अनुज को होगा Anupama से दिल की बात ना कहने का पछतावा, करेगा ये फैसला

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और सुधांशू पांडे (Shudhanshu Pandey) स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों दर्शकों के बीच धमाल मचा रहा है. जहां अनुज कपाड़िया की अनुपमा से दोस्ती वनराज को खल रही है तो वहीं राखी दवे भी अनुपमा से बदला लेने की तैयारी करने वाली है, जिसके चलते सीरियल की कहानी में मजेदार ट्विस्ट आने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

राखी दवे पर बरसी अनुपमा

अब तक आपने देखा कि अनुपमा और अनुज की दोस्ती देखकर वनराज लगातार ताने मारते नजर आ रहा है. इसी बीच वह काव्या को छोड़ मुंबई से वनराज, अनुपमा के साथ वापस शाह हाउस पहुंचता है. जहां पर राखी दवे, बा और शाह परिवार को परेशान करते हुए नजर आती है, जिसे देखकर अनुपमा और वनराज का खून खौल उठता है. वहीं राखी दवे पर बरसते हुए अनुपमा, अनुज कपाड़िया से मिला चेक राखी दवे की नेम प्लेट के साथ उसे सौंप देती है, जिसे देखकर राखी दवे का खून खौलता है. इतना ही नहीं अनुपमा राखी दवे को घर से निकलने के लिए भी कह देती है.

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अनुज होगा परेशान

 

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जहां परिवार के लिए अनुपमा फर्ज निभाती नजर आएगी तो वहीं अनुपमा के लिए अनुज परेशान होता नजर आएगा. दरअसल, अनुज, अनुपमा के कैरेक्टर पर उठते सवालों के कारण परेशान होगा. वहीं डीके से अपने दिल की बात कहेगा कि अगर सालों पहले उसने अनुपमा को अपने दिल की बात और प्यार का इजहार कर दिया होता तो आज अनुपमा क्वीन की तरह रह रही होती. दूसरी तरफ एक बार फिर वनराज अनुपमा को उसके रिश्ते के लिए ताना देगा. हालांकि वह इन सब बातों पर रिएक्शन नहीं देगी. लेकिन अनुज से मिलते वक्त उसके चेहरे पर तनाव देखने को मिलेगा, जिसे देखकर अनुज, अनुपमा से उसके परेशान होने की वजह पूछेगा. इसी बीच अनुज, अनुपमा को खुश करने के लिए एक फैसला लेगा और उसे ऐसा गिफ्ट देगा, जिसे देखकर अनुपमा बेहद खुश होगी. दरअसल, वह अनुपमा को एक कार्ड सौंपेगा, जिसमें भूमि पूजन के लिए अनुपमा और अनुज का नाम छपा होगा, जिसे देखकर वह इमोशनल हो जाएगी.

 

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3 सखियां

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जिद्दी बच्चे को बनाएं समझदार

कुछ दिन पहले हमारे घर मेहमान आए थे. साथ में उन का 6 साल का बेटा नंदन भी था. उस ने आइसक्रीम की मांग की जबकि वह जाड़े का मौसम था. मेरे मना करने पर उस ने गुस्से में खाने की मेज पर रखी कीमती प्लेटें तोड़ दीं और अपनी मां के आगे लोटलोट कर आइसक्रीम की जिद करने लगा. मु  झे उस की यह हरकत बहुत नागवार गुजरी. मेरा बच्चा होता तो मैं कब का उस की पिटाई कर देती, मगर वह मेहमान था, इसलिए चुप रह गई. मु  झे अचरज तो तब हुआ जब उस की इस तोड़फोड़ को शरारत मान कर उस की मां मुसकराती रही.

अचानक मेरे मुंह से निकल गया कि बच्चे को इतनी छूट नहीं देनी चाहिए कि वह अपनी जिद की वजह से तोड़फोड़ करने लगे या दूसरों के आगे शर्मिंदा करे.

तब मेरी रिश्तेदार ने प्यार से बच्चे को गोद में लेते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बहनजी, मेरे इकलौते बच्चे ने कुछ तोड़ दिया तो क्या हुआ? हम आप के घर में ये प्लेटें भिजवा देंगे. इस के पापा अपने लाडले के लिए ही तो कमाते हैं.’’

उन की बात सुन कर मैं सम  झ गई कि बच्चे के जिद्दी होने का कुसूरवार वह बच्चा नहीं, बल्कि उस के मातापिता हैं, जिन्होंने उसे इतना सिर पर चढ़ा रखा है. दरअसल, हमारे समाज में ऐसे मातापिता भी होते हैं जिन के लिए अपने बच्चों से प्यारा कोई नहीं होता. गलती अपने बच्चे की हो, लेकिन उस के लिए अपने दोस्तों और परिवार के लोगों से भी   झगड़ पड़ते हैं. जब मातापिता अपने बच्चे की हर उचितअनुचित मांग पूरी करते हों तो परिणाम यह होता है कि बच्चा जिद्दी हो जाता है. बच्चे को बिगाड़ने और जिद्दी बनाने में मातापिता की भूमिका सब से ज्यादा होती है. दरअसल, यह एक तरह से उन की परवरिश की असफलता का सूचक होता है.

ध्यान रखें

यहां उल्लेखनीय बात यह है कि ऐसे बच्चे जो बचपन से जिद्दी होते हैं आगे चल कर अपना स्वभाव नहीं बदल पाते. मातापिता प्यारदुलार में उन की जिद पूरी करते रहते हैं पर समाज उन्हें सहन नहीं कर पाता. ऐसे बच्चे बड़े हो कर क्रोधी और   झगड़ालू स्वभाव के हो जाते हैं. इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आप के बच्चे का भविष्य खुशहाल रहे और जीवनभर व्यवहार कुशल बना रहे तो आप उसे जिद्दी बनने से रोकें.

मातापिता यह सोच कर कि बच्चा गुस्सा हो जाएगा, उस की मांग पूरी कर देते हैं. लेकिन फिर बच्चे को ऐसा ही करने के आदत लग जाती है. वह रो कर अथवा नाराजगी दिखा कर अपनी मांगों को मनवाना सीख जाता है. मान लीजिए आप बाजार से चौकलेट ले कर आते हैं. घर में 3 बच्चे हैं आप सभी को 1-1 चौकलेट देते हैं पर आप का बच्चा एक और चौकलेट मांगने लगता है और न मिलने पर गुस्सा हो कर एक कोने में बैठ जाता है. आप उसे खुश करने के लिए उस की मांग पूरी कर देते हैं. ऐसे में बच्चा मन ही मन में मुसकराता है क्योंकि वह आप की कमजोरी पकड़ लेता है और अपनी हर मांग पूरी कराने का उसे हथियार मिल जाता है. वह सम  झ जाता है कि आप उसे रोता हुआ नहीं देख सकते.

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बच्चों के जिद्दी होने की वजह

मातापिता का व्यवहार: अगर पेरैंट्स बच्चे के साथ सही से व्यवहार नहीं करते और उसे बातबात पर डांटतेफटकारते रहते हैं तो वह जिद्दी हो सकता है. अभिभावकों का बच्चे के साथ रिश्ता उस के दिमाग पर असर डालता है. बच्चे को नजरअंदाज करना और उस की बातों को अनसुना करना भी उसे जिद्दी बना सकता है. ऐसे में वह पेरैंट्स का ध्यान खींचने के लिए इस तरह की हरकतें करता है. यही नहीं पेरैंट्स द्वारा अपने बच्चे को हद से ज्यादा प्यार करना भी उसे जिद्दी बना देता है.

परिवेश: छोटे बच्चों के जिद्दी होने का कारण कोई शारीरिक समस्या, भूख लगना या फिर अपनी ओर सब का आर्कषण खींचने का मकसद हो सकता है. मगर बड़े होते बच्चे के जिद्दी होने के पीछे अकसर पारिवारिक परिवेश, ज्यादा लाड़प्यार, हर समय की डांटफटकार या फिर पढ़ाई का अनावश्यक दबाव होता है.

शारीरिक शोषण: कई बार कुछ बच्चों को अपने जीवन में शारीरिक शोषण जैसी अप्रिय घटनाओं से गुजरना पड़ता है जिस बारे में उन के मातापिता को भी पता नहीं होता है. ऐसी घटनाओं का बच्चों के मन पर काफी बुरा असर पड़ता है. ऐसे बच्चे लोगों से कटने लगते हैं, चिड़चिड़े रहने लगते हैं और मातापिता की बातों को मानने से इनकार करना शुरू कर देते हैं. वे हर बात पर जिद करते हैं या फिर खामोश हो जाते हैं.

तनाव: बच्चों को स्कूल, दोस्तों या घर से मिलने वाला तनाव भी जिद्दी बनाता है. वे ऐसा व्यवहार करने लगते हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है.

गर्भावस्था के दौरान स्मोकिंग: कभीकभी बच्चों के जिद्दी होने के पीछे मां का गर्भधारण करने के बाद सिगरेट और अलकोहल का सेवन करना भी वजह बन जाता है.

मातापिता को क्या करना चाहिए

दिल्ली में रहने वाली 36 साल की प्रिया गोयल बताती हैं, ‘‘पिछले दिनों मेरी एक सहेली अपने बेटे प्रत्यूष को ले कर मु  झ से मिलने मेरे घर आई. प्रत्यूष दिनभर मेरी बेटी की साइकिल चलाता रहा. लौटते समय वह साइकिल पर जम कर बैठ गया और उसे अपने घर ले जाने की जिद्द करने लगा. उस की मां ने थोड़ी सख्ती से काम लिया और उस से कहा कि वह बात नहीं मानेगा तो उसे अपने घर वापस नहीं ले जाएगी. बच्चे ने तुरंत साइकिल छोड़ दी और मां की गोद में आ गया.’’

बच्चा जिद्दी न बने इस के लिए कभीकभी हमें सख्ती भी करनी चाहिए. बचपन से ही बच्चों को आदत डलवाएं कि उन की हर जिद पूरी नहीं की जाएगी और वे न मानें तो उन्हें डांट भी पड़ सकती है.

सम  झना होगा जिद्दी बच्चों का मनोविज्ञान

पेरैंट्स के लिए यह जरूरी है कि वे अपने बच्चे को सम  झें. दरअसल, बच्चा पहले ही अपने मन में यह विचार कर लेता है कि अगर वह अपने पिता से इस बारे में बात करेगा तो उन का जवाब क्या होगा और मां से बोलेगा तो वे कैसी प्रतिक्रिया देंगी. बच्चा अपनी पिछली सारी हरकतों और उन के परिणाम के बारे में सोच कर ही नई हरकत करता है. ऐसे में मातापिता को भी पहले से सम  झ कर रिएक्शन देना होगा कि बच्चे को सही बातें कैसे सिखाएं. साधारण रूप में बच्चा मां के आगे ही जिद करता है या फिर मेहमानों के आगे भी वह जिद करने लगता है क्योंकि उन्हें पता होता है कि इस वक्त उस की जिद मान ली जाएगी.

ध्यान रखें आप को उस की गलत हरकतों पर ज्यादा नहीं चिल्लाना चाहिए खासकर दूसरों के सामने डांटनाडपटना या मारना नहीं चाहिए. आखिर उस की भी इज्जत है वरना वह आप को परेशान करने के लिए उस हरकत को दोहरा सकता है.

जिद्दी बच्चों को कैसे संभालें

येल यूनिवर्सिटी की सर्टिफाइड ऐक्सपर्ट सागरी गोंगाला के अनुसार जिद्दी बच्चे बहुत ज्यादा सैंसिटिव होते हैं. वे इस बात के प्रति बहुत सैंसिटिव होते कि आप उन्हें कैसे ट्रीट कर रहे हैं. इसलिए अपनी टोन, बौडी लैंग्वेज और शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए. आप से बात करते समय यदि वे कंफर्टेबल महसूस करेंगे तो उन का व्यवहार आप के प्रति अच्छा होगा. मगर कंफर्टेबल महसूस कराने के लिए कभीकभी उन के साथ फन ऐक्टिविटीज में भी शामिल हों.

उसे सुनें और संवाद स्थापित करें

अगर आप चाहते हैं कि आप का बच्चा आप की बात माने तो पहले आप उस की बात सुनें. ध्यान रखें एक जिद्दी बच्चे की सोच काफी मजबूत होती है. वह अपना पक्ष रखने के लिए बहस करना चाहता है. अगर उसे लगता है कि उस की बात सुनी नहीं जा रही तो उस की जिद और बढ़ जाती है. अगर बच्चा कुछ करने से मना कर रहा है तो पहले यह सम  झने का प्रयास करें कि वह ऐसा क्यों कह रहा है. हो सकता है उस की जिद सही हो.

अपने बच्चे के साथ कनैक्ट करें

अपने बच्चे पर कोई काम करने को दबाव न डालें. जब आप बच्चे पर दबाव डालते हैं तो एकदम से उस का विरोध और बढ़ जाता है और वह वही करता है जो वह करना चाहता है. सब से अच्छा है कि आप बच्चे को सम  झने का प्रयास करें. जब आप बच्चे को एहसास दिलाएंगे कि आप उस की केयर करते हैं, आप उस के बारे में सोच रहे हैं, वह जो चाहता है उसे पूरा कर रहे हैं तो वह भी आप की बात मानेगा.

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उसे औप्शन दें

आप सीधे अगर बच्चे को मना कर देंगे कि यह नहीं करना है या वैसा करने पर उसे सजा मिलेगी तो वह उस बात का विरोध करेगा. इस के विपरीत अगर आप उसे सम  झाते हुए औप्शन दें तो वह बात मानेगा. उदाहरण के लिए आप अपने बच्चे को अगर यह कहेंगे कि 9 बजे सो जाओ तो वह सीधा मना कर देगा. मगर यदि आप यह कहेंगे कि चलो सोने चलते हैं और आज तुम्हें शेर वाली कहानी सुननी है या राजकुमार वाली, बताओ तुम्हें कौन से कहानी सुननी है? ऐसे में बच्चा कभी भी मना नहीं करेगा, बल्कि आप के पास खुशीखुशी सोने आ जाएगा.

सही उदाहरण पेश करें

बच्चा जैसा देखता है वैसा ही करता है. इसलिए आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि आप उसे सही माहौल दें. अगर आप घर के बड़ेबुजुर्ग पर किसी बात को ले कर चिल्ला रहे हैं तो आप का बच्चा भी वही सीखेगा. ऐसे में आप को जिद्दी बच्चे को संभालने के लिए अपने घर का माहौल ऐसा बनाना होगा जिस से वह सम  झ सके कि बड़ों की बातों को मानना चाहिए.

प्रशंसा करें

बच्चों को सिर्फ डांटने और नियमकायदे बताने की जगह अच्छे कामों के लिए उन की प्रशंसा भी करें. इस से उन का मनोबल बढ़ेगा और वे जिद्दी बनने के बजाय मेहनत करना सीखेंगे. मेहमानों और अन्य लोगों के सामने भी उन के बारे में अच्छा कहें. इस से वे आप के लिए जुड़ाव महसूस करेंगे.

जिद पूरी न करें: अकसर जिद पूरी होने के कारण बच्चे अधिक जिद्दी हो जाते हैं. बच्चों को यह एहसास दिलाएं कि उन की जिद हमेशा पूरी नहीं की जा सकती. अगर आप का बच्चा किसी दुकान में या किसी और के घर जा कर किसी खिलौने की मांग करता है और खिलौना न मिलने पर चीखनेचिल्लाने लगता है तो उस की ओर ध्यान ही न दें. इस से बच्चे को यह सम  झ आ जाएगा कि उस की जिद से उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला है.

कभीकभी सजा भी दें

बच्चों को अनुशासित रखने के लिए नियम बनाने की बहुत जरूरत होती है. अगर वे कुछ गलत करते हैं या जिद करते हुए उलटासीधा व्यवहार करते हैं तो उन्हें सजा देने से न चूकें. आप उन्हें पहले से ही बता दें कि अगर ऐसा किया तो इस तरह के परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. जैसे मान लीजिए कि बच्चा सोने के समय टीवी देखने की जिद कर रहा है तो उसे पता होना चाहिए कि ऐसा करने पर उसे कई दिनों तक टीवी में पसंदीदा प्रोग्राम देखने को नहीं मिलेगा. बच्चे को सजा देने का मतलब यह नहीं है कि आप उस पर चिल्लाएं या उस की पिटाई करें, बल्कि उसे किसी चीज या सुविधा से वंचित कर के भी आप उसे सजा दे सकते हैं.

  बच्चों की अलगअलग तरह की जिद

अगर बच्चों की एक जिद पूरी हो जाती है तो वे दूसरी जिद करने लगते हैं. जब मातापिता इसे भी पूरी कर देते हैं तो वे तीसरी जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं यानी बच्चों की जिद का अंत नहीं होता. जिद कई चीजों को ले कर हो सकती है. उन्हें कैसे टैकल करना है यह सम  झना जरूरी है.

मोबाइल की जिद: बच्चे अकसर बड़ों को मोबाइल इस्तेमाल करते देख उस की मांग करने लगते हैं. ऐसे में आप को बच्चों को सम  झाना चाहिए कि यह उन के काम की चीज नहीं है. अगर वे रोने और चिल्लाने लगें तो भी उन्हें मोबाइल न दें. इस से वे सम  झ जाएंगे कि उन के रोने और चिल्लाने से उन्हें मोबाइल नहीं मिलने वाला. अगर आप उन की जिद पूरी करने के लिए उन्हें कुछ देर के लिए मोबाइल दे देंगे तो इस से उन की जिद करने की आदत और बढ़ जाएगी. कई मातापिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए मोबाइल पकड़ा देते हैं. ऐसे में स्वाभाविक है कि थोड़े बड़े होते ही वे अपने लिए एक अलग और बढि़या मोबाइल खरीदने की जिद करने लगते हैं.

जंक फूड खाने की जिद: बच्चे अकसर घर का खाना खाने में नखरे दिखाते हैं और रैस्टोरैंट से कुछ अच्छा या जंक फूड मंगाने की जिद करने लगते हैं. ऐसे में आप उन्हें अपने साथ बैठा कर थोड़ाथोड़ा घर का बना खाना खिलाने की आदत डालें. उन्हें हरी सब्जियां और पौष्टिक खाना खिलाएं. किचन में ऐक्सपैरिमैंट करें. इस से वे जिद करना कम कर देंगे और घर का बना खाना भी स्वाद से खाना सीख जाएंगे.

अधिक जेबखर्च की जिद: कभी चौकलेट, कभी पिज्जा, कभी आइसक्रीम तो कभी कुरकुरे खाने के लिए बच्चे अकसर पैसों की जिद करते हैं. आप उन की इस जिद को भूल कर भी पूरा न करें. यह जिद उन्हें कई बुरी आदतों की ओर धकेल सकती है. कोशिश करें कि बच्चों को पैसा देने की जगह लंच में कुछ स्वादिष्ठ चीजें पैक कर दें ताकि उन्हें जेब खर्च की जरूरत न पड़े.

नए खिलौने या गैजेट्स की जिद: पासपड़ोस के बच्चों के पास या टीवी में आने वाले विज्ञापनों को देख कर बच्चे अकसर नए खिलौने या गैजेट्स खरीदने की जिद करते हैं. ऐसे में आप उन्हें इन चीजों के बजाय उन के दिमागी विकास और पढ़ाई से संबंधित चीजें या किताबें ला कर दे सकते हैं. शतरंज, बैडमिंटन जैसे स्पोर्ट्स खेलने को प्रोत्साहित कर सकते हैं.

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पढ़ाई न करने की जिद: अकसर बच्चे अपने होम वर्क से भागने की कोशिश करते हैं और न पढ़ने के लिए बहाने बनाते हैं. बहाने नहीं माने जाएं तो वे जिद पर बैठ जाते हैं कि आज पढ़ना ही नहीं है. ऐसे में आप को बैठ कर सम  झना चाहिए कि आखिर वे पढ़ाई से जी क्यों चुरा रहे हैं. उन्हें अगर क्लास में कुछ सम  झने में दिक्कत आई है तो आप उन्हें सम  झा कर उन की समस्या का समाधान कर सकते हैं.

  जिद्दी बच्चे प्रोफैशनल लाइफ में हो सकते हैं ज्यादा सक्सैसफुल

बच्चों के जिद्दी स्वभाव और भविष्य में कैरियर के क्षेत्र में उन की परफौर्मैंस में कोई संबंध है या नहीं इस संदर्भ में 2015 में एक अध्ययन किया गया. यह अध्ययन ‘नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन’ में पब्लिश किया गया था. इस के मुताबिक जिद्दी बच्चे भविष्य में ज्यादा सफल होते हैं. जो बच्चे कम उम्र में नियमों को तोड़ने में माहिर होते हैं वे बड़े हो कर पैसे भी उतना ही ज्यादा कमाते हैं और अपने दोस्तों के मुकाबले ज्यादा सफल होते हैं. यानी जिद्दी स्वभाव उन का एक सकारात्मक गुण माना जा सकता है.

शोधकर्ताओं ने 742 बच्चों पर अध्ययन किया. ये 8 से 12 वर्ष की उम्र के थे. उन के कुछ स्वाभाविक गुणों को देखा गया जैसे वे पढ़ाई में कितने गंभीर हैं, उन की कर्तव्यनिष्ठा, योग्यता और टीचर या पेरैंट्स की बात मानने की आदत आदि को ध्यान में रखा गया. जब 40 साल बाद शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि वे अब कहां पहुंचे और क्या बने तो एक बहुत ही आश्चर्यजनक ट्रैंड उभर कर सामने आया.

अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे बचपन में पेरैंट्स और टीचर की आज्ञा नहीं मानते थे, उन की बातों और नियमों का उल्लंघन करते थे और बहस करते थे, वे बड़े हो कर ज्यादा सफल और संपन्न जिंदगी जी रहे हैं. दूसरों के मुकाबले उन की सैलरी भी काफी अच्छी है.

दरअसल, जिद्दी बच्चों के अंदर कुछ विशेषताएं ऐसी होती हैं जो उन्हें खास बनाती हैं. मसलन वे कभी गिव अप नहीं करते, सामने परिस्थिति कितनी ही कठिन क्यों न हो वे अपनी बात पर टिके रहते हैं और कभी कुछ करने की ठान लें तो कर के गुजरते हैं. उन के अंदर हौसला और साहस कूटकूट कर भरा होता है. वे खुद से हर बात सीखने की कोशिश करते हैं. अगर उन्हें लगता है कि वे सही हैं तो अपनी बात मनवाने के लिए किसी से भी उल  झ पड़ते हैं. ये विशेषताएं प्रोफैशनल लाइफ में सफल होने में उन की मददगार बनती हैं.

मगर बात जब सामान्य जीवन की आती है तो कोई नहीं चाहता कि उन का बच्चा जिद्दी या क्रोधी स्वभाव का हो क्योंकि जिद करने की आदत कई बार बच्चे के साथसाथ उस के पेरैंट्स के लिए भी भारी पड़ जाती है. अकसर बच्चे अपनी बात मनवाने के लिए पेरैंट्स से जिद करते हैं. कई बार जब उन की बात नहीं मानी जाती तो वे रूठ जाते हैं और बातचीत बंद कर देते हैं. कुछ बच्चे विद्रोही भी हो जाते हैं. यह स्थिति किसी भी मातापिता के लिए असहनीय होती है.

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सेक्सुअली और मेंटली शोषण को बढ़ावा देती है,चाइल्ड मैरिज- कृति भारती

कृति भारती ( समाज सेविका, सारथी ट्रस्ट)

राजस्थान सरकार नेपिछले दिनों चाइल्ड मैरिज के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बताया. जिसमें बाल विवाह होने पर एक महीने के अंदर इसे पंजीकरण करना पड़ेगा. इसे विधान सभा में विरोध होने के साथ-साथ कानून की भी चुनौती मिली है. नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स का कहना है कि 18 साल से कम उम्र में विवाह को मान्यता देने को वे कानूनन विरोध करेंगे और रिव्यु की सिफारिश करेंगे. सारथी ट्रस्ट की कृति भारती, भारत की पहली विवाह विच्छेद करवाने वाली सोशल वर्कर है और उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है. उन्होंने आजतक करीब 43 लड़कियों की विवाह विच्छेद करवाया है और1500 चाइल्ड मैरिज को रुकवाया है, लेकिन सरकार द्वारा बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बना देने को एक गलत निर्णय मानतीहै.

मिलेगा बढ़ावा बाल विवाह

कृति आगे कहती है कि राजस्थान चाइल्ड मैरिज के लिए बदनाम है और अनल्मेंट भी यहाँ सभी राज्यों से अधिक हुआ है. अनल्मेंट से पहले वकील,एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्त्ता, विक्टिम आदि जो लोग इस काम में प्रभावित होते है, उन्हें पूछकर उनकी चुनौतियों को जानकर इसे लागू करना चाहिए. देखा जाय तो ये भारत में तालिबान शासन की तरह दिया गया निर्देश है. राजस्थान सरकार का बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन को मान्यता देना सामाजिक सुधार नहीं, राजनीतिक लालच है,क्योंकि बाल विवाह एक संगीन अपराध की श्रेणी में आता है और संज्ञेय अपराध को रजिस्ट्रेशन की अनुमति नहीं दिया जासकता. ये किसी व्यक्ति के अपराध करने पर उसे मान्यता देने जैसा है, जिसमे अपराधी सजा नहीं, बल्कि पुरस्कृत करने योग्य है. अनल्मेंट अर्थात चाइल्ड मैरिज कैंसलेशन यानि चाइल्ड मैरिज को कानूनन कैंसल करवाना.

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कानून में संशोधन है जरुरी

आगे कानून के संशोधन के बारें में कृति का कहना है कि दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के 16 साल के अपराधी को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उसे बाल सुधार गृह भेजा गया, जबकि उसने सबसे घिनौना काम किया और बाल अपराधी के उम्र को कम किये जाने के लिए पूरे देश ने आन्दोलन किया, पर कुछ आगे नहीं हुआ और वह जेल से निकल कर सुरक्षित बैठा है. चाइल्ड मैरिज को मान्यता देने से अब माता-पिता बच्चों के मैरिज को रजिस्ट्रेशन कर कागज अपने पास रखेंगे, ऐसे में बड़ी होकर किसी लड़की को अपने पति से विवाह विच्छेद ,किसी संगीन कारणों से लेना है, तो उसे कोर्ट के रजिस्ट्रेशनपेपर मांगने पर उसे आसानी से मिल पाना असंभव होगा, क्योंकि कम उम्र में शादी होने पर उसके कागजात पेरेंट्स के पास होते है. ऐसे में किसी लड़की को अनल्मेंट के लिए पेपर नहीं मिल सकता और लड़कियां उसी हालत में रहने के लिए मजबूर होगी. अनल्मेंट अब आसान नहीं, कठिन बनाया जा रहा है.

होता है अपराधी का रजिस्ट्रेशन

इसके अलवा सरकार इस दिशा में एक सर्वे कर डार्क ज़ोन, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन को पता कर आगे बढ़ेगी, लेकिन ये करना आसान नहीं, क्योंकि इससे लोग सच्चाई नहीं बताएँगे. मनोवैज्ञानिक स्तर पर बात करने से भी चाइल्ड मैरिज कहाँ अधिक और कहाँ कम है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.चाइल्ड मैरिज के अपराध को रजिस्टर करना ठीक नहीं. मैंने कई बार वर्कशॉप में पीड़ित लड़कियों को बताया है कि अगर आप किसी से अन्ल्मेंट की बात नहीं कह पा रही हो, तो सरकारी प्रतिनिधि से कहे. इससे उनकी समस्या का हल मिलेगा, लेकिन इसमें समस्या यह है कि यहाँ एक व्यक्ति शादी की पंजीकरण करता है तो दूसरा विवाह विच्छेद के लिए काम करता है. येरजिस्ट्रेशन केवल चाइल्ड मैरिज की नहीं, बल्कि सेक्सुअली प्रताड़ित करने वाले, बलात्कारी और घरेलू झगड़े को पंजीकरण करना है. सरकार अनाल्मेंटको मुश्किल बना कर खुद की पीठ थपथपा रहे है.

बदलाव नहीं चाहते

कृति आगे कहती है कि असल में पूरे राजस्थान में जाति पंचायत है, जोहर समुदाय की अलग-अलग जाति पंचायत होती है,इसमें अधिकतर सीनियर सिटीजन मुखिया या समुदाय प्रमुख होते है. ये उस कम्युनिटी की बॉडी होती है, ये लोग खुद को कोर्ट और जज समझते है. ये लोग कभी भी चाइल्ड मैरिज को ख़त्म होते देखना नहीं चाहते. ये किसी भी पार्टी के लिए वोट बैंक होते है, क्योंकि उनके मुखिया के कहने पर पूरा गांव उसे वोट देते है. ये सभी जातियों में होती है और चाइल्ड मैरिज को वे अपनी परंपरा समझते है. यहाँ लड़कियों को बोझ समझा जाता है, उनके अनुसार सही उम्र में लड़की की शादी करना अनिवार्य होता है, ताकि रेप और लव मैरिज होने से बचा जा सकेगा और परिवार का मुंह भी काला नहीं होगा. इसमें वे आज के ज़माने में लड़कियों के आत्मनिर्भर होने को सही मानने में असमर्थ होते है. वे बदलाव पसंद नहीं करते. ऐसे बिल को पास कर देने से विक्टिम को अधिक परेशानी न्याय मिलने में होगी.

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अनाल्मेंट में होगी परेशानी

पूरी दुनिया चाइल्ड मैरिज को हटाना चाहती है, जबकि ये इसे प्रमोट कर रही है. बाल विवाह को एक बाररजिस्ट्रेशन करवाने के बाद आगे किसी प्रकार की कार्यवाही सरकार के विरुद्ध करना बहुत मुश्किल होता है. मैं एक समाज सुधारक की तरह सही को सही और गलत को गलत कहना पसंद करती हूँ. चाइल्ड मैरिज में बच्चियों का अधिक शोषण होता है. इन बेड़ियों का टूटना जरुरी है, क्योंकि इससे डोमेस्टिक वायलेंस अधिक होता है. लड़कियों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. चाइल्ड ट्राफिकिंग बढती है. अनाल्मेंट की प्रक्रिया भी कठिन होगी, क्योंकि लड़कियों के पास अगर मैरिज रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं होगा, तो वे एनाल्मेंट नहीं कर सकती, क्योंकि एक्ट के तहत पेरेंट्स ही चाइल्ड मैरिज को रजिस्ट्रेशन करवा सकते है.

होता है जाति से निकाला

अपने एक अनुभव के बारें में कृति कहती है कि एक बच्ची ने चाइल्ड मैरिज को इनकार किया, तो जाति पंचायत ने उस लड़की से ससुराल जाने या 16 लाख का दंड भरने को कहा, ऐसा न करने पर पूरे परिवार को जाति से निकाल कर हुक्का-पानी बंद करने की धमकी दी. जाति पंचायत के निर्देश की वजह से परिवारके किसी भी सदस्य को कुएं से पानी न भरने देना, राशन न मिलना, किसी के घर आना – जाना बंद कर देना आदि सब मना हो जाता है. कई बार ये परिवार राज्य छोड़ देने के लिए विवश हो जाते है.

इसके अलावा बाड़मेर की एक लड़की को अनल्मेंट के लिए मैंने रात के 4 बजे रेस्क्यू कर जोधपुर लाई, क्योंकि उसके पिता मर्डर के आरोपी थे और मैरिज के समय की कोई सबूत मेरे पास नहीं थी, जज मुझे उसकी चाइल्ड मैरिज की सबूत लाने को कह रहा था. इस काम में किसी का सहयोग नहीं था, कोई बयान नहीं दे रहा था, क्योंकि उसके पिता ने गोली मारने की धमकी दे रखी थी. बहुत मुश्किल से उसका अनाल्मेंट करवाया गया. इसलिए राज्य सरकार का बाल विवाह को पंजीकरणकरवाने की एक्ट एक घटिया निर्णय है.

शादी के 10 साल बाद भी मां बनने के सुख से वंचित हूं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मेरी उम्र 38 साल है. शादी को 10 साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन मां बनने के सुख से वंचित हूं. डाक्टर ने बताया कि मेरे अंडे कमजोर हैं. इसी वजह से एक बार मेरा 3 माह का गर्भ भी गिर चुका है. बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
इस उम्र में गर्भधारण करना आमतौर पर थोड़ा मुश्किल हो जाता है. आप का 3 माह का गर्भ गिरना भी यही साबित करता है कि आप के अंडे कमजोर हैं. लेकिन आप को निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अगर आप के पति में कोई कमी नहीं है तो आप एग डोनेशन तकनीक का सहारा ले सकती हैं. किसी अन्य महिला के अंडे आप के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किए जा सकते हैं. इस के लिए आवश्यक है कि उक्त महिला शादीशुदा हो और बच्चे को जन्म दे चुकी हो.

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पीसीओडी की समस्या और निदान

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपने स्वास्थ्य की अनदेखी कर देती हैं, जिस का खमियाजा उन्हें विवाह के बाद भुगतना पड़ता है. लड़कियों को पीरियड्स शुरू होने के बाद अपने स्वास्थ्य पर खासतौर से ध्यान देने की आवश्यकता होती है. महिलाओं के चेहरे पर बाल उग आना, बारबार मुहांसे होना, पिगमैंटेशन, अनियमित रूप से पीरियड्स का होना और गर्भधारण में मुश्किल होना महिलाओं के लिए खतरे की घंटी है.

चिकित्सकीय भाषा में महिलाओं की इस समस्या को पोलीसिस्टिक ओवरी डिजीज यानी पीसीओडी के नाम से जाना जाता है. इस समस्या के होेने पर महिलाओं, खासकर कुंआरी लड़कियों को समय रहते चिकित्सकीय जांच करानी चाहिए. ऐसा नहीं करने पर महिलाओं की ओवरी और प्रजनन क्षमता पर असर तो पड़ता ही है साथ ही, आगे चल कर उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हृदय से जुड़े रोगों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

आज करीब 30 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से ग्रस्त हैं जबकि चिकित्सकों का मानना है कि इस बीमारी की शिकार महिलाओं की संख्या इस से कई गुना अधिक है. उचित ज्ञान न होने व पूर्ण चिकित्सकीय जांच न होने की वजह से महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं.

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पीसीओडी बीमारी के बारे में गाइनीकोलौजिस्ट डा. शिखा सिंह का कहना है कि यह एक हार्मोनल डिसऔर्डर है. पीरियड्स के पहले और बाद में महिलाओं के शरीर में बहुत तेजी से हार्मोन में बदलाव आते हैं जो कई बार इस बीमारी का रूप ले लेते हैं.

डा. शिखा की मानें तो हर महीने महिलाओं की दाईं और बाईं ओवरी में पीरियड्स के बाद दूसरे दिन से अंडे बनने शुरू हो जाते हैं. ये अंडे 14-15 दिनों में पूरी तरह से बन कर 18-19 मिलीमीटर साइज के हो जाते हैं. इस के बाद अंडे फूट कर खुद फेलोपियन ट्यूब्स में चले जाते हैं और अंडे फूटने के 14वें दिन महिला को पीरियड शुरू हो जाता है लेकिन कुछ महिलाओं, जिन्हें पीसीओडी की समस्या है, में अंडे तो बनते हैं पर फूट नहीं पाते जिस की वजह से उन्हें पीरियड नहीं आता.

आगे उन का कहना है कि ऐसी महिलाओं को 2 से 3 महीनों तक पीरियड नहीं आने की शिकायत रहती है, जिस की सब से बड़ी वजह है कि फूटे अंडे ओवरी में ही रहते हैं और एक के बाद एक उन से सिस्ट बनती चली जाती हैं. लगातार सिस्ट बनते रहने से ओवरी भारी लगनी शुरू हो जाती है. इसी ओवरी को पोलीसिस्टिक ओवरी कहते हैं.

इतना ही नहीं, इस के कारण ओवरी के बाहर की कवरिंग कुछ समय बाद सख्त होनी शुरू हो जाती है. सिस्ट के ओवरी के अंदर होने के कारण ओवरी का साइज धीरेधीरे बढ़ना शुरू हो जाता है. ये सिस्ट ट्यूमर तो नहीं होतीं पर इन से ओवरी सिस्टिक हो चुकी होती है, जिस से अल्ट्रासाउंड कराने पर कभी ये सिस्ट दिखाई देती हैं तो कभी नहीं. दरअसल, अंडों के ओवरी में लगातार फूटने के चलते ओवरी में जाल बनना शुरू हो जाता है. धीरेधीरे ओवरी के अंदर जालों का गुच्छा बन जाता है. इसलिए सिस्ट का पूरी तरह से पता नहीं चल पाता है.

डा. शिखा के मुताबिक पीसीओडी होने के कारणों का पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है लेकिन चिकित्सकों की राय में लाइफस्टाइल में बदलाव, आनुवंशिकी व जैनेटिक फैक्टर का होना मुख्य वजहें हैं.

क्या हैं सिस्ट के लक्षण

ओवरी में बिना अंडों के न फूटने की वजह से जो सिस्ट बनती हैं उन में एक तरल पदार्थ भरा होता है. यह तरल पदार्थ पुरुषों में पाया जाने वाला हार्मोन एंड्रोजन होता है, क्योंकि लगातार सिस्ट बनती रहती हैं तो महिलाओं में इस हार्मोन की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है, जिस की वजह से युवतियों के शरीर पर पुरुषों की तरह बाल उगने लगते हैं. इसे हरस्यूटिज्म कहते हैं. इस तरह महिलाओं के चेहरे, पेट और जांघों पर बाल उगने लगते हैं.

एंड्रोजन की अधिकता के कारण शरीर की शुगर इस्तेमाल करने की क्षमता भी दिनप्रतिदिन कम होती जाती है, जिस की वजह से शुगर का स्तर भी बढ़ता चला जाता है, जिस से खून में वसा की मात्रा बढ़नी शुरू हो जाती है और यही वसा महिलाओं में मोटापे का कारण बनती है.

मोटापा अधिक होने के कारण महिलाओं में इस्ट्रोजन नामक हार्मोन ज्यादा बनने की संभावना बढ़ जाती है. इस स्थिति में लिपिड लेवल भी बढ़ा हुआ होता है जिस की वजह से ब्लड वैसल्स में फैट सैल्स बढ़ जाते हैं और ब्लड की नलियों में चिपक कर उन्हें संकीर्ण बना देते हैं. ये सैल्स ब्लड सप्लाई करने वाली नलियों को ब्लौक भी कर देते हैं.

महिलाओं में इस्ट्रोजन अधिक मात्रा में बनता है तो ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन भी ज्यादा बनता है, जिस की वजह से माहवारी में अनियमितता पाई जाती है. साथ ही, काफी दिनों तक इस्ट्रोजन ही बनता जाता है और उसे बैलेंस करने वाला प्रोजैस्ट्रोन बन नहीं पाता. यदि गर्भाशय में इस्ट्रोजन बहुत दिनों तक काम करता है, तो महिलाओं को यूटेराइन कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.

अगर किसी महिला में पीसीओडी के लक्षण हैं तो उसे इस बीमारी की जांच के लिए पैल्विक अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए. इस के अलावा हार्मोनल और लिपिड टैस्ट होते हैं. हार्मोन के सीरम स्तर पर ग्लूकोज टौलरैंस आदि की जांच की जाती है. इस से बौडी में ग्लूकोज की सही मात्रा की जानकारी मिल जाती है.

16 से 18 साल की लड़की के पीरियड अनियमित होने पर उस का इतना ही इलाज किया जाता है कि पीरियड्स नौर्मल हो जाएं. जिस तरह से हर महीने कौंट्रासैप्टिव दिए जाते हैं उसी तरह से उसे कौंबिनैशन हार्मोन की दवाएं दी जाती हैं. डा. शिखा ने बताया कि सामान्य रूप से एक लड़की को 11 साल की उम्र में पीरियड्स होने लगते हैं. पीरियड शुरू होने के 4-5 साल बाद यदि वह अनियमित होने लगे तो डाक्टरी सलाह और जांच करा लेनी चाहिए.

पीसीओडी से पीडि़त युवती की शादी हो जाने पर उसे पीरियड की अनियमितता और गर्भधारण जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस स्थिति में उस की माहवारी को नियमित करने और अंडा समय पर पक सके, इस का इलाज किया जाता है.

इस के अलावा इन महिलाओं की गर्भधारण के दौरान अन्य गर्भवती महिलाओं की तुलना में ज्यादा देखभाल करनी पड़ती है क्योंकि इन में गर्भपात की आशंका बहुत ज्यादा बनी रहती है. इसलिए गर्भधारण करने के 3 महीने तक यदि गर्भ ठहरा रहता है तो फिर वे एक सामान्य महिला की तरह रह सकती हैं. इस के बाद डिलीवरी में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आती है.

पीसीओडी की शिकार महिलाओं में बारबार गर्भपात के आसार ज्यादा होते हैं. इसलिए यदि कोई बड़ी उम्र की महिला गर्भवती होती है तो हो सकता है वह प्रीडायबिटिक हो. ऐसी स्थिति में महिलाओं को चाहिए कि समयसमय पर डायबिटीज की जांच कराती रहें और यदि किसी महिला का वजन अधिक है तो उसे व्यायाम और अन्य शारीरिक कसरत से अपना वजन घटाना चाहिए ताकि गर्भधारण के दौरान महिला और उस के गर्भ में पल रहे शिशु को किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्याओं से दोचार न होना पड़े.

इन महिलाओं को दिन में एक बार में ज्यादा खाना खाने से बचना चाहिए. ज्यादा खाना खाने के बजाय उन्हें बारबार थोड़ीथोड़ी मात्रा में खाना खाना चाहिए. वे कम कार्बोहाइड्रेट और वसायुक्त भोजन लें, मीठी चीजों से परहेज करें ताकि शरीर में इंसुलिन का स्तर अधिक न हो. ऐसी तमाम बातों का ध्यान रख कर पीसीओडी से ग्रस्त महिला गर्भवती हो कर मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है.

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वारिस : भाग 3- सुरजीत के घर में कौन थी वह औरत

नरेंद्र के इस सवाल पर उस की मां बुरी तरह से चौंक गईं और पल भर में ही मां का चेहरा आशंकाओें के बादलों में घिरा नजर आने लगा.

‘‘तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’ नरेंद्र को बांह से पकड़ झंझोड़ते हुए मां ने पूछा.

‘‘सुरजीत के घर में उस का बापू  एक कुदेसन ले आया है. लोग कहते हैं हमारे घर में रहने वाली यह औरत भी एक ‘कुदेसन’ है. क्या लोग ठीक कहते हैं, मां?’’

नरेंद्र का यह सवाल पूछना था कि एकाएक आवेश में मां ने उस के गाल पर चांटा जड़ दिया और उस को अपने से परे धकेलती हुई बोलीं, ‘‘तेरे इन बेकार के सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है. वैसे भी तू स्कूल पढ़ने के लिए जाता है या लोगों से ऐसीवैसी बातें सुनने? तेरी ऐसी बातों में पड़ने की उम्र नहीं. इसलिए खबरदार, जो दोबारा इस तरह की  बातें कभी घर में कीं तो मैं तेरे बापू से तेरी शिकायत कर दूंगी.’’

नरेंद्र को अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला मगर अपने सवाल पर मां का इस प्रकार आपे से बाहर होना भी उस की समझ में नहीं आया.

ऐसा लगता था कि उस के सवाल से मां किसी कारण डर गईं और यह डर मां की आखों में उसे साफ नजर आता था.

नरेंद्र के मां से पूछे इस सवाल ने घर के शांत वातावरण में एक ज्वारभाटा ला दिया. मां और बापू के परस्पर व्यवहार में तलखी बढ़ गई थी और सिमरन बूआ तलख होते मां और बापू के रिश्ते में बीचबचाव की कोशिश करती थीं.

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मां और बापू के रिश्ते में बढ़ती तलखी की वजह कोने में बनी कोठरी में रहने वाली वह औरत ही थी जिस के बारे में अमली चाचा का कहना था कि वह एक ‘कुदेसन’ है.

मां अब उस औरत को घर से निकालना चाहती हैं. नरेंद्र ने मां को इस बारे में बापू से कहते भी सुना. नरेंद्र को ऐसा लगा कि मां को कोई डर सताने लगा है.

बापू मां के कहने पर उस औरत को घर से निकालने को तैयार नहीं हैं.

नरेंद्र ने बापू को मां से कहते सुना था, ‘‘इतनी निर्मम और स्वार्थी मत बनो, इनसानियत भी कोई चीज होती है. वह लाचार और बेसहारा है. कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए मगर मैं अब उस को इस घर में एक पल भी देखना नहीं चाहती हूं. नरेंद्र भी इस के बारे में सवाल पूछने लगा है. उस के सवालों से मुझ को डर लगने लगा है. कहीं उस को असलियत मालूम हो गई तो क्या होगा?’’ मां की बेचैन आवाज में साफ कोई डर था.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम बेकार में किसी वहम का शिकार हो गई हो. हमें इतना कठोर और एहसानफरामोश नहीं होना चाहिए. इस को घर से निकालने से पहले जरा सोचो कि इस ने हमें क्या दिया और बदले में हम से क्या लिया? सिर छिपाने के लिए एक छत और दो वक्त की रोटी. क्या इतने में भी हमें यह महंगी लगने लगी है? जरा कल्पना करो, इस घर को एक वारिस नहीं मिलता तो क्या होता? एक औरत हो कर भी तुम ने दूसरी औरत का दर्द कभी नहीं समझा. तुम को डर है उस औलाद के छिनने का, जिस ने तुम्हारी कोख से जन्म नहीं लिया. जरा इस औरत के बारे में सोचो जो अपनी कोख से जन्म देने वाली औलाद को भी अपने सीने से लगाने को तरसती रही. जन्म देते ही उस के बच्चे को इसलिए उस से जुदा कर दिया गया ताकि लोगों को यह लगे कि उस की मां तुम हो, तुम ने ही उस को जन्म दिया है. इस बेचारी ने हमेशा अपनी जबान बंद रखी है. तुम्हारे डर से यह कभी अपने बच्चे को भी जी भर के देख तक नहीं सकी.

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‘‘इस घर में वह तुम्हारी रजामंदी से ही आई थी. हम दोनों का स्वार्थ था इस को लाने में. मुझ को अपने बाप की जमीनजायदाद में से अपना हिस्सा लेने के लिए एक वारिस चाहिए था और तुम को एक बच्चा. इस ने हम दोनों की ही इच्छा पूरी की. इस घर की चारदीवारी में क्या हुआ था यह कोई बाहरी व्यक्ति नहीं जानता. बच्चे को जन्म इस ने दिया, मगर लोगों ने समझा तुम मां बनी हो. कितना नाटक करना पड़ा था, एक झूठ को सच बनाने के लिए. जो औरत केवल दो वक्त की रोटी और एक छत के लालच में अपने सारे रिश्तों को छोड़ मेरा दामन थाम इस अनजान जगह पर चली आई, जिस को हम ने अपने मतलब के लिए इस्तेमाल किया, पर उस ने न कभी कोई शिकायत की और न ही कुछ मांगा. ऐसी बेजबान, बेसहारा और मजबूर को घर से निकालने का अपराध न तो मैं कर सकता हूं और न ही चाहूंगा कि तुम करो. किसी की बद्दुआ लेना ठीक नहीं.’’

नरेंद्र को लगा था कि बापू के समझाने से बिफरी हुई मां शांत पड़ गई थीं.

लेकिन नरेंद्र उन की बातों को सुनने के बाद अशांत हो गया था.

जानेअनजाने में उस के अपने जन्म के साथ जुड़ा एक रहस्य भी उजागर हो गया था.

अमली चाचा जो बतलाने में झिझक गया था वह भी शायद इसी रहस्य से जुड़ा था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि घर में रह रही वह औरत जोकि अमली चाचा के अनुसार एक ‘कुदेसन’ थी, दूर से क्यों उस को प्यार और हसरत की नजरों से देखती थी? क्यों जरा सा मौका मिलते ही वह उस को अपने सीने से चिपका कर चूमती और रोती थी? वह उस को जन्म देने वाली उस की असली मां थी.

नरेंद्र बेचैन हो उठा. उस के कदम बरबस उस कोठरी की तरफ बढ़ चले, जिस के अंदर जाने की इजाजत उस को कभी नहीं दी गई थी. उस कोठरी के अंदर वर्षों से बेजबान और मजबूर ममता कैद थी. उस ममता की मुक्ति का समय अब आ गया था. आखिर उस का बेटा अब किशोर से जवान हो गया था.

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वारिस : भाग 2- सुरजीत के घर में कौन थी वह औरत

नरेंद्र ने जब से होश संभाला था उस का भी अमली चाचा से वास्ता पड़ता रहा था. जब भी उस के पांव की चप्पल कहीं से टूटती थी तो उस की मरम्मत अमली चाचा ही करता था. चप्पल की मरम्मत और पालिश कर के एकदम उस को नया जैसा बना देता था अमली चाचा.

काम करते हुए बातें करने की अमली चाचा की आदत थी. बातों की झोंक में कई बार बड़ी काम की बातें भी कह जाता था अमली चाचा.

‘कुदेसन’ के बारे में अमली चाचा से वह पूछेगा, ऐसा मन बनाया था नरेंद्र ने.

एक दिन जब स्कूल से वापस आ कर सब लड़के अपनेअपने घर की तरफ रुख कर गए तो नरेंद्र घर जाने के बजाय चौपाल के करीब पीपल के नीचे जूतों की मरम्मत में जुटे अमली चाचा के पास पहुंच गया.

नरेंद्र को देख अमली चाचा ने कहा, ‘‘क्यों रे, फिर टूट गई तेरी चप्पल? तेरी चप्पल में अब जान नहीं रही. अपने कंजूस बाप से कह अब नई ले दें.’’

‘‘मैं चप्पल बनवाने नहीं आया, चाचा.’’

‘‘तब इस चाचा से और क्या काम पड़ गया, बोल?’’ अमली ने पूछा.

नरेंद्र अमली चाचा के पास बैठ गया. फिर थोड़ी सी ऊहापोह के बाद उस ने पूछा, ‘‘एक बात बतलाओ चाचा, यह ‘कुदेसन’ क्या होती है?’’

नरेंद्र के सवाल पर जूता गांठ रहे अमली चाचा का हाथ अचानक रुक गया. चेहरे पर हैरानी का भाव लिए वह बोले, ‘‘ तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’

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‘‘मैं ने सुरजीत के घर में एक औरत को देखा था चाचा, सुरजीत कहता है कि वह औरत ‘कुदेसन’ है जिस को उस का बापू बाहर से लाया है. बतलाओ न चाचा कौन होती है ‘कुदेसन’?’’

‘‘क्या करेगा जान कर? अभी तेरी उम्र नहीं है ऐसी बातों को जानने की. थोड़ा बड़ा होगा तो सब अपनेआप मालूम हो जाएगा. जा, घर जा.’’ नरेंद्र को टालने की कोशिश करते हुए अमली चाचा ने कहा.

लेकिन नरेंद्र जिद पर अड़ गया.

तब अमली चाचा ने कहा,

‘‘ ‘कुदेसन’ वह होती है बेटा, जिस को मर्द लोग बिना शादी के घर में ले आते हैं और उस को बीवी की तरह रखते हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं चाचा.’’

‘‘थोड़े और बड़े हो जाओ बेटा तो सब समझ जाओगे. कुदेसनें तो इस गांव में आती ही रही हैं. आज सुरजीत का बाप ‘कुदेसन’ लाया है. एक दिन तेरा बाप भी तो ‘कुदेसन’ लाया था. पर उस ने यह सब तेरी मां की रजामंदी से किया था. तभी तो वह वर्षों बाद भी तेरे घर में टिकी हुई है. बातें तो बहुत सी हैं पर मेरी जबानी उन को सुनना शायद तुम को अच्छा नहीं लगेगा, बेहतर होगा तुम खुद ही उन को जानो,’’ अमली चाचा ने कहा.

अमली चाचा की बातों से नरेंद्र हक्काबक्का था. उस ने सोचा नहीं था कि उस का एक सवाल कई दूसरे सवालों को जन्म दे देगा.

सवाल भी ऐसे जो उस की अपनी जिंदगी से जुडे़ थे. अमली चाचा की बातों से यह भी लगता था कि वह बहुत कुछ उस से छिपा भी गया था.

अब नरेंद्र की समझ में आने लगा था कि होश संभालने के बाद वह जिस खामोश औरत को अपने घर में देखता आ रहा है वह कौन है?

वह भी ‘कुदेसन’ है, लेकिन सवाल तो कई थे.

यदि मेरा बापू कभी मां की रजामंदी से ‘कुदेसन’ लाया था तो आज मां उस से इतना बुरा सलूक क्यों करती है? अगर वह ‘कुदेसन’ है तो मुझ को देख कर रोती क्यों है? जरा सा मौका मिलते ही मुझ को अपने सीने से चिपका कर चूमनेचाटने क्यों लगती थी वह? मां की मौजूदगी में वह ऐसा क्यों नहीं करती थी? क्यों डरीडरी और सहमी सी रहती थी वह मां के वजूद से?

फिर अमली चाचा की इस बात का क्या मतलब था कि अपने घर की कुछ बातें खुद ही जानो तो बेहतर होगा?

ऐसी कौन सी बात थी जो अमली चाचा जानता तो था किंतु अपने मुंह से उस को नहीं बतलाना चाहता?

एक सवाल को सुलझाने निकला नरेंद्र का किशोर मन कई सवालों में उलझ गया.

उस को लगने लगा कि उस के अपने जीवन से जुड़ी हुई ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन के बारे में वह कुछ नहीं जानता.

अमली चाचा से नई जानकारियां मिलने के बाद नरेंद्र ने मन में इतना जरूर ठान लिया कि वह एक बार मां से घर में रह रही ‘कुदेसन’ के बारे में जरूर पूछेगा.

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‘कुदेसन’ के कारण अब सुरजीत के घर में बवाल बढ़ गया था. सुरजीत की मां ‘कुदेसन’ को घर से निकालना चाहती थी मगर उस का बाप इस के लिए तैयार नहीं था.

इस झगड़े में सुरजीत की मां के दबंग भाइयों के कूदने से बात और भी बिगड़ गई थी. किसी वक्त भी तलवारें खिंच सकती थीं. सारा गांव इस तमाशे को देख रहा था.

वैसे भी यह गांव में इस तरह की कोई नई या पहली घटना नहीं थी.

जब सारे गांव में सुरजीत के घर आई ‘कुदेसन’ की चर्चा थी तो नरेंद्र का घर इस चर्चा से अछूता कैसे रह सकता था?

नरेंद्र ने भी मां और सिमरन बूआ को इस की चर्चा करते सुना था लेकिन काफी दबी और संतुलित जबान में.

इस चर्चा को सुन कर नरेंद्र को लगा था कि उस के मां से कु छ पूछने का वक्त आ गया है.

एक दिन जब नरेंद्र स्कूल से वापस घर लौटा तो मां अपने कमरे में अकेली थीं. सिमरन बूआ किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थीं और बापू खेतों में था.

नरेंद्र ने अपना स्कूल का बस्ता एक तरफ रखा और मां से बोला, ‘‘एक बात बतला मां, गायभैंस बांधने वाली जगह के पास बनी कोठरी में जो औरत रहती है वह कौन है?’

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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वारिस : भाग 1- सुरजीत के घर में कौन थी वह औरत

होश संभालने के साथ ही नरेंद्र उस औरत को अपने घर में देखता आ रहा था. वह कौन थी, उसे नहीं पता था.

बचपन में जब भी वह किसी से उस औरत के बारे में पूछता था तो वह उस को डांट कर चुप करा देता था.

घर के बाईं ओर जहां गायभैंस बांधे जाते थे उस के करीब ही एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी और वह औरत उसी कोठरी में सोती थी.

मां का व्यवहार उस औरत के प्रति अच्छा नहीं था जबकि उस का बाप  बलवंत और बूआ सिमरन उस औरत के साथ कुछ हमदर्दी से पेश आते थे.

नरेंद्र की मां बलजीत का सलूक तो उस औरत के साथ इतना खराब था कि वह सारा दिन उस से जानवरों की तरह काम लेती थी और फिर उस के सामने बचाखुचा और बासी खाना डाल देती थी. कई बार तो लोगों का जूठन भी उस के सामने डालने में बलवंत परहेज नहीं करती थी. लेकिन जैसा भी, जो भी मिलता था वह औरत चुपचाप खा लेती थी.

होश संभालने के बाद नरेंद्र ने घर में रह रही उस औरत को ले कर एक और भी अजीब चीज महसूस की थी. वह हमेशा नरेंद्र की तरफ दुलार और हसरत भरी नजरों से देखती थी. वह उसे छूना और सहलाना चाहती थी. पर घर के किसी सदस्य के होने पर उस औरत की नरेंद्र के करीब आने की हिम्मत नहीं होती थी. लेकिन जब कभी नरेंद्र उस के सामने अकेले पड़ जाता और आसपास कोई दूसरा नहीं होता तो वह उस को सीने से लगा लेती और पागलों की तरह चूमती.

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ऐसा करते हुए उस की आंखों में आंसुओं के साथसाथ एक ऐसा दर्द भी होता था जिस को शब्दों में जाहिर करना मुश्किल था.

‘कुदेसन’ शब्द को नरेंद्र ने पहली बार तब सुना था जब उस की उम्र 14-15 साल की थी.

गांव के कुछ दूसरे लड़कों के साथ नरेंद्र जिस सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था वह गांव से कम से कम 2 किलोमीटर की दूरी पर था.

नरेंद्र के साथ गांव के 7-8 लड़कों का समूह एकसाथ स्कूल के लिए जाता था और रास्ते में अगर कोई झगड़ा न हुआ तो एकसाथ ही वे स्कूल से वापस भी आते थे.

सुबह स्कूल जाने से पहले सारे लड़के गांव की चौपाल पर जमा होते थे. एकसाथ मस्ती करते हुए स्कूल जाने में रास्ते की दूरी का पता ही नहीं चलता था और जब कभी समूह का कोई लड़का वक्त पर चौपाल नहीं पहुंचता था तो उस की खोजखबर लेने के लिए किसी लड़के को उस के घर दौड़ाया जाता था. हमारे साथ स्कूल जाने वाले लड़कों में एक सुरजीत भी था जिस के साथ नरेंद्र की खूब पटती थी. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. नरेंद्र कई बार सुरजीत के घर भी जा चुका था.

एक दिन जब स्कूल जाते समय  सुरजीत गांव की चौपाल पर नहीं पहुंचा तो उस की खोजखबर लेने के लिए नरेंद्र उस के घर पहुंच गया.

पहले तो घर में दाखिल हो कर नरेंद्र ने देखा कि सुरजीत को बुखार है. वह वापस मुड़ा तो उस की नजर सुरजीत के घर में एक औरत पर पड़ी जो उस के लिए अनजान थी.

वह जवान औरत गांव में रहने वाली औरतों से एकदम अलग थी, बिलकुल उसी तरह जैसे उस के अपने घर में रह रही औरत उसे नजर आती थी. चूंकि नरेंद्र को स्कूल जाने की जल्दी थी इसलिए उस ने इस बारे में सुरजीत से कोई बात नहीं की.

2 दिन बाद सुरजीत स्कूल जाने वाले लड़कों में फिर से शामिल हो गया तो छुट्टी के बाद गांव वापस लौटते हुए नरेंद्र ने उस से उस अजनबी औरत के बारे में पूछा था. इस पर सुरजीत ने कहा, ‘बापू ने ‘कुदेसन’ रख ली है.’

‘‘कुदेसन, वह क्या होती है?’’ नरेंद्र ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता. लेकिन ‘कुदेसन’ के कारण मां और बापू में रोज झगड़ा होने लगा है. मां कुदेसन को घर में एक मिनट भी रखने को तैयार नहीं, लेकिन बापू कहता है कि भले ही लाशें बिछ जाएं, कुदेसन यहीं रहेगी,’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मगर तेरा बापू इस कुदेसन को लाया कहां से है?’’

‘‘क्या पता, तुम को तो मालूम ही है कि मेरा बापू ड्राइवर है. कंपनी का ट्रक ले कर दूरदूर के शहरों तक जाता है. कहीं से खरीद लाया होगा,’’ सुरजीत ने कहा.

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सुरजीत की इस बात से नरेंद्र को और ज्यादा हैरानी हुई थी. उस ने जानवरों की खरीदफरोख्त की बात तो सुनी थी मगर इनसानों को भी खरीदा या बेचा जा सकता है यह बात वह पहली बार सुरजीत के मुख से सुन रहा था.

‘कुदेसन’ शब्द एक सवाल बन कर नरेंद्र के जेहन में लगातार चक्कर काटने लगा था. उस को इतना तो एहसास था कि ‘कुदेसन’ शब्द में कुछ बुरा और गलत था. किंतु वह बुरा और गलत क्या था? यह उस को नहीं पता था.

‘कुदेसन’ शब्द को ले कर घर में किसी से कोई सवाल करने की हिम्मत उस में नहीं थी. बाहर किस से पूछे यह नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था.

असमंजस की उस स्थिति में अचानक ही नरेंद्र के दिमाग में अमली चाचा का नाम कौंधा था.

अमली चाचा का असली नाम गुरबख्श था. अफीम के नशे का आदी (अमली) होने के कारण ही गुरबख्श का नाम अमली चाचा पड़ गया था. गांव के बच्चे तो बच्चे जवान और बड़ेबूढे़ तक गुरबख्श को अमली चाचा कह कर बुलाते थे. दूसरे शब्दों में, गुरबख्श सारे गांव का चाचा था.

गांव की चौपाल के पास ही अमली चाचा पीपल के नीचे जूतों को गांठने की दुकानदारी सजा कर बैठता था. वह अकेला था, क्योंकि उस की शादी नहीं हुई थी. एकएक कर के उस के अपने सारे मर गए थे. आगेपीछे कोई रोने वाला नहीं था अमली चाचा के. गांव के हर शख्स से अमली चाचा का मजाक चलता था.

बड़े तो बड़े, नरेंद्र की उम्र के लड़कों के साथ भी उस का हंसीमजाक चलता था. आतेजाते लड़के अमली चाचा से छेड़खानी करते थे और वह इस का बुरा नहीं मानता था. हां, कभीकभी छेड़खानी करने वाले लड़कों को भद्दीभद्दी गालियां जरूर दे देता था.

शरारती लड़के तो अमली चाचा की गालियां सुनने के लिए ही उस को छेड़ते थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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सौतन: भाग 4- क्या भारती के पति को छीनना चाहती थी सुदर्शना

बस गरम रोटी सेंकती थी. इस बीच, भारती का जन्मदिन आया तो उसे एक माइक्रोवेव गिफ्ट, कर गई. सुदर्शना से परिचय होने के बाद भारती के परिवार में मानो सुख, उल्लास की बाढ़ आ गई. सुखी परिवार तो पहले भी था पर अब एक मजबूत, घने पेड़ की छाया और मिल गई. काम है नहीं, चिंता भी कुछ नहीं तो भारती नित नया कुछ व्यंजन या पकवान बनाती. अब हाथ में पूरा समय है तो उस ने पुराने सामानों की सफाई शुरू की.

उसे सुदर्शना की याद आई. कुछ हफ्ते पहले ही उस की तबीयत खराब हुई थी. तब भारती अधिकतर समय उसी के पास बैठी रहती. सूप, चायकौफी बना कर पिलाती. बातें करती. उस समय पूछा था, ‘‘दीदी, आप इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी, इतनी बड़ी नौकरी, आप के पिता भी कितने बड़े डाक्टर थे, जैसा कि आप ने बताया तो आप की शादी नहीं की उन्होंने?’’ वह हंसी, ‘‘सब को परिवार, पति, संतान का सुख नहीं मिलता.’’

‘‘पर क्यों, दीदी?’’

‘‘अरे, मैं कुंआरी नहीं. शादी हुई थी मेरी, पूरे सात फेरे, सिंदूरदान सबकुछ.’’

चौंकी भारती, हाय, कैसा न्याय है? इतनी नेक हैं दीदी और उन को विधवा का जीवन.

‘‘दीदी, आप के पति का देहांत कैसे हुआ था?’’

सिहर उठी थी सुदर्शना, ‘‘न, न, वे जीवित हैं, सुखी हैं. स्वस्थ हैं.’’

‘‘तो क्या उन्होंने आप को छोड़ दिया? क्यों?’’

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‘‘नहीं रे, वे मुझे कभी नहीं छोड़ते पर मजबूरी थी. देख, एक तो हम दोनों ही नाबालिग थे. स्कूल से भाग शादी की थी. फिर वे थे गरीब परिवार के. मेरे पिता इतने पैसे वाले और प्रभावशाली व्यक्ति थे. उन्होंने मेरे पति को बहुत डराया. उन के पिता को बुला कर धमकी दी कि अगर अपने बेटे को नहीं समझाया तो पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे. वह हम दोनों का पहला प्यार था. बहुत छोटेपन से हम एक आर्ट स्कूल में थे. वहां से ही प्यार था. उस के बाद मुझे छोड़ बाहर चले गए वे. हम हमेशा के लिए अलग हो गए.’’ भारती के आंसू आ गए, ‘‘कितनी दुखभरी कहानी है. फिर आप ने शादी नहीं की?’’

हंसी सुदर्शना, ‘‘पगली, शादी, प्यार, यह सब जीवन में एक बार ही होता है.’’

‘बेचारी,’ भारती ने गहरी सांस ली. यह घटना उस ने पति को सुनाई थी. संजीव ने ध्यान नहीं दिया, उलटे समझाया था, ‘‘देखो, बड़े घरों में घटनाएं भी बड़ीबड़ी घटती हैं. तुम इतनी अंदर मत घुसा करो.’’ अगले दिन भारती के पास करने के लिए कुछ खास काम नहीं था. संजीव की एक पुरानी अलमारी साफ करने की सोची. वैसे वह अलमारी उस के ससुरजी की थी. उस में ससुरजी के कपड़ेलत्ते जितने थे, वे सब संजीव ने उन की बरसी पर ही गरीबों में बांट दिए थे. उस के बाद से इस अलमारी में संजीव अपने कागजपत्तर रखता था. फिर उस ने एक छोटी स्टील की अलमारी खरीदी तो उस को कोने में रख दिया. आज लगभग 6 वर्ष बाद उसे भारती ने खोला था. सोचा, इस की मरम्मत, रंगरोगन करा कर चांदनी को दे देगी. भारती ने सोचा कि पहले सारा सामान नीचे उतार कर रैक अच्छी तरह साफ कर के फिर सारा सामान झाड़ कर ऊपर रखेगी. उस ने सब से पहले ऊपर के खाने को टटोला. एक लैदर का पुराना छोटा सा पोर्टफोलियो बैग लौकर में मिला. आजकल इन का चलन समाप्त हो गया है, पहले था. संजीव को कभी लेते नहीं देखा. शायद, ससुरजी का होगा. उस पर मोटी धूल की परत थी. एक फटे तौलिए का टुकड़ा ले वह बैग को ले कर कुरसी खींच कर बैठ गई. पहले सोचा था ऊपरऊपर से पोंछ कर रख देगी पर फिर सोचा कि अब जब निकाला ही है तो अंदर के कागजपत्तर भी झाड़ दे. बेकार के कागज होंगे तो उन को फेंक बैग को हलका कर देगी.

बैग खोलते ही संजीव के स्कूल के कागज, रिपोर्टकार्ड और कुछ सर्टिफिकेट मिले. उस ने कभी बताया नहीं कि वह आर्ट स्कूल में भी जाता था. तभी चांदनी का हाथ ड्राइंग में इतना साफ है. पिता से विरासत में मिली सौगात है उस को. मन ही मन गर्व का अनुभव किया उस ने. तभी उस की नजर एक लिफाफे पर पड़ी. कुतूहल के साथ उस ने उसे उठाया. मथुरा के किसी फोटोस्टूडियो का लिफाफा है. मथुरा से तो दूरदराज तक इन लोगों का कोई मतलब नहीं है. हो सकता है ससुरजी कभी परिवार सहित दर्शन करने गए हों, तब फोटो खिंचवाया हो. उस ने उस में से फोटो निकाला और देखते ही उस के पूरे शरीर को मानो लकवा मार गया. संजीव और सुदर्शना विवाह की वेदी के सामने विवाह के जोड़े और जयमाला के साथ. लगभग 19-20 वर्ष पुराना फोटो है. उस समय रंगीन फोटो कम लिए जाते थे. पर यह फोटो रंगीन है. सुदर्शना की मांग में लाल सिंदूर की रेखा, संजीव के गले में फूलों की माला, माथे पर टीका और गुलाबी चादर में गठजोड़ा. दोनों की ही उम्र 16-17 वर्ष से कम ही है. बहुत बदल गए हैं दोनों. पर पहचानने में कोई परेशानी नहीं. पीछे बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा है ‘संजीव वैड्स सुदर्शना’. बेहोशी की दशा से उभर भारती को होश में आते ही मानो क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा. संजीव उस का वह पति जिस पर उसे गर्व है. वह अपने को सारी सहेलियों से ज्यादा पति सुहागिन मान इतराती है, गर्व से फूलीफूली फिरती है. वह विश्वासघाती है. वह पहले से ही विवाहित था. सुदर्शना उस की पहली पत्नी ही नहीं, उस का पहला प्यार भी है. तो क्या ‘आंचल’ में उस का फ्लैट लेना, फिर कामवाली के बहाने उस के घर में घुसना और फिर उस से, परिवार में बेटी से इतना घुलमिल जाना, यह सब सोचीसमझी साजिश है? दोनों जरूर मिलते होंगे आज भी. यह सब जो हो रहा है, सब इन दोनों की योजना है. वह मूर्ख की मूर्ख ही बनी रही. अपने ऊपर भी गुस्सा आया, क्या किया उस ने? अपनी मूर्खता के कारण स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. पति पर इतना अंधा विश्वास अपनी कोई सहेली कभी नहीं करती है. एक वही आज तक मूर्ख बन कर धोखे की दुनिया में जीती रही. अब इस विश्वासघाती पति के साथ एक दिन नहीं रहेगी और उस डायन को उसी के फ्लैट में जा कर सब के सामने झाड़ू से पिटाई कर के आएगी. तभी भारती की कुछ व्यावहारिक बुद्धि जागी, संजीव के साथ न रहेगी यह तो तय है पर वह जाएगी कहां? मांबाप नहीं हैं, दादी भी नहीं. घर पर बहुओं की सरकार है. वे ननद और उस की बेटी को तो अपने घर पैर भी न धरने देंगी. ‘हाय, क्या करूं मैं’ सोचसोच कर बहुत रोई भारती. फिर आंसू पोंछ ठंडे दिमाग से सोचने बैठी. 14 वर्ष पूरे हो चुके थे विवाह को. चांदनी 10 वर्ष पूरा कर 11वें साल में चल रही थी.

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उस ने आज तक संजीव के चरित्र में कोई उन्नीसबीस नहीं देखा. उस की किसी इच्छा को अपनी क्षमता में रहते अपूर्ण नहीं रखा. तब क्या पता था कि यह सब चालाकी थी. उस के सारे मन पर तो सुदर्शना का अधिकार था. आज दोनों के मुखौटे नोच फेंकेगी वह, आग लगा देगी परिवार को और सब से पहले इस मनहूस फोटो को, जिसे इतने वर्षों से सीने में छिपा रखा है और उसे भनक तक नहीं लगने दी. वह उठ कर फोटो को ले कर गैस पर जलाने ले जा रही थी कि तभी एक बात ध्यान में आई. अच्छा, इतने वर्षों में कभी भी संजीव को अलमारी खोलते तो नहीं देखा. उस ने फिर फोटो को देखा, दो मासूम बच्चे ही लग रहे हैं. 5-6 वर्षों में ही अपनी चांदनी इतनी ही बड़ी हो जाएगी. संजीव…उस का पति है, पति के धर्म को निभाने में कहीं भी वह चूका नहीं. किसी प्रकार की समस्या, कठिनाई आई तो ढाल बन कर उस के सामने आ गया. उसे हर कठिनाई से बचाता रहा. उसे हर तरह से खुश रखने का प्रयास करता रहा. आज तक एक कटु शब्द तक नहीं बोला वह उस से. पति उस का इतना अच्छा है कि उस से उस की हमउम्र स्त्रियां ईर्ष्या करती हैं. और सुदर्शना, वह भी तो ठीक बड़ी बहन की तरह उस पर लाड़प्यार बरसाती है, उस का ध्यान रखती है, उस के लिए चिंता करती है. सब चालाकी तो नहीं लगती.

संजीव भी अपनी सीमा में रह कर ही सुदर्शना से मिलता है. शालीनता बनाए रखता है, मर्यादा बनाए रखने में सतर्क रहता है. सुदर्शना भी संजीव के साथ व्यवहार में सदा ही औपचारिकता बना कर रखती है जबकि चांदनी और उस के साथ एकदम एकात्म हो कर घुलमिल गई है. सब प्रकार के आमोदप्रमोद में घुलमिल उपभोग करती है जबकि दोनों रीतिरिवाजों के तहत बंधनों के पतिपत्नी हैं. पल में सारा क्रोध, सारी उत्तेजना शांत हो गई भारती की. उस का कितना ध्यान रखते हैं दोनों. वह आहत न हो, मन में संदेह न हो, उस का विश्वास न टूटे, यही सोच वे कितने संयत, कितने सतर्क हो कर एकदूसरे से औपचारिक संपर्क बना कर रखते हैं. कितना कष्ट होता होगा उन दोनों को ही. एकदूसरे को समर्पित थे दोनों. बाल बुद्धि में भाग कर भले ही विवाह किया हो पर विवाह तो झूठा नहीं था. भले ही समाज ने दोनों को खींच कर अलग कर दिया हो पर मन का बंधन क्या टूटता है कभी? सच तो यह है कि वही खुद सुदर्शना का संसार, अधिकार यहां तक कि पति कब्जा किए बैठी है. ये दोनों तो तिलतिल मर कर जी रहे हैं प्रतिदिन. एकदूसरे को सामने पाते ही कितनी पीड़ा होती होगी मन में. उसे दुख न हो, यही सोच वे दोनों सहज भाव से बस अच्छे पड़ोसी की तरह एकदूसरे से हंसतेबोलते, योजनाएं बनाते हैं. बस, इसलिए कि उस के सुखी जीवन में दुख की छाया न पड़े और एक वह है कि उन को ही अभियुक्त बना कठघरे में खड़ा करने चली थी. छि:छि:, कितना ओछापन है उस में. संयोग से सुदर्शना को संजीव फिर से मिल गया. पर अब वह उस का नहीं, भारती का पति है. चाहती तो वह भारती से उस के पति को छीनने की कोशिश कर सकती थी पर उस ने ऐसा नहीं किया. वह उस की बहन और संजीव की अच्छी दोस्त बन गई. इस परिवार की सच्ची शुभचिंतक बन गई और वह उस पर ही आक्रोश में भर कर अपने हाथ से सजाए गृहस्थी में आग लगाने जा रही थी. कितना छोटा मन है उस का.आंसू पोंछ भारती ने फोटो को लिफाफे में भर कर बैग में रख कर धूल की परत समेत जहां था वहीं रख दिया. ताला लगा उस ने हाथ धोए. खिड़की से ठंडी हवा के झोंके ने आ कर उस के माथे को चूमा. उस का मन हलका हो गया मानो हरी घास के ऊपर हिरशृंगार के फूल बखर गए हों. उस ने सोचा आज रात सुदर्शना को खाने पर बुला उस के पसंद के दहीबड़े, आलूपरांठा बनाएगी जो संजीव और चांदनी को भी पसंद हैं और उसे तो हैं ही.

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सौतन: भाग 3- क्या भारती के पति को छीनना चाहती थी सुदर्शना

‘‘क्यों?’’

सुदर्शना हंसी, ‘‘बड़ेबड़े लोग हैं सब. सभी अपने को दूसरे से बड़ा समझते हैं. आपस में आनाजाना भी नहीं. बस, चढ़तेउतरते हायहैलो.’’ ‘‘अब जो भी काम हो यहां आ जाइए अपना घर समझ कर.’’ तभी संजीव, चांदनी को ले कर बाइक से घर लौटा. भारती ने आपस में परिचय कराया, ‘‘मेरे पति संजीव और ये हैं सुदर्शना दीदी, ‘आंचल’ सोसाइटी में नई आई हैं.’’ पता नहीं संजीव एकदम चौंका या सहमा. शायद स्तर के अंतर को समझ संकुचित हुआ, एक पल रुक कर उस के हाथ उठे, ‘‘नमस्कार.’’

‘‘नमस्कार.’’

‘‘यह मेरी बेटी चांदनी, प्राइवेट स्कूल में 8वीं में पढ़ती है.’’

सुदर्शना ने उसे गोद में खींच माथे को चूमा, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है तुम्हारी. अब मैं चलूं?’’

भारती ने रोका, ‘‘घर में तो खानेपीने का जुगाड़ है नहीं. कामवाली शाम को आएगी तो आप दोपहर में खाना हमारे साथ खाइए.’’

‘‘अरे नहीं, मैं कैंटीन से लंच पैक करा कर लाई हूं, वह खराब हो जाएगा.’’ संजीव जल्दी से बोला, ‘‘नहींनहीं, तब तो नहीं रोकेंगे आप को.’’

भारती ने अवाक् हो संजीव का मुख देखा. इतने वर्षों से उसे देख रही है. उसे संजीव का आज का व्यवहार बड़ा ही अजीब लगा. वह लोगों को खिलाना बहुत पसंद करता है. दोस्त आते हैं तो जबरदस्ती उन को खाना खिला कर भेजता है. असल में उसे भारती के हाथ से बने स्वादिष्ठ भोजन पर गर्व है. आज स्वभाव के विपरीत आग्रह करना तो दूर, सुदर्शना को भगाने को उतावला हो उठा. क्या उसे भी पहले सुदर्शना जैसी एलिट क्लास की महिला को देख कर घबराहट हुई जैसे उसे हुई थी. पर सुदर्शना वैसी नहीं है. वह बहुत अच्छी है. दो मिनट बैठ बात करता तो समझ जाता जैसे वह समझ गई है. सुदर्शना ने उन से विदा ली. जाते समय फिर चांदनी को प्यार किया. सब को अपने फ्लैट पर आने का निमंत्रण दिया और चली गई.

कुछ देर बाद जब सब खाने बैठे तब चांदनी ने कहा, ‘‘मैं आंटी को जानती हूं.’’

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संजीव चौंका, ‘‘अरे, कैसे?’’

‘‘हमारे स्कूल की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करने आई थीं. ये फाइन आर्ट अकादमी की डायरैक्टर हैं.’’

भारती का मुंह खुल गया, ‘‘हैं…’’

‘‘हां मम्मी. और इन के बनाए चित्र लाखों में बिकते हैं.’’

‘‘बाप रे, देखने में लगता नहीं. इतनी सीधीसादी हैं न जी.’’ संजीव खाने में मस्त था, शायद सुना ही नहीं, चौंका, ‘‘क्या, क्या कह रही हो?’’

‘‘सुना नहीं, सुदर्शनाजी कितनी बड़ी नौकरी पर हैं. इन के चित्र लाखों में बिकते हैं. पर देखो, कितनी अच्छी हैं, हम लोगों से कैसे घुलमिल गईं. लगता ही नहीं कि इतने ऊंचे स्तर की हैं.’’

‘‘हां, हां, वह तो है. पर भारती, हमारे और इन के स्तर में बहुत बड़ा अंतर है. तुम जरा संभल कर मिलनाजुलना.’’

‘‘अरे, वह मैं समझती हूं. मैं तो गई नहीं, वही मदद मांगने आई थीं. सो, भोले सब्जी वाले की बहन को उन के घर काम पर लगा दिया, बस. अब कौन रोजरोज आएंगी वे.’’

संजीव ‘यह भी ठीक है.’ सोच कर चुप हो गया. पर इन लोगों ने जैसा सोचा था कि बात आईगई हो गई, ऐसा हुआ नहीं. क्योंकि सुदर्शना ने स्वयं ही बारबार आ कर घनिष्ठता बढ़ा ली. स्वभाव भी उस का इतना मधुर और मिलनसार था कि ये लोग भी उस से घुलमिल गए. वह चांदनी की आदर्श, भारती की स्नेहमयी दीदी और संजीव की शुभचिंतक बन गई. भोले भी बड़ा खुश था, उस की दीदी को सुदर्शना मोटा वेतन देती और रोज ही कुछ न कुछ घर ले जाने को देती. उस का आर्थिक संकट दूर हो गया. अब भारती के घर सुदर्शना का आनाजाना बहुत हो गया. धीरेधीरे संजीव भी खुल गया उस के सामने. अब तो घर की व्यक्तिगत बातें भी उस के सामने करते यह परिवार नहीं हिचकता. जैसे उस दिन दीवार पर फ्रेम किए चांदनी के बनाए 2 चित्रों को देख उस ने कहा, ‘‘चांदनी का हाथ बहुत अच्छा है. इसे आर्ट स्कूल में क्यों नहीं भेजती.’’

भारती ने रुकरुक कर जवाब दिया, ‘‘स्कूल…से…लौट…समय…होमवर्क भी रहता है.’’

‘‘पर वहां शाम की क्लासेज भी होती हैं शनिवार और रविवार को, तो क्या परेशानी है.’’

‘‘नहीं, असल में पूरे वर्ष की फीस जमा करते हैं वहां, अब एकदम 24 हजार रुपए…’’ सुदर्शना चुप हो गई. एक हफ्ते बाद चांदनी का जन्मदिन आया. शाम को बच्चों की पार्टी हो गई. रात को खाने पर सुदर्शना को बुलाया था भारती ने. उस दिन वह कुछ काम में व्यस्त थी, देर से आई 11 बजे के आसपास. चांदनी को ले कर एक बार बाजार गई थी. उसे सुंदर सा एक ड्रैस खरीद दिया. रात खाने पर आई तो सब से पहले उस ने चांदनी को खूब प्यार किया, आशीर्वाद दिया. फिर बोली, ‘‘भारती, मैं ने चांदनी को कोई गिफ्ट नहीं दिया अभी तक.’’

भारती से पहले संजीव बोल पड़ा, ‘‘अरे, इतना महंगा ड्रैस…’’

‘‘वह गिफ्ट नहीं. गिफ्ट यह है,’’ उस ने एक लिफाफा बढ़ा दिया संजीव की ओर.

संजीव हैरान था, ‘‘यह क्या?’’

‘‘बर्थडे गिफ्ट.’’

चांदनी के होंठों पर दबी मुसकान अर्थात उसे पता है कि इस में क्या है. संजीव ने भारती की ओर देखा, उस ने असमंजस से सिर हिलाया. उसे भी कुछ पता नहीं. संजीव ने सोचा, इस में चैक होगा. खोला तो चौंका, मुंह से निकला, ‘‘अरे, यह कब…?’’

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खिलखिला उठी चांदनी, ‘‘जब ड्रैस लेने गई थी…’’ आर्ट कालेज में चांदनी के भरती होने की पूरे 2 वर्ष की फीस 48 हजार रुपए की रसीद. संजीव के पैरों के नीचे की जमीन खिसकने लगी. भारती ने भी देखा, वह कुछ बोलती कि सुदर्शना ने रोका, ‘‘देखो भारती, आज खुशी का दिन है. चांदनी को मैं अपनी बेटी मानती हूं. उस के लिए 2 रुपए का सामान लाने में भी मुझे बड़ा सुख मिलता है. मैं तुम लोगों को अपना मानती हूं. तुम लोग भले ही मुझे पराया समझते हो.’’ व्यावहारिक ज्ञान भारती को संजीव से ज्यादा है. उस ने बात संभाली, ‘‘नहीं दीदी, आप को भी हम परिवार का हिस्सा समझते हैं.’’

‘‘तो फिर इतने परेशान क्यों हो?’’

संजीव अब तक संभल गया था, बोला, ‘‘सुदर्शनाजी, रकम बहुत बड़ी है.’’ ‘‘देखिए, संजीवजी, मैं संसार में एकदम अकेली हूं, मेरी आय काफी है. मेरे लिए यह सजा है कि मेरे पास कोई नहीं है जिस पर मैं 10 रुपए भी खर्च करूं. पता नहीं, किस अच्छे काम के चलते इतने दिनों बाद मुझे एक ऐसा परिवार मिला जो मुझे अपना लगा, जिस ने मुझे अपना समझा. कृपया, कुछ कर के मुझे सुख मिले तो मुझे रोक कर उस सुख से वंचित मत करिए.’’ यह कह कर उस ने हाथ जोड़े. भारती लिपट गई उस से.

‘‘ना-ना दीदी, आप जो मन में आए, करिए, हम कुछ नहीं कहेंगे. चांदनी आप की ही बेटी है.’’ दोनों के बीच स्तर के नाम की जो कांच की दीवार थी वह झनझना कर टूट गई. सुदर्शना इस परिवार की सदस्या बन गई. वास्तव में इन लोगों को याद ही न रहा कि सुदर्शना पड़ोस में रहने वाली एक पारिवारिक मित्र भर है. उस के बिना ये लोग अब कुछ सोच भी नहीं सकते थे. घूमना, खाना, भविष्य योजना, यहां तक कि आर्थिक योजना सब कुछ में सुदर्शना शामिल हो गई. संजीव ने थोड़ा रोकने का प्रयास न किया हो, ऐसी बात नहीं पर चांदनी व भारती की खुशी देख वह चुप रह जाता. धीरेधीरे घर की कायापलट हो रही थी. सब से पहले उस ने एक माली लगाया जिस से बगीचा सजसंवर जाए. वह अकादमी में काम करता रविवार पूरा दिन यहां काम कर जाता, वेतन नहीं लेता. पैसों की बात करते ही हाथ जोड़ता, ‘‘मैडमजी का बहुत उपकार है मेरे ऊपर. आप उन के अपने हैं, पैसे की बात न करें. बहुत ले रखा है उन से. भारती को ठंड में काम करने में कष्ट होता है, जल्दी ठंड लग जाती है. उस ने भोले की दीदी को भारती के घर काम के लिए लगा दिया. 8 बजे के बाद आ कर पूरा काम करती, यहां तक कि सागसब्जी, दाल भी रात के लिए बना जाती. रात को भारती…

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