कम जनसंख्या अच्छी बात है

भारत में जहां आज भी हिंदू कट्टरपंथी कुप्रचार के कारण  जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात कर रहे हैं कि इस से मुसलिम जनसंख्या बढ़नी रुक जाएगी, वहीं दुनिया के समर्थ देश जनसंख्या में भारी कमी के अंदेशे से मरे जा रहे हैं.

जापान में 2020 में 8,40,832 बच्चे पैदा हुए जबकि 2019 में 8,65,259 बच्चे पैदा हुए थे. 1899 के बाद से जब से जनगणना शुरू हुई है जापान में 1 साल में पैदा होने वाले बच्चों की यह गिनती सब से कम है.

यही नहीं जहां 2019 में 5,99,007 विवाह हुए थे, वहीं 2020 में 5,25,490 विवाह ही हुए. कम विवाह, कम बच्चे. 2021 में नए बच्चों की गिनती पिछले साल से 10% और कम होने की आशंका है. पहले सरकार को उम्मीद थी कि प्रति वर्ष 7,00,00 बच्चों का पैदा होना 2031 तक होगा पर यह 10 साल पहले हो गया है.

बस इतना जरूर है कि अब तलाकों की गिनती में वृद्धि रुक गई है, फिर भी 1,93,251 तलाक हुए थे.

जापान के ये आंकड़े असल में यूरोप, चीन, अमेरिका जैसे ही हैं जहां कोरोना से नहीं, ग्लोबल वार्मिंग से नहीं, औरतों की अपनी इच्छाओं के कारण बच्चों की गिनती घटती जा रही है.

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चाहे कितना ही वर्क फ्रौम हौम हो जाए, चाहे कितनी ही मैटरनिटी और पैटरनिटी लीव्स मिल जाएं, यह पक्का है कि हर बच्चा मां पर एक बो झ होता है और वह बेकार का बो झ नहीं ढोना चाहती.

सदियों से आदमी बच्चा पैदा करने के लिए औरतों को शादी कर के गुलाम सा बनाते रहे हैं और खुद मौज करते रहे हैं. सामाजिक ढांचा ऐसा बना दिया गया है कि औरतें अपना अस्तित्व बच्चों में ही देखने लगीं.

भारत में ही नहीं पश्चिमी देशों में भी धर्म ने बच्चों पर जोर दिया चाहे बाद में इन बच्चों को धर्म की रक्षा करने के लिए, मरने के लिए भेजा जाता रहा हो. धर्म ने कभी भी बच्चों की खातिर औरतों को कोई छूट न दी, न लेने दी पर बच्चे न हों तो हजार तरह की तोहमतें लगा दीं.

आज की पढ़ीलिखी औरतें इस साजिश को तोड़ कर पुरुषों के बराबर बच्चे पैदा करने का बो झ न ले कर कंसीव कर रही हैं, जहां कुछ नौकरियों में इतना वेतन व सुविधाएं मिल जाती हैं कि किसी हैल्पर को रखा जा सके. अधिकांश औरतें बच्चों के कारण दूसरे दर्जे की नौकरियों में फंस जाती हैं.

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दुनिया की फैक्टरियां और दफ्तर ऐसे जगहों पर हैं जहां पहुंचने के लिए ही घर से 2 घंटे लगते हैं. 13-14 घंटे दूर रह कर औरतें बच्चे पालने और पुरुषों के बराबर काम करने का दावा नहीं कर सकतीं. इसलिए वे न विवाह कर रही हैं, न बच्चे.

बच्चों के बिना शादी हो तो एक और आजादी रहती. जब मरजी पार्टनर बदल लो. पार्टनर न भी बदलो तो जो अच्छा लगे उस के साथ जैसा मरजी संबंध बना लो जो पुरुष हमेशा से करते आए हैं. आखिर यही वजह है कि दुनियाभर में औरतें ही वेश्याएं हैं, आदमी नहीं. आदमियों के पास अवसर है कि घर में पत्नी बच्चे भी संभाले, बिस्तर भी और वे इधरउधर मुंह मारते रहें.

कम जनसंख्या वैसे विश्व के लिए अच्छी बात है. कम लोग ज्यादा सुखी रहेंगे. प्राकृतिक बो झ भी नहीं बढ़ेगा और बेमतलब के विवाद भी नहीं होंगे.

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जापान का नंबर वन प्रीमियम रैप ब्रांड असाही केसी ब्रांड ने 2014 में भारत में कदम रखते ही भारतीय रसोई में अपनी जगह बना ली है. 2020 में असाही केसी को इकोनॉमिक्स टाइम्स ने पसंदीदा प्रीमियम किचन कुकिंग एंड फूड प्रिजर्विंग शीट्स ब्रांडके लिए उद्योग नेतृत्व पुरस्कार से सम्मानित किया. जहां इस वैश्विक महामारी के दौरान लाइफस्टाइल तकनीक ने बहुत से लोगों के जीवन को आसान बनाने में मदद की है, वहीं असाही केसी के प्रीमियम रैप, कुकिंग शीट और फ्राइंग पैन फॉयल ने रसोई में काम करने के लोगों के अनुभव को और आसान बनया है. लॉकडाउन के वक्त हम में से अधिकांश लोगों ने नए व्यंजन ट्राय की तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो बहुत ही बुनियादी परेशानियों जैसे भोजन को सुरक्षित और ताजा कैसे रखें, से जूझ रहे थे.

ये एक अत्याधुनिक रसोई उत्पाद है जिसने रसोई में काम करने वाले अनुभवी हों या शौकिया दोनों की तरीके के लोगों के लिए क्रांतिकारी बदलाव किया,  इसने न सिर्फ उनके समय की बचत की बल्कि उनके किचन के एक्सपिरिएंस को भी आसान बना दिया है. चाहे फूड की फ्रेशनैस की बात करें या फिर फूड को स्टोर करने की असाही केसी रैप हर मामले में बेतरीन साबित हुआ है.

एक बहुमुखी रसोई नायक के रूप में असाही केसी ने अपनी अलग पहचान बनाई है. खाना पकाने की कई समस्याओं के समाधान के रुप में प्रीमियम रैप ने भारत में कामकाजी जोड़ों और एकल परिवारों की रसाई में क्रांति पैदा की है जिन्हें अपने खाने को लंबे समय तक स्टोर रखने की आवश्यक्ता होती है क्योंकि उनके अपने टाइट वर्क शेडयूल के चलते कभी हफ्तेभर का खाना तैयार करना पड़ता है तो कभी वीकएंड्स पर भी उन्हें अपना बनाने की फुरसत नहीं होती. खासतौर पर अगर हम वर्तमान समय की बात करें जहां लोगों के लिए अपना वर्कलाइफ बैलेंस बनाना बहुत मुश्किल होता है. एक के बाद एक जहां लोग लगातार जूम मीटिंग में व्यस्त हैं वहां उनके स्वस्थ रहने के लिए हेल्दी और ताजा भोजन बहुत जरुरी है. ऐसे में वर्किंग प्रोफेशनल्स के लिए ये प्रोडक्ट वरदान साबित हो रहा है क्योंकि इसके साथ आप बाजार के अस्वस्थ खाने की बजाए अपने घर के खाने को ही लंबे समय तक रेफ्रीजरेटर में स्टोर कर सकते हैं और फिर उसी फॉयल पेपर में माइक्रोवेव में दोबारा गर्म कर सकते हैं.

एक और कारण है जिसके चलते कई लोग असाही केसी प्रीमियम रैप पर इतना भरोसा करते हैं, क्योंकि इसके अंदर पहले से ही कटर जुड़ा हुआ है. बस आपको जितनी जरुरत है उतना रैप बाहर निकालें, बॉक्स को बंद करें और फ्लैप पर अंगूठें का निशान बनाकर कटर से किनारों को काट दें. ये फ्रोज़न फूड को ताजा रखने और सूखने से बचाने के लिए भी फायदेमेंद है. कच्ची सब्जियां, फल, मांस, मुर्गी और मछली, साथ ही बनी हुई रोटी हो या गूंधा हुआ आटा, सभी को आप इस रैप के जरिए आसानी से संरक्षित कर सकते है. ये मॉइस्चर को ट्रैप करके रखता है ऑक्सीजन को उसमें गुजरने से रोकता है. जिससे खाना लंबे वक्त तक कुरकुरा और ताज़ा बना रहता है.

