जायज नहीं पति का सरेआम झिड़कना

कभी तो अक्लमंदी की बात किया करो,’’ पति ने कहा.

बेटेबहू के सामने पति द्वारा यों झिड़कना पत्नी को बहुत आहत कर गया. उदास स्वर में बोली, ‘‘आप ने ही तो कहा था कि दाल ठंडी हो गई है, गरम कर लाओ.’’

‘‘गरम करने को कहा था, खौलाने को नहीं. बूढ़ी हो गई पर अक्ल नहीं आई.’’

बात बढ़ती देख पत्नी ने चुप रहने में ही भलाई समझी कि भला गरम दाल को ठंडा होने में कितनी देर लगती है? किंतु जब घर में पत्नी को बातबात पर झिड़कने का रिवाज हो, तो ये संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं. बच्चे ये सब देखते हुए बड़े होते हैं, तो जाहिर है बड़े होने पर वे ऐसा ही करेंगे.

कई लोगों का मानना है कि छोटामोटा झगड़ा और अपमान की स्थिति पतिपत्नी के रिश्ते में आम बात है, जिस का कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ता. किंतु यदि आप का साथी कुछ अधिक ही ऐसी स्थिति पैदा करने लगता है, तो उसे सहना सर्वथा गलत है. गाली देना भी उतना ही गलत है जितना हाथ उठाना. झिड़कना भी उतना ही गलत है जितना अपमान करना.

असल जिंदगी का उदाहरण

श्वेता और रवीश की शादी को 14 वर्ष बीत चुके हैं. श्वेता एक निजी विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं और रवीश एक बैंक कर्मचारी. जब कभी रवीश को गुस्सा आता या वे परेशान होते तो अपना स्ट्रैस श्वेता पर निकालते, बिना यह देखे कि वे दोनों उस समय कहां और किस के समक्ष हैं. रवीश श्वेता से अपमानजनक तरीके से बात करते, उसे झिड़कते, चीखते, नीचा दिखाते. ऐसे व्यवहार से न केवल श्वेता आहत होती, अपितु रवीश के प्रति उन के प्यार को भी ठेस पहुंचती. श्वेता के शिकायत करने पर बाद में वे अपने गलत व्यवहार के लिए उन से माफी भी मांगते. लेकिन उन की माफी की कोई कीमत नहीं होती, क्योंकि कुछ अरसे बाद वे फिर ऐसा ही करते.

स्थिति में सुधार लाने हेतु श्वेता ने डा. स्टीवेन स्टोस्नी की पुस्तक ‘लव विदाउट हर्ट’ पढ़ी. इस पुस्तक से उन्हें भावनात्मक अपमानजनक व्यवहार और उस से निबटने के बारे में जानकारी मिली. चूंकि रवीश पर श्वेता के समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था, इसलिए उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर, अन्य लोगों के बीच रवीश से दूरी बनानी शुरू कर दी. रवीश के कारण पूछने पर उन्होंने साफसाफ बता दिया कि सब के सामने बेइज्जत होना उन्हें पसंद नहीं. श्वेता का यह तरीका वाकई रवीश में बदलाव लाया.

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फिल्मों से उदाहरण

पुरानी फिल्म ‘अभिमान’ में दर्शाया गया है कि पत्नी की सफलता से कुढ़ कर पति उसे सब के सामने झिड़कने लगता है. कुछ समय पहले आई फिल्म ‘इंगलिशविंगलिश’ में श्रीदेवी का पति उसे सदैव झिड़कता रहता है. अंगरेजी न आने पर सार्वजनिक तौर पर उस की हंसी उड़ाता है. उस के लड्डुओं के व्यवसाय का भी उपहास उड़ाता है, इस का परिणाम यह होता है कि उस के बच्चे भी उस का उपहास उड़ाने लगते हैं.

अगली पीढ़ी पर असर

अकसर महिलाएं अपनी गपबाजी में एक विषय अवश्य लाती हैं कि पति उन्हें कैसे डांटतेफटकारते हैं. ये सब बातें करते हुए कई बार वे अतिशयोक्ति भी कर बैठती हैं. उस समय वे यह भूल जाती हैं कि बच्चे भी उन की बातें सुन रहे हैं. बच्चे जो देखतेसुनते हुए बड़े होते हैं, बड़ा होने पर वैसा ही अचारण करने लगते हैं. ऐसे में हमारा सामाजिक दायित्व है कि हम आने वाली पीढ़ी को एकदूसरे की इज्जत करना सिखाएं.

ब्रिघम यंग यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रैसिडैंट जेफ्री आर हौलेंड का मत है कि यदि डेटिंग के दौरान आप का पार्टनर आप को नीचा दिखाए, आप की आलोचना करे, आप से क्रूर व्यवहार करे या अकारण मजाक उड़ाए, तो ऐसे रिश्ते को फौरन समाप्त कर देना चाहिए और यदि ऐसा विवाह के बाद होता है, तो आप को अपने साथी से कुछ दूरी अवश्य बना लेनी चाहिए. ऐसा व्यवहार सहना गलत है खासकर तब जब आप के बच्चे भी ये सब देखते हों.

पहली बार से ही न सहें

मोनिका ने अपने पति के मौखिक हमले सहते हुए यह सोचा कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा, परंतु पति के हमले बढ़ते गए. अपशब्द, हंसी उड़ाना, बदतमीजी करना, अपमानजनक बातें कहना आदत में शुमार हो गया. इसलिए पहली बार से ही पति को यह ज्ञात करा देना चाहिए कि क्या सहनीय है और क्या नहीं.

बात को हंसी में उड़ा दें

कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि पत्नी पति की अशिष्ट बातों को हंसी में उड़ा दे. हालांकि ऐसा करना बेहद कठिन होता है. जब कोई आप से अपमानजनक तरीके से बात कर रहा हो तो उस की बात के उत्तर में हंसने के बजाय तेज गुस्सा आएगा. लेकिन जरा प्रिया को देखिए, पति अमित ने जब यह कहा कि इतना भी नहीं आता तुम्हें? तो उत्तर में प्रिया हंस कर कहती है कि अजी हमें क्या आता है, सब कुछ तो आप ही जानते हैं. कुछ हमें भी शिक्षा दीजिए न. हास्य की ताकत यह है कि वह बदतमीजी के गाढ़ेपन को पतला कर देती है और जो बदतमीजी कर रहा होता है उसे समझ आ जाता है कि कहने वाले ने किस आशय से कहा है. सब के सामने बात रफादफा हो जाती है.

हो सकता है कि आप के पति सकारात्मक आलोचना से आप की कमियां सुधारना चाहते हों और आप ही अत्यधिक संवेदनशील हो रही हों. यदि आप घर को व्यवस्थित नहीं रखती हैं और आप के पति आप को इस बात के लिए झिड़क देते हैं, तो आप को मुंह फुलाने के बजाय अपनी आदतें सुधारनी चाहिए.

पति को अकेला छोड़ कर दूर चली जाएं

जब कभी आप के पति आप को अकेले में या सार्वजनिक स्थान पर अपमानित करें, तो आप किसी भी बहाने से वहां से हट जाएं. यह अपने पति के क्रोध को संभालने का एक बहुत सरल तरीका है.

बात साफ करें

कितना भी प्रयास कर लें, मगर एक न एक दिन आप अपने पति के गलत व्यवहार से थक ही जाएंगी. इसलिए अच्छा है कि जल्दी से जल्दी बात साफ कर ली जाए. अपनी बात साफतौर से उन से कहें और उन्हें बीच में टोकने न दें. जब तक आप की बात पूरी न हो जाए उन्हें बताएं

कि उन की झिड़कियां आप को कितना आहत करती हैं. उन्हें एहसास दिलाएं कि मानसिक चोट भी शारीरिक चोट की भांति बहुत तकलीफ पहुंचाती है. याद रखें कि अपनी बात नम्रता से कहें. आखिर आप यह बात इसलिए बता रही हैं ताकि आप दोनों का रिश्ता सुदृढ़ हो न कि झगड़ा बढ़े.

अनजाने ही झिड़कने की भूल

हो सकता है कि आप के पति इस बात से अनभिज्ञ हों कि वे आप को सरेआम झिड़क कर आप को आहत कर रहे हैं. कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन से पत्नी तो खिन्न हो उठती है, किंतु पति यह जान नहीं पाते कि उन्होंने अनजाने ही अपने जीवनसाथी को ठेस पहुंचाई है.

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प्रत्यक्ष बातचीत द्वारा हल संभव

मनीषा ने अपने पति की इस आदत को कुछ समय नकारा. किंतु जब उस ने यह देखा कि पति की उसे सरेआम झिड़कने की आदत नकारने से बढ़ती जा रही है तो उस ने एक ब्लौग में पढ़े हल को आजमाया. उस ने अपने पति से इस विषय में प्रत्यक्ष रूप से बात की, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे कितना प्यार करते हो और कभी मेरा बुरा नहीं चाहोगे, मगर यों सब के सामने तुम्हारा मुझे झिड़कना मुझे बहुत आहत कर जाता है. कभीकभी तुम ऐसी बातें कर जाते हो जो सिर्फ कमरे की अंदर कहनी चाहिए. तुम्हारा नकारात्मक ढंग से मुझे चिढ़ाना मुझे बहुत ठेस पहुंचाता है.’’

मनीषा की साफ बात उस के पति के मन तक पहुंचने में देर न लगी और अपनी गलती स्वीकार कर तुरंत ही अपने रवैए में सुधार कर लिया.

कब चाहिए प्रोफैशनल मदद

कैथी बौश जोकि पारिवारिक जीवन शिक्षा की विशेषज्ञा हैं, कहती हैं, ‘‘यदि आप का पति लगातार ऐसी बातें करता है, जिन से आप का आत्मविश्वास डगमगाता है, जान कर ऐसे क्रियाकलाप करता है जिन से आप का स्वयं पर से भरोसा उठता है, आप की आत्मनिर्भरता समाप्त होती है, तो यह गंभीर विषय है. यह अपमानजनक मुद्दा है और आप को प्रोफ्रैशनल मदद लेनी चाहिए.

यदि आप को अपने पति की झिड़कने की आदत पर आपत्ति है, तो उन से इस विषय में बात करें. बातों को मन में दबाए रखने की जगह साफ करने में ही रिश्ते की भलाई है. हो सकता है आप के पति की इस आदत के पीछे आप की कोई कमी हो, तो आप उसे दूर करने का प्रयास करें. अच्छा है कि आप दोनों आपसी समझ और सुलह से इस परिस्थिति से अकेले में निबटें न कि अन्य परिवार वालों या मित्रों के समक्ष.

10 सवाल जो आप को समस्या की गंभीरता बतलाएंगे

यदि आप इस दुविधा में रहती हैं कि आप के पति या बौयफ्रैंड या फिर लिव इन पार्टनर की आप को सरेआम झिड़कने की आदत है या हलकीफुलकी छेड़छाड़ तो आप ये प्रश्न स्वयं से पूछें:

– क्या वे आप की जिंदगी की छोटी से छोटी बातों पर भी काबू पाना चाहते हैं? मसलन, आप ने दिन कैसे बिताया, उस के हर मिनट का हिसाब मांगते हैं, जो काम आप ने दिन में नहीं किए, उन के बारे में आप को खरीखोटी सुनाते हैं, खास निर्णयों में आप की राय नहीं लेते.

– क्या वे आप से झूठ बोलते हैं और झूठ पकड़े जाने पर क्षमायाचना के बजाय बहानों की झड़ी लगाते हैं?

– क्या आप से अपमानजनक भाषा में, व्यंग्यात्मक सुर में या फिर कृपाशीलता दर्शाते हुए बातचीत करते हैं? क्या उन्हें शांति और तर्क से बात समझाना कठिन है?

– क्या वे आप की प्रतिभा, गुणों तथा योगदान के बारे में जिक्र होने पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं?

– क्या भावनात्मक संबलता प्रदान करने में हिचकिचाते हैं? मनमुटाव के दौरान बातचीत द्वारा हल निकालने के बजाय वहां से उठ कर चले जाना उचित समझते हैं या फिर आत्म बचाव/प्रतिउत्तर में उलझ जाते हैं?

– क्या उन का क्रोध आप को भयभीत करता है?

– क्या वे हर संभव बहाने से आप की आलोचना करते रहते हैं?

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– क्या उन का सरेआम दूसरों के साथ फ्लर्ट करना आप को आहत करता है? क्या उन के ऐसे बरताव के लिए आप की तरफ से कोई कमी या पहल है?

– क्या वे अपने बरताव को ले कर कोई बदलाव करने को तैयार नहीं हैं? क्या उन का व्यवहार आप को कठोर लगता है? मसलन, घर के कामकाज को ले कर हुए मतभेद के बावजूद वे आप की कोई मदद करने को तैयार नहीं होते?

– क्या उन्होंने कभी आप के प्रति शारीरिक हिंसा या मौखिक दुरुपयोग किया है? मसलन, अश्लील भाषा का प्रयोग, गालीगलौज, हाथ उठाना?

अपनी ही दुश्मन- भाग 3 : कविता के वैवाहिक जीवन में जल्दबाजी कैसे बनी मुसीबत

अब उस के पुराने आशिकों ने आना कम कर दिया था. एक अखिलेंद्र ही ऐसा था, जो अभी तक उस की जरूरतों को पूरा कर रहा था. लेकिन वह भी अब कम ही आता था. फोन पर जरूर बराबर बातें करता रहता था. अलबत्ता इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि वह कब तक साथ निभाएगा.

इस बीच कविता की सहेली सुनीता अपनी दोनों बेटियों को ले कर मुंबई शिफ्ट हो गई थी. वह अपनी बेटियों को मौडलिंग के क्षेत्र में उतारना चाहती थी. उस ने अपना मकान 75 लाख में बेच दिया था.

जो परिवार कविता का पड़ौसी बन कर सुनीता के मकान में आया, उस में मुकुल का ही हमउम्र लड़का सौम्य और उस से एक साल छोटी बेटी सांभवी थी. परिवार के मुखिया सूरज बेहद व्यवहारकुशल थे. उन की पत्नी सरला भी बहुत सौम्य स्वभाव की थीं. पतिपत्नी में तालमेल भी खूब बैठता था. सूरज सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर तैनात थे.

पतिपत्नी ने अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दी थी. उन के घर रिश्तेदारों, मित्रों और परिचितों का आनाजाना लगा रहता था. सरला सब की आवभगत करती थी. अब उस घर में खूब रौनक रहने लगी थी. घर में खूब ठहाके गूंजते थे.

कविता कभीकभी मन ही मन अपनी तुलना सरला से करती तो उसे अपने हाथ खाली और जिंदगी सुनसान नजर आती. उसे लगता कि वह जिंदगी भर अंधी दौड़ में दौड़ती रही, लेकिन मिला क्या? सुरेश के साथ रहती तो बेटे को भी पिता का साया मिल जाता और उस की जिंदगी भी आराम से कट जाती.

वह सोचती कितना अभागा है मुकुल, जो पिता के संसार में होते हुए भी उस से दूर है. यह तक नहीं जानता कि उस के पिता कौन हैं और कहां हैं? वह तो सब से यही कहती आई थी कि मुकुल के पिता हमें छोड़ कर विदेश चले गऐ हैं और वहीं बस गए हैं. वह अखिलेंद्र को ही मुकुल का पिता साबित करने की कोशिश करती, क्योंकि वह ज्यादातर विदेश में ही रहता था और साल में एकदो बार आया करता था.

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कालोनी में किसी को भी कविता का सच मालूम नहीं था. कोई जानना भी नहीं चाहता था. देखतेदेखते 2 साल और बीत गए. पड़ोसन की बिटिया की शादी थी. तमाम मेहमान आए हुए थे. सरला विशेष आग्रह कर के कविता को सभी रस्मों में शामिल होने का निमंत्रण दे गई. कविता इस बात को ले कर बेचैन थी. वह खुद को सब के बीच जाने लायक नहीं समझ रही थी. इसलिए चुपचाप लेटी रही.

अखिलेंद्र विदेश से आ रहा था. एयरपोर्ट से उसे सीधे उसी के घर आना था. मुकुल उसे लेने एयरपोर्ट गया हुआ था.

पड़ोस में मंगल गीत गाए जा रहे थे, बड़े ही हृदयस्पर्शी. सुन कर कविता की आंखें भर आईं. उस की शादी भी भला कोई शादी थी. सच तो यह था कि शादी के नाम पर उसे उस की गलतियों की सजा सुनाई गई थी. जिस सुरेश को कभी वह मोतीचूर का लड्डू समझ रही थी, उस के हिसाब से वह गुड़ की ढेली भर नहीं निकला था.

‘‘मां कहां हो तुम, देखो हम आ गए.’’ मुकुल की आवाज सुन कर वह चौंकी. मुकुल अखिलेंद्र को एयरपोर्ट से ले आया था. कैसा अभागा लड़का था यह, लोगों के सामने अखिलेंद्र को न पापा कह सकता था, न अंकल. हां, उस के समझाने पर घर में वह जरूर उन्हें पापा कह कर पुकार लेता था.

कविता अनायास आंखों में उतर आए आंसू पोंछ कर अखिलेंद्र के सामने आ बैठी. ऐसा पहली बार हुआ था, जब वह अखिलेंद्र को देख कर खुश नहीं हुई थी. अखिलेंद्र और कविता की उम्र में काफी बड़ा अंतर था. फिर भी सालों से साथ निभता रहा था.

‘‘क्या बात है, बीमार हो क्या कविता?’’ अखिलेंद्र ने पूछा तो कविता धीरे से बोली, ‘‘नहीं, बीमार तो नहीं हूं, टूट जरूर गई हूं भीतर से. ये झूठी दोहरी जिंदगी अब जी नहीं पा रही हूं. सोचती हूं, हम दोनों के संबंध भी कब तक चल पाएंगे.’’

‘‘हूं, तो ये बात है.’’ अखिलेंद्र ने गहरी सांस ली.

कविता अपनी धुन में कहे जा रही थी, ‘‘मैं भी औरतों के बीच बैठ कर मंगल गीत गाना चाहती हूं. अपने पति के बारे में दूसरी औरतों को बताना चाहती हूं. चाहती हूं कि कोई मेरे बेटे का मार्गदर्शन करे, उसे सही राह दिखाए. पर हम दोनों की किस्मत ही खोटी है.’’

‘‘और…?’’

‘‘एक दिन उस का भी घर बनेगा. कोई तो आएगी उस की जिंदगी में. फिर मैं रह जाऊंगी अकेली. क्या किस्मत है मेरी, लेकिन इस सब में दोष तो मेरा ही है.’’

तब तक मुकुल चाय बना लाया था. ट्रे से चाय के कप रख कर वह जाने लगा तो अखिलेंद्र ने उसे टोका, ‘‘यहीं बैठो बेटा, तुम्हारी मां और तुम से कुछ बातें करनी हैं. पहले मेरी बात सुनो, फिर जवाब देना.’’

कविता और मुकुल चाय पीते हुए अखिलेंद्र के चेहरे को गौर से देखने लगे. अखिलेंद्र ने कहना शुरू किया, ‘‘मेरी पत्नी पिछले 15 सालों से कैंसर से जूझ रही थी. मैं उसे भी संभालता था, बिजनैस को भी और दोनों बच्चों को भी. भागमभाग की इस नीरस जिंदगी में कविता का साथ मिला. सुकून की तलाश में मैं यहां आने लगा. मेरी वजह से मुकुल के सिर से पिता का साया छिन गया और कविता का पति. मैं जब भी आता, मुझे तुम दोनों की आंखों में दरजनों सवाल तैरते नजर आते, जो लंदन तक मेरा पीछा नहीं छोड़ते. इसीलिए मैं बीचबीच में फोन कर के तुम लोगों के हालचाल लेता रहता था.’’

अखिलेंद्र चाय खत्म कर के प्याला एक ओर रखते हुए बोला, ‘‘6 महीने पहले मेरी पत्नी का देहांत हो गया. उस के बाद मैं ने धीरेधीरे सारा बिजनैस दोनों बेटों को सौंप दिया. दोनों की शादियां पहले ही हो गई थीं और दोनों अलगअलग रहते थे. धीरेधीरे उन का मेरे घर आनाजाना भी बंद हो गया. फिर एक दिन मैं ने उन्हें अपना फैसला सुना दिया, जिसे उन्होंने खुशीखुशी मान भी लिया.’’

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‘‘कैसा फैसला?’’ कविता और मुकुल ने एक साथ पूछा.

‘‘यही कि मैं तुम से शादी कर के अब यहीं रहूंगा.’’ अखिलेंद्र ने कविता की ओर देख कर एक झटके में कह दिया.

मुकुल का मुंह खुला का खुला रह गया. उसे लगा कि मां के दोस्त के रूप में जो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी, अब वह सिर पर आ बैठेगी. पक्की बात है कि अगर अखिलेंद्र घर में रहेगा तो मां को और मर्दों से नहीं मिलने देगा और उन लोगों से जो पैसा मिलता था, वह भी मिलना बंद हो जाएगा.

मुकुल को नेतागिरी में आड़ेटेढे़ हाथ आजमाने आ गए थे. वह रसोई से लंबे फल का चाकू उठा लाया और पीछे से अखिलेंद्र की गरदन पर जोरों से वार कर दिया. जरा सी देर में खून का फव्वारा फूट निकला और वह वहीं ढेर हो गया. कविता आंखें फाड़े देखती रह गई. जब उसे होश आया तो देखा, मुकुल लाश को उठा कर बाहर ले जा रहा था.

मुकुल ने पता नहीं ऐसा क्या किया कि वह तो बच गया, लेकिन कविता फंस गई. पुलिस ने मुकुल से पूछताछ की और घर की तलाशी भी ली, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. मुकुल के प्रयासों से 4-5 महीने बाद कविता को जमानत मिल गई. कविता और मुकुल फिर से एक छत के नीचे रहने लगे, लेकिन दोनों ही एकदूसरे को दोषी मानते रहे?

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Sushant Singh Rajput 1st Death Anniversary: Ankita से लेकर Aly तक इमोशनल हुए सेलेब्स¸ किया ये काम

साल 2020 में कई सितारों ने दुनिया को अलविदा कहा, जिनमें बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) भी शामिल हैं. वहीं सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आज यानी 14 जून को एक साल  की मौत को एक साल पूरा हो गया है. लेकिन आज भी फैंस और सेलेब्स उन्हें भुला नहीं पा रहे हैं. जहां फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. तो सेलेब्स सोशलमीडिया पर उनके लिए खास मैसेज देकर इमोशनल होते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं सितारों के इमोशनल पोस्ट…

अंकिता लोखंडे ने किया ये काम

 

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सुशांत की पहली बरसी पर उनकी फैमिली और फैंस से लेकर बौलीवुड और टीवी सेलेब्स अंकिता लोखंडे, अशोक पंडित, पुलकित सम्राट, अर्जुन बिजलानी, भूमि पेडनेकर समेत कई सेलेब्स ने उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. सुशांत की एक्स गर्लफ्रैंड रह चुकीं अंकिता लोखंडे ने अपनी इंस्टा स्टोरी पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वे हवन करती नजर आ रही हैं. वहीं सुशांत को याद करते हुए अर्जुन बिजलानी ने लिखा, ‘हम दोनों बाइक्स के शौकीन थे. एक दिन उन्होंने मुझे सरप्राइज करते हुए कहा कि अर्जुन नीचे आओ. मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है. जैसे ही मैं नीचे गया तो मैंने देखा कि वो एक नई फैंसी बाइक पर बैठे थे.’

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भूमि पेडनेकर ने लिखी ये बात

 

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भूमि पेडनेकर ने लिखा, ‘तुम्हें, तुम्हारे सवालों और हमारी बातचीत को मिस करती हूं. तारों से लेकर अनजानी चीजों तक, तुमने मुझे वो दुनिया दिखाई जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था. मुझे उम्मीद है कि तुम्हें उस दुनिया में शांति मिल गई होगी. ओम शांति.’ वहीं एक्टर अली गोनी ने सशांत सिंह को याद करते हुए अपनी प्रोफाइल फोटो पर सुशांत की फोटो लगा ली है.

 

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले एक्ट्रेस कृति सेनन ने फिल्म राब्ता से जुड़ी एक वीडियो शेयर की थी, जिसमें सुशांत संग वह नजर आ रही थीं.

 

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Anupamaa: शादी के बाद ‘काव्या’ ने किया वनराज का बुरा हाल, वीडियो वायरल

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) एक बार फिर नंबर वन शो बन गया है, जिसके कारण मेकर्स कहानी में नया ट्विस्ट लाने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो काव्या और वनराज की शादी के बाद शाह परिवार में आए दिन बवाल देखने को मिल रहा है. वहीं अब वनराज को भी काव्या ने अपने तेवर दिखाना शुरु कर दिया है, जिसका सबूत सोशलमीडिया पर वायरल वीडियो हैंय

काव्या ने वनराज को दिखाए तेवर

हाल ही में सीरियल अनुपमा में काव्या और वनराज (Sudhanshu Pandey) की शादी हुई है. लेकिन अब काव्या ने वनराज का बुरा हाल शुर कर दिया है. दरअसल,  काव्या (Kavya) के रोल में नजर आ रहीं मिथुन चक्रवर्ती  (Mithun Chakraborty) की बहू मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) ने सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) के साथ बेहद वीडियो शेयर किया है, जिसमें मदालसा शादी के बाद होने वाले पति के बुरे हाल दिखाती नजर आ रही हैं.

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शेयर किया फनी वीडियो

काव्या यानी मदालसा शर्मा  (Madalsa Sharma) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह और वनराज यानी सुधांशु पांडे एक साथ पॉप्युलर रील पर एक्ट करते नजर रहे हैं, जिसमें वह शादी के बाद होने वाले बुरे हाल की झलक दिखा रही हैं. वहीं जहां फैंस इस फनी वीडियो को खूब पसंद कर रहे हैं. तो वहीं कुछ लोग इस लुक को आगे सीरियल की कहानी का हिस्सा बता रहे हैं, जिसमें वनराज का हाल भी कुछ ऐसा ही होते हुए नजर आ रही हैं.

दुल्हन बनकर कुछ यूं शरमाई काव्या

इस वायरल वीडियो के अलावा मदालसा शर्मा अपने सोशलमीडिया अकाउंट पर फनी वीडियो शेयर कर चुकी हैं, जिसमें वह सीरियल की बाकी कास्ट के साथ मस्ती करती नजर आ रही हैं. वहीं फैंस भी उनकी इन वीडियोज का इंतजार करते नजर आते हैं.

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Apps से करें पेरैंट्स की मदद

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की रहने वाली पारुल नोएडा में रह कर एमबीए कर रही है. उस के पिता बस्ती जिले के एक सरकारी महकमे में मुलाजिम हैं. पारुल को जब भी पैसों की आवश्यकता पड़ती थी तो पारुल के पापा औफिस से छुट्टी ले कर बैंक की लंबी लाइनों में लग कर पैसे जमा करते थे, जिस के चलते उन्हें तमाम तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता था.

इस बार पारुल जब घर आई तो उस ने अपने पापा से कहा कि वे अपने स्मार्टफोन में जिस बैंक का खाता है उस बैंक का ऐप डाउनलोड कर के इंस्टौल कर लें, जिस से उन्हें हर महीने पैसे भेजने के लिए बैंक जाने की जरूरत नहीं रहेगी.

ऐप से पैसे ट्रांसफर करना बहुत ही आसान है और इस से किसी भी बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करना जहां पूरी तरह से सुरक्षित होता है वहीं कुछ ही मिनट में दूसरे के खाते में पैसा वहां पहुंच जाता है.

पापा को पारुल की बात समझ आ गई और उन्होंने बैंक का ऐप डाउनलोड करने को कहा. पारुल ने कुछ ही मिनट में उन के बैंक का ऐप डाउनलेड कर इंस्टौल कर दिया और निर्धारित प्रक्रिया के तहत मोबाइल बैंकिंग का रजिस्ट्रेशन कर पूरी प्रक्रिया समझा दी. अब पापा जहां बैंक जाने से बच गए वहीं वे ऐप के सहारे अपने मोबाइल का बिल, बिजली बिल, डीटीएच रिचार्ज, जैसी सुविधाओं का लाभ भी ले पा रहे हैं.

मोबाइल क्रांति ने सूचना और संचार को न केवल सस्ता सरल व सुलभ बनाया है बल्कि समय की बचत का एक बड़ा माध्यम भी है. आज तमाम उपयोगों में लाए जाने वाले एप्स न केवल घर बैठे खरीदारी की सुविधा उपलब्ध कराते हैं बल्कि होटल बुकिंग, रेल टिकट बुकिंग, हवाई टिकट बुकिंग, कपड़ों की खरीदारी, घर या जरूरी वस्तुओं की खरीदारी, सहित तमाम सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं.

बृजेश एक गारमैंट्स की दुकान चलाते हैं एक दिन वे सुबह परेशान थे, क्योंकि उन की दुकान का टैलीफोन बिल जमा करने की आज आखिरी तारीख थी, लेकिन वे दुकान से निकल नहीं पा रहे थे. ऐसे में जब वे घर लौटे तो बेहद परेशान दिख रहे थे. ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे उन के बेटे ने उन के परेशान होने का कारण पूछा और जान कर बोला, ‘‘पिताजी, इस में घबराने की क्या बात है अपना फोन दीजिए. आप को हर माह लाइन में लग कर बिल जमा करने की मुसीबत से छुटकारा दिला देता हूं. बृजेश के बेटे ने झट पापा का मोबाइल ले कर उस में ऐप डाउनलोड कर दिया और फिर कुछ ही क्षण में टैलीफोन का बकाया बिल जमा भी कर दिया. बेटे द्वारा डाउनलोड किए गए ऐप के माध्यम से अब वे हर माह समय से टैलीफोन का बिल जमा कर देते हैं.

जिम्मेदारी के बोझ तले दबे पेरैंट्स के लिए स्मार्टफोन ऐप बेहद कारगर साबित हो सकते हैं बस, आप रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े एप्स डाउनलोड कर अपने मांबाप की मदद करें.

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जरूरी एप्स जो पेरैंट्स के काम आएं

डिजिटल इंपावरमैंट फाउंडेशन नई दिल्ली में बतौर आईटी विशेषज्ञ कार्यरत आनंद कुमार का कहना है कि आप रोजमर्रा के काम आने वाले एप्स को अपने पेरैंट्स के फोन में डाउनलोड कर उन की जिम्मदारियों को हलका करने में मदद कर सकते हैं, उदाहरणतया एप्स आधारित टैक्सियों के ऐप अपने स्मार्टफोन में इंस्टौल कर आप टैक्सी को बुक कर सकते हैं. ये टैक्सियां वाजिब दाम की होती हैं.

शौपिंग एप्स

आईटी विशेषज्ञ आनंद कुमार के अनुसार इन एप्स की मदद से आप पेरैंट्स के लिए घर बैठे जरूरत का सामान मंगा सकते हैं, जिस से बाजार जाने से छुटकारा मिल जाता है. फ्लिपकार्ड, अमेजान, ओएलऐक्स जैसी तमाम कंपनियां एप्स के सहारे हर जरूरत का सामान होम डिलीवरी के माध्यम से मुहैया करवा रही हैं.

पत्र पत्रिकाएं व समाचार आधारित एप्स

अगर आप के पेरैंट्स पत्रपत्रिकाएं पढ़ने के शौकीन हैं तो उन के लिए न्यूज एप्स बेहद कारगर साबित हो सकते हैं. इस के लिए न्यूज चैनल, अखबारों, पत्रपत्रिकाओं के एप्स लोड कर पेरैंट्स इन खबरों को पढ़ व देख सकते हैं.

लोकेशन आधारित एप्स

कभीकभी पेरैंट्स को किसी लौंग टूर पर जाना पड़े तो उन्हें पता होना चाहिए कि कौन से रास्ते का इस्तेमाल किया जाए, इस के लिए आप उन के फोन में लोकेशन आधारित एप्स लोड करें इन में से कई एप्स जीपीएस सिस्टम से जुड़े होते हैं, जो चलने वाले स्थान से ले कर पहुंचने वाले स्थान की डिटेल डालने के बाद लोकेशन बताते रहते हैं व वाइस व मैप के माध्यम से भी जानकारी देते हैं.

ऐंटरटेनमैंट व स्पोर्ट्स आधारित एप्स

अगर आप के पेरैंट्स क्लासिकल गाने देखने व सुनने के शौकीन हैं तो उन के लिए तमाम एप्स उपलब्ध हैं. इस के अलावा वीडियो, फिल्म, गाने या अन्य जरूरी डाक्यूमैंट्री देखने के लिए यू ट्यूब्स का ऐप चलाने में सब से आसान माना गया है. इस के अलावा एमएस प्लेयर, सावन, बिग फ्लिक्स इत्यादि भी मनोरंजन उपलब्ध कराने का काम करते हैं.

वहीं अगर पेरैंट्स खेल की दुनिया में ज्यादा रुचि रखते हैं तो इस के लिए द स्कोर्ट ऐप कारगर साबित होगा. इस ऐप के सहारे फुटबौल, बास्केटबौल या अन्य खेल प्रतियोगिताओं के लाइव स्कोर व समाचार की जानकारी ली जा सकती है. अगर वे क्रिकेट के शौकीन हैं तो क्रिकवज नाम का ऐप क्रिकेट से जुड़ी जानकारी देने में मददगार साबित हो सकता है.

चैट व वीडियो कौलिंग आधारित एप्स

अगर आप पेरैंट्स से दूर रह कर पढ़ाई या नौकरी कर रहे हैं तो अपने पेरैंट्स से जुड़ाव के लिए उन के चैट आधारित एप्स का सहारा ले सकते हैं. ये न केवल बातचीत को आसान बनाते हैं बल्कि आप के पेरैंट्स की गतिविधियों व लाइव वीडियो दिखाने में भी मददगार साबित होते हैं. लाइव चैटिंग के लिए कुछ प्रमुख एप्स में व्हाट्सऐप, लिंबज, वाइबर, लाइन, वी चैट गिने जाते हैं. इन एप्स के माध्यम से वीडियोचैटिंग के साथसाथ वीडियो कौलिंग की सुविधा भी निशुल्क मिलती है.

यात्रा टिकट के साथी एप्स

अगर आप के पेरैंट्स कहीं यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो ये एप्स उन के लिए एक मार्गदर्शक का काम कर सकते हैं. यात्रा का प्रमुख साधन माना जाने वाला रेल ऐप डाउनलोड कर न केवल घर बैठे टिकट बुक किया जा सकता है बल्कि टे्रनों की स्थिति, गंतव्य इत्यादि की जानकारी भी ली जा सकती है. इस के अलावा हवाई यात्रा टिकट व अन्य तरह की सुविधाओं का लाभ भी लिया जा सकता है.

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स्मार्टफोन में ऐसे करे इंस्टौल

आईटी विशेषज्ञ आनंद कुमार के अनुसार अपने या अपने पेरैंट्स के स्मार्टफोन में जरूरी एप्स डाउनलोड करने के लिए गूगल प्ले स्टोर का सहारा ले सकते हैं. यहां से आप की जरूरत के ज्यादातर एप्स फ्री में डाउनलोड किए जा सकते हैं. प्लेस्टोर में जा कर एप्स से जुड़े कुछ शब्द टाइप करने होते हैं इस के बाद जिस चीज की जरूरत है उन से जुडे़ तमाम एप्स की लिस्ट आ जाती है. इन में से आप अपनी जरूरत के ऐप पर उंगली रख कर डाउनलोडिंग औप्शन चुन सकते हैं. बस, देर किस बात की, आप भी अपने पेरैंट्स की जरूरत के एप्स डाउनलोड कर उन का सहयोग कर सकते हैं.

डौलर का लालच : कैसे सेवकराम को ले डूबा मसाज पार्लर का लालच

लेखक- राजेंद्र शर्मा सूदन

सेवकराम फैक्टरी में मजदूर था. वह 12वीं जमात पास था. घर की खस्ता हालत के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका था, लेकिन उस का सपना ज्यादा पैसा कमा कर बड़ा आदमी बनने का था.

फैक्टरी में लंच टाइम हो गया था. सेवकराम सड़क के किनारे बने ढाबे पर खाना खा रहा था. उस के सामने अखबार रखा था. उस के एक पन्ने पर छपे एक इश्तिहार पर उस की निगाह टिक गई.

इश्तिहार बड़ा मजेदार था. उस में नए नौजवानों को मौजमस्ती वाले काम करने के एवज में 20-25 हजार रुपए हर महीने की कमाई लिखी गई थी. सेवकराम मन ही मन हिसाब लगाने लगा. इस तरह तो वह 5 साल तक भी दिल लगा कर काम करेगा, तो 8-10 लाख रुपए आराम से कमा लेगा.

इश्तिहार में लिखा था कि भारत के मशहूर मसाज पार्लर को जवान लड़कों की जरूरत है, जो विदेशी व भारतीय रईस औरतों की मसाज कर सकें. अच्छा काम करने वाले को विदेशों के लिए भी बुक किया जा सकता है.

इतना पढ़ते ही सेवकराम की आंखों के सामने रेशमी जुल्फें लहराती गोरे गुलाबी तराशे बदन वाली गोरीगोरी विदेशी औरतें उभर आईं, जिन्हें कभी पत्रिकाओं में, फोटो में या फिल्मों में देखा था. अगर उसे काम मिल गया, तो ऐसी खूबसूरत हसीनाओं के तराशे गए बदन उस की बांहों में होंगे. ऐसे में तो उस की जिंदगी संवर जाएगी. फैक्टरी में सारा दिन जान खपाने के बाद उसे 3 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिल पाते. मिल मालिक हर समय काम कम होने का रोना रोता रहता है.

सेवकराम ने उसी समय इश्तिहार के नीचे लिखा मोबाइल नंबर नोट किया और तुरंत फैक्टरी की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

सेवकराम सीधा दफ्तर गया और बुखार होने का बहाना बना कर 3 दिन की छुट्टी ले ली. इस के बाद वह बाजार गया. वहां पर उस ने 2 जोड़ी नए कपडे़ और जूते खरीदे. वह जब बड़े घरानों की औरतों के सामने जाएगा, तो उस के कपड़े भी अच्छे होने चाहिए.

सेवकराम शाम तक सपनों में डूबा बाजार में घूमता रहा. उस का कमरे पर जाने को मन नहीं हो रहा था. रात का खाना भी उस ने बाहर ढाबे पर ही खाया. वह देर रात कमरे पर गया.

कमरे में 4-5 आदमी एकसाथ रहते थे. उस के तमाम साथी सो गए थे. वह भी अपनी चारपाई पर लेट गया. उस ने अपने साथ वाले लोगों का जायजा लिया कि गहरी नींद में सो गए हैं या नहीं. जब उसे तसल्ली हो गई, तो उस ने इश्तिहार वाला फोन नंबर मिलाया और बात की.

दूसरी तरफ से किसी लड़की की उखड़े हुए लहजे में आवाज गूंजी, ‘इतनी रात गुजरे कौन बेवकूफ बोल रहा है? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है क्या? सुबह तो होने दी होती… क्या परेशानी है?’

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‘‘मैडमजी, माफ करना. मैं एक परदेशी हूं. हम एक कमरे में 4-5 लोग रहते हैं. मैं आप से चोरीछिपे बात करना चाहता था, इसलिए उन के सोने का इंतजार करता रहा. मैं ने आप का इश्तिहार अखबार में पढ़ा था. मैं आप के मसाज पार्लर में काम करना चाहता हूं. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’ सेवकराम ने बेहद नरम लहजे में कहा था. इस से दूसरी तरफ से बोल रही लड़की की आवाज में भी मिठास आ गई थी. ‘ठीक है, तुम ने हमारा इश्तिहार पढ़ा होगा. हमारे मसाज पार्लर की कई जवान औरतें, लड़कियां हमारी ग्राहक हैं, जिन की मसाज के लिए हमें जवान लड़कों की जरूरत रहती है. तुम बताओ कि मर्दों की मसाज करोगे या जवान औरतों की?’

यह सुनते ही सेवकराम रोमांचित हो उठा. उसे तो ऐसा महूसस हुआ, जैसे उसे नौकरी मिल गई है. उस की आवाज में जोश भर उठा. वह शरमाते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, मेरी उम्र 30 साल है. मुझे जवान औरतों की मसाज करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करूंगा.’’

‘ठीक है, तुम्हें काम मिल जाएगा. बस, इतना ध्यान रखना होगा कि उस समय कोई शरारत नहीं होनी चाहिए, वरना नौकरी से निकाल दिए जाओगे,’ दूसरी तरफ से बेहद सैक्सी अंदाज में जानबूझ कर चेतावनी दी गई, तो सेवकराम रोमांटिक होते हुए बोला, ‘‘जी, मैं अपना काम समझ कर करूंगा. मेरे मन में उन के लिए कोई गलत भावना नहीं आएगी.’’

‘ठीक है, तुम्हारा नाम मैं रजिस्टर में लिख लेती हूं. कल दिन में तुम करिश्मा बैंक में 10 हजार रुपए हमारे खाते में जमा करा दो. रुपए जमा होते ही तुम्हारा एक पहचानपत्र भी बनाया जाएगा. जिसे दिखा कर तुम देश के किसी भी शहर में काम के लिए जा सकते हो,’ उधर से निर्देश दिया गया.

यह सुन कर सेवकराम कुछ परेशान हो गया और बोला, ‘‘मैडमजी, 10 हजार रुपए तो कुछ ज्यादा हैं.’’ ‘ठीक है, फिर हम तुम्हारा पहचानपत्र नहीं बनाएंगे. अगर तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया, तो क्या जेल जाना पसंद करोगे?’

‘‘क्या ऐसा भी हो जाता है मैडमजी?’’ सेवकराम ने थोड़ा घबराते हुए पूछा.

‘ऐसा हो जाता है सेवकरामजी. ये परदे में करने वाले काम हैं. पुलिस पकड़ लेती है. बोलो, क्या तुम पुलिस के चक्कर में फंसना चाहते हो?’

‘‘ठीक है मैडमजी, मैं कल ही 10 हजार रुपए जमा करा दूंगा. बस, आप मेरा पहचानपत्र बनवा कर तुरंत काम पर बुलाइए. मैं ज्यादा दिन बेरोजगार नहीं रह सकता,’’ सेवकराम ने कहा, तो फोन कट गया.

उस रात सेवकराम सो नहीं सका. उस के दिलोदिमाग में खूबसूरत, जवान औरतों के दिल घायल करते हुए जिस्मों के सपने छाए रहे. सारी रात ऐसे ही गुजर गई.

अगले दिन सेवकराम सीधे बैंक पहुंचा और अपनी पासबुक से 20 हजार रुपए निकाले. 10 हजार रुपए तो उस ने रात फोन पर बताए गए खाते में जमा करा दिए और बाकी के 10 हजार रुपए अपने खर्चे के लिए रख लिए. अब वह लाखों रुपए कमाएगा.

सेवकराम को तो अब मसाज पार्लर के दफ्तर से फोन आने का इंतजार था. इसी इंतजार में 4-5 दिन गुजर गए, मगर उस औरत का फोन नहीं आया.

सेवकराम को अब बेचैनी होना शुरू हो गई. उस ने 10 हजार नकद खाते में जमा कराए थे. इंतजार की घडि़यां काटनी मुश्किल होती हैं, फिर भीउस ने 7 दिनों तक इंतजार किया.

आखिर में सेवकराम ने ही फोन कर के पूछा, तो दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज गूंजी, मगर वह आवाज पहले वाली नहीं थी. उस के बात करने का लहजा जरा कड़क और गंभीर था.

‘‘क्या बात है मैडमजी, मुझे 10 हजार रुपए आप के खाते में जमा कराए 7-8 दिन गुजर गए हैं. अभी मेरा परिचयपत्र भी नहीं मिला है. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

‘आप बेफिक्र रहें. आप का परिचयपत्र तैयार है. हमारी मसाज पार्लर कमेटी ने एक टीम बनाई है, जिस में आप का नाम भी शामिल है. इस टीम को विदेशों में भेजा जाएगा.’

सेवकराम खुशी से उछल पड़ा. वह चहकते हुए बोला, ‘मैडमजी, जल्दी से टीम को काम दिलाओ. विदेश में तो काम करने के डौलर मिलेंगे न?’’

‘हां, वहां से तो तुम लोगों की पेमेंट डौलरों में होगी,’ औरत ने बताया, तो थोड़ी देर के लिए सेवकराम सीने पर हाथ रख कर हिसाब लगाता रहा. आंखों के सामने नोटों के बंडल चमकते रहे. अपनी बेताबी जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब देर क्यों की जा रही है? हम तो काम के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं.’’

‘आप सब के परिचयपत्र मंजूरी के लिए विदेश मंत्रालय भेजे जाने हैं. अगर भारत सरकार से मंजूरी मिल गई, तो तुम लोग किसी भी देश में बेधड़क हो कर काम कर सकते हो, मगर भारत सरकार की मंजूरी दिलाने के लिए 20 हजार रुपए का खर्चा आएगा. आप को 20 हजार रुपए उसी खाते में जमा कराने होंगे.’

‘‘मैडमजी, इतनी बड़ी रकम तो बहुत ज्यादा है. हम तो गरीब आदमी हैं,’’ सेवकराम की तो मानो हव  निकल गई थी. उस का जोश ढीला पड़ने लगा था.

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‘हम मानते हैं कि 20 हजार रुपए ज्यादा हैं, मगर यह सोचो कि जब तुम अलगअलग देशों में जाओगे, वहां से वापस आने पर लाखों रुपए ले कर आओगे. सोच लो, अगर विदेश नहीं जाना चाहते हो, तो रहने दो,’ औरत ने दूसरी तरफ से कहा, तो सेवकराम पलभर के लिए खामोश रहा, फिर जल्दी ही वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 हजार रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगा. बस, मेरा काम सही होना चाहिए.’’

सेवकराम ने ठंडे दिमाग से सोचा, तो उसे यह काम फायदे का लगा. बेशक, 20 हजार रुपए उस के पास नहीं थे, फिर भी अगर उधार उठा कर लगा देगा, तो बाहर के पहले टूर में लाखों रुपए वारेन्यारे कर देगा, इसलिए 20 हजार रुपए उन के खाते में जमा कराना ही फायदे में रहेगा.

सेवकराम ने इधरउधर से रुपए उधार लिए और उसी खाते में जमा करा दिए. अब वह इंतजार करने लगा. उसे यकीन था कि उसे बुलाया जाएगा.

सेवकराम को इंतजार करतेकरते 10 दिन गुजर गए. सेवकराम के मन में तमाम तरह के खयाल आ रहे थे. वह इस मुगालते में था कि दफ्तर वाले खुद फोन करेंगे. वह महीने भर से काम छोड़ कर बैठा था. जमापूंजी खर्च हो चुकी थी. ऊपर से 20 हजार रुपए का कर्जदार और हो गया था.

काफी इंतजार करने के बाद सेवकराम ने उसी फोन नंबर पर फोन किया, तो मोबाइल बंद मिला. काफी कोशिश करने के बाद भी उस नंबर पर बात नहीं हुई. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

वह उसी पल उस बैंक में गया, जहां अजनबी खाते में उस ने 30 हजार रुपए जमा कराए थे. वहां से पता चला कि वह खाता वहां से 5 सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में किसी बैंक का था. अब उस खाते में महज 4 रुपए कुछ पैसे बाकी थे.

सेवकराम थाने में गया, लेकिन पुलिस ने उस की शिकायत लिखने की जरूरत नहीं समझी. थकहार कर वह कमरे पर लौट आया. विदेशों में जा कर खूबसूरत औरतों की मसाज करने के एवज में लाखों डौलर कमाने के चक्कर में सेवकराम ने अपनी जमापूंजी गंवा दी, साथ ही 20 हजार रुपए का कर्जदार भी हो गया. लालच में वह न तो घर का रहा और न घाट का.

Short Story: तोहफा अप्रैल फूल का

लेखक- नरेश कुमार पुष्करना

अप्रैल की पहली तारीख थी. चंदू सुबह से ही सब से मूर्ख बननेबनाने की बातें कर रहा था. इसी कशमकश में वह स्कूल पहुंचा, लेकिन स्मार्टफोन पर बिजी हो गया. हमेशा गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया में खोया रहने वाला चंदू स्मार्टफोन से व्हाट्सऐप पर गुडमौर्निंग के मैसेजेस कौपीपेस्ट कर रहा था कि अचानक व्हाट्सऐप पर एक मैसेज आया. इस मैसेज को पढ़ने और इंप्लीमैंट करने के बाद जो नतीजा उस के सामने आया उस से वह ठगा सा रह गया. दरअसल, किसी ने उसे अप्रैल फूल बनाया था. वह खुद पर खिन्न था लेकिन तभी उसे खुराफात सूझी. अत: उस ने भी अपने सभी दोस्तों को अप्रैल फूल बनाने की सोची और अपने सभी कौंटैक्ट्स पर उस मैसेज को कौपी कर दिया.

उस के कौंटैक्ट्स में उस की क्लास टीचर अंजू मैडम का नंबर भी था, सो मैसेज उन के नंबर पर भी फौरवर्ड हो गया. मैसेज में लिखा था, ‘क्या आप किसी अमित कुमार को जानते हैं? वह कह रहा है कि वह आप को जानता है. उसे आप का फोन नंबर दूं या आप को उस का फोटो सैंड करूं. मेरे पास उस का फोटो है. आप बोलें तो दूं नहीं तो नहीं.’

संयोग से मैडम के वुडबी का नाम भी अमित था, सो उन्हें बड़ी हैरानी हुई. उन्होंने आननफानन में रिप्लाई किया कि फोटो भेज दो और उन्हें मेरा नंबर भी दे दो, लेकिन जवाब में चंदू ने उन्हें फोटो भेजा तो वे ठगी रह गईं. फिर नीचे लिखे मैसेज को पढ़ कर हैरान हुईं. लिखा था ‘अप्रैल फूल बनाया.’ उस फोटो में अंगरेजी फिल्म ‘द मम्मी’ के प्रेतात्मा वाले करैक्टर का भद्दा चित्र था. मैम को चंदू पर बहुत गुस्सा आया. सो उन्होंने उसे सबक सिखाने की सोची. ‘अपने से बड़ों से मजाक करता है. इसे सबक सिखाना ही होगा.’ लेकिन साथ ही वे संदेश भी देना चाहती थीं कि मजाक हमउम्र से ही करे.

चंदू, जिस का पूरा नाम चंद्रप्रकाश था, 11वीं कक्षा का छात्र था. पढ़ाई में निखद लेकिन बात बनाने में आगे. तिस पर उसे छोटेबड़े का भी लिहाज न था. हमेशा गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया में ही खोया रहने वाला चंदू स्मार्टफोन मिलने के बाद तो और खो गया था. हर समय, चैटिंग, व्हाट्सऐप, यूट्यूब में लगा रहता. प्रार्थना के बाद जब सब क्लासरूम में आए तो क्लास टीचर अंजू क्लास में आते ही बोलीं, ‘‘आज सुबह से ही तुम सब एकदूसरे को अप्रैल फूल बना रहे हो. चलो, मैं भी तुम्हें खेलखेल में फन के रूप में पढ़ाती हूं. मैं इतिहास विषय से कुछ प्रश्न पूछूंगी, जो सब से ज्यादा सही उत्तर देगा उसे इनाम दिया जाएगा. शर्त यह है कि वह किसी तरह मुझे अप्रैल फूल भी बनाए.’’

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मैम ने पहला प्रश्न पूछा, ‘‘बाबर का जन्म कब हुआ था?’’ सभी छात्र शून्य में देखने लगे लेकिन पीछे बैठा चंदू झट से बोला, ‘‘14 फरवरी, 1483.’’

‘‘सही जवाब,’’ मैम ने कहा और अगला प्रश्न दागा, ‘‘क्रीमिया का युद्ध कब से कब तक चला?’’

इतिहास की तिथियां किसे याद रहती हैं. अत: सभी चुप थे. तभी चंदू फिर बोला, ‘‘जुलाई 1853 से सितंबर 1855 तक.’’

‘‘बिलकुल सही,’’ एक बार फिर तालियां बजीं. तभी प्रीति बोल पड़ी, ‘‘मैम आप के बालों पर चौक लगा है.’’

‘‘हां, मुझे पता है,’’ कह कर वे चुप हो गईं. दरअसल, प्रीति ने मैम को अप्रैल फूल बनाना चाहा था. फिर मैम ने अगला प्रश्न पूछा, ‘‘कुतुबमीनार किस ने बनवाई थी?’’ इस बार कईर् छात्रों के हाथ खड़े थे, लेकिन अंजू मैडम ने जानबूझ कर चंदू से ही पूछा तो उस ने भी सटीक उत्तर बता दिया, ‘‘गुलाम वंश के संस्थापक कुतबुद्दीन ऐबक ने.’’

‘‘सही उत्तर,’’ कह कर मैम ब्लैक बोर्ड की ओर मुड़ीं तो राहुल बोल पड़ा, ‘‘मैम, आप की साड़ी के पल्लू पर छिपकली है.’’

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अंजू मैम जानती थीं कि अप्रैल फूल बनाया जा रहा है, सो बोलीं, ‘‘तुम हटा दो.’’ अब मैम जो भी प्रश्न पूछतीं पीछे डैस्क पर बैठा चंदू उस का सही जवाब बताता. 10 में से केवल एक सवाल का उत्तर अन्य छात्र ने दिया. बाकियों ने सिर्फ अप्रैल फूल बनाने की नाकाम कोशिश की. सभी छात्र इस बात से भी हैरान थे कि फिसड्डी चंदू आज इतनी आसानी से बिलकुल सटीक उत्तर कैसे दे रहा है? अंत में नतीजा सुनाती अंजू मैम बोलीं, ‘‘आज के इस चैलेंज में ज्यादा से ज्यादा सवालों के सही जवाब चंदू ने दिए और अप्रैल फूल भी उसी ने बनाया,’’ कहती हुई मैम चंदू की सीट पर गईं और उस के हाथ से मोबाइल छीनती हुई बोलीं, ‘‘देखो, यह सभी प्रश्नों के उत्तर नैट से गूगल सर्च कर के दे रहा था.’’

फिर वे चंदू की ओर मुखातिब होती हुई बोलीं, ‘‘चंदू, आखिरी पीरियड में आ कर मुझ से अपना मोबाइल और अप्रैल फूल का तोहफा ले जाना.’’ सभी बच्चे हैरान थे कि चंदू ने बैठेबैठे खेलखेल में इनाम जीत लिया. सभी को इस बात से चंदू से ईर्ष्या थी, लेकिन चंदू बहुत खुश था. आखिरी पीरियड में चंदू अंजू मैम के पास गया तो उन्होंने उसे एक बड़ा सा डब्बा थमा दिया, जिसे बहुत ही सुंदर पैकिंग से पैक किया हुआ था. ऊपर चिट लगी थी, ‘‘चंदू को अप्रैल फूल का तोहफा मुबारक.’’ चंदू ने खुशीखुशी तोहफा लिया और क्लासरूम में आ कर बड़े उत्साह से खोलने लगा. तोहफे का डब्बा खोलते समय वह फूला नहीं समा रहा था. चंदू ने पैकिंग पेपर हटाया औैर डब्बा खोला. वह तोहफा देखने को खासा उत्सुक था. उस के आसपास अन्य छात्र भी इकट्ठे हो तोहफा देखने को उत्सुक दिखे. डब्बे को खोलने पर उसे अंदर एक और छोटा डब्बा मिला. चंदू हैरान था. अब इस डब्बे को खोला तो अंदर एक और डब्बा था. चंदू नरवस हो गया. डब्बे में डब्बा खोलते उस के पसीने छूट गए. वह सोचने लगा, ‘मैम ने अच्छा तोहफा दिया है कि खोलते रहो.’

एक छात्र बोला, ‘‘लगता है चंदू को मैम ने अप्रैल फूल बनाया है, डब्बे में डब्बा ही खुलता जा रहा है.’’ ‘हां, शायद अप्रैल फूल के तोहफे में अप्रैल फूल ही बनाया है मैम ने,’ सोचता हुआ चंदू डब्बे खोलता गया लेकिन अंत में जो डब्बा मिला उसे पा कर वह फूला न समाया. यह अत्यंत महंगे मोबाइल फोन का डब्बा था.  चंदू खुश हो गया. उसे लगा मैम ने इतना महंगा फोन गिफ्ट किया है, लेकिन ज्यों ही उस ने मोबाइल फोन का डब्बा खोला, उस में मोबाइल के बजाय एक पत्र पा कर हैरान हुआ. फिर पत्र निकाल कर पढ़ने लगा. लिखा था,‘चंदू तुम्हें अप्रैल फूल का तोहफा मुबारक हो. तुम ने सुबह मुझे मैसेज कर अप्रैल फूल बनाया, मुझे बहुत पिंच हुआ. संयोग से मेरे वुडबी का नाम भी अमित है सो मैसेज का संबंध उन से जुड़ा, लेकिन बाद में तुम्हारे द्वारा भेजा ‘ममी’ का फोटो देख दिल धक्क रह गया. तुम्हें मजाक करते समय यह भी खयाल नहीं रहा कि तुम मजाक किस से कर रहे हो. उस की उम्र क्या है. तुम से संबंध क्या है. तुम्हें इस तरह की हरकतें अपने हमउम्र के साथ ही करनी चाहिए, बड़ों के  साथ नहीं. ‘दूसरे, तुम ने स्कूल में मोबाइल लाने की गलती की, क्योंकि स्कूल में मोबाइल अलाउड नहीं होता. तुम जानते ही हो. तिस पर तुम ने गूगल सर्च कर कर के प्रश्नों के उत्तर दिए और मुझे फूल बनाया. इस तरह तुम सटीक उत्तर दे पाए परंतु क्या खुद को परख पाए? परीक्षा खुद को परखने का पैमाना है. स्कूल परीक्षा में मोबाइल भी नहीं होगा, तब क्या करोगे? ‘समय से चेत जाओ और गैजेट्स की वर्चुअल दुनिया से बाहर आ कर ऐक्चुअल में विचरण करो. गैजेट्स का सही इस्तेमाल सीखो. नैट से नकल के बजाय हैल्प लो और अपने नोट्स बनाओ. परीक्षा की तैयारी करो. मैं ने पहले भी जब क्लास टैस्ट लिए हैं तुम्हें मोबाइल सर्च करते पाया है, पर तुम्हारी बेइज्जती न हो इसलिए चुप थी. आज का नाटक भी तुम्हारे कारण किया. तभी मैं तुम से ही सब प्रश्न पूछ रही थी और तुम उत्साह में नैट से देख कर उत्तर देते रहे. मेरा फर्ज था समय रहते तुम्हें चेताऊं. आगे से मजाक हमउम्र लोगों से करना साथ ही पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करो इस से गैजेट्स का सही इस्तेमाल भी होगा और तुम्हारा भला भी. हैप्पी अप्रैल फूल.

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‘तुम्हारी क्लास टीचर

‘अंजू.’

चंदू ने पत्र फोल्ड कर के जेब में रख लिया लेकिन उस में लिखी बातों ने उस के हृदय को झकझोर कर रख दिया. सभी साथी भी उसे हमदर्दी की नजरों से देख रहे थे. उसे सबक मिल गया था. ‘वाकई अगर वह डिजिटल दुनिया से निकल कर ऐक्चुअल तैयारी करे तो परीक्षा में अच्छे अंक ही नहीं लाएगा बल्कि टौप भी करेगा. अगली परीक्षा में वह इन बातों पर जरूर अमल करेगा और अप्रैल फूल के इस तोहफे को जीवन का टर्निंग पौइंट मान कर संभाल कर रखेगा.’ यह संकल्प लेते हुए चंदू ने पत्र जेब में डाला और नैट पर परीक्षा सामग्री सर्च कर डायरी में नोट्स बनाने बैठ गया.

मां की 33 साल पुरानी साड़ी पहनकर दुल्हन बनीं थीं Yami Gautam, फोटोज वायरल

 बीते दिनों कोरोनावायरस के कहर के बीच बौलीवुड एक्ट्रेस यामी गौतम ने उरी फिल्म के डायरेक्टर आदित्य धर से शादी की थी, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुए थे. फैंस ने जहां यामी को शादी की बधाई दी थी तो वहीं उनके सिंपल लुक की तारीफें भी की थीं. लेकिन क्या आपको पता है यामी का शादी का लुक बेहद खास था. यह कोई करोड़ों की साड़ी नहीं बल्कि यामी की मां की 33 साल पुरानी साड़ी थी. आइए आपको दिखाते हैं यामी के शादी के हर फंक्शन के खास लुक्स की झलक…

मां की साड़ी को बनाया शादी का लुक

 

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जहां एक्ट्रेसेस अपनी शादी के लिए महंगे-महंगे लहंगे पहने नजर आती हैं तो वहीं एक्ट्रेस यामी गौतम की शादी का हर लुक बेहद सिंपल लेकिन खास था. दरअसल, यामी ने अपने ब्राइडल लुक के लिए अपनी मां अंजलि की 33 साल पुरानी ट्रेडीशनल सिल्क साड़ी पहनी थी, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी और उनकी नानी का तोहफे में दिया हुआ मैचिंग रेड दुपट्‌टा कैरी किया था.

 

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शादी के बाद कुछ यूं था लुक

 

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शादी के बाद भी यामी गौतम हरे रंग की सिल्क की साड़ी में नजर आईं, जिसके साथ चेन पैटर्न वाले इयरिंग्स और हाथों में लाल चूड़ा यामी के लुक को बेहद खूबसूरत बना रहा था.

 

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हल्दी में भी था सिंपल लुक

 

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हल्दी के लिए यामी गौतम का लुक बेहद सिंपल था. पीले कलर के सूट में रेड कलर का प्रिंटेड दुपट्टा एक्ट्रेस यामी गौतम के लुक पर चार चांद लगा रहा था. वहीं इस लुक के साथ यामी ने फ्लोरल ज्वैलरी कैरी की थी.

मेहंदी में था डिफरेंट लुक

 

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जहां दुल्हन मेहंदी में हरे कलर को पहनना पसंद करती हैं तो वहीं यामी गौतम ने औरेंज कलर का हल्की कढ़ाई वाला सूट चुना था. इसके साथ हैवी झुमके बेहद खूबसूरत लग रहे थे.

 

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ग्रैंड पेरैंट्स का साथ है जरूरी

एक शाम को सैर पर निकली तो पार्क के एक कोने में कुछ नन्हेंमुन्हे बच्चे आपस में बातें कर रहे थे. उन की नटखट हरकतें और मीठी आवाज ने बरबस ही मेरा ध्यान उस ओर आकर्षित कर लिया.

एक बच्चा कह रहा था, ‘फ्रैंड्स, मेरी दादी के मोबाइल में ढेर सारे गेम्स हैं. जब मैं बिना नखरे किए सारा दूध पी लेता हूं तो दादी मुझे अपने मोबाइल में गेम्स खेलने देती हैं.’

दूसरे ने कहा, ‘मेरी नानी मुझे जब तक 5-6 कहानियां नहीं सुनाती हैं, मैं तो सोता ही नहीं हूं.’

तभी एक प्यारी सी बच्ची इतराते हुए बोल पड़ी, ‘अरे, तेरी दादी के पास तो सिर्फ गेम्स हैं पर मेरी दादी के मोबाइल में  तो गेम्स के साथसाथ ढेर सारे गाने भी हैं. जब मैं बोर होने लगती हूं तो दादी गाने लगा देती हैं और मैं डांस करने लग जाती हूं. अगर उस समय दादाजी होते हैं तो वे अपने मोबाइल से मेरा डांसिंग पोज में फोटो ले कर पूरे घर को दिखाते हैं. तब बहुत मजा आता है.’

उन की भोलीभाली बातों ने सहसा मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी जब हम चारों भाईबहन दादीनानी की कहानियां सुनते हुए मीठी नींद में सो जाया करते थे. उन कहानियों को सुनते समय हम उन से न जाने कितने ऊलजलूल तरह के प्रश्न किया करते थे तथा उन प्रश्नों के जवाब भी हमें बड़े प्यार से मिल जाया करते थे. उस जमाने में शायद बचपन में हर मर्ज की एक दवा नजर आती थी, अपनी समस्या को ग्रैंडपेरैंट्स के साथ शेयर करना. पर कभीकभी दादाजी से थोड़ा डर भी लगता था.

आज भागदौड़ की जिंदगी में अधिकांश बच्चे अपने मम्मीपापा के साथ दादादादी या नानानानी से दूर रहते हैं और पूरे साल में चंद दिनों के लिए ही उन से मिल पाते हैं. हमारी जीवनशैली और जमाना चाहे कितना भी बदल जाए पर हमारी तरह हमारे बच्चों को भी ग्रैंडपेरैंट्स की जरूरत है. आइए बात करते हैं कुछ बच्चों और बड़ों से कि उन की जिंदगी में ग्रैंडपेरैंट्स अहम क्यों हैं.

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लाड़प्यार की अनुभूति

कुश्ती के शौकीन 50 वर्षीय दीपक शरण का कहना है, ‘‘सचमुच दादादादी या नानानानी शब्द के साथ एक लाड़प्यार और अपनेपन की अनुभूति जुड़ी होती है. ऐसी बात नहीं है कि मम्मीपापा बच्चों को प्यार नहीं करते पर दादादादी का लाड़प्यार कुछ खास ही होता है. मैं ने सुबहशाम ब्रश करना, सही ढंग से चप्पल पहनना और कसरत करना सब अपने दादाजी से ही सीखा है.’’

28 साल की मालविका अपने लंबे बालों को लहराते हुए कहती है, ‘‘मेरे इतने सुंदर और स्वस्थ बालों का राज मेरी दादी हैं, जिन्होंने न केवल मुझे अपने बालों की सही ढंग से देखभाल करना सिखाया बल्कि पत्रपत्रिकाओं से कई तरह के हेयरस्टाइल सीख कर मुझे सजाया भी है.’’

एक उच्च पुलिस अधिकारी मानते हैं कि उन्हें बचपन की कईर् ऐसी बातें याद हैं जो उन्होंने अपने ग्रैंडपेरैंट्स से सीखीं और जो आज उन की कामयाबी का  हिस्सा बन चुकी हैं. वे कहते हैं कि आज के एकल परिवार के जमाने में जिन बच्चों को अपने दादादादी, नानानानी के साथ रहने का मौका मिला हुआ है, वे कुछ बने या न बनें पर एक बेहतर इंसान अवश्य बनेंगे.

सुरक्षित होने का एहसास

हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जो बचपन में गलती करने पर पापामम्मी की डांटफटकार से बचने के लिए अपने ग्रैंडपेरैंट्स की गोद में न छिपा हो. कई बार मातापिता के कामकाजी होने से बच्चों के कोमल हृदय में इस तरह की गांठें भी पड़ जाती हैं कि मम्मीपापा इतने व्यस्त रहते हैं कि मेरे लिए उन के पास टाइम ही नहीं बचता है. पर घर में इन बुजुर्गों के रहने से बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होता और उन के मन में सहज ही सुरक्षा का भाव आ जाता है.

बच्चों के साथसाथ उन के मातापिता भी चिंतामुक्त रहते हैं कि बच्चे घर में किसी अपने के पास हैं. कई लोगों का मानना है कि बुजुर्ग वटवृक्ष के समान होते हैं जिन की छत्रछाया में रहना एक सुखद अनुभव कराता है.

एक प्रसिद्ध कहावत है, मूलधन से सूद ज्यादा प्यारा होता है. इस संबंध में रिटायर्ड जनरल चड्ढा का कहना है, ‘‘सचमुच ग्रैंडपेरैंट्स को अपने ग्रैंडचिल्ड्रेन से ज्यादा लगाव महसूस होता है. शायद इसलिए कि बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ति माना जाता है.’’ अपने अनुभव के आधार पर वे कहते हैं, ‘‘अपने बच्चों के समय पर जब आप दादानाना बनने की उम के होते हैं तब तक रिटायरमैंट का समय आ जाता है. जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं तथा समय की कमी रहती है, चाहते हुए भी समय निकालना संभव नहीं होता. जिम्मेदारियां भी काफी हद तक कम हो जाती हैं. तब तक समय, अनुभव तथा धैर्य भी पर्याप्त मात्रा में हमारे अंदर आ जाता है. ऐसे में बच्चों की बातें सुनना, उन की मासूम परेशानियों को समझना और उन के साथ खेलना बहुत सुकून देता है.’’

निर्मला देवी, जो रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं, का मानना है कि आज के पेरैंट्स की दिनचर्या इतनी व्यस्त होती है कि उन्हें खुद भी समय में बंधना पड़ता है और वे बच्चों को भी रूटीन में बांधना चाहते हैं. ऐसे में ग्रैंडपेरैंट्स का साथ होना बच्चे के विकास में काफी लाभदायक सिद्ध होता है.

ब्रिटेन में हुए एक शोध ने प्रमाणित कर दिया है कि बच्चों के प्रारंभिक विकास के लिए परिवार के बड़ेबुजुर्गों का सान्निध्य बहुत जरूरी होता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि डिप्रैशन होने का खतरा उन बच्चों में ज्यादा होता है जो एकल परिवार में रहते हैं.

मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है कि बड़े या संयुक्त परिवार का अर्थ होता है चौबीसों घंटे हर किसी का साथ. इस स्थिति में बच्चों के मन में अकेलेपन और असुरक्षा की भावना उत्पन्न नहीं होती है. टैंशन या परेशानी के समय भी किसी न किसी का साथ मिल जाता है, जो उन्हें डिप्रैशन में आने की विषम परिस्थिति से बचाता है. जिन बच्चों को अपने बुजुर्गों से ज्यादा लगाव होता है वे बच्चे अपेक्षाकृत अधिक लविंग, केयरिंग और आत्मविश्वास से भरे होते हैं.

तालमेल जरूरी

बाल संस्था से जुड़ी आशा किरण का मानना है कि बच्चे दादादादी या नानानानी के नजदीक रह कर उन के पास बैठ कर सहज रूप में पीठ पर, सिर पर प्यारदुलार से हाथ फेरते हुए किस्से कहानियों, अनुभवों और बतरस का मजा लेते हुए जानेअनजाने जितना सीख सकते हैं, उतना पुस्तकों, शिक्षकों, टीवी के कार्यक्रमों और अपने व्यस्त मातापिता से नहीं सीख सकते. ग्रैंडपेरैंट्स के पास अनुभव और ज्ञान का खजाना होता है. अपने अनुभवों के आधार पर ही कभी वे एक दोस्त की तरह बच्चों के साथ राजदार बनते हैं तो कभी उन की परेशानियों में काउंसलर की भूमिका निभाते हैं.

परिवार, मातापिता और बच्चों के खुद के बचपन से जुड़ी कई रोचक और ज्ञानभरी बातें बच्चों को बुजुर्गों से ही ज्ञात होती हैं. साथसाथ रहने से पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच एक सामंजस्य स्थापित होता है जो दोनों पीढि़यों के लिए आनंदायक, लाभदायक व सुखमय साबित होता है. बच्चे प्यारदुलार के साथ जो कुछ बड़ेबुजुर्गों से सीखतेसमझते हैं वे उन के भावी जीवन के संतुलित विकास में सहायक साबित होता है.

दूसरा पहलू भी

हर तथ्य  के 2 पहलू होते हैं. ऐसे में यहां भी स्थिति कभीकभी विपरीत भी हो जाती है. पुरानी परंपराओं के कट्टर समर्थक तथा सिर्फ अपने विचारों व आदर्शों को ही उचित मानने वाले ग्रैंडपेरैंट्स के साथ रहने पर पेरैंट्स तथा बच्चों को कई बार कई मुश्किल स्थितियों से भी गुजरना पड़ता है. सब से प्रमुख कारण है बच्चों के पालनपोषण को ले कर टकराव की स्थिति का होना.

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बच्चों के पालनपोषण के तरीके में समयसमय पर या पीढ़ीदरपीढ़ी कुछ न कुछ बदलाव होते रहते हैं. जो तरीके कुछ समय पूर्व सही थे, वे गलत हो सकते हैं. या गलत तरीके, सही माने जा सकते हैं. ऐसे में बुजुर्गों और मातापिता के बीच इस विषय पर मतभेद भी उत्पन्न हो जाता है.

3 साल की बेटी की मां ज्योति को अपनी सास से इस बात पर अनबन हो जाती है कि बच्ची की मालिश बेबी औयल से हो या सरसों तेल से अथवा शाकाहारी खाना खिलाया जाए या मांसाहारी. आदर्श, परंपरा, संस्कार आदि बातों में बुजुर्गों को लगता है कि उन का अनुभव सही है. सो, बच्चों के मामले में वे सही हैं और पेरैंट्स को उन की बात माननी चाहिए. जबकि मातापिता बच्चों को बदलते समय की धारा व माहौल के अनुसार ढालने की छूट भी देना चाहते हैं. इस कारण कई बार कितने मातापिता बच्चों को ग्रैंडपेरैंट्स के पास छोड़ने के बजाय किसी हौबी क्लास में भेजना या आया अम्मा के पास रखना ज्यादा बेहतर समझते हैं.

होना यह चाहिए कि ग्रैंडपेरैंट्स और पेरैंट्स आपस में खुल कर बातचीत करें और ग्रैंडपेरैंट्स भी इसे अन्यथा न लें. कई बार बुजुर्गों के ज्यादा प्यारदुलार का बच्चे नाजायज फायदा भी उठाने लगते हैं. वे अपनी हर बात मनवाने के लिए दादादादी या नानानानी का सहारा लेना शुरू कर देते हैं. ऐसे में पेरैंट्स और ग्रैंडपेरैंट्स दोनों को आपसी अंडरस्टैंडिंग बना कर इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि बच्चे की जिद और मनमाने व्यवहार का नियंत्रण में रखा जा सके.

कई लोगों से बातचीत करने पर सब ने यह स्वीकार किया कि दुनिया कितनी भी बदल जाए, ग्रैंडपेरैंट्स के मन में बच्चों की खुशी ही सर्वोपरि होती है चाहे वह खुशी अपने बच्चों की हो या फिर बच्चों के बच्चों की. सो, अगर विचारों में थोड़ेबहुत मतभेद भी हों तो भी इस बात को नहीं भूलें कि बच्चे दूर हों या पास, ग्रैंडपेरैंट्स और ग्रैंडचिल्ड्रेन हमेशा एकदूसरे के लिए खास होते हैं.

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मेरे सिर में लगातार दर्द हो रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 52 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले कुछ महीनों से मुझे लगातार सिरदर्द हो रहा है. थोड़े दिनों से रात में भी इतना तेज दर्द होता है कि नींद खुद जाती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभी सिरदर्द हो तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर आप को लगातार कई दिनों से सिरदर्द हो रहा हो, रात में तेज सिरदर्द होने से नींद खुल रही हो, चक्कर आ रहे हों, सिरदर्द के साथ जी मिचलाने और उलटियां होने की समस्या हो रही हो तो समझिए कि आप के मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ रहा है. मस्तिष्क में प्रैशर बढ़ने का कारण ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. अगर आप पिछले कुछ दिनों से इस तरह की स्थिति का सामना कर रही हैं तो सतर्क हो जाएं और तुरंत डायग्नोसिस कराएं.

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अगर आपको अक्सर ही सिरदर्द और सुस्ती की शिकायत रहती है या फिर देखने बोलने में भी समस्या होती है, तो सावधान हो जाइये क्योंकि हो सकता है कि आपके ऊपर ब्रेन ट्यूमर का खतरा मंडरा रहा हो. बता दें कि ट्यूमर दो तरह का होता है. एक जिसे ब्रेन कैंसर कहा जाता है और दूसरा सामान्य ट्यूमर. ब्रेन कैंसर स्वास्थ्य के लिए घातक होता है. हालांकि दोनों ही तरह के ट्यूमर में दिमाग की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती हैं.

दिमाग में किसी एक या अधिक कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने की वजह से ब्रेन ट्यूमर होता है. ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है और जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती है बढ़ती ट्यूमर का खतरा भी बढ़ता जाता है. ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को पहचानना बहुत मुश्किल है. ऐसे में कई बार मरीज को पता ही नहीं चलता कि उसे ब्रेन ट्यूमर है.

आज हम आपको ब्रेन ट्यूमर के कुछ सामान्य लक्षणों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे आप समय रहते इसकी पहचान कर उपचार करा सकती हैं.

लगातार सिरदर्द का बने रहना

सिरदर्द के वैसे तो कई सारे कारण हो सकते हैं, लेकिन लगातार सिरदर्द होने का एक कारण ब्रेन ट्यूमर भी है. अन्य कारणों से सिरदर्द और ब्रेन ट्यूमर की वजह से होने वाले सिरदर्द में अंतर कर पाना डाक्टर्स के लिए भी काफी मुश्किल होता है. ऐसे में अगर आपको सर्दी, खांसी और छींक के साथ लगातार सिरदर्द हो रहा हो और उपचार करने के बावजूद ठीक नहीं हो रहा हो तो यह ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है. ऐसा होने पर जल्द ही डाक्टर के पास जाए और उसका परामर्श लें.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- सिरदर्द और सुस्ती की है शिकायत तो हो सकता है ब्रेन ट्यूमर

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