लोग मेरी पर्सनैलिटी से घबरा जाते हैं : मिस इंडिया Alankrita Sahai

Alankrita Sahai : मौडलिंग से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली खूबसूरत, सौम्य, शांत और मृदुभाषी मिस इंडिया अर्थ 2014 अलंकृता सहाय का शुरुआती दौर भले ही आसान रहा हो, लेकिन उन्हें एक अच्छी भूमिका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. दिल्ली की अलंकृता कहती हैं कि बिना गौडफादर के बौलीवुड में कदम रखना आसान नहीं होता. हर दिन खुद को प्रूव करना पड़ता है कि आप एक अच्छे कलाकार हो. इस के अलावा एक मौडल की छवि से बाहर निकल कर अभिनेत्री के रूप में स्थापित करना, उस से भी अधिक मुश्किल होता है.

उन के कैरियर में उन के पेरैंट्स और दोस्तों ने उन का हमेशा साथ दिया है. अलंकृता को सपनों का राजकुमार मिल चुका है, जो कारपोरेट वर्ल्ड से हैं. वे बहुत सहयोगी, हंसमुख, शांत स्वभाव के हैं और कनाडा में रहते हैं, जिन के साथ अलंकृता अपना जीवन बिताना चाहती हैं.

इन दिनों अलंकृता एक गाने की वीडियो और एक पौलिटिकल थ्रिलर ड्रामे की सीरीज की शूटिंग पूरी की है और आगे भी कई प्रोजैक्ट पर काम करने की तैयारी में हैं। काम भले ही धीमा हो, लेकिन वे इस से संतुष्ट हैं.

वे कहती हैं कि इस नई सीरीज में मैं ने एक पौलिटिशियन की पत्नी की भूमिका निभाई है, जिस के लिए मैं ने कई वर्कशौप निर्देशक के साथ किए हैं, जिस से अभिनय करना आसान हुआ है, लेकिन एक इमोशनल सीन को करना मुश्किल रहा, जिस में मुझे रोने के साथ गुस्से को भी दिखाना था। साथ में दर्शकों की सिंपैथी भी चाहिए थी। ऐसे दृश्य को फिल्माना आसान नहीं होता.

इंडस्ट्री आसान नहीं

मिस इंडिया बनने के बाद अलंकृता को ऐक्टिंग क्षेत्र में आने का फायदा मिला है, लेकिन इस में कठिनाई भी कम नहीं थी. वे कहती हैं कि मिस इंडिया का मंच काफी अवसर ले कर आता है, क्योंकि आप पूरे विश्व में सब की नजर में आते हैं, जिस से मैं कई सारे ब्रैंड और लोगों से मिल पाई, बहुत कुछ सीखा. इस में मुझे मैनेजमेंट को सीखने में करीब 5 साल लगे, जिस में डिप्लोमैसी, पौलिटिक्स, रिलेशनशिप हैंडलिंग, हेयर, मेकअप आदि सब इंडस्ट्री के अनुसार सीखना पड़ा, क्योंकि मैं इंडस्ट्री से हूं नहीं, इसलिए शुरू से ही मुझे इस सब चीजों पर ध्यान देना पड़ा, जिस के लिए मुझे काफी समय लगा. मैं इस बात से खुश हूं कि खुद की जर्नी खुद तय करना सब से अधिक अच्छा होता है, क्योंकि इस से व्यक्ति अपने विचार, मेहनत, लगन सब अपने हिसाब से कर सकता है. 2 साल पहले जब मैं ने अपने पिता को खोया, तो मुझे काम करने की इच्छा नहीं हुई, लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल गया. मैं स्ट्रौंग बनी, आगे काम करने के बारे में सोचा. इस तरह से मैं ने जो कुछ भी किया है, हमेशा अच्छा किया और आगे भी अच्छा करने की कोशिश करती रहूंगी.

मिली प्रेरणा

अलंकृता कहती हैं कि मैं ने बचपन से ऐक्स्ट्रा ऐक्टिविटीज करती रहती थी, जैसेकि नुक्कड़ नाटकों में अभिनय करना, भरतनाट्यम डांस सीखना आदि. इस के अलावा मैं एक बार मिस नोएडा भी बनी थी। इस तरह स्कूल से अभिनय शुरू कर आगे बढ़ती गई और इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली.

पहले मैं आईएएस औफिसर बनना चाहती थी, लेकिन कला में भी मेरी रुचि थी, लेकिन यह मेरे जीवन का कैरियर बन जाएगा, ऐसा मैं ने नहीं सोचा था. पढ़ाई पूरी कर मैं मुंबई आई, जौब किया फिर अचानक मेरा मिस इंडिया में ऐंट्री हुई और मेरी जिंदगी बदल गई. धीरेधीरे मैं आगे बढ़ती गई और मेरे सपने पूरे होते गए। इस में मेरे पेरैंट्स मेरी बहन और सभी ने पूरी तरह से सहयोग दिया.

संघर्ष हासिल करना

अलंकृता आगे कहती है कि मैं अकेले कुछ नहीं कर सकती थी। मेरे परिवार वालों का बहुत सहयोग रहा है. शुरू में मेरे पिता मेरे साथ मुंबई में रहते थे. मैं ने भी चुनौतियां ली हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफलता के लिए संघर्ष करता है. मैं संघर्ष को नकारात्मक रूप में नहीं हासिल करने के रूप में देखती हूं. मेरी चुनौतियां मुझे किसी मंजिल तक पहुंचाने के लिए ही होती हैं. उदाहरणस्वरूप मेरी मां ने मुझे इस धरती पर लाने के लिए काफी पुश और दम लगाया होगा, तब जा कर मैं ने इस धरती पर कदम रखा है। इस लिहाज से मेरी संघर्ष कुछ भी नहीं है. किसी भी रिजैक्शन या दुख को केवल 15 मिनट तक दुख समझ कर फिर आगे बढ़ जाना चाहिए.

पहला ब्रेक

मिस इंडिया के बाद एक म्यूजिक अलबम की लौंच से मैं हर जगह पहचानी गई, जिसे गायक हिमेश रेशमिया, अभिनेता अमिताभ बच्चन और अभिनेता सलमान खान ने मुझे लौंच किया था. लोगों ने इसे बहुत पसंद किया था.

नहीं पड़ता रिजैक्शन का असर

किसी भी रिजैक्शन को अलंकृता सहजता से लेती हैं। वे कहती हैं कि किसी भी रिजैक्शन को मैं ने सकारात्मक रूप में लिया और खुद को समझाया कि मैं उस की हकदार नहीं हूं, इसलिए मुझे नहीं मिला. पहले खराब लगता था कि मैं सुंदर नहीं, ऐक्टिंग नहीं आती या औडिशन वालों को मैं पसंद नहीं आदि कई खयाल आते थे। ऐसे में, मैंटल हैल्थ को सही रखने के लिए पेरैंट्स, भाईबहन या दोस्त होते हैं, क्योंकि इंडस्ट्री की रिजैक्शन को स्कूल या कालेज में नहीं सिखाया जाता है, इसे व्यक्ति जीवन के अनुभवों से ही सीखता है. मैं ने अभिनय की कला, अभिनय कर और वर्कशौप से ही सीखा है. इंडस्ट्री के साथ डील को भी काम करते हुए ही सीखा है.

स्पष्टभाषी होना पड़ा भारी

अलंकृता स्पष्टभाषी हैं, इस का खामियाजा उन्हें कई बार भुगतना भी पड़ता है। वे कहती हैं कि लोग मुझे ब्लंट, बिगड़ी हुई परिवार से, रूड या एरोगेनट समझते हैं, क्योंकि मुझे काम में हमेशा क्लीयरिटी पसंद है, जो पसंद नहीं उसे साफसाफ कह देती हूं. आप ने अगर कोई बाउंड्री काम की नहीं बनाई है, तो कोई भी टैकन फोर ग्रांटेड ले लेता है.

खुद को संभालना जरूरी

कास्टिंग काउच का सामना करने को ले कर अलंकृता का कहना है कि इस में सब से जरूरी है कि आप किस तरह के लोगों से मिलते हैं। मेरे साथ जितने भी जुड़े थे, सभी सही थे, लेकिन मुझे याद आता है कि पंजाब इंडस्ट्री में पहली बार फिल्म प्रोड्यूस करने वाला सैकंड लाइन प्रोड्यूसर का स्वभाव गैर पेशेवर और अनैतिक था। मैं ने पहले ही उन के गलत प्रपोजल को मना किया, क्योंकि मैं सेट पर तंग नहीं होना चाहती, सब को इज्जत देती हूं और रात को चैन की नींद सोना पसंद करती हूं. उन्होंने मुझे बहुत भलाबुरा कहा, पर मैं अडिग रही और उस फिल्म को छोड़ दी. बौलीवुड में ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि लोग मेरी पर्सनैलिटी से घबरा जाते हैं, जो मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मैं बाहर से स्ट्रौंग दिखती हूं. रियल में मैं एक नारियल की तरह हूं, जो बाहर से कठोर और अंदर से मुलायम है, जिसे मेरे नजदीक रहने वाले परिवार और दोस्त ही जानते हैं. साथ ही मैं एक इमोशनल लड़की भी हूं, लेकिन काम पर बैलैंस, डिग्निटी और रिस्पैक्ट को हमेशा बनाए रखने में विश्वास रखती हूं.

सोशल मीडिया पर भरोसा ठीक नहीं

सोशल मीडिया को ले कर अलंकृता का कहना है कि आज सोशल मीडिया से ब्लौगर, इंस्टाग्रामर एक ऐक्टर से अधिक काफी पैसा कमा रहे हैं, ऐसा मैं ने सुना है, लेकिन यह बहुत हेकटिक है, आसान नहीं है. मैं कैमरे के अलावा कुछ नहीं जानती। यह सही है कि सोशल मीडिया की इन्फ्लूऐंस पर कास्टिंग निर्भर करती है. टेलैंट का फौलोवर्स कैसे बढ़ेगा, जब तक उसे मौका न मिले. लाइक्स और फौलोवर्स के अनुसार कास्टिंग करना गलत है, क्योंकि इस से कोई अच्छा कलाकार हो, यह गारंटी नहीं. इसलिए कुछ ऐसे भी हैं, जो टेलैंट को ही सबकुछ मानते हैं और उन्हें मौका मिलता है.

टेलैंट को नंबर से जोड़ना मेरे लिए परेशानी है, क्योंकि टेलैंट को नंबर देना संभव नहीं. जब टेलैंट आगे बढ़ेगा, तो नंबर अपनेआप ही बढ़ता चला जाएगा.

जिम्मेदारी सब की

वूमन ऐंपावरमैंट को ले कर अलंकृता कहती हैं कि आज भी महिलाएं सड़कों पर डरडर कर चलती हैं। उन्हें अपने तरीके से रहने, पोशाक पहनने और काम करने की आजादी नहीं है. इतना ही नहीं, कई शहरों में सुरक्षा के सही इंतजाम नहीं हैं, कई जगह स्ट्रीट लाइट नहीं, लड़कियों को अंधेरे में चलना पड़ता है. मेरे हिसाब से सब से पहले सामाजिक और आर्थिक स्टैटस में बदलाव होने की जरूरत है, सैनीटेशन और हैल्थ केयर सिस्टम में सुधार होने की जरूरत है.

यह काम कलाकार से ले कर ऐंन्फ्लुऐंसर सभी को अपने हिसाब से करना पड़ेगा. अगर हम मुड़ कर एक लड़की को ‘बिच’ कहते हैं, तो समाज कैसे आगे बढ़ेगा. महिला और पुरुष का एकदूसरे को सम्मान देने से ही महिला ऐंपावर हो सकती है.

सुपर पावर मिलने पर अलंकृता हर व्यक्ति के मन की बात समझना चाहती हैं, ताकि कुछ गलत होने से पहले उसे रोक लिया जाय.

Lg हींग से बनाएं स्वादिष्ट दाल

हरी काली दाल विद वैजिटेबल्स

सामग्री

1/2 कप मूंग दाल साबूत,   1/2 कप उरद दाल साबूत,  2 बड़े चम्मच चना दाल, 1/2 कप टमाटर बीज रहित कटे ,  1 बड़ा चम्मच अदरक बारीक कटा,  1 छोटा चम्मच लहसुन बारीक कटा,  2 हरीमिर्चें बारीक कटी,  1/4 कप प्याज बारीक कटा,   1/2 कप गाजर 1 इंच के लंबे टुकड़ों में कटी,  1 कप गोभी कटी ,  1 बड़ा चम्मच मस्टर्ड औयल,  नमक स्वादानुसार.

सामग्री तड़के की

1 छोटा चम्मच जीरा,  1/2 कप टोमैटो प्यूरी ,  1 छोटा चम्मच गरममसाला ,  1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर ,  1 बड़ा चम्मच कसूरी मेथी , 1/4 छोटा चम्मच एलजी हींग पाउडर,  3 बड़े चम्मच देशी घी, मक्खन ऐच्छिक, थोड़ी सी धनियापत्ती कटी सजाने के लिए.

विधि

तीनों दालों को मिक्स कर के धो कर 3 कप पानी के साथ प्रैशरकुकर में 1 सीटी लगवाएं. ठंडा कर के प्रैशरकुकर का ढक्कन खोल कर अदरक, लहसुन, प्याज, टमाटर, हरीमिर्च, नमक और मस्टर्ड औयल डालें. पुन: दाल में 2 कप पानी और डाल कर 1 सीटी आने के बाद धीमी आंच पर 1/2 घंटा और पकाएं. इस में गोभी व गाजर के टुकड़े डाल दें और धीमी आंच पर 5 मिनट और पकाएं. दाल गाढ़ी हो तो गरम पानी डाल दें. तड़के के लिए घी गरम कर के उस में जीरा, मिर्च, एलजी हींग पाउडर व कसूरी मेथी डालें. फिर टोमैटो प्यूरी डाल कर घी छूटने तक पकाएं और दाल में मिक्स करें. दाल को 3 मिनट और पकाएं. सर्विंग बाउल में डालें. मक्खन डाल कर धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

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Hindi Story Collection : लिव टुगैदर का मायाजाल

Hindi Story Collection : सामने महेश खड़ा था. आंखों से झरझर आंसू बहाता हुआ, अपमानित सा, ठगा हुआ, पिटा हुआ सा, अपने प्रेम की यह हालत देखते हुए… स्वयं को लुटा हुआ महसूस कर, हिचकियों के साथ रो रहा था.

मैं उसे सामने देख कर अवाक् थी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी वीरान जिंदगी में अब कोई आया है. ‘‘सपना…’’ रुंधे गले से महेश मुश्किल से बोल पाया.

किसी गहरे कुएं से आती मरियल सी आवाज…आज मुझे मेरे उन सब उद्बोधनों से ज्यादा भारी और अपनी महसूस हुई, जो मैं पिछले 10-12 साल से सुनती चली आ रही थी.

‘‘सपना स्वीटहार्ट… सपना डियर… सपना डार्लिंग…’’ की आवाजों का खोखलापन, जो मैं पिछले 2-3 बरस से महसूस कर रही थी, आज और ज्यादा खोखली लगने लगीं.

मेरे चारों तरफ मेरा अपना बनाया, अपना रचाया हुआ संसार खड़ा था. मलिन और निस्तेज पड़े हुए मेरे शरीर के चारों ओर शानदार चीजों से सजा हुआ मेरा बंगला अभिमान के साथ आसमान से बातें कर रहा था. उसी अभिमान के रथ पर कभी मैं भी सवार हो कर सपने संजोया करती थी…

‘‘सपना…एक बार मुझे खबर तो कर दी होती अपनी बीमारी की…’’ मेरे निशक्त शरीर को देखते हुए महेश के गले से दबीदबी सी आवाज निकली.

महेश के दिल में मेरे लिए… टिमटिमा कर जलता हुआ दीपक… मेरे मन के अंधेरे में एक किरण सी चमकी. अकेलापन, अवसाद और उदासी भरे मन में, महेश की उपस्थिति की दस्तक से एक नई तरह की आशा का संचार हुआ.

महेश ने ढूंढ़ कर कमरे की लाइट जलाई. कमरा एक बार फिर से रोशन हो गया. चारों तरफ गर्द ही गर्द जमा हो गया था. महंगामहंगा आधुनिक सामान धूल से अटा पड़ा था. कमरे की सजावट जहां अपने अतीत की आलीशानता बयान कर रही थी, वहीं उस पर जमी धूल की परत वर्तमान की बेजान तसवीर पेश कर रही थी.

स्पर्श सुख की अनुभूति पिछले कई महीने से उस ने महसूस नहीं की थी. मेरी अवसादग्रस्त जिंदगी की चिड़चिड़ाहट और चिल्लाहट से त्रस्त हो कर, नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चली गई थीं. महीनों से साफसफाई नहीं हुई थी.

पैसे से श्रम खरीदा जा सकता है, अपनापन नहीं, इस का प्रत्यक्ष दर्शन मुझे हो रहा था. दीवार पर लगे विशाल आईने पर निगाह पड़ते ही मैं चौंक गई. लेटेलेटे ही अपना प्रतिबिंब देख कर मुझे रोना आ गया. एक बार को तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाई.

मेरे पर हमेशा हंसतेखिलखिलाते रहने वाला विशाल आईना, गंदला हो कर मायूसी प्रकट कर रहा था. रोशनी से मेरी हालत का जायजा ले कर महेश और भी ज्यादा द्रवित हो गया. ‘‘सपना… कम से कम एक फोन तो कर दिया होता. इतनी बीमार पड़ी थीं. एकदम पीली पड़ गई हो,’’ महेश अपराधबोध से ग्रस्त हो कर अपनी ही रौ में कहे जा रहा था.

