Short Stories in Hindi : नाजुक गुंडे

Short Stories in Hindi : मुंबई से कुशीनगर ऐक्सप्रैस ट्रेन चली, तो गयादीन खुश हुआ. उस ने पत्नी को नए मोबाइल फोन से सूचना दी कि गाड़ी चल दी है और वह अच्छी तरह बैठ गया है. गयादीन को इस घड़ी का तब से बेसब्री से इंतजार था, जब उस ने 2 महीने पहले टिकट रिजर्व कराया था. वह रेल टिकट को कई बार उलटपलट कर देखता था और हिसाब लगाता था कि सफर के कितने दिन बचे हैं. सफर में सामान ज्यादा, खुद बुलाई मुसीबत होती है. गयादीन इस मुसीबत से बच नहीं पाता है. कितना भी कम करे, पर जब भी गांव जाता है, तो सामान बढ़ ही जाता है. इस स्लीपर बोगी में उस के जैसे सालछह महीने में कभीकभार घर जाने वाले कई मुसाफिर हैं. उन के साथ भी बहुत सामान है.

इस गाड़ी के बारे में कहा जाता है, आदमी कम सामान ज्यादा. पर आदमी कौन से कम होते हैं. हर डब्बे में ठसाठस भरे होते हैं, क्या जनरल बोगी, क्या स्लीपर बोगी. गयादीन इस बार अपने गांव में तो मुश्किल से एकाध दिन ही ठहरेगा. पत्नी को ले कर ससुराल जाना होगा. एकलौते साले की शादी है. इस वजह से भी सामान ज्यादा हो गया है. एक बड़ी अटैची, 2 बड़े बैग, एक प्लास्टिक की बड़ी बोरी और खानेपीने के सामान का एक थैला, जिसे उस ने खिड़की के पास लगी खूंटी पर टांग दिया था. वैसे तो इस ट्रेन में पैंट्री कार होती है और चलती ट्रेन में ही खानेपीने का सामान बिकता है, लेकिन रेलवे की खानपान सेवा पर खर्च कर के खाली पैसे गंवाना है. पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलता. खानेपीने का सामान साथ हो, तो परेशानी नहीं उठानी पड़ती.

इस बार गयादीन मां के लिए 20 लिटर वाली स्टील की टंकी ले जा रहा था, जिस के चलते एक अदद बोरी का बोझ बढ़ गया था. हालांकि बोरी में बहुत सा छोटामोटा सामान भी रख लिया है. एक बैग तो वहां के मौसम को ध्यान में रखते हुए बढ़ा है.

मुंबई जैसा मौसम तो हर कहीं नहीं होता. सफर लंबा है. पहली रात तो सादा कपड़ों में कट जाएगी, पर अगले दिन और रात के लिए तो गरम कपड़ों की जरूरत होगी. कंबल भी बाहर निकालना होगा. सुबहसुबह जब गाड़ी गोरखपुर पहुंचेगी, तो कुहरे भरी ठंड से हाड़ ही कांप जाएंगे. फिर गांव तक का खुले में बस का सफर. वहां कान भी बांधने पड़ते हैं, फिर भी सर्दी पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन उसी पल पत्नी से मिलन और ससुराल में एकलौते साले की शादी में मिलने वाले मानसम्मान का खयाल आते ही गयादीन जोश से भर गया. सामान ज्यादा होने की वजह से गयादीन को 2 दोस्त ट्रेन में बिठाने आए थे और वे ही बर्थ के नीचे सामान रखवा कर चले गए थे. उस की नीचे की ही बर्थ थी. कोच में सिर्फ रिजर्व टिकट वाले मुसाफिर थे. रेलवे स्टाफ ने कंफर्म टिकट वाले मुसाफिरों को ही कोच में सफर करने की इजाजत दी थी.

गयादीन ने चादर बिछाई. तकिए में हवा भरी और खिड़की की तरफ बैठ कर एक पतली सी पत्रिका निकाली. समय काटने के लिए उस ने रेलवे बुक स्टौल से कम कीमत की पत्रिका खरीद ली थी, जिस के कवर पर छपी लड़की की तसवीर ने उस का ध्यान खींचा था. गयादीन अधलेटा हो कर पत्रिका के पन्ने पलटने लगा. सामने की बर्थ पर लेटे एक मुसाफिर ने उसे टोकते हुए सलाह दे दी, ‘‘भाई, रात बहुत हो गई है. लाइट बुझा कर सोने दो. आप भी सोओ. लंबा सफर है, दिन में पढ़ लेना.’’

साथी मुसाफिर की बात उसे ठीक लगी. पत्रिका बंद कर के पानी पी कर लाइट बुझाते हुए वह लेट गया.

दिनभर की आपाधापी के बावजूद उस की आंखों में नींद नहीं थी. एक तो घर जाने की खुशी, दूसरे सामान की चिंता. नासिक रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो भीड़ का एक रेला डब्बे में घुस आया. लोग कहते रहे कि रिजर्वेशन वाला डब्बा है, पर किसी ने नहीं सुनी. वे तीर्थ यात्री मालूम पड़ते थे और समूह में थे. उन में औरतें भी थीं.

गयादीन चादर ओढ़ कर बर्थ पर पूरा फैल कर लेट गया, ताकि उस की बर्थ पर कोई बैठ न सके, फिर भी ढीठ किस्म के 1-2 लोग यह कहते हुए थोड़ी देर का सफर है, उस के पैरों की तरफ बैठ ही गए.

गयादीन सफर में झगड़ेझंझट से बचना चाहता था, इसलिए ज्यादा विरोध नहीं किया, पर मन ही मन वह कुढ़ता रहा कि रिजर्वेशन का कोई मतलब नहीं. किसी की परेशानी को लोग समझते नहीं हैं. वह कच्ची नींद में अपने सामान पर नजर रखे रहा. हालांकि सामान को उस ने लोहे की चेन से अच्छी तरह बांध रखा था, लेकिन चोरों का क्या, चेन भी काट लेते हैं.

खैर, मनमाड़ और भुसावल स्टेशन आतेआते वे सब उतर गए. उस ने राहत की सांस ली और पूरी तरह सोने की कोशिश करने लगा. उसे नींद भी आ गई. बुरहानपुर स्टेशन पर चाय और केले बेचने वालों की आवाज से उस की नींद टूटी.

सुबह हो चुकी थी. बुरहानपुर स्टेशन का उसे इंतजार भी था. वहां मिलने वाले सस्ते और बड़े केले वह घर के लिए खरीदना चाहता था.

पर यह क्या, फिर भीड़ बढ़ने लगी. अब कंधे पर बैग टांगे या खाली हाथ दैनिक मुसाफिर ट्रेन में चढ़ आए थे. उस का अच्छाखासा तजरबा है, दैनिक मुसाफिर किसी तरह का लिहाज नहीं करते, सोते हुए को जगा देते हैं कि सवेरा हो गया और बैठ जाते हैं. एतराज करने पर भी नहीं मानते.

ट्रेन चली तो सामने वाले मुसाफिर को जगा कर गयादीन शौचालय गया. लौटा तो बीच की बर्थ खोल दी गई थी और नीचे उस की बर्थ पर कई लोग डटे थे. यही हाल सामने वाली बर्थ का था. वह कुछ देर खड़ा रहा तो एक दैनिक मुसाफिर ने उस पर तरस दिखाते हुए थोड़ा खिसक कर खिड़की की तरफ बैठने की जरा सी जगह बना दी, जहां उस का तकिया व चादर सिमटे रखे थे.

गयादीन झिझकते हुए सिकुड़ कर बैठ गया और अपने सामान पर नजर डाली. सामान महफूज था. चादर और तकिया जांघों पर रख कर खिड़की के बाहर देखने लगा. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी.

गयादीन गाल पर हाथ धरे उगते हुए सूरज को देख रहा था कि एकाएक किसी के धीमे से छूने का आभास हुआ. पलट कर देखा तो चमकती नीली सलवार और पीली कुरती वाली बहुत करीब थी. उस की कलाइयों में रंगबिरंगी चूडि़यां थीं व एक हाथ में 10-20 रुपए के कुछ नोट थे.

यह देख गयादीन अचकचा गया. उस ने मुंह ऊपर उठा कर देखा. लिपस्टिक से पुते हुए होंठों की फूहड़ मुसकराहट का वह सामना न कर सका और निगाहें नीचे कर लीं. उस ने खाली हाथ बढ़ाते हुए मर्दानी आवाज में रुपए की मांग की, ‘‘निकालो.’’

‘‘खुले पैसे नहीं हैं,’’ गयादीन ने झुंझलाहट से कहा और लापरवाही से खिड़की के बाहर देखने लगा.

‘‘कितना बड़ा नोट है राजा? सौ का, 5 सौ का, हजार का? निकालो तो सब तोड़ दूंगी,’’ भारी सी आवाज में उस ने तंज कसा.

‘‘जाओ, पैसे नहीं हैं.’’

‘‘अभी तो बड़े नोट वाले बन रहे थे और अब कहते हो कि पैसे नहीं हैं. रेल में सफर ऐसे ही कर रहे हो…’’ उस ने बेहयाई से हाथ भी मटकाया. इस बीच उस का एक साथी पास आ कर खड़ा हो गया, जो मर्दाने बदन पर साड़ी लपेटे था.

गयादीन को लगा कि अब इन से पार पाना मुश्किल है. बेमन से कमीज की जेब से 10 रुपए का एक नोट निकाला और बढ़ाया.

‘‘हायहाय, 10 का नोट… क्या आता है 10 रुपए में.’’

गयादीन ने 10 का एक और नोट निकाल कर चुपचाप बढ़ा दिया. वह उन से छुटकारा पाना चाहता था.

सलवारकुरती वाले ने दोनों नोट झट से लपक लिए और आगे बढ़ गए. वह अपने को ठगा सा महसूस करते हुए शर्मिंदा सा उन्हें देखता रह गया.

वे दूसरे मुसाफिरों से तगादा करने में लग गए थे. कोई उन का विरोध नहीं कर रहा था. सब अपने को बचा सा रहे थे.

कुछ दैनिक मुसाफिर उतरे, तो दूसरे आ गए. कुछ बिना रिजर्वेशन वाले और गुटका, तंबाकू, पेपर सोप बेचने वाले चढ़ आए. भीड़ इतनी बढ़ गई थी कि रिजर्व डब्बा जनरल डब्बे की तरह हो गया. इस बीच टिकट चैकर भी आया, पर उसे इन सब से कोई मतलब नहीं.

जब दिन चढ़ आया, तो दैनिक मुसाफिरों की आवाजाही तो जरूर कम हुई, पर बिना रिजर्व मुसाफिर बढ़ते रहे. हां, चैकिंग स्टाफ का दस्ता डब्बे में चढ़ा, तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वे उन से जुर्माना वसूल कर रसीद पकड़ा गए.

रात में ठीक से नींद न आ पाने से गयादीन की सोने की इच्छा हो आई, पर वह लेट नहीं सकता था. वह बैठेबैठे ही ऊंघने लगा. सामने वाले मुसाफिर ने उसे जगा दिया, ‘‘अपने डब्बे में फिर गुंडे चढ़ आए हैं.’’

‘‘गुंडे, फिर से,’’ वह चौंका.

