Short Stories in Hindi : वह बुरी लड़की

Short Stories in Hindi :  ‘‘क्या सोच रहे हैं? बहू की मुंहदिखाई कीजिए न. कब से बेचारी आंखें बंद किए बैठी है.’’

कमलकांत हाथ में कंगन का जोड़ा थामे संज्ञाशून्य खड़े रह गए. ज्यादा देर खड़े होना भी मानो मुश्किल लग रहा था, ‘‘मुझे चक्कर आ रहा है…’’ कहते हुए उन्होंने दीवार का सहारा ले लिया और तेजी से हौल से बाहर निकल आए.

अपने कमरे में आ कर वे धम्म से कुरसी पर बैठ गए. ऐसा लग रहा था जैसे वह मीलों दौड़ कर आए हों, पीछेपीछे नंदा भी दौड़ी आई, ‘‘क्या हो गया है आप को?’’

‘‘कुछ नहीं, चक्कर आ गया था.’’

‘‘आप आराम करें. लगता है शादी का गरिष्ठ भोजन और नींद की कमी, आप को तकलीफ दे गई.’’

‘‘मुझे अकेला ही रहने दो. किसी को यहां मत आने देना.’’

‘‘हां, हां, मैं बाहर बोल कर आती हूं,’’ वह जातेजाते बोली.

‘‘नहीं नंदा, तुम भी नहीं…’’ कमलकांत एकांत में अपने मन की व्यथा का मंथन करना चाहते थे जो स्थिति एकदम से सामने आ गई थी उसे जीवनपर्यंत कैसे निभा पाएंगे, इसी पर विचार करना चाहते थे. पत्नी को आश्चर्य हुआ कि उसे भी रुकने से मना कर रहे हैं, फिर कुछ सोच, पंखा तेज कर वह बाहर निकल गई.

धीरेधीरे घर में सन्नाटा फैल गया. नंदा 2-3 बार आ कर झांक गई थी. कमलकांत आंख बंद किए लेटे रहे. एक बार बेटा देबू भी आ कर झांक गया, लेकिन उन्हें चैन से सोता देख कर चुपचाप बाहर निकल गया. कमलकांत सो कहां रहे थे, वे तो जानबूझ कर बेटे को देख कर सोने का नाटक कर रहे थे.

सन्नाटे में उन्हें महसूस हुआ, वह गुजरती रात अपने अंदर कितना बड़ा तूफान समेटे हुए है. बेटे व बहू की यह सुहागरात एक पल में तूफान के जोर से धराशायी हो सकती है. अपने अंदर का तूफान वे दबाए रहें या बहने दें. कमलकांत की आंख के कोरों में आंसू आ कर ठहर गए.

नंदा आई, उन्हें निहार कर और सोफे पर सोता देख स्वयं भी सोफे से कुशन उठा कर सिर के नीचे लगा कालीन पर ही लुढ़क गई. देबू ने कई बार डाक्टर बुलाने के लिए कहा था, पर कमलकांत होंठ सिए बैठे रहे थे. पति के शब्दों का अक्षरश: पालन करने वाली नंदा ने भी जोर नहीं दिया. विवाह के 28 वर्षों में कभी छोटीमोटी तकरार के अलावा, कोई ऐसी चोट नहीं दी थी, जिस का घाव रिसता रहता.

कमलकांत को जब पक्का यकीन हो गया कि नंदा सो गई है तो उन्होंने आंखें खोल दीं. तब तक आंखों की कोरों पर ठहरे आंसू सूख चुके थे. वे चुपचाप उठ कर बैठ गए. कमरे में धीमा नीला प्रकाश फैला था. बाहर अंधेरा था. दूर छत की छाजन पर बिजली की झालरें अब भी सजी थीं.

रात के इस पहर यदि कोई जाग रहा होगा तो देबू, उस की पत्नी या वह स्वयं. उन्होंने बेबसी से अपने होंठों को भींच लिया. काश, उन्होंने स्वाति को पहले देख लिया होता. काश, वह जरमनी गए ही न होते. उन के बेटे के गले लगने वाली स्वाति जाने कितनों के गले लग चुकी होगी. कैसे बताएं वह देबू और नंदा से कि जिसे वह गृहस्वामिनी बना कर लाए हैं वह किंकिर बनने के योग्य भी नहीं है. वह एक गिरी हुई चरित्रहीन लड़की है. अंधकार में दूर बिजली की झिलमिल में उन्हें एक वर्ष पूर्व की घटना याद आई तो वे पीछे अतीत में लुढ़क गए.

कमलकांत का ऊन का व्यापार था. इस में काफी नाम व पैसा कमाया था उन्होंने. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. सभी व्यसनों से दूर कमलकांत ने जो पैसा कमाया, वह घरपरिवार पर खर्च किया. पत्नी नंदा व पुत्र देबू के बीच, उन का बहुत खुशहाल परिवार था.

एक साल पहले उन्हें व्यापार के सिलसिले में मुंबई जाना पड़ा था. वे एक अच्छे होटल में ठहरे थे. वहां चेन्नई की एक पार्टी से उन की मुलाकात होनी थी. नियत समय पर वे शाम 7 बजे होटल के कमरे में पहुंचे थे. लिफ्ट से जा कर उन्होंने होटल के कमरा नंबर 305 के दरवाजे पर ज्यों ही हाथ रखा था, फिर जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़ी. एक झटके से दरवाजा खुला और एक लड़की तेजी से बाहर निकली. उस लड़की का पूरा चेहरा उन के सामने था.

उस लड़की की तरफ वे आकर्षित हुए. कंधे पर थैला टांगे, आकर्षक वस्त्रों में घबराई हुई सी वह युवती तेजी से बिना उन की तरफ देखे बाहर निकल गई. पहले तो उन्होंने सोचा, वापस लौट जाएं पता नहीं अंदर क्या चल रहा हो. तभी सामने मिस्टर रंगनाथन, जो चेन्नई से आए थे, दिख गए तो वापस लौटना मुश्किल हो गया.

‘आइए, कमलकांतजी, मैं आप का ही इंतजार कर रहा था. कैसे रही आप की यात्रा?’

‘जी, बहुत अच्छी, पर मिस्टर नाथन, मैं…वह लड़की…’

‘ओह, वे उस समय पैंट और शर्ट पहन रहे थे. मुसकरा कर बोले, ‘ये तो मौजमस्ती की चीजें हैं. भई कमलकांत, हम ऊपरी कमाई वाला पैसा 2 ही चीजों पर तो खर्च करते हैं, बीवी के जेवरों और ऐसी लड़कियों पर,’ रंगनाथन जोर से हंस पड़े.

कमलकांत का जी खराब हो गया. लानत है ऐसे पैसे और ऐश पर. लाखों के नुकसान की बात न होती तो शायद वे वापस लौट आते. लेकिन बातचीत के बीच वह लड़की उन के जेहन से एक सैकंड को भी न उतरी. क्या मजबूरी थी उस की? क्यों इस धंधे में लगी है? इतने अनाड़ी तो वे न थे, जानते थे, पैसे दे कर ऐसी लड़कियों का प्रबंध आराम से हो जाता है.

होटल में ठहरे उन के व्यवसायी मित्र ने जरूर उसे पैसे दे कर बुलवाया होगा. उस वक्त वे उस लड़की की आंखों का पनीलापन भी भूल गए थे. याद था, सिर्फ इतना कि वह एक बुरी लड़की है.

जालंधर लौट कर वे अपने काम में व्यस्त हो गए. कुछ माह बीत गए. तभी उन्हें 3 माह के लिए जरमनी जाना पड़ गया. जब वे जरमनी में थे, देबू का रिश्ता तभी पत्नी ने तय कर दिया था. उन के लौटने के

2 दिनों बाद की शादी की तारीख पड़ी थी. जरमनी से बहू के लिए वे कीमती उपहार भी लाए थे. आने पर नंदा ने कहा भी था, ‘यशोदा को तो तुम जानते हो?’

‘हां भई, तुम्हीं ने तो बताया था जो मुंबई में रहती है. उसी की बेटी स्वाति है न?’

‘हां,’ नंदा बोली, ‘सच पूछो तो पहले मैं बहुत डर रही थी कि पता नहीं तुम इनकार न कर दो कि एक साधारण परिवार की लड़की को…’

‘पगली,’ उस की बात काट कर कमलकांत ने कहा, ‘इतना पैसा हमारे पास है, हमें तो सिर्फ एक सुशील बहू चाहिए.’

‘यशोदा मेरी बचपन की सहेली थी. शादी के बाद पति के साथ मुंबई चली गई थी. 10 वर्ष हुए दिवाकर को गुजरे, तब से बेटी स्वाति ने ही नौकरी कर के परिवार को चलाया है. सुनो, उस का एक छोटा भाई भी है, जो इस वर्ष इंजीनियरिंग में चुन लिया गया है. मैं ने यशोदा से कह दिया है कि बेटे की पढ़ाई के खर्च की चिंता वह न करे. हम यह जिम्मेदारी प्यार से उठाना चाहते हैं. आप को बुरा तो नहीं लगा?’

‘नंदा, यह घर तुम्हारा है और फैसला भी तुम्हारा,’ वे हंस कर बोले थे.

‘पर बहू की फोटो तो देख लो.’

‘अब कितने दिन बचे हैं. इकट्ठे दुलहन के लिबास में ही बहू को देखूंगा. हां, अपना देबू तो खुश है न?’

‘एक ही तो बेटा है. उस की मरजी के खिलाफ कैसे शादी हो सकती है?’

शादी के दौरान भी वे स्वाति को ठीक से न देख पाए थे. जब भी कोई उन्हें दूल्हादुलहन के स्टेज पर उन के साथ फोटो लेने के लिए बुलाने आता, आधे रास्ते से फिर कोई खींच ले जाता. बहू की माथा ढकाई पर वह घूंघट में थी. काश, उसी समय उन्होंने फोटो देख ली होती.

चीं…चीं…के शोर पर कमलकांत वर्तमान में लौट आए. सुबह का धुंधलका फैल रहा था. लेकिन उन के घर की कालिमा धीरेधीरे और गहरा रही थी.

नाश्ते के समय भी जब वे बाहर नहीं निकले तो देबू डाक्टर बुला लाया. उस ने चैकअप के बाद कहा, ‘‘कुछ तनाव है. लगता है सोए भी नहीं हैं. यह दवा दे दीजिएगा. इन्हें नींद आनी जरूरी है.’’

घरभर परेशान था. आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया, जो वे एकदम से बीमार पड़ गए. बहू ने आ कर उन के पांव छुए और थोड़ी देर वहां खड़ी भी रही, लेकिन वे आंखें बंद किए पड़े रहे.

‘‘बाबूजी, आप की तबीयत अब कैसी है?’’

‘‘ठीक है,’’ उन्होंने उत्तर दिया.

बहू लौट गई थी. कमलकांत का जी चाहा, इस लड़की को फौरन घर से निकाल दें. यदि यह सारी जिंदगी इसी घर में रहेगी तो भला वे कैसे जी पाएंगे? क्या उन का दम नहीं घुट जाएगा. इस घर की हर सांस, हर कोना उन्हें यह एहसास कराता रहेगा कि उन की बहू एक गिरी हुई लड़की है. इस सत्य से अनभिज्ञ नंदा और देबू, कितने खुश हैं, वे समझ रहे हैं कि स्वाति के रूप में घर में खुशियां आ गई हैं. अजीब कशमकश है जो उन्हें न तो जीने दे रही है, न मरने.

दूसरे दिन जब उन्होंने पत्नी से किसी पहाड़ी जगह चलने की बात कही तो वह हंस दी, ‘‘सठिया गए हो क्या? विवाह हुआ है बेटे का, हनीमून मनाने हम चलें. लोग क्या कहेंगे.’’

‘‘तो बेटेबहू को भेज दो.’’

‘‘उन का तो आरक्षण था, पर बहू ही तैयार नहीं हुई कि पिताजी अस्वस्थ हैं, हम अभी नहीं जाएंगे.’’

वे चिढ़ गए, शराफत व शालीनता का अच्छा नाटक कर रही है यह लड़की. जी हलका करने के लिए वे फैक्टरी चले गए. वहां सभी उन का हाल लेने के लिए आतुर थे. लेकिन इतने लोगों के बीच भी वे सहज नहीं हो पाए. चुपचाप कुरसी पर बैठे रहे. न कोई फाइल खोल कर देखी, न किसी से बात की. जिस ने जो पूछा, ‘हां हूं’ में उत्तर दे दिया.

धीरेधीरे कमलकांत शिथिल होते गए. कारोबार बेटे ने संभाल लिया था. नंदा समझ रही थी, जरमनी में पति के साथ कुछ ऐसा घटा है जिस ने इन्हें तनाव से भर दिया है.

10 माह गुजर गए. स्वाति के पांव उन दिनों भारी थे. अचानक काम के सिलसिले में मुंबई जाने की बात आई तो देबू ने जाने की तैयारी कर ली. पर कमलकांत ने उसे मना कर दिया. मुंबई के नाम से एक दबी चिनगारी फिर भड़क उठी. इतने दिनों बाद भी वह उन के मन से न निकल पाईर् थी. मन में मंथन अभी भी चालू था.

मुंबई जा कर वे एक बार स्वाति के विषय में पता करना चाहते थे. यह प्रमाणित करना होगा कि स्वाति की गुजरी जिंदगी गंदी थी. बलात्कार की शिकार या मजबूरी में इस कार्य में लगी युवती को चाहे वे एक बार अपना लेते, पर स्वेच्छा से इस कार्य में लगी युवती को वे माफ करने को तैयार न थे.

एक बार यदि प्रमाण मिल जाए तो वे बेटे का उस से तलाक दिलवा देंगे. क्यों नहीं मुंबई जा कर यह बात पता करने का विचार उन्हें पहले आया? चुपचाप शादी के अलबम से स्वाति की एक फोटो निकाल उन्होंने मुंबई जाने का विचार बना लिया.

घर में पता चला कि कमलकांत मुंबई जा रहे हैं तो स्वाति ने डरतेसहमते एक पत्र उन्हें पकड़ा दिया, ‘‘बाबूजी, मौका लगे तो घर हो आइएगा. मां आप से मिल कर बहुत खुश होंगी.’’

‘‘हूं,’’ कह कर उन्होंने पत्र ले लिया.

स्वाति के घर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था, लेकिन फिर भी कुछ टोह लेने की खातिर उस के घर पहुंच गए.

‘‘बहू यहां कहां काम करती थी?’’ वे शीघ्र ही मतलब की बात पर आ गए.

‘‘होराइजन होटल में, चाचाजी,’’ स्वाति के भाई ने उत्तर दिया.

‘‘भाईसाहब, हमारी इच्छा तो नहीं थी कि स्वाति होटल की नौकरी करे, पर नौकरी अच्छी थी. इज्जतदार होटल है, तनख्वाह भी ठीकठाक थी. फिर आसानी से नौकरी मिलती कहां है?’’

कमलकांत को लगा, समधिन गोलमोल जवाब दे रही हैं कि होटल में उन की बेटी का काम करना मजबूरी थी.

होटल होराइजन के स्वागतकक्ष में पहुंच कर उन्होंने स्वाति की फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘मुझे इन मैडम से काम था. क्या आप इन से मुझे मिला सकती हैं?’’

‘‘मैं यहां नई हूं, पता करती हूं,’’ कह कर स्वागतकर्मी महिला ने एक बूढ़े वेटर को बुला कर कुछ पूछा, फिर कमलकांत की तरफ इशारा किया. वह वेटर उन के पास आया फिर साश्चर्य बोला, ‘‘आप स्वातिजी के रिश्तेदार हैं, पहले कभी तो देखा नहीं?’’

‘‘नहीं, मैं उन का रिश्तेदार नहीं, मित्र हूं. एक वर्ष पूर्व उन्होंने मुझ से कुछ सामान मंगवाया था.’’

‘‘आश्चर्य है, स्वाति बिटिया का तो कोई मित्र ही नहीं था. फिर आप से सामान मंगवाना तो बिलकुल गले नहीं उतरता.’’

कमलकांत को समझ में नहीं आया कि क्या उत्तर दें, वेटर कहता रहा, ‘‘वे यहां रूम इंचार्ज थीं. सारा स्टाफ उन की इज्जत करता था.’’

तभी कमलकांत की आंखों के सामने होटल का वह दृश्य घूम गया…जब इसी होटल में उन के चेन्नई के मित्र ठहरे थे. उन्होंने एक छोटा सा निर्णय लिया और उसी होटल में ठहर गए. जब यहां तक पहुंच ही गए हैं तो मंजिल का भी पूरा पता कर ही लें. शाम को चेन्नई फोन मिलाया. व्यापार की कुछ बातें कीं. पता चला 2 दिनों बाद ही चेन्नई की वह पार्टी मुंबई आने वाली है, तो वे भी रुक गए.

सबकुछ मानो चलचित्र सा घटित हो रहा था. कभी कमलकांत सोचते पीछे हट जाएं, बहुत बड़ा जुआ खेल रहे हैं वे. इस में करारी मात भी मिल सकती है. फिर क्या वे उसे पचा पाएंगे? पर इतने आगे बढ़ने के बाद बाजी कैसे फेंक देते.

रात में चेन्नई से आए मित्र के साथ उस के कमरे में बैठ कर इधरउधर की बातों के बीच वे मुख्य मुद्दे पर आ गए, ‘‘रंगनाथन, एक बात बता, यह लड़कियां कैसे मिलती हैं?’’

रंगनाथन ने चौंक कर उन्हें देखा, फिर हंसे, ‘‘वाह, शौक भी जताया तो इस उम्र में. भई, हम ने तो यह सब छोड़ दिया है. हां, यदि तुम चाहो तो इंतजाम हो जाएगा, पर यहां नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘यह होटल इन सब चीजों के लिए नहीं है. यहां इस पर सख्त पाबंदी है.’’

‘‘क्यों झूठ बोलते हो, मैं ने अपनी आंखों से तुम्हारे कमरे से एक लड़की को निकलते देखा था.’’

रंगनाथन कुछ पल सोचता रहा… फिर अचानक चौंक कर बोला, ‘‘तुम 2 वर्ष पहले की बात तो नहीं कर रहे हो?’’

‘‘हां, हां…’’ वही, उस की बात, लपक कर कमलकांत बोले. उन की सांस तेजी से ऊपरनीचे हो रही थी. ऐसा मालूम हो रहा था, जीवन के किसी बहुत बड़े इम्तिहान का नतीजा निकलने वाला हो.

‘‘मुझे याद है, वह लड़की यहां काम करती थी. मैं ने उसे जब स्वागतकक्ष में देखा, तभी मेरी नीयत खराब हो गई थी. अकसर होटलों में मैं लड़की बुलवा लिया करता था. उस दिन…हां, बाथरूम का नल टपक रहा था. उस ने मिस्त्री भेजा. दोबारा फिर जब मैं ने शिकायत तनिक ऊंचे लहजे में की तो वह खुद चली आई.

उस समय वह घर जा रही थी, इसलिए होटल के वस्त्रों में नहीं थी. इस कारण और आकर्षक लग रही थी.  ने उस का हाथ पकड़ कर नोटों की एक गड्डी उस के हाथ पर रखी. लेकिन वह मेरा हाथ झटक कर तेजी से बाहर निकल गई. यह वाकेआ मुझे इस कारण भी याद है कि कमरे से निकलते वक्त उस की आंखें आंसुओं में डूब गई थीं.

ऐसा हादसा हमारे साथ कम हुआ था. यहां से जाने के बाद मुझे दिल का दौरा पड़ा. अब ज्यादा उत्तेजना मैं सहन नहीं कर पाता. 6 माह पहले ही पत्नी भी चल बसी. अब सादा, सरल जीवन काफी रास आता है.’’

रंगनाथन बोलते जा रहे थे, उधर कमलकांत को लग रहा था कि वे हलके हो कर हवा में उड़ते जा रहे हैं. अब वे स्वाति की ओर से पूर्ण संतुष्ट थे.

Best Hindi Stories : लावारिस – सेठ प्रमोद ने क्या सुनयना को दिया उसका हक

Best Hindi Stories :  ‘‘तुम्हें गोली लेने को कहा था,’’ प्रमोद ने शिकायत भरे लहजे में कहा.

‘‘मैं ने जानबूझ कर नहीं ली,’’ सुनयना ने कहा.

‘‘पागल हो गई हो,’’ अपने कपड़े पहन चुके और बालों में कंघी करते हुए प्रमोद ने कहा.

‘‘बच्चा जिंदगी में खुशियां लाता है, घर में चहलपहल हो जाती है और बुढ़ापे का सहारा भी बनता है,’’ सुनयना ने प्रमोद को समझाया.

‘‘बंद करो अपनी बकवास. मैं तुम से बच्चा कैसे चाह सकता हूं. मेरी तो सोशल लाइफ ही खत्म हो जाएगी,’’ गुस्से से चिल्लाते हुए प्रमोद ने कहा.

‘‘तो आप को खुद ध्यान रखना चाहिए था. मैं ने आप से कंडोम का इस्तेमाल करने को कहा था.’’

‘‘मुझे मजा नहीं आता. आजकल तो औरतों के कंडोम भी आते हैं, तुम्हें इस्तेमाल करने चाहिए.’’

‘‘जो भी हो, इस बार मैं बच्चा नहीं गिरवाऊंगी,’’ सुनयना ने दोटूक कहा.

‘‘तो तुम पछताओगी,’’ धमकता हुआ प्रमोद बोला. फिर दरवाजा खोल वह बाहर चला गया.

प्रमोद कारोबारी था. उस के पास खूब दौलत थी. घर में खूबसूरत पत्नी थी और 3 बच्चे थे. प्रमोद ने अपना दिल बहलाने के लिए एक रखैल सुनयना रखी हुई थी. उस को फ्लैट ले कर दिया हुआ था. मिलने के लिए वह हफ्ते में 2-3 दफा वहां आता था. कभीकभी वह उसे बिजनैस टूर पर भी ले जाता था.

सुनयना तकरीबन 3 साल से प्रमोद के साथ थी. बीचबीच में 3-4 बार वह पेट से भी हुई थी, लेकिन चुपचाप पेट साफ करवा आई थी.

एक रात मेकअप करते समय सुनयना की नजर अपने चेहरे पर उभरती झुर्रियों और सिर में 3-4 सफेद बालों पर पड़ी. उसे चिंता हो गई कि अगर उस का ग्लैमर खत्म हो गया, तब क्या होगा?

प्रमोद को कोई और जवान रखैल मिल जाएगी. ऐसी औरतों को बुढ़ापे में कौन पूछता है.

सुनयना के पास प्रमोद द्वारा दिए गए जेवर काफी थे. बैंक के लौकर में जमापूंजी भी काफी थी. अपने मातापिता को पैसे भेजने के बाद भी उस के पास अच्छीखासी रकम बच जाती थी.

उसी रात सुनयना ने सोचा कि अगर उसे प्रमोद से एक बच्चा हो जाए, तो वह उस के बुढ़ापे का सहारा बन जाएगा.

इस के बाद से सुनयना ने पेट से न होने वाली गोलियों को खाना बंद कर दिया था. प्रमोद भी कंडोम का इस्तेमाल कम ही करता था. नतीजतन, सुनयना पेट से हो गई.

प्रमोद गुस्से से लालपीला हो रहा था. कल को सुनयना उसे ब्लैकमेल कर सकती थी.

3-4 दिन बाद प्रमोद सुनयना से मिलने आया और उस से पूछा, ‘‘बच्चा गिरवाया कि नहीं?’’

‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं बच्चा चाहती हूं.’’

‘‘तुम से मेरा बच्चा कैसे हो सकता है?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता? यह बच्चा मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा.’’

उस शाम को प्रमोद सुनयना के पास जैसे आया था, वैसे ही चला गया. उस के मन में एक ही सवाल उठ रहा था कि अगर सुनयना उस के बच्चे को जन्म देगी, तो क्या होगा?

‘‘मेरे पेट में पल रहे बच्चे के पीछे आप क्यों पड़े हैं? आप मुझे जवाब दे दें, तो कहीं और मैं चली जाती हूं,’’ अगली बार प्रमोद के आने पर सुनयना ने पूछा.

‘‘बच्चा मुझ से है. नाजायज है, मेरे लिए वह परेशानी खड़ी कर सकता है.’’

‘‘क्या परेशानी खड़ी कर सकता है वह?’’

‘‘मेरा वारिस बनने का दावा कर सकता है.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं बताऊंगी तभी न.’’

‘‘बच्चा कल को पूछ भी तो सकता है कि उस का पिता कौन है?’’

‘‘लेकिन, मैं एक बच्चा चाहती हूं.’’

‘‘इस को गिरवा कर तुम किसी और से बच्चा गोद ले लो.’’

‘‘फर्ज करो कि वह आप से नहीं किसी और से है तब?’’

‘‘बकवास मत करो. मैं जानता हूं कि यह मुझ से है.’’

‘‘मैं आप की वफादार हूं और वफादारी का यह इनाम है.’’

यह सुन कर प्रमोद दनदनाता हुआ वहां से चला गया. वह कानूनी और सामाजिक पचड़े के बारे में सोच रहा था कि कल को अगर मैडिकल रिपोर्ट का सहारा ले कर सुनयना बच्चे को उस का बच्चा साबित कर के उस की जायदाद में से हिस्सा मांग सकती है.

प्रमोद की कशमकश को सुनयना बखूबी समझ रही थी. उस ने चुपचाप अपना सामान समेटना शुरू कर दिया.

एक दिन वह फ्लैट छोड़ कर चली गई. 2 दिन बाद प्रमोद ने फ्लैट का चक्कर लगाया. उस को वहां सन्नाटा मिला. सुनयना कहां गई? धरती निगल गई या आसमान?

प्रमोद कुछ दिनों तक बेचैन रहा, फिर खाली फ्लैट को आबाद करने के लिए एक नई उम्र की कालगर्ल को ला कर बसा दिया.

प्रमोद को यह डर बराबर सता रहा था कि सुनयना उस के सामने उस की नाजायज औलाद को वारिस के तौर पर न ले आए.

एक दिन कार से गुजरते समय प्रमोद की नजर एक नर्सिंगहोम के बाहर रिकशे से उतरती एक औरत पर पड़ी. उस का पेट फूला हुआ था. गौर से देखने पर पता चला कि वह तो सुनयना ही थी. वह जल्दी ही बच्चा जनने वाली थी.

प्रमोद ने कार सड़क की एक तरफ रोक दी और सुनयना के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. लेकिन वह काफी देर तक बाहर नहीं निकली.

तब प्रमोद ने अपना मोबाइल फोन निकाला और नर्सिंगहोम के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा मोबाइल फोन नंबर पढ़ कर उस पर फोन किया.

‘‘हैलो, यह अस्पताल का रिसैप्शन है?’’ प्रमोद ने पूछा.

‘जी हां, बोलिए.’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले मिसिज सुनयना ने डिलीवरी के लिए विजिट किया था, क्या उन को एडमिट किया गया है?’’

‘जी हां, उन को मैटरनिटी वार्ड में एडमिट कर लिया गया है.’

‘‘थैक्यू,’’ प्रमोद ने इतना कह कर फोन काट दिया.

अब प्रमोद को सुनयना और उस के बच्चे को खत्म करना था. वह अपनी फैक्टरी पहुंचा. अभी तक उस की जिंदगी बिना रुकावट वाली रही थी. उस का अब तक किसी से पंगे वाला वास्ता नहीं पड़ा था.

प्रमोद की फैक्टरी का मैनेजर अरुण बड़ा ही धूर्त था. मालिक के कई उलझे मामले उस ने सुलझाए थे, लेकिन ऐसा पंगा कभी नहीं निबटाया था.

‘‘साहब, आप को सुनयना और उस का बच्चा क्या परेशानी दे सकता है?’’ अरुण ने पूछा.

‘‘कल को वह मेरा वारिस होने का दावा कर सकता है.’’

‘‘क्या सुनयना ने कभी ऐसा इरादा जाहिर किया है?’’

‘‘नहीं. वह तो कहती है कि बच्चा बुढ़ापे का सहारा बनेगा. वह उस बच्चे को पैदा करना चाहती है.’’

‘‘तो इस में आप को क्या परेशानी है?’’

‘‘अरे भाई, कल को वह बच्चा बड़ा हो कर मेरे सामने आ कर खड़ा हो सकता है. मेरी सोशल लाइफ खराब हो सकती है.’’

‘‘वह बच्चा आप से ही है, क्या यह बात सच है?’’

‘‘वह तो यही कहती है. मेरा भी यही विश्वास है कि वह वफादार है.’’

‘‘आप क्या चाहते हैं?’’

‘‘बच्चे और मां को खत्म करना है, खासकर बच्चे को.’’

‘‘ऐसा काम मैं ने कभी नहीं किया. फिर भी देखता हूं कि क्या हो सकता है,’’ अरुण ने कहा.

अरुण सुनयना को पहचानता था. वह नर्सिंगहोम पहुंचा. जच्चाबच्चा वार्ड में सुनयना एक बिस्तर पर लेटी थी.

‘‘एक रिश्तेदार को देखना है. एक मिनट के लिए अंदर जाने दें,’’ अरुण ने वार्ड के बाहर बैठी एक औरत से कहा. इजाजत मिलने के बाद वह अंदर गया और कुछ ही पलों में लौट आया.

सुभाष और अर्जुन सुपारी किलर थे. उन्हें सुनयना को खत्म करने की सुपारी दी गई थी. वे दोनों एक कार में बैठ कर बारीबारी से नर्सिंगहोम की निगरानी करने लगे थे.

‘‘आप यहां अकेली आई हैं? आप के साथ कोई नहीं है?’’ लेडी डाक्टर ने मुआयना करने के बाद सुनयना से पूछा.

‘‘जी, मेरी मजबूरी है,’’ इस पर लेडी डाक्टर समझ गईं.

सुनयना कुंआरी मां बनने वाली थी. ऐसे मामले नर्सिंगहोम में आते रहते थे, लेकिन कानूनी औपचारिकता अपनी जगह थी. इलाज, डिलीवरी या औपरेशन के दौरान मरीज की मौत हो सकती थी, इसलिए किसी जिम्मेदार आदमी के फार्म पर दस्तखत कराना जरूरी था.

‘‘आप की जिम्मेदारी के फार्म पर दस्तखत कौन करेगा?’’

‘‘मैं खुद ही करूंगी.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता.’’

तभी सुनयना को दर्द शुरू हो गया. चंद मिनटों के बाद उस ने एक खूबसूरत बच्चे को जन्म दिया. सारी औपचारिकताएं धरी की धरी रह गईं.

4 दिन बाद सुनयना को छुट्टी मिल गई. बच्चे को गोद में उठाए वह नर्सिंगहोम से बाहर आई. आटोरिकशे में बैठी. उस के पीछे किराए के हत्यारों की कार लग गई.

इंस्पैक्टर मधुकर लोकल थाने के एसएचओ थे. वे चुस्त और मुस्तैद पुलिस अफसर थे. दोपहर का खाना खाने के बाद वे चंदू पनवाड़ी के यहां पान खाते थे. इस बहाने से वे इलाके का दौरा भी कर लेते थे.

नर्सिंगहोम से आटोरिकशे में बैठी सुनयना के पीछे किराए के हत्यारों की कार लगी थी. उन की यह हरकत जीप पर सवार एसएचओ मधुकर की निगाह में आ गई. उन के एक इशारे पर ड्राइवर ने जीप कार के पीछे लगा दी.

आटोरिकशा एक बस्ती में पहुंचा. सुनयना उतरी, भाड़ा चुकाया और अपने किराए के कमरे की तरफ बढ़ी. पीछे आ रही कार थमने लगी. तभी सुभाष की नजर पीछे से आ रही जीप पर पड़ी.

‘‘अर्जुन, कार मत रोकना. पीछे एसएचओ आ रहा है,’’ सुभाष ने कहा, तो अर्जुन ने कार की रफ्तार बढ़ा दी.

एचएचओ मधुकर ने जीप में सादा कपड़ों में बैठे एक पुलिस वाले को इशारे से कुछ समझाया. वह पुलिस वाला सुनयना की निगरानी करने लगा. कार का नंबर नोट कर मधुरकर ने पुलिस कंट्रोल रूम को भेज दिया.

चंद मिनटों में शहर के खासखास इलाकों में तैनात पुलिस की गाडि़यों को उस कार के बारे में हिदायतें मिल गईं. एक चौराहा पार करते समय एक कार उस कार के पीछे लग गई. उस कार में सादा ड्रैस में मुखबिर थे.

एसएचओ मधुकर थाने पहुंचे. थोड़ी देर में उन का मोबाइल फोन बजा, ‘सर, उस कार में 2 लोग हैं, जो अपराधी नहीं दिख रहे हैं,’ मुखबिर ने खबर दी.

‘‘ठीक है, तुम उन पर निगाह रखो,’’ इंस्पैक्टर मधुकर बोले.

थोड़ी देर बाद एक बस्ती में तैनात मुखबिर का फोन आया, ‘‘साहब, खतरा है.’’

‘‘क्या खतरा है?’’

‘‘जान जाने का. और क्या खतरा हो सकता है?’’

‘‘तू उन मवालियों को पहचानता है क्या?’’

‘‘नहीं. पर मेरा अंदाजा है कि इस इलाके का खबरिया राम सिंह भी नहीं पहचानता होगा.’’

‘‘तब हम क्या करें?’’

‘‘इस बाई की हिफाजत और निगरानी.’’

‘‘खतरे की वजह?’’

‘‘इस का बच्चा.’’

‘‘क्या…’’

‘‘तेरी इस क्या का जवाब फिलहाल मेरे पास नहीं है.’’

सुनयना नहीं जानती थी कि वह पुलिस के जासूसों की नजर में आ चुकी है.

‘‘सेठ की माशूका और उस के बच्चे के ठिकाने का पता हम ने लगा लिया है. जल्दी ही वे दोनों को मार देंगे,’’ प्रमोद के मैनेजर अरुण को सुपारी लेने वाले ने बताया.

‘‘ठीक है. मेरा और सेठ का नाम नहीं आना चाहिए,’’ अरुण ने कहा.

‘‘आप तसल्ली रखें.’’

बच्चे के जन्म के बाद सुनयना ने अपनी एक सहेली मीरा को फोन किया, जो उस के बारे में सबकुछ जानती थी.

‘‘अरी, तेरे और तेरे बच्चे को मरवाने का ठेका दिया है सेठ ने,’’ उस की सहेली मीरा ने बताया.

‘‘क्या? उस को कैसे पता चला?’’

‘‘वह तेरे पीछे शुरू से ही लगा है.’’

‘‘तुझे किस ने बताया?’’

‘‘तेरी जगह फ्लैट में आई उस नई लड़की ने.’’

‘‘अब मैं क्या करूं?’’ सुनयना ने पूछा.

‘‘अपना ठिकाना बदल ले.’’

‘‘ठीक है,’’ सुनयना बोली.

दोनों सुपारी किलर सुभाष और अर्जुन आपस में सलाह कर रहे थे.

‘‘बाई इस बस्ती में है. कल उस का घर ढूंढ़ कर उसे खत्म कर देते हैं,’’ सुभाष ने कहा.

सुबह सुनयना बच्चे को कुनकुने पानी से नहला कर साफ कपड़े में लपेट चुकी थी. वह सोच रही थी कि कहां जाए? तभी उस को अपनी पुरानी सहेली प्रेमलता का ध्यान आया. वह एक अनाथालय की मैनेजर थी. सुनयना बच्चे को गोद में ले कर बाहर आई. उस ने एक आटोरिकशा किया. आटोरिकशे के चलते ही मवालियों की कार पीछे लगी. उस की खबर पुलिस कंट्रोल रूम को भी हो गई.

आटोरिकशा अनाथालय के बाहर रुका. ‘‘थोड़ी देर इंतजार करो. मैं अभी आई,’’ सुनयना ने आटोरिकशे वाले से कहा.

सुनयना को देखते ही प्रेमलता मुसकराई, ‘‘अरे सुनयना, तुम यहां कैसे आई?’’

‘‘मैं मुसीबत में फंस गई हूं. जरा यह बच्चा संभाल. मैं थोड़ा ठहर कर आऊंगी,’’ बच्चा देते हुए सुनयना ने कहा.

‘‘यह किस का बच्चा है?’’ प्रेमलता ने पूछा.

‘‘मेरा है,’’ सुनयना बोली.

‘‘तेरा है? तू ने शादी कर ली क्या?’’ प्रेमलता ने पूछा.

‘‘फिर बताऊंगी. शाम को आऊंगी. कुछ दिक्कत है.’’

प्रेमलता ने बच्चा थामा. सुनयना आटोरिकशे में बैठ रेलवे स्टेशन की ओर चली गई.

‘‘उस्ताद, बाई यतीमखाने में गई थी. वहां अपना बच्चा दे आई है, अब क्या करें?’’ सुभाष ने अर्जुन से पूछा.

‘‘सेठ कहता है कि बच्चे को पहले खत्म करना है. यतीम खाने में चलते हैं. बाई को फिर मारेंगे.’’

कार एक तरफ खड़ी कर वे दोनों सुपारी किलर अनाथालय में घुस गए. सुनयना के बच्चे को एक पालने में लिटा कर प्रेमलता मुड़ी ही थी कि 2 बदमाश नौजवानों को देख कर वह चौंकी, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘अभी एक बाई तुझे बच्चा दे कर गई है. वह कौन सा है?’’ सुभाष ने कमरे में नजर डालते हुए पूछा. दर्जनों पालनों में नवजात बच्चे अठखेलियां करते दूध पी रहे थे.

‘‘बाई, कौन बाई?’’

‘‘जो अभीअभी यहां आई थी,’’ अर्जुन ने कहा.

‘‘यहां कोई बाई नहीं आई,’’ प्रेमलता बोली.

‘‘सीधी तरह मान जा. बता वह बच्चा कौन सा है,’’ अर्जुन ने चाकू निकालते हुए कहा.

तभी अनाथालय के दरवाजे पर एसएचओ मधुकर ने कदम रखा.

प्रेमलता पुलिस को देखते ही चीखी, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, चोरबदमाश…’’

सिपाहियों ने घेरा डाल कर दोनों बदमाशों को पकड़ लिया. थाने में उन्होंने सब सचसच उगल दिया. मैनेजर अरुण के काबू में आते ही सेठ प्रमोद भी टूट गया.

‘‘आप या तो बच्चे और उस की मां को अपना लें, अन्यथा 10 साल की सजा भुगतें. बच्चा आप का वारिस फिर भी माना जाएगा,’’ इंस्पैक्टर मधुकर ने समझाते हुए कहा.

मरता क्या न करता, सेठ प्रमोद ने सुनयना को अपनी पत्नी और बच्चे को वारिस मान लिया. उसे अपनी करनी का फल मिल चुका था. सुनयना तो उससे दूर चली गई थी लेकिन वो अपने ही बनाएं वहम में  फंस गया और उसे दुनिया के सामने सुनयना और उसके बच्चे को अपनाना पड़ा.

Latest Hindi Stories : चोरों के उसूल – क्यों हैरान रह गया रामनाथ

Latest Hindi Stories : रामनाथ को बंगलौर आए मुश्किल से एक दिन हुआ था. अभी 3 दिन का काम बाकी था. एक कंपनी में काम के सिलसिले में बातचीत चल रही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन दिल्ली से आया था. उस की पत्नी रोते हुए बोल रही थी, ‘‘रवि की तबीयत बहुत खराब हो गई है. उसे अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड में दाखिल किया है. आप के बिना मैं अपने को बेसहारा महसूस कर रही हूं. आप जितना जल्दी हो सके वापस आ जाइए.’’

उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया. वह एकदम से उठ खड़ा हुआ. अपनी मजबूरी बता कर उस ने कंपनी के अफसर से रुखसत ली. होटल से अपना सामान समेटा और सीधा रेलवे स्टेशन पहुंच गया. टिकट काउंटर पर उस ने अपनी परेशानी बताई, पर काउंटर क्लर्क बोला, ‘‘अगले 3 हफ्ते तक आरक्षण मुमकिन नहीं है. मुझे बहुत अफसोस है कि मैं आप की कोई मदद नहीं कर सकता.’’

रामनाथ ने टिकट लिया और बिना आरक्षण वाले डब्बे की ओर दौड़ पड़ा.

गाड़ी छूटने में ज्यादा समय नहीं था. वहां डब्बे में भीड़ देख कर वह घबरा गया. पांव रखने तक की जगह नहीं थी. वह आरक्षित डब्बे की ओर दौड़ा. मुश्किल से डब्बे में चढ़ा ही था कि गाड़ी चल पड़ी. उस का दुख उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था. कोई भी उस की पीड़ा को पढ़ सकता था.

एक सहयात्री ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘भाई साहब, आप बड़े दुखी लग रहे हैं, क्या बात है?’’ पूरी बात सुनने पर वह बोला, ‘‘आप फिक्र न करें. आप मेरे साथ बैठें. इतनी दूर का सफर आप खड़े हो कर कैसे करेंगे.’’ रामनाथ को थोड़ा सहारा मिला.

वह एक बड़ी कंपनी का मामूली सेल्समैन था. हवाई जहाज से सफर करने की उस की शक्ति नहीं थी. जब वह दिल्ली से बंगलौर के लिए चला था तो रवि की तबीयत खराब जरूर थी पर इतनी गंभीर नहीं थी, वरना वह बंगलौर न आता.

शादी के 15 साल बाद रवि उन की जिंदगी में खुशियां बिखेरने आया था. रहरह कर उस का मासूम चेहरा उस की आंखों के सामने आ रहा था. वह जल्द से जल्द अपने बेटे के पास पहुंच जाना चाहता था. गाड़ी तेजी से दौड़ी जा रही थी, लेकिन रामनाथ को वह रेंगती लग रही थी.

यह उस की खुशकिस्मत थी कि कृष्णकांत जैसा भला सहयात्री उसे मिल गया. उस ने उसे कुछ खाने को दिया. दुख की घड़ी में भूख भी नहीं लगती. उस ने पानी के दो घूंट पी लिए. उसे कुछ राहत मिली.

कृष्णकांत बोला, ‘‘भाई साहब, आप अपना मन आसपास के वातावरण से जोडि़ए. कुछ बातचीत कीजिए, वरना यह सफर काटे न कटेगा. ज्यादा चिंता न करें. दिल्ली में आप के भाईबंधु और पत्नी आप के बेटे का पूरा ध्यान रख रहे होंगे. हम आप के साथ हैं. आप का बेटा जरूर ठीक हो जाएगा,’’ सांत्वना के इन दो शब्दों ने उस के दुखी मन पर मरहम का काम किया.

तभी टिकट चेकर आ गया. इस से पहले कि वह रामनाथ से टिकट के बारे में पूछता, कृष्णकांत उसे एक ओर ले गया और उसे पूरी बात बताई तथा रामनाथ की सहायता करने के लिए प्रार्थना की. टिकट चेकर बड़ा घाघ था. उस ने बड़ी सख्ती से मना कर दिया और रामनाथ को अगले स्टेशन पर आरक्षित डब्बे से उतरने की ताकीद कर दी.

कृष्णकांत ने रामनाथ को आराम से बैठने के लिए कहा. उस ने टिकट चेकर के कान में कुछ फुसफुसा कर कहा. उस के चेहरे पर रौनक छा गई. उस ने सिर हिला कर हामी भरी और आगे बढ़ गया. कृष्णकांत ने राहत की सांस ली.

टिकट चेकर से हुई पूरी बात उस ने रामनाथ को बताई और बोला, ‘‘सिर्फ बैठ कर सफर तय करना होता तो कोई समस्या नहीं होती. इस दौरान 2 रातें भी आएंगी. अगर आप सोएंगे नहीं और ठीक से आराम नहीं करेंगे तो आप की तबीयत भी खराब हो सकती है. मैं ने टिकट चेकर से बात कर ली है. वह आप को बर्थ दे देगा. आप को थोड़े पैसे देने पड़ेंगे. आप को कोई एतराज तो नहीं है न?’’

अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें. रामनाथ बोला, ‘‘भाई साहब, आप जैसा सज्जन व्यक्ति बहुत कम लोगों को मिलता है. आप मेरी इतनी मदद न करते तो न जाने मेरा सफर कितना तकलीफदेह होता. मेरे लिए आप जितना कर रहे हैं, मैं स्वयं यह शायद ही कर पाता.’’

कई यात्री अपने मित्रों के साथ बातचीत करने में मशगूल थे तो कई अपने परिवार के सदस्यों के साथ खिलखिला रहे थे. कुछ खानेपीने में लगे थे. रामनाथ यह सब देखसुन रहा था, पर उस का पूरा ध्यान अपने पुत्र और पत्नी पर ही टिका था. बीमार बेटे और पत्नी का व्यथापूर्ण चेहरा रहरह कर उस की आंखों के सामने लहरा रहा था.

दुख भी इनसान को थका देता है. बैठेबैठे उसे नींद ने आ घेरा. उसे लगा जैसे वह रवि और अपनी पत्नी के साथ सफर कर रहा था. तीनों कितने खुश लग रहे थे. रवि अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त था. अपने पुत्र और पत्नी के सान्निध्य से उस के चेहरे पर खुशी के भाव आ रहे थे. किसी बच्चे के रोनेचिल्लाने से उस की नींद टूट गई और उस ने स्वयं को वास्तविकता के धरातल पर पड़ा पाया. गाड़ी किसी स्टेशन पर रुकी हुई थी.

उस ने मोबाइल पर अपनी पत्नी से संपर्क साधा और रवि का हालचाल पूछा. वह बोली, ‘‘डाक्टर रवि के इलाज में लगे हैं. वह अब होश में है और बारबार आप को पूछ रहा है. उसे ग्लूकोज चढ़ा रहे हैं.घर के सभी बड़े यहीं पर हैं. डाक्टर कहते हैं कि अब स्थिति काबू में है. बस, आप जल्दी से आ जाइए, तभी मुझे सुकून मिलेगा.’’

रामनाथ को अपनी पत्नी से बातचीत कर के कुछ ढाढ़स बंधा. उस ने कृष्णकांत को अपने पुत्र की स्थिति के बारे में बताया. वह बोला, ‘‘मैं कहता था न कि आप का पुत्र जरूर ठीक हो जाएगा. अब आप का दुख कुछ कम हुआ होगा. आप अपनी पत्नी से बातचीत करते रहिए. चिंता न करें. सब ठीक होगा.’’

तभी टिकट चेकर रामनाथ के पास आया. वह उसे एक ओर ले गया और बोला, ‘‘मैं ने आप के लिए बर्थ का इंतजाम कर दिया है. आप को मुझे 100 रुपए देने होंगे. मेरे साथ आइए. मैं जो भी बोलूं आप चुपचाप सुनते रहिए. आप कुछ भी बोलिएगा नहीं.’’

रामनाथ उस के पीछे चल पड़ा.

एक बर्थ के पास पहुंच कर टिकट चेकर रुक गया. वहां एक युवक बर्थ पर लेटा आराम कर रहा था. रामनाथ को संबोधित करते और उस युवक को सुनाते हुए वह बोला, ‘‘गाड़ी में चढ़ने के बाद अपनी बर्थ पर बैठना चाहिए. अपने यार दोस्तों की बर्थ पर बैठ कर गप्पें मारने से होगा यह कि आप की बर्थ किसी और को भी दी जा सकती है. आइंदा खयाल रखिए.’’

फिर टिकट चेकर उस युवक से बोला, ‘‘मुझे अफसोस है कि आप को यह बर्थ खाली करनी होगी. जिस के नाम पर यह बर्थ आरक्षित थी वह आ गया है. आप चिंता न करें. मैं आप को दूसरी बर्थ दिला दूंगा,’’ उस ने अपनी जेब से 50 रुपए का नोट निकाला और उसे थमा दिया.

रामनाथ ने अपना सामान बर्थ पर रखा. रात का समय हो चला था. सभी अपना बिस्तर लगा रहे थे. उस ने भी अपना बिस्तर लगाया और लेट गया. उस ने सुन रखा था कि चोरों के भी अपने उसूल होते हैं. एक बार किसी को जबान दे दी तो उस की मानमर्यादा का पालन करते हैं. यह टिकट चेकर किस श्रेणी में आता था वह अनुमान नहीं लगा पाया. कहीं कोई उस से ज्यादा पैसे देने वाला आ गया तो… इसी उधेड़बुन में उसे कब नींद ने आ घेरा उसे पता हीं नहीं चला.

लेखक- रमेश भाटिया

Aamir Khan GF Gauri Spratt : आमिर खान ने 60 वें बर्थडे पर नई गर्लफ्रेंड पर किया खुलासा

Aamir Khan GF Gauri Spratt : बौलीवुड के परफेक्शनिस्ट कहलाने वाले आमिर खान ने मीडिया के लोगों के साथ अच्छे रिश्तों के चलते अपना 60 वां जन्मदिन सेलिब्रेट किया. जहां पर केक कटिंग के साथ उन्होंने मीडिया के सामने अपने दिल की कई बातें शेयर की, जिसमें उन्होंने बताया कि आमिर को गाने का बहुत शौक है जिसकी वजह से पिछले 2 साल से वह गाना सीख रहे हैं और गाने के शौकीन होने के चलते वह एक भी ऐसी महफिल नहीं छोड़ते जहां पर गाने का दौर चल रहा हो, स्पेशली पुराने गाने उनको बहुत पसंद है जो उन्होंने मीडिया के सामने एक पुराना गाना गा कर भी सुनाया.

इतना ही नहीं आमिर खान ने अपनी नई दोस्त गौरी को स्पेशली मीडिया से मिलवाया जो आकर्षण का केंद्र बन गई , क्योंकि मीडिया के लोगों को आमिर और गौरी का रिश्ता दोस्ती से कहीं ऊपर नजर आया , जिसके चलते लोगों ने अटकले लगाने शुरू कर दिए कि क्या आमिर खान तीसरी शादी करने की योजना बना रहे हैं?

हालांकि आमिर खान ने गौरी और अपने रिश्ते को एक प्यार भरा रिश्ता ही बताया. जिसकी शुरुआत आज से 25 साल पहले हुई थी. दो शादियों के बाद गौरी के साथ रिश्ते को आमिर क्या नाम देंगे ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा. आमिर खान के अनुसार उनको ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि वह 60 साल के हैं आमिर के अनुसार मैं कई बार 35 से 40 साल के आदमी को भी अंकल बोल देता हूं. क्योंकि मैं खुद भूल जाता हूं कि मैं 60 साल का हूं.

इसके अलावा आमिर खान ने इस बात का भी जिक्र किया कि उनकी नजर में रिश्तों की बहुत अहमियत है, पौजिटिव सोच की बहुत अहमियत है, इसलिए वह अपनी जिंदगी में इन दोनों चीजों को हमेशा शामिल रखते हैं. और हर साल अपने बर्थडे पर कुछ नया और कुछ अच्छा करने का प्रण लेते हैं. ताकि वह आने वाले समय में हमेशा खुश और स्वस्थ रह सके .

Young Couples के लिए बेहद जरूरी है साइबर पेरैंटिंंग

Young Couples : साइबर पेरैंटिंग उन सभी मातापिता के लिए है जिन के बच्चे स्मार्टफोन, कंप्यूटर और इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं. दिनोंदिन बढ़ते साइबर अपराधों के चलते आजकल के पेरैंट्स के लिए बच्चों को साइबर पेरैंटिंग के लिए जागरूक करना आवश्यक हो गया है. साइबर पेरैंटिंग में मातापिता द्वारा बच्चों को डिजिटल गैजेट के उपयोग और खतरों दोनों के बारे में समझाना है, साथ ही डिजिटल गैजेट का उपयोग कर के बच्चों की औनलाइन गतिविधि की निगरानी करना और बच्चों के डिजिटल उपकरणों के उपयोग को सीमित करना भी है.

डिजिटल पेरैंटिंग अपने बच्चों को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के लिए आवश्यक है. यह बच्चों में डिजिटल स्किल डैवलप करने में जरूरी मदद भी करती है.

आजकल बच्चे बोलना बाद में सीख रहे है और मोबाइल चलना पहले क्योंकि आजकल मातापिता अपने बिजी लाइफस्टाइल के कारण बच्चों को छोटी उम्र में ही मोबाइल पकड़ा देते हैं  जोकि आगे चल कर मुश्किल भरा भी हो सकता है क्योंकि वे आधुनिक ऐप्स और सोशल मीडिया का उपयोग कम उम्र से ही करने लगते हैं और उन पर गेम्स खेलने लगते हैं जिस के चलते डिजिटल गैजेट्स और इंटरनैट की लत बच्चों में कम उम्र में ही लग जाती है और तब कई बार बच्चे इंटरनैट पर मौजूद चीजों में इतने मशगूल हो जाते हैं कि उन्हें इन के अलावा कुछ और नजर नहीं आता है.

पेरैंट्स के लिए डिजिटल दौर में सब से बड़ी चुनौती यही है कि वे अपने बच्चों को इंटरनैट के सही इस्तेमाल के बारे में बताएं और उन के औन स्क्रीन टाइम पर भी नजर बनाए रखें.

इंटरनैट और डिजिटल दुनिया के संभावित खतरों को ध्यान में रखते हुए मातापिता को सक्रिय और सतर्क रहने की खास जरूरत है क्योंकि इंटरनैट का उपयोग करने से होने वाली कुछ नैगेटिव बातें जो आप के बच्चे कर सकते हैं:

बच्चों का अश्लील कंटैंट पर ऐक्सैस.

अजनवबियों से कौंटैक्ट.

हिंसात्मक कंटैंट पर ऐक्सैस.

औनलाइन बुलिंग का शिकार आदि.

ऐसे में बच्चों को यह बताना जरूरी हो जाता है कि सोशल मीडिया का उपयोग करते समय बच्चों को इन बातों का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है:

औनलाइन दुनिया में कुछ लोग झूठी या फेक प्रोफाइल से अकाउंट बनाते हैं.

किसी भी अनजान व्यक्ति से न मिलें खासकर उन से जिन्हें वे नहीं जानते.

अनजान व्यक्ति से औनलाइन संपर्क में न रहें.

द्य बच्चों को बताएं कि अगर औनलाइन उन के साथ कुछ गलत होता है, किसी ईमेल या मैसेज के द्वारा कोई परेशान कर रहा है तो पेरैंट्स से उस के बारे में अवश्य बताएं.

रखें नजर या नियंत्रण

आज के समय में कम उम्र के बच्चे भी सोशल मीडिया पर पूरी तरह से ऐक्टिव रहते हैं. इसलिए जिम्मेदार और सतर्क अभिभावक के रूप में आप को इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि आप का बच्चा सोशल मीडिया का इस्तेमाल किस तरह से कर रहा है. बच्चों की प्राइवेसी में दखल किए बिना आप को उन की ऐक्टिविटीज पर नजर जरूर रखनी चाहिए.

कैसे रखें नजर या नियंत्रण

 सोशल मीडिया पर स्ट्रौंग प्राइवेसी सैटिंग लगाएं.

यदि बच्चों का फोन अलग है और कोई पासवर्ड आदि डला हुआ है तब उन से पासवर्ड पूछ कर रखें ताकि समयसमय पर आप देख सकें कि बच्चा क्याक्या ऐक्टिविटीज करता है

पेरैंटल कंट्रोल से इंटरनैट को फिल्टर कर सकते हैं. कुछ वैबसाइटों को बच्चों की पहुंच से दूर रख सकते हैं. इसे करने के लिए आप अपने इंटरनैट प्रोवाइडर से बात कर सकते हैं या विंडोज अथवा थर्ड पार्टी सौफ्टवेयर में बनाए गए पेरैंटल कंट्रोल का उपयोग कर सकते हैं.

ऐसी प्रोफाइल बनाने में मदद करें जिन में पर्सनल इन्फौर्मेशन कम हो.  गूगल और यूट्यूब जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर सेफ सर्च इस्तेमाल करें.

कैसे लगाएं पेरैंटल कंट्रोल

यदि आप चाहते हैं कि आप का बच्चा गूगल प्ले स्टोर से कोई गलत ऐप या गेम अथवा फिल्म डाउनलोड न करे तो आप इस तरह से पेरैंटल कंट्रोल लगा सकते हैं ताकि वह फिशिंग और मालवेयर के खतरों से बच सके और आप के स्मार्टफोन का डेटा भी सुरक्षित रहे:

सब से पहले गूगल प्ले स्टोर पर जाएं. फिर इस की सैटिंग में जाएं और पेरैंटल कंट्रोल को सलैक्ट करें और इसे औन करें. ऐसा करते ही आप से यह पिन मांगेगा. इस में आप को अपना पिन डालना है जो बच्चों को न पता हो. अब जो स्क्रीन खुलेगी उस में आप सभी रिस्ट्रिक्शन सैट कर सकते हैं. क्या और कैसी फिल्में, कैसे ऐप्स, कैसी गेम्स बच्चों के लिए सही हैं वे सभी आप तय कर सकते है.

बच्चों की स्क्रीन टाइम की लिमिट तय करें

साइबर पेरैंटिंग के दौरान बच्चों को गलत आदतों की चपेट में आने और गलत दिशा में जाने से बचाने के लिए उन की स्क्रीन टाइम पर नजर जरूर रखनी चाहिए. चाहे सोशल मीडिया नैटवर्क हो या ओटीटी प्लेटफौर्म, किसी चीज का कितना इस्तेमाल करना सही है, इस की जानकारी बच्चों को जरूर देनी चाहिए.

 कम यूज में आने वाली ऐप्लिकेशन के नोटिफिकेशन को बंद करें.

द्य जो भी ऐप्स कम इस्तेमाल में आते हैं या जो अनुपयोगी हैं उन्हें डिलीट कर दें ताकि उन से रिलेटेड नोटिफिकेशंस और मैसेजस न आएं नहीं तो उन्हें देखने में स्क्रीन का टाइम बढ़ेगा. ऐसा कर के आप स्क्रीन टाइम को बचा सकते हैं.

बच्चों की बात सुनें और समझाएं

आजकल इंटरनैट पर कईकई घंटे बिताने के बाद कई बच्चे ऐसे होते हैं जो साइबर बुलिंग और साइबर हैरसमैंट जैसी परेशानियों से 2-4 हो रहे हैं और वे आप से शेयर नहीं कर रहे है जिस के कारण वे मन ही मन परेशान बने हुए रहते हैं. ऐसे में जब आप उन की बात सुनेंगे तो वे अपनी फीलिंग्स आप से शेयर कर पाएंगे और अगर आप उन की बात नहीं सुनेंगे तो उन्हें लगेगा कि वे अकेले हैं इसलिए बच्चों से हर दिन बात करें, उन की समस्या सुनें, उसे सुल?ाएं और उन्हें अच्छी चीजों की जानकारी दें.

अपने बिजी लाइफस्टाइल से समय निकाल कर रोज बच्चों के साथ बातचीत करें. उन का दिन कैसा गुजरा, क्याक्या ऐक्टिविटीज कीं आदि, छुट्टी के दिन उन के साथ उन की पसंद की किसी भी ऐक्टिविटी में अपना समय लगाएं, हफ्ते में 1 दिन मोबाइल, टीवी, लैपटौप, कंप्यूटर से दूर रह कर उन के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं.

आजकल किशोर सोशल मीडिया प्लेटफौर्म जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, डेटिंग ऐप आदि का सब से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं इसलिए वे औनलाइन रहने के आदी हो जाते हैं. यह उन के सामाजिक जीवन और अन्य दैनिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है. इस से स्क्रीन टाइम भी बढ़ जाता है. इसलिए एक अच्छा साइबर पैरेंट वह होता है जो अपने बच्चों के जीवन में शामिल होता है. उन्हें बिना बताए इंटरनैट पर उन की गतिविधियों पर नजर बनाए रखे. लगातार उन के व्यवहार में आ रहे बदलाव पर नजर बनाए रखें.

Couple Cooking रोमांस भी फन भी

Couple Cooking : भारत में माना जाता है कि किचन पत्नियों का क्षेत्र है और कुकिंग का काम करना सिर्फ उन की जिम्मेदारी है. लेकिन भारत के पुडुचेरी का एक गांव इस बात को पिछले कई वर्षों से गलत साबित करता आ रहा है. इस गांव में 500 सालों से किचन की जिम्मेदारी पुरुषों के कंधों पर है. गांव के हर घर में एक पुरुष बावर्ची है और पिछली 5 सदियों से यही परंपरा चली आ रही है.

पुडुचेरी से 30 किलोमीटर दूर है कलायुर गांव और इस गांव को ‘विलेज औफ कुक्स’ के नाम से भी जाना जाता है. इस गांव में करीब 80 घर हैं और हर घर में पुरुष बावर्ची का होना यहां की परंपरा का हिस्सा है. यह परंपरा भी कोई आज की नहीं है बल्कि 500 सालों से चली आ रही है. एक अनुमान के मुताबिक गांव में 200 पुरुष कुक हैं. गांव में पुरुषों को बेहतरीन कुक बनने के लिए 10 सालों की लंबी ट्रेनिंग लेनी जरूरी होती है. यहां के कुक करीब 1000 लोगों को एकसाथ खाना खिला सकते हैं.

आज के समय में जब महिलाएं बाहर के काम संभाल रही हैं और अच्छीखासी कमाई भी कर रही हैं तो पारंपरिक कार्य विभाजन में बदलाव जरूरी है. सामान्य जिंदगी में देखा जाता है कि बहुत सी महिलाएं हर दिन औफिस से आ कर खाना बनातेबनाते थक जाती हैं और अपने पति का साथ चाहती हैं. मगर पति कोई हैल्प करने में विश्वास नहीं रखते. उन्हें तो बस अच्छीअच्छी चीजें खाने को चाहिए. रोज नई फरमाइश के साथ वे किचन में आते हैं और और्डर कर के चलते बनते हैं. बहुत सी शादीशुदा महिलाएं ऐसे हालात का सामना कर रही हैं.

दिल्ली के लक्ष्मी नगर में रहने वाली 32 साल की अनुभा कहती हैं, ‘‘हमारी शादी को 8 साल हो गए हैं. शुरू से ही मैं ने खाना पकाने की जिम्मेदारी स्वाभाविक रूप से ले ली. पहले मुझे कोई आपत्ति नहीं थी. यह मेरे प्यार को दिखाने का एक तरीका था और मुझे वास्तव में नए व्यंजनों को बनाने और उन्हें पति को खिलाने में मजा आता था. मुझे लगता था कि भले ही मुझे थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है मगर इस तरह मेरा परिवार स्वस्थ, घर का बना भोजन खा रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मुझे अपना यह रूटीन प्रेम कम और बोझ ज्यादा लगने लगा है. पति को हमेशा अपेक्षा रहती है कि मैं कुछ नया और लजीज आइटम बना कर खिलाऊंगी. जबकि हर शाम पूरा दिन काम के बाद मैं खुद को रसोई में थकी हुई और इरिटेट पाती हूं.

‘‘मैं ने इस बारे में अपने पति से बात करने की कोशिश की लेकिन वे हमेशा कहते हैं कि वे बहुत व्यस्त हैं या खाना बनाना नहीं जानते. अब मैं पति के ऐसे व्यवहार से निराश रहने लगी हूं. औफिस से घर लौटते समय मेरे कदम बहुत धीरेधीरे उठते हैं. मैं पति से नाराज नहीं होना चाहती लेकिन बिना झगड़ा किए उन्हें सही रास्ते पर कैसे लाऊं यह समझ नहीं आता.’’

यह दुविधा ऐसी है जो कई महिलाओं की जिंदगी का सच है. वे प्यारप्यार में किचन से बंध जाती हैं. खाना बनाना प्यार और देखभाल का प्रतीक हो सकता है लेकिन जब यह तनाव और नाराजगी का स्रोत बन जाए तो रिश्ते में तनाव पैदा कर सकता है. ऐसे में जरूरी है कि आप पति को कपल कुकिंग के लिए प्रेरित करें. जाहिर है पति इस के लिए आसानी से तैयार नहीं होंगे क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों का अपने घर की किचन में काम करना उन की मर्दानगी को चुनौती देता प्रतीत होता है.

वैसे भी पुरुषों को किचन के कामों को करने की अधिक जानकारी नहीं होती क्योंकि बचपन से तो मां ने बैड पर ला कर खाना दिया होता है. यदि आप स्वयं को ऐसी ही स्थिति में पाती हैं तो यहां कपल कुकिंग के लिए कुछ व्यावहारिक कदम दिए गए हैं जिन्हें अपना कर आप एक समाधान ढूंढ़ सकती हैं.

पहले से करें प्लानिंग ऐंड प्रिपरेशन

अगले दिन क्या बनाना है इस की प्लानिंग और प्रिपरेशन दोनों मिल कर एक दिन पहले कर लें. यही नहीं आप छुट्टी वाले दिन पूरे सप्ताह की तैयारी कर सकती हैं. यह कदम आप की प्रौब्लम को दूर करने में गेमचेंजर हो सकता है. हर सप्ताह किसी एक दिन जैसे रविवार को एकसाथ बैठें और आगामी सप्ताह के लिए भोजन संबंधी तैयारी पर चर्चा करें. पूरे सप्ताह आप क्याक्या खाएंगे यह न्यूट्रिशनल बैलेंस और अपनी पसंदगी के आधार पर तय करें. एक बार जब आप डिशेज की प्लानिंग कर लें तो साथ मिल कर शौपिंग के लिए एक लिस्ट बनाएं. फिर मिल कर शौपिंग करने जाएं. इस से आप को पति का सहयोग मिलेगा और पति को भी शौपिंग एक बर्डन नहीं लगेगी. यही नहीं जब पति हर स्टेज पर कुकिंग वर्क से जुड़ेंगे तो उन का इंटरैस्ट बढ़ेगा.

सामान घर लाने के बाद तैयारी शुरू करें. सब्जियां काटना, मांस को मैरीनेट करना या चीजें रोस्ट करना, ग्रेवी बनाना जैसे मुख्य भोजन के बड़े हिस्से को निबटाने का कार्य कर लें. इन कार्यों को प्राथमिकता या सुविधा के आधार पर विभाजित करें. उदाहरण के लिए यदि एक साथी को सब्जियां काटना पसंद है जबकि दूसरा सूजी, ओट्स भूनना, ग्रेवी बनाना आदि पसंद करता है तो उसी अनुरूप कार्यभार को विभाजित करें. पहले से तैयारी करने से रोज के बिजी शैड्यूल में समय की बचत होती है और रोज घर में भोजन तैयार करना आसान हो जाता है.

साथ ही उपयोग के लिए तैयार सामग्री रखने से पति को काम करने में झंझट महसूस नहीं होगा और स्वस्थ खाने की आदतों को बढ़ावा मिलेगा. इस से बाहर के कम पौष्टिक खाद्यपदार्थों को मंगाने का प्रलोभन भी कम हो जाता है.

ईजी और क्विक रैसिपीज

कुछ खास तरह के खाने की आइटम्स बनाने में बहुत वक्त लगता है जबकि ऐसी रैसिपीज भी आसानी से अवेलबल हैं जिन्हें बनाना बहुत सिंपल होता है. आप पति को ऐसी डिशेज बनाना सिखाएं जिन में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती और जिन के लिए न्यूनतम प्रयास की आवश्यकता होती है लेकिन फिर भी स्वादिष्ठ परिणाम मिलते हैं. एकसाथ बैठें और उन व्यंजनों की एक लिस्ट तैयार करें जो इस मानदंड पर फिट बैठते हैं. स्टरफ्राइज, सलाद, अंकुरित अनाज रैसिपी, ओट्स से बनी डिशेज, रैडी टू ईट आइटम्स, वनपौट वंडर्स जैसे व्यंजनों का रुख करें.

पोषक तत्त्वों के अच्छे बैलेंस वाले इन व्यंजनों में अकसर न्यूनतम तैयारी और न्यूनतम खाना पकाने का समय लगता है.

एकसाथ खाना बनाना

खाना पकाने को एक सा?ा गतिविधि में बदलने से न केवल काम का बो?ा हलका हो सकता है बल्कि एक जोड़े के रूप में आप का बंधन भी मजबूत हो सकता है. कुछ ऐसी डिशेज  चुनें जो टीम वर्क के लिए अनुकूल हों जैसेकि घर का बना पिज्जा या इडलीडोसा आदि. रसोई में एकसाथ काम करने से सहयोग को बढ़ावा मिलता है और प्यार भी बढ़ता है. साथ में खाना पकाने से हंसीमजाक करने, अनुभव सुनाने और सुनने से यादें बनाने के अवसर भी मिलते हैं जिस से भोजन के साथ आप के रिश्ते को खूबसूरत यादें भी मिलती हैं.

किचन गैजेट्स का यूज

आप के हस्बैंड भी आसानी से खाना बना सकें इस के लिए भोजन की तैयारी को आसान बनाने और खाना पकाने की थकान को कम करने व समय बचाने वाले किचन गैजेट्स में इनवैस्ट करें. स्लो कुकर, इंस्टैंट पौट, एअर फ्रायर, इंडक्शन, अच्छी क्वालिटी वाले ब्लैंडर, कौफी मेकर, चौपर, फूड प्रोसैसर, स्प्राउट मेकर, रोटी मेकर, डिश वाशर जैसे गैजेट्स लें.

खाना बनाना एक आवश्यक लाइफ स्किल है जो हर व्यक्ति के पास होनी चाहिए. हालांकि इस काम को हमारे घरों में अकसर महिलाओं के लिए आरक्षित कार्य के रूप में देखा जाता है. सवाल उठता है कि पुरुष खाना पकाने के आनंद और लाभों से वंचित क्यों रहें? पुरुषों को खाना बनाना सीखना चाहिए और इस के लिए बहुत से वाजिब कारण आप के आगे आ जाएंगे.

बनाए केयरिंग हस्बैंड

अगर आप खाना भी बना लेते हैं तो आप एक कंप्लीट जैंटलमैन और केयरिंग हस्बैंड कहलाएंगे. यदि आप खाना बनाने में अपनी पत्नी या अपने प्रियजनों का हाथ बंटाते हैं तो इस से यह पता लगता है कि आप उन की परवाह करते हैं. इस के अलावा कुकिंग परिवार और दोस्तों के साथ रिश्ता मजबूत करने का एक शानदार तरीका है.

घर में खाना बनाने के कई फायदे हैं. कई दफा पत्नी मायके गई होती है तो पति बाहर के खाने पर निर्भर हो जाते हैं. पर याद रखिए अपने हाथ का खाना बाहर खाने के मुकाबले एक हैल्दी औप्शन है. इनग्रीडिऐंट्स पर आप का पूरा कंट्रोल रहता है और आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आप जो खाना खा रहे हैं वह पौष्टिक और स्वस्थ है. दूसरा यह बाहर के खाने की तुलना में अच्छा और सस्ता पड़ता है. घर पर खाने से आप काफी पैसा बचा सकते हैं.

क्रिएटिविटी दिखाने का मौका

खाना बनाना पुरुषों के लिए अपनी क्रिएटिविटी दिखाने का एक शानदार तरीका है. रसोई एक ऐसी जगह है जहां आप विभिन्न स्वादों और सामग्री के साथ प्रयोग कर सकते हैं और अपने मनपसंद अनोखे व्यंजन बना कर पत्नी और घर वालों का दिल जीत सकते हैं. सब को अपनी कुकिंग स्किल्स से इंप्रैस कर ढेर सारा प्यार बटोर सकते हैं.

लाए कंफर्ट जोन से बाहर

कुकिंग खुद को चुनौती देने और अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलने का एक शानदार तरीका है. वर्षों से चली आ रही स्टीरियोटाइप कि महिलाएं ही किचन का काम करेंगी और मर्दों को यह शोभा नहीं देता इस सोच को बदल कर समाज में और अपने रिश्तेदारों के आगे एक उदाहरण पेश कर सकते हैं.

कपल कुकिंग के फायदे

यह बात सदियों से बोली जा रही है कि पुरुष के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है, लेकिन आज भी यह बात लगभग सच है. फर्क बस इतना है कि पेट के रास्ते से सिर्फ पुरुषों के दिल तक नहीं स्त्रियों के दिल तक भी पहुंच सकते हैं. जब पति औफिस से थक कर लौटी वाइफ के लिए चाय बना कर इंतजार करता है तो यह उस का प्यार होता है. किचन में साथ कुछ बनाना भी कपल्स के रिश्ते के लिए लगभग वैसा ही है जैसा एकदूसरे के लिए किचन में कुछ बनाना.

मिलता है क्वालिटी टाइम

आज के समय में कपल्स के ऊपर कई तरह की जिम्मेदारियों का बो?ा होता है. ऐसे में वे खुद के लिए ही समय नहीं निकाल पाते तो अपने पार्टनर को समय किस तरह दें. समय के अभाव में वे अपने प्यार को न तो जता पाते हैं और न ही उन के रिश्ते में बौंड मजबूत हो पाता है. वे सिर्फ और सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों को ही निभाते हैं. लेकिन जब आप दोनों साथ में किचन में होते हैं तो इस से आप दोनों को एकदूसरे के लिए कुछ वक्त मिलता है.

आप अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के साथसाथ अपने पार्टनर को भी समय दे पाते हैं. इस तरह क्वालिटी टाइम बिताने का यह अच्छा आइडिया है. अपने रूटीन को ब्रेक करने के लिए जरूरी नहीं है कि आप किसी महंगे रेस्तरां जाएं या फिर आउटिंग करें. अपने घर की किचन में मस्ती करते हुए भी आप क्वालिटी टाइम बिताते हुए अपने प्यार को बढ़ा सकते हैं.

बढ़ता है सैल्फलैस प्यार

किचन में अपने साथी के लिए कुछ बनाना हमेशा ही दूसरे पार्टनर को आकर्षित करता है. साथी की पसंद का कुछ बनाना या उसे भूख लगी होगी तो कुछ बना कर इंतजार करना ये दिखाता है कि आप दोनों एकदूसरे को अपने से ज्यादा प्यार और केयर दे रहे हैं. ऐसे मौके हमेशा ही कपल के बीच प्यार बढ़ाता है.

किसी को जानने के लिए कुकिंग एक बेहतर औप्शन है और इस तरह आप को एकदूसरे को जानने का मौका मिलेगा. खाने के अलावा उन की पसंदीदा चीजों के बारे में जान सकेंगे और इस तरह आप दोनों एकदूसरे के करीब आएंगे. साथ में कुकिंग करने से आप के पास मौका होता है जहां आप दोनों खुल कर बात करते हैं.

किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए पहला स्टेप है बातचीत. खाना बनाने के दौरान आप अपने पार्टनर से किसी भी एक टौपिक पर बात करें और उन्हें अपने मन के एहसासों और अपनी सोच से वाकिफ कराएं. ध्यान रहे कि खाना बनाते वक्त हमेशा हैल्दी और पौजिटिव बातें करें जिस से सामने वाले को खाना बनाने में दिलचस्पी बनी रहे.