मैं महेश की हालत समझ रही थी. एकएक बीती बात मुझे याद आ रही थी. जब शरीर था तब विचार नहीं थे, अब शरीर नहीं रहा तो विचार डेरा डालने लगे.

अकेलेपन और अवसाद से महेश की सहानुभूति मुझे कुछ हद तक उबार रही थी. मैं उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी. ‘महेश मेरा इतना लंबा इंतजार करता रहा. मेरे लिए… अभी तक इंतजार या फिर यों ही आया है अचानक.’

यादों के खंजर दिमाग में ठकठक कर रहे थे. महेश मेरा सहपाठी था. कालेज के वे दिन हवा में उड़ने के थे… आसमान से बातें करने के. यौवन पूरे निखार पर था. मैं तितलियों की तरह इधरउधर मंडराती रहती.

कलियां खिलेंगी तो मधुप मंडराएंगे ही और फिर यह तो समय होता है युवाओं को आकर्षित करने का… लोगों की फिसलती निगाहें पकड़ कर आह्लादित होने का.

हरदम सजनासंवरना, इधरउधर इतराते हुए फिरते रहना, न कोई चिंता थी, न ही कोई परवा. बस उड़ते ही जाना, लोगों की निगाहों में चढ़ते जाना. उन की कानाफूसियां सुन कर उल्लासित होना और उन की प्यासी निगाहें ताड़ कर उन्हें और तड़पाना. उन की अतृप्तता भरी मनुहार सुन कर स्वयं को तृप्त महूसस करना. चिंता नहीं थी तो चिंतन भी नहीं था…

महेश न जाने कब मुझ से दिल लगा बैठा था. भावुक महेश मेरे रूपयौवन के मोहजाल में फंस गया था. हरदम वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पता रहता था.

पुरुष बेचारा, पहले प्यार को अपने दिल पर लगा लेता है… मेरे लिए पुरुषों की तड़प मेरी आत्मसंतुष्टि थी. अनादि काल से चली आई परंपरा नारी की तड़प से पुरुषों की आत्मसंतुष्टि को तोड़ना मेरे अहं को तुष्ट करती थी.

मैं 20वीं सदी की नारी थी. मेरे विचारों में खुला आसमान था. मेरा एक स्वतंत्र अस्तित्व है. मैं भी पुरुष की तरह एक इकाई हूं. प्रेम, प्यार एक अलग बात है. लेकिन शादी, बच्चे का बंधन मुझे नागवार लगता था.

कालेज के दिन फुरफुर कर उड़ गए. महेश की मासूम याचना मेरे मस्तिष्क पर सामान्य सी ठकठक थी.

अपनी अलग पहचान बनाने की लौ मन में निरंतर जलती रहती. मैं भावुकता में न बह कर पूर्ण व्यावसायिक हो गई थी.बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी, ऊंचा ओहदा, भरपूर पगार… सारी सुखसुविधाएं मेरे कदमों को चूम रही थीं.

मैं स्वतंत्र, आर्थिक रूप से मजबूत, अच्छी प्रतिष्ठा वाली, फिर क्यों किसी पुरुष के अधीन रहूं. परिवार के बंधनों में बंधूं. पैसे से हर चीज हासिल की जा सकती है. अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए एक अदद पुरुष भी.जब पदप्रतिष्ठा पा कर पुरुष बौरा सकता है तो स्त्री क्यों नहीं. मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी, मुझ में खुद के अहम की बू कुछ ज्यादा ही आ गई थी.

औफिस में ही कमल से मेलमिलाप बढ़ा. हर मुद्दे पर हमारी बौद्धिक बहसें होतीं. राजनीतिक, सामाजिक विचारविमर्श होता. हर विषय पर हम लोग खुले विचार रखते, यहां तक कि प्रेम और सैक्स पर भी.

मेरी मानसिक भूख के साथसाथ शारीरिक भूख भी जोर मारने लगी थी. समान बौद्धिक स्तर वाले कमल के साथ काफी तार्किक विचारविमर्श के बाद हम दोनों एकसाथ रहने लगे, बिना किसी वैवाहिक बंधन के.

लिव टुगैदर, हम 2 स्वतंत्र इकाई, 2 शरीर थे. एक छत के नीचे हो कर भी हमारी साझी छत नहीं थी. पहले तो अड़ोसपड़ोस में हमारे साथसाथ रहने पर कानाफूसियां हुईं, ‘छिनाल’, ‘वेश्या’ और न जाने किनकिन संबोधनों से मुझे नवाजा गया, लेकिन मैं तो उड़ान पर थी. इन सब बातों से मैं कहां डरने वाली थी. हवा में उड़ने वाले परिंदे जमीन पर बिछे जाल से कहां डरते हैं.

महल्ले के युवकयुवतियों को मेरे घर के आसपास फटकने की सख्त मनाही हो गई थी. मेरे घर के चारों तरफ अघोषित एलओसी बन गई थी, जिसे पार करना सफेदपोश शरीफों के बस की बात नहीं थी.

इक्कादुक्का कभी मेरे मकान की तरफ लोलुप निगाहें ले कर बढ़ते पर मेरी हैसियत से डर कर पीछे हो जाते.

जब शरीर बोलता है, तो विचार चुप रहते हैं. एलओसी के घेरे में मैं कब अकेली पड़ती गई इस का मुझे भान तक नहीं हुआ.

शरीर था कि खिलता ही जा रहा था. मैं शरीर के रथ पर सवार हो कर अभिमान के आसमान में उड़ रही थी.

कमल के साथ रहते हुए भी हमारा साझा कुछ नहीं था. मैं जब चाहती कमल के शरीर का भरपूर उपभोग करती. कमल को हमेशा उस की सीमारेखा दिखाती रहती. पुरुष हो कर भी कमल का पुरुषत्व मेरे सामने बौना रहता.

अपना फ्रैंड सर्कल मुझे खुशनुमा महसूस होता. लिव टुगैदर में पतिपत्नी के बीच की लाज और लिहाज, सामाजिक दबाव और बच्चे होने का मानसिक दबाव नहीं था. बस, उच्छृंखल व्यवहार, शरीर का विभिन्न तरह से भरपूर उपभोग, परम आनंद प्रदान करता.

देखते ही देखते कमल के साथ का मौखिक अनुबंध पूरा हो चला. साथ रहते कमल के मन में घर बसाने की चाहत घुल रही थी. कमल बहुत भावुक हो उठा था. अलगाव से उसे बेचैनी हो रही थी. वह शादी कर घर बसाने के लिए मिन्नतें करने लगा. लेकिन मैं तो मन और तन के उफान पर थी. तन अभी भी भरपूर बोल रहा था. भाव तो मन में थे ही नहीं. भाव होते तो मन कमजोर पड़ जाता. मैं नारी की गुलामी की पक्षधर बिलकुल नहीं थी.

शादी… यानी नारी की गुलामी के दौर की शुरुआत… मैं ने एक झटके में कमल को बाहर का रास्ता दिखा दिया.

मुझ में शारीरिक आकर्षण अभी भी उफान पर था. मर्दों की लाइन लगने को तैयार थी. प्रेम, प्यार बेवकूफों का शगल. बेकार में अपनी ऊर्जा जलाओ. तनमन को तरसाओ. मेरा सिद्धांत था, खाओपियो और मौज करो.

मांबाप के बीच की यदाकदा की खिंचन की पैठ मेरे मन में इतनी गहरी समाई हुई थी कि पारिवारिक स्नेह का तानाबाना पकड़ने में मैं कभी सफल नहीं हो पाई.

फिर बदलाव के धरातल पर पैर रख कर कभी महसूस करने और समझने की कोशिश ही नहीं की.भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति मेरी प्राथमिकता रही थी. उन की पूर्ति के लिए मेरे पास संसाधनों की किसी तरह कोई कमी नहीं थी. बस पैसा फेंको, सभी सुविधाएं हाजिर हो जाएंगी.

आलीशान बंगला होने के कारण कभी घर की ऊष्मा महसूस करने की कोशिश ही नहीं की. आधुनिकता के जनून में मेरा स्व ही मुझ पर सवार था.

कमल के बाद अब सैक्स पूर्ति के लिए सुरेश टकरा गया था. उस का भरापूरा शरीर था, छुट्टे सांड़ जैसा मस्तमस्त. मेरे साथ लिव टुगैदर उस के लिए बहुत अच्छा औफर था. हम दोनों साथसाथ रहने लगे, बिना किसी साझी छत के. फिर से वही शारीरिक आनंद की सुनहरी गुफा में विचरण.

मन की स्वतंत्र उड़ान में मैं कभी अपने को हारी हुई महसूस नहीं करती. ऐसा लगता कि मैं ने सुरेश के पौरुष के साथसाथ मर्दों के पौरुष को हरा दिया है.

समय कब गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. देह के कोणों का तीखापन कम होने लगा था. मन के कोण कुछ तीखे हो कर अधूरापन महसूस करने लगे थे.

हर माह मेरे वजूद में अंडा तैयार होता. निषेचित हो कर मुझे नारी का पूर्णत्व प्रदान करने के लिए आतुर रहता, पर शुरुआत में मैं पुरुष से बिलकुल हार मानने वाली नहीं थी. कमल और सुरेश के लाखों शुक्राणु बिना संगम के बह चुके थे. पर अब मेरा मन करता कि मैं हार जाऊं और मेरा मातृत्व जीते. नारी के अधूरेपन का एहसास मुझे महसूस होने लगा था. मन में कचोट सी उठने लगी थी.

मेरी चाहत सुन कर सुरेश एकदम से बिफर गया, ‘हमारे लिव टुगैदर के अनुबंध में बच्चा नहीं था.’

अब मुझे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं सुरेश को यूज कर रही हूं कि सुरेश मेरा इस्तेमाल कर रहा है. अपनेअपने अहं की जीत में हम दोनों ही हार रहे थे. हालांकि सब से ज्यादा शारीरिक और मानसिक नुकसान नारी को ही उठाना पड़ता है. पुरुष तो हमेशा हार कर भी जीतता है और जीत कर तो जीतता ही है.

अब मेरा शरीर ढलान पर था तो विचार उठने लगे. सामाजिक तानेबाने की कमी महसूस होने लगी. समाज में प्रतिष्ठा, पद, पैसा पा कर भी मैं सामाजिक कार्यक्रमों में अछूत जैसी स्थिति में रहती.

इंटरनैट, फेसबुक, ट्विटर, औरकुट, ब्लैकबेरी मैसेंजर से सारी दुनिया हमारी थी, लेकिन हमारा पड़ोसी, हमारा नहीं था. मेरा अभिमान चकनाचूर हो कर मिटने के लिए तैयार था, पर सुरेश बिलकुल झुकने के लिए तैयार नहीं था.

अब मेरी मिन्नतों के बाद भी वह अपने स्पर्म मेरी कोख में डालने के लिए तैयार नहीं था. मेरी हालत ‘जल बिन मछली’ जैसी हो रही थी. मेरा मन बच्चे के कोमल स्पर्श को बेचैन होता. कोमलकोमल हाथों की छुअन को महसूस करने के लिए मेरा मन व्यग्र होता, कंपित होता.

सामाजिक अकेलापन, अधूरा नारीत्व मुझे अवसादग्रस्त करने लगा था. सुरेश का ज्वार, उस का हारा हुआ चेहरा, अब मुझे आह्लादित नहीं करता था. उस का सपना डियर, सपना डार्लिंग… कहना मेरे मन को चिड़चिड़ा बना रहा था.

लिव टुगैदर मुझे इंद्रधनुषी मायाजाल सा महसूस होने लगा था. मेरा सबकुछ लुट कर भी मेरा अपना कुछ नहीं था. अनुबंध का समय पूरा हो गया. सुरेश एक झटके के साथ मुझे छोड़ गया. मेरी लाख मिन्नतों के बाद भी वह एक पल भी रुकने को तैयार नहीं हुआ. मेरे जज्बातों से उस को कोई लगाव नहीं था. जैसे एक झटके में मैं ने कमल को छोड़ दिया था, वैसे ही सुरेश ने मुझे छोड़ दिया.

आलीशान घर, महंगा विदेशी सामान मेरे चारों तरफ अभिमान के साथ सजा हुआ था, लेकिन मेरा अभिमान छंट रहा था. अकेलापन भयावह हो रहा था. परिवार के आपसी तानेबाने की कमी महसूस होने लगी थी.

समाज की नजरों में, अपने बौद्धिक विचारों में तो मैं नारी की जीत का आदर्श मौडल बन ही चुकी थी, पर वास्तविकता में मैं अपने अंदर जो रीतापन महसूस कर रही थी, वह मुझे सालता.

निराशा और अकेलापन मुझे दिवास्वप्नों में खोने लगा था. परिणामत: चिड़चिड़ापन और गुस्सा मुझ पर हरदम हावी रहने लगा था. औफिस में, घर में, मैं हरदम झुंझलाती, चिड़चिड़ाती रहती.

कभी मुझे लगता मेरा भी प्यारा सा परिवार है. पति है, छोटा सा बच्चा है, जो अपने नाजुक मसूड़ों से मेरे स्तन चूस रहा है. गीलेगीले होंठों से मुझे चूम रहा है. उस की सूसू की गरमाहट मुझे राहत दे रही है.

कभी लगता, मेरा अभिमान अट्टहास कर रहा है. मुझे चिढ़ा रहा है. मैं एकदम से अकेली पड़ गई हूं. चारों तरफ डरावनीडरावनी सूरतें घिर आई हैं.

घबराहट में मेरी एकदम से चीख निकल जाती. तंद्रा टूटती तो अकेला घर सांयसांय करता मिलता. नौकरनौकरानियां अपनी ड्यूटी निभातीं. मुझे खाना खाने के लिए जोर डालतीं, तो मैं उन पर ही चिल्ला पड़ती.

कुछ दिन मुझे झेलने के बाद वे भी मुझे छोड़ कर चली गईं.

अकेलापन और घिर आया. घर के चारों तरफ खिंची लक्ष्मण रेखा पार करने का साहस किसी में नहीं था. लिव टुगैदर के फंडे ने समाज से टुगैदरनैस होने ही नहीं दिया. मैं अवसादग्रस्त होती जा रही थी.

मन में घोर निराशा थी तो तन भी बीमार रहने लगा. न किसी काम में मन लगता न कुछ करने, खानेपीने की इच्छा होती. हरदम अकेलापन सालता, काटने को दौड़ता रहता, अकेलेपन का एहसास भी मुझे भयभीत करता रहता.

अब मैं क्या करूं? मेरे विचार कुंद पड़ते जा रहे थे. नातेरिश्तेदारों की परवा मैं ने कभी की ही नहीं थी, तो अब कौन साथ देता.

अवसादग्रस्त हो कर मैं ने नौकरी भी छोड़ दी थी. अकेली घर में पड़ी रहती. न खाने की सुध, न कोई बनाने वाला, न कोई मनाने वाला.

मम्मीपापा के बीच की मनुहार मुझे अब बारबार याद आती. भाइयों और बहनों के बीच की तकरार, लड़ाईझगड़ा याद आता.

अजीब हालत हो गई थी. शरीर सूख कर कांटा होता जा रहा था. न दिन का पता रहता न रात का. दीवाली पर हरदम रोशन रहने वाला मेरा बंगला और मेरा मन अंधेरे में घिरा रहता.

परिवार की अवधारणा को ताड़ कर लिव टुगैदर का मायाजाल, असीम सुख, अब समझ आ रहा था.

‘‘सपना… डाक्टर को बुला लाता हूं…’’ महेश कह रहा था.

मैं बेसुध सी पड़ी उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी.

Famous Hindi Stories : कुछ इस तरह

Famous Hindi Stories :  रात के एक बजे जूही ने घर में सोए मेहमानों पर नजर डाली. उस की चाची, मामी और ताऊ व ताईजी कुछ दिनों के लिए रुक गए थे. बाकी मेहमान जा चुके थे. ये लोग जूही और उस की मम्मी कावेरी का दुख बांटने के लिए रुक गए थे.

जूही ने अब धीरे से अपनी मम्मी के बैडरूम का दरवाजा खोल कर झांका. नाइट बल्ब जल रहा था. जूही ने मां को कोने में रखी ईजीचेयर पर बैठे देखा तो उस का दिल भर आया. क्या करे, कैसे मां का दिल बहलाए. मां का दुख कैसे कम करे. कुछ तो करना ही पड़ेगा, ऐसे तो मां बीमार पड़ जाएंगी.

उस ने पास जा कर कहा, ‘‘मां, उठो, ऐसे बैठेबैठे तो कमर अकड़ जाएगी.’’ कावेरी के मुंह से एक आह निकल गई. जूही ने जबरदस्ती मां का हाथ पकड़ कर उठाया और बैड पर लिटा दिया. खुद भी उन के बराबर में लेट गई. जूही का मन किया, दुखी मां को बच्चे की तरह खुद से चिपटा ले और उस ने वही किया.

कावेरी से चिपट गई वह. कावेरी ने भी उस के सिर पर प्यार किया और रुंधे स्वर में कहा, ‘‘अब हम कैसे रहेंगे बेटा, यह क्या हो गया?’’ यही तो कावेरी 20 दिनों से रो कर कहे जा रही थी. जूही ने शांत स्वर में कहा, ‘‘रहना ही पड़ेगा, मां. अब ज्यादा मत सोचो. सो जाओ.’’

जूही धीरेधीरे मां का सिर थपकती रही और कावेरी की आंख लग ही गई. कई दिनों का तनाव, थकान तनमन पर असर दिखाने लगा था. जूही की खुद की आंखों में नींद नहीं थी.

