Serial Story: प्रतिदिन– भाग 1

प्रीति अपने पड़ोस में रहने वाले वृद्ध दंपती मिस्टर एंड मिसेज शर्मा के आएदिन के आपसी झगड़ों से काफी हैरान परेशान थी. लेकिन एक दिन सहेली दीप्ति के घर मिसेज शर्मा को देख कर चौंक गई. और वह दीप्ति से मिसेज शर्मा के बारे में जानने की जिज्ञासा को दबा न सकी.

कहते हैं परिवर्तन ही जिंदगी है. सबकुछ वैसा ही नहीं रहता जैसा. आज है या कल था. मौसम के हिसाब से दिन भी कभी लंबे और कभी छोटे होते हैं पर उन के जीवन में यह परिवर्तन क्यों नहीं आता? क्या उन की जीवन रूपी घड़ी को कोई चाबी देना भूल गया या बैटरी डालना जो उन की जीवनरूपी घड़ी की सूई एक ही जगह अटक गई है. कुछ न कुछ तो ऐसा जरूर घटा होगा उन के जीवन में जो उन्हें असामान्य किए रहता है और उन के अंदर की पीड़ा की गालियों के रूप में बौछार करता रहता है.

मैं विचारों की इन्हीं भुलभुलैयों में खोई हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो,’’ मैं ने रिसीवर उठाया.

‘‘हाय प्रीत,’’ उधर से चहक भरी आवाज आई, ‘‘क्या कर रही हो…वैसे मैं जानती हूं कि तू क्या कर रही होगी. तू जरूर अपनी स्टडी मेज पर बैठी किसी कथा का अंश या कोई शब्दचित्र बना रही होगी. क्यों, ठीक  कहा न?’’

‘‘जब तू इतना जानती है तो फिर मुझे खिझाने के लिए पूछा क्यों?’’ मैं ने गुस्से में उत्तर दिया.

‘‘तुझे चिढ़ाने के लिए,’’ यह कह कर हंसती हुई वह फिर बोली, ‘‘मेरे पास बहुत ही मजेदार किस्सा है, सुनेगी?’’

ये भी पढ़ें- तिलांजलि: क्यों धरा को साथ ले जाने से कतरा रहा था अंबर

मेरी कमजोरी वह जान गई थी कि मुझे किस्सेकहानियां सुनने का बहुत शौक है.

‘‘फिर सुना न,’’ मैं सुनने को ललच गई.

‘‘नहीं, पहले एक शर्त है कि तू मेरे साथ पिक्चर चलेगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं. मुझे तेरी शर्त मंजूर नहीं. रहने दे किस्साविस्सा. मुझे नहीं सुनना कुछ और न ही कोई बकवास फिल्म देखने जाना.’’

‘‘अच्छा सुन, अब अगर कुछ देखने को मन करे तो वही देखने जाना पड़ेगा न जो बन रहा है.’’

‘‘मेरा तो कुछ भी देखने का मन नहीं है.’’

‘‘पर मेरा मन तो है न. नई फिल्म आई है ‘बेंड इट लाइक बैखम.’ सुना है स्पोर्ट वाली फिल्म है. तू भी पसंद करेगी, थोड़ा खेल, थोड़ा फन, थोड़ी बेटियों को मां की डांट. मजा आएगा यार. मैं ने टिकटें भी ले ली हैं.’’

‘‘आ कर मम्मी से पूछ ले फिर,’’ मैं ने डोर ढीली छोड़ दी.

मैं ने मन में सोचा. सहेली भी तो ऐसीवैसी नहीं कि उसे टाल दूं. फोन करने के थोड़ी देर बाद वह दनदनाती हुई पहुंच जाएगी. आते ही सीधे मेरे पास नहीं आएगी बल्कि मम्मी के पास जाएगी. उन्हें बटर लगाएगी. रसोई से आ रही खुशबू से अंदाजा लगाएगी कि आंटी ने क्या पकाया होगा. फिर मांग कर खाने बैठ जाएगी. तब आएगी असली मुद्दे पर.

‘आंटी, आज हम पिक्चर जाएंगे. मैं प्रीति को लेने आई हूं.’

‘सप्ताह में एक दिन तो घर बैठ कर आराम कर लिया करो. रोजरोज थकती नहीं बसट्रेनों के धक्के खाते,’ मम्मी टालने के लिए यही कहती हैं.

‘थकती क्यों नहीं पर एक दिन भी आउटिंग न करें तो हमारी जिंदगी बस, एक मशीन बन कर रह जाए. आज तो बस, पिक्चर जाना है और कहीं नहीं. शाम को सीधे घर. रविवार तो है ही हमारे लिए पूरा दिन रेस्ट करने का.’

‘अच्छा, बाबा जाओ. बिना गए थोड़े मानोगी,’ मम्मी भी हथियार डाल देती हैं.

फिर पिक्चर हाल में दीप्ति एकएक सीन को बड़ा आनंद लेले कर देखती और मैं बैठी बोर होती रहती. पिक्चर खत्म होने पर उसे उम्मीद होती कि मैं पिक्चर के बारे में अपनी कुछ राय दूं. पर अच्छी लगे तब तो कुछ कहूं. मुझे तो लगता कि मैं अपना टाइम वेस्ट कर रही हूं.

जब से हम इस कसबे में आए हैं पड़ोसियों के नाम पर अजीब से लोगों का साथ मिला है. हर रोज उन की आपसी लड़ाई को हमें बरदाश्त करना पड़ता है. कब्र में पैर लटकाए बैठे ये वृद्ध दंपती पता नहीं किस बात की खींचातानी में जुटे रहते हैं. बैक गार्डेन से देखें तो अकसर ये बड़े प्यार से बातें करते हुए एकदूसरे की मदद करते नजर आते हैं. यही नहीं ये एकदूसरे को बड़े प्यार से बुलाते भी हैं और पूछ कर नाश्ता तैयार करते हैं. तब इन के चेहरे पर रात की लड़ाई का कोई नामोनिशान देखने को नहीं मिलता है.

हर रोज दिन की शुरुआत के साथ वृद्धा बाहर जाने के लिए तैयार होने लगतीं. माथे पर बड़ी गोल सी बिंदी, बालों में लाल रिबन, चमचमाता सूट, जैकट और एक हाथ में कबूतरों को डालने के लिए दाने वाला बैग तथा दूसरे हाथ में छड़़ी. धीरेधीरे कदम रखते हुए बाहर निकलती हैं.

2-3 घंटे बाद जब वृद्धा की वापसी होती तो एक बैग की जगह उन के हाथों में 3-4 बैग होते. बस स्टाप से उन का घर ज्यादा दूर नहीं है. अत: वह किसी न किसी को सामान घर तक छोड़ने के लिए मना लेतीं. शायद उन का यही काम उन के पति के क्रोध में घी का काम करता और शाम ढलतेढलते उन पर शुरू होती पति की गालियों की बौछार. गालियां भी इतनी अश्लील कि आजकल अनपढ़ भी उस तरह की गाली देने से परहेज करते हैं. यह नित्य का नियम था उन का, हमारी आंखों देखा, कानों सुना.

ये भी पढ़ें- अनोखी जोड़ी: क्या एक-दूसरे के लिए बने थे विशाल और अवंतिका?

हम जब भी शाम को खाना खाने बैठते तो उधर से भी शुरू हो जाता उन का कार्यक्रम. दीवार की दूसरी ओर से पुरुष वजनदार अश्लील गालियों का विशेषण जोड़ कर पत्नी को कुछ कहता, जिस का दूसरी ओर से कोई उत्तर न आता.

मम्मी बहुत दुखी स्वर में कहतीं, ‘‘छीछी, ये कितने असभ्य लोग हैं. इतना भी नहीं जानते कि दीवारों के भी कान होते हैं. दूसरी तरफ कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा.’’

मम्मी चाहती थीं कि हम भाईबहनों के कानों में उन के अश्लील शब्द न पड़ें. इसलिए वह टेलीविजन की आवाज ऊंची कर देतीं.

खाने के बाद जब मम्मी रसोई साफ करतीं और मैं कपड़ा ले कर बरतन सुखा कर अलमारी में सजाने लगती तो मेरे लिए यही समय होता था उन से बात करने का. मैं पूछती, ‘‘मम्मी, आप तो दिन भर घर में ही रहती हैं. कभी पड़ोस वाली आंटी से मुलाकात नहीं हुई?’’

‘‘तुम्हें तो पता ही है, इस देश में हम भारतीय भी गोरों की तरह कितने रिजर्व हो गए हैं,’’ मम्मी उत्तर देतीं, ‘‘मुझे तो ऐसा लगता है कि दोनों डिप्रेशन के शिकार हैं. बोलते समय वे अपना होश गंवा बैठते हैं.’’

‘‘कहते हैं न मम्मी, कहनेसुनने से मन का बोझ हलका होता है,’’ मैं अपना ज्ञान बघारती.

कुछ दिन बाद दीप्ति के यहां प्रीति- भोज का आयोजन था और वह मुझे व मम्मी को बुलाने आई पर मम्मी को कहीं जाना था इसीलिए वह नहीं जा सकीं.

आगे पढ़ें- अचानक मेरी नजर ड्राइंगरूम में कोने में बैठी…

ये भी पढ़ें- आसान किस्त: क्या बदल पाई सुहासिनी की संकीर्ण सोच

Serial Story: प्रतिदिन– भाग 2

यह पहला मौका था कि मैं दीप्ति के घर गई थी. उस का बड़ा सा घर देख कर मन खुश हो गया. मेरे अढ़ाई कमरे के घर की तुलना में उस का 4 डबल बेडरूम का घर मुझे बहुत बड़ा लगा. मैं इस आश्चर्य से अभी उभर भी नहीं पाई थी कि एक और आश्चर्य मेरी प्रतीक्षा कर रहा था.

अचानक मेरी नजर ड्राइंगरूम में कोने में बैठी अपनी पड़ोसिन पर चली गई. मैं अपनी जिज्ञासा रोक न पाई और दीप्ति के पास जा कर पूछ बैठी, ‘‘वह वृद्ध महिला जो उधर कोने में बैठी हैं, तुम्हारी कोई रिश्तेदार हैं?’’

‘‘नहीं, पापा के किसी दोस्त की पत्नी हैं. इन की बेटी ने जिस लड़के से शादी की है वह हमारी जाति का है. इन का दिमाग कुछ ठीक नहीं रहता. इस कारण बेचारे अंकलजी बड़े परेशान रहते हैं. पर तू क्यों जानना चाहती है?’’

‘‘मेरी पड़ोसिन जो हैं,’’ इन का दिमाग ठीक क्यों नहीं रहता? इसी गुत्थी को तो मैं इतने दिनों से सुलझाने की कोशिश कर रही थी, अत: दोबारा पूछा, ‘‘बता न, क्या परेशानी है इन्हें?’’

अपनी बड़ीबड़ी आंखों को और बड़ा कर के दीप्ति बोली, ‘‘अभी…पागल है क्या? पहले मेहमानों को तो निबटा लें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

2-3 घंटे बाद दीप्ति को फुरसत मिली. मौका देख कर मैं ने अधूरी बात का सूत्र पकड़ते हुए फिर पूछा, ‘‘तो क्या परेशानी है उन दंपती को?’’

‘‘अरे, वही जो घरघर की कहानी है,’’ दीप्ति ने बताना शुरू किया, ‘‘हमारे भारतीय समाज को पहले जो बातें मरने या मार डालने को मजबूर करती थीं और जिन बातों के चलते वे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते थे, उन्हीं बातों को ये अभी तक सीने से लगाए घूम रहे हैं.’’

ये भी पढ़ें- निडर रोशनी की जगमग: भाग्यश्री को किस पुरुष के साथ देखा राधिका ने

‘‘आजकल तो समय बहुत बदल गया है. लोग ऐसी बातों को नजरअंदाज करने लगे हैं,’’ मैं ने अपना ज्ञान बघारा.

‘‘तू ठीक कहती है. नईपुरानी पीढ़ी का आपस में तालमेल हमेशा से कोई उत्साहजनक नहीं रहा. फिर भी हमें जमाने के साथ कुछ तो चलना पड़ेगा वरना तो हम हीनभावना से पीडि़त हो जाएंगे,’’ कह कर दीप्ति सांस लेने के लिए रुकी.

मैं ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘जब हम भारतीय विदेश में आए तो बस, धन कमाने के सपने देखने में लग गए. बच्चे पढ़लिख कर अच्छी डिगरियां लेंगे. अच्छी नौकरियां हासिल करेंगे. अच्छे घरों से उन के रिश्ते आएंगे. हम यह भूल ही गए कि यहां का माहौल हमारे बच्चों पर कितना असर डालेगा.’’

‘‘इसी की तो सजा भुगत रहा है हमारा समाज,’’ दीप्ति बोली, ‘‘इन के 2 बेटे 1 बेटी है. तीनों ऊंचे ओहदों पर लगे हुए हैं. और अपनेअपने परिवार के साथ  आनंद से रह रहे हैं पर उन का इन से कोई संबंध नहीं है. हुआ यों कि इन्होंने अपने बड़े बेटे के लिए अपनी बिरादरी की एक सुशील लड़की देखी थी. बड़ी धूमधाम से रिंग सेरेमनी हुई. मूवी बनी. लड़की वालों ने 200 व्यक्तियों के खानेपीने पर दिल खोल कर खर्च किया. लड़के ने इस शादी के लिए बहुत मना किया था पर मां ने एक न सुनी और धमकी देने लगीं कि अगर मेरी बात न मानी तो मैं अपनी जान दे दूंगी. बेटे को मानना पड़ा.

‘‘बेटे ने कनाडा में नौकरी के लिए आवेदन किया था. नौकरी मिल गई तो वह चुपचाप घर से खिसक गया. वहां जा कर फोन कर दिया, ‘मम्मी, मैं ने कनाडा में ही रहने का निर्णय लिया है और यहीं अपनी पसंद की लड़की से शादी कर के घर बसाऊंगा. आप लड़की वालों को मना कर दें.’

‘‘मांबाप के दिल को तोड़ने वाली यह पहली चोट थी. लड़की वालों को पता चला तो आ कर उन्हें काफी कुछ सुना गए. बिरादरी में तो जैसे इन की नाक ही कट गई. अंकल ने तो बाहर निकलना ही छोड़ दिया लेकिन आंटी उसी ठाटबाट से निकलतीं. आखिर लड़के की मां होने का कुछ तो गरूर उन में होना ही था.

‘‘इधर छोटे बेटे ने भी किसी ईसाई लड़की से शादी कर ली. अब रह गई बेटी. अंकल ने उस से पूछा, ‘बेटी, तुम भी अपनी पसंद बता दो. हम तुम्हारे लिए लड़का देखें या तुम्हें भी अपनी इच्छा से शादी करनी है.’ इस पर वह बोली कि पापा, अभी तो मैं पढ़ रही हूं. पढ़ाई करने के बाद इस बारे में सोचूंगी.

‘‘‘फिर क्या सोचेगी.’ इस के पापा ने कहा, ‘फिर तो नौकरी खोजेगी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बारे में सोचेगी. तब तक तुझे भी कोई मनपसंद साथी मिल जाएगा और कहेगी कि उसी से शादी करनी है. आजकल की पीढ़ी देशदेशांतर और जातिपाति को तो कुछ समझती नहीं बल्कि बिरादरी के बाहर शादी करने को एक उपलब्धि समझती है.’ ’’

इसी बीच दीप्ति की मम्मी कब हमारे लिए चाय रख गईं पता ही नहीं चला. मैं ने घड़ी देखी, 5 बज चुके थे.

‘‘अरे, मैं तो मम्मी को 4 बजे आने को कह कर आई हूं…अब खूब डांट पड़ेगी,’’ कहानी अधूरी छोड़ उस से विदा ले कर मैं घर चली आई. कहानी के बाकी हिस्से के लिए मन में उत्सुकता तो थी पर घड़ी की सूई की सी रफ्तार से चलने वाली यहां की जिंदगी का मैं भी एक हिस्सा थी. अगले दिन काम पर ही कहानी के बाकी हिस्से के लिए मैं ने दीप्ति को लंच टाइम में पकड़ा. उस ने वृद्ध दंपती की कहानी का अगला हिस्सा जो सुनाया वह इस प्रकार है:

ये भी पढ़ें- हीरोइन: कमला के नौकरी ना छोड़ने के पीछे क्या थी वजह

‘‘मिसेज शर्मा यानी मेरी पड़ोसिन वृद्धा कहीं भी विवाहशादी का धूमधड़ाका या रौनक सुनदेख लें तो बरदाश्त नहीं कर पातीं और पागलों की तरह व्यवहार करने लगती हैं. आसपड़ोस को बीच सड़क पर खड़ी हो कर गालियां देने लगती हैं. यह भी कारण है अंकल का हरदम घर में ही बैठे रहने का,’’ दीप्ति ने बताया, ‘‘एक बार पापा ने अंकल को सुझाया था कि आप रिटायर तो हो ही चुके हैं, क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए इंडिया घूम आते या भाभी को ही कुछ दिनों के लिए भेज देते. कुछ हवापानी बदलेगा, अपनों से मिलेंगी तो इन का मन खुश होगा.

‘‘‘यह भी कर के देख लिया है,’ बडे़ मायूस हो कर शर्मा अंकल बोले थे, ‘चाहता तो था कि इंडिया जा कर बसेरा बनाऊं मगर वहां अब है क्या हमारा. भाईभतीजों ने पिता से यह कह कर सब हड़प लिया कि छोटे भैया को तो आप बाहर भेज कर पहले ही बहुत कुछ दे चुके हैं…वहां हमारा अब जो छोटा सा घर बचा है वह भी रहने लायक नहीं है.

‘‘‘4 साल पहले जब मेरी पत्नी सुमित्रा वहां गई थी तो घर की खस्ता हालत देख कर रो पड़ी थी. उसी घर में विवाह कर आई थी. भरापूरा घर, सासससुर, देवरजेठ, ननदों की गहमागहमी. अब क्या था, सिर्फ खंडहर, कबूतरों का बसेरा.

‘‘‘बड़ी भाभी ने सुमित्रा का खूब स्वागत किया. सुमित्रा को शक तो हुआ था कि यह अकारण ही मुझ पर इतनी मेहरबान क्यों हो रही हैं. पर सुमित्रा यह जांचने के लिए कि देखती हूं वह कौन सा नया नाटक करने जा रही है, खामोश बनी रही. फिर एक दिन कहा कि दीदी, किसी सफाई वाली को बुला दो. अब आई हूं तो घर की थोड़ी साफसफाई ही करवा जाऊं.’

‘‘‘सफाई भी हो जाएगी पर मैं तो सोचती हूं कि तुम किसी को घर की चाबी दे जाओ तो तुम्हारे पीछे घर को हवाधूप लगती रहेगी,’ भाभी ने अपना विचार रखा था.

‘‘‘सुमित्रा मेरी सलाह लिए बिना भाभी को चाबी दे आई. आ कर भाभी की बड़ी तारीफ करने लगी. चूंकि इस का अभी तक चालाक लोगों से वास्ता नहीं पड़ा था इसलिए भाभी इसे बहुत अच्छी लगी थीं. पर भाभी क्या बला है यह तो मैं ही जानता हूं. वैसे मैं ने इसे पिछली बार जब इंडिया भेजा था तो वहां जा कर इस का पागलपन का दौरा ठीक हो गया था. लेकिन इस बार रिश्तेदारों से मिल कर 1 महीने में ही वापस आ गई. पूछा तो बोली, ‘रहती कहां? बड़ी भाभी ने किसी को घर की चाबी दे रखी थी. कोई बैंक का कर्मचारी वहां रहने लगा था.’

आगे पढ़ें- घर में कोई मिलने आ जाए तो उस के…

ये भी पढ़ें- विश्वासघात: क्यों लोग करते हैं बुढ़ापे में इमोशन के साथ खिलवाड़

हर साल लाखों की जान लेती है घर की मामूली धूल

दो साल पहले डायसन इंडिया और फिक्की रिसर्च एंड एनालिसिस सेंटर ने दिल्ली, मुंबई और बंग्लुरु में 100 घरों का सफाई सर्वे किया. इस सर्वे में पाया गया कि वे घर जहां नियमित सफाई होती है, जहां सफाई के लिए कोई नियुक्त है, उन घरों में भी कार्पेट, मैट्रेस, सोफा और कार के पायदानों के नीचे निरीक्षण करने पर अच्छी खासी धूल पायी गई. इन जगहों पर करीब 100 से 125 ग्राम तक धूल निकली. घर के भारी पर्दे सोफे, गलीचे ये तमाम चीजें घरेलू धूल की खान होते हैं. यहां मौजूद धूल के बारीक कण घर मंे रहने वालों खासकर बच्चों और बूढ़ों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं. घर में जिन जगहों पर धूप नहीं आती, जहां खिड़कियां अकसर बंद रहती हैं, वहां नमी, अंधेरा और घुटन के कारण फंफूद पनपने लगती है. यह फंफूद भी घरेलू धूल यानी डस्ट माइट्स में बड़ा इजाफा करती है.

अमरीका में डाॅक्टर लगातार लोगों को आगाह करते हैं कि एलर्जी से बचना है तो हर हफ्ते घर मंे कम से कम तीन बार वैक्यूम क्लीनर से सफाई करें. हम चाहें नौकरीपेशा हों या अपना कोई कारोबार करते हों, हम सबको घरों की चारदीवारी के भीतर लंबा समय गुजारना पड़ता है. ऐसे में धूल से भरा घर के भीतर का यह वातावरण हमारी सेहत के लिए सचमुच बहुत खतरनाक है. मैक्केरी विश्वविद्यालय में पर्यावरणीय वैज्ञानिक मार्क टेलर ने इंडोर धूल पर बड़ा काम किया है. उनके मुताबिक घर की धूल को अगर हम वैक्यूम क्लीनर से इकट्ठा करके किसी प्रयोगशाला में जंचवाएं यानी इसमें मौजूद खतरनाक तत्वों का विश्लेषण कराएं तो पता चलेगा कि करीब 360 किस्म के खतरनाक विषैले तत्व इस धूल में मौजूद हैं. लेकिन यह मत सोचिए कि हमारा घर पूरी तरह से बंद है, तो धूल आयेगी कहां से? वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसम, जलवायु घर की उम्र और उसके निर्माण में इस्तेमाल हुई विभिन्न किस्म की निर्माण सामग्री से घर की कुल धूल का एक तिहाई निर्मित होता है. जिन घरों में पालतू जानवर लोगों के साथ रहते हैं, उन घरों में यह घरेलू धूल और ज्यादा खतरनाक हो जाती है. क्योंकि इस धूल में लगातार पालतू जानवरों के बाल और मृत कोशिकाओं का चूरा शामिल होता रहता है.

हम और हमारे पालतू जानवरों के शरीर से लगातार मृत कोशिकाएं झड़ती रहती हैं. ये कोशिकाएं मलबे का हिस्सा बनती हैं. धूल मंे इनका अच्छा खासा हिस्सा होता है. यही वजह है कि जब ये धूल हमारे शरीर के अंदर पहुंचती है तो कई तरह की एलर्जी का खतरा रहता है. मगर धूल में सिर्फ इतना ही नहीं होता. घर की रसोई मंे बनने और सड़ने वाले तमाम खाद्य पदार्थ, उन्हें खाने वाले कीड़े मकौड़े, घर मंे बिछे कालीन के फाइबर, कपड़ों और बिस्तरों से निकलने वाली रूई और इसी तरह के दूसरे करीब 360 कण या तत्व धूल का हिस्सा होते हैं. ये हमारी सेहत के लिए बहुत खतरनाक होते हैं. घरों में सबसे ज्यादा धूल फर्नीचर, बच्चों के सोने के कपड़ों आदि से निकलती है. घर मंे खुले पड़े रहने वाले जूते, गंदे कपड़े, अखबार और किताबों के ढेर भी घरेलू धूल के बड़े स्रोत हैं. घर की धूल कई बार बाहर की धूल से ज्यादा जहरीली होती है. इसलिए घर की धूल से सावधान रहना बहुत जरूरी है.

घर की इस धूल में कई कार्बनिक और अकार्बनिक तत्व होते हैं. इसमें बैक्टीरिया, वायरस, फंफूद के बीजाणु, पौधों के तंतु, छाल, पत्तियों के ऊतक अत्यंत सूक्ष्मजीव और उनके मलकण, पालतू जानवरों के शरीर की मृत त्वचा. ये सब चीजें पहले घर के फर्श पर, हमारी पढ़ने, लिखने वाली मेज पर या ऐसी ही किसी दूसरी जगह पर एकत्र होती हैं, फिर हवा के द्वारा उड़कर धूल से मिल जाती हैं. घर की सजावटी चीजें जो पक्षियों के पंखों, कपास, ऊन, जूट और जानवरों के बालों से बनी होती हैं, उनमें धूल के बारीक कण अंदर तक प्रविष्ट कर जाते हैं. फर्नीचर, गद्दे, तकियों, सोफे, रूई, पाॅलीफाइबर, स्पंज ये सब जब पुराने होकर टूटने लगते हैं तो इनमें मौजूद धूल के कण घर के सदस्यों की बीमारी का एक बड़ा कारण बन जाते हैं. यह घरेलू धूल कितनी भयावह होती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में हर साल 28 लाख से ज्यादा लोग ऐसी घरेलू धूल से मर जाते हैं. इनमें करीब 5 लाख भारतीय होते हैं.

घरेलू धूल के पैदा होने की और खास जगहों में काम में न आ रहे गर्म कपड़े, कंबल आदि भी होते हैं. इन कपड़ों में नमी तथा धूप के अभाव के कारण रेशों के अंदर, फंफूद और डस्ट माइट्स पनपने लगती है. यही वजह है कि अगर इन्हें धूप में अच्छी तरह सुखाकर प्रयोग में न लाया जाये तो इनका इस्तेमाल करने से एलर्जी हो जाती है. घर में सफाई करने के दौरान धूल के ये कण पूरे वातावरण में फैलकर अपना एक वायुमंडल बना लेते हैं, इससे भी कई बार घर के सदस्यों को कई बार एलर्जी हो जाती है. दमा के रोगियों को घर की इस धूल से खास तौरपर एलर्जी होने का खतरा रहता है.

सवाल है घर मंे धूल कम से कम पैदा हो इसके लिए हमंे क्या करना चाहिए?

– घर में पानी की लीकेज हो रही हो तो इसे तुरंत सही करवा लें.

– घर में साफ और स्वच्छ वायु के आवागमन के लिए दरवाजे और खिड़कियों को खोलकर रखें.

– फर्नीचर और अन्य चीजों से धूल झाड़ते समय उसे गीले कपड़े से पोंछना जरूरी है ताकि धूल पूरे वातावरण में फैलकर बीमारी की वजह न बने.

– बच्चों को जानवरों के पंखों, खाल और बालों से बने खिलौने खेलने के लिए न दें.

– घर के गद्दे, सोफे, पर्दे, बिस्तर, कुर्सियों को वैक्यूम क्लीनर से कुछ कुछ दिनों जरूर साफ करें.

– समय-समय पर घर के गद्दों और बिस्तर को धूप में रखें.

– कालीन और गलीचों के स्थान पर लकड़ी का फर्श, टायल्स आदि इस्तेमाल करें.

– घर की धूल भरी किताबों, फाइलों, कपड़ों और बिस्तर को झाड़ते समय मुंह ढंककर रखें.

– पेट्स को बेडरूम में न आने दें.

– इंडोर प्लांट्स या पौधों या फूलों के गुच्छे को सजावट के लिए खुले स्थानों में रखें.

REVIEW: जानें कैसी है अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः अजय देवगन और आनंद पंडित

निर्देशकः कुकू गुलाटी

कलाकारः अभिषेक बच्चन, सोहम शाह,  निकिता दत्ता, इलियाना डिक्रूजा,  सुप्रिया पाठक, राम कपूर व अन्य.

अवधिः लगभग दो घंटा पैंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी प्लस हॉट स्टार

1992 में भारतीय शेअर बाजार में एक बहुत बड़ा स्कैम हुआ था, जिसके कर्ताधर्ता शेअर दलाल हर्षद मेहता थे. उन्ही की कहानी पर कुछ दिन पहले दस एपीसोड लंबी हंसल मेहता निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्कैम 1992’’आयी थी, जिसे काफी पसंद किया गया था. अब उसी कहानी पर फिल्मकार कुकू गुलाटी अपराध कथा वाली फिल्म ‘‘द बिग बुल’’लेकर आए हैं, जो कि आठ अप्रैल की रात से ‘डिजनी प्लस हॉट स्टार’’पर स्ट्रीम हो रही है. बहरहाल, फिल्म‘‘द बिग बुल’’की कहानी में हर्षद मेहता, पत्रकार सुचेता दलाल सहित सभी किरदारों के नाम बदले हुए हैं और फिल्मकार ने इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित बताया है.

कहानीः

वर्तमान समय में पैंतिल वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अस्सी व नब्बे के दशक के बीच शेअर दलाल हर्षद मेहता की पूरी कहानी पता है. उस वक्त इसे हर्षद मेहता स्कैम कहा गया था. जो युवा पीढ़ी इस कहानी से परिचित नहीं थी, उसे वेब सीरीज‘‘स्कैम 1992’’से पता चल गया.

यह कहानी शुरू होती है 1987 से, जब निम्न मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार की. इस परिवार के दो बेटे हेमंत शाह(अभिषेक बच्चन) और वीरेंद्र शाह(सोहम शाह ) छोटी नौकरी व छोटी दलाली से कमाई कर जिंदगी गुजार रहे हैं. पर हेमंत शाह के सपने बहुत बड़े हैं. हेमंत शाह के सपने तो आसमान से भी परे हैं और वह अपनी जिंदगी में बहुत ही कम समय में देश का पहला बिलिनियर बनना चाहते हैं. एक दिन हेमंत शाह को बलदेव से शेअर बाजार में पैसा लगाकर कमाने की एक अंदरूनी जानकारी मिलती है. उसी दिन उन्हें पता चलता है कि उनका छोटा भाई वीरेंद्र शाह शेअर बाजार में पैसा लगाकर नुकसान उठा चुका है. पर वीरेंद्र अपने हिसाब से अंदरूनी जानकारी की जांचकर शेअर बाजार में पैसा लगा देता है और पहली बार में ही वह लंबा चैड़ा फायदा कमा लेते हैं. उसके बाद तो उनके सपने और बड़े हो जाते हैं. अब हेमंत शाह बैंक रसीद यानी कि बी आर का दुरूपयोग करते हुए शेअर बाजार में पैसा कमाने लगते हैं. देखते ही देखते वह‘शेअर बाजार के नामचीन  दलाल बन जाते हैं. इस बीच हेमंत शाह अपनी प्रेमिका प्रिया(निकिता दत्ता)संग शादी भी कर लेते हैं. वीरेंद्र शुरूआत में झिझकते हुए अपने भाई हेमंत शाह का साथ देता है, पर बाद में वह भी हेमंत के हर काम में भागीदार बन जाता है. लेकिन वीरेंद्र हमेशा चाहता है कि उसका भाई धीमी गति से उड़ान भरे. जिससे कहीं भी पकड़ा न जाए. मगर हेमंत शाह को धीमी गति से चलना पसंद नही है. इसी उंची उड़ान को भरते हुए हेमंत शाह सरकार का हिस्सा बने राजनेता के बेटे संजीव कोहली(समीर सोनी) के संपर्क में आते हैं. संजीव कोहली, हेमंत को आश्वासन देते हैं कि हर मुसीबत के समय उनके पिता उसे बचा लेंगे. यह वह दौर है,  जब देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई है.

ये भी पढ़ें- Siddharth Shukla के Kissing सीन हुआ वायरल तो Shehnaaz Gill ने किया ये काम

हेमंत शाह ने बैंक रसीद बी आर के साथ ही बैंकिंग व सरकारी सिस्टम की कमियों का जमकर फायदा उठाते हुए अपनी तिजोरी भरी और कालबा देवी की चाल से निकलकर पेंटा हाउसनुमा आलीशान बंगले में रहने लगते हैं. हेमंत की चालों के चलते शेअर बाजार में बढ़ते शेअरों के दामों में खोजी पत्रकार मीरा(ईलियाना डिक्रूजा) को दाल में काला नजर आता है. वह अपने तरीके से हेमंत शाह के कारनामों की जांच कर अपने अखबार में लिखना शुरू कर देती है. उधर हेमंत शाह की दुश्मनी सेबी के चेअरमैन मनी मालपानी( सौरभ शुक्ला) से भी हो जाती है. एक दिन मनी मालपानी उसे सावधान भी करते है. पर हेमंत शाह अपने सपनों की उड़ान में मदमस्त कह देते है कि वह भले ही गलत काम कर रहा हो, पर कानून के हिसाब से वह गलत नही है. संजीव कोहली के साथ हाथ मिलाने के बाद हेमंत शाह कहने लगते हैं कि हुकुम का इक्का उनकी जेब में है. मगर एक दिन हेमंत शाह बुरी तरह से फंसते है, उस वक्त उनका ‘हुकुम का इक्का’फोन तक नही उठाता. अपने अति आत्मविश्वास या घमंड के चलते किसी तरह का समझौता करने की बजाय अपने वकील अशोक(राम कपूर)के साथ मिलकर‘हुकुम का इक्का’पर ही आरोप लगा देते हैं. हेमंत मानते हैं कि उन्होने कुछ भी गलत नही किया. उन्होने हर आम इंसान को पैसा कमाने का अवसर दिया. जो कुछ भी गलत हुआ है वह पोलीटिकल सिस्टम के चलते हुआ है. पर जांच में अंततः हेमंत शाह दोषी पाए जाते हैं, जिन्हे सजा हो जाती है और हार्ट अटैक से जेल में ही मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

अफसोस की बात यह है कि अतीत में एक असफल फिल्म निर्देशित कर चुके कुकू गुलाटी ने भी फिल्म‘द बिग बुल’’से हेमंत शाह की ही तरह लंबे सपने देख रखे थे, लेकिन यह फिल्म एक अति सतही फिल्म बनी है. पटकथा व फिल्मांकन के स्तर पर काफी कमियां है. कई किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाए. लेखक ने फिल्म में बैंकिग सिस्टम व सरकारी सिस्टम पर भी उंगली उठायी है, मगर बहुत बचकर निकलने के प्रयास में कथानक गड़बड़ कर गए. फिल्म की शुरूआत में इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित कहा गया है, मगर फिल्मकार का सारा ध्यान हर्षद मेहता की बायोपिक बनाने में ही रहा, इसी वजह से वह उस युग की जटिलताओ को भी अनदेखा कर गए. फिल्म में जब हेमंत शाह को कोई बड़ी सफलता मिलती है, तो वह जिस तरह की हंसी हंसते हैं, उसे देखकर दर्शक को अस्सी व नब्बे के दशक की फिल्मों के खलनायक की हंसी का अहसास होता है. इंटरवल तक तो कुकू गुलाटी किसी तरह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, मगर इंटरवल के बाद उनके हाथ से फिल्म फिसल गयी है. फिल्म के क्लायमेक्स में तो वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. कुछ किरदारो के लिए कलाकारों का चयन भी गलत किया है. संवाद भी काफी सतही है. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ है.

फिल्म में हेमंत शाह काएक संवाद है-‘‘कहानी किरदार से नही हालात से पैदा होती है. ’’मगर फिल्म‘‘द बिग बुल’’में हालात या किरदार से कुछ भी पैदा नही हुआ.

इमोशंस भावनाओं का घोर अभाव है. फिल्म के कुछ संवाद इस ओर भी इशारा करते है कि फिल्म को किसी खास अजेंडे के तहत बनाया गया है और जब जब फिल्में किसी अजेंडे के तहत बनायी गयी हैं, तब तब उनका हश्र अच्छा नही रहा.

अभिनयः

हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन प्रभावित नही कर पाते है. कई दृश्यों में वह अपनी पुरानी फिल्म ‘गुरू’की झलक जरुर पेश कर जाते हैं. कई जगह उसी फिल्म की तर्ज पर खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि यह हर्षद मेहता की कहानी है. कई ऐसे जटिल दृश्य हैं, जहां वह अपनी प्रतिभा का परिचय देने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. वास्तव में यहां अभिषेक बच्चन को अच्छी पटकथा नही मिली और न ही निर्देशक के तौर पर यहां मणि रत्नम हैं. हेमंत के भाई वीरेंद्र शाह के किरदार में सोहम शाह ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. हेमंत शाह की पत्नी प्रिया के किरदार में निकिता दत्ता है, मगर उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नही. पत्रकार मीरा के किरदार में ईलियाना डिक्रूजा हैं. अफसोस उनके हिस्से भी कुछ करने को नहीं रहा. जबकि इस कहानी में पत्रकार सुचेता दलाल का किरदार काफी अहम है. सेबी के चेअरमैन मालपानी के किरदार में सौरभ शुक्ला और मजदूर नेता राणा सावंत के किरदार में महेश मांजरेकर का चयन गलत सिद्ध होता है. सुप्रिया पाठक, राम कपूर, लेखा प्रजापति, कानन अरूणाचलम की प्रतिभा को जाया किया गया है. लेखक व निर्देशक ने इनके किरदारों को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

ये भी पढ़ें- वनराज-अनुपमा के खिलाफ नया प्लान बनाएगी काव्या, आएगा नया ट्विस्ट

Shehnaaz Gill ने काटे अपने बाल, कहीं वजह सिद्धार्थ शुक्ला की Kiss तो नही

रियलिटी शो बिग बॉस 13 के विनर रह चुके एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला आए दिन सुर्खियों में रहते हैं. जहां कई बार शहनाज गिल संग उनकी कैमेस्ट्री की खबर वायरल होती हैं तो वहीं शादी की खबरों के चलते चर्चा में छा जाते हैं. इसी बीच सिद्धार्थ शुक्ला की अपकमिंग वेब सीरीज ब्रोकन बट ब्यूटीफुल का तीसरा सीजन आने वाले है, जिसमें वह किसिंग सीन करते नजर आने वाले हैं. वहीं इसका एक वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है. इसी वीडियो के वायरल होते ही शहनाज गिल के नए पोस्ट ने सोशलमीडिया पर धमाल मचा दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

किसिंग सीन के कारण छाए सिद्धार्थ

दरअसल,  एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला (Sidharth Shukla) जल्द ही ALT Balaji की नई वेब सीरीज ब्रोकेन बट ब्यूटीफूल 3 (Broken But Beautiful 3) में एक्ट्रेस सोनिया राठी नजर आने वाले हैं. वहीं इस सीरीज में दोनों लिपलॉक करते हुए भी दिखेंगे. वहीं नजर आ रहे हैं. किसिंग सीन का वीडियो शेयर करते हुए एकता ने लिखा- मेरा फेवरेट शो वापस आ गया है. फैंस इस वीडियो को देख क्रेजी हो गए हैं.

ये भी पढ़ें- वनराज-अनुपमा के खिलाफ नया प्लान बनाएगी काव्या, आएगा नया ट्विस्ट

शहनाज ने किया ये पोस्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)

सोशलमीडिया पर सिद्धार्थ शुक्ला के किसिंग सीन की वीडियो वायरल होते ही जहां फैंस ने अपना रिएक्शन दिया तो वहीं सिद्धार्थ की खास दोस्त शहनाज गिल ने अपने एक पोस्ट से सोशलमीडिया पर आग लगा दी है. दरअसल, किसिंग सीन की वीडियो वायरल होते ही शहनाज गिल ने एक पोस्ट शेयर किया है, जिसमें नए हेयरस्टाइल की झलक दिखाती नजर आ रही हैं.

ट्रांसफोर्मेंशन के चलते बटोरी सुर्खियां

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)

बीते साल लॉकडाउन में शहनाज गिल ने 6 महीने में ही 12 किलो वजन कम कर लिया था, जिसके बाद उनके वेट ट्रांसफॉर्मेशन को देखकर फैंस दंग रह गए थे. वहीं इसके बाद वह सिद्धार्थ शुक्ला संग म्यूजिक वीडियो में भी काम करती हुई दिखीं थीं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)

बता दें, ‘बिग बॉस 13’ के बाद से ही शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला का नाम साथ में जुड़ता रहा है. जहां फैंस दोनों को सिडनाज के नाम से पुकारते हैं. वहीं बीते साल शहनाज गिल के बर्थडे पर सिद्धार्थ शुक्ला अपनी मां संग उनकी बर्थडे पार्टी में मस्ती करते नजर आए थे.

ये भी पढ़ें- 48 की उम्र में Mohabbatein एक्टर का शौकिंग ट्रांसफौर्मेशन, देखें फोटोज

वनराज-अनुपमा के खिलाफ नया प्लान बनाएगी काव्या, आएगा नया ट्विस्ट

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) के सेट पर बीते दिनों कोरोना का कहर छाया हुआ थी, जिसके कारण शो की कास्ट यानी रुपाली गांगुली और सुधांशु पांडे समेत कई कलाकार और क्रू कोरोना के शिकार हो गए, जिसका असर शो की कहानी पर भी देखने को मिल रहा है. लेकिन मेकर्स भी पूरी तरह तैयार हैं शो की कहानी में नए ट्विस्ट लाने के लिए, जिसके चलते मेकर्स ने काव्या यानी मदालसा शर्मा पर सीरियल की कहानी पर फोकस करने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या का बढ़ा गुस्सा

अब तक आपने देखा कि अनुपमा (Rupali Ganguly) और वनराज (Sudhanshu Pandey) कर्फ्यू लगने के कारण अपने परिवार से दूर एक रिजॉर्ट में फंसे हैं, जिसके कारण काव्या की जलन और गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका है. इसके लिए वह नए प्लान की तैयारी करके बैठी है. हालांकि इस बीच किंजल की मां राखी की भी शाह हाउस में एंट्री हो चुकी है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anupama_fanpage (@anup.ama242)

ये भी पढ़ें- कार्तिक को छोड़ रणवीर के पास जाएगी सीरत, देखें वीडियो

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ANUPAMA😍 (@love.u.anupmaaa)

नया प्लान बनाएगी काव्या

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupamaa (@anupamaastarplusofficial)

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि बा और पूरे परिवार का वनराज और अनुपमा को साथ लाने का प्लान काव्या जान जाएगी, जिसके बाद वह वनराज के पास जाने की कोशिश करती नजर आएगी. हालांकि नाकाबंदी के चलते वह रुक जाएगी. वहीं खबरों की मानें तो जल्द ही शाह हाउस में एक अनजान औरत की एंट्री होने वाली है, जो वनराज और अनुपमा के घर की शांति एक बार फिर से भंग करती दिखेगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Serial Tv (@anupamaofficial3434)

 मदालसा हुई बिजी

रुपाली गांगुली और सुधांशू शर्मा के कोरोना पीड़ित होते ही काव्या यानी मदालसा शर्मा और बाकी कलाकारों पर वर्कलोड बढ़ गया है, जिसका अंदाजा सोशलमीडिया पर वायरल फोटोज से लगाया जा सकता है. वहीं कहा जा रहा है कि क्वारंटाइन पीरियड खत्म होते ही कोरोना पीड़ित कलाकार दोबारा सेट पर अगले हफ्ते लौट जाएंगे.

ये भी पढ़ें- 48 की उम्र में Mohabbatein एक्टर का शौकिंग ट्रांसफौर्मेशन, देखें फोटोज

Summer Special: सैर पहाड़ों की रानी महाबलेश्वर की 

गर्मियों में अगर कहीं घूमने का मन बनाते है तो सबसे पहले याद आती है, हसीन वादियां और खुबसूरत मौसम, जो बिना कुछ कहे ही सबको आकर्षित करती है. ऐसी ही खुबसूरत वादियों से घिरा हुआ है, महाराष्ट्र के सतारा जिले का महाबलेश्वर, जहाँ तापमान पूरे साल खुशनुमा रहता है. 1438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पर्यटन स्थल को महाराष्ट्र के हिल स्टेशन की रानी कहा जाता है. दूर-दूर तक फैली पहाड़ियां और उन पर हरियाली की छटा देखते ही बनती है. मुंबई से 264 किमी दक्षिण-पूर्व और सतारा के पश्चिमोत्तर में सह्याद्री की पहाड़ियों में अवस्थित इस स्थान की एक झलक पाने के लिए पर्यटक साल भर लालायित रहते है. कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले साल और इस साल करीब 30 प्रतिशत पर्यटक ही आ रहे है, जिससे यहाँ के व्यवसाय को काफी नुकसान हुआ है.

कोविड टेस्ट है जरुरी

महाबलेश्वर के रहने वाले सोशल वर्कर गणेश उतेनकर कहते है कि जब से कोविड 19 शुरू हुआ है, यहाँ पर्यटक के आने का सिलसिला बहुत कम हुआ है, पिछले साल यहाँ 4 या 5 व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हुआ था, जिन्हें इलाज कर ठीक कर दिया गया. यहाँ न तो कोविड है और न ही यहाँ आने वाले को कोविड 19 होने का डर रहता है, महाबलेश्वर अभी जीरों कोविड जोन के अंतर्गत है. कोरोना संक्रमण के डर से आने वाले पर्यटकों की संख्या में कमी होने की वजह से यहाँ के होटल और मार्केट के व्यवसाय में बहुत कमी आ गई है, जो चिंता का विषय है. यहाँ आने वाले सभी पर्यटक का कोविड टेस्ट किया जाता है. इसके लिए ग्राम पंचायत की एक ऑफिसर की ड्यूटी लगाई गई है. वह पर्यटक का आरटी पीसीआर टेस्ट करवाने के बाद ही होटल जाने की अनुमति देता है. अगर कोई ट्रेवल करने के 72 घंटे पहले कोविड टेस्ट करवा लेता है, तो उसे देखकर आगे भेजा जाता है. अभी वैक्सीनेशन चल रहा है, ऐसे में वैक्सीन लगाए हुए व्यक्ति की सर्टिफिकेट और कोविड टेस्ट दोनों जरुरी है. पर्यटक इस समय आसानी से यहाँ आ सकते है.

ये भी पढ़ें- Summer Special: ऐडवेंचर और नेचर का संगम कुंभलगढ़

यहाँ की आकर्षक जगहें 

महाबलेश्वर के टूरिस्ट कंपनी चलाने वाले राजेश कुमार कहते है कि महाबलेश्वर में सालों से पर्यटक आते रहे हैं, जो केवल भारत के ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी आते है. यहाँ देखने के लिए 30 से अधिक स्थल है, जिसे पर्यटक अपने बजट के हिसाब से घूमते है. यहाँ की जंगल, घाटियाँ, झरने और झीलें इतनी सुंदर है कि व्यक्ति की थकान यहाँ आने से ही दूर हो जाते है. इसके अलावा यहाँ की ख़ास जगहें एल्फिस्टन, माजोरी, नाथकोट, बॉम्बे पार्लर, सावित्री पॉइंट, आर्थर पॉइंट, विल्स पॉइंट, हेलेन पॉइंट, लॉकविंग पॉइंट और फोकलेक पॉइंट काफी मशहूर है. महाबलेश्वर जाने पर प्रतापगढ़ का किला देखना बहुत जरूरी है, जो वहां से करीब 24 किलोमीटर की दूरी पर है. इसकी कहानी बड़ी रोचक है कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने ताकतवर योद्धा अफज़ल खान को नाटकीय तरीके से मारकर किले पर फतह हासिल की थी. जहाँ से मराठा साम्राज्य ने निर्णायक मोड़ लिया था. पानघाट पर स्थित यह किला शिवाजी महाराज के 8 प्रमुख किलों में से एक है.

सोशल वर्कर गनेश उतेकर आगे कहते है कि महाबलेश्वर में लोग वीकेंड पर अधिक आते है. दो दिन और दो रात यहाँ ठहरने पर इस स्थान को घूमा जा सकता है. सन राइज पॉइंट को ख़ास देखने की जरुरत है जहाँ से आप सूर्योदय का आनंद ले सकते है.

महाबलेश्वर के पूर्व मेयर डी एम बावलेकर कहते है कि यहाँ की हर पॉइंट ख़ास है. एलिफैंट हेड पॉइंट में पत्थरों की बनावट हाथी के सिर के आकार में है जो देखने लायक है. जबकि बॉम्बे पॉइंट से पहले पूरी मुंबई दिखाई पड़ती थी, जो अब केवल साफ़ मौसम में ही दिखता है. इसके अलावा लिंग्माला वाटर फॉल, वेन्ना लेक, पुराना महाबलेश्वर मंदिर, हेरेसन फॉल, कमलगढ़ का किला आदि सभी देखने योग्य है, लेकिन वेन्ना लेक में अवश्य जाएँ, क्योंकि वहां पर आप पैडल बोट, रोइंग बोट, रंग-बिरंगी मछलियाँ पकड़ना, घुड़सवारी करना आदि सभी का आनंद आप परिवार के साथ ले सकते है.

महाबलेश्वर की डॉ. सरोज शेलार कहती है कि यहाँ अब कई नए पर्यटन स्थल विकसित हुए है जिसमें तपोला स्थान खास है, इसे मिनी कश्मीर भी कहा जाता है. यहाँ एग्रो टूरिज्म का विकास अधिक हुआ है. इसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर स्ट्राबेरी की खेती होती है, यहाँ से पर्यटक ताजी-ताजी स्ट्राबेरी का आनंद ले सकते है, लेकिन इस साल कोविड की वजह से पर्यटकों के आने में कमी आई है.

महाबलेश्वर की पूर्व नगरसेविका सुरेखा प्रशांत आखाडे कहती है कि महाबलेश्वर के सभी वाटरफाल्स नेचुरल है. जिसमें से एक लिंगमाला वाटर फॉल में पर्यटक फोटोग्राफी और प्राकृतिक दृश्यों का खूब आनंद उठाते है. ये एक ख़ास पिकनिक स्पॉट भी है. वहां से पंचगनी केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जो टेबल लैंड पर बना हुआ खुबसूरत स्थल है. 

इन जगहों पर जरूर खाएं 

महाबलेश्वर में आने वाले पर्यटकों के हिसाब से भोजन रखा गया है. शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन यहाँ मिलते है. राजेश कुमार कहते है कि यहाँ आने वाले 75 प्रतिशत पर्यटक गुजराती होते हैं, इसलिए यहाँ पर उनकी पसंदीदा कढ़ी खिचड़ी, दाल खिचड़ी हर रेस्तरां और होटल में मिलती है. शहर के बीचो-बीच बिजी मार्केट एरिया में ‘ग्रेपवाइन होटल’ काफी लोकप्रिय है. इसके अलावा ‘होटल राजेश’ भी खाना खाने के लिए अच्छा होटल है. विदेशी पर्यटक के लिए यहाँ चायनिस और कॉन्टिनेंटल फ़ूड भी मिलते है. अगर ओल्ड महाबलेश्वर जाते है, तो ‘टेम्पल व्यू’ रेस्तरां में खाना जरुर खाएं.

गनेश कहते है कि ‘होटल सनी’ और ‘होटल ड्रीमलैंड’ की थालियाँ स्वादिष्ट और सस्ती है.जहाँ पर्यटक अधिकतर भोजन करना पसंद करते है. इसके अलावा वेन्ना लेक के पास का दृश्य बहुत कुछ जुहू चौपाटी की तरह है. जहाँ आसपास वडा पाव, मक्का पेटिस,स्वीट कॉर्न, आलू और प्याज के पकौड़े, मकई के पकौड़े, अलग-अलग तरह के भेल,छोटी- छोटी दुकानों में मिलते है. यहाँ साइकिल पार्लर भी है, जिसमें लोग घर के  बने हुए स्ट्राबेरी और लीची के आइसक्रीम बेचते है. इसके अलावा बगीचा कॉर्नर और शिवनेरी रेस्तरां भी बहुत प्रसिद्द है.

डी एम् बावलेकर के हिसाब से वहां की थाली बहुत खास है, जिसमें 50 तरह की शाकाहारी और मांसाहारी अलग-अलग व्यंजन के साथ थालियाँ मिलती है. ये स्वादिष्ट होने के साथ-साथ किफायती भी है, जिसमें परोसी गयी मक्के और बैगन की सब्जी खास होती है, जिसे अवश्य चखें.

पंचगनी के आर्किटेक्ट डेव्लपर नितिन शांताराम भिलारे  कहते है कि पंचगनी में महाराष्ट्र की ऑथेंटिक फ़ूड वरन भात,झुणका भाखर बहुत प्रसिद्द है.इसके अलावा वहां की फ़ूड कोर्ट लकी कैफे एंड बेकरी काफी लोकप्रिय है, वहां का बन मस्का का आनंद जरुर लें.

ये भी पढ़ें- Summer Special: खूबसूरती का खजाना है मध्य प्रदेश का हिल स्टेशन ‘पचमढ़ी’

डॉ. सरोज  के अनुसार यहाँ छोटे-छोटे दुकानों में हैण्ड मेड नेचुरल स्ट्राबेरी आइसक्रीम मिलते है, जिसे आप अपनी पसंद के अनुसार बनवाकर खा सकते है. इसके अलावा दुकानों में तरह-तरह के चूरन मिलते है, जिसे आप चखकर अपने स्वाद के हिसाब से खरीद सकती है.

सुरेखा का कहना है कि महाबलेश्वर में कई छोटे-छोटे बंगलों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है. वहां घर जैसा खाना मिलता है, जिसे पर्यटक काफी पसंद करते है.

कहाँ से और क्या करें खरीदारी 

डी एम् बावलेकर कहते है कि यहाँ की स्ट्राबेरी, गुजबेरी और मल्बेरी पूरे देश में प्रसिद्ध है. ये सीजनल होते है, लेकिन अच्छी क्वालिटी की प्रचुर मात्रा में होने की वजह से इसका उद्योग खूब फैला है जिसमें महिलाएं कार्यरत है. इन फलों से बने जैम, जेली, जूस, सिरप और चॉकलेट फ्रेश, सस्ता होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होते है. ये केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, पूरे भारत में बिकता है.

सुरेखा के अनुसार यहाँ का मेप्रो मार्केट खरीदारी के दृष्टिकोण से काफी लोकप्रिय है. यहाँ हर तरह के बैग, पर्स, जूते चप्पल के अलावा जैम, जेली, चिक्की और भूनी हुई चने के कई वेरायटी मिलते है. इसी तरह वहां की सरोज बताती है कि महाबलेश्वर में लकड़ी के खिलौने, जूट के बैग और सजावट की वस्तुएं भी किफायती दाम पर मिलते है. यहाँ के पुरुष चप्पलें बनाते है,जो नए डिजाईन और फैशन के साथ-साथ बहुत सुंदर होते है, जिसके लिए कच्चा माल ये लोग आगरा, दिल्ली और कानपुर से लाते है,ये चप्पलें सस्ती और सुंदर होती है.

ठहरने की सुविधाएं 

महाबलेश्वर में ठहरने की व्यवस्था अच्छी है, क्योंकि यही एक ऐसा व्यवसाय है, जो सालों साल वहां की जीविका रही है. गनेश कहते है कि यहाँ 500 से लेकर 5000 रुपये तक का कमरा मिलता है. बजट के हिसाब से कमरे बुक कर सकते है. ऑनलाइन बुकिंग की भी सुविधा है. कीमत के हिसाब से सुविधाएं भी मिलती है. कई बड़े होटल भी आजकल यहाँ है जिसमें अधिकतर विदेशी सैलानी ठहरते है. इन होटलों में स्विमिंग पूल, स्पा और कांफ्रेंस रूम की व्यवस्था है. यहाँ का पूनम होटल काफी लोकप्रिय है.

घूमने का सही समय 

गनेश बताते है कि महाबलेश्वर एक हिल स्टेशन है, यहाँ हमेशा पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन  सबसे अच्छा मौसम यहाँ अप्रैल, मई, जून, अक्तूबर, नवम्बर और दिसम्बर होता है. मानसून में भी यहाँ लोग आते है, लेकिन बहुत अधिक बारिश होने की वजह से यहाँ कोहरे की पर्त जमी रहती है और बादल छाये रहते है, जिससे वे घाटियों की सुन्दरता का लुत्फ़ नहीं उठा पाते. इस बार कोविड की वजह से कम लोग आ रहे है.

सावधानियां है रखनी 

सुरेखा बताती है कि पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से यहाँ टेढ़े मेढ़े रास्ते है. ऐसे में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की जरुरत होती है. दिन में ही इन स्थानों पर जायें. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए यहाँ प्लास्टिक ले जाना मना है, ताकि पर्यावरण प्रदूषण से इस रमणीय स्थल को बचाया जा सके.

ये भी पढ़ें- गर्मियों में आपके घर को ठंडक देगें ये 5 खूबसूरत पौधे

कोरोना ने बदली औरतों के अस्तित्व की तस्वीर

वर्क फ्रौम होम ने औरतों के लिए काम के अवसर पाने के नए दरवाजे खोल दिए हैं. सदियों तक औरतें आदमी के कंधे से कंधा मिला कर खाना भी एक साथ इकट्ठा करते थे और जंगली जानवरों को भी एक साथ मारते थे. हंटर गैदरा कहे जाने वाले लोग आधुनिक सभ्यता से पहले के थ्थेे पर बराबर के थे. जब से खेती में नए अविष्कार हुए, गेंहू व दूसरी फसलें उगाना आदमी ने सीखा, उस ने धर्म का अविष्कार भी किया और उसी के साथ औरतों को घरों में बच्चों को पालने में लगाने की परंपरा शुरू हुई.

ज्यादा बच्चें करना हर धर्म का पहला उद्देश्य हो गया मानो औरतों का एक ही काम है, बच्चों को पैदा करना, पालना, उन के लिए खाना बनाना. बाकी सारी जिम्मेदारी और हक पुरुषों ने अपने पास रख लिए और धर्म ने बढ़चढ़ कर इस साजिश में हिस्सा दिया. कौन मर्द नहीं चाहेगा कि एक औरत उस के पास मंडराती रहे, जब वह चाहे बिस्तर पर बिछ जाए. जब चाहे खाया लगा दे. जब चाहे घर तैयार रखे. काम का बंटवारा जानबूझ कर ऐसे किया गया कि औरतों के जिम्मे कम तकनीक वाला काम पकड़ा दिया गया ताकि उन की वेल्यू कम रहे.

ये भी पढ़ें- औरतों को गुलाम मानना धर्म की देन

कहने को औरतों को बाकायदा शादी कर के लाया गया पर शादी सिर्फ इस बात की समाज को बनाने के लिए थी कि यह औरत अब मेरी है, किसी और की नहीं. मर्द को छूट कि वह दूसरी औरतों के पास जाता रहे. इतिहास गुलाम लड़कियों और वेश्यावृति के किस्सों से भरा है. जितनी ज्यादा धाॢमक सभ्यता उतना ज्यादा उन पर अत्याचार. यह तो अब 18वीं 19वीं शताब्दी में हुआ है कि पश्चिमी देशों में बराबरी के हकों की बात हुई है और जब लगभग लड़ाइयों में काम करने वाली औरतों की जरूरत हुई तो औरतों के घरों से बाहर निकलने का मौका मिला. जो देश या समाज जितना कट्टर आज होगा उतना ही गरीब भी होगा क्योंकि वह औरतों के श्रम का सही उपयोग करना नहीं जानता.

वर्क फ्रौम होम से पहले लाखों औरतों को काम सिर्फ इसलिए छोडऩा पड़ रहा था कि उन्हें ही बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ रही थी जबकि बच्चे स्त्रीपुरुष दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी है, पुरुष कहते है कि वे मकान दे रहे हैं, पैसा दे रहे हैं, सुरक्षा दे रहे हैं, इसलिए उन का दर्जा अंधा है पर असल में वे इसलिए ऊंचे हैं कि उन्होंने गुलाम पाल रखी है.

वर्क फ्रौम होम ने औरतों के घरों में रह कर पुरुष से स्वतंभ रह कर काम करने और पैसा कमाने की आजादी दी है..वह दोहरी जिम्मेदारी निभा सकती है और इस दृष्टि से पुरुष से बेहतर साबित हो सकती है.

औरतों के अब अपना घर बनाने की स्वतंत्रता मिल  सकती है. वे वर्क फ्रौम होम के अनुसार घर बना सकती हैं. उन्हें अब घर में किचन और दफ्तर दोनों चलानी की इजाजत मिली है. इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स को बनाने की बहस अगर कंप्यूटर पर हो रही हो और औरत किचन में काम करती दिखे तो किसी को आश्चर्य नहीं होता, ठीक वैसे ही जैसे जब पुरुष जिम में एक्सरसाइज करते हुए हाईटैक जून मीङ्क्षटग कंप्यूटर पर करता है.

वर्क फ्रौर्म होम का जो अवसर कोरोना वायरस ने दिया है, उस ने धम्र के बनाए नियमों के कमजोर किया है. धर्म वालों की लाख दुहाई के बावजूद दुनिया भर की आखें कोरोना के बचाव के लिए प्रयोगशालाओं पर लगी हैं. आज एंटरटेनमैंट और स्पोट्र्स उद्योग, करकेयर उद्योग नहीं, फार्मा उद्योग चमक रहा है जहां औरतें कंधे से कंधा मिला कर 24-24 घंटे प्रयोग लालाओं में बिता कर 7 अरब लोगों को कोरोना वायरस के कहर से बचातेबचाते औरतों को घरों और दफ्तरों में  बराबर का हक पाने का अवसर दे रही हैं.

ये भी पढ़ें- क्या जेंडर संबंधित रूढ़ियों से  लड़के भी हैं प्रभावित

वर्क फ्रोम होम करने पर न सैपरमाल हैरेसमैंट का डर है न पुरुष के 4 इंच ज्यादा लंबे कद और ज्यादा मजबूत मसल्स का. वर्क फ्रोम होम में सब बराबर हैं. औरतों को अपने घरों में अपने लिए दफ्तर, दुकान कंप्यूटर डेस्क की जगह बना लेनी चाहिए. उन का घर अब दफ्तर व फैक्ट्री बन गया है. उन्हें घरों में रह कर बराबर का कानूनी हक मांगना होगा, उन्घ्हें इस मौके को फिसलने नहीं देना होगा. इतिहास गवाह है कि औरतों को आगे कर के बहुत से युद्ध लड़े गए, बहुत सी प्राकृति आपदाओं का सामना करा गया पर काम होते ही उन्हें फिर डब्बों में बंद कर दिया गया. धर्म की पहुंच और ताकत को कम न समझें, उन की करोड़ों की फौज दुनियाभर के गांवगांव में फैली है जो एक ईशारे पर एक भाषा में बात करती है. औरतों की कोई नेता नहीं है. उन्हें समझाने और बचाने वाला कोई नहीं है. वे तो अपने भक्षक के ही पांव पूज कर बचाव कर उपाय ढूंढ़ती हैं. कोराना की मेहरबानी से एक दरवाजा खुला है, बड़ा दरवाजा खुला है, जेलों से निकलों. खुली हवा में सांस लो. बराबर का काम करो और बराबर का दर्जा पाओ.

किडनी फेल होने की वजह कही मोटापा तो नहीं, जानें यहां 

मोटापा किसी व्यक्ति के  लिए एक अभिशाप होता है, जिसे चाहकर भी कम करना कठिन होता है, जिनका बॉडी मॉस इंडेक्स (BMI) दिए गए मानक से अधिक हो, वह व्यक्ति हमेशा कई बिमारियों के दायरे में होता है, जिसमें मधुमेह, स्ट्रोक, हार्ट, किडनी आदि है. आजकल महिला, पुरुष और बच्चे सभी को जंक फ़ूड पसंद होता है, ऐसे में मोटापा स्वाभाविक है. कोविड के समय में तो मोटापा घर बैठने और किसी प्रकार की बाहरी एक्टिविटी न होने की वजह से और भी अधिक देखा जा रहा है.

हाल में हुए एक सर्वेक्षण में मोटापे के तकरीबन 10 से 15 प्रतिशत केस में किडनी खराब होने की समस्या देखी गई. इस बारें में दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के बेरियाट्रिक और लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. सुखविंदर सिंह सग्गु कहते है कि बदलती जीवनशैली और खानपान में बदलाव के कारण मोटापा की समस्या बढ रही है. मोटापे की वजह से कई बिमारियों को व्यक्ति आमंत्रण देता है, इसलिए बढते वजन पर नियंत्रण रखना जरूरी है, क्योंकि मोटापा केवल डायबिटीज और हाइपर टेंशन का कारण ही नहीं होता, बल्कि किडनी को भी नुकसान पहुंचाता है. इससे किडनी में फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरूलोस्क्लेरोसिस (एफएसजीएस) बढ जाता है, जिससे नेफ्रोटिक सिंड्रोम रोग होता है.

विशेषज्ञों के अनुसार, मोटापा आज के दौर में आम समस्या है. शरीर का वजन बढने से किडनी पर दबाव पडता है. किडनी शरीर में टॉक्सिंस को फिल्टर करने का काम करती है. वजन बढने पर किडनी के टोक्सिंस को फिल्टर करने में काफी मेहनत करनी पडती है, जो सीधे तौर पर उसे काफी नुकसान पहुंचाती है. मोटापा केवल किडनी पर असर नही करता, बल्कि किडनी संबंधी अन्य बिमारी का भी खतरा बढाता है.

ये भी पढ़ें- जानें क्यों जरुरी है ब्रेस्टफीडिंग

लक्षण

डायबिटीज और ब्लड प्रेशर होने की स्थिति में क्रॉनिक किडनी डिसीज की आशंका रहती है, जिसमें किडनी फेल हो सकती है. किडनी ख़राब होने के लक्षण निम्न है

  • पेशाब ज्यादा या कम होने के साथ बार-बार आना,
  • पेशाब करते समय ब्लड आना या दर्द व जलन होना,
  • रंग बदलने के साथ गाढ़ा होना और झाग बनना,
  • किडनी खराब होने पर शरीर से अतिरिक्त पानी और नमक नहीं निकल पाता है, इससे हाथ-पैर और चेहरे पर सूजन का आ जाना,
  • किडनी से निकलने वाले एथर प्रोटीन से रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सिजन मिलता है, ऐसा न होने पर थकान महसूस करना आदि है.

डॉ. सुखविंदर का आगे कहना है कि मोटापा ‘क्रोनिक किडनी डिजीज’(CKD) का मुख्य कारण होता है, क्योंकि मोटापा सीधा ‘मेटाबोलिक सिंड्रोम’ को बढ़ाता है, जिससे किडनी की कार्यप्रणाली में वर्कलोड बढ़ने के कारण किडनी डैमेज हो जाती है. मोटापा और क्रोनिक किडनी डिजीज’ के मरीजों की संख्या देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि लोगों को इसके बारे में सभी जरूरी जानकारी दी जाय, जिससे वे इन समस्याओं से खुद को बचा सकें. इसके अलावा मोटापे की वजह से होनेवाली ‘क्रोनिक किडनी डिसीज’ से बचने के लिए शरीर के वजन पर नियंत्रण रखना जरूरी है. वजन को नियंत्रण में रखकर किडनी को फेल होने से बचाया जा सकता है. वजन कम करने के कुछ टिप्स निम्न है,

करे पालन हेल्दी रूटीन 

  • नियमित व्यायाम करना,
  • ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखना,
  • ब्लडप्रेशर को सामान्य स्तर पर बनाए रखना, 
  • हेल्दी फ़ूड खाना और वजन को नियंत्रण में रखना, 
  • तरल प्रदार्थ का पर्याप्त सेवन करना और पर्याप्त पानी पीना, 
  • खाने में अधिक प्रोटीन का सेवन न करना, ताकि किडनी का काम न बढे, 
  • नमक कम खाना और खाने में अलग से नमक न डालना, 
  • स्वस्थ शरीर के लिए अच्छी नींद लेना,
  • धूम्रपान से परहेज करना, 
  • ओवर-द-काउंटर दवाओं से परहेज करना 
  • 60 साल से अधिक उम्र होने पर किडनी फंक्शन की जाँच कराना.

ये भी पढ़े-ं न्यू बौर्न की स्किन का रखें खास खयाल

जाँच की प्रक्रिया और इलाज़ 

ये सही है कि किडनी के एक बार ख़राब हो जाने पर उसे बचाना मुश्किल होता है, इसलिए समय रहते इसकी जाँच करा लेना सही होता है. किडनी में संक्रमण होने पर इसे दवा के द्वारा ठीक किया जा सकता है, लेकिन किडनी के फेल हो जाने की स्थिति में डायलिसिस या ट्रांसप्लांट करना पड़ता है. डॉ. सुखविंदर कहते है कि क्रोनिक किडनी डिजीज की जांच कराने की पद्यति इस प्रकार है,  

  1. यूरिन की जांच करने से किडनी की बिमारी का पता चल जाता है,
  2. किडनी फंक्शन टेस्ट के लिए बायोप्सी भी की जाती है,
  3. समय रहते बिमारी का पता चलने पर, किडनी की बिमारी का इलाज दवाओं से संभव हो सकता है,
  4. किडनी फेल हुए मरीजों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट या डायलिसिस एक सुरक्षित उपाय है.

4 टिप्स: जब रिश्तों में सताए डर

किसी भी रिश्ते को लौंग टाइम तक चलाने के लिए सबसे पहले उसमें एक-दूसरे को लेकर डर दूर करना आवश्यक होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप अपने रिश्ते से डर दूर नहीं करेंगी तो आप अपने विचार खुलकर साझा नहीं कर पाएंगी और आपके रिश्ते पर इसका गलत असर पड़ेगा.

चलिए जानते हैं वो कौन से ऐसे तरीके  हैं जिनकी मदद से आप अपने डर को दूर कर सकती हैं.

1. जब आपको जरूरत हो मदद के लिए तो खुलकर बोलें

कभी भी अपने डर को अपने रिश्ते पर हावी नहीं होने देना चाहिए वरना इससे आपका रिश्ता टूट सकता है. अगर आपको किसी भी तरह की मदद की जरूरत पड़ें तो आपको बिना किसी झिझक के अपने पार्टनर से बात करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- शादी हो या नौकरी, महिलाओं की पीठ पर लदी है पुरुषों की पसंद

2. अपने सुझाव जरूर दें

हमेशा अपने पार्टनर को सुझाव दें. बिना इस डर के, कि वह आपके सुझाव को मानेगा या नहीं. इससे आपका पार्टनर आपकी बातों पर कैसी प्रतिक्रिया देता है आपको यह पता चलेगा. साथ ही झिझक खत्म होने से आप अपने रिश्ते को और मजबूत बना सकती हैं.

3. स्पष्ट रूप से बातचीत करें

अगर आप अपने साथी से किसी बात को लेकर डरती हैं, तो आपको खुलकर उनसे बात करनी चाहिए क्योंकि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो यह आपके रिश्ते को गलत दिशा में ले जा सकता है और शायद इससे आपका रिश्ता टूट भी सकता है. किसी भी रिश्ते में डर को दूर करने के लिए आपको हर एक बात को शेयर करना चाहिए.

4. पूरी वफादारी से जवाब

कभी भी अपने साथी से किसी भी बात को लेकर झूठ बोलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. यह आपके साथ-साथ आपके रिश्ते को भी कमजोर कर देता है. किसी भी बात का जवाब पूरी वफादारी से दें और अपने अंदर के डर को दूर करें. अगर आप गलत भी हो तो भी आपको बिना डरे अपने पार्टनर से उस बारे में बात करनी चाहिए. यह आपके डर को खत्म करने के साथ-साथ आपके रिश्ते को और भी गहरा कर देगा.

ये भी पढ़ें- बच्चों को बिगाड़ते हैं बड़े

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें