Mother’s Day Special: विटामिन सी से भरपूर है टेस्टी नींबू की चटनी

नींबू की चटनी बहुत फायदेमंद होती है. इससे पेट और त्वचा की समस्याएं भी दूर होती है. नींबू की चटनी से विटामिन सी मिलता है. आप इसका नियमित रूप से भी सेवन कर सकती हैं. इसके सेवन से आपको ताजगी का एहसास होगा. आइए जानते हैं, नींबू की चटनी की रेसिपी.

हमें चाहिए

– जीरा  (1 चम्मच)

– हींग (आधा चुटकी)

– काला नमक (दो चुटकी)

– नींबू  (चार)

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– नमक (स्वादानुसार)

– लाल मिर्च (आधा चम्मच)

– शक्कर  (आवश्यकतानुसार)

बनाने का तरीका

– नींबू के बीज निकालकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लीजिए.

– अब इन टुकड़ों को मिक्सर के जार में डालें और इसमें सारी सामग्री डालकर पीस लें.

– नींबू की चटनी तैयार है.

– इस चटनी को आप खाने के साथ खा सकती हैं.

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खुद को दें क्वालिटी टाइम

लेखिका-सोनिया राणा

वर्किंग मदर्स की बात करें तो सभी के मन में सब से पहले सुबह से रात तक एक व्यस्त रूटीन में बंधी महिलाएं आती हैं, जो सुबह उठ कर सब से पहले अपने परिवार का नाश्ता तैयार करतीं, फिर पूरे दिन की तैयारी कर खुद काम पर जातीं. जब दफ्तर से वापस आतीं तो परिवार में मातापिता को भी वक्त देतीं और अपने बच्चों के साथ भी क्वालिटी टाइम स्पैंड करतीं.

पहले से ही दिन के 24 घंटों में वर्किंग मदर्स खुद के लिए चंद मिनट भी नहीं निकाल पाती थीं और अब कोविड-19 महामारी ने उन की मुश्किलों को और कई गुणा बढ़ा दिया है. अब महत्त्वाकांक्षी महिलाओं को अपने कैरियर के साथसाथ घर वालों की सेहत के साथ ही घर को भी सुरक्षित बनाए रखने के लिए साफसफाई पर अतिरिक्त समय बिताना पड़ता है.

जो कामकाजी मां पहले दिन में कुछ पल अपने लिए निकालने के लिए जद्दोजहद करती थी उसे अब सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलती. लेकिन आप का यह रूटीन आप के परिवार के लिए भले जरूरी हो, लेकिन आप के लिए भविष्य में मुश्किल पैदा कर सकता है.

एक महिला परिवार की नींव होती है. अब सोचिए हम अपनी नींव पर इतना वजन दे देंगे तो पूरे घर का क्या होगा. इसलिए वर्किंग मदर हो या घरेलू महिला यह मुद्दा अब जोर पकड़ने लगा है कि उन का खुद का खयाल रखना कितना महत्त्वपूर्ण है.

बात फिर चाहे शारीरिक फिटनैस की हो या मानसिक सेहत की, डाक्टर्स भी महिलाओं को खुद की देखभाल करने की सलाह देते हैं.

हैल्दी खाना आप के लिए भी है जरूरी

अकसर महिलाओं की कोशिश रहती है कि परिवार में बड़ी उम्र के लोगों या बढ़ती उम्र के बच्चों के हिसाब से हैल्दी खाना बनाने की. लेकिन जब बात खुद की हो तो ज्यादातर महिलाएं अपने शरीर की जरूरतों पर उतना ध्यान नहीं देतीं.

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डाक्टरों का मानना है कि महिलाओं को हर उम्र में सही पोषण की जरूरत होती है. आयरन और कैल्सियम की जरूरत हर उम्र की महिलाओं के लिए होती है, इसलिए अपने खाने में आयरन और कैल्सियम से युक्त भोजन की जिस में पालक, ब्रोकली, चुकंदर, स्प्राउट्स, दूध, पनीर, टोफू जैसी चीजें शामिल हों.

मी-टाइम है जरूरी

सब से जरूरी है कि आप अपने शैड्यूल में अपने लिए भी वक्त तय करें, जिस में आप अपनी पसंद का काम करें. आप चाहे उस वक्त को ग्रूमिंग के लिए इस्तेमाल करें या फिर अगर आप को किताबें, मैगजीन पढ़ने या फिर संगीत सुनना पसंद करती हों अथवा चित्रकला की शौकीन हों, तो उस वक्त को अपने मूड के हिसाब से इस्तेमाल करें.

अगर मन सिर्फ आराम करने का हो तो भी उस में कुछ गलत नहीं है. इस से आप को दिन बोझिल नहीं लगेगा और आप का मानसिक तनाव कम होगा.

व्यायाम है जरूरी

जैसे बच्चों के विकास के लिए शारीरिक ऐक्टिविटीज को ले कर आप परेशान होती हैं ऐसे ही आप को अपनी सेहत पर फोकस करने की भी जरूरत होती है. जरूरी है कि हर उम्र की महिलाएं अपनी सेहत के हिसाब से दिन में करीब 30 मिनट ऐक्सरसइज के लिए जरूर निकालें. जरूरी नहीं कि आप जिम में जा कर ही पसीना बहाएं. इस महामारी के वक्त अहम यह है कि आप सुरक्षित वातावरण में दिन में भले 10 मिनट वाक करें.

इस से आप को पूरा दिन काम करने की ऊर्जा मिलेगी साथ ही थकान भी मिटेगी. जरूर नहीं कि सुबह जल्दी उठ कर या शाम में ही ऐक्सरसाइज करें, बल्कि जिस वक्त आप को टाइम मिले उसे व्यायाम के लिए उपयोग करें बस ध्यान रखें कि ऐक्सरसाइज के ठीक पहले आप ने हैवी डाइट न ली हो.