26 वर्षीया जूही, कावेरी और पिता शेखर 3 ही लोगों का तो परिवार था. अब उस में से भी 2 ही रह गईं. 20 दिनों पहले शेखर जो रात को सोए, उठे ही नहीं. सोतेसोते कब हार्टफेल हो गया, पता ही नहीं चला. मांबेटी अकेली उन के जाने के बाद सब काम कैसे निबटाए चली आ रही हैं, वे ही जानती हैं.

रिश्तेदारों को इस दुखद घटना की सूचना देने से ले कर, उन के आने पर सब संभालते हुए जूही भी शारीरिक व मानसिक रूप से थक रही है अब. शेखर एक सफल, प्रसिद्ध बिजनैसमैन थे. आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी. मुंबई के पवई इलाके में उन के इस 4 बैडरूम फ्लैट में अब मांबेटी ही रह गई हैं.

एमबीए करने के बाद जूही काफी दिनों से पिता के बिजनैस में हाथ बंटा रही थी. यह वज्रपात अचानक हुआ था, इस की पीड़ा असहनीय थी. शेखर जिंदादिल इंसान थे. जीवन के हर पल को वे भरपूर जीते थे. परिवार के साथ घूमना उन का प्रिय शौक था. साल में एक बार कावेरी और जूही को ले कर कहीं न कहीं घूमने जरूर जाते थे और अब भी अगले महीने स्विट्जरलैंड जाने के टिकट बुक थे, मगर अब?

जूही के मुंह से एक सिसकी निकल गई. पिता की इच्छाएं, उन के जीने के अंदाज, उनकी जिंदादिली, उन का स्नेह याद कर रुलाई का आवेग फूट पड़ा. मां की नींद खराब न हो जाए यह सोच कर वह बालकनी में जा कर वहां रखी चेयर पर बैठ कर देर तक  रोती रही. अचानक सिर पर हाथ महसूस हुआ, तो वह चौंकी. हाथ कावेरी का था. ‘‘मम्मी, आप?’’

‘‘मुझे लिटा कर खुद यहां आ गई. चलो, आओ, सोते हैं, 3 बज रहे हैं. अब की बार बेटी को दुलारते हुए कावेरी अपने साथ ले गई. 20 दिनों से यही तो चल रहा था. कभी बेटी मां को संभाल रही थी, कभी मां बेटी को.

दोनों ने लेट कर सोने की कोशिश करते हुए आंखें बंद कर लीं. कुछ ही दिनों में बाकी मेहमान भी चले गए. मांबेटी अकेली रह गईं. घर का सूनापन, हर तरफ फैली उदासी, घर के कोनेकोने में बसी शेखर की याद. जीना कठिन था पर जीवन है, तो जीना ही था. कावेरी सुशिक्षित थीं. वे पढ़नेलिखने की शौकीन थीं. कुछ सालों से लेखन के क्षेत्र में काफी सक्रिय थीं. उन की कई रचनाएं प्रकाशित होती रहती थीं. लेखन के क्षेत्र में उन की एक खास पहचान बन चुकी थी. शेखर से उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिला था. अब शेखर के जाने के बाद कलम जो छूटा, उस का सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था.

जूही ने औफिस जाना शुरू कर दिया था. कई शुभचिंतक उसे औफिस में भरपूर सहयोग कर रहे थे. पर घर पर अकेली उदास मां की चिंता उसे दुखी रखती. जूही ने एक दिन कहा, ‘‘मां, कुछ लिखना शुरू करो न. कुछ लिखोगी, तो ठीक रहेगा, मन भी लगेगा.’’

‘‘नहीं, मैं अब लिख नहीं पाऊंगी. मेरे अंदर तो सब खत्म हो गया है. लिखने का तो कोई विचार आता ही नहीं.’’

जूही मुसकराई, ‘‘कोई बात नहीं, कई राइटर्स कभीकभी नहीं लिख पाते. होता है ऐसा. ठीक है, ब्रेक ले लो.’’ फिर एक दिन जूही ने कहा, ‘‘मां, टिकट बुक हैं, हम दोनों चलें स्विटजरलैंड?’’

कावेरी को झटका लगा. ‘‘अरे नहींनहीं, सोचा भी कैसे तुम ने? तुम्हारे पापा के बिना हम कैसे जाएंगे. घूम लिए जितना घूमना था,’’ कह कर कावेरी सिसक पड़ी. जूही ने मां के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, सोचो, पापा का सपना था वहां जाने का, हम वहां जाएंगे तो लगेगा पापा की इच्छा पूरी कर रहे हैं. वे जहां भी हैं, हमें देख रहे हैं. मैं तो यही महसूस करती हूं. आप को नहीं लगता, पापा हमारे साथ ही हैं? मैं तो औफिस में भी उन की उपस्थिति अपने आसपास महसूस करती हूं, दोगुने उत्साह के साथ काम में लग जाती हूं. चलो न मां, हम घूम कर आएंगे.’’

कावेरी ने गंभीरतापूर्वक फिर न कर दिया. पर अगले दोचार दिन जूही के लगातार सकारात्मक सुझावों और स्नेहभरी जिद के आगे कावेरी ने हां में सिर हिलाते हुए, ‘‘जैसी तुम्हारी मरजी, तुम्हारे लिए यही सही’’ कहा, तो जूही उन से लिपट गई, बोली, ‘‘बस मां, अब सब मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

जूही की मौसी गंगा का बेटा अजय पेरिस में अपनी पत्नी रीमा के साथ रहता था. जूही अब लगातार अजय से संपर्क कर सलाह करती रही. जिस ने भी सुना कि दोनों घूमने जा रही हैं, हैरान रह गया. कुछ लोगों ने मुंह बनाया, व्यंग्य किए. पर वहीं, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने खुल कर मांबेटी के इस फैसले की प्रशंसा की. जूही को शाबाशी दी कि वह अपना मनोबल, आत्मविश्वास ऊंचा रखते हुए अपनी मां को कुछ बदलाव के लिए बाहर ले कर जा रही है.

उन लोगों का कहना था कि अच्छा है, दोनों घूम कर आएंगी, इतना बड़ा वज्रपात हुआ है, दोनों कुछ उबर पाएंगी.

इतनी प्रतिभावान मां हिम्मत छोड़ कर ऐसे ही दुख में डूबी रही तो क्या होगा मां का, कैसे मन लगेगा, जूही को इस बात की बड़ी चिंता थी और यह कि जिन किताबों में मां रातदिन डूबी रहती थीं, अब उन की तरफ देख भी नहीं रही थीं. बस, चुपचाप बैठी रहती थीं. इस ट्रिप से मां का मन जरूर बदलेगा. घर में तो हर समय कोई न कोई शोक प्रकट करने आता ही रहता था. वही बातें बारबार सुन कर कैसे इस मनोदशा से निकला जा सकता है. यही सब जूही के दिमाग में चलता रहता था.

शेखर का टिकट तो बहुत भारीमन से जूही कैंसिल करवा चुकी थी. औफिस का काम अपने मित्रों, सहयोगियों पर छोड़ कर जूही और कावेरी ट्रिप पर निकल गईं.

मुंबई से साढ़े 3 घंटे में कतर पहुंच कर वहां 2 घंटे रुकना था. जूही पिता को याद करते हुए उन की बातें करने में न हिचकते हुए कावेरी से उन की खूब बातें करने लगी कि पापा को ट्रैवलिंग का कितना शौक था. हर जगह का स्ट्रीटफूड ट्राई करते थे. हम भी ऐसा ही करेंगे. कावेरी भी धीरेधीरे सब याद करते हुए मुसकराने लगी तो जूही को बहुत खुशी हुई. फ्लाइट चेंज कर के दोनों साढ़े 7 घंटे में जेनेवा पहुंच गए.

जूही ने कहा, ‘‘मां, यहां रुकेंगे. ‘लेक जेनेवा’ पास से देखेंगे. पापा ने बताया था, उन्होंने डिस्कवरी चैनल में देखा था एक बार, लेक से एक तरफ स्विटजरलैंड, एक तरफ फ्रांस दिखता है. वहां ‘लोसान टाउन’ है जहां से ये दोनों दिखते हैं. वहीं ‘लेक जेनेवा’ के सामने किसी होटल में रह लेंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम ने सोचा है, सब जानकारी ले ली है न?’’

‘‘हां, मां, अजय भैया के लगातार संपर्क में हूं.’’ रात होतेहोते बर्फ से ढके पहाड़ों पर लाइट दिखने लगी. जूही ने उत्साहपूर्ण कांपती सी आवाज में कहा, ‘‘मां, वह देखो, वह फ्रांस है.’’ होटल में रूम ले कर सामान रख कर फ्रैश होने के बाद दोनों ने कुछ खाने का और्डर किया, थोड़ा खापी कर दोनों बार निकल आईं.

लेक के आसपास कईर् परिवार बैठ कर एंजौय कर रहे थे. शेखर की याद शिद्दत से आई. कावेरी वहां के माहौल पर नजर डालने लगी. सब कितने शांत, खुश, बच्चे खेल रहे थे. आसपास काफी चर्च थे. चर्च की घंटियों की आवाज कावेरी को बड़ी भली सी लगी.

दोनों अगले दिन लोसान घूमते रहे. कैथेड्रल्स, गार्डंस, म्यूजियम बहुत थे. वहां दोनों 2 दिन रुके. वहीं एक जगह मूवी ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ की शूटिंग हुई थी. कावेरी अचानक हंस पड़ी, ‘‘जूही, याद है न, तुम्हारे पापा ने यह मूवी 4 बार देखी थी. टीवी पर तो जब भी आती थी, वे देखने बैठ जाते थे. यही सब तो उन्हें यहां देखना था, आज यह जगह देख कर वे बहुत खुश होते.’’

‘‘वे देख रहे हैं यह जगह हमारे साथ, जो हमेशा दिल में रहते हैं. वे दूर कहां हैं,’’ जूही बोली थी.

कावेरी मुसकरा दी, ‘‘मेरी मां बनती जा रही हो तुम. मेरी मां होती तो वे भी मुझे यही समझातीं. सच ही कहा गया है कि बेटी बड़ी हो जाए तो भूमिकाएं बदल जाती हैं.’’

दोनों वहां से फिर ‘इंटरलेकन’ चली गईं. वहां जा कर तो दोनों का मन खिल उठा. वहां बड़ा सा पहाड़ था. 2 लेक के बीच की जगह को इंटरलेकन कहा जाता है. सुंदर सी लेक. अचानक जूही जोर से हंस पड़ी, ‘‘मां, उधर देखो, कितने सारे हिंदी के साइन बोर्ड.’’

‘‘वाह,’’ कावेरी भी वहां हिंदी के साइनबोर्ड देख कर आश्चर्य से भर उठी. वहां से दोनों 2 घंटे का सफर कर खूबसूरत ‘टौप औफ यूरोप’ देखने गईं जो पूरे साल बर्फ से ढका रहता है. वहां से वापस आ कर आसपास की जगहें देखीं. वहां का कल्चर, खानपान का आनंद उठाती रहीं. वहां उन्हें थोड़ा जरमन कल्चर भी देखने को मिला.

ट्रिप काफी रोमांचक और खूबसूरत लग रहा था. दोनों को कहीं कोई परेशानी नहीं थी. दोनों हर जगह फैले प्राकृतिक सौंदर्य को जीभर कर एंजौय कर रही थीं. पूरी ट्रिप के अंत में उन्हें 2 दिन के लिए अजय के घर भी जाना था. अजय सब बता ही रहा था कि अब कहां और कैसे जाना है.

फिर अजय की सलाह पर दोनों वहां से

इटली में ‘ओरोपा सैंचुरी’ चले गए, जो पहाड़ों में ही है. वहां बहुत ही पुराने चर्च हैं, जहां जीसस के हर रूप को बहुत ही अनोखे ढंग से दिखाया गया है. जीसस का साउथ अफ्रीकन और डार्क जीसस और मदर मैरी का अद्भुत रूप देख कर दोनों दंग रह गईं. इंग्लिश नेस थीं. बहुत सारी धर्मशालाएं थीं. बहुत ही अद्भुत, रोमांचक अनुभव था यह.

फोन का नैटवर्क नहीं था तो हर जगह शांति थी व इतनी सुंदरता कि कावेरी ने अरसे बाद मन को इतना शांत महसूस किया. आसपास सुंदर झीलों की आवाज, प्रकृतिप्रदत्त सौंदर्य को आत्मसात करती कावेरी जैसे किसी और ही दुनिया में पहुंच गई थी. अगले दिन एक नन दोनों को ग्रेवयार्ड दिखाने ले गई.

जूही अब तक? इस नन से काफी बातें कर चुकी थी. अपने पिता की मृत्यु के बारे में भी बता चुकी थी. नन काफी स्नेहिल स्वभाव की थी. वहां पहुंच कर नन की शांत, गंभीर आवाज गूंज रही थी, ‘बस, यही सच है. जीवन का सार यही है. यही होना है. एक दिन सब को जाना ही है. बस, यही कोशिश करनी चाहिए कि कुछ ऐसा कर जाएं कि सब के पास हमारी अच्छी यादें ही हों. जितना जीवन है, खुशी से जी लें, पलपल का उपयोग कर लें. दुखों को भूल आगे बढ़ते रहें.’’ नन तो यह कह कर थोड़ा आगे बढ़ गई. कावेरी को पता नहीं क्या हुआ, वह अद्भुत से मिश्रित भावों में भर कर जोरजोर से रो पड़ी.

नन ने वापस आ कर कावेरी का कंधा थपथपाया और फिर आगे बढ़ गई. जूही भी मां की स्थिति देख सिसक पड़ी. पर जीभर कर रो लेने के बाद कावेरी ने अचानक खुद को बहुत मजबूत महसूस किया. खुद को संभाला, अपने और जूही के आंसू पोंछे. जूही को गले लगा कर प्यार किया और मुसकरा दी.

जूही अब हैरान हुई, ‘‘क्या हुआ, मां, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘हां, अब बिलकुल ठीक हूं, चलें?’’ दोनों आगे चल दीं.

जूही ने मां की ऐसी शांत मुद्रा बहुत दिनों बाद देखी थी, कहा, ‘‘मां, बहुत थक गई, आज जल्दी सोऊंगी मैं.’’

‘‘तुम सोना, मुझे कुछ काम है.’’

‘‘क्या  काम, मां?’’ जूही फिर हैरान हुई.

‘‘आज ही रात को नई कहानी में इस ट्रिप का अनुभव लिखना है न.’’

‘‘ओह, सच मां?’’ जूही ने मां के गाल चूम लिए.

एकदूसरे का हाथ पकड़ शांत मन से दोनों ने कुछ इस तरह से आगे कदम बढ़ा दिए थे कि नन भी पीछे मुड़ कर उन्हें देख मुसकरा दी थी.

Hindi Kahaniyan : ताकझांक – शालू को रणवीर से आखिर क्यों होने लगी नफरत?

Hindi Kahaniyan : वह नई स्मार्ट सी पड़ोसिन तरुण को भा रही थी. उसे अपनी खिड़की से छिपछिप कर देखता. नई पड़ोसिन प्रिया भी फैशनेबल तरुण से प्रभावित हो रही थी. वह अपने सिंपल पति रणवीर को तरुण जैसा फैशनेबल बनाने की चाह रखने लगी थी.

शाम को जब प्रिया बनसंवर कर बालकनी में पड़े झले पर आ बैठती तो तरुण चोरीछिपे उस की हर बात नोटिस करता. कितनी सलीके से साड़ी पहने चाय की चुसकियां लेते हुए किसी किताब में गुम रहती है मैडम. क्या करे मियांजी का इंतजार जो करना है और मियांजी हैं जो जरा भी खयाल नहीं रखते इस बात का. बेचारी को खूबसूरत शाम अकेले काटनी पड़ती है. काश वह उस का पति होता तो सब काम छोड़ फटाफट चला आता.

तरुण का मन गाना गाने को मचलने लगता, ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए…’ कितने ही गाने हैं हसीन शाम के ‘ये शाम मस्तानी…’ ‘‘तरु कहां हो… समोसे ठंडे हो रहे हैं,’’ तभी उसे सपनों की दुनिया से वास्तविकता के धरातल पर पटकती उस की पत्नी शालू की आवाज सुनाई दी.

आ गई मेरी पत्नी की बेसुरी आवाज… इस के सामने तो बस एक ही गाना गा सकता हूं कि जब तक रहेगा समोसे में आलू तेरा रहूंगा ओ मेरी शालू…

‘‘बालकनी में हो तो वहीं ले आती हूं,’’ शालू कपों में चाय डालते हुए किचन से ही चीखी.

‘‘उफ… नहीं, मैं आया,’’ कह तरुण जल्दी यह सोचते हुए अंदर चल दिया, ‘कहां वह स्लिमट्रिम सी कैटरीना कैफ और कहां ये हमारी मोटी भैं…’

तरुण ने कदमों और विचारों को अचानक ब्रेक न लगाए होते तो चाय की ट्रे लाती शालू से टकरा गया होता.

तरुण रोज सुबह जौगिंग पर जाता तो प्रिया वहां दिख जाती. तरुण से रहा नहीं गया. जल्द ही उस ने अपना परिचय दे डाला, ‘‘माईसैल्फ तरुण… मैं आप के सामने वाले फ्लैट…’’

‘‘हांहां, मैं ने देखा है… मैं प्रिया और वे सामने जो पेपर पढ़ रहे हैं वे मेरे पति रणवीर हैं,’’ प्रिया उस की बात काटते हुए बोली.

‘‘कभी रणवीर को ले कर हमारे घर आएं.मैं और मेरी पत्नी शालू ही हैं… 2 साल ही हुएहैं हमारी शादी को,’’ तरुण बोला.

