मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग का हब बन रहा उत्तर प्रदेश

बीते चार वर्षों में उत्तर प्रदेश की आईटी नीति ने देश में कमाल किया है. इस नीति के चलते राज्य में डिजिटल इंडिया अभियान ने गति पकड़ी है. आईटी मैन्यूफैक्चरिंग के सेक्टर में रिकार्ड निवेश हुआ है. और अब उत्तर प्रदेश मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग में देश का प्रमुख केंद्र बनने की दिशा में बढ़ चला है. राज्य में ओप्पो, वीवो, सेमसंग, लावा और फ़ॉरमी जैसी तमाम कंपनियां ने मोबाइल फोन का निर्माण करने में पहल की है. अब वह दिन दूर नहीं है, जब इन देशी और विदेशी कंपनियों के भरोसे यूपी मोबाइल फोन मैन्यू फैक्चरिंग का सबसे बड़ा हब बन जाएगा. देश के करोड़ों लोग यूपी में बने सैमसंग, वीवो, ओप्पो और लावा के मोबाइल हैंडसेट से बात करते हुए दिखाई देंगे.

यह दावा अब देश के बड़े औद्योगिक संगठनों से जुड़े उद्योगपति कर रहे हैं. इन औद्योगिक संगठनों के पदाधिकरियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में डिजिटल इंडिया अभियान के तहत मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है. इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में प्रदेश सरकार की इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली नीतियों की वजह से बड़ी कंपनियों ने राज्य में बड़ा निवेश किया हैं.

प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री एवं प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि कुछ साल पहले तक राज्य में मोबाइल हैंडसेट के निर्माण में सूबे का नाम तक नहीं लिया जाता था. वर्ष 2014 में देश में मात्र छह करोड़ मोबाइल हैंडसेटों का निर्माण होता था. फिर वर्ष 2015 -16 में 11 करोड़ और 2016-17 में 17.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट का निर्माण देशभर में हुआ. अब 12 करोड़ मोबाइल हैंडसेट का निर्माण यमुना एक्सप्रेसवे विकास प्राधिकरण (यीडा) में स्थापित की जा रही वीवो की फैक्ट्री जल्दी ही होने लगेगा. यीडा के सेक्टर 24 में वीवो मोबाइल प्राइवेट लिमिटेड 7000 करोड़ रुपए का निवेश का मोबाइल हैंडसेट बनाने की फैक्ट्री लगा रही है. 169 एकड़ भूमि पर लगाई जा रही इस फैक्ट्री के प्रथम चरण में छह करोड़ मोबाइल सेट बनाए जाएंगे. दूसरे चरण में इस फैक्ट्री की क्षमता बढ़ाई जाएगी, ताकि इस फैक्ट्री में हर वर्ष 12 करोड़ मोबाइल हैंडसेट बनाए जा सके. वीवो की इस फैक्ट्री में 60 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा. वीवो की इस फैक्ट्री में बनाए जाने वाले हर मोबाइल से जीएसटी के रूप में सरकार को राजस्व प्राप्त होगा.

वीवो के अलावा चीन की बड़ी कंपनी ओप्पो मोबाइल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 2000 करोड़ रुपए का निवेश का ग्रेटर नोयडा में स्मार्ट फोन बनाएगी. ग्रेटर नोयडा में ही होलिटेच इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में मोबाइल फोन डिस्प्ले यूनिट लगाने का फैसला किया है. 1772 करोड़ का निवेश कर बनाए जाने वाली मोबाइल फोन डिस्प्ले यूनिट के लिए भूमि आंवटित हो चुकी है. नोएडा में लावा इलेक्ट्रानिक्स ने अपनी फैक्ट्री लगाकर वहां मोबाइल हैंडसेट बना रही है. सैमसंग ने भी बीते साल अपनी फैक्ट्री नोएडा में मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग की फैक्ट्री लगाई है. इसके अलावा प्रदेश सरकार की मैन्यूफैक्चरिंग पालिसी 2017 से प्रभावित होकर फ़ॉरमी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड ग्रेटर नोएडा में और केएचवाई इलेक्ट्रानिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नोएडा में मोबाइल हैंडसेट बनाने की फैक्ट्री लगा रही हैं. चीन की विख्यात कंपनी सनवोडा इलेक्ट्रानिक्स ने भी ग्रेटर नोएडा में स्मार्टफोन, लिथियम बैटरी और प्लास्टिक मोबाइल केस बनाने की फैक्ट्री लगाने में रूचि दिखाई है. 1500 करोड़ का निवेश कर सनवोडा को ग्रेटर नोएडा में अपनी फैक्ट्री लगाने का निर्णय किया है. यूपी में लगाई जा रही मोबाइल फोन मैन्यूफैक्चरिंग की इन फैक्ट्रियों को देख कर अब यह कहा जा रहा है कि देश में मोबाइल हैंडसेट के लिए अभी तक जो कंपनियां चीन की मैन्यूफैक्चरिंग इकाइयों पर निर्भर थीं, वह अब उत्तर प्रदेश में अपने ब्रांड के मोबाइल हैंडसेट बनवा रही हैं. इनमें ओप्पो, वीवो, सैमसंग, लावा और फ़ॉरमी जैसी कंपनियां शामिल हैं. यही सभी कंपनियां करोड़ों मोबाइल हैंडसेट हर साल बनाएंगी. देश में मोबाइल हैंडसेट की आधे से अधिक मांग को सूबे में लगाई जा रही कंपनियों से ही पूरी होगी.

मोबाइल हैंडसेट बनाने के लिए राज्य में हो रहे इस निवेश पर इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) महकमें का अफसरों का कहना है कि प्रदेश सरकार की आईटी और मैन्यूफैक्चरिंग पालिसी 2017 तथा मोबाइल हैंडसेट निर्माण के क्षेत्र में आए इस बदलाव ने प्रदेश में मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में बड़ा निवेश हुआ है. इस वजह से नौकरियों के नए अवसर पैदा हुए हैं. अब जैसे-जैसे प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक व मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग का आधार बढ़ेगा, राज्य में ज्यादा-ज्यादा लोगों के लिए नौकरियों के अवसर पैदा होंगे. इन अधिकारियों के अनुसार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र देश में अपने यहां मोबाइल हैंडसेट के निर्माण को बढ़ावा दे रहे हैं. गर्व करने वाले बात यह है कि मोबाइल कंपनियों को आकर्षित करने में अब तक सबसे आगे उत्तर प्रदेश सरकार है. यूपी के नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कई कंपनियां ने अपना प्लांट लगा रही हैं. कई कंपनियों ने अपनी फैक्ट्री लगाने के लिए आगे आयी हैं. अब इन सारी कंपनियों के सहारे जल्दी ही यूपी बनेगा मोबाइल फोन बनाने का सबसे बड़ा हब देश में बन जाएगा.

