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एक नई पहल: भाग 3- जब बुढा़पे में हुई एक नए रिश्ते की शुरुआत

अब तक मैं जूही के साथ एक दोस्त की तरह काफी खुल चुकी थी, ‘‘जो काम बच्चों के लिए मांबाप करते हैं, वही काम बच्चों को आज उन के लिए करना होगा, यानी आप पहले अपने पति को मनाएं फिर रिश्ता ले कर शर्माजी के बेटेबहुओं से मिलें…हो सकता है पहली बार में वे लोग मान जाएं…हो सकता है न भी मानें. स्वाभाविक है उन्हें शाक तो लगेगा ही…आप को कोशिश करनी होगी…आखिर आप की ‘ममा’ की खुशियों का सवाल है.’’

एक सप्ताह तक मैं जूही के फोन का इंतजार करती रही. धीरेधीरे इंतजार करना छोड़ दिया. मैं ने पार्क जाना भी छोड़ दिया…पता नहीं सुमेधा आंटी या अंकल का क्या रिएक्शन हो. शायद बात नहीं बनी होगी. पार्क में सैर करने जाने का उद्देश्य ही दम तोड़ चुका था. मन में एक टीस सी थी जिस का इलाज मेरे पास नहीं था. अपनी तरफ से जो मैं कर सकती थी किया, अब इस से ज्यादा मेरे हाथ में नहीं था.

एक दोपहर, बेटी के स्कूल से आने का समय हो रहा था. टेलीविजन देख कर समय पास कर रही थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘क्या मालिनीजी से बात हो सकती है?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘जी, बोल रही हूं,’’ मैं ने दिमाग पर जोर डालते हुए आवाज पहचानने की कोशिश की पर नाकाम रही, ‘‘आप कौन?’’ आखिर मुझे पूछना ही पड़ा.

‘‘देखिए, मैं सुमेधाजी का बेटा अजय बोल रहा हूं. आप मेरी पत्नी से क्याक्या कह कर गई थीं…मैं और मेरी ममा आप से एक बार मिलना चाहते हैं…क्या आप शाम को हमारे घर आ सकेंगी?’’

अजय की तल्खी भरी आवाज सुन कर एक बार को मैं सकपका गई, फिर जैसेतैसे हिम्मत कर के कहा, ‘‘देखिए, यह आप के घर का मसला है…’’

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बीच में ही बात काट कर वह बोला, ‘‘जब जूही से आप बात करने आई थीं तब आप को नहीं पता था कि यह हमारे घर का मसला है. खैर, आप यह बताइए कि आप आएंगी या मैं जूही और ममा के साथ आप के घर आ जाऊं? पार्क के सामने वाले फ्लैट में आप का नाम ले कर पूछ लेंगे…तो घर का पता चल ही जाएगा.’’

मैं ने सोचा अगर कहीं ये लोग सचमुच घर आ गए तो बेवजह का यहां तमाशा बन जाएगा. मेरे पति मुझे दस बातें सुनाएंगे. उन से तो मुझे इस मामले में किसी सहयोग की उम्मीद नहीं थी. अब क्या करूं.

‘‘अच्छा, ठीक है…मैं आ जाऊंगी…कितने बजे आना है?’’ हार कर मैं ने पूछ ही लिया.

‘‘7 बजे तक आप आ जाइए.’’

मैं ने अपने पति को इस बारे में बताया तो था लेकिन विस्तार से नहीं. शाम 5 बजे मैं ने पति को फोन किया, ‘‘मुझे सुमेधा आंटी के घर जाना है.’’

‘‘अभी खत्म नहीं हुई तुम्हारी सुमेधा आंटी की कहानी,’’ पति बोले, ‘‘खैर, कितने बजे जाना है?’’

‘‘7 बजे, आतेआते थोड़ी देर हो जाएगी.’’

रास्ते भर मेरे दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे…अगर उन्होंने मुझे ऐसा कहा तो मैं यह कहूंगी…वह कहूंगी पर क्या मैं ने उन लोगों को गलत समझा…क्या वे ऐसा नहीं चाहते थे…नहीं चाहते होंगे तभी आंटी भी मुझ से बात करना चाहती हैं…

दरवाजा जूही ने खोला था. ‘हैलो’ कर के मुझे सोफे पर बैठा कर वह अंदर चली गई.

उस के पति ने बाहर आते ही नमस्ते का जवाब दे कर बैठते ही बिना किसी भूमिका के बात शुरू कर दी, ‘‘दिखने में तो आप ठीकठाक लगती हैं, लेकिन लगता है समाज सेविका बनने का शौक रखती हैं. समाजसेवा के लिए आप को सब से पहले हमारा ही घर मिला था?’’

मैं डर गई. मौन रही, लेकिन फिर पता नहीं कहां से मुझ में बोलने की हिम्मत आ गई, ‘‘मि. अजय, इस में समाजसेवा की बात नहीं है. मुझे जो महसूस हुआ मैं ने वह कहा और मेरे दिल ने जो कहा मैं ने वही किया. जब दो प्यार करने वाले लड़कालड़की को उन के मांबाप एक बंधन में खुशीखुशी बांध देते हैं तो बच्चे अपने मांबाप के प्यार को एक होते क्यों नहीं देख पाते? समाज क्यों इसे असामाजिक मानता है? क्या बड़ी उम्र में प्यार नहीं हो सकता? और हो जाए तो कोई क्या करे? प्यार करना क्या पाप है…नहीं…प्यार किसी भी उम्र में पाप नहीं है…वैसे भी इस उम्र का प्यार तो बिलकुल निश्छल और सात्विक होता है, इस में वासना नहीं, स्नेह होता है…शुद्ध स्नेह…

‘‘इतने अनुभवी 2 लोग दूसरे की भावनाओं को समझते हुए संभोग के लिए नहीं, सहयोग के लिए मिलन की इच्छा रखते हैं. इस में क्या गलत है, अगर हम उन की इच्छाओं को समझते हुए उन के मिलन के साक्षी बनें. बच्चों की हर इच्छा पूरी करना यदि मांबाप का फर्ज है तो क्या बच्चों का कोई फर्ज नहीं है? क्या बच्चे हमेशा स्वार्थी ही रहेंगे…बाकी आप की मां हैं, आप जानें और वह…मुझे तो उन से एक अनजाना सा स्नेह हो गया है, एक अजीब सा रिश्ता बन गया है, उसी के नाते मैं ने उन के दिल की बात समझ ली थी…शायद मैं अपनी हद से आगे बढ़ गई थी…’’

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इतना कह कर मैं वहां से चलने को तत्पर हुई तभी अंदर से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी. सामने कमरे के दरवाजे से 3 दंपती तालियां बजाते हुए ड्राइंगरूम में प्रवेश कर रहे थे. सभी के चेहरे पर हंसी थी. अब तक जूही और अजय भी उन में शामिल हो गए थे. मैं समझ नहीं पाई कि माजरा क्या है. तभी उन के पीछे 3-4 छोटेछोटे हाथों का सहारा ले कर सुमेधा आंटी और शर्मा अंकल चले आ रहे थे.

जूही ने मेरे पास आ कर मेरा सब से परिचय करवाया, ‘‘ये शर्मा अंकल के दोनों बेटेबहुएं और ये मेरी प्यारी सी ननद और उन के पति हैं और वह जो तुम देख रही हो न नन्हे शैतान, जो ‘ममा’ के साथ खडे़ हैं, वे शर्मा अंकल के दोनों पोते और पोती हैं और अंकल के साथ मेरी ननद का बेटा और मेरा बेटा है. बच्चों ने कितनी जल्दी अपने नए दादादादी और नानानानी को स्वीकार कर लिया. ये तो हम बडे़ ही हैं जो हर काम में देर करते हैं.

‘‘मालिनी, आज से मेरी एक नहीं दो ननदें हैं,’’ जूही भावुक हो कर बोली, ‘‘उस दिन तुम्हारी बातों ने मुझ पर गहरा असर डाला, लेकिन सब को तैयार करने में मुझे इतने दिन लग गए. शायद तुम्हारी तरह सच्ची भावना की कमी थी या फिर एक ही मुलाकात में अपनी बात समझा पाने की कला का अभाव…खैर, अंत भला तो सब भला.’’

