चार सुनहरे दिन: भाग 3- प्रदीप को पाने के लिए किस हद तक गुजरी रेखा

रेखा सन्न रह गई. बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी यदि तुम पर जोर दे कर…’’

‘‘नहीं, मैं ने साफ इनकार कर दिया है. लेकिन पिताजी का कहना है कि वे उन लोगों का कर्ज अपनी पैंशन से नहीं चुका सकेंगे, वे लोग हमारा घर नीलाम कराने की धमकियां दे रहे हैं.’’

रेखा ने सूखे गले से पूछा, ‘‘तब तुम क्या करोगे?’’

इसीलिए तो मैं नौकरी ढूंढ़ रहा हूं. मैं ने पिताजी से कह दिया है कि नौकरी कर के उन्हें हर महीने अपना वेतन देता रहूंगा और कर्ज पट जाएगा. लेकिन नौकरी मिले तब तो.’’

रेखा चिंता में पड़ गई थी. प्रदीप को यदि नौकरी न मिली, और कर्ज के दबाव में वह वहां शादी के लिए राजी हो गया, तो…

3 दिनों के बाद प्रदीप वहीं मिला, बस स्टौप पर. घबराया हुआ सा था. बोला, ‘‘डार्लिंग, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. चलो…’’

वह उसे अपने घर नहीं, पास के एक रैस्तरां में ले गया. एक केबिन में बैठ कर सैंडविच और चाय का और्डर दिया और धीरेधीरे कहने लगा, ‘‘डार्लिंग, मैं आज तुम से विदा लेने आया हूं.’’

रेखा सन्न रह गई, ‘‘विदा लेने…’’

‘‘हां, बात बिगड़ गईर् है. लड़की वालों ने अपनी बेटी की शादी कहीं और तय कर दी है. यह तो मेरे सिर से एक बला टली, लेकिन अब वे लोग सख्ती से अपना रुपया मांग रहे हैं. पिताजी पर दबाव डाल रहे हैं. दबंग आदमी हैं, बड़ी विनतीचिरौरी करने पर 3 दिनों का समय दिया है. वरना घर नीलाम करा लेंगे.’’

‘‘तो?’’ सूखे गले से रेखा ने पूछा.

‘‘मैं ने सोचा है कि मैं कहीं भाग जाऊं. पिताजी उन लोगों पर मेरे अपहरण का केस दायर कर देंगे. यों वे हमारा घर नहीं ले सकेंगे. मामला चलेगा, और फिर देखा जाएगा. शायद मु झे बाहर नौकरी मिल जाए. तब सब ठीक हो जाएगा.’’

रेखा ने कांपते स्वर में पूछा, ‘‘फिर कब लौटोगे?’’

ये भी पढ़ें- Story In Hindi: मोहपाश- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

‘‘फिलहाल तो भागना ही पड़ेगा, लौटने का कुछ ठीक नहीं. शायद न भी लौटूं. नौकरी के बिना या रुपए की व्यवस्था के बिना लौटने पर तो अपहरण का केस भी टिक न सकेगा. इसलिए अलविदा.’’

रेखा चुप रही. उस के दिल में तूफान चल रहा था. इधर पुरुष सहवास का जो अनोखा आनंद उसे मिला था वह उस के लिए एक अनिवार्य नशा जैसा हो गया था. वह इतने सुख के दिन बिताने के बाद अब इसे हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी. भागने के बाद प्रदीप का उस से शादी कर पाना मुश्किल हो जाएगा. न जाने कहांकहां छिपता फिरेगा. वह सोचने लगी कि क्या उस को फिर से अकेले जीवन गुजारना पड़ेगा? सवेरे से शाम तक सूखे रजिस्टरों, लेजरों में सिर खपा कर पैसे बैंक पहुंचाना, लौट कर थके शरीर से अकेली बिस्तर पर रात काट देना और सवेरे उठ कर फिर उसी एकरस दिनचर्या की तैयारी. उस का मन जैसे हाहाकार कर उठा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘कितने पैसे देने हैं उसे?’’

‘‘ठीक से पता नहीं,’’ प्रदीप लापरवाही से बोला, ‘‘लेकिन पिछले साल तक यह 32 हजार रुपए के लगभग था. सूद की मोटी राशि जुड़ती रहती है. सो, अब 40 हजार रुपए से कम क्या होगा. लेकिन क्या फायदा इस गिनती से. न मैं यह जुटा सकता हूं न पिताजी. ये लोग इतने खूंखार हैं और कह चुके हैं कि 3 दिनों में रुपया न मिला तो मेरे हाथपैर तोड़ देंगे. मु झे तो भागना पड़ेगा ही.’’

रेखा कांप गई. इस बीच बैरे ने खाने का सामान ला कर रख दिया. रेखा ने उसे छुआ भी नहीं. बोली, ‘‘क्या तुम्हारे चाचाजी कुछ मदद नहीं करेंगे?’’

‘‘चाचा.’’ प्रदीप फीकी मुसकान से बोला, ‘‘वे तो उड़ाऊखाऊ आदमी हैं. उन के पास पैसा कहां. उन्हें इस साल ललिता की शादी भी करनी है. उस के लिए कर्ज लेने वाले हैं.’’

प्रदीप आगे बोला, ‘‘खाओ, चिंता मत करो. वही तरीका ठीक है कि मैं यहां से भाग जाऊं. यहीं से चला जाऊंगा. मोटरसाइकिल एक दोस्त के घर पर रख कर मैं स्टेशन चला जाऊंगा.’’

‘‘क्या पैसे की कुछ भी व्यवस्था नहीं कर सकते?’’ रेखा बोली, ‘‘मेरे पास 3 हजार रुपए हैं.’’

प्रदीप फीकी हंसी हंसा, ‘‘कभी शौक से मोटरसाइकिल ली थी. आज बेच दूं तो शायद 7-8 हजार रुपए मिलें. ये 10 हजार रुपए हुए. लेकिन 30 हजार रुपए का सवाल रह जाता है. नहीं भई, यों नहीं होगा. मु झे भागना पड़ेगा.’’

रेखा कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं रुपए की व्यवस्था कर दूं तो?’’

‘‘तुम?’’ प्रदीप चौंका, ‘‘तुम कहां से लाओगी 30 हजार रुपए?’’

‘‘मैं ला दूंगी.’’

‘‘क्या अपने पिताजी से मांगोगी? तब तो.’’

‘‘ उन से मतलब नहीं, और न उन के पास हैं. मैं इंतजाम कर दूंगी. मु झे जरा सोचने दो.’’

‘‘जरूर औफिस से लोन लोगी, लेकिन वे इतनी रकम दे देंगे? 3 दिनों में ही चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें ला दूंगी रुपए, बस. फिर तो तुम्हें घर छोड़ने की जरूरत न होगी?’’

‘‘नहीं तो,’’ प्रदीप खुश हो कर बोला, ‘‘तब क्यों कहीं जाऊंगा. रुपए उन हरामियों को सूद समेत चुका कर निश्ंिचत हो जाएंगे हम लोग. फिर तो ठाट से हमारी शादी अगले लगन में ही पक्की सम झो.’’

‘‘क्या सच में?’’ रेखा उत्सुक हुई.

‘‘बिलकुल सच. तब बाधा ही क्या रहेगी भला. लेकिन मैं नहीं सम झ सकता कि कैसे.’’

‘‘छोड़ो. तुम ऐसा करना कि कल सवेरे ठीक साढ़े 9 बजे वहीं मिलना जहां बस खड़ी होती है.’’

रात में रेखा गंभीरता से विचार करती रही. रोज वह कंपनी का जो रुपया जमा कराती है, वह आजकल 30 हजार रुपए से ज्यादा ही होता है. दीवाली नजदीक है, बसों में भीड़ होने लगी है.

2 दिनों बाद भीड़ और बढ़ जाएगी. उसे वही रुपया हथियाना होगा. कंपनी बहुत बड़ी है और रोज इतना रुपया जमा होता है. एक दिन की आमदनी यदि न भी जमा हो तो क्या फर्क पड़ता है.

रेखा के जीवन का सवाल है. 8 साल से उस ने यहां मेहनत की है. वेतन सिर्फ

3 हजार रुपए मिलता है, जबकि रेखा 2-3 लोगों के बराबर काम अकेली कर देती है. अकाउंटैंसी, फाइलिंग, कौरेस्पौंडेंस, रुपए जमा कराना. उस के परिश्रम से कंपनी को लाखों रुपए का लाभ होता रहता है. क्या उसे 8 साल के कुछ बोनस का अधिकार नहीं? कंपनी को तो चाहिए कि उसे कम से कम 4 हजार रुपए वेतन दे. इसी बहाने वह अपना घाटा भी पूरा कर लेगी. इस में कुछ दोष या पाप बिलकुल नहीं. रेखा का जीवन बनेगा, एक परिवार का बचाव होगा, और कंपनी का कुछ खास नहीं बिगड़ेगा.

रातभर वह इसी उधेड़बुन में रही. सवाल केवल रामलाल का था. उस सीधे आदमी को आसानी से उल्लू बनाया जा सकता है. उस ने एक उपाय सोचा.

सवेरे देर से जागी. उस का मुर झाया चेहरा देख कर शोभा ने पूछा, ‘‘क्या तबीयत खराब है?’’ उसे टाल कर वह समय पर औफिस के लिए चल दी. साढ़े 9 बजे बसस्टौप पर प्रदीप पहले से मौजूद था.

रेखा ने कहा, ‘‘मेरे साथ थोड़ी दूर तक टहलने चलो. राह में बातें करेंगे.’’

चलते हुए उस ने प्रदीप को धीरेधीरे अपनी योजना बतानी शुरू की. फिर कहा, ‘‘बैंक और उस चाय की दुकान को तो जानते ही हो. चाय की दुकान और बैंक के बीच नीम का एक बड़ा मोटा सा पेड़ है. रात में वह सड़क सूनी रहती है. बैंक के पास 1-2 दुकानें हैं, जिन की रोशनी वहां तक आती है. पेड़ से बैंक का फासला मुश्किल से सौडेढ़सौ कदम होगा. तुम पेड़ के पीछे रहना. और जो सम झाया है, वही करना. हां, वह चीज आज मु झे किसी तरह औफिस में दे देना.’’

‘‘कुछ मुश्किल नहीं,’’ प्रदीप बोला, ‘‘मैं पेड़ के पास रहूंगा. मोटरसाइकिल भी है. ठीक से चेक किए रखूंगा. वह चीज तुम्हें आज किसी के हाथों पहुंचा दूंगा.’’

‘‘तुम खुद औफिस क्यों नहीं आते? तुम्हें कौन जानता है वहां?’’

‘‘असल में, मु झे दिन में कुछ जरूरी काम है, डार्लिंग. लेकिन, मैं पहुंचा दूंगा, तुम निश्चिंत रहो.’’

रेखा को उस दिन भी उखड़े मूड में काम करते देख जगतियानी ने पूछा, ‘‘क्या आज भी तबीयत खराब है, रेखा? तब तो भई, घर जा कर…’’

ये भी पढ़ें- Family Story In Hindi: पछतावा- खुतेजा के सयानेपन का क्या था अंजाम

‘‘नहीं सर, बस यों ही.’’ वह चुस्ती दिखाती हुई काम करने लगी. हिसाब निबटाते हुए दिमाग उस तरफ लगा था जो प्रदीप को सम झाया था. अब होथियारी रखनी है.

12 बजे छोकरे से उस ने चाय मंगवाई. चाय आईर् ही थी कि एक बाहरी लड़के ने आ कर कहा, ‘‘आप रेखाजी हैं?’’

‘‘हां,’’ वह सतर्क हुई, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘यह लीजिए,’’ लड़के ने उसे एक पुडि़या दी और तुरंत लौट गया. मैनेजर 2-3 लोगों से बातें कर रहा था. अपनी जगह से ही पूछा, ‘‘क्या बात है? कौन छोकरा….’’

‘‘किसी रमेश के बारे में पूछ रहा था, सर,’’ उसे विश्वास था जगतियानी ने पुडि़या लेते देखा नहीं है, ‘‘मैं ने कह दिया यहां कोई रमेश नहीं रहता.’’

धीरे से पुडि़या मुट्ठी में दबा कर वह बाथरूम चली गई. वहां उसे खोला, 2 सफेद गोलियां थीं. पुडि़या ठीक से लपेट कर ब्रा में छिपा ली और निकल आई.

समय बीत नहीं रहा था. किसी तरह साढ़े 8 बजे. नोट गिने गए. आज तो पूरे 38 हजार 3 सौै रुपए हुए. रजिस्टर पर हिसाब चढ़ा कर रुपयों को बैग में रख कर वह रामलाल के साथ निकल गई.

रेखा का मन कांप रहा था. उसे हलका पसीना आने लगा था. वह पहली बार ऐसा काम करने जा रही थी, जो उसे वर्षों के लिए जेल भिजवा सकता था. नौकरी तो जाती ही. लेकिन जिंदगी में ऐसे भी क्षण आते हैं जब आदमी जुआ खेलने को मजबूर हो जाता है.

अब पीछे कदम हटाना कठिन था.

बसअड्डे पर चाय और पान की दुकानें थीं, किंतु रेखा थोड़ा आगे वाली दुकान पर बैंक से लौटते वक्त रोज चाय पीती थी. वहां पहुंची तो बोली, ‘‘भई रामलाल, आज मेरे सिर में दर्द है. अभी चाय पीते चलें, अभी टाइम है.’’

रामलाल आसानी से मान गया, ‘‘चलो बिटिया, मु झे भी भूख लगी है. एकाध बिस्कुट भी ले लेना.’’

वे चायखाने में आए तो 2-3 लोग ही थे. रेखा ने जल्दी 2 चाय लाने को कहा. चाय तुरंत आ गई. वह रामलाल से बोली, ‘‘खुद ही जा कर बिस्कुट ले लो. नौकर गंदे हाथ से निकालता है.’’

रेखा ने कोने की जगह चुनी थी. रामलाल बिस्कुट लाने काउंटर की ओर गया तो उस ने वे गोलियां निकाल कर चाय में डाल दीं. ऐसा करते उसे किसी ने नहीं देखा. बिस्कुट ले कर रामलाल लौटा तो बोली, ‘‘जल्दी करो.’’

रामलाल ने बिस्कुट खा कर जल्दी से चाय पी ली. पैसे चुका कर रेखा चली तो बैंक बंद होने में कुल 7 मिनट बाकी थे. थोड़ी दूर आगे बैंक था. चायखाने के आगे कुछ बढ़ कर नीम का वह पेड़ था. रेखा ने गौर से देखा. उधर कोई था.

रामलाल ने कहा, ‘‘बिटिया, मेरा सिर चकरा रहा है.’’

‘‘खाली पेट थे, सो, गैस चढ़ी होगी,’’ रेखा बोली.

कांपते गले से रामलाल बोला, ‘‘हाथपैर सनसना रहे हैं, बिटिया. मु झे तो नींद आने लगी है.’’

‘‘कोईर् बात नहीं, अभी बैंक पहुंचते हैं. आराम कर लेना, ठीक हो जाओगे.’’

पेड़ के पास पहुंचने के लिए उस का कलेजा उछल रहा था. जैसे ही वे पेड़ के नीचे आए. उस के पीछे से कोई उछल कर निकला और रामलाल के सिर पर किसी चीज से चोट की. रामलाल लड़खड़ा कर गिर पड़ा. वह आदमी रेखा की ओर  झपटा, उस ने देख लिया प्रदीप था. कुछ कहने ही वाली थी कि प्रदीप ने  झटके के साथ उस के कंधे से बैग ले लिया और भिंचे गले से बोला, ‘‘धन्यवाद.’’

रेखा हतबुद्धि थी. उसे खुद बैग प्रदीप को देना था, लेकिन यह गुंडों, अपराधियों की तरह छीन लेना. उस ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि प्रदीप के पीछे खड़ी मोटरसाइकिल पर उस की नजर पड़ी पिछली सीट पर एक लड़की. रेखा ने पलक मारते उसे पहचान लिया. वही लड़की, जिसे प्रदीप ने अपनी चचेरी बहन बताया था. तब तक प्रदीप ने बैग उस लड़की को थमा दिया, और पीछे मुड़ा, ‘‘अब.’’

पलक  झपकते उस का हाथ उठा, रेखा को पता नहीं चला कि किस चीज से उस पर जोरदार चोट की गई है. उस की आंखों के आगे सितारे नाच उठे, वह नीचे गिर पड़ी.

उसे होश आया तो औफिस में बैंच पर लेटी थी. मैनेजर जगतियानी वहीं खड़ा था. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. नीचे चटाई पर रामलाल पड़ा हुआ था. उस के माथे पर पट्टी थी और डाक्टर उसे इंजैक्शन दे रहा था. रेखा का सिर फोड़े की तरह दुख रहा था. टटोला, माथे पर पट्टी लपेटी हुई थी.

‘‘क…क्या हुआ?’’ रेखा ने कमजोर आवाज में पूछा.

हाथ मलता जगतियानी बोला, ‘‘रास्ते में बदमाशों ने तुम लोगों पर हमला कर रुपए छीन लिए, और क्या. ताज्जुब तो है, रामलाल 5-6 पर भारी पड़ता है, लेकिन यह भी मार खा गया. पुलिस को फोन किया है मैं ने.’’

‘‘सब रुपए ले गए?’’

‘‘सब. यह दूसरी बार कंपनी को चूना लगा है. 2 साल पहले की बात तुम्हें याद होगी. जब दि प्रीमियर ट्रांसपोर्ट कंपनी के मैनेजर के नाम से किसी ने  झूठा फोन किया था. जब मैं 4 दिनों की छुट्टी पर गया था और मेरा असिस्टैंट मेरा काम संभाल रहा था. उस बदमाश ने  झूठा फोन किया, और जाली हुंडी मैनेजर के नकली दस्तखत बना कर ले आया था और नकद 10 हजार रुपए ले गया था. यह काम प्रीमियर ट्रांसपोर्ट के ही एक आदमी अजीत का था. पुलिस ने जांचपड़ताल की तो उसी का नाम सामने आया था लेकिन, सुबूत की कमी से वह छूट गया था. मैं छुट्टी के बीच से ही दौड़ा आया था. तुम्हें याद होगा. मैं ने उस पाजी को कोर्ट में अच्छी तरह देखा था. मामूली सूरत बदल कर उस ने जाली हुंडी से पैसे लिए और मेरे असिस्टैंट ने रुपए दे भी दिए. प्रीमियर वालों ने अजीत को नौकरी से निकाल दिया है. वह कभीकभी शहर में घूमता दिखाई देता है. मोटरसाइकिल पर घूमता है बदमाश. तुम ने शायद उसे न देखा हो. माथे पर कटे का निशान है और एक दांत आधा टूटा हुआ…’’

प्रदीप का हुलिया सुन कर रेखा का माथा घूम गया.

ये भी  पढ़ें- Story In Hindi: तलाक – कौनसी मुसीबत में फंस गई थी जाहिरा

डाक्टर बोला, ‘‘दवाएं लिख देता हूं, मिस्टर जगतियानी.’’

डाक्टर के जाने के बाद जगतियानी ने बताया, ‘‘चाय की दुकान वाला तो बताता है कि रात में उसे मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी थी. यह काम भी उसी बदमाश का हो सकता है. अब तो पुलिस ही पता लगाएगी, आने दो.’’

रेखा का दिमाग ही सुन्न हो रहा था. प्रदीप…अजीत उस लड़की के साथ रुपए ले कर चंपत हो गया. उसे उल्लू बना गया. वह मैनेजर को कुछ नहीं बता सकती. उस की अपनी इज्जत और नौकरी का सवाल है. जो सोचा था सब उलटा हो गया. जिंदगी में हवा के  झोंके की तरह आए सुख के ये चार सुनहरे दिन चले गए. उन दिनों की बहुत बड़ी कीमत ले गया है वह.

REVIEW: जानें कैसी है अजय देवगन की ‘भुजः द  प्राइड आफ इंडिया’

रेटिंगः एक स्टार

निर्माताः अजय देवगन फिल्मस, पैनोरमा स्टूडियो, सेलेक्ट मीडिया

निर्देशकः अभिषेक दुधैया

कलाकारः अजय देवगन, सजय दत्त,  सोनाक्षी सिन्हा, नोरा फतेही, शरद केलकर, अमी विर्क, अनुराग त्रिपाठी व अन्य.

अवधिः एक घंटा 53 मिनट 

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिजनी

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के वक्त गुजरात के भुज हवाई अड्डे के एअरबेस को पाकिस्तानी वायुसेना ने बमबारी से ध्वस्त कर दिया था. तब भुज हवाई अड्डे के तत्कालीन प्रभारी आईएएफ स्क्वाड्रन लीडर विजय कर्णिक और उनकी टीम ने मधापर व उसके आसपास के गांव की 300 महिलाओं की मदद से वायुसेना के एयरबेस का पुनः निर्माण किया था. उसी सत्य ऐतिहासिक घटनाक्रम पर सिनेमाई स्वतंत्रता के साथ फिल्मकार अभिषेक दुधैया फिल्म‘‘भुजः द प्राइड आफ इंडिया’’लेकर आए हैं. जो कि तेरह अगस्त की शाम साढ़े बजे से ‘‘हॉट स्टार डिजनी’पर स्ट्रीम हो रही है.

ये भी पढ़ें- किंजल के साथ बद्तमीजी करेगा बौस! अनुपमा-वनराज के सामने निकलेंगे आंसू

कहानीः

15 अगस्त 1947 को आजादी के समय हिंदुस्तान का विभाजन होने पर पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान बना था. पाकिस्तान के प्रधान मंत्री याहया खान ने पूर्वी पाकिस्तान में जुल्म ढाते हुए चालिस लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. जिसके चलते वहां के लोगों व शांतिवाहिनी ने विद्रोह किया था और फिर पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर सैनिक आक्रमण किया था, तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ भेजकर काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया था और पूर्वी पाकिस्तान को बांगला देश बनाने में मदद की थी. इससे बौखलाए याहया खान ने भारत के पश्चिमी हिस्से में कच्छ से घुसकर भुज पर आक्रमण किया था. उस वक्त भुज एअरबेस के प्रभारी आईएएफ स्क्वार्डन लीडर विजय श्रीनिवास कार्णिक(अजय देवगन )थे. जबकि उनके कमंाडर आर के नायर(शरद केलकर)हैं. आर के नायर ने एक अपंग मुस्लिम महिला से शादी की है. तीन दिसंबर 1971 को विजय कार्णिक और उनकी पत्नी उषा (प्रणिता सुभाष )  की शादी की दसवीं सालगिरह मनायी जाती है. उसी वक्त भुज पर पाक सेना की तरफ से बमबारी की खबर आती है. विजय कार्णिक परेशान होते हैं. उधर पाक में मौजूद भारतीय जासूस हीना रहमानी  पाक सेना के अगले कदमो की जानकारी पहुॅचती रहती है, जिसने पाक से सेना के उच्च अधिकारी से विवाह किया है. तो वहीं ‘रॉ अधिकारी रणछोड़दास पागी(संजय दत्त)हैं, जिन्हे मरूस्थल की अच्छी जानकारी है. वह रेगिस्तान की रेत कदमों के निशान देखकर बता देते हैं कि वह भारतीय सैनिक या पाक सैनिक के निशान हैं. रणछोड़ दास पागी चतुर चालाक है. वह पाक सेना को मूर्ख बनाकर आर के नायर को युद्ध जीतने की रणनीति बताता रहता है.  पाक वायुसेना ने भुज एअरबेस को तहस नहस कर दिया है. अब कोई हवाई जहाज न इस एअरबेस पर उतर सकता है और न ही उड़ान भर सकता है. उधर पाक अपने 150 टैंक व 1800 सैनिको  के साथ भुज पर कब्जा करने भेजता है. पाक जानता है कि अब भुज एअरबेस ठीक होने तक भारतीय सेना नही आ कसती. ऐसे में नियम के विपरीत जाकर स्वकार्डन लीडर विजय कार्णिक मधापुर गांव की 300 औरतों की मदद से भुज एअरबेस को ठीक कराने में सफल होते हैं. और पांच सौ सैनिक भुज एअरबेस पर उतरने में सफल हो जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

एक बेहतरीन व प्रेरणा दायक कहानी का लेखक, निर्देशक, एडीटर व वीएफएक्स ने बंटाधार कर दिया. पटकथा काफी कमजोर व भटकी हुई सी है. फिल्मकार ने फिल्म में एक साथ छह कहानियों और कई घटनाक्रम को पिरोने का प्रयास किया, जिन्हे दो घंटे के अंदर सही ढंग से पिरोना संभव नही. इसलिए किसी भी कहानी के साथ सही न्याय नही हो पाया. सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर कुछ गाने व कुछ अतार्किक दृश्य भी जोड़े गए हैं. अफसोस की बात यह है कि फिल्म के ट्रेलर व प्रचार में दिखाए जा चुके गाने के हिस्से और कुछ संवाद गायब हैं. फिर भी एडीटर फिल्म में कसावट न ला पाए. क्योकि पटकथा ही हिचकोले लेते हुए ही आगे बढ़ती है. यह हालत तब है, जब इसे तीन लेखक और अतिरिक्त संवाद लेखक ने गढ़ा है. कई बार ऐसा लगा कि हम किसी टीवी सीरियल के अलग अलग हिस्से जोड़कर देख रहे हैं.

फिल्म में बेवजह धर्म, मंदिर व भगवान की मूर्तियों से जुड़े दृश्य पिरोए गए हैं. राष्ट्वाद को लेकर जिस तरह से बात की गयी है, वह भी प्रभावशाली नही है. जब जल्द से जल्द एअरबेस बनाने का संकट हो, उस वक्त एअर बेस बनाने जा रही औरतें अपनी नेता संुदर बेन के साथ ढोल नगारे के साथ भजन गाती हैं, यह अजीब सा लगता है. वर्तमान सरकार की विचारधारा के अनुरूप राष्ट्वाद  को ठॅंूसने के चक्कर में ही फिल्म सही ढंग से नहीं बन पायी.

ये भी पढ़ें- पहली बार कैमरे में कैद हुआ करीना के बेटे Jeh Ali Khan का चेहरा, वीडियो वायरल

वीएफएक्स भी बहुत घटिया है. एअरफोर्स को एअरबेस पर लेंड करने के लिए अजय देवगन ट्क का सहारा देने जा रहे है, उस वक्त जिस तरह से ट्क हिलता है, उससे एक नौसीखिया भी समझ जाएगा कि वीएफएक्स बहुत घटिया है. दुश्मन के एअर प्लेन को मार गिराने वाले दृश्य हों या गन फायरिंग के दृश्य हों, सभी वीडियो गेम जैसे ही हैं.

फिल्म की मूल कहानी ‘नारी सशक्तिकरण’ की है. किस तरह रातों रात एअरबेस को बनाने के लिए गांव की तीन सौ औरतें आती हैं और देश के लिए अपने घर की दीवारें तोड़कर वह ईंट वगैरह एअरबेस बनाने में लगा देती हैं. पर इस फिल्म में इन तीन सौ वीरांगनाओं को महत्व ही नही दिया गया. सोनाक्षी सिन्हा का फिल्म में आगमन लगभग सवा घंटे बाद होता है, पर उसके किरदार संुदर बेन का कोई असर नही दिखता. फिल्म में दो चार मिनट के दृश्य में एअरबेस को तीन सौ औरतों को जिस तरीके से बनाते हुए दिखाया है, वह भी अति बचकाना है. जब फिल्मकार कहानी की आत्मा की ही हत्या कर देता है, तो सब कुछ विखर जाता है.

संवाद भी प्रभावशाली नही है. ज्यादातर संवाद लोग वर्षों से सुनते आ रहे हैं. कुछ संवाद तो काफी विरोधाभासी हैं.

अभिनयः

विजय कार्णिक फिल्म के हीरो हैं, मगर विजय कार्णिक का किरदार निभाने वाले अजय देवगन ने साधारण अभिनय किया है. एक आर्मी आफिसर का जो ‘औरा’होना चाहिए, वह कहीं नजर ही नही आता. संजय दत्त भी नही जमे. जबकि अजय देवगन इससे पहले फिल्म‘तान्हाजीःद अनसंग वॉरियर’में कमाल का अभिनय कर चुके हैं. शरद केलकर ने ठीक ठाक अभिनय किया है. सोनाक्षी सिन्हा केवल खूबसूरत लगी हैं. नोरा फतेही ने एक्शन दृश्य अच्छे किए हैं, मगर उनके किरदार को ज्यादा जगह नही मिली. प्रणिता सुभाष का किरदार जबरन ठॅूंसा हुआ लगता है. संजय दत्त एक बार फिर चूक गए.

किंजल के साथ बद्तमीजी करेगा बौस! अनुपमा-वनराज के सामने निकलेंगे आंसू

सीरियल अनुपमा टीआरपी चार्ट में इस हफ्ते भी धमाल मचाता नजर आया है. वहीं मेकर्स अगले हफ्ते भी शो की कहानी में नए ट्विस्ट के चलते दर्शकों का दिल जीतने की तैयारी करके बैठे हैं. इसी बीच शो के अपकमिंग एपिसोड में किंजल के साथ कुछ ऐसा होगा कि वह जौब छोड़ने पर मजबूर हो जाएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

किंजल ने किया घर ना छोड़ने का फैसला

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Roshni (@serials.s0)

अब तक आपने देखा कि जहां इन दिनों पर पूरा परिवार लोन और बच्चों की वजह से परेशान है. तो वहीं परितोष घर छोड़ कर चला गया है. हालांकि किंजल ने तोषू के साथ जाने से मना कर दिया था. दरअसल, किंजल के तोषू के साथ घर छोड़कर ना जाने के फैसले से अनुपमा और वनराज परेशान हो जाते हैं. वह दोनों उसे समझाते हैं कि  वो दोनों अलग ना हो. वहीं पूरा परिवार किंजल को समझाता है. लेकिन वह नही मानेगी. दूसरी तरफ किंजल का फैसला सुनकर तोषू हैरान हो जाता है. वहीं इस दौरान अनुपमा को एक्टर अजय देवगन से बात करने का भी मौका मिलता है.

ये भी पढ़ें- पहली बार कैमरे में कैद हुआ करीना के बेटे Jeh Ali Khan का चेहरा, वीडियो वायरल

काव्या पर बरसेगी किंजल

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि तोषू के अलावा लोन चुकाने को लेकर अनुपमा परेशान नजर आएगी. वहीं समर उसे और वनराज को बताएगा कि उसके दोस्त के पापा बैंक में है, जो कि नया बिजनेस खोलने वालों को लोन देते हैं, जिसे सुनकर सभी खुश हो जाएंगे. दूसरी तरफ काव्या, किंजल से अपनी नौकरी की बात बौस से कहने के लिए कहेगी, जिसे सुनकर किंजल भड़क जाती है और उस पर चिल्ला पड़ेगी. वहीं इस पर काव्या कहेगी कि आज की बहुओं में सास से बात करने की तमीज नहीं है. ये बात बा सुन लेगी और उसे सबक सिखाने के लिए तरकीब निकालेंगी.

किंजल छोड़ेगी जौब

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupamaa’s Fanpage (@anupamaafp_)

तोषू की परेशानी के बीच अनुपमा को बैंक से फोन आएगा कि वह बैंक में प्रौपर्टी के पेपर गिरवी रख दें तो उन्हें लोन मिल जाएगा, जिसे सुनकर वह हैरान रह जाएगी. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में किंजल के ऑफिस से घर नहीं लौटने के कारण पूरा परिवार परेशान होगा. तो वहीं दफ्तर में किंजल का बॉस उसके साथ बदतमीजी करेगा, जिसके कारण किंजल नौकरी छोड़ देती है औऱ रोते हुए किंजल घर आकर अनुपमा के गले लग जाएगी, जिसे देखकर वनराज और वह परेशान हो जाएंगे.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: आखिर क्यों काव्या ने दी वनराज को गाली, देखें वीडियो

पहली बार कैमरे में कैद हुआ करीना के बेटे Jeh Ali Khan का चेहरा, वीडियो वायरल

बीते कुछ दिनों से बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) अपने दूसरे बेटे जेह अली खान के चलते सुर्खियों में हैं. जहां फैंस उनके नाम जानने के बाद बेहद खुश हैं. तो वहीं ट्रोलर्स उन्हें ट्रोल करते नजर आ रहे हैं. इसी बीच करीना कपूर के दूसरे बेटे जेह अली खान (Jeh Ali Khan) का चेहरा फैंस के सामने आ गया है, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

वायरल हुई जेह की वीडियो

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

दरअसल, करीना बीते दिन अपने पिता रणधीर कपूर (Randhir Kapoor) के घर, परिवार के साथ पहुंची तो उनके नन्हे बेटे जेह अली खान की एक झलक मीडिया के कैमरे में कैद हो गई है, जिसमें उनका चेहरा साफ नजर आ रहा है. वहीं सोशलमीडिया पर यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

ये भी पढ़ें- Anupamaa: आखिर क्यों काव्या ने दी वनराज को गाली, देखें वीडियो

फैंस कर रहे हैं तारीफें

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Viral Bhayani (@viralbhayani)

करीना के दूसरे बेटे जेह अली खान की पहली झलक देखने के बाद फैंस उन्हें बिल्कुल अपने बड़े भाई तैमूर अली खान का हमशक्ल बता रहे हैं. इसी बीच जहां जेह अली खान (Jeh Ali Khan) की वायरल वीडियो देखने के बाद जहां कुछ लोग उनकी क्यूटनेस की तारीफें कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग मीडिया के अचानक फोटोज खींचने से नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.

बता दें, करीना कपूर खान के दूसरे बेटे जेह का पूरा नाम जहांगीर अली खान है, जिसे जानने के बाद वह काफी ट्रोलिंग का सामना भी कर रहे हैं. इसी बीच करीना कपूर ने अपनी सरोगेसी को लेकर भी कई खुलासे किए हैं, जिसे जानने के बाद फैंस काफी हैरान हैं. हालांकि कई लोग उनका सपोर्ट कर रहे हैं.

वीडियो एंड फोटोज क्रेडिट- Viral Bhayani

खुश रहने का मंत्र जाने अभिनेत्री दिव्यंका त्रिपाठी दहिया से

समय की कमी है…. जब भी कुछ अलग करने की इच्छा होती है….. कुछ न कुछ काम आ जाता है…..लेकिन इस बार एक एडवेंचरस शो की मेरी इच्छा पूरी हुई है….. जिसमें डर तो लगा, लेकिन मज़ा भी खूब आया….. मैंने सारे स्टंट किये…….डर के आगे जीत है, ये बात बहुत सही है…….इस शो के बाद से मैं अब साहसी बन चुकी हूं…..अब तो और भी ऐसे एडवेंचरस शो करने की इच्छा है. कहती है कलर्स टीवी पर प्रसारित हो रही ‘खतरों के खिलाडी 11’’ की प्रतियोगी और अभिनेत्री दिव्यंका त्रिपाठी दहिया.

धारावाहिक ‘बनूँ मैं तेरी दुल्हन’ में विद्या और दिव्या दो अलग-अलग भूमिका निभाकर चर्चा में आने वाली अभिनेत्री दिव्यंका त्रिपाठीदहिया को इस भूमिका के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. इसके बाद भी उन्होंने कई धारावाहिकें, फिल्में और वेब सीरीज की है, लेकिन धारावाहिक ‘ये है मोहब्बतें’ में डॉ. इशिता भल्ला की भूमिका को दर्शकों ने खूब पसंद किया.

भोपाल की दिव्यंका ने आकाशवाणी में अनाउन्सर से काम शुरू किया, इसके बाद मिस ब्यूटीफुल स्किन, मिस भोपाल 2005, हॉटेस्ट एक्ट्रेस इन इंडियन टेलीविज़न आदि कई खिताबों से नवाजी गयी. इसके अलावा एडवेंचर प्रिय दिव्यंका ने माउंटेनियरिंग का कोर्स किभी या है. स्वभाव से विनम्र और हंसमुख दिव्यंका का परिचय ‘ये है मोहब्बते’ के सेट पर को-स्टार, अभिनेता विवेक दहिया से हुई, प्यार हुआ और शादी की. भोपाल में रहते हुए भी उनके माता-पिता ने हमेशा उन्हें अपनी चॉइस की काम करने की आज़ादी दी है, जिससे दिव्यंका को अभिनय के क्षेत्र में आने में कोई समस्या नहीं हुई. दिव्यंका ने हर तरीके की भूमिका बखूबी निभाई है और अब एडवेंचरस शो भी किया है, जिससे वह बहुत खुश है. व्यस्त जीवन शैली से समय निकाल कर गृहशोभा के लिए खास बात की पेश है अंश.

सवाल-खतरों की खिलाडी में जाने की खास वजह क्या रही ?

मैं बचपन में काफी एक्टिव रही हूं, काफी सारे एडवेंचर वाली इवेंट में भाग लिया करती थी. कई सालों से दूबारा एडवेंचर करना चाहती थी,पर काम की वजह से मौका ही नहीं मिल पाता था. मैं अपनी परिचय दिव्यंका शब्द भी भूल चुकी थी, जैसा मैं भोपाल में रहते हुए एक साधारण लड़की थी. खतरों के खिलाडी के ऑफर आते ही मैं पहले सहम गयी थी और मैं ऐसे शो के लिए तैयार भी नहींथी, क्योंकि तब कोरोना का दौर पीक पर था. कही निकलना संभव नहीं था.  जिम नहीं करना या कही जाना कुछ भी नहीं हो पाया था,लेकिन मेरे पेरेंट्स और विवेक ने मुझे हौसला दिया और मुझे मेरे सपनों को पूरा करने के लिए कहा, क्योंकि मेरे सपने में एक नाम खतरों के खिलाडी भी थी. मैने सिर्फ सपने को पूरा करने के लिए ये शो किया. हालाँकि शो बहुत जाना-माना है और इसमें जाने पर नाम शोहरत बहुत मिलती है. मेरे लिए तो ये शो खुद से जुड़ने वाली बात थी.

ये भी पढ़ें- बाल बाल बचीं ‘गुम है किसी के प्यार’ की ‘शिवानी बुआ’ यामिनी मल्होत्रा, जानें मामला

सवाल-स्टंट करना कितना मुश्किल था?

हर स्टंट बहुत मुश्किल रहा और पहली बार उसका विवरण देने पर रूह काँप उठती थी. कई बार ये स्टंट कर पाऊँगी या नहीं खुद से सवाल करना पड़ा. ये पूरा मन का खेल है, डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना पड़ता है. वही बात थी, मुझे कुछ नया देखकर मजा आता था और मैं कर लेती थी. सबसे भयावह इलेक्ट्रिक शॉक का लगा, क्योंकि इलेक्ट्रिक करंट पूरा अंदर तक कंपा देता है. उससे डील करने का कोई तरीका नहीं है. करंट सबको बराबर लगता है, किसी को कम या किसी को अधिक नहीं.सहने की क्षमता पर निर्भर करता है. आप इसे सह सकेंगे या नहीं. इसके अलावा करंट वाला स्टंट हो या पानी में कूदने वाला स्टंट, आपका दिमाग, शरीर पर हावी हो जाने पर आप कभी नहीं कर सकते. इसमें दिमाग को मोल्ड करना सिखाया गया, जो किसी दूसरे शो में नहीं होता. दिमाग और शरीर का संतुलन बनाये रखना बहुत कठिन होता है. बलवान मनुष्य का अगर दिमाग संतुलित नहीं है, तो एडवेंचर वाले काम करना भी उसके लिए काफी मुश्किल होता है.

सवाल-क्या आपको किसी स्टंट से डर लगा?

नहीं, मैंने सारे स्टंट किये, किसी को भी नहीं छोड़ा. मेरी जर्नी इस शो में काफी लम्बी रही, इस सफ़र में इतनी दूर तक जाउंगी, पता नहीं था. जिन्हें लगता था कि मैं डरावने स्टंट नहीं कर पाउंगी, उन्हें मैंने चकित कर दिया. अभी खुद पर बहुत गर्व महसूस होता है और मेरे काम से परिवार की ख़ुशी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है.

सवाल-शादी के बाद आपकी जिंदगी कैसी चल रही है?

शादी के बाद विवेक और मेरी जिंदगी बहुत अच्छी चल रही है, लॉकडाउन की वजह से हम दोनों को एक अच्छा वक़्त बिताने का मिला. इससे बहुत सारी बातें एक दूसरे की जान पाये और बहुत कुछ सीखा भी है. लॉकडाउन के बाद हम दोनों अपने-अपने काम में लग गए है,विवेक दहिया ‘स्टेज ऑफ़ सीज’ फिल्म की शूटिंग के लिए बाहर गए है और मैं खतरों की खिलाडी के लिए विदेश गयी. मेरे हिसाब से पति-पत्नी की दूरी नजदीकियों को बढ़ाती है, इससे एक दूसरे की वैल्यू भी बढ़ जाती है.

सवाल-कोविड ने फिल्म और टीवी इंडस्ट्री को बदल कर रख दिया है,आपकी सोच इस बारें में क्या है?

कोविड की वजह से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बदलाव अच्छे के लिए हुआ है. डिजिटल प्लेटफॉर्म बहुत अधिक फल-फूल रहा है और बहुत अच्छा कंटेंट देखने को मिल रहा है. अच्छी बात ये है कि जो आर्टिस्ट काफी समय से काम की तलाश कर रहे थे, पर उनके अनुकूल काम नहीं मिल पा रहा था. उन्हें मन मुताबिक काम मिल रहा है. इसके अलावा कंटेंट में बहुत नयापन  है, एक्सपेरिमेंट भी किये जा रहे है और दर्शकों ने इस नए प्रयोगों को सराहा है. दर्शक अगर किसी चीज को देखना चाहते है, तो एंटरटेनमेंट की दुनिया में बदलाव आता है. मुझे ख़ुशी इस बात से हो रही है कि टीवी अब कुछ हद तक स्थिर हो चुकी थी, क्योंकि उसमे किसी भी प्रकार की बदलाव से टीआरपी घट जाती है और ये सभी कलाकारों, लेखकों और निर्देशकों  का दुर्भाग्य है कि टीवी के शो टी आर पी बेस्ड होते है. इसलिए कुछ भी नया करने पर अगर टी आर पी घट जाती है तो उसे फिर से पुराने ढर्रे पर लाया जाता है. जिसकी वजह से उसमें बदलाव की गुंजाईश बहुत कम है और काम के बाद की संतुष्टि कलाकारों, लेखकों और निर्देशकों की काफी कम हो जाती है. मेरे हिसाब से क्रिएटिव वर्क करने वालों को डिजिटल में अवश्य संतुष्टि आई होगी. कोविड की वजह से केवल ख़राब ही नहीं, अच्छी बात भी हुई है और मनोरंजन की दुनिया का नया रूप देखने को मिला है.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: आखिर क्यों काव्या ने दी वनराज को गाली, देखें वीडियो

सवाल-खुश रहने का मंत्र क्या है?

जीवन में जो मिलता है, उसे ऊपर रखे और जो नहीं मिला, उसके बारें में सोचना बंद कर दें. अधिकतर लोग जो आसानी से मिल जाती है, उसे एन्जॉय न कर, जो नहीं मिला, उसके पीछे भागते रहते है. उन्हें ये समझना पड़ेगा कि जो चीज हमें मिली है, शायद किसी दूसरे को नहीं मिली होगी. इसमें प्रयास सबसे ऊपर है,उसे करना न छोड़े,लेकिन जो मिलता है, उसे सेलिब्रेट करें. अपनी अचीवमेंट की तुलना किसी से न करें, तभी आप खुश रह सकते है.

तू आए न आए : भाग 1- शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथसाथ फूफीदादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफीदादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथसाथ दादाजान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफीदादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ीबड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था.

कार का दरवाजा बंद होते ही फूफीदादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफादादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

फूफीदादी की भीगी आवाज ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया. पूरे 63 साल हो गए फूफीदादी और फूफादादा के बीच पैसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर को फैले हुए, लेकिन आज भी दादी को अपने शौहर के कश्मीर लौट आने का यकीन की हद तक इंतजार है.

इंगलैंड पहुंच कर ऐडमिशन की प्रक्रिया पूरी करतेकरते मैं फूफीदादी के हुक्म को पूरा करने का वक्त नहीं निकाल पाया, लेकिन उस दिन मैं बेहद खुश हो गया जब मेरे कश्मीरी क्लासफैलो ने इंगलैंड में बसे कश्मीरियों की पूरी लिस्ट इंटरनैट से निकाल कर मेरे सामने रख दी. मेरी आंखों के सामने घूम गया 80 वर्षीय फूफीदादी शफीका का चेहरा.

मेरे दादा की इकलौती बहन, शफीका की शादी हिंदुस्तान की आजादी से ठीक एक महीने पहले हुई थी. उन के पति की सगी बहन मेरी सगी दादी थीं. शादी के बाद 2 महीने साथ रह कर उन के शौहर डाक्टरी पढ़ने के लिए लाहौर चले गए. शफीका अपने 2 देवरों और सास के साथ श्रीनगर में रहने लगीं.

लाहौर पहुंचने के बाद दोनों के बीच खतों का सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. खत क्या थे, प्यार और वफा की स्याही में डूबे प्रेमकाव्य. 17 साल की शफीका की मुहब्बत शीर्ष पर थी. हर वक्त निगाहें दरवाजे पर लगी रहतीं. हर बार खुलते हुए दरवाजे पर उसे शौहर की परछाईं होने का एहसास होता.

ये भी पढ़ें- जिंदगी एक बांसुरी है : सुमन और अजय की कहानी

मुहब्बत ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू ही की थी कि पूरे बदन पर जैसे फालिज का कहर टूट पड़ा. विभाजन के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खतों के साथसाथ लोगों के आनेजाने का सिलसिला भी बंद हो गया.

शफीका तो जैसे पत्थर हो गईं. पूरे 6 साल की एकएक रात कत्ल की रात की तरह गुजारी और दिन जुदाई की सुलगती भट्टी की तरह. कानों में डाक्टर की आवाजें गूंजती रहतीं, सोतीजागती आंखों में उन का ही चेहरा दिखाई देता था. रात को बिस्तर की सिलवटें और बेदारी उन के साथ बीते वक्त के हर लमहे को फिर से ताजा कर देतीं.

अचानक एक दिन रेडियो में खबर आई कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होगा. इस मैच को देखने जाने वालों के लिए वीजा देने की खबर इक उम्मीद का पैगाम ले कर आई.

शफीका के दोनों भाइयों ने रेलवे मिनिस्टर से खास सिफारिश कर के अपने साथसाथ बहन का भी पाकिस्तान का 10 दिनों का वीजा हासिल कर लिया. जवान बहन के सुलगते अरमानों को पूरा करने और दहकते जख्मों पर मरहम लगाने का इस से बेहतरीन मौका शायद ही फिर मिल पाता.

पाकिस्तान में डाक्टर ने तीनों मेहमानों से मिल कर अपने कश्मीर न आ सकने की माफी मांगते हुए हालात के प्रतिकूल होने की सारी तोहमत दोनों देशों की सरकारों के मत्थे मढ़ दी. उन के मुहब्बत से भरे व्यवहार ने तीनों के दिलों में पैदा कड़वाहट को काई की तरह छांट दिया. शफीका के लिए वो 9 रातें सुहागरात से कहीं ज्यादा खूबसूरत और अहम थीं. वे डाक्टर की मुहब्बत में गले तक डूबती चली जा रही थीं.

उधर, उन के दोनों भाइयों को मिनिस्टरी और दोस्तों के जरिए पक्की तौर पर यह पता चल गया था कि अगर डाक्टर चाहें तो पाकिस्तान सरकार उन की बीवी शफीका को पाकिस्तान में रहने की अनुमति दे सकती है. लेकिन जब डाक्टर से पूछा गया तो उन्होंने अपने वालिद, जो उस वक्त मलयेशिया में बड़े कारोबारी की हैसियत से अपने पैर जमा चुके थे, से मशविरा करने के लिए मलयेशिया जाने की बात कही.

साथ ही, यह दिलासा भी दिया कि मलयेशिया से लौटते हुए वे कश्मीर में अपनी वालिदा और भाईबहनों से मिल कर वापसी के वक्त शफीका को पाकिस्तान ले आएंगे. दोनों भाइयों को डाक्टर की बातों पर यकीन न हुआ तो उन्होंने शफीका से कहा, ‘बहन, जिंदगी बड़ी लंबी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें डाक्टर के इंतजार के फैसले पर पछताना पड़े.’

‘भाईजान, तलाक लेने की वजह दूसरी शादी ही होगी न. यकीन कीजिए, मैं दूसरी शादी तो दूर, इस खयाल को अपने आसपास फटकने भी नहीं दूंगी.’ 27 साल की शफीका का इतना बड़ा फैसला भाइयों के गले नहीं उतरा, फिर भी बहन को ले कर वे कश्मीर वापस लौट आए.

वापस आ कर शफीका फिर अपनी सास और देवरों के साथ रहने लगीं. डाक्टर की मां अपने बेटे से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं. बहू से बेटे की हर बात खोदखोद कर पूछती हुई अनजाने ही बहू के भरते जख्मों की परतें उधेड़ती रहतीं.

शफीका अपने यकीन और मुहब्बत के रेशमी धागों को मजबूती से थामे रहीं. उड़तीउड़ती खबरें मिलीं कि डाक्टर मलयेशिया तो पहुंचे, लेकिन अपनी मां और बीवी से मिलने कश्मीर नहीं आए. मलयेशिया में ही उन्होंने इंगलैंड मूल की अपनी चचेरी बहन से निकाह कर लिया था. शफीका ने सुना तो जो दीवार से टिक कर धम्म से बैठीं तो कई रातें उन की निस्तेज आंखें, अपनी पलकें झपकाना ही भूल गईं. सुहागिन बेवा हो गईं, लेकिन नहीं, उन के कान और दिमाग मानने को तैयार ही नहीं थे.

‘लोग झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर, मेरा शौहर, मेरा महबूब, मेरी जिंदगी, ऐसा नहीं कर सकता. वफा की स्याही से लिखे गए उन की मुहब्बत की शीरीं में डूबे हुए खत, उस जैसे वफादार शख्स की जबान से निकले शब्द झूठे हो ही नहीं सकते. मुहब्बत के आसमान से वफा के मोती लुटाने वाला शख्स क्या कभी बेवफाई कर सकता है? नहीं, झूठ है. कैसे यकीन कर लें, क्या मुहब्बत की दीवार इतनी कमजोर ईंटों पर रखी गई थी कि मुश्किल हालात की आंधी से वह जमीन में दफन हो जाए? वो आएंगे, जरूर आएंगे,’ पूरा भरोसा था उन्हें अपने शौहर पर.

शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया. मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?

ये भी पढ़ें- एक प्यार का नगमा- किस गैर पुरुष से बात कर रही थी नगमा

शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है.

शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’

शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी.

इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.

आगे पढ़ें- खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का…

ये भी पढ़ें- किसको कहे कोई अपना- सुधा के साथ क्यों नही था उसका परिवार

तू आए न आए : भाग 2- शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.

खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबों में मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं.

लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह.

फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: मत बरसो इंदर राजाजी

बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते

44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं.

प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.

अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला.

शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.

पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं.

उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है.

एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.

शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक.

रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपाते होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है-

‘तू आए न आए

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें

ये दिल बदगुमां है

ये भी पढ़ें- बदला- क्या हुआ था सुगंधा के साथ

नजर को यकीं है

तू जो नहीं है

तो कुछ भी नहीं है

ये माना कि महफिल

जवां है हसीं है.’

अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’

‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’

‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.

जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमक की तरह चाटता रहा.

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.

अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुशलता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’

ये भी पढ़ें- Story In Hindi: मोहपाश- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

आगे पढ़ें- शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल…

तू आए न आए : भाग 3- शफीका को क्यों मिला औरत का बदनुमा दाग

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’

‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: रेतीला सच- शिखा की बिदाई के बाद क्या था अनंत का हाल

दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’

अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’

दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.

‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले शख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

ये भी पढें- Family Story In Hindi: पछतावा- खुतेजा के सयानेपन का क्या था अंजाम

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.

डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दिन की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं.

मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी.

सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’

गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

ये भी पढ़ें- Story In Hindi: तलाक – कौनसी मुसीबत में फंस गई थी जाहिरा

Independence Day Special: आज़ादी के रंग Celebs के संग

इस बार भारत 75 वीं स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है, लेकिन देश की जनता दुखी है, क्योंकि महामारी ने हर परिवार के किसी अपने को खोया है. आज समस्या और महंगाई दोनों ही आसमान छू रही है. 7 दशक बीत चुके है, लेकिन विकास जितनी होनी चाहिए थी, उतना नहीं है. देखा जाय, तो इतना समय विकास के लिए काफी होता है. इतने सालों में हमारे देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, स्वास्थ्य की सुविधाएं आदि में विकास की मात्रा काफी कम है. जब देश अंग्रेजों के गुलाम था, तब लगता था कि देश आजाद होने पर देश की जनता भी आजाद होगी और वो सबकुछ उन्हें जिंदगी में मिलेगी, जिसके लिए हजारों ने अपनी जान गवाई और शूली पर चढ़े है,लेकिन आजादी के बाद हर चीज की समस्या आज भी है, जो दुःख की बात है.

कोविड महामारी ने देशवासियों को देश का असली चेहरा दिखा दिया है. अस्पताल की बेड से लेकर, दवाइयों की किल्लत, ऑक्सीजन की कमी, क्रीमेशन के लिए शवों की लम्बी कतारें आदि न जाने कितनी ही समस्या एक के बाद एक आती दिखाई पड़ी, जिससे देश की दुर्दशा को सारा विश्व ने देखा. इससे अर्थव्यवस्था चरमरा गयी, लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए, उन्हें  भरपेट खाना मिलना भी मुश्किल हो गया. भारत अब गरीब देश की श्रेणी में आ चुका है. इस आज़ाद देश में रहते हुए भी आज भी देशवासी अपनी बात कहने की आज़ादी उतनी नहीं है, जितनी होने की जरुरत है,क्योंकि आज के यूथ अपनी आवाज सोशल मीडिया पर अवश्य उठाते है,लेकिन उन्हें सोशल मीडिया पर लॉक कर दिया जाता है.हांलाकि भारत सबसे बड़ी डेमोक्रेटिक कंट्री हैऔर इस तरह की पाबंधियाँ देश को आगे बढ़ने से रोकती है. आज शायद आजादी की परिभाषा अलग है. कैसे अब देशवासी इससे निकलकर एक अच्छी जिंदगी जी सकेंगे? कैसे वे खुद को आजाद कहेंगे? ऐसे कई बातों पर सेलेब्रिटीस ने अपनी खट्टी-मीठी राय ज़ाहिर की है, आइये जाने, आज़ादी उनके लिए क्या है.

पारुल चौधरी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by @parullchaudhry

सीरियल ‘भाग्यलक्ष्मी’ फेम अभिनेत्री पारुल का कहना है कि आज़ादी मेरे लिए सबकुछ है, क्योंकि अगर किसी ने मुझे अपने ही देश में लॉक कर दिया, तो मैं कही भी अपनी इच्छा से घुम फिर नहीं सकती, जिस काम को करना चाहती हूं, उसे नहीं कर पाती और मेरे पहनावे पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाता. मेरे हिसाब से किसी भी मानव के लिए आज़ादी सबसे बड़ी होती है. केवल फिजिकल आज़ादी ही नहीं, बोलने की भी आज़ादी होनी चाहिए, जो हमारे देश में मिली है.

ये भी पढ़ें- बाल बाल बचीं ‘गुम है किसी के प्यार’ की ‘शिवानी बुआ’ यामिनी मल्होत्रा, जानें मामला

जब मैं आज़ादी लाने वाले महान व्यक्ति की कहानियों को पढ़ती हूं, तो पता चलता है कि ऐसे महान व्यक्तियों ने इसे पाने के लिए अपने परिवार, समाज और खुद की बलिदान देने में ज़रा भी संकोच नहीं किया, उनके त्याग का फल हमें मिला है. आज मैं कही भी जा सकती हूं, अपनी मर्ज़ी से हर काम कर सकती हूं. आज़ादी अनमोल है, इसे व्यक्ति किसी भी हालत में किसी दूसरे से एक्सचेंज नहीं कर सकता.

हरजिंदर सिंह

har

वेब सीरीज में अभिनय करने वाले हरजिंदर सिंह कहते है कि आजादी मतलब हर काम में पारदर्शिता का होना, कुछ भी कहने, सुनने या लिखने पर आलोचनात्मक आँखों का डर न होना,कहीं जाने पर किसी जाति, धर्म और रंग भेद का सामना न करना पड़े और सामाजिक स्वीकारिता मिले.

7 दशक की आज़ादी के बाद आज भी मैं अनुभव करता हूं कि सामाजिक अंगीकरण और सामाजिक एंग्जायटी के बीच में हम सब फंसे हुए है. किसी भी सूरत में अगर देश को इन गन्दी विचारों से छुटकारा मिले , तो उसे ही मैं रियल फ्रीडम मानता हूं.

सलीम दीवान 

tv

फिल्मों और म्यूजिक विडियो में अभिनय करने वाले सलीम दीवान कहते है कि मेरे हिसाब से आज़ादी एक कंडीशन है, जिसमें व्यक्ति को बात करने, एक्ट करने और खुश रहने के अवसर, बिना बाहरी प्रतिबन्ध के मिले. ये बहुत जरुरी है, क्योंकि यही व्यक्ति की क्रिएटिविटी को बढाती है, ओरिजिनल विचार को एनहांस करती है और एक अच्छी जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है.

अंग्रेजों से फ्री होने के 7 दशक बाद आज भी हमें गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता,पक्षपात की भावना आदिकई चीजों से आजादी नहीं मिली है. इन सबसे आज़ादी मिलने के बाद ही कोई खुद को स्वतंत्रत समझ सकता है और आज़ादी की अच्छाइयों का आनंद ले सकता है. मेरी कामना है कि आने वाले समय में देश इन सबसे आज़ाद हो जाय, क्योंकि इन सबकी वजह से देश के विकास में समस्या आती है और अब ये एक बीमारी की तरह चिपकी हुईहै.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: आखिर क्यों काव्या ने दी वनराज को गाली, देखें वीडियो

जय सिंह

tv-1

धारावाहिक ‘इश्क पर जोर नहीं’ फेम अभिनेता जय सिंह कहते है कि आज़ादी वह है, जिसमें व्यक्ति को अपनी मर्ज़ी से जीने, खाने, घूमने और सीखने की आज़ादी हो. इस प्रकार आज़ादी के माइने कई है, जो जीवन के अलग-अलग पहलू में अलग-अलग तरीके से प्रयोग किये जाते है. आज़ादी केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह देश के हर नागरिक का सम्मान करने से है, जो उसे देश से मिलती है. मुझे ख़ुशी होती है कि 74 साल से हम आजाद हो चुके है और 75 वीं स्वतंत्रता दिवस मना रहे है. देश की जनता काफी सालों से स्पीच की आजादी और कुछ मौलिक अधिकार को एन्जॉय कर रही है, जो हमें एक अच्छी लाइफस्टाइल दे रही है.

Travel Special: रंगीलो राजस्थान का दिल है जोधपुर

शानदार महलों, दुर्ग और मंदिरों के लिए विख्यात रंगीलो राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर की बात ही निराली है. पूरे शहर में बिखरे वैभवशाली महल, जो न सिर्फ यहां के ऐतिहासिक गौरव को जीवंत करते हैं, बल्कि यहां की हस्तकलाएं, लोक-नृत्य, पहनावे और संगीत शहर की समां को रंगीनियत से भर देते हैं…

जोधपुर के आसपास

जोधपुर से करीब 25 किमी. की दूरी पर गुडा बिश्नोई गांव वाइल्डलाइफ और प्रकृति की सुंदर छटा निहारने के लिए बेहतरीन स्थान है. ओसियन जोधपुर से लगभग 65 किमी.की दूरी पर स्थित एक प्राचीन शहर है. यह जैन शैली के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. यहां ऊंट की सवारी कर सकते हैं.

इसके अलावा, मछिया सफारी पार्क, कायलाना लेक भी दर्शनीय स्थल हैं. पाली में सोमनाथ और नौलखा मंदिर शिल्पकला के लिए मशहूर हैं. उर्स के दौरान मीर मस्तान की दरगाह मुख्य आकर्षण होता है.

जोधपुर शहर फोर्ट, पैलेस और मंदिरों के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन एडवेंचर स्पोट्र्स और खाने-पीने के शौकीनों को भी यह शहर खूब आकर्षित करने लगा है.

रंग-बिरंगे परिधान में सजे लोग और उनकी मनमोहक लोक-नृत्य व संगीत इस शहर की समां में चार-चांद लगा देते हैं. यह राजस्थान के बीचोबीच स्थित है, इसलिए इसे राजस्थान का दिल भी कहा जाता है. राठौड़ वंश के प्रमुख राव जोधा ने इस शहर की स्थापना वर्ष 1459 में की थी. उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जोधपुर है. यह शहर सन सिटी और ब्लू सिटी के नाम से भी मशहूर है. इसे सन सिटी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां की धूप काफी चमकीली होती है. वहीं, मेहरानगढ़ किले के आसपास नीले रंग से पेंट घरों के कारण इसे ब्लू सिटी के नाम से भी जाना जाता है.

ये भी पढ़ें- Travel Special: मौनसून में परफेक्ट हैं ये 5 डेस्टिनेशन

उमेद भवन पैलेस

जोधपुर जाने वाले पर्यटकों में उमेद भवन पैलेस के प्रति एक खास आकर्षण होता है. महाराजा उमेद सिंह (1929-1942) ने इसे बनवाया था. दरअसल, यह दुनिया के सबसे बड़े प्राइवेट रेजिडेंस में से एक है. इसमें तकरीबन 347 कमरे हैं.

महल की खासियत है कि इसे बलुआ पत्थरों से जोड़ कर बनाया गया था. इस बेजोड़ महल के वास्तुकार हेनरी वॉन थे. महल का एक हिस्सा हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है, जबकि बाकी हिस्से को म्यूजियम का रूप दे दिया गया है, जिसमें राजघराने से जुड़ी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है.

मेहरानगढ़ किला

जोधपुर जाएं, तो मेहरानगढ़ फोर्ट देखना न भूलें. करीब 150 मीटर ऊंचे टीले पर बना यह किला भारत के सबसे बड़े फोर्ट में से एक है. यहां से जोधपुर शहर का शानदार नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण राव जोधा ने 1459 में करवाया था. यहां पहुंचने के लिए घुमावदार रास्तों और पथरीले टीलों से होकर गुजरना होगा, लेकिन फोर्ट पहुंचने के बाद इसकी भव्यता देखते ही बनती है. इस किले में कई पोल यानी प्रवेशद्वार हैं, जिनमें जयपोल,फतहपोल और लोहपोल प्रमुख हैं.

किले में स्थित महलों को देखने के बाद आपको मेहरानगढ़ की भव्यता का एहसास होगा. उस दौर की राजशाही वस्तुओं व धरोहर भी यहां देखे जा सकते हैं. किले की प्राचीर पर आज भी तोपें रखी हैं. उस काल के अस्त्र-शस्त्र और पहनावे भी यहां देखे जा सकते हैं. यहां फूल महल, झांकी महल भी दर्शनीय हैं. अगर आपको एडवेंचर पसंद है, तो इस किले में जिप-लाइनिंग की व्यवस्था है.

ये भी पढ़ें- नए कपड़े पहनते समय रखें इन 4 बातों का ध्यान

जसवंत थडा

मेहरानगढ़ किले से कुछ ही दूरी पर जसवंत थडा बेहद खूबसूरत स्मारक है. पहाड़ों से घिरे सफेद संगमरमर की बनी इस स्मारक की नक्काशी देखते ही बनती है. इसके पास ही एक झील है, जो चांदनी रात में स्मारक की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. यह जोधपुर राज परिवार के राठौड़ राजा-महाराजाओं का समाधि स्थल भी है.

मंडोर गार्डन

मारवाड़ के महाराजाओं की पहली राजधानी मंडोर थी. यह जोधपुर से करीब 5 मील की दूरी पर स्थित है. यह पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है. यहां के दुर्ग देवल, देवताओं की राल, गार्डन, म्यूजियम, महल, अजीत पोल आदि दर्शनीय स्थल हैं. लाल पत्थर की बनी विशाल इमारतें स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं. यहां एक हॉल ऑफ हीरोज भी है, जहां दीवारों पर देवी-देवताओं की आकृतियां तराशी गई हैं.

बालसमंद झील

फोर्ट और पैलेस के अलावा, बालसमंद झील भी दर्शनीय स्थल है. काफी पर्यटक यहां आते हैं. यह जोधपुर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है. इसे 1159 में बालाक राव परिहार ने बनवाया था. यह कृत्रिम झील है. तीन तरफ पहाड़ियों से घिरी यह झील उमेद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है.

कैसे और कब जाएं

जोधपुर शहर से 5 किमी. की दूरी पर घरेलू हवाई अड्डा है. यह शहर दिल्ली से साथ-साथ प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है. जोधपुर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का महीना माना जाता है. जोधपुर और उसके आसपास के स्थान सुकून से देखने के लिए कम से कम 3-5 दिन का समय जरूर रखें.

ये भी पढ़ें- Travel Special: बरसात में देखें बुंदेलखंड का सौंदर्य

स्वाद और शॉपिंग

जोधपुर पहुंचने के बाद आप लोकल फूड का स्वाद लेना न भूलें. यहां का मिर्च बड़ा, समोसा, मावा कचौड़ी, प्याज की कचौड़ी, दाल-बाटी कोरमा, लाल मानस, गट्टे की सब्जी और मखनिया लस्सी सहित कई व्यंजन फूड लवर्स को लुभाते हैं. अगर बात शॉपिंग की करें, तो क्लॉक टावर के आसपास वाले मार्केट में खरीदारी कर सकते हैं. इसके अलावा, त्रिपोलिया बाजार, मोची बाजार, नई सड़क सोजाती गेट, स्टेशन रोड प्रमुख हैं.

यहां हस्तशिल्प, कपड़े, मसाले, ज्वैलरी, कढ़ाई वाले जूते, चमड़े की वस्तुएं आदि खरीद सकते हैं. यहां के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे हुए हैं. त्योहार, मेले और उत्सवों में यहां के नृत्य-संगीत समां बांध देते हैं. खासकर घूमर, तेरह थाली कालबेलिया, फायर डांस, कच्ची घोड़ी जैसे नृत्य लोगों को थिरकने पर मजबूर कर देते हैं. इनके पहनावों में भी कई रंग दिखता है.

पुरुष धोती पर एक अलग तरह की कमीज औरचटख रंग की गोल पगड़ी और पैरों में शानदार जूतियां पहनते हैं. महिलाएं रंग-बिरंगे लहंगे के साथ पारंपरिक गहनों से लदी होती हैं. खासतौर पर इनके सिर पर बोरला, गले में हार, हाथों में कड़े या कोहनी से ऊपर हाथी दांत का चूड़ा, पैरों में चांदी का कड़ा या खनकती पायल होती है. खास बात यह है कि यहां के लोग काफी मिलनसार होते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें