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Mother’s Day Special: शाम के नाश्ते में बनाएं बेसनी पनीर सैंडविच

गर्मियों के दिन बहुत लंबे होते हैं ऐसे में शाम को 6-7 बजे कुछ भूख सी महसूस होने लगती है. चूंकि इन दिनों हमारी पाचन क्षमता कमजोर हो जाती है इसलिए तला भुना खाने से परहेज करना चाहिए. यूं भी इन दिनों कोरोना ने अपने कहर से सबको घरों में कैद कर दिया है जिससे चलना फिरना और मॉर्निंग इवनिंग वॉक भी बंद है ऐसे में हर कोई कुछ ऐसा खाना चाहता है जिसमें तेल, मसालों का कम से कम प्रयोग किया गया हो. तो आइए आज हम आपको ऐसे स्नैक को बनाना बता रहे हैं जिसमें तेल मसालों का प्रयोग लेशमात्र भी नहीं किया गया है, बनाने में आसान होने के साथ साथ यह पौष्टिकता से भरपूर भी है क्योंकि इसमें हमने मूलतया बेसन और पनीर का प्रयोग किया है जिसमें विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.तो आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 25 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

बेसन 1 कटोरी
हल्दी पाउडर 1/4 टीस्पून
अदरक, लहसुन,
हरी मिर्च पेस्ट 1/4 टीस्पून
नमक 1/2 टीस्पून
पनीर 250 ग्राम

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खसखस 1 टेबलस्पून
टोमैटो सॉस 1 टेबलस्पून
पानी 2 कटोरी
दही 1 कटोरी
चाट मसाला 1 टीस्पून
हरी चटनी 1 टीस्पून

विधि

एक बाउल में बेसन,अदरक, हरी मिर्च, लहसुन पेस्ट, नमक और हल्दी अच्छी तरह मिलाएं. अब इसमें दही और पानी धीरे धीरे मिलाएं ताकि गुठली न पड़ें. तैयार मिश्रण को एक नॉनस्टिक पैन में डालकर तेज आंच पर लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं. जब मिश्रण पैन में चिपकना छोड़ दे तो गैस बंद कर दें और इसे चिकनाई लगी ट्रे में पतला पतला फैला दें. आधा घण्टे इसे ठंडा होने दें. खसखस को पैन में बिना चिकनाई के हल्का सा भूनकर एक प्लेट पर निकाल लें. पनीर के पतले 4 स्लाइस में काट लें. अब एक गोल कटोरी से पनीर को काट लें. उसी कटोरी से तैयार बेसन के भी 8 गोल स्लाइस काट लें. पनीर के स्लाइस पर दोनों तरफ चाट मसाला बुरकें. बेसन के एक स्लाइस पर हरी चटनी लगाएं और दूसरे पर टोमेटो सॉस लगाएं. अब बेसन के इन दो स्लाइस के बीच में पनीर का स्लाइस रखकर सैंडविच बनाएं. तैयार सैन्डविच को खसखस में दोनों तरफ से हल्के हाथ से दबाकर लपेटें. तैयार हाई प्रोटीन सैंडविच को चाय या काफी के साथ सर्व करें.

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Mother’s Day Special: बच्चे को दुनिया से रूबरू कराएंगी ये 5 जरूरी स्किल

हाल ही में कोविड—19 महामारी ने दुनिया को अभूतपूर्व रूप से बदल कर रख दिया है. इन बदले हालातों के लिए हमें अपने बच्चों को तैयार करना होगा. यह तभी संभव है जब हम उन्हें जरूरी कौशल सिखाएं ताकि वे सभी हालातों का सामना करने के लिए खुद को मजबूत बना सकें.डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी के अनुसार किसी भी बच्चे के जीवन के शुरूआती पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, इन वर्षों में ही उनमें स्वास्थ्य, मानसिक—शारीरिक विकास और प्रसन्नता, भविष्य के लिए आकार लेते हैं. ‘जीवन कौशल शिक्षा’, विद्यालय में पढ़ाई जाने वाली शिक्षा के अतिरिक्त की शिक्षा है. बच्चों को यह कौशल शिक्षा, प्रशिक्षण और महत्वपूर्ण गतिविधियों के माध्यम से घर पर ही उपलब्ध कराई जा सकती है.

कुछ आवश्यक जीवन कौशलों के बारे में यहां जानकारी दी जा रही है, जिन्हें वास्तविक दुनिया का सामना करने के लिए अपने बच्चों को अवश्य सीखाना चाहिए.

1. स्वयं की देखभाल —

बच्चों को स्वयं की देखभाल करना आना बहुत जरूरी है ताकि वे अपनी शारीरिक जरूरतों को पहचान सकें और खुद की बेहतर देखभाल कर सकें. स्वयं की देखभाल करने में बच्चों के जीवन से जुड़ी आवश्यक गतिविधियां आती हैं, जैसे, सफाई, बेसिक कुकिंग, शर्ट के बटन लगाना आदि. यह स्किल स्कूल से संबंधित टास्क और लाइफ स्किल से संबंधित टास्क में बेहद काम आती हैं. इसके अलावा, यह संभव नहीं होता है कि आप हर समय अपने बच्चे के साथ हो सकें. जब वह पेड़ से सुपर हीरो की तरह छलांग लगाकर खुद को चोटिल करले, तब भी आप उसके आसपास हो यह हर बार संभव नहीं होता. इसलिए उनके लिए यह जरूरी है कि हम उन्हें प्राथमिक चिकित्सा किट का महत्व बताते हुए प्रयोग करना सिखाएं. उन्हें यह भी बताएं कि सब्जियां खाना, पर्याप्त स्वच्छ पानी पीना और सही नींद लेना कितना आवश्यक होता है.

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2. आत्मरक्षा-

आधुनिक जीवन शैली में बच्चों की सुरक्षा हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. इस कारण बच्चों में आत्म – रक्षा कौशल विकसित करने से न केवल बच्चे में आत्मविश्वास जागृत होता है, बल्कि वे स्वयं को अधिक स्वतंत्र महसूस कर पाते हैं. आज आत्म रक्षा की बुनियादी शिक्षा देना बेटे और बेटी दोनों के लिए आवश्यक हो गया है. आजकल स्कूलों में बच्चों को आत्मरक्षा के गुर सिखाए जाते हैं, हालाँकि, अगर आपके बच्चे के स्कूल में यह सुविधा नहीं है तो उन्हें बिना देर किए दूसरी जगह से प्रशिक्षण उपलब्ध कराएं. इसके अलावा, बच्चों को सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श के बारे में भी बताना बेहद महत्वपूर्ण है. अगर आपके बच्चों को आपके किसी रिश्तेदार से गले लगना या उनका किस करना पसंद नहीं है तो यह सब करने के लिए बाध्य न करें. याद रखें वे अपने शरीर के मालिक स्वयं हैं.

3. सामाजिक और भावनात्मक विकास-

एक अभिभावक के रूप में आपको, बच्चे को दूसरों की भावनाओं का मूल्यांकन करते समय भावनाओं को ठीक से व्यक्त करने और प्रबंधित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि उच्चईक्यू (भावनात्मक अनुपात), उच्चआईक्यू (बुद्धि अनुपात) से संबंधित है. अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, किंडरगार्टन में विकसित हुए एक बच्चे के सामाजिक और भावनात्मक स्किल आजीवन उनकी सफलता में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, वर्तमान पीढ़ी के माता-पिता होने के नाते हमें अपने बच्चों को यह सिखाना बहुत जरूरी है कि वे अच्छे और बुरे अजनबियों के बीच अंतर कर सकें. अपने बच्चों को सिखाएं कि अच्छे अजनबियों के साथ वे कैसे बातचीत करें और उन्हें दोस्त बनाएं. यदि हम बच्चों को यह सब नहीं सिखाएंगे तो संभावना है कि युवा उम्र तक उनमें सकारात्मक सामाजिक कौशल विकसित नहीं हो पाएगा.

4. क्रिएटिव स्किल्स –टोडलर्स को खेल—

गतिविधियां कराई जानी बेहद आवश्यक होती है, क्योंकि इससे उनमें कम उम्र में ही संवाद करने, सीखने और खुदको अभिव्यक्त करने का कौशल विकसित होता है. अभिनव उत्पादों और सिलसिलेवार व्यवस्थित तरकीबों से बच्चों के रचनात्मक और नवोन्मेषी कौशल को महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाया जा सकता है.

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5. सीखने की आदत-

जो बच्चे सीखने का आनंद लेते हैं, वे ऐसे वयस्क हो जाते हैं जो जीवन में शायद ही कभी ऊबते हो. इसलिए बच्चों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करें. उनके स्क्रीन के समय को सीमित कर उन्हें बहुत सारी किताबें पढ़ने, खेलने के लिए प्रेरित करें. हम को शिश करें कि वे हमारे साथ पुस्तकालय जा सकें, उनके लिए खेल गतिविधियों का प्रबंध हम कर सकें और घर पर उन्हें थोड़ी ऊथल—पुथल करने की स्वतंत्रता उन्हें दी जाए. हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि आखिर कार बच्चे सीखने के लिए हमेशा उत्सुक होते हैं बस उन्हें सही दिशा देने की जरूरत होती है.

डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी,’गेट—सेट—पैरेंट विद पल्लवी’की संस्थापक, अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन की उपाध्यक्ष .

कोरोना की नई लहर, बदहाली में फंसे सिनेमाघर

सरकार का रवैया

इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में एक अजीब सा डर का माहौल है. कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं है. सभी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं. अंदर की बात तो यह है कि कई फिल्मकार राजनीतिक दखलंदाजी के चलते अपनी फिल्मों की पटकथा कोरोनाकाल में ही बदलने पर मजबूर हुए हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में किस तरह डर का माहौल है इसे ताजातरीन घटनाक्रम से समझा जा सकता है. भाजपा के खिलाफ सदैव सोशल मीडिया पर मुखर रहने वाले अनुराग कश्यप, हंसल मेहता व तापसी पन्नू का रवैया अचानक बदल गया है. तापसी पन्नू तो अभिनेत्री कंगना की घोर विरोधी रही हैं.

वास्तव में पिछले दिनों अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू पर आयकर के छापे पड़े थे. उस के बाद से ये दोनों चुप रहने लगे हैं. यहां तक कि 2 दिन पहले एक अवार्ड लेते हुए तापसी पन्नू ने कंगना की तारीफ कर डाली तो वहीं अब हंसल मेहता और अनुराग कश्यप मिल कर एक फिल्म का निर्माण करने जा रहे हैं, जिस में अभिनेता व पूर्व भाजपा सांसद तथा सक्रिय भाजपा कार्यकर्ता परेश रावल के बेटे हीरो होंगे.

कहने का अर्थ यह कि अब अनुराग कश्यप व हंसल मेहता मिल कर परेश रावल के बेटे का भविष्य संवारेंगे. इतना ही नहीं कोरोना के संकट के दौरान हर फिल्मकार की समझ में यह बात आ गई है कि अब उसे किस तरह की फिल्में बनानी होंगी. इस के परिणामस्वरूप फिल्म व टीवी सीरियल की लागत कोरोना के बाद बढ़ी है, तो वहीं कोरोना की नई लहर के चलते ऐसे हालात पैदा हुए हैं कि यह लागत कैसे वापस मिलेगी कोई नहीं जानता.

इस वजह से भी कुछ फिल्में बौक्स औफिस यानी सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने पर बुरी तरह से धराशाई होने वाली हैं, जिस का खमियाजा पूरी इंडस्ट्री को ही भुगतना पड़ेगा.

को     रोना महामारी की वजह से पिछले साल से फिल्म इंडस्ट्री लगभग ठप्प पड़ी हुई है. जब 2020 में कोरोना की लहर ने पसरना शुरू कया था तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह लहर फिल्म इंडस्ट्री को ऐसी तबाही के मुकाम पर ला खड़ा कर देगी कि उस के लिए पुन: अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो जाएगा. पर ऐसा हुआ, जानकारों के अनुसार तो 2020 में फिल्म इंडस्ट्री को करीब 2,500 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है.

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अक्तूबर, 2020 के बाद धीरेधीरे फिल्म इंडस्ट्री ने काम करना शुरू किया था और लोगों में आशा की किरण जागी थी कि जल्द ही सबकुछ ठीक हो जाएगा. मगर फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ 25% ही काम शुरू हो पाया था कि कोरोना की नई लहर फिल्म इंडस्ट्री के लिए ऐसी तबाही ले कर आई कि अब इसे पटरी पर लाना किसी के भी बस की बात नहीं है. यह ऐसा कड़वा सच है जिस पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के साथसाथ सरकार को भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.

यों तो 2020 की शुरुआत भी फिल्म इंडस्ट्री के लिए अच्छी नहीं हुई थी. जनवरी से 15 मार्च, 2020 तक सिर्फ अजय देवगन की फिल्म ‘तान्हाजी’ ने ही बौक्स औफिस पर अच्छी कमाई की थी. इस फिल्म के अतिरिक्त अन्य फिल्में बौक्स औफिस पर बुरी तरह धराशाई हो गई थीं. उस के बाद कोरोना महामारी के प्रकोप को देखते हुए सिनेमाघर मालिकों  ने स्वत: सुरक्षा के दृष्टिकोण से एहतियातन सिनेमाघर बंद  करने शुरू कर दिए थे और 17 मार्च से पूरे देश के सिनेमाघर बंद हो गए.

मदद की गुहार

फिल्म इंडस्ट्री में कार्यरत वर्करों व तकनीशियनों के स्वास्थ्य के मद्देनजर फिल्म इंडस्ट्री की सभी 32 ऐसोसिएशनों ने एकमत 19 मार्च से फिल्म, टीवी सीरियल व वैब सीरीज की शूटिंग स्थगित कर दी थी. उस वक्त फिल्म इंडस्ट्री के अंदर चर्चा थी कि 15 दिन में सब कुछ  सामान्य हो जाएगा और पुन: शूटिंग शुरू हो जाएगी, पर ऐसा संभव न हो पाया.

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 मार्च से पूरे देश में सख्त लौकडाउन लगा दिया. देश के हर इंसान की तरह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा हर शख्स अपनेअपने घर में कैद हो गया. उस वक्त बड़ेबड़े कलाकारों व निर्मातानिर्देशकों को इस से शुरुआत में असर नहीं पड़ा.

मगर 15 दिन बाद कोरोना के कहर से फिल्म इंडस्ट्री के डेलीवेज पर काम करने वाले वर्कर व तकनीशियन कराह उठे. कई जूनियर आर्टिस्ट, स्पौट बौय व अन्य वर्करों के साथ तकनीशियनों के घर पर भी दो वक्त की रोटी का अकाल पड़ गया. उस वक्त सलमान खान, गायिका सोना मोहपात्रा, गायिका पलक, सोनू सूद सहित चंद फिल्मी हस्तियों ने अपने स्तर पर धन इकट्ठा कर लोगों की मदद की.

फिर ‘फैडरेशन औफ वैस्टर्न इंडिया सिने इंप्लोइज’ और ‘सिंटा’ भी हरकत में आई. मगर 3 माह के बाद सब चुप हो गए. इस बीच सरकार से मदद की गुहार काम न आई. जबकि राजनीति ने अपना काम करना शुरू कर दिया.

इजाजत मिली मगर

अंतत: जुलाई माह में कई शर्तों के साथ टीवी सीरियल की शूटिंग की इजाजत दी गई. धीरेधीरे टीवी सीरियल की शूटिंग शुरू हुई पर सैट पर कलाकार व तकनीशियन कोरोना संक्रमित होते रहे. कुछ दिन शूटिंग बंद और फिर शुरू का सिलसिला शुरू हो गया. कोरोना के डर के बावजूद ब्रौडकास्टर के दबाव के चलते कलाकार व तकनीशियन सहित सभी वर्करों को काम करना पड़ रहा था. यहां भी कोरोना नियमानुसार सिर्फ 30% वर्कर को ही काम मिल रहा था.

वहीं भाजपा के करीबी समझे जाने वाले फिल्मकारों ने फिल्म इंडस्ट्री में ‘सबकुछ ठीक है’ और ‘फिल्म इंडस्ट्री में काम हो रहा है’ का प्रचार तक करना शुरू कर दिया.

इसी बीच नवंबर माह से देशभर के सिनेमाघर भी खोल दिए गए. यह अलग बात है कि देश के कुछ हिस्सों में सिनेमाघरों में 50% दर्शक का नियम लागू किया गया. मगर अफसोस सिनेमाघर में दर्शक नहीं पहुंचे.

वहीं भाजपा के प्रति नर्म रुख रखने वाले फिल्मकार व कलाकार मुंबई से बाहर पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में शूटिंग करने लगे.

जनवरी 2021 आतेआते ये संकेत मिलने शुरू हुए कि अब फिल्म इंडस्ट्री अपनी गति पकड़ने वाली है. ‘सूर्यवंशी,’ ‘राधे,’ ‘चेहरे,’ ‘थलाइवी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघर पहुंचने की तारीखें तय हो गईं और उम्मीद की जा रही थी कि इन बड़ी फिल्मों के सिनेमाघर में प्रदर्शन के साथ ही दर्शक भी सिनेमाघरों की तरफ रुख कर लेंगे, क्योंकि तब तक कोरोना का कहर और कम हो जाएगा.

कोरोना की नई लहर

मगर 2021 में मार्च माह की शुरुआत से ही कोरोना की नई लहर हावी हो गई और इस लहर ने पहले से ही बरबाद हो चुकी फिल्म इंडस्ट्री को अब ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि शायद यह उद्योग कभी न उठ पाए. अब फिल्म इंडस्ट्री के वर्करों व तकनीशियनों की परवाह करने वाला भी कोई नहीं है.

पिछले वर्ष जिन लोगों ने वर्करों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाए थे इस बार वे भी चुप हैं, क्योंकि पिछले 1 साल से अधिक समय से वे भी शांत बैठे हुए हैं और पिछले 6-7 माह में जिन लोगों ने येनकेनप्रकारेण अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई शायद उन्हें फिल्म इंडस्ट्री के वर्करों की कोई परवाह ही नहीं है.

अब तो बौलीवुड में दबेछिपे चर्चा गरम है कि फिल्म इंडस्ट्री को तबाही की ओर ले जाने में अक्षय कुमार व कंगना राणावत जैसे लोगों ने अहम भूमिका निभाई. फिल्म इंडस्ट्री को उबारने के लिए आगे आ कर सहायता करने की मांग करने के बजाय कोरोना के साथ काम करने और फिल्म इंडस्ट्री में सबकुछ ठीक है की हवा फैलाते हुए आम वर्करों व तकनीशियनों की तकलीफों पर नमक छिड़कने का ही काम किया.

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जी हां, केंद्र सरकार ने 2020 में मई से सितंबर माह तक कई इंडस्ट्री व एक वर्ग के लिए करोड़ों रुपए के राहत पैकेजों का ऐलान किया. केंद्र सरकार ने लगभग 6 माह तक जरूरतमंदों व प्रवासी मजदूरों को मुफ्त में राशन मुहैया कराने के साथसाथ कुछ आर्थिक मदद भी की, मगर उस वक्त भी केंद्र सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री के वर्कर सहित पूरी फिल्म इंडस्ट्री की अनदेखी की.

ऐसे ही दौर में सब से आगे बढ़ कर अक्षय कुमार चार्टर्ड प्लेन कर अपनी पूरी टीम के साथ स्कौटलैंड फिल्म ‘बैलबौटम’ की शूटिंग करने पहुंच गए. मगर यहां से डेलीवेजेस वर्कर, स्पौटबौय या तकनीशियनों को साथ ले कर नहीं गए. ऊपर से दावा किया कि उन्होंने लौकडाउन खत्म होते ही सब से पहले फिल्म की शूटिंग की. यदि कोरोना की नई लहर न आती तो शायद अक्षय कुमार के इस कदम को पूरी फिल्म इंडस्ट्री नजरअंदाज कर देती.

पूरा देश हो रहा परेशान

इतना ही नहीं जब कोरोना की नई लहर मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में तेजी से पांव पसर रही थी तब टीवी सीरियल के सैट वर्करों के साथसाथ कलाकार भी तेजी से कोरोना संक्रमित हो रहे थे. फिल्म के सैट पर भी कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था. आमिर खान व रणबीर कपूर सहित कई फिल्म कलाकार कोरोना संक्रमित हो रहे थे, उसी दौर में अक्षय कुमार अपनी फिल्म ‘राम सेतु’ की शूटिंग के लिए लंबीचौड़ी फौज के साथ अयोध्या, उत्तर प्रदेश में शूटिंग करने पहुंच गए. ऐसा करते समय शायद वे भूल गए थे कि कोरोना सिर्फ महाराष्ट्र या मुंबई तक ही सीमित नहीं है, बल्कि नई लहर तो पूरे देश को प्रताडि़त कर रही है.

खैर, अक्षय कुमार और उन की टीम अयोध्या में फिल्म ‘राम सेतु’ की शूटिंग ज्यादा दिन नहीं कर पाई. बहुत जल्द ही अक्षय कुमार व जैकलीन कोरोना संक्रमित हो गए. इन्हीं के साथ ‘राम सेतु’ के सैट पर काम करने वाले 45 वर्कर भी कोरोना संक्रमित हो गए. अक्षय कुमार तो अस्पताल में हैं पर 2 दिन बाद ही ‘राम सेतु’ पर 45 लोगों के कोविड पौजिटिव होने की खबरों को फिल्मकार विक्रम मल्होत्रा ने फर्जी करार दिया. मगर फिल्म की शूटिंग अभी भी रुकी हुई है.

कोरोना के चलते शूटिंग रुकी

मुंबई व उस के आसपास करीब 90 टीवी सीरियलों की शूटिंग हो रही है. ‘अनुपमा’, ‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’ जैसे चर्चित सीरियल के करीब 12 कलाकार, कई वर्कर व निर्माता राजन साही कोरोना संक्रमित हैं, मगर ब्रौडकास्टर के दबाव में इन सीरियलों की शूटिंग रुकी नहीं है.

निर्देशक संजय लीला भंसाली और अभिनेत्री आलिया भट्ट के साथ ही 25 वर्करों के कोरोना संक्रमित होने के चलते फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की शूटिंग रुकी हुई है. अब मुंबई महानगर पालिका ने कुछ ऐसे निर्देश दे दिए हैं कि फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की महज 1 दिन की ही शूटिंग होना बाकी है मगर शूटिंग नहीं हो पा रही है. वहीं ‘बालाजी मोशन पिक्चर्स’ और ‘रिलायंस ऐंटरटेनमैंट’ द्वारा निर्मित और विकास निर्देशित फिल्म ‘गुडबौय’ के सैट पर 25 लोगों के कोविड पौजिटिव होने की खबरें हैं.

हालात नहीं सुधरे तो…

ज्ञातव्य है कि फिल्म ‘गुडबौय’ में अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका है. मगर निर्माता ने शूटिंग रोकी नहीं है. इस फिल्म से जुड़े वर्कर्स का दावा है कि फिल्म की शूटिंग कैमरे के पीछे व अन्य विभागों में काम करने वाले कम से कम वर्करों के साथ शूटिंग पूरी करनी है. सोशल डिस्टैंसिंग रखने के प्रयास हो रहे हैं.

ऐसे में वर्करों की सेहत का भी खयाल नहीं खा जा रहा है और वक्त से ज्यादा काम कराया जा रहा है. जबकि मुंबई महानगरपालिका के कर्मचारी हर फिल्म व सीरियल के सैट पर जा कर चेतावनी दे रहे हैं कि यदि हालात नहीं सुधरे तो 15 दिन के लिए शूटिंग बंद करवा दी जाएगी. परिणामत: अब महाराष्ट्र में हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं के मिला कर 90 सीरियल और 20 फिल्मों व वैब सीरीज की शूटिंग पर तलवार लटक रही है.

इस पर ‘आईएफटीपीस’ के चेयरमैन व चर्चित सीरियल निर्माता जेडी मजीठिया कहते हैं, ‘‘बीएमसी ने टीवी के सैट पर जा कर ऐसा कहा है, इस की हमें औफिशियल जानकारी नहीं है. फिलहाल मुंबई में 90 से 100 हिंदी और मराठी भाषी सीरियलों की शूटिंग हो रही है, जबकि  20 फिल्मों और वैब सीरीज की तथा दूसरे शहरों में करीब 30 फिल्मों व वैब सीरीज की शूटिंग चल रही है.

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से हालिया बातचीत के बाद इन सभी के सैट कोविड प्रोटोकौल का पालन करते हुए शूटिंग कर रहे हैं. हम कोविड सोल्जर्स के साथ हैं. वीकैंड पर हम शूटिंग नहीं कर रहे हैं. अगर पूरी सिटी में पिछले साल जैसी हालत होती है तो सीएम और बीएमसी जो गाइडलाइन जारी करेगी हम वैसा करेंगे.’’

वे आगे कहते हैं , ‘‘यों अब तक  90 सीरियलों के निर्माताओं ने अपने सीरियलों के कलाकारों व वर्करों के आरटी पीसीआर टैस्ट करवाने की रिपोर्ट दे दी है. आईएफटीपीसी का दावा है कि अब तक 9 हजार से अधिक टेस्ट परीक्षण किए गए हैं. कोरोना चेन को तोड़ने के लिए सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार 15 दिनों के बाद पुन: परीक्षण की प्रक्रिया दोहराई जाएगी. इतना ही नहीं सुरक्षा के दृष्टिकोण से हर सप्ताह ऐंटीजन टैस्ट किए जाएंगे.’’

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फिलहाल जिन फिल्मों व टीवी सीरियलों की शूटिंग हो रही है उन में कलाकार तो लिए गए हैं, मगर डेली वेजेस वर्करों की संख्या घटा कर 30% कर दी है, जिस के परिणामस्वरूप करीब 70% वर्कर यानी स्पौटबौय, जूनियर आर्टिस्ट, मेकअपमैन, जूनियर डांसर व अन्य तकनीशियनों को काम नहीं मिल रहा है. ये सभी भुखमरी के शिकार हैं. इस से फिल्म इंडस्ट्री अंदर ही अंदर खोखली हो रही है.

आंखों को कैसे कंप्यूटर के इस्तेमाल के बावजूद सुरक्षित रख सकती हूं?

सवाल-

मैं पेशे से एक कंटैंट राइटर हूं, इसलिए मुझे बहुत अधिक समय स्क्रीन पर लिखते हुए बिताना पड़ता है. मेरी उम्र 24 साल है. मुझे आंखों में, सिर में बहुत दर्द महसूस होता है. मैं इतनी जल्दी चश्मा नहीं लगवाना चाहती. कृपया कर के मुझे बताइए कि मैं कैसे अपने काम को बरकरार रखते हुए आंखों को भी सुरक्षित रख सकती हूं?

जवाब-

कंप्यूटर और लैपटौप के इस्तेमाल के कारण आप को कंप्यूटर विजन सिंड्रोम हो सकता है, क्योंकि एक तो कंप्यूटर से आंखों की दूरी कम रहती है, दूसरा इस दौरान आंखों की मूवमैंट भी कम होती है. आंखों और सिर में भारीपन, धुंधला दिखना, जलन होना, पानी आना, खुजली होना, आंखों का सूखा रहना, पास की चीजें देखने में दिक्कत होना, एक वस्तु का 2 दिखाई देना, अत्यधिक थकान होना, गरदन, कंधों एवं कमर में दर्द होना कंप्यूटर विजन सिंड्रोम के कुछ सामान्य लक्षण हैं.

आप को लगातार 1 घंटे से अधिक कंप्यूटर की स्क्रीन पर काम करने से बचना होगा. हर 1 घंटे के बाद आप 10 से 15 मिनट का ब्रेक जरूर लें. आंखों को आराम देना बहुत जरूरी है, क्योंकि ऐसा करने से आंखों का तनाव कम होता है. अपनी दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ें और जब हथेलियां गरम हो जाएं तो उन्हें हलके हाथों से आंखों पर रख लें. अपनी आंखों को ठंडे पानी से अवश्य धोएं, क्योंकि आप को आंखों और सिर में दर्द की शिकायत हो रही है, इसलिए आप को किसी भी नजदीकी औप्टोमेट्री स्टोर पर जा कर अपनी आंखों की जांच जरूर करवानी चाहिए, क्योंकि समय रहते जांच करने पर सामान्य ऐक्सरसाइज और आई ड्रौप के द्वारा आप की समस्या का समाधान हो सकता है. लेकिन अगर आप जांच में देर करती हैं तो आंखों में दृष्टि दोष होने की संभावना बढ़ सकती है.

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आंखों की सुंदरता के लिए जरूरी यह है कि उस के आसपास की स्किन भी सुंदर हो. इससे आंखों की सुंदरता बढ़ जाती है. आंखों में होने वाली कुछ बीमारियों से उनके आसपास की स्किन खराब हो जाती है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि इन बीमारियों से बचाव कर के आंखों को सुंदर बनाया जाए. ये बीमारियां किसी भी उम्र में हो सकती हैं. इनमें आदमी, औरतें और बच्चे सभी शामिल हैं. इन बीमारियों में पलकों में होने वाली रूसी, पलकों पर गांठ बनना, आंख आना, आंखों का रूखापन, डार्क सर्कल्स, भवों और पलकों के बीच चकत्तेनुमा हलके उभार प्रमुख हैं. आइए जानते हैं इन बिमारियों के बारे में…

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5 टिप्स: समर में कच्चे दूध से स्किन को बनाएं और भी खूबसूरत

कच्चे दूध के फायदों से कईं लोग अभी भी अनजान है. उबले हुए दूध को हड्डियों को मजबूत बनाने और शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी समझा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कच्चा दूध ब्यूटी के लिए कितना अच्छा होता? आज हम आपको स्किन के लिए कच्चे दूध के 5 फायदे बताएंगे जिनसे आपको एक क्लीन और प्योर स्किन मिल सकती है.

कच्चे दूध के हैं ये 5 फायदे

1. स्किन टोनर

कच्चा दूध मौइस्चराइजिंग के सबसे अच्छे सोर्सेज में से एक है. उबला हुआ दूध औयली स्किन के लिए अच्छा होता है, लेकिन कच्चा दूध हर तरह की स्किन के लिए असाधारण स्किन टोनर के रूप में काम करता है. यह स्किन टिशूज को खराब होने और फटने से बचाता है. साथ ही स्किन को एक लचीलापन भी देता है.

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2. मौइस्चराइजर

कच्चे दूध के फायदों में से सबसे असरदार मौइस्चराइजेशन है. कच्चा दूध गहरी स्किन लेयर्स को पोषण देता है और अंदर से कंडीशनिंग और मौइस्चराइजेशन देता है. नेचुरल कच्चे दूध के फेस मास्क का इस्तेमाल कर आप सभी मौसमों के लिए अच्छी तरह से टोंड और मौइस्चराइज्ड स्किन का मजा ले सकती हैं.

3. स्किन को साफ करने के लिए बेस्ट औप्शन

कच्चा दूध स्किन की सफाई के लिए बहुत अच्छा होता है, क्योंकि यह ज्यादा तेल, सीबम, गंदगी और यहां तक ​​कि ब्लैकहेड्स को भी गहराई से साफ करता है.

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4. एंटी-टैनिंग एजेंट

कच्चा दूध एक एंटी-टैन एजेंट है. टमाटर के रस के साथ इसका इस्तेमाल  एक एंटी-टैन फेस पैक बनाने के लिए किया जा सकता है. यह नेचुरल इंग्रीडिएंट्स पूरी बौडी को भी टैनिंग से बचाता है।

5. फेयरनेस एजेंट

कच्चा दूध सौफ्ट तरीके से स्किन टोन करता है. यह एक ऐसा फेयरनेस एजेंट है जो नौर्मल स्किन में टायरोसिन के रिसाव को जांचता है. टायरोसिन मेलेनिन बैलेंस करने वाला हार्मोन है जो स्किन को काला कर देता है. फेयर स्किन के लिए कच्चे दूध का इस्तेमाल करने से टाइरोसिन का रिसाव बंद होता है. साथ ही यह आपकी स्किन के तेल और गंदगी को भी साफ करता है.

लौट आओ मौली: भाग 4- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

स्वरा का नंबर तो मिला, पर वह अब प्रयाग में नहीं दिल्ली में थी. उस ने सीधे कहा, ‘‘अब क्या फायदा उन का डिवोर्स भी हो गया. उस समय तो कोई आया भी नहीं. मलय ने तो उस की जिंदगी ही तबाह कर दी थी. उस की मम्मी भी उस के गम से चल बसीं. अब तो अपने पति शशांक के साथ कनाडा में बहुत खुश है. आप लोग उस की फिक्र न करें तो बेहतर होगा.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता स्वरा.’’

‘‘डिवोर्स हो गया और क्या नहीं हो सकता?’’

‘‘वही तो, मैं हैरान हूं. मुझे मालूम है कि वह बहुत प्यार करती थी मलय से,

इस घर से, हम सब से. मेरी भाभी ही नहीं, वह मेरी सहेली भी थी. यकीन नहीं होता कि उस ने बिना कुछ बताए डिवोर्स भी ले लिया और दूसरी

शादी भी कर ली. दिल नहीं मानता. कह दो स्वरा यह झूठ है. मैं पति के साथ सालभर के लिए न्यूजीलैंड क्या गई इतना कुछ हो गया.तुम उस का नंबर तो दो, मैं उस से पूछूंगी

तभी विश्वास होगा. प्लीज स्वरा,’’ हिमानी ने रिक्वैस्ट की.

‘‘नहीं, उस ने किसी को भी नंबर देने के लिए मना किया है.

‘‘क्या करेंगी दी, मौली बस हड्डियों का ढांचा बन कर रह गई है. उस की हालत देखी नहीं जाती. उसी ने… कोई उस के बारे में पूछे तो यही सब कहने के लिए कहा था,’’ स्वरा फूटफूट कर रो पड़ी. हार कर दे ही दिया मौली का नया नंबर स्वरा ने.

‘‘यह तो इंडिया का ही है,’’ हिमानी आश्चर्यचकित थी.

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‘‘दी, न वह कनाडा गई न ही शशांक से शादी हुई है उस की. शशांक तो मेरी बुआजी का ही लड़का है. 4 महीने कोमा में पड़ा था, भयानक दुर्घटना की चपेट में आ गया था, कुछ दिनों बाद पता चला था. बच ही गया. होश आने पर भी बहुत सारी प्रौब्लम थी उसे. दिल्ली ले कर आई थीं बुआ जी. एम्स में इलाज के बाद एक महीने पहले ही तो प्रयाग लौटा है. वही मौली का हालचाल देता रहता है.’’

हिमानी ने फटाफट नंबर डायल किया.

‘‘हैलो…’’ वही प्यारी पर आज बेजान सी आवाज मौली की ही थी.

‘‘मौली, मैं तुम्हारी हिमानी दी. एक पलमें पराया बना दिया… किसी को कुछ बताया क्यों नहीं? यह क्या कर डाला तुम दोनों ने, दोनों पागल हो?’’

‘‘उधर से बस सिसकी की आवाज आती रही.’’

‘‘मैं जानती हूं तुम दोनों को… जो हाल तुम्हारा है वही मलय का है. दोनों ने ही खाट पकड़ ली है. इतना प्यार पर इतना ईगो… उस ने गलत तो बहुत किया, सारे अपनों के चले जाने से वह बावला हो गया था. उसी बावलेपन में तुम्हें भी खो बैठा. अपने किए पर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा है. पश्चाताप में बस घुला ही जा रहा है. आज भी बहुत प्यार करता है तुम से. तुम्हें खोने के बाद उसे अपनी जिंदगी में तुम्हारे दर्जे का एहसास हुआ.’’

मौली की सिसकी फिर उभरी थी

‘‘ऐसे तो दोनों ही जीवित नहीं बचोगे.ऐसे डिवोर्स का क्या फायदा? तुम ने तो पूरी कोशिश की छिपाने की, पर स्वरा ने सब सच बता दिया.

‘‘लौट आओ मौली. मैं आ रही हूं. कान उमेठ कर लाऊंगी इसे. पहले माफी मांगेगा तुम से. अब कभी जो इस ने तुम्हारा दिल दुखाया, तुम्हें रुलाया तो मेरा मरा… पलंग से उठ कर जाने कैसे मलय ने हाथ से हिमानी को आगे बोलने से रोक लिया.

‘‘दी, ऐसा फिर कभी मत बोलना.’’

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‘‘दोनों कान पकड़ अपने फिर,’’ हिमानी ने प्यार भरी फटकार लगाई.

‘‘एक लड़की जो सारे घर से सामंजस्य बैठा लेती है, सब को अपना बना लेती है

तू उस के साथ ऐडजस्ट नहीं कर पा रहा था. कुछ तेरी पसंद, आदतें हैं, संस्कार हैं माना, तो कुछ उस के भी होंगे… नहीं क्या? क्या ऐडजस्ट करने का सारा ठेका उसी ने ले रखा है? मैं ऐसी ही थी क्या पहले… कुछ बदली न खुद पति देवेन के लिए? देवेन ने भी मेरे लिए अपने को काफी चेंज किया, तभी हम आज अच्छे कपल हैं. तुझे भी तो कुछ त्याग करना पड़ेगा, बदलना पड़ेगा उस के लिए. अब करेगा? बदल सकेगा खुद को उस के लिए?’’

‘‘हां दी, आप जैसा कहोगी वैसा करूंगा,’’ हिमानी उस के चेहरे पर उभर आई आशा की किरण स्पष्ट देख पा रही थी.

‘‘ले बात कर, माफी मांग पहले उस से…’’ हिमानी जानबूझ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘किस मुंह से कहूं मौली मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया. शादी के बाद से ही तुम घर की जिम्मेदारियां

ही संभालती रहीं. हनीमून क्या कहीं और भी तो ले नहीं गया कभी घुमाने. अपनी ही इच्छाएं थोपता रहा तुम पर. अपने पिता का शोक तुम

ने कितने दिन मनाया था. हंसने ही तो लगी थी हमारे लिए और मैं अपने गम, अपने खुद के उसूलों में ही डूबा रहा. तुम्हारे साथ 2 कदम भी न चल सका.

‘‘बच्चा गोद लेना चाहती थी तुम, पर मैं ने सिरे से बात खारिज कर दी. तुम ने ट्यूशन पढ़ाना चाहा पर वह भी मुझे सख्त नागवार गुजरा. सख्ती से मना कर दिया. तुम्हारे दोस्त के लिए बुराभला कहा, तुम पर कीचड़ उछाला… कितना गिर गया था मैं. सब गलत किया, बहुत गलत किया मैं ने… तुम क्या कोई भी नहीं सहन करता… कुछ बोलोगी नहीं तुम, मैं जानता हूं मुझे माफ करना आसान न होगा…

‘‘बहुत ज्यादती की है तुम्हारे साथ. मुझे कस के झिड़को, डांटो न… कुछ बोलोगी नहीं, तो मैं आ जाऊंगा मौली.’’

पहले सिसकी उभरी फिर फूटफूट कर मौली के रुदन का स्वर मलय को अंदर तक झिंझोड़ गया.

‘‘मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास. मुझे जी भर के मार लेना पर मेरी जिंदगी तुम हो, उसे लौटा दो मौली. मैं दी को देता हूं फोन.’’

‘‘चुप हो जा मौली अब. बस बहुत रो चुके तुम दोनों. मैं दोनों की हालत समझ रही हूं. तुम आने की तैयारी करना, कुछ दिनों में तुम्हारे मलय को फिट कर के लाती हूं.’’

सिसकियां आनी बंद हो गई थीं. वह मुसकरा उठी.

‘‘कुछ बोलोगी नहीं मौली…?’’

‘‘जी…’’ महीन स्वर उभरा था.

‘‘जल्दी सेहत सुधार लो अपनी, हम आ रहे हैं. फिर से ब्याह कर के तुम्हें वापस लाने के लिए… तैयार रहना… इस बार दीवाली साथ में मनाएंगे… तुम्हारे देवेन जीजू पहले जैसे तैयार मिलेंगे… तुम लोगों का बचकाना कांड सुन कर बहुत मायूस थे. मैं अभी उन्हें खुशखबरी सुनाती हूं. एक बार अपनी इस हिमानी दी का विश्वास करो. तुम्हारा घर तुम्हारी ही प्रतिक्षा कर रहा है. बस अपने घर लौट जाओ मौली…’’

‘‘ठीक है दी, जैसी आप सब की मरजी…’’ मौली की आवाज में जैसे जान आ गई थी. हिमानी ने सही ही महसूस किया था.

‘‘जल्दी तबियत ठीक कर ले, फिर चलते हैं प्रयाग. एक नए संगम के लिए,’’ हिमानी ने मुसकरा कर मलय के गाल थपथपाए और उस के माथे की गीली पट्टी बदल दी.

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मौली का फोन कटते ही हिमानी ने खुशीखुशी पति देवेन को सूचना देने के लिए नंबर डायल कर दिया.

‘‘मौली को अच्छी तरह समझाबुझा कर शशांक निकला ही था कि रास्ते में तेज आती ट्रक से इतनी जबरदस्त टक्कर हुई कि वह उड़ता हुआ दूर जा गिरा…’’

Mother’s Day Special: फैशन डिजाइनर बेटी से कम नहीं मां नीना, एक्ट्रेसेस को देती हैं मात

‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस नीना गुप्ता (Neena Gupta) 66 साल की उम्र में भी फैशन के मामले में किसी से कम नहीं हैं. फैशन डिजाइनर बेटी मसाबा गुप्ता के साथ नीना (Neena Gupta) अक्सर अपने फैशन को फैंस के सामने रखती हैं. वेस्टर्न हो या इंडियन नीना गुप्ता (Neena Gupta)अपने हर लुक को स्टाइलिश और ट्रैंडी बना देती हैं.

आज हम आपको कुछ नीना गुप्ता (Neena Gupta)के कुछ ऐसे साड़ी लुक बताएंगे, जिसे आप मदर्स डे के मौके पर ट्राय कर सकती हैं. या फिर अगर अपनी मां को एक स्टाइलिश और ट्रेंडी मेकओवर देना चाहती हैं तो नीना गुप्ता के ये लुक आपके लिए परफेक्ट है.

1. नीना की पिंक साड़ी

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फिल्म के प्रमोशन के दौरान हाल ही में नीना गुप्ता ने पिंक कलर की साड़ी पहनी हुई थी. यह कलर उनकी ब्यूटी को और बढ़ाता दिख रहा था. साड़ी के पल्ले पर ब्रॉन्ज और गोल्डन कलर का वर्क किया गया था. वहीं इसका ब्लाउज पैंटगन नेक डिजाइन का रखा गया था. यह साड़ी उनकी बेटी मसाबा गुप्ता के कलेक्शन का हिस्सा थी.

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2. नीना का कंट्रास्ट फैशन करें ट्राय

 

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Trying a contrast

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नए लुक में नीना ने कंट्रास्ट फैशन कैरी करती हुई नजर आईं थीं. उन्होंने रानी कलर की साड़ी के साथ थ्री-फोर्थ स्लीव्स का ग्रीन ब्लाउज पहना है. ज्वैलरी के लिए नीना गुप्ता ने पर्ल एंड गोल्ड बेस्ड लाइट वेट ज्वैलरी को चुना था, जिसके साथ जूड़ा बनाकर उन्होंने लुक को सिंपल के साथ-साथ ट्रैंडी रखा था.

3.  लाल साड़ी है परफेक्ट

 

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Wo jidhar dekh rahe hein

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गोल्डन बॉर्डर वाली रेड साड़ी में नीना गुप्ता का कलर और लुक खिला हुआ नजर आ रहा है. नीना ने इस लुक के साथ ग्रीन एंड रेड लाइनिंग का स्लीवलेस ब्लाउज पहना था, जिसका फ्रंट नेक डीप था. वहीं ज्वैलरी के लिए नीना ने हरी कांच की चूड़ियां पहनी थीं, जो आजकल कम ही अदाकाराएं पहने नजर आती हैं.

4. प्रिंटेड साड़ी है परफेक्टॉ

 

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Madam ji taiyar hein #Masaba ki sari mein

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नीना गुप्ता की लाइट ब्राउन कलर के प्रिंट पैटर्न वाली साड़ी आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है. इसके साथ आप ट्रैंडी लुक के लिए औफ शोल्डर ब्लाउज ट्राय कर सकती हैं. ये आपके लुक के लिए परफेक्ट है.

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Love you @wendellrodricks

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एक नई पहल: भाग 3- जब बुढा़पे में हुई एक नए रिश्ते की शुरुआत

अब तक मैं जूही के साथ एक दोस्त की तरह काफी खुल चुकी थी, ‘‘जो काम बच्चों के लिए मांबाप करते हैं, वही काम बच्चों को आज उन के लिए करना होगा, यानी आप पहले अपने पति को मनाएं फिर रिश्ता ले कर शर्माजी के बेटेबहुओं से मिलें…हो सकता है पहली बार में वे लोग मान जाएं…हो सकता है न भी मानें. स्वाभाविक है उन्हें शाक तो लगेगा ही…आप को कोशिश करनी होगी…आखिर आप की ‘ममा’ की खुशियों का सवाल है.’’

एक सप्ताह तक मैं जूही के फोन का इंतजार करती रही. धीरेधीरे इंतजार करना छोड़ दिया. मैं ने पार्क जाना भी छोड़ दिया…पता नहीं सुमेधा आंटी या अंकल का क्या रिएक्शन हो. शायद बात नहीं बनी होगी. पार्क में सैर करने जाने का उद्देश्य ही दम तोड़ चुका था. मन में एक टीस सी थी जिस का इलाज मेरे पास नहीं था. अपनी तरफ से जो मैं कर सकती थी किया, अब इस से ज्यादा मेरे हाथ में नहीं था.

एक दोपहर, बेटी के स्कूल से आने का समय हो रहा था. टेलीविजन देख कर समय पास कर रही थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘क्या मालिनीजी से बात हो सकती है?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘जी, बोल रही हूं,’’ मैं ने दिमाग पर जोर डालते हुए आवाज पहचानने की कोशिश की पर नाकाम रही, ‘‘आप कौन?’’ आखिर मुझे पूछना ही पड़ा.

‘‘देखिए, मैं सुमेधाजी का बेटा अजय बोल रहा हूं. आप मेरी पत्नी से क्याक्या कह कर गई थीं…मैं और मेरी ममा आप से एक बार मिलना चाहते हैं…क्या आप शाम को हमारे घर आ सकेंगी?’’

अजय की तल्खी भरी आवाज सुन कर एक बार को मैं सकपका गई, फिर जैसेतैसे हिम्मत कर के कहा, ‘‘देखिए, यह आप के घर का मसला है…’’

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बीच में ही बात काट कर वह बोला, ‘‘जब जूही से आप बात करने आई थीं तब आप को नहीं पता था कि यह हमारे घर का मसला है. खैर, आप यह बताइए कि आप आएंगी या मैं जूही और ममा के साथ आप के घर आ जाऊं? पार्क के सामने वाले फ्लैट में आप का नाम ले कर पूछ लेंगे…तो घर का पता चल ही जाएगा.’’

मैं ने सोचा अगर कहीं ये लोग सचमुच घर आ गए तो बेवजह का यहां तमाशा बन जाएगा. मेरे पति मुझे दस बातें सुनाएंगे. उन से तो मुझे इस मामले में किसी सहयोग की उम्मीद नहीं थी. अब क्या करूं.

‘‘अच्छा, ठीक है…मैं आ जाऊंगी…कितने बजे आना है?’’ हार कर मैं ने पूछ ही लिया.

‘‘7 बजे तक आप आ जाइए.’’

मैं ने अपने पति को इस बारे में बताया तो था लेकिन विस्तार से नहीं. शाम 5 बजे मैं ने पति को फोन किया, ‘‘मुझे सुमेधा आंटी के घर जाना है.’’

‘‘अभी खत्म नहीं हुई तुम्हारी सुमेधा आंटी की कहानी,’’ पति बोले, ‘‘खैर, कितने बजे जाना है?’’

‘‘7 बजे, आतेआते थोड़ी देर हो जाएगी.’’

रास्ते भर मेरे दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे…अगर उन्होंने मुझे ऐसा कहा तो मैं यह कहूंगी…वह कहूंगी पर क्या मैं ने उन लोगों को गलत समझा…क्या वे ऐसा नहीं चाहते थे…नहीं चाहते होंगे तभी आंटी भी मुझ से बात करना चाहती हैं…

दरवाजा जूही ने खोला था. ‘हैलो’ कर के मुझे सोफे पर बैठा कर वह अंदर चली गई.

उस के पति ने बाहर आते ही नमस्ते का जवाब दे कर बैठते ही बिना किसी भूमिका के बात शुरू कर दी, ‘‘दिखने में तो आप ठीकठाक लगती हैं, लेकिन लगता है समाज सेविका बनने का शौक रखती हैं. समाजसेवा के लिए आप को सब से पहले हमारा ही घर मिला था?’’

मैं डर गई. मौन रही, लेकिन फिर पता नहीं कहां से मुझ में बोलने की हिम्मत आ गई, ‘‘मि. अजय, इस में समाजसेवा की बात नहीं है. मुझे जो महसूस हुआ मैं ने वह कहा और मेरे दिल ने जो कहा मैं ने वही किया. जब दो प्यार करने वाले लड़कालड़की को उन के मांबाप एक बंधन में खुशीखुशी बांध देते हैं तो बच्चे अपने मांबाप के प्यार को एक होते क्यों नहीं देख पाते? समाज क्यों इसे असामाजिक मानता है? क्या बड़ी उम्र में प्यार नहीं हो सकता? और हो जाए तो कोई क्या करे? प्यार करना क्या पाप है…नहीं…प्यार किसी भी उम्र में पाप नहीं है…वैसे भी इस उम्र का प्यार तो बिलकुल निश्छल और सात्विक होता है, इस में वासना नहीं, स्नेह होता है…शुद्ध स्नेह…

‘‘इतने अनुभवी 2 लोग दूसरे की भावनाओं को समझते हुए संभोग के लिए नहीं, सहयोग के लिए मिलन की इच्छा रखते हैं. इस में क्या गलत है, अगर हम उन की इच्छाओं को समझते हुए उन के मिलन के साक्षी बनें. बच्चों की हर इच्छा पूरी करना यदि मांबाप का फर्ज है तो क्या बच्चों का कोई फर्ज नहीं है? क्या बच्चे हमेशा स्वार्थी ही रहेंगे…बाकी आप की मां हैं, आप जानें और वह…मुझे तो उन से एक अनजाना सा स्नेह हो गया है, एक अजीब सा रिश्ता बन गया है, उसी के नाते मैं ने उन के दिल की बात समझ ली थी…शायद मैं अपनी हद से आगे बढ़ गई थी…’’

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इतना कह कर मैं वहां से चलने को तत्पर हुई तभी अंदर से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी. सामने कमरे के दरवाजे से 3 दंपती तालियां बजाते हुए ड्राइंगरूम में प्रवेश कर रहे थे. सभी के चेहरे पर हंसी थी. अब तक जूही और अजय भी उन में शामिल हो गए थे. मैं समझ नहीं पाई कि माजरा क्या है. तभी उन के पीछे 3-4 छोटेछोटे हाथों का सहारा ले कर सुमेधा आंटी और शर्मा अंकल चले आ रहे थे.

जूही ने मेरे पास आ कर मेरा सब से परिचय करवाया, ‘‘ये शर्मा अंकल के दोनों बेटेबहुएं और ये मेरी प्यारी सी ननद और उन के पति हैं और वह जो तुम देख रही हो न नन्हे शैतान, जो ‘ममा’ के साथ खडे़ हैं, वे शर्मा अंकल के दोनों पोते और पोती हैं और अंकल के साथ मेरी ननद का बेटा और मेरा बेटा है. बच्चों ने कितनी जल्दी अपने नए दादादादी और नानानानी को स्वीकार कर लिया. ये तो हम बडे़ ही हैं जो हर काम में देर करते हैं.

‘‘मालिनी, आज से मेरी एक नहीं दो ननदें हैं,’’ जूही भावुक हो कर बोली, ‘‘उस दिन तुम्हारी बातों ने मुझ पर गहरा असर डाला, लेकिन सब को तैयार करने में मुझे इतने दिन लग गए. शायद तुम्हारी तरह सच्ची भावना की कमी थी या फिर एक ही मुलाकात में अपनी बात समझा पाने की कला का अभाव…खैर, अंत भला तो सब भला.’’

मैं बहुत खुश थी. तभी जूही मेरे हाथ में 2 अंगूठियां दे कर बोली, ‘‘मालिनी दी, यह शुभ काम आप के ही हाथों अच्छा लगेगा.’’

मैं हतप्रभ सी अंगूठियां हाथ में ले कर अंकलआंटी की ओर बढ़ चली. मैं स्वयं को रोक नहीं पाई. मैं दोनों के गले लग गई…उन दोनों के स्नेहिल हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद दे रहे थे.

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Mother’s Day Special: जिद- मां के लाड़दुलार के लिए तरसी थी रेवा

Mother’s Day Special: जिद- भाग 1- क्यों मां के लाड़दुलार के लिए तरसी थी रेवा

रेवा अपनी मां की मृत्यु का समाचार पा कर ही हिंदुस्तान लौटी. वह तो भारत को लगभग भूल ही चुकी थी और पिछले कई वर्षों से लास एंजिल्स में रह रही थी. उस ने वहीं की नागरिकता ले ली थी. पिता के न रहने पर करीब 15 वर्ष पूर्व रेवा भारत आई थी. यह तो अच्छा हुआ कि छोटी बहन रेवती ने उसे तत्काल मोबाइल पर मां के न रहने का समाचार दे दिया था. इस से उसे अगली ही फ्लाइट का टिकट मिल गया और वह अपने सुपरबौस की मेज पर 15 दिन की छुट्टी की अप्लीकेशन रख कर, तत्काल फ्लाइट पकड़ने निकल गई. मां का अंतिम संस्कार उसी की वजह से रुका हुआ था. सख्त जाड़े के दिन थे. घाट पर रेवा, रेवती और उस के पति तथा परिवार के अन्य दूरपास के सभी नातेरिश्तेदार भी पहुंचे हुए थे. यद्यपि घाट पर छोटे चाचा और मौसी का बड़ा लड़का भी मौजूद थे लेकिन इस का समाधान घाट के पंडितों द्वारा ढूंढ़ा जा रहा था कि दोनों बहनों में से किस के पास मां को मुखाग्नि देने का अधिकार अधिक सुरक्षित है, तभी रेवती ने प्रस्तावित किया, ‘‘पंडितजी, मां को मुखाग्नि देने का काम बड़ी बेटी होने के कारण रेवा दीदी करेंगी. उन्होंने ही हमेशा मां के बड़े बेटे होने का फर्ज निभाया है.’’

काफी देर बहस होती रही. आखिर में बड़ी जद्दोजेहद के बाद यह निर्णय हुआ कि यह कार्य रेवा के हाथों ही संपन्न करवाया जाए. हमेशा जींसटौप पहनने वाली रेवा, आज घाट पर पता नहीं कहां से मां की साड़ी पहन कर आई थी और एकदम मां जैसी ही लग रही थी. ऐसा लग रहा था कि मां से हमेशा खफाखफा रहने वाली रेवा के मन पर मां के चले जाने का कुछ तो असर जरूर हुआ है. अगले 3-4 दिन बड़ी व्यस्तता में बीते. मां की मृत्यु के बाद के सभी संस्कार विधिविधान से संपन्न किए गए. पंडितों के अनुसार, बरसी का हवनयज्ञ आदि 10 दिन से पहले करना संभव नहीं होगा. रेवा के वापस जाने से 2 दिन पूर्व की तिथि नियत की गई. अगले दिन रेवती ने घर की साफसफाई की जिम्मेदारी संभाल ली. रेवा ने पहले ही कह दिया, ‘‘तू मां की लाड़ली बिटिया थी, इसलिए मां का ये घर, सामान, जमीनजायजाद व धनसंपत्ति, अब तू ही संभाल. न तो मेरे पास इतनी फुरसत है, न ही मुझे इस की जरूरत. और सुन, अब मैं इंडिया नहीं आ सकूंगी, इसलिए अपने पति शरद से पूछ कर, अगर कहीं मेरे हस्ताक्षर की जरूरत हो तो अभी करा ले.

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आखिर तू ही तो मां की असली वारिस है. मैं तो वर्षों पहले यहां से विदेश चली गई और वहीं की ही हो कर रह गई. तू ने ही मां और पापा की देखभाल की है, उन्हें संभाला है. समझी कि नहीं, रेवती की बच्ची.’’ रेवा दीदी के मुंह से काफी दिनों बाद ‘रेवती की बच्ची’ सुन कर रेवती को बड़ा अच्छा लगा जैसे बचपन के कुछ क्षण फिर से वापस आने को आतुर हों. घर की साफसफाई के बाद मां का सामान ठीक करने का नंबर आया. उन के कपड़े करीने से, बड़े सलीके से और तरतीबवार उन के वार्डरोब में हैंगर पर लटके हुए थे. शेष साडि़यां, ब्लाउज व पेटीकोट का सैट बना कर पौलिथीन में पैक कर के रखे हुए थे. मां ऐसी ही थीं, हर चीज उन्हें कायदे से रखने की आदत या यह कहो मीनिया था और वे यह चाहती थीं कि उन की बेटियां भी अपना घर उसी तरह सजासंवरा व सुव्यवस्थित रखें. बचपन में अगर नहाने के बाद तौलिया एक मिनट के लिए सही जगह फैलाने से रह जाता, तो समझो हम लोगों की शामत आ जाती थी. पापा थोड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे और रेवा भी उन पर ही गई थी. सो, वे दोनों अकसर मां की डांट खाते रहते थे.

आखिर में, मां की बुकशैल्फ ठीक करने का नंबर आया. मां की रुचि साहित्यिक थी और जहां कहीं भी कोई अच्छी किताब उन्हें नजर आ जाती, वे उसे खरीदने में तनिक भी देर न लगातीं. इस प्रकार धीरेधीरे मां के पास दुर्लभ साहित्य का खजाना एकत्र हो गया था. बुकशैल्फ झाड़पोंछ कर किताबों को लगातेलगाते रेवती को किताबों के पीछे एक काले रंग की डायरी दिखाई दी जिस पर लिखा था, ‘सिर्फ प्रिय रेवा के लिए.’ रेवती कुछ देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही. डायरी इस तरह सील थी कि उसे खोलना आसान नहीं था. रेवती ने डायरी झाड़पोंछ कर रेवा दीदी को पकड़ा दी.

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रेवा सोफे पर पसरी हुई थी, उस ने उचक कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ ‘‘मां तेरे लिए एक डायरी छोड़ गई हैं, रख ले,’’ रेवती ने कहा. रेवा थोड़ी देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही, फिर उस ने उसे वैसा ही रख दिया. उसे चाय की तलब लगी थी, उस ने रेवती से चाय पीने के लिए पूछा तो चाय बनाने किचन में चली गई. सोचने लगी कि मां ने पता नहीं, डायरी में क्या लिखा होगा. मां को तो जो कुछ लिखना था, रेवती को लिखना चाहिए था, आखिर वह उस की ‘ब्लूआइड’ बेटी जो थी.

रेवा सोचने लगी, ‘मां तो वैसे भी रेवती को ही चाहती थीं, मुझे तो उन्होंने हमेशा अपने से दूर ही रखा. पता नहीं मैं उन की सगी बेटी हूं भी या नहीं.’ फिर सोचने लगी कि चलो, अब तो मां चली ही गई, अब उन से क्या शिकवाशिकायत करना. उसे आज तक, बल्कि अभी तक, समझ में नहीं आया कि मां सब से तो अच्छी तरह बोलतीबतियाती थीं, पर उस के साथ हमेशा कठोर क्यों बन जाती थीं. रेवा शुरू से पढ़ने में बड़ी तेज थी और अपनी क्लास में हमेशा टौप करती, जबकि रेवती औसत दर्जे की स्टूडैंट थी. मां रेवती को रोज जबरदस्ती पढ़ाने बैठतीं और उस पर मेहनत करतीं, तब जा कर वह किसी तरह क्लास में पास होती थी. उधर, रेवा ने अपने स्कूलकालेज में मार्क्स लाने के कितने ही कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए और ऐसे नए मानक गढ़ दिए जिन का टूटना असंभव सा था. स्कूलकालेज में रेवा पिं्रसिपल व टीचर के प्यार से ज्यादा, इज्जत की हकदार बन बैठी थी. उस के क्लासमेट उस की ज्ञान की वजह से उस से एक तरह से डरते थे और एक दूरी बना कर ही रखते थे और इन्हीं कारणों से उस की कोई अच्छी सहेली भी नहीं बन सकी.

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