‘‘रियली? आप तो अभी बैचलर से ही दिखते हैं,’’ प्रिया ने तरुण के मजबूत बाजुओं पर उड़ती नजर डालते हुए कहा, ‘‘हमारी शादी को भी 2 ही साल हुए हैं.’’ अपनी तारीफ सुन कर तरुण उड़ने सा लगा.

‘‘रणवीर साहब अपना राउंड पूरा कर चुके?’’

‘‘अरे कहां… जबरदस्ती खींच कर लाती हूं इन्हें घर से… 1-2 राउंड भी बड़ी मुश्किल से पूरा करते हैं.’’

‘‘यहां पास ही जिम है. मैं यहां से सीधा वहीं जाता हूं 1 घंटे के लिए.’’

‘‘वंडरफुल… मैं भी जाती हूं उधर लेडीज विंग में…  ड्रौप कर के ये सीधे घर चले जाते हैं… सो बोरिंग… चलिए आप से मिलवाती हूं शायद आप को देख उन का भी दिल बौडीशौडी बनाने का करने लगे.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं? मेरी पत्नी भी कुछ इसी टाइप की है… जौगिंग क्या वाक तक के लिए भी नहीं आती… आप मिलो न उस से. शायद आप को देख कर वह भी स्लिम ऐंड फिट बनना चाहे,’’ तरुण तारीफ करने का इतना अच्छा मौका नहीं खोना चाहता था.

‘‘कल अपनी वाइफ को भी यहीं पार्क की सैर पर लाइएगा.’’ फिर कल आप के पति से वाइफ के साथ ही मिलूंगा.

‘‘ओके बाय,’’ उस ने अपने हेयरबैंड को ठीक करते हुए बड़ी अदा से थ हिलाया.

‘‘बाय,’’ कह कर तरुण ने लंबी सांस भरी.

तरुण जानबूझ कर उलटे राउंड लगाने लगा ताकि वह प्रिया को बारबार सामने से आता देख पाएगा. पर यह क्या पास आतेआते खड़ूस से पति की बगल में बैठ गई. ‘चल देखता हूं क्या गुफ्तगू, गुटरगूं हो रही है,’ सोच वह झडि़यों के पीछे हो लिया. ऐसे जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हो… किसी को शक न हो. वह कान खड़े कर सुनने लगा…

‘‘रणवीर आप तो बिलकुल ही ढीले हो कर बैठ जाते हो. अभी 1 ही राउंड तो हुआ आप का… वह देखो सामने से आ रहा है… अरे कहां गया… कितनी फिट की हुई है उस ने बौडी… लगातार मेरे साथ 5 चक्कर तो हो ही गए उस के अभी भी… हमारे सामने वाले घर में ही तो रहता है… आप ने देखा है क्या सौलिड बौडी है उस की…’’

‘अरे, यह तो मेरे बारे में ही बात कर रही है और वह भी तारीफ… क्या बात है…. तरु तुम तो छा गए,’ बड़बड़ा कर वह सीधा हो कर पीछे हो लिया. ‘खड़ूस माना नहीं… आलसी कहीं का… बेचारी रह गई मन मार कर… चल तरु तू भी चल जिम का टाइम हो गया है’ सोच वह जौगिंग करते हुए ही जिम पहुंच गया.

प्रिया को जिम के पास उतार कर रणवीर चला गया यह कहते हुए, ‘घंटे भर बाद लेने आ जाऊंगा… यहां वक्त बरबाद नहीं कर सकता.’

‘हां मत कर खड़ूस बरबाद… तू जा घर में बैठ और मरनेकटने की खबरें पढ़.’ मन ही मन बोलते हुए तरु ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘और अपनी शालू रानी तो घी में तर आलू के परांठे खाखा कर सुबहसुबह टीवी सीरियल से फैशन सीखने की क्लास में मस्त खुद को निखारने में जुटी होंगी.’

दूसरे दिन तरुण शालू को जबरदस्ती प्रिया जैसा ट्रैक सूट पहना कर पार्क में ले आया.1 राउंड भी शालू बड़ी मुश्किल से पूरा कर पाई. थक कर वह साइड की डस्टबिन से टकरा कर गिर गई.

‘‘कहां हो शालू? कहां गई?’’ पुकार लोगों के हंसने की आवाजें सुन तरुण पलटा. शालू की ऐसी हालत देख उस की भी हंसी छूट गई पर प्रिया को उस ओर देखता देख खिसियाई सी हंसी हंसते हुए हाथ का सहारा दे उठा दिया.

प्रिया के आगे गोल होती जा रही शालू को देख तरुण को और भी शर्मिंदगी महसूस होती. घर पर उस ने साइक्लिंग मशीन भी ला कर रख दी पर उस पर शालू 10-15 बार चलती और फिर पलंग पर फैल जाती.

‘‘बस न तरु हो गया न आज के लिए… सुबह से कुछ नहीं खाने दिया, बहुत भूख लगी है. खाने दो  पहले आलू के परांठे प्लीज.’’ खाने के नाम से उस में इतनी फुरती आ जाती कि तरुण के छिपाए परांठे फटाफट उठा लाती और फटाफट खाने लगती.

‘‘तुम भी खा कर तो देखो मिर्च के अचार के साथ… बड़े टेस्टी लग रहे हैं… बाद में अपना घासफूस खा लेना,’’ परांठे का टुकड़ा उस की ओर बढ़ाते हुए शालू मुसकराई.

‘‘नो थैंक्स… तुम्हीं खाओ,’’ कह तरुण डाइनिंग टेबल पर रखे कौर्नफ्लैक्स दूध की ओर बढ़ गया.शालू टीवी खोल कर बैठ गई तो तरुण बाउल ले कर अपनी विंडो पर आ गया.

‘ओह आज तो सुबह से बड़ी चहलकदमी हो रही है… तैयार मैडम प्रिया सधे कदमों से हाईहील में खटखट करते इधरउधर आजा रही हैं,’ दिल में उस के जलतरंग सी उठने लगी. ‘लगता है किसी फंक्शन में जा रही है… उफ लो यह खड़ूस अपने जूते पहने यहीं आ मरा… बेटा, थ्री पीस सूट पहन कर हीरो नहीं बन जाएगा… बीवी की बात कभी तो मान लिया कर… थोड़ी बौडीशौडी बना ले,’ तरुण परदे के पीछे खड़ा बड़बड़ाए जारहा था.

‘काश, प्रिया जैसी मेरी बीवी होती… खटखट करते2 कदम आगे2 कदम पीछे करके मेरे साथ डांस करती… मैं उसे यों गोलगोल घुमाता,’ वह खयालों में खो गया.

एक दिन खयालों को सच करने के लिए तरुण शालू के नाप के हाईहील सैंडल ले आया. बड़े चाव से शालू को पहना कर उस ने म्यूजिक औन कर दिया. शालू को सहारा दे कर उस ने खड़ा किया. घुमाया तो शालू खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘अरे तरु मुझ से नहीं होगा… गिर जाऊंगी,’’ फिर अपनेआप को संभालने के लिए उसने तरुण को जो खींचा तो दोनों बिस्तर पर जा गिरे. तरुण को भी हंसी आ गई. थोड़ी देर तक दोनों हंसते रहे.

प्रिया को अपनी बालकनी से ज्यादा कुछ तो दिखाई नहीं दिया पर दोनों की हंसी बड़ी देर तक सुनाई देती रही.

‘अकसर दोनों की हंसीखिलखिलाहट सुनाई देती है. कितना हंसमुख है तरुण… अपनी पत्नी को कितना खुश रखता है और एक ये हैं श्रीमान रणवीर हमेशा मुंह फुलाए बैठे रहते हैं जैसे दुनिया का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर हो,’ प्रिया के दिल में हूक सी उठी तो वह अंदर हो ली.

थोड़ी देर बाद ही तरुण उठा और शालू को भी उठा दिया, ‘‘चलो, थोड़ी प्रैक्टिस करते हैं… कल 35 नंबर कोठी वाले उमेशजी के बेटे की सगाई है. सारे पड़ोसियों को बुलाया है. हमें भी. और रणवीर फैमिली को भी. खूब डांसवांस होगा. बोला है खूब तैयार हो कर आना.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. तभी ये सैंडल…’’ शालू मुसकराई.

शालू फिर खड़ी हो गई. किसी तरह तरुण कमर में हाथ डाल कर डांस करवाने लगा. हंसते हुए शालू ने 2 राउंड लिए. फिर अचानक पैर ऐसा मुड़ा कि हील सैंडल से अलग जा पड़ी और शालू अलग.

‘‘तुम से कुछ नहीं होगा शालू… तुम ने अच्छेखासे सैंडल भी बेकार कर दिए.’’

‘‘ब्रैंडेड नहीं थे…  तो पहले ही लग रहा था पर आप को बुरा लगेगा इसलिए कहा नहीं. प्रिया को रणवीर हर चीज ब्रैंडेड ही दिलाते हैं. काश, मेरा पति भी इतना रईस होता,’’ कह शालू ने ठंडी आह भरी.

‘‘यह देखो क्या किया…’’ तरुण ने दोनों टुकड़े उसे थमा दिए.

शालू ने उन्हें क्विकफिक्स से चिपका दिया. बोली, ‘‘देखो तरु सैंडल बिलकुल सही हो गया. अब चलो पार्टी में.’’

‘‘हां पर डांसवांस तुम रहने ही देना… वहां तुम्हारे साथ कहीं मेरी भी भद्द न हो जाए,’’ तरुण बेरुखाई से बोला.

उधर रणवीर अपनी बालकनी में शालू की किचन से रोज आती आलू, पुदीने के परांठों की खुशबू से काफी प्रभावित था. पत्नी प्रिया के रोजरोज के उबले अंडे, दलिया के नाश्ते से त्रस्त था. कई बार चुपके से शालू की तारीफ भी कर चुका था और वह कई बार मेड के हाथों उसे भिजवा भी चुकी थी. आज सुबह भी उस ने परांठे भिजवाए थे.

शालू तरुण के साथ नीचे उतरी तो प्रिया और रणवीर भी आ चुके थे. रणवीर गाड़ी स्टार्ट कर रहा था.

‘‘आइए, साथ ही चलते हैं तरुणजी,’’ रणवीर ने कहा तो प्रिया ने भी इशारा किया. चारों बैठ गए.

रणवीर बोला, ‘‘परांठों के लिए थैंक्स शालूजी… आप के हाथों में जादू है… मैं अपनी बालकनी से रोज पकवानों की खुशबू का मजा लेता हूं… प्रिया को तो घी, तेल पसंद नहीं… न बनाती है न मु?ो खाने देना चाहती है. तरुणजी आप के तो मजे हैं. रोज बढि़याबढि़या पकवान खाने को मिलते हैं. काश…’’

‘अबे आगे 1 लफ्ज भी न बोलना… क्या बोलने जा रहा था तू,’ तरुण मुट्ठियां भींचते हुए मन ही मन बुदबुदा उठा.

इधर शालू महंगी बड़ी सी गाड़ी में बैठ एक रईस से अपनी तारीफ सुन कर निहाल हुई जा रही थी.

और प्रिया ‘हां फैट खूब खाओ और ऐक्सरसाइज मत करो. फिर थुलथुल बौडी लेकर घूमना इन्हीं यानी शालू के साथ… तरुणकी तारीफ में क्यों बोलोगे? क्या गठीली बौडीहै. काश मेरा हबी ऐसा होता,’ प्रिया मन हीमन बोली.

शालू पर उड़ती नजर पड़ी तो न जाने क्यों वह जलन सी महसूस करने लगी. गाड़ी के ब्रेक के साथ सभी के उठते विचारों को भी ब्रेक लगे. पार्टी स्थल आ गया था.

मेहमान आ चुके थे. फंक्शन जोरों पर था. मीठीमीठी धुन के साथ कोल्डड्रिंक्स, मौकटेल के दौर चल रहे थे. तभी वधू का प्रवेश हुआ. स्टेज से उतर लड़के ने उस का स्वागत किया और स्टेज पर ले आया. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सगाई की रस्म पूरी की गई.

सभी ने बारीबारी से स्टेज पर आ कर बधाई दी. लड़कालड़की की शान में कुछ कहना भी था उन्हें चाहे गा कर चाहे वैसे ही. सभी ने कुछ न कुछ सुनाया.

तरुण और शालू स्टेज पर आए तो प्रिया की हसरत भरी नजरें डैशिंग तरुण पर ही जमी थीं. तरुण ने किसी गीत की मुश्किल से 2 लाइन ही गुनगुनाईं और फिर बधाई गिफ्ट थमा शालू का हाथ थामे शरमाते हुए स्टेज से उतर गया.

‘ओह तरुण की तो बस बौडी ही बौडी है. अंदर तो कुछ है ही नहीं… 2 शब्द भी नहीं बोल पाया लोगों के सामने. कितना शाई… गाना भी पूरा नहीं गा सका,’ तरुण को स्टेज पर चढ़ता देख प्रिया की आंखों में आई चमक की जगह अब निराशा झलक रही थी. आकर्षण कहीं काफूर हो रहा था.

‘शालू, आप ऐसे कैसे जा सकती हो बगैर डांस किए. मैं ने आप का बढि़या डांस देखा है… मेरे हाथों में… आइएआइए,’’ उमेशजी की पत्नी आशाजी ने आत्मीयता से उसे ऊपर बुला लिया.

शालू ने तरुण को इशारा किया. शालू ने तरुण को इशारे से ही तसल्ली दी और सैंडल उतार कर स्टेज पर आ गई.

फरमाइश का गाना बज उठा. फिर तो शालू ऐसी नाची कि सभी उस के साथ तालियां बजाते हुए मस्त हो थिरकने लगे. तरुण ने देखा वैस्टर्न डांस पर थिरकने वाले लोग भी ठुमकने लगे थे… वह नाहक ही घबरा रहा था… शालू तो छा गई…

गाना खत्म हुआ तो प्रिया के साथ रणवीर स्टेज पर आ गया. उस ने अपनी ठहरी हुई आवाज और धाराप्रवाह में चंद शेरों से सजे संक्षिप्त वक्तव्य के द्वारा सब को ऐसा मंत्रमुगध किया कि सभी वंसमोर वंसमोर कह उठे. प्रिया भी उसे गर्व से देखने लगी कि कितने शालीन ढंग से कितने खूबसूरती से शब्दों को पिरो कर बोलता है रणवीर. उस के इसी अंदाज पर तो वह मर मिटी थी. उस ने कुहनी के पास से रणवीर का बाजू प्यार से पकड़ लिया था. दोनों ने फिर किसी इंगलिश धुन पर डांस किया.

अब डांस फ्लोर पर सभी एकसाथ डांस का मजा लेने लगे. डांस का म्यूजिक चल पड़ा था. स्टेज पर वरवधू भी थिरकने लगे. सभी पेयर में नृत्य कर रहे थे. कभी पेयर बदल भी लिए जा रहे थे. शालू ने धीरेधीरे तरुण के साथ 1-2 स्टेप लिए पर पेयर बदलते ही वह घबरा उठी और किनारे लगी सीट में एक पर जा बैठी. तरुण थोड़ी देर नई रस्म में शामिल हो नाचता रहा.

एक बार प्रिया भी उस के पास आ गई पर दूसरे ही पल वह दूसरे की बांहों में थिरकती तीसरी के पास पहुंच गई. तरुण को झटका सा लगा. कुछ अजीब सा फील होने लगा, ‘कैसे हैं ये लोग… रणवीर अपने में मस्त किसी और की पत्नी के साथ और उस की पत्नी प्रिया किसी और के पति के साथ… अजब कल्चर है इन का. इस से अच्छी तो मेरी शालू है.’ उस ने दूर अकेली बैठी शालू की ओर देखा और फिर उस के पास चला गया.

रणवीर ने देख लिया था, ‘उफ, शालू ने न तो खुद ऐंजौय किया और न पति को ही मजे लेने दिए. अपने पास बुला लिया… ऐसी पार्टियों के लायक ही नहीं वे… उधर प्रिया को देखो. कैसे एक हीरोइन सी सब की नजरों का केंद्र बनी हुई है. आई जस्ट लव हर…’ उसे नशा चढ़ने लगा था. कदमों के साथ उस की आवाज भी लड़खड़ाने लगी थी. रणवीर ने प्रिया को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया तो उस के कदम भी लड़खड़ाए और फिर फर्श पर जा गिरी. हड़कंप मच गया. क्या हुआ? क्या हुआ?

प्रिया दर्द से कराह उठी थी. पैर में फ्रैक्चर हो गया था. रणवीर तो खुद उसे उठाने की हालत में न था. तरुण और शालू ने जैसेतैसे अस्पताल पहुंचाया.

उमेशजी अपने ड्राइवर को गाड़ी ड्राइव करने के लिए बोल रहे थे पर रणवीर माना नहीं. रास्ते भर तरुण, उस की इधरउधर भागती गाड़ी के स्टेयरिंग को मुश्किल से संभालता रहा. पर इस सब से बेखबर शालू महंगी गाड़ी में बैठी एक बार फिर अपने रईस पति की कल्पना में खो गई थी.

प्रिया घर आ गई थी. उस के पैर में प्लास्टर चढ़ गया था. लाते समय भी शालू और तरुण अस्पताल पहुंचे थे. तभी एक गरीब महिला रोती हुई आई और सब से अपने बच्चे के लिए खून देने के लिए गुहार करने लगी.

‘‘तुम प्रिया मैडम के पास चलो शालू. मैं अभी आता हूं,’’ कह तरुण ने शालू से कहा तो वह उस का आशय समझ गई.‘‘अभी 10 दिन भी नहीं हुए तुम्हें खून दिए तरुण,’’ शालू बोली.

तरुण नहीं माना. उस गरीब को खून दे आया. फिर प्रिया को उस के फ्लोर पर सहीसलामत पहुंचाया. अगले दिन बौस से डांट भी खानी पड़ी. औफिस पहुंचने में लेट जो हो गया था.

‘तरुण भी न दूसरों की खातिर अपनी परवाह नहीं करता,’ शालू औटो में बैठी सोच रही थी.

अपने ब्लौक के गेट के पास आने पर उसे एक संतरे की रेहड़ी वाला दिखा. उस ने औटो रुकवाया और उतर कर औटो वाले को पैसे देने लगी.

तभी वहां से हवा में बातें करती एक लंबी सी गाड़ी गुजरी. वह रोमांचित हो उठी. उस ने सिर उठा कर देखा, ‘अरे ये तो हमारे पड़ोसी रणवीर हैं. काश, उस का पति भी कोई बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ी वाला होता.’ शालू अभी यह सोच ही रही थी कि वही गाड़ी उलटी साइड से आ कर रेहड़ी वाले से जा टकराई. रेहड़ी उलट गई और रेहड़ी वाला छिटक कर दूर जा गिरा. उस के संतरे सड़क पर चारों ओर बिखर गए. शालू ने साफ देखा था. गाड़ी गलत साइड से आ कर रेहड़ी वाले से टकराई थी. फिर भी रणवीर ने तमाचे उस गरीब को जड़ दिए. फिर चीख कर बोला, ‘‘देख कर नहीं चल सकता?’’

‘‘साहबजी…’’ आंसू बन रेहड़ी वाले का दर्द आंखों में उतर आया. वह हाथ जोड़े इतना ही बोल सका.

‘‘ये पकड़ अपने नुकसान के रुपए… ज्यादा नाटक मत कर… कुछ नहीं हुआ… अब जल्दी सड़क साफ कर,’’ कह रणीवर ने उसे 2 हजार का 1 नोट दिया. शालू रणवीर का क्रूर व्यवहार देखती रह गई कि इतना अमानवीय बरताव…

उस की महंगी गाड़ी फिर तेजी से उस की आंखों से ओझल हो गई. शालू को इस समय कोई रोमांच न हुआ, बल्कि उसे अपनी आंखों में नमी सी महसूस होने लगी. उस ने पर्स से रुमाल निकाल कर रेहड़ी वाले के माथे से रिसता खून पोंछ कर बैंडएड चोट पर चिका दी. फिर संतरे उठवाने में उस की मदद करने लगी.

‘‘रहने दीजिए मैडमजी मैं उठा लूंगा,’’ रेहड़ी वाले के पैरों और हाथों में भी चोटें थीं.

शालू ने नजरों से ओझल हुई उस गाड़ी की ओर देखा. वहां सिर्फ धूल का गुबार था, जिस ने उस की सपनीली कल्पना को उड़ा कर रख दिया कि शुक्र है उस का तरुण महंगी बड़ी गाड़ी में घूमने वाले ऐसे छोटे दिल के घटिया इंसान की तरह नहीं है. न जाने उस ने कितनी बार तरुण को ऐसे जरूरतमंदों की मदद करते देखा है. रईस ही तो है वह. वास्तव में बड़े दिल वाला रईस. शालू को तरुण पर प्यार आने लगा और फिर वह तेज कदमों से घर की ओर बढ़ चली.

Short Stories in Hindi : जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए

Short Stories in Hindi : फ्लाइट बेंगलुरु पहुंचने ही वाली थी. विहान पूरे रास्ते किसी कठिन फैसले में उलझ था. इसी बीच  मोबाइल पर आते उस कौल को भी वह लगातार इग्नोर करता रहा. अब नहीं सींच सकता था वह प्यार के उस पौधे को, उस का मुरझ जाना ही बेहतर है. इसलिए उस ने मिशिका को अपनी फोन मैमोरी से रिमूव कर दिया. मुमकिन नहीं था यादों को मिटाना, नहीं तो आज वह उसे दिल की मैमोरी से भी डिलीट कर देता सदा के लिए.

‘सदा के लिए… नहींनहीं, हमेशा के लिए नहीं, मैं मिशी को एक मौका और दूंगा,’ विहान मिशी के दूर होने के खयाल से ही डर गया.

‘शायद ये दूरियां ही हमें पास ले आएं,’ यही सोच कर उस ने मिशी की लास्ट फोटो भी डिलीट कर दी.

इधर  मिशिका परेशान हो गई थी, 5 दिनों से विहान से कोई कौंटैक्ट नहीं हुआ था.

‘‘हैलो दी, विहान से बात हुई क्या? उस का न कौल लग रहा है न कोई मैसेज पहुंच रहा है, औफिस में एक प्रौब्लम आ गई है, जरूरी बात करनी है,’’ मिशी बिना रुके बोलती गई.

‘‘नहीं, मेरी कोई बात नहीं हुई. और प्रौब्लम को खुद सौल्व करना सीखो,’’ पूजा ने इतना कह कर फोन काट दिया.

मिशी को दी का यह रवैया अच्छा नहीं लगा, पर वह बेपरवाह सी तो हमेशा से ही थी, सो उस ने दी की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

मिशिका उर्फ मिशी मुंबई में एक कंपनी में जौब करती है. उस की बड़ी बहन है पूजा, जो अपने मौमडैड के साथ रहते हुए कालेज में पढ़ाती है. विहान ने अभी बेंगलुरु में नई मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की है. उस की बहन संजना अभी पढ़ाई कर रही है. मिशी और विहान के परिवारों में बड़ा प्रेम है. वे पड़ोसी थे. विहान का घर मिशी के घर से कुछ ही दूरी पर था. 2 परिवार होते हुए भी वे एक परिवार जैसे ही थे. चारों बच्चे साथसाथ बढ़े हुए.

गुजरते दिनों के साथ मिशी की बेपरवाही कम होने लगी थी. विहान  से बात न हुए आज पूरे 3 महीने बीत गए थे. मिशी को खालीपन लगने लगा था. बचपन से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. जब पास थे तो वे दिन में कितनी ही बार मिलते थे, और जब जौब के कारण दूर हुए तो कौल और चैट का हिसाब लगाना भी आसान काम नहीं था. 2-3 महीने गुजरने के बाद मिशी को विहान की बहुत याद सताने लगी थी. वह जब भी घर पर फोन करती तो मम्मीपापा, दीदी सभी से विहान के बारे में पूछती. आंटीअंकल से बात होती तब भी जवाब एक ही मिलता, ‘वह तो ठीक है, पर तुम दोनों की बात नहीं हुई, यह कैसे पौसिबल है?’ अकसर जब मिशी कहती कि महीनों से बात नहीं हुई तो सब झठ ही समझते थे.

दशहरा आ रहा था, मिशी जितनी खुश घर जाने को थी उस से कहीं ज्यादा खुश यह सोच कर थी कि अब विहान से मुलाकात होगी. इन छुट्टियों में वह भी तो आएगा.

‘बहुत झगड़ा करूंगी, पूछूंगी उस से  यह क्या बचपना है, अच्छी खबर लूंगी. क्या समझता है अपनेआप को… ऐसे कोई करता है क्या,’ ऐसी ही अनगिनत बातों को दिल में समेटे वह घर पहुंची. त्योहार की रौनक मिशी की उदासी कम न कर सकी. छुट्टियां खत्म हो गईं, वापसी का समय आ गया पर वह नहीं आया जिस का मिशी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. दोनों घरों की दूरियां नापते मिशी को दिल की दूरियों का एहसास होने लगा था. अब इंतजार के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं था.

मिशी दीवाली की शाम ही घर पहुंच पाई थी. डिनर की  तैयारियां चल रही थीं. त्योहारों पर दोनों फैमिली साथ ही समय बितातीं, गपशप, मस्ती, खाना, सब खूब एंजौय करते थे. आज विहान की फैमिली आने वाली थी. मिशी खुशी से झम उठी थी, आज तो विहान से बात हो ही जाएगी. पर उस रात जो हुआ उस का मिशी को अंदाजा भी नहीं था. दोनों परिवारों ने सहमति से पूजा और विहान का रिश्ता तय कर दिया. मिशी को छोड़ सभी बहुत खुश थे.

‘पर मैं खुश क्यों नहीं हूं? क्या मैं विहान से प्यार… नहींनहीं, हम तो, बस, बचपन के साथी हैं. इस से ज्यादा तो कुछ नहीं है. फिर मैं आजकल विहान को ले कर इतना क्यों परेशान रहती हूं? उस से  बात न होने से मुझे यह क्या हो रहा है. क्या मैं अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं पा रही हूं?’ इसी उधेड़बुन में रात आंखों में  बीत गई थी. किसी से कुछ शेयर किए बिना ही वह  वापस मुंबई  लौट  गई. दिन यों ही बीत रहे थे. पूजा की शादी के बारे में न घर वालों ने आगे कुछ बताया न ही  मिशी ने पूछा.

एक दिन दोपहर को मिशी के फोन पर विहान की कौल आई, ‘‘घर की लोकेशन सैंड करो, डिनर साथ ही करेंगे.’’

मिशी ‘‘करती हूं’’ के अलावा कुछ न बोल सकी. उस के चेहरे पर मुसकान बिखर गई थी. उस दिन वह औफिस से जल्दी घर पहुंची, खाना बना कर घर संवारा और खुद को संवारने में जुट गई.

‘मैं विहान के लिए ऐसे क्यों संवर रही हूं? इस से पहले तो कभी मैं ने इस तरह नहीं सोचा,’ वह सोचने लगी. उस को खुद पर हंसी आ गई. अपने ही सिर पर धीरे से चपत लगा कर वह विहान के इंतजार में भीतरबाहर होने लगी. उसे लग रहा था जैसे वक्त थम गया हो. वक्त काटना मुश्किल हो रहा था.

लगभग 8 बजे डोरबेल बजी. मिशी की सांसें ऊपरनीचे हो गईं, शरीर ठंडा सा लगने लगा, होंठों पर मुसकराहट तैर गई. दरवाजा खोला, पूरे 10 महीने बाद विहान उस के सामने था. एक पल को वह उसे देखती ही रही, दिल की बेचैनी आंखों से निकलने को उतावली हो उठी.

विहान भी लंबे समय बाद अपनी मिशी से मिल उसे देखता ही रह गया. फिर मिशी ने ही किसी तरह संभलते हुए विहान को अंदर आने को कहा. मिशी की आवाज सुन  विहान  अपनी सुध में वापस आया. दोनों देर तक चुप बैठे, छिपछिप कर एकदूसरे को देख लेते, नजरें मिल जाने पर यहांवहां देखने लगते. दोनों ही कोशिश में थे कि उन की चोरी पकड़ी न जाए.

डिनर करने के बाद, जल्द ही फिर मिलने को कह कर विहान वापस चला गया. उस रात वह विहान से कोई सवाल नहीं कर सकी थी, जितना विहान पूछता रहा, वह उतना ही जवाब देती गई. वह खोई रही, विहान को इतने दिनों बाद अपने करीब पा कर, जैसे जी उठी थी वह उस रात.

विहान एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था. 15 दिन बीत चुके थे, इन 15 दिनों में विहान और मिशी 2 ही बार मिले.

विहान का काम पूरा हो चुका था, एक दिन बाद उस को निकलना था. मिशी विहान को ले कर बहुत परेशान थी. आखिर उस ने निर्णय लिया कि विहान के जाने के पहले वह उस से बात करेगी, पूछेगी उस की बेरुखी का कारण. मिशी अभी इसी उधेड़बुन में थी, तभी मोबाइल बज उठा. विहान की कौल थी.

‘‘हैलो, मिशी औफिस के बाद तैयार रहना, बाहर चलना है, तुम्हें किसी से मिलवाना है.’’

‘‘किस से मिलवाना है, विहान?’’

‘‘शाम होने तो दो, पता चल जाएगा.’’

‘‘बताओ तो?’’

‘‘समझ लो, मेरी गर्लफ्रैंड है.’’

इतना सुनते ही मिशी चुप हो गई. 6 बजे विहान ने उसे पिक किया. मिशी बहुत उदास थी, दिल में हजारों सवाल उमड़ रहे थे. वह कहना चाहती थी कि विहान, तुम्हारी शादी पूजा दी से होने वाली है, यह क्या तमाशा है. पर नहीं कह सकी, चुपचाप बैठी रही.

‘‘पूछोगी नहीं, कौन है? विहान ने कहा.

‘‘पूछ कर क्या करना है? मिल ही लूंगी कुछ देर में,’’ मिशी ने धीरे से कहा.

थोड़ी देर बाद वे समुद्र किनारे पहुंचे. विहान ने मिशी को एक जगह इंतजार करने को कहा, ‘‘तुम यहां रुको, मैं उस को ले कर आता हूं.’’

आसमान ?िलमिलाते तारों की सुंदर बूटियों से सजा था. समुद्र की लहरें प्रकृति का मनभावन संगीत फिजाओं में घोल रही थीं. हवा मंथर गति से बह रही थी. फिर भी मिशिका का मन उदासी के भंवर में फंसा जा रहा था.

‘विहान मुझ से दूर हो जाएगा, मेरा विहान’ सोचतेसोचते उस की उंगलिया खुदबखुद रेत पर विहान का नाम उकेरने लगीं.

‘‘विहान… मेरा नाम इस से पहले इतना अच्छा कभी नहीं लगा,’’ विहान पीछे से खड़ेखड़े ही बोला.

मिशी ने हड़बड़ाहट में नाम पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कहां है… कब आए तुम, कहां है वह?’’

मिशी की आंखें उस लड़की को  ढूंढ़ रही थीं जिस से मिलवाने विहान उसे  वहां ले कर आया था.

‘‘नाराज हो कर चली गई,’’ मिशी के पास बैठते हुए विहान ने कहा.

‘‘नाराज हो गई, पर क्यों?’’ मिशी ने पूछा.

‘‘अरे वाह, मैं जिसे प्रपोज करने वाला हूं, वह लड़की यदि देखे कि मेरे बचपन की दोस्त रेत पर इस कदर प्यार से उस के बौयफ्रैंड का नाम लिख रही है, तो गुस्सा नहीं आएगा उसे,’’ विहान ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘मैं ने कब लिखा तुम्हारा नाम,’’ मिशी सकपका कर बोली.

‘‘जो अभी अपनेआप रेत पर उभर आया था, उस नाम की बात कर रहा हूं.’’

उस ने नजरें झका लीं, उस की चोरी जो पकड़ी गई थी. फिर भी मिशी बोली, ‘‘मैं ने… मैं ने तो कोई नाम नहीं लिखा.’’

‘‘अच्छा बाबा, नहीं लिखा,’’ विहान ने  मुसकरा कर कहा.

मिशी समझ ही नहीं पा रही थी कि यह हो क्या रहा है.

‘‘और वह लड़की जिस से मिलवाने तुम मुझे यहां ले कर आए थे? सच बताओ न विहान.’’

‘‘कोई लड़कीवड़की नहीं है, मैं अभी जिस के करीब बैठा हूं, बस, वही है,’’ उस ने मिशी की आंखों में देखते हुए कहा.

नजरें  मिलते ही मिशी नजरें चुराने लगी.

‘‘मिशी, मत छिपाओ, आज कह दो जो भी दिल में हो,’’ विहान बोला.

मिशी की जबान खामोश थी पर आंखों में विहान के लिए प्यार साफ नजर आ रहा था, जिसे विहान ने पहले ही महसूस कर लिया था. पर वह मिशी से जानना चाहता था.

मिशी कुछ देर चुप रही, दूर समंदर में उठती लहरों के ज्वार को देखती रही. ऐसा  ही भावनाओं का ज्वार अभी उस के दिल में मचल रहा था. फिर उस ने हिम्मत बटोर कर बोलने की कोशिश की, पर उस की आंखों में जज्बातों का समंदर तैर गया, कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘कहां चले गए थे विहान, मैं… मैं… तुम को कितना मिस कर रही थी,’’ इतना कह कर वह फिर शून्य में देखने लगी.

‘‘मिशी, आज भी चुप रहोगी? बह जाने दो अपने जज्बातों को, जो भी दिल में है कहो. तुम नहीं जानतीं मैं ने इस दिन का कितना इंतजार किया है. मिशी बताओ, प्यार करती हो मुझ से?’’

मिशी विहान की तरफ मुड़ी. उस के मन की भावनाएं उस की आंखों में साफ नजर आ रही थीं. होंठ कंपकंपा रहे थे. ‘‘विहान, तुम जब नहीं थे, तब जाना कि मेरे जीवन में तुम क्या हो, तुम्हारे बिना जीना सिर्फ सांस लेना भर है. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं किस दौर से गुजरी हूं. मेरी उदासी का थोड़ा भी खयाल नहीं आया तुम को,’’ कहतेकहते मिशी रो पड़ी.

विहान ने उस के आंसू पोंछे और  मुसकराने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मिशी, तुम ने तो सिर्फ 10 महीने इंतजार किया, मैं ने वर्षों किया है. जिस तड़प से तुम कुछ दिन गुजरीं, वह मैं ने आज तक सही है. मिशी तुम मेरे लिए तब से खास हो जब मैं प्यार का मतलब भी नहीं समझता था. बचपन में खेलने के बाद जब तुम्हारे घर जाने का समय आता था तब अकसर तुम्हारी चप्पल कहीं खो जाती थी, तुम देर तक ढूंढ़ने के बाद मुझ से ही शिकायत करतीं और हम दोनों मिल कर अपने साथियों पर ही बरस पड़ते. पर मिशी वह मैं ही होता था, हर बार जो तुम्हें रोकने के लिए यह सब करता था. तुम कभी जान ही नहीं पाईं,’’ कहतेकहते विहान यादों में खो गया.

‘‘जानती हो, जब हम साथ पढ़ाई करते थे तब भी मैं टौपिक समझ न आने के बहाने से देर तक बैठा रहता. तुम मुझे बारबार समझतीं. पर, मैं नादान बना बैठा रहता सिर्फ तुम्हारा साथ पाने की चाह में. जब छुट्टियों में बच्चे बाहर अलगअलग ऐक्टिविटी करते तब भी मैं तुम्हारी पसंद के हिसाब से काम करता था ताकि तुम्हारा साथ रहे.’’

‘‘विहान…’’ मिशी ने अचरज से कहा.

‘‘अभी तुम बस सुनो मुझे और मेरे दिल की आवाज को. याद है मिशी, जब हम 12वीं में थे, तुम मुझ से कहतीं, ‘क्यों विहान, गर्लफ्रैंड नहीं बनाई, मेरी तो सब सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं?’ मैं पूछता कि तुम्हारा भी है तो तुम हंस देतीं, ‘हट पागल, मुझे तो पढ़ाई करनी है एमबीए की, फिर मस्त जौब. पर विहान,  तुम्हारी गर्लफ्रैंड होनी चाहिए’ इतना  कह कर तुम मुझे अपनी कुछ सहेलियों की खूबियां गिनवाने लगतीं. मेरा मन करता कि तुम्हें  झकझर कर कहूं कि तुम हो तो, पर नहीं कह सका.

‘‘और तुम्हें जो अपने हर बर्थडे पर  जिस सरप्राइज का सब से ज्यादा इंतजार होता, वह देने वाला मैं ही था. बचपन में जब तुम को तुम्हारी फेवरेट टौफी तुम्हारे पैंसिल बौक्स में मिली, तुम बेहद खुश हुई थीं. अगली बार भी जब मैं ने तुम को सरप्राइज किया, तब तुम ने कहा था, ‘विहान, पता नहीं कौन है, मौम, डैड, दी या मेरी कोई फ्रैंड, पर मेरी इच्छा है कि मुझे हमेशा यह सरप्राइज गिफ्ट  मिले.’ तुम ने सब के नाम लिए, पर मेरा नहीं,’’ कहतेकहते विहान की आवाज लड़खड़ा सी गई, फिर भर आए गले को साफ कर वह आगे बोला, ‘‘तब से हर बार मैं यह करता गया. पहले पैंसिल बौक्स था, फिर बैग, फिर तुम्हारा पर्स और अब कूरियर.’’

सच जान कर मिशी जैसे सुन्न हो गई. वह हर बात विहान से शेयर करती थी. पर कभी यह नहीं सोचा कि विहान भी तो वह शख्स हो सकता है. उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

रात गहरा चुकी थी. चांद स्याह रात के माथे पर बिंदी बन कर चमक रहा था. तेज हवा और लहरों के शोर में मिशी के जोर से धड़कते दिल की आवाज भी मिल रही थी. विहान आज वर्षों से छिपे प्रेम की परतें खोल  रहा था.

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है. मैं ने बहुत हिम्मत कर अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था. मैं ने धड़कते दिल से तुम से कहा, दिखाऊं फोटो, तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हारा रिऐक्शन देख, मैं ठगा सा रह गया. मुझे लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला. पगली से प्यार कर बैठा,’’ इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा तो मैं ने कहा, ‘वाओ, कब लिया यह फोटो, बहुत प्यारा है, सैंड करो’ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.’’

‘‘जी, मैडमजी, मैं तुम्हारी लाइफ में  इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाईं. ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थीं, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नहीं,’’ विहान कहता जा रहा था. मिशी जोर से अपनी मुट्ठियां भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान न जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झकाए सुनती रही. मिशी का गला रुंध गया, ‘‘विहान, इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है. और तब तो बिलकुल नहीं जब उसे कोई समझने वाला ही न हो. कितना कुछ दबा रखा है तुम ने. मेरे साथ की छोटी से छोटी बात कितनी शिद्दत से सहेज कर रखी है तुम ने.’’

‘‘अरे, पागल रोते नहीं. और यह किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थीं. मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा. इसलिए प्यार का एहसास कहीं गुम हो गया था. और इस हकीकत को सामने लाने के लिए मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया. कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी सदा जरूर पहुंचेगी. नहीं तो, मुझे आगे बढ़ना होगा तुम को छोड़ कर.’’

‘‘मैं कितनी मतलबी थी.’’

‘‘न बाबा, तुम बहुत प्यारी तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. वह धीरे से विहान के कंधों पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया. वह एकदम उठ खड़ी हुई.

‘‘क्या हुआ, मिशी?’’

‘‘यह सब गलत है.’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…’’

‘‘मैं और पूजा….’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी, मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया. सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और, उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. मांपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी. फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी. किसी को कोई प्रौब्लम नहीं है. अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का.’’

इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. अब न कोई शिकायत बची थी, न सवाल.

‘‘बोलो मिशी, मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,’’ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,’’ मिशी ने नजरें झका कर भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था जब मैं 10 महीने बाद  तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर, झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती,’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा जी, मैं इतनी बकबक करती हूं,’’ मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘हांजी, पर न तुम झगड़ीं, न कुछ बोलीं, बस देखती रहीं मुझे. ख्वाब बुनती रहीं. उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, यह वही है, मेरी मिशी, सिर्फ मेरी मिशी,’’ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ कस कर थाम लिया हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए. जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ कभी जुदा न होने के लिए. आसमां, चांदतारे, चांदनी और लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे.

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,  ‘मेरे हमसफर… मेरे हमसफर… हमें साथ चलना है उम्र भर…’

लेखिका- डा. मंजरी अमित चतुर्वेदी

Famous Hindi Stories : एक और बेटे की मां

Famous Hindi Stories : आज वह आया भी काम छोड़ कर अपने घर भाग गई कि यहां जरूर कोई साया है, जो इस घर को बीमार कर जाता है. उस ने उसे कितना सम झाया कि ऐसी कोई बात नहीं और उसे उस छोटे बच्चे का वास्ता भी दिया कि वह अकेले कैसे रहेगा? मगर, वह नहीं मानी और चली गई. दोपहर में वही उसे खाना पहुंचा गई और तमाम सावधानियां बरतने की सलाह दे डाली. मगर 6 साल का बच्चा आखिर क्या सम झा होगा. आखिर वह मुन्ना से सालभर छोटा ही है.

मगर, मुन्ने का सवाल अपनी जगह था. कुछ सोचते हुए वह बोली, ‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. उस के मम्मीपापा दोनों ही बाहर नौकरी करने वाले ठहरे. शुरू से उस की अकेले रहने की आदत है. तुम्हारी तरह डरपोक थोड़े ही है.’’

‘‘जब किसी के मम्मीपापा नहीं होंगे, तो कोई भी डरेगा मम्मी,’’ वह बोल रहा था, ‘‘आया भी चली गई. अब वह क्या करेगा?’’

‘‘अब ज्यादा सवालजवाब मत करो. मैं उसे खानानाश्ता दे दूंगी. और क्या कर सकती हूं. बहुत हुआ तो उस से फोन पर बात कर लेना.’’

‘‘उसे उस की मम्मी हौर्लिक्स देती थीं. और उसे कौर्नफ्लैक्स बहुत पसंद है.’’

‘‘ठीक है, वह भी उसे दे दूंगी. मगर अभी सवाल पूछपूछ कर मु झे तंग मत करो. और श्वेता को देखो कि वह क्या कर रही है.’’

‘‘वह अपने खिलौनों की बास्केट खोले पापा के पास बैठी खेल रही है.’’

‘‘ठीक है, तो तुम भी वहीं जाओ और उस के साथ खेलो. मु झे किचन में बहुत काम है. कामवाली नहीं आ रही है.’’

‘‘मगर, मु झे खेलने का मन नहीं करता. और पापा टीवी खोलने नहीं देते.’’

‘‘ठीक ही तो करते हैं. टीवी में केवल कोरोना के डरावने समाचार आते हैं. फिर वे कंप्यूटर पर बैठे औफिस का काम कर रहे होंगे,’’ उस ने उसे टालने की गरज से कहा, ‘‘तुम्हें मैं ने जो पत्रिकाएं और किताबें ला कर दी हैं, उन्हें पढ़ो.’’

किचन का सारा काम समेट वह कमरे में जा कर लेट गई, तो उस के सामने किशोर का चेहरा उभर कर आ गया. ओह, इतना छोटा बच्चा, कैसे अकेले रहता होगा? उस के सामने राजेशजी और उन की पत्नी रूपा का अक्स आने लगा था.

पहले राजेशजी ही एक सप्ताह पहले अस्पताल में भरती हुए थे. और 3 दिनों पहले उन की पत्नी रूपा भी अस्पताल में भरती हो गई. अब सुनने में आया है कि वह आईसीयू में है और उसे औक्सीजन दी जा रही है. अगर उस के साथ ऐसा होता, तो मुन्ना और श्वेता का क्या होता. बहुत अच्छा होगा कि वह जल्दी घर लौट आए और अपने बच्चे को देखे. राजेशजी अपने किसी रिश्तेदार को बुला लेते या किसी के यहां किशोर को भेज देते, तो कितना ठीक रहता. मगर अभी के दौर में रखेगा भी कौन? सभी तो इस छूत की बीमारी कोरोना के नाम से ही दूर भागते हैं.

वैसे, राजेशजी भी कम नहीं हैं. उन्हें इस बात का अहंकार है कि वे एक संस्थान में उपनिदेशक हैं. पैसे और रसूख वाले हैं. रूपा भी बैंककर्मी है, तो पैसों की क्या कमी. मगर, इन के पीछे बच्चे का क्या हाल होगा, शायद यह भी उन्हें सोचना चाहिए था. उन के रूखे व्यवहार के कारण ही नीरज भी उन के प्रति तटस्थ ही रहते हैं. किसी एक का अहंकार दूसरे को सहज भी तो नहीं रहने देता.

रूपा भी एक तो अपनी व्यस्तता के चलते, दूसरे अपने पति की सोच की वजह से किसी से कोई खास मतलब नहीं रखती. वह तो उन का बेटा, उसी विद्यालय में पढ़ता है, जिस में मुन्ना पढ़ता है. फिर एक ही अपार्टमैंट में आमनेसामने रहने की वजह से वे मिलतेजुलते भी रहते हैं. इसलिए मुन्ना जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो सोच रहा है. सोच तो वह भी रही है. मगर इस कोरोना की वजह से वह उस घर में चाह कर भी नहीं जा पाती और न ही उसे बुला पाती है.

शाम को उस के घर की घंटी बजी, तो उस ने घर का दरवाजा खोला. उस के सामने हाथ में मोबाइल फोन लिए बदहवास सा किशोर खड़ा था. वह बोला,  ‘‘आंटी, अस्पताल से फोन आया था,’’ घबराए स्वर में किशोर बोलने लगा, ‘‘उधर से कोई कुछ कह रहा था. मैं कुछ सम झा नहीं. बाद में कोई पूछ रहा था कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या?’’

वह असमंजस में पड़ गई. बच्चे को घर के अंदर बुलाऊं कि नहीं. जिस के मांबाप दोनों ही संक्रमित हों, उस के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए. फिर भी ममता ने जोर मारा. उस में उसे अपने मुन्ने का अक्स दिखाई दिया, तो उसे घर के अंदर बुला कर बिठाया. और उस से मोबाइल फोन ले कौल बैक किया. मगर वह रिंग हो कर रह जा रहा था. तब तक मुन्ना और नीरज ड्राइंगरूम में आ गए थे. मुन्ना उछल कर उस के पास चला गया. वह अभी कुछ कहती कि नीरज बोले, ‘‘बच्चा है, उसे कुछ हुआ नहीं है. उस का भी आरटीपीसीआर हुआ था. कुछ नहीं निकला है.’’

वह थोड़ी आश्वस्त हुई. उधर मुन्ना बातें करते हुए किशोर के साथ दूसरी ओर चला गया था कि मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन अस्पताल से ही था. नीरज ने कोरोना से पीडि़त पड़े पड़ोसी के भाई को अमेरिका फोन किया तो सरल सा जवाब मिला, ‘‘उन लोगों ने अपने मन की करी, अब खुद भुगतो.’’ और पीछे कहा गया. फोन उठा कर ‘हैलो’ कहा, तो उधर से आवाज आई, ‘‘आप राकेशजी के घर से बोल रही हैं?’’

‘‘नहीं, मैं उन के पड़ोस से बोल रही हूं,’’ वह बोली, ‘‘सब ठीक है न?’’

‘‘सौरी मैम, हम मिसेज रूपा को बचा नहीं सके. एक घंटा पहले ही उन की डैथ

हो गई. आप उन की डैड बौडी लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने यहां आ जाएं,’’ यह सुन कर उस का पैर थरथरा सा गया. यह वह क्या सुन रही है…

नीरज ने आ कर उसे संभाला और उस के हाथ से फोन ले कर बातें करने लगा था, ‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘अब कहना क्या है?’’ उधर से फिर वही आवाज आई, ‘‘अब डैड बौडी लेने की औपचारिकता रह गई है. आप आ कर उसे पूरा कर दीजिए.’’

‘‘सौरी, हम इस संबंध में कुछ नहीं जानते,’’ नीरज बोल रहे थे, ‘‘मिसेज रूपा के पति राकेशजी आप ही के अस्पताल में कोरोना वार्ड में ऐडमिट हैं. उन से संपर्क कीजिए.’’

इतना कह कर उन्होंने फोन काट कर प्रश्नवाचक दृष्टि से शोभा को देखा. शोभा को जैसे काठ मार गया था. बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला, तो नीरज बोले, ‘‘एक नंबर का अहंकारी है राकेश. ऐसे आदमी की मदद क्या करना. कल को कहीं यह न कह दे कि आप को क्या जरूरत थी कुछ करने की. वैसे भी इस कोरोना महामारी के बीच बाहर कौन निकलता है. वह भी उस अस्पताल में जाना, जहां वैसे पेशेंट भरे पड़े हों.’’

तब तक किशोर उन के पास चला आया और पूछने लगा, ‘‘मम्मीपापा लौट के आ रहे हैं न अंकल?’’

इस नन्हे, अबोध बच्चे को कोई क्या जवाब दे? यह विकट संकट की घड़ी थी. उसे टालने के लिए वह बोली, ‘‘अभी मैं तुम लोगों को कुछ खाने के लिए निकालती हूं. पहले कुछ खा लो.’’

‘‘मु झे भूख नहीं है आंटी. मु झे कुछ नहीं खाना.’’

‘‘कैसे नहीं खाना,’’  नीरज द्रवित से होते हुए बोले, ‘‘मुन्ना और श्वेता के साथ तुम भी कुछ खा लो.’’

फिर वे शोभा से बोले, ‘‘तुम किचन में जाओ. तब तक मैं कुछ सोचता हूं.’’

वह जल्दी में दूध में कौर्नफ्लैक्स डाल कर ले आई और तीनों बच्चों को खाने को दिया. फिर वह किशोर से मुखातिब होती हुई बोली, ‘‘तुम्हारे नानानानी या मामामौसी होंगे न. उन का फोन नंबर दो. मैं उन से बात करती हूं.’’

‘‘मेरी मम्मी का कोई नहीं है. वे इकलौती थीं. मैं ने तो नानानानी को देखा भी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, दादादादी, चाचाचाची तो होंगे,’’ नीरज उसे पुचकारते हुए बोले, ‘‘उन का ही फोन नंबर बताओ.’’

‘‘दादादादी का भी देहांत हो गया है. एक चाचा  हैं. लेकिन, वे अमेरिका में रहते हैं. कभीकभी पापा उन से बात करते थे.’’

‘‘तो उन का नंबर निकालो,’’ वह शीघ्रता से बोली, ‘‘हम उन से बात करते हैं.’’

किशोर ने मोबाइल फोन में वह नंबर ढूंढ़ कर निकाला. नीरज ने पहले उसी फोन से उन्हें डायल किया, तो फोन रिंग ही नहीं हुआ.

‘‘यह आईएसडी नंबर है. फोन कहां से  होगा,’’ कह कर वे  झुं झलाए, फिर उस नंबर को अपने मोबाइल में नोट कर फोन लगाया. कई प्रयासों के बाद वह फोन लगा, तो उस ने अपना परिचय दिया, ‘‘आप राकेशजी हैं न, राकेशजी के भाई. मैं उन का पड़ोसी नीरज बोल रहा हूं. आप के भाई और भाभी दोनों ही कोरोना पौजिटिव हैं और अस्पताल में भरती हैं.’’

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘अरे, आप को जानकारी दे रहा हूं. आप उन के रिश्तेदार हैं. उन का बच्चा एक सप्ताह से फ्लैट में अकेला ही रह रहा है.’’

‘‘कहा न कि मैं क्या करूं,’’ उधर से  झल्लाहटभरी आवाज आई, ‘‘उन लोगों ने अपने मन की करी, तो भुगतें भी. अस्पताल में ही भरती हैं न, ठीक हो कर वापस लौट आएंगे.’’

नीरज ने शोभा को इशारा किया, तो वह उन का इशारा सम झ बच्चों को अपने कमरे में ले गई. तो वे फोन पर उन से धीरे से बोले, ‘‘आप की भाभी की डैथ हो गई है.’’

‘‘तो मैं क्या कर सकता हूं? मैं अमेरिका में हूं. यहां भी हजार परेशानियां हैं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता.’’