अच्छी नींद लें

खुद की देखभाल में सब से आसान और सब से मुश्किल काम यही है कि आप अपनी नींद पूरी करें. डाक्टरों का मानना है कि दिन में करीब 7-8 घंटे की नींद वयस्क के लिए जरूरी है. ऐसे में अगर आप 7-8 घंटे से कम सोती हैं तो खुद ही बीमारियों को न्योता देने की तैयारी कर रही हैं.

महिलाएं सब का खयाल रखने में इतनी मशगूल रहती हैं कि खुद उन के लिए क्या सही है यह जानते हुए भी उसे नहीं कर पातीं. कभी घर की जिम्मेदारी तो कभी दफ्तर के काम का प्रैशर महिलाएं बिना शिकायत खुद ही उठाती हैं.

अब चूंकि दिन में 24 ही घंटे हैं, जिन में आप को अपना, परिवार का और दफ्तर काम संभालना है तो महिलाएं बाकी सब के टाइम में कटौती किए बिना अपनी नींद के वक्त मेें कटौती कर लेती हैं जोकि शौर्ट टर्म के लिए तो ठीक लगता है, लेकिन रोजाना ऐसा रूटीन आप की सेहत बिगाड़ सकता है.

इस से बचने के लिए जरूरी है कि जैसे आप सुबह अलार्म लगा कर उठने का वक्त तय करती हैं ठीक उसी तरह रात को सोना का वक्त भी फिक्स करें.

मैडिटेशन भी होगा मददगार

तनावभरे दिन के बाद जरूरी है कि मस्तिष्क को कुछ आराम दें. इस में मैडिटेशन आप के लिए मददगार साबित होगा. आप चाहें तो शांत अंधेरे कमरे में बैठ कर दिन में कम से कम 10 मिनट मैडिटेट करें और अगर आप का ध्यान भटक रहा हो तो बहुत सी ऐप्लिकेशन इन दिनों आप को अपने मोबाइल स्टोर में मिल जाएंगी जिन से आप आसानी से अपना ध्यान लगा सकती हैं.

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आत्मग्लानी से बचें, खुद की प्रशंसा करें

महामारी हो या नहीं वर्किंग मदर्स इस आत्मग्लानी में रहती हैं कि वे अपने बच्चों और अपने परिवार का ज्यादा ध्यान रख पातीं, लेकिन उन्हें यह समझना जरूरी है कि वे इंसान हैं और जितना उन से हो सकता है वे कर रही हैं.

खुद की दूसरी मांओं से तुलना न करें. आप को अपने परिवार, अपने बच्चों की जरूरतों की बेहतर समझ है और आप अपनी कूबत से ज्यादा मेहनत और वक्त उन के लिए देती हैं. इसलिए आत्मग्लानी से बाहर आएं और अपने किए काम की प्रशंसा करें.

सावधान! कोरोना का नया रूप, आखिर क्या है म्यूकोर माइकोसिस ?

कोरोना के कहर से पूरा देश मानो मौत के साए में है हर पल….हर जगह अस्पताल बेहाल हैं. कई अस्पतालों का ये हाल है कि वहां पर बेड नहीं मिल रहा है. दवाइयां और ऑक्सीजन के अभाव में कोरोना के मरीज पल-पल दम तोड़ रहे हैं. श्मशान में लाशों की लाइने लग रही हैं. अभी तक जो लोग कोरोना से ठीक हो रहे थें वो खुश थें कि चलो ठीक हो गए लेकिन अब ख़बर है कि शरीर से कोरोना के जाने के बाद भी इंसानों की जान जा रही है क्योंकि एक और बीमारी मरीजों के शरीर में अपनी जगह बना रही है. जिसे कोरोना का नया रूप कह सकते हैं.किसी ने सोचा भी नहीं होगा शायद कि कोरोना का कहर ऐसा होगा कि कोरोना से जंग जीतने के बाद भी इंसान ठीक नहीं होगा और मौत उसे अपने गले लगाने के लिए घात लगा कर बैठी है. कोरोना से ठीक होने के बाद भी मरीज आंख, नाक या जबड़ा गवां बैठ रहा है. यहां तक कि जिंदगी की जंग भी हार जाएगा..लेकिन दिल्ली से लेकर गुजरात तक ऐसे मामले देखने को मिल रहे हैं. अब जाहिर है कि आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये बला क्या है ? कौन सी बीमारी है ? जो कोरोना के जाने के बाद भी लोगों की जान ले लेता है. दरअसल इस बीमारी का नाम है “म्यूकोर माइकोसिस” जो कि बहुत ही खतरनाक साबित हो रहा है इतना ही नहीं कोरोना से ठीक हुए मरीजों की जान तक ले रहा है ये.

आखिर क्या है ये म्यूकोर माइकोसिस ?

दरअसल म्यूकोर माइकोसिस एक तरह का फंगल इन्फेक्शन है इसे ब्लैक फंगल इन्फेक्शन कहते हैं. कोरोना से जो मरीज ठीक हुए हैं उनमें ही ये इंफेक्शन पाया जा रहा है जिसके कारण डॉक्टर्स भी काफी परेशान हैं. अगर कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति की नाक बंद रहती है, आंख या गाल में सूजन है और नाक में काली पपड़ी पड़ रही है तो इसका मतलब है कि आपको म्यूकोर माइकोसिस नाम का इंफेक्शन हो चुका है. फौरन सतर्क हो जाने वाली बात है .सीधा डॉक्टरों से संपर्क करें..क्योंकि इसके चलते आंखों में सूजन, आंखों के चिपकने की समस्या, धुंधला दिखना..और नाक में भी सूजन और तेज दर्द हो जाता है और तकलीफ इस हद तक बढ़ जाती है कि फिर ये मरीज की जान लेकर ही दम लेता है.डॉक्टरों के मुताबिक कुछ मरीजों की आंखों की रोशनी खत्म हो सकती है. नाक और जबड़े की हड्डी भी खत्म हो सकती है. ऐसे में मरीजों के जबड़े, नाक की हड्डियां, आंखें तक निकालनी पड़ जाती हैं. यहां तक कि दिमाग में म्यूकोर माइकोसिस के पहुंचने पर मरीज की मौत भी हो जाती है.

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कोरोना के साइड इफेक्ट, के कारण ये फंगल इंफेक्शन दिमाग तक पर असर करता है. एक खबर के मुताबिक अहमदाबाद सिविल अस्पताल की डॉ. बेला बेन प्रजापति ने इसके लक्षण और इससे होने वाले नुकसान के बारे में बताया.इतना ही नहीं दिल्ली में भी पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई केस सामने आए. गुजरात में भी इस बीमारी की चपेट में कई लोग आ रहे हैं.

2 दिनों में दिल्ली में इस इंफेक्शन से पीड़ित 6 मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. दिसंबर में भी सर गंगाराम हॉस्पिटल सहित कई अस्पतालों में कोरोना से रिकवर हुए मरीजों में म्यूकोर माइकोसिस नाम के फंगल इंफेक्शन के काफी केस देखने को मिले थे. तब इस बीमारी से कुछ मरीजों के आंखों की रोशनी भी चली गई थी और कई मरीजों की नाक और जबड़ा भी निकालना पड़ा था और अब हर स्टेट में ऐसे केस बढ़ते ही जा रहे हैं. खबरों के मुताबिक सूरत में 15 दिन के अंदर ऐसे 40 से अधिक केस सामने आए हैं. जिनमें 8 मरीजों की आंखें निकालनी पड़ी हैं.

अहमदाबाद में अब तक ऐसे 60 से ज्यादा मरीजों की पहचान की गई है. जो म्यूकोर माइकोसिस की चपेट में आ गए हैं. इनमें से 9 लोगों की मौत भी हो चुकी है और तीन की आंखों की रोशनी जा चुकी है..ऐसे 30 से ज्यादा मरीज सिविल अस्पताल में भर्ती हैं. लोगों का ये मानना है कि कोरोना की दूसरी लहर में ये बीमारी ज्यादा सामने आ रही है. डॉक्टरों की मानें तो कोरोना से ठीक होने के बाद मरीज अगर आंख दर्द, सिर दर्द और गाल के सूजन को इग्नोर करता है.तो ये लापरवाही मरीज को भारी पड़ सकती है और उसकी मौत हो सकती है.

डॉक्टर्स का कहना है कि जुकाम वगैरह होने पर जो मरीज घर में ही इलाज शुरू कर रहे हैं वो खतरनाक भी हो सकता है. ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने में ही भलाई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक म्यूकोर माइकोसिस नाम का फंगल इन्फेक्शन कोरोना ठीक होने के बाद पहले साइनस में होता है और 2 से 4 दिन में आंख तक पहुंच जाता है. इसके 24 घंटे के भीतर ये ब्रेन तक पहुंच जाता है.चूंकि साइनस और आंख के बीच हड्डी होती है. इसलिए आंख तक पहुंचने में इसे दो से ज्यादा दिन लगते हैं…आंख से ब्रेन के बीच कोई हड्डी नहीं होने से ये सीधा ब्रेन में पहुंच जाता है और आंख निकालने में देरी होने पर मरीज की मौत हो जाती है. जुकाम होने पर इसका असर कुछ इस तरह होता है कि कुछ समय बाद कफ जम जाता है और फिर नाक के पास गांठ बन जाती है.. इस गांठ का सीधा असर आंखों पर होता है, जिसके बाद आंखें चिपकने लगती हैं और सिर में तेज दर्द होने लगता है.. इसीलिए आंख, गाल में सूजन और नाक में रुकावट या नाक में काली सूखी पपड़ी पड़ने के तुरंत बाद एंटी-फंगल थैरेपी शुरू करा देना चाहिए.एक खबर के मुताबिक ….कोरोना के जो मरीज पहले से किसी न किसी बीमारी का शिकार हैं या फिर कोविड मरीजों के इलाज में अधिक स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया जा रहा है तो इन कारणों से म्यूकोर माइकोसिस नाम का फंगल इंफेक्शन हो सकता है.. जिन कोविड मरीजों की इम्युनिटी कम है… वो सबसे ज्यादा इसकी चपेट में आ रहे हैं.. कुल मिलाकर लोगों को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है तभी इस कोरोना से छुटकारा मिलेगा और इस फंगल इंफेक्शन से भी.

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Mother’s Day Special: मदर्स डे

REVIEW: जानें कैसी है ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’ Film

रेटिंगःडेढ़ स्टार

निर्माताः फायर रे फिल्मस

निर्देशकः हरीश व्यास

कलाकारः अंशुमन झा, जरीन खान,  गुरूफतेह पीरजादा, जान्हवी रावत.

अवधिः एक घंटा 57 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी हॉट स्टार

बीसवीं सदी जाते जाते बौलीवुड को समलैंगिकता का मुद्दा पकड़ा गया और तमाम फिल्मकार इसी मुद्दे को अपनी फिल्मों में भुनाते हुए लोगो का मनोरंजन करने के नाम पर अपनी तिजोरियां भरने का प्रयास कर रहे हैं. फिल्मकार हरीश व्यास भी समलैंगिकता के मुद्दे पर एक अति अपरिपक्व या यॅूं कहें कि ‘बिना पेंदे का लोटा’ को चरितार्थ करने वाली कहानी पर फिल्म ‘‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’’लेकर आए हैं. जो कि नौ मई से ओटीटी प्लेटफार्म डिजनी हॉट स्टार पर स्ट्रीम हो रही है. इस फिल्म में हरीश व्यास ने समलैगिकता का जो तर्क दिया है, वह बहुत ही बेवकूफी भरा है. इतना ही नही लेखक-निर्देशक हरीश व्यास ने रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’में लड़की के पतलून पहनने के मुद्दे से शुरू होकर,  देसी समलैंगिक समुदाय के तर्कों और परिवार में संघर्ष को दिखाने की जो कोशिश की है, उसमें वह बुरी तरह से मात खा गए हैं.

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कहानीः

कहानी शुरू होती है मानसी(  जरीन खान )के परिवार से, जहां चर्चा हो रही है कि मानसी बचपन से ही जींस पटलून पहनते पहनते लेस्बियन हो गयी. तो वहीं चंडीगढ़ में कर्नल रंधावा(सुशील दहिया)का बेटा वीर प्रताप रंधावा(अंशुमन झा)की सगाई तरण कौर (आंचल बत्रा)से हो रही है. वीर प्रताप , तरण कौर को बता देता है कि वह ‘गे’है और वीर प्रताप रंधावा सगाई करने की बजाय घर से भागकर दिल्ली अपने मित्र व उद्योगपति अक्षय मित्तल के घर पहुंचता है. पता चलता है कि अक्षय प्रताप ने भले ही मिताली(प्रभलीन कौर)से शादी कर ली हो, पर अक्षय मित्तल भी ‘गे’ है. वीर व अक्षय के बीच गहरा प्यार है. मगर सामाजिक मान प्रतिष्ठा के चलते अक्षय ने इस बात को उजागर नही किया. यहां तक कि इस कड़वे सच से मिताली भी अनभिज्ञ है, पर मिताली को इस बात की शिकायत है कि उसके  पति अक्षय के पास उसके लिए समय नही है. दूसरे दिन अक्षय द्वारा आयोजित समलैंगिक पार्टी में वीर प्रताप रंधावा की मुलाकात मानसी से होती है. मानसी भी लेस्बियन है और जब लड़के वाले उसे देखने आते हैं , तो वह घर से भागकर अपनी लेस्बियन प्रेमिका निक्की(जान्हवी रावत)के पास दिल्ली पहुंच जाती है. मगर मानसी को उसकी सखी निक्की (जाह्नवी रावत) रूम पर नहीं मिलती.  निक्की अपने घर मैकलोडगंज गई है. निक्की की सलाह पर मानसी ड्ग्स में लिप्त अशर(नितिन शर्मा)के पास पहुंचती है, पर फिर उसका घर छोड़ देती है. अब वीर, मानसी को अपने घर में शरण देता है, जबकि दोनों विपरीत स्वभाव के हैं. दूसरे दिन वीर प्रताप,  मानसी को उसकी सखी निक्की के पास पहुंचाने के लिए मैकलोडगंज, हिमाचल प्रदेश के लिए जीप में निकल पड़ते हैं. रास्ता लंबा है और जिंदगी भी उन्हें यहां-वहां घुमाते हुए अंततः अकेले-अकेले छोड़ देती है. वास्तव में निक्की अपेन एमएलए पिता की आज्ञा के चलते  मानसी को ठुकरा देती है. अब मानसी व वीर एक होने का निर्णय ले लेते हैं. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. कुछ वक्त बाद मानसी की प्रेमिका उसके पास आ जाती है.  मगर फिर  एक हादसा होता है और मानसी के सामने अपनी प्रेमिका और वीर में से किसी एक को चुनने की चुनौती आती है. अब मानसी क्या करेगी?

लेखन व निर्देशनः

अति कमजोर कथा, पटकथा व संवाद वाली इस फिल्म में लेस्बियन के लिए लेखक व निर्देशक हरीश व्यास का तर्क ही बेतुका है. दूसरी बात लेखक व निर्देशक होते हुए भी हरीश व्यास इस समलंैगिक रोमांटिक व ‘रोड ट्पि’ वाली कहानी को सही दिशा नहीं दे पाए. बिना पेंदे के लोटे की तरह फिल्म इधर उधर लुढ़कती रहती है. इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी यह है कि फिल्म सर्जक इस फिल्म में न तो समलैगिकता लेस्बियन गे के मुद्दे को ही उठा पाए और न ही रोड ट्पि में ही रोचक या रोमांचक दृश्यों का समावेश कर पाए. इतना ही नही जब वीर के माता पिता को पता चलता है कि उनका बेटा ‘गे’है अथवा मानसी के घर में उसके लेस्बियन की जानकारी मिलने पर मध्यमवर्गीय परिवारों में जिस ढंग की प्रतिक्रियाएं  व संघर्ष होना चाहिए, वह भी उभर नही पाया. यहां तक कि जब मिताली को पता चलता है कि वह जिस इंसान के साथ चार वर्ष से वैवाहिक जिंदगी जीती आयी है, वह ‘गे’है, तो जिस तरह का तूफान उठना चाहिए था, वैसा कुछ नही होता. फिल्मकार ने इस फिल्म में प्रसिद्ध सूफी संत बुल्ले शाह के लोकप्रिय गीत ‘‘बुल्ला की जाणा कि मैं कोण. . ’’को एकदम बाजारू तरीके से इस्तेमाल किया है. रोड ट्पि यानी कि मानसी व वीर यात्रा के दौरान उबाउ बातचीत ही करते हैं. फिल्म सिर्फ बोर करती है.

हरीश व्यास संवादों के मामले में भी बुरी तरह मात खा गए हैं.  उनके दोनों मुख्य किरदारों के संवादों में न तो परिवार या समाज से संघर्ष है,  न उनके पास अपनी आत्मा को बयान करने वाले शब्द हैं.  फिल्म के सभी समलैंगिक किरदार यानी कि वीर,  मानसी, निक्की और अक्षय अपनी पहचान छुपाने का ठीकरा अपने अपने पिता पर फोड़ते हैं.

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फिल्म का क्लायमेक्स व जिस मोड़ पर जाकर फिल्म खत्म होती है, वह भी समझ से परे है. यहां तक कि फिल्म की शुरूआत में ही निक्की व मानसी के बीच समलैंगिक संबंध को बताने वाला दृश्य यदि न होता,  तो भी फिल्म पर कोई असर न होता.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो वीर प्रताप रंधावा का किरदार निभाने वाले अभिनेता अंशुमन झा पिछले ग्यारह वर्ष से अभिनय जगत में सक्रिय हैं और कई दिग्गज फिल्मकारों के संग काम कर चुके हैं, मगर अब तक उनकी अपनी कोई ईमेज नही बन पायी है. 2019 में प्रदर्शित फिल्मकार अश्विन कुमार की फिल्म‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’में आर्मी आफिसर का किरदार निभाकर  अंशुमन झा ने एक उम्मीद जगायी थी, पर इस फिल्म से एक बार फिर वह उम्मीद खत्म हो गयी. फिल्म में उनके अभिनय का कोई नया रंग नजर नही आता. अंशुमन झा इस फिल्म के निर्माता भी हैं, इसलिए अपने कैरियर पर कुल्हाड़ी मारने के लिए वह किसी अन्य को दोष भी नही दे सकते. अब भविष्य में उन्हे कहानी व किरदारों के चयन में कुछ अधिक सावधानी बरतनी होगी. अफसोस की बात यह है कि लंबे समय बाद उन्हे हीरोईन के तौर पर यह फिल्म मिली थी, पर वह इसमें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में बुरी तरह से नाकाम रही हैं. गुरूफतेह पीरजादा, जान्हवी रावत व प्रभलीन कौर ने अपनी तरफ से मेहनत करने का प्रयास जरुर किया है, मगर इन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का कोई खास अवसर ही नही मिला.

खतरे में पड़ेगी सीरत और रणवीर की जान तो कार्तिक को आएगा गुस्सा

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में सीरत और कार्तिक की शादी में हर कदम पर मुश्किलें आ रही हैं. जहां बीते दिनों सीरत की रणवीर को लेकर गलतफहमी दूर हो गई है तो वहीं कायरव को सीरत और अपने रिश्ते के बारे में बताने को लेकर कार्तिक परेशान नजर आ रहा है. इसी बीच खबरें हैं कि अपकमिंग एपिसोड में सीरत और रणवीर की जान खतरे में पड़ने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

रिया करेगी ये काम

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के अपकमिंग एपिसोड में रणवीर से मिलने के बाद जैसे ही सीरत वापस होटल पहुंचेगी तो कार्तिक के घरवाले उससे कई सवाल करेंगे. इसी बीच रिया सभी के सामने सीरत को जलील करती नजर आएगी. वहीं मावड़ी सीरत को समझाएगी कि कार्तिक से अच्छा लड़का उसे कभी भी नहीं मिल सकता.

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कार्तिक-रणवीर में से किसे चुनेगी सीरत

अब तक आपने देखा कि कार्तिक ने सीरत और रणवीर की गलतफहमियों को खत्म कर दिया है, जिसके चलते सीरत कशमकश मे है कि वह कार्तिक और रणवीर में से किसे चुने. वहीं इस बात को लेकर जब वह कार्तिक के पास जाती है तो वह सीरत पर गुस्सा करता हुआ नजर आता है.  दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सीरत कार्तिक के सामने सगाई की अंगूठी और रणवीर के की रिंग को रखेगी और कहेगी कि अब उसे दोनों में से किसी एक को चुनना है. वहीं कार्तिक गुस्से में रणवीर की दी हुई रिंग फेंक देगा और सीरत को बहुत बुरा लगेगा.

खतरे में पड़ेगी जान

 

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इसी बीच खबरें हैं कि आने वाले एपिसोड में रणवीर और सीरत की जान खतरे में पड़ जाएगी, जिसके बारे में कार्तिक जान जाएगा. वहीं कार्तिक सीरत और रणवीर को बचाने के लिए जी जान लगाता नजर आएगा.

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सुसाइड करेगी काव्या तो तलाक के बाद वनराज को अपना मंगलसूत्र देगी अनुपमा, पढ़ें खबर

टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचाने वाले स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में नया मोड़ आने वाला है. जहां बीते दिनों समर-नंदिनी की सगाई हो चुकी है तो वहीं शो में जल्द ही अनुपमा और वनराज का तलाक होने वाला है. वहीं इस बीच सीरियल की कहानी में नया ट्विस्ट भी आने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे….

मंगलसूत्र देगी अनुपमा

हाल ही में सीरियल अनुपमा के लेटेस्ट प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें फैमिली कोर्ट में अनुपमा (Rupali Ganguly) और वनराज (Sudhanshu Pandey) तलाक के पेपर्स पर साइन करते नजर आ रहे हैं. इस दौरान जहां वनराज इस तलाक से खुश नहीं है तो वहीं अनुपमा अपने फैसले पर अड़ी हुई है. वहीं प्रोमो में दिखाया गया है कि तलाक देने के बाद काव्या (Madalsa Sharma) के दिए वादे के खातिर अनुपमा अपना मंगलसूत्र वनराज को दे देगी. साथ ही शाह हाउस छोड़ने का फैसला भी करेगी.

 

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काव्या करेगी सुसाइड

 

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पिछले एपिसोड में आपने देखा कि समर-नंदिनी की सगाई में बवाल मचाने वाली काव्या को सबक सिखाने के लिए वनराज उससे कहता है कि वह अनुपमा से तलाक नहीं देगा और ना ही उसकी जिंदगी में वापस आएगा, जिसके कारण काव्या अपकमिंग एपिसोड में सुसाइड करने की कोशिश करती नजर आएगी. हालांकि वनराज और अनुपमा उसे बचा लेगें. लेकिन इस बीच काव्या, अनुपमा से वादा लेगी कि वह वनराज को छोड़कर उसकी जिंदगी से दूर चली जाएगी.

 

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बता दें, वनराज से तलाक के बाद अनुपमा का नया सफर शुरु होने वाला है, जहां अनुपमा नए लुक में नजर आएगी तो वहीं अपनी लाइफ को एक नई दिशा देने की भी कोशिश करेगी. वहीं इस दौरान उसका साथ समर–नंदिनी औऱ उसका पूरा परिवार देता नजर आएगा.