‘‘हां, हां, यह अपनेअपने इलाके के गुंडे ही तो हैं… नाजुक गुंडे.’’

अब की बार वे 4 थे. पहले वालों के मुकाबले ज्यादा हट्टेकट्टे और ढीठ. ताली बजाबजा कर बड़ी बेशर्मी से मुसाफिरों से रुपयों की मांग कर रहे थे. किसीकिसी से तो 50 के नोट तक झटक लिए थे. गयादीन के पास भी आए और ताली बजाते हुए मांग की.

गयादीन बोला, ‘‘पीछे वालों को दे चुके हैं.’’

‘‘दे चुके होंगे. लेकिन यह हमारा इलाका है.’’

‘‘इलाका तो गुंडों का होता है,’’ सामने वाले मुसाफिर ने कहा.

गयादीन को लगा कि गुंडा कहने से बुरा मान जाएंगे, पर बुरा नहीं माना. एक भौंहें मटकाते हुए बोला, ‘‘वे एमपी वाले थे. हम यूपी वाले हैं. हमारा रेट भी उन से ज्यादा है.’’

और वह दोनों से 50 का नोट ले कर ही माना. जब वे दूसरे डब्बे में चले गए, तो सामने वाला मुसाफिर बोला, ‘‘इन से पार पाना मुश्किल है. ये नंगई पर उतर आते हैं और छीनाझपटी भी कर सकते हैं. मुसाफिर बेचारा क्या करे.झगड़ाझंझट तो कर नहीं सकता.’’

‘‘इन का कोई इलाज नहीं? रेलवे पुलिस इन्हें नहीं रोकती?’’

‘‘पुलिस चाहे तो क्या नहीं कर सकती, पर आप तो जानते ही हैं. खैर,  रात के सफर में कोई परेशान नहीं करेगा. इन की शराफत है कि ये रात के सफर में मुसाफिरों को परेशान नहीं करते.’’

दोनों ने राहत की सांस ली.

Best Hindi Stories : ब्लैकमेल – पैसों के चक्कर में जब गलत रास्ते पर गया दिनेश

Best Hindi Stories :  कौलबेल की आवाज से रितेश अचानक जैसे नींद से जागा. वह 4 दिन पहले मनाए वेलैंटाइन डे की मधुर यादों में खोया हुआ था. उस की यादों में थी मीनल, जिस के साथ वह सुनहरे भविष्य के सपने संजो रहा था. वह बेमन से उठा, दरवाजा खोला तो कोरियर वाला था. उस ने साइन कर लिफाफा ले लिया, भेजने वाले का नामपता स्पष्ट नहीं दिख रहा था, फिर भी उस ने उत्सुकता से लिफाफा खोला तो कई सारे फोटो लिफाफे में से निकल कर उस के कमरे में बिखर गए. फोटो देखते ही वह जड़ सा हो गया. फोटो उस के और मीनल के प्रेम संबंधों को स्पष्ट बयान कर रहे थे. आलिंगनरत, चुंबन लेते हुए, हंसतेबोलते ये चित्र वेलैंटाइन डे के थे. 4 दिन पहले की ही तो बात है, जब वह मीनल को ले कर लौंग ड्राइव पर निकला था, शाम की हलकी सुरमई चादर धीरेधीरे फैल रही थी, घनी झाडि़यां देख कर उस ने कार सड़क पर ही रोकी और मीनल को ले कर घनी झाडि़यों के पीछे चला गया.

ओह, यह किस ने किया, कब कर दिया. लिफाफे  के साथ एक छोटा सा कागज भी था जिस पर लिखा था कि अगर तुम चाहते हो कि ये फोटो फेसबुक पर न डाले जाएं, तो इस बैंक अकाउंट में 2 लाख रुपए कल शाम तक जमा हो जाने चाहिए.

रितेश तनावग्रस्त हो चुका था, अभी उस की और मीनल की शादी होने में भी 2-3 साल लग सकते थे. मीनल की पढ़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी, उस को स्वयं पढ़ाई खत्म कर के घर वालों से मीनल के संबंध में बात करनी थी, लेकिन यह समस्या बीच में कहां से आ गई. अब मैं क्या करूं? क्या मीनल को बता दिया जाए, नहींनहीं कहीं वह टैंशन में आ कर कुछ गलत कदम न उठा ले.

मीनल के पिता सरकारी सेवा से रिटायर्ड हो चुके थे. घर में मीनल की मां के अलावा एक बड़ा भाई महेश था जो किसी होटल में मैनेजर था. उसे इतना वेतन मिल जाता था कि खुद का खर्च निकाल लेता था. वह कभी भी एक जगह टिक कर नौकरी नहीं कर पाता था. एक छोेटी बहन भी थी, सोनल जो स्कूल में पढ़ती थी. पिता की पैंशन से ही पूरा घर चलता था, रिटायरमैंट के पैसों से उन्होंने एक छोटा सा घर, इंदौर के नजदीक राजेंद्र नगर में, जहां मकान और फ्लैट बेहद महंगे थे.

ये सब परिस्थितियां रितेश को पता थीं इसलिए वह मीनल को परेशान नहीं करना चाहता था. कुछ सोच कर उस ने अपने 2-3 बैंक अकाउंट टटोले तो उस में 2 लाख के लगभग रुपए थे, उस ने दूसरे दिन जा कर 2 लाख रुपए ब्लैकमेलर के बताए अकाउंट में जमा कर दिए और उस के अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगा.

उस ने ऐसा इसलिए किया था कि वह जानता था कि 2 लाख रुपए मिलते ही ब्लैकमेलर थोड़े से लापरवाह हो जाएंगे और वे यह मानने लगेंगे कि रितेश उन के जाल में फंस चुका है, जबकि रितेश ने ऐसा इसलिए किया था कि उन की लापरवाही से उसे आगे इस मुसीबत से बच निकलने के लिए उपाय खोजने में आसानी होगी. ये 2 लाख रुपए तो उस के अपने निजी थे.

दूसरे दिन कालेज में वह मीनल से मिला तो बिलकुल नौर्मल था, फोटो और ब्लैकमेलर की बात उस ने मीनल को नहीं बताई. सामान्य तौर से ही उस ने अपने सभी पीरियड अटैंड किए, कैंटीन में मीनल के साथ गरमागरम पनीर के पकौड़ों का आनंद लिया, पढ़ाई के बारे में चर्चा की और वापस घर आ गया.

इंदौर से लगभग 40 मिनट के रास्ते पर महू में रितेश का घर था, पिता बिजनैसमैन थे, इंदौर में उन की गारमैंट्स की कई दुकानें थीं. महू ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन इंदौर एक बड़ा शहर था. रितेश के घर में सभी प्रकार की सुखसुविधाएं थीं, उस की छोटी बहन शीना कालेज स्टूडैंट थी, उसे मैडिकल क्षेत्र में जाना था.

घर से पढ़ाई और कैरियर के विषय में पूरी आजादी थी. रितेश के पिता मदनलाल बच्चों की पढ़ाईलिखाई में किसी प्रकार की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे, रितेश उन का इकलौता बेटा था.

अपने कमरे में बैठ कर रितेश ने सब से पहले कोरियर से मिला लिफाफा निकाला और ध्यान से भेजने वाले के नामपते को जांचने लगा, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. डाक्टरों जैसी लिखावट थी, जिसे पढ़ने में वह असमर्थ था, फिर उस ने कोरियर का नाम देखा, ‘बौबी कोरियर सेवा’, यह तो इंदौर में है, वह तुरंत उठा, लिफाफा लिया, अपनी गाड़ी निकाली और इंदौर की तरफ चल पड़ा, लगभग घंटेभर में वह इंदौर पहुंच गया.

स्टेशन क्षेत्र के व्यस्त बाजार में उसे बौबी कोरियर तलाशने में ज्यादा समय नहीं लगा. लगभग 20 मिनट बाद वह बौबी कोरियर पर था. कोरियर वाले से उस ने लिफाफा दिखा कर पूछा कि थोड़ा याद कर के बताओ कि महू के लिए यह लिफाफा कोरियर किस ने किया?

कोरियर वाला बोला, ‘‘सर, यहां तो सैकड़ों कोरियर आते हैं, ऐसे में कैसे ठीकठीक बताया जा सकता है?’’

रितेश बोला, ‘‘लेकिन भेजने वाला कौन था, यह तो साफसाफ लिखा होना चाहिए था कि नहीं?’’

‘‘जिस को भेजा जाना है, उस का नामपता हम साफ लिखा देखते हैं, बाकी का हम कितना ध्यान रखें,’’ कोरियर वाला भी अब झल्लाने लगा था. आखिरकार, रितेश थक कर इंदौर कौफी हाउस में जा कर बैठ गया, ताकि थोड़ा शांति से सोच सके.

कौफी हाउस में हलका सा अंधेरा था, धीमीधीमी रोशनी में कुछ जोड़े भी बैठे थे, जिन की बस मुसकराहट दिख रही थी, लेकिन बातें नहीं सुनाई दे रही थीं, ऐसा कहते हैं जब दिल करीब होते हैं, तो बातों का स्वर भी धीमा हो जाता है. रितेश ने कौफी के साथ ही वैज कटलेट का भी और्डर दिया. मीनल को यहां के पनीर पकौड़े और कटलेट पसंद थे. वह अकसर मीनल को ले कर यहां आया करता था.

रितेश ने सोचा, ‘यदि फोटो फेसबुक पर डाले जाएंगे, तो कितनी परेशानी उठानी पड़ेगी, मीनल की बदनामी होगी, घर वाले परेशान हो जाएंगे, नहींनहीं वह ऐसा नहीं होने देगा. कुछ न कुछ तो हल निकालना ही पड़ेगा, क्या पुलिस में शिकायत करूं? लेकिन फिर मीडिया में भी यह खबर जाएगी, नहींनहीं… यह सब वह और मीनल नहीं सह पाएंगे. ऐसा करते हैं कल कालेज में मीनल से बात कर के कुछ हल निकालते हैं और फिर पुलिस में दोनों ही साथ जाते हैं,’ यह सोच कर रितेश कौफी खत्म कर के अपने घर के लिए निकल पड़ा.

दूसरे दिन कालेज में रितेश ने मीनल से कहा, ‘‘मीनल, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

मीनल आज बेहद खुश थी, वह चहकते हुए बोली, ‘‘मैं तुम से खुद ही जरूरी बात करना चाहती थी, तुम्हें खुशखबरी देनी है,’’ खुशखबरी की बात सुनते ही रितेश ने मीनल का मूड खराब करना उचित नहीं समझा, सोचा पहले मीनल की खुशी की बात सुन ली जाए.

‘‘रितेश, मेरे महेश भैया के मालिक ने उन के काम से खुश हो कर उन की सैलरी बढ़ा दी है. कल भैया ने सभी के लिए महंगे कपड़े खरीदे और हमसब ने इंदौर जा कर अच्छे से शौपिंग भी की. सच बड़ा मजा या.’’

रितेश ने अपना इरादा बदल लिया, वह मीनल को ब्लैकमेलर वाली बात बता कर टैंशन नहीं देना चाहता था, इसलिए उस ने मीनल को फोटो वाली बात नहीं बताई. मीनल के लाख पूछने पर भी उस ने बात को टालना उचित समझा.

