बबूल का पौधा- भाग 2 : अवंतिका ने कौनसा चुना था रास्ता

धीरेधीरे अवंतिका रमन की सैक्रेटरी कम और उस की पर्सनल अधिक होने लगी. कहीं आग लगे तो धुआं उठना स्वाभाविक है. अवंतिका और रमन को ले कर भी औफिस में थोड़ीबहुत गौसिप हुई, लेकिन आजकल किसे इतनी फुरसत है कि किसी के फटे में टांग अड़ाए. वैसे भी हमाम में सभी नंगे होते हैं.

लगभग 2 साल बाद रमन का ट्रांसफर हो गया. जातेजाते वह अंतिम उपहार के रूप में उसे वेतनवृद्धि दे गया. रमन के बाद अमन डाइरैक्टर के पद पर आए. कुछ दिन की औपचारिकता के बाद अब अवंतिका अमन की पर्सनल होने लगी.

धीरेधीरे अवंतिका के घर में सुखसुविधाएं जुटने लगीं, लेकिन मियां गालिब  की, ‘‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,’’ की तरह अवंतिका की ख्वाहिशों की सूची आम लड़कियों से जरा लंबी थी. इस जन्म में तो खुद उस की और सुकेश की तनख्वाह से उन का पूरा होना संभव नहीं था.

अब यह भी तो संभव नहीं न कि बची हुई इच्छाएं पूरी करने के लिए किसी और जन्म का इंतजार किया जाए. सबकुछ विचार कर आखिर अवंतिका ने तय किया कि इच्छाएं तो इसी जन्म में पूरी करनी हैं, तरीका चाहे जो हो.

आजकल अवंतिका की निगाहें टीवी पर आने अपनी वाले हीरे के आभूषणों वाले विज्ञापनों पर अटक जाती है.

‘हीरा नहीं पहना तो क्या पहना,’ अपनी खाली उंगली को देख कर वह ठंडी सांस भर कर रह जाती.

‘समय कम है अवंतिका. 28 की होने को हो, 35 तक ढल जाओगी. जो कुछ हासिल करना है, इसी दरमियां करना है. फिर यह रूप, यह हुस्न रहे न रहे,’ अवंतिका अपनी सचाई से वाकिफ थी. वह जानती थी कि अदाओं के खेल की उम्र अधिक नहीं होती, लेकिन कमबख्त ख्वाहिशों की उम्र बहुत लंबी होती है. ये तो सांसें छूटने के साथ ही छूटती हैं.

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‘क्या करूं, अमन सर ने तो पिछले दिनों ही उसे सोने के इयररिंग्स दिलाए थे. इतनी जल्दी हीरे की अंगूठी मुश्किल है. सुकेश से कहने का कोई मतलब भी नहीं. तो क्या किया जाए? कैसे अमन सर को शीशे में उतारा जाए,’ अवंतिका दिनरात इसी उधेड़बुन में थी कि अचानक अमन के ट्रांसफर और्डर आ गए. अवंतिका खुशी से झम उठी. अब आलोक उस के नए बौस थे.

‘हीरा तो नए बौस से ही लिया जाएगा,’ सोच कर उम्मीद की किरण से उस की आंखें चमक उठीं, लेकिन आलोक को प्रत्यक्ष देखने के बाद उस की यह चमक फक्क पड़ गई.

दरअसल, आलोक उस के पहले वाले दोनों बौस से अधिक जवान था. लगभग 40 के आसपास. उम्र का कम फासला ही अवंतिका की चिंता का कारण था क्योंकि इस उम्र में लगभग हरेक पुरुष अपने बैडरूम में संतुष्ट ही रहता है.

‘कौन जाने मुझ में दिलचस्पी लेगा भी या नहीं,’ आलोक को देख कर अवंतिका के होंठ सिकुड़ गए.

तभी विचार कौंधा कि वह औरत ही क्या जो किसी पुरुष में खुद के लिए दिलचस्पी  पैदा ना कर सके और यह विचार आते ही अवंतिका ने आलोक को एक प्रोजैक्ट के रूप में देखना शुरू कर दिया.

‘लक्ष्य हासिल हो या न हो, लेकिन खेल तो मजेदार जरूर होने वाला है,’ सोच स्टाफ के अन्य कर्मचारियों के साथ मुसकराती हुई खड़ी अवंतिका ने आगे बढ़ कर अपना परिचय दिया. वह यह देख कर कुछ निराश हुई कि आलोक ने उसे ठीक से देखा तक नहीं, लेकिन अवंतिका हार मानने वालों में से नहीं थी. वह हर बाजी जीतना जानती थी. हुस्न, जवानी, अदाएं और शोखियां उस के हथियार थे.

पर्सनल सैक्रेटरी थी तो बहुत से पर्सनल काम जैसे बौस के लिए कौफी बनाना, लंच और्डर करना आदि भी अवंतिका ने खुद पर ले रखे थे. आलोक के लिए भी वह ये सब अपनी ड्यूटी समझ कर कर रही थी.

बैंगल बौक्स में रखी चूडि़यां आखिर कब तक न खनकतीं. आलोक भी धीरेधीरे उस से  खुलने लगा. बातों ही बातों में अवंतिका ने जान लिया कि एक ऐक्सिडैंट के बाद से आलोक की पत्नी के कमर से नीचे के अंग काम नहीं करते. पिछले लगभग 5 वर्षों से उस का सारा दैनिक काम भी एक नर्स की मदद से ही हो रहा है. अवंतिका उस के प्रति सहानुभूति से भर गई.

कभीकभार वह उस से मिलने आलोक के घर भी जाने लगी. इस से आलोक के साथ उस के रिश्ते में थोड़ी नजदीकियां बढ़ीं. इसी दौरान एक रोज उसे आलोक के शायराना शौक के बारे में पता चला. डायरी देखी तो सचमुच कुछ उम्दा गजलें लिखी हुई थीं.

अवंतिका उस से गीतों, गजलों और कविताओं के बारे में अधिक से अधिक बात करने लगी. लंच भी वह उस के साथ उस के चैंबर में ही करने लगी. खाना खाते समय अकसर अवंतिका अपने मोबाइल पर धीमी आवाज में गजलें चला देती. कभीकभी कुछ गुनगुना भी देती. आलोक भी उस का साथ देने लगा. अवंतिका ने उस के शौक की शमा को फिर से रोशन कर दिया. बात शौक की हो तो कौन व्यक्ति भला पिघल न जाएगा.

‘‘सर प्लीज, कुछ लाइनें मुझ पर भी लिखिए न,’’ एक रोज अवंतिका ने प्यार से जिद की.

आलोक केवल मुसकरा कर रह गया.

सप्ताहभर बाद ही आलोक को पास के गांव में एक किसान कैंप  अटैंड करने की सूचना मिली. अवंतिका को भी साथ जाना था. दोनों औफिस की गाड़ी से अलसुबह ही निकल गए. अवंतिका घर से सैंडविच बना कर लाई थी. गाड़ी में बैठेबैठे ही दोनों ने नाश्ता किया. फिर एक ढाबे पर रुक कर चाय पी. 2 घंटे के सफर में दोनों के बीच बहुत सी इधरउधर की और कुछ व्यक्तिगत बातें भी हुईं. कच्ची सड़क पर गाड़ी के हिचकोले उन्हें और भी अधिक पास आने का अवसर दे रहे थे. अवंतिका ने महसूस किया कि आलोक की पहले झटके पर टकराने वाली ?िझक हर झटके के साथ लगातार कम होती जा रही है.

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‘मैन विल बी मैन,’ एक विज्ञापन का खयाल आते ही अवंतिका मुसकरा दी.

कैंप बहुत सफल रहा. हैड औफिस से मिली बधाई के मेल ने आलोक के उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया. वापसी तक दोनों काफी कुछ अनौपचारिक हो चुके थे. खुशनुमा मूड में आलोक ने अपनी एक पुरानी लिखी गजल तरन्नुम में सुनाई तो अवंतिका दाद दिए बिना नहीं रह सकी.

‘‘मैं ने भी आप से कुछ पंक्तियां लिखने का आग्रह किया था. कब लिखोगे?’’ कहते हुए उस ने धीरे से अपना सिर आलोक के कंधे की तरफ झका दिया.

उस के समर्पित स्पर्श से आलोक किसी मूर्ति की भांति स्थिर रह गया.

‘‘अगली बार,’’ किसी तरह बोल पाया.

यह अगली बार जल्द ही आ गई. विभाग के सालाना जलसे में भाग लेने के लिए दोनों को सपरिवार गोवा जाने का निमंत्रण था. आलोक

की पत्नी का जाना तो नामुमकिन था ही, अवंतिका ने भी औपचारिक रूप से सुकेश को साथ चलने के लिए कहा, लेकिन उस ने औफिस में काम अधिक होने का कह कर असमर्थता जता दी तो अवंतिका ने भी अधिक जिद नहीं की.

उस की आंखों में एक बार फिर हीरे की अंगूठी नाचने लगी.

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बबूल का पौधा- भाग 3 : अवंतिका ने कौनसा चुना था रास्ता

गोवा का रोमांटिक माहौल अवंतिका के मंसूबों में सहायक सिद्ध हो रहा था. 5 साल स्त्री के सान्निध्य से दूर रहा युवा पुरुष बारूद से भरा होता है. अवंतिका को बस दियासलाई दिखानेभर की देर थी.

आलोक बिना अधिक प्रयास के ही पके फल सा अवंतिका के पहलू में टपकने को आतुर दिख रहा था. ढलती शाम, बीच का खूबसूरत नजारा और कंधे पर झका सिर… मौन की भाषा बहुत कुछ कह रही थी. अवंतिका की कमर को अपनी बांहों में लपेटे हुए आलोक उसे अपने कमरे में ले आया. दूरियां कम होने लगी तो अवंतिका ने गरम लोहे पर चोट की, ‘‘हमारे पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए क्या उपहार दोगे?’’ अवंतिका ने आलोक का हाथ अपनी कमर से हटाते हुए पूछा.

‘‘जो तुम चाहो,’’ आलोक की आंखों में ढलता सूरज उतर आया.

‘‘सोच लो,’’ प्रेयसी इठलाई.

‘‘सोच लिया,’’ प्रियतम ने चांदतारे तोड़ लाने सा जज्बा दिखाया.

अभी अवंतिका कुछ और कहती उस से पहले ही आलोक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा. अवंतिका ने लाख रोकने की कोशिश की, लेकिन आलोक के पास सुरक्षा उपाय अपनाने जितना सब्र कहां था.

‘देखा जाएगा. हीरे की अंगूठी की इतनी कीमत तो चुकानी ही होगी,’ सोचते हुए

अवंतिका ने अपने विचार झटके और उस का साथ देने लगी.

आलोक को इस सुख के सामने कोहिनूर

भी सस्ता लग रहा था. गोवा से वापसी पर अवंतिका के हाथ में हीरे की अंगूठी ?िलमिल कर रही थी. लेकिन काले को सफेद भी तो करना था न.

सुकेश के साथ उस ने 1-2 बार असुरक्षित संबंध बनाए और निश्चिंत हो गई.

अगले ही महीने अवंतिका को अपने गर्भवती होने का पता चला. वह तय नहीं कर पाई कि बच्चा प्रेम की परिणति है या हीरे की अंगूठी का बिल.

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गर्भ की प्रारंभिक जटिलताओं के चलते

उसे जौब से ब्रेक लेना पड़ा और फिर साहिल के 3 साल का होने तक वह औफिस नहीं जा पाई. इस बीच आलोक का ट्रांसफर हो गया और खुद अवंतिका की जौब भी छूट गई. एक बार सिरा हाथ से छूटा तो छूटा. दोबारा पकड़ा ही नहीं

गया. अवंतिका भी बच्चे और गृहस्थी में उलझती चली गई.

अवंतिका की दास्तान यहीं समाप्त

नहीं होती है. उस की जिंदगी

को तो अभी यूटर्न लेना बाकी था. साहिल के

10 साल का होतेहोते एक दिन अचानक सड़क दुर्घटना में सुकेश उन दोनों को छोड़ कर परमधाम को चला गया. 40 की उम्र में अवंतिका को फिर से नौकरी करनी पड़ी.

नौकरी और बच्चा… अवंतिका दोनों को एकसाथ नहीं संभाल पा रही थी. किशोरवय की तरफ बढ़ता साहिल शरारती से उद्दंड होने लगा. स्कूल और पासपड़ोस… हर जगह से उस की शिकायतें आने लगीं. अवंतिका भी क्या करती, नौकरी करनी भी जरूरी थी.

साहिल के अकेलेपन, उस की सुरक्षा और किसी हद तक उसे व्यस्त रखने के खयाल से अवंतिका ने उस के हाथ में स्मार्ट फोन थमा दिया. बस, अब तो रहीसही कसर भी पूरी हो गई. मां की गैरमौजूदगी में साहिल फोन पर जाने क्याक्या देखता रहता था. धीरेधीरे वह फोन का आदी होने लगा. उसे वैब सीरीज और औनलाइन गेम्स की लत लग गई. देर रात तक फोन पर लगे रहने के कारण उस का दिन का शैड्यूल बिगड़ने लगा. स्कूल में पिछड़ने लगा तो क्लास बंक करने की आदत पड़ने लगी.

साहिल की किताबों के बीच सस्ता साहित्य मिलना तो आम बात हो गई थी. 1-2 बार अवंतिका को उस के कमरे से सिगरेट के धुएं की गंध भी महसूस हुई थी. कई बार पर्स से पैसे गायब हुए सो अलग. अवंतिका के रोकनेटोकने पर वह आक्रामक होने लगा.

कुल मिला कर अवंतिका को विश्वास हो गया कि लड़का उस के हाथ से निकल गया है. वह स्वयं को पेरैंटिंग में असफल मानने लगी. लेकिन उसे रास्ते पर लाने का कोई भी तरीका उसे समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘पता नहीं किस का अंश है यह सुकेश का या आलोक का? किसी का भी हो, आधा तो मेरा ही है. इस में तो कोई शंका ही नहीं. शायद मेरे जींस ही हावी हो रहे हैं साहिल पर. तभी इतना बेकाबू हो रहा है. मैं ने कब खुद को काबू में रखा था जो इसे दोष दूं? बबूल का यह पौधा तो खुद मेरा ही बोया हुआ है. किसी ने सच ही तो कहा है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय,’’ अवंतिका की रात काली होने लगी.

विचारों का अंधेरा इतना घना होने लगा कि दो कदम की दूरी पर भी कुछ

न सू?ो. उतरती सुबह कहीं जा कर आंख लगी तो सूरज चढ़ने तक सोती ही रही.

उठ कर देखा तो साहिल घर में नहीं था. स्कूल बैग सामने पड़ा देख कर उस ने अंदाजा लगा लिया कि साहिल ने आज भी स्कूल से बंक मार लिया. अवंतिका ने भी फोन कर के आज औफिस से छुट्टी ले ली.

अवंतिका ने एक कप चाय बनाई और कप ले कर बालकनी में बैठ गई. सोच की घड़ी फिर से चलने लगी. तभी उसे आलोक याद आया. मोबाइल में देखा तो अभी भी आलोक का नंबर सेव था. कुछ सोच कर अवंतिका ने फोन लगा दिया.

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‘‘अरे अवंतिका तुम, इतने सालों बाद याद किया. कैसी हो तुम? सौरी यार, सुकेश के बारे में सुन कर बहुत बुरा लगा,’’ आलोक ने अपनत्व

से कहा.

‘‘बस ठीक ही हूं. तुम्हारे बिगड़ैल बेटे को ?ोल रही हूं,’’ अवंतिका ने गहरी उदासी से कहा.

‘‘बेटे को ?ोल रही हो यह सच हो सकता है, लेकिन साहिल मेरा बेटा है

इस की क्या गारंटी है?’’ आलोक ने हंस कर पूछा.

‘‘क्योंकि सुकेश तो बहुत सीधा था. शौकीन तो तुम ही थे,’’ अवंतिका भी हंसी.

‘‘तुम कहती हो तो चलो मान लेता हूं, लेकिन असल बात बताओ न कि क्या चाहती हो? आज इतने दिनों बाद कैसे याद किया?’’ आलोक ने आगे पूछा तो अवंतिका कुछ देर के लिए चुप हो गई.

‘‘बस यों ही जरा परेशान थी. बेटा मेरे कहने में नहीं है. शायद पिता का साया किशोर होते बेटों के लिए जरूरी होता है, लेकिन अब पिता कहां से लाऊं. कुछ भी समझ में नहीं आ रहा. साहिल दिनोंदिन बदतमीज होता जा रहा है. कुछ भी कहो तो पलट कर जवाब देता है,’’ अवंतिका ने रात की बात बताते हुए आलोक के सामने दिल खोल कर रख दिया.

‘‘देखो अवंतिका, यह सही है कि पिता का साया बच्चों के लिए बहुत जरूरी होता है, लेकिन क्या पिता के होते बच्चे नहीं बिगड़ते? दरअसल, यह उम्र सागर की लहरों की तरह होती है. इस में उछाल आना स्वाभाविक है. यह अलग बात है कि किसी में उछाल कम तो किसी में अधिक होता है. जिस तरह किनारे से लगतेलगते लहर शांत हो जाती है उसी तरह उम्र का उफान भी समय के साथ धीमा पड़ने लगता है.

‘‘आज की टीनऐज पीढ़ी को अपने रास्ते में बाधा स्वीकार नहीं. हमें धीरज रखना होगा. कभीकभी कुछ समस्याओं का हल सिर्फ समय होता है,’’ आलोक ने कहा तो अवंतिका को उस की बात में सचाई नजर आई.

‘‘सुनो, क्यों न तुम साहिल को किसी होस्टल भेज दो. हो सकता है कि वहां के अनुशासन से कुछ बात बन जाए. मेरी मदद चाहिए तो बेझिझक कहो,’’ आलोक ने आगे कहा तो अवंतिका को एक राह सूझ.

‘आलोक सही ही तो कह रहा है. कुछ समस्याएं समय के साथ अपनेआप हल हो जाती हैं या हम ही उन के साथ जीने की आदत डाल लेते हैं. डांटनेफटकारने से तो उलटे बात और बिगड़ेगी. हो सकता है कि समय के साथ समझदारी खुदबखुद आ जाए. न भी आएगी तो क्या कर लूंगी. बांधे हुए तो जानवर भी नहीं टिकते. इसे होस्टल में भेजने की कोशिश भी कर के देखी जा सकती है,’ अवंतिका सोचने लगी.

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‘‘हैलोहैलो,’’ आलोक फोन पर ही था.

उस की आवाज सुन कर अवंतिका वर्तमान में आई. बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो. यही ठीक रहेगा. अच्छा सुनो, तुम साहिल के लिए किसी अच्छे होस्टल का पता कर के बताओ न,’’ और फिर अवंतिका ने कुछ देर इधरउधर की बातें कर के फोन रख दिया.

‘कौन जाने कभी बबूल का पौधा अपने असली गुण ही पहचान ले,’ सोच अवंतिका ने एक लंबी सांस खींची. सोच की दिशा बदलते ही वह बेहद हलकी हो गई थी.

उत्तर प्रदेश में निराश्रित महिलाओं के लिए बनेगी कार्ययोजना

सूबे के मुखिया योगी आदित्‍यनाथ ने जब से सत्‍ता की बागडोर संभाली है तब से लेकर अब तक वो प्रदेश की महिलाओं व बेटियों की सुरक्षा, स्‍वावलंबन और सम्‍मान के लिए प्रतिबद्ध है. प्रदेश में कवच अभियान और मिशन शक्ति जैसा वृहद अभियान इसके साक्षी हैं. प्रदेश में महिलाओं के लिए कई स्‍वर्णिम योजनाओं का संचालन किया जा रहा है जिससे सीधे तौर पर महिलाओं को लाभ मिल रहा है. प्रदेश में अब जल्‍द ही कोरोना के कारण निराश्रित महिलाओं से जुड़ी एक बड़ी योजना की शुरूआत होने जा रही है. जिसके लिए सीएम ने मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की तर्ज पर महिला एवं बाल विकास विभाग को विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं. जिसपर विभाग द्वारा तेजी से कार्य शुरू कर दिया गया है.

निराश्रित महिला पेंशन के लिए पात्र महिलाओं को पेंशन वितरण के लिए ब्लॉक व न्याय पंचायत स्तर पर विशेष शिविर आयोजित किए जाने के भी निर्देश दिए हैं. उन्‍होंने राजस्व विभाग द्वारा ऐसी महिलाओं को प्राथमिकता के साथ नियमानुसार पारिवारिक उत्तराधिकार लाभ दिलाए जाने की व्‍यवस्‍था को सुनिश्चित करने के लिए कहा है.

विभाग द्वारा काम किया गया शुरू, सीधे तौर पर मिलेगा महिलाओं को लाभ

कोरोना काल में निराश्रित हुई महिलाओं के लिए एक विशेष योजना को विभाग द्वारा तैयार किया जा रहा है. महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से सीएम के निर्देशानुसार कार्ययोजना पा काम शुरू कर दिया गया है. विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय ने बताया कि प्रदेश में कोरोना काल में निराश्रित हुई महिलाओं को पहले चरण में चिन्हित किया जाएगा जिसके बाद इन चिन्हित महिलाओं को राज्‍य सरकार की स्‍वर्णिम योजनाओं से जोड़ते हुए उनको स्‍वावलंबी बनाने का कार्य किया जाएगा. उन्‍होंने बताया कि जल्‍द ही योजना को तैयार कर ली जाएगी.

वृद्धजनों की जरूरतों व समस्याओं का त्वरित लिया जाएगा संज्ञान

सीएम ने आला अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि ओल्ड एज होम में रह रहे सभी वृद्धजनों की जरूरतों और समस्याओं का त्वरित संज्ञान लिया जाए. इनके पारिवारिक विवादों का समाधान जल्‍द से जल्‍द कराने संग इनके स्वास्थ्य की बेहतर ढंग से देखभाल किए जाने के निर्देश दिए.

आईना- भाग 2 : रिश्तों में संतुलन ना बनाना क्या शोभा की एक बढ़ी गलती थी

अस्पताल रह कर चारू लौटी तो अपने ही कमरे में कैद हो कर रह गई. परेशान हो गया था अनुराग. एक दिन मैं ने फोन किया तो बेचारा रो पड़ा था.

‘‘अच्छीभली हमारे घर आई थी. मायके में सारा घर चारू ही संभालती थी. मैं इस सच को अच्छी तरह जानता हूं. हमारे घर आई तो चाय का कप बनाते भी उस के हाथ कांपते हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, मौसी?’’

‘‘उसे दीदी से दूर  ले जा. मेरी बात मान, बेटा.’’

‘‘मम्मी तो उस की देखभाल करती हैं. बेचारी चारू की चिंता में आधी हो गई हैं.’’

‘‘यही तो समस्या है, अनुराग बेटा. शोभा तेरी मां हैं तो मेरी बड़ी बहन भी हैं, जिन्हें मैं बचपन से जानती हूं. मेरी बात मान तो तू चारू को कहीं और ले जा या कुछ दिन के लिए मेरे घर छोड़ दे. कुछ भी कर अगर चारू को बचाना चाहता है तो, चाहे अपनी मां से झूठ ही बोल.’’

अनुराग असमंजस में था मगर बचपन से मेरे करीब होने की वजह से मुझ पर विश्वास भी करता था. टूर पर ले जाने के बहाने वह चारू को अपने साथ मेरे घर पर ले आया तो चारू को मैले कपड़ों में देख कर मुझे अफसोफ हुआ था.

‘‘मौसी, आप क्या समझाना चाहती हैं…मेरे दिमाग में ही नहीं आ रहा है.’’

‘‘बस, अब तुम चिंता मत करो. तुम्हारा 15 दिन का टूर है और दीदी को यही पता है कि चारू तुम्हारे साथ है, 15 दिन बाद चारू को यहां से ले जाना.’’

अनुराग चला गया. जाते समय वह मुड़मुड़ कर चारू को देखता रहा पर वह उसे छोड़ने भी नहीं गई. 6-7 महीने ही तो हुए थे शादी को पर पति के विछोह की कोई भी पीड़ा चारू के चेहरे पर नहीं थी. चूंकि मेरे दोनों बेटे बाहर पढ़ते हैं और पति शाम को ही घर पर आने वाले थे इसीलिए हम दोनों उस समय अकेली ही थीं.

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‘‘चारू, बेटा क्या लेगी? ठंडा या गरम, कुछ नाश्ता करेगी न मेरी बच्ची?’’

स्नेह से सिर पर हाथ फेरा तो मेरी गोद में समा कर वह चीखचीख कर रोने लगी. मैं प्यार से उसे सहलाती रही.

‘‘ऐसा लगता है मौसी कि मैं मर जाऊंगी. मुझे बहुत डर लगता है. कुछ नहीं होता मुझ से.’’

‘‘होता है बेटा, होता क्यों नहीं. तुम्हें तो सब कुछ आता है. चारू इतनी समझदार, इतनी पढ़ीलिखी, इतनी सुंदर बहू है हमारी.’’

चारू मेरा हाथ कस कर पकड़े रही जब तक पूरी तरह सो नहीं गई. एक प्रश्नचिह्न थी मेरी बहन सदा मेरे सामने, और आज भी वह वैसी ही है. एक उलझा हुआ चरित्र जिसे स्वयं ही नहीं पता, उसे क्या चाहिए. जिस का अहं इतना ऊंचा है कि हर रिश्ता उस के आगे बौना है.

शाम को मेरे पति घर आए तब उन्हें मेरे इस कदम का पता चला. घबरा गए वह कि कहीं दीदी को पता चला तो क्या होगा. कहीं रिश्ता ही न टूट जाए.

‘‘टूटता है तो टूट जाए. उम्र भर हम ने दीदी की चालबाजी सही है. अब मैं बच्चों को तो दीदी की आदतों की बलि नहीं चढ़ने दे सकती. जो होगा हो जाएगा. कभी तो आईना दिखाना पड़ेगा न दीदी को.’’

चारू की हालत देख कर मैं सुबकने लगी थी. चारू उठी ही नहीं. सुबह का नाश्ता किया हुआ  था. खाना सामने आया तो पति का मन भी भर आया.

‘‘बच्ची भूखी है. मुझ से तो नहीं खाया जाएगा. तुम जरा जगाने की कोशिश तो करो. आओ, चलो मेरे साथ.’’

रिश्ते की नजाकत तो थी ही लेकिन सर्वोपरि थी मानवता. हमारी अपनी बच्ची होती तो क्या करते, जगाते नहीं उसे. जबरदस्ती जगाया उसे, किसी तरह हाथमुंह धुला मेज तक ले आए. आधी रोटी ही खा कर वह चली गई.

‘‘सोना मत, चारू. अभी तो हम ने बातें करनी हैं,’’ मैं चारू को बहाने से जगाना चाहती थी. पहले से ही खरीदी साड़ी उठा लाई.

‘‘चारू, देखना तुम्हारे मौसाजी मेरे लिए साड़ी लाए हैं, कैसी है? तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. तुम्हारी साडि़यां देखी थीं न शादी में, जरा पसंद कर के दे दो. यही ले लूं या बदल लूं.’’

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चारू ने तनिक आंखें खोलीं और सामने पड़ी साड़ी को उस ने गौर से देखा फिर कहने लगी, ‘‘मौसाजी आप के लिए इतने प्यार से लाए हैं तो इसे ही पहनना चाहिए. कीमत साड़ी की नहीं कीमत तो प्यार की होती है. किसी के प्यार को दुत्कारना नहीं चाहिए. बहुत तकलीफ होती है. आप इसे बदलना मत, इसे ही पहनना.’’

शब्दों में सुलह कम प्रार्थना ज्यादा थी. स्नेह से माथा सहला दिया मैं ने चारू का.

‘‘बड़ी समझदार हो तुम, इतनी अच्छी बातें कहां से सीखीं.’’

‘‘अपने पापा से, लेकिन शादी के बाद मेरी हर अच्छाई पता नहीं कहां चली गई मौसी. मैं नाकाम साबित हुई हूं, घर में भी और नातेरिश्तेदारों में भी. मुझे कुछ आता ही नहीं.’’

‘‘आता क्यों नहीं? मेरी बच्ची को तो बहुत कुछ आता है. याद है, तुम्हारे मौसाजी के जन्मदिन पर तुम ने उपमा और पकौड़े बनाए थे, जब तुम अनुराग के साथ पहली बार हमारे घर आई थीं. आज भी हमें वह स्वाद नहीं भूलता.’’

‘‘लेकिन मम्मी तो कहती हैं कि आप लोग अभी तक मेरा मजाक उड़ाते हैं. इतना गंदा उपमा आप ने पहली बार खाया था.’’

यह सुन कर मेरे पति अवाक् रह गए थे. फिर बोले, ‘‘नहीं, चारू बेटा, मैं अपने बच्चों की सौगंध खा कर कहता हूं, इतना अच्छा उपमा हम ने पहली बार खाया था.’’

शोभा दीदी ने बहू से इस तरह क्यों कहा? इसीलिए उस के बाद यह कभी हमारे घर नहीं आई. आंखें फाड़फाड़ कर यह मेरा मुंह देखने लगे. इतना झूठ क्यों बोलती है यह शोभा? रिश्तों में इतना जहर क्यों घोलती है यह शोभा? अगर सुंदर, सुशील बहू आ गई है तो उस को नालायक प्रमाणित करने पर क्यों तुली है? इस से क्या लाभ मिलेगा शोभा को?

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‘‘तुम, तुम मेरी बेटी हो, चारू. अगर मेरी कोई बेटी होती तो शायद तुम जैसी होती. तुम से अच्छी कभी नहीं होती. मैं तो सदा तुम्हारे अपनेपन से भरे व्यवहार की प्रशंसा करता रहा हूं. लगता ही नहीं कि घर में किसी नए सदस्य का आगमन हुआ था. अपनी मौसी से पूछो, उस दिन मैं ने क्या कहा था? मैं ने कहा था, हमें भी ऐसी ही बहू मिल जाए तो जीवन में कोई भी कमी न रह जाए. मैं सच कह रहा हूं बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, मेरा विश्वास करो.’’

मेरे सामने सब साफ होता गया. शोभा अपने पुत्र और पति के सामने भी खुद को बहू से कम सुंदर, कम समझदार प्रमाणित नहीं करना चाहती.

दूसरी सुबह ही मैं ने पूरा घर चारू को सौंप दिया. मेरे पति ने ही मुझे समझाया कि एक बार इसे अपने मन की करने तो दो, खोया आत्मविश्वास अपनेआप लौट आएगा. बच्ची पर भरोसा तो करो, कुछ नया होगा तो उसे स्वीकारना तो सीखो. इस का जो जी चाहे करे, रसोई में जो बनाना चाहे बनाए. कल को हमारी भी बहुएं आएंगी तो उन्हें स्वीकार करना है न हमें.

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बैंकिग सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने का काम करेगी बैंक सखी

राज्य सरकार ने महिलाओं को रोजगार देने की में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पहल की है. गांव-गांव तक बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाने के लिये उसने 17500 बीसी सखी (बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट) बनाने का काम पूरा कर लिया है.

प्रदेश के ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि 17500 बीसी सखी का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है और उनको पैसा हस्तांतरित किया जा रहा है.  इसके अलावा 58 हजार बीसी सखी को प्रशिक्षण देने का काम तेज गति से किया जा रहा है.

सरकार के इस प्रयास से बैंकिंग सेवाएं लोगों के घरों तक पहुंची हैं. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को अपने बैंक खातों से धनराशि निकालने और उसे जमा करने में बड़ी आसानी हुई है. उनका बैंक शाखाओं तक जाने का खर्चा बच रहा है और घर के करीब ही बैंक के रूप में बीसी सखी मिल जा रही हैं.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये मिशन रोजगार, मिशन शक्ति और मिशन कल्याण योजनाओं को शुरु किया है. इसके तहत तैयार किये गये मास्टर प्लान को सरकार से सम्बद्ध संस्थान तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं. इस क्रम में बैंक ऑफ बड़ौदा और यूको बैंक के सहयोग से यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट्स लिमिटेड (यूपीकॉन) ने 1200 बीसी सखी (बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट) बना लिये हैं. कम्पनी अगले साल तक 7000 बीसी सखी बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में लगी है. गांव से लेकर शहरों में बीसी सखी 24 घंटे बैंकिंग सेवाएं दे रहे हैं.

22 मई 2020 से उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की सभी महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिये बीसी सखी योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश राज्य की सभी महिलाओं को रोजगार के नए अवसर मिले हैं. उत्तर प्रदेश् राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से प्रदेश में 30 हजार हजार बीसी सखी बनाने का कार्यक्रम बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ मिलकर किया जा रहा है. यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट्स लिमिटेड (यूपीकॉन) इसमें भी सहयोगी की भूमिका निभा रहा है. इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति, वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड के माध्यम से 500 अनुसूचित जाति के युवक-युवतियों को रोजगार के अवसर देते हुए बीसी सखी बनाए हैं.

बीसी सखी बनाने के लिये पूर्व सैनिकों, पूर्व शिक्षकों, पूर्व बैंककर्मियों और महिलाओं को प्राथमिकता दी गई है. बीसी सखी बनने के लिये योग्यता में 12वीं कक्षा पास होना अनिवार्य किया गया है. अभ्यर्थी को कम्यूटर चलाना आना चाहिये, उसपर को वाद या पुलिस केस नहीं होना चाहिये. ऐसे अभ्यर्थी के चयन से पहले एक छोटी सी परीक्षा भी ली जाती है. इसमें उत्तीर्ण होने वाला अभ्यर्थी बीसी सखी बन सकता है.

इज्जतदार काम मिला और लोगों की सेवा का अवसर भी

बड़हलगंज जिला गोरखपुर में बीसी सखी योजना से जुड़ने वाले धर्मेन्द्र सिंह ने बताया कि वो पहले वस्त्र उद्योग से जुड़े थे. बीसी सखी योजना से जुड़ने के बाद उनको काफी फायदा हुआ. उनका कहना है कि इज्जदतार काम मिलने के साथ लोगों की सेवा का भी बड़ा अवसर मिला है. लोगों को तत्काल बैंकिंग सेवा मिलने से खुद को भी खुशी होती है.

बीसी सखी योजना से जुड़कर प्रत्येक माह मिलने लगी एक निश्चित आमदनी

कस्बा सेथल जिला बरेली के आसिफ अली ने बताया कि बीसी सखी बनने के बाद भविष्य सुरक्षित करने के लिये प्रत्येक माह एक निश्चित आमदनी का माध्यम बना है. इससे पहले मैं ऑनलाइन कैफे चलाता था, ऑनलाइन आधार बनाने का भी काम करता था. इन सेंटरों के बंद होने के बाद रोजगार नहीं था. इसके बाद बीसी सखी योजना से जुड़कर एक स्थायी रोजगार मिला है.

लोगों को बैंकों में लाइन लगाना और समय लगाना हुआ बंद

लखनऊ में नक्खास निवासी मोहसिन मिर्जा ने बताया कि बीसी सखी योजना के तहत बैंकिंग सेवाओं को देना रोजी-रोटी का बेहतर साधन बना है. सबसे अधिक फायदा इससे बैंक के ग्राहकों को हुआ है. उनको बैंक में लाइन लगाने और समय लगाना बन्द हो गया है और बैंक तक जाने का किराया भी उनका बचा है. छोटे स्तर पर बैंकिंग सेवाएं लोग हमारे केंन्द्रों से ले रहे हैँ.

बैंकिंग सेवाओं को आसानी से प्राप्त करने की बड़ी पहल

सोनभद्र के भगवान दास बताते हैं कि बीसी सखी योजना से उनको रोजगार मिला है. प्रत्येक माह उनकी आमदनी बढ़ती जा रही है. सबसे अधिक सुविधा ग्राहकों को मिली है. सरकार की ओर से बैंकिंग सेवाओं की बड़ी सौगात खासकर गांव के लोगों को दी गई है. ग्रामीण पहले बैंक से पैसा निकालने और जमा करने में आने-जाने में जो खर्चा करते थे उसकी भी बचत हो रही है.

उत्तर प्रदेश में कोविड के समय घर लौटे श्रमिकों की व्यवस्था के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सराहा

योगी सरकार ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई पूरी प्रतिबद्धता के साथ जारी रखते हुए विकास और जनकल्यारणकारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से प्रदेश में लागू किया. उच्चकतम न्याायालय ने भी अपने फैसले में कोविड 19 के कारण दूसरे प्रदेशों से घर वापस आने वाले श्रमिकों के लिए प्रदेश सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओं की तारीफ की है. कोर्ट ने संज्ञान लिया कि पोर्टल पर अपलोड डाटा के अनुसार उस दौरान कुल 37,84,255 श्रमिकों की घर वापसी हुई थी. स्किल मैपिंग के बाद अब तक 10,44,710 श्रमिकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत संघटित क्षेत्र में रोजगार दिया जा चुका है. इसके अलावा अधिकांश को रोजगार से जोड़े जाने के कारण दूसरी लहर में सिर्फ चार लाख प्रवासी ही आए. कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ते हुए रोजगार के साथ-साथ विकास की कड़‍ियों को जोड़ते हुए प्रदेश सरकार ने न सिर्फ प्रवासी मजदूरों की घर वापसी कराई बल्कि उनके भरण पोषण की व्यनवस्था करते हुए श्रमिकों को सरकार की स्वरर्णिम योजनाओं के तहत रोजगार भी दिलाया है.

प्रवासी श्रमिकों की परेशानियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने दो याचिकाओं को निस्ताीरित करते हुए यूपी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की तारिफ की. कोरोना काल के दौरान प्रदेश सरकार ने श्रमिकों व कामगारों, ठेला, खोमचा, रेहड़ी लगाने वालों की भरण-पोषण की व्यरवस्थाो को सुनिश्चिचत किया. लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्याक में यूपी लौटे श्रमिकों को एक हजार रुपए का भरण-पोषण भत्ता दिया गया. उनको राशन किट का वितरण करने का बड़ा काम किया. बता दें क‍ि नीत‍ि आयोग, बाम्बेी हाईकोर्ट, डब्यूभरण एचओ के बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार की सराहना की है.

दक्षता के अनुसार श्रमिकों को दिया गया रोजगार

प्रदेश सरकार ने जिला मुख्याोलय पर इनकी स्किल मैपिंग कराई और उनकी दक्षता के अनुसार स्थानीय स्तर पर उनको रोजगार देने का भी भरसक प्रयास किया. प्रदेश सरकार के इन प्रयासों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार के इन प्रयासों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बाबत पंजीकरण से लेकर स्किल मैपिंग तक के कार्यो को खुद में बड़ा काम माना है. बता दें कि प्रदेश सरकार ने अपनी कई योजनाओं से इन श्रमिकों को जोड़ते हुए रोजगार दिया.

पारदर्शिता के लिए बनाया गया पोर्टल

सरकार अपने इन कर्यो के बारे में सुप्रीमकोर्ट में शपथपत्र भी दे चुकी है. यही नहीं पारदर्शिता के लिए http://www.rahat.up.nic.in नाम से एक पोर्टल भी बनवाया था. इसमें वापस आए श्रमिकों और उनके हित में सरकार द्वारा उठाए गए सभी कदमों की अपडेट जानकारी थी.

कम्युनिटी किचन की पहल

जरूरतमंद प्रवासी श्रमिकों और अन्य को भूखा न रहना पड़े इसके लिए प्रदेश सरकार ने कम्युनिटी किचन की शुरुआत की जिसका उल्लेख सुप्रीम कोर्ट ने भी किया और अन्य राज्यों को भी यह व्यवस्था चलाने को कहा.

1,51,82,67,000 रुपये 15.18 लाख प्रवासियों को किए गए हस्तांतरित

योगी सरकार ने कोरोना संक्रमण के दौरान प्रवासी कामगारों व श्रमिकों को सभी तरह की सुविधाएं पहुंचाई. जिसके तहत परिवहन निगम की बसों के जरिए लगभग 40 लाख प्रवासी कामगरों व श्रमिकों को उनके गृह जनपदों तक भेजने, चिकित्संकीय सुविधाएं उपलब्ध कराने व उनको स्थाकनीय स्तपर पर रोजगार दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर व्य्वस्थाक की गई. इसके साथ ही प्रवासी श्रमिकों को राशन किट वितरण के साथ ही आर्थिक सहायता देते हुए प्रति श्रमिक एक हजार रुपए की धनराशि भी ऑनलाइन माध्यकम से दी. इन लाभों में से 20.67 लाख परिवारों ने लाभ उठाया, जिसमें से 16.35 लाख को 15-दिवसीय राशन किट प्रदान किया गया. कुल 1,51,82,67,000 रुपये 15.18 लाख प्रवासियों को हस्तांतरित किए गए हैं. राशन किट के अलावा योगी सरकार ने सामुदायिक रसोई की भी स्थापना की.

मुक्ति का बंधन- भाग 1: अभ्रा क्या बंधनों से मुक्त हो पाई?

वह रीता सा बचपन था और अब यह व्यस्त सा यौवन. जाने क्यों सूनापन मीलों से मीलों तक यों पसरा है मानो बाहर कुहरा और घना हो आया है. राउरकेला से 53 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ के जशपुर के इस छोटे से साफसुथरे लौज में अचानक मैं क्या कर रही हूं, खुद ही नहीं जानती.

लौज के इस कमरे में बैठी खुली खिड़की से दूर कुहरे में मैं अपलक ताकती हुई खुद को वैसा महसूस करने की कोशिश कर रही हूं जैसा हमेशा से करना चाहती थी, हां, चाहती थी, लेकिन कर नहीं  पाई थी.

हो सकता है ऐसा लगे कि युवा लड़की अकसर व्रिदोहिणी हो जाती है, घरपरिवार, पेरैंट्स हर किसी से लोहा लेना चाहती है क्योंकि वह अपनी सोच के आगे किसी को कुछ नहीं समझती. पर रुको, ठहरो, पीछे चलो. देखोगे तो ऐसा पूरी तरह सच नहीं है.

चलो, थोड़ा इतिहास खंगालें.

तब मैं बहुत छोटी थी. यही कोई 5 साल की. मुझे याद है मेरे पापा मुझे प्यार करते थे. गोद में बिठाते थे. लेकिन जैसे ही मैं मां के पास जाना चाहती, पापा क्रोधित हो कर मुझे प्रताडि़त करते. मुझे अपशब्द कहते. मुझे गोद में पटक देते.

धीरेधीरे मैं बड़ी होती गई. देखा, मां अपने शास्त्रीय गायन की वजह से कई बार पापा के हाथों पिटती थीं. उन के गायन की वजह से कई बार लोग हमारे घर आते. पापा मां पर गाहेबगाहे व्यंग्य कसते, मां को ले कर अपशब्द कहते. और उन के जाने के बाद कई दिनों तक मां को जलील करते रहते. ऐसा वातावरण बना देते कि घर के  काम के बाद मां अपना गायन ले कर बैठ ही नहीं पातीं, और बेहद दुखी रहतीं.

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मां मेरे नानानानी की इकलौती संतान थीं. बहुत ही सरल, शांत, कर्मठ और अपने गायन में व्यस्त रहने वाली. पापा पार्टी पौलिटिक्स में रुचि रखने वाले, दूसरों पर रोब जमाने वाले बड़बोले. पापा के परिवार को ऊंचे खानदान के होने का बड़ा गर्व था. कुल, मान और पैसे के बूते समाज में उन के रोब को देखते हुए मेरे नाना ने मेरी मां के रूप में दुधारू गाय यहां बांध दी. उन्होंने सोचा था कि इन के रोब से बेटी का और उस के बाद बेटी के पिता का मान और रोब बढ़ेगा. मगर हुआ कुछ उलटा ही.

मां हैं मेरी शांत प्रकृति की. वे अपशब्दों और पीड़ा के आगे अपने होंठ सिल लेतीं ताकि बेटी को लड़ाई के माहौल से दूर रखा जा सके. मगर परिवार में किसी एक व्यक्ति की भी मनमानी से बच्चों के विकास का माहौल नहीं रहता, चाहे दूसरा कितना ही चुप रह जाए.

उस वक्त मेरी उम्र कोई 12 वर्ष की रही होगी जब जाने किनकिन घटनाओं के बाद मेरे पापा चिल्लाते हुए आए और मां का गला दबोच लिया. मेरी मां बड़ी स्वाभिमानी थीं. पापा उन का गला दबा रहे थे और वे चुपचाप उन से आंखें मिलाए खड़ी थीं. यह दृश्य देख मैं अंदर से कांप गई. पापा की छत्रछाया में मुझे मेरी मौत नजर आने लगी. मैं बिलख कर पापा के पैरों में पड़ कर भीख मांगने लगी कि वे मां को छोड़ दें.

मुझे पापा ने झटका दिया. मैं नाजुक सी, बेबस बच्ची अभी संभलती, उन्होंने मां को छोड़ मुझे गरदन पकड़ कर उठाया और धक्का दे कर कहा, ‘कमीनी, मां की तरफदारी करती है.’ मैं उन के धक्के से दूर जा गिरी, मां ने दौड़ कर मुझे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया.

इस तरह हम मांबेटी के न चाहते हुए भी पापा के खुद के व्यवहार की वजह से पापा को लगता गया कि हम उन के विरोधी हैं, मां उन के बारे में मुझे भड़काती हैं और तभी मैं उन से दूर होती जा रही हूं.

घर का माहौल बेवजह विषैला हो गया था. लेकिन मां को पापा से अलग होने की सलाह देने पर मां का साफ इनकार ही रहता. मैं बड़ी पसोपेश में थी कि इतनी भी क्या मजबूरी कि मां को घुटघुट कर जीना पड़े और तब, जब वे रेडियो की हाई आर्टिस्ट भी हैं.

खैर, 15 साल की अवस्था में उस का भी पता मुझे लग ही गया कि मां की आखिर मजबूरी क्या थी. नानीजी का देहांत हुआ तो हम दोनों मांबेटी के साथ पापा भी रस्म निभाने कोलकाता पहुंचे.

मां की स्थिति देख नाना कुछ अवाक दिखे. मां के साथ पापा का अभद्र व्यवहार नानाजी को खलने लगा. नाना ने जरा पापा को समझाना क्या चाहा, पापा उखड़ गए. उन के अनुसार, नाना को हमेशा दामाद के आगे झुक कर रहना चाहिए, और कुछ समझाने का दुस्साहस कदापि नहीं करना चाहिए.

नाना सकते में थे. अब तक कभी मां ने कुछ बताया नहीं था, और लगातार हो रहे मां के साथ गलत व्यवहार का नाना को पता भी नहीं था.

मैं ने नाना को सबकुछ बता कर हमारे घर की परेशानी दूर करनी चाही. मां के पीछे मैं ने नाना के सामने मेरी मां की जिंदगी के कई सारे पन्ने खोल दिए. पर बात इस तरह बिगड़ जाएगी, मुझे तो अंदाजा ही नहीं था. नाना को हार्टअटैक आ गया और हम पर कई सारी परेशानियां एकसाथ आ गईं.

खैर, जैसेतैसे जब वे ठीक हो कर आए तो उन में काफी मानसिक परिवर्तन आ गया था. उन्होंने मां को सुझाव दिया कि मां चाहें तो यहीं रुक जाएं. लेकिन मां ने ऐसा करने से मना कर दिया. अभी मैं 10वीं में थी और मेरे जीवन में कोई बाधा उत्पन्न हो, वे ऐसा नहीं चाहती थीं. क्या बस इतनी ही बात थी? हम ने जोर डाला मां पर, तो कुछ बातें और सामने आईं.

दरअसल, मेरी नानी के पिता ने नानी की मां को अपनी जिंदगी से इस तरह अलग कर रखा था और अपनी भाभी के इतने करीबी थे कि उन की मां ने जहर खा लिया था.

नानी और उन की दीदी को बड़े दुख सहने पड़े थे. तो नानी ने वचन लिया था मेरी मां से कि जिंदगी में कभी हिम्मत हार कर पलायन नहीं करेगी. अपने बच्चों को समाज के नजर में कमतर नहीं होने देगी. मां तो वचन निभा रही थीं लेकिन मैं पापा के ईर्ष्या, क्रोध, घृणा, प्रतिशोध से खूब परेशान थी.

किसी भी तरह घर से निकलने के लिए मैं 12वीं करते हुए प्रतियोगी परीक्षा में बैठ रही थी. इस लिहाज से पहली बार में होटल मैनजमैंट में मेरा सरकारी कालेज में चयन हो गया तो बिना वक्त गंवाए भुवेनश्वर में मैं ने ऐडमिशन ले लिया. अब दूसरे साल कोलकाता के मैरियट होटल से मैं इंडस्ट्रियल टे्रनिंग कर रही थी. पर इस बार भी परिस्थितियां जटिल होती गईं.

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परिवारनुमा कठघरे में खड़े जवाबतलब से मैं बेतहाशा ऊब चुकी थी और वाकई अपने चारों ओर की बददिमाग दीवारों को हथौड़ों के बेइंतहा वार से तोड़ देना चाहती थी. ट्रेनिंग के दौरान मैं अपने दूसरे दोस्तों की तरह अलग फ्लैट ले कर रहना चाहती थी. पापा ने ऐसा होने नहीं दिया. कंपनी के जीएम पद पर थे वे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, लेकिन थी तो विश्वास की कमी.

पीछे मुड़ कर देखने पर उन्हें सिर्फ अंधड़ ही तो दिखता था, धुआं ही धुआं. न रिश्ता साफ था, न प्यार, न विश्वास. उन के दिल में हमेशा मेरे लिए शक ही रहे. उन्हें लगा कि अकेलेपन का मौका मिलते ही मैं सब से पहले उन की इज्जत पर वार करूंगी. बदले की जिस फितरत में वे झुलस रहे थे उसी में दूसरों को भी आंकना उन की आदत हो गईर् थी.

मां पर उन्होंने यह जिम्मेदारी डाल दी कि वे अपने पिताजी को यह दायित्व दे दें कि वे मेरी जिम्मेदारी उठाएं. पापा की यह बात, जो उन्होंने मेरी मां से कही, मेरे कानों में गूंजती रहती, ‘अपने पिताश्री से कहो कि बेटी ब्याह कर सिंहासन पर बैठ सम्राट बने पैर न डुलाते रहें बल्कि पोती की सेवा कर के कुछ दामाद का भी ऋ ण उतारें.’

अवाक थी मैं, नाना हमेशा से ही अपनी कम आर्थिक स्थिति में भी हमारा खयाल रखते रहे हैं.

इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग के लिए मैं भुवनेश्वर से कोलकाता गई थी. मेरी इच्छा थी मैं दिल्ली के लीलाज होटल गु्रप में अपनी ट्रेनिंग पूरी करूं. मैं ने पापा से छिपा कर वहां के लिए इंटरव्यू दिया और चयन भी हो गया. मगर पापा की मरजी के बगैर मैं एक कदम भी नहीं बढ़ा सकी.

नाना पूरी लगन से मेरी जिम्मेदारी में जुट गए थे. लेकिन यहां भी प्रेम का बंधन अब भारी पड़ने लगा मुझ पर. मुझे ट्रेनिंग से वापस आने में रात के 2 बज रहे थे. होटल की गाड़ी घर तक छोड़ रही थी. अभी नींद आने तक सारे दिन का संदेश मुझे फोन पर चैक करना होता था. दरअसल, ड्यूटी में अथौरिटी के आदेश से फोन जमा रहते थे.

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जब आए लगातार हिचकी

 लेखक -उमेश कुमार सिंह

अगर आप को लगातार हिचकी आती है या फिर हिचकी जैसा अनुभव होता है तो यह कोई साधारण बात नहीं है. यह एक तरह की बीमारी है, जो लाखों में से किसी एक को हो सकती है. रानी मुखर्जी की एक पिक्चर आई थी ‘हिचकी’. इस में भी इस बीमारी का जिक्र हुआ है. पिक्चर में रानी मुखर्जी को यह बीमारी होती है. इस में लगातार हिचकियां आती रहती हैं.

इस बीमारी को टोरेट सिंड्रोम कहा जाता है, जिस में नर्व सिस्टम पर असर पड़ता है. इस में व्यक्ति को अचानक हिचकियां आने लगती हैं और ऐसा लगातार होता रहता है. कई बार थोड़ी देर के लिए और कई बार ज्यादा देर के लिए.

आम हिचकी में 1 या 2 बार हिचकी आती है, लेकिन इस बीमारी में लगातार हिचकियां आती हैं और उन्हें कंट्रोल करना मुश्किल होता है.

टोरेट सिंड्रोम होता क्या है

गुरुग्राम स्थित अग्रिम ‘इंस्टिट्यूट औफ न्यूरोसाइंसेज आर्टेमिस हौस्पिटल’ के न्यूरोलौजी विभाग के डाइरैक्टर डाक्टर सुमित सिंह का कहना है कि टोरेट एक तरह की दिमाग से जुड़ी बीमारी है. इस में किसी भी बड़े या बच्चे को हिचकियां आने लगती हैं. यह बीमारी 2 तरीकों से प्रभावित हो सकती है या तो पर्यावरण के कारण या फिर जेनेटिक कारणों से. ज्यादातर मौकों पर यह बीमारी 18 साल की उम्र से पहले अटैक करती है.

इस बीमारी के बारे में एक और बड़ी बात यह है कि यह ज्यादातर पुरुषों में पाई जाती है, जोकि ताउम्र चल सकती है.

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बीमारी के लक्षण

टिक्स: इस बीमारी का सब से बड़ा लक्षण हिचकी ही है, जोकि अचानक कभी भी आ सकती है और इस की आवाज बहुत तेज भी हो सकती है. ऐसे में इस बीमारी के कारण समाज में काम करने वाले व्यक्ति को कई तरह की सामाजिक परेशानियों से दोचार होना पड़ सकता है.

इस बीमारी को 2 भागों में बांटा जा सकता है:

सिंपल टिक्स: इस तरह की टिक्स में थोड़े समय के लिए हिचकियां आती हैं, जिन में आवाज भी कम होती है और सिर, कंधों या गरदन पर दबाव पड़ता है और इस में अचानक मूवमैंट होने लगती है.

कौंप्लैक्स टिक्स: इस तरह की हिचकियों में हिचकियां लगतार आती रहती हैं और इस में कई बार चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं जैसाकि लकवे के दौरान होता है. साथ ही इस में हिचकियों की आवाज भी काफी तेज होती है. कई बार इन हिचकियों से भारी तनाव भी हो जाता है और अकसर रात में भी ये हिचकियां बहुत परेशानी पैदा कर सकती हैं. इस से बचने के लिए ध्यान एक बेहतर उपाय है.

इस बीमारी के क्या कारण हैं

डाक्टर सुमित सिंह का कहना है कि अभी तक इस बीमारी के सही कारणों का पता नहीं लग पाया है. हालांकि ज्यादातर मामलों में यह जेनेटिक ही होती है. लेकिन इस का यह मतलब भी नहीं है कि अगर आप को यह बीमारी है तो आप के बच्चों को भी यह होगी. एक शोध के मुताबिक सिर्फ 5-15% मामलों में ही यह पाया गया है कि पेरैंट्स से यह बीमारी बच्चों को गई.

क्या हिचकियों को दबाया जा सकता है

हिचकियों को दबाया तो नहीं जा सकता, लेकिन कई तरह की तरीकों से इस ऐनर्जी और प्रैशर को रिलीव किया जा सकता है. इस से हिचकियों को थोड़ा कम किया जा सकता है. हालांकि हिचकियों को कम करने के लिए इस तरह की संसेशन होती है जैसाकि छींक रोकने से होती है.

हालांकि यह बात व्यक्ति पर निर्भर करती है कि कौन कैसे हिचकियों को कैसे दबा सकता है. कई बार इस तरह की हिचकियों को दबाने के लिए काफी परेशानी भी हो सकती है. हालांकि बच्चों को ये हिचकियां दबाने की कला नहीं आती, क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में काफी परेशानी होती है.

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बीमारी का पता कैसे चले

डाक्टर्स के मुताबिक अगर 1 साल तक किसी व्यक्ति को लगातार हिचकियां आती रहें तो यह माना जा सकता है कि उसे यह बीमारी है. हालांकि किसी तरह के खून की जांच, किसी तरह की लैबोरटरी या फिर किसी अन्य जांच से यह पता नहीं लगाया जा सकता है. हालांकि एमआरआई, कंप्यूटर टेपोग्राफी आदि से रेयर केसेज में इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है.

बीमारी का इलाज कैसे हो

अभी तक हिचकियों की बीमारी का पूरा इलाज नहीं खोजा जा सका है और न ही इस बीमारी के लक्षणों को पूरी तरह से खत्म किया जा सका है. इस बीमारी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों का साइड इफैक्ट काफी पड़ता है.

कई बार साइड इफैक्ट को कम करने के लिए दवाइयों की डोज कम करना एक बेहतर उपाय हो सकता है. इस के इलाज की दवाइयों के साइड इफैक्ट में कई बार वजन बढ़ना, आलस आना आदि प्रमुख है.

इलाज में परेशानियां 

इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के लिए स्वस्थ और बेहतर जीवन जीने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन कई बार इस व्यक्ति के लगातार हिचकियां लेने से सामाजिक तौर पर परेशानियां  झेलनी पड़ सकती हैं जैसाकि फिल्म ‘हिचकी’ में दिखाया गया है.

कैसे ठीक हो सकती है बीमारी

जिस बच्चे या बड़े को यह बीमारी है उस के साथ किसी तरह की ऐक्टिविटी में लगना चाहिए, जोकि उसे पसंद हो. फिर चाहे वह स्पोर्ट्स हो या फिर संगीत हो, इस तरह की हौबी हिचकियों में कमी लाने में सहायक होगी. पेरैंट्स को चाहिए कि बीमार का सैल्फ कौन्फिडैंस बढ़ाएं ताकि वह सामाजिक तौर पर अपने को मजबूती से पेश कर सके.

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Fashion Tips: नेक लाइन के आधार पर करें नेकलेस का चुनाव

कुछ महिलाओं की ड्रेसिंग सेंस तो अच्छी होती ही है साथ में वह कपड़ों के आधार पर अपनी ज्वैलरी भी बहुत अच्छे से चुनती हैं. हमारी एक्सेसरी भी हमारे लुक को बेहतर बनाने में एक अहम रोल निभाती है इसलिए हमें इसके ऊपर भी खास ध्यान देना चाहिए. बहुत सी महिलाओं किसी भी कपड़ों पर किसी भी तरह की ज्वैलरी पहन लेती हैं चाहे वह उन्हें सूट कर रही हो या न. आपको अपना नेकलेस हमेशा अपनी नेक लाइन को देखते हुए ही चुनना चाहिए. आज हम आपको बताएंगे कि आपको किस तरह की नेकलाइन के लिए किस प्रकार का नेकलेस चुनना चाहिए ताकि आपका लुक और अधिक निखर जाए और आप किसी दुविधा में भी न रहें. तो आइए जानते हैं कि किस नेक लाइन को स्टाइल करते समय आपको किन बातों का ख्याल रखना चाहिए.

 वन शोल्डर टॉप : अगर आप एक शोल्डर वाला टॉप पहन रही हैं तो आपको ऐसी ड्रेस के साथ कोई भी नेकलेस नहीं पहनना चाहिए. नेकलेस की बजाए आप अपने लुक को हाथों में ब्रेसलेट को कानों में इयररिंग्स का बेहतर चुनाव करके एन्हांस कर सकती हैं..

 टर्टल नेक टॉप : टर्टल नेक के साथ आप लंबे लंबे पेंडेंट पहन सकती हैं. यह नेक डिजाइन आपके गले से चिपकी हुई होती है इसलिए ऐसा आप सर्दियों के दौरान ही स्टाइल कर सकती हैं. गर्मियों में आप वी नेक लाइन वाले ब्लाउज या टॉप पहन सकती हैं और अगर उन्हें स्टाइल करना चाहती हैं तो गले से चिपकी चोकर या नेकलेस बहू सुंदर लगते हैं. टर्टल नेक के साथ आप एक सिंपल चेन भी डाल सकती हैं.

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 ऑफ शोल्डर : अगर आप एक ऑफ शोल्डर टॉप या ड्रेस पहन रही हैं तो आपको अपनी नेक को भरी भरकम नेकलेस पहन कर भद्दी नहीं बना लेना है. आप कोई बहुत ही सिंपल और लंबी चेन या पेंडेंट पहन सकती हैं. इस प्रकार की नेक लाइन पर आप को चोकर पहनने की गलती भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह भी बिलकुल अच्छा नहीं लगता है और आपकी फैशन सेंस का मजाक उड़ सकता है.

 वी नेक लाइन : वी नेक लाइन के साथ आप ट्राइएंगुलर शेप नेकलेस पहन सकती हैं जिसकी लंबाई आपकी नेक लाइन जितनी ही होनी चाहिए. इससे भी आपका लुक लोगों की अटेंशन का केंद्र बन सकता है. अगर आप कुछ इंडिया वियर पहन रही हैं जिसकी नेक लाइन वी है तो आप उनके साथ चोकर पहन सकती हैं जो आपके गले को एक बहुत खूबसूरत लुक देने वाला है.

 राउंड नेक : अगर आप एक राउंड नेक पहन रही हैं तो इसके साथ भी आप चोकर पहन कर इसे स्टाइल कर सकती हैं. यह आपके गले से चिपक कर एकदम आपको बहुत खूबसूरत लुक देगा. आप डायमंड या गोल्ड अपने फंक्शन के हिसाब से किसी भी प्रकार के चोकर का प्रयोग कर सकती हैं.

आम तौर पर नेकलेस को स्टाइल करते समय आपको इन्हीं कुछ मुख्य नेक लाइन डिजाइनों का ख्याल रखना होता है..अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगी तो आपका गला और आपकी फैशन सेंस बहुत ही अधिक इंप्रूव हो जायेगी चाहे आप एक साधारण लड़की ही क्यों न हो. लेकिन लोगों को आपका यह स्टाइल देखने के बाद फैशन डिजाइनर वाली फील जरूर आएगी.

टेसू के फीके लाल अंगार- भाग 2 : क्या था सिमरन के अतीत की यादों का सच

लेखक- शोभा बंसल

फिर कौफी पीते हुए थोड़ा सहज होने पर, अपनी पुरानी सखी स्नेहा का यों अपनापन देख सिमरन ने खुदबखुद अपना अतीत उस के सामने उधेड़ना शुरू कर दिया.

“स्नेहा, मेरा जीवन तो लंबे संघर्षों के कहीं कोरे, कहीं फीके, कहीं टेसू के लाल तो कहीं पीले रंगों का पुलिंदा है. पर, पता नहीं कैसे हिम्मत आई और मैं ने अपने को चकाचौंध की दुनिया में चट्टान से अडिग पाया. इसी दृढ़ता ने मुझे मुश्किलों का सामना कर निरंतर आगे बढ़ने को प्रेरित किया और मैं ने बिना किसी गिलाशिकवा के सोचसमझ कर पैट्रिक से अलग होने का सही निर्णय लिया था.

“मैं तुम से क्या छुपाऊं? क्या बताऊं? बस इतना ही कहना चाहती हूं कि जब हम रिलेशनशिप में होते हैं, तो केवल उसी के बारे में सोचते हैं. एक फियर में रहते हैं कि कोई उस प्यार को छीन न ले. शायद सच.

“स्नेहा, इसीलिए तब तुम्हारा पैट्रिक के लिए क्रश देख मैं भी तो जीलस और इनसिक्योर हो गई थी.”

स्नेहा यह सुन हक्कीबक्की रह गई और एंबैरेस्ड हो कर बोली, “छोड़ो वह बात. तब तो उम्र ही ऐसी होती है…

“हां, तुम्हारे पैट्रिक के साथ भागने की खबर जब मेरे मम्मीपापा के पास पहुंची, तो उन्होंने मुझे होस्टल से वापस बुला लिया और मेरी आननफानन में डा. राजीव से शादी भी करवा दी.”

फिर क्रश वाली झेंप मिटाने के लिए और अपनी आज की साख बनाए रखने के लिए स्नेहा ने आगे जोड़ा, “डाक्टर साहब देखने में तो सख्तमिजाज लगते हैं, पर इन का दिल स्नेह और प्यार से लबालब भरा है. तभी तो मैं शादी के बाद अपने पीएचडी करने का सपना पूरा कर पाई.”

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अपनी आगे की पढ़ाई न कर पाने की एक चुभन भरी टीस सिमरन के दिल में उठी. उस का भी तो पीएचडी करने का और कुछ बनने का सपना था. क्या से क्या हो गया…? पर, फिर अपने चेहरे पर उस ने मुसकान कायम रख इस चुभन को तत्परता से छुपा लिया.

उधर स्नेहा को पैट्रिक और सिमरन के ब्रेकअप के बारे में सुन कर बहुत दुख पहुंचा. उस ने कहा, “तुम पर तो तकलीफों का पहाड़ टूट पड़ा होगा…? कैसे किया मैनेज अकेले तब…?”

यह सुन कर सिमरन फिंगर क्रास करते हुए बोली, “नहीं… नहीं, पैट्रिक को दोष मत दो. सब वक्त की बात है. ब्रेकअप हुआ है हमारा. फिर भी बद्दुआ नहीं करूंगी उस के लिए. इस ब्रेकअप ने मेरे बहकते कदमों को नई दिशा दी है. मेरे वजूद को एक नई पहचान दी है. इस में कुछ तो जरूर पैट्रिक का योगदान रहा होगा.”

सिमरन ने टौपिक बदलते हुए कहना शुरू किया. उन दिनों कालेज लाइफ में तब की मुंबई हमारे लिए हौलीवुड जैसी थी. पर यह दिखने में भी नहीं, सच में बड़ी ही मायावी है. हम दोनों को ही जिंदगी का बहुत बड़ा फलसफा सिखा गई यह मुंबई.

जिस प्रोड्यूसर, डायरैक्टर ने इंटर कालेज कल्चर फेस्टिवल में चीफ गेस्ट बन हमारी ऐक्टिंग पर खुश हो, अपना विजिटिंग कार्ड दिया, हमें अपनी अगली फिल्म में काम देने का वादा किया था, उसे ही सच्चा मान हम घरपरिवार की इज्जत को दरकिनार कर अपने सपनों की दुनिया को यथार्थ में अनुभव करने के लिए हाथ में जो थोड़ाबहुत पैसा, गहना था, उसे ले कर मुंबई भाग आए. पर चार दिनों में ही यहां की असलियत सामने आ गई.

उस प्रोड्यूसर, डायरैक्टर ने तो केवल उस दिन वाहवाही लूटने और मीडिया में अपना नाम कमाने के लिए हमें वह लालच दिया था. वह क्या हमारे फाइनल्स होने तक हम दोनों का इंतजार करता? उस के दरबान ने तो हम दोनों को गेट का रास्ता दिखा दिया. अच्छेभले खातेपीते घर के लोग सड़क पर आ गए और रोटी के लिए मोहताज हो गए.

जीवनयापन के लिए सिमरन ने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. उधर पैट्रिक फिल्मों में काम की तलाश में सुबह निकलता और देर रात तक भटकता रहता.

फिर एक दिन मेरी हेयर ड्रेसर पड़ोसन ने मुझे एक अधेड़ उम्र की बुढ़ाती नायिका की कंपेनियन के रूप में नौकरी दिलवा दी. मुझे तो द्रोपदी का सरेंधेरी रूप याद आ गया. इस नायिका के यहां पुरुषों का आना मना था. केवल लेडीज ही काम कर सकती थी. मुझे सुबह 11 बजे से ले कर शाम के 7 बजे तक उस के साथ साए की तरह रहना था. क्योंकि अब बढ़ती उम्र की वजह से न तो उस को फिल्मी दुनिया में काम मिल रहा था और न ही इज्जत. न ही उस का कोई नातेरिश्तेदार था और न ही कोई दोस्त. वह बेइंतिहा अकेली थी. पैसा भी उस के अकेलेपन को भर नहीं पा रहा था… सो, मुझे भी लगा कि कोई डर नहीं.

इस नौकरी को मैं ने और उस ने भी मुझे हाथोंहाथ लिया. मुझे देख उस के उदास चेहरे पर अजीब सी चमक आ गई और जब उस ने तीखी निगाहों से मेरे बदन पर एक गहरी निगाह डाली, तो एकबारगी मेरी रूह कांप उठी कि कहीं यह बुढ़िया कोई लुकाछिपी वाला धंधा तो नहीं चलाती. शायद वह मेरी पेशानी पर पड़े चिंता व तनाव के बादलों को पहचान गई और मुझे अपने पास बुला कर जोर से भींच लिया और प्यार से बोली, “लाडो रानी डरो नहीं… तुम तो मेरी बेटी समान हो. मेरा भी अगर परिवार होता तो तुम्हारी ही हमउम्र मेरी बेटी या बहू होती.”

फिर उस बुढ़िया ने मुझ से मेरे स्टेटस के बारे में पूछा. मैं भोलीभाली… मैं ने सीधा ही बोल दिया, “अभी शादी नहीं की, पर इकट्ठे रहते हैं. थोड़ा सेटल हो जाएंगे, तो शादी कर घर पर बसा लेंगे.”

यह सुनते ही उस ने मोहममता से सहानुभूति दिखाते हुए मुझे 3,500 रुपए एडवांस में दे दिए और उस रोज से ही अपने पास काम पर रख लिया. उस के साथ कुछ दिन बड़े मजे से कटे. ताश खेलो, गपशप करो, खाना खाओ, घूमोफिरो, उस की बातें सुनो. इसी बीच मैं उसे दवाई, खानापीना भी देती. कभीकभी वह बच्चों की तरह रूठ जाती, तो उसे अपने हाथों से खाना खिलाती.

एक दिन वह जिद करने लगी. बाजार चलो, कुछ वेस्टर्न ड्रेस लानी है, क्योंकि मैं सलवारकमीज में बड़ी उम्र की लगती थी. मैं यहां हीरोइन बनने आई थी, मां का रोल करने के लिए नहीं. घर पर ही उस ने ब्यूटीशियन को बुलवा कर अपनी निगरानी में मेरी बौडी पौलिशिंग करवाई.
सच में स्नेहा, मैं तो शर्म से मरी जा रही थी और वह बुढ़िया मेरी शर्म का मजा ले रही थी. फिर जब उस ने मुझे बालों को छोटा कटवाने को कहा, तो मैं ने सख्ती से मना कर दिया और उठ खड़ी हुई तो वह तुरंत राजी हो गई.

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अगले दिन उस ने मुझे उस की दिलवाई वेस्टर्न ड्रेस पहनने का आग्रह किया. उस दिन घर में हम दोनों ही थे और कोई नहीं. मैं तो शीशे में अपना ही रूप देख फिल्मी दुनिया में नायिका के रूप में विचरने के ख्वाब देखने लगी. उस ने मुझे अपने पास बिठा लिया और मेरी जांघों पर हाथ फेरते हुए मेरे रूपयौवन की तारीफ की. लेकिन मुझे उस का यों टच करना पसंद नहीं आया.

फिर एक दिन मेरी बैकलेस ड्रेस से पीठ पर हाथ फेरती हुई वह बोली, “यह तो पंख सी मुलायम है.”

जब तक उस के हाथ नीचे फिसलते, मैं बहाने से खड़ी हो गई. सोचा, शायद इस का बात करने का ऐसा ही ढंग होगा. फिर मेरी तरफ से कोई एतराज न देख अब उस की हिम्मत बढ़ने लगी.

एक दिन मैं कपड़े चेंज कर रही थी, तो अचानक मेरे चेंजिंग रूम का दरवाजा खुला और उस ने मुझे पीछे से जकड़ लिया. मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी.

तो यह था इस बुढ़िया का असली रूप. लेस्बियन के बारे में केवल उड़तीउड़ती बातें सुनी थीं, पर आज तो देख भी लिया. सैक्स की भूखी वह बूढ़ी नायिका मेरा रौद्र रूप देख घबरा गई.

पहले तो उस ने भी पलटवार करते हुए मुझे लिवइन रहने के लिए लानतमलामत की. मेरे चरित्र पर लांछन मारे. मुझे टस से मस न होता देख वह समझ गई कि उस की दाल यहां नहीं गलेगी. मैं ने झटपट कपड़े पहने और कोठी का गेट खोल उस घर से भागी.

शुक्र है, उस भयानक हादसे से अपने को बचा सकी, पर शायद…

घर पहुंची तो दरवाजा अंदर से बंद था, पर कुंडी नहीं लगी थी. हां, जैसे ही दरवाजा खोल कर अंदर कदम रखा तो आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

“किस से उस बुढ़िया की बेजा हरकत की शिकायत करूं? उस पैट्रिक से, जो खुद एक प्रोड्यूसर को खुश करने के लिए हमबिस्तर था.”

मैं अपनी चीख को होंठों में ही दबा वाशरूम में भाग गई.

आगे पढ़ें- यह सब क्या हो रहा था? लगता है…

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