Hindi Kahani : माटी की गंध के परे – क्या थी गीता की कहानी

Hindi Kahani : शुभा खाना खातेखाते टीवी देख रही थी, बीचबीच में नीरज से बातें भी करती जा रही थी. सहसा उसे लगा कि उस ने टीवी में गीता को देखा है. मुंह में कौर था. उंगली के इशारे से टीवी की तरफ देखती हुई शुभा बोल उठी, ‘‘देखो, देखो, गीता है वहां.’’ बच्चे चौंक कर मां को देखने लगे, फिर उस की मुद्रा पर हंस दिए. मुंह में कौर होने से शब्द अस्पष्ट से निकले. अस्पष्ट शब्दों से नीरज एकाएक समझ नहीं पाया बात को. समझ कर देखा, तब तक कोई और खबर आने लगी थी.

‘‘ए, चुप रहो तुम लोग,’’ बच्चों को डपट कर शुभा फिर नीरज से बोली, ‘‘सच नीरज, गीता ही थी, शतप्रतिशत, 2 बार क्लिप में देखा. अभी अपने अलबम में उस का फोटो दिखाऊंगी तुम्हें.’’

खाना समेटने के बाद तौलिए से हाथों को पोंछती शुभा कालेज के समय का अपना अलबम निकाल लाई. पन्ने पलटपलट कर देखने लगी, फिर एक जगह रुक कर उंगली रखती हुई नीरज को दिखाने लगी. चित्र में एक कन्या अपने होंठों के कोने पर उंगली रखे झिलमिल दांत दिखाती हंस रही थी. साधारण सी लड़की का असाधारण फोटो.

नीरज को बड़ी शोख सी लगी लड़की. ‘‘वाह, क्या पोज बनाया है तुम्हारी सहेली ने, एकदम फिल्म स्टार लग रही है.’’‘‘हां, पापा ठीक कहते हैं. हेमा मालिनी लग रही हैं, आंटी,’’ नन्ही नीता होहो कर के हंसने लगी. कुछ मजाक का पुट था उन के स्वरों में. शुभा तुनक गई.

‘‘देखो, मजाक मत करो तुम लोग. सच, इसी को टीवी पर देखा था किसी भाषण में. आई होगी भाषण सुनने.’’‘‘अरे छोड़ो, तुम्हें क्या करना है. तुम शाम के खाने की तैयारी करो. याद है न, करीब 7 लोग आएंगे खाना खाने. मैं जाता हूं औफिस.’’

नीरज चला गया था. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए थे. शुभा को अकेलापन मिला तो फिर गीता स्मृतियों में हलचल मचाने चली आई. अतीत की झील में वर्तमान ने कंकड़ उछाल दिया. छोटीबड़ी लहरें एकदूसरे को उलांघती उसे छूने लगीं. गीता उस की प्रिय सहेली थी. बचपन की, गुड्डेगुडि़यों की उम्र की, चुहल शरारतों की, कालेज की. बचपन तो सहज सा ही गुजरा था. कालेज के दिनों में गीता अपने में डूब गई थी. एक अलग सी दुनिया बसा ली थी उसने.

अचानक नीता के रोने की आवाज आई. नलिन, नीता के लड़ने के स्वर तो बहुत देर से सुनाई दे रहे थे, पर जैसे चेतना के दायरे में न थे. विचारों में व्यवधान पड़ने पर उसे होश आया. झपट कर बच्चों के पास पहुंची. पूरा कमरा खिलौनों से अटा पड़ा था. बस्ते इधरउधर मुंह औंधा कर पड़े थे. कपड़े अलमारी से बाहर लटक रहे थे. शुभा ने कमरा देखा तो चिल्ला पड़ी, ‘‘यह क्या हाल कर दिया कमरे का.’’

दोनों बच्चे सहम कर खड़े हो गए. नीता का रोना थम गया. डरतेडरते वह ही बोली, ‘‘मैं ने तो भैया के बाद फेंका है उन का सामान, पहले तो…’’नलिन बात काट कर खीजा, ‘‘नहींनहीं, इसी ने पहले मेरे बैग से ड्राइंग की कौपी निकाली थी.’’‘‘चुप रह कर खेलो, खबरदार जो अब आवाज सुनाई दी,’’ बच्चों को डांट कर उस का ध्यान गीता में ही उलझ गया.

कालेज के दिन, कितने ही वाकिए, बातें याद आती रहीं. इन सब में गीता कहीं न कहीं से आ टपकती. गीता एक पहेली सी लगती थी. बेबाक, शोख, शर्मलिहाज से परे, पर उद्दंड नहीं थी. कब क्या कर गुजरती, कोई जान नहीं पाता था. मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी थी, पर सपने ऐसे कि आसमान को छू कर भी आगे निकलने का प्रयास करते, गहरा असंतोष दिखाती,  कभी बड़ेबड़े लोगों से मिलने की ललक, धनवान बन जाने की चाह. आज उस की बहुत सारी बातें समझ में आ रही थीं. वरना तब तो कैसी लगती थी वह, कभी तेजतर्रार, कभी मायूस, कभी मासूम.

शुभा ने अपना ध्यान गीता की यादों से बाहर निकालने की कोशिश की तो एकदम से उस को याद आ गया कि उसे मेहमानों के लिए शाम की तैयारी करनी है, जल्दीजल्दी सारा घर सैट किया. अलबम अलमारी में रख कर शाम की व्यवस्था में लग गई. काम करते हुए हाथ अभ्यासवश चल रहे थे पर दिलदिमाग दूर, बहुत दूर उड़े जा रहे थे गीता के संगसंग. भीतर ही भीतर खदबदा रही थी शुभा.

फिर बहुत दिन निकल गए. रोजमर्रा के काम के बीच गीता के बारे में सोचना छोड़ दिया. एक शाम नीरज ने आते ही पूछा, ‘‘तुम्हारी बिनाका के पोज वाली सहेली का क्या नाम है, शुभा?’’‘‘गीता, पर क्यों, कैसे याद आई अचानक से?’’‘‘अचानक से क्यों? आज सुबह ही देखा था, हमारे बैंक में आई थी लौकर डील करने.’’ शुभा के कान उत्सुक हो उठे.

‘‘मंत्री की बीवी है वह, साथ में क्या लावलश्कर था. अर्दली, सिक्योरिटी, 3-4 कारें थीं. पूरा दफ्तर ही व्यस्त हो गया उन्हें लौकर डील कराने में. कोई दौड़ कर कुरसी ला रहा था तो कोई पानी, कोई कोल्डडिं्रक तो कोई क्लर्क फाइल ले कर उन के पीछे चुपचाप खड़ा था. लौकर वाला क्लर्क चाबी ले कर साथ चलने के इंतजार में खड़ा था. क्या शान से आई और क्या शान से चली गई. किसी की तरफ आंख उठा कर तक न देखा.’’

‘‘तुम क्या कर रहे थे, तुम भी तो कुछ कर ही रहे होगे मंत्रीजी की पत्नी को दिखाने के लिए?’’‘‘मैं तो कुछ कर ही नहीं पाया. धड़धड़ाती आई थी तो कुछ सूझा ही नहीं. बस, बारबार किसी को यह बताने का मन कर रहा था कि इस को मैं जानता हूं. यह मेरी बीवी की सहेली है. पर बाबा, अच्छा हुआ जो किसी से नहीं कहा वरना बड़ी खिंचाई करते सब के सब. कुछ भी कहो, बड़ा ठसका था उस का.’’

‘‘कौन से मंत्री हैं?’’

‘‘राज्यमंत्री हैं.’’‘‘गीता ने शादी मंत्री से की या मंत्री बाद में बने?’’‘‘अब यह जन्मपत्री मैं कैसे जान सकता हूं. तुम्हारी सहेली है, तुम्हें ज्यादा पता होना चाहिए.’’

एक झटका ही काफी था, शुभा की स्मृतियों की मुट्ठी खुल गई. कितने ही क्षण लुढ़क पड़े, अपने, बेगाने, जेहन में कितनी ही परछाइयां सी आड़ीतिरछी हो कर घूमने लगीं. गीता का शोखभरा व्यक्तित्व. अपने साधारण से कपड़ों को संवारसंवार कर पहनती, नित नए ढंग से बाल बनाती, कभी चुन्नी से सिर ढकती, कभी गले में लहरा कर चलती, अलगथलग दिखने की चाह में कसे कपड़ों पर ढीला सा मर्दाना स्वेटर पहनती. कालेज की अमीरअमीर लड़कियों से दोस्ती करती, उन के घर चली जाती फिर आ कर उन के घर का विस्तार से वर्णन खूब रस लेले कर करती.

न जाने किस भाव से उस की आंखें चमकने लगती थीं. दृष्टि में स्वप्न से उतर आते थे. एक बार तंग आ कर शुभा ने पूछा, ‘क्या वे बुलाती हैं?’

‘नहीं बुलातीं तो क्या, मुझे उन के बारे में जान कर अच्छा लगता है. मसलन, वे कैसे रहती हैं. क्या तौरतरीके हैं उन के रहनेसहने के, उन के पास क्याक्या है?’

‘तुझे क्या करना है यह सब जान कर?’‘वाह, क्यों नहीं करना मुझे. सब पता तो होना चाहिए न. जब मैं अमीर बन जाऊंगी तब मुझे सबकुछ आता होगा उन जैसा ही.’

ओह तो यह रहस्य था, फिर भी न जाने क्यों यह सब पागलपन के अलावा कुछ नहीं लगता था तब. उस की बातें कोरी गप लगती थीं पर उस के कहने का आत्मविश्वास ऐसा होता था कि लगता था शायद सच ही कह रही हो. उस का सोचने का आलम निराला ही था. कालेज की लाइब्रेरी में मैगजीन के पन्ने पलटती रहती, किसी हीरोइन के गहने देखती. किसी व्यवसायी की जीवनी पढ़ती. उस के फोटो देखती, उस का घर, ड्राइंगरूम, लौन. कितनी हरसत होती थी उस की निगाहों में, कितनी महत्त्वाकांक्षाएं टहलती होती थीं. हम फिल्म देखने जाते तो कहानी, अभिनय के बारे में कोई बात नहीं. बस, घर के भव्य सैट्स उसे लुभाते रहते, गाडि़यों की शान में उस की जान रत्तीरत्ती बस जाती. उस की बातों के विषय हमेशा गाड़ी, बंगला, नौकरचाकर, गहने, साडि़यां होते. यह शौक पागलपन की हद तक पहुंचता, कालेज के कंपाउंड में कोई अच्छी गाड़ी दिखी कि वह पहुंच जाती ड्राइवर से गाड़ी के बारे में बातें करने, उसे छू कर देखने.

शादीब्याह में भी सजीधजी, गहनेसाड़ी पहने, मौडर्न दिखती महिलाओं के आसपास मंडराती रहती. तब अजब दीवानगी थी और अब मंत्री की पत्नी. यही तो चाहिए था उसे. चलो, ठीक ही हुआ. जो वह चाहती थी, मिल गया, पर ताज्जुब है, मंत्रीजी मिले कहां से? आखिर अमीर बन ही गई, नाम भी पा ही लिया.

