वापस: क्यों प्रभाकर के बच्चे की मां बनना चाहती थी प्रभा

लेखक- विनय कुमार पाठक

“मिस्टर प्रभाकर की स्थिति बहुत नाजुक है. हम ने बहुत कोशिश की उन्हें ठीक करने की. पर किसी प्रकार के अंधेरे में आप को रखना उचित नहीं होगा. अब वे शायद 1-2 दिनों से ज्यादा जिंदा न रह सकें,” डाक्टर ने प्रभा से कहा.

प्रभा सन्न रह गई. प्रभा और प्रभाकर की जोड़ी क्या सिर्फ 1 वर्ष के लिए थी? बीते लमहे उस के मस्तिष्क में कौंधने लगे. पर अभी उन लमहों को याद करने का समय नहीं था. प्रभाकर को बचाने में डाक्टर अपनी असमर्थता जता चुके थे. पर प्रभा अपने पति प्रभाकर को किसी भी हाल में वापस पाना चाहती थी,“मैं प्रभाकर के बच्चे की मां बनना चाहती हूं, डाक्टर. क्या आप मेरी मदद करेंगे?” प्रभा ने अनुरोध भरे स्वर में कहा.

“देखिए, मैं आप की भावना को समझ सकता हूं. पर यह संभव नहीं है,” डाक्टर ने असमर्थता जताई.

“क्यों संभव नहीं है? वह मेरा पति है. मैं उस के बच्चे की मां बनना चाहती हूं. अब क्या मैं आप को बताऊं कि आज के उन्नत तकनीक के जमाने में यह संभव है कि आप प्रभाकर के स्पर्म को इकट्ठा कर सुरक्षित रख दें. बाद में ऐसिस्टैड रीप्रोडक्टिव तकनीक से मैं मां बन जाऊंगी,” प्रभा ने मायूस होते हुए कहा.

“यह मुझे पता है प्रभाजी. पर प्रभाकर अभी अचेत हैं. बगैर उन की मरजी के उन का स्पर्म हम नहीं ले सकते. यह कानूनी मामला है,” डाक्टर ने असमर्थता जताई.

“कोई तो उपाय होगा डाक्टर?” प्रभा तड़प कर बोली.

“एक ही उपाय है, कोर्ट और्डर,” डाक्टर ने कहा,”पर इस के लिए समय चाहिए और शायद प्रभाकर 1-2 दिनों से अधिक जीवित नहीं रह सकें.

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“मैं कोर्ट और्डर ले कर आऊंगी,”कहते हुए प्रभा उठ खड़ी हुई. उस ने आईसीयू में जा कर एक बार प्रभाकर को देखा. वह अचेत पड़ा था. तरहतरह के उपकरण उस के शरीर में लगे हुए थे.

“तुम मेरे पास वापस आओगे प्रभाकर,” उस ने प्रभाकर के सिर को सहलाते हुए कहा,“पति के रूप में नहीं तो संतान के रूप में,” और आंसू पोंछती वह बाहर निकल गई.

उस ने अपना मोबाइल निकाला. नेहा उस की परिचित थी और ऐडवोकेट थी. उस ने उसे कौल किया तो उधर से आवाज आई,“हैलो प्रभा, कैसी हो?” वह जानती थी कि प्रभा अभी किस मानसिक संताप से गुजर रही है.

“कैसी हो सकती हूं, नेहा. एक अर्जेंट काम है तुम से,” प्रभा ने उदास स्वर में कहा.

“बोलो न,” नेहा ने आत्मीयता से कहा.

“आज ही कोर्ट और्डर ले लो, प्रभाकर के स्पर्म को कलैक्ट कर प्रिजर्व करने का. मैं प्रभाकर के बच्चे का मां बनना चाहती हूं,” प्रभा ने कहा.

“आज ही? मगर यह मुश्किल है. कोर्ट के मामले तो तुम जानती ही हो,” नेहा ने असमर्थता जताते हुए कहा.

“जानती हूं. पर तुम जान लो कि डाक्टर ने कहा है कि प्रभाकर 1-2 दिनों से ज्यादा जीवित नहीं रह सकता और उस के जाने के पहले मैं उस का स्पर्म प्रिजर्व करवाना चाहती हूं ताकि मैं ऐसिस्टैड रीप्रोडक्टिव तकनीक से प्रभाकर के बच्चे की मां बन सकूं. कोर्ट में कैसे और क्या करना है यह तुम मुझ से बेहतर जान सकती हो. प्लीज नेहा, पूरा जोर लगा दो. जरूर कोई रास्ता होगा,” प्रभा ने कहा.

“ठीक है. मैं सारे काम छोड़ इस काम में लगती हूं. मैं राजेंद्र अंकल को तुम्हारे दस्तखत लेने भेजूंगी. तुरंत दस्तखत कर पेपर भेज देना,” नेहा प्रभा के पड़ोस में ही रहती थी और उस के ससुर राजेंद्रजी से परिचित थी.

“ठीक है,” प्रभा ने फोन बंद कर दिया.

सबकुछ समाप्त हो चुका था. प्रभा हौस्पिटल के वेटिंग लाउंज में बैठ गई. चारों ओर मरीजों के परिचित व रिश्तेदार बैठे थे. कुछ के मरीज सामान्य रूप से बीमार थे तो कुछ के गंभीर. कोविड के दूसरे लहर की अफरातफरी समाप्त हो चुकी थी. हौस्पिटल के कर्मचारी अपने काम में व्यस्त थे. कोई कैश काउंटर में काम कर रहा था तो कोई कैशलैस काउंटर पर. इतने लोगों के होते हुए भी चारों ओर अजीब किस्म का सन्नाटा था. ऐसा प्रतीत होता था मानों जीवन पर आशंका का ग्रहण लगा हुआ है.

प्रभा ने पर्स से पानी की बोतल निकाल एक घूंट लिया और आंखें बंद कर बैठ गई. प्रभाकर के साथ बिताए 1-1 पल उस की आंखों के सामने आते चले गए…

पतिपत्नी के रूप में वे 1-2 माह ही सही तरीके से रह पाए थे. शादी के 1-2 सप्ताह के बाद से ही कोरोना कहर बरपाने लगा था. शादी के 1 माह बाद पिछले वर्ष वह कुछ काम से बैंगलुरू गया था. उस समय समाचारपत्रों में काफी सुर्खियां थीं उस अपार्टमैंट की जिस में वह ठहरा हुआ था. देश में कोरोना के कुछ मामले आने लगे थे. कोई कोविड पैशंट मिला था उस सोसाइटी में. सोसाइटी को सील कर दिया गया था. किसी प्रकार वह वापस आ पाया था.

