प्रमाण दो: भाग 1- यामिनी और जीशान के रिश्ते की कहानी

लेखक: सत्यव्रत सत्यार्थी

हर आंख सशंकित और हर चेहरा भयातुर. भयानक असुरक्षा की भावना ने लोगों को अपने घरों में कैद रहने को विवश कर दिया था.

यामिनी बेचैन थी. उसे समय से अस्पताल पहुंच जाने का कर्तव्यबोध बेचैन किए जा रहा था. उसे लग रहा था कि अस्पताल पहुंचाने वाली परमिट प्राप्त एंबुलेंस कहीं उन्मादियों के बीच फंस गई थी. वह अधिक समय तक रुकी नहीं रह सकती थी. उस पर आश्रित उस के मरीज आशा भरी नजरों से उस के आने की बाट जोह रहे होंगे. यामिनी को जब पक्का भरोसा हो गया कि अस्पताल की गाड़ी अब नहीं आएगी तो वह मुख्य सड़क को छोड़ कर तंग और सुनसान गलियों से हो कर, बचतीबचाती किसी प्रकार अस्पताल पहुंची.

ड्यूटी रूम में पहुंचते ही यामिनी निढाल हो कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई, थकान और रोंगटे खडे़ कर देने वाले दृश्यों के बारे में सोच कर उसे खुद ही ‘आदमी’ होने पर संदेह हो रहा था. अस्पताल में घायलों के आने का क्रम लगातार जारी था और सभी वार्ड अंगभंग घायलों की दिल दहला देने वाली कराहों से थरथरा रहे थे.

अचानक यामिनी के कानों में सीनियर सिस्टर मिसेज डेविडसन के पुकारने की आवाज सुनाई दी तो उस की तंद्रा भंग हुई.

‘‘यामिनी, बेड नं. 11 के मरीज को जा कर देख तो लो. वह दर्द से कराह तो रहा है किंतु किसी भी नर्स से न तो डे्रसिंग करवा रहा है और न इंजेक्शन लगवा रहा है,’’ डेविडसन बोलीं.

यामिनी वार्ड में जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि मिसेज डेविडसन की चेतावनी के लहजे से भरी आवाज सुनाई दी, ‘‘मिस यामिनी, हर पेशेंट से रिश्ता कायम कर लेने की बेतुकी आदत तुम्हारे लिए बहुत भारी पडे़गी. बहुत पछ- ताओगी एक दिन.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है, मैडम.’’

‘‘फिर वह तुम्हीं से ड्रेसिंग बदलवाने की जिद क्यों कर रहा है?’’

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‘‘मैडम, आप तो देख ही रही हैं कि शहर का हर आदमी अपने जीवन का युद्ध लड़ रहा है और अस्पताल में ऐसे घायल आ रहे हैं जिन्होंने अपने तमाम रिश्ते खो दिए हैं. निपट अकेला हो जाने का एहसास उन्हें इस लड़ाई में कमजोर बना रहा है. महज कुछ मीठे शब्द, थोड़ा सा अपनापन और स्नेह दे कर मैं उन्हें इस संघर्ष को जीतने में सहायता करती हूं, बस.’’

‘‘यह तुम्हारा लेक्चर मेरे पल्ले नहीं पड़ने वाला. बस, हमें अपनी ड्यूटी से मतलब होना चाहिए. पर मेरा मन कहता है कि रिश्ता कायम कर लेने की तुम्हारी यह आदत कहीं तुम्हारे लिए मुसीबत न बन जाए.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होने वाला मैडम, पेशेंट ठीक हो जाए बस, वह अपने घर और मैं अपनी राह. बात समाप्त.’’

‘‘हां, आमतौर पर अस्पतालों में तो यही होता है. किंतु यह बात तुम्हारे साथ नहीं है.’’

‘‘क्यों? मरीजों के प्रति मेरा व्यवहार क्या औरों से अलग है?’’

‘‘हां,’’ सिस्टर डेविडसन बोलीं, ‘‘यहां आने वाला हर पुरुष पेशेंट तुम्हें अपनी बहन कैसे बना लेता है, और वह भी बस, एक ही दिन में.’’

‘‘बिलकुल वैसे ही जैसे मैं उन्हें तत्काल अपना भाई बना लेती हूं,’’ यामिनी ने मुसकराते हुए उत्तर दिया और ड्यूटी रूम से निकल कर बेड नं. 11 की ओर बढ़ गई.

बेड नं. 11 के निकट पहुंचते ही यामिनी ने कहा, ‘‘जीशान साहब, आप ने मुझे बहुत परेशान किया. सिस्टर से आप ने इंजेक्शन क्यों नहीं लगवाया? क्या उस के हाथ में कांटे हैं जो आप को चुभ जाएंगे?’’

‘‘ऐसा नहीं है सिस्टर. यहां के हर कर्मचारी को मैं सलाम करता हूं, मगर मैं ने आप से पहले ही बोल दिया था…’’

उस की बात बीच में ही काटते हुए यामिनी बोली, ‘‘क्या बोल दिया था? यही न कि तुम मेरे ही हाथ से दवा खाओगे. तुम्हारी बच्चों जैसी यह जिद बिलकुल ठीक नहीं है. मुझे और भी काम रहते हैं भाई. तुम ने समय पर इंजेक्शन नहीं लगवाया, समय पर दवा नहीं ली तो तुम्हें काफी नुकसान पहुंच सकता है. ’’

‘‘नफानुकसान की बात मैं नहीं जानता सिस्टर,’’  जीशान बोला, ‘‘पहले आप यह बताइए कि कल से आप दिखाई क्यों नहीं दीं?’’

‘‘अरे भाई, कुछ जरूरी काम पड़ गया था, जिस में बिजी हो गई थी. पर फिर ऐसा नहीं होना चाहिए. मैं न भी आऊं तो आप दूसरी नर्सों से दवा ले लिया करो, इंजेक्शन लगवा लिया करो.’’

‘‘हां, मगर आप की बात ही और है…’’

यामिनी ने उस को चुप रहने का संकेत करते हुए आराम करने को कहा और वापस जाने के लिए मुड़ी तो अपने पीछे मिसेज डेविडसन को देख कर चौंक पड़ी. वह न जाने कब से उन की बातोें को सुन रही थीं. उन की आंखों में एक अजीब सा आक्रोश झलक रहा था.

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‘‘यामिनी, ड्यूटी रूम में चलो. मुझे तुम से एक बहुत जरूरी काम है.’’

यामिनी मिसेज डेविडसन का बहुत सम्मान करती थी. बिलकुल अपनी मां के समान उन्हें मानती थी. उन के ‘बहुत जरूरी काम’ का अर्थ वह समझ रही थी किंतु आज वह उन की डांट खाने के मूड में नहीं थी. वह जानती थी कि मिसेज डेविडसन अपने अनुभवों का हवाला दे कर उसे समाज, रिश्ते, दुनियादारी पर लंबीचौड़ी नसीहतों का कुनैन पिलाएंगी.

ऐसा नहीं था कि यामिनी, डेविडसन के मन में करवटें ले रही शंकाओं को समझती नहीं थी, किंतु उस से अधिक वह अपने मन को और विचारों को समझती थी. उस के मन में तथा विचारों के किसी भी कोने में ऐसा कुछ भी नहीं था, जैसा डेविडसन समझती थीं.

एक ममतामयी मां के रूप में यामिनी को डेविडसन अपनी बेटी ही समझती थीं. निपट अकेली यामिनी को किसी रिश्ते का कोई सहारा नहीं था, अत: एक लड़की का सब से बड़ा अवलंब, सब से भरोसेमंद रिश्ता, मां का रिश्ता वह यामिनी को देना चाहती थीं, और दे भी रही थीं.

ड्यूटी रूम में यामिनी अकेली थी. डाक्टर राउंड पर आ कर जा चुके थे. उन्हीं के पीछेपीछे डेविडसन भी अस्पताल परिसर में बने नर्सेज होस्टल में लंच कर लेने जा चुकी थीं.

यामिनी को होस्टल में कमरा नहीं मिल पाया था. वह अस्पताल से दूर किराए के एक छोटे से मकान में एक ट्रेनी नर्स के साथ रह रही थी. इसलिए दोपहर का खाना वह टिफिन में लाती थी, किंतु आज सुबह ही उसे जिस अफरातफरी से हो कर गुजरना पड़ा था, उस से उसे टिफिन लाने की सुध ही नहीं थी. आज यामिनी को अपने परिवार की बहुत याद आ रही थी, जिन से अब वह जीवन में कभी भी मिल नहीं सकती थी. आंखें बंद कीं तो उस का अतीत चलचित्र की तरह सामने आ गया.

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प्रमाण दो: भाग 2- यामिनी और जीशान के रिश्ते की कहानी

लेखक: सत्यव्रत सत्यार्थी

अलीगढ़ के हिंदूमुसलिम दंगे ने उस का सर्वस्व छीन लिया था. दंगाइयों ने उस के मकान को चारों तरफ से घेर कर आग लगा दी थी. यामिनी का जीवन इसलिए बच गया कि वह अपनी किसी सहेली से मिलने चली गई थी. वापस लौटते समय रास्ते में ही उसे इस हृदयविदारक हादसे की सूचना मिली और पुलिस ने उसे घर तक जाने ही नहीं दिया, बल्कि जीप में बैठा कर थाने ले गई थी.

नानी को खबर मिली तो वह अलीगढ़ आईं और यामिनी को थाने से ही कानपुर ले गई थीं. उन के प्यारदुलार ने और समय के मरहम ने धीरेधीरे यामिनी के हृदय पर उभरे फफोलों को शांत कर दिया.

यामिनी किसी पर बोझ बन कर जीना नहीं चाहती थी. अत: उस ने नर्सिंग कोर्स में प्रवेश लिया और प्रशिक्षण पूरा होने पर अहमदाबाद में इस अस्पताल में एक नर्स के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी. मरीजों की सेवा कर के उसे शांति मिलती थी. उन्हीं के बीच अपने को व्यस्त रख कर वह अपने भयानक अतीत को भुलाने की कोशिश करती थी और कुछ हद तक इस में सफल भी हो रही थी.

यामिनी सोचती जा रही थी. चिंतन के क्षितिज पर अचानक जीशान का बिंब उभरता हुआ प्रतीत हुआ. उस का चिंतन क्रम जीशान पर आ कर टिक गया.

जीशान लगभग 25 साल का उत्साही युवक था. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक गांव से अपने किसी रिश्तेदार के साथ अहमदाबाद कमाने आया था, ताकि परिवार का खर्च चलाने में वह अपने गरीब बाप का कुछ सहयोग कर सके. उस की कमाई की गाड़ी भी पटरी पर चल रही थी, किंतु तभी उस के अरमान भी दंगों के दानव का शिकार हो गए. वह अपने कमरे में अपने रिश्तेदार के साथ दम साधे बैठा था कि अचानक दंगाइयों की टोली की निगाह उस के कमरे पर पड़ गई. उन्मादी दंगाइयों ने कमरे में आग लगा दी और दरवाजे पर खडे़ हो कर हथियार लहराते उन के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे.

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जीशान भय से कांप रहा था. उस के रिश्तेदार ने अपने प्राणों का मोह छोड़ कर जीशान को अपने पीछे किया और दंगाइयों की टोली के एक किनारे से सरपट भाग खड़ा हुआ. दंगाइयों ने दौड़ कर उन को पकड़ना चाहा. रिश्तेदार पलट पड़ा किंतु जीशान को भाग जाने को कहा. रिश्तेदार ने अपने शरीर को दंगाइयों के हवाले कर दिया. पल भर में एक जिंदा शरीर मांस के लोथड़ों में बदल गया था.

भागते जीशान को सामने से आती दैत्यों की एक टोली ने पकड़ लिया और हाकियों तथा डंडों से पीट कर अधमरा कर डाला, मगर तभी सायरन बजाती पुलिस की गाड़ी आ गई और जीशान अस्पताल में भर्ती होने के लिए आ गया. यह बात जीशान ने ही उसे बताई थी.

जीशान के बारे में सोचतेसोचते यामिनी की आंखें सजल हो उठीं. उस के चिंतन का क्रम तब टूटा जब वार्डबौय ने उस से अलमारी की चाभियां मांगीं.

चाभियों का गुच्छा वार्डबौय को थमा कर यामिनी का चिंतन पुन: जीशान पर केंद्रित हो गया.

आखिर जीशान में ऐसा क्या खास था कि सब की बातें सुनने पर भी उस के प्रति यामिनी की स्नेहिल भावनाओं में कोई परिवर्तन नहीं आ पाया था. शायद इस का कारण दोनों के जीवन में घटित त्रासदियों की समानता थी या जीशान का भोलापन और उस के भीतर बैठा एक कोमल मानवीय संवेदनाओं से भरा एक निश्छल विशाल हृदय था. कारण जो भी हो, यामिनी अपने को जीशान से जुड़ता हुआ अनुभव कर रही थी, मगर किस रूप में? उसे स्वयं भी इस का पता नहीं था.

अब जीशान बड़ी तेजी से ठीक हो रहा था. अंतत: वह दिन आ गया जिस के कभी भी न आने की मन ही मन जीशान दुआ कर रहा था. उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई. उस दिन जीशान बहुत ही उदास था. यामिनी उसे एकटक निहारे जा रही थी, किंतु अपने में खोए जीशान को उस के आने का आभास तक नहीं हुआ. यामिनी ने ही सन्नाटे को तोड़ते हुए पूछा, ‘‘अब क्या? अब तो तुम स्वस्थ हो गए. तुम्हें छुट्टी मिल गई. तुम्हें तो खुश होना चाहिए, पर तुम ने तो मुुंह लटकाया है, क्यों?’’

वह दुख से बोझिल उदासीन स्वर में बोला, ‘‘यहां से चले जाने पर आप से मुलाकात कैसे होगी, आप को देखूंगा कैसे? मुझे आप की बहुत याद आएगी.’’

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‘‘इस में उदास और दुखी होने की क्या बात है. हम और तुम दोनों इसी शहर में रहते हैं, जब भी मिलना चाहोगे मिल लेना. याद आने पर अस्पताल चले आना. हां, कभी मेरे घर पर आने की मत सोचना.’’

‘‘हां, सच कहती हैं आप. हम तो इनसान हैं नहीं, बस, हिंदूमुसलमान भर हैं. आप हिंदू, मैं मुसलमान, कैसे आ सकता हूं?’’

‘‘बात यह नहीं है. मैं हिंदूमुसलमान कुछ नहीं मानती. शायद तुम भी नहीं मानते हो पर सभी लोग ऐसा ही तो नहीं सोचते.’’

‘‘मैं नासमझ नहीं हूं, आप के मन की दुविधा समझ रहा हूं. सारे मुल्क में दंगेफसाद की जड़ हम यानी हिंदू और मुसलमान ही तो हैं.’’

 

‘‘बस, अब मुंह मत बिसूरो. जाते समय हंस कर विदा लो. सबकुछ ठीकठीक रहेगा. हां, अब चेहरे पर हंसी ला कर गुडबाय बोलो.’’

‘‘अलविदा, सिस्टर, अगर यहां से जाने के बाद जिंदा रहा तो जल्दी मिलूंगा,’’ कहते हुए जीशान का गला रुंध गया. जीशान थकेहारे कदमों से वापस लौट रहा था अपने उस मकान पर जो आग की भेंट चढ़ चुका था. और कोई ठिकाना भी तो नहीं था उस के पास.

भीगी आंखों से यामिनी दूर जाते हुए जीशान को देखे जा रही थी कि अचानक उस के कानों में डेविडसन का खरखराता हुआ स्वर गूंजा, ‘‘मिस, अगर फेयरवेल पूरा हो चुका हो तो बेड नं. 7 को देखने की कृपा करेंगी. नासमझ, भावुक लड़की, एक दिन इस का खमियाजा भोगेगी.’’

उस दिन यामिनी और उस के साथ रहने वाली ट्रेनी नर्स फ्रेश हो कर चाय की चुस्कियां लेती हुई समाज की बदली हुई तसवीर पर चर्चा कर रही थीं कि तभी कालबेल बज उठी.

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प्रमाण दो: भाग 3- यामिनी और जीशान के रिश्ते की कहानी

लेखक- सत्यव्रत सत्यार्थी

पूर्व कथा

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में दंगे होने के कारण नर्स यामिनी किसी तरह अस्पताल पहुंचती है. वहां पहुंचने पर सीनियर सिस्टर मिसेज डेविडसन यामिनी को बेड नं. 11 के मरीज जीशान को देखने को कहती है. यामिनी मिसेज डेविडसन को मां की तरह मानती है और मिसेज डेविडसन भी यामिनी को बेटी की तरह. शहर में होने वाले दंगों को देखते हुए मिसेज डेविडसन यामिनी को बारबार  समझाती है कि मरीजों के साथ ज्यादा घुलनेमिलने की जरूरत नहीं है.शहर में हुए दंगों से परेशान यामिनी के सामने अतीत की यादें ताजा होने लगती हैं कि किस तरह हिंदूमुसलिम दंगों के दौरान दंगाइयों ने उस का घर जला दिया था और वह अपनी सहेली के घर जाने के कारण बच गई थी. यही सोचतेसोचते उसे जीशान का ध्यान आता है.25 वर्षीय जीशान के घर में भी दंगाइयों ने आग लगा दी थी. बड़ी मुश्किल से जान बचा कर घायल अवस्था में वह अस्पताल पहुंचा था.

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आखिरी भाग

यामिनी जीशान की सेवा करती है ताकि वह जल्दी ठीक हो जाए. यामिनी और जीशान दोनों ही एकदूसरे के प्रति लगाव महसूस करते हैं. यामिनी से अलग होते समय जीशान उदास हो जाता है और कहता है कि मैं आप से कैसे मिलूंगा? मैं मुसलमान हूं और आप हिंदू, तो वह समझाती है कि हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है और वह अलविदा कह कर चला जाता है. यामिनी अपनी सहयोगी नर्स के साथ शहर में हुए दंगों पर चर्चा कर रही होती है कि तभी कालबेल बजती है. अब आगे…

हिंदूमुसलिम दंगों के दौरान मिले यामिनी और जीशान के बीच भाईबहन का रिश्ता कायम हो चुका था लेकिन दुनिया वाले इस रिश्ते को कहां पाक मानने वाले थे. क्या जीशान और यामिनी दुनिया के सामने अपने इस मुंहबोले रिश्ते को साबित कर पाए?गतांक से आगे…

ट्रेनी नर्स ने दरवाजा खोला. सामने खडे़ युवक ने उस को बताया, ‘‘सिस्टर, मैं जीशान का पड़ोसी हूं. क्या यामिनी मैडम यहीं रहती हैं?’’

‘‘हां, रहती तो यहीं हैं, मगर तुम्हें उन से क्या काम है?’’

‘‘उन्हें खबर कर दीजिए कि जीशान को पिछले 2 दिन से बहुत तेज बुखार है. उस ने मैडम को बुलाया है.’’

कमरे के अंदर बैठी यामिनी नर्स और आगंतुक की बातचीत ध्यान से सुन रही थी. जीशान के अतिशय बीमार होने की खबर सुन कर उस का दिल धक् से रह गया. यामिनी को लगा, मानो उस का कोई अपना कातर स्वर में उसे पुकार रहा हो. उस ने अपना मिनी फर्स्ट एड बौक्स उठाया और उस युवक के साथ निकल पड़ी.कमरे में बिस्तर पर बेसुध पड़ा जीशान कराह रहा था. यामिनी ने उस के माथे को छू कर देखा तो वह भट्ठी की तरह तप रहा था. यामिनी ने उसे जरूरी दवाएं दीं और एक इंजेक्शन भी लगा दिया. कुछ देर बाद जीशान की स्थिति कुछ संभली तो यामिनी ने पूछा, ‘‘जीशान, तुम अपने प्रति इतने लापरवाह क्यों हो? अपना ध्यान क्यों नहीं रखते?’’

‘‘ध्यान तो रखता हूं, पर बुखार का क्या करूं? खुद ब खुद आ गया.’’

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जीशान के इस भोलेपन पर यामिनी ने वात्सल्य भाव से कहा, ‘‘जब तक तुम स्वस्थ नहीं हो जाते, मैं रोजाना आया करूंगी और तुम्हारे लिए चाय, सूप जो भी होगा बनाऊंगी और अपने सामने दवाएं खिलाऊंगी.’’

‘‘ऐसा तो सिर्फ 2 ही लोग कर सकते हैं, मां अथवा बहन.’’

यामिनी कुछ बोलना चाहती थी कि जीशान कांपते स्वर में पूछ बैठा, ‘‘क्या मैं आप को दीदी कहूं? अस्पताल में जब पहली बार होश आया था और आप को तीमारदारी करते हुए पाया था तभी से मैं ने मन ही मन आप को बड़ी बहन मान लिया था. इस से ज्यादा खूबसूरत और पाक रिश्ता दूसरा नहीं हो सकता, क्योंकि यही रिश्ता इतनी खिदमत कर सकता है.’’

‘‘यह तो ठीक है, मगर….’’

‘‘दीदी, अब मुझे मत ठुकराओ, वरना मैं कभी दवा नहीं खाऊंगा. वैसे भी तो यह दोबारा की जिंदगी आप की ही बदौलत है. आप खूब जानती हैं कि मैं आप को देखे बगैर एक पल भी नहीं रह पाता.’’

यामिनी निरुत्तर थी. रिश्ता कायम हो चुका था. सारे देश में खूनखराबे का कारण बने 2 विरोधी धर्मों के युवकयुवती के बीच भाईबहन का अटूट रिश्ता पनप चुका था.

यामिनी जब जीशान के कमरे से निकली तो अगल- बगल और सामने के मकानों के दरवाजों से झांकती अनेक आंखों के पीछे के मनोभावों को ताड़ कर वह बेचैन हो उठी. दुकानों के बाहर झुंड बना कर खडे़ लोगों ने भी उसे विचित्र सी निगाहों से देखना शुरू कर दिया. लेकिन किसी की ओर देखे बिना वह सिर झुका कर चुपचाप चलती चली गई.

जीशान जब तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो गया तब तक यह क्रम अनवरत चलता रहा. मिसेज डेविडसन को यामिनी का एक मरीज के प्रति इतना लगाव कतई पसंद नहीं था. एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘‘जीशान के घर इस तरह हर रोज जाना ठीक नहीं है, यामिनी.’’

‘‘क्यों?’’ प्रश्नसूचक मुद्रा में यामिनी ने पूछा.

उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘‘तुम कोई दूधपीती बच्ची नहीं हो, जिसे कुछ पता ही न हो. भले तुम उसे भाई समझती हो, किंतु कम से कम आज के माहौल में दुनिया वाले इस मुंहबोले रिश्ते को सहन करेेंगे क्या?’’

‘‘जब यह रिश्ता नहीं बना था तब दुनिया वालों ने मुझे या जीशान को बख्शा था क्या जो मैं इन की परवा करूं.’’

‘‘दुनिया में रह कर दुनिया वालों की परवा तो करनी ही पडे़गी.’’

‘‘मैं स्वयं भी इस बंजर जीवन से तंग आ गई हूं. नहीं रहना इस दुनिया में…तो किसी से डरना कैसा,’’ यामिनी ने कठोर मुद्रा में अपना पक्ष रखा.

मिसेज डेविडसन चुप हो गईं. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर और यह कहते हुए उसे अपने साथ होस्टल लिवा ले गईं कि आज का खाना और सोना सब उन्हीं के साथ होना है.

यामिनी को बर्थ डे जैसे अनावश्यक चोंचले बिलकुल नहीं भाते थे. फिर भी मिसेज डेविडसन ने आज सुबह ही उस को याद दिलाया था कि आज रात का भोजन वह उसी के साथ उस के कमरे पर लेंगी और वह भी ‘स्पेशल.’ यामिनी ने हामी भर ली थी, क्योंकि प्रस्ताव केवल भोजन का था, बर्थ डे मनाने का नहीं.

घर आ कर फ्रेश होने के बाद वह और उस की साथी टे्रनी नर्स अच्छी मेहमाननवाजी की तैयारियों में जुट गईं कि अचानक यामिनी का मोबाइल बज उठा. दूसरी तरफ से जीशान बोल रहा था, ‘दीदी, आज 7 बजे तक आप जरूर आ जाइएगा. बहुत जरूरी काम है. 8 बजे तक हरहाल में मैं आप को आप के रूम पर वापस छोड़ दूंगा.’

‘किंतु मेरे भाई, यह अचानक ऐसी कौन सी आफत आ गई है?’

‘मेरे भाई’ शब्द सुनते ही जीशान का रोमरोम पुलकित हो उठा. कितनी मिठास, कितनी ऊर्जा थी इस पुकार में. वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी बात कैसे कहे. इन कुछ पलों की चुप्पी का अर्थ यामिनी समझ नहीं पा रही थी. उस ने कहा, ‘जीशान, आज मैं नहीं आ सकती. तुम हर बात पर जिद क्यों करते हो?’

‘दीदी, यह मेरी आखिरी जिद है. मान जाओ, फिर कभी भी ऐसी गुस्ताखी नहीं करूंगा,’ इतना कह कर जीशान ने फोन काट दिया था.

यामिनी अजीब संकट में पड़ गई. एक तरफ जीशान का ‘बुलावा’ था तो दूसरी तरफ मिसेज डेविडसन को दी गई उस की ‘सहमति’ थी. आखिर दिल ने जीशान के पक्ष में फैसला दे दिया.

यामिनी को कहीं जाने की तैयारी करते देख उस की साथी नर्स समझ गई कि मुंहबोले इस भाई के बुलावे ने यामिनी को विवश कर दिया है. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘मैम, मिसेज डेविडसन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ा बड़बड़ाना और फिर मेरी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना, हर मां ऐसी ही होती है,’’ कहते हुए यामिनी निकल पड़ी.

जीशान के कमरे पर यामिनी पहुंची तो देखा दरवाजा खुला था. कमरे में जो दृश्य देखा तो वह अवाक् रह गई. मेज पर सजा ‘केक’ और उस पर जलती एक कैंडिल, एक खूबसूरत नया ‘चाकू’ और नया ‘ज्वेलरी केस’ सबकुछ बड़ा विचित्र लग रहा था. इन सब चीजों को विस्मय से देखती हुई यामिनी की आंखें जीशान को ढूंढ़ रही थीं. उस के मन में संशय उठा कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. उस ने जैसे ही जीशान को आवाज लगाई, ठीक उसी समय दरवाजे पर आहट हुई और जीशान हंसते हुए कमरे में प्रवेश कर रहा था. उस के एक हाथ में रक्षासूत्र और एक हाथ में ताजे फूल थे.

जीशान को सामने पा कर यामिनी आश्वस्त हो गई. उस ने अपने को संयत करते हुए पूछा, ‘‘इस तरह कहां चले गए थे? और वह भी कमरा खुला छोड़ कर, तुम्हें अक्ल क्यों नहीं आती? और यह सब क्या है?’’

‘‘एक गरीब भाई की तरफ से अपनी दीदी के बर्थ डे पर एक छोटा सा जलसा.’’

अपनत्व की इतनी सच्ची, इतनी निश्छल प्रतिक्रिया यामिनी ने अपने अब तक के जीवन में नहीं देखी थी. भावातिरेक में उस के नेत्र सजल हो उठे. उस ने रुंधे गले से कहा, ‘‘मेरे भाई, अब तक तुम क्यों नहीं मिले? कहां छिपे थे तुम अब तक? मिले भी तो तब जब हम दोनों के रिश्ते दुनिया के लिए कांटे सरीखे हैं.’’

जीशान ने अपना हाथ यामिनी के मुंह पर रखते हुए कहा, ‘‘अब और नहीं, दीदी, आज आप का जन्मदिन है. अब चलिए, केक काटिए और यह जलती हुई मोमबत्ती बुझाइए.’’

यामिनी ने जीशान की खुशी के लिए सब किया. केक काटा और मोमबत्ती बुझाई. किसी बच्चे के समान ताली बजा कर जीशान जोर से बोल उठा, ‘‘हैप्पी बर्थडे-टू यू माई डियर सिस्टर,’’ फिर केक का एक टुकड़ा उठा कर यामिनी के मुंह में डाला और आधा तोड़ कर स्वयं खा लिया.

यामिनी ने घड़ी पर निगाह डाली. 8 बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे. उस ने जीशान को याद दिलाते हुए जाने का उपक्रम किया. जीशान ने यामिनी से सिर्फ 2 मिनट का समय और मांगा. उस ने यामिनी से आंखें मूंद कर सामने घूम जाने का अनुरोध किया. यंत्रचालित सी यामिनी ने वैसा ही किया. जीशान ने एक फूल यामिनी के पैरों पर स्पर्श कर अपने माथे से लगाया.

तभी जीशान ने अपनी दाईं कलाई और बाएं हाथ का रक्षासूत्र यामिनी की ओर बढ़ा दिया. यामिनी उस का मकसद समझ गई. उस ने मेज पर पड़े फूल उस पर निछावर किए और राखी बांध दी.

वह आदर भाव से अपनी दीदी के पैर छूने को झुका ही था कि दरवाजा भड़ाक से खुला और 10-12 खूंखार चेहरे तलवार, डंडा, हाकी आदि ले कर दनदनाते हुए कमरे में घुस गए और उन्हें घेर लिया.

एक बोला, ‘‘क्या गुल खिलाए जा रहे हैं यहां?’’

दूसरा बोला, ‘‘यह शरीफों का महल्ला है. इस तरह की बेहयायी करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी?’’

तीसरा बोला, ‘‘यह बदचलन औरत है. मैं ने अकसर इसे यहां आते देखा है.’’

भद्दी सी गाली देते हुए चौथा बोला, ‘‘रास रचाने को तुम्हें यह ंमुसलमान ही मिला था, सारे हिंदू मर गए थे क्या?’’

भीड़ में से कोई ललकराते हुए बोला, ‘‘देखते क्या हो? इस विधर्मी को काट डालो और उठा कर ले चलो इस मेनका को.’’

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यामिनी ने अपना कलेजा कड़ा किया और दृढ़ता से जीशान के आगे खड़ी हो कर बोली, ‘‘इसे नहीं, दोष मेरा है, मेरे टुकड़ेटुकड़े कर डालो क्योंकि मैं हिंदू हूं. आप लोगों की प्रतिष्ठा मेरे नाते धूमिल हुई है.’’

यह सब देख कर जीशान में भी साहस का संचार हुआ. वह यामिनी के आगे आ गया और अपनी दाहिनी कलाई उन के सामने उठाते हुए बोला, ‘‘आप लोग खुद देख लीजिए, हमारा रिश्ता क्या है? राखी तो सिर्फ बहन ही अपने भाई को बांधती है.’’

उस का हाथ झटकते हुए एक बोला, ‘‘अबे, तू क्या जाने बहनभाई के रिश्ते को. तुझ जैसों को तो सिर्फ मौका चाहिए किसी हिंदू लड़की को भ्रष्ट करने का. वैसे भी आज रक्षाबंधन है क्या?’’

तभी यामिनी को एक अवसर मिल गया. उस ने तर्क भरे लहजे में कहा, ‘‘रानी कर्णावती ने जब हुमायूं को राखी भेजी थी तब भी तो रक्षाबंधन नहीं था. किंतु आप लोग यह सारी लुभावनी मानवतापूर्ण बातें तो केवल मंच से ही बोलते हैं, व्यवहार में तो वही करते हैं जैसा अभी यहां कर रहे हैं.’’

यह तर्क सुन कर भीड़ के ज्यादातर युवक बगलें झांकने लगे. किंतु एक ने उस के तर्क को काटते हुए कहा, ‘‘हुमायूं ने तो राखी के धर्म का निर्वाह किया था. भाई के समान उस ने रानी कर्णावती के लिए खून बहाया था. तुम्हारा यह भाई क्या ऐसा प्रमाण दे सकता है?’’

यामिनी यह सुन कर अचकचा गई. उसे कोई तर्क नहीं सूझ रहा था. तभी अचानक जीशान ने मेज पर पड़ा चाकू उठाया और राखी वाली कलाई की नस काट डाली. खून की धार बह चली. खूंखार चेहरे एकएक कर अदृश्य होते गए. काफी देर तक यामिनी मूर्तिवत् खड़ी रह गई. उस की चेतनशून्यता तब टूटी जब गरम रक्त का आभास उस के पांवों को हुआ. उस का ध्यान जीशान की ओर गया, जो मूर्छित हो कर जमीन पर पड़ा था.

यामिनी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था. उस ने अपने आंचल का किनारा फाड़ा और कस कर जीशान की कलाई पर बांध दिया. उसी समय दरवाजे पर मिसेज डेविडसन और यामिनी की रूमपार्टनर खड़ी दिखाई दीं. उन दोनों ने फोन कर के एंबुलेंस मंगा ली थी.

जीशान एक बार फिर उसी अस्पताल की ओर जा रहा था जहां से उसे जीवनदान और यह रिश्ता मिला था. उस का सिर यामिनी की गोद में था. यामिनी के हाथ प्यार से उस का माथा सहला रहे थे.

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Akshay Kumar की मां का निधन, सेलेब्स ने दी श्रद्धांजलि

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में इन दिनों बुरी खबरें सुनने को मिल रही हैं. जहां बीते दिनों एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला के अचानक निधन से फिल्म और टीवी इंडस्ट्री सदमे में है तो वहीं बौलीवुड एक्टर अक्षय कुमार (Akshay Kumar) ने फैंस को अपनी मां के निधन की जानकारी दी है, जिसके चलते सेलेब्स सोशलमीडिया पर उनकी मां को श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

ट्वीट करके दी मां के निधन की खबर

कुछ देर पहले ही एक्टर अक्षय कुमार ने ट्वीट करके फैंस और दोस्तों को जानकारी दी है कि उनकी मां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. दरअसल, अक्षय कुमार की मां की तबीयत पिछले कुछ दिनों से नाजुक चल रही थी, जिसके कारण अक्षय अपनी फिल्म की शूटिंग बीच में ही छोड़कर विदेश से भारत लौट आए थे. वहीं आईसीयू में भर्ती होने के बाद अक्षय कुमार की मां की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी, जिसके चलते उन्होंने फैंस से भी दुआ करने की अपील की थी. हालांकि आज सुबह उनका निधन हो गया.

 

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सेलेब्स ने दी श्रद्धांजलि

एक्टर अक्षय कुमार की मां के निधन की खबर मिलते ही सेलेब्स ने सोशलमीडिया के जरिए श्रद्धांजलि देना शुरु कर दिया है. अक्षय कुमार के दोस्त और साथी कलाकार अजय देवगन ने भी उनकी मां के लिए प्रार्थना करते हुए लिखा , ‘डियर अक्की, मुझे बहुत दुख है कि तुम्हारी मां अब इस दुनिया में नहीं हैं. मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूं. भगवान तुम्हारे परिवार के लिए शक्ति दें.’ वहीं दीया मिर्जा, शंकर महादेवन जैसे सितारे सोशलमीडिया पर ट्वीट के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

बता दें, हाल ही में एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का निधन हो गया था, जिसके चलते पूरी इंडस्ट्री में शोक का माहौल हो गया था.

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REVIEW: जानें कैसी हैं रिचा चड्ढा और रोनित रौय की वेब सीरीज ‘Candy’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः विपुल डी शाह, अश्विन वर्दे व राजेश बहल

निर्देशकः अशीश आर शुक्ला

कलाकारः रिचा चड्ढा, रोनित रॉय, मनु रिषि चड्ढा, गोपाल दत्त तिवारी, नकुल रोशन सहदेव, रिद्धि कुमार, अंजू अलवा नायक, विजयंत कोहली, अब्बास अली गजनवी,  आदित्य राजेंद्र नंदा, बोधिसत्व शर्मा, मिहिर आहुजा, प्रसन्ना बिस्ट,  आएशा प्रदीप कदुसकर,  राजकुमार शर्मा,  मिखाइल कंटू,  आदित्य सियाल व अन्य

अवधिः तीन घंटे दस मिनट,  35 से 44 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः वूट सेलेक्ट

कई डाक्यूमेंट्री व एड फिल्में का निर्देशन करने के बाद फिल्म ‘‘बहुत हुआ सम्मान’’ और चर्चित वेब सीरीज ‘‘अनदेखी’’के निर्देशक अशीश आर शुक्ला इस बार ड्रग्स,  हत्या,  रहस्य,  आशा,  भय,  राजनीति से भरपूर रहस्यप्रधान रोमांचक वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’ का पहला सीजन लेकर आए हैं, जो कि आठ सितंबर से ‘‘वूट सेलेक्ट’’पर स्ट्रीम होगी.

कहानीः

वेब सीरीज ‘‘कैंडी’’की कहानी है हिमालय की ठंड सर्दियों जैसे एक काल्पनिक शहर रूद्रकुंड की. कहानी के केंद्र में रूद्रकुंड शहर स्थित रूद्र वैली हाई स्कूल के एक छात्र मेहुल अवस्थी(मिहिर आहुजा  )की भयानक हत्या से जुड़ा रहस्य है. रूद्र कंुड की डीएसपी रत्ना संखवार (रिचा चड्ढा), हवलदार आत्मानाथ (राजकुमार शर्मा )व दूसरे पुलिस कर्मियों के साथ मेहुल की हत्या की खबर मिलने पर जंगल  में पहुॅचती है, जहां घने जंगल के बीच एक पेड़ से लटकी हुई मेहुल अवस्थी की लाश मिलती है. पुलिस अपनी जांच की कार्यवाही शुरू करती है, तभी उसी जगह दूसरे पुलिसकर्मी के साथ स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षक जयंत पारिख (रोनित रॉय बसु )पहुॅच जाते हैं. जयंत पारिख की बेटी बिन्नी ड्ग्स की लत के चलते आग लगाकर मर चुकी है,  जिसके सदमें से उनकी पत्नी सोनालिखा पारिख(अंजु अल्वा नाइक)आज तक उबर नही पायी है. जयंत पारिख भी अपनी बेटी को बहुत चाहते थे. इसलिए मोहित की हत्या को लेकर जयंत पारिख कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी लेने लगते हैं. इधर डीएसपी अपनी जांच करते हुए स्कूल पहुंचकर चर्च के फादर मारकस (विजयंत कोहली), स्कूल के प्रिंसिपल थॉमस (गोपाल दत्त तिवारी)के अलावा लड़कांे व लड़कियों से बात करती है. मेहुल अवस्थी को परेशान करने वाले तीन लड़कों इमरान अहमद(बोधिसत्व शर्मा ) , संजय सोनोवाल (आदित्य राजेंद्र नंदा)व जॉन(अब्बास अली)से पूछ ताछ करती है. मेहुल के स्कूल के लॉकर से कैंडी का पैकेट लेकर जाती है और यह पैकेट वह वायु राणावत(नकुल रोशन सहदेव )को दे देती है. अंततः चर्चा शुरू हो जाती है कि मसान ने हत्या की है. पुलिस अफसर रत्ना संखावर और वायु के बीच गहरे संबंध हैं. पता चलता है कि ड्ग्स युक्त कैंडी बनाने व बेचने का काम वायु राणावत कर रहा है, जो कि स्थानीय विधायक मणि राणावत (मनु रिषि चड्ढा )का बेटा है. विधायक होने के साथ साथ मणि शहर के सबसे शक्तिशाली व्यवसायी हंै. वह चाहते हैं कि रूद्रकंुड उनकी उंगलियों के इशारे पर चले. अपनी सत्ता को काबिज रखने के लिए उन्होने बहुत पाप भी किए हैं.

तो वहीं मेहुल अवस्थी की खास दोस्त कलकी रावत(रिद्धि कुमार )भी गायब है. कलकी रात के अंधेरे में रोते हुए बदहवाश सी जयंत पारिख के पास पहॅुंचती है. कलकी को जयंत अपने घर मे छिपाकर रखता है. पता चलता है कि वायु द्वारा जंगल में आयोजित एक पार्टी में छिपकर मेहुल व कलकी, वायु के खिलाफ ड्ग्स से जुड़े होने के सबूत जमा कर रहे थे, जब वहां से बाहर निकलने लगते हैं, तो एक लड़की जबरन कलकी को कैंडी चटा देती है. मेहुल व कलकी जंगल में लेट कर बातें करते हैं और उनके बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. उसके बाद किसी ने मेहुल की हत्या कर दी. सच जानने के लिए प्रयासरत जयंत की वायु व उसके गुंडे पिटायी कर देते हैं. जयंत को वायु के खिलाफ सबूत मिल जाता है. पर रत्ना को जयंत के सबूतों में रूचि नही है. इधर मेहुल की हत्या के लिए कलकी के पिता नरेश रावत (पवन कुमार सिंह) के खिलाफ सबूत मिलते हैं, वायु ही नरेश को पकड़कर रत्ना के हवाले करता है. जयंत की जंाच के अनुसार नरेश निर्दोष है. इसलिए जयंत सारे सबूत गुस्से मंे पुलिस स्टेशन आकर रत्ना शंखवार को दे देता है. रत्नी शंखवार वह सबूत आत्मानाथ को रखने के लिए देती है. मणि राणावत पुलिस स्टेशन में बंद नरेश रावत से मिलने आते हैं. रात में रूद्र कंुड के लोग ‘खून का बदला खून’के नारे के साथ पुलिस स्टेशन पर हमलाकर सबूत के साथ ही नरेश को ले जाकर पुल के उपर बांधकर जिंदा जला देते हैं. यह सब जयंत व कलकी देखकर भी कुछ नही कर पाते. इसके बाद मणि राणावत अपनी राजनीतिक चाल चलता है.  रत्ना को सस्पंेड कर उनके खिलाफ जांच बैठायी जाती है. तब रत्ना को अहसास होता है कि वह गलत लोगांेे के हाथ बिकी हुई थी और अब उसका जमीर जागता है. अब जयंत व रत्ना मिलकर सच की तलाश शुरू करते हैं. तो वहीं नए नए रहस्य सामने आते हैं. हत्याओं का सिलसिला बढ़ जाता है.  जयंत की चर्च के फादर मार्केस से भी बहस होती है. प्रिंसिपल से भी होती है. इधर जिन जिन लोगों पर दर्शक को शक होता है, वह मारे जाने लगते हैं. कहानी में कई मोड़ आते हैं. कई चेहरो ंपर से मुखौटा उतरता है. रहस्य,  डर,  उम्मीद, राजनीति,  इंसानी महत्वाकांक्षा, ड्ग्स का कारोबार,  किशोर वय लड़कियो संग सेक्स करने के अपराध सहित बहुत कुछ सामने आता जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

पटकथा लेखकद्वय अग्रिम जोशी और देबोजीत दास पुरकायस्थ साधुवाद के पात्र है. लेखकों ने लोककथा और आधुनिक अपराध कथ का बेहतरीन संमिश्रण किया है. इस वेब सीरीज में काल्पनिक शहर रूद्रकंुड के माध्यम से लेखक ने राजनीतिक गंध,  हत्या, राजनीति का अपराधीकरण, उम्मीद, डर, अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए इंसान किस हद तक जा सकता है, रिश्तों की हत्या से लेकर धर्म की आड़ मेंं होने वाले गंभीर आपराध जैसे सारे मुद्दों को बाखूबी पेश करते हुए रहस्य व रोमांच को बरकरार रखा है. इसमें इस बात का भी बाखूबी चित्रण है कि ड्ग्स माफिया किस तरह स्कूली बच्चों को ड्ग्स की लत का शिकार बनाकर बर्बाद कर रहा है. वेब सीरीज ‘कैंडी’ की कहानी के केंद्र में आवासीय विद्यालय,  किशोरवय बच्चे व ड्रग्स है. लेकिन निर्देशक आशीश आर शुक्ला ने कहीं भी ड्ग्स के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित करने के लिए उपदेशात्मक भाषणबाजी का सहारा नही लिया है.

कहानी की शुरूआत धीमी गति से होती है, मगर दर्शक बोरनही होता. उसका दिमाग सच जानने की  उत्सुकतावश वेब सीरीज ‘कैंडी’ के साथ जुड़ा रहता है. आठवें एपीसोड तक दर्शक असली हत्यारे तक नही पहुंच पाता और जब आठवें एपीसोड के अंत में सच सामने आता है, तो दर्शक हैरान रह जाता है. यह कुशल लेखन व अशीश आर शुक्ला के उत्कृष्ट निर्देशन के ही चलते संभव हो पाया है. लेखक व निर्देशक ने हर चरित्र को कई परतों में लपेट कर रहस्य को गहराने का काम किया है. निर्देशक ने कथानक के उपयुक्त तथा रहस्य को गहराने के लिए लोकेशन का भी बेहतरीन उपयोग किया है. घने और अंधेरे जंगल,  घुमावदार सड़कें,  सुरम्य पहाड़ियाँ और नैनीताल की भव्य जमी हुई झील का निर्देशक ने अपनी कथा को बयंा करने के लिए बेहतर तरीके से उपयोग किया है.  इमोशंस भी कमाल का पिरोया गया है. काल्पनिक कहानी होते हुए भी वास्तविकता का आभास कराती है. जयंत पारिख व उनकी पत्नी सोनालिखा के बीच के पारिवारिक रिश्तों को ठीक से नही गढ़ा गया है. जबकि लेखक व निर्देशक ने इसमें स्वाभाविक तरीके से अपरंपरागत संबंधों को उकेरा है. इस वेब सीरीज को देखकर दर्शक यह कहे बिना नही रह सकता कि रूद्रकुंड  शहर में जो दिखता है, वह होता नहीं. .

नैनीताल में फिल्मायी गयी इस वेब सीरीज के कैमरामैन बधाई के पात्र हैं, उन्होने यहां की प्राकृतिक सुंदरता को इस तरह से कैमरे के माध्यम से पकड़ा है कि दर्शक इस जगह जाने के लिए लालायित हो उठता है.

 

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अभिनयः

कुटिल व सशक्त पुलिस अफसर तथा सिंगल मदर रत्ना शंखावर के किरदार को अपने शानदार अभिनय से रिचा चड्ढा ने जीवंतता प्रदान की है. कई दृश्यों में रिचा अपने चेहरे के भावों से बहुत कुछ कह जाती हैं. रिचा ने पुलिस अफसर के कर्तव्य को निभाने वक्त अपने रोमांस की कमजोरी के चलते अपराधी को नजरंदाज करने के दृश्यों को काफी वास्तविकता प्रदान की है. सच को सामने लाने और स्कूली बच्चों को ड्ग्स के चंगुल से छुड़ाने के लिए तड़पते शिक्षक जयंत के किरदार में रोनित रॉय ने एक बार फिर अपनी अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता का परिचय दिया है. कलकी के किरदार में रिद्धि कुमार अपने अभिनय से आश्चर्य चकित करती हैं. कई दृश्यों में वह बिना कुछ कहें बहुत कुछ कह जाती हैं. ड्ग्स व सिगरेट में डूबे रहने वाले वायु राणावत के किरदार के साथ नकुल रोशन सहदेव ने पूरा न्याय किया है. नकुल ने अपने दांतों, बॉडी लैंगवेज ,  बार-बार आँख झपकना और किसी की परवाह न करना आदि के माध्यम से अपने किरदार वायु को एक  अपराधी के रूप में पेश करने में सफल रहे हैं. कई दृश्यों में वह अपने अभिनय से रहस्य को गहराई प्रदान करते हैं. मनु ऋषि चड्ढा अपने अभिनय की छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. अन्य सह कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.

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अनुज के लिए वनराज मारेगा Anupama को ताना, मिलेगा ऐसा करारा जवाब

Star Plus के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में आए दिन नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां काव्या और वनराज, अनुज को अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं अनुपमा के लिए अनुज का प्यार बढ़ रहा है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड में और भी कई नए ट्विस्ट आने वाले हैं, जो सीरियल की कहानी और अनुपमा की जिंदगी दोनों को नया मोड़ देगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा को निहारती दिखीं अनुज की नजरें

 

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अब तक आपने देखा कि समर को बचाने के बाद अनुज शाह हाउस जाता है. जहां उसकी मुलाकात एक बार फिर अनुपमा से होती है, जिसे देखकर वह बेहद खुश होता है. लेकिन अनुज का अनुपमा की तरफ इंटरेस्ट देखकर वनराज का गुस्सा बढ़ जाता है, जिसके चलते वह काव्या को भी सुनाता है. दूसरी तरफ अनुज पूरे शाह परिवार और अनुपमा के साथ जन्माष्टमी सेलिब्रेट करता है.

 

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काव्या करेगी नई कोशिश

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि समर के घर लौटने के बाद नंदिनी और समर एक दूसरे से अपने मसले को लेकर बात करेंगे. हालांकि बा, नंदिनी पर अपना गुस्सा भी जाहिर करेगी. लेकिन अनुपमा बात संभालने की कोशिश करेगी. वहीं अनुज, अनुपमा को डांस करता देख बेहद खुश होगा और वह भी सभी के साथ जन्माष्टमी में डांस करेगा. इस बीच काव्या पूरी कोशिश करेगी कि अनुज उसके जाल में फंस जाए. हालांकि वह ये आइडिया अनुपमा को भी देने की कोशिश करेगी. लेकिन वह मना कर देगी, जिसके बाद वह खुद ही नई प्लानिंग में लग जाएगी.

अनुपमा देगी करारा जवाब

वहीं अपकमिंग एपिसोड में वनराज, अनुपमा और अनुज को साथ देख जलता हुआ नजर आएगा. दरअसल, डांस के बाद वनराज, अनुज (Anuj Kapadia) से कारखाने की डील को लेकर बात करेगा तो अनुज कहेगा कि वह अपनी लीगल टीम से बात करके इस बारे में बात करेगा, जिसे सुनकर वनराज गुस्से में आ जाएगा. दूसरी तरफ  अनुज जब शाह निवास से जाएगा तो अनुपमा उसके जाने का इंतजार करेगी, जिसे देखकर वनराज चिढ़ जाएगा और कहेगी कि यहां क्या लड्डू बंट रहे हैं, जिसके जवाब में अनुपमा करारा जवाब देते हुए कहेगी कि  तमीज बट रही है, जिसे सुनकर वनराज गुस्से में नजर आएगा.

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लौकडाउन : मालिनी ने शांतनु को क्यों ठुकरा दिया था?

मालवा अपने इतिहास के लिए प्रसिद्ध है. जो लोग मालवा के इतिहास को जानते हैं, उन्हें आज भी यहां की मिट्टी में सौंधीसौंधी गंध आती है. इसी मालवा का सुप्रसिद्ध शहर है इंदौर.

पिछले 50-55 सालों में नगरोंमहानगरों ने बहुत तरक्की की है. स्थिति यह है कि एक नगर में 2-2 नगर बन गए हैं. एक नया, दूसरा पुराना. इंदौर की स्थिति भी यही है. शहरों या महानगरों में अंदर पुराने शहरों की स्थितियां भी अलग होती हैं. छोटेछोटे घर, पतली गलियां और इन गलियों के अपने अलग मोहल्ले.

खास बात यह कि इन गलियोंमोहल्लों में लोग एकदूसरे को जानते भी हैं और मानते भी हैं. जरूरत हो तो मोहल्ले के लोगों से हर किसी का खानदानी ब्यौरा मिल जाएगा. राय साहब का बंगला पुराने इंदौर के बीचोबीच जरूर था, लेकिन छोटा नहीं, बहुत बड़ा. बाद में बसे मोहल्ले ने बंगले को घेर जरूर लिया था. लेकिन उस की शानोशौकत में कोई कमी नहीं आई थी. वैसे एक सच यह भी था कि जो लोग बंगले के आसपास आ कर बसे थे, उन्हें जमीन राय साहब ने ही बेची थी.

राय साहब के बंगले की अपनी अलग ही खूबसूरती थी, ऐसा लगता था जैसे अथाह समुद्र में कोई टापू उग आया हो. तरहतरह के फूलों के अलावा कई किस्म के फलों के पेड़ भी थे. इस लंबेचौड़े खूबसूरत बंगलों में कुल मिला कर 3 लोग रहते थे, राय साहब, उन की पत्नी दामिनी और एक गार्ड. राय दंपति का एकलौता बेटा श्रेयस राय लंदन में पढ़ रहा था.

गार्ड का कोई खास काम नहीं था, इसलिए रात को वह घर चला जाता था. हां, राय साहब के पास 2 लग्जरी कारें थीं, जब उन्हें कहीं जाना होता था तो गार्ड ही ड्राइवर बन जाता था. वह नहीं होता तो दामिनी कार ड्राइव करती थीं.

सामाजिक और आर्थिक रूप से उच्चस्तरीय लोगों के यहां पार्टियां वगैरह होना मामूली बात है. कभीकभी ऐसी पार्टियां केवल दोस्तों तक ही सीमित होती हैं. राय साहब भी पार्टियों के शौकीन थे. वह पार्टियों में जाते भी थे और समयसमय पर बंगले पर पार्टियां करते भी थे.

एक बार दामिनी के साथ वह एक पार्टी में गए तो वहां मालिनी मिल गई. वह लंदन में उन के साथ पढ़ती थी. दोनों में अच्छीभली दोस्ती थी. हां, पारिवारिक स्तर पर दोनों में से कोई भी एकदूसरे को नहीं जानता था.

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राय साहब मन ही मन मालिनी को पसंद करते थे. उन्होंने उस से प्रेम निवेदन भी किया था, लेकिन रूपगर्विता मालिनी ने उन का प्रेम निवेदन ठुकरा दिया था. इस से राय साहब को दिली चोट पहुंची थी.

बाद में राय साहब जब भारत लौट आए तो शाही अंदाज में उन की शादी दामिनी से हो गई थी. दामिनी मालिनी से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, उस में शाही नफासत भी थी. इस के बावजूद वह मालिनी को नहीं भूल सके. कभीकभी उन के दिल में मालिनी नाम का कांटा चुभ ही जाता था. यही वजह थी कि 25-30 साल बाद अचानक मालिनी को देख राय साहब को पुरानी बातें याद आ गईं.

पार्टी में राय साहब ने मालिनी को देखा जरूर, लेकिन अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. मालिनी हाथ में शराब का जाम थामे खुद ही उन के पास आ गई. राय साहब उस की ओर से अनभिज्ञ बने रहे. उसी ने नजदीक आ कर उन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कैसे हैं शांतनु साहब?’’

मालिनी को नशा तो नहीं हुआ था, लेकिन उस की नशीली आंखों में ऐसा कुछ जरूर था, जो पल भर के लिए राय साहब को अंदर तक विचलित कर गया.

‘‘अच्छा हूं मालिनी, तुम बताओ इतने बरसों बाद यहां?’’

‘‘काम के सिलसिले में आई थी. लंबे समय बाद मुलाकात हो रही है, कभी अपने घर बुलाना.’’ मालिनी ने निस्संकोच कहा.

इस से पहले कि वह या राय साहब कुछ कहते, दामिनी ने आ कर राय साहब के हाथों में हाथ डाल दिए. फिर बोली, ‘‘अब घर चलो, कितनी देर हो गई है, आज आप ने पी ज्यादा ली है.’’

दामिनी के आने पर राय साहब ने मालिनी से दामिनी का परिचय कराया. औपचारिक बातों के बाद पतिपत्नी वहां से चले गए. राय साहब वहां से चले तो गए लेकिन मालिनी की यादों को साथ ले गए. मालिनी को भी लगा जैसे बरसों बाद कोई अपना मिला हो.

लेकिन यह जुदाई नहीं बल्कि मुलाकातों की शुरुआत थी. दोनों आए दिन पार्टियों वगैरह में मिलने लगे. एक बार मालिनी ने ताना मारा तो राय साहब ने उसे घर आने का निमंत्रण दे दिया. इस के बाद मालिनी यदाकदा बंगले पर आने लगी. अविवाहित मालिनी को राय साहब के ठाठबाठ, शानोशौकत, इतना बड़ा बंगला देख कर दामिनी की किस्मत से रश्क होने लगा. उस के मन में एक टीस सी उठी कि काश उस ने राय साहब के प्रस्ताव को ठुकराया न होता, तो आज दामिनी की जगह वह होती.

मालिनी के आनेजाने से राय साहब के दिल में दबी चिंगारी सुलगने लगी, जिसे मालिनी ने भी महसूस किया. यही भावना दोनों को एकदूसरे की तरफ खींचने लगी. नतीजतन दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

उम्र के इस पड़ाव पर भी दोनों पारस्परिक आकर्षण, ताजगी, रोमांस और रूमानियत से जीवन में रंग भरने लगे. धीरेधीरे मालिनी का बंगले पर आना बढ़ गया. उस ने दामिनी से भी अपनत्व भरी मित्रता कर ली थी.

बढ़ते हुए कदमों ने मालिनी व राय साहब को एकदूसरे के बिलकुल नजदीक ला दिया था. दोनों प्रेम में घायल पंछियों की तरह खुले आसमान में उड़ान भरना चाहते थे. यह जानते हुए भी कि यह संभव नहीं है. एक दिन मौका मिला तो मालिनी ने राय साहब से कहा, ‘‘शांतनु, ऐसा कब तक चलेगा, अब दूरियां बरदाश्त नहीं होतीं.’’

राय साहब ने तो कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन किस्मत ने जल्दी दोनों को मौका दे दिया.

उस दिन राय साहब ने बंगले पर छोटी सी पार्टी रखी थी, दोस्तों के लिए. मालिनी को भी बुलाया था. देर रात तक चली पार्टी का नशा पूरे शबाब पर था.

मालिनी ने चुपके से दामिनी के ड्रिंक में नींद की गोलियां मिला दीं. अधूरी तमन्नाओं और रात रंगीन करने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया था.

जब नशे का असर शुरू होने लगा तो वह दामिनी को उस के कमरे में ले गई. राय साहब ने देखा तो पीछेपीछे आ कर पूछा, ‘‘दामिनी को क्या हुआ?’’

मालिनी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ‘‘पार्टी खत्म करो, फिर बात करेंगे. सब ठीक है.’’

पलभर रुक कर उस ने राय को सब कुछ बता कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. उसे कुछ नहीं होगा. बस नशा थोड़ा ज्यादा हो गया है. अब वह सुबह तक नहीं उठेगी. बस रात की ही बात है.’’ कहते हुए मालिनी राय साहब के गले लग गई.

लेकिन तभी अचानक दामिनी उठ गई, वह नशे में थी. यह देख मालिनी डर गई. जल्दी में कुछ नहीं सूझा तो उस ने दामिनी को धक्का दे दिया, जिस से वह पलंग से टकरा कर वहीं लुढ़क गई.

नशे में चूर राय साहब के लिए उस वक्त आंख और कान मालिनी बनी हुई थी, इसलिए वह इस मामले की गहराई में नहीं गए. उन्होंने वही माना जो मालिनी ने कहा.

पार्टी खत्म हो गई. विदा ले कर सब चले गए. राय साहब ने वेटरों को भी मेहनताना दे कर भेज दिया.

सुबह जब नशे की खुमारी उतरी तो राय साहब को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह लंबे डग भरते हुए अपने कमरे की तरफ भागे. लेकिन दामिनी कमरे में नहीं थी.

उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला तो मुंह से चीख निकल गई. दामिनी बाथटब के अंदर पानी में पड़ी थी. राय साहब ने उसे बाथटब से बाहर निकाल कर पेट से पानी निकालने का प्रयास किया. मुंह से सांस देने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दामिनी का शरीर ठंडा पड़ चुका था.

राय साहब की चीख सुन कर मालिनी दौड़ी आई. दामिनी को निस्तेज देख कर उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, ये सब कैसे हो गया?’’ बात उस के गले में अटक रही थी. आंखें डबडबाने को थीं.

दामिनी के शव को देख उस ने रुआंसी हो कर कहा, ‘‘मैं ने ड्रिंक में सिर्फ नींद की गोलियां मिलाई थीं. मैं इस की जान नहीं लेना चाहती थी.’’

राय साहब ने उसे गुस्से में परे धकेल दिया. फिर चीख कर बोले, ‘‘जाओ, जल्दी से किसी डाक्टर को बुलाओ. यह नहीं होना चाहिए था.’’

मालिनी के चेहरे पर भय उतर आया था. फिर भी उस ने राय साहब को शांत करने की कोशिश की.

राय साहब गुस्से में बड़बड़ा रहे थे. मालिनी ने उन के कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘तुम शांत हो जाओ, इस की सांस बंद हो चुकी है. डाक्टर से क्या कहोगे? पुलिस केस बनेगा. तहकीकात होगी. बात का बतंगड़ बन जाएगा. शाम को चुपचाप दाह संस्कार कर देंगे, इसी में हमारी भलाई है.

‘‘इन परेशानियों से बचने के लिए हमारा चुप रहना ही ठीक रहेगा. मैं तुम्हारे साथ हूं, चिंता मत करो. मैं रात को आऊंगी. गार्ड छुट्टी पर है, कलपरसों तक आएगा. किसी को पता नहीं चलेगा.’’ मालिनी ने राय साहब को शांत कराने की कोशिश की.

मालिनी की बात से सहमत होने के अलावा राय साहब के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. उन्हें समझाने के बाद मालिनी बोली, ‘‘अब मैं जा रही हूं. शाम को आऊंगी. तुम्हारी गाड़ी ले जा रही हूं. चाबी दे दो.’’

राय साहब से कार की चाबी ले कर मालिनी बाहर निकल गई. राय साहब उसे छोड़ने बाहर आए. वह कार ले कर निकल गई तो मुख्य गेट उन्होंने ही बंद किया.

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राय साहब ने किसी तरह दिन काटा और शाम को मालिनी के आने का इंतजार करने लगे. मन को बहलाने के लिए वह टीवी पर समाचार सुन रहे थे, तभी एक खबर ने उन्हें चौंका दिया. देश में कोरोना महामारी फैलने की वजह से जनता कर्फ्यू लगा दिया गया था.  किसी को भी घर से बाहर निकलने की मनाही थी. बात साफ थी आज रात वे दामिनी के शव के साथ बाहर नहीं जा सकते थे.

राय साहब ने जल्दी से मालिनी को फोन किया, ‘‘तुम अभी घर आ जाओ, हमें दाह संस्कार करना होगा. लाश को ज्यादा समय तक घर में नहीं रखा जा सकता.’’

लेकिन मालिनी ने असमर्थता जाहिर करते हुए आने से इनकार कर दिया. उस ने राय साहब को समझाने की कोशिश की कि शहर भर में पुलिस तैनात है. मैं नहीं आ सकती. कल आती हूं. बस एक ही दिन की तो बात है.

राय साहब क्या करते, उन्हें दिन भर पत्नी की लाश के साथ अकेले रहना था. वह बंगले में घूमघूम कर वक्त बिताने लगे. न खाना, न पीना.

राय साहब पर बिजली तब गिरी, जब प्रधानमंत्री ने अगले 21 दिन के लिए लौकडाउन की घोषणा कर दी. मालिनी नहीं आ सकी तो राय साहब को आत्मग्लानि होने लगी. उन के दिलोदिमाग में भय के बादल मंडराने लगे थे. कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने जल्दी से बंगले की सारी खिड़की, दरवाजे बंद कर लिए. बाहर गेट पर ताला लगा दिया, जिस से कोई अंदर न आ सके.

कुछ पल शांत बैठ कर उन्होंने खुद को संभाला. एक कार मालिनी ले गई थी. गनीमत थी कि दूसरी खड़ी थी. उन्होंने सोचा रात में लाश को गाड़ी में ले जा कर ठिकाने लगा देंगे. बंगले से बाहर के लोग अंदर कुछ नहीं देख सकेंगे.

लेकिन बंगले के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जिन से राय साहब को बंगले के बाहर सड़क पर आनेजाने वालों की जानकारी मिल जाती थी.

राय साहब ने अपने मोबाइल पर सीसीटीवी फुटेज देखे, चारों तरफ मुस्तैदी से तैनात पुलिसकर्मी नजर आए. लौकडाउन का सख्ती से पालन कराया जा रहा था. आनेजाने वालों की चैकिंग हो रही थी. ऐसे में बाहर जाना खतरे से खाली नहीं था.

इतने दिन लाश के साथ गुजारना भयावह था. वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि जिंदगी ठहर सी गई. राय साहब की हालत खराब होने लगी. लाश के साथ रहना उन की मजबूरी थी. बारबार बैडरूम में जा कर वह चैक करते कि दामिनी का शरीर सुरक्षित है या नहीं.

पूरे बंगले में सिर्फ वह थे और दामिनी का मृत शरीर. लाश को घर में रखे रहना चिंता की बात थी. शरीर के सड़ने से बदबू फैल सकती थी. उन्होंने बैडरूम में एसी चला कर दामिनी के शरीर को पलंग पर लिटा दिया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. कभी वह कमरे के बाहर जाते तो कभी खिड़कियों से झांकते. उन्हें बाहर जाने से भी डर लगने लगा था.

घबराहट धीरेधीरे कुंठा में परिवर्तित होने लगी थी. चेहरे पर भय और ग्लानि के भाव नजर आने लगे थे. वह जितना खुद को संयत करते, दामिनी की मौत को ले कर उन्हें उतना ही अपराधबोध होता. ऐसी स्थिति में उन्हें एकएक दिन गुजारना मुश्किल हो रहा था.

एक दिन वह कमरे में दामिनी को देखने गए तो न जाने किस भावावेश में पत्नी के मृत शरीर से लिपट गए और पागलों की तरह रोने लगे. उन के मुंह से खुदबखुद अपराधबोध के शब्द निकल रहे थे.

‘‘दामिनी, मुझे माफ कर दो. तुम्हें मेरी गलती की इतनी सजा मिली. इस घर के कोनेकोने में तुम्हारी यादें बसी हैं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता, प्लीज वापस आ जाओ. मैं ने मालिनी पर विश्वास कर के गलती की. मुझे माफ कर दो,’’ रोतेरोते उन की आंखें लाल हो गईं.

थोड़ी देर बाद राय साहब ने महसूस किया जैसे कोई उन के हाथ को सहला रहा हो. किसी की गर्म सांसें उन के चेहरे पर महसूस हुईं. उन के आगोश में कोई खास लिपटा था. वह मदमस्त से उस निश्चल धारा में बहने लगे. तभी अचानक न जाने कहां से उन के पालतू कुत्ते आ गए और उन के साथ खेलने लगे.

खेलतेखेलते कुत्तों ने अचानक उन के हाथों की अंगुलियों को मुंह में दबा लिया. राय साहब अंगुलियों को छुड़ाना चाहते थे, लेकिन उन की पकड़ मजबूत थी. कुत्तों के पैने दांतों के बीच दबी अंगुलियां कट सकती थीं. इस डर से वह जोर से चिल्लाने लगे. भयभीत हो कर उन्होंने आंखें खोलीं तो खुद को बिस्तर पर पाया. यह स्वप्न था. याद आया, उन के कुत्ते तो एक महीना पहले ही मर गए थे. शायद उन्हें जहर दिया गया था.

राय साहब की हालत पागलों वाली हो गई थी. खाने की चिंता तक नहीं रहती थी. सुबह को डिलिवरी बौय गेट के बाहर दूध और ब्रेड रख जाता था, उसी से काम चलाना होता था. उन्होंने देखा कि दामिनी के हाथ में उन का हाथ फंसा हुआ है. वह उन के शरीर से लिपटी हुई थी.

डर से राय साहब की चीख निकल गई. वह पसीने से तरबतर थे. भय से कांपते हुए वह जमीन पर बैठ गए. सांस उखड़ने लगी, गला सूख रहा था. किसी तरह उठ कर लड़खड़ाते कदमों से वह किचन की तरफ भागे. वहां खड़े हो कर उन्होंने 2-3 गिलास पानी पी कर खुद को संयत किया.

एक दिन राय साहब मानसिक उद्विग्नता की स्थिति में दामिनी की लाश के पास बैठे थे. तभी उन्होंने महसूस किया कि कोई मजबूती से उन का हाथ पकड़े है, लेकिन दिखा कोई नहीं. वह सोचने लगे, दामिनी ही होगी. इस तरह हाथ वही पकड़ती थी.

राय साहब को पत्नी की लाश के साथ घर में रहते हुए 15-20 दिन हो गए थे. हर एक दिन एकएक साल की तरह लग रहा था. बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल, भयग्रस्त चेहरा उन के सुंदर चेहरे को डरावना बना रहे थे.

घर में जो मिला, खा लिया. अब वह खाने से ज्यादा पीने लगे थे. गनीमत थी कि उस रोज की पार्टी की काफी शराब बच गई थी, वरना वह भी नहीं मिलती.

धीरेधीरे राय साहब को इन बातों की आदत सी पड़ने लगी. पहले वह लाश को देख कर डरते थे. लेकिन अब उस से बातें भी करने लगे थे. उन की मानसिक स्थिति अजीब सी हो गई थी.

दामिनी उन की कल्पना में फिर से जी उठी. उस की अच्छाई, उस का निस्वार्थ प्रेम अकल्पनीय था. उन की दुनिया, भले ही वह खयालों में हो, फिर से दामिनी के इर्दगिर्द सिमटने लगी. काल्पनिक दुनिया में उन्होंने दामिनी से अपने सारे गिलेशिकवे दूर कर लिए.

अब उन की काल्पनिक दामिनी हर समय उन के साथ रहने लगी. नशे में धुत राय साहब घंटों तक दामिनी से बातें करने लगे. रोजाना दामिनी का शृंगार करना और उस के पास ही सो जाना, उन की दिनचर्या में शामिल हो गया.

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आत्मग्लानि, अकेलापन और दुख राय साहब को मानसिक रूप से विक्षिप्त बना रहा था. बिछोह की अग्नि प्रबल होती जा रही थी. एक दिन वह पागलों जैसी हरकतें करने लगे. दामिनी के सड़ते हुए शरीर को गंदा समझ कर वह गीले कपड़े से साफ करने लगे तो शरीर से चमड़ी निकलने लगी.

तेज बदबू आ रही थी. फिर भी राय साहब किसी पागल दीवाने की तरह उस का शृंगार करने लगे. फिर उन्होंने अलमारी से शादी वाली साड़ी निकाली और दामिनी के शरीर पर डाल कर उसे दुलहन जैसा सजाने की कोशिश की. फिर मांग में सिंदूर भर कर निहारने लगे.

उन की नजर में वह वही सुंदर दामिनी थी. वह दामिनी से बातें करने लगे, ‘‘देखो दामिनी, कितनी सुंदर लग रही हो तुम.’’

राय साहब ने उस के माथे पर अपने प्यार की मुहर लगाई, फिर गले लग कर बोले, ‘‘अब तुम आराम करो, तुम तैयार हो गई हो. मैं भी नहा कर आता हूं. हमें बाहर जाना है.’’

राय साहब किसी पागल की तरह मुसकराए. वह कई दिनों से सोए नहीं थे. अब सुकून से सोना चाहते थे. आंखों में नींद भरी थी. पर आंखें थीं कि बंद नहीं हो रही थीं. गला सूख रहा था, उन्होंने उठ कर पानी पीया.

फिर न जाने किस नशे के अभिभूत हो कर नींद की ढेर सारी गोलियां खा लीं. उस के बाद वह बाथरूम में गए और टब में लेट गए. उन के मुंह से अस्फुट से शब्द निकल रहे थे कि आज उन का और दामिनी का पुनर्मिलन होगा.

एक महीने बाद जब लौकडाउन खत्म हुआ तो घर का गार्ड काम पर लौट आया. उस ने घर का दरवाजा देखा, वह अंदर से बंद था. फिर फोन लगाया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया. काफी देर तक घंटी बजाने के बाद भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

कोई रास्ता न देख गार्ड ने पुलिस को बुलाया. बंगले के अंदर जाने पर तेज बदबू आ रही थी. सभी को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. अंदर जा कर देखा तो राय साहब और दामिनी की लाशें पड़ी थीं. लाशें सड़ चुकी थीं. एक लाश पलंग पर सुंदर कपड़ों में थी तो दूसरी वहीं जमीन पर तकिए के साथ पड़ी थी.

वहां की हालत देख कर सब का कलेजा मुंह को आ गया. दोनों का पोस्टमार्टम कराया गया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि दोनों की दम घुटने के कारण मौत हुई थी. यानी दोनों का कत्ल किया गया था, लेकिन किस ने? यह बात हर किसी को परेशान कर रही थी कि जब सारे दरवाजे बंद थे तो घर के अंदर 2 कत्ल कैसे हुए.

पुलिस ने जांच में आत्महत्या वाले एंगल पर भी गौर किया. इस दिशा में जांच की गई तो एक बुक रैक के पास एक मेज पर दामिनी की तसवीर रखी मिली, जिस के पास अगरबत्तियों की राख पड़ी थी. वहीं फोल्ड किया एक पेपर रखा था.

पुलिस ने खोल कर देखा. उस में राय साहब ने अपने मन के उद्गार लिखे थे. लिखा था, ‘मेरी दामिनी की हत्यारी मालिनी है. मुझे मालूम है, मालिनी मुझे भी मार डालेगी. मैं खुद भी यही चाहता हूं, क्योंकि मैं दामिनी का गुनहगार बन कर पुलिस और जेल की जलालत नहीं सह पाऊंगा. उस के पास मेरे बंगले की डुप्लीकेट चाबियां हैं. दामिनी के बिना मैं भी जीना नहीं चाहता.

‘बस एक चाहत है कि मालिनी मेरे बंगले को बेच न पाए. यह मेरे बेटे श्रेयस का है. अगर ऐसा नहीं हो पाया तो उस के इस कमीने बाप की आत्मा को कभी शांति नहीं मिल पाएगी.’

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आखिरी लोकल : शिवानी और शिवेश की कहानी

लेखक-  राजीव रोहित

शिवानी और शिवेश दोनों मुंबई के शिवाजी छत्रपति रेलवे स्टेशन पर लोकल से उतर कर रोज की तरह अपने औफिस की तरफ जाने के लिए मुड़ ही रहे थे कि शिवानी ने कहा, ‘‘सुनो, आज मुझे नाइट शो में ‘रईस’ देखनी ही देखनी है, चाहे कुछ भी हो जाए.’’ ‘‘अरे, यह कैसी जिद है?’’

शिवेश ने हैरान हो कर कहा. ‘‘जिदविद कुछ नहीं. मुझे बस आज फिल्म देखनी है तो देखनी है,’’ शिवानी ने जैसे फैसला सुना दिया हो.  ‘‘अच्छा पहले इस भीड़ से एक तरफ आ जाओ, फिर बात करते हैं,’’ शिवेश ने शिवानी का हाथ पकड़ कर एक तरफ ले जाते हुए कहा.

‘‘आज तो औफिस देर तक रहेगा. पता नहीं, कितनी देर हो जाएगी. तुम तो जानती हो,’’ शिवेश ने कहा.  ‘‘मुझे भी मालूम है. पर जनाब, इतनी भी देर नहीं लगने वाली है. ज्यादा बहाना बनाने की जरूरत नहीं है. यह कोई मार्च भी नहीं है कि रातभर रुकना पड़ेगा. सीधी तरह बताओ कि आज फिल्म दिखाओगे या नहीं?’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगा,’’ शिवेश ने मरी हुई आवाज में कहा.

‘‘कोशिश नहीं जी, मुझे देखनी है तो देखनी है,’’ शिवानी ने इस बार थोड़ा मुसकरा कर कहा. शिवेश ने शिवानी की इस दिलकश मुसकान के आगे हथियार डाल दिए.

‘‘ठीक है बाबा, आज हम फिल्म जरूर देखेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए.’’  शिवानी की इसी मुसकान पर तो शिवेश कालेज के जमाने से ही अपना दिल हार बैठा था. दोनों ही कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे, पसंद करते थे.  शिवानी ने उस के प्यार को स्वीकार तो किया था, लेकिन एक शर्त भी रख दी थी कि जब तक दोनों को कोई ढंग की नौकरी नहीं मिलेगी, तब तक कोई शादी की बात नहीं करेगा.

शिवेश ने यह शर्त खुशीखुशी मान ली थी. दोनों ही प्रतियोगिता परिक्षाओं की तैयारी में जीजान से लग गए थे. आखिरकार दोनों को कामयाबी मिली. पहले शिवेश को एक निजी पर सरकार द्वारा नियंत्रित बीमा कंपनी में क्लर्क के पद पर पक्की नौकरी मिल गई, फिर उस के 7-8 महीने बाद शिवानी को भी एक सरकारी बैंक में अफसर के पद पर नौकरी मिल गई थी.

मुंबई में उन का यह तीसरा साल था. तबादला तो सरकारी कर्मचारी की नियति है. हर 3-4 साल के अंतराल पर उन का तबादला होता रहा था. 15 साल की नौकरी में अब तक दोनों 3 राज्यों के  4 शहरों में नौकरी कर चुके थे.  शिवानी ने इस बार तबादले के लिए मुंबई आवेदन किया था. दोनों को मुंबई अपने नाम से हमेशा ही खींचती आई थी. वैसे भी इस देश में यह बात आम है कि किसी भी शहर के नागरिकों में कम से कम एक बार मुंबई घूमने की ख्वाहिश जरूर होती है. कुछ लोगों को यह इतनी पसंद आती है कि वे मुंबई के हो कर ही रह जाते हैं.

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इस शहर की आबादी दिनोंदिन बढ़ते रहने की एक वजह यह भी है. हालांकि शिवानी और शिवेश ने अभी तक मुंबई में बस जाने का फैसला नहीं लिया था, फिर भी फिलहाल मुंबई में कुछ दिन बिताने के बाद वे यहां के लाइफ स्टाइल से अच्छी तरह परिचित तो हो ही चुके थे.  वे तकरीबन पूरी मुंबई घूम चुके थे. जब कभी उन की मुंबई घूमने की इच्छा होती थी, तो वे मुंबई दर्शन की बस में बैठ जाते और पूरी मुंबई को देख लेते थे. अपने रिश्तेदारों के साथ भी वे यह तकनीक अपनाते थे.

कभीकभी जब शिवानी की इच्छा होती तो दोनों अकसर शनिवार की रात कोई फिल्म देख लेते थे. खासतौर पर जब शाहरुख खान की कोई नई फिल्म लगती तो शिवानी फिर जिद कर के रिलीज के दूसरे दिन यानी शनिवार को ही वह फिल्म देख लेती थी. आज भी उस के पसंदीदा हीरो की फिल्म की रिलीज का दूसरा ही दिन था. समीक्षकों ने फिल्म की धज्जियां उड़ा दी थीं, फिर भी शिवानी पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था. बस देखनी है तो देखनी है.

‘‘ये फिल्मों की समीक्षा करने वाले फिल्म बनाने की औकात रखते हैं क्या?’’ वह चिढ़ कर कहती थी.  ‘‘ऐसा न कहो.

सब लोग अपने पेशे के मुताबिक ही काम करते हैं. समीक्षक  भी फिल्म कला से अच्छी तरह परिचित होते हैं. प्रजातांत्रिक देश है मैडमजी. कहने, सुनने और लिखने की पूरीपूरी आजादी है.  ‘‘यहां लोग पहले की समीक्षाएं पढ़ कर फिल्म समीक्षा करना सीखते हैं, जबकि विदेशों में फिल्म समीक्षा  भी पढ़ाई का एक जरूरी अंग है,’’ शिवेश अकसर समझाने की कोशिश करता था. ‘‘बसबस, ज्यादा ज्ञान देने की जरूरत नहीं. मैं समझ गई. लेकिन फिल्म मैं जरूर देखूंगी,’’ अकसर किसी भी बात का समापन शिवानी हाथ जोड़ते हुए मुसकरा कर अपनी बात कहती थी और शिवेश हथियार डाल देता था. आज भी वैसा ही हुआ. ‘‘अच्छा चलो महारानीजी, तुम जीती मैं हारा. रात का शो हम देख रहे हैं. अब खुश?’’ शिवेश ने भी हाथ जोड़ लिए.  ‘‘हां जी, जीत हमेशा पत्नी की होनी चाहिए.’’  ‘‘मान लिया जी,’’ शिवेश ने मुसकरा कर कहा.

‘‘मन तो कर रहा है कि तुम्हारा मुंह  चूम लूं, लेकिन जाने दो. बच गए. पब्लिक प्लेस है न,’’ शिवानी ने बड़ी अदा से कहा. इस मस्ती के बाद दोनों अपनेअपने औफिस की तरफ चल दिए. औफिस पहुंच कर दोनों अपने काम में बिजी हो गए. काम निबटातेनिबटाते कब साढ़े  5 बज जाते थे, किसी को पता ही नहीं चलता था. शिवेश ने आज के काम जल्दी निबटा लिए थे. ऐसे भी अगले दिन रविवार की छुट्टी थी.

लिहाजा, आराम से रात के शो में फिल्म देखी जा सकती थी. उस ने शिवानी से बात करने का मन बनाया. अपने मोबाइल से उस ने शिवानी को फोन लगाया. ‘हांजी पतिदेव महोदय, क्या इरादा है?’ शिवानी ने फोन उठाते हुए पूछा. ‘‘जी महोदया, मेरा काम तो पूरा हो चुका है. क्या हम साढ़े 6 बजे का शो भी देख सकते हैं?’’ ‘जी नहीं, माफ करें स्वामी. हमारा काम खत्म होने में कम से कम एक घंटा और लगेगा. आप एक घंटे तक मटरगश्ती भी कर सकते हैं,’ शिवानी ने मस्ती में कहा.

‘‘आवारागर्दी से क्या मतलब है तुम्हारा?’’ शिवेश जलभुन गया.

‘अरे बाबा, नाराज नहीं होते. मैं तो मजाक कर रही थी,’ कह कर शिवानी हंस पड़ी थी.  ‘‘मैं तुम्हारे औफिस आ जाऊं?’’ ‘नो बेबी, बिलकुल नहीं. तुम्हें यहां चुड़ैलों की नजर लग जाएगी. ऐसा करो, तुम सिनेमाघर के पास पहुंच जाओ. वहां किताबों की दुकान है. देख लो कुछ नई किताबें आई हैं क्या?’ ‘‘ठीक है,’’ शिवेश ने कहा, ‘‘और हां, टिकट खरीदने की बारी तुम्हारी है. याद है न?’’ ‘हां जी याद है. अब चलो फोन रखो,’ शिवानी ने हंस कर कहा.

शिवेश औफिस से निकल कर सिनेमाघर की तरफ चल पड़ा. मुंबई में ज्यादातर सिनेमाघर अब मल्टीप्लैक्स में शिफ्ट हो गए थे. यह हाल अभी तक सिंगल स्क्रीन वाला था. स्टेशन के नजदीक होने के चलते यहां किसी भी नई फिल्म का रिलीज होना तय था. मुंबई का छत्रपति शिवाजी रेलवे टर्मिनस, जो पहले विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से मशहूर था, आज भी पुराने छोटे नाम ‘वीटी’ से ही मशहूर था.

स्टेशन से लगा हुआ बहुत बड़ा बाजार था, जहां एक से एक हर किस्म के सामानों की दुकानें थीं. हुतात्मा चौक के पास फुटपाथों पर बिकने वाली किताबों की खुली दुकानों के अलावा भी किताबों की दुकानों की भरमार थी.  रेलवे स्टेशन से गेटवे औफ इंडिया तक मुंबई 2 भागों डीएन रोड और फोर्ट क्षेत्र में बंटा हुआ था. दुकानें दोनों तरफ थीं. एक मल्टीस्टोर भी था. यहां सभी ब्रांडों के म्यूजिक सिस्टम मिलते थे. इस के अलावा नईपुरानी फिल्मों की सीडी या फिर डीवीडी भी मिलती थी.

शिवेश ने यहां अकसर कई पुरानी फिल्मों की डीवीडी और सीडी खरीदी  थी. आज  उस के पास किताबें और फिल्मों की डीवीडी और सीडी भरपूर मात्रा में थीं. हिंदी सिनेमा के सभी कलाकारों की पुरानी से पुरानी और नई फिल्मों की उस ने इकट्ठी कर के रखी थीं. ‘चलो आज नई किताबें ही देख लेते हैं,’ यह सोच कर के वह किताबों की दुकान में घुसने ही वाला था कि सामने एक पुराना औफिस साथी नरेश दिख दिख गया.

‘‘अरे शिवेश, आज इधर?’’  ‘‘हां, कुछ किताबें खरीदनी थीं,’’ शिवेश ने जवाब दिया.  ‘‘तुम तो दोनों कीड़े हो, किताबी भी और फिल्मी भी. फिल्में नहीं खरीदोगे?’’ ‘‘वे भी खरीदनी हैं, पर ब्रांडेड खरीदनी हैं.’’ ‘‘फिर तो इंतजार करना होगा. नई फिल्में इतनी जल्दी तो आएंगी नहीं.’’ ‘‘वह तो है, इसलिए आज सिर्फ किताबें खरीदनी हैं. आओ, साथ में अंदर चलो.’’

‘‘रहने दो यार. तुम तो जानते ही हो, किताबों से मेरा छत्तीस का आंकड़ा है,’’ यह कह कर हंसते हुए नरेश वहां से चला गया. शिवेश ने चैन की सांस ली कि चलो पीछा छूटा. इस बीच मोबाइल की घंटी बजी. ‘कहां हो बे?’ शिवानी ने पूछा.

‘‘अरे यार, कोई आसपास नहीं है क्या? कोई सुनेगा तो क्या कहेगा?’’ शिवेश ने झूठी नाराजगी जताई. शिवानी अकसर टपोरी भाषा में बात करती थी.  ‘अरे कोई नहीं है. सब लोग चले गए हैं. मैं भी शटडाउन कर रही हूं. बस निकल ही रही हूं.’ ‘‘इस का मतलब है, औफिस तुम्हें ही बंद करना होगा.’’ ‘बौस है न बैठा हुआ. वह करेगा औफिस बंद. पता नहीं, क्याक्या फर्जी आंकड़े तैयार कर रहा है?’ ‘‘मार्केटिंग का यही तो रोना है बेबी. खैर, छोड़ो. अपने को क्या करना है. तुम बस निकल लो यहां के लिए.’’

‘हां, पहुंच जाऊंगी.’ ‘‘साढ़े 9 बजे का शो है. अब भी सोच लो.’’ ‘अब सोचना क्या है जी. देखना है तो बस देखना है. भले ही रात स्टेशन पर गुजारनी पड़े.’ ‘‘पूछ कर गलती हो गई जानेमन. सहमत हुआ. देखना है तो देखना है.’’ शिवेश ने बात खत्म की और किताब  की दुकान के अंदर चला गया.

शिवेश ने कुछ किताबें खरीदीं और फिर बाहर आ कर शिवानी का इंतजार करने लगा. थोड़ी देर में ही शिवानी आ गई. दोनों सिनेमाघर पहुंच गए, जो वहां से कुछ ही दूरी पर था. भीड़ बहुत ज्यादा नजर नहीं आ रही थी.  ‘‘देख लो, तुम्हारे हीरो की फिल्म के लिए कितनी जबरदस्त भीड़ है,’’ शिवेश ने तंज कसते हुए कहा.  ‘‘रात का शो है न, इसलिए भी कम है.’’ शिवानी हार मानने वालों में कहां थी.  ‘‘बिलकुल सही. चलो टिकट लो,’’ शिवेश ने शिवानी से कहा.

‘‘लेती हूं बाबा. याद है मुझे कि  आज मेरी  बारी है,’’ शिवानी ने हंसते हुए कहा.  शिवानी ने टिकट ली और शिवेश के साथ एक कोने में खड़ी हो गई.  शो अब शुरू ही होने वाला था. दोनों सिनेमाघर के अंदर चले गए. परदे पर फिल्म रील की लंबाई देख कर दोनों चिंतित हो गए. ‘‘ठीक 12 बजे हम लोग बाहर निकल जाएंगे, वरना आखिरी लोकल मिलने से रही,’’ शिवेश ने धीमे से शिवानी के कान में कहा.  ‘‘जो हो जाए, पूरी फिल्म देख कर ही जाएंगे.’’ ‘‘ठीक है बेबी. आज पता चलेगा कि नाइट शो का क्या मजा होता है.’’  फिर दोनों फिल्म देखने में मशगूल हो गए.

शिवानी पूरी मगन हो कर फिल्म देख रही थी. शिवेश का ध्यान बारबार घड़ी की तरफ था. इंटरवल हुआ तो उस समय तकरीबन 11 बज रहे थे. शिवानी ने उस की तरफ देखा और उस से पूछ बैठी, ‘‘क्या बात है, बहुत चिंतित लग रहे हो?’’ ‘‘11 बज रहे हैं. फिल्म खत्म होतेहोते साढ़े 12 बज जाएंगे. स्टेशन पहुंचने तक तो एक जरूर बज जाएगा.’’ ‘‘बजने दो. कौन परवाह करता है?’’ शिवानी ने बेफिक्र हो कर जवाब दिया.  इस बीच इंटरवल खत्म हो चुका था. फिल्म फिर शुरू हो गई. पूरी फिल्म के दौरान शिवेश बारबार घड़ी देख रहा था, जबकि शिवानी फिल्म देख रही थी.

फिल्म साढ़े 12 बजे खत्म हुई. दोनों बाहर निकले. पौने 1 बजे की लास्ट लोकल उन की आखिरी उम्मीद थी. तेजी से वे दोनों स्टेशन की तरफ बढ़ चले.  ‘‘आखिरी लोकल तो एक चालीस की खुलती है न?’’ शिवानी ने चलतेचलते पूछा.  ‘‘वह फिल्मी लोकल थी. हकीकत में रात 12 बज कर 45 मिनट पर आखिरी लोकल खुलती है.’’ शिवानी के चेहरे पर पहली बार डर नजर आया. ‘‘डरो मत. देखा जाएगा,’’ शिवेश ने आत्मविश्वास से भरी आवाज में जवाब दिया. आखिर वही हुआ, जिस का डर था. लोकल ट्रेन परिसर के फाटक बंद हो रहे थे. अंदर जो लोग थे, सब को बाहर किया जा रहा था. ‘अब कहां जाएंगे?’ दोनों एकदूसरे से आंखों में सवाल कर रहे थे.

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‘‘अब क्या करेंगे हम? पहली लोकल ट्रेन सुबह साढ़े 3 बजे की है?’’ शिवेश ने कहा.  शिवानी एकदम चुपचाप थी, जैसे सारा कुसूर उसी का था.  ‘‘मुझे माफ कर दो. मेरी ही जिद से यह सब हो रहा है,’’ शिवानी बोली. ‘‘कोई बात नहीं. आज हमें एक मौका मिला है. मुंबई को रात में देखने का, तो क्यों न इस मौके का भरपूर फायदा उठाया जाए.  ‘‘बहुत सुन रखा था, मुंबई रात को सोती नहीं है. रात जवान हो जाती है वगैरह. क्या खयाल है आप का?’’ शिवेश ने मुसकरा कर शिवानी की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘यहां पर तो मेरी जान जा रही है और तुम्हें मस्ती सूझ रही है. पता नहीं, घर वाले क्याक्या सोच रहे होंगे?’’ ‘‘तुम तो ऐसे डर रही हो, जैसे मैं तुम्हें यहां पर भगा कर लाया हूं.’’  शिवेश ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा. ‘‘चलो, घर वालों को बता दो.’’ ‘‘बता दिया जी.’’ ‘‘वैरी गुड.’’ ‘‘जी मैडम, अब चलो कुछ खायापीया जाए.’’ दोनों स्टेशन परिसर से बाहर आए. कई होटल खुले हुए थे.  ‘‘चलो फुटपाथ के स्टौल पर खाते हैं,’’ शिवेश ने कहा.

स्टेशन के बाहर सभी तरह के खाने के कई स्टौल थे. वे एक स्टौल के पास रुके.  एक प्लेट चिकन फ्राइड राइस और एक प्लेट चिकन लौलीपौप ले कर एक ही प्लेट में दोनों ने खाया.  ‘‘अब मैरीन ड्राइव चला जाए?’’ शिवेश ने प्रस्ताव रखा. ‘‘इस समय…? रात के 2 बजने वाले हैं. मेरा खयाल है, स्टेशन के आसपास ही घूमा जाए. एकडेढ़ घंटे की ही तो बात है,’’ शिवानी ने उस का प्रस्ताव खारिज करते हुए कहा. ‘‘यह भी सही है,’’ शिवेश ने भी हथियार डाल दिए. वे दोनों एक बस स्टौप के पास आ कर रुके. यहां मेकअप में लिपीपुती कुछ लड़कियां खड़ी थीं.

शिवेश और शिवानी ने एकदूसरे की तरफ गौर से देखा. उन्हें मालूम था कि रात के अंधेरे में खड़ी ये किस तरह की औरतें हैं.  वे दोनों जल्दी से वहां से निकलना  चाहते थे. इतने में जैसे भगदड़ मच गई. बस स्टौप के पास एक पुलिस वैन आ कर रुकी. सारी औरतें पलभर में गायब हो गईं. लेकिन मुसीबत तो शिवानी और शिवेश पर आने वाली थी. ‘‘रुको, तुम दोनों…’’ एक पुलिस वाला उन पर चिल्लाया. शिवानी और शिवेश दोनों ठिठक कर रुक गए.

‘‘इतनी रात में तुम दोनों इधर कहां घूम रहे हो?’’ एक पुलिस वाले ने पूछा. ‘‘अरे देख यार, यह औरत तो धंधे वाली लगती है,’’ दूसरे पुलिस वाले ने बेशर्मी से कहा.  ‘‘किसी शरीफ औरत से बात करने का यह कौन सा नया तरीका है?’’ शिवेश को गुस्सा आ रहा था.  ‘‘शरीफ…? इतनी रात में शराफत दिखाने निकले हो शरीफजादे,’’ एक सिपाही ने गौर से शिवानी को घूरते हुए कहा. ‘‘वाह, ये धंधे वाली शरीफ औरतें कब से बन गईं?’’ दूसरे सिपाही ने  एक भद्दी हंसी हंसते हुए कहा.

शिवेश का जी चाहा कि एक जोरदार तमाचा जड़ दे.  ‘‘देखिए, हम लोग सरकारी दफ्तर में काम करते हैं. आखिरी लोकल मिस हो गई, इसलिए हम लोग फंस गए,’’ शिवेश ने समाने की कोशिश की. ‘‘वाह, यह तो और भी अजीब बात है. कौन सा सरकारी विभाग है, जहां रात के 12 बजे छुट्टी होती है? बेवकूफ बनाने की कोशिश न करो.’’ ‘‘ये रहे हमारे परिचयपत्र,’’ कहते हुए शिवेश ने अपना और शिवानी का परिचयपत्र दिखाया.  ‘‘ठीक है. अपने किसी भी औफिस वाले से बात कराओ, ताकि पता चल सके कि तुम लोग रात को 12 बजे तक औफिस में काम कर रहे थे,’’ इस बार पुलिस इंस्पैक्टर ने पूछा, जो वैन से बाहर आ गया था. ‘‘इतनी रात में किसे जगाऊं? सर, बात यह है कि हम ने औफिस के बाद नाइट शो का प्लान किया था. ये रहे टिकट,’’ शिवेश ने टिकट दिखाए.

‘‘मैं कुछ नहीं सुनूंगा. अब तो थाने चल कर ही बात होगी. चलो, दोनों को वैन में डालो,’’ इंस्पैक्टर वरदी के रोब में कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था.  शिवानी की आंखों में आंसू आ गए.  बुरी तरह घबराए हुए शिवेश की समा में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? किसे फोन करे? अचानक एक सिपाही शिवेश को पकड़ कर वैन की तरफ ले जाने लगा.  शिवानी चीख उठी, ‘‘हैल्प… हैल्प…’’ लोगों की भीड़ तो इकट्ठा हुई, पर पुलिस को देख कर कोई सामने आने की हिम्मत नहीं कर पाया.

थोड़ी देर में एक अधेड़ औरत भीड़ से निकल कर सामने आई. ‘‘साहब नमस्ते. क्यों इन लोगों को तंग कर रहे हो? ये शरीफ इज्जतदार लोग हैं,’’ वह औरत बोली. ‘‘अब धंधे वाली बताएगी कि कौन शरीफ है? चल निकल यहां से, वरना तुझे भी अंदर कर देंगे,’’ एक सिपाही गुर्राया. ‘‘साहब, आप को भी मालूम है कि इस एरिया में कितनी धंधे वाली हैं. मैं भी जानती हूं कि यह औरत हमारी तरह  नहीं है.’’ ‘‘इस बात का देगी बयान?’’ ‘‘हां साहब, जहां बयान देना होगा, दे दूंगी. बुला लेना मुझे. हफ्ता बाकी है, वह भी दे दूंगी. लेकिन अभी इन को छोड़ दो,’’ इस बार उस औरत की आवाज कठोर थी. ‘हफ्ता’ शब्द सुनते ही पुलिस वालों को मानो सांप सूंघ गया. इस बीच भीड़ के तेवर भी तीखे होने लगे.

पुलिस वालों को समा में आ गया कि उन्होंने गलत जगह हाथ डाला है. ‘‘ठीक है, अभी छोड़ देते हैं, फिर कभी रात में ऐसे मत भटकना.’’ ‘‘वह तो कल हमारे मैनेजर ही एसपी साहब से मिल कर बताएंगे कि रात में उन के मुलाजिम क्यों भटक रहे थे,’’ शिवेश बोला.   ‘‘जाने दे भाई, ये लोग मोटी चमड़ी के हैं. इन पर कोई असर नहीं  होगा,’’ उस अधेड़ औरत ने शिवेश को समाते हुए कहा. ‘‘अब निकलो साहब,’’ उस औरत ने पुलिस इंस्पैक्टर से कहा. सारे पुलिस वाले उसे, शिवानी, शिवेश और भीड़ को घूरते हुए वैन में सवार हो गए. वैन आगे बढ़ गई. शिवेश और शिवानी ने राहत की सांस ली.

‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया. आप नहीं आतीं तो उन पुलिस वालों को समाना मुश्किल हो जाता,’’ शिवानी ने उस औरत का हाथ पकड़ कर कहा.  ‘‘पुलिस वालों को समाना शरीफों के बस की बात नहीं. अब जाओ और स्टेशन के आसपास ही रहो,’’ उस अधेड़ औरत ने शिवानी से कहा. ‘‘फिर भी, आप का एहसान हम जिंदगीभर नहीं भूल पाएंगे. कभी कोई काम पड़े तो हमें जरूर याद कीजिएगा,’’ शिवेश ने अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसे देते हुए कहा. ‘‘यह कार्डवार्ड ले कर हम क्या करेंगे? रहने दे भाई,’’ उस औरत ने कार्ड लेने से साफ इनकार कर दिया.

शिवानी ने शिवेश की तरफ देखा, फिर अपने पर्स से 500 रुपए का एक नोट निकाल कर उसे देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया. ‘‘कर दी न छोटी बात. तुम शरीफों की यही तकलीफ है. हर बात के लिए पैसा तैयार रखते हो. हर काम पैसे के लिए नहीं करती मैं…’’ उस औरत ने हंस कर कहा. ‘‘अब जाओ यहां से. वे दोबारा भी आ सकते हैं.’’ शिवेश और शिवानी की भावनाओं पर मानो घड़ों पानी फिर गया. वे दोनों वहां से स्टेशन की तरफ चल पड़े, पहली लोकल पकड़ने के लिए.  पहली लोकल मिली. फर्स्ट क्लास का पास होते हुए भी वे दोनों सैकंड क्लास के डब्बे में बैठ गए. ‘‘क्यों जी, आज सैकंड क्लास की जिद क्यों?’’ शिवानी ने पूछा.  ‘‘ऐसे ही मन किया. पता है, एक जमाने में ट्रेन में थर्ड क्लास भी हुआ करती थी,’’ शिवेश ने गंभीरता से कहा.

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‘‘उसे हटाया क्यों?’’ शिवानी ने बड़ी मासूमियत से पूछा.  ‘‘सरकार को लगा होगा कि इस देश में 2 ही क्लास होनी चाहिए. फर्स्ट और सैकंड,’’ शिवेश ने कहा, ‘‘क्योंकि, सरकार को यह अंदाजा हो गया कि जिन का कोई क्लास नहीं होगा, वे लोग ही फर्स्ट और सैकंड क्लास वालों को बचाएंगे और वह थर्ड, फोर्थ वगैरहवगैरह कुछ भी हो सकता है,’’ शिवेश ने हंसते हुए कहा.  ‘‘बड़ी अजीब बात है. अच्छा, उस औरत को किस क्लास में रखोगे?’’ शिवानी ने मुसकरा कर पूछा. ‘‘हर क्लास से ऊपर,’’ शिवेश ने जवाब दिया.  ‘‘सच है, आज के जमाने में खुद आगे बढ़ कर कौन इतनी मदद करता है.

हम जिस्म बेचने वालियों के बारे में न जाने क्याक्या सोचते रहते हैं. कम से कम अच्छा तो नहीं सोचते. वह नहीं आती तो पुलिस वाले हमें परेशान करने की ठान चुके थे. हमेशा सुखी रहे वह. अरे, हम ने उन का नाम ही नहीं पूछा.’’ ‘‘क्या पता, वह अपना असली नाम बताती भी या नहीं. वैसे, एक बात तो तय है,’’ शिवेश ने कहा. ‘‘क्या…?’’ ‘‘अब हम कभी आखिरी लोकल पकड़ने का खतरा नहीं उठाएंगे. चाहे तुम्हारे हीरो की कितनी भी अच्छी फिल्म क्यों न हो?’’ शिवेश ने उसे चिढ़ाने की कोशिश की.

‘‘अब इस में उस बेचारे का क्या कुसूर है? चलो, अब ज्यादा खिंचाई  न करो. मो सोने दो,’’ शिवानी ने अपना सिर उस के कंधे पर टिकाते  हुए कहा. ‘‘अच्छा, ठीक है,’’ शिवेश ने बड़े प्यार से शिवानी की तरफ देखा. कई स्टेशनों पर रुकते हुए लोकल ट्रेन यानी मुंबई के ‘जीवन की धड़कन’ चल रही थी.

शिवेश सोच रहा था, ‘सचमुच जिंदगी के कई पहलू दिखाती है यह लोकल. आखिरी लोकल ट्रेन छूट जाए तब भी और पकड़ने के बाद तो खैर कहना ही क्या…’ शिवेश ने शिवानी की तरफ देखा, उस के चेहरे पर बेफिक्री के भाव थे. बहुत प्यारी लग रही थी वह.

अफगान औरतें और तालिबानी राज

अफगान औरतों की बुरी गत के लिए काफी हद तक दुनिया भर में रोना रोया जा रहा है. उस के लिए जिम्मेदार असल में दुनियाभर की औरतें ही हैं जिन्होंने अपनी थोड़ीबहुत मिली स्वतंत्रता का कभी उपयोग उन अफगान औरतों के लिए नहीं किया जो काबुल या कंधार में नहीं रहती हैं, अफगानिस्तान के पहाड़ों में छिपे गांवों में रहती हैं जहां उन पर धर्म का रौब इतना ज्यादा है कि वे उसे कुदरत की देन ही समझती हैं. आम औरतें दुनिया भर में कहीं हो, अपने को भगवान की पापी मानती हैं और जो सुख मिल जाए उसे कृपा मानती हैं और जो दुख मिले, उसे गलत काम की सही सजा मानती हैं.

इन्हीं औरतों के बल पर अफगानी तालिबानी शरिया कानूनों को लागू कर रहे हैं, ङ्क्षहदू या ईसाई कानून शरिया कानूनों से ज्यादा अच्छे नहीं हैं. अगर इच्छा है तो उन्नत देशों में शिक्षा का माहौल जिस ने धर्म की कट्टरता के पीछे धकेल दिया.

अफगान औरतें तालिबानी राज से पहले भी कुछ शहरों को छोड़ कर उसी तरह रह रही हैं जैसे 1200 साल पहले रह रही थीं. उन के जीवन पर जरा सा तकनीक के कारण असर पड़ा है, लोगों की सोच बदलने का नहीं आदमी और औरत हर मामले में बराबर है, यह तो आज अमेरिका और यूरोप में भी नहीं माना जाता. डोमोस्टिक वायलैंस को बोलबाला वहां भी उतना ही है जितना शायद अफगानिस्तान में है. अफगान औरतें उलटे भार से बच जाती हों क्योंकि वे किसी तरह का विरोध करती ही नहीं है.

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यही की शिक्षा दुनियाभर की औरतों को चर्चों, मंदिरों, मठो, आश्रमों में दी जाती है. विवाह की परंपरा ही पुरुष के संपत्ति की तरह एक औरत सौंप देना है. कहींकहीं एक ही औरत पर सीमा है तो वही एक से ज्यादा की छूट. 1956 से पहले ङ्क्षहदू पुरुष चाहे जितनी विधिवा पत्नियां रख सकता था पर एक पत्नी क दूसरे पुरुष से हुई संतान अवैध मानी जाती थी.

अफगान औरतों ने शरिया कानून को मान रखा है. वे घरों में उसे लागू करनी हैं. शरियत कानून के अनुसार औरतों को गोली मार देने वाले आदमी की मां, पत्नी, बेटी उस आदमी को अपराधी नहीं मानतीं, समाज का रक्षक मानती हैं. जब तक दुनिया भर की औरतें अपने घरों में यह गंदी सोच कूढ़े के ढेर में नहीं फेकतीं, वे कैसे अफगान औरतों के लिए आंसू बहा सकती हैं, और वे भी केवल कुछ शहरी अफगान औरतों के लिए.

प्रगति के लिए जरूरी है कि आदमी और औरत कंधे से कंधा मिला कर अपना घर बसाएं, बच्चे पालें, दफ्तरों, कारखानों, खेतों में काम करें. वैवाहिक दासता को निकाल फेंके ताकि प्रकृति का कहर झेला जा सके. औरतों पर दया कर के उन्हें हक नहीं दें, वे समाज के विकास के लिए जरूरी हैं, यह सोच कर किया जाए जो भी करना है.

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मराठी लुक में दिखीं ‘गुम है किसी के प्यार में’ की सई और पाखी, देखें फोटोज

स्टार प्लस के सीरियल गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में आए दिन नए मोड़ आ रहे हैं. जहां सम्राट और पाखी का तलाक होने से रुक गया है. वहीं विराट का ट्रांसफर होने से सई ने रुकवा दिया है, जिसके चलते सीरियल में जन्माष्टमी सेलिब्रेशन देखने को मिल रहा है. इस दौरान सई (Ayesha Singh) और पाखी (Aishwarya Sharma) का लुक फैंस को बेहद पसंद आ रहा है. आइए आपको दिखाते हैं सई और पाखी के जन्माष्टमी लुक (Janmashtami Look) की झलक…

मराठी लुक में दिखी सई

 

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सीरियल में सई (Ayesha Singh) के किरदार में नजर आने वाली आएशा सिंह (Ayesha Singh) का लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. मराठी मुलगी के लुक में आएशा सिंह का लुक बेहद खूबसूरत लग रही हैं. मराठी स्टाइल साड़ी और उसके साथ मैचिंग ज्वैलरी सई के लुक पर चार चांद लगा रहा है. सई के फैंस उनके लुक को सोशलमीडिया पर वायरल कर रहे हैं, जिसके चलते फैंस इस लुक को ट्राय करने की चाहत बयां कर रहे हैं.

 

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पाखी भी नहीं रही पीछे

 

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जन्माष्टमी सेलिब्रेशन में सई जहां मराठी मुल्गी बने नजर आई तो वहीं पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा  (Aishwarya Sharma) का भी मराठी लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. मराठी ट्रैडिशनल लुक कैरी किए ऐश्वर्या शर्मा  (Aishwarya Sharma) ने सोशलमीडिया पर अपना लुक शेयर किया है, जिसे फैंस काफी पसंद तक रहे हैं.

सीरियल में आएगा नया ट्विस्ट

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई, विराट का ट्रांसफर होने से रोक देगी, जिसके चलते पाखी का विराट को जलाने का प्लान कामयाब होगा. लेकिन इस दौरान सई और विराट एक दूसरे के करीब आएंगे, जिसमें सम्राट सई का साथ देगा और उनकी बीच बढ़ी गलतफहमियां खत्म होगीं.

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