Mother’s Day Special: शिल्पा शेट्टी के ये इंडियन लुक करें ट्राय

बौलीवुड में फिट रहने का ट्रैंड एक्ट्रैस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty Kundra) से शुरू हुआ है. शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty Kundra) दो बच्चों की मां हैं बावजूद इसके वह जितना अपनी बौडी को शेप में रखती हैं, उतनी ही फैशन के लिए ट्रैंड में बनी रहती है. चाहे घर के लिए हो, औफिस के लिए हो या शादी के लिए फैशन की जरूरत हर किसी को पड़ती है. ये आपके लुक को स्टाइलिश और ट्रैंडी बनाता है. वहीं अगर इंडियन लुक को ही वेस्टर्न लुक दे दिया जाए तो वह आपके लुक पर चार चांद लग जाएगा. जिसमें आपकी मदद शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty Kundra) के ये फैशन टिप्स करेंगे. आइए आपको बताते हैं शिल्पा शेट्टी के मौर्टर्न और इंडियन लुक के कौम्बिनेशन…

1. शिल्पा का साड़ी का मौर्डर्न लुक करें ट्राई

अगर आप भी इंडियन लेकिन मौर्डर्न लुक ट्राई करना चाहती हैं, तो शिल्पा शेट्टी का ये लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. औफ शोल्डर ब्लाउज विद अटैच रेड साड़ी आपके लुक को हौट और ट्रैंडी बना देगा.

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2. शिल्पा की तरह लहंगे को दें नया लुक

अगर आप किसी शादी का हिस्सा बनने जा रहीं हैं और लहंगा पहनने वाली हैं तो शिल्पा के इस लहंगे को देखकर अपने लहंगे को नया लुक देने की कोशिश करें. ये आपके लुक को सिंपल रखने के साथ ट्रैंडी भी बनाएगा.

3. शिल्पा की पिंक रफ्फल साड़ी भी करें ट्राई

साड़ी पहनना हर किसी को पसंद है, लेकिन साड़ी का कलर, पैटर्न कैसा हो उसका ध्यान रखना भी जरूरी है. इसमें शिल्पा शेट्टी का ये लुक आपकी मदद करेगा. सिंपल पिंक रफ्फल साड़ी के साथ फुल स्लीव ब्लाउज आपके लुक को ब्यूटीफुल बनाएगा.

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4. शिल्पा का पिंक गाउन भी है वेडिंग के लिए परफेक्ट

शादी या किसी पार्टी में जवान दिखना हर किसी की चाहत होती है. जिसके लिए आप मेकअप के साथ-साथ डिफरेंट कलर के कपड़े पहनना पसंद करती हैं. आप चाहें तो शिल्पा का ये पिंक गाउन किसी भी पार्टी के लिए चूज कर सकती हैं. ये आपके लुक को परफेक्ट लुक देगा.

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छाले किस कारण होते हैं और छुटकारा पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?

सवाल-

मैं 22 साल की युवती हूं. यूनिवर्सिटी में एमए की छात्रा हूं. बीते कई महीनों से मैं मुंह में बारबार छाले हो जाने से परेशान हूं. मां कहती हैं कि जरूर मैं दोस्तों के साथ उठतेबैठते किसी का जूठा खा लेती हूं. उसी से यह परेशानी हो रही है. जब से मां ने टोका है मैं इस बाबत पूरी सावधानी बरत रही हूं, पर छाले हैं कि परेशान करने से बाज ही नहीं आते. कृपया बताएं कि छाले किस कारण होते हैं और उन से छुटकारा पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?

जवाब-

मुंह का छालों से भर जाना आम बात है. मुंह के भीतर, गालों के अंदरूनी हिस्से, होंठ और जीभ की निचली तरफ ये कहीं भी पैदा हो जाते हैं. कई बार तो उन की झड़ी सी लग जाती है. पहला छाला ठीक नहीं होता कि दूसरा निकल आता है और परेशानी बनी रहती है. गनीमत यह है कि ज्यादातर लोगों में ये कुछ दिन परेशान कर खुदबखुद खत्म हो जाते हैं और अपने पीछे कोई बुरा असर नहीं छोड़ते.

यह ठीकठीक बता पाना मुश्किल है कि छाले क्यों होते हैं? उन की उपज कई चीजों से जुड़ी हो सकती हैं. कई बार कोई हलकीफुलकी अस्वस्थता या छोटेमोटे बुखार के साथ ही छाले हो जाते हैं, तब उन का संबंध बुखार पैदा करने वाले वायरस से होता है. समय बीतने पर ये अपनेआप गायब हो जाते हैं.

कुछ स्त्रियों में कभीकभी महीना शुरू होने से पहले भी ये निकल आते हैं और चंद दिनों तक परेशानी दे खत्म हो जाते हैं. इन का संबंध शरीर के हारमोनल उतारचढ़ाव से जोड़ा गया है.

किसीकिसी में मसला थोड़ा गंभीर होता है. शरीर में फोलिक ऐसिड और विटामिन बी12 की कमी, ऐनीमिया, आंतों की बीमारी, हर्पीज सिंपलैक्स, विषाणु संक्रमण आदि सभी से छाले हो सकते हैं. पर यह मात्र समाज में फैला एक मिथक है कि छाले किसी का जूठा खाने से उपजते हैं.

छालों से उबरने के लिए कुछ सरल घरेलू नुसखे हैं:

कुनकुने पानी में नमक मिला कर कुल्ला करें: गिलास भर कुनकुना पानी लें. उस में 1/2 छोटा चम्मच नमक मिलाएं और उस की घूंट मुंह में भर उसे धीरेधीरे मुंह में चलाएं. दिन में 3-4 बार यह क्रिया दोहराएं. इस छोटे से उपाय से छालों का तला साफ बना रहता है और छाले जल्द भर जाते हैं.

हलकीफुलकी दवाएं हैं काम की: कैमिस्ट से हाइड्रोकौर्टिसोन की चूसने वाली गोलियां या मुंह के अंदर हाइड्रोकौर्टिसोन वाला माउथजैल लगाने से छालों से जल्द आराम मिलता है.

कुछ ऐसे माउथजैल भी मिलते हैं जिन में लोकल ऐनैस्थैटिक मिला रहता है. उन्हें छालों पर लगाने से दर्द और जलन आसानी से मिट जाती है. मुंह में रुई के फाहे से बोरोग्लिसरीन लगाने या देसी घी या मक्खन लगाने से भी छालों में हो रही जलन से आराम पाया जा सकता है.

दर्दनिवारक दवा कभी: अधिक दर्द होने पर कोई साधारण दर्दनिवारक दवा जैसे 500 मिलीग्राम पैरासिटामौल लेना आरामदेह हो सकता है. पर बेहतर हो कि कोई मैडिसिन तब ली जाए जब विशेषज्ञ उस की सलाह दें.

मल्टीविटामिन कैप्सूल: शरीर में फोलिक ऐसिड और विटामिन बी12 की कमी होने या बहुत स्ट्रैस के दिनों में कुछ रोज मल्टीविटामिन कैप्सूल और गोलियां लेने से भी फायदा हो सकता है.

छोटामोटा परहेज भी बरतें: जिन दिनों छाले परेशान करें, उन दिनों खट्टे रसीले फलों, मिर्चमसाले वाले चीजों और चौकलेट आदि से परहेज बरतें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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और भी गम हैं जमाने में…

आन्या 22 वर्षीय खूबसूरत होनहार और स्वतंत्र विचारों वाली युवती है. बचपन से ले कर आज तक अपने सारे फैसले खुद करती आई है. फिर वह हुआ जो आमतौर पर आजकल के युवकयुवतियों के साथ होता है यानी मुहब्बत. स्वतंत्र आन्या मुहब्बत की बेडि़यों में ही अपनी पहचान ढूंढ़ने लगी थी. अपने बौयफ्रैंड के साथ आन्या ने सतरंगी जीवन के सपने बुनने आरंभ कर दिए थे. अपने शौक, कपड़े पहनने का तरीका सबकुछ उस ने मुहब्बत के फेर में पड़ कर बदल लिया. और फिर टूटे दिल के साथ डिप्रैशन में चली गई.

दीया बचपन से बड़े होने तक एक ही सपना देखती आई कि उस की जिंदगी में एक राजकुमार आएगा. पासपड़ोस, रिश्तेदारों में सब की लव स्टोरी थी. ऐसे में दीया को लगने लगा कि उस की जिंदगी बिना साथी के बेमानी है और फिर इसी विचारधारा के कारण वह जल्द ही एक लंपट किस्म के लड़के के चंगुल में फंस गई.

