Family Story Hindi : विरासत – क्या हुआ था शादी के बाद कामना के साथ

Family Story Hindi : आती है तो खोईखोई सी रहती है, भाईबहन के साथ की वह धींगामस्ती भी अब नजर नहीं आती. छोटे भाईबहन को कभीकभार आइसक्रीम खिलाने ले जाना, कोई पिक्चर दिखाना या शापिंग के लिए ले जाना, सब ‘रुटीन वे’ में होता है. आज तो उस ने हद ही कर दी. मैं उस की पसंद का मूंग की दाल का हलवा बनाने में व्यस्त थी तभी मैं ने सुना वह अपनी छोटी बहन भावना से कह रही थी, ‘‘भानु, अब की बार मैं जल्दी चली जाऊंगी. तेरे जीजाजी आने वाले हैं. कैंटीन का खाना उन को बिलकुल सूट नहीं करता. आज शाम को बाजार चलते हैं, मुझे मम्मीजी की साड़ी भी लेनी है.’’

यह मम्मीजी कौन हैं? आप को बताने की जरूरत नहीं है. वही हैं जो ससुराल जाने पर हर लड़की की अधिकारपूर्वक मम्मीजी बन जाती हैं, चाहे वह उसे असली मम्मी की तरह मानें या न मानें.

मैं गलत नहीं कह रही हूं. पिछले 10 दिनोें से मुझे वायरल फीवर भी था. थोड़ी कमजोरी भी महसूस कर रही थी, पर उस कालिज से, जहां मैं पढ़ा रही थी, मैं ने छुट््टी ले ली थी. मुझे बस एक ही धुन थी कि बेटी को वह सब चीजें खिला दूं जो उसे पसंद थीं और वह थी कि अपनी बहन से जाने की जल्दी बता रही थी. जैसे मैं अब उस के लिए कुछ नहीं थी.

तभी मैं ने यह भी सुना, ‘‘भानु, इस सितार पर तो धूल जम गई है, तू क्या इसे कभी नहीं बजाती? मैं तो पहले ही जानती थी कि तू साइंस की स्टूडेंट है, भला तुझे कहां समय मिलेगा सितार बजाने का? मां से कह कर मैं इस बार यह सितार लेती जाऊंगी. मैं वहां क्लास ज्वाइन कर के सितार बजाना सीख लूंगी, वैसे भी अकेले बोर होती हूं.’’

हलवा बन चुका था पर कड़ाही कपड़े से पकड़ कर उतारना भूल गई तो उंगलियां जल गईं. अब किसी को बुला कर सितार पैक कराना होगा, जिस से लंबे सफर में कुछ टूटेफूटे नहीं. बेटी है न, उस के जाने के खयाल से ही मेरी आंखें भर आई थीं. मैं ने जल्दी से आंखें आंचल से पोंछ लीं. लगता है, मेरी बेटी अपनी सारी चीजें जिन से मेरी यादें जुड़ी हुई हैं, मुझ से दूर कर ही देगी.

पिछली बार जब वह आई थी, मैं उस के रूखे, घने, लंबे केशों में तेल लगा रही थी कि अचानक ही मैं ने सुना, ‘मां, मैं वह मसूरी वाली ‘पोट्रेट’ ले जाऊं जो आप ने ‘एम्ब्रायडरी कंपीटीशन’ के लिए बनाई थी. वही वाली जो आप ने प्रथम पुरस्कार पाने के बाद मुझे मेरे जन्मदिन पर प्रेजेंट कर दी थी. मम्मीजी उसे देख कर बहुत खुश होंगी. आप ने कितनी सुंदर कढ़ाई की है. पहाड़ लगता है बर्फ से भरे हैं.’’

मैं हां कहने में थोड़ी हिचकिचाई. कितने पापड़ बेलने पड़े थे उस तसवीर को काढ़ने में. कितने प्रकार की स्टिचेज सीखनी पड़ी थीं उसे पूरा करने में, और वह मुझ से ले कर उसे अपनी उन मम्मीजी को दे देगी. पर कोई बात नहीं, मैं तो उसे खुश देखने के लिए अपनी कोई भी प्रिय वस्तु देने को तैयार थी, यह तो फ्रेम में जड़ी केवल एक तसवीर ही थी.

अनुराग उसे लेने सुबह ही आ गया था. शाम को जब मैं दोनों को चाय के लिए बुलाने गई तो देखा दोनों दीवार से तसवीर उतार कर यत्नपूर्वक ब्राउन पेपर  के ऊपर अखबार लपेट रहे थे.

मैं ने दीवार की तरफ देखा, कितनी सूनी, बदरंग सी लग रही थी. ठीक उसी तरह जैसे कामना के चले जाने के बाद उस का कमरा लगता था. मैं बिना कुछ बोले तेज कदमों से वापस लौट आई. कब सुबह हुई, जल्दीजल्दी नाश्ता हुआ फिर साथ ले जाने का खाना पैक हुआ और कामना विदा हो गई, पता ही न चला. भावना सिसक रही थी, ‘‘दीदी, जल्दी आना.’’ मैं चुपचाप उसे देखती रही जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो गई.

हर बार की तरह तीसरेचौथे महीने कामना नहीं आई. मैं सोचसोच कर परेशान थी कि क्या कारण हो सकता है उस के न आने का. तभी उस की मम्मीजी का एक छोटा सा पत्र मुझे मिला.

‘अत्यंत प्रसन्नता से आप को सूचित कर रही हूं कि हम दोनों की पदोन्नति हो गई है, यानी कि आप नानी और मैं दादी बनने वाली हूं. कामना को एकदम डाक्टर ने बेड रेस्ट बताया है, इसलिए कुछ महीने बाद ही जा सकेगी वह. हां, गोदभराई के लिए आप को हमारे यहां आना होगा क्योंकि हमारे घर की परंपरा है कि पहला बच्चा ससुराल में ही होता है. अत: डिलीवरी भी यहीं होगी. आप बिलकुल निश्ंिचत रहिएगा क्योंकि मैं भी तो कामना की मम्मी हूं.’

पत्र पढ़ कर कामना के न आने का दुख तो मैं भूल ही गई और खुशी से भावना को जोर से आवाज दी. खबर सुन कर वह भी नाच उठी. घर में कितनी ही देर तक हर्षोल्लास का वातावरण बना रहा. कामना के पापा जहां पोस्टेड थे वहां से घर वह छुट््टियों में ही आते थे. इस बार हमसब एकसाथ गए रस्म अदा करने. बेटी को देख कर उतनी ही खुशी हुई जितनी अपने हाथों से लगाए वृक्ष को फूलतेफलते देख कर होती है.

रस्म अदा करने के बाद कामना मेरा हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, चलो, तुम्हें कुछ दिखाते हैं.’’

एक कमरे के पास आ कर वह रुक गई और बोली, ‘‘देखो मां, यह बच्चे की नर्सरी है.’’ अंदर जा कर मैं चकित रह गई. दीवार पर हलके रंग का प्लास्टिक पेंट, फूलपत्तियां बनी हुईं, छोटेछोटे बच्चे ऐंजेल बने हुए थे. एक तरफ ‘क्रिब’ में बिछी हुई गुलाबी प्रिंटेड और गुलाबी उढ़ाने की चादर भी. दूसरे कोने में तरहतरह के खिलौने, नर्सरी राइम्स की किताबें करीने से सजी हुईं.

‘‘मां, तुम मेरी वह छोटी कुरसीमेज भेज देना जिस पर मैं बचपन में पढ़ती थी.’’

मैं ने प्यार से उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाई, ‘‘हां, मैं जाते ही शिबू से तुम्हारी मेजकुरसी पहुंचवा दूंगी.’’

कहना नहीं होगा, शिबू ही उस की देखभाल करता था जब मैं कालिज पढ़ाने चली जाती थी. घर पहुंचते ही कामना का कमरा खोला, दीवार पर उस के बचपन की कितनी ही तसवीरें लगी हुई थीं. एक कोने में उस की छोटी कुरसीमेज, मेज पर उस का एक छोटा सा बाक्स भी रखा हुआ था. बाक्स नीचे रखा और कुरसीमेज पेंट करा के उसे कामना की ससुराल पहुंचाने की बात मैं ने शिबू को बताई.

वह दिन भी आया कि कामना अपने छोटे से बेटे को साथ लिए आई. साथ में उस का पति अनुराग भी था. मैं तो कब से तीनों की राह देखती दरवाजे पर खड़ी थी. आगे बढ़ कर मैं ने बच्चे को गोद में ले लिया और चूम लिया.‘‘मां, तुम मुझे प्यार करना भूल गईं.’’

‘‘अब तुम बड़ी जो हो गई हो,’’ मैं ने हंस कर कहा.

हंसीखुशी के बीच महीना कैसे बीत गया, पता ही न चला. कामना अकसर बच्चे को अपने कमरे में ले जाती, खिलाती, सुलाती.

कल ही उस की ट्रेन थी. मैं बरामदे की आरामकुरसी पर लेटी ही थी कि कामना आ पहुंची.

‘‘मां, बहुत थक गई हो न. लाओ न पैर दबा दूं थोड़ा,’’ और हाथ में ली हुई फाइल उस ने पास की कुरसी पर रख दी, पर मैं ने अपने पैर समेट लिए थे.

‘‘अरे, मैं तो ऐसे ही लेट गई थी’’ तभी बेटे के रोने की आवाज सुन कर वह चल दी. उत्सुकतावश मैं ने फाइल उठा ली. देखने में पुरानी किंतु नए रंगीन ग्लेज  पेपर, रिबन से बंधी हुई. मैं सीधे बैठ गई. अंदर लिखाई जानीपहचानी सी लग रही थी. फाइल में कितनी ही कटिंग थीं, समाचारपत्रों की, कालिज की पत्रिकाओं की. मेरी लिखी हुई टिप्पणियां भी थीं.

हां, वह पहली कटिंग भी थी जब कामना 8वीं में पढ़ती थी. मुझे याद आ गया, कामना 100 मीटर की रेस में भाग लेने वाली थी, कितनी ही बार वह खेलों में भाग ले कर पुरस्कार भी पा चुकी थी. पर उस दिन उस के पैर में भयानक दर्द था. कुछ मलहम मला, सिंकाई की, दवाई खिलाई, पैर में कस कर पट््टी बांध दी, पर उस के पैर के ‘क्रैंप’ न गए. उधर उस की जिद थी कि वह रेस में भाग जरूर लेगी. मुझे भी अपने कालिज पहुंचना जरूरी था. मैं ने शिबू द्वारा थर्मस में गरम दूध में कौफी डाल कर और एक नोट लिख कर भेजा, ‘बेटी कामना, रेस में हार कर दुखी मत होना. जीवन में ऐसी बहुत सी रेस आएंगी और तुम जरूर ही जीतोगी. तुम मेरी रानी बेटी हो न, हारने पर मन छोटा मत करना.’

मैं जब कालिज का काम खत्म कर कामना के स्कूल के सालाना स्पोर्ट्स देखने पहुंची तो कामना अपनी कक्षा की लड़कियों के साथ पिरामिड बनाने में लगी थी. सब से ऊपर वही थी. तालियों से मैदान गूंज उठा.

मुझे सुकून हुआ कि मेरी बेटी हार कर भी निराश नहीं थी. खेल खत्म होने पर जब वह मेरे पास आई तो उस की आंसू भरी आंखों को मैं ने चूम लिया था, इस की कटिंग भी थी.

ऐसी ही कितनी कटिंग काट कर उस ने संजो कर करीने से लगाई थीं. अकसर हम दोनों ही व्यस्त हो जाते थे, दूर हो जाते. मैं कभी परीक्षा लेने दूसरे शहर चली जाती तो मेरी अनुपस्थिति में उसे ही घर सुचारु रूप से चलाना है, मैं उसे लिख कर भेजती. लौट कर देखती कि वह थोड़े ही दिनों में और भी बड़ी हो गई है. किसी को मेरी याद तक न आती थी. कामना, जो घर में थी उन्हें संभालने के लिए.

मैं तल्लीन हो कर पेज पलटने में लगी थी तभी कामना आ पहुंची. एक शरारत भरी हंसी उस के अधरों पर फैल गई, ‘‘मां, अपनी फाइल ले जाऊं मैं,’’ मैं ने उठ कर कामना को सीने से लगा लिया. कौन कहता है कि बेटियां अपने उस घर के लिए बटोरती ही रहती हैं? सच तो यह है कि ये बेटियां ही तो मांबाप की सिखाई हुई अच्छीअच्छी बातों की विरासत से अपने उस दूसरे घर को भी प्रकाशमान करती हैं. मेरी इस बेटी ने इस विरासत को अपना कर मेरा सिर कितना ऊंचा कर दिया था.

Hindi Short Story : एक दिन के दोस्त – क्या बरकरार रह पाई पति पत्नी की दोस्ती

Hindi Short Story : “बच्चे नहीं दिख रहे इला? कहां गए हैं?”

“दोस्तों के साथ डिनर पर गए हैं.”

“तुम उदास सी लग रही हो. क्या बात है?”

“कुछ नहीं, सुवीर. यहां तो मेरे कोई दोस्त ही नहीं बचे. या तो सब बाहर बस गए हैं या सब दूरदूर ही हैं. फोन पर भी कोई कितना बात करे,” मैं ने एक ठंडी सी सांस लेते हुए कहा.

सुवीर ने जैसे पति धर्म निभाते हुए मुझे तसल्ली दी, “अरे, ऐसा क्यों कहती हो? चलो, बताओ, कहां जाना है?”

“तुम तो पति हो, मेरे दोस्त थोड़े ही हो.”

“अरे डार्लिंग, ऐसा क्यों सोच रही हो? पतिपत्नी भी अच्छे दोस्त हो सकते हैं.”

“नहीं, मुझे नहीं लगता.”

“अच्छा, बताओ तो ज़रा. पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त क्यों नहीं हो सकते? इतनी अच्छी तरह से एकदूसरे को जानने वाले, रोज साथ में रहने वाले दो लोग दोस्त क्यों नहीं हो सकते?”

“दोस्तों से तो हम अपने मन की बातें आराम से कर सकते हैं.”

“अरे, तो क्या तुम अपने मन की बातें मुझ से नहीं करतीं?”

मैं चुप रही. यह शनिवार की शाम की बात है. सुवीर शायद आज कुछ ज़्यादा ही फ्री थे, पर इतनी बात क्यों कर रहे हैं मुझ से? मैं ने इधरउधर नजर डाली, उन के हाथ देखे, समझ आया, फोन चार्जिंग में लगा कर आए हैं, अब टाइम पास कर रहे हैं. कितने चालाक हैं. फोन हाथ में होता है तो किसी और  बात में ज़नाब का मन नहीं लगता. हर समय सोशल मीडिया पर रहने वाले इनसान हैं.

सुवीर अचानक मेरे पास आ कर बैठ गए और मेरी गोद में सिर रख कर लेट गए. बच्चों के घर में न होने का फायदा उठाने के मूड में आए ही थे कि मैं ने फिर पूछ लिया, शायद मेरी मति मारी गई थी, “सचमुच तुम्हें लगता है कि पतिपत्नी अच्छे दोस्त हो सकते हैं? कल संडे है, हम कल एकदूसरे के साथ पूरा दिन ऐसे रह कर देखें जैसे अपने दोस्तों के साथ रहते हैं? एक दिन के दोस्त बन कर देखें?”

“हां, मेरी जान. हम अच्छे दोस्त हैं ही, बन कर क्या देखना. फिर भी तुम कहती हो तो कल सिर्फ दोस्त बन कर रहेंगे, एक गेम खेल ही लेते हैं, मजा आएगा, फिलहाल तो पति बनने का मन कर रहा है,” शरारत से हंसते हुए वह मेरा हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले गए. मैं तो यों ही छोटीछोटी बातों में एक्ससाइटेड हो ही जाती हूं, बस अब आने वाले कल की कल्पना में डूबी जोश से भर उठी.

बच्चे विवान और आर्या रात को आए तो मैं ने उन्हें बड़े उत्साह से अपना संडे का प्रोग्राम बताते हुए कहा, “कल बहुत मजा आएगा. हम दोनों कल दोस्तों की तरह रहने वाले हैं, जो मन होगा, वो बात करेंगे.”

विवान और आर्या ने एकदूसरे पर जैसे नजर डाली, मैं भड़क गई, “मजाक उड़ाने वाली क्या बात है?”

”पर मौम, हम ने तो कुछ भी नहीं कहा,” विवान ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा.

“हां, जैसे मैं जानती नहीं दोनों को. हुंह,” कहते हुए मैं सोने की तैयारी करने लगी, तो आर्या की शरारत भरी आवाज आई, “आल द बेस्ट, मौम एंड डैड.”

विवान ने धीरे से आर्या से कहा, “बहन, क्या तुम कल के एंटरटेनमेंट के लिए तैयार हो? मौमडैड कल बहुत ड्रामा करने वाले हैं न? कोई बहाना कर के हम सुबह ही निकल लें दोस्तों के साथ?”

“नहीं भाई, ड्रामा होगा तो देखने वाले भी होने चाहिए न?”

मुझे उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं, हद से ज्यादा उस्ताद बच्चे हैं, वे भी जान रहे थे कि मुझे सुनाई दे रहा होगा.

सुबह फ्रेश होने के बाद सुवीर ने कहा, “डार्लिंग, एक कप बढ़िया सी चाय तो पिला दो.”

मैं ने कहा, “हां, बना रही हूं, याद है न. आज हम दोस्त हैं. बीवी समझ कर ज्यादा फरमाइश न करना.”

सुवीर हंस पड़े, पूछा, “नाश्ते में क्या बनाओगी?”

“सैंडविच.”

“ठीक है.”

हम दोनों ने चाय हलकेफुलके मूड में ही पी, छुट्टी वाले दिन बच्चे थोड़ा लेट ही उठते हैं. वे दोनों सीधा लंच ही करते हैं, जब तक मेड आ कर काम निबटा कर गई, मैं रोज के कामों से थोड़ा फ्री हो कर सुस्ताने लगी, सुवीर आ कर पास ही बैठ गए, उन के हाथ में फोन था, वे मुसकरा रहे थे. मैं ने पूछ लिया, “क्यों हंस रहे हो?”

“अपने कलीग अजय की बात पर.”

“मुझे भी सुनाओ.”

“नहीं, रहने दो.”

सुवीर जिस तरह से फोन में आंखें गड़ाए मुसकरा रहे थे, मुझे उन की यह हंसी हजम नहीं हुई, इतनी आसानी से तो नहीं हंसते हैं. क्या बात है.

“बताओ न, सुवीर. आज तो हम दोस्त हैं न. दोस्तों से क्या परदा.”

“पक्का? आज दोस्त बन कर ही सुनोगी न? नाराज तो नहीं  होगी?”

“नहीं बाबा, बताओ न.”

“अरे, ये अजय है न, बहुत शैतान है, औफिस में जो नई प्रोडक्ट मैनेजर रोमा आई है न, कुछ ज्यादा ही स्टाइलिश है. उसी पर हंस रहा है.”

मेरे अंदर की पत्नी ऐसे जागी कि पूछिए मत… फिर याद आया कि आज दोस्त हैं, मैं ने नकली हंसी से पूछा, “वाह, बढ़िया है, खूब मन लग रहा होगा आजकल औफिस में.”

सुवीर फंस गए मेरी ऐक्टिंग में. बेचारे मर्द. चहक कर बोले, “हां यार, अच्छा टाइम पास होता है आजकल. और ये रोमा मुझे कुछ फ्लर्ट भी लग रही है. लड़कियों के पास कम, हमीं लोगों के आसपास ज्यादा मंडराती रहती है. ऐसेऐसे कपड़े पहन कर आती है कि हमारी ही आंखें झुक जाएं.”

मेरा मन हुआ, अभी रोमा को ढूंढ़ निकालूं और उस के बाल नोच लूं. औफिस में काम करने आती है या इन शादीशुदा मूर्ख मर्दों के साथ फ्लर्ट करने.

वैसे तो हर नारी में एक अभिनेत्री होती है, पर मुझे अभी ही पता चला कि मैं कितनी अच्छी ऐक्टिंग कर सकती हूं, बहुत ही प्यारी स्माइल के साथ कहा, “अच्छा? तुम्हें वो कैसी लगती है?”

सुवीर चहक उठे, “ये तो अच्छा है कि आज दोस्त बन कर पूछ रही हो, नहीं तो इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल था, पति बन कर तो मैं जवाब देता ही न. यार, बहुत हौट है वह.”

मेरा मन किया, सुवीर को बेड से नीचे गिरा दूं, पर चुप रह गई. वे बीचबीच में फोन देख रहे थे, मैं ने पूछा, “किस से चैट कर रहे हो? अब भी अजय से ?”

“हां यार, कह रहा है कि आज छुट्टी है, रोमा को नहीं देख पाए,” कह कर सुवीर जोर से हंसे. मैं ने अपनेआप को कोसा कि काश, मैं अभी ये दोस्तदोस्त न खेल रही होती तो अच्छे से बताती, इन्हें भी और अजय की वाइफ को भी.

मैं उठ कर जाने लगी, तो सुवीर बोले, “अरे, कहां चली?”

“नाश्ता बनाने.”

नहीं बनाए मैं ने सुवीर की पसंद के सैंडविच. नहीं की उन के लिए मेहनत. जाएं और बनवाएं उस हौट रोमा से. दूध में मयूसली डाली, सुवीर को मयूसली पसंद नहीं है न, इसलिए आज इस समय वही खिलाने का मन कर आया.

दूध का बाउल देख कर सुवीर का मुंह उतर गया, “अरे, तुम तो सैंडविच बनाने वाली थी न.”

“हां यार, मूड नहीं रहा. शार्टकट का मूड हो गया.”

उतरे मुंह से सुवीर ने नाश्ता खत्म किया. मैं भी रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गई, पर दिल ही दिल में रोमा को गालियां  दे रही थी. रोमा की बच्ची. शर्म नहीं आती तुम्हें. देखो, इन पतियों को. छुट्टी वाले दिन भी तुम याद आ रही हो. और यह अजय… कितना सीधा लगता है. मिलने पर अपनी पत्नी के आगेपीछे घूमता रहता है. हाय, कैसे होते हैं ये लोग. जब इस समय उस की पत्नी घर के काम कर रही होगी, वह नालायक सुवीर से रोमा पर जोक मार रहा है.

“और सुवीर, हौट कहा है रोमा को इस ने. नहीं बनाऊंगी लंच में भी कुछ. अच्छा, आराम से नेटफ्लिक्स पर ‘फेमगेम’ देखूंगी.

इतने में सुवीर मेरा हाथ पकड़ कर वापस बैडरूम में ले गए और बोले, “काम बाद में करती रहना. आज छुट्टी है. बच्चे  भी सो रहे हैं. आओ न, बैठो मेरे पास.”

मैं ने पूछा, “तुम्हारा फोन कहां है? हो गई गप्पें?”

वे हंस दिए, कहा, “आज हलकाहलका लग रहा है न. थोड़ा चेंज लग रहा है न दोस्त बन कर? नहीं तो तुम सुबह ही चिढ़ना शुरू हो जाती थी.”

“मैं चिढ़ना शुरू करती थी?”

“छोड़ो न. तुम्हें बताना भूल गया कि अगले हफ्ते मीना यहां लखनऊ हमारे घर  आने वाली है.”

मुझे जैसे करंट लगा, “क्यों…?”

“अरे, उस का भाई हूं, मेरी बहन जब चाहे यहां आ सकती है.”

“फैमिली के साथ?”

“हां, जतिन को कुछ काम है, बच्चों को अपने सासससुर के पास छोड़ कर आ रही है.”

“अच्छा, जतिन भी आ रहा है?”

“हां.”

“बढ़िया, ”मैं ने खुश होते हुए कहा, “तुम्हें पता है कि मैं आजकल फेमगेम देख रही हूं न, जतिन बिलकुल मानव कौल लगता है. मानव कौल मुझे बहुत ही अच्छा  लग रहा है. जब भी स्क्रीन पर मानव कौल आता है, मुझे जतिन का ध्यान आता है, हाय, इस शो में  तो मानव कौल ने मेरा दिल जीत लिया. वैसे, क्या जतिन अब भी फिटनेस पर उतना ध्यान देता है? अब भी उस के सिक्स पैक एब्स हैं?”

एक चिढ़ी सी आवाज आई, “मुझे क्या पता? मैं ने कभी उस की फिटनेस पर इतना ध्यान नहीं  दिया.”

मैं ने कहा, “वैसे, एक बात सचसच बताऊं, मुझे तुम्हारी बहन इतनी नहीं पसंद जितना उस का हस्बैंड पसंद है.”

सुवीर को भी जैसे याद आया कि आज हम दोस्त बने हैं तो पति जैसा कोई ताना मारना ठीक नहीं होगा, ऐक्टिंग भी नहीं कर पा रहे थे. सो इतना ही बोले, “थोड़ी देर सोने का मन कर रहा है.”

मैं ने कहा, “तुम्हारी अम्मा तो नहीं आने वाली?”

“तुम्हारी कुछ नहीं लगती.”

“आज तो ऐसे बोल सकती हूं न? तुम ने कहा था न कि अपने मन की बात आज दोनों ही कर सकते हैं.”

“तो अपने मन में तुम उन्हें अपनी अम्मा नहीं समझतीं?”

“सास हैं, सास ही समझती हूं.”

इस बार सुवीर ने फ्लौप ऐक्टिंग करते हुए मुसकराने की कोशिश की. बच्चे उठ गए. फ्रेश हो कर पास बैठते हुए वे बोले, “अरे हां, तो फिर आज आप दोनों दोस्त बन कर बातें कर रहे हो ?”

हम ने हां में सिर हिलाया, तो शैतानों ने हमें ध्यान से देखते हुए कहा, “दोस्त बन कर ज्यादा मजा नहीं आ रहा क्या?”

उन के पूछने के ढंग पर हम दोनों हंस पड़े. मैं ने कहा, “तुम्हारी बूआफूफा आ रहे हैं अगले हफ्ते ?”

आर्या बोली, “मौम, आप तो बहुत खुश लग रही हैं उन के आने से.”

फिर एक जली हुई आवाज आई, “जतिन भी आ रहा है न. मुझे भी आज ही पता चला कि मीना से ज्यादा जतिन को देख कर तुम्हारी मां खुश होती है.”

मैं ने सुवीर को घूरा तो बोले, “ऐसे क्या देख रही हो? तुम ने ही तो बताया है न कि जतिन तुम्हें अच्छा लगता है.”

“कम से कम मैं किसी दोस्त से उस के कपड़े और उस की हौटनेस तो डिसकस नहीं कर रही न?”

तीर निशाने पर लगा, सुवीर चुप हो गए, पर बच्चे कुछ समझे नहीं. विवान ने पूछा, “क्या हुआ डैड?”

“कुछ नहीं, बच्चो. मैं लंच की तैयारी करती हूं,” कह कर मैं किचन में चली गई. लंच कर के बच्चे अपने रूम में थोड़ी देर टीवी चला कर बैठ गए, सुवीर और मैं भी थोड़ी देर आराम करने लगे. शायद हम दोनों ही मन ही मन कुछ उलझे से थे, पर फिर भी मैं ने ही बात छेड़ी, “रोमा मैरिड है?”

“उस ने शादी नहीं की।”

“क्यों?”

“पता नहीं, कभी पूछा नहीं.”

सुवीर ने मेरी तरफ करवट ली और बोले, “शाम को क्या बनाओगी?”

“कोफ्ते सोचा है.”

“डिनर पर बाहर चलना है?”

“कोफ्ते नहीं खाने?”

“ना.”

“क्यों?”

“पसंद नहीं.”

“अरे, हमेशा तो बच्चों के साथ मिल कर तारीफ करते हो.”

“बच्चे तुम्हारे बनाए कोफ्ते शौक से खाते हैं, इसीलिए झूठ बोल देता हूं. आज दोस्त बन कर बोल रहा हूं, पति बन कर ऐसे सच बोलना मुश्किल होता है. मुझ से कोफ्ते खाए नहीं जाते, कोफ्ते प्लेट में अलग घूम रहे होते हैं, ग्रेवी अलग. बेसन कच्चाकच्चा सा लगता है. आज बाहर चल कर कुछ चाटपकोड़ी खा कर आते हैं.”

मन हुआ कि फ्रिज में रखी लौकी ही इन के सिर पर दे मारूं. सारी दुनिया मेरे बनाए कोफ्तों की फैन है, ये जनाब आज दोस्त बन कर बहुत बोल रहे हैं, ये पति ही ठीक हैं, दोस्त बनाने लायक ही नहीं. मैं ने कहा, “ठीक है, बाहर चलते हैं, जतिन और मीना आएंगे तो कोफ्ते बना लूंगी, जतिन तो पिछली बार दूसरे टाइम भी वही कोफ्ते से खाना खा रहा था.”

“मैं जानता हूं इन मर्दों को. ये ऐसे ही दूसरी औरतों को इम्प्रेस करते हैं, आने दो इस बार. अच्छे से देखता हूं इसे.”

इस बार सुवीर का स्वर तेज हुआ, तो किचन में पानी पीने आई आर्या हमारे रूम में आती हुई बोली, “क्या हुआ, डैड?”

हम दोनों के चेहरे गुस्से से लाल से हो रहे थे, वह भागी गई और विवान  को बुला लाई. दोनों हमारे बीच में बैठ कर ध्यान से हमें देखने लगे, फिर विवान ने कहा, “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप दोस्त बन कर आज उतने खुश नहीं हो जितने हमेशा रहते हो. कुछ ज्यादा बातें शेयर कर लीं क्या?”

आर्या और विवान के चेहरों पर गजब की मस्ती दिखी, हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैं ही बोल पड़ी, “अच्छा हुआ कि आज दोस्त बनने का नाटक किया. तुम्हारे पापा को तो मेरे बनाए कोफ्ते ही नहीं पसंद. आज बता रहे हैं. मैं ही पागल हूं, जो इन की हर बात पर विश्वास कर लेती हूं और वो रोमा की बच्ची… उस के बारे में भी आज बता रहे हैं.”

आर्या ने सुवीर को घूरा, वे अपना सिर पकड़ कर बैठते हुए बोले, “अरे यार, औफिस में नई आई है, बस इतना बताया. मुझे उस से क्या मतलब? और दोनों  मुझे क्या घूर रहे हो? अपनी मां से पूछो कि जतिन के सिक्स पैक एब्स में इन्हें कितना इंटरेस्ट है.”

मैं ने सुवीर को घूरा, उन्होंने मुझे. दोनों बच्चे अचानक हंसतेहंसते हमारे ऊपर ही गिरने लगे. हम दोनों झेंप गए. अपने पापा की लाड़ली आर्या ने कहा, “बस इस से ज्यादा ड्रामा हम नहीं झेल पाएंगे. पतिपत्नी हो, वही रहो.”

विवान ने सुवीर को हमदर्दी दिखाने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, “आप दोस्त बन कर अपना जो नुकसान कर चुके हैं, उसे संभालने में मैं आप के साथ हूं.”

हम दोनों को ही बच्चों की बातों पर हंसी आ गई. मैं ने कहा, “सुवीर, रहने दो. हम पतिपत्नी ही ठीक हैं, खुश हैं. बस तुम मुझे जरा रोमा के अपडेट्स ईमानदारी से देते रहना.”

“तुम भी इस बार जतिन के लिए कोफ्ते मत बनाना.”

यह सुन कर मैं खुल कर हंसी, “हां, नहीं बनाऊंगी. कहते हुए मैं ने गुनगुनाया, ‘जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, दोस्त नहीं बनना, पतिपत्नी ही रहेंगे’.”

Monsoon Food : बारिश के दिनों में बनाएं ये स्नैक्स, ये रही रैसिपीज

Monsoon Food : दिन चाहे छोटे हों या बड़े शाम की चाय के साथ कुछ हल्के फुल्के नाश्ते की दरकरार होती ही है. मानसून के इन दिनों में बाहर का नाश्ता न तो हाइजीनिक होता है, न ही पौष्टिक और न ही जेब के अनुकूल इसलिए जहां तक सम्भव हो इन दिनों में घर पर ही नाश्ता बनाने का प्रयास करना चाहिए आज हम आपको ऐसे ही कुछ स्नैक्स बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से घर पर बनाकर परिवार के सदस्यों को खिला सकते हैं, तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-पेरी पेरी कॉर्न रोल

कितने लोगों के लिए           6

बनने में लगने वाला समय      30 मिनट

मील टाईप                   वेज

सामग्री(रोल के लिए)

गेहूं का आटा                 1 कप

सूजी                        1/4 कप

नमक                       स्वादानुसार

अजवाइन                    1/4 टीस्पून

तेल                         4 टेबल स्पून

सामग्री(भरावन के लिए)

उबले कॉर्न                      1 कप

बारीक कटा प्याज            1

बारीक कटी हरी मिर्च          4

अदरक, लहसुन पेस्ट           1/4 टीस्पून

हींग                                 चुटकी भर

जीरा                               1/4 टीस्पून

उबला आलू                       1

नमक                               1/4 टीस्पून

चाट मसाला                        1/4 टीस्पून

पेरी पेरी मसाला                1 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया           1 टीस्पून

तेल                                     1 टीस्पून

विधि

गेहूं के आटे में नमक, अजवाइन और सूजी मिलाकर गुनगुने पानी से गूंथकर आधे घंटे के लिए ढककर रख दें.

कॉर्न को मिक्सी में बिना पानी के दरदरा पीस लें. गर्म तेल में हींग और जीरा तड़काकर  प्याज को सुनहरा होने तक भूनकर अदरक, लहसुन भून लें. अब इसमें पिसे कॉर्न और उबले आलू को मैश करके डालें. समस्त मसाले डालकर अच्छी तरह चलायें. 5 मिनट धीमी आंच पर भूनकर गैस बंद कर दें. हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें. ठंडा होने पर इसे 6 भागों में

बांटकर लम्बा रोल कर लें. तैयार रोल को रोटी के ऊपरी किनारे पर रखकर अच्छी तरह भरावन को अंदर की तरफ दबाते हुए रोल करें. इसी प्रकार सारे रोल तैयार कर लें. एक भगौने में पानी डालकर गर्म होने रखें. भगौने के ऊपर चलनी रखकर सभी रोल रख दें और 10 मिनट तक धीमी आंच पर ढककर पकाएं. ठंडा होने पर इन्हें गर्म तेल में सुनहरा तलकर 1-1 इंच के टुकड़ों में काटकर टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

-शेजवान चीज़ बॉल्स

कितने लोगों के लिए                       6

बनने में लगने वाला समय                   30 मिनट

मील टाईप                                वेज

सामग्री (बॉल्स के लिए)

रेडीमेड इंस्टेंट इडली मिक्स पाउडर 2 कटोरी

बेसन                                  1 टेबल स्पून

शेजवान चटनी                    1/2 टीस्पून

तलने के लिए तेल

सामग्री(भरावन के लिए)

उबले आलू                              250 ग्राम

चीज क्यूब्स                             4

बारीक कटी हरी मिर्च                4

जीरा                                  1/4  टी स्पून

बारीक कटा प्याज                        1

अदरक, लहसुन पेस्ट             1/2 टीस्पून

गरम मसाला                       1/4 टी स्पून

अमचूर पाउडर                     1/2  टी स्पून

शेजवान चटनी                    1 टीस्पून

नमक                                 स्वादानुसार

बारीक कटा हरा धनिया        1 टेबल स्पून

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

विधि-

गरम तेल में कटा प्याज, अदरक लहसुन पेस्ट, हरी मिर्च और जीरा डालकर भूनें। आलू को मेश करके उसमें समस्त मसाले व शेजवान चटनी डालें और तेज आंच पर 3-4 मिनट भूनकर उतार लें। आधा हरा धनिया मिलाएं. चीज  को किसकर 6 भाग में बांट लें. तैयार आलू के मिश्रण की भी 6 बॉल्स बना लें. आलू की एक बाल को हथेली पर रखकर फैलाएं और बीच में चीज रखकर चारों तरफ से पैक कर दें. इसी प्रकार सारे बाल्स तैयार कर लें. एक बाउल में इडली मिक्स, बेसन, शेजवान चटनी को अच्छी तरह मिक्स करके गाढा घोल बनाएं. इसमें तैयार आलू चीज की बाल को डुबोएं और गरम तेल में सुनहरा होने तकतलकर  बटर पेपर पर निकालकर हरी चटनी या सॉस के साथ सर्व करें.

राइटर – प्रतिभा अग्निहोत्री

Creative Bouquet Ideas : सिर्फ फूल नहीं फलों से भी सजाएं बुके, जानें यूनिक आइडिया

Creative Bouquet Ideas : हम सभी को बुके देना और लेना पसंद है, लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि जिन फूलों पर आप ने ₹500-1000 खर्च किए, वे 2-3 दिनों में ही मुरझा जाते हैं और अंत में डस्टबिन में जाते हैं? इसलिए हम में से अधिकतर लोगों को फूलों के बुके भेंट करना पैसों की बरबादी लगता है. लेकिन क्या करें किसी को स्पेशल फील कराने के लिए बुके आप की मदद भी तो करते हैं.

अब समय है बुके को एक नया मोड़ देने का, तो क्यों न हम बुके के ऐसे विकल्पों की तलाश करें जो न सिर्फ आप के लिए पौकेट फ्रैंडली हों, साथ ही दिखने में भी सुंदर हों, भीड़ से अलग दिखें, और जिन का रिसीवर को भी फायदा भी हो.

कट फ्रूट बुके

फूलों की जगह ताजे फलों के स्लाइस या कटे हुए फलों को खूबसूरती से सजा कर बुके बनाइए.
सेब, अनन्नास, अंगूर, स्ट्राबेरी से बना बुके न सिर्फ हैल्दी होता है, बल्कि बच्चों और बड़ों को तुरंत पसंद आ जाता है. ये बुके किड्स बर्थडे पार्टी, हौस्पिटल विजिट, हैल्थ कौंशियस लोगों के लिए परफैक्ट हैं. ये आप को क्राउड से हट कर अलग खड़ा होने का मौका भी देते हैं जिस से रिसीवर को भी लगता है कि आप ने वाकई उन के लिए गिफ्ट पसंद करने में अपना दिल लगाया है न कि सड़क चलते राह में पड़ी किसी शौप से फूलों का गुलदस्ता उठा लिया.

किड्स ड्रैस और टौयज बुके

छोटे बच्चों के लिए बुके में फूल नहीं, रंगबिरंगी फ्रौक, रैपर्स, सौफ्ट टौयज, हेयरबैंड आदि सजाइए. बुके के बाद ये सभी चीजें काम में भी आती हैं. न्यू बौर्न बेबी, बेबी शौवर या बच्चों के जन्मदिन पर इस तरीके के बुके तैयार करा सकते हैं. इस में आप का गिफ्ट कौमन होने के बाद भी स्टैंडआउट करेगा.

मनी बुके

गिफ्ट में पैसे देने का चलन तो बरसों से है. अगर आप भी किसी चीज को खरीदने के बजाए पैसे ही देने का मन रखते हैं तो आप अपने बजट के अनुसार ₹50, ₹100, ₹500 के नोटों को फूलों की तरह मोड़ कर बुके बनावा सकते हैं. इस में आप चाहें तो बीचबीच में चौकलेट, मिठाई भी जोड़ सकते हैं.

शादी, इंगेजमैंट, फेयरवेल या कोई विशेष जश्न हो तो इस तरीके के बुके आप के काम आएंगे.

हेयर क्लिप/ब्यूटी ऐक्सैसरीज बुके

महिलाओं के पास कितने भी हेयर क्लिप्स क्यों न हों वे उन्हें कम ही लगते हैं. इसलिए आप अपनी फ्रैंड को उन के खास दिन पर हेयर क्लीप या ब्यूटी ऐक्सैसरीज से बना बुके दे सकते हैं, जिस में महिलाओं को हेयर क्लिप, बिंदी, नेल पेंट, स्क्रंचीज ऐड की जा सकती है.
ये सजावटी भी हैं और यूजफुल भी.

राखी, बर्थडे, गर्ल्स डे आउट या टीनऐज फ्रैंड्स को गिफ्ट देने के लिए ये आइडिया बैस्ट है. बाजार में फूल और तितली के आकार के रंगबिरंगे क्लचर औप्शन मौजूद हैं, आप उन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

चौकलेट बुके

इस की डिमांड हमेशा रहती है. डेरी मिल्क, फाइवस्टार, अमूल जैसी चौकलेट्स को आकर्षक पेपर और रैपिंग से बुके में बदलें. वैलेंटाइन डे, ऐनिवर्सरी, बर्थडे आदि किसी भी मौके पर यह बुके आप के काम आएगा. साथ ही बजट फ्रैंडली भी है. आप इस में बीचबीच में चाहें तो कुछ फूल भी ऐड करा सकते हैं, जिस से आप के बुके के रंग निखर कर आएं.

क्रोशे फ्लौवर बुके

क्रोशे से बने फूल कभी मुरझाते नहीं. इन्हें घर पर भी बनाया जा सकता है और सालों तक सजाया जा सकता है. चाहे तो आप मार्केट में मौजूद क्रोशे फ्लौवर खरीद सकते हैं. गृहप्रवेश, आर्ट लवर्स को गिफ्ट, सजावट के शौकीनों के लिए यह बेहतरीन तोहफा है, जो हमेशा रिसीवर के घर में रंग बिखेरेगा.

रियल प्लांट बुके

पौधे जीवन देते हैं. ऐसे में आप अगर किसी प्लांट लवर को बुके गिफ्ट करने का मन बना रहे हैं तो मनी प्लांट, लैवेंडर, तुलसी आदि को सजा कर बुके का रूप दीजिए. लोग इसे घर में रख सकते हैं और लंबे समय तक उस का लाभ उठा सकते हैं.

गिफ्ट ऐसा हो जो सिर्फ दिल को न भाए, बल्कि किसी के काम भी आए. इसलिए अगर आप के पास समय है तो आप पहले से इस तरह के बुके प्लान कर सकते हैं.

Past Relationship : क्या होने वाले पति को मेरे एक्स रिलेशनशिप के बारे में पता चल सकता है?

Past Relationship :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

20 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं. उस के कहने पर मैं ने 3 बार उस के साथ सहवास किया है. अब मेरी शादी किसी दूसरे युवक से होने जा रही है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या सुहागरात में मेरे भावी पति को पता चल जाएगा कि मैं किसी से संबंध बना चुकी हूं? ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आ रही है, मेरी चिंता बढ़ती जा रही है कि पता नहीं क्या होगा. बताएं क्या करूं?

जवाब-

विवाहपूर्व बनाए गए अवैध संबंध भविष्य के लिए चिंता का सबब तो बनते ही हैं इन्हें अनैतिक और वर्जित भी माना जाता है. पर आप चूंकि यह गलती कर चुकी हैं जिसे सुधारा नहीं जा सकता, इसलिए अब आप अपना मुंह बंद रखें. इस बाबत पति को भूल कर भी कुछ न बताएं.

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नेहा की शादी बड़ी धूम-धाम से हुई थी. पति के नये घर-परिवार में नेहा को स्पेशल ट्रीटमेेंट मिल रहा था. अक्षय अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, ऐसे में उसकी पत्नी नेहा की आव-भगत भला क्यों न होती? तीन महीने हो गये थे, सास ने उसे रसोई में घुसने भी नहीं दिया था. नेहा 15 दिन के हनीमून के बाद लौटी, तो जरूरत की हर चीज उसके कमरे में ही पहुंच जाती थी. घर के तीनों नौकर हर वक्त उसकी खिदमत में हाजिर रहते थे. किट्टी पार्टी, रिश्तेदारों और मोहल्ले भर में उसकी सास उसकी खूबसूरती और व्यवहार के कसीदे काढ़ते घूमती थी. शाम को नेहा अक्सर सजधज कर हसबैंड के साथ घूमने निकल जाती. दोनों फिल्म देखते, रेस्ट्रां में खाना खाते, शॉपिंग करते. जिन्दगी मस्त बीत रही थी. मगर अचानक एक दिन नेहा के सुखी वैवाहिक जीवन का महल भरभरा कर गिर पड़ा.

उस दिन उसकी सास पड़ोसी के वहां बैठी थी, जब पड़ोसी के बेटे ने अपने कम्प्यूटर पर नेहा के अश्लील चित्र उसकी सास को दिखाये. ये चित्र उसने नेहा के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड किये थे, जहां वह अपनी अर्द्धनग्न तस्वीरें पोस्ट करके सेक्स के लिए युवकों को आमंत्रित करती थी. शर्म, अपमान और दुख से भरी नेहा की सास ने बेटे को फोन करके तुरंत घर बुलाया. पड़ोसी के कम्प्यूटर पर बैठ कर नेहा का फेसबुक अकाउंट चेक किया गया तो अक्षय के भी पैरों तले धरती डोल गयी. तस्वीरें देखकर इस बात से इनकार ही नहीं किया जा सकता था कि यह नेहा नहीं थी और इस अकाउंट से यह साफ था कि वह एक प्रॉस्टीट्यूट थी. उसने वहां पर बकायदा घंटे के हिसाब से अपने रेट डाल रखे थे. अपनी अश्लील कहानियां तस्वीरों के साथ डाल रखी थीं. बड़ा हंगामा खड़ा हो गया. नेहा के परिवार वालों को बुलाया गया. खूब कहा-सुनी हुई. नेहा मानने को ही तैयार नहीं थी कि वह फेसबुक अकाउंट उसका था, मगर जो तस्वीरें सामने थीं वह उसी की थीं. नेहा के माता-पिता भी हैरान थे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Monsoon Care Tips : मौनसून से पहले घर की करें वाटरप्रूफिंग

Monsoon Care Tips :  मौनसून के दिनों बारिश की तेज बौछारें गरमी से तपते तन और मन दोनों को जितनी राहत पहुंचाती हैं उस से कहीं ज्यादा परेशानियां भी ले कर आती हैं क्योंकि अकसर बारिश के कारण घरों की दीवारों में सीलन आ जाती है या फिर कभीकभी पानी भी टपकने लगता है जिस से बारिश के बाद उस स्थान पर फफूंद लगने की समस्या हो जाती है और वह स्थान दिखने में तो अच्छा लगता नहीं, उसे सही करवाने में भी अतिरिक्त खर्चा करना पड़ता है.

यदि बारिश के आने से पहले ही घर की वाटरप्रूफिंग कर ली जाए तो काफी हद तक मौनसून के बाद इस तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है. आजकल बाजार में भांतिभांति वाटरप्रूफिंग मैटीरियल उपलब्ध हैं. आप अपने बजट और पसंद के अनुसार इन का चुनाव कर सकते हैं.

आइए, जानते हैं कि आप अपने घर में कितनी तरह से वाटरप्रूफिंग कर सकते हैं :

लिक्विड वाटरप्रूफिंग

इस में एक तरह से पेंट जैसा तरल पदार्थ होता है जो पौलियूथेरेन, ऐक्रेलिक या रबर से बना होता है. इस मैटीरियल को दीवारों, छतों, बालकनी और बाथरूम जैसी जगहों पर पेंट की तरह ही किया जाता है. इसे जिस स्थान पर लगाया जाता है वहां पर एक वाटरप्रूफ परत बन जाती है जिस से उस स्थान की सभी दरारें भर जाती हैं और फिर बारिश होने पर वहां से पानी की लीकेज नहीं होती है.

शीट मैंब्रेन वाटरप्रूफिंग

इस में डामर या पीवीसी जैसी बड़ी चादरों को सतह पर बिछा कर चिपकाया जाता है. ये बड़ेबड़े रोल्स में आती हैं और फिर आवश्यकतानुसार इन्हें काट कर बिछाया जाता है। इन्हें आमतौर पर बड़ी छतों, पोडियम्स और नींव की वाटरप्रूफिंग के लिए प्रयोग किया जाता है. ये काफी ड्यूरेबल और लौंग लास्टिंग होती हैं.

इंटीग्रल वाटरप्रूफिंग

इंटीग्रल वाटरप्रूफिंग के अतंर्गत घर या छत को बनाते समय कंक्रीट या सीमेंट में ही कुछ खास वाटरप्रूफिंग मैटीरियल्स मिला दिए जाते हैं जिस से भविष्य में कभी भी पानी के लीकेज की समस्या न हो. यह तरीका दीवारों और छतों की इंटरनल वाटरप्रूफिंग के लिए बहुत अच्छा रहता है पर घर बन जाने के बाद इसे अप्लाई नहीं किया जा सकता.

सीमेंट से वाटरप्रूफिंग

यह एक बहुत ही पारंपरिक, सस्ता व सुंदर टिकाऊ तरीका है जिस में सीमेंट के पतले घोल को दीवारों और छतों पर लगा दिया जाता है जिस से क्रेक्स भर जाते हैं और फिर वहां से पानी का लीकेज नहीं होता है. इसे लगाना भी काफी आसान होता है पर कई बार सीमेंट के काले रंग के कारण लोग इसे प्रयोग करने से बचते हैं क्योंकि दिखने में यह बहुत अधिक अच्छा नहीं लगता.

पेंट से वाटरप्रूफिंग

आजकल बाजार में ऐक्रेलिक और सिलिकौन से बने भांतिभांति के पेंट्स उपलब्ध हैं जिन्हें लगाना भी काफी आसान होता है साथ ही ये दिखने में भी काफ़ी अच्छे लगते हैं। छोटी और पतली दरारों के लिए ये काफी उपयुक्त रहते हैं. बाजार में छत, दीवार और फर्श आदि के लिए अलगअलग पेंट्स उपलब्ध हैं। आप अपनी आवश्यकतानुसार इन्हें खरीद सकते हैं. वाटरप्रूफिंग के क्षेत्र में डाक्टर फिक्सइट एक जानामाना ब्रैंड है.

रखें इन बातों का भी ध्यान

● किसी भी स्थान की वाटरप्रूफिंग करने से पहले उस स्थान की अच्छी तरह सफाई अवश्य करें ताकि दरारें स्पष्ट रूप से दिखें और उस स्थान पर आप ध्यान से वाटरप्रूफिंग कर सकें.

● किसी भी प्रकार की वाटरप्रूफिंग को करने से पहले आप उस स्थान की दरारें और छेदों को पहले थोड़ा सा खुरच लें और फिर अच्छी तरह से पैक कर दें। जब ये सूख जाएं तो आप वाटरप्रूफिंग करें ताकि बारिश होने पर लीकेज की संभावना न रहे.

● वाटरप्रूफिंग के लिए हमेशा अच्छे और ब्रैंडेड प्रोडक्ट का ही यूज करें ताकि आप की मेहनत और पैसा व्यर्थ होने से बचा रहे.

● चूंकि सभी वाटरप्रूफिंग मैटीरियल विभिन्न प्रकार के कैमिकल्स से बने होते हैं इसलिए वाटरप्रूफिंग करते समय दस्ताने, मास्क और आंखों को सुरक्षित करने के लिए चश्मा अवश्य पहनें.

● वाटरप्रूफिंग के लिए दिन का समय चुनें और कोशिश करें कि उस दिन या समय पर खिली हुई धूप हो ताकि वाटरप्रूफिंग भलीभांति सूख जाए। यदि वाटरप्रूफिंग के दौरान पानी बरस जाए तो उस स्थान को पोलीथीन शीट से कवर कर दें.

● संभव हो तो वाटरप्रूफिंग करने के पहले ऐक्सपर्ट की सलाह ले लें ताकि आप परफैक्ट वाटरप्रूफिंग कर सकें और यदि संभव हो सके तो आप इसे करवाने के लिए किसी प्रोफैशनल की भी मदद ले सकते हैं.

Hindi Story : दूसरी शादी – कैसे हुआ नौशाद को पछतावा

Hindi Story : वह रात कयामत की रात थी. मैं और मेरी बीवी उदास थे, क्योंकि मैं दूसरी शादी करने जा रहा था. लेकिन इस बात से मैं उतना दुखी नहीं था, जितनी वह गमगीन थी.

हमारी शादी को 6 साल हो चुके थे. हजार कोशिशों के बावजूद हमारे आंगन में कोई फूल नहीं खिला था. इस कमी को ले कर मैं कुछ उदास रहने लगा था और नर्गिस की तरफ से मन भी हटने लगा था. जबकि उस के प्यार में कोई फर्क नहीं आया था. वह मुझे भी समझाती कि मैं नाउम्मीद न होऊं, कभी न कभी तो उस की गोद जरूर हरी होगी.

नर्गिस को मैं ने पहली रात से ही प्यार दिया था, आम पतियों की तरह. अपना प्यार जताने के लिए चालू किस्म के डायलागभी बोले थे. मगर सच तो यह है कि मुझे औरतों की वफा पर कभी पूरा विश्वास नहीं रहा. मैं तो इस कमी के चलते यहां तक सोचने लगता कि औलाद की चाह में औरतें कभीकभी गलत कदम भी उठा लेती हैं. नर्गिस एक प्राइवेट फर्म में काम करने जाती है. क्या पता वहभी…

खैर, इन बातों की मुझे खास चिंता नहीं थी. मेरे मन में तो अब बस, एक ही ख्वाहिश करवटें ले रही थी, दूसरी शादी करने की ख्वाहिश. लेकिन नर्गिस से यह बात कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैं बड़े ही पसोपेश में था कि तभी मुझे मां का एक खत मिला. खत पढ़ कर मेरा दिल बागबाग हो गया. उन्होंने मेरी दूसरी शादी करने का इरादा जाहिर किया था. लड़की भी उन्होंने ढूंढ़ ली थी और जल्द ही मेरा निकाह कर देना चाहती थीं. सिर्फ मेरी मां का ही नहीं, मेरे भाईबहनों का भी यही इरादा था.

खत पा कर जैसे मुझ में हिम्मत सी आ गई. आफिस से छूटते ही मैं सीधे घर पहुंचा और खत नर्गिस के हाथ में थमा दिया.

वह खत पढ़ने के बाद हैरत से बोली, ‘‘यह सब क्या है?’’

‘‘भई, मेरे घर वालों ने मेरी दूसरी शादी का इरादा जाहिर किया है, और क्या है. वैसे तुम क्या कहती हो?’’

वह कोई जवाब देने के बजाय उलटे मुझ से ही सवाल कर बैठी, ‘‘आप क्या कहते हैं?’’

‘‘भई, मैं तो सोच रहा हूं कि अब मुझे दूसरी शादी कर ही लेनी चाहिए. शायद इसी बहाने हमारा सूना आंगन चहक उठे,’’ इतना कह कर मैं उस का चेहरा पढ़ने लगा. उस के चेहरे पर उदासी उमड़ आई थी.

मैं फिर बोला, ‘‘अब तुम भी कुछ कहती तो अच्छा होता.’’

‘‘मैं क्या कहूं, जैसा आप बेहतर समझें, करें.’’

हमारे बीच कुछ देर खामोशी रही. मैं उस के मुंह से कोई स्पष्ट बात सुनना चाहता था, लेकिन वह कुछ कहने के लिए जैसे तैयार ही नहीं थी.

मैं ने उसे फिर कुरेदा, ‘‘नर्गिस, मुझे तो अब औलाद का सुख पाने का यही एक रास्ता नजर आ रहा है. फिर भी तुम साफसाफ कुछ कह देती तो मुझे यह कदम उठाने में आसानी हो जाती.’’

‘‘इस बारे में एक औरत भला साफ- साफ क्या कह सकती है?’’ वह मेरे सामने एक सवाल छोड़ कर रसोई में चली गई.

मैं सोचने लगा, नर्गिस ठीक ही कहती है. कोई औरत अपने मर्द को दूसरी शादी की इजाजत कैसे दे सकती है. यह काम तो मर्दों की मर्जी का है. वे चाहें तो दूसरी क्या 4-4 शादियां करें. मैं भी कितना बड़ा बेवकूफ हूं, यह सोच कर मैं मुसकरा उठा और शादी करने का मेरा इरादा पुख्ता हो गया.

घंटे भर बाद जब वह खाना बना कर कमरे में आई तो मैंने कहा, ‘‘नर्गिस, कल मैं घर जा रहा हूं.’’

उस ने मेरी बात को नजरअंदाज करते हुए पूछा, ‘‘खाना खाइएगा, लगाऊं?’’

‘‘हां, ले आओ,’’ मैं ने कहा तो वह सिर झुकाए चली गई.

कुछ देर बाद वह मेरा खाना ला कर मेरे पास ही बैठ गई. मैं ने सिर्फ अपनी प्लेट देख कर पूछा, ‘‘अरे, क्या तुम नहीं खाओगी?’’

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ कह कर वह खामोश हो गई.

मैं ने भी उस से जिद नहीं की और चुपचाप खाने लगा, क्योंकि मैं जानता था कि उस की भूखप्यास तो मां का खत पढ़ते ही मर गई होगी, इसलिए जिद करना बेकार था.

खाना खाने के बाद हम दोनों चुपचाप बिस्तर पर आ गए. मेरे दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. शायद उस के भी दिमाग में कुछ चल रहा होगा. मैं सोच रहा था कि मुझे ऐसा करना चाहिए या नहीं? नर्गिस मुझ से बेहद प्यार करती है. कैसे बर्दाश्त करेगी मेरी दूसरी शादी? इस गम से तो वह मर ही जाएगी.

जब अभी से उस की यह हालत हो रही है तो आगे न जाने क्या होगा. उस की तबीयत भी ठीक नहीं है. आज ही डाक्टर को दिखा कर आई है. मैं ने उस से पूछा भी नहीं कि डाक्टर ने क्या कहा. अपनी दूसरी शादी के चक्कर में कितना स्वार्थी हो गया हूं मैं.

फिर जैसे मेरे अंदर से किसी ने कहा, ‘नौशाद, इतना सोचोगे तब तो कर ली शादी. अरे, आजकल तो औरत खुद अपने मर्द को छोड़ कर दूसरी शादी कर लेती है और तुम मर्द हो कर इतना सोच रहे हो. और फिर तुम तो अपनी बीवी को तलाक भी नहीं दे रहे. कुछ दिन वह जरा उदास रहेगी, फिर पहले की तरह हंसनेबोलने लगेगी. इसलिए अब उस के बारे में सोचना बंद करो और अपना काम जल्दी से कर डालो. मौका बारबार नहीं आता.’

सुबह आंख खुली तो नर्गिस मेरा नाश्ता तैयार कर चुकी थी. उस ने मेरी पसंद का नाश्ता खीर और पूरी बनाई थी. नाश्ता भी मुझे अकेले ही करना पड़ा. बहुत कहने पर भी उस ने मेरा साथ नहीं दिया.

मैं ने उसे समझाया, ‘‘नर्गिस, तुम क्यों इतनी उदास हो रही हो? मैं दूसरी शादी ही तो करने जा रहा हूं, तुम्हें छोड़ तो नहीं रहा. अगर इसी बहाने मैं बाप बन गया तो तुम्हारा सूनापन भी दूर हो जाएगा.’’

वह खामोश रही. एकदम खामोश. मुझे उस की खामोशी से घबराहट सी होने लगी और जल्दी से घर से निकल जाने को मन करने लगा.

मैं ने झटपट अपना सूटकेस तैयार किया, कपड़े पहने और यह कहते हुए बाहर निकल आया, ‘‘नर्गिस, मुझे लौटने में 10-15 दिन लग सकते हैं. तुम अपना खयाल रखना.’’

मैं रिकशा पकड़ कर स्टेशन पहुंचा. टिकट कटा कर एक्सप्रेस गाड़ी पकड़ी और धनबाद से रफीगंज पहुंच गया.

फिर चौथे ही दिन फरजाना नाम की एक लड़की से चंद लोगों की मौजूदगी में मेरा निकाह हो गया. वह लड़की गरीब घर की थी, लेकिन पढ़ीलिखी और खूबसूरत थी.

फरजाना को अपनी दूसरी बीवी के रूप में पा कर मुझ में जैसे नई उमंगें भर गईं. मैं ने 20 दिन उस के साथ बहुत मजे में गुजारे. मेरे परिवार वाले भी उस से बहुत खुश थे. नईनई बीवी का मुझ पर ऐसा नशा छाया कि मुझे नर्गिस की कई दिनों याद तक नहीं आई.

फिर मुझे नर्गिस की चिंता सताने लगी. उस के बारे में बुरेबुरे खयाल आने लगे. फिर एक दिन मैं ने अचानक धनबाद की गाड़ी पकड़ ली.

ट्रेन से उतर कर जब स्टेशन से बाहर आया तो मुझे डा. असलम मिल गए. वह मुझे देखते ही लपक कर पास आते हुए बोले, ‘‘भई, मुबारक हो. मैं कब से ढूंढ़ रहा हूं तुम्हें मुबारकबाद देने को.’’

उन के मुंह से ये शब्द सुन कर मैं सोचने लगा कि मेरी शादी के बारे में इन्हें कैसे पता चल गया. शायद नर्गिस ने इन्हें बताया हो.

मैं ने झेंपते हुए उन की मुबारकबाद का शुक्रिया अदा किया तो वह कहने लगे, ‘‘भई, सिर्फ शुक्रिया से काम नहीं चलेगा, कुछ खिलानापिलाना भी पड़ेगा. बड़ी तपस्या का फल है.’’

‘‘तपस्या का फल…’’ मैं कुछ समझा नहीं. मैं हैरत से बोला तो वह शरारत भरे अंदाज में कहने लगे, ‘‘शरमा रहे हो. होता है, होता है. पहली बार बाप बन रहे हो न, इसलिए.’’

‘‘बाप… डाक्टर साहब, आप क्या कह रहे हैं. मेरी समझ में तो सचमुच कुछ भी नहीं आ रहा,’’ मेरी हैरानी बदस्तूर जारी थी.

उन्होंने कहा, ‘‘मियां, नाटकबाजी बंद करो और मेरी एक बात ध्यान से सुनो, तुम्हारी वाइफ बहुत कमजोर है. उस का जरा खयाल रखो, नहीं तो डिलीवरी के समय परेशानी हो सकती है.’’

यह सुन कर मेरी हैरत और खुशी का ठिकाना नहीं रहा. हैरत इसलिए हुई कि नर्गिस ने इतनी बड़ी खुशी की बात मुझ से छिपाए क्यों रखी. मैं ने उन से फिर पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, आप सच कह रहे हैं? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा.’’

वह मेरा हैरानी भरा चेहरा देख कर बोले, ‘‘क्या वाकई तुम्हें मालूम नहीं है?’’

‘‘हां, मैं सच कह रहा हूं. यह आप को कब पता चला?’’

‘‘जिस दिन तुम आफिस जाते वक्त अपनी वाइफ को मेरे चेंबर में छोड़ कर गए थे. मैं तुम्हें मुबारकबाद भी देना चाहता था, लेकिन फिर नर्गिस से पता चला कि तुम किसी काम से घर चले गए हो. मगर ताज्जुब है, नर्गिस ने तुम्हें यह बात नही बताई,’’ वह सिर हिलाते हुए आगे बढ़ गए.

मैं जल्दी से रिकशा पकड़ कर सीधे घर पहुंचा. उस वक्त नर्गिस गुमसुम सी कमरे में बैठी हुई थी. मैं ने जाते ही उस से पूछा, ‘‘नर्गिस, यह मैं क्या सुन रहा हूं? तुम ने मुझ से इतनी बड़ी बात छिपाए रखी?’’

वह कुछ देर मेरी तरफ देखती रही, फिर उदास स्वर में बोली, ‘‘नहीं छिपाती तो आप दूसरी शादी कैसे करते.’’

‘‘इस का मतलब है, तुम भी यही चाहती थीं कि मेरी दूसरी शादी हो जाए?’’

‘‘मैं नहीं, सिर्फ आप चाहते थे, आप. आप ही के दिल में दूसरी शादी की तमन्ना पैदा हो गई थी. एक औरत तो कभी नहीं चाहेगी कि उस की कोई सौतन आए. सिर्फ औलाद नहीं होने से हमारा प्यार कम होने लगा था, मेरी तरफ से आप का मन हटने लगा था. आप की नजर में मेरी कोई कीमत नहीं रह गई थी. मुझ से दिली प्यार नहीं रह गया था. और मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि अपनी कोख में पल रहे बच्चे का सहारा ले कर मैं आप को अपने इरादे से रोकती.’’

उस रात की निरंतर चुप्पी के बाद आज वह खूब बोली और फिर फूटफूट कर रोने लगी. मेरे पास उस का कोई जवाब नहीं था.

मैं ने उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘नर्गिस, मैं औलाद के लिए नहीं, बल्कि दूसरी शादी के लिए लालायित हो गया था और भूल कर बैठा. अब शायद इस भूल की सजा भी मुझे काटनी पड़ेगी.’’

वह मुझे माफ कर के मेरे गले से लग गई थी.

आज इस बात को लगभग 15 साल गुजर चुके हैं. मैं 6 बच्चों का बाप बन गया हूं. 3 नर्गिस के हैं और 3 फरजाना के. 2 शादियां कर के जैसे दो नावों की सवारी कर रहा हूं. बहुत टेंशन में रहता हूं.

नर्गिस तो बहुत सूझबूझ वाली और संवेदनशील औरत है. लेकिन फरजाना छोटीछोटी बात पर भी मुझ से झगड़ती और ताने सुनाती रहती है. आज मैं बहुत पछता रहा हूं. सोचता हूं, आखिर मैं ने दूसरी शादी क्यों की?

Kahani In Hindi : भ्रष्टाचार – कौन थी मोहिनी

Kahani In Hindi : मोहिनी ने पर्स से रूमाल निकाला और चेहरा पोंछते हुए गोविंद सिंह के सामने कुरसी खींच कर बैठ गई. उस के चेहरे पर अजीब सी मुसकराहट थी.

‘‘चाय और ठंडा पिला कर तुम पिछले 1 महीने से मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ मोहिनी झुंझलाते हुए बोली, ‘‘पहले यह बताओ कि आज चेक तैयार है या नहीं?’’

वह सरकारी लेखा विभाग में पहले भी कई चक्कर लगा चुकी थी. उसे इस बात की कोफ्त थी कि गोविंद सिंह को हिस्सा दिए जाने के बावजूद काम देरी से हो रहा था. उस के धन, समय और ऊर्जा की बरबादी हो रही थी. इस के अलावा गोविंद सिंह अश्लील एवं द्विअर्थी संवाद बोलने से बाज नहीं आता था.

गोविंद सिंह मौके की नजाकत को भांप कर बोला, ‘‘तुम्हें तंग कर के मुझे आनंद नहीं मिल रहा है. मैं खुद चाहता हूं कि साहब के दस्तखत हो जाएं किंतु विभाग ने जो एतराज तुम्हारे बिल पर लगाए थे उन्हें तुम्हारे बौस ने ठीक से रिमूव नहीं किया.’’

‘‘हमारे सर ने तो रिमूव कर दिया था,’’ मोहिनी बोली, ‘‘पर आप के यहां से उलटी खोपड़ी वाले क्लर्क फिर से नए आब्जेक्शन लगा कर वापस भेज देते हैं. 25 कूलरों की खरीद का बिल मैं ने ठीक कर के दिया था. अब उस पर एक और नया एतराज लग गया है.’’

‘‘क्या करें, मैडम. सरकारी काम है. आप ने तो एक ही दुकान से 25 कूलरों की खरीद दिखा दी है. मैं ने पहले भी आप को सलाह दी थी कि 5 दुकानों से अलगअलग बिल ले कर आओ.’’

‘‘फिर तो 4 दुकानों से फर्जी बिल बनवाने पड़ेंगे.’’

‘‘4 नहीं, 5 बिल फर्जी कहो. कूलर तो आप लोगों ने एक भी नहीं खरीदा,’’ गोविंद सिंह कुछ शरारत के साथ बोला.

‘‘ये बिल जिस ने भेजा है उस को बोलो. तुम्हारा बौस अपनेआप प्रबंध करेगा.’’

‘‘नहीं, वह नाराज हो जाएगा. उस ने इस काम पर मेरी ड््यूटी लगाई है.’’

‘‘तब, अपने पति को बोलो.’’

‘‘मैं इस तरह के काम में उन को शामिल नहीं करना चाहती.’’

‘‘क्यों? क्या उन के दफ्तर में सारे ही साधुसंत हैं. ऐसे काम

होते नहीं क्या? आजकल तो सारे देश में मंत्री से

ले कर संतरी

तक जुगाड़ और सैटिंग में लगे हैं.’’

मोहिनी ने जवाब में कुछ भी नहीं कहा. थोड़ी देर वहां पर मौन छाया रहा. आखिर मोहिनी ने चुप्पी तोड़ी. बोली, ‘‘तुम हमारे 5 प्रतिशत के भागीदार हो. यह बिल तुम ही क्यों नहीं बनवा देते?’’

‘‘बड़ी चालाक हो, मैडम. नया काम करवाओगी. खैर, मैं बनवा दूंगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?’’

‘‘200-400 रुपए, जो तुम्हारी गांठ से खर्च हों, मुझ से ले लेना.’’

‘‘अरे, इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा. पूरा दिन हमारे साथ पिकनिक मनाओ. किसी होटल में ठहरेंगे. मौज करेंगे,’’ गोविंद सिंह बेशर्मी से

कुटिल हंसी हंसते हुए मोहिनी को तौल रहा था.

‘‘मैं जा रही हूं,’’ कहते हुए मोहिनी कुरसी से उठ खड़ी हुई. उसे मालूम था कि इन सरकारी दलालों को कितनी लिफ्ट देनी चाहिए.

गोविंद सिंह समझौतावादी एवं धीरज रखने वाला व्यक्ति था. वह जिस से जो मिले, वही ले कर अपना काम निकाल लेता था. उस के दफ्तर में मोहिनी जैसे कई लोग आते थे. उन में से अधिकांश लोगों के काम फर्जी बिलों के ही होते थे.

सरकारी विभागों में खरीदारी के लिए हर साल करोड़ों रुपए मंजूर किए जाते हैं. इन को किस तरह ठिकाने लगाना है, यह सरकारी विभाग के अफसर बखूबी जानते हैं. इन करोड़ों रुपयों से गोविंद सिंह और मोहिनी

जैसों की सहायता से अफसर अपनी तिजोरियां भरते हैं और किसी को हवा भी नहीं लगती.

25 कूलरों की खरीद का फर्जी बिल जुटाया गया और लेखा विभाग को भेज दिया गया. इसी तरह विभाग के लिए फर्नीचर, किताबें, गुलदस्ते, क्राकरी आदि के लिए भी खरीद की मंजूरी आई थी. अत: अलगअलग विभागों के इंचार्ज जमा हो

कर बौस के साथ बैठक में मौजूद थे.

बौस उन्हें हिदायत दे रहे थे कि पेपर वर्क पूरा

होना चाहिए, ताकि कभी अचानक ऊपर से अधिकारी आ कर जांच करें तो उन्हें फ्लाप किया जा सके. और यह तभी संभव है जब आपस में एकता होगी.

सारा पेपर वर्क ठीक ढंग से पूरा कराने के बाद बौस ने मोहिनी की ड्यूटी गोविंद सिंह से चेक ले कर आने के लिए लगाई थी. बौस को मोहिनी पर पूरा भरोसा था. वह पिछले कई सालों से लेखा विभाग से चेक बनवा कर ला रही थी.

गोविंद सिंह को मोहिनी से अपना तयशुदा शेयर वसूल करना था, इसलिए उस ने प्रयास कर के उस के पेपर वर्क में पूरी मदद की. सारे आब्जेक्शन दूर कर के चेक बनवा दिया. चेक पर दस्तखत करा कर गोविंद सिंह ने उसे अपने पास सुरक्षित रख लिया और मोहिनी के आने की प्रतीक्षा करने लगा.

अपराह्न 2 बजे मोहिनी ने उस के केबिन में प्रवेश किया. वह मोहिनी को देख कर हमेशा की तरह चहका, ‘‘आओ मेरी मैना, आओ,’’ पर उस ने इस बार चाय के लिए नहीं पूछा.

मोहिनी को पता था कि चेक बन गया है. अत: वह खुश थी. बैठते हुए बोली, ‘‘आज चाय नहीं मंगाओगे?’’

गोविंद सिंह आज कुछ उदास था. बोला, ‘‘मेरा चाय पीने का मन नहीं है. कहो तो तुम्हारे लिए मंगा दूं.’’

‘‘अपनी उदासी का कारण मुझे बताओगे तो मन कुछ हलका हो जाएगा.’’

‘‘सुना है, वह बीमार है और जयप्रकाश अस्पताल में भरती है.’’

‘‘वह कौन…अच्छा, समझी, तुम अपनी पत्नी कमलेश की बात कर रहे हो?’’

गोविंद सिंह मौन रहा और खयालों में खो गया. उस की पत्नी कमलेश उस से 3 साल पहले झगड़ा कर के घर से चली गई थी. बाद में भी वह खुद न तो गोविंद सिंह के पास आई और न ही वह उसे लेने गया था. उन दोनों के कोई बच्चा भी नहीं था.

दोनों के बीच झगड़े का कारण खुद गोविंद सिंह था. वह घर पर शराब पी कर लौटता था. कमलेश को यह सब पसंद नहीं था. दोनों में पहले वादविवाद हुआ और बाद में झगड़ा होने लगा. गोविंद सिंह ने उस पर एक बार नशे में हाथ क्या उठाया, फिर तो रोज का ही सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन वह घर लौटा तो पत्नी घर पर न मिली. उस का पत्र मिला था, ‘हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘चलो, बड़ा अच्छा हुआ जो अपनेआप चली गई,’ गोविंद सिंह ने सोचा कि बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडी औरत के साथ गुजारा करना उसे भी कठिन लग रहा था. अब रोज रात में शराब पी कर आने पर उसे टोकने वाला कोई न था. जब कभी किसी महिला मित्र को साथ ले कर गोविंद सिंह घर लौटता तो सूना पड़ा उस का घर रात भर के लिए गुलजार हो जाता.

‘‘कहां खो गए गोविंद,’’ मोहिनी ने टोका तो गोविंद सिंह की तंद्रा भंग हुई.

‘‘कहीं भी नहीं,’’ गोविंद सिंह ने अचकचा कर उत्तर दिया. फिर अपनी दराज से मोहिनी का चेक निकाला और उसे थमा दिया.

चेक लेते हुए मोहिनी बोली, ‘‘मेरा एक कहना मानो तो तुम से कुछ कहूं. क्या पता मेरी बात को ठोकर मार दो. तुम जिद्दी आदमी जो ठहरे.’’

‘‘वादा करता हूं. आज तुम जो भी कहोगी मान लूंगा,’’ गोविंद सिंह बोला.

‘‘तुम कमलेश से अस्पताल में मिलने जरूर जाना. यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तो एक अच्छे इनसान की तरह पेश आना.’’

‘‘उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है,’’ मायूस गोविंद सिंह बोला, ‘‘यदि ऐसा होता तो वह मुझ से मिलने कभी न कभी जरूर आती. वह एक बार गुस्से में जो गई तो आज तक लौटी नहीं. न ही कभी फोन किया.’’

‘‘तुम अपनी शर्तों पर प्रेम करना चाहते हो. प्रेम में शर्त और जिद नहीं चलती. प्रेम चाहता है समर्पण और त्याग.’’

‘‘तुम शायद ऐसा ही कर रही हो?’’

‘‘मैं समर्पण का दावा नहीं कर सकती पर समझौता करना जरूर सीख लिया है. आजकल प्रेम में पैसे की मिलावट हो गई है. पर तुम्हारी पत्नी को तुम्हारे वेतन से संतोष था. रिश्वत के चंद टकों के बदले में वह तुम्हारी शराब पीने की आदत और रात को घर देर से आने को बरदाश्त नहीं कर सकती थी.’’

‘‘मैं ने तुम से वादा कर लिया है इसलिए उसे देखने अस्पताल जरूर जाऊंगा. लेकिन समझौता कर पाऊंगा या नहीं…अभी कहना मुश्किल है,’’ गोविंद सिंह ने एक लंबी सांस ले कर उत्तर दिया.

मोहिनी को गोविंद सिंह की हालत पर तरस आ रहा था. वह उसे उस के हाल पर छोड़ कर दफ्तर से बाहर आ गई और सोचने लगी, इस दुनिया में कौन क्या चाहता है? कोई धनदौलत का दीवाना है तो कोई प्यार का भूखा है, पर क्या हर एक को उस की मनचाही चीज मिल जाती है? गोविंद सिंह की पत्नी चाहती है कि ड््यूटी पूरी करने के बाद पति शाम को घर लौटे और प्रतीक्षा करती हुई पत्नी की मिलन की आस पूरी हो.

गोविंद सिंह की सोच अलग है. वह ढेरों रुपए जमा करना चाहता है ताकि उन के सहारे सुख खरीद सके. पर रुपया है कि जमा नहीं होता. इधर आता है तो उधर फुर्र हो जाता है.

मोहिनी बाहर आई तो श्याम सिंह चपरासी ने आवाज लगाई, ‘‘मैडमजी, आप के चेक पर साहब से दस्तखत तो मैं ने ही कराए थे. आप का काम था इसलिए जल्दी करा दिया. वरना यह चेक अगले महीने मिलता.’’

मोहिनी ने अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकाला. फिर मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘श्याम सिंह, एक बात सचसच बताओगे, तुम रोज इनाम से कितना कमा लेते हो?’’

‘‘यही कोई 400-500 रुपए,’’ श्याम सिंह बहुत ही हैरानी के साथ बोला.

‘‘तब तो तुम ने बैंक में बहुत सा धन जमा कर लिया होगा. कोई दुकान क्यों नहीं खोल लेते?’’

‘‘मैडमजी,’’ घिघियाते हुए श्याम सिंह बोला, ‘‘रुपए कहां बचते हैं. कुछ रुपया गांव में मांबाप और भाई को भेज देता हूं. बाकी ऐसे ही खानेपीने, नाते- रिश्तेदारों पर खर्च हो जाता है. अभी पिछले महीने साले को बेकरी की दुकान खुलवा कर दी है.’’

‘‘फिर वेतन तो बैंक में जरूर जमा कर लेते होंगे.’’

‘‘अरे, कहां जमा होता है. अपनी झोंपड़ी को तोड़ कर 4 कमरे पक्के बनाए थे. इसलिए 1 लाख रुपए सरकार से कर्ज लिया था. वेतन उसी में कट जाता है.’’

श्याम सिंह की बातें सुन कर मोहिनी के सिर में दर्द हो गया. वह सड़क पर आई और आटोरिकशा पकड़ कर अपने दफ्तर पहुंच गई. बौस को चेक पकड़ाया और अपने केबिन में आ कर थकान उतारने लगी.

मोहिनी की जीवन शैली में भी कोई आनंद नहीं था. वह अकसर देर से घर पहुंचती थी. जल्दी पहुंचे भी तो किस के लिए. पति देर से घर लौटते थे. बेटा पढ़ाई के लिए मुंबई जा चुका था. सूना घर काटने को दौड़ता था. बंगले के गेट से लान को पार करते हुए वह थके कदमों से घर के दरवाजे तक पहुंचती. ताला खोलती और सूने घर की दीवारों को देखते हुए उसे अकेलेपन का डर पैदा हो जाता.

पति को वह उलाहना देती कि जल्दी घर क्यों नहीं लौटते हो? पर जवाब वही रटारटाया होता, ‘मोहिनी… घर जल्दी आने का मतलब है अपनी आमदनी से हाथ धोना.’

ऊपरी आमदनी का महत्त्व मोहिनी को पता है. यद्यपि उसे यह सब अच्छा नहीं लगता था. पर इस तरह की जिंदगी जीना उस की मजबूरी बन गई थी. उस की, पति की, गोविंद सिंह की, श्याम सिंह की, बौस की और जाने कितने लोगों की मजबूरी. शायद पूरे समाज की मजबूरी.

भ्रष्टाचार में कोई भी जानबूझ कर लिप्त नहीं होना चाहता. भ्रष्टाचारी की हर कोई आलोचना करता है. दूसरे भ्रष्टचारी को मारना चाहता है. पर अपना भ्रष्टाचार सभी को मजबूरी लगता है. इस देश में न जाने कितने मजबूर पल रहे हैं. आखिर ये मजबूर कब अपने खोल से बाहर निकल कर आएंगे और अपनी भीतरी शक्ति को पहचानेंगे.

मोहिनी का दफ्तर में मन नहीं लग रहा था. वह छुट्टी ले कर ढाई घंटे पहले ही घर पहुंच गई. चाय बना कर पी और बिस्तर पर लेट गई. उसे पति की याद सताने लगी. पर दिनेश को दफ्तर से छुट्टी कर के बुलाना आसान काम नहीं था, क्योंकि बिना वजह छुट्टी लेना दिनेश को पसंद नहीं था. कई बार मोहिनी ने आग्रह किया था कि दफ्तर से छुट्टी कर लिया करो, पर दिनेश मना कर देता था.

सच पूछा जाए तो इस हालात के लिए मोहिनी भी कम जिम्मेदार न थी. वह स्वयं ही नीरस हो गई थी. इसी कारण दिनेश भी पहले जैसा हंसमुख न रह गया था. आज पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि जीवन का सच्चा सुख तो उस ने खो दिया. जिम्मेदारियों के नाम पर गृहस्थी का बोझ उस ने जरूर ओढ़ लिया था, पर वह दिखावे की चीज थी.

इस तरह की सोच मन में आते ही मोहिनी को लगा कि उस के शरीर से चिपकी पत्थरों की परत अब मोम में बदल गई है. उस का शरीर मोम की तरह चिकना और नरम हो गया था. बिस्तर पर जैसे मोम की गुडि़या लेटी हो.

उसे लगा कि उस के भीतर का मोम पिघल रहा है. वह अपनेआप को हलका महसूस करने लगी. उस ने ओढ़ी हुई चादर फेंक दी और एक मादक अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से अलग खड़ी हुई. तभी उसे शरारत सूझी. दूसरे कमरे में जा कर दिनेश को फोन मिलाया और घबराई आवाज में बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

अचानक मोहिनी का फोन आने से दिनेश घबरा सा गया. उस ने पूछा, ‘‘खैरियत तो है. कैसे फोन किया?’’

‘‘बहुत घबराहट हो रही है. डाक्टर के पास नहीं गई तो मर जाऊंगी. तुम जल्दी आओ,’’ इतना कहने के साथ ही मोहिनी ने फोन काट दिया.

अब मोहिनी के चेहरे पर मुसकराहट थी. बड़ा मजा आएगा. दिनेश को दफ्तर छोड़ कर तुरंत घर आना होगा. मोहिनी की शरारत और शोखी फिर से जाग उठी थी. वह गाने लगी, ‘तेरी दो टकिया दी नौकरी में, मेरा लाखों का सावन जाए…’

गीजर में पानी गरम हो चुका था. वह बाथरूम में गई. बड़े आराम से अपना एकएक कपड़ा उतार कर दूर फेंक दिया और गरम पानी के फौआरे में जा कर खड़ी हो गई.

गरम पानी की बौछारों में मोहिनी बड़ी देर तक नहाती रही. समय का पता ही नहीं चला कि कितनी देर से काल बेल बज रही थी. शायद दिनेश आ गया होगा. मोहिनी अभी सोच ही रही थी कि पुन: जोरदार, लंबी सी बेल गूंजने लगी.

बाथरूम से निकल कर मोहिनी वैसी ही गीला शरीर लिए दरवाजे की ओर दौड़ पड़ी. आई ग्लास से झांक कर देखा तो दिनेश परेशान चेहरा लिए खड़ा था.

मोहिनी ने दरवाजा खोला. दिनेश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, उसे देख कर उस की आंखें खुली की खुली रह गईं, किसी राजा के रंगमहल में फौआरे के मध्य खड़ी नग्न प्रतिमा की तरह एकदम जड़ हो कर मोहिनी खड़ी थी. दिनेश भी एकदम जड़ हो गया. उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ. उसे लगा कि वह कोई सपना देख रहा है, किसी दूसरे लोक में पहुंच गया है.

2 मिनट के बाद जब उस ने खुद को संभाला तो उस के मुंह से निकला, ‘‘तुम…आखिर क्या कर रही हो?’’

मोहिनी तेजी से आगे बढ़ी और दिनेश को अपनी बांहों में भर लिया. दिनेश के सूखे कपड़ों और उस की आत्मा को अपनी जुल्फों के पानी से भिगोते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘बताऊं, क्या कर रही हूं… भ्रष्टाचार?’’और इसी के साथ दोनों ही खिलखिला कर हंस पड़े.

Story In Hindi : कर्तव्य बोध – सरिता का बेटा उनसे नाराज क्यों था

Story In Hindi : उस ने घड़ी देखी और उठने को हुई, तभी नर्स लीला आ कर बोली, “आप जा रही हैं मैडम. अभीअभी एक डिलिवरी केस आ गया है. अभी तक डाक्टर श्वेता नहीं आई हैं. ऐसे में उसे क्या कहूं?”

वह जाते जाते रुक गई. अभी आधे घंटे पहले वह आपरेशन थिएटर से निकली थी कि एक नया केस सामने आ गया है. वह करे तो क्या करे. आज मुन्ने का जन्मदिन है. कोरोना और लौकडाउन की वजह से घर में और कोई शायद ही आए या न आए, इसलिए उस ने उस से प्रोमिस कर रखा था कि वह शाम तक अवश्य आ जाएगी.

कुछ सोच कर वह बोली, “ठीक है, मरीज को चेक करने में हर्ज ही क्या है. तब तक डाक्टर श्वेता आ जाएंगी.”

उस ने पुनः गाउन और ग्लव्स पहने. पीपीई किट्स का पूरा सेट्स पहन कर वह लीला के साथ ओपीडी की ओर बढ़ गई.

“मैडम, वह कोरोना पेशेंट भी है,” लीला ने उसे चेतावनी सी दी, “आप को इस में देर लग सकती है. आप धीरे से निकल लें. आप की ड्यूटी तो पूरी हो ही चुकी है. डाक्टर श्वेता जब आएंगी, वे देख लेंगी.”

“अपनी आंखों के सामने पेशेंट को देख हम भाग नहीं सकते लीला,” डाक्टर सरिता मुसकरा कर बोली, “कितनी उम्मीद के साथ एक पेशेंट अस्पताल में हमारे पास आता है. हम उसे अनदेखा नहीं कर सकते. तब और, जब हम इसी के लिए सरकार से सुविधाएं और वेतन पाते हों. और डिलिवरी के मामले में तो यह एक नहीं, दोदो जिंदगियों का सवाल हो जाता है.”

उस के सामने एक महिला प्रसव पीड़ा से कराह रही थी. पेशेंट का चेकअप करने के बाद वह थोड़ी विचलित हुई. मगर शीघ्र ही वह खुद पर नियंत्रण सी करती बोली, “कौम्पिलिकेटेड केस है लीला. इस का सिजेरियन आपरेशन करना होगा. तुरंत टीम को तैयार हो कर आने को कहो.”

“आप भी मैडम क्या कहती हैं. श्वेता मैडम को आने देतीं.”

“मैं जो कहती हूं, वो करो ना. मैं इसे छोड़ कर कैसे जा सकती हूं? वार्ड बौय को तैयार हो कर शीघ्र आने को बोलो. हम देर नहीं कर सकते.”

अपनी टीम के साथ इस सिजेरियन आपरेशन को करने में उसे 3 घंटे लग गए थे. जनमे हुए स्वस्थ शिशु को देख उस ने संतोष की सांस ली. आवश्यक चेकअप करने के उपरांत यह पता चलने पर कि वह कोरोना निगेटिव है, उस ने उसे मां से अलग रखने का निर्देश दिया. वह शिशु चाइल्ड केयर में शिफ्ट कर दिया गया था. वापस अपने चैंबर में आ कर उस ने गहरी सांस ली.

उस ने दीवार घड़ी पर नजर डाली. 9 बजने वाले थे. पीपीई किट्स खोलने के दौरान वहां मौजूद नर्स राधा ने उसे जानकारी दी, “आप के फोन पर अनेक मिस काल आए हैं. चेक कर लीजिए.”

वह पसीने से तरबतर थी. पहले उस ने स्वयं को सैनिटाइज किया. उसे पता था कि वे सभी फोन घर से ही होंगे. मुन्ने का या मुकेश का ही फोन होगा. मगर उस में एक फोन डाक्टर श्वेता का भी था. बिना मास्क उतारे उस ने काल बैक किया. श्वेता उधर से बोल रही थी, “क्या कहूं डाक्टर सरिता, पता नहीं कैसे मेरी सास कोरोना पोजिटिव निकल आई हैं. उसी की तीमारदारी और भागदौड़ में पूरा दिन निकल गया. अभी भी घर में ही उन की देखरेख चल रही है.

“क्या कहें कि घर में कितना समझाया कि कहीं बाहर नहीं निकलना है. फिर भी वह एक कीर्तन मंडली में चली गई थीं. और वहीं संक्रमित हो गईं. अब बहू कुछ भी हो, ससुराल में उस की बात कितनी रखी जाती है, तुम तो जानती ही हो. पतिदेव बोले कि पहले घर के मरीज को देखो. तब बाहर की देखने की सोचना.”

“ठीक ही कह रहे हैं,” सरिता ने स्थिर हो कर जवाब दिया, “अपना भी खयाल रखना.”

अब वह मुकेश को फोन लगा कर उस से बात कर रही थी, “क्या कहूं, ऐन वक्त पर एक डिलिवरी केस आ गया. आपरेशन करना पड़ गया.”

“कोई बात नहीं,” जैसी कि उसे उम्मीद थी, वे बोले, “मैं ने तो आज छुट्टी ले ही ली थी. इसलिए सब प्रबंध हो गया था. हां, मुन्ना थोड़ा अपसेट जरूर है कि केक काटते वक्त तुम नहीं थीं.”

“क्या कहूं, काम ही मुझे ऐसा मिला है कि घर पर चाह कर भी ध्यान नहीं दे पाती. फिर भी आज तो आना ही था. मैं ने यहां सब को कह भी रखा था. मगर डाक्टर श्वेता अपनी सास के कोरोना संक्रमित हो जाने के कारण आ नहीं पाईं. फिर मुझे ही सब इंतजाम करना पड़ गया. अब काम से मुक्ति मिली है, तो थोड़ी देर में वापस आ रही हूं.”

उस ने अब ड्राइवर को फोन कर उस की जानकारी ली. वह अभी तक अस्पताल में ही था. वह उस से बोली, “सौरी मुरली, मुझे आज देर हो गई. निकलने ही वाली थी कि एक पेशेंट आ गया, जिसे देखना बहुत जरूरी था. तुम गाड़ी निकालो. मैं आ रही हूं.”

बाहर अस्पताल परिसर में ही नहीं, सड़क पर भी लौकडाउन की वजह से
गजब का सन्नाटा था. अस्पताल के मुख्य फाटक से बाहर निकलते ही जैसे उस ने चैन की सांस ली. लगभग हर मुख्य चौराहे पर पुलिस का पहरा था. एकदो जगह पुलिस ने गाड़ी रुकवाई भी, तो वह ‘एम्स में डाक्टर है, वहीं से आ रही है,’ सुन कर अलग हट जाते थे.

घर आने पर उस ने देखा, मुन्ने का मुंह फूला हुआ है. “आई एम सौरी, बेटे… मैं तुम्हें समय नहीं दे पाई.”

इस के अलावा भी वह कुछ कहना चाहती थी कि उस के पति मुकेश बोले, “मानमनुहार बाद में कर लेना. अभी तुम अस्पताल से आई हो. पहले नहाधो कर फ्रेश हो लो. गरमी तो बहुत है. फिर भी गरम पानी से ही नहानाधोना करना. मैं ने गीजर चालू कर दिया है. ये कोरोना काल है. समय ठीक नहीं है.”

अपने सारे कपड़े टब में गरम पानी में भिगो कर उस ने उन्हें यों ही छोड़ दिया. अभी रात में वह स्नान भर कर ले, यही बहुत है. स्नान कर के जब वह बाहर आई, तो मुन्ने की ओर देखा. गालों पर आंसुओं की सूखी धार थी शायद, जिसे महसूस कर वह तड़प कर रह गई. वह निर्विकार भाव से उसे ही देख रहा था. मुकेश वहीं खड़े थे. उन्होंने ही चुप्पी तोड़ी, “तुम्हारी मम्मी, दोदो जान की रक्षा कर के आ रही है. थैंक्यू बोलो मम्मी को.”

वह कुछ बोलता कि उस ने आगे बढ़ कर मुन्ने को छाती से लगा लिया, “मुन्ना मुझे समझता है. चलो, पहले मैं तुम्हारा केक खा लूं. वह बचा है या खत्म हो गया.”

“नहीं, मैं ने पहले ही एक टुकड़ा काट कर अलग रख दिया था,” मुन्ने के बोल अब जा कर फूटे, “और पापा ने होम डिलिवरी से मेरा मनपसंद खाना मंगवा दिया था.”

“तो तुम लोगों ने खा लिया न?”

“नहीं, तुम्हारे बिना हम कैसे खा लेते?” मुकेश तपाक से बोले, “मुन्ने का भी यही खयाल था कि जब तुम आओगी, तभी हम साथ खाना खाएंगे.”

“अरे, 11 बज रहे हैं. और तुम लोगों ने अभी तक खाना नहीं खाया.”

वह डाइनिंग टेबल की ओर मुन्ने का हाथ पकड़ बढ़ती हुई बोली, “चलोचलो, मुझे भी भूख लग रही है.”

बच्चा जात, आखिर अपना दुख भूल ही जाता है. खाना खाते हुए पूरे उत्साह के साथ मुन्ना बताने लगा कि पड़ोस के उस के साथियों में कौनकौन आया था, किस ने गाना गाया, किस ने डांस किया वगैरह. और किस ने क्या गिफ्ट किया.

खाना खाने के बाद वह मुन्ने को ले उस के कमरे में आई और उसे थपकियां देदे कर उसे सुलाया. फिर वह अपने कमरे में आई. वहां पलंग पर मुकेश पहले ही नींद के आगोश में जा चुके थे. उसे मालूम था कि उस की अनुपस्थिति में उन को कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी. घर में उस के अलावा बूढ़े सासससुर भी तो हैं, जिन्हें उन लोगों को ही देखना होता है. नींद तो उसे भी कस कर आ रही थी. मगर जब वह बिस्तर पर गिरी, तो सामने जैसे वह नवजात शिशु आ कर खड़ा हो गया था. जैसे कि वह उसे धन्यवाद दे रहा हो. जब वह छोटी थी, तभी उस की बड़ी बहन इसी तरह घर में प्रसव वेदना से छटपटा रही थी. उस के मम्मीपापा उसे कितने शौक से अपने घर में लाए थे कि पहला बच्चा उस के मायके में ही होना चाहिए. मगर डाक्टर की जरा सी लापरवाही कहें या देरी, उस का आपरेशन नहीं हो पाया था और वह और उस का नवजात बच्चा दोनों ही काल के मुंह में समा गए थे. तभी उस ने संकल्प किया था कि वह डाक्टर बनेगी.

कितनी मेहनत करनी पड़ी थी उन दिनों. पापा एक साधारण क्लर्क ही तो थे. फिर भी उन की इच्छा थी कि वह डाक्टर ही बने. अपनी तरफ से उन्होंने कोई कोरकसर नहीं रख छोड़ी थी और उस का हमेशा हौसला बढ़ाते रहे. यही कारण था कि पहले ही प्रयास में उस ने मेडिकल की परीक्षा क्वालीफाई कर ली थी. यह संयोग ही था कि अच्छे नंबरों की वजह से उस का चयन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अस्पताल के लिए हो गया था. यहां उस ने अपना सारा ध्यान गाइनोकोलौजी पर लगाया, जिस में उसे सफलता मिली थी. आज उसी के बल पर वह यहां पटना के ‘एम्स’ में जानीमानी गाइनोकोलौजिस्ट है.

शुरूशुरू में कितनी तकलीफ हुई थी. सभी पापा से कहते “बेटी को सिर्फ ऊंची पढ़ाई पढ़ा कर क्या होगा. उस की शादी के लिए भी तो दहेज के लिए ढेर सारा रुपया चाहिए. वह कहां से लाओगे?” और पापा बात को हंस कर टाल जाते थे. वह तो मुकेश के पापा थे, जिन्होंने उन्हें इस समस्या से उबार लिया.

“मेरा बेटा पत्रकार है. स्थानीय अखबार में उपसंपादक है,” वे बोले थे, “अगर तुम को आपत्ति न हो, तो मैं उस के लिए तुम्हारी बेटी को बहू के रूप में स्वीकार कर लूंगा. और इस के लिए किसी दहेज या लेनदेन की बात भी नहीं होगी.”

और इस प्रकार वह मुकेश की पत्नी बन इस घर में आ गई थी.

“मैं जिस काम से जुड़ा हूं, उसे सेवाभाव कहते हैं,” मुकेश एक दिन उस से हंस कर बोले थे.

“और तुम भी जिस पेशे से जुड़ी हो, वह भी सेवाभाव ही है. तो क्या तुम्हें दिक्कत नहीं आएगी?”

“यह सेवाभाव ही तो है, जो हम में हिम्मत और समन्वय का भाव उत्पन्न करता है,” उस ने भी हंस कर ही जवाब दिया था, “और जब हम दूसरों के लिए कुछ कर सकते हैं, जी सकते हैं, तो अपनों के लिए तो बेहतर ढंग से जी सकते हैं, रह सकते हैं.”

अचानक मुकेश उसे देख चौंके और बोले, “अरे, अभी तक सोई नहीं. सो जाओ भई, जितना समय मिले, आराम कर लो. क्या पता कि कब अस्पताल से तुम्हारा बुलावा आ जाए. इस कोरोना काल में वैसे भी सबकुछ अनिश्चित है. ऐसे में तुम्हारे कर्तव्य बोध को देख हमें भी रश्क होने लगता है.”

उस ने हंस कर अपनी आंखें बंद कर ली थीं.

Love Story : फर्श से अर्श पर

Love Story : अजीत ने एक नजर उस प्रौस्टिट्यूट बुनसृ को ऊपर से नीचे तक देखा. वह वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी वह अमेरिकी या पश्चिमी देश की लग रही थी. अजीत को उस के साथ बिताई रात भूले नहीं भूलती थी. अजीत छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, मुंबई से कोलकाता मेल ट्रेन से पत्नी के साथ धनबाद जा रहा था. अभी 2 साल पहले ही उन की शादी हुई थी. अजीत बर्थ के नीचे सूटकेस रख कर उन्हें चेन से बांध रहा था. अंतरा बोली, ‘‘मैं ऊपर सो जाती हूं. तुम तो सुबह 5 बजतेबजते उठ जाते हो. मैं आराम से सोऊंगी 7-8 बजे तक.’’ थोड़ी देर में वह कौफी ले कर आया.

कौफी पीतेपीते ट्रेन भी खुल चुकी थी. कौफी पी कर अंतरा ऊपर की बर्थ पर सोने चली गई. अजीत बैडलाइट औन कर फिर मैगजीन पढ़ने लगा और इसी बीच उस को नींद भी आ गई थी. जब उस की नींद खुली, सवेरा हो चुका था. ट्रेन मुगलसराय प्लेटफौर्म पर खड़ी थी. बाहर चाय, समोसे, पूरी, अंडे व फल वाले वैंडर्स का शोर था. सामने वाली बर्थ के सज्जन उतर गए थे. वह बर्थ खाली थी. अजीत ने घड़ी में समय देखा, 6 बज रहे थे. उस ने अंदाजा लगाया कि ट्रेन लगभग 4 घंटे लेट चल रही थी. उस ने कंडक्टर से पूछा तो वह बोला, ‘‘उत्तर प्रदेश में आतेजाते ट्रेन लेट हो चली है क्योंकि दिसंबर में कोहरे के चलते दिल्ली से आने वाली सभी ट्रेनें लेट चल रही हैं.’’ तभी उस ने देखा कि एक लड़की दौड़ीदौड़ी आई और उसी कोच में घुसी. ठंड के चलते उस ने शौल से बदन और चेहरा ढक रखा था.

सिर्फ आंखें भर खुली थीं. वह लड़की सामने वाली बर्थ पर जा बैठी. तब तक पैंट्री वाला कोच में चाय ले कर आया. अजीत ने उस से एक कप चाय मांगी और सामने वाली लड़की से भी पूछा, ‘‘मैडम, चाय लेंगी?’’ उस लड़की ने अजीत की ओर बहुत गौर से देखा और चाय वाले से कहा, ‘‘हां, एक कप चाय मु झे भी देना.’’ चाय पीने के लिए उस ने अपने चेहरे से शौल हटाई, तो अजीत उसे देर तक देखता रह गया. वह लड़की भी अजीत को देखे जा रही थी. फिर सहमती हुए बोली, ‘‘आप, अजीत सर हैं न. वाय थान, खा (हैलो सर).?’’ ‘‘और तुम बुनसृ? वाय खाप (हैलो)’’ उसे अपनी थाईलैंड यात्रा की यादें तसवीर के रूप में आंखों के सामने दिखने लगीं. वह लगभग 5 साल पहले अपने एक दोस्त के साथ थाईलैंड घूमने गया था. अजीत का थाईलैंड में एक सप्ताह का प्रोग्राम था. 4 दिनों तक दोनों दोस्त बैंकौक और पटाया में साथसाथ घूमे. दोनों ने खूब मौजमस्ती की थी. इस के बाद उस के दोस्त को कोई लड़की मिल गई और वह उस के साथ हो लिया. उस ने अजीत से कहा, ‘हम लोग इंडिया लौटने वाले दिन उसी होटल में मिलते हैं जहां पहले रुके थे.’ थाईलैंड में प्रौस्टिट्यूशन अवैध तो है पर प्रौस्टिट्यूट वहां खुलेआम उपलब्ध हैं.

वहां की अर्थव्यवस्था में टूरिज्म का खासा योगदान है. यहां तक कि लड़कियों की फोटो, जिन में अकसर लड़कियां टौपलैस होती हैं, स्क्रीन पर देख कर मनपसंद लड़की चुनी जा सकती है. इसी के चलते अनौपचारिक रूप से वहां यह धंधा फलफूल रहा है. अजीत के पीछे भी एक लड़की पड़ गई थी. उस ने अजीत से कहा, ‘वाय खा, थान (हाय सर, नमस्कार).’ फिर इंग्लिश में कहा, ‘आप को थाईलैंड की खूबसूरत रातों की सैर कराऊंगी मैं. ज्यादा पैसे नहीं लूंगी, आप को जो ठीक लगे, दे देना.’ ‘नहीं, मु झे कुछ नहीं चाहिए तुम से.’ ‘सर, बहुत जरूरत है पैसों की. वरना आप से इतना रिक्वैस्ट न करती.’ अजीत ने इस बार एक नजर उसे ऊपर से नीचे तक देखा. लड़की वाकई बहुत खूबसूरत थी. औसतन थाई लड़कियों से लंबी, चेहरा भी थाई लड़की जैसा नहीं लग रहा था.

कुछ अमेरिकी या पश्चिमी देश की लड़की जैसी लग रही थी. अजीत को वह लड़की भा गई बल्कि उस पर दया आ गई. उस ने पूछा, ‘तुम्हारा क्या नाम है?’ ‘मेरा नाम बुनसृ है सर. वैसे, नाम में क्या रखा है?’ ‘बुनसृ का अर्थ इंग्लिश में क्या हुआ?’ ‘ब्यूटीफुल,’ उस ने कुछ शरमा कर, कुछ मुसकरा कर कहा. ‘देखा नाम में क्या रखा है. जितनी सुंदर हो वैसा ही सुंदर नाम है. अच्छा, तुम क्या दिखाओगी मु झे? यहां तो लड़कियों की लाइन लगी है.’ ‘आप जैसा चाहें, रात साथ गुजारना या सैरसपाटा या फिर फुल मसाज.’ ‘मु झे यहां के कैसीनो ले चलोगी?’ ‘यहां जुआ गैरकानूनी है पर चोरीछिपे सब चलता है. चलिए, मैं आप को ले चलती हूं.’ अजीत बुनसृ के साथ कैसीनो गया. इत्तफाक से वह जीतने लगा और बुनसृ उसे और खेलने को कहती रही. उस ने करीब 10 हजार भाट जीते. रात के 2 बज चुके थे.

वह बोला, ‘बहुत हुआ, अब चलें?’ ‘हां, अब बाकी रात भी आप की सेवा में हाजिर हूं. कहां चलें, होटल?’ ‘हां होटल जाऊंगा पर सिर्फ मैं. तुम अपने पैसे ले कर जा सकती हो,’ और अजीत ने उसे 200 भाट देते हुए पूछा, ‘इतना ठीक है न?’ बुनसृ ने हां बोल कर फोन पर किसी से बात की, फिर कहा, ‘आधे घंटे में मेरा आदमी आ जाएगा, तब तक आप के साथ रहूंगी.’ ‘वह आदमी कौन था, तुम्हारा दलाल?’ ‘छी, सर, प्लीज. ऐसा न कहें. वह मेरा हसबैंड है. मु झे शाम को छोड़ जाता है और जब फोन करती हूं, आ कर ले जाता है. हम यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव में रहते हैं. मेरे पति को बिजनैस में बहुत घाटा हुआ था. उस का एक पैर भी खराब है. मेरी मां भी बीमार रहती है. हमारे चावल के खेत हैं पर सिर्फ उस से गुजारा नहीं हो पाता है. मजबूरी में उन लोगों की मरजी से यह सब करती हूं.’ थोड़ी देर में बुनसृ का आदमी आ गया. उस ने बुनसृ से कुछ कहा और बुनसृ ने अजीत से कहा, ‘आप का शुक्रिया अदा कर रहा है.

बोलता है, इतनी जल्दी छुट्टी दे दिया सर ने.’ चलतेचलते बुनसृ ने कहा, ‘आज आप का लकी डे था. कल कहें तो आप की सेवा में आ जाऊं. कुछ और आजमा सकते हैं टोटे में.’ ‘वह क्या है?’ ‘हौर्स रेस में बैटिंग.’ ‘ओके, आ जाना, देखें तुम्हारा साथ कितना लकी होता है.’’ दूसरे दिन बुनसृ अजीत को रेस कोर्स ले गई. जिस घोड़े पर अजीत ने बाजी लगाई वह जीत गया. उसे जैकपौट मिला था. उसे 8 हजार भाट मिले. बुनसृ बोली, ‘यू आर वैरी लकी सर.’ ‘पता नहीं मेरा समय अच्छा था या तुम्हारे साथ का असर है यह.’ ‘अब कहां चलें, सर?’ ‘मेरे होटल चलोगी?’ ‘मेरा तो काम ही है यह.’ ‘नहीं, थोड़ी देर साथ बैठेंगे. डिनर के बाद तुम जा सकती हो.’ ‘क्यों सर, मैं अच्छी नहीं लगी आप को, कल भी आप ने यों ही जाने दिया था?’ ‘अरे नहीं, तुम तो बहुत अच्छी हो. अच्छा बताओ, तुम थाई से ज्यादा अमेरिकी क्यों लगती हो?’ ‘यह भी एक कहानी है. विएतनाम वार के समय 1975 तक अमेरिकी फौजें यहां थीं.

हमारी जैसी मजबूर औरतों को पैसा कमाने के लिए उन फौजियों का मन बहलाना पड़ता था. उस के बाद भी हर साल यहां खोरात एयरबेस पर अमेरिकी, थाई, सिंगापुर और जापान से आए मैरीन का सा झा अभ्यास होता है. उस में भी थाई औरतें कुछ कमा ही लेती हैं. मेरी मां भी उन में से एक रही होगी. उस का जीवन भी गरीबी में बीता है. इसीलिए देखने में मैं आम थाई लड़कियों से अलग हूं,’ बुनसृ बेबाक बोली. रास्ते में लौटते समय अजीत ने बुनसृ के लिए कुछ अच्छे ड्रैस खरीद कर उसे गिफ्ट किए. फिर वे होटल पहुंचे. कुछ देर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे थे. फिर अजीत ने डिनर रूम में ही लाने का और्डर दिया. इसी बीच उस के दोस्त का फोन आया. उस ने बताया कि देररात वह आ रहा है. ‘अब तुम जाने के लिए फ्री हो,’ डिनर के बाद अजीत ने बुनसृ से कहा. ‘सच, इतनी जल्दी तो कोई ग्राहक मु झे छुट्टी नहीं देता है.’

‘पिछले 2 दिनों से मैं तुम्हारे साथ हूं. कभी मैं ने ग्राहक जैसा बरताव किया है?’ ‘सौरी, सर.’ ‘अच्छा, आज निसंकोच बोलो, तुम्हें कितने पैसे दूं.’ ‘आप जो चाहें दे दें, मु झे सहर्ष स्वीकार होगा. वैसे, मेरा हक तो कुछ भी नहीं बनता है.’ अजीत ने बुनसृ को पूरे 18,000 भाट दिए. बुनसृ आश्चर्य से उसे देखे जा रही थी. ‘ऐसे क्या देखे जा रही हो. ये पैसे मैं इंडिया से नहीं लाया हूं. ये तुम ने मु झे जितवाए हैं. इन्हें तुम ही रख लो. ना मत कहना वरना मैं नाराज हो जाऊंगा.’ बुनसृ अचानक अजीत से लिपट पड़ी और रोने लगी. अजीत ने उसे अलग कर कहा, ‘रोना बंद करो. यहां से हंसते हुए जाओ. और हो सके तो यह पेशा छोड़ देना.’ ‘सर, आप ने मु झे फर्श से अर्श पर बिठा दिया है. इन पैसों से अपना बिजनैस शुरू करूंगी.’ अगले दिन एयरपोर्ट पर बुनसृ अपने पति के साथ अजीत को विदा करने आई थी. उस समय दोनों में से किसी ने एकदूसरे का फोन नंबर लेने की जरूरत न महसूस की होगी शायद. आज कई सालों बाद वह दिखी तो भी भारत में.

चाय टेबल पर रख वह उठ खड़ी हुई और अजीत से लिपट पड़ी थी. कोच में हलचल और अपने पास की आहट सुन कर ऊपर की बर्थ पर अजीत की पत्नी अंतरा की नींद खुल गई थी. दोनों को आलिंगनबद्ध देख कर वह आश्चर्यचकित थी. अंतरा भी नीचे उतर आई. बुनसृ ने अपने को अलग किया. अजीत ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी पत्नी अंतरा है.’’ फिर अंतरा से बोला, ‘‘यह वही थाई लड़की है. मैं ने तुम से कहा था न कि इस के साथ जितने पैसे मैं ने जुए में जीते थे, सब इसी को दे दिए थे.’’ ‘‘वाय, स्वासदी का हम्म (हैलो, गुड मौर्निंग मैडम),’’ बुनसृ ने अंतरा को कहा. बुनसृ ने पैंट्रीबौय से अंतरा को भी चाय देने को कहा. फिर काफी देर तक तीनों में बातें होती रहीं. अजीत ने बुनसृ से पूछा, ‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’ ‘‘मैं पहले बैंकौक से सीधे वाराणसी आई. सारनाथ गई. अब मु झे बोधगया जाना है. मेरे जीवन की यह बड़ी इच्छा थी, आज साकार होने जा रही है.’’ ‘‘और तुम्हारा पति क्यों नहीं आया?’’ ‘‘आप के चलते,’’ और वह हंस पड़ी थी.

अजीत और अंतरा दोनों चकित हो उसे देखने लगे थे. ‘‘हां सर, आप से मिलने के बाद मेरे समय ने गजब का पलटा खाया है. आप के पैसों से हम ने छोटा सा टूरिस्ट सेवा केंद्र खोला था. उस समय बस एक पुरानी कार थी हमारे पास. अब बढ़तेबढ़ते आधा दर्जन कारें हैं हमारे पास. टूरिस्ट सीजन में मैं औरों से भी रैंट पर कार ले लेती हूं. हम दोनों एकसाथ थाईलैंड से बाहर नहीं निकलते हैं ताकि हमारे ग्राहकों को परेशानी न हो. सर, आप के स्नेह से हमारे दिन बदल गए. हम लोगों के पास आप का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं हैं.’’ वे बातें करते रहे. तब तक ट्रेन गया पहुंचने वाली थी. अजीत ने कहा, ‘‘बोधगया के बाद क्या प्रोग्राम है?’’ ‘‘कल शाम कोलकाता से मेरी बैंकौक की फ्लाइट है.’’ ‘‘मेरे यहां धनबाद एक दिन रुक नहीं सकती हो?’’ अंतरा ने पूछा.

‘मु झे खुशी होगी आप लोगों के साथ कुछ समय रह कर. अगली बार कोशिश करूंगी. पर आप लोग एक बार बैंकौक जरूर जाएं और सर. इस बार आप को थाईलैंड-कंबोडिया बौर्डर ले कर चलूंगी.’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘वहां अच्छे कैसिनोज हैं. विदेशियों के लिए गैंबलिंग लीगल है. शायद इस बार फिर लक साथ दे और आप ढेर सारा पैसा जीतें.’’ ‘‘पर इस बार उस में मेरा भी हिस्सा होगा,’’ अंतरा बोली. सभी एकसाथ हंस पड़े थे. ट्रेन गया प्लेटफौर्म पर थी. बुनसृ अपना सामान ले कर उतर पड़ी. अजीत और अंतरा दोनों कोच के दरवाजे पर खड़े थे. अंतरा बोली, ‘‘सुनो, गया में किसी पर आंख मूंद कर भरोसा न करना. प्लेटफौर्म पर ही टूरिज्म डिपार्टमैंट का बूथ है. वे लोग तुम्हारी मदद कर सकते हैं.’’ ‘‘ओके, थैंक्स. मैं आप की बात का खयाल रखूंगी. आप लोग थाईलैंड जरूर आना. बायबाय.’’ 5 मिनट में ट्रेन खुल पड़ी. बुनसृ गीली आंखों से हाथ हिला कर अजीत और अंतरा को विदा कर रही थी. जब तक आखिरी डब्बा आंखों से ओ झल नहीं हुआ, वह हाथ हिलाती रही. फिर अपनी शौल से ही गीली आंखों को पोंछती हुई गेट की ओर चल पड़ी थी.

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