पोस्ट कोरोना ऑफिस गाइडलाइन में बरतें ये विशेष सावधानियां  

हिंदुस्तान में ही नहीं दुनिया में ज्यादातर जगहों में अभी भी बड़े पैमाने पर दफ्तर बंद हैं.जो दफ्तर खुले भी हैं, वहां भी कर्मचारियों की आधी अधूरी उपस्थिति है. कोरोना का अभी तक न तो खतरा कम हुआ है और न ही दहशत कम हुई है. बावजूद इसके सच यह भी है कि हमेशा दफ्तरों को बंद नहीं रखा जा सकता और न ही हर कोई वर्क फ्रॉम होम कर सकता है.लब्बोलुआब यह कि दफ्तरों को खोलना ही पड़ेगा और कर्मचारियों को दफ्तर वापस लौटना ही पड़ेगा.

लेकिन इस पोस्ट कोरोनाकाल में जब दफ्तर फिर से खुल गए हैं तो लंबे समय तक इस तरह की सावधानियां बरतनी जरूरी हैं.

अपना सामान अपनी मेज पर ही रखें

कोरोना संकट के पहले तमाम दफ्तरों में लंच का डिब्बा और कैरी बैग एक ख़ास जगह पर रखने की व्यवस्था हुआ करती थी.लेकिन इस पोस्ट कोरोनाकाल में अपना कोई भी सामान अपनी टेबल या अपने केविन में ही रखें.पहले की तरह एक दूसरे के साथ सामान रखना जोखिमभरा हो सकता है.

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फाइलें खुद दूसरे की मेज पर पहुंचाएं

वैसे तो अब बड़े पैमाने पर फ़ाइल कल्चर खत्म हो गयी है.आमतौर पर पेपरलेस दफ्तरों का चलन हो गया है.लेकिन भारतीय दफ्तरों में अभी भी फ़ाइल कल्चर काफी ज्यादा है.सरकारी दफ्तरों में तो ऑफिस ब्वाय आमतौर पर दिन भर इस टेबल से उस टेबल तक या इस सेक्शन से उस सेक्शन तक फ़ाइल पहुंचाने का काम ही करते हैं.लेकिन इन दिनों बेहतर होगा आप खुद ही अपनी फाइलें दूसरे की टेबिल तक पहुंचा दें,जिससे कोरोना संक्रमण से बचाव की सुनिश्चितता ज्यादा रहे.

मिल बांटकर खाने से कुछ दिन बचें

भारतीय दफ्तरों में ख़ास तौरपर लंच एक सामूहिक भोज में तब्दील हो जाता है.लोग चार चार छः छः के समूह में बैठकर खाते हैं.इस दौरान वे सब्जियों को बीच में रख लेते हैं और हर कोई हर किसी की सब्जी से खाता रहता है.लेकिन जब तक कोरोना के संक्रमण की शंका है खाने को शेयर करने की इस आम आदत से बचें.

अपने पैन, पैड, ड्राअर, बैग भी शेयर न करें

सिर्फ खाना ही नहीं जब तक कोरोना संक्रमण का मामला सेंसेटिव है.तब तक अपने पैन, पैड, ड्राअर, बैग आदि कुछ भी शेयर न करें.महिलायें ख़ास तौरपर सजग रहें क्योंकि शेयर करने की भावना उनमें ही ज्यादा होती है.साथ ही यह भी सच है कि कुछ कुदरती कारणों से उन्हें शेयर करने की जरूरत भी ज्यादा होती है.मगर इन दिनों इन तमाम जरूरतों और तर्कों के बावजूद शेयरिंग से बचना चाहिए.

मुंह से मुंह मिलाकर बातें न करें

कभी सॉलिडेरिटी,कभी दोस्ताना तो कभी अपनत्व प्रदर्शित करने के लिए तमाम लोग अपने सहकर्मियों से मुंह से मुंह मिलाकर बातें करते रहते हैं.यह आदत भी महिला कर्मचारियों में ज्यादा होती है.लेकिन इस कोरोना या पोस्ट कोरोना के दौर में इन आदतों को तो टाटा बाय बाय करना ही पड़ेगा,तभी संक्रमण के खतरे से बचाव हो पायेगा.

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ग्राहकों को जल्दी से जल्दी निपटाने की कोशिश करें

अगर आप पब्लिक डीलिंग ऑफिस में हैं तो इन दिनों ग्राहकों को जल्दी से जल्दी निपटाने की शैली में काम करें.तमाम ग्राहकों की आदत लम्बी चौड़ी भूमिका बनाकर जाल बिछाऊ बातें करने की होती है.उन्हें इससे शायद उनका काम ज्यादा बेहतर ढंग से होगा.ऐसे ग्राहकों को बीच में ही टोंक दें और साफ़ कहें वह अपनी बात स्पष्ट और संक्षिप्त कहें.ज्यादा देर तक ग्राहकों के संपर्क में रहना संक्रमण के लिए अनुकूल होना है.

बौस के कमरे में दूर से बात करें

छोटी छोटी बात पूछने के लिए बार बार बॉस के पास न जायें.अगर आपकी टेबल में इण्टरकॉम सिस्टम हो तो उसी के जरिये पूछ लें.लेकिन अगर जाना ही हो तो बॉस के कमरे में जाकर उनसे दूर से  बात करने की कोशिश करें.बहुत जरूरी न हो तो बैठने की कोशिश न करें .बैठें भी तो जल्द से जल्द बात को निपटाएं.

कम एसी में काम चलाएं

तमाम डॉक्टर और रिसर्चर कई बार कह चुके हैं कि सेंट्रल एसी कोरोना के फैलाव में खतरनाक भूमिका निभाता है.यही नहीं वैसे भी एसी की ठंडक कोरोना संक्रमण के काफी अनुकूल मानी जा रही है.लब्बोलुआब यह कि एसी का इस्तेमाल इन दिनों कई तरह से जोखिमपूर्ण है इसलिए बेहतर तो यही है कि संभव हो तो बिना एसी के रहें.लेकिन संभव न हो तो कम से कम एसी चलायें.

अगर इन कुछ सावधानियों को बरतेंगे तो पोस्ट कोरोना आपकी ऑफिसलाइफ तो सुरक्षित रहेगी ही आप अपने दूसरे सहकर्मियों को भी इस संकट से बचाने में कामयाब रहेंगे.

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लेखिका- प्रेमलता यदु 

बालों की प्रौब्लम्स के लिए ट्राय करें आलू के ये टिप्स

लंबे-खूबसूरत और काले बाल किसे पसंद नहीं आते…लेकिन लाइफस्टाइल और सही देखभाल के अभाव में अक्सर हमें बालों से जुड़ी किसी न किसी परेशानी को फेस करना पड़ता ही है. महंगे हेयर ट्रीटमेंट और कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल के बावजूद हमें इन परेशानियों से छुटकारा नहीं मिलता.

इसके अलावा बहुत अधिक केमिकल इस्तेमाल करने से भी बाल खराब हो जाते हैं. ऐसे में बेहतर यही होगा कि आप नेचुरल तरीके अपनाए. बहुत से ऐसे कुदरती उपाय हैं जिनकी मदद से आप बालों से जुड़ी परेशानियों को दूर कर सकते हैं. आमतौर पर लोगों को बालों से जुड़ी तीन तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. रूखे-बेजान बाल, रूसी और ग्रोथ की समस्या…

आमतौर पर इन परेशानियों के लिए अलग-अलग उपाय बताए जाते हैं लेकिन आलू एक ऐसी चीज है, जिसके इस्तेमाल से आप इन सभी परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं. आलू में शहद, दही और नींबू मिलाकर आप अलग-अलग समस्याओं से मुक्त‍ि पा सकते हैं.

1. घने और मुलायम बालों के लिए

दो से तीन आलू ले लें. इसे छीलकर इसका पेस्ट तैयार कर लें. इसके बाद इस पेस्ट में अंडे का पीला हिस्सा और शहद मिला लीजिए. उसके बाद इस पेस्ट को बालों पर लगाइए. इसे कुछ देर सूखने के लिए छोड़ दीजिए. जब ये पैक सूख जाए तो किसी अच्छे-माइल्ड शैंपू से बाल धो लीजिए. दो से तीन बार इस्तेमाल से ही आपको फर्क नजर आने लगेगा.

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2. बालों की ग्रोथ के लिए

दो आलू ले लीजिए और इसका रस निकाल लीजिए. इसमें एक या दो चम्मच एलोवेरा जेल मिला लीजिए. इस मिश्रण को बालों की जड़ों से लेकर सिरे तक लगाइए. इसे 30 से 40 मिनट तक बालों में लगे रहने दीजिए. इसके बाद पानी से बालों को धो लीजिए. तुरंत शैंपू करने की जरूरत नहीं है.

3. रूसी की समस्या के लिए

एक या दो आलू ले लें. इन्हें पीसकर इनका रस निकाल लीजिए. इस रस में नींबू और दही मिलाकर बालों में लगाइए. इस पेस्ट को बालों में लगाकर कुछ देर के लिए यूं ही छोड़ दीजिए. इसके बाद किसी अच्छे शैंपू से बाल धो लीजिए.

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वुमन ट्रेवलर्स के लिए सबसे सेफ हैं ये 8 शहर

भ्रमण के शौकीन लोग किसी पर्यटन स्थल पर जाने से पहले कुछ बातों को सुनिश्चित जरूर करना चाहते हैं, जिनमें सबसे पहले आता है महिलाओं की सुरक्षा. हमारे देश में कई ऐसे शहर है जो महिला पर्यटकों के लिए सुरक्षित माने जाते हैं. यहां पर अकेली महिला पर्यटक भी बिना किसी दिक्कत के यात्रा कर सकती है.

1. लद्दाख

यह सोलो ट्रेवलिंग के लिए सबसे बेहतरीन जगहों में से एक है और जहां तक संभव हो यहां अकेले ही जाना चाहिए. कहीं बाइकर्स के ग्रुप तो कहीं अकेले यात्रा करते लोग भी आपको यहां मिल जाएंगे. मगर यहां अकेले जाने से पहले एक बात का ध्यान जरूर रखें कि यहां से जुड़ी हर जानकारी पहले से जुटा लें. यहां के स्थानीय लोग भी पर्यटकों के लिए बहुत मददगार होते हैं.

2. उदयपुर

राजस्थान के लोगों की खास बात होती है कि वो बहुत फ्रेंडली और हेल्पफुल नेचर के होते हैं और उदयपुर में ऐसे लोगों की कमी नहीं है. बस उदयपुर की एक बात आपको बोर कर सकती है वो ये कि यहां की ज्यादातर जगहें कपल डेस्टिनेशन के तौर पर जानी जाती है तो अकेले वहां जाना थोड़ा अजीब लग सकता है. लेकिन अगर आप एडवेंचर के शौकीन हैं तो बिना किसी फ्रिक के यहां घूम सकते हैं.

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3. नैनीताल

उत्तराखंड की ये जगह अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ यहां के लोगों की खास आवभगत और दोस्ती भरे मिजाज के लिए जानी जाती है. इस कारण से ही देश के अनेक स्थानों से आने वाली लड़कियों या महिलाओं के अकेले घूमने के लिए यह बेहतर जगह है. यहां लोगों की अच्छी-खासी तादाद मिल जाती है, जिससे आप खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करेंगी.

4. मैसूर

अगर आप प्राचीन इमारतों व इतिहास की शौकीन हैं तो ये जगह आपके लिए परफेक्ट रहेगी. यहां समय-समय पर कई राजाओं का शासन रहा, जिसके सबूत के तौर पर किले आज भी जीवित हैं. यहां के लिए माना जाता है कि महिलाएं और लड़कियां रात में भी अकेले घूम सकती हैं.

5. सिक्किम

नार्थ ईस्ट की ज्यादातर जगहें आपको अट्रैक्ट करने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगी खासतौर से सिक्किम. चारों ओर ऊंची-ऊंची पहाड़ियां, गहरी घाटियां और बौद्ध मोनेस्ट्रीज यहां की खूबसूरती को दोगुना करते हैं. यहां के लोग बहुत ही फ्रेंडली होते हैं इसलिए यहां आप बेफ्रिक होकर ट्रिप को एन्जॉय कर सकती हैं. यहां खाने-पीने के भी ढेरों ऑप्शन्स मौजूद हैं.

6. काजीरंगा

महिलाओं के लिए आसाम के काजीरंगा नेशनल पार्क में घूमना बहुत ही यादगार और शानदार ट्रिप साबित हो सकता है. वाइल्ड लाइफ का एक्सपीरियंस लेने के लिए ये बहुत अच्छा ऑपशन है. अकेले घूमना हो या ग्रूप, महिलाओं के लिए हर लिहाज से सेफ है.

7. शिमला

हिल स्टेशन टूरिस्ट्स की सबसे फेवरेट जगह होते हैं और लगभग पूरे साल यहां आनों वालों की भीड़ लगी रहती है इसलिए ये जगह महिलाओं की लिए ज्यादा सुरक्षित होते हैं. शिमला ऐसी ही जगहों में से एक है. सबसे अच्छी और खास बात इन जगहों की होती है कि यहां देर रात को भी सैलानियों को घूमते, खाते-पीते, मौज-मस्ती करते हुए देखा जा सकता है.

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8. खजुराहो

यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल खजुराहो के मंदिर की खूबसूरती वाकई देखने लायक है. यहां टूरिस्ट गाइड से बचने के लिए आपको ट्रिक्स आनी चाहिए वरना ये अच्छे खासे पैसे वसूलते हैं इन मंदिरों की सैर कराने की. लक्ष्मण मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, मातंगेश्वर महादेव मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर और आदिनाथ मंदिर बहुत ही खूबसूरत है.

यूं ही नहीं खत्म होने दे जिंदगी

मेरे दादाजी की मृत्यु के कुछ ही समय बाद ही मैंने अपनी दादी को खो दिया. जो मेरे लिए काफी दर्दनाक था. मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि वह दादा जी की मृत्यु के बाद अकसर रोते हुए कहती थीं, “मैं जल्द ही तुम्हारे पास आऊंगी.” दुखी रहने के कारण उनका धीरे-धीरे स्वास्थ्य गिरने लगा और साल भी नहीं हुआ उससे पहले ही वह चल बसीं.

जीवनसाथी या साथी को खोने का दुख न केवल भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है और इस बात को बहुत से शोधों ने भी साबित किया है.

कहते हैं, जिसे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं उसे खो देने के ख्याल से भी मन डरने लगता है. लेकिन क्या हो अगर वही साथ बीच में छूट जाए और वो हमेशा के लिए हमें छोड़कर एक ऐसी दुनिया का हिस्सा बन जाएं जहां से वो कभी नहीं लौट सके. प्यार का टूटना और उसका हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो जाना दोनों ही अलग है. जब आपका प्यार टूटता है तो एक उम्मीद होती है, उसके वापस आने की. लेकिन जब वो दुनिया से ही रुखसत हो जाते हैं, तो सारी उम्मीदों में ‘वो काश’ शब्द जुड़ जाता है.

उदाहरण–

मैं रोज जब काम पर जाता हूं तो ऐसा लगता कि सब कुछ वैसा ही है जैसा हमेशा से था. लेकिन फिर जब मैं घर वापिस आता हूं तब वह खाली घर काटने को दौड़ता है. कोई हैलो कहने या मुझसे पूछने वाला नहीं है कि उस दिन मुझे कैसा लगा. रात के खाने की कोई स्वादिष्ट सुगंध नहीं होती. मुझे अपना खाना खुद बनाना पड़ता है. कभी-कभी तो अपने लिए कुछ बनाने का मन ही नहीं करता. हर टाइम मैं अपनी पत्नी की यादों में खोया रहता हूं. घर का हर कोना मुझे उस की याद दिलाता है…. क्योंकि जिसे खोया है वह न केवल मेरी पत्नी, बल्कि मेरी अच्छी दोस्त थी. समझ नहीं आता मैं उसके बिना अपना जीवन कैसे चलाऊं?”; कहना है मेरे एक मित्र का जिन्होंने अभी हाल ही में कोरोना की वजह से अपनी पत्नी को खोया है.

हमारी जिंदगी से इस तरह किसी के चले जाने से फर्क तो बहुत पड़ता है लेकिन हमें अपनी जिंदगी को फिर से शुरू करना चाहिए, एक नई उम्मीद और नई सुबह और उनकी यादों के साथ. आगर आप भी कुछ ऐसी ही परिस्थितयों से जूझ रहे हैं तो आप हमारा ये लेख जरुर पढ़ें. हो सकता है आपकी जिंदगी के लिए हमारा ये लेख आपका साथी बन जाए.

1. दुख करें साझा-

आपको कितना बड़ा ही दुःख क्यों न हो, जब तक आप अपना दुःख और तकलीफ किसी से साझा नहीं करेंगे, आपकी जिंदगी और भी मुश्किलों भरी हो जाएगी. आप अगर अपने दिल की बात किसी अपने से साझा करते हैं, तो ये आपके लिए सबसे बेहतरीन उपचार में से एक है. आप ऐसे लोगों के समूह का हिस्सा बनें जो शोक से थोड़ा दूर रहे. आप इसके अलावा ऑनलाइन समय बिताएं. आप उन लोगों से बात करें, जो आपको आने वाली जिंदगी के लिए प्रेरित करें.

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2. लंबी सांस लें-

जब भी आपको ऐसा महसूस हो कि आप इमोशनली तौर पर खत्म होने की कगार पर हैं, तो आपको एक पल ठहर कर एक लंबी सांस खुद के लिए लेने की जरूरत है. आप सारा ध्यान खुद पर केन्द्रित करने की कोशिश करें. अपने हाथ को पेट पर एक हाथ को अपनी सीने पर रखें और ऐसा महसूस करें, कि ताज़ी हवा को आप अपने गले से लगा रही हैं. आप इस खूबसूरत से ब्रेक को पकड़कर रखें. आप ये हर रोज तीन से चार बार जरुर करें.

3. वर्कआउट में समय गुजारें-

भावात्मक तौर पर खुद को मजबूत करना बेहद जरूरी होता हैं, खासकर तब जब आपने अपने करीबी को खोया होता है. आप ज्यादा से ज्यादा समय वर्कआउट करने में गुजार सकते हैं. इसके अलावा आप वाक, रनिंग, योग, एक्सेरसाइज़ करें. इससे आपका शरीर फिट और मजबूत रहेगा.

4. बनाएं ताज़ी यादें-

अपने ख़ास के बिना जिंदगी में आगे बढ़ना मुश्किल जरुर है लेकिन ये नामुमकिन बिलकुल भी नहीं है. आप ये एक धोखे जैसा महसूस कर सकते हैं क्योंकि पलभर में ही दुनिया बदल जाती है. लेकिन इन सब से उपर उठकर आपको अपना दिमाग और दिल दोनों ही मजबूत बनाना होगा. आप उन यादों को जीने की कोशिश करें, जो यादें अपने उनके साथ बनाई थीं. आप आपके मनपसंद का खाना बनाकर खाएं और उनके फेवरेट जगह घूमने भी जाएं.

5. प्यार की करें रिस्पेक्ट-

जब भी आपका अपना आपसे दूर चला जाता है, तो उनसे जुड़ी हर यादें और तारीख मन को और उदास बना देती हैं. लेकिन आपको उदासी को भूलकर उनकी मौत के कई सालों के बाद भी बर्थडे, ऐनिवेर्सरी और छुट्टियों को अच्छे से बिताना चाहिए. आप उनके बर्थडे पर उनकी पसंद का डिनर तैयार करें, जो अपनी कहानी बयां करता है. ये एक अच्छी प्यार की रिस्पेक्ट होगी.

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किसी के बिना जिंदगी बिताना मुश्किल है, लेकिन अपनी आगे की जिंदगी के लिए आपको अपने आपको इस मुश्किल की घड़ी से बाहर निकालना ही होगा. आपको ये समझना होगा कि जिंदगी उनकी यादों के साथ खूबसूरत रखी जा सकती है. ताकि दूसरी दुनिया से वो जब भी आपको देखें तो उन्हें आपको छोड़कर जाने का मलाल न हो. आप इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करें. ताकि आप एक बार फिर से जी सकें.

टोक्यों ओलंपिक में देश की पहली अंतर्राष्ट्रीय महिला तलवारबाज़ बनी भवानी देवी

जब आपमें कुछ कर गुजरने की इच्छा हो, तो मुश्किलें कितनी भी हो, उसे पार कर मंजिल तक पहुँच जाते है, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है भारत की अंतर्राष्ट्रीय महिला तलवारबाज चदलावदाअनंधा सुंधरारमनयानि C. A. भवानी देवी. वह 23 जुलाई 2021 को टोक्यो में शुरू होने वाले ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली भारत की पहली अंतर्राष्ट्रीय महिला तलवारबाज बन चुकी है. 8 बार की नेशनल चैंपियन, कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप टीम इवेंट्स में एक सिल्वर और एक ब्रोंज जीतने वाली भवानी देवी एक ऐसी महिला है, जिन्होंने मेहनत कर इस खेल को अपनी पहचान बनाई और लाखो युवाओं की प्रेरणा स्त्रोत बनी. चेन्नई के मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी भवानी देवी के पिता पुजारी और माँ हाउसवाईफ है. 5 भाई-बहनों में सबसे छोटी भवानी को स्कूल के समय से ही तलवार बाजी का शौक था. पैसे की तंगी होने के बावजूद भवानी के पेरेंट्स बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे. एक बार पैसे की कमी होने की वजह से भवानी की माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे. इसलिए भवानी अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देती है.

भवानी को छठी कक्षा में पढने के दौरान स्कूल के किसी खेल में भाग लेने के लिए नाम देना पड़ा. तलवारबाजी को छोड़ किसी भी खेल में जगह नहीं थी. भवानी को ये खेल नया और चैलेंजिंग लगा. उस समय तमिलनाडु ही नहीं, पूरे भारत के लिए ये खेल नया था. शुरू में उन्होंने बांस के उपकरणों से चेन्नई के जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम के बैडमिंटन कोर्ट में प्रैक्टिस किया करती थी. आज भी सस्ती तलवारों से ही भवानी फेंसिंग की प्रैक्टिस करती है, क्योंकि अच्छी यूरोपियन तलवारों को वह मैच के लिए रखती है. नेशनल लेवल पर पहुँचने के बाद भवानी इलेक्ट्रिक तलवार से परिचित हुई थी.भवानी ने तलवारबाजी में 12 से अधिक मेडल जीते है. वर्ष 2008 में सीनियर एशियन चैम्पियनशिप में भाग लेने के लिए भवानी के पास पैसे नहीं थे, तब मुख्यमंत्री जयललिता ने भवानी को बुलाकर एक चेक दिया. इसके बाद से भवानी को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.उनके इटालियन कोच निकोला ज़ेनोट्टी है, उन्हें भवानी की स्किल्स को देखने के बाद कोच करने की इच्छा हुई.स्पष्टभाषी और शांत भवानी से कैम्पेन के तहत वर्चुअली बात हुई पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-चमकते रहना को आप कैसे एक्सप्लेन करना चाहती है?

रियल लाइफ में किसी व्यक्ति को अपने मुकाम तक पहुँचने में साहस और दृढ़ संकल्प के साथ-साथ चुनौतियों की जंग को जीतने की जरुरत होती है, जैसा मैंने हर कदम पर किया है. अपने सपने को मैंने कभी नहीं छोड़ा और आज देश को गर्वित महसूस करवाने में सफल हो पाई.आज पूरा देश मेरी प्रतिभा को मानता है.

सवाल-तलवारबाजी में जाने की प्रेरणा कैसे मिली?

मैं जब 6ठी कक्षा में थी, मुझे इस खेल में जाने का मौका मिला और मुझे ये गेम काफी यूनिक और चैलेंजिंग लगा. फिर मैंने प्रैक्टिस करना शुरू किया.

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सवाल-भारत में ये खेल अधिक प्रचलित नहीं है, ऐसे में आप कैसे आगे बढ़ी? माता-पिता का सहयोग कितना रहा? चुनौतियाँ क्या-क्या थी?

मेरी जर्नी पितृसत्तात्मक विचार के विरुद्ध जाकर ही शुरू हुई है और ये बचपन से लेकर आज एक सफल तलवारबाज बनने तक है. मेरी पहली फेंसिंग किट जो बहुत महँगी थी, उसे खरीदने के लिए मेरे पेरेंट्स के पास पैसे नहीं थे. मेरी माँ ने अपने गहने गिरवी रखकर मुझे पैसे दिए, ताकि मैं अपने सपनों को पूरा कर सकूँ. हर दिन मेरे लिए चुनौती है, जब मैं ट्रेनिंग के बाद गंदे और पसीने युक्त कपड़ों के साथ थककर घर पहुँचती हूं, तो मन में एक ख़ुशी महसूस होती है, फलस्वरूप मैं इस खेल छोड़ने की बात कभी नहीं सोच पाई. किसी भी सपने को पूरा करने के पीछे अनगिनत त्याग और चुनौती होती है, लेकिन शांत और दृढ़ संकल्प के साथ ही वह उस असंभव मंजिल को भी पाया जा सकता है.

सवाल-क्या महिला होने के नाते आपको किसी प्रकार के ताने आसपास या रिश्तेदारों से खेल को लेकर सुनने पड़े? अगर हाँ तो आपने उसे कैसे लिया ?

प्रोफेशनल फ्रंट में मुझे कई घंटे लगन और मेहनत के साथ प्रशिक्षण लेना पड़ता था, ताकि मुझे अच्छी रिजल्ट मिले.कई बार ये कठिन और टायरिंग होने पर भी मेरी फोकस खेल पर होता था, क्योंकि मेरी माँ को विश्वास था कि मैं एक दिन कामयाब अवश्य होऊँगी, इसलिए मुझे किसी भी प्रकार की तानों से निकलने में माँ का सहयोग सबसे अधिक है. मेरी इस जर्नी में मैंने हमेशा ऐसे लोगों को फेस किया है, जोमेरे तलवारबाजी के खेल को गलत ठहराकरकिसी अन्य खेल में जाने की सलाह दी है, क्योंकि ये महिलाओं की कैरियर के लिए सही खेल नहीं है. मैंने इसे अनसुना कर तलवारबाजी की पैशन पर नजर गढ़ाए रखी.अच्छी बात ये रही कि मेरे परिवारवालों ने उस समय भी मुझपर विश्वास रखा, जिससे मुझे अपनी जर्नी को आगे बढ़ाने में आसानी रही.

सवाल-टोक्यो ओलंपिक में आप किस पदक को लाना चाहती है? इसके लिए कितनी तैयारियां की है?

मेरे लिए यह पहली बार है, जब मैं अपने देश का प्रतिनिधित्व इंटरनेशनल स्पोर्ट इवेंट में करने वाली हूं. मुझे ये ‘ड्रीम कॉम ट्रू’ वाली स्थिति का अनुभव हो रहा है. मैं इस जर्नी की हर पल को एन्जॉय कर रही हूं और मैं देश, परिवार और लम्बे समय से पोषित ड्रीम के लिए गोल्ड मैडल लाना चाहती हूं.

मैंने घर से बाहर यूरोप में रहकर 5 सालों तक ओलंपिक के इस अवसर को पाने के लिए प्रशिक्षण लिया है. इस दौरान मैंने हर त्यौहार को मिस किया है, लेकिन मुझे अफ़सोस इस बात से है कि मेरे पिताजी इस पल में हमारे साथ नहीं है.

सवाल-फेंसिंग में किस तरह की फिटनेस जरुरी होता है?

तलवारबाजी की खेल में चुस्ती-फुर्ती और अनुशासन में रहना पड़ता है, जिसमें माइंड और पूरे शरीर की वर्कआउट करना जरुरी है. इस खेल में 3 स्किल्स पर ख़ास ध्यान देना पड़ता है, मसलन ब्लेड वर्क, फुटवर्क और युद्ध नीति. फेंसिंग मुकाबले का खेल है और बिना रुके खेलना पड़ता है. व्यक्ति को फ़ास्ट और चतुर होने के साथ-साथ अच्छी कोआर्डिनेशन और स्ट्रेंथ की आवश्यकता होती है. इसमें व्यक्ति को अच्छी बॉडी स्किल्स, फ्लेक्सिबिलिटी और रिएक्शन स्किल बहुत जरुरी है, ताकि आप इस खेल में माहिर हो सके.

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सवाल-आपकी आगे की योजनायें क्या है?

अभी मैं एक एथलीट हूं , लेकिनटूर्नामेंट में परफॉर्म करना मेरी सबसे अधिक प्रायोरिटी है, क्योंकि इससे मानसिक और शारीरिक दोनों को बल मिलता है.

सवाल-फेंसिंग सीखने वाले नए खिलाड़ियों के लिए मेसेज क्या है?

तलवारबाजी में अपना कैरियर बनाने के लिए व्यक्ति को साहसी, स्ट्रांग और खुद में विश्वास होने की जरुरत है. मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होने पर व्यक्ति कठिन घड़ी को भी सम्हालकर जीत की ओर अग्रसर होता है.

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नाश्ते में कुछ बनाने की बात आती है तो सबसे पहले दिमाग में सैंडविच का ही नाम आता है. दरअसल, सैंडविच बेहद जल्द और आसानी से बन जाने वाली रेसिपी हैं और यह खाने में भी बेहद डिलिशियस लगते हैं, इसलिए इसे नाश्ते में एक बेहतरीन विकल्प के रूप में देखा जाता है. वैसे तो देखने में बेहद लाइट होते हैं, लेकिन आपको लंबे समय तक फुल रखते हैं. इसलिए, कुछ लोग हल्की भूख लगने पर भी सैंडविच खाना पसंद करते हैं.

ब्रेड की मदद से बनने वाले सैंडविच को लोग अक्सर एक ही तरह से बनाना पसंद करते हैं. जिसके कारण उन्हें एक ही तरह के टेस्ट के कारण बोरियत होने लगती है. हो सकता है कि आप भी अपने घर में एक ही तरह से सैंडविच बनाती हों और अब कुछ नया ट्राई करना चाहती हों तो ऐसे में आप सैंडविच को एक नहीं, बल्कि कई अलग-अलग तरीकों से बनाकर देंखे. जी हां, सैंडविच को कई डिफरेंट तरीके से बनाया जा सकता है और हर बार आपको एक डिफरेंट टेस्ट मिलता है. तो चलिए आज हम आपको सैंडविच की डिफरेंट रेसिपीज के बारे में बताते है.

मसाला पाव वेज सैंडविच

अगर आपको चटपटा खाना काफी पसंद है और इसलिए आपको सैंडविच खाना बोरिंग लगता है तो एक बार मसाला पाव सैंडविच बनाकर देखिए. यकीन मानिए, यह सैंडविच निश्चित रूप से आपका पसंदीदा बन जाएगा. इस सैंडविच को बनाने के लिए आपको अपने सैंडविच को तवे पर ढेर सारे मक्खन के साथ आपको पाव सेंकना होगा और आप इसमें अपने स्वाद के अनुसार लाल मिर्च पाउडर, काली मिर्च और नमक जैसे मसाले डालें. जब आपका पाव तैयार हो जाए, तो एक टिक्की, टमाटर प्याज और कार्न शिमला मिर्च को स्लाइड्स मे काटकर मियोनिज के साथ मिक्स कर डालें और तवे पर करारा सेंडविच सेंक ले.

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दही सैंडविच

दही सेंडविच को नाश्ते में आसानी से बनाया जा सकता है. इस सैंडविच में दही के साथ-साथ कई तरह के वेजिटेबल्स को मिलाया जाता है, जिसके कारण इसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है, साथ ही यह हेल्दी भी होता है. इस सैंडविच को बनाने के लिए, आपको आधा कप दही में अपनी मन पसंद सब्जियों के कुछ टुकड़े जैसे टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, प्याज या अपनी पसंद की किसी भी वेजिटेबल को डालें. इन्हें दही में मिलाएं और स्वादानुसार नमक और काली मिर्च डालें. इस मिश्रण को अपनी ब्रेड में डालकर तवे पर गोल्डन ब्राउन होने तक सेंक लीजिए. बस आपका दही सैंडविच बनकर तैयार है.

कार्न चीज सैंडविच

कॉर्न और चीज़ का काम्बीनेशन लगभग हर किसी पसंद आता है, कॉर्न और चीज़ की मदद से बना सैंडविच एक ऐसा सैंडविच है, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक के मन को भा जाएगा. क्योंकि कॉर्न के साथ चीज़ का कॉम्बिनेशन बेहद ही डिलिशियस टेस्ट देता है. इसे बनाने के लिए आपको उबले हुए कॉर्न और चीज़ की जरूरत होगी. आप अपनी पसंद के किसी भी चीज़ का उपयोग कर सकती हैं. इन दोनों को मिलाकर सैंडविच को ग्रिल कर लें.

वेजिटेबल सैंडविच

यह एक ऐसा सैंडविच है, जो यकीनन आपके टेस्ट बड को नेक्स्ट लेवल पर ले जाएगा. इसे बनाने के लिए अपनी पसंद की सब्जियां जैसे प्याज, शिमला मिर्च, मशरूम, ब्रोकली या कोई और सब्जी लें. इन्हें एक पैन में पकाएं और अपने स्वाद के अनुसार मसाले डालें. आप सब्जियों में पनीर भी डाल सकती हैं. अब, एक तवे पर अपना सब बेक करें और उस पर सब्जियां डालें. ऊपर से, आप अपनी मन पसंद चीज डाले और करारा सेंडविच सेंक लें.

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FASHION TIPS: शादी के लिए चुनें परफेक्ट लहंगा

शादी की तैयारियों दुल्‍हन की सबसे खास और अ‍हम चीज होती है इस खास दिन पहने जाने वाला जोड़ा. अगर आप भी आने वाले कुछ महीनों में दुल्‍हन बनने वाली हैं और अपनी वेडिंग ड्रेस को लेकर कंफ्यूज हैं तो यहां बताए जा रहे टिप्‍स की मदद से चुनें परफेक्ट लहंगा –

1. अपनी हाइट, वेट और कलर को सूट करने वाला डिजाइन चुनें. क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि जो लहंगा आप को खूबसूरत लग रहा हो वह पहनने पर भी उतना ही जंचे.

2. अगर आपकी हाइट अच्‍छी है लेकिन आपका वेट ज्‍यादा नहीं हैं तो आपको घेरदार लहंगा पहनना चाहिए. इससे आपकी हाइट ज्‍यादा नहीं लगेगी. वहीं अगर आपकी हाइट छोटी है और हेल्‍थ ज्‍यादा है तो घेरदार लहंगा पहनने की बात भूलकर भी न सोचें. आपके ऊपर बारीक डिजाइन वाला लहंगा अच्‍छा लगेगा.

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3. अगर आप हेल्दी हैं लेकिन आपकी हाइट अच्‍छी है तो फि‍टिंग वाला लहंगा आप पर खूब फबेगा. इससे आपका मोटापा दब जाएगा और आप थोड़ी पतली लगेंगी.

4. अगर आपका रंग गोरा है तो आप किसी भी रंग का लहंगा चुन सकती हैं. सॉफ्ट पेस्टल, पिंक, पीच या लाइट सॉफ्ट ग्रीन जैसे रंग आप पर बहुत अच्‍छे लगेंगे.

5. अगर आपका रंग गेहुंआ है तो आप इन रंगों का चुनाव कर सकती हैं जैसे, रूबी रेड, नेवी ब्लू, ऑरेंज रस्ट, गोल्डन, रॉयल ब्लू आदि. वहीं पेस्टल कलर को चुनने से बचें.

6. डस्की ब्‍यूटी पर ब्राइट कलर जैसे, मजेंटा, लाल, नारंगी आदि कलर बहुत अच्‍छे लगते हैं और अगर आप बांग्ला, साउथ इंडियन या फिर गुजराती हैं तो सफेद रंग चुनने में आपको परेशानी नहीं होगी.

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7. ध्यान रखें कि अगर लहंगा बहुत भारी वर्क वाला हो तो दुपट्टा हल्का लें. अगर दोनों भारी वर्क वाले होंगे तो आपकी ज्‍वैलरी का लुक अच्‍छा नहीं आएगा और आपका लुक बहुत भारी लगेगा. हालांकि लहंगा इतना भी भारी न खरीद लें कि आप उसे संभाल ही न पाएं.

Romantic Story: कैसा यह प्यार है -भाग 1

लेखिका- प्रेमलता यदु 

आज कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा का अंतिम पेपर था. मैं ने सारे पेपर बहुत अच्छे सौल्व किए. और तो और, मेरा फिजिक्स का पेपर भी उम्मीद से ज्यादा ही अच्छा रहा जिसे ले कर मैं वर्षभर परेशान रही, कभी समझ ही न पाई कि आखिर फिजिक्स में इतने सारे थ्योरम क्यों हैं. आज सफलतापूर्वक मेरी परीक्षा समाप्त हो गई जिस का मुझे बेसब्री से इंतजार था परंतु एग्जाम हौल से बाहर निकलते ही मेरा मन बेचैन हो उठा क्योंकि आज स्कूल में हमारा आख़री दिन था.

अब हम सभी संगीसाथी छूट जाएंगे, यह सोच कर ही हृदय की व्याकुलता बढ़ गई. क‌ई वर्षो का साथ एक क्षण में छूट जाएगा. सभी फ्रैंड अपनेअपने सपनों को पूरा करने अलगअलग दिशाओं में बंट जाएंगे. लेकिन, यह तो होना ही था. हर किसी को अपने जीवन में कुछ बनना था, एक मुकाम हासिल करना था. लेकिन मेरा सपना…मेरा सपना तो कुछ और ही था.

मैं बचपन से दादी की परियों वाली कहानियां सुनती आई थी जिन में परीलोक से सफेद घोड़े पर सवार सपनों का एक राजकुमार आता है जो राजकुमारी को अपने संग परियों के देश ले जाता है. मैं भी, बस, एक ऐसे ही राजकुमार को अपने नयनों में बसाए बैठी थी.

एक आम लड़की की भांति मैं खुली आंखों से यह सपना देखा करती, यही सोचा करती कि ग्रेजुएशन कंपलीट होते ही मेरे सपनों का राजकुमार आएगा, जिस के संग ब्याह रचा कर मैं एक हैप्पी मैरिड लाइफ़ गुजारूंगी.

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हम सभी फ्रैंड्स जुदा होने वाले थे. सभी एकदूसरे के गले लग रहे थे, टच में रहने का वादा कर रहे थे, स्लैम बुक में अपने फेवरेट हीरो, हीरोइन, फेवरेट डिशेस से ले कर अपने फास्ट और क्लोज फ्रैंड का नाम लिख रहे थे. मैं भी लिख रही थी और अपनी क्लोज फ्रेंड रूही के स्लैम बुक पर उस का नाम लिखते ही मैं रो पड़ी और वह भी अपना नाम देख मुझ से लिपट गई. फिर न जाने कितनी देर हम यों ही एकदूसरे से गले लग कर रोते रहे. फिर धीरे से रूही ने मेरे कानों में कहा- “आई होप, तेरे सपनों का राजकुमार तुझे जल्दी मिले.”

उस का इतना कहना था कि मुझे हंसी आ गई और फिर हम दोनों रोतेरोते हंस पड़े.

आज रात की ही ट्रेन से रूही अपने घर लौट रही थी क्योंकि वह होस्टलर थी और अब आगे की पढ़ाई रूही अपने ही शहर से करने वाली थी. हम कब मिलेंगे, इस बात का हमें कोई इल्म नहीं था. इसलिए रूही ने मुझ से वादा लिया कि जब भी मुझे मेरे ख्वाबों का शहजादा मिल जाएगा, मैं सब से पहले उसे ही इन्फौर्म करूंगी.

उस रोज़ हम ने सारा दिन साथ बिताया. स्कूल के सामने लगे चाट के ठेले पर हम ने मेरी पसंदीदा कटोरी चाट खाई, फिर रूही की मनपसंद तीखी वाली भेलपूरी, जिसे खाते ही कानों से धुआं और आंखों से पानी निकलने लगता लेकिन हमें तो भेल यही अच्छी लगती. उस के बाद आया पानीपूरी का नंबर और हम दोनों ने जीभर कर कभी खट्टी, कभी तीखी, कभी मीठी, कभी पुदीने वाली तो कभी दही वाली सभी प्रकार की पानीपूरियों का पूरापूरा लुत्फ़ उठाया.

घर जाने से पूर्व हम अपने स्कूल से लगे चर्च पर चले ग‌ए जहां हम अकसर जाया करते थे. वहां चर्च के भीतर जा कर मैं हमेशा की तरह रूही का नाम पुकारने लगी और उस का नाम इको होने लगा. साउंड का इस प्रकार इको होना मेरे मन को प्रफुल्लित करता और रूही को परेशान, वह बारबार मुझे ऐसा करने से रोकती और मैं उस का नाम दोहराती. जब भी हम चर्च आते, ऐसा ही करते और आज भी वही कर रहे थे. थोड़ी देर ऐसा करने के पश्चात हम घुटने टेक प्रेयर की मुद्रा में बैठ ग‌ए. एकदूसरे के लिए प्रण लिया कि सदा हमारी दोस्ती यों ही बरकरार रहे. फिर चर्च कंपाउंड में आ हम मदर मरियम के बुत को देखते रहे. मदर मरियम की गोद में यीशु को देख कर हम दोनों मंत्रमुग्ध हो गए.

चर्च से निकलने के बाद सामने ही बर्फ के गोले वाला दिख गया लेकिन तब तक हमारे पास पैसे खत्म हो चुके थे. रूही के पास केवल एक रुपए ही शेष बचा था, सो उस ने एक बर्फ का कालाखट्टा गोले का चुस्की ले लिया और हम दोनों ने मिल कर उस चुस्की का आनंद लिया. शाम होने वाली थी, मुझे घर लौटना था और रूही को होस्टल, एक बार फिर हम दोनों ने एकदूजे को गले लगा लिया और फिर हमारी आंखें नम हो गईं.

भारीमन से मैं घर लौटी तो मैं ने देखा, मेरा छोटा भाई जय अपना बैग पैक कर रहा है और अम्मा मिठाइयां बना रही है. तभी अम्मा मुझे देखते ही बरस पड़ी- “पीहू, तू अभी आ रही, मैं ने तुझ से कहा था न, एग्जाम खत्म होते ही सीधे घर आना लेकिन तुझे सुनना कहां है. ज़रूर तू अपनी उस बेस्ट फ्रैंड रूही के साथ घूम रही होगी. अच्छा अब जल्दीजल्दी मुंहहाथ धो कर किचन में आ के मेरा हाथ बंटा, कल मुंहअंधियारे ही हमें गांव निकलना है.”

यह सुनते ही मैं खुशी से उछल पड़ी और “जी अम्मा, अभी आती हूं” कह फौरन हाथमुंह धो किचन में आ अम्मा का हाथ बंटाने लगी. हर साल स्कूल की परीक्षाएं समाप्त होते एवं गरमी की छुट्टियां लगते ही हम दादी के पास गांव बलिया चले जाते. वहां चाचा का परिवार दादी के साथ रहता था. चाचा के 2 बच्चे हैं. हमारी बूआ भी अपने दोनों बच्चों के संग वहीं गांव आ जातीं. पूरा परिवार इकट्ठा होता.

सुबहसवेरे गांव के लिए निकलना है इस कल्पना मात्र से ही मन रोमांचित हो उठा और मैं सारी रात करवटें बदलते हुए सुबह होने का इंतजार करने लगी. गांव में बिताए सुनहरे लमहों को स्मरण कर आज भी वही आनंद की अनुभूति हो रही थी.

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हर साल गरमी की छुट्टियों में हम सभी बच्चे गांव में पूरा दिन धमाचौकड़ी मचाते, कभी भरी दोपहरी में बेर तोड़ने निकल जाते तो कभी किसी आम के बागीचे में घुस कर कच्चेपक्के, खट्टेमीठे, छोटेबड़े जो भी हमारे पहुंच के भीतर होता सब तोड़ लेते. कभीकभी तो पेड़ पर भी चढ़ जाते. और तो और. कच्चे रास्तों पर जानबूझ कर धूल उड़ाते हुए ऐसे चलते जैसे कोई पराक्रमी कार्य कर रहे हों.

खेतों की मेड़ों पर बनी पगडंडियों में अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा बैलेंस करते हुए गिरने से बचने का प्रयत्न करते और एकदूसरे से आगे निकल जाने की होड़ होती. मैं हमेशा सब से आगे निकल जाती. जिस दिन हम घर से बाहर नहीं जा पाते, उस रोज़ तो पूरा दिन छत पर पतंगबाजी में बीतता. दिन चाहे जैसे भी बीते लेकिन रात होते ही हम सभी बच्चे दादी को घेर कर बैठ जाते और उन से राजकुमारी, राजकुमार और परियों की कहानियां अवश्य सुनते. इन्हीं सब बातों को याद करते हुए न जाने मैं कब निद्रा की आगोश में चली गई.

खटरपटर की आवाज़ से नींद खुली तो देखा अम्मा, बाबूजी और जय सब जाग गए है. तभी अम्मा ने पुकार लगाई- “पीहू, जल्दी उठो. औटोरिकशा बस आने ही वाला है. जैसे ही मेरे कानों में यह वाक्य पड़ा, मैं फटाफट उठ कर तैयार हो गई. थोड़ी ही देर में कालोनी के चौक से औटो रिकशा भी आ गया. रिकशा चल पड़ा.

भोर की ठंडीठंडी सुहावनी पुरवा फिज़ा को खुशगवार बना रही थी. सूर्य उदय और चंद्रमा का बादलों में धीरेधीरे छिपने का यह वक्त व दो वेलाओ के संगम का यह दृश्य बड़ा ही अलौकिक और मनभावन प्रतीत हो रहा था. सिंदूरी रंग लिए हुए आसमां आकर्षक लग रहा था. कुदरत की यह चित्रकारी अद्भुत, अद्वितीय है, इस बात का एहसास मुझे इसी क्षण हुआ.

आगे पढ़ें- एक के बाद एक सारे स्टेशन पीछे छुटते जा रहे थे और…

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