समय के साथसाथ बात फिर आईगई हो गई. जबतब गीता का ध्यान आता भी पर गृहस्थी की व्यस्तता में खो जाता. एक शाम महीने के प्रारंभ में गृहस्थी के सामान से लदेफंदे शुभा और नीरज सवारी की प्रतीक्षा कर रहे थे. तभी एक चमचमाती कार नजदीक आ कर रुकी. कार के काले शीशे को नीचे करता एक चेहरा झांका. शुभा को पलभर भी न लगा उसे पहचानने में, पर वह अनजान बनी सकुचाई सी चुपचाप खड़ी रही. गीता ही लपक कर आई.

‘‘पहचाना नहीं शुभा, मैं गीता हूं. मैं ने तो दूर से ही पहचान लिया था. बहुत खुश हूं तुझे देख कर. यहां कैसे, कब से?’’‘‘यहीं पर हूं 2 साल से. पतिदेव हैं नीरज, यहीं पर पोस्टेड हैं,’’ उत्तर में बचपन की अंतरंगता का लेशमात्र भी पुट न था.‘‘नमस्कार, नीरजजी. आइए, घर छुड़वा दूंगी.’’

फिर ड्राइवर को संबोधित करती हुई वह बोली, ‘‘ड्राइवर, पहले मुझे घर छोड़ देना. शुभा, मुझे पार्टी में जाना है. तैयार होऊंगी. इसलिए घर जल्दी जाना है. ड्राइवर को घर बता देना, वह छोड़ देगा.’’

शुभा अभी तक असंयत थी. सारी शाम दालमसालों और गृहस्थी की खरीदारी में निकली थी जिस से सूती साड़ी बुरी तरह मुस गई थी…गंधा रही थी. यही हाल नीरज का भी था. पैर आगे ही नहीं बढ़े.

‘‘अरे आ न, बैठ.’’

फिर सारे रास्ते गीता ही बोलती रही थी. शुभा को अभी भी छोटेपन का एहसास था, कुछ भी बोलते नहीं बन रहा था. शब्द खो गए थे. बातचीत का विषय ढूंढ़े से भी नहीं मिल रहा था. अजीब सा उतावलापन छाया हुआ था. दोनों हथेलियों को धीरेधीरे मसलती शुभा चुप ही रह गई. नीरज तो एकाध बात कर भी रहा था. बंगले के बाहर गीता उतर गई और भीतर चली गई. अब एक नजर बंगले पर डाली शुभा ने. बहुत बड़ा आधुनिक शैली का बना हुआ था, बड़ा सा लौन, उस में पड़ी रंगबिरंगी कुरसियां, लौन की छतरी, कोने में स्विमिंगपूल. हां, कुत्तों के भूंकने की आवाज भी आई थी. 2-4 तो होंगे ही. कार चल दी थी. नीरज रास्ता बताता जा रहा था.

घर आ कर भी शुभा पर कार वगैरह का रोब इतना हावी रहा कि मूड उखड़ा ही रहा.वह चिनचिनाई, ‘‘क्या जरूरत थी तुम्हें कार में जाने की.’’‘‘मैं गया था क्या कार में? आगेआगे तो तुम ही लपकी थीं,’’ नीरज तुनका.

जूड़े का पिन निकालती हुई वह बड़बड़ाई, ‘शान दिखाने को ले गई थी साथ. यह न हुआ कि घर तक छोड़ने आ जाती. गैरों की तरह ड्राइवर के साथ भेज दिया. हम भी पागल थे जो उस के बुलाते ही तुरंत चल पड़े. होगी अपने घर की बड़ी अमीर. हम तो जैसे हैं वैसे ही अच्छे,’ शुभा अपने मन की खीज उतार रही थी. शीशे में साड़ी का मुसापन और चेहरे की थकान बुरी लग रही थी.

‘‘अब बंद करो यह बड़बड़ाना. जो हो गया सो हो गया. तब क्यों नहीं बोलीं? तब बोलतीं न?’’क्या बोलती शुभा? तब तो सबकुछ भूल गई थी. एक भी बात न पूछी गीता से. न ही अपनी कही. कैसी गूंगी सी बैठी रही पूरे समय. रात तक यही बातें घूमफिर कर सालती रहीं उसे.

अगले दिन सुबह ही सादे परिवेश में लिपटी गीता आ गई मुसकराते हुए. आ कर जोर से शुभा को गले लगाया और खुद घर तक न छोड़ने की क्षमा भी मांग ली. बातचीत की सहजता ने शुभा को प्रभावित किया. फिर भी सहज होने में थोड़ा समय लिया उस ने. गीता तो सदा से अलमस्त थी. पलंग पर आलथीपालथी मार कर बैठ गई. शुभा को पास ही बिठा लिया.

‘‘पहले यह बता, खाना तो नहीं बनाया तू ने?’’‘‘नहीं, अब बनाऊंगी. नीरज लंच पर घर आते हैं.’’गीता चहक उठी जैसे, ‘‘तब तो बड़ा मजा आएगा, मैं भी तेरे साथ मिल कर खाना बनाऊंगी.’’‘‘आज अमिया बड़ी, अरहर की दाल बनाएंगे, चावल भी. साथ में प्याज व बैगन का भरता और कुरकुरी मोटी रोटी. आम का अचार है क्या?’’

पुरानी मित्रता का भाव उभर आया. लाड़ से सिर हिलाती शुभा गीता के साथ रसोई में चली गई. खाना बनातेबनाते शुभा ने गीता के बारे में जानना चाहा.‘‘कैसी हो, गीता? कैसा लगता है?’’

‘‘छोड़ न, आज हमतुम बचपन की बातें करते हैं.’’‘‘तुझे याद है कैसे बड़ों से छिप कर अमराई जाते थे? पूरी दोपहरी अमिया और इमली बटोरते रहते थे.’’

‘‘हां, नमक लगा कर खाते समय तू कितने तरह के मुंह बनाती थी और कितना हंसते थे हम दोनों.’’‘‘सच शुभा, वैसी हंसी तो अब आती ही नहीं. बातबेबात कितनी हंसी आती थी, तेरी नानी बहुत डांटती थीं. क्या कहती थीं वे डांटते हुए?’’

‘‘ठट्ठा के नहीं हंसती लड़कियां, मुंह की शोभा चली जाती है,’’ मोटी आवाज में शुभा ने नानी की नकल की. देर तक गीता और शुभा हंसती रहीं फिर.

गुडि़यों के ब्याह में सीधे पल्ले की साडि़यां पहन कर गुड्डेगुडि़यों की मां होने का अभिनय करना, इकियादुकिया का खेल, छुपनछुपाई, गुट्टे तिकतिक और जो कुट्टी हो गई तो एकएक चिए का हिसाबकिताब, अमिया की गुठली के पीछे झगड़ा, गुडि़या के जेवर नोचनोच कर वापस करना. और भी न जाने कितने छोटेबड़े, सार्थकनिरर्थक प्रसंग, सारा बचपन ही दोहरा डाला. कालेज के समय की एक भी बात गीता ने नहीं की और न ही अपनी बात, न अपने पति की बात. पूरी चर्चा में गाड़ीबंगला, नौकरचाकर, अमीरी कहीं नहीं थे. था तो हुलसताहुमकता बचपन. उसे पूरे जोश के साथ याद करती रही गीता.

नीरज आए तो लंच में बहुत बेतकल्लुफ हो कर गीता ने खाना खाया. हाथ से चावलदाल का खाना, उंगलियां चाटना. रोटी की तारीफ, भरते के लिए बारबार पूछना शुभा को अच्छा लग रहा था, सहज सा.‘‘शुभा, ऐसा मनोहारी दिन फिर न जाने कब मिले. ला, 1 गिलास पानी पिला, फिर चलती हूं.’’

सुराही की मिट्टी की सोंधी गंध से युक्त पानी के 3-4 गिलास पी गई गीता. मुंह को हथेली से साफ करती गीता की आंखें स्वप्निल हो उठीं, ‘‘कितना बढि़या पानी है, कितनी सोंधी खुशबू है इस में. फ्रिज का पानी पीपी कर तो इस गंध को भूल ही गई थी. शुभा, मिट्टी से तो रिश्ता ही टूट गया मेरा. ऐसा फूल हो गई हूं जो गुलदस्ते में सजा है, फिर भी खिले रहने की भरपूर कामना करता है,’’ कहतेकहते हंस दी गीता, पर कैसी थी यह हंसी, उजड़ीउजड़ी, बियाबान सी हंसी, कितनी मरी हुई, दर्द की खनक से भरी.

‘‘सबकुछ मैं ने अपने हाथों आप ही तो बरबाद कर डाला. शादी के लिए न वर देखा, न उस की उम्र देखी, देखा तो पैसा, नौकरचाकर, बंगला, गाड़ी, हाई सोसाइटी. किसी से शिकायत भी तो नहीं कर सकती. खाली कोख उजाड़ लगती है. मातम मना कर भी क्या करूं? कौन है जो मुझे चाहते हुए भी देखे? मंत्री की पत्नी हूं, एक मुलम्मा चढ़ा रखा है अपने चेहरे पर, मेकअप का, हंसी का. अभी भी मन पूरी तरह मरा नहीं है शुभा, इसलिए फलनेफूलने की उसी चाह को सीने से लगाए मिट्टी तलाशती रहती हूं. धन पाने की चाह में क्याक्या खो दिया. शायद सबकुछ.’’

शुभा की दोनों हथेलियों को अपनी हथेलियों में भींच कर विदा ले कर गीता चल दी अपने सुविधायुक्त गुलदस्ते की ओर, कुछ दिन और खिले रहने की चाह से…माटी की गंध मन में समा कर.

Stories : रामलाल की घर वापसी – कौन थी कमला

Stories :  सात आठ घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था . कमला को भी रामलाल ने अपने साथ बस से उतार लिया था.

“देखो कमला तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है तो तुम उसके साथ क्यों रहना चाहती हो ”

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनीं रही . उसने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा

“पर …….”

“पर कुछ नहीं तुम मेरे साथ चलो”

“तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे तो क्या कहोगे”

“कह दूंगा  कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्द बाजी में ब्याह करना पड़ा”.

कमला कुछ नहीं बोली .दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गये .

रामलाल के सामने विगत एक माह में घटा एक एक घटनाक्रम चलचित्र की भांति सामने आ रहा था .

रामलाल शहर में मजदूरी करता था . ब्याह नहीं हुआ था इसलिए जो मजदूरी मिलती उसमें उसका खर्च आराम से चल जाता . थोड़े बहुत पैसे जोड़कर वह गांव में अपनी मां को भी भैज देता .गांव में एक बहिन और मां ही रहते हैं . एक बीघा जमीन है पर उससे सभी की गुज़र बसर होना संभव नहीं था .गांव में मजदूरी मिलना कठिन था इसलिए उसे शहर आना पड़ा .शहर गांव से तो बहुत दूर था “पर उसे कौन रोज-रोज गांव आना है” सोचकर यही काम करने भी लगा था . एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था . एक स्टोव और कुछ बर्तन . शाम को जब काम से लौटता तो दो रोटी बना लेता और का कर सो जाता . दिन भर का थका होता इसलिए नींद भी अच्छी आती . वह ईमानदारी से काम करता था इस कारण से सेठ भी उस पर खुश रहता . वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता

” मालिक जब गांव जाऊंगा तो आप से ले लूंगा ‘ .उसे सेठ पर भरोसा था .

साल भर हो गया था उसे शहर में रहते हुए . इस एक साल में वह अपने गांव जा भी नहीं पाया था .उस दिन उसने देर तक काम किया था . वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था .जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वो सेठ से कुछ पैसे ले ले . उसने अपनी जेब टटोली दस का सिक्का उसके हाथ में आ गया “चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा कल सेठ से पैसे मिल ही जायेंगे” .रामलाल ने गहरी सांस ली . दो रोटी बनाई और खाकर सो गया .

सुबह जब वह नहाकर काम पर जाने के लिए निकला तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं . सरकार ने लांकडाउन लगा दिया है . बहुत देर तक ऐ वह इसका मतलब ही नही समझ पाया .केवल यही समझ में आया कि वो आज काम पर नहीं जा पाएगा .वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया . मकान मालिक उसके कमरे के सामने ही मिल गया था.

“देखो रामलाल लाकडाउन लग गया है महिने भर का .कोई वायरस फैल रहा है . तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो”

रामलाल वैसे ही लाकडाउन का मतलब नहीं समझ पाया था उस पर वायरस की बात तो उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई ।

“कमरा खाली कर दो …. मुझसे कोई गल्ती हो गई क्या ?’

“नहीं पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे तो कमरे का किराया कैसे दोगे”

“क्या महिने भर काम बंद रहेगा “?

“हां घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे”.

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा .उसके पास तो केवल दस का सिक्का ही है . वह कुछ नहीं बोला उदास क़दमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया .

उसकी नींद जब खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था . उसने बाहर निकल कर देखा . बाहर सुनसान था . उसे पैसों की चिंता सता रही थी यदि वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से खाने की जुगाड़ तो हो जाती . यदि वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे अवश्य दे सकते हैं . उसने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उसकी हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई .वह फिर से दरी पर लेट गया . उसकी नींद जब खुली उस समय रात के दो बज रहे थे . भूख के कारण उसके पेट में दर्द सा हो रहा था .वह उठा “दो रोटी बना ही लेता हूं दिन भर से कुछ खाया कहां है” .स्टोव जला लिया पर आटा रखने वाले डिब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी .वह जानता था कि उसमें थोड़ा सा ही आटा शेष है .यदि अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा .उसने निराशा के साथ डिब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया . दो छोटी छोटी रोटी ही बन पाई . एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डिब्बे में रख दिया .

सुबह हो गई थी .उसने बाहर झांक कर देखा .पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी  . वह कमरे से बाहर निकल आया . उसके कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए . सेठ का घर बहुत दूर था छिपते छिपाते वह उनके घर के सामने पहुंच गया था .दिन पूरा निकल आया था .यह सोचकर कि सेठ जाग गये होंगे ,उसके हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे .उनके नौकर ने दरवाजा खोला था

“जी मैं रामलाल हूं सेठ के ठेके पर काम करता हूं”

“हां तो…..

“मुझे कुछ पैसे चाहिए हैं”

“हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे, सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते”

“पर वो लाकडाउन लग गया है न तो काम तो महिने भर बंद रहेगा”

“तभी आना…”

“तुम एक बार उनसे बोलो तो वो मुझे बहुत चाहते हैं ”

“अच्छा रूको मैं पूछता हूं” . नौकर को  शायद दया आ गई थी उस पर .

नौकर के साथ सेठ ही बाहर आ गए थे .उनके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव साफ़ झलक रहे थे जिसे रामलाल नहीं पढ़ पाया . सेठ जी को देखते ही उसने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया .

“अब तुम्हारी हिम्मत इतनी हो गई कि घर पर चले आए”

“वो सेठ जी कल आपसे पैसे ले नहीं पाया था , मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लाकडाउन हो गया है इसलिए आना पड़ा” . रामलाल ने सकपकाते हुए कहा .

“चल यहां से बड़ा पैसे लेने आया है, मैं घर पर लेन-देन नहीं करता”

सेठ ने उसे खूंखार निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया .उसने सेठ जी के पैर पकड़ लिए “मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर” .

सेठ ने उसे ठोकर मारते हुए अंदर चला गया .हक्का-बक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा .उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ।.तभी पुलिस की गाड़ियों के आने की आवाज गूंजने लगी . वह भयभीत हो गया और भागने लगा .छिपते छिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया .वह कुछ बोल पाता इसके पहले ही उसके ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे . रामलाल दर्द से कराह उठा . अबकी बार पुलिस वालों ने गंदी गंदी  गालियां देनी शुरू कर दी थी . तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नवयुवक आकर रुक गये . उन्होंने ने पुलिस वालों से कुछ बात की . पुलिस ने उन्हें जाने दिया . रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया . वह हांफते हुए अपने कमरे की दरी पर लेट गया । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे जिन्हें पौंछने वाला कोई नहीं था . उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

“क्या हुआ बेटा रो क्यों रहा है”

“कुछ नहीं मां पीठ पर दर्द हो रहा है”

“अच्छा बता मैं मालिश कर देती हूं”

मां की याद आते ही उसके आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी . रोते-रोते वह सो गया था . दोपहर का समय ही रहता होगा जब उसकी आंख खुली .उसका सारा बदन दुख रहा था . पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था  वह कराहता हुआ उठा .बहुत जोर की भूख लगी थी . वह जानता था कि डिब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है .

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा .वह अब क्या करे ? उसके सामने अनेक प्रश्न थे .

मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था सीधे अंदर घुस आया था ” तुम कमरा कब खाली कर रहे हो”

वह सकपका गया

“मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रूक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ सकूं”

रामलाल हाथ जोड़कर खड़ा हो गया था .

“नहीं माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो…. नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेंगी” . कहता हुआ वह चला गया . रामलाल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे .वह चुपचाप बैठा रहा ।.अभी तो उसे शाम के खाने की भी फ़िक्र थी .

सूरज ढलने को था .रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था खामोश और वह करता भी क्या? . उसने कमरे का दरवाजा जरा सा खोलकर देखा . बाहर पुलिस नहीं थी , वह बाहर निकल आया . थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी .वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया .कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे . वह भी लाईन में लग गया .हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे इसलिए समय लग रहा था . उसका नंबर आया एक व्यक्ति ने उसके हाथ में खाने का पैकेट रखा साथ के और लोग उसके चारों ओर खड़े हो गए .कैमरे का फ्लेश चमकने लगा .फोटो खिंचवा कर वो लोग जा चुके थे . रामलाल भी अपने कमरे कीओर लौट पड़ा “चलो ऊपर वाले ने सुन ली आज के खाने का इंतजाम तो हो गया, इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह का लेंगे” .

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी इसलिए कमरे में आते ही उसने पैकेट खोल लिया था . पैकेट में केवल दो मोटी सी पुड़ी थीं और जरा सी सब्जी .सब्जी बदबू मार रहीथी ,शायद वह खराब हो गई थी .हक्का-बक्का रामलाल रोटियों को कुछ देर तक यूं ही देखता रहा फिर उसने मोटी पुड़ी को चबाना शुरू कर दिया . दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा . वह अब क्या करें । कमरा भी खाली करना है .अपने गांव भी नहीं लौट सकता क्योंकि ट्रेने और बस बंद हो चुकी है, पैसे भी नहीं है . वह समझ ही नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करें . उसने फिर से ऊपर की ओर देखा कमरे से आसमान दिखाई नहीं दिया पर उसने मन ही मन भगवान को अवश्य याद किया .

‌उसे सुबह ही पता लगा था कि सरकार की ओर से खाने की व्यवस्था की गई है इसलिए वह ढ़ूढ़ते हुए यहां आ गया था . उसके जैसे यहां बहुत सारे लोग लाईन में लगे थे . वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे . यहीं उसकी मुलाकात मदन से हुई थी जो उसके पास वाले जिले में था .  उसे से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपने गांव लौट रहे हैं मदन भी उनके साथ जा रहा है .रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है उसे भी इनके साथ गांव चले जाना चाहिए . पर क्या इतनी दूर पैदल चल पायेगा . पर अब उसके पास कोई विकल्प है भी नहीं यदि मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा .गहरी सांस लेकर उसने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया .

शाम को वह अपना सामान बोरे में भरकर निर्धारित स्थान पर पहुंच गया जहां मदन उसका इंतज़ार कर रहा था . सैंकड़ों की संख्या में उसके जैसे लोग थे जो अपना अपना सामान सिर पर रखकर पैदल चल रहे थे .इनमें बच्चे भी थे और औरतें भी .रात का अंधकार फैलता जा रहा था पर चलने वालों के कदम नहीं रूक रहे थे .कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ की फोटो खींच रहे थे . इसी कारण से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था  .वो गालियां बक रहे थे और लौट जाने का कह रहे थे .भीड़ उनकी बात सुन नहीं रही थी . पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था “आप सभी की जांच की जाएगी और रूकने की व्यवस्था की जाएगी कोई आगे नहीं बढ़ेगा” लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था .सारे लोग रूक गये थे. एक एक कर सभी की जांच की गई .फिर सभी को इकट्ठा कर आग बुझाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई . दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी . मदन भी आंख बंद किए कराह रहा था और भी लोगों को परेशानी हो रही थी पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था .दवा झिड़कने वाले कर्मचारी उल्टा सीधा बोल रहे थे . सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था . सैकड़ों लोग और कमरे कम . बिछाने के लिए केवल दरी थी . पानी के लिए हैंडपंप था . महिलाओं के लिए ज्यादा परेशानी थी . दो रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था .

“साले हरामखोरों ने परेशान कर दिया” बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला एक महिला ने उसे रोक लिया “क्या बोला ….हरामखोर … अरे हम तो अच्छे भले जा रहे थे हमको जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं” .

महिला की आवाज सुनकर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे .

“सालों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए …”

वह फिर बड़बड़या .

“रोकने की व्यवस्था नहीं थी तो काहे को रोका…दो सूखी रोटी देकर अहसान बता रहे हैं” . किसी ने जोर से बोला था ताकि सभी सुन लें . पर साहब को यह पसंद नहीं आया . उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था “कौन बोला…जरा सामने तो आओ.. यहां मेरी बेटी की बारात लग रही है क्या ….जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवाकर खिलवायें”.

सारे सकपका गये .वे समझ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटना पड़ेंगे .छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसे तैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते .बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं थी औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं .कोई नेताजी आए थे उनसे मिलने .वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से कोई शिकायत नहीं करेगा इसलिए बाकी  सारे लोग तो खामोश रहे पर एक बुजुर्ग महिला खामोश नहीं रह पाई . जैसे ही नेताजी ने मुस्कुराते हुए पूछा “कैसे हो आप लोग…. हमने आपके लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं की है उम्मीद है आप अच्छे से होंगे”

बुजुर्ग महिला भड़क गई

“दो सूखी रोटी और सड़ी दाल देकर अहसान बता रहे हो .”

किसी को उम्मीद नहीं थी .सभी लोग सकपका गये . एक कर्मचारी उस महिला की ओर दोड़ा ,पर महिला खामोश नहीं हुई “हुजूर यहां कोई व्यवस्था नहीं है हम लोग एक कमरे में भेड़ बकरियों की तरह रह रहे हैं ”

नेताजी कुछ नहीं बोले .वे लौट चुके थे . उनके जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था .

सरकार ने बस भिजवाई थी ताकि सभी लोग अपने अपने गांव लौट सकें . मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे ,तभी किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई दी थी .उत्सुकता वश वो वहां पहुंच गया था .एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ पीठ पर मुक्के मार रहा था . वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी .

“इसे क्यों मार रहे हो भाई” रामलाल से सहन नहीं हो रहा था .

“ये तू बीच में मत पड़, ये मेरी घरवाली है समझ गया तू”

उसने अकड़ कर कहा

“अच्छा घरवाली है तो ऐसे मारोगे”

“तुझे क्या जा अपना काम कर”

रामलाल का खून खौलने लगा था “पर बता तो सही इसने किया क्या है”

“ये औरत मनहूस है इसके कारण ही मैं परेशान हो रहा हूं” ,कहते हुए उसने जोर से औरत के बाल खीचे .वह दर्द से रो पड़ी . रामलाल सहन नहीं कर सका . उसने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया .

“तुम  मेरे साथ बैठो देखता हूं कौन माई का लाल है जो तुम्हें हाथ लगायेगा”.

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी . कमला नाम बताया था उसने . उसने तो केवल यह सोचा था कि उसके आदमी का गुस्सा जब शांत हो जायेगा तो वो ही उसे ले जायेगा .पर वो उसे लेने नहीं आया “अच्छा ही हुआ उसने उसका जीवन खराब कर रखा था, पर वह यह जायेगी कहां” . प्रश्न तो रामलाल के थे पर उतर उसके पास नहीं था .बस से उतर कर उसने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था .

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी . उसे नहीं मालूम था कि उसका भविष्य क्या है पर रामलाल उसे अच्छा लगा था . वह जिन यातनाओं से होकर गुजरी है शायद उसे उनसे छुटकारा मिल जाए .

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थी .

वह उनसे लिपट पड़ा ” मां….” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे . रो तो मां भी रही थी , जब से लाकडाउन लगा था तब से ही मां उसके लिए बैचेन थीं . उन्होंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था .दोनों रो रहे थे , कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी .अपने आंसू पौंछ कर उसने कमला की ओर इशारा किया “मां आपकी बहु…..”

चौंक गईं मां ” बहु ….. तूने बगैर मुझसे पूछे ब्याह रचा लिया ….?”

“वो मां मजबूरी थी लाकडाउन के कारण…. गांव आना था इसे कहां छोड़ता…. बेसहारा है न मां”

मां ने नजर भर कर कमला को देखा

“चल अच्छा किया”

मां ने कमला का माथा चूम लिया.

Love Story : एक ताजमहल की वापसी – क्या एक हुए रचना और प्रमोद

Love Story : रचना ने प्रमोद के हाथों में ताजमहल का शोपीस वापस रखते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो प्रमोद, मैं प्यार की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. मैं प्यार के इस खेल में बुरी तरह हार गई हूं. मैं तुम्हारे प्यार की इस धरोहर को वापस करने को विवश हो गई हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी इस विवशता को समझोगे और इसे वापस ले कर अपने प्यार की लाज भी रखोगे.’’ प्रमोद हैरान था. उस ने अभी कुछ दिन पहले ही अपने प्यार की मलिका रचना को प्यार का प्रतीक ताजमहल भेंट करते हुए कहा था, ‘यह हमारे प्यार की बेशकीमती निशानी है रचना, इसे संभाल कर रखना. यह तुम्हें हमारे प्यार की याद दिलाता रहेगा. जैसे ही मुझे कोई अच्छी जौब मिलेगी, मैं तुरंत शादी करने आ जाऊंगा. तब तक तुम्हें यह अपने प्यार से भटकने नहीं देगा.’

रचना रोतेरोते बोली, ‘‘मैं स्वार्थी निकली प्रमोद, मुझ से अपने प्यार की रक्षा नहीं हो सकी. मैं कमजोर पड़ गई…मुझे माफ कर दो…मुझे अब इसे अपने पास रखने का कोई अधिकार नहीं रह गया है.’’

प्रमोद असहज हो कर रचना की मजबूरी समझने की कोशिश कर रहा था कि रचना वापस भी चली गई. सबकुछ इतने कम समय में हो गया कि वह कुछ समझ ही नहीं सका. अभी कुछ दिन पहले ही तो उस की रचना से मुलाकात हुई थी. उस का प्यार धीरेधीरे पल्लवित हो रहा था. वह एक के बाद एक मंजिल तय कर रहा था कि प्यार की यह इमारत ही ढह गई. वह निराश हो कर वहीं पास के चबूतरे पर धम से बैठ गया. उस का सिर चकराने लगा मानो वह पूरी तरह कुंठित हो कर रह गया था.

कुछ महीने पहले की ही तो बात है जब उस ने रचना के साथ इसी चबूतरे के पीछे बरगद के पेड़ के सामने वाले मैदान में बैडमिंटन का मैच खेला था. रचना बहुत अच्छा खेल रही थी, जिस से वह खुद भी उस का प्रशंसक बन गया था.

हालांकि वह मैच जीत गया था लेकिन अपनी इस जीत से वह खुश नहीं था. उस के दिमाग में बारबार एक ही खयाल आ रहा था कि यह इनाम उसे नहीं बल्कि रचना को मिलना चाहिए था. बैडमिंटन का कुशल खिलाड़ी प्रमोद उस मैच में रचना को अपना गुरु मान चुका था.

अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद वह रचना से केवल 1 पौइंट से ही तो जीत पाया था. इस बीच रचना मजे से खेल रही थी. उसे मैच हारने का भी कोई गम न था.

मैच जीतने के बाद भी खुद को वह उस खुशी में शामिल नहीं कर पा रहा था. सोचता, ‘काश, वह रचना के हाथों हार जाता, तो जरूर स्वयं को जीता हुआ पाता.’ यह उस के अपने दिल की बात थी और इस में किसी, क्यों और क्या का कोई भी महत्त्व नहीं था. उसे रचना अपने दिल की गहराइयों में उतरते लग रही थी. किसी खूबसूरत लड़की के हाथों हारने का आनंद भला लोग क्या जानेंगे.

दिन बीतते गए. एक दिन रचना की चचेरी बहन ने बताया कि वह बैडमिंटन मैच खेलने वाली लड़की उस से मिलना चाहती है. वह तुरंत उस से मिलने के लिए चल पड़ा. अपनी चचेरी बहन चंदा के घर पर रचना उस का इंतजार कर रही थी.

‘हैलो,’ मानो कहीं वीणा के तार झंकृत हो गए हों.

उस के सामने रचना मोहक अंदाज में खड़ी मुसकरा रही थी. उस पर नीले रंग का सलवारसूट खूब फब रहा था. वह समझ ही नहीं पाया कि रचना के मोहपाश में बंधा वह कब उस के सामने आ खड़ा हुआ था. हलके मेकअप में उस की नीलीनीली, बड़ीबड़ी आंखें, बहुत गजब लग रही थीं और उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रही थीं. रूप के समुद्र में वह इतना खो गया था कि प्रत्युत्तर में हैलो कहना ही भूल गया. वह जरूर उस की कल्पना की दुनिया की एक खूबसूरत झलक थी.

‘कैसे हैं आप?’ फिर एक मधुर स्वर कानों में गूंजा.

वह बिना कुछ बोले उसे निहारता ही रह गया. उस के मुंह से बोल ही नहीं फूट पा रहे थे. चेहरे पर झूलती बालों की लटें उस की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा रही थीं. वास्तव में रचना प्रकृति की सुंदरतम रचना ही लग रही थी. वह किंचित स्वप्न से जागा और बोला, ‘मैं अच्छा हूं और आप कैसी हैं?’

‘जी, अच्छी हूं. आप को जीत की बधाई देने के लिए ही मैं ने आप को यहां आने का कष्ट दिया है. माफी चाहती हूं.’

‘महिलाएं तो अब हर क्षेत्र में पुरुषों से एक कदम आगे खड़ी हैं. उन्हें तो अपनेआप ही मास्टरी हासिल है,’ प्रमोद ने हलका सा मजाक किया तो रचना की मुसकराहट दोगुनी हो गई.

‘चंदा कह रही थी कि आप ने कैमिस्ट्री से एमएससी की है. मैं भी कैमिस्ट्री से एमएससी करना चाहती हूं. आप की मदद चाहिए मुझे,’ प्रमोद को लगा, जैसे रचना नहीं कोई सिने तारिका खड़ी थी उस के सामने.

प्रमोद रचना के साथ इस छोटी सी मुलाकात के बाद चला आया, पर रास्ते भर रचना का रूपयौवन उस के दिमाग में छाया रहा. वह जिधर देखता उधर उसे रचना ही खड़ी दिखाई देती. रचना की मुखाकृति और मधुर वाणी का अद्भुत मेल उसे व्याकुल करने के लिए काफी था. यह वह समय था जब वह पूरी तरह रचनामय हो गया था.

दूसरी बार उसे फिर आलोक बिखेरती रचना द्वारा याद किया गया. इस बार रचना जींस में अपना सौंदर्य संजोए थी. चंदा ने उसे आगाह कर दिया था कि रचना शहर के एक बड़े उद्योगपति की बेटी है. इसलिए वह पूरे संयम से काम ले रहा था. उस के मित्रों ने कभी उसे बताया था कि लड़कियों के मामले में बड़े धैर्य की जरूरत होती है. पहल भी लड़कियां ही करें तो और अच्छा, लड़कों की पहल और सतही बोलचाल उन में जल्दी अनाकर्षण पैदा कर सकता है. इसलिए वह भी रचना के सामने बहुत कम बोल कर केवल हांहूं से ही काम चला रहा था. अब की बार रचना ने प्रमोद को शायराना अंदाज में ‘सलाम’ कहा तो उस ने भी हड़बड़ाहट में उसी अंदाज में ‘सलाम’ बजा दिया.

एक तेज खुशबूदार सैंट की महक उस में मादकता भरने के लिए काफी थी. चुंबक के 2 विपरीत ध्रुवों के समान रचना उसे अपनी ओर खींचती प्रतीत हो रही थी. कमरे में वे दोनों थे, जानबूझ कर चंदा उन के एकांत में बाधा नहीं बनना चाहती थी.

‘एक हारे हुए खिलाड़ी की ओर से यह एक छोटी सी भेंट स्वीकार कीजिए,’ कह कर रचना ने एक सुनहरी घड़ी प्रमोद को भेंट की तो वह इतना महंगा तोहफा देख कर हक्काबक्का रह गया.

