अनुपमा और बेटी पाखी के रिश्तों में बढ़ी कड़वाहट तो काव्या ने बनाया नया प्लान

टीवी सीरियल ‘अनपुमा’ में फैमिली ड्रामा औडियंस का दिल जीतने में कामयाब हो गया है, जिसके चलते सीरियल की टीआरपी पहले नंबर पर बनी हुई हैं. वहीं मेकर्स अपकमिंग एपिसोड में इस फैमिली ड्रामा को और बढ़ाने वाले हैं. दरअसल, सीरियल में काव्या, पाखी के बाद बा बापूजी को भड़काते हुए नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

पाखी के दिल में काव्या ने भरी कड़वाहट

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा जैसे ही एकेडमी से घर वापस आएगी तो पाखी को काव्या के साथ डांस करता हुआ देखेगी, जिसे देखकर वह हैरान रह जाएगी. वहीं पाखी, अनुपमा को देखकर गुस्सा करते हुए कहेगी कि अनुपमा के लिए सिर्फ समर और उसकी खुशियां ही मायने रखती हैं, जिसके बाद अनुपमा समझ  जाएगी कि उसकी गैरमौजूदगी में काव्या ने पाखी को भड़काया है.

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वनराज कहेगा ये बात

पाखी का बर्ताव देखर अनुपमा, काव्या को वॉर्निंग देगी कि वो उसके बच्चों से दूर रहे. हालांकि काव्या, अनुपमा को उदास देखकर खुश होगी. वहीं वनराज, काव्या से कहेगी कि पाखी से उसकी नजदीकियां मंजूर हैं. लेकिन अगर काव्या की किसी हरकत से अनुपमा और पाखी के बीच दरार आई तो अच्छा नही होगा. इसी बीच अनुपमा पाखी को मनाने की कोशिश करती नजर आएगी. हालांकि काव्या कहती नजर आएगी कि वह पाखी को अनुपमा से दूर कर देगी.

 

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खबरों की मानें तो पाखी के बाद काव्या बा और बापूजी को भड़काना शुरु करेगी, जिसके चलते वह दोनों अनुपमा के खिलाफ हो जाएंगे. वहीं परिवार को अपने खिलाफ होता देख अनुपमा घर छोड़ने का फैसला भी करती दिख सकती है. हालांकि हर कदम पर अनुपमा काव्या की चालों का जवाब देती नजर आएगी, जिसमें उसका साथ उसके बच्चे देंगे.

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#Dishul की शादी की रस्में हुई शुरु, दिशा ने लगाई राहुल के नाम की मेहंदी

कलर्स के रियलिटी शो बिग बॉस 14 (Bigg Boss 14) फेम राहुल वैद्य (Rahul Vaidya) और एक्ट्रेस दिशा परमार (Disha Parmar) 16 जुलाई को शादी के बंधन में बंधने वाले हैं, जिसकी रस्में भी शुरु हो गई हैं. इसी बीच राहुल और दिशा परमार के मेंहदी सेलिब्रेशन की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो गई हैं. आइए आपको दिखाते हैं राहुल-दिशा की मेहंदी सेलिब्रेशन की झलक…

दुल्हन को लगी मेहंदी

 

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राहुल वैद्य (Rahul Vaidya) की दुल्हनिया दिशा परमार (Disha Parmar) की मेहंदी सेरेमनी की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो गई हैं, जिसके बाद दोनों के फैंस उन्हें बधाइयां देते नजर आ रहे हैं. वहीं वायरल फोटोज की बात करें तो दिशा मेहंदी लगाते हुए बेहद एक्साइटेड नजर आ रही हैं.

 

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कुछ ऐसा था दुल्हा-दुल्हन का अंदाज

 

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मेंहदी सेलिब्रेशन में राहुल वैद्य और दिशा परमार के लुक की बात करें तो पिंक कलर के मिरर वर्क वाले शरारा में जहां दिशा परमार खूबसूरत लग रही थीं तो वहीं लाइट ब्लू कलर के कुर्ते पजामे में राहुल हैंडसम लग रहे थे. वहीं दोनों की जोड़ी कमाल लग रही थी और दोनों के चेहरे पर शादी का ग्लो खूब नजर आ रहा था.

फोटोज खिंचवाता दिखा कपल

 

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सेलिब्रेशन के मौके पर टीवी स्टार दिशा परमार (Disha Parmar) मस्ती करते हुए नजर आईं. वहीं इस खूबसूरत मौके पर राहुल वैद्य भी उनके साथ ठुमके लगाते दिखे. इस बीच ये कपल मीडिया के सामने जमकर पोज देता हुआ नजर आया, जिसकी फोटोज फैंस को पसंद आ रही हैं.

 

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बता दें, बिग बौस 14 के दौरान राहुल वैद्य ने नेशनल टीवी पर अपने प्यार का इजहार किया था, जिस दौरान उन्होंने दिशा परमार के सामने शादी का प्रपोजल भी रखा था. वहीं शो में ही दिशा ने अपना जवाब देते हुए शादी के लिए हां भी कही थी.

प्रदेश में 1.15 करोड़ लोगों के पास हैं गोल्‍डन कार्ड

प्रदेश के करोड़ों गरीब परिवारों के लिए राहत भरी खबर है. प्रदेश सरकार 26 जुलाई से आयुष्‍मान भारत योजना के तहत गोल्‍डन कार्ड बनाने के लिए विशेष अभियान चलाने जा रही है.  कोरोना काल के दौरान इलाज में गोल्‍डन कार्ड ने लोगों को काफी राहत दी थी. आयुष्‍मान योजना के तहत अस्‍पतालों में गोल्‍डन कार्ड धारकों को 5 लाख रूपए तक नि:शुल्‍क इलाज की सुविधा दी जाती है.

कोरोना काल के दौरान प्रधानमंत्री जन अरोग्‍य आयुष्‍मान योजना आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए संबल बनी थी. आयुष्‍मान योजना के तहत बने गोल्‍डन कार्ड के जरिए लाखों लोगों को पांच लाख रूपए तक नि:शुल्‍क इलाज की सुविधा दी गई है. गोल्‍डन कार्ड के जरिए लोग सरकारी व सरकार की ओर से अधिकृत निजी अस्‍पताल में अपना नि:शुल्‍क इलाज करा सकते हैं.  इससे पहले 30 अप्रैल तक गोल्‍डन कार्ड बनाए गए थे. प्रदेश सरकार अब फिर से विशेष अभियान चलाकर गोल्‍डन कार्ड बनाने जा रही है. मुख्‍यमंत्री के निर्देश पर 26 जुलाई से प्रदेश भर में आयुष्‍मान योजना के तहत गोल्‍डन कार्ड बनने के लिए जन सुविधा केन्‍द्र या फिर नजदीकी सरकारी अस्‍पताल में जाकर लोग कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं.

यूपी में बने 1.15 करोड़ गोल्‍डन कार्ड

केन्‍द्र सरकार की आयुषमान योजना के तहत प्रदेश में 1 करोड़ 18 लाख गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए का चिकित्‍सा बीमा कवर की सुविधा दी जा चुकी है. इसके अलावा आयुष्‍मान योजना से 6 करोड़ 47 लाख लोगों को लाभांवित किया जा चुका है. यूपी में अब तक 1.15 करोड़ गोल्‍डन कार्ड बनाए जा चुके हैं. इसके अलावा मुख्‍यमंत्री जनआरोग्‍य योजना में 42.19 लाख पात्रों को लाभांवित किया जा चुका है.

आज भी महिलाएं कहीं अकेले खाने में क्यों झिझकती हैं?

घूम घूमकर यात्रा वृत्तांत लिखने वाली मशहूर ट्रेवल ब्लागर ग्लोरिया अटंमो [Gloria Atanmo] की अपने ब्लॉग ‘द ब्लॉग अब्रोड’ में 23 जनवरी 2019 को लिखी एक टिप्पणी ने अमरीका से लेकर अफ्रीका तक में एक सशक्त महिला आन्दोलन को खड़ा कर दिया था.हुआ दरअसल यह था कि न्यूयार्क के एक रेस्टोरेंट में कुछ खाने और बीयर पीने के लिए एक युवती गयी.वह काफी देर तक रेस्टोरेंट के बार में अपनी सीट में बैठी रहीं.लेकिन उसके पास  कोई बैरा नहीं आया.फिर उसने इशारे से एक को अपनी तरफ बुलाया.बैरे ने आकर उससे आर्डर के बारे में तो कुछ पूछा नहीं, उलटे यह फरमान सुना दिया कि वह रेस्टोरेंट में अकेले नहीं बैठ सकती.इस घटना को बीबीसी के एक लेख में दर्ज किया गया.लेकिन तब उतना हंगामा नहीं हुआ,जितना ग्लोरिया अटंमो द्वारा इस घटना का अपने ब्लॉग में बीबीसी के लेख को उद्धृत करने और इसका विश्लेषण करने से हुआ.ग्लोरिया के ब्लॉग पोस्ट की पहली लाइनें थीं- Many of you have probably seen the BBC News article floating around this week about a restaurant in New York (Nello is the name if you’re curious) that told a woman she couldn’t sit at the bar alone as the owner was wanting to, and I quote, “crackdown on hookers.”(आपमें से कईयों ने शायद इस हफ्ते बीबीसी न्यूज़ के उस एक लेख को देखा होगा जो न्यूयॉर्क के एक रेस्तरां (अगर आप इसका नाम जानने को लेकर जिज्ञासु हैं तो इसका नाम नेल्लो है) के बार में अकेली महिला के संबंध में था.लेख के मुताबिक़ उस महिला से बैरे द्वारा कहा गया कि मालिकों की हिदायत है कि बार में कोई अकेली महिला नहीं बैठ सकती.इसको पढ़कर मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला ‘क्या बेहूदा बात है.’)

हममें से ज्यादातर लोग इन पंक्तियों को पढ़कर चौंकने का नाटक भले करें लेकिन हम सब जानते हैं कि हिन्दुस्तान में स्थिति इससे कोई अलग नहीं है बल्कि कहीं ज्यादा खराब है.अमरीका में तो यह नजरिया किसी महिला के अकेले बार में बैठने को लेकर है,हमारे यहां तो साधारण रेस्टोरेंट में किसी अकेली महिला को देखने की लोग कल्पना नहीं कर सकते.सच मानिए यह  वैसा ही मर्दवादी नजरिया है जैसे कि लड़को किसी से डरना नहीं चाहिए और एक लड़की को कहीं अकेले जाना नहीं चाहिए.या कि लड़के पिंक रंग कैसे पहन सकते हैं ? या फिर छिः खट्टा खा रहे हो जरूर तुममें लड़कियों वाले गुण होंगे.लेकिन मूल सन्दर्भ खाने में लौटते हैं .पूरी दुनिया में अकसर लड़कियों को स्कूल, कॉलेज की कैंटीन में अकेले बैठकर खाने में काफी परेशानी महसूस होती है.

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जो लड़कियां अपने साथ घर का खाना ले जाती हैं,उसे भी अगर उन्हें अकेला खाना पड़े तो चुपचाप लॉन में अपनी किताब निकालकर पढ़ने के बहाने खाती हैं. खाने में किसी का साथ न होने के कारण लडकियां काफी असहज महसूस करती हैं.ऐसे में सोचा जा सकता है कि किसी रेस्टोरेंट या सार्वजनिक स्थल पर अकेले बैठकर खाने में वे कितना असहज होती हैं.ऐसा इसलिए होता है क्योंकि-

  • उन्हें लगता है कि अकेले बैठकर खाने में हर कोई उनकी ओर देख रहा है.
  • उन्हें लगता है कि उन्हें अकेला खाते देख लोग सोचेंगे वह नितांत अकेली हैं.
  • इस डर से भी अकेले बैठकर खाने से शरमाती हैं कि कहीं कोई उनके साथ की टेबल पर बैठकर उनके साथ जबरदस्ती बातचीत करने का प्रयास न करने लगे.

हैरानी की बात यह है कि लड़की का अकेलापन उसके लिए ही नहीं बल्कि उसके आसपास के लोगों के लिए भी असहजता पैदा करता है. हिन्दुस्तान में आज भले ही लड़कियां घर की दहलीज लांघकर शिक्षा,नौकरी के लिए एक शहर से दूसरे शहर में जाती हैं. अपने घर से दूर निकलकर अकेले अपने आपकी जिम्मेदारी उठाना उनके लिए एक बड़ा काम होता है. इन तमाम स्थितियों के बावजूद लड़कियां अकेले बैठकर खाने में असहज महसूस करती हैं.जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. आज मॉडर्न जीवनशैली के साथ-साथ इन्हें अपनी आदतों में भी बदलाव लाना चाहिए. जो लड़कियां इस आदत का शिकार हैं,उन्हें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि यदि किसी कारणवश उन्हें अकेले ही खाना पड़े तो घर पहुँचने के पहले तक भूखे रहने के बजाय वह बेहिचक अकेले खायें.यदि उन्हें किसी रेस्टोरेंट में बैठकर अकेले खाना पड़ रहा है तो इसमें उन्हें किसी तरह की शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए.