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Mother’s Day Special: मुक्ति-भाग 3

वैसे वह रिटायर हो चुका था. यह नहीं कि इस बीच वह भारत गया ही नहीं. हर वर्ष वह भारत जाता रहा था किंतु कभी ऐसा जुगाड़ नहीं बन पाया कि वह मां से मिलने जाने की जहमत उठाता. कभी अपने काम से तो कभी पत्नी को भारतभ्रमण कराने के चलते. किंतु रांची जाने में जितनी तकलीफ उठानी पड़ती थी, उस के लिए वह समय ही नहीं निकाल पाता था. मां को या शिवानी को पता भी नहीं चल पाता कि वह इस बीच कभी भारत आया भी है.

अमेरिका से फोन करकर वह यह बताता रहता कि अभी वह बहुत व्यस्त है, छुट्टी मिलते ही मां से मिलने जरूर आएगा. और मन को हलका करने के लिए वह कुछ अधिक डौलर भेज देता केवल मां के ही लिए नहीं, शिवानी के बच्चों के लिए या खुद शिवानी और उस के पति के लिए भी. तब शिवानी संक्षेप में अपना आभार प्रकट करते हुए फोन पर कह देती कि वह उस की व्यस्तता को समझ सकती है. पता नहीं शिवानी के उस कथन में उसे क्या मिलता कि वह उस में आभार कम और व्यंग्य अधिक पाता था.

सुनील के अमेरिका जाने के बाद से उस की मां उस की बहन यानी अपनी बेटी सुषमा के पास वर्षों रहीं. सुनील के पिता पहले ही मर चुके थे. इस बीच सुनील अमेरिका में खुद को व्यवस्थित करने में लगा रहा. संघर्ष का समय खत्म हो जाने के बाद उस ने मां को अमेरिका नहीं बुलाया.

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बहन तथा बहनोई ने बारबार लिखा कि आप मां को अपने साथ ले जाइए पर सुनील इस के लिए कभी तैयार नहीं हुआ. उस के सामने 2 मुख्य बहाने थे, एक तो यह कि मां का वहां के समाज में मन नहीं लगेगा जैसा कि वहां अन्य बुजुर्ग व रिटायर्ड लोगों के साथ होता है और दूसरे, वहां इन की दवा या इलाज के लिए कोई मदद नहीं मिल सकती. हालांकि वह इस बात को दबा गया कि इस बीच वह उन के भारत रहतेरहते भी उन्हें ग्रीनकार्ड दिला सकता था और अमेरिका पहुंचने पर उन्हें सरकारी मदद भी मिल सकती थी.

एक बार जब वह सुषमा की बीमारी पर भारत आया तो बहन ने ही रोरो कर बताया कि मां के व्यवहार से उन के पति ही नहीं, उस के बच्चे भी तंग रहते हैं. अपनी बात यदि वह बेटी होने के कारण छोड़ भी दे तो भी वह उन लोगों की खातिर मां को अपने साथ नहीं रख सकती. दूसरी ओर मां का यह दृढ़ निश्चय था कि जब तक सुषमा ठीक नहीं  हो जाती तब तक वे उसे छोड़ नहीं सकतीं.

सुनील ने अपने स्वार्थवश मां की हां में हां मिलाई. सुषमा कैंसर से पीडि़त थी. कभी भी उस का बुलावा आ सकता था. सुनील को उस स्थिति के लिए अपने को तैयार करना था.

सुषमा की मृत्यु पर सुनील भारत नहीं आ सका पर उस ने मां को जरूर अमेरिका बुलवा लिया अपने किसी संबंधी के साथ. अमेरिका में मां को सबकुछ बहुत बदलाबदला सा लगा. उन की निर्भरता बहुत बढ़ गई. बिना गाड़ी के कहीं जाया नहीं जा सकता था और गाड़ी उन का बेटा यानी सुनील चलाता था या बहू. घर में बंद, कोई सामाजिक प्राणी नहीं. बेटे को अपने काम के अलावा इधरउधर आनेजाने व काम करने की व्यस्तता लगी रहती थी. बहू पर घर के काम की जिम्मेदारी अधिक थी. यहां कोई कामवाली तो आती नहीं थी, घर की सफाई से ले कर बाहर के भी काम बहू संभालती थी.

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मां के लिए परेशानी की बात यह थी कि सुनील को कभीकभी घर के काम में अपनी पत्नी की सहायता करनी पड़ती थी. घर का मर्द घर में इस तरह काम करे, घर की सफाई करे, बरतन मांजे, कपड़े धोए, यह सब देख कर मां के जन्मजन्मांतर के संस्कार को चोट पहुंचती थी. सुनील के बारबार यह समझाने पर भी कि यहां अमेरिका में दाईनौकर की प्रथा नहीं है, और यहां सभी घरों में पतिपत्नी मिल कर घर के काम करते हैं, मां संतुष्ट नहीं होतीं.

मां को यही लगता कि उन की बहू ही उन के बेटे से रोज काम लिया करती है. सभी कामों में वे खुद हाथ बंटाना चाहतीं ताकि बेटे को वह सब नहीं करना पड़े, पर 85 साल की उम्र में उन पर कुछ छोड़ा नहीं जा सकता था. कहीं भूल से उन्हें चोट न लग जाए, घर में आग न लग जाए, वे गिर न पड़ें, इन आशंकाओं के मारे कोई उन्हें घर का काम नहीं करने देता था.

सुनील अपनी मां का इलाज  करवाने में समर्थ नहीं था.

अमेरिका में कितने लोग सारा का सारा पैसा अपनी गांठ से लगा कर इलाज करवा सकते थे? मां ऐसी बातें सुन कर इस तरह चुप्पी साध लेती थीं जैसे उन्हें ये बातें तर्क या बहाना मात्र लगती हों. उन की आंखों में अविश्वास इस तरह तीखा हो कर छलक उठता था जिसे झेल न सकने के कारण, अपनी बात सही होने के बावजूद सुनील दूसरी तरफ देखने लग जाता था. उन की आंखें जैसे बोल पड़तीं कि क्या ऐसा कभी हो सकता है कि कोई सरकार अपने ही नागरिक की बूढ़ी मां के लिए कोई प्रबंध न करे. भारत जैसे गरीब देश में तो ऐसा होता ही नहीं, फिर अमेरिका जैसे संपन्न देश में ऐसा कैसे हो सकता था?

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सुनील के मन में वर्षों तक मां के लिए जो उपेक्षा भाव बना रहा था या उन्हें वह जो अपने पास अमेरिका बुलाने से कतराता रहा था शायद इस कारण ही उस में एक ऐसा अपराधबोध समा गया था कि वह अपनी सही बात भी उन से नहीं मनवा सकता था. कभीकभी वे रोंआसी हो कर यहां तक कह बैठती थीं कि दूसरे बच्चों का पेट काटकाट कर भी उन्होंने उसे डबल एमए कराया था और सुनील यह बिना कहे ही समझ जाता था कि वास्तव में वे कह रही हैं कि उस का बदला वह अब तक उन की उपेक्षा कर के देता रहा है जबकि उस की पाईपाई पर उन का हक पहले है और सब से ज्यादा है.

सुनील के सामने उन दिनों के वे दृश्य उभर आते जब वह कालेज की छुट्टियों में घर लौटता था और अपने मातापिता के साथ भाईबहनों को भी वह रूखासूखा खाना बिना किसी सब्जीतरकारी के खाते देखता था.

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किसी खतरे से कम नहीं ये 5 Beauty ट्रेंड्स

हर कोई चाहता है कि वे खूबसूरत दिखे, जिसके लिए वे बिना कुछ सोचे ट्रेंड में चल रहे ब्यूटी ट्रेंड्स को अपनाने में पीछे नहीं रहते. लेकिन भले ही ये ब्यूटी ट्रेंड्स आपको स्मार्ट व फैशनेबल दिखाने का काम करते हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये फैशन आपको बीमार भी कर सकता है. तो बताते है आपको उन सभी चीजों के बारे में, जो है किसी खतरे से कम नहीं.

1. हेयर स्ट्रेटनिंग प्रोडक्ट्स

आज जब भी हम सैलून का रूख करते हैं , तो वहां सर्विस प्रोवाइड करवाने वाले कभी बालों पर कलर लगाने की सलाह देते हैं तो कभी हेयर स्ट्रेटनिंग करवाने की तो कभी फ्रिजी हेयर्स के लिए स्ट्रेटनिंग प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने को कहते हैं. और हम भी बिना सोचे समझे उनकी बातों में आकर या तो हेयर ट्रीटमेंट लेना शुरू कर देते हैं या फिर अपने बालों को सीधा लुक देने के लिए हेयर स्ट्रेटनिंग प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने शुरू कर देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन प्रोडक्ट्स में जरूरत से ज्यादा केमिकल्स होते हैं , जो स्किन को किसी भी तरह से फायदा नहीं पहुंचाते हैं. बता दें कि इन प्रोडक्ट्स में सबसे ज्यादा मात्रा में फोर्मलडेहीदे केमिकल होता है, जो कैंसर को जन्म देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. साथ ही इससे नाक, आंख, गले में दिक्कत होने के साथसाथ एलर्जी तक हो जाती है. इसे स्मैल करने से आप अस्थमा जैसी घातक बीमारी के भी शिकार बन सकते हैं. इसलिए सोच समझ कर ही इन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें.

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2. ब्लीचिंग प्रोडक्ट्स

कोई भी लड़की या महिला नहीं चाहती कि उसकी स्किन पर डार्क स्पोट्स , पिगमेंटेशन हो. ऐसे में वे मार्केट में मिलने वाली हर वो क्रीम खरीदती है , हर वो साबुन व लोशन टाई करती है जो उसकी स्किन पर वाइटनिंग इफेक्ट लाने का काम करती है. ऐसे में आपको बता दें कि अधिकांश ब्लीचिंग प्रोडक्ट्स में काफी ज्यादा मात्रा में मरकरी होती है. जिससे आपकी स्किन पर रैशेस , जलन, स्किन के कलर का बदलना, थकान व डिप्रेशन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. अनेक अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि मरकरी के ज्यादा संपर्क में आने से नर्वस सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है, जिससे कई बार मृत्यु भी हो जाती है. इसलिए अगर ब्लीचिंग प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं तो संभल जाएं.

3. बोटोक्स किसी जहर से कम नहीं

उम्र बढ़ने के साथसाथ चेहरे पर फाइन लाइन्स व झुर्रियों का आना आम बात है. कई बार उम्र से पहले भी किन्हीं कारणों से चेहरे पर झुर्रियां दिखाई देने लगती हैं, जो किसी भी महिला को गवारा नहीं होती. क्योंकि ये उनकी सुंदरता को कम करने का काम जो करती है. इसके लिए बोटोक्स ट्रीटमेंट यानि बोटोक्स के इंजैक्शन लिए जाते हैं, जो फाइन लाइन्स व झुर्रियों के लिए जिम्मेदार होने वाली मांसपेशियों में कसावट लाने का काम करते है. जिससे उम्र का प्रभाव चेहरे पर नजर नहीं आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सबसे सबसे खतरनाक टोक्सिन होता है. 2009 में यूएस फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसे कोस्मेटिक इस्तेमाल करने के लिए मंजूरी भी दे दी है. लेकिन इसके इस्तेमाल के बाद आपको मांसपेशियों में कमजोरी, सिरदर्द जैसी शिकायत होने के साथ साथ अगर ये टोक्सिन शरीर के बाकी हिस्सों में भी फैल जाता है, तो शरीर में सूजन व सांस लेने में दिक्कत होने के कारण आपकी जान भी जा सकती है. तो हो जाएं सावधान.

4. टैटू की क्रेजी तो नहीं

टैटू का क्रेज दिनोदिन बढ़ता जा रहा है, क्योंकि ये दिखने में अच्छा जो लगता है. तभी तो कोई हाथ व बॉडी के किसी पार्ट पर अपना नाम गुदवाता है तो कभी अपने फेवरेट को. लेकिन टैटू के प्रति ये दीवानगी कहीं आपको बीमार न कर दे. क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाली शहाई जब शरीर में जाती है , तो शरीर के होर्मोनेस का संतुलन बिगाड़ने के साथसाथ स्किन कैंसर को भी जन्म देने का काम करती है. साथ ही इससे स्किन एलर्जी, इंफेक्शन , सूजन तक हो जाती है. बता दें कि जब एक ही सुई का दूसरे इंसान में इस्तेमाल किया जाता है तो एचआईवी जैसी घातक बीमारी का खतरा भी कई गुणा बढ़ जाता है. इसलिए टैटू के लिए क्रेजी होना छोड़ दें.

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5. पील ऑफ मास्क

पील ऑफ़ मास्क ये दावा करते हैं कि ये पोर्स को क्लीन कर स्किन की सारी गंदगी को एक पील ऑफ मास्क से हटाकर स्किन पर रेडिएंट ग्लो लाने का काम करता है. और आप भी ये सब जानकर पील ऑफ़ करवाने के लिए तैयार हो जाती हैं. लेकिन जहां ये स्किन की चमक लौटाने का काम करता है, वहीं इससे स्किन को काफी नुकसान भी पहुंचता है. क्योंकि इसमें ढेरों केमिकल्स का इस्तेमाल जो किया होता है.

इन दिनों चारकोल पील ऑफ मास्क काफी डिमांड में है. क्योंकि ये एक अप्लाई के बाद ही स्किन को ग्लोइंग व दागधब्बों रहित जो बना देता है. लेकिन आपको बता दें कि चारकोल पील ऑफ मास्क में इस्तेमाल होने वाले खतरनाक केमिकल्स शरीर को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं. इसमें इस्तेमाल होने वाला हेक्सीलेने ग्लाइकोल स्किन पर इर्रिटेशन पैदा करने के साथसाथ ये लिवर, किडनी व नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है. वहीं इसमें इस्तेमाल होने वाला लोंडेपरोपीनील बुटिलकारबामाते स्किन पर रेडनेस, सूजन व जलन का कारण बनता है, जो स्किन को पूरी तरह से डैमेज करने का काम करता है. इसलिए पील ऑफ मास्क है नुकसानदायक. अगर आप इसका इस्तेमाल करें भी तो नेचुरल इंग्रीडिएंट्स से बने पील ऑफ मास्क का ही इस्तेमाल करें , वो भी कभी कभार.

Mother’s Day Special: बच्चों के लिए बनाएं मैगी पनीर रैप

वर्तमान कोरोना काल में हम सभी को हैल्दी डाइट अपने खानपान में शामिल करने की सलाह दी जा रही है. इसके अतिरिक्त आजकल लॉक डाउन भी चल रहा है जिससे बाहर से कुछ भी मंगाना सम्भव नहीं है. आज हम आपको घर में उपलब्ध सामग्री से ही एक ऐसी रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसमें एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स, केल्शियम और प्रोटीन तो भरपूर मात्रा में है ही साथ ही इसे घर के सभी सदस्य स्वाद लेकर खाएंगे भी. पनीर की उपलब्धता न होने पर आप घर के दूध को नीबू के रस से फाड़कर प्रयोग कर सकतीं हैं. बच्चों को पौष्टिक चीजें खिलाना काफी मुश्किल होता है परन्तु इसका मैगी फ्लेवर बच्चों को बहुत पसंद आएगा. तो आइए जानते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

मैदा 1 कप
गेहूं का आटा 1/2 कप
पनीर 250 ग्राम
बारीक कटा प्याज 1
बारीक कटी शिमला मिर्च 2
शेजवान सॉस 1 टीस्पून

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मैगी मसाला 1 टेबलस्पून
अमचूर पाउडर 1/2 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून
काला नमक 1/4 टीस्पून
काली मिर्च 1/4 टीस्पून
तेल 1 टेबलस्पून

विधि

मैदा और गेहूं को पानी की सहायता से रोटी जैसा गूंथकर आधे घण्टे के लिए ढककर रख दें. पनीर, प्याज और शिमला मिर्च को बारीक बारीक काट लें. 1/2 टीस्पून गर्म तेल में प्याज सॉते करके शिमला मिर्च और नमक डालकर ढक दें. 3-4 मिनट बाद खोलकर पनीर डाल कर चलाएं. अब मैगी मसाला, शेजवान सॉस तथा अन्य सभी मसाले डालकर खोलकर ही 3-4 मिनट रोस्ट करें ताकि पानी सूख जाए. गैस बंद करके ठंडा होने दें. मैदा में से रोटी के जैसी छोटी लोई लेकर पतली रोटी बेलकर तवे पर हल्की सी दोनों तरफ से सेंक लें. इसी प्रकार सारी रोटियां तैयार करें. अब 1 टेबलस्पून पानी में 1 टीस्पून मैदा डालकर चलाएं. तैयार रोटी के एक साइड में एक टेबलस्पून पनीर का मिश्रण रखकर चारों तरफ मैदा का घोल लगाएं. अब रोटी में भरावन को रोल करके उंगलियों से दबाकर चिपका दें. साइड से भी चिपका दें. इसी प्रकार सारे रैप तैयार करें. इन पर ब्रश से दोनों तरफ चिकनाई लगाएं और गर्म तवे पर एकदम धीमी आंच पर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें. बटर पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

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