लेस्बियन या पुरुष समलैंगिक जोड़े और समाज

एक तरफ शादी में खर्च, बंधन, बच्चे, पति व सासससुर की घौंस, स्वतंत्रता का खात्मा और दूसरी ओर अकेले रह जाने पर अकेलापन, डर और समाज से कट जाने का एक सरल उपाय औरतों के लिए लेस्बियन हो जाता है जिस में तन की भूख भी मिटती है, मन भी शांत होता है और एक परमानैंट का साथी मिलता है. जब स्त्रीपुरुष के बीच कानूनी या धाॢमक शादी एकदूसरे को संबंध तोडऩे से नहीं रोक सकते तो लेस्बियनों के संबंध कभीकभार टूट भी जाएं क्योंकि उन्हें जोडऩे वाले बच्चे नहीं हैं तो क्या फर्क पड़ता है.

यह तो समाज की हठपना है कि वह कहता है कि हर लडक़ेलडक़ी को शादी करनी ही चाहिए ताकि बच्चे हो और समाज बढ़ता रहे, चलता रहे. अधिकांश लोग तो यह पेंगे ही क्योंकि इसी में स्थायित्व है और सुख है पर समलैंगिक व लेस्बियन संबधों को नकारना, हिराकत से देखना और उन पर  हायहाय करना गलत है.

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2 युवतियां लेस्बियन तभी बन सकती हैं जब उन में मानसिक व दैहिक लगाव दोनों हो. यह हर दोस्तों में नहीं होता. विवाह बाद भी यह संभव है. किसी की पत्नी किसी की लेस्बियन पार्टनर बन सकती है क्योंकि संभव है कि उसे मन और तन की संतुष्टि ज्यादा दूसरी औरत से मिलती हो बजाय पति या पुरुष से. यह समाज की गलती है कि वह इस संबंध को टेढ़ी निगाहों से देखता है और एक अपराध भाव उन के मन में डालना है. ज्यादातर घरों में समलैंगिकों और लेस्बियनों को चिडिय़ाघर के प्राणी सिर्फ इसलिए मान लिया जाता है कि वे समाज की खींची लाइनों के बीना चलने को तैयार नहीं हैं.

लेस्बियनों के आपसी संबधों में विवाह नहीं होंगे, यह न सोचें. ब्रेकअप होगा जिस का दर्द सताएगा. बिमारी या दुर्घटना से साथी की मृत्यु हो सकती है. संपत्ति पर विवाद हो सकता है. बेवफाई भी हो सकती है. सामाजिक कटाक्ष न सह पाने पर एक या दोनों को संबंध तोडऩे पर मजबूर होना पड़ सकता है. दूसरे शब्दों में वह पुरुष समलैंगिक व लेस्बियनों में होगा जो विवाहित जोड़ों में होती है.

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अगर समाज लेस्बियनों को सहज स्वीकार करना शुरू कर ले तो उन के जौएंट अकाउंट खुल सकेंगे, विरासत के सवालों के उत्तर मिलने लगेंगे, बच्चे गोद लेने के हक मिल जाएंगे संपत्ति संयुक्त नाम से खरीदी जा सकेगी, विवाहों, उत्सवों में शादीशुदा स्त्रीपुरुष जोड़ों का सा स्थान मिल सकेगा, समाज ज्यादा सुखी रहेगा. लेस्बियन या पुरुष समलैंगिक जोड़े समाज में गलत संदेश नहीं देंगे, निष्ठा और समर्पण की नई परिभाषाएं देंगे कि 2 जनों का संबंध केवल बच्चों के कारण नहीं बनता, और बहुत से कारण हो सकते हैं.

Summer Special: खूबसूरत वादियों और वाइल्डलाइफ का अद्भुत मेल है उत्तराखंड

विविध वन्यजीव और प्राकृतिक सौंदर्य के आंचल में बसे उत्तराखंड की बात ही निराली है. यहां खूबसूरत वादियों में सैलानियों को रोमांचक अनुभव के साथसाथ विविध संस्कृति का संगम भी मिलता है तो फिर क्यों न निहारा जाए यहां की खूबसूरती को.

उत्तराखंड में घूमने लायक बहुत जगहें हैं. जो वाइल्डलाइफ पर्यटन का शौक रखते हैं वे यहां के जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का दीदार कर सकते हैं. नैनीताल जिले में स्थित यह पार्क 1,318 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इस के 821 वर्ग किलोमीटर में बाघ संरक्षण का काम होता है. दिल्ली से यह पार्क 290 किलोमीटर दूर है.  मुरादाबाद से काशीपुर और रामनगर होते हुए यहां तक पहुंचा जा सकता है. यहां पर तमाम तरह के पशु मिलते हैं. इन में शेर, भालू, हाथी, हिरन, चीतल, नीलगाय और चीता प्रमुख हैं.

यहां 200 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है. यहां अतिथि गृह, केबिन और टैंट उपलब्ध हैं. रामनगर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर पार्क का गेट है. रामनगर रेलवे स्टेशन से पार्क के लिए छोटीबड़ी हर तरह की गाडि़यां मिलती हैं. यहां कई तरह के रिजोर्ट हैं. यहां से जिप्सी के जरिए पार्क में घूमने की व्यवस्था रहती है.

यहां हाथी भी बहुत उपलब्ध हैं. जो जंगल के बीच ऊंचाई तक सैर कराने ले जाते हैं. हाईवे पर ही हाथी स्टैंड बने हैं. हाथी की सैर चाहे महंगी हो पर यह पर्यटन का मजा दोगुना कर देती है.
सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे के बीच नेचर वाक का आयोजन किया जाता है. जिम कौर्बेट नैशनल पार्क के अलावा उत्तराखंड में कई खूबसूरत स्थल हैं जिन का मजा पर्यटकों को लेना चाहिए.

कौर्बेट पार्क और रामनगर के रास्ते में नदी के किनारे बने रिजोर्ट महंगे हैं पर लगभग हर रिजोर्ट से नदी का और सामने पेड़ों से ढकी पहाडि़यों के सुरम्य दर्शन होते हैं. इन रिजोर्टों में नम: रिजोर्ट बहुत आधुनिक है पर काफी महंगा है. कौर्बेट पार्क के पास नदी के बीच एक चट्टान पर एक मंदिर भी है. जहां आप चढ़ावे के लिए या पाखंड के लिए न जाएं पर वहां नदी किनारे बैठ कर सुस्ताने जरूर जाएं. यह इलाका बहुत शांत और प्रदूषण रहित है.  यहां बने छोटे बाजार में छोटीमोटी आकर्षक चीजें मिलती हैं.

नैनीताल   

उत्तराखंड प्रदेश की सब से अच्छी घूमने वाली जगह है नैनीताल. इस की खासीयत यहां के ताल हैं. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं जहां से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. हनीमून कपल की यह सब से पसंदीदा जगह है. नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. यहां की इमारतों को देख कर अंगरेजी काल की वास्तुकला दिखाई देती है.  नैनीताल शहर के बीचोबीच एक झील है, इस को नैनी झील कहते हैं. इस झील की बनावट आंखों की तरह की है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है.

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काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. इस को कुमाऊं का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. गौला नदी इस के दाएं ओर से हो कर हल्द्वानी की ओर बहती है. हल्द्वानी व काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए बसें चलती हैं. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ता है.

भीमताल नैनीताल का सब से बड़ा ताल है. इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 15 से 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने हैं. इन को तल्ली ताल और मल्ली ताल के नाम से जाना जाता है. ये दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.  भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है जो नौ कुचियाताल कहलाता है. सातताल कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता जाता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है.

नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है. इस का आकार समकोण वाला है.  नैनीताल से 6 किलोमीटर दूर खुर्पाताल है. इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है. यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है.

रोपवे नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रोलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं.   रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. मालरोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. यहीं पास में नैनी झील है. यहां पर बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. मालरोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं. यह रोड मल्लीताल और तल्लीताल को जोड़ने का काम भी करता है. यहां भीड़भाड़ और शांत दोनों तरह की जगहें हैं. नैनीताल में ही टैक्सी स्टैंड के पास 5 केव बनी हैं. इन के अंदर घुसने में रोमांचक अनुभव किया जा सकता है. यह जगह बहुत ठंडी और एकांत वाली है. हनीमून कपल को ऐसी जगहें खासतौर पर लुभाती हैं.
रानीखेत
अगर आप पहाड़, सुंदर घाटियां, चीड़ व देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़, संकरे रास्ते और पक्षियों का कलरव सुनना चाहते हैं तो आप के लिए रानीखेत से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती. यहां शहर के कोलाहल से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलेगा.

25 वर्ग किलोमीटर में फैले रानीखेत को फूलों की घाटी कहा जाता है. यहां से दिखने वाले पहाड़ों पर सुबह, दोपहर और शाम का अलगअलग रंग साफ दिखता है. इस इलाके में छोटेछोटे खेत हुआ करते थे, इसी कारण इस का नाम रानीखेत पड़ गया. इस शहर का बाजार पहाड़ों की उतार पर बसा है इसी कारण इस को खड़ा बाजार भी कहा जाता है. रानीखेत घूमने के लिए सब से बेहतर समय अप्रैल से सितंबर मध्य तक रहता है. यहां का सब से करीबी हवाईअड्डा पंतनगर है. यहां से 119 किलोमीटर टैक्सी से सफर कर रानीखेत पहुंचना होगा. रेलगाड़ी से पहुंचने के लिए काठगोदाम सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. यहां से रानीखेत 84 किलोमीटर दूर है. यहां से बस और टैक्सी दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

रानीखेत में देखने वाली तमाम जगहें हैं. इन में सब से प्रसिद्ध उपत नामक जगह है. यह रानीखेत शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में है. चीड़ के घने जंगल के बीच यहां दुनिया का सब से मशहूर गोल्फ मैदान भी है. यहां कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. कोमल हरी घास वाला यह मैदान 9 छेदों वाला है. ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है. यहां खिलाडि़यों के रहने के लिए सुंदर बंगला भी बना है. रानीखेत शहर से 6 किलोमीटर दूर स्थित चिलियानौला नामक जगह है. घूमने और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक अच्छी जगह है. यहां फूलों के सुंदर बाग हैं जिन की सुंदरता देखते ही बनती है.

रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर चौबटिया जगह है. यहां फलों का सब से बड़ा बगीचा है. यहां आसपास पानी के 3 झरने हैं जो देखने वालों को बहुत लुभाते हैं. रानीखेत से 35 किलोमीटर दूर शीतलखेत है. यहां से बर्फ से ढकी पहाडि़यां देखने में बहुत अच्छा महसूस होता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरा रानीखेत दिखता है. रानीखेत से 40 किलोमीटर दूर द्वाराहाट है. ऐतिहासिक खासीयत वाली जगहों को देखने के लिए लोग यहां आते हैं.

पर्वतों की रानी मसूरी देहरादून जाने वाला हर पर्यटक मसूरी जरूर जाना पसंद करता है. मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है. यह  देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है. इस सौंदर्य के कारण देखने वालों को मसूरी परी महल सी प्रतीत होती है. यहां पर देखने और घूमने वाली बहुत सारी जगहें हैं.

मुख्य आकर्षण 

मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं.  यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला बंदरपच, पिठवाड़ा और गंगोत्तरी को देखा जा सकता है. मसूरी और दून घाटी के सुंदर दृश्यों को यहां से देखा जा सकता है. आजादी से पहले इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर में चलाई जाती थी. इस से लोग अपनी घडि़यों में समय मिलाते थे.

मसूरी का कंपनी गार्डन सुंदर उद्यान है. चाइल्डर्स लौज लाल टिब्बा के निकट स्थित मसूरी की सब से ऊंची चोटी है. मसूरी के पर्यटन कार्यालय से यह केवल 5 किलोमीटर दूर है. यहां तक घोडे़ पर या पैदल पहुंचा जा सकता है. यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है.

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झड़ीपानी फौल मसूरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित है. घूमने वाले यहां तक 7 किलोमीटर तक की दूरी बस या कार से तय कर सकते हैं. इस के बाद पैदल 1 किलोमीटर चल कर झरने तक पहुंच सकते हैं. मसूरी से 7 किलोमीटर दूर मसूरी देहरादून रोड पर भट्टा फौल स्थित है. यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. कैंपटी फौल मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत झरना है. यह चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. मसूरीयमुनोत्तरी मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना 5 अलगअलग धाराओं में बहता है. यह पर्यटकों की सब से पसंदीदा जगह है.

मसूरी देहरादून रोड पर मूसरी झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. यहां पर पैडल बोट से झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है. यहां से घाटी के सुंदर गांवों को भी देखा जा सकता है. टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. इस के आसपास पार्क बने हैं. यह जगह देवदार के जंगलों और फूल की झाडि़यों से घिरी है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव, जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि पाए जाते हैं.

मसूरी से 27 किलोमीटर चकराताबारकोट रोड पर यमुना ब्रिज है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. यहां परमिट ले कर फिश्ंिग की जा सकती है. मसूरी से लगभग 25 किलोमीटर दूर मसूरीटिहरी रोड पर धनोल्टी स्थित है. इस मार्ग में चीड़ और देवदार के जंगलों के बीच बुरानखांडा का शानदार दृश्य देखा जा सकता है. वीकएंड मनाने के लिए बहुत सारे परिवार धनोल्टी आते हैं. यहां रुकने के लिए टूरिस्ट बंगले भी उपलब्ध हैं.

धनोल्टी से लगभग 31 किलोेमीटर दूर चंबा जगह है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. सीजन के दौरान पूरे मार्ग पर सेब बहुत मिलते हैं. बसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं. इन को देखना आंखों को बहुत
सुखद लगता है.

देहरादून    

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान बदल कर पहाड़ों जैसा हो जाता है. देहरादून के तापमान में पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों का मजा मिलता है.देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगा व यमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्य प्राणियों को भी देखा जा सकता है.
देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. देहरादून 2110 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. पर्वतों की रानी मसूरी के नीचे स्थित होने के कारण देहरादून में गरमी का मौसम भी सुहावना रहता है.

दर्शनीय स्थल

देहरादून में घूमने लायक सब से अच्छी जगह सहस्रधारा है.  देहरादून के करीब ही मसूरी है. यहां लोग जरूर घूमने जाते हैं. सहस्रधारा देहरादून से सब से करीब है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी करीब 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है. गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है. बालदी नदी में पडे़ पत्थरों पर बैठ कर लोग नहाते हैं. सहस्रधारा जाने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा उपलब्ध है. बस का किराया 20-22 रुपए के आसपास है. आटो टैक्सी आनेजाने का 200 रुपए ले लेती है.

सहस्रधारा के बाद ‘गुच्चू पानी’ नामक जगह भी देखने वाली है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गरमियों में घूमने वाले यहां जरूर आते हैं. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं. यहीं पर घूमने वाली एक जगह और है जिस को रौबर्स केव के नाम से जाना जाता है. देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है. 1 हजार फुट की ऊंचाई पर यह स्मारक रिसपिना नदी के किनारे स्थित है.

देहरादून दिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां आने वाले लोग इस का प्रयोग सैरगाह के रूप में करते हैं. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.  देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बहुत ही खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण लोग घूमने आते हैं. जंगल में होने के कारण यहां पर जंगली पशुपक्षी भी यहां पर देखने को मिल जाते हैं.

देहरादून चकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी जगह है जहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.

देहरादून चकराता मार्ग पर 7 किलोमीटर दूर वन अनुसंधानशाला की सुंदर सी इमारत बनी है. यह इमारत ब्रिटिशकाल में बनी थी. यहां पर एक वनस्पति संग्रहालय बना है जिस में पेड़पौधों की बहुत सारी प्रजातियां रखी हैं.

गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान को बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्यजीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. शिवालिक पहाडि़यों में 820 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में राजाजी नैशनल पार्क बनाया गया है. इस पार्क में स्तनपायी और दूसरी तरह के तमाम जीवजंतु पाए जाते हैं. सर्दी के मौसम में आप्रवासी पक्षी भी यहां पर खूब आते हैं.

कौसानी 

कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. शायद इसी वजह से इस को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोडा शहर से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेलमार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है.
कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान हैं. ये कौसानी के पास स्थित हैं. यहां चाय की खेती को देखा जा सकता है. घूमने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते. यहां की चाय का स्वाद जरमनी, आस्टे्रलिया, कोरिया और अमेरिका तक के लोग लेते हैं. भारी मात्रा में यहां की चाय इन देशों को निर्यात की जाती है.

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कौसानी के आसपास भी घूमने वाली जगहें हैं. इन में कोट ब्रह्मारी 21 किलोमीटर दूर है. अगस्त माह में यहां मेला लगता है. 42 किलोमीटर दूर बागेश्वर में जनवरी माह में उत्तरायणी मेला लगता है. यहां से कुछ दूरी पर ही नीलेश्वर और भीलेश्वर की पहाडि़यां हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं.

Summer Special: पार्टी में लुक में चार चांद लगा देंगी ये ज्वैलरी

भारत में आभूषण को स्त्री से जोड़ा गया है. कहते हैं आभूषण के बिना स्त्री अधूरी है. फिर चाहें किसी भी आभूषणों को लेकर बात कर लें. वैसे भी गहनों का शौक हर महिला को होता है. बात अगर शादी पार्टी की करें तो पार्टी में एक दूसरे से खूबसूरत दिखना हर कोई चाहता है. गर्मियों में किस तरह के आभूषण आप पर फबेंगे इसका बहुत ध्यान रखना होता है. गर्मियों में महिलाएं हल्के गहनों को ज्यादा प्रिफर करती हैं. चलिए जानते हैं आप को किस तरह के गहने शूट करेंगे.

1. झुमकी

ज्यादातर स्त्रियों की पसंद झुमकी मानी जाती है. लहंगे और साड़ी में झुमकी बहुत अच्छा लुक देती है. इस ड्रेस में झुमकी न केवल संस्कृति बल्कि परंपरा का भी प्रतीक मानी जाती है. गर्मियों में आप साड़ी और सूट के साथ इस आभूषण को पहन सकती हैं. आप पर बहुत सुंदर लगेगा. 300 ₹ से 1000 ₹.

 

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2. गोल्ड या डायमंड

 

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बॉलीवुड अभिनेत्रियो का लुक इन दिनों काफी ट्रेंड में है. अगर आप भी किसी सेलिब्रिटी को कॉपी कर रहे हैं तो उनके पहनावे और जूलरी को जरूर देंखे. ज्यादातर गोल्ड डायमंड जूलरी महिलाएं पहनना पसंद करती हैं. आप भी उन्हीं के लुक को अपने आप उतारें जिससे आप बेहद क्यूटऔर अट्रैक्टिव दिखें. वैसे तो बाजारों में बहुत से आर्टिफिशियल गहने मौजूद हैं, लेकिन आप उन्हें ही पहने जो आपको सूट करे. वैसे भी 500₹-2500₹ तक आर्टिफिशियल सेट आसानी से बाजार में उपलब्ध है.

3. कुंदन मीना हार सेट

 

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कुंदन की साड़ी और सेट पुराने जमाने की हिरोइन पहले पहना करती थी. वही ट्रेंड फिर से वापस आ गया है. कुंदन की साड़ी में हार और बेहतरीन लुक आपको संजीदा और सबसे अलग बनाता है. तो गर्मियों में पार्टी में आप इस लुक को आजमा सकती हैं. 1000₹-5000₹

4. पोल्की चोकर हार

 

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पारंपरिक परिधानों और गहनों में एक मानी जाने वाली पोल्की चोकर हार आपकी संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करता है. अपने ठाट और देशी पहनावे को पार्टी और शादी में जरूर पहन सकते हैं, यह आपको सबसे अलग बनाएगा. पंद्रह सौ के आसपास के चोकर हार ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध है.

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5. मल्टी रिंग

 

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इस बार ट्रेंड में मल्टी रिंग फिंगर का चलन है. युवा इस जूलरी को बेहद पसंद कर रहे हैं. मल्टी रिंग आपके हर आउटफिट्स पर फिट बैठते हैं. इसकी अगर समर सीजन में कहीं पर आपको सबसे अलग दिखना है तो मल्टी रिंग को पहन सकते हैं. फैशन के साथ यह आपके हाथों की शोभा भी बढ़ाएगी. मल्टी रिंग को आप बनवा भी सकते हैं और बाजार से इसे आसानी से परचेज भी कर सकते हैं.  बशर्ते आपकी पसंद सबसे यूनिक हो. 200 से लेकर 1500 तक की रेंज में आपको एक अच्छी मल्टी कलर रिंग, ऑनलाइन आसानी से मिल जाएगी.

ज्वैलरी किसी भी महिला के सजावट को पूरा करती है. किस सीजन में कौन से गहने आपको पहनने चाहिए इसका भी विशेषतौर पर ध्यान देना जरूरी होता है. ऐसा नहीं है कि आप कभी भी कुछ भी पहनकर चले जाएं. बाकायदे आप भई अपने आपको निखारना चाहते हैं, और इसके लिए जरूरी है कि आप फैशन और मेकअप को लेकर थोड़ा अपडेट रहें. नहीं तो जिस वेडिंग पार्टी में आप जा रहे हो शायद वहां के लिए आपकावह लुक बेहद पुराना और कमजोर साबित हों. अगर आपको सबसे अलग औऱ अच्छा दिखना है तो इसके लिए जरूरी है कि आप भी सीजन के मुताबिक अपने आपको संवारे और बेहतर लुक के लिए अपडेट रहें.

बीमारियों को दूर रखने के लिए करें मल्टीग्रेन आटे का इस्तेमाल

मल्टीग्रेन आटे का इस्तेमाल करने के लिए आमतौर पर भारतीय घरों में रोटी बनाने के लिए गेहूं, बाजरा, मक्का और ज्वार जैसे अनाज का इस्तेमाल करते हैं. गेहूं में अगर दूसरे अनाज को मिला कर आटा पिसवाया जाए तो ऐसे आटे से बनी रोटी की पौष्टिकता बढ़ जाती है. आज हम आपको मल्टीग्रेन आटे से बनी रोटी कईं तरह की बीमारियों को दूर करने में फायदेमंद होती है.

विभिन्न रोगों में मल्टीग्रेन आटे का उपयोग

डायबिटीज के लिए फायदेमंद है मल्टीग्रेन आटा

मधुमेह के रोगी 5 किलोग्राम गेहूं के आटे में डेढ़ किलोग्राम चना, 500 ग्राम जौ और 50 ग्राम मेथीदाना मिला कर पिसवाएं. मेथी ब्लडशुगर को नियंत्रित करती है. 5 किलोग्राम गेहूं के आटे में प्रोटीन के मुख्य स्रोत 500 ग्राम सोयाबीन, 1 किलोग्राम चना और 500 ग्राम जौ मिला कर पिसवाए गए आटे की रोटी खाने से बढ़ती उम्र के बच्चों को लाभ होता है.

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प्रैग्नेंट महिलाएं ऐसे करें मल्टीग्रेन आटे का इस्तेमाल

गर्भवती महिलाओं को गेहूं के आटे में सोया, पालक, मेथी, बथुआ और लौकी जैसी हरी सब्जियों और थोड़ी सी अजवाइन का मिला कर उस का प्रयोग करना चाहिए. मेनोपौज की प्रक्रिया से गुजर चुकी महिलाओं के शरीर में हारमोन परिवर्तित हो जाते हैं. ऐसे में अधिकतर महिलाओं को हाई ब्लडप्रैशर, हाई कोलैस्ट्रौल और डायबिटीज जैसी बीमारियां घेर लेती हैं. ऐसी स्थिति में 10 किलोग्राम आटे में 5 किलोग्राम गेहूं, 1 किलोग्राम सोयाबीन, डेढ़ किलोग्राम चना और 1 किलोग्राम जौ मिला कर उस आटा का प्रयोग करें. मोटापे के शिकार लोगों को गेहूं के आटे के बजाय केवल चना, ज्वार, बाजरा जैसे विभिन्न अनाज से बनी रोटी का प्रयोग करना चाहिए.

दुबलेपन के लिए मल्टीग्रेन आटे का इस्तेमाल

दुबलेपन के शिकार और कब्ज के रोगी 5 किलोग्राम गेहूं में 1 किलोग्राम चना और 1 किलोग्राम जौ डाल कर आटा पिसवाएं. फिर इस में विभिन्न हरी सब्जियां डाल कर प्रयोग करें. इन लोगों को फाइबर्स की आवश्यकता रहती है, जिन की पूर्ति चना, जौ और हरी सब्जियां कर देती हैं.

बीपी पेशेंट के लोगों के लिए मल्टीग्रेन आटे ता इस्तेमाल

ब्लडप्रैशर के रोगियों को 5 किलोग्राम गेहूं के आटे में 500 ग्राम सोयाबीन, 1 किलोग्राम चना और 250 ग्राम अलसी मिला कर उसे प्रयोग करना चाहिए. आटा हमेशा मोटा पिसवाएं और बिना छाने चोकरयुक्त ही प्रयोग करें. इस से आप के पाचनतंत्र को भोजन पचाने के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि चोकर में निहित फाइबर्स रोटी को सुपाच्य बना देते हैं. रोटी हमेशा बिना घी लगाए ही खाएं, क्योंकि घी लगी रोटी गरिष्ठ और अधिक कैलोरीयुक्त हो जाती है, जो शीघ्र पचती नहीं है.

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कैसे तैयार करें मल्टीग्रेन आटा तैयार

मल्टीग्रेन आटा तैयार करने के लिए गेहूं और दूसरे अनाज का अनुपात 3-2 का रखें. मसलन, अगर आप को 5 किलोग्राम आटा तैयार करना है तो गेहूं की मात्रा 3 किलोग्राम और सोयाबीन, मक्का, जौ, चना आदि अनाज की मात्रा 500-500 ग्राम रखें. अगर आप बाजार का पैक्ड आटा प्रयोग करती हैं, तो इसी अनुपात में गेहूं के आटे में अन्य अनाज का आटा मिला कर प्रयोग करें.

लव मैरिज हो अरेंज, आसान नहीं है शादी निभाना

मध्य प्रदेश के विष्णुपुरी इलाके के शिवम अपार्टमैंट में रहने वाली 32 वर्षीया आकांक्षा के दिलोदिमाग में एक सवाल रहरह कर बेचैन किए जा रहा था कि आखिर उपेंद्र से शादी कर उसे क्या मिला? तन्हाई, रुसवाइयां और अकेलापन? क्या इसी दिन के लिए मैं सईदा से आकांक्षा बनी थी? अपना वजूद, अपनी पहचान सबकुछ तो मैं ने उपेंद्र के प्यार पर न्योछावर कर दिया था और वह है कि अब फोन पर बात तक करना गंवारा नहीं कर रहा. क्या मैं ने उपेंद्र से प्रेम विवाह कर गलती की थी? उस के लिए धर्म तो धर्म, परिवार, नातेरिश्तेदार सब छोड़ दिए और वह बेरुखी दिखाता सैकड़ों किलोमीटर दूर बालाघाट में अपनी बीवी के साथ बैठा सुकून भरी जिंदगी जी रहा है. क्या मैं उस के लिए महज जिस्म भर थी?

पर उपेंद्र ने आकांक्षा को जिंदा रहने के लिए एक मकसद दिया था और वह मकसद पास ही बैठा 11 साल का बेटा वेदांत था. वेदांत काफी कुछ समझने लगा था. मम्मी और पापा के बीच फोन पर हुई बातचीत से वह इतना जरूर समझ गया था कि मम्मी अभी गुस्से में हैं इसलिए भूख लगने के बावजूद वह यह कह नहीं पा रहा था कि मुझे भूख लगी है, खाना दे दो. लेकिन जब भूख बढ़ गई तो उस से रहा नहीं गया और काफी इंतजार के बाद उसे कहना पड़ा कि मम्मी, भूख लगी है.

बेटे की इस बात पर मां की ममता थोड़ी जागी और आकांक्षा ने फोन पर खाना और्डर कर वेदांत को छाती से भींच लिया तो हलकी सी उम्मीद वेदांत को बंधी कि अब सबकुछ ठीक हो जाएगा. थोड़ी देर बाद खाना आ गया. खाने के बाद आकांक्षा फिर विचारों के भंवर में फंस गई और सोचतेसोचते उस ने एक सख्त फैसला ले लिया.

आकांक्षा के जेहन में फिर उपेंद्र आ गया था-हट्टाकट्टा स्मार्ट पुलिस वाला जो खुशमिजाज भी था और रोमांटिक भी. उस के व्यक्तित्व पर सईदा ऐसी मरमिटी थी कि दोनों प्यार के बाद शादी के अटूट बंधन में बंध गए. उपेंद्र ने भी अपनी पहली पत्नी की परवा नहीं की और सईदा को पत्नी का दरजा दिया लेकिन चूंकि परिवार और समाज के लिहाज के चलते उसे साथ नहीं रख सकता था इसीलिए अलग इंदौर में रहने की व्यवस्था कर दी थी और हर महीने पर्याप्त पैसे भी भेजा करता था.

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दर्दनाक अंत

शुरूशुरू में तो वक्त आरजू और इंतजार में कट गया लेकिन धीरेधीरे उपेंद्र का इंदौर आनाजाना कम होता गया. आकांक्षा जब भी इस बाबत शिकायत करती तो उस का रटारटाया जवाब होता था कि तुम तो सब जानती हो और यह बात शादी के पहले ही मैं ने तुम्हें बता दी थी. इसलिए आकांक्षा ज्यादा सवाल नहीं कर पाती थी. लेकिन अब आकांक्षा के लिए समय काटना मुश्किल हो रहा था. लिहाजा, रोजरोज फोन पर कलह होने लगी. एक दफा तो बात इतनी बढ़ गई कि उस ने गुस्से मेें गले में फांसी का फंदा मासूम वेदांत के सामने ही डाल लिया था. तब से वेदांत मां से खौफ खाने लगा था.

वेदांत अपने कमरे में जा कर सो गया.  रात डेढ़ बजे के लगभग खटपट की आवाज सुन कर वेदांत की नींद खुली तो वह उठ कर आकांक्षा के कमरे की तरफ आया. वहां का नजारा देख वह सन्न रह गया. आकांक्षा कुरसी पर चढ़ी पंखे से दुपट्टा बांध रही थी यानी अपने लिए फांसी का फंदा तैयार कर रही थी. बेटे को आते देख उस के चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं आए, न ही ममता जागी और वह मशीन की तरह फंदा कसती रही. वेदांत की जान हलक में आ रही थी फिर भी वह हिम्मत जुटा कर बोला, ‘मम्मी प्लीज फांसी मत लगाओ.’

यह नजारा कलात्मक फिल्मों के दृश्यों को भी मात करता हुआ था. आकांक्षा ने बेहद सर्द आवाज में जवाब दिया, ‘तू भी आ जा बेटा, दोनों साथ फांसी लगा लेते हैं.’ वेदांत आकांक्षा की तरफ दौड़ा लेकिन उस के पहुंचने से पहले ही आकांक्षा ने कुरसी पैरों से खिसका दी. मां को फांसी पर झूलता देख वह बाहर गया और सिक्योरिटी गार्ड को आवाज दी. थोड़ी देर ही में शिवम अपार्टमैंट में हलचल मच गई.

आकांक्षा उर्फ सईदा मर चुकी थी. पुलिस आई. फंदा काट कर आकांक्षा का शव नीचे उतारा और कागजी कार्यवाही पूरी की. यह घटना 2 जुलाई की रात की है. जिस ने भी सुना या देखा उस के रोंगटे खड़े हो गए.

प्यार और अव्यावहारिकता

इस तरह एक ऐसी कहानी खत्म हुई जिस में मां की आत्महत्या के अपराध की सजा बेटा अब जिंदगीभर भुगतेगा. कहने या सोचने की कोई वजह नहीं कि  2 जुलाई, 2014 की रात का खौफनाक दिल दहला देने वाला दृश्य देखने के बाद वेदांत सामान्य जीवन जी पाएगा. कम पढ़ीलिखी आकांक्षा जैसी युवतियां दरअसल दूसरी जाति या धर्म में शादी तो कर लेती हैं पर उस के माहौल और रंगढंग में खुद को ढाल नहीं पातीं तो सारा दोष दूसरे तरीकों से पति के सिर मढ़ने की और साबित करने की गलती गुनाह की शक्ल में कर बैठती हैं.

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परिवार और समाज के स्वीकारने, न स्वीकारने की परवा इन दोनों ने भी नहीं की थी पर आकांक्षा हकीकत का सामना ज्यादा वक्त तक नहीं कर पाई. जिंदगी के प्रति उस का नजरिया नितांत अव्यावहारिक और अतार्किक था जो उस की मौत की वजह भी बना पर इस से किसी को कुछ हासिल नहीं हुआ. उपेंद्र जिंदगीभर खुद को कोसता रहेगा और वेदांत पर क्या गुजरेगी इस की कल्पना भर की जा सकती है. आजकल हिम्मत और बगावत कर प्रेम विवाह करना पहले के मुकाबले आसान हो गया है पर निभाना कठिन होता जा रहा है जिस की वजह पुरुष कम और महिलाएं ज्यादा शर्तें थोपती हैं.

देखा जाए तो आकांक्षा और उपेंद्र के बीच कोई खास समस्या नहीं थी. परंपरागत ढंग से और रीतिरिवाजों से शादी करने वाली महिलाओं को भी पति से वक्त न देने की शिकायत रहती है पर वे खुदकुशी नहीं कर लेतीं, हालात के प्रति व्यावहारिक नजरिया रखते हुए समस्या का हल ढूंढ़ लेती हैं और जब बच्चे हो जाते हैं तो उन की परवरिश और कैरियर बनाने में व्यस्त हो जाती हैं या फिर खुद को व्यस्त रखने के लिए दूसरे तरीके खोज लेती हैं. मसलन, पार्ट टाइम जौब या अपने शौक पूरे करना आदि. और जब वे ऐसा नहीं करतीं या कर पातीं तो खासी परेशानियां पति और बच्चों के लिए खड़ी करने लगती हैं. इसे स्त्रियोचित जिद और नादानी ही कहा जा सकता है. पति की नौकरी या व्यवसाय और उस की व्यस्तताओं व परेशानियों से वास्ता रखना तो दूर की बात है उलटे जब पत्नियां इस पर कलह करने लगती हैं तो बात बिगड़ना तय होता है.

गैरजातीय प्रेम विवाह

दूसरी जाति और धर्म में शादी करने वाली महिलाओं को तो और संभल कर व समझौते कर रहना जरूरी होता है. परिवार और समाज किसी भी विद्रोह को अब शर्तों पर स्वीकारते हैं. जब प्यार होता है तो प्रेमियों की हिम्मत और दुसाहस देखते बनता है पर शादी के बाद उन के रंगढंग बदलने लगते हैं. वजहें बाहरी कम अंदरूनी ज्यादा होती हैं. एक स्त्री अपने प्रेमी से वादा करती है कि शादी कर लो, मैं सबकुछ बरदाश्त कर लूंगी, धर्म के कोई खास माने नहीं, तुम्हारे मुताबिक चलूंगी, अलग रह लूंगी और कोई शिकवाशिकायत नहीं करूंगी. शादी के बाद ये सारी बातें हवा हो जाती हैं. आकांक्षा इस की ताजा मिसाल है. वह पति की हदें और मजबूरियां भूल गई थी. लिहाजा, उस ने खुद को सही साबित करने के लिए पति के कान खाने शुरू कर दिए. इस पर भी बात नहीं बनी तो खुदकुशी कर ली.

यह टकराव और शिकायतें समस्या का हल नहीं थे जो अकसर खुद पत्नियां पैदा करती हैं. समझदार पत्नी वास्तविकता को स्वीकारती है और हर हाल में सुख से रहती है. वह जानतीसमझती है कि बेवजह की कलह और टकराव से सिवा अलगाव और तलाक के कुछ हासिल नहीं होने वाला क्योंकि पति के बरदाश्त करने की भी हदें होती हैं जो जिंदगी में कई मोरचों पर लड़ रहा होता है. मैं ने उन के लिए धर्म या जाति छोड़ कर अहसान किया है यह मानसिकता ही सारे फसाद की जड़ है जो ममता और दूसरी जिम्मेदारियों पर भी भारी पड़ती है.

इस का इकलौता हल है बेवजह शिकायतों का पिटारा खोले न बैठे रहना, शिकवे और तानों से दूर रहना और यह याद रखना कि पति ने भी काफी कुछ छोड़ा है, त्यागा है. इस के बाद भी वह खयाल रखता है, खर्च देता है और वक्त मिलने पर आताजाता है  कई नामीगिरामी व्यक्तियों ने दूसरे धर्मों में शादी की है और 2-2 भी की हैं लेकिन यह पत्नियों की समझदारी है कि वे पति को कोसती नहीं रहतीं और खुदकुशी कर पति व बच्चों को बिलखता नहीं छोड़ जातीं बल्कि अपने फैसले को सही साबित कर के दांपत्य में अपनी तरफ से खलल नहीं डालतीं. वक्त रहते लोग इस तरह की शादियों को मान्यता भी देते हैं और स्वीकार भी कर लेते हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए पत्नियों को लंबे इम्तिहान से गुजरते खुद को समझदार और व्यावहारिक साबित करना पड़ता है नहीं तो खुद वे ही अपने फैसले को गलत साबित करती हैं जिस का खमियाजा पति और बच्चों को भुगतना पड़ता है.

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सवाल-

मेरी उम्र 42 साल है. कई बार मेरा रक्तचाप अत्यधिक बढ़ जाता है. क्या इसे नियंत्रित रखने के कुछ घरेलू उपाय हैं?

जवाब-

उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने वाली चीजें आप की किचन में ही उपलब्ध हैं. घरेलू उपायों से रक्तचाप को नियंत्रित करना न केवल सस्ता और आसान होता है, बल्कि इन से किसी प्रकार के साइड इफैक्ट्स होने की भी आशंका नहीं होती है. नीबू रक्त नलिकाओं को मुलायम रखता तो तरबूज के बीज इन्हें चौड़ा बनाए रखते हैं. लहसुन नाइट्रिक औक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड के निर्माण को स्टिम्यूलेट कर के रक्त नलिकाओं को रिलैक्स रखता है. केला पोटैशियम का अच्छा स्रोत है, जो सोडियम के प्रभाव को कम करता है. इस प्रकार यह रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायता करता है. नारियल पानी पोटैशियम, मैग्नीशियम और विटामिन सी का अच्छा स्रोत है. ये सिस्टोलिक दाब को कम करने में सहायता करते हैं.

सवाल-

मेरी उम्र 52 वर्षीय एक घरेलू महिला हूं. मेरा रक्तदाब अकसर सामान्य से थोड़ा कम रहता है. आगे चल कर मेरे लिए बीमारियों का खतरा तो नहीं बढ़ जाएगा?

जवाब-

रक्तदाब सामान्य से थोड़ा कम रहना कई प्रकार से हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी है. अगर रक्त का दाब लगातार सामान्य से थोड़ा कम बना रहता है तो स्ट्रोक और हार्ट अटैक की आशंका कम हो जाती है. स्वस्थ लोगों में अगर निम्न रक्तदाब बिना किसी लक्षण के है तो चिंता की कोई बात नहीं है और इस का उपचार करने की जरूरत भी नहीं है. वैसे कई लोगों का ब्लड प्रैशर आनुवंशिक रूप से ही कम होता है.

सवाल-

मेरे परिवार में हृदय रोगों का पारिवारिक इतिहास रहा है. मुझे उच्च रक्तदाब की शिकायत है, ऐसे में मेरे लिए हृदय रोगों का खतरा कितना बढ़ जाता है?

जवाब-

हृदय रोगों का पारिवारिक इतिहास होने पर वैसे ही आप के लिए सामान्य लोगों से खतरा अधिक है. उच्च रक्तदाब हृदय रोगों का सब से बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है. इसलिए आप के लिए स्थिति और गंभीर है. आप अपने रक्तदाब को नियंत्रित रखने के साथ रक्त में शुगर और कोलैस्ट्रौल के स्तर को भी स्वस्थ सीमा से अधिक न बढ़ने दें. अत्यधिक मानसिक तनाव से भी बचें.

सवाल-

मेरे बेटे की उम्र केवल 13 साल है. उसे उच्च रक्तदाब की शिकायत है. मुझे उस के भविष्य को ले कर बहुत चिंता होती है. बताएं क्या करूं?

जवाब-

खराब जीवनशैली, खानपान की अस्वस्थ आदतें, शारीरिक सक्रियता की कमी और बढ़ता मोटापा बच्चों में उच्च रक्तदाब का कारण बन रहा है. आप अपने बच्चे की जीवनशैली में बदलाव लाएं. अगर उस का वजन अधिक है तो उसे सामान्य स्तर तक लाएं. उसे जंक फूड न खाने दें. घर का बना संतुलित और पोषक भोजन खिलाएं और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करने या आउटडोर गेम्स खेलने के लिए प्रेरित करें. अगर किसी और स्वास्थ्य समस्या के कारण उच्च रक्तदाब की समस्या हो रही हो तो उस के प्रबंधन से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है. बचपन में ही रक्तदाब को नियंत्रित करना जरूरी है वरना उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या गंभीर हो कर हृदय रोगों, डायबिटीज, ब्रेन स्ट्रोक और गुरदों से संबंधित बीमारियों का कारण बन सकती है.

 

Serial Story: महानगर की एक रात

Serial Story: महानगर की एक रात- भाग 2

लेखिका- दिव्या विजय

तभी अचानक एक बाइक हौर्न देते हुए कार की बगल से गुजर गई. वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही बाइक पलट कर वापस आई. टैक्सी के पास आ कर धीमी हुई और फिर बाइक सवार फिकरा कस कर तेजी से आगे बढ़ गए. ड्राइवर ने एक क्षण उसे देखा और कांच चढ़ा दिया.

‘‘मैडम, अभी देखा न आप ने?’’ ड्राइवर ने सफाई देते हुए कहा.

अनन्या ने कुछ नहीं कहा पर अंदर से वह डर गई थी. अभी यहां उतरना किसी भी तरह सुरक्षित नहीं है. उस ने अपना पर्स टटोला. एक नेलकटर जिस में छोटा सा चाकू भी था उसे नजर आया. उस ने चाकू को बाहर निकाल कर नेलकटर अपनी हथेली में भींच लिया.

आमनासामना करने की नौबत आ गई तो इस चाकू की बदौलत कुछ मिनट तो मिलेंगे उसे संभलने को. कोई हथियार छोटा या बड़ा नहीं होता. असल बात है कि जरूरत के वक्त कितनी अक्लमंदी से उस का इस्तेमाल होता है. वह खुद को हिम्मत बंधा रही थी.

अचानक टैक्सी की रफ्तार कम हुई, तो अनन्या के मन में हजारों डर तैर गए कि क्या हुआ अगर इस के यारदोस्त अंधेरे से निकल

कर गाड़ी में आ बैठे या उसी को दबोच कर

कहीं ले गए? कहीं बाइक सवार भी तो मिले

हुए नहीं? अखबार में रोज छपने वाली खबरें

उसे 1-1 कर याद आने लगीं. किसी में टैक्सी वाला सुनसान रास्ते पर ले गया तो किसी में चलती गाड़ी में ही…

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उस का अकेले आना ही गलती थी. नहीं आना चाहिए था उसे अकेले. उस के पढ़लिख जाने से लोगों की सोच तो नहीं बदल सकती. लोग जिस सोच के गुलाम हैं उस का खमियाजा आज तक औरतों को ही भुगतना पड़ रहा है. उस ने अपने पर्स में रखा पैपर स्प्रे टटोला. पिछले साल और्डर किया था. तब से हमेशा साथ रखती है पर इस्तेमाल करने की नौबत अभी तक नहीं आई थी लेकिन आज जरा भी कुछ अजीब लगा तो वह इस के इस्तेमाल से हिचकेगी नहीं. सोचते हुए वह एक हाथ में पैपर स्प्रे दूसरे हाथ में नेलकटर थामे रही. उस ने तय किया अगली बार अकेले सफर करते हुए एक बड़ा चाकू साथ रखेगी. टैक्सी अब और धीरे चल रही थी.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने अपने डर पर काबू रख पूछा. उस की आवाज में न चाहते हुए भी अतिरिक्त सतर्कता थी.

‘‘कुछ नहीं मैडम. आगे मोड़ है. यह मोड़ ऐक्सीडैंट के लिए बहुत बदनाम है. एक बार मेरा भी ऐक्सीडैंट होतेहोते बचा था. तब से मैं यहां बहुत सावधान रहता हूं.’’

तभी ड्राइवर के फोन की घंटी घनघना उठी.

वह बोला, ‘‘म आउदै छु. 1 घंटा मां.’’

अनन्या अब कुछ और चौकन्नी हो उठी.

उधर से कुछ कहा गया, जिस के जवाब में ड्राइवर ने कहा, ‘‘म देख्छु. ठीक छ,’’ और फोन काट दिया.

कार में अचानक शांति छा गई थी.

‘‘नेपाल से हो?’’ अनन्या ने डर से नजात पाने को पूछ लिया.

‘‘नहीं, मैं नेपाल से नहीं हूं. मेरी पत्नी है वहां की. उसी के साथ थोड़ीबहुत नेपाली बोल लेता हूं. उसे अच्छा लगता है,’’ अंतिम वाक्य बोलते समय ड्राइवर की आवाज में कामना की परछाई उतर आई या फिर अनन्या को ऐसा महसूस हुआ.

‘‘उसे तेज बुखार है. बिटिया अलग भूख से रोए जा रही है. बस यही पूछ रही थी कि कितना समय लगेगा.

‘‘वैसे मेरा घर पास ही है, 2 गलियां छोड़ कर. आप कहें तो भाग कर ब्रैड का पैकेट पकड़ा आऊं. घर में कोई और है नहीं. बच्ची को छोड़ कर पत्नी कहीं जा नहीं सकती,’’ पूछते हुए वह झिझक रहा था.

‘नया पैतरा… कहीं इसीलिए तो यह इस रास्ते से नहीं आया… किसी बहाने गाड़ी रोको और…’ वह सोचने लगी. बोली कुछ नहीं. ड्राइवर ने भी दोबारा नहीं पूछा. वह गाड़ी चलाता रहा. लेकिन अब उस की गति बढ़ गई थी. वह चाहती थी कि कार की गति कम हो जाए पर वह अब उस से कोई संवाद नहीं करना चाहती थी. सीधे होटल पहुंचा दे सहीसलामत. उस ने मोबाइल में डायल स्क्रीन पर 100 टाइप किया. अब जरूरत होने पर सिर्फ डायल करना होगा.

तभी अचानक गाड़ी एक तेज झटके के साथ रुक गई. अनन्या का सिर किसी नुकीली

चीज से टकराया. दरवाजे के हैंडल से या पता नहीं किस चीज से… हाथ में कस कर थामी गई चीजें गाड़ी के किस कोने में गिरीं पता नहीं. उस ने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया पर दर्द था कि उस पर हावी हुए जा रहा था. उस ने किसी तरह नजरें उठा कर देखा, रास्ता पूरी तरह सुनसान था. ड्राइवर बैल्ट हटा रहा था. उसे चोट नहीं लगी थी.

अब कहीं… उसे पुलिस को फोन करना ही होगा. मोबाइल उठाने के लिए उस ने अपना हाथ बढ़ाया तो देखा उस के दोनों हाथ खून से सन गए हैं. खून उस के सिर से होते हुए हाथों पर बह आया था. अब क्या होगा इस बात का डर बहते हुए खून के साथ मिल गया था.

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तभी ड्राइवर की आवाज आई, ‘‘मैडम, गाड़ी की रफ्तार तेज थी और अचानक गाय सामने आ गई… आप को तो पता है यहां जानवर किस तरह खुले घूमते हैं. ब्रेक लगाने पड़े. आप को चोट तो नहीं आई?’’

वह शायद उस के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था पर दर्द, डर, गुस्से से उस का शरीर पस्त हो चला था. वह चाहते हुए भी कुछ नहीं बोल पाई.

ड्राइवर दरवाजा खोल पीछे आया. उस की हालत देख कर उस ने कुछ कहा तो अनन्या समझ नहीं पाई. वह पानी की बोतल लाया और उस के मुंह से लगा दी. कुछ पानी पीया गया, कुछ बाहर गिर कर उस के कपड़ों को भिगो गया. अब न उस के पास चाकू था, न पैपर स्प्रै, न मोबाइल, न ताकत. वह पूरी तरह से अशक्त पीछे की सीट पर पड़ी थी.

‘‘अरे, आप के सिर से तो खून बह रहा है…  ‘‘मैडम ऐसा करिए, आप थोड़ी देर लेट जाइए,’’ कहते हुए उस ने धीरे से उसे पीछे की सीट पर लिटा दिया.

क्या ऐसा करते हुए उस ने अनन्या की बांहों पर अतिरिक्त दबाव दिया था. सुन्न होते उस के दिमाग का कोई हिस्सा अतिरिक्त रूप से सतर्क हो उठा था. वह लेटना नहीं चाहती थी.

‘‘आप कहें तो आप को अस्पताल ले चलूं या आप के घर से किसी को बुला दूं? मोबाइल दीजिए अपना.’’

उसे इस आदमी के साथ कहीं नहीं जाना था. वह उसे धक्का देना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी पर न उस के हाथपांव काम कर रहे थे न आवाज. उस की चेतना खोने को थी कि उस ने देखा ड्राइवर उस के ऊपर झुक गया है. मोबाइल लेने को या शायद… आगे सब अंधकार में डूबा था.

उस की आंख खुली तो खुद को अस्पताल में बैड पर पाया. तारों के जंजाल से घिरी हुई थी. हाथ में ड्रिप लगी थी. उस ने सिर हिलाया तो उस में दर्द महसूस हुआ. उस ने बिस्तर के पास लगी घंटी बजाई.

नर्स भागते हुए आई. उसे होश में देख कर मुसकराते हुए पूछा, ‘‘हाऊ आर यू नाऊ यंग लेडी?’’

‘‘सिर में थोड़ा दर्द है,’’ अनन्या ने सिर को फिर हलका सा हिला कर देखा.

‘‘हां, वह अभी रहेगा. पेन किलर ड्रिप में डाल दी गई है. यू विल बी फाइन,’’ नर्स ने उस का गाल थपथपाया.

‘‘सिस्टर, कोई चिंता की बात तो नहीं है?’’ वह किसी तरह यही बोल पाई जबकि वह पूछना कुछ और चाहती थी.

‘‘नहींनहीं, चोट लगने के बाद आप बेहोश हो गई थीं, इसलिए सीटी स्कैन हुआ. सब नौर्मल है. डौंट वरी,’’ वह उस की पल्स रेट चैक कर रही थी, ‘‘बाकी बातें डाक्टर से पूछ लीजिएगा. ही विल बी अराइविंग सून. तब तक आप आराम करिए और हां, आप के घर भी इन्फौर्म कर दिया गया है,’’ उस का मोबाइल उसे पकड़ाते हुए नर्स ने कहा, ‘‘आप बात करना चाहें तो कर लीजिए. आप का बाकी सामान यहां रखा है,’’ मेज की तरफ इशारा करते हुए नर्स बोली.

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Serial Story: महानगर की एक रात- भाग 1

लेखिका- दिव्या विजय

अनन्याने अपने कपड़ों की ओर देखा. सिर से पांव तक ढकी हुई थी वह. इन का चयन उस ने जानबूझ कर किया था ताकि वह अपनी ओर से किसी को आमंत्रित देती न लगे. फिर उसे अपनी इस सोच पर क्रोध आया कि दुनिया की कौन सी लड़की इस बात के लिए किसी को आमंत्रण देती होगी.

अनन्या ने कार का शीशा कुछ नीचे कर लिया. इतना भर कि कांच में एक पतली लकीर दिखने लगी. उस पतली लकीर से आती हवा नश्तर की तरह उस का चेहरा चीरने लगी. वह ठंड से कांप उठी.

‘‘मैडम, खिड़की बंद कर दीजिए,’’ टैक्सी ड्राइवर की आवाज आई.

‘‘क्यों?’’ अनन्या अपनी आवाज जबरन कड़क कर बोली.

‘‘मैडम, ठंडी हवा आ रही है.’’

ड्राइवर की बात ठीक थी. लेकिन उस ने यह सोच कर अनसुना कर दिया कि अचानक चिल्लाने की जरूरत पड़ गई तो आवाज बाहर जा सकेगी. वह पतली लकीर डूबते को तिनके का सहारा साबित होगा.

थोड़ी देर बाद अनन्या की नजर बैक व्यू मिरर पर गई. ड्राइवर उसे ही देख रहा था. अनन्या ने अपना स्टोल गरदन में कस कर लपेट लिया. उसे क्यों देख रहा है? उस की आंखें उसे अजीब लगीं. बहुत अजीब. लाल डोरों से अटी हुईं. क्या उस ने शराब पी रखी है? उस ने गहरी सांस ली. भीतर की हवा नशीली थी, लेकिन उस के अपने परफ्यूम में सनी हुई. शराब की गंध का ओरछोर वह नहीं पा सकी थी.

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वह सोच में डूबी थी कि ड्राइवर की आवाज फिर आई, ‘‘मैडम, खिड़की बंद कर लीजिए प्लीज.’’

ड्राइवर ने स्वैटर के नाम पर पतली सी स्वैटशर्ट पहन रखी थी. उस की आवाज में कंपकंपी भर गई थी. खाली सड़क पर 80 की स्पीड से भागती गाड़ी और जनवरी महीने की कड़ाके की ठंड. वह खिड़की बंद करने लगी कि उस की नजर एक बार फिर ड्राइवर पर गई. वह मुसकरा रहा था. हो सकता है यह उस के प्रोफैशन का हिस्सा हो, लेकिन उसे मुसकराते देख अनन्या उखड़ गई. आवाज में तेजी ला कर बोली, ‘‘खिड़की बंद नहीं होगी. मेरा दम घुटता है बंद गाड़ी में.’’

इस के बाद ड्राइवर कुछ नहीं बोला. उस की मुसकराहट भी बुझ गई. अब वह चुपचाप गाड़ी चला रहा था.

‘‘और कितनी दूर है?’’ अनन्या ने पूछा.

ड्राइवर ने सुना नहीं या सुन कर भी चुप रह गया, ये 2 बातें थीं और दोनों का अलगअलग अर्थ था. अनन्या का दिमाग अब अधिक सक्रिय हो चला था. मान लो उस ने सुन ही लिया तो जवाब क्यों नहीं दिया? हो सकता है उस के खिड़की खोलने से गुस्से में हो या वह बताना ही न चाहता हो. न बताने के भी बहुत कारण हो सकते थे जैसे वह वहां जा ही न रहा हो जहां उसे जाना है. यह खयाल उसे परेशान करने के लिए काफी था. उसे मालूम करना होगा कि वह सही रास्ते पर है या नहीं.

अनन्या सड़क को देखते हुए कोई पहचान खोज ही रही थी कि उसे झट से याद आया. फिर अपने ऊपर क्रोध भी आया कि यह विचार उस के मन में पहले क्यों नहीं आया. उस ने मोबाइल निकाला और गूगल मैप में अपना डैस्टिनेशन डाल दिया. उफ, अभी आधे घंटे का रास्ता और बचा है.

तभी उस की नजर सामने मैप पर भागती गाड़ी पर पड़ी. यह क्या? जो रास्ता मैप दिखा रहा है यह उस से क्यों उतर रहा है. मैप में तो 10 मिनट सीधे चलने के बाद बाएं मुड़ना है.

‘‘ऐ सुनो, यह किस रास्ते से ले जा रहे हो?’’

‘‘मैडम, दूसरे रास्ते पर काम चल रहा है,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी.

अनन्या ने मोबाइल की ओर देखा. मैप खुद को रीएडजस्ट कर रहा था, ‘‘गो स्ट्रेट फौर फाइव हंड्रेड मीटर देन टर्न राइट,’’ आवाज गूंजी तो अनन्या हड़बड़ा गई कि ड्राइवर ने सुना तो उसे मालूम हो जाएगा कि वह रास्ते से अनजान है और डरी हुई है. उस ने झट आवाज कम कर दी.

‘‘गूगल मैप चला रखा है मैडम आप ने?’’ ड्राइवर आवाज सुन चुका था.

अनन्या मोबाइल की आवाज कम कर चुपचाप बाहर देखती रही.

‘‘मैडम, इस गूगल से ज्यादा रास्ते हमें याद रहते हैं. अपना शहर है. गूगल तो फिर भी बहुत बार गलत जगह पहुंचा देता है, लेकिन मजाल है जो हम से कभी गलती हो जाए.’’

ड्राइवर बोलता जा रहा था, लेकिन अनन्या को इस बात में बिलकुल

दिलचस्पी नहीं थी. वह जल्द से जल्द होटल पहुंच जाना चाहती थी.  वह कभी बाहर, कभी गूगल मैप पर तो कभी कनखियों से ड्राइवर पर नजर रखे थी.

ड्राइवर ने म्यूजिक की आवाज बढ़ा दी, ‘वक्त है कम और लंबा है सफर, तू रफ्तार बढ़ा दे, मंजिल पर हमें पहुंचा दे…’ पुराने जमाने का गीत बज रहा था.

द्विअर्थी बोल गाड़ी का सन्नाटा तोड़ रहे थे. गाने के अश्लील बोलों ने अनन्या को खिजा दिया. बरसों पहले उस ने यह फिल्म टीवी पर देखी थी. अनिल कपूर और जूही चावला बेतुके गाने पर भद्दे तरीके से थिरक रहे थे. पापा ने अचानक आ कर टीवी बंद कर दिया. वह गुस्से में थे. आज वही गुस्सा उस के चेहरे पर परछाईं बन कर तैर रहा था.

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‘‘म्यूजिक बंद करो,’’ उस के क्रोध को शायद ड्राइवर भांप गया था. इसलिए बिना कुछ कहे गाना बंद कर दिया.

अनन्या ने खिड़की से झांका. मुख्य सड़क को गाड़ी छोड़ चुकी थी. दूसरी कारें जो वहां उसे सुरक्षा देती लग रही थीं, वे भी इस सुनसान सड़क पर मौजूद नहीं थीं. लैंप पोस्ट थे पर या तो उन के बल्ब फ्यूज थे या फिर इस इलाके में बिजली नहीं थी. दूरदूर तक अंधेरा पसरा था. वहां मौजूद घर भी अंधेरे में सिमटे थे. नाइट बल्ब की क्षीण रोशनी की आशा भी किसी मकान से नहीं झांक रही थी.

अनन्या ने सोचा अपनी लोकेशन घर वालों और दोस्तों को भेज दे. लेकिन वे लोग तो दूसरे शहर में हैं. कोई मुसीबत आन पड़ी तो वे लोग भला क्या कर सकेंगे? फिर सोचा कि भेज देती हूं. कम से कम उन्हें मालूम तो होगा कि मैं कहां हूं. फिर उस ने मोबाइल उठाया, लेकिन मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. इस नैटवर्क को भी अभी जाना था या यहां नैटवर्क रहता ही नहीं, सोचते हुए अनन्या की घबराहट और बढ़ गई.

अब उसे सचमुच हवा की जरूरत महसूस हुई. उस ने खिड़की का कांच नीचे खिसकाना चाहा पर शायद ड्राइवर लौक लगा चुका था. कई बार बटन दबाने पर भी कांच नीचे नहीं हुआ. उस ने लौक क्यों किया होगा? उस ने ड्राइवर को देखा. ड्राइवर का एक हाथ गियर पर था और एक स्टीयरिंग संभाले था. उस के बाएं हाथ में स्टील का कड़ा था जो स्वैटशर्ट की आस्तीन से झांक रहा था. वह कोई धुन गुनगुना रहा था.

क्या ड्राइवर को कहना चाहिए कि लौक खोल दे. नहीं, अब वह ड्राइवर से कुछ नहीं कहेगी. जरूरत पड़ने पर सीधे कांच तोड़ देगी. पर किस चीज से?

उस ने कार में इधरउधर नजर घुमाई. कोई चीज दिखाई नहीं दी. सीट की जेब में हाथ डाला. उस में भी कुछ नहीं था. दूसरी सीट की जेब में हाथ डाला तो वहां कुछ था. एक छोटा बौक्स. क्या हो सकता है? क्या टूल बौक्स? सोचते हुए उस ने बौक्स बाहर निकाला. चमड़े का छोटा सा बौक्स.

उस ने ठहर कर ड्राइवर को देखने की कोशिश की. वह उसे देख तो नहीं रहा? नहीं, उस की नजरें सामने थीं. उसे जल्दी इसे खोल कर देख लेना चाहिए. क्या पता कुछ काम का मिल जाए. अत: उस ने मोबाइल की स्क्रीन की रोशनी में धीरे से बौक्स खोला तो देख कर झटका खा गई. उस की नसें झनझना उठीं. अंदर कंडोम के पैकेट थे. यह कितनी असंगत बात थी. पैसेंजर सीट के आगे कंडोम. अपना निजी सामान तो ड्राइवर आगे रखता है. कहीं किसी और सवारी का तो नहीं? हो भी सकता है और नहीं भी. वह फिर होने न होने के दोराहे पर खड़ी थी.

उस का मन हुआ अभी टैक्सी से उतर जाए, लेकिन बाहर का सन्नाटा देख कर वह सिहर उठी. कार की हैडलाइट की रोशनी छोड़ कर अब भी वहां अंधेरा था. दूर कहीं कुत्ते भूंक रहे थे.

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Serial Story: महानगर की एक रात- भाग 3

लेखिका- दिव्या विजय

अनन्या ने गरदन घुमा कर देखा. चाकू, पैपर स्प्रे, पर्स सब रखा था. कुछ भी मिसिंग नहीं था. कल रात की सारी घटना उसे याद आ गई.

‘‘कल टैक्सी वाला आप को यहां छोड़ गया था. जब तक आप के टैस्ट नहीं हो गए यहीं रहा,’’ नर्स ड्रिप की स्पीड एडजस्ट करते हुए कह रही थी.

अनन्या सुन कर चौंकी कि उस के घर पर तो उस की पत्नी और बच्ची भूखी थी.

‘‘रात की ड्यूटी पर मैं ही थी. बेचारा बहुत चिंतित था. खुद को जिम्मेदार मान रहा था,’’ नर्स जैसे उस की पैरवी कर रही थी.

अनन्या चुप थी. क्या कहती? वह शायद भला आदमी था. उस ने बिना वजह उस पर शक किया. माना दुनिया में अपराधी होते हैं पर सभी तो उस श्रेणी में नहीं आते. क्या कल वह एक निरपराध व्यक्ति को अपराधी सिद्ध करने पर तुली हुई थी? कहीं ड्राइवर भांप तो नहीं गया था कि वह उस के बारे में क्या सोच रही है. वह अचानक शर्मिंदगी के एहसास में डूब चली.

नर्स फिर आई और उसे 2 गोलियां खिला आराम करने की ताकीद कर चली गई.

पर अब अनन्या को आराम कहां. कल 1 घंटे में उस ने खुद को ही नहीं शायद ड्राइवर

को भी परेशान कर दिया था. बारबार खिड़की बंद करने का उस का अनुरोध अनन्या को याद आया. उस से गलती तो नहीं हो गई? क्या उसे फोन कर शुक्रिया कह देना चाहिए? लास्ट डायल में उस का नंबर होगा. उस ने फोन उठाया तो वह बंद था.

तभी नर्स भीतर आई तो अनन्या सहसा पूछ उठी, ‘‘सिस्टर, मेरे घर का नंबर कहां से लिया था आप ने? मेरे मोबाइल से?’’

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‘‘नहीं, आप के वालेट में आप के हसबैंड का कार्ड था. वहीं से लिया,’’ कह क्षणभर रुकी. फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘आप का मोबाइल काम नहीं कर रहा था. शायद बैटरी डिस्चार्ज थी.’’

‘‘फोन आप ने किया था या ड्राइवर ने?’’

‘‘ड्राइवर ने ही किया था. फिर आप के पति की बात मुझ से करवाई थी.’’

‘‘ओह, अच्छा.’’

‘‘क्यों, कोई प्रौब्लम है?’’

‘‘नहीं, ऐसे ही पूछा.’’

क्या नर्स से इस बारे में पूछे या खुद देखे कि उस के शरीर पर कोई निशान तो नहीं? पर वह तो बेहोश थी. उस ने कुछ किया भी होगा तो जोरजबरदस्ती का निशान कहां से होगा?

इन्हीं सब चिंताओं में डूबी अनन्या नहीं देख पाई कब सामने उस की मां और सुहास आ कर खड़े हो गए. उसे तब मालूम हुआ जब मां ने उस का सिर सहलाया और सुहास ने प्यार से उस का हाथ थाम लिया. दोनों में से किसी ने नहीं कहा कि देर रात तक बाहर क्यों थी. किसी ने यह भी नहीं पूछा कि अनजान शहर में इतनी रात तक बाहर रहने का औचित्य क्या था. बस आए और प्यार से उसे बांहों में भर लिया.

‘‘अनन्या,’’ सुहास का कहा हुआ एक शब्द उसे सुकून दे गया. कितना प्यार करता है यह लड़का उसे. 4 साल की मुहब्बत के बाद कुछ महीने पहले दोनों ने शादी की है. वह तो शादी करना ही नहीं चाहती थी. उसे लगता था शादी उस के वर्क स्टाइल को सूट नहीं करती. सुहास ने उसे समझाया कि शादी स्कूल के टाइम टेबल जैसी नहीं होती कि हमें उसे फौलो करना ही पड़े. हम शादी के मुताबिक नहीं ढलेंगे, बल्कि शादी को अपने हिसाब से ढालना होगा. और हुआ भी यही. सुहास में कोई बदलाव नहीं आया. उन दोनों की प्राथमिकता उन का काम… एकदूसरे से प्रेम के अलावा कोई उम्मीद नहीं.

मां खिड़की के परदे हटाने गईं तो सुहास ने नजर बचा कर उसे चूम लिया. उस की इस

शरारत पर वह मुसकराए बिना न रह सकी.

‘‘मां, आप बैठिए. मैं पापा को देख कर आता हूं.’’

‘‘पापा भी आए हैं?’’ अनन्या ने महसूस किया कि उस का दर्द अचानक खत्म हो गया है.

‘‘हां, आए हैं. बाहर डाक्टर से बात कर रहे हैं. कल से बहुत चिंतित हैं.’’

‘‘वह तो भला हो टैक्सी ड्राइवर का जिस ने तुम्हें यहां पहुंचा कर हमें फोन कर दिया.’’

ड्राइवर का जिक्र आते ही अनन्या फिर सोच में डूब गई. वह अच्छा आदमी है, सब कह रहे हैं. लेकिन क्या इतना अच्छा आदमी है कि रात के सन्नाटे में किसी लड़की का फायदा न उठाए?

डाक्टर के हिसाब से सब ठीक था. वह सफर कर सकती थी. अनन्या भी अब घर जाना चाहती थी. शाम तक वे सब घर में थे. 3-4 दिनों के आराम के बाद अनन्या ने औफिस जाना शुरू कर दिया. लेकिन जो बात अनन्या के दिमागसे नहीं निकली थी वह यह थी कि उस रात उस के साथ कुछ हुआ या नहीं.

वह बारबार उस रात के वाकेआ को दिमाग में रिवाइंड कर देखती. कहां किस बात का क्या अर्थ निकल रहा है वह पोस्टमार्टम करती.

1-1 बात को कई प्रकार से परखती पर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाती. आईने में हर कोण से अपने शरीर को परख चुकी थी. कोई निशान उसे नहीं मिला था. अजीब मनोस्थिति में जी रही थी. अपने हर अंग को छू कर देख चुकी थी.

वह अकसर ऐप पर जाती और उस ड्राइवर की रेटिंग देखती. पूरे 5 सितारे. उस की तसवीर बड़ी कर देखती. हंसता हुआ उस का चेहरा किसी बलात्कारी का चेहरा नहीं लगता था. वह दुनियाभर के बलात्कारियों को गूगल पर सर्च करने लगी. उन के चेहरों का मिलान आम लोगों से कर के देखती कि क्या वे कहीं से अलग हैं. उन की आदतों पर उस ने लगभग रिसर्च ही कर डाली थी. ड्राइवर का नंबर कई बार निकाल कर देखती, लेकिन कभी मिला नहीं पाई.

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अनन्या ने अपनेआप से कई बार सवाल किया कि क्या यह बात उस के लिए इतने माने रखती है? अगर हां तो क्यों? क्या वह भी शरीर को पवित्रता का परिचायक मानती है? नहीं, वह ऐसा तो नहीं मानती. क्या उस रात वह बलात्कार से डर रही थी या बलात्कार के दौरान हो सकने वाली हिंसा से? यह प्रश्न उस ने जबजब खुद से पूछा उस का जवाब उसे हर बार नैनोसैकंड से भी कम में मिला. बलात्कार से ज्यादा वह हिंसा उसे डराती है. हां, वह अपमान भी जो जबरन उस की इच्छा के विरुद्ध किसी के द्वारा उस की देह से खेलने पर होता है. लेकिन यहां न हिंसा थी, न उस की जानकारी में अपमान हुआ था. फिर वह उस रात को अपनी चेतना से भुला क्यों नहीं पा रही? वह पागल तो नहीं हो गई है?

वह रात इस सीमा तक उस पर हावी हो गई थी कि उस ने रात को औफिस में रुकना बिलकुल बंद कर दिया. कभी इमरजैंसी होती तो पहले ही सुहास को बता देती कि आज रात लेने आना है. सुहास जो उस के आत्मनिर्भर होने पर बहुत प्रसन्न रहता था, इस अचानक आए बदलाव का कारण नहीं जान पाया. हंसते हुए 1-2 बार इस बात को लक्षित भी किया उस ने, ‘‘क्यों मेरी झांसी की रानी, हुआ क्या है तुम्हें? इन दिनों अकेले नहीं आती हो? औफिस में देर तक रुकना भी कम कर दिया है?’’

उत्तर में अनन्या पीले पड़े चेहरे को छिपा कर कह देती, ‘‘क्यों, मेरा घर पर रहना

खटकने लगा है?’’ और फिर दोनों हंस देते.

क्या वह सुहास को बता दे? लेकिन वह खुद कुछ नहीं जानती तो सुहास को क्या बताएगी? नहींनहीं, कुछ नहीं किया होगा ड्राइवर ने. ऐसा करना ही होता तो अस्पताल क्यों ले जाता वह उसे या अपने अपराध को ढकने के लिए तो नहीं ले गया वह उसे अस्पताल? किसी बेहोश स्त्री के साथ… नहींनहीं वह शायद बिना किसी बात के फोबिक हो रही है. अब वह इस बारे में नहीं सोचेगी.

उस ने काम में मन लगने की कोशिश की, लेकिन नियत तारीख पर पीरियड्स नहीं आए तो मन में फिर खलबली मच गई. वह और सुहास तो हमेशा प्रोटैक्शन इस्तेमाल करते हैं… प्रैगनैंसी नहीं हो सकती. प्रैगनैंसी किट ला कर टैस्ट किया तो टैस्ट नैगेटिव रहा. पीरियड्स तो हमेशा नियमित रहे हैं. फिर क्या कारण हो सकता है? कुछ दिन और इंतजार के बाद भी जब पीरियड्स नहीं आए तो उसे डाक्टर के पास चले जाना ही उचित लगा.

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