Kahani 2025 : हिम्मती गुलाबो

Kahani 2025 :  गांव में रह कर राजेंद्र खेतीबारी का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी शैलजा, बेटा रोहित व बेटी गुलाबो थी. रोहित गांव के ही प्राइमरी स्कूल में चौथी जमात में पढ़ता था, जबकि उस की बहन गुलाबो इंटरमीडिएट स्कूल में 10वीं जमात की छात्रा थी. परिवार का गुजारा ठीक ढंग से हो जाता था, इसलिए राजेंद्र की इच्छा थी कि उस के दोनों बच्चे अच्छी तरह से पढ़लिख जाएं. गुलाबो अपने नाम के मुताबिक सुंदर व चंचल थी. ऐसा लगता था कि वह संगमरमर की तराशी हुई कोई जीतीजागती मूर्ति हो. वह जब भी साइकिल से स्कूल आतीजाती थी, तो गांव के आवारा, मनचले लड़के उसे देख कर फब्तियां कसते और बेहूदा इशारे करते थे.

गुलाबो इन बातों की जरा भी परवाह नहीं करती थी. वह न केवल हसीन थी, बल्कि पढ़ने में भी हमेशा अव्वल रहती थी. वह स्कूल की सभी सांस्कृतिक व खेलकूद प्रतियोगिताओं में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. वह स्कूल की कबड्डी व जूडोकराटे टीम की भी कप्तान थी. एक दिन जब गुलाबो स्कूल से घर लौट रही थी, तो गांव के जमींदार प्रेमलाल के दबंग बेटे राजू ने जानबूझ कर उस की साइकिल को टक्कर मार दी और उसे नीचे गिरा दिया, फिर उसे खुद ही उठाते हुए बोलने लगा, ‘‘जानेमन, न जाने कब से मैं तुम्हें पकड़ने की…’’ इतना कह कर राजू ने उस के उभारों को छू लिया था.

उस समय राजू की इस हरकत का गुलाबो ने कोई जवाब नहीं दिया था. राजू ने उस की कलाई पकड़ते हुए उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रखते हुए कहा, ‘‘यह मेरी ओर से हमारे पहले मिलन का उपहार है.’’ गुलाबो घर पहुंच गई. उस ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया. उसे पता था कि अगर उस ने इस घटना के बारे में किसी को बताया, तो घर में कुहराम मच जाएगा और फिर उस की मां उस की पढ़ाईलिखाई छुड़वा कर उसे घर पर बिठा देंगी. गुलाबो पूरी रात सो नहीं पाई थी. उसे जमींदार के लड़के पर रहरह कर गुस्सा आ रहा था कि कैसे वह उस के शरीर को छू गया था और उसे सौ रुपए का नोट देते हुए बदतमीजी पर उतर आया था, मानो वह कोई देह धंधेवाली हो.

अब गुलाबो ने मन ही मन यह सोच लिया था कि राजू से हर हाल में बदला लेना है. सुबह जब गुलाबो उठी, तो उस की सुर्ख लाल आंखें देख उस के पिता राजेंद्र कह उठे, ‘‘अरे बेटी, क्या तुम रात को सोई नहीं? देखो कैसी लाललाल आंखें हो रही हैं तुम्हारी.’’

‘‘नहीं पिताजी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो स्कूल के एक टैस्ट की तैयारी कर रही थी, इसलिए रात को देर से सोई थी.’’ स्कूल पहुंचते ही गुलाबो ने खाली समय में अपनी मैडम सरला को चुपके से कल वाली घटना बताई और उन को अपना मकसद बताया कि वह राजू को सबक सिखाना चाहती है कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं.

मैडम सरला ने कहा, ‘‘गुलाबो, तू डर मत. मैं तुम्हारे इस इरादे से बहुत खुश हूं. क्या राजू जैसों ने लड़कियों को अपनी हवस मिटाने का जरीया समझ रखा है कि जब दिल आए, तब अपना दिल बहला लो?’’ अगले दिन रविवार था. गुलाबो ने अपनी मां को बताया था कि वह अपनी मैडम सरला के साथ सुबह शहर जा रही है और शाम तक गांव लौट आएगी. शहर पहुंचते ही मैडम सरला गुलाबो को अपने भाई सौरभ के पास ले गईं. वह पुलिस महकमे में हैडक्लर्क था. उस ने गुलाबो से सारी घटना की जानकारी ली और उस से कहा कि एक दिन वह राजू को खुद बुलाए, फिर उसी दिन उसे फोन कर देना. उस के बाद गांव का कोई भी मनचला किसी लड़की की तरफ आंख भी नहीं उठा पाएगा.

इधर राजू गुलाबो के ही सपनों में खोया रहता था. जब 5-6 दिनों तक उस ने गुलाबो की ओर से उस के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं देखी, तो उस की बांछें खिल गईं. उसे लगा कि चिडि़या शिकारी के जाल में फंस गई है. अगले दिन गुलाबो स्कूल से घर लौट रही थी, तो उस ने राजू को अपना पीछा करते हुए पाया. जब राजू की साइकिल उस के करीब आई, तो वह कह उठी, ‘‘अरे राजू, कैसे हो?’’

राजू यह बात सुन कर खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘गुलाबो, मैं ठीक हूं. हां, तू बता कि तू ने उस दिन के बारे में क्या सोचा?’’

‘‘राजू, अपनों से ऐसी बातें नहीं पूछा करते हैं. तुम परसों 4 बजे पार्क में मुझे मिलना. मैं तुम से अपने मन की बहुत सारी बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘सच?’’ राजू खुश हो कर बोल उठा था, ‘‘गुलाबो, चल अब इसी बात पर तू एक प्यारी सी पप्पी दे दे.’’

‘‘नहीं राजू, आज नहीं, क्योंकि पिताजी आज स्कूल की मीटिंग में गए हैं. वे आते ही होंगे. फिर जहां तुम ने इतना इंतजार किया है, वहां चंद घंटे और सही…’’ गुलाबो बनावटी गुस्सा जताते हुए बोल उठी. घर पहुंच कर उस ने पुलिस वाले को सारी बात बता दी थी. राजू पार्क के इर्दगिर्द घूम रहा था. आखिर गुलाबो ने ही तो उसे यहां बुलाया था. उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. जैसे ही गुलाबो पार्क के पास पहुंची, राजू एक शिकारी की तरह उस पर झपट पड़ा. पर गुलाबो ने भी अपनी चप्पल उतार कर उस मजनू की पिटाई करते हुए कहा, ‘‘तेरे घर में मांबहन नहीं है. सौ रुपए दे कर तू गांव की बहूबेटियों की इज्जत से खेलना चाहता है. तू ने मुझे भी ऐसी ही समझ लिया था.’’

‘‘धोखेबाज, पहले तो तुम खुद ही मुझे बुलाती हो, फिर मुकरती हो,’’ लेकिन तभी राजू की घिग्घी बंध गई. सामने कई फोटो पत्रकार व पुलिस वालों को देख कर वह कांप उठा था.

‘‘हां, तो गुलाबो, तुम अब पूरी बात बताओ कि इस गुंडे ने तुम से कैसे गलत बरताव किया था?’’ डीएसपी राधेश्याम ने गुलाबो से पूछा. लोगों की भीड़ बढ़ गई थी. उन्होंने भी लातघूंसों से राजू की खूब पिटाई की. पुलिस वालों ने राजू को कोर्ट में पेश किया और पुलिस रिमांड ले कर उसे छठी का दूध याद दिला दिया. अगले दिन सभी अखबारों में गुलाबो की हिम्मत के ही चर्चे थे. जिला प्रशासन ने गुलाबो को न केवल 10 हजार रुपए का नकद इनाम दिया था, बल्कि उसे कालेज तक मुफ्त पढ़ाई देने की भी सिफारिश की थी. राजू के पिता की पूरे गांव में थूथू हो गई थी. उस ने अपने बेटे की जमानत करवाने में खूब हाथपैर मारे, पर उसे अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिली थी.

गांव के मनचले अब उस को देखते ही रफूचक्कर हो जाते थे. उस का कहना था कि अगर वह इन दरिंदों से डर जाती, तो आज कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहती.

लेखक- प्रदीप गुप्ता

Online Hindi Story : राजन ने कैसे बचाया बहन का घर

Online Hindi Story : पिछले दिनों से थकेहारे घर के सभी सदस्य जैसे घोड़े बेच कर सो रहे थे. राशी की शादी में डौली ने भी खूब इंज्वाय किया लेकिन राजन की पत्नी बन कर नहीं बल्कि उस की मित्र बन कर.

अमेरिका में स्थायी रूप से रह रहे राजन के ताऊ धर्म प्रकाश को जब खबर मिली कि उन के भतीजे राजन ने आई.टी. परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है तो उन्होंने फौरन फोन से अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश को कहा कि वह राजन को अमेरिका भेज दे…यहां प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण के बाद नौकरी का बहुत अच्छा स्कोप है.

चंद्र्र प्रकाश भी तैयार हो गए और बेटे को अमेरिका के लिए पासपोर्ट, वीजा आदि बनवाने में लग गए. लेकिन उन की पत्नी सरोजनी के मन को कुछ बहुत अच्छा नहीं लगा. कुल 2 बच्चे राजन और उस से 5 साल छोटी 8वीं में पढ़ रही राशी. अब बेटा सात समुंदर पार चला जाएगा तो मां को कैसे अच्छा लगेगा. उस ने तो पति से साफ शब्दों में मना भी किया.

चंद्र प्रकाश ने पत्नी को समझाया, ‘‘बच्चे के अच्छे भविष्य के  लिए अमेरिका की शिक्षा बहुत उपयोगी साबित होगी और मांबाप होने के नाते कुछ त्याग हमें भी तो करना ही पड़ेगा. रही बात आंखों से दूर जाने की, तो साल में एक बार तो आएगा न.’’

राशी भी भाई के अमेरिका जाने से दुखी थी. आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘भैया, तुम इतनी दूर चले जाओगे तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा. मैं रक्षाबंधन के दिन किसे राखी बांधूंगी? नहीं, तुम मत जाओ, भैया,’’ कहने के साथ ही राशी रो पड़ी.

राजन ने बहन को धैर्य बंधाया, ‘‘रोते नहीं राशी. मैं जल्दी आऊंगा और तेरे लिए खूब सारी चीजें अमेरिका से लाऊंगा. रही राखी की बात, तो वह थोड़ा पहले भेज दिया करना…मैं ताऊ की लड़की से बंधवा लूंगा…फिर उस दिन अपनी प्यारीप्यारी बहन से फोन पर बात भी करूंगा.’’

बहरहाल, सब को समझाबुझा कर, खास लोगों से मिल कर राजन निर्धारित समय पर अमेरिका चला गया. वहां उस को ताऊजी के पास अच्छा लगा. परिवार के सभी सदस्यों का बातव्यवहार उस के साथ बिलकुल अपनों जैसा ही था.

मां का पत्र अकसर आ जाता…कभीकभी राशी का पत्र भी उस में रहता. मां तो बारबार यही लिखतीं कि तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता. घर सब तरफ से सूनासूना लगता है.

अमेरिका में प्रशिक्षण पूरा होते ही एक कंपनी ने राजन का चयन कर लिया. तो ताऊजी ने खुशीखुशी अपने छोटे भाई चंद्र प्रकाश और सरोजनी को राजन के नौकरी पर लगने की सूचना भेजी. साथ में यह भी बताया कि जल्द ही वह 1 माह का अवकाश ले कर भारत जाएगा.

राजन को अमेरिका में नौकरी मिलने का समाचार सुन कर सरोजनी को तनिक भी अच्छा नहीं लगा. क्या अपने देश में उसे नौकरी नहीं मिलती? क्या हर भारतीय युवक का भविष्य विदेश में ही जा कर संवरता है? राशी भी दुखी हुई. बड़ी उम्मीद लगा रखी थी कि अब भैया के आने के दिन आ रहे हैं.

राजन जिस आफिस में काम करता था उस में इटली की डौली नाम की एक लड़की रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करती थी. डौली शक्लसूरत से बेहद आकर्षक थी. डौली की एक खासियत यह भी थी कि यदि वह पाश्चात्य पहनावे में न हो तो चेहरे से बिलकुल भारतीय लगती थी.

एक ही आफिस में साथसाथ काम करने, आनेजाने पर आपस में बातचीत से राजन और डौली एकदूसरे से काफी प्रभावित हुए. बाद में वे एकदूसरे की चाहत व पसंद बन गए, लेकिन बिना बड़ों की आज्ञा के राजन ऐसा कोई कदम उठाने के पक्ष में नहीं था जिस से उस के व परिवार के सम्मान को ठेस पहुंचे.

डौली के साथ अपनी दोस्ती के बारे में ताऊजी को बताने के साथ ही राजन ने यह भी कहा कि हम एकदूसरे को पसंद करते हैं और विवाह भी करना चाहते हैं.

भतीजे की इच्छा को खुशीखुशी स्वीकार करते हुए धर्म प्रकाश ने कहा, ‘‘तुम्हारे पिताजी को सूचित करता हूं और उन से कहूंगा कि शादी की कोई तारीख तय कर लें.’’

चंद्र प्रकाश और सरोजनी को जब राजन के प्रेम और शादी का पता चला तो दोनों को बेटे का यह कदम अखर गया. उन्होंने बड़े भाई से साफ शब्दों में कह दिया कि राजन वहां किसी लड़की से विवाह करने का विचार छोड़ दे, क्योंकि उस के इस तरह विवाह करने से उस की बहन की शादी में अड़ंगा खड़ा हो सकता है. और यदि वह नहीं मानता है तो कम से कम अपनी शादी की खबर भारत में किसी को न दे.

मातापिता की बात से राजन को अपनी गलती का एहसास हुआ. अभी तक उस के दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई कि अंतर्जातीय विवाह, वह भी ईसाई लड़की से करने के कारण बहन की शादी में रुकावट आ सकती है.

इस के बाद राजन ने फोन पर कई बार घर पर सब से बात की, उन का हालचाल पूछा लेकिन अपने विवाह से संबंधित कोई बात न तो उस ने छेड़ी और न मातापिता की तरफ से कोई प्रतिक्रिया हुई.

राजन की नौकरी लगे अब 1 साल हो गया था. उस के मन में भारत आने और मातापिता से मिलने की बड़ी इच्छा हो रही थी. वह दफ्तर में 1 माह के अवकाश का आवेदन कर भारत जाने के प्रबंध में लग गया. एअरटिकट मिलते ही राजन ने भारत फोन कर के मां को बताया कि वह फलां तारीख को भारत आ रहा है.

राजन घर पहुंचा तो दबे मन से ही सही पर सब ने उस का स्वागत किया. राजन को कुछ ही सालों में सबकुछ बदलाबदला सा लग रहा था. मां पहले से कुछ कमजोर दिख रही थीं. पिताजी के बाल आधे सफेद हो गए थे और राशी? वह तो कितनी बड़ी लग रही थी. उस के सिर पर हाथ रख कर राजन ने स्नेह से कहा, ‘‘कितनी बड़ी हो गई, राशी तू? तेरे लिए ढेरों चीजें ले आया हूं.’’

राशी कुछ नहीं बोली लेकिन मां ने कहा, ‘‘अब इस के विवाह की चिंता है. जल्दी कहीं बात बन जाती तो कर के हम जिम्मेदारी से मुक्त हो लेते.’’

मां की बात सुन कर राजन को लगा कि मां उस पर कटाक्ष कर रही हैं, फिर भी राजन ने हंस कर राशी से कहा, ‘‘कहीं पसंद किया हो तो बता दे, राशी… पिताजी का ढूंढ़नेभागने का समय बच जाएगा.’’

राशी ने पलट का जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं, भैया, जो घर वालों की इच्छा के खिलाफ जा कर विवाह रचा लूं.’’

बहस बढ़ती देख कर मां ने दोनों को रोका और राशी से बोलीं, ‘‘बहस बंद कर और जा भाई के लिये चायनाश्ते का प्रबंध कर.’’

सरोजनी और चंद्र प्रकाश ने राजन से उस की अमेरिका में की हुई शादी के बारे में कोई बात नहीं की. वे लोग बिलकुल नहीं चाहते थे कि इतने सालों बाद बेटा घर आया है तो कोई तकरार हो. लेकिन राजन ने खुद ही बात छेड़ कर मातापिता को अपने द्वारा लिए निर्णय से अवगत कराते हुए कहा, ‘‘मां, आप कैसे सोचती हैं कि आप लोगों की इजाजत लिए बिना मैं अपनी शादी रचा लेने का साहस कर लेता…इस से तो आप लोगों की प्रतिष्ठा और ममता का अपमान होता. मैं ने निश्चय कर लिया है कि बहन की शादी के बाद ही मैं अपने विवाह के बारे में विचार करूंगा.’’

सरोजनी और चंद्र प्रकाश को बेटे की बात से बड़ी राहत मिली. उन्हें ऐसा लगा जैसे सिर पर लदा कोई बहुत बड़ा बोझ हट गया हो.

1 माह भारत में रह कर राजन अमेरिका वापस आ गया और पहले की तरह जीवन में भागदौड़ फिर शुरू हो गई. देखते ही देखते डेढ़ वर्ष कैसे गुजर गया पता ही न चला. एक दिन मां का फोन आया कि राशी की शादी तय हो गई है. लड़के का परिवार बेहद संभ्रांत है. विवाह की तारीख तय नहीं हुई है…जैसे ही तय होगी. मैं दोबारा तुझे सूचित करूंगी. तुम कम से कम 15 दिन पहले भारत जरूर आ जाना…सारा प्रबंध तुम्हें ही करना है.

शादी की तारीख का पता चलते ही राजन भारत आने की तैयारी में लग गया. राजन ने पहले ही डौली को अपनी परिवारिक समस्याओं से अवगत करा दिया था. डौली ने भी सोचा कि जब राजन के परिवार की समस्या हल हो जाएगी तभी वह विवाह बंधन में बंधेगी.

अब जब राशी की शादी तय होने की सूचना डौली को मिली तो उस ने राजन के साथ जा कर अपनी पसंद का मेकअप का सामान, कई सुंदर साडि़यां और कुछ स्वर्णाभूषण राशी के लिए खरीदे. डौली की इच्छा थी कि वह भी भारत जाए…राशी की शादी देखे. राजन ने उस की इस इच्छा को सहज भाव से मान भी लिया.

विवाह तय होने के बाद से ही सरोजनी को बेटी के बातव्यवहार में बदलाव सा महसूस होने लगा था. हमेशा खुश रहने वाली राशी अब चुपचाप व खोईखोई सी लगती थी. शादी की बात चलते ही वह नाकभौं सिकोड़ कर चली जाती तो सरोजनी ने इसे लड़कियों का स्वाभाविक संकोच मान लिया.

राशी सगाई की रस्म के लिए भी बड़ी मुश्किल से तैयार हुई थी, जबकि इस रस्म के समय जिस ने भी राशी और विशाल को एकसाथ देखा, भूरिभूरि प्रशंसा की.

गोद भराई की रस्म के दूसरे दिन सरोजनी और चंद्र प्रकाश ने राजन को सूचना भेज दी और उस के आने की प्रतीक्षा के साथसाथ विवाह की छिटपुट तैयारी में भी लग गए.

इधर बराबर राशी को परेशान और चिंतित देख कर सरोजनी ने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, बेटी, आजकल तुम बहुत परेशान सी दिखती हो…तबीयत तो ठीक है?’’

मां की बात सुन कर राशी चाैंक सी गई…जैसे उस की कोई चोरी पकड़ ली गई हो, फिर भी अपने को संयत कर सहज आवाज में बोली, ‘‘नहीं, मां…कोई ऐसी बात नहीं है. बस, आजकल सिर में हलकाहलका दर्द बना रहता है…’’

‘‘तो चलो, किसी डाक्टर को दिखा कर दवा ले आते हैं,’’ मां बोली थीं, ‘‘अधिक दिनों तक सिरदर्द का बना रहना ठीक नहीं है.’’

‘‘नहीं, मां…इतना तेज दर्द नहीं है कि डाक्टर के यहां जाने या दवा लेने की जरूरत पडे़…अपनेआप ठीक हो जाएगा,’’ राशी ने मां की बात को टालते हुए कहा.

यद्यपि कई बार राशी के मन में आया कि वह अपनी समस्या से मां को अवगत करा दे, लेकिन तभी दूसरी तरफ मन विरोध भी जाहिर करता, ‘तुम्हारा सोचना तो ठीक है लेकिन यह निश्चित है कि उस के बाद तुम्हारी आकांक्षा पूर्ण न हो सकेगी,’ और मन के इस दोहरे तर्क पर राशी जहां की तहां थम जाती.

विवाह के  कुल 15 दिन शेष बचे थे. उस दिन शाम तक राजन को भी आना था. राशी को लगा कि राजन के आने से पहले उसे अपना काम कर लेना चाहिए अन्यथा भैया के आ जाने पर रुकावट पड़ सकती है. भयग्रस्त मन से ही पर दूसरे दिन दोपहर तक अपना काम पूरा कर लेने का प्रबंध राशी ने कर लिया था.

कोर्ट मैरिज के लिए उस दिन साढे़ 10 बजे के आसपास पूरे इंतजाम के साथ राशी और अरशद  अपने दोस्तों के साथ कोर्ट में पहुंचे पर संयोग कुछ ऐसा बना कि उस दिन अदालत में हड़ताल हो गई और हड़ताल कब तक चलेगी यह भी पता न चल सका. राशी निराश हो कर घर लौट आई और दुखी मन से अपने कमरे में जा कर औंधे मुंह पलंग पर पड़ गई.

राजन की फ्लाइट 9 बजे ही आ गई थी पर वह डौली का इंतजाम करने में लग गया. सब से पहले तो उस ने डौली को एक अच्छे से होटल में ठहराया क्योंकि उस ने पहले ही सोच रखा था कि डौली के भारत आने की खबर वह राशी की शादी से पहले किसी को नहीं देगा. उस के रहने और  सुरक्षा का पूर्ण प्रबंध कर राजन घर आया.

बंगले के दरवाजे के अंदर अभी वह अपना सामान रखवा ही रहा था कि राशी की सहेली ताहिरा आ गई. ताहिरा ने उसे पहचान कर आदाब किया फिर घबराई आवाज में बोली, ‘‘भाईजान, आप से कुछ जरूरी बात करनी है,’’ और इसी के साथ राजन को खींच कर आड़ में ले गई तथा बिना किसी भूमिका के उस ने वह सब राजन को बता दिया, जिसे अब तक राशी घर वालों से छिपाती आ रही थी. ताहिरा ने राजन को बताया कि मेरी सहेली होने के नाते राशी अकसर मेरे घर आती रहती थी. मेरे बडे़ भाई अरशद, जो डाक्टर हैं, से राशी का प्रेम काफी दिनों से चल रहा था…यह बात तो मुझे पता थी. लेकिन वे दोनों शादी करने पर आ जाएंगे…यह मुझे आज ही पता चला है जब दोनों कोर्ट से निराश हो कर लौटे हैं.

थोड़ा सा रुक कर ताहिरा ने साफ कहा, ‘‘यकीन मानिए भाई साहब, उन दोनों के शादी करने की बात का पता मुझे अभी चला है. अत: आप सभी को बता कर आगाह करना मैं ने अपना कर्तव्य समझा है. इतना अच्छा दूल्हा और इतने हौसले से किया जा रहा सारा इंतजाम, अगर आज उन की शादी कोर्ट में हो गई होती तो सब मटियामेट हो जाता. यह तो अच्छा हुआ कि अदालत में हड़ताल हो गई. आप सब बदनामी से अपने को बचा लें यही सोच कर मैं इस समय आप को सूचित करने आई हूं. अब आप को ही सब कुछ संभालना होगा, राजन भाई. हां, इतना जरूर ध्यान रखिएगा कि मेरा कहीं नाम न आए.’’

इतना बताने के बाद ताहिरा जिस तेजी के साथ आई थी उसी तेजी के साथ वापस चली गई.

ताहिरा से मिली सूचना से राजन को जैसे काठ मार गया. वह सोचने लगा कि आज यदि सचमुच वह सब हो गया होता जो ताहिरा ने बताया है तो मांपिताजी की क्या हालत होती. शायद उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो जाता. शायद दोनों आत्मसम्मान के लिए आत्महत्या भी कर लेते पर शुक्र है कि यह अनहोनी होने से पहले ही टल गई. अब मैं राशी को समझा लूंगा, इस विश्वास के साथ राजन ने घर के अंदर प्रवेश किया.

सरोजनी और चंद्र प्रकाश ने मुसकरा कर बेटे का स्वागत किया. मां ने अधिकार के साथ सहेजा, ‘‘बेटा, आ गया तू, अब सबकुछ तुझे ही संभालना है.’’

‘‘हां…हां…मां. अब आप लोग निश्ंिचत रहिए, मैं सब संभाल लूंगा. पर मां, राशी कहां है…दिखाई नहीं पड़ रही.’’ राजन ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए पूछा.

‘‘अपने कमरे में होगी…आवाज दूं?’’

‘‘रहने दो, मां,’’ राजन बोला, ‘‘बहुत दिन से उस का कान नहीं उमेठा है,’’ कहते हुए राजन राशी के कमरे में पहुंचा. भाई को आया देख कर चेहरे पर बनावटी हंसी बिखेरती राशी उठ खड़ी हुई.

राजन ने गर्मजोशी के साथ पूछा, ‘‘ठीक है, राशी? अच्छा बता, तू ने हमारे होने वाले जीजाजी से इस दौरान बात की थी या नहीं?’’

राजन यह कहते हुए वहीं राशी के करीब बैठ गया. अनेक प्रकार की इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने राशी से पूछा, ‘‘सच बताना राशी, यह शादी तेरी पसंद की तो है?’’

राशी चाैंकी…राजन भैया ऐसा क्यों पूछ रहे हैं… क्या उन्हें मेरे बारे में कुछ पता चल गया है? राशी सावधानी से अपने को सहज बनाती हुई धीमी आवाज में बोली, ‘‘हां, भैया, पसंद है…लेकिन आप यह क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोल, राशी. यदि यह शादी तुझे पसंद है तो तू आज दोपहर में कहां गई थी?’’ राजन की आवाज में तल्खी थी.

राशी को तो मानो काटो तो खून नहीं…जरूर भैया को सब बातों की जानकारी हो गई है…लेकिन वह कुछ बोली नहीं. राजन ने फिर कहा, ‘‘खुद सोच कर देख राशी कि मुसलमान लड़के से शादी…’’

भाई की बात को बीच में काट कर राशी व्यंग्यात्मक आवाज में बोली, ‘‘भैया, क्या आप ने ईसाई लड़की से शादी नहीं की, जो आप मुझे सबक दे रहे हैं?’’

‘‘तुझे मेरे बारे में गलत पता है राशी. मैं ने शादी नहीं की है. मां ने शायद तुझे बताया नहीं. तुम्हारी शादी में कोई रुकावट खड़ी न हो इस के लिए मैं ने अपनी मनचाही शादी रोक दी. और अब तुम्हारे विवाह के बाद भी जो कुछ करूंगा मांपिताजी की आज्ञा व इच्छा के अनुसार ही करूंगा,’’ इतना कह कर राजन चुप हो गया और फिर नाश्ता करने व घर में काम देखने के लिए चला गया.

राशी को यह जान कर आश्चर्य हुआ कि राजन भैया ने अभी तक विवाह नहीं किया सिर्फ उस के लिए, लेकिन मां ने तो उस से कभी इस बारे में कोई जिक्र ही नहीं किया. वह अपने बड़े भाई से कहे शब्दों की आत्मग्लानि से छटपटाने लगी.

रात में राजन फिर उसे समझाने उस के कमरे में आया तो राशी ने सबसे पहले अपने दिन के व्यवहार के लिए भाई से माफी मांगी फिर दुखी मन से भारी आवाज में बोली, ‘‘भैया, मैं और अरशद एकदूसरे को बहुत चाहते हैं…इस हालत  में तुम्हीं बताओ, शादी न करने  की बात कैसे मेरी समझ में आए.’’

‘‘तेरी बात अपनी जगह ठीक  है, राशी. लेकिन ऐसा कदम उठाते समय तुझे यह ध्यान नहीं आया कि मम्मीपापा को तेरे इस कदम से कितना बड़ा सदमा पहुंचेगा?’’

‘‘भैया,’’ आंसू भरी नजरों से भर्राए स्वर में राशी बोली, ‘‘मुझे सबकुछ पता था और मैं इस बारे में सोचती भी थी पर पता नहीं अरशद को देखने के बाद मुझे क्या हो गया कि मैं प्यार भी कर बैठी और घर से विद्रोह करने पर उतारू हो गई…’’

राशी की बात बीच में ही काटते हुए राजन बोला, ‘‘होता है, राशी…प्यार में ऐसा ही सबकुछ होता है. पर देख मेरी बहना, अभी समय है.. मांपिताजी को इतना बड़ा सदमा न दे कि वे झेल ही न पाएं. अपने मन पर तू नियंत्रण रख कर डाक्टर अरशद को भुलाने की कोशिश कर जो सपना मांपिताजी ने तुझे तेरी शादी को ले कर देखा है उसे पूरा होने दे…बहन, इसी में इस परिवार व हम सब की भलाई है,’’ इतना कहतेकहते राजन की आंखें भी भर आईं.

‘‘एक बात और है राशी,’’ राजन बहन के प्रति आशान्वित हो कर बोला, ‘‘जैसे सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो वह भूला नहीं कहलाता, बस, यही कहावत मुझे प्यारी बहन पर भी लागू हो जाए. मेरी बस, तुझ से यही उम्मीद है. यह भी तुझे ध्यान में रखना होगा राशी कि यह राज की बात हमेशा राज ही बनी रहे.’’

राशी ने स्वीकृति में गरदन हिला दी, जैसे भाई की बात उस की समझ में अच्छी तरह से आ गई है. अभी तक राशी ने इतनी गहराई से बिलकुल नहीं सोचा था…सचमुच मां इतना बड़ा सदमा शायद ही झेल पातीं और इस के आगे राशी कुछ न सोच सकी. और अगले ही पल भाई की गोद में आंसुओं से तर चेहरा छिपा लिया.

राजन ने भी झुक कर तृप्तमन से बहन का सिर चूम लिया. राजन को लगा कि वह समय से आ गया… तो सबकुछ ठीक हो गया, यदि 1-2 दिन की भी देरी हो जाती तो सबकुछ बिगड़ कर कोई बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा.

Family Story : ममा मेरा घर यही है

Family Story : बेटी पारुल से फोन पर बात खत्म होते ही मेरे मस्तिष्क में अतीत के पन्ने फड़फड़ाने लगे. पति के औफिस से लौटने का समय हो रहा था, इसलिए डिनर भी तैयार करना आवश्यक था. किचन में यंत्रचालित हाथों से खाना बनाने में व्यस्त हो गई. लेकिन दिमाग हाथों का साथ नहीं दे रहा था.

बचपन से ही पारुल स्वतंत्र विचारों वाली, जिद्दी लड़की रही है. एक बार जो सोच लिया, सो सोच लिया. होस्टल में रहते हुए उस ने कभी मुझे अपनी छोटीबड़ी समस्याओं में नहीं उलझाया, उन को मुझे बिना बताए ही स्वयं सुलझा लेती थी. इस के विपरीत, मैं अपने परिचितों को देखती थी कि जबतब उन के बच्चों के फोन आते ही, उन की समस्याओं का समाधान करने के लिए उन के होस्टल पहुंच जाया करते थे.

एक दिन अचानक जब पारुल ने अपना निर्णय सुनाया कि एक लड़का रितेश उसे पसंद करता है और वह भी उस को चाहती है, दोनों विवाह करना चाहते हैं तो मैं सकते में आ गई और सोच में पड़ गई कि जमाना खराब है, किसी ने अपने जाल में उसे फंसा तो नहीं लिया. देखने में सुंदर तो वह है ही, उम्र भी अभी अपरिपक्व है, पूरी 22 वर्ष की तो हुई है अभी. ये सब सोच कर मैं बहुत चिंतित हो गई कि यदि उस ने सही लड़के का चयन नहीं किया होगा और जिद की तो वह पक्की है ही, तो फिर क्या होगा.

कुछ दिनों के सोचविचार के बाद तय हुआ कि रितेश से मिला जाए. पारुल के जन्मदिन पर उस को आमंत्रित किया गया और वह आ भी गया. वह सुदर्शन था, एमबीए की पढ़ाई पूरी कर के किसी नामी कंपनी में सीनियर पोस्ट पर कार्यरत था. पढ़ाई में आरंभ से ही अव्वल रहा. वह हम सब को बहुत भा गया था. केवल विजातीय होने के कारण विरोध करने का कोई औचित्य नहीं लगा. हम ने विवाह की स्वीकृति दे दी. लेकिन रितेश के  मातापिता ने आरंभ में तो रिश्ता करने से साफ इनकार कर दिया था, लेकिन इकलौते बेटे की जिद के कारण उन्हें घुटने टेकने पड़े और विवाह धूमधाम से हो गया. पारुल अनचाही बहू बन कर ससुराल चली गई.

पारुल अपने मधुर स्वभाव के कारण ससुराल में सब की चहेती बन गई. सब के दिल में स्थान बनाने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पड़ा क्योंकि ऐसा करने में उसे रितेश का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ. उस ने पाया कि रितेश का अपने परिवार से तालमेल ही नहीं था. बिना लिहाज के अपने मातापिता को कभी भी कुछ भी बोल देता था. पारुल हैरान होती थी कि कोईर् अपने जन्मदाता से ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता था. उसे समझाने की कोशिश करती तो वह और भड़क जाता था.

धीरेधीरे उस को एहसास हुआ कि दोष उस में नहीं, उस की परवरिश में है. उस के अपने मातापिता के विपरीत, रितेश के मातापिता उस की भावनाओं की कभी भी कद्र नहीं करते थे. अब इतना बड़ा हो गया था, फिर भी उस की बात को महत्त्व नहीं देते थे, जिस का परिणाम होता था कि वह आक्रोश में कुछ भी बोल देता था. कभीकभी पारुल असमंजस की स्थिति में आ जाती थी कि किस का साथ दे, मातापिता की गलती देखते हुए भी बड़े होने का लिहाज कर के उन को कुछ भी नहीं बोल पाती थी.

एक दिन मांबेटे में विवाद इतना बढ़ गया कि रितेश ने तुरंत अलग घर लेने का निर्णय ले डाला. पारुल ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह अपने इरादे से टस से मस नहीं हुआ. वह क्या करती, मां ने भी अपने अहं के कारण उसे नहीं रोका. वह दोनों के बीच पिस गई. अंत में उसे पतिधर्म निभाना ही पड़ा.

अपने परिवार से अलग होने के बाद तो रितेश और भी मनमाना हो गया. जो लड़का विवाह के पहले कभी अपनी मां से ही नहीं जुड़ा, वह अपनी पत्नी से क्या जुड़ेगा. विवाह जैसे प्यारभरे बंधन के रेशमी धागे उसे लोहे की जंजीरें लगने लगीं. आरंभ से ही होस्टल में स्वच्छंद रहने वाले रितेश को विवाह एक कैद लगने लगा.

एक दिन अचानक रितेश का फोन मेरे पास आया, बोला, ‘अपनी बेटी को समझाओ, बच्ची नहीं है अब…’ इस से पहले कि वह अपनी बात पूरी करे, पारुल ने उस के हाथ से फोन ले लिया और कहा, ‘ममा, आप बिलकुल परेशान मत होना. ऐसे ही इस ने बिना सोचेसमझे आप को फोन घुमा लिया. छोटेमोटे झगड़े तो होते ही रहते हैं.’ लेकिन रितेश को पहली बार इतनी अशिष्टता से बात करते हुए सुन कर मैं सकते में आ गई, सोचने लगी कि उन की अपनी पसंद का विवाह है, फिर क्या समस्या हो सकती है.

एक बार मैं ने और मेरे पति ने मन बनाया कि पारुल के यहां जा कर उस का घर देखा जाए. उस ने कईर् बार बुलाया भी था. विचार आते ही हम दोनों पुणे पहुंच गए. वे दोनों स्टेशन लेने आए थे. सालभर बाद हम उन से मिल रहे थे. मिलते ही मेरी दृष्टि पारुल के चेहरे पर टिक गई. उस का चेहरा पहले से अधिक कांतिमय लग रहा था. सुंदर तो वह पहले से ही थी, अब अधिक लावण्यमयी लग रही थी. मुझे याद आया कि जब रितेश के मातापिता ने विवाह से इनकार कर दिया था तो उस का चेहरा कितना सूखा और निस्तेज लगता था, तब हम कितना घबरा गए थे. आज उस को देख कर बहुतबहुत तसल्ली हुई थी.