खाने के दौरान लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं? इस पर उसे ध्यान नहीं देना चाहिए.अकेले बैठकर खाने के दौरान वह इस तरह का विचार मन में न लायें कि कोई उनके अकेलेपन के विषय में अपने दिल-दिमाग में कोई विचार ला रहा है.यदि कोई ऐसा सोच रहा है तो उसे ऐसा सोचने दो.हाँ,ये कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए-

  • रेस्टोरेंट में अकेले खा रही हैं तो अपने आसपास के लोगों के प्रति सचेत रहें.
  • ऐसी टेबल का चुनाव करें जहां से रेस्टोरेंट का काउंटर साफ़ दिखता हो.
  • यदि खाने के दौरान कोई आपके साथ आकर जबरदस्ती बातचीत करने का प्रयास करे या छेड़खानी करने की कोशिश करे तो खूब तेज आवाज में इसकी शिकायत काउंटर में बैठे व्यक्ति से करें और यह वहां मौजूद हर किसी को सुनाई पड़े.
  • रेस्टोरेंट में खाने के दौरान ऐसी जगह का चुनाव करें जहां परिवार के सदस्य बैठे हो.
  • अकेले होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ रहें. नर्वस न हों,अपने साथ कोई पुस्तक, पत्र-पत्रिका रखें.खाना टेबल तक आने तक का इंतजार करने तक उसमें मशगूल दिखने की कोशिश करें.
  • याद रखें रेस्टोरेंट में अकेले बैठे यदि आप नर्वसनेस महसूस करेंगी तो किसी को भी आपके साथ बुरा व्यवहार करने का मौका मिल सकता है.

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यदि आपके आसपास छोटे बच्चे हों तो उन्हें बुलायें, उनके साथ बातचीत करें.

लोगों के साथ हल्की-फुल्की मुस्कुराहट से अपना परिचय बनायें ताकि उनको यह संकेत न जाये कि आप अकेले बैठकर खाने में परेशानी महसूस कर रही हैं.लड़कियों के लिए अकेले बैठकर खाना एक स्थिति है इस हिचक को तोड़ने के लिए कभी-कभी अकेले अपनी मर्जी से खायें. अगर आपको किसी खास जगह का लंच या डिनर बेहद पसंद है तो और लोगों के साथ जाकर खाने के बजाय अकेले जायें और अकेले बैठकर खाने का मजा लें.

खत्म नही हुआ है कोरोना

जिसे कल तक साधारण खांसी जुकाम कह कर टाल दिया जाता था, करोना वायरस की वजह से अब हर पत्नी और मां के लिए एक चुनौती बन गया है. घर में किसी को भी हल्की सी खांसी जुकाम ही नहीं सिरदर्द, सुघने की शक्ति में कमी, छींकें, बहती नाक सब कोविड के असर हो सकते हैं. जिन्हें वैक्सीन लग चुकी है वे तो खतरे से बाहर हैं पर जिन्होंने अभी तक नहीं लगवाई वे खुद भी खतरे में हैं और दूसरों के लिए भी खतरा हैं.

अब पीसीआरटी टैस्ट भी करवाना एक जिम्मेदारी बन गई है. वैक्सीन होने के बावजूद टैस्ट रिपोर्टें बाहर निकलने का पासपोर्ट सा बनता जा रहा है. घर के बढ़ते खर्चों में यह खर्च भी अब शामिल हो गया है और इतनी देखरेख भी पत्नी या मां को करनी पड़ रही है.

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दुनिया को बहुत देशों ने वैक्सीन को आजादी मान लिया और यदि 60-70 ‘ लोगों ने लगवा ली तो उन्होंने हर तरह की छूट देती है. भारत में अभी संख्या कम है और हालांकि सरकारों ने भूख से मरने के लिए बचने के लिए देश के लौकडाउन हटाने शुरू कर दिए हैं पर अभी सावधानी रखनी होगी और इस की पहली जिम्मेदारी औरतों की ही होगी. वे किसी तरह की ढील नहीं दे सकतीं. अब रोज की पूजा बंद करिए और घर में सैनिटाइजेशन और घरवालों के हाल की चिंता ज्यादा करें. अभी तक अच्छा है कि धर्म की दुकानें नहीं खुली पर अब भी खुल जाएं तो यह न भूलें कि कोविड से मरने वालों की लाशों को तो उन की गंगा मैया तक ने लेने से मना कर दिया है और बहाई गई सैंकड़ों लाशें वापिस तटों पर पटक दी गईं.

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मंदिरोंमसजिदों में जाने वाली भीड़ धर्म की दुकानदारी का हिस्सा है. घरघर जा कर पंडेमौलवी पाठ पढ़ाते हैं कि दुख हो तो दुआ मांगों, पूजा करों. हम सब ने देख लिया कि दुख है तो डाक्टर से चिरौरी करो, नर्स से करो, केमिस्ट से करो. कोविड अभी भी कोनों में खड़ा है और कब कौन सा रूप धारण कर के आ जाए पता नहीं और तब फिर यही डाक्टर, नर्स और कैमिस्ट काम में आएंगे, घर की मूॢत के आगे जलता दीपक नहीं.

यह जिम्मेदारी उन्हीं औरतों के लेनी होगी जिन्हें धर्म के दुकानदार सब से पहले अपना शिकार बनाते हैं.

आज की सास बहू, मिले सुर मेरा तुम्हारा

संडे था. फुटबौल का मैच चल रहा था. विपिन टीवी पर नजरें जमाए बैठा था. रिया ने कई बार कोशिश की कि विपिन टीवी छोड़ कर उस के साथ मूवी देखने चले पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था.

बीचबीच में इतना कह देता था, ‘‘मैच खत्म होने दो, फिर बात करता हूं.’’ वहीं पास बैठी पत्रिका पढ़ती मालती बेटेबहू के बीच चलती बातें सुन चुपचाप मुसकरा रही थीं. सुधीश यानी उन के पति भी मैच देखने में व्यस्त थे. मालती को अपना अनुभव याद आ गया. सुधीश भी टीवी पर मैच देखना ही पसंद करते थे. मालती को भी मूवीज देखने का बहुत शौक था. बड़ी जिद कर के वे सुधीश को ले जाती थीं पर अच्छी से अच्छी फिल्म को भी देख कर वे जिस तरह की प्रतिक्रिया देते थे, उसे देख कर मालती हमेशा पछताती थीं कि क्यों ले आई इन्हें.

मालती ने चुपचाप रिया को अंदर चलने का इशारा किया तो रिया चौंकी. फिर मालती के पीछेपीछे वह उन के बैडरूम में जा पहुंची. पूछा, ‘‘मम्मीजी, क्या हुआ?’’

‘‘कौन सी मूवी देखनी है तुम्हें?’’

‘‘सुलतान.’’

मालती हंस पड़ीं, ‘‘टिकट मिल जाएंगे?’’

‘‘देखना पड़ेगा जा कर, पर विपिन पहले हिलें तो.’’

‘‘उसे छोड़ो, वह नहीं हिलेगा. तुम तैयार हो जाओ.’’

‘‘मैं अकेली?’’

‘‘नहीं भई, मुझे भी तो देखनी है.’’

‘‘क्या?’’ हैरान हुई रिया.

‘‘और क्या भई, मुझे भी बहुत शौक है. इन बापबेटे को मैच छुड़वा कर जबरदस्ती मूवी ले गए तो वहां भी ये दोनों ऐंजौय थोड़े ही करेंगे. हमारा भी उत्साह कम कर देंगे. चलो, निकलती हैं, मूवी देखने और फिर डिनर कर के ही लौटेंगी.’’

रिया मालती के गले लग गई. खुश होते हुए बोली, ‘‘थैंक्यू मम्मीजी, कितनी बोर हो रही थी मैं. संडे को पूरा दिन विपिन टीवी से चिपके रहते हैं.’’

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दोनों सासबहू तैयार हो गईं.

सुधीश और विपिन ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हैं?’’

‘‘मूवी देखने.’’

दोनों को करंट सा लगा. सुधीश ने कहा, ‘‘अकेले?’’

मालती हंसीं, ‘‘अकेले कहां, बहू साथ है. चलो, बाय. खाना रखा है. तुम दोनों का. हम डिनर बाहर करेंगी,’’ कह कर मालती रिया के साथ जल्दी से निकल गईं.

सासबहू ने 2 सहेलियों की तरह ‘सुलतान’ फिल्म का आनंद उठाया. कभी सलमान की बौडी की बात करतीं, तो कभी किसी सीन पर खुल कर ठहाके लगातीं. खूब अच्छे मूड में मूवी देख कर दोनों ने बढि़या डिनर किया. रात 10 बजे दोनों खिलीखिली घर पहुंचीं. बापबेटे का मैच खत्म हो चुका था. दोनों बोर हो रहे थे.

इस के बाद तो मालती और रिया के बीच सासबहू का रिश्ता 2 सहेलियों में बदल गया. जब भी सुधीश और विपिन कोई प्रोग्राम बनाने में जरा भी आनाकानी करते, दोनों दोबारा पूछती भी नहीं. शौपिंग पर भी साथ जाने लगीं, क्योंकि दोनों पुरुष लेडीज शौपिंग में बोर होते थे. दोनों को अब किसी फ्रैंड की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. रिया भी औफिस जाती थी. छुट्टी वाले दिन वह बाहर जाना चाहती, तो विपिन और सुधीश मैच देखना चाहते, दोनों फुटबौल के दीवाने थे. रिपीट मैच भी शौक से देखते थे. उन्हें मूवीज, शौपिंग का शौक था ही नहीं. रिया और विपिन में अब इस बात पर कोई मूड भी नहीं खराब करता था. चारों अपनाअपना शौक पूरा कर रहे थे.

एकदूसरे के साथ समय बिताने से एकदूसरे के स्वभाव, पसंदनापसंद जानने के बाद दोनों एकदूसरे की हर बात का ध्यान रखती थीं.

अब तो हालत यह हो गई थी कि विपिन कभी फ्री होता तो रिया कह देती, ‘‘तुम रहने दो, मम्मीजी के साथ चली जाऊंगी. तुम तो शौप के बाहर फोन में बिजी हो जाते हो. बोरियत होती है.’’

विपिन हैरान रह जाता था. सुधीश के साथ भी यही होने लगा था. रिया फ्री होती तो मालती रिया की ही कंपनी पसंद करतीं. सासबहू की बौंडिंग देख कर पितापुत्र हैरान रह जाते थे.

कई बार कह भी देते थे, ‘‘तुम दोनों हमें भूल ही गईं.’’

घर का माहौल हलकाफुलका, खुशनुमा रहता.

हर घर में सासबहू 2 सहेलियां बन जाएं तो जीने का मजा ही कुछ और होता है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए एकदूसरे के सुखदुख, पसंदनापसंद को दिल से महसूस करना होगा. जरूरी नहीं है कि पतिपत्नी के शौक एकजैसे हों. दोनों का अपना मन मारना ठीक नहीं होगा. अगर पितापुत्र के शौक सासबहू से नहीं मिलते और सासबहू की पसंदनापसंद आपस में मिलती है तो क्यों न अपने मन के अनुसार जीने के लिए एकदूसरे का साथ दे कर घर का माहौल तनावमुक्त रखा जाए.

एक और उदाहरण देखते हैं. एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मी व पलीबढ़ी सुमन जब एक मुसलिम लड़के समीर से अंतर्जातीय विवाह कर ससुराल पहुंची, तो सास आबिदा बेगम ने यह पता चलने पर कि सुमन शाकाहारी है, केवल शाकाहारी खाना बनातीं.

सुमन समीर के साथ लखनऊ में रहती थी. वह जितने भी दिन ससुराल कानपुर रहती, उतने दिन सिर्फ शाकाहारी खाना बनता. इस बात ने सुमन के मन में सासूमां के लिए प्यार और आदर का ऐसा बीज बोया कि समय के साथ सुमन के दिल में उस की इतनी गहरी जड़ें मजबूत हुईं कि दुनिया 2 अलगअलग माहौल में पलीबढ़ी सासबहू के बीच बैठे तालमेल को देख वाहवाह कर उठी.

आबिदा बेगम जो बहुत शांत और गंभीर सी दिखती थीं जब खुशमिजाज सुमन के साथ हंसतीबोलती, खिलखिलाती बाहर जातीं, तो उन के पति और बेटा हैरान हो जाते.

आज की अधिकतर सासें पुरानी फिल्मों की ललिता पवार जैसी सासें नहीं हैं. वे भी बहू के साथ हंसीखुशी से जीना चाहती हैं, जीवन में छूटे शौक को, अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती हैं, वे बहू का प्यार भरा साथ पा कर जी उठती हैं.

आज की अधिकांश बहुएं भी पढ़ीलिखी, समझदार हैं. वे अपने कर्तव्यों, अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे कामकाजी हैं. छुट्टी वाले दिन रिलैक्स होना चाहती हैं. सास का प्यार भरा साथ मिल जाए तो वे भी उत्साह से भर उठती हैं.

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आज की सासबहुएं दोनों ही जानती हैं कि हंसीखुशी एकसाथ मिल कर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है, लड़झगड़ कर अपना और दूसरों का जीना मुश्किल करने से कोई फायदा नहीं है. इस से दोनों पक्षों के लिए मुश्किलें ही बढ़ेंगी.

10 चीजें सासबहू साथसाथ कर सकती हैं:

1.     ब्यूटीपार्लर में जाना.

2.     बचाए पैसे को ढंग से खर्चना.

3.     घर की डैकोरेशन में साथ देना.

4.     अलग घरों में रह रही हैं तो एकदूसरे के साथ रात बिताना, बिना पतिबच्चों के.

5.     एक के मेहमान आएं तो दूसरी उन का आवभगत करना.

6.     एक ही किट्टी पार्टी में जाना.

7.     कई बार एक ही रंग की पोशाक पहनना.

8.     दोनों का अपनी सहेलियों को एक ही दिन बुलाना, जिस में कई सासें, बहुएं और सहेलियां हों.

9.     पेंटिंग, कुकिंग क्लासें जौइन करना.

10.   पति, ससुर को साथ मिल कर मजाक में तंग करना.

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Romantic Story: सार्थक प्रेम- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

Romantic Story: सार्थक प्रेम- भाग 1- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

 कहानी- मधु शर्मा

जून माह की दोपहर मृणाल घर के बरामदे में बैठी हुई सामने लगे नीम के पेड़ पर पक्षियों को दानापानी रखने के लिए टंगे मिट्टी के बरतन को देख रही थी. उस पर बैठी गिलहरी, छोटीछोटी चिडि़याएं खूब कलरव कर रही थीं. वे कभी दाना चुगतीं तो कभी पानी के बरतन में जा कर उस में खेलतीं. मृणाल यह सब बहुत ध्यान से देख कर मुसकराए जा रही थी.

तभी भीतर से आवाज आई, ‘अंदर आ जाओ, बाहर जलोगी क्या. कितनी गरमी है वहां, लू लग जाएगी.’ और मृणाल धीरे से उठ कर अंदर चली गई. पहले उस ने सोचा बैडरूम में जाए फिर उस का मन हुआ क्यों न चाय बना ली जाए.

वह रसोई में जा कर चाय बनाने लगी. तभी प्रणय भी अंदर रसोई में आ गया और बोला, ‘‘चाय बना रही हो, पागल हो गई हो क्या? अभी तो 3 ही बजे हैं, कितनी गरमी है, तुम्हारा भी कुछ पता नहीं लगता. मैं सोचता हूं तुम्हारा इलाज साइको वाले से करवा ही लेता हूं.

‘‘पागल हो तुम, वैसे शुरू से ही थीं पर जब से दिल्ली से आई हो, बड़ी अजीबोगरीब हरकतें कर रही हो. मुझे तो अपना भविष्य अधर में लटका दिख रहा है. कैसे इस पागल के साथ पूरा जीवन काटूंगा,’’ बड़े लापरवाह लहजे में कहते हुए प्रणय फ्रिज में से आम निकाल कर काटने लगा.

मृणाल सब सुन रही थी और सिर्फ मुसकरा कर उस से बोली, ‘‘ज्यादा मत बोलो. बताओ, तुम्हारी भी चाय बनाऊं या नहीं?’’

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‘‘हां, ठीक है, आधा कप बना लो.’’ प्रणय ने जवाब दिया और मृणाल की मुसकराहट ठहाकों में बदल गई. इसी बीच उस ने प्रणय को अपनी बांहों में पीछे से पकड़ा और उस के गाल को चूमते हुए बोली, ‘‘इलाज मेरा नहीं, अपना करवाओ. आम के साथ चाय पीओगे क्या?’’

चेहरे पर हलकी मुसकराहट को छिपाने की कोशिश और दिखावटी गुस्से के साथ प्रणय बोला, ‘‘हां, मैं पीता हूं. तुम अभी कुछ दिन नहीं थीं तो यह एक्सपैरिमैंट किया. आम, तरबूज, खरबूजा सब के साथ चाय बहुत अच्छी लगती है. हम तो यों ही यह जंक फूड खा कर अपनी हैल्थ खराब करते हैं. फलों के साथ चाय पियो, देखो कितनी अच्छी लगती है.’’ कह कर वह कटे हुए आम को वापस फ्रिज में रख कर बिस्कुट निकालने लगा.

मृणाल बिना कुछ बोले मुसकराए जा रही थी. दोनों फिर बैठ कर चाय पीने लगे कि दरवाजे की घंटी बजी. मृणाल उठ कर दरवाजा खोलने गई तो देखा गेट के बाहर एम्बुलैंस खड़ी थी और अस्पताल के वार्डबौय ने कौल रजिस्टर्ड हाथ में ले रखा था. मृणाल को देख कर बोला, ‘‘मैडम, डाक्टर साहब हैं क्या? अस्पताल से इमरजैंसी कौल है. एक ऐक्सिडैंट केस आया है.’’ इतने में प्रणय भी अंदर से आ गया.

बार्डबौय ने प्रणय को देख कर कहा, ‘‘सर, इमरजैंसी है. ऐक्सिडैंट केस आया है.’’

‘‘ठीक है, चलता हूं.’’ बोल कर प्रणय अंदर चला आया और मृणाल वहीं उस वार्डबौय से बात करने लगी.

वह बोला, ‘‘क्या है न मैडम, इतनी गरमी है. ऐक्सिडैंट भी बहुत होते हैं. मारपीट के केस भी बहुत आते हैं. डाक्टर साहब को इसलिए बारबार बुलाने आना पड़ता है. वे भी परेशान होते हैं पर क्या करें, हमारी तो ड्यूटी है.’’ इतने में प्रणय कपड़े बदल कर आ गया और एम्बुलैंस में बैठ कर अस्पताल चला गया.

प्रणय पेशे से डाक्टर था. अभी एक साल ही हुआ था उसे इस शहर में ट्रांसफर हुए. मृणाल दरवाजा बंद कर के अंदर बैडरूम में आ कर लेट गई और सोचने लगी, हां, गरमी तो बहुत है पर न जाने क्यों उसे इस का एहसास नहीं हो रहा. शायद अभी 2 दिन पहले उस के मन को शीतलता मिली है, यह उस का असर है कि बाहरी वातावरण का असर उस के शरीर पर नहीं हो रहा. और लेटेलेटे मृणाल खयालों में डूब गई.