कुछ दिन बाद उस के मोबाइल पर फोन आया, रितेश के हैलो बोलते ही कोई बोला, ‘‘भाई रितेश, 2 लाख तो खत्म हो गए, 2 लाख रुपए का और इंतजाम कर दो. फोटो नेगेटिव तुम को भेज दिए जाएंगे.’’

रितेश गुस्से से बोला, ‘‘पहले फोटो और नेगेटिव भेजो फिर रुपए दूंगा.’’

‘‘सोच लो,’’ फोन करने वाला शख्स बोला, ‘‘तुम्हारी माशूका की बदनामी होगी.’’

‘‘हां, मैं सोच चुका हूं,‘‘ रितेश भी गुस्से में बोला, यह बोलतेबोलते वह मोबाइल का स्पीकर औन कर चुका था, साथ ही उस ने फोन करने वाले की आवाज भी रिकौर्ड करनी शुरू कर दी थी.

‘‘तुम सोचो, लगभग 10 दिन पहले ही मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे चुका हूं, अब मुझे थोड़ा सा समय तो दो,‘‘ तेश ने बात जारी रखने का प्रयास किया.

‘‘अच्छा, ठीक है, मैं तुम को एक दिन और देता हूं, तुम 2 लाख रुपए की व्यवस्था कर के रखो.’’

इतना कहने के बाद फोन काट दिया गया. रितेश ने उस आवाज को बारबार सुना कि यह आवाज उस के किसी दोस्त की तो नहीं है, लेकिन उस के दोस्तों में से उसे वह आवाज किसी की नहीं लगी. फिर यह कौन हो सकता है, सोचतेसोचते अचानक ही उसे मीनल के महेश भैया की सैलरी बढ़ने वाली बात याद आई, कहीं ऐसा तो नहीं महेश हो, ऐसा कैसे हो सकता है? क्या महेश को उस के और मीनल के प्रेम संबंधों की खबर है,

ठीक दूसरे दिन शाम को ब्लैकमेलर का फोन आया कि रुपयों का इंतजाम हो गया? उस ने रिकौर्डर और स्पीकर औन कर दिया, लेकिन रितेश ने देखा यह नंबर दूसरा था, पहले फोन दूसरे नंबर से आया था.

‘‘हां, हो गया,’’ रितेश बोला. ‘‘तो ठीक है, पहले वाले बैंक खाते में ही जमा कर दो,’’ ब्लैकमेलर ने आदेश दिया.

’’नहीं, मैं जमा नहीं करूंगा. मैं रुपए देने खुद आऊंगा, तुम फोटो और नेगेटिव तैयार रखो. ये सब मुझे दो, तभी मैं रुपए दूंगा.’’

’’ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ उधर से जवाब मिला, ’’तुम बौंबे हौस्पिटल वाले रोड पर पहुंचो, 2 घंटे बाद मैं तुम को वहीं फोटो और नेगेटिव दूंगा.’’

’’ठीक है,’’ रितेश बोला.  फिर रितेश ने मीनल को फोन लगाया और उसे जल्दी मिलने को कहा, उस समय दोपहर के 2 बज रहे थे.

मीनल जैसे ही सड़क तक पहुंची रितेश ने कार पास में जा कर रोक दी. मीनल घबराई हुई थी. रितेश ने जल्दी से उसे सारी बात समझाई और कहा, ’’मैं ब्लैकमेलर के पास जाता हूं, 2 लाख रुपए देने और उस से अपने फोटो और नेगेटिव ले लूंगा. एक घंटे तक मेरा इंतजार करना, उस के बाद पुलिस के पास जाना.’’

’’नहीं, नहीं. मुझे डर लगता है, मैं भी साथ चलती हूं,’’ मीनल ने बेहद घबरा कर कहा.

’नहीं,’ पागल मत बनो, मेरी बात मानो,’’ रितेश ने उसे समझाया, लेकिन मीनल नहीं मानी.

आखिर रितेश ने उसे भी साथ लिया और दोनों ब्लैकमेलर की बताई जगह पर पहुंच गए. बौंबे हौस्पिटल वाले रास्ते पर रितेश ने कार की गति धीमी कर दी.

इतने में रितेश का मोबाइल बज उठा, रितेश ने जैसे ही हैलो बोला, ब्लैकमेलर बोला,’’क्या बात है, महबूबा भी साथ है, चलो, मजा भी कर लेते हैं,’’ इतने में एक टोयटा कार आ कर रितेश की कार के ठीक सामने खड़ी हो गई, कार में 4 युवक बैठे थे, सभी के चेहरे ढके हुए थे, एक युवक नीचे उतरा और रितेश के पास जा कर बोला, ’’निकालो रुपए.’’

रितेश बोला,’’फोटो और नेगेटिव दो.’’

पहले रुपए दो, नहीं तो तेरी महबूबा के साथ कार में गैंगरेप भी हो जाएगा.’’

रितेश ने रुपए निकाले, फिर बोला,’’फोटो दो.’’ ज्यादा बहस होते देख कार में से एक अन्य युवक जो चुप बैठा था, निकला और कड़कते हुए बोला, ’’रुपए जल्दी दो, नहीं तो…’’

इतने में मीनल जोर से चिल्लाई,’’यह तो रोहन की आवाज है, महेश भैया के दोस्त की.’’

वह युवक सकपका गया और जोर से बोला, ’’गाड़ी जल्दी से बढ़ा.’’ तब तक रुपए मांगने वाले युवक को रितेश रुपए दे चुका था, वह रुपए ले कर तेजी से कार में बैठा और उस ने कार तेजी से चला दी.

रितेश फोटोफोटो चिल्लाता रहा, साथ ही रितेश ने कार का पीछा किया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ, कार पर नंबर प्लेट भी नहीं थी. आखिर, रितेश और मीनल ने फैसला किया और पुलिस के पास पहुंचे. उन्होंने सबकुछ सचसच बता दिया. मीनल और रितेश की रिपोर्ट के आधार पर रोहन को गिरफ्तार कर लिया गया, साथ ही पुलिस के सामने रोहन भी टूट गया और उस ने पुलिस को अपने 3 अन्य साथियों के नामों के साथ मीनल के भाई महेश के बारे में भी बताया.

सबकुछ महेश की योजना के मुताबिक हुआ और ये पहले भी ऐसा कई प्रेमी जोड़ों के साथ कर चुके हैं और उन सभी से मोटी रकम ऐंठ चुके हैं. आज ये सब अपराधी अपने किए की सजा काट रहे हैं. रितेश और मीनल की शादी हुए एक वर्ष बीत चुका है, वे अब झाडि़यों में नहीं घर में मिलते हैं और हर रोज वेलैंटाइन डे मनाते हैं.

Famous Hindi Stories : भूल – प्यार के सपने दिखाने वाले अमित के साथ क्या हुआ?

Famous Hindi Stories :  कैफे कौफी डे’ में रजत, अमित, विनोद और प्रशांत बैठे गपें मार रहे थे, इतने में अचानक रजत की नजर घड़ी पर गई तो वह बोला, ‘‘अमित, तुझे तो अभी ‘उपवन लेक’ जाना है न, वहां पायल तेरा इंतजार कर रही होगी.’’

अमित ने अपने कौलर ऊपर करते हुए कहा, ‘‘वही एक अकेली थोड़ी है जो मेरा इंतजार कर रही है, कई हैं, करने दे उसे भी इंतजार, बंदा है ही ऐसा.’’

प्रशांत हंसा, ‘‘हां यार, तू अमीर बाप की इकलौती औलाद है, हैंडसम है, स्मार्ट है, लड़कियां तो तुझ पर मरेंगी ही.’’

अमित ने इशारे से वेटर को बुला कर बिल मंगवाया और बिल चुकाने के बाद अपनी गाड़ी की चाबी उठाई और बोला, ‘‘चलो, मैं चलता हूं, थोड़ा टाइमपास कर के आता हूं,’’ सब ने ठहाका लगाया और अमित बाहर निकल गया. वह सीधा ‘उपवन लेक’ पहुंचा, पायल वहां बैंच पर बैठी थी, उस ने कार से उतरते अमित को देखा तो खिल उठी. वह अमित को देखती रह गई. शिक्षित, धनी, स्मार्ट अमित उस जैसी मध्यवर्गीय घर से ताल्लुक रखने वाली साधारण लड़की को प्यार करता है, यह सोचते ही पायल खुद पर इतरा उठी. पास आते ही अमित ने उस की कमर में हाथ डाल दिया और इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, कहीं चल कर कौफी पीते हैं.’’

‘‘नहीं अमित, अगर किसी ने देख लिया तो?’’

‘‘अरे पायल, मैं तुम्हें जिस होटल में ले जाऊंगा वहां तुम्हारी जानपहचान का कोई फटक भी नहीं सकता.’’

पायल को अमित की यह बात बुरी तो लगी, लेकिन उस के व्यक्तित्व के रोब में दबा उस का मन कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया, उस ने चुपचाप सिर हिला दिया. अमित उसे एक शानदार महंगे होटल में ले गया और दोनों ने एक कोने में बैठ कर कौफी और कुछ स्नैक्स का और्डर दे दिया.

हलकाहलका मधुर संगीत और होटल के शानदार इंटीरियर को देख पायल का मन झूम उठा.

अमित की मीठीमीठी बातें सुन कर पायल किसी और ही दुनिया में पहुंच गई. करीब घंटेभर दोनों साथ बैठे रहे. इस दौरान कभी अमित पायल का हाथ अपने हाथ में ले कर बैठता तो कभी उस के खूबसूरत सुनहरे बालों को उंगलियों से सहलाने लगता. पायल हमेशा की तरह सुधबुध खो कर उस की बातों की दीवानी बन खोई रही. जब उस के मोबाइल की घंटी बजी तो वह होश में आई, उस के पापा का फोन था, उन्होंने पूछा, ‘‘कहां हो?’’

पायल ने तुरंत कहा, ‘‘बस पापा, रास्ते में हूं, घर पहुंचने वाली हूं.’’ उस ने अमित से कहा, ‘‘अब मैं जा रही हूं, फिर मिलेंगे.’’

अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं यहां अपने दोस्त का इंतजार कर रहा हूं, वह आता ही होगा.’’

पायल चली गई. अमित ने मुसकराते हुए घड़ी देखी. रंजना को उस ने आधे घंटे बाद यहीं बुलाया था. वह जानता था कि पायल घंटेभर से ज्यादा नहीं रुक पाएगी, क्योंकि उस के पापा काफी अनुशासनप्रिय हैं.

अमित बिजनैसमैन कमलकांत का इकलौता बेटा था, मम्मी का देहांत हो चुका था. उस ने अभीअभी एमबीए किया था ताकि बिजनैस संभाल सके. वह युवतियों को खिलौना समझता था, उन पर पैसा खर्च कर वह अपना उल्लू साधता था. वह कई युवतियों से एकसाथ फ्लर्ट करता था. कालेज में युवतियां उस की दीवानी थीं, जिस का उस ने हमेशा फायदा उठाया.

