मैं हारी कहां: भाग 4- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

उन दोनों की बात सुन मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया. जड़वत हो कर अपने साथ हुई इस धोखे की दास्तां को खुद अपनी आंखों से देख रही थी और मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ये ऐसे बेशर्म लोग हैं, जो अपने प्यार भरे रिश्तों के साथ ऐसा खिलवाड़ करेंगे… मैं गुस्से और नफरत से कांप रही थी.

तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘सुनिए, आप कौन?’’ मैं पूरी तरह से उस इंसान को देख भी नहीं पाई और वहीं गिर कर बेहोश हो गई.

जब आंख खुली तो सामने बेला दीदी और आर्मी यूनीफौर्म में एक फौजी को देखा, दीदी को देख मैं खुद को रोक ना सकी और रोने लगी.

‘‘क्या हुआ मेरी गुडि़या क्यों रो रही हो… अभी कुछ समय पहले खुशी से रो रही थी और अभी ऐसे… प्लीज बताओ क्या हुआ?’’

मैं ने दुख और क्रोध में रोते हुए पूरी बात दीदी को बता दी. यह भी नहीं सोचा कि सामने जो फौजी खड़ा है वह मधु का पति है.

मेरी बात सुन कर उन लोगों ने पहले तो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं किया, पर पूरी बात सुनने के बाद उन का मन भी मधु के प्रति नफरत से भर गया. सिर पकड़ वहीं सोफे  पर बैठ गए, तभी दोनों बेशर्मों की तरह एकदूसरे से अनजान बनते हुए आए और बेला दीदी से मेरे बेहोश होने का कारण जानने की कोशिश करने लगे, उन दोनों को देख कर मन हुआ खूब चिल्लाऊं. उन दोनों की बेशर्मी और धोखे की दास्तां सब को चीखचीख कर बताऊं… मेरी नफरत बढ़ती जा रही थी उन दोनों के प्रति.

मधु, दर्शन की तरफ बढ़ी पर दर्शन की आंखों में आंसू और क्रोध से भरा चेहरा देख वहीं जड़ हो गई, उन दोनों को अंदेशा हो गया था शायद उन के बारे में हम दोनों को पता है.

दर्शन ने बताया था कि जब मैं बेहोश हुई थी तो वहां प्रवीण नहीं थे. मेरे बेहोश होने के समय भी ये दोनों खुद को छिपाने में लगे थे, यह सुन कर क्रोध से मेरा दिमाग फटा जा रहा था.

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मैं ने दर्शन और बेला दीदी से कहा कि इन दोनों को कमरे से बाहर करें, मैं अब एक सैकंड भी इन को बरदाश्त नहीं कर सकती. मेरी बातों से अब साफ हो चुका था फर्क मुझे सब पता है और दर्शन को भी.

मधु दर्शन को सफाई देने की कोशिश करने लगी, लेकिन जब दर्शन ने डीएनए टैस्ट की धमकी दी, तो रोतेरोते सब कुबूल कर लिया. प्रवीण तटस्थ खड़े रहे. चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी जैसे कंठ सूख गया हो.

‘‘मेरे साथ ऐसा क्यों किया प्रवीण? तुम पर मैं ने अपना सबकुछ लुटा दिया. प्यार किया, भरोसा किया तुम पर और तुम ने क्या किया… अगर मधु से प्यार करते थे तो थोड़ी हिम्मत और मर्दानगी भी जुटा लेते. मां से बात करते. कम से कम मेरी जिंदगी तो बरबाद नहीं करते,’’ कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, पर जिस की आंखों और विचारों में शर्म नहीं, उस से कुछ भी कहनेसुनने से क्या फायदा. इन दोनों ने एक पल में मेरी जिंदगी बदल दी. कहां मैं अपनी खुशियां बांटने चली थी और अभी इन के दिए गए धोखे से टूटी हुई हौस्पिटल के बैड पर पड़ी हूं. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं, किधर जाऊं.

मेरे इस बुरे वक्त में बेला दीदी और दर्शन जो खुद मेरी तरह इन के धोखे का शिकार हुए थे, मेरे साथ साहस से खड़े रहे.

दीदी ने मां और मेरे मायके में फोन कर उन लोगों को भी बुला लिया.

मांबाबा मेरी हालत देख टूट से गए. अकेले में दोनों रोते पर मेरे सामने हिम्मत और समझदारी की बात करते. बेला दीदी मुझे और मांबाबा को अपने घर ले गई.

मांबाबा को मेरी प्रैगनैंसी के बारे में पता था. वे समाज और परिवार के लिए मुझे समझौते के लिए राजी करने में लगे थे. उन का सोचना था अकेले इस पुरुषवादी समाज में कैसे मैं एक बच्चे को पाल सकती हूं, इसलिए मैं प्रवीण को माफ कर दूं.

मैं विवश हो कर इन की बातें सुनती और सोचती रहती क्या हम औरतें इतनी कमजोर हैं कि अकेले बच्चे नहीं पाल सकतीं, अकेले रह नहीं सकतीं? क्यों हर पल हमें जीने के लिए पुरुष का सहारा चाहिए? अपनी पत्नी, मां को धोखा देने वाले पुरुष को क्या कहेंगे? जब वह एकसाथ 2 औरतों से संबंध रखे, तो उस के पुरुषत्व का क्या नाम देंगे?

समझौता सिर्फ स्त्री करे और पुरुष अपने बड़े से बड़े गुनाहों को छिपा कर समाज में सिर उठा कर चले, मुझे यह मंजूर नहीं था पर बेला दीदी के अलावा कोई मेरी इस बात को नहीं समझ रहा था.

अगले दिन सुबहसुबह प्रवीण आए. मुझ से संभलने की इच्छा जाहिर की, पर मैं ने साफ कह दिया कि मैं उन की उपस्थिति बरदाश्त नहीं कर सकती, मेरी प्रैगनैंसी की खबर उन्हें लग गई थी शायद मां ने सासूमां को बताया हो.

बच्चे का हवाला दे कर बहुत मनाने की कोशिश की गई पर मैं अपनी फैसले पर अडिग रही.

ऐसे इंसान के साथ अब मैं एक पल भी नहीं रह सकती जिस की एक रखैल और उस की एक बेटी भी हो.

जिंदगी में कभीकभी ऐसे मुकाम भी आते हैं, जब हमें दिल से नहीं दिमाग से फैसले लेने पड़ते हैं. आज मैं भी उसी मोड़ पर खड़ी हूं.

भाईभाभी का भी साथ मिला. बेला दीदी तो पहले ही मेरे साथ थी. मेरे लिए फैसला लेना अब इतना भी मुश्किल नहीं था.

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भाई के सहयोग से एक अच्छा वकील मिल गया और मैं ने तलाक के लिए केस दर्ज कराया. तलाक की लंबी प्रक्रिया के बीच कहीं मैं हिम्मत न हार जाऊं, यह सोच कर भाई ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में मेरा एडमिशन करा दिया. मैं ने अपना पूरा ध्यान अब पढ़ाई में लगा दिया. सासूमां भी अपने बेटे को छोड़ मेरे साथ आ गईं, मेरा हौसला बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. प्रवीण को अपनी तमाम संपत्ति से बेदखल कर दिया और सबकुछ मेरे और मेरे होने वाले बच्चे के नाम कर दिया.

समाज और परिवार के खिलाफ जा कर मां ने जो मेरे लिए किया, उस के आगे हम सभी नतमस्तक हो गए थे.

मां ने दिल्ली में मेरे नाम से फ्लैट ले लिया और मेरे साथ मेरी देखभाल के लिए रहने लगीं. मांबाबा को वापस भेज दिया था. वे लोग बीचबीच में आते रहते मुझ से मिलने.

भाई फोन से सारी जानकारी लेता रहता और अपने मित्रों के सहयोग से मेरे हर काम में मदद करता रहता. पढ़ाई के साथ तलाक लेने में जो भी मुश्किलें आतीं, सब का हल मेरे परिवार के निस्स्वार्थ सहयोग से ही संभव हुआ.

मैं अब अकेली नहीं, पर इस समय प्रवीण अकेले हो गए थे. उन की मां ने भी उन का साथ नहीं दिया. फिर दोस्त भी कहां तक साथ देते. सुनने में आया कि अब प्रवीण मधु और अपनी बेटी के साथ ही रहने लगे हैं. दर्शन भी मधु को तलाक देने के लिए केस कर चुके थे. मेरा और दर्शन के केस का फैसला लगभग एकसाथ होना था.

दिन, महीने गुजरते गए, डाक्टर ने डिलिवरी के लिए अगले महीने की तारीख दे दी. मैं प्रैगनैंसी के उस दौर में थी, जब चलनाफिरना भी मुश्किल होता है और इस वक्त मैं अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई में लगाना चाहती थी. अगले महीने से परीक्षाएं भी शुरू होने वाली थीं.

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मैं हारी कहां: भाग 3- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

अगले दिन प्रवीण के औफिस जाने के बाद दरवाजे पर खटखट की आवाज

आई. मैं ने दरवाजा खोला तो सामने एक बेहद खूबसूरत औरत, जिस के हाथ में चाबी थी, शायद वह फ्लैट का लौक खोलने की कोशिश कर रही थी. मुझे एकटक देखे जा रही थी… जैसे कोई अजूबा देख लिया हो.

‘‘आप कौन? अपनी तरफ ऐसे देख मैं थोड़ी घबरा गई, इसलिए सीधा सवाल किया.

‘‘यह फ्लैट तो प्रवीण का है, आप कौन हैं?’’ उस ने मेरे सवाल का जवाब सवाल में दिया.

‘‘मैं प्रवीण की वाइफ गौरी हूं. कल ही हम लोग आए हैं.’’

मेरा यह कहना था कि वह मुझे चौंक कर देख कर चकरा गई. मैं ने झट से उसे सहारा दिया और अंदर ले आई. पानी पिलाया तो वह कुछ संभली.

‘‘आप ठीक तो हैं, कौन हैं आप?’’ मेरे जेहन में कई तरह के सवाल आ रहे थे.

‘‘जी, माफ करें, मैं आप के ऊपर वाले फ्लैट में रहती हूं, कल बाहर गई थी. रात में वापस आई, इसलिए पता नहीं चला कि प्रवीण वापस आ गए हैं, मैं तो सफाई करवाने आई थी,’’ उस ने खुद को सयंत करते हुए कहा.

‘‘वह तो.. वह आप हैं, कल प्रवीण ने बताया था कि उन के कोई फ्रैंड ऊपर वाले

फ्लैट में रहते हैं, वही साफसफाई करवा देते

हैं, पर आप की तबीयत सही नहीं लग रही,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां कमजोरी महसूस कर रही हूं कुछ दिनों से, शायद इसीलिए चक्कर आ गया होगा.’’

‘‘अरे… तो फिर आप को आराम करना चाहिए और आप मेरे घर की देखभाल में लगी हैं, आप बैठिए मैं चाय बनाती हूं.’’

‘‘आप प्लीज, परेशान न हों.’’

‘‘परेशानी कैसी… आप के बहाने मैं भी चाय पी लूंगी,’’ कहते हुए मैं किचन में चली गई.

‘‘देखिए, मैं भी कितनी अजीब हूं इतनी देर से हम बातें कर रहे हैं

और आप का नाम तो मैं ने पूछा ही नहीं.’’

‘‘मैं मधु, मेरे पति दर्शन आर्मी में हैं, पोस्टिंग भी ऐसी जगह पर है, जहां परिवार को नहीं रख सकते, इसलिए मैं अकेली अपनी बेटी को ले कर रहती हूं.

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‘‘आप दिल्ली जैसे शहर में अकेली रह रही हैं? मधुजी आप में बहुत हिम्मत है, मैं तो अकेले रह ही नहीं सकती, प्रवीण जब तक औफिस से आते नहीं, मैं तो बेचैनी से उन का इंतजार करती रहती हूं.’’

मेरी बात सुन कर वह अजीब नजरों से

मुझे एकटक देख रही थी. मैं ने गौर तो किया,

पर कुछ समझ नहीं आया कि वह ऐसे क्यों देख रही मुझे.

सूर्य अस्त होने लगा था. आसमान में चारों तरफ लालिमा छाई थी. मैं गेट पर खड़ी प्रवीण का इंतजार कर रही थी और प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे और अपनी खुद की बनाई सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, तभी प्रवीण की आवाज ने मुझे खयालों की दुनिया से बाहर निकाला.

-क्र

‘‘यहां क्या कर रही हो, गौरी? तुम अभी इस शहर से पूर्णतया अनजान हो. ऐसे बाहर निकल कर मत खड़ी हुआ करो,’’ घर में घुसते ही प्रवीण शुरू हो गए.

‘‘तो क्या मैं पूरा दिन घर में बैठी रहूं, बाहर सिर्फ मैं ही नहीं और भी औरतें खड़ी हैं और मैं इस शहर से इतनी भी अनजान नहीं. भाई जब यहां पढ़ता था तो मैं भी उस के पास रहती थी,’’ कहते हुए मैं चाय बनाने चली गई या यों कह लें कि बात बढ़ने से रोकने के लिए हट गई.

चाय पीने के साथ प्रवीण भी सहज हो गए थे. तभी मैं ने मधुजी के बारे में बताया. मधु का नाम सुन प्रवीण बहुत असहज हो गए. उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. हावभाव अचानक बदल गए.

‘‘क्या हुआ आप को? तबीयत तो ठीक है आप की?’’ मैं उन्हें ऐसे देख घबरा गई.

‘‘नहीं कुछ नहीं, मैं ठीक हूं तुम परेशान न हो. शायद ब्लडप्रैशर बढ़ गया होगा,’’ कहते हुए प्रवीण खुद को सहज करने की कोशिश करने लगे.

‘‘क्या बात हुई तुम दोनों में?’’ प्रवीण ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, उन्हें शायद हमारी शादी के बारे में पता नहीं था, इसलिए मुझे देख थोड़ी नर्वस लग रही थी,’’ कहते हुए मैं डिनर की तैयारी में लग गई.

समय बीतते देर नहीं लगती. ऐसे ही दिन गुजरने लगे थे. प्रवीण मेरी तरफ से निश्चिंत थे और मैं उन की तरफ से.

मुझे अपने प्यार पर भरोसा था. शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. मधुजी भी कब मेरी बड़ी बहन के रूप में मेरी जिंदगी में एक अहम किरदार में आ गई, पता ही नहीं चला.

हंसतेमुसकराते खुशियां बटोरते यों ही 3 महीने गुजर गए, एक दिन सुबह से ही तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. प्रवीण आजकल बैंक के काम से शहर से बाहर गए थे, इसलिए खुद ही बेला दीदी को फोन कर उन के हौस्पिटल चली गई, दीदी ने कुछ जरूरी जांच के बाद बताया कि मैं मां बनने वाली हूं.

खुशी और डर दोनों भाव मेरे अंदर समाहित हो मेरे आंसू छलक पड़े. दीदी ने भी खुशी से मुझे बधाई देते हुए गले लगा लिया.

दीदी ने कुछ खास एहतियात बरतने को और समय से मैडिसिन लेने को कहा. फिर मैं खुशी से घर की तरफ बढ़ गई.

आज प्रवीण भी टूर से वापस आने वाले थे. मैं भी उन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. अब यह न्यूज सुन कर मेरी बेसब्री बेचैनी में बदल गई थी. जल्द से जल्द घर पहुंच कर प्रवीण को हमारी जिंदगी की सब से बड़ी खुशी देना चाहती थी.

घर पहुंच गई पर प्रवीण अभी आए नहीं थे. उन की फ्लाइट की टाइमिंग के हिसाब से उन्हें घर पर होना चाहिए, हो सकता हो घर बंद देख वापस औफिस चले गए हों फोन भी बंद आ रहा है.

मेरी बेसब्री अब चिंता में बदल गई, दिमाग में तरहतरह की बातें आ रही थीं, फिर मैं मधु दीदी के घर की तरफ बढ़ गई. सोचा हो सकता है कि उन से बात कर अपनी परेशानी का हल निकाल सकूं.

दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था, इसलिए बिना नोक किए मैं अंदर चली गई. वैसे भी अब उन से मैं इतनी घुलमिल हो गई थी कि सामान्य औपचारिकता की जरूरत नहीं थी.

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तभी मुझे मधु दीदी की जोरजोर से लड़ने की आवाज आई, किसी पर बहुत बुरी तरह नाराज थी. मुझे लगा शायद मैं गलत वक्त पर आ गई हूं, इसलिए चुपचाप निकलने वाली ही थी कि प्रवीण की आवाज सुन मेरे कदम वहीं जड़ हो गए, प्रवीण दीदी को शांत होने के लिए बोल रहे थे, मुझे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था और मैं विश्वास करना भी नहीं चाहती थी, फिर भी अपनी शंका दूर करने के लिए दरवाजे से झांक कर देखा, सामने प्रवीण और मधु दीदी बैठे थे.

प्रवीण के कंधे पर सिर टिका कर मधु दीदी रो रही थी, ‘‘प्रवीण, आखिर कब तक मुझे ऐसी जिंदगी जीनी होगी… मैं तुम्हारे लिए अपने पति की न हो सकी. कभी सोचा है हमारे रिश्ते के बारे में दर्शन को पता चल गया और सब से बड़ा सच हमारी बेटी… जो दर्शन को लगता है उस की बेटी है यह सच उसे पता चल गया तो वह न मुझे छोड़ेगा न तुम्हें.’’

‘‘मधु, तुम परेशान न हो. ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा तुम सोच रही हो. गौरी को बहुत जल्दी मां के पास छोड़ आऊंगा, फिर हम पहले की तरह रहेंगे.’’

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मैं हारी कहां: भाग 2- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

मुंहदिखाई के लिए पड़ोस की महिलाएं और घर में आए हुए रिश्तेदार थे. सभी ने मेरी खूबसूरती और साथ आए हुए साजोसामान की खुले दिल से तारीफ की. मैं ने अपनी सासूमां की तरफ देखा… उन का चेहरा गर्व और खुशी से दमक रहा था.

सब को संतुष्ट देख मन को शांति मिली. सभी के जाने के बाद सासूमां ने मां को फोन किया और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की बेटी अब इस घर की बेटी है, मुझ से बात कराई.

शाम ढलने को थी. प्रवीण गृहप्रवेश रस्मों के बाद से दिखे नहीं थे. मुझे एक

सजेसजाए कमरे में ले जा कर बैठा दिया गया. हर लड़की की तरह अपनी सुहागरात के सुंदर सपने सजाए मैं प्रवीण का इंतजार करने लगी.

दिनभर की रस्मों से थकान महसूस हो

रही थी, कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘गौरी, उठो बेटी,’’ सासूमां की आवाज सुन मैं चौंक कर

उठ बैठी.

‘‘सौरी मां मैं इतनी देर तक नहीं सोती, पता नहीं ऐसे कैसे सो गई थी,’’ मेरी नजर शर्म से फर्श पर टिकी थी.

‘‘कोई बात नहीं बेटी, तुम बहुत थकी हुई थी, इसलिए नींद आ गई

चलो अब नहा लो और तैयार हो कर बाहर आ जाओ, कुछ रिश्तेदार जाएंगे अभी थोड़ी देर में,’’ हंसते हुए उन्होंने मेरे सिर पर अपना प्यारभरा

हाथ रखा.

‘‘जी मां, अभी तैयार हो कर आती हूं.’’

सासूमां के जाने के बाद मैं प्रवीण के लिए सोच रही थी. संकोचवश उन से पूछ भी न सकी. रात में वे कमरे में आए भी थे या नहीं या सुबह उठ कर चले गए हों, ‘उफ गौरी ऐसे कैसे अपनी सुहागरात में घोड़े बेच कर सो गई,’ खुद को कोसते हुई तैयार होने के लिए उठी.

लगभग सभी रिश्तेदार जाने के लिए तैयार थे. सासूमां सभी की विदाई कर रही थीं. मैं भी उन की मदद के लिए उन के साथ जा कर खड़ी हो गई पर मेरी नजर प्रवीण को ढूंढ़ रही थी. वे कहीं नहीं दिख रहे थे.

सासूमां को शायद मेरी मनोस्थिति का भान हो गया था.

‘‘अत: गौरी, सुबह से प्रवीण सभी के लिए टैक्सी का इंतजाम करने में लगा है. तुम परेशान

न हो.’’

मैं झेंप कर इधरउधर देखने लगी और वे मुसकरा रही थीं.

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सभी के जाने के लगभग 1 घंटे बाद प्रवीण कमरे में आए. बोले, ‘‘कल रात बहुत गहरी नींद में सो रही थी… शायद तुम इन 3-4 दिनों से ऐसी बोझिल रस्मों से थक गई थी.’’

‘‘जी, कल नींद आ गई थी मुझे, पर आप जगा सकते थे मुझे,’’ अपनी तरफ  से मैं ने भी सफाई दी.

‘‘कोई बात नहीं,’’ उन्होंने मुझे मुसकराते हुए देखा.

सच कहूं तो जिंदगी में पहली बार मुझे ऐसा कुछ महसूस हो रहा था, जिस को मैं समझ नहीं पा रही थी और ऊपर से प्रवीण की मुसकराहट, मैं खुद पर नियंत्रण खोती जा रही थी. जिंदगी खूबसूरत लगने लगी, सबकुछ अच्छा लग रहा था. ये क्या हो रहा है मुझे… कहीं मुझे प्रवीण से प्यार तो नहीं हो गया.

‘इतनी जल्दी…’

अभी तक प्रवीण से मेरी ज्यादा बात भी नहीं हुई और मैं क्याक्या सोच रही हूं, ‘‘पागल गौरी,’’ खुद से बात करते हुए हंस पड़ी मैं.

कुछ समय ऐसे ही नईनवेली दुलहन और उस के सपनों को जीती हुई मेरी प्यारी सी छोटी सी दुनिया… जिस में मैं रचबस गई थी.

कुछ दिनों बाद सासूमां ने फरमान जारी फरमान जारी किया, ‘‘बहू अपनी भी पैकिंग कर लो, कल प्रवीण के साथ अपने मातापिता से मिलने चली जाना और परसों दिल्ली.’’

‘‘मां ऐसे अचानक, अभी तो कुछ समय और रुकना था.’’

‘‘नहीं बेटी, प्रवीण की छुट्टियां खत्म हो रही हैं. वह परसों चला जाएगा तो तुम यहां क्या करोगी?’’

सासूमां का फैसला था, मानना तो था ही. अत: मैं ने भी अपनी पैकिंग शुरू कर दी, पर प्रवीण के चेहरे पर एक अजीब घबराहट और बेचैनी महसूस की मैं ने. पर क्यों? हो सकता है… मुझे साथ नहीं ले जाना चाहते हों… एक बार पूछूं क्या? पूछने पर कहीं नाराज न हो जाएं,’ मन में कई तरह के सवाल चल रहे थे. अचानक ऐसी तबदीली देख किसी का भी मन संशय में पड़ जाए और यह मेरा भ्रम भी तो हो सकता है… मां को छोड़ कर जाने से भी मन उदास हो सकता है.

‘मैं भी क्या, कुछ भी सोच कर बैठ जाती हूं, यही सच होगा… मां के लिए ही प्रवीण चिंतित होंगे,’ सोच कर काम में जुट गई.

अगले दिन सुबहसुबह मायके के लिए निकल गए हम दोनों. मां, बाबा हम दोनों को देख बहुत खुश हुए थे, ‘‘गौरी बिटिया, आज कुछ भी नानुकुर नहीं करना, सब अच्छे से खा लेना, तुम्हारी मां सुबह से रसोई से निकली नहीं, तुम्हारी पसंद का सब बनाया है, दामाद बाबू की पसंद के बारे में ज्यादा कुछ अभी पता नहीं, जो पता था, वह सब बन गया है.’’

‘‘अरे बाबा, आप नाहक परेशान हो रहे हैं और मां को भी परेशान किए हुए हैं, प्रवीण सबकुछ खाते है.’’