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अभी 7 दिन पहले वह अपने कोर्ट के किसी काम से दिल्ली गईर् थी क्योंकि मृणाल पेशे से एडवोकेट थी. प्रणय ने फ्लाइट से ही आनेजाने का टिकट करवा दिया था. और मृणाल उस व्यक्ति के बारे में सोचने लगी जो फ्लाइट में उस की बगल वाली सीट पर बैठा था और लगातार मृणाल की तरफ देख कर मुसकरा रहा था. जब मृणाल उस की तरफ देखती तो वह नजरें चुरा कर झुका लेता या कहीं और देखने लगता. मृणाल को यह सब बहुत असहज लग रहा था. तभी एयर होस्टेस ने आ कर पूछा, ‘सर, आप कुछ लेंगे?’

उस ने कहा, ‘हां, प्लीज मुझे कौफी दीजिए.’ एयर होस्टेस ने उसे कौफी ला कर दी.

कौफी के कप को उस ने मृणाल की तरफ बढ़ा कर पूछा, ‘मैम, आप कौफी लेंगी?’

मृणाल ने एक अनचाही मुसकराहट को अपने चेहरे पर लाते हुए मना किया, ‘नहीं सर, थैंक्यू. आप लीजिए, प्लीज.’ मृणाल की असहजता कुछ कम हुई और दोनों के बीच थोड़ीबहुत बातें होने लगीं.

वह व्यक्ति मृणाल से बोला, ‘मैम, आप दिल्ली जा रही हैं, आप तो राजस्थान से हैं.’ मृणाल ने उस की तरफ एकटक देखा और कहा, ‘आप कैसे कह सकते हैं?’

उस ने मृणाल की तरफ मुसकराहट के साथ देखा और कहा, ‘मैं तो यह भी कह सकता हूं कि आप उदयपुर से हैं.’

‘नहीं, मैं तो उदयपुर से नहीं हूं,’ मृणाल ने थोड़े सख्त लहजे में कहा.

‘तो क्या आप कभी उदयपुर में नहीं रहीं.’ बड़े गंभीर स्वर में उस व्यक्ति ने मृणाल की ओर देखते हुए कहा.

उस के चेहरे पर यह कहते हुए गंभीर और सौम्य भावों को देख कर मृणाल भी कुछ गंभीर हो गई और पूछने लगी, ‘सर, माफ कीजिए, मैं आप को पहचान नहीं पा रही हूं. हालांकि, जब से हम ने टेकऔफ किया है, मैं देख रही हूं आप लगातार मेरी तरफ देख मुसकराए जा रहे हैं. जैसे मुझे पहचान दिलाने की कोशिश कर रहे हों. सर, प्लीज आप अपने बारे में बताइए, क्या हम पहले मिल चुके हैं, और क्या करते हैं आप?’

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‘नहीं, आप मुझ से पहले कभी नहीं मिली हैं,’ उस ने मृणाल के पहले सवाल का जवाब दिया.

‘तो आप ने कभी मेरे साथ काम किया होगा, या आप मेरे क्लाइंट रहे होंगे. कहीं आप भी तो जुडिशियरी डिपार्टमैंट से तो नहीं हैं?’ मृणाल ने कहा.

‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,’ उस ने धीरे और गंभीर आवाज में कहा और चुप हो गया. मृणाल उस की तरफ इस उम्मीद से देख रही थी कि शायद वह आगे कुछ और बोलेगा पर वह सिर झुका कर बैठा था.

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Asahi Kasei के फ्राइंग पैन फॉयल के साथ पकाएं बिना तेल के खाना

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जापान के नंबर 1 प्रीमियम रैप ब्रांड असाही केसी ने 2014 में भारतीय बाजार में उतरते ही हर रसोई में अपनी अलग ही पहचान बना ली है. 2020 में इकोनोमिक टाइम्स ने असाही केसी को उसके पसंदीदा प्रीमियम किचन कुकिंग एंड फूड प्रिजर्विंग शीट्समें इंडस्ट्री लीडरशिप अवॉर्ड से भी नवाजा है. जापान की अगर बात करें पिछले करीब 60 सालों से असाही केसी ब्रांड ने जापान में अपनी गुणवत्ता और ईज़ी टू यूज़ होने के चलते अपना लोहा मनवाया है.

वर्तमान में वैश्विक महामारी के दौर में जहां लाइफस्टाइल टैक्नोलॉजी ने लोगों का जीवन आसान बनाने में मदद की है तो वहीं असाही केसी केरिवॉल्यूशनरी प्रोडक्ट्स जैसे प्रीमियम रैप, कुकिंग शीट और फ्राइंग पैन फॉयल ने किचन में बिना परेशानी के कुकिंग में अपनी उपयोगिता दर्ज कराई है.

वैश्विक महामारी के दौर में अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने वाला और हेल्दी खाना पकाना और उसे सही तरीके से स्टोर करना लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. ऐसे में असाही केसी का फ्राइंग पैन फॉयल एक क्रांतिकारी प्रोडक्ट के रुप में सामने आया है. ये उन लोगों के लिए बेहद अहम प्रोडक्ट साबित हुआ है जो संतुलित और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना चाहते हैं और ऑयल फ्री कुकिंग के साथ खुद को स्वस्थ बनाना चाहते हैं.

जापान के नंबर 1 ब्रांड Asahi Kasei ने भारतीय बाजार को एक ऐसे उत्पाद से परिचित कराने में कामयाबी हासिल की है जो बिना तेल का उपयोग किए खाना पकाने का समर्थन करता है. फ्राइंग पैन फॉयल एक अत्याधुनिक उत्पाद है जिसका उपयोग रसोई में अनुभवी और शौकिया तौरपर किचन में हाथ आजमाने वाले नए कुक्स कर सकते हैं. ये कुकिंग में आपके समय की बचत तो करता ही है साथ ही आपको स्वस्थ और परेशानी मुक्त खाना बनाने में आपकी मदद करता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि असाही केसी की फ्राइंग पैन फॉयल खाना पकाने के क्षेत्र में नवीनतम नवाचार है.