मैं बहुत खुश थी. तभी जूही मेरे हाथ में 2 अंगूठियां दे कर बोली, ‘‘मालिनी दी, यह शुभ काम आप के ही हाथों अच्छा लगेगा.’’

मैं हतप्रभ सी अंगूठियां हाथ में ले कर अंकलआंटी की ओर बढ़ चली. मैं स्वयं को रोक नहीं पाई. मैं दोनों के गले लग गई…उन दोनों के स्नेहिल हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद दे रहे थे.

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Mother’s Day Special: जिद- मां के लाड़दुलार के लिए तरसी थी रेवा

Mother’s Day Special: जिद- भाग 1- क्यों मां के लाड़दुलार के लिए तरसी थी रेवा

रेवा अपनी मां की मृत्यु का समाचार पा कर ही हिंदुस्तान लौटी. वह तो भारत को लगभग भूल ही चुकी थी और पिछले कई वर्षों से लास एंजिल्स में रह रही थी. उस ने वहीं की नागरिकता ले ली थी. पिता के न रहने पर करीब 15 वर्ष पूर्व रेवा भारत आई थी. यह तो अच्छा हुआ कि छोटी बहन रेवती ने उसे तत्काल मोबाइल पर मां के न रहने का समाचार दे दिया था. इस से उसे अगली ही फ्लाइट का टिकट मिल गया और वह अपने सुपरबौस की मेज पर 15 दिन की छुट्टी की अप्लीकेशन रख कर, तत्काल फ्लाइट पकड़ने निकल गई. मां का अंतिम संस्कार उसी की वजह से रुका हुआ था. सख्त जाड़े के दिन थे. घाट पर रेवा, रेवती और उस के पति तथा परिवार के अन्य दूरपास के सभी नातेरिश्तेदार भी पहुंचे हुए थे. यद्यपि घाट पर छोटे चाचा और मौसी का बड़ा लड़का भी मौजूद थे लेकिन इस का समाधान घाट के पंडितों द्वारा ढूंढ़ा जा रहा था कि दोनों बहनों में से किस के पास मां को मुखाग्नि देने का अधिकार अधिक सुरक्षित है, तभी रेवती ने प्रस्तावित किया, ‘‘पंडितजी, मां को मुखाग्नि देने का काम बड़ी बेटी होने के कारण रेवा दीदी करेंगी. उन्होंने ही हमेशा मां के बड़े बेटे होने का फर्ज निभाया है.’’

काफी देर बहस होती रही. आखिर में बड़ी जद्दोजेहद के बाद यह निर्णय हुआ कि यह कार्य रेवा के हाथों ही संपन्न करवाया जाए. हमेशा जींसटौप पहनने वाली रेवा, आज घाट पर पता नहीं कहां से मां की साड़ी पहन कर आई थी और एकदम मां जैसी ही लग रही थी. ऐसा लग रहा था कि मां से हमेशा खफाखफा रहने वाली रेवा के मन पर मां के चले जाने का कुछ तो असर जरूर हुआ है. अगले 3-4 दिन बड़ी व्यस्तता में बीते. मां की मृत्यु के बाद के सभी संस्कार विधिविधान से संपन्न किए गए. पंडितों के अनुसार, बरसी का हवनयज्ञ आदि 10 दिन से पहले करना संभव नहीं होगा. रेवा के वापस जाने से 2 दिन पूर्व की तिथि नियत की गई. अगले दिन रेवती ने घर की साफसफाई की जिम्मेदारी संभाल ली. रेवा ने पहले ही कह दिया, ‘‘तू मां की लाड़ली बिटिया थी, इसलिए मां का ये घर, सामान, जमीनजायजाद व धनसंपत्ति, अब तू ही संभाल. न तो मेरे पास इतनी फुरसत है, न ही मुझे इस की जरूरत. और सुन, अब मैं इंडिया नहीं आ सकूंगी, इसलिए अपने पति शरद से पूछ कर, अगर कहीं मेरे हस्ताक्षर की जरूरत हो तो अभी करा ले.

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आखिर तू ही तो मां की असली वारिस है. मैं तो वर्षों पहले यहां से विदेश चली गई और वहीं की ही हो कर रह गई. तू ने ही मां और पापा की देखभाल की है, उन्हें संभाला है. समझी कि नहीं, रेवती की बच्ची.’’ रेवा दीदी के मुंह से काफी दिनों बाद ‘रेवती की बच्ची’ सुन कर रेवती को बड़ा अच्छा लगा जैसे बचपन के कुछ क्षण फिर से वापस आने को आतुर हों. घर की साफसफाई के बाद मां का सामान ठीक करने का नंबर आया. उन के कपड़े करीने से, बड़े सलीके से और तरतीबवार उन के वार्डरोब में हैंगर पर लटके हुए थे. शेष साडि़यां, ब्लाउज व पेटीकोट का सैट बना कर पौलिथीन में पैक कर के रखे हुए थे. मां ऐसी ही थीं, हर चीज उन्हें कायदे से रखने की आदत या यह कहो मीनिया था और वे यह चाहती थीं कि उन की बेटियां भी अपना घर उसी तरह सजासंवरा व सुव्यवस्थित रखें. बचपन में अगर नहाने के बाद तौलिया एक मिनट के लिए सही जगह फैलाने से रह जाता, तो समझो हम लोगों की शामत आ जाती थी. पापा थोड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे और रेवा भी उन पर ही गई थी. सो, वे दोनों अकसर मां की डांट खाते रहते थे.

आखिर में, मां की बुकशैल्फ ठीक करने का नंबर आया. मां की रुचि साहित्यिक थी और जहां कहीं भी कोई अच्छी किताब उन्हें नजर आ जाती, वे उसे खरीदने में तनिक भी देर न लगातीं. इस प्रकार धीरेधीरे मां के पास दुर्लभ साहित्य का खजाना एकत्र हो गया था. बुकशैल्फ झाड़पोंछ कर किताबों को लगातेलगाते रेवती को किताबों के पीछे एक काले रंग की डायरी दिखाई दी जिस पर लिखा था, ‘सिर्फ प्रिय रेवा के लिए.’ रेवती कुछ देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही. डायरी इस तरह सील थी कि उसे खोलना आसान नहीं था. रेवती ने डायरी झाड़पोंछ कर रेवा दीदी को पकड़ा दी.

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रेवा सोफे पर पसरी हुई थी, उस ने उचक कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ ‘‘मां तेरे लिए एक डायरी छोड़ गई हैं, रख ले,’’ रेवती ने कहा. रेवा थोड़ी देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही, फिर उस ने उसे वैसा ही रख दिया. उसे चाय की तलब लगी थी, उस ने रेवती से चाय पीने के लिए पूछा तो चाय बनाने किचन में चली गई. सोचने लगी कि मां ने पता नहीं, डायरी में क्या लिखा होगा. मां को तो जो कुछ लिखना था, रेवती को लिखना चाहिए था, आखिर वह उस की ‘ब्लूआइड’ बेटी जो थी.

रेवा सोचने लगी, ‘मां तो वैसे भी रेवती को ही चाहती थीं, मुझे तो उन्होंने हमेशा अपने से दूर ही रखा. पता नहीं मैं उन की सगी बेटी हूं भी या नहीं.’ फिर सोचने लगी कि चलो, अब तो मां चली ही गई, अब उन से क्या शिकवाशिकायत करना. उसे आज तक, बल्कि अभी तक, समझ में नहीं आया कि मां सब से तो अच्छी तरह बोलतीबतियाती थीं, पर उस के साथ हमेशा कठोर क्यों बन जाती थीं. रेवा शुरू से पढ़ने में बड़ी तेज थी और अपनी क्लास में हमेशा टौप करती, जबकि रेवती औसत दर्जे की स्टूडैंट थी. मां रेवती को रोज जबरदस्ती पढ़ाने बैठतीं और उस पर मेहनत करतीं, तब जा कर वह किसी तरह क्लास में पास होती थी. उधर, रेवा ने अपने स्कूलकालेज में मार्क्स लाने के कितने ही कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए और ऐसे नए मानक गढ़ दिए जिन का टूटना असंभव सा था. स्कूलकालेज में रेवा पिं्रसिपल व टीचर के प्यार से ज्यादा, इज्जत की हकदार बन बैठी थी. उस के क्लासमेट उस की ज्ञान की वजह से उस से एक तरह से डरते थे और एक दूरी बना कर ही रखते थे और इन्हीं कारणों से उस की कोई अच्छी सहेली भी नहीं बन सकी.

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Mother’s Day Special: जिद- भाग 3- क्यों मां के लाड़दुलार के लिए तरसी थी रेवा

‘‘दीदी, चाय बना रही हूं, पियोगी.’’ रेवती की आवाज सुन कर रेवा वापस वर्तमान में लौट आई. उसे लगा कि बचपन की कड़वाहट फिर से मुंह को कसैला कर गई. कई बार रेवा मन को समझा चुकी है कि मां के जाने के बाद उसे अब सबकुछ भूल जाना चाहिए. परंतु वह क्या करे, मन के बेलगाम घोड़े अब भी उसी जानीपहचानी व अनचाही राह पर निकल पड़ते हैं. मां की बरसी के बाद रेवा ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. रेवती के बहुत कहने के बाद, उस ने मां के कपड़ों में से 1-2 साडि़यां रख लीं और मां की 1-2 छोटीबड़ी तसवीरें. आखिर नियत तिथि पर रेवा चली गई. यद्यपि उस ने लाख मना किया, पर रेवती व उस का पति राकेश उसे एअरपोर्ट तक छोड़ने आए. उस का छोटा बच्चा रेवा मौसी की गोद में ही बैठा रहा और लगातार उस से पूछता रहा, ‘‘मौसी, आप फिर कब आओगी?’’ रेवा उस नन्हे से, फिर से आने का वादा कर के सिक्योरिटी चैक से अंदर चली गई. उसे लगा कि जितना वह इन बंधनों को भूलना चाहती है, एक नया मोहपाश उसे बांधने को तैयार खड़ा मिलता है.

वैब चौइस से उसे प्लेन में अच्छी सीट मिल गई थी और वह सामान रख कर सोने के लिए पसर गई. 1-2 घंटे की गहरी नींद के बाद रेवा की आंख खुल गई. पहले सीट के सामने वाली टीवी स्क्रीन पर मन बहलाने की कोशिश करती रही, फिर बैग से च्युंगम निकालने के लिए हाथ डाला तो साथ में मां की वह डायरी भी निकल आई. मन में आया कि देखूं, आखिर मां मुझ से क्या कहना चाहती थीं जो उन्हें इस डायरी को लिखना पड़ गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने उस पर लगी सील को खोल डाला और समय काटने के लिए पन्ने पलटने शुरू किए. एक बार पढ़ने का सिलसिला जब शुरू हुआ तो अंत तक रुका ही नहीं. पहले पेज पर लिखा, ‘‘सिर्फ अपनी प्रिय रेवा के लिए,’’ दूसरे पन्ने पर मोती के जैसे दाने बिखरे पड़े थे. लिखा था, ‘‘मेरी प्रिय छोटी सी लाडो बिटिया, मेरी जान, मेरी रेवू, जब तुम यह डायरी पढ़ रही होगी, मैं तुम्हारे पास नहीं हूंगी. इसीलिए मैं तुम्हें वह सबकुछ बताना चाहती हूं जिस की तुम जानने की हकदार हो.

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‘‘मैं अपने मन पर कोई बोझ ले कर जाना नहीं चाहती और तुम मेरी बात समझने तो क्या, सुनने के लिए भी तैयार नहीं थी. सो, जातेजाते अपनी वसीयत के तौर पर यह डायरी दे कर जा रही हूं क्योंकि तुम हमारी पहली संतान हो तुम, जैसी नन्ही सी परी पा कर मैं और तुम्हारे पापा निहाल हो उठे थे.

‘‘धीरेधीरे मैं तुम में अपना बचपन तलाशने लगी. छोटी होने के नाते मैं जिस प्यार व चीजों से महरूम रही, वे खिलौने, वे गेम मैं ढूंढ़ढूंढ़ कर तेरे लिए लाती थी. जब तुम्हारे पापा कहते, ‘तुम भी बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हो,’ सुन कर ऐसा लगता कि मेरा अपना बचपन फिर से जी उठा है. धीरेधीरे मैं तुम में अपना रूप देखने लगी और तुम्हारे साथ अपना बचपन जीने लगी. जो कुछ भी मैं बचपन में नहीं हासिल कर पाई थी, अब तलाश करने की कोशिश करने लगी. ‘‘समय के साथ तुम बड़ी होने लगी और मेरी फिर से अपना बचपन सुधारने की ख्वाहिश बढ़ने लगी. तुम पढ़ने में बहुत तेज थी. प्रकृति ने तुम्हें विलक्षण बुद्धि से नवाजा था. तुम हमेशा क्लास में प्रथम आती और मुझे लगता कि मैं प्रथम आई हूं. यहां तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि मैं बचपन से ही पढ़ाई में काफी कमजोर थी, पर तुम्हें यह बताती रही कि मैं भी हमेशा तुम्हारी तरह कक्षा में प्रथम आती थी. इसीलिए मेरे मन में एक ग्रंथि बैठ गई थी कि मैं तुम्हारे द्वारा अपनी उस कमी को पूरा करूंगी.

‘‘समय के साथसाथ मेरी यह चाहत सनक बनती चली गई और मैं तुम पर पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक जोर डालने लगी. जब मुझे लगा कि घर पर तुम्हारी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाएगी, तो मैं ने तुम्हारे पापा के लाख समझाने को दरकिनार कर छोटी उम्र में ही तुम्हें होस्टल में डाल दिया. इस तरह मैं ने तुम्हारा बचपन छीन लिया और तुम भी धीरेधीरे मशीन बनती चली गई. दूसरी तरफ रेवती पढ़ने में कमजोर थी और मैं उसे खुद ले कर पढ़ाने बैठने लगी. जरा सी डांट पर रो देने वाली रेवती, हमारे प्यारदुलार का ज्यादा से ज्यादा हकदार बनती चली गई और मुझे पता ही नहीं चला. और तो और, मुझे पता नहीं चला कि कब तुम्हारे हिस्से का प्यार भी रेवती के हिस्से में जाने लगा. ‘‘तुम्हारे लिए अपना प्यार जताने का हमारा तरीका थोड़ा अलग था. मैं सब के सामने तुम्हारी तारीफों के कसीदे पढ़ कर, उस पर गर्व करने को ही प्यार देना समझती रही. पर सच जानो रेवू, मैं तुम्हें उस से भी ज्यादा प्यार करती थी जितना कि रेवती को करती थी. पर क्या करूं, यह कभी बताने या दिखाने का मौका ही नहीं मिल सका या हो सकता है कि मेरा प्यार दिखाने या जताने का तरीका ही गलत था.

‘‘जैसेजैसे तुम बड़ी होती गई, तुम्हारे मन में धीरेधीरे विद्रोह के स्वर उभरने लगे. मैं तुम्हें आईएएस बनाना चाहती थी जिस से अपनी हनक अपने जानपहचान, नातेरिश्तेदारों व दोस्तों पर डाल सकूं. पर तुम ने इस के लिए साफ इनकार कर दिया और प्रतियोगिता के कुछ प्रश्न जानबूझ कर छोड़ दिए. तुम्हारी या कहो मेरी सफलता में कोई बाधा न आए, इसलिए मैं ने तुम्हें किसी लड़के से प्यारमुहब्बत की इजाजत भी नहीं दी थी. पर तुम ने उस में भी सेंध लगा दी और विद्रोह के स्वर तेज कर दिए और सरस से चुपचाप विवाह कर लिया.

