें वह सभी बड़े पसंद हैं और उन्हें यहां बुलाने का तुम्हें भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जो लोग तुम्हारी बेटी को प्यार व मानसम्मान नहीं देते, तुम सब उन से…’’

बेटी की बात को बीच में काट कर मां बोलीं, ‘‘निशा, तुम ने जैसा बोया है वैसा ही तो काटोगी. अब बेकार के मुद्दे उठा कर घर के हंसीखुशी के माहौल को खराब मत करो. तुम से कहीं ज्यादा इस शादी में तुम्हारी ससुराल वाले हमारा हाथ बंटा रहे हैं और इस के लिए हम दिल से उन के आभारी हैं.’’

मां की इन बातों से निशा ने खुद को अपमानित महसूस किया. उस की पलकें गीली होने लगीं तो वह रसोई से निकल कर पीछे के बरामदे में आ गई.

कुछ समय बाद रवि भी वहां आ गया और पत्नी को इस तरह चुपचाप आंसू बहाते देख उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो निशा उस के सीने से लग कर फफक पड़ी.

रवि ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘तुम अपने भाई की शादी का पूरा लुत्फ उठाओ, निशा. व्यर्थ की बातों पर ध्यान देने की क्या जरूरत है तुम्हें.’’

‘‘मेरी खुशी की फिक्र न मेरे मायके वालों को है न ससुराल वालों को. सभी मुझ से जलते हैं… मुझे अलगथलग रख कर नीचा दिखाते हैं. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा है,’’ निशा ने सुबकते हुए सवाल किया.

‘‘तुम क्या सचमुच अपने सवाल का जवाब सुनना चाहोगी?’’ रवि गंभीर हो गया.

निशा ने गरदन हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘देखो निशा, अपने कैरियर को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हो. तुम्हारे लक्ष्य बहुत ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. आपसी रिश्ते तुम्हारे लिए ज्यादा माने नहीं रखते. तुम्हारी सारी ऊर्जा कैरियर की राह पर बहुत तेजी से दौड़ने में लग रही है…तुम इतना तेज दौड़ रही हो… इतनी आगे निकलती जा रही हो कि अकेली हो गई हो… दौड़ में सब से आगे, पर अकेली,’’ रवि की आवाज कुछ उदास हो गई.

‘‘अच्छा कैरियर बनाने का और कोई रास्ता नहीं है, रवि,’’ निशा ने दलील दी.

‘‘निशा, कैरियर जीवन का एक हिस्सा है और उस से मिलने वाली खुशी अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली खुशियों के महत्त्व को कम नहीं कर सकती. हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास न हो तो अकेलापन, तनाव, निराशा, दुख और अशांति से हम कभी छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’’

‘‘मुझे क्या करना चाहिए? अपने अंदर क्या बदलाव लाना होगा?’’ निशा ने बेबस अंदाज में पूछा.

‘‘जो पैर कैरियर बनाने के लिए तेज दौड़ सकते हैं वे सब के साथ मिल कर नाच भी सकते हैं…किसी के हमदर्द भी बन सकते हैं. जरूरत है बस, अपना नजरिया बदलने की…अपने दिमाग के साथसाथ अपने दिल को भी सक्रिय कर लोगों का दिल जीतने की,’’ अपनी सलाह दे कर रवि ने उसे अपनी छाती से लगा लिया.

निशा ने पति की बांहों के घेरे में बड़ी शांति महसूस की. रवि का कहा उस के दिल में कहीं बड़ी गहराई तक उतर गया. अपने नजदीकी लोगों से अपने संबंध सुधारने की इच्छा उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

‘‘मैं बहुत दिनों से मस्त हो कर नाची नहीं हूं. आज कर दूं जबरदस्त धूमधड़ाका यहां?’’ निशा की मुसकराहट रवि को बहुत ताजा व आकर्षक लगी.

रवि ने प्यार से उस का माथा चूमा और हाथ पकड़ कर हाल की तरफ चल दिया. उसे साफ लगा कि पिछले चंद मिनटों में निशा के अंदर जो जबरदस्त बदलाव आया है वह उन दोनों के सुखद भविष्य की तरफ इशारा कर रहा था.

Famous Hindi Stories : खड़ूस मकान मालकिन – क्या था आंटी का सच

Famous Hindi Stories : ‘‘साहबजी, आप अपने लिए मकान देख रहे हैं?’’ होटल वाला राहुल से पूछ रहा था. पिछले 2 हफ्ते से राहुल एक धर्मशाला में रह रहा था. दफ्तर से छुट्टी होने के बाद वह मकान ही देख रहा था. उस ने कई लोगों से कह रखा था. होटल वाला भी उन में से एक था. होटल का मालिक बता रहा था कि वेतन स्वीट्स के पास वाली गली में एक मकान है, 2 कमरे का. बस, एक ही कमी थी… उस की मकान मालकिन.

पर होटल वाले ने इस का एक हल निकाला था कि मकान ले लो और साथ में दूसरा मकान भी देखते रहो. उस मकान में कोई 2 महीने से ज्यादा नहीं रहा है.

‘‘आप मकान बता रहे हो या डरा रहे हो?’’ राहुल बोला, ‘‘मैं उस मकान को देख लूंगा. धर्मशाला से तो बेहतर ही रहेगा.’’

अगले दिन दफ्तर के बाद राहुल अपने एक दोस्त प्रशांत के साथ मकान देखने चला गया. मकान उसे पसंद था, पर मकान मालकिन ने यह कह कर उस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया कि रात को 10 बजे के बाद गेट नहीं खुलेगा.

राहुल ने सोचा, ‘मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर देर रात हो जाती है…’ वह बोला, ‘‘आंटी, मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर रात को देर हो सकती है.’’

‘‘ठीक है बेटा,’’ आंटी बोलीं, ‘‘अगर पसंद न हो, तो कोई बात नहीं.’’

राहुल कुछ देर खड़ा रहा और बोला, ‘‘आंटी, आप उस हिस्से में एक गेट और लगवा दो. उस की चाबी मैं अपने पास रख लूंगा.’’

आंटी ने अपनी मजबूरी बता दी, ‘‘मेरे पास खर्च करने के लिए एक भी पैसा नहीं है.’’

राहुल ने गेट बनाने का सारा खर्च खुद उठाने की बात की, तो आंटी राजी हो गईं. इस के साथ ही उस ने झगड़े की जड़ पानी और बिजली के कनैक्शन भी अलग करवा लिए. दोनों जगहों के बीच दीवार खड़ी करवा दी. उस में दरवाजा भी बनवा दिया, लेकिन दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ.

सारा काम पूरा हो जाने के बाद राहुल मकान में आ गया. उस ने मकान मालकिन द्वारा कही गई बातों का पालन किया. राहुल दिन में अपने मकान में कम ही रहता था. खाना भी वह होटल में ही खाता था. हां, रात में वह जरूर अपने कमरे पर आ जाता था. उस के हिस्से में ‘खटखट’ की आवाज से आंटी को पता चल जाता और वे आवाज लगा कर उस के आने की तसल्ली कर लेतीं.

उन आंटी का नाम प्रभा देवी था. वे अकेली रहती थीं. उन की 2 बेटियां थीं. दोनों शादीशुदा थीं. आंटी के पति की मौत कुछ साल पहले ही हुई थी. उन की मौत के बाद वे दोनों बेटियां उन को अपने साथ रखने को तैयार थीं, पर वे खुद ही नहीं रहना चाहती थीं. जब तक शरीर चल रहा है, तब तक क्यों उन के भरेपूरे परिवार को परेशान करें.

अपनी मां के एक फोन पर वे दोनों बेटियां दौड़ी चली आती थीं. आंटी और उन के पति ने मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार को पाला था. उन के पास अब केवल यह मकान ही बचा था, जिस को किराए पर उठा कर उस से मिले पैसे से उन का खर्च चल जाता था.

एक हिस्से में आंटी रहती थीं और दूसरे हिस्से को वे किराए पर उठा देती थीं. पर एक मजदूर के पास मजदूरी से इतना बड़ा मकान नहीं हो सकता. पतिपत्नी दोनों ने खूब मेहनत की और यहां जमीन खरीदी. धीरेधीरे इतना कर लिया कि मकान के एक हिस्से को किराए पर उठा कर आमदनी का एक जरीया तैयार कर लिया था.

राहुल अपने मांबाप का एकलौता बेटा था. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. नौकरी पर वह यहां आ गया और आंटी का किराएदार बन गया. दोनों ही अकेले थे. धीरेधीरे मांबेटे का रिश्ता बन गया.

घर के दोनों हिस्सों के बीच का दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ. हमेशा खुला रहा. राहुल को कभी ऐसा नहीं लगा कि आंटी गैर हैं. आंटी के बारे में जैसा सुना था, वैसा उस ने नहीं पाया. कभीकभी उसे लगता कि लोग बेवजह ही आंटी को बदनाम करते रहे हैं या राहुल का अपना स्वभाव अच्छा था, जिस ने कभी न करना नहीं सीखा था. आंटी जो भी कहतीं, उसे वह मान लेता.

आंटी हमेशा खुश रहने की कोशिश करतीं, पर राहुल को उन की खुशी खोखली लगती, जैसे वे जबरदस्ती खुश रहने की कोशिश कर रही हों. उसे लगता कि ऐसी जरूर कोई बात है, जो आंटी को परेशान करती है. उसे वे किसी से बताना भी नहीं चाहती हैं. उन की बेटियां भी अपनी मां की समस्या किसी से नहीं कहती थीं.

वैसे, दोनों बेटियों से भी राहुल का भाईबहन का रिश्ता बन गया था. उन के बच्चे उसे ‘मामामामा’ कहते नहीं थकते थे. फिर भी वह एक सीमा से ज्यादा आगे नहीं बढ़ता था. लोग हैरान थे कि राहुल अभी तक वहां कैस टिका हुआ है.

आज रात राहुल जल्दी घर आ गया था. एक बार वह जा कर आंटी से मिल आया था, जो एक नियम सा बन गया था. जब वह देर से घर आता था, तब यह नियम टूटता था. हां, तब आंटी अपने कमरे से ही आवाज लगा देती थीं.

रात के 11 बज रहे थे. राहुल ने सुना कि आंटी चीख रही थीं, ‘मेरा बच्चा… मेरा बच्चा… वह मेरे बच्चे को मुझ से छीन नहीं सकता…’ वे चीख रही थीं और रो भी रही थीं.

पहले तो राहुल ने इसे अनदेखा करने की कोशिश की, पर आंटी की चीखें बढ़ती ही जा रही थीं. इतनी रात को आंटी के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी, भले ही उन के बीच मांबेटे का अनकहा रिश्ता बन गया था.

राहुल ने अपने दोस्त प्रशांत को फोन किया और कहा, ‘‘भाभी को लेता आ.’’

थोड़ी देर बाद प्रशांत अपनी बीवी को साथ ले कर आ गया. आंटी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. यह उन के लिए हैरानी की बात थी. तीनों अंदर घुसे. राहुल सब से आगे था. उसे देखते ही पलंग पर लेटी आंटी चीखीं, ‘‘तू आ गया… मुझे पता था कि तू एक दिन जरूर अपनी मां की चीख सुनेगा और आएगा. उन्होंने तुझे छोड़ दिया. आ जा बेटा, आ जा, मेरी गोद में आ जा.’’

राहुल आगे बढ़ा और आंटी के सिर को अपनी गोद में ले कर सहलाने लगा. आंटी को बहुत अच्छा लग रहा था. उन को लग रहा था, जैसे उन का अपना बेटा आ गया. धीरेधीरे वे नौर्मल होने लगीं.

प्रशांत और उस की बीवी भी वहीं आ कर बैठ गए. उन्होंने आंटी से पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने टाल दिया. वे राहुल की गोद में ही सो गईं. उन की नींद को डिस्टर्ब न करने की खातिर राहुल बैठा रहा.

थोड़ी देर बाद प्रशांत और उस की बीवी चले गए. राहुल रातभर वहीं बैठा रहा. सुबह जब आंटी ने राहुल की गोद में अपना सिर देखा, तो राहुल के लिए उन के मन में प्यार हिलोरें मारने लगा. उन्होंने उस को चायनाश्ता किए बिना जाने नहीं दिया.

राहुल ने दफ्तर पहुंच कर आंटी की बड़ी बेटी को फोन किया और रात में जोकुछ घटा, सब बता दिया. फोन सुनते ही बेटी शाम तक घर पहुंच गई. उस बेटी ने बताया, ‘‘जब मेरी छोटी बहन 5 साल की हुई थी, तब हमारा भाई लापता हो गया था. उस की उम्र तब 3 साल की थी. मांबाप दोनों काम पर चले गए थे.

‘‘हम दोनों बहनें अपने भाई के साथ खेलती रहतीं, लेकिन एक दिन वह खेलतेखेलते घर से बाहर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया. ‘‘उस समय बच्चों को उठा ले जाने वाले बाबाओं के बारे में हल्ला मचा हुआ था. यही डर था कि उसे कोई बाबा न उठा ले गया हो.

‘‘मां कभीकभी हमारे भाई की याद में बहक जाती हैं. तभी वे परेशानी में अपने बेटे के लिए रोने लगती हैं.’’ आंटी की बड़ी बेटी कुछ दिन वहीं रही. बड़ी बेटी के जाने के बाद छोटी बेटी आ गई. आंटी को फिर कोई दौरा नहीं पड़ा.

2 दिन हो गए आंटी को. राहुल नहीं दिखा. ‘खटखट’ की आवाज से उन को यह तो अंदाजा था कि राहुल यहीं है, लेकिन वह अपनी आंटी से मिलने क्यों नहीं आया, जबकि तकरीबन रोज एक बार जरूर वह उन से मिलने आ जाता था. उस के मिलने आने से ही आंटी को तसल्ली हो जाती थी कि उन के बेटे को उन की फिक्र है. अगर वह बाहर जाता, तो कह कर जाता, पर उस के कमरे की ‘खटखट’ बता रही थी कि वह यहीं है. तो क्या वह बीमार है? यही देखने के लिए आंटी उस के कमरे पर आ गईं.

राहुल बुखार में तप रहा था. आंटी उस से नाराज हो गईं. उन की नाराजगी जायज थी. उन्होंने उसे डांटा और बोलीं, ‘‘तू ने अपनी आंटी को पराया कर दिया…’’ वे राहुल की तीमारदारी में जुट गईं. उन्होंने कहा, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारे मांबाप जब तक आएंगे, तब तक हम ही तेरे अपने हैं.’’

राहुल के ठीक होने तक आंटी ने उसे कोई भी काम करने से मना कर दिया. उसे बाजार का खाना नहीं खाने दिया. वे उस का खाना खुद ही बनाती थीं.

राहुल को वहां रहते तकरीबन 9 महीने हो गए थे. समय का पता ही नहीं चला. वह यह भी भूल गया कि उस का जन्मदिन नजदीक आ रहा है. उस की मम्मी सविता ने फोन पर बताया था, ‘हम दोनों तेरा जन्मदिन तेरे साथ मनाएंगे. इस बहाने तेरा मकान भी देख लेंगे.’

आज राहुल की मम्मी सविता और पापा रामलाल आ गए. उन को चिंता थी कि राहुल एक अनजान शहर में कैसे रह रहा है. वैसे, राहुल फोन पर अपने और आंटी के बारे में बताता रहता था और कहता था, ‘‘मम्मी, मुझे आप जैसी एक मां और मिल गई हैं.’’

फोन पर ही उस ने अपनी मम्मी को यह भी बताया था, ‘‘मकान किराए पर लेने से पहले लोगों ने मुझे बहुत डराया था कि मकान मालकिन बहुत खड़ूस हैं. ज्यादा दिन नहीं रह पाओगे. लेकिन मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं देखा.’’ तब उस की मम्मी बोली थीं, ‘बेटा, जब खुद अच्छे तो जग अच्छा होता है. हमें जग से अच्छे की उम्मीद करने से पहले खुद को अच्छा करना पड़ेगा. तेरी अच्छाइयों के चलते तेरी आंटी भी बदल गई हैं,’ अपने बेटे के मुंह से आंटी की तारीफ सुन कर वे भी उन से मिलने को बेचैन थीं.

राहुल मां को आंटी के पास बैठा कर अपने दफ्तर चला गया. दोनों के बीच की बातचीत से जो नतीजा सामने आया, वह हैरान कर देने वाला था.

राहुल के लिए तो जो सच सामने आया, वह किसी बम धमाके से कम नहीं था. उस की आंटी जिस बच्चे के लिए तड़प रही थीं, वह खुद राहुल था. मां ने अपने बेटे को उस की आंटी की सचाई बता दी और बोलीं, ‘‘बेटा, ये ही तेरी मां हैं. हम ने तो तुझे एक बाबा के पास देखा था. तू रो रहा था और बारबार उस के हाथ से भागने की कोशिश कर रहा था. हम ने तुझे उस से छुड़ाया. तेरे मांबाप को खोजने की कोशिश की, पर वे नहीं मिले.

‘‘हमारा खुद का कोई बच्चा नहीं था. हम ने तुझे पाला और पढ़ाया. जिस दिन तू हमें मिला, हम ने उसी दिन को तेरा जन्मदिन मान लिया. अब तू अपने ही घर में है. हमें खुशी है कि तुझे तेरा परिवार मिल गया.’’ राहुल बोला, ‘‘आप भी मेरी मां हैं. मेरी अब 2-2 मांएं हैं.’’ इस के बाद घर के दोनों हिस्से के बीच की दीवार टूट गई.

लेखक- अभय कृष्ण गुप्ता

Interesting Hindi Story : रिश्ता दोस्ती का

Interesting Hindi Story : औफिस में लंच के समय श्वेता ने व्हाट्सऐप संदेश देखा ‘‘आज शाम 6 बजे,’’ श्वेता ने तुरंत उत्तर दे दिया. ‘‘ठीक है,’’ औफिस से 6 बजे श्वेता नीचे उतरी, इंद्रनील उस का इंतजार कर रहा था. दोनों पैदल समीप के मौल की ओर बातें करते हुए चल दिए जहां कौफीहाउस में एक कोने की सीट पर बैठ कर कौफी पीने लगे. इंद्रनील आज चुप था, वह श्वेता की ओर न देख कर विपरीत दिशा में देख रहा था.

‘‘क्या बात है इंद्रनील, उधर क्या देख रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही.’’

‘‘चुप भी हो?’’

श्वेता के पूछने पर इंद्रनील चुप रहा.

‘‘कौफी भी नहीं पी रहे हो. टकटकी लगा कर उधर देखे जा रहे हो. कौन है वहां?’’

इंद्रनील ने अब श्वेता की ओर देखा और धीरे से कहा ‘‘श्वेता अब विदा होने का समय आ गया है.’’

‘‘समझी नहीं?’’

‘‘मैं दिल्ली छोड़ कर वापस कोलकाता जा रहा हूं,’’ इंद्रनील ने श्वेता की ओर पहली बार देखते हुए कहा.

‘‘क्या सदा के लिए?’’ श्वेता कुछ उदास हो गई.

‘‘हां तभी तुम से कह रहा हूं. शायद आज अंतिम बार मिलना हो, मैं कुल सुबह कोलकाता रवाना हो रहा हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां सब अचानक से हो गया और निर्णय भी तुरंत ही लेना पड़ा.’’

‘‘श्वेता मैं ने नौकरी छोड़ दी है. आज मेरा अंतिम दिन था. सब को अलविदा कहा. बिना तुम से मिले कैसे जा सकता हूं. एक तुम ही तो हो जिस के साथ हर सुख और दुख सांझा किया है.’’

‘‘पहले बता देते?’’ श्वेता के इस प्रश्न पर इंद्रनील भावुक हो गया.

‘‘बस 10-12 दिनों में घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि तुम से बात नहीं कर सका.’’

‘‘कुछ बताओ, दिल पर पड़ा बोझ हलका हो जाएगा,’’ श्वेत ने इंद्रनील से कहा.

‘‘श्वेता पिछले महीने श्यामली की मृत्यु हो गई.’’

‘‘तुम ने बताया ही नहीं?’’

‘‘मुझे भी नहीं मालूम था. कोई 12 दिन पहले श्यामली की चाची ने अस्पताल में दोनों बच्चों सुब्रता और सांवली को मेरी मां के हवाले कर दिया. बच्चों की खातिर ही दिल्ली छोड़ कोलकाता जा रहा हूं,’’ कह कर इंद्रनील चुप हो गया.

इंद्रनील और श्वेता कौफी के घूंट पीते हुए अतीत में चले गए… श्वेता और इंद्रनील पिछले लगभग 10 वर्षों से मित्र हैं. दोनों की उम्र लगभग 40 के आसपास है. श्वेता 10 वर्ष पहले जब औफिस में काम करने पहली बार आईर् थी तब इंद्रनील के साथ वाली सीट पर बैठ कर काम करना आरंभ किया. साथसाथ बैठ कर काम करतेकरते दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए. दोनों में एक बात समान थी कि दोनों उस समय तलाकशुदा थे.

श्वेता का एक 4 वर्ष का पुत्र जिस का नाम शौर्य था और अपने मातापिता के संग रह रही थी. इंद्रनील कोलकाता का रहने वाला था और वह भी तलाकशुदा था उस के 2 बच्चे थे 4 वर्षीय पुत्र सुब्रता और 2 वर्षीय पुत्री सांवली. तलाक के समय छोटे बच्चों की परवरिश मां को मिली. इंद्रनील कोलकाता से दिल्ली आ गया.

कभीकभी जब कोलकाता जाता तब बच्चों से मिलता. शुरूशुरू में बच्चों से मिलना लगा रहा फिर बच्चे भी कभीकभी मिलने वाले पिता से घुलमिल नहीं सके और इंद्रनील ने बच्चों से मिलना छोड़ दिया.

कुछ यही हाल श्वेता का भी था. वह शौर्य को अपने पिता के साए से दूर रखना चाहती थी और 2 वर्ष बाद दूर हो ही गया. श्वेता की समस्या उस का पुत्र था जिस कारण उस का दूसरा विवाह नहीं हुआ. उस के मातापिता तो दूसरा विवाह चाहते थे, लेकिन सामाजिक बेडि़यों ने एक बच्चे वाली मां का दूसरा विवाह नहीं होने दिया. इंद्रनील ने एक बार दूसरा विवाह करने की सोची, लेकिन पुराने कटु अनुभव ने उसे रोक लिया.

10 मिनट बाद पुरानी यादों के चलते नम आंखों के साथ वर्तमान में आ गए और  कौफीहाउस से बाहर मौल में चहलकदमी करने लगे. एक दुकान के अंदर श्वेता इंद्रनील के लिए शर्ट पसंद करने लगी और इंद्रनील श्वेता के लिए साड़ी पसंद करने लगा. एकदूसरे के लिए शायद अंतिम उपहार उन दोनों ने खरीदा था. आज कोई बात नहीं हो रही थी सिर्फ एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर दिल की बात कह और सुन रहे थे. मौल से बाहर आने पर श्वेता ने शर्ट का पैकेट इंद्रनील को दिया, ‘‘इंद्र फिर कब मिलना होगा?’’

इंद्रनील ने साड़ी का पैकेट श्वेता को देते हुए जवाब दिया, ‘‘मुझे स्वयं नहीं मालूम… फोन करूंगा.’’

बाय कह कर इंद्रनील और श्वेता अपनेअपने घर की ओर चल दिए. इंद्रनील ने सुबह की गाड़ी पकड़नी थी, इसलिए उस ने सारा सामान पैक कर रखा था, लेकिन उस की आंखों से नींद नदारद थी… 10 वर्ष से उस की श्वेता से पहचान है. श्वेता से वह औफिस में ही मिलता था और औफिस से बाहर सिनेमा भी देखते थे, मौल भी घूमते थे और अकसर इंडिया गेट के लौन या पुराना किला के अंदर दीवार के साथ बैठ कर बातें करते थे.

इंद्रनील किराए के कमरे में रहता था और कभी भी श्वेता को अपने कमरे में ले कर नहीं गया. वह श्वेता पर किसी भी तरह का लांछन नहीं लगने देना चाहता था उस का मकान मालिक या पड़ोसी श्वेता और उस के रिश्ते पर कोई उंगली उठाए. ठीक उसी तरह वह कभी भी श्वेता के घर नहीं गया कि कहीं श्वेता का परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी उन की मित्रता को गलत समझें.

इन 10 वर्षों में उन दोनों का रिश्ता सिर्फ भावनात्मक ही रहा. वे दोनों कभी भी नहीं बहके और लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघे. औफिस में उन की नजदीकियों पर सहकर्मी उपहास करते थे, लेकिन यह अधिक समय नहीं रहा क्योंकि 1 वर्र्ष बाद इंद्रनील ने नौकरी बदल ली और औफिस के बाद या अवकाश के समय ही मिलते थे. 10 वर्षों में इंद्रनील और श्वेता ने कई नौकरियां बदलीं, लेकिन एक अनोखा भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता गया.

श्वेता की भी नींद नदारद थी. वह इंद्रनील के बारे में सोचती रही कि दोनों एकदूसरे के नजदीक होते हुए भी दूर रहे. एक खयालात, एक सोच लेकिन एक नहीं हुए. पिछले 10 वर्षों से वे दोनों कहें तो दोहरी जिंदगी जी रहे थे.

इंद्रनील कोलकाता चला गया और श्वेता औफिस के बाद उदास रहने  लगी. पुत्र शौर्य अब 14 वर्ष का हो गया है और पढ़ाई के साथ खेल में व्यस्त रहने लगा है. श्वेता रात को इंद्रनील के बारे में ही सोचती रहती और इंद्रनील श्वेता के बारे में सोचता रहता. इंद्रनील का पुत्र सुब्रता भी अब 14 वर्ष और पुत्री सांवली 12 की हो गई. इंद्रनील कई वर्षों से बच्चों से नहीं मिला था. तलाक के बाद श्यामली अपने मातापिता के संग रह रही थी, लेकिन वे श्यामली से पहले ही दुनिया से कूच कर चुके थे.

श्मामली की मृत्यु पर दोनों बच्चे अकेले रह गए. सड़क दुर्घटना के बाद अस्पताल में श्यामली ने अपने सासससुर को संदेश भिजवाया और बच्चों को अस्पताल में दादादादी को सुपुर्द कर के दुनिया छोड़ गई. मातापिता से सूचना मिलने पर इंद्रनील कोलकाता चला गया. अंतिम समय में श्यामली की आर्थिक स्थिति दयनीय थी और बहुत मुश्किल से गुजरबसर हो रहा था. स्कूल की फीस भी नहीं भरी थी.

इंद्रनील सोचने लगा कि  10 वर्ष पूर्व श्यामली ने तलाक पर एक मुश्त 10 लाख रुपए की रकम ली थी, यदि वह उस रकम को बैंक में फिक्स्ड डिपौजिट पर रखती तब आज इतनी दयनीय स्थिति नहीं होती.

इंद्रनील की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. बच्चे उस के पास थे, लेकिन सहमे हुए क्योंकि वर्षों बाद अपने पिता से मिल रहे थे जिस की उन के मानसपटल पर कोई स्मृति शेष नहीं थी. इंद्रनील ने सब से पहले बच्चों की स्कूल फीस भरी और उन को स्कूल भेजना शुरू किया. श्यामली ने सड़क दुर्घटना के पश्चात अस्पताल में बच्चों को उन के पिता के बारे में बताया और दादादादी के सुपुर्द किया.

कोलकाता आए इंद्रनील को  1 महीना हो  गया. इस 1 महीने में श्वेता और इंद्रनील के बीच कोई बात नहीं हुई. श्वेता ने फोन करने की सोची, लेकिन संयम रखते हुए अपने हाथ खींच लिए. अब उस ने अपना समय पुत्र शौर्य के संग बिताना आरंभ किया. इंद्रनील अपने जीवन में तालमेल नहीं बैठा सका और एक दिन श्वेता को फोन कर ही दिया.

‘‘श्वेता कैसी हो?’’

‘‘तुम बताओ?’’

‘‘चलो एकदूसरे को अपना हाल बता देते हैं.’’

‘‘यह ठीक है इंद्रनील, जीवन का नया पड़ाव कैसा लग रहा है?’’

‘‘श्वेता इन परिस्थितियों के बारे में कभी सोचा नहीं था इसलिए हालात से समन्वय नहीं बन पा रहा है.’’

‘‘इंद्रनील जीवन अनिश्चिता से भरपूर है. भविष्य एक रहस्य है कि कल क्या होगा. हम ने विवाह किया तब यह नहीं सोचा था कि हमारा तलाक होगा लेकिन हुआ. जब हम ने उन परिस्थितियों को जीया तब अब भी जी सकते हैं. थोड़ा समय दिक्कत होती है फिर हम सब नई परिस्थितियों के आदी हो जाते हैं.’’

‘‘श्वेता तुम्हारी दार्शनिक बातें सुन कर मन का बोझ हलका हुआ कि हालात से समझौता करना ही पड़ता है.’’

‘‘इंद्रनील जीवन अपनेआप में ही समझौता है. हर पल समझौता करना होता है. अगर हम यह बात पहले समझ जाते तब हो सकता है कि तलाक ही नहीं होता लेकिन हुआ क्योंकि कहीं न कहीं हमारा अहम टकरा गया और हम पीछे नहीं हटे. जीवन के अनुभवों से ही हम सीखते हैं.’’

‘‘श्वेता मेरी समस्या बच्चों के साथ तालमेल की है. आज वर्षों बाद बच्चे साथ हैं, समझ नहीं आ रहा कि मैं उन के साथ कैसा व्यवहार करूं.’’

‘‘इंद्रनील बच्चे तो तुम्हारे अपने हैं बस अंतर सिर्फ इतना है कि तुम वर्षों बाद बच्चों से मिल रहे हो. समझ लो कि विदेश में रहते थे. अब वापस अपने घर आए हो.’’

‘‘श्वेता तुम तो उदाहरण भी ऐसे देती हो कि मेरे पास कोई उत्तर ही नहीं सिवा इस के कि तुम्हारे सुझाव पर अमल करूं.’’

‘‘इंद्रनील यह महिला दिमाग का कमाल है जो पुरुष दिमाग से सदा आगे रहता है.’’

फोन पर बात समाप्त होने पर शौर्य ने मां श्वेता से पूछा, ‘‘मम्मी किस के साथ बात कर रही थीं? बहुत लंबी बात हो गई?’’

‘‘शौर्य में इंद्रनील से बात कर रही थी. मेरे साथ औफिस में काम करते थे आजकल कोलकाता में रहते हैं. कई बार बात होती रहती है. इन का लड़का भी तुम्हारे जितना बड़ा है 14 वर्ष का.’’

‘‘इंद्रनील अंकल कभी घर नहीं आए… कभी देखा नहीं?’’

पुत्र के इस प्रश्न पर श्वेता को आश्चर्य हुआ कि आज  पहली बार शौर्य उस से ऐसा प्रश्न कर रहा है. अब वह बड़ा हो गया है और दुनिया की ऊंचनीच भी समझने लगा है. फिर चुटकी में अपने भावों को नियंत्रित करते हुए श्वेता ने शौर्य को समझाया कि हमारे औफिस में बहुत कर्मचारी हैं और मैं ने 4 कंपनियों में काम किया, वहां अनेक के साथ मेरी मित्रता रही, लेकिन मैं किसी के घर नहीं जाती थी क्योंकि तुम छोटे थे और औफिस के बाद तुम्हारे साथ समय बिताना मेरी प्राथमिकता रही है इसी कारण मैं किसी को अपने घर भी नहीं बुलाती थी क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मेरा और तुम्हारे पापा का 10 वर्ष पूर्व तलाक हुआ था.

‘‘मैं ने तुम्हारी परवरिश को सब से बेहतर रखने की कोशिश की ताकि तुम्हें पिता की कमी महसूस न हो. अब तुम बड़े हो गए हो तुम चाहोगे तब मैं अपने मित्रों को भी घर बुलाऊंगी.’’

‘‘मम्मी मैं तो सिर्फ इसलिए पूछ रहा था क मेरे मित्र घर आते हैं तब आप के क्यों नहीं आते हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि तुम मित्रों के संग पढ़ते हो, मेरे मित्र आएंगे तब सिर्फ गपशप होगी और तुम्हारी पढ़ाई में खलल होगा.’’

‘‘कभीकभी तो बुला सकती हो?’’

‘‘अब तुम चाहते हो तब इसी रविवार को अपने मित्रों के संग महफिल सजा दूंगी,’’ श्वेता ने मुसकराते हुए शौर्य से कहा तो शौर्य भी मुसकरा दिया.

खैर शौर्य की मंशा श्वेता समझ गई कि बच्चा अब स्याना हो गया है और रिश्तों के साथ मित्रता की भी अहमियत समझने लगा है. श्वेता ने अपनी तरफ से इंद्रनील को फोन नहीं किया. उसे शायद डर था कि शौर्य उस के इंद्रनील के साथ पवित्र रिश्ते को कहीं गलत न समझ ले कि उस की मां दोहरी जिंदगी जी रही है. उस ने रिश्ते पर पूर्णविराम लगा दिया. इंद्रनील कभीकभी श्वेता से फोन पर बात कर लिया करता था, वह सिर्फ अपने बच्चों से जुड़ने पर ही विमर्श करता था.

इंद्रनील ने कोलकाता में नौकरी कर ली और छुट्टी वाले दिन बच्चों के साथ रहता और उन के साथ घूमने जाता. श्वेता ने इंद्रनील को सलाह दी कि वह बच्चों को आर्थिक संरक्षण प्रदान करने के साथसाथ उन से भावनात्मक रूप से भी जुड़े. इंद्रनील छुट्टी वाले दिन बच्चों के साथ घूमने जाता. धीरेधीरे बच्चे इंद्रनील से जुड़ने लगे. इंद्रनील के बच्चों से जुड़ाव के बाद श्वेता ने इंद्रनील से फोन पर बात भी बंद कर दी.

1 वर्ष बाद सर्दियों की ठंड में श्वेता बालकनी में बैठ कर धूप सेंक रही थी. शौर्य की 10वीं की बोर्ड परीक्षा नजदीक थी. वह भी धूप में श्वेता के नजदीक बैठ कर पढ़ रहा था तभी डोरबैल बजी.

‘‘शौर्य जरा दरवाजा खोलना.’’

‘‘मम्मी मैं पढ़ रहा हूं, आप खोलिए.’’

श्वेता ने दरवाजा खोला, दरवाजे पर इंद्रनील अपने बच्चों सुब्रता और सांवली के संग खड़ा था. वह इंद्रनील को अचानक घर पर बिना किसी सूचना के अपने सामने देख कर अचंभित हो गई. उस का मुख खुला का खुला रह गया.

इंद्रनील ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘श्वेता इन से मिलो, सुब्रता और सांवली.’’

‘‘आओ इंद्रनील,’’ श्वेता ने सब को बैठक में बैठा कर शौर्य को आवाज दी, ‘‘शौर्य देखो कौन आया है.’’

‘‘कौन है मम्मी?’’ शौर्य ने बालकनी से ही श्वेता से पूछा.

‘‘इंद्रनील अंकल.’’

इंद्रनील सुनते ही शौर्य बैठक में आ कर बड़ी आत्मीयता से सब से मिला.

सुब्रता और सांवली के एक प्रश्न पर श्वेता चुप रह गई, ‘‘आंटी आप ने पापा से फोन पर बात करना क्यों छोड़ दिया है?’’

श्वेता को इस प्रश्न का उत्तर मालूम था, लेकिन बच्चों को किस तरह से अपने मन की बात समझाए, उस की जबान पर शब्द नहीं आ रहे थे.

‘‘हां मम्मी आप इंद्रनील अंकल को अपने विचारों से अवगत कराती थीं और सुझावों से अंकल को बच्चों से एक कराया फिर क्या हुआ जो आप ने अंकल से बात करनी बंद कर दी?’’

शौर्य की बात का समर्थन करते हुए सुब्रता और सांवली ने भी श्वेता से प्रश्न पूछा, ‘‘आंटी आप के सुझाव और मार्गदर्शन से हम पापा से जुड़ सके और आप ही पापा से जुदा हो गईं. पापा हमारे सामने आप से फोन पर बात करते थे, इसलिए हमारे अनुरोध पर पापा हमें आप से मिलवाने दिल्ली आए हैं.’’

श्वेता ने बात बदलते हुए इंद्रनील से पूछा ‘‘कहां रुके हो?’’

‘‘कंपनी के गैस्टहाउस में रुका हूं. थोड़ा कंपनी का काम भी कर लूंगा और बच्चों के साथ दिल्ली भी घूम लूंगा.’’

बात को दूसरी तरफ घूमता देख सुब्रता और सांवली ने श्वेता को टोका, ‘‘आंटी आप

ने हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया.’’

‘‘हां मम्मी मैं भी इस प्रश्न का उत्तर चाहता हूं,’’ शौर्य ने भी मां से पूछा.

‘‘श्वेता मैं भी उत्तर चाहता हूं,’’ इंद्रनील ने भी श्वेता से पूछा.

2 मिनट तक श्वेता चुप रही फिर बोली, ‘‘इंद्रनील तुम तो उत्तर जानते हो. हम और तुम सिर्फ मित्र रहे, एक अच्छे मित्र की भांति हम ने आपस में सुख और दुख साझा किए. हमारी मित्रता इसलिए मजबूत रही क्योंकि हम दोनों तलाकशुदा थे और हमारे बच्चों की उम्र भी एकजैसी थी. जब मैं पहली बार औफिस में इंद्रनील से मिली तब इंद्रनील सुब्रता और सांवली से मिलते रहते थे और उसी तरह शौर्य अपने पिता से. छोटे बच्चों की अच्छी परवरिश हो और उन के मानसपटल पर हमारे तलाक का धब्बा न लगे यही हम दोनों का मुख्य उद्देश्य था.

‘‘श्यामली की मृत्यु के पश्चात जब सुब्रता और सांवली इंद्रनील के जीवन में वापस आए तब तुम किशोरावस्था में पदार्पण कर चुके थे और दुनिया की ऊंचनीच को समझने लगे थे. इस से पहले कि शौर्य मुझे गलत समझे मैं ने दूरी बनानी उचित समझी.’’

श्वेता का उत्तर इंद्रनील को मालूम था कि यही होगा, लेकिन तीनों बच्चे एकसाथ बोले, ‘‘आप मित्र बन कर रहो. मित्रता क्यों तोड़ते हो?’’

‘‘हमने कभी लक्ष्मणरेखा नहीं लांघी है.’’

‘‘हम लक्ष्मण रेख लांघने को नहीं कह रहे हैं. पुरानी मित्रता को कायम रखो.’’

शौर्य ने श्वेता का हाथ पकड़ कर इंद्रनील की ओर बढ़ाया तो सुब्रता ने इंद्रनील का हाथ श्वेता की ओर बढ़ाया.

‘‘सच्ची मित्रता कभी नहीं टूटती है,’’ सांवली ने श्वेता और इंद्रनील का हाथ एक करते हुए कहा.

Latest Hindi Stories : घुटन

Latest Hindi Stories : “आशा है कि आप और आप का परिवार स्वस्थ होगा, और आप के सभी प्रियजन सुरक्षित और स्वस्थ होंगे, उम्मीद करते हैं कि हम सभी मौजूदा स्थिति से मजबूती से और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उभरें, कृपया अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें.”

घर पर रहें और सुरक्षित रहें

मीतू ने व्हाट्सऐप पर नीलिमा का भेजा यह मैसेज पढ़ा और एक ठंडी सांस भरी क्या सुरक्षित रहे. पता नहीं कैसी मुसीबत आ गई है. कितनी अच्छीखासी लाइफ चल रही थी. कहां से यह कोरोना आ गया. दुनिया भर में त्राहित्राहि मच गई है. खुद मेरी जिंदगी क्या कम उलझ कर रह गई है. सोचते हुए दोनों हाथों से सिर को पकड़ते हुए वह धप से सोफे पर बैठ गई.

मीतू का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया. 2 बज रहे थे दोपहर के खाने का वक्त हो गया था. रिषभ को अभी भी हलका बुखार था. खांसी तो रहरह कर आ ही रही है.

रिषभ उस का पति. बहुत प्यार करती है वह उस से लव मैरिज हुई थी दोनों की. कालेज टाइम में ही दोनों का अफेयर हो गया था. रिषभ तो जैसे मर मिटा था उस पर. एकदूसरे के प्यार में डूबे कालेज के तीन साल कैसे गुजर गए थे, पता ही नहीं चला दोनों को. बीबीए करने के बाद एमबीए कर के रिषभ एक अच्छी जौब चाहता था ताकि लाइफ ऐशोआराम से गुजरे. मीतू से शादी कर के वह एक रोमांटिक मैरिड लाइफ गुजारना चाहता था.

रिषभ ने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ. वह उन में से था जो, जो सोचते हैं वहीं पाते हैं. अभी उस की एमबीए कंपलीट भी नहीं हुई थी उस का सलेक्शन टौप मोस्ट कंपनी में हो गया. सीधे ही उसे अपनी काबिलियत के बूते पर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गई.

दिल्ली एनसीआर नोएड़ा में कंपनी थी उस की. मीतू को अच्छी तरह याद है वह दिन जब पहले दिन रिषभ ने कंपनी ज्वाइन की थी. जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे थे उस के. लंच ब्रेक में जब उसे मोबाइल मिलाया था तब उस की आवाज में खुशी, जोश को अच्छी तरह महसूस किया था उस ने.

‘मीतू तुम सीधा मैट्रो पकड़ कर नोएडा सेक्टर 132 पहुंच जाना शाम को. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. आज तुम्हें मेरी तरफ से बढ़िया सा डिनर, तुम्हारी पसंद का.’

कितना इंजौय किया था दोनों ने वह दिन. सब कितना अच्छा. भविष्य के कितने सुनहरे सपने दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर बुने थे.

रिषभ की खुशी, उस का उज्जवल भविष्य देख बहुत खुश थी वह. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया था कि रिषभ को वह हर खुशी देने की कोशिश करेंगी. बचपन में ही अपने मातापिता को एक हादसे में खो दिया था उस ने. लेकिन बूआ ने खूब प्यार लेकिन अनुशासन से पाला था रिषभ को, क्योंकि उन की खुद की कोई औलाद न थी. मीतू रिषभ की जिंदगी में प्यार की जो कमी रह गई थी, वह पूरी करना चाहती थी.

क्या हुआ उस वादे का, कहां गया वह प्यार. ‘ओफ रिषभ मैं यह सब नहीं करना चाहती तुम्हारे साथ.’ सोचते हुए मीतू को वह दिन फिर से आंखों के आगे तैर गया, जिस दिन रिषभ देर रात गए औफिस से घर वापस आया था. 4 दिन बाद होली आने वाली थी.

साहिर मीतू और रिषभ की आंखों का तारा. 5 साल का हो गया था. शाम से होली खेलने के लिए पिचकाारी और गुब्बारे लेने की जिद कर रहा था.

‘नहीं बेटा कोई पिचकारी और गुब्बारे नहीं लेने. कोई बच्चा नहीं ले रहा. देखो टीवी में यह अंकल क्या बोल रहे हैं. इस बार होली नहीं खेलनी है.’

मीतू ने साहिर को मना तो लिया लेकिन उस का दिल भीतर से कहीं डर गया. टीवी के हर चैनल पर कोरोना वायरस की खबरेें आ रही थी. मानव से मानव में फैलने वाला यह वायरस चीन से फैलता हुआ पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है. लोगों की हालत खराब है.

रिषभ रोज मैट्रो से आताजाता है.  कितनी भीड़ होती है. राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर तो कई बार इतना बुरा हाल होता है कि लोग एकदूसरे पर चढ़ रहे होते हैं. टेलीविजन पर लोगों को एतियात बरतने के लिए बोला जा रहा है.

मीतू उठी और रिमोट से टेलीविजन की वैल्यूम कम की और झट रिषभ का मोबाइल मिलाया. ‘कितने बजे घर आओगे, रिषभ.’

‘यार मीतू, बौस एक जरूरी असाइनमैंट आ गया है. रात 10 बजे से पहले तो क्या ही घर पहुंचुगा.’

‘सुनो भीड़भाड़ से जरा दूर ही रहना. इंटरनेट पर देख रहे हो न. क्या मुसीबत सब के सिर पर मंडरा रही है,‘ मीतू के जेहन में चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं.

‘डोंट वरी डियर, मुझे कुछ नहीं होने वाला. बहुत मोटी चमड़ी का हूं. तुम्हे तो पता ही है क्यों…’ रिषभ ने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘बसबस, ज्यादा मत बोलो, जल्दी घर आने की कोशिश करो, कह कर मीतू ने मोबाइल काट दिया लेकिन पता नहीं क्यों मन बैचेन सा था.

उस रात रिषभ देर से घर आया. काफी थका सा था. खाना खा कर सीधा बैडरूम में सोने चला गया.

अगले दिन मीतू ने सुबह दो कप चाय बनाई और रिषभ को नींद से जगाया.

‘मीतू इतनी देर से चाय क्यों लाई. औफिस को लेट हो जाऊंगा,‘ रिषभ जल्दीजल्दी चाय पीने लगा.

‘अरेअरे… आराम से ऐसा भी क्या है. मैं ने सोचा रात देर से आए हो तो जरा सोने दूं. कोई बात नहीं थोड़ा लेट चले जाना औफिस,‘ मीतू ने बोलते हुए रिषभ के गाल को हाथ लगाया, ‘रिषभ तुम गरम लग रहे हो. तबीयत तो ठीक है,‘ मीतू ने रिषभ का माथा छूते हुए कहा.

‘यार, बिलकुल ठीक हूं. बस थोड़ा गले में खराश सी महसूस हो रही है. चाय पी है थोड़ा बैटर लगा है,‘ और बोलता हुआ वाशरूम चला गया.

लेकिन मीतू गहरी चिंता में डूब गई. कल ही तो व्हाट्सऐप पर उस ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लक्षण के बारे में पढ़ा है. खांसी, बुखार, गले में खराश, सांस लेने में दिक्कत…

‘ओह…नो… रिषभ को कहीं… नहींनहीं, यह मैं क्या सोच रही हूं. लेकिन अगर सच में कहीं…’

मीतू के सोचते हुए ही पसीने छूट गए.

तब तक रिषभ वौशरूम से बाहर आ गया. मीतू को बैठा देख बोला, ‘किस सोच में डूबी हो,’ फिर उस का हाथ अपने हाथ से लेता हुआ अपना चेहरा उस के चेहरे के करीब ले आया और एक प्यार भरी किस उस के होंठो पर करना ही चाहता था कि मीतू एकदम पीछे हट गई.

‘अब औफिस के लिए देर नहीं हो रही,’ और झट से चाय के कप उठा कर कमरे से चली गई.

रिषभ मीतू के इस व्यवहार से हैरान हो गया. ऐसा तो मीतू कभी नहीं करती. उलटा उसे तो इंतजार रहता है कि रिषभ पहले प्यार की शुरूआत करे फिर मीतू अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ती थी लेकिन आज मीतू का पीछे हटना, कुछ अजीब लगा रिषभ को.

खैर ज्यादा सोचने का टाइम नहीं था रिषभ के पास. औफिस जाना था. झटपट से तैयार हो गया. नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.

मीतू ने नाश्ता रिषभ के आगे रखा और जाने लगी तो वह बोला, ‘अरे, तुम्हारा नाश्ता कहां है. रोज तो साथ ही कर लेती हो मेरे साथ. आज क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं तुम कर लो. मैं बाद में करूंगी. कुछ मन नहीं कर रहा.’ मीतू दूर से ही खड़े हो कर बोली.

‘क्या बात है तुम्हारी तबीयत तो ठीक है.’

‘हां सब ठीक है.‘ मीतू साहिर के खिलौने समेटते हुए बोली.

‘साहिर के स्कूल बंद हो गए हैं कोराना वायरस के चलते. चलो अब तुम्हें उसे सुबहसुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करना पड़ेगा. चलो कुछ दिन का आराम हो गया,‘ रिषभ ने मीतू को हंसाने की कोशिश की.

‘खाक आराम हो गया. यह आराम भी क्या आराम है. चारों तरफ खतरा मंडरा रहा है और तुम्हे मजाक सूझ रहा है,‘ मीतू नाराज होते हुए बोली.

‘अरे…अरे, मुझ पर क्यों गुस्सा निकाल रही हो. मेरा क्या कसूर है. मैं फैला रहा हूं क्या वायरस,‘ रिषभ ने बात खत्म करने की कोशिश की, ‘देखो ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं.’

‘मैं पेनिक नहीं हो रही बल्कि तुम ज्यादा लाइटली ले रहे हो सब.’

‘ओह, तो यह बात है. कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि मुझे कोरोना हो गया है. तुम ही दूरदूर रह रही हो. बेबी, आए एम फिट एंड फाइन. ओके शाम को मिलते हैं. औफिस चलता हूं. बाय डियर, ‘बोलता हुआ रिषभ घर से निकल गया.

मीतू के दिमाग में अब रातदिन कोरोना का भय व्याप्त हो गया था. होली आई और चली गई, उन की सोसाइटी में पहले ही नोटिस लग गया था कि कोई इस बार होली नहीं खेलेगा.

मीतू अब जैसे ही रिषभ औफिस से आता उसे सीधे बाथरूम जाने के लिए कहती और कपड़े वही रखी बाल्टी में रख्ने को कहती. फिर शौवर ले कर, कपड़े चेज करने के बाद ही कमरे में जाने देती.

हालात दिन पर दिन बिगड़ ही रहे थे. टेलीविजन पर लगातार आ रही खबरें, व्हाट्सऐप पर एकएक बाद एक मैसेज, कोरोना पर हो रही चर्चाएं मीतू के दिमाग को गड़बड़ा रही थीं.

दूसरी तरफ रिषभ मीतू के बदलते व्यवहार से परेशान हो रहा था. न जाने कहां चला गया था उस का प्यार. बहाने बनाबना कर उस से दूर रहती. साहिर का बहाना बना कर उस के कमरे में सोने लगी थी. साहिर को भी उस से दूर रखती थी. अपने ही घर में वह अछूत बन गया था.

रिषभ का पता है और मीतू भी इस बात से अनजान नहीं थी कि बदलते मौसम में अकसर उसे सर्दीजुकाम, खांसी, बुखार हो जाता है.

लेकिन कोरोना के लक्षण भी तो कुछ इसी तरह के हैं. मीतू पता नहीं क्यों टेलीविजन, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़पढ़ कर उन में इतनी उलझ गई है कि रिषभ को शक की निगाहों से देखने लगी है.

आज तो हद ही हो गई. सरकार ने जनता कफ्यू का ऐलान कर दिया था. रिषभ को रह रह कर  खांसी उठ रही थी. हलका बुखार भी था. रिषभ का मन कर रहा था कि मीतू पहले ही तरह उस के सिरहाने बैठे. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरे. दिल से, प्यार से उस की देखभाल करे. आधी तबीयत तो उस की मीतू की प्यारी मुसकान देख कर ही दूर हो जाती थी. लेकिन अचानक जैसे सब बदल गया था.­

मीतू न तो उस का टैस्ट करवाना चाहती है. रिषभ अच्छी तरह समझ रहा था कि मीतू नहीं चाहती कि आसपड़ोस में किसी को पता चले कि वह रिषभ को कोरोना टैस्ट के लिए ले गई है और लोगों को यह बात पता चले और उन से दूर रहे. खुद को सोशली बायकोट होते वह नहीं देख सकती थी.

मीतू का अपेक्षित व्यवहार रिषभ को और बीमार बना रहा था. उधर मीतू ने आज जब रिषभ सो गया तो उस के कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा दिया.

रिषभ दवाई खा कर सो गया था. दोपहर हो गई थी और खाने का वक्त हो रहा था. मीतू अपनी सोच से बाहर निकल चुकी थी.

रिषभ की नींद खुली. थोड़ी गरमी महसूस हुई. दवा खाई थी इसलिए शायद पसीना आ गया था. सोचा, थोड़ी देर बाहर लिविंग रूप में बैठा जाए. पैरों में चप्पल पहनी और चल कर दरवाजे तक पहुंच कर हैंडल घुमाया. लेकिन यह क्या दरवाजा खुला ही नहीं. दरवाजा लौक्ड था.

“मीतूमीतू, दरवाजा लौक्ड है. देखो तो जरा कैसे हो गया यह.” रिषभ दरवाजा पीटते हुए बोला.

“मैं ने लौक लगाया है,” मीतू ने सपाट सा जवाब दिया.

“दिमाग तो सही है तुम्हारा. चुपचाप दरवाजा खोला.”

‘नहीं तुम 14 दिन तक इस कमरे में ही रहोगे. खानेपीने की चिंता मत करो, वो तुम्हें टाइम से मिल जाएगा,‘ मीतू ने जवाब दिया.

‘मीतू तुम यह सब बहुत गलत कर रही हो.‘

‘कुछ गलत नहीं कर रही. मुझे अपने बच्चे की फिक्र है.‘

‘तो क्या मुझे साहिर की फिक्र नहीं है,‘ रिषभ लगभग रो पड़ा था बोलते हुए.

लेकिन मीतू तो जैसे पत्थर की बन गई थी. आज रिषभ का रोना सुन कर भी उस का दिल पिघला नहीं. कहां रिषभ की हलकी सी एक खरोंच भी उस का दिल दुखा देती थी.

रिषभ दरवाजा पीटतेपीटते थक गया तो वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. यह क्या डाला था मीतू ने. बीमारी का भय, मौत के डर ने पतिपत्नी के रिश्ते खत्म कर दिया था.

14 दिन कैसे बीते यह रिषभ ही जानता है. मीतू की उपेक्षा को झेलना किसी दंश से कम न था उस के लिए. मीतू उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगी, वह सोच भी नहीं सकता था. मौत का डर इंसान को क्या ऐसा बना देता है. जबकि अभी तो यह भी नहीं पूरी तौर से पता नहीं कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है भी या नहीं.

मीतू चाहे बेशक सब एहतियात के तौर पर कर रही हो लेकिन पतिपत्नी के बीच विश्वास, प्यार को एक तरफ रख कर उपेक्षा का जो रवैया अपनाया था, उस ने पतिपत्नी के प्यार को खत्म कर दिया था.

रिषभ कोरोना नेगेटिव निकला पर उन के रिश्ते पर जो नेगेटिविटी आ गई थी उस का क्या.

मीतू दोबारा से रिषभ के करीब आने की कोशिश करती लेकिन रिषभ उस से दूर ही रहता. कोरोना ने उन की जिंदगी को अचानक क्या से क्या बना दिया था. मीतू ने उस दिन दरवाजा लौक नहीं किया था, जिंदगीभर की दोनों की खुशियों को लौक कर दिया था.

Hindi Stories Online : हुस्न का बदला

Hindi Stories Online : शीला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. पिछले एक महीने से वह परेशान थी. कालेज बंद होने वाले थे. प्रदीप सैमेस्टर का इम्तिहान देने के बाद यह कह कर गया था, ‘मैं तुम्हें पैसों का इंतजाम कर के 1-2 दिन बाद दे दूंगा. तुम निश्चिंत रहो. घबराने की कोई बात नहीं.’

‘पर है कहां वह?’ यह सवाल शीला को परेशान कर रहा था. उस की और प्रदीप की पहचान को अभी सालभर भी नहीं हुआ था कि उस ने उस से शादी का वादा कर उस के साथ… ‘शीला, तुम आज भी मेरी हो, कल भी मेरी रहोगी. मुझ से डरने की क्या जरूरत है? क्या मुझ पर तुम्हें भरोसा नहीं है?’ प्रदीप ने ऐसा कहा था.

‘तुम पर तो मुझे पूरा भरोसा है प्रदीप,’ शीला ने जवाब दिया था.

शीला गांव से आ कर शहर के कालेज में एमए की पढ़ाई कर रही थी. यह उस का दूसरा साल था. प्रदीप इसी शहर के एक वकील का बेटा था. वह भी शीला के साथ कालेज में पढ़ाई कर रहा था. ऐयाश प्रदीप ने गांव से आई सीधीसादी शीला को अपने जाल में फंसा लिया था.

शीला उसे अपना दोस्त मान कर चल रही थी. उन की दोस्ती अब गहरी हो गई थी. इसी दोस्ती का फायदा उठा कर एक दिन प्रदीप उसे घुमाने के बहाने पिकनिक पर ले गया. फिर वे मिलते, पर सुनसान जगह पर. इस का नतीजा, शीला पेट से हो गई थी.

जब शीला को पता चला कि उस के पेट में प्रदीप का बच्चा पल रहा है, तो वह घबरा गई. बमुश्किल एक क्लिनिक की लेडी डाक्टर 10 हजार रुपए में बच्चा गिराने को तैयार हुई. डाक्टर ने कहा कि रुपयों का इंतजाम 2 दिन में ही करना होगा.

इधर प्रदीप को ढूंढ़तेढूंढ़ते शीला को एक हफ्ते का समय बीत गया, पर वह नहीं मिला. शीला ने उस का घर भी नहीं देखा था. प्रदीप के दोस्तों से पता करने पर ‘मालूम नहीं’ सुनतेसुनते वह परेशान हो गई थी.

शीला ने सोचा कि क्यों न घर जा कर कालेज में पैसे जमा करने के नाम पर पिता से रुपए मांगे जाएं. सोच कर वह घर आ गई. उस की बातचीत के ढंग से पिता ने अपनी जमीन गिरवी रख कर शीला को 10 हजार रुपए ला कर दे दिए.

वह रुपए ले कर ट्रेन से शहर लौट आई. टे्रन के प्लेटफार्म पर रुकते ही शीला ने जब अपने सूटकेस को सीट के नीचे नहीं पाया, तो वह घबरा गई. काफी खोजबीन की गई, पर सूटकेस गायब था. वह चीख मार कर रो पड़ी. शीला गायब बैग की शिकायत करने रेलवे पुलिस के पास गई, पर पुलिस का रवैया ढीलाढाला रहा.

अचानक पीछे से किसी ने शीला को आवाज दी. वह उस के बचपन की सहेली सुधा थी.

‘‘अरे शीला, पहचाना मुझे? मैं सुधा, तेरी बचपन की सहेली.’’

वे दोनों गले लग गईं.

‘‘कहां से आ रही है?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘घर से,’’ शीला बोली.

‘‘तू कुछ परेशान सी नजर आ रही है. क्या बात है?’’ सुधा ने पूछा.

शीला ने उस पर जो गुजरी थी, सारी बात बता दी. ‘‘बस, इतनी सी बात है. चल मेरे साथ. घर से तुझे 10 हजार रुपए देती हूं. बाद में मुझे वापस कर देना.’’ सुधा उसी आटोरिकशा से शीला को अपने घर ले कर पहुंची.

शीला ने जब सुधा का शानदार घर देखा, तो हैरान रह गई.

‘‘सुधा, तुम्हारा झोंपड़पट्टी वाला घर? तुम्हारी मां अब कहां हैं?’’ शीला ने सवाल थोड़ा घबरा कर किया.

‘‘वह सब भूल जा. मां नहीं रहीं. मैं अकेली हूं. एक दफ्तर में काम करती हूं. और कुछ पूछना है तुझे?’’ सुधा ने कहा, ‘‘ले नाश्ता कर ले. मुझे जरूरी काम है. तू रुपए ले कर जा. अपना काम कर, फिर लौटा देना… समझी?’’ कह कर सुधा मुसकरा दी.

शीला रुपए ले कर घर लौट आई. अगले दिन जैसे ही शीला आटोरिकशा से डाक्टर के क्लिनिक पर पहुंची, तो वहां ताला लगा था. पूछने पर पता चला कि डाक्टर बाहर गई हैं और 2 महीने बाद आएंगी. शीला निराश हो कर घर आ गई. उस ने एक हफ्ते तक शहर के क्लिनिकों पर कोशिश की, पर कोई इस काम के लिए तैयार नहीं हुआ.

हार कर शीला सुधा के घर रुपए वापस करने पहुंची.

‘‘मैं पैसे वापस कर रही हूं. मेरा काम नहीं हुआ,’’ कह कर शीला रो पड़ी.

‘‘अरे, ऐसा कौन सा काम है, जो नहीं हुआ? मुझे बता, मैं करवा दूंगी. मैं तेरी आंख में आंसू नहीं देख सकती,’’ सुधा ने कहा.

शीला ने सबकुछ सचसच बता दिया. ‘‘तू चिंता मत कर. मैं सारा काम कर दूंगी. मुझ पर यकीन कर,’’ सुधा ने कहा. और फिर सुधा ने शीला का बच्चा गिरवा दिया. डाक्टर ने उसे 15 दिन आराम करने की सलाह दी.

शीला बारबार कहती, ‘‘सुधा, तुम ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है. यह एहसान मैं कैसे चुका पाऊंगी?’’

‘‘तुम मेरे पास ही रहो. मैं अकेली हूं. मेरे रहते तुम्हें कौन सी चिंता?’’ शीला अपना मकान छोड़ कर सुधा के घर आ गई.

शीला को सुधा के पास रहते हुए तकरीबन 6 महीने बीत गए. पिता की बीमारी की खबर पा कर वह गांव चली आई. पिता ने गिरवी रखी जमीन की बात शीला से की. शीला ने जमीन वापस लेने का भरोसा दिलाया.

जब शीला सुधा के पास आई, तो उस ने सुधा से कहा, ‘‘मुझे कहीं नौकरी पर लगवा दो. मैं कब तक तुम्हारा बोझ बनी रहूंगी? मुझे भी खाली बैठना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘ठीक है. मैं कोशिश करती हूं,’’ सुधा ने कहा.

एक दिन सुधा ने शीला से कहा, ‘‘सुनो शीला, मैं ने तुम्हारी नौकरी की बात की थी, पर…’’ कह कर सुधा चुप हो गई.

‘‘पर क्या? कहो सुधा, क्या बात है बताओ मुझे? मैं नौकरी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ सुधा मन ही मन खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘ऐसा है शीला, तुम्हें अपना जिस्म मेरे बौस को सौंपना होगा, सिर्फ एक रात के लिए. फिर तुम मेरी तरह राज करोगी.’’

शीला ने सोचा कि प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका है. इस से सुधा का एहसान भी पूरा होगा और उस का मकसद भी.

शीला ने अपनी रजामंदी दे दी. फिर सुधा के कहे मुताबिक शीला सजसंवर कर बौस के पास पहुंच गई. बौस के साथ रात बिता कर वह घर आ गई. साथ में सौसौ के 20 नोट भी लाई थी. और फिर यह खेल चल पड़ा. दिन में थोड़ाबहुत दफ्तर का काम और रात में ऐयाशी.

अब शीला भी आंखों पर रंगीन चश्मा, जींसशर्ट, महंगे जूते, मुंह पर कपड़ा लपेटे गुनाहों की दुनिया की बेताज बादशाह बन गई थी.

कालेज के बिगड़ैल लड़के, अमीर कारोबारी, सफेदपोश नेता सभी शीला के कब्जे में थे. एक दिन शीला ने सुधा से कहा, ‘‘दीदी, मुझे लगता है कि अमीरों ने फरेब की दुकान सजा रखी है…’’ इतने में सुधा के पास फोन आया.

‘‘कौन?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘मैडम, मैं प्रदीप… मुझे शाम को…’’

‘‘ठीक है. 10 हजार रुपए लगेंगे. एक रात के… बोलो?’’

‘‘ठीक है,’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘कौन है?’’ शीला ने पूछा.

‘‘कोई प्रदीप है. उसे एक रात के लिए लड़की चाहिए.’’ शीला ने दिमाग पर जोर डाला. कहीं यह वही प्रदीप तो नहीं, जिस ने उस की जिंदगी को बरबाद किया था.

‘‘दीदी, मैं जाऊंगी उस के पास,’’ शीला ने कहा.

‘‘ठीक है, चली जाना,’’ सुधा बोली.

शीला ने ऐसा मेकअप किया कि उसे कोई पहचान न सके. दुपट्टे से मुंह ढक कर चश्मा लगाया और होटल पहुंच गई.

शीला ने एक कमरा पहले से ही बुक करा रखा था, ताकि वही प्रदीप हो, तो वह देह धंधे के बदले अपना बदला चुका सके. प्रदीप नशे में झूमता हुआ होटल पहुंच गया.

‘‘मेरे कमरे में कौन है?’’ प्रदीप ने मैनेजर से पूछा.

‘‘वहां एक मेम साहब बैठी हैं. कह रही हैं कि साहब के आने पर कमरा खाली कर दूंगी. वैसे, यह उन्हीं का कमरा है. होटल के सभी कमरे भरे हैं,’’ कह कर मैनेजर चला गया.

प्रदीप ने दरवाजा खोल कर देखा, तो खूबसूरती में लिपटी एक मौडर्न बाला को देख कर हैरान रह गया.

‘‘कमाल का हुस्न है,’’ प्रदीप ने सोफे पर बैठते हुए कहा.

‘‘यह आप का कमरा है?’’

‘‘जी,’’ शीला ने कहा.

‘‘मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘मोना.’’

‘‘आप कपड़े उतारिए और अपना शौक पूरा करें. समय बरबाद न करें. इसे अपना कमरा ही समझिए.’’

इस के बाद शीला ने प्रदीप को अपना जिस्म सौंप दिया. वे दोनों अभी ऐयाशी में डूबे ही थे कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

प्रदीप मुंह ढक कर सोने का बहाना कर के सो गया.

शीला ने दरवाजा खोला, तो पुलिस को देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘‘पुलिस…’’

‘‘प्रदीप साहब, आप के खिलाफ शिकायत मिली है कि आप ने मोना मैडम के कमरे पर जबरदस्ती कब्जा जमा कर उन से बलात्कार किया है. आप को गिरफ्तार किया जाता है,’’ पुलिस ने कहा.

‘‘जी, मैं…’’ यह सुन कर प्रदीप की घिग्घी बंध गई.

पुलिस ने जब प्रदीप को गिरफ्तार किया, तो मोना उर्फ शीला जोर से खिलखिला कर हंस उठी और बोली, ‘‘प्रदीपजी, इसे कहते हैं हुस्न का बदला…’’

Romantic Story : मुहब्बत हो गई तुम से

Romantic Story : ‘‘अंकल, मैं युवान से शादी नहीं कर पाऊंगी. मैं यह शादी तोड़ रही हूं. प्लीज, युवान को बता दीजिएगा. आप का दिया हार और कंगन मैं अभी आप के औफिस में दे जाऊंगी. नमस्ते.’’

अपने मंगेतर युवान के पिता को फोन पर शादी से इनकार कर भाविषा को यों लग रहा था मानो उस के हाथपैरों से जान निकल गई हो. अतीव घबराहट से उस के हाथ पैर कांप रहे थे. दिल डूबा जा रहा था. वहीं दूसरी ओर उसे राहत का एहसास भी हो रहा था.

इन मिश्रित एहसासों में डूबतीउतराती भाविषा फोन काट कर बैड पर धम्म से बैठ गई. अनायास आंखों के सामने युवान का चेहरा कौंध आया. उस के हृदय में जैसे शूल चुभा.

युवान, उस का सब से प्यारा, अंतरंग दोस्त… प्रेमी… उफ, उस ने उसे क्या समझ और उस की असली फितरत क्या निकली? अनायास उसे खुशनुमा अतीत की रोशन यादों ने अपने आगोश में समेट लिया…

युवान से भविषा की पहली मुलाकात उस की दिल्ली यूनिवर्सिटी के वार्षिक फ्लौवर शो में हुई थी. उसे आज भी अच्छी तरह याद है, वह उन दिनों एमए प्रीवियस में थी और युवान एमए फाइनल में.

उस दिन भाविषा ने एक सफेद रंग की लौंग स्कर्ट और टौप पहना हुआ था. सफेद रंग उस का पसंदीदा रंग था. वह एक जूही के पौधे के पास जा कर पोज दे रही थी और उस की सहेली उस का फोटो खींच रही थी.

भाविषा एक तीखे नैननक्श की गोरीचिट्टी बेहद खूबसूरत युवती थी. सहेली ने उस के कुछ फोटो खींचे ही थे कि उस ने देखा, एक बांका सजीला नौजवान उस के पास आ कर पौधे पर खिलते जूही के फूलों की सुंदर पृष्ठभूमि में सैल्फी लेने लगा.

उसे अपने पास यों फोटो लेते देख भाविषा चिंहुक कर मुंह बनाते हुए वहां से हट गई. उसे यों दूर जाते देख वह मुसकराते हुए उस से बोला, ‘‘ओ… मिस बेला… जूही… कहां चलीं? अपना इंट्रोडक्शन तो देती जाइए. बाय द वे मैं युवान, एमए फाइनल में.’’

उस दिन के बाद से वह गाहेबगाहे उस से टकरा जाता. कभी लाइब्रेरी में तो कभी कैंटीन में, कभी कंप्यूटर लैब में तो कभी यूनिवर्सिटी के गलियारों में. जब भी वह उस से टकराता, उसे एक दिलकश मुसकान देता और उसे ‘मिस बेला जूही’ कह कर पुकारता.

एक दिन यूनिवर्सिटी औडीटोरियम में कोई कल्चरल फंक्शन था. आगेआगे अपनी एक सहेली के साथ प्रोग्राम देख रही थी कि तभी उसे लगा, कोई उस की बगल वाली खाली सीट पर आ कर बैठ गया. उस के कानों में वही चिरपरिचित आवाज पड़ी, ‘‘मिस बेला जूही, आप मुझ से यों इतना दूरदूर क्यों भागती हैं? भई मैं कोई सड़कछाप शोहदा तो नहीं जो आप मुझे देखते ही अपना रास्ता बदल लेती हैं. हम दोनों एक ही डिपार्टमैंट में हैं. मैं बस आप से दोस्ती करना चाहता हूं… जस्ट प्योर फ्रैंडशिप. दैट्स इट.’’

उस दिन उस की बातचीत के शिष्ट और नर्म लहजे ने आखिरकार भाविषा के मन में जगह बना ही ली और दोनों दोस्त बन गए.

वे दोनों यूनिवर्सिटी में कक्षा के बाहर हमेशा साथसाथ देखे जाते. वक्त के साथ आहिस्ताआहिस्ता दोनों के मन में प्रेम की अगन जलने लगी.

महज दोस्ती से शुरू हुआ उन का सफर कई पड़ावों को पार कर प्रेम के मुकाम तक पहुंच गया. दोनों जिंदगी का सफर साथसाथ बिताने के ख्वाब देखने लगे.

उन दोनों की माइक्रोबायलौजी में एमएससी पूरी हो गई थी. दोनों की जौब्स प्राइवेट सैक्टर में लग गई. अब उन के सपने पूरे करने का वक्त आ गया था.

भाविषा ने अपने मातापिता को युवान के मातापिता से शादी की बात करने के लिए भेजा. जहां युवान के पिता एक धनाढ्य उद्योगपति थे, वहीं भाविषा के पिता एक निजी प्रतिष्ठान में छोटे पद पर कार्यरत थे. वे महज एक सुपरवाइजर थे. अपनी सीमित बंधीबंधाई तनख्वाह में उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने 2 बच्चों को पालापोसा था, उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई थी.

भाविषा के मातापिता युवान के घर की शानशौकत देख चकरा गए. मन में असंख्य आशंकाएं फन उठाने लगीं. यदि लड़के वालों की कोई मांग हुई तो क्या होगा? वे इतने रईस लोगों से रिश्ता कैसे निभा पाएंगे?

युवान के घर का ड्राइंगरूम एक रंगारंग प्रदर्शनी से कम न था. विशालकाय हौल में 3 शानदार गद्देदार मखमली सोफे रखे थे. फर्श पर गुदगुदा कालीन बिछा था. दीवारों पर कई आदमकद पेंटिंग्स उन की शोभा बढ़ा रही थीं. हर कोने में मद्धिम रंगीन रोशनी बिखेरते लैंप थे. सीलिंग से बड़ेबड़े कलात्मक गड़ाई वाले फानूस लटक रहे थे.

ऐसे जबरदस्त ड्राइंगरूम में सस्ती सी सिंथैटिक साड़ी और पैंट शर्ट पहने भाविषा के मातापिता बेहद असहज महसूस कर रहे थे. सोच रहे थे, बेटी की जिद पर यहां आ तो गए लेकिन इतने धनाढ्य घर के कुलदीपक से अपनी बेटी के रिश्ते की बात किस दम पर चलाएं. उन की तुलना में तो वे कुछ भी नहीं. उन के पास मात्र उन की नाजों से पली लाखों में एक खूबसूरत लाडली थी लेकिन इस वैभव और आडंबर के बीच क्या उन की कनक छड़ी सी हीरे की कनि बिटिया अपनी पहचान बनाए रख पाएगी? उन्होंने कितने जतन से उसे पढ़ायालिखाया था. क्या उस की पढ़ाईलिखाई, उस की अस्मिता की कद्र उस सोने के संसार में हो पाएगी?

वे दोनों इन विचारों के सैलाब में डूबतेउतराते हुए खयाल मग्न थे कि तभी युवान के मातापिता बेटे के साथ वहां आ गए.

कडककलफ लगे पेस्टल आसमानी कुरतेपाजामे में सुदर्शन, भव्य शख्सियत के स्वामी युवान के पिता को देख भाविषा के पिता ने हकलाते हुए उन्हें नमस्ते की. उन की जीभ तालू से चिपक गई थी.

ठीक यही हाल भाविषा की मां का था. महंगी साड़ी और हीरों के गहनों में युवान की ठसकेदार मां को देख कुछ लमहों तक उन के मुंह से कोई बोल न फूटा. फिर अचकचाते हुए उन्होंने युवान की मां और पिता को नमस्ते की.

युवान के पिता पहले ही बेटे की भाविषा से विवाह की मंशा जान कर उस के माता, पिता और उन के परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में विस्तृत पड़ताल करा चुके थे.

उन के अनुसार भाविषा जैसी गरीब परिवार की लड़की से उन के इकलौते बेटे का विवाह उन के लिए हर तरह से घाटे का सौदा साबित होगा. यह विवाह संबंध मखमल पर टाट के पैबंद सरीखा होगा. उन के उच्च वर्गीय आभिजात परिचय क्षेत्र में इस रिश्ते को ले कर उन की बहुत जगहंसाई होगी. सो वे और उन की पत्नी दृढ़ प्रतिज्ञ थे कि वे हर लिहाज से इस बेमेल शादी को कतई नहीं होने देंगे. पर युवान की भाविषा से विवाह की जिद्द के मद्देनजर वे यह भी जानते थे कि उन्हें इस मुद्दे को बहुत डिप्लोमैटिकली हैंडल करना होगा जिस से युवान को इस रिश्ते से होने वाले नफेनुकसान का जायजा हो जाए और वह स्वत: इस संबंध के लिए न कर दे.

बेटे के सामने युवान के मातापिता भाविषा के पेरैंट्स से बहुत शिष्टता और नरमाई से पेश आए. उन का यथोचित आदरसत्कार किया.

भाविषा के पिता ने डरतेडरते हाथ जोड़ कर भावी समधी से कहा, ‘‘समधीजी, मैं एक नौकरीपेशा ईमानदार इंसान हूं. एक निजी संस्थान में छोटी सी नौकरी करता हूं. किसी तरह पेट काट कर मैं ने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई है. मेरी बेटी यूनिवर्सिटी की गोल्ड मैडलिस्ट है. उस के शील स्वभाव और शिक्षा संस्कार के अलावा आप को और कुछ न दे पाऊंगा. यदि आप को इस से ज्यादा की अपेक्षा हो तो मुझे माफ कीजिएगा.’’

‘‘नहींनहीं समधीजी, देख ही रहे हैं, कुदरत का दिया मेरे पास सबकुछ है. मुझे आप से कुछ भी नहीं चाहिए आप की गुणी बेटी के अलावा. हम अगले संडे आप के घर आते हैं बिटिया से मिलने.’’

‘‘जी मोस्ट वैलकम. आप तीनों अवश्य हमारे घर पधारें. हम आप का वेट करेंगे.’’

अगले रविवार युवान अपने मातापिता के साथ भाविषा के घर पहुंचा. भाविषा का छोटा सा दीनहीन 2 कमरों का दड़बेनुमा फ्लैट देख युवान का चेहरा भी उतर गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था, भाविषा का घर इतना फटेहाल होगा. उस के ड्राइंगरूम में महज बेंत की 3 कुरसियां रखी थीं और एक लकड़ी की सस्ती सी चादर से ढका दीवान रखा था. उस के घर की बदहाली देख युवान सोच रहा था, ‘यह वह कहां फंस गया? उसे ताउम्र इस कंगाली के ग्रहण लगे घर में आना होगा?’

अलबत्ता अपनी प्रेयसी भाविषा को देख उस के मन को तनिक सुकून अवश्य मिला. उस की मां श्यामवर्णी स्थूलकाय महिला थीं. नैननक्श भी साधारण थे. उस की बहन भी हूबहू मां जैसी थी. उन दोनों के सामने उस का भोर का उजास फैलाता नाजुक कली सा नमकीन रूपसौंदर्य देख उस ने अपने मन को समझाया, ‘बड़ी, भाविषा का घर जैसा भी हो, वह तो लाखों में एक है न. जो भी उसे देखेगा, उस से रश्क किए बिना न रहेगा. उसे जिंदगी तो उस के साथ बितानी है. उस के घर से उसे क्या लेनादेना.’

भविषा के मातापिता ने अपनी हैसियत से बढ़ कर उन का स्वागतसत्कार किया. घर के बने व्यंजन परोसे लेकिन उन के घर के सस्ते कप और प्लेटें देख तीनों आगंतुकों का मूड बदमजा हो गया.

युवान की मां ने म्लान मुख भाविषा को जगमग हीरे जड़े कंगन और हीरों का हार पहना कर उस का रोका कर दिया.

तीनों ही भाविषा के घर से अंतर्मन में चल रहे द्वंद्व में डूबे लौटे. जहां युवान के मन की मायूसी के बादल प्रिया के मासूम, भोलेभाले खूबसूरत चेहरे को देख कुछ हद तक छंट गए थे, वहीं उस की मां और पिता का इस शादी को किसी भी हालत में नहीं होने देने का संकल्प दृढ़ हो गया था. भाविषा बेशक नायाब हीरा थी लेकिन उस की कंगाल पृष्ठभूमि उन की उन के समाज में खासी जगहंसाई की वजह बनेगी जो वह हरगिजहरगिज नहीं होने देंगे.

रोके के अगले दिन युवान के औफिस जाने के बाद उस के पिता ने भाविषा के पिता को फोन लगाया, ‘‘समधीजी, मुझे आप से एक जरूरी बात करनी थी.’’

‘‘जी… जी… कहिए.’’

‘‘जी ऐसा है, हम 250 लोगों की बरात ले कर आएंगे. जैसाकि मैं ने आप को पहले ही कहा था, दहेज के नाम पर हमें आप से फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए. बस हमें शादी फाइवस्टार होटल में चाहिए. शादी की मिलनी में हर बराती को 10-10 ग्राम का एक सोने का सिक्का चाहिए होगा. हमारे खानदान में आज तक जितनी शादियां हुई हैं, सब में यह रीत निभाई गई है. तो विवश हमें आप के सामने यह मांग रखनी पड़ रही है. उम्मीद है, आप हमारी विवशता समझेंगे. ओके बाय…’’

उफ… यह क्या? हर बराती को 1-1 तोले का सिक्का… मन ही मन उन्होंने हिसाब लगाया. करीब 20 लाख का खर्च. फिर फाइवस्टार होटल में शादी. उस में लाखों का खर्च.

कल तो सबकुछ एक हसीं सपने जैसा बीता था. कल से वे 7वें आसमान में उड़ रहे थे यह सोचसोच कर कि उन की बेटी की शादी एक करोड़पति घर में बिना दानदहेज के एक सर्वगुणसंपन्न सुपात्र से हो रही है और आज अचानक उन की यह मांग.

समधीजी के ये अल्फाज उन के कानों में जैसे पिघले शीशे की मानिंद पड़े. घबराहट से उन के हृदय की धड़कन बढ़ आई. पेशानी पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आईं. हाथपैरों की जान निकल गई. वे धम्म से सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए.

पिता को भावी ससुर से बात करने के बाद इस हाल में देख भाविषा दौड़ीदौड़ी उन के पास आई और उन्हें झं?ाड़ते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ पापा? अंकल ने क्या कहा?’’

पिता ने कांपते स्वरों में उसे समधीजी की मांग के बारे में बताया. सारी बातें सुन कर भाविषा सन्न रह गई. उस ने पिता को सांत्वना दी, ‘‘पापा, आप चिंता मत करिए. मैं अभी युवान से बात करती हूं. आप सबकुछ नहीं करेंगे. निश्चिंत रहिए. मुझे युवान पर पूरा भरोसा है. वह जरूर इस का कुछ न कुछ तोड़ निकालेगा. आप फिकर मत करिए. मैं अभी उस से बात करती हूं.’’

भाविषा ने युवान को तुरंत एक रैस्टोरैंट में बुलाया और उसे उस के पिता की मांग बताई. फिर बोली, ‘‘युवान, मेरे पापा तुम लोगों की मांग किसी हालत में पूरी नहीं कर पाएंगे. हम न तो फाइवस्टार होटल में शादी अफोर्ड कर पाएंगे, न ही 250 बरातियों को मिलनी में सोने के सिक्के दे पाएंगे. प्लीज, अपने पापा को सम?ाओ.’’

‘‘अरे यार, यह तुम कहां होटल और सोने के सिक्कों की बात ले कर बैठ गई. ये बातें बड़ों के करने की हैं हनी, इन से हम दोनों दूर ही रहें तो अच्छा है. बड़ों की बातें बड़े ही जानें,’’ युवान ने कंधे उचकाते हुए बेहद लापरवाही से जवाब दिया और फिर अपने बिंदास बेपरवाह लहजे में बोला, ‘‘देखो तो मौसम कितना सुहाना हो रहा है, चलो अब औफिस से हाफ डे लिया है तो उस का सदुपयोग ही हो जाए. चलो, लौंग ड्राइव पर चलते हैं.’’

‘‘यहां मेरे पापा सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं कि इतना सबकुछ मैनेज कैसे होगा और तुम्हें लौंग ड्राइव की पड़ी है. बात की गंभीरता को समझ  युवान, यह कोई मामूली बात नहीं. अगर तुम ने इस लेनदेन के मुद्दे पर सीरियस स्टैंड नहीं लिया तो सब खत्म हो जाएगा.’’

‘‘भई मैं क्या सीरियस स्टैंड लूं? तुम क्या चाहती हो मैं अपने पेरैंट्स से लड़ूं? अरे, अपने बच्चों की शादीब्याह में हर पेरैंट की कुछ चाहत होती है. भई मैं तो उन से कुछ नहीं बोल सकता. अब बोलो, तुम ड्राइव पर मेरे साथ आ रही हो या नहीं? नहीं तो मैं दोस्तों की तरफ निकल जाता हूं. तुम लड़कियां भी न. अजीब ही होती हैं. हर बात में तुम लोगों को टांग अड़ाने की आदत होती है. अरे बड़े लोग इस समस्या का कुछ न कुछ तोड़ निकाल ही लेंगे. इतनी टैंशन की क्या बात है? चिल यार.’’

‘‘तो तुम इस मसले पर उन से कुछ नहीं बोलोगे? यह तुम्हारा फाइनल डिसीजन है?’’ इस बार भाविषा ने युवान को आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए कहा.

इस पर युवान ने तनिक रोष से कहा, ‘‘नहीं, मैं उन से कुछ नहीं बोलूंगा. वे दोनों उन की मरजी के विरुद्ध तुम से शादी करने की बात पर मुझ से वैसे ही खफा हैं. अब मैं उन्हें और नाराज करने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’

भाविषा ने तनिक देर सोचा और फिर आंखों से चिनगारियां बरसाते हुए गुस्से से दांत भींचते हुए युवान से कहा, ‘‘तो हमारी शादी कैंसिल. मैं तुम जैसे स्पाइनलैस इंसान से कतई शादी नहीं कर सकती. गुड बाय युवान, मु?ा से कौंटैक्ट करने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हें फोन पर ब्लौक कर रही हूं. अपनी लाइफ से भी,’’ कहते हुए भाविषा क्रोध से लंबीलंबी सांसें लेते हुए वहां से पैर पटकते तेज चाल से चली गई.

युवान हैरान उसे जाते देख चिल्लाया, ‘‘भाविषा… सुनो तो, भाविषा…’’ कहते हुए वह उस के पीछेपीछे आया लेकिन वह अपने स्कूटर पर वहां से जा चुकी थी.

वहां से वह सीधी औफिस पहुंची और एक रिपोर्ट बनाने लगी लेकिन आज उस का मन उस के आपे में न था. वह रिपोर्ट के विभिन्न तथ्यों को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित नहीं कर पा रही थी. बारबार गलतियां कर रही थी. मन पखेरू बारबार युवान के साथ बीते खुशनुमा दिनों के सायों में भटकने लगता.

किसी तरह सप्रयास रिपोर्ट बना कर वह उसे अपने युवा बौस अभिजीत के कैबिन में ले गई और उन्हें थमा दी.

‘‘भाविषा, कोई परेशानी हो तो बताइए. आप की रिपोर्ट्स तो हमेशा परफैक्ट होती हैं. मैं पूरे स्टाफ को आप की रिपोर्ट्स का उदाहरण देता हूं. आज आप मुझे बहुत परेशान दिख रही हैं. कोई परेशानी हो तो प्लीज बताइए. शायद मैं आप की कोई मदद कर सकूं?’’

‘‘नहीं… नहीं… सर, ऐसी कोई बात नहीं. दीजिए, मैं इसे ठीक कर के ले आती हूं,’’ यह कहते ही जैसे ही वह सीट से उठी, घोर तनाव से उसे चक्कर आने लगा और वह लड़खड़ाते हुए आंखें बंद कर बैठ गई.

‘‘भाविषा, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?’’

‘‘जी… जी… सर, ठीक हूं.’’

‘‘नहीं… नहीं… आप बिलकुल ठीक नहीं हैं. आप का चेहरा एकदम उतर गया है. आप यहीं बैठिए और मु?ो बताइए क्या परेशानी है. शायद आप के मन का बो?ा हल्का हो जाए,’’ अभिजीत ने उसे जबरदस्ती वहीं बैठा लिया और उस के लिए कौफी मंगवाई.

फिर उस से पूछा, ‘‘हां तो अब बताइए.’’

भाविषा और अभिजीत पिछले 5 वर्षों से साथसाथ काम कर रहे थे. उस नाते दोनों में आप सी अच्छी ट्यूनिंग थी. अभिजीत को भाविषा और युवान के प्रेमप्रसंग के बारे में अच्छी तरह पता था.

भाविषा ने अभिजीत के बहुत आग्रह करने पर उसे पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया जिस के जवाब में उस ने उस से कहा, ‘‘आप ने बिलकुल सही निर्णय लिया. आप को ऐसी डिमांड वाले लालची लोगों में अपना रिश्ता कतई नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं अभिजीत, मेरा भी यही मानना है. मैं खुद भी ऐसे इंसान से शादी नहीं करना चाहती जो मेरी परेशानी को न समझे.’’

‘‘बिलकुल, अभी आप घर जा कर रैस्ट करिए. आप नौर्मल नहीं लग रहीं.’’

अपने घर पहुंच भाविषा ने पहला काम जो किया वह था युवान के पिता को फोन कर उन्हें शादी के लिए इनकार करना.

यह काम कर के भाविषा बैठी ही थी कि उस के पिता ने उस से कहा, ‘‘यह तूने क्या किया बिटिया? शादी तोड़ दी? अरे बेटा, इतनी जल्दी क्या थी? मैं तो सोच रहा था अपना मकान बैंक के पास गिरवी रख उन से लोन ले लेता. कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जाता.’’

पिता के आर्द्र स्वर को सुन भाविषा अतीत से वर्तमान में वापस आई.

‘‘मुझे  एक स्पाइनलैस इंसान से शादी नहीं करनी. युवान ने मेरी कोई मदद नहीं की. मुझे टका सा जवाब दे दिया. मैं ने फैसला कर लिया है पापा, यह शादी नहीं होगी,’’ कहते हुए वह घोर मानसिक संताप से आंखों में उमड़ आए आंसुओं के समंदर को सप्रयास भीतर ही भीतर जज्ब करते हुए भीतर चली गई और फूटफूट कर रो पड़ी. शहनाई की खुशियां मातम में बदल गई थीं.

दिन बीत रहे थे. युवान को भूलना इतना आसान न था. वह भाविषा का पहला प्यार था. उस ने उसे प्यार के खूबसूरत जज्बे से रूबरू कराया था, मुहब्बत की दुरूह राहों पर उंगली थाम कर चलना सिखाया था लेकिन जिंदगी कब किस के लिए रुकी है?

युवान से रिश्ता तोड़े पूरा बरस हो आया था. युवान से दूर हो कर भाविषा का मन मर सा गया था. जिंदगी जीने का उछाह खत्म हो गया था. वह एक मशीनी जिंदगी जी रही थी लेकिन उस मुश्किल समय में अभिजीत ने उस का बहुत साथ दिया. अपनी सहृदयता और मृदु स्वभाव से वह धीमेधीमे उस के दिल में जगह बनाने लगा था. दोनों के मध्य औपचारिकता की दीवार धीरेधीरे टूट गई थी और दोनों बहुत अच्छे और करीबी दोस्त बन गए थे. उस की और मातापिता की गरमाहट भरी सपोर्ट के दम पर भाविषा भी अपने ब्रेकअप के गम से लगभग उबर आई थी.

उस दिन किसी नेता की आकस्मिक मृत्यु के चलते औफिस खुलते ही बंद हो गया. औफिस से निकलतेनिकलते अभिजीत ने भाविषा से कहा, ‘‘भाविषा, मुझे तुम से कुछ बहुत जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहो अभिजीत.’’

‘‘चलो, कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं.’’

दोनों एक रैस्टोरैंट में जा कर बैठ गए.

‘‘भाविषा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. मुझ से शादी करोगी?’’

‘‘क्या… क्या… क्या… शादी?’’ भाविषा अचकचाते हुए बोली.

‘‘हां भाविषा शादी. मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं भाविषा, दिलोजान से चाहने लगा हूं. तुम्हारे साथ जिंदगी का 1-1 लमहा बिताना चाहता हूं. बोलो, मेरी हमसफर बनोगी?’’ अभिजीत ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘मुझे… मुझे थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘ओके… ओके… जितना समय चाहिए ले सकती हो. मुझे कोई जल्दी नहीं.’’

‘‘हां, एक बात, तुम हां कहो उस से पहले मैं तुम्हें अपना घर दिखाना चाहता हूं. आज चलें घर?’’

‘‘हां चलो, आज अपने पास टाइम भी है.’’

दोनों अभिजीत के घर पहुंचे. उस का घर देख भाविषा के चेहरे पर तनिक मायूसी के भाव आ गए.

‘‘मेरा घर बहुत छोटा है भाविषा, शादी के बाद हमें इसी घर में रहना होगा. रह लोगी इतने छोटे घर में?’’

‘‘यह कोई समस्या नहीं. मेरा घर भी बहुत छोटा है, तुम्हारे घर से भी छोटा.’’

भाविषा की बात सुन कर अभिजीत के चेहरे पर राहत के भाव आ गए.

यह देख कर भाविषा मुसकरा दी, ‘‘अगर हम दोनों शादी करें तो हमारे बीच कुछ भी परदे में नहीं होना चाहिए. मैं रिश्तों में ट्रांसपेरैंसी में विश्वास करती हूं.’’

‘‘तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली. बिलकुल सही कहा तुम ने.’’

तभी अभिजीत के पेरैंट्स उन के ड्राइंगरूम में आ गए. अभिजीत ने भाविषा से उन का परिचय कराया.

अभिजीत की मां ने उसे बड़ी गरमाहट से अपने से लगा कर आशीर्वाद दिया. उस के पिता ने भी उसे आशीर्वाद दिया.

तभी उस की मां ने अभिजीत से कहा, ‘‘बेटा, जा अपनी दादी और चाचाचाची को बुला ला.’’

दादी और चाचाचाची को उस के आने की खबर लग गई थी. चाची उन के लिए गरमगरम हलवा ले कर आई. सब से पहले दादी ने भाविषा की बलैयां लेते हुए उस का मुंह मीठा कराया और फिर उसे अपने गले से लगा कर आशीर्वाद दिया.

अभिजीत की मां ने भी उसे अपने हाथ से बड़े प्यार से खिलाते हुए कहा, ‘‘तुम पहली बार हमारे घर आई हो, मुंह मीठा कराना तो बनता है.’’

चाची ने भी यही कहते हुए बड़े स्नेह से उसे हलवा खिलाया.

तभी अभिजीत की 2 बहनें और चाचा के

3 बच्चे वहां आ गए और उस से बड़ी ही गरमजोशी से मिले.

अभिजीत ने अपनी बहनों और कजिंस से कहा, ‘‘चलो, भाविषा को अपना पूरा घर दिखाते हैं.’’

अभिजीत ने उसे 5 छोटेछोटे कमरों का घर दिखाया. फिर अभिजीत उस के कानों में फुसफुसाया, ‘‘मेरी दोनों बहनों की शादी अगले माह ही है. तो बहनों के जाने के बाद उन का यह रूम हमें मिल जाएगा.’’

भाविषा सब के साथ करीब 2 घंटे रही. उसे यह महसूस ही नहीं हुआ कि वह अभिजीत के घर वालों से पहली बार मिली है. उसे अभिजीत के घर वाले खासकर दादी और उस के पेरैंट्स बेहद अच्छे लगे. अपनी जिंदगी की बेहतरीन दोपहरी उन के साथ बिता वह अपने घर लौटी.

अभिजीत भाविषा को उस के घर ड्रौप करने आया और उस के मातापिता से मिला. वहीं उस ने उन सब को बताया कि उस के ऊपर खुद उस के अपने परिवार और दादी, चाचा, चाची और उन के 3 बच्चों की जिम्मेदारी है. उस के चाचा एक दुर्घटना के बाद से डिप्रैशन में चले गए थे और वे कुछ काम नहीं करते.

अभिजीत के जाने के बाद भाविषा ने अपने पेरैंट्स को उस के विवाह प्रस्ताव के बारे में बताया. अभिजीत के छोटे से घर और उस के घर वालों के सहृदय और मृदु स्वभाव के बारे में बताया.

देर रात तक बहुत सोचविचारने के बाद भाविषा ने फैसला ले लिया कि वह अभिजीत से शादी करेगी. 5 बरसों के साथ में बहुत सोचने पर भी उसे उस की शख्सियत में ढूंढ़े से भी कोई कमी न दिखी.

भाविषा के मातापिता ने उसे समझने की कोशिश की कि अगर वह अभिजीत से शादी करती है तो उसे भी अभिजीत के साथ उस के पूरे घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी, इसलिए वह भावनाओं में न बहे और बहुत सोचविचार कर अभिजीत से शादी का निर्णय ले.

अभिजीत के घर वालों को इतने अपनेपन और प्यार से एक छत के नीचे रहते देख वह उन सब के सोने से खरे मीठे स्वभाव के प्रति आश्वस्त हो गई थी कि जिम्मेदारियों के बावजूद अभिजीत के साथ उस की जिंदगी खासी सुखद होगी.

सुबह औफिस में अभिजीत के कैबिन में जाने पर उस ने भाविषा से कहा, ‘‘मैडम, इस नाचीज को आप ने अधर में लटका रखा है. प्लीज, अपना फैसला सुनाने की जहमत करें.’’

‘‘अरे इतनी जल्दी क्या है जनाबे आली, थोड़ी प्रतीक्षा करें. फैसला भी आ जाएगा,’’

प्यार के मीठे जज्बे से लबालब अपनी आंखों

को शैतानी से गोलगोल घुमाते हुए भाविषा ने जवाब दिया.

‘‘अच्छाजी, तो यह बात है. मुझे मेरा जवाब मिल गया.’’

‘‘मेरे बिना कुछ बोले? हुजूर हम ने अच्छेअच्छों को ओवर कौन्फिडैंस से मात खाते हुए देखा है.’’

‘‘मैडम, इस नाचीज को लिफाफे से उस के मजमून की खबर लग जाती है.’’

‘‘अच्छाजी, इतना भरोसा?’’ भाविषा ने इस बार खिलखिलाते हुए पूछा.

‘‘जी… जी… आप की इन झील सी गहरी आंखों ने आप का राज उगल दिया,’’ कहते हुए अभिजीत ने भाविषा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. दोनों प्रेमियों के चेहरे शिद्दत की मुहब्बत की रोशनी से दमक उठे.

Best Kahani : प्यारा रिश्ता

Best Kahani :  प्रिया की नजरें बाहर टिकी थीं जहां उस का नया हस्बैंड नीरज उस की बेटी कनु को साइकिल सिखा रहा था. कनु के चेहरे पर डर के साथसाथ एक प्यारी सी मुसकान भी थी. नीरज ने उसे पीछे से पकड़ रखा था और लगातार उस के साथ चल रहा था. तभी कनु की साइकिल डगमगाई और वह साइकिल छोड़ कर नीरज की बांहों में आ गिरी. नीरज उसे संभालता खड़ा हुआ. उस समय कनु बिलकुल नीरज के करीब थी.

नीरज ने कनु की बांहों को कस कर पकड़ा था. इधर प्रिया कसमसाई सी उठी और बेचैनी से ड्राइंगरूम में ही टहलने लगी. कमरे में लगे बड़े से मिरर में उस ने खुद को निहारा. समय और परिस्थितियों की मार ने कहीं न कहीं उस की खूबसूरती में कुछ कमी ला दी थी. उम्र का असर उस की स्किन पर दिखने लगा था, जबकि उस की 15 साल की बेटी कनु बिलकुल नाजुक कली सी कोमल थी. युवावस्था की दहलीज की तरफ कदम बढ़ाता उस का शरीर आकर्षक रूप ले रहा था. नीरज भी कोई कम हैंडसम नहीं था. उस के आकर्षक व्यक्तित्व के जादू में बंध कर ही प्रिया ने दूसरी शादी इतनी जल्दी कर ली थी.

‘‘कनु इधर आ जल्दी. बहुत हो गई मस्ती.  चलो और कमरे में जा कर पढ़ाई करो,’’ प्रिया ने बालकनी में आ कर बेटी को आवाज लगाई फिर पति को संबोधित करती हुई बोली, ‘‘नीरज, मैं ने आप से कहा था न कि आज शौपिंग के लिए जाना है और आप यहां लगे हो कब से.’’

‘‘अरे मैडम अपनी बेटी को साइकिल चलाना सिखाना भी तो जरूरी है न बस वही कर रहा था.’’

प्रिया की सख्त आवाज सुन कर कनु चुपचाप अंदर आ गई और नीरज भी साइकिल रखता हुआ प्रिया से बोला, ‘‘चलो तुम्हारी शौपिंग करा दूं पर तुम तो तैयार भी नहीं.’’

‘‘2 मिनट घर में बैठ कर मु?ा से बात कर लोगे तो कुछ हो नहीं जाएगा. जब देखो कनु में ही लगे रहते हो,’’ प्रिया ने चिढ़ कर कहा.

नीरज ने अचरज से पत्नी की तरफ देखा, ‘‘बेटी से ईर्ष्या?’’

प्रिया ने मुंह बनाते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो और मेरे लिए चाय बनाओ. तब तक मैं तैयार होती हूं,’’ कह कर प्रिया अपने कमरे में तैयार होने चली गई. उसे बारबार नीरज के शब्द चुभ रहे थे. पर अभी नीरज ने जो कहा वह सच ही तो था. उसे अपनी ही बेटी से ईर्ष्या होने लगी थी या कहिए एक तरह का डर लगने लगा था. पर इस डर को वह किसी से शेयर भी नहीं कर सकती थी. खुद अपनी बेटी या पति से भी नहीं.

कनु पिछले महीने ही ऐग्जाम खत्म होने पर घर लौटी थी वरना वह होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी. अपनी मां के जीवन में आए उतारचढ़ावों से दूर वह अपनी दुनिया में मगन थी. मगर जब एक दिन उस ने सुना कि उस की मां सैकंड मैरिज कर रही हैं तो सौतेले पिता का खौफ उस के दिल में घर कर गया. कुछ दिन वह परेशान सी रही.

इसी बीच एक दिन नीरज उस से मिलने आए और तब उसे महसूस हुआ कि उस के सौतेले पिता तो बहुत अच्छे हैं. इसी वजह से वह छुट्टियों में घर आने की हिम्मत जुटा सकी. वह घर आई तो नीरज ने उसे पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. हमेशा पिता के रूप में उस के साथ खड़ा रहा. समय के साथ दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करने लगे. मगर प्रिया को बापबेटी के इस प्यार में वासना की ?ालक मिल रही थी और इसी वजह से वह परेशान रहती थी.

लता यही वजह है कि उस ने बेटी को छोटे या मौडर्न कपड़े पहनने से यह कह कर रोक दिया था कि तुम अब बड़ी हो गई हो. उस के लिए बड़ी बाजू की बिलकुल लाइट कलर की कुरतियां ला दी थीं. बेटी को मां का यह व्यवहार अजीब लगने लगा था. यही नहीं प्रिया हर समय उसे टोकाटाकी करने लगी थी. कनु जब भी नीरज के साथ होती तो प्रिया उसे किसी न किसी बहाने अपने पास बुला लेती.

‘‘मम्मी मुझे स्वीमिंग सीखनी है. मैं घर में बोर हो जाती हूं,’’ एक दिन कनु ने अपने मन की इच्छा बताई.

प्रिया कुछ कहती उस से पहले नीरज बोल पड़ा, ‘‘अरे वाह बेटे स्वीमिंग तो मुझे भी बहुत पसंद है. ऐसा करो कल से मैं औफिस के बाद तुम्हें स्वीमिंग क्लासेज ले चलूंगा.’’

‘‘औफिस के बाद शाम में कनु को ले जाने की क्या जरूरत? मैं दिन में इसे ले कर चली जाऊंगी. आप औफिस पर ध्यान दो,’’

कह कर प्रिया कनु का हाथ पकड़ कर किचन में ले आई.

‘‘स्वीमिंग, साइकिलिंग, पेंटिंग, डांसिंग के बजाए कभी कभी कुकिंग भी सीखने की कोशिश कर. लड़की है तू पर किचन

में कभी आती नहीं है.

चल चाय बना कर पिला,’’ प्रिया उसे डांट लगाते हुए बोली.

कनु को किचन में छोड़ कर प्रिया नीरज के पास लौटी. उसे घूरते हुए बोली, ‘‘हर समय कनु के आगे पीछे क्यों घुमते हो? क्या मु?ा में कोई कमी है? क्या मैं ने तुम्हें हर खुशी नहीं दी?’’

‘‘कहना क्या चाहती हो प्रिया? कनु बिन बाप की बच्ची है. उसे यह न लगे कि सौतेला पिता खराब होता है इसलिए उसे हर खुशी देना चाहता हूं. उसे हौसला देना चाहता हूं कि वह अकेली नहीं.’’

‘‘इतना भोला बनने की कोशिश मत करो नीरज. क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम कनु के मासूम रूप के पीछे दीवाने हो रहे हो? मधुमक्खी की तरह चिपके रहते हो उस से.’’

‘‘प्रिया खबरदार जो ऐसी बात की,’’ कहते हुए नीरज ने उसे चांटा रसीद कर दिया.

प्रिया को ऐसे रिएक्शन की अपेक्षा नहीं थी. उधर आवाज सुन कर कनु भी किचन से ड्राइंगरूम में आ गई. बेटी को देख कर दोनों चुप हो गए और ऐसी ऐक्टिंग करने लगे जैसे कुछ न हुआ हो.

उस दिन घर का माहौल कुछ सही नहीं था. नीरज रात को अपने कमरे में खामोश बैठा था तो प्रिया की बेचैनी भी खत्म नहीं हो रही थी. उधर कनु भी अपनी उल?ानों में खोई थी.

रात को नीरज को नींद नहीं आ रही थी. उस ने कभी सोचा भी न था कि प्रिया अपनी बेटी को ले कर ऐसा इलजाम लगा सकती है. वह बालकनी में निकल कर टहलने लगा. कनु भी जगी हुई थी. वह पानी लेने के लिए उठी तो पिता को बाहर देख करउधर ही आ गई.

नीरज कनु को देख कर थोड़ा चौंका फिर बोला, ‘‘क्या बात है बेटा आप सोए नहीं?’’

कनु पिता के गले लगती हुई बोली, ‘‘पापा आप बहुत अच्छे हो. मैं ने कभी सोचा नहीं था कि मुझे आप के जैसे पापा मिलेंगे. आई लव यू.’’

नीरज ने भी उस का माथा सहलाते हुए आई लव यू कहा. तभी पीछे से प्रिया वहां आ गई. उन्हें गले लगे देख कर वह अपना आपा खो बैठी और अनापशनाप चिल्लाने लगी.

प्रिया नीरज पर तोहमत लगाती हुई बोली, ‘‘तुम्हें लज्जा नहीं आई अपनी बेटी की उम्र की लड़की से इश्क फरमा रहे हो और कनु तुझे जरा भी एहसास है कि तू क्या कर रही है?’’

अचानक मां के इन इलजामों को सुन कर कनु को समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. वह घबराते हुए पीछे हट गई और उस की आंखों से आंसू बह निकले.

नीरज का पारा चढ़ गया. वह चिल्लाता हुआ बोला, ‘‘तुम कैसी औरत हो प्रिया, अपनी ही मासूम बच्ची पर ऐसी ओछी तोहमत लगा रही हो? कितनी घटिया सोच है तुम्हारी. लानत है तुम पर. बहुत हो गया. मैं तुम्हारे साथ अब नहीं रह सकता. मैं तुम्हें और इस घर को छोड़ कर चला जाऊंगा प्रिया. कनु भी होस्टल चली जाएगी. फिर तुम रहना अकेले. तुम्हारी यही सजा है,’’ कहते हुए वह अपने कमरे में चला गया और

आंखें बंद कर लेट गया. उस की धड़कनें गुस्से में बढ़ी हुई थीं.