पायल के जाने के बाद वह अब रंजना का इंतजार कर रहा था. खुले विचारों वाली रंजना मौडर्न ड्रैस पहन कर मिलने आई थी. अमित को देख कर उस ने फ्लाइंग किस की और पास पहुंच कर उस से सट कर बैठ गई. अमित ने उस से प्यार भरी बातें कीं और छेड़खानी शुरू कर दी.

रंजना खुद को बड़ी खुशनसीब मानती थी कि उसे अमित जैसा दौलतमंद बौयफ्रैंड मिला. उस ने शादी का जिक्र किया, ‘‘अमित, तुम डैड से हमारी शादी की बात कब कर रहे हो?’’

अमित चौंक कर बोला, ‘‘देखता हूं, अभी तो डैड बहुत बिजी हैं,’’ कहते हुए वह मन ही मन हंसा, ’कितनी बेवकूफ होती हैं लड़कियां, दो बोल प्यार के सुन कर शादी के सपने देखने लगती हैं, हुंह. शादी और इन से, शादी तो अपने ही जैसे उच्चवर्गीय परिवार की किसी लड़की से करूंगा, मखमल में टाट का पैबंद तो लगने से रहा,’अमित ने रंजना की बातों का रुख मोड़ दिया. फिर घंटेभर टाइमपास कर रंजना को ले कर कार की तरफ बढ़ा और उस के घर से पहले ही कार रोक कर उसे उतार कर आगे बढ़ गया.

वह जब घर पहुंचा तो उस के पिता कमलकांत औफिस से आ चुके थे, वे ड्राइंगरूम में गुमसुम बैठे थे. अमित गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस से पापा की नजरें मिलीं. अमित ने अपने पिता के चेहरे की गंभीरता भांप ली और बोला, ‘‘डैड, कुछ प्रौब्लम है क्या? आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

कमलकांत कुछ नहीं बोले, बस, सोफे पर उन्होंने सिर टिका लिया. अमित घबरा कर आगे बढ़ा, ‘‘क्या हुआ डैड?’’

कमलकांत की बुझीबुझी सी आवाज आई, ‘‘2 दिन से सोच रहा हूं तुम्हें बताने के लिए, मुझे एबीसी कंपनी के शेयरों में काफी घाटा हुआ है. अब सारा पैसा डूब गया, जबरदस्त नुकसान हुआ है.’’

दोनों बापबेटा काफी देर सिर पकड़ कर बैठे रहे, फिर कमलकांत ने कहा,

‘‘मि. कुलकर्णी की बेटी से तुम्हारे रिश्ते की जो बात चल रही थी आज उन्होंने भी बात घुमाफिरा कर इस रिश्ते को खत्म करने का संकेत दे दिया है. अब तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता देना,’’ तभी नौकर ने आ कर खाना बनाने के लिए पूछा तो दोनों ने ही मना कर दिया.

दोनों के होश उड़े हुए थे, दोनों बापबेटा अपनेअपने कमरे में रातभर जागते रहे. कमलकांत रातभर अपने वकील, सैक्रेटरी, मैनेजर से बात करते रहे, अमित ने तो अपना फोन ही स्विचऔफ कर दिया था, कहां तो वह रोज इस समय फोन पर किसी न किसी लड़की को भविष्य के सुनहरे सपने दिखा रहा होता था. अगले कुछ दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट होती चली गई थी. शहर में चर्चा होने लगी, इसी वजह से कमलकांत को हार्टअटैक आ गया, उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती किया गया. अमित की भी हालत खराब थी. रिश्तेदारों ने भी उस से दूरी बना ली. सिर्फ एकदो दोस्त उस के साथ अस्पताल में थे.

अमित पिता की रातदिन देखभाल कर रहा था. कुछ दिन बाद जब उन की हालत में कुछ सुधार हुआ तो डाक्टर के निर्देशों के साथ घर आते ही उन्होंने अमित से कहा, ‘‘बेटा, तुम जल्दी से जल्दी साधारण ढंग से ही शादी कर लो, मेरी एक चिंता तो खत्म हो जाएगी. तुम्हारी तो इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती है. मुझे बताओ, किस से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘डैड, पहले आप ठीक तो हो जाओ, मुझे तय करने के लिए थोड़ा समय चाहिए.’’

समाचारपत्रों में छपी खबरों से अब तक रंजना, पायल और अन्य लड़कियों को भी अमित के चरित्र और कमलकांत की गिरती साख की खबर लग चुकी थी. अमित ने पायल को मिलने के लिए फोन किया तो उस ने साफ इनकार कर दिया और बोली, ‘‘तुम एक आवारा और चरित्रहीन लड़के हो, लड़कियों की भावनाओं से खेलते हो. शादी तो दूर मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती.‘‘

अमित पायल के व्यंग्यबाणों से अपमान, मानसिक पीड़ा और क्रोध में जला जा रहा था. इस पीड़ा से उस ने अपनेआप को बहुत मुश्किल से संभाला. सामान्य होने के बाद उस ने रंजना को फोन किया तो रंजना का भी जवाब था, ‘‘तुम अब कुछ भी नहीं हो अमित, जिस पिता के पैसे पर ऐश कर के लड़कियों को बेवकूफ बनाते थे वह पैसा तो अब डूब गया. अब मेरी भी तुम में कोई रुचि नहीं है. मुझे पूजा, अनीता और मंजू के बारे में भी पता चल चुका है, अब सब तुम्हारी हकीकत जान चुके हैं. पिता की दौलत के बिना तुम कुछ नहीं हो, किसी लड़की को अपने से कम समझना, तुम लड़कों का ही हक नहीं है बल्कि हम में भी फैसला लेने की क्षमता, इच्छा, रुचि और पसंद होती है. काश, तुम गरीब और साधारण रूपरंग वाले लेकिन चरित्रवान युवक होते और लड़कियों की भावनाओं से नहीं खेलते,’’ कह कर रंजना ने उस की बात सुने बिना ही फोन रख दिया.

अमित को ऐसा लगा जैसा कि रंजना ने उसे करारा तमाचा मारा हो. निष्प्राण सा वह बिस्तर पर ढह गया. उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शरीर का खून पानी हो गया हो. उस का गला सूखने लगा और वह अब कुछ करने की हालत में नहीं था. वह बड़ी मुश्किल से उठा और पापा को उस ने अपने हाथ से जबरदस्ती कुछ खिला कर दवा दी, फिर अपने कमरे में आ कर निढाल पड़ गया. उस के दिलोदिमाग में विचारों की आंधी का तांडव चल रहा था. वह इस तरह अपने को ठुकराना सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस जैसे स्मार्ट, हैंडसम लड़के का कोई लड़की इस तरह से अपमान कर सकती है. उस ने अब तक न जाने कितनी लड़कियों को अपनी बातों के जाल में फंसाया था, लेकिन आज उन साधारण लड़कियों ने उस के घमंड को चकनाचूर कर दिया.

मन शांत हुआ तो उस ने सोचा कि सिर्फ पुरुष होने के नाते वह किसी लड़की की भावनाओं से नहीं खेल सकता. उस ने हमेशा अपनी भावनाओं को ही महत्त्व दिया. कभी उस के मन में यह बात नहीं आई कि किसी लड़की का भी आत्मसम्मान व पसंदनपसंद हो सकती है. उस के दिमाग में तो हमेशा यही गलतफहमी रही कि उसे पा कर हर लड़की खुद को धन्य समझेगी, लेकिन उस रात आत्मविश्लेषण करते हुए उस ने महसूस किया कि पायल और रंजना की बातों ने उस की सोच को नया आयाम दिया है. सुबह उस का मन एकदम शांत था, ठीक तूफान के गुजरने के बाद की तरह शांत. उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका था. वह मन ही मन पायल, रंजना और पता नहीं कितनी लड़कियों से माफी मांग रहा था.

Akshay Kumar : 500 रुपए किराए के घर में रहे ये ऐक्टर, अब उसी बिल्डिंग की खरीद रहे हैं तीसरा फ्लोर

Akshay Kumar : एक इंसान कितना भी अमीर हो जाए लेकिन वह अपनी पुरानी यादों को जिससे उसका बचपन जुड़ा हो मीठी यादें जुड़ी हो वह वो इंसान कभी नहीं भूलता, ऐसा ही कुछ अक्षय कुमार अपने पुराने घर से जो की रेंट पर था और उसका किराया ₹500 था , उस मकान से अक्षय आज भी दिल से जुड़े हुए हैं, हाल ही में अपने इंटरव्यू में अक्षय कुमार ने बताया कि बचपन की यादों से जुड़ा उनका पुराना घर जो किराए पर था वहां की एकएक चीज उन्हें आज भी याद है, अक्षय के अनुसार मुझे आज भी याद है कि मैं अपने मातापिता और बहन के साथ उस घर में खुशीखुशी रहा करता था.

मेरे पिताजी सुबह 9:00 बजे नौकरी के लिए निकलते थे शाम को 6:00 बजे जब वापस आते थे तो मैं और मेरी बहन खिड़की पर खड़े होकर अपने पिता के आने का इंतजार किया करते थे और उस सड़क पर टकटकी लगाकर देखते रहते थे जहां से हमारे पिताजी आने वाले होते थे. वहां पर एक अमरूद का पेड़ हुआ करता था. वह आज भी वहां पर मौजूद है. मैं जब भी वहां से गुजरता हूं तो उस अमरूद के पेड़ से एक दो अमरूद में जरूर तोड़ लेता हूं.

अक्षय के अनुसार मुझे अपने उस घर से बहुत प्यार है मुझे पता चला कि वह बिल्डिंग रीडवेलपमेंट में जा रही है तो मैंने बिल्डर से बात करके उस बिल्डिंग का पूरा तीसरा फ्लोर खरीद लिया है, ऐसा नहीं है कि मुझे वहां रहना है, मैंने बस इसीलिए खरीदा है क्योंकि वहां मेरी यादें जुड़ी है, मेरे पिता का स्पर्श वहां पर मौजूद है , हमारी बहुत सारी खट्टी मीठी यादें उसे घर से जुड़ी है बस इसीलिए मैं वह पूरा फ्लोर अपने पिता की याद को ताजा रखने के लिए खरीद रहा हूं.

गौरतलब है जहां अक्षय कुमार अपने कुछ ही साल पहले लिए हुए फ्लैट खरीदी हुई कीमत से कहीं ज्यादा पैसों में बेचकर फायदा ले रहे हैं. वही अपना पुराना घर खरीदने के लिए कोई भी दाम देने को तैयार है. ऐसे में कहना गलत ना होगा कि अक्षय कुमार पर पुराना गाने की पंक्तियां पूरी तरह फिट बैठती है ,दिन जो पखेरू होते पिंजरे में मैं रख लेता, पालता उनको जतन से मोती के दाने देता .. अक्षय की बातों से यही साबित होता है कि इंसान चाहे कितना ही पैसा कमा ले बीता हुआ वक्त और उससे जुड़ी यादों को वापस नहीं ला सकता.

क्या KBC का अगला सीजन नहीं होस्ट करेंगे Amitabh Bachchan?

KBC : बौलीवुड के सुपरस्टार शहंशाह कहलाने वाले अमिताभ बच्चन जो भी काम करते हैं पूरी शिद्दत के साथ करते हैं . 80 साल की उम्र में भी अमिताभ बच्चन अपनी फिल्मों में अभिनय, कई बड़े प्रोडक्ट की मौडलिंग के साथ साथ सोनी चैनल पर प्रसारित कौन बनेगा करोड़पति की 14 सीजन से अब तक जुड़े रहे हैं, जिसके चलते केबीसी के होस्ट के रूप में श्री अमिताभ बच्चन को देखने की इतनी आदत सी पड़ गई है कि उनके बगैर यह अधूरा सा ही लगता है.

जिस वजह से सोनी चैनल के कर्ता-धर्ता कौन बनेगा करोड़पति के सारे सीजन बच्चन साहब से ही करवाते आए हैं लेकिन अब खास सूत्रों के अनुसार अमिताभ बच्चन केबीसी का अगला सीजन होस्ट नहीं करने वाले हैं क्योंकि बढ़ती उम्र के चलते अब अमिताभ बच्चन ने रिटायरमेंट लेने का निर्णय लिया है. इसके पहले वाले शो में भी अमित जी ने के बी सी शो होश ना करने को लेकर अपना निर्णय सुनाया था लेकिन सोनी चैनल के और केबीसी के मेकर्स ने अमित जी को किसी तरह केबीसी का 16 वां सीजन करने के लिए मना लिया गया था .

लेकिन अब क्योंकि अमित जी ने पहले से ही शो से रिटायरमेंट लेने की बात कह दी है  और अमित जी की तबीयत थोड़ी नासाज भी रहती है लिहाजा इस लिए अब केबीसी के अगले होस्ट की खोजबीन शुरू हो गई है. हालांकि इस बार भी मेकर्स की कोशिश है कि बच्चन साहब ही केबीसी होस्ट करें , लेकिन फिर भी अगर बच्चन साहब किसी भी तरह तैयार नहीं हुए तो कौन बनेगा करोड़पति के होस्ट के लिए शाहरुख खान जो पहले भी एक बार एक सीजन केबीसी का होस्ट कर चुके हैं, ऐश्वर्या राय बच्चन और महेंद्र सिंह धोनी को केबीसी के लिए अप्रोच किया जा रहा है. तो अब आने वाला वक्त ही बताया अगले सीजन के केबीसी का होस्ट कौन होगा एक बार फिर बच्चन साहब या कोई और.

Holi 2025 : इन बातों का रखें ख्याल, होली होगी और भी मजेदार

Holi 2025 : होली उमंग, उल्लास, उधम-कूद, भाग दौड़ का त्योहार है. मस्ती के इस मौके पर हमारी एक छोटी सी लापरवाही से किसी का बड़ा नुकसान हो सकता है. ऐसे में हम आपको कुछ खास बाते बताने वाले हैं, जिनको ध्यान में रख कर आप बेहतर ढंग से होली का लुत्फ उठा सकती हैं.

शुगर पर रखें काबू

इस बात का ख्याल रखना खासा जरूरी है. खास कर के जो लोग शुगर के मरीज हैं. त्योहारों में तेल और शक्कर से बने हुए पकवानो की भरमार होती है. डायबिटीज के मरीजों के लिए तेल और चीनी, दोनों ही नुकसानदायक होते हैं. मौज मस्ती में इन पकवानो का अधिक सेवन बाद में आपके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. इस लिए जरूरी है कि आप अपने खानपान पर अत्धिक ध्यान रखें और संयामित हो कर कुछ भी खाएं.

आंखों का रखें ख्याल

होली में खेले जाने वाले रंग रसायन से मिल कर बने होते हैं. अगर ये आंख में चले जाएं तो तेज जलन और कौर्निया को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जो लोग लेंस लगात हैं, वो रंग खेलते वक्त अपने लेंस उतार लें. ऐसा ना करना उनकी आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है.

दिल का रखें ध्यान

दिल की बीमारी झेल रहे लोगों को मिठाइयों, तेल के पकवानो से दूरी बनानी चाहिए. होली पर बनने वाले पकवान उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं. भारी खानपान से बेहतर कुछ हल्का फुल्का खाएं. त्योहार के उत्साह में कुछ भी ऐसा ना करें जिससे दिल पर जोर पड़े या धड़कन तेज हो जाए. अपनी दवाइयों को लेना ना भूलें.

किसी के नाक में ना जाए रंग

होली खेलते हुए हमें इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि रंग किसी की नाक में ना जाए. ये रंग आर्टिफीशियल होते हैं और तरह तरह के रसायनो से बने होते हैं. ऐसे में अगर रंग नाक में जाएगा तो गंभीर परेशानियां हो सकती हैं.

Holi 2025 : स्किन और बालों पर रंगों का न हो असर, फौलो करें ऐक्सपर्ट के ये टिप्स

Holi 2025 : आजकल रंग प्राकृतिक स्रोतों से नहीं बनाए जाते हैं. उन में रसायन, अभ्रक यहां तक कि सीसा भी मिला होता है, जो न केवल त्वचा में जलन पैदा करता है, बल्कि सिर की त्वचा में जम भी जाता है. चूंकि होली बाहर खेली जाती है, ऐसे में धूप का भी त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है. धूप के कारण त्वचा की नमी खत्म हो जाती है, त्वचा शुष्क हो जाती है. उस में टैनिंग भी हो जाती है. इसीलिए होली के बाद त्वचा की खूबसूरती कम हो जाती है. धूप में जाने से 20 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं. सनस्क्रीन एसपीएफ 20 या इस से अधिक होना चाहिए. अगर आप की त्वचा पर धब्बे पड़ जाते हैं, तो ज्यादा एसपीएफ चुनें. ज्यादातर सनस्क्रीन में मौइश्चराइजर भी होता है. अगर आप की त्वचा बहुत सूखी है, तो पहले सनस्क्रीन लगाएं, फिर कुछ मिनट बाद मौइश्चराइजर लगाएं. दिन में हलका मेकअप करें. आंखों के लिए आईपैंसिल या काजल और होंठों के लिए लिपग्लौस का इस्तेमाल करें.

होली खेलने के बाद त्वचा से रंग निकालना सब से मुश्किल होता है. अपने चेहरे को तुरंत साबुन से न धोएं, क्योंकि साबुन क्षारीय होता है, जो त्वचा के सूखेपन को और बढ़ाता है. इस के बजाय किसी क्लींजिंग क्रीम या लोशन का इस्तेमाल करें. चेहरे पर इस की मसाज करें और फिर गीली रुई से पोंछ लें. आंखों के आसपास के हिस्सों को भी हलके हाथों से साफ करें. क्लींजिंग लोशन रंगों को घोल कर उन्हें आसानी से निकाल देता है.

घर पर क्लींजर बनाने के लिए 1/2 कप ठंडे दूध में 1 चम्मच तिल, जैतून या सूरजमुखी का तेल मिला कर उस में रुई भिगो कर त्वचा को साफ करें.

तिल के तेल का भी शरीर से रंग निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इस से न केवल त्वचा में लगा रंग निकल जाएगा, बल्कि त्वचा भी सुरक्षित रहेगी. तिल का तेल धूप से होने वाले नुकसान को भी ठीक करने में मददगार होता है. नहाते समय लूफा की मदद से शरीर को हलके से स्क्रब करें. नहाने के तुरंत बाद जब त्वचा थोड़ी गीली हो, चेहरे और शरीर पर मौइश्चराइजर लगाएं. इस से त्वचा में नमी समा जाती है.

होली के अगले दिन आप को धूप के कारण त्वचा सूखी या टैनिंग युक्त लग सकती है. अत: 2 बड़े चम्मच शहद 1/2 कप दही में मिलाएं. इस में 1 चुटकी हलदी डालें. इसे चेहरे, गरदन और बाजुओं पर लगाएं. 20 मिनट बाद पानी से धो दें. शहद त्वचा को मुलायम बनाता है. दही त्वचा को पोषण प्रदान कर के अम्लक्षार का संतुलन बनाए रखता है. यह टैनिंग को भी निकालता है. रंगों के कारण सिर की त्वचा पर जलन होती है और बाल रूखे हो जाते हैं. होली खेलने से पहले बालों पर लीवऔन कंडीशनर या हेयरसीरम लगाएं. इस से बालों पर एक परत बन जाएगी जो इसे रंगों, धूप और प्रदूषण से बचाएगी. इस से बालों की चमक बनी रहेगी.

बाल धोते समय पहले बहुत सारे पानी से धो कर सूखे रंगों और अभ्रक के कणों को निकालें. इस के बाद माइल्ड हर्बल शैंपू लगा कर उंगलियों से सिर की त्वचा पर मसाज करें. फिर पानी से अच्छी तरह धोएं. एक मग पानी में एक नीबू का रस मिला कर बालों को धोएं. इस से सिर की त्वचा के अम्लक्षार का संतुलन बना रहता है.

अगर खुजली हो तो 2 चम्मच सिरका 1 मग पानी में डाल कर आखिरी रिंस के लिए इस्तेमाल करें. इस से खुजली समाप्त हो जाएगी. अगर खुजली फिर भी न जाए तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं. अगले कुछ दिनों के भीतर बालों को पोषक उपचार दें. अंडे की जर्दी को बादाम या जैतून के तेल में मिला कर बालों और सिर की त्वचा पर लगाएं. तौलिया गरम पानी में भिगो कर निचोड़ें. फिर उसे सिर पर लपेट कर 5 मिनट तक रखें. इस प्रक्रिया को 3-4 बार दोहराएं. इस से बाल और सिर की त्वचा तेल को अच्छी तरह से सोख लेगी. 1 घंटे बाद बालों को धो लें. मेहंदी बालों के नुकसान को ठीक करने में मदद करती है और उन्हें नई चमक देती है. मेहंदी पाउडर में 4 चम्मच नीबू का रस, कौफी, 2 अंडे, 2 चम्मच तेल और दही मिला कर पेस्ट बनाएं. इसे बालों में लगा कर 1 घंटे बाद धो लें.         

Relationship Tips : मुझे लगता है कि कहीं मेरी बीवी किसी लड़के से प्यार न करने लगे, मुझे क्या करना चाहिए?

Relationship Tips  : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी शादी को 6 महीने हो चुके हैं. मेरी बीवी मायके में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती है. उस की कई लड़कों से दोस्ती है. मुझे लगता है कि कहीं वह किसी लड़के से प्यार न करने लगे. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

शादी की बुनियाद यकीन पर टिकी होती है. आप को अपनी बीवी पर भरोसा करना चाहिए. उसे किसी से प्यार करना होता, तो शादी से पहले ही कर लेती. वैसे, आप उसे अपने पास रख कर भी पढ़ाई पूरी करा सकते हैं, पर वजह प्यार होनी चाहिए न कि शक.

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शादी से पहले मंगेतर के साथ सोना मना है क्योंकि..

शादी एक ऐसा समय है जब लड़का-लड़की एक साथ एक बंधन में बंधकर पूरा जीवन साथ में बिताने का वादा करते हैं. शादी को पुरूष आमतौर पर शारीरिक तौर पर अधिक देखते हैं. शादी का मतलब अधिकतर पुरूषों के लिए सेक्स संबध बनाना ही होता है लेकिन वे ये बात भूल जाते हैं कि शारीरिक संबंध से अधिक महत्वपूर्ण आत्मिक संबंध होता है.

यदि महिला और पुरूष आत्मिक रूप से एक-दूसरे से संतुष्ट‍ है तो फिर शारीरिक संबंधों में भी कोई दिक्कत नहीं होती. शादी से पहले यानी सगाई के बाद लड़के और लड़की को एकसाथ खूब समय बिताने को मिलता है लेकिन इसका ये अर्थ नहीं कि वे शादी से पहले फिजीकल रिलेशन बना ले या फिर प्री मैरिटल सेक्सू करें. शादी से पहले संयम बरतना जरूरी है. आइए जानें शादी और संयम के बारे में कुछ और दिलचस्प बातों को.

सगाई और शादी के बीच में संयम के बारे में कुछ और दिलचस्प बातें 

– सगाई के बाद लड़के और लड़की को आपस में एक-दूसरे से मिलना चाहिए और एक-दूसरे को जानना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही उन्हें संयम बरतना भी जरूरी है.

– यदि शादी से पहले फिजीकल रिलेशन बनाने के लिए लड़का-लड़की में से कोई भी पहल करता है तो दूसरे को मना करना चाहिए नहीं तो इससे इंप्रेशन अच्छा नहीं पड़ता.

– दोनों को समझना चाहिए कि प्री मैरिटल सेक्स से पहले उन्हें आपस में एक-दूसरे को जानने-सूझने का मौका मिला है जिससे वे पहले एक-दूसरे की पसंद-नापसंद इत्यादि के बारे में जान पाएं.

– ये जरूरी है कि मिलने वाले समय को लड़के व लड़की को समझदारी से बिताना चाहिए न कि फिजूल की चीजों में खर्च करना चाहिए.

– शादी से पहले संयम बरतने से न सिर्फ दोनों के रिश्तों में मजबूती आती है बल्कि दोनों का एक-दूसरे पर विश्वास भी बना रहता है. इसके साथ ही संबंधों में अंतरंगता का महत्व भी बरकरार रहता है.

– प्रीमैरिटल सेक्स में हालांकि कोई बुराई नहीं लेकिन दोनों के रिश्ते पर शादी के बाद मनमुटाव का ये कारण बन सकता है.

– रिश्तों में खुलापन जरूरी है. चाहे तो शादी से पहले आप चीजों को डिस्कस कर सकते हैं. एक-दूसरे के साथ समय व्यतीत कर सकते हैं. एक-दूसरे के साथ घूम-फिर सकते हैं लेकिन इसके लिए जरूरी नहीं कि फिजीकल रिलेशन ही बनाया जाए.

– शादी से पहले फिजीकल रिलेशन से रिश्तों में अवसाद पैदा होने की संभावना बनी रहती है क्योंकि इसके बाद हर समय मन में एक डर और बैचेनी रहने लगती है. इसीलिए इन सबसे बचना जरूरी है.

– सेक्ससुअल रिलेशंस आपके रिश्ते में करीबी ला भी सकते हैं और दूरी बढ़ा भी सकते हैं इसीलिए कोई भी

दम उठाने से पहले सोच-समझ कर विचार करना आवश्यक है.

शादी से पहले संयम बरतने में कोई नुकसान नहीं है बल्कि रिश्तों की मजबूती के लिए यह अच्छा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें-

submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Stories Online : बस एक सनम चाहिए

Hindi Stories Online : ‘‘सांसों की जरूरत है जैसे जिंदगी के लिए, बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’’ एफएम पर बजते ‘आशिकी’ फिल्म के इस गाने ने मुझे बरबस ही तनु की याद दिला दी.

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वह जब भी किसी नए रिश्ते में पड़ती थी, तो यह गाना गुनगुनाती थी.मनचली… तितली… फुलझड़ी… और भी न जाने किनकिन नामों से बुलाया करते थे लोग उसे…मगर वह तो जैसे चिकना घड़ा थी. किसी भी कमैंट का कोई असर नहीं पड़ता था उस पर. अपनी शर्तों पर, अपने मनमुताबिक जीने वाली तनु लोगों को रहस्यमयी लगती थी. मगर मैं जानती थी कि वह एक खुली किताब की तरह है. बस उसे पढ़ने और समझने के लिए थोड़े धीरज की जरूरत है.

वह कहते हैं न कि अच्छे दोस्त और अच्छी किताबें जरा देर से समझ में आते हैं…तनु के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि वह जरा देर से समझ आती है.

तनु मेरी बचपन की सहेली थी. स्कूल से ले कर कालेज और उस के बाद उस के जौब करने तक… मैं उस के हर राज की हमराज थी. पता नहीं कितनी चाहतें, कितने अरमान भरे थे उस के दिल के छोटे से आसमान में कि हर बार अपनी ही उड़ान से ऊपर उड़ने की ख्वाहिशें पलती रहती थीं उस के भीतर. वह जिस मुकाम को हासिल कर लेती थी वह तुच्छ हो जाता था उस के लिए. कभीकभी तो मैं भी नहीं समझ पाती थी कि आखिर यह लड़की क्या पाना चाहती है. इस की मंजिल आखिर कहां है?

8वीं क्लास में जब पहली बार उस ने मुझे बताया कि उसे हमारे क्लासमेट रवि से प्यार हो गया है तो मेरी समझ ही नहीं आया था कि मैं कैसे रिएक्ट करूं. तनु ने बताया कि रवि के साथ बातें करना, खेलना, मस्ती करना उसे बहुत भाता है. तब तो हम शायद प्यार के माने भी ठीक ढंग से नहीं जानते थे. फिर भी न जाने किस तलाश में वह पागल लड़की उस अनजान रास्ते पर आगे बढ़ती ही जा रही थी.

एक दिन रवि का लिखा एक लव लैटर उस ने मुझे दिखाया तो मैं डर गई. बोली, ‘‘फाड़ कर फेंक दे इसे…कहीं सर के हाथ लग गया तो तुम दोनों की खैर नहीं,’’ मैं ने उसे समझाते हुए उस की सहेली होने का अपना फर्ज निभाया.

‘‘अरे, कुछ नहीं यार… लाइफ में एक जिगरी यार तो होना ही चाहिए न. बस एक सनम चाहिए. आशिकी के लिए…’’ उस ने गुनगुनाते हुए कहा.

‘‘तो क्या मैं तुम्हारी जिगरी नहीं?’’ मैं ने तुनक कर पूछा.

‘‘तुम समझी नहीं. जिगरी यार से मेरा मतलब एक ऐसे दोस्त से है जो मुझे बहुत प्यार करे. सिर्फ प्यार… तुम तो सहेली हो. यार नहीं…’’ तनु ने मुझ नासमझ को समझाया.

फिर एक दिन तैश में आते हुए बोली, ‘‘आई हेट रवि.’’

मैं ने कारण पूछा तो उस ने बताया कि आज सुबह गेम्स पीरियड में बैडमिंटन कोर्ट में रवि ने उसे किस करने की कोशिश की.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही तो प्यार करने वाला जिगरी यार चाहती थी न?’’

सुनते ही बिफर गई तनु. बोली, ‘‘हां, चाहती थी प्यार करने वाला. मगर तभी जब उस में मेरी मरजी शामिल हो. बिना मेरी सहमती के कोई मुझे छू नहीं सकता.’’ कहते हुए उस ने रवि के लिखे सारे लव लैटर्स फाड़ कर डस्टबिन के हवाले कर दिए और लापरवाही से हाथ झटक लिए.

‘‘उम्र मात्र 14 वर्ष और ये तेवर?’’ मैं डर गई थी.

9वीं क्लास में हम दोनों ने कोऐजुकेशन छोड़ कर गर्ल्स स्कूल में ऐडमिशन ले लिया. स्कूल हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए हम सब सहेलियां साइकिल से स्कूल जाती थीं. 10वीं कक्षा तक आतेआते एक दिन उस ने मुझ से कहा, ‘‘स्कूल जाते समय रास्ते में अकसर एक लड़का हमें क्रौस करता है और वह मुझे बहुत अच्छा लगता है. लगता है मुझे फिर से प्यार हो गया…’’

मैं ने उसे एक बार फिर आग से न खेलने की सलाह दी. मगर वह अपने दिल के सिवा कहां किसी और की सुनती थी जो मेरी सुनती. अब तो स्कूल आतेजाते अनायास ही मेरा ध्यान भी उस लड़के की तरफ जाने लगा.

मैं ने नोटिस किया कि आमनेसामने क्रौस करते समय तनु उस लड़के की तरफ भरपूर निगाहों से देखती है. वह लड़का भी प्यार भरी नजरें उस पर डालता है. स्कूल के मेन गेट में घुसने से पहले एक आखिरी बार तनु पीछे मुड़ कर देखती थी और फिर वह लड़का वहां से चला जाता था.

साल भर तक तो उन का यह आंखों वाला प्यार चला

और फिर धीरेधीरे दोनों में प्रेम पत्रों का आदानप्रदान होने लगा. 1-2 बार छोटेमोटे गिफ्ट भी दिए थे दोनों ने एकदूसरे को. कई बार स्कूल के बाद कुछ देर रुक कर दोनों बातें भी कर लेते थे. तनु पहले की तरह ही मुझे अपने सारे राज बताती थी. अब तक हम दोनों 12वीं क्लास में आ गए थे. मैं ने एक दिन तनु से चुटकी ली, ‘‘कब तक चलेगा तुम्हारा यह प्यार?’’

तनु मुसकरा कर बोली, ‘‘जब तक प्यार सिर्फ प्यार रहेगा. जिस दिन इस की निगाहें मेरे शरीर को टटोलने लगेंगी, वही हमारे रिश्ते का आखिरी दिन होगा.’’

‘‘अरे यार, आशिकों का क्या है? रिकशों की तरह होते हैं. एक बुलाओ तो कई आ जाते हैं,’’ तनु ने बेहद लापरवाही से कहा.

मैं उस की बोल्डनैस देख कर हैरान थी. मैं ने पूछा, ‘‘तनु, तुम्हें ये सब करते हुए डर नहीं लगता?’’

‘‘इस में डरने की क्या बात है? अगर ऐसा कर के मेरा मन खुश रहता है तो मुझे खुश होने का पूरा हक है. और हां, ये लड़के लोग भी कहां डरते हैं? फिर मैं क्यों डरूं? क्या लड़की हूं सिर्फ इसलिए?’’ तनु थोड़ा सा गरमा गई. मेरे पास उस के तर्कों के जवाब नहीं थे.

उस दिन हमारी स्कूल की फेयरवैल पार्टी थी. हम सब को स्कूल के नियमानुसार साड़ी पहन कर आना था. तनु लाल बौर्डर की औफ व्हाइट साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. हम लोग हमेशा की तरह साइकिलों पर नहीं, बल्कि टैक्सी से स्कूल गए थे. शाम को घर लौटते समय तनु ने मेरे कान में कहा, ‘‘मैं ने आज अपना रिश्ता खत्म कर लिया.’’

‘‘मगर तुम तो हर वक्त मेरे साथ ही थी. फिर कब, कहां और कैसे उस से मिली? कब तुम ने ये सब किया?’’ मैं ने आश्चर्य के साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘शांतशांतशांत…जरा धीरे बोलो.’’ तनु ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और फिर बताने लगी, ‘‘टैक्सी से उतर के जब तुम सब स्कूल के अंदर जाने लगी थीं उसी वक्त मेरी साड़ी चप्पल में अटक गई थी, याद करो…’’

‘‘हांहां… तुम पीछे रह गई थी,’’ मैं ने याद करते हुए कहा.

‘‘जनाब वहीं खड़े थे. टैक्सी की आड़ में, पहले तो मुझे जी भर के निहारा, फिर हाथ थामा और बिना मेरी इजाजत की परवाह किए मुझे बांहों में भर लिया. किस करने ही वाला था कि मैं ने कस कर एक लगा दिया. पांचों उंगलियां छप गई होंगी गाल पर…’’ तनु ने फुफकारते हुए कहा.

‘‘अब तुम ओवर रिएक्ट कर रही हो.. अरे, इतना तो हक बनता है उस का…’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. मेरे शरीर पर सिर्फ मेरा अधिकार है,’’ तनु अब भी गुस्से में थी.

उस के बाद परीक्षा. फिर छुट्टियां और रिजल्ट के बाद नया कालेज. वह स्कूल वाला लड़का कुछ दिन तो कालेज के रास्ते में दिखाई दिया मगर तनु ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया तो उस ने भी अपना रास्ता बदल लिया. पता नहीं कैसी जनूनी थी तनु. उसे प्यार तो चाहिए मगर उस में वासना का तनिक भी

समावेश नहीं होना चाहिए. कालेज के 3 साल के सफर में उस ने 3 दोस्त बनाए. हर साल एक नया दोस्त. मैं कई बार उसे समझाया करती थी कि किसी एक को ले कर सीरियस क्यों नहीं हो जाती? क्यों फूलों पर तितली की तरह मंडराती हो?

‘‘फूलों पर मंडराना क्या सिर्फ भौंरो का ही अधिकार है? तितलियों को भी उतना ही हक है अपनी पसंद के फूल का रस पीने का…’’ तनु ताव में आ जाती.

तनु में एक खास बात थी कि वह किसी रिश्ते में तब तक ही रहती थी जब तक सामने वाला अपनी मर्यादा में रहता. जहां उस ने अपनी सीमा लांघी, वहीं वह तनु की नजरों से उतर जाता. तनु उस से किनारा करने में जरा भी वक्त नहीं लगाती. वह अकसर मुझ से कहती थी, ‘‘अपनी मरजी से चाहे मैं अपना सब कुछ किसी को सौंप दूं, मगर मैं अपनी मरजी के खिलाफ किसी को अपना हाथ भी नहीं पकड़ने दूंगी.’’

‘‘कालेज के बाद जौब भी लग गई. तनु अब तो अपनेआप को ले कर सीरियस हो जाओ. कोई अच्छा सा लड़का देखो और सैटल हो जाओ,’’ मैं ने एक दिन उस से कहा जब उस ने मुझे बताया कि आजकल उस का अपने बौस के साथ सीन चल रहा है.

‘‘मेरी भोली दोस्त तुम नहीं जानती इन लड़कों को. उंगली पकड़ाओ तो कलाई पकड़ने लगते हैं. जरा सा गले लगाओ तो सीधे बिस्तर तक घुसने की कोशिश करते हैं. जिस दिन मुझे ऐसा लड़का मिलेगा जो मेरी हां के बावजूद खुद पर कंट्रोल रखेगा, उसी दिन मैं शादी के बारे में सोचूंगी,’’ तनु ने कहा.

‘‘तो फिर रहना जिंदगी भर कुंआरी ही. ऐसा लड़का इस दुनिया में तो मिलने से रहा.’’

इस के बाद कुछ ही महीनों में मेरी शादी हो गई. तनु ने भी जयपुर की अपनी पुरानी जौब छोड़ कर मुंबई की कंपनी जौइन कर ली. कुछ समय तो हम एकदूसरे के संपर्क में रहे फिर धीरेधीरे मैं अपनी गृहस्थी और बच्चे में बिजी होती चली गई और तनु दिल के किसी कोने में एक याद सी बन कर रह गई.

आज इस गाने ने बरबस ही तनु की याद दिला दी. उस से बात करने को मन तड़पने लगा. ‘पता नहीं उसे सनम मिला या नहीं…’ सोचते

हुए मैं ने पुरानी फोन डायरी से उस का नंबर देख कर डायल किया, लेकिन फोन स्विच औफ आ रहा था.

‘क्या करूं? कहां ढूंढ़ूं तनु को इतनी बड़ी दुनिया में,’ सोचतेसोचते अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल गई और मैं ने तुरंत लैपटौप पर फेस बुक लौग इन किया. सर्च में ‘तनु’ लिखते ही अनगिनत तनु नाम की आईडी नजर आने लगीं. उन्हीं में एक जानीपहचानी शक्ल नजर आई. आईडी खंगाली तो मेरी ही तनु निकली. मैं ने उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी.

2 दिन तक कोई रिस्पौंस नहीं आया, मगर तीसरे दिन इनबौक्स में उस का मैसेज देखते ही मैं झूम उठी. उस ने अपना मोबाइल नंबर लिख कर रात 8 बजे से पहले बात करने को कहा था. लगभग 7 बजे मैं ने फोन किया. वह भी शायद मेरे ही फोन का इंतजार कर रही थी.

फोन उठाते ही अपनी चिरपरिचित शैली में चहक कर बोली, ‘‘हाय फ्रैंडी, कैसी हो? आज अचानक मेरी याद कैसे आ गई? बच्चे और जीजाजी से फुरसत मिल गई क्या?’’

‘‘अरे बाप रे, एकसाथ इतने सवाल? जरा सांस तो ले ले,’’ मैं ने हंसते हुए कहा. फिर उसे उस गाने की याद दिलाई जिसे वह अकसर गुनगुनाया करती थी.

सुन कर तनु जोर से खिलखिला उठी. कहने लगी, ‘‘क्या करूं यार, मैं शायद ऐसी ही हूं… बिना आशिकी के रह ही नहीं सकती.’’

‘‘क्या अब तक आशिक ही बदल रही है? तेरे मनमुताबिक कोई परमानैंट साथी नहीं मिला क्या?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे, तुझे बताया नहीं क्या कभी? मैं ने राजीव से शादी कर ली थी,’’ तनु ने नए राज का खुलासा किया.

‘‘हम मिले ही कब थे जो तुम मुझे बताती? पर मैं बहुत खुश हूं. आखिर मेरी मेनका को विश्वामित्र मिल ही गया,’’ मैं ने अपनी खुशी जाहिर की.

‘‘हां यार. 2 साल तक हम दोनों का रिश्ता रहा. मैं ने उसे अपनी कसौटी पर खूब परखा. इस के लिए मैं ने अपनी सीमाएं लांघ कर उसे फुसलाने की बहुत कोशिश की, मगर वह नहीं फिसला. एक बार तो मुझे शक भी हुआ था कि यह पुरुष है भी या नहीं. कोई लड़की इतनी लिफ्ट दे रही है और ये महाशय ब्रह्मचारी बने बैठे हैं.’’ तनु के शब्दों की गाड़ी चल पड़ी थी. मेरी भी दिलचस्पी अब उस की बातों में बढ़ने लगी थी.

‘‘अच्छा, फिर आगे क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘लगता है राजीव आ गया. बाकी बातें कल करेंगे,’’ कह कर तनु ने मुझ अचंभित छोड़ कर फोन काट दिया.

दूसरे दिन शाम 7 बजे तनु का फोन आया.  उस ने कल के लिए सौरी बोला और कहा, ‘‘फोन काटने के लिए सौरी. मगर हम दोनों ने डिसाइड कर रखा है कि घर आने के बाद अपना सारा समय सिर्फ एकदूसरे को ही देंगे.’’

‘‘यह तो बहुत प्यारी बौंडिंग है तुम दोनों के बीच. खैर सौरीवौरी छोड़, तू तो आगे की स्टोरी बता,’’ मैं ने उसे याद दिलाया.

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए तनु कहने लगी, ‘‘राजीव यों तो मुझ से बहुत प्यार जताता था, मगर जब भी मैं उसे लिफ्ट देती थी वह मुझ से कहता था कि दोस्ती तो ठीक है, मगर वह बिना शादी के जिस्मानी संबंध के पक्ष में नहीं है. वह ऐसे संबंध को अपनी होने वाली पत्नी के साथ विश्वासघात समझता है,’’ तनु ने कहा.

‘‘वैरी गुड. तुम्हें ऐसे ही साथी की लाश थी,’’ मैं ने खुश होते हुए कहा.

‘‘हां, और फिर हम ने शादी कर ली.’’

‘‘यानी हैप्पी ऐंडिंग,’’ मैं उस के लिए खुश हो गई.

‘‘नहीं, असली कहानी तो उस के बाद शुरू हुई,’’ तनु थोड़ी झिझकी.

‘‘अब क्या हुआ. क्या राजीव सचमुच पुरुष नहीं था?’’ मेरा मन घबरा उठा.

‘‘वह पक्का पुरुष ही था,’’ तनु ने कहा.

‘‘वह कैसे?’’ मैं ने आशंकित हो कर पूछा.

‘‘हुआ यों कि शादी के साल भर बाद ही मुझे बेचैनी होने लगी. आदतन मेरा मन किसी के प्यार के लिए तड़पने लगा. विवेक जो मेरे विभाग में नया आया था, मेरा मन उस की तरफ खिंचने लगा. उस का केयरिंग नेचर मुझे लुभाने लगा. यह बात भला एक पति और वह भी राजीव जैसे पुरुष को कैसे सहन हो सकती थी,’’ तनु बोली.

‘‘मगर क्यों? क्या राजीव के प्यार में कोई कमी थी?’’ मैं ने आशंकित हो कर पूछा.

‘‘अरे यार समझा कर, जब हम दोस्त को पति बना लेते हैं तो एक अच्छा दोस्त खो देते हैं. बहुत सी बातें ऐसी भी होती हैं जो हम पति से नहीं बल्कि एक दोस्त से ही कह सकते हैं. मेरे साथ भी यही हुआ. पता नहीं ये लड़के लोग शादी करने के बाद इतने पजैसिव क्यों हो जाते हैं,’’ तनु धीरेधीरे खुल रही थी.

‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ’’ मैं ने आदतन जिज्ञासा से पूछा.

‘‘होना क्या था, हमारे बीच दूरियां बढ़ने लगीं. विवेक का जिक्र आते ही जैसे राजीव के चेहरे की रौनक गायब हो जाती थी. उसे मेरा विवेक से मिलना, हंसना, बोलना जरा भी पसंद नहीं था. शादी के बाद गैरमर्द से दोस्ती रखना उस के हिसाब से चरित्रहीनता थी, मगर मैं भी अपने दिल के हाथों मजबूर थी. मैं बिना प्यार के रह ही नहीं सकती.’’ तनु ने कहा.

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या? एक दिन मैं ने राजीव का हाथ अपने हाथ में ले कर उस से पूछा कि दिल पर हाथ रख कर बताओ कि जब हम दोस्त थे तब वह मेरे चरित्र के बारे में क्या सोचता था? उस ने कहा कि उस ने मुझ जैसे मजबूत इरादों वाली लड़की नहीं देखी और वह मेरी इसी खूबी पर मरमिटा था. बस फिर क्या था. मैं ने उसे समझाया कि शादी से पहले जब मैं इतने लड़कों के साथ दोस्ती कर के भी वर्जिन रही तो अब वह कैसे सोच सकता है कि मेरी दोस्ती में पवित्र भावना नहीं होगी.’’

‘‘फिर क्या कहा राजीव ने?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी.

‘‘मैं ने उसे यकीन दिलाया कि जिस वक्त मेरे किसी दोस्त का हाथ मेरे कंधे से नीचे सरकने लगेगा मैं उसी क्षण हाथ झटक दूंगी. मेरे तन और मन पर सिर्फ और सिर्फ उसी का हक है. बस मेरे खुश होने की शर्त शायद यही है कि एक जिगरी दोस्त मेरी जिंदगी में होना ही चाहिए,’’ तनु ने अपनी बात पूरी की.

‘‘फिर?’’

‘‘बस, बात राजीव की समझ में आ गई कि मैं दोस्त के बिना खुश नहीं रह

सकती और अगर मैं खुश नहीं रहूंगी तो उसे खुश कैसे रखूंगी,’’ तनु आगे बोली.

‘‘अच्छा.’’ सुन कर मैं उछल पड़ी.

‘‘इस के बाद उस ने मुझे विवेक से दोस्ती रखने से नहीं रोका और मैं ने भी उस से वादा किया कि जब वह मेरे साथ होगा तब मेरे वक्त पर सिर्फ उसी का अधिकार होगा,’’ तनु ने अपनी बात खत्म की.

हम ने आगे भी टच में रहने का वादा करते हुए फोन पर विदा ली. तनु का फोन तो कट गया, मगर मैं अभी भी मोबाइल को कान पर लगाए सोच रही थी कि कितनी साहसी है तनु. सच ही तो कहती है कि कम से कम एक आशिक तो हमारी जिंदगी में ऐसा होना ही

चाहिए जो हमें सिर्फ प्यार करे. हमारी हर बुराई के साथ हमें स्वीकार करे. जिस से हम अपनी सारी अच्छीबुरी बातें शेयर कर सकें. पति से जुड़े राज भी. जिसे हम खुल कर अपनी कमियां बता सकें.

हम औरतें जिंदगी भर अपने पति में एक दोस्त ढूंढ़ती रहती हैं, मगर पति पति ही रहता है. वह दोस्त नहीं बन सकता.’’

Hindi Moral Tales : मजनू की मलामत

Hindi Moral Tales : उन दिनों मैं इंटर में पढ़ता था. कालेज में सहशिक्षा थी, लेकिन भारतीय खासतौर पर कसबाई समाज आज की तरह खुला हुआ नहीं था. लड़के लड़की के बीच सामान्य बातचीत को भी संदेह की नजरों से देखा जाता था. प्यारमुहब्बत होते तो थे पर बहुत ही गोपनीयता के साथ. बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती थी. हमारे कालेज में लड़कियां पढ़ती थीं लेकिन खामोशी के साथ सिर झुकाए आतीजाती थीं. वे कालेज परिसर में बिना कारण घूमतीफिरती भी नहीं थीं. ज्यादातर कौमन रूम में रहती थीं. क्लास शुरू होने के कुछ मिनट पहले आतीं और लड़कों से अलग एक ओर खड़ी रहतीं. शिक्षक के आने के बाद ही क्लास में प्रवेश करतीं और अगली बैंचों पर बैठ जातीं फिर शिक्षक के साथ ही निकलतीं.

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उन्हीं दिनों मेरी क्लास में सरिता नामक एक अत्याधुनिक लड़की ने दाखिला लिया. वह बहुत ही खूबसूरत थी और लाल, पीले, नीले जैसे चटकदार रंगों की ड्रैसें पहन कर आती, जो उस पर खूब फबती भी थीं. कालेज के शिक्षकों से ले कर छात्रों तक में उसे ले कर उत्सुकता थी. कई लड़के तो उस का पीछा करते हुए उस का घर तक देख आए थे, लेकिन उस जमाने में छिछोरापन कम था इसलिए उस के साथ कोई छेड़खानी या अभद्रता नहीं हुई. उन दिनों मेरा एक मित्र था जो पढ़ता तो दूसरे सैक्शन में था, लेकिन अकसर मुझ से मिलताजुलता रहता था. सरिता के कालेज में दाखिले के बाद मुझ से उस की मित्रता कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ होती जा रही थी. वह प्राय: हमारी क्लास शुरू होने के वक्त हमारे पास आ जाता और गप्पें मारने लगता. मैं ने कई दिन तक नोटिस करने के बाद महसूस किया कि वह बात तो हम लोगों से करता था, लेकिन उस की नजर सरिता पर टिकी रहती थी. एकाध बार उसे सरिता का पीछा करते हुए भी देखा गया. उस की कदकाठी अच्छी थी, लेकिन देखने में कुरूप था. मुझे लगा कि इसे सबक सिखाना चाहिए.

अगले दिन जब वह मेरे होस्टल में आया तो मैं ने कहा कि भाई अनिमेष, सरिता पूछ रही थी कि आप के साथ जो सांवले से, लंबे, स्मार्ट नौजवान रहते हैं वे कौन हैं व कहां रहते हैं? अनिमेष का चेहरा खिल उठा, ‘‘अच्छा, वाकई में… कब पूछा उस ने?’’

‘‘प्रैक्टिकल रूम में 2-3 बार पूछ चुकी है. तुम उस से दोस्ती क्यों नहीं कर लेते,’’ मैं ने कहा. ’’ लेकिन कैसे?’’

‘‘तुम ऐसा करो कि शाम को 5 बजे मेरे पास आओ. फिर बताता हूं.’’ कालेज से लौट कर शाम के वक्त वह मेरे कमरे में आया. इस बीच मैं ने अपने कुछ मित्रों को अपनी योजना बता दी थी और उन्हें अभियान में शामिल कर लिया था. हम सब ने उस की प्रशंसा कर उसे फुला दिया.

‘‘करना क्या है?’’ उस ने मासूमियत से पूछा. ‘‘सब से पहले तो तुम्हारा हुलिया बदलना पड़ेगा, चलो.’’

हम ने पूरे होस्टल में घूम कर किसी का सूट, किसी का हैट, किसी का जूता इकट्ठा किया और उसे एक कार्टून की तरह मेकअप कर के तैयार कर दिया. इस के बाद उसे सरिता के घर की तरफ ले कर चले . हम ने रास्ते में उसे समझाया कि तुम्हें उसे बुलवाना है और उस से फिजिक्स की कौपी यह कह कर मांगनी है कि तुम नोट कर के लौटा दोगे. इस तरह आपस में बातचीत की शुरुआत होगी. साथ ही हड़काया भी कि अगर तुम ने कहे मुताबिक नहीं किया तो हम सब तुम्हारी पिटाई कर देंगे.

सरिता के घर के पास पहुंच कर हम सभी ऐसी जगह छिप गए जहां से उन की गतिविधियां देख सकते थे, बातें सुन सकते थे लेकिन उन की नजर में नहीं आ सकते थे. वह सहमता, सकुचाता हुआ सरिता के घर के दरवाजे पर पहुंचा, दस्तक दी. सरिता की मौसी बाहर निकलीं और बोलीं, ’’क्या बात है, किस से मिलना है?’’

’’जी…जी…जी… सरिता से काम है… मैं उस की क्लास में पढ़ता हूं.’’ मौसी ने सरिता को आवाज दी और खुद अंदर चली गईं.

’’यस, क्या बात है. आप कौन हैं? मुझ से क्या काम है?’’ सरिता ने आते ही पूछा. ’’जी…जी… 2-3 दिन के लिए… आ… आ… आप की फिजिक्स की कौपी चाहिए, फिर लौटा दूंगा.’’

’’तुम तो मेरी क्लास में नहीं पढ़ते. मेरी कौपी क्यों चाहिए. खूब समझती हूं, तुम जैसे लड़कों को. चुपचाप चलते बनो, नहीं तो चप्पल से पिटाई कर दूंगी. भागो यहां से.’’ ’’जी…जी… आप गलत समझ रही हैं…’’

’’तुम जाते हो कि सब को बुलाऊं…’’ सरिता ने चिल्ला कर कहा. ’’ज…ज…जाता हूं… जाता हूं,’’ और वह चुपचाप वापस लौट आया.

हम ने इशारे से आगे आने को कहा. उस के घर से कुछ दूर पहुंचने के बाद पूछा, ’’अब बताओ कैसी रही?’’ ’’बहुत बढि़या… उस ने कहा कि कौपी एकदो रोज बाद ले लीजिएगा… फिर चाय पीने के लिए अंदर आने को कहा लेकिन मैं ने क्षमा मांग ली कि फिर कभी.’’

हम एकदूसरे को देख मुसकराए, फिर उस की पीठ ठोंकते हुए कहा, ’’चलो, इसी बात पर पार्टी हो जाए.’’ उसे मजबूरन पार्टी देनी पड़ी. इस के बाद वह हम से कतराने लगा. हम में से किसी को देखता तो तुरंत बहाना बना कर दूसरी ओर निकल जाता.

3-4 दिन बाद वह पकड़ में आया तो हम ने पूछा, ’’कहो, भाई अनिमेष, सरिता से मिलने के बाद हमें भूल गए क्या, मत भूलो कि तुम्हारे काम हम ही आएंगे.’’ वह खिसियानी हंसी हंस कर रह गया. हम उसे पकड़ कर होस्टल ले आए और कहा कि आज तुम्हें फिर से सरिता के घर चलना है.

वह आनाकानी करता रहा लेकिन खुल कर बोल नहीं पाया कि उस दिन क्या हुआ था. हम ने फिर उसे धमका कर तैयार किया और उसे मजबूरन सरिता के घर जाना पड़ा. इस बार सरिता ने दरवाजा खोलते ही उसे फटकार लगाई, ’’तुम फिर आ गए. लगता है, तुम बातों के देवता नहीं हो. बिना लात खाए नहीं मानोगे.’’

म…म…माफ कर दीजिए. कुछ मजबूरी थी, आना पड़ा. जा रहा हूं,’’ और वह पलट कर भागा. हम ने थोड़ी दूर पर उसे लपक कर पकड़ा और पूछा, ’’क्या हुआ… बहुत जल्दी लौट आए?’’

’’हां… उस के घर वालों को शक हो गया है. अब वह मुझ से नहीं मिल सकेगी.’’ ’’यह क्या बात हुई… शुरू होने के पहले ही खत्म हो गया अफसाना,’’ मैं ने कहा.

’’जाने दो भाई. कुछ मजबूरी होगी.. इस किस्से को अब खत्म करो…’’ उस ने पीछा छुड़ाने हेतु मासूमियत से कहा, ’’चलो, ठीक है. कल क्लास में मिलोगे न?’’

’’देखेंगे…’’ इस के बाद अनिमेष हमें पूरब में देखता तो पश्चिम की ओर रुख कर लेता. मेरी क्लास के वक्त आना भी उस ने छोड़ दिया था. हमारी योजना सफल रही.

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