Lace Hairstyle : जूड़ा हो या चोटी हर स्टाइल में आप के लुक में लगा देगी चार चांद

Lace Hairstyle : करिश्मा कपूर कुछ दिन पहले अपने कजिन की शादी में रानी पिंक सूट के साथ बालों में परांदा के साथ लैस लगाए नजर आईं. उन के इस स्टाइल के सामने आलिया और बेबो की ड्रैस तक फीकी पड़ गई. लोगों ने भी इस लुक को खासा पसंद किया.

आप की खूबसूरती का दर्पण होते हैं आप के बाल, जबतक आप किसी आउटफिट के साथ अच्छा हेयर स्टाइल कैरी न करें तो आप के आउटफिट में जान नहीं आती. ऐसा भी हो सकता है कि आप का हेयर स्टाइल आप के गेटअप से मैच न हो तो आप की खूबसूरती को बढ़ाने के बजाए बिगाड़ ही दे. ऐसे में अगर आप किसी गेटटूगेदर, फंक्शन जैसे शादी पार्टी के लिए कोई सेफ और ब्यूटीफुल हेयरस्टाइल चुनना चाहती हैं तो आप भी बालों में भारीभरकम फूलों और मंहगी हेयर ऐक्सेसरीज के बजाए लैस को चुन सकती हैं. यह लैस स्टाइल आप की जेब भी हलकी रखेगी और आप को खूबसूरत और स्मार्ट दिखाएगी.

किरन जरी लैस

इन दिनों सभी पंजाबी दुप्पटों की शान किरन जरी लैस के दिवाने हुए जा रहे हैं. चाहे ब्राइडल दुपट्टा हो या फिर प्लेन सूट पर स्टेटमैंट दुपट्टा, हर जगह आप को जरी लैस का काम देखने को मिल जाएगा. इस का इस्तेमाल आप अपने बालों पर भी कर सकती हैं. बस, करना यह होगा कि आप अपने बालों को अच्छे से टाई कर के पहले बेसिक सी चोटी बना लें और ऊपर से अपने मनमुताबिक लैस को बालों पर लपेट लें. यह इफर्टलैस स्टाइल जितना आसानी से बन जाता है, उतना ही बालों की और आप के आउटफिट की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करता है. आप चाहें तो बालों में चोटी पर लैस लगा कर फिर उस का जूड़ा भी बना सकती हैं. यह लाइट वेट बन होगा और आप की इंडियन ट्रैडिशन आउटफिट हो या इंडोवैस्टर्न, हर आउटफिट पर सूट करेगा.

पर्ल लैस

मोती किसे पसंद नहीं. पर्ल लैस के वर्सेटाइल इस्तेमाल और इस की ऐलिगेंस का भी कोई जवाब ही नहीं. आप को इस के लिए अलग से इनवैस्ट करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. आप अपने पास पड़ी पुरानी पर्ल माला को बालों में इस्तेमाल कर के नया लुक क्रिएट कर सकती हैं या मार्केट से सस्ती लंबी पर्ल माला ले कर उसे चोटी के साथ ही गूंथ लें.

अब आप चाहें तो चोटी के आखिर में पर्ल हैंगिंग का इस्तेमाल करें या चोटी से ही बन को स्टाइल कर लें. यह हेयरस्टाइल हर आउटफिट में जान डाल देगा.

कौड़ी लैस

इन दिनों कौड़ी का चलन खूब हो गया है. चूड़ियां हों या कड़ा या फिर आप की सिंपल आउटफिट में जान डालनी हो, सभी कौड़ी को ही प्रेफरैंस दे रहे हैं. आप इस का इस्तेमाल अपने बालों को सजाने के लिए भी कर सकती हैं. इस के इस्तेमाल से आप अपनी चोटी को सजाएं या बन के ऊपर इस को लगाएं यह हर स्टाइल में सुंदर ही लगती है. अगर आप किसी फंग्शन में सब से हट के लगना चाहती हैं तो यह हेयरस्टाइल ट्राई करना बनता है. बैस्ट बात तो यह है कि यह लैस आप के यूज के बाद खराब नहीं होती. आप मल्टीपल टाइम इन को अलगअलग हेयरस्टाइल में इस्तेमाल कर सकती हैं और उस से अगर आप बोर हो जाएं तो इस लैस को आसानी से अपनी किसी ड्रैस में लगवा सकती हैं.

कटदाना लटकन लैस

कटदाना लटकन लैस आप को बहुत से स्टाइल और कलर में मिल जाएंगी। आप चाहें तो सिल्वर, गोल्डन या रोज गोल्ड कलर की लैस चुन सकती हैं. ये लटकन कटदाना लैस आप को बहुत से वैरिएशन में भी मिल जाएगी, जिस में आप को साथ में बिड्स का काम या व्टाइट मोती का काम भी मिल जाएगा. आप अपने ड्रैस के मुताबिक इसे चुन सकती हैं.

फ्रिंज लैस

मार्केट में ₹30 मीटर के सस्ते दामों में मिलने वाले ये लैस आप के बड़े काम आ सकती हैं. आप इस से आसानी से अपनी चोटी को सजा सकती हैं.

आप के लिए एक टिप हम और देना चाहते हैं. अगर आप की चोटी छोटी है तो आप एक चोटी स्टाइल हेयर ऐक्सटैंशन जरूर अपनी वैनिटी का हिस्सा बनाएं. आप परांदा भी ले सकती हैं. इस से आप को बालों को लैंथ मिलेगी और लैस को अच्छे से आप डैकोरेट कर पाएंगी.

सिक्का लैस

मार्केट में सिक्का लैस के भी बहुत से वैरिएशन मौजूद हैं. ये आप को हट कर लुक देगा और आप के आउटफिट में जान डाल देगा. फिर चाहे आप ब्राइट टू बी हों या पार्टी गेस्ट, हलदी मेहंदी फंक्शन हो या शादी यह हर आउटफिट में सूट करती है. आप चाहें तो 1-2 बार इसे बालों में इस्तेमाल कर के अपने ड्रैस में लगवा सकती हैं.

गोटा पट्टी लैस

गोटा पट्टी का ट्रैंड न सिर्फ कपड़ों में इन है बल्कि यह आप को बालों को सजाने के लिए भी बैस्ट है. गोटे से बने हुए फूल हों या फिर प्लेन गोटा पट्टी लैस, इन से आप आसानी से अपने बाल सजा सकती हैं. आप चाहें तो इसे चोटी के साथ अपने बालों में गूंथ लें या फिर ऊपर से अच्छे से लपेट कर बीचबीच में गोटा फूल से सजा लें. यह भी जरूरी नहीं है कि आप हेयरस्टाइल के लिए नया लैस खरीदें, आप के पास जो लैस मौजूद हों आप उस से भी ऐक्सपेरिमैंट कर सकती हैं.

सिर्फ ब्लाउज या सूट नहीं, बालों में लगाएं लटकन

मार्केट में मौजूद बड़े स्टाइल के स्टेटमैंट लटकन न सिर्फ आप के ड्रैस की खूबसूरती को बढ़ाते हैं, बल्कि आप इन्हें अपने बालों में इस्तेमाल कर सकती हैं. इन दिनों डिजाइनर्स बालों में लटकन लगाए खूब नजर आते हैं. बिग मिरर वर्क लटकन हों या लाइट वेट लैस लटकन, आप आसानी से उन्हें बालों में लगा सकती हैं.

मेरी दोस्त Depression की शिकार हो गई हैं, मैं क्या करूं?

Depression :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी सहेली को बचपन में पिता का प्यार नहीं मिला. उस की मां ने मेहनत कर के उसे पढ़ायालिखाया. अब उस के पति को  ब्लड कैंसर है, जिस से वह मेरी सहेली से बहुत रूखा व्यवहार करता है. बचपन से अब तक उपेक्षा झेलतेझेलते वह डिप्रैशन का शिकार हो गई है. रातरात भर रोती है. नींद की 2-2 गोलियां खाने पर भी उसे नींद नहीं आती. उसे अपनी मां की परवाह है. उन्हें दुखी नहीं करना चाहती, इसीलिए खुदकुशी नहीं करना चाहती. वह क्या करे कि तनाव से बाहर आ कर खुशहाल जीवन जी सके?

जवाब-

जीवन में कमियों के साथ जीने की तो आदत डालनी ही होती है. अगर पति को ब्लड कैंसर है और मां अकेली हैं, तो आप की सहेली को दोगुनी मेहनत कर के दोनों को संभालना होगा वरना सभी नुकसान में रहेंगे, वह खुद भी. नींद की गोलियां खाना इलाज नहीं, क्योंकि इस से समस्या सुलझने वाली नहीं. समस्या तो और ज्यादा काम, चाहे वह घरों की सफाई का हो, दफ्तर का हो या खुद हाथ से मेहनत का, करना ही होगा.

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रीमा का सारा दिन चिड़चिड़ाना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना और बेवजह रोने लग जाना, नींद न आना, किसी काम में मन न लगना और अकेले बैठना, उसके इस व्यवहार से घर के सारे लोग परेशान थे. पति चिल्लाता कि कोई कमी नहीं है, फिर भी यह खुश नहीं रह सकती है, सास अलग ताने मारती कि इसे तो काम न करने के बहाने चाहिए. जब देखो अपने कमरे में जाकर बैठ जाती है.

 भौतिकतावादी संस्कृति से उपजी समस्याएं

रीमा की तरह कितने लोग हैं जो आज ऐसे हालातों से गुजर रहे हैं और जानते तक नहीं कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं. वक्त जिस तेजी से बदला है और भौतिकवादी संस्कृति और सोशल मीडिया ने जिस तरह से हमारे जीवन में पैठ बनाई है, उसने डिप्रेशन को बड़े पैमाने पर जन्म दिया है और हर उम्र का व्यक्ति चाहे बच्चा ही क्यों न हो, इससे जूझ रहा है. मानसिक रूप से एक लड़ाई लड़ने वाले इंसान को बाहर से देखने पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वह भीतर से टूट रहा है. यहां तक कि ऐसे लोग जिनकी जिंदगी रुपहले पर्दे पर चमकती दिखाई देती है, भी इसका शिकार हो चुके हैं, जैसे आलिया भट्ट, वरुण धवन, मनीषा कोईराला, शाहरुख खान, और प्रसिद्ध लेखक जे.के. ऱॉउलिंग, कुछ ऐसे नाम हैं जो डिप्रेशन का शिकार हो चुके हैं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन को लेकर समाज में चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. केवल पैसे या स्टेट्स की कमी ही अब इसकी वजह नहीं रही है. भौतिकतावादी संस्कृति ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ाया है डिसकी वजह से हर जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और जो इस प्रतिस्पर्धा में खुद को असफल या पीछे रह जाने के एहसास से घिरा पाता है, वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है. संघर्ष करने, चुनौतियों का सामना और सहनशीलता कम होने से केवल ‘अपने लिए’ जीने की चाह ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं. यही वजह है कि व्यक्ति समाज से कटा हुआ अनुभव करता है और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.

Hindi Movies : आज के समय में फिल्में क्यों नहीं होती हैं हिट

Hindi Movies :  आजकल फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के बीच सब से बड़ी चर्चा चल रही है कि ऐसी क्या वजह है कि आज के समय में हिंदी फिल्में नहीं चल रहीं जैसी साल 2000 या यों कहें कि 1990 के दौर में चला करती थीं.

फिल्मी इतिहास गवाह है कि भारत ही नहीं भारत के बाहर भी बौलीवुड फिल्में और बौलीवुड स्टारों का क्रेज हमेशा से बना रहा है. लेकिन आज के दौर में हिंदी फिल्मों में 100 में से 1 फिल्म अच्छा बिजनैस करती है और वह भी किसी साउथ फिल्म की रीमेक होती है बाकी हिट स्टार्स हो या बिग बजट, दर्शकों को थिएटर तक लाने में असमर्थ साबित हो रहे हैं.

भारत पर राज करने वाली हिंदी फिल्में अपना वजूद खो रही हैं. बिग स्टार्स और बिग बजट फिल्म होने के बावजूद दर्शक थिएटर तक फिल्म देखने नहीं पहुंच रहे. इस बात के लिए भी साउथ इंडस्ट्री को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो कभी ओटीटी प्लेटफौर्म को. गीतकार लेखक जावेद अख्तर का भी मानना है कि आज के समय में क्योंकि दर्शकों को बड़ी से बड़ी फिल्में कुछ ही महीनों बाद लोगों के मोबाइलों पर या ओटीटी पर उपलब्ध हो जाती हैं इसलिए दर्शक थिएटर तक आने में दिलचस्पी नहीं रखते.

कुछ लोगों का मानना है कि मल्टीप्लैक्स थिएटर के महंगे टिकट और बड़े खर्च भी दर्शकों को थिएटर से दूर कर रहे हैं. अगर यह सच है तो अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’, विकी कौशल की ‘छावां’, राजकुमार राव की ‘स्त्री 2’, शाहरुख खान की ‘जवान’ और ‘पठान’ देखने दर्शक थिएटर तक कैसे पहुंचे? और इन फिल्मों ने ₹500 करोड़ पार तक का बिजनैस कैसे किया?

अगर दर्शक ओटीटी तक ही सीमित हैं तो ये सारी फिल्में देखने थिएटर तक कैसे पहुंचे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि 100 में से एक फिल्म ही अच्छी चल रही है? दर्शक थिएटर तक क्यों नहीं पहुंच रहे? एक अच्छी फिल्म का फौर्मूला क्या है? हिंदी फिल्मों के निर्माण को ले कर कहां गलतियां हो रही हैं? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

फिल्मी इतिहास गवाह है कि अगर फिल्म अच्छी है तो वह जरूर चलती है. ज्यादातर लोगों का मानना है कि अगर फिल्म में बड़े स्टार हैं या फिल्म का बजट करोड़ों में है, आउटडोर शूंटिंग्स में विदेश की खूबसूरत लोकेशंस है, तो वे फिल्में जरूर चलती हैं क्योंकि अगर एक बार फिल्म की कहानी अच्छी न भी हो तो भी दर्शक अपने फेवरिट हीरो को देखने या खूबसूरत लोकेशंस देखने थिएटर तक आ ही जाते हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज की पब्लिक फिल्मों की पसंद को ले कर चालाक हो गई है. आज के समय में दर्शकों को फिल्म का कंटेंट और मेकिंग अच्छी होना सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है. फिर उस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फिल्म में कोई हिट कलाकार है या नया कलाकार या फिल्म की शूटिंग किसी गांव में की गई है या विदेशों में.

इस का जीताजागता उदाहरण हाल ही में रिलीज हुई फिल्म क्रेजी का है जिस में न तो कोई बड़ा कलाकार है न ही विदेश की कोई लोकेशन है, बावजूद इस के कम बजट में बनी इस फिल्म ने 14 दिनों के अंदर अपनी लागत से ज्यादा का बिजनैस कर लिया. फिल्म को प्रचार के जरीए इतनी लोकप्रियता मिली कि इस फिल्म के मेकर्स को मुंबई के बाहर भी दूसरे शहरों में नए थिएटर में फिल्म के नए शोज बुक करने पड़े

इस के पीछे वजह सिर्फ एक ही थी कि फिल्म की कहानी, ऐक्टिंग डाइरैक्शन, म्यूजिक सभी कुछ फिल्म के हिसाब से और परफैक्ट था जिसे दर्शकों को पूरी फिल्म तक बांध कर रखा. इस के अलावा भी कई ऐसी फिल्में हैं जो कम बजट में बनी थीं लेकिन अच्छी फिल्म होने की वजह से फिल्म के निर्माता और ऐक्टर सभी को उस फिल्म से फायदा मिला. जैसे नाना पाटेकर अभिनीत अंकुश जिस में सब नए कलाकार थे, फिल्म का बजट ₹12 लाख था। फिल्म को रिलीज करने के लिए निर्माता एन चंद्रा को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा था, लेकिन बाद में अंकुश इतनी सुपरहिट हुई कि नाना पाटेकर उस फिल्म से रातोरात स्टार बन गए और निर्माता एन चंद्रा ने भी कई अच्छी फिल्में बनाईं.

गौरतलब है कि उस दौरान इस फिल्म ने करीबन ₹85 से 90 लाख के करीब कमाई की थी. इसी तरह अन्य फिल्मों ने जैसे आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘विकी डोनर’ ₹10 करोड़ में बनी थी लेकिन फिल्म ने ₹50 करोड़ का बिजनैस किया. ’12वीं फेल’ फिल्म ₹20 करोड़ में बनी थी, मगर फिल्म ने ₹66 करोड़ तक का बिजनैस किया.

‘सीक्रेट सुपरस्टार’ फिल्म का बजट ₹81 करोड़ के करीब था लेकिन इस फिल्म ने ₹831 करोड़ का बिजनैस किया.

अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘पिंक’ ₹23 करोड़ में बनी थी लेकिन फिल्म का बिजनेस ₹88 करोड़ हुआ। इसी तरह फिल्म ‘स्त्री’ ₹14 करोड़ में बनी थी लेकिन इस फिल्म ने ₹167 करोड़ की कमाई की। आयुष्मान खुराना अभिनीत ‘बधाई’ ₹23 करोड़ में बनी थी लेकिन इस फिल्म ने ₹176 करोड़ का बिजनैस किया। ₹25 करोड़ में बनी विकी कौशल अभिनीत फिल्म ‘ऊरी’ ने ₹293.75 करोड़ का बिजनैस किया. ₹23 करोड़ के बजट में बनी ‘हिंदी मीडियम’ ने ₹100 करोड़ का बिजनैस किया।

इसी तरह आलिया भट्ट अभिनीत फिल्म ‘राजी’ जोकि ₹38 करोड़ में बनी थी, इस फिल्म ने ₹158 करोड़ का बिजनैस किया.

कंगना रनौत अभिनित ‘क्वीन’ और ‘तनु वेड्स मनू’ भी कम बजट की फिल्म थी। इन दोनों ही फिल्मों ने न सिर्फ करोड़ों का बिजनैस किया बल्कि बेहतरीन फिल्मों की बदौलत आज याद भी की जाती हैं.

हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर के पीछे क्या है वजह और आज के समय हिट फिल्मों का क्या है फौर्मूला

एक समय था जब हिंदी फिल्मों की कहानियां ओरिजनल हुआ करती थीं. न तो वह किसी साउथ फिल्म की रीमेक होती थी और न ही हौलीवुड फिल्म की नकल, न ही फिल्मों का बजट ज्यादा होता था और न ही फिल्मों को बेचने के नाम पर प्रोमोशन की नौटंकी, बावजूद इस के, पिछली कई फिल्में ऐसी हैं जिन्हें दर्शक आज भी देखना पसंद करते हैं और आज 25- 30 साल बाद भी वे यादगार फिल्में कहलाती हैं जिन्हें दर्शक फिर से सिनेमाघर में देखने को तैयार हैं. चाहे वह अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र की फिल्म ‘शोले’ हो, सलमान खान की फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ हो, आमिर खान की फिल्म ‘रंगीला’ या ‘सरफरोश’ हो, शाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ या ‘कुछ कुछ होता है’ हो, ये सभी फिल्में न तो किसी हौलीवुड फिल्म की नकल थी और न ही साउथ की रीमेक. फिर भी ये सभी फिल्में आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं. इस के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है कि अगर कोई फिल्म अच्छी बनी है तो उस को हिट होने से कोई नहीं रोक सकता. फिर चाहे वह नए कलाकारों की फिल्म हो या कम बजट की फिल्म हो.

आज के मेकर्स नई कहानी की खोज के बदले बिना मेहनत किए साउथ और हौलीवुड फिल्मों की नकल बनाने में जुटे हैं ताकि उन को फिल्म के फ्लौप होने का डर न रहे, क्योंकि जो फिल्म साउथ में औलरेडी हिट है तो वह यहां बौलीवुड में भी हिट हो ही जाएगी. आज के समय में मेकर्स पैसा कमाने के लालच में फिल्म निर्माण को लेकर न तो कोई रिस्क लेना चाहते हैं और न ही कोई नया प्रयोग करना चाहते हैं. दर्शक चाहे आज के हों या पुराने, अच्छी फिल्म और अच्छे कलाकारों को हमेशा सम्मान और सराहना मिलती है. फिल्म की कहानी अगर ओरिजिनल है या वह आम लोगों के जीवन पर केंद्रित है तो ऐसी फिल्में दर्शकों के दिलों तक आराम से पहुंच जाती हैं. यहां तक की ऐक्टर भी दर्शकों को वही ज्यादा पसंद आते हैं जिन में वह अपनी छवि देखते हैं, जैसे गोविंदा, आमिर खान, अक्षय कुमार, सलमान खान आदि ऐक्टरों ने जो भी फिल्में आम इंसान से जुड़ी कहानी पर केंद्रित फिल्मों में काम किया है वह सभी सुपर डुपर हिट हुई है. जैसे गोविंदा की ‘कुली’, ‘दूल्हे राजा’, ‘राजा बाबू’, ‘क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता’, सलमान खान की ‘दबंग’, ‘बजरंगी भाईजान’, आमिर खान की ‘रंगीला’, शाहरुख खान की ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’, अक्षय कुमार की ‘खिलाड़ी’ आदि ऐसी फिल्में हैं जो ओरिजिनल कहानियों पर बनीं और आम लोगों के जीवन पर केंद्रित जिसे दर्शकों ने हमेशा स्वीकार किया.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बौलीवुड ही हौलीवुड या साउथ की कौपी करता है, बल्कि साउथ और हौलीवुड में भी कुछ फिल्में ऐसी बनी हैं जो हिंदी फिल्मों की नकल है. कहने का मतलब यह है कि नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। सिर्फ फिल्म बनाने के नाम पर साउथ की फिल्मों की कौपी करना अच्छी फिल्म नहीं कहलाती. यानि ऐंटरटेनमैंट के नाम पर दर्शकों को आप कुछ भी परोस कर बेवकूफ नहीं बना सकते. अगर फिल्मों का स्तर ऊंचा करना है तो नकल के बजाय अक्ल का इस्तेमाल कर के दर्शकों को अच्छी फिल्में देनी होंगी तभी जा कर फिल्मों का स्तर न सिर्फ ऊंचा होगा बल्कि हिंदी फिल्मों को पहले की तरह पसंद भी किया जाएगा.

अभिनेता आमिर खान और तीसरी गर्लफ्रैंड : आम जनजीवन से क्या है कनैक्शन, जरूर जानिए

Aamir Khan Gf Gauri Spratt : बौलीवुड सुपरस्टार आमिर खान इन दिनों अपनी लव लाइफ को ले कर चर्चा में बने हुए हैं. पिछले दिनों प्री बर्थडे मीट ऐंड ग्रीट में उन्होंने अपनी गर्लफ्रैंड गौरी स्प्रैट से मीडिया को मिलवाया. इस के बाद तो उन के पब्लिसिटी की झड़ी लग गई. मीडिया इसे छापने में लग गए. लेकिन क्या यह इतना बड़ा खुलासा है, जो मिस्टर परफैक्शनिस्ट ने किया? क्या उन्होंने इस से पहले जो 2 लीगल शादियां की थीं, जिन का डिवोर्स फाइल भी उन के तरफ से ही हुआ है, उसे नजरअंदाज किया जा सकता है? आखिर किस वजह से इन पत्नियों ने आमिर को छोड़ा?

कुछ इन्हीं पहलुओं पर एक नजर डालने की कोशिश की गई है. आइए, सब से पहले जानते हैं कि आमिर की तीसरी गर्लफ्रैंड को ले कर लोग क्या कहते हैं :

मुंबई की पौश एरिया में रहने वाली सुषमा का कहना है कि जिस उम्र में आमिर को अपने बेटे जुनैद खान की गर्लफ्रैंड से परिचय करवाना था, उन्होंने खुद की गर्लफ्रैंड से परिचय करवाया, जो सही नहीं है. उन्होंने पैसे और रुतबे का गलत उपयोग किया है.

उसी क्षेत्र में रहने वाली रेशमा कहती है कि मैं तो आमिर खान की बहुत बड़ी फैन हूं। उन की हर फिल्म देखती हूं, लेकिन उन की तीसरी गर्लफ्रैंड की बात मुझे हजम नहीं हुई। मैं तो उन्हें बहुत ही सलीकेदार इंसान समझती रही और अगर प्यार है भी तो इतना शोरशराबा करने की जरूरत क्यों पड़ी, समझना मुश्किल है क्योंकि अधिकतर कलाकार आगे कोई फिल्म आने वाली हो, तो ही पब्लिसिटी के लिए ऐसा करते हैं.

वे कहती हैं कि आमिर की पिछली कई फिल्में बौक्स औफिस पर असफल रहीं, इसलिए उन्होंने तीसरी गर्लफ्रैंड का सहारा लिया है. नहीं तो मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर आमिर को रोजरोज जीवनसाथी बदलने की जरूरत क्यों पड़ती है, जबकि पहली पत्नी रीना दत्ता शांत दिखती हैं, दूसरी पत्नी किरण राव भी बहुत शांत स्वभाव की हैं. ऐसे में तीसरी गर्लफ्रैंड? मुझे लगता है कि आमिर मीडिया में जो कह रहे हैं, उस के पीछे की बात कुछ और होगी.

अफेयर कई बार

यह सही है कि आमिर का प्रोफैशनल कैरियर जितना सफल रहा है, उतना ही उन का निजी जीवन हमेशा चर्चा का विषय रहा, जिस में उन के अफेयर के चर्चे अधिक होते रहते हैं, इसलिए उन्होंने पहली शादी को ले कर कई बार बात की और कहा कि उन का रिश्ता काफी अच्छा था, लेकिन दोनों ने इस रिश्ते में इंट्रैस्ट खो दिया था और यही उन के अलग होने की वजह भी था.

वैसे, रीना दत्ता से शादी के बाद भी आमिर खान का नाम कई दूसरी हसीनाओं से जुड़ा. साल 1991 में आई फिल्म ‘दिल है कि मानता नहीं’ के सेट पर आमिर पूजा भट्ट के करीब आ गए थे. दोनों के बीच लवबेट वाला रिलेशनशिप था. लेकिन यह रिश्ता ज्यादा नहीं टिका. इस के बाद आमिर खान और जेसिका हाइंस के कथित अफेयर की चर्चा साल 1998 में हुई.

जेसिका एक ब्रिटिश अभिनेत्री, निर्देशक और लेखिका हैं. इन्होंने ‘द बिग बी : बौलीवुड बच्चन ऐंड मी’ किताब लिखी है.

कहा जाता है कि साल 1998 में फिल्म ‘गुलाम’ की शूटिंग के दौरान आमिर और जेसिका इतने करीब आए कि एकसाथ लिवइन में रहने लगे. इसी बीच जेसिका प्रैगनैंट हो गईं. जेसिका ने इस रिश्ते पर कई बार बात की, लेकिन आमिर हमेशा इसे स्वीकार करने से बचते रहे.

फिलहाल, जेसिका ने बच्चा नहीं गिराया और अकेले ही उसे बड़ा किया. रीना दत्ता से अलग होने के बाद आमिर खान को फिल्म ‘लगान’ के सेट पर अपना प्यार मिला था.

दरअसल, इस फिल्म में आमिर लीड हीरो थे और किरण राव इस की असिस्टेंट डाइरैक्टर थीं. आमिर खान और रीना दत्ता के तलाक के बाद दोनों काफी करीब आए और साल 2005 में शादी कर ली. यह रिश्ता भी नहीं टिका और साल 2021 में दोनों ने अपने तलाक का ऐलान कर दिया. अभी भी दोनों साथ मिल कर अपने बेटे आजाद को पाल रहे हैं.

आमिर खान के लव अफेयर्स का किस्सा यहीं नहीं थमा, अभी लिस्ट काफी लंबी है. फिल्म ‘दंगल’ और ‘ठग्स औफ हिंदुस्तान’ में आमिर खान के साथ ऐक्ट्रैस फातिमा सना शेख ने काम किया.

कहा जाता है कि दोनों इस दौरान काफी करीब आ गए थे. दोनों को अकसर साथ वक्त बिताते देखा जाता था. फातिमा, आमिर से उम्र में 27 साल छोटी थीं. दोनों ने इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं किया. अब ऐक्टर ने अपनी नई गर्लफ्रैंड से लोगों का परिचय करा दिया है. उन्हें 60 साल की उम्र में एक बार फिर प्यार हो गया है.

ऐक्टर की नई गर्लफ्रैंड का नाम गौरी स्प्रैट है, जो कर्नाटक के बैंगलुरु की रहने वाली है. आगे आने वाली कई प्रोजैक्ट में उन का हाथ बंटा रही है और वह 6 साल के एक बच्चे की मां भी है, जिसे आमिर 25 साल से जानते हैं.

आमिर खान जैसी स्थिति किसी छोटे शहर में होने पर

यहां यह समझना पड़ेगा कि आमिर की स्थिति अगर किसी छोटे शहर की किसी लड़की के साथ अगर हुआ होता, तो परिस्थितियां क्या होतीं? महाराष्ट्र के नासिक की रहने वाली सिमरन की शादी सागर से हुई, उसे बच्चा नहीं हो रहा था, इसलिए पति ने उसे शादी के 5 साल बाद तलाक दे दिया.

सिमरन एक फैक्टरी में काम कर पेट पाल रही थी। एक दिन उस ने पुराने पति को किसी दूसरी महिला के साथ देख लिया। उसे गुस्सा आया और उस ने पति को पहले 2 थप्पड़ मारे फिर उस की गर्लफ्रैंड के बालों को खींच कर, चप्पलों से यह कह कर पीटने लगी कि यह नामर्द है और इस ने मुझे छोड़ा है, कुछ दिन बाद तुझे भी छोड़ेगा.

बीचबचाव करने आए लोग पहले तो बात समझे नहीं कि गलती किस की है, लेकिन बाद में उन्हें समझ आने पर सभी ने सिमरन का साथ दिया और सागर अपनी गर्लफ्रैंड को बचाने के लिए सिमरन के हाथपांव जोड़ने लगा.

तलाक के बाद बच्चों को संभालना मुश्किल

यह सही है कि जब कोई पत्नी तलाक लेती है, तो उसे हर तरह के ताने बाहर से सुनने पड़ते हैं. आसपास के लोग पुरुष को नहीं, महिला को ही दोषी मानने लगते हैं कि उस ने अपने पति को पकड़ कर नहीं रख पाई, उस में ही कुछ खोट होगी, जिस से पति हाथ से निकल गया. तलाक के बाद आसपास के लोग और परिवार उस स्त्री की मानसिक स्थिति को कभी समझ नहीं पाते, जिस के साथ यह अलगाव हुआ है.

कई बार ये स्त्रियां बच्चे को साथ ले कर अलग होती हैं. ऐसे में उन्हें बच्चों की सही देखभाल करनी पड़ती है, ताकि वे मायूस न हों और टूटें नहीं, क्योंकि बच्चे एक पारिवारिक ढांचे से परिचित होते हैं, जहां उन्हें सही विकास के लिए मातापिता दोनों का प्यार एक छत के नीचे मिलना जरूरी होता है. इस के बिना कई बार वे डिप्रैशन में चले जाते हैं.

सूत्रों की मानें, तो जब आमिर और रीना का तलाक हुआ था, तो उन के बच्चे मैंटल ट्रामा से गुजरे थे, जिन्हें संभालने में रीना को काफी परेशानी हुई.

मीडिया सूत्रों के अनुसार, आमिर की बेटी मैंटल स्ट्रैस से गुजर रही है. उन्होंने एक बार कहा भी है कि वह पिछले 12 साल से थेरैपी ले रही है, जबकि आमिर खान डिवोर्स के बाद उन का रिश्ता पुराने पत्नियों और बच्चों के साथ अच्छा चल रहा है, इस बात को वे बारबार दोहराते रहे हैं.

इस कड़ी में अमृता सैफ की तलाक के बाद भी दोनों के बच्चों का मानसिक बल बहुत टूटा है, जिसे अमृता ने मजबूती से संभाला.

अभिनेत्री सारा अली खान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि आज भी किसी काम को करने से पहले वह मां से सलाह लेती हैं. अभिनेत्री पूजा बेदी और फरहान फर्नीचरवाला ने जब तलाक लिया, तब भी उन की बड़ी बेटी अलाया एफ काफी दुखी हुई, जिसे पूजा कई बार अपने इंटरव्यू में कह चुकी हैं.

अर्जुन कपूर तो कई बार कह चुके हैं कि उन के पिता बोनी कपूर की श्रीदेवी के साथ शादी को ले कर वे बहुत दुखी थे और कई साल तक अपने पिता से बात तक नहीं किया था. इतना ही नहीं अर्जुन को जिंदगी में इस अलगाव से काफी कुछ झेलना पड़ा.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई बार उन्हें स्कूल में मातापिता के तलाक को ले कर चिढ़ाया भी जाता था. अभिनेत्री ईशा देओल और भरत तख्तानी के 12 साल साथ रह कर डिवोर्स के बाद आज ईशा को अपनी दोनों बेटियों की परवरिश में खास ध्यान देनी पड़ती है, जो आसान नहीं होता.

भले ही आर्थिक रूप से इन अभिनेत्रियों को सहायता पति से मिलती हो, लेकिन मानसिक स्थिरता बनाए रखना मुश्किल होता है.

बच्चों पर पड़ता है मानसिक दबाव

यह तो जगजाहिर है कि पतिपत्नी में हुए अलगाव को किसी भी परिवार के बच्चे आसानी से नहीं ले पाते, फिर चाहे वह धनी इंसान हो या गरीब बच्चों के मन पर गहरा और कई बार नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो उन की उम्र और व्यक्तित्व पर निर्भर करता है. कई बार वे मानसिक रूप से सदमे में चले जाते हैं और आगे बढ़ने में असमर्थ रहते हैं.

डिवोर्स के बाद अधिकतर बच्चों में असुरक्षा, क्रोध, गुस्सा, उदासी, अकेलापन, आक्रामक व्यवहार, पढ़ाई में मन न लगना, नशे की लत आदि कई बातें देखी गई हैं.

एक सर्वे में यह पाया गया है कि करीब 25% ऐडल्ट बच्चे जिन के पेरैंट्स ने डिवोर्स लिया, सीरियस सोशल, इमोशनल, साइकोलौजिकल समस्या का सामना किया है.

पत्नी का हर्ट और गुस्सा होना स्वाभाविक

इस बारे में मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाड़िया कहती हैं कि जब कोई महिला डिवोर्स लेती है, तो सब से पहले वह खुद बहुत हर्ट होती है, क्योंकि शादी एक कमिटमैंट है, जीवनभर साथ निभाने की होती है और इस के टूट जाने पर उस महिला को दुख होता है, अगर उस महिला के लिए दूसरी शादी की कोई उम्मीद न हो. खूबसूरत, आत्मनिर्भर होने पर भी वह औरत कई बार खुद को ही दोषी मानने लगती है। कई बार वह समझ नहीं पाती कि किस वजह से पति ने उन्हें किसी दूसरी लड़की के लिए छोड़ा, क्योंकि प्राकृतिक रूप से औरतें हमेशा से इमोशनल होती हैं.

किसी भी महिला के लिए पति का प्यार और रिस्पैक्ट बहुत अधिक मायने रखता है, जबकि पुरुष इमोशनल कम ही होते हैं। उन्हें डिवोर्स से कोई फर्क नहीं पड़ता.

एक महिला को डिवोर्स के बाद खुद को संभालने में काफी समय लगता है, क्योंकि उस ने जब शादी की होगी, तब उस ने डिवोर्स के बारे में नहीं सोचा होगा, पति का प्यार उसे भरपूर मिला होगा, लेकिन अचानक पति का किसी दूसरे से अफेयर को कई बार आज की पत्नी गुस्से और आक्रोश से भी लेती है, जिस से पत्नी मारपीट पर उतर आती है और यह कोई गलत नहीं है.

ऐसे में, अगर उस के बच्चे हों, तो समस्या अधिक बढ़ जाती है क्योंकि खुद के साथ बच्चों की मानसिक दशा को भी संभालना पड़ता है.

अपने अनुभव के बारे में राशिदा बताती हैं कि एक खूबसूरत महिला मेरे पास खुद को ग्रूम कराने के लिए आई थी, क्योंकि उस का पति दूसरी वूमन के साथ हमेशा फ्लर्ट करता था, लेकिन उस के साथ लड़ता था. वह डिवोर्स लेना चाहती थी। मैं ने उन दोनों को समझाया और रिश्ते को ठीक किया.

इस प्रकार आमिर खान अपने तीसरी गर्लफ्रैंड के रिश्ते को ले कर भले ही बहुत खुश नजर आ रहे हों और कहते हों कि उन की दोनों पत्नियां भी उन की इस निर्णय से खुश हैं, लेकिन आज की औरतें इस पर विश्वास नहीं कर सकतीं, क्योंकि एक पुरानी कहावत है ‘जर, जोरू और जमीन’ के लिए दुनिया में ज्यादातर लड़ाइयां होती हैं. अगर इस कहावत को बदल कर ‘जर, मर्द और जमीन’ कह दिया जाए, तो भी किसी को कोई हरज नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगर कोई पत्नी, पति की प्रौपर्टी कहलाई जाती है, जिस के लिए मारपीट करने वाले पति को सही ठहराया जाता है, तो एक पति, पत्नी की प्रौपर्टी क्यों नहीं हो सकता? उस के लिए अगर वह लड़ती भी है, तो उस की लड़ाई या मारपीट जायज होनी चाहिए.

Hindi Moral Tales : एक जिद्दी सी ख्वाहिश – क्या थी रिनी की ख्वाहिश

Hindi Moral Tales : मैं हूं रिनी, फाइन आर्ट्स से एमए कर रही हूं, दिल आया हुआ है साथ में पढ़ने वाले सुमित पर. वह है ही ऐसा. किस का दिल नहीं आएगा उस पर.

लड़कियां बिना बात के उस के चारों तरफ जब मंडराती हैं न, सच कह रही हूं आग लग जाती है मेरे मन में. मन करता है एकएक को पीट कर रख दूं. डार्क, टौल एंड हैंडसम वाले कांसैप्ट पर वह बिलकुल फिट बैठता है. इजैल पर पेंटिंग रख कर जब उस पर काम कर रहा होता है न, मन करता है उस की कमर में पीछे से बांहें डाल दूं. पता नहीं किस धुन में रहता है. उस की कहींकोई गर्लफ्रेंड न हो, यह बात मुझे दिनरात परेशान कर रही है.

फर्स्ट ईयर तो इसे देखने में ही गुजर गया है. अब सैकंड ईयर चल रहा है. समय गुजरता जा रहा है. मेरे पास ज्यादा समय नहीं है इसे पाने के लिए. क्या करूं? मैं कोई गिरीपड़ी लड़की तो हूं नहीं, प्रोफैसर पेरैंट्स की इकलौती संतान हूं, पानीपत के अच्छे इलाके में रहती हूं. जब टीचर रमा मिश्रा ने अटेंडेंस लेनी शुरू की तो मेरा मन चहका. टीचर मेरे बाद सुमित का ही नाम बोलती हैं. कितना अच्छा लगता है हम दोनों का नाम एकसाथ बोला जाना. आज मैं जानबूझ कर अपनी पेंटिंग को देखने लगी. सुमित मेरे बराबर में ही खड़ा था. मैं ने टीचर का बोला जाना इग्नोर कर दिया तो सुमित को मुझे कहना ही पड़ गया, ‘रिनी, अटेंडेंस हो रही है.’ मैं ने चौंकने की ऐक्टिंग की, ‘यसमैम.’

हमारे सर्किल के बीच में हमारी मौडल आ कर बैठ गई थी. आज करीब 20 साल की एक लड़की हमारी मौडल थी. हमारा डिपार्टमैंट रोज पेडमौडल बुलाता है. अब हमें उस लड़की की पेंटिंग में कलर भरने थे. हम स्केच बना चुके थे. अचानक मौडल सुमित को देख कर मुसकरा दी. मेरा मन हुआ कलर्स की प्लेट उस के चेहरे पर उड़ेल दूं. हमारी क्लास में 15 लड़कियां और सिर्फ 4 लड़के हैं. सुमित ही सब से स्मार्ट है, इसलिए कौन लड़की उसे लिफ्ट नहीं देगी. और इस नालायक को यह पता है कि लड़कियां इस पर मरती हैं, फिर भी ऐसा सीरियस हीरो बन कर रहता है कि मन करता है, कालर पकड़ कर झिंझोड़ दूं.

हाय, कालर पकड़ कर उस के पास जाने का मन हुआ ही था कि मैम की आवाज आई, ‘रिनी, कहां ध्यान रहता है तुम्हारा, काम शुरू क्यों नहीं करती?’ डांट खाने में इंसल्ट सी लगी वह भी सुमित के सामने. ये रमा मैम अकेले में नहीं डांट सकतीं क्या? मैं ने सुमित को देखा, लगा, जैसे वह मेरे मन की बात जानता है. चोर कहीं का, दिल चुरा कर कैसा मासूम बना घूमता है. बाकी लड़कियों को मुझ पर पड़ी डांट बहुत ही खुश कर गई.

मैं ने कलरिंग शुरू कर दी. मैम मेरे पास आईं, बोलीं, ‘रिनी, आजकल बहुत स्लो काम करती हो. सुमित को देखो सब लोग. कैसी लगन से पेंटिंग में डूब जाता है. तुम लोग तो पता नहीं इधरउधर क्या देखती रहती हो.’

मन हुआ कहूं कि मैम, आप तो शायद घरगृहस्थी में प्यारमोहब्बत भूल चुकीं, हमें थोड़ी देर महबूब के साथ अकेले नहीं छोड़ सकतीं क्या आप? पेंटिंग एक की जगह दो घंटे में बन गई तो आप का क्या चला जाएगा? पर मैं चुपचाप काम करने लगी. आज यह सोच रही थी कि नहीं, चुपचाप पेंटिंग ही बनाती रही तो मेरे जीवन के हसीं रंग इन्हीं चालाक लड़कियों में से कोई ले उड़ेगी. रिनी, कुछ कर. तू हार मत मानना. यह सुमित इतना कम बोलता है, इतना भाव खाता है कि कोई और हो तो इस का ख़याल छोड़ दे पर तुझे तो एक ज़िद सी हो गई है, मन यह ख्वाहिश कर बैठा है कि तुझे यही चाहिए तो रिनी अब सोच मत, कुछ कर. सोचते रह जाने से तो कहानी बदलने में समय नहीं लगता. बस, अब मैं ने सोच लिया कि अपने दिल की यह ख्वाहिश पूरी कर के मानूंगी. एक दिन सुमित की बांहों में सब भूल जाऊंगी. पीरियड ख़त्म होते ही मैं सुमित के पास गई, पूछ लिया, “सुमित, तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड है?”

उसे जैसे करंट सा लगा, “नहीं तो, क्या हुआ?”

मैं ने चैन की एक सांस जानबूझ कर उस के सामने खुल कर ली और कहा, “बस, फिर ठीक है.”

”मतलब?”

“सचमुच बेवकूफ हो, या बन रहे हो?”

वह हंस दिया, “बन रहा हूं.”

“मोबाइल फोन कम यूज़ करते हो क्या? फोन पर बहुत कम दिखते हो?”

“हां, खाली समय में पढ़ता रहता हूं और क्लास में तो फोन का यूज़ मना ही है.”

“अपना नंबर देना.”

“क्या?”

“बहरे हो?”

सुमित मुझे नंबर बता रहा था. सारी लड़कियां आंखें फाड़े मुझे देख रही थीं. और मैं तो आज हवाओं में उड़उड़ कर अपने को शाबाशी दे रही थी. मुझे और जोश आया, पूछा, “कैंटीन चलें?”

“मैं चायकौफ़ी नहीं पीता.”

“पानी पीते हो न?”

“हां,” कह कर वह जोर से हंसा.

“तो वही पी लेना,” मैं ने उस का हाथ पकड़ कहा, “चलो.”

“तुम लड़की हो, क्या हो?” उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए पूछा.

“तुम्हें क्या लगती हूं?”

“सिरफिरी.”

”सुनो, मुझे कैंटीन नहीं जाना था,” मैं ने बाहर आ आ कर कहा, ”बस, यों ही तुम्हारे साथ क्लास से यहां तक आना था. “चलो, अब कल मिलते हैं.”

”यह तुम आज क्या कर रही हो, कुछ समझ नहीं आ रहा.”

मैं आज बहुत ही खुश थी. मैं ने कोई गलत बात नहीं की थी. बस, एक कदम बढ़ाया था अपनी ख्वाहिश की तरफ और मेरे मन में जरा भी गिल्ट नहीं था. कोई अच्छा लगता है तो इस में बुरा क्या है. मेरा मन है सुमित को प्यार करने का, तो है.

मेरे पास अब उस का नंबर था. पर मैं ने न तो उसे कोई मैसेज किया, न फोन किया. अगले दिन क्लास में लड़कियां मुझे ऐसे देख रही थीं जैसे मैं क्लास में नईनई आई हूं. मैं ने काम भी बहुत अच्छा किया, रमा मैम ने मुझे शाबाशी भी दे दी. मैं ने किसी की तरफ नजर भी नहीं डाली. लड़की हूं, महसूस कर रही थी कि सुमित का ध्यान मेरी तरफ है आज. मजा तब आया जब रमा मैम ने उसे डांट दिया, ”सुमित, अभी तक मौडल का फेस फाइनल नहीं किया, यह मौडल, बस, आज ही है, तुम लोग लेट करते हो तो एक्स्ट्रा पेमैंट जाता है डिपार्टमैंट से, नुकसान होता है. काम में मन लगाओ.”

मैं ने अब सुमित को देखा और मुसकरा दिया. बेचारा, कैसा चेहरा हो गया उस का, पहली बार डांट पड़ी थी. हमारा क्या है, हमें तो पड़ती रहती है. पीरियड के बाद क्लास की सब से सुंदर लड़कियां आरती, नेहा और कुसुम मेरे पास आईं, ”रिनी, क्या चल रहा है तेरा सुमित के साथ?”

मुझे पहले इन्हीं का डर लगा रहता था कि कहीं सुमित किसी दिन इन में से किसी पर फ़िदा न हो जाए. मैं ने इठलाते हुए कहा, ”वही जो तुम्हें लग रहा है.”

”सच?”

”हां, भई, इस में क्या झूठ बोलना.”

इतने में मैं ने सुमित को देख कर बड़े अपनेपन से कहा, ”चलें?”

”आज जल्दी जाना है मुझे, मैं अपनी बाइक भी नहीं लाया.’’

”ठीक है, मैं स्कूटी से छोड़ देती हूं, आओ.”

सब को अवाक छोड़ मैं फिर सुमित के साथ क्लासरूम से निकल गई. सुमित बेचारा तो बहुत ही कन्फ्यूज्ड था, ”तुम मुझे छोड़ोगी?”

”हां, आओ,” आज मुझे अपनी स्कूटी बहुत ही अच्छी, प्यारी लगी जब सुमित मेरे पीछे बैठा. उस ने मुझे बताया कि कहां जाना है तो मैं ने कहा, ”अरे, मैं वहीँ तो रहती हूं.”

”अच्छा?”

इस टाइम मेरे मम्मीपापा कालेज में होते थे. मुझे थोड़ी शरारत सूझी. मैं उसे सीधे अपने घर ले गई. उस ने घर का नंबर पढ़ते हुए कहा, ”यहां कौन रहता है?”

”मैं, आओ, थोड़ी देर…”

सुमित चुपचाप अंदर आ गया. मैं ने दरवाजा बंद किया. अपना बैग रखा. उसे देखा, वह इतना प्यारा मुसकराया कि मैं बेहोश होतेहोते बची.

वह मेरे पास आया और मेरे गले में बांहें डाल दीं, बोला, ”कितना इंतज़ार किया है मैं ने इस पल का. पिछला पूरा साल निकल गया, बस, तुम्हें देखतेदेखते. दिल में एक छोटी सी ख्वाहिश हमेशा सिर उठाती रही कि कभी तुम्हारे करीब आऊं, तुम्हे प्यार करूं. जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा था तभी से दिल में ऐसी बसी हो कि बता नहीं सकता. और सुनो, मेरी बाइक भी कालेज में ही खड़ी है, झूठ बोल दिया था तुम से कि बाइक नहीं लाया. मुझे लगा कि शायद तुम कह दो कि तुम मुझे घर छोड़ दोगी. आज एक कदम बढ़ाया था अपनी ख्वाहिश पूरी करने की तरफ.”

”अरे, मूर्ख प्रेमी, पुरानी मूवी के राजेंद्र कुमार बने रहे, कभी तो रणवीर सिंह बन कर देखा होता, बता नहीं सकते थे क्या. तंग कर के रख दिया. तुम्हारे चक्कर में कितनी डांट खा ली मैम से!”

”वह तो मैं ने भी खाई है. हिसाब बराबर न. मैं अपनी ख्वाहिश को धीमीधीमी आंच पर पका रहा था जिस से इंतज़ार का मीठामीठा सा स्वाद इस में भर जाए,” यह कहते हुए उस ने मुझे अपने गले से लगा लिया. मैं उस के कंधे पर सिर रखे अपनी ज़िद्दी सी ख्वाहिश पूरी होने पर खुश, हैरान सी उस के पास से आती खुशबू में गुम थी. इतने दिनों से चुपचुप सी 2 ख्वाहिशें आज क्या खूब पूरी हुई थीं.

Interesting Hindi Stories : मनपसंद- मेघा ने परिवार के प्रति कौनसा निभाया था फर्ज

Interesting Hindi Stories : पिता का जाना मतलब घर का छतविहीन होना. बारिश और तूफान में अचानक छाते का उड़ जाना. जिस दीवार का सहारा लिए बैठे हों उसी का भरभरा कर ढह जाना. या फिर, ऐसा ही कुछ और… मेघा सही स्थिति का आकलन कर पाने की स्थिति में नहीं है. मां को देखती है तो कलेजा कट के रह जाता है वहीं रिश्तेदारों की चाशनी में लिपटी बेतुकी सलाहें सुनती है तो कटे कलेजे को सिल कर ढाल बनाने को जी चाहता है उस का.

मेघा के लिए आने वाली परिस्थितियां आसान नहीं होंगी, इस का एहसास उसे बखूबी है. लेकिन इन से पार पाने की कोई रणनीति उस के दिमाग में अभी नहीं आ रही है. उस की मां तो साधारण घरेलू महिला रही हैं, पेट के रास्ते से पति के दिल में उतरने की कवायद से आगे कभी कुछ सोच ही नहीं पाईं. पता नहीं वे खुद नहीं सोच पाई थीं या फिर समाज ने इस से अधिक सोचने का अधिकार उन्हें कभी दिया ही नहीं था. जो कुछ भी हो, अच्छीभली गृहस्थी की गाड़ी लुढ़क रही थी. कोई भी कहां जानता था कि ऊंट कभी इस करवट भी बैठ सकता है. लेकिन अब तो बैठ ही चुका है. और यही सच है.

राहत की बात यह थी कि पिता सरकारी कर्मचारी थे और सरकार की यही अदा सब को लुभाती भी है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो जाएं लेकिन सरकार अपने सेवारत कर्मचारी और उस के बाद उस के आश्रितों का अंतिम समय तक साथ निभाती है. लिहाजा, परिवार के किसी एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल ही जाएगी. और यही नौकरी उन के आगे की लंगड़ाती राह में लकड़ी की टेक बनेगी.

15 बरस की छुटकी माला और 20 साल की मेघा. मां को चूंकि दुनियादारी की अधिक समझ नहीं थी और माला ने अभी अपनी स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं की है, इसलिए यह नौकरी मेघा ही करेगी, यह तय ही था लेकिन मेघा जानती थी कि परिवार की जिम्मेदारी लेना बिना पैरों में चप्पल पहने कच्ची सड़क पर चलने से कम नहीं होगा.

अनुकंपा की नौकरी दोधारी तलवार होती है. एक तो यह एहसास हर वक्त कचोटता है कि यह नौकरी आप को अपनी मेहनत और काबिलीयत की बदौलत नहीं, बल्कि किसी आत्मीय की मृत्यु की कीमत पर मिली है और दूसरे हर समय एक अपराधबोध सा घेरे रहता है कि जाने कर्तव्य ठीक से निभ भी रहे हैं या नहीं. खुद को अपराधबोध न भी हो, तो कुछ नातेरिश्तेदार होते ही इसलिए हैं. उन का परम कर्तव्य होता है कि समयसमय पर सूखने की कोशिश करते घाव को कुरेद कर उसे हरा बनाए रखें. और वे अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाते हैं.

6 महीने बीततेबीतते उतरती हुई गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. एक परिवार ने अपने मुखिया के बिना जीने की कोशिशें शुरू कर दी थीं. मेघा को भी पिता की जगह उन के औफिस में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने ढर्रा पकड़ लिया.

फ़िल्मी और किताबी बातों से परे मेघा बहुत ही व्यावहारिक लड़की है. भविष्य को ले कर उस का दृष्टिकोण बिलकुल स्पष्ट था. वह भलीभांति जानती थी कि माला और मां उस की जिम्मेदारी हैं लेकिन इन जिम्मेदारियों के बीच भी वह खुद अपने लिए भी जीने की चाह पाले हुए थी. बीस की हवाई उम्र में उस के भी कुछ निजी सपने थे जिन्हें पूरा करने के लिए वह बरसों इंतजार नहीं करना चाहती थी. उसे पता था कि उम्र निकलने के बाद सपनों का कोई मोल नहीं रहता.

नौकरी के दरमियान ही मंगल उस की जिंदगी में आया जिसे मेघा ने आदर्शों का रोना रोते हुए जाने नहीं दिया बल्कि खुलेदिल से उस का स्वागत किया. मंगल उस का सहकर्मी. मंगल की एकएक खूबी का विस्तार से बखान करने के बजाय मेघा एक ही शब्द में कहती थी- ‘मनपसंद.’ मनपसंद यानी इस एक विशेषण के बाद उस की शेष सभी कमियां नजरअंदाज की जा सकती हैं.

इधर लोगों ने फिल्में और टैलीविजन के धारावाहिक देखदेख कर मेघा की भी त्याग की मूर्ति वाली तसवीर बना ली थी और वे उसे उसी सांचे में फिट देखने की लालसा भी रखते थे. त्याग की मूर्ति यानी पहले छुटकी को पढ़ाएलिखाए. उस का कैरियर बनाए. उस का घर बसाए. तब कहीं जा कर अपने लिए कुछ सोचे. इन सब के बीच मां की देखभाल करना तो उस का कर्त्तव्य है ही. लोगों का दिल ही टूट गया जब उस ने मंगल से शादी करने की इच्छा जताई.

“अभी कहां वह बूढी हो रही थी. पहले छोटी का बंदोबस्त कर देती, फिर अपना सोचती. अब देखना तुम, पैसेपैसे की मुहताज न हो जाओ तो कहना.” यह कह कर कइयों ने मां को भड़काया भी. मां तो नहीं भड़कीं लेकिन मेघा जरूर भड़क गई.

“आप अपना बंदोबस्त देख लीजिए, हमारा हम खुद देख लेंगे,” यह कहने के साथ ही मेघा ने हर कहने वाले मुंह को बंद कर दिया. लेकिन इस के साथ मेघा को बदतमीज और मुंहफट का तमगा मिल गया.

इस तरह की बातें बिना पंख ही उड़ती हैं. मेघा की मुंहजोरी की बातें मंगल के घर तक पहुंचीं तो मंगल की मम्मी सतर्क हुई. मंगल को तुरंत लाइनहाजिर किया गया और मेघा के स्वभाव के बारे में पूछताछ की गई. अपनी संतुष्टि के लिए मंगल की मां ने सालभर का समय मांगा ताकि वह मंगल की जीवनसंगिनी बनने के लिए मेघा की उम्मीदवारी को परख सके.

कौन जाने इस बीच मंगल के लिए कोई बेहतर रिश्ता ही मिल जाए. या, हो सकता है कि दोनों के बीच खटास ही आ जाए. मां इसी आस पर सालभर निकाल देना चाहती थी. लेकिन कहते हैं न कि करम तो जहां फूटने को लिखे हैं वहीं फूटते हैं. सालभर बाद भी न तो मंगल को कोई मिली और न ही मेघा को.

सालभर बाद दोनों इस सहमति और शर्त के साथ एक बंधन में बंध गए कि मेघा अपने परिवार की जिम्मेदारी पहले की तरह ही उठाती रहेगी और अपनी तनख्वाह भी पूर्ववत उसी परिवार पर खर्च करती रहेगी. लेकिन मनपसंद साथी का नशा किसी भी अन्य नशे से किसी भी प्रकार कम नहीं होता. मेघा भी प्रेम के नशे में आकंठ डूब गई. वह अपनी तनख्वाह बेशक अपनी मां और बहन पर खर्च करती थी लेकिन अब उस के पास उन पर खर्च करने के लिए समय कम पड़ने लगा था. छुट्टी वाले दिन किसी तरह भागती सी मायके जाती और जाते ही वापसी के लिए घड़ी देखने लगती. साल बीततेबीतते नन्हा गोदी में आ गया तो बचेखुचे समय पर उस का कब्जा हो गया.

इधर माला स्कूल खत्म कर के कालेज में आ गई थी. कालेज का खुलापन, घर में पिता के कठोर अनुशासन की कमी और बहन का बिना जरूरत पैसों से पर्स भरते रहना… किशोर लड़की के राह भटकने के लिए इतने कारण काफी होते हैं.

किसी तरह गिरतेपड़ते माला अपना कालेज कर रही थी. एक दिन पता चला कि माला के पांव गलत पगडंडी पर मुड़ गए. मां ने मेघा और मंगल को बुला कर चर्चा की. सब ने ठंडे दिमाग से सोच कर तय किया कि कालेज खत्म होते ही माला की शादी कर दी जाए.

लेकिन कालेज तो 6 महीने में खत्म हो जाएगा और इतनी जल्दी अच्छा लड़का कहां से तलाश किया जाए. दोतीन महीने खोजने के बाद भी बात बनती दिखाई नहीं दी तो मेघा को अपने देवर सोम का खयाल आया. उस ने मंगल के सामने अपनी बात रखी. मंगल उस का प्रस्ताव सुनते ही उखड़ गया.

“दिमाग खराब हो गया क्या तुम्हारा? जिंदा मक्खी निगलने के लिए तुम्हें सोम ही दिखाई दिया,” मंगल ने गुस्से से कहा.

“बच्चों से गलतियां हो जाती हैं. हम बड़े हैं, हमें ही समझदारी दिखानी होगी. तुम ने मुझ से जिम्मेदारी बांटने का वादा नहीं किया था? तुम्हारी अपनी बहन होती तब भी क्या तुम ऐसे ही तेवर दिखाते?” जैसे कई प्रश्नों के साथ मेघा ने पति पर पलटवार किया.

“हां, तो कर रहे हैं न प्रयास. मिल जाएगा कोई न कोई लड़का. इन सब में सोम को सूली पर टांगने की कहां जरूरत है?” मंगल ने प्रतिरोध किया. लेकिन स्त्री के हठ से भला कौन जीत सका है जो आज मंगल जीत पाता. मेघा के प्रयास रंग लाए और मंगल की नापसंदगी तथा खुद माला की लाख नानुकुर के बाद भी माला सोम के साथ विवाह वचनों से बंधी अपनी बड़ी बहन की देवरानी बन गई.

समय में बहुत शक्ति होती है. बड़े से बड़े घाव भी समय के साथ भर जाते हैं. खरोचों के निशान हलके पड़तेपड़ते एक दिन अदृश्य हो जाते हैं. माला के साथ भी यही हुआ. जवानी के उफनते झरने पर सोम के प्रेम का बांध बनते ही वह शांत नदी सी बहने लगी. अब उसे गृहस्थी में रस आने लगा था. मेघा खुश थी कि उस ने बिगड़ती बात को संभाल लिया था. बहन के घर आने से अब बच्चे की देखभाल के लिए उसे हलकान नहीं होना पड़ता. चौकाचूल्हा भी माला देख लेती है.

थके शरीर को बिस्तर मिलते ही व्यक्ति पहले जरा आराम से लेटता है, फिर आंखें बंद कर दिमाग को शांत करता है और आखिरकार सो जाता है. माला के आने के बाद भी यही हुआ. धीरेधीरे घर की सारी जिम्मेदारी माला पर डाल कर मेघा निश्चिंत हो गई. माला भी खुश थी. दोनों बहनें बारीबारी से मां और सासससुर दोनों की देखभाल कर रही थीं. अपने वादे के अनुसार मेघा आज भी अपनी तनख्वाह का तीसरा हिस्सा ही अपने पास रखती है. शेष 2 हिस्से मां और माला को देती है. इस एक हिस्से से माला और सोम का जेबखर्च निकल आता है. बाकी के खर्चे मंगल और ससुरजी देखते ही हैं.

मेघा ने इतनी तरल जिंदगी की तो कल्पना भी नहीं की थी लेकिन हकीकत को भी भला कैसे झुठलाया जा सकता है. शायद जिंदगी अपनी पिछली गलतियों का पश्चात्ताप कर रही थी. इतने कांटों के बाद कुछ फूलों पर भी हक़ तो बनता ही है.

देखते ही देखते दो हजार बीस का साल आ गया. यह बरस तो मनहूसियत के साथ ही अवतरित हुआ था. चारों तरफ कोरोनाकोरोना का ही तांडव मच रहा था. हर कोई डर के साए में जी रहा था. कौन जाने मौत का अगला शिकार कौन हो. एकएक दिन भारी बीत रहा था.

‘आज तो ठीक है, कल पता नहीं क्या हो.’ हर स्वस्थ व्यक्ति यही सोच रहा था. किसी को जरा सी भी छींक या खांसी आने पर लोग उसे संदिग्ध दृष्टि से देखने लगते. कोई अपना मास्क सही करने लगता तो कोई दो फुट दूर सरक लेता. व्यक्ति से व्यक्ति के बीच अविश्वास की खाई बन गई.

मेघा भी अपने परिवार की सुरक्षा के लिए पूरी तरह सतर्क थी और फिलहाल अभी तक इस महामारी की चपेट में आने से सभी बचे हुए थे.

साल बीतने को आया. मेघा को लगने लगा था कि इस अदृश्य दुश्मन पर अब जीत हासिल हो ही गई है. लेकिन कांटों के झाड़ से लहंगा बचा कर रखने के तमाम प्रयासों के बावजूद भी यह अनहोनी हो ही गई. किसी शायर के कहे अनुसार, यह नाव भी किनारे आ कर ही डूबी.

अब जबकि वैक्सीन के आने की सुगबुगाहट के बीच लोग जरा बेफिक्र हुए ही थे और कोरोना शायद इसी लापरवाही का इंतजार कर रहा था. एक दिन अचानक सोम को हलका बुखार आया और अगले दिन उसे खांसी शुरू हो गई. टैस्ट करवाया तो कोरोना पौजिटिव आया. हालांकि अब मृत्युदर काफी कम थी लेकिन फिर भी खतरा तो था ही. आखिर जिस का डर था, वही हुआ. इंफैक्शन बढ़ने के बाद सोम हौस्पिटल गया तो फिर बौडी के रूप में ही वापस आया.

सबकुछ बहुत ही आकस्मिक रहा. महज 3 साल के वैवाहिक जीवन के बाद ही माला की रंगीन साड़ी सफेद हो गई. मां पर तो मानो वज्रपात ही हुआ था. मेघा को भी लगा जैसे कि जिंदगी ट्रेडमिल पर ही चल रही थी. चले तो खूब लेकिन पहुंचे कहीं भी नहीं.

मन बदलने के लिए मेघा ने माला को कुछ दिनों के लिए मां के पास भेज दिया. इस के बाद भी माला अकसर मां के पास ही रहने लगी. मेघा और मंगल उस के भविष्य के लिए फिर से फिक्रमंद होने लगे.

इधर अचानक कुछ दिनों से माला बुझीबुझी सी लग रही थी. सोम की यादों को कारण मान कर मेघा ने उस पर अधिक ध्यान नहीं दिया. मेघा ने महसूस तो किया कि आजकल माला अपने जीजा मंगल से भी कुछ खिंचीखिंची सी रहती है लेकिन यह भी कोई अधिक गौर करने वाली बात नहीं थी. मन खराब हो, तो कुछ भी अच्छा कहां लगता है.

माला पिछले एक माह से मां के पास ही है. आज लंच के बाद मेघा ने भी मां से मिलने का सोचा और स्कूटर ले कर उधर ही चल दी. तभी खयाल आया कि इस समय तो मां सो रही होंगी.

‘कोई बात नहीं, माला तो है न. यों उस से मन की दो बात किए हुए भी समय बीत गया. बेचारी, अभी कुछ भी तो नहीं देखा जिंदगी में, मन ही मन यह सोच कर व्यथित होती मेघा बढ़ी चली जा रही थी. घर के बाहर खड़ी मंगल की मोटरसाइकिल देख कर मेघा चौंक गई.

‘इन्हें तो इस समय औफिस में होना चाहिए. यहां किस कारण से हैं,’ सोचती हुई मेघा घर के मुख्य दरवाजे तक आ गई. दरवाजे पर लगी डोरबैबेल बजातेबजाते अचानक उस के हाथ रुक गए. अंदर से आते हैरान करने वाले वार्त्तालाप ने उसे रुकने को मजबूर कर दिया. “र्मैं ने कह दिया न, मैं यह सब नहीं करने वाली. आप नहीं मानेंगे तो मजबूरन मुझे दीदी को बताना पड़ेगा,” माला की आवाज थी जो गुस्से में लग रही थी.

“यह भी कर के देख लो. लेकिन सोच लेना, कहीं उसे भी तुम्हारी तरह मायके आ कर रहना न पड़ जाए,” मंगल के बेशर्मीभरे इस स्वर की धमकी ने मेघा के सामने सारी स्थिति खोल कर रख दी. उसे माला के उखड़े मन का कारण समझ में आ गया. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि मंगल इतनी कमीनी हरकत कर सकता है. मेघा बिना आहट के ही वहां से लौट आई.

मंगल घर लौटा तो सबकुछ सामान्य था. नन्हा अपने दाद के पास खेल रहा था. मां टीवी देख रही थी. मेघा रसोई में थी. मेघा ने चाय बना कर सासससुर को थमाई और अपना कप ले कर मंगल के पास आ गई. दोनों साथसाथ पीने लगे.

“मैं कुछ दिनों के लिए मां के पास जा रही हूं,” मेघा ने कहा.

“और यहां कौन देखेगा?” मंगल के स्वर में इनकार सा था.

“सोम के बिना भी तो सब चल रहा है न. कुछ दिन मेरे बिना भी चल जाएगा,” मेघा पति के इनकार को खारिज करते हुए मायके जाने की तैयारी करने लगी. बेटी को यों अचानक आया देख कर मां हैरान तो हुईं लेकिन खुश भी थीं. घर में रौनक हो गई.

“मंगल तुझ से क्या चाह रहा है?” एक दिन एकांत में मेघा ने माला से पूछा. माला बहन का प्रश्न सुन कर अचकचा गई. फिर धीरेधीरे सब विस्तार से बताती गई.

“जीजाजी चाहते हैं कि मैं उन्हें सोम की जगह दे दूं. यदि मैं ने ऐसा नहीं किया तो वे तुम्हें छोड़ देने की धमकी देते हैं.” इस के आगे माला ने जो बताया उसे सुन कर मेघा सफेद हो गई. फिर मन ही मन एक निश्चय कर लिया.

“देख माला, अभी तुम्हारी उम्र कुछ भी नहीं है. स्नातक तो तुम हो ही, किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करो. मन लगा कर करोगी तो तुम्हें विधवा कोटे में नौकरी मिल ही जाएगी. एक बार जिंदगी सही रास्ते पर चल पड़ेगी तो मंजिल मिलने में देर नहीं होगी,” मेघा ने समझाया.

“लेकिन मेरा आधा दिमाग तो जीजाजी ने खराब कर रखा है. हर तीसरे दिन धमक जाते हैं. उन से बचने के लिए ही तो मैं यहां मां के पास रहती हूं. यहां भी चैन से नहीं रहने देते. मेरी जिंदगी को तो आम रास्ता समझ लिया है. कहते हैं कि सोम से पहले भी तो किसी की हो चुकी हो, अब क्या डर है. ऐसे में तैयारी क्या खाक करूंगी,” माला निराश थी.

“तू फिक्र मत कर. तू यहां से दूर जा कर किसी इंस्टिट्यूट में तैयारी कर. मंगल को मैं संभाल लूंगी,” मेघा के सुझाव में दम था.

माला राजी हो गई. माला को दिल्ली के एक बहुत अच्छे इंस्टिट्यूट में बैंकपीओ की तैयारी करने के लिए एडमिशन दिला दिया गया. माला वहीँ होस्टल में रहने चली गई. मंगल को पता चला, तो उस ने बहुत बवाल मचाया.

“इतना बड़ा फैसला अकेले ही कर लिया? पति हूं तुम्हारा. और उस का जीजा भी व जेठ भी. क्या मुझ से पूछना भी जरूरी नहीं लगा तुम्हें?” मंगल ने चिल्लाते हुए कहा. मंगल जाल में फंसने से पहले ही चिड़िया के उड़ने से खिन्न था.

“तुम ने कौन सा जीजा और जेठ की जिम्मेदारी निभाई है. मेरा मुंह न खुले, इसी में तुम्हारी इज्जत है. खुल गया तो पत्नी से भी हाथ धो बैठोगे,” मेघा ने दांत चबा कर पति की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

शब्दों की तल्खी से मंगल जान गया था कि मेघा को सब पता चल गया है. वह उन आंखों का सामना नहीं कर सका और तुरंत मेघा के सामने से हट गया.

मेघा को लग रहा था मानो आज उस ने बहन, मां और परिवार के प्रति अपना एक और कर्तव्य निभाया है.

Best Hindi Stories : मीनू – एक सच्ची कहानी

Best Hindi Stories :  बात उन दिनों की है, जब मैं मिलिटरी ट्रेनिंग के लिए 3 एमटीआर मडगांव, गोवा गया हुआ था. कुछ दिनों के लिए मिलिटरी अस्पताल, पणजी में मैं अपने पैरदर्द के इलाज के लिए रुका हुआ था.

एक दिन यों ही मैं अपने एक दोस्त साजन के साथ कंडोलिम बीच की तरफ घूमने निकला था. पहले हम मिलिटरी अस्पताल से बस ले कर फैरी टर्मिनल पहुंचे. फिर हम ने पंजिम का मांडोवी दरिया फैरी से पार किया. फिर वहां से हम दोनों कंडोलिम बीच के लिए बस में बैठ गए.

आप को बता दूं कि कंडोलिम बीच पंजिम से 13 किलोमीटर दूर है. साथ ही, यह भी बता दूं कि पणजी को ही आम बोलचाल में पंजिम कहा जाता है.

खैर, हम बस में सवार हो चुके थे. हम 3 सवारी वाली सीट पर बैठ गए थे. तीसरी सवारी कोई और थी. वह मर्द था.

मेरा दोस्त साजन शीशे की तरफ वाली सीट पर बैठ गया था. मैं बीच वाली सीट पर बैठ गया.

अचानक मेरी नजर हम से अगली सीट पर बैठी लड़की पर गई. उस पर सिर्फ एक ही सवारी बैठी थी. वह 18-19 साल की लड़की थी. उस का रंग सांवला था. उस के हाथ में गोवा मैडिकल कालेज और अस्पताल का कार्ड था. कार्ड पर उस का नाम मीनू लिखा हुआ था.

मैं ने अचानक ही पूछ लिया, ‘‘आप जीएमसी से आ रही हैं?’’

उस ने कहा, ‘‘हां.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं भी इलाज के लिए जीएमसी में जाता रहता हूं.’’

मैं ने एकदम पूछ लिया, ‘‘आप को क्या हुआ है?’’

वह बोली, ‘‘छाती में दर्द है.’’

मैं ने अफसोस में कहा, ‘‘ओह.’’

फिर उस ने पूछा, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘हम भारतीय सेना में हैं. मैं अपने दोस्त साजन को कंडोलिम बीच दिखाने ले जा रहा हूं.’’

वह लड़की मेरे साथ बात करने में खुशी महसूस कर रही थी, इसलिए मैं बातें जारी रखना चाहता था. फिर मैं ने पूछा, ‘‘क्या आप भी कंडोलिम बीच पर जा रही हैं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘नहीं, रास्ते में मेरा गांव है. मैं वहां जा रही हूं.’’

अब मीनू मुझे अपनी सी लगने लग गई थी. मैं भी उस के सपने देखने लगा था. उस की भावनाएं भी शायद कुछ ऐसी ही होंगी. उस उम्र में हर लड़कालड़की के मन में अपने एक जीवनसाथी की तलाश रहती है.

मीनू बोली, ‘‘आगे आ जाइए.’’

उस के साथ वाली सीट खाली थी. वह फिर बोली, ‘‘आप को बात करने में दिक्कत आ रही है, आगे आ जाइए.’’

मेरा दोस्त साजन बोला, ‘‘जाओ, आगे चले जाओ.’’

मैं आगे जा कर मीनू के साथ वाली सीट पर बैठ गया.

वह बोली, ‘‘तुम्हारा दोस्त अकेला रह गया. उसे भी बुला लो.’’

मैं ने साजन से आगे आने के लिए कहा. पर उस ने कहा कि कोई बात नहीं, आप अपनी बातें करो.

मैं ने मीनू को अपनेपन से कहा, ‘‘आप भी हमारे साथ बीच पर चलो. हमें भी बीच घुमा लाओ.’’

उस ने कहा, ‘‘जी नहीं, मैं नहीं जा सकती. मेरा घर जाना जरूरी है.’’

इतने में कंडक्टर आ गया. मैं ने उस से कहा, ‘‘2 टिकट कंडोलिम बीच के और एक टिकट…’’

उस के गांव का नाम मेरे मुंह में ही रह गया. उस ने बात मेरे मुंह से छीनते हुए कहा, ‘‘3 टिकट कंडोलिम बीच…’’

फिर वह मेरी तरफ मुंह घुमा कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे साथ ही चलती हूं. जल्दी वापस आ जाएंगे.’’

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

हम जल्दी ही कंडोलिम बीच पहुंच गए. हम वहां पर घूमे, खाना खाया और इधरउधर की बातें कीं.

मैं ने मीनू से पूछा, ‘‘आप के पिताजी क्या काम करते हैं?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘मेरे डैडी मजदूरी करते हैं. मेरी मम्मी घरों में बरतन धोने का काम करती हैं. मैं एक गारमैंट्स स्टोर पर काम करती हूं और साथ में बरतन धोने का काम भी करती हूं.’’

मीनू ने यह भी बताया कि एक उस की बड़ी बहन है, जो शादीशुदा है और पणजी में अपने पति के साथ रहती है. उस के मम्मीडैडी कोल्हापुर से यहां आ कर बसे हुए हैं. बिना संकोच किए उस ने सबकुछ साफसाफ बता दिया था.

उस समय मेरी उम्र 23 साल थी और उस की उम्र 19 साल थी. उम्र का अंतर ठीक था.

मैं ने पूछा, ‘‘आप कितना पढ़ीलिखी होंगी?’’

उस ने बताया कि वह एसएससी पास है.

वैसे, मेरी पढ़ाई उस से काफी ज्यादा थी, पर चूंकि हमारे दिल मिल चुके थे, इसलिए सबकुछ ठीक लग रहा था. फिर हम एक होटल में कुछ देर के लिए रुके. हम एक हो गए थे.

अब हमें लौटना था. मैं चाहता था कि मेरे बाकी आर्मी के दोस्त भी अपनी भाभी को देख लें. मैं बहुत जोश में था. अब मैं अकेला नहीं था. मैं ने उस से कहा कि मेरे साथ मिलिटरी अस्पताल चले. वह बोली, ‘‘ठीक है.’’

मीनू मेरे साथ मिलिटरी अस्पताल आई. मैं ने अपने दोस्तों को उन की भाभी दिखाई. उस ने खुद हमारे कर्नल साहब से बात की. उस के बाद वह वापस चली गई.

एक दिन बाद ही मुझे मडगांव सैंटर जाना था. मैं ने मीनू को वहां का पता लिख कर दे दिया था.

मैं मडगांव सैंटर चला गया था. मीनू की बहुत याद आ रही थी. उस का खत आ गया. वह भी उदास थी. वह मुझ से मिलना चाहती थी. उस ने लिखा कि मैं उस को जीएमसी, पणजी में 10 तारीख को 12 बजे मिलूं.

मैं ने उसे जवाब दिया कि मैं भी बहुत उदास हूं. मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आ रही है. मैं जीएमसी, पणजी आ रहा हूं. वहां मेरे पैर का आपरेशन है. आप से भी मिल लूंगा.

उस के आने के एक दिन पहले मेरे पैर का आपरेशन हो गया था. मैं वार्ड में भरती था. जब उस ने मेरा नाम ले कर इनक्वायरी पर पता किया, तो स्टाफ ने मुझ से मिला दिया. मिलने के लिए उसे कम समय दिया गया था.

मैं ने उसे बताया कि मैं परमानैंट डिसएबल्ड हो गया हूं. अब मुझे नौकरी छोड़नी होगी और मजबूरन अपने घर पंजाब जाना होगा.

मुझे नौकरी छूट जाने का गम था. मन में बहुत सी बातें घूम रही थीं कि बिना नौकरी के मेरा कैसे गुजारा होगा, मीनू को कहां रखूंगा. क्या करूं? वापस अपने घर पंजाब चला जाऊं या यहीं रह कर कुछ कामधंधा करूं?

वह मुझ से मिल कर जल्दी चली गई. मैं और उदास हो गया था. उस के अगले दिन मैं अपने मडगांव सैंटर चला गया.

एक हफ्ते बाद टांके कटवाने के लिए जीएमसी आया था और टांके कटवा कर वापस मडगांव सैंटर चला गया था. नौकरी से डिस्चार्ज के कागज तैयार हो गए थे. पैंशन नहीं लगी थी, क्योंकि मैडिकल बोर्ड ने डिसएबल्टी की वजह ट्रेनिंग नहीं लिखी थी.

मैं अपने घर पंजाब नहीं जाना चाहता था. जिस के साथ मैं नई जिंदगी बसाने के सपने देख रहा था, उसे कैसे छोड़ कर जाता. नौकरी छोड़ कर गरीब मातापिता को कैसे मुंह दिखाता. पैसे से हाथ खाली थे. कोई छोटामोटा कमरा या घर भी तो किराए पर नहीं ले सकता था. सेहत भी ठीक नहीं थी, जिस वजह से कोई काम भी नहीं कर सकता था.

मैं ने सोचा कि कोई न कोई काम करने की कोशिश करनी चाहिए. कर्नल साहब की सिफारिश पर मुझे एक पैट्रोल पंप पर नौकरी मिल गई. पहले ही दिन काम कर के देखा था. शरीर साथ नहीं दे रहा था. मन भी उदास था.

शाम को बस में बैठ कर मैं मीनू के गांव की तरफ चल पड़ा. उस के गांव उतर कर मैं वहीं बैठ गया. वहां से उस के गांव जाने के लिए थोड़ा पैदल रास्ता था. कदम आगे जाने से रुक गए थे. मन कोई फैसला नहीं ले पा रहा था कि क्या करूं.

इतने में वापसी की बस आ कर रुकी. मैं बिना कुछ सोचे ही उस बस में बैठ गया. वहां से पणजी, पणजी से मडगांव सैंटर पहुंच गया. अगले दिन रेलवे का टिकट वारंट लिया और वापस अपने घर पंजाब के लिए चल पड़ा उदास मन ले कर.

आज मेरी उम्र 50 साल से ऊपर हो गई है. उस को मैं एक पल के लिए भी नहीं भूल पाया हूं. मीनू के साथ बिताया एकएक पल मुझे ऐसे याद रहता है, जैसे कल की ही बात हो.

(यह कहानी एक सच्ची घटना पर लिखी गई है. पात्रों के नाम व जगह बदल दी गई है)  

लेखक- मुकेश कुमार डेवट

Latest Hindi Stories : हकीकत – लक्ष्मी की हकीकत ने क्यों सोचने पर मजबूर कर दिया

Latest Hindi Stories :  ‘‘बाबूजी, हमारे भाई की शादी में जरूर आना,’’ खुशी से चहकती लक्ष्मी शादी का कार्ड मुझे देते हुए कह रही थी.

‘‘जरूर आऊंगा लक्ष्मी. तुम्हारे यहां न आऊं, ऐसा कैसे हो सकता है…’’ मैं उसे दिलासा देते हुए बोला था.

लक्ष्मी के मांबाप उसी समय गुजर गए थे, जब वह मुश्किल से 15 साल की रही होगी. उस की गोद में डेढ़ साल का छोटा भाई और साथ में 5 साल की बहन रानी थी.

आज इस बात को कई साल हो गए हैं. डेढ़ साल का वह छोटा भाई आज खूबसूरत नौजवान है, जिस की शादी लक्ष्मी करा रही है.

मैं लक्ष्मी के जाते ही पुरानी यादों में खो गया. उस के पिता आंध्र प्रदेश से यहां मजदूरी करने आए थे, जो साइकिल मरम्मत की दुकान द्वारा अपना परिवार चलाते थे. वे किराए की झुग्गी में पत्नी व बच्चों के साथ रहते थे. उसी महल्ले में जग्गा बदमाश भी रहता था, जिस की निगाह 14 साल की लक्ष्मी पर जा टिकी थी.

सांवले रंग की लक्ष्मी तब भी भरे बदन वाली दिखती थी. एक दिन जग्गा ने मौका पा कर लक्ष्मी को रौंद डाला. कली फूल बनने से पहले ही मसल दी गई थी.

जग्गा की इस करनी से लक्ष्मी का सीधासादा बाप इतना गुस्साया कि उस ने सो रहे जग्गा की कुदाल से काट कर हत्या कर दी.

खून के केस में लक्ष्मी का बाप जेल चला गया और मां दाई का काम कर के अपने बच्चे पालने लगी.

इधर लक्ष्मी पेट से हो गई, तो उस की मां लोकलाज के डर से महल्ला बदल कर इधर आ गई. फिर तो सरकारी अस्पताल में बच्चे का जन्म और उस की जल्दी मौत. लक्ष्मी की मां द्वारा इस तनाव को झेल न पाना और अचानक मर जाना, सब एकसाथ हुआ. एक चैरिटेबल स्कूल में दाई की जरूरत थी, सो लक्ष्मी को रख लिया गया. सुबह नियमित समय पर आना, अपना काम मन से करना, सब से मीठा बोलना, लक्ष्मी के ऐसे गुण थे कि वह सभी का सम्मान पाने लगी.

आज इस बात को तकरीबन 25 साल से ज्यादा हो गए हैं. अब लक्ष्मी एक अधेड़ औरत दिखती है.

‘‘क्यों लक्ष्मी, इन सब झमेलों के बीच तुम अपनी शादी भूल गई?’’ मैं ने मजाक में पूछा था.

‘‘भूली कहां सर. शादी के बाद भी तो बच्चे ही होते न, सो 2 बच्चे मेरी गोद में हैं. मैं ने जन्म नहीं दिया है, तो क्या हुआ, अपना दूध पिला कर पाला तो है,’’ लक्ष्मी का यह जवाब मुझे अंदर तक हिला गया.

‘‘तुम ने दूध पिलाया है?’’ मेरे मुंह से निकल गया.

‘‘हां साहब, मैं उस जग्गा बदमाश के चलते बदनाम हो गई थी. कौन शादी करता मुझ से? बच्चा पैदा करने के चलते मैं ने एक बार अपने रोते भाई को मजाक में दूध पिलाया था. वह चुप हो गया और मुझे मजा आया, फिर तो मैं ने 2-3 साल तक उसे दूध पिलाया.’’ यह सुन कर मैं चुप हो गया.

‘‘क्या सोचने लगे बाबूजी?’’

‘‘यही कि तुम्हारी जितनी तारीफ करूं, कम है,’’ मेरे मुंह से निकला.

लक्ष्मी के दोनों भाईबहनों का स्कूल में दाखिला मैं ने ही कराया था. वहीं वे दोनों 12वीं जमात में फर्स्ट डिवीजन में पास कर चुके थे. बहन जहां नर्स की ट्रेनिंग ले कर सरकारी अस्पताल में नर्स थी, वहीं भाई ने बीकौम किया और बैंक में क्लर्क हो गया था. उसी की शादी का कार्ड ले कर लक्ष्मी मेरे पास आई थी.

‘‘लक्ष्मी, तुम ने इतना कुछ कैसे कर लिया?’’ मैं ने एक दिन उस से पूछा था.

‘‘यह सोचने का समय कहां था साहब. बाप जेल में, मां मर गई. रिश्तेदारों में से कोई झांकने तक नहीं आया, इसलिए जैसेतैसे कर के जो काम मिला करती गई.

‘‘स्कूल का काम करते हुए 1-2 घर का काम करतेकरते जैसेतैसे कर के पैसा कमा कर भाईबहन और खुद का पेट भरना था. फीस के अलावा सारे खर्च थे, जो पूरा करतेकरते जिंदगी निकल गई. आज सब अपने पैरों पर खड़े हैं, तो उन की शादी करनी है.’’

लक्ष्मी ने ईडब्लूएस मकान के लिए जब कहा, तो मैं चौंक गया था. मैं ने उसे बैंक से लोन दिलवाया था. गारंटी भी मैं ने ही दी थी. मजे की बात यह कि उस ने पूरी किस्त समय से भर कर मकान अपना कर लिया. इसी तरह दूसरी सारी समस्याओं का सामना भी वह मजे में करती गई.

एक दिन एक अखबार में किसी के खुदकुशी करने की खबर को सुन कर लक्ष्मी परेशान हो गई और पूछ बैठी, ‘‘साहब, लोग खुदकुशी क्यों करते हैं?’’

‘‘जो जिंदगी से नाराज होते हैं या जिन्हें मनचाहा नहीं मिलता, वे खुदकुशी कर लेते हैं,’’ मेरा जवाब था.

‘‘साहब, मेरी पूरी जिंदगी में संघर्ष ही रहा. मांबाप को खोया, बच्चा खोया, मगर लड़ती रही. अगर नहीं लड़ती, तो आज ये दोनों अनाथ होते. भटकभटक कर जान दे चुके होते, इसलिए इन की खातिर जीना पड़ा. अब तो आदत हो चुकी है. लेकिन मेरे मन में एक बार भी  खुदकुशी करने का विचार नहीं आया.’’

लक्ष्मी की इस बात ने मुझे बिलकुल चुप करा दिया.

लेखक- परमादत्त झा

Famous Hindi Stories : निकम्मा – जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने किया इंतजाम

Famous Hindi Stories :  दीपक 2 साल बाद अपने घर लौटा था. उस का कसबा भी धीरेधीरे शहर के फैशन में डूबा जा रहा था. जब वह स्टेशन पर उतरा, तो वहां तांगों की जगह आटोरिकशा नजर आए. तकरीबन हर शख्स के कान पर मोबाइल फोन लगा था.

शाम का समय हो चुका था. घर थोड़ा दूर था, इसलिए बीच बाजार में से आटोरिकशा जाता था. बाजार की रंगत भी बदल गई थी. कांच के बड़े दरवाजों वाली दुकानें हो गई थीं. 1-2 जगह आदमीऔरतों के पुतले रखे थे. उन पर नए फैशन के कपड़े चढ़े हुए थे. दीपक को इन 2 सालों में इतनी रौनक की उम्मीद नहीं थी. आटोरिकशा चालक ने भी कानों में ईयरफोन लगाया हुआ था, जो न जाने किस गाने को सुन कर सिर को हिला रहा था.

दीपक अपने महल्ले में घुस रहा था, तो बड़ी सी एक किराना की दुकान पर नजर गई, ‘उमेश किराना भंडार’. नीचे लिखा था, ‘यहां सब तरह का सामान थोक के भाव में मिलता है’. पहले यह दुकान भी यहां नहीं थी.

दीपक के लिए उस का कसबा या यों कह लें कि शहर बनता कसबा हैरानी की चीज लग रहा था.

आटोरिकशा चालक को रुपए दे कर जब दीपक घर में घुसा, तो उस ने देखा कि उस के बापू एक खाट पर लेटे हुए थे. अम्मां चूल्हे पर रोटी सेंक रही थीं, जबकि एक ओर गैस का चूल्हा और गैस सिलैंडर रखा हुआ था.

दीपक को आया देख अम्मां ने जल्दी से हाथ धोए और अपने गले से लगा लिया. छोटी बहन, जो पढ़ाई कर रही थी, आ कर उस से लिपट गई.

दीपक ने अटैची रखी और बापू के पास आ कर बैठ गया. बापू ने उस का हालचाल जाना. दीपक ने गौर किया कि घर में पीले बल्ब की जगह तेज पावर वाले सफेद बल्ब लग गए थे. एक रंगीन टैलीविजन आ गया था.

बहन के पास एक टचस्क्रीन मोबाइल फोन था, तो अम्मां के पास एक पुराना मोबाइल फोन था, जिस से वे अकसर दीपक से बातें कर के अपनी परेशानियां सुनाया करती थीं.

शायद अम्मां सोचती हैं कि शहर में सब बहुत खुश हैं और बिना चिंता व परेशानियों के रहते हैं. नल से 24 घंटे पानी आता है. बिजली, सड़क, साफसुथरी दुकानें, खाने से ले कर नाश्ते की कई वैराइटी. शहर यानी रुपया भरभर के पास हो. लेकिन यह रुपया ही शहर में इनसान को मार देता है. रुपयारुपया सोचते और देखते एक समय में इनसान केवल एक मशीन बन कर रह जाता है, जहां आपसी रिश्ते ही खत्म हो जाते हैं. लेकिन अम्मां को वह क्या समझाए?

वैसे, एक बार दीपक अम्मां, बापू और अपनी बहन को ले कर शहर गया था. 3-4 दिनों बाद ही अम्मां ने कह दिया था, ‘बेटा, हमें गांव भिजवा दो.’

बहन की इच्छा जाने की नहीं थी, फिर भी वह साथ लौट गई थी. शहर में रहने का दर्द दीपक समझ सकता है, जहां इनसान घड़ी के कांटों की तरह जिंदगी जीने को मजबूर होता है.

अम्मां ने दीपक से हाथपैर धो कर आने को कह दिया, ताकि सीधे तवे पर से रोटियां उतार कर उसे खाने को दे सकें. बापू को गैस पर सिंकी रोटियां पसंद नहीं हैं, जिस के चलते रोटियां तो चूल्हे पर ही सेंकी जाती हैं. बहन ने हाथपैर धुलवाए. दीपक और बापू खाने के लिए बैठ गए.

दीपक जानता था कि अब बापू का एक खटराग शुरू होगा, ‘पिछले हफ्ते भैंस मर गई. खेती बिगड़ गई. बहुत तंगी में चल रहे हैं और इस साल तुम्हारी शादी भी करनी है…’

दीपक मन ही मन सोच रहा था कि बापू अभी शुरू होंगे और वह चुपचाप कौर तोड़ता जाएगा और हुंकार भरता जाएगा, लेकिन बापू ने इस तरह की कोई बात नहीं छेड़ी थी.

पूरे महल्ले में एक अजीब सी खामोशी थी. कानों में चीखनेचिल्लाने या रोनेगाने की कोई आवाज नहीं आ रही थी, वरना 2 घर छोड़ कर बद्रीनाथ का मकान था, जिन के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा गणेश हाईस्कूल में चपरासी था, जबकि दूसरा छोटा बेटा उमेश पोस्ट औफिस में डाक रेलगाड़ी से डाक उतारने का काम करता था.

अचानक न जाने क्या हुआ कि उन के छोटे बेटे उमेश का ट्रांसफर कहीं और हो गया. तनख्वाह बहुत कम थी, इसलिए उस ने जाने से इनकार कर दिया. जाता भी कैसे? क्या खाता? क्या बचाता? इसी के चलते वह नौकरी छोड़ कर घर बैठ गया था.

इस के बाद न जाने किस गम में या बुरी संगति के चक्कर में उमेश को शराब पीने की लत लग गई. पहले तो परिवार वाले बात छिपाते रहे, लेकिन जब आदत ज्यादा बढ़ गई, तो आवाजें चारदीवारी से बाहर आने लगीं.

उमेश ने शराब की लत के चलते चोरी कर के घर के बरतन बेचने शुरू कर दिए, फिर घर से गेहूंदाल और तेल वगैरह चुरा कर और उन्हें बेच कर शराब पीना शुरू कर दिया. जब परिवार वालों ने सख्ती की, तो घर में कलह मचना शुरू हो गया.

उमेश दुबलापतला सा सांवले रंग का लड़का था. जब उस के साथ परिवार वाले मारपीट करते थे, तो वह मुझे कहता था, ‘चाचा, बचा लो… चाचा, बचा लो…’

2-3 दिनों तक सब ठीक चलता, फिर वह शराब पीना शुरू कर देता. न जाने उसे कौन उधार पिलाता था? न जाने वह कहां से रुपए लाता था? लेकिन रात होते ही हम सब को मानो इंतजार होता था कि अब इन की फिल्म शुरू होगी. चीखना, मारनापीटना, गली में भागना और उमेश का चीखचीख कर अपना हिस्सा मांगना… उस के पिता का गालियां देना… यह सब पड़ोसियों के जीने का अंग हो गया था.

इस बीच 1-2 बार महल्ले वालों ने पुलिस को बुला भी लिया था, लेकिन उमेश की हालत इतनी गईगुजरी थी कि एक जोर का थप्पड़ भी उस की जान ले लेता. कौन हत्या का भागीदार बने? सब बालबच्चों वाले हैं. नतीजतन, पुलिस भी खबर होने पर कभी नहीं आती थी.

उमेश को शराब पीते हुए 4-5 साल हो गए थे. उस की हरकतों को सब ने जिंदगी का हिस्सा मान लिया था. जब उस का सुबह नशा उतरता, तो वह नीची गरदन किए गुमसुम रहता था, लेकिन वह क्यों पी लेता था, वह खुद भी शायद नहीं जानता था. महल्ले के लिए वह मनोरंजन का एक साधन था. उस की मित्रमंडली भी नहीं थी. जो कुछ था परिवार, महल्ला और शराब थी. परिवार के सदस्य भी अब उस से ऊब गए थे और उस के मरने का इंतजार करने लगे थे. एक तो निकम्मा, ऊपर से नशेबाज भी.

लेकिन कौऐ के कोसने से जानवर मरता थोड़े ही है. वह जिंदा था और शराब पी कर सब की नाक में दम किए हुए था.

लेकिन आज खाना खाते समय दीपक को पड़ोस से किसी भी तरह की आवाज नहीं आ रही थी. बापू हाथ धोने के लिए जा चुके थे.

दीपक ने अम्मां से रोटी ली और पूछ बैठा, ‘‘अम्मां, आज तो पड़ोस की तरफ से लड़ाईझगड़े की कोई आवाज नहीं आ रही है. क्या उमेश ने शराब पीना छोड़ दिया है?’’

अम्मां ने आखिरी रोटी तवे पर डाली और कहने लगीं, ‘‘तुझे नहीं मालूम?’’

‘‘क्या?’’ दीपक ने हैरानी से पूछा.

‘‘अरे, जिसे ये लोग निकम्मा समझते थे, वह इन सब की जिंदगी बना कर चला गया…’’ अम्मां ने चूल्हे से लकडि़यां बाहर निकाल कर अंगारों पर रोटी को डाल दिया, जो पूरी तरह से फूल गई थी.

‘‘क्या हुआ अम्मां?’’

‘‘अरे, क्या बताऊं… एक दिन उमेश ने रात में खूब छक कर शराब पी, जो सुबह उतर गई होगी. दोबारा नशा करने के लिए वह बाजार की तरफ गया कि एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी. बस, वह वहीं खत्म हो गया.’’

‘‘अरे, उमेश मर गया?’’

‘‘हां बेटा, लेकिन इन्हें जिंदा कर गया. इस हादसे के मुआवजे में उस के परिवार को 18-20 लाख रुपए मिले थे. उन्हीं रुपयों से घर बनवा लिया और तू ने देखा होगा कि महल्ले के नुक्कड़ पर ‘उमेश किराने की दुकान’ खोल ली है. कुछ रुपए बैंक में जमा कर दिए. बस, इन की घर की गाड़ी चल निकली.

‘‘जिसे जिंदगीभर कोसा, उसी ने इन का पूरा इंतजाम कर दिया,’’ अम्मां ने अंगारों से रोटी उठाते हुए कहा.

दीपक यह सुन कर सन्न रह गया. क्या कोई ऐसा निकम्मा भी हो सकता है, जो उपयोगी न होने पर भी किसी की जिंदगी को चलाने के लिए अचानक ही सबकुछ कर जाए? जैसे कोई हराभरा फलदार पेड़ फल देने के बाद सूख जाए और उस की लकडि़यां भी जल कर आप को गरमागरम रोटियां खाने को दे जाएं. हम ऐसी अनहोनी के बारे में कभी सोच भी नहीं सकते.

Famous Hindi Stories : सच होते सपने – गोपुली ने कैसे बदली अपनी जिदंगी

Famous Hindi Stories :  गोपुली को लगने लगा कि उस के मां बाप ने उस की जिंदगी तबाह कर दी है. उन्होंने न जाने क्या सोच कर इस कंगले परिवार में उसे ब्याहा था?

वह तो बचपन से ही हसीन जिंदगी के ख्वाब देखती आई थी.

‘‘ऐ बहू…’’ सास फिर से बड़बड़ाने लगी, ‘‘कमाने का कुछ हुनर सीख. इस खानदान में ऐसा ही चला आ रहा है.’’

‘‘वाह रे खानदान…’’ गोपुली फट पड़ी, ‘‘औरत कमाए और मर्द उस की कमाई पर गुलछर्रे उड़ाए. लानत है, ऐसे खानदान पर.’’

उस गांव में दक्षिण दिशा में कुछ कारीगर परिवार सालों से रह रहे थे. न जाने कितनी ही पीढि़यों से वे लोग ठाकुरों की चाकरी करते आ रहे थे. तरक्की के नाम पर उन्हें कुछ भी तो नहीं मिला था. आज भी वे दूसरों पर निर्भर थे.

पनराम का परिवार नाचमुजरे से अपना गुजरा करता आ रहा था. उस की दादी, मां, बीवी सभी तो नाचमुजरे से ही परिवार पालते रहे थे. शादीब्याह के मौकों पर उन्हें दूरदूर से बुलावा आया करता था. औरतें महफिलों में नाचमुजरे करतीं और मर्द नशे में डूबे रहते.

कभी गोपुली की सहेली ने कहा था, ‘गोपा, वहां तो जाते ही तुझे ठुमके लगाने होंगे. पैरों में घुंघरू बांधने होंगे.’

गोपुली ने मुंह बना कर जवाब दिया था, ‘‘नाचे मेरी जूती, मैं ऐसे खोटे काम कभी नहीं करूंगी.’’

लेकिन उस दिन गोपुली की उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब उस के पति हयात ने कहा, ‘‘2 दिन बाद हमें अमधार की बरात में जाना है. वहां के ठाकुर खुद ही न्योता देने आए थे.’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने साफसाफ लहजे में मना कर दिया, ‘‘मैं नाचमुजरा नहीं करूंगी.’’

‘‘क्या…’’ हयात के हाथों से मानो तोते उड़ गए.

‘‘कान खोल कर सुन लो…’’ जैसे गोपुली शेरनी ही बन बैठी थी, ‘‘अपने मांबाप से कह दो कि गोपुली महफिल में नहीं नाचेगी.’’

‘‘फिर हमारे पेट कैसे भरेंगे बहू?’’ सामने ही हुक्का गुड़गुड़ा रहे ससुर पनराम ने उस की ओर देखते हुए सवाल दाग दिया.

‘‘यह तुम सोचो…’’ उस का वही मुंहफट जवाब था, ‘‘यह सोचना मर्दों का काम हुआ करता है.’’

गोपुली के रवैए से परिवार को गहरा धक्का लगा. आंगन के कोने में बैठा हुआ पनराम हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. गोपुली की सास बीमार थी. आंगन की दीवार पर बैठा हुआ हयात भांग की पत्तियों को हथेली पर रगड़ रहा था.

‘‘फिर क्या कहती हो?’’ हयात ने वहीं से पूछा.

‘‘देखो…’’ गोपुली अपनी बात दोहराने लगी, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के तुम लोगों का पेट पाल लूंगी, पर पैरों में घुंघरू नहीं बांधूंगी.’’

कानों में घुंघरू शब्द पड़ते ही सास हरकत में आ गई. उसे लगा कि बहू का दिमाग ठिकाने लग गया है. वह खाट से उठ कर पुराना संदूक खोलने लगी. उस में नाचमुजरे का सामान रखा हुआ था.

सास ने संदूक से वे घुंघरू निकाल लिए, जिन के साथ उस के खानदान का इतिहास जुड़ा हुआ था. उन पर हाथ फेरते हुए वह आंगन में चली आई. उस ने पूछा, ‘‘हां बहू, तू पैरों में पायल बांधेगी या घुंघरू?’’

‘‘कुछ भी नहीं,’’ गोपुली चिल्ला कर बोली.

हयात सुल्फे की तैयारी कर चुका था. उस ने जोर का सुट्टा लगाया. चिलम का सारा तंबाकू एकसाथ ही भभक उठा. 2-3 कश खींच कर उस ने चिलम पनराम को थमा दी, ‘‘लो बापू, तुम भी अपनी परेशानी दूर करो.’’

पनराम ने भी जोर से सुट्टा लगाया. बापबेटे दोनों ही नशे में धुत्त हो गए. सास बोली, ‘‘ये दोनों तो ऐसे ही रहेंगे.’’

‘‘हां…’’ गोपुली ने भी कहा, ‘‘ये काम करने वाले आदमी नहीं हैं.’’

सामने से अमधार के ठाकुर कर्ण सिंह आते हुए दिखाई दिए. सास ने परेशान हो कर कहा, ‘‘ठाकुर साहब आ रहे हैं. उन से क्या कहें?’’

‘‘जैसे आ रहे हैं, वैसे ही वापस चले जाएंगे,’’ गोपुली ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन… उन के बयाने का क्या होगा?’’

‘‘जिस को दिया है, वह लौटा देगा,’’ गोपुली बोली.

ठाकुर कर्ण सिंह आए, तो उन्होंने छूटते ही कहा, ‘‘देखो पनराम, तुम लोग समय पर पहुंच जाना बरात में.’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने बीच में ही कहा, ‘‘हम लोग नहीं आएंगे.’’

गोपुली की बात सुन कर ठाकुर साहब को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. उन्होंने पनराम से पूछा. ‘‘क्यों रे पनिया, मैं क्या सुन रहा हूं?’’

‘‘मालिक, न जाने कहां से यह मनहूस औरत हमारे परिवार में आ गई है,’’ पनराम ठाकुर के लिए दरी बिछाते हुए बोला.

ठाकुर दरी पर बैठ गए. वे गोपुली की नापजोख करने लगे. गोपुली को उन का इस तरह देखना अच्छा नहीं लगा. वह क्यारियों में जा कर गुड़ाईनिराई करने लगी और सोचने लगी कि अगर उस के पास भी कुछ खेत होते, तो कितना अच्छा होता.

अमधार के ठाकुर बैरंग ही लौट गए. गोपुली सारे गांव में मशहूर होने लगी. जितने मुंह उतनी ही बातें. सास ने पूछा, ‘‘क्यों री, नाचेगी नहीं, तो खाएगी क्या?’’

‘‘मेरे पास 2 हाथ हैं…’’ गोपुली अपने हाथों को देख कर बोली, ‘‘इन्हीं से कमाऊंगीखाऊंगी और तुम सब का पेट भी भरूंगी.’’

तीसरे दिन उस गांव में पटवारी आया. वह गोपुली के मायके का था, इसलिए वह गोपुली से भी मिलने चला आया. गोपुली ने उस से पूछा, ‘‘क्यों बिशन दा, हमें सरकार की ओर से जमीन नहीं मिल सकती क्या?’’

‘‘उस पर तो हाड़तोड़ मेहनत करनी होती है,’’ पटवारी के कुछ कहने से पहले ही हयात ने कहा.

‘‘तो हराम की कब तक खाते रहोगे?’’ गोपुली पति हयात की ओर आंखें तरेर कर बोली, ‘‘निखट्टू रहने की आदत जो पड़ चुकी है.’’

‘‘जमीन क्यों नहीं मिल सकती…’’ पटवारी ने कहा, ‘‘तुम लोग मुझे अर्जी लिख कर तो दो.’’

‘‘फिलहाल तो मुझे यहींकहीं मजदूरी दिलवा दो,’’ गोपुली ने कहा.

‘‘सड़क पर काम कर लेगी?’’ पटवारी ने पूछा.

‘‘हांहां, कर लूंगी,’’ गोपुली को एक नई राह दिखाई देने लगी.

‘‘ठीक है…’’ पटवारी बिशन उठ खड़ा हुआ, ‘‘कल सुबह तुम सड़क पर चली जाना. वहां गोपाल से बात कर लेना. वह तुम्हें रख लेगा. मैं उस से बात कर लूंगा.’’

सुबह बिस्तर से उठते ही गोपुली ने 2 बासी टिक्कड़ खाए और काम के लिए सड़क की ओर चल दी. वह उसी दिन से मजदूरी करने लगी. छुट्टी के बाद गोपाल ने उसे 40 रुपए थमा दिए.

गोपुली ने दुकान से आटा, नमक, चीनी, चायपत्ती खरीदी और अपने घर पहुंच गई. चूल्हा जला कर वह रात के लिए रोटियां बनाने लगी.

सास ने कहा, ‘‘ऐ बहू, तू तो बहुत ही समझदार निकली री.’’

‘‘क्या करें…’’ गोपुली बोली, ‘‘परिवार में किसी न किसी को तो समझदार होना ही पड़ता है.’’

गोपुली सासससुर के लिए रोटियां परोसने लगी. उन्हें खिलाने के बाद वह खुद भी पति के साथ रोटियां खाने लगी. हयात ने पानी का घूंट पी कर पूछा, ‘‘तुझे यह सब कैसे सूझा?’’

गोपुली ने उसे उलाहना दे दिया, ‘‘तुम लोग तो घर में चूडि़यां पहने हुए होते हो न. तुम ने तो कभी तिनका तक नहीं तोड़ा.’’ इस पर हयात ने गरदन झुका ली.

गोपुली को लगने लगा कि उस निठल्ले परिवार की बागडोर उसे ही संभालनी पड़ेगी. वह मन लगा कर सड़क पर मजदूरी करने लगी.

एक दिन उस ने गोपाल से पूछा, ‘‘मैं उन्हें भी काम दिलवाना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां…’’ गोपाल ने कहा, ‘‘काम मिल जाएगा.’’

गोपुली जब घर पहुंची, तो हयात कोने में बैठा हुआ चिलम की तैयारी कर रहा था. गोपुली ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘ये गंदी आदतें छोड़ दो. कल से मेरे साथ तुम भी सड़क पर काम किया करो. मैं ने गोपाल से बात कर ली है.’’

‘‘मैं मजदूरी करूंगा?’’ हयात ने घबरा कर पूछा.

‘‘तो औरत की कमाई ही खाते रहोगे,’’ गोपुली ने ताना मारा.

‘‘नहीं, ऐसी बात तो नहीं है,’’ हयात सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘तुम कहती हो, तो तुम्हारे साथ मैं भी कर लूंगा.’’ दूसरे दिन से हयात भी सड़क पर मजदूरी करने लगा. अब उन्हें दोगुनी मजदूरी मिलने लगी. गोपुली को सासससुर का खाली रहना भी अखरने लगा.

एक दिन गोपुली ने ससुर से पूछा, ‘‘क्या आप रस्सियां बंट लेंगे?’’

‘‘आज तक तो नहीं बंटीं,’’ पनराम ने कहा, ‘‘पर, तुम कहती हो तो…’’

‘‘खाली बैठने से तो यही ठीक रहेगा…’’ गोपुली बोली, ‘‘दुकानों में उन की अच्छी कीमत मिल जाया करती है.’’ ‘‘बहू, मुझे भी कुछ करने को कह न,’’ सास ने कहा.

‘‘आप लंबी घास से झाड़ू बना लिया करें,’’ गोपुली बोली.

अब उस परिवार में सभी कमाऊ हो गए थे. एक दिन गोपुली सभापति के घर जा पहुंची और उन से कहने लगी, ‘‘ताऊजी, हमें भी जमीन दिलवाइए न.’’

तभी उधर ग्राम सेवक चले आए. सभापति ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं तो तेरे ससुर से कब से कहता आ रहा हूं कि खेती के लिए जमीन ले ले, पर वह तो बिलकुल निखट्टू है.’’

‘‘आप हमारी मदद कीजिए न,’’ गोपुली ने ग्राम सेवक से कहा.

ग्राम सेवक ने एक फार्म निकाल कर गोपुली को दे दिया और बोले, ‘‘इस पर अपने दस्तखत कर दो.’’

‘‘नहीं,’’ गोपुली बोली, ‘‘इस पर मेरे ससुर के दस्तखत होंगे. अभी तो हमारे सिर पर उन्हीं की छाया है.’’

‘‘ठीक है…’’ सभापति ने कहा, ‘‘उन्हीं से करा लो.’’

गोपुली खुशीखुशी उस फार्म को ले कर घर पहुंची और अपने ससुर से बोली, ‘‘आप इस पर दस्तखत कर दें.’’

‘‘यह क्या है?’’ ससुर ने पूछा.

गोपुली ने उन्हें सबकुछ बतला दिया.

पनराम ने गहरी सांस खींच कर कहा, ‘‘अब तू ही हम लोगों की जिंदगी सुधारेगी.’’ उस दिन आंगन में सास लकड़ी के उसी संदूक को खोले बैठी थी, जिस में नाचमुजरे का सामान रखा हुआ था. गोपुली को देख उस ने पूछा, ‘‘हां तो बहू, इन घुंघरुओं को फेंक दूं?’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने मना करते हुए कहा, ‘‘ये पड़े रहेंगे, तो गुलामी के दिनों की याद दिलाते रहेंगे.’’

गोपुली ने उस परिवार की काया ही बदल दी. उस के साहस पर गांव वाले दांतों तले उंगली दबाने लगे. घर के आगे जो भांग की क्यारियां थीं, वहां उस ने प्याजलहसुन लगा दिया था.

सासससुर भी अपने काम में लगे रहते. पति के साथ गोपुली सड़क पर मजदूरी करती रहती. गोपुली की शादी को 3 साल हो चुके थे, लेकिन अभी तक उस के पैर भारी नहीं हुए थे. सास जबतब उस की जांचपरख करती रहती. एक दिन उस ने पूछा, ‘‘बहू, है कुछ?’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली मुसकरा दी, ‘‘अभी तो हमारे खानेखेलने के दिन हैं. अभी क्या जल्दी है?’’ सास चुप हो गई. हयात और पनराम ने भांग छोड़ दी. अब वे दोनों बीडि़यां ही पी लेते थे.

एक दिन गोपुली ने पति से कहा, ‘‘अब बीड़ी पीना छोड़ दो. यह आदमी को सुखा कर रख देती है.’’

‘‘ठीक?है,’’ हयात ने कहा, ‘‘मैं कोशिश करूंगा.’’

आदमी अगर कोशिश करे, तो क्या नहीं कर सकता. गोपुली की कोशिशें रंग लाने लगीं. अब उसे उस दिन का इंतजार था, जब उसे खेती के लिए जमीन मिलेगी.

उस दिन सभापति ने हयात को अपने पास बुलवा लिया. उन्होंने उसे एक कागज थमा कर कहा, ‘‘ले रे, सरकार ने तुम को खेती के लिए जमीन दी है.’’

‘‘किधर दी है ताऊजी?’’ हयात ने पूछा.

‘‘मोहन के आगे सुंगरखाल में,’’ सभापति ने बताया. हयात ने घर जा कर जमीन का कागज गोपुली को दे दिया, ‘‘गोपुली, सरकार ने हमें खेती के लिए जमीन दे दी है.’’

गोपुली ने वह कागज ससुर को थमा दिया, ‘‘मालिक तो आप ही हैं न.’’ पनराम ने उस सरकारी कागज को सिरमाथे लगाया और कहा, ‘‘तुम जैसी बहू सभी को मिले.’

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