मेरी बाबा से प्यारी नोकझोंक चल रही थी पर मेरी नजर प्रवीण पर ही थी, उन के चेहरे पर पहले से अधिक परेशानी दिख रही थी, आखिर बात क्या है? यहां भी कुछ पूछा नहीं जा सकता था. मां तो मेरी शक्ल देख कर ही मेरा दिमाग पढ़ लेंगी… मुझे सहज होना होगा. किसी तरह दिन बीता, मैं खुद को सहज रखने का भरसक प्रयत्न करती रही.

‘‘दामाद बाबू कम बोलते हैं या नाराज हैं, तुझ से? जब से आए हैं, गुमसुम से हैं, हर सवाल का हां या न में जवाब दे रहे हैं,’’ आखिर मां ने पूछ ही लिया मां की नजरों से कैसे कोई छिप सकता है, पर मैं बोली, ‘‘मां, आप भी क्याक्या सोच लेती हैं… हां प्रवीण कम बोलते हैं, पर मुझ से नाराज क्यों होंगे, वे मां को अकेले छोड़ कर जाने की वजह से थोड़े परेशान हैं बस,’’ मां को किसी तरह समझा लिया, पर सच तो यह था कि प्रवीण का यह व्यवहार मेरी समझ से भी परे था.

मांबाबा से विदा ले कर हम उसी रात चले आए. यहां भी सासूमां हमारा इंतजार कर रही थीं. खाना खा कर आए थे. थके हुए भी थे इसलिए ज्यादा बात न कर सिर्फ वहां का हालचाल बता कर सोने चले गए.

भोर की किरणें जब चेहरे पर पड़ी तो मेरी नींद खुली, बगल में प्रवीण भी गहरी

नहीं में थे.

यों तो सभी के सामने धीरगंभीर रूप में रहते हैं पर अभी चेहरे पर यह कैसी मासूमियत झलक रही है… मैं एकटक निहारे जा रही थी.

तभी प्रवीण की आंख खुली. मुझे ऐसे देखते हुए झेंप गए, ‘‘क्या बात है… आज सुबहसुबह इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे जनाब के?’’

प्रवीण की बात सुन मैं भी शरमा गई. चोरी जो पकड़ी गई थी.

पूरा दिन सामान समेटने में चला गया. हम रात की ट्रेन से दिल्ली के लिए निकल गए.

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सुबह प्रवीण का मूड ठीक था पर जैसेजैसे जाने का वक्त आ रहा था, प्रवीण के चेहरे की परेशानी बढ़ती जा रही थी.

स्टेशन से टैक्सी कर घर आ गए, प्रवीण ने मुझे फ्लैट नंबर बता कर चाबी दी और खुद सामान उतारने लगे.

‘घर तो बहुत गंदा होगा लगभग 15 दिनों से प्रवीण थे नहीं यहां, पता नहीं,’ कोई मेड भी है या नहीं यही सोचते हुए मैं ने लौक खोला तो मेरी आंखें खुली की खुली रह गई, ‘‘यह क्या, आप इतने दिनों बाद आए हो, फिर भी घर ऐसे साफ जैसे हर रोज सफाई होती हो?’’ पीछे आते हुए प्रवीण से मैं ने पूछा.

आ अ… हा… वह मेरे एक फ्रैंड की फैमिली भी यहीं रहती है… मैं ने उन्हें सफाई

के लिए बोल दिया था,’’ प्रवीण अचकचाते

हुए बोले.

‘‘यह तो सही किया आप ने… अच्छा किचन कहां है?’’ मैं ने प्रवीण से पूछा.

‘‘तुम फ्रैश हो जाओ मैं खाना और्डर कर देता हूं, तुम बहुत थकी हुई हो, खाना खा कर आराम करो, किचन देख लो पर खाना शाम को बनाना,’’ वे बड़े प्यार से मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोले.

‘‘जी, जैसा आप कहें हुजूर,’’ मैं ने भी नजाकत से आंखें झुका कर बोला, फिर दोनों

हंस पड़े.

आगे पढ़ें- अपनी तरफ ऐसे देख मैं थोड़ी घबरा गई, इसलिए…

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मैं हारी कहां: भाग 1- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

‘‘दीदी…दीदी सो रही हो क्या अभी तक?’’

‘अरे यह तो रामलाल की आवाज है,’ सोच जल्दी से उठ कर मेन दरवाजे की तरफ भागी.

दरवाजे पर रामलाल दूध वाला चिंतित सा खड़ा था. उसे ऐसे खड़ा देख हंसी आ गई, ‘‘क्या हुआ रामलाल ऐसे क्यों मुंह बनाए हो?’’

‘‘दीदी, आप ने तो मुझे डरा दिया. रोज तो मेरे आने से पहले दरवाजे पर खड़ी हो जाती थीं. आज आधे घंटे से दरवाजे पर खड़ा हूं.’’

‘‘हां, आज कुछ सिर भारीभारी लग रहा था. रविवार की छुट्टी भी है, इसलिए… अच्छा अब चलो जल्दी दूध दे दो.’’

सिरदर्द बढ़ने लगा तो रामलाल को जाने को बोल दिया नहीं तो वह अपनी रामकहानी शुरू ही करने वाला था.

‘‘अच्छा, दीदी मैं चलता हूं आप अदरक वाली चाय पी लो, आराम मिलेगा.’’

‘‘ठीक है रामलाल,’’ कहते हुए मैं ने दरवाजा बंद कर दिया.

‘देर तो हो ही गई है नहा कर ही चाय बनाऊंगी,’ सोचते हुए मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गई.

चाय ले कर बालकनी में रखी और आरामकुरसी पर बैठ गई. शालीन के जाने के बाद आज पहली बार अकेलेपन और खालीपन का आभास हो रहा था, पर वह भी कब तक अपनी मां के पास रहता, एक न एक दिन उसे अपनी जिंदगी की शुरुआत तो करनी ही थी. पिछले सप्ताह शालीन ने कहा, ‘‘मां अब आप रिटारमैंट ले लो और मेरे साथ चलो.’’

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‘‘तू कहां जा रहा है और मैं क्यों रिटायरमैंट लूं?’’ मैं ने अचरज से उस की तरफ देखा.

‘‘मां पुलिस अधीक्षक ट्रेनिंग के बाद मेरी पहली पोस्टिंग बीकानेर में मिली है.’’

जितनी खुशी उस के पुलिस अधीक्षक के चयन के समय मुझे हुई थी, आज

उतनी ही तकलीफ उस के दूर जाने से हो रही थी, पर किसी तरह खुद को मजबूत दिखाते हुए मैं ने कहा, ‘‘बेटा, मैं कहांकहां तुम्हारे साथ घूमूंगी… तुम अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी के पद पर हो. अपना काम ईमानदारी और पूरी लगन से करना और मेरी फिक्रन करे. मैं अभी अपना काम करने में सक्षम हूं और फिर तुम्हारी बेला मां और चाचा तो हैं न मेरे पास.’’

बेला और रमेश भैया के बहुत समझाने और भरोसा दिलाने के बाद शालीन बीकानेर के लिए रवाना हुआ. फोन की घंटी सुन सोच से बाहर आई. जरूर शालीन होगा. चैन नहीं उसे भी,’ सोचते हुए फोन उठाया.

मेरे कुछ कहने से पहले ही उधर से एक महिला की आवाज आई, ‘‘हैलो… हैलो… गौरी

है क्या?’’

उफ यह तो उसी की आवाज है… अब क्या लेना है इसे मुझ से… मेरा सबकुछ छीन कर भी चैन नहीं इसे.

बिना कुछ बोले फोन रख दिया मैं ने… इतने वर्षों बाद उस की आवाज सुन मेरे हाथपैर सुन्न पड़ गए थे, दिलदिमाग दोनों मेरे बस में नहीं थे. उस के प्रति दबी हुई नफरत और बढ़ गई. इतने वर्षों बाद उस ने क्यों फोन किया मुझे? लगता है मेरा घर उजाड़ कर अभी तक मन नहीं भरा उस का… नाराजगी और नफरत से मेरा सिरदर्द और बढ़ गया. किसी तरह खुद को समेटे वहीं सोफे पर लेट गई.

बेला दीदी से बात करूं क्या? पर वे तो अभी अस्पताल में होंगी, अभी फोन करना मुनासिब नहीं होगा. इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला. आंख खुली तो 3 बज गए थे. दर्द कुछ कम हुआ था, भूख भी लगी थी. आज शांता भी छुट्टी पर थी, इसलिए आज रसोई में कुछ बना ही नहीं.

मेरा भी कुछ बनाने का मन नहीं कर रहा था. अभी तक उस की आवाज मेरे कानों में गूंज रही थी. पर भूख के आगे मन कब तक मनमानी करता… रसोई की तरफ खुदबखुद पांव बढ़ गए. परांठे सेंके और ड्राइंगरूम में ही टीवी के सामने बैठ गई. लाख कोशिशों के बाद भी उस की आवाज से पीछा नहीं छुड़ा पा रही थी. आखिर उस के फोन करने का सबब क्या था? इतने वर्षों बाद उसे मेरी याद कैसे आ गई?

उस की धोखे की कहानी फिर आंखों

के सामने आ गई जैसे कुछ समय पहले की ही बात हो. बचपन में मैं ने अपने मातापिता को

एक सड़क दुर्घटना में खो दिया था. लड़की होने के नाते घर वालों ने मेरी जिम्मेदारी लेने से

इनकार कर दिया. ऐसे समय में मेरी मामी मेरे लिए खड़ी हुईं. उन्होंने मेरी दादी और घर वालों को खूब खरीखोटी सुनाई और मुझे ले कर बनारस आ गईं.

मामामामी का एक बेटा था अविनाश, मेरे रूप में उन्हें एक बेटी मिल गई और मुझे मातापिता के साथ एक भाई. नानी थीं… मां के गुजरने के कुछ समय बाद वे भी चल बसीं.

मैं मामामामी के प्यारदुलार में बड़ी

हुई. मातापिता को तो कभी देखा नहीं था, तो

वही मेरे लिए मेरे मातापिता थे. मैं उन्हें मांबाबा बुलाती.

पढ़ाई के साथसाथ मां की सीख से मैं गृहकार्यों में पारंगत हो गई थी. रंगरूप भी ऐसा था कि कोई देख कर प्रभावित हुए बिना नहीं रहता.

समय बीतता गया… अविनाश भैया इंजीनियरिंग पूरा करने के बाद सिंगापुर चले गए. उन्हें वहीं अपनी एक सहकर्मी से प्यार हो गया. भैया ने फोन पर अपनी प्रेम कहानी के बारे में मांबाबा को बताया और अगले महीने शादी की इच्छा बताई. बाबा ने तो सहर्ष स्वीकृति दे दी, पर मां कुछ दिन नाराज रहीं.

भैया बनारस आ गए और शादीब्याह की तैयारियों में लग गए. मां भी अपने इकलौते बेटे से कब तक नाराज रहतीं. भैया को देख सारी नाराजगी भूल गईं और सभी रस्मोंरिवाजों के साथ धूमधाम से भैया का विवाह संपन्न हुआ. भाभी बहुत खूबसूरत और स्मार्ट थी. दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी थी. मैं बहुत खुश थी कि भाभी के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई. महीनाभर घर में खूब रौनक रही. मां ने भी भाभी को अपनी बहू के रूप में खुले दिल से स्वीकार कर लिया.

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1 महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला… अब भाभी और भैया हम सब को छोड़ सिंगापुर वापस जा रह थे. दोनों की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. उन के जाने के बाद घर में अजीब सी उदासी छा गई थी.

कुछ महीनों के बाद मेरे लिए बाबा के एक सहयोगी के रिश्तेदार के यहां से रिश्ता आया.

लड़का दिल्ली में रहता है, बैंक में उच्च पद पर है, घर में सिर्फ मां है, जो गांव में रहती हैं, दहेज के नाम पर दुलहन सिर्फ एक जोड़े में और विवाह 15 दिनों के अंदर ही होना चाहिए.

ऐसा रिश्ता पा कर मां मेरी बालाएं लिए नहीं थक रही थीं. बाबा भी हर किसी आनेजाने वाले से अपनी खुशियां बांटने में लगे थे. पर एक सवाल सब के मन में था कि विवाह के लिए इतनी जल्दी क्यों?

मां की सहेली की बेटी बेला दीदी दिल्ली

में डाक्टर थी. मां ने दीदी को फोन पर सारी

बात बता कर लड़के के बारे में पूरी जानकारी लेने को कहा.

दीदी ने अपने स्तर से सभी तरह की मालूमात हासिल की और मां को बताया कि लड़के का नाम प्रवीण है. वह देखने में अच्छा है, नौकरी भी बहुत अच्छी है, 2 कमरों का फ्लैट खरीद लिया है और उस में अकेला रहता है. भैयाभाभी की भी सहमति मिल गई कि 15 दिन में शादी हो जाए. वे लोग भी 1-2 दिन के लिए आ जाएंगे, फिर क्या था… मांबाबा विवाह की तैयारी में जोरशोर से लग गए. समय कम होने के कारण रिश्तेदारों की फौज तो जमा नहीं हो पाई थी, हां कुछ आसपास रहने वाले रिश्तेदार जरूर आ गए थे.

विवाह सादगी से होना था यह लड़के की मांग थी. फिर भी मां ने अपने घर

की सभी रस्मों को पूरा किया और मेरा विवाह संपन्न हुआ. सभी रिश्तेदार मुझ पर रश्क कर रहे थे कि इतने कम समय में ऐसा परिवार और इतना होनहार दूल्हा मिल गया.

मुझे दुलहन के रूप में देख मांबाबा के आंसू छलक पड़े थे, फिर भी वे खुद को मेरे सामने कमजोर नहीं दिखा रहे थे. विदाई की घड़ी भी आ गई. मांबाबा का धैर्य अब टूट चुका था. मुझे बांहों में ले कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. किसी तरह भैया और भाभी ने दोनों को संभाला और मेरी विदाई की गई. मैं पूरा रास्ता रोती रही, पर प्रवीण 1-2 बार ही मुझे चुप रहने के लिए बोले. कार में भी अपनी सीट पर तटस्थ बैठे रहे.

उस समय मैं ने कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया, एक तो अपने मांबाबा से दूर जाने का गम दूसरा अनजान लोगों के साथ रहने का डर. कोई और विचार मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था.

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जैसेतैसे रोतेबिलखते ससुराल पहुंची, वहां कुछ रिश्तेदार और सासूमां मेरे स्वागत में खड़ी थीं. सासूमां का व्यवहार काफी स्नेही लगा, बड़े प्यार से मुझे कमरे में ले गईं. आंसू पोंछ कर मुझे गले लगा कर बोलीं, ‘‘बेटी नहीं है इस घर में, तुम आज से मेरी बेटी हो और अब रोना नहीं… हंसते हुए मेरे धीरगंभीर बेटे को संभालना. चलो मुंह धो लो और बाल ठीक कर लो. कुछ देर में सभी मुंहदिखाई की रस्म के लिए आएंगे.’’

उन का प्यार पा कर मेरा डर गायब हो गया. मैं ने पूरे मन से खुद को वहां की रस्मों के लिए तैयार कर लिया.

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मैं हारी कहां: भाग 5- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

भाई का फोन आया कि अगले माह शायद फैसला मिल जाए.

‘‘मां, मैं अगले महीने क्याक्या करूंगी. ऐग्जाम्स भी सिर पर हैं, डिलिवरी डेट भी अगले महीने और मेरे और प्रवीण के तलाक का फैसला भी अगले महीने,’’ मैं मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.

‘‘गौरी… मेरी बच्ची, ऐसे हिम्मत नहीं हार सकती, तुम इतने महीनों से किसकिस मानसिक तनाव से गुजरते हुए यहां तक पहुंची हो और जब सभी परेशानियों का हल निकलने जा रहा है तो तुम्हारी आंखों में आंसू,’’ मां ने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘इन आंसुओं को अपनी हिम्मत बनाओ और आगे बढ़ो बेटी, तुम्हारे साथ हम सब खड़े हैं, मां की बातें और उन के प्यार से मुझे हिम्मत मिली.

मां, बाबा, भाई, भाभी, बेला दीदी और मां सब की कितनी उम्मीदें हैं मुझ से, सभी ने मुझ पर भरोसा किया है कि मैं इस कठिन समय को हरा दूंगी, इतनी आसानी से मैं हार नहीं मान सकती. इन सब के साथ मेरी कोख में पल रहे मेरे बच्चे का भी तो साथ है, कभीकभी महसूस होता है जैसे वह कह रहा है कि मां तुम कभी अपना हौसला न खोना, यह लड़ाई मैं भी लड़ रहा हूं तुम्हार साथ.

आखिर वह दिन भी आ ही गया. मेरा और प्रवीण का रिश्ता अब खत्म हो चुका था. प्रवीण उदास से खड़े कभी मुझे देखते तो कभी मां को, जो मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी थीं. मां ने उन की तरफ देखा भी नहीं और मेरा हाथ थामे कोर्ट की सीढि़यां उतरने लगीं, उस दिन के बाद मैं ने कभी प्रवीण को नहीं देखा.

कुछ दिनों बाद ही शालीन का जन्म हुआ. शालीन के आते ही घर की उदासी दूरहो गई. दादी पूरा समय अपने पोते की देखभाल में ही गुजार देतीं. नानानानी भी आ गए थे, तीनों उस की मुसकराहट देख अपने सारे दुख भूल जाते.

मैं निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई में जुट गई. 10 दिन रह गए थे परीक्षा में. बैड पर लेटेलेटे ही पढ़ाई करती क्योंकि शरीर अभी कमजोर था और मेरी दोनों मांओं की सख्त हिदायत थी कि मैं कोई भी काम न करूं.

इसी तरह मां और मांबाबा की देखरेख में मैं ने बीएड कर लिया. टीचर ट्रेंनिग की भी डिगरी ले ली. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला.

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जल्दी ही मुझे दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर की नौकरी भी मिल गई. धीरेधीरे मेरी गाड़ी पटरी पर आ रही थी. व्यस्तता बढ़ गई थी. ऐसे समय में परिवार का साथ मेरे लिए वरदान से कम नहीं था.

बेला दीदी की भी शादी हो गई और उन्होंने नया घर मेरे घर के पास ही ले लिया. शालीन बेला दीदी से बहुत हिलमिल गया था. दीदी को बेला मां कहता और दीदी भी उस पर अपना सारा स्नेह लुटाती रहती. बेला दीदी के पति रमेश भैया बहुत सुलझे हुए इंसान थे. मेरी जिंदगी में वे मेरे दूसरे भाई बन कर आए थे.

तभी फोन की घंटी मुझे अतीत से वर्तमान में ले आई.

‘‘हैलोहैलो मां,’’ शालीन की आवाज सुन कर मैं ने अपने आंसुओं को पोंछते हुए खुद को संभालने का भरसक प्रयत्न किया.

‘‘हां बेटा सब ठीक है वहां? तुम ठीक तो हो? कुछ खाया कि नहीं?’’

‘‘अरे रुको मेरी प्यारी मां मैं ठीक हूं. यहां घर भी बड़ा है, रसोईया भी है इसलिए खाना भी खा चुका हूं,’’ बोलते हुए वह हंसने लगा.

‘‘अच्छा अब ज्यादा मजाक न बना मेरा, बदमाश, इतना बड़ा अधिकारी बन गया पर मां की बातों का मजाक बनाना नहीं छोड़ा,’’ मैं ने भी झूठा गुस्सा दिखाया.

‘‘मां, मैं चाहे कितना भी बड़ा बन जाऊं, पर दिल से हमेशा आप का छोटा बेटा ही रहूंगा,’’ शालीन की बातों से मैं और इमोशनल हो गई, पर खुद को संयत करते हुए शालीन को प्रवीण के फोन के बारे में बताया.

शालीन ने साफ मना कर दिया कि न ही मैं कभी फोन उठाऊं और न ही उन के बारे में सोचूं.

शालीन ने बेला दीदी और भैया को भी बता दिया कि वे लोग मेरे पास आ जाएं ताकि मैं अतीत की यादों में न चली जाऊं. शालीन को प्रवीण के बारे में सारा सच पता था, खुद मां ने उसे उस के पिता की सारी सचाई बता दी थी.

वह अपने पिता का नाम भी सुनना पसंद नहीं करता और न ही कभी मिलने की इच्छा जाहिर की. मां और मैं ने उस से कई बार पूछा था, अगर वह अपने पिता से मिलना चाहे तो हम नहीं रोकेंगे पर शालीन को प्रवीण का नाम भी सुनना पसंद नहीं था और न ही कभी प्रवीण ने भी शालीन से मिलने की इच्छा दिखाई.

पिछले साल मां की मृत्यु की खबर प्रवीण तक पहुंचा दी गई थी पर प्रवीण ने अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी आना जरूरी नहीं समझा और आज इस फोन ने मुझ से मेरा चैन छीन लिया. बेला दीदी आई तो उन्होंने बताया कि मधु उन के ही हौस्पिटल में इलाज के लिए आई है, उसे कैंसर हो गया है. सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ. एक पल तो मैं ने भी उन का बुरा सोचा था, पर ऐसी सजा मिले, यह कभी नहीं चाहा था.

पूरी रात इन तमाम दुविधा में गुजरी कि क्या करूं, जाऊं कि न जाऊं. सुबह उठी तो सिर फिर भारीभारी सा लग रहा था, नाश्ते के बाद दवा खा ली और तैयार होने लगी कालेज जाने के लिए निकली पर मेरे कदम न चाहत हुए भी हौस्पिटल की तरफ बढ़ गए.

प्रवीण मधु के बैड की साइड चेयर पर बैठे थे, टूटे, कमजोर व सिर झुकाए, शायद मुझ से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी उन के अंदर.

मुझे देख मधु रोने लगी, ‘‘गौरी, हम दोनों को माफ कर दो, तुम से माफी मांगने का भी हम दोनों हक नहीं रखते, फिर भी तुम से हाथ जोड़ माफी मांगती हूं. हम दोनों ने तुम्हें बहुत दुख दिया… मुझे मेरे मरने से पहले मेरे गुनाहों की माफी मिल जाए, तो मेरी तकलीफ कुछ कम हो जाए,’’ रोतेरोते लड़खड़ाती जबान से किसी तरह मधु ने अपनी बात कही. प्रवीण भी सिर झुकाए हाथ जोड़ रहे थे.

इन दोनों की ऐसी अवस्था देख मैं खुश होना चाह रही थी, पर खुश नहीं थी. इन दोनों ने मिल कर मुझे जिंदगी का सब से बड़ा दुख दिया, फिर भी मैं इन के दुख में खुद को दुखी महसूस कर रही थी.

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‘‘मधु, माफ तो मैं ने तुम्हें कब का कर दिया था और प्रवीण तुम्हें भी, तुम दोनों से नफरत करने से ज्यादा मुझे अपनी और अपने परिवार की जिंदगी संवारने में खुद को लगाना ज्यादा सही लगा और मैं ने वही किया. काश, तुम दोनों ने समय से अपने बारे में परिवार को पहले बताया होता तो यों मेरी और दर्शन की जिंदगी में तुम दोनों नासूर न बने होते. मेरे साथ तो मेरे अपनों का साथ और आशीर्वाद था, इसलिए आज मैं यहां खड़ी हूं.’’

‘‘आज मैं और मेरा बेटा जो कुछ भी है, मां के बिना मुमकिन नहीं था, प्रवीण तुम्हें तो मां ने जन्म दिया. पालपोस कर इस लायक बनाया और तुम ने अपनी जननी को ही धोखा दिया. उन के अंतिम संस्कार में भी आना जरूरी नहीं समझा.’’

आज मैं बरसों से दबी हुई सारी भड़ास निकाल देना चाह रही थी पर प्रवीण की सिसकियां सुन कर रुक गई.

‘‘तुम दोनों अब अतीत से बाहर निकलो और अपने इलाज पर ध्यान दो, मेरे मन में अब तुम दोनों के लिए कोई दुरभावना नहीं है, न ही प्यार की और न ही नफरत की, रमेश भैया अच्छे डाक्टर हैं पूरे विश्वास के साथ इलाज कराओ, कुदरत तुम दोनों का भला करे,’’ कहते हुए मैं बाहर निकलने लगी.

तभी पीछे से प्रवीण की आवाज आई,’’ गौरी, मेरा बेटा…’’

‘‘प्रवीण, तुम्हारा कोई बेटा नहीं है, जिसे मेरा बेटा कहा अभी. क्या उस का नाम पता है तुम्हें?’’ मैं ने झट से प्रवीण की बातों को काटते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी एक बेटी है, जो मुझे पता है, बस उस को और अपनी बीमार पत्नी को देखो, आज के बाद मुझे फोन करने या मुझ से मिलने की कोशिश भी नहीं करना, मैं यहां आई थी सिर्फ तुम दोनों को यह एहसास दिलाने कि अपनों का साथ कितना जरूरी होता है. धोखे और झूठ पर घरौंदे नहीं बनते प्रवीण.’’

उस कमरे से निकलते समय लगा मैं अपने अतीत की इन कड़वी यादों से भी निकल गई हूं. मेरा मन साफ हो गया जैसे यादों की कड़वाहट ने मेरे मन से निकल कर मेरे मन को शुद्ध कर दिया. हलकी बारिश की बूंदें अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी और ठंडी हवाओं ने मेरे मन को तृप्त कर दिया था.

आसमान की तरफ देखते हुए कुदरत से कहा कि माफ कर दो इन दोनों को, मैं ने भी माफ कर दिया और फिर मैं कालेज की तरफ चल पड़ी.

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अपहरण नहीं हरण : भाग 2- क्या हरिराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर 

जो मजदूर बस में पहले घुस आए थे, उन्होंने बस की तरकीबन सभी अच्छी सीटों पर कब्जा जमा रखा था. उन्हीं में एक बांका और गठीले बदन का दिखने वाला देवा भी था. आगे से चौथी लाइन में पड़ने वाली बाईं ओर की  2 सीटों में से एक सीट पर खुद जम कर बैठ गया था और दूसरी सीट पर अपना बैग उस ने कुछ इस अंदाज से रख  लिया था कि देखने वाला समझ जाए  कि वह सीट खाली नहीं है.

बस के पास पहुंच कर हरीराम ने जैसेतैसे अटैची, बक्सा और बालटी बस की छत पर लादे जाने वाले सामान के बीच में ठूंस देने के लिए ऊपर चढ़े एक आदमी को पकड़ा दी और मुनिया की पीठ पर धौल जमा कर आगे धकियाते हुए जैसेतैसे बस के अंदर दाखिल हुआ. पीछे से लोगों के धक्के खा कर आगे बढ़ती मुनिया पास से गुजरी और आगे खड़े लोगों के बढ़ने का इंतजार कर रही थी, तभी देवा की आंखें मुनिया की कजरारी आंखों से टकराईं.

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दोनों की नजरों से एक कौंध सी निकल कर एकदूसरे के दिल में समा गई. देवा ने पास रखा बैग उठा कर अपनी जांघों पर रख लिया और मुनिया को इशारे से खाली सीट पर बैठ जाने  को कहा.  मजदूरों से भरी इस भीड़ वाली बस में बगल में बैठी कमसिन मुनिया के साथ लंबे और सुहाने सफर की सोच से देवा ने खुश होना शुरू ही किया था कि पीछे से हरीराम की आवाज आई, ‘‘अपने बैठने की बहुत जल्दी है. पति की चिंता नहीं है कि वह कहां बैठेगा,’’ कहते हुए उस ने मुनिया के सिर पर पीछे से एक धौल जमा दी.

हरीराम शायद उसे एकाध हाथ और भी जड़ता, लेकिन तब तक मुनिया खिड़की की तरफ वाली सीट पर बैठ चुकी थी और उस के बगल में देवा ने बैठ कर हरीराम को घूरना शुरू कर दिया. देवा का बस चलता तो ऐसे बेहूदा आदमी की तो वह गरदन दबा देता. तभी पीछे से किसी ने हरीराम को देख कर आवाज लगाई, ‘‘अरे ओ हरीराम, इधर पीछे आ जाओ, एक सीट खाली है.’’ यह उसी फैक्टरी में काम करने वाले जग्गू दादा की आवाज थी. वे मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के रहने वाले थे और  2 महीने बाद ही उन की रिटायरमैंट थी.

भांग के शौकीन जग्गू दादा की आवाज सुन कर हरीराम ने राहत की सांस ली और उन की बगल की सीट पर जा कर बैठ गया. हरीराम इस बात से भी खुश था कि बीड़ी तो बस के अंदर पी नहीं पाएगा, पर पानी के साथ भांग तो पी जा सकेगी. अच्छी बात यह थी कि सब ठुंसे हुए लोग अपनीअपनी सीटों पर बैठ चुके थे और कोई भी आदमी खड़ा नहीं था. बस जैसे ही स्टार्ट हुई, देवा ने अपने बाएं हाथ की कलाई पर बंधी घड़ी को देखा. शाम के 4 बज चुके थे.

बगल में बैठी मुनिया को उस की कलाई में बंधी काले पट्टे वाली घड़ी बहुत पसंद आई. उस की नजरें अपनेआप ही कलाई से हट कर देवा के चेहरे की तरफ चली गईं. इस बार नजरें मिलीं तो मुनिया सहजता से हंस दी. देवा ने सुन रखा था  कि औरत हंसी तो जानो फंसी. यही सोच कर उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं  मुनिया तो इस बात से इतनी खुश थी कि कम से कम उसे अपने खड़ूस पति की बगल में बैठ कर यह लंबा सफर तो नहीं तय करना पड़ेगा.

तभी देवा को लगा कि मुनिया उस से कुछ कह रही है, लेकिन बस के इंजन का शोर इतना तेज था कि वह क्या कह रही है, देवा सुन नहीं पा रहा था, इसलिए मुनिया के पास खिसक कर, थोड़ा झुकते हुए उस ने अपना कान मुनिया के होंठों से मानो चिपका सा दिया. मुनिया का मन तो हुआ कि इसी समय वह देवा के कानों को अपने होंठों से काट ले, पर लाजशर्म भी कुछ होती है, इसलिए उस ने अपने शब्द दोहराए, ‘‘पता नहीं, यह सीट न मिलती तो हम कहां बैठ कर जाते…’’ ‘अरे, सीट न मिलती तो हम तुम को अपने दिल में बैठा के ले चलते,’ देवा ने यह तो मन में सोचा, पर कहा कुछ यों, ‘‘अरे, हमारे होते सीट क्यों न मिलती तुम को.’’ ‘‘तो तुम को मालूम था कि हम ही यहां आ कर बैठेंगे? और मान लो, हमारे पति यहां बैठने की जिद पकड़ लेते तो…?’’ ‘‘तब की तब देखी जाती, पर यह पक्का जानो कि हम अपने बगल में उसे कभी न बैठने देते.

हमें जो इंसान पसंद नहीं आता है, उसे हम अपने से बहुत दूर रखते हैं,’’ देवा ने अपने सीने पर एक हाथ रखते हुए कहा, तो मुनिया उस के चेहरे पर उभर आए दृढ़ विश्वास से बहुत प्रभावित हुई. उस कैंपस से बाहर निकल कर वह बस सड़क पर एक दिशा में जाने को खड़ी हो गई थी. उस का इंजन स्टार्ट था. बीचबीच में ड्राइवर हौर्न भी बजा देता  था और कंडक्टर बस के अगले गेट  पर लटकता हुआ चिल्लाता, ‘‘भोपाल, भोपाल…’’ आखिरकार बस अपनी दिशा की तरफ चल दी.

मुनिया ने गरदन घुमा कर पीछे की तरफ देखा, तो वह निश्चिंत हो गई. जग्गू दादा के साथ हरीराम आराम से बैठा बतिया रहा था. हां, बीचबीच में उस की खांसी उठनी शुरू हो जाती थी. बस ने अब थोड़ी रफ्तार पकड़ ली थी. स्टेयरिंग काटते हुए जब बस झटका खाती और मुनिया का शरीर जब देवा से टकराता तो उसे वह छुअन अच्छी लगती. फिर तो देवा ने अपनी बांहें उस की बांहों से चिपका दीं और पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ मुनिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘पहले तुम अपना नाम बताओ, तब हम अपना नाम बताएंगे.’’ हमारा तो सीधासादा नाम है, ‘‘देवा’’. ‘‘तो हमारा कौन सा घुमावदार नाम है. वह भी बिलकुल सीधा है मुनिया…’’ होंठों को गोल कर के कजरारी आंखें नचाते हुए जब मुनिया ने अपना नाम बताया, तो देवा तो उस की इस अदा पर फिदा हो गया.

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आज 2 साल बाद मुनिया को अपना मन बहुत हलका लग रहा था. खुद को इतना खुश होते देख उसे एक अरसा बीत गया था. वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे वह देवा से इतनी जल्दी घुलमिल कर बातें किए जा रही है. इतने अपनेपन से तो मुनिया से कभी हरीराम ने भी बातें नहीं की थीं. सुहागरात वाले दिन भी नहीं.

आखिर हरीराम ने उसे कौन सा सुख दिया है? जिस्मानी सुख भी तो वह ढंग से नहीं दे पाया. पता नहीं उस के बापू ने क्या देख कर उसे जबरदस्ती हरीराम के पल्ले बांध दिया. मुनिया को इस समय अपनी मां पर भी गुस्सा आया. वह पीछे न पड़ती तो अभी बापू शादी न करता. उस की शादी तो देवा जैसे किसी बांके जवान के साथ होनी चाहिए थी.

कितने प्यार से बातें कर रहा है… और एक हरीराम है… लगता है, अभी खा जाएगा. पता नहीं, कितनी खुरदरी जबान पाई है हरीराम ने. मीठा तो बोलना ही नहीं जानता. बातबात पर हाथ अलग उठा देता है. ऐसे ब्याही से तो बिन ब्याही रहना ही अच्छा था. मुनिया को बस की खिड़की से बाहर कहीं खोया देख कर देवा ने मुनिया के घुटने पर थपकी देते हुए पूछा, ‘‘कहां खो गई थी? क्या सोच रही थी?’’ चेहरे से गंभीरता हटा कर मुनिया ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं. सोचने लगी थी कि तुम्हारी पत्नी तो बहुत सुखी रहती होगी तुम्हारा प्यार पा कर.

वह अपने को धन्य समझती होगी.’’ ‘‘अरे मुनिया, क्या मैं तुम्हें शादीशुदा लगता हूं? मैं शादी लायक जरूर हो गया हूं, पर अभी तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं. मैं अभी तक कुंआरा हूं.’’ ‘‘तो हरियाणा में अकेले ही रहते हो? काम क्या करते हो? और मध्य प्रदेश में कहां के रहने वाले हो?’’ ‘‘बाप रे, एकसाथ इतने सवाल. इतने सवाल तो फिटर के रूप में मेरी नौकरी लगने पर भी नहीं पूछे गए थे,’’ कहते हुए देवा खिलखिलाया और इस अदा पर मुनिया उस की ओर ताकती रही.

उस का मन हुआ कि वह अपनी बांहें फैला कर देवा के सीने से लिपट जाए. तभी देवा ने बताना शुरू किया, ‘‘मैं देवास के पास का हूं. मेरे पिता किसान हैं और 2 बहनें भी हैं, जो शादीशुदा हैं और अपनीअपनी ससुराल में रहती हैं.  ‘‘मुझे गांव में बुढ़ापे की औलाद कहा जाता है, क्योंकि मैं अपनी दूसरी बहन के पैदा होने के 10 साल बाद पैदा हुआ था. ‘‘मैं जब बड़ा हुआ, तो इंटर के बाद मेरे बड़े पापा यानी ताऊजी मुझे अपने साथ देवास ले आए.

वहीं से मैं ने पौलिटैक्निक कालेज से मेकैनिकल का डिप्लोमा किया और फिर हरियाणा में चारा काटने वाली मशीन के पार्ट बनाने वाली कंपनी में फिटर का काम मिल गया. अभी तकरीबन 2 साल से यहां हूं. ‘‘अब कुछ तुम अपने बारे में बताओ. देखो, बातोंबातों में समय अच्छा कट जाता है. तुम रास्तेभर मुझ से ऐसे ही बतियाती रहना, समय आराम से कट जाएगा.

‘‘और हां, यह गठरी कब तक यों पकड़े रहोगी, मुझे दो. मैं इसे ऊपर रख देता हूं,’’ कह कर देवा चलती हुई बस में खड़ा हुआ और गठरी अपने बैग के बगल में ठूंस दी. खड़े होते समय उस ने हरीराम की सीट की तरफ भी नजर डाली थी. वह शायद सो गया था, क्योंकि बस के साथ उस का और उस के साथी का सिर भी इधरउधर झूल रहा था. ‘इंसान जब शरीर से कमजोर होता है, तो किसी भी सवारी से वह सफर करे, जल्दी ही ऊंघने लगता है,’ हरीराम को देख कर देवा को अपने ताऊजी यानी बड़े पापा के कहे शब्द याद आ गए थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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अपहरण नहीं हरण : भाग 1- क्या हरिराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर 

हरीराम उर्फ हरिया मुनिया का हाथ पकड़ कर तकरीबन खींचता हुआ राहत शिविर से बाहर आया. कई हफ्तों से उस जैसे कई मजदूरों को उन शिविर में ला कर पटक दिया गया था. न तो खानेपीने का उचित इंतजाम था, न जलपान कराने की कोई फिक्र. शौचालयों की साफसफाई का कोई इंतजाम नहीं.

2 बड़े हालनुमा कमरों में दरी पर पड़े मजदूर लगातार माइक पर सुनते रहते थे, ‘प्रदेश सरकार आप सब के लिए बसों का इंतजाम करने में जुटी हुई है. इंतजाम होते ही आप सब को अपनेअपने प्रदेश भेज दिया जाएगा. कृपया साफसफाई का ध्यान रखें और एकदूसरे से दूरदूर रहें.’ कोरोना की तबाही के मद्देनजर लौकडाउन का ऐलान किया जा चुका था. फैक्टरिया बंद होनी शुरू हो गई थीं.

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फैक्टरी मुलाजिमों से उन के कमरे खाली करा के उन्हें गेट से बाहर कर दिया गया था. वहां से वे पैदल ही अपनाअपना बोरियाबिस्तर समेट कर राहत शिविरों तक चल कर आए थे. जिस ऊन फैक्टरी में हरीराम उर्फ हरिया काम करता था और अभी 2 साल पहले वह अपने से 12 साल छोटी मुनिया को गांव से ब्याह कर लाया था, वह मुनिया चाहती और हरिया की बात मान कर फैक्टरी के मैनेजर के घर रुक जाती तो शायद आज हफ्तेभर से इस राहत केंद्र में उन्हें मच्छरों की भिनभिन न सुननी पड़ती. पर मुनिया जिद पर अड़ गई थी, ‘‘जब सब अपनेअपने गांव जा रहे हैं, तो हम भी यहां नहीं रहेंगे. मुझे तो गांव जाना है.’’

उस रात हरीराम जब मुनिया की जिद को न तोड़ सका, तो उस ने मुनिया को मारना शुरू कर दिया, लेकिन पिटने पर भी मुनिया ने जिद नहीं छोड़ी, तो हरीराम हार गया. उस की सांसें फूलने लगीं. उसे लगातार खांसी आनी शुरू हो गई. अपनी हार और कमजोरी को छिपाने के लिए उस ने कोने में पड़ी हुई शराब की बोतल निकाली.

बड़ेबड़े घूंट भरे, फिर बीड़ी का बंडल खोल कर एक बीड़ी सुलगाई और सामने घर का सामान समेटती मुनिया को गरियाता रहा, ‘‘करमजली, जब से शादी कर के लाया हूं, चैन से नहीं रहने दिया इस चुड़ैल ने…’’ बड़बड़ाते हुए वह न जाने कब बिना खाना खाए बिस्तर पर ही लुढ़क गया, पता ही नहीं चला. मुनिया ने एक अटैची और एक बक्से के अलावा बाकी सामान गठरी में बांधा और खाना खा कर बची रोटियां और अचार को छोटी पोटली में समेट कर खुद भी लेट गई.

मुनिया के दिमाग में पिछले 2 सालों का बीता समय और नामर्द से हरीराम के बेहूदे बरताव के साथसाथ फैक्टरी के मैनेजर का गंदा चेहरा भी घूम गया. उस का मन करता कि वह यहां से कहीं दूर भाग जाए, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई. बेहद नफरत करने लगी थी वह हरीराम से. उसे हरीराम के शराबी दोस्तों खासकर मैनेजर का अपने घर आनाजाना बिलकुल भी पसंद नहीं था, वह इस का विरोध करती तो भले ही हरीराम से पिटती, पर जब उस ने हार नहीं मानी तो हरीराम को ही समझौता करना पड़ा.

मुनिया इन 2 सालों में फैक्टरी मैनेजर के हावभाव और उसे घूरने के अंदाज से परिचित हो चुकी थी. उधर हरीराम जानता था कि जो सुखसुविधाएं उसे यहां मिलती हैं, वे गांव में कहां? फिर मैनेजर भी उस का कितना खयाल रखता है. मैनेजर का वह इसलिए भी एहसानमंद था कि शादी से कुछ समय पहले ही उन की उस फैक्टरी में काम करते हुए, सांसों द्वारा शरीर में जमने वाले रुई के रेशों ने उस के फेफड़ों को संक्रमित कर डाला था और जब उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी, तब इसी मैनेजर ने फैक्टरी मालिक से सिफारिश कर के उस का उचित इलाज कराया था, फिर ठीक होने के बाद उसे प्रोडक्शन से हटा कर पैकिंग महकमे में भेज दिया था.

उन्हीं दिनों फैक्टरी से छुट्टी ले कर हरीराम अपने गांव आया था, जहां आननफानन वह मुनिया से शादी कर के उसे अपने साथ फैक्टरी के कमरे में ले आया था. मुनिया की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी हरीराम से शादी करने की. 8वीं जमात पास कर के वह घर में बैठी थी. वह चाहती थी कि और पढ़े, लेकिन 8वीं से आगे की पढ़ाई के लिए दूर तहसील वाले इंटर स्कूल में दाखिला करा पाना उस के बापू श्रीधर के बस में नहीं था. भला दूसरों के खेतों को बंटाई पर जोतने वाला श्रीधर उसे आगे पढ़ाता भी तो कैसे?

उधर मां अपने दमे की बीमारी से परेशान रातरातभर खांसा करती. न खुद सोती, न किसी को सोने देती. 8वीं पास मुनिया उसे शादी लायक दिखाई देने लगी थी. वह अकसर श्रीधर से कह बैठती, ‘‘अरे मुनिया के बापू, अपनी जवान हो गई छोकरी को कब तक घर में बैठाए रखोगे… कोई लड़का ढूंढ़ो और हमारी सांस उखड़ने से पहले इस के हाथ पीले कर दो.’’ मुनिया के शरीर की उठान ही कुछ ऐसी थी कि वह अपनी उम्र से बड़ी दिखती थी.

आंखें खूब बड़ीबड़ी और उन में वह हमेशा काजल डाले रखती. गांव के माहौल में सरसों के तेल से सींचे काले बाल. हफ्ते में वह एक बार ही बालों में जम कर तेल लगाती, फिर उन्हें अगले दिन रीठे के पानी से धोती और जब वह काले घने लंबे बालों की  2 चोटियां बना कर आईने में अपना चेहरा देखती, तो खुद ही मुग्ध हो उठती. आईने के सामने खड़े हो कर अपनी देह को देखना उसे बहुत पसंद था. उसे लगता था कि कुछ आकर्षण सा है उस के शरीर में, पर मां को उस का यों आईने के सामने देर तक खड़े रहना बिलकुल पसंद नहीं था.

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2 चोटियां गूंथने के बाद मुनिया कुछ लटें अपनी दोनों हथेलियों की मदद से माथे पर गिराती और आंखों में मोटा सा काजल लगा कर झट आईने के सामने अपनी छवि को निहार कर हट जाती, फिर घर के कामों में जुट पड़ती. साफसफाई, चौकाबतरन, कपड़ों की धुलाई, खाना बनाना, सब उसी के जिम्मे तो था. मां तो बीमार ही रहती थी. उन्हीं दिनों जब हरीराम गांव आया हुआ था, तो किसी ने श्रीधर को बताया कि वह इस बार शादी कर के और दुलहन ले कर ही शहर जाएगा, तो उस ने कोशिश कर के मुनिया से हरीराम की शादी को अंजाम दे ही दिया.

मुनिया ने भरपूर विरोध किया, पर मां की कसम ने उसे मजबूर कर दिया. मुनिया की शादी के तकरीबन  4 महीने बाद ही मुनिया की मां चल बसी और श्रीधर भी ज्यादा दिन जी नहीं पाया.  मां के मरने की खबर तो हरीराम ने उसे दे दी थी, पर बहुत कहने पर भी उसे गांव नहीं ले कर गया. वही हरीराम मुनिया का हाथ पकड़े जब राहत केंद्र से बाहर आया तो सामने 8-10 बसें कतार में आ कर खड़ी हो गई थीं.

अब इन में से मध्य प्रदेश की ओर जाने वाली बस कौन सी है, यह हरीराम  को समझ में नहीं आ रहा था. उस ने गुस्से में मुनिया की चोटी को अपने दाएं हाथ में भर कर जोरों से खींचा, फिर चिल्लाया, ‘‘उस डंडा लिए खाकी वरदी वाले से पूछती क्यों नहीं? पूछ कौन सी बस हमारे प्रदेश की तरफ जाएगी…’’ अचानक चोटी के खिंचने के दर्द से मुनिया चीख उठी. मुनिया ने एक हाथ में अटैची पकड़ी हुई थी और दूसरे में बक्सा. हरीराम के बाएं कंधे पर हलकी गठरी थी और उसी हाथ में उस ने बालटी पकड़ी हुई थी. हरिया का दायां हाथ खाली था, जिस से वह चोटी खींच सका.

सभी घर लौटने वाले मजदूरों में अपनीअपनी बस पकड़ने की आपाधापी मची हुई थी. ज्यादातर बसों के गेट पर अंदर घुस कर बैठने की जैसे लड़ाई चल रही थी. लाउडस्पीकर पर क्या बोला  जा रहा है, किसी की समझ में नहीं आ रहा था. चारों ओर अफरातफरी का माहौल था. ड्यूटी पर लगे लोग जैसे अंधेबहरे थे. किसी के भी सवाल का जवाब देने से कतराने की कोशिश करते हुए वे उन्हें अगली खिड़की पर भेज देते. परेशान हरीराम ने इस बार मुनिया की गरदन अपने चंगुल में ले कर हलके से दबाते हुए कहा, ‘‘पूछती क्यों नहीं? बस भर जाएगी तब पूछेगी क्या.’’ लेकिन इस बार मुनिया ने अटैची और बक्सा जोरों से जमीन पर पटके और खाली हुए अपने दाएं हाथ से हरीराम के हाथ को इतनी जोर से झटक कर दूर हटाया कि वह गिरतेगिरते बचा.

उस की खांसी फिर उखड़ गई. उस ने लगातार खांसना शुरू कर दिया. उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए मुनिया चिल्लाई, ‘‘तुम्हारे मुंह में जबान नहीं है क्या? हम नहीं पूछेंगे, तुम्हीं पूछो…’’ मुनिया इतनी जोर से चीखी थी कि आसपास के सभी इधर से उधर भटकते लोग उस की तरफ घूम पड़े और वह वरदी वाला उन्हीं के पास आ कर अपना डंडा जमीन पर पटकते हुए बोला, ‘‘क्या बात है? क्यों झगड़ रहे हो? पता है, यहां तेज चिल्लाना मना है. अंदर बंद कर दिए जाओगे.’’ ‘‘अरे भई, समझ में नहीं आ रहा है कि मध्य प्रदेश की तरफ कौन सी बस जाएगी,’’ हरीराम ने ही अपनी खांसी को काबू में करते हुए पूछा.

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सिपाही तो खुद ही अनजान था. उसे क्या पता कि कौन सी बस किधर जाएगी. उसे तो एक कमजोर से डंडे के सहारे भीड़ को काबू करने की जिम्मेदारी मिली थी और वह खुद ही नहीं समझ पा रहा था कि इस जिम्मेदारी को कैसे निभाए. तभी उसी भीड़ में से कोई बोल पड़ा, ‘‘वह जो लाल रंग वाली, नीली पट्टी की बस देख रहे हो, वह जा रही है तुम्हारे प्रदेश की तरफ.’’ मुनिया और हरीराम ने अपनेअपने हाथों का सामान उठाया और उधर लपक गए, जिधर वह बस खड़ी थी. उस खटारा सी दिखने वाली सरकारी बस में कई मजदूर घुस कर बैठ चुके थे. अंदर ज्यादातर सीटों की रैक्सीन उखड़ी पड़ी थी. फोम नदारद थी. एकाध सीटों के नीचे लगी छतों के नटबोल्ट ढीले पड़े थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

ऐसे ही सही: भाग 2- क्यों संगीता को सपना जैसा देखना चाहता था

उन की कमर से नीचे का हिस्सा निष्क्रिय हो चुका था. पेशाब की थैली लगी हुई थी. उन की पत्नी सपना भी ऐसी स्थिति में नहीं थीं कि उन से कोई बात की जा सके. जिसे सारी उम्र पति की ऐसी हालत का सामना करना हो, भीतरबाहर के सारे काम उन्हें स्वयं करने हों, इन सब से बदतर पति को खींच कर उठाना, मलमूत्र साफ करना, शेव और ब्रश के लिए सबकुछ बिस्तर पर ही देना और गंदगी को साफ करना हो, उस की हालत क्या होगी.

मैं उन के पास जा कर बैठ गया. चेहरे पर गहन उदासी छाई हुई थी. मुझे देखते हुए बोले, ‘‘आप यदि उस दिन न होते तो शायद मेरी जिंदगी भी बदतर हालत में होती.’’

‘‘नहीं सर. मैं तो सामने से गुजर रहा था…और मैं ने जो कुछ भी किया बस, मानवता के नाते किया है.’’

‘‘ऐसी जिंदगी भी किस काम की जो ताउम्र मोहताज बन कर काटनी पडे़. मैं तो अब किसी काम का नहीं रहा,’’ कहतेकहते वह रोने लगे तो उन की पत्नी आ कर उन के पास बैठ गईं.

माहौल को हलका करने के लिए मैं ने पूछा, ‘‘आप लोगों के लिए चायनाश्ता आदि ला दूं क्या?’’

सपना पति की तरफ देख कर बोलीं, ‘‘जब इन्होंने खाना नहीं खाया तो मैं कैसे मुंह लगा सकती हूं.’’

‘‘ये दकियानूसी बातें छोड़ो. जो होना था वह हो चुका. पी लो. सुबह से कुछ खाया भी तो नहीं,’’ वह बोले.

‘‘तो फिर मैं ला देता हूं,’’ कह कर मैं चला गया. उन के अलावा 1-2 और भी व्यक्ति वहां बैठे थे. थोड़ी देर में जब मैं वहां चाय ले कर पहुंचा तो वे सब धीरेधीरे सुबक रहे थे.

मैं ने थर्मस से सब के लिए चाय डाली और वितरित की. मैं ने शर्माजी को चाय देते हुए कहा, ‘‘आप को कोई परहेज तो बताया होगा.’’

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‘‘कुछ भी नहीं. आधे शरीर के अलावा सबकुछ ठीक है. बस, इतना हलका खाना है कि पेट साफ रहे,’’ फिर पत्नी की तरफ देख कर कहने लगे, ‘‘इन को चाय के पैसे तो दे दो…पहले भी न जाने कितना…’’

‘‘क्यों शर्मिंदा करते हैं, सर. यह कोई इतनी बड़ी रकम तो है नहीं.’’

बातोंबातों में मैं ने अपना संक्षिप्त परिचय दिया और उन्होंने अपना. पता चला कि वह एक प्रतिष्ठित सरकारी संस्थान में ऊंचे ओहदे पर हैं. कुछ माह पहले ही उन का तबादला इस शहर में हुआ था. मूल रूप से वह लखनऊ के रहने वाले हैं.

‘‘अब क्या करेंगे आप? वापस घर जाएंगे?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं वापस जा कर किसी के तरस का पात्र नहीं बनना चाहता. रिश्तेदारनातेदार और दोस्तों के पास रहने से तो अच्छा है कि यहीं पूरी जिंदगी काट दूं. नियमानुसार मैं विकलांग घोषित कर दिया जाऊंगा और सरकार मुझे नौकरी से रिटायर कर देगी.’’

‘‘पर पेंशन तो मिलेगी न?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह तो मिलेगी ही. मैं तो सपना से भी कह रहा था कि अब उसे कोई नौकरी कर लेनी चाहिए.’’

‘‘आप को यों अकेला छोड़ कर,’’ वह रोंआसी सी हो कर बोलीं, ‘‘जो ठीक से करवट भी नहीं बदल सकता है. हमेशा ही जिसे सहारे की जरूरत हो.’’

‘‘तो क्या तुम सारी उम्र मेरे साथ गांधारी की तरह पास बैठेबैठे गुजार दोगी. यहां रहोगी तो मुझे लाचार देखतेदेखते परेशान होगी. कहीं काम पर जाने लगोगी तो मन बहल जाएगा,’’ कह कर वह मेरी तरफ देखने लगे.

मैं वहां से जाने को हुआ तो शर्माजी बोले, ‘‘अच्छा, आते रहिएगा. मेरा मन भी बहल जाएगा.’’

दिन बीतते गए. इसी बीच मेरे संबंध अपनी पत्नी संगीता के साथ बद से बदतर होते चले गए. मैं लाख कोशिश करता कि उस से कोई बात न करूं पर उसे तो जैसे मेरी हर बात पर एतराज था. उस की मां की दखलंदाजी ने उसे और भी निर्भीक और बेबाक बना दिया था. मैं इतना सामर्थ्यवान भी नहीं था कि उस की हर इच्छा पूरी कर सकूं. यह मेरा एक ऐसा दर्द था जो किसी से बांटा भी नहीं जा सकता था.

एक दिन हमारे बडे़ साहब अपने परिवार के साथ छुट्टियां मनाने मलयेशिया जाना चाहते थे. उन्होंने मुझे बुला कर पासपोर्ट बनवाने का काम सौंप दिया. मैं ने एम.जी. रोड पर एक एजेंट से बात की, जो ऐसे काम करवाता था. उस एजेंट ने बताया कि यदि मैं किसी राजपत्रित अधिकारी से फार्म साइन करवा दूं तो यह पासपोर्ट जल्दी बन सकता है. अचानक मुझे शर्माजी का ध्यान आया और मैं सारे फार्म ले कर उन के घर गया और अपनी समस्या रखी.

‘‘मैं तो अब रिटायर हो चुका हूं. इसलिए फार्म पर साइन नहीं कर सकता,’’ उन्होंने अपनी मजबूरी जतला दी.

‘‘सर, आप किसी को तो जानते होंगे. शायद आप का कोई कुलीग या…’’ तब तक सपनाजी भीतर से आ गईं और कहने लगीं, ‘‘मैं कुछ दिनों से आप को बहुत याद कर रही थी. मेरे पास आप का कोई नंबर तो था नहीं. दरअसल, इन की गाड़ी तो पूरी तरह से खराब हो चुकी है. यदि वह ठीक हो सके तो मैं भी गाड़ी चलाना सीख लूं. आखिर, अब सब काम तो मुझे ही करने पडे़ंगे. यदि आप किसी मैकेनिक से कह कर इन की गाड़ी चलाने लायक बनवा सकें तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

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‘‘क्या आप के पास गाड़ी के इंश्योरेंस पेपर हैं?’’ मैं ने पूछा तो उन्होंने सारे कागज मेरे सामने रख दिए. मैं ने एकएक कर के सब को ध्यान से देखा फिर कहा, ‘‘मैडम, इस गाड़ी का तो आप को क्लेम भी मिल सकता है. मैं आप को कुछ और फार्म दे रहा हूं. शर्माजी से इन पर हस्ताक्षर करवा दीजिए, तब तक मैं गाड़ी को किसी वर्कशाप में ले जाने का बंदोबस्त करता हूं.’’

इस दौरान शर्माजी पासपोर्ट के फार्म को ध्यान से देखते रहे. मेरी ओर देख कर वह बोले, ‘‘वैसे यह फार्म अधूरा भरा हुआ है. पिछले पेज पर एक साइन बाकी है और इस के साथ पते का प्रूफ भी नहीं. किस ने भरा है यह फार्म?’’

‘‘सर, एक ट्रेवल एजेंट से भरवाया है. वह इन कामों में माहिर है.’’

‘‘कोई फीस भी दी है?’’ उन्होंने फार्म पर नजर डालते हुए पूछा.

‘‘500 रुपए और इसे भेजेगा भी वही,’’ मैं ने कहा.

‘‘500 रुपए?’’ वह आश्चर्य से बोले, ‘‘आप लोग पढ़ेलिखे हो कर भी एजेंटों के चक्कर में फंस जाते हैं. इस के तो केवल 50 रुपए स्पीडपोस्ट से खर्च होंगे. आप को क्या लगता है वह पासपोर्ट आफिस जा कर कुछ करेगा? इस से तो मुझे 300 रुपए दो मैं दिन में कई फार्म भर दूं.’’

मेरे दिमाग में यह आइडिया घर कर गया. यदि इस प्रकार के फार्म शर्माजी भर सकें तो उन की अतिरिक्त आय के साथसाथ व्यस्त रहने का बहाना भी मिल जाएगा. आज कई ऐसे महत्त्वपूर्ण काम हैं जो इन फार्मों पर ही टिके होते हैं. नए कनेक्शन, बैंकों से लोन, नए खाते खुलवाना, प्रार्थनापत्र, टेलीफोन और मोबाइल आदि के प्रार्थनापत्र यदि पूरे और प्रभावशाली ढंग से लिखे हों तो कई काम बन सकते हैं. मुझे खामोश और चिंतामग्न देख कर वह बोले, ‘‘अच्छा, आप परेशान मत होइए…मैं अपने एक कलीग मदन नागपाल को फोन कर देता हूं. आप का काम हो जाएगा. अब तो आप खुश हैं न.’’

मैं ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं सोच रहा था कि यदि आप फार्म भरने का काम कर सकें तो…’’ इतना कह कर मैं ने अपने मन की बात उन्हें समझाई. सपनाजी भी पास बैठी हुई थीं. वह उछल कर बोलीं, ‘‘यह तो काफी ठीक रहेगा. इन का दिल भी लगा रहेगा और अतिरिक्त आय के स्रोत भी.’’

इतना सुनना था कि शर्माजी अपनी पत्नी पर फट पडे़, ‘‘तो क्या मैं इन कामों के लिए ही रह गया हूं. एक अपाहिज व्यक्ति से तुम लोग यह काम कराओगे.’’ मैं एकदम सहम गया. पता नहीं कब कौन सी बात शर्माजी को चुभ जाए.

‘‘आप अपनेआप को अपाहिज क्यों समझ रहे हैं. ये ठीक ही तो कह रहे हैं. आप ही तो कहते थे कि घर बैठा परेशान हो जाता हूं. जब आप स्वयं को व्यस्त रखेंगे तो सबकुछ ठीक हो जाएगा,’’ फिर मेरी तरफ देखते हुए सपनाजी बोलीं, ‘‘आप इन के लिए काम ढूंढि़ए. एक पढ़ेलिखे राजपत्रित अधिकारी के विचारों में और कलम में दम तो होता ही है.’’

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सपनाजी जैसे ही खामोश हुईं, मैं वहां से उठ गया. मैं तो वहां से उठने का बहाना ढूंढ़ ही रहा था. वह मुझे गेट तक छोड़ने आईं.

हमारे बडे़ साहब के परिवार के पासपोर्ट बन कर आ गए. वह मेरे इस काम से बहुत खुश हुए. उन के बच्चों की छुट्टियां नजदीक आ रही थीं. उन्होंने मुझे वह पासपोर्ट दे कर वीजा लगवाने के लिए कहा. मैं इस बारे में सिर्फ इतना जानता था कि वीजा लगवाने के लिए संबंधित दूतावास में व्यक्तिगत रूप से जाना पड़ता है. उन को तो मीटिंग से फुरसत नहीं थी इसलिए अपनी कार दे कर पत्नी और बच्चों को ले जाने को कहा.

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Top 10 Best Hair Care Tips In Hindi: बालों की देखभाल के Top 10 टिप्स हिंदी में

Hair Care Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Hair Care Tips in Hindi 2021. इन हेयर केयर टिप्स के साथ आप फेस्टिवल में अपने लुक को चार चांद लगा सकती हैं और बेजान और खूबसूरत बालों को एक नई पहचान दे सकती हैं. इन Hair Care Tips से आप घर बैठे अपना प्रौफेशनल और होममेड टिप्स से हेयर केयर कैसे करें. इस बारे में जानेंगे. अगर आपको भी है फेस्टिव में लंबे खूबसूरत बालों के साथ नए-नए हेयरस्टाइल ट्राय करने हैं तो बालों को ऐसे करें हेयर केयर. अगर लोगों की तारीफ पाना चाहते हैं तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Hair Care Tips in Hindi.

1. रोशेल छाबड़ा से जानें हेयर केयर के बारें में

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किसी भी मौसम में हेयर और स्किन केयर एक गंभीर समस्या है, क्योंकि सही केयर से ही आप की खूबसूरती बनी रहती है, जो आज ज़माने की मांग है. इस दिशा में हायजिन रिसर्च इंस्टिट्यूट’ की ‘प्रोफेशनल हेड (स्ट्रीक्स प्रोफेशनल) रोशेल छाबड़ा ने बहुत अच्छा काम किया है. उन्होंने ब्यूटी, सैलून और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता को लोगों तक पहुँचाने में सबसे आगे रही है. उन्होंने हर नई उत्पाद को वैज्ञानिक रूप से जांच कर उसे देश-विदेश में लॉन्ग टर्म मार्केटिंग की नीति को भी विकसित किया है.

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2. बॉलीवुड एक्ट्रेस रवीना टंडन से जानें हेयर केयर के सीक्रेट टिप्स

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बॉलीवुड एक्‍ट्रेस रवीना टंडन आए दिन इंस्‍टाग्राम पर स्‍किन या हेयर केयर से टिप्स बताती हैं, जिसे वह खुद भी इस्‍तेमाल करती हैं. हाल ही में, अभिनेत्री ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया, जहां उन्होंने बालों को मजबूत करने और बालों को झड़ने से रोकने की न सिर्फ बात की बल्‍कि होममेड हेयर मास्‍क के बारे में भी बताया. वीडियो में, रवीना टंडन ने बताया कि कैसे आंवला और दूध का उपयोग करके होममेड हेयर पैक बनाया जाता है.

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3. Monsoon Special: हेयर केयर है जरुरी

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मानसून में बालों की देखभाल करना एक चुनौती होती है. मौसम के साथ-साथ हेयर केयर रिजीम भी बदलता रहता है. मानसून में नमी की मात्रा हवा में बहुत होती है, जिससे केश चिपचिपे हो जाते है, क्योंकि अधिक गर्मी और नमी से बाल फ्रीजी हो जाते है, ऐसे में झड़ने लगते है. अभी सेमी लॉक डाउन में आधे से अधिक महिलाएं घर से काम कर रही है, ऐसे में हेयर केयर पर उनका ध्यान कम हो रहा है, जबकि उन्हें और अधिक ध्यान देना चाहिए, ताकि हेयर की सुन्दरता बनी रहे. इस बारें में बीब्लंट की फाउंडर एंड क्रिएटिव डायरेक्टर हेयर एक्सपर्ट अधूना भबानी कहती है कि मानसून में बालों की देखभाल अन्य किसी भी मौसम के मुकाबले अधिक करनी पड़ती है, जो मुश्किल नहीं. कुछ साधारण सुझाव से आप चिपचिपी और फ्रीजी हेयर से मानसून में बच सकते है, जो निम्न है,

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4. 8 टिप्स: सैलून जैसी हेयर केयर अब घर पर

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मौनसून के सीजन में बारिश में भीगना सभी को पसंद होता है. लेकिन यह बारिश हमारे बालों को डल, बेजान और रूखा भी बना देती है. ऐसे में हमें बालों की खास केयर की जरूरत होती है. हम सभी जानते हैं कि इस समय सैलून का रुख करना सही नहीं है. ऐसे में जब आप के बालों को केयर की जरूरत हो तब आप सैलून जैसा ट्रीटमैंट घर पर भी ले सकती हैं. इस से न सिर्फआप के बाल खूबसूरत बनेंगे, बल्कि आप सेफ भी रहेंगी और पैसों की भी बचत होगी. तो आइए जानते हैं कैसे करें घर पर बालों की केयर:

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5. डेली हेयर केयर: पाएं लंबे और खूबसूरत बाल

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बालों की समस्या ऐसी है जिससे आज लगभग हर इंसान जूझ रहा है. भागदौड़ भरी जिंदगी और प्रदूषण ने सेहत के साथ साथ हमारे बालों पर भी बुरा प्रभाव डाला है. ऐसे में जहां हम अपनी सेहत के लिए इतना कुछ करते हैं वहीं हमें अपने बालों की सेहत के लिए भी कुछ समय जरूर निकालना चाहिए. दिल्ली के अनवाइंड सैलून की हेयर एंड स्किन एक्सपर्ट नीति चोपड़ा बताती हैं कि अगर हम रुटीन में छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखें तो बालों की टूटने व झड़ने संबंधी कई समस्याओं को दूर कर सकते हैं. जैसे- हम सब अपने बाल धोते हैं लेकिन हर कोई अपने बालों की कंडिशनिंग नहीं करता जोकि बहुत जरूरी है. वहीं कुछ लोग बालों से शैंपू को भी ठीक तरीके से वॉश नहीं करते.

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6. इन 4 टिप्स से करें बालों की नैचुरल केयर

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खूबसूरती निखारने में खूबसूरत बालों का अहम रोल होता है. ऐसे में जरूरत है बालों की नैचुरल ब्यूटी को बरकरार रखने के लिए पौष्टिकता से भरपूर डाइट लेने के साथ-साथ नैचुरल चीजों के इस्तेमाल. तो जानते हैं कि आपके शैंपू में कौनकौन से इंग्रीडिएंट्स हों, जो आपके बालों की हैल्थ का ध्यान रखें.

1. आंवला दे बालों को स्ट्रैंथ

आंवला विटामिन सी का अच्छा स्रोत होने के साथ एंटीऔक्सीडैंट्स से?भरपूर होता है. जिससे न सिर्फ पाचनतंत्र, लिवर की हैल्थ दुरुस्त होती है बल्कि यह बालों की ग्रोथ व उनकी हैल्थ के लिए भी बहुत जरूरी माना जाता है क्योंकि आंवला में मौजूद फैटी एसिड्स फॉलिकल्स तक पहुंच कर बालों को सॉफ्ट, शाइनिंग व उन्हें वौल्यूम देने का काम करते हैं. साथ ही इसमें आयरन व कैरोटीन कंटैंट बालों की ग्रोथ के लिए लाभकारी माना जाता है. इससे बालों को स्ट्रैंथ मिलती है.

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7. खूबसूरत बालों के लिए दही से बनाएं हेयर मास्क

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बालों में दही का इस्तेमाल हमारी दादीनानी भी अपनी दादीनानी के समय से करती आई हैं. आमतौर पर इसे सिर से डैंड्रफ और खुजली को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इस के और भी अनेक फायदे हैं. दही विटामिन बी5 और डी से भरपूर होता है, इस में फैटी एसिड्स की भी अधिक मात्रा होती है जिस से यह बालों को स्मूथ और फ्रिज फ्री बनाता है. साथ ही, इस में जिंक, मैगनीशियम और पोटेशियम भी होता था. तो देर किस बात की, आइए जाने बालों में दही लगाने के कुछ तरीके.

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8. Monsoon Special: इन 6 टिप्स से करें बालों की केयर

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डर्मालिंक्स, गाजियाबाद की ट्राइकोलौजिस्ट डाक्टर विदूषी जैन का कहना है कि लगभग 90% महिलाओं में मौनसून के मौसम में बालों की समस्या 30 से 40% तक बढ़ जाती है. वैसे तो 100 बालों तक गिरना आम बात है, लेकिन मौनसून के मौसम में यह संख्या 250 तक पहुंच जाती है, जिस का मुख्य कारण मौसम में उमस के कारण स्कैल्प में पसीने का रिसना, रूसी और ऐसिडिक बारिश का पानी भी हो सकता है. बहुत ज्यादा नमी के अलावा इन दिनों फंगल इन्फैक्शन का खतरा सब से ज्यादा होता है. वैसे तो फंगल इन्फैक्शन जानलेवा नहीं होता है, लेकिन अगर उस का उपचार ठीक समय पर ढंग से न किया जाए तो गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है.

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9. 5 टिप्स: चंपी करें और पाएं हेल्दी हेयर

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आजकल लोग अपनी बौडी और अपने बालों की केयर की बजाय मेकअप का ख्याल रखते हैं, जिससे हमारी बौडी और बालों को नुकसान होता है. बाल हमारी ब्यूटी का हिस्सा है. शाइनी और मजबूत बालों के लिए लोग चंपी करना पसंद करते हैं. सिर दर्द हो या थकान चंपी बालों के लिए बेस्ट औप्शन माना जाता है, लेकिन इन सभी से हटकर भी चंपी के कुछ और फायदें हैं, जिसके बारे में आज हम आपको बताएंगें.

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10. DIY हेयर मास्क से बनाए बालों को खूबसूरत

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हम अकसर बालों को खूबसूरत दिखाने के लिए अलगअलग हेयर स्टाइल बनाते हैं, जिस के लिए हीटिंग मशीन और कैमिकल प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है. हीट और कैमिकल प्रौडक्ट के इस्तेमाल से बाल रूखे और बेजान दिखने लगते हैं. इसलिए बालों को हमेशा एक्सट्रा केयर की जरूरत होती है.

बालों को एक्सट्रा केयर देने के लिए आप DIY हेयर मास्क का इस्तेमाल कर सकतीं हैं. हेयर मास्क डैमेज्ड हेयर को ठीक करने में मदद करता है, बालों की चमक बरकरार रखता है. इस के इस्तेमाल से बाल हेल्दी भी नजर आने लगते हैं.

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Imlie बनेगी आदित्य के बच्चे की मां, मालिनी को लगेगा झटका

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ (Imlie)  फैंस के दिलों पर राज कर रहा है. दरअसल, मालिनी की प्रैग्नेंसी की न्यूज से इमली और आदित्य की जिंदगी में गलतफहमियां बढ़ गई हैं, जिसके चलते सीरियल की कहानी और भी दिलचस्प हो गई है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में इमली की एक खबर मालिनी और आदित्य को झटका देने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वापस घर लौटी इमली

 

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अब तक आपने देखा कि मालिनी (Malini) त्रिपाठी हाउस में रहने के लिए आती है, जिसके चलते वह इमली से अपनी प्रैग्नेंसी का नाटक करके सारा काम करवाती हैं. हालांकि इमली को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन वह इमली के खिलाफ चाल चलती रहती है. इसी बीच गुंडों के चंगुल से निकलकर इमली घर वापस लौट आती है, जिसे देखकर मालिनी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. वहीं इमली (Imlie) अकेले में मालिनी (Malini) से कहती है कि वह जानती है कि उसकी किडनैपिंग के पीछे किसका हाथ है, जिसे सुनकर वह हैरान रह जाती है.

 

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मां बनने वाली है इमली

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि इमली (Imlie) दोबारा कॉलेज जाने लगेगी. जहां वह कौम्पटिशन में हिस्सा लेने की तैयारी करेगी. इस दौरान उसे कई प्रौब्लम का सामना करना पड़ेगा. दूसरी तरफ आदित्य, इमली से माफी मांगने की कोशिश भी करता नजर आएगा. लेकिन मालिनी पूरी कोशिश करेगी कि इमली को उसकी जिंदगी से दूर कर पाए, जिसके चलते वह नई  चाल चलेगी. इसी बीच इमली भी मालिनी को झटका देगी और उससे कहेगी कि वह भी मां बनने वाली है, जिसे सुनकर मालिनी के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. वहीं इसी के चलते वह इमली को जान से मारने की कोशिश भी करती नजर आएगी.

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