क्या Hair Transplant वाकई सेफ है? जानें ये सर्जरी कब हो सकती है खतरनाक

Hair Transplant : आज के समय में बाल झड़ना, गंजापन और कमजोर बालों की समस्या आम है. खासकर युवाओं में यह परेशानी तेजी से बढ़ रही है. इस के पीछे कई कारण हैं जैसे, बढ़ता प्रदूषण, खराब लाइफस्टाइल, तनाव, नींद की कमी, हैल्दी खानपान की कमी, वंशानुगत और जंकफूड से प्यार.

सोशल मीडिया पर ‘परफैक्ट लुक’ के दबाव के चलते युवा तेजी से कौस्मेटिक ट्रीटमैंट्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिन में से एक है हेयर ट्रांसप्लांट। इसे हेयर रैस्टोरेशन या हेयर रिप्लेसमैंट भी कहा जाता है.

हालांकि हेयर ट्रांसप्लांट एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जो सही तरीके और अनुभवी डाक्टर की निगरानी में कराई जाए तो असरदार साबित हो सकती है. लेकिन इस में छोटी सी लापरवाही गंभीर नतीजे दे सकती है. यहां तक कि जान भी जा सकती है.

हाल ही में कानपुर में 2 लोगों की मौत के मामले सामने आए, जिन्होंने हेयर ट्रांसप्लांट करवाया था. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि इस प्रक्रिया को ले कर जागरूकता फैलाई जाए. हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप अगर गंजेपन से जूझ रहे हैं तो उस के लिए कोई उपाय न करें. आप को भी अपने पर्सनैलिटी को बेहतर बनाने का पूरा हक है, लेकिन जरूरी है कि आप हेयर ट्रांसप्लांट से पहले उस से संबंधित सारी जानकारी ले लें.

हेयर ट्रांसप्लांट क्या है

हेयर ट्रांसप्लांट एक सर्जरी होती है, जिस में सिर के किसी भाग से बालों की जड़ें (फौलिकल्स) निकाल कर गंजे या पतले बालों वाले हिस्सों में प्रत्यारोपित की जाती हैं. बालों के झड़ने और गंजेपन से जूझ रहे युवा जब बाल उगाने के सब नुसखे आजमा चुके होते हैं तब सीन में आखिरी और स्थायी विकल्प के तौर पर हेयर ट्रांसप्लांट की हीरो जैसी ऐंट्री होती है.

कितने तरह का होता है हेयर ट्रांसप्लांट

फौलिकुलर यूनिट ट्रांसप्लांटेशन (एफयूटी) : इस में सिर के पीछे के हिस्से में चीरा लगाकर स्किन की एक पतली पट्टी निकाली जाती है, जिस में हजारों हेयर फौलिकल्स होते हैं. उस स्किन स्ट्रिप को माइक्रोस्कोप की मदद से कई छोटेछोटे ग्राफ्ट्स (फौलिक्युलर यूनिट्स) में बांटा जाता है, जिन में 1 से 4 बालों की जड़ें होती हैं. इन स्किन ग्राफ्ट्स को जिन जगहों पर बाल कम हैं या नहीं हैं, वहां छोटेछोटे छेद कर के लगाया जाता है. बाद में स्किन को टांके लगा कर सिल दिया जाता है और कुछ हफ्तों में वहां बाल उगने लगते हैं. बहरहाल, इस में सिर के पीछे की तरफ लंबा कट ठीक होने में वक्त लेता है और व्यक्ति को टांके ठीक होने तक सोने में भी परेशानी होती है. कट का निशान भी काफी वक्त तक विजिबल रहता है.

*फौलिक्युलर यूनिट एक्सट्रैक्शन (एफयूई) : इस के लिए सब से पहले उस हिस्से को ट्रिम किया जाता है यानी बालों की लैंथ को कम किया जाता है, जहां से बाल निकाले जाने हैं. फिर एक माइक्रो पंच टूल की मदद से बालों की जड़ों (फौलिक्युलर यूनिट्स) को निकाला जाता है. इस में सर्जिकल स्ट्रिप नहीं निकाली जाती, इसलिए कोई लंबा कट नहीं लगाया जाता. इस की अच्छी बात यह भी है कि इस में बाल केवल सिर से ही नहीं, बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों जैसे दाढ़ी, छाती, पेट और प्यूबिक एरिया से भी निकाले जा सकते हैं. इस में जहां से बाल लिए जाते हैं यानी डोनर एरिया में ठीक होने का वक्त भी कम लगता है.

अब बात आती है किन लोगों को हेयर ट्रांसप्लाट की तरफ जाना चाहिए? तो वे लोग जो बाल उगाने के अन्य तरीके आजमा चुके हैं और जिन्हें कोई रिजल्ट नहीं मिल रहा हो, जिन के सिर के 50% के आसपास बाल झड़ चुके हों, हेयरफौल की समस्या स्थायी हो और अनुवांशिक हो, सर के पीछे के हिस्से यानी डोनर एरिया में बाल हों, और उम्र 25 साल से ज्यादा हो.

हेयर ट्रांसप्लांट किन लोगों को नहीं कराना चाहिए

डायबिटीज के मरीजों में घाव भरने की प्रक्रिया धीमी होती है, जिस से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
दिल के मरीजों को यह सर्जरी कार्डियोलौजिस्ट की देखरेख में ही करानी चाहिए, क्योंकि एनेस्थीसिया या ऐंटीबायोटिक्स से ऐलर्जी हो सकती है. जरूरी है कि सर्जरी से पहले आप सभी ऐलर्जी टेस्ट करा लें.

स्कैल्प से जुड़ी बीमारियों जैसे एलोपेसिया एरियाटा जो कि ओटोइम्यून बीमारी है, जिस में पूरे शरीर के बाल झड़ने लगते हैं या लाइकेन प्लानो पिलारिस वाले लोगों में हेयर ट्रांसप्लांट सफल नहीं होता. कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों के लिए भी यह प्रक्रिया नुकसानदेह हो सकती है.

ब्लड क्लौटिंग या खून में थक्का जमने की बीमारी से जूझ रहे लोगों को भी ट्रांसप्लांट से दूर रहना चाहिए. जो 25 साल से नीचे की उम्र के लोग हैं उन्हें ट्रांसप्लांट से दूरी ही बना कर रखनी चाहिए.

सर्जरी से पहले बरतें सावधानियां

● किसी अनुभवी और प्रमाणित हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन से ही सलाह लें.

● डाक्टर की योग्यता, अनुभव और पुराने मरीजों के रिव्यू जान लें.

● अपनी हैल्थ कंडीशन, ऐलर्जी और दवाओं की पूरी जानकारी डाक्टर को दें.

● ऐलर्जी टेस्ट जरूर करवाएं, ताकि एनेस्थीसिया या दवाओं से कोई रिएक्शन न हो.

● क्लिनिक में इमरजैंसी सुविधाएं, स्टरलाइजेशन और औक्सीजन सपोर्ट की व्यवस्था होनी चाहिए.

● एनेस्थीसिया देने के दौरान विशेषज्ञ होना मौजूद चाहिए.

● सर्जरी से पहले कोई टैक्नीशियन या काउंसलर नहीं, बल्कि डाक्टर ही आप का मार्गदर्शन करे.

हेयर ट्रांसप्लांट के बाद बाल कब आते हैं

● 3 से 4 महीने में 10-20% बाल उगते हैं.

● 6 महीने में 50% तक ग्रोथ होती है.

● 8 से 9 महीने में लगभग 80% परिणाम दिखते हैं.

● 12 महीने के भीतर अधिकतर मामलों में 100% ग्रोथ हो जाती है.
हालांकि यह समय हर व्यक्ति के शरीर, स्किन और फौलिकल्स की क्षमता पर निर्भर करता है.

ट्रांसप्लांट के बाद क्या सावधानी रखें

● सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक सीधा न सोएं, करवट ले कर और सिर को ऊंचा कर के ही लेटें. सर्जरी से पहले न तो मेहंदी लगाएं न ही हेयर डाई करें. सिर में तेल या जैल लगा कर सर्जरी के लिए न पहुंचें. सर्जरी से पहले बाल और स्कैल्प साफ और धुली हुई हो.

● अगर किसी दूसरे शहर में ट्रीटमैंट कराया है तो 2-3 दिन तक उसी शहर में रहें, जहां ट्रांसप्लांट हुआ है.

● पहली पट्टी क्लिनिक जा कर ही हटवाएं. पहला हेयर वौश क्लिनिक में डाक्टर की निगरानी में ही करवाएं.

● बालों पर ऊपर से सेलाइन स्प्रे करें, हाथ लगाने या खुजली करने से बचें.

● सीधे धूप में जाने से बचें, बाहर जाते समय सर्जरी टोपी पहनें. हेलमेट या नौर्मल कैप 10-15 दिन बाद पहनें.

● बाल धोने के लिए केवल ऊपर से शैंपू का पानी डालें, मसलें नहीं. सिर को खुला नहीं रखें। जब तक घाव भर नहीं जाते तब तक सिर को सर्जिकल कैप या कौटन के कपड़े से ढंक कर ही रखें.

● ट्रांसप्लांट वाली जगह पर मक्खियां व मच्छरों को न बैठने दें.

● कम से कम 2 हफ्ते तक स्विमिंग से बचें. ट्रांसप्लांट के बाद कम से कम 10 दिन हेवी ऐक्सरसाइज से भी दूरी बना कर रखें.

● शराब तथा सिगरेट के सेवन से दूरी ही भली. डाक्टर ने जो ऐंटीबायोटिक्स आप को दिए हैं उन का समय से सेवन करें. सर्जरी से 24 घंटे पहले तक डाक्टर को बताए बगैर किसी भी दवा का सेवन न करें.

हेयर ट्रांसप्लांट के साइड इफैक्ट्स

बहरहाल, ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया आमतौर पर सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन कुछ हलके और अस्थायी साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं.

सिर पर सूखे घाव या पपड़ियां बनना, हलकी खुजली या जलन, सुन्नपन या सनसनाहट, हलका सिर दर्द या असहजता, सूजन या टाइटनैस की भावना आदि लक्षण आमतौर पर कुछ हफ्तों में अपनेआप ठीक हो जाते हैं. लेकिन अगर इन में सुधार न हो तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करना जरूरी है.

हेयर ट्रांसप्लांट कितना खतरनाक हो सकता है

एक स्टडी के अनुसार हेयर ट्रांसप्लांट में 4.7% मामलों में नकारात्मक परिणाम देखे गए. हालांकि संख्या कम है, लेकिन इस में रिएक्शन, इन्फैक्शन और सेप्सिस जैसे मामले भी शामिल हैं, जो जानलेवा हो सकते हैं.

कानपुर की घटना इस बात का उदाहरण है कि बिना जरूरी मैडिकल जांच और सावधानी के की गई हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी जीवन के लिए खतरा बन सकती है. ऐसे में सिर्फ सस्ता औफर देख कर जल्दबाजी में कदम न उठाएं.

हेयर ट्रांसप्लांट आज के समय में एक आम कौस्मेटिक सर्जरी बन चुकी है. लेकिन इस के कौंप्लिकेशन को आम मानना ठीक नहीं है. इसलिए इसे करवाने से पहले हर व्यक्ति को अपनी स्वास्थ्य स्थिति, प्रक्रिया की बारीकियों, डाक्टर की योग्यता और क्लिनिक की विश्वसनीयता की पूरी जांचपड़ताल करनी चाहिए.

बालों की चाह में कोई जल्दबाजी या लापरवाही जानलेवा साबित हो सकती है. जरूरी है कि हम सजग रहें, सही जानकारी जुटाएं और जरूरत पड़े तो वैकल्पिक तरीकों को भी अपनाएं. बालों से बढ़ कर जिंदगी है, इसलिए फैसला सोचसमझ कर लें.

Scrapbook : शौक के साथ व्यायाम भी

Scrapbook : स्क्रैपबुक बनाना पुरानी खूबसूरत स्मृतियों को संजोने की अनोखी कला होने के साथसाथ रचनात्मकता दिखाने का एक बेहतर तरीका है. स्क्रैपबुक का विषय हर किसी का अलग अलग हो सकता है. यह पूरी तरह अपने अनुभव, किसी खास मूमेंट, घटना या शौक पर आधारित हो सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो अपने शब्दों और तसवीरों को एक आकर्षक तरीके से एकसाथ संजोना एक अलग ही अनुभव देता है.

स्क्रैपबुक की थीम चुनें

सब से पहले आप को यह तय करना होगा कि आप किस स्टाइल की स्क्रैपबुक अल्बम चाहते हैं. यह कई तरह की हो सकती है जैसे ट्रैवल स्क्रैपबुक में किसी यात्रा की यादगार तसवीरें, टिकट, नक्शे और वहां के अनुभव आदि हो सकते हैं.

फ्रैंडशिप स्क्रैपबुक : फ्रैंड्स के साथ बिताए खट्टेमीठे पलों की तसवीरें और मजेदार किस्से।

फैमिली स्क्रैपबुक : जैसेकि नाम से ही पता चल रहा है इस स्क्रैपबुक में अपनी फैमिली की फोटो, उन के साथ ऐंजौय किए हुए कुछ फंक्शन, बर्थडे पार्टी की यादें, महत्त्वपूर्ण तिथियां आदि के बारे में जानकारी दी जा सकती है.

स्कूल/कालेज स्क्रैपबुक : स्कूल या कालेज के दिनों की तसवीरें, अपनी फेयरवेल पार्टी, स्कूल पिकनिक, दोस्तों के साथ मस्ती, फेवरिट टीचर्स की कुछ यादें और फोटो डाली जा सकती हैं.

हौबी स्क्रैपबुक : अपने किसी शौक (जैसे बागवानी, खाना बनाना, पेंटिंग) से संबंधित तसवीरें और जानकारी.

औल अबाउट मी स्क्रैपबुक : इस में अपनी पसंद, नापसंद, सपने और उपलब्धियों को दर्शाती स्क्रैपबुक (खासकर बच्चों के लिए मजेदार)

स्क्रैपबुक या अल्बम कैसी लें

सब से पहले आप को यह तय करना होगा कि आप किस स्टाइल की स्क्रैपबुक अल्बम चाहते हैं : पोस्ट बाउंड, थ्री-रिंग, स्ट्रैप-हिंग, बुक बाउंड या अन्य। फिर आप अपनी स्क्रैपबुक का आकार तय कर सकते हैं, 12 x 12 इंच, 8.5 x 11 इंच, 8×6 इंच या मिनी थीम चुन सकते हैं। अधिकांश लोग 4×4, 8×8 और 6×9 जैसे मिनी अल्बम का उपयोग करना पसंद करते हैं। आप चाहें तो मोटे चार्ट पेपर या कार्डबोर्ड शीट का उपयोग कर के घर पर भी अपनी स्क्रैपबुक का बेस तैयार कर सकते हैं।

स्क्रैपबुक बनाने के लिए आवश्यक सामग्री

तसवीरें : अपनी स्क्रैपबुक के विषय से संबंधित तसवीरें इकट्ठा करें.

चिपकाने का सामान : गोंद (फेविकोल), दोतरफा टेप (double-sided tape) या फोटो कौर्नर.

काटने का सामान : कैंची, पेपर कटर.

लिखने का सामान : रंगीन पेन, मार्कर, स्केच पेन.

सजावटी सामान : ग्लिटर और सीक्वेंस, रंगीन कागज, फूल (सूखे या कृत्रिम), स्टिकर, रिबन और लेस
बटन, पुराने लिफाफे, टिकट या कोई भी यादगार चीज, कटआउट (अखबारों या पत्रिकाओं से)

अच्छी फोटो का चुनाव करें

सब से पहली अपनी फोटो अल्बम में से कुछ चुनिंदा फोटो चुनें. जो अब तक की आप की बैस्ट फोटो हों. फोटो वही पसंद करें जो बिलकुल साफ और स्पष्ट हो. यदि आप अपने हनीमून के बारे में स्क्रैपबुकिंग करना चाहते हैं, तो कुछ विस्तृत शौट्स जोड़ने का प्रयास करें, जैसेकि हनीमून पर जाते समय का फोटो, होटल का रूम, अपनी मेहंदी, अपनी बुकिंग के टिकट। ग्लौसी के बजाय, फोटो को मैट फिनिश के साथ प्रोसेस करने का प्रयास करें.

लेआउट बनाएं

हर पेज के लिए एक योजना बनाएं कि आप तसवीरों और सजावटी सामान को कैसे व्यवस्थित करेंगे.

अगर आप बहुत सारी फोटो का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आप उन फोटो को ट्रिम कर सकते है. अलगअलग शेप की फोटो का उपयोग करने में संकोच न करें.

लिखने के लिए जगह छोड़ें जहां आप तारीखें, नाम, छोटी कहानियां या उद्धरण लिख सकें.

बेस तैयार करें

इन पन्नों को एकसाथ बांधने के लिए आप छेद कर के रिबन का उपयोग कर सकते हैं या उन्हें स्पाइरल बाइंडिंग करवा सकते हैं।

डैकोरेट करें

हर पेज पर कलर फुल पेपर चिपकाकर या पेंट कर के एक आकर्षक पृष्ठभूमि तैयार करें.

फ्रंट पेज डिजाइन करें

स्क्रैपबुक का फर्स्ट पेज आकर्षक होना चाहिए। इस पर स्क्रैपबुक का शीर्षक लिखें और इसे खूबसूरती से सजाएं.

औनलाइन स्क्रैपबुक स्कैच के वीडियो देखें

अगर कंफ्यूज हो रहें हैं और आप को समझ नहीं आ रहा कि कैसे स्क्रैपबुक बनाएं तो आप वीडियो देख कर आइडिआ लें सकते हैं कि स्क्रैपबुक को आसानी से कस्टमाइज कैसे किया जाए.

स्क्रैपबुक एक प्रकार का मानसिक व्यायाम भी है. आइए, जानें कैसे :

मैमोरी को स्ट्रौंग बनता है

स्क्रैपबुकिंग करते समय अपनी यादों को तजा करना पड़ता है, तभी हम उस में से बैस्ट मैमोरी का चयन कर पाते हैं, जिस से मैमोरी को तेज करने में मदद मिलती है.

फोकस बनता है

स्क्रैपबुकिंक करने के लिए कई चीजों पर एक साथ ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि अपनी तसवीरें और उस के आसपास क्या लेखन है, कैसे सजाना है आदि चीजें एकसाथ करनी पड़ती हैं, जिस से आप के ध्यान को केंद्रित करने की क्षमता में सुधार होता है.

क्रिएटिविटी बढ़ती है

स्क्रैपबुक के पेज को डिजाइन करना, रंगों का चयन करना, लेआउट बनाना और विभिन्न सजावटी तत्त्वों का उपयोग करना आप की रचनात्मक सोच को बढ़ावा देता है. आप नए विचारों के साथ प्रयोग करते हैं.

प्रौब्लम सौल्विंग स्किल्स आती है

समस्याओं को रचनात्मक तरीके से हल करने का प्रयास करते हैं (जैसे कि किसी अजीब आकार की तसवीर को कैसे फिट किया जाए). कभीकभी आप के पास सीमित स्थान हो सकता है या सामग्री वैसी नहीं हो सकती जैसी आप ने सोची थी. ऐसी स्थितियों में आप को रचनात्मक समाधान खोजने पड़ते हैं, जो आप के प्रौब्लम सौल्विंग स्किल्स को विकसित करता है।

स्ट्रैस कम करता है

जब आप किसी काम में कई घंटों तक लगे रहते हैं तो आप अपने तनाव को भूल जाते हैं. कई नई चीजे ट्राई करने पर आप को मानसिक संतोष भी मिलता है। इस से मन शांत होता है और स्ट्रैस कम होता है.

स्टोरी टेलिंग स्किल आती है

स्क्रैपबुक के माध्यम से आप तस्वीरों और शब्दों का उपयोग कर के एक कहानी कहते हैं। यह आप के कहानी कहने के कौशल को विकसित करता है, जिस से आप अपने विचारों और अनुभवों को अधिक प्रभावी ढंग से व्यक्त कर पाते हैं।

आत्मअभिव्यक्ति करनी आती है

स्क्रैपबुकिंग आप को अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का एक तरीका प्रदान करती है.

खुशी और संतुष्टि

स्क्रैपबुकिंग एक संतोषजनक गतिविधि है जो खुशी और उपलब्धि की भावना ला सकती है.

स्क्रैपबुकिंग में शामिल होने के लिए, आप अपनी पसंद की सामग्री, जैसे कि तसवीरें, पत्र और अन्य सजावट वस्तुओं को इकट्ठा कर सकते हैं। आप अपनी पसंद के विभिन्न लेआउट, रंग और सजावट के तरीकों का प्रयोग कर सकते हैं। इस से आप खुश रहते हैं.

ओटीटी और यूट्यूब पर अपनी फिल्म रिलीज करने के सख्त खिलाफ हैं Aamir Khan

Aamir Khan : आमिर खान की फिल्म सितारे जमीन पर जो कि 21 जून को थिएटर में रिलीज होने वाली है इस फिल्म के लिए खबर थी कि आमिर खान इस फिल्म को यूट्यूब पर रिलीज करेंगे , ये पहली बार होगा कि कोई फिल्म यूट्यूब पर रिलीज होने जा रही है . इसके साथ ही सितारे जमीन पर की ओटीटी रिलीज को लेकर भी कई सारी बातें फैली हुई थी.

हाल ही में अपने इंटरव्यू में आमिर खान ने इन सभी खबरों को सिरे से खारिज कर दिया है. आमिर खान के अनुसार यह खबर पूरी तरह झूठी है कि मैं यूट्यूब पर फिल्म रिलीज कर रहा हूं. सच बात तो यह है कि ना तो मैं अपनी फिल्म यूट्यूब पर रिलीज करूंगा  और ना ही मैं अपनी फिल्म सितारे ज़मीन पर ओटीटी पर रिलीज करूंगा , मेरी फिल्म सिर्फ और सिर्फ सिनेमाघर में रिलीज होगी.

मैं एक बात क्लियर कर देना चाहता हूं कि मैं सिर्फ और सिर्फ सिनेमा के लिए बना हूं और मेरी फिल्म सिर्फ सिनेमाघर में ही रिलीज होगी. किसी और प्लेटफॉर्म पर नहीं. मेरी आटीटी या यूट्यूब में अभिनय करने को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं है. क्योंकि मेरा बचपन जवानी सब सिनेमाघर के इर्दगिर्द ही बीता है. इसलिए मुझे सिनेमाघर से खास लगाव है. गौरतलब है आमिर खान की तरह सलमान खान भी ओटीटी में काम करने के खिलाफ है. सलमान को भी सिर्फ उन्हीं फिल्मों में काम करना है जो थिएटर में रिलीज हो . ओटीटी के लिए वेब सीरीज या फिल्मों में काम करने में उनकी भी दिलचस्पी नहीं है.

Marriage : घरवाले मेरी पसंद के लड़के से शादी के लिए तैयार नहीं हैं, मैं क्या करुं?

Marriage :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं और उस से विवाह करना चाहती हूं. मगर समस्या यह है कि लड़के के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं है. मैं कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहती. मुझे सलाह दें कि मैं क्या करूं?

जवाब-

आप ने यह नहीं बताया कि लड़के के घर वालों को इस रिश्ते पर आपत्ति क्यों है. यदि विरोध की कोई ठोस वजह नहीं है और लड़का इस रिश्ते को ले कर गंभीर है, तो उसे अपने घर वालों को अपनी दृढ़ इच्छा बता कर कि वह सिर्फ आप से ही विवाह करेगा, मनाने की कोशिश करें. यदि वे नहीं मानते और वह उन की इच्छा के विरुद्ध आप से विवाह करने की हिम्मत रखता है, तो आप कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. देरसवेर लड़के के घर वाले भी राजी हो ही जाएंगे. हां, यदि लड़का घर वालों की मरजी के खिलाफ जाने का साहस नहीं रखता तो आप को इस संबंध पर यहीं विराम लगा देना चाहिए, क्योंकि जो रास्ता मंजिल तक नहीं पहुंचता उस राह पर चलते रहने का कोई फायदा नहीं है.

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वे कौन से हालात हैं जो लड़की को घर छोड़ने को मजबूर कर देते हैं. आमतौर पर सारा दोष लड़की पर मढ़ दिया जाता है, जबकि ऐसे अनेक कारण होते हैं, जो लड़की को खुद के साथ इतना बड़ा अन्याय करने पर मजबूर कर देते हैं. जिन लड़कियों में हालात का सामना करने का साहस नहीं होता वे आत्महत्या तक कर लेती हैं. मगर जो जीना चाहती हैं, स्वतंत्र हो कर कुछ करना चाहती हैं वे ही हालात से बचने का उपाय घर से भागने को समझती हैं. यह उन की मजबूरी है. इस का एक कारण आज का बदलता परिवेश है. आज होता यह है कि पहले मातापिता लड़कियों को आजादी तो दे देते हैं, लेकिन जब लड़की परिवेश के साथ खुद को बदलने लगती है, तो यह उन्हें यानी मातापिता को रास नहीं आता है.

कुछ ऊंचनीच होने पर मध्यवर्गीय लड़कियों को समझाने की जगह उन्हें मारापीटा जाता है. तरहतरह के ताने दिए जाते हैं, जिस से लड़की की कोमल भावनाएं आहत होती हैं और वह विद्रोही बन जाती है. घर के आए दिन के प्रताड़ना भरे माहौल से त्रस्त हो कर वह घर से भागने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती है. यह जरूरी नहीं है कि लड़की यह कदम किसी के साथ गलत संबंध स्थापित करने के लिए उठाती है. दरअसल, जब घरेलू माहौल से मानसिक रूप से उसे बहुत परेशानी होने लगती है तो उस समय उसे कोई और रास्ता नजर नहीं आता. तब बाहरी परिवेश उसे आकर्षित करता है. मातापिता का उस के साथ किया जाने वाला उपेक्षित व्यवहार बाहरी माहौल के आगोश में खुद को छिपाने के लिए उसे बाध्य कर देता है.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

 व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें. 

कांस से क्लीनअप तक: ‘स्टोलन’ की एक्ट्रेस मिया मेलजर ने मुंबई बीच पर मनाया World Oceans Day

World Oceans Day : जब ग्लैमर का तड़का मिलता है रेत भरे जूतों और समाज सेवा से, तब बनता है एक दमदार रील-से-रियल मोमेंट! इंटरनेशनल एक्ट्रेस मिया मेलज़र, जिन्हें आपने स्टोलन, बियॉन्ड द क्लाउड्स और द ब्रेड जैसी फिल्मों में देखा है, इस बार किसी शूट के लिए नहीं, बल्कि बीच साफ करने के लिए पहुंची मुंबई के चौपाटी पर.
वर्ल्ड ओशन डे के मौके पर कमला अंकीबाई घमंडीराम गोवानी ट्रस्ट की अगुवाई में (नेतृत्व में श्रीमती निदर्शना गोवानी) आयोजित हुआ ये मेगा क्लीनअप ड्राइवज. हां आम लोग, कॉलेज स्टूडेंट्स और सितारे एक ही मिशन पर जुटे:
मुंबई की कोस्टलाइन को रिक्लेम करना

मिया ने मस्ती से कहा, “बिलकुल बच्चे जैसी एक्साइटमेंट थी! बीच सिर्फ बैकड्रॉप नहीं होता, ये हमारी आत्मा का हिस्सा है. इतने जोश से भरे लोगों के साथ मिलकर सफाई करना ऐसा था जैसे धरती का रीसेट बटन दबा दिया हो.”

कैप और ग्लव्स में रेड कारपेट से दूर, लेकिन मकसद से चमकती मिया ने जोड़ा, “समंदर सिर्फ देखने की चीज़ नहीं, ये हमारी रूह को छूता है। आज हमने सिर्फ बीच नहीं साफ किया, हमने समंदर का सम्मान किया.”

उनकी फिल्म एक बेतुके आदमी की अफ़रा-रातें, जिसमें वो आदिल हुसैन के साथ लीड में हैं और आर्ट डायरेक्टर भी हैं, फ्रांस में प्रीमियर हो चुकी है.मिया का करियर शादी के साइड इफेक्ट्स और टारगेट कोलकाता जैसे हिट्स से लेकर टिकटॉक जैसी फिल्मों तक फैला है, जिसके लिए उन्हें लंदन और फ्रांस में बेस्ट एक्ट्रेस के नॉमिनेशन मिल चुके हैं.

जहाँ मिया लेकर आईं स्टार पावर, वहीं किर्ती कॉलेज, लाला लाजपत राय कॉलेज और NSS वॉलंटियर्स ने जोश और जज़्बा दिखाया।.लोकल रहवासी, सीनियर सिटिज़न और मॉर्निंग वॉकर भी प्लास्टिक वेस्ट उठाने में पीछे नहीं रहे.

श्रीमती निदर्शना गोवानी, जो पूरे इवेंट में एक्टिव रहीं. उन्होंने कहा, “समंदर यहीं से शुरू होता है. हमारे पैरों के नीचे से. जब हम अपने बीच साफ करते हैं, तो हम धरती के दिल की हिफाज़त करते हैं.” सुबह खत्म हुई एक साफ-सुथरे कोस्टलाइन और एक गहरे संदेश के साथ. लहरों ने जब किनारे को चूमा, तो ये साफ था. ये सिर्फ एनवायरमेंट का इवेंट नहीं था, ये एक इमोशनल जर्नी थी.

Romantic Hindi Stories : तिकोनी डायरी

नागेश की डायरी

Romantic Hindi Stories : कई दिनों से मैं बहुत बेचैन हूं. जीवन के इस भाटे में मुझे प्रेम का ज्वार चढ़ रहा है. बूढ़े पेड़ में प्रेम रूपी नई कोंपलें आ रही हैं. मैं अपने मन को समझाने का भरपूर प्रयत्न करता हूं पर समझा नहीं पाता. घर में पत्नी, पुत्र और एक पुत्री है. बहू और पोती का भरापूरा परिवार है, पर मेरा मन इन सब से दूर कहीं और भटकने लगा है.

शहर मेरे लिए नया नहीं है. पर नियुक्ति पर पहली बार आया हूं. परिवार पीछे पटना में छूट गया है. यहां पर अकेला हूं और ट्रांजिट हौस्टल में रहता हूं. दिन में कई बार परिवार वालों से फोन पर बात होती है. शाम को कई मित्र आ जाते हैं. पीनापिलाना चलता है. दुखी होने का कोई कारण नहीं है मेरे पास, पर इस मन का मैं क्या करूं, जो वेगपूर्ण वायु की भांति भागभाग कर उस के पास चला जाता है.

वह अभीअभी मेरे कार्यालय में आई है. स्टेनो है. मेरा उस से कोई सीधा नाता नहीं है. हालांकि मैं कार्यालय प्रमुख हूं. मेरे ही हाथों उस का नियुक्तिपत्र जारी हुआ है…केवल 3 मास के लिए. स्थायी नियुक्तियों पर रोक लगी होने के कारण 3-3 महीने के लिए क्लर्कों और स्टेनो की भर्तियां कर के आफिस का काम चलाना पड़ता है. कोई अधिक सक्षम हो तो 3 महीने का विस्तार दिया जा सकता है.

उस लड़की को देखते ही मेरे शरीर में सनसनी दौड़ जाती है. खून में उबाल आने लगता है. बुझता हुआ दीया तेजी से जलने लगता है. ऐसी लड़कियां लाखों में न सही, हजारों में एक पैदा होती हैं. उस के किसी एक अंग की प्रशंसा करना दूसरे की तौहीन करना होगा.

पहली नजर में वह मेरे दिल में प्रवेश कर गई थी. मेरे पास अपना स्टाफ था, जिस में मेरी पी.ए. तथा व्यक्तिगत कार्यों के लिए अर्दली था. कार्यालय के हर काम के लिए अलगअलग कर्मचारी थे. मजबूरन मुझे उस लड़की को अनुराग के साथ काम करने की आज्ञा देनी पड़ी.

मुझे जलन होती है. कार्यालय प्रमुख होने के नाते उस लड़की पर मेरा अधिकार होना चाहिए था, पर वह मेरे मातहत अधिकारी के साथ काम रही थी. मुझ से यह सहन नहीं होता था. मैं जबतब अनुराग के कमरे में चला जाता था. मेरे बगल में ही उस का कमरा था. उन दोनों को आमनेसामने बैठा देखता हूं तो सीने पर सांप लोट जाता है. मन करता है, अनुराग के कमरे में आग लगा दूं और लड़की को उठा कर अपने कमरे में ले जाऊं.

अनुराग उस लड़की को चाहे डिक्टेशन दे रहा हो या कोई अन्य काम समझा रहा हो, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तब थोड़ी देर बैठ कर मैं अपने को तसल्ली देता हूं. फिर उठतेउठते कहता हूं, ‘‘नीहारिका, जरा कमरे में आओ. थोड़ा काम है.’’

मैं जानता हूं, मेरे पास कोई आवश्यक कार्य नहीं. अगर है भी तो मेरी पी.ए. खाली बैठी है. उस से काम करवा सकता हूं. पर नीहारिका को अपने पास बुलाने का एक ही तरीका था कि मैं झूठमूठ उस से व्यर्थ की टाइपिंग का काम करवाऊं. मैं कोई पुरानी फाइल निकाल कर उसे देता कि उस का मैटर टाइप करे. वह कंप्यूटर में टाइप करती रहती और मैं उसे देखता रहता. इसी बहाने बातचीत का मौका मिल जाता.

नीहारिका के घरपरिवार के बारे में जानकारी ले कर अपने अधिकारों का बड़प्पन दिखा कर उसे प्रभावित करने लगा. लड़की हंसमुख ही नहीं, वाचाल भी थी. वह जल्द ही मेरे प्रभाव में आ गई. मैं ने दोस्ती का प्रस्ताव रखा, उस ने झट से मान लिया. मेरा मनमयूर नाच उठा. मुझ से हाथ मिलाया तो शरीर झनझना कर रह गया. कहां 20 साल की उफनती जवानी, कहां 57 साल का बूढ़ा पेड़, जिस की शाखाओं पर अब पक्षी भी बैठने से कतराने लगे थे.

नीहारिका से मैं कितना भी झूठझूठ काम करवाऊं पर उसे अनुराग के पास भी जाना पड़ता था. मुझे डर है कि लड़की कमसिन है, जीवन के रास्तों का उसे कुछ ज्ञान नहीं है. कहीं अनुराग के चक्कर में न आ जाए. वह एक कवि और लेखक है. मृदुल स्वभाव का है. उस की वाणी में ओज है. वह खुद न चाहे तब भी लड़की उस के सौम्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो सकती थी.

क्या मैं उन दोनों को अलग कर सकता हूं?

अनुराग की डायरी

नीहारिका ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. वह इतनी हसीन है कि बड़े से बड़ा कवि उस की सुंदरता की व्याख्या नहीं कर सकता है. गोरा आकर्षक रंग, सुंदर नाक और उस पर चमकती हुई सोने की नथ, कानों में गोलगोल छल्ले, रस भरे होंठ, दहकते हुए गाल, पतलीलंबी गर्दन और पतला-छरहरा शरीर, कमर का कहीं पता नहीं, सुडौल नितंब और मटकते हुए कूल्हे, पुष्ट जांघों से ले कर उस के सुडौल पैरों, सिर से ले कर कमर और कूल्हों तक कहीं भी कोई कमी नजर नहीं आती थी.

वह मेरी स्टेनो है और हम कितनी सारी बातें करते हैं? कितनी जल्दी खुल गई है वह मेरे साथ…व्यक्तिगत और अंतरंग बातें तक कर लेती है. बड़े चाव से मेरी बातें सुनती है. खुद भी बहुत बातें करती है. उसे अच्छा लगता है, जब मैं ध्यान से उस की बातें सुनता हूं और उन पर अपनी टिप्पणी देता हूं. जब उस की बातें खत्म हो जाती हैं तो वह खोदखोद कर मेरे बारे में पूछने लगती है.

बहुत जल्दी मुझे पता लग गया कि वह मन से कवयित्री है. पता चला, उस ने स्कूलकालेज की पत्रिकाओं के लिए कविताएं लिखी थीं. मैं ने उस से दिखाने के लिए कहा. पुराने कागजों में लिखी हुई कुछ कविताएं उस ने दिखाईं. कविताएं अच्छी थीं. उन में भाव थे, परंतु छंद कमजोर थे. मैं ने उन में आवश्यक सुधार किए और उसे प्रोत्साहित कर के एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेज दिया. कविता छप गई तो वह हृदय से मेरा आभार मानने लगी. उस का झुकाव मेरी तरफ हो गया.

शीघ्र ही मैं ने मन की बात उस पर जाहिर कर दी. वस्तुत: इस की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि बातोंबातों में ही हम दोनों ने अपनी भावनाएं एकदूसरे पर प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे प्यार को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

काम से समय मिलता तो हम व्यक्तिगत बातों में मशगूल हो जाते परंतु हमारी खुशियां शायद हमारे ही बौस को नागवार गुजर रही थीं. दिन में कम से कम 5-6 बार मेरे कमरे में आ जाते, ‘‘क्या हो रहा है?’’ और बिना वजह बैठे रहते, ‘‘अनुराग, चाय पिलाओ,’’ चाय आने और पीने में 2-3 मिनट तो लगते नहीं. इस के अलावा वह नीहारिका से साधिकार कहते, ‘‘मेरे कमरे से सिगरेट और माचिस ले आओ.’’

मेरा मन घृणा और वितृष्णा से भर जाता, परंतु कुछ कह नहीं सकता था. वे मेरे बौस थे. नीहारिका भी अस्थायी नौकरी पर थी. मन मार कर सिगरेट और माचिस ले आती. वह मन में कैसा महसूस करती थी, मुझे नहीं मालूम क्योंकि जब भी वह सिगरेट ले कर आती, हंसती रहती थी, जैसे इस काम में उसे मजा आ रहा हो.

एक छोटी उम्र की लड़की से ऐसा काम करवाना मेरी नजरों में न केवल अनुचित था, बल्कि निकृष्ट और घृणित कार्य था. उन का अर्दली पास ही गैलरी में बैठा रहता है. यह काम उस से भी करवा सकते थे पर वे नीहारिका पर अपना अधिकार जताना चाहते थे. उसे बताना चाहते थे कि उस की नौकरी उन के ही हाथ में है.

सिगरेट का बदबूदार धुआं घंटों मेरे कमरे में फैला रहता और वह परवेज मुशर्रफ की तरह बूट पटकते हुए नीहारिका को आदेश देते मेरे कमरे से निकल जाते कि तुम मेरे कमरे में आओ.

मैं मन मार कर रह जाता हूं. गुस्से को चाय की आखिरी घूंट के साथ पी कर थूक देता हूं. कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जिन पर मनुष्य का वश नहीं रहता. लेकिन मैं कभीकभी महसूस करता हूं कि नीहारिका को नागेश के आधिकारिक बरताव पर कोई खेद या गुस्सा नहीं आता था.

नीहारिका कभी भी इस बात की शिकायत नहीं करती थी कि उन की ज्यादतियों की वजह से वह परेशान या क्षुब्ध थी. वह सदैव प्रसन्नचित्त रहती थी. कभीकभी बस नागेश के सिगरेट पीने पर विरोध प्रकट करती थी. उस ने बताया था कि उस के कहने पर ही नागेश ने तब अपने कमरे में सिगरेट पीनी बंद कर दी, जब वह उन के कमरे में काम कर रही होती थी.

मुझे अच्छा नहीं लगता है कि घड़ीघड़ी भर बाद नागेश मेरे कमरे में आएं और बारबार बुला कर नीहारिका को ले जाएं. इस से मेरे काम में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था पर मैं चाहता था कि नीहारिका जब तक आफिस में रहे मेरी नजरों के सामने रहे.

नीहारिका की डायरी

मैं अजीब कशमकश में हूं…कई दिनों से मैं दुविधा के बीच हिचकोले खा रही हूं. समझ में नहीं आता…मैं क्या करूं? कौन सा रास्ता अपनाऊं? मैं 2 पुरुषों के प्यार के बीच फंस गई हूं. इस में कहीं न कहीं गलती मेरी है. मैं बहुत जल्दी पुरुषों के साथ घुलमिल जाती हूं. अपनी अंतरंग बातों और भावनाओं का आदानप्रदान कर लेती हूं. उसी का परिणाम मुझे भुगतना पड़ रहा है. हर चलताफिरता व्यक्ति मेरे पीछे पड़ जाता है. वह समझता है कि मैं एक ऐसी चिडि़या हूं जो आसानी से उन के प्रेमजाल में फंस जाऊंगी.

इस दफ्तर में आए हुए मुझे 1 महीना ही हुआ और 2 व्यक्ति मेरे प्रेम में गिरफ्तार हो चुके हैं. एक अपने शासकीय अधिकार से मुझे प्रभावित करने में लगा है. वह हर मुमकिन कोशिश करता है कि मैं उस के प्रभुत्व में आ जाऊं. दूसरा सौम्य और शिष्ट है. वह गुणी और विद्वान है. कवि और लेखक है. उस की बातों में विलक्षणता और विद्वत्ता का समावेश होता है. वह मुझे प्रभावित करने के लिए ऐसी बातें नहीं करता है.

पहला जहां अपने कर्मों का गुणगान करता रहता है. बड़ीबड़ी बातें करता है और यह जताने का प्रयत्न करता है कि वह बहुत बड़ा अधिकारी है. उस के अंतर्गत काम करने वालों का भविष्य उस के हाथ में है. वह जिसे चाहे बना सकता है और जिसे चाहे पल में बिगाड़ दे. अपने अधिकारों से वह सम्मान पाने की लालसा करता है. वहीं दूसरी ओर अनुराग अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित कर चुका है.

नागेश से मुझे भय लगता है, अत: उस की किसी बात का मैं विरोध नहीं कर पाती. मुझे पता है कि मेरी किसी बात से अगर वह नाखुश हुआ तो मुझे नौकरी से निकालने में उसे एक पल न लगेगा. ऐसा उस ने संकेत भी दिया है. वह गंदे चुटकुले सुनाता और खुद ही उन पर जोरजोर से हंसता है. अपने भूतकाल की सत्यअसत्य कहानियां ऐसे सुनाता है जैसे उस ने अपने जीवन में बहुत महान कार्य किए हैं और उस के कार्यों में अच्छे संदेश निहित हैं.

मेरे मन में उस के प्रति कोई लगाव या चाहत नहीं है. वह स्वयं मेरे पीछे पागल है. मेरे मन में उस के प्रति कोई कोमल भाव नहीं है. वह कहीं से मुझे अपना नहीं लगता. मेरी हंसी और खुलेपन से उसे गलतफहमी हो गई है. तभी तो एक दिन बोला, ‘‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. शायद मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी?’’

मेरे घर की आर्थिक दशा अच्छी नहीं है. घर में 3 बहनों में मैं सब से बड़ी हूं. घर के पास ही गली में पिताजी की किराने की दुकान है. बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती है. बी.ए. करने के बाद इस दफ्तर में पहली अस्थायी नौकरी लगी है. अस्थायी ही सही, परंतु आर्थिक दृष्टि से मेरे परिवार को कुछ संबल मिल रहा है. अभी तो पहली तनख्वाह भी नहीं मिली थी. ऐसे में काम छोड़ना मुझे गवारा नहीं था.

मन को कड़ा कर के सोचा कि नागेश कोई जबरदस्ती तो कर नहीं सकता. मैं उस से बच कर रहूंगी. ऊपरी तौर पर दोस्ती स्वीकार कर लूंगी, तो कुछ बुरा नहीं है. अत: मैं ने हां कह दिया. उस ने तुरंत मेरा दायां हाथ लपक लिया और दोस्ती के नाम पर सहलाने लगा. उस ने जब जोर से मेरी हथेली दबाई तो मैं ने उफ कर के खींच लिया. वह हा…हा…कर के हंस पड़ा, जैसे पौराणिक कथाओं का कोई दैत्य हंस रहा हो.

‘‘बहुत कोमल हाथ है,’’ वह मस्त होता हुआ बोला तो मैं सिहर कर रह गई.

दूसरी तरफ अनुराग है…शांत और शिष्ट. हम साथ काम करते हैं परंतु आज तक उस ने कभी मेरा हाथ तक छूने की कोशिश नहीं की. वह केवल प्यारीप्यारी बातें करता है. दिल ही दिल में मैं उसे प्यार करने लगी हूं. कुछ ऐसे ही भाव उस के भी मन में है. हम दोनों ने अभी तक इन्हें शब्दों का रूप नहीं दिया है. उस की आवश्यकता भी नहीं है. जब दो दिल खामोशी से एकदूसरे के मन की बात कह देते हैं तो मुंह खोलने की क्या जरूरत.

हमारे प्यार के बीच में नागेश रूपी महिषासुर न जाने कहां से आ गया. मुझे उसे झेलना ही है, जब तक इस दफ्तर में नौकरी करनी है. उस की हर ज्यादती मैं अनुराग से बता भी नहीं सकती. उस के दिल को चोट पहुंचेगी.

नागेश के कमरे से वापस आने पर मैं हमेशा अनुराग के सामने हंसती- मुसकराती रहती थी, जिस से उस को कोई शक न हो. यह तो मेरा दिल ही जानता था कि नागेश कितनी गंदीगंदी बातें मुझ से करता था.

अनुराग मुझ से पूछता भी था कि नागेश क्या बातें करता है? क्या काम करवाता है? परंतु मैं उसे इधरउधर की बातें बता कर संतुष्ट कर देती. वह फिर ज्यादा नहीं पूछता. मुझे लगता, अनुराग मेरी बातों से संतुष्ट तो नहीं है, पर वह किसी बात को तूल देने का आदी भी नहीं था.

अब धीरेधीरे मैं समझने लगी हूं कि 2 पुरुषों को संभाल पाना किसी नारी के लिए संभव नहीं है.

नागेश को मेरी भावनाओं या भलाई से कुछ लेनादेना नहीं. वह केवल अपना स्वार्थ देखता है. अपनी मानसिक संतुष्टि के लिए मुझे अपने सामने बिठा कर रखता है. मुझे उस की नीयत पर शक है. हठात एक दिन बोला, ‘‘मेरे घर चलोगी? पास में ही है. बहुत अच्छा सजा रखा है. कोई औरत भी इतना अच्छा घर नहीं सजा सकती. तुम देखोगी तो दंग रह जाओगी.’’ मैं वाकई दंग रह गई. उस का मुंह ताकती रही…क्या कह रहा है? उस की आंखों में वासना के लाल डोरे तैर रहे थे. मैं अंदर तक कांप गई. उस की बात का जवाब नहीं दिया.

‘‘बोलो, चलोगी न? मैं अकेला रहता हूं. कोई डरने वाली बात नहीं है,’’ वह अधिकारपूर्ण बोला.

मैं ने टालने के लिए कह दिया, ‘‘सर, कभी मौका आया तो चलूंगी.’’

वह एक मूर्ख दैत्य की तरह हंस पड़ा.

आफिस प्रमुख नागेश अपने आफिस के एक अधिकारी अनुराग के लिए स्टेनो नीहारिका की अस्थायी नियुक्ति कर देते हैं. नागेश को स्थायी पी.ए. मिली हुई है. ये तीनों अपनीअपनी पर्सनल डायरी मेनटेन करते हैं. 57 साल के नागेश अपनी डायरी में 20 साल की नीहारिका की खूबसूरती के बारे में बयान करते हैं और अपनी सीट से उठउठ कर अपने कनिष्ठ अफसर अनुराग के कमरे में जाते हैं. कुछ देर बैठ कर नीहारिका को अपने कमरे में आने का निर्देश दे कर चले जाते हैं. वे आगे लिखते हैं कि एक दिन उन्होंने दोस्ती का प्रस्ताव रखा तो नीहारिका ने झट से मान लिया. वहीं नागेश को यह डर भी था कि नीहारिका कहीं अनुराग से प्रभावित न हो जाए.

उधर, अनुराग की डायरी बताती है कि नीहारिका ने उस की रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. एक दिन बातोंबातों में हम दोनों ने अपनी भावनाएं प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे आग्रह को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

उधर, अपनी डायरी में नीहारिका लिखती है कि मैं अजीब कशमकश में हूं. मैं 2 पुरुषों के प्यार के बीच फंस गई हूं. एक अपने शासकीय अधिकार से प्रभावित करने में लगा है तो दूसरा अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित कर चुका है. नागेश से मुझे डर लगता है. अत: उस की किसी भी बात का मैं विरोध नहीं कर पाती. मेरी हंसी और खुलेपन से उसे गलतफहमी हो गई है. एक दिन वह बोला, ‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी?’ मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. अस्थायी नौकरी ही सही, घर की कुछ तो मदद हो जाएगी. ये सोच कर मैं ने ‘हां’ कर दी. दूसरी तरफ अनुराग है…शांत और शिष्ट. वह केवल प्यारीप्यारी बातें करता है. दिल ही दिल में मैं उस से प्यार करने लगी हूं. कुछ ऐसे ही भाव उस के मन में भी हैं. हम दोनों ने इन्हें अभी शब्दों का रूप नहीं दिया है. आफिस में नागेश के निर्देश पर उस के कमरे में जाती फिर वहां से ड्यूटी रूम में आने पर मैं हमेशा अनुराग के सामने हंसतीमुसकराती रहती थी ताकि उसे किसी तरह की तकलीफ न पहुंचे.अब आगे…

नागेश की डायरी

2 महीने बीत चुके हैं. बात आगे बढ़ती नहीं दिखाई पड़ रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूं. नीहारिका के प्रति मेरे मन में कोई प्यार नहीं. ढलती उम्र में प्यार की चोंचलेबाजी नहीं की जा सकती है. मैं नीहारिका को प्रेमपत्र नहीं लिख सकता, उस की गली के चक्कर नहीं लगा सकता, हाथ में हाथ डाल कर बागों में टहलना अब मेरे लिए संभव नहीं है. मैं केवल नीहारिका के सुंदर शरीर के प्रति आसक्त हूं. फिर उसे प्राप्त करने का क्या तरीका अपनाया जाए?

कितनी बार उस से कहा कि मेरे घर चले, पर वह हंस कर टाल देती है. क्या उसे मेरे कुटिल मनोभावों का पता चल चुका है. जवान लड़की, पुरुष की आंखों की भाषा समझ सकती है. फिर क्यों वह तिलतिल कर, जला कर मार रही है मुझे…परवाने जल जाते हैं, शमा को पता भी नहीं चलता.

नीहारिका के साथ ऐसी बात नहीं है. वह अच्छी तरह जानती है कि मैं उसे दिलोजान से चाहने लगा हूं और उस का सान्निध्य चाहता हूं. वह भी तो यही चाहती है, वरना मेरी दोस्ती क्यों कबूल करती. मेरी किसी बात का बुरा नहीं मानती है. मैं कितनी खुली बातें करता हूं, वह हंसती रहती है. क्या यह संकेत नहीं करता कि उस का दिल भी मुझ पर आ गया है?

मुझे लगता है कि अनुराग भी नीहारिका पर आसक्त हो चुका है. वह युवा है और अविवाहित भी. नीहारिका मेरी तुलना में उस को ज्यादा पसंद करेगी. उस के साथ ही रहती है. नीहारिका को हासिल करने के लिए मुझे शीघ्र ही कोई कदम उठाना पड़ेगा. कार्यालय में उस के साथ कुछ करना संभव नहीं है. बवाल मच सकता है. एक बार वह मेरे घर चलने के लिए राजी हो जाए, तो फिर कुछ किया जा सकता है. वह मेरे हाथों से बच नहीं सकती.

नीहारिका के हावभाव से तो नहीं लगता कि वह अनुराग को चाहती है. कई बार उस से कह चुका हूं कि प्यार में लड़के ही नहीं लड़कियां भी बरबाद हो जाती हैं. अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तरफ ध्यान दे, ताकि स्थायी नौकरी लग सके. पर मेरे बरगलाने से क्या वह मान जाएगी? जवान लड़की क्या किसी बूढ़े व्यक्ति के चक्कर में अपना जीवन और भविष्य बरबाद करेगी? क्या वह नहीं समझती कि मैं उसे चक्कर में लेने का प्रयत्न कर रहा हूं? मेरी बातों से वह कैसे इस तरह प्रभावित हो सकती है कि किसी जवान लड़के का चक्कर छोड़ दे? वह अनुराग के साथ काम करती है, क्या उस से प्रभावित नहीं हो सकती? हां…अवश्य.

अनुराग के रहते मेरा काम बनने वाला नहीं है. मुझे नीहारिका को उस से अलग करना होगा. दोनों साथसाथ रहेंगे तो आपस में लगाव बढ़ेगा. उन्हें कोई ऐसा मौका नहीं देना कि मैं अपना ही मौका चूक जाऊं. मैं उसे एक पत्नी की तरह अपनाना चाहता हूं पर यह कैसे संभव हो सकता है? वह किसी और पुरुष के सान्निध्य में न आए तब…हां, उसे अनुराग से दूर करना ही होगा. मैं उसे किसी और के साथ लगा देता हूं. किस के साथ…इस बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है. हरीश के साथ अनिल काम कर रहा है. उसे हटा कर मैं अनुराग के साथ लगा देता हूं और नीहारिका को हरीश के साथ…अनुराग की तुलना में वह उम्रदराज है. भोंडे दांतों वाला है. आंखों पर मोटा चश्मा लगाता है. बात करता है तो टेढ़ेमेढ़े दांत बाहर निकल आते हैं. मुंह से झाग के छींटे फेंकता रहता है. देख कर उबकाई आती है. नीहारिका उस से अंतरंग नहीं हो सकती.

यह आदेश निकालने के बाद मुझे लगा कि मैं ने नीहारिका को प्राप्त कर लिया है. इस परिवर्तन से कार्यालय में क्या प्रतिक्रिया हुई, मुझे पता नहीं चला. न अनुराग ने मुझ से कुछ कहा न नीहारिका ने कोई शिकायत की. मैं मन ही मन खुश होता रहा.

नीहारिका को मैं पहले की तरह काम के लिए अपने कमरे में बुलाता रहा. वह आती और हंसतीमुसकराती काम करती. मैं अपनी कुरसी छोड़ उस के पीछे खड़ा हो जाता. उस का मुंह कंप्यूटर की तरफ होता. मैं डिक्टेशन देने के बहाने उस की कुरसी की पीठ से सट कर खड़ा हो जाता. फिर अनजान बनता हुआ थोड़ा झुक कर भी उस के कंधे पर, कभी पीठ पर हाथ रख देता.

नीहारिका न तो मेरी तरफ देखती, न कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करती. मेरा हौसला बढ़ता जाता और मैं उस की पीठ सहलाने लगता. तब वह उठ कर खड़ी हो जाती. कहती, ‘‘मैं 2 मिनट में आती हूं.’’ और वह चली जाती. फिर उस दिन उसे नहीं बुलाता. पता नहीं, उस के मन में क्या हो? यह जानने के लिए मैं थोड़ी देर में हरीश के कमरे में जाता तो वहां नीहारिका को प्रफुल्लित देखता. मतलब उस ने मेरी हरकतों का बुरा नहीं माना. मैं आगे बढ़ सकता हूं.

मैं दूसरे दिन का इंतजार करता. दूसरा दिन, फिर तीसरा दिन…दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, पर बात शारीरिक स्पर्श से आगे नहीं बढ़ पा रही थी. नीहारिका पत्थर की तरह बन गई थी. मेरी हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती. मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. शरीर में उफान सा आता, पर उसे ज्वार का रूप देना मेरे हाथ में नहीं था.

नीहारिका मेरा साथ नहीं दे रही थी. जब मैं उस के साथ कोई हरकत करता, वह बाहर चली जाती, दोबारा बुलाने पर भी जल्दी मेरे कमरे में नहीं आती थी. मुझे अर्दली को 2-3 बार भेजना पड़ता. तब कहीं आती और तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाती. पर मैं प्रेमरोग से पीडि़त उस की बात की तरफ ध्यान न देता. उस की भावनाओं से मुझे कोई लेनादेना नहीं था.

पर एक दिन बम सा फट गया. मैं ने उस के साथ हरकत की और वह हो गया, जिस की मैं ने कभी उम्मीद नहीं की थी. मैं उस घटना के बारे में यहां नहीं लिख सकता. मैं इतना चकित और हैरान हूं कि ऐसा कैसे हो गया? क्या नीहारिका जैसी कमजोर लड़की मेरे साथ ऐसा कर सकती है?

अब नारी जाति से मेरा विश्वास उठ गया है. ऊपर से वह कुछ और दिखती है, मन में उस के कुछ और होता है. आसानी से उस के मन को पढ़ पाना या समझ पाना संभव नहीं है. मैं उस की हंसी और प्रेमिल व्यवहार से सम्मोहित हो गया था. समझ बैठा था कि वह मुझे प्रेम करने लगी है. परंतु नहीं…खूबसूरत पंछी सूने वीरान पेड़ पर कभी नहीं बैठता. नीहारिका के बारे में मैं ने बहुत गलत सोचा था. कभी नीहारिका से आप की मुलाकात होगी तो वह अवश्य इस बात का जिक्र करेगी.

मेरा प्रेम का ज्वर जिस तीव्रता से उठा था उसी तीव्रता के साथ झाग की तरह बैठ गया. नीहारिका मेरे सामने से चली गई. मैं उसे चाह कर भी नहीं रोक सकता था. रोकता भी तो वह नहीं रुकती. मेरे अंदर का सांप मर गया.

नागेश की ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं. नीहारिका को अब वह ज्यादा समय अपने कमरे में ही बिठा कर रखता है. काम क्या करवाता होगा, गप्पें ही मारता होगा. नीहारिका से पूछता हूं तो उस के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताती है. मैं मन मसोस कर रह जाता हूं. नागेश क्या मेरे और नीहारिका के बीच दूरियां बनाने का प्रयत्न कर रहा है? लेकिन वह इस में सफल नहीं होगा. नीहारिका और मेरे बीच अब कोई दूरी नहीं रह गई है. उस ने मेरे शादी के प्रस्ताव को मान लिया है. मैं जल्द ही उस के मांबाप से मिलने वाला हूं.

नीहारिका मेरी मनोदशा समझती है. इसीलिए वह नागेश के बारे में भूल कर भी बात नहीं करती है. मैं खोदखोद कर पूछता हूं…तब भी नहीं बताती. मैं खीझ कर कहता हूं, ‘‘वह हरामी कोई ज्यादती तो नहीं करता तुम्हारे साथ?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘तुम को मेरे ऊपर विश्वास है न. तो फिर निश्ंिचत रहो. अगर ऐसी कोई स्थिति आई तो मैं स्वयं उस से निबट लूंगी. तुम चिंता न करो.’’

‘‘क्यों न करूं? तुम एक नाजुक लड़की हो और वह विषधर काला नाग. कमीना आदमी है. पता नहीं, कब कैसी हरकत कर बैठे तुम्हारे साथ? उस के साथ कमरे में अकेली जो रहती हो.’’

नीहारिका के चेहरे पर वैसी ही मोहक मुसकान है. आंखों में चंचलता और शैतानी नाच रही है. निचले होंठ का दायां कोना दांतों से दबा कर कहती है, ‘‘वैसी हरकत तो तुम भी कर सकते हो मेरे साथ. तुम्हारे साथ भी एकांत कमरे में रहती हूं.’’ उस ने जैसे मुझे निमंत्रण दिया कि मैं चाहूं तो उस के साथ वैसी हरकत कर सकता हूं. वह बुरा नहीं मानेगी. हम दोनों इंडिया गेट पर भीड़भाड़ से दूर एकांत में टहल रहे थे. अंधेरा घिरने लगा था. मैं ने इधरउधर देखा. कहीं कोई साया नहीं, आहट नहीं. मैं ने नीहारिका को अपनी बांहों में समेट लिया. वह फूल की तरह मेरे सीने में सिमट गई. नागेश रूपी सांप हमारे बीच से गायब हो चुका था.

नीहारिका ने जिस भाव से अपने को मेरी बांहों में सौंपा था, मुझे उस के प्रति कोई अविश्वास न रहा. मैं नागेश की तरफ से भी आश्वस्त हो गया कि नीहारिका उस की किसी भी बेजा हरकत से निबट लेगी. दोनों को ले कर मेरी चिंता निरर्थक है.

इधर लगता है, नागेश को नीहारिका के साथ मेरे प्यार को ले कर शक हो गया है. तभी तो उस ने आदेश पारित किया है कि अब वह हरीश के साथ काम करेगी. मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला. नीहारिका मेरे इतने करीब आ चुकी है कि उसे मुझ से जुदा करना नागेश के बूते की बात नहीं है. मुझे इंतजार उस दिन का है जब नीहारिका ब्याह कर मेरे घर आएगी.

नीहारिका की डायरी

बहुत कुछ बरदाश्त के बाहर होता जा रहा है. नागेश ने मुझे अपनी संपत्ति समझ लिया है. इसी तरह की बातें भी करता है और व्यवहार भी.

पता नहीं…शायद नागेश को शक हो गया है कि अनुराग और मेरे बीच अंतरंगता बढ़ती जा रही है. शायद शक न भी हो, पर उसे डर लगता है कि मैं या अनुराग एकदूसरे के ऊपर आसक्त हो जाएंगे. इसी डर की वजह से उस ने मुझे हरीश के साथ लगा दिया है.

मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ता. दिन में न सही, शाम को हम दोनों मिलते हैं. अनुराग और मेरे दिलों के बीच क ी दूरी समाप्त हो चुकी है. बस, शादी के बंधन में बंधना है. इस में थोड़ी सी रुकावट है. मेरी पक्की नौकरी नहीं है. उम्र भी अभी कम है. मैं ने अनुराग से कह दिया है. कम से कम 1 साल उसे इंतजार करना पड़ेगा. वह तैयार है. तब तक कोई नौकरी मिल ही जाएगी. तब हम दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

अब नागेश खुले सांड की तरह खूंखार होता जा रहा है. जब से हरीश के साथ लगाया है, एक पल के लिए पीछा नहीं छोड़ता या तो अपने कमरे में बुला लेता है या खुद हरीश के कमरे में आ कर बैठ जाता है और अनर्गल बातें करता है. उस के चक्कर में न तो हरीश कोई काम कर पाता है न वह मुझ से कोई काम करवा पाता है.

नागेश की वजह से पूरे दफ्तर में मैं बदनाम होती जा रही हूं. सब मुझे एसी वाली लड़की कहने लगे हैं. नागेश के कमरे में एसी जो लगा है. लोग जब मुझे एसी वाली लड़की कहते हैं मैं हंस कर टाल जाती हूं. किसी बात का प्रतिरोध करने का मतलब उस को बढ़ावा देना है, कहने वालों की सोच बेलगाम हो जाती और फिर मेरे और नागेश के बारे में तरहतरह की बातें फैलतीं, चर्चाएं होतीं. इस में मेरी ही बदनामी होती. नागेश का क्या जाता? उस से कोई कुछ भी न कहता. मैं अस्थायी थी. लोग सोचते, मैं नागेश को फंसा कर अपनी नौकरी की जुगाड़ में लगी हूं. सचाई किसी को पता नहीं है.

नागेश का मुंह तो चलता ही रहता है, अब उस के हाथ भी चलने लगे हैं. वह मेरे पीछे आ कर खड़ा हो जाता है और कंप्यूटर पर काम करवाने के बहाने कभी सर, कभी कंधे और कभी पीठ पर हाथ रख देता है. मुझे उस का हाथ मरे हुए सांप जैसा लगता है. कभीकभी मरा हुआ सांप जिंदा हो जाता है. उस का हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंगने लगता है. वह मेरी पीठ सहलाता है. मुझे गुदगुदी का एहसास होता है, परंतु उस में लिजलिजापन होता है.

मन में एक घृणा उपजती है, कोई प्यार नहीं. नागेश के प्रति मैं एक आक्रोश से भर जाती हूं, परंतु इसे बाहर नहीं निकाल सकती. मैं बरदाश्त करने की कोशिश करती हूं. देखना चाहती हूं कि वह किस हद तक जा सकता है. मेरी तय हुई हद के बाहर जाते ही वह परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे…मैं ने मन ही मन तय कर लिया था. जैसे ही उस ने हद पार की, मेरा रौद्र रूप प्रकट हो जाएगा. अभी तक उस ने मेरी हंसी और प्यारी मुसकराहट देखी है. बूढ़े को पता नहीं है कि लड़कियां आत्मरक्षा और सम्मान के लिए चंडी बन सकती हैं.

जब वह मेरी पीठ सहलाता है मैं बहाना बना कर बाहर निकल जाती हूं. कोशिश करती हूं कि जल्दी उस के कमरे में न जाना पड़े. पर वह शैतान की औलाद…कहां मानने वाला है. बारबार बुलाता रहता है. मैं देर करती हूं तो वह खुद उठ कर हरीश के कमरे में आ जाता है…न खुद चैन से बैठता है न मुझे बैठने देता है.

उस दिन हद हो गई. उस ने सारी सीमाएं तोड़ दीं. उस का बायां हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंग रहा था. मैं मन ही मन सुलग रही थी. अचानक उस का हाथ आगे बढ़ा और मेरी बांह के नीचे से होता हुआ कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. मैं समझ गई, वह क्या चाहता था? मैं थोड़ा सिमट गई परंतु उस ने घात लगा कर मेरे बाएं वक्ष को अपनी हथेली में समेट लिया. उसी तरह जैसे चालाक सांप बेखबर मेढक को अपने मुंह में दबोच लेता है.

यह मेरी तय की हुई हद से बाहर की बात थी. मैं अपना होश खो चुकी थी. अचानक खड़ी हो गई. उस का हाथ छिटक गया. पर मेरा दायां हाथ उठ चुका था. बिजली की तरह उस के बाएं गाल पर चिपक गया, मैं ने जो नहीं सोचा था वह हो गया. जोर से तड़ाक की आवाज आई और वह दाईं तरफ बूढे़ बैल की तरह लड़खड़ा कर रह गया.

मैं ने उस के मुंह पर थूक दिया और किटकिटा कर कहा, ‘‘मैं ने दोस्ती की थी…शादी नहीं.’’ और तमतमाती हुई बाहर निकल गई.

फिर मैं वहां नहीं रुकी. नागेश के कमरे से बाहर आते ही मैं बिलकुल सामान्य हो गई. अनुराग को चुपके से बुलाया और कार्यालय के बाहर चली गई. बाहर आ कर मैं ने अनुराग को सबकुछ बता दिया. वह हैरानी से मेरा मुंह ताकने लगा, जैसे उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं ऐसा भी कर सकती हूं. वह मुझे बच्ची समझता था…20 वर्ष की अबोध बच्ची. परंतु मैं अबोध नहीं थी.

अनुराग ने चुपचाप मुझे एक बच्ची की तरह सीने से लगा लिया, जैसे उसे डर था कि कहीं खो न जाऊं. परंतु मैं खोने वाली नहीं थी क्योंकि मैं इस बेरहम और स्वार्थी दुनिया के बीच अकेली  नहीं थी, अनुराग के प्यार का संबल जो मुझे थामे हुए था.

Short Story In Hindi : मन बयार – क्या थी हैरी की कहानी

 Short Story In Hindi : खिड़की के बाहर नए देवदार… लंबे और पूरी तरह विकसित… बराबर के घर को बाहरी दृष्टि से बचाते हुए… अभी हाल में रोपे गए हैं. अपने किसी पुराने ठांव से निकाल कर उन्हें काफी गहरा गड्ढा खोद कर यहां लगाया गया है. उन की जड़ों में पुरानी मिट्टी चिपकी रहने दी है, जिस का स्पर्श उन्हें सुरक्षा का आभास देता रहे कि वह पूरी तरह से बेघर नहीं हुए हैं.

कहीं बहुत दूर अंधेरी सड़क पर भागती गाड़ियों की बत्तियां, सड़क को रोशनी और अंधेरे के खेल में अपना भागीदार बना रही हैं. खिड़की के बाहर दिखती है एक छोटी झील… सर्दियों में जब पानी जम जाएगा… सफेद बर्फ जैसा तो बच्चे वहां स्केटिंग करने निकलेंगे और यह शांत बैकयार्ड उन के शोर से भर जाएगा.दोपहर का सूरज बहुत चमकीला है.

पेड़ों और पानी पर पड़ती उस की तीखी रोशनी हवा के साथ लगता है नाच रही हो. एक साफ धूप… नीले आसमान पर इक्कादुक्का बादलों के मुलायम रूई जैसे चकत्ते… भ्रम होता है कि मौसम सुहाना होगा… कुनकुनी गरमाहट से भरा. पर यह सब एक मरीचिका जैसा था… जादुई यथार्थ… बाहर मौसम 3-4 डिगरी सैंटीग्रेड होगा. चुभती ठंडी हवा एक मिनट में फेफड़ों को निष्क्रिय करने के लिए काफी थी. दरवाजे और खिड़कियां सभी बंद हैं. घर का तापमान बढ़ाया हुआ है… इस महीने बिजली का बिल जरूर बढ़ा हुआ आएगा.

घर के अंदर तो अकेलापन है ही, बाहर भी निष्क्रियता का सन्नाटा पसरा है. सामने की सड़क एकदम सूनी है. अब तो सड़क भी जान गई है कि कोई नहीं आएगा.

घर में दूध खत्म है. काली कौफी या चाय क्या पाऊं? हिम्मत नहीं थी कि महामारी के इन दिनों में, इस उम्र में गाड़ी निकालूं और एक मील दूर स्टोर से दूध ही ले आऊं. दूध के लिए जाऊंगी तो कुछ और भी याद आ जाएगा. क्याक्या लाना है. मन ही नहीं करता कुछ करने का…

याद आया, 15 दिन हो गए, कोई ग्रोसरी नहीं लाई हूं. बहुत लोग औनलाइन सामान मंगा रहे हैं… अब मुझे भी ऐसा ही करना होगा. ग्रोसरी के बहाने घर से बाहर तो निकलती हूं. अब तो वह सब भी नहीं हो रहा. अनमनी सी उठती हूं… ब्लैक कौफी ही सही. एक सैंडविच बनाऊं… कुछ चीज पड़ा है… एक डब्बे में मैं ने सलामी देखी थी 2 दिन पहले… याद नहीं कि मैं ने खाई हो. थोड़ा टमाटर तो होगा ही…. हेलीपिनो पेपर डाल कर बढ़िया सैंडविच बनेगा.

मैं उत्साहित हो उठी. सारा सामान मिल गया. कौन अवन में रखे, ऐसे ही ठीक रहेगा. किचन काउंटर पर इतना सामान बिखरा है… एक दिन सफाई करनी होगी. अभी तो अपनी प्लेट और कौफी मग के लिए जगह बनाती हूं. कई डब्बे तो खाली हैं फैंके तक नहीं मैं ने. कूड़ेदान भर गया है ऊपर तक… एक हफ्ते से पुराना कूड़ा… मैं बाहर निकलती तो फेंकती. बुधवार को कूड़े का ट्रक आ कर चला गया. सुबह मैं सोती रही और मंगलवार को गारबेज बाहर निकालना भूल गई… अब एक हफ्ते की छुट्टी. बाहर का बड़ा ड्रम भरा नहीं होगा. किचन का कूड़ा तो बाहर फेंक ही सकती हूं. कैसे आलस्य ने मेरे मनमस्तिष्क, शरीर सब को जकड़ लिया हो जैसे. खुद को धक्का दे कर उठाती हूं. कौफी के बड़ेबड़े घूंट और सैंडविच के छोटेछोटे बाइट के बीच मैं ने निर्णय लिया कि विंड चीटर पहनूं और रसोई का कूड़ा तो बाहर फेंक ही आऊं.

हैरी को गए हुए 6 महीने हो चले. जाना तो मुझे था. कैंसरमुक्त हूं तो क्या… पर इम्यूनिटी तो मेरी लो होनी चाहिए. नकारात्मकता और डर तो मेरे दिमाग में है. हैरी तो कितने खुशमिजाज जिंदगी से भरपूर थे… मौत के खयाल से कोसों दूर और मै तो हमेशा डरी रहती कि कहीं कैंसर दोबारा न आ जाए.

हैरी की यह फोटो मैं ने एक पुराने एलबम से निकाली है. मैरून टाई, सफेद शर्ट और तिरछी पहनी गई हलकी नीली कैप. घनी मूंछों के बीच एक नटखट मुसकान. कैसे आराम से चला गया हैरी. 5 दिन का बुखार और कोविड का हमला सीधे दिल पर. 20 साल पहले हार्ट अटैक के बाद बाईपास हुआ था… अब तक सबकुछ आराम से चल रहा था.

कहते हैं, मौत कोई न कोई वजह ढूंढ़ लेती है… यह नई बीमारी हैरी की मौत का कारण बनी. मौत ने हैरी को चुना. मेरी बारी जब तक नहीं आती तब तक तो मुझे जीना ही है.

मैं ने जैकेट पहनी. किचन सिंक के नीचे सड़ांध मारते गारबेज बैग को निकाला और बड़े ड्रम में उछाल कर फेंक दिया. अच्छा हुआ कि ड्रम का ढक्कन मैं बंद करना भूल गई थी… मुझे ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा.
अंदर आ कर फिर एक ब्लैक कौफी बनाई. फोन पर रिमाइंडर सैट किया. कूड़ा मंगलवार को बाहर रखने के लिए… मन में खत्म हुई चीजों की लिस्ट बनाने से अच्छा है फोन पर लिख लूं. फोन खोला तो व्हाट्सएप पर नजर गई… अरे, विली का मैसेज है. कुछ दिन पहले ही फेसबुक पर मिला था. भला आदमी लगता है. काइंड और सैंसेटिव. हम दोनों की संगीत और किताबों की पसंद बहुत मिलती है. उसे पहाड़ पसंद हैं… मुझे भी… कितनी छोटीछोटी बातें हैं… जैसे बसंत में खिलते रंगबिरंगे डैफोडिल या पतझड़ के तांबई या गहरे पीले पत्ते… मीलों गाड़ी चला कर वह मिनेसोटा के फाल कलर्स देखने जाता. उसी ने बताया कि वह आजकल सिंगल है. तलाकशुदा या विधुर मैं ने जानने की कोशिश नहीं की. अपने रखरखाव को ले कर वह काफी सतर्क है. मुझे ढीलेढाले लोग कभी पसंद नहीं आए. हैरी की तरह विली भी अच्छी चीजों का शौकीन है. जीवन के हर पल को पूरी तरह जीने की चाहत से भरा. उस का उत्साह मुझे भी छूने लगा था और मैं कोशिश करती कि मैं भी जीवन को एक उत्सव समझूं और अपने अवसाद से बाहर निकलूं.

फिलहाल, विली की बातों में कितनी सचाई है, इन सब पचड़ों में मैं नहीं पड़ना चाहती, भले ही इस आभासी दुनिया का एक पात्र हो वह, पर अभी तो उस से बात करना मुझे अच्छा लगता है… उस की आवाज मेरे अकेलेपन में गूंजती मुझे एक नासमझ सी खुशी देती. चलो पहले उस के मैसेज का जवाब दूं. औनलाइन हुआ तो बातों का अंत नहीं.

मेरे पास भी तो पूरी दोपहर है… मेरा लंच हो ही गया है. कैथी का फोन शाम को आएगा… औफिस से लौटते समय, “कैसी हो मौम? ज्यादा बाहर तो नहीं निकलतीं?”

हर रोज फोन करती है कैथी. अब तो आरन भी हफ्ते में एक बार फोन करने लगा है. पर अभी तो विली का मैसेज देखती हूं. और यकायक मैं एक छोटी लड़की की तरह हंस रही थी विली के फौरवर्ड पर.

बाहर एक गाड़ी तेजी से सन्नाटे को चीरती निकल गई. मैं ने विली के लिए मैसेज टाइप कर दिया था और उस के उत्तर की प्रतीक्षा में थी.

Short Story : सोने का कारावास

Short Story : अभिषेक अपनी कैंसर की रिपोर्ट को हाथ में ले कर बैठेबैठे यह ही सोच रहा था कि क्या करे, क्या न करे. सबकुछ तो था उस के पास. वह इस सोने के देश में आया ही था सबकुछ हासिल करने, मगर उस का गणित कब और कैसे गलत हो गया, वह समझ नहीं पाया. हर तरह से अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने के बावजूद क्यों और कब उसे यह भयंकर बीमारी हो गई थी. सब से पहले उस ने अपनी बड़ी बहन को फोन किया तो उन्होंने फौरन अपने गुरुजी को सूचित किया और समस्या का कारण गुरुजी ने पितृदोष बताया था.

छोटी बहन भी फोन पर बोली, ‘‘भैया, आप लोग तो पूरे अमेरिकी हो गए हो, कोई पूजापाठ, कनागत कुछ भी तो नहीं मानते, इसलिए ही आज दंडस्वरूप आप को यह रोग लग गया है.’’ यह सुन कर अभिषेक का मन वापस अपनी जड़ों की तरफ लौटने को बेचैन हो गया. सोने की नगरी अब उसे सोने का कारावास लग रही थी. यह कारावास जो उस ने स्वयं चुना था अपनी इच्छा से.

अभिषेक और प्रियंका 20 वर्षों पहले इस सोने के देश में आए थे. अभिषेक के पास वैसे तो भारत में भी कोई कमी नहीं थी पर फिर भी निरंतर आगे बढ़ने की प्यास ने उसे इस देश में आने को विवश कर दिया था. प्रियंका और अभिषेक दोनों बहुत सारी बातों में अलग होते हुए भी इस बात पर सहमत थे कि भारत में उन का और उन के बेटे का भविष्य नहीं है.

प्रियंका अकसर आंखें तरेर कर बोलती, ‘है क्या इंडिया में, कूड़ाकरकट और गंदगी के अलावा.’

अभिषेक भी हां में हां मिलाते हुए कहता, ‘शिक्षा प्रणाली देखी है, कुछ भी तो ऐसा नहीं है जो देश के विद्यार्थियों को आगे के लिए तैयार करे. बस, रटो और आगे बढ़ो. अमेरिका के बच्चों को कभी देखा है, वे पहले सीखते हैं, फिर समझते हैं. हम अपने सार्थक को ऐसा ही बनाना चाहते हैं.’

प्रियंका आगे बोलती, ‘अभि, तुम अपने विदेश जाने के कितने ही औफर्स अपने मम्मीपापा के कारण छोड़ देते हो, एक बेटे का फर्ज निभाने के लिए. पर उन्होंने क्या किया, कुछ नहीं.’

‘मेरा सार्थक तो अकेला ही पला. उस के दादादादी तो अपना मेरठ का घर छोड़ कर बेंगलुरु नहीं आए.’

यह वार्त्तालाप लगभग 20 वर्ष पहले का है जब अभिषेक को अपनी कंपनी की तरफ से अमेरिका जाने का प्रस्ताव मिला था. अभिषेक के मन में एक पल के लिए अपने मम्मीपापा का खयाल आया था पर प्रियंका ने इतनी सारी दलीलें दीं कि अभिषेक को यह लगा कि उसे ऐसा मौका छोड़ना नहीं चाहिए.

अभिषेक अपनी दोनों बहनों का इकलौता भाई था. उस से बड़ी एक बहन थी और एक बहन उस से छोटी थी. उस के पति अच्छेखासे सरकारी पद से सेवानिवृत्त हुए थे. बचपन से अभिषेक हर रेस में अव्वल ही आता था. अच्छा घर, अच्छी नौकरी, खूबसूरत और उस से भी ज्यादा स्मार्ट बीवी. रहीसही कसर शादी के 2 वर्षों बाद सार्थक के जन्म से पूरी हो गई थी. सबकुछ परफैक्ट पर परफैक्ट नहीं था तो यह देश और इस के रहने वाले नागरिक. वह तो बस अभिषेक का जन्म भारत में हुआ था, वरना सोच से तो वह पूरा विदेशी था.

विवाह के कुछ समय बाद भी उसे अमेरिका में नौकरी का प्रस्ताव मिला था, पर अभिषेक के पापा को अचानक हार्टअटैक आ गया था, सो, उसे मजबूरीवश प्रस्ताव को ठुकराना पड़ा. कुछ ही महीनों में प्रियंका ने खुशखबरी सुना दी और फिर अभिषेक और प्रियंका अपनी नई भूमिका में उलझ गए. वे लोग बेंगलुरु में ही बस गए. पर मन में कहीं न कहीं सोने की नगरी की टीस बनी रही.

जब सार्थक 7 वर्ष का था, तब अभिषेक को कंपनी की तरफ से परिवार सहित फिर से अमेरिका जाने का मौका मिला, जो उस ने फौरन लपक लिया.

खुशी से सराबोर हो कर जब उस ने अपने पापा को फोन किया तो पापा थकी सी आवाज में बोले, ‘बेटा, मेरा कोई भरोसा नहीं है, आज हूं कल नहीं. तुम इतनी दूर चले जाओगे तो जरूरत पड़ने पर हम किस का मुंह देखेंगे.’ अभिषेक ने चिढ़ी सी आवाज में कहा, ‘पापा, तो अपनी प्रोग्रैस रोक लूं आप के कारण. वैसे भी, आप और मम्मी को मेरी याद कब आती है? प्रियंका को आप दोनों के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि आप दोनों मेरठ छोड़ कर आना ही नहीं चाहते थे. फिर सार्थक को हम किस के भरोसे छोड़ते और

आज आप को अपनी पड़ी है.’ अभिषेक के पापा ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया.

अभिषेक की मम्मी, सावित्री, बड़ी आशा से अपने पति रामस्वरूप की तरफ देख रही थी कि वे उस को फोन देंगे पर जब उन्होंने फोन रख दिया तो उतावली सी बोली, ‘मेरी बात क्यों नहीं कराई पिंटू से?’

रामस्वरूप बोले, ‘पिंटू अमेरिका जा रहा है परिवार के साथ.’

सावित्री बोली, ‘हमेशा के लिए?’

रामस्वरूप चिढ़ कर बोले, ‘मुझे क्या पता. वह तो मुझे ही उलटासीधा सुना रहा था कि हमारे कारण उस की बीवी नौकरी नहीं कर पाई.’

सावित्री थके से स्वर में बोली, ‘तुम अपना ब्लडप्रैशर मत बढ़ाओ, यह घोंसला तो पिछले 10 वर्षों से खाली है. हम हैं न एकदूसरे के लिए,’ पर यह कहते हुए उन का स्वर भीग गया था.

सावित्री मन ही मन सोच रही थी कि वह अभिषेक को भी क्या कहे, आखिर प्रियंका उस की बीवी है. पर वे दोनों कैसे रहें उस के घर में, क्योंकि बहू का तेज स्वभाव और उस से भी तेज कैंची जैसी जबान है. उस के अपने पति रामस्वरूपजी का स्वभाव भी बहुत तीखा था. कोई जगहंसाई न हो, इसलिए सावित्री और रामस्वरूप ने खुद ही एक सम्मानजनक दूरी बना कर रखी थी. पर इस बात को अभिषेक अलग तरीके से ले लेगा, यह उन्हें नहीं पता था.

उधर रात में अभिषेक प्रियंका को जब पापा और उस के बीच का संवाद बता रहा था तो प्रियंका छूटते ही बोली, ‘नौकर चाहिए उन्हें तो बस अपनी सेवाटहल के लिए, हमारा घर तो उन्होंने अपने लिए मैडिकल टूरिज्म समझ रखा है, जब बीमार होते हैं तभी इधर का रुख करते हैं. अब कराएं न अपने बेटीदामाद से सेवा, तुम क्यों अपना दिल छोटा करते हो?’

एक तरह से सब को नाराज कर के ही अभिषेक और प्रियंका अमेरिका  आए थे. साल भी नहीं बीता था कि पापा फिर से बीमार हो गए थे, अभिषेक ने पैसे भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी. आखिर, अब उसे सार्थक का भविष्य देखना है.

उस की बड़ी दी ऋचा और उन के पति जयंत, मम्मीपापा को अपने साथ ले आए थे. पर होनी को कौन टाल सकता है, 15 दिनों में ही पापा सब को छोड़ कर चले गए.

अभिषेक ने बहुत कोशिश की पर इतनी जल्दी कंपनी ने टिकट देने से मना कर दिया था और उस समय खुद टिकट खरीदना उस के बूते के बाहर था. पहली बार उसे लगा कि उस ने अपनेआप को कारावास दे दिया है, घर पर सब को उस की जरूरत है और वह कुछ नहीं कर पा रहा है.

प्रियंका ने अभिषेक को सांत्वना देते हुए कहा, ‘आजकल बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है. वे तो ऋचा दी के पास थे. हम लोग अगले साल चलेंगे जब कंपनी हमें टिकट देगी.’

अगले साल जब अभिषेक गया तो मां का वह रूप न देख पाया, ऐसा लग रहा था मां ने एक वर्ष में ही 10 वर्षों का सफर तय कर लिया हो. सब नातेरिश्तेदार की बातों से अभिषेक को लगा जैसे वह ही अनजाने में अपने पिता की मृत्यु का कारण हो. उस के मन के अंदर एक डर सा बैठ गया कि उस ने अपने पिता का दिल दुखाया है. अभिषेक मां को सीने से लगाता हुआ बोला, ‘मां, मैं आप को अकेले नहीं रहने दूंगा, आप मेरे साथ चलोगी.’

जयंत जीजाजी बोले, ‘अभिषेक, यह ही ठीक रहेगा, सार्थक के साथ वे अपना दुख भूल जाएंगी.’अभिषेक के जाने का समय आ गया, पर मां का पासपोर्ट और वीजा बन नहीं पाया.

मां के कांपते हाथों को अपनी बहनों के हाथ में दे कर वह फिर से सोने के देश में चला गया. फिर 5 वर्षों तक किसी न किसी कारण से अभिषेक का घर आना टलता ही रहा और अभिषेक की ग्लानि बढ़ती गई.

5 वर्षों बाद जब वह आया तो मां का हाल देख कर रो पड़ा. इस बार मां की इच्छा थी कि रक्षाबंधन का त्योहार एकसाथ मनाया जाए उन के पैतृक गांव में. अभिषेक और प्रियंका रक्षाबंधन के दिन ही पहुंचे. प्रियंका को अपने भाई को भी राखी बांधनी थी.

दोनों बहनों ने पूरा खाना अभिषेक की पसंद का बनाया था और आज मां भी बरसों बाद रसोई में जुटी हुई थी. मेवों की खीर, गुलाबजामुन, दहीबड़े, पुलाव, पनीर मसाला, छोटेभठूरे, अमरूद की चटनी, सलाद और गुड़ के गुलगुले. अभिषेक, ऋचा और मोना मानो फिर से मेरठ के घर में आ कर बच्चे बन गए थे. बरसों बाद लगा अभिषेक को कि वह जिंदा है.

2 दिन 2 पल की तरह बीत गए. बरसों से सोए हुए तार फिर से झंकृत हो गए. सबकुछ बहुत ही सुखद था. ढेरों फोटो खींचे गए, वीडियो बनाई गई. सब को बस यह ही मलाल था कि सार्थक नहीं आया था.

मोना ने अपने भैया से आखिर पूछ ही लिया, ‘भैया, सार्थक क्यों नहीं आया, क्या उस का मन नहीं करता हम सब से मिलने का?’

इस से पहले अभिषेक कुछ बोलता, प्रियंका बोली, ‘वहां के बच्चे मांबाप के पिछलग्गू नहीं होते, उन को अपना स्पेस चाहिए होता है. सार्थक भारतभ्रमण पर निकला है, वह अपने देश को समझना चाहता है.’

ऋचा दी बोली, ‘सही बोल रही हो, हर देश की अपनी संस्कृति होती है. पर अगर सार्थक देश को समझने से पहले अपने परिवार को समझता तो उसे भी बहुत मजा आता.’

अभिषेक सोच रहा था, सार्थक को अपना स्पेस चाहिए था, वह स्पेस जिस में उस के अपने मातापिता के लिए भी जगह नहीं थी.

शाम को वकील साहब आ गए थे. मां ने अपने बच्चों और नातीनातिनों से कहा, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे जाने के बाद तुम लोगों के बीच में मनमुटाव हो, इसलिए मैं ने अपनी वसीयत बनवा ली है.’

प्रियंका मौका देखते ही अभिषेक से बोली, ‘सबकुछ बहनों के नाम ही कर रखा होगा, मैं जानती हूं इन्हें अच्छे से.’

वसीयत पढ़ी गई. पापा के मकान के 4 हिस्से कर दिए गए थे, जो तीनों बच्चों और मां के नाम पर हैं, चौथा हिस्सा उस बच्चे को मिलेगा जिस के साथ मां अपना अंतिम समय बिताएंगी.

100 बीघा जमीन जो उन की गांव में है, उस के भी 4 हिस्से कर दिए गए थे. दुकानें भी सब के नाम पर एकएक थी और गहनों के 3 भाग कर दिए गए थे. मां ने अपने पास बस वे ही गहने रखे जो वे फिलहाल पहन रही थीं. वसीयत पढ़े जाने के पश्चात तीनों भाईबहन सामान्य थे पर छोटे दामाद और प्रियंका का मुंह बन गया था. जबकि छोटे दामाद और बहू ने अब तक मां के लिए कुछ भी नहीं किया था.

प्रियंका उस दिन जो गई, फिर कभी ससुराल की देहरी पर न चढ़ी. मां के गुजरने पर अभिषेक अकेले ही बड़ी मुश्किल से आ पाया था. फिर तो जैसे अभिषेक के लिए अपने देश का आकर्षण ही खत्म हो गया था.

पूरे 7 वर्षों तक अभिषेक भारत नहीं गया. बहनों की राखी मिलती रही, पर उस ने अभी कुछ नहीं भेजा क्योंकि कहीं न कहीं यह फांस उस के मन में भी थी कि जब उन्हें बराबर का हिस्सा मिला है तो फिर किस बात का तोहफा.

अमेरिका में वह पूरी तरह रचबस गया था कि तभी अचानक से एक छोटे से टैस्ट ने भयानक कैंसर की पुष्टि कर दी थी. उन्हीं रिपोर्ट्स को बैठ कर वह देख रहा था. न जाने क्यों कैंसर की सूचना मिलते ही सब से पहले उसे अपनी बहनों की याद आई थी.

सार्थक अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था, उस से कुछ उम्मीद रखना व्यर्थ था. वह एक अमेरिकी बेटा था. सबकुछ नपातुला, न कोई शिकायत न कोई उलाहना, एकदम व्यावहारिक. कभीकभी अभिषेक उन भावनाओं के लिए तरस जाता था. वह 2 हजार किलोमीटर दूर एक मध्यम आकार के सुंदर से घर में रहता था.

सार्थक से जब अभिषेक ने कहा, ‘‘सार्थक, तुम यहीं शिफ्ट हो जाओ, मुझे और तुम्हारी मम्मी को थोड़ा सहारा हो जाएगा.’’

सार्थक हंसते हुए बोला, ‘‘पापा, यह अमेरिका है, यहां पर आप को काम से छुट्टी नहीं मिल सकती है और सरकार की तरफ से इलाज तो चल रहा है

आप का, जो भारत में मुमकिन नहीं. मुझे आगे बढ़ना है, ऊंचाई छूनी है, मैं आप का ही बेटा हूं, पापा. आप सकारात्मक सोच के साथ इलाज करवाएं, कुछ नहीं होगा.’’

पर अभिषेक के मन में यह भाव घर कर गया था कि यह उस की करनी का ही फल है और उस की बातों की पुष्टि के लिए उस की बहनें भी रोज कोई न कोई नई बात बता देती थीं. अब अकसर ही अभिषेक अपनी बहनों से बातें करता था जो उसे मानसिक संबल देती थीं. सब से अधिक मानसिक संबल मिलता था उसे उन ज्योतिषियों की बातों से जो अभिषेक के लिए इंडिया से ही पूजापाठ कर रहे थे.

भारत में दोनों बहनों ने महामृत्युंजय के पाठ बिठा रखे थे. हर रोज प्रियंका अभिषेक का फोटो खींच कर व्हाट्सऐप से दोनों बहनों को भेजती और उस फोटो को देखने के पश्चात पंडित लोग अपनी भविष्यवाणी करते थे. सब पंडितों का एकमत निर्णय यह था कि अभिषेक की अभी कम से कम 20 वर्ष आयु शेष है. यदि वह अच्छे मुहूर्त में आगे का इलाज करवाएगा तो अवश्य ही ठीक हो जाएगा.

सार्थक हर शुक्रवार को अभिषेक और प्रियंका के पास आ जाता था. उस रात जैसे ही उसे झपकी आई तो देखा. इंडिया से छोटी बूआ का फोन था, वे प्रियंका को बता रही थीं, ‘‘भाभी, आप अस्पताल बदल लीजिए, पंडितजी ने कहा है, जगह बदलने से मरकेश ग्रह टल जाएगा.’’

सार्थक ने मम्मी के हाथ से फोन ले लिया और बोला, ‘‘बूआ, ऐसी स्थिति में अस्पताल नहीं बदल सकते हैं और ग्रह जगह बदलने से नहीं, सकारात्मक सोच से बदलेगा, मेरी आप से विनती है, ऐसी फालतू बात के लिए फोन मत कीजिए.’’

परंतु अभिषेक ने तो जिद पकड़ ली थी. उस ने मन के अंदर यह बात गहरे तक बैठ गई थी कि बिना पूजापाठ के वह ठीक नहीं हो पाएगा. सार्थक ने कहा भी, ‘‘पापा, आप इतना पढ़लिख कर ऐसा बोल रहे हो, आप जानते हो कैंसर का इलाज थोड़ा लंबा चलता है.’’

अभिषेक थके स्वर में बोला, ‘‘तुम नहीं समझोगे सार्थक, यह सब ग्रहदोष के कारण हुआ है, मैं अपने मम्मीपापा का दिल दुखा कर आया था.’’

सार्थक ने फिर भी कहा, ‘‘पापा, दादादादी थोड़े दुखी अवश्य हुए होंगे पर आप को क्या लगता है, उन्होंने आप को श्राप दिया होगा, आप खुद को उन की जगह रख कर देखिए.’’

प्रियंका गुस्से में बोली, ‘‘सार्थक, तुम बहुत बोल रहे हो. हम खुद अस्पताल बदल लेंगे. हो सकता है अस्पताल बदलने से वाकई फर्क आ जाए.’’

सार्थक ने अपना सिर पकड़ लिया. क्या समझाए वह अपने परिवार को. उसे डाक्टरों की चेतावनी याद थी कि जरा सी भी असावधानी उन की जान के लिए खतरा सिद्ध हो सकती है.

अभिषेक की इच्छाअनुसार अस्पताल बदल लिया गया. अगले हफ्ते जब सार्थक आया तो देखा, अभिषेक पहले से बेहतर लग रहा था. प्रियंका सार्थक को देख कर चहकते हुए बोली, ‘‘देखा सार्थक, महामृत्युंजय पाठ वास्तव में कारगर होते हैं.’’

पापा को पहले से बेहतर देख कर सार्थक ने कोई बहस नहीं की. बस, मुसकराभर दिया. पर फिर उसी रात अचानक से अभिषेक को उल्टियां आरंभ हो गईं. डाक्टरों का एकमत था कि  पेट का कैंसर अब गले तक पहुंच गया है, फौरन सर्जरी करनी पड़ेगी.

परंतु प्रियंका मूर्खों की तरह इंडिया में ज्योतिषियों से सलाह कर रही थी. ज्योतिषियों के अनुसार अभी एक हफ्ते से पहले अगर सर्जरी की तो अभिषेक को जान का खतरा है क्योंकि पितृदोष पूरी तरह से समाप्त होने में अभी भी एक हफ्ते का समय शेष है. एक बार पितृदोष समाप्त हो जाएगा तो फिर अभिषेक को कुछ नहीं होगा. कहते हैं जब बुरा समय आता है तो इंसान की अक्ल पर भी परदा पड़ जाता है. अभिषेक अपनी दवाइयों में लापरवाही बरतने लगा पर भभूत, जड़ीबूटियों का काढ़ा वह नियत समय पर ले रहा था. इन जड़ीबूटियों के कारण कैंसर की आधुनिक दवाओं का असर भी नहीं हो रहा था क्योंकि जड़ीबूटियों में जो कैमिकल होते हैं वे किस तरह से कैंसर की इन नई दवाओं को प्रभावित करते हैं, इस पर अमेरिकी शोधकर्ताओं ने कभी ध्यान नहीं दिया था. नतीजा उस का स्वास्थ्य दिनबदिन गिरने लगा. इस कारण से अभिषेक की कीमोथेरैपी के लिए भी डाक्टरों ने मना कर दिया.

सार्थक ने बहुत प्यार से समझाया, सिर पटका, गुस्सा दिखाया पर अभिषेक और प्रियंका टस से मस न हुए. डाक्टरों ने सार्थक को साफ शब्दों में बता दिया था कि अब अभिषेक के पास अधिक समय नहीं है. सार्थक को मालूम था कि अभिषेक का मन अपनी बहनों में पड़ा है. जब उस ने अपनी दोनों बुआओं को आने के लिए कहा तो दोनों ने एक ही स्वर में कहा, ‘‘गुरुजी ने एक माह तक सफर करने से मना किया है क्योंकि दोनों ने अपने घरों में अखंड ज्योत जला रखी है, एक माह तक और फिर गुरुजी की भविष्यवाणी है कि भैया मार्च में ठीक हो कर आ जाएंगे. यदि हम बीच में छोड़ कर गए तो अपशकुन हो जाएगा.’’ सार्थक को समझ आ गया था कि भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं है.

उधर, अभिषेक को सोने की नगरी अब कारावास जैसी लग रही थी. तरस गया था वह अपनों के लिए, सबकुछ था पर फिर भी मानसिक शांति नहीं थी. दोनों बहनों ने अपनी ओर से कोई भी कोरकसर नहीं छोड़ी पर ग्रहों की दशा सुधारने के बावजूद अभिषेक की हालत न सुधरी. मन में अपनों से मिलने की आस लिए वह दुनिया से रुखसत हो गया.

आज सार्थक को बेहद लाचारी महसूस हो रही थी. दूसरे अवश्य उसे अमेरिकी कह कर चिढ़ाते हों पर वह जानता था कि उस के गोरे अमेरिकी दोस्त कैसे मातापिता की सेवा करते हैं. उस की एक प्रेमिका तो मां का ध्यान रखने के लिए उसे ही नहीं, अपनी अच्छी नौकरी को भी छोड़ कर इस छोटे से गांवनुमा शहर में 4 साल रही थी. वह मां के मरने के बाद ही लौटी थी. वह समझता था कि अमेरिकी युवा अपने मन से चलता है पर अपनी जिम्मेदारियां समझता है. अब वह हताश था क्योंकि पूर्वग्रह के कारण उस के मातापिता भारत में बैठी बहनों के मोहपाश में बंधे थे. वे धर्म की जो गठरी सिर पर लाद कर लाए थे, अमेरिका में रह कर और भारी हो गई थी.

सबकुछ तो था उस के परिवार के पास पर इन अंधविश्वासों में उलझ कर वह अपने पापा की आखिरी इच्छा पूरी न कर पाया था, काश, वह अपने पापा और परिवार को यह समझा पाता कि कैंसर एक रोग है जो कभी भी किसी को भी हो सकता है, उस का इलाज पूजापाठ नहीं. सकारात्मक सोच और डाक्टरी सलाह के साथ नियमित इलाज है. अमेरिका न तो सोने की नगरी है और न ही सोने का कारावास, पापा की अपनी सोच ने उन्हें यह कारावास भोगने पर मजबूर किया था. गीली आंखों के साथ सार्थक ने अपने पापा को श्रद्धांजलि दी और एक नई सोच के साथ हमेशा के लिए अपने को दकियानूसी सोच के कारावास से मुक्त कर दिया.

Motivational Story In Hindi : लैफ्टिनैंट सोना कुमारी की कहानी

Motivational Story In Hindi : मैंआईएम से सेना आयुद्ध कोर में स्थाई कमीशन ले कर निकली तो मेरे पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. मैं ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की तो यूपीएससी ने तकनीकी अफसरों की वेकैंसी निकाली. मैं ने अप्लाई किया तो मु झे इस कोर में इन्वैंटरी कंट्रोल अफसर के लिए चुना गया. मेरी पहली पोस्टिंग पठानकोट की एक और्डिनैंस यूनिट में हुई थी.

मेरे लैफ्टिनैंट बनने के मूल में एक जबरदस्त कहानी है. मैं प्रतिलिपि पर एक अनजान पूर्व आर्मी अफसर की प्रकाशित कहानियों से प्रभावित थी. जहां वे कहानियों में भारतीय सेना की बहादुरी के बारे में लिखते थे, वहीं जवानों के व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं से भी देशवासियों को अवगत करवाते थे.

मैं शुरू से ही आर्मी अफसरों से प्रभावित थी. मैं मन से आर्मी अफसर से शादी करना चाहती

थी. मम्मीपापा भी मेरे इंजीनिरिंग का डिप्लोमा करने के बाद मेरी शादी की तैयारी कर रहे थे. मेरी इच्छा का उन के सामने कोई महत्त्व नहीं था.

मैं ने इन अनजान आर्मी अफसर को उन की कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया दी और फौलो किया. उन की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार किया.

बातोंबातों में मैं ने उन से अपनी इच्छा जताई तो उन्होंने मेरी शिक्षा पूछी. मैं ने बताया कि इंजीनियरिंग का डिप्लोमा कर रही हूं, शिक्षा कम है. सेना के अफसरों को उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियां चाहिए होती हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘आप खुद आर्मी अफसर क्यों नहीं बनती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, यह कैसे हो सकता है?’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप के डिप्लोमा में 90% नंबर आते हैं तो आप को बीटैक में एडमिशन मिल सकती है. आप इतने नंबर लें और बीटैक करें.’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, मेरे मम्मीपापा नहीं मानेंगे.’’

‘‘आप लड़ने से पहले ही हार रही हैं.’’

‘‘सर, क्या मतलब?’’

‘‘पहले आप 90% नंबर लें. फिर मु झ से बात करना. कहीं ऐसा न हो कि समय गुजर जाए और आप की फौजी अफसर से शादी करने की इच्छा तृष्णा में बदल जाए.’’

‘‘सर, क्या इच्छा और तृष्णा में फर्क होता है? है तो इसे मैं सम झना चाहती हूं.’’

‘‘इच्छाएं वे हैं जो पूरी हो कर समाप्त हो जाती हैं. तृष्णाएं वे हैं जो इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं. इच्छा प्यास है जो लगती है, पानी मिलते ही बु झ जाती है. तृष्णा वह प्यास है जो जीवन में कभी नहीं बु झती. मान लो, आप की फौजी अफसर से शादी करने की इच्छा किसी कारण से पूरी नहीं होती तो यह इच्छा परिपक्व हो कर तृष्णा बन जाएगी.’’

मैं उन की बात सम झ गई थी. सर ने मुझे फौजी अफसर से शादी करने का रास्ता सु झा

दिया था. ऐसा बीज बोया था, मेरे मन में थोड़ा

सा भी शक नहीं था. खुद फौजी अफसर बनो.

10 अफसर शादी के लिए पीछे घूमेंगे. आप अपनी शर्तों पर शादी कर सकेंगी.

मेरा लक्ष्य 90% नंबर लेने का था. मैं इस के लिए पढ़ाई में जुट गई. जबरदस्त मेहनत की. परीक्षा दी. परिणाम आया तो आशा के अनुरूप मेरे 94% नंबर आए थे.

मैं ने सर को बताया. वे बहुत खुश हुए कहा, ‘‘अब तुम्हारा लक्ष्य बीटैक होना चाहिए.’’

‘‘मेरे मम्मीपापा अभी शादी पर जोर दे रहे हैं. मैं इस के लिए तैयार नहीं हूं.’’

‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘सर, सब हैं, दादी हैं, चाचे हैं, चाचियां हैं, भाई हैं, सब मु झ से बहुत प्यार करते हैं. मेरे छोटे चाचा सब से ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘गलत शब्द का प्रयोग मत करो. प्यार नहीं प्रेम कहो.’’

‘‘सर, क्या प्यार और प्रेम में अंतर है?’’

‘‘है, लेकिन बाद में बताऊंगा. पहले अपने उस चाचा के पास जा कर सारी बात बताओ. कहो कि बीटैक करने से मेरा कैरियर ब्राइट होगा. नंबर भी बहुत अच्छे आए हैं. अभी मैं केवल 20 साल की हूं. 24वें साल में मेरी बीटैक हो जाएगी. फिर अभी मु झे घरगृहस्थी का कुछ भी पता नहीं है. मैं पिस जाऊंगी. मैं ट्यूशनें कर के अपना खर्च निकाल लूंगी. देखो, क्या कहते हैं? उन को लगेगा कि ज्यादा पढ़ जाएगी तो शादी में ज्यादा दहेज देना पड़ेगा. उस के लिए केवल यह कहना कि समय से पहले इस बारे में क्या सोचना?’’

चाचू ने सारी बात सुनी. चाची भी पास खड़ी थी. उस ने भी कहा, ‘‘लड़की बात तो ठीक कहती है. अभी इस की उम्र शादी लायक है ही नहीं. क्या हम अपनी शन्नों की शादी अभी कर देंगे वह भी 20 साल की उम्र में?’’

‘‘ठीक है, बच्चे मैं तुम्हारे मम्मीपापा से बात कर के उन्हें मना लूंगा. तुम बीटैक में जरूर जाओगी. अगर वे पढ़ाई का खर्चा नहीं देंगे तो मैं दूंगा. तुम बीटैक में एडमिशन लेने को तैयारी करो.’’

‘‘ओह, चाचू,’’ मैं आगे बढ़ कर उन के पांव छूने लगी तो उन्होंने बीच में ही रोक दिया. बोले, ‘‘घर की बेटियां पांव नहीं छूती हैं. केवल आशीर्वाद लेती हैं. जाओ, बच्चे पढ़ने की तैयारी करो.’’

चाची ने भी मु झे प्यार किया था. आशा के विपरीत मम्मीपापा भी मान गए. मैं ने

सर को बताया, ‘‘सर, कमाल हो गया. सब मान गए. शुक्रिया, सर.’’

‘‘शुक्रिया मेरा नहीं, अपने चाचाचाची का करो. अगर वे नहीं होते तो तुम्हारी शादी निश्चित थी.’’

‘‘हां, वे सब मु झे बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘फिर गलत शब्द का प्रयोग कर रही हो. प्यार नहीं प्रेम कहो.’’

‘‘सर, मैं प्रेम और प्यार के अंतर को सम झना चाहती हूं, जबकि हम प्रेम और प्यार को एक ही सम झते आए हैं.’’

‘‘यही तो गलतफहमी है. इंग्लिश में केवल एक शब्द है, लव, जिसे हर रिश्ते के लिए प्रयोग करते हैं. लेकिन हिंदी साहित्य उस से अधिक समृद्ध है. इसे मोटे तौर पर इस तरह सम झा जा सकता है. प्रेम एक सात्विक शब्द है जिस में वासना का पुट नहीं होता. प्रेम को आप किसी सीमा में नहीं बांध सकते. प्रेम मां का हो सकता है, प्रेम पिता, भाई, बहन किसी का भी हो सकता है जिस से आप वासना का संबंध नहीं रख सकते वह प्रेम है. प्यार, शृंगारिक शब्द है जिस में वासना का पुट होता है.’’

‘‘मु झे क्रिकेट से प्यार है, इसलिए विराट कोहली से क्रश करती हूं. इसे क्या कहेंगे, सर?’’

‘‘आप को थोड़ा शब्दों को दुरुस्त करना पड़ेगा. आप को क्रिकेट से प्रेम है, वह एक खेल है, उस से आप वासना का संबंध नहीं रख सकतीं. क्रश प्यार का दूसरा रूप है. विराट कोहली पहले शरीर में आया फिर खेल में. आप का क्रश पहले शरीर से हुआ. फिर उस के साथ क्रिकेट से. शरीर से आधार ही वासना है. उस की उत्पत्ति भी वासना से है. इसलिए आप का क्रश प्यार है, प्रेम नहीं.’’

‘‘पर सर मैं ने उसे इस भाव से कभी नहीं देखा नहीं.’’

‘‘आप किस भाव से देखती हैं, प्रश्न यह नहीं है. प्रश्न यह है कि आप का क्रश प्रेम है या प्यार? अच्छा मु झे यह बताओ, अगर विराट कोहली शरीर में न होता तो आप को क्रश होता?’’

‘‘नहीं, सर.’’

‘‘शरीर का आधार वासना है. अगर उस के या किसी के भी मम्मीपापा संघर्ष नहीं करते तो वे पैदा होते? पूरे संसार के शरीर इसी वासना पर आधारित हैं. यही नियति है. विधि का विधान भी यही है.’’

‘‘इस का मतलब यह भी है कि मु झे कभी विराट कोहली से क्रश हुआ ही नहीं. सर, एक बात और सम झा दीजिएगा. ये लड़केलड़कियां बनते ही क्या हैं? कैसे बनते हैं?’’

‘‘आप मानती हैं, इस सारे संसार को कोई ऐसी पावर चला रही है जिसे हम कुदरत कहते हैं. जहां मेल है, वहीं फीमेल भी है.’’

‘‘जी हां, सर. कुदरत है जो पूरे संसार को चलाता है.’’

‘‘आप का दूसरा प्रश्न मैडिकल साइंस से संबंधित है, आप किसी डाक्टर या इस विषय के जानकार से पूछ सकती हैं. मैं एक कहानीकार हूं, मु झे इस का ज्ञान नहीं है.’’

मैं सम झती हूं, वे जानते हैं, लेकिन एक लड़की से कैसे वर्णन करें? उन की  िझ झक को मैं सम झ रही थी. मैं ने उन से कहा, ‘‘आप अपनी कहानियों में नायिकाओं की सुंदरता का वर्णन कैसे करते हैं?’’

‘‘यह कैसा प्रश्न है?’’

‘‘सर, प्रश्न सही क्यों नहीं है. लड़की अपनेआप को कभी नहीं जान पाती है कि वह सुंदर है या नहीं? शीशे में देख कर केवल कुछ भागों का पता चलता है? तकनीकी तौर पर कैसे पता चलेगा कि शरीर का विकास ठीक से हुआ या नहीं?’’

वे फिर हिचकिचाए. मैं ने जोर दिया तो उन्होंने मेरो हाइट पूछी. फिर उन्होंने इस प्रकार वर्णन

किया जैसे मैं उन के सामने खड़ी होऊं. मैं हैरान थी कि यह कैसे संभव है कि कोई व्यक्ति पंजाब में बैठा  झारखंड की एक लड़की के शरीर का हूबहू वर्णन कर सकता है? मेरे कुछ अंगों का विकास उन के मुताबिक कम हुआ था. उस के उन्होंने कारण भी बताए, लेकिन बेहद संस्कारी और संयुक्त परिवार में रहने वाली लड़की इस तरह रात को बेधड़क हो कर कैसे सो सकती थी? रात को ढीले कपड़े न पहन कर सोना इस का बड़ा कारण था.

मैं ने उन से प्रश्न किया, ‘‘आप ने कैसे केवल मेरी हाइट पूछ कर सब बता दिया? मैं हैरान हूं, सर. प्लीज मु झे बताएं?’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह सैक्स मनोविज्ञान में है कि अगर किसी लड़की की हाइट इतनी है तो उस के शेष अंगों का साइज यह होना चाहिए. विडंबना से हमारे देश में स्कूलों, कालेजों में इस की शिक्षा नहीं दी जाती है. अगर दी गई होती तो इस प्रकार आप को हैरानी नहीं होती.’’

‘‘ओह,’’ मैं केवल ओह कर के रह गई. मन के भीतर आत्मग्लानि हुई कि सर से कैसा प्रश्न पूछ बैठी? वह भी किसी अनजान लेखक के सामने. वैसे वे कहते ठीक थे. यह शिक्षा का ही अभाव था कि मु झे पहले पीरियड में अधिक परेशान होना पड़ा था. मैं स्कूल बस में ही पीरियड हो गई थी. चाहे यह मां की तरफ से था या स्कूल की तरफ से, था शिक्षा का

ही अभाव.

मैं ने सर से कहा, ‘‘प्लीज, मेरी सारी चैट क्लीयर कर के मु झे स्क्रीन शौट भेजें.’’

सर ने वैसा ही किया. वे मेरे मन की हर बात को जान लेते थे. उन्होंने कहा, ‘‘लेखन के साथसाथ मैं मनोविज्ञान का भी विशेषज्ञ हूं.’’

पर मैं आत्मग्लानि से उभर नहीं पाई. सर ने हर तरह से सम झाने की कोशिश की, लेकिन मैं मन के भीतर की शंकाओं से उभर नहीं पाई. सर, ने उन शब्दों का मतलब भी सम झाया जो मेरी डीपी देख कर कहते थे. सुंदर, तन से भी और मन से भी सुंदर. सुंदर, निस्स्वार्थ, निष्पाप. सुंदर तन में, सुंदर मन का वास होता है. फिर भी मैं अपने मन के भीतर की शंकाओं से उभर नहीं पाई. कहीं सर मु झे ब्लैकमेल न करें. जमाना बहुत खराब है. आत्मग्लानि बढ़ती गई.

धीरेधीरे मेरा सर से संपर्क टूटता गया. कुछ दिनों तक उन का सुप्रभात का संदेश आता रहा, फिर यह संदेश भी बंद हो गया. शायद उन्होंने मु झे ब्लौक कर दिया था. मेरी सारी शंकाएं निराधार थीं. ऐसा कुछ नहीं हुआ जैसा मैं ने सोचा था.

मैं अपनी बीटैक की पढ़ाई में व्यस्त हो गई. अच्छे नंबरों में पास हुई. मैं सर को इस की सूचना न दे पाई. यूपीएससी ने भारतीय सेना के लिए तकनीकी अफसरों की वेकैंसी निकाली तो मैं ने तुरंत अप्लाई किया. सीधे एसएसबी में जाना था. डिगरी होल्डर कैंडीडेट के लिए कोई लिखित परीक्षा नहीं थी. मु झे एसएसबी के चयन में कोई दिक्कत नहीं हुई न ही मैडिकल में.

मैं आईएमए की ट्रेनिंग से पहले सर को बताना चाहती थी, लेकिन मेरे पास कोई साधन नहीं था. सारे रास्ते बंद हो गए थे. मेरे पास उन के घर का पता था. मन में था कि अगर मेरी पोस्टिंग पंजाब साइड हुई तो मैं उन से मिलने जरूर जाऊंगी.

मेरी ट्रेनिंग चलती रही. मन में सर को याद करती रही. मेरे फौजी अफसर बनने के असली सूत्रधार सर ही थे. देखतेदेखते ट्रेनिंग के डेढ़ साल बीत गए. पासिंग आउट परेड में चाचू को न बुला कर, चाचू ने अपने मम्मीपापा को बुलाने के लिए कहा, ‘‘आप के मम्मीपापा को पता चलना चाहिए कि उन की बेटी कैसे सुरक्षित और शानदार

जीवन जीएगी.’’

मन के भीतर से मैं चाचू के समक्ष फिर नतमस्तक हो गई. मम्मीपापा के लिए सर की एक बात याद आ रही थी. वे कहा रहते थे कि जीवन की धुरी इस के इर्दगिर्द घूमती है कि जिस बात का विरोध आज अपनी जान दे कर करते हैं, कोई समय आता है, हम परिस्थितियों द्वारा इतने असहाय हो जाते हैं कि उसी बात को बिना किसी शर्त के चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं.

मम्मीपापा के लिए बात सटीक बैठती थी. वे हमेशा मेरी बात का विरोध करते रहे. शादी की रट लगाए रहे. आज जब हवाईजहाज से आईएमए में आए, शानदार कमरा मिला, जबरदस्त टेस्टी खाना मिला, परेड देखने के लिए शानदार कुरसियों पर बैठे. ऐसी परेड देखने का मौका बहुत कम लोगों को ही मिलता है.

परेड के बाद जब मैं मम्मीपापा के पास अपने कंधों के फ्लैप उतरवाने गई

तो मम्मीपापा दोनों ही भावुक हो उठे. फ्लैप उतारते हुए उन की आंखों से आंसू बह निकले. दोनों कंधों पर चमकते स्टार देख कर और अन्य साथियों के अभिभावकों की बधाइयों के बीच वे मु झे गले लगा कर रो नहीं सके. केवल इतना कहा, ‘‘मैं यों ही तुम्हारा विरोध करता रहा. मैं बधाई भी कैसे दूं और तुम इसे स्वीकार भी क्यों करोगी?’’

मु झे लगा पापा के रूप में सर बैठ कर रो रहे हैं.

मेरी आंखें भी नम हो गईं. बोली, ‘‘मैं पापा के पास गई. आप की बधाई और आशीर्वाद दोनों स्वीकार हैं. आप ने उस समय मेरा विरोध, मेरी भलाई के लिए किया था, पर मेरी जगह यहां थी. आप कुछ बुरा न मानें.’’

मम्मी भी पास आ कर खड़ी हो गईं. बधाइयों का तांता लगा हुआ था. लंच के बाद

मु झे दिल्ली की टे्रन पकड़नी थी और मम्मीपापा को लंच के बाद फ्लाइट. उन्हें आईएमए की गाड़ी ले कर चली गई. मैं अपने कमरे में आ गई.

1 बजे लंच किया और 3 बजे गाड़ी ने मु झे और दिल्ली जाने वाले साथियों के साथ रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया.

प्लेटफौर्म पर गाड़ी लगी हुई थी. कुली से कैबिन में सामान रखवाया और मम्मीपापा से बात की. वे जहाज में बैठने जा रहे थे. बहुत खुश थे.

दिल्ली से पठानकोट की मेरी रात की ट्रेन थी. मैं ने सामान क्लौकरूम में जमा करवाया. प्रीपेड टैक्सी ले कर मैं सर के घर की ओर चल दी. मन में जबरदस्त उल्लास था कि मु झे अफसर की वरदी में देख कर वे बहुत खुश होंगे.

मैं सर के घर पहुंची तो मैं ने उन के बारे में पूछा. उन में से एक ने पहली मंजिल पर जाने का इशारा किया. मैं वहां गई, फ्लैट का दरवाजा खुला हुआ था. शायद उन के बड़े बेटे ने मेरा स्वागत किया. सर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आप के सर अंदर चिरनिद्रा में सोए हुए हैं और हम उन की अंतिम विदाई की तैयारी में लगे हुए हैं.

मैं पत्थर हो गई, मेरे पांव उठ ही नहीं रहे थे, ‘‘यह कैसे हुआ?’’

‘‘आज सुबह उन के प्राण निकले.’’

मैं उन के कमरे में गई. लगा, वे गहरी नींद सोए हुए हैं. अभी उठ कर मु झे देखेंगे और फिर गहरी नींद सो जाएंगे. मैं ने उन के पांवों की तरफ खड़े हो कुदरत से गुहार लगाई. पर असंभव, संभव नहीं हो सकता था. आंखों से अश्रुधारा बहती रही.

सर के बड़े बेटे ने कहा, ‘‘लैफ्टिनैंट सोना कुमारीजी,

हम सब रो चुके हैं. कोई लाभ नहीं. जो चला जाता है, वह लौट कर नहीं आता है. आइए ड्राइंगरूम में बैठते हैं.’’

मु झे लगा, उन के बेटे के रूप में सर बोल रहे हैं. वे हमेशा मु झे ‘जी’ कहा करते थे. मैं सर को प्रणाम कर के ड्राइंगरूम के सोफे पर आ कर बैठ गई. सामने बड़े बेटे बैठे थे. बोले, ‘‘लैफ्टिनैंट साहिबा, शायद आप  झारखंड से हैं.’’

‘‘जी.’’

‘‘वे आप के बारे में अकसर कहा करते थे कि  झारखंड के जमशेदपुर से एक ऐसी लड़की है जो दबंग है, निस्स्वार्थ है, निष्कलंक है, निष्पाप है, जिस से हर तरह की बात की जा सकती है. वह बेबाक हो कर बात करती है. देश में ऐसी इकलौती लड़की है. मैं हमेशा उस के प्रति नतमस्तक रहा हूं.’’

मेरी आंखें फिर भर आईं, ‘‘मैं सर को कभी सम झ नहीं पाई, इस का मु झे बहुत दुख है.’’

‘‘आप के सर को जब हम भी कभी नहीं सम झ पाए तो आप क्या सम झतीं. खैर, छोड़ो. आप की गाड़ी कब की है? मैं ड्राइवर को कह कर छुड़वा देता हूं.’’

‘‘मेरी ट्रेन रात 10 बजे की है. मैं सर की अंतिम यात्रा में हिस्सा लेना चाहूंगी.’’

‘‘अभी 12 बजे हैं. हम 2 बजे तक यहां से निकलेंगे,’’ कह उन्होंने किचन में खड़ी औरत को आवाज लगाई.

‘‘जी, कहिए?’’

‘‘यह मेरी पत्नी राजी है.’’

मैं ने उन्हेंनमस्कार किया.

‘‘राजी, ये लैफ्टिनैंट सोना कुमारी,  झारखंड की वही लड़की हैं जिन के बारे में अकसर पापा बात किया करते थे. इन्हें पहले पानी दें, फिर चायनाश्ता कराओ.’’

‘‘सोनाजी, पापा आप से बहुत स्नेह करते थे. वे आप को सेना का अफसर देखना चाहते थे. आप जब अफसर बन कर आई हैं तो वे चले गए हैं. होता है जीवन में ऐसा. रात यानी रजनी आंचल में सितारे टांक कर, माथे पर चांद की बिंदिया सजा कर प्रभात की प्रतीक्षा करती है. जब प्रभात आता है तो रजनी को चले जाना होता है. यही जीवन है.’’

‘‘लेकिन मु झे भूख नहीं है. प्लीज, आप कोई फौरमैलिटी न करें.’’

‘‘फौरमैलिटी नहीं है, मरने पर कभी किसी का खानापीना रुका है? इन्होंने भी नहीं खाया है. आप के साथ ये भी खा लेंगे.’’

फिर मैं कुछ नहीं बोल सकी. जो खा सकी, खाया.

2 बजे जब सर की अर्थी उठी तो मन में केवल यह भाव थे कि मैं सर की अंतिम विदाई तो देने नहीं आई थी न. यह कुदरत का कैसा खेल है. विधि का कैसा विधान है? क्यों होता है ऐसा? बस इसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाता है. जिन को हम पाना चाहते हैं, उन्हें अनायास ही खो देते हैं.

मैं इन प्रश्नों के उत्तरों की खोज से खुद अप्रश्न बन गई थी. सुबह जब मैं पठानकोट पहुंची तो पूरी रात की जगी हुई थी.

आंखों में अश्रु अभी भी थे. यह कैसे आंसू थे, मैं सम झ नहीं पाई. जीवन की धुरी शायद इसी के इर्दगिर्द घूमती है.

Sad Hindi Story : आंसू छलक आए

Sad Hindi Story :  ‘‘देखो विनोद, अगर तुम कल्पना से शादी करना चाहते हो, तो पहले तुम्हें अपने पिता से रजामंदी लेनी पड़गी…’’ प्रेमशंकर ने समझाते हुए कहा, ‘‘शादी में उन की रजामंदी होना बहुत जरूरी है.’’

‘‘मगर अंकल, वे इस की इजाजत नहीं देंगे,’’ विनोद ने इनकार करते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं देंगे इजाजत?’’ प्रेमशंकर ने सवाल पूछा, ‘‘क्या तुम उन्हें समझाओगे नहीं?’’

‘‘मैं अपने पिता की आदतों को अच्छी तरह से जानता हूं. वे कभी नहीं समझेंगे और हमारी इस शादी के लिए इजाजत भी नहीं देंगे…’’ एक बार फिर इनकार करते हुए विनोद बोला, ‘‘आप उन्हें समझा दें, तो अच्छा रहेगा.’’

‘‘मेरे समझाने से क्या वे मान जाएंगे?’’ प्रेमशंकर ने पूछा.

‘‘हां अंकल, वे मान जाएंगे,’’ यह कह कर विनोद ने गेंद उन के पाले में फेंक दी.

विनोद प्रेमशंकर के मकान में किराएदार था. उसे अभी बैंक में लगे 2 साल हुए थे. इन 2 सालों में विनोद ने किराए के मामले में उन्हें कभी दिक्कत नहीं पहुंचाई थी. एक तरह से उन के घरेलू संबंध हो गए थे.

विनोद के बैंक में ही कल्पना काम करती थी. उसे भी बैंक में लगे तकरीबन 2 साल हुए थे. उम्र में वे दोनों बराबर के थे. दोनों कुंआरे थे. दोनों में कब प्यार पनपा, पता ही नहीं चला.

वे एकदूसरे के कमरे में घंटों बैठे रहते थे. दोनों ही तकरीबन 2 हजार किलोमीटर दूर से इस शहर में नौकरी करने आए थे.

कभीकभी कल्पना की मां जरूर उस के पास रहने आ जाती थीं. तब कल्पना मां से कोई बहाना कर के विनोद के कमरे में आती थी. प्रेमशंकर यह सब जानते थे.

जब कल्पना घंटों विनोद के कमरे में बैठी रहती, तब प्रेमशंकर को लगा कि उन दोनों में प्यार की खिचड़ी पक रही है.

एक दिन मौका देख कर उन्होंने विनोद से खुल कर बात की. नतीजा यही निकला कि विनोद के पिता इस शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे, क्योंकि वह ऊंची जाति का था, जबकि कल्पना निचली जाति की थी.

प्रेमशंकर बोले, ‘‘ठीक है विनोद, अगर तुम कल्पना से शादी करना चाहते हो, तो तुम्हें अपने मातापिता को भरोसे में लेना होगा.’’

मगर विनोद इनकार करते हुए बोला, ‘‘अंकल, वे इस शादी के लिए कभी इजाजत नहीं देंगे.’’

तब प्रेमशंकर ने कहा था, ‘‘आखिर वे भी तो इनसान हैं, कोई जानवर नहीं. तुम उन्हें बुलाओ. अगर वे नहीं आएंगे, तो मैं चलूंगा तुम्हारे साथ उन को समझाने…’’

इस तरह प्रेमशंकर बिचौलिया बनने को राजी हो गए.

विनोद के बुलाने पर पिता अरुण आ गए. साथ में उन की पत्नी मनोरमा भी थीं. प्रेमशंकर ने उन्हें अपने घर में इज्जत से बिठाया.

अरुण बोले, ‘‘बताइए प्रेमशंकर साहब, हमें किसलिए बुलाया है?’’

‘‘अरुण साहब, आप को खास वजह से ही यहां बुलाया है.’’

‘‘खास वजह… मैं समझा नहीं…’’ अरुण बोले, ‘‘जो कुछ कहना है, साफसाफ कहें.’’

‘‘ठीक है, पर इस के लिए आप को दिल थोड़ा मजबूत करना होगा.’’

‘‘मजबूत से मतलब?’’ अरुण ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘मतलब यह कि आप ने विनोद की शादी के बारे में क्या सोचा है?’’

‘‘उस के लिए मैं ने एक लड़की देख ली है प्रेमशंकरजी. अब विनोद की हां चाहिए और उस की हां के लिए मैं यहां आया हूं,’’ यह कह कर अरुण ने प्रेमशंकर को अजीब सी निगाह से देखा.

‘‘अगर मैं कहूं कि विनोद ने अपने लिए लड़की देख ली है, तो…’’

‘‘क्या कहा, विनोद ने अपने लिए लड़की देख ली है?’’

‘‘जी हां अरुण साहब, अब आप का क्या विचार है?’’

‘‘कौन है वह लड़की?’’ अरुण ने पूछा.

‘‘उस के साथ बैंक में ही काम करती है. उस का नाम कल्पना है. आप इस पर क्या कहना चाहते हैं?’’

‘‘मतलब, विनोद कल्पना से शादी करना चाहता है?’’

‘‘हां,’’ इतना कह कर प्रेमशंकर ने अरुण के दिल में हलचल पैदा कर दी.

‘‘वह किस जाति की है? क्या समाज है उस का?’’ अरुण जरा गुस्से से बोले.

‘‘वह निचली जाति की है,’’ प्रेमशंकर ने बिना किसी लागलपेट के कहा.

‘‘क्या कहा, वह एक दलित घर से है? मैं यह शादी कभी नहीं होने दूंगा…’’ अरुण ने गुस्से में साफ मना कर दिया, फिर आगे बोले, ‘‘अरे प्रेमशंकरजी, शादीब्याह अपनी ही बिरादरी में होते हैं.’’

‘‘हांहां, होते हैं अरुणजी, मगर आप जिस जमाने की बात कर रहे हैं, वह जमाना गुजर गया. यह 21वीं सदी है.’’

‘‘हां, मैं भी जानता हूं. मुझे समझाने की कोशिश न करें.’’

‘‘जब आप इतना जानते हैं, तब इस शादी के लिए मना क्यों कर रहे हैं?’’

‘‘मैं अपने बेटे की गैरबिरादरी में शादी करा कर बिरादरी पर दाग नहीं लगाना चाहता. मैं यह शादी हरगिज नहीं होने दूंगा.’’

प्रेमशंकर मुसकराते हुए बोले, ‘‘तो आप विनोद की शादी अपनी ही बिरादरी में करना चाहते हैं?’’

‘‘हां, क्या आप को शक है?’’

‘‘आप विनोद से तो पूछ लीजिए.’’

‘‘पूछना क्या है? वह मेरा बेटा है. मेरा कहना वह टाल नहीं सकता.’’

‘‘अपने बेटे पर इतना भरोसा है, तो पूछ लीजिए उस से कि वह आप की पसंद की लड़की से शादी करेगा या अपनी पसंद की लड़की से,’’ कह कर प्रेमशंकर ने भीतर की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘विनोद, यहां आ जाओ.’’

भीतर बैठे विनोद और कल्पना इसी इंतजार में थे. वे दोनों बाहर आ गए. अरुण कल्पना को देखते रह गए.

प्रेमशंकर बोले, ‘‘पूछ लो अपने बेटे से… यह वह कल्पना है, जिस से यह शादी करना चाहता है.’’

‘‘क्यों विनोद, यह मैं क्या सुन रहा हूं?’’ विनोद के पापा अरुण बोले.

‘‘जो कुछ सुन रहे हैं, सच सुन रहे हैं पापा,’’ विनोद ने कहा.

‘‘तुम इस कल्पना से शादी नहीं कर सकते,’’ अरुण ने कहा.

‘‘पापा, मैं शादी करूंगा, तो इस से ही,’’ विनोद बोला.

‘‘मैं तुम्हारी शादी इस लड़की से हरगिज नहीं होने दूंगा.’’

‘‘मैं शादी करूंगा, तो सिर्फ कल्पना से ही.’’

‘‘ऐसा क्या है, जो तुम इस की रट लगाए हुए हो?’’

‘‘कल्पना मेरा प्यार है.’’

‘‘प्यार… 2-4 मुलाकातों को तुम प्यार समझ बैठे हो?’’ चिल्ला कर अरुण बोले, ‘‘कान खोल कर सुन लो विनोद, तुम्हारी शादी वहीं होगी, जहां हम चाहेंगे.’’

‘‘पापा सच कर रहे हैं विनोद…’’ मां मनोरमा बीच में ही बात काटते हुए बोलीं, ‘‘यह लड़की हमारी जातबिरादरी की भी नहीं है. इस से शादी कर के हम समाज में अपनी नाक नहीं कटा सकते हैं, इसलिए इस के साथ शादी करने का इरादा छोड़ दे.’’

‘‘मां, मेरे इरादों को कोई बदल नहीं सकता है. शादी करूंगा तो कल्पना से ही, किसी दूसरी लड़की से नहीं.’’

अपना फैसला सुना कर विनोद कल्पना को ले कर घर से बाहर चला गया.

पलभर के सन्नाटे के बाद प्रेमशंकर बोले, ‘‘अब क्या सोचा है अरुण साहब? अब भी आप इस शादी से इनकार करते हैं?’’

‘‘यह सब आप लोगों की रची हुई साजिश है. आप ने ही मेरे बेटे को बरगलाया है, इसलिए आप उस का ही पक्ष ले रहे हैं,’’ कह कर अरुण ने अपनी बात पूरी की.

‘‘अरुण साहब सोचो, विनोद कोई दूध पीता बच्चा नहीं है…’’ प्रेमशंकर समझाते हुए बोले, ‘‘आप उसे डराधमका कर अपने वश में कर लेंगे, यह भी मुमकिन नहीं है. वह नौकरी करता है, अपने पैरों पर खड़ा है. वह अपना भलाबुरा समझता है.

‘‘वह मेरे यहां किराएदार बन कर जरूर रह रहा है, मगर मैं उस को पूरी तरह समझ चुका हूं कि वह समझदार है. वैसे, वह आप की भावनाओं को भी समझता है. मगर वह शादी करेगा, तो कल्पना से ही. इस के पहले मैं भी यह सब बातें उसे समझा चुका हूं, इसलिए आप उसे समझदार समझें.’’

‘‘क्या खाक समझदार है भाई साहब…’’ मनोरमा झल्ला कर बोलीं, ‘‘वह उस लड़की को अपने साथ ले गया है. कहीं वह गलत कदम न उठा ले. सुनो जी, उस की शादी वहीं करो, जहां हम चाहते हैं.’’

‘‘भाभीजी, विनोद ऐसावैसा लड़का नहीं है, जो गलत कदम उठा ले…’’ प्रेमशंकर समझाते हुए बोले, ‘‘अरुण साहब, अगर आप उस पर दबाव डाल कर शादी कर भी देंगे, तब वह बहू के साथ वैसा बरताव नहीं करेगा, जो आप चाहेंगे. दिनरात उन में कलह मचेगी और आपस में मनमुटाव होगा.

‘‘अगर आप उन की मरजी से शादी नहीं करोगे, तब वे कोर्ट में ही शादी कर सकते हैं, क्योंकि कोर्ट उन्हीं का पक्ष लेगा. इसलिए आप सोचिए मत. मेरा कहना मानिए, इन की शादी आप आगे रह कर करें और पिता की जिम्मेदारी से छुटकारा पा जाएं.’’

‘‘मगर इस शादी से समाज में हमारी कितनी किरकिरी होगी, यह आप ने सोचा है?’’ एक बार फिर अरुण अपनी बात रखते हुए बोले.

‘‘समाज तो दोनों हाथों में लड्डू रखता है. थोड़े दिनों तक समाज ताना दे कर चुप हो जाएगा. इस बात पर जितना विचार कर के गहराई में उतरेंगे, उतनी ही तकलीफ उठाएंगे.

‘‘आप अपनी हठ छोड़ दें. इस के बावजूद भी आप अपनी जिद पर अड़े हो, तो विनोद की शादी अपनी देखी लड़की से कर दो. मैं इस मामले में आप से कुछ नहीं बोलूंगा,’’ प्रेमशंकर के ये शब्द सुन कर अरुण के सारे गरम तेवर ठंडे पड़ गए.

वे थोड़ी देर बाद बोले, ‘‘ठीक है प्रेमशंकरजी, मैं अपनी हठ छोड़ता हूं. विनोद कल्पना से शादी करना चाहता है, तो इस के लिए मैं तैयार हूं.’’

‘‘ओह, शुक्रिया अरुण साहब,’’ कह कर प्रेमशंकर की आंखों में खुशी के आंसू छलछला आए.

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