ये फ्राइंग पैन फॉयल सिलिकॉन कोटिड है जिसे आप किसी भी पैन पर आसानी से रख सकते हैं और सिलिकॉन पर बिना झंझट खाना पका सकते हैं. चूंकि ये एक तरफ से सिलिकॉन कोट किया हुआ है इसलिए आप इसमें बिना तेल की एक बूंद का इस्तेमाल किए इसमें खाना पका सकते हैं. सिलिकॉन कोटिड होने के कारण इसमें खाना बिल्कुल भी नहीं चिपकता. इसको आसानी से इस्तेमाल किया जाए इसके लिए आसान इंस्ट्रक्शन्स इसके साथ दिए गए हैं, इस प्रोडक्ट में एक तरफ R का चिह्न बना है जिसका मतलब है कि उसे उस तरफ से पैन के ऊपर रखना है.

Asahi Kasei का फ्राइंग पैन फॉयल उत्पाद का उपयोग करने से न सिर्फ आप बिना तेल के खाना पका सकते हैं बल्कि ये खाने में मौजूद प्राकृतिक खाद्य तेल को भी पैन में रिसने से रोकता है, इसलिए फ्राइंग पैन साफ ​​रहता है जिससे बर्तन को धोने की जरुरत ही नहीं पड़ती और उसी बर्तन का दोबारा आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. असाही केसी के फ्राइंग पैन फॉयल उत्पाद का इस्तेमाल कर कोई भी व्यक्ति तेल के सेवन में कमी लाकर अपना कैलोरी इनटेक कम कर सकता है. जिससे वो खुद को स्वस्थ और बनाए रख सकते हैं.

हम में से बहुत से लोगों को घर में रहने के दौरान अपना पंसदीदा खाना खाने की लालसा होती है और रसोई के नए उत्पाद हमें घर का बना स्वस्थ भोजन खाने में मदद कर सकते हैं. फ्राइंग पैन फॉयल कोटिड कुकवेयर के उपयोग को कम करने में और खाना पकाने के बाद रसोई की सिंक में जमा हुए झूठे बर्तनों के भंडार से हमें मुक्ति देता है.इसके साथ ही ये अलग-अलग खाने के लिए इस्तेमाल होने वाले पैन (तवा, फ्राइंग पैन, डोसा तवा) की संख्या को कम कर देता है. इसके इस्तेमाल से कोई भी व्यक्ति पैन में फ्राई कर बनने वाले खाने जैसे डोसा, उथप्पा, पनीर टिक्का, आमलेट और तले हुए अंडे जैसे भोजन बिना तेल और बिना अलग-अलग बर्तनों का इस्तेमाल किए आसानी से बना सकता है.

Asahi Kasei का फ्राइंग पैन फॉयल अब बिग बाज़ार, ले मार्चे (Le Marche), दिल्ली एनसीआर में फ़ूडहॉल, रिलायंस स्टोर्सऔर मुंबई, पुणे, बैंगलोर, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, केरल, पंजाब में कई सामान्य ट्रेड स्टोर और ऑनलाइन भी उपलब्ध है. अमेजॉन, फ्लिपकार्ट और बिग बास्केट में 249 रुपये में उपलब्ध है. औसतन, उत्पाद एक महीने तक चल सकता है.

Asahi Kasei के बारे में-

प्रीमियम रैप, फ्राइंग पैन फॉयल और कुकिंग शीट भारत में कंपनी के तीन प्राथमिक खाद्य-संबंधित उत्पाद हैं, जो भारतीय रसोई में जापान की भंडारण, खाना पकाने और बेकिंग पद्धति लाते हैं. ये हर एक प्रोडक्ट अपने क्षेत्र में अपना अलग महत्व रखते हैं. Asahi Kasei रसायन और भौतिक विज्ञान में एक वैश्विक दिग्गज है. इसका टर्नओवर $19.7 बिलियन (FY2020 में) है.

Family Story In Hindi: मन्नो बड़ी हो गई है- भाग 3

लेखक- डा. मनोज श्रीवास्तव

इन्हीं कामों के लिए भाभी कभी मेरी तारीफ करतीं तो मैं सोचती कि भाभी अपने को ऊंचा साबित करने की कोशिश कर रही हैं. पर नहीं, भाभी ठीक कहती थीं. यहां पर पानी का गिलास भी सब को बिस्तर पर लेटेलेटे पकड़ाओ. फिर नौकर की तरह खड़े रहो खाली गिलास ले जाने के लिए. अगर एक कप व एक बिस्कुट चाहिए तो नौकरों की तरह ट्रे में हाजिर करो. वरना बेशऊरी का खिताब मिलता है और मायके वालों को गालियां.

करण और सास को चाय व ब्रैड रोल्स दे कर हटी तो महेश आ गया. महेश को चाय दे कर हटी तो केतकी आ गई. वह आते ही सो गई. बिस्तर पर ही उसे चायपानी दिया. केतकी के तो औफिस में एक बौस होगा. यहां तो मेरे 4-4 बौस हैं. किसकिस की सेवा करूं. मैं रात का खाना बनाती, खिलाती रही. इन सब का ताश का दौर चलता रहा. रात साढ़े 10 बजे ठहाकों और खुशी से ताश का दौर रुका तो केतकी ने सास के लिए एक गिलास दूध देने का आदेश दिया और सास ने केतकी को देने का. मुझे किसी ने सुबह भी नहीं पूछा था कि दूध लिया या नहीं.

मेरी तो इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि सवा 10 बजे सब को खाना खिला कर मैं बिस्तर पर सो सकती. सुनने को मिल जाता, ‘देखो तो, जरा भी ढंग नहीं है. मांबाप ने सिखाया नहीं है. हम तो यहां बैठे हैं, यह सोने चली गई.’

बिस्तर पर पहुंचतेपहुंचते 11 बज गए. बिस्तर पर लेटी तो पूरा बदन चीसें मार रहा था. तभी करण बोला, ‘‘जरा पीठ दबा दो. बैठेबैठे मेरी पीठ दुख गई,’’ और करण नंगी पीठ मेरी तरफ कर के सो गया.

मन किया कि करण की पीठ पर एक मुक्का दे मारूं या बोल दूं कि जिस मां का मन बहलाने के लिए पीठ दुखाई है, उसी मां से दबवा भी लेते.

बस, यही एक काम बचा था न मेरे लिए? मन ही मन मोटी सी भद्दी गाली दे दी. दिल भी किया कि तीखा जवाब दे दूं. पर याद आया कि कल मायके जाना है. अगर इस का मुंह सूज गया तो यह अपनी मां के आंचल में छिप जाएगा और मैं अपनी मम्मी का चेहरा देखने को भी तरस जाऊंगी. 15 दिनों से भी ज्यादा हो गए मम्मी को देखे हुए.

‘‘कल मायके ले जाओगे न?’’ मैं ने पीठ दबाते हुए कहा.

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बड़ी देर के बाद करण के मुंह से निकला, ‘‘ठीक है, दोपहर का खाना जल्दी बना लेना. फिर वापस भी आना है.’’

मैं जलभुन गई यह उत्तर सुन कर. सिर्फ 4 घंटे में आनाजाना और मिलना भी. मजबूरी थी, समझौता कर लिया.

घर पहुंची तो जैसे मम्मी इंतजार कर रही थीं.

‘‘क्या बात है? यह तो जैसे हमें भूल ही गई,’’ भाभी ने प्यार से कहा.

‘‘होना भी चाहिए. आखिर वही घर तो इस का अपना है,’’ करण ने अकड़ कर कहा.

मम्मीभाभी के सामने आते ही आंसू आने लगे थे, मगर मैं रोक लगा गई.

‘‘क्या हुआ???,’’ दोनों हैरान रह गईं मेरी सूरत देख कर.

‘‘कुछ भी नहीं,’’ मैं अपनेआप को रोक रही थी. यहां के लोग मेरे चेहरे से मेरे मन के भाव पढ़ लेते हैं, ससुराल वाले क्यों नहीं पढ़ पाते?

सब ने बहुत आवभगत की. करण को बहुत मान दे रहे थे. मुझे लगा कि करण इन के मान के काबिल नहीं है. लेकिन मजबूरी, मैं कह भी नहीं सकती थी. वापस लौटते वक्त भाभीजी ने बताया कि अच्छा हुआ तुम आज आ गईं. कल वे भी 2 दिनों के लिए मायके जा रही हैं. इस पर करण बोला, ‘‘भाभीजी, शादी से पहले आप इतने साल मायके में ही थीं, फिर मायके क्यों जाती हैं बारबार? अब आप इस घर को ही अपना घर समझा करें.’’ भाभी का चेहरा उतर गया. पता नहीं क्यों, भाभी का उतरा चेहरा मेरे दिल में तीर की तरह वार कर गया.

‘‘आप इतने बड़े नहीं हो कि मेरी बड़ी भाभी को सलाह दे सको. ससुराल को अपना घर समझने का यह मतलब तो नहीं कि भाभी की मम्मी, मम्मी नहीं हैं? उन का अपनी मम्मी के पास बैठने का दिल नहीं करता? दिल सिर्फ लड़कों का ही करता है? लड़कों को हम लोगों की तरह अपना सबकुछ एकदम छोड़ना पड़े तो दर्द महसूस हो.’’

इस अप्रत्याशित जवाब से करण का चेहरा फक हो गया. मेरे भीतर जाने कब का सुलगता लावा बाहर आ गया था. खामोशी छा गई. भाभी मेरा चेहरा देखती रह गईं. मम्मी के चेहरे पर पहले हैरानगी, फिर तसल्ली के भाव आ गए.

बाहर आ कर करण स्कूटर स्टार्ट कर चुका था. मैं मम्मी के गले मिली तो लगा, मैं जाने कब से बिछुड़ी हुई हूं. ममता का एहसास होते ही मेरी आंखों से पानी बाहर आ गया.

मम्मी प्यार से बोलीं, ‘‘मन्नो, बड़ी हो गई है न?’’

मुझे लगा, मैं ने वर्षों बाद अपना नाम सुना है.

भाभी ने भी आज पहली बार ममता भरे आलिंगन में मुझे भींच लिया और रो पड़ी थीं. उन के आंसू मेरे दिल को भिगो रहे थे. मेरे भैया और पापा की आंखों में भी प्रशंसा थी. मुझे उन की ममता और प्यार की ताकत मिल गई थी. स्कूटर पर बैठ कर भी अब मैं सिर्फ भाभी और मम्मी के आंसुओं के साथ थी. बच्चों के मुखसे हमारी 5 वर्षीय पोती अरबिया के सिर में जुएं थीं. उस के सिर से उस की मम्मा जुएं निकाल रही थी. पहली जूं निकालते ही उस ने पूछा, ‘‘यह क्या है मम्मा?’’ उस की मम्मा बोलीं, ‘‘जूं है.’’ दूसरी पर भी उस ने वही सवाल किया. उस की मम्मा ने वही जवाब दोहराया, ‘‘जूं है.’’ तीसरी पर जब उस ने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ तो उस की मम्मा बोलीं, ‘‘लीख है.’’

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‘‘लीख क्या होती है?’’ भोलेपन से उस ने अपनी मम्मा से पूछा.

‘‘जूं की बेबी,’’ मम्मा के इस उत्तर पर अरबिया तपाक से पूछ बैठी, ‘‘मम्मा, जूं को बेबी हुई तो उस की मम्मा की डिलीवरी हुई होगी. डिलीवरी हुई तो डाक्टर भी होंगे. तो क्या मेरा सिर अस्पताल है?’’

उस की बात पर हम सब ठहाके मारमार कर हंसने से खुद को नहीं

रोक सके.   शब्बीर दाऊद (सर्वश्रेष्ठ)

मेरा 8 वर्षीय बेटा अर्चित काफी बातूनी है. वह जब भी बाथरूम में जाता तो वहां का दरवाजा बहुत अधिक टाइट होने के कारण उस से मुश्किल से ही बंद हो पाता था. ऐसे ही एक दिन एक बार फिर जब वह दरवाजा उस से ठीक से नहीं बंद हुआ तो कहने लगा, ‘‘मैं जब बड़ा हो कर अपना घर बनाऊंगा तो पूरे घर में स्क्रीन टच दरवाजे लगवाऊंगा ताकि वे बिना हाथ लगाए ही खुल जाएं.’’

उस की बात सुन कर हम सभी को बड़ी हंसी आई और उस की होशियारी अच्छी भी लगी. मेरी पत्नी नीता गैस्ट्रिक की वजह से कुछ अस्वस्थ व परेशान सी दिख रही थी. पूछने पर बोली, ‘‘गैस निकालने की कोशिश कर रही हूं जिस से पेट हलका हो कर सामान्य सा हो जाए.’’ यह सुन कर मेरा 3 वर्षीय बेटा हर्षित तपाक से बोला, ‘‘सिलैंडर कई दिनों से खाली पड़ा है, तो फिर आप उस में गैस भर दीजिए न.’’

दरअसल, उन दिनों गैस की काफी किल्लत हो रही थी. यह सुन कर हम लोग काफी देर तक हंसते रहे. फिर बाद में उसे समझाया.

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