तभी कनु का मोबाइल बजा तो गुस्से में प्रिया ने पूछा, ‘‘इतनी रात को तुझे कौन फोन कर रहा है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम मम्मी,’’ कनु ने घबराते हुए कहा.

प्रिया ने उस का फोन औन कर के स्पीकर पर डाल दिया. मोबाइल पर एक क्रूर घटिया सी आवाज गूंजी, ‘‘कनिका डार्लिंग अरे बाबा कनु डार्लिंग सुन रही हो न? मैं हूं तेरी सहेली निभा के भाई का दोस्त और सुन मैं ने कहा था न तेरी एक चीज मेरे पास है… तो अभी मैं ने वही चीज तुझे भेजी है. जरा व्हाट्सऐप खोल और वह वीडियो देख. फिर बाहर निकल के आ जा मैं इंतजार कर रहा हूं.’’

यह सब सुन कर प्रिया की आंखें डर और आश्चर्य से फैल गईं. जल्दी से व्हाट्सऐप खोला. दोनों मांबेटी वीडियो देखते ही घबरा उठीं. उन का दिल धक से रह गया. तब तक फिर से फोन आया तो प्रिया ने उसे स्पीकर पर डाल दिया.

फिर वही घटिया आवाज गूंजी, ‘‘सुन कनु डार्लिंग यह वीडियो मैं ने अभी वायरल नहीं किया है पर किसी भी समय कर सकता हूं. अगर तू चाहती है कि मैं इसे वायरल न करूं तो बाहर आ जा और हमारे साथ एक लौंग ड्राइव पर चल. घर वालों को कुछ मत बताना चुपचाप आ जा बाहर.’’

‘‘यह सब क्या है? कौन बदतमीज हो तुम? मेरी बेटी का ऐसा वीडियो बनाने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई?’’ प्रिया गुस्से में चीखी.

‘‘ओए आंटी ऐसीवैसी बातें न करना. तेरी लाडली की इज्जत मेरे हाथ में है. जरा सा ऊंचनीच बोला न तो वायरल कर दूंगा. धमकी नहीं दे रहा हूं सचाई बता रहा हूं. मुझ से तमीज से बात कर.’’

‘‘तु?ा से तमीज से बात करूं? तेरे जैसे घटिया आदमी से?’’ प्रिया चीख रही थी और कनु रो रही थी. यह सब सुन कर जल्दी से नीरज बाहर आया और पूछने लगा कि क्या हो रहा है.

तब दौड़ती हुई कनु आई और नीरज से लिपट गई, ‘‘पापा वह लड़का मेरा वीडियो बना कर मुझे ब्लैकमेल कर रहा है.’’

‘‘कैसा वीडियो?’’

‘‘पापा वह…’’ कनु से कुछ बोला नहीं

जा रहा था तो प्रिया बोल उठी, ‘‘घटिया लड़केने कनु का कपड़े बदलते हुए वीडियो बना लिया है.’’

तब कनु सारी बात बताते हुए बोली, ‘‘2 दिन पहले मैं अपनी सहेली निभा के घर गई थी. उस का बर्थडे था तो इसी बीच निभा के भाई के दोस्त ने मेरे ऊपर सौस गिरा दी. निभा ने मुझे दूसरे कपड़े दे कर कहा कि तू चेंज कर ले. बस वहां उस के बाथरूम में मैं ने कपड़े चेंज किए और जरूर उस लड़के ने वहां कैमरा छिपा रखा था. उस ने मेरा वीडियो बना लिया.’’

‘‘इतनी गिरी हुई हरकत करने वाले लड़कों को अभी मैं सही कर के आता हूं,’’ कहता हुआ नीरज बाहर निकला.

पीछे से प्रिया पुकारती रह गई, ‘‘अरे नहीं वे गुंडे हैं. उन के पास मत जाना,’’ लेकिन नीरज ने एक न सुनी और बाहर निकल कर उन्हें खोजने लगा.

थोड़ी दूर से आवाज आई, ‘‘अरे अंकल

तू क्यों आ गया? तेरी लड़की कहां है? तुझे किस ने बुलाया?’’

‘‘अभी बताता हूं मुझे किस ने बुलाया कमीनो,’’ कहता हुआ नीरज आगे बढ़ा तो 3 लड़के सामने आ गए. नीरज उन के ऊपर लातघूंसों के साथ टूट पड़ा. बहुत देर तक नीरज अकेले उन से मोबाइल छीनने और उन्हें वश में करने की कोशिश करता रहा. मगर वे 3 थे सो उन का पलड़ा ही भरा था. नीरज को काफी चोटें आ गई थीं. फिर भी वह उन से लगातार जूझ रहा था. तभी एक लड़के ने चाकू निकाला और उस के कंधे पर इतना तेज वार किया कि वह तिलमिला उठा और नीचे गिर पड़ा. तीनों लड़के बाइक ले कर भाग गए.

तब तक प्रिया बाहर आ गई थी. नीरज को संभालते हुए रोने लगी, ‘‘यह सब क्या किया तुम ने नीरज? गुंडों से भिड़ गए.’’

‘‘मैं गुंडो से भिड़ गया और तब तक भिड़ता रहूंगा जब तक इन कमीनों को ऊपर या अस्पताल न पहुंचा दूं. जो मेरी बच्ची की इज्जत से खेले उसे जीने का हक नहीं है. मैं कुछ गलत नहीं कर रहा.’’

‘‘नीरज प्लीज मेरी बात सुनो. चलो अभी तुम्हें अस्पताल ले कर जाना होगा.’’

प्रिया उसे अस्पताल ले कर गई. मरहमपट्टी के बाद शाम तक छुट्टी मिल गई.

प्रिया ने घर पहुंचते ही हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘नीरज, तुम्हें कुछ हो गया तो मैं जी नहीं पाऊंगी प्लीज इन सब में मत पड़ो.’’

‘‘तो क्या करूं बेटी को भेज दूं कमीनों के साथ या फिर उस की इज्जत के साथ खेलने दूं? उस वीडियो को वायरल करने दूं? छोड़ो फिर पुलिस को खबर कर देता हूं.’’

‘‘पर इस से भी कनु की बदनामी होगी.’’

‘‘तो ठीक है फिर मुझे मेरे हिसाब से बदला ले लेने दो. उन्हें चुप करने का मौका दो. मैं तीनों को अस्पताल पहुंचाऊंगा और वह वीडियो अपने हाथ से डैस्ट्रौय करूंगा,’’ नीरज बोला.

‘‘पर इस तरह आमनेसामने लड़ना सही नहीं. कोई और उपाय निकालो,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘ठीक है कुछ और सोचता हूं.’’

फिर नीरज ने कनु से लड़के का पता मांगा. कनु ने अपनी सहेली से पूछ कर पिता को पता दे दिया और बताया कि वह सुबहसुबह शहर के दूसरे हिस्से में स्थित जिम जाता है.

अगले दिन सुबह जब सब सो रहे थे तो नीरज ने अपनी कार निकाली और उस की नंबर प्लेट चेंज कर दी. फिर उस लड़के के घर के बाहर छिप कर उस का इंतजार करने लगा. सुबह 8 बजे के करीब वह लड़का अपने दोस्त के साथ बाइक पर बैठ कर निकला तो नीरज उस का पीछा करने लगा. नीरज उस की बाइक के एकदम करीब पहुंचा और पुल के पास सुनसान सड़क देख कर उस की बाइक को अपनी गाड़ी से इतनी तेजी से धक्का मारा कि एक लड़का तो उसी समय कोमा में चला गया और दूसरा बुरी तरह घायल हो गया. नीरज ने दोनों लड़कों की जेब से मोबाइल निकाले और उन्हें बुरी तरह तहसनहस कर के पानी में फेंक दिया.

एक लड़का और जो उन का साथी था वह अभी बचा हुआ था. मगर उस के पास कोई वीडियो नहीं था. वह बस मजे लेने के लिए उन दोनों के साथ आया था. उस से कोई खतरा न देख कर नीरज ने अपनी तरफ से मामले को यहीं खत्म करने का फैसला लिया. अब न तो बांस था और न बांसुरी के बजने का डर क्योंकि मोबाइल के साथ वीडियो समाप्त हो चुका था.

प्रिया नीरज की एहसानमंद थी और समझ चुकी थी कि नीरज कनु को ले कर कितना सैंसिटिव है.

अगले दिन जब सारा मामला शांत हो गया तो प्रिया ने पूछा, ‘‘कनु की इज्जत के पीछे तुम ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की. तुम्हें कुछ हो जाता तो?’’

‘‘तो मुझे कोई गिला न होता. मेरी बेटी मुझ से मदद मांग रही थी. मैं पिता हूं और उसे सुरक्षित रखना, उस की सुरक्षा करना मेरी जिम्मेदारी और मेरा प्यार है. अब तुम इस प्यार को जिस भी नजर से देखो. चाहे तुम्हें हम दोनों के बीच जो रिश्ता नजर आए पर मेरे लिए अपनी बेटी की इज्जत से बढ़ कर कुछ भी नहीं.’’

प्रिया नीरज के गले लग गई और आंसू बहाती हुई बोली, ‘‘नीरज मुझे माफ कर दो. इतने अच्छे पिता और इतनी प्यारी बेटी के बीच के रिश्ते को मैं ने गलत नजर से देखा.’’

कनु भी पिता के सीने से लगती हुई बोली, ‘‘पापा आप के जैसा पापा मैं ने कोई और नहीं देखा. मेरे अपने पापा भी ऐसे नहीं होते जैसे आप हैं.’’

नीरज ने खुशी से बांहें फैला कर दोनों को अपने से लगा लिया.

Korean Rice Roll : फैमिली के लिए बनाएं कोरियन राइस रोल

Korean Rice Roll :  हम आपको एक ऐसी ही डिश को बनाना बता रहे हैं जिसमें आपको देशी और विदेशी दोनों ही टेस्ट प्राप्त हो सकेंगे. कोरियन व्यंजन अपने तीखे और चटपटे टेस्ट के लिए जाने जाते हैं. यदि आप भी अपने डेली के भोजन में कुछ परिवर्तन चाहते हैं तो इस कोरियन डिश को अवश्य ट्राई कीजिये.

कितने लोगों के लिए            8

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

चावल का आटा                 2 कप

कॉर्नफ्लोर                        1/2 कप

नमक                              1/2 टीस्पून

घी                                   1 टीस्पून

पानी                                डेढ़ कप

साबुत लाल मिर्च              8

कटा लहसुन                   10 कली

अदरक किसा                  1 टीस्पून

बारीक कटा पत्ता गोभी      1 कप

बारीक कटी प्याज               1

बारीक कटा हरा प्याज          1 लच्छी

तेल                                   1 टेबलस्पून

विधि

साबुत लाल मिर्च के डंठल तोड़कर 1 घण्टे के लिए पानी में भिगो दें. चावल का आटा, कॉर्नफ्लोर और नमक को एक साथ छलनी से छान लें. पानी में घी डालकर उबालें. जब पानी में उबाल आ जाये तो चावल का आटा, कॉर्नफ्लोर और नमक को धीरे धीरे गर्म पानी में मिलाएं. ध्यान रखें कि पानी सिर्फ उतना ही मिलाएं जितने में आटा बंधने जैसा हो जाये. अब इसे आधे घण्टे के लिए ढक कर रख दें. लाल मिर्च को पानी में से निकालकर इन्हें आधे लहसुन और अदरक  के साथ मिक्सी में पीस लें. अब चावल के आटे को थोड़ा सा घी लगाकर मसल मसलकर चिकना कर लें. जब आटा एकदम लचीला हो जाये तो इससे लंबे लंबे 4 रोल बना लें. उबलते पानी के ऊपर छलनी में इन रोल्स को रखें और ढककर 20 मिनट तक तेज आंच पर पकाएं. ठंडा होने पर इन्हें 2 इंच लंबे टुकड़ों में काट लें. अब एक पैन में तेल डालकर बचा लहसुन और प्याज भूनें और कटा पत्ता गोभी और हरा प्याज डालकर 2-3 मिनट तेज आंच पर पकाएं. पिसा लाल मिर्च का पेस्ट डालकर पुनः 3-4 मिनट पकाएं. कटे रोल्स डालकर अच्छी तरह चलाएं. तैयार रोल्स को हरे प्याज से गार्निश करके सर्व करें.

Writer- Pratibha Agnihotri

Skin Care Tips : रिंकल फ्री स्किन की रखती हैं चाहत, तो भूलकर भी न करें ये गलतियां

Skin Care Tips :  बढ़ती उम्र का प्रभाव सब से पहले चेहरे पर ही दिखाई देने लगता है. चेहरे पर कब महीन रिंकल्स उभर आते हैं, इस का पता ही नहीं चलता. ये रिंकल्स चेहरे की चमक कम कर देते हैं, इसलिए ऐक्सपर्ट्स मानते हैं कि रिंकल्स को अवौइड नहीं करना चाहिए. रिंकल्स ही कुछ समय बाद एजिंग में बदलने लगते हैं. अकसर लोग 30-35 की उम्र के बाद ही रिंकल्स की समस्या को ले कर ऐक्सपर्ट्स के पास जाते हैं, लेकिन तब तक ट्रीटमैंट के लिए देर हो चुकी होती है. तब ट्रीटमैंट से सिर्फ 30% तक ही फायदा होता है. अगर आप 20-22 साल की उम्र से ही स्किन की केअर करेंगी तो रिंकल्स की समस्या आएगी ही नहीं.?

रिंकल्स होने के कारण

ऐक्सपर्ट्स का मानना है कि रिंकल्स होने के 2 कारण होते हैं, जेनेटिक व ऐक्सटर्नल. यदि रिंकल्स जेनेटिक वजह से हैं तो उन्हें ठीक किया जा सकता है.

अगर आप अपने आहार संतुलन का पूरा ध्यान रखती हैं तो आप की त्वचा जवां नजर आती है. भोजन में विटामिन ए,सी और ई को बढ़ाने से त्वचा ग्लो करने लगेगी और टाइट भी रहेगी.

वजन कम होना: दूसरों की देखादेखी यदि डाइटिंग शुरू करने की सोची और खाना कम कर दिया है तो इस से भले ही शरीर कुछ स्लिमट्रिम हो जाए, पर वजन तेजी से कम होने के कारण आप की स्किन ढीली होने लगती है और स्किन पर रिंकल्स पड़ने लगते हैं, जो देखने में अच्छे नहीं लगते.

प्रदूषण: आप कहीं भी निकल जाइए, चारों तरफ प्रदूषण से जुड़ी ऐसी समस्याएं घेरे रहेंगी जो वास्तव में धीरेधीरे ऐसा बहुत कुछ चुरा लेती हैं जो बड़ी मुश्किल से हासिल होता है.

अल्ट्रावौयलेट किरणें: अल्ट्रावौयलेट किरणों से त्वचा में कोलेजन प्रोटीन कम हो जाता है और त्वचा पर रिंकल्स व एजिंग की समस्या होने लगती है.

नींद हो पूरी: 8 घंटे की गहरी नींद सोएं. अगर काम करने की विवशता हो, तो बीचबीच में उठ कर एकाध बार आंखों को ठंडे पानी से धोएं.

तनाव का न हो दबाव: तनाव से दूर रहें. स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से आप रिंकल्स से काफी सालों तक बच सकती हैं.

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