कमरे के तापमान पर खाना स्टोर करना हो या रेफ्रिजरेटर में खाद्य पदार्थों की पैकिंग और भंडारण की दक्षता में ये सुधार करता है. ये रिंकल फ्री प्रोडक्ट है और इसको इस्तेमाल करना आसान है क्योंकि यह पीवीडीसी (पॉलीविनाइलिडीन क्लोराइड) क्लिंग फिल्म से बना है. यह रेफ्रिजरेटर या माइक्रोवेव में किसी भी इंडियन या एथेनिक फूड को स्टोर करने या गर्म करने के लिए भी एक आदर्श प्रोडक्ट है. जापान में 60 से अधिक वर्षों से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है, जो उनके स्थायित्व और गुणवत्ता का प्रदर्शन करता है.

इस प्रोडक्ट का आपके किचन में होना आपके लिए बचे हुए खाने को सहूलियत से स्टोर करने में मदद करता है. ये प्रीमियम रैप कच्चे और पके, दोनों तरह के भोजन को बदबू से मुक्त रखते हुए अगले दिन तक खाने के लिए भी सुरक्षित रखता है. इसके साथ ही स्टोरेज के मामले में ये एक बेहतरीन प्रोडक्ट तो है ही साथ में किचन में खाने को गिरने से बचाता है जिससे आपकी रसोई साफ रहती है. वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में भी ये गजब का काम करता है क्योंकि एक ओर तो ये खाने की रिफ्रेशमेंट बनाए रखता है तो वहीं उसे गिरने से भी बचाता है. इसमें खाना स्टोर करने से आपका खाना बर्बाद भी कम होता है क्योंकि आप बचा हुआ खाना आराम से स्टोर करके बाद में खा सकते हैं.

औसत निकाल कर देखें तो असाही केसी के प्रोडक्ट एक महीने से ज्यादा चलते हैं और अब बिग बाजार के सभी रिटेलर्स पर मौजूद है. ले मार्चे, दिल्ली में फ़ूडहॉल, एनसीआर, मुंबई, पुणे, बैंगलोर, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और अमेज़ॅन और बिगबास्केट बाजार में ये 250 रुपये की कीमत से इसके प्रोडक्टस शुरुआत होती है.

असाही केसी प्रोडक्ट्स की बात करें तो ये भारत में प्रीमियम रैप, फ्राइंग पैन फ़ॉइल और कुकिंग शीट जापान की खाना बनाने, पकाने और स्टोर करने विधि लेकर आए हैं और ये हम प्रोडक्ट अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहे हैं. असाही केसी रसायन और भौतिक विज्ञान में एक वैश्विक दिग्गज है. इसका कारोबार 18.5 अरब डॉलर का है.

मुक्ति का बंधन: अभ्रा क्या बंधनों से मुक्त हो पाई?

लेखक- दीपान्विता राय बनर्जी

स्पोर्ट्स ब्रा से बदल गई खेलों में महिलाओं की कामयाबी की कहानी

पिछले दिनों इंग्लैंड के साथ एकमात्र क्रिकेट टेस्ट में 17 साल की शेफाली वर्मा छायी रहीं. उनकी तुलना बार बार सचिन और सहवाग जैसे भारत के सर्वकालिक दिग्गज क्रिकेटरों से होती रही. लेकिन यह एक शेफाली वर्मा की ही बात नहीं है. हाल के दशकों में देखें तो शायद ही कोई ऐसा खेल हो जिसमें महिलाओं ने पुरुषों के लगभग बराबरी जितना प्रदर्शन न किया हो. यहां तक कि जिन्हें हम पावर गेम्स कहते हैं- टेनिस, बैडमिंटन, क्रिकेट और हाॅकी, इन सब खेलों में भी कई तेजतर्रार महिला खिलाड़ियों ने कई महान पुरुष खिलाड़ियों के रिकाॅर्ड ध्वस्त किये हैं. बहुत सी महिला खिलाड़ियों ने पुरुषों को सीधे सीधे उसी खेल में हराया भी है.

आप कह सकते हैं इसमें कौन सी बड़ी बात है. आज भला कौन सा ऐसा क्षेत्र है, जिसमें महिलायें पुरुषों की बराबरी करती न दिख रही हों. बात सही है. लेकिन खेलों का मामला थोड़ा अलग है. क्योंकि खेल महज आपकी हिम्मत, कौशल और दिमागी ताकत पर ही निर्भर नहीं होते बल्कि खेल बहुत कुछ शारीरिक गठन,क्षमता और फुर्तीलेपन का भी नतीजा होते हैं. महिलाओं और पुरुषों में लंबे समय तक खेल की दुनिया में अगर गैरबराबरी रही तो उसकी एक बड़ी वजह महिलाओं के ब्रेस्ट थे. महिलाएं जब किसी भी खेल में जी जान लगाकर प्रदर्शन कर रही होती हैं, उस समय उनके हिलते स्तन न सिर्फ उनका कंसनट्रेशन तोड़ते हैं बल्कि शारीरिक रूप से थकाते भी हैं और बाधाएं भी खड़ी करते हैं.

वैसे कहने को तो प्राचीन रोम में भी महिला खिलाड़ियों को खेल के दौरान स्तनों को कसकर बांधे रखने के लिए आधुनिक ब्रा जैसी ही चीजें विकसित की गई थीं. लेकिन सब कुछ के बावजूद ये चीजें महिलाओं के लिए सुरक्षित व आरामदेह नहीं थीं. पहली व्यावसायिक रूप से उपलब्ध स्पोर्ट्स ब्रा “फ्री स्विंग टेनिस ब्रा” थी, जिसे 1975 में ग्लैमरिस फ़ाउंडेशन, इंक. द्वारा पेश किया गया था. लेकिन यह पॉवर गेम के लिए आधुनिक अनुकूल स्पोर्ट्स ब्रा सरीखी नहीं थी,यह एक सामान्य व्यायाम ब्रा, थी जिसे शुरू में “जॉकब्रा” कहा जाता था.  1977 में, इसमें कई किस्म के सुधार लिसा लिंडाहल और थिएटर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर पोली स्मिथ ने किया. इस काम में स्मिथ की सहायक हिंडा श्राइबर की भी मदद ली गयी.

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दरअसल लिंडाहल और उसकी बहन, विक्टोरिया वुडरो दोनों को  साधारण ब्रा में व्यायाम करने के अपने बुरे अनुभव थे. इससे उनके स्तनों में  झनझनाहट और दर्द होता था. लिंडाहल और स्मिथ ने एक बेहतर विकल्प की खोज के दौरान पाया कि महिलाओं के स्तनों के लिए एक जॉकस्ट्रैप की आवश्यकता थी. विकीपीडिया के मुताबिक़  वर्मोंट विश्वविद्यालय में रॉयल टायलर थिएटर की पोशाक की दुकान में, लिंडाहल और स्मिथ ने वास्तव में दो जॉकस्ट्रैप को एक साथ सिल दिया और इसे “जॉकब्रा” नाम दिया. बाद में इसका नाम बदलकर “जोगबरा” कर दिया गया. हालांकि अब भी यह पूरी तरह से आधुनिक ब्रा नहीं थी. लेकिन दो त्रिकोणियों पट्टियों को आपस में जोड़ देने से इसने महिलाओं के स्तनों को संभालने में ज्यादा सहूलियत प्रदान की. इस ब्रा के चलते जब महिलाएं व्यायाम करते समय इतने झटके नहीं लगते, जितने झटक साधारण ब्रा में लगते थे. इसने महिला खिलाड़ियों को बड़ी राहत दी, क्योंकि खेल के दौरान ताकतवर स्ट्रोक लगाते समय अब उनके स्तन उस तरह हिलते डुलते नहीं थे,जैसे पहले हिलते थे.

इससे महिलाओं के खेल और फिटनेस दोनो में फर्क आया. महिलाएं अब पहले से ज्यादा फिट रहने लगीं और उनका खेल निखरने लगा. बाद के दिनों में एरगोनाॅमिक्स की परिपक्वता और दुनियाभर में खेलों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण आधुनिक स्पोर्ट ब्रा में लगातार सुधार हुए और आज यह खेलों के बेहद अनुकूल है. आज स्पोर्ट ब्रा न सिर्फ महिला खिलाड़ियों के व्यक्तित्व में चार चांद लगा रही है बल्कि जबरदस्त शारीरिक लोच-लचक वाले खेलों से पहले जहां  महिलाओं के स्तनों के निप्पल चोटिल हो जाते थे, उस समस्या को भी इसने हल कर दिया है. यही वजह है कि आज स्पोर्ट ब्रा न सिर्फ महिला खिलाड़ियों के लिए बल्कि दूसरी आम घरेलू महिलाओं के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण इनर वियर के रूप में सामने आयी है. इसकी बदौलत आज कोई महिला वैसे ही सब काम कर सकती है, जैसे बिना स्तनों वाले पुरुष करते हैं. पहले महिलाएं दौड़ते समय बहुत परेशान होती थीं. क्योंकि स्तनों के हिलने डुलने से उनके मिगामेंट्स खिंच जाते थे. यही नहीं पहले जब महिलाएं लगातार वर्कआउट करती थीं तो उनके स्तनों का आकार खराब हो जाता था, वे लटक जाते थे. अब ये सब समस्याएं अतीत हो चुकी हैं. स्पोर्ट्स ब्रा ने एक किस्म से आज महिला खिलाड़ियों को ही नहीं किसी भी महिला को बहुत बड़ी ताकत दी है.

स्पोर्ट्स ब्रा ने शारीरिक व्यायाम को महिलाओं के लिए आसान और अनुकूल बना दिया है. स्पोर्ट्स ब्रा बिना पहने एक्सरसाइज करने से महिलाओं को कई तरह के नुक्सान होते हैं ,जिससे इसने छुटकारा दिला दिया है. स्पोर्ट्स ब्रा हर तरह के  स्पोर्ट्स में महिलाओं को सहयोग करती है. इससे अब महिलाओं के शरीर में दर्द नहीं होता, जैसे पहले हुआ करता था. सिर्फ स्तनों में होने वाले दर्द को ही नहीं स्पोर्ट्स ब्रा ने महिलाओं के कमर में होने वाले दर्द को भी खत्म किया है. खेलों के अलावा शारीरिक श्रम वाली गतिविधियों में भी स्पोर्ट्स ब्रा का सपोर्ट मिलता है. क्योंकि स्पोर्ट्स ब्रा से स्तनों का मूवमेंट खत्म या बिलकुल कम हो जाता है जिससे स्तनों के लिगामेंट्स में कोई असर नहीं पड़ता. स्पोर्ट्स ब्रा पसीने और तापमान को भी नियंत्रित करती है. हां, यह महंगी जरूर काफी होती है क्योंकि एडवांस टेक्नोलॉजी और बहुत अच्छा फैब्रिक इस्तेमाल होता है.

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Monsoon Special: बारिश के मौसम में मच्छर भगाने के लिए फौलो करें ये टिप्स

बारिश का मौसम भले ही गर्मी से राहत दिलाता हो लेकिन इस की दूसरी कई समस्याएं भी हैं. इन दिनों मच्छरों से होने वाली बीमारियां डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि का प्रकोप बढ़ जाता है. आज बाजार में तरह-तरह के मौस्क्यूटो रिपलैंट जैसे कॉइल से ले कर कार्ड तक, स्प्रे से ले कर क्रीम तक उपलब्ध हैं.

इन के अलावा इलैक्ट्रॉनिक मच्छर मार डिवाइस और ऐप भी उपलब्ध हैं. अल्ट्रासाउंड पैदा करने वाले ऐंटीमौस्क्यूटो डिवाइस भी बाजार में आ चुके हैं. इन्हें बनाने वाली कंपनियों का दावा है कि ये डिवाइस हाई फ्रिक्वैंसी पर एक विशेष तरह का साउंड निकालते हैं. यह अल्ट्रासोनिक साउंड मच्छरों को पास फटकने से रोकता है.

इन के अलावा मच्छर भगाने का दावा करने वाले कुछ मोबाइल ऐप भी आ चुके हैं. कहने का मतलब यह कि आज मच्छरों से निबटने के लिए बाजार में इतना कुछ मौजूद है, लेकिन मच्छर हैं कि भागते नहीं.

घर-घर में विभिन्न कंपनियों के कौइल, स्प्रे, क्रीम आदि का इस्तेमाल हो रहा है. नित नए रिपलैंट बाजार में आ रहे हैं. मगर इस के प्रयोग से मच्छर भागते नहीं. इस से साफ हो जाता है कि यह मुनाफे का कारोबार है. भारत में यह 5-6 सौ करोड़ का कारोबार है. इतना ही नहीं, इस कारोबार में हर साल 7 से ले कर 10% तक वृद्धि भी हो रही है. मगर रिपलैंट का कारोबार जितना फूल-फल रहा है, मच्छरों का प्रकोप भी उतना ही बढ़ रहा है.

वैसे वैज्ञानिक तथ्य यह भी बताते हैं कि जितना दमदार रिपलैंट बाजार में आता है, मच्छर अपने भीतर उस से लड़ने की उतनी ही ताकत पैदा कर लेते हैं. अगर ऐसा ही है तो इस का मतलब साफ है कि जितना ऐडवांस रिपलैंट बाजार में आता है इंसानों के लिए वह उतना ही बड़ा खतरा बन जाता है, क्योंकि मच्छर उस से निबट लेते हैं.

स्वास्थ्य पर रिपलैंट का प्रभाव

हालांकि रिपलैंट बनाने वाली सभी कंपनियों को केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड में पंजीकरण करवाना पड़ता है. पर बोर्ड का काम इतना ही है. एक बार पंजीकरण की प्रक्रिया खत्म हो जाने के बाद कीटनाशकों के सेहत पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव की निगरानी करने की कोई मशीनरी नहीं है. रिपलैंट समेत आजकल बाजार में पाए जाने वाले पर्सनल केयर उत्पाद, रूम फ्रैशनर से ले कर सुगंधित साबुन और डिटर्जेंट पाउडर या लौंड्री उत्पाद तक उपलब्ध हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन में वैज्ञानिकों के शोध से पता चलता है कि चाहे वे किसी भी नामी-गिरामी कंपनी के बने क्यों न हों उन में रासायनिक खुशबू का इस्तेमाल होता है, जिस का सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है.

दरअसल, इन में खुशबू पैदा करने के लिए ऐसिटोन, लाईमोनेन, ऐसिटल्डिहाइड, बैंजीन, ब्यूटाडाइन, बैंजो पाइरेन आदि विभिन्न तरह के रासायनों का इस्तेमाल किया जाता है. इन का सब से बुरा असर स्नायुतंत्र पर पड़ता है. दमा, फेफड़ों की बीमारी, जेनेटिक विकृतियां, ब्लड कैंसर आदि का भी इन से खतरा होता है. इस के अलावा कुछ लोगों में एलर्जी, आंखों में जलन की भी शिकायत हो जाती है.

उम्मीद की किरण

मच्छरों से पनपने वाली बीमारियों और उन से होने वाली मौतों के बीच एक उम्मीद जगाने वाली खबर भी है. कोलकाता राजभवन में मच्छरमार और रोकथाम अभियान के दौरान कोलकाता नगर निगम के कीटपतंग विभाग के देवाशीष विश्वास को कुछ ऐसे मच्छरों का पता चला, जो इनसानों को नुकसान पहुंचाने के बजाय उलटा जानलेवा मच्छरों का सफाया करते हैं. सामान्य तौर पर इस मच्छर का नाम ऐलिफैंट मौस्क्यूटो है. इस प्रजाति के मच्छर इंसानी खून के प्यासे होने के बजाय डेंगू के ऐडिस एजिप्टाई लार्वा चट कर जाते हैं.

बताया जाता है कि चीन मच्छर नियंत्रण के लिए मच्छरों का ही इस्तेमाल कर रहा है. दक्षिण चीन में वैज्ञानिकों का एक दल इंजैक्शन के सहारे मच्छरों के अंडों में ओलवाचिया नामक बैक्टीरिया का प्रवेश कर बैक्टीरिया से संक्रमित मच्छर को छोड़ देता है.

चीनी वैज्ञानिकों का मानना है कि ये संक्रमित नर मच्छर जब किसी असंक्रमित मादा मच्छर के साथ मिलन करते हैं तो यह बैक्टीरिया मादा मच्छर में प्रवेश कर जाता है और मच्छरजनित बीमारियों के जीवाणुओं का खात्मा कर देता है.

वहीं सिंगापुर और थाईलैंड में हाथी मच्छर नाम की विशेष प्रजाति के मच्छरों का इस्तेमाल मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छरों पर नियंत्रण करने में किया जाता है. इसीलिए निगम इस उपकारी मच्छर के लार्वा को डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छरों के उत्पात से त्रस्त इलाकों में फैलाने की तोड़-जोड़ कर रहा है.

गौरतलब है कि कोलकाता डेंगू के ऐडिस मच्छरों की राजधानी बन गया है. इस से पहले ऐडिस मच्छरों का स्वर्ग दिल्ली थी.

अगर श्रीलंका मच्छरजनित बीमारियों पर विजय प्राप्त कर सकता है, चीन, सिंगापुर और थाईलैंड मच्छरों पर नियंत्रण कर सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं? पूरे देश में हाथी मच्छर के जरीए जानलेवा मच्छरों पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए.

मच्छर के काटने पर अपनाएं कुछ घरेलू उपाय

– नीबू के रस को मच्छर द्वारा काटे गए स्थान पर रगड़ लें. मच्छर के काटने से होने वाली खुजली में तुरंत आराम मिलेगा, साथ ही संक्रमण का खतरा भी जाता रहेगा.

– नीबू के रस में तुलसी का मसला पत्ता मिला कर लगाया जा सकता है.

– ऐलोवेरा जैल को 10-15 मिनट फ्रिज में रख कर काटे गए स्थान पर लगाने से भी आराम मिलता है.

– लहसुन या प्याज का पेस्ट सीधे प्रभावित स्थान पर मल लें. कुछ देर तक पेस्ट को लगा रहने दें. फिर अच्छी तरह धो लें. लहसुन या प्याज की गंध से भी मच्छर भागते हैं.

– बेकिंग सोडा को पानी में घोल रुई का फाहा उस में भिगो कर प्रभावित स्थान पर लगा कर 10-12 मिनट छोड़ दें. फिर कुनकुने पानी से धो लें आराम मिलेगा.

– बर्फ के टुकड़े को 10-12 मिनट तक कुछ-कुछ समय के अंतराल पर काटे गए स्थान पर रखें. बर्फ न होने पर ठंडे पानी की धार को कुछ देर तक प्रभावित जगह पर डालें.

– टूथपेस्ट भी खुजली पर असरदार होता है. थोड़ा सा पेस्ट उंगली में ले कर मच्छर द्वारा काटे गए स्थान पर मलें. आराम मिलेगा.

– प्रभावित स्थान पर कैलामाइन लोशन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. दरअसल, कैलामाइन लोशन में जिंक ऑक्साइड और फेरिक ऑक्साइड जैसे तत्व होते हैं, जो खुजली के साथ-साथ संक्रमण रोकने में भी कारगर होते हैं.

– डियोडैर्रेंट का स्प्रे भी खुजली और सूजन कम करने में कारगर होता है, क्योंकि इस में ऐल्यूमिनियम क्लोराइड होता है, जो दर्द और सूजन को रोकता है.

बबूल का पौधा- भाग 2 : अवंतिका ने कौनसा चुना था रास्ता

धीरेधीरे अवंतिका रमन की सैक्रेटरी कम और उस की पर्सनल अधिक होने लगी. कहीं आग लगे तो धुआं उठना स्वाभाविक है. अवंतिका और रमन को ले कर भी औफिस में थोड़ीबहुत गौसिप हुई, लेकिन आजकल किसे इतनी फुरसत है कि किसी के फटे में टांग अड़ाए. वैसे भी हमाम में सभी नंगे होते हैं.

लगभग 2 साल बाद रमन का ट्रांसफर हो गया. जातेजाते वह अंतिम उपहार के रूप में उसे वेतनवृद्धि दे गया. रमन के बाद अमन डाइरैक्टर के पद पर आए. कुछ दिन की औपचारिकता के बाद अब अवंतिका अमन की पर्सनल होने लगी.

धीरेधीरे अवंतिका के घर में सुखसुविधाएं जुटने लगीं, लेकिन मियां गालिब  की, ‘‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,’’ की तरह अवंतिका की ख्वाहिशों की सूची आम लड़कियों से जरा लंबी थी. इस जन्म में तो खुद उस की और सुकेश की तनख्वाह से उन का पूरा होना संभव नहीं था.

अब यह भी तो संभव नहीं न कि बची हुई इच्छाएं पूरी करने के लिए किसी और जन्म का इंतजार किया जाए. सबकुछ विचार कर आखिर अवंतिका ने तय किया कि इच्छाएं तो इसी जन्म में पूरी करनी हैं, तरीका चाहे जो हो.

आजकल अवंतिका की निगाहें टीवी पर आने अपनी वाले हीरे के आभूषणों वाले विज्ञापनों पर अटक जाती है.

‘हीरा नहीं पहना तो क्या पहना,’ अपनी खाली उंगली को देख कर वह ठंडी सांस भर कर रह जाती.

‘समय कम है अवंतिका. 28 की होने को हो, 35 तक ढल जाओगी. जो कुछ हासिल करना है, इसी दरमियां करना है. फिर यह रूप, यह हुस्न रहे न रहे,’ अवंतिका अपनी सचाई से वाकिफ थी. वह जानती थी कि अदाओं के खेल की उम्र अधिक नहीं होती, लेकिन कमबख्त ख्वाहिशों की उम्र बहुत लंबी होती है. ये तो सांसें छूटने के साथ ही छूटती हैं.

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‘क्या करूं, अमन सर ने तो पिछले दिनों ही उसे सोने के इयररिंग्स दिलाए थे. इतनी जल्दी हीरे की अंगूठी मुश्किल है. सुकेश से कहने का कोई मतलब भी नहीं. तो क्या किया जाए? कैसे अमन सर को शीशे में उतारा जाए,’ अवंतिका दिनरात इसी उधेड़बुन में थी कि अचानक अमन के ट्रांसफर और्डर आ गए. अवंतिका खुशी से झम उठी. अब आलोक उस के नए बौस थे.

‘हीरा तो नए बौस से ही लिया जाएगा,’ सोच कर उम्मीद की किरण से उस की आंखें चमक उठीं, लेकिन आलोक को प्रत्यक्ष देखने के बाद उस की यह चमक फक्क पड़ गई.

दरअसल, आलोक उस के पहले वाले दोनों बौस से अधिक जवान था. लगभग 40 के आसपास. उम्र का कम फासला ही अवंतिका की चिंता का कारण था क्योंकि इस उम्र में लगभग हरेक पुरुष अपने बैडरूम में संतुष्ट ही रहता है.

‘कौन जाने मुझ में दिलचस्पी लेगा भी या नहीं,’ आलोक को देख कर अवंतिका के होंठ सिकुड़ गए.

तभी विचार कौंधा कि वह औरत ही क्या जो किसी पुरुष में खुद के लिए दिलचस्पी  पैदा ना कर सके और यह विचार आते ही अवंतिका ने आलोक को एक प्रोजैक्ट के रूप में देखना शुरू कर दिया.

‘लक्ष्य हासिल हो या न हो, लेकिन खेल तो मजेदार जरूर होने वाला है,’ सोच स्टाफ के अन्य कर्मचारियों के साथ मुसकराती हुई खड़ी अवंतिका ने आगे बढ़ कर अपना परिचय दिया. वह यह देख कर कुछ निराश हुई कि आलोक ने उसे ठीक से देखा तक नहीं, लेकिन अवंतिका हार मानने वालों में से नहीं थी. वह हर बाजी जीतना जानती थी. हुस्न, जवानी, अदाएं और शोखियां उस के हथियार थे.

पर्सनल सैक्रेटरी थी तो बहुत से पर्सनल काम जैसे बौस के लिए कौफी बनाना, लंच और्डर करना आदि भी अवंतिका ने खुद पर ले रखे थे. आलोक के लिए भी वह ये सब अपनी ड्यूटी समझ कर कर रही थी.

बैंगल बौक्स में रखी चूडि़यां आखिर कब तक न खनकतीं. आलोक भी धीरेधीरे उस से  खुलने लगा. बातों ही बातों में अवंतिका ने जान लिया कि एक ऐक्सिडैंट के बाद से आलोक की पत्नी के कमर से नीचे के अंग काम नहीं करते. पिछले लगभग 5 वर्षों से उस का सारा दैनिक काम भी एक नर्स की मदद से ही हो रहा है. अवंतिका उस के प्रति सहानुभूति से भर गई.

कभीकभार वह उस से मिलने आलोक के घर भी जाने लगी. इस से आलोक के साथ उस के रिश्ते में थोड़ी नजदीकियां बढ़ीं. इसी दौरान एक रोज उसे आलोक के शायराना शौक के बारे में पता चला. डायरी देखी तो सचमुच कुछ उम्दा गजलें लिखी हुई थीं.

अवंतिका उस से गीतों, गजलों और कविताओं के बारे में अधिक से अधिक बात करने लगी. लंच भी वह उस के साथ उस के चैंबर में ही करने लगी. खाना खाते समय अकसर अवंतिका अपने मोबाइल पर धीमी आवाज में गजलें चला देती. कभीकभी कुछ गुनगुना भी देती. आलोक भी उस का साथ देने लगा. अवंतिका ने उस के शौक की शमा को फिर से रोशन कर दिया. बात शौक की हो तो कौन व्यक्ति भला पिघल न जाएगा.

‘‘सर प्लीज, कुछ लाइनें मुझ पर भी लिखिए न,’’ एक रोज अवंतिका ने प्यार से जिद की.

आलोक केवल मुसकरा कर रह गया.

सप्ताहभर बाद ही आलोक को पास के गांव में एक किसान कैंप  अटैंड करने की सूचना मिली. अवंतिका को भी साथ जाना था. दोनों औफिस की गाड़ी से अलसुबह ही निकल गए. अवंतिका घर से सैंडविच बना कर लाई थी. गाड़ी में बैठेबैठे ही दोनों ने नाश्ता किया. फिर एक ढाबे पर रुक कर चाय पी. 2 घंटे के सफर में दोनों के बीच बहुत सी इधरउधर की और कुछ व्यक्तिगत बातें भी हुईं. कच्ची सड़क पर गाड़ी के हिचकोले उन्हें और भी अधिक पास आने का अवसर दे रहे थे. अवंतिका ने महसूस किया कि आलोक की पहले झटके पर टकराने वाली ?िझक हर झटके के साथ लगातार कम होती जा रही है.

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‘मैन विल बी मैन,’ एक विज्ञापन का खयाल आते ही अवंतिका मुसकरा दी.

कैंप बहुत सफल रहा. हैड औफिस से मिली बधाई के मेल ने आलोक के उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया. वापसी तक दोनों काफी कुछ अनौपचारिक हो चुके थे. खुशनुमा मूड में आलोक ने अपनी एक पुरानी लिखी गजल तरन्नुम में सुनाई तो अवंतिका दाद दिए बिना नहीं रह सकी.

‘‘मैं ने भी आप से कुछ पंक्तियां लिखने का आग्रह किया था. कब लिखोगे?’’ कहते हुए उस ने धीरे से अपना सिर आलोक के कंधे की तरफ झका दिया.

उस के समर्पित स्पर्श से आलोक किसी मूर्ति की भांति स्थिर रह गया.

‘‘अगली बार,’’ किसी तरह बोल पाया.

यह अगली बार जल्द ही आ गई. विभाग के सालाना जलसे में भाग लेने के लिए दोनों को सपरिवार गोवा जाने का निमंत्रण था. आलोक

की पत्नी का जाना तो नामुमकिन था ही, अवंतिका ने भी औपचारिक रूप से सुकेश को साथ चलने के लिए कहा, लेकिन उस ने औफिस में काम अधिक होने का कह कर असमर्थता जता दी तो अवंतिका ने भी अधिक जिद नहीं की.

उस की आंखों में एक बार फिर हीरे की अंगूठी नाचने लगी.

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बबूल का पौधा- भाग 3 : अवंतिका ने कौनसा चुना था रास्ता

गोवा का रोमांटिक माहौल अवंतिका के मंसूबों में सहायक सिद्ध हो रहा था. 5 साल स्त्री के सान्निध्य से दूर रहा युवा पुरुष बारूद से भरा होता है. अवंतिका को बस दियासलाई दिखानेभर की देर थी.

आलोक बिना अधिक प्रयास के ही पके फल सा अवंतिका के पहलू में टपकने को आतुर दिख रहा था. ढलती शाम, बीच का खूबसूरत नजारा और कंधे पर झका सिर… मौन की भाषा बहुत कुछ कह रही थी. अवंतिका की कमर को अपनी बांहों में लपेटे हुए आलोक उसे अपने कमरे में ले आया. दूरियां कम होने लगी तो अवंतिका ने गरम लोहे पर चोट की, ‘‘हमारे पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए क्या उपहार दोगे?’’ अवंतिका ने आलोक का हाथ अपनी कमर से हटाते हुए पूछा.

‘‘जो तुम चाहो,’’ आलोक की आंखों में ढलता सूरज उतर आया.

‘‘सोच लो,’’ प्रेयसी इठलाई.

‘‘सोच लिया,’’ प्रियतम ने चांदतारे तोड़ लाने सा जज्बा दिखाया.

अभी अवंतिका कुछ और कहती उस से पहले ही आलोक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा. अवंतिका ने लाख रोकने की कोशिश की, लेकिन आलोक के पास सुरक्षा उपाय अपनाने जितना सब्र कहां था.

‘देखा जाएगा. हीरे की अंगूठी की इतनी कीमत तो चुकानी ही होगी,’ सोचते हुए

अवंतिका ने अपने विचार झटके और उस का साथ देने लगी.

आलोक को इस सुख के सामने कोहिनूर

भी सस्ता लग रहा था. गोवा से वापसी पर अवंतिका के हाथ में हीरे की अंगूठी ?िलमिल कर रही थी. लेकिन काले को सफेद भी तो करना था न.

सुकेश के साथ उस ने 1-2 बार असुरक्षित संबंध बनाए और निश्चिंत हो गई.

अगले ही महीने अवंतिका को अपने गर्भवती होने का पता चला. वह तय नहीं कर पाई कि बच्चा प्रेम की परिणति है या हीरे की अंगूठी का बिल.

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गर्भ की प्रारंभिक जटिलताओं के चलते

उसे जौब से ब्रेक लेना पड़ा और फिर साहिल के 3 साल का होने तक वह औफिस नहीं जा पाई. इस बीच आलोक का ट्रांसफर हो गया और खुद अवंतिका की जौब भी छूट गई. एक बार सिरा हाथ से छूटा तो छूटा. दोबारा पकड़ा ही नहीं

गया. अवंतिका भी बच्चे और गृहस्थी में उलझती चली गई.

अवंतिका की दास्तान यहीं समाप्त

नहीं होती है. उस की जिंदगी

को तो अभी यूटर्न लेना बाकी था. साहिल के

10 साल का होतेहोते एक दिन अचानक सड़क दुर्घटना में सुकेश उन दोनों को छोड़ कर परमधाम को चला गया. 40 की उम्र में अवंतिका को फिर से नौकरी करनी पड़ी.

नौकरी और बच्चा… अवंतिका दोनों को एकसाथ नहीं संभाल पा रही थी. किशोरवय की तरफ बढ़ता साहिल शरारती से उद्दंड होने लगा. स्कूल और पासपड़ोस… हर जगह से उस की शिकायतें आने लगीं. अवंतिका भी क्या करती, नौकरी करनी भी जरूरी थी.

साहिल के अकेलेपन, उस की सुरक्षा और किसी हद तक उसे व्यस्त रखने के खयाल से अवंतिका ने उस के हाथ में स्मार्ट फोन थमा दिया. बस, अब तो रहीसही कसर भी पूरी हो गई. मां की गैरमौजूदगी में साहिल फोन पर जाने क्याक्या देखता रहता था. धीरेधीरे वह फोन का आदी होने लगा. उसे वैब सीरीज और औनलाइन गेम्स की लत लग गई. देर रात तक फोन पर लगे रहने के कारण उस का दिन का शैड्यूल बिगड़ने लगा. स्कूल में पिछड़ने लगा तो क्लास बंक करने की आदत पड़ने लगी.

साहिल की किताबों के बीच सस्ता साहित्य मिलना तो आम बात हो गई थी. 1-2 बार अवंतिका को उस के कमरे से सिगरेट के धुएं की गंध भी महसूस हुई थी. कई बार पर्स से पैसे गायब हुए सो अलग. अवंतिका के रोकनेटोकने पर वह आक्रामक होने लगा.

कुल मिला कर अवंतिका को विश्वास हो गया कि लड़का उस के हाथ से निकल गया है. वह स्वयं को पेरैंटिंग में असफल मानने लगी. लेकिन उसे रास्ते पर लाने का कोई भी तरीका उसे समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘पता नहीं किस का अंश है यह सुकेश का या आलोक का? किसी का भी हो, आधा तो मेरा ही है. इस में तो कोई शंका ही नहीं. शायद मेरे जींस ही हावी हो रहे हैं साहिल पर. तभी इतना बेकाबू हो रहा है. मैं ने कब खुद को काबू में रखा था जो इसे दोष दूं? बबूल का यह पौधा तो खुद मेरा ही बोया हुआ है. किसी ने सच ही तो कहा है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय,’’ अवंतिका की रात काली होने लगी.

विचारों का अंधेरा इतना घना होने लगा कि दो कदम की दूरी पर भी कुछ

न सू?ो. उतरती सुबह कहीं जा कर आंख लगी तो सूरज चढ़ने तक सोती ही रही.

उठ कर देखा तो साहिल घर में नहीं था. स्कूल बैग सामने पड़ा देख कर उस ने अंदाजा लगा लिया कि साहिल ने आज भी स्कूल से बंक मार लिया. अवंतिका ने भी फोन कर के आज औफिस से छुट्टी ले ली.

अवंतिका ने एक कप चाय बनाई और कप ले कर बालकनी में बैठ गई. सोच की घड़ी फिर से चलने लगी. तभी उसे आलोक याद आया. मोबाइल में देखा तो अभी भी आलोक का नंबर सेव था. कुछ सोच कर अवंतिका ने फोन लगा दिया.

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‘‘अरे अवंतिका तुम, इतने सालों बाद याद किया. कैसी हो तुम? सौरी यार, सुकेश के बारे में सुन कर बहुत बुरा लगा,’’ आलोक ने अपनत्व

से कहा.

‘‘बस ठीक ही हूं. तुम्हारे बिगड़ैल बेटे को ?ोल रही हूं,’’ अवंतिका ने गहरी उदासी से कहा.

‘‘बेटे को ?ोल रही हो यह सच हो सकता है, लेकिन साहिल मेरा बेटा है

इस की क्या गारंटी है?’’ आलोक ने हंस कर पूछा.

‘‘क्योंकि सुकेश तो बहुत सीधा था. शौकीन तो तुम ही थे,’’ अवंतिका भी हंसी.

‘‘तुम कहती हो तो चलो मान लेता हूं, लेकिन असल बात बताओ न कि क्या चाहती हो? आज इतने दिनों बाद कैसे याद किया?’’ आलोक ने आगे पूछा तो अवंतिका कुछ देर के लिए चुप हो गई.

‘‘बस यों ही जरा परेशान थी. बेटा मेरे कहने में नहीं है. शायद पिता का साया किशोर होते बेटों के लिए जरूरी होता है, लेकिन अब पिता कहां से लाऊं. कुछ भी समझ में नहीं आ रहा. साहिल दिनोंदिन बदतमीज होता जा रहा है. कुछ भी कहो तो पलट कर जवाब देता है,’’ अवंतिका ने रात की बात बताते हुए आलोक के सामने दिल खोल कर रख दिया.

‘‘देखो अवंतिका, यह सही है कि पिता का साया बच्चों के लिए बहुत जरूरी होता है, लेकिन क्या पिता के होते बच्चे नहीं बिगड़ते? दरअसल, यह उम्र सागर की लहरों की तरह होती है. इस में उछाल आना स्वाभाविक है. यह अलग बात है कि किसी में उछाल कम तो किसी में अधिक होता है. जिस तरह किनारे से लगतेलगते लहर शांत हो जाती है उसी तरह उम्र का उफान भी समय के साथ धीमा पड़ने लगता है.

‘‘आज की टीनऐज पीढ़ी को अपने रास्ते में बाधा स्वीकार नहीं. हमें धीरज रखना होगा. कभीकभी कुछ समस्याओं का हल सिर्फ समय होता है,’’ आलोक ने कहा तो अवंतिका को उस की बात में सचाई नजर आई.

‘‘सुनो, क्यों न तुम साहिल को किसी होस्टल भेज दो. हो सकता है कि वहां के अनुशासन से कुछ बात बन जाए. मेरी मदद चाहिए तो बेझिझक कहो,’’ आलोक ने आगे कहा तो अवंतिका को एक राह सूझ.

‘आलोक सही ही तो कह रहा है. कुछ समस्याएं समय के साथ अपनेआप हल हो जाती हैं या हम ही उन के साथ जीने की आदत डाल लेते हैं. डांटनेफटकारने से तो उलटे बात और बिगड़ेगी. हो सकता है कि समय के साथ समझदारी खुदबखुद आ जाए. न भी आएगी तो क्या कर लूंगी. बांधे हुए तो जानवर भी नहीं टिकते. इसे होस्टल में भेजने की कोशिश भी कर के देखी जा सकती है,’ अवंतिका सोचने लगी.

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‘‘हैलोहैलो,’’ आलोक फोन पर ही था.

उस की आवाज सुन कर अवंतिका वर्तमान में आई. बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो. यही ठीक रहेगा. अच्छा सुनो, तुम साहिल के लिए किसी अच्छे होस्टल का पता कर के बताओ न,’’ और फिर अवंतिका ने कुछ देर इधरउधर की बातें कर के फोन रख दिया.

‘कौन जाने कभी बबूल का पौधा अपने असली गुण ही पहचान ले,’ सोच अवंतिका ने एक लंबी सांस खींची. सोच की दिशा बदलते ही वह बेहद हलकी हो गई थी.

उत्तर प्रदेश में निराश्रित महिलाओं के लिए बनेगी कार्ययोजना

सूबे के मुखिया योगी आदित्‍यनाथ ने जब से सत्‍ता की बागडोर संभाली है तब से लेकर अब तक वो प्रदेश की महिलाओं व बेटियों की सुरक्षा, स्‍वावलंबन और सम्‍मान के लिए प्रतिबद्ध है. प्रदेश में कवच अभियान और मिशन शक्ति जैसा वृहद अभियान इसके साक्षी हैं. प्रदेश में महिलाओं के लिए कई स्‍वर्णिम योजनाओं का संचालन किया जा रहा है जिससे सीधे तौर पर महिलाओं को लाभ मिल रहा है. प्रदेश में अब जल्‍द ही कोरोना के कारण निराश्रित महिलाओं से जुड़ी एक बड़ी योजना की शुरूआत होने जा रही है. जिसके लिए सीएम ने मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की तर्ज पर महिला एवं बाल विकास विभाग को विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं. जिसपर विभाग द्वारा तेजी से कार्य शुरू कर दिया गया है.

निराश्रित महिला पेंशन के लिए पात्र महिलाओं को पेंशन वितरण के लिए ब्लॉक व न्याय पंचायत स्तर पर विशेष शिविर आयोजित किए जाने के भी निर्देश दिए हैं. उन्‍होंने राजस्व विभाग द्वारा ऐसी महिलाओं को प्राथमिकता के साथ नियमानुसार पारिवारिक उत्तराधिकार लाभ दिलाए जाने की व्‍यवस्‍था को सुनिश्चित करने के लिए कहा है.

विभाग द्वारा काम किया गया शुरू, सीधे तौर पर मिलेगा महिलाओं को लाभ

कोरोना काल में निराश्रित हुई महिलाओं के लिए एक विशेष योजना को विभाग द्वारा तैयार किया जा रहा है. महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से सीएम के निर्देशानुसार कार्ययोजना पा काम शुरू कर दिया गया है. विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय ने बताया कि प्रदेश में कोरोना काल में निराश्रित हुई महिलाओं को पहले चरण में चिन्हित किया जाएगा जिसके बाद इन चिन्हित महिलाओं को राज्‍य सरकार की स्‍वर्णिम योजनाओं से जोड़ते हुए उनको स्‍वावलंबी बनाने का कार्य किया जाएगा. उन्‍होंने बताया कि जल्‍द ही योजना को तैयार कर ली जाएगी.

वृद्धजनों की जरूरतों व समस्याओं का त्वरित लिया जाएगा संज्ञान

सीएम ने आला अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि ओल्ड एज होम में रह रहे सभी वृद्धजनों की जरूरतों और समस्याओं का त्वरित संज्ञान लिया जाए. इनके पारिवारिक विवादों का समाधान जल्‍द से जल्‍द कराने संग इनके स्वास्थ्य की बेहतर ढंग से देखभाल किए जाने के निर्देश दिए.

आईना- भाग 2 : रिश्तों में संतुलन ना बनाना क्या शोभा की एक बढ़ी गलती थी

अस्पताल रह कर चारू लौटी तो अपने ही कमरे में कैद हो कर रह गई. परेशान हो गया था अनुराग. एक दिन मैं ने फोन किया तो बेचारा रो पड़ा था.

‘‘अच्छीभली हमारे घर आई थी. मायके में सारा घर चारू ही संभालती थी. मैं इस सच को अच्छी तरह जानता हूं. हमारे घर आई तो चाय का कप बनाते भी उस के हाथ कांपते हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, मौसी?’’

‘‘उसे दीदी से दूर  ले जा. मेरी बात मान, बेटा.’’

‘‘मम्मी तो उस की देखभाल करती हैं. बेचारी चारू की चिंता में आधी हो गई हैं.’’

‘‘यही तो समस्या है, अनुराग बेटा. शोभा तेरी मां हैं तो मेरी बड़ी बहन भी हैं, जिन्हें मैं बचपन से जानती हूं. मेरी बात मान तो तू चारू को कहीं और ले जा या कुछ दिन के लिए मेरे घर छोड़ दे. कुछ भी कर अगर चारू को बचाना चाहता है तो, चाहे अपनी मां से झूठ ही बोल.’’

अनुराग असमंजस में था मगर बचपन से मेरे करीब होने की वजह से मुझ पर विश्वास भी करता था. टूर पर ले जाने के बहाने वह चारू को अपने साथ मेरे घर पर ले आया तो चारू को मैले कपड़ों में देख कर मुझे अफसोफ हुआ था.

‘‘मौसी, आप क्या समझाना चाहती हैं…मेरे दिमाग में ही नहीं आ रहा है.’’

‘‘बस, अब तुम चिंता मत करो. तुम्हारा 15 दिन का टूर है और दीदी को यही पता है कि चारू तुम्हारे साथ है, 15 दिन बाद चारू को यहां से ले जाना.’’

अनुराग चला गया. जाते समय वह मुड़मुड़ कर चारू को देखता रहा पर वह उसे छोड़ने भी नहीं गई. 6-7 महीने ही तो हुए थे शादी को पर पति के विछोह की कोई भी पीड़ा चारू के चेहरे पर नहीं थी. चूंकि मेरे दोनों बेटे बाहर पढ़ते हैं और पति शाम को ही घर पर आने वाले थे इसीलिए हम दोनों उस समय अकेली ही थीं.

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‘‘चारू, बेटा क्या लेगी? ठंडा या गरम, कुछ नाश्ता करेगी न मेरी बच्ची?’’

स्नेह से सिर पर हाथ फेरा तो मेरी गोद में समा कर वह चीखचीख कर रोने लगी. मैं प्यार से उसे सहलाती रही.

‘‘ऐसा लगता है मौसी कि मैं मर जाऊंगी. मुझे बहुत डर लगता है. कुछ नहीं होता मुझ से.’’

‘‘होता है बेटा, होता क्यों नहीं. तुम्हें तो सब कुछ आता है. चारू इतनी समझदार, इतनी पढ़ीलिखी, इतनी सुंदर बहू है हमारी.’’

चारू मेरा हाथ कस कर पकड़े रही जब तक पूरी तरह सो नहीं गई. एक प्रश्नचिह्न थी मेरी बहन सदा मेरे सामने, और आज भी वह वैसी ही है. एक उलझा हुआ चरित्र जिसे स्वयं ही नहीं पता, उसे क्या चाहिए. जिस का अहं इतना ऊंचा है कि हर रिश्ता उस के आगे बौना है.

शाम को मेरे पति घर आए तब उन्हें मेरे इस कदम का पता चला. घबरा गए वह कि कहीं दीदी को पता चला तो क्या होगा. कहीं रिश्ता ही न टूट जाए.

‘‘टूटता है तो टूट जाए. उम्र भर हम ने दीदी की चालबाजी सही है. अब मैं बच्चों को तो दीदी की आदतों की बलि नहीं चढ़ने दे सकती. जो होगा हो जाएगा. कभी तो आईना दिखाना पड़ेगा न दीदी को.’’

चारू की हालत देख कर मैं सुबकने लगी थी. चारू उठी ही नहीं. सुबह का नाश्ता किया हुआ  था. खाना सामने आया तो पति का मन भी भर आया.

‘‘बच्ची भूखी है. मुझ से तो नहीं खाया जाएगा. तुम जरा जगाने की कोशिश तो करो. आओ, चलो मेरे साथ.’’

रिश्ते की नजाकत तो थी ही लेकिन सर्वोपरि थी मानवता. हमारी अपनी बच्ची होती तो क्या करते, जगाते नहीं उसे. जबरदस्ती जगाया उसे, किसी तरह हाथमुंह धुला मेज तक ले आए. आधी रोटी ही खा कर वह चली गई.

‘‘सोना मत, चारू. अभी तो हम ने बातें करनी हैं,’’ मैं चारू को बहाने से जगाना चाहती थी. पहले से ही खरीदी साड़ी उठा लाई.

‘‘चारू, देखना तुम्हारे मौसाजी मेरे लिए साड़ी लाए हैं, कैसी है? तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. तुम्हारी साडि़यां देखी थीं न शादी में, जरा पसंद कर के दे दो. यही ले लूं या बदल लूं.’’

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चारू ने तनिक आंखें खोलीं और सामने पड़ी साड़ी को उस ने गौर से देखा फिर कहने लगी, ‘‘मौसाजी आप के लिए इतने प्यार से लाए हैं तो इसे ही पहनना चाहिए. कीमत साड़ी की नहीं कीमत तो प्यार की होती है. किसी के प्यार को दुत्कारना नहीं चाहिए. बहुत तकलीफ होती है. आप इसे बदलना मत, इसे ही पहनना.’’

शब्दों में सुलह कम प्रार्थना ज्यादा थी. स्नेह से माथा सहला दिया मैं ने चारू का.

‘‘बड़ी समझदार हो तुम, इतनी अच्छी बातें कहां से सीखीं.’’

‘‘अपने पापा से, लेकिन शादी के बाद मेरी हर अच्छाई पता नहीं कहां चली गई मौसी. मैं नाकाम साबित हुई हूं, घर में भी और नातेरिश्तेदारों में भी. मुझे कुछ आता ही नहीं.’’

‘‘आता क्यों नहीं? मेरी बच्ची को तो बहुत कुछ आता है. याद है, तुम्हारे मौसाजी के जन्मदिन पर तुम ने उपमा और पकौड़े बनाए थे, जब तुम अनुराग के साथ पहली बार हमारे घर आई थीं. आज भी हमें वह स्वाद नहीं भूलता.’’