आखिर ऐसा क्यों है कि हर लड़की चाहे वह शहर की हो या कसबे की या फिर महानगर की अपनी पूर्णता एक साथी के साथ ही ढूंढ़ती है? इस के पीछे छिपी है वही पुरानी सोच कि लड़की की जिम्मेदारी तब तक पूरी नहीं होती है जब तक उस का घर नहीं बसता है.

कसबों में तो आज भी बहुत सारी लड़कियां पढ़ाई ही विवाह करने के लिए करती हैं. वहीं महानगरों में नौकरी करना एक बेहतर जीवनसाथी और शादी के लिए जरूरी हो गया है.

यानी लड़कियों की जीवनयात्रा में पुरुष नामक जीव का बहुत महत्त्व है. उन के अधिकतर कार्यकलाप पुरुष मित्रों, प्रेमी या पति के इर्दगिर्द ही घूमते हैं और जैसे ही पुरुष नामक धुरी उन की जिंदगी से अलग हो जाती, उन का अस्तित्व गौण हो जाता है.

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एक नाकामयाब मुहब्बत के कारण ये लड़कियां अपनी जिंदगी तक खत्म कर लेती हैं और इस के पीछे छिपी है वही रूढि़वादी सोच कि अकेली औरत कैसे रह पाएगी. एक अकेली औरत के साथ बेचारी शब्द क्यों जुड़ जाता है? क्यों हम अपनी बेटियों के मन में यह बात बैठा देते हैं कि उन का औरत होना तभी सार्थक है जब उन की जिंदगी में कोई आदमी हो?

अगर थोड़ा गहराई से सोचें तो लड़कियां ही हैं जो विवाह के बाद अपनेआप को नख से शिख तक बदल लेती हैं, क्योंकि उन्हें बचपन से यही सिखाया जाता है कि प्यार का मतलब है बलिदान, चाहे इस में वह खुद का अपमान भी कर रही हो.

ऐसे में हम क्यों न अपनी बेटियों को यह बात सिखाएं कि प्यार जिंदगी का बस एक और रंग है परंतु प्यार जिंदगी नहीं है. किसी के होने या न होने से वे खुद को नकारना बंद करे. किसी का साथ होना अच्छा है, परंतु बिना साथ भी वे जिंदगी अच्छी तरह गुजार सकती हैं. किसी के साथ की चाह में अपनी खूबसूरत जिंदगी को बेवजह जाया न करें.

अगर आप की बेटी, भानजी, भतीजी, छोटी या बड़ी बहन या कोई सहेली इस मुहब्बत के गम से गुजर रही हो तो आप इन छोटेछोटे टिप्स से उस की मदद कर सकती हैं:

एकला चलो रे:

आप का जीवन एक यात्रा है और हर शख्स के साथ आप को एक पड़ाव तय करना होता है. जरूरी नहीं है कि आप का साथी आप के साथ जिंदगी के हर पड़ाव पर साथ चले. कुछ लोग आप की जिंदगी में कुछ सिखाने ही आते हैं. जरूरी है कि आप उन लोगों से जो सीख सकते हैं, सीखें और फिर अपनी यात्रा  जारी रखें.

याद रखिए कि यह जीवन आप की अपनी यात्रा है और अब यह आप को ही तय करना है कि आप को इस यात्रा को रोते हुए पूरा करना है या फिर हर अच्छेबुरे अनुभवों से गुजरते हुए अपनी खुशियों की जिम्मेदारी खुद लेते हुए अपने सफर को पूरा करना है.

खुद से ही आप की पहचान:

अगर अपने नाम के साथ किसी और का नाम जोड़ कर ही आप अपनी पहचान देखती हैं तो साथी का जिंदगी से चले जाना आप को बहुत दर्द देगा. आप की पहचान आप से ही है. किसी की गर्लफ्रैंड या बीवी बन कर आप उस शख्स की जिंदगी का एक हिस्सा बन सकती हैं, मगर जिंदगी नहीं. इस बात को आप जितनी जल्दी समझ जाएंगी उतना ही अच्छा होगा.

खुद को न बदले:

अकसर देखने में आता है लड़कियां प्यार में पड़ कर या विवाह के बाद अपनेआप को इतना अधिक बदल लेती हैं कि उन को पहचानना मुश्किल हो जाता है. अपने साथी की पसंद के कपड़े, गहने, हेयरकट अपनाना और हद तो तब हो जाती है जब कुछ लड़कियां पति या प्रेमी के कारण मदिरा आदि का सेवन भी आरंभ कर देती हैं. उन का हर प्रोग्राम अपने साथी के मूड या काम पर निर्भर होता है. अगर कम शब्दों में कहें कि ऐसी लड़कियां खुद को इतना अधिक बदल लेती हैं कि साथी के न रहने या धोखा देने पर उन के जीवन की नींव ही हिल जाती है.

मित्रों का दायरा बढ़ाएं:

आप की चाहे शादी हो गई हो या आप किसी के साथ रिलेशनशिप में हों फिर भी अपने मित्रों से मिलनाजुलना न छोड़ें. याद रखिए कोई भी एक व्यक्ति आप की सारी जरूरतों को पूरी नहीं कर सकता है. मित्रों का जीवन में होना बेहद जरूरी होता है. अगर प्यार जरूरी है तो दोस्तों का होना और भी अधिक जरूरी है. अपने मित्रों का दायरा थोड़ा सा विस्तृत रखिए ताकि आप को बुरे समय में अकेलापन न लगे.

परिवार भी है जरूरी:

शादी होते ही लड़कियां परिवार से कट जाती हैं. पति की नींद ही सोना और पति की नींद ही जगना. जिंदगी में हर रिश्ते का अपना महत्त्व होता है. जैसे आप के साथी या पति की जगह कोई नहीं ले सकता है ठीक उसी तरह आप के परिवार की जगह भी कोई नहीं ले सकता है. ऐसा न हो अपने साथी के प्यार में डूब कर आप अपने परिवार को इग्नोर कर दें. परिवार की इकाई ही आप को भावनात्मक संबल दे सकती है.

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काम से कर ले दोस्ती:

समय चाहे अच्छा हो या बुरा, काम ही एक ऐसी चीज है, जो आप के गम को भुलाने में सहायक होती है. जिंदगी में साथी तो बहुत मिल जाएंगे, मगर यदि आप ने अपने काम का सम्मान नहीं किया तो आप खुद को भी खो देंगी. आप का काम भी आप के साथी की तरह आप के साथ हमेशा रहेगा. आप के साथी की तो फिर भी आप से कुछ अपेक्षाएं होंगी, मगर आप का काम बिना किसी अपेक्षा के आप को नाम और सम्मान दिलाने में सक्षम है.

कोरोना के चक्रव्यूह में युवा

हम युवाओं के सामने अँधेरा ही अँधेरा है ऐसा लगता है मानों हम किसी चक्रव्यूह में फंस गए हैं, भोपाल की 26 वर्षीय सोनिया व्यास जो कि ग्रेज्युएशन करने के बाद एमपीपीएससी की तैयारी कर रही हैं हताश लेकिन दार्शनिक भाव से कहती हैं , एक मैं ही नहीं बल्कि पूरी एक पीढ़ी अपने भविष्य और केरियर को लेकर दुविधा में है कि अब हमारा क्या होगा . अभी तो हमने जिन्दगी जीना शुरू ही किया है कि मौत सिरहाने आ खड़ी हुई है .

भोपाल के ही रचनानगर में रहने बाले 24 वर्षीय प्रतीक शुक्ला 2 साल पहले तक एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब कर रहे थे . कोरोना की पहली ही लहर ने उनसे न केवल नौकरी छीनकर उन्हें बेरोजगार कर दिया बल्कि माँ को भी छीन लिया . अब प्रतीक को कुछ नहीं सूझता वह ख़ामोशी से वक्त काट रहे हैं और कोरोना की भयावहता को ख़ामोशी से देख रहे हैं जो अभी खासतौर से युवाओं को और न जाने क्या क्या दिखाएगी और सिखाएगी भी . प्रतीक अब भविष्य की चिंता नहीं करते बल्कि थकी सी आवाज में कहते हैं जो होगा देखा जाएगा .

एक पत्रकारिता महाविद्धालय से जर्नलिज्म का कोर्स कर रहे मोहम्मद साद पछता रहे हैं कि उन्होंने गलत केरियर चुन लिया . साद को अब पत्रकारिता में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा क्योंकि थोक में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया घरानों से छटनी हो रही है और उसकी अधिकतर गाज युवाओं पर ही गिर रही है क्योंकि वे नातजुर्बेकार होते हैं .साद को ऐसा लगता भी नहीं कि हालात जल्द सुधरेंगे . पढ़ाई के आखिरी साल में उन्हें महसूस हो रहा है कि डिग्री लेने के बाद कहीं किसी कार्नर पर फ़ास्ट फ़ूड की दुकान खोल लेना ज्यादा बेहतर होगा .

यह कैसा डिप्रेशन –

बात एक दो या हजार दो हजार की नहीं बल्कि देश के कोई 60 करोड़ युवाओं की है जिनके तेवर अब युवाओं जैसे तो कतई नहीं दिखते . बात बात में हालातों और सिस्टम को कोसते रहने बाले युवा क्या समझौतावादी हो गए हैं ऐसा सोचने और न सोचने की कई वजहें इस कोरोना काल में सामने हैं . खासतौर से वे युवा ज्यादा दिक्कत में हैं जो पेरेंट्स की नजर में अभी भी बच्चे हैं शायद इसलिए कि उन्हें खर्च के लिए उनका मोहताज रहना पड़ता है .

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इस बारे में घर घर जाकर ट्यूशन पढ़ाने बाले इन्जीन्यरींग के एक छात्र आशीष लोवंशी का यह कहना अहम है कि युवाओं ने कभी इन परिस्थितियों की उम्मीद ही नहीं की थी आप इसे राष्ट्रीय स्तर पर और सन्दर्भों में देखें तो युवाओं की मानसिकता आसानी से समझ आएगी . कोरोना काल का संकट और हालात हर कोई देख रहा है . हर दूसरे तीसरे घर में कोरोना पीड़ित है और हर दसवें घर में कोरोना से किसी न किसी की मौत हुई है . ऐसे में कहीं से कोई खबर ऐसी नहीं आ रही है जो युवाओं में किसी तरह की उम्मीद जगाती हो .

अचानक बात का रुख सिरे से पलटते वे कहते हैं उत्तरप्रदेश के ग्राम पंचायत चुनावों में 3 फ़ीसदी युवा भी नहीं जीते हैं . पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जेएनयू की अध्यक्ष आईसी घोष की हार बताती है कि वक्त युवाओं का किसी भी लेबल पर नहीं है इस बात के कोई माने नहीं कि कोई युवा कम्युनिस्ट है , हिंदूवादी है या फिर कांग्रेसी है माने इस बात के हैं कि वह एक युवा है. आईसी या दूसरे युवा अगर जीतते तो युवा वर्ग में एक नया जोश पैदा होता . सारा ध्यान बेरोजगारी और हताशा पर क्यों उसे दूर करने के उपायों पर क्यों नहीं .

इसमें कोई शक नहीं कि युवाओं में पसरे इस डिप्रेशन की वजह उनका खुद को स्पेस लेस महसूसना है . कोरोना काल में लगता ऐसा है कि युवा मुख्यधारा से अलग थलग पड़ते जा रहे हैं शायद इसलिए कि इस दौर में घरों में उनकी अहमियत घटी है क्योंकि हर किसी की पहली प्राथमिकता खुद की जिन्दगी बचाना है और इस संक्रमण काल में युवा कुछ नहीं कर सकते . लेकिन यह सब तात्कालिक है और किसी तरह का पैमाना इसे नहीं कहा जा सकता फिर भी कुछ है जो अटक और खटक रहा है . वह क्या है इसे समझना जरुरी हो चला है जिससे आने बाले वक्त में युवा खुद को असहज महसूस न करें
तो वो जो सच है –

सोनिया , प्रतीक साद और आशीष जैसे युवाओं की परेशानी यह है कि उन्हें कोई आशा की किरण कहीं से नहीं दिख रही जबकि इनके सामने पूरी जिन्दगी पड़ी है . कोरोना काल में सब कुछ ठप्प पड़ा है जिसका असर सीधे युवाओं पर ज्यादा पड़ रहा है . सालों बाद ऐसा दौर आया है कि युवा एक आशंका , असुरक्षा और अनिश्चितता में जी रहे हैं . कोरोना और उससे पैदा हो रहे हालातों में ये खुद को फिट नहीं पा रहे तो लगता है कि इनकी अनदेखी की जा रही है जिसके कि ये आदी नहीं .

सच यह है कि आर्थिक असुरक्षा इनके सामने मुंह बाये खड़ी है . रोज रोज आते बेरोजगारी और नौकरी जाने के आंकड़े युवाओं में हताशा भर रहे हैं . आशीष की मानें तो वह ट्यूशन कर 10 हजार रु महीना कमा लेता था . आमदनी के अलावा इसके दूसरे फायदे ये थे कि बचा हुआ वक्त एक अच्छे काम में गुजर जाता था और बच्चों को पढ़ाने से कम्पटीशन एक्जाम्स की अच्छी तैयारी हो जाती थी . अकेले भोपाल में एक अंदाजे के मुताबिक कोई 20 हजार आशीष जैसे ट्यूटर हैं जिनसे एक झटके में कमाई का जरिया कोरोना के चलते छिन गया है .

ऐसे कई अस्थायी रोजगार एकाएक ही बंद हो गए हैं मसलन केटरिंग जिससे भी हजारों युवाओं को पार्ट टाइम रोजगार मिला हुआ था . भोपाल के एक नामी केटरर सुशील सक्सेना बताते हैं शादी और दूसरे समारोहों में लगभग 50 हजार युवाओं को रोजगार मिल जाता है लेकिन लाक डाउन के चलते हजार पांच सौ रु कमा लेने बाले युवा अब फालतू बैठे हैं .अपनी इवेंट कम्पनी चलाने बाले असीम चक्रवर्ती महीने में 30 हजार रु कमा लेते थे पिछले साल से कम्पनी बंद पड़ी है और इस साल भी बिजनेस होने की उम्मीद उन्हें नहीं . यही हाल डीजे और आर्केस्ट्रा कम्पनियों का है .

एक मोल में सिक्योरटी गार्ड का काम करने बाले मोहित की जमा पूंजी खर्च हो चुकी है हाल फ़िलहाल वे यहाँ वहां से उधार लेकर काम चला रहे हैं . एक सरकारी कालेज से बीकाम कर रहे मोहित का कहना है कि अगर जल्द हालात सामान्य नहीं हुए तो उनके पास वापस गाँव जाने के कोई और रास्ता नहीं बचेगा . पिता की आमदनी इतनी नहीं है कि वे शहर में रखकर उसे पढ़ा सकें . गाँव जाकर क्या करोगे , इस सवाल पर मोहित का झल्लाया जबाब यह है कि झख मारूंगा और बाप दादों जैसे मवेशी चराऊंगा .

लगभग यही जबाब 23 वर्षीय नेहा का है जो भोपाल के नजदीक बैरसिया से भोपाल आकर ज्वेलरी के शो रूम में सेल्स गर्ल का जॉब 20 हजार रु महीने पर कर रही थी . पिछले साल के लाक डाउन के बाद उसकी सेलरी 8 हजार रु कम हो गई थी इसके बाद भी वह जैसे तैसे काम चला रही थी . अब शायद इससे भी हाथ धोना पड़े , नेहा कहती है कोरोना असल में हम गरीबों पर ज्यादा कहर बनकर टूटा है जिन्हें कमाने खाने के लाले पड़ गए हैं ऐसे में अगर कोरोना की गिरफ्त में आ गए तो हालत क्या होगी यह सोचकर ही रूह काँप उठती है .

हल क्या –

जाहिर है हर तबके के युवा कोरोना से उपजे हालातों के शिकार हुए हैं और इसका दोष वे किसी को दे भी नहीं सकते . लेकिन क्या उनमें पसरी इस हताशा का कोई इलाज नहीं इस सवाल का जबाब किसी के पास नहीं . सरकार की भूमिका रत्ती भर भी युवाओं के हक की नहीं लग रही जो कोरोना पीड़ितों को इलाज और आक्सीजन की ही सहूलियत नहीं दे पा रही उससे क्या खाकर युवा किसी राहत या मदद की उम्मीद करें .

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कोरोना का कहर दूर होने के बाद भी युवाओं के सपने परवान नहीं चढ़ने लगेंगे जो साफ़ साफ़ देख रहे हैं कि अगले 3 – 4 साल इससे भी ज्यादा दुष्कर हो सकते हैं . 12 बी का इम्तहान दे रहे 18 वर्षीय अथर्व का कहना है अब लगता नहीं कि और ज्यादा पढ़ाई करने से कोई फायदा है तीन साल की डिग्री के लिए मम्मी पापा के 4 – 5 लाख रु लगवाने से तो बेहतर है कि इसे किसी बिजनेस में लगाकर इतना ही या इससे ज्यादा पैसा कमाया जाए . अभी तक उसका इरादा बीटेक कर आईटी सेक्टर में जाने का था पर अब उसने अपना प्लान इस दलील के साथ बदल दिया है कि नौकरी अगर मिल भी गई तो पैकेज इतना ही मिलेगा कि एक आदमी की गुजर हो सके और फिर अब घर से बाहर जाकर नौकरी करना और रिस्क का काम हो जाएगा .
क्या 18 साल का युवा इतने दूर की सोच सकता है तो इस सवाल का जबाब हाँ में ही निकलता है कि युवा अब अपना नफा नुकसान देखने लगे हैं . कोरोना ने उन्हें जिन्दगी का वह सबक सिखा दिया है जो कोई और नहीं सिखा सकता था वह यह कि सबसे पहले जितने जल्दी हो सके आत्मनिर्भर बनो और फिर अपने शौक पूरे करो , शौक पूरे करने के बाद आत्मनिर्भर बनने का दौर विदा हो रहा है क्योंकि युवाओं के दिल में यह बात गहरे तक बैठ गई है कि अगर पेरेंट्स कोरोना जैसी किसी बीमारी या अनहोनी का शिकार हुए तो फिर कोई मदद के लिए आगे नहीं आएगा . इसलिए कोरोना या उसके जैसा कोई दूसरा चक्रव्यूह भेदने जरुरी है कि वक्त से पहले सोचा और किया जाए .

Mother’s Day Special: मदर्स डे- भाग 3

आहिस्ताआहिस्ता सीढि़यां चढ़ कर अम्मां भी ऊपर आ गईं. बोलीं, ‘‘मुझे तो छत पर चढ़े महीनों हो गए होंगे. शांति ही आ कर छत पर झाड़ू लगा देती है.’’ ‘‘अम्मां मीरा बूआ कैसी हैं?’’

‘‘अच्छी हैं, बेटा. फूफाजी के जाने के बाद उन्हें संभलने में वक्त लगा, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी. दोनों बच्चे पढ़लिख कर नौकरी पर लग गए हैं.’’

‘‘रजत की बीवी कैसी है? बूआ से तो बहुत पटती होगी. हम लोगों से ही इतना लाड़ करती थीं, तो अपनी बहू को तो और भी ज्यादा प्यार करती होंगी.’’ ‘‘3-4 साल तो बहू की तारीफ करती रहीं… कुछ दिन पहले फोन आया था. अब सजल के साथ दूसरे फ्लैट में अलग रह रही हैं.’’

‘‘अच्छा.’’ ‘‘पहले जब बूआ छुट्टियों में रहने आती थीं तो क्या मस्ती होती थी. एक दिन खुसरो बाग, फिर एक दिन कंपनी बाग, फिर पिक्चर बस मजा ही मजा.’’

‘‘छोटी तुम बिलकुल चुप हो, क्या हुआ? सो गईं क्या?’’ ‘‘नहीं अम्मां, बातों में भला नींद कहां.’’

इरा कहने लगी, ‘‘दीदी आज तुम ताई को देख कर रो रही थीं. भूल गईं तुम्हारे बीटैक में दाखिले के समय इन्होंने कितना हंगामा किया था कि देवरजी पैसा कहां से लाएंगे. पहले क्व10 लाख पढ़ाई में खर्च करो, फिर क्व10 लाख शादी में. एक थोड़े ही है, 3-3 लड़कियां हैं.’’ ‘‘मीरा बूआ चिल्ला पड़ी थीं कि भाभी आप क्या परेशान हो रही हैं. ईशा मैरिट से पास हुई है. सरकारी कालेज में इतना पैसा नहीं लगता है. हर होशियार बच्चे को स्कौलरशिप भी मिलती है. अभी तक ईशा को हमेशा वजीफा मिला है. देखना उसे यहां भी मिलेगा.

‘‘खिसिया कर ताई बोली थी कि बीवीजी आप तो नाहक नाराज हो गईं. हम तो बेटियों की भलाई की ही बात कर रहे हैं. 1-1 कर तीनों ब्याह जाएं… कच्ची उम्र में बिटिया ससुराल में दब कर रह लेती है.’’ अब सुषमाजी भी मुखर हो उठी थीं, ‘‘हां, भाभी की सोच पुरानी थी, लेकिन मैं तो स्तंभ की तरह अपनी बेटियों के साथ खड़ी थी.

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‘‘शुरूशुरू की बात है. ईशा छोटी थी. सैंट मैरी स्कूल में नाम लिखाने के समय बहुत बवाल हुआ था. भाई साहब और भाभी ने बहुत शोर मचाया था कि ईशा का नाम वहीं लिखवाओ जहां भरत और लखन पढ़ते हैं. लेकिन मैं अकेले ईशा को साथ ले कर सैंट मेरी स्कूल गई. वहां उस का दाखिला करवा दिया. फिर तो रास्ता निकल पड़ा. तुम तीनों वहीं पढ़ीं. भाभी अकसर व्यंग्यबाण चलाती थीं. शुरूशुरू में तो तुम्हारे पापा भी मुझ से नाराज थे, लेकिन बाद में जब इस की अहमियत समझी तो तारीफ करने लगे. ‘‘इसी पढ़ाई की बदौलत तुम तीनों का जीवन बन गया. अच्छी नौकरी और अच्छा जीवनसाथी मिल गया. तुम तीनों अपनेअपने परिवार में सदा खुश रहो.’’

इरा कहने लगी, ‘‘मम्मी, आप हमेशा चुप रहती थीं. ताई शुरू से ही गरममिजाज थीं क्या? कुछ पुरानी बातें बताइए न?’’ ‘‘तुम्हारी ताई को बेटे होने का बहुत घमंड था. तुम्हारे दादीबाबा पापा के बचपन में ही चल बसे थे. ताऊजी ने ही पापा को पालपोस कर बड़ा किया. उन्हें पढ़ायालिखाया. दुकान करने के लिए भी पैसों से मदद की थी. इसीलिए पापा हमेशा ताईताऊजी की इज्जत करते थे.

‘‘तुम्हारे ताऊजी इंजीनियर थे, तुम ने देखा ही है. उन की अफसरी का और घूस की आमदनी का ताई को बहुत गुमान था. कभी छोटे शहर तो कभी बड़े शहर में उन की पोस्टिंग होती रहती थी. 2-4 नौकर उन को सरकार की ओर से मिला करते थे. इन सब कारणों से उन्होंने हमेशा मुझे और तुम तीनों को नीची निगाहों से देखा. ‘‘कभीकभी उन की बातें मेरे दिल में चुभ जाती थीं. पापा की आमदनी इतनी तो थी नहीं. सो अकसर सुनासुना कर दूसरों से कहतीं कि

3-3 पैदा कर ली हैं. छोटी सी दुकान से दालरोटी का जुगाड़ हो जाए वही बहुत है. ब्याह तो दूर की कौड़ी है, पास में पैसा है नहीं, ब्याह करते समय न हाथ फैलाएं तो कहना. मैं तो कुछ न दूंगी. मुझे भी तो अपने लड़कों के लिए और बुढ़ापे के लिए सोचना है. इरा छोटी थी तो इसे रात में दूध पीए बिना नींद नहीं आती थी, तो ताई कहतीं कि देवरजी तो सांप पाल रहे हैं. ‘‘मैं अपने कमरे में जा कर जी भर कर रो लेती थी, परंतु पापा की खुशी के लिए चुप रहती थी. बस हाथ जोड़ कर मन ही मन यही कामना करती थी कि तेरे पापा को कभी किसी के सामने हाथ न फैलाने पड़े.

‘‘धीरेधीरे तीनों बड़ी होती गईं तो झगड़ेझमेले कम होते गए. भरत और लखन पढ़ने के लिए बाहर चले गए. तुम दोनों भी ताई के स्वभाव को समझने लगी थीं. फिर ताऊजी का ट्रांसफर हो गया तो इन लोगों का आना भी होलीदीवाली पर ही होने लगा. ताऊजी ने लखनऊ में ही मकान बनवा लिया.’’ अम्मां के बारे में जान कर छोटी की आंखों से नींद कोसों दूर हो गई थी. वह सोच में पड़ गई कि अम्मां ताईजी की इतनी कड़वी बातों और व्यवहार के बावजूद आज भी कितने प्यार और इज्जत के साथ उन की देखभाल कर रही हैं और एक वह है कि शादी के 8 वर्ष होने को आए, लेकिन वह आज तक मम्मीजी (सासूमां) को प्यार और सम्मान नहीं दे पाई. उस में और दीपा भाभी में क्या अंतर है. वह भी तो मम्मीजी के साथ ऐसा ही व्यवहार करती आई है. उस ने तो दीपा भाभी से एक कदम आगे बढ़ कर नैट पर वृद्धाश्रम ढूंढ़ढूंढ़ कर लिस्ट तैयार कर आनंद को दे डाली है.

आज तो उस ने सारी सीमाएं तोड़ कर आनंद को अल्टीमेटम भी दे दिया कि इस घर में या तो मम्मीजी रहेंगी या वह.

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उस ने मम्मीजी को नौकरानी से ज्यादा कभी कुछ नहीं समझा. उन्होंने अकेले अपने कंधों पर सारे घर की जिम्मेदारी संभाल रखी है. आरुष को उन्होंने ही इतना बड़ा किया है. वह भी दादी की रट लगाए रहता है. उन्हीं का पल्लू पकड़ कर खातापीता है. आज भी उस के साथ नहीं आया. दादी से चिपक गया कि वह मम्मी के साथ नहीं जाएगा. बस इसी बात पर उस ने गुस्से में उसे 2 थप्पड़ मार दिए.

फिर तो बात बढ़ गई और फिर वह गुस्से में गाड़ी ले कर दीदी लोगों के पास एअरपोर्ट पहुंच गई. अब वह मन ही मन पछता रही थी कि वह यह क्यों नहीं सोच पाई कि जैसे उसे अपनी मम्मी प्यारी है वैसे ही आनंद को भी अपनी मम्मी प्यारी होगी. काश पहले उसे यह बुद्धि आई होती. सुबह होते ही सुषमाजी उठीं तो छोटी तैयार खड़ी थी. वह अपना बैग बंद कर जूते पहन रही थी.

सुषमाजी अचकचा कर बोली, ‘‘छोटी, सब ठीक तो है?’’ ‘‘अम्मां अभी तक तो ठीक नहीं था, लेकिन अब मैं सब ठीक कर लूंगी. आज आप ने अनजाने में ताई और दीपा भाभी की बातें बता कर मेरे मन को झकझोर दिया. अब मुझे तुरंत निकलना होगा वरना बात बिगड़ जाएगी. मैं मम्मीजी की गुनहगार हूं.

अम्मां इस बार आप ने मुझे मदर्स डे का ऐसा अनूठा उपहार दिया है कि यह जीवन को सही दिशा देगा.’’ जब तक सुषमाजी कुछ कहतीं, उस की गाड़ी रफ्तार पकड़ कर आंखों से ओझल हो चुकी थी.

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Mother’s Day Special: मदर्स डे- भाग 2

सुषमाजी ने छोटी के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘चुप हो जाओ छोटी… भाभीजी सुन लेंगी तो उन्हें कितना बुरा लगेगा.’’ ‘‘अम्मां, आप ने हमेशा हम तीनों को ही चुप कराया है.’’

अभी तक ईशा भी आ गई थी, ‘‘जब ताईजी पापा के सामने रो रही थीं तो बताओ भला पापा कैसे उन्हें यहां न लाते.’’ वह बोली. ‘‘ईशा दीदी, तुम तो सब भूल गई हो, लेकिन मैं ताईजी की बातें जिंदगी भर नहीं भूल सकती. याद नहीं है, जब भरत भैया ने तुम्हारी कौपी पानी में फेंक दी थी, तो तुम फूटफूट कर घंटों रोई थीं. तब ताई कैसे डांट कर बोली थीं कि कौपी ही तो भीगी है, फिर से लिख लेना. ऐसे दहाड़ें मार कर रो रही हो जैसे तेरा कोई सगा मर गया हो.’’

इरा बात संभालने के लिए बोली, ‘‘छोटी, भूल जाओ यार, जो बीत गया उसे भूलना ही पड़ता है.’’ ‘‘अम्मां आज डिनर में क्या खिला रही हो?’’

‘‘तुम तीनों जो कहेंगी बना दूंगी.’’ छोटी तुरंत चिल्ला पड़ी, ‘‘अम्मां मेरे लिए दही वाले आलू और परांठे बनाना.’’

‘‘ठीक है, सब के लिए यही बना दो,’’ ईशा और इरा ने भी छोटी की बात का समर्थन किया. ‘‘तुम तीनों अपने बच्चों को छोड़ कर आई यह बहुत गलत किया. बच्चों के बिना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘अम्मां, आजकल बच्चे हम लोगों की तरह अपनी मम्मी का पल्लू पकड़ कर नहीं रहते. उन की बहुत व्यस्त दिनचर्या होती है. किसी की क्लास, किसी की कोचिंग, किसी की पार्टी, तो किसी का कैंप. उन के पास इतना समय नहीं होता कि वे अपनी मम्मी के साथ 2-4 दिन इस तरह खराब करें.’’ सुषमा के साथ तीनों बेटियां अपने कमरे में आ गईं. शोे केस में लगी बार्बी डौल पर निगाह पड़ते ही इरा बोल पड़ी, ‘‘छोटी, देख तेरी पहली वाली बार्बी डौल आज तक अम्मां ने संभाल कर रख रखी है.’’

‘‘अम्मां की तो पुरानी आदत है… कूड़े को भी सहेज कर रखेंगी.’’

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ईशा भी कुछ याद कर के बोली, ‘‘याद है हम लोगों ने जब इस की शादी की थी. शादी अच्छी तरह निबट गई. खानापीना भी हो गया था. विदा करने के समय छोटी अपनी डौल को ले कर भाग गई थी. राधिका से लड़ाई कर के बोली थी कि मुझे नहीं देनी अपनी गुडि़या. तुम से मेरी आज से कुट्टी, किसी के समझाने से भी यह नहीं मानी थी.’’

तभी अम्मां की आहट से उन का ध्यान बंट गया.

‘‘अम्मां खाना बन गया?’’ इरा ने पूछा. ‘‘कब का. मैं ताई को खिला भी चुकी. तेरे पापा भी खा चुके हैं. मैं इंतजार करतीकरती थक गई तो तुम लोगों के पास आ गई कि देखूं मेरी रचनाएं कमरे में बैठी क्या बातें कर रही हैं.’’

ईशा प्यार से मां से लिपट कर बोली, ‘‘पहले की तरह किचन से डांट कर पुकारतीं तो मजा आ जाता.’’ ‘‘बेटा तब बात और थी. अब कहां रहे

वे दिन.’’ ‘‘अम्मा आप ने परांठे नहीं सेंके?’’

‘‘2 दिनों के लिए आई हो… गरमगरम खिलाऊंगी कि ठंडे परोसूंगी.’’ प्यार से अम्मां से लिपटते हुए छोटी बोली, ‘‘आज अम्मां के लिए मैं परांठे सेंकूंगी… पहले आप खाएंगी, फिर हम तीनों.’’

सुषमाजी की आंखें भर आईं. इस तरह प्यार से तो उन्होंने अपने बचपन में अपनी मां के हाथों ही खाया था. फिर डबडबाई आंखों से बोलीं, ‘‘छोटी अब बड़ी और जिम्मेदार बन गई है. लगता है अपनी मम्मीजी को ऐसे ही प्यार से खिलाती है.’’ यह सुनते ही छोटी के चेहरे का रंग उड़ गया.

सुरेशजी को बैठा देख ईशा बोली, ‘‘अरे पापा, आज आप भी अभी तक जाग रहे हैं.’’ ‘‘अपनी लाडलियों के साथ बैठने की चाह में आज इन्हें नींद कहां?’’

‘‘अम्मां आज हम लोग पहले की तरह जमीन पर बैठ कर खाएंगे. कितना मजा आता था जब हम तीनों बहनें एक परांठे के 3 टुकड़े कर के साथसाथ खाती थीं.’’ इरा कुहनी मारते हुए बोली, ‘‘दीदी, पापा को अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘नहींनहीं, तुम तीनों को एकसाथ वैसे ही खाते देख कर खुशी होगी मुझे, क्योंकि पहले तो इसलिए डांटता था कि तुम लोग टेबल मैनर्स अच्छी तरह सीख सको.’’ ‘‘हां पापा, आप ने ही तो हम लोगों को हाथ में कांटा पकड़ना सिखाया था,’’ कह तीनों खाना खा कर अपने कमरे में पलंग पर पसर गईं. पीछेपीछे सुषमाजी भी आ गईं.

‘‘आप लेटो अम्मां. आज थक गई होंगी.’’ ‘‘तुम लोग लेटो… मैं तो देखने आई थी कि देख लूं कुछ जरूरत तो नहीं है.’’

‘‘पापा सो गए क्या?’’ हां, पापा तो लेटते ही खर्राटे भरने लगते हैं. उन की तो पुरानी आदत है. मुझे ही नींद नहीं आती. घंटों करवटें बदलती रहती हूं. ‘‘अम्मां आप कुछ कमजोर दिख रही हैं… चेहरे पर परेशानी सी झलक रही है. किसी भी तरह की कोई दिक्कत हो तो बताओ न.’’

‘‘नहीं बेटा, तुम्हारे पापा मेरा बहुत खयाल रखते हैं. अभी तो हम दोनों बिलकुल ठीक हैं… कल किसी को कोई तकलीफ हुई तो क्या होगा, बस यही चिंता सताती है.’’ तीनों बहनें उठ कर सुषमाजी से लिपट कर बोलीं, ‘‘हम किस मर्ज की दवा हैं… यह कैसे सोच लिया आप ने कि आप दोनों अकेले हैं… हम लोग दिन भर में 2-3 बार आप को क्यों फोन करते हैं? इसीलिए न?’’

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‘‘आओ आज हमारे साथ ही लेटो, कह तीनों बहनों ने उन्हें पकड़ कर अपने साथ लिटा लिया.’’ ‘‘तभी बिजली चली गईं. गरमी से सभी पसीनापसीना हो गईं.’’

‘‘बिजली का क्या भरोसा कब आए. चलो छत पर लेटते हैं,’’ ईशा बोली तो तीनों बहनें छत पर आ गईं.

एक अरसे बाद छत पर लेटने का आनंद ही अनूठा था. सिर पर चमकता पूर्णिमा का चांद, ठंडी बयार जैसे अमृत बरसा रही हो. अनगिनत चमकते तारे देख तीनों बहनें अपने बचपन में खो गईं…

ईशा कहने लगी, ‘‘न्यूयौर्क और लंदन के फ्लैट और होटल वाली व्यस्त जिंदगी में इस स्वर्णिम अनूठे आनंद की अनुभूति करना संभव ही नहीं है. काश, बच्चे भी हम लोगों के साथ आते.’’ इरा कुछ याद करते हुए बोली, ‘‘हम लोग छोटे थे तब कैसे पूरी छत पर बिस्तर लगते थे. अम्मां मिट्टी की सुराही ले कर ऊपर आती थीं. सुराही के पानी में मिट्टी की कितनी सोंधीसोंधी महक आती थी.’’

पुरानी यादों के साए में सब की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. ‘‘भरत भैया और लखन भी हम लोगों के साथ ही सोने की जिद करते थे, लेकिन ताईजी हमेशा उन्हें डांट कर बुला लेती थीं,’’ छोटी बोली.

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Mother’s Day Special: मदर्स डे- भाग 1

‘‘अम्मां,हैप्पी मदर्स डे.’’ ‘‘थैंक्स बेटा.’’

‘‘कौन था?’’ ‘‘ईशा थी.’’

‘‘तुम्हारी बेटियां भी न उठते ही फोन पर शुरू हो जाती हैं.’’ ‘‘आप से बात नहीं करतीं क्या?’’

‘‘मुझे इतनी बातें आती ही कहां?’’ तभी फिर फोन बज उठा. उधर इरा थी. उस का तो रोज का समय तय है. सुबह औफिस के लिए निकलते हुए जरूर फोन करती है.

‘‘अम्मां हैप्पी मदर्स डे’’ ‘‘थैंक्स बेटा’’

इरा ने हंसते हुए पूछा, ‘‘अम्मां, इस बार क्या गिफ्ट लोगी?’’ ‘‘कुछ भी नहीं बेटा. मैं ने पहले भी कहा था कि तुम तीनों एकसाथ आओ और 2-4 दिन रह जाओ.’’

‘‘आप भी अम्मां… अभी तो मुझे आए साल भी नहीं हुआ है.’’ ‘‘वह भी कोई आना था. सुबह आई थीं और अगली सुबह चली गई थीं.’’

‘‘ठीक है अम्मां प्रोग्राम बनाते हैं.’’

अगले दिन शाम के 7 बज रहे थे. सुषमाजी पति सुरेश के साथ बैठी चाय पी रही थीं. तभी दरवाजे की घंटी बजी. वे पति से बोलीं, ‘‘आज दूध वाला बहुत जल्दी आ गया.’’

‘‘दरवाजा भी खोलोगी कि बातें ही बनाती रहोगी,’’ सुरेशजी बोले. वे खिसिया कर बोलीं, ‘‘क्या दरवाजा आप नहीं खोल सकते? सारे कामों का ठेका क्या मेरा ही है?’’

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फिर दरवाजा खोलते ही सुषमाजी चौंक उठीं. दरवाजे पर छोटी खड़ी थी. वह मम्मी से एकदम से लिपट कर बोली, ‘‘हैप्पी मदर्स डे मौम.’’ ‘‘तुम ने बताया क्यों नहीं? पापा स्टेशन लेने आ जाते.’’

‘‘लेकिन मैं तो गाड़ी से आई हूं.’’ ‘‘गोलू और आदित्य कहां हैं?’’

‘‘अम्मा मैं अकेले आई हूं, गोलू समर कैंप में और आदित्य टूअर पर.’’ बेटी की आवाज सुनते ही सुरेशजी भी बाहर आ गए और फिर छोटी को बांहों में भर कर बोले, ‘‘आओ अंदर चलें. तुम्हारी मम्मी की तो बातें ही कभी खत्म नहीं होंगी.’’

पीछे से ईशा और इरा दोनों ने आवाज लगाई, ‘‘पापा हम दोनों भी हैं.’’ सुषमाजी और सुरेशजी तीनों बेटियों को एकसाथ अचानक आया देख आश्चर्यचकित हो उठे. वे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

सुषमाजी का दिमाग किचन में क्याक्या है, इस में उलझ गया था. इरा बोली, ‘‘मां परेशान क्यों दिख रही हो? आप ही कब से कह रही थीं कि तीनों साथ आओ तो हम तीनों साथ आ गईं.’’

‘‘सोच रही हूं, तुम लोगों के लिए जल्दी से क्या नाश्ता बनाऊं.’’ ‘‘बस सब से पहले अपने हाथों की अदरक वाली गरमगरम चाय पिलाओ. हम सब के लिए गरमगरम जलेबियां और कचौडि़यां लाई हैं,’’

इरा बोली. ‘‘सुषमा… सुषमा… मुझे बताओ तो कौन आया है?’’

छोटी बोली, ‘‘यह तो ताईजी की आवाज लग रही है.’’ ‘‘अम्मां, आप ने बताया नहीं कि ताई यहां हैं?’’ ईशा बोली.

‘‘क्या करती, तुम लोगों को बताती, तो तुम तीनों नाराज होतीं. इसीलिए मैं ने किसी को नहीं बताया.’’

‘‘भरत और लखन ने मिल कर अपना मकान बेच दिया. जेठानीजी को अपने साथ ले गए. दोनों हैदराबाद में रहते हैं. 15 दिन एक के घर 15 दिन दूसरे के घर. रोधो कर यह व्यवस्था 7-8 महीने चली. ‘‘भरत और उस की बहू अवनी की व्यस्त दिनचर्या में भाभी के लिए किसी के पास समय ही नहीं था. सुखसुविधा के सारे साधन मौजूद थे, परंतु मशीनी जिंदगी में वह हर क्षण खुद को अकेली और उपेक्षित महसूस करती थीं. मुंह अंधेरे अवनी अपनी गाड़ी निकाल कर औफिस के लिए निकल जाती थी. 8 बजे तक भरत भी बाय मौम कह कर चल देता था.

‘‘घर में दिन भर नौकरानी रहती, जो समयसमय पर खाना, नाश्ता बना कर देती रहती थी. दोनों देर रात घर आते. डाइनिंगटेबल पर बैठ कर अंगरेजी में गिटरपिटर करते हुए उलटापुलटा खाते और फिर कमरे में घुस जाते. शनिवार व रविवार को उन्हें आउटिंग और पार्टियों से ही फुरसत नहीं रहती. ‘‘लखन के यहां की दूसरी कहानी थी. भाभी को देखते ही नौकरानी की छुट्टी कर दी जाती. सुबह बच्चों के टिफिन से ले कर रात के दूध तक का काम भाभी को करना पड़ता. भाभी काम करकर के परेशान हो जातीं, क्योंकि दीपा खुद तो कोई काम नहीं करती पर भाभी के हर काम में मीनमेख निकाल कर उन्हें शर्मिंदा करने से कभी नहीं चूकती.

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‘‘लखन बीवी के सामने जबान खोलने से डरता था और भाभी को भी चुपचाप काम करने की सलाह देता था, क्योंकि वह औफिस में दीपा से काफी जूनियर पोस्ट पर था. इसीलिए बीवी से बहुत डर कर रहता था. दीपा परीक्षाएं पास करती हुई मैनेजर बन गई थी. लखन एक भी परीक्षा पास नहीं कर सका था. ‘‘भाभी लखन के यहां ही बाथरूम में फिसल गई थीं और पैर की हड्डी टूट गई थी, भरत ने प्लास्टर बंधवा दिया था, लेकिन इन्होंने यहां आने की जिद पकड़ ली. फोन पर पापा से रोरो कर बोलीं कि भैयाजी, मुझे जीवित देखना चाहते हो, तो आ कर अपने साथ ले जाओ.’’

‘‘तुम्हारे पापा ने एक क्षण की भी देर नहीं की. टैक्सी कर के गए और भाभी को ले कर आ गए. अब तो भाभी काफी ठीक हो गई हैं. छड़ी ले कर चलने लगी हैं.’’ ताई के विषय में सारी बातें सुन कर ईशा तो सिसकती हुई अंदर चली गई और ताई का हाथ पकड़ कर बैठ गई.

इरा कहने लगी, ‘‘भरत भैया तो ऐसे नहीं थे… लखन तो शुरू से ही ऐसा था.’’

सुषमाजी चाय बना कर ताई के पास ही ले कर आ गई थीं. ताई फूटफूट कर रो रही थीं, ‘‘ईशा हम ने सुषमा को कभी चैन से नहीं रहने दिया. यह ब्याह कर

आई तो तुम्हारे ताऊजी और पापा के कान भर दिए कि पढ़ीलिखी बहू ला रहे हो सब को अपनी उंगलियों पर नचाएगी,’’ फिर अपने आंसू पोंछते हुए इरा से बोली, ‘‘तुम लोग बताओ कैसी हो? तीनों को एकसाथ देख कर मेरा कलेजा ठंडा हो गया.’’

‘‘ताईजी आप कैसी हैं?’’ ‘‘बिटिया हम तो अपने कर्मों का फल भुगत रहे हैं… सुषमा से हमेशा दुश्मनी करते रहे… आज वही मेरी खिदमत कर रही है.’’

तभी छोटी ताई से धीमी आवाज में यह कह कर कि अभी आई अम्मां के पास किचन में आ कर खड़ी हो गई. वह बचपन से गुस्सैल और मुंहफट थी. अम्मां से फुसफुसा कर बोली, ‘‘बहुत अच्छा हुआ… हम तीनों की नाक में दम किए रहती थी… ईशा दीदी को तो कभी चैन ही नहीं लेने देती थीं. बातबात में डांटती रहती थीं. इरा दीदी को तो काला जिराफ कह कर पुकारती थीं… बेटों का बड़ा घमंड था न.’’ फिर कुछ देर चुप रहने के बाद फिर वह क्रोधित हो कर पापा से बोली, ‘‘पापा, आप भी कम थोड़े ही हो. क्या जरूरत थी ताईजी को यहां लाने की? अम्मां के लिए आप ने एक मुसीबत खड़ी कर दी है.’’

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Mother’s Day Special: कहानी कोरोना योद्धा मां की…

लेखिका- “ज्योत्सना गुप्ता अग्रवाल”

यूं तो हर मां योद्धा होती है तभी तो मृत्यु के मुंह में जाकर नव जीवन को जन्म देती है,ऐसा दुनिया में कोई काम नहीं जो मां ना कर सके और जब यही मां कोरोना योद्धा के रूप में सामने आती है तो क्या ही कहना…..ऐसी ही एक कोरोना योद्धा मां की कहानी मैं प्रस्तुत करने जा रही हूं……

मेरी पड़ोसन और बहुत ही अच्छी मित्र ”सुमन वर्मा जी” “स्वास्थ विभाग प्रदेश सरकार” ANC/PNC के पद में कार्यरत हैं घर में दो छोटी प्यारी बच्चियाँ और बूढ़े सास-ससुर,दादी सास भी हैं इन सब की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह वहन करके ये रोज़ सुबह अपने कर्तव्य को धर्म समझ कर पूरा करने निकल पड़ती हैं.

कभी मरीज़ों के सैम्पल कलेक्ट करने तो कभी क्वोरंटीन मरीज़ों की स्क्रीनिंग करने, इस वर्ष टीकाकरण और मरीज़ों को कोरोना किट देकर होम आइसोलेट करके उनकी तबियत का जाएजा लेना…चिंतित यें भी होती है अपने परिवार की लिए फिर भी पूरी हिम्मत और जोश के साथ वो अपनी बेटियों का पूरा ख़्याल रख रहीं हैं.

सुमन कहतीं हैं की बेटियों का प्यार,परिवार का साथ ही उन्हें हिम्मत देता है मरीज़ों का स्वस्थ होकर मुस्कुराता हुआ चेहरा उन्हें हौसला देता है वो मां है ज़ाहिर है वात्सल्य भाव तो उनकी रग रग में है चाहे घर पर बेटियां हों या कार्यस्थल पर मरीज़, वो दोनो का ख़्याल जी जान से रखतीं हैं वो भी अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ,  बिना किसी संक्रमण के डर के.

MOTHERS DAY 2021

वो अपना कर्तव्य भलीभांति जानती हैं,साथ ही जान कि क़ीमत पहचानती हैं इसलिए उनकी कोशिश हमेशा यही रहती है कि वो एक कोरोना योद्धा के रूप में अपना ज़्यादा से ज़्यादा योगदान दे सकें सुमन कहतीं हैं के ”सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥” इसी बात को ज़हन में रखकर ही वो अपना कार्य करती है सब रोगमुक्त हों,सब सुखी हों…..

सलाम है इन मां के जज़्बे इनकी बहादुरी को, इनके कार्यकुशलता इनकी कर्तव्यनिष्ठा को जो इतने कठिन समय में अपना परिवार और स्वास्थ्य की परवाह किए बिना हरसंभव प्रयासरत हैं सिर्फ़ इसलिए कि हम सुरक्षित रहें हमारा देश सुरक्षित रहे………एक मां की कलम से कोरोना योद्धा मां को समर्पित

अगर आप भी ऐसी ही किसी मां को जानते हैं तो उनकी कहानी हमसे शेयर कीजिए, जिसे हम ‘गृहशोभा वेबसाइट’ के जरिए लोगों तक पहुंचाएंगे.
 
आखिरी तारीख- 15 मई, 2021
(आपकी स्टोरी कम से कम 300 शब्दों की होनी चाहिए)
इस आईडी पर भेजें- grihshobhamagazine@delhipress.in

MOTHERS DAY 2021

‘अनुपमा’ को भूल ‘काव्या’ के साथ मस्ती करते दिखे बच्चे, तो पत्नी से बोले वनराज- ‘आती क्या खंडाला’

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचा रहा है. वहीं मेकर्स आने वाले एपिसोड में नए धमाकेदार ट्विस्ट लाने वाले हैं, जिसे देखकर फैंस खुश हो जाएंगे. वहीं शो के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो नंदिनी और समर की सगाई में काव्या ने बवाल मचा दिया है, जिसके कारण वनराज गुस्से में नजर आ रहा है और सीरियल में सीरियल माहौल देखने को मिल रहा है. इसी बीच शो के सेट पर काव्या यानी मदालसा शर्मा और समर( Paras Kalnawat), नंदिनी (Angha Bhosale) और किंजल (Nidhi Shah ) का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसे देखकर फैंस अपनी हंसी नहीं  रोक पाएंगे. आइए आपको दिखाते हैं अनुपमा के सेट पर कलाकारों की मस्ती…

शूटिंग पर मस्ती करते दिखे ‘अनुपमा’ के सितारे

 

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दरअसल, सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की शूटिंग इन दिनों गुजरात में हो रही है, जिसके चलते सेट पर काम खत्म करने के बाद सभी कलाकार एक ही होटल में हैं. वहीं जमकर मस्ती भी कर रहे हैं. दरअसल,  मदालसा शर्मा का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वो पारस कलनावत, निधि शाह (Nidhi Shah) और अनघा भोसले (Angha Bhosale) संग धमाल मचाती हुई नजर आ रही हैं. वहीं सीरियल से अलग सभी का अलग रुप देखने को मिल रहा है.

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नंदिनी संग मस्ती करती दिखीं काव्या

सेट पर मस्ती का एक और वीडियो मदालसा शर्मा ने शेयर किया है, जिसमें वह नंदिनी यानी अनघा भोसले संग मस्ती करती नजर आ रही हैं.

किंजल की हुई वापसी

बीते दिनों कोरोना का शिकार हो चुकीं किंजल यानी एक्ट्रेस निधि शाह भी एक बार फिर शो में लौट आई हैं. वहीं शो में उनका वेलकम औनस्क्रीन देवर यानी पारस कलनावत ने किया है, जिसकी फोटोज पारस ने अपने सोशलमीडिया पर शेयर की हैं.

 

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बता दें, सीरियल में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ काव्या, वनराज की जिंदगी में वापस आने की कोशिश कर रही है तो वहीं अनुपमा की बीमारी के चलते वनराज ने तलाक से मना कर दिया है. अब देखना ये है कि वनराज के इस फैसले से अनुपमा की जिंदगी में क्या बदलाव देखने को मिलते हैं.

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जानें क्या है ‘रामयुग’ एक्ट्रेस ऐश्वर्या ओझा की सफलता का राज, पढ़ें खबर

बचपन से अभिनय की इच्छा रखने वाली मॉडल और अभिनेत्री ऐश्वर्या ओझा इंदौर की हैं. उन्हें बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, जिसे पूरा करने में साथ दिया उनकी माता डॉ.हेमलता ओझा, जो पेशे से एक लेक्चरर है और पिता महेंद्र ओझा जो एक वकील है. ऐश्वर्या एक डांसर है और छोटी उम्र से कत्थक सिखती आई हैं. कला के प्रति प्रेम उन्हें बचपन से रहा. इंदौर से मुंबई आकर काम करना सहज नहीं था, इसलिए मुंबई आकर उन्होंने थिएटर ज्वाइन किया, कला की बारीकियां सीखी और कई विज्ञापनों में काम किया. स्वभाव से विनम्र और हंसमुख ऐश्वर्या ओझा इस समय एम एक्स प्लेयर पर वेब शो रामयुग में सीता की भूमिका निभा रही हैं. उनसे वर्चुअल इंटरव्यू हुई, पेश है अंश.

सवाल-इस वेब शो में काम करने की खास वजह क्या है?

ये बहुत स्पेशल और अलग तरह की कहानी है. मैं इसे अलग-अलग फॉर्म में पढ़ चुकी हूं और ऐसी कहानी का हिस्सा बनना मेरे लिए बड़ी बात है.

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सवाल-इस कोरोना समय में आपने कैसे शूटिंग की? जबकि शूटिंग करते हुए कई कलाकार पॉजिटिव हो चुके है?

इस फिल्म की शूटिंग कोविड से पहले हुआ है. केवल रिलीज का इंतज़ार था. इसके अलावा अभी जितने कलाकार शूटिंग कर रहे है, उन सभी को कोविड की गाइडलाइन्स को फोलो करते रहना है. हालाँकि सेट पर इसका पालन करने के बाद भी लोग पॉजिटिव हुए है. ये बीमारी बहुत ही खतरनाक है और इससे सभी को बचने की जरुरत है, क्योंकि हेल्थ से अधिक कुछ भी नहीं है.

सवाल-मुंबई में शूटिंग बंद होने की वजह से कुछ लोग बाहर जाकर शूटिंग कर रहे है और वे इसे छिपा रहे है, जबकि उन्हें ऐसा करना उचित नहीं, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

मैं इस बात से बिल्कुल सहमत हूं, क्योंकि अगर कोविड की वजह से शूटिंग बंद किया गया है, तो इसकी वजह लोगों को घर में रहना है, बाहर निकलना नहीं. कलाकार को सेल्फिश होना उचित नहीं, क्योंकि हर घर में बुजुर्ग रहते है, इसलिए अपने दायित्व को समझते हुए उन्हें खुद और अपने परिवार वालों की खातिर कोविड के नियमों का पालन करना उचित होगा.

सवाल-सीता की भूमिका को निभाना कितना मुश्किल था, जबकि आप एक मॉडर्न गर्ल है?

ये भूमिका मेरे लिए कठिन था, इसलिए मैं फिल्म के निर्देशक कुनाल कोहली से मिली और उनके विजन को समझने की कोशिश की. ये एक पीरियड ड्रामा है, इसलिए इसके हाँव-भाँव को समझने में समय लगा.

सवाल-एक्टिंग की फील्ड में आना इत्तफाक था या बचपन से सोचा था, परिवार का सहयोग कितना रहा?

मैं बचपन से डांस करती थी और 10 साल की उम्र में कत्थक सीखना शुरू कर दिया था. हर अवसर पर मैं मंच पर परफॉर्म किया करती थी. 12 साल की उम्र में मैंने थिएटर में सीता की भूमिका निभाई थी. इसके बाद कॉलेज के दौरान मैने कई थिएटर भी की. आर्किटेक्चर की पढाई करते हुए मुझे बोरिंग महसूस होने लगा, क्योंकि मैं कत्थक और थिएटर से दूर होती जा रही थी. पढाई ख़त्म करने के बाद मैंने पेरेंट्स को अभिनय की इच्छा बताई और उन्होंने तुरंत मुझे हाँ कह दिया और मैं मुंबई आ गयी.

सवाल-पहला ब्रेक कब मिला?

मुंबई आने के बाद मैंने कुछ विज्ञापनों में काम किया, फिर इस वेब शो का ऑफर मिला, जिसे करने में बहुत मज़ा आया.

सवाल-सीता के चरित्र से आपने क्या सीखा?

सीता एक साहसी और स्वाभिमानी महिला थी. उसकी ग्रेस और स्ट्रेंथ को अगर मैं अचीव कर लूँ, तो बहुत ख़ुशी की बात होगी.

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सवाल-महिलाएं आज हर क्षेत्र में है, लेकिन उन्हें ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ता है, क्या आप इस तरह की किसी घटना को अपनी जिंदगी में देखा है?

मुझे ऐसा कभी अनुभव नहीं हुआ, लेकिन मैंने देखा है कि 21वीं सदी में महिलाएं आज सबकुछ कर रही है, लेकिन काम के साथ परिवार को सम्हालने की बात उनसे ही हमेशा पूछने की वजह मुझे नहीं समझ में आती, लड़कों को कभी ऐसा क्यों नहीं पूछा जाता. ये सब मुझे हमेशा परेशान करती है.

सवाल-क्या आउटसाइडर होने की वजह से आपको कभी संघर्ष करना पड़ा?

मुझे कभी अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि मेरे पेरेंट्स ने मानसिक सहयोग अधिक दिया है, जो यहाँ देने की बहुत जरुरत है. मैंने ऑडिशन दिया और जिस भूमिका को करने के लिए मैं उत्सुक थी, उसके न मिलने पर मायूसी होती थी,ऐसे में मैने हमेशा अपनी माँ से बात की है. माँ हमेशा मेरी हौसलाअफजाई करती थी. ये सब चीजें मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है. काम के लिए यहाँ कई सौ ऑडिशन देने पड़ते है, फिर उसमें से सिर्फ 1 भूमिका आपको मिलती है. मैं उसके लिए हमेशा तैयार रहती हूं.

सवाल-समय मिलने पर क्या करती है?

मैं अपने डांस की प्रैक्टिस करती हूं. मुझे कत्थक और योगा बहुत पसंद है. इसके अलावा मुझे खाना बनाना भी अच्छा लगता है.

सवाल-आपकी ड्रीम क्या है?

सफल होने के बाद मैं मुंबई में एक अपना घर लेना चाहती हूं, ताकि दोनों मेरे साथ रह सकें, क्योंकि माँ को मुंबई बहुत पसंद है.

सवाल-इंडस्ट्री में आने के बाद आपके विचार कितने बदले है?

जब मैं यहाँ आई थी, तो मुझे इंडस्ट्री के बारें में कुछ भी पता नहीं था. काफी नया था, पर यहाँ के लोग काफी प्रोफेशनल और डेडीकेशन के साथ काम करते है. वह मेरे लिए आश्चर्य की बात है.

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सवाल-माँ के साथ बिताया कोई पल, जिसे आप मिस करती है?

माँ की बात सुनते ही मैं भावुक हो जाती हूं, क्योंकि वे इंदौर में है और मैं यहाँ मुंबई में हूं. माँ ने मेरे कैरियर, एक्टिंग और डांस में बहुत सहयोग दिया है. उसका कोई मोल नहीं है. कई लोग बाहर जाना चाहते है, पर कई समस्याओं के चलते वे नहीं जा पाते. हर बात मैं उनसे शेयर करती हूं.

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