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‘‘तुम तो विलक्षण प्रतिभा की धनी थी, इसलिए एक मल्टीनैशनल कंपनी ने तुम्हें हाथोंहाथ ले लिया. पर तुम ने अपनी मां के एक बड़े सपने को चकनाचूर कर दिया. इस के बाद तो तेरी मां ने सपना ही देखना बंद कर दिया. समय के साथ, मैं ने तुम्हारे पति को भी स्वीकार कर लिया और सबकुछ भूल कर तुम्हारे कम मिले प्यार की भरपाई करने में जुट गई. पर अब तुम इस के लिए तैयार नहीं थी, तुम्हारे मन में पड़ी गांठ, जिसे मैं खोलने या कम से कम ढीला करने की कोशिश कर रही थी, उसे तूने पत्थर सा कठोर बना लिया था. हां, अपने पापा के साथ तुम्हारा व्यवहार सदैव मीठा, स्नेहपूर्ण व बचपन जैसा ही बना रहा. ‘‘तुम्हारी यह बेरुखी या अनजानेपन वाला व्यवहार मेरे लिए सजा बनता गया, जिसे लगता है मैं अपने मरने के बाद भी साथ ले कर जाऊंगी. पर रेवू, कभी तूने सोचा कि मैं भी तो एक मां हूं और हर मां की तरह मेरा दिल भी अपने बच्चों के प्यार के लिए तरसता होगा. तुम और रेवती दोनों मेरी भुजाओं की तरह हो और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं ने अपने दाएं हाथ, अपनी रेवी पर ज्यादा भरोसा कर लिया. हर मां की तरह मेरे मन में भी कुछ अरमान थे, कुछ सपने थे जिन्हें मैं ने तुम्हारी आंखों से देखने की कोशिश की. अगर इस के लिए मैं गुनाहगार हूं, तो मैं अपना गुनाह स्वीकार करती हूं. पर अफसोस तूने तो बिना कुछ मेरी सफाई सुने, मेरे लिए मेरी सजा भी मुकर्रर कर दी और उस की मियाद भी मेरे मरने तक सीमित कर दी.

‘‘मैं ने यह डायरी इस आशय से तुम्हें लिखी है कि शायद आज तुम मेरी बात को समझ सको और अपनी मां को अब माफ कर सको. अंत में ढेर सारे आशीर्वाद व उस स्नेह के साथ जो मैं तुम्हें जीतेजी न दे सकी…तेरी मां.’’

डायरी का आखिरी पन्ना पलट कर, रेवा ने उसे बंद कर दिया. कभी न रोने वाली रेवा का चेहरा आंसुओं से तरबतर होता चला गया और इतने दिनों की वो जिद, वो गांठ भी साथ ही घुलने लगी. पर आज उस ने भी उन आंसुओं को न तो पोंछा, न ही रोका. उसे लगा सर्दी बढ़ गई है और उस ने कंबल को सिर तक ढक लिया. वह ऐसे सो गई जैसे कोई बच्चा अपनी मां की खोई हुई गोद में इतमीनान से सो जाता है. आज रेवा को भी लगा कि मां कहीं गई नहीं है और पूरी शिद्दत से आज भी उस के पास है. मां की गोद में सोई रेवा की आंखों से आंसू मोती बन कर बह रहे थे. तभी उसे लगा, मां ने उस के आंसू पोंछ कर कहा, ‘अब क्यों रोती है मेरी लाड़ो, अब तो तेरी मां हमेशा तेरे पास है.’ …और रेवा करवट बदल कर फिर गहरी नींद में चली गई.

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Mother’s Day Special: जिद- भाग 2- क्यों मां के लाड़दुलार के लिए तरसी थी रेवा

मां ने तो वैसे भी उसे तीसरी क्लास से ही होस्टल में डाल दिया था. कई बार रोने के बाद भी उन का दिल नहीं पसीजा. खैर, पापा हर शनिवार की शाम को उसे घर ले जाने के लिए आ जाते और सोमवार की सुबह उसे स्कूल छोड़ जाते. रेवा के लिए वह एक दिन बड़ा सुकूनभरा होता, दिनभर वह अपने पापा के साथ मस्ती करती. मां कई बार पूछतीं कि कोर्स की कोई कौपीकिताब लाई कि नहीं, और वह इन प्रश्नों से बचने के लिए पापा के पीछे दुबक जाती. उस के 8वीं पास करने के साथ ही पापा का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. सो, सप्ताह में एक दिन घर आनेलाने का चक्कर भी खत्म हो गया.

इस शहर से जाने के बाद भी पापा, हर महीने एक बार छुट्टी वाले दिन जरूर मिलने आते और कभीकभार मम्मी भी साथ में आतीं. मां आते ही उस के हालचाल जानने से पहले ही पढ़ाई के बारे में पूछने बैठ जातीं. सो, पापा का अकेले आना, उसे हमेशा बड़ा भाता था. वह जो भी फरमाइश करती, पापा तुरंत पूरी करते, तरहतरह की ड्रैसेस दिलाते, लंच व डिनर बाहर ही होता व उस की मनपसंद आइसक्रीम दिन में कई बार खाने को मिलती. इस तरह धीरेधीरे रेवा अपनी मां से दूर होने लगी और अकसर एक रटारटाया मुहावरा उस के मुंह पर आने लगता, ‘‘मां तो बस, रेवती की ही मां हैं. सारा प्यार मां ने उस के लिए ही रख छोड़ा है, मुझ से तो वे प्यार करती ही नहीं.’’ इंटर तक रेवा उसी कालेज में पढ़ती रही और उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में पूरे प्रदेश में मैरिट में प्रथम स्थान प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया. उस कालेज की पिं्रसिपल ने तो फेयरवैल पार्टी वाली स्पीच में यहां तक कह दिया कि इस लड़की रेवा का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में होेने से कोई नहीं रोक सकता और इस कालेज को उस पर बहुत गर्व है.

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छोटे से शहर लखनऊ के उस छोटे कालेज से निकल कर रेवा को लेडी श्रीराम कालेज, दिल्ली में दाखिला हाथोंहाथ मिल गया. साथ ही, मां ने उसे आईएएस के ऐंट्रैंस की कोचिंग भी जौइन करा दी. फिर तो रेवा अपनी पढ़ाई की भागदौड़ में इस तरह मसरूफ हो गई कि उसे मां के पास रहने और उन का प्यारदुलार पाने का मौका ही नहीं मिला जिस के लिए वह हमेशा तरसती रही थी.

पता नहीं कैसे, एक दिन अचानक रेवा को लगने लगा कि वह तो एकदम मशीन बनती जा रही है और इस के लिए अब उस का मन कतई तैयार नहीं था. रहरह कर उसे अब बचपन के वे दिन याद आ रहे थे, जब वह मांबाप के प्यार से वंचित रही. धीरेधीरे उस में विद्रोह के मूकस्वर उठने लगे. सब से पहले उस ने कालेज में टौप करने के लक्ष्य को ढीला छोड़ना शुरू कर दिया. उस के मन में एकाएक खयाल आया कि अगर वह दूसरे स्थान पर आ जाती है, तो किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद उस ने आईएएस कोचिंग में भी ढील देनी शुरू कर दी. इन बातों से रेवा की एक अजीब सी जिद हो गई. इस कारण वह क्लास में पहले द्वितीय, फिर तृतीय स्थान पर आ गई जिस से उस के सभी साथी आश्चर्यचकित रह गए. इसी तरह आईएएस कोचिंग के साप्ताहिक टैस्टों में उस के नंबर कमतर आने शुरू हो गए. जैसे ही मां को इस का पता चला, वे दिल्ली पहुंच गईं और उसे लगातार डांटती रहीं. रेवा को यह देख कर बड़ा सदमा लगा कि रेवती को हर साल नंबर कम आने पर प्यार से समझाने वाली मां, आज कहां खो गई हैं. मां तो डांट कर चली गईं, पर रेवा के मन में एक विद्रोह की चिनगारी को अनजाने में और भड़का गईं. रेवा सोचती रही कि मां अगर प्यार के दो बोल बोल कर समझा देतीं तो कौन सा आसमान छूना उस के लिए संभव न था.

इसी बीच एक और बात हो गई. मां की खास सहेली मंदिरा का लड़का और उस का बालपन का सखा सरस भी दिल्ली आ गया. एक दिन सरस से उस की मुलाकात एक मौल में हो गई. दोनों ने वहां कौफी पी और एकदूसरे का मोबाइल नंबर एक्सचेंज किया. फिर तो आपस में बातों का सिलसिला ऐसा चला कि बचपन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, पता ही न चला. सरस ने अपनी मां से जब इस बारे में बात की तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. अगला अवसर मिलते ही, सरस की मां मंदिरा आंटी, मां के पास पहुंच गई. जैसे ही उन्होंने मां को बताया कि सरस व रेवा आपस में प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं, मां का चेहरा उतर गया. जब उन्हें पता चला कि सरस ने इंजीनियरिंग की है और वह जौब पाने के लिए प्लेसमैंट फौर्म भर रहा है, तो मां ने इस शादी के लिए यह कह कर इनकार कर दिया कि रेवा को तो अभी आईएएस बनना है. एक इंजीनियर व आईएएस में शादी कैसे हो सकती है.

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जैसे ही रेवा को इस बात का पता चला, विद्रोह की वह छोटी सी चिनगारी एकदम ज्वाला बन गई. परिणामस्वरूप, उस ने प्रतियोगिता परीक्षा का एक पेपर ही छोड़ दिया. मां को जब इस का पता चला तो वे बहुत चीखीचिल्लाईं. कितनी ही बार पूछने पर भी कि उस ने ऐसा क्यों किया, रेवा खामोश बनी रही. कुछ असर न होता देख, मां रेवा को समझाने बैठ गई. काफी देर बाद, रेवा ने जो पहला वाक्य कहा, वह यह था कि वे उसे सरस से विवाह करने देंगी या नहीं, अन्यथा दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे. अब तो मां रोने बैठ गईं, परंतु इन बातों का रेवा पर कोई असर नहीं हुआ. कुछ दिन रुक कर वह दिल्ली लौट गई और उस ने पत्रकारिता के कोर्स में प्रवेश ले लिया. धीरेधीरे रेवा ने घर आना भी कम कर दिया. इधर, सरस को एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर जौब मिल गई और उधर रेवा को दूरदर्शन के न्यूज चैनल में काम मिल गया. मां ने लाख समझाया, पर रेवा ने भी जिद पकड़ ली और इस के बाद फिर आईएएस की प्रतियोगिता में बैठी ही नहीं. बाद में सरस और रेवा ने विवाह कर लिया जिस में मां शामिल तो हुईं पर बड़े ही बेमन से. इस के कुछ सालों बाद, रेवा सरस के साथ लास एंजिल्स चली गई और वहीं की नागरिकता ले ली.

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फोटो प्रेमः सिंपल कहानी को असाधारण बनाती नीना कुलकर्णी के शानदार एक्टिंग

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः मेहुल शाह,आदित्य राठी और  गायत्री पाटिल

लेखक व निर्देशकः आदित्य राठी और गायत्री पाटिल

कलाकारः नीना कुलकर्णी, अमिता खोपकर,विकास हांडे, चैताली रोडे,समीर धर्माधिकारी, समय संजीव तांबे

अवधिः एक घंटा तैंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः अमैजॉन प्राइम

पिछले कुछ वर्षों से दर्शक  व्यावसायिक सिनेमा देखते देखते उब गया है. लेकिन अब लोगों के चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान लाने वाली फिल्म ‘‘फोटो प्रेम’’ओटीटी प्लेटफार्म अमैजॉन प्राइम पर आयी है. फिल्म मराठी भाषा में है. कुछ संवाद हिंदी में है. मगर हर किसी को इसकी बातें समझ में आ सकती हैं. वैसे भी फिल्म में अंग्रेजी भाषा में सब टाइटल्स हैं. इस फिल्म की कहानी एक सहज व सीधी सादी महिला की है,जो भविष्य की पीढ़ियों द्वारा उसके निधन के बाद उसे भूल जाने को लेकर चिंतित है.

कहानीः

फिल्म की कहानी शुरू होती है अविनाश और मयूरी(प्रडण्या जावले)के विवाह से,जहां एक फोटोग्राफर इन दोनों की अलग अलग पोज में फोटो खींच रहा है. लेकिन मयूरी की 55 वर्षीय माई यानी कि मां सुनंदा(नीना कुलकर्णी ) को फोटो खिंचवाने में कोई रूचि नही है. सुनंदा को ‘फोटो फोबिया’@6कैमरा फोबिया’है. मयूरी के दबाव में अनमने मन से वह किसी तरह फोटो खिंचवा लेती है. उसके कुछ दिन बाद पता चलता है कि सुनंदा के पति के सहकर्मी जोशी की पत्नी का निधन हो गया है. सुनंदा और उसके पति जोशी के घर पहुंचते है. वहां पता चलता है कि शोकसभा में रखने और अखबार में श्रृद्धांजली के साथ छपने के लिए जोशी की पत्नी की कोई फोटो नही है. वह लोग उसकी बचपन की एक फोटो का ‘फोटोफ्रेम’ बनाकर शोकसभा में रखते है. यह देखकर माई यानी कि सुनंदा चिंतित हो जाती है. सुनंदा ने भी कभी फोटो नहीं खिंचवायी. उन्हें याद आता है कि शादी के लिए जब फोटो देनी थी,तो किस तरह उनके माता पिता ने फोटोग्राफर को घर बुलाकर जबरन उनकी फोटो खिंचवायी थी.

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अब सुनंदा को लगता है कि यदि उनकी अच्छी फोटो नही होगी,तो उनके निधन के बाद उनकी भविष्य की पीढ़ी यानी कि उनकी बेटी मयूरी के बच्चे उसे किस रूप में याद रखेंगे. अब सुनंदा अपनी तस्वीर तलाशना शुरू करती है. पर उनकी कोई ऐसी तस्वीर नही मिलती,जिसमें उनका चेहरा साफ नजर आता हो. यहां सुनंदा की कैमरे के अपने डर को दूर करने और एक अच्छी  फोटो के लिए जद्दोजेहाद शुरू हो जाती है. अंततः वह अपनी फोटो  खिंचवाने के लिए फोटो स्टूडियो जाती है. मगर अपने स्वभाव के चलते बिना फोटो खिंचवाए ही वापस आ जाती हैं. पर अब वह हर दिन सुबह उठकर अखबार में सिर्फ वही पन्ना पढ़ती हैं,जिसमें मृतको की सूचना वाली खबरें व फोटो छपती हैं. एक दिन वह अपने पड़ोस की छोटी लड़की को लड्डू देने के बहाने बुलाकर अपना राजदार बनाकर उसे अपनी फोटो खींचने के लिए कहती हैं. वह बच्ची अपने घर से वेब कैमरा लाकर,सुनंदा को ‘दिल्ली प्रेस’ ‘गृहशोभा’ पत्रिका प्रकाशन की मराठी भाषा की पत्रिका ‘गृहशोभिका’ में छपी तस्वीरे दिखाकर बताती है कि उन्हें किस तरह से चेहरे पर भाव लाना है. वह लड़की सुनंदा की ढेर सारी फाटो खंच डालती है. पर इनमें से सुनंदा को कोई पसंद नही आती है. इसी बीच उनके अंतर्मन से आवाज आती है कि,‘लोग इंसान का चेहरा याद नही रखते. बल्कि इंसान की आत्मा,उसके स्वभाव व उसके कर्म को याद रखते हंै. मगर सुनंदा अपने पास छिपाकर रखे गए पच्चीस हजार रूपयों से अपने घर पर काम करने वाली शांताबाई के साथ जाकर अपना स्पेशल फोटोसेशन करवाती हैं. सुनंदा के निधन के बाद सुनंदा की फोटो की फोटो देखकर सुनंदा के पति व बेटी मयूरी कहती है कि उन्होेने तो कभी यह फोटो खिंचवाते हुए सुनंदा को देखा ही नही था.

लेखन व निर्देशनः

यह फिल्म इंसान की अपनी सोच,डर व अप्रत्याशिता पर ‘डार्क ह्यूमर’है. बेहतरीन पटकथा पर बनी फिल्म बड़ी सहजता से आगे बढ़ती रहती है और एक साधारण कहानी के साथ दर्शक अंत तक जुड़ा रहता है. यह साधारण कहानी दिल को छू जाती है. चरित्र चित्रण कमाल के हैं. सुनंदा क्या सोचती है,इसे दर्शक बड़ी सहजता से समझता रहता है.  यह बड़ी संजीदगी के साथ बनायी गयी फिल्म है. फिल्म की गति काफी धीमी है.

फिल्मकारों ने इंसानी जीवन की सूक्ष्मताओं का बड़ी बारीकी से इसमें चित्रण किया है. इतना ही उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह रोजमर्रा के जीवन से भी हास्य को निकालते हैं. सोशल मीडिया व सेल्फी के युग में भी सुनंदा इस कदर अपी ही दुनिया में फंसी हुई है कि वह बार बार एक ही मिक्सर को ठीक करवाती रहती है. पर जब वह इस जड़ता से बाहर आती है,तो वह नया मिक्सर खरीदती है. यह बेहतरीन प्रतीकात्मक दृश्य है. इसी के साथ यह भी कहीं न कहीं एक अहसास है कि एक अच्छी तस्वीर या कई चित्र व्यक्ति के दिल आत्मा के अच्छे न होने पर याद रखने की गारंटी नहीं देते हैं.

फिल्म के कई संवाद काफी अच्छे हैं. मसलन एक संवाद है-‘‘मणा ना तू छान असला तर फोटो पण छाण येते. ’’इसका मतलब -‘‘यदि आप अंदर से अच्छे इंसान हैं,आपकी भवनाएं अच्छी हैं,तो फोटो भी अच्छी आती है. ’’

फिल्म मराठी भाषा में है. लेकिन इसमें कुछ संवाद हिंदी भाषा में भी हैं. इतना ही इसमें जीवन की दार्शनिकता वाला सूफी गाना हिंदी में हैं. जबकि सब टाइटल्स अंग्रेजी में हैं.

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अभिनयः

सुनंदा माई के किरदार में नीना कुलकर्णी का अभिनय अति उत्कृष्ट,शानदार व सरल है. वह अपने अभिनय के बल पर अकेले ही पूरी फिल्म को शानदार अंजाम तक ले जाने में सफल रही हैं. अमिता खोपकर,विकास हांडे,समीर धर्माधिकारी अपने छोटे किरदारों में भी अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

कार्तिक देगा कुर्बानी, क्या फिर एक होंगे सीरत और रणवीर!

फैंस का फेवरेट सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है इन दिनों सुर्खियों में हैं. जहां दर्शक कार्तिक और सीरत को साथ देखने के लिए बेताब हैं तो वहीं मेकर्स शो की कहानी में नया ट्विस्ट लाने के लिए तैयार हैं. दरअसल, जल्द कार्तिक और सीरत की शादी होने वाली है. लेकिन इससे पहले ही रणवीर और सीरत की गलतफहमियां दूर हो जाएंगी. आइए आपको बताते हैं कि क्या होगा शो में आगे…

रणवीर का होता है एक्सीडेंट

अब तक आपने देखा कि कार्तिक और सीरत की सगाई हो गई है, जिसके कारण रणवीर काफी गुस्से में नजर आता है. इस बीच रणवीर का एक्सीडेंट का शिकार हो जाता है, जिसके चलते सीरत उसे कार्तिक के साथ अस्पताल पहुंचाती है. हालांकि इस दौरान कार्तिक को सीरित और रणवीर के बीच पैदा हुई गलतफहमी का सच पता चल जाता है.

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सीरत करेगी सवाल

जहां कार्तिक को रणवीर और सीरित के रिश्ते की गलतफहमियों का सच पता चलेगा तो वहीं आने वाले एपिसोड में सीरत और रणवीर के बीच जबरदस्त लड़ाई होगा. वहीं इस दौरान सीरत, रणवीर से कई सवाल पूछेगी, जिसके कारण वह चुप हो जाएगा. लेकिन कार्तिक दोनों की इस लड़ाई को खत्म करने के लिए एक कदम उठाएगा.

क्या एक हो जाएंगे रणवीर-सीरत

 

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अपकमिंग एपिसोड में कार्तिक, सीरत को रणवीर से मिलाने ले जाएगा. जहां वह सीरत को बताएगा कि रणवीर ने उसे धोखा नही दिया बल्कि वह एक गलतफहमी का शिकार हो गई है. वहीं सीरत, कार्तिक की बातों को मानकर रणवीर से सच जानने की बात कहेगी तो सवाल का जवाब देते हुए रणवीर बताएगा कि जिस दिन उसकी और सीरत की शादी होने वाली थी. उस दिन उसे गोली लग गई थी, जो कि उसके पिता ने सीरत को मारने भेजे गुंडो से लगवाई थी, जिसके कारण वह उससे शादी करने नहीं पहुंच पाया था. वहीं इस कारण रणवीर-सीरत की सारी गलतफहमियां दूर हो जाएंगी. दूसरी तरफ कार्तिक इस बात के लिए परेशान नजर आएगा कि वह कैसे कायरव को सीरत और अपने रिश्ते का सच बताएगा.

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काव्या से सारे रिश्ते तोड़ेगा वनराज, अनुपमा के लिए करेगा ये फैसला

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ के सेट पर कोरोना के मामले मिलने के बावजूद शो की टीआरपी में कोई कमी नहीं आई हैं. वहीं इस हफ्ते भी यह सीरियल चार्ट्स में पहले नंबर पर बना हुआ है. इसी बीच मेकर्स शो की कहानी में धमाकेदार ट्विस्ट लाने के लिए तैयार हैं, जिसके चलते अनुपमा की जिंदगी में उथल-पुथल देखने को मिलने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला ट्विस्ट,…

समर-नंदिनी की होगी सगाई

सीरियल अनुपमा में अब तक आपने देखा कि नंदिनी के अतीत के सच से बेखबर शाह परिवार सगाई की तैयारियों में बिजी है. वहीं अनुपमा ने वनराज से सगाई के बाद तलाक लेने की बात परिवार को बताने के लिए भी कहा है, जिसके चलते वनराज कशमकश में फंस गया है. वहीं बीते दिनों शांत रही काव्या शाह परिवार की खुशियों में ग्रहण लगाने की तैयारी कर रही है.

 

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काव्या करेगी ड्रामा

 

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आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां शाह परिवार समर और नंदिनी की सगाई सेलिब्रेट कर रहा होगा तो वहीं इस फंक्शन में काव्या भी एंट्री करते हुए नजर आएगी. दरअसल, अनुपमा अपनी बीमारी को भूलकर कुछ पल अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी बिताएगी. लेकिन इस बीच काव्या फंक्शन में आकर नाटक करती नजर आएगी क्योंकि वनराज उससे दूर हो रहा है, जिसके चलते वह अनुपमा की खुशियों पर ग्रहण लगाएगी.

वनराज उठाएगा ये कदम

 

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काव्या की इस हरकत से तंग आकर वनराज गुस्से में नजर आएगा और उसे फंक्शन से खींच कर ले जाएगा. वहीं अनुपमा इस कारण बेहद दुखी होगी और तांडव डांस करती नजर आएगी. दूसरी तरफ वनराज, काव्या को गुस्से में कहेगा अब तक उसने अपनी मनमानी की अब वह अपनी मनमानी करेगा. और कहेगा कि वह ना तो कोर्ट जाएगा और ना ही अनुपमा को तलाक देगा. साथ ही काव्या की जिंदगी में कभी वापस नही लौटेगा. अब देखना है कि वनराज के इस फैसले के बाद अनुपमा क्या कदम उठाएगी.

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‘पिंक बूथों’ पर टीका लगवाएंगी यूपी की महिलाएं

प्रदेश की महिलाओं और बेटियों को कोविड संक्रमण से बचाने के लिये योगी सरकार सोमवार से प्रदेश में विशेष टीकाकरण अभियान शुरू करने जा रही है. इसके लिये सभी 75 जिलों में पिंक बूथ बनाए जाएंगे. इन बूथों पर केवल महिलाओं का ही वैक्सीनेशन होगा. इसकी तैयारी के लिये सीएम योगी आदित्यनाथ ने टीम-9 के अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये हैं. उन्होंने वृहद स्तर पर प्रदेश में चल रहे टीकाकरण अभियान को गति देने के लिये नर्सिंग कॉलेजों के प्रशिक्षु विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करने के लिये कहा है. अगले सप्ताह से टीकाकरण के लिये उनका प्रशिक्षण शुरू करने के निर्देश दे दिये हैं.

कोविड संक्रमण से बचाव के लिये 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के अभिभावकों के बाद अब योगी सरकार महिलाओं को सुरक्षा कवर देने जा रही है. सरकार की ओर से यूपी में पहले से ही 18 से 44 और 45 आयु वर्ग से ऊपर के बुजुर्गों के लिये टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए सोमवार से यूपी की महिलाओं के लिये विशेष टीकाकरण का अभियान शुरू होने जा रहा है. महिलाओं को सशक्त और स्वाबलंबी बनाने के लिये योगी सरकार ने प्रदेश में कई अहम कदम उठाए हैं. उनके कदमों को रफ्तार देने के लिये कई योजनाएं भी यूपी में संचालित की गई हैं. वर्तमान में कोविड संक्रमण से महिलाओं को बचाने के लिये यह अभियान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. प्रदेश के प्रत्येक जनपद में महिलाओं को सुरक्षा कवर प्रदान करने के लिये विशेष तैयारी की जा रही है.