‘‘लेकिन मम्मी तो कहती हैं कि आप लोग अभी तक मेरा मजाक उड़ाते हैं. इतना गंदा उपमा आप ने पहली बार खाया था.’’

यह सुन कर मेरे पति अवाक् रह गए थे. फिर बोले, ‘‘नहीं, चारू बेटा, मैं अपने बच्चों की सौगंध खा कर कहता हूं, इतना अच्छा उपमा हम ने पहली बार खाया था.’’

शोभा दीदी ने बहू से इस तरह क्यों कहा? इसीलिए उस के बाद यह कभी हमारे घर नहीं आई. आंखें फाड़फाड़ कर यह मेरा मुंह देखने लगे. इतना झूठ क्यों बोलती है यह शोभा? रिश्तों में इतना जहर क्यों घोलती है यह शोभा? अगर सुंदर, सुशील बहू आ गई है तो उस को नालायक प्रमाणित करने पर क्यों तुली है? इस से क्या लाभ मिलेगा शोभा को?

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‘‘तुम, तुम मेरी बेटी हो, चारू. अगर मेरी कोई बेटी होती तो शायद तुम जैसी होती. तुम से अच्छी कभी नहीं होती. मैं तो सदा तुम्हारे अपनेपन से भरे व्यवहार की प्रशंसा करता रहा हूं. लगता ही नहीं कि घर में किसी नए सदस्य का आगमन हुआ था. अपनी मौसी से पूछो, उस दिन मैं ने क्या कहा था? मैं ने कहा था, हमें भी ऐसी ही बहू मिल जाए तो जीवन में कोई भी कमी न रह जाए. मैं सच कह रहा हूं बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, मेरा विश्वास करो.’’

मेरे सामने सब साफ होता गया. शोभा अपने पुत्र और पति के सामने भी खुद को बहू से कम सुंदर, कम समझदार प्रमाणित नहीं करना चाहती.

दूसरी सुबह ही मैं ने पूरा घर चारू को सौंप दिया. मेरे पति ने ही मुझे समझाया कि एक बार इसे अपने मन की करने तो दो, खोया आत्मविश्वास अपनेआप लौट आएगा. बच्ची पर भरोसा तो करो, कुछ नया होगा तो उसे स्वीकारना तो सीखो. इस का जो जी चाहे करे, रसोई में जो बनाना चाहे बनाए. कल को हमारी भी बहुएं आएंगी तो उन्हें स्वीकार करना है न हमें.

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बैंकिग सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने का काम करेगी बैंक सखी

राज्य सरकार ने महिलाओं को रोजगार देने की में उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पहल की है. गांव-गांव तक बैंकिंग सेवाओं को पहुंचाने के लिये उसने 17500 बीसी सखी (बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट) बनाने का काम पूरा कर लिया है.

प्रदेश के ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि 17500 बीसी सखी का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है और उनको पैसा हस्तांतरित किया जा रहा है.  इसके अलावा 58 हजार बीसी सखी को प्रशिक्षण देने का काम तेज गति से किया जा रहा है.

सरकार के इस प्रयास से बैंकिंग सेवाएं लोगों के घरों तक पहुंची हैं. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को अपने बैंक खातों से धनराशि निकालने और उसे जमा करने में बड़ी आसानी हुई है. उनका बैंक शाखाओं तक जाने का खर्चा बच रहा है और घर के करीब ही बैंक के रूप में बीसी सखी मिल जा रही हैं.

सीएम योगी आदित्यनाथ ने आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिये मिशन रोजगार, मिशन शक्ति और मिशन कल्याण योजनाओं को शुरु किया है. इसके तहत तैयार किये गये मास्टर प्लान को सरकार से सम्बद्ध संस्थान तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं. इस क्रम में बैंक ऑफ बड़ौदा और यूको बैंक के सहयोग से यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट्स लिमिटेड (यूपीकॉन) ने 1200 बीसी सखी (बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट) बना लिये हैं. कम्पनी अगले साल तक 7000 बीसी सखी बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में लगी है. गांव से लेकर शहरों में बीसी सखी 24 घंटे बैंकिंग सेवाएं दे रहे हैं.

22 मई 2020 से उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य की सभी महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिये बीसी सखी योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश राज्य की सभी महिलाओं को रोजगार के नए अवसर मिले हैं. उत्तर प्रदेश् राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से प्रदेश में 30 हजार हजार बीसी सखी बनाने का कार्यक्रम बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ मिलकर किया जा रहा है. यूपी इंडस्ट्रियल कंसलटेंट्स लिमिटेड (यूपीकॉन) इसमें भी सहयोगी की भूमिका निभा रहा है. इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति, वित्त एवं विकास निगम लिमिटेड के माध्यम से 500 अनुसूचित जाति के युवक-युवतियों को रोजगार के अवसर देते हुए बीसी सखी बनाए हैं.

बीसी सखी बनाने के लिये पूर्व सैनिकों, पूर्व शिक्षकों, पूर्व बैंककर्मियों और महिलाओं को प्राथमिकता दी गई है. बीसी सखी बनने के लिये योग्यता में 12वीं कक्षा पास होना अनिवार्य किया गया है. अभ्यर्थी को कम्यूटर चलाना आना चाहिये, उसपर को वाद या पुलिस केस नहीं होना चाहिये. ऐसे अभ्यर्थी के चयन से पहले एक छोटी सी परीक्षा भी ली जाती है. इसमें उत्तीर्ण होने वाला अभ्यर्थी बीसी सखी बन सकता है.

इज्जतदार काम मिला और लोगों की सेवा का अवसर भी

बड़हलगंज जिला गोरखपुर में बीसी सखी योजना से जुड़ने वाले धर्मेन्द्र सिंह ने बताया कि वो पहले वस्त्र उद्योग से जुड़े थे. बीसी सखी योजना से जुड़ने के बाद उनको काफी फायदा हुआ. उनका कहना है कि इज्जदतार काम मिलने के साथ लोगों की सेवा का भी बड़ा अवसर मिला है. लोगों को तत्काल बैंकिंग सेवा मिलने से खुद को भी खुशी होती है.

बीसी सखी योजना से जुड़कर प्रत्येक माह मिलने लगी एक निश्चित आमदनी

कस्बा सेथल जिला बरेली के आसिफ अली ने बताया कि बीसी सखी बनने के बाद भविष्य सुरक्षित करने के लिये प्रत्येक माह एक निश्चित आमदनी का माध्यम बना है. इससे पहले मैं ऑनलाइन कैफे चलाता था, ऑनलाइन आधार बनाने का भी काम करता था. इन सेंटरों के बंद होने के बाद रोजगार नहीं था. इसके बाद बीसी सखी योजना से जुड़कर एक स्थायी रोजगार मिला है.

लोगों को बैंकों में लाइन लगाना और समय लगाना हुआ बंद

लखनऊ में नक्खास निवासी मोहसिन मिर्जा ने बताया कि बीसी सखी योजना के तहत बैंकिंग सेवाओं को देना रोजी-रोटी का बेहतर साधन बना है. सबसे अधिक फायदा इससे बैंक के ग्राहकों को हुआ है. उनको बैंक में लाइन लगाने और समय लगाना बन्द हो गया है और बैंक तक जाने का किराया भी उनका बचा है. छोटे स्तर पर बैंकिंग सेवाएं लोग हमारे केंन्द्रों से ले रहे हैँ.

बैंकिंग सेवाओं को आसानी से प्राप्त करने की बड़ी पहल

सोनभद्र के भगवान दास बताते हैं कि बीसी सखी योजना से उनको रोजगार मिला है. प्रत्येक माह उनकी आमदनी बढ़ती जा रही है. सबसे अधिक सुविधा ग्राहकों को मिली है. सरकार की ओर से बैंकिंग सेवाओं की बड़ी सौगात खासकर गांव के लोगों को दी गई है. ग्रामीण पहले बैंक से पैसा निकालने और जमा करने में आने-जाने में जो खर्चा करते थे उसकी भी बचत हो रही है.

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