10 किलोमीटर की दूरी पर उन का घर था. वहां पहुंच कर मैं ने पाया कि वह 2 बैडरूम का घर था. पारुल ने अपने घर को बहुत व्यवस्थित ढंग से सजा रखा था. घर के रखरखाव में तो उसे बचपन से ही बहुत रुचि थी. यह देख कर बहुत संतोष हुआ कि सासससुर के साथ रहते हुए, रितेश का उन से तालमेल न होने के कारण रातदिन  जो विवाद होते थे, वे समाप्त हो गए हैं और वे दोनों आपस में बहुत प्रसन्न हैं.

लेकिन मेरा यह भ्रम शीघ्र ही टूट गया. अगले दिन ही सुबह मैं ने देखा कि रितेश पारुल को छोटीछोटी बातों में नीचा दिखाने से नहीं चूकता था, चाहे उस के खाने का, कपड़े पहनने का या खाना बनाने का ढंग हो. वह उस के किसी भी कार्यकलाप से खुश नहीं रहता था. बातबात में उसे ताने देता रहता था कि उस को कुछ नहीं आता, वह कुछ नहीं कर सकती.

पारुल चुपचाप सुनती रहती थी. रितेश की उस से इतनी अधिक अपेक्षाएं रहती थीं कि उन को पूरा करना उस के वश की बात नहीं थी. उस के जिन गुणों, उस का मासूम लुक देता चेहरा, उस की नाजुकता, उस की मीठी आवाज, के कारण विवाह से पहले उस पर रीझा था, वे सब उस के लिए बेमानी हो गए थे.

हम दोनों अवाक उस की बेसिरपैर की बातें सुनते थे. मैं मन ही मन सोचती रहती थी कि क्या यही प्रेमविवाह की परिणति होती है. रितेश ने जिस से विवाह करने के लिए एक बार अपने मातापिता का गृह तक त्याग कर दिया था, आज उसी का व्यंग्यबाणों से कलेजा छलनी कर रहा था. दामाद था इसलिए उसे क्या कहते, लेकिन, आखिर कब तक?

एक दिन मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं पारुल से बोली, ‘चल, अभी हमारे साथ वापस चल. हम ने देख लिया और बहुत झेल लिया तुम लोगों का तमाशा.’ मेरे बोलते ही रितेश उठ कर घर से चला गया.

पारुल बोली, ‘ममा, मुझे उस की तो आदत पड़ गई है. मेरा उस को छोड़ कर आप के साथ जाना ठीक है क्या? ऐसी बातें तो होती रहती हैं. देखना थोड़ी देर में वह सबकुछ भूल जाएगा और सामान्य हो जाएगा.’ मैं अपनी बेटी पारुल की बात सुन कर दंग रह गई. इतनी सहनशील तो वह कभी नहीं थी पर आत्मसम्मान भी तो कोई चीज होती है. मैं ने कहा, ‘बेटा, तूने उस के इस बरताव के बारे में हमें कभी कुछ बताया नहीं.’

‘क्या बताती ममा, शादी भी तो मेरी मरजी से हुई थी, आप सुन कर करतीं भी क्या? लेकिन इस में रितेश की भी गलती नहीं है, ममा. आप को पता है उस की मां ने बचपन में ही उसे होस्टल में डाल दिया था. उस ने कभी जाना ही नहीं परिवार क्या होता है और उस का सुख क्या होता है. कभी उस की इच्छाओं को प्राथमिकता दी ही नहीं गई, न ही कभी कोई कार्य करने पर उसे प्रोत्साहन के दो बोल ही सुनने को मिले. इसलिए ही ऐसा है. वह दिल का बुरा नहीं है. आज उस की बदौलत ही इतनी अच्छी जिंदगी जी रही हूं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. आप चिंता न करें.’

लेकिन मुझ पर उस के तर्क का कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा था. पारुल ने मेरे चेहरे के भाव पढ़ कर रितेश को फोन कर के घर आने के लिए कहा. और वह आ भी गया. दोनों ने एक ओर जा कर कोईर् बात की. उस के बाद रितेश हमारे पास आया और बोला, ‘सौरी ममापापा.’ हम दोनों का मन यह सुन कर थोड़ा हलका हुआ. हमारे लौटने का दिन करीब होने पर हम पारुल के सासससुर से मिलने गए. उस की सास ने कहा, ‘मेरी बहू पारुल तो बहुत स्वीट नेचर की है. मुझे उस से कोई शिकायत नहीं है.’ हमें यह सोच कर बहुत संतोष हुआ कि कम से कम उस की सास तो उस से बहुत प्रसन्न रहती है.

एक दिन पारुल ने जब मुझे मेरे नानी बनने का समाचार दे कर हमें चौंका दिया तो हम खुशी से फूले नहीं समाए. उस का कहना था कि उस की डिलीवरी के समय मुझे ही उस के पास रहना होगा, नहीं तो रितेश और अपनी सास के विवादों से उस समय वह परेशान हो जाएगी.

नियत समय पर मैं उस के पास पहुंच गई. उस ने चांद सी बेटी को जन्म दिया. दोनों ओर के परिवार वालों के साथ रितेश भी बहुत प्रसन्न हुआ. मैं ने मन में सोचा, पारुल के मां बनने के बाद शायद उस का बरताव उस के प्रति बदल जाए, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मैं जब भी पारुल से उस के स्वभाव के बारे में जिक्र करती, उस का कहना होता, ‘ममा, आप उस की अच्छाइयां भी तो देखो, कितना स्वावलंबी और मेहनती है, मेरा कितना खयाल रखता है. थोड़ा जबान का वह कड़वा है, तो होने दो. अब उस की आदत पड़ गई है, जो मुश्किल से ही छूटेगी.’

मैं मां थी, मुझे तो रितेश के रवैये से तकलीफ होनी स्वाभाविक थी. 2 महीने किसी तरह निकाल कर मैं भारी मन से वापस लौट आई.

प्रिशा के जन्म के बाद पारुल ने नौकरी छोड़ दी और उस के लालनपालन में मग्न रहने लगी. लेकिन रितेश उस के इस निर्णय से बहुत क्षुब्ध रहता था. उस का कहना था कि प्रिशा को क्रैच में छोड़ कर भी तो वह नौकरी जारी रख सकती थी. उस के विचारानुसार उस के लिए सुखसुविधाओं के साधन जुटाने मात्र से उन का उस के प्रति कर्तव्यों की पूर्ति हो सकती है.

इस के विपरीत, पारुल सोचती थी कि कोई भी संस्था बच्चे के पालनपोषण में मां का विकल्प हो ही नहीं सकती. वह नहीं चाहती थी कि उस से दूर रहने के कारण वह भी अपने पापा का पर्याय बने. ऐसा कोई आर्थिक कारण भी नहीं था कि उसे मजबूरी में नौकरी करनी पड़े.

पारुल अपनी बेटी प्रिशा की बढ़ती हुई उम्र की एकएक गतिविधि का आनंद उठाना चाहती थी. उस के लालनपालन में वह किसी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहती थी. उस की तो पूरी दुनिया ही बेटी में सिमट कर आ गई थी. जो भी देखता, उस के पालने के ढंग को देख कर प्रशंसा किए बिना नहीं रहता था. इस का परिणाम बहुत जल्दी प्रिशा की गतिविधियों में झलकने लगा था. प्रिशा अपने हावभाव से सब का मन मोह लेती थी. मुझे भी यह देख कर पारुल पर गर्व होता था. लेकिन रितेश ने तो उस के विरोध में बोलने का जैसे प्रण ले रखा था.

पारुल की सास तो मेरे सामने उस की प्रशंसा करते हुए नहीं थकती थीं. पोती होने के बाद तो वे अकसर पारुल के पास जाती रहती थीं. अपने बेटे के पारुल के प्रति उग्र स्वभाव से वे भी बहुत दुखी रहती थीं. उन्होंने कई बार पारुल से कहा कि वह उन के साथ आ कर रहे, लेकिन उस ने मना कर दिया. उसे लगा कि रितेश के अकेले की गलती तो है नहीं.

मुझे पारुल पर गुस्सा भी आता था कि आखिर स्वाभिमान भी तो कुछ होता है, पढ़ीलिखी है, अकेले रह कर भी नौकरी कर के प्रिशा को पाल सकती है. पहले वाला जमाना तो है नहीं कि विवश हो कर लड़कियां पति के अत्याचार सहते हुए भी उन के साथ रहें. मैं ने उसे कई बार समझाया, ‘वह सुधरने वाला नहीं है. आदमी दिल का कितना भी अच्छा हो, उसे अपनी जबान पर भी तो कंट्रोल होना चाहिए. तू उस से अलग हो जा, हम तुझे पूरा सहयोग देंगे. मैं रितेश से बात करूं क्या?’ तो उस ने आज जो फोन पर उत्तर दिया, उस ने तो मेरी सोच पर पूर्णविराम लगा दिया था.

‘ममा, शादी का निर्णय मेरा था. आप मेरी चिंता बिलकुल न करें. आगे मेरे भविष्य के लिए मुझे ही सोचने दीजिए. मेरे ही जीवन का प्रश्न नहीं है, मुझे प्रिशा के भविष्य के बारे में भी सोचना है. बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए मांबाप दोनों का उस के साथ होना आवश्यक है. फिर रितेश उसे कितना प्यार करता है और उस के पालनपोषण में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ता है.

‘आप जानती हैं, मेरी ससुराल वाले भी मुझे और प्रिशा दोनों को कितना प्यार करते हैं. रितेश से रिश्ता टूटने पर हम दोनों का उन से भी रिश्ता टूट जाएगा. आखिर उन का क्या कुसूर है? प्रिशा को उस के पापा और दादादादी के प्यार से वंचित रखने का मुझे क्या अधिकार है? प्रिशा को थोड़ा बड़ा हो जाने दो. 3 साल की हो गई है. आज के बच्चे पहले की तरह दब्बू नहीं हैं. देखना, वही अपने पापा का सुधार करेगी.

‘शादी एक समझौता है. यह 2 व्यक्तियों का ही नहीं, 2 परिवारों का बंधन है. इस के टूटने से बहुत सारे लोग प्र्रभावित हो सकते हैं. अभी ऐसी स्थिति नहीं है कि मैं रितेश से संबंध तोड़ लूं. आखिर मैं ने उस से प्यार किया है. उस को आदत पड़ गई है छोटीछोटी बातों पर रिऐक्ट करने की, जो, हालांकि, अर्थहीन होती हैं. कभी न कभी उसे समझ आएगी ही, ऐसा मुझे विश्वास है.’

पारुल ने धाराप्रवाह बोल कर मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया. एक बार तो यह लगा कि मैं उस की मां नहीं, वह मेरी मां है. विवाह के बाद कितनी समझदार हो गई है वह. यह तो मैं ने सोचा ही नहीं कभी कि पति से रिश्ता तोड़ने पर पूरे परिवार से संबंध टूट जाते हैं. मुझे अपनी बेटी पर गर्व होने लगा था.

Storytelling : कजरी

Storytelling : कजरी के खिलखिलाने की आवाज शकुंतला देवी के कानों में पड़ी, तो उन की भौंहों पर बल पड़ गए और वे यों ही बड़बड़ाने लगीं, ‘‘लगता है, फिर किसी आतेजाते के साथ बात करने में मशगूल हो गई है. कितनी बार समझाया है कमबख्त को कि हर किसी से बातें मत किया कर. लोग एक बात के सौ मतलब निकालते हैं.’’

लेकिन कजरी शकुंतला देवी की बातों पर ध्यान नहीं देती थी. समझाने पर वह यही कहती थी कि जिंदगी में हंसने और बोलने का समय ही कहां मिलता है, इसलिए जब भी मौका मिले तो थोड़ा खुश हो लेना चाहिए.

कजरी की बातें सुन कर शकुंतला देवी को डर लगता था. मर्दों की इस दुनिया में अकेली और कुंआरी लड़की की हंसी के कितने मतलब निकाले जाते हैं, उन्हें सब पता था.

शकुंतला देवी अकसर ही कजरी को समझाने की कोशिश करते हुए कहतीं, ‘‘कजरी, मैं यह तो नहीं कहती कि हंसनाबोलना बुरी बात है, पर हर ऐरेगैरे से यों हंस कर बातें करना लोगों को तेरे बारे में कुछ उलटासीधा कहने का मौका दे सकता है.’’

शकुंतला देवी की ऐसी बातों पर कजरी कहती, ‘‘बीबीजी, लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं और क्या सोचते हैं, इस की मुझे परवाह नहीं है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि मैं सही हूं.

‘‘मैं ने कभी किसी के साथ खास मकसद से हंसीमजाक नहीं किया. मैं मन से साफ हूं और मेरा मन मुझे कभी गलत नहीं कहता.

‘‘अगर आप मेरे बोलनेबतियाने को शक की निगाहों से देखती हैं तो मैं जरूर दूसरों से बोलना छोड़ दूंगी. एक आप ही तो हैं जिन की नजरों में मुझे अपनापन मिला है, वरना यहां किस की नजरों में क्या है, मैं खूब समझती हूं.’’

कजरी की बातें सुन कर शकुंतला देवी चुप हो जातीं. वे उसे जमाने की ऊंचनीच समझाने की कोशिश भर कर सकती थीं, लेकिन कजरी पर इस का कोई असर नहीं पड़ता था. वह हर समय हंसतीखिलखिलाती रहती थी.

5 साल पहले शकुंतला देवी इस महल्ले में आई थीं. उन के पति सिंचाई महकमे में अफसर थे. उन के 2 बेटे थे. दोनों लखनऊ में रह कर पढ़ रहे थे. कजरी को उन्होंने पहली बार तब देखा था, जब वह उन के पास काम मांगने के लिए आई थी.

शकुंतला देवी को एक चौकाबरतन करने वाली की जरूरत थी, सो महल्ले वालों ने कजरी को उन के पास भेज दिया. तब कजरी की उम्र 15-16 साल की रही होगी.

शकुंतला देवी ने जब पहली बार उसे देखा, तो देखती रह गईं. काला आबनूसी रंग, भराभरा जिस्म और ऊपर से बड़ीबड़ी कजरारी आंखें. कजरी रंग से काली जरूर थी, पर दिल की साफ थी.

कजरी शकुंतला देवी के यहां काम करने आने लगी. धीरेधीरे वह शकुंतला देवी से घुलमिल गई. शकुंतला देवी भी कजरी को पसंद करने लगीं. कजरी का अल्हड़पन और मासूमियत देख कर वे उसे ले कर परेशान रहती थीं.

एक दिन सुबह शकुंतला देवी हमेशा की तरह सैर के लिए घर से निकलीं. अभी वे कुछ कदम ही चली थीं कि उन की पड़ोसन ने उन्हें बताया कि कजरी को रात में पुलिस पकड़ कर थाने ले

गई है.

यह सुन कर शकुंतला देवी हैरान रह गईं. पड़ोसन ने बताया कि जिस घर में कजरी काम करती है, उस के मालिक अनिरुद्ध शर्मा रात 11 बजे के आसपास घर आए थे, तो उन्होंने मेज की दराज खुली पाई. उन्होंने सुबह ही दराज में 20,000 रुपए रखे थे, जो अब गायब थे. उन का शक फौरन कजरी पर गया.

अनिरुद्ध शर्मा ने अकेले रहने और घर देर से लौटने की वजह से घर की एक चाबी कजरी को दे दी थी, ताकि उन की गैरहाजिरी में भी वह आ कर घर का चौकाबरतन कर जाए. उन्होंने कजरी को घर बुला कर पूछा और समझाया कि वह पैसे दे दे. जब कजरी नहीं मानी तो उन्होंने पुलिस को बुला कर रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पड़ोसन की बातें सुन कर शकुंतला देवी का सिर चकराने लगा. अपनों से ठगे जाने के बाद जो एहसास दिल में होता है, वही शकुंतला देवी को हो रहा था. उन को लग रहा था कि कजरी ने अनिरुद्ध शर्मा के यहां चोरी नहीं की, बल्कि उन का विश्वास चुराया है.

सैर कर के घर आने के बाद भी शकुंतला देवी का मन बेचैन ही रहा. पड़ोसन से हुई बातों के आधार पर उन का दिमाग कजरी को अपराधी मान रहा था, लेकिन कजरी का बरताव याद आते ही दिल उस के बेगुनाह होने की दुहाई देने लगता था. आखिरकार उन्होंने कजरी से मिलने का फैसला किया.

पति के औफिस चले जाने के बाद शकुंतला देवी थाने पहुंच गईं. वहां उन्होंने देखा कि हवालात में बंद कजरी घुटनों के बल बैठी चुपचाप सूनी आंखों से बाहर देख रही थी.

शकुंतला देवी ने थानेदार से कजरी से मिलने की इजाजत मांगी. उन्हें देखते ही कजरी रो पड़ी.

कजरी रोते हुए बोली, ‘‘बीबीजी, मैं बेकुसूर हूं. मैं ने कोई चोरी नहीं की. शर्माजी ने मुझे जानबूझ कर फंसाया है.’’

शकुंतला देवी कजरी को चुप कराने लगीं, ‘‘रोओ मत कजरी, चुप हो जाओ. मुझे पूरी बात बताओ कि आखिर माजरा क्या है?’’

कजरी ने शकुंतला देवी को बताया, ‘‘बीबीजी, शर्माजी मुझ पर बुरी निगाह रखते हैं. कल रात वे मेरे पास आए और कहा कि उन के घर थोड़ी देर में मेहमान आने वाले हैं, इसलिए मैं चल कर नाश्ता तैयार कर दूं.

‘‘रात का समय होने से मैं जाने में हिचकिचा रही थी, लेकिन उन की मजबूरी का खयाल कर के चली गई.

‘‘नाश्ता तैयार करने के बाद जब मैं वापस आने लगी तो उन्होंने मुझे पकड़ लिया और कहने लगे कि मेहमानों के आने की बात तो बहाना था. सच तो यह है कि मैं तुम्हें चाहने लगा हूं.

‘‘यह सुन कर मैं ने कहा कि मैं आप की बेटी जैसी हूं. आप को ऐसी बातें करते हुए शर्म आनी चाहिए.

‘‘इस पर शर्माजी ने कहा कि बेटी जैसी हो, बेटी तो नहीं हो न. बस, एक बार तुम मेरी प्यास बुझा दो, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा.

‘‘यह सुन कर मैं गुस्से में वहां से जाने लगी तो उन्होंने मुझे दबोच लिया और जबरदस्ती करने लगे.

‘‘अपनेआप को छुड़ाने के लिए दांतों से मैं ने उन के हाथ को काट लिया और वहां से भाग आई.

‘‘अभी घर आए मुझे थोड़ी ही देर हुई थी कि पुलिस घर पर आई और मुझे पकड़ कर यहां ले आई. मैं ने यहां सारी बात बताई, पर कोई सुनता ही नहीं है. सभी यही समझ रहे हैं कि मैं ने चोरी की है. बीबीजी, मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ इतना कह कर कजरी फिर फफक पड़ी.

कजरी के मुंह से सारी बातें सुन कर शकुंतला देवी समझ गईं कि क्या हुआ होगा. कमजोर और गरीब लड़की की मजबूरियों का फायदा उठाने वाले भेडि़यों की कमी नहीं थी. शर्मा जैसे भेडि़ए ने कजरी को शिकार बनाना चाहा होगा और नाकाम रहने पर तिलमिलाते हुए उस ने कजरी को झूठे केस में फंसा दिया.

शकुंतला देवी को कजरी पर गर्व हुआ कि उस ने उन के यकीन को ठेस नहीं पहुंचाई है.

कजरी को चुप कराते हुए शकुंतला देवी ने कहा, ‘‘रोओ मत कजरी, मर्दों की इस दुनिया में रोने से कुछ हासिल नहीं होने वाला. अगर औरत गरीब हो तो उस की गरीबी और बेबसी उस के खिलाफ वासना के भूखे भेडि़यों के हथियार बन जाते हैं इसलिए रोने और अपनेआप को कमजोर समझने से कुछ नहीं होगा.

‘‘तुम्हें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. अनिरुद्ध शर्मा को उस के किए की सजा मिलनी चाहिए. मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’

शकुंतला देवी ने थानेदार से बात कर के कजरी को जमानत पर छुड़ा लिया.

कजरी ने शकुंतला देवी की सलाह पर अनिरुद्ध शर्मा के खिलाफ बलात्कार करने की कोशिश की रिपोर्ट दर्ज कराई.

कजरी की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस अनिरुद्ध शर्मा को पकड़ने के लिए निकल पड़ी.

Chaat Recipe : स्नैक्स में बनाएं चटपटी मटर चाट

Chaat Recipe : कुछ चटपटा खाने का मन है और आपके पास समय कम है तो आप हरे मटर की चाट ट्राई कर सकती हैं.

सामग्री

सूखे मटर- 2 कप

बेकिंग सोडा- 1/2 चम्मच

हींग- एक चुटकी

इमली की चटनी- 1 कप

हरी चटनी- 1 कप

उबले हुए आलू- 2

प्याज (बारीक कटी हुई)- 1

टमाटर- 1

खीरा- एक

नींबू- 2

हरा धनिया बारीक कटा- दो चम्मच

आलू भुजिया

मसाले

नमक- स्वादानुसार

लाल मिर्च पाउडर- एक चम्मच

काला नमक- एक चम्मच

भुना हुआ जीरा- एक चम्मच

विधि

सूखी हुई मटर को रात को पानी में भिगो दें. सुबह इसे धोकर कुकर में भीगे हुए मटर, बेकिंग सोडा और हींग डालकर मटर को पकाएं. मटर को पानी से निकालकर उसमें बारीक कटी हुई प्याज, खीरा, टमाटर और उबला हुआ आलू डाल दें.

सभी मसाले और नींबू का रस मिलाकर इमली की चटनी और हरी चटनी भी डालें. बारीक कटे हुए हरे धनिए और आलू भुजिए से सजाकर सर्व करें.

फैमिली और जौब के बीच कैसे बनाएं बैलेंस, जानें क्या कहती हैं यंग Working Mothers

Working Mothers : २५ साल की नेहा नोएडा की एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है. शादी और प्रैगनैंसी के बाद जब उस की गोद में प्यारा सा बेटा आया तो उसे लगा जैसे जीवन की सारी खुशियां उसे हासिल हो गईं. मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद जब वह दोबारा जौब पर लौटी तो वहां सब का यह सवाल था कि अब आप कैसे मैनेज करेंगी? पहले जैसा काम अब कर सकेंगी या नहीं? घर वाले भी नहीं चाहते थे कि वह बच्चे को छोड़ कर जौब पर जाए. इधर बेबी को घर पर छोड़ने की गिल्ट उसे खुद भी महसूस होने लगी थी. चीजों को खुल कर सामने रख पाना मुश्किल लगने लगा था. इस बीच बच्चे की तबीयत खराब हुई तो आखिर उस ने हिम्मत हार दी और घर पर बैठ गई.

कई साल बाद जब बेटा स्कूल और पढ़ाई में बिजी हो गया और अपनी दुनिया में मगन रहने लगा तो नेहा को जीवन में खालीपन का एहसास हुआ. दिनभर उस के पति औफिस में रहते थे, बेटा अपनी पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त रहता और सास ऊपर जा चुकी थीं. आज नेहा के पास न अपनी पहचान थी और न ही अपने कमाए रुपए. घर में किसी के पास उस के लिए समय भी नहीं था. नेहा को अब जौब छोड़ने के अपने उस फैसले पर बहुत पछतावा होने लगा था. वह सोचने लगी थी कि काश उस समय उस ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती और नौकरी न छोड़ती तो कहां की कहां पहुंच चुकी होती.

अकसर महिलाओं के साथ ऐसा ही होता है. दरअसल, एक वर्किंग वूमन की लाइफ में शादी और बच्चे दोनों अहम भूमिका निभाते हैं. शादी के बाद घर की जिम्मेदारी संभालना और परिवार आगे बढ़ाने के लिए बच्चे को जन्म देना स्त्री का कर्तव्य माना जाता है. बच्चे के जन्म के बाद उसे संभालना और परवरिश करना महिला की प्राथमिकता बन जाती है. ऐसे में जब वह कैरियर और परिवार में से किसी एक चुनने को मजबूर हो जाती है तो अकसर वह परिवार और बच्चे को ही चुनती है. घर वाले भी उसे ऐसा करने को मजबूर करते हैं.

मां बनने के बाद कैरियर

आज के समय में महिलाएं या लड़कियां पुरुषों से किसी बात में कम नहीं हैं. पहले के समय में महिलाएं कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में काम ही किया करती थीं जैसेकि टीचर की नौकरी या फिर बैंक इत्यादि में काम करना. लेकिन अब महिलाएं हर फील्ड में आगे आ रही हैं और अपनी काबिलीयत भी दिखा रही हैं.

उन के काम करने की क्षमता यकीनन पुरुषों से कहीं अधिक है. वह न सिर्फ औफिस या बिजनैस बखूबी संभालती हैं वहीं घर की उन जिम्मेदारियों से भी मुंह नहीं मोड़तीं जो औरत होने की वजह से उन पर लादी जाती हैं. मसलन, बच्चों को संभालना, उन्हें पढ़ाना, बीमार पड़ने पर दिनरात सेवा करना, खाना बनाना, घर के बुजुर्गों की देखभाल, घर साफसुथरा रखना और ऐसी ही और तमाम जिम्मेदारियां. मगर यह सब एकसाथ निभाना इतना आसान नहीं.

एक चुनौती

किसी भी कामकाजी महिला के लिए अपने काम या कैरियर में सब से बड़ी समस्या होती है मां बनने के बाद औफिस में उसी जोश और एकाग्रता के साथ काम करना. मां बनना कोई सरल काम नहीं होता है और इस के लिए महिला को केवल शुरू के 9 महीने ही नहीं अपितु शिशु होने के लगभग 1 से 2 साल तक कड़ी मेहनत व बदलते जीवन से गुजरना होता है. वैसे भी बच्चों के बाद उस की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.

घर के बुजुर्ग भी उसे काम के बजाय घर और बच्चों को संभालने में अधिक ध्यान देने की बात करते रहते हैं खासकर जो महिलाएं निजी नौकरी करती हैं या अपने खुद का व्यवसाय चलाती हैं उन के लिए मां बनने के बाद अपने कैरियर को मैनेज करना एक चुनौती बन कर सामने आता है. महिला के लिए इन बदलावों को अपनाना और उन के साथ ही अपने कैरियर पर ध्यान देना बहुत मुश्किल हो जाता है.

अशोका यूनिवर्सिटी के जेनपैक्ट सैंटर फौर वूमंस लीडरशिप के सर्वे की मानें तो 27त्न महिलाएं ही बच्चे को जन्म देने के बाद अपने कैरियर को आगे बढ़ा पाती हैं. वहीं देश में

50त्न वर्किंग महिलाओं को 30 साल की उम्र में अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए नौकरी छोड़नी पड़ती है. मैटरनिटी लीव खत्म होने के बाद उन महिलाओं के लिए सिचुएशन ज्यादा टफ हो जाती है जो बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग करा रही होती हैं.

मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देना आसान है मगर यह एक गलत फैसला साबित होता है क्योंकि स्त्री का वजूद केवल घरगृहस्थी में सिमट कर रह जाता है. वह अपनी काबिलीयत का उपयोग नहीं करती तो इस बात की गिल्ट मन में रहने लगती है. घर में भी उसे वह सम्मान नहीं मिलता जो एक कमाऊ स्त्री को मिलता है.

बच्चे जब थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उन की अपनी दुनिया बन जाती है और तब मांएं अपने उस फैसले पर पछताती हैं जो उन्होंने बच्चों के जन्म के बाद कैरियर छोड़ कर घर में रहने को अहमियत दी थी. यही नहीं बच्चे की बेहतर परवरिश और घर की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए वर्किंग वूमन को कभी अपना काम नहीं छोड़ना चाहिए. आप की जौब आप के सम्मान और आत्मविश्वास के लिए जरूरी है.

कुछ बातों का खयाल रख कर आप परिवार और काम में बैलेंस बना सकती हैं:

खाली समय का करें सदुपयोग

अब जब आप मां बनने वाली हैं तो अवश्य ही आप ने औफिस से कई महीनों की छुट्टियां ली होंगी या वहां से त्यागपत्र दे दिया होगा. कई महिलाएं कुछ महीनो की छुट्टी पर चली जाती हैं तो किसीकिसी को रिजाइन करना पड़ता है. फिर वे लगभग 1 से 2 वर्ष का गैप ले कर फिर से अपने कैरियर पर लौटती हैं.

ऐसे में यदि आप भी अपनी गर्भावस्था और मां बनने के बाद कुछ समय के लिए घर पर हैं और अपनी और बच्चे की देखभाल करने में लगी हैं तो क्यों न उस समय का सदुपयोग किया जाए. इस के लिए आप कुछ न कुछ क्रिएटिव करती रहें. आप को जो कुछ आता है उस में कुछ नया और बेहतर करने का प्रयास करें.

जब भी समय मिले तो अपनी स्किल्स पर काम करें. अब जो लोग निरंतर नौकरी पर जा रहे हैं उन्हें तो कुछ न कुछ सीखने को मिल ही जाता है. ऐसे में आप घर बैठे ही अपनी स्किल को अपडेट करेंगी तो यह आप के लिए बहुत ही सही रहेगा. यह आप को अपने काम से भी जोड़े रखेगा और निरंतर आप को कुछ न कुछ नया सिखाता भी रहेगा.

औफिस के पास हो डे केयर

औफिस जौइन करने के बाद बच्चे की चिंता बनी रहती है. जो महिलाएं फैमिली के साथ रहती हैं उन्हें अपनी गैरमौजूदगी में बच्चे को घर पर रखने की चिंता नहीं होती है. मगर अगर घर पर बच्चे के साथ रहने वाला कोई नहीं है तो औफिस के नजदीक ही अच्छा सा डे केयर चुन लें ताकि बच्चे को अच्छी नर्सिंग मिल सके. लंच ब्रेक में आप बच्चे को फीड कराने या इमरजैंसी में आसानी से वहां जा सकती हैं.

औफिस में कंफर्टेबल फील करें

मां बनने के बाद कई शारीरिक बदलावों का होना नौर्मल है. ऐसे में औफिस में कंफर्टेबल फील करें. पहनावा भी कंफर्टेबल ही रखें. अगर आप बच्चे को ब्रैस्टफीडिंग कराती हैं तो डाइट में शामिल सभी फूड आइटम्स को भी बैग में रखें ताकि आप को अंदर से कमजोरी महसूस न हो. अपनी सेहत का पूरा खयाल रखें.

विकल्प के रूप में वर्क फ्रौम होम

आज के समय में वर्क फ्रौम होम का कल्चर काफी पसंद किया जाने लगा है. कोरोना के बाद से ही बहुत से बदलाव इस दुनिया में देखने को मिले हैं. इन्हीं में एक बहुत बड़ा बदलाव है वर्क फ्रौम होम का. ऐसा बहुत सा काम है जो घर बैठे ही आसानी से किया जा सकता है.

अगर मां बनने के बाद कुछ साल आप प्रौपर औफिस जा कर 9 से 5 की जौब नहीं कर पा रही हैं तो इस के लिए बौस से वर्क फ्रौम होम की सिफारिश करें. यही नहीं आप बड़ीबड़ी कंपनियों की वैबसाइट पर जा कर विजिट करें जैसेकि ग्लो ऐंड लवली, टाटा, एचसीएल, विप्रो इत्यादि. वहां पर समयसमय पर कई तरह की वर्क फ्रौम होम नौकरियों के बारे में अवसर आते रहते हैं जिन्हें आप ट्राई कर सकती हैं.

पति की सहायता लें

आप मां बनी हैं तो आप के पति भी तो पिता बने हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि कैरियर से जुड़े सारे सैक्रिफाइस आप ही करें. आप अपने पति की भी इस में सहायता ले सकती हैं. अब यह सहायता किसी भी तरह की हो सकती है. उदाहरण के तौर पर आप अपने पति से कभीकभी घर के काम निबटाने का आग्रह कर सकती हैं.

कभी बच्चा बीमार है और आप के लिए औफिस जाना जरूरी है तो आप पति से छुट्टी ले कर बच्चे को संभाल लेने को कहें. कभी पति काम से छुट्टी लें तो कभी आप. इस तरह से कई चीजों में आप अपने पति का सहयोग ले सकती हैं. इस से सब आसानी से मैनेज होगा और पति के सहयोग से आप बैलेंस बना सकेंगी.

क्या कहती हैं यंग वर्किंग मदर्स

यंग वर्किंग मदर्स किस तरह परिवार और काम एकसाथ मैनेज कर सकती हैं इस पर हम ने कुछ खास वर्किंग मदर्स से बात की. उन्होंने अपने अनुभव और बातें हम से शेयर कीं:

औफिस और घर दोनों संभालना आसान नहीं होता

-गजल अलघ, मामाअर्थ की को फाउंडर

होनासा कंज्यूमर कंपनी की को फाउंडर गजल अलघ एक ऐसी यंग मदर और सक्सैसफुल बिजनैस वूमन हैं जिन्होंने अपने बेटे को बीमारी से बचातेबचाते एक बड़ी कंपनी खड़ी कर दी. दरअसल, उन के बच्चे की स्किन बहुत सैंसिटिव थी और टौक्सिन वाले प्रोडक्ट इस्तेमाल करते ही उसे समस्या हो जाती थी. ऐसे में गजल अलघ को जब मार्केट में अपने बेटे के लिए टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट नहीं मिले तो उन्हें टौक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट्स बनाने का आइडिया आया.

इस के बाद उन्होंने अपने पति वरुण के साथ मिल कर 2016 में होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड नाम से स्टार्टअप शुरू कर दिया. इस तरह उन्होंने प्रौब्लम का न सिर्फ सौल्यूशन निकाला बल्कि इस से एक बड़ा बिजनैस भी खड़ा कर दिया. ब्यूटी प्रोडक्ट्स की मार्केट में मामाअर्थ आज जानामाना नाम है.

मामाअर्थ की मूल कंपनी होनासा कंज्यूमर प्राइवेट लिमिटेड ही है. किस तरह घर और बिजनैस का काम एकसाथ मैनेज करती हैं? इस सवाल के जवाब में गजल अलघ कहती हैं, ‘‘औफिस और घर दोनों संभालना आसान नहीं होता लेकिन अच्छा सपोर्ट सिस्टम हो तो काम थोड़ा आसान हो जाता है. मेरे 2 बच्चे हैं, एक 10 साल का और दूसरा 3 साल का. मेरे पति वरुण और मुझे अपने परिवार का पूरा साथ मिलता है जो बच्चों का खयाल रखने में मदद करता है. इस से हम काम पर भी ध्यान दे पाते हैं और बच्चों की देखभाल भी अच्छे से हो जाती है.

‘‘हम घर पर कोशिश करते हैं कि बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. हर महीने उन के साथ कुछ खास करते हैं जैसे उन के फैवरिट गेम्स खेलना, बिना फोन और इंटरनैट के पूरा दिन साथ बिताना या फिर पिकनिक पर जाना. ये छोटेछोटे पल हमें खुशी देते हैं और यह भी याद दिलाते हैं कि असल में सब से जरूरी क्या है.

‘‘औफिस में मैं वर्किंग मांओं की दिक्कतें समझती हूं. इसलिए हम ने फीडिंगरूम्स और जरूरी सैनिटरी प्रोडक्ट्स की सुविधा दी है. मेरी बाकी मांओं से यही कहना है कि अपने सपोर्ट सिस्टम पर भरोसा करें. जो सब से जरूरी है उसे पहले रखें और मदद मांगने से पीछे न हटें. घर और औफिस दोनों संभालना मुश्किल है लेकिन सही सपोर्ट और प्लानिंग से यह मुमकिन है.’’

मेरा बच्चा मेरी सब से बड़ी प्रेरणा है

-गार्गी मलिक, पब्लिक रिलेशंस प्रोफैशनल

गार्गी मलिक एड फैक्टर्स पीआर में पब्लिक रिलेशंस प्रोफैशनल के रूप में काम करती हैं. घर के साथ औफिस का काम मैनेज करना उन के लिए आसान नहीं था.

गार्गी बताती हैं कि यह और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब आप बिना परिवार और रिश्तेदारों के एक बिलकुल नए शहर में सबकुछ अकेले संभाल रही होती हैं.

अपने बच्चे के जन्म के साथ उन्होंने खुद से एक वादा किया कि मैं एक मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए कभी भी अपना कैरियर नहीं छोड़ूंगी.

गार्गी कहती हैं, ‘‘ऐसे दिन होते हैं जब घर, एक छोटे बच्चे और काम की प्रतिबद्धताओं को संभालना बहुत मुश्किल लगता है खासकर हमारा पेशा 9 से 5 की टाइमिंग नहीं मानता. लेकिन किसी तरह मैं ने अपने अंदर एक ऐसी ताकत खोज ली है, एक ऐसी प्रेरणा जो मुझे आगे बढ़ने की शक्ति देती है. इतनी छोटी उम्र में भी मेरा बच्चा महसूस कर लेता है कि कब मुझे उस के सहयोग की जरूरत है और मुझे वह ताकत देता है जो मुझे जरूरी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. दोनों में संतुलन बनाना आसान नहीं है लेकिन हम माताओं का प्यार और दृढ़ता सच में पहाड़ों को हिला सकती है. मेरा बच्चा मेरी सब से बड़ी प्रेरणा है जो मुझे हर दिन याद दिलाता है कि मैं यह सब क्यों कर रही हूं.’’

गार्गी को अपने परिवार का कोई सहयोग नहीं मिलता क्योंकि वे उन से दूर रहती हैं. हालांकि उन के सहकर्मी सब से बड़ी ताकत हैं और दूसरे परिवार जैसे बन गए हैं. वे हमेशा हर परिस्थिति में जब भी जरूरत होती है अपना सहयोग देने के लिए तैयार रहते हैं. वे कहती हैं कि एक वर्किंग मदर को परफैक्शन की सोच को छोड़ देना ठीक है. आप के बच्चे को एक परफैक्ट मां की नहीं एक खुश और प्यार करने वाली मां की जरूरत है. मातृत्व और कैरियर के बीच संतुलन बनाते हुए अपनी खुद की कीमत कभी न भूलें. औरत के अंदर पहाड़ों को हिलाने की ताकत है जब वे अपना मन बना लें.

अपनी समस्याओं के बारे में बात करते हुए गार्गी कहती हैं, ‘‘सब से बड़ी चुनौती जो मैं एक मां के रूप में महसूस करती हूं वह यह है कि मैं अपने बच्चे की छोटीछोटी जरूरतों के लिए हमेशा उपलब्ध नहीं हो पाती. हर रोज जब मैं काम पर जाती हूं तो एक अपराधबोध महसूस करती हूं जैसे मैं कोई बड़ी गलती कर रही हूं. ऐसे क्षण आते हैं जब मेरी नौकरी और मेरा बच्चा दोनों मेरा ध्यान चाहते हैं और अकसर मु?ो काम को चुनना पड़ता है. कई महीनों से मैं ठीक से सो नहीं पाई हूं क्योंकि मेरा बच्चा रात को खेलना चाहता है. कभीकभी मैं थकी हुई घर आती हूं, बस आराम करना चाहती हूं लेकिन मेरा बच्चा खेलना चाहता है और मैं थकी होने के बावजूद खुश रहने की कोशिश करती हूं. ये क्षण मेरे सामने आई सब से कठिन चुनौतियों में से कुछ हैं.

‘‘दूसरी मांएं भी ऐसी समस्याओं से जूझती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप शांत, धैर्यवान और सकारात्मक रहें. हमेशा खुद को याद दिलाएं कि आप जो भी चुनाव कर रही हैं चाहे वह काम हो या आप का बच्चा वह उस पल में आप दोनों के लिए सही है. जब जरूरी हो काम को प्राथमिकता देना या जब जरूरत हो बच्चे पर ध्यान केंद्रित करना कोई अपराध नहीं है. इन चुनौतियों से पार पाने की कुंजी मानसिक खुशी है. एक खुश और मानसिक रूप से मजबूत मां किसी भी परिस्थिति से निबट सकती है और अपने बच्चे के लिए खुद का सब से अच्छा रूप पेश कर सकती है.’’

काम और बच्चों की परवरिश के बीच बैलेंस बना कर रखती हूं

-आराधना डालमिया, फाउंडर, आर्टेमिस्ट

आर्ट कंसल्टैंट आराधना डालमिया जो द आर्टेमिस्ट नाम की कंपनी की फाउंडर हैं बताती हैं कि उन के 2 बच्चे हैं 1 बेटा और 1 बेटी. बेटा 4 साल का है जबकि बेटी की उम्र 2 साल है. वह अपने काम और बच्चों की परवरिश के बीच बैलेंस बना कर रखती हैं. सुबह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर के औफिस के लिए निकल जाती हैं. जब बच्चों के स्कूल में कोई प्रोग्राम होता है तो उस में जरूर शामिल होती हैं. बच्चों के स्कूल आदि से जुड़ी हर गतिविधि एवं कार्यक्रम का पूरा ध्यान रखती हैं. शाम को औफिस से लौटने के बाद बच्चों को खाना खिलाना और फिर उन के साथ वक्त बिताना उन्हें पसंद है. उन्हें अपने परिवार से पूरा सहयोग मिलता है.

जब बच्चे बीमार पड़ते हैं तो हर मां की तरह उन को भी असुविधा और टैंशन होती है खासतौर से उस समय परेशानी और भी बढ़ जाती है जब घर पर बच्चे बीमार हों और औफिस में भी कोई बड़ा प्रोजैक्ट या जरूरी काम चल रहा हो जिसे आप को करना ही है. ऐसी स्थिति में परिवार ही उन का सहारा बनता है.

मैं क्वालिटी टाइम पर फोकस करती हूं, भले ही वह समय कम हो मगर खूबसूरत हो

-शिप्रा भूटाडा यूजर कनैक्ट कंसल्टैंसी

की फाउंडर

शिप्रा भूटाडा यूजर कनैक्ट कंसल्टैंसी की फाउंडर हैं. यह एक रिसर्च और इनोवेशन स्टूडियो है. शिप्रा संयुक्त परिवार में रहती हैं जिस में सासससुर, पति और

2 बेटियां शामिल हैं. वे कहती हैं कि घर और औफिस का काम मैनेज करना चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन प्राथमिकताओं और समय प्रबंधन पर ध्यान दे कर इसे संतुलित करना सीखा है. परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग इसे आसान बनाता है.

गिल्ट फीलिंग: शिप्रा कहती हैं कि मां होने के नाते कभीकभी ऐसा लगता है कि मैं बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रही. ऐसे में मैं क्वालिटी टाइम पर फोकस करती हूं, भले ही वह समय कम हो मगर खूबसूरत और ब्यूटीफुल हो.

शिप्रा के अनुसार, वर्किंग मदर्स को चाहिए कि अपने परिवार और बच्चों को अपनी जर्नी का हिस्सा बनाएं. एक सहायक और खुले संवाद वाले माहौल में काम और घर दोनों संतुलित करना आसान हो जाता है. कई बार थकावट या तनाव महसूस होता है. इस से निबटने के लिए रैग्युलर ऐक्सरसाइज और एंटरटेनमैंट ब्रैक्स लें. इन से न केवल ऐनर्जी मिलती है बल्कि मूड भी रिफ्रैश होता है. वर्किंग मदर्स को परिवार के साथ काम बांटने और सहयोग मांगने में झिझकना नहीं चाहिए.

परफैक्शन का प्रैशर नहीं लेना चाहिए. हर दिन परफैक्ट नहीं होगा लेकिन हर दिन महत्त्वपूर्ण होता है. बच्चों को जिम्मेदारी सिखा कर उन्हें स्वतंत्र बनने में मदद करनी चाहिए. खुद के लिए समय निकालना नहीं भूलना चाहिए. एक खुश और आत्मनिर्भर मां ही बच्चों और परिवार के लिए सब से अच्छा उदाहरण होती है.

Divorce : क्या बेवफा पति से तलाक लेना है मुश्किल?

Divorce : हमेशा हंसती रहने वाली नलिनी का उदास चेहरा सभी को खटक रहा था. सब उस की उदासी की वजह जानना चाहते थे. मेरे बारबार पूछने पर उस की आंखों में आंसू तैरने लगते. उस ने अपनी एक कलीग को बताया, ‘‘सुनील मेरे पति का अपनी बड़ी भाभी से शारीरिक रिश्ता है. मैं ने उन दोनों को कई बार बड़ी ही अजीब स्थिति में पकड़ा है. पूछने पर सुनील कहता है मैं जो हूं, जैसा हूं वैसा ही रहूंगा. वैसे ही तुझे रहना होगा.’’

यह किसी पत्नी को भी स्वीकार नहीं होता. आंखों देख कर मक्खी नहीं निगली जाती है. नलिनी ने अपने पति की सारी कहानियां सुनाईं कि कबकब उस ने कैसेकैसे देखा. साफ जाहिर था कि सुनील नलिनी के साथ रहना नहीं चाहता.

तो छोड़ क्यों नहीं देती सुनील को नलिनी? क्यों नहीं तलाक ले ले?

आसान या मुश्किल

यह कहना आसान है पर करना मुश्किल क्योंकि नलिनी असल मैं सुनील को चाहती है. मगर क्या प्रेम जबरदस्ती पाया जा सकता है? अगर किसी का मन आप से पलट गया है तो आप के लाख चाहने से भी कुछ नहीं होगा. नलिनी के साथ भी यही हुआ. वह गर्भवती हो गई. हादसा ही कहेंगे उसे क्योंकि पति को जब लगा कि  थोड़ा सा प्यार देना भी उस के लिए जी का जंजाल बन गया है तो बहाने से अपनी 8 महीने की गर्भवती पत्नी को मायके भिजवा दिया और तलाक के पेपरों पर सहमति करवा ली.

4 साल नलिनी तलाक को रोकती रही पर पति साथ रहने को राजी नहीं हुआ. आज बच्चा 6 साल का है, 2 साल हो गए तलाक हुए पर दूसरी शादी में यही बच्चा रोड़ा बन रहा है क्योंकि तलाकशुदा महिला मगर बिना बच्चे के हो तो कोई भी उसे पत्नी बनाना स्वीकार कर लेता है मगर बच्चे को कोई स्वीकार नहीं करता. आज न वह बच्चे की परवरिश ढंग से कर पा रही है, न शादी ही हो पा रही है. अगर नलिनी पति की बेवफाई का पता चलते ही उसे पहले दिन ही छोड़ देती तो कहीं भी दूसरी जगह शादी कर सकती थी. 6-7 साल भी बरबाद नहीं होते नलिनी के.

शादी टूटने की नौबत

विवाह प्यार और विश्वास की नींव पर टिका होता है. हकीकत में दोनों में से एक की भी कमी होने पर विवाह टूटने की नौबत आ जाती है. जो पति बेवफा हो ही गया है, उस से प्यार करते रहना या उस का विश्वास करना अपने पांवों पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा है क्योंकि बेवफा होने से पहले साथी ने ही अपने मन से पत्नी के लिए प्यार और विश्वास को समाप्त कर दिया है. तो ऐसे व्यक्ति से उम्मीद क्या कर रही हैं आप? उस का इंतजार करना वक्त की बरबादी ही तो है.

भारत में ही नहीं, विदेशों में भी जहां तलाक ज्यादा आसानी से मिलता है बेवफा पति के लिए जान छिड़कने वालों की कमी नहीं है. चीन में हौंगकौंग के शुआनदोग प्र्रांत की शाओगुआन ने अपने पति की बेवफाई से दुखी हो कर अपने 9 वर्षीय बेटे के साथ नदी में कूद गई. मगर कुछ लोगों ने दोनों को बचा लिया. शाओगुआन के उस 9 वर्षीय बेटे ने अपनी मां पर अदालत में मुकदमा दायर कर दिया कि उस की मां ने उस से जीने का अधिकार छीनने की कोशिश की. वह मरना नहीं चाहता था पर उस की मां उसे जबरदस्ती पकड़ कर नदी में कूद गई.

बेवफाई का अंदाज

स्थिति हास्यास्पद भी है, दयनीय भी और शिक्षाप्रद भी. बच्चा अपना जिंदगी जीना चाहता है जबकि मां के पास भविष्य के लिए कुछ भी उम्मीद नहीं है. ऐसी सोच से तो महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिए कि एक व्यक्ति ने बेवफाई की है तो वह सारी दुनिया क्यों छोड़ना चाहती है? उस व्यक्ति को ही क्यों नहीं छोड़ देती?

बेवफाई का एक अंदाज और भी है पुरुषों का. विदेश में बसने के इच्छुक भारतीय लड़के यहां ब्याह कर के दहेज के पैसों से विदेश बस जाते हैं और वहीं दूसरी शादी रचा लेते हैं. पत्नियां पतियों के इंतजार में बुढ़ा जाती हैं. अत: इस से अच्छा है कि तलाक ले कर निडर और शांत जिंदगी जी जाए. चाहे तलाक में कितने ही समझौते क्यों न करने पड़ें.

Hairstyle : कर्ली बालों को कैसे सीधा कर सकते है?

सवाल

Hairstyle : मेरे बाल कर्ली हैं जो देखने में अच्छे नहीं लगते और उन को बांधने का कोई नया स्टाइल भी नहीं बन पाता. उन को सीधा करने का उपाय बताएं?

जवाब

परमानैंट स्ट्रेटनिंग करवाना आप के लिए सही रहेगा. इस के लिए नैनोप्लास्टी टैक्नीक एक लेटैस्ट टेक्नीक है जिस में नैनो टेक्नोलौजी का इस्तेमाल होता है. कर्ली बालों को टैंपरेरी स्ट्रेटनिंग करने पर उसे आप को रोजरोज करना पड़ेगा और उस से बारबार हीट लगने से बाल खराब भी हो जाएंगे जबकि नैनौप्लास्टीव में यूज होने वाले प्रोडक्ट बालों को न्यूट्रिशन प्रदान करेंगे और बाल लंबे समय के लिए सीधे रहने के साथसाथ खूबसूरत भी दिखेंगे.

सवाल

मेरी उम्र 37 साल है. मेरे हाथ और बाजू टैनिंग ग्रस्त हैं. सबकुछ कर के देख लिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा. स्किन स्पैशलिस्ट से भी मिल चुकी हूं. उन से भी निराशा ही हाथ लगी. हाथ देखने में बहुत बुरे लगते हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब

आप किसी कौस्मैटिक क्लीनिक से ऐंटीटैन या फिर स्किन पौलिशिंग ट्रीटमैंट ले सकती हैं. यह टैनिंग को रिमूव कर के स्किन पर पौलिश यानी चमक लाता है. इस के अलावा आप जब भी धूप में बाहर निकलें अपनी बौडी के खुले भागों पर एसपीएफ और पीए+++ युक्त सनस्क्रीन लगाएं. घरेलू उपाय के तौर पर संतरे के सूखे छिलके, सूखी गुलाब व नीम की पत्तियां सभी समान मात्रा में लें और सब को दरदरा पीस लें. अब इस 1 चम्मच पाउडर में 1 चम्मच कैलेमाइन पाउडर, आधा चम्मच चंदन पाउडर और ऐलोवेरा जैल मिला कर पेस्ट बना लें और रोजाना अपनी बांहों पर इस से स्क्रब करें. इस स्क्रब को करने से त्वचा साफ, चिकनी और निखरी रहती है.

सवाल

मेरी उम्र 26 वर्ष है. समस्या यह है कि मेरे सिर में रूसी हो गयी है. सिर की त्वचा पर कई जगह खुश्की जमा हो गई है. मैं डैंड्रफ पू्रफ शैंपू इस्तेमाल कर रही हूं फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा. कोई उपाय बताएं?

जवाब

अपने बालों को स्वच्छ रखने के लिए सप्ताह में कम से कम बार किसी अच्छे ऐंटीडैंड्रफ शैंपू से बाल अवश्य धोएं और जब भी बाल धोएं तब अपनी कंघी, तौलिया व तकिए को भी किसी अच्छे ऐंटीसैप्टिक के घोल में डुबो कर धोएं और धूप में सुखा कर ही दोबारा इस्तेमाल कीजिए. इस के अलावा नारियल के तेल में कपूर मिला कर बालों की जड़ों में मालिश करें. 4-5 घंटे बाद बाल धो दें. यदि फिर भी कोई लाभ न मिले तो किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक में जा कर ओजोन ट्रीटमैंट या बाईओप्ट्रोन की सिटिंग ले सकती हैं. इस से डैंड्रफ तो कंट्रोल होगा ही साथ ही डैंड्रफ की वजह से हो रहें हेयर फौल में भी नियंत्रण होगा. रूसी की समस्या से बचने के लिए घरेलू उपचार के लिए सेब कद्दूकस कर के रस निकाल लें. रूई के फाहे से उसे बालों की जड़ों में लगाएं. सूख जाने पर बालों को धो दें.

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा  पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से भी अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Suicide के लिए मजबूर करने वाला अपराधी होता है…

Suicide  : घरेलू विवादों में पत्नी के आत्महत्या कर लेने के बाद पतियों को जेलों में बंद कर देना एक रिवाज बन गया है. मृत पत्नी के मातापिता तरहतरह के आरोप लगाते हैं कि उन की बेटी को पति और उस के घर वालों ने इतना सताया है कि  उसे सुसाइड करने पर मजबूर होना पड़ा. पुराने इंडियन पीनल कोड की धारा 306 के अनुसार आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाला या उकसाने वाला अथवा उस की आत्महत्या करने में हैल्प करने वाला अपराधी होता है.

सैकड़ों पति आज देश की जेलों में बंद हैं और कुछ में उन के माता, पिता, भाई, बहन, भाभी, जीजा, दादी तक भी बंद हैं कि पत्नी ने तंग आ कर सुसाइड कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर, 2024 को एक फैसले में धारा 306 का ऐक्सप्लेन करते हुए कहा कि सिर्फ सताने का सुबूत आत्महत्या के लिए फोर्स करने के लिए पूरा नहीं है. आरोपी ने कुछ ऐसा किया हो कि मरने वाले को सुसाइड करना ही पड़ा हो.

सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह ठीक है क्योंकि पतिपत्नी डिस्प्यूट में अकसर कमजोर औरतें सुसाइड कर के पति से बदला लेने की धमकी सदियों से देती रही हैं और अब इस कानून का इस्तेमाल ज्यादा उस के मातापिता करने लगे हैं. यह धमकी ही कि कुएं में कूद जाऊंगी किसी भी पति को अंदर तक डरा देने लायक है. अपने ऊपर तेल छिड़क कर हवा में माचिस की तीली जला कर आज कोई भी पत्नी किसी भी बात को मनवा सकती है.

दफ्तरों में, कालेजों में, महल्लों में किसी की डांट, छेड़छाड़ इस कानून को किसी पर थोपने के लिए काफी है.

सुसाइड कमजोर लोग करते हैं जो जिंदा रह कर आफत नहीं सहना चाहते. हिटलर जैसे क्रूर, कट्टर, बलशाली, तानाशाह ने अपने को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए 1945 में सुसाइड कर लिया था. उस के लिए ब्रिटेन, रूस या अमेरिकी फोर्सेस को गुनहगार तो नहीं माना जा सकता. उस सुसाइड के लिए लाखों बेगुनाहों की जानें लेने वाला अचानक एक कदम से बेचारा नहीं बन जाता.

कानून का इस्तेमाल इस तरह किया जा रहा है कि सुसाइड करने वाला तो दूध का धुला है और गलती किसी और की है, पति की है या पति के रिश्तेदारों की है जबकि पत्नी के पास हमेशा ही घर छोड़ कर चले जाने का औप्शन था. सुप्रीम कोर्ट ने शर्तें लगा कर ठीक किया है पर एफआईआर लिखने वाला थानेदार और पहला मजिस्ट्रेट क्या इस फैसले की चिंता करेगा? अगर पिछले मामलों को देखें, जो हजारों में हैं, हरगिज नहीं. पुलिस वाला और पहला सरकारी वकील और पहला मजिस्ट्रेट मामला खारिज करना तो दूर जमानत तक पर आरोपी को नहीं छोड़ने देता.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला तो सुप्रीम कोर्ट में पहुंचने पर ही लागू होता है. तब तक सुसाइड की हुई पत्नी का पति कितने साल जेल में गुजार चुका होगा, पता नहीं.

Love Of My Life : मेरा बौयफ्रैंड सैक्स करना चाहता है, लेकिन मैं तैयार नही हूं…

Love Of My Life :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 17 वर्षीय युवती हूं, 20 वर्षीय युवक से प्यार करती हूं. समस्या यह है कि वह विवाह से पूर्व शारीरिक संबंध कायम करना चाहता है लेकिन मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहती. मैं उसे कैसे मना करूं. क्या शारीरिक संबंध के लिए मना करना सही होगा, कहीं इस से हमारे संबंधों में कड़वाहट तो नहीं आ जाएगी? सलाह दें.

जवाब
सब से पहली बात अभी आप की उम्र छोटी है. यह उम्र कैरियर व शिक्षा पर ध्यान देने की है. आप का निर्णय बिलकुल सही है और आप अपनी बात अपने बौयफ्रैंड से साफसाफ बिना किसी हिचकिचाहट के कह दें. अगर वह आप से सच्चा प्यार करता है तो आप की बात को अवश्य समझेगा और अगर उसे आप के निर्णय से कोई परेशानी होगी तो इस का अर्थ साफ होगा कि उस की आप में रुचि सिर्फ सैक्स संबंध बनाने तक है. सैक्स संबंध दोनों की आपसी सहमति व चाहत पर ही बनने चाहिए और दोनों को उस के जोखिमों को साथ सहने का संकल्प लेना चाहिए.

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शादी के बाद इसलिये धोखा देते हैं पति-पत्नी

इंसान की फितरत है धोखा देना. दरअसल इसे कमजोरी भी कहा जा सकता है. लोग दोस्ती में धोखा देते हैं, रिश्तों में धोखा देते हैं, प्यार में धोखा देते हैं और यहां तक कि शादी के बाद भी धोखा देते हैं.

देखा गया है कि शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बार धोखा का बदला लेने के लिये धोखा दिया जाता है. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है.

हम यहां आपको बताने जा रहे हैं कि शादीशुदा लोग क्यों एक दूसरे को धोखा देते हैं.

पति का शादी के बाद धोखा देने के कारण

संतुष्टि न मिलना

कई बार पति को अपनी पति से सेक्स से वो संतुष्टि नहीं मिलती जो वो चाहता और तब वह शादी के बाहर इस संतुष्टि की तलाश करने लगता है और दूसरी महिलाओं के संपर्क में आ जाता है.

ओपन सोसाइटी

आधुनिकता की वजह से समाज में आ रहे बदलाव यानी खुलेपन की कारण भी पति अपनी पत्नी को धोखा देने लगता है. दरअसल, नयी आब-ओ-हवा में समाज में खुलापन तेज़ी से आ रहा है और इसकी वजह से लोगों की मानसिकता भी खुलती जा रही है और वे शादी के बाहर संबंध बनाने में अब कम हिचकते हैं. इस मामले में महिलाएं भी बहुत बोल्ड हो गई हैं. ज़ाहिर है ऐसे रिश्ते की बुनियाद धोखे पर ही रखी जाती है.

सोशल मीडिया का फैलाव

आजकल विवाहेत्तर संबंध बनने की संभावनाएं अधिक हो गई हैं क्योंकि आप सोसल मीडिया के ज़रिये आसानी से दोस्त बना लते हैं जो पहले इतना आसान नहीं था.

आपसी संवाद का अभाव

पति और पत्नी के बीच नियमित रुप से संवाद कई समस्याओं को पैदा होने से रोक देता है लेकिन देखा गया है कि जिस दंपत्ति में आपसी संवाद नहीं होता या बहुत कम होता है वहां भी धोखे की संभावना बढ़ जाती है. संवाद न होने से दोनों में कई बार ग़लतफ़हमी हो जाती है जो फिर कड़वाहट में बदल जाती है.

प्रयोगवादी होना

लोग आजकल अपनी सेक्ल-लाइफ को और दिलचस्प बनाने के लिये नए-नए प्रयोग करने की सोचते हैं. पति को अगर पति को सेक्स का सुक नहीं मिल रहा हो या फिर ऊब गया हो तो तो वह एक्सपेरिमेंट करने से नहीं चूकता. लेकिन जब पत्नी इसमें सहयोग नहीं देती तो पुरूष धोखा देने लगते हैं.

महिलाओं का शादी के बाद धोखा देने के कारण

अफेयर होना

आमतौर पर कोई पत्नी शादी के बाद पति को या तो इसलिए धोखा देने लगती हैं क्योंकि उसका शादी से पहले किसी से अफेयर होता है या फिर उसका पहला प्रेमी उसे परेशान और ब्लैकमेल कर रहा हो.

पति का शक़्की मिजाज

कई हार पत्नी अपने पति को इसलिए धोखा देने लगती है क्योंकि उसका पति शक्की होता है और बात-बात पर उस पर शक़ करता है.

अकेलापन और बोरियत होना

कई बार पत्नि घर में अकेली रहकर या फिर एक ही तरह के रूटीन से बोर हो जाती है और ऐसे में वह बाहरी दुनियां की तरफ आकर्षित हो जाती है नतीजन उसका अफेयर चलने लगता है.

पति से विचार ना मिलना

कई बार पति से विचार ना मिलना या फिर हर समय घर के झगड़े के कारण भी पत्नी बाहर किसी पराये मर्द की तरफ आकर्षित हो जाती है.

इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं जिससे महिलाएं और पुरूष शादी के बाद भी अपने साथी को धोखा देने लगती हैं.

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