पाखी के कारण जौब छोड़ेगी अनुपमा! अनुज का होगा बुरा हाल

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन वनराज और बा का गुस्सा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ वनराज (Sudhanshu Pandey), काव्या के अनुज की कंपनी जौइन करने के कारण गुस्से में है तो वहीं बा अनुपमा को इस पूरी लड़ाई का कारण बताती नजर आ रही है. इसी बीच पाखी का माता-पिता के लिए गुस्सा अनुपमा-वनराज की लाइफ में एक बार फिर बदलाव लाने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

समर की जान पड़ी खतरे में

अब तक आपने देखा कि पाखी के लिए वनराज और अनुपमा साथ नजर आ रहे हैं तो वहीं समर की जान खतरे में पड़ती दिख रही है. दरअसल, नंदिनी घर छोड़कर जाने की कोशिश करती है. लेकिन अनुपमा उसे रोककर कारण पूछती है, जिसके जवाब में नंदिनी कहती है कि अगर वह समर से दूर नहीं गई तो रोहन उसे जान से मार देगा. दूसरी तरफ पाखी के सोशलमीडिया पर अनुपमा औऱ वनराज को साथ देखकर अनुज काफी परेशान नजर आता है.

 

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अनुज का हुआ बुरा हाल

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा, ऑफिस आकर पाखी के स्ट्रेस वाली बात अनुज को सुनाएगी और उसके साथ काम करने से मना कर देगी. वहीं अनुपमा का ये फैसला जानकर अनुज घबरा जाएगा और अनुपमा से मिन्नतें करके कहेगा कि वह वह ऐसा नहीं कर सकती और उसे रोकना चाहेगा. हालांकि ये सब अनुज का एक बुरा सपना साबित होगा, जिससे उठकर वह घबरा जाएगा और जीके उसे संभालते नजर आएंगे.

 

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अनुपमा को लगेगा झटका

दूसरी तरफ, पाखी के कारण वनराज पूरी कोशिश करेगा कि वह अनुपमा के साथ अपना रिश्ता सुधार सके. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा को बड़ा झटका लगता नजर आने वाला है. दरअसल, पाखी के साथ सब ठीक होने के बाद अनुपमा अनुज के साथ अपने होटल की शुरुआत करने के लिए कदम बढ़ाएगी. वहीं अनुज एक कुकिंग कॉम्पिटिशन भी रखेगा. जहां किंजल और देविका के साथ दोनों डांस करते नजर आएंगे. इसी बीच अनुपमा किसी को देखकर चौंकती नजर आएगी. अब देखना होगा कि अनुपमा के साथ क्या होने वाला है.

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वारिस : सुरजीत के घर में कौन थी वह औरत

family story in hindi

सास नहीं मां बनें

आज सुहानी जब औफिस में आई तो उखड़ीउखड़ी सी दिख रही थी. 2 वर्ष पूर्व ही उस का विवाह उसी की जाति के लड़के विवेक से हुआ था. विवाह क्या हुआ, मानो उस के पैरों में रीतिरिवाजों की बेडि़यां डाल दी गईं. यह पूजा है, इस विधि से करो. आज वह त्योहार है, मायके की नहीं, ससुराल की रस्म निभाओ. ऐसी ही बातें कर उसे रोज कुछ न कुछ अजीबोगरीब करने पर मजबूर किया जाता.

समस्या यह थी कि पढ़ीलिखी और कमाऊ बहू घर में ला कर उसे गांवों के पुराने रीतिरिवाजों में ढालने की कोशिश की जा रही थी. पहनावे से आधुनिक दिखने वाली सास असलियत में इतने पुराने विचारों की होगी, कोई सोच भी नहीं सकता था.

बेचारी सुहानी लाख कोशिश करती कि उस का अपनी सास से विवाद न हो, फिर भी किसी न किसी बहाने दोनों में खटपट हो ही जाती. सास तो ठहरी सास, कैसे बरदाश्त कर ले कि बहू पलट कर जवाब दे व उसे सहीगलत का ज्ञान कराए.

सो, बहू के बारे में वह अपने सभी रिश्तेदारों से बुराइयां करने लगी. यह सब सुहानी को बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. और तो और, उस के पति को भी उस की सास ने रोधो कर और सुहानी की कमियां गिना कर अपनी मुट्ठी में कर रखा था. नतीजतन, पति से भी सुहानी का रोजरोज झगड़ा होने लगा था.

हमारे आसपास में ही न जाने ऐसे कितने उदाहरण होंगे जिन में सासें अपनी बहुओं को बदनाम करती हैं और सभी रिश्तेदारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सारी जिंदगी बहुओं की बुराई करने में बिता देती हैं.

एटीएम न मिलने का दुख

12 और 8 वर्षीय बेटियों की मां योगिता कहती हैं, ‘‘शादी होते ही जब मैं ससुराल गई तो मेरी सास ने तय कर रखा था कि पढ़ीलिखी बहू है, नौकरी तो करेगी ही और उस की तनख्वाह पर उन्हीं का ही हक होगा. लेकिन मेरे पति ने मुझे लेटेस्ट कंप्यूटर कोर्स करना शुरू करवा दिया. उन का कहना था कि अभी विवाह के कारण तुम अपनी पुरानी नौकरी छोड़ कर आई हो, नया कोर्स कर लोगी तो आगे भी नौकरी में फायदा रहेगा. मैं ने उन की बात मान कर कोर्स करना शुरू कर दिया.

पूरे दिन मेरी सास घर के बाहर ही रहतीं, उन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक है. मैं सुबह नाश्ते से ले कर रात का डिनर तक सब संभालती. उस के अलावा कंप्यूटर क्लास भी जाती और उस की पढ़ाई

भी करती. घर में साफसफाई के लिए कामवाली आती थी. सास मुझे ताने दे कर कहती कि क्या जरूरत है कामवाली की, तुम नौकरी तो कर नहीं रही हो. कभी कहतीं जब नौकरी करो तो ही सलवार सूट पहनो. अभी रोज साड़ी पहना करो.

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हमारी आर्थिक स्थिति उच्चमध्यवर्गीय थी. सो, मुझे समझ नहीं आया कि कामवाली और पहनावे का नौकरी से क्या ताल्लुक. लेकिन मैं ने कामवाली को नहीं हटाया. सास रोज किसी न किसी तरह मेरे काम में कमी निकाल कर उलटेसीधे ताने मारतीं. मुझे तो समझ ही न आया कि वे ये सब क्यों करती हैं.

मेरे पति से वे आएदिन अपनी विवाहित बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे मांगती रहतीं. मेरे पति धीरेधीरे सब समझने लगे थे कि मम्मी की पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही है. यदि हम अपने घर में कुछ नया सामान लाते तो वे झगड़ा करतीं और देवर के विवाह की जिम्मेदारी हमें बतातीं.

ऐसा चलते एक वर्ष बीत गया और तो और, मुझ से कहतीं, ‘अभी बच्चा पैदा मत करना.’ जबकि मेरी उम्र 29 वर्ष हो गई थी. मुझे समझ ही न आता कि यह कैसी सास है जो अपनी बहू को बच्चा पैदा करने पर रोक लगाती है.

मुझे हर बात पर टोकतीं और पति के साथ मुझे समय भी न बिताने देतीं. जैसे ही पति दफ्तर से घर आते, वे हमारे कमरे में आ कर बैठ जातीं.

एक दिन जब उन्होंने मुझे किसी बात पर टोका तो मैं ने भी पलट कर जवाब दिया. तो वे गुस्से में आगबबूला हो गईं और बोलीं, ‘‘नौकरी भी नहीं की तू ने, न जाने पढ़ीलिखी भी है कि नहीं, यदि करती तो तनख्वाह मुझे थोड़ी दे देती तू.’’

इतना सुन कर मुझे हकीकत समझते देर न लगी और मैं ने भी पलट कर कहा, ‘‘यही प्रौब्लम है न आप को, कि तनख्वाह नहीं आ रही. इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी उठाने पर भी आप मुझे चैन से नहीं रहने देतीं. घर की कामवाली बना रखा है. माफ कीजिए आप को बहू नहीं, एटीएम मशीन चाहिए थी. वह न मिली तो आप मुझे चौबीसों घंटों की नौकरानी की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. बेटा पूरी कमाई आप के हाथ में देदे और बहू चौबीसों घंटे आप की चाकरी करे.’’

बस, उसी दिन के बाद से उन्होंने मेरे देवरननद को मेरे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया. रिश्तेदारों से जा कर कहने लगीं, बहू को आजादी चाहिए, इसलिए बच्चा भी पैदा नहीं करती. मेरे ससुर को भी झूठी पट्टी पढ़ा कर मेरे खिलाफ कर दिया. कल तक जो ससुर मेरे पढ़ीलिखी होने के साथ घरेलू गुणों की तारीफ करते न थकते थे, अब मुझे बांझ पुकारने लगे थे.

रोजरोज के झगड़ों से परेशान हो कर मेरे पति ने अलग घर ले लिया और किसी तरह उन से पीछा छुड़ाया. अब हम उन्हें हर महीने पैसे दे देते हैं, वे चाहे जैसे रहें. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए, वे न तो मेरी बेटियों से मिलना चाहती हैं और न ही मैं उन की सूरत देखना चाहती हूं. बस, मेरे पति कभीकभी उन से मां होने के नाते, मिल लेते हैं.

संयुक्त परिवार नहीं चाहिए

25 वर्षीया रीता कहती है, ‘‘मेरे विवाह के समय मेरे पति विदेश में रहते थे. सो मैं भी विवाह होते ही उन के साथ चली गई. 2 वर्षों बाद जब हम अपने देश लौट आए और सास के साथ रहे, तब 2 महीने भी मेरी सास ने मुझे चैन से न रहने दिया. सारे दिन अपनी तारीफ करतीं और मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं. सब से पहले उन्होंने कहा कि मैं जींस और वैस्टर्न कपड़े न पहनूं क्योंकि आसपास में कई रिश्तेदार रहते हैं. मैं ने उन की वह  बात मान ली. लेकिन हर बात में बेवजह टोकाटाकी देख कर ऐसा लगता जैसे उन्हें हमारा साथ में रहना नहीं भाया.

‘‘जब तक बेटा विदेश में काम कर उन्हें पैसे देता था, सब ठीक था. लेकिन जैसे ही हम यहां आए, न जाने कौन सा तूफान आ गया. वे बारबार मेरे ससुर की आड़ में मुझे ताने देतीं. मेरे ससुर सीधेसादे रिटायर्ड बुजुर्ग हैं. उन से भी वे खूब झगड़ा करतीं. मैं फिर भी चुप रहती क्योंकि मैं जानती थी कि वे ससुर से भी बेवजह झगड़ा कर रही हैं, यदि मैं बीच में कुछ बोलूंगी तो वे मुझ से झगड़ना शुरू कर देंगी.

‘‘लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं ने एक दिन खाना बना कर परोसा और वे मेरे हाथ के बने खाने में कमी निकाल कर मुझे नीची जाति का कहने लगीं. जबकि मैं और मेरे पति एक ही ब्राह्मण जाति के हैं. तो मैं ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ही मुझे लेने बरात ले कर आए थे तो मैं यहां आई हूं, तब मेरी जाति नजर नहीं आई आप को?’

‘‘बस, अगली ही सुबह जैसे ही मेरे पति औफिस गए, वे कहने लगीं, ‘‘मैं ने चावल में रखी कीटनाशक गोली खा ली है.’’ पहले तो मैं समझी नहीं, लेकिन मेरे ससुर भी मुझे कोसने लगे और कहने लगे कि डाक्टर को बुलाओ. तो मैं ने अपनी पति को फोन किया. वे बोले कि मम्मी को अस्पताल ले कर जाओ. मैं उन्हें अस्पताल ले कर गई और वहां भरती करवाया.

‘‘इस बीच, मैं ने अपनी जेठानी को भी फोन कर बुला लिया था, जो उसी शहर में ही अलग रहती थीं. क्योंकि मैं जान गई थी कि वे मेरे से ज्यादा अनुभवी हैं और मैं ने यह भी सुन रखा था कि सास के बुरे व्यवहार के कारण ही वे अलग रहने लगी थीं.

‘‘मेरी जेठानी ने वहां आ कर मुझे बताया कि यह पुलिस केस बनेगा तो मैं बहुत घबरा गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले. तब तक मेरे पति दफ्तर से छुट्टी ले कर अस्पताल पहुंच गए, उस से पहले अस्पताल वालों ने पुलिस को खबर कर दी थी कि आत्महत्या की कोशिश का केस आया है. मेरी जेठानी ने पुलिस से बात कर मामला सुलझा दिया.

‘‘नजदीकी रिश्तेदार यह खबर सुनते ही अस्पताल में जमा हो गए. मेरे ससुर ने सभी से कहा कि सासबहू का रात को झगड़ा हुआ. सब ने सोचा कि नई बहू बहुत खराब है और मेरे पति ने भी मुझे डांटा कि मम्मी से रात को उलझने की क्या जरूरत थी. सब से बुरी बात तो यह हुई कि जब अस्पताल में टैस्ट हुए और रिपोर्ट आई तो मालूम हुआ कि उन्होंने कोई कीटनाशक गोली नहीं खाई थी. यह सब मुझे बदनाम करने के लिए किया गया एक ड्रामा था ताकि मैं आगे से उन के सामने पलट कर जवाब देने की हिम्मत ही न करूं.

‘‘आज मैं, अपने पति के साथ विदेश में ही रहती हूं. लेकिन जब भी भारत आती हूं, अपनी सास से नहीं मिलना चाहती.’’

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रीता ने जब मुझे यह सब बताया तो वह आंसुओं में डूबी हुई थी और अपनी जेठानी का बहुत धन्यवाद कर रही थी. लेकिन अपनी सास के लिए उस के मन में नफरत के सिवा कुछ भी नहीं था.

सारी सासें एक सी

योगिता और रीता के किस्सों से मुझे अपनी एक चाइनीज सहेली की याद आई. उस चाइनीज सहेली का नाम है ब्रेंडा. वह शंघाई की रहने वाली थी और मलयेशिया में नौकरी करने गईर् थी. वहीं उसे एक रशियन लड़के से प्यार हो गया और दोनों ने विवाह भी कर लिया. विवाह को 6 वर्ष बीते और उस के पति का तबादला भारत में हो गया. उस का पति होटल इंडस्ट्री में कार्यरत था.

मेरी ब्रेंडा से मुलाकात हुई और हम सहेलियां बन गईं. हम दोनों अंगरेजी में ही बात किया करते थे.

3 वर्ष हम साथ रहे और उस ने मुझे अपनी सास से होने वाले झगड़ों के बारे में बताया. मैं आश्चर्यचकित थी कि क्या विदेशी सासें, जो देखने में बहुत मौडर्न लगती हैं, भी बुरा व्यवहार करती हैं? तो उस ने कहा, ‘‘यस, देयर आर सम ड्रैगन लेडीज हू कीप डूइंग समथिंग दिस ओर दैट टू स्पौयल अवर इमेज ऐंड शो देयर सैल्फ गुड’’ यानी कि कुछ महिलाएं ड्रैगन के समान बुरी होती हैं, जो अपनेआप को भली दिखाने के लिए हमारा नाम खराब करती रहती हैं. वह मुझे शंघाई और मलयेशिया की सासों के और भी बहुत किस्से सुनाया करती.

जब वह भारत में भी थी, उन 3 वर्षों में एक बार उस की रशियन सास भारत में उस के घर आईं और 2 महीने तक उस के साथ रहीं. उन दिनों ब्रेंडा रोज ही घर में सास द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के किस्से सुनाया करती. साथ ही, उस ने यह भी बताया कि अपार्टमैंट में जो दूसरे रशियन लोग हैं, जिन से उस के पति की अच्छी दोस्ती भी है, उन से उस की सास ने उस के बारे में बहुत बुराइयां की.

उस के बाद ब्रेंडा कहती थी कि मैं अपनी मदर इन ला को भारत बुलाना ही नहीं चाहती. वे दूर रहें तो अच्छा है.

सुहानी, रीता, योगिता और ब्रेंडा सभी के किस्से सुन कर ऐसा लगता है कि यह यूनिवर्सल ट्रुथ है कि सास खाए बिना रह सकती है, पर बोले बिना नहीं.

कैसे पटेगा एकतरफा सौदा

सासबहू के रिश्ते में मधुरता की उम्मीद के साथ कोईर् भी पिता अपनी बेटी को दूसरी महिला के हाथ में सौंप देता है, जोकि उस की बेटी की मां की उम्र की होती है. इस में वह क्यों उस बहू के साथ बराबरी का कंपीटिशन बना लेती है. या यों कहिए कि देने के सिवा सिर्फ लेने का सौदा तय करना चाहती है. और यदि वह न मिले तो उसे सरेआम बदनाम करती है ताकि वह दुनिया की नजरों में अपनेआप को बेचारी साबित कर सके. क्योंकि वह एक नई लड़की के घर में कदम रखते ही घर में बरसों से चलती आई रामायण को महाभारत में बदल देती है, और सिर्फ स्वयं ही नहीं, घर के अन्य सदस्यों समेत उस पर चढ़ाई करने लगती  है?

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इसी बात पर एक बार ब्रेंडा ने कहा था, ‘‘एक्चुअली, शी यूज टू बी द क्वीन औफ द हाउस, नाऊ शी कैन नौट टोलरेट एनीबडी एल्स इन द हाउस.’’ यानी कल तक सास ही घर की रानी होती थी, सारा राजपाट उसी का था, अब वह किसी और को घर में राज करते कैसे बरदाश्त करे.’’ शायद ब्रेंडा ने सही ही कहा था, लेकिन क्या इस रिश्ते में खींचातानी की जगह प्यार व मिठास नहीं भरी जा सकती?

यदि गहराई से सोचा जाए तो इस मिठास के लिए सास को राजदरबार की रानी की तरह नहीं, एक मालिन की तरह का व्यवहार करना चाहिए. जिस तरह से मालिन नर्सरी से लाए नए पौधे उगा कर, उन्हें सींच कर हरेभरे पेड़ में बदल देती है, उसी तरह से अगर सास भी पराएघर से आई बेटी को अपने घर की मिट्टी में जड़ें फैलाने के लिए खादपानी व धूप का पूरा इंतजाम कर दे तो बहूरूपी वह पौधा हराभरा हो सकेगा और निश्चित रूप से मीठे फल मिलेंगे ही.

Financial Planning करते वक्त रखें 7 बातों का ख्याल

कम उम्र में जिम्मेदारियां कम होती हैं. ऐसे में सेविंग और लॉन्ग-टर्म फाइनैंशल प्लानिंग शुरू करने का यह सबसे अच्छा वक्त है. यंगस्टर्स को किस तरह करनी चाहिए अपनी फाइनैंशल प्लानिंग

1. बजट बनाएं और सेविंग करें

आप कितना कमा रहे हैं और कितनी बचत कर रहे हैं, इसका पूरा लेखा-जोखा रखने के लिए बजटिंग पहला कदम है. सबसे पहले महीने में आप जो भी खर्च कर रहे हैं, उसका हिसाब रखें. सामान्य डायरी, एक्सेल शीट या मोबाइल ऐप में से किसी का भी इस्तेमाल करके महीने का खर्च लिख सकते हैं.

तीन से चार महीने तक इस तरह की बजटिंग कर लेने के बाद आप अपने खर्चों को मुख्यत: तीन कैटिगरी में बांट सकते हैं. ये हैं: अनिवार्य खर्च, ऐसे खर्च जिन्हें रोका जा सकता है और मनोरंजन पर होने वाले खर्च.

2. फाइनैंशल लक्ष्य बनाएं

आप पैसा बचा तो रहे हैं लेकिन क्या इस पैसे से 10 साल बाद घर खरीद पाने की स्थिति में होंगे? या पांच साल बाद कार खरीद सकेंगे? दरअसल, सेविंग करते वक्त आपको इसी तरह से लक्ष्य बनाने की जरूरत है. लक्ष्यों को आप तीन कैटिगरी में बांट सकते हैं: शॉर्ट-टर्म, मीडियम टर्म और लॉन्ग-टर्म.

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हरेक को साफ-साफ लिखें और यह भी लिखें कि उन्हें पाने के लिए आपके पास कितने साल का समय है और आपको कितने पैसे की जरूरत होगी. यहां महंगाई दर को भी ध्यान में रखें. आज अगर किसी कार की कीमत 5 लाख है और आप लक्ष्य बनाते हैं कि सात साल बाद आपको वह कार खरीदनी है तो उस वक्त उस कार की कीमत 8.5 लाख के करीब होगी, इसलिए लक्ष्य 8.5 लाख का बनाएं, 5 लाख का नहीं.

3. सही इन्स्ट्रूमेंट में इन्वेस्टमेंट

यंगस्टर्स को आमतौर पर यह उलझन होती है कि वे किस इंस्ट्रूमेंट में पैसा लगाएं. शुरुआत करने के लिए आसान तरीके मसलन आरडी या एफडी अपनाए जा सकते हैं. अगर आप इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में गहराई से नहीं जानते हैं तो आपको बैंक जैसी अपेक्षाकृत आसान सी जगहों पर अपना पैसा इन्वेस्ट करना चाहिए.

इंस्ट्रूमेंट का तरीका अपने लक्ष्य और उस लक्ष्य के लिए लगने वाले समय के आधार पर चुनना चाहिए. अगर लक्ष्य शॉर्ट-टर्म है तो आपको पैसा डेट में लगाना चाहिए. अगर लॉन्ग-टर्म है तो पैसा इक्विटी में लगाने का रास्ता चुनना चाहिए. मीडियम टर्म लक्ष्यों के लिए आपको इक्विटी और डेट का मिक्स चुनना चाहिए.

4. ज्यादा से ज्यादा टैक्स सेविंग

टैक्स सेविंग ज्यादातर यंगस्टर्स के लिए कोई खास मुद्दा नहीं है क्योंकि उनकी सैलरी उतनी ज्यादा नहीं होती, फिर भी जितनी जल्दी हो सके, अपनी टैक्स प्लानिंग कर लेना अच्छा ही रहता है. ऐसे इंस्ट्रूमेंट में पैसा इन्वेस्ट करना शुरू करें, जो 80 सी में आपको डेढ़ लाख तक की टैक्स छूट का फायदा देते हैं. पीपीएफ, ईपीएफ, एनपीएस, यूलिप आदि ऐसे तरीके हैं. इनमें से ऐसे ऑप्शन चुनें जो आपके लक्ष्यों की जरूरतों को पूरा करते हों या उन्हें चुनें जो अपने आप हो रहे हैं.

जो अपने आप हो रहे हैं, उनमें आप ईपीएफ को शामिल कर सकते है. एक अहम चीज यह भी है कि आप टैक्स आदि की गणना करने के बाद सही रिटर्न भी कैलकुलेट करें. इसके अलावा टैक्स बचाने के लिए आप अपने एम्प्लॉयर से भी बात कर सकते हैं कि वह आपको ऐसा सैलरी स्ट्रक्चर बनाए जिससे आपकी अधिकतम टैक्स बचत हो सके.

5. सही इंश्योरेंस का चुनाव

इंश्योरेंस का मूल मकसद यह है कि यह आपके जीवन में आने वाले रिस्क को कवर करता है. इससे रिटर्न की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. कई बार लोग इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट को मिक्स कर देते हैं क्योंकि बाजार में दोनों चीजें ऑफर करने वाले कई प्रॉडक्ट हैं. जहां तक लाइफ इंश्योरेंस की बात है तो टर्म प्लान में आप कम प्रीमियम देकर मोटी रकम का कवर ले सकते हैं, लेकिन इसकी खासियत यह है कि आपको कोई रिटर्न नहीं मिलता.

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6. इमरजेंसी के लिए बचाएं

कार, घर आदि लक्ष्यों को तो यंगस्टर्स ध्यान में रख लेते हैं, लेकिन उनका ध्यान इमरजेंसी की ओर नहीं जाता. अचानक जॉब चले जाने का खतरा हो या मेडिकल इमरजेंसी, आपको इमरजेंसी की स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए. दूसरी तमाम सेविंग करने से पहले जरूरी है कि आप एक इमरजेंसी फंड बनाएं. यह आपके घर के 3 से 6 महीने के खर्च के बराबर रकम होनी चाहिए. अगर लोन की किस्त चल रही है तो वह रकम भी इसमें अलग से शामिल हो.

7. उधार के जाल में न फंसें

जब आप कम उम्र में होते हैं, तो इस बात के चांस ज्यादा होते हैं कि आप उधार के जाल में फंस जाएं. जिम्मेदारी कम होती है, पैसा और क्रेडिट कार्ड की सुविधा आपके पास आ ही जाती है. आपको जरूरत और शौक के बीच के फर्क को समझना चाहिए. क्रेडिट कार्ड का यूज करने वालों को कुछ बातों का ध्यान हमेशा रखना चाहिए. भूलकर भी क्रेडिट कार्ड के ड्यू को आगे के महीनों पर टालना नहीं चाहिए. ​ होम लोन और कार लोन चलते रहने के बाद भी अगर आप पर्सनल लोन लेते हैं तो आप बुरी तरह फंस सकते हैं.

कहीं खतना तो कहीं खाप… कब समाप्त होंगे ये शाप

“हद हो चुकी है बर्बरतां की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी.” विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बार-बार न्यूज़ चैनल बदल रहा था और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहा था. उसे भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वह अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहू-बेटी की कल्पना मात्र से ही सिहर उठा.

“अफगानी महिलाओं को इसका विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए.” पत्नी रीमा ने उसे चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उसे भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

“अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहाँ गया? क्यों सब के मुंह सिल गए.” विनय थोड़ा और जोश में आया. तभी उनकी बहू शैफाली ऑफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंग टेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी. विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुर्ती के साथ खुली-खुली पेंट और गले में झूलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

“कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल लें. इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए.” विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की. रीमा मौन रही. उसकी चुप्पी विनय की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

“अब क्या कहें? आजकल की लड़कियाँ हैं. अपनी मर्जी जीती हैं.” कहते हुए रीमा ने मुँह सिकोड़ा.

शैफाली के कानों में शायद उनकी बातचीत का कोई अंश पड़ गया था. वह अपने सास-ससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई.

“आपको क्या लगता है? तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?” कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया. बहू का इशारा समझकर विनय गुस्से में तमतमाता हुआ घर से बाहर निकल गया. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गई.

यह कोई मनगढ़ंत या कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गया हो लेकिन सोच अभी भी वही है.

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इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वो है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचार पत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज़ चैनल पर बहस… हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तस्वीर दिखा-सुना रहा है और वो है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा… बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहाँ महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए. सोशल मीडिया पर तालिबानियों को भर-भर के कोसा जा रहा है. महिलाओं को उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंग रूम में भी यही खबरें माहौल को गर्म किए हुए हैं.

कहाँ है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.

किसी और का उदाहरण क्या दीजिये, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को लेकर कितने ओछे विचार रखते हैं इसकी बानगी देखिये.

“महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं जिससे लोग उत्तेजित हो जाते हैं.” भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

“लड़के, लड़के होते हैं, उनसे गलतियाँ हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है.” सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

“अगर दो मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते.” जेके जोर्ज.

“शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नई-नई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसे-जैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वो मजा नहीं रहता.” कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को लेकर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा थरूर को “पचास लाख की गर्लफ्रेंड” कहकर विवाद को जन्म दिया था.

इसके अतिरिक्त महिलाओं को “टंचमाल” कहकर दिग्विजय सिंह, “परकटी” कहकर शरद यादव, और “टनाटन” कहकर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

“फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना.” जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पौशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढ़िया नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाऐं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंखार हो उठता है जिसकी परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाएं होती हैं. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्न-भिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है किन्तु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वो ये कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उनकी सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनिच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहाँ तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैसर्गिक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

मुस्लिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. वर्ष 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में “इक्विटी नाउ” द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति समझे जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट है. हिन्दू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है लेकिन यदाकदा इसकी सूचनाएं आती रहती हैं.

गुजरात प्रान्त में “मैत्री करार” नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहीं-कहीं लुकेछिपे आज भी जरी है. इसमें स्त्री-पुरुष बाकायदा करार करके साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार “लिव इन रिलेशनलशिप” जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं करवाती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालाँकि गुजरात के उच्च न्यायलय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

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स्त्री-पुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गॉड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वुमन को उसकी पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबाकर रखे और उससे खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन?

ताजा हालातों के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व क्व लिय्व सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उनकी स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किये जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढने की इजाजत तो दी गई है लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उनसे किसी तरह का कोई सम्पर्क नहीं रखेंगी. यूँ देखा जाये तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है लेकिन यहाँ इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90 प्रतिशत महिलाएं हिंसा का शिकार है और 17 प्रतिशत ने यौन हिंसा झेली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओ के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अक्सर पढ़ने-सुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घण्टे लगभग 39 अपराध होते हैं जिनमें 11 प्रतिशत हिस्सेदारी बलात्कार की है

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एक तिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पेरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन “जीन सॉरेस” के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12 प्रतिशत है यानी देश की हर 8 वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सबसे विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहाँ भी हर पांचवीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में इसका शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11 प्रतिशत यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग… हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इनका विरोध भी इसी पीढी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किये जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है? या फिर चालीस-पचास तक आते-आते उनकी संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करती वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई कि उन्हें एडवेंचर से दूर रहना चाहिए.

अमूमन घर की बड़ी-बूढ़ियां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्ती भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपने-अपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं ये युवा पीढी के प्रति उनकी ईर्ष्या या जलन तो नहीं? कहीं ये विचार तो उनसे ये सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रही वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले. ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सास-बहू के बीच तनातनी देखी जाती है. सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मारकर झेली थी, वह यूँ ही बिना किसी अहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे? या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरूष प्रधान समाज का कोई डर उनके अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपने ही प्रजाति की खिलाफत खड़ा कर रहा हो.

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प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा “नर्क का द्वार” या फिर “शैतान की बेटी” ही समझा जाता रहा है और उसके सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उसकी उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

Festive Special: थकी आंखों की चमक बनाए रखने के लिए 6 टिप्स

आपकी खूबसूरती आंखों से है, तो बहुत जरूरी है कि आंखें बिना मेकअप के भी खूबसूरत नजर आएं. कैसा भी समय हो दु:ख हो , सुख हो या फिर शैतानियां ही क्यों न करनी हो हर चीज आपकी आंखों से समझ आ जाती है.

आज कल की बात करें तो हम अपनी दिनचर्या में इस तरह खो गए हैं कि अपनी और अपनी आंखों का ध्यान ही नही रखतें है साथ ही ठीक ढंग से सोते नहीं जिससे वह थकी-थकी लगती हैं और आंखों में नींद भरी रहती है. हम आपको ऐसे मेकअप टिप्स के बारे में बतायेंगे जिससे आपकी थकी आंखों में चमक आ जाएगी. जानिए आंखों को खूबसूरत और चमकदार बनाने के टिप्स.

1. ठंडे खीरे के स्लाइस

अपनी थकी आंखों को ठंडे खीरे के स्लाइस से ढ़कें. इससे आपको सिर्फ थकान से ही नहीं आंखों के नीचे पड़े काले घेरों से भी फायदा मिलेगा.

2. क्लीनजिंग और माइश्चराइजिंग का इस्तेमाल करें

आप अपने दिन की शुरुआत स्किन की क्लीनजिंग करके आंखो पर ठंडे पानी के छींटे मार कर करें. इसके बाद अच्छी मॉइश्चराइजिंग क्रीम से हल्के हाथों से आंख के आस-पास मसाज करें. ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा.

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3. आई ड्रॉप

अगर आपकी आंखे लाल या ड्राय हो रही हों तो डॉक्टर से दिखाएं या फिर असकी सलाह से कोई अच्छे से आई ड्राप का इस्तेमाल करें.

4. आइब्रो के लिए यह करें

अगर आप चाहें तो अपनी आइब्रो को पेंसिल से भरें. इससे आपके आइब्रो में नया लुक और आंखों का थकान भी छिप जाएगी.

5. आंखों को आईशैडो से दें कुछ खास इफेक्ट्स

इसके लिए एक मैट न्यूट्रल ब्राउन आइशैडो लें और इसे क्रीज एरिया के ऊपर लगाएं. यह आंखों को 3-D इफेक्ट देगा और इसी आईशैडो को अपने नीचे की पलकों पर भी लगाए. शिमरी आइशैडो आपकी पलकों को हाइलाइट करेगी. इसके बाद वाटरलाइन पर क्रीमी व्हाइट या ब्लैक पेंसिल का इस्तेमाल करके इसे फाइनल टच दें. ऐसा करनें से आपकी आंखों में एक खूबसूरत लुक आएगा.

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6. कंसीलर का करें इस्तोमाल

एक हाइलाइटनिंग कंसीलर का इस्तेमाल करें इसके लिए अपनी स्किन से एक शेड कम लाइट का कंसीलर ले उसे लेकर आंखों के पास लगाएं और उंगुली या डैम्प स्पॉन्ज की मदद से थपथपाएं. इससे आपके डार्क सर्कल कम होगे साथ ही आंखों में चमक  आएगी.

पेट के कैंसर से कैसे बचें

पेट का कैंसर महिलाओं की तुलना में पुरूषों में अधिक होता है. आजकल पेट के कैंसर के मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आमतौर पर शुरूआत में पेट का कैंसर लक्षणहीन होता है और इसका पता भी आखरी स्टेज में ही चलता है. पेट का कैंसर, पेट के अंदर असामान्य कोशिकाओं की होने वाली अनियं‍त्रि‍त वृ‍द्घि‍ को ही कहते हैं. समय से पहले किसी भी बिमारी में थोड़ी सी सावधानी बरतकर आप उसे बढ़ने से रोक सकते हैं. आइए जानते हैं पेट के कैंसर के कुछ खास कारणों, लक्षणों और उपायों के बारे में..

कारण एवं लक्षण:

पेट के कैंसर की संभावना आमतौर पर धूम्रपान और मादक पदार्थों का सेवन करने वालों में ज्यादा होती है. इसके अलावा वो लोग जो अत्यधिक मसालेदार भोजन करते हैं, उनमें भी पेट के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. पेट के कैंसर के कुछ कारणों में कोई पुराना विकार जैसे गैस्ट्राइटिस की समस्या लंबे समय तक होना, कभी पेट की किसी भी तरह  कोई सर्जरी होना भी हो सकता है.

कई बार आनुवांशिक कारणों से भी पेट का कैंसर होता है. पेट का कैंसर बहुत खतरनाक साबित होता है क्योंकि जब तक पेट का कैंसर बहुत अधिक बढ़ नहीं जाता, तब तक इसके लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है. सामान्यत: पेट के कैंसर को मलाशय कैंसर के रूप में जाना जाता है. अन्य सभी कैंसर बिमारियों की तरह पेट के कैंसर में भी मृत्यु का जोखिम ज्यादा होता है. पेट का कैंसर बड़ी आंत का कैसर भी है जो पाचन तंत्र के सबसे निचले हिस्से में होता है. यह वो जगह है जहां भोजन से शरीर के लिए ऊर्जा पैदा की जाती है. साथ ही यह शरीर के ठोस अवशिष्ट पदार्थों को भी पचाता है.

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पेट का कैंसर भीतरी परत से शुरू होकर धीरे-धीरे बाहरी परतों पर फैलता है. इसीलिए यह बताना मुश्किल होता है कि कैंसर कितने भीतर तक फैला हुआ है. पेट के कैंसर के सटीक कारणों का पता लगाना मुश्किल है लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं जो पेट के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं जैसे आनुवांशिक कारण, आयु, व्यायाम न करना, धूम्रपान करना, संतुलित खान-पान न होना.

पेट के कैंसर के सटीक लक्षण क्या हैं ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन

1. पेट में अकसर दर्द रहना

2. खाना खाने के बाद पेट फूल जाना

3. भूख न लगना

4. एनीमिया की शिकायत होना

5. अधिकतर समय उल्‍टी आना

6. कमजोरी और थकावट महसूस करना

7. तेजी के साथ वजन कम होना, आदि इसके लक्षण कहें जा सकते हैं.

उपाय:

पेट के कैंसर से बचना है तो अधिक से अधिक मात्रा में फलों और सब्जियों का सेवन करें. अगर आपके घर में पहले से ही किसी को कैंसर है तो समय-समय पर चेक अप करवाते रहें.न सिर्फ कैंसर के लिए बल्कि हर बिमारी के लिए डाक्टर से समय-समय पर परामर्श लेते रहना चाहिए.

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पेट के कैंसर के उपचार के लिए सर्जरी करवाई जा सकती है. इसके अलावा कीमोथेरेपी, रेडिएशन ट्रीटमेंट के माध्यम से पेट के कैंसर की चिकित्सा संभव हो सकती है. अपनी दिनचर्या में प्रतिदिन व्यायाम या योग को शामिल करके भी पेट के कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है.

पेट के कैंसर को कम करने के लिए जंकफूड छोड़कर, संतुलित भोजन खासकर तरल पदार्थ जूस, सूप, पानी इत्यादि की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.

जामदानी सिल्क को देते हैं मॉडर्न लुक, पढ़ें खबर

सालों से फैशन इंडस्ट्री में नाम कर चुके बेस्ट कॉस्टयूम डिजाईन नेशनल अवार्ड 2019 पुरस्कार विजेता टेक्सटाइल और फैशन डिज़ाइनर गौरांग शाह ने विलुप्त होती कारीगरी को नए रूप में लाकर इस विधा में काम करने वालों के हौसले को बढाया है, पहले जो कारीगर अपनी रोजी-रोटी के लिए तरस रहे थे, उन्हें काम और भरपेट भोजन मिला. गौरांग ने हर एक कारीगरी को अलग रंग और फैब्रिक देकर आज के परिवेश में पहनने योग्य बनाया है. वे मानते है कि हैण्डलूम टाइमलेस होता है और किसी भी डिजाईन में उसे बनाने पर खुबसूरत दिखता है. इसलिए हैंडलूम कपड़ों की सुन्दरता कभी ख़त्म नहीं होती.

मुश्किल है विलुप्त कारीगरी को बचाना

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फैशन के क्षेत्र में 20 साल से अधिक समय गुजार चुके गौरांग को हर एक विलुप्त होती कारीगरी को रैंप पर लाने की चुनौती आकर्षित करती है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि हैंडलूम, पॉवरलूम के आने से ख़त्म हो चुकी थी, क्योंकि पॉवरलूम से बने कपडे जल्दी बनने की वजह से सस्ते होते है, जबकि हैंडलूम से बने कपडे महंगे हुआ करते है, क्योंकि इसे बनाने में समय अधिक लगता है.इसलिए हैंडलूम को मॉस में पहुँचाना मुश्किल होता है. FDCIलेक्मे फैशन वीक विंटर कलेक्शन में डिज़ाइनर गौरांग ने ‘चाँद’ कांसेप्ट पर आधारित कपडे रैम्प पर उतारे.

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चाँद जैसी खूबसूरती

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कांसेप्ट ‘चाँद’की गरिमा को उन्होंने अलग तरीके से प्रस्तुत कीहै. उनके अनुसार चाँद के उगने परजब उसकी शीतल किरणें धरती पर पड़ती है, तो पूरी धरती पर मानो सफ़ेद चादर बिछ जाती है, इसी कल्पना के साथ उन्होंने पूरे भारत की कारीगरी को जामदानी सिल्क साड़ियों में उतारा. शो की शुरुआत को अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने ग़ज़ल सम्राट अनूप जलोटा की ग़ज़ल‘चाँद अंगड़ाईयाँ ले रही है, चांदनी मुस्कुराने लगी है…… का लाइव सिंगिग प्रस्तुत किया. इससे रैंप पर उतरी मॉडल्स की भव्य प्रस्तुति भी देखने लायक रही. शो स्टोपरअभिनेत्री तापसी पन्नू कीजामदानी सिल्क साड़ी पर ‘वाइड फ्लोरल बॉर्डर’और अनूप जलोटा द्वारा लाइव गीत ‘चौदहवी का चाँद हो……गाने ने इस शो में चार चाँद लगाये.

जामदानी की तकनीक है कठिन

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डिज़ाइनर गौरांग कोविड 19 के लॉकडाउन के बाद पहली बार ‘चाँद’कलेक्शन को रैंप पर उतारे है. इस कांसेप्ट के बारें में उनका कहना है किये कलेक्शन मानव क्रिएटिविटी को कपड़ों के द्वारा प्रस्तुत करने काएक बेहतरीन उदाहरण है,जो लगातार जारी है. ये कला फैशन से हटकर महिला को एक अलग दुनिया के बारें में सोचने का मौका देती है, जो रोमांस और टाइमलेस सोफिस्टीकेशन होने का एहसास दिलाती है.

जामदानी कपड़ो की बुनाई की तकनीक सबसे कठिन होती है, ये कला ढाका, बनारस, कोटा, श्रीकाकुलम, उप्पदा, वेंकटगिरी, कश्मीर और पैठन में बुनी जाती है. इसे मॉडर्न लुक देने के लिए गौरांग ने पेस्टल, लाइट पिंक, लाइट ग्रीन जैसे आकर्षक रंगों के साथ कढ़ाई की सहायता ली है. इन 40 साड़ियों को बुनकरों ने पेंडेमिक और लॉकडाउन के दौरान पिछले 3 सालों से अपने-अपने घरों में बैठकर तैयार किया है.

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पेंड़ेमिक का असर फैशन इंडस्ट्री पर पड़ने के बारें में गौरांग का कहना है कि कोविड 19 की वजह से काम थोडा धीमा था, क्योंकि इसका असर कारीगरों पर अधिक हुआ है, उनकी रोजी-रोटी ख़त्म हो रही थी,लेकिन अब वे धीरे-धीरे सामान्य होते जा रहे है. फैशन का काम जो पहले महीनों में पूरा होता था, अब कोविड की वजह से पूरा साल लग गया है और नए-नए डिजाईनों पर अधिक काम नहीं हो पाया है.इसके अलावा कोविड की वजह से शोरूम बंद करने पड़े, जिससे कपड़ों की बिक्री पर काफी प्रभाव पड़ा है. अभी मेरे सारे शो रूम फिर से खुल चुके है.

सेंसर बोर्ड की लापरवाही से फिल्म #Theconversion के प्रदर्शन को लेकर गहराया रहस्य

‘‘लव जेहाद’’ और जबरन धर्म परिवर्तन का एक लड़की पर क्या असर होता है,इस विशय पर फिल्मकार विनोद तिवारी ने सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ बनायी है,जिसे वह आठ अक्टूबर को देश के सिनेमाघरों में प्रदर्षित करना चाहते थें,लेकिन अफसोस की बात यह है कि सेंसर बोर्ड की लापरवाही के चलते ऐसा संभव ही नही हो पाया.हालात यह हैं कि ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ यानी कि सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को प्रमाणपत्र ही नही दिया है,जबकि फिल्म के निर्माताओं ने अपनी तरफ से सेंसर बोर्ड की मांग के अनुरूप सारे कागज,फिल्म व रकम समय पर ही अदा कर दी थी.

निर्माता ने अपनी फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ’’ से प्रमाणित करवाने के लिए  16 अगस्त को ही निवेदन कर दिया था.लेकिन यह फिल्म तभी से सेंसर बोर्ड के पास अटकी हुई है.सेंसर बोर्ड की परीक्षण समिति अब तक तीन बार फिल्म को देख चुका है.लेकिन सेंसर बोर्ड शायद खुद किसी निर्णय पर नही पहुॅच पा रहा है, इसीलिए अभी तक सेंसर बोर्ड ने फिल्म में दृश्यों या संवादों पर किसी भी आपत्ति के बारे में निर्माताओं को सूचित नहीं किया है.मगर सेंसर बोर्ड की लापरवाही का आलम यह है कि फिल्म के निर्माता व निर्देशक द्वारा बार बार गुहार लगाने और फिल्म क ेप्रदर्षन की तारीख के बारे में सूचित किए जाने के बावजूद सेंसर बोर्ड फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को पारित या अस्वीकार करने को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है.अब तक फिल्म के निर्माता को सेंसर बोर्ड से इस संबंध में लिखित में कोई जवाब नही मिला है.

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आठ अक्टूबर की तारीख टलने के बाद अब फिल्म के निर्माता ‘‘द कंवर्जन’’को देशभर और विदेशों में 15 अक्टूबर को प्रदर्षन करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है.पूरे भारत में सिनेमाघरों में प्रमोशन के लिए पोस्टर भेजे जा चुके हैं. सिनेमाघरों को तो ठीक कर दिया गया है, लेकिन ऐसे समय में सेंसर बोर्ड के निर्णय की कमी से फिल्म को भारी नुकसान हो सकता है.

फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ के निर्माता का कहना है कि अगर फिल्म 15 अक्टूबर को प्रदर्षित नहीं होगी, तो इससे उन्हें करोड़ो का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा.इससे पहले भी निर्माता अपनी फिल्म के प्रदर्षन की तारीख दो बार बदल चुके हैं.मगर सेंसर बोर्ड का रवैया समझ से परे हैं.

बनारस के खूबसूरत घाटों पर फिल्माई गई फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ भारत में प्रेम विवाह के दौरान होने वाले धार्मिक रूपांतरणों की दुविधा की पड़ताल करती है.यानी कि यह फिल्म ‘लव जेहाद’ को लेकर है.इस फिल्म के संबंध में कुछ समय पहले निर्देशक विनोद तिवारी ने कहा था-‘‘यह कालेज की पृष्ठभूमि में एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी है.किस एक लड़की ‘लव’ट्ैप में फंसती है,किस तरह प्रेम में पड़ती है और फिर किस किस पीड़ा से गुजरती है,उसकी इसी दर्दनाक यात्रा की दास्तान है फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’.मैं आपसे साफ साफ कहता हॅूं कि हमारी यह फिल्म किसी भी जाति, किसी भी धर्म,किसी भी मजहब,किसी भी संप्रदाय के खिलाफ नही है.यह फिल्म एक पीड़ा है.यह फिल्म एक गंदी सोच के खिलाफ लड़ाई है.इंसान बुरा नही होता,इंसान की सोच बुरी होती है. ’’

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फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-विंध्या तिवारी, रवि भाटिया, प्रतीक शुक्ला, विभा छिब्बर, अमित बहल, मनोज जोशी, सुनीता रजवार, संदीप यादव, सुशील सिंह.

दो युवतियां: भाग 4- क्या हुआ था प्रतिभा के साथ

प्रवीण जितना कर सकता था, कर रहा था. उस ने मेरे ऊपर काफी रुपया खर्च किया. अधिकांश रुपया तो होटल और रिसोर्ट्स में खर्च हुआ था. बाकी मेरे उपहारों पर… फिर भी मैं संतुष्ट नहीं थी. उपहारों से तो थी, पर शरीर की मांग बढ़ती ही जा रही थी और इसे पूरा करने में प्रवीण खुद को असमर्थ पा रहा था. मैं जितना मांगती, उतना ही वह पीछे हटता जाता.

आखिर प्रवीण मेरी बढ़ती मांग से परेशान हो गया. अब वह मुझ से कटने लगा, लेकिन मैं उसे कहां छोड़ने वाली थी. अभी कुछ छुट्टियां बाकी थीं. मैं ने उस से कहा, ‘‘छुट्टियां खत्म होने से पहले एक बार वाटर पार्क चलते हैं. रात को रिसोर्ट में  ही रुकेंगे.’’

प्रवीण कुछ सोच कर बोला, ‘‘यार, मैं ने काफी पैसा खर्च कर दिया है. अभी छुट्टियां हैं. पिताजी से मांगना मुश्किल है. मैं क्या बताऊंगा उन्हें? मम्मी का पर्स मैं ने खाली कर दिया है. कालेज बंद है इसलिए  कौपीकिताबों का बहाना भी नहीं चल सकता.’’

‘‘तो फिर… कुछ न कुछ करो.’’

‘‘मैं एक काम करता हूं. मैं अपने कुछ दोस्तों से बात करता हूं. हम सभी मिल कर प्रोग्राम बनाते हैं. इस से रिसोर्ट और वाटर पार्क का खर्च आपस में बंट जाएगा. किसी एक के ऊपर बोझ भी नहीं पड़ेगा.’’

‘‘लेकिन तुम और मैं…’’

‘‘हम दोनों अलग कमरे में रह कर मौज करेंगे.’’

मैं ने ज्यादा नहीं सोचा, मान गई. अगले ही दिन प्रवीण अपने 4 दोस्तों के साथ मुझे ले कर एक बहुत अच्छे रिसोर्ट कम वाटर पार्क में चला गया. दिन भर हम लोगों ने वाटर पार्क में मस्ती की. शाम को खाना खाया. प्रवीण ने अपने दोस्तों के साथ बियर पी. कुछ ने शायद ड्रिंक भी ली थी. मैं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मुझे तो खाना खा कर कमरे में जाने की जल्दी थी, ताकि मैं प्रवीण के साथ अपने कामसुख को प्राप्त कर सकूं.

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उस दिन पहली बार ऐसा हुआ जब खाना खातेखाते मुझे झपकी आने लगी. खाना खत्म होने तक मैं मदहोश सी हो गई थी. मुझे याद है, प्रवीण मुझे सहारा दे कर कमरे में लाया था. कमरे के अंदर आते ही मैं ने अनिद्रा में उस को कस कर भींच लिया था. फिर मैं उस को अपने ऊपर लिए पलंग पर गिर पड़ी.

कैसी थी वह रात… भयानक और लिजलिजी सी. सारी रात मैं जागतीसोती सी अवस्था में रही. जब भी मेरी तंद्रा टूटती मुझे लगता, कोई पहाड़ मेरे ऊपर सरक रहा है. मैं फूल सी मसलती जाती और लगता, जैसे मेरे अंदर कोई गरम लावा बह रहा था. बेहोशी के आलम में मैं कुछ समझ न पाती कि मेरे साथ क्या हो रहा था, पर जो भी हो रहा था, वह बहुत घिनौना और भयानक था. पूरी रात न तो मेरी बेहोशी टूटी, न मेरे ऊपर से पहाड़ हटा, मैं टूटी ही नहीं, मसल दी गई थी, पूरी तरह से. अब मैं किसी मंदिर का फूल नहीं थी, मैं सड़क पर गिरा हुआ एक फूल थी, जिस के ऊपर से सैकड़ों लोगों के पैर गुजर चुके थे.

अगले दिन दोपहर को जब मेरी तंद्रा टूटी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे साथ क्या हुआ था. पूरी रात मुझे 5 दरिंदों ने झिंझोड़ा ही नहीं, नोच कर खाया भी था. मेरे शरीर के खून की एकएक बूंद उन पांचों वहशियों ने पी थी, उन के मुख लाल थे और मैं रक्तविहीन, अर्द्धबेहोशी की हालत में लुटी, असहाय बिस्तर पर निर्वस्त्र पड़ी थी. मुझ में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं उठ कर अपनी अस्मत को कपड़े के एक टुकड़े से ढक सकती.

वे पांचों कुटिलता से मुसकरा रहे थे. मेरा शरीर जल रहा था, लेकिन मैं उठ कर उन के रक्त से सने मुख नहीं नोच सकती थी. मैं ने अपने मुरदा हाथों को उठा कर किसी तरह अपनी जांघों के बीच रखा, तभी प्रवीण की कुटिलता भरी हंसी की ध्वनि मेरे कानों में पड़ी. वह कह रहा था, ‘‘आशा है, अब तुम्हारी कामेच्छा शांत हो गई होगी. इस के बाद अब तुम्हें किसी और के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’’

सुनतेसुनते मैं फिर से बेहोश होने लगी थी और इसी अर्द्धबेहोशी की हालत में मैं ने देखा कि पांचों भेडि़यों के जबड़े फैलने लगे थे. उन की आंखों में क्रूरता और पिपासा के भाव जाग्रत हो रहे थे. वे फिर से मेरे ऊपर हमला करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे.

अंतिम हमला मैं ने कैसे झेला, मुझे नहीं पता.

शहर वाली युवती…

प्रतिमा की आंखों में इंद्रधनुषी सपने थे, लेकिन सपने देखने वाला व्यक्ति यह भूल जाता है कि नींद टूटने के बाद केवल सुबह का उजाला ही नहीं दिखाई पड़ता है, कभीकभी चारों तरफ नीरव रात का अंधेरा भी होता है. इंद्रधनुषी आसमान में घनघोर घटाएं भी घिरती हैं जो कभीकभी अतिवृष्टि से धरा को जलमग्न कर देती हैं. तब चारों ओर सैलाब का हाहाकार होता है, जिस में सबकुछ बह जाता है.

मुझे यह महसूस हो रहा था, प्रतिमा प्रेम के रंग में नहीं, बल्कि आधुनिकता की बंधनहीन स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच भटक गई थी. वह प्रेम की पवित्रता और मर्यादा को तोड़ कर पाश्चात्य सभ्यता के नवनिर्मित उन्मुक्त संसार में विचरने लगी थी. इस उन्मुक्त संसार में कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. युवकों और युवतियों को जो अच्छा लग रहा था, वही कर रहे थे. मेरा मानना है कि प्रेम को उन्मुक्त नहीं होना चाहिए. बिना किसी प्रतिबंध और प्रतिबद्धता के जब हम कोई कार्य करते हैं, तो उस के दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं.

आज का युवा जिस संसार में सामाजिक मूल्यों को तोड़ कर रह रहा है, उस के दुष्परिणाम दोचार साल में ही सामने आने लगते हैं. एकदूसरे के ऊपर आरोपप्रत्यारोप, अत्याचार, शोषण और बलात्कार के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं. जो जीवन में कभी नहीं होता था, वह युवा अपने छात्र जीवन में ही एक अपराधी की तरह झेलने को मजबूर हो जाता है. यही आधुनिक प्रेम की परिणति है.

प्रतिमा कितनी सीधी और शर्मीली थी, लेकिन आज उस ने शर्म और संकोच के सभी बंधन तोड़ दिए हैं. जो व्यक्ति कभी घर से नहीं निकलता है, वह बाहर की धूप में आ कर चौंधिया जाता है, रास्ते उसे भरमाते हैं, तो हवाएं उसे मदहोश कर देती हैं. ऐसे में उस का भटकना स्वाभाविक होता है. प्रतिमा के साथ भी यही हो रहा था. अचानक कसबे से शहर आई तो यहां की चकाचौंध ने उसे भ्रमित कर दिया. चारों तरफ चमकदमक थी और वह उस रंगीन दुनिया में भटक गई.

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मैं उस के बारे में चिंतित हूं. मुझे पता चल गया है कि वह प्रवीण के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. मैं उसे समझाना चाहती हूं, पर वह मुझ से बात ही नहीं करती, जैसे मैं प्रवीण को उस से छीन लूंगी. मुझे क्या पड़ी है?

प्रवीण को तो मैं ने ही ठुकराया था. फिर मुझे युवकों की क्या कमी? सारे तो मेरे पीछे पड़े रहते हैं, लेकिन प्रतिमा ने ऐसा क्यों किया? चटाक से सारे बंधन तोड़ दिए और परदों को खींच कर फाड़ दिया. क्या कोई विश्वास करेगा कि कुछ दिन पहले तक वह एक शर्मीली युवती थी. इतनी शर्मीली कि युवतियों से भी बात करने में उस की जबान लड़खड़ाने लगती थी, लेकिन आज वह युवकों के साथ तितलियों की तरह उड़ती फिर रही है.

प्रेम की बयार न जाने उसे ले कर कहां पटकेगी?

यों ही एक दिन मेरे मन में आया कि अचानक जा कर प्रतिमा से मिलूं. मैं उस के होस्टल गई, वह वहां नहीं थी. किसी को पता भी नहीं था कि कहां गई है? छुट्टियां थीं, इसलिए वार्डन को भी परवा नहीं थी. मैं ने उस का मोबाइल मिलाया लेकिन वह बंद था. मुझे चिंता हुई. उस के होस्टल के चौकीदार से बस इतना पता चला कि 3-4 दिन से वह होस्टल नहीं आई थी.

कुछ सोच कर मैं ने प्रवीण को फोन मिलाया. उस का फोन भी स्विच औफ था. अचानक दिमाग में आया कि उन दोनों के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया. मैं ने अपनी कुछ क्लासमेट्स से बात की. उन्हें भी उन का कुछ पता नहीं था. प्रतिमा मुझ से विरक्त थी, पर मुझे उस की चिंता थी. पहले मैं ने अपने मम्मीपापा से बात की. उन्होंने भी चिंता व्यक्त की कि कुछ भी हो सकता है. फिर हमसब कालेज प्रशासन से मिले. उन्होंने तत्काल प्रतिमा के घर संपर्क करने के लिए कहा. कालेज रिकौर्ड से उस के घर का पता और फोन नंबर मिल गया. पता चला कि प्रतिमा घर भी नहीं गई थी.

सब ने सलाह की कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. यह कालेज प्रशासन की तरफ से हुआ. पुलिस ने सब से पहला काम यह किया कि मेरे कहने पर प्रवीण और प्रतिमा के कौल डिटेल्स निकलवाए. उन से पता चला कि प्रतिमा की अंतिम बातचीत प्रवीण के फोन पर हुई थी और उस की अंतिम लोकेशन रोहतक रोड का एक रिसोर्ट था. प्रवीण के फोन की भी यही लोकेशन थी. हालांकि प्रवीण के फोन से बाद में अन्य लोगों से भी बात हुई थी और उस की अंतिम बातें शहर की लोकेशन से हुई थीं. इस से यह साबित हो गया कि अंतिम समय में प्रतिमा और प्रवीण एकसाथ थे.

पुलिस ने सक्रियता दिखाई और सब से पहले प्रवीण के घर पर छापा मारा. वह घर पर निश्चिंत और बेखौफ था. उसे थाने लाया गया. उस से पूछताछ हुई, पर हर पेशेवर अपराधी की तरह उस ने भी मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं, पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन फोन के कौल डिटेल्स अलग ही कहानी बयां कर रहे थे. उन के आधार पर प्रवीण टूट गया. फिर जो उस ने कहानी सुनाई, वह प्रतिमा के जोशीले प्रेम के दर्दनाक अंत की कहानी थी.

प्रतिमा ने जब प्रेम के मैदान में कदम रखा तो वह बहुत तेज दौड़ने लगी. प्रवीण उस की हर जरूरत पूरी करता, पर हर रोज प्रतिमा की शारीरिक जरूरत पूरी करना न तो प्रवीण के वश में था, न यह संभव था. इस के लिए वक्त और धन दोनों की आवश्यकता थी. वह प्रतिमा से मना करने लगा तो वह उग्र होने लगी और उसे धमकियां देती कि बलात्कार के मामले में फंसा देगी. तंग आ कर प्रवीण ने उस से छुटकारा पाने का एक खतरनाक तरीका अपनाया.

एक सोचीसमझी साजिश के तहत प्रवीण प्रतिमा को अपने मित्रों के साथ ले कर लोनावला के एक रिसोर्ट में गया. उस ने शाम के खाने में प्रतिमा को बेहोशी की दवा दे दी थी. फिर रात भर उन पांचों ने मिल कर उस के साथ बुरी तरह बलात्कार किया और यह सिलसिला अगले दिन शाम तक जारी रहा. तब तक प्रतिमा मृतप्राय सी हो गई थी. वे भी थक गए थे. रात को उन सब ने मिल कर तय किया कि प्रतिमा को उसी हालत में जंगल में फेंक कर भाग जाएंगे. खुले जंगल में कोई जानवर उसे खा जाएगा या फिर वह यों ही समाप्त हो जाएगी.

मृतप्राय प्रतिमा को ये लोग जंगल में फेंक कर रात को ही शहर भाग आए थे. अब प्रतिमा का पता नहीं था.

पुलिस ने तुरंत प्रवीण के अन्य चारों दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे, जहां प्रतिमा को जीवित या मृत अवस्था में फेंका गया था. वहां न कोई लाश मिली, न उस के अवशेष. संबंधित थाने में पता किया गया, तो पता चला कि 2 दिन पहले एक युवती नग्नावस्था में बेहोश जंगल में कुछ गांव वालों को मिली थी. उन्होंने पुलिस को खबर की, पुलिस ने युवती को कसबे के अस्पताल में भरती करवा दिया था और अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तफतीश आरंभ कर दी थी.

स्थानीय पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सूत्र नहीं मिला, जिस से वह अपनी कार्यवाही आगे बढ़ा सके. प्रतिमा अभी तक बेहोश थी. उस का बयान दर्ज नहीं हुआ था.

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अस्पताल जा कर जब मैं ने प्रतिमा की हालत देखी, तो मैं स्वयं बेहोश होतेहोते बची. कोई भेडि़या भी उस को इस तरह नोच कर नहीं खाता, जिस तरह से प्रवीण और उस के दोस्तों ने उस के शरीर के साथ अत्याचार किया था.

काश, प्रतिमा यह बात समझ पाती कि प्रेम जीवन के लिए आवश्यक है, पर इतना भी आवश्यक नहीं कि उस के लिए अपनेआप को ही हवन कर दिया जाए. अगर वह समय पर समझ लेती, तो उस की यह दुर्दशा न होती.

प्रतिमा जाने कब होश में आएगी. जब उसे होश आएगा, तब क्या वह किसी पुरुष को फिर से प्यार करने की हिम्मत जुटा पाएगी? अधिकांश प्रेमसंबंधों का अंत विरह में होता है, पर ऐसा कभी नहीं होता, जैसा प्रतिमा के प्रेम का हुआ था.

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