‘जरा इसे पहन कर तो दिखाइए,’ रचना ने प्रमोद की आंखों में झांक कर उस से आग्रह किया.

‘इसे आप ही अपने करकमलों से बांधें तो…’ प्रमोद ने भी मृदु हास्य बिखेरा.

रचना ने जैसे ही वह सुंदर सी घड़ी प्रमोद की कलाई पर बांधी मानो पूरी फिजा ही सुनहरी हो गई. उसे पहली बार किसी हमउम्र युवती ने छुआ था. शरीर में एक रोमांच सा भर गया था. मन कर रहा था कि घड़ी चूमने के बहाने वह रचना की नाजुक उंगलियों को छू ले और छू कर उन्हें चूम ले. पर ऐसा हुआ नहीं और हो भी नहीं सकता था. प्यार की पहली डगर में ऐसी अधैर्यता शोभा नहीं देती. कहीं वह उसे उस की उच्छृंखलता न समझे. समय की पहचान हर किसी को होनी जरूरी है वरना वक्त का मिजाज बदलते देर नहीं लगती.

अब प्रमोद का भी रचना को कोई सुंदर सा उपहार देना लाजिमी था. प्रमोद की न जाने कितने दिन और कितनी रातें इसी उधेड़बुन में बीत गईं. एक युवती को एक युवक की तरफ से कैसा उपहार दिया जाए यह उस की समझ के परे था. सोतेजागते बस उपहार देने की धुन उस पर सवार रहती. उस के मित्रों ने सलाह दी कि कश्मीर की वादियों से कोई शानदार उपहार खरीद कर लाया जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए.

मित्रों के उपहास का जवाब देते हुए प्रमोद बोला, ‘मुझे कुल्लूमनाली या फिर कश्मीर से शिकारे में बैठ कर किसी उपहार को खरीदने की क्या जरूरत है? मेरे लिए तो यहीं सबकुछ है जहां मेरी महबूबा है. मेरा मन कहता है कि रचना बनी ही मेरे लिए है. मैं रचना के लिए हूं और मेरा यह रचनामय संसार मेरे लिए कितना रचनात्मक है, यह मैं भलीभांति जानता हूं.’

यह सुन कर सभी दोस्त हंस पड़े. ऐसे मौके पर दोस्त मजाक बनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते. हासपरिहास के ऐसे क्षण मनोरंजक तो होते हैं, लेकिन ये सब उस प्रेमी किरदार को रास नहीं आते, क्योंकि जिस में उस की लगन लगी होती है. उसे वह अपने से कहीं ज्यादा मूल्यवान समझने लगता है. उसे दरख्तों, झीलों, ऋतुओं और फूलों में अपने महबूब की छवि दिखाई देने लगती है, कामदेव की उन पर महती कृपा जो होती है. कुछ तो था जो उस के मनप्राण में धीरेधीरे जगह बना रहा था. वह खुद से पूछता कि क्या इसी को प्यार कहते हैं. वह कभी घबराता कि कहीं यह मृगतृष्णा तो नहीं है. उस का यह पहलापहला प्यार था.

कहते हैं कि प्यार की पहचान मन को होती है, पर मन हिरण होता है, कभी यहां, कभी वहां उछलकूद करता रहता है. वह ज्यादातर इस मामले में अपने को अनाड़ी ही समझता है.

आजकल वह एकएक पल को जीने की कोशिश कर रहा था. वह मनप्राण को प्यार रूपी खूंटे से बांध रहा था. प्रेमरस में भीगी इस कहानी को वह आगे बढ़ाना चाह रहा था. इस कहानी को वह अपने मन के परदे पर उतार कर प्रेम की एक सजीव मूर्ति बनना चाहता था.

धीरेधीरे रचना से मुलाकातें बढ़ रही थीं. अब तो रचना उस के ख्वाबों में भी आने लगी थी. वह उस के साथ एक फिल्म भी देख आया था और अब अपने प्यार में उसे दृढ़ता दिखाई देने लगी थी. अब उसे पूरा भरोसा हो गया था कि रचना बस उस की है.

प्रमोद मन से जरूर कुछ परेशान था. वह अपने मन पर जितना काबू करता वह उसे और तड़पा जाता. वह अकसर अपने मन से पूछता कि प्यार बता दुश्मन का हाल भी क्या मेरे जैसा है? ‘हाल कैसा है जनाब का…’ इस पंक्ति को वह मन ही मन गुनगुनाता और प्रेमरस में डूबता चला जाता. प्रेम का दरिया किसी गहरे समुद्र से भी ज्यादा गहरा होता है. आजकल प्रमोद के पास केवल 2 ही काम रह गए थे. नौकरी की तलाश और रचना का रचना पाठ.

रचना…रचना…रचना…यह कैसी रचना थी जिसे वह जितनी बार भी भजता, वह उतनी ही त्वरित गति से हृदय के द्वार पर आ खड़ी होती. हृदय धड़कने लगता, खुमार छाने लगता, दीवानापन बढ़ जाता, वह लड़खड़ाने लगता, जैसे मधुशाला से चल कर आ रहा हो.

इसी तरह हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ उसे पूरी तरह याद हो गई थी, जरूर ऐसे दीवाने को मधुशाला ही थाम सकती है, जिस के कणकण में मधु व्याप्त हो, रसामृत हो, अधरामृत हो, प्रेमी अपने प्रेमी के साथ भावनात्मक आत्मसात हो.

आत्मसात हो कर वह दीनदुनिया में खो जाए. तनमन के बीच कोई फासला न रह जाए. प्रकृति के गूढ़ रहस्य को इतनी आसानी से पा लिया जाए कि प्यार की तलब के आगे सबकुछ खत्म हो जाए, मन भ्रमर बस एक ही पुष्प पर बैठे और उसी में बंद हो जाए. वह अपनी आंखें खोले तो उसे महबूब नजर आए.

अपनी चचेरी बहन चंदा पर प्रेम प्रसंग उजागर न हो इसलिए रचना प्रमोद से बाहर बरगद के पेड़ के नीचे मिलने लगी. वे शंकित नजरों से इधरउधर देखते हुए एकदूसरे में अपने प्यार को तलाश रहे थे. प्रेम भरी नजरों से देख कर अघा नहीं रहे थे. यह प्रेममिलन उन्हें किसी अमूल्य वस्तु से कम नहीं लग रहा था.

उस ने रचना के लिए अपना मनपसंद गिफ्ट खरीद लिया. उसे लग रहा था कि इस से अच्छा कोई और गिफ्ट हो ही नहीं सकता. रंगीन कागज में लिपटा यह गिफ्ट जैसे ही धड़कते दिल से प्रमोद ने रचना को दिया, तो उस की महबूबा भी रोमांच से भर उठी.

‘इसे खोल कर देखूं क्या?’ अपनी बड़ीबड़ी पलकें झपका कर रचना बोली.

‘जैसा आप उचित समझें. यह गिफ्ट आप का है, दिल आप का है. हम भी आप के हैं,’ प्रमोद बोला.

‘वाऊ,’ रचना के मुंह से एकाएक निकला.

उस ने रंगीन कागज के भीतर से ताजमहल की अनुकृति को झांकते पाया. उस के चेहरे पर रक्ताभा की एक परत सी छा गई. यह वह क्षण था जब वे दोनों आनंद के अतिरेक में आलिंगनबद्ध हो गए थे. एकदूसरे में समा गए थे.

न जाने कितनी देर तक वे उसी अवस्था में एकदूसरे के दिल की धड़कनों को सुन रहे थे. इस एक क्षण में उन्होंने मानो एक युग जी लिया था, प्यार का युग तो अनंतकाल से प्रेमीप्रेमिका को मिलने के लिए उकसाता रहता है.

अपने घर आ कर प्रमोद ने रचना का दिया हुआ उपन्यास खोल कर देखा. उस में एक पत्र रखा मिला. रचना ने बड़े सुंदर और सुडौल अक्षरों में लिखा था, ‘प्रमोद, मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों में पाती हूं. यह प्यार रूपी अमृत का प्याला मैं रोज पीती हूं, पर प्यासी की प्यासी रह जाती हूं. यह तृप्तता आखिर क्या है? कैसी है? कब पूरी होगी. इस का उत्तर मैं किस से पूछूं. यदि आप को पता हो तो मुझे जरूर बताएं…रचना…’

प्रमोद को मानो दीवानगी का दौरा पड़ गया. उसे लगा कि ऐसा पत्र शायद ही किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी को लिखा होगा. वह संसार का सब से अच्छा प्रेमी है, जिस की प्रेमिका इतने उदात्त विचारों की है. वह एक अत्यंत सुंदरी और विदुषी प्रेमिका का प्रेमी है. इस मामले में वह संसार का सब से धनी प्रेमी है.

उसे नित्य नईनई अनुभूतियां होतीं. वह प्यार के खुमार में सदैव डूबा रहता. कभी खुद को चांद तो रचना को चांदनी कहता. कभी रचना हीर होती तो वह रांझा बन जाता. कभी वह किसी फिल्म का हीरो, तो रचना उस की हीरोइन. वह प्यार के अनंत सागर में डुबकियां लगाता लेकिन इस पर भी उस के मन को चैन न आता.

‘चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए…’ अकसर वह इस फिल्मी गीत को गुनगुनाता और बेचैन रहता.

कभीकभी उसे लगता कि यह ठीक नहीं है. देवदास बन जाना कहां तक उचित है. दूसरे ही क्षण वह सोचता कि कोई बनता नहीं है, बस, अपनेआप ही देवदास बन जाने की प्रक्रिया चालू हो जाती है जो एक दिन उसे देवदास बना कर ही छोड़ती है. ‘वह भी देवदास बन गया है,’ यह सोच कर उसे अच्छा लगता. लगेहाथ ‘देवदास’ फिल्म देखने की उत्कंठा  भी उस में जागृत हो उठी.

विचारों की इसी शृंखला में सोतेजागते रहना उस की नियति बन गई, जिस दिन रचना उसे दिखाई नहीं देती तो उस के ख्वाबों में आ पहुंचती. उसे ख्वाबों से दूर करना भी उस के वश में नहीं रहता. यदि आंखें बंद करता तो वह उसे अपने एकदम करीब पाता. आंखें खोलने पर रचनाकृति गायब हो जाती और दुखद क्षणों की अनुभूति बन जाती.

इस बीच, प्रमोद को अचानक अपने मामा के यहां जाना पड़ गया. मामा कई दिन से बीमार चल रहे थे और एक दिन उन का निधन हो गया. उन की तेरहवीं तक प्रमोद का वहां रुकना जरूरी हो गया था.

एक दिन चंदा ने रचना को फोन किया तो पता चला कि रचना के उद्योगपति पिता ने उस का विवाह मुंबई के एक हीरा व्यापारी के बेटे के साथ तय कर दिया है. इस बात पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. चंदा ने जब इस दुखद सामाचार को प्रमोद तक पहुंचाया तो फोन सुनते ही उसे लगा कि उस का गला सूख गया है. अमृत कलश खाली हो गया है. रचना इतनी जल्दी किसी और की अमानत हो जाएगी, उस की कल्पना से बाहर की बात थी. वह रोंआसा हो गया और तनमन दोनों से स्तब्ध हो कर रह गया था.

‘अपने को संभालो भाई, यह अनहोनी होनी थी सो हो गई, एक सप्ताह बाद ही उस का विवाह है. वह विवाह से पहले एक बार आप से मिलना चाहती है,’ चंदा ने फोन पर जो सूचना दी थी. उस से प्रमोद का सिर चकराने लगा. इस दुखद समाचार को सुन कर उस का भविष्य ही चरमरा गया था. उस ने तुरंत रचना से मिलने के लिए वापसी की ट्रेन पकड़ी.

दूसरे दिन प्रमोद उसी बरगद के पेड़ के नीचे खड़ा था जहां उस का प्रेममिलन हुआ था. रचना भी छिपतेछिपाते वहां आई और प्रमोद से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी. वह प्रमोद को पिताजी के सामने हार कर शादी के लिए तैयार होने की दास्तान सुना रही थी. उस ने अपनी मां से भी प्रमोद के प्यार की बातें कही थीं, पर उन्होंने उस के मुंह पर अपनी उंगली रख दी.

तब से अब तक मां की उंगली मानो उस के होंठों से चिपकी हुई थी. वह न तो ठीक से रो सकती थी, न हंस सकती थी. उस ने अपने पास संभाल कर रखा ताजमहल का शोपीस प्रमोद को वापस देते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो प्रमोद, मैं तुम्हारे प्यार की कसौटी पर खरी नहीं उतरी. मैं प्यार के इस खेल में बुरी तरह हार गई हूं. मैं तुम्हारे प्यार की इस धरोहर को वापस करने के लिए विवश भी हो गई हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी इस विवशता को समझोगे और इसे वापस ले कर अपने प्यार की लाज भी रखोगे.’’

रचना इतना कह कर वापस चली गई और वह उसे जाते देख स्तब्ध रह गया. अब रचना पर उस का कोई अधिकार ही कहां रह गया था. एक धनवान ने फिर एक पाकसाफ मुहब्बत का मजाक उड़ाया था. प्रमोद के हाथों में ताजमहल जरूर था पर उस की मुमताज महल तो कब की जा चुकी थी. उस के प्यार का ताजमहल तो कब का धराशायी हो गया था.

वह अपने अश्रुपूरित नेत्रों से बारबार उस ताजमहल की अनुकृति को देखता और ‘हाय रचना’ कह कर दिल थाम लेता. प्रमोद को ऐसा अहसास हो रहा था कि आज मानो संसार के सारे दुखों ने मिल कर उस पर भीषण हमला कर दिया हो. उस ने ताजमहल के शोपीस को यह कहते हुए उसी चबूतरे पर रख दिया कि जिन प्रेमियों का प्यार सफल और सच्चा होगा वही इसे रखने के अधिकारी होंगे उसे अपने पास रखने की पात्रता अब उस के पास नहीं थी. उस के प्यार की झोली खाली हो गई थी और उस में उसे रखने का अवसर उस ने खो दिया था.

Kahaniyan : ऐसे हुई पूजा

Kahaniyan :  अंशु के अच्छे अंकों से पास होने की खुशी में मां ने घर में पूजा रखवाई थी. प्रसाद के रूप में तरहतरह के फल, दूध, दही, घी, मधु, गंगाजल वगैरा काफी सारा सामान एकत्रित किया गया था. सारी तैयारियां हो चुकी थीं लेकिन अभी तक पंडितजी नहीं आए थे. मां ने अंशु को बुला कर कहा, ‘‘अंशु, एक बार फिर लखन पंडितजी के घर चले जाओ. शायद वे लौट आए हों… उन्हें जल्दी से बुला लाओ.’’

‘‘लेकिन मां, अब और कितनी बार जाऊं? 3 बार तो उन के घर के चक्कर काट आया हूं. हर बार यही जवाब मिलता है कि पंडितजी अभी तक घर नहीं आए हैं?’’

अंशु ने टका जा जवाब दिया, तो मां सहजता से बोलीं, ‘‘तो क्या हुआ… एक बार और सही. जाओ, उन्हें बुला लाओ.’’

‘‘उन्हें ही बुलाना जरूरी है क्या? किसी दूसरे पंडित को नहीं बुला सकते क्या?’’ अंशु ने खीजते हुए कहा.

‘‘ये कैसी बातें करता है तू? जानता नहीं, वे हमारे पुराने पुरोहित हैं. उन के बिना हमारे घर में कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता?’’

‘‘क्यों, उन में क्या हीरेमोती जड़े हैं? दक्षिणा लेना तो वे कभी भूलते नहीं. 501 रुपए, धोती, कुरता और बनियान लिए बगैर तो वे टलते नहीं हैं. जब इतना कुछ दे कर ही पूजा करवानी है तो फिर किसी भी पंडित को बुला कर पूजा क्यों नहीं करवा लेते? बेवजह उन के चक्कर में इतनी देर हो रही है. इतने सारे लोग घर में आ चुके हैं और अभी तक पंडितजी का कोई अतापता ही नहीं है,’’ अंशु ने खरी बात कही.

‘‘बेटे, आजकल शादीब्याह का मौसम चल रहा है. हो सकता है वे कहीं फंस गए हों, इसी वजह से उन्हें यहां आने में देर हो रही हो.’’

‘‘वह तो ठीक है पर उन्होंने कहा था कि बेफिक्र रहो, मैं अवश्य ही समय पर चला आऊंगा, लेकिन फिर भी उन की यह धोखेबाजी. मैं तो इसे कतई बरदाश्त नहीं करूंगा. मेरी तो भूख के मारे हालत खराब हो रही है. आखिर मुझे तब तक तो भूखा ही रहना पड़ेगा न, जब तक पूजा समाप्त नहीं हो जाती. जब अभी तक पंडितजी आए ही नहीं हैं तो फिर पूजा शुरू कब होगी और फिर खत्म कब होगी पता नहीं… तब तक तो भूख के मारे मैं मर ही जाऊंगा.’’

‘‘बेटे, जब इतनी देर तक सब्र किया है तो थोड़ी देर और सही. अब पंडितजी आने ही वाले होंगे.’’

तभी पंडितजी का आगमन हुआ. मां तो उन के चरणों में ही लोट गईं.

पंडितजी मुसकराते हुए बोले, ‘‘क्या करूं, थोड़ी देर हो गई आने में. यजमानों को कितना भी समझाओ मानते ही नहीं. बिना खाए उठने ही नहीं देते. खैर, कोई बात नहीं. पूजा की सामग्री तैयार है न?’’

‘‘हां महाराज, बस आप का ही इंतजार था. सबकुछ तैयार है,’’ मां ने उल्लास भरे स्वर में कहा.

तभी अंशु का छोटा भाई सोनू भी वहां आ कर बैठ गया. पूजा की सामग्री के बीच रखे पेड़ों को देख कर उस का मन ललचा गया. वह अपनेआप को रोक नहीं पाया और 2 पेड़े उठा कर वहीं पर खाने लगा. पंडितजी की नजर पेड़े खाते हुए सोनू पर पड़ी तो वे बिजली की तरह कड़क उठे, ‘‘अरे… सत्यानाश हो गया. भगवान का भोग जूठा कर दिया इस दुष्ट बालक ने. हटाओ सारी सामग्री यहां से. क्या जूठी सामग्री से पूजा की जाएगी?’’

मां तो एकदम से परेशान हो गईं. गलती तो हो ही चुकी थी. पंडितजी अनापशनाप बोलते ही चले जा रहे थे. जैसेतैसे जल्दीजल्दी सारी सामग्री फिर से जुटाई गई और पंडितजी मिट्टी की एक हंडि़या में शीतल प्रसाद बनाने लगे.

अंशु हड़बड़ा कर बोल उठा, ‘‘अरे…अरे पंडितजी, आप यह क्या कर रहे हैं?’’

‘‘भई, शीतल प्रसाद और चरणामृत बनाने के लिए हंडि़या में दूध डाल रहा हूं.’’

‘‘मगर यह दूध तो जूठा है?’’

‘‘जूठा है. वह कैसे? यह तो मैं ने अलग से मंगवाया है.’’

‘‘लेकिन जूठा तो है ही… आप मानें चाहे न मानें, यह जिस गाय का दूध है, उसे दुहने से पहले उस के बछड़े ने तो दूध अवश्य ही पिया होगा, तो क्या आप बछड़े के जूठे दूध से प्रसाद बनाएंगे? यह तो बड़ी गलत बात है.’’

पंडितजी के चेहरे की रंगत उतर गई. वे कुछ भी बोल नहीं पाए. चुपचाप हंडि़या में दही डालने लगे.

अंशु ने फिर टोका, ‘‘पंडितजी, यह दही तो दूध से भी गयागुजरा है. मालूम है, दूध फट कर दही बनता है. दूध तो जूठा होता ही है और इस दही में तो सूक्ष्म जीव होते हैं. भगवान को भोग क्या इस जीवाणुओं वाले प्रसाद से लगाएंगे?’’ पंडितजी का चेहरा तमतमा गया. भन्नाते हुए शीतल प्रसाद में मधु डालने लगे.

‘‘पंडितजी, आप यह क्या कर रहे हैं? यह मधु तो उन मधुमक्खियों की ग्रंथियों से निकला हुआ है जो फूलों से पराग चूस कर अपने छत्तों में जमा करती हैं. भूख लगने पर सभी मधुमक्खियां मधु खाती हैं. यह तो एकदम जूठा है,’’ अंशु ने फिर बाल की खाल निकाली. पंडितजी ने हंडि़या में गंगाजल डाला ही था कि अंशु फिर बोल पड़ा, ‘‘अरे पंडितजी, गंगाजल तो और भी दूषित है. गंगा नदी में न जाने कितनी मछलियां रहती हैं, जीवजंतु रहते हैं. आखिर यह जल भी तो जूठा ही है और ये सारे फल भी तोतों, गिलहरियों, चींटियों आदि के जूठे हैं. आप व्यर्थ ही भगवान को नाराज करने पर तुले हैं. जूठे प्रसाद का भोग लगा कर आप भगवान के कोप का भाजन बन जाएंगे और हम सब को भी पाप लगेगा.‘‘

‘‘तो फिर मैं चलता हूं… मत कराओ पूजा,’’ पंडितजी नाराज हो कर अपने आसन से उठने लगे.

‘‘पंडितजी, पूजा तो आप को करवानी ही है लेकिन जूठे प्रसाद से नहीं. किसी ऐसी पवित्र चीज से पूजा करवाइए जो बिलकुल शुद्ध हो, जूठी न हो और वह है मन, जो बिलकुल पवित्र है?’’

‘‘हां बेटे, ठीक कहा तुम ने मन ही सब से पवित्र होता है. पवित्र मन से ही सच्ची पूजा हो सकती है. सचमुच, तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं. मेरी आंखों के सामने ढोंग और पाखंड का परदा पड़ा हुआ था. मुझ से बड़ी भूल हुई. मुझे माफ कर दो,’’ उस के बाद पंडितजी ने उसी सामग्री से पूजा करवा दी लेकिन पंडितजी के चेहरे पर पश्चात्ताप के भाव थे.

शरीर के अनचाहे बालों से पाना चाहती हैं छुटकारा, तो Laser Hair Removal है बैस्ट औप्शन

Laser Hair Removal : आजकल के समय में शरीर के अनचाहे बालों से नजात पाने के लिए लड़कियां विभिन्न उपायों का सहारा लेती हैं जैसेकि शेविंग, वैक्सिंग, थ्रैडिंग और डिपिलेटरी क्रीम का ये आप के लिए फायदेमंद जरूर हैं लेकिन ये परमानैंट नहीं हैं और समयसमय पर करने होते हैं जबकि वहीं, लेजर हेयर रिमूवल एक परमानैंट और असरदार उपाय है जो शरीर के अनचाहे बालों को हमेशा के लिए हटाने में मदद करता है.

आइए, जानते हैं कि लेजर हेयर रिमूवल क्यों फायदेमंद है:

परमानैंट सौल्यूशन

लेजर हेयर रिमूवल का सब से बड़ा फायदा यह है कि यह बालों को स्थाई रूप से हटाने में मदद करता है. यह बालों की जड़ों पर काम करता है और उन की फिर से बढ़ने की प्रक्रिया को रोकता है.

कम समय में रिजल्ट

लेजर हेयर रिमूवल बालों को बाकी तरीकों से हटाने की तुलना में कम समय में बेहतर परिणाम देता है. एक सिटिंग में केवल कुछ मिनटों का समय लगता है और धीरेधीरे आप महसूस करती हैं कि बालों की ग्रोथ कम हो रही है. लगातार सिटिंग्स के बाद आप को स्थाई परिणाम मिलते हैं.

स्किन सेफ रहती है

लेजर हेयर रिमूवल ट्रीटमैंट स्किन के लिए काफी सुरक्षित होता है. यह केवल बालों के रंगद्रव्य (मैलानिन) पर काम करता है और त्वचा की अन्य कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचाता.

नो पेन

लेजर हेयर रिमूवल उपचार अन्य तरीकों के मुकाबले कम दर्दनाक होता है. थ्रैडिंग, वैक्सिंग या शेविंग के दौरान होने वाली जलन और दर्द की तुलना में लेजर उपचार में बहुत कम असुविधा होती है. इस के अलावा इस से उत्पन्न होने वाली सूजन या लालिमा भी जल्दी ठीक हो जाती है.

कम देखभाल की आवश्यकता

वैक्सिंग के बाद त्वचा को ठंडा करना या शेविंग के बाद रेजर कट्स का ध्यान रखना. लेजर के परिणाम लंबे समय तक रहते हैं और आप को बारबार बाल हटाने की आवश्यकता नहीं होती.

टाइम सेविंग

चाहे आप शरीर के किसी भी हिस्से से बाल हटवाना चाहती हों लेजर हेयर रिमूवल प्रभावी रूप से काम करता है. यह चेहरे, पैरों, हाथों, बैक, बिकिनी एरिया और यहां तक कि बाइसैप्स जैसे स्थानों पर भी किया जा सकता है. दूसरे तरीकों की तुलना में यह बहुत समय बचाता है क्योंकि इसे बारबार करने की जरूरत नहीं होती है.

त्वचा में कोई नुकसान नहीं

लेजर हेयर रिमूवल उपचार तकनीक त्वचा को सुरक्षित रखते हुए बालों को हटाता है. यह बालों की जड़ में गहराई से प्रवेश करता है लेकिन त्वचा की ऊपरी परत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. इस के अलावा इस से त्वचा की सामान्य रंगत और बनावट पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता.

हर प्रकार की स्किन के लिए

लेजर हेयर रिमूवल सभी प्रकार की स्किन के लिए उपयुक्त है चाहे वह हलकी हो या गहरी. यह तकनीक अब इतनी उन्नत हो गई है कि यह हलकी स्किन और गहरे बालों से ले कर गहरी त्वचा और हलके बालों तक प्रभावी रूप से काम करती है.

नो साइड इफैक्ट्स

लेजर हेयर रिमूवल से उत्पन्न होने वाले साइड इफैक्ट्स बहुत कम होते हैं. इस के बाद हलकी सूजन या लालिमा हो सकती है जो कुछ घंटों के भीतर ठीक हो जाती है. अगर साइड इफैक्ट्स लंबे समय तक रहें तो डाक्टर से परामर्श लिया जा सकता है. लेजर हेयर रिमूवल की कीमत सत्र और उपचार के क्षेत्र के हिसाब से क्व2 हजार से क्व10 हजार तक हो सकती है.

Healthy Sandwich : नाश्ते में बनाएं बिना ब्रेड के ये हैल्दी सैंडविच

Healthy Sandwich :  मौसम कोई भी हो सुबह नाश्ता तो प्रत्येक घर में बनता ही है. रोज रोज क्या नाश्ता बनाया जाए यह भी रोज की समस्या होती है. सैंडविच एक ऐसा नाश्ता है जो हर उम्र के लोगों को पसन्द आता है. आजकल भांति भांति के फ्लेवर वाले सैंडविच बनाए जाने लगे हैं. सभी का फेवरिट होने के बाद भी सैंडविच बहुत अधिक  सेहतमंद नहीं होता क्योंकि इसे बनाने में प्रयोग की जाने वाली ब्रेड को मैदा से बनाया जाता है.

इसलिए वह हमारे डायजेस्टिव सिस्टम के लिए नुकसानदेह होता है. आज हम आपको 2 ऐसे हाई प्रोटीन सैंडविच बनाना बता रहे हैं जिन्हें हमने बिना ब्रेड के बनाया है. इनकी फीलिंग को बनाने में भी आलू के स्थान पर कॉर्न, बीटरूट, पालक और मखाने का प्रयोग किया जिससे यह बहुत अधिक सेहतमंद है. आप इन्हें घर पर बड़ी आसानी से घर में उपलब्ध सामग्री से बना सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

  1. चीजी कॉर्न सूजी सैंडविच

कितने लोगों के लिए –  4

बनने में लगने वाला समय –  20 मिनट

मील टाइप –  वेज

सामग्री

  1. सूजी 1 कप
  2. चावल का आटा 1/4 कप
  3. नमक  स्वादानुसार
  4. जीरा  1/4 टीस्पून
  5. ताजा दही डेढ़ कप

सामग्री (भरावन के लिए)

  1. स्वीट कॉर्न के दाने  1 कप
  2. बारीक कटी पालक 1 कप
  3. तेल 1/4 टीस्पून
  4. जीरा 1/8 टीस्पून
  5. नमक  स्वादानुसार
  6. बारीक कटा प्याज   1
  7. बारीक कटी हरी मिर्च   2
  8. काली मिर्च पाउडर   1/4 टीस्पून
  9. नीबू का रस 1/2 टीस्पून
  10. चीज़ स्लाइस   2
  11. बटर 1 टीस्पून

विधि

सूजी, चावल का आटा , नमक और जीरा को दही और 1/2 कप पानी के साथ अच्छी तरह मिलाकर 30 मिनट के लिए ढककर रख दें. गरम तेल में जीरा तड़काकर हरी मिर्च और प्याज को भून लें. जब प्याज सुनहरा हो जाये तो कॉर्न के दाने, पालक और नमक डालकर ढक दें. जब कॉर्न के दाने गल जाएं तो खोलकर पानी के सूखने तक पकाएं. अंत में काली मिर्च पाउडर और नीबू का रस डालकर ठंडा होने दें.

तैयार सूजी के मिश्रण को अच्छी तरह चलाएं और सैंडविच मेकर में बटर लगाकर 1 बड़ा चम्मच पतला पतला फैलाएं. सैंडविच मेकर को बंद करके दोनों तरफ से सेंक लें. इसी तरह दूसरी शीट भी तैयार कर लें. जब दोनों शीट तैयार हो जाएं तो सैंडविच मेकर में एक शीट रखकर फिलिंग को  भली भांति फैलाकर दोनों चीज स्लाइस रखकर दूसरी शीट से कवर कर दें.अब इसे सैंडविच मेकर में सुनहरा होने तक सेकें. जब दोनों तरफ से गोल्डन ब्राउन हो जाये तो 4 पीस में काटकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

2. स्प्राउट बीटरूट सैंडविच

कितने लोगों के लिए-  4

बनने में लगने वाला समय-  30 मिनट

मील टाइप –  वेज

सामग्री

  1. अंकुरित मूंग   1 कप
  2. हरी मिर्च  2
  3. अदरक  1 छोटी गांठ
  4. नमक  1/4 टीस्पून

सामग्री(स्टफिंग के लिए)

  1. किसा बीटरूट  1
  2. भुने मखाने  1/2 कप
  3. बारीक कटी हरी धनिया   1 टीस्पून
  4. बारीक कटी हरी मिर्च    2
  5. नीबू का रस   1/4 टीस्पून
  6. चाट मसाला  1/8 टीस्पून
  7. बटर 1 टीस्पून
  8. हरी चटनी 1 टीस्पून

विधि

अंकुरित मूंग को नमक, अदरक और हरी मिर्च  के साथ मिक्सी में बारीक पीस लें. अब नॉनस्टिक तवे पर बटर लगाकर  1 बड़ा चम्मच मिश्रण गोल न फैलाकर चौकोर शेप में फैलाएं. एक तरफ सेंककर ही तवे से हटा लें. इसी तरह दूसरी शीट भी बना लें. अब मखानों को दरदरा पीस  लें. अब किसे चुकन्दर में मखाना, नीबू का रस, हरी मिर्च, हरा धनिया और चाट मसाला अच्छी तरह मिलाकर स्टफिंग तैयार कर लें. अब एक शीट पर चटनी लगाकर स्टफिंग को अच्छी तरह फैला दें. ऊपर से दूसरी शीट से कवर करके तवे पर चिकनाई लगाकर मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक सेंककर सर्व करें.

Writer- Pratibha Agnihotri

‘दम लगाके हईशा’ के 10 साल हुए पूरे, Ayushmann Khurrana ने इस फिल्म को लेकर कही ये बात

Ayushmann Khurrana : ‘दम लगाके हईशा’ आज भी मेरे दिल के सबसे करीब है. इसने मुझे यह विश्वास दिलाया कि एक अच्छी और अलग कहानी हमेशा अपना दर्शक ढूंढ़ ही लेती है. यही सोच मैं आज भी अपने हर फिल्म चुनाव में अपनाता हूं और आगे भी, मैं हमेशा कुछ नया और अनोखा करता रहूंगा, क्योंकि यही मेरी पहचान है.

‘दम लगाके हईशा’ की रिलीज से पहले कई रातों तक सो नहीं पाया था – आयुष्मान खुराना ने पुराने दिनो को याद करते हुए बताया आज से ठीक दस साल पहले, ‘दम लगाके हईशा’ ने अपनी सादगी भरी कहानी, नौस्टैल्जिक माहौल और अनोखी लेकिन दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी के साथ दर्शकों का दिल जीत लिया था. इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा में एक नया ट्रेंड सेट किया और साथ ही आयुष्मान खुराना की बतौर एक्टर पहचान भी मजबूत की.

शरत कटारिया द्वारा निर्देशित और यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. ‘विकी डोनर’ के साथ शानदार डेब्यू करने के बावजूद, आयुष्मान को इंडस्ट्री में कई गलत फैसलों की वजह से असफलताओं का सामना करना पड़ा . ऐसे में ‘दम लगाके हईशा’ उनके करियर के लिए बेहद महत्वपूर्ण फिल्म बन गई थी. आयुष्मान कहते हैं, “इस फिल्म की रिलीज़ से पहले मैं कई रातों तक सो नहीं पाया था. ‘विकी डोनर’ की जबरदस्त सफलता के बाद अचानक मुझे स्टार बना दिया गया, लेकिन मुझे समझ ही नहीं आया कि इस सफलता को कैसे आगे बढ़ाना है. मैं इंडस्ट्री में नया था, मेरे पास कोई गाइडेंस नहीं थी, और मैंने कई गलत फैसले लिए.

वे आगे बताते हैं, “‘दम लगाके हईशा’ से पहले मेरी लगातार तीन फ्लौप फिल्में आई थीं. इंडस्ट्री में कहते हैं कि हर शुक्रवार हम फिर से जन्म लेते हैं और हमारा करियर भी उसी दिन तय होता है.मैं बस यही चाहता था कि यह शुक्रवार मेरा हो! रिलीज़ से पहले मैं पूरी तरह घबराया हुआ था, लेकिन फिल्म हिट हुई और इसने मुझे इंडस्ट्री में एक नई पहचान दी.

आयुष्मान अपनी टीम का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं, “मुझे इस फिल्म से दोबारा जीवन मिला.इस सफर के लिए मैं शरत कटारिया, मनीष शर्मा, आदित्य चोपड़ा सर और मेरी को-स्टार भूमि पेडनेकर का दिल से धन्यवाद करता हूं.”

फिल्म की 10वीं वर्षगांठ पर, आयुष्मान ने सोशल मीडिया पर अपनी 10 साल पहले की खुद की भावनाओं को साझा किया और लिखा: “धीरे चलो, पागल बच्चे. तुम ठीक हो जाओगे. ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव देखोगे, मुश्किलों से गुज़रोगे और उससे और भी मजबूत बनोगे तुम्हारी बड़ी प्लानिंग को लेकर कोई हड़बड़ी मत करो। कोई जल्दी नहीं है.

सिर्फ हिट फिल्म देना ही मकसद नहीं है, इससे कहीं बड़ा एक सपना है. अपने अंदर के हसलर को थोड़ा शांत करो और उस सच्चे आर्टिस्ट को उभरने दो, जिसे बनने की तुमने हमेशा ख्वाहिश रखी है. ऊपर देखो, इस जिंदगी के लिए, इस मौके के लिए और अपने एक्टर बनने के सपने को जीने के लिए शुक्रगुज़ार रहो. घबराओ मत, सब ठीक हो जाएगा. ‘दम लगाके हईशा’, यह छोटी सी लेकिन दिल से बड़ी फिल्म लाखों लोगों के दिलों को छू जाएगी और उन्हें फिर से प्यार करने का अहसास दिलाएगी. अपने जड़ों से जुड़े रहो और अपने दिल की सुनो. सफलता कदम चूमेगी .

Crazxy Review : सोहम शाह की ‘क्रेजी’ में है बड़ा सस्पेंस, 93 मिनट की फिल्म आपको करेगी फुल एंटरटेन

Crazxy Review : गिरीश कोहली द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म क्रेजी को एक कमाल की फिल्म कहना गलत ना होगा. क्योंकि सस्पेंस थ्रिलर से बनी यह 93 मिनट की यह फिल्म एक ही एक्टर सोहम शाह पर केंद्रित है. फिल्म के अन्य कलाकार जैसे टीनू आनंद, निमिषा सजायन और शिल्पा शुक्ला कुछ समय के लिए मोबाइल के कैमरे में नजर आते हैं. बाकी पूरी फिल्म 93 मिनट तक एक ही एक्टर पर केंद्रित है जिसका नाम सोहम शाह है.

सोहम शाह एक साधारण से डौक्टर के किरदार में है जिनकी बेटी का किडनैप हो गया है किडनैपर फिरौती में 5 करोड रुपए मांग रहा है. जिसे देने के लिए डौक्टर सोहम शाह किडनैपर से मिलने के लिए अपनी कार में निकल पड़ते हैं. कार में उनको अपनी तलाकशुदा बीवी और गर्लफ्रैंड के कौल आते हैं . लेकिन भावुक पिता अपनी बेटी को बचाने के लिए कई सारी मुश्किलों का सामना करते हुए घटनास्थल तक पहुंचाते हैं. फिल्म सस्पेंशन थ्रिलर और रोमांच से भरी हुई है. फिल्म का सस्पेंस भी बहुत तगड़ा है.

अगर एक्टिंग की बात करें तो पूरी फिल्म सोहम शाह पर ही केंद्रित है. सोहम शाह इससे पहले तुमबाट फिल्म में नजर आए अब फिल्म क्रेजी में सोहम शाह अपने अभिनय के जौहर दिखाएंगे. साधारण से डौक्टर के किरदार में सोहम हर फ्रेम में सशक्त अभिनय करके बिना सिक्स पैक और तामझाम के दर्शकों को डेढ़ घंटे तक बांधे रखने में कामयाब रहे हैं. फिल्म के गाने गुलजार साहब ने लिखे हैं, और विशाल भारद्वाज के साथ कुछ संगीतकार ने म्यूजिक संगीतबद्ध किया है.

फिल्म का डायरेक्शन गिरीश कोहली ने किया है जो फिल्म के लेखक भी हैं. गिरीश कोहली ने कहानी और डायरेक्शन का तालमेल बहुत अच्छे से बनाया है . फिल्म के कई सीन जहां आपको आंखें बंद करने पर मजबूर कर देंगे वही कुछ दृश्य आपको चौंकाने में कामयाब रहेंगे. कुल मिलाकर क्रेजी फिल्म एक यूनिक और शिक्षाप्रद फिल्म है जो काफी अलग हटके है जो दर्शकों को निराश नहीं करेगी.

49 की उम्र में भी Akshay Khanna हैं सिंगल, शादी न करने की क्या है वजह?

Akshay Khanna : बौलीवुड के प्रसिद्ध एक्टर अक्षय खन्ना जो कि बौलीवुड के प्रसिद्ध एक्टर विनोद खन्ना के बेटे हैं. अक्षय खन्ना ने अपने अब तक के अभिनय करियर में बहुत ज्यादा फिल्में नहीं की. लेकिन जितनी भी फिल्में की है वह सभी ज्यादातर हिट रही है. फिर चाहे वह दिल चाहता है, ताल हो हमराज हलचल या बौर्डर हो, या हाल ही में रिलीज फिल्म छावा ही क्यों ना हो. अक्षय खन्ना ने अपनी हर फिल्म में बतौर एक्टर तारीफ ही बटोरी है.

अक्षय खन्ना के अनुसार वह बचपन से एक्टर ही बनना चाहते थे क्योंकि उनको पता है कि वह अच्छी एक्टिंग कर सकते हैं और अक्षय के अनुसार एक्टिंग के अलावा अक्षय को कुछ और आता भी नहीं है . पर्सनल लाइफ की बात करें तो अक्षय खन्ना कौफी रिजर्व्ड हैं और बहुत कम लोगों से दोस्त बनाते हैं.

गौरतलब है अक्षय खन्ना ने 49 साल की उम्र में भी अब तक शादी नहीं की. वह अभी तक कुंवारे हैं. अभी तक शादी न करने की वजह बताते हुए अक्षय खन्ना ने एक इंटरव्यू में कहा है कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि वह शादी नहीं करना चाहते. अक्षय खन्ना के अनुसार मुझे शादी करने से कोई एतराज नहीं है लेकिन मैं समझौते की शादी नहीं करना चाहता था. किसी के दबाव में आकर या सब कर रहे हैं इसलिए मैं भी शादी कर लूं मै उनमें से नहीं हूं.

मैं शादी तभी करूंगा जब मुझे किसी से सच्चा प्यार होगा. क्योंकि मैं जानता हूं कि शादी में बहुत सारे समझौते करने पड़ते हैं. अगर मैं किसी से प्यार ही नहीं करता तो शादी के नाम पर समझौता कैसे कर पाऊंगा. अक्षय खन्ना के अनुसार उनकी जिंदगी में अभी तक कोई ऐसी लड़की आई ही नहीं जिसको लेकर वह शादी के बारे में सोच सके. जिस दिन मुझे मेरी पसंद की लड़की मिल जाएगी,उस दिन मैं जरूर शादी कर लूंगा. मैं शादी के खिलाफ नहीं हूं. शादी के नाम पर समझौते के खिलाफ हूं.

Couple Goals : मैं अपने पति को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाती, क्या करूं?

Couple Goals :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 27 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. मेरी शादी 10 महीने पहले हुई है. पति बहुत प्यार करते हैं पर मैं उन्हें सैक्स में पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाती. वजह है मेरी वैजाइनल मसल्स का जरूरत से ज्यादा संकुचित यानी टाइट होना. सैक्स संबंध के दौरान इस वजह से मैं पति को पूरा साथ नहीं दे पाती. इस दौरान मुझे तेज दर्द होता है. पति के आग्रह को मैं ठुकरा भी नहीं सकती पर सैक्स करने के नाम से ही मेरे हाथपांव फूल जाते हैं और पूरी कोशिश करती हूं कि टाल जाऊं. इस से पति नाराज रहने लगे हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

पहले तो आप को सैक्स के प्रति मन में बैठा डर खत्म करना होगा, क्योंकि यह कुदरत का दिया एक अनमोल तोहफा है जो दांपत्य जीवन की गरमाहट को बनाए रखता है. दूसरा, वैजाइनल मसल्स का जरूरत से ज्यादा टाइट होना कोई गंभीर बीमारी नहीं है अलबत्ता शादी के बाद शुरुआती दिनों की एक आम समस्या हो सकती है या फिर मन में बैठे डर की वजह से आप वैजाइना को संकुचित कर लेती होंगी.

बेहतर होगा कि सैक्स संबंध बनाने से पहले फोरप्ले करें और इस की अवधि शुरुआत में इतनी अधिक हो कि आप सैक्स के लिए पूरी तरह तैयार हो जाएं. इसे और मजेदार बनाने के लिए पति से कहें कि वे ल्यूब्रिकैंट या चिकनाईयुक्त औयल का प्रयोग करें. बाजार में आजकल वैजाइनल मोल्ड्स भी उपलब्ध हैं, जिन के इस्तेमाल से सैक्स क्रिया को और अधिक आनंददायक बनाया जा सकता है. पति से कहें कि सैक्स संबंध के दौरान पैनिट्रेशन स्लो रखें. धीरेधीरे आप को भी इस में आनंद आने लगेगा और सैक्स का खुल कर लुत्फ उठाने लगेंगी. बावजूद इस के अगर समस्या जस की तस रहे तो बेहतर होगा कि पहले किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें