Senco Gold: वेडिंग सीजन में रिश्तों को दें नया रंग

शादी के सीजन में मस्ती जमकर होती है. जहां बरसों बाद रिश्तेदार मिलते हैं तो वहीं कजिन्स की मस्ती से पूरा घर खुशनुमा हो जाता है. वहीं इन सब चीजों में कई सारी चीजें होती हैं, जिनकी तैयारी करनी पड़ती है और जब शादी किसी खास की हो तो कपड़े हो या ज्वैलरी सभी का ध्यान रखना पड़ता है. वहीं इन सब में सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है गिफ्ट की. कुछ ऐसी ही जिम्मेदारी सोनिया भी महसूस कर रही थी.

दरअसल, सोनिया की बड़ी बहन नीलिमा की शादी है. बचपन से छोटी बहन होने के नाते सोनिया, नीलिमा से अपनी हर जिद मनवाती और कई बार उसे अपने हिस्से की चीजें भी दे देती. लेकिन आज जब वो उससे दूर जा रही थी तो सोनिया को अहसास हुआ कि उसकी बहन उससे कितना प्यार करती है. इसलिए सोनिया अपनी बहन को कुछ खास गिफ्ट करना चाहती थी. वह चाहें तो उसे कुछ भी दे सकती थी. लेकिन वह चाहती थी कि बहन के इस खास दिन पर वह उसे ऐसा गिफ्ट दे, जिसे वह उम्र भर अपने साथ संभाल कर रख सके.

सोनिया को याद आया बचपन में एक बार सोनिया और नीलिमा के पापा दोनों के लिए दो सुंदर गोल्डन झुमके लेकर आए थे लेकिन सोनिया ने नीलिमा की चेन जबरदस्ती ले ली और नीलिमा ने भी उसे खुशी खुशी वो झुमके पहनने दिए. आज सोनिया अपनी वो गलती सुधारने वाली थी.

सोनिया ने अपनी मां को ये बात बताई और उसकी मां भी अपनी छोटी बेटी की समझदारी देखकर खुश हुई. दोनों Senco Gold and Diamonds के स्टोर पहुंचे और वहां से एक खूबसूरत गोल्डन झुमके खरीदें.

सोनिया ने नीलिमा के वेडिंग ज्वेलरी बॉक्स में ये झुमके छुपा दिए और साथ ही बचपन की उस याद का जिक्र करते हुए अपनी बहन से माफी मांगी और उसके लिए अपने प्यार को एक खत में लिखकर रख दिया. जब शादी के दिन तैयार होते वक्त नीलिमा ने ये झुमके और खत देखे तो उसकी आंखों में आंसू आ गए. अपनी छोटी बहन का ये प्यार देखकर उसका दिल भर आया. शादी में उसे कई तोहफे मिले थे लेकिन छोटी बहन के इस तोहफे ने उसकी शादी को और भी यादगार बना दिया था.

अगर आप भी Senco Gold and Diamonds से किसी अपने को ऐसे ही तोहफा देना चाहते हैं तो देर मत कीजिए.

Serial Story: फैसला दर फैसला- भाग 4

पिछला भाग- फैसला दर फैसला: भाग 3

पिछले वर्ष उस का एक मित्र उसे वहां ले गया था. काफी नाम कमाया उस ने. पैसा भी कमाया… मैं बहुत खुश थी. देर से ही सही मेरे सुख का सूरज उदित तो हुआ. लेकिन वह मेरा भ्रम था… उस ने दूसरा विवाह कर लिया है.’’

‘‘विवाह?’’

‘‘हां दीदी… तुम्हारी तरह फटी आंखों से एकसाथ कई सवाल मेरे चेहरे पर भी उभर आए थे… हमारा तलाक तो हुआ ही नहीं था.

‘‘मन ने धीरे से हिम्मत बंधाई कि उस के पास पैसा है, खरीदे हुए रिश्ते हैं तो क्या हुआ, सच तो सच ही है, हिम्मत मत हार.

‘‘दरवाजा खोलो, दरवाजा खोलो… मुझे न्याय दो, मेरा हक दो… झूठ और फरेब से मेरी झोली में डाला गया तलाक मेरी शादी के जोड़ से भारी कैसे हो सकता है? न जाने किस अंधी उम्मीद में मैं ने अदालत का दरवाजा खटका दिया.

‘‘आज अपने मुकदमे की फाइल उठाए कचहरी के चक्कर काटती मैं खुद एक मुकदमा बन गई हूं. आवाज लगाने वाले अर्दली, नाजिर, मुंशी, जज, वकील, प्यादा, गवाह सभी मेरी जिंदगी के शब्दकोश में छपे नए काले अक्षर हैं. रात के अंधेरे में मैं ने जज की तसवीर को अपनी पलकों से चिपका पाया है. न्यायाधीश बिक गया… बोली लगा दी चौराहे पर मेरी चंद ऊंची पहुंच के अमीर लोगों ने.

‘‘लानत है… यह सोचने भर से मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है… भावनाओं के भंवर में डूबतीउतराती कभी सोचती हूं मेरा दोष ही क्या था, जिस की उम्रकैद की सजा मिली मुझे और फांसी पर लटकी मेरी खुशियां?’’ न चाहते हुए भी फाड़ कर फेंक देने का जी चाहता है उन बड़ीबड़ी, लाल, काली किताबों को, जिन में जिंदगी और मौत के अंधे नियम छपे हैं… निर्दोषों को सजा और कुसूरवारों को खुलेआम मौज करने की आजादी देते हैं. जीने के लिए संघर्ष करती औरत का अस्तित्व क्यों सदियों से गुम होता रहा है. समाज की अनचाही चिनी गई बड़ीबड़ी दीवारों के बीच?’’

‘‘एक निजी प्रश्न पूछूं इशिता?’’

‘‘हूं… पूछो.’’

‘‘जिंदगी में फिर कोई हमसफर नहीं मिला? मेरा मतलब है पुनर्विवाह का विचार फिर कभी मन में नहीं आया?’’ मैं ने उसे चुभते प्रश्नों के जंगल में भटकने के लिए छोड़ दिया था.

‘‘मिला था. अभिनंदन… मेरे अधीनस्थ

काम करता था. कोर्टकचहरी की भागदौड़ से

ले कर बैंक से रुपए निकलवाने में उस ने मेरी मदद की थी. उस के साथ रह कर लगा

इंसानियत अभी मरी नहीं है… अभिनंदन जैसे लोगों के मन में बसती है. विश्वास करने का मन किया था उस पर… सच पूछो तो उस के साथ एक बार फिर घर बसाने का विचार भी आया था मन में.

‘‘लेकिन वह भी मेरा भ्रम था. अपनी उच्चाकांक्षाओं के चलते उस ने अपने सहकर्ताओं से पहले प्रौन्नति पाने के लिए मेरा जीभर कर इस्तेमाल किया… बौस यानी बेताज बादशाह, जिसे चाहे नौकरी पर रखे, जिसे चाहे निकाले… महिला मंडल में हर समय फुसफुसाहट होती… पुरुष वर्ग खुल्लमखुल्ला फबतियां कसता कि अभिनंदन की तो लौटरी लग गई… हम से जूनियर है और प्रगति हम से अधिक कर गया… भई जिस के ऊपर बौस का वरदहस्त हो उस की आनबानशान के क्या कहने. अभिनंदन खिसियानी हंसी की आड़ में यह कटुता झेल जाता पर मेरा मन उस के प्रति दया से द्रवीभूत हो उठता. अजीब हैं ये लोग, कैसीकैसी बातें करते हैं?’’ एक दिन मैं ने दुखी हो कर कहा.

‘‘इशिताजी जलते हैं ये लोग हमारे रिश्ते से. सब को तो आप के जैसी सुंदर, सुगढ़ प्रेयसी नहीं मिलती न.’’

‘‘उस के इन शब्दों को सुन कर मैं सहज भाव से सोचने लगती कि कितना निर्मल हृदय है अभिनंदन का… जमाने के उतारचढ़ाव से अनजान.

‘‘एक दिन मैं ने विवाह जैसे गंभीर विषय को ले कर उस से बात की तो वह

तुरंत टाल गया. फिर कभी गांव जाने का बहाना, कभी मां से अनुमति लेने का बहाना बनाता रहा. एक दिन मैं ने बहुत जोर दिया तो फिर विद्रूप सा बोला कि किस गलतफहमी में जी रही हैं इशिताजी? आप ने कैसे सोच लिया कि मैं आप जैसी तलाकशुदा और 1 बेटे की मां से शादी करूंगा? मेरा रिश्ता पिछले साल मेरी बचपन की मित्र सोनाली से तय हो चुका है… सिर्फ इंतजार कर रहा था, कब मेरी प्रमोशन हो और मैं शादी के कार्ड छपवाऊं?

‘‘चीखचीख कर रोने को मन करने लगा. गले से घुटती सी आवाजें निकलने लगीं… चीख ने घुटती आवाजों का रूप ले लिया… उस शातिर इंसान ने एक निष्पाप मन को अपमानित किया था… वह सीधासरल नहीं, बल्कि वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ दिखने की चेष्टा करता रहा था. लगा उसी वक्त अपने तेज नाखूनों से उस का मुंह नोच डालूं… वह मुझे दलदल में धकेलता गया और मैं जान तक नहीं पाई.

‘‘कितने दिनों तक घर का दरवाजा बंद कर के रोती रहती थी… लगता रोने के लिए यह जगह बेहद सुरक्षित है, न कोई देखने वाला… किसी को दिखाना भी नहीं चाहती थी. लेकिन धीरेधीरे मेरे आंसू थम गए. सोचती, घर के बाहर मैं सीना तान कर, सिर उठा कर चलती हूं, लेकिन घर आ कर मुझे क्या हो जाता है? बाहर निकल कर ये आवाजें दीवारों, खिड़कियों, दरवाजों से टकराएंगी, फिर यंत्रवत यहांवहां फैले शोर में घुलमिल जाएंगी. घुटती आवाजें जब बंद हो जाएंगी तब सीने से दर्द का यह सैलाब मुझे नीचे से ऊपर तक झकझोर देगा और मैं भंजित प्रतिमा की तरह बिखरती जाऊंगी… नहींनहीं मुझे बिखरने का अधिकार नहीं… हालांकि दुनिया चाहती है कि कब मैं गिरूं और वह तमाशा देखे. मेरे फिसल कर गिर जाने से, मेरे अंगभंग हो जाने से न जाने कितने दिलों और दिमागों को सुकून मिलेगा… लेकिन ऐसा होगा नहीं. मेरे पैर चलतेचलते इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि लड़खड़ा कर भी मुझे गिरने नहीं देते… ठोकरें पड़ी हों तो उन को भी झेल लेते हैं, धरती से मुझे प्यार है और धरती पर पुष्पों का सपना बेमानी हो गया है.’’

इशिता मेरे साथ बाहर दालान में आ गई. बागीचे के फूलों की ताजगी उस के भीतर प्रविष्ट हो उसे अलौकिक आनंद दे रही थी… सुखद हो संघर्षमयी इशिता की यात्रा, इसी कामना के साथ मैं उठ खड़ी हुई.

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Serial Story: फैसला दर फैसला- भाग 1

‘‘इसमहीने की 12 तारीख को अदालत से फिर आगे की तारीख मिली है. अभी भी मामला गवाहियों पर अटका है. हर तारीख पर दी जाने वाली अगली तारीख किस तरह किसी की रोशन जिंदगी में अपनी कालिख पोत देती है, यह कोई मुझ से पूछे.’’

न जाने कितनी बार इशिता का भेजा मेल उलटपलट कर पढ़ चुकी थी मैं. हर बार नजर उन 2 पंक्तियों पर अटक जाती, जिन में उस ने प्रसन्न से तलाक लेने की बात की थी. 20 बरस तक विवाह की मजबूत डोर से बंधी जिंदगी जीतेजीते तो पतिपत्नी एकदूसरे की आदत बन जाते हैं, एकदूसरे के अनुरूप ढल जाते हैं, फिर अलग होने का प्रश्न ही कहां उठता है?

मन की गहराइयों से आती आवाज ने पुरजोर कोशिश की थी इस सच को नकारने की, पर यथार्थ मेल में भेजी उन 2 पंक्तियों के रूप में मेरे सामने था. कैसे विश्वास करूं, समझ नहीं पा रही थी… सबकुछ झूठ सा लग रहा था.

मन अतीत में भटकने लगा था… बरसों पुरानी धुंधली यादें मेरे मनमस्तिष्क पर एक के बाद एक अपने रंगरूप में साकार सी हो उठी थीं. मेरे सामने थी मातापिता के टूटे रिश्तों की बदरंग तसवीर, सहमी सी इशिता, जिस ने मामामामी के तलाक की परिणति में उस उम्र में दरदर की ठोकरें खाई थीं, जब लड़कियां गुडि़यों के ब्याह रचाती हैं और मामामामी जब पुनर्विवाह की डोर में बंध गए तो नन्ही इशि मेरी मां की गोद में शाख से गिरे पत्ते की भांति आ कर गिरी थी.

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वैसे मां खुद ही उसे अपने घर ले आई थीं. अपनेअपने नीड़ के निर्माण में मग्न मामामामी को तिनके जोड़ने और तोड़ने से ही फुरसत कहां थी, जो अपनी बेटी को रोकते? कभी पलट कर मां से उस की खोजखबर भी तो नहीं ली थी उन्होंने.