कोरोना से वह बैंगलुरू में ही संक्रमित हो गया था या फिर रास्ते में या फिर दिल्ली वापस आने के बाद, कहा नहीं जा सकता था पर बुरी तरह संक्रमित हो गया था. गले में खराश और बुखार से काफी परेशान था वह. उस ने खुद को एक कमरे में आइसोलेट कर रखा था. प्रभा चाहती तो थी उस के पास जाने को पर प्रभाकर ने सख्त हिदायत दे रखी थी,“अभी तुम ठीक हो तो मेरी देखभाल कर रही हो, मुझे खानापानी दे रही हो। तुम भी संक्रमित हो जाओगी तो फिर कौन तुम्हारी देखभाल करेगा? लौकडाउन के कारण कोई दोस्तरिश्तेदार भी नहीं आ पाएगा. हौस्पिटल भरे हुए हैं और फिर इस का कोई इलाज भी नहीं है.”

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दोनों एक ही औफिस में काम करते थे और इस दौरान उन की मुलाकात हुई थी. दोनों के नाम मिलतेजुलते थे इसलिए कई बार गलतफहमी भी होती थी. एक बार प्रभाकर की चिट्ठी उस के पास आ गई थी. वह चिट्ठी प्रभाकर को देने गई थी. उस चिट्ठी ने दोनों के बीच सेतु का काम किया था. दोनों के नाम मिलतेजुलते ही नहीं थे, सोचविचार में भी तालमेल था. पहले दोनों अच्छे दोस्त बने, फिर प्रेमी और फिर दंपती. मगर जिंदगी को शायद कुछ और ही गंवारा था. संयोग से वह कोरोनाग्रस्त होने से बच गई और प्रभाकर भी धीरेधीरे ठीक हो गया. कोविड से ठीक होने के बाद लगा था कि जिंदगी पटरी पर वापस आ रही है. पर कोविड के पोस्ट कंप्लीकैशंस के कारण प्रभाकर की स्थिति बिगड़ने लगी. निमोनिया और मल्टी और्गन फेलियर के कारण प्रभाकर का बचना मुश्किल हो गया.

एकाएक प्रभा की तंद्रा भंग हुई. उस का मोबाइल बज रहा था. उस ने स्क्रीन पर देखा ‘न्यू पापा कौलिंग’ मैसेज स्क्रीन पर फ्लैश हो रहा था. उस ने प्रभाकर के पिताजी का नंबर न्यू पापा के नाम से सेव कर रखा था. प्रभाकर के पापा राजेंद्रजी काफी सहयोगात्मक व्यवहार वाले थे. पहले उस ने उन का नाम ‘फादर इन ला’ के नाम से सेव कर रखा था. पर उन के स्नेह को देखते हुए उस ने उन्हें ‘न्यू पापा’ का पद दे दिया था.

“हैलो पापा,” उस ने कौल रिसीव कर क्षीण स्वर में कहा.

“कहां हो बेटा? ऐडवोकेट नेहा ने एक डौक्यूमैंट भेजा है तुम्हारे दस्तखत के लिए,” राजेंद्रजी ने कहा.

“पापा मैं मैन ऐंट्री पर वेटिंग लाउंज में कोने…” बोलतेबोलते रुक गई प्रभा. उस ने देखा प्रभाकर के पिताजी उस के सामने आ गए थे।

“इस पेपर पर दस्तखत कर दो. नेहा ने मांगा है,” राजेंद्रजी ने उसे पेपर देते हुए कहा. उन के चेहरे पर उदासी पसरी हुई थी. उन्होंने डौक्यूमैंट पढ़ लिया था और प्रभा की स्थिति को समझ सकते थे.

प्रभा ने दस्तखत कर पेपर उन्हें वापस कर दिया,”पापा, चाय पीना चाहेंगे?” उस ने पूछा. वह जानती थी कि घर में किसी को खानेपीने की कोई रूचि फिलहाल नहीं है.

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“इच्छा तो नहीं हो रही. जीवन ने तो जहर पिला रखा है. नेहा ने तुरंत पेपर मांगा है. चलता हूं,” और वे चलते बने.

शाम तक नेहा कोर्ट और्डर ले कर आ गई. कोर्ट ने विशेष परिस्थिति को देखते हुए मामले पर विचार किया और अंतरिम राहत दे दी. कोर्ट ने स्पष्ट आदेश हौस्पिटल के डाइरैक्टर को दिया था. प्रभा कोर्ट और्डर ले कर सीधे डाइरैक्टर के पास गई. डाइरैक्टर को उस ने कोर्ट और्डर दिखाया. उस में साफसाफ यह उल्लेख था कि चूंकि मरीज अचेत है और उस की सहमति पाना असंभव है, विशेष परिस्थिति को देखते हुए न्यायालय अस्पताल प्रशासन को आदेश देता है कि आईवीएफ/एआरटी प्रोसीजर से मरीज के स्पर्म को सुरक्षित रखे.

हौस्पिटल ने सही प्रोसीजर अपना कर स्पर्म सुरक्षित रख लिया. प्रभा के मन में संतोष हो गया. प्रभाकर को बचाना तो संभव नहीं है पर वह उस के बच्चे की मां जरूर बनेगी और वह उस के पास दूसरे रूप में वापस आएगा.

एसीडिटी से छुटकारा देंगे ये 15 घरेलू नुस्खे

क्या आप जानते हैं कि आपके पेट में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक नाम का एसिड पाचन तंत्र के पूरे कामों के लिए जिम्मेदार है. जब आप कोई जटिल चीज खाते हैं तो, उसको पचाने के लिए पेट मे एसिड का एक सामान्य स्तर में होना बहुत जरूरी है. जब शरीर में इस एसिड की मात्रा कम हो जाती है तो पाचन सही से नहीं हो पाता है. इसके अलावा पेट में एसिड के ज्यादा हो जाने पर भी पाचन क्रिया में असुविधा होने लगती है, इसे ही एसीडिटी कहते हैं.

एसीडिटी होने के कारण

1. तला हुआ और बहुत अधिक ठोस चीजों के खाने से एसीडिटी होती है और यही एसीडिटी का मुख्य कारण है.

2. अगर आपको किसी बात का तनाव है तो भी यह भी एसीडिटी होने को एक कारण बन सकता है.

3. सिगरेट और शराब की की अधिक आदत से भी एसीडिटी उत्पन्न होती है. इनके अलावा बहुत अधिक तीखा खाना खाने से भी एसीडिटी बढती है.

4. चाय,काफ़ी और अधिक बीडी उपयोग करने से एसिडिटी की समस्या पैदा होती है.

5. अचार,सिरका,तला हुआ भोजन,मिर्च-मसालेदार आदि चीजें खाने से  एसिडिटी हो जाती है.

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एसिडिटी के घरेलू उपचार

1. खाना खाने के तुरंत बाद किसी भी तरह के पेय चीजों का सेवन ना करें.

2. भोजन करने के पश्चात थोडा सा गुड लेकर चूसते रहें.
3. विटामिन युक्त सब्जियों का ही अधिक सेवन करें.
4. सुबह उठकर व्यायाम करें और दिनभर शारीरिक गतिविधियाँ करते रहें.

5. सुबह उठकर २-३ गिलास पानी पीयें.

6. बादाम खाने से एसीडिटी के कारण होने वाली आपके सीने की जलन कम होती है.

7. सुबह-शाम रोज २-३ किलोमीटर घूमने जाने की आदत डालें.

8. नियमित रूप से पुदीने का रस पीना, आपकी सेहत के लिए बहुत लाभकारी होगा.

9. पानी और नींबू मिलाकर पीने से एसीडिटी की जलन से तुरंत राहत मिलती है.

10. इनके अलावा जब भी एकीचिटी की शिकायत होती है, तब नारियल पानी का सेवन अधिक से अधिक करना शुरु करना चाहिए.

11. आंवला एक ऐसा फ़ल जिससे शरीर के कई रोग ठीक हो होते हैं. एसिडीटी के लिए भी आंवले का उपयोग करना लाभदायी होगा.

12. खीरा, ककड़ी और तरबूज खाएं.

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13. तुलसी के दो चार पत्ते दिन में कई बार चबाकर खाने से भी लाभ होता है. खाना खाने के बाद 2 ग्राम लौंग और 3 ग्राम ईलायची का पाउडर, चुटकी भर मुंह में रखकर चूसें.

14. एक गिलास पानी में २ चम्मच सौंफ़ डालकर उबाल कर इसे रात भर के लिए रख दें. सुबह इसे छानकर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर पीये.

15. फ़लों का सेवन एसीडिटी में बहुत फ़ायदेमंद होता हैं.

शादी के बाद बदला यामी गौतम का लुक, रॉयल से लेकर वेस्टर्न लुक के साथ कैरी की वेडिंग ज्वैलरी

बॉलीवुड एक्ट्रेस यामी गौतम अपनी अचानक शादी के बाद से काफी सुर्खियों में रहती हैं. वहीं इन दिनों सैफ अली खान, अर्जुन कपूर और जैकलीन फर्नांडीस के साथ उनकी फिल्म ‘भूत पुलिस’ आने वाली है, जिसके कारण वह आए दिन नए-नए लुक में नजर आ रही हैं. वहीं इन लुक्स में खास बात है उनकी वेडिंग ज्वैलरी, जिसे वह हर लुक के साथ कैरी करती हैं. आइए आपको दिखाते हैं यामी गौतम के शादी के बाद बदले लुक की झलक…

रौयल लुक में जीत रही हैं फैंस का दिल

 

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सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाली यामी गौतम हाल ही में अपनी फिल्म का प्रमोशन करती नजर आईं. इस दौरान उनका रॉयल लुक फैंस को काफी पसंद भी आ रहा है. ऑफ व्हाइट कलर की स्कर्ट के साथ गोल्डन रंग के ब्लेजर के साथ यामी गौतम ने गले में नेकलेस पहना और हाथों में गोल्डन कंगन पहना है. वहीं इसके साथ उन्होंने अपनी वेडिंग ज्वैलरी वाले लौंग चेन वाले इयरिंग्स कैरी किए हुए हैं, जो बेहद खूबसरत लग रहे हैं.

 

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वेस्टर्न लुक के साथ भी कैरी की ज्वैलरी

 

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रौयल लुक के अलावा यामी गौतम वेस्टर्न लुक में भी नजर आईं, जिसके साथ भी उन्होंने अपने चेन इयरिंग्स कैरी किए, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया है.

फ्लावर प्रिंट लुक में बिखेरे जलवे

 

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फ्लावर प्रिंट के लुक की बात करें तो बौलीवुड एक्ट्रेसेस बेहद स्टाइलिश लुक में नजर आती हैं. वहीं यामी गौतम भी बीते दिनों फ्लावर प्रिंट लुक में नजर आईं, जिसके साथ उन्होंने इयरिंग्स कैरी किए, जो वह शादी के दिन पहने नजर आईं थीं.

साड़ी में लगती हैं कमाल

 

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शादी के दिन बनारसी साड़ी में अपना लुक फ्लौंट करने वाली यामी गौतम एक बार फिर बनारसी लुक में नजर आईं, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया है.

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मां के लाड़ले को कैसे संभालूं

औफिस से आते ही महाशय शर्ट उतार कर ऐसे फेंकते हैं जैसे वह शर्ट न हो गेंद हो. जूते कभी शू रैक में नहीं मिलेंगे. वे या तो सोफे के नीचे पड़े होंगे या फिर बैड के नीचे सरका दिए जाते हैं. औफिस बैग भी आते ही इधरउधर फेंक दिया जाता है. कपड़े भी अलमारी में कम दरवाजे के पीछे ज्यादा टंगे मिलते हैं. कुछ खाएंगे तो महाशय कूड़ा डस्टबिन में डालने के बजाय बाहर ही फेंक देंगे. यह हालत किसी एक पुरुष की नहीं वरना ऐसा करीबकरीब सभी करते हैं और फिर उन के फैले सामान को या तो नौकरानी की तरह उन की मां समेटती है या फिर पत्नी.

ऐसे पुरुष विरले ही होते हैं, जो घर के हर काम में पत्नी की मदद करते हैं. मदद तो छोडि़ए कम से कम पति अपना सामान ही समेट ले वही काफी है.

क्या कभी आप ने सोचा है पुरुष के काम न करने के पीछे क्या वजह है? आखिर काम करना पुरुष को अखरता क्यों है? क्यों वह काम से जी चुराता है?

महिलाएं हैं जिम्मेदार

पुरुष की इस आदत के पीछे मांएं जिम्मेदार हैं. घर में रहने की वजह से घर के सारे काम की जिम्मेदारी समझ लेती हैं. पूरा दिन घर के काम करते निकल जाता है. लेकिन औफिस या स्कूल से आते ही फिर सामान बिखर जाता है. उसे समेटने वाली मां अकेली जान होती है. अकेले ही सारा काम करती है. विवाह बाद पत्नी यह काम करने लगती है. पति को कभी यह नहीं बोलती कि आप फलां काम कर दो या सामान न फैलाओ. अकसर महिलाएं बेटों से काम नहीं करातीं. मां के यही डायलौग होते हैं- ‘छोड़ बेटा तू मत कर, मैं कर लूंगी,’ ‘मेरा तो रोज का काम है.’ मां की इसी आदत की वजह से बेटा धीरेधीरे काम से जी चुराने लगता है, जिस के चलते वह और काम करना तो दूर की बात अपना खुद का सामान संभालना भी बंद कर देता है.

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पति कामचोर, पत्नी की आफत: मां के साथ रहतेरहते आदत इतनी खराब हो जाती है कि उस का परिणाम पत्नी को भुगतना पड़ता है. पूरा दिन घर का सामान समेटतेसमेटते निकल जाता है.   कर चूर होने के बावजूद खाना बनाती है, जबकि पति आते ही सामान फैला देते हैं और खाना खा कर सो जाते हैं. पति की यह आदत सविता को बहुत अखरती है.

वरना बढ़ेगी तकरार: अगर आप के लाड़ले की आदत ऐसी ही रही तो घर में पतिपत्नी के बीच तकरार बढ़ेगी. आएदिन झगड़े होंगे, क्योंकि हर चीज की एक सीमा होती है. नौकरानी बन कर काम करना किसी को पसंद नहीं. कई बार देखा गया है कि पुरुष अपने अंदरूनी वस्त्र भी ऐसे ही छोड़ कर चले जाते हैं. उन को भी या तो मां धोती है या फिर बीवी, यह सरासर गलत है.

मां बच्चे की पहली पाठशाला: कहा जाता है कि मां बच्चे की पहली पाठशाला होती है. मां से ही बच्चा सब चीजें सीखता है- बोलना, चलना, हंसना आदि. लिहाजा अपने बच्चे में शुरू से ही अपने काम करने की आदत डालें.

बेटी के साथसाथ बेटे को भी सिखाएं: सिर्फ बेटी को ही घर का काम न सिखाएं, बल्कि बेटे को भी सिखाएं. खाना बनाना, पेड़पौधों को पानी देना, घर की साजसज्जा करना ताकि उस का इंटै्रस्ट बना रहे और भविष्य में होने वाली परेशानी से बचा जा सके.

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सास भी संभल जाए जरा: अगर बेटा बहू की काम में मदद करता है, तो सास चिढ़े नहीं.  कई मामलों में देखा जाता है कि सास बहू  को ताना मारने से बाज नहीं आती. अगर बेटा घर के काम में मदद कर रहा है तो कौन सा आसमान टूट पड़ा? सास बहू को बेटी समान समझे. काम लादने के बजाय उस की मदद करे ताकि वह हर काम खुशीखुशी निबटा सके. अगर काम का बोझ ज्यादा होगा तो काम उस के लिए तनाव बन जाएगा.

बातबात पर न करें गुस्सा: अगर आप पति की आदतों से परेशान हैं तो बातबात पर गुस्सा न करें. गुस्से को काबू करना सीखें. अगर आप को अपने पति की आदतें पसंद नहीं हैं तो पति को प्यार से समझाएं. बेहतर होगा कि अकेले में समझाएं, क्योंकि प्यार से बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है. लड़ाई करने से कुछ हासिल नहीं होगा.

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समाज में ऊंची जातियां

पिछड़ी जातियों की जनगणना अब एक बड़ा मामला बनता जा रहा है और नरेंद्र मोदी की सरकार और उस के सपनों को चुनौती दे रहा है. देश में सिर्फ पढ़ेलिखे जनेऊधारी, सरकारी या निजी नौकरी व व्यापार वाले नहीं रखे, देश की आबादी के 90 प्रतिशत लोग आज भी छोटीछोटी जातियों में बंटे हुए हैं.

इसका असर औरतों पर कैसे पड़ता है, यह आमतौर पर समझ नहीं आता. नीची जातियों की आबादी सिर्फ गरीब और मैली कुचली हो जरूरी नहीं उन में जो 4 कदम आगे आ जाती है उन की औरतों को पगपग पर शॄमदा किया जाता है.

कामकाजी औरतों में ज्यादा ऊंची जातियों की हैं और उन के बीच अगर पिछड़ी या निचली जातियों की औरतें आ जाएं तो लकीरें दफ्तरों, स्कूलोंकालेजों की कैंटीनों और स्टाफ रूमों में खिंचने लगती हैं. जो अच्छी लगती है उन में भी खटास पैदा होते देर नहीं लगती क्योंकि ऊंचे जातियों की औरतें अपनी जमात में से किसी एक का भी बिदकना सहन नहीं कर पातीं.

गरीबीअमीरी आज सब जगह, पूरे समाज में बराबर सी है, पर जाति श्रेष्ठता हो तो गर्दन अपनेआप में फस जाती है जो दूसरी को बुरी लग सकती है. खुले या छिपे कटाक्ष या मजाक उड़ाए जाते हैं, घरेलू फंक्शनों में बुलाने में भेदभाव किया जाने लगता है.

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यह खतरनाक है, समाज का कर्तव्य है कि केवल जन्म के कारण किसी भी बच्चे, आदमी, औरत पर जीवनभर ठप्पा लगा रहे. आज की औरतें अपना मनचाहा जीवन साथी नहीं चुन सकतीं क्योंकि जन्म से दी गई जाति का सवाल प्रेम प्रसंगों में भी खड़ा हो जाता है, ब्राहमण, बनिए, श्रत्रियों और कायस्थों में आपसी विवादों को ले कर बहुत सी औरतें कहती हैं कि अब जाति कहां रह गई. सवाल है कि ये जन्म की कितनी हैं? 5 प्रतिशत, 10 प्रतिशत या 50 प्रतिशत.

जाति जनगणना जो 1931 तक कराई जाती थी, 1951 के बाद बंद कर दी गई कि अब जो संविधान है उस से जाति तो बचेगी ही नहीं. पर ऐसा नहीं हुआ. 1947 की तो छोडि़ए 2021 के अक्तूबर के किसी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन उठा कर देख लीजिए. तरहतरह की जातियों के नाम दिख जाएंगे. लड़कियों को अपनी ही जाति में शादी करनी पड़ रही है. पढ़ाई, कमाई, रंगरूप के अलावा किस घर में पैदा हुए, किस मांबाप से हुए यह आज भी जरूरी है.

औरतों की किट्टियों जाति के आधार पर बनती हैं, पैसे या शिक्षा के आधार पर नहीं. नौकरियों में मिले छोटेमोटे अवसरो से सरकारी कालोनियों में हर जाति के परिवार बगलबगल में रह रहे हैं पर वहां अगर एक किट्टी हो तो उस में गुट बन जाते हैं. बैक्वर्ड, एससीएसटी को तो छोडि़ए ……… कस्टों के भी भेद किट्टियों को बांटे रखते हैं.

ऊंची जातियों के लोग अपने से नीचे जाति के लोगों के बुलावे शादी और दूसरे आयोजनों में नहीं जाते, उन से दूर  की दोस्ती रखते है, कास्ट के आधार पर गिनती होगी तो पता चल सकेगा कि किस स्कूल में कौन कितने हैं. यह कंपल्सरी किया जा सकता है कि स्कूल प्राइवेट हो या सरकारी कास्ट का प्रतिशत आबादी के बराबर हो. आज ब्राह्मïण बनिए को अलग कास्टों का आपस में मिलने को कास्ट का खत्म होना कह कर मामला बंद कर दिया जाता है. जातिगत जनगणना एक कदम पीछे नहीं तो जाएगा, यह वह आर्कोलोजिक्ल खुदाई है जिस से 2000 या 4000 साल पहले की संस्कृति का इतिहास पता चलता है.

चूंचूं करने की जरूरत नहीं. हां जिन्हें अपनी जातिगत श्रेष्ठता पर आंच आती दिखेगी, वे तो शोर मंचाएंगे.

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जानें कैसे करें मंहगी क्रॉकरी की देखभाल

क्रॉकरी हम सभी के घरों में होती है. आमतौर पर घरों में स्टील की क्रॉकरी डेली यूज में प्रयोग की जाती है जब कि किसी खास मेहमान के आने पर महंगी क्रॉकरी का प्रयोग किया जाता है. आजकल बोन चाइना, पोर्सलीन, मिट्टी और चीनी मिट्टी के साथ साथ तांबे की क्रॉकरी भी खूब चलन में है. ये क्रॉकरी बहुत नाजुक होने के साथ साथ बहुत मंहगी भी होती है इसलिए इन्हें बहुत सावधानी के साथ प्रयोग करना चाहिए ताकि ये लंबे समय तक चलती रहें. इन्हें प्रयोग करते समय यदि कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है-

1. वजन का रखें ध्यान

शेल्फ में जमाते समय वजन का विशेष ध्यान रखें बड़ी और भारी प्लेटों के ऊपर ही  छोटी प्लेटें रखें. बहुत सारी क्रॉकरी एक जगह न जमाकर रखने के स्थान पर एक स्थान पर 6-7 पीस ही रखकर कई बेच बनाकर रखें इससे आपको आवश्यकता पड़ने पर निकालने में भी आसानी रहेगी और क्रॉकरी सुरक्षित भी रहेगी.

2. पानी के तापमान का रखें ध्यान

महंगी क्रॉकरी को धोते समय बहुत अधिक गर्म और बहुत अधिक ठंडे पानी का प्रयोग करने के स्थान पर गर्मियों में सामान्य तापमान और सर्दियों में हल्के गुनगुने पानी का प्रयोग करें ताकि इनका पेंट और प्रिंट सुरक्षित रहे.

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3.न्यूज पेपर का प्रयोग न करें

अक्सर प्रयोग करने के बाद हम सुरक्षा की दृष्टि से क्रॉकरी को न्यूज़ पेपर में लपेटकर रख देते हैं परन्तु कई बार इसकी इंक क्रॉकरी में लगकर उस पर धब्बे छोड़ देती है. इसलिए इन्हें सुरक्षित रखने के लिए न्यूज़ पेपर के स्थान पर टिश्यू पेपर का प्रयोग करें.

4. ढ़ेर न लगाएं

महंगी क्रॉकरी यूं भी मेहमानों के आने पर ही निकाली जाती है परन्तु भोजन या नाश्ता समाप्त होने के बाद हम जल्दबाजी में उन्हें यूं ही सिंक में रखते जाते हैं….इससे क्रॉकरी टूटने की संभावना हो जाती है. भोजन के बाद इन्हें या तो एक के ऊपर एक जमाकर रखें या फिर अलग अलग ही रखें बाद में समय मिलने पर इनमें लगे भोजन को नल के पानी की धार से हटाकर रखें ताकि टूटने की संभावना न रहे. कुछ क्रॉकरी में बहुत जल्दी दाग धब्बे लग जाते हैं इसलिए इन्हें प्रयोग करने के बाद तुरंत साबुन से धोकर रखें.

5. सुखाना है जरूरी

यदि आपके घर में धूप आती है तो इन्हें धोकर धूप में रखकर सुखायें और यदि नहीं आती है तो साफ सूती कपड़े से पोंछकर सुखाकर ही शेल्फ में रखें. गीले ही रख देने से इनमें पानी के धब्बे पड़ जाते हैं जो दिखने में जरा भी अच्छे नहीं लगते साथ ही आसानी से छूटते भी नहीं.

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6. धोते समय रखें सावधानी

महंगी क्रॉकरी को डिशवाशर में धोने की अपेक्षा जहां तक सम्भव हो हाथ से ही धोएं क्योंकि डिशवाशर में प्रयोग किया जाने वाला गर्म पानी और स्ट्रांग डिटर्जेंट पाउडर इसकी बॉर्डर लाइन और प्रिंट को फेड अप कर सकता है. इन्हें हमेशा हल्के स्पंज के ब्रश और बर्तन धोने के लिए विशेष रूप से बनाये जाने वाले तरल डिटर्जेंट से ही धोएं. दाग धब्बों को साफ करने के लिए मेटल के स्क्रब आदि का प्रयोग करने के स्थान पर हल्के गर्म पानी में कुछ देर के लिए भिगो दें फिर साफ करने धब्बा आसानी से साफ हो जाएगा. डिशवाशर में केवल उन्हीं बर्तनों को धोएं जिन पर “डिशवाशर सेफ” लिखा हो.

7. मिक्स न करें

रोज प्रयोग होने वाले और कभी कभी प्रयोग किये जाने वाले महंगे बर्तनों को कभी भी एक साथ न रखें इससे इनकी लाइफ तो लम्बी होगी ही साथ ही इन पर स्क्रैच पड़ने और टूटने की संभावना भी नहीं रहेगी. इन्हें अलग शेल्फ या फिर किसी कार्टून में रखें.

संबंध : भाग 1- भैया-भाभी के लिए क्या रीना की सोच बदल पाई?

मैं काफी देर से करवट बदल रही थी. नींद आंखों से ओझल थी. अंधेरे में भी घड़ी की सूई सुबह के 4 बजाते हुए प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही थी. हर ओर स्तब्धता छाई हुई थी. एक नजर अश्विनी की ओर देखा. वे गहरी नींद में थे. पूरे दिन दौड़धूप वही करते रहते हैं. मुझ से तो किसी प्रकार की सहानुभूति या अपनत्व की अपेक्षा नहीं करते वे लोग. किंतु आज मेरे मन को एक पल के लिए भी चैन नहीं है. मृत्युशय्या पर लेटी मां व भाभी का रुग्ण चेहरा बारबार आंखों के आगे घूम जाता है.

क्या मनोस्थिति होगी बाबूजी व भैया की आज की रात?

डाक्टरों ने औपरेशन के बाद दोनों की ही स्थिति को चिंताजनक बताया था. मां परिवार की मेरुदंड हैं और अंजू भाभी गृहलक्ष्मी. यदि दोनों में से किसी को भी कुछ हो गया तो परिवार बिखर जाएगा. किस प्रकार जोड़ लिया था उन्होंने भाभी को अपने साथ. घर का कोई काम, कोई सलाह उन के बिना अधूरी थी. मैं ही उन्हें अपना न पाई. एक पल के लिए भी अंजू की उपस्थिति को बरदाश्त नहीं कर पाती थी मैं.

उसे प्यार करना तो दूर, उस की शक्ल से भी मुझे नफरत थी. उसी के कारण मां को भी तिरस्कृत करती रही थी. जाने क्यों मुझे लगता उस के कारण मेरे परिवार की खुशियां छिन गईं. भैया का जीवन नीरस हो गया. क्या मां का जी नहीं चाहता होगा कि उन का घरआंगन भी पोतेपोतियों की किलकारियों से गूंजे. आज के इस भौतिकवादी युग में रूप, गुण और शिक्षा से संपन्न स्त्री को भी कई बार यातनाएं सहनी पड़ती हैं.

किंतु मेरे परिवार के सदस्यों ने तो उस अपाहिज को स्वीकारा था. उस की कई बार सेवाशुश्रूषा की थी. शारीरिक व मानसिक संबल प्रदान किया था. भाभी के प्रति मां को असीम स्नेह लुटाता देख मैं ईर्ष्या की अग्नि में जलने लगी थी.

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ससुराल में अपना स्थान बनाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ा था मुझे? इस अपाहिज नारी के कारण भी कुछ कम आक्षेप तो नहीं सहे थे. मेरे मातापिता दहेज के लोभी बन गए थे. कैसे समझाती इस समाज को कि उन्होंने यह सब मानवता के वशीभूत हो कर किया था. और मैं क्या एक पल को भी भाभी के किसी गुण से प्रसन्न हो पाई थी? मेरी दृष्टि में भाभी का जो काल्पनिक रूप था उस से तो वे अंशमात्र भी मेल न खाती थीं.

कुढ़ कर मैं ने मां से कहा भी था, ‘‘यह तो ग्रहण है तुम्हारे बेटे के जीवन पर और तुम्हारे परिवार पर एक अभिशाप.’’

मां स्तब्ध रह जाती थीं मेरे शब्दों पर. उन्हें कभी कोई शिकायत थी ही नहीं उन से.

सुबह के 5 बजे थे. फोन की घंटी बज रही थी. कहीं कोई अप्रिय समाचार न हो, धड़कते दिल से फोन का चोगा उठाया, बाबूजी थे.

‘‘रीना बेटी, तुम्हारी मां की तबीयत कुछ ठीक है, पर अंजू अभी खतरे से बाहर नहीं है,’’ उन के स्वर का कंपन स्पष्ट था.

मैं स्वयं को कोस रही थी. क्यों बाबूजी व अश्विनी के कहने पर घर आ गई थी. बाबूजी व भैया के पास बैठना चाहिए था मुझे. नितांत अकेले थे वे दोनों. पर मुझ से सहानुभूति की अपेक्षा वे रखते भी न होंगे. उन्हें क्या मालूम हर समय अंजू को तिरस्कृत करने वाली रीना आज पश्चात्ताप की अग्नि में इस तरह जल रही है.

पहले भी तो वह कई बार अस्पताल आई थीं, किंतु तब मेरे मन के किसी कोने से अस्फुट सी यही आवाज उठती थी कि भाभी इस दुनिया से चली जाएं और मेरे भैया का जीवन बंधनों से मुक्त हो जाए. एक पल को न समझ पाई थी कि भैया का जीवन भाभी के बिना अधूरा है. मां ने एक बार समझाया था कि एक बार वह इस घर की बहू बनी है तो अब वह मेरी बेटी भी बन गई है. उस की देखभाल करना हमारा नैतिक ही नहीं, मौलिक दायित्व भी है.

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‘‘और उन के मायके वालों का क्या कर्तव्य है? धोखे से अपनी बीमार बेटी दूसरे के पल्ले बांध कर खुद चैन की नींद सोएं? कहने को तो करोड़ों का व्यापार है, टिकटें भेजते रहते हैं अपनी बेटी व दामाद को. अमेरिका घूम आने के निमंत्रण भेजते रहते हैं पर बीमार बेटी की सेवा नहीं की जाती उन से,’’ मैं गुस्से से कांपकांप जाती थी.

‘‘रीना, वह स्वयं मायके नहीं जाना चाहती. जानती है, कल मेरे गले में हाथ डाल कर बोली थी, ‘मां, मेरी मां व पिताजी से बढ़ कर प्यार आप लोगों ने मुझे दिया है. मेरा जी आप लोगों को छोड़ने को नहीं चाहता.’’’

‘‘बस तुम से तो कोई मीठा बोले तो पिघल जाती हो.’’

बड़ी मुश्किल से अश्विनी मुझे चुप करवाते. दिखावे के संबंध मुझे हमेशा विचलित करते रहे हैं. मां के पास जा कर भी अंजू को अपना न पाती थी मैं. कितना प्रतिरोध किया था भैया के ब्याह पर मैं ने? उन के जैसे सौम्य, सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी के लिए रिश्तों की क्या कमी थी? उन्होंने एमबीए किया था. बाबूजी का लाखों का व्यापार था. भैया दाहिने हाथ के समान उन की मदद करते थे. मैं मचल कर बाबूजी से कहती, ‘‘भैया के लिए सुंदर सी भाभी ला दीजिए न.’’

‘‘पहले तुझे इस घर से निकालेंगे तब बहू आएगी यहां.’’

पर मैं एक सखी के समान भाभी के साथ रहना चाहती थी. हमउम्र ननदभाभी सखियों के समान ही तो होती हैं. पर मेरी किसी ने भी न सुनी थी. उन का तर्क था, ‘‘हम तुझे इसी शहर में ब्याहेंगे, जब जी चाहे आ जाना.’’

और धूमधाम से ब्याह दी गई थी मैं. आदर्श पति के समान अश्विनी रोज मुझे मां से मिलवा लाते थे. पूरा दिन मां से बतियाती, मेरी पसंद के पकवान बनते. मां बताती रहती थीं भैया के रिश्तों के बारे में. बाबूजी भी पास बैठे रहते. भैया का स्वभाव कितना मृदु था. उन की आवाज की पारदर्शी सरलता से उन का आकर्षक व्यक्तित्व परिलक्षित होता था.

मुझे नाज था अपने भाई पर. मेरी कितनी सहेलियां उन पर फिदा थीं.

पर वे तो आदर्श पुत्र थे अपने माता-पिता के.

एक दिन मां ने बताया था, ‘‘तेरी देविका मौसी का पत्र आया है अमेरिका से. वे अपनी देवरानी की बेटी का रिश्ता करना चाहती हैं विपिन के साथ.’’

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ये वही देविका मौसी थीं जिन्होंने अपने मातापिता को बचपन में ही खो दिया था. दरदर की ठोकरें खाने के बाद भी उन्हें किसी ने सहारा न दिया था. अभागिन कह कर लोग दुत्कार देते थे. मेरे नाना ने उन्हें पालापोसा, पढ़ायालिखाया और उच्च कुल में ब्याहा था.

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘और मेरी भाभी?’’ मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी.

एक मौका और : भाग 2- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

पता चला कि सोहेल को भी किसी ने इस पागलों वाले अस्पताल में भरती करा दिया था, जबकि वह भी पूरी तरह स्वस्थ था. वह अस्पताल डा. काशान का था. कुछ देर बाद डा. काशान वहां आया तो सोहेल चीख पड़ा, ‘‘यह गलत है. आप सब धोखा कर रहे हैं. सही इंसान को यहां क्यों भरती कर रखा है?’’

डा. काशान ने इत्मीनान से कहा, ‘‘ये देखो.’’

इस के बाद उस ने रिमोट से एक स्क्रीन औन कर दी. स्क्रीन पर एक स्लाइड चलने लगी, जिस में सोहेल पागलों की तरह चीख रहा था, चिल्ला रहा था. 2 नर्सें उसे बांध रही थीं. वह देख कर सोहेल फिर चीखा, ‘‘यह सरासर झूठ है.’’

उस के इतना कहते ही डाक्टर के इशारे पर नर्स ने फिर से सोहेल को इंजेक्शन लगा कर सुला दिया.

सोहेल को जब होश आया तो उस ने नूर को गौर से देखा. उसे याद आया कि यह लड़की तो वही है जो ईमान ट्रस्ट स्कूल में पढ़ती थी. सोहेल भी बीकौम करने के बाद स्कूल में मदद के तौर पर पढ़ाने जाता था. वैसे सोहेल भी एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखता था.

उस के पिता की एक फैक्ट्री थी. फैक्ट्री में अचानक लगने वाली आग ने सब कुछ बरबाद कर दिया था. उस में उस के पिता की भी मौत हो गई थी. उस समय सोहेल 19 साल का था. उन दिनों वह ईमान ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ा रहा था.

सोहेल के लिए पिता की मौत बहुत बड़ा सदमा थी. उस ने अपने कुछ हमदर्दों की मदद से इंश्योरेंस का क्लेम हासिल किया. फिर से फैक्ट्री शुरू करने के बजाय उस ने वे पैसे बैंक में जमा कर दिए. फैक्ट्री की जमीन भी किराए पर दे दी, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से होती रहे. उस के 2 और भाई थे जो उस से छोटे थे. एक था कामिल जिस की उम्र 15 साल थी, उस से छोटा था 12 साल का जमील.

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भाइयों और मां की जिम्मेदारी सोहेल पर ही थी. यह जिम्मेदारी वह बहुत अच्छे से निभा रहा था. एमबीए के एडमिशन में अभी टाइम था, इसलिए वह ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ाता रहा. इस स्कूल में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे पढ़ते थे. नूर को उस ने उसी स्कूल में देखा था. वह बेहद खूबसूरत थी. उस नूर को आज वह एक मेच्योर औरत के रूप में देख रहा था. वही बाल, वही आंखें, वही नैननक्श.

यह क्लिनिक शहर से बाहर सुनसान सी जगह पर था. चारदीवारी बहुत ऊंची थी. ऊपरी मंजिल की सब खिड़कियों में मोटीमोटी ग्रिल लगी हुई थीं. इंतजाम ऐसा था कि कोई भी अपनी मरजी से बाहर नहीं निकल सकता था.

पहले डा. काशान एक मामूली मनोचिकित्सक था. वह प्रोफेसर मुनीर के साथ काम करता था. फिर उस ने अपना खुद का क्लिनिक खोल लिया. लोगों को ब्लैकमेल करकर के वह कुछ ही दिनों में अमीर हो गया. इस के बाद उस ने शहर के बाहर यह क्लिनिक बनवा लिया.

इस इमारत में आनेजाने के खास नियम थे. एक अलग अंदाज में दस्तक देने से ही दरवाजे खुलते थे. काशान ने यहां 5 लोग रखे हुए थे. 2 नर्सें, 2 कंपाउंडर, एक मैनेजर कम फोटोग्राफर जिस का नाम राहिल था. सही मायनों में राहिल ही उस क्लिनिक का कर्ताधर्ता था.

डा. काशान उसे उस समय यतीमखाने से ले कर आया था, जब वह बहुत छोटा था. अपने यहां ला कर उस ने उस की परवरिश की. धीरेधीरे उसे क्लिनिक के सारे कामों में टे्रंड कर दिया. अब वह इतना सक्षम हो गया था कि काशान की गैरमौजूदगी में अकेला ही सारे मरीजों को संभाल लेता था. एक तरह से वह डा. काशान का दाहिना हाथ था.

एक दिन डा. काशान कुछ परेशान सा था. उस ने राहिल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘राहिल, मुझे कुछ खतरा महसूस हो रहा है. शायद किसी को हमारे गोरखधंधे की खबर लग गई है. इसलिए मैं सोच रहा हूं कि सब कुछ खत्म कर दिया जाए.’’

राहिल घबरा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? यह तो बहुत बड़ा जुल्म होगा.’’

‘‘तुम मेरे टुकड़ों पर पल कर यहां तक पहुंचे हो. तुम्हें सहीगलत की पहचान कब से हो गई. मैं जो कह रहा हूं, वही होगा. अगले हफ्ते यह काम हर हाल में करना है.’’ डाक्टर ने दहाड़ कर कहा.

नूर को ऐसा लगा जैसे कोई उस का नाम पुकार रहा है. उस ने दरवाजे की जाली की तरफ देखा तो वहां सोहेल के सफेद बाल दिखाई दे रहे थे. यह पहला मौका था जब किसी ने उसे पुकारा था. वरना वहां इतना सख्त पहरा था कि कोई किसी से बात तक नहीं कर सकता था. चोरीछिपे बात कर ले तो अलग बात है.

नूर को यहां आए दूसरा महीना चल रहा था. उसे अब लगने लगा था कि वह सचमुच ही पागल है. सोहेल ने फिर कहा, ‘‘नूर, मैं सोहेल हूं. याद है, जब मैं तुम्हें स्कूल में पढ़ाने आता था…’’

नूर ने कुछ याद करते हुए कहा, ‘‘हां, मुझे याद आ रहा है. आप हमारे स्कूल में पढ़ाते थे. मगर आप यहां कैसे?’’

‘‘मुझे एक साजिश के तहत यहां डाला गया है. मुझे लगता है कि तुम भी किसी साजिश का शिकार हो कर यहां पहुंची हो. इस बारे में मैं तुम से बाद में बात करूंगा.’’

नूर सोच में पड़ गई. उस के दिमाग में परिवार और कारोबार की पुरानी बातें घूमने लगीं. उस के दोनों बेटे सफदर और असगर के कालेज के जमाने से ही पर निकालने शुरू हो गए थे. दौलत के साथ सारी बुराइयां भी उन दोनों में आती गईं.

नूर उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करती लेकिन उन पर कुछ असर नहीं हुआ. दूसरी तरफ उस का टेक्सटाइल मिल का बिजनैस भी आसान नहीं था. उस में भी उसे सिर खपाना पड़ता था. हालात बुरे से बुरे होते गए. अब दोनों बेटों ने घर पर शराब भी पीनी शुरू कर दी थी. रोज नईनई लड़कियां घर पर दिखाई देतीं.

नूर अगर ज्यादा जिरह करती या उन्हें कम पैसे देती तो घर की कीमती चीजें गायब होने लगतीं. अगर वह मेनगेट बंद करती तो पीछे के दरवाजे से निकल जाते. यहां तक कि उस के जेवर भी गायब होने लगे थे. जैसेतैसे उन दोनों ने ग्रैजुएशन किया और मां के सामने तन कर खड़े हो गए, ‘‘अम्मी, अब हम पढ़लिख कर इस काबिल हो गए हैं कि अपना बिजनैस संभाल सकें.’’

‘‘अच्छा, ठीक है. कल से तुम औफिस आओ. मैं देखती हूं कि तुम दोनों को क्या काम दिया जा सकता है.’’ नूर ने कहा.

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बेटी हुमा भी भाइयों से किसी तरह पीछे न थी. उस ने भी भाइयों की देखादेखी मौडर्न कल्चर सीख लिया था. रोज उस के बौयफ्रैंड बदलते थे. नूर पति के बिना अपने को बेहद अकेला और कमजोर समझने लगी थी. अब हालात उस के काबू से बाहर होते दिख रहे थे. मजबूर हो कर वह बेटी से बोली, ‘‘बेटा, जिसे तुम पसंद करती हो, उसे मुझ से मिलवाओ. अगर वह ठीक होगा तो उसी से तुम्हारी शादी कर दूंगी.’’

हुमा दूसरे दिन ही एक लड़के को ले आई, जिस का नाम अहमद था. वह शक्ल से ही मक्कार नजर आ रहा था. उस के मांबाप नहीं थे, चचा के पास रहता था. बीकौम कर के नौकरी की तलाश में था. हुमा के दोनों भाई इस लड़के से शादी के खिलाफ थे. नूर कोई नया तमाशा नहीं करना चाहती थी. उस ने बेटों को समझाया. 4 लोगों को जमा कर के बेटी का निकाह अहमद से कर दिया.

बेटी ने गरीब ससुराल जाने से साफ मना कर दिया. इसलिए अहमद भी घरजंवाई बन कर रहने लगा. असगर और सफदर तो बराबर औफिस जा रहे थे. काम भी सीख रहे थे पर पैसे मारने में कोई मौका नहीं छोड़ते थे. धीरेधीरे असगर मैनेजर की पोस्ट पर पहुंच गया. इस के बाद तो वह बड़ीबड़ी रकमों के घपले करने लगा, जिस में सफदर उस का साथ देता था. हुमा के कहने पर अहमद को भी नौकरी देनी पड़ी. हालात दिनबदिन खराब हो रहे थे. कंपनी लगातार घाटे में चलने लगी.

आगे पढ़ें- 2-3 दिन तक इस मामले को ले कर…

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‘तारक मेहता’ के ‘टप्पू -बबीता’ के डेटिंग की खबर पर वायरल हुए मीम्स, फैंस ने किया ये काम

पौपुलर कॉमेडी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) सालों से फैंस को एंटरटेन कर रहा है. वहीं इनके किरदार घर-घर में फेमस है और बात की जाए बबीता जी और जेठालाल की जोड़ी की तो फैंस इनके दिवाने हैं. इसी बीच बबीता यानी मुनमुन दत्ता (Munmun Dutta) और टप्पू यानी राज अनादकट (Raj Anadkat) की डेटिंग की खबर ने फैंस को चौंका दिया है, जिसके चलते सोशलमीडिया पर मीम्स वायरल हो रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं मीम्स…

मीम्स में दिखा जेठा लाल का रिएक्शन

हाल ही में लोगों को इस बात का यकीन नहीं हो रहा है कि तारक मेहता का उल्टा चश्मा का टप्पू, बबीता जी से प्यार करने लगा है. वहीं न्यूज सामने आते ही फैंस को जेठालाल की याद आ गई है और वह सोशलमीडिया पर मजेदार मीम्स वायरल कर रहे हैं, जो तेजी से वायरल हो रहे हैं. इन फनी मीम्स में टप्पू-बबीता जी के रिलेशनशिप की खबर से जेठा का टूटता दिल नजर आ रहा है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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9 साल का है एज गैप

 

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हाल ही में खबर है कि तारक मेहता की बबीता जी यानी मुनमुन दत्ता अपने 9 साल छोटे टप्पू यानी कोस्टार राज अनादकट को डेट कर रही हैं. 33 साल की मुनमुन दत्ता और 24 साल के राज अनादकट के रिश्ते की खबर जानने के बाद जहां कई फैंस मजेदार मीम्स शेयर कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग टप्पू को कलंक बता कर रहे हैं, जिसके चलते दोनों सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहे हैं.

 

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बता दें, तारक मेहता का उल्टा चश्मा शो कई सालों से फैंस को एंटरटेन कर रहा है. वहीं बबीता जी इस शो से 10 सालों से भी ज्यादा जुड़ी हुई हैं तो वहीं टप्पू के किरदार में राज अनादकट 2017 में रिप्लेस के जरिए शो से जुड़े थे.

 

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