‘‘अरे, कुछ कर नहीं सकते, न सही. मगर बच्चे को फोन पर तसल्ली तो दे लो,’’ मगर तब तक उधर से कनैक्शन कट चुका था.

‘‘यह तो अपने भाई से भी बढ़ कर खड़ूस निकला,’’ नीरज बड़बड़ाए और उस की ओर देखते हुए फोन रख दिया. तब तक किशोर आ गया था, ‘‘आंटी, मैं अपने घर नहीं जाऊंगा. मु झे मेरी मम्मी के पास पहुंचा दो. वहीं मु झे जाना है.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी अस्पताल में भरती हैं और वहां कोई नहीं जा सकता.’’

‘‘तो मैं आप ही के पास रहूंगा.’’

‘‘ठीक है, रह लेना,’’ वह उसे पुचकारती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें कहां भेज रही हूं. तुम खाना खा कर मुन्ने के कमरे में सो जाना.’’

बच्चों के कमरे में एक फोल्ंिडग बिछा, उस पर बिस्तर लगा व उसे सुला कर वह किचन में आ गई. ढेर सारे काम पड़े थे. उन्हें निबटाते रात के 11 बज गए थे. अचानक उस बेसुध सो रहे बच्चे किशोर के पास का मोबाइल घनघनाया, तो उस ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर अस्पताल से ही फोन था. कोई रुचिका नामक नर्स उस से पूछ रही थी, ‘‘मिस्टर राकेश ने किन्हीं मिस्टर नीरज का नाम बताया है. वे घर पर हैं?’’

‘‘वे मेरे पति हैं. मगर मेरे पति क्या कर लेंगे?’’

‘‘मिस्टर राकेश बोले हैं कि वे कल उन के कार्यालय में जा कर उन के एक साथी से मिल लें और रुपए ले आएं.’’

‘‘मैं कहीं नहीं जाने वाला,’’ नीरज भड़क कर बोले, ‘‘जानपहचान है नहीं और मैं कहांकहां भटकता फिरूंगा. बच्चे का मुंह क्या देख लिया, सभी हमारे पीछे पड़ गए. इस समय हाल यह है कि लौकडाउन है और बाहर पुलिस डंडे बरसा रही है. और इस समय कोई स्वस्थ आदमी भी अस्पताल जाएगा, तो वह कोरोनाग्रस्त हो जाए.’’

वह एकदम उल झन में पड़ गई. कैसी विषम स्थिति थी. और उन की बात भी सही थी. ‘‘अब जो होगा, कल ही सोचेंगे,’’ कहते हुए उस ने बत्ती बु झा दी.

सुबह किशोर जल्द ही जग गया था. उस ने किशोर से पूछा, ‘‘तुम अपने पापा के औफिस में उन के किन्हीं दोस्त को जानते हो?’’

‘‘हां, वह विनोद अंकल हैं न, उन का फोन नंबर भी है. एकदो बार उन का फोन भी आया था. मगर अभी किसलिए पूछ रही हैं?’’

‘‘ऐसा है किशोर बेटे, तुम्हारी मम्मी के इलाज और औपरेशन के लिए अस्पताल में ज्यादा पैसों की जरूरत आ पड़ी है. और तुम्हारे पापा ने इस के लिए उन के औफिस में बात करने को कहा है.’’

‘‘हां, हां, वे डायरैक्टर हैं न, वे जरूर पैसा दे देंगे,’’ इतना कह कर वह मोबाइल में उन का नंबर ढूंढ़ने लगा. फिर खोज कर बोला, ‘‘यह रहा उन का मोबाइल नंबर,’’ किशोर से फोन ले उस ने उन्हें फोन कर धीमे स्वर में सारी जानकारी दे दी.

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. वैसे, मैं एक आदमी द्वारा आप के पास रुपए भिजवाता हूं.’’

‘‘मगर, हम रुपयों का क्या करेंगे?’’ वह बोली, ‘‘अब तो बस मिट्टी को राख में बदलना है. आप ही उस का इंतजाम कर दें. मिस्टर राकेश अस्पताल में भरती हैं. और उन का बेटा अभी बहुत छोटा  है, मासूम है. उसे भेजना तो दूर, यह खबर बता भी नहीं सकती. अभी तो बात यह है कि डैड बौडी को श्मशान पर कैसे ले जाया जाएगा. संक्रामक रोग होने के कारण मेरे पति ने कहीं जाने से साफ मना कर दिया है.’’

‘‘बिलकुल ठीक किया. मैं भी नहीं जाने वाला. कौन बैठेबिठाए मुसीबत मोल लेगा. मैं देखता हूं, शायद कोई स्वयंसेवी संस्था यह काम संपन्न करा दे.’’

लगभग 12 बजे दिन में एक आदमी शोभा के घर आया और उन्हें 10,000 रुपए देते हुए बोला, ‘‘विनोद साहब ने भिजवाए हैं. शायद बच्चे की परवरिश में इस की आप को जरूरत पड़ सकती है. राकेश साहब कब घर लौटें, पता नहीं. उन्होंने एक एजेंसी के माध्यम से डैड बौडी की अंत्येष्टि करा दी है.’’

‘‘लेकिन, हम पैसे ले कर क्या करेंगे? हमारे पास इतना पैसा है कि एक बच्चे को खिलापिला सकें.’’

‘‘रख लीजिए मैडम. समयसंयोग कोई नहीं जानता,’’ वह बोला, ‘‘कब पैसे की जरूरत आ पड़े, कौन जानता है. फिर उन के पास है, तभी तो दे रहे हैं.’’

‘‘ओह, बेचारा बच्चा अपनी मां का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया. यह प्रकृति का कैसा खेल है.’’

‘‘अच्छा है मैडम, कोरोना संक्रमित से जितनी दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा. जाने वाला तो चला गया, मगर जो हैं, वे तो बचे रहें.’’

किशोर दोनों बच्चों के साथ हिलमिल गया था. मुन्ना उस के साथ कभी मोबाइल देखता, तो कभी लूडो या कैरम खेलता. 3 साल की श्वेता उस के पीछेपीछे डोलती फिरती थी. और किशोर भी उस का खयाल रखता था.

उसे कभीकभी किशोर पर तरस आता कि देखतेदेखते उस की दुनिया उजड़ गई. बिन मां के बच्चे की हालत क्या होती है, यह वह अनेक जगह देख चुकी है.

रात 10 बजे जब वह सभी को खिलापिला कर निश्ंिचत हो सोने की तैयारी कर रही थी कि अस्पताल से फिर फोन आया, तो पूरे उत्साह के साथ मोबाइल उठा कर किशोर बोला, ‘‘हां भाई, बोलो. मेरी मम्मी कैसी हैं? कब आ रही हैं वे?’’

‘‘घर में कोई बड़ा है, तो उस को फोन दो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘उन से जरूरी बात करनी है.’’

किशोर अनमने भाव से फोन ले कर नीरज के पास गया और बोला, ‘‘अंकल, आप का फोन है.’’

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वे बोले, ‘‘राकेशजी कैसे हैं?’’

‘‘ही इज नो मोर. उन की आधे घंटे पहले डैथ हो चुकी है. मु झे आप को इन्फौर्मेशन देने को कहा गया, सो फोन कर रही हूं.’’

आगे की बात नीरज से सुनी नहीं गई और फोन रख दिया. फोन रख कर वे किचन की ओर बढ़ गए. वह किचन से हाथ पोंछते हुए बाहर निकल ही रही थी कि उस ने मुंह लटकाए नीरज को देखा, तो घबरा गई.

‘‘क्या हुआ, जो घबराए हुए हो?’’ हाथ पोंछते हुए उस ने पूछा, ‘‘फिर कोई बात…?’’

‘‘बैडरूम में चलो, वहीं बताता हूं,’’ कहते हुए वे बैडरूम में चले गए. वह उन के पीछे बैडरूम में आई, तो वे बोले, ‘‘बहुत बुरी खबर है. मिस्टर राकेश की भी डैथ हो गई.’’

‘‘क्या?’’ वह अवाक हो कर बोली, ‘‘उस नन्हे बच्चे पर यह कैसी विपदा आ पड़ी है. अब हम क्या करें?’’

‘‘करना क्या है, ऐसी घड़ी में कोई कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वे विनोदजी को फोन लगाने लगे.

‘‘हां, कहिए, क्या हाल है,’’ विनोदजी बोले, ‘‘बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा?’’

‘‘बच्चे को तो हम बाद में देखेंगे ही, बल्कि देख ही रहे हैं,’’ वे उदास स्वर में बोले, ‘‘अभीअभी अस्पताल से खबर आई है कि मिस्टर राकेश भी चल बसे.’’

‘‘ओ माय गौड, यह क्या हो रहा है?’’

‘‘अब जो हो रहा है, वह हम भुगत ही रहे हैं. उन की डैडबौडी की आप एजेंसी के माध्यम से अंत्येष्टि करा ही देंगे. सवाल यह है कि इस बच्चे का क्या होगा?’’

‘‘यह बहुत बड़ा सवाल है, सर. फिलहाल तो वह बच्चा आप के घर में सुरक्षित माहौल में रह रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘सवाल यह है कि कब तक ऐसा चलेगा? बच्चा जब जानेगा कि उस के मांबाप इस दुनिया में नहीं हैं, तो उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी? अभी तो हमारे पास वह बच्चों के साथ है, तो अपना दुख भूले बैठा है. मैं उसे रख भी लूं, तो वह रहने को तैयार होगा… मेरी पत्नी को  उसे अपने साथ रखने में परेशानी नहीं होगी, बल्कि मैं उस के मनोभावों को सम झते हुए ही यह निर्णय ले पा रहा हूं.

‘‘मान लीजिए कि मेरे साथ ही कुछ ऐसी घटना घटी होती, तो मैं क्या करता. मेरे बच्चे कहां जाते. ऊपर वाले ने मु झे इस लायक सम झा कि मैं एक बच्चे की परवरिश करूं, तो यही सही. यह मेरे लिए चुनौती समान है. और यह चुनौती मु झ को स्वीकार है.’’

‘‘धन्यवाद मिस्टर नीरजजी, आप ने मेरे मन का बो झ हलका कर दिया. लौकडाउन खत्म होने दीजिए, तो मैं आप के पास आऊंगा और बच्चे को राजी करना मेरी जिम्मेदारी होगी.

‘‘मैं उसे बताऊंगा कि अब उस के मातापिता नहीं रहे. और आप लोग उस के अभिभावक हैं. उस की परवरिश और पढ़ाईलिखाई के खर्चों की चिंता नहीं करेंगे. यह हम सभी की जिम्मेदारी होगी, ताकि किसी पर बो झ न पड़े और वह बच्चा एक जिम्मेदार नागरिक बने.’’

नीरज की बातों से शोभा को परम शांति मिल रही थी. उसे लग रहा था कि उस का तनाव घटता जा रहा है और, वह एक और बेटे की मां बन गई है.

Hindi Stories Online : संतुलन – पैसों और रिश्ते की कशमकश की कहानी

Hindi Stories Online : डाक्टरों को अंजु के दिमाग का औपरेशन इमरजैंसी में करना पड़ा है. पड़ोसी और रिश्तेदारों को मिला कर कम से कम 20 लोग अस्पताल में आए हैं. सब को औपरेशन के बाद अंजु के होश में आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार है. अस्पताल के हाल में आंखें बंद कर के मैं एक कुरसी पर बैठी तो अंजु से जुड़ी अतीत की बहुत सी घटनाएं मुझे बरबस याद आने लगीं.

पिछले 40 सालों में सुखदुख में साथ निभाने के कारण हमारी दोस्ती की नींव बहुत मजबूत हो गई है. मेरे सुखदुख में वह हमेशा मेरे साथ खड़ी हुई है. बस, एक विषय ऐसा है जिसे ले कर हमारे बीच हमेशा से बहस चलती आई है. मैं हमेशा उस को समझाती रही हूं कि अपने जीवन को आर्थिक दृष्टि से सुरक्षित बना कर रखना, हम औरतों के लिए खासकर बहुत जरूरी है.

उस ने हमेशा मुसकराते हुए लापरवाही से जवाब दिया, ‘पैसा अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है, पर आपसी संबंधों में प्यार की मिठास की कीमत पर उसे किसी मशीन की तरह इकट्ठा करते चले जाना नासमझी है, सीमा.’

‘अगर तू नहीं बदली तो एक दिन जरूर पछताएगी.’

‘और तू नहीं बदली तो एक दिन बहुत अकेली पड़ जाएगी.’

न मैं अपने को बदल सकी न वह. मैं ने अपनी सोच के हिसाब से जिंदगी जी और उस ने अपनी.

इस में कोई शक नहीं कि मैं हद दर्जे की कंजूस हूं. अपने पति की कमाई की पाईपाई को जोड़ती आई हूं. मैं ने युवावस्था में ही यह तय कर लिया था कि जिंदगी में मैं छोटेबड़े खर्चों के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत कभी नहीं आने दूंगी.

मेरा बड़ा भाई शेखर शादी के साल भर बाद ही घर से अलग हो गया था. ससुराल वालों से उस की अच्छी पटने लगी तो वह हम तीनों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भूल ही गया था.

उच्च रक्तचाप के मरीज पापा को हार्ट अटैक का खतरा बना तो डाक्टर बाईपास सर्जरी कराने पर जोर डालने लगे थे. भाई ने बिजनेस ठीक न चलने के नाम पर आर्थिक सहायता करने से हाथ खींच लिया था. तब मेरी शादी के लिए जमा पैसों से पापा के हृदय का औपरेशन कराना पड़ा था.

औपरेशन के बाद पापा 2 साल और जिंदा रहे. वे शायद और जी जाते पर बेटे के हाथों मिले धोखे व जवान बेटी की शादी की चिंता ने उन के दिल की धड़कन को कुछ जल्दी ही बंद कर दिया.

उन दिनों अंजु ने बहुत मजबूत सहारा बन कर मेरा साथ दिया था. यह सच है कि अगर उस ने मेरा मनोबल ऊंचा न रखा होता तो मैं जरूर खुद शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार पड़ जाती.

फिर मां को पैंशन मिलने लगी थी. पापा के इलाज के खर्चे खत्म हो गए तो मैं अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा जनूनी अंदाज में जोड़ने लगी.

बिना दहेज के अच्छा घरवर मुझ जैसी लड़की को नहीं मिल सकता था. रिश्तेदारों ने मेरे लिए जो बिरादरी का लड़का ढूंढ़ा वह प्राइवेट कंपनी में साधारण सी नौकरी करता था.

मेरी शादी के 4 महीने बाद अंजु की शादी मनोज से हुई जो सरकारी नौकरी करता था. हम दोनों के 4 साल के अंदर 2-2 बेटे आगेपीछे हुए. मेरी दोनों डिलीवरी सरकारी अस्पताल में हुईं और उस की नर्सिंग होम में. अंजू और मनोज को मनोरंजन व दिखावे के लिए पैसा खर्च करने से परहेज नहीं था, पर मैं ने राजेश को अपने रंग में रंग कर पैसा बचाने की आदत डलवा दी थी.

बच्चों की देखभाल में वक्त बहुत तेजी से गुजरा. अंजु ने फ्लैट खरीदा जिस की किस्तों ने उन को वर्षों तक आर्थिक तंगी से उबरने नहीं दिया.

मैं ने अपने जोड़े पैसों से मकान को दोमंजिला बना कर ऊपरी मंजिल किराए पर दे दी. इस से हमारी आमदनी बढ़ गई. हर महीने रुपए अंजु के पैसों की तरह किस्त में न जा कर बैंक खाते में जाने लगे.

मेरा बड़ा बेटा समीर बीकौम के बाद एमबीए कर के नौकरी करने लगा. छोटा बेटा सुमित पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं था सो उसे हम ने किराने की दुकान करा दी.

अंजु के दोनों बेटे भी कुछ खास नहीं पढ़े. बड़े राहुल ने साधारण से कालेज से एमबीए किया और उसे ठीकठाक नौकरी मिल गई. छोटा दवा बनाने वाली कंपनी में एमआर बन गया था.

अपनी कंजूसी की आदत के चलते मेरी अपने दोनों बेटों से अकसर बहस और झड़प हो जाती थी. घर के सारे खर्चे अपनी कमाई में से करना उन्हें नाजायज बोझ सा लगता था.

‘आप हर जगह और हर किसी के सामने रुपयों व खर्चों का रोना रो कर हमें शर्मिंदा करवाने पर क्यों तुली रहती है? अंजु मौसी और मनोज अंकल ने अपनी शादी की 25वीं सालगिरह गोआ जा कर मनाई थी. उन के पास खास पैसा नहीं है पर वे ऐश कर रहे हैं. आप के पास पैसा बहुत है पर आप सिर्फ रुपए गिनने का मजा लेती हैं. अब उस नासमझी को त्याग कर जिंदगी के भी कुछ मजे ले लो, मां,’ वे अकसर मुझे अपनी आदत बदलने के लिए समझाते रहते थे.

‘मैं अभी अपनी जमापूंजी उड़ा लूं और बाद में तुम्हारे सामने हाथ फैलाऊं, ऐसी नासमझी करना मुझे बिलकुल मंजूर नहीं है,’ मैं ने कभी उन की बातों पर ध्यान न दे कर कह देती.

‘पता नहीं आप को क्यों एतबार नहीं होता कि हम आप के सुखदुख में काम आएंगे,’ वे नाराज हो उठते.

‘मैं ने दुनिया की रीत देखी है. बूढ़े हो गए मांबाप बेटों को बोझ लगने लगते हैं और उन की खूब दुर्गति होती है. मुझे अपनी वैसी दुर्गति नहीं करानी,’ यों मेरा सच्ची बात उन के मुंह पर कह देना उन दोनों को कभी अच्छा नहीं लगता था.

समीर की शादी अच्छे घर में हो गई पर दहेज में कुछ नहीं आया. उस ने प्रेम विवाह किया था. मैं ने स्वयं भी शादी में हाथ खींच कर पैसा खर्च किया.

बहू नौकरी करती थी. मैं ने घर के कामों के लिए आया रखने के लिए शादी के कुछ दिनों बाद ही शोर मचा दिया पर वे माने नहीं. सारा झगड़ा आया की पगार को ले कर हुआ क्योंकि वे उसे अपनी कमाई से नहीं देना चाहते थे.

इस बात को ले कर घर में झगड़े बढ़े तो समीर ने घर से अलग होने का फैसला कर लिया था. उस के ससुराल वालों ने 2 दिन में अपने घर के पास किराए का मकान भी ढूंढ़ दिया.

मेरे बहूबेटे के अलग होने के 4 महीने बाद ही अंजु ने अपने बड़े बेटे नीरज की शादी की थी. उस की बहू भी नौकरी करती थी. अंजु की तरह वह अच्छे स्वभाव की निकली. मैं उस के घर जाती तो वह मेरी बहुत खातिर करती. अपनी सास के बराबर का मान- सम्मान मुझे देती थी.

अपने छोटे बेटे सुमित की शादी करते ही मैं ने उस की रसोई अलग कर दी थी. मैं नहीं चाहती थी कि घर के खर्चों को ले कर मुझे उस को भी घर से जाने को कहना पड़े.

अंजु ने कुछ महीने बाद अपने छोटे बेटे नवीन की शादी की. मुझे यह सोच कर हैरानी होती है कि वे सब 3 कमरों के फ्लैट में इकट्ठे कैसे रह रहे हैं.

कल अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाते हुए अंजु का पांव एक बच्चे द्वारा फेंके गए केले के छिलके पर पड़ जाने से फिसला और वह धड़ाम से गिरी थी. लकड़ी के मजबूत सोफे से सिर में गहरी चोट आई. कुछ घंटों बाद उसे बेहोशी सी आने लगी तो हम सब कुछ उसे ले कर अस्पताल भागे.

जांच से पता लगा कि गहरी चोट लगने से सिर के अंदर खून बहा है और उस की जान बचाने के लिए फौरन इमरजैंसी औपरेशन करना पड़ेगा.

मैं अतीत की यादों से तब बाहर निकली जब डाक्टर तनेजा ने हमारे पास आ कर बताया, ‘‘अंजु को औपरेशन के बाद होश आ गया है. अब ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

इस खबर को सुन कर हर किसी के दिल मेें खुशी की तेज लहर दौड़ गई थी. अंजु के दोनों बेटों व बहुओं की बात तो छोड़ो, मुझे तो यह देख कर बहुत हैरानी हुई कि मेरे दोनों बेटेबहुएं भी मेरी छाती से लग कर बच्चों की तरह रोए थे.

अंजु की हालत में लगातार सुधार हुआ और वह कुछ दिन बाद ही आईसीयू से वार्ड में आ गई थी.

एक शाम हम घर के सभी लोग मौजूद थे जब अंजु ने अचानक अपने बड़े बेटे नीरज से पूछा, ‘‘मुझे नर्स ने आज दिन में बताया कि अब तक 3-4 लाख का खर्चा मेरे इलाज पर हो चुका होगा. तुम लोगों ने कहां से इंतजाम किया इतने रुपयों का?’’

‘‘इलाज कराने को तेरी बहुओं ने खुशीखुशी अपने जेवर बेच दिए हैं,’’ मेरा यह जवाब सुन कर अंजु हैरान नजर आने लगी थी.

‘‘सच कह रही है तू, सीमा?’’

‘‘बिलकुल सच, पर अब तू बेकार की बातों में मत उलझ और जल्दी से ठीक हो कर अपने घर पहुंच. सारा महल्ला बड़ी बेसब्री से तेरी वापसी का इंतजार कर रहा है.’’

अंजु अचानक उदास सी हो कर बोली, ‘‘सीमा, तू ठीक कहा करती थी कि हर इंसान को इमरजैंसी के लिए धन जोड़ कर जरूर रखना चाहिए. मैं ने तेरी सलाह ध्यान से सुनी होती तो मेरे इलाज के लिए मेरी बहुओं को अपने जेवर तो न बेचने पड़ते.’’

‘‘चल, मेरी बात देर से ही सही पर तेरी समझ में तो आई. पर तू बहुओं के जेवरों के जाने की फिक्र न कर. वे फिर बन जाएंगे.’’

अचानक समीर ने बीच में बोल कर अपनी मां को सच बता दिया, ‘‘मां, जेवर बेचने की बात झूठी है. औपरेशन का सारा खर्चा सीमा मौसी ने उठाया है.’’

‘‘तुझे मेरी कसम सीमा, जो सच है वह मुझे बता दे,’’ अंजु ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में प्रार्थना की.

‘‘सच तो यह है कि तेरी बहुएं अपने जेवर बेचने को तैयार थीं. महल्ले के सारे लोग मिल कर तेरा इलाज कराने को तैयार हो गए थे. तू कल्पना भी नहीं कर सकती कि हम सब को तुझ से कितना प्यार है. मैं ने खर्च इसलिए किया क्योंकि मेरातेरा रिश्ता सब से पुराना है. अब तू खर्चे की फिक्र छोड़ कर अपना सारा ध्यान ठीक होने में लगा दे, मेरी प्यारी सहेली,’’ मैं ने उस का हाथ प्यार से चूम लिया था.

‘‘तेरा यह एहसान मैं जिंदगी में कैसे उतार पाऊंगी?’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे.

‘‘वह एहसान तू ने पहले ही उतार दिया है.’’ मैं ने कहा.

‘‘वह कैसे?’’ अंजु चौंक पड़ी.

‘‘मुझे समझदार बना कर,’’ मैं बहुत भावुक हो उठी, ‘‘तू ठीक कहती थी कि पैसे जोड़ कर तिजोरी भरने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आपसी संबंधों में प्यार की मिठास. अरे, मेरी जो बहुएं मुझे बुखार में पानी का एक गिलास देने को बोझ मानती हैं, मैं ने उन्हें तेरी खैरियत के लिए छोटी बच्चियों की तरह रोते

देखा था.

‘‘अगर तेरी जगह मेरी जिंदगी खतरे में पड़ी होती तो शायद ही कोई मेरे लिए दिल से रोता. अब मैं तेरी तरह अपनों के दिल में जगह बनाना चाहती हूं. मेरी इच्छा है कि जब मेरा दुनिया से जाने का वक्त आए तो तेरे अलावा कोई और भी हो जो मेरे लिए सच्चे आंसू बहाए. मुझे तेरे जैसा बनना है, अंजु.’’

‘‘और मैं अब तेरे जैसी समझदार बनूंगी, सीमा. बेकार के खर्चे करना बिलकुल बंद कर दूंगी.’’

‘‘अब इस नई बहस को शुरू करने के बजाय हम दोनों संतुलन बना कर जीना सीखेंगी.’’

‘‘यह भी सही है क्योंकि अति तो

हर चीज की खराब होती है. तो

तू मुझे बचत करना सिखाना, मेरी

कंजूस सहेली.’’

‘‘और तू मुझे अपनों के दिल जीतने की कला सिखाना, मेरी सोने के दिल वाली प्यारी सहेली,’’ हमारी नोकझोंक सुन कर सब हंसने लगे थे.

मैं ने गरदन घुमा कर देखा तो पाया कि मेरी दोनों बहुओं व बेटों की पलकें भी नम हो रही थीं. मैं ने आज पहली बार उन चारों की आंखें में अपने लिए प्रेम व आदरसम्मान के सच्चे भाव देखे, तो हाथ फैला कर उन्हें बारीबारी से अपनी छाती से लगाने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

Crispy Cookies : एक ही तरह की कुकीज खाकर हो गए हैं बोर, तो बनाएं ये 6 तरह के बिस्कुट

‘बच्चे हों या बड़े कुकीज सभी की पसंद होती हैं. तो फिर देर किस बात की, जानते हैं हैल्दी और झटपट बनने वाली कुकीज की रैसिपीज.’

रागी बिस्कुट

सामग्री

1/2 कप रागी का आटा

1/2 कप बटर

1/2 कप ब्राउन शुगर

तीन चौथाई छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

1 बड़ा चम्मच कोको पाउडर

1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट

थोड़ा सा दूध.

विधि

एक पैन में रागी के आटे को 1 मिनट तक भूनें. फिर इस में बाकी सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. अब गुंधे आटे की लोइयां बना कर गोल आकार दें. इन्हें क्लिंग से ढक कर फ्रिज में 20-30 मिनट के लिए रख दें. इस के बाद ओवन में 160 डिग्री सैंटीग्रेट पर 14-15 मिनट बेक करें. फिर तैयार रागी बिस्कुट को ठंडा कर एअरटाइट डब्बे में स्टोर कर लें.

‘पीनट बटर कुकीज के स्वाद को और बढ़ा देता है.’

नो बेक बटर पीनट बाइट्स

सामग्री

11/2 कप रोल्ड ओट्स

1/2 कप पीनट बटर

एकतिहाई कप मैपल सिरप

एकतिहाई कप चौकलेट चिप्स.

विधि

सारी सामग्री को एक बाउल में मिला कर आधे घंटे के लिए ढक कर फ्रिज में रख दे. फिर बौल्स बना कर एअरटाइड डब्बे में स्टोर कर लें. ‘बेक्ड कुकीज और केक में दालचीनी का ट्विस्ट अलग फेवर ऐड करता है.’

क्रिस्पी सिनामन कुकीज

सामग्री

1 कप आटा

1/2 कप बटर

1/2 कप चीनी पिसी

1/2 छोटा कप दालचीनी पाउडर

एकचौथाई छोटा चम्मच जायफल पाउडर

1 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट

2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

आटे में सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. फिर रोल कर के कुकीज कटर की मदद से काटें. इस के बाद इन्हें ओवन में 160 डिग्री सैंटीग्रेट पर 15-20 मिनट बेक करें. ठंडा कर एअरटाइट डब्बे में स्टोर कर लें. ‘केसरिया चमचम को इस तरह बनाएंगी तो स्वाद दोगुना हो जाएगा.’

चमचम

सामग्री

1 लिटर दूध,  2 चुटकी इलाइची पाउडर, 1 बड़ा चम्मच नारियल कसा,  थोड़ा सा केसर, 1/2 कप खोया, 2 छोटे चम्मच नीबू का रस, थोड़ी सी पिसी चीनी, थोड़ा सा पिस्ता, 4 कप पानी.

विधि

एक बरतन में दूध उबालें. नींबू का रस डाल कर पनीर बना लें. इस पनीर को कपड़े में डाल कर कुछ देर के लिए लटका दें ताकि सारा पानी निकल जाए. अब इसे हथेली से मसल कर आटे जैसा नर्म कर लें. चीनी में पानी मिला कर उबलने रखें. इस पानी में इलाइची पाउडर भी डाल दें. पनीर के गोले बना कर उन्हें कुछ लंबी शेप दें. फिर इन्हें उबलते चीनी वाले पानी में डाल कर ढक कर पकाएं. खोया, केसर, नारियल और थोड़ी सी पिसी चीनी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. नर्म गूंध लें. छोटेछोटे गोले बना कर रखें. चमचम को ठंडा होने दें. चीनी में से निकालें. प्रत्येक चमचम को बीच से काट कर खोए के गोले उस में भर दें. ऊपर से पिस्ता बुरक ठंडा होने पर परोसें.

एगलैस कोकोनट कुकीज

सामग्री

1 कप आटा,  1 कप चीनी पिसी,  एकचौथाई कप नारियल कद्दूकस किया.  1/2 कप बटर,  1/2 छोटा चम्मच वैनिला ऐक्सट्रैक्ट,  2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

चीनी में सारी सामग्री मिला कर डो तैयार करें. फिर आटे से बौल्स तैयार कर उन्हें कोकोनट के बूरे में लपेटें. ओवन में 15 मिनट बेक होने के लिए रख दें. अब तैयार कोकोनट कुकीज को स्टोर कर लें.

मसूर दाल चौप

सामग्री

1 कप मसूर दाल, 1/2 कप प्याज बारीक कटा,  1-2 छोटे चम्मच चावल का आटा, 1 छोटा चम्मच गरममसाला, 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट,  1-2 हरी मिर्चें, नमक स्वादानुसार.

विधि

मसूर दाल को थोड़े से पानी के साथ 2 सीटियां आने तक गला लें. बचा पानी निथार कर दाल को कुछ देर छलनी में ही रहने दें. सारे मसाले व बाकी की सामग्री को अच्छी तरह मिक्स कर टिक्की की शेप दें. गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

Financial Planning : लाइफ बनाएं ईजी

Financial Planning : रचना की अच्छीखासी नौकरी थी मगर शाह खर्च होने के कारण उस की बचत शून्य थी. अपने दोस्तों की सलाह पर उस ने म्यूचुअल फंड्स तो जरूर ले लिए थे पर बाद में कंसिस्टैंसी न होने के कारण उस का कोई भी म्यूचुअल फंड नही चल पाया है. जैसे ही कोई ऐक्स्ट्रा खर्चा आता, तो रचना हमेशा महंगाई का रोना रोने लगती और उधार मांगने लगती.

ऐसा ही कुछ हाल अंशु का भी था. औनलाइन शौपिंग की इतनी बुरी लत थी कि सैलरी का प्रमुख हिस्सा जूते, कपड़ों और ऐक्सैसरीज में चला जाता. पति या सास के टोकने पर वह मेरी कमाई मेरा हक का तुरुप पत्ता रख देती. मगर जब एकाएक अंशु के पति की नौकरी पर बन आई तो उस की हालत पतली हो गई. सेविंग के नाम पर उस के पास बस एक एफडी थी वह भी उस ने बीच में ही तुड़वा दी थी.

उधर निधि ने अपने पैसे तो अवश्य इनवैस्ट किए मगर एलआईसी और एफडी जैसी आउटडेटेड स्कीम्स में जहां पैसे की बढ़त बहुत ही धीमी गति से होती है. मगर निधि को लगता है कि म्यूचुअल फंड्स या स्टौक्स में लगाने से उस के पैसे डूब जाएंगे.

आज के दौर में जब जिंदगी बहुत अनसर्टेन है. ऐसे में फाइनैंशियल प्लानिंग एक सुखमय जीवन के लिए बेहद जरूरी है.

आप की कमाई या वेतन कम या ज्यादा है इस बात से अधिक यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने पैसे को कैसे लगाते हैं. अगर आप सोचसमझ कर इनवैस्टमैंट करते हैं तो आप के फ्यूचर को फाइनैंशियल सिक्योर होने से कोई नहीं रोक सकता है.

अपनाएं 50-30-20 का फौर्मूला. आप की सैलरी कम हो या ज्यादा, मगर यह फौर्मूला फाइनैंशियल प्लानिंग के लिए बेहद कारगर है. आप की सैलरी का 50त्न रोजमर्रा के खर्चों के लिए, 20 आप के शौक और कुछ मिसलेनियस खर्च के लिए और 30 आप को इनवैस्ट अवश्य करना चाहिए. ऐसा निरंतरता से करेंगे तो आप का धीरेधीरे ही सही एक कौपर्स फंड हो जाएगा. अगर आप यह फौर्मूला अपनाएंगे तो जिंदगी में भी डिसिप्लिन आ जाएगा.

मैडिकल इंश्योरैंस है जरूरी: आजकल इलाज इतना अधिक महंगा है कि मैडिकल इंश्योरैंस बहुत ही जरूरी है. कितनी भी सेविंग या इनवैस्टमैंट कर लें, एक बीमारी आप को अंदर तक निचोड़ देगी. इसलिए खुद को सेफ रखने के लिए मैडिकल इंश्योरैंस अवश्य कराएं.

इमरजैंसी फंड्स को न करें इग्नोर: इनवैस्टमैंट शुरू करने से पहले कम से कम

3 से 6 माह तक के इमरजैंसी फंड का बंदोबस्त अवश्य कर के रखें. ऐसा करने से अगर कभी जिंदगी में बुरा समय भी आ जाए तो आप इस इमरजैंसी फंड के सहारे उस समय को भी गुजार लेंगे.

औनलाइन शौपिंग से करें परेहज: औनलाइन शौपिंग एक बहुत ही बुरी लत है. इसे करने से आप कितना पैसे खर्च कर देते हैं आप को कभी पता नहीं लग पाएगा. कोई भी चीज खरीदने से पहले कम से कम 1 माह तक उस चीज को खरीदने से बचें. अगर आप को उस वस्तु की 1 माह के बाद भी जरूरत लगती है तो अवश्य खरीदें नहीं तो आप को उस चीज की जरूरत ही नहीं.

सिप हैं जरूरी: कितना भी छोटा अमाउंट हो मगर सिप अवश्य शुरू कर दें. जितना जल्दी शुरू करेंगे उतना ही अच्छा रहेगा. सिप शुरू करने से पहले किसी फाइनैंशियल प्लानर से एक बार सलाह अवश्य ले लें. यह सोच कर मत टालिए कि जब सैलरी बढ़ेगी तब शुरू करूंगा इत्यादि.

एलआईसी लें सोचसमझ कर: एलआईसी में रिस्क अवश्य नही है मगर इस में ग्रोथ बहुत कम है. अगर आप का मन है तो कोई ऐसा प्लान लें जिस में इनवैस्टमैंट कम हो और प्रोटैक्शन अधिक. एफडी या आरडी आज के समय में एकदम आउटडेटेड हैं.

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