यों मां ने इशिता को भरपूर प्यार दिया था. अपनी और भाई की बेटी की देखरेख में अंतर नहीं किया, लेकिन फिर भी इशिता का भावुक मन कई बार विचलित हुआ था. मां सबकुछ दे कर भी मां नहीं बन सकी थीं. कई बार उस का मन करता उस की जिद पर, नादानी पर कोई डांटे, रोने पर कोई दुलार करे, पर उसे रोने का अवसर ही कब देती थीं मां?

इतना प्यार जताने के बाद भी उसे अपनी जननी न जाने क्यों याद आती. अकसर मेरी गोद में सिर रख कर इशिता सिसक उठती, ‘‘दीदी, चिडि़या भी अपने बच्चों की देखभाल तब तक करती है, जब तक वे उड़ना न सीख जाएं. अगर मुझे पाल नहीं सकते थे तो जन्म ही क्यों दिया उन्होंने?’’

मैं उस के गालों पर लुढ़क आए आंसुओं को जबतब पोंछती, पर कभी समझा नहीं पाई कि कभीकभी स्वार्थ का पलड़ा फर्ज के पलड़े से भारी हो उठता है. उस कच्ची उम्र में इस बात का मर्म समझ भी कहां पाती वह? कुछ बड़ी हुई तो हमेशा मातापिता के संबंधविच्छेद के लिए दोषी मां को ही ठहराया उस ने.

बच्चों की खातिर कराहते वैवाहिक बंधन के निर्वहन का दम भरने वाली इशिता स्वयं कैसा कठोर निर्णय ले बैठी? ऐसा क्या घटा जो वज्र जैसी छाती को मर्माहत कर गया? क्या पतिपत्नी का जुड़ाव नासूर बन कर ऐसी लहूलुहान पीड़ा दे गया कि अब कोई दूसरा विकल्प ही नहीं रह गया था? क्या दांपत्य जीवन में दरार कभी भी पड़ सकती है?

अचानक टैक्सी के रुकने की आवाज ने

मुझे ऊहापोह की यात्रा से यथार्थ में लौट आने

को विवश कर दिया. मेल में भेजे पते को

खोजती हुई मैं सही जगह पहुंच गई थी.

दिल्ली के एक पौश इलाके में स्थित बहुमंजिला इमारत में उस का सुंदर सा फ्लैट था. घर की सजावट देख कर लगा उस के पास जीविका के सभी साधन हैं, किसी की दया की मुहताज नहीं है वह. टेबल पर लगे फाइलों के ढेर, बारबार बजती फोन की घंटियां सब उस की व्यस्तता के स्पष्ट परिचायक थे.

इशिता शायद घर पर नहीं थी वरना मेरे आने की सूचना सुन कर जरूर पहुंच गई होती. अब तक नौकरानी चायनाश्ता दे गई थी. मैं कोने में रखे स्टूल पर से अलबम उठा कर उस के काले पन्ने बदलने में मशगूल हो गई, जिस में संजोई यादें अब इशिता का अतीत बन चुकी थीं.

कुछ ही देर में इशिता मेरे सामने थी. उसे आलिंगन में ले कर जैसे ही मैं ने उस

के माथे को चूमा उस के आंसू उस के गालों पर लुढ़क गए. ये आंसू दांपत्य की टूटन और सामाजिक प्रताड़ना के त्रास से उत्पन्न हताशा के सूचक थे या किसी अपने आत्मीय से मिलने की खुशी में उस का तनमन भिगो गए थे, जान ही नहीं पाई मैं. 20 बरस के अंतराल में बहुत कुछ सरक गया था… यही सब तो पूछने आई थी मैं उस के पास.

काफी समय इधरउधर की बातों में ही निकल गया. कभी वह आलोक के बारे में

पूछती, कभी मेरे बेटे और बहू के बारे में प्रश्न करती. मैं कनखियों से उस के दिव्य रूप को निहार रही थी. वही गौर वर्ण, छरहरा संगमरमर सा तराशा शरीर, कंटीली भवें, सूतवां नाक, मृगनयनी सी आंखें, कुल मिला कर अभी भी किसी पुरुष को आकर्षित कर सकती थीं… वही सौम्य व्यवहार, वही शिष्टता. कुछ भी तो नहीं बदला था.

हां, सहमी सी रहने वाली इशिता की जगह अब मेरे सामने बैठी थी सुदृढ़, आत्मविश्वास से भरपूर इशिता, जिस ने जीवन की टेढ़ीमेढ़ी पगडंडियों और अंधेरे रास्तों पर आने वाली हर अड़चन को चुनौती के रूप में स्वीकार किया था. उस की मांग का सिंदूर, कलाइयों में खनकती लाल चूडि़यां और माथे पर लाल बिंदिया देख कर तो मन शंकित हो उठा था कि ये सुहागचिह्न तो पति के अस्तित्व के सूचक हैं, फिर वह मेल?

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अब तक मैं अपने ऊपर नियंत्रण खो चुकी थी, लेकिन कुछ पूछने से पहले ही वह कोई न कोई प्रश्न कर देती जैसे अपने अतीत को कुरेदने से डरती हो.

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Serial Story: फैसला दर फैसला- भाग 2

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रात का भोजन समाप्त कर हम ऊपर शयनकक्ष में आ गए. बरबस ही मेरा ध्यान स्टूल पर रखे उस के बेटे के फोटो की तरफ चला गया. कुछ पूछने से पहले मैं ने उसे किसी गुरु की तरह समझाना शुरू किया, ‘‘इशि, जिंदगी उतनी सपाट नहीं है. एक बार दुखों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है. उस के बाद सुखों की ढलान आती है… जब तक इन तकलीफों से

गुजरो नहीं, ऐसा लगता ही नहीं कि हम ने

कुछ किया…’’

‘‘शादीब्याह जब मसला बन जाए तो औरतमर्द के रिश्ते की अहमियत ही क्या रह जाती है? रिश्तों की आंच ही न रहे तो सांसों की गरमी एकदूसरे को जला सकती है, उन्हें गरमा नहीं सकती,’’ उस की वाणी अवरुद्ध हो गई थी.

मैं ने उस की दुखती रग को छू दिया, ‘‘कुछ कहेगी नहीं?’’

‘‘हारे हुए जुआरी की तरह सबकुछ लुटा कर खाली हाथ चली आई हूं… पूरे घर को बांधने के प्रयास में जान ही नहीं पाई कि जिस डोर से बांधने का प्रयास किया वह डोर ही कच्ची थी… जितना बांधने का प्रयास करती, उतनी ही डोर टूटती चली जाती… समझ ही नहीं पाई कि मैं गलत कहां थी?

‘‘एक बार फिर सोच लो इशिता,’’

मैं ने कहा.

‘‘आपसी बेलागपन के बावजूद मेरा नारी स्वभाव हमेशा इच्छा करता रहा सिर पर तारों सजी छत की… मेरी छत मेरा वजूद था… बेशक इस के विश्वास और स्नेह का सीमेंट जगहजगह से उखड़ रहा था. फिर भी सिर पर कुछ तो था… पर मेरे न चाहने पर भी मेरी छत मुझ से छीन ली गई… मेरा सिर नंगा हो गया. सब उजड़ गया. नीड़ का तिनकातिनका बिखर गया. प्रेम का पंछी दूर कहीं क्षितिज के पार गुम हो गया,’’ इशिता

की मुसकराहट में छिपी उस के मन की वेदना स्पष्ट थी.

‘‘प्रसन्न से तुम ने प्रेम विवाह किया था…’’ उसे कुरेदने के विचार से मैं ने अगला प्रश्न किया.

‘‘तुम्हारे अमेरिका जाने के बाद मैं बिलकुल अकेली रह गई थी. बूआ भी ज्यादा समय तक नहीं जी पाई थीं. सुबह दफ्तर चली जाती तो पूरा दिन तो बीत जाता था, लेकिन रात की काली छाया अजगर के समान जब विकराल रूप ले कर मेरे सामने खड़ी होती तो मन किसी ऐसे सहारे को ढूंढ़ने के लिए तत्पर हो उठता, जो मेरा अपना हो, नितांत अपना, मेरी प्रेरणा बन कर मुझे संबल प्रदान करे, मेरी भावनाओं, संवेदनाओं को समझे.

‘‘उसी समय एक प्रोजैक्ट के दौरान मेरी भेंट प्रसन्न से हुई. मैं आर्किटैक्ट थी

और वह इंटीरियर डिजाइनर. काम के सिलसिले में अकसर हमारी भेंट होती रहती थी. हम बारबार मिलते. हम ने कब जीवनसाथी बनने की शपथ ले ली, मैं जान ही नहीं पाई.

हम दोनों का प्रेम युवा मन का कोरा भावुक प्रेम नहीं था. उस ने मेरी प्रतिभा, मेरे व्यक्तित्व को स्वीकार किया था… मात्र शारीरिक आकर्षण नहीं था वह. उस के विचारों की परिपक्वता और सहृदयता से मैं आकर्षित हुई थी. लगता था विषय से विषम परिस्थिति से भी वह मुझे उबार लेगा.’’

कुछ देर तक सन्नाटा पसरा रहा. फिर उस के होंठ अनायास बुदबुदा उठे, ‘‘ब्याह हुआ तो कुछ भी स्वप्नवत सा नहीं था… न सखियों की छेड़छाड़ न हासपरिहास ही सुना, न जयमाला डाली गई, न वंदनवार सजे. अग्नि को साक्षी मान कर दृढ़ संकल्प ले कर आई थी कि इस घर के हर सदस्य को अपने व्यवहार से अपना बना लूंगी.

‘‘प्रसन्न के परिवार ने कभी मुझे स्वीकार नहीं किया. वैसे इस में उन का दोष भी नहीं था. हमारे समाज में ब्याह के समय वर पक्ष, जिस मानसम्मान और दानदहेज की उम्मीद करता है वह सब उन्हें नहीं मिला था. तलाकशुदा मातापिता की मैं ऐसी संतान थी, जो बूआ की दया पर पलीबढ़ी थी. कन्या पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाला भी तो कोई नहीं था.

‘‘सुबह से शाम तक काम करती, लेकिन मेरे किसी गुण की तारीफ करना तो दूर उलटा मुझे नीचा दिखाने का हर संभव प्रयास किया जाता. विस्मृत, अचंभित सी मेरी आंखें प्रसन्न का संबल पाने का प्रयास करतीं, लेकिन उस के पास भी मुझे देने के लिए जैसे सबकुछ चुक गया था. मां को प्रसन्न करने के लिए कभी वह मेरी तुलना अपनी बहनों से करता, कभी मां से.

उस तिरस्कारभरे माहौल में अस्तित्व, व्यक्तित्वविहीन जीवन मैं ने कैसे जीया, यह मैं ही जानती हूं. मां के हाथों थमी डोर के इशारों पर नाचने वाला प्रसन्न ऐसा पति था जो संबंधों की गरिमा को ही नहीं पहचान पाया

मां मां होती है, बहन बहन और पत्नी पत्नी. सब के अधिकार क्षेत्र अलगअलग हैं, सीमाएं बंटी हुई हैं, फिर टकराहट कैसी? उस ने अपने घर का वातावरण नारकीय बना दिया इन तुलनाओं से. मां के सामने मेरी आलोचना करता, अवहेलना करता और जब दिन का उजास रात्रि का झीना आवरण ओढ़ लेता तो बंद कमरे में मुझे आलिंगनबद्ध कर के प्रशंसा के पुल बांधता, नए वादे करता.

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‘‘शुरूशुरू में सबकुछ अच्छा लगता रहा, फिर समझ गई कि वह इंसान दोहरी मानसिकता से जूझ रहा है. पत्नी से झूठे वादे करने वाला

वह व्यक्ति बेहद रूढि़वादी था. ब्याह से पूर्व उस के सान्निध्य में लगता था, पुरुष के बिना औरत का व्यक्तित्व अधूरा है, पंगु है और अब वह इंसान छद्म आदर्शों की सलीब पर टंगा एक असहाय व्यक्ति था जो दोहरी मानसिकता से जी रहा था.

‘‘ब्याह की मेहंदी का रंग अभी गहरा लाल ही था कि लोगों के फोन शुरू हो गए. हमें उन अनुबंधों को पूरा करना था, जिन पर ब्याह से पहले हम ने हस्ताक्षर किए थे. ग्रहक्लेश और तनाव से बचने का एकमात्र विकल्प यही था कि हम पूर्णरूप से काम के प्रति समर्पित हो जाएं. मुझे विश्वास था कि हवा के झोंके के समान यह समय भी जल्दी बीत जाएगा. प्रसन्न को भी मैं ने उस दलदल में धंसने के बजाय उस से बाहर निकलने का परामर्श दिया.

‘‘पत्नी थी उस की. शास्त्रों में स्त्री को सहचरी, सहभागी जैसी उपमाएं दी गई हैं. लेकिन प्रसन्न कुछ करना ही नहीं चाहता था. घर में ही रहना चाहता था. कभी चलता भी तो अपना चिड़चिड़ाहट और उग्र स्वभाव से ऐसा विकराल रूप धारण कर लेता कि लोग उस से दूर छिटक जाते.

‘‘हर व्यवसाय इंसान की कर्तव्यपरायणता और मृदु स्वभाव पर निर्भर करता है,

लेकिन प्रसन्न ने तो अपने ग्राहकों से लड़ने की शपथ ले ली थी. उस के व्यक्तित्व को देख

कर पहली बार महसूस हुआ था कि बाहर से सुदृढ़ दिखने वाले इस व्यक्ति की जड़ें कितनी कमजोर हैं.

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Serial Story: फैसला दर फैसला- भाग 3

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‘‘मैं समझाती, तो कु्रद्ध हो उठता, प्यार का प्रदर्शन करती तो उस का पुरुषार्थ जाग्रत हो उठता और दया दिखाती तो नन्हे बालक के समान आत्महीनता का केंचुल ओढ़ कर नन्हे बालक के समान सुबकने लगता. यही समझौता कर लिया था मैं ने कि प्रसन्न अब कुछ नहीं करेगा.

‘‘धीरेधीरे मेरा कार्यक्षेत्र बढ़ने लगा. समय, सितारों और संघर्ष ने हाथ मिलाया और काफी धन अर्जित किया मैं ने. पक्षी भी घर लौटते होंगे तो वे 2 पल सुस्ता लेते होंगे, लेकिन प्रसन्न के परिवारजन मुझ पर यों टूटते थे जैसे कबूतरों के झुंड दाना डालने पर टूटते हैं. पैसा देते समय बुरा नहीं लगता था.

‘‘हां, प्रसन्न को देख कर मन जरूर क्षुब्ध हो उठता था. एक प्रतिभाशाली, कर्मठ व्यक्ति की तरह धन अपनी प्रतिभा को अपनी जड़मति से समाप्त कर रहा था. जब तक हम दोनों पतिपत्नी एकजुट हो कर धन अर्जित नहीं करते, उन उत्तरदायित्वों का निर्वहन कैसे करते, जिन्हें हम ने विरासत में पाया था? प्रसन्न की 2 बहनों का ब्याह रचाना था, देवर की शिक्षा का दायित्व था मुझ पर, लेकिन उसे किसी बात से सरोकार नहीं था.

‘‘अब एक नई धुन सवार थी उस पर… अपनी भवन निर्माण कंपनी खुलवाना चाहता था वह. दिनरात मुझ से पैसे मांगता. उधर मां को बेटियों की चिंता थी. अपने सीमित साधनों से एक ही समय में सारे दायित्व निभाना कठिन था मेरे लिए. हर समय घर में क्लेश रहता. जवान ननदों का विवाह करना मेरी पहली प्राथमिकता थी.

अपनी सारी जमापूंजी एकत्रित कर के ननदों का ब्याह किया तो मां बहुत खुश हो गई थीं. झोली भर कर आशीर्वाद मिले मुझे. प्रशंसा मिली, मान मिला, लेकिन यह प्रशंसा ही मेरे दांपत्य पर ग्रहण के रूप में छा गई. प्रसन्न मेरी प्रशंसा से ईर्ष्यालु हो उठा. अब तक जिन्हें प्रसन्न करने के लिए अपनी पत्नी को अपमानित करता आया, वह ही क्योंकर प्रशंसा की पात्र बन गई? उस का अहं दर्प के समान उजागर हो उठा. हर समय मुझ पर फिकरे कसता, शक करता.

‘‘प्रतिस्पर्धा की थका देने वाली दौड़ की थकान से चूर शरीर और मस्तिष्क, महत्त्वाकांक्षा के ऊंचेऊंचे क्षितिज ढूंढ़ती आंखें, घर लौट कर पति का प्यार पाने को लालायित रहतीं, लेकिन वहां मेरे लिए प्रसन्न के मन में थी वितृष्णा और कई ऐसे अनबूझे प्रश्न, जो मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालते थे. शक में बंधी जिंदगी से मुक्ति पाने के लिए मैं ने एक निर्णायक कदम उठाना चाहा कि काम पर जाना बंद कर दूं.

‘‘रोज के झगड़ों का बेटे के व्यक्तित्व पर बुरा असर पड़ रहा था. मेरे इस निर्णय से प्रसन्न घबरा गया. नन्हे बालक के समान गिड़गिड़ाने लगा. आखिर जीने के लिए 2 वक्त का खाना और कपड़ा तो चाहिए ही था न.

‘अब हमारा तलाक हो ही जाए तो ही ठीक,’ मन के एक कोने से पुरजोर स्वर उभरा. एक हलकी सी उम्मीद थी मन में, शायद तलाक मंजूर होने से पहले अदालत द्वारा मिलने वाली समयावधि मौका देगी और प्रसन्न को अपनी गलती का एहसास होगा और हम फिर पहले जैसे जी सकेंगे.

‘‘तलाक लेने से पहले अवधि देने का नियम बनाने वाले कितने

समझदार रहे होंगे दीदी… या तो दंपती भावनाओं में और बंध जाते हैं या फिर प्रसन्न जैसे संकल्प कर चुके होते हैं कि तुम चाहे जो भी करो हम तो ऐसे ही जिंदगी काटेंगे.

‘‘मेरी हर उम्मीद निर्मूल साबित हुई. न बेटे के आगमन ने उसे घर से बांधा और न ही उस की जिम्मेदारियों ने. इस कमरतोड़ महंगाई में सब की इच्छाएं, जरूरतें पूरी करतेकरते न जाने कितने पल मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गए. आकर्मण्य सा वह व्यक्ति घर के छोटेछोटे दायित्व भी नहीं निभाता था.

‘‘दिन यों ही बीतते चले गए. रोहन अब वयस्क था. पिता के संबंध में कई प्रश्न पूछता. कभी मुझे दोषी ठहराता कभी पिता के अनर्गल वाक्यों का मर्म समझने की चेष्टा करता. मैं बड़ी सतर्कता से उस के प्रश्नों के उत्तर देती. उस के मन में  मैं ने पिता की ऐसी छवि उतारी कि वह आदरणीय हो उठा था उस के मन में. शायद कोई भी औरत अपने पति का अनादर अपने बेटे से नहीं करवाना चाहती.

‘‘ग्रहक्लेश और वातारण के कलुषित होने के डर से मैं ने होंठ सी लिए थे. कई संभ्रांत परिवारों से मुझे आमंत्रण मिलते, आखिर मेरा अपना भी कोई अस्तित्व है और फिर प्रतिष्ठा, मान, यश, धन सबकुछ था मेरे पास, लेकिन जी नहीं करता था कहीं भी जाने का. लोग पति से संबंधित प्रश्न पूछते तो क्या उत्तर देती? मेरा पति मुफ्त में रोटियां तोड़ने वाला एक आलसी पुरुष है? एक क्रोधी व्यक्ति के रूप में परिचय देती उस का?

‘‘जानती हो दीदी, अपने बेटे को अपने पिता की देखरेख में छोड़ कर जब काम पर जाती तो लगता, पिता के संरक्षण में सुरक्षित है मेरा बेटा, कम से कम उसे तो वह पढ़ा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं था. प्रसन्न मेरे बेटे के मन में विष घोलता रहा. उस ने रोहन के मन में मेरे प्रति घृणा के ऐसे बीज बोए कि अब वह मेरी तरफ एक नजर भी नहीं देखना चाहता.’’

उस ने विस्फारित नजरों से मुझे देखा जैसे मुझ से ही प्रश्न कर रही हो.

फिर कुछ देर बाद आगे बोली, ‘‘दीदी, विश्वास कर सकती हो तुम इस नीच हरकत पर?’’

‘‘तुम ने प्रतिवाद नहीं किया?’’

‘‘कई बार किया था पर मनुष्य कभी आत्मविश्लेषण नहीं करता. करता भी है तो

सामने वाले को ही दोषी मानता है. यही प्रसन्न

ने भी किया. कई बार मनुष्य के अच्छे संस्कार उसे बुरा करने से रोकते हैं, लेकिन प्रसन्न के मन में शायद अच्छे संस्कार थे ही नहीं और फिर किसी के प्रति मन में पे्रम या सद्भावना हो तो मनुष्य अपने दोष ढूंढ़ने का प्रयत्न भी करता है.

‘‘प्रसन्न के मन में मेरे लिए घृणा थी, प्यार नहीं. नीचा दिखाने की चाहत थी, सम्मान की भावना नहीं. एकतरफा संबंध था हमारा. संबंध भी नहीं समझौता कहो इसे… क्या नहीं किया मैं ने उस के परिवार के लिए? एक कुशल योद्धा की तरह हर कर्तव्य का पालन किया मैं ने और फिर मैं ने तो एक सभ्य, सुसंस्कृत और शिक्षित व्यक्ति से विवाह किया था और उस ने असभ्यता की हर सीमा का उल्लंघन किया. पत्नी के शरीर को जागीर समझ कर पीड़ा दी. मैं चुप रही, मेरी अनमोल धरोहर को छल से मुझ से दूर किया, फिर भी होंठ सी लिए… शत्रु की तरह व्यवहार किया मुझ से उस ने.’’

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‘‘है कहां प्रसन्न आजकल?’’

‘‘खाड़ी देश में. एक बड़ी भवन निर्माण कंपनी खोल ली है उस ने.

आगे पढ़ें- पिछले वर्ष उस का एक मित्र उसे वहां ले गया था….

फैसला दर फैसला: तलाकशुदा इशिका ने कैसे बनाई नई पहचान

मिस इंडिया नहीं बनी लेकिन सबके दिल तक जरूर पहुंची मान्या सिंह

वो  कहते हैं  कि यदि आपके अंदर टैलेंट है और मेहनत है तो कामयाबी आपके कदम जरूर चूमेगी. मान्या सिंह भी एक ऐसी ही कामयाबी का नाम है. दरअसल मिस इंडिया हो या कोई भी ब्यूटी कॉन्टेस्ट हो उसमें अक्सर लोगों की धारणा ये बनती है कि ये अमीरों के लिए होता है जिनके पास पैसे होते हैं वही लोग जा सकते हैं लेकिन यहां बात एक ऐसी लड़की की हो रही है जो एक मिडिल क्लास फैमिली से आती हैं .उनका नाम है मान्या सिंह जो उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की रहने वाली हैं.वो कहते हैं न की पैसा नहीं आपका टैलेंट बोलता है तो बस कुछ ऐसा ही हुआ है उत्तर प्रदेश की मान्या सिंह के साथ.उनके पिता मुंबई में एक ऑटो ड्राइवर हैं और मां टेलर हैं.आज उनकी बेटी ने उनका सर गर्व से ऊंचा किया है और होगा भी क्यों नहीं क्योंकि बेटी ने काम ही ऐसा किया. मिस इंडिया 2020 में भले ही मान्या मिस इंडिया नहीं बनी लेकिन वो  मिस इंडिया फर्स्ट रनरअप रहीं.जो मान्या के परिवार के बहुत ही गर्व की बात है.

रास्ते आसान नहीं थे मान्या के लिए लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और यहां तक पहुंची. उनकी ये कहानी ऐसी कई लड़कियों के लिए मिसाल साबित हो सकती है जो अपने सपने पूरा करना चाहती हैं औऱ जीवन में कुछ बड़ा करना चाहती हैं.आज जो भी मान्या सिंह के बारे में सुन रहा है या पढ़ रहा है वो उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक है.मान्या सिंह इस वक्त सोशल मीडिया पर इतनी फेमस हो रही हैं कि उनके बारे में हर कोई जानना चाहता है.

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मान्या सिंह का जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है. यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है.क्योंकि एक ऐसा देश जहां अभी भी लड़कियों के लिए कुछ लोग ये सोच रखते हैं कि वो आगे नहीं बढ़ सकती हैं और उनका काम घर संभालना और किचन संभालना है , लेकिन फिर भी मान्या सिंह जैसे लोग ऐसे लोगों को गलत साबित करती हैं और आगे बढ़ कर दिखाती हैं. मान्या का बचपन काफी मुश्किलों भरा रहा है. उनकी राह इतनी आसान नही रही है.मान्या ने खुद कहा कि लोगों की सोच अलग-अलग होती है. देश में कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ कुछ लोग सोचते हैं कि लड़कियां ज़्यादा आगे नहीं बढ़ सकतीं.लेकिन मुझे तो इसे गलत साबित करना ही था ठान लिया था.उनके माता- पिता ने भी मान्या का पूरा-पूरा साथ दिया खुद मान्या ने भी कॉल सेंटर काम किया ताकि पैसे जुटा सकें. एक खबर के मुताबिक मान्या ने खुद कहा कि “मैं हमेशा मानती हूँ कि औरतों में एक अलग ताकत होती है. इसलिए मैं जब भी अपने माता-पिता की तरफ देखती हूँ तो यही सोचती हूँ कि रुकना नहीं है क्योंकि अगर रुक गई तो कहीं माता-पिता के मन में ये बात ना जाए कि शायद बेटा होता तो संभाल लेता. इसलिए मैंने बड़ी बेटी होने का फर्ज निभाया और कुछ करना है ठान लिया था.मैं लड़का तो नहीं बन सकती थी लेकिन मैंने ऐसा ज़रूर किया कि उन्हें बड़े लड़के की ज़रूरत ही नहीं हो. मेरी मेहनत अगर 20 फीसदी है तो उनकी लगन और मेहनत भी 80 फीसदी या कहें कि उससे ज्यादा ही है क्योंकि उन्होंने मेरा हर कदम पर साथ दिया है और मेरे लिए वो मेरे प्रेरणा हैं.

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अभ्युदय योजना से प्रदेश के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलेगी मदद

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अभ्युदय योजना प्रदेश के युवाओं के उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करने की राज्य सरकार की एक अभिनव योजना है. यह योजना प्रदेश के युवाओं के लिए समर्पित है. अभ्युदय योजना राज्य के युवाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी. जब बड़ी-बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रदेश का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, तो उसका लाभ भी प्रदेश को होगा.

मुख्यमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर अभ्युदय योजना का शुभारम्भ करने के पश्चात इस योजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने ने कहा कि युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निःशुल्क कोचिंग प्रदान करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक अभिनव पहल करते हुए यह योजना प्रारम्भ की गयी है. अभ्युदय योजना के अन्तर्गत 16 फरवरी, 2021 को बसन्त पंचमी से प्रदेश में क्लासेज शुरू हुई. जिन युवाओं का टेस्ट के माध्यम से चयन हुआ है, उन्हें मण्डल मुख्यालय में साक्षात क्लास अटेण्ड करने का अवसर मिलेगा. शेष अभ्यर्थी वर्चुअल माध्यम से ऑनलाइन क्लास से जुड़ सकेंगे. उन्होंने कहा कि युवाओं को जिस भी फील्ड में जाना हो, उसकी शुरुआत अच्छे से करें. मजबूत बुनियाद ही मजबूत इमारत का आधार होती है. अभ्युदय योजना को लेकर यही भाव रखा गया है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि 50 लाख से अधिक लोगों ने इस योजना में रुचि दिखायी है. 05 लाख से अधिक लोगों ने पंजीकरण कराया, जो योजना की लोकप्रियता को स्वतः दर्शाता है. अभ्युदय योजना के माध्यम से प्रतियोगी युवाओं को आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, पीसीएस, सहित मेडिकल, आईआईटी के विशेषज्ञों का मार्गदर्शन प्राप्त होगा. अभ्युदय योजना को सफल बनाने के उद्देश्य से बेहतर फैकल्टी की व्यवस्था की जा रही है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जीवन में यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि सकारात्मक सोच ही व्यक्ति को बड़ा बना सकती है. उन्होंने कहा कि आप सभी ने बेसिक शिक्षा के विद्यालयों में व्यापक परिवर्तन देखा होगा. इस परिवर्तन का आधार एक जिलाधिकारी की सोच का परिणाम है. आज प्रदेश के 90 हजार से अधिक विद्यालयों का कायाकल्प किया जा चुका है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अभ्युदय योजना के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत बनाने की नींव और मजबूत होगी. अभ्युदय योजना को पहले चरण में 18 मण्डल मुख्यालयों में प्रारम्भ किया जा रहा है. आने वाले समय में इसका विस्तार जनपदों में भी किया जाएगा.

इस योजना में साप्ताहिक, मासिक टेस्ट भी होंगे, जिसके आधार पर स्क्रीनिंग की जाएगी.

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रतिभा की कमी नहीं है. आवश्यकता है एक योग्य मार्गदर्शक की. अभ्युदय योजना के माध्यम से इस कार्य को एक स्वरूप प्रदान किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कोई कमी नहीं है. प्रदेश के सभी जनपदांे में विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, इंजीनियरिंग कॉलेज या अन्य संस्थान हैं, जिनमें अभ्युदय की कोचिंग संचालित की जा सकेगी. योजना को तकनीक के साथ जोड़ना होगा. फिजिकली क्लास में 50 से 100 विद्यार्थी इसका लाभ ले सकेंगे, वहीं सरकार का लक्ष्य वर्चुअली माध्यम से एक करोड़ युवाओं को योजना से जोड़ने का है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अभ्युदय योजना प्रदेश के युवाओं को समर्पित योजना है. प्रदेश का युवा योजना के माध्यम से अपनी प्रतिभा का लोहा देश व दुनिया में मनवा सकेगा. वर्तमान राज्य सरकार द्वारा बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं. अब तक चार लाख से अधिक युवाओं को सरकारी सेवाओं में निष्पक्ष एवं पारदर्शी चयन प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्ति प्रदान की गयी है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने अभ्युदय योजना में 05 मण्डलों के पंजीकृत अभ्यर्थियों से संवाद किया. इसके अन्तर्गत उन्होंने जनपद वाराणसी के कपिल दुबे, जनपद गोरखपुर की साक्षी पाण्डेय, जनपद प्रयागराज की शिष्या सिंह राठौर, जनपद मेरठ के हिमांशु बंसल से वर्चुअल माध्यम से संवाद किया. जनपद लखनऊ कीप्रियांशु मिश्रा व अनामिका सिंह से मुख्यमंत्री ने साक्षात संवाद किया. पंजीकृत अभ्यर्थियों से संवाद के दौरान मुख्यमंत्री जी ने जीवन में सफल होने के कुछ मंत्र दिये. उन्होंने कहा कि सकारात्मक सोच से एकाग्रता आती है. व्यक्ति को संयमित जीवनचर्या रखनी चाहिए. विपत्ति में व्यक्ति का सबसे बड़ा मित्र धैर्य होता है.

संवाद के दौरान एक अभ्यर्थी द्वारा ओडीओपी पर पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ओडीओपी देश में परम्परागत उत्पाद को आगे बढ़ाने की एक महत्वपूर्ण योजना है. ओडीओपी योजना देश को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा रही है.

एक अन्य अभ्यर्थी के प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार व राज्य सरकार किसानों के हितों में कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद पहली बार किसानों की चिन्ता का समाधान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किया गया है. प्रधानमंत्री जी द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से जमीन का स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया.

मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की कृषि मानसून आधारित है, ऐसे में कभी-कभी कृषकांे को काफी नुकसान होता है. इसके दृष्टिगत प्रधानमंत्री जी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से उन्हें सम्बल प्रदान करने का कार्य किया है. कृषि को तकनीक से जोड़कर किसानों के जीवन को बेहतर बनाने का कार्य किया गया है. किसानों को एमएसपी का लाभ दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री जी किसानों के हित में तीन नये कृषि कानून लाये हैं, जिससे किसानों को काफी लाभ होगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार कृषि विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है. झांसी में स्ट्रॉबेरी की खेती इसी का परिणाम है.

एक अभ्यर्थी द्वारा कोविड प्रबन्धन के विषय में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए एक रणनीति तैयार की गयी थी, जिसका परिणाम था कि प्रदेश में कोरोना पर प्रभावी अंकुश लगा. जब प्रदेश में पहला कोरोना केस आया था, तब प्रदेश में कोविड-19 की जांच की लैब नहीं थी. लेकिन आज प्रदेश में प्रतिदिन 02 लाख कोरोना जांच की क्षमता विकसित की गयी है. सभी जनपदों में डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल और इन्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कण्ट्रोल सेण्टर ने कोरोना को रोकने में महती भूमिका निभायी.

उप मुख्यमंत्री डॉ0 दिनेश शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में प्रदेश का सर्वांगीण विकास हो रहा है. उन्होंने कहा कि अभ्युदय योजना प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए एक अच्छा प्लैटफॉर्म है. इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने प्रदेश में नकलविहीन परीक्षा सम्पन्न कराने का कार्य किया है. विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त हो सके, इसके लिए पाठ्यक्रमों में भी व्यापक बदलाव किया गया है.

समाज कल्याण मंत्री श्री रमापति शास्त्री ने कहा कि मुख्यमंत्री जी अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को लाभान्वित करने के लिए संकल्पित हैं. निश्चित ही अभ्युदय योजना आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित होगी.

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री आरके तिवारी, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव एमएसएमई एवं सूचना श्री नवनीत सहगल, पुलिस महानिदेशक श्री हितेश सी अवस्थी, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री एवं सूचना श्री संजय प्रसाद, मण्डलायुक्त लखनऊ श्री रंजन कुमार, आईजी रेन्ज लखनऊ श्रीमती लक्ष्मी सिंह सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

Dia Mirza Wedding: 39 की उम्र में दोबारा दुल्हन बनीं दीया, इस शख्स से की दूसरी शादी

बौलीवुड में शादियों का सिलसिला शुरु हो चुका है. जहां पिछले दिनों एक्टर वरुण धवन ने अपनी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल संग शादी की तो वहीं अब एक्ट्रेस दीया मिर्जा (Dia Mirza) ने वेलेंटाइन डे के एक दिन बाद दूसरी शादी करके फैंस को चौंका दिया है. इसी बीच सोशलमीडिया पर दीया मिर्जा की शादी की फोटोज वायरल हो रही हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं दिया मिर्जा की शादी के बाद की खास फोटोज…

बिजनेसमैन संग रचाई दूसरी शादी

एक्ट्रेस दीया मिर्जा (Dia Mirza) ने पूरे रीति-रिवाज के साथ बिजनेसमैन वैभव रेखी (Vaibhav Rekhi) संग दूसरी शादी कर ली है. जहां दीया मिर्जा की इस ग्रैंड शादी में कई सितारों ने शिरकत की तो वहीं मीडिया के सामने पति के साथ दीया ने कई फोटोज क्लिक करवाई.

 

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मीडिया के सामने दिए पोज

 

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शादी की खबरों से दूर दीया मिर्जा की अचानक दूसरी शादी की खबर से जहां फैंस चौंक गए तो वहीं मीडिया में इस खबर के सामने आने के बाद हलचल मच गई. हालांकि अपनी शादी के बाद दीया ने मीडिया के सामने जमकर पोज दिए.

कुछ यूं था दिया मिर्जा का लुक

 

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पूरे पारंपरिक रीति रिवाज के साथ शादी करने वाली दीया मिर्जा ने लाल रंग की सिल्क साड़ी पहनी थीं, जिसमें वह दुल्हन के लुक में बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

दोनों की है दूसरी शादी

 

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दीया मिर्जा की जहां पहले साहिल सांघा संग शादी रचाई थी. हालांकि तलाक के कारण वह सुर्खियों में भी रही थीं. वहीं दीया मिर्जा के पति वैभव रेखी की भी ये दूसरी शादी है. साथ ही वह एक बेटी के पिता भी हैं.

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बता दें, दीया कई हिट बौलीवुड फिल्मों में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुकी हैं. हालांकि अब वह कम ही फिल्मों का हिस्सा बनती नजर आती हैं.

BIGG BOSS 14: फिनाले से पहले रुबीना-अभिनव की रोमेंटिक डेट, दोबारा करेंगे शादी!

कलर्स के रियलिटी शो ‘बिग बॉस 14’ में हाल ही में वेलेंटाइन डे सेलिब्रेट किया गया था, जिसमें राहुल वैद्य की गर्लफ्रेंड दिशा परमार नजर आईं थीं. हालांकि फैंस को रुबीना दिलैक के पति अभिनव शुक्ला का इंतजार था. लेकिन अब फैंस का ये इंतजार खत्म होने वाला है. दरअसल, हाल ही में रिलीज किए गए प्रोमो में अभिनव शुक्ला और रुबीना डेट का लुत्फ उठाते नजर आ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

डेट पर जाएंगी रुबीना

अपकमिंग एपिसोड में अभिनव और रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik) डेट पर जाते हुए नजर आने वाले हैं.  दरअसल, ‘बिग बॉस 14 के प्रोमो में अभिनव शुक्ला (Abhinav Shukla) शीशे की एक दीवार के दूसरी ओर बैठे हुए नजर आ रहे हैं. जहां अभिनव और रुबीना एक-दूसरे से प्यार भरी बातें करते दिख रहे हैं. वहीं इस बीच अभिनव, रुबीना दिलाइक को शादी के लिए प्रपोज कर रहे हैं.

https://www.youtube.com/watch?time_continue=1&v=pmKyVoDzkvw&feature=emb_logo

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राहुल और रुबीना की हुई दोस्ती

https://www.youtube.com/watch?v=34Dfzf66Dec

शो की शुरुआत से ही राहुल और रुबीना की लड़ाईया होती रही है, जिसे देखकर फैंस अंदाजा भी नही लगा सकते थे कि ये दोनों कभी दोस्त भी बन सकते हैं. लेकिन अब राहुल और रुबीना की दोस्ती हो गई हैं. जहां शो में दोनों इन दिनों मस्ती करते नजर आ रहे हैं तो वहीं शो के बाहर फैंस को इनकी मस्ती देखने को मिल रही हैं.

एक कंटेस्टेंट होगा बेघर

https://www.youtube.com/watch?v=2sopj2ObKa0

खबरों की मानें तो शो के फिनाले वीक में एक टास्क होने वाला है, जिसमें खास बात यह है कि इविक्शन भी होता नजर आएगा. कहा जा रहा है कि फिनाले वीक में रातोंरात कोई एक कंटेस्टेंट बेघर होगा और जो टॉप-4 में बचेंगे, उनके बीच मनी बैग वाला टास्क होगा.

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बता दें, शो में अभी 5 फाइनलिस्ट अली गोनी, रुबीना दिलैक, राहुल वैद्य, निक्की तम्बोली और राखी सावंत हैं, जिनके बीच बिग बौस का खिताब किसे मिलेगा ये देखना दिलचस्प होगा.

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