यूपी में कोरोना से बचाव के लिए शुरू किये गये वृहद अभियान में अब तक प्रदेश में 01 करोड़ 98 लाख 38 हजार 187 डोज लगाए जा चुके हैं. बीते 24 घंटे में 04 लाख 01 हजार 582 लोगों ने टीका-कवर प्राप्त किया. गौरतलब है कि योगी सरकार ने प्रदेश में 18 से 44 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए 5000 सेंटर, 12 साल से कम उम्र के अभिभावकों के लिए बनाए 200 बूथ और 45 की आयु से ऊपर के लोगों के लिए 3000 सेन्टर बनाये हैं. सोमवार से महिलाओं के लिये भी यूपी सरकार पिंक बूथ बनाने जा रही है.

जून माह में एक करोड़ लोगों को टीका कवर देगी योगी सरकार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों से कहा है कि कोविड टीकाकरण की प्रक्रिया प्रदेश में सुचारू रूप से चल रही है, किंतु अब इसे और तेज करने की जरूरत है. जून माह में हमारा लक्ष्य एक करोड़ लोगों को टीका-कवर देना है. जबकि जुलाई माह में इसे दो से तीन गुना तक विस्तार देने की योजना है. उन्होंने कहा है कि इसके लिये बड़ी संख्या में वैक्सीनेटर की आवश्यकता होगी.

Mother’s Day Special: मां बनने के बाद भी कायम रहा जलवा

अक्सर एक महिला की जिंदगी की शुरुआत एक आज्ञाकारी, संस्कारी और प्यारी सी बेटी के रूप में होती है, जिस के कंधों पर जहां एक तरफ परिवार की इज्जत बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है तो वहीं दूसरी तरफ घर वालों की उम्मीदों पर खरा उतरने का दायित्व भी होता है. उस से यह अपेक्षा की जाती है कि वह मांबाप का कहा माने और कुछ ऐसा न करे कि कोई ऊंचनीच हो जाए.

कुछ घरों में बेटी को आगे बढ़ने का मौका दिया जाता है तो कुछ घरों में नहीं. जहां मौका दिया जाता है वहां वह कैरियर की बुलंदियां भी छूती है. शादी के बाद वह ससुराल पहुंचती है जहां का माहौल उस के लिए बिलकुल अजनबी होता है. नया परिवेश, नए लोग और नई अपेक्षाओं के बीच वह अपना वजूद कहीं भूल सी जाती है. यदि पति उदार है तो पत्नी को आगे बढ़ने का मौका देता है.

वैसे खुद स्त्री की पहली प्राथमिकता हमेशा से घरपरिवार रही है खासकर मां बनने के बाद उस की जिंदगी पूरी तरह अपने बच्चे के आसपास घूमने लगती है. बेटी और पत्नी से शुरू हुआ सफर मां पर आ कर खत्म हो जाता है और खुद की पहचान बनाने की चाह अंदर ही अंदर कसमसाती रहती है. कभी समाज आगे नहीं बढ़ने देता तो कभी वह खुद ही हिम्मत नहीं जुटा पाती.

खुद बनाएं पहचान

महिलाओं को यह बात समझनी चाहिए कि मां बनने का मतलब यह नहीं कि उन का कैरियर खत्म हो गया. मां बनने के बाद भी वे अपनी सुविधानुसार काम कर सकती हैं और अपनी पहचान बना सकती हैं.

आज ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने मां बनने के बाद अपने कैरियर को नया रूप दिया और घर संभालने के साथसाथ अपनी अलग पहचान भी बनाई. उन की लगन देख कर ससुराल वालों ने भी उन का पूरा साथ दिया.

2 नन्हेनन्हे बच्चों की मां दीक्षा मिश्रा भी  इस का अच्छा उदाहरण है, जो एक ऐंटरप्रेन्योर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के तौर पर जानी जाती है.

बेहद आकर्षक और स्लिम फिगर वाली दीक्षा मिश्रा को देख कर यह यकीन करना कठिन होगा कि वह 2 बच्चों की मां है. दीक्षा ने अपने कैरियर की शुरुआत मीडिया पीआर प्रोफैशनल के रूप में की. वह मार्केटिंग और कौरपोरेट कम्युनिकेशन हैड के रूप में कई सालों तक बड़ेबड़े लग्जरी लाइफस्टाइल और हौस्पिटैलिटी ब्रैंड के साथ काम करती रही.

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शादी के करीब 3 साल बाद तक दीक्षा मिश्रा ने काम किया. फिर 2 बेटों के होने के बाद उन्होंने काम को नया रूप देने और एक ऐंटरप्रेन्योर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के तौर पर फ्रीलांस काम करने का फैसला लिया.

दीक्षा कहती है, ‘‘मेरा एक बेटा 1 साल का और दूसरा 3 साल का है. ऐसे में फुलटाइम 9 से 9 बजे तक की जौब संभव नहीं थी, जबकि फ्रीलांसिंग के रूप में मैं अपने हिसाब से काम कर सकती हूं. इसलिए मैं ने इस औप्शन को चुना और घर से ही काम करने लगी.

‘‘मेरे पुराने कौंटैक्ट्स काम आए और मुझे आगे बढ़ने का मौका मिला. इस तरह काम करने में टाइम के हिसाब से काफी फ्लैक्सिबिलिटी रहती है और बच्चों के साथ काम संभालना कठिन नहीं होता. मेरे पति और सास मुझे पूरा सपोर्ट देते हैं.

‘‘पिछले 1 साल के दौरान मैं ने 100 से ज्यादा ब्रैंड्स के साथ काम किया है. इस तरह मैं अपनी प्रोफैशनल लाइफ के साथ मदरहुड को भी बेहद खूबसूरती से ऐंजौय कर रही हूं. सोशल मीडिया में मेरा हैंडल के नाम से है. मेरा मानना है कि शादी के बाद आप का सफर रुक नहीं सकता. मन में जज्बा हो तो आप आगे जरूर बढ़ सकती हैं.’’

मां बनने के बाद भी नाम कमाया

मेरी कौम

बौक्सिंग की दुनिया का लोकप्रिय नाम एमसी मैरीकौम एक मिसाल हैं. 3 बच्चों को जन्म देने के बाद भी इस महिला ऐथलीट ने रिंग में जलवा बिखेरा. वे 6 विश्व चैंपियन खिताब जीत चुकी हैं. एमसी मैरीकौम भारत के लिए महिला मुक्केबाजी में ओलिंपिक का मैडल हासिल करने वाली पहली भारतीय हैं. 2003 में मैरीकौम को अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया. 3 साल बाद 2006 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. 2009 में उन्हें सब से बड़ा खेल सम्मान ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ पुरस्कार दिया गया.

ताइक्वांडो चैंपियन नेहा

यूपी के मथुरा की ताइक्वांडो चैंपियन नेहा की कहानी उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो शादी के बाद यह मान लेती हैं कि उन का कैरियर खत्म हो गया है. नेहा ने न सिर्फ शादी के बाद पढ़ाई की, बल्कि अपनी मेहनत के दम पर नैशनल ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल भी हासिल किया.

शादी के बाद दूसरी लड़कियों की तरह नेहा को भी लगा था कि अब शायद वह इस खेल को कभी न खेल पाए. लेकिन जब बच्चे बड़े हुए और स्कूल जाने लगे तो नेहा ने दोबारा इस की प्रैक्टिस शुरू की. उस के हौसले को देखते हुए परिवार ने भी उस की मदद की.

पीटी उषा

पीटी उषा न केवल खिलाडि़यों की कई पीढि़यों के लिए प्रेरणा बनीं, बल्कि वे आज भी कई युवा ऐथलीटों के कैरियर को संवारने में अहम भूमिका निभा रही हैं.

पीटी उषा ने दौड़ने की शुरुआत तब की थी जब वह चौथी कक्षा में पढ़ती थी. 1980 में केवल 16 साल की उम्र में पीटी उषा ने मास्को में हुए ग्रीष्मकालीन ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया था. सीओल एशियाई खेलों में भारत ने 5 गोल्ड मैडल जीते थे और इन में से 4 स्वर्ण पदक अकेले उषा ने जीते थे. पीटी उषा को 1983 में अर्जुन अवार्ड दिया गया था. 1995 में उन्हें देश के चौथे सब से बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

शादी, मातृत्व और वापसी

1991 में शादी के कुछ ही दिनों बाद उषा ने ऐथलैटिक्स से ब्रेक ले लिया और अपने बेटे को जन्म दिया. अपने पति वी. श्रीनिवासन के हौसला देने पर उन्होंने खेल की दुनिया में वापसी की. जब उन्होंने 1997 में अपने खेलों के कैरियर को अलविदा कहा तब तक वे भारत के लिए 103 अंतर्राष्ट्रीय मैडल जीत चुकी थीं. उन्होंने ओलिंपिक में मैडल जीतने की चाहत रखने वाले युवा खिलाडि़यों को ट्रेनिंग देने के लिए एक अकैडमी शुरू की. उषा आज भी पूरी तरह एक्टिव हैं.

शुरू किया अपना ऐथलैटिक कैरियर

‘‘मिरैकल फ्रौम चंडीगढ़’’ के नाम से मशहूर 102 वर्षीय मन कौर भारत की सब से वरिष्ठ महिला ऐथलिट हैं. उन्होंने 93 वर्ष की उम्र में अपने ऐथलैटिक कैरियर की शुरुआत की थी. उन्हें भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.

जरूरी है जनून

जिस उम्र में इंसान एक कोने में बैठा अंतिम समय की बाट जोह रहा होता है यदि उस उम्र में कोई महिला ऐथलीट की फील्ड में अपने कैरियर की शुरुआत करे और अपार सफलता भी पाए तो क्या कहेंगे? यह जनून ही है न, जो 93 वर्षीय मन कौर ने 2011 में ऐथलैटिक्स में कदम रखा और उसी वर्ष लंबी कूद (3.21 मीटर) में एक रजत और 100 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता. 2018 में उन्होंने औकलैंड में विश्व मास्टर्स खेलों में 100 मीटर स्प्रिंट जीत कर भारत को गौरवान्वित किया.

मन कौर को यह प्रेरणा और प्रोत्साहन उन के 78 वर्षीय बेटे गुरदेव ने दिया, जो स्वयं एक ऐथलीट हैं. मन कौर को ऐडवैंचर स्पोर्ट्स का भी शौक है. औकलैंड के स्काई टावर के शीर्ष पर चलने वाले सब से बुजुर्ग व्यक्ति होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है. 93 साल की उम्र से शुरुआत करने के बाद भी 102 वर्षीय मन कौर अब तक 20 से अधिक मैडल जीत चुकी हैं.

प्रशिक्षण और डाइट प्लान का पालन करती हैं

मन कौर अच्छी डाइट के साथसाथ नियमित रूप से ट्रेनिंग भी लेती हैं और जिम भी जाती हैं. हर बार जब वे खेल के मैदान में उतरती हैं, तो 5 बार 50 मीटर दौड़ लगाती हैं और 100 और 200 मीटर की 1-1 दौड़ लगाती हैं, जिस में मन कौर अपने शरीर पर काम करती हैं. दिन में 2 बार अंकुरित गेहूं से बनी रोटियां खाती हैं. वे फलों का रस, व्हीटग्रास जूस, नट्स और बीजों का सेवन करती हैं.

सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं ने अपना अलग मुकाम बनाया है. हीरोइनों को देखें तो करीना कपूर, शिल्पा शेट्टी, काजोल, ऐश्वर्या, रानी मुखर्जी, विद्या बालन, मलाइका अरोड़ा जैसी बहुत सी हीरोइनों ने अपना कैरियर कायम रखा और हमेशा सुर्खियों में रहीं. इसी तरह हजारों ऐंटरप्रेन्योर हैं, जो मां बनने के बाद भी खुद को साबित कर रही हैं.

सफल होने के लिए जरूरी हैं कुछ बातें

फोकस जरूरी: एक महिला शादी और बच्चों के बाद भी अपने कैरियर के क्षेत्र में सफल हो सकती है, मगर इस के लिए सब से पहले जरूरी है कि वह फोकस करे. उसे पता होना चाहिए कि उसे किस फील्ड में आगे बढ़ना है. अगर उस के मन में कंफ्यूजन रहा तो वह कहीं नहीं पहुंच सकती. मगर यदि उसे पहले से पता है कि कौन से काम में उस की रुचि और क्षमता है, जिस से वह बेहतर तरीके से आगे बढ़ सकती है, तो वह जरूर सफल होगी.

फ्रीलांस भी है एक औप्शन: शादी और बच्चों के बाद जरूरी नहीं कि आप कुछ ऐसा काम करें, जिस में आप को सुबह से ले कर शाम या रात तक के लिए बाहर जाना पड़े और बच्चों को घर वालों या कामवाली के भरोसे छोड़ना पड़े.

आप अपने लिए कोई फ्रीलांसिंग औप्शन भी खोज सकती हैं. अगर आप ने शादी से पहले काम किया हुआ है, तो आप के पुराने कौंटैक्ट काफी काम आएंगे. अगर आप ने पहले काम नहीं किया है और आप फ्रैशर हैं, तो भी अपनी क्रिएटिविटी से या कुछ नयापन दिखा कर अपने लिए काम ढूंढ़ सकती हैं.

आप कुछ ऐसा नया काम कीजिए, जिस में ज्यादा भागदौड़ न करनी पड़े और जिसे आप आसानी से खुद मैनेज कर सकें. याद रखिए दूसरों के भरोसे रहने से कुछ हासिल नहीं होता.

खुद पर यकीन: जब तक आप को खुद पर यकीन नहीं होगा तब तक घर वाले भी आप को प्रोत्साहित करने की नहीं सोचेंगे. लेकिन जब आप खुद पर यकीन रखती हैं कि मैं सही से मैनेज कर लूंगी तो रास्ते खुदबखुद खुल जाते हैं. बच्चे होने के बाद काम करने का मतलब यह जरूरी नहीं कि आप को बच्चों को अकेला छोड़ना पड़ेगा. आप कोई ऐसा बीच का रास्ता निकाल सकती हैं, जिस से बच्चे भी संभल जाएं और आप अपनी पहचान भी बनाती रहें. अगर आप छोटे बच्चों के साथ मैनेज नहीं कर पा रही हैं, तो थोड़ा इंतजार कर लें. बच्चे थोड़ा बड़ा हो जाएं तब अपने सपने को हकीकत का रूप दे सकती हैं.

आंखें खुली रखें: अपनी आंखें हमेशा खुली रखें. आप की शादी हो गई और आप के बच्चे हो गए इस का मतलब यह नहीं कि अब सबकुछ खत्म हो गया. आप हमेशा मौके की तलाश में रहें.

यह बात दिमाग में रखें कि आप कभी भी अपना कैरियर बना सकती हैं. हमेशा अपनी सहेलियों और परिचितों के कौंटैक्ट में रहें. ऐसी महिला रिश्तेदारों के संपर्क में रहें, जो शादी और बच्चों के बाद भी कुछ न कुछ कर रही हैं. उन्हें देख कर आप के मन में कोई आइडिया जरूर आ सकता है.

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टाइम मैनेज करना जरूरी: शादी और बच्चों के बाद जब आप काम के लिए बाहर निकालती या घर से ही काम करती हैं, तो सब से जरूरी है कि आप टाइम मैनेजमैंट करना सीखें. आप को पहले से प्लानिंग कर के चलना होगा कि इस समय तक घर के काम निबटाने हैं और उस के बाद आप को यह काम करना है ताकि आप को कभी भी परेशान न होना या जल्दीबाजी न करनी पड़े और न ही घर वालों को ही कोई बात सुनाने का मौका मिले.

महिलाओं को यह बात समझनी चाहिए कि मां बनने का मतलब यह नहीं कि उन का कैरियर खत्म हो गया. मां बनने के बाद भी वे अपनी सुविधानुसार काम कर सकती हैं और अपनी पहचान बना सकती हैं.

आप कुछ ऐसा नया काम कीजिए, जिस में ज्यादा भागदौड़ न करनी पड़े और जिसे आप आसानी से खुद मैनेज कर सकें. याद रखिए दूसरों के भरोसे रहने से कुछ हासिल नहीं होता.