रोमांस का चांस

आप ने कई बार फिल्मों में देखा होगा कि किस तरह औन स्क्रीन कपल किचन में मस्ती करते हैं और कोजी होते है. उन्हें स्क्रीन पर देख कर आप को भी कहीं न कहीं लगता होगा कि काश आप का रिश्ता भी ऐसा हो. तो अब आप भी किचन में अपने पार्टनर के साथ थोड़ी मस्ती करते हुए खाना बनाएं. इस से आप को अपने पार्टनर के साथ रोमांटिक होने का मौका मिलेगा और खाना भी कब बन जाएगा इस का आप को पता भी नहीं चलेगा.

इन बातों का रखें खयाल

खाने में जायका हो तो दिल खाना बनाने वाले का मुरीद हो जाता है. यानी अच्छा खिलाइए और सामने वाले को अपना मुरीद बनाइए. मगर हमेशा स्त्री ही पुरुष को मुरीद क्यों बनाए? कभीकभी यह मौका पुरुष को भी मिलना चाहिए. वह भी अपने हाथों से लजीज खाना बना कर बेगम को खिला सकता है. पुरुषों के किचन में घुसने पर खाना तो लजीज बन जाता है पर बहुत सी चीजें ऐसी हो जाती हैं जो न हों तो बैटर हाफ के चेहरे पर मुसकान बनी रहेगी.

अकसर यह देखने में आता है कि किचन में घुस कर अपनी पाक कला से दिल के दरवाजे खोलने वाले पुरुष पूरी किचन फैला देते हैं. मसालेदानी में हलदी के चम्मच में नमक डाल दिया जाता है तो जीरा और राई एक ही डब्बे में कौकटेल हो जाते हैं. चाकू की जगह बदल जाती है तो चकला और बेलन 2 अलग दिशाओं में बैठे एकदूसरे को ताकते नजर आते हैं. कहने का मतलब यह कि पुरुषों को भी सिस्टेमैटिक हो कर काम करना सीखना होगा. जो चीज जहां से लें वहीं रखें तरीके से और सलीके से.

अकसर जब पुरुष किचन में होते हैं और सब्जियां काट रहे होते हैं तो किचन की हालत देखने लायक होती है. उत्तरी कोने पर प्याज के छिलके होते हैं तो दक्षिणी कोने में तेल बिखरा होता है और धनियापत्ती के टुकड़े बेसिन में हड़ताल पर बैठे मिलते हैं. ऐसे हालात से बचिए. इस के लिए या तो महिलाएं उन्हें ट्रेनिंग दें या फिर पुरुष खुद साफसफाई का खयाल रखना सीखें क्योंकि किचन की ऐसी हालत हुई तो घर में महाभारत होना तय है. याद रखें औरतें अपनी किचन की ऐसी हालत नहीं देख सकतीं और न ही ऐसे माहौल में साथ काम कर पाती हैं.

जरूरत से ज्यादा न बनाएं

अकसर पुरुषों को भरभर कर बनाने की आदत होती है. मैगी से ले कर बिरयानी तक जो बनाएंगे थोक के हिसाब से. पत्नी के लाख इनकार के बाद भी 4 के परिवार में इतना भोजन बनेगा कि 8 खा जाएं. तर्क यह कि सुबह भी तो खाएंगे. जरूरी हो जाता है कि पत्नियां खाना बनाते समय पति पर नजर रखें.

संभल के कुक करना सीखें

पति किचन में जौहर दिखाते समय अपना हाथ बचा कर रखें. कभी गरम तवे पर हाथ रख कर हाथ जला लेंगे तो कभी चाकू चलाते समय मुंह से चीख निकल जाती है. ऐसे में पत्नी टैंशन की वजह से फिर खुद ही काम करने लगती है.

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सवाल

मैं 19 वर्षीय युवती हूं. एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है पर समस्या यह है कि वह मुझ पर बहुत शक करता है, जिस कारण मैं ने एक गलत कदम उठा लिया था. मैं ने एक अन्य युवक से बात की और उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए. अब वह युवक भी मुझ से बात नहीं करता. मैं क्या करूं?

जवाब

प्रेम की धुरी है विश्वास. अगर आपस में एकदूसरे पर विश्वास ही नहीं है तो प्रेम कहां रहा? आप ने यह भी नहीं लिखा कि आप ने जिस अन्य युवक से संबंध बनाए उस से रिश्ता कैसे बना. जिस से पहले प्रेम करती थी वह आप पर शक करता था तो शक की वजह जान कर उस का निवारण करना चाहिए था न कि अन्य से संबंध बना कर उसे चिढ़ाने की कोशिश.

अब दूसरा युवक भी आप का फायदा उठा कर आप को अंगूठा दिखा रहा है तो गलती किस की है? आप अब इस बात से परेशान हैं कि दूसरा युवक भी आप से संबंध बनाने के बावजूद बात नहीं करता या इस बात से जिस से प्रेम करती हैं उस का शक दूर नहीं हुआ.

बहरहाल, दो नावों पर पैर रखेंगी तो डूबना तय है. एक तरफ हो जाएं जिस से प्यार करती हैं उसे विश्वास दिलाएं कि वाकई आप उसी की हैं. जिस युवक ने आप से संबंध बनाए और बात नहीं करता उस से तो वैसे भी किनारा कर लेना चाहिए. सच्चे प्यार को पहचानिए और अपनाइए, आप की समस्या अपनेआप सुलझ जाएगी.

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सच्चा प्यार

‘‘उर्मी,अब बताओ मैं लड़के वालों को क्या जवाब दूं? लड़के के पिताजी 3 बार फोन कर चुके हैं. उन्हें तुम पसंद आ गई हो… लड़का मनोहर भी तुम से शादी करने के लिए तैयार है… वे हमारे लायक हैं. दहेज में भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. अब हम सब तुम्हारी हां सुनने के लिए बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं. तुम्हारी क्या राय है?’’ मां ने चाय का प्याला मेरे पास रखते हुए पूछा.

मैं बिना कुछ बोले चाय पीने लगी. मां मेरे जवाब के इंतजार में मेरी ओर देखती रहीं. सच कहूं तो मैं ने इस बारे में अब तक कुछ सोचा ही नहीं था. अगर आप सोच रहे हैं कि मैं कोई 21-22 साल की युवती हूं तो आप गलतफहमी में हैं. मेरी उम्र अब 33 साल है और जो मुझ से ब्याह करना चाहते हैं उन की 40 साल है. अगर आप मन ही मन सोच रहे हैं कि यह शादी करने की उम्र थोड़ी है तो आप से मैं कोई शिकायत नहीं करूंगी, क्योंकि मेरे मन में भी यह सवाल उठ चुका है और इस का जवाब मुझे भी अब तक नहीं मिला. इसलिए मैं चुपचाप चाय पी रही हूं.

सभी को अपनीअपनी जिंदगी से कुछ उम्मीदें जरूर होती हैं, इस बात को कोई नकार नहीं सकता. हर चीज को पाने के लिए सही वक्त तो होता ही है. जैसे पढ़ाई के लिए सही समय होता है उसी तरह शादी करने के लिए भी सही समय होता है. मेरे खयाल से लड़कियों को 20 और 25 साल की उम्र के बीच शादी कर लेनी चाहिए. तभी तो वे अपनी शादीशुदा जिंदगी का पूरा आनंद उठा सकेंगी. प्यारमुहब्बत आदि जज्बातों के लिए यही सही उम्र है. इस उम्र में दिमाग कम और दिल ज्यादा काम करता है और फिर प्यार को अनुभव करने के लिए दिमाग से ज्यादा दिल की ही जरूरत होती है. लेकिन मेरी जिंदगी की परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि मेरे जीवन में 20 से 25 साल की उम्र संघर्षों से भरी थी. हम खानदानी रईस नहीं थे. शुक्र है कि मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. यदि एक से अधिक बच्चे होते तो हमारी जिंदगी और मुश्किल में पड़ जाती. मेरे पापा एक कंपनी में काम करते थे और मां स्कूल अध्यापिका थीं. दोनों की आमदनी को मिला कर हमारे परिवार का गुजारा चल रहा था.

एक विषय में मेरे मातापिता दोनों ही बड़े निश्चिंत थे कि मेरी पढ़ाई को किसी भी हाल में रोकना नहीं. मैं भी बड़ी लगन से पढ़ती रही. लेकिन हमारी और कुदरत की सोच का एक होना अनिवार्य नहीं है न? इसीलिए मेरी जिंदगी में भी एक ऐसी घटना घटी, जिस से जिंदगी से मेरा पूरा विश्वास ही उठ गया.

एक दिन दफ्तर में दोपहर के समय मेरे पिताजी अचानक अपनी छाती पकड़े नीचे गिर गए. साथ काम करने वालों ने उन्हें अस्पताल में भरती करा कर मेरी मां के स्कूल फोन कर दिया. मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था. मेरे पिताजी किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं थे, फिर भी उन्हें 40 वर्ष की उम्र में यह दिल की बीमारी कैसी लगी, यह मैं नहीं समझ पाई. 3 दिन आईसीयू में रह कर मेरे पिताजी ने अपनी आंखें खोलीं और फिर मेरी मां और मुझे देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए. मेरा हाथ पकड़ कर उन्होंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी… मैं अपना फर्ज पूरा किए बिना जा रहा हूं… मगर तुम अपनी पढ़ाई को किसी भी कीमत पर बीच में न छोड़ना… वही कठिन समय में तुम्हारे काम आएगी,’’ वे ही मेरे पिताजी के अंतिम शब्द थे.

पिताजी की मौत के बाद मैं और मेरी मां दोनों बिलकुल अकेली पड़ गईं. मेरी मां इकलौती बेटी थीं. उन के मातापिता भी इस दुनिया से चल बसे थे. मेरे पापा के एक भाई थे, मगर वे भी बहुत ही साधारण जीवन बिता रहे थे. उन की 2 बेटियां थीं. वे भी हमारी कुछ मदद नहीं कर सके. अन्य रिश्तेदार भी एक लड़की की शादी का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं थे. मैं उन्हें दोषी नहीं ठहराना चाहती, क्योंकि एक कुंआरी लड़की की जिम्मेदारी लेना आज कोई आसान काम नहीं है. मेरी मां ने अपनी कम तनख्वाह से मुझे अंगरेजी साहित्य में एम.ए. तक पढ़ाया. मैं ने एम.ए. अव्वल दर्जे में पास किया और उस के बाद अमेरिका में स्कौलरशिप के साथ पीएच.डी. की. उसी दौरान मेरी पहचान शेखर से हुई. अमेरिका में भारतवासियों की एक पार्टी में पहली बार मेरी सहेली ने मुझे शेखर से मिलवाया. पहली मुलाकात में ही शेखर ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वह बहुत ही सरलता से मुझ से बात करने लगा. जैसे मुझे बहुत दिनों से जानता हो. पूरी पार्टी में उस ने मेरा साथ दिया.

मुझे शेखर के बोलने का अंदाज बहुत पसंद आया. वह लड़कियों से बातें करने में माहिर था और कई लड़कियां इसी कारण उस पर फिदा हो गई थीं, क्योंकि जब वह मुझ से बातें कर रहा था, तो उस 2 घंटे के समय में कई लड़कियां खुद आ कर उस से बात कर गई थीं. सभी उसे डार्लिंग, स्वीट हार्ट आदि पुकार कर उस के गाल पर चुंबन कर गईं. इस से मुझे मालूम हुआ कि वह लड़कियों के बीच बहुत मशहूर है. वह काफी सुंदर था… लंबाचौड़ा और गोरे रंग का… उस की आंखों में शरारत और होंठों में हसीन मुसकराहट थी. हमारे ही विश्वविद्यालय से एमबीए कर रहा था. उस के पिताजी भारत में दिल्ली शहर के बड़े व्यवसायी थे. शेखर एमबीए करने के बाद अपने पिताजी के कार्यालय में उच्च पद पर बैठने वाला था. ये सब उसी ने मुझे बताया था.

मैं विश्वविद्यालय के होस्टल में रहती थी और वह किराए पर फ्लैट ले कर रहता था. उसी से मुझे मालूम हुआ कि उस के पिता कितने बड़े आदमी हैं. हमारे एकदूसरे से विदा लेते समय शेखर ने मेरा सैल नंबर मांग लिया. सच कहूं तो उस पार्टी से वापस आने के बाद मैं शेखर को भूल गई थी. मेरे खयाल से वह बड़े रईस पिता की औलाद है और वह मुझ जैसी साधारण परिवार की लड़की से दोस्ती नहीं करेगा. उस शुक्रवार शाम 6 बजे मेरे सैल फोन की घंटी बजी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने कहा.

‘‘हाय,’’ दूसरी तरफ से एक पुरुष की आवाज सुनाई दी.

मैं ने तुरंत उस आवाज को पहचान लिया. हां वह और कोई नहीं शेखर ही था.

‘‘कैसी हैं आप? उम्मीद है आप मुझे याद करती हैं?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई आप को भूल सकता है क्या? बताइए, क्या हालचाल हैं? कैसे याद किया मुझे आप ने अपनी इतनी सारी गर्लफ्रैंड्स में?’’

‘‘आप के ऊपर एक इलजाम है और उस के लिए जो सजा मैं दूंगा वह आप को माननी पड़ेगी. मंजूर है?’’ उस की आवाज में शरारत उमड़ रही थी.

‘‘इलजाम? मैं ने ऐसी क्या गलती की जो सजा के लायक है… आप ही बताइए,’’ मैं भी हंस कर बोली.

शेखर ने कहा, ‘‘पिछले 1 हफ्ते से न मैं ठीक से खा पाया हूं और न ही सो पाया… मेरी आंखों के सामने सिर्फ आप का ही चेहरा दिखाई देता है… मेरी इस बेकरारी का कारण आप हैं, इसलिए आप को दोषी ठहरा कर आप को सजा सुना रहा हूं… सुनेंगी आप?’’

‘‘हां, बोलिए क्या सजा है मेरी?’’

‘‘आप को इस शनिवार मेरे फ्लैट पर मेरा मेहमान बन कर आना होगा और पूरा दिन मेरे साथ बिताना होगा… मंजूर है आप को?’’

‘‘जी, मंजूर है,’’ कह मैं भी खूब हंसी.

उस शनिवार मुझे अपने फ्लैट में ले जाने के लिए खुद शेखर आया. मेरी खूब खातिरदारी की. एक लड़की को अति महत्त्वपूर्ण महसूस कैसे करवाना है यह बात हर मर्द को शेखर से सीखनी चाहिए. शाम को जब वह मुझे होस्टल छोड़ने आया तब हम दोनों को एहसास हुआ कि हम एकदूसरे को सदियों से जानते… यही शेखर की खूबी थी. उस के बाद अगले 6 महीने हर शनिवार मैं उस के फ्लैट पर जाती और फिर रविवार को ही लौटती. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हो गए थे. मगर मैं एक विषय में बहुत ही स्पष्ट थी. मुझे मालूम था कि हम दोनों भारत से हैं. इस के अलावा हमारे बीच कुछ भी मिलताजुलता नहीं. हमारी बिरादरी अलग थी. हमारी आर्थिक स्थिति भी बिलकुल भिन्न थी, जो बड़ी दीवार बन कर हम दोनों के बीच खड़ी रहती थी.

शुरू से ही जब मैं ने इस रिश्ते में अपनेआप को जोड़ा उसी वक्त से मेरे मन में कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे मालूम था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मगर जो समय मैं ने शेखर के साथ व्यतीत किया वह मेरे लिए अनमोल था और मैं उसे खोना नहीं चाहती थी. इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई जब शेखर ने बड़ी ही सरलता से मुझे अपनी शादी का निमंत्रण दिया, क्योंकि उस रिश्ते से मुझे यही उम्मीद थी. अगले हफ्ते ही वह भारत चला गया और उस के बाद हम कभी नहीं मिले. कभीकभी उस की याद मुझे आती थी, मगर मैं उस के बारे में सोच कर परेशान नहीं होती थी. मेरे लिए शेखर एक खत्म हुए किस्से के अलावा कुछ नहीं था.

शेखर के चले जाने के बाद मैं 1 साल के लिए अमेरिका में ही रही. इस दौरान मेरी मां भी अपनी अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी थीं. उन्हें अमेरिका आना पसंद नहीं था, क्योंकि वहां का सर्दी का मौसम उन के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं अपनी पीएच.डी. खत्म कर के भारत लौट आई. अमेरिका में जो पैसे मैं ने जमा किए और मेरी मां के पीएफ से मिले उन से मुंबई में 2 बैडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया. बाद में मुझे क्व30 हजार मासिक वेतन पर एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई. मेरे मुंबई लौटने के बाद मेरी मां मेरी शादी करवाना चाहती थीं. उन्हें डर था कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो मैं इस दुनिया में अकेली हो जाऊंगी. मगर शादी इतनी आसान नहीं थी. शादी के बाजार में हर दूल्हे के लिए एक तय रेट होता था. हमारे पास मेरी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं था. ऊपर से मेरी मां का बोझ उठाने के लिए लड़के वाले तैयार नहीं थे.

जब मैं अमेरिका से मुंबई आई थी तब मेरी उम्र 25 साल थी. शादी के लिए सही उम्र थी. मैं भी एक सुंदर सा राजकुमार जो मेरा हाथ थामेगा उसी के सपने देखती रही. सपने को हकीकत में बदलना संभव नहीं हुआ. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में और महीने सालों में बदलते हुए 3 साल निकल गए. मेरी जिंदगी में दोबारा एक आदमी का प्रवेश हुआ. उस का नाम ललित था. वह भी अंगरेजी का लैक्चरर था. मगर उस ने पीएचडी नहीं की थी. सिर्फ एमफिल किया था. पहली मुलाकात में ही मुझे मालूम हो गया कि वह भी मेरी तरह मध्यवर्गीय परिवार का है और उस की एक मां और बहन है. उस ने कहा कि उस के पिता कई साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं और मां और बहन दोनों की जिम्मेदारी उसी पर है.

पहले कुछ महीने हमारे बीच दोस्ती थी. हमारे कालेज के पास एक अच्छा कैफे था. हम दोनों रोज वहां कौफी पीने जाते. इसी दौरान एक दिन उस ने मुझे अपने घर बुलाया. वह एक छोटे से फ्लैट में रहता था. उस की मां ने मेरी खूब खातिरदारी की और उस की बहन जो कालेज में पढ़ती थी वह भी मेरे से बड़ी इज्जत से पेश आई. इसी दौरान एक दिन ललित ने मुझ से कहा, ‘‘उर्मी, क्या आप मेरे साथ कौफी पीने के लिए आएंगी?’’उस का इस तरह पूछना मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, मगर फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कोई खास बात है जो मुझे कौफी पीने को बुला रहे हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, बस ऐसा ही समझ लीजिए.’’

शाम कालेज खत्म होने के बाद हम दोनों कौफी शौप में गए और एक कोने में जा कर बैठ गए. मैं ने उस के चेहरे को देख कर कहा, ‘‘हां, बोलो ललित क्या बात करनी है मुझ से?’’ ललित ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा, ‘‘उर्मी, मैं बातों को घुमाना नहीं चाहता हूं. मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम्हें भी मंजूर है, तो मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ यह सुन कर मुझे सच में झटका लगा. मुझे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि ललित इस तरह मुझ से पूछेगा.

मैं ने ललित के बारे में बहुत सोचा. मुझे तब तक मालूम हो चुका कि मेरे पास जो पैसे हैं वे मेरी शादी के लिए बहुत कम हैं और फिर मेरी मां को भी अपनाने वाला दूल्हा मिलना लगभग नामुमकिन ही था. इस बारे में मेरे दिल ने नहीं दिमाग ने निर्णय लिया और मैं ने ललित को अपनी मंजूरी दे दी. उस के बाद हर हफ्ते हम रविवार को हमारे घर के सामने वाले पार्क में मिलते. इसी बीच यकायक ललित 3 दिन की छुट्टी पर चला गया. ललित चौथे दिन कालेज आया. उस का चेहरा उतरा हुआ था. शाम को हम दोनों पार्क में जा कर बैठ गए. मुझे मालूम था कि ललित मुझ से कुछ कहना चाह रहा, मगर कह नहीं पा रहा.  फिर उस ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो उर्मी… मैं ने खुद ही तुम से प्यार का इजहार किया था और अब मैं ही इस रिश्ते से पीछे हट रहा हूं. तुम्हें मालूम है कि मेरी एक बहन है. वह किसी लड़के से प्यार करती है और उस लड़के की एक बिन ब्याही बहन है. उन लोगों ने साफ कह दिया कि अगर मैं उन की लड़की से शादी करूं तो ही वे मेरी बहन को अपनाएंगे. मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं रहा.’’

मैं 1 मिनट के लिए चुप रही. फिर कहा, ‘‘फैसला ले ही लिया तो अब किस बात का डर… शादी मुबारक हो ललित,’’ और फिर घर चली आई. 1 महीने में ललित और उस की बहन की शादी धूमधाम से हो गई. अब ललित कालेज की नौकरी छोड़ कर अपनी ससुराल की कंपनी में काम करने लगा. अब मनोहर से मेरी शादी हुए 1 महीना हो गया है. मेरी ससुराल वालों ने मेरे पति को मेरे साथ मेरे फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी ताकि मेरी मां को भी हमारा सहारा मिल सके. इस नई जिंदगी से मुझे कोई शिकायत नहीं. मेरे पति एक अच्छे इनसान हैं. मुझे किसी भी बात को ले कर परेशान नहीं करते हैं. मेरी बहुत इज्जत करते हैं. औरतों को पूरा सम्मान देते हैं. उन का यह स्वभाव मुझे बहुत अच्छा लगा. ‘‘उर्मी जल्दी से तैयार हो जाओ. हमारी शादी के बाद तुम पहली बार मेरे दफ्तर की पार्टी में चल रही हो. आज की पार्टी खास है, क्योंकि हमारे मालिक के बेटे दिल्ली से मुंबई आ रहे हैं. तुम उन से भी मिलोगी.’’

जब हम पार्टी में पहुंचे तो कई लोग आ चुके थे. मेरे पति ने मुझे सब से मिलवाया. इतने में किसी ने कहा चेयरमैन साहब आ गए. उन्हें देख कर एक क्षण के लिए मेरी सांस रुक गई. चेयरमैन कोई और नहीं शेखर ही था. तभी सभी को नमस्कार कहते हुए शेखर मुझे देख कर 1 मिनट के लिए चौंक गया.

मेरे पति ने उस से कहा, ‘‘मेरी बीवी है सर.’’

शेखर ने हंसते हुए कहा, ‘‘मुबारक हो… शादी कब हुई?’’ मेरे पति उस के सवालों के जवाब देते रहे और फिर वह चला गया. कुछ देर बाद शेखर के पी.ए. ने आ कर कहा, ‘‘मैडम, चेयरमैन साहब आप को बुला रहे हैं अकेले.’’ मैं ने चुपके से अपने पति के चेहरे को देखा. पति ने भी सिर हिला कर मुझे जाने का इशारा किया. शेखर एक बड़ी मेज के सामने बैठा था. मैं उस के सामने जा कर खड़ी हो गई.

शेखर ने मुझे देख कर कहा, ‘‘आओ उर्मी, प्लीज बैठो.’’

मैं उस के सामने बैठ गई. शेखर ने कहा, ‘‘मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं. मैं सीधे मुद्दे पर आ जाऊंगा… मैं हमारी पुरानी दोस्ती को फिर से शुरू करना चाहता हूं बिलकुल पहले जैसे. मैं तुम्हारे पति का दिल्ली में तबादला कर दूंगा. अगर तुम चाहती हो तो तुम्हें दिल्ली के किसी कालेज में लैक्चरर की नौकरी दिला दूंगा.’’ वह ऐसे बोलता रहा जैसे मैं ने उस की बात मान ली. मगर मैं उस वक्त कुछ नहीं कह सकी. चुपचाप लौट कर पति के सामने आ कर बैठ गई. कुछ भी नहीं बोली. टैक्सी से लौटते समय भी कुछ नहीं पूछा उन्होंने. घर लौटने के बाद मेरे पति ने मुझ से कुछ भी नहीं पूछा. मगर मैं ने उन से सारी बातें कहने का फैसला कर लिया. पति ने मेरी सारी बातें चुपचाप सुनीं. मैं ने उन से कुछ नहीं छिपाया.

मेरी आंखों से आंसू आने लगे. मेरे पति ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘उर्मी, तुम ने कुछ गलत नहीं किया. हम सब के अतीत में कुछ न कुछ हुआ होगा. अतीत के पन्नों को दोबारा खोल कर देखना बेकार की बात है. कभीकभी न चाहते हुए भी नहीं कर सकते… मैं कल ही अपना इस्तीफा दे दूंगा. दूसरी नौकरी ढूंढ़ लूंगा. तुम चिंता करना छोड़ो और सो जाओ. हर कदम मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ और फिर मुझे बांहों में भर लिया. उन की बांहों में मुझे फील हुआ कि मैं महफूज हूं. इस के अलावा और क्या चाहिए एक पत्नी को?

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Inspirational Hindi Stories :  10वीं क्लास तक स्मिता पढ़ने में बहुत तेज थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, पर 10वीं के बाद उसके कदम लड़खड़ाने लगे थे. उस को पता नहीं क्यों पढ़ाईलिखाई के बजाय बाहर की दुनिया अपनी ओर खींचने लगी थी. इन्हीं सब वजहों के चलते वह पास में रहने वाली अपनी सहेली सीमा के भाई सपन के चक्कर में फंस गई थी. वह अकसर सीमा से मिलने के बहाने वहां जाती और वे दोनों खूब हंसीमजाक करते थे.

एक दिन सपन ने स्मिता से पूछा, ‘‘तुम ने कभी भूतों को देखा है?’’

‘‘तुम जो हो… तुम से भी बड़ा कोई भूत हो सकता है भला?’’ स्मिता ने हंसते हुए मजाकिया लहजे में जवाब दिया.

सपन को ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी, इसलिए अपनी बात को आगे रखते हुए पूछा, ‘‘चुड़ैल से तो जरूर सामना हुआ होगा?’’

‘‘नहीं, ऐसा कभी नहीं हुआ है. तुम न जाने क्या बोले जा रहे हो,’’ स्मिता ने खीजते हुए कहा.

तब सपन उसे एक कमरे में ले कर गया और कहा, ‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो…’’ कहते हुए स्मिता को कुरसी पर बैठा कर उस का हाथ उठा कर हथेली को चेहरे के सामने रखने को कहा, फिर बोला, ‘‘बीच की उंगली को गौर से देखो…’’ आगे कहा, ‘‘अब तुम्हारी उंगलियां फैल रही हैं और आंखें भारी हो रही हैं.’’

स्मिता वैसा ही करती गई और वही महसूस करने की कोशिश भी करती गई. थोड़ी देर में उस की आंखें बंद हो गईं. फिर स्मिता को एक जगह लेटने को बोला गया और वह उठ कर वहां लेट गई.

सपन ने कहा, ‘‘तुम अपने घर पर हो. एक चुड़ैल तुम्हारे पीछे पड़ी है. वह तुम्हारा खून पीना चाहती है. देखो… देखो… वह तुम्हारे नजदीक आ रही है. स्मिता, तुम डर रही हो.’’

स्मिता को सच में चुड़ैल दिखने लगी. वह बुरी तरह कांप रही थी. तभी सपन बोला, ‘‘तुम्हें क्या दिख रहा है?’’

स्मिता ने जोकुछ भी देखा या समझने की कोशिश की, वह डरतेडरते बता दिया. वह यकीन कर चुकी थी कि चुड़ैल जैसा डरावना कुछ होता है, जो उस को मारना चाहता है.

‘‘प्लीज, मुझे बचाओ. मैं मरना

नहीं चाहती,’’ कहते हुए वह जोरजोर से रोने लगी.

सपन मन ही मन बहुत खुश था. सबकुछ उस की सोच के मुताबिक चल रहा था.

सपन ने बड़े ही प्यार से कहा, ‘‘डरो नहीं, मैं हूं न. मेरे एक जानने वाले पंडित हैं. उन से बात कर के बताता हूं. ऐसा करो कि तुम 2 घंटे में मुझे यहीं मिलना.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए जैसे ही स्मिता मुड़ी, सपन ने उसे टोका, ‘‘और हां, तुम को किसी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है. मुझ पर यकीन रखना. सब सही होगा.’’

स्मिता घर तो आ गई, पर वे 2 घंटे बहुत ही मुश्किल से कटे. पर उसे सपन पर यकीन था कि वह कुछ न कुछ तो जरूर करेगा.

जैसे ही समय हुआ, स्मिता फौरन सपन के पास पहुंच गई.

सपन तो जैसे इंतजार ही कर रहा था. उस को देखते ही बोला, ‘‘स्मिता, काम तो हो जाएगा, पर…’’

‘‘पर क्या सपन?’’ स्मिता ने डरते हुए पूछा.

‘‘यही कि इस काम के लिए कुछ रुपए और जेवर की जरूरत पड़ेगी. पंडितजी ने खर्चा बताया है. तकरीबन 5,000 रुपए मांगे हैं. पूजा करानी होगी.’’

‘‘5,000 रुपए? अरे, मेरे पास तो 500 रुपए भी नहीं हैं और मैं जेवर कहां से लाऊंगी?’’ स्मिता ने अपनी बात रखी.

‘‘मैं नहीं जानता. मेरे पास तुम्हें चुड़ैल से बचाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है,’’ थोड़ी देर कुछ सोचने का दिखावा करते हुए सपन बोला, ‘‘तुम्हारी मां के जेवर होंगे न? वे ले आओ.’’

‘‘पर… कैसे? वे तो मां के पास हैं,’’ स्मिता ने कहा.

‘‘तुम्हें अपनी मां के सब जेवर मुझे ला कर देने होंगे…’’ सपन ने जोर देते हुए कहा, ‘‘अरे, डरती क्यों हो? काम होने पर वापस ले लेना.’’

स्मिता बोली, ‘‘वे मैं कैसे ला सकती हूं? उन्हें तो मां हर वक्त अपनी तिजोरी में रखती हैं.’’

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम यह सब कैसे करोगी. लेकिन तुम को करना ही पड़ेगा. मुझे उस चुड़ैल से बचाने की पूजा करनी है, नहीं तो वह तुम्हें जान से मार देगी.

‘‘अगर तुम जेवर नहीं लाई तो बस समझ लो कि तब मैं तुम्हें जान से मार दूंगा, क्योंकि पंडित ने कहा है कि तुम्हारी जान के बदले वह चुड़ैल मेरी जान ले लेगी और मुझे अपनी जान थोड़े ही देनी है.’’

उसी शाम स्मिता ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आज मैं आप का हार पहन कर देखूंगी.’’

स्मिता की मां बोलीं, ‘‘चल हट पगली कहीं की. हार पहनेगी. बड़ी तो हो जा. तेरी शादी में तुझे दे दूंगी.’’

स्मिता को रातभर नींद नहीं आई. थोड़ा सोती भी तो अजीबअजीब से सपने दिखाई देते.

अगले दिन सीमा स्मिता के पास आ कर बोली, ‘‘भैया ने जो चीज तुझ से मंगवाई थी, अब उस की जरूरत नहीं रह गई है. वे सिर्फ तुम्हें बुला रहे हैं.’’

जब स्मिता ने यह सुना तो उसे बहुत खुशी हुई. वह भागती हुई गई तो सपन उसे एक छोटी सी कोठरी में ले गया और बोला, ‘‘अब जेवर की जरूरत नहीं रही. चुड़ैल को तो मैं ने काबू में कर लिया है. चल, तुझे दिखाऊं.’’

स्मिता ने कहा, ‘‘मैं नहीं देखना चाहती.’’

सपन बोला, ‘‘तू डरती क्यों है?’’

यह कह कर उस ने स्मिता का चुंबन ले लिया. स्मिता को उस का चुंबन लेना अच्छा लगा.

थोड़ी देर बाद सपन बोला, ‘‘आज रात को जब सब सो जाएं तो बाहर के दरवाजे की कुंडी चुपचाप से खोल देना. समझ तो गई न कि मैं क्या कहना चाहता हूं? लेकिन किसी को पता न चले, नहीं तो तेरे पिताजी तेरी खाल उतार देंगे.’’

स्मिता ने एकदम से पूछा, ‘‘इस से क्या होगा?’’

सपन ने कहा, ‘‘जिस बात की तुम्हें समझ नहीं, उसे जानने से क्या होगा?’’

स्मिता ने सोचा, ‘जेवर लाने का काम बड़ा मुश्किल था. लेकिन यह काम तो फिर भी आसान है.’

‘‘अगर तू ने यह काम नहीं किया तो चुड़ैल तेरा खून पी जाएगी,’’ सपन ने एक बार फिर डराया.

तब स्मिता ने कहा, ‘‘यह तो बताओ कि दरवाजा खोलने से होगा क्या?’’

‘‘अभी नहीं कल बताऊंगा. बस तुम कुंडी खोल देना,’’ सपन ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

‘‘खोल दूंगी,’’ स्मिता ने चलते हुए कहा.

‘‘ठाकुरजी को हाथ में ले कर बोलो कि जैसा मैं बोल रहा हूं, तुम वही करोगी?’’ सपन ने जोर दे कर कहा.

स्मिता ने ठाकुर की मूर्ति को हाथ में ले कर कहा, ‘‘मैं दरवाजा खोल दूंगी.’’

पर सपन को तो अभी भी यकीन नहीं था. पता नहीं क्यों वह फिर से बोला, ‘‘मां की कसम है तुम्हें.

कसम खा?’’

आज न जाने क्यों स्मिता बहुत मजबूर महसूस कर रही थी. वह धीरे से बोली, ‘‘मां की कसम.’’

जब स्मिता घर गई तो उस की मां ने पूछा, ‘‘तेरा मुंह इतना लाल क्यों हो रहा है?’’

जब मां ने स्मिता को छू कर देखा तो उसे तेज बुखार था. उन्होंने स्मिता को बिस्तर पर लिटा दिया. शाम के शायद 7 बजे थे.

स्मिता के पिता पलंग पर बैठे हुए खाना खा रहे थे. स्मिता पलंग पर पड़ीपड़ी बड़बड़ाए जा रही थी.

जब स्मिता को थर्मामीटर लगाया गया, उस को 102 डिगरी बुखार था. रात के 9 बजतेबजते स्मिता की हालत बहुत खराब हो गई. फौरन डाक्टर को बुलाया गया. स्मिता को दवा दी गई.

स्मिता के पिताजी के दोस्त भी आ गए थे. स्मिता फिर भी बड़बड़ाए जा रही थी, पर उस पर किसी परिवार वाले का ध्यान नहीं जा रहा था.

स्मिता को बिस्तर पर लेटेलेटे, सिर्फ दरवाजा और उस की कुंडी ही दिखाई दे रही थी या उसे चुड़ैल का डर दिखाई दे रहा था. कभीकभी उसे सपन का भी चेहरा दिखाई पड़ता था. उसे लग रहा था, जैसे चारों लोग उसी के आसपास घूम रहे हैं और तभी वह जोर से चीखी, ‘‘मां, मुझे बचाओ.’’

‘‘क्या बात है बेटी?’’ मां ने घबरा कर पूछा.

‘‘दरवाजे की कुंडी खोल दो मां. मां, तुम्हें मेरी कसम. दरवाजे की कुंडी खोल दो, नहीं तो चुड़ैल मुझे मार देगी.

‘‘मां, तुम दरवाजे को खोल दो. मां, मैं अच्छी तो हो जाऊंगी न? मां तुम्हें मेरी कसम,’’ स्मिता बड़बड़ाए जा

रही थी.

स्मिता के पिताजी ने कहा, ‘‘लगता है, लड़की बहुत डरी हुई है.’’

स्मिता की बत्तीसी भिंच गई थी. शरीर अकड़ने लगा था. यह सब स्मिता को नहीं पता चला. वह बारबार उठ कर भाग रही थी, जोरजोर से चीख रही थी, ‘‘मां, दरवाजा खोल दो. खोल दो, मां. दरवाजा खोल दो,’’ और उस के बाद वह जोरजोर से रोने लगी.

मां ने कहा, ‘‘बेटी, बात क्या है? बता तो सही? क्या सपन ने कहा है ऐसा करने को?’’

‘‘हां मां, खोल दो नहीं तो एक चुड़ैल आ कर मेरा खून पी जाएगी,’’ स्मिता ने डरी हुई आवाज में कहा.

अब उस के पिताजी के कान खड़े हो गए. उन्होंने फिर से पूछा, ‘‘साफसाफ बताओ, बात क्या है?’’

‘‘पिताजी, मुझे अपनी गोद में लिटा लीजिए, नहीं तो मैं…

‘‘पिताजी, सपन ने कहा है कि जब सब सो जाएं तो चुपके से दरवाजा खोल देना. अगर दरवाजा नहीं खोला तो चुड़ैल मेरा खून पी जाएगी.’’

वहीं ड्राइंगरूम में बैठेबैठे ही स्मिता के पिताजी ने किसी को फोन किया था. शायद पुलिस को. थोड़ी देर में कुछ पुलिस वाले सादा वरदी में एकएक कर के चुपचाप उस के मकान में आ कर दुबक गए और दरवाजे की कुंडी खोल दी गई.

रात के तकरीबन 2 बजे जब स्मिता तकरीबन बेहोशी में थी तो उसे कुछ शोर सुनाई दे रहा था. पर तभी वह बेहोश हो गई. आगे क्या हुआ ठीक से उस को मालूम नहीं. पर जब उसे होश आया तो घर वालों ने बताया कि 5 लोग पकड़े गए हैं.

सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह कि इन पकड़े गए लोगों में से एक सपन और एक चोरों के गैंग का आदमी भी था जिस के ऊपर सरकारी इनाम था.

बाद में वह इनाम स्मिता को मिला. स्मिता 10 दिनों के बाद अच्छी हो गई.

अब स्मिता के अंदर इतना आत्मविश्वास पैदा हो गया था कि एक क्या वह तो कई चुड़ैलों की गरदन पकड़ कर तोड़ सकती थी.

Hindi Moral Tales : सोने का घाव

Hindi Moral Tales : जैसे ही मैं अपने कमरे से बाहर निकली, अन्नामां, जो मम्मी के कमरे में उन्हें नाश्ता करा रही थी, कहने लगी, ‘‘मलीहा बेटी, बीबी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्होंने नाश्ता नहीं किया. बस, चाय पी है.’’

मैं जल्दी से मम्मी के कमरे में गई. कल से कमजोर लग रही थीं, पेट में दर्द बता रही थीं, आज तो ज्यादा ही निढाल लग रही थीं. मैं ने अन्नामां से कहा, ‘‘अम्मी के बाल संवारो, उन्हें जल्द तैयार करो. मैं गाड़ी गेट पर लगाती हूं.’’

मम्मी को ले कर हम दोनों अस्पताल पहुंचे. जांच होने पर पता लगा कि हार्ट अटैक है. उन का इलाज शुरू हो गया. इस खबर ने जैसे मेरी जान ही निकाल दी पर अगर मैं हिम्मत हार जाती तो यह सब कौन संभालता. मैं ने खुद को कंट्रोल किया, अपने आंसू पी लिए. इस वक्त पापा बेहद याद आए.

मेरे पापा बहुत मोहब्बत करने वाले, केयरिंग व्यक्ति थे. उन की मृत्यु एक ऐक्सिडैंट में हो गई थी. मुझ से बड़ी बहन अलीना बाजी, जिन की शादी हैदराबाद में हुई थी, का 3 साल का एक बेटा है. मैं ने उन्हें फोन कर के खबर देना जरूरी समझा.

मैं आईसीयू में गई. डाक्टर ने काफी तसल्ली दी, ‘‘इंजैक्शन लग चुके हैं, इलाज शुरू है, खतरे की कोई बात नहीं है. अभी दवाओं के असर में सो रही हैं, आराम उन के लिए जरूरी है, उन्हें डिस्टर्ब न करें.’’

मैं ने बाहर आ कर अन्नामां को घर भेज दिया और खुद वेटिंगरूम में जा कर एक कोने में बैठ गई. अच्छा था वेटिंगरूम, काफी खाली था. सोफे पर आराम से बैठ कर मैं ने अलीना बाजी को फोन लगाया. मेरी आवाज सुन कर बड़े ही रूखे अंदाज में सलाम का जवाब दिया. मैं ने अपने गम समेटते हुए आंसू पी कर उन्हें मम्मी के बारे में बताया. वे परेशान हो गईं, कहां, ‘‘मैं जल्द पहुंचने की कोशिश करती हूं.’’

बिना मुझे तसल्ली का एक शब्द कहे उन्होंने फोन बंद कर दिया. मेरे दिल को बड़ा सदमा लगा. मेरी यह वही बहन थी जो मुझे बेइंतहा प्यार करती थी. मेरी जरा सी उदासी पर दुनिया के जतन कर डालती थी. इतनी चाहत, इतनी मोहब्बत के बाद यह बेरुखी. मेरी आंखें आंसुओं से भर गईं. मैं अतीत में खो गई.

पापा की मौत को थोड़ा समय ही गुजरा था कि मुझ पर एक कयामत टूट पड़ी. पापा ने बहुत देखभाल कर एक अच्छे खानदान में मेरी शादी करवाई थी. शादी काफी शानदार हुई थी. मैं बड़े अरमान ले कर ससुराल गई. मैं ने एमबीए किया था और एक अच्छी कंपनी में जौब कर रही थी. शादी के पहले ही जौब करने के बारे में बात हो गईर् थी. उन लोगों को मेरे जौब करने पर एतराज न था. वे लोग भी मिडिल क्लास के थे. उन की 2 बेटियां थीं, जिन की शादी होनी थी. मुझ नौकरी करने वाली बहू का अच्छा स्वागत हुआ.

मेरी सास अच्छे मिजाज की थीं. मुझ से काफी अच्छा व्यवहार करती थीं. ससुर भी स्नेह रखते थे. मेरे पति देखने में सामान्य थे जबकि मैं खूबसूरत थी. कभीकभी उन की बातों में खुद को ले कर हीनभावना झलकती थी.

शादी के 2-3 महीने के बाद पति का असली रंग खुल कर सामने आ गया. मुझे ले कर नएनए शक उन के दिल में पनपने लगे. पूरे वक्त उन्हें लगता कि मैं उन से बेवफाई कर रही हूं. जराजरा सी बात पर नाराज हो जाते, झगड़ना शुरू कर देते. पर इसे मैं उन का कौंपलैक्स समझ कर टालती रही, निबाह करती रही.

मगर एक दिन तो हद कर दी उन्होंने. मुझे मेरे बौस के साथ एक मीटिंग में जाते देख लिया था. शाम को घर आने पर जबरदस्त हंगामा खड़ा कर दिया. मुझ पर बेवफाई व बदकिरदारी का इलजाम लगाया. कई लोगों के साथ मेरे ताल्लुक जोड़ दिए.

ऐसे वाहियात इलजाम सुन कर मैं गुस्से से पागल हो उठी और फैसला कर लिया कि यहां जिऊंगी तो इज्जत के साथ, वरना जुदाई बेहतर है. मैं ने सख्त लहजे में कहा, ‘नादिर, अगर आप का रवैया ऐसा ही रहा तो मेरा आप के साथ रहना मुश्किल होगा. आप को अपने लगाए इलजामों के सुबूत देने पड़ेंगे. मुझ पर आप ऐसे फालतू इलजाम नहीं लगा सकते.’

सासससुर ने अपने बेटे को समझाने की कोशिश की. लेकिन वे गुस्से से उफनते हुए बोले, ‘मुझे कुछ साबित करने की जरूरत नहीं. मुझे सब पता है. तुम जैसी आवारा औरतों को घर में नहीं रखा जा सकता. मुझे बदलचन औरतों से नफरत है. मैं ऐसी औरत के साथ नहीं रह सकता. मैं तुम्हें तलाक देता हूं, तलाक देता हूं, तलाक देता हूं.’

और सबकुछ पलभर में खत्म हो गया. मैं मम्मी के पास आ गई. उन पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. मेरे अहं, मेरे चरित्र पर चोट पड़ी थी. मेरे चरित्र पर लांछन लगाए गए थे. मैं ने धीरेधीरे खुद को संभाल लिया क्योंकि मैं कुसूरवार न थी. यह मेरी इज्जत और अस्मिता की लड़ाई थी. 20-25 दिनों की छुट्टी करने के बाद मैं ने जौब पर जाना शुरू कर दिया.

संभल तो गई मैं, पर खामोशी व उदासी मेरे साथी बन गए. मम्मी मेरा बेहद खयाल रखती थीं. बड़ी बहन अलीना भी आ गईं. वे हर तरह से मुझे ढाढ़स बंधातीं. काफी दिन रुकीं. जिंदगी अपने रूटीन पर आ गई. अलीना बाजी ने इस संकट से निकलने में बड़ी मदद दी. मैं काफी हद तक सामान्य हो गई थी.

उस दिन छुट्टी थी. अम्मी ने 2 पुराने गावतकिए (दीवान के गोल तकिए) निकाले और कहा, ‘ये तकिए काफी सख्त हो गए हैं, इन में नई रुई भर देते हैं.’

मैं ने पुरानी रुई निकाल कर नीचे डाल दी. मैं और अलीना बाजी तख्त पर रखी नई रुई साफ कर रहे थे. मम्मी उसी वक्त कमरे से आ कर हमारे पास ही बैठ गईं. उन के हाथ में एक प्यारी सी चांदी की डब्बी थी. मम्मी ने खोल कर दिखाई. उस में बेपनाह खूबसूरत एक जोड़ी जड़ाऊ कर्णफूल थे. जिस पर पन्ना और रूबी की बड़ी खूबसूरत जड़न थी. इतनी चमक और महीन कारीगरी थी कि हम देखते ही रह गए.

अलीना बाजी की आंखें कर्णफूलों की तरह जगमगाने लगीं. उन्होंने बेचैनी से पूछा, ‘मम्मी ये किस के हैं?’ मम्मी बोलीं, बेटा, ये तुम्हारी दादी के हैं. उन्होंने ये कर्णफूल और माथे का जड़ाऊ झूमर मुझे दिया था. माथे का झूमर मैं ने शादी में तुम्हें दे दिया. अब ये कर्णफूल हैं, इन्हें मैं मलीहा को देना चाहती हूं. दादी की यादगार निशानियां तुम दोनों बहनों के पास रहेगीं, ठीक है न.’

अलीना बाजी के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. उन्हें जेवरों का जनून की हद तक शौक था, खासकर एंटीक ज्वैलरी की तो जैसे वे दीवानी थीं. जरा सा गुस्से से वे बोलीं, ‘मम्मी, आप ने ज्यादती की, खूबसूरत और बेमिसाल चीज आप ने मलीहा के लिए रख दी. मैं बड़ी हूं, आप को कर्णफूल मुझे देने चाहिए थे.’

मम्मी ने समझाया, ‘बेटी, तुम बड़ी हो, इसलिए कुंदन का सैट तुम्हें अलग से दिया था, साथ में, दादी का झूमर और एक सोने का सैट दिया था. मलीहा को एक सोने का ही सैट दिया था, उसे मैं ने कर्णफूल (टौप्स) भी उस वक्त नहीं दिए थे. अब दे रही हूं. तुम खुद सोच कर बताओ, क्या गलत किया मैं ने.’

अलीना बाजी अपनी ही बात कहती रहीं. मम्मी के बहुत समझाने पर कहने लगीं, ‘अच्छा, मैं दादी वाला झूमर मलीहा को दे दूंगी, तब आप ये कर्णफूल मुझे दे दीजिएगा. अगली बार मैं आऊंगी, तो झूमर ले कर आऊंगी और कर्णफूल ले जाऊंगी.’

मम्मी ने बेबसी से मेरी तरफ देखा. मेरे सामने अजीब दोराहा था. बहन की मोहब्ब्त या कर्णफूल, मैं ने दिल की बात मानी और कहा, ‘ठीक है बाजी, अगली बार झूमर मुझे दे देना और आप ये कर्णफूल ले कर जाना.’

मम्मी को यह बात पसंद नहीं आई. पर क्या करतीं, चुप रहीं. अभी ये सब बातें चल ही रही थीं कि घंटी बजी. मम्मी ने जल्दी से कर्णफूल और डब्बी तकिए के नीचे रख दी. पड़ोस की आंटी कश्मीरी सूट वाले को ले कर आईर् थीं. हम सब सूट व शौल वगैरह देखने लगे. काफी अच्छे थे, कीमतें भी सही थीं. हम ने 2-3 सूट लिए. उन के जाने के बाद मम्मी ने वह चांदी की डब्बी निकाल कर दी और कहा, ‘मलीहा, इसे संभाल कर अलमारी में रखे दो.’ मैं डब्बी रख कर आई. फिर हम ने जल्दीजल्दी तकिए के खोलों में रुई भर दी. उन्हें सी कर तैयार कर कवर चढ़ा दिए और दीवान पर रख दिए. 3-4 दिनों बाद अलीना बाजी चली गईं. जातेजाते मुझे याद करा गईं, ‘मलीहा, अगली बार मैं कर्णफूल ले कर जाऊंगी, भूलना मत.’

दिन अपने अंदाज में गुजर रहे थे. एक शादी में शामिल होने चाचाचाची, उन के बच्चे आए. 5-6 दिन रहे. घर में खूब रौनक रही. खूब घूमेफिरे. चाची मेरी मम्मी को कम ही पसंद करती थीं क्योंकि मेरी मम्मी दादी की चहेती बहू थीं. दादी ने अपनी खास चीजें भी मम्मी को दी थीं. चाची की दोनों बेटियों से मेरी खूब बनती थी, हम ने खूब एंजौय किया.

नादिर की मम्मी 2-3 बार आईं. बहुत माफी मांगी, बहुत कोशिश की कि इस मसले का कोई हल निकल जाए, पर जब अहं और चरित्र पर चोट पड़ती है तो औरत बरदाश्त नहीं कर पाती. मैं ने किसी भी तरह के समझौते से साफ इनकार कर दिया.

अलीना बाजी के बेटे की सालगिरह फरवरी में थी. उन्होंने फोन कर के कहा कि वे अपने बेटे अशर की सालगिरह नानी के घर में मनाएंगी. मैं और मम्मी बहुत खुश हुए. बड़े उत्साह से पूरे घर को ब्राइट कलर से पेंट करवाया. कुछ नया फर्नीचर भी लिया. एक हफ्ते बाद अलीना बाजी अपने शौहर समर के साथ आ गईं. घर की डैकोरेशन देख कर बहुत खुश हुईं.

सालगिरह के दिन सुबह से ही सारे काम शुरू हो गए. दोस्तोंरिश्तेदारों सब को बुलाया था. मैं और मम्मी नाश्ते के बाद अरेंजमैंट के बारे में बातें करने लगे. खाना और केक बाहर से और्डर पर बनवाया था. उसी वक्त अलीना बाजी आईं, मम्मी से कहने लगीं, ‘मम्मी, लीजिए, आप यह झूमर संभाल कर रख लीजिए और मुझे कर्णफूल दे दीजिए. आज मैं अशर की सालगिरह में पहनूंगी.’ अम्मी ने मुझ से कहा, ‘जाओ मलीहा, वह डब्बी निकाल कर ले आओ.’ मैं ने डब्बी ला कर मम्मी के हाथ पर रख दी. बाजी ने बेसब्री से डब्बी उठा कर खोली. डब्बी खोलते ही वे चीख पड़ीं, ‘मम्मी, कर्णफूल तो इस में नहीं हैं.’

मम्मी ने झपट कर डब्बी उन के हाथ से ली. सच ही, डब्बी खाली पड़ी थी. मम्मी एकदम सन्न रह गईं. मेरे तो जैसे हाथपैरों की जान निकल गई. अलीना बाजी की आंखों में आंसू थे. उन्होंने ऐसी शकभरी नजरों से मुझे देखा कि मुझे लगा, काश, जमीन फट जाए और मैं उस में समा जाऊं. बाजी गुस्से में जा कर अपने कमरे में लेट गईं.

मैं ने और मम्मी ने अलमारी का कोनाकोना छान मारा, पर कहीं कर्णफूल न मिलें. अजब पहेली थी. मैं ने अपने हाथ से डब्बी अलमारी में रखी थी. उस के बाद कभी निकाली ही नहीं. फिर कर्णफूल गए कहां?

एक बार खयाल आया, ‘अभी चाचाचाची आए थे. और चाची दादी के जेवर की वजह से मम्मी से बहुत जलती थीं कि सब कीमती चीजें उन्होंने मम्मी को दी थीं. कहीं उन्होंने तो मौका देख कर, हक समझ कर निकाल लिए.’ मैं ने मम्मी से अपने मन की बात कही तो वे कहने लगीं, ‘मैं ऐसा नहीं सोचती कि वे ऐसा कर सकती हैं.’

फिर मेरा ध्यान घर पेंट करने वालों की तरफ गया. उन लोगों ने 3-4 दिनों काम किया था. भूल से कभी अलमारी खुली रह गई हो और उन्हें हाथ साफ करने का मौका मिल गया हो. मम्मी कहने लगीं, ‘नहीं बेटा, बिना देखे, बिना सुबूत के किसी पर इलजाम लगाना गलत है. जो चीज जानी थी वह चली गई. बेवजह किसी पर इलजाम क्यों लगाएं.’

सालगिरह का दिन बेरंग हो गया. किसी का दिलदिमाग ठिकाने न था. अलीना बाजी के हस्बैंड समर भाई ने परिस्थिति संभाली. सब काम ठीकठाक हो गए. दूसरे दिन अलीना बाजी ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. मम्मी ने हर तरह से समझाया, कई तरह की दलीलें दीं. समरभाई ने भी समझाया, पर वे रुकने को तैयार न हुईं. मैं ने उन्हें कसम खा कर यकीन दिलाना चाहा, ‘मैं बेकुसूर हूं. कर्णफूल गायब होने में मेरा कोई हाथ नहीं है.’

उन्हें किसी बात पर यकीन न आया. उन के चेहरे पर छले जाने के भाव देखे जा सकते थे. शाम को वे चली गईं. पूरे घर में एक बेबस सी उदासी पसर गई. मेरे दिल पर अजब सा बोझ था. मैं अलीना बाजी से शर्मिंदा थी कि अपना वादा निभा न सकी.

पिछले 2 सालों में अलीना बाजी सिर्फ 2 बार मम्मी से मिलने आईं वह भी 2-3 दिनों के लिए. आने पर मुझ से तो बात ही न करतीं. मैं ने बहन के साथसाथ एक अच्छी दोस्त भी खो दी. बारबार सफाई देना फुजूल था. मैं ने चुप्पी साध ली. मेरी खामोशी ही शायद मेरी बेगुनाही की जबां बन जाए. वक्त बड़े से बड़ा जख्म भर देता है. शायद यह गम भी मंद पड़ जाए. हलकी सी आहट हुई और मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. सिर उठा कर देखा, नर्स खड़ी थी, कहने लगी, ‘‘पेशेंट आप से मिलना चाहती हैं.’’

मुंह धो कर मैं मम्मी के पास आईसीयू में गई. मम्मी काफी बेहतर थीं. मुझे देख कर उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट आ गई. वे मुझे समझाने लगीं, ‘‘बेटी, तुम परेशान न हो. उतारचढ़ाव तो जिंदगी में आते रहते हैं. उन का हिम्मत से मुकाबला कर के ही हराया जा सकता है.’’

मैं ने उन्हें हलका सा नाश्ता कराया. डाक्टर ने कहा, ‘‘उन की हालत काफी ठीक है. आज रूम में शिफ्ट कर देंगे.

2-4 दिनों में छुट्टी कर देगें. पर दवा और परहेज का बहुत खयाल रखना पड़ेगा. ऐसी कोई बात न हो जिस से उन्हें स्ट्रैस पहुंचे.’’

शाम तक अलीना बाजी आ गईं. मुझ से सिर्फ सलामदुआ हुई. वे मम्मी के पास रुकीं, मैं घर आ गई. 3 दिनों बाद मम्मी भी घर आ गईं. अब उन की तबीयत अच्छी थी. हम उन्हें खुश रखने की ही कोशिश करते. एक हफ्ता तो मम्मी को देखने आने वालों में गुजर गया. मैं ने भी औफिस जौइन कर लिया. मम्मी के बहुत कहने पर बाजी ज्यादा रुकने को राजी हो गईं. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. अब मम्मी भी हलकेफुलके काम कर लेती थीं.

अलीना बाजी और उन के बेटे की वजह से घर में अच्छी रौनक रहती. उस दिन छुट्टी थी, मैं घर की सफाई में जुट गई. मम्मी कहने लगीं, ‘‘बेटा, गावतकिए फिर बहुत सख्त हो गए हैं, एक बार खोल कर रुई तोड़ कर भर दो.’’ अन्नामां तकिए उठा लाईं. उन्हें खोलने लगी. फिर मैं और अन्नामां रुई तोड़ने लगीं. कुछ सख्त सी चीज हाथ को लगी, मैं ने झुक कर नीचे देखा. मेरी सांस जैसे थम गई. दोनों कर्णफूल रुई के ढेर में पड़े थे. होश जरा ठिकाने आए तो मैं ने कहा, ‘देखिए मम्मी, ये रहे कर्णफूल.’’

बाजी ने कर्णफूल उठा लिए और मम्मी के हाथ पर रख दिए. मम्मी का चेहरा खुशी से चमक उठा. जब दिल को यकीन आ गया कि कर्णफूल मिल गए और खुशी थोड़ी कंट्रोल में आई तो बाजी बोलीं, ‘‘ये कर्णफूल यहां कैसे?’’

मम्मी सोच में पड़ गईं, फिर रुक कर कहने लगीं, ‘‘मुझे याद आता है अलीना, उस दिन भी तुम लोग तकिए की रुई तोड़ रही थीं. तभी मैं कर्णफूल निकाल कर लाई थी. हम उन्हें देख रहे थे जब ही घंटी बजी थी. मैं जल्दी से कर्णफूल डब्बी में रखने गई, पर हड़बड़ी में घबरा कर डब्बी के बजाय रुई में रख दिए और डब्बी तकिए के पीछे रख दी थी. कर्णफूल रुई में दब कर छिप गए. कश्मीरी शौल वाले के जाने के बाद डब्बी मैं ने अलमारी में रखवा दी, लेकिन कर्णफूल रुई में दब कर रुई के साथ तकिए के अंदर चले गए और मलीहा ने तकिए सिल कर कवर चढ़ा कर रख दिए. हम समझते रहे, कर्णफूल डब्बी में अलमारी में सेफ रखे हैं.

‘‘जब अशर की सालगिरह के दिन अलीना ने तुम से कर्णफूल मांगे तो पता चला कि उस में कर्णफूल नहीं हैं और अलीना तुम ने सारा इलजाम मलीहा पर लगा दिया.’’ मम्मी ने अपनी बात खत्म कर के एक दुखभरी सांस छोड़ी.

अलीना के चेहरे पर पछतावा था. दुख और शर्मिंदगी से उस की आंखें भर आईं. वे दोनों हाथ जोड़ कर मेरे सामने खड़ी हो गईं. रूंधे गले से कहने लगीं, ‘‘मेरी बहन, मुझे माफ कर दो. बिना सोचेसमझे तुम पर दोष लगा दिया. पूरे 2 साल तुम से नाराजगी में बिता दिए. मेरी गुडि़या मेरी गलती माफ कर दो.’’

मैं तो वैसे भी प्यारमोहब्बत को तरसी हुई थी. जिंदगी के मरूस्थल में खड़ी हुई थी. मेरे लिए चाहत की एक बूंद अमृत के समान थी. मैं बाजी से लिपट कर रो पड़ी. आंसुओं में दिल में फैली नफरत व जलन की गर्द धुल गई. अम्मी कहने लगीं, ‘‘अलीना, मैं ने तुम्हें पहले भी समझाया था कि मलीहा पर शक न करो. वह कभी भी तुम से छीन कर कर्णफूल नहीं लेगी. उस का दिल तुम्हारी चाहत से भरा है. वह कभी तुम से छल नहीं करेगी.’’

बाजी शर्मिंदगी से बोलीं, ‘‘मम्मी, आप की बात सही है, पर एक मिनट मेरी जगह खुद को रख कर सोचिए, मुझे एंटीक ज्वैलरी का दीवानगी की हद तक शौक है. ये कर्णफूल बेशकीमत एंटीक पीस हैं. मुझे मिलना चाहिए थे पर आप ने मलीहा को दे दिया. मुझे लगा, मेरी इल्तजा सुन कर वह मान गई, फिर उस की नीयत बदल गई. उस की चीज थी, उस ने गायब कर दी. यह माना कि  ऐसा सोचना मेरी खुदगर्जी थी, गलती थी. इस की सजा के तौर पर मैं इन कर्णफूल को मलीहा को ही देती हूं. इन पर मलीहा का ही हक है.’’

मैं जल्दी से बाजी से लिपट गईर् और बोली, ‘‘ये कर्णफूल आप के पहनने से जो खुशी मुझे होगी वह खुद के पहनने से नहीं होगी. ये आप के हैं, आप ही लेंगी.’’

मम्मी ने भी समझाया, ‘‘बेटा, जब मलीहा इतनी मिन्नत कर रही है तो मान जाओ. मोहब्बत के रिश्तों के बीच दीवार नहीं आनी चाहिए.’’

‘‘रिश्ते फूलों की तरह नाजुक होते हैं, नफरत व शक की धूप उन्हें झुलसा देती है. फिर ये टूट कर बिखर जाते हैं,’’ यह कहते हुए मैं ने बाजी के कानों में कर्णफूल पहना दिए.

लेखिका- शकीला एस हुसैन

Famous Hindi Stories : अंधेरा आश्रम – साक्षी की इज्जत से खेलता बाबा

Famous Hindi Stories : गिरधारी लाल कसबे के बड़े कारोबारी थे. उन की पत्नी सुशीला देवी घर में पंडितों को भोज, पूजापाठ करवा कर आएदिन उन्हें दक्षिणा देती रहती थीं. वे आंख मींच कर पंडितों और बाबाओं पर भरोसा करती थीं. वे आएदिन व्रतउद्यापन कराती थीं, सो उन के घर में दूसरी सहेलियों का आनाजाना भी लगा रहता था. हर उद्यापन के पहले शहर के बड़े साड़ी स्टोर से आदमी नए फैशन की साडि़यां ले कर घर आता और सुशीला देवी खटाखट 15 एकजैसी साडि़यां बांटने के लिए निकाल लेतीं. फिर एक भारी साड़ी वे खुद के लिए पसंद करतीं और बहू इंद्रा को भी पुकारतीं और कहतीं कि तुम भी एक अच्छी साड़ी पसंद कर लो.

सुशीला देवी के घर में एक नामी बाबाजी का भी आनाजाना था. उन के आशीर्वाद के बिना तो घर का पत्ता भी नहीं हिलता था. कुछ भी नया काम हो, बाबाजी उस का मुहूर्त निकालते और हवन करते, फिर उस काम की शुरुआत होती. सुशीला देवी बाबाजी के आश्रम में जातीं और सेवा कर के आतीं. उन का विश्वास था कि घर में हर तरक्की बाबाजी के आशीर्वाद से होती है. हकीकत यह थी कि सुशीला देवी व उन के जैसे ही दूसरे भक्तों की मदद से बाबाजी का आश्रम हराभरा हो रहा था. जब सुशीला देवी सेवा के लिए जातीं, तो अपनी बेटी साक्षी को भी साथ ले जातीं. आश्रम में वे कहतीं, ‘‘बाबाजी के पैर छू कर आशीर्वाद लो बेटी.’’

बाबाजी भी साक्षी को आशीर्वाद देते और कहते, ‘‘देखना, हमारी साक्षी बेटी किसी राजा भोज को ब्याही जाएगी.’’ शकुंतला देवी बाबाजी के मुंह से शुभ वचन सुन कर धन्य हो जातीं. साक्षी निकली भी बहुत खूबसूरत. 4-5 साल बाद वह कालेज जाने लगी थी. जब इम्तिहान का समय आता, बाबाजी घर आते, साक्षी को आशीर्वाद देते. साक्षी भी उन की शख्सीयत से बहुत प्रभावित थी. कभीकभी अगर शकुंतला देवी सेवा के लिए न जा पातीं, तो वे साक्षी को भेज देतीं. सुशीला देवी की बहू इंद्रा पेट से हुई. सुशीला देवी तो बाबाजी के चरण पकड़ कर बैठ गईं और कहने लगीं, ‘‘कुछ ऐसा कीजिए बाबाजी, पहली बार में ही पोते का मुंह देखूं. पोता होते ही आप के पूरे आश्रम में एसी लगवाऊंगी.’’

बाबाजी ने बहू को पुकारा, ‘‘बेटी इंद्रा, जरा इधर आओ तो…’’

इंद्रा वहां आई. बाबाजी ने कुछ मंत्र बुदबुदाया और बहू को आशीर्वाद दिया. पोते की आस लिए सुशीला देवी जीजान से अपनी एकलौती बहू की सेवा में जुटी रहीं. सुबह उठते ही मक्खनमिश्री मिला कर बहू को दे देतीं और आंखें मटका कर कहतीं, ‘‘रोज खाया करो, मक्खन सा गोरा बेटा पैदा होगा.’’

एक दिन शकुंतला देवी ने साक्षी से कहा, ‘‘बेटी, आज बाबाजी के आश्रम में तुम चली जाओ, मुझे कुछ काम है. और देखो, रसोई में सूखे मेवे रखे हैं, उन्हें ले जाना नहीं भूलना. बाबाजी के आशीर्वाद से पोता ही होगा… देख लेना तुम लोग.’’ साक्षी भी मां के कहे मुताबिक बाबाजी की सेवा में जुटी रहती थी. बहू इंद्रा के दिन चढ़ रहे थे और सुशीला देवी की चिंता बढ़ती जा रही थी. उधर साक्षी पर बाबाजी की सेवा का काम बढ़ता जा रहा था. वह आश्रम में जा कर बाबाजी का बिस्तर लगाती, उन की खड़ाऊं जगह पर रखती, उन की किताबें जमाती, यह सब कर के वह अपनेआप को धन्य समझती.

साक्षी सारीसारी रात बाबाजी के आश्रम में बिताती. सुशीला देवी कुछ पूछतीं, तो वह कहती, ‘‘मां, आज आश्रम में अखंड मंत्र जाप था. सो, उठ कर बीच में नहीं आ सकती थी. मुंहअंधेरे बाबाजी को हवन करना था, इसलिए उस की तैयारी कर रही थी और देर हुई तो वहीं सो गई.’’ सशीला देवी भी चेहरे पर शांत भाव लाते हुए कहतीं, ‘‘हां बेटी, अच्छा ही है. हमारे घर में जो अच्छी आमदनी हो रही है न, सब बाबाजी की कृपा से ही है. अब बस इसे संभालने वाला एक वारिस और आ जाए, तो मैं बद्री नारायण के दर्शन कर आऊं.’’ साक्षी घर से सलवारकुरता पहन चुन्नी ओढ़ कर जाती और सांझ ढलते ही छोटेछोटे कपड़े पहन किसी अप्सरा का रूप धारण कर लेती. वह अपनी जवानी का बाबाजी के साथ भरपूर मजा ले रही थी. अंधा क्या चाहे दो आंखें. सो, बाबाजी दिन में घर से लाए मेवों का भोग लगाते और रात में साक्षी का.

कभीकभी सुशीला देवी कहतीं, ‘‘बेटी साक्षी, तुम बहुत आश्रम में बहुत रहने लगी हो. अपनी पढ़ाई पर भी जरा ध्यान दो.’’

साक्षी कहती, ‘‘मां, आप चिंता न कीजिए. मैं खुद ध्यान दे रही हूं अपनी पढ़ाई पर.’’

इधर बाबाजी जब कभी घर आते, तो सुशीला देवी से कहते, ‘‘साक्षी बेटी पर यह साल भारी है, थोड़ा आश्रम में मंत्र जपेगी और हवन करेगी, तो दोष मुक्त होगी.’’ साक्षी तो बाबाजी से इतनी सम्मोहित हो चुकी थी कि घर में कुछ न बताती. जो चल रहा था, उस में वह बहुत खुश थी. कभीकभी साक्षी की सहेलियां उसे पार्टी के लिए बुलातीं, तो साक्षी बाबाजी से कहती, ‘‘बाबाजी, आज रात को मैं न आ सकूंगी.’’ बाबाजी कहते, ‘‘अब तुम बिन हमारा जीवन असंभव है. तुम भी नहीं चाहोगी कि यह राज खुल जाए. एक रात की भी छुट्टी नहीं तुम्हें.’’

साक्षी बाबाजी के डर के मारे जिद न करती और अपनी सहेलियों से कह देती कि घर में काम ज्यादा है, वह पार्टी में न आ सकेगी. जल्दी ही सुशीला देवी के घर में खुशखबरी आ गई कि उन की बहू इंद्रा ने बेटे को जन्म दिया है. सुशीला देवी तो खुशी के मारे आसमान में उड़ने लगी थीं. घर में बड़े ही जोरशोर से जश्न मनाया गया और बाबाजी का आश्रम सुशीला देवी की कृपा से चमचमा उठा. अब पोते के साथ सुशीला देवी और ज्यादा बिजी हो गईं और उधर साक्षी बाबाजी के आश्रम में. वह बाबाजी के खिलाफ एक शब्द भी सुनना पसंद नहीं करती थी. अब कभीकभी सुशीला देवी कहतीं, ‘‘बेटी साक्षी, अब तुम आश्रम जाना छोड़ दो. पोता हो गया, मैं तो गंगा नहा ली. अब मैं फिर से बाबाजी की सेवा में जुट जाती हूं.’

साक्षी कहती, ‘‘मां, कहां तुम इस उम्र में आश्रम में दौड़भाग करोगी? अब तुम पोता संभालो, बाबाजी की सेवा में मैं कोई कमी न आने दूंगी.’’

यह सुन कर सुशीला देवी के चेहरे पर बड़ी सी मुसकराहट बिखर जाती. वे मन ही मन सोचतीं, ‘आजकल लड़कियां इतना डिस्को में जाती हैं, अच्छा है साक्षी को यह हवा नहीं लगी. क्या फायदा 4 बौयफ्रैंड्स बना लेगी और वहां नशा करेगी. इस से अच्छा है कि आश्रम में ही सेवा करे, कुछ पुण्य ही कमाएगी.’ सुशीला देवी निश्चिंत हो कर एक तीर्थ कर आईं. उन्हें आए अभी 3-4 दिन ही बीते थे कि अस्पताल से फोन आया, ‘आप की बेटी अस्पताल में भरती है. आप जल्दी यहां आइए.’

सुशीला देवी ने जैसे ही फोन सुना, उन के तो हाथपैर फूल गए. एक बार को तो उन्हें कुछ समझ ही नहीं आया कि वे क्या करें, लेकिन अपनेआप को सहज किया, फिर झट से ड्राइवर को गाड़ी निकालने को कहा. वहां जा कर जब उन्हें सारी बात मालूम हुई, तो उन्हें कानों सुने पर विश्वास ही न हुआ. मालूम हुआ कि साक्षी अस्पताल में बच्चा गिरवाने आई थी और उस दौरान उस की अंदर की कोई नस फट गई, जिस के चलते उस के शरीर से बहुत खून बह गया और उस की जान को खतरा हो गया. सुशीला देवी तो समझ ही नहीं पाईं कि यह कब और कैसे हो गया. साक्षी अभी बेहोशी की हालत में थी.

जब साक्षी को होश आया, तो सुशीला देवी ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘यह कैसे हो गया बेटी?’’

साक्षी सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘बाबाजी…’’

यह सुन कर सुशीला देवी के तो जैसे तनबदन में आग लग गई. वे कहने लगीं, ‘‘क्या बाबाजी ने जबरदस्ती की तुझ से?’’

साक्षी बोली, ‘‘नहीं मां, सब मेरी मरजी से. मुझे नहीं मालूम कि क्या हो गया है, लेकिन बाबाजी का साथ मुझे अच्छा लगता है.’’ उस की बात सुन कर सुशीला देवी का गुस्सा बेकाबू हो गया. फिर भी अपनी व साक्षी की इज्जत  की खातिर अपनेआप को शांत कर वे बोलीं, ‘‘बेटी, क्या सोचा और क्या पाया?’’ खैर, अस्पताल में तो उन्हें मुंह बंद रखने में ही समझदारी नजर आई. साक्षी को अस्पताल से डिस्चार्ज करवा कर वे घर लाईं. सेठ गिरधारी लाल ने जब सचाई सुनी, तो उन के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई. पर अब किया भी क्या जा सकता था. आखिर इस सब में साक्षी भी तो शामिल थी. हां, सुशीला देवी का बेटा रमेश कहने लगा, ‘‘देखा मां, बाबाजी की अंधभक्ति का नतीजा. मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया था कि घर में जो कुछ है, वह पिताजी व मेरी मेहनत का फल है. बाबाजी के आशीर्वाद से कुछ नहीं होता है, लेकिन मां, तुम्हें तो उन पर इतना विश्वास था कि तुम मेरी एक भी बात ध्यान से सुनती तक नहीं.’’

भाईभाभी, सुशीला देवी व गिरधारी लाल ने मिल कर साक्षी को बड़े प्यार से समझाया, ताकि वह बाबाजी के सम्मोहन से बाहर निकल सके. फिर सुशीला देवी का बेटा रमेश व बहू इंद्रा साक्षी को एक काउंसलर के पास ले गए, ताकि वह उसे समझाबुझा कर उस के बीते कल से छुटकारा दिला सके. कुछ महीने के लिए सुशीला देवी उसे अपनी बहन के घर ले गईं. कुछ समय में साक्षी फिर से सामान्य हो गई थी. अब सुशीला देवी समझ गई थीं कि बाबाजी ने उस की अंधभक्ति का इस्तेमाल किया और उस के विश्वास का फायदा उठा कर उसी की बेटी का सम्मोहन कर लिया था. लेकिन अब सुशीला देवी ने बाबाजी के लिए अपने घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए थे. बाबाजी ने भी सोचा कि शांत रहने में ही भलाई है, वरना कहीं गिरधारी लाल आगबबूला हो गए, तो पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे और उन की पोलपट्टी खुल जाएगी. उन्होंने जो आश्रम में हवनकीर्तन के नाम पर कारोबार किया हुआ है और बाबाजी का मुखौटा पहना है, वह जनता के सामने न उतर जाए. कहीं उन्हें जेल की हवा न खानी पड़ जाए. Famous Hindi Stories

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