Saving Tips In Hindi- ये हैं निवेश के बैस्ट औप्शन

अकसर लोग त्योहार के समय खरीदारी या नई शुरुआत को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन कई बार आर्थिक तंगी के कारण उन का सपना पूरा नहीं हो पाता. ऐसे में बैंक आप की जरूरतों का ध्यान रखते हुए कई ऐसे औफर्स पेश करते हैं जिन से आप छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीजों की खरीदारी आसानी से कर सकते हैं और सस्ती ईएमआई का लाभ उठा सकते हैं. हम यहां आप को ऐसी जानकारी दे रहे हैं जो निवेश करने में आप की मदद करेगी:

1. 10 फीसदी कैशबैक

त्योहार के मौके पर कई बैंकों ने शौपिंग पर 10% कैशबैक की पेशकश की है. कुछ बैंकों का कई औनलाइन शौपिंग वैबसाइट्स से टाईअप भी है. यह कैशबैक लिमिटेड प्रोडक्ट और फिक्स अमाउंट पर ही होता है. इसलिए शौपिंग करते समय लिमिट का जरूर ध्यान रखें तभी आप इस औफर का फायदा उठा पाएंगे.

ये भी पढ़ें- Travel Special: रंगीलो राजस्थान का दिल है जोधपुर

2. बिना पैसों के कीजिए शौपिंग

कुछ बैंक अपने ग्राहकों को त्योहार का तोहफा देते हुए बिना पैसों के खरीदारी करने का सुनहरा मौका देते हैं. इस औफर के अनुसार ग्राहक को शौपिंग करते वक्त कोई पैसा नहीं देना होता और अगले महीने से उस के डैबिट कार्ड से ईएमआई शुरू होती है, जिसे ग्राहक 6 से 18 महीने में आराम से चुका सकता है. तो हुआ न किफायती सौदा. धीरेधीरे यह पैसा ईएमआई के रूप में कट जाएगा और आप को पता भी नहीं चलेगा.

3. कार ले जाओ भुगतान अगले साल

कई बैंकों ने तो यह भी सुविधा दी है कि अगर आप को कार खरीदनी है तो कर्ज अभी ले लो और इस की ईएमआई अगले साल से चुकाना. वहीं महिलाओं के लिए ब्याज दर में 0.25-0.50 फीसदी तक अतिरिक्त छूट भी दी जा रही है.

4. 77 रुपए रोज पर मिल रही है बाइक

अगर आप कई सालों से बाइक लेने की सोच रहे हैं और अभी तक यह सपना पूरा नहीं हो पाया है तो यह स्कीम आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. इस के लिए आप को कोई डाउन पेमैंट नहीं करना होगा और न ही कोई प्रोसैसिंग फीस लगेगी. लोन मंजूर होते ही पैसे कुछ ही देर में आप के खाते में आ जाएंगे. वहीं इस स्कीम के तहत विशेष कंपनी की बाइक और स्कूटर पर क्व2 हजार तक की छूट मिलेगी.

5. क्रैडिट कार्ड से लाभ

कुछ बैंक ऐसे क्रैडिट कार्ड भी लौंच कर रहे हैं जिन की ईएमआई ब्याज दर काफी कम होगी और आप को 4.50 करोड़ रुपए का एअर ऐक्सिडैंट कवर भी मिलेगा. साथ ही शौपिंग पर भी भारी छूट मिलेगी.

इस के अलावा कुछ विशेष क्रैडिट कार्ड धारकों के लिए एक ऐसा कार्ड भी जारी किया गया है जिस से वे सभी तरह की शौपिंग और बिल पर भुगतान 30% की छूट का लाभ उठा सकेंगे. इस के लिए कुछ सालाना फी देनी होगी जिस का 50% वापस मिल जाएगा. साथ ही बैंक की तरफ से आप को ब्रैंडेड गिफ्ट्स भी मिलेंगे.

6. लोन की ब्याज दरों में कटौती

दीवाली पर ग्राहकों को बड़ा तोहफा देते हुए कई बैंकों ने रैपो रेट से लिंक्ड रिटेल लोन की ब्याज दरों में 0.25 फीसदी से ले कर 0.10 फीसदी तक की कटौती की है, जिस से होम लोन, औटो लोन सहित सभी रिटेल लोन सस्ते हो गए हैं. तो आप भी इस सुनहरे मौके का फायदा उठा सकते हैं.

7. यहां कर सकते हैं निवेश

ज्यादातर लोग त्योहार पर फुजूलखर्ची करते हैं. उन का मानना होता है कि दीवाली का मतलब जम कर पैसा खर्च करना. इस में वे कपड़े, इलैक्ट्रौनिक सामान, लेटैस्ट गैजेट्स और सोना खरीदने को प्राथमिकता देते हैं जबकि आप को अपने पैसे ऐसी जगह निवेश करने चाहिए जिस से आगे चल कर आप को लाभ मिल सके.

ये भी पढ़ें- Travel Special: मौनसून में परफेक्ट हैं ये 5 डेस्टिनेशन

यहां हम आप को कुछ ऐसे ही किफायती निवेश विकल्पों के बारे में बता रहे हैं.

लोन रिपे कर हलका करें बोझ: मान लीजिए आप की कंपनी ने आप को अच्छाखासा बोनस दिया है. इस अमाउंट से आप लोन रिपे कर सकते हैं जिस से पैसा चुकाने का प्रैशर कम हो जाएगा और आप टैंशन फ्री हो खुशीखुशी दीवाली मना सकेंगे. इसे समझदारी भरा निवेश भी कहा जा सकता है.

लंबी अवधि का करें निवेश: अगर काफी समय से लंबी अवधि के लिए निवेश करने का सोच रहे हैं लेकिन अभी तक कर नहीं पाए हैं तो इस सपने को पूरा करने का यह सब से अच्छा समय है. इस निवेश से आप के परिवार का आर्थिक भविष्य सुरक्षित रहेगा.

इमरजैंसी फंड: आज के समय में कब बुरा वक्त आ जाए कुछ कह नहीं सकते. ऐसे में बुरे हालात से निबटने के लिए हमें पहले से ही तैयारी कर लेनी चाहिए. इसलिए इस त्यौहार आप इमरजैंसी फंड में निवेश करें और अपने परिवार को आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करवाएं.

गोल्ड ईटीएफ में निवेश है समझदारी: ईटीएफ खरीद कर एक बेहतरीन निवेश कर सकते हैं. वैसे भी आज के समय में लोग फिजिकल सोना खरीदने के बजाय अन्य तरीकों से निवेश करना ज्यादा पसंद करते हैं. ऐसा कर आप अपनी परंपरा भी निभा पाएंगे और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत भी कर पाएंगे.

ये भी पढे़ं- Travel Special: बरसात में देखें बुंदेलखंड का सौंदर्य

Fitness Tips: प्रौफेशनल से जानें कैसे रखें फिटनेस का ख्याल

आज की इस तेज रफ्तार जिंदगी में एक महिला कई भूमिकाएं निभाती हैं, जैसे कि एक माता, एक पत्नी, एक देखभाल करने वाली महिला, एक बेटी, एक बहू या एक सहकर्मी की.  हाल ही में ऑमंड बोर्ड ऑफ कैलिफोर्निया ने नई दिल्ली में एक पैनल चर्चा का आयोजन किया जिस का विषय था ‘पारिवारिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में कामकाजी माताओं की दुविधा’. पैनल में प्रियंका चोपड़ा की मां, डॉ. मधु चोपड़ा, प्रबंधनिदेशक, स्टूडियोएस्थेटिक, फिटनेस एंड पिलेट्स एक्सपर्ट, माधुरी रुइया, जानीमानी आहार सलाहकार शीला कृष्णस्वामी ने भी भाग लिया. पेश है इस इवेंट के दौरान मधु चोपड़ा से की गई बातचीत के मुख्य अंश;

अपनी फिटनेस और खूबसूरती के लिए आप क्या करती हैं?

फिटनेस के लिए समय निकालना बहुत कठिन होता है. किसी खास जिम में जा कर वर्कआउट करना मेरे लिए संभव नहीं है. इसलिए मैं ने शुरू से ही ऐसा नियम रखा है कि सुबह उठते ही सब से पहले 5 मिनट के लिए ध्यान, उस के बाद अगले 10 मिनट वार्मअप और 2-4 सूर्य नमस्कार करती हूं. इस के बाद थोड़ी सी एरोबिक्स कर के तब बाहर निकलती हूं और काम में लग जाती हूँ. मुश्किल से 15 मिनट का समय लगता है जो मैं खुद हेल्थ पर इन्वेस्ट करती हूं. खुद के साथ बिठाये इस समय की बदौलत दिन भर बढ़िया से स्टिमुलेटेड रहती हूं. ब्रेन भी जाग जाता है. सो चाय पर निर्भर न रह कर मैं वर्कआउट पर ज्यादा ध्यान देती हूँ. यही नहीं रात में कुछ बादाम भिगा कर रखती हूँ. सुबह एक्ससाइज के बाद पहला काम होता है एक खजूर और 4- 5 बादाम खाना.

ये भी पढ़ें- Independence Day Special: बीमारियों से आज़ादी दिलवाने के लिए अपनाएं एक्सपर्ट के 5 टिप्स

बादाम खाने का सब से अच्छा समय और तरीका क्या है ?

बादाम सुबहसुबह ही ले लेना चाहिए. इस से पूरे दिन आप को एनर्जी मिलती है. आप पूरे दिन आराम से भागदौड़ कर सकती हैं. बेहतर है कि इसे आप ब्रेकफास्ट से पहले लें. यदि सुबह नहीं ले सके तो बैग में रखें और कभी भी खा ले. यह कंप्लीट पौष्टिक आहार है.

इसे यदि रात भर पानी में भिगो कर खाया जाए तो ज्यादा अच्छा है. भिगा कर खाने से इस में सॉफ्टनेस आ जाती है और छिलका भी आसानी से उतर जाता है. जिस से बच्चे और बूढ़े आसानी से इसे खा सकते हैं. इसे चबाना आसान हो जाता है और तासीर भी थोड़ी ठंडी हो जाती है. उम्रदराज शख्स हो या छोटा बच्चा, हर उम्र के लोग बादाम खा सकते हैं.

पिछले कुछ सालों में प्रियंका एक स्ट्रांग वुमन के रूप में उभरी हैं. आप इस का श्रेय किसे देंगी?

कहीं न कहीं बच्चे मां-बाप जैसे ही होते हैं. सो सब से पहले तो इस का श्रेय उस के जींस को जाता है. दूसरा स्ट्रांग पक्ष यह रहा कि मैं ने कभी उस की सेहत के साथ समझौता नहीं किया. हमेशा उस के खानपान और फिटनेस का ख़याल रखा.

रोज सुबह उसे भिगाये हुए बादाम खिलाती थी. यदि वह सुबह खाना भूल जाती तो भी उस के बैग में हमेशा बादाम रखा करती. बादाम और दुसरे सूखे मेवे एक ही तरह से खा कर वह बोर हो जाती तो कुछ नए एक्सपेरमेंट्स करती. कभी भून कर कभी खीर बना कर तो कभी मिल्क शेक के रूप में देती. फलसब्जी ,प्रोटीन ,विटामिन ,कैल्शियम  किसी चीज़ की कमी नहीं होने देती.

एक मां के रूप में आप की सब से बड़ी चिंता क्या रहती है ?

मेरी चिंता यही रहती है कि उस ने कुछ खाया या नहीं खाया. किसी ने खाना दिया या नहीं. जब भी हम फोन पर बात करते हैं तो हमारी बातचीत की शुरुआत भी इसी बात से होती है.

फिटनेस के लिए आप अपने मरीजों को क्या सलाह देती हैं ?

प्रौपर न्यूट्रिशन और वर्कआउट के साथसाथ साफ़ क्लीन सोच, क्लीन हैबिट्स और ईटिंग्स जरुरी है. इस के साथ प्लांट्स बेस्ड फूड भी सेहत के लिए जरूरी है. जिन्हें प्रोटीन की ज्यादा आवश्यकता है वे एनिमल फूड्स भी ले सकते हैं. मगर नॉनवेज हैवी हो जाए तो प्रौब्लम होती है. इसलिए आप बैलेंस बना कर रखे. साथ में हरीभरी सब्जियां भी खाएं वरना स्किन पोर्स खुल जाते हैं और एजिंग भी ज्यादा दिखने लगती है.

ये भी पढ़ें- गंभीर बीमारी के संकेत है फेशियल हेयर

एक कामकाजी मां को आप क्या सलाह देना चाहेंगी?

इन दिनों कामकाजी माताओं के कंधों पर बहुत सी जिम्मेदारियां हैं. पूरे भारत के अधिकांश परिवारों में माताएं ही प्राथमिक केयरगिवर होती हैं जिन्हें अपने परिवार के संपूर्ण स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना होता है. अपने पूरे परिवार की देखभाल करने के साथ ही वह दिन का लंबा समय काम में भी बिताती हैं. ऐसे में एक कामकाजी माता के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह अपने खुद के स्वास्थ्य, नींद एवं डाइट पर पूरा ध्यान दे और अपने लिए भी पर्याप्त समय निकाले.

छली: भाग 4- ससुराल से लौटी मंजरी के साथ अमित ने क्या किया छल

अमित निरूत्तरित था. उस रोज किसी तरह वह मंजरी के सवालों से बच कर निकल आया. घर में उस का मन विचलित था. मंजरी की मनोदशा देख वह अंदर ही अंदर भयभीत था. उसे सपने में भी भान नहीं था कि मंजरी शादी को ले कर इतना संजीदा है. वह तो अब तक इस रिश्ते को ले कर सहज था. मंजरी तनहा थी. उसे एक पुरुष साथी की जरूरत थी. उस की कमी उस ने पूरी की. इसी का नतीजा था, जो उस के फूल से मुरझाए चेहरे पर ताजगी आई. उस की वीरान जिंदगी में बहार की रंगत बिखरी, वरना अब तक उस ने बेहद उदास वक्त गुजारा. आज मंजरी की हालत ऐसी हो गई थी कि वह उस की गैरमौजूदगी की कल्पना से ही डर जाती. वह भरसक चाहती कि जितनी जल्दी उन दोनों की शादी हो जाए, ताकि असुरक्षित जिंदगी से छुटकारा मिल सके. एक अकेली स्त्री के लिए जीवन काटना इतना आसान नहीं होता. उस पर एक बेटी की मां. जिस की सुरक्षा उसे हर वक्त चिंतित किए रहती. पति का साया मिलेगा तो लोगों को तरहतरह की बातें बनाने का मौका नहीं मिलेगा.

2 दिन तक अमित उस के पास नहीं आया. मंजरी को लगा कि वह उस से नाराज है. जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उसे इस बात के लिए बेहद अफसोस हुआ कि क्यों बिना वजह अमित पर तोहमत लगाई. हो सकता है कि वह जो कह रहा है सही हो.

उस ने अमित को फोन लगा कर माफी मांगनी चाही. मगर, उस ने उठाया नहीं. बारबार स्विच औफ के संकेत मिल रहे थे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. तो क्या अमित उस से अपने अपमान का बदला ले रहा है? सोच कर वह सिहर गई. मन आशंकाओं से घिर गया. वह अपनेआप को दोषी मानने लगी.

बिना वजह अमित पर शक किया और इतना कुछ सुना दिया. मगर अगले ही पल यथार्थ के धरातल पर आई तो लगा जो कहा सही कहा. जिंदगी भावनाओं से नहीं चलती. इनसान को कड़े फैसले लेने पड़ते हैं. ऐसा कब तक चलेगा? क्या उस के पास इतना वक्त है. समय निकलता जा रहा है. कल शालिनी परिपक्व हो जाएगी, तब भी क्या इस रिश्ते को उसी रूप में लेगी जैसी लेती आई है. परिपक्वता आएगी तो निश्चय ही उसे यही लगेगा कि मैं चरित्रहीन हूं. फिर तो मैं अपनी बेटी की नजरों से भी गिर जाऊंगी.

मंजरी ने कई बार फोन लगाने की कोशिश की, मगर हर बार उसे नाकामी हाथ लगी. उस की आकुलता बढ़ती ही जा रही थी. रातों को नींद नहीं आती. कम से कम फोन से हाय, हैलो तो कर सकता था. क्या इतना कहने की भी उस के पास फुरसत नहीं? ऐसे तो हर रोज किसी न किसी बहाने उस से मिलने आ जाता था. अब कौन सी व्यस्तता आ गई?

ये भी पढ़ें- Family Story In Hindi: उन्मुक्त- कैसा था प्रौफेसर सोहनलाल का बुढ़ापे का जीवन

काफी सोचविचार कर उस ने उस के क्वार्टर पर जाने का फैसला लिया. 3 साल में वह पहली बार उस के क्वार्टर जाएगी. न अमित ने कहा, न ही उस ने कभी जाने का दबाव डाला.

क्वार्टर पर ताला लगा हुआ था. पड़ोस की महिला से पूछा तो बताया कि वह अपने घर मुंबई गए हैं.

“क्यों…?” के सवाल पर वह बोली, ‘‘आप को पता नहीं कि उन की पत्नी की तबीयत एकाएक खराब हो गई है,’’ सन्न रह गई मंजरी यह सुन कर. एक चरित्रहीन पत्नी के लिए आज भी इतना लगाव? जो मुझ से बिना बताए चला गया. यह छल नहीं है तो क्या है?

जब तक वह मेरे पल्लू से बंधा था, सिवाय उस की बुराई के उसे कुछ नहीं सूझता था और आज एकाएक उस की बीमारी की खबर सुनते ही मुंबई भाग गया.

सोच कर मंजरी से न रोते बन रहा था और न ही हंसते. किसी तरह भारी कदमों से चल कर वह अपने घर आई. आते ही वह बिस्तर पर पड़ गई. रहरह कर उस के सामने अमित का चेहरा आ जाता. उस ने उसे पहचानने में कितनी बड़ी भूल की? वह अमित से ज्यादा खुद को कुसूरवार मानने लगी. क्या जरूरत थी अमित पर इतना भरोसा करने की? अमित से उस की जानपहचान कितने दिनों की थी? मात्र एकाध हफ्ते की. इतने कम समय में किसी के मूल चरित्र को समझ पाना संभव है? जाहिर है नहीं. तिस पर वह भावनाओं पर नियंत्रण न रख सकी. अमित पर भरोसा कर के उसे सबकुछ सौंप दिया. उस का मन कचोटने लगा. क्या वह कभी अपनेआप को माफ कर पाएगी? एकाध बार उस की अबोध बेटी ने उसे अमित को अपनी बांहों में भरते हुए देखा भी था. जिस के लिए उसे आत्मग्लानि भी हुई. मगर बाद में यह सोच कर खुद को मना लिया कि कल को अमित उस का पति हो जाएगा तो सबकुछ ठीक हो जाएगा. अब कौन सा मुंह ले कर अपनी बेटी के सामने जाएगी? जो मां खुद को रास्ता नहीं दिखा सकी, वह भटकती हुई बेटी को क्या दिखाएगी?

हो सकता है कि बाद में वह यह भी कह सकती है कि तुम अपना देखो, तुम ने क्या किया था. दुश्चिंताओं में डूबी थी मंजरी कि तभी मोबाइल की घंटी बजी. फोन अमित ने किया था. यह आग में घी से कम नहीं था मंजरी के लिए.

ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: नींद- मनोज का रति से क्या था रिश्ता

‘‘फोन क्यों किया?’’

‘‘तुम्हारा मिस काल आया था?’’

‘‘पत्नी कैसी है?’’ मंजरी ने तंज कसा.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’

‘‘बनने की कोशिश मत करो. मुझे सब पता चल चुका है.’’

‘‘मैं ने तुम्हें इसलिए फोन किया है कि मेरा ट्रांसफर हो चुका है. और हां, यह सच है कि मेरी अपनी पत्नी के साथ तलाक का मुकदमा चल रहा है, मगर मेरी भरसक कोशिश यही है कि सबकुछ सामान्य हो जाए. कोई अपने बसेबसाए घर को तबाह होते नहीं देख सकता. मेरा एक बड़ा बेटा है. अब क्या मैं उसे खोना चाहूंगा?’’ जैसे ही वह फोन रखने जा रहा था, मंजरी ने रोका, “मेरी भी सुनते जाओ. यह मत समझना कि मुझ से छल कर तुम चैन से जी लोगे. तुम ने दोदो जिंदगियां बरबाद की हैं. एक मेरी, दूसरी मेरी बेटी की. पर, याद रखना कि मैं कमजोर नहीं हूं. मैं अपनी पहचान के साथ जीऊंगी. नहीं जरूरत है मुझे तुम जैसे कायर जीवनसाथी की. अच्छा हुआ जो तुम ने पहले ही अपनी असलियत बता दी, वरना मैं अपनेआप को कभी माफ न कर पाती,’’ कहतेकहते मंजरी की आंखें छलछला आईं.

अमित ने फोन काट दिया. तभी मंजरी की नजर सामने खड़ी शालिनी पर गई. ऐसा लगा, वह दोनों की बातें सुन रही थी. शालिनी स्कूल से कब आई? अभी इसी उधेड़बुन में थी कि वह अपनी मां के करीब आई. उस के आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मां, तुम रोओ मत. ऐसे गंदे आदमी की मुझे भी जरूरत नहीं.’’

इतनी समझदारी की बात करने वाली 11 वर्षीय बेटी को उस ने गोद में भर लिया और फूटफूट कर रोने लगी.

ये भी पढ़ें- Romantic Story In Hindi: सबसे हसीन वह

छली: भाग 3- ससुराल से लौटी मंजरी के साथ अमित ने क्या किया छल

अब अमित को जब इच्छा होती, मंजरी के पास चला आता. उस की बच्ची के लिए वह परिवार का सदस्य हो गया था. वैसे भी वह अबोध थी. अमित के लिए मंजरी का घर अनजाना नहीं रहा. जब भी वह आता, मंजरी और उस की बच्ची की जरूरतों के हिसाब से घरगृहस्थी का सामान खरीदते हुए आता.

मंजरी मना करती तो कहता, ’’क्या मैं तुम्हारे लिए गैर हूं?’’

इस के आगे मंजरी को कोई जवाब नहीं सूझता.

अमित शालिनी के साथ खूब मस्ती करता. यह देख कर मंजरी आह्लादित थी. मंजरी को पूरा विश्वास था कि अमित से शादी हो जाएगी, तो शालिनी को उसे पिता के रूप में अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. यही तो सब से बड़ी समस्या थी, जिस की वजह से वह शादी से कतराती थी. पिता के न रहने पर शालिनी कितने सवाल करती थी.

मंजरी को समझ में नहीं आता कि कैसे उसे रास्ते पर लाए. ऐसे में अमित का आना मांबेटी के लिए किसी वरदान से कम नहीं था.

आहिस्ताआहिस्ता एक साल गुजर गया. दोनों के संबंध पतिपत्नी की तरह बन गए थे. एक रोज फ्लैट की एक पड़ोसन ने अमित के बारे में मंजरी से सवाल किया, जिसे सुन कर उसे अच्छा न लगा.

उस रात जब वे दोनों हमबिस्तर थे, तब मंजरी ने इस घटना की चर्चा की.

‘‘तुम बेकार लोगों की बातों पर गौर करती हो? जैसे ही तलाक मिलेगा, मैं तुम से शादी कर के इन लोगों के मुंह पर तमाचा मार दूंगा.’’

ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: देवकन्या – राधिका मैडम का क्या था प्लान

मंजरी को तत्काल राहत मिली, मगर मन में उठने वाली सामाजिक रुसवाइयों को ले कर उस की बेचैनी कम नहीं हुई. वह जल्द से जल्द शादी कर के इस रुसवाई से मुक्ति चाहती थी.

देखते ही देखते 3 साल गुजर गए. इस बीच अमित जब कभी मुंबई अपनी पत्नी के पास जाता, तो उस का एक ही जवाब होता, ’’तलाक के सिलसिले में जा रहा हूं. तारीख पड़ी हैैैे.’’

एक दिन मंजरी से रहा न गया. वह तल्ख लहजे में बोली, ‘‘वह आखिर चाहती क्या है?’’

‘‘उस ने 30 लाख रुपयों की डिमांड की है. साथ में हर माह 50 हजार घरखर्च. कहां से इतना रुपया ला कर दूं?’’ अमित झल्लाया. उस के गरम तेवर देख मंजरी ने खुद को संयत किया.

‘‘तुम्हें इतना देने में दिक्कत क्यों हो रही है? अगर तुम नहीं दे सकते, तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं. अगर वह तुम्हारी तनख्वाह का आधा ले भी लेती है तो दे कर मुक्ति पाओ. मेै खुद सरकारी नौकरी में हूं. आराम से रह लेंगे.’’

मंजरी को लगा कि इसे सुन कर अमित का सारा तनाव खत्म हो जाएगा. मगर, ऐसा हुआ नहीं.

‘‘जैसा तुम समझती हो वैसा कुछ नहीं है. वह एक नबंर की धूर्त है. आज 30 मांगी है, कल 40 मांगेगी. इसलिए सोचता हूं कि कोर्ट जो फैसला लेगी वही ठीक रहेगा,’’अमित ने कहा.

‘‘भले ही सारी जिंदगी निकल जाए,’’ मंजरी चिढ़ी.

अमित को मंजरी के बात करने का तरीका अच्छा न लगा. क्षणांश विचारप्रक्रिया से गुजरने के बाद मंजरी बोली, “तुम मुझे अपनी पत्नी का मोबाइल नंबर दो. मैं उस से बात करूंगी.’’

‘‘तुम ऐसा कभी नहीं करोगी,’’ अमित एकाएक घबरा गया. वह बोला, ’’यह हमारा आपसी मामला है.”

‘‘समय निकलता जा रहा है. शालिनी बड़ी होती जा रही है. पता नहीं आगे वह इस रिश्ते के लिए तैयार होगी भी या नहीं. अभी तुम से घुलीमिली है,’’ मंजरी हताश थी.

ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: सच्चाई सामने आती है पर देर से

“तुम व्यर्थ परेशान होती हो. सब ठीक हो जाएगा,’’ उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए अमित यों बोला मानो कुछ हुआ ही न हो. उस की निश्चिंतता मंजरी को बेचैन करती. उस की स्थिति परकटे परिंदे की तरह हो गई थी. न उड़ सकती थी और न दूर तक चल सकती थी. सभी दोनों के रिश्ते को जान चुके थे. यहां तक कि वह अपने पिता से भी इस रिश्ते का जिक्र कर चुकी थी. पिता की रजामंदी थी. वह बेटी की खुशी में ही अपनी खुशी देख रहे थे. जिंदगी का क्या ठिकाना, कल रहे या न रहे. इस से पहले वे मंजरी का घर बसा हुआ देखना चाहते थे.

एकाएक मंजरी ने अपना हाथ खींच लिया. अमित को अटपटा लगा. मंजरी भरे गले से बोली, ‘‘अमित, तुम्हें कुछ न कुछ फैसला लेना ही होगा.’’

अमित के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. कल तक वह सहज थी, मगर आज बेहद गंभीर और निर्णायक मूड में थी. अचानक ऐसा क्या हो गया? उस ने मंजरी को फिर से सामान्य स्थिति में लाने के लिए उसे बांहों में भर लिया.

‘‘डार्लिंग, इतना परेशान क्यों होती हो? अभी 3 साल ही तो गुजरे हैं. कुछ महीेने की बात है. वकील ने कहा है कि अब फैसला होने में देर नहीं होगी.’’

’’इस में नई बात क्या हैे,’’ उस की पकड़ से दूर होती हुई मंजरी बोली, ’’सालभर के लिए कहा था, अब 3 साल हो रहे हैं. तलाक में समस्या क्या आ रही है, उस का खुलासा भी नहीं करते. क्यों तुम मुझ से कुुछ छुपा रहे हो?’’

‘‘मैं कुछ छुपा नहीं रहा हूं,’’ अपनी कोशिश नाकाम होते देख अमित सोफे पर बैठ गया. मंजरी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे.

‘‘इस में टेसुए बहाने की क्या जरूरत है? हम ने जो किया आपसी सहमति से किया.’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘यही कि अगर तुम इस रिश्ते को आगे नहीं ले जाना चाहती तो मेरी तरफ से आजाद हो.’’

‘‘अमित,” मंजरी चीखी.

ये भी पढ़ें- गली आगे मुड़ती है : क्या विवाह के प्रति उन का नजरिया बदल सका

“3 साल पतिपत्नी की तरह रहे हम दोनों… और आज कह रहे हो कि मैं तुम्हें आजाद करता हूं. जिस्मानी संबंध बनाते हुए तुम ने मुझे क्या आश्वासन दिया था? मैं कोई वेश्या हूं, जो तुम से अपनी जिस्मानी जरूरतें पूरी करने के लिए जुड़ी.’’

‘‘हां, कह दिया था कि जैसे ही तलाक हो जाएगा, मैं तुम से शादी कर लूंगा,’’ अमित बोला, ’’मगर, तलाक हो तब ना.’’

‘‘कब तक होगा…?’’ मंजरी के इस सवाल का उस के पास कोई जवाब नहीं था. वह उसे संभालने की नीयत से बोला, ’’मंजरी, इतना गुस्सा मत हो. मैं तुम्हारी जिंदगी से जाने वाला नहीं. बस थोड़ा इंतजार करो. जैसे ही तलाक हो जाएगा, मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

‘‘तुम कभी नहीं करोगे?’’ मंजरी ने मानो उस के मन की बात पकड़ ली हो. वह आगे बोली,‘‘मुझे तुम दोहरे चरित्र के लगते हो? मुझे तो यह भी शक है कि तुम्हारा मुकदमा चल भी रहा है या नहीं.’’

आगे पढ़ें- 2 दिन तक अमित उस के पास…

छली: भाग 2- ससुराल से लौटी मंजरी के साथ अमित ने क्या किया छल

शालिनी 8 साल की हो चुकी थी. तभी मंजरी की जिंदगी में अमित ने आ कर हलचल पैदा कर दी.

अमित, जिसे वह लगभग भूल चुकी थी, एक मौल में खरीदारी करते हुए दिखा. वह काफी हैंडसम लग रहा था. दोनों का आमनासामना हुआ.

‘‘मंजरी,’’ वह मुसकराया.

‘पहचान लिया,’’ मंजरी हंसी.

‘‘क्यों नहीं पहचानूंगा. हम दोनों ने एकसाथ कैंप में 10 दिन जो गुजारे हैं. मुझे आज भी याद है, जब तुम ने अपने हाथों से मेरे लिए सैंडविच बनाया था,’’ अमित बोला.

‘‘जानते हो, मुझे तब सिवाय चाय बनाने के कुछ नहीं आता था. पता नहीं, कैसा बना था?’’ मंजरी का चेहरा बन गया.

‘‘बहुत अच्छा बना था,’’ उस ने आसपास नजरें घुमाईं.

’’तुम्हारे पति नहीं दिख रहे. यह प्यारी सी बेटी तुम्हारी है?” उस ने नजरें झुका कर उस बच्ची के गालों पर हाथ फेरा.

‘‘हां, मेरी ही बेटी है, शालिनी,’’ कह कर मंजरी का चेहरा कुछ पल के लिए उदास हो गया. अमित ने उस के चेहरे को पढ़ लिया.

‘‘चलो… पास के किसी रेस्टोरेंट में चलते हैं, वहीं बैठ कर बातें करेंगे?’’

अमित का यह प्रस्ताव उसे अच्छा लगा.

‘‘पति एक दुर्घटना में चल बसे. यही एकमात्र संतान है मेरी. इसे पालपोस कर एक अच्छा इनसान बनाना है.’’

‘‘दूसरी शादी का खयाल नहीं आया?”

‘‘आया था, मगर कोई मिले तब ना… अब तो मैं ने आस भी छोड़ दी है. नियति जहां ले जाएगी वही चली जाऊंगी,’’ मंजरी ने उसांस ली.

‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मंजरी निराशा से उबरी.

‘‘मैं एयर फोर्स में हूं. यहीं पोस्टिंग मिली है.’’

‘‘पत्नी, बच्चे?’’ मंजरी के इस सवाल पर उस के चेहरे पर फीकी मुसकान तिर गई.

“तलाक का केस चल रहा है.’’

शाम गहराने को थी. सो, बातचीत का सिलसिला यहीं खत्म कर दोनों अपनेअपने घर लोेैट आए.

ये भी पढ़ें- Romantic Story In Hindi: प्रेम का निजी स्वाद- महिमा की जिंदगी में क्यों थी प्यार की कमी

एक हफ्ते बाद अमित मंजरी से मिलने उस के घर आया. उसे देखते ही वह भावविह्वल हो गई. अमित उस का पहला प्यार था, जिस की चिंगारी वक्त की राख में कहीं दब गई थी. आज फिर से उभरने लगी थी. उस का जी किया कि अमित के गले लग कर खूब रोए. पर किस हक से? उस ने अपने जज्बात पर नियंत्रण रखा.

कौफी की चुसकियों के बीच अमित ने उस की निजी जिंदगी को कुरेदा. उस ने कुछ नहीं छुपाया. एकएक कर अपने अतीत के सारे पन्ने खोल कर रख दिए. अमित को उस से सहानुभूति थी. बातोंबातों में उस ने मंजरी से पूछा, ’’क्या अकेलापन काटने के लिए नहीं दौड़ता?’’

यह सुन कर वह मुसकराई. उस की मुसकराहट में एक गहरी वेदना का एहसास था. वह वेदना जो जीवनसाथी के न रहने पर एक अकेली स्त्री को झेलनी पड़ती है. तभी अमित के फोन की घंटी बजी. वह मोबाइल ले कर एक तरफ चला गया. लोैटा तो उस के चेहरे पर निराशा थी. मंजरी को जिज्ञासा हुई.

‘‘क्या बात है? बड़े परेशान लग रहे हो?’’ पहले तो उस ने नानुकुर किया. पर जब उसे लगा कि मंजरी कुछ ज्यादा ही पसेसिव हो रही है तो बोला, ‘‘मेरी पत्नी का फोन था.’’

मंजरी ने आगे कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा. हां, इतना जरूर था कि उस का दिल पहले की तरह सामान्य नहीं रहा. क्यों? यही तो मंजरी को समझना था. आखिर किस हक से वह अमित पर इतना भरोसा कर रही है? वह शादीशुदा आदमी है. उस का अपना परिवार है. क्या वह अपनी मर्यादा नहीं तोड़ रही? बहरहाल, इस समय यह सब सोचने का वक्त नहीं था. वह तो बस अमित के रूप में पिछला प्यार लौट आने की खुशी से लबरेज थी. वह इस पल को जी लेना चाहती थी. लंबे समय से पुरुष संसर्ग से वंचित मंजरी के लिए यह एक भावानुभूति पल था.

‘‘तुम कुछ परेशान से दिख रहे हो?” मंजरी ने पूछा.

‘‘मेरी जिंदगी भी तुम्हारी ही तरह विडंबनाओं से भरी हुई है,’’ अमित भरे मन से बोला.

‘‘मैं कुछ समझी नहीं,” मंजरी असमंजस में थी. अमित ने एकएक कर अपने अतीत के सारे पन्ने खोल कर रख दिए.

मंजरी को जान कर अच्छा न लगा. इतना होनहार, काबिल, हैंडसम पति की पत्नी इस तरह हो सकती है? कैसे उस का दिल किसी और के साथ गुलछर्रे उड़ाने को करता है? वह भी बिना तलाक के. अमित ऐसा शरीफ कि कभी अपनी पत्नी से जोरजबरदस्ती नहीं की. दूसरा मर्द होता तो एक मिनट में ऐसी निर्लज्ज पत्नी को ठीक कर देता. सोच कर मंजरी का मन तिक्त हो गया.

‘‘तुम ने तलाक की अर्जी दी?’’ मंजरी ने पूछा.

‘‘हां, पर क्या तलाक होना इतना आसान होता हेै?काफी रुपयों की डिमांड करती है, जो मेरे लिए संभव नहीं है.’’

‘‘तब क्या करोगे…?’’

‘‘यही सोचसोच कर परेशान रहता हूं. आएदिन फोन कर के मुझे ब्लैकमेल करती है. मैं ठहरा सरकारी मुलाजिम. जरा सी ऊंचनीच हो गई तो कहीं का नहीं रहूंगा.’’

‘‘रहती कहां है?’’

‘‘मेरे ही फ्लैट में. मेरा एक बेटा भी है. घरखर्च भेजता हूं सो अलग.’’

“बंद कर दो. अक्ल ठिकाने लग जाएगी,’’ मंजरी तैश में बोली.

‘‘ऐसे कैसे कर दूं. जब तक तलाक नहीं हो जाता, वह मेरी पत्नी है.’’

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: समय चक्र- अकेलेपन की पीड़ा क्यों झेल रहे थे बिल्लू भैया?

मंजरी सोचने लगी. कैसी औरत है, जो अपना गृहस्थ जीवन ठीक से नहीं रख सकती? उस के दिल में अमित के प्रति सहानुभूति और बढ़ गई. कहीं यह सहानुभूति प्रेम का प्रथम पायदान तो नहीं. कुछकुछ मंजरी को ऐसा ही लगा.

उस रोज अमित के जाने के बाद मंजरी की दिनचर्या में एक बदलाव आया. कल तक जो जिंदगी उस के लिए बोझ थी, आज एकाएक खूबसूरत लगने लगी. उस की ख्वाहिशों के पंख लग गए. वह अमित के साथ जिंदगी गुजारने के ख्वाब देखने लगी. जब भी वह शाम को खाली होती, अमित के साथ मोबाइल पर बैठ जाती. दोनों ही घंटोें बातें करते.

मंजरी का यह हाल था, मानो वह प्रेम का ककहरा सीख रही हो अमित से.

‘‘जब तलाक हो जाएगा, तब हम दोनों शादी कर लेंगे. तलाक जल्द से जल्द हो जाए तो अच्छा है. शालिनी भी तुम को पिता के रूप में देखने लगी है. उस रोज तुम्हारे साथ कितना घुलमिल गई थी. ऐसा लगा मानो सालों का रिश्ता हो?’’ मोबाइल पर यही सब बात होती रहती.

आगे पढ़ें- जब भी वह आता, मंजरी और…

ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी- विधवा रितुल की कैसे बदली जिंदगी

छली: भाग 1- ससुराल से लौटी मंजरी के साथ अमित ने क्या किया छल

मंजरी की अमित से मुलाकात एक एजूकेशनल कैंप में हुई थी, जो अंतर्विश्वविद्यालय की तरफ से लगाया गया था, जहां दोनों एकदूसरे के करीब आए. फिर हमेशा के लिए जुदा हो गए.

इस सीमित समय में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे, मगर दिल की बात दिल में ही रह गई. समय गुजरता गया. आहिस्ताआहिस्ता दोनों एकदूसरे को भूल गए.

मंजरी की जिंदगी में सुधीर आया. सुधीर के पिता बहुत बड़े अधिकारी थे. काफी संपन्न परिवार था, जबकि मंजरी का मीडिल क्लास परिवार उस के आगे कहीं नहीं टिकता था. इस के बाद भी दोनों का प्यार परवान चढ़ा. जिस की परिणति शादी पर जा कर खत्म हुई.

मामूली से क्वार्टर में रहने वाली मंजरी के लिए ससुराल किसी महल से कम नहीं था. नौकरचाकर, कार, रुतबा, सबकुछ उसे एकाएक मिल गया. अगर नहीं मिला तो वह सम्मान, जिस की वह हकदार थी.
सास उसे हमेशा हिकारत भरी नजरों से देखती थी. इस का बहुत बड़ा कारण था मंजरी का उस की अपेक्षा निम्न स्तर का होना. पढ़ाईलिखाई, रंगरूप, सब में वह बीस थी, तिस पर सास का रवैया उस के लिए भारी पड़ रहा था. वे उसे अपने रसोईघर तक में घुसने नहीं देती थीं.

आजिज आ कर मंजरी ने अपनी रसोई दूसरी जगह कर ली. इस के बावजूद उन के रवेेैए में कोई खास बदलाव नहीं आया.

एक दिन तंग आ कर मंजरी ने सुधीर से कहा, ’’मेरा यहां दम घुटता है. मम्मी मुझे किसी भी चीज में हाथ लगाने नहीं देतीं. जबतब ताने देती हैं कि मैं ने तुम्हें फांस लिया.’’

‘‘धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा,’’ सुधीर ने टाला.

ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: चोट- आखिर कब तक सहन करती वह जुल्म?

“कुछ नहीं ठीक होगा. 6 महीने हो गए. आज भी उन के तेवर जस के तस हैं. क्या तुम ने शादी उन की मरजी के खिलाफ की है?’’ सुन कर सुधीर को अटपटा लगा. जो चीज गुजर गई, उस के बारे में सवाल उठाने का क्या तुक? माना कि उन की मरजी के खिलाफ शादी की तो भी क्या अब तलाक ले लें.

सुधीर के पिता को इस शादी पर कोई एतराज नहीं था. मगर उस की मां इस रिश्ते के लिए तैयार न थी. सुधीर की जिद थी. सोे, बेमन से इस शादी में शरीक हुईं. सुधीर को भरोसा था कि एक दिन मां मंजरी के गुणों से प्रभावित हो कर उसे अपना लेंगी.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ मंजरी ने उस की तंद्रा तोड़ी.

‘‘आखिर तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘क्या हम अलग घर ले कर नहीं रह सकते?‘‘ जाहिर है, सुधीर को अच्छा नहीं लगा, मगर संयत रहा.

‘‘एक ही शहर में अलगअलग रहेंगे तो लोग क्या कहेंगे? मम्मी से नहीं निभ रही. मगर पापा, वे तो हमेशा मेरे साथ खड़े रहे. उन पर क्या बीतेगी, जब उन्हें पता चलेगा कि उन का बेटा उन्हें छोड़ कर दूसरी जगह रहने जा रहा है.’’

मंजरी पर सुधीर की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह आखिरकार अपने मैके में आ कर रहने लगी.

मैके आ कर उस ने एक स्कूल जौइन कर लिया. इस बीच सुधीर उस से मिलने आता रहा. जब भी वह आता, उसे उस के फैसले पर पुनः विचार करने का दबाव बनाता. मगर वह अपने फैसले पर अडिग रहती.

सुधीर को मंजरी की कमी हमेशा खलती. ऐसा ही हाल मंजरी का भी था. खुश थी तो उस की सास. अच्छा हुआ जो चली गई. इसी बहाने छुट्टी मिली.

सुधीर के पिता से सुधीर की मनोदशा छिपी न थी. उन्हें यह सब देख कर तकलीफ होती.

एक दिन सब खाने की मेज पर थे, तो सुधीर के पिता ने मंजरी का प्रसंग छेड़ा. सुनते ही मां बिफर गईं, ‘‘आप को उस के जाने का ज्यादा कष्ट है? ऐसा है तो आप ही उस के पास जा कर रहिए.’’ वह तुनकते हुए आगे बोली, ‘‘मैं सुधीर की दूसरी शादी करूंगी.’’

‘‘मूर्खतापूर्ण बातें मत करो. यह कोई गुड्डेगुड्डी का खेल नही,’’ सुधीर के पिता बिगड़े. दोनों में बहसबाजी शुरू हो गई. सुधीर से रहा न गया. वह बोला, ‘‘मम्मी, आप ने जरा सी समझदारी दिखाई होती तो मंजरी घर छोड़ कर नहीं जाती.’’

‘‘तुझे मंजरी की इतनी ही फिक्र है तो चला जा उस के पास,’’ वे रोंआसी हो गईं.

‘‘चला जाएगा. शादी की है तो निभानी पड़ेगी,’’ सुधीर के पिता बोले. मां उठ कर जाने लगी. उन्हें सुधीर के पिता की बात नागवार लगी.

अगले दिन सुधीर अपने पिता की बात मान कर मंजरी के साथ अलग रहने लगा. 5 साल गुजर गए. इस बीच वह एक बच्ची की मां बनी. बच्ची का नाम शालिनी रखा. बच्ची 3 साल की हो गई. तभी एक दुर्घटना घटी. सुधीर कार एक्सीडेंट में चल बसा. दोनों परिवारों पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा.

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: चमत्कार- क्या बड़ा भाई रतन करवा पाया मोहिनी की शादी?

एक दिन सुधीर के पिता से रहा न गया. वे सुधीर की मां से बोले, ‘‘हमें बेटे का सुख नहीं मिला. क्या बहूपोती का भी नहीं मिलेगा?’’ सुन कर वह सुबकने लगी. उसे अपने किए पर पछतावा था. दोनों की रजामंदी से सुधीर के पिता ने मंजरी को ससुराल में रखने का मन बनाया, जिसे मंजरी ने ठुकरा दिया. वह बोली, “जब पति ही नहीं रहा तो कैसा ससुराल?”

सुधीर की मां चिढ़ गई. उसे इस में मंजरी का अहंकार नजर आया.

मंजरी ने सरकारी स्कूल में आवेदन दिया. जल्द ही उसे नौकरी मिल गई. उस की पहली पोस्टिंग लखनऊ में हुई. स्कूल शहर से 10 किलोमीटर दूर एक गांव में था. उस ने अपना ठिकाना शहर में ही बनाया. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था. जिंदगी में कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें भुला पाना आसान नहीं होता.

जब भी वह अकेले होती अतीत में डूब जाती. अतीत एकएक कर चलचित्र की भांति उस की निगाहों के सामने घूमने लगता.

ऐसे ही भावुक पल में जब सुधीर की तसवीर आती, तो वह खुद पर नियंत्रण न कर पाती. आंख के दोनों कोर भीग जाते, जिसे जल्द ही वह पोंछ डालती. वह अपनी बच्ची के सामने खुद को कमजोर नहीं होने देना चाहती थी.

मंजरी के पिता गांव में खेतीबाड़ी करते थे. उन की नजर में एक दुहाजू लड़का था, जो सरकारी विभाग में क्लर्क था. मगर मंजरी ने उसे इनकार कर दिया. लडका कहीं से भी उस के लायक नहीं लगा. फिर कौन दूसरे के जनमे बच्चे को पालेगा? एक तरह से मंजरी ने शादी न करने का फैसला कर लिया.

आगे पढ़ें- अमित, जिसे वह लगभग भूल चुकी थी…

ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: कसूर किस का था

भाई का  बदला: भाग 1- क्या हुआ था रीता के साथ

रोशनलाल का बंगला रंगबिरंगी रोशनी से जगमगा रहा था. उन के घर में उन के जुड़वे बच्चों का जन्मोत्सव था. बंगले की बाउंड्री वाल के अंदर शामियाना लगा था जिस के मध्य में उन की पत्नी जानकी देवी सजीधजी दोनों बेटों को गोद में लिए बैठी थीं. उन की चारों तरफ गेस्ट्स कुरसियों पर बैठे थे. कुछ औरतें गीत गा रही थीं. गेट के बाहर हिजड़ों का झुंड था, मानो पटना शहर के सारे हिजड़े वहीँ जुट गए थे. उन में कुछ ढोल बजा रहे थे और कुछ तालियां. सभी मिल कर सोहर गा रहे थे- “ यशोदा के घर आज कन्हैया आ गए…”

रोशनलाल के किसी गेस्ट ने उन से कहा, “अरे यार, इन हिजड़ों को कुछ दे कर भगाओ.”

“भगाना क्यों? आज ख़ुशी का माहौल है, मैं देखता हूं.” रोशनलाल लाल ने कहा, फिर बाहर आ कर उन्होंने कहा, “अरे भाई लोग, कुछ फ़िल्मी धुन वाले सोहर गाओ.”

हिजड़ों ने गाना शुरू किया- “सज रही गली मेरी मां सुनहर गोटे में… अम्मा तेरे मुन्ने की गजब है बात, चंदा जैसा मुखड़ा किरण जैसे हाथ…“

किसी गेस्ट ने कहा, “जुड़वां बेटे हैं, एक और हो जाए.“

हिजड़ों ने दूसरा गीत गाया- “गोरेगोरे हाथों में मेहंदी रचा के, नैनों में कजरा डाल के,

चली जच्चा रानी जलवा पूजन को, छोटा सा घूंघट निकाल के…“

ये भी पढ़ें- अबोध- मां को देखते ही क्यों रोने लगी गौरा?

रोशनलाल ख़ुशी से झूम उठे और 500 रुपए के 2 नोट उन के लीडर को दिया. उस ने नोट लेने से इनकार किया और कहा, “लालाजी, जुड़वां लल्ला हुए हैं, इतने से नहीं चलेगा.“

रोशनलाल ने 2,000 रुपए का एक नोट उसे देते हुए कहा, “अच्छा भाई, लो आपस में बांट लेना. अब तो खुश.“

उस ने ख़ुशीख़ुशी नोट लिया और वे सभी दुआएं दे कर चले गए.

रोशनलाल को पैसे की कमी न थी. अच्छाख़ासा बिजनैस था. पतिपत्नी दोनों अपने जुड़वां बेटों अमन और रमन का पालनपोषण अच्छे से कर रहे थे. खानपान, पहनावा या पढ़ाईलिखाई किसी चीज में कंजूसी का सवाल ही न था. अमन मात्र 15 मिनट पहले दुनिया में आया, इसीलिए रोशनलाल उसे बड़ा बेटा कहते थे.

अमन और रमन दोनों के चेहरे हूबहू एकदूसरे से मिलते थे, इतना कि कभी मातापिता भी दुविधा में पड़ जाते. अमन की गरदन के पीछे एक बड़ा सा तिल था, असमंजस की स्थिति में उसी से पहचान होती थी. दोनों समय के साथ बड़े होते गए. अमन सिर्फ 15 मिनट ही बड़ा था, फिर भी दोनों के स्वभाव में काफी अंतर था. अमन शांत और मैच्योर दिखता और उस का ज्यादा ध्यान पढ़ाईलिखाई पर होता था. इस के विपरीत, रमन चंचल था और पढ़ाईलिखाई में औसत से भी बहुत पीछे था.

फिलहाल दोनों प्लस टू पूरा कर कालेज में पढ़ रहे थे. अमन के मार्क्स काफी अच्छे थे और उसे पटना साइंस कालेज में एडमिशन मिल गया. रमन किसी तरह पास हुआ था. उसे एक प्राइवेट इवनिंग कालेज में आर्ट्स में एडमिशन मिला.

रमन फोन और टेबलेट या लैपटौप पर ज्यादा समय देता और फेसबुक पर नएनए लड़केलड़कियों से दोस्ती करता. अकसर नएनए पोज, अंदाज और ड्रैस में अपने फोटो पोस्ट करता. रमन को इवनिंग कालेज जाना होता था. दिन में अमन कालेज और पिता अपने बिजनैस पर जाते, इसलिए रमन दिनभर घर में अकेले रहता था. वह अपने फेसबुक दोस्तों से चैट करता और फोटो आदि शेयर करता. पढ़ाई में उस की दिलचस्पी न थी. देखतेदेखते दोनों भाई फाइनल ईयर में पहुंच गए.

इधर कुछ महीनों से रमन को फेसबुक पर एक नई दोस्त मिली थी. उस ने अपना नाम रीता बताया था. वे दोनों काफी घुलमिल गए थे और फ्री और फ्रैंक चैटिंग होती थी. एक दिन वह बोली, “मैं बायोलौजी पढ़ रही हूं. मुझे पुरुष के सभी अंगों को देखना और समझना है. इस से मुझे पढ़ाई और प्रैक्टिकल में मदद मिलेगी. तुम मेरी मदद करोगे?“

“हां क्यों नहीं. मुझे क्या करना होगा?“

“तुम अपने न्यूड फोटो पोस्ट करते रहना.“

कुछ शर्माते हुए रमन बोला, “नहीं, क्या यह ठीक रहेगा?“
“मेरी पढ़ाई का मामला है, जरूरी है और मेरे नजदीकी दोस्त हो, इसीलिए तुम से कहा था. खैर, छोड़ो, मैं कोई प्रैशर नहीं दे रही हूं. तुम से नहीं होगा तो मैं किसी और से कहती हूं,“ कुछ बिगड़ने के अंदाज़ में रीता ने कहा.

“ठीक है, मुझे सोचने के लिए कुछ समय दो.“

कुछ दिन और बीत गए. इसी बीच अमन और रमन के ग्रेजुएशन का रिजल्ट आया. अमन फर्स्ट क्लास से पास हुआ पर रमन फेल कर गया. रोशनलाल ने अपने दोनों बेटों को बुला कर कहा, “मैं सोच रहा था कि तुम दोनों अब मेरा बिजनैस संभालो. इस के लिए मुझे तुम्हारी डिग्री की जरूरत नहीं है. अगर तुम दोनों चाहो तो मैं अभी से बंटवारा भी कर सकता हूं.“

अमन बोला, “नो पापा, अभी बंटवारे का कोई सवाल नहीं है. मैं मैनेजमैंट पढ़ूंगा, उस के बाद आप जो कहेंगे वही करूंगा. रमन चाहे तो बिजनैस में आप के साथ रह कर कुछ काम सीख ले.“
रमन ने कहा, “अभी मैं ग्रेजुएशन के लिए कम से कम एक और प्रयास करूंगा.“

ये भी पढ़ें- बदलते रंग: क्या संजना जरमनी में अपने पति के पास लौट सकी?

अमन मैनेजमैंट की पढ़ाई करने गया. रमन का फेसबुक पर वही सिलसिला चल रहा था. उस की फेसबुक फ्रेंड रीता ने कहा, “अब तुम ने क्या फैसला किया है? जैसा कहा था, मेरी मदद करोगे या मैं दूसरे से कहूं? मेरे एग्जाम निकट हैं.“

“नहीं, मैं तुम्हारे कहने के अनुसार करूंगा. पर तुम ने तो अपने प्रोफ़ाइल में अपना कोई फोटो नहीं डाला है.“
“तुम लड़के हो न और मैं लड़की. मैं ने अपना फोटो जानबूझ कर नहीं डाला है. लड़कियों को लोग जल्द बदनाम कर देते हैं. तुम बिहार की राजधानी से हो और मैं ओडिशा के एक छोटे कसबे से हूं.“
रमन ने अपने कुछ न्यूड फोटो रीता को पोस्ट किए. रीता ने फिर उस से कुछ और फोटो भेजने को कहा तब रमन ने भी उस से कहा, “तुम भी तो अपना कोई फोटो भेजो. मैं न्यूड फोटो नहीं मांग रहा हूं.“
रीता ने कहा, “फोटो तो मैं नहीं पोस्ट कर सकती पर जल्द ही मेरे पटना आने की उम्मीद है. पापा सैंट्रल गवर्नमैंट में हैं, उन का प्रमोशन के साथ ओडिशा के बाहर दूसरे राज्य में तबादला हो रहा है और पापा ने पटना का चौइस दिया है. वैसे भी, अकसर हर 3 साल पर पापा का ट्रांसफर होता रहता है. इस बार प्रमोशन के साथ दूसरे स्टेट में ट्रांसफर की शर्त है, अब तुम्हारे शहर में मैं जल्द ही आ रही हूं.“

“मतलब, हम लोग जल्द ही मिलने वाले हैं?“

“हां, कुछ दिन और धीरज रखो.“

आगे पढ़ें- अमन बोला, “हां, मैं शालू को जानता हूं…

ये भी पढ़ें- रोमांस का तड़का: क्यों गलत है पति-पत्नि का रोमांस करना

सफेद सियार: भाग 1- क्या अंशिका बनवारी के चंगुल से छूट पाई?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

अंशिका पानी ले आई थी. खांसी थोड़ी शांत हुई, तो पत्नी कुमुद ने गिलास मधुसूदन के होंठों में फंसा कर जैसेतैसे पानी पिलाया.

पानी पीने के बाद थोड़ी राहत मिली तो वे बोले, “कुमुद, अपना मकान मालिक बनवारी रास्ते में मिल गया था. मुझे जबरदस्ती उस कैंप में ले गया, जहां वरिष्ठ नागरिकों को वैक्सीन की पहली डोज लग रही थी.”

“तो पापा, आप टीका लगवा आए,” अंशिका खुश होते हुए बोली.

“नहीं बेटी, तुम्हारे बनवारी अंकल तो सारे दंदफंद जानते हैं. मेरा आधारकार्ड मेरे पास होता तो मुझे भी लग जाता, लेकिन मैं अपना आधारकार्ड नहीं ले गया था.”

“ओह, कोई बात नहीं. आलोक कल धनबाद से इंटरव्यू दे कर लौट आए, तब हम दोनों साथ जा कर लगवा आएंगे,” कहते हुए कुमुद अंशिका से बोली, “तू अपने पापा के पास बैठ. मैं इन के लिए काढ़ा बना कर लाती हूं.”

कुमुद काढ़ा बनाने चली गई, तो मधुसूदन ने अंशिका से कहा, “तेरी पढ़ाई तो पूरी हो ही चुकी है. अब ये लौकडाउन और कोरोना का हौआ खत्म हो तो अच्छा सा लड़का ढूंढ कर तेरी शादी करा दूं, वरना बैंक में जमा सारे रुपए मेरी बीमारी ही खा जाएगी.

“अब देख न, एकमात्र 10 लाख रुपए की एफडी मेरे हार्ट के आपरेशन में ही तुड़वानी पड़ी, जिस में से 4 लाख रुपए तो इलाज में ही खर्च हो गए. बाकी बची रकम से जैसेतैसे काम चल रहा है.”

ये भी पढ़ें- निकम्मा : जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने किया इंतजाम

“उधर, प्लाट खरीदने के लिए जिस बिल्डर को 3 लाख रुपए एडवांस दिए थे, वह भी पिछले साल के शुरू तक तो बहलाता रहा, फिर तालीथाली बजाने के बाद जब कोरोना महामारी के चलते कंप्लीट लौकडाउन लगा कर पूरे देश को घरों में कैद कर दिया गया, तब सारा आवागमन ठप हो गया. इस का फायदा उठा कर वह ऐसा गायब हुआ कि न तो अब उस का फोन लगता है और न ही वह साइट पर दिखता है…”

“अरे, इन सब बातों को अंशिका को बताने से क्या फायदा मिलेगा…? आलोक कह तो रहा था कि पापा बेकार ही चिंता करते रहते हैं. परिस्थितियां सामान्य होते ही मैं उस हरामखोर बिल्डर को पाताल से भी ढूंढ़ निकालूंगा,” कुमुद बीमार मधुसूदन के हाथों में काढ़े का मग पकड़ाती हुई बोलीं.

लेकिन जब परिस्थितियां सामान्य हुईं, तो स्टेट टूरिज्म डिपार्टमेंट में आलोक द्वारा औनलाइन किए हुए आवेदन के फलस्वरूप चयन प्रक्रिया के लिए उसे सिंदरी से धनबाद जाना पड़ गया. इस बीच वह इंटरव्यू की तैयारी में भी जुटा रहा.

उसे गए हुए 2 दिन हो गए थे. आज तीसरा दिन था. सब्जी, फल और इक्कादुक्का बहुत जरूरी घरेलू चीजें पास के ही बाजार से लाने के लिए कुमुद ने मधुसूदन को थैला दे कर भेज दिया था. आपरेशन के बाद से सवेरे वे सामने वाले पार्क में थोड़ी देर टहलने जाते ही थे.

कुमुद के हाथ का बना घरेलू काढ़ा पीने के लिए वे उठ कर बैठ गए, तभी आलोक का फोन आ गया.

अंशिका ने फोन उठाया और स्पीकर औन कर दिया, ताकि सभी आलोक की आवाज सुन सकें.

आलोक कह रह था, ”पापा, आज लिस्ट निकल आई है. मैं सेलेक्ट हो गया हूं. अपौइंटमेंट लेटर घर पहुंचेगा. आज रात वाली बस से चल कर कल सवेरे मैं सिंदरी पहुंच जाऊंगा.”

“सुन कर बहुत खुशी हुई बेटा. मुझे पता था कि मेरा बेटा जरूर सेलेक्ट होगा. अब तू जल्दी से आ जा, ताकि कल चल कर तेरे पापा को डाक्टर को दिखा दें,” ये कुमुद की आवाज थी.

“क्या हुआ पापा को?” उधर से आलोक ने पूछा.

“उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही है.”

“ठीक है मां, मैं कल सुबह तक पहुंचता हूं, तब तक आप पापा का खयाल रखना,” कहते हुए आलोक ने फोन काट दिया.

सवेरे जिस समय आलोक घर पहुंचा, मधुसूदन की तबियत बहुत बिगड़ चुकी थी. सांस लेने में दिक्कत, तेज बुखार, गला जैसे चोक हो गया हो. वे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे.

आलोक ने तुरंत एम्बुलेंस की व्यवस्था की और पहले उस प्राइवेट अस्पताल ले गया, जहां उन का हार्ट का आपरेशन हुआ था. उन्होंने देखते ही आलोक से कहा, “ये तो कोविड केस है. तुम इन्हें कोविड केयर सेंटर ले जाओ.”

सरकारी कोविड केयर सेंटर की भीड़ और अव्यवस्था देख कर आलोक हैरान रह गया. उस ने पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाना उचित समझा. भीड़ तो वहां पर भी थी.

वहां पहले तो मधुसूदन के साथसाथ उस का भी कोविड टेस्ट हुआ. नाक और मुंह में पतली नली डाल कर स्वाब के सैंपल ले कर जांच के लिए भेज दिए गए. वहां व्यवस्था देख रहे एक वार्ड बौय ने आलोक से कहा, “चलो, तुम्हारे पिता को स्ट्रेचर से उतार कर बेंच खाली करा कर बैठा देते हैं.”

सुनते ही आलोक भड़क गया. वह मास्क मुंह से हटा कर चिल्लाया, ”अरे, मेरे पिता की इतनी गंभीर हालत हो रही है और उन्हें एडमिट करवाने की जगह तुम उन्हें बैठाने की बात कर रहे हो. तुम तो मुझे डाक्टर से मिलवा दो.”

दोनों की बहस होती देख वहां से गुजरती एक सीनियर नर्स बोली, “यहां सारे कोविड वार्ड संक्रमितों से भरे हुए हैं. प्राइवेट और जनरल वार्ड में एक भी बेड खाली नहीं है.

“देख रहे हो न, मरीज फर्श पर पड़े हैं. तुम चाहो तो इन्हें किसी दूसरे कोविड अस्पताल ले जा सकते हो.

“और सुनो, यहां अस्पताल में मास्क चढ़ाए रहो तो अच्छा है.”

आलोक ने मास्क तो चढ़ा लिया, लेकिन गिड़गिड़ाता सा बोला, ”प्लीज सिस्टर, कुछ करो. ये इमर्जेंसी केस है. देख रही हो, लगातार इन की हालत बिगड़ती जा रही है.”

पता नहीं, आलोक की बात सुन कर सिस्टर और वार्ड बौय के बीच आंखों ही आंखों में क्या इशारा हुआ कि वार्ड बौय बोल पड़ा, “तुम लोग कुछ समझना ही नहीं चाहते हो. हमें स्ट्रेचर दूसरे मरीजों के लिए भी तो चाहिए होता है…

“चलो, तुम मेरे साथ रिसेप्शन पर चलो. अगर कोई बेड खाली हुआ होगा, तो तुम्हारे लिए जुगाड़ बैठाते हैं. तुम्हें तकरीबन 50,000 रुपए एडवांस जमा करने होंगे.”

ये भी पढ़ें- कुंआरे बदन का दर्द

एम्बुलेंस के 5,000 रुपए देने के बाद आलोक ने अनुमान लगाया कि घर में इमर्जेंसी आने की स्थिति के लिए पापा और मम्मी के संयुक्त बचत खाते में जो रुपए पड़े थे, उन्हीं में से 50,000 रुपए कुमुद ने घर ला कर रख लिए थे, अस्पताल जाते समय आलोक को पकड़ा दिए. उन्हीं की गुणागणित बैठाता हुआ आलोक बोला, “अभी तो इतना जेब में नहीं है. तकरीबन 25-30 हजार रुपए होगा.”

वार्ड बौय ने कुछ सोचा, फिर बोला, “तुम 2 मिनट यहीं रुको. मैं हेड सिस्टर से बात कर के आता हूं,” कहते हुए वह जा कर उसी रूम में घुस गया, जिस में कुछ देर पहले उस से बात करने वाली सिस्टर गई थी.

कुछ देर बाद वार्ड बौय लौटा तो स्ट्रेचर को रिसेप्शन की तरफ धकेलता हुआ साथ चलते हुए आलोक से बोला, ”अभीअभी इमर्जेंसी वार्ड में एक बेड खाली हुआ है. तुम जितना है, उतना जमा करा दो. लेकिन कल सवेरे आ कर बाकी रकम पूरी कर देना.”

आलोक का मन अस्पताल के अंदरबाहर कराहते, तड़पते, झुंझलाते और संक्रमित होने के बाद इलाज के दौरान मर जाने वाली लाशों को प्लास्टिक की किट में लपेट कर श्मशान ले जाते देख घबरा उठा.

उस ने अर्धबेहोशी की हालत में स्ट्रेचर पर पड़े लाचार पिता की तरफ देखा. जेब से निकाल कर 25,000 रुपए रिसेप्शन काउंटर पर जमा कराए.1,500 रुपए वार्ड बौय ने अपनी बख्शीश मांग ली.

आगे पढ़ें- अंदर से आईसीयू की नर्स ने बाहर निकल कर…

ये भी पढ़ें- 10 Raksha Bandhan Stories: भाई-बहन के खास रिश्ते को दिखाती 10 कहानियां

चार सुनहरे दिन: भाग 2- प्रदीप को पाने के लिए किस हद तक गुजरी रेखा

रेखा के पिता ने चाय पी कर जम्हाई ली और भीतर चले गए. प्रदीप वहीं बैठा रहा. उस ने चाय पीतेपीते कहा, ‘‘चाय तो पीता ही रहता हूं, लेकिन सच कहूं रेखाजी, ऐसी चाय कभी नहीं पी मैं ने. आप ने ही बनाई होगी?’’

‘‘जी,’’ रेखा लजा गई, ‘‘आप को पसंद आई?’’

‘‘अजी, क्या कहती हैं, आप,’’ प्रदीप उत्साह से बोला, ‘‘काश, ऐसी चाय रोज मिल सकती.’’

रेखा ने साहस कर कहा, ‘‘तो रोज आ कर पी जाया करें. मैं रात को साढ़े 9 बजे लौटती हूं.’’

प्रदीप बोला, ‘‘मौका मिलेगा तो जरूर आऊंगा, मिस रेखा. आप जितनी भली हैं, उतनी ही…मेरा मतलब है कि उतना ही आकर्षण है आप में.’’

रेखा का चेहरा लाल हो गया. किसी ने आज तक उस से ऐसी बात नहीं कही थी, और यह सुंदर युवक.

‘‘आप जरूर आया करें. मैं इंतजार करूंगी.’’

तब से प्रदीप अकसर उस के घर आने लगा. रेखा के बूढ़े पिता और छोटी बहन शोभा से उस ने अच्छी घनिष्ठता बना ली. वह खुशमिजाज और बातचीत में चतुर था. शाम को आता तो साथ में कुछ नमकीन या मीठा लेता आता. 16 साल की शोभा उस के लिए चाय बनाती और वह रेखा के आने तक रुका रहता. रेखा के पिता इस मिलनसार, शरीफ युवक से बहुत खुश थे. रेखा जब आती तो फिर से चाय बनाती थी.

रविवार को रेखा की छुट्टी होती थी. उस दिन मैनेजर जगतियानी खुद रामलाल के साथ जा कर रुपए बैंक में जमा कराता था. रविवार को प्रदीप रेखा को मोटरसाइकिल से घुमाने ले जाता. कभी सिनेमा तो कभी किसी रैस्तरां में भी ले जाता.

प्रदीप रेखा की हर बात की बड़ी तारीफ करता था. कहता, ‘‘रेखा, तुम जैसी सम झदार और अच्छी लड़की मैं ने कहीं नहीं देखी.’’

ये भी पढ़ें- एक प्यार का नगमा- किस गैर पुरुष से बात कर रही थी नगमा

31वें वर्ष में कदम रख रही रेखा को अपने लिए लड़की शब्द सुन कर गुदगुदी सी होती थी. कहती, ‘‘तुम तो मु झे बना रहे हो.’’

‘‘सच कहता हूं,’’ प्रदीप गंभीर हो जाता, ‘‘तुम हीरा हो. जो तुम्हारा हाथ थामेगा, वह बहुत खुशनसीब होगा.’’

अब तक पुरुषों की प्रशंसात्मक दृष्टि या रोमांस से अपरिचित और उस के लिए तरसती रही रेखा प्रदीप की इन बातों में भूल जाती कि वह बहुत असुंदर है, 30 साल पार चुकी है और प्रदीप उस से उम्र में छोटा और स्मार्ट युवक है. वह उस की बातों पर विश्वास कर लेना चाहती थी. वह और प्रशंसा सुनने के लिए कहती, ‘‘मैं तो इतनी बदसूरत.’’

प्रदीप हंसता, ‘‘खूबसूरती और गोरी चमड़ी को देखने वाले बेवकूफ होते हैं. स्त्री का असली सौंदर्य तो उस के भीतर छिपा रहता है, रेखा. तुम देखने में भले ही बहुत सुंदर न हो लेकिन तुम में एक जबरदस्त आकर्षण और सम्मोहन है. उसे तुम क्या जानो.’’

और, रेखा के ऊपर जैसे नशा छा जाता. घर लौट कर वह आईने में खुद को निहारती रहती. क्या सच में वह आकर्षक है? आईना तो उस का वही पुराना अक्स दिखाता है. किंतु उसे लगता, वह आकर्षक हो गई है.

प्रदीप पिछले रविवार को उसे शहर के बाहर  झील के किनारे बने रैस्तरां ले गया था. वहां  झील के पास  झाड़ीनुमा पेड़ों के बीच बैठने के लिए अलगथलग मेजें लगी हुई थीं. बैरे सामने के होटल से सामान ला कर परोसते. लोग आजादी के मजे लेते हुए खातेपीते, प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते.

प्रदीप ने डोसे, चिप्स और कौफी का और्डर दिया.

‘‘यहां कितना अच्छा लग रहा है,’’ रेखा विभोर थी, ‘‘सच प्रदीप, मैं पहले कभी यहां नहीं आई, बल्कि मैं तो कहीं किसी होटल या रैस्तरां में भी नहीं जाती. अकेली…’’

‘‘छोड़ो, अब तुम अकेली नहीं हो, रेखा,’’ प्रदीप ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा दोस्त हूं, अब.’’

‘‘मेरी दोस्ती से तुम्हें क्या मिलने वाला है?’’ रेखा ने उसे टटोलना चाहा.

प्रदीप हंसा, ‘‘मु झे तुम्हारा साथ ताजगी से भर देता है. सच मानो, जिंदगी में बहुत सी सुंदर लड़कियां मिलीं, लेकिन किसी से इतना प्रभावित न हुआ जितना तुम से.’’

‘‘ झूठे…’’ रेखा व्याकुलता से उसे देखने लगी.

‘‘सच, तुम मेरे लिए संसार की सब से सुंदर और योग्य लड़की हो.’’

ये भी पढ़ें- किसको कहे कोई अपना- सुधा के साथ क्यों नही था उसका परिवार

‘लड़की’ शब्द से रेखा रोमांचित हो उठी. प्रदीप के मुंह से वह बारबार लड़की शब्द सुनना चाहती थी. बोली, ‘‘मैं और लड़की. लड़की तो शोभा है.’’

‘‘शोभा?’’ प्रदीप हंसा, ‘‘वह बच्ची है. उस में वह सुंदर नारीत्व कहां है? छोड़ो रेखा, मैं आज तुम्हारे सिवा और किसी का नाम नहीं लेना चाहता बीच में.’’

‘‘क्या, सच?’’ रेखा कुछ आगे  झुकी, ‘‘सो, क्यों भला?’’

‘‘क्योंकि…बुरा न मानो, तो सच कहूं…’’ प्रदीप ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

रेखा के कान सनसना उठे. कुछ देर तो जैसे उसे होश ही न रहा. प्रदीप ने उस के हाथों को दबा कर सचेत किया, ‘‘बैरा आ रहा है.’’

बैरा आया, क्या रख गया, रेखा को कुछ होश ही नहीं था. वह तो प्रदीप की बात के नशे में मस्त थी. प्रदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘खाओ…’’

उस दिन का नाश्ता रेखा को अपने जीवन का सब से स्वादिष्ठ नाश्ता लगा. वह तरंगों में  झूल रही थी. उस ने सोचा भी न था कि उस के जीवन में कभी कोई ऐसा मौका आएगा, जब कोई सुंदर युवक उसे कहेगा, ‘तुम बड़ी सुंदर हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूं,’ वही आज अचानक हो गया है.

लौटते समय प्रदीप ने कहा, ‘‘आज तुम मेरे घर चलो तो कैसा रहे?’’

रेखा बोली, ‘‘तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे?’’

‘‘आज तो घर पर सिर्फ मेरे पिताजी हैं. मां और भाईबहन एक नातेदारी में शादी में गए हुए हैं. तुम्हें अपने पिताजी से मिलाऊं.’’

उस ने रेखा के जवाब का इंतजार किए बिना ही मोटरसाइकिल मोड़ दी. शहर के दूसरे किनारे बसे एक छोटे से साधारण दोमंजिला घर के आगे मोटरसाइकिल खड़ी की, ‘‘मेरा गरीबखाना.’’

रेखा के साथ बरामदे में आ कर उस ने घंटी बजाई. कई बार बटन दबाया, किंतु दरवाजा नहीं खुला. बोला, ‘‘पिताजी जरूर घूमने निकले हैं. 9 बजे रात तक लौटते हैं. खैर, कोई बात नहीं, मेरे पास भी चाबी है.’’

अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर वह रेखा को भीतर लाया. साधारण सी बैठक. सोफा, टीवी, दीवान आदि से सजा हुआ. एक तरफ भीतर जाने का दरवाजा.

प्रदीप भीतर देख आया. बोला, ‘‘जरूर वे बाहर हैं. खैर, उन के आने तक बैठते हैं. तुम्हें जल्दी तो नहीं है?’’

रेखा ने कहा कि उसे कोई जल्दी नहीं है.

‘‘तो आज मेरी ही बनाई चाय पियो,’’ प्रदीप हंसा, ‘‘तुम्हारे जैसी तो क्या बनेगी, किंतु…’’

वह भीतर चला गया. रेखा की आंखों के आगे रंगीन सपने तैरते रहे. प्रदीप उसे प्यार करता है? अपने पिता से मिलाने लाया तो है. अगर शादी हुई तो वह इसी घर में आएगी.

प्रदीप चाय ले आया. रेखा को वह मामूली चाय भी अमृत जैसी लगी प्रदीप ने बनाई थी इसलिए. प्रदीप ने उस का हाथ अपनी हथेली में दबा कर कहा, ‘‘रेखा, तुम मु झ से प्यार करती हो?’’

रेखा शरमा गई. उस की आंखें जैसे शराब के नशे में थीं. प्रदीप बोला, ‘‘तुम्हारी आंखें सच बता रही हैं. हम दोनों जल्द शादी करेंगे.’’

‘‘सच?’’ रेखा ने ऐसे कहा जैसे बच्चे को मिठाई देने का वादा किया गया हो और वह उस पर विश्वास नहीं कर पा रहा हो.

प्रदीप बोला, ‘‘बिलकुल सच. मेरे घर वाले मेरी बात नहीं टालेंगे. हां, तुम्हारे पिताजी की राय.’’

‘‘वह तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का सम झते हैं. खुशी से राजी हो जाएंगे. लेकिन प्रदीप, क्या सच कहते हो या यह सब सपना है?’’

‘‘सपना?’’ प्रदीप उस के नजदीक आ गया. उसे आलिंगन में कस कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. चाय पीने के बाद ही से रेखा पर अजीब सी मदहोशी छाने लगी थी. बदन में कामोत्तेजना सनसनाने लगी थी. चाहती थी, प्रदीप उसे आलिंगन में ले कर पीस डाले. 31 साल के एकाकी, शुष्क और पुरुषस्पर्श से वंचित उस के नारीत्व में बाढ़ सी आ गई. वह प्रदीप से लिपट गई. वह कब उसे भीतर के कमरे में ले गया, उसे पता ही न चला.

प्रदीप उसे रात 8 बजे घर पहुंचा गया था. उस समय तक प्रदीप के पिता घूम कर वापस नहीं लौटे थे, इसलिए उन से भेंट न हुई. प्रदीप ने रेखा के पिता के चाय पीने का अनुरोध नम्रतापूर्वक अस्वीकार करते कहा कि आज घूमतेफिरते कई बार चाय पी चुके हैं, सो माफ करें. रेखा ने रात को खाना नहीं खाया. शोभा से कह दिया कि उस ने भारी नाश्ता कर लिया है. असल में उस की आत्मा ऐसी तृप्त हो गई थी कि सिर्फ सो जाने का मन हो रहा था.

ये भी पढ़ें- Raksha Bandhan Special: मत बरसो इंदर राजाजी

रातभर रेखा के बदन में मीठी टूटनभरी खुमारी छाई रही. पहली बार का यह पुरुष संसर्ग उसे एक ऐसे अद्भुत लोक में ले गया, जहां वसंत के सिवा कुछ नहीं होता. रातभर मीठे सपने आते रहे.

सुबह जागी तो बदन में मीठे दर्द के साथ ताजगी भी थी. नहाधो कर वह कार्यालय पहुंची. दिनभर उस का मन घबराता रहा और सोचती रही कि शायद अब प्रदीप न मिले.

लेकिन प्रदीप मिला. वह रोज की तरह रामलाल के साथ रुपए जमा करा कर साढ़े 9 बजे आई, तो वह चौराहे पर ही खड़ा था.

‘‘रेखा…’’

रेखा चौंक पड़ी. उस का मन खिल उठा. सामने प्रदीप था. वह धीरेधीरे उस के पास आई, तो वह बोला, ‘‘कैसी हो?’’

रेखा उस से आंखें मिलाने में शरमा रही थी. प्रदीप बोला, ‘‘आओ, मोटरसाइकिल पर बैठो.’’

‘‘घर सामने ही तो है,’’ रेखा बोली.

वह धीरे से बोला, ‘‘तुम्हारा असल घर तो वह है जहां हम अभी चलेंगे, रेखा रानी. आओ, बैठो.’’

रेखा रोमांचित हो उठी. मंत्रगुग्ध सी मोटरसाइकिल के पीछे आ बैठी. प्रदीप अपने घर की तरफ चल पड़ा. रेखा का बदन बारबार सिहर रहा था. प्रदीप उसे भीतर के कमरे की ओर ले चला, तो बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी?’’

‘‘आज वे भी शादी में चले गए हैं. सभी लोग 15-20 दिनों बाद लौटेंगे. मेरठ में हैं. हमें बिलकुल आजादी है.’’

रेखा के अंतर्मन में कुछ खटक रहा था. लेकिन वह भी अपने भीतर की प्यास बु झाने का लोभ रोक नहीं पाई. उस दिन भी दोनों पिछले दिन की तरह ही आनंद में डूबते चले गए.

तब से जैसे रोज का यह नियम बन गया. प्रदीप का घर ऐसी जगह पर था जहां आतेजाते पड़ोसियों की नजर नहीं पड़ती थी. रेखा भी अब पुरुष संसर्ग की आदी हो गई थी. वह बहुत संतुष्ट और प्रसन्न थी. एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, मान लो, कुछ गड़बड़ी हुई तो?’’

प्रदीप ने उसी दिन उसे घर पहुंचाते वक्त दवा की दुकान से गोलियों का एक पैकेट खरीद दिया, और बताया, ‘‘इस में से एक गोली रोज लेनी है, फिर तो निश्चिंत…’’

एक दिन रेखा औफिस जा रही थी कि प्रदीप अपनी मोटरसाइकिल पर तेजी से जाता हुआ दिखा. वह ठिठक गई. प्रदीप के पीछे एक गोरी, सुंदर सी लड़की बैठी हंसहंस कर उस से बातें करती जा रही थी. प्रदीप ने उसे नहीं देखा. मोटरसाइकिल तेजी से आगे बढ़ गई.

उस दिन रेखा से अपने काम में कई बार भूल हुई. मैनेजर जगतियानी ने  झल्ला कर कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है तो घर जा कर आराम करो.’’

रेखा ने यही उचित सम झा. वह घर आ गई. उस दिन वह जैसे अंगारों पर लोटती रही. शाम को वह चौराहे पर गई जहां बस रुकती थी और जहां उसे प्रदीप मिलता था. आज वह नहीं मिला. रेखा की वह रात जागते बीती. ईर्ष्या से वह जली जा रही थी. प्रदीप उसे धोखा दे रहा है क्या? यह तो रेखा से सच्चे प्रेम की बात कहता है और वह लड़की. कहां वह स्मार्ट, खूबसूरत यौवन से छलकती हुई नवयौवना, और कहां खुद रेखा. सपाट से बदन वाली असुंदर, अधेड़ कुमारी.

अगला दिन भी उसी तरह कांटों पर लोटते बीता. रात में वह घर के पास बस से उतरी, तो प्रदीप खड़ा मिला. रेखा ने तुरंत पूछा, ‘‘कल सवेरे तुम्हारे साथ वह कौन लड़की थी, प्रदीप?’’

‘‘लड़की?’’ प्रदीप ने पलभर सिर खुजलाया. हंस कर बोला, ‘‘ओह…याद आया…ललिता. हां, वह मेरी अपनी चचेरी बहन है, ललिता. मैं ने तुम्हें बताया तो था कि मेरे छोटे चाचाजी का घर यहीं है. कल ललिता का जन्मदिन था. उस ने मु झे भी निमंत्रण दे रखा था. सवेरे ही मेरे घर आई थी और मु झे कुछ खरीदारी के लिए अपने साथ बाजार ले गई थी. वहीं तुम ने देखा होगा. कल शाम को वहीं फंसा रहा था, तभी तो तुम से नहीं मिल पाया. क्या हुआ?’’

‘‘ओह.’’

प्रदीप मुसकराया, ‘‘तुम्हें कुछ गलतफहमी हो गई है क्या?’’

ये भी पढ़ें- बदला- क्या हुआ था सुगंधा के साथ

‘‘नहीं तो,’’ रेखा लज्जित हो कर बोली, लेकिन उस की आंखें कुछ और ही कह रही थीं.

प्रदीप हंस पड़ा. बोला, ‘‘रेखा, तुम निश्ंचत रहो. तुम्हारे सिवा मेरे जीवन में और कोई स्त्री न है, न रहेगी.’’

और वह उसे अपने घर ले गया. रेखा अब पुरुष संसर्ग की आदी हो चली थी. अकसर वह पूछती, ‘‘हम शादी कब करेंगे, प्रदीप? बहुत देर हो रही है…’’

प्रदीप कहता, ‘‘डार्लिंग, पिताजी ने पहले एक जगह मेरी शादी की बात चलाई थी. असल में, मेरी बड़ी बहन की शादी के लिए उन्होंने कर्ज लिया था और कर्ज पटाने के लिए उन लोगों की लड़की से मेरी शादी की बात तय कर दी थी. इस तरह वे लोग अपना रुपया छोड़ देते, अलग से दहेज भी दे रहे थे. लेकिन वह लड़की मु झे बिलकुल पसंद नहीं है. मैं ने इनकार कर दिया.’’

चार सुनहरे दिन: भाग 1- प्रदीप को पाने के लिए किस हद तक गुजरी रेखा

 लेखक : चंद्रमोहन प्रधान

रेखा ने बैग अपने कंधे पर लटकाते हुए मैनेजर से कहा, ‘‘मिस्टर जगतियानी, मुझे ही बैग ढोने की क्या जरूरत है? रामलाल भी तो…’’

‘‘नहींनहीं,’’ वह घबरा कर बोला, ‘‘बैग तो तुम्हीं रखा करो. बैंक है ही कितनी दूर,’’ फिर उस ने पुकारा, ‘‘चलो भई, रामलाल, जल्दी करो…’’

बिगड़ी पड़ी एक बस के पास मिस्त्री से तंबाकू ले रहा रामलाल लपकता हुआ आया, ‘‘आ गया, मालिक.’’

रोज की तरह वह रेखा के पीछेपीछे चल पड़ा. रेखा को उतना भारीभरकम बैग रोज ढो कर ले जाना अखरता था, किंतु मिस्टर जगतियानी को और किसी भी कर्मचारी पर भरोसा नहीं था. सुरक्षा के लिए रामलाल को वह जरूर साथ कर देता था.

रामलाल बड़ा हट्टाकट्टा, तगड़ी कदकाठी का अधेड़ आदमी था. बड़ीबड़ी मूंछें रखता था. कद 6 फुट के आसपास था, लेकिन अक्ल का कोरा था. मालिक का सब से वफादार आदमी था. सांड़ से भिड़ जाने की हिम्मत रखता था, लेकिन कोई भी उसे आसानी से बेवकूफ बना सकता था. इसलिए मैनेजर ने रेखा के साथ पहलवान जैसे रामलाल को लगा रखा था. वह दोनों के काम से संतुष्ट था.

दि रोज ट्रांसपोर्ट कंपनी के पास 20 से ज्यादा बसें थीं. अकसर कुछ खराब हो जातीं, लेकिन ज्यादातर के चलते रहने से रोज लगभग 20-25 हजार रुपए की रकम आ जाती थी. त्योहार वगैरह के दिनों में तो यह रकम 40 हजार से ऊपर पहुंच जाती थी. जगतियानी बड़ा डरपोक था. वह रात को रकम औफिस की तिजोरी में रखना नहीं चाहता था. रोज रात को चौक वाले भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में रुपए जमा करा दिया करता था.

ये भी पढ़ें- क्यों, आखिर क्यों : मां की ममता सिर्फ बच्चे को देखती है

इस तरफ बसस्टैंड तथा एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र होने के कारण स्टेट बैंक ने सुविधा के लिहाज से खासतौर से यह शाखा खोली थी, जो दोपहर बाद से रात के 9 बजे तक खुली रहती थी. रेखा रोज 8.50 बजे तक बैंक पहुंच जाती थी और रुपए जमा करा देती थी.

बसअड्डा होने के कारण सड़क थोड़ी चौड़ी और साफ थी. बसअड्डे के पास ही चाय और पान की कई दुकानें थीं. आगे चल कर एक अच्छा सा चायखाना भी था. फिर बैंक तक का रास्ता सूना था. रास्ता लगातार आतीजाती गाडि़यों की रोशनी से प्रकाशित होता रहता था. रेखा शुरू से बहुत डरती थी कि कोई उस का गला दबा कर या छुरा मार कर बैग छीन ले तो? किंतु अब वह अभ्यस्त हो गई थी. रामलाल के कारण उसे इत्मीनान रहता था.

चलतेचलते रेखा ने बैग को दूसरे कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘भई रामलाल, अगर कोई गुंडाबदमाश छुरा या पिस्तौल ले कर…’’

‘‘गुंडाबदमाश?’’ रामलाल मूंछों पर ताव देता हुआ हंसा, ‘‘बिटिया, हम एक ही हाथ में पिस्तौल, छुरा सब  झाड़ देंगे उस का. तुम चिंता न करो.’’

बैंक का कैशियर उन्हीं का इंतजार कर रहा था. रेखा के बैग से नोटों की गड्डियां निकाल कर उस ने फुरती से गिनीं. कुल 21 हजार 9 सौ रुपए मात्र. उस ने मुहर लगा कर रसीद रेखा को दे दी.

लौटते वक्त रेखा चौराहे के इधर वाले चायखाने में रोज की तरह चाय पीने चली आई. रामलाल चाय पीते वक्त बोला, ‘‘बिटिया, तुम किसी तरह की चिंता न करो. रामलाल के रहते कोई पंछी पंख भी नहीं फड़फड़ा सकता है. यहां हम को सब लोग जानते हैं. किसी ने कुछ करने की कोशिश भी की तो उठा के पटक दूंगा. हड्डीपसली सब बराबर हो जाएगी.’’

ये भी पढ़ें- मृगतृष्णा: क्या यकीन में बदल पाया मोहिनी का शक

रेखा इस सीधे पर अनपढ़गंवार को कैसे सम झाती कि यह गांव का अखाड़ा नहीं है. यहां गुंडेबदमाश कुश्ती नहीं लड़ते. पीछे से कोई छुरा या गोली मार दे. वह बहुत डरती थी. लेकिन इस काम के लिए मैनेजर उसे कंपनी से 5 सौ रुपए का अतिरिक्त बोनस दिलाता था, क्योंकि उसे वह अच्छी लड़की सम झता था और उस की मदद करना चाहता था. मैनेजर जगतियानी जानता था कि रेखा पर बूढ़े पिता, एक छोटी बहन और एक लापरवाह और आवारा किस्म के छोटे भाई की जिम्मेदारी है. जगतियानी यह भी जानता था कि 30 साल की उम्र पार कर चुकी रेखा की शादी हो पाने की उम्मीद कम ही है, क्योंकि वह देखने में सुंदर नहीं है. न चेहरे से, न शरीर से. संकरा माथा, दबी नाक, भीतर धंसी छोटीछोटी आंखें. मोटे होंठ, रंग सांवला, सपाट सा शरीर, न वक्ष उभरते हुए न नितंब. देखने में लड़कों जैसी लगती थी. उम्र के असर से चेहरे पर कुछ रेखाएं भी बनने लगी थीं. वैसे लड़की कमाऊ हो तो शादी किसी तरह हो भी जाती है, किंतु रेखा अपने परिवार के भरणपोषण के खयाल से खुद ही शादी नहीं करना चाहती थी. लेकिन उस के हिसाबकिताब, अकाउंटैंसी, फाइलिंग आदि की दक्षता का जगतियानी प्रशंसक था.

लौट कर रेखा ने रसीद जगतियानी को दी और साढ़े 9 बजे की बस से घर लौट चली. वह बस उसे घर के पास के चौराहे पर ही उतार देती थी.

बस से उतर कर वह जैसे ही घर की तरफ चली थी कि अचानक पीछे से धक्का लगा और वह गिर पड़ी. धक्का एक मोटरसाइकिल से लगा था. मोटरसाइकिल वाले ने उसे उठा कर खड़ा किया और माफी मांगने लगा, ‘‘बड़ी गलती हुई. माफ कीजिए, मैडम.’’

रेखा कराहती हुई उठी. उस ने देखा, सामने एक सुंदर युवक खड़ा था. रंग गोरा, अच्छे नाकनक्श वाला, सुंदर कपड़े पहने, तंदुरुस्त. वह बोला, ‘‘आप का घर कहां है, चलिए पहुंचा दूं.’’

वैसे तो रेखा का घर पास में ही था और उसे चोट भी ज्यादा नहीं लगी थी कि किसी को पहुंचाने जाना जरूरी होता, लेकिन पता नहीं क्यों वह उस लड़के को मना नहीं कर सकी. वह उस के साथ घर तक आई.

‘‘आइए,’’ रेखा ने कहा, ‘‘चाय पी कर जाइएगा.’’

ये भी पढ़ें- जिंदगी एक बांसुरी है : सुमन और अजय की कहानी

युवक तुरंत तैयार हो गया. रेखा ने उसे बैठक में बिठा दिया. बैठक बहुत सामान्य थी. जहां एक पुराना सा बदरंग सोफा पड़ा था. एक चौकी पर दरी बिछी थी. दीवारों पर पुराने कैलेंडर लगे थे. रेखा उसे बिठा कर भीतर चली गई.

चाय के 2 प्याले ले कर वह लौटी. युवक उस के बूढ़े पिता से बातें कर रहा था. बूढ़े पिता ने खोदखोद कर उस के बारे में पूछताछ की. रेखा ने सुना, नाम प्रदीप कुमार. उस के पिता हेडक्लर्क हो कर रिटायर्ड हो चुके हैं. परिवार में मां और 2 छोटे भाईबहन हैं. वह खुद एमए पास कर चुका है और नौकरी तलाश रहा है. रेखा